राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 27 )
अब तक,,,,,,,
"ये सच कहा तुमने यार।" महेन्द्र सिंह ने आह सी भरते हुए कहा___"अब तो किसी से भरपूर तरीके से संभोग करने का मन कर रहा है। लड़कियाॅ तो बहुत हैं अपने पास मगर हम इनके साथ कुछ कर नहीं सकते क्योंकि संभोग के बाद ये कुवाॅरी नहीं रह जाएॅगी। जबकि महाशैतान के सामने हमें कुवाॅरी लड़कियाॅ लेकर जाना है।"
"रात तक की बात है मित्र।" रंगनाथ ने गहरी साॅस ली, बोला___"इन लड़कियों को सही सलामत कृत्या के पास पहुॅचा कर हम कृत्या के साथ भरपूर संभोग का मज़ा लूटेंगे। उसके जैसा मज़ा इस दुनियाॅ की कोई औरत नहीं दे सकती।"
"ठीक है यार।" महेन्द्र सिंह ने कहा__"तब तक के लिए किसी तरह अपने अंदर की गर्मी को शान्त रखना होगा। अब तुम जाओ और उस वाहन का बंदोबस्त करो और साथ ही उस सबका भी।"
"ठीक है मित्र।" रंगनाथ ने कुर्सी से उठते हुए कहा___"मैं जा रहा हूॅ सारी चीज़ों की ब्यवस्था करने। तुम उन लड़कियों पर भी ध्यान देना। मैं शाम तक आ जाऊॅगा।"
रंगनाथ की बात सुन कर महेन्द्र सिंह ने हाॅ में सिर हिलाया जबकि रंगनाथ बाहर की तरफ बढ़ता चला गया।
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अब आगे,,,,,,,,
मैं रानी को लेकर पहले अपने घर गया, वहाॅ पर मैने अपने कपड़े बदले और फिर रानी के साथ अपनी कार से मैं कालेज चला गया। वहाॅ पर मैंने प्रिंसिपल के पास छुट्टी की अप्लीकेशन दी और फिर मैं वापस रानी के साथ घर आ गया। घर पर जब मैं आया तो देखा कि रिशभ मामा और वीर चाचू सारा सामान लेकर आ गए थे। जिसे वो अलग अलग कमरों में सजा रहे थे।
मैं ये चाह रहा था कि मुझे अपने लिए एक अलग कमरा मिल जाए ताकि मैं स्वतंत्र रूप से अपने किसी भी काम को कर सकूॅ। इसके लिए मैने किसी से कहा नहीं। क्योंकि मैं समझ चुका था कि मुझे अब से माॅ(रेखा) के साथ ही उनके कमरे में सोना होगा। उन्होंने ये बात पहले ही सबको बता दी थी और मैं इस बारे में उनसे कुछ कह नहीं सकता था। मुझे लगता था कि मेरे ऐसा कहने पर उन्हें दुख लगेगा। बात भी सही थी, मैं उन्हें आज वर्षों बाद मिला था इस लिए कोई भी माॅ यही चाहेगी कि उसका बेटा हर पल उसके पास ही रहे। हलाॅकि उन्होंने मेनका और काया माॅ के संबंध में अपनी बात साफ कर दी थी।
मेरे असल माता पिता और बहन मेरी उस असलियत से नावाकिफ़ थे। वो नहीं जानते थे कि मैं कोई आम इंसान नहीं हूॅ बल्कि अद्भुत शक्तियों से संपन्न एक असाधारण इंसान हूॅ। जिसे खुद ईश्वर ने संसार के कल्याण हेतु चुना था। हलाॅकि मुझे अभी तक ये पता नहीं था कि इतनी अद्भुत शक्तियों से विभूषित मैं ऐसा कौन सा काम करने वाला हूॅ भविष्य में? किन्तु इतना अवश्य समझ रहा था कि आने वाले समय में मुझे कोई बहुत बड़ा काम करना था। कोई ऐसा काम जो सिर्फ ऐसी अद्भुत शक्तियों के द्वारा ही हो सकेगा।
मेरे सामने अब नई समस्या यही थी कि अपनी इन शक्तियों के बारे में मुझे अपने असल माता पिता से किसी भी हाल में छुपा कर ही रखना था। माॅ के साथ उनके कमरे में रहने से आने वाले समय में मेरे लिए समस्या हो सकती थी। इस लिए मैंने इस समस्या से निजात पाने के लिए मेनका माॅ के पास गया और उनसे इस बारे में बात की।
"तो तुम ये चाहते हो कि तुम स्वतंत्र रूप से एक अलग कमरे में रहो।" मेनका माॅ ने सारी बात सुनने के बाद कहा___"ताकि किसी भी काम को करने में तुम्हें कोई परेशानी न हो सके। तुम्हें लगता है कि माॅ कमरे में उनके साथ रहते हुए किसी दिन तुम अपने असल काम में पकड़े न जाओ?"
"जी बिलकुल।" मैने कहा___"ये सब मेरी उस असलियत को हजम नहीं कर पाएॅगे माॅ। इस लिए मैं ऐसा चाहता हूॅ। अब आप ही कुछ कीजिए ऐसा जिससे मैं एक अलग कमरे में रह सकूॅ।"
"बात तो तुम्हारी यकीनन सही है।" मेनका माॅ ने कहा___"लेकिन तुम्हारे अलग कमरे में रहने की बात तुम्हारी अपनी माॅ से कौन कह सकता है और किस तरह कह सकता है? उनको इसकी क्या वजह बताएॅगे?"
"कोई न कोई ठोस वजह उन्हें बतानी ही पड़ेगी माॅ।" मैने कहा___"वरना आपको पता है कि ऐसे में किसी दिन उनको पता चल ही जाएगा।"
"कल हम सब हिमालय गुरूदेव के पास जा रहे हैं।" माॅ ने कहा___"उनसे ही इस बारे में बात करेंगे। वही बताएॅगे कि ऐसी परिस्थिति में हमें क्या करना चाहिए?"
"हाॅ ये आपने सही कहा माॅ।" मैने खुशी से कहा___"गुरूदेव यकीनन इस समस्या का कोई न कोई समाधान बताएॅगे हमे। ठीक है फिर, अब गुरूदेव से बात करने के बाद ही आगे का काम करेंगे।"
"अच्छा एक बात बता मुझे।" मेनका माॅ ने कुछ सोचते हुए कहा___"रानी के बारे में क्या सोचा है तुमने?"
"क्या मतलब?" मैने सहसा चौंकते हुए कहा__"आप कहना कहना क्या चाहती हैं माॅ?"
"मैं क्या कहना चाहती हूॅ ये तू बखूबी समझ चुका है राज।" माॅ ने कहा___"फिर भी अगर मेरे मुख से ही सुनना चाहता है तो ठीक है सुन___मैने रानी की ऑखों में तेरे लिए बेपनाह मोहब्बत देखी है। और ये भी समझ सकती हूॅ कि वो तेरे लिए कितना तड़प रही है। इस लिए मैं ये कहना चाहती हूॅ कि तू उसके प्रेम को कब स्वीकार करेगा? सब कुछ जानते बूझते हुए भी तू उस मासूम को इतनी तक़लीफ क्यों दे रहा है?"
"मैं जानता हूॅ माॅ कि रानी को तक़लीफ देकर मैं ग़लत कर रहा हूॅ।" मैने गंभीर लहजे से कहा__"और यकीन मानिये ये सब करके मैं ज़रा भी खुश नहीं हूॅ। रानी को तक़लीफ देने का मतलब है कि मैं अपने आपको ही तक़लीफ़ दे रहा हूॅ।"
"अगर ऐसा सोचता है तू तो फिर ऐसा कर ही क्यों रहा है बेटे?" मेनका माॅ ने नासमझने वाले भाव से कहा___"उस मासूम के प्रेम को खुले दिल से स्वीकार क्यों नहीं कर लेता? सबके सामने हॅसते मुस्कुराते रहने वाली वो लड़की तन्हाईयों में कितना तड़पती होगी इसका एहसास है तुझे?"
"मुझे हर बात का एहसास है माॅ।" मैने पूर्वत गंभीरता से ही कहा__"मगर आप जानती हैं कि अगर मैं उसके प्रेम को स्वीकार कर लूॅगा और उसके बाद जब हम दोनों प्रेमी प्रेमिका जैसा बर्ताव करने लगेंगे तो ये बाद ज्यादा दिनों तक मेरे असल माता पिता से छुपी नहीं रह पाएगी। हलाॅकि मैं ये बात जानता हूॅ कि वो भी ये जानते हैं कि रानी अपने ही भाई से प्रेम करती है, मगर उनकी नज़र में उसका वो प्रेम उस सूरत में ज्यादा मायने नहीं रखता था जबकि उनको ये यकीन हो चुका था कि मैं इस दुनियाॅ में कहीं हूॅ ही नहीं। और जब मैं उनकी नज़र में कहीं था ही नहीं तो रानी के उस प्रेम से उन पर किसी तरह की कोई बात आती ही नहीं। मगर अब हालात बदल गए हैं माॅ, अब तो मैं उनकी नज़र में सही सलामत जीवित मौजूद हो गया हूॅ। ऐसी सूरत में जब उन्हें ये नज़र आएगा कि रानी और मैं दोनो ही एक दूसरे से प्रेम करते हैं तो सोचिए उन्हें इस बात से कितनी तक़लीफ होगी? इस संसार में कोई हमारे इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगा।क्योंकि सगे भाई बहन के बीच ऐसा रिश्ता सर्वथा अनुचित कहलाता है, और पाप भी। समाज के बीच बनी अपने पिता की ऊॅची इज्ज़त और शान को मैं ये सब दिखा कर मिट्टी में नहीं मिलाना चाहता माॅ।"
"इसका मतलब तो यही हुआ कि।" मेनका माॅ ने कहा___"तू रानी के प्रेम को ये सोच कर नहीं स्वीर करेगा कभी कि इससे तेरे पिता की इज्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी।"
"मजबूरी है माॅ।" मैने हताश भाव से कहा__"इतने वर्षों बाद मैं अपने माता पिता को मिला हूॅ, उनको खुशियाॅ देने की बजाय ये सब करके दुख नहीं देना चाहता मैं। मेरे ऐसा करने से उनके मन में यही ख़याल आएगा कि काश मैं लौट कर वापस आता ही नहीं।"
"बात तो तेरी एकदम सही है राज।" मेनका माॅ ने कहा___"यकीनन ऐसा होने से तेरे माता पिता के मन में यही बात आएगी। तो अब क्या करेगा तू? क्या सारी ज़िंदगी ऐसे ही तुम दोनो एक दूसरे के लिए तड़पते रहोगे?"
"शायद यही नसीब में है माॅ।" मैने भारी मन से कहा___"ख़ैर छोड़िये, जो होगा देखा जाएगा।"
मैंने कहा और माॅ के पास से वापस आकर सीधा बाहर की तरफ निकलता चला गया। मेरा मन बहुत भारी सा हो गया था। कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था मुझे। जब मैं बाहर आया तो मेरी नज़र एक तरफ खड़ी मेरी कार पर पड़ी। मेरी क़दम स्वतः ही उस तरफ बढ़ चले। कार के पास पहुॅच कर मैने का ड्राइंविंग डोर खोला और उसके अंदर शीट पर बैठ गया। पाॅकेट से कार की चाभी निकाल कर मैने उसे इग्नीशन पर लगा कर घुमाया तो कार स्टार्ट हो गई। कार के स्टार्ट होते ही मैने गियर लगाया और कार को मेन सड़क की तरफ दौड़ा दिया। मुझे नहीं पता था कि मैं अब कहाॅ जा रहा था? ख़ैर, शाम तक मैं यूॅ ही माधवगढ़ की सड़कों पर कार को घुमाता रहा। इस बीच मैने दो बार कार में पेट्रोल भी भरवाया था।
शाम का अॅधेरा जब छाने लगा तो मैने कार की हेडलाइट चालू की तब मुझे एहसास हुआ कि मैं सारा दिन यूॅ ही बावजह सड़कों पर भटकता रहा हूॅ। मेरे दिमाग़ ने काम करना शुरू किया। मन में एक ही ख़याल आया कि अब तक किसी ने मुझे फोन क्यों नहीं किया? मैने पैन्ट की पाॅकिट में अपना मोबाइल तलाश किया तो मोबाइल पाॅकेट में था ही नहीं। इसका मतलब मोबाइल मैं घर पर ही भूल आया था। मुझे समझते देर न लगी कि घर में सब लोग मेरे लिए परेशान होंगे। खासकर माॅ की तो हालत ख़राब हो गई होगी। ये ख़याल आते ही मैने कार को घर की तरफ मोड़ दिया और स्पीड से चल पड़ा घर की तरफ।
कुछ ही समय में मैं गर पहुॅच गया। सब लोग ड्राइंगरूम में ही बैठे थे। सबके चेहरों पर चिंता और परेशानी झलक रही थी। मुझे देखते ही सब के सब मुझसे सवाल करने लगे कि सारा दिन में कहाॅ रहा? उन सबके सवालों का जवाब मैंने अपने तरीके से देकर उन सबके मन को शान्त किया।
रात में खाना पीना खाने के बाद हम सब अपने अपने कमरे में सोने के लिए चले गए। मैं माॅ के साथ उनके ही कमरे में था। माॅ ने मुझसे पहले ढेर सारी बातें की फिर मुझे अपने सीने से छुपका कर सो जाने को कह दिया। मैंने भी उनकी बात मान कर अपनी ऑखें बंद कर ली।
अभी मुझे ऑख बंद किये कुछ ही देर हुई थी कि मेरे मोबाइल पर हल्की सी बीप की आवाज़ हुई। मैं हिल नहीं सकता था क्योंकि संभव है कि माॅ अभी सोई न हों, दूसरी बात उनका एक हाॅथ मेरी पीठ पर था। जिसके सहारे वो मुझे अपनी छाती पर छुपकाए हुए थीं। मैने माॅ की साॅसों को महसूस किया तो पता चला कि माॅ गहरी नींद में जा चुकी हैं। ये जान कर मैंने आहिस्ता से उनके हाथ को अपनी पीठ पर से हटा कर खुद को उनसे दूर किया। उसके बाद मैने अपनी पाॅकेट से मोबाइल निकाला। मोबाइल की स्क्रीन पर रानी के मैसेज का नोटीफिकेशन शो कर रहा था। मैने उसे टच करके ओपेन किया और ये देख कर मेरे होठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई कि रानी ने आज फिर से एक ग़ज़ल लिख कर भेजी थी। जो इस प्रकार थी,,,,,,,
किसी दिन हद से गुज़र जाते तो अच्छा था।
हाय उनकी याद में मर जाते तो अच्छा था।।
हम रो देते तो तौहीने वफ़ा हो जाती वर्ना,
अश्क़ ऑखों से गिर जाते तो अच्छा था।।
बंद पलकों की तरह हक़ीक़त में भी कभी,
मेरे कुछ ख़्वाब सवॅर जाते तो अच्छा था।।
फक़त इक यही आरज़ू थी के हर सू उनके,
ख़ुशबू की तरह बिखर जाते तो अच्छा था।।
समंदर के पास होने से तिश्नगी नहीं बुझती,
कभी समंदर में उतर जाते तो अच्छा था।।
रानी की ये ग़ज़ल पढ़ने के बाद मुझे समझ न आया कि मैं उसे क्या जवाब दूॅ? मैं समझ रहा था कि वो ग़ज़लों के बहाने अपने दिल का हाल मुझे बता देती है, मगर मैं सब कुछ समझते हुए भी उसकी बेहाल हो चुकी हालत के लिए कुछ कर नहीं पा रहा था। अभी तक तो ये था कि भले ही हम दोनो को एहसास है कि हम एक दूसरे से प्यार करते हैं मगर ये बात लबों के बाहर नहीं आई है। जिस दिन बाहर आ जाएगी उस दिन से वक्त और हालात बदल जाएॅगे। अभी तो हम भाई बहन की तरह बर्ताव करते हैं मगर इस सबके होने के बाद भाई बहन वाला चक्कर नहीं रह जाएगा। बल्कि हम प्रेमी प्रेमिका बन जाएॅगे और उस सूरत में हमारे बीच बहुत सी ऐसी बातें हो सकती हैं जो हमारे उस रिश्ते को किसी दिन सबके सामने उजागर भी कर सकती थीं।
मैं नहीं चाहता था कि इस सबसे एक नया बखेड़ा और एक नया दुख मेरे माता पिता के ऊपर आ जाए। कुछ देर तक रानी की भेजी हुई ग़ज़ल को देखता रहा उसके बाद मैने भारी मन से मोबाइल को एक तरफ रख दिया। बेड के एक तरफ पड़ा मैं काफी देर तक यूॅ ही लेता रहा कि तभी,,,,,,,,
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रंगनाथ जब वापस आया तो पूरी तरह शाम हो चुकी थी। उसके हाथ में एक मध्यम साइज का बैग था। जिसके अंदर शायद कुछ सामान मौजूद था। कारखाने के अंदर आकर वह महेन्द्र से मिला।
"बड़ा समय लगा दिया तुमने।" महेन्द्र ने उसे देखते हुए कहा___"साला खाली पेट इन्तज़ार करते करते मेरी तो हालत ख़राब हो गई।"
"टेंशन मत लो मित्र।" रंगनाथ ने कंधे से बैग उतारते हुए कहा___"खाली पेट का भी इंतजाम करके ही आया हूॅ। लो पहले खाना खा लो। उसके बाद काम शुरू करेंगे।"
"वो तो होगा ही।" महेन्द्र ने रंगनाथ के हाथ से उस पैकेट को पकड़ते हुए कहा जिस पैकेट को रंगनाथ ने बैग से निकाला था, फिर बोला___"लेकिन उससे पहले भरपेट खाना खाऊॅगा मैं।"
पैकेट को खोल कर महेन्द्र ने देखा उसमें काफी सारी रोटियाॅ थी और एक पाॅलिथिन में गरम गरम सब्जी थी। ये देख महेन्द्र ने अपने सूखे होठों पर जीभ फिराई और फिर टूट पड़ा सब्जी रोटी पर।
"ये सेविंग करने का सामान है।" रंगनाथ ने कहा___"जब तक तुम खाना खाओगे तब तक मैं अपनी दाढ़ी बना लेता हूॅ। उसके बाद तुम भी बना लेना। वरना इतनी बड़ी दाढ़ियों में उस पोशाक में कोई भी हम पर शक कर सकता है।"
"हाॅ ये तो सही कहा तुमने।" महेन्द्र ने कहा___"और वो वाहन ठीक ठाक है न? जिसमें हमे उन लड़कियों को ले चलना है?"
"अरे ऐसे वाहन बेहतर ही होते हैं।" रंगनाथ ने कहा___"गड़बड़ी का कोई चान्स ही नहीं होता उनमें। इस लिए बेफिकर रहो।"
"फिर तो अच्छी बात है।" महेन्द्र ने कहा और चुपचाप खाना खाने लगा। जबकि रंगनाथ अपनी दाढ़ी बनाने में लग गया।
लगभगर आधे घण्टे बाद दोनो यार तैयार थे। दोनो ने एक दूसरे के सिर के बालों को भी काट दिया था। सब कुछ करने के बाद रंगनाथ ने बैग से जो सामान निकाला वो आर्मी की पोशाक थी। दोनो ने उस पोशाक को पहनने के बाद सिर पर कैप भी लगा ली।
अब कोई भी उन्हें देख कर यही कहता कि ये दोनो हिन्दुस्तान के फौजी हैं। सिर से लेकर पाॅव तक सब कुछ फौजियों जैसा ही था। ख़ैर, दोनो तैयार होकर उस तरफ चल पड़े जिस तरफ इन लोगों ने लड़कियों को बेहोश करके रखा हुआ था। कुछ ही देर में ये दोनो एक हाल जैसे कमरे में पहुॅचे। हाल के फर्स पर सभी लड़किया अस्त ब्यस्त हालत में पड़ी हुई थी। सबके हाॅथ पीछे की तरफ बॅधे हुए थे और सबके मुख पर टेप लगा हुआ था ताकि किसी के मुझ से किसी तरह की आवाज़ न निकले।
"ये सब तो अभी भी बेहोश हैं मित्र।" रंगनाथ ने सभी लड़कियों की तरफ देखते हुए कहा__"क्या फिर से इन सबको इंजेक्शन दिया है तुमने?"
"वो तो देना ही था।" महेन्द्र ने कहा__"वो क्या है कि टाइम हो गया था इनके होश में आने का। इस लिए इन सबके पिछवाड़ों पर फिर से ठोंक दिया इंजेक्शन मैने।"
"चलो अच्छा ही है।" रंगनाथ ने कहा__"इस हालत में इन्हें यहाॅ से ले जाकर उस आर्मी वाले डग्गे में डालने में आसानी ही होगी। अब चलो, हमें देर नहीं करना चाहिए।"
"सही कहा।" महेन्द्र ने कहा__"चलो इन सबको उस डग्गे में डालते हैं।"
दोनो ही आगे बढ़े और फिर दोनो ही एक एक करके उन सभी लड़कियों को हाल से उठा कर बाहर अॅधेरे में खड़े डग्गे पर डाल दिया और फिर डग्गे से नीचे उतर कर दोनो ने डग्गे का पीछे वाला वो फटका बंद कर किया। डग्गे में पीछे साइड ही एक मोटा सा खाकी का कपड़ा लगा हुआ था, जिसे खींच कर इन दोनो ने डग्गे का पिछला सारा पोर्शन भी ढॅक दिया।
"यहाॅ पर अपना कोई सामान तो नहीं रह गया है न?" महेन्द्र ने कहा___"एक बार अंदर जाकर ठीक तरह से चेक कर के आओ।"
महेन्द्र के कहने पर रंगनाथ कारखाने के अंदर चला गया। थोड़ी देर बाद वह आया और डग्गे में ड्राइविंग शीट पर बैठे महेन्द्र के बगल वाली शीट पर बैठ गया। महेन्द्र ने उस ट्रक जैसे डग्गे को स्टार्ट किया और आगे बढ़ा दिया। फौजी डग्गा था और ये लोग भी फौजी के भेष में ही थे इस लिए कहीं भी इन लोगों को समस्या नहीं हुई। माधवगढ़ की आबादी से निकल कर ये शहर से बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ते चले गए।
"देखा मित्र।" रंगनाथ ने बड़े गर्व के साथ कहा___"हम दोनो बड़े आराम से आबादी से बाहर आ गए। कहीं पर भी किसी ने हमें नहीं रोंका, तलाशी लेने की तो बहुत दूर की बात है। साला कोई सोच भी नहीं सकता था कि हम लड़कियों को लेकर ऐसे बड़ी आसानी से निकल जाएॅगे।"
"मानना पड़ेगा मित्र।" महेन्द्र ने मुस्कुराते हुए कहा___"वहाॅ से सुरक्षित निकलने की क्या फाड़ू तरकीब निकाली थी तुमने। लेकिन यार, ये फौजी डग्गा तुम्हें मिल कैसे गया?"
"तुम्हें क्या लगता है दोस्त?" महेन्द्र ने कहा___"ये डग्गा सच में आर्मी वालों का हैं?"
"क्या मतलब?" महेन्द्र के माथे पर बल पड़ता चला गया।
"अरे इसे मैने मुहमागी रकम देकर बनवाया है डियर।" रंगनाथ ने कहा___"रियल फौजी डग्गा भला कैसे मिल जाता मुझे? इस लिए मैं एक ऐसे आदमी से मिला जो दो नंबर वाले काम करने में माहिर है। उसको मैने बताया कि फौजी डग्गा चाहिए। बस, वो समझ गया मेरी बात, इस लिए ज्यादा पैसों के लिए अपना मुह भाड़ की तरह फाड़ दिया। मैने भी सोचा यार गरज तो अपनी ही है। इस लिए ना नुकुर नहीं की मैने और उसे उसकी मुहमाॅगी कीमत दी। नतीजा तुम्हारे सामने है दोस्त।"
"और ये फौज की वर्दी और ये जूते?" महेन्द्र ने पूछा___"ये कहाॅ से लाए तुम?"
"यार आज कल मार्केट में हर चीज़ मिल जाती है।" रंगनाथ ने कहा___"ये सब भी मिल गया। अपना काम तसल्ली हो गया न?"
"हाॅ दोस्त।" महेन्द्र ने कहा___"ये ऐसा काम था जिसके लिए हमने जाने क्या क्या पापड़ नहीं बेले हैं अब तक?"
"पापड़ तो बेलने ही थे मित्र।" रंगनाथ ने गहरी साॅस ली___"हमें ऐसी लड़कियों को खोज कर उठाना था जिनका जन्म अमावश्या या पूनम की रात को ही हुआ हो। इस लिए ऐसे मुश्किल काम में इतने पापड़ तो बेलने ही पड़ते। आम लड़कियों को उठाना होता तो वो काम बहुत ही आसान था।"
"ये तो बिलकुल सही कहा मित्र।" महेन्द्र सिंह ने कहा___"ऐसी लड़कियों की खोज करना ही बड़ा मुश्किल काम था। ख़ैर, अब तो ये सब हो ही गया। इन सबको महाशैतान को सुपुर्द करने के बाद हमें ऐसी ऐसी शक्तियाॅ मिल जाएॅगी जिसकी वजह से हम कुछ भी कर सकेंगे।"
"सही कहा मित्र।" रंगनाथ ने कहा__"उन शक्तियों से सबसे पहले हम उस छोकरे से निपटेंगे जिसने उस दिन हमें छठी का दूध याद दिला दिया था।"
"हाॅ मित्र।" महेन्द्र की ऑखों के सामने उस रात का दृश्य घूम गया जब राज ने उसे और रंगनाथ को जंगल के किनारे जान से मारते मारते बचाया था, बोला___"उससे हम सबसे पहले निपटेंगे। उससे अपनी हार और अपने अपमान का बदला ज़रूर लेंगे हम। लेकिन मित्र, एक बात समझ में नहीं आई कि उसके पास इतनी खतरनाक शक्तियाॅ आई कहाॅ से? जिस तरह से उसे हमने वो सब करते देखा था तो यही लगता था जैसे कोई देव दूत धरती पर आ गया हो। किसी आम इंसान में ऐसी अद्भुत शक्तियों के होने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता।"
"कहीं न कहीं से तो मिली ही हैं उसे ऐसी शक्तियाॅ।" रंगनाथ ने कहा___"पिछले तेरह साल से वह गायब था। इन तेरह सालों में वह कहाॅ रहा और क्या करता रहा ये हम नहीं जानते। उसकी समस्त शक्तियाॅ ईश्वरी शक्तियों की तरह हैं। ऐसी शक्तियाॅ तो आज के युग में जीवन भर तप करने के बाद भी किसी इंसान को नहीं मिल सकती। लेकिन हैरत की बात है कि उसके पास ऐसी शक्तियों मानो भण्डार जमा है। इन तेरह सालों में उसने ऐसा क्या किया है कि उसके पास ऐसी शक्तियाॅ आ गईं?"
"कुछ तो ज़रूर किया है मित्र।" महेन्द्र सिंह ने सोचने वाले भाव से कहा___"काश हमें भी ऐसी कोई तरकीब मिल जाए जिससे हमारे पास भी उसके जैसी ही शक्तियाॅ हो जाएॅ।"
"चिंता मत करो दोस्त।" रंगनाथ ने महेन्द्र के कंधे को अपने एक हाॅथ से हल्का सा दबाते हुए कहा___"हमारे पास भी ऐसी शक्तियाॅ होंगी। बहुत जल्द हम भी शक्तिमान बन जाएॅगे।"
अभी रंगनाथ ने ये सब कहा ही था कि अचानक ही महेन्द्र ने उस ट्रक जैसे दिखने वाले डग्गे की स्पीड कम करके ब्रेक लगाया। रंगनाथ का बैलेन्स बिगड़ गया। अचानक ही ब्रेक लगाने से उसका पूरा जिस्म झोंक में सामने की तरफ तेज़ी से गया और डग्गे के सामने डायस से ज़ोर से टकराया। शुकर था कि सामने शीशे से नहीं टकराया वरना उसका सिर भी फट सकता था। ख़ैर, कुछ ही पल में महेन्द्र ने डग्गे को बीच सड़क पर रोंक दिया।
"क्या हुआ यार?" रंगनाथ ने खुद को सम्हालने के बाद ठीक से अपनी जगह पर बैठते हुए कहा___"इस तरह भी कोई ब्रेक मारता है क्या? मेरी तो कसम से जान हलक में आ गई थी। वैसे इस तरह से अचानक ब्रेक लगाने क्या ज़रूरत आ पड़ी थी?"
"सामने देखो।" महेन्द्र ने शीशे के उस पार हेडलाइट की रोशनी की तरफ एकटक देखते हुए कहा___"तुम्हें खुद ही पता चल जाएगा कि मैने अचानक इस तरह ब्रेक क्यों लगाया है?"
महेन्द्र सिंह के कहने पर रंगनाथ ने सामने शीशे के उस पार हेडलाइट की रोशनी की तरफ देखा और जिस चीज़ पर उसकी नज़र पड़ी उसने उसे बुरी तरह चौंका दिया। पलक झपकते ही उसकी हालत ख़राब हो गई। यही हाल स्टेयरिंग को दोनो हाथों से पकड़े महेन्द्र का भी हो गया था।
"ये ये यहाॅ कैसे आ गया?" रंगनाथ ने सहमे हुए लहजे मे कहा___"हे भगवान अब क्या होगा? आज ये हमें ज़िन्दा नहीं छोंड़ेगा मित्र। ये हम दोनो को जान से मार देगा आज।"
"जान से तो तब मारेगा दोस्त।" महेन्द्र ने सहसा कठोर भाव से कहा___"जब ये हमें जान से मारने के लिए जीवित बचेगा।"
"क्या मतलब?" रंगनाथ बुरी तरह चौंका।
"इसका किस्सा ही खत्म कर देता हूॅ में।" महेन्द्र ने गियर लगाते हुए कहा___"साले को इस डग्गे से कुचल देता हूॅ अभी।"
"क्या???" रंगनाथ ने हैरत से कहा था।
मगर महेन्द्र सिंह ने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि जबड़ों को कसे वह पूरी स्पीड से डग्गे को आगे सड़क पर दौड़ा दिया। उधर हेडलाइट की रोशनी में दिख रहे राज के समीप डग्गा पहुॅचा ही था कि सड़क पर खड़ा राज ऊपर की तरफ उछल गया। स्पीड में दौड़ता हुआ डग्गा काफी आगे तक चला गया। मगर महेन्द्र ने उसे रोंक लिया और बैक गीयर डाल कर फिर दौड़ा दिया उसे।
मगर पीछे तो कोई था ही नहीं। काफी दूर तक आ जाने के बाद भी कुछ ऐसा महसूस न हुआ जिससे पता चले कि कोई डग्गे से टकराया हो। डग्गा रोंक कर महेन्द्र ने सामने की तरफ देखा तो चौंक गया। क्यों कि राज तो अभी भी सामने तरफ ही खड़ा दिख रहा था। महेन्द्र को समझ न आया कि वो सामने तरफ कब और कैसे आ गया?
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बेड पर ऑखें बंद किये लेटे हुए सहसा मुझे कुछ महसूस हुआ। मैने पट से अपनी ऑखें खोल दी। मेरी नज़र बंद दरवाजे पर पड़ी। दरवाजे की निचली सतह पर मुझे गाढ़ा सफेद धुऑ अंदर की तरफ आता दिखा। ये देख कर मेरे मन में एक ही ख़याल आया___काल।
थोड़ी ही देर में वो गाढ़ा धुआॅ कमरे में आ गया और फिर कुछ ही पल में वो एक मानव आकृति का रूप लेते हुए स्पष्टरूप से मानव बन गया। तब तक मैं भी बेड पर आहिस्ता से उठ कर बैठ गया था।
"क्या बात है काल?" मैने एक नज़र माॅ की तरफ देखने के बाद कहा___"इस तरह यहाॅ आने का क्या कारण है? अगर कोई बात थी तो मन के द्वारा भी मुझे बता सकते थे।"
"माफ़ करना राज।" काल ने कहा___"वो मुझे जल्दी के चक्कर में ध्यान ही नहीं आया। इस लिए ऐसे आ गया मैं।"
"ख़ैर, छोड़ो ये बात।" मैने कहा___"अब बताओ ऐसी क्या बात थी जो इतना जल्दी थी तुम्हें यहाॅ आने की?"
"इस शहर में एक नया मामला सामने आया है।" काल ने कहा___"आज के अख़बार में इस मामले की ख़बर भी छपी थी।"
"कैसा मामला?" मैने पूछा।
"इस शहर में पिछले कई दिनों के भीतर काफी सारी लड़कियों के गायब होने का मामला है राज।" काल ने कहा___"मैने इस बारे में अपने तरीके से पता किया तो इस मामले में जिसका हाॅथ नज़र आया उसे तुम बखूबी जानते हो।"
काल की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गया। एकाएक ही मेरे दिमाग़ की बत्ती जल उठी।
"कहीं तुम महेन्द्र सिंह और रंगनाथ की बात तो नहीं कर रहे?" मैने कहा।
"मैं उन्हीं दोनो की बात कर रहा हूॅ।" काल ने कहा___"इन दोनो ने मिल कर पिछले कुछ दिनों के भीतर ही काफी सारी लड़कियों को अपने कब्जे में किया है, और अब ये लोग उन सारी लड़कियों को ले जा रहे हैं। मैं चाहता तो उन दोनो को उनके इस जघन्य अपराध की सज़ा ज़रूर देता मगर मुझे याद आया कि तुमने इन लोगों को कहा था कि दुबारा इस तरह अगर मुलाक़ात हुई तो तुम उन्हें ज़िंदा नहीं छोंड़ोगे। इस लिए मैने उन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।"
"वो लोग इस समय हैं कहाॅ?" मैने काल से पूछा___"आज उनको सच में ऐसे अपराध की सज़ा मौत ही मिलेगी।"
"वो लोग माधवखढ़ से आर्मी के डग्गे में उन लड़कियों को भर कर निकले हैं।" काल ने कहा___"वो दोनो खुद भी फौजी के भेष में हैं। इस वक्त वो माधवगढ़ की सीमा से बाहर पहुॅच गए होंगे। मेरे ख़याल से तुम्हें जल्द ही उन लोगों को रास्ते पर ही रोंक लेना चाहिए। अगर वो उस भयानक और खतरनाक जंगल की सीमा के अंदर दाखिल हो गए तो फिर तुम उनका कुछ नहीं कर पाओगे। रात में मायवी या आसुरी शक्तियाॅ बहुत प्रबल हो जाती हैं।"
"हाॅ ये सही कहा तुमने।" मैने बेड से उतरते हुए कहा___"मुझे जल्द ही वहाॅ पहुॅचना होगा। तुम यहीं घर के आस पास ही रहना।"
"ठीक है।" काल ने कहा___"मैं यहीं आस पास ही रहूॅगा। तुम ज़रा सावधान रहना और खुद का ख़याल भी रखना।"
मैं काल की बात पर मुस्कुराया और कमरे से गायब हो गया। मैं उस जगह पर प्रकट हुआ जिस रास्ते पर महेन्द्र और रंगनाथ रहे थे। ये रास्ता सीधा शहर से बाहर की तरफ जाता था। इसी रास्ते पर आगे वो जंगल पड़ता था। मैं उस जंगल के पहले ही इन लोगों को रोंक कर इन दोनो का काम तमाम करने वाला था।
थोड़ी ही देर में मुझे सामने तरफ से आते हुए किसी वाहन की हेडलाइट की रोशनी दिखी। मैं समझ गया ये वही डग्गा है जिसमें महेन्द्र और रंगनाथ लड़कियों को लिए आ रहे थे। कुछ ही देर में वो डग्गा मेरे पास आ गया। मैं बीच सड़क पर ही खड़ा था। इस वक्त मेरे जिस्म पर चुस्त दुरुस्त लिबास था जो कि ब्लैक लेदर का था।
मेरे नज़दीक पहुॅचते ही वो डग्गा अचानक से रुका। कदाचित् उन लोगों ने मुझे देखा नहीं था। ख़ैर,जैसे ही उन लोगों की मुझ पर नज़र पड़ी तो उन लोगों के होश उड़ गए। कुछ देर बाद ही टुस डग्गे को झटका लगा और वो तेज़ रफ्तार से चलता हुआ मेरी तरफ बढ़ा। जैसे ही डग्गा मेरी तरफ आया मैं अपनी जगह से गायब हो गया। कुछ ही देर में फिर से वो डग्गा बैक होते हुए स्पीड से आया तो मैं फिर से गायब हो गया और डग्गे के सामने ही कुछ दूरी पर प्रकट हो गया।
महेन्द्र और रंगनाथ को कदाचित इतने में ही समझ आ चुका था कि वो इस तरह में मेरा बाल भी बाॅका नहीं कर सकते थे। मैं कुछ देर तक उनके किसी ऐक्शन का इन्तज़ार करता रहा जब उस तरफ से इस बार कुछ न किया गया तो मैं डग्गे की तरफ बढ़ चला।
कुछ ही देर में मैं डग्गे के पास पहुॅच गया। ड्राइविंग डोर के पास पहुॅच कर मैने झटके से गेट खोला और उछल कर महेन्द्र का कालर पकड़ कर उसे बाहर खींच लिया। मेरे ऐसा करते ही महेन्द्र की चीख निकल गई। दूसरी तरफ बैठा रंगनाथ सकते की सी हालत में था, जैसे उसके सारे देवता कूच कर गए हों।
महेन्द्र को खींच कर मैने उसे सड़क पर पटक दिया। पक्की सड़क से जब उसका जिस्म ज़ोर से टकराया तो उसके कंठ से घुटी घुटी सी चीख निकल गई। मैने उसे उठने का मौका नहीं दिया बल्कि लातों की ठोकरों पर रख दिया से। वो चीखता चिल्लाता रहा। इधर पीछे मुझे किसी चीज़ की आहट हुई तो मैं बिजली की सी तेज़ी से पलटा।
रंगनाथ हाॅथ में लोहे का मोटा सा राड लिए बड़ी तेज़ी से मेरी तरफ आ रहा था। वो राड शायद डग्गे में ही उसे मिला था। मेरे पास आते ही उसने उस राड को मेरे सिर पर ज़ोर से चलाया तो मैं झुक गया। नतीजा ये हुआ कि राड मेरे सिर के ऊपर से निकल गया। ऊपर उठते ही मैने ज़ोर की फ्लाइंग किक रंगनाथ की पीठ पर मारी। किक ज़ोरदार थी, इस लिए रंगनाथ के हलक से हिचकी सी निकली और वह वहीं सड़क पर मुह के बल पसरता चला गया। वो राड उसके हाथ से छूट कर सड़क पर ही कुछ दूर जा गिरा था।
मैने रंगनाथ के नाटे जिस्म को पीछे से उठाया और सिर से ऊपर तक उठा कर उसे फिर से सड़क पर पटक दिया। रंगनाथ इस बार हलाल होते बकरे की तरह दर्द से चिल्लाया। वह उठने की हालत में नहीं रह गया था। सड़क पर पड़ा वह बिन पानी के मछली की तरह तड़पने लगा था। उसके कुछ ही दूरी पर महेन्द्र सिंह पड़ा था। उसके मुह और नाक से खून बह रहा था।
"तुम दोनो को मैने पहले ही चेतावनी दे दी थी।" मैने गुर्राते हुए खतरनाक भाव से कहा___"मगर तुम दोनो ने मेरी उस चेतावनी को नज़रअंदाज़ करके फिर वैसा ही घटिया काम कर दिया जिसके लिए अब तुम दोनो को मौत नसीब हो रही है।"
"हमे माफ़ कर दो बेटा।" महेन्द्र बड़ी मुश्किल से खिसक कर मेरे पैरों के पास आया, और फिर मेरे पैर पकड़ कर बोला___"हमसे ग़लती हो गई। अब ऐसा कुछ नहीं करेंगे हम। बस आख़िरी बार हमे माफ़ कर दो।"
"अब तो माफ़ी देने का सवाल ही पैदा नहीं होता।" मैने कठोर भाव से कहा__"अब तो इस अपराध के लिए तुम दोनो को मौत ही मिलेगी। मैं किसी भी इंसान को सिर्फ एक बार ही सुधरने का मौका देता हूॅ। दूसरी बार तो सिर्फ मौत देता हूॅ। तुम दोनो ने अपना पहला और आख़िरी मौका गवाॅ दिया इस लिए अब मरने के लिए तैयार हो जाओ।"
"नहीं बेटा नहीं।" महेन्द्र मेरे पैरों पर लगभग लोट गया था, बोला___"अरे मैं तेरा चाचा लगता हूॅ। तू अपने चाचा को कैसे मार देगा बेटा। मैं मानता हूॅ कि मुझसे ग़लती हुई है और मैने तेरे दिये हुए मौके का सही उपयोग भी नहीं किया है मगर फिर भी बस अब की बार और माफ़ कर दे हमे। हम अपनी क़सम खाकर कहते हैं कि अब दुबारा कभी ऐसा काम नहीं करेंगे।"
"जब मौत सिर पर आई तो रिश्तेदारी जोड़ने लगे तुम।" मैने ज़ोर का झटका देकर उसे अपने पैरों से दूर उछाल दिया___"सब जानता हूॅ मैं तेरे बारे में। तेरी फितरत से भी अच्छी तरह वाक़िफ हूॅ मैं। तू तो वैसा ही है जैसे कुत्ते की पूॅछ होती है। जो कभी सीधी नहीं हो सकती। मुझे पता है कि अगर तुझे ऐसे हज़ार मौके भी दे दिये जाएॅ तब भी तू ऐसा ही घटिया काम करेगा।"
"अब नहीं करूॅगा बेटा।" महेन्द्र सिंह एक बार मेरे पास आकर घुटनों के बल बैठ गया, बोला___"और अगर करता हुआ पाया जाऊॅ तो तू बेझिझक मुझे जान से मार देना। मगर इस बार मुझे माफ़ कर दे।"
"हाॅ राज बेटा।" रंगनाथ भी वहीं पर आ गया था, बोला___"बस आख़िरी बार और माफ़ दो हमे। हम सच कहते हैं, अब से ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जो ग़लत हो।"
"तुम दोनो चाहे जितनी रहम की भीख माॅग लो मुझसे।" मैने कहा___"उससे मेरे फैसले पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। मैं अपना उसूल और सिद्धान्त नहीं तोड़ता। इस लिए तुम दोनो को मेरे हाथों अब मौत से कोई नहीं बचा सकता।"
"ग़लतफहमी है तुम्हारी लड़के।" सहसा तभी एक नारी आवाज़ गूॅजी वहाॅ पर। मैने पलट कर देखा तो कुछ ही दूरी पर कृत्या खड़ी थी। कृत्या पर जैसे ही महेन्द्र और रंगनाथ की नज़र पड़ी तो उन दोनो में जाने कहाॅ से जान आ गई कि दोनो ही उठ कर खड़े हो गए और भागते हुए वो दोनो कृत्या के समीप पहुॅच गए। मैने उन दोनो की तरफ देखा तो अब उनके चेहरों के भाव बदल चुके थे।
"मौत तो अब तेरी होगी बेटा।" महेन्द्र ने कमीनी मुस्कान के साथ कहा___"अपनी शक्तियों का बड़ा प्रदर्शन कर रहा था न तू उस दिन। अब कृत्या से मुकाबला करके दिखा। अब पता चलेगा तुझे ताकत और शक्ति क्या होती है?"
"मैने कहा था न महेन्द्र सिंह।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"कि तुम दोनो को अगर हज़ार मौके भी दिये जाएॅ तब भी तुम दोनो सुधर नहीं सकते। अपनी इस अम्मा के आ जाने से तुम जो शेर बन रहे हो न उसका भी पता चल जाएगा तुम्हें।"
"बहुत बड़ी बड़ी बातें करता है लड़के।" कृत्या ने कहा___"मगर यहाॅ बड़ी बड़ी बातों से जंग नहीं जीती जाती। उसके लिए मुकाबला करना होता है। अभी तक तो तू कमज़ोरों से मुकाबला कर रहा था, अब मुझसे कर मुकाबला।"
"ज़रूर।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"तो फिर सबसे पहले वार करने का मौका मैं तुम्हें ही देता हूॅ कृत्या। क्योंकि मेरे वार के बाद तो तुम्हारा किस्सा ही खत्म हो जाएगा।"
कृत्या मेरी इस बात से तिलमिला गई। ऑखों में गुस्से की ज्यादती के कारण खून उतर आया उसके। अपने हाॅथ में पकड़ी एक छड़ी को उसने मेरी तरफ किया। उसकी छड़ी से एक आग का गोला निकल कर मेरी तरफ बढ़ा। मैं अपनी जगह पर शान्त खड़ा रहा। वो गोला जैसे ही मेरे पास आया वैसे ही मेरे चारो तरफ एक सुरक्षा कवच बन गया। जिससे उसका वो गोला टकराते ही नस्ट हो गया।
अपने गोले के नस्ट होते ही कृत्या हैरान रह गई। उसने तुरंत ही ऑखें बंद करके मुख से कुछ बुदबुदाया और फिर ऑखें खोल कर छड़ी को मेरी तरफ कर दिया। छड़ी से बिजली की तरंगे निकल कर मेरी तरफ बढ़ी। मगर मेरे चारो तरफ बने सुरक्षा कवच से टकराकर वो बिजली की तरंगें भी नस्ट हो गईं।
महेन्द्र और रंगनाथ ये सब ऑखें फाड़े देख रहे थे। उधर कृत्या ने फिर से कुछ बुदबुदा कर छड़ी को मेरी तरफ कर दिया। इस बार छड़ी से ढेर सारे पत्थर निकले और उड़ते हुए मेरी तरफ आए। मगर सुरक्षा कवच से टकरा वो सारे पत्थर भी नस्ट हो गए। ये सब देख कर कृत्या फिर हैरान हुई।
मैं चुप चाप सुरक्षा कवच के भीतर खड़ा उसका ये तमाशा देख रहा था। इस बार कृत्या ने छड़ी को अपने माथे से लगाया और ऑखें बंद कर कुछ बुदबुदाने लगी। कुछ ही देर में वातावरण एकदम से बदलने लगा। हवा जो अब तक सामान्य थी वो अब तीब्र वेग से चलने लगी थी। देखते ही देखते हवा की तीब्रता इतनी बढ़ गई कि उसने भयंकर ऑधी तूफान का रूप ले लिया। आस पास के पेड़ पौधे ज़ोर ज़ोर से हिलते हुए टूट कर गिरने लगे।
तभी मैने देखा कि कृत्या के चारो तरफ काला धुऑ छाने लगा और कुछ ही देर में वो धुऑ इतना छा गया कि कृत्या उस धुएॅ में पूरी तरह ढॅक गई। अचानक ही वो धुऑ बड़ी तेज़ी से गोल गोल घूमने लगा। आसमान में भयंकर काले बादल छा गए और उस पर बिजलियाॅ कड़कने लगीं। गोल गोल घूमता हुआ वो धुऑ ऊपर की तरफ उठने लगा और कुछ ही देर में वो धुऑ छटने लगा। धुऑ जब पूरी तरह छॅट गया तो मैने देखा कि वहाॅ पर बहुत ही भयानक चेहरे वाली कोई राक्षसिनी खड़ी थी। उसका आकार लगभग बीस या बच्चीस फुट से कम न था।
महेन्द्र और रंगनाथ अपने इतने समीप उस बला को देखते ही थर थर काॅपने लगे। उधर भयानक चेहरे व आकार वाली वो राक्षसिनी ज़ोर का अट्टहास लगाते हुए तथा मेरी तरफ देखते हुए अपना मुह खोल दिया। नतीजतन उसके मुख से भयंकर आग निकलने लगी। किन्तु उसकी वो आग मेरे सुरक्षा कवच से टकरा कर नस्ट हो गई। उसके बाद तो कृत्या ने बार बार कोई न कोई उपाय किया जिससे वो मुझे मार सके मगर वो कुछ न कर सकी। इस बात से उसे बेहद गुस्सा आया और वो मेरी तरफ तेज़ी से बढ़ी। मैने भी अपने चारो तरफ बने सुरक्षा कवच को हटा दिया और उससे खुल कर मुकाबला करने के लिए तैयार हो गया।
मैने कुछ ही पल में अपना आकार बढ़ा लिया और उसके जितना लम्बा हो गया। तीब्र वेग में भागते हुए वो जैसे ही मेरे पास आई मैने पूरी शक्ति से उसके चेहरे पर एक मुक्का जड़ दिया। परिणामस्वरूप वो उतनी ही तेज़ी से पीछे की तरफ उड़ते हुए गई और एक तरफ लगे मोटे से पेड़ से जा टकराई। पेड़ से टकराते ही वो पेड़ को तोड़ते हुए उसके ऊपर गिरी। मैं भागते हुए उसके पास गया। वो उठने की कीशिश कर रही थी। उसके मुख से बड़ी बयानक आवाज़ें निकल रही थी गुर्राने की। उसके पास पहुॅच कर मैने अपने दाहिने हाॅथ को हवा में किया तो मेरे हाथ में एक तेज़ रोशनी के साथ एक तलवार प्रकट हुई।
उस चमचमाती हुई तलवार को मैने घुमा कर कृत्या के सीने में दिल वाले स्थान पर घोंप दिया। राक्षसिनी बनी कृत्या के मुख से बहुत ही भयानक आवाज़ें निकलने लगी। उसके दिल वाले स्थान पर तलवार के घुसते सी उसका सम्पूर्ण जिस्म जलने लगा। वो ज़ोर ज़ोर से चीखने चिल्लाने लगी। उसके पूरे जिस्म से गाढ़ा काला धुऑ निकलते हुए उससे दूर जाने लगा था।
कुछ ही देर में वो जल कर खाक़ में मिल गई। ये सब देख कर महेन्द्र और रंगनाथ सकते में आ गए। कृत्या का ये हाल देख कर महेन्द्र और रंगनाथ की घिग्गी सी बॅध गई थी। कृत्या को खाक़ में मिलाने के बाद मैं पलटा। मेरी नज़र भागते हुए महेन्द्र और रंगनाथ पर पड़ी।
मैं एक दो क़दम में ही उन दोनो के पास पहुॅच गया। वो दोनो मुझे बिलकुछ छोटे से बच्चे की तरह दिख रहा थे। मैने हाॅथ बढ़ा कर उन दोनो को एक साथ ही मुट्ठी में पकड़ लिया। वो दोनो डर व भय से बुरी तरह चीखे जा रहे थे। उन दोनो को अपने चेहरे के पास लाकर मैने उनकी तरफ देखा।
"मौत से जितना भागोगे वो उतना ही तुम्हारे क़रीब आएगी मूर्ख।" मैने कहा___"मौत नाम की खूबसूरत बला से कोई नहीं बच सकता।"
"हमें छोंड़ दो।" दोनो एक साथ गिड़गिड़ाने लगे___"हमे माफ़ कर दो। हम कभी ऐसा काम नहीं करेंगे। बस एक बार हम पर रहम कर दो।"
उन दोनो के इस तरह गिड़गिड़ाने से मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ा। बल्कि गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले इन लोगों का चेहरा देखते ही मुझ पर गुस्सा छा गया। मैने अपनी मुट्ठी में पकड़े उन दोनो को मुट्ठी को कस कर दबा कर चटनी बना दिया। दोनो किसी टमाटर की तरह दबाव लगते ही फट कर चटनी बन गए और उनकी प्राण पखेरू उनके जिस्मों से निकल कर भाग गए।
मुट्ठी खोल कर मैने उन दोनो को एक तरफ उछाल दिया और वहीं पेड़ के पत्तों से अपने हाॅथ की हथेली पर फैले उन दोनो के खून को साफ कर लिया। उसके बाद मैने अपना आकर छोटा कर लिया। कुछ देर पहले जो वातावरण भयावह हो गया था वो अब बिलकुल सामान्य हो गया था। तीनो का काम तमाम करने का बाद मैं डग्गे के पास आया और डग्गे की ड्राइविंग शीट पर बैठ कर उसे स्टार्ट किया। डग्गे को वापस मोड़ कर मैं चल दिया माधवगढ़ की तरफ। शहर की आबादी के भीतर पहुॅच कर मैने डग्गे को ऐसे स्थान पर खड़ा किया जहाॅ पर सड़क के किनारे एक टेलीफोन बूथ लगा हुआ था।
डग्गे से उतर कर मैं उस टालीफोन बूथ के अंदर गया और अंदर रखे फोन पर पुलिस का नंबर डायल कर दिया। कुछ देर घण्टी बजती रही। उसके बाद उधर से एक आवाज़ उभरी। जो कह रहा था___"इंस्पेक्टर मेघनाद स्पीकिंग हेयर।"
"जिन लड़कियों के गायब होने की ख़बर आज तुमने अख़बार में पढ़ी थी।" मैने मोटी आवाज़ बना कर कहा___"वो सब लड़कियाॅ इस वक्त गली नंबर सत्रह के पास खड़े एक फौजी डग्गे में हैं।"
"कौन बोल रहे हो तुम?" उधर से मेघनाद की आवाज़ आई।
"इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए इंस्पेक्टर।" मैने मोटी आवाज़ में कहा__"मेरा काम तम्हें सूचना देना था, सो दे दिया। अब ये तुम्हारा काम है कि तुम यहाॅ आकर इन सभी लड़कियों को ले जाकर उन्हें उनके परिवार वालों को सौंप दो। गुड बाए।"
इतना कह कर मैने फोन रखा और बूथ से बाहर आकर मैं सड़क के उस पार एक ऐसे स्थान पर छिप गया जहाॅ से मैं बूथ के पास खड़े उस फौजी डग्गे को अच्छी तरह देख सकूॅ, किन्तु मुझे कोई न देख सके। ख़ैर, काफी देर बाद एक पुलिस जिप्सी आकर उस डग्गे के सामने रुकी। उसमें से इंस्पेक्टर मेघनाद और उसके साथ आए हुए कुछ पुलिस के शिपाही उतरे। मेघनाद के निर्देश पर उन शिपाहियों ने डग्गे की तलाशी लेना शुरू कर दिया। डग्गे के पीछे ढॅके कपड़े को हटा कर अंदर की तरफ दो शिपाहियों ने देखा, दोनो के हाॅथ में बड़ी सी टार्चें थी। अंदर देखने के तुरंत बाद ही वो दोनो शिपाही बाहर एक तरफ खड़े मेघनाद की तरफ देखते हुए ज़रा ऊॅची आवाज़ में कहा___"सर, यहाॅ तो सच में काफी सारी लड़कियाॅ मौजूद हैं। लेकिन लगता है ये सब बेहोशी की हालत में हैं अभी।"
"ओह! चलो ठीक है।" मेघनाद ने उन दोनो से कहा___"एक काम करो इस फौजी डग्गे को सीधा पुलिस स्टेशन ले चलो। मैं तुम लोगों के पीछे पीछे आता हूॅ।"
"ठीक है सर।" दोनो शिपाहियों ने एक साथ कहा और दोनो एक एक तरफ से डग्गे के आगे चढ़ गए। कुछ ही देर में वो डग्गा पुलिस जिप्सी के साइड से आगे बढ़ गया।
इधर बीच सड़क पर खड़े इंस्पेक्टर मेघनाद की नज़र टेलीफोन बूथ पर गई तो वो बूथ की तरफ बढ़ गया। बूथ के अंदर अच्छी तरह देखने के बाद वह बूथ से बाहर आया और सड़क के दोनो तरफ बड़ी बारीकी से देखने लगा। अपने दाहिने हाथ में पकड़ मे पुलिसिया रुल को वह बाईं हथेली पर हल्के हल्के मारता भी जा रहा था। काफी देर तक वह इधर उधर जाकर देखता रहा। उसके बाद वह अपनी जिप्सी की तरफ बढ़ गया। जिप्सी में बैठने के बाद भी उसने एक बार दोनो तरफ खोजी दृष्टि से देखा। फिर उसने जिप्सी को स्टार्ट किया और गियर में डाल कर उसने जिप्सी को यूटर्न दिया और जिस तरफ से आया उस तरफ जिप्सी को दौड़ाता चला गया।
इंस्पेक्टर मेघनाद के जाने के बाद झाड़ियों के पास छिपा मैं भी गायब हो गया और सीधा घर में माॅ के कमरे में प्रकट हुआ। मैने देखा माॅ अभी भी गहरी नींद में सोई पड़ी थी। मैं भी आहिस्ता हे बेड में चढ़ा और चुपचाप लेट गया। इस वक्त मेरे जिस्म पर वही रात के कपड़े थे जिन्हें पहने मैं यहाॅ से जाने से पहले सो रहा था। मेरे मन में अभी कुछ समय पहले हुई वो घटना घूमती रही। उसके बाद मैंने अपने मन को सभी तरह के विचारों से मुक्त कर सो गया। अगली सुबह हम सबको हिमालय के लिए भी निकलना था। वहाॅ गुरूदेव से मिल कर कुछ बातों के लिए मार्गदर्शन लेना था मुझे।
दोस्तो, अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,
अपडेट की देरी के लिए आप सबसे मुआफ़ी चाहता हूॅ। मगर इसमें मेरी कोई ग़लती नहीं थी दोस्तो। दरअसल अपडेट तो मैं पहले ही लगभग पूरा लिख चुका था मगर एक ट्रेजडी हो गई मेरे साथ। जैसे ही मैने पेज ओपेन किया तो ग़लती से रिप्लाई के ऑप्शन पर मेरी उॅगली रख गई, उससे हुआ ये कि जिस बंदे के कमेंट के पास रिप्लाई के ऑप्शन पर उॅखली रखी थी उसी बंदे का कमेंट ब्रैकेट में आ गया और जो अपडेट मैने लिखा था वो सारा हट गया। यकीन मानिये दोस्तो, इस सबसे मेरा इतना ज्यादा दिमाग़ ख़राब हुआ कि लगा कि फोन को फर्स पर पटक दूॅ।
ख़ैर, अब क्या हो सकता था भला? मैने खुद के गुस्से को शान्त किया और सारा अपडेट फिर से लिखना शुरू किया। मुझे याद ही नहीं था कि मैने क्या क्या लिख डाला था पहले?
इस अपडेट के चक्कर में मैं अपनी पहली कहानी एक नया संसार का अपडेट भी नहीं लिख पाया। दोस्तो एक बार फिर से मुआफ़ी चाहता हूॅ आप सबसे। क्या करूॅ यारो, अब ग़लती तो हो ही गई।