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Fantasy राज-रानी (एक प्रेम कथा)

Lib am

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 19 )


अब तक,,,,,,,,,

"चलो ठीक है।" सुमन ने कहा___"ये सब छोड़ो और फ्रेश हो जाओ। मैं डिनर का इंतजाम करती हूॅ।"
"ओके माॅ।" रानी ने कहा___"आप चलिए मैं भी फ्रेश होकर आती हूॅ और फिर किचेन में खाना बनाने में आपकी मदद करती हूॅ।"

"क्या????" सुमन बुरी तरह चौंकी___"तुम किचेन में मेरी मदद करोगी??"
"क्यों नहीं माॅ?" रानी जाने क्या सोच कर एकाएक ही शरमा गई___"खाना पीना बनाना मुझे भी तो आना चाहिए न। इस लिए आप मुझे भी हर तरह का खाना बनाना सिखा दीजिए।"
"ओए होए।" सुमन ने नाटकीय अंदाज़ से कहा___"क्या बात है मेरी बिटिया रानी, आज खाना बनाना सीखने की बात क्यों करने लगी अचानक?"

"ओफ्फो।" रानी पहले तो सकपका गई फिर सहसा तुनक कर बोली___"अब क्या मैं खाना बनाना भी नहीं सीख सकती?"
"अरे हाॅ बिलकुल सीख सकती है।" सुमन ने झट से कहा___"क्यों नहीं सीख सकती। ये तो हर लड़की का पहला काम है। चलो ठीक है फ्रेश होकर जल्दी आओ फिर।"

सुमन ने कहा और मुस्कुराती हुई कमरे से बाहर चली गई जबकि रानी भी अपने चेहरे पर शरम की लाली लिए बाथरूम में घुस गई।
_________________


अब आगे,,,,,,,,,,

दूसरे दिन जब मैं काॅलेज पहुॅचा तो काॅलेज के सभी लड़के लड़कियाॅ फिर से मुझे घूरने लगे। ये देख कर मेरा दिमाग़ ख़राब होने लगा लेकिन फिर मैंने सोचा छोड़ो यार इनको। ये तो सब के सब एक नम्बर के चूतिया हैं। मैं उन सबको नज़रअंदाज़ करके कंटीन की तरफ बढ़ गया। क्लास शुरू होने में अभी समय था।

कंटीन में पहुॅचा तो वहाॅ पर भी कुछ लड़के लड़कियाॅ कुर्सियों पर बैठे हुए थे। मुझे देखते ही सबके सब उठ गए। उनके इस तरह उठ जाने से मुझे लगा ये सब मुझे सच में कोई गुंडा या दादा समझते हैं। मैने तो कल ही सबसे कह दिया था कि मुझसे किसी को डरने की कोई ज़रूरत नहीं है, क्योंकि मैं भी तो उनके जैसा ही एक आम स्टूडेन्ट हूॅ। मगर ये साले कुत्ते की दुम ही निकले। मेरा दिमाग़ फिर से क़राब हो गया।

मैं एक लड़के की तरफ तेज़ी से बढ़ा और बिना कुछ कहे उसको धुनना शुरू कर दिया। मेरी इस हरकत से सब हैरान हो गए। उसको छोंड़ कर मैं दूसरे की तरफ बढ़ा और उसे भी धुनना शुरू कर दिया। कहने का मतलब ये कि कंटीन में बैठे सभी लड़कों की धुनाई कर दी मैने। लड़कियों को कुछ नहीं कहा। उन पर हाॅथ नहीं चलाना चाहता था मैं। कुछ लड़के तो कंटीन से भाग गए थे। कंटीन में उस स्थान पर अफरा तफरी सी मच गई। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि मैने ऐसा क्यों किया? आख़िर किसी ने ऐसा किया क्या था जिसके कारण मैने उन सबकी धुनाई कर दी।

सबको मारने के बाद मैं एक खाली कुर्सी पर बैठ गया। जिनकी धुनाई हुई थी वो सब ज़मीन पर पड़े कराह रहे थे। लड़किया अपनी अपनी कुर्सी छोंड़ कर दूर खड़ी थर थर काॅप रही थी। उन सबको मैं बारी बारी से देखता रहा। कंटीन वाला ऑखें फाड़े देख रहा था, उसको पता नहीं क्या सूझा कि वह तुरंत ही मेरे लिए एक गरमा गरम चाय ले आया।

"अब तुम सब लोग मुझसे पूछो कि मैने तुम लोगो को क्यों मारा?" मैने कंटीन वाले से चाय लेकर कहा___"जबकि तुम लोगों ने तो ऐसा कुछ किया ही नहीं था? है ना?"


मेरी इस बात पर कोई कुछ न बोला। बल्कि चकित होकर ज़रूर देखने लगे थे।

"अरे पूछो भी अब।" मैने चिल्लाते हुए उन सबसे कहा था।
"हाॅ हाॅ क्यों मारा हमें?" सबने एक साथ कहा।
"गुड, वैरी गुड।" मैने कहा__"इसका जवाब ये है कि मैने तुम लोगों से कल क्या कहा था? याद है? चलो फिर से बता देता हूॅ। मैने तुम सबसे कल ये कहा था कि मुझसे किसी को डरने की कोई ज़रूरत नहीं है, क्योंकि मैं भी तुम लोगों जैसा ही एक आम सा स्टूडेन्ट हूॅ। आज जब मैं यहाॅ आया तो तुम सब अपनी कुर्सियों से इस तरह खड़े हो गए जैसे मैं कोई स्टूडेन्ट नहीं बल्कि कोई गुंडा या दादा हूॅ। ये जान कर ही मुझे गुस्सा आया तुम सब पर। मैने सोचा कि कल जब मैने बड़े प्रेम से तुम सबको बता चुका था तो फिर वो बात तुम सबको समझ क्यों नहीं आई? कल मैने रोनी को मारा लेकिन उसमें भी ग़लती उसी की थी। वो साला सबके साथ बुरा ब्यौहार करता था और तुम सब नपुंसकों की तरह उसका हर अत्याचार सहते थे। ख़ैर, मैने इस काॅलेज की गंदगी को साफ की तो उसका तुम लोगों ने ये मतलब निकाला कि मुझे कहीं का गुंडा मवाली समझने लगे और मुझसे डरने लगे। इसी बात पर मुझे गुस्सा आया और मैने तुम सबकी धुनाई कर दी। तुम लोग ये क्यों नहीं समझते कि मैं भी तुम जैसा ही हूॅ और यहाॅ पढ़ने आया हूॅ?"

मेरी इन बातों से ज़मीन पर पड़े कराह रहे लड़कों पर असर हुआ। वो सब उठ कर खड़े हो गए। सब मेरे पास आए।

"भाई हम सबको माफ़ कर दो।" उनमें से एक बोला___"हम सच में तुमसे डर रहे थे। क्योंकि कल रोनी और उसके दोस्तों को जिस बेरहमी से तुमने मारा था उसे देख कर हम सबके मन में तुम्हारे प्रति डर बैठ गया था। हम सब इस बात से खुश थे कि चलो कोई तो आया जिसने रोनी जैसे घटिया लड़के को उसकी करनी का सबक सिखाया। पर तुम्हारे लिए वो जो डर बैठ गया था हम सबके अंदर वो भी धीरे धीरे निकल ही जाता भाई।"

"यार इतना किसी से डरना भी अच्छा नहीं होता।" मैने कहा___"अपने अंदर से इस डर नाम की चीज़ को निकालो और उसकी जगह पर आत्मविश्वास को बैठाओ। तभी जीवन में आगे बढ़ पाओगे। और हाॅ ये बताओ ज्यादा लगी तो नहीं न तुम लोगो को? देखो अगर तुम लोगों को ज्यादा लगा हो और दर्द हुआ हो तो एक काम करो तुम सब मुझे मार कर अपना बदला ले लो। कसम से उफ्फ तक नहीं करूॅगा। लेकिन प्लीज़ भाई लोगो मुझसे इस तरह डरना छोंड़ दो। मुझे ये बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता। मैं भी तुम सबके साथ हॅसी खुशी रहना और पढ़ना चाहता हूॅ।"

मेरी इस बात से सबके सब मुस्कुरा दिये। कंटीन में जितने भी भी वहाॅ मौजूद थे सबके चेहरों पर मुस्कान तैर गई।

"ओह भाई तुम सच में बहुत अच्छे हो।" एक लड़के ने कहा और मुझे अपने गले से लगा लिया। मैने भी उसे गले लगा लिया। उसके बाद मैंने सबसे माफ़ी माॅगी जो मैने उनको मारा था। सबने उस बात को हॅस कर टाल दिया और मुझसे हाॅथ मिलाया। मेरी सबसे दोस्ती हो गई। इस सबसे मैं बेहद खुश हो गया। मैने कंटीन वाले को बोला कि मेरे सभी भाइयों को भरपेट नास्ता खिलाओ और वो भी जो कुछ वो खाना चाहें।

दूर खड़ी लड़कियाॅ ये सब देख रही थीं। मैं उनके पास गया।
"मैने आप लोगों पर तो हाॅथ नहीं उठाया था फिर भी अगर आप लोगों मेरी किसी बात से तक़लीफ़ हुई हो तो मुझे माफ़ करना।" मैने उन सभी लड़कियों से हाॅथ जोड़ कर कहा था।

"पहले शुरू में ज़रूर हमें बुरा लगा कि कैसे आप किसी को बिना वजह इस तरह मार सकते हैं?" एक लड़की ने कहा___"पर फिर उसका असली कारण जान कर तथा आपका उन सबसे माफ़ी माॅगना देख कर हमें अच्छा भी लगा। इस लिए अब हम आपसे नाराज़ नहीं हैं।"

"तो फिर आइये आप सब भी।" मैने उन सबकी तरफ देखते हुए कहा___"हम सब एक साथ बैठ कर नास्ता करते हैं।"
"ठीक है चलिये।" सबने एक साथ कहा।

उसके बाद हम सब वहीं पर बैठ कर नास्ता करने लगे। अब किसी के भी चेहरे पर मेरे प्रति कोई डर जैसा भाव नहीं था बल्कि हर चेहरा खिला हुआ था।

"वैसे भाई एक बात तो बताओ।" एक लड़के ने कहा___"कल जब तुम रोनी और उसके दोस्तों को पीट रहे थे तब क्या तुम्हें ज़रा भी डर नहीं लगा कि उनसे पंगा लेने का अंजाम क्या होगा?"

"मैं किसी अंजाम की परवाह नहीं करता सुधीर।" मैने कहा___"मेरा उसूल है कि खुद कभी किसी के साथ ग़लत न करो और ग़लत न होने पर किसी से डरो भी नहीं। बल्कि ग़लत करने वाले को उसी वक्त सबक सिखा दो।"

"पर भाई तुम नहीं जानते कि रोनी कितना खतरनाॅक लड़का है।" एक अन्य लड़के ने कहा___"और उसका बाप तो पूछो ही मत। बहुत बड़ा आदमी है और प्वालिटीशियन भी। वो ज़रूर अपने बेटे की उस दशा का बदला तुमसे लेगा। वो तुम्हें इस काॅलेज़ से निकलवा भी सकता है।"

"अगर ऐसी बात है तो अब तक उसका बाप अपने बेटे का बदला लेने मेरे पास आया क्यों नहीं?" मैने मुस्कुरा कर कहा___"जबकि हादसा तो कल हुआ था। उसके बाप को तो कल ही मेरा तीया पाॅचा करने आना चाहिए था। मगर देख लो अब तक नहीं आया।"

"ये बात तो तुमने बिलकुल सही कहा भाई।" एक तीसरे लड़के ने कहा___"मैं भी सोचूॅ साला वो नेता अब तक आया क्यों नहीं? लेकिन भाई ऐसा कैसे हो सकता है भला कि इतना खतरनाक आदमी अपने बेटे की उस दशा का कोई बदला ही न ले बल्कि चुपचाप बैठा रह जाए?"

"निखिल सही कह रहा है।" सहसा इस बीच एक लड़की बोल पड़ी___"हम सब के दिमाग़ में भी कल से यही बात चल रही है कि रोनी का बाप अपने बेटे का बदला तुमसे बहुत बुरी तरह लेगा। लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ ये बड़े आश्चर्य की बात है।"

"भाई सच सच बताओ कौन हो तुम?" सुधीर ने कहा___"ये तो हमने भी देखा है कि तुम बहुत ही हाई फाई कार से काॅलेज आते हो। इसका मतलब साफ है कि तुम भी कोई मामूली आदमी नहीं हो।"

"मैं मामूली ही हूॅ भाई।" मैने हॅस कर कहा__"अब ये सब छोड़ो और चलो क्लास का समय हो गया है।"
"ये तो गोली देने वाली बात हो गई भाई।" एक लड़के ने कहा___"मतलब साफ है तुम अपने बारे में हमें बताना ही नहीं चाहते। अभी तो बोल रहे थे कि हम सब आज से तुम्हारे दोस्त हैं। तो फिर ये कैसी दोस्ती है कि खुद के बारे में हमसे बताओ ही न?"

"अच्छा ठीक है पंकज भाई।" मैने कहा__"मैं तुम सबको अपने बारे में सब कुछ बता दूॅगा। लेकिन अभी क्लास का समय है।"
"ठीक है क्लास के बाद तुम हमें अपने बारे में बताओगे।" पंकज ने कहा___"हम सब भी तुम्हें अपने अपने बारे में बताएॅगे।"
"ठीक है अब चलो सब।" मैने कहा और कुर्सी से उठ गया।

हम सब कंटीन से बाहर की तरफ आ गए। बाहर आते ही मेरी नज़र रानी पर पड़ी। वो तुरंत ही पलट कर तेज़ तेज़ क़दम बढ़ाते हुए क्लास की तरफ बढ़ी जा रही थी। मुझे समझते देर न लगी कि ये छुप कर हमारी बातें सुन रही थी। मैं उसकी इस हरकत पर मन ही मन मुस्कुराया और क्लास की तरफ बढ़ गया।

क्लास में पहुॅच कर मैं कल वाली जगह पर ही बैठने वाला था कि सहसा सुधीर ने मुझे आवाज़ दी। मैंने देखा वो मुझे अपने पास बगल वाली कुर्सी पर बैठने को कह रहा था। मैने देखा कि जिस जगह वह मुझे बैठने का कह रहा था उसके बगल में ही रानी बैठी हुई थी। ये देख कर मैने तुरंत ही सुधीर को मना कर दिया कि मैं यहीं पर ठीक हूॅ। मैने एक नज़र रानी पर डाली वो मुझे ही देख रही थी। उसने भी सुधीर को ये कहते सुन लिया था कि मैं उसके बगल में बैठ जाऊॅ। इस लिए रानी ये देख रही थी कि मैं वहाॅ पर बैठता हूॅ कि नहीं?

मुझे लगा कि अगर मैं उस जगह नहीं बैठूॅगा तो रानी यही समझेगी कि मैं उसकी वजह से वहाॅ पर नहीं बैठ रहा हूॅ। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं अब क्या करूॅ? अगर मैं ये कहता हूॅ कि मैं रानी को नहीं जानता तो फिर मुझे उस जगह पर बैठने से कोई ऐतराज़ नहीं होना चाहिए। और अगर नहीं बैठता तो रानी फिर यही समझेगी कि मैं वही हूॅ यानी उसका भाई, और मैं उससे झूॅठ बोल रहा हूॅ। इतना ही नहीं उससे कतरा भी रहा हूॅ।

मैंने देखा कि सुधीर अभी भी मुझे अपने पास बुला रहा है। मैने भी फैंसला कर लिया कि मैं उस जगह पर ही जाकर बैठूॅगा। मैं रानी को ये नहीं साबित करने देना चाहता था कि मैं ही उसका भाई राज हूॅ। इस लिए मैं बेझिझक अपनी जगह से आगे बढ़ गया और जाकर सुधीर के पास पहुॅच गया।

"यार मैं लड़कियों के पास बैठना पसंद नहीं करता हूॅ।" मैं सुधीर के बगल से बैठते हुए ज़रा मिजाज़ से कहा___"पता नहीं क्यों पर मुझे न एक अजीब सी बेचैनी सी होने लगती है।"

मैं ये सब कह सुधीर से रहा था लेकिन सुना रानी को रहा था। मैं जानता था वो मुझे ही देख रही होगी। दिल तो मेरा भी बहुत कर रहा था कि उसके इतने पास आकर अब एक नज़र उसे देख ही लूॅ मगर देखा नहीं मैंने।

"ऐसा क्यों भाई?" उधर मेरी बात के जवाब में सुधीर ने हॅसते हुए कहा__"लड़कियों के पास बैठने से बेचैनी क्यों होने लगती है तुम्हें? क्या लड़कियों से डर लगता है तुम्हें?"

"अरे नहीं यार।" मैने कहा___"ऐसी बात नहीं है। बस अपनी फितरत ही ऐसी है। लड़कियों से हमेशा दूर ही रहता हूॅ।"
"भाई मैं कल से नोटिस कर रहा हूॅ कि तुम्हारे बगल से बैठी वो लड़की हर वक्त तुम्हें ही देखती रहती है।" सुधीर ने मेरे कान के पास मुह ले जाकर धीमें लहजे में कहा___"भाई ऐसा क्या जादू कर दिया तुमने उस पर? काॅलेज में कल ही तो पहला दिन था तुम्हारा और कल ही किसी लड़की पर इतना खतरनाक जादू??"

"भाई मैने ऐसा कुछ नहीं किया है।" मुझे सुधीर की इस बात से हैरानी हुई___"और हाॅ एक बात और इस बारे में ऐसी कोई बात मुझसे नहीं करोगे तुम।"
"अरे भाई।" सुधीर चौंका___"ये क्या कह रहे हो तुम? देखो तो सही उसे। कसम से कहता हूॅ भाई उसके जैसी लड़की मैने ख्वाब में भी नहीं देखी आज तक। उसके चेहरे पर बड़ा ग़जब का नूर है भाई। इतना ही नहीं उसका चेहरा ऐसे चमक रहा है जैसे वो कोई दिव्य आत्मा हो। वैसे उसके जैसे ही तुम्हारे चेहरे पर भी नूर व तेज़ है। आख़िर ऐसी क्या बात हो सकती है भाई बताओ न?"

"तुम्हारी ऑखें ख़राब हो गई हैं।" मैने धीमे स्वर में कहा___"पता नहीं क्या अनाप शनाप बके जा रहे हो तुम?"
"मैं बक नहीं रहा भाई।" सुधीर ने उसी तरह धीमे स्वर में कहा___"बल्कि सच कह रहा हूॅ। तुम किसी से भी पूछ सकते हो क्लास में। देखो वो लड़की अभी भी तुम्हारी तरफ ही देख रही है। उसकी ऑखें बता रही हैं कि उसके अंदर तुम्हारे लिए कितना प्रेम है। काश! ऐसी किस्मत मेरी होती भाई। पर मैं जानता हूॅ कि ऐसी किस्मत हज़ार जन्म के बाद भी मुझे नहीं मिल सकती।"

"अगर तुम्हें यही बकवास करना है तो जा रहा हूॅ मैं यहाॅ से वापस।" मुझे उसकी बात से खीझ सी हुई थी।
"रुको भाई।" सुधीर ने हड़बड़ा कर कहा__"मैं अब कुछ नहीं बोलूॅगा। तुम बस यहीं पर बैठो।"

उसके बाद हम दोनो सीधे बैठ गए। मुझे महसूस हुआ कि दो ऑखें मुझे ही घूर रही हैं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि रानी भरी क्लास में मुझे इस तरह क्यों घूर रही है? उसे सोचना चाहिये कि क्लास में सब लोग उसके बारे में क्या क्या नहीं सोचेंगे?

तभी क्लास में एक टीचर आया। हम सबने खड़े होकर उसका अभिनन्दन किया। उसके बाद टीचर ने सभी का इंट्रो लेना शुरू कर दिया। उसने सबकी तरफ निगाह दौड़ाई और मुझ पर नज़र पड़ते ही उसकी निगाह स्थिर हो गई।

"कल मैं तुमसे ही इंट्रो ले रहा था न कि बेल बज गई थी?" टीचर ने कहा__"यस तुम्हीं हो वो। चलो बेटा अपना इंट्रो दो।"

मैं अपनी जगह से खड़ा हो गया। आज मेरे अंदर कोई घबराहट जैसा भाव नहीं था।

"सबसे पहले तो आपको मेरा प्रणाम सर, आप मेरे आचार्य हैं गुरू हैं।" मैने बड़ी शालीनता से कहा___"मेरा नाम राजवर्धन है, मेरे गुरू तो मुझे राजवर्धन ही कहते हैं पर मेरे परिवार के सब लोग मुझे राज कह कर पुकारते हैं।"

मेरे इस तरह इंट्रो देने पर क्लास के कुछ लड़के व लड़कियाॅ हॅसने लगे।

"शट-अप।" टीचर ने ज़ोर से डाॅटते हुए कहा था___"तुम सबको किस बात पर हॅसी आई बताओ? इस लड़के ने मुझे प्रणाम किया और वो सब कहा इस लिए??? तुम सब सोच रहे होगे कि ये लड़का किस युग का है जो ऐसी बातें कर गया? मगर इसमें हॅसने वाली बात नहीं है। बल्कि सोचने वाली बात है। तुम सब आज वैज्ञानिक युक में हो और एक नये कल्चर के साथ आगे बढ़ रहे हो। लेकिन तुम सब ये भूल गए हो कि सबसे बड़ा कल्चर क्या होता है। आज जिस बात पर तुम्हें हॅसी आई है वो सबसे बड़ी चीज़ है जिसे आज का हर इंसान भूलता जा रहा है। एक समय था जब बेटा सुबह उठ कर सबसे पहले अपने माता पिता के पैरों को छू कर उनका आशीर्वाद लेता था और आज ऐसा है कि हर बात पर सिर्फ हैलो हाय रह खया है। शर्म आनी चाहिए तुम सबको।"

टीचर की इन बातों पर पूरी क्लास में सन्नाटा छा गया। जो लड़के लड़किया मेरी बात पर हॅसे थे उनके सिर झुक गए। जबकि__

"तो बेटे, अगर तुम्हारे गुरू तुम्हें राजवर्धन कहते हैं तो हम भी तुम्हें राजवर्धन ही कहेंगे।" टीचर ने बड़े प्यार से कहा___"आख़िर हम भी तो तुम्हारे गुरू ही हैं। तुम्हारे इस तरह इंट्रो देने से पता चलता है कि तुम ज़रूर किसी बहुत अच्छे घर के लड़के हो। तुम्हारे मात पिता यकीनन बहुत अच्छे इंसान होंगे। ठीक है बेटे तुम बैठ जाओ और हाॅ खूब मन लगा कर पढ़ाई करो। जीवन में कामयाबियाॅ तुम्हारे क़दमों में होंगी।"

मैं उनकी बात से उन्हें अभिवादन कर अपनी जगह बैठ गया। टीचर ने बाॅकी सबका इंट्रो लिया उसके बाद बेल बज गई और वो चले गए। मैने सोचा यार ये कैसी पढ़ाई चल रही है? टीचर के जाने के बाद कुछ ही देर में एक और टीचर आया। उसने पहले वाले टीचर की तरह किसी का इंट्रो नहीं लिया बल्कि उसने अपना विषय पढ़ाया और फिर वो भी चला गया। ऐसे ही क्लास चलती रही। मैने एक बार भी रानी की तरफ नहीं देखा। मैने अपने ध्यान को बस टीचर के द्वारा पढ़ाए गए चैप्टर पर ही लगाए रखा था। ख़ैर, काॅलेज की छुट्टी हुई और हम सब स्टूडेन्ट क्लास से बाहर की तरफ चल पड़े।

क्लास से बाहर जब मैं आया तो सुधीर भी मेरे साथ ही था। कुछ ही देर में वो सारे भी मेरे पास आ गए जो इसके पहले कंटीन में मेरे दोस्त बने थे। मैं आप सबको इन सभी दोस्तों का संक्षिप्त सा परिचय देना चाहूॅगा।


1, सुधीर मिश्रा, ये मेरी ही क्लास में पढ़ता है। बहुत अच्छा लड़का है। पढ़ाई में होशियार है लेकिन तबीयत से ज़रा कमज़ोर है। घर परिवार मध्यम ही है। इसका बाप किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता है। इसके बाद इसकी एक बहन है जो अभी स्कूल में पढ़ती है। माॅ हाउसवाइफ ही है।

2, निखिल खन्ना, ये भी मेरी क्लास में ही है। पढ़ने में होशियार है। ऑखों में नज़र का चश्मा लगाए रखता है। थोड़ा मोटा टाइप का है। घर परिवार अच्छा है। इसका बाप पीएनबी बैंक में काम करता है। ये अपने बाप का इकलौता बेटा है। इसकी माॅ भी हाउसवाइफ है।

3, पंकज सिंह, ये मेरी क्लास में नहीं है बल्कि इसका सब्जेक्ट अलग है। पढ़ने में तेज़ है। इसके बाप का खुद का कारोबार है। इसकी दो बहने हैं। एक इससे बड़ी है जिसकी दो साल पहले शादी हो गई है और दूसरी इससे छोटी है जो अभी स्कूल में पढ़ती है। माॅ हाउसवाइफ ही है।

3, शेखर बंसल, ये पंकज की क्लास में है। पढ़ने में तेज़ है। इसका बाप पेशे से डाक्टर है। इसका एक बड़ा भाई है जो कनाडा में रहता है। बहन नहीं है। माॅ एचडीएफसी बैक में नौकरी करती है।

4, प्रिया सिन्हा, ये पंकज और शेखर के साथ ही पढ़ती है। पढ़ने में होशियार है। इसके पिता आर्मी में मेजर हैं। इसका एक बड़ा भाई है जिसकी कुछ समय पहले ही शादी हुई है। ये अपनी माॅ और भाई के साथ ही माधवगढ़ में रहती है। इसका भाई प्रेम सिन्हा माधवगढ़ में ही एक बैंक में करता है। प्रिया एक खूबसूरत लड़की है लेकिन ज्यादा किसी से बात नहीं कर पाती क्योंकि इसका स्वभाव ज़रा शर्मीला है।


5, साक्षी सिंह, ये मेरी ही क्लास में पढ़ती है। ऑखों में नज़र का चश्मा लगाती है। दिखने में सुंदर है। थोड़ा गुस्सैल स्वभाव की है। इसका बाप एयरफोर्स में है। इसका एक छोटा भाई है जो स्कूल में पढ़ता है। माॅ इसकी डाक्टर है और खुद का एक क्लीनिक चलाती है।

6, नितिन शर्मा, ये मेरी ही क्लास में है। इसका शरीर थोड़ा पतला है। इस लिए ये हमेशा ढीले कपड़े ही पहनता है ताकि इसके शरीर का पतलापन ज्यादा समझ में न आए किसी को। पढ़ने में तेज़ है। माॅ विधवा है जो किसी प्राइवेट कंपनी में काम करती है। इसका इसकी माॅ के अलावा और कोई नहीं है।

7, नकुल चौहान, ये कामर्स का स्टूडेन्ट है। इसके बाप की एक बड़ी सी फर्नीचर की दुकान है। माॅ हाउसवाइफ है। इसकी एक बड़ी बहन है जिसकी शादी पिछले साल हो गई है।

8, शीतल वर्मा, ये नकुल की क्लास में ही है। थोड़ी मोटी है लेकिन दिखने में सुंदर है। इसकी ऑखों पर भी नज़र का चश्मा लगा रहता है। इसके बाप का इम्पोर्ट एक्सपोर्ट का बिजनेस है। इसके दो भाई हैं जो इससे बड़े हैं। उन दोनो की शादी हो चुकी है। माॅ हाउसवाइफ है।

9, रागनी तिवारी, ये साॅवली सी है लेकिन इसकी पर्शनालिटी ग़जब की है। ये मेरी ही क्लास में है। इसका बाप पुलिस में सब-इंस्पेक्टर है। माॅ हाउसवाइफ है। एक भाई है जो इससे छोटा है और अभी स्कूल में पढ़ता है।

10, आदित्य सोनी, ये भी शीतल और नकुल की क्लास में है। इसके बाप की ज्वैलरी की बड़ी भारी दुकान है। माॅ हाउसवाइफ है। एक जुड़वा बहन है जो इसके साथ ही पढ़ती है। उसका नाम परिधि सोनी है।

11, ऑचल श्रीवास्तव, ये प्रिया सिन्हा व पंकज की क्लास में है। दिखने में खूबसूरत है। इसके बाप का प्रापर्टी का बिजनेस है। माॅ हाउसवाइफ है। एक भाई है जो पुणे में ज्वाब करता है।

दोस्तो ये था इन लोगों का संक्षिप्त परिचय।


"भाई क्यों न हम सब लोग बगल वाले पार्क में चलें।" सुधीर ने कहा___"अभी तो शाम होने में काफी वक्त है। वहाॅ पर तुम हम सबको अपने बारे में बता भी देना। क्यों दोस्तो क्या कहते हो तुम सब?"

सुधीर की इस बात से सबने एक साथ हाॅ कहा।

"चलो ठीक है।" मैने कहा___"लेकिन हम ज्यादा समय तक पार्क में नहीं रुकेंगे। क्योंकि लड़कियों के लिए फिर शाम हो जाएगी जिससे उनको अपने घर जाने में परेशानी हो जाएगी।"

"सही कहा भाई।" निखिल ने कहा___"हमारे पास एक से डेढ़ घंटे का समय है। इस लिए भाई के बारे में जान कर और अपने अपने बारे में हम सब एक दूसरे को बता निकल लेंगे। अब तो हम सब दोस्त ही हैं इस लिए जान पहचान तो होती ही रहेगी।"

"चलो फिर देर मत करो।" शीतल ने कहा__"मुझे घर भी जल्दी जाना पड़ेगा नहीं तो माॅ बहुत डाॅटेगी मुझे।"

हम सब एक साथ आगे बढ़ने ही वाले थे कि एक आवाज़ ने हम सबको रुकने पर मजबूर कर दिया। मुझे वो आवाज़ पहचानने में देर न हुई। ये रानी की आवाज़ थी।

"रुक जाइये आप सब।" रानी ने आवाज़ दी थी, पास आकर मुझसे बोली___"क्या इस ग्रुप में मेरे लिए भी कोई जगह है?"

रानी ने इतनी मासूमियत से ये कहा था कि उसका एक एक शब्द मेरे दिल में उतरता चला गया। मैं जानता था कि वो बेचारी मेरे करीब आना चाह रही थी। मेरी असलियत मेरे ही मुख से जानना चाहती थी। मुझे उस पर तरस भी आया और प्यार भी।

"जी बिलकुल जगह है।" मैने संतुलित भाव से कहा___"पर ये कोई ग्रुप नहीं है। ये एक रिश्ता है, दोस्ती का, भावनाओं का।"
"हाॅ जी।" रानी ने कहा___"मेरा मतलब वही है कि इस दोस्ती के रिश्ते में क्या मेरे लिए भी कोई जगह है? मुझे भी आप सबके बीच उसी रिश्ते से रहना है।"

"अच्छी बात है।" मैने कहा___"अब से आप भी हमारे साथ हैं, क्यों दोस्तो?"

मेरी इस बात से सबने एक साथ सहमति जताई। उसके बाद हम सब पार्क की तरफ बढ़ गए। सुधीर बार बार मुझे देख कर मुस्कुरा देता था। मुझे उसका मुस्कुराना अच्छी तरह समझ में आ रहा था पर मैंने उसे कुछ कहा नहीं। ख़ैर, कुछ ही देर में हम सब पार्क में पहुॅच गए। मैं सोच रहा था कि रानी के सामने अब मैं इन लोगों को क्या और कैसे अपने बारे में बताऊॅगा?


दोस्तो अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,,

मैने सोचा कि छोटा सा ही सही पर इसका भी आज एक अपडेट दे ही दूॅ।
मस्त कॉलेज लाइफ एंजॉय कर रहा है अपना हीरो।
राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 20 )


अब तक,,,,,,,,,

"रुक जाइये आप सब।" रानी ने आवाज़ दी थी, पास आकर मुझसे बोली___"क्या इस ग्रुप में मेरे लिए भी कोई जगह है?"

रानी ने इतनी मासूमियत से ये कहा था कि उसका एक एक शब्द मेरे दिल में उतरता चला गया। मैं जानता था कि वो बेचारी मेरे करीब आना चाह रही थी। मेरी असलियत मेरे ही मुख से जानना चाहती थी। मुझे उस पर तरस भी आया और प्यार भी।

"जी बिलकुल जगह है।" मैने संतुलित भाव से कहा___"पर ये कोई ग्रुप नहीं है। ये एक रिश्ता है, दोस्ती का, भावनाओं का।"
"हाॅ जी।" रानी ने कहा___"मेरा मतलब वही है कि इस दोस्ती के रिश्ते में क्या मेरे लिए भी कोई जगह है? मुझे भी आप सबके बीच उसी रिश्ते से रहना है।"

"अच्छी बात है।" मैने कहा___"अब से आप भी हमारे साथ हैं, क्यों दोस्तो?"

मेरी इस बात से सबने एक साथ सहमति जताई। उसके बाद हम सब पार्क की तरफ बढ़ गए। सुधीर बार बार मुझे देख कर मुस्कुरा देता था। मुझे उसका मुस्कुराना अच्छी तरह समझ में आ रहा था पर मैंने उसे कुछ कहा नहीं। ख़ैर, कुछ ही देर में हम सब पार्क में पहुॅच गए। मैं सोच रहा था कि रानी के सामने अब मैं इन लोगों को क्या और कैसे अपने बारे में बताऊॅगा?
_____________________


अब आगे,,,,,,,

कुछ ही देर में हम सब पार्क में पहुॅच गए। पार्क के एक साइड लगी बेन्चों पर हम सब बैठ गए। मैं सोच रहा था कि रानी के सामने कैसे मैं उन सबको अपने बारे में बता पाऊॅगा। लेकिन अब बताना तो पड़ेगा ही क्योंकि सबको मैं कह चुका था।

"चलो अब बताओ भाई।" शेखर ने ही सबसे पहले कहा था।
"क्या जानना चाहते हो तुम सब लोग मेरे बारे में?" मैने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"यार मैं भी तुम सब की तरह एक इंसान ही हूॅ।"

"वो तो हम मानते हैं भाई कि तुम भी हम सबकी तरह एक इंसान ही हो।" पंकज ने कहा___"लेकिन ये भी मानते हैं कि इंसान हो कर भी तुम हम सब से थोड़ा अलग हो।"
"ऐसा कैसे कह सकते हो तुम?" मैने पंकज की तरफ देखते हुए कहा था।

"पता नहीं भाई।" पंकज ने कहा___"पर तुम्हें और तम्हारी गतिविधियों को देख कर ऐसा ज़रूर लगता है कि तुम कोई रहस्यमयी इंसान हो।"
"पता नहीं क्या अनाप शनाप बके जा रहे हो तुम?" मैने कहा___"भला ऐसा भी क्या कर दिया मैने कि तुम मुझे रहस्यमयी कहने लगे?"

"कई रीजन हैं भाई।" पंकज ने कहा__"शुरू से शुरू करता हूॅ____पहले दिन जब तुम काॅलेज आते हो तो एक हाई फाई कार से आते हो, जो ये साबित करता है कि तुम कोई दौलतवाले घर से हो। कल कालेज में तुमने जिस तरीके से रोनी और उसके दोस्तों को सहजता से मगर इतनी खतरनाक तरीके से मारा था वो कोई आम लड़का नहीं कर सकता। मतलब साफ है कि तुमने जूड़ो कराटे, कुंगफू या मार्शल आर्ट्स की बाकायदा जानकारी रखते हो। रोनी जैसे अमीर और खतरनाक बाप के बेटे को मारने के बाद भी अब तक सही सलामत कालेज में हो। ये बेहद हैरानी की बात है कि रोनी का बाप अपने बेटे की उस हालत का बदला लेने के लिए तुम्हारे साथ अब तक कुछ नहीं किया। अरे करने की तो बात दूर बल्कि वह तो तुम्हें देखने तक नहीं आया। कल के हादसे के बाद प्रिंसिपल ने भी इस बारे में तुम्हारे खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं लिया। बल्कि वो इस तरह खामोश हो गया जैसे तुमने कुछ किया ही नहीं है। आज पहले पीरियड में जब तुमने टीचर को अपना इंट्रो दिया तो ये कहा कि मुझे मेरे गुरू तो राजवर्धन ही कहते हैं बाॅकी घर के सब लोग राज कह कर बुलाते हैं। अब सवाल ये उठता है कि तुम अपने किस गुरू की बात कर रहे थे? ये सारी बातें साफ साफ कहती हैं राज भाई कि तुम यकीनन रहस्यमयी इंसान हो।"

मैं पंकज की बात और उसकी बुद्धि को देखता रह गया। मैं सोच भी नहीं सकता था कि एक मामूली सा लड़का इस सबके बारे में इस तरह सोच कर कह सकता था।

"पंकज की बात का हम सब समर्थन करते हैं राज भाई।" निखिल ने कहा___"और अगर पंकज की बात सही मानी जाए तो सचमुच तुम रहस्यमयी हो। इस लिए हम सब जानना चाहेंगे कि तुम वास्तव में हो कौन?"

"हद हो गई यार।" मैंने कहा___"पंकज ने तो तिल का ताड़ और राई का पहाड़ ही बना दिया। जबकि इसमें रहस्यमयी जैसी कोई बात ही नहीं है। आज के समय में अगर किसी को शौक होता है तो वो मार्शल आर्ट्स जैसी चीज़ों की ट्रेनिंग लेता ही है। मुझे शौक था तो मैने भी मार्शल आर्ट्स की विधिवत शिक्षा ली। और मैंने जिन्हें अपना गुरू कहा था वो मार्शल आर्ट्स की शिक्षा देने वाले मेरे गुरू थे। वो ही मुझे राजवर्धन कहते हैं। इसके पहले मैं और मेरा परिवार इंडिया के बाहर रहते थे। अभी कुछ समय पहले ही हम सब यहाॅ अपने देश आए हैं। विदेश का सारा कारोबार बेच कर हमने यहाॅ पर अपना दूसरा कारोबार शुरू कर लिया है। बस इतनी सी बात है जिसे तुम लोग रहस्यमयी समझ रहे हो।"

"ओह तो ये बात है।" साक्षी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"इस पंकज ने तो सच में राई का पहाड़ बना दिया था।"
"लेकिन एक बात तो है साक्षी।" सुधीर ने कहा___"पंकज ने क्या दिमाग़ लगाया था सारी बातों को कैच करके बताने का।"

"तो तुम अब अपनी फैमिली के साथ हमेशा के लिए यहाॅ आ गए हो?" शेखर ने पूछा।
"हाॅ यार।" मैने कहा__"मेरे चाचू तो मान ही नहीं रहे थे यहाॅ आने के लिए। वो तो दो साल से मैं ही ज़िद कर रहा था कि मुझे अपने देश में रहना है। फिर क्या था मेरी बात उन्हें माननी ही पड़ी।"

"तो कौन कौन हैं तुम्हारी फैमिली में?" सुधीर ने पूछा।
"मैं, मेरी दो माएॅ, एक चाचू और एक मामा जी।" मैने धड़कते दिल से कहा___"हम पाॅच लोगों का ही परिवार है। लेकिन उम्मीद है कि कुछ समय बाद हमारे परिवार में एक दो सदस्यों की और इंट्री हो जाएगी।"

"वो कैसे?" साक्षी चौंकी।
"दरअसल, मामा जी और चाचू दोनो शादी करेंगे तो दो सदस्य और आ जाएॅगे।" मैने बताया।
"ओह।" साक्षी ने कहा।
"और तुम्हारे डैड?" पंकज ने पूछा।
"डैड नहीं हैं।" मैने कहा। ये अलग बात है कि ये कहते वक्त मेरी आवाज़ लड़खड़ा गई थी जिसे सबके साथ साथ रानी ने भी महसूस किया। वो एकटक मुझे ही देख रही थी।

"ओह साॅरी भाई।" पंकज ने कहा___"वैसे क्या हुआ था डैड को?"
"पता नहीं भाई।" मुझे समझ ही न आया कि क्या बताऊॅ।
"पता नहीं, ये क्या बात हुई भाई?" शेखर बरी तरह हैरान हुआ।

"दरअसल माॅ ने कभी बताया ही नहीं।" मैने कहा।
"अरे ऐसा कैसे हो सकता है भाई?" सुधीर कह उठा___"ऑटी ने भला क्यों न बताया होगा? कुछ तो बताया ही होगा। वरना तुम्हारे सर्टिफिकेट में डैड का नाम रिक्त नहीं हो जाता??"

"अरे भाई ये तो पता है मुझे।" मैने कहा___"माॅ ने डैड का नाम तो बताया था। और वही नाम मेरे सभी सर्टिफिकेट में भी है।"
"ओह आई सी।" नितिन ने कहा___"तो क्या तुमने कभी खुद ये जानने की कोशिश नहीं की कि तुम्हारे डैड को हुआ क्या था?"


"उन्हें कुछ हुआ है कि नहीं ये तो ईश्वर ही जाने।" मैने कहा___"क्योंकि मैंने जबसे होश सम्हाला है तब से कभी अपने डैड को नहीं देखा। माॅ ने भी कभी उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताया। बस इतना बताया था कि मेरे डैड का नाम अशोक श्रीवास्तव था।"

"क्या????" रानी मेरे मुख से ये नाम सुनकर बुरी तरह उछली थी। हलाॅकि मैं अच्छी तरह जानता था कि उसने उछलने का सबके सामने नाटक किया था। सब उसकी तरफ देखने लगे थे। जबकि,

"ये क्या कह रहे हैं आप?" रानी ने ऑखों में आश्चर्य लेकर कहा___"आपके डैड का नाम अशोक श्रीवास्तव था?"
"हाॅ, मेरी माॅ ने तो यही बताया था मुझे।" मैने भी नाटक किया___"और यही नाम मेरे सभी सर्टिफिकेट पर भी दर्ज है। पर आप ये नाम सुनकर इतना क्यों उछल पड़ी मिस?"

"क्योंकि मेरे पापा का नाम भी अशोक श्रीवास्तव है।" रानी ने अधीरता से कहा।
"अरे ये तो कमाल हो गया राज भाई।" सुधीर ने हैरानी से कहा___"तुम्हारे और इनके यानी दोनो के ही डैड का नाम एक ही है। अनबिलीवेवल भाई।"

"ऐसा हो जाता है किसी न किसी के साथ कि दो अलग अलग ब्यक्तियों के पिता का नाम सेम हो जाए।" सहसा प्रिया ने कहा___"जैसे बहुत से ऐसे लड़के लड़कियाॅ होते हैं जिनके नाम समान होते हैं। सो ऐसा ही है शायद इनके साथ भी।"

"पर मेरे और इनके में और भी कई समानताएॅ हैं प्रिया।" रानी ने कहा___"अगर तुम सब लोग सुनना पसंद करो तो बताऊॅ?"
"हाॅ हाॅ क्यों नहीं।" सबने एक साथ कहा। जबकि रानी की ये बात सुनकर मेरी धड़कनें बढ़ गईं।

"जैसा कि तुम लोग ये जान ही गए हो कि इनके और मेरे पापा का नाम और कास्ट सेम ही है।" रानी ने एक एक शब्दों पर ज़ोर दिया___"मगर कुछ और भी ऐसी चीज़ें हैं जो इनके और मेरे में एक समान है। दरअसल हम दो भाई बहन थे और दोनो जुड़वा पैदा हुए थे। मेरे भाई मुझसे बस पाॅच मिनट के ही बड़े थे। उनका नाम भी राजवर्धन था। घर में सब उन्हें राज ही कहते थे। हम दोनो भाई बहन जब पाॅच साल के थे तो एक साथ ही हम दोनों का स्कूल में पापा ने नाम लिखवा दिया। हम दोनो स्कूल जाने लगे। हम दोनो भाई बहन के बीच बेहद लगाव था। एक को दर्द होता तो दूसरा उस दर्द से रोने लगता था। ख़ैर, फिर एक दर्द भरी ऐसी घटना घटी जिसने हम सबको उस दर्द में डुबो दिया। दरअसल, हम दोनो भाई बहन का स्कूल में नाम लिखे कुछ ही महीने हुए थे कि एक दिन जब हम दोनो स्कूल से आ रहे थे तो अचानक हमारे सामे एक कार आकर रुकी। उससे एक आदमी बाहर निकला और राज भाई को उठा लिया और वापस कार में उनको लेकर बैठ गया। इसके बाद वो कार वहाॅ से ऑधी की तरह चली गई। जबकि मैं रोते हुए उस कार के पीछे दौड़ती रही। मगर वो कार मेरी ऑखों से ओझल हो गई। मैं अपने भइया के लिए वही बीच सड़क पर रोती रही। कुछ लोग मेरे पास आए और मुझे चुप कराने लगे। मगर मैं शान्त ही नहीं हो रही थी। मुझे तो बस मेरे राज भइया चाहिये थे। उन लोगों ने बड़ी मुश्किल से मुझे चुप कराया और मुझसे मेरे घर वालों का नाम पता पूछा तो मैने पापा का नाम बता दिया। मेरे बताने पर वो लोग मुझे मेरे घर ले आए और मुझे मेरी माॅ को सौंप दिया। उन्होंने उन्हें सारी बात बताई कि कैसे मैं बीच सड़क पर रो रही थी। उसके बाद वो लोग चले गए। उन लोगों के जाने के बाद मेरी माॅ ने मुझसे राज भइया के बारे में पूॅछा तो मैने उनको रोते हुए सब बता दिया। मेरी बातें सुन कर माॅ की हालत खराब हो गई। उन्हें लकवा सा मार गया था। मैने रोते हुए ही उनको झिंझोड़ा तब जाकर उनको होश आया। मगर जैसे ही उन्हें होश आया वो मुझे मारने लगी और कहने लगी कि मैं क्यों वापस आ गई। तुझे क्यों नहीं ले गए वो लोग? मेरे बेटे को ही क्यों ले गए? तूने मेरे बेटे को जाने क्यों दिया? मैं भला उनसे क्या कहती? मैं भी तो छोटी सी बच्ची ही थी। उसके बाद पापा को जब पता चला तो वो भी दुखी हो गए। उन्होने राज भइया को तलाशने के लिए धरती आसमान एक कर दिया। वर्षों तक पुलिस उनको तलाशती रही मगर फिर कभी राज भइया का कहीं कुछ पता न चला। धीरे धीरे समय भी गुज़रता रहा। मेरी माॅ ने राज भइया के खो जाने का जिम्मेदार मुझे ही बना दिया। उन्होंने कभी मुझे प्यार नहीं दिया बल्कि हर वक्त अपनी तीखी और कड़वी बातों से मुझे जलील करती रहीं। भइया के खो जाने के दो साल बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली थी। मेरी माॅ उनसे ज्यादा मतलब नहीं रखती थी। वो तो बस हर वक्त बेटे के ग़म में ही अपने कमरे में पड़ी रहती थी। दूसरी माॅ ने ही मुझे प्यार दिया। मेरे ज़ख्मों पर मरहम लगाया। उनको कोई औलाद नहीं हुई। इस लिए दूसरी माॅ ने मुझे ही अपनी सगी बेटी बना लिया और दिलो जान से प्यार किया। तो कहने का मतलब ये कि मेरे में और इनके में ऐसी भी समानताएॅ हैं।"

मैं तो क्योंकि जानता ही था कि रानी सब कुछ सच ही कह रही थी। लेकिन वहाॅ मौजूद बाॅकी सब लोग उसकी बातों को सुन कर बुरी तरह हैरान भी थे और उसके लिए दुखी भी।

"तुम्हारी बातों ने तो सच में हिला दिया रानी।" प्रिया ने कहा___"तो क्या आज भी तुम्हारे भइया तुम्हें वापस नहीं मिले?"
"मिल तो गए हैं प्रिया।" रानी ने ऑसू पोंछते हुए कहा___"मगर मिलने के बाद भी शायद नहीं मिले मुझे।"

"क्या मतलब??" प्रिया के साथ साथ सभी चौंक पड़े थे।
"यही तो हैं में मेरे भइया।" रानी की रुलाई फूट गई, मेरी तरफ इशारा करके बोले जा रही थी वह___"ये मेरे राज भइया ही हैं। मुझे पूरा यकीन है कि यही मेरे राज भइया हैं। मेरी अंतर्आत्मा झूठ नहीं बोल सकती।"

रानी की इस बात ने उन सब पर जैसे बम्ब सा फोड़ दिया था। सबके सब आश्चर्य से ऑखें फाड़े कभी रानी को तो कभी मुझे देखे जा रहे थे। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अब मैं कैसा रिऐक्ट करूॅ?

"राज भाई।" सुधीर हैरान परेशान सा बोल पड़ा___" क्या ये जो कह रहीं हैं वो सच है?"
"क्या बताऊॅ यार।" सहसा मैने आवेश में आते हुए कहा___"कल भी इन्होंने कंटीन में मुझसे यही कहा था। मुझे समझ में नहीं आता कि ये मेरे पीछे हाॅथ धोकर क्यों पड़ गई हैं? मैने कल भी इनसे यही था कि मेरा इनसे कोई रिश्ता नहीं है। और आज इन्होने रिश्ते को साबित करने के लिए तुम सबको एक मनगढ़ंत कहानी भी सुना दी। हद है यार ये तो।"

"ये कहानी नहीं है भइया।" रानी ने ज़ार ज़ार रोते हुए कहा___"बल्कि हकीक़त है। अगर आपको मेरी बातों पर यकीन नहीं आता तो मेरे साथ मेरे घर चल कर खुद देख लीजिए। वहाॅ आपको मेरे पापा अशोक श्रीवास्तव भी मिल जाएॅगे और मेरी वो माॅ भी मिल जाएगी जो आज भी आपके विरह में दुखी है और चुपचाप अपने कमरे में पड़ी रहती है। मैं वो सब निशानियाॅ भी दिखाऊॅगी आपको जिनसे आपका ताल्लुक है।"

"देखो मिस।" मैने बड़े सब्र के साथ कहा__"ये सब नाटक बंद करो। मुझको भाई ही बनाना है तो ठीक है मैं भाई बन जाऊॅगा लेकिन ये सब नाटक और ऐसी कहानी गढ़ने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

"ये कहानी नहीं है।" रानी ने खीझते हूए कहा___"कैसे यकीन दिलाऊॅ आपको? आप एक बार मेरे साथ मेरे घर चल कर देख लीजिए न। वहाॅ जाकर तो आपको भी पता चल जाएगा कि मैं सच बोल रही हूॅ या झूॅठ।"

"भाई एक बार इनके घर जा कर के देख ही लो।" शेखर ने कहा___"जब ये कह रही हैं तो जाने में क्या हर्ज़ है? आख़िर तुमको भी तो पता हो जाएगा कि सच क्या है?"
"शेखर सही कह रहा है भाई।" पंकज मेरे पास आते हुए बोला___"एक बार खुद भी ठंडे दिमाग़ से सोचो कि हो सकता है इनकी बात सही ही हो। मेरा मतलब कि हो सकता है कि इनके भाई के खो जाने वाली बात सच ही हो। और अगर ये सच होगा तो खुद सोचो भाई कि इनकी मानसिक अवस्था क्या होगी? एक बहन अपने भाई के लिए कितना दुखी होगी? एक माॅ जैसा कि इन्होने ने बताया कि वो आज भी अपने बेटे के ग़म में दुखी हैं तो सोचो भाई इनका पूरा परिवार ही कितना दुखी होगा। इस लिए एक बार इनके साथ इनके घर चले जाने में कोई हर्ज़ नहीं है। बल्कि मैं तो ये कहता हूॅ कि हम सब इनके घर चलते हैं।"

"हाॅ क्यों नहीं।" रानी कह उठी___"तुम सब भी चलो मेरे साथ और खुद भी अपनी ऑखों से देख लो। मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है।"
"ठीक है चलो मान लिया कि इन्होंने जो कुछ भी कहा वो सब सच है।" मैने कहा__"मगर इसका मतलब ये तो नहीं कि मैं ही इनका वो भाई हूॅ जिनकी ये कहानी बता रही हैं कि वो खो गया था।"

"इतनी सारी चीज़ों की समानताएॅ किसी की नहीं होती भइया।" रानी ने मेरी ऑखों में देखते हुए कहा___"मैं ये मानती हूॅ कि आपके पिता का नाम और मेरे पापा का नाम एक समान होना महज एक इत्तेफाक़ हो सकता है। मगर जो दो नाम आपके हैं वहीं दो नाम मेरे भइया के भी हैं तो क्या वो भी इत्तेफाक़ हो गया? मेरी डेट ऑफ बर्थ और मेरे भइया की डेट ऑफ बर्थ सेम है। हम दोनो भाई बहन की डेट ऑफ बर्थ 08-08-1998 है। और मुझे पूरा यकीन है कि आपकी भी यही डेट ऑफ बर्थ होगी। कह दीजिए कि नहीं है? सबसे बड़ी बात चलिये मान लिया हम दोनो के पिता के नाम सेम हैं तो क्या सर्टिफिकेट में माॅ के नाम भी सेम होने चाहिए? मेरे सर्टिफिकेट में मेरी माॅ का नाम रेखा श्रीवास्तव है। अब आप बताइये कि आपके सर्टिफिकेट में आपकी माॅ का नाम क्या है?"

सच कहता हूॅ दोस्तो, रानी की इस बात ने मुझे जैसे निरुत्तर सा कर दिया था। भला मैं कैसे उसे बता देता कि हाॅ मेरे सर्टिफिकेट में भी मेरी माॅ का वही नाम दर्ज़ है जो उसकी माॅ का है? मैं जानता था कि उसके पास जितने भी सबूत थे सब सच ही थे। जबकि मेरे पास अब ऐसा कोई लिखित सबूत नहीं था जिससे कि मैं उसकी बातों को झुठला सकता। रानी की इन सब बातों से बाॅकी सब की निगाहें मेरे चेहरे की तरफ मुड़ गई थी। मतलब साफ था कि वो सब अब ये जानना चाहते थे कि क्या मेरी माॅ का नाम भी वही है जो रानी की माॅ का नाम है? और अगर वही है तो फिर ये आख़िरी सबूत होगा शायद कि हाॅ मैं ही रानी का वर्षों पहले खोया हुआ भाई हूॅ।

"राज भाई तुम चुप क्यों हो?" मुझे चुप देख कर पंकज कह उठा___"मिस रानी की बात का जवाब दो। क्या तुम्हारे सर्टिफिकेट में भी तुम्हारी माॅ का वही नाम दर्ज़ है जो इनकी माॅ का है?"
"तो क्या उससे भी ये साबित हो जाएगा कि मैं ही इनका खोया हुआ भाई हूॅ?" मैने हार न मानते हुए कहा___"ये भी तो संयोग या इत्तेफाक़ हो सकता है।"

"मतलब कि तुम मान रहे हो कि तुम्हारी माॅ का नाम भी वही है।" पंकज ने हैरानी भरे भाव से कहा___"जो इनकी माॅ का नाम है। यानी कि रेखा श्रीवास्तव?"
"हाॅ ये सच है।" अब मानने के सिवा मेरे पास कोई चारा न था, बोला___"पर ये भी महज इत्तेफाक़ ही है। इस सबका ये मतलब हर्गिज़ नहीं हो सकता कि मैं ही इनका भाई हूॅ।"

"क्यों नहीं हो सकता भइया?" रानी एक बार फिर से बुरी तरह रो पड़ी___"आपको और कितने सबूत चाहिए? मैने तो आपको अपना भाई कहने के इतने सारे सबूत दे दिये। क्या आप ऐसा कोई सबूत दे सकते हैं जिससे आप ये साबित कर सकें आप मेरे खोए हुए भइया नहीं हैं? बताइये।"

"मुझे कोई सबूत देने की ज़रूरत ही नहीं है।" मैने कहा___"क्योंकि मैं इस बात को मानता ही नहीं कि मैं ही आपका वो खोया हुआ भाई हूॅ। और हाॅ अब इस मैटर में किसी से कोई बात नहीं करना चाहता।"

मैं ये कह कर वहाॅ से चल दिया। अभी कुछ ही क़दम चला था कि रानी की बहुत ही करुण आवाज़ मेरे कानों में पड़ी।

"रुक जाइये और मेरी एक बात भी सुन लीजिए।" रानी कह रही थी___"आप नहीं मानते न कि आप ही मेरे भइया हैं तो ठीक है। मैं भी अब अपने भइया के बिना जीवित नहीं रहना चाहती। इतने वर्षों से इसी आस में ज़िंदा थी कि जिस दिन मेरे भइया मुझे मिलेंगे उस दिन शायद मेरी माॅ भी भइया के साथ साथ मुझे प्यार करने लगेगी। मगर नहीं, अब और नहीं। इतने दुख दर्द अब और नहीं सह सकती मैं। आप जाइये, अगर मेरे भइया इस दुनियाॅ में हैं ही नहीं तो मेरा भी अब मर ही बेहतर है। उनके लिए ही तो जी रही थी। अब अगर वो ही नहीं हैं तो मैं भी अब इस दुनियाॅ में नहीं रहना चाहती।"

"ये क्या कह रही हो रानी?" साक्षी जो उसके करीब ही थी, वो उछल पड़ी थी।
बाॅकी सबका हाल भी साक्षी की तरह ही था। कुछ ही दूरी पर खड़ा मैं हतप्रभ सा रानी को देखे जा रहा था। मेरा दिल बैठा जा रहा था।

"अलविदा दोस्तो।" रानी ने कहा और अपने बाएॅ हाथ की एक उॅगली में पहनी हुई अॅगूठी को अपने मुह की तरफ बढ़ाया। दूसरे हाॅथ से उसने पहले ही अॅगूठी के छोटे से किन्तु अजीब से नग के ऊपर लगे ढक्कन को खोल लिया था। अॅगूठी वाली उॅगली मुख के पास ले जाकर उसने अपने हाॅथ को उल्टा कर लिया। उसमें से कुछ पीला पीला निकल कर रानी के मुह में गिर गया। रानी का चेहरा ऑसुओं से तर था। किसी को कुछ समझ न आया कि रानी ने ये किया क्या है। समझ तो तब आया जब कुछ ही पलों में रानी का जिस्म चक्कर आने जैसा लहराने लगा। उसको जबरदस्त हिचकी आई, और झटके से उसके मुह से खून बाहर आ गया।

"नहींऽऽऽऽ।।।।" सम्पूर्ण वातावरण में मेरी चीख गूॅज गई। मैं बिजली की सी तेज़ी से रानी की तरफ दौड़ा। सब लोग जैसे स्टेचू में तब्दील हो गए। सबका दिमाग़ सुन्न पड़ गया।

मैं दौड़ कर रानी के पास आया। वो बस ज़मीन पर गिरने ही वाली थी कि मैने उसे अपने दोनो बाजुओं से सम्हाल लिया। रानी के मुख से खून बह रहा था तथा उसकी ऑखें बंद हो रही थी। उसकी ये दशा देख कर मेरी रूह तक काॅप गई। एक मज़ाक जो चल रहा था अब तक वो मुझ पर ही भारी पड़ गया था। मेरी आॅखों से ऑसू झर झर करके बहने लगे।

"ये क्या किया तूने पागल?" मैंने उसे खींच कर खुद से छुपका लिया, रोते हुए बोला__"अरे मैं तो तुझे बस परेशान कर रहा था इतने दिनों से और तूने ये सब कर लिया?"
"इतने वर्षों से मुझे परेशान करके भी आपका दिल नहीं भरा था भइया?" रानी ने अजीब भाव से बिलखते हुए कहा__"मेरे हृदय में झाॅक कर देख लेते एक बार। शायद आपको कुछ नज़र आ जाता वहाॅ।"

"मैं सब जानता हूॅ पगली।" मैने उसके चेहरे पर प्यार से हाथ फैरते हुए कहा___"तुझे कुछ भी कहने की ज़रूरत नहीं है। अरे मैं तो बस अपनी बहन को परेशान कर रहा था, तुझे सता रहा था। पहले तो कभी ऐसा समय ही नसीब नहीं हुआ तो सोचा तेरे साथ एक खेल ही खेल लूॅ। मगर तूने ये क्या कर लिया?"

"आपको खेल ही खेलना था तो बस एक बार ये यो बता देते भइया कि आप ही मेरे भइया हैं।" रानी ने कहा___"आपके मुख से ये सुन कर मुझे सुकून तो मिल जाता। खेल खेलने के लिए तो सारी ऊम्र पड़ी थी न? ख़ैर, जाने दीजिए। आज मैं इस हाल में भी बहुत खुश हूॅ भइया। अपने सबसे अज़ीज़ भइया की बाहों में दम निकल जाएगा मेरा। इससे बढ़ कर खुशी और क्या होगी मेरे लिए?"

"तुझे कुछ नहीं होगा मेरी गुड़िया।" मैने उसके माथे पर चूमते हुए कहा___"तुझे पता नहीं है कि तेरा भइया क्या चीज़ है। मैं यमराज की टाॅगें तोड़ दूॅगा अगर उसने मेरी बहन को छुआ भी तो।"
"मौत से भी कोई जीत सका है भइया?" रानी ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा था।
"कोई और जीता हो या नहीं।" मैने कहा__"पर तेरा ये भाई सब कुछ कर सकता है। यकीन कर छोटी, तुझे कुछ नहीं होने दूॅगा मैं।"

रानी की साॅसें अटकने लगी थी। उसने बहुत ही खतरनाक ज़हर पिया था। उसका समूचा जिस्म नीला पड़ने लगा था। हम दोनो के आस पास मौजूद बाॅकी सब अभी भी ऐसे बैठे और खड़े थे जैसे वो कोई बेजान पुतले हों। मैं तुरंत ही रानी को अपनी बाहों में उठा कर पार्क के बाहर की तरफ भागा। मेरे ऐसा करते ही बाॅकी सबको जैसे होश आया। वो सब भी हैरान परेशान होकर मेरे पीछे पीछे दौड़ पड़े। मैं रानी को लिए बहुत जल्द काॅलेज की पार्किंग में खड़ी अपनी कार के पास पहुॅचा। उसे अनलाॅक किया और गेट खोल कर रानी को अगली सीट पर लेटा दिया और खुद घूम कर जल्दी से ड्राइविंग सीट पर बैठ कर कार को स्टार्ट कर आगे बढ़ा दिया।

पार्किंग के बाहर आते ही वो सब लोग मिल गए। वो सब बहुत ही ज्यादा परेशान व भयभीत से दिख रहे थे।

"तुम सब लोग अपने अपने घर जाओ।" मैने कार को रोंक कर उनकी तरफ देखते हुए कहा___"मैं रानी को लेकर हाॅस्पिटल जा रहा हूॅ।"
"भाई मैं भी चलूॅगा तेरे साथ।" पंकज कह उठा। उसके साथ साथ ही सुधीर व शेखर भी कह उठा।
"चिन्ता मत करो भाई लोग।" मैने उन सबसे कहा___"रानी को कुछ नहीं होने दूॅगा मैं। कल ये सही सलामत तुम सबको काॅलेज में ही दिखेगी। अब जाओ तुम सब।"

सुधीर, पंकज व शेखर मान ही नहीं रहे थे। बड़ी मुश्किल से उन्हें मनाया। लड़कियों की ऑखों में रानी की इस हालत पर ऑसू थे। खैर, मैने सबको आस्वस्त किया और कार को तूफान की तरह आगे बढ़ा दिया।

रानी ने ऐसा ज़हर पिया था जिससे जीवित बचना असंभव था। मैं कार को हवाईजहाज की स्पीड में दौड़ाते हुए शहर से बाहर आ गया। उसे हास्पिटल ले जाने का कोई फायदा नहीं था क्योंकि ये किसी भी डाक्टर के बस की बात नहीं थी कि उसे बचा सकें। इस लिए मैं उसे शहर से बाहर एक ऐसी जगह लाया जहाॅ दूर दूर तक कोई न था।

शाम ढलने लगी थी। मैं जानता था कि सही समय पर अगर रानी अपने घर नहीं पहुॅचेगी तो घर के सब परेशान हो जाएॅगे। मैने कार को सड़क के किनारे लगा कर रोंक दिया। उसके बाद मैं अपनी तरफ से उतर कर रानी की तरफ आया और उसके पास ही बैठ गया। रानी की ऑखें बंद थी। मैने नब्ज चेक की तो बहुत ही धीमी चव रही थी। मैने उसके सिर को अपनी गोंद में रखा और उसके सिर पर अपना दाहिना हाॅथ रख कर ऑखें बंद कर ली।


मेरे ऐसा करते ही मेरे हाॅथ से एक दिव्य ऊर्जा निकल कर रानी के सिर से होते हुए उसके पूरे शरीर पर फैल गई। रानी के शरीर को इससे झटके लगने लगे। कुछ पल बाद ही वो सारी ऊर्जा लुप्त हो गई। उसके बाद मैंने फिर से रानी के सिर पर हाथ रख कर अपनी ऑखें बंद की। अगले ही पल मेरे हाथ से फिर एक तेज़ रोशनी निकली और रानी के शरीर में समाने लगी।

कुछ ही देर में वो रोशनी भी लुप्त हो गई। उसके लुप्त होते ही कुछ पलों बाद रानी की पलकें झिलमिलाते हुए खुल गई। उसके मुख पर लगा खून सब साफ हो गया था। रानी की ऑखें जब खुली तो उसकी नज़र मेरे चेहरे पर पड़ो और वह एकदम से मुझसे लिपट गई।

"भइया।" उसकी ऑखों से ऑसू छलक पड़े।
"चल अब रोना नहीं।" मैने उसकी पीठ पर थपकी देते हुए कहा___"और हाॅ माफ़ कर दे अपने इस भाई को जो उसने तुझे इतना रुलाया और सताया भी।"

"मैं और कुछ नहीं जानती भइया।" रानी ने कहा___"मैं तो बस इस बात से खुश हूॅ कि आप मुझे मिल गए।"
"चल अब तुझे घर छोंड़ आऊॅ नहीं तो सब परेशान हो जाएॅगे।" मैने कहा___"और हाॅ ये सब घर में किसी से मत कहना।"

"ऐसा क्यों भइया?" रानी ने कहा___"मैं तो सबसे खुशी खुशी बताऊॅगी कि आप मिल गए हैं। देखना सबसे ज्यादा कौन खुश होता है। जब माॅ आपको देखेंगी तो आप सोच भी नहीं सकते कि उनकी उस वक्त की दशा क्या होगी।"

"नहीं रानी।" मैने गंभीरता से कहा___"अभी ये सब इतना जल्दी बताना ठीक नहीं है। जब बताने का समय आएगा तब हम दोनो खुद चल कर उन्हें बताएॅगे।"
"पर भइया अभी बताने में हर्ज़ ही क्या है?" रानी ने कहा___"क्या आपको माॅ की हालत पर तरस नहीं आता? क्या आपका दिल नहीं चाहता कि आप भी माॅ और पापा से मिलें?"

"चाहता है रानी।" मैने कहा___"बहुत दिल चाहता है। मगर मुझमें सिर्फ उनका ही बस अधिकार नहीं है। बल्कि उनका भी अधिकार है जिन्होंने आज तक मुझे अपने बच्चे की तरह मान कर प्यार किया। मुझे पाला पोशा है। उनका मुझ पर पूरा अधिकार है बहन। जिस तरह यहाॅ पर तुम्हारी दो माॅ हैं उसी तरह मेरे भी दो माॅ हैं। वो दोनो मुझे ही अपनी दुनियाॅ मानती हैं। उन्होंने किसी से शादी नहीं की। जब से मैं उन्हें मिला हूॅ तब से वो मेरी माॅ बन कर मुझे प्यार दे रही हैं। आज आलम ये है कि वो मेरे बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकती हैं।"

"क्यों उनको पता नहीं है कि आपके अपने माता पिता और एक बहन भी है?" रानी ने पूछा।
"सब कुछ पता है उन्हें।" मैने कहा___"वो तुमको भी अच्छी तरह जानती हैं। वो तो इसके पहले कह भी रही थी कि मैं तुम्हें यूॅ न परेशान करूॅ बल्कि साफ साफ बता दूॅ कि मैं ही तुम्हारा भाई हूॅ।"

"तो फिर समस्या क्या है भइया?" रानी ने कहा__"जब उनको सब कुछ पता है और वो कह भी रही हैं तो आपको माॅ पापा के पास जाकर उन्हें अपने बारे में बताने में क्या समस्या है?"

"समस्या तो है रानी।" मैने कहा__"वो ये सोच कर मुझे आप लोगों को सब कुछ बता देने को कहती हैं ताकि मेरे मन में ये विचार न आए कि वो मुझे अपने स्वार्थ के कारण अपने माता पिता के पास जाने का नहीं कह रही। और मैं ये सोच कर नहीं जा रहा कि उनके मन में ये न आए कि जब मैं सक्षम हो गया तो उन्हें छोड़ कर अपने माता पिता के पास चला गया।"

"ओह तो ये बात है।" रानी ने कहा___"पर ये तो बस आपकी और उनकी सोच व संभावनाएॅ हैं भइया कि आप उनके बारे में ऐसा सोचे बैठे हैं। ख़ैर, इस समस्या का एक हल ये भी है कि या तो हम सब आपके पास ही आ कर रहने लगें या फिर वो सब हमारे पास आकर रहने लगें। हम सब एक साथ रहने लगेंगे। फिर ना आपको लगेगा कि आपने उन्हें छोड़ दिया और ना ही उनको लगेगा कि आप उनकी वजह से आ नहीं सकते थे।"

"तुमने यकीनन बहुत अच्छा सुझाव दिया है मेरी गुड़िया।" मैने कहा___"इस बारे में सोचा जा सकता है। लेकिन उसके पहले हमें दोनो तरफ इस बारे में बात करनी होगी।"

"हाॅ तो ठीक है न।" रानी ने कहा__"यही करते हैं फिर। तो अब बताइये कब बात करना है हमें?"
"देखते हैं हालात कैसे बनते हैं?" मैने कुछ सोचते हुए कहा___"इतना जल्दी तो ये हो नहीं सकता।"

"ऐसा क्यों?" रानी ने कहा__"जल्दी क्यों नहीं हो सकता?"
"मैने कुछ सोचा है इस बारे में।" मैने रहस्यमय तरीके से कहा था।
"क्या सोचा है आपने?" रानी के भाथे पर बल पड़ा।
"अपने कान मेरे मुह के पास करो।" मैने मुस्कुरा कर कहा।

रानी ने अपना कान मेरे मुह के पास कर दिया। मैने उसे बता दिया। सुन कर रानी मुस्कुराई।

"ये तो बड़ा इंटरेस्टिंग है भइया।" रानी मुस्कुराई।
"चलो अब काफी समय हो गया है।" मैने कहा___"मैं तुम्हें तुम्हारे घर के पास तक छोड़ देता हूॅ।"
"ठीक है भइया।" रानी ने कहा।

उसके बाद मैं इस तरफ से उतर कर दूसरी तरफ से ड्राइविंग सीट पर गया और कार को स्टार्ट कर यु टर्न ले लिया। हम दोनो भाई बहन अब खुशी खुशी जा रहे थे।



अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,,,,,
फाइनली राज और रानी का मिलन हो ही गया मगर राज ने प्लान क्या बनाया है। कुछ तो इंटरेस्टिंग होने वाला है।
 

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 21 )


अब तक,,,,,,,,,

"हाॅ तो ठीक है न।" रानी ने कहा__"यही करते हैं फिर। तो अब बताइये कब बात करना है हमें?"
"देखते हैं हालात कैसे बनते हैं?" मैने कुछ सोचते हुए कहा___"इतना जल्दी तो ये हो नहीं सकता।"

"ऐसा क्यों?" रानी ने कहा__"जल्दी क्यों नहीं हो सकता?"
"मैने कुछ सोचा है इस बारे में।" मैने रहस्यमय तरीके से कहा था।
"क्या सोचा है आपने?" रानी के भाथे पर बल पड़ा।
"अपने कान मेरे मुह के पास करो।" मैने मुस्कुरा कर कहा।

रानी ने अपना कान मेरे मुह के पास कर दिया। मैने उसे बता दिया। सुन कर रानी मुस्कुराई।

"ये तो बड़ा इंटरेस्टिंग है भइया।" रानी मुस्कुराई।
"चलो अब काफी समय हो गया है।" मैने कहा___"मैं तुम्हें तुम्हारे घर के पास तक छोड़ देता हूॅ।"
"ठीक है भइया।" रानी ने कहा।

उसके बाद मैं इस तरफ से उतर कर दूसरी तरफ से ड्राइविंग सीट पर गया और कार को स्टार्ट कर यु टर्न ले लिया। हम दोनो भाई बहन अब खुशी खुशी जा रहे थे।
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अब आगे,,,,,,,,,

रानी को उसके घर के पास छोंड़ कर मैं वापस अपने घर आ गया। मुझे इतनी देरी से आया हुआ देख मेरी दोनो माएॅ (मेनका/काया) मुझसे ढेर सारे सवाल पूछने लगी। मैने उन्हें वो सब कुछ सच सच बता दिया जो काॅलेज के बगल वाले पार्क में हुआ था। मैने उन्हें ये भी बताया कि अभी मैं रानी को उसके घर के पास ही छोंड़ कर आ रहा हूॅ। मेरी इन बातों से वो दोनो पहले तो हैरान रही फिर खुश हो गईं।

"तो आख़िर दोनो भाई बहन का मिलन हो गया?" काया माॅ ने मुस्कुराते हुए कहा__"पर दोनो प्रेमियों का मिलन कब होगा राज?"
"वो भी हो ही जाएगा।" मेनका माॅ ने हॅस कर कहा___"अब जब ये दोनो मिल ही गए हैं तो देर भला कहाॅ होगी उस मिलन में? क्यों राज?"

"देखते हैं माॅ क्या होता है?" मैने कुछ सोचते हुए कहा___"अभी तो मुझे अपने उन माता पिता से भी मिलना है जिन्होंने मुझे पैदा किया है।"
"अच्छा तो कब मिलने जा रहा है अपने माता पिता से?" काया माॅ ने पूछा।
"अब ये तो कल ही पता चलेगा माॅ।" मैने कहा।
"क्या मतलब?" मेनका माॅ चौंकी___"कल क्या पता चलेगा भला?"

"कल रानी जब काॅलेज आएगी तो मुझे बताएगी कि उसने जब मेरे बारे में अपनी माॅ से बात की तो उनका क्या रिएक्शन था?" मैने कहा।
"मतलब रानी तेरे में सब कुछ बताएगी उनको?" काया माॅ ने कहा___"ये कि तू उसका भाई है जो आज वर्षों बाद मिल गया है?"

"नहीं माॅ।" मैने कहा___"वो ऐसा कुछ नहीं बताएगी। बल्कि जब उसकी दूसरी माॅ उसके देरी से आने का कारण पूछेगी तो वो देर आने की वजह के रूप में एक कहानी बताएगी।"
"कहानी बताएगी??" काया माॅ के साथ साथ मेनका माॅ भी चौंक पड़ी, बोली___"ये क्या कह रहे हो तुम? वो भला कहानी क्यों बताएगी? बल्कि उसे सब कुछ तेरे बारे में बता देना चाहिए बस।"

"ऐसा करने के लिए मैंने रानी को मना कर दिया है माॅ।" मैने कहा।
"अरे मगर क्यों?" काया माॅ हैरान___"तूने सब कुछ बताने से उसे मना क्यों कर दिया है?"

"मैं देखना चाहता हूॅ माॅ।" मैने कहा___"मैं देखना चाहता हूॅ कि जिस तरह रानी ने मुझे पहले दिन ही मात्र एक झलक में पहचान लिया था तो क्या वैसे ही मेरे माता पिता भी मुझे पहचान पाते हैं या नहीं?"

"मतलब तू अपने माता पिता की परीक्षा लेना चाहता है?" मेनका माॅ ने कहा___"अगर ये सच है राज तो यकीनन ये अनुचित बात है। वो तेरे माता पिता हैं। भला तू कैसे उनकी परीक्षा ले सकता है? उनका तो कहीं कोई कसूर था ही नहीं तेरे खो जाने में। वो तो बेचारे आज भी तेरे लिए दुखी ही होंगे।"

"मैं जानता हूॅ माॅ कि ये अनुचित है।" मैने ज़ोर देकर कहा___"मगर मैं बस अपने दिल की तसल्ली के लिए ये करना चाहता हूॅ। बाद में मैं उनसे अपने किये की माफ़ी माॅग लूॅगा। रही बात कसूर की तो कसूर तो मेरा भी कोई नहीं था। फिर भी मैं उस छोटी सी ऊम्र में अपनों से बिछड़ गया। जिस ऊम्र में मुझे अपनी माॅ की ममता और उसके आॅचल की अति आवश्यकता थी उस ऊम्र में मैं इन सबसे दूर हो गया। मगर मुझे इसका दुख नहीं है माॅ, क्योंकि ईश्वर ने उनकी जगह आप दोनो को मेरी माॅ बना कर भेज दिया था। आप दोनो ने मुझे इतना प्यार दिया कि उसका कोई मोल हो ही नहीं सकता।"


"ऐसा तुम समझते हो राज।" मेनका माॅ ने कहा___"जबकि मैं ये समझती हूॅ कि तुमने हमारे प्यार का हर मोल चुका दिया है। अगर तुम न मिलते तो हम आज भी शैतानी दुनिया के शैतान ही होते। तुम मिले तो हमारी काया बदल गई राज। हमारी अस्तित्व ही बदल गया। हम शैतान से इंसान बन गए। एक ही जीवन में इतना बड़ा और इतना असंभव कार्य हो गया इससे बढ़ कर भला क्या हो सकता है हमारे लिए? हमने तुम्हें अपना पुत्र माना और तुम्हारी माॅ बन कर हमने तुम्हें प्यार और ममता दी फिर भी हम यही कहेंगे बेटे कि हम पर तुम्हारा कोई कर्ज़ नहीं है। तुम ये कभी मत समझना कि तुम्हें हमारा कोई मोल चुकाना है। अगर मोल चुकाना ही है तो अपने उन माता पिता का चुकाना जिन्होंने तुम्हें जन्म दिया है।"

"कुछ भी कहिए माॅ।" मैने कहा___"मगर एक माॅ के प्यार और उसकी ममता से बढ़ कर कोई चीज़ नहीं हो सकती। दुनिया में खरीदने से हर चीज़ मिल जाएगी मगर ये दो चीज़ें नहीं मिलेंगी। ईश्वर ने आप दोनो को इसी लिए मेरी माॅ बना कर भेजा था ताकि मैं दुनियाॅ में अकेला न रह जाऊॅ। किसी के प्यार को न तरसूॅ। अगर ऐसा होता तो सोचिए मेरी मानसिकता कैसी होती? मैं प्यार और ममता के बिना जीकर एक ऐसा इंसान बन जाता जो किसी की भावनाओं को कभी न समझता और ना ही किसी के दर्द का एहसास करता। इस लिए माॅ आप दोनो मेरे लिए अनमोल हैं।"

मेरी बातें सुन कर दोनो ने मुझे अपने हृदय से लगा लिया। दोनो की ऑखें छलक आई। दोनो मुझे प्यार और ममतावश चूमने चाटने लगी थी। कुछ देर यही सब चलता रहा। फिर हम तीनों अलग हुए।

"बहुत बड़ी बड़ी बातें बोलने लगा है।" काया माॅ ने मेरे गालों को सहलाते हुए कहा__"अब तू बड़ा हो गया है। जा अब फ्रेश हो जा। कुछ देर में तेरे चाचू और मामा जी भी आ जाएगे फिर हम सब एक साथ डिनर करेंगे।"

मैं उठ कर अपने कमरे की तरफ चला गया। जबकि वो दोनो मुझे प्यार भरी ऑखों से देखती रहीं।
____________________

उधर रानी जब देर से अपने घर पहुॅची तो उसने मुख्य दरवाजे पर ही सुमन को परेशान व चिंतित खड़े हुए पाया। रानी को देख कर उसके चेहरे पर राहत के भाव उभरे।

"इतना देर कैसे हो गई तुझे आने में बेटी?" सुमन ने चिंतित भाव से पूछा___"तू समय पर नहीं आई तो मेरा जी बहुत घबराने लगा था। तरह तरह आशंकाओं से मेरा मन भर गया था।"

"साॅरी माॅ।" रानी ने दरवाजे के अंदर कदम रखते हुए कहा___"लेकिन मेरे देर से आने का कारण ही ऐसा बन गया था कि मैं क्या करती भला?"

"ऐसा भी क्या कारण बन गया था?" सुमन रानी के पीछे पीछे आती हुई बोली___"जो तू समय पर आ ही नहीं सकी।"
"अगर आप सुनेंगी तो यकीन नहीं करेंगी माॅ।" रानी ने सोफे पर बैठते हुए कहा था।
"अच्छा जी।" सुमन रानी के बगल में ही सोफे पर बैठ गई, बोली___"ज़रा मैं भी तो सुनूॅ।"

"वो वो मैने आज काॅलेज में किसी से दोस्ती की है माॅ।" रानी ने कहा___"अब आप पूछिये कि मैने किससे दोस्ती की है?"
"कि किससे दोस्ती की है तुमने?" सुमन हैरान।

"राज भइया से।" रानी ने मानो धमाका कर दिया।
"क क्या????" सुमन बुरी तरह उछल पड़ी।
"हीहीहीही आप तो ऐसे उछल पड़ी हैं जैसे राज भइया कोई भूत हों।" रानी ने हॅसते हुए कहा___"अरे मेरी प्यारी माॅ वो क्या है न उस लड़के की शकल बिलकुल मेरी उस पेन्टिंग से मिलती जुलती है जो मैने बनाई थी। उस दिन जब मैने उस लड़के को पार्किंग में देखा तो लगा वो मेरे राज भइया ही हैं।"

"तो क्या अब नहीं लगता?" सुमन ने चकित भाव से पूछा था।
"लगता तो अभी भी है माॅ।" रानी ने कहा___"तभी तो कल कंटीन में मैने उनसे वो सब कहा था। पर उसने दो टूक भाव से कह दिया था कि वो मुझे नहीं जानता। अब आप ही बताइये कि जब मैं पहचान सकती हूॅ तो क्या वो मुझे नहीं पहचान सकते?"

"ऐसा ज़रूरी तो नहीं हैं।" सुमन ने कहा___"कि अगर तुमने उसे पहचान लिया है तो उसे भी तुम्हें पहचान जाना चाहिये। हो सकता है कि वो राज हो ही न बल्कि उसका कोई हमशक्ल हो।"

"मैने भी यही सोचा है।" रानी ने कहा__"इस लिए आज मैने उससे कल के लिए माफ़ी माॅग ली है। उसके बाद मैने सोचा कि इससे दोस्ती तो कर ही सकते हैं। इस लिए मैने उससे दोस्ती कर ली।"

"अच्छा और वो तुम्हारा दोस्त बनना स्वीकार भी कर लिया?" सुमन चौंकी थी, बोली__"ये तो हैरानी वाली बात है।"
"दरअसल हम कुछ दोस्तों का एक ग्रुप है माॅ।" रानी ने कहा___"तो उस ग्रुप में मैं भी शामिल हो गई। मैने सोचा इसी बहाने उसकी सच्चाई का पता लगाऊॅगी।"

"ओह तो ये बात है।" सुमन ने कहा__"पर इतना टाइम क्यों लगा दिया आने में?"
"अरे कुछ नई लड़कियाॅ दोस्त बनी हैं न।" रानी ने बताया___"वो भी उसी ग्रुप में हैं तो हम सब काॅलेज के बगल में एक रेस्टोरेन्ट में चले गए। वहाॅ पर सबसे दोस्ती होने और एक अच्छे फ्रैण्ड्स का ग्रुप बनने की खुशी में एक छोटी सी पार्टी करने लगे थे। उसी में टाइम लग गया था।"

"ओह, चलो ये तो बहुत अच्छी बात है कि तुमने आज पहली बार किसी से दोस्ती की है।" सुमन ने खुश हो कर कहा।
"दोस्ती तो पहले भी एक बार की थी माॅ।" रानी ने कहा___"पर वो दोस्त कहलाने के लायक ही नहीं था। इस लिए उससे दोस्ती तोड़ दी थी मैने।"

"किससे दोस्ती की थी तुमने?" सुमन ने चकित होकर पूछा।
"था एक लड़का माॅ।" रानी ने कहा___"वो पापा के दोस्त जो थे पहले महेन्द्र अंकल। उनका ही बेटा था वो। पूरन सिंह नाम था उसका। पर जल्द ही मुझे पता चल गया कि वो अच्छा लड़का नहीं है।"

"क कैसे पता चल गया?" सुमन हैरान थी।
"वो दोस्त तो था माॅ।" रानी ने कहा__"लेकिन वो ग़लत तरीके से बिहैव करता था। मतलब वो मेरे शरीर में ग़लत तरीके से हाॅथ लगा देता था। मैने उसे कई बार डाॅटा भी पर वो न माना तो मैने उससे दोस्ती ही तोड़ दी। अब तो बहुत समय से वह मिला ही नहीं मुझे।"

"अच्छा किया जो तुमने उससे दोस्ती तोड़ दी।" सुमन ने तीखे भाव से कहा__"ऐसे गंदे लड़कों से दूर ही रहना बेहतर होता है। ख़ैर, अब जिनसे तूने दोस्ती की है वो सब कैसे लोग हैं?"

"वो सब अच्छे हैं माॅ।" रानी ने कहा___"सब पढ़ने लिखने वाले लड़के और लड़कियाॅ हैं।"
"चल ठीक है।" सुमन ने कहा___"मुझे खुशी है कि तुमने उन सबसे दोस्ती कर ली। वरना तो रात दिन बस अकेले रहना ही तेरी फितरत बन गई थी।"

"हाॅ माॅ।" रानी ने कहा___"पर अब मैं खुद को बदलूॅगी माॅ। आप देख लेना मैं अब कभी आपको उदास या दुखी नहीं दिखूॅगी।"
"अच्छी बात है।" सुमन ने कहा___"तो अब क्या करने का विचार है? मेरा मतलब कि वो लड़का जो राज का हमशक्ल लगता है तुम्हें तो तुमने अब क्या करने का सोचा है उसके लिए?"

"उसके बारे में जानने की कोशिश करूॅगी माॅ।" रानी ने कहा___"कि वो कौन है, कहाॅ से आया है, और उसके साथ और कौन कौन है?"
"ओह, किसी दिन उसे हमसे भी मिलाओ।" सुमन ने कहा।
"ठीक है माॅ।" रानी ने कहा___"किसी दिन उसे यहाॅ लेकर आऊॅगी। मगर वो ऐसे तो आएगा नहीं। इस लिए कोई ऐसा उपाय करते हैं जिससे वो यहाॅ आने से इंकार न कर सके।"

"ऐसा क्या उपाय किया जा सकता है?" सुमन ने कहा___"अरे हाॅ, दो दिन बाद तुम्हारी माॅ(रेखा) का जन्मदिन है। हम उनके जन्मदिन पर शाम को एक पार्टी का आयोजन करते हैं। तुम अपने सभी दोस्तों को भी निमंत्रण दे देना। फिर तो उसे आना ही पड़ेगा। लेकिन इसमें एक समस्या है बेटी।"

"मैं जानती हूॅ माॅ।" रानी ने सहसा गंभीर भाव से कहा___"आप यही कहना चाहती हैं न कि माॅ(रेखा) तो अपना जन्मदिन मनाती ही नहीं हैं। जबसे राज भइया लापता हुए थे तब से इस घर में कोई भी किसी प्रकार की खुशियाॅ नहीं मनाता। मगर इस बार उन्हें मनाना पड़ेगा माॅ। आप उन्हें अपने तरीके से मनाएंगी। और ये पार्टी का आयोजन हम उसी वाले घर में करेंगे। क्योंकि यहाॅ पर मेरी वो माॅ तो आएॅगी नहीं। इस लिए उस घर में ही हम ये सब करेंगे।"

"है तो बहुत मुश्किल मगर कोशिश करूॅगी बेटी।" सुमन ने कहा___"मेरे कहने से तो दीदी मुझ पर बहुत गुस्सा करेंगी इस लिए तेरे पापा से ही कहूॅगी कि वो ऐसा करें।"

"तो फिर ठीक है माॅ।" रानी खुश होकर बोली___"परसों माॅ(रेखा) के जन्मदिन पर ही वो मेरे निमंत्रण पर आएगा। अब देखना ये होगा कि उसे देख कर माॅ पर क्या असर होता है?"
"अगर वो सचमुच में राज ही हुआ तो।" सुमन ने कहा__"दीदी उसे पहचानने में कोई देरी नहीं करेंगी। वो माॅ हैं बेटी, अपने बेटे की आहट से भी महसूस कर लेंगी कि उनका बेटा यहीं कहीं उनके पास है।"

"हाॅ ये तो है माॅ।" रानी ने कुछ सोचते हुए कहा। वह तो जानती ही थी कि राज उसका भाई ही है।
"लेकिन उससे पहले तुम ये पता कर लेना बेटी कि उसके घर में उसके अपनों के रूप में और कौन कौन हैं?" सुमन ने कहा___"और अगर उसका कोई अपना है तो उससे कहना कि वो सबको लेकर आएगा यहाॅ।"

ठीक है माॅ।" रानी ने कहा__"मैं कल ही इस बात का पता करूॅगी।"
"चल ठीक है।" सुमन ने कहा___"अब जा फ्रेश हो ले। तब तक मैं खाने का इंतजाम करती हूॅ।"

सुमन के कहने पर रानी मन ही मन मुस्कुराती हुई अपने कमरे की तरफ बढ़ गई जबकि सुमन सोफे से उठ कर किचेन की तरफ बढ़ गई थी। उसके चेहरे पर गहन सोचों के भाव गर्दिश कर रहे थे।
_________________________

तो वहीं एक तरफ शैतानी दुनियाॅ में।
शैतानों के पहले किंग सोलेमान के पुनः जीवित हो जाने पर वर्तमान किंग विराट अपने कुछ बहुत ही भरोसेमंद वैम्पायर्स को लेकर राजमहल से भाग कर कहीं छिप गया था। उसने उस दिन मारिया के सुरक्षा कवच को तोड़ने का बहुत प्रयास किया था किन्तु कामयाब न हुआ था। उसे समझ आ चुका था कि अब सोलेमान पुनः जीवित हो जाएगा। जीवित होने के बाद वह अपना राज्य भी उससे ले लेगा। और उसने जो अनाचार अब तक किये थे उसके लिए वह उसे सज़ा भी देगा। वह सज़ा मृत्यु से कम हर्गिज़ न होती। इस लिए विराट सोलेमान के आने से पहले ही राजमहल छोड़ कर कहीं सुरक्षित जगह पर जाकर छुप गया था।

उसने जो ख्वाब सजाया था वह चकनाचूर हो गया था। वह जानता था कि सोलेमान वैम्पायर्स में सबसे शक्तिशाली और महान किंग है। उससे मुकाबला कर पाना उसके बस की बात न थी। वेयरवोल्फ किंग अनंत ने उसे अपने राजमहल में रहने का कहा था मगर उसने ये कह कर इंकार कर दिया था कि उसके वहाॅ रहने से वो खुद भी सुरक्षित नहीं रह सकेंगे। क्योंकि अगर किंग सोलेमान ने विराज की खोज की और उसे वेयरवोल्फ किंग के राजमहल में पा गया तो वह विराट के साथ साथ उसका भी खात्मा कर देगा। विराट की इन बातों से अनंत को भी समझ आ गया कि विराट उसके हित के बारे में ही कह रहा है। अनंत के मन में विराट के लिए इज्जत और विश्वास दोनो बढ़ गया था। वह अक्सर छुपते छुपाते विराट से मिलने आ ही जाया करता था। इस वक्त भी वह विराट के पास ही आया हुआ था।

"ऐसा कब तक चलेगा मित्र?" अनंत ने गंभीर भाव से कहा___"आख़िर कब तक बुजदिलों और कमज़ोरों की तरह आप यहाॅ से वहाॅ छुपते फिरते रहेंगे? क्या इस सबका कोई अंत नहीं है मित्र?"

"अंत तो हर चीज़ का एक दिन होता ही है मित्र।" विराट ने कहा___"इस हाल का भी एक दिन अंत हो ही जाएगा। उस महापंडित ने हमसे बहुत कुछ झूॅठ बोला और छुपाया भी। उसने हमे ये नहीं बताया था कि वो बालक जिसका नाम राज है वो हमारी दोनो बेटियों को किसी अभेद्य सुरक्षा कवच के अंदर महफूज रखेगा। हमने तो उसके बताए अनुसार ही सारी रणनीति बनाई हुई थी। मगर हुआ क्या? कुछ हासिल नहीं हुआ मित्र। बल्कि हमने अपनी और आपकी भी इतनी सारी सेनाओं की बलि चढ़ा दी। वो कमबख्त हमारे हाॅथ आने बजाय और भी दूर होता चला गया। ये सब उस महापंडित की वजह से हुआ है मित्र। अगर उसने हमें सच सच पहले ही बता दिया होता तो आज हालात कुछ और ही होते।"

"अब ये सब बातें करके अफसोस करने से क्या होगा मित्र?" अनंत ने कहा___"अब तो ये सोचिये कि आगे क्या करना है? इस तरह भला कब तक छुपे बैठे रहेंगे?"

"हमने सोच लिया है मित्र।" विराट ने कहा__"हमने सोच लिया है कि अब आगे क्या करना है। हम इतना जल्दी हार नहीं मानेंगे। हमें वो बालक हर हाल में चाहिए। उसके लिए हम कुछ भी कर सकते हैं।"

"पर हम करेंगे क्या मित्र?" अनंत ने नासमझने वाले भाव से पूछा था।
"हमें उस बालक को किसी भी तरह हाॅसिल करना ही होगा मित्र।" विराट ने कठोर भाव से कहा___"अगर वो हमारे बस में हो गया तो फिर हमारे सारे ख्वाब पूरे हो जाएॅगे।"

"उस बालक को तो अब आप भूल ही जाइये मित्र।" अनंत ने कहा___"क्योंकि उसे काबू में करने की शक्ति इस धरती पर किसी के पास नहीं है। उस दिन उसका पराक्रम और उसकी शक्तियाॅ देखी थी हमने। उस दिन उसने हम दोनो को ये कह कर जीवित छोड़ दिया था कि एक तो आप रिश्ते में उसके नाना लगते हैं दूसरे ये आपकी पहली ग़लती थी। मगर दुबारा वह हमें जीवित नहीं छोंड़ेगा।"

"हम जानते हैं मित्र।" विराट ने कहा__"इस लिए हम उस पर सामने से वार नहीं करेंगे। बल्कि कुछ ऐसा करेंगे कि वो खुद ही हमारे काबू में आ जाए।"
"ऐसा हम क्या कर सकते हैं मित्र?" अनंत ने सोचने वाले भाव से कहा___"क्योंकि अब तो वह भी हर तरह से चौकन्ना ही होगा। वह ये बात भी भली भाॅति समझता होगा कि आप दुबारा भी उसे हाॅसिल करने के लिए कोई दाॅव या कोई वार आज़माएॅगे।"

"यकीनन समझता होगा मित्र।" विराट ने गहरी साॅस ली, बोला___"इसी लिए तो अब तक हमने खामोशी अख्तियार की हुई है। पर अब कुछ तो करना ही पड़ेगा हमें। ऐसे हाॅथ पर हाॅथ रखे रहने से हमारा कोई ख्वाब पूरा नहीं होगा।"

"सोलेमान को जीवित कर उसने सोलेमान को भी अपनी तरफ मिला लिया है।" अनंत ने कहा___"मेरे गुप्तचरों ने इस बात की सूचना दी है मुझे। सुना है सोलेमान उस बालक को अब अपना दोस्त समझता है।"

"यही तो अनर्थ हो गया है मित्र।" विराट ने खीझते हुए कहा___"वही हो गया जो हम नहीं चाहते थे। हमने कई बार सोचा कि उस संदूख को तबाह कर दें जिसमें सोलेमान पत्थर बना पड़ा हुआ था। मगर हर बार हम नाकाम रहे। वो हरामज़ादी मारिया बहुत ही शातिर और चालाॅक थी मित्र। वह हर वक्त उस संदूख को एक ऐसे सुरक्षा कवच में रखती थी जिसे तोड़ना नामुमकिन था। कदाचित उसे इस बात का अंदेशा था कि हम उस संदूख को नुकसान पहुॅचाने की कोशिश करेंगे। इसी लिए उसने संदूख को एक शक्तिशाली सुरक्षा कवच में बंद रखा।"

"लेकिन एक बात ऐसी है जो समझ में नहीं आई मित्र।" अनंत ने सोचने वाले अंदाज़ में कहा___"और वो ये कि मारिया को वो बालक कैसे मिल गया? और अगर मान लिया जाए कि मिल ही गया किसी तरह से तो सबसे बड़ा सवाल ये है कि वह बालक मारिया के साथ वो सब कुछ करने के लिए मान कैसे गया? क्योंकि अगर वो बालक मारिया के साथ वो सब क्रिया सही समय पर न करता तो सोलेमान का पत्थर शरीर पुनः सजीव नहीं हो सकता था। मतलब साफ है कि उस बालक ने मारिया के साथ वो सब किया और उसी सब का ये परिणाम था कि सोलेमान जीवित हो गया।"

"ये एक ऐसा सवाल है मित्र जिसने हमारी खोपड़ी को भी चकराए हुए है।" विराट ने कहा__"हम खुद भी अब तक नहीं समझ पाए हैं कि ये सब कब और कैसे हो गया? हमने तो उस स्थान पर हर जगह अपनी सेना लगा रखी थी। हमारे कुछ गुप्तचर मारिया पर भी नज़र रखे हुए थे। मगर इसके बाद भी ये सब हो गया तो कैसे? कैसे हुआ ये सब?"

"ये सब तो हम लोगों के जाने के बाद ही हुआ होगा मित्र।" अनंत ने कहा___"मतलब कि जब हम सब उस बालक के द्वारा जीवित छोड़ देने पर उस जगह से चले गए तब मारिया ने किसी तरह उस बालक को अपने काबू में किया और फिर उसे अपने साथ राजमहल ले गई। राजमहल में मारिया ने उस बालक से संभोग किया और फिर अपने व उस बालक के मिश्रित वीर्य को सोलेमान के पत्थर शरीर पर छिड़का, जिसके बाद वह जीवित हो गया। मगर दिमाग़ को दही कर देने वाला सवाल यही है कि मारिया ने कैसे उस बालक को अपने काबू में किया होगा? वो सब करने की तो बात ही दूर है मित्र। उस बालक की शक्तियों के सामने मारिया की शक्तियाॅ कुछ भी नहीं थी। इसके बावजूद ये असंभव संभव कैसे हो गया?"

"संभव तो हो ही गया है मित्र।" विराट ने कहा___"और उसी का ये नतीजा है कि सोलेमान जीवत हो गया। अब ये कैसे हुआ ये मायने कहाॅ रखता है भला?"
"हाॅ ये बात तो है।" अनंत कह उठा__"और उसके जीवित होते ही आपके ऊपर खतरा भी आ गया। मृत्यु का खतरा। मारिया ने सोलेमान को शुरू से अब तक की सारी राम कहानी बताई होगी जिसे सुन कर सोलेमान आपको सज़ा देने के लिए हर जगह ढूॅढ़ता फिर रहा होगा।"

"इसी डर से तो हम यहाॅ छुपे हुए हैं।" विराट ने कहा___"हम चाहते थे कि उसके ढूॅढ़ लेने से पहले ही हम किसी तरह उस बालक को अपने काबू में कर लें। फिर हम बताएॅगे उस नामुराद सोलेमान को कि ताकत क्या होती है?"

"तो फिर कैसे उस बालक को काबू किया जाए?" अनंत ने कहा___"हम हमेशा आपके साथ हैं मित्र। जब भी आपको हमारी आवश्यकता पड़े आप हमें याद कर लीजिएगा।"

"आपकी मित्रता सचमुच सराहनीय है सम्राट अनंत।" विराट ने कहा___"हमें बेहद खुशी है कि आप हमारे मित्र हैं। और हमारा इस हाल में भी साथ दे रहे हैं।"
"मित्रता ऐसे हाल में ही तो पहचानी जाती है मित्र।" अनंत ने मुस्कुरा कर कहा___"वरना यूॅ तो हर कोई मित्र बन जाता है।"

"अब आप जाइये मित्र।" विराट ने कहा__"हम नहीं चाहते कि हमारी वजह से आप पर सोलेमान का क़हर टूट पड़े। अगर उसने ये पता कर लिया कि आप हमसे चोरी छिपे मिलते हैं तो वो आप पर भी जानलेवा हमला कर सकता है।"

"ठीक है मित्र हम चलते हैं।" अनंत ने गुफा के अंदर रखी एक चट्टान से उठते हुए कहा__"आपको जब भी हमारी ज़रूरत महसूस हो तो आप हमें सूचना भेजवा दीजिएगा।"
"जी बिलकुल।" विराट उठ कर अनंत से गले मिलते हुए बोला___"आप हमारे साथ हैं तो भला हमें ज्यादा चिंता करने की क्या ज़रूरत है?"

दोनो एक दूसरे गले मिले। उसके बाद अनंत अपने कुछ शिपाहियों के साथ गुफा से बाहर निकल गया। जबकि विराट पलट कर पुनः एक चट्टान पर बैठ गया। इस वक्त उसके चेहरे पर गहन सोचों के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे।


अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,,
कुत्ते की पूंछ कभी सीधी नहीं होती है देखते है अब क्या होता है और विराट क्या करता है।
 

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 22 )


अब तक,,,,,,,

"आपकी मित्रता सचमुच सराहनीय है सम्राट अनंत।" विराट ने कहा___"हमें बेहद खुशी है कि आप हमारे मित्र हैं। और हमारा इस हाल में भी साथ दे रहे हैं।"
"मित्रता ऐसे हाल में ही तो पहचानी जाती है मित्र।" अनंत ने मुस्कुरा कर कहा___"वरना यूॅ तो हर कोई मित्र बन जाता है।"

"अब आप जाइये मित्र।" विराट ने कहा__"हम नहीं चाहते कि हमारी वजह से आप पर सोलेमान का क़हर टूट पड़े। अगर उसने ये पता कर लिया कि आप हमसे चोरी छिपे मिलते हैं तो वो आप पर भी जानलेवा हमला कर सकता है।"

"ठीक है मित्र हम चलते हैं।" अनंत ने गुफा के अंदर रखी एक चट्टान से उठते हुए कहा__"आपको जब भी हमारी ज़रूरत महसूस हो तो आप हमें सूचना भेजवा दीजिएगा।"
"जी बिलकुल।" विराट उठ कर अनंत से गले मिलते हुए बोला___"आप हमारे साथ हैं तो भला हमें ज्यादा चिंता करने की क्या ज़रूरत है?"

दोनो एक दूसरे से गले मिले। उसके बाद अनंत अपने कुछ शिपाहियों के साथ गुफा से बाहर निकल गया। जबकि विराट पलट कर पुनः एक चट्टान पर बैठ गया। इस वक्त उसके चेहरे पर गहन सोचों के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे।
__________________________


अब आगे,,,,,,,,


दूसरे दिन सुबह !
हम सब नास्ता करने बैठे हुए थे। हमेशा की तरह मेरी दोनो माॅ(मेनका/काया) मुझे अपने हाॅथ से नास्ता करा रही थी। हलाॅकि मैं उन्हें हज़ारो दफा कह चुका था कि अब मैं बच्चा नहीं रहा जो आप दोनो मुझे इस तरह अपने हाथों से खिलाती हैं। मगर हर बार मेरे कहने पर उनका एक ही जवाब होता कि 'हमारे लिए तो तू हमेशा बच्चा ही रहेगा। और वैसे भी खुद खाने से तुम ठीक से खाते नहीं हो, इस लिए हम दोनो अपने हाॅथ से खिलाते हैं। हमे इससे खुशी मिलती है।' बस, तो अब उनकी खुशी के लिए मैं उन्हें मना भी नहीं करता था।

"वीर चाचू आपको कोई लड़की मिली की नहीं?" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"ज़रा जल्दी कीजिए न। वो क्या है न कि अब मुझसे सबर नहीं हो रहा है। मुझे लगता है कि अब कितना जल्दी मेरी एक चाची आ जाए। और मामा जी आप? आप भी जल्दी से मेरे लिए एक मामी ले आइये।"

"देखा भाई।" वीर चाचू ने मामा जी की तरफ देखते हुए कहा___"ये तो ऐसे कह रहा है जैसे लड़की मिलना कोई आसान बात है। अरे इसे समझाओ कि लड़की ऐसे कहीं नहीं पड़ी हुई मिल जाती। अब हम किसी लड़की से ज़बरदस्ती ये तो नहीं कहेंगे न कि आओ मोहतरमा और हमसे शादी कर लो।"

"अब ये आसान हो या चाहे मुश्किल " मैने कहा___"मुझे तो बस एक चाची और एक मामी चाहिए। और थोड़ा जल्दी लाइये।"
"अरे यार जल्दी तो मुझे भी है।" वीर चाचू ने मुस्कुरा कर कहा___"किन्तु कोई लड़की तो मिले पहले।"

"मिल जाएगी वीर।" मेनका माॅ ने कहा__"बस थोड़ा सब्र रखो।"
"सब्र ही तो नहीं होता अब।" वीर ने कहा___"पता नहीं क्या हो गया है मुझे। जब से इंसान बना हूॅ तब से अजीब अजीब से ख़याल आ रहे हैं मन में।"

"ओए मन को काबू में रख अपने।" मामा जी ने कहा___"वरना तेरे इस मन को ठिकाने लगा दूॅगा मैं। साला नौटंकीबाज कहीं का।"
"तू तो चाहता ही नहीं है कि मेरा घर बसे।" वीर चाचू ने कहा___"खुद तो कुछ करता नहीं है और किसी और को करने भी नहीं देता। साले कैसा दोस्त है तू?"

"अब अगर तुम दोनो की ड्रामेबाज़ी हो गई हो तो नास्ता शरू करें?" मेनका माॅ ने कहा।
"हाॅ हाॅ बिलकुल शुरू करो।" चाचू कह उठे।

मैं उनकी बातें सुनकर मन ही मन मुस्कुरा रहा था। ऐसे ही थोड़ी देर में हम सबका नास्ता हो गया। मैं सबसे विदा लेकर काॅलेज के लिए निकल गया। मैं अंदर से बड़ा ही उत्साहित था कि काॅलेज में जब रानी से मुलाक़ात होगी तो वो क्या सूचना देगी मुझे? बस यही सब सोचते हुए मैं अपनी कार को तूफान की तरह दौड़ाते हुए काॅलेज पहुॅच गया।

काॅलेज की पार्किंग में कार खड़ी कर जैसे ही मैं काॅलेज के गेट के अंदर की तरफ तो सामने से ही आते हुए मुझे मेरे वो सारे दोस्त मिल गए। हम सबने एक दूसरे से हाॅथ मिलाया। मेरी नज़रें रानी को ढूॅढ़ रही थी। पर वो मुझे कहीं दिखी नहीं। शायद अभी आई नहीं थी।

"और सुना भाई अब रानी की तबियत कैसी है?" पंकज ने कहा___"वैसे मुझे तुझसे बहुत बड़ी शिकायत है।"
"हम सबको तुमसे शिकायत है राज।" साक्षी ने कहा___"तुमने हम सबसे झूॅठ बोल रहे थे कि कि रानी से तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं है जबकि वो तो तुम्हारी बहन ही थी।"

"और नहीं तो क्या।" सुधीर कह उठा__"ये तो अपनी बहन से ही झूठ बोल रहा था। बेचारी ने इस दुख में खुदखुशी तक कर लिया था। मुझे तो लगता है कि अगर रानी ऐसा क़दम न उठाती तो ये महानुभाव स्वीकार करने वाले भी नहीं थे कि ये उसके भाई हैं। हद है यार कोई ऐसा कैसे कर सकता है भला?"

"ऊपर से बाद में क्या बोल रहा था रानी से कि मैं तो बस उसे छेड़ रहा था।" पंकज ने हाॅथ नचाते हुए कहा___"ये कैसा छेड़ना हुआ भाई कि अपनी बहन की जान ही ले ले?"

"हो गया न या अभी और कुछ बाॅकी है?" मैने कहा___"अरे यार ये तुम अब समझ ही गए हो कि मैं जब पाॅच साल का था तब से ही अपने परिवार से दूर था। मेरा सारा बचपन अपनों के बीच की गई मस्तियों के बग़ैर ही गुज़र गया। जब मैं यहाॅ आया और मैने अपनी प्यारी सी बहन को देखा तो दिल को बड़ा सुकून मिला। मैं अंदर ही अंदर बहुत खुश हुआ। मगर भाई बहन के बीच की जो नोंक झोंक शरारतें व लड़ाई झगड़े होते हैं न वो तो कभी मुझे नसीब ही न हुए थे। इस लिए सोचा कि चलो कुछ दिन ऐसा खेल खेल कर अपनी गुड़िया को परेशान ही कर लूॅ। उसे सता लूॅ। मेरे ऐसा करने से उसे कितनी तक़लीफ़ होती थी इसका मुझे बखूबी एहसास था यारो। मगर ये सोच कर उसे और सताता रुलाता कि बाद में मैं उससे मुआफ़ी माॅग लूॅगा और उसे जी भर के प्यार करूॅगा। मगर मुझे नहीं पता था कि कल वो ऐसा कुछ कर बैठेगी। ख़ैर, तुम सबकी जानकारी के लिए मैं ये बता दूॅ कि रानी अब बिलकुल ठीक है। वो आती ही होगी। तुम सब मिल लेना उससे।"

"यार बात तो तुमने वाकई दिल को छू लेने वाली कही है।" सुधीर ने कहा___"मैं समझ सकता हूॅ कि इतने वर्षों बाद अपनी बहन से मिल कर कैसा प्रतीत हुआ होगा तुम्हें। ये भी मानता हूॅ कि तुमने जो खेल खेला वो सिर्फ भाई बहन के बीच का एक प्यार ही था। ये सब जान कर बहुत अच्छा लगा भाई। बस अब तो मैं ये चाहता हूॅ कि तुम जल्दी से अपने माॅ बाप से भी मिल लो। वो बेचारे कितना दुखी होंगे अंदर से इस बात अंदाज़ा लगाना बड़ा मुश्किल है।"

"मिलूॅगा भाई।" मैने गंभीरता से कहा__"उनसे भी मिलूॅगा। जी तो चाहता है कि अभी जाऊॅ और उनके पैरों पर गिर कर कहूॅ कि 'देखो माॅ तेरा बेटा राज आ गया है। वही राज जो वर्षों पहले खो गया था और जिसके खो जाने के ग़म में तू आज भी तड़प रही है।' मगर ऐसा कर नहीं सकता भाई क्योंकि कभी कभी खुशियाॅ ऐसा भी रूप अख्तियार कर लेती हैं कि इंसान के ज़हन में समा ही नहीं पाती। उनका वेग और एहसास इतना प्रबल होता है कि वो इंसान के दिलो दिमाग़ में सहज रूप से स्थापित ही नहीं हो सकते। जिसकी वजह से आदमी के दिलो दिमाग़ का संतुलन बिगड़ जाता है और वो या तो पागल हो जाता है या फिर हर्टअटैक से मर जाता है। मैं जानता हूॅ और मुझे ये एहसास है कि ऐसा कुछ मेरी माॅ के साथ हो सकता है। इस लिए तो नहीं गया उनसे मिलने।"

"वाह भाई क्या बात कही है।" पंकज ने कहा___"यकीनन ऐसा हो सकता है भाई। अच्छा किया तुमने जो ऑटी जी से मिलने नहीं गए। मगर, जाना तो है ही भाई। आख़िर कब तक उनसे मिलने नहीं जाओगे?"

"ये बहुत जल्द माॅ से मिलने जाएॅगे।" सहसा रानी की आवाज़ हम सबके कानों में पड़ी, वह कह रही थी___"क्योंकि हम दोनो ने मिल कर एक अच्छा सा प्लान बनाया है उनसे मिलने का।"

"अरे रानी तुम ठीक तो हो न अब?" साक्षी ने हैरानी से रानी को देखते हुए कहा था।
"मैं बिलकुल ठीक हूॅ साक्षी।" रानी ने कहा___"हाॅ तो मैं ये कह रही थी कि हम दोनो ने मिल कर प्लान बनाया है। उस प्लान में एक बहुत ही बेहतरीन बात ये शामिल हो गई है कि ये कल ही माॅ से मिल सकेंगे।"

"कल, मगर।" मैने कहना चाहा।
"मैने कल रात ही माॅ(सुमन) से बात की थी भइया।" रानी ने कहा___"मैने उन्हें वही सब बताया जो आपने कहा था। माॅ ने मुझसे कहा कि किसी दिन आपको लेकर आऊॅ और उनसे मिलाऊॅ। तो मैने यही कहा कि आप इस तरह नहीं आएॅगे। बल्कि आपको लाने के लिए कोई उपाय सोचना पड़ेगा। तब माॅ ने जो उपाय बताया भइया वो वाकई में बेहतरीन है।"

"ऐसा क्या बताया माॅ ने? मैंने हैरानी से पूछा।
"माॅ ने कहा कि कल माॅ का यानी हमारी सगी माॅ का जन्मदिन है।" रानी ने कहा___"तो हम उनके जन्मदिन पर एक पार्टी का आयोजन करेंगे। उस पार्टी में आपको बुलाएॅगे। पर इसमें समस्या ये है कि माॅ अपना जन्मदिन मनाती ही नहीं हैं। जब से आप लापता हुए थे तब से माॅ ने घर में किसी भी त्यौहारों पर भी कभी कोई फंक्शन नहीं रखा और ना ही कभी अपना जन्मदिन मनाया। इस लिए माॅ(सुमन) ने कहा कि वो पापा से बात करेंगी कि वो उन्हें इसके लिए मनाएॅ। आज पापा ज़रूर माॅ से बात करेंगे। अगर माॅ अपना जन्मदिन मनाने के लिए मान जाती हैं तो पार्टी तो होगी ही और फिर उस पार्टी में आपको जाना ही पड़ेगा। इससे बेहतर क्या हो सकता है भइया कि माॅ को उनके जन्मदिन पर तोहफ़े के रूप में उनका बेटा मिल जाए।"

"फैन्टास्टिक।" पंकज कह उठा__"माइंड ब्लोइंग आइडा है। सचमुच रानी, इससे बेटर दूसरा कोई आइडिया हो ही नहीं सकता।"
"आप सबको भी कल की पार्टी में आना है।" रानी ने उन सबकी तरफ देखते हुए कहा___"माॅ ने कहा है कि मैं अपने सभी दोस्तों को भी आमंत्रित कर दूॅगी।"

"हम सब ज़रूर आएॅगे रानी।" सुधीर ने खुशी से कहा___"हम सब उस दृष्य को देखना चाहेंगे जिस दृष्य में एक दुखियारी माॅ अपने वर्षों पहले खोए हुए बेटे से मिलेगी। वो दृष्य कैसा होगा, वो एहसास कैसा होगा ये देखने वाली बात होगी। हम सब ज़रूर आएॅगे। शुक्रिया रानी जो तुमने हम सबको भी आने के लिए कहा।"

ऐसी ही थोड़ी देर बातें हुई फिर हम सब अपनी अपनी क्लास में चले गए। मेरे मन में एक हलचल सी मची हुई थी। एक खुशी थी जो माॅ से मिलने जाने की थी और एक घबराहट भी थी कि मुझे अचानक अपने सामने देख कर माॅ को कहीं सच में न खुशी के मारे हर्टअटैक आ जाए।
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"ये तुम क्या कह कर रहे हो अशोक?" नास्ता देते हुए रेखा ने अचानक ही हैरानी भरे भाव से कहा___"तुम मेरा जन्मदिन मनाओगे और मेरे जन्मदिन पर पार्टी का आयोजन भी करोगे? आख़िर किस खुशी में अशोक किस खुशी में?"

"इसका मतलब तो यही हुआ रेखा कि तुम फिर से वही सब लेकर बैठ गई हो।" अशोक ने कहा___"जबकि उस दिन तुमने मुझसे वादा किया था कि अब तुम खुद को दुखी नहीं रखोगी और ना ही उस सबके बारें में सोचोगी। मगर नहीं तुमने झूठा वादा किया था मुझसे। तुम अभी भी वही सब लिए बैठी हो रेखा। तुमको क्या लगता है कि बेटे के खो जाने का दुख सिर्फ तुम्हीं बस को है? मुझे भी दुख है रेखा। मैं किसी को दिखाता नहीं हूॅ मगर कोई मेरा सीना चीर कर देखे कि मेरे अंदर अपने बेटे के खो जाने का कितना दुख भरा हुआ है। मैं अपने ऑसू किसी को दिखाता नहीं हूॅ रेखा। वरना अगर अपनी ऑखों से ऑसुओं को बहा दूॅ तो मेरे उन ऑसुओं से समंदर भी डूब जाए।"

रेखा चकित भाव देखती रह गई अशोक को। इस वक्त अशोक के चेहरे पर ग़मों के भाव ताण्डव कर रहे थे। पल भर में उसकी ऑखों में ऑसूॅ की बाढ़ सी आती दिखाई देने लगी थी। मगर उसने अपने उन ऑसुओं को ऑखों से बाहर छलकने नहीं दिया।

"तुम एक औरत हो रेखा।" अशोक ने कहा___"तुम अगर ऑसू बहाओगी तो लोग कुछ नहीं कहेंगे मगर मैं एक पुरुष हूॅ। अगर मैं तुम्हारी तरह हर पल ऑसू बहाने लगूॅगा तो लोग मुझे कमज़ोर कहेंगे। मेरे पुरुषार्थ और मर्दानगी पर सवाल खड़ा कर देंगे। इस लिए रेखा, मैं कभी किसी को अपने ऑसू नहीं दिखाता। अकेले में रो लेता हूॅ या फिर इन्हें ऑखों में ही जज़्ब कर लेता हूॅ। कहते हैं कि रो लेने से दिल का दर्द कुछ कम हो जाता है मगर मैं तो रो भी नहीं सकता रेखा। वर्षों से ये दर्द नासूर बन कर मेरे अंदर मुकीम है।"

"ओह अशोक मुझे माफ़ कर दो।" रेखा की ऑखें छलक आओं। वह एकदम पीछे से अशोक से लिपट गई, बोली___"इतना दर्द छुपा रखा है तुमने? एक मैं हूॅ जो हमेशा यही समझती रही कि बेटे के जाने का दुख सिर्फ मुझे ही है। सबको भला बुरा कहती रही मैं। कितनी बुरी हूॅ मैं। छोटी बहन जैसी सुमन का हमेशा अपमान किया और वो पागल खुशी से वो अपमान सहती रही। कभी आज तक पलट कर उसने मुझे जवाब नहीं दिया। हाय! कितनी बुरी हूॅ मैं। भगवान मुझे कभी मुआफ़ नहीं करेगा।"

"चुप हो जाओ रेखा।" अशोक कुर्सी से उठ कर उसे अपने से छुपका लिया___"तुम बुरी नहीं हो। तुम्हारे अंदर आज भी सबके लिए मोहब्बत है। याद है तुम्हें, कालेज में जब हम पहली बार मिले थे। मुझे पहली नज़र में ही तुमसे प्यार हो गया था। मगर कभी तुमसे कहने की हिम्मत नहीं होती थी और ना ही मुझे प्यार की ए बी सी डी पता थी। मुझे तो बस छुप छुप कर तुम्हें देखना आता था। फिर दो साल बाद तुमने मुझ पर कृपा की और खुद ही कह दिया कि मुझसे शादी करोगे? मैं तो बुत ही बन गया था तुम्हारी वो बात सुन कर। उसके बाद तुमने ही मुझे सिखाया कि मोहब्बत क्या होती है। कहने का मतलब ये कि मोहब्बत तो आज भी है तुम्हारे अंदर मगर तुम उसे जबरदस्ती दबाती रहती हो।"

"तुम सच कहते हो अशोक।" रेखा ने कहा__"मैंने सचमुच अपने अंदर की मोहब्बत को हर पल बेदर्दी से दबा कर ही रखा है। बेटे के चले जाने के दुख ने मुझे इतना बदल दिया कि मेरे अंदर की मोहब्बत का मुझे वजूद ही न दिखा कभी। पर अब ऐसा नहीं होगा अशोक। मैं खुद को बदलूॅगी।"

"अगर बदलना ही है तो फिर अभी से शुरुआत कर दो रेखा।" अशोक ने कहा__"कल तुम्हारा जन्मदिन है। मैं चाहता हूॅ कि तुम खुशी खुशी अपना जन्मदिन मनाओ। कल पार्टी में सबको इन्वाइट करो। सुमन और अपनी बेटी को भी तुम खुद उनके पास जाकर बुलाओ।"

"जाऊॅगी।" रेखा ने कहा___"मैं ज़रूर जाऊॅगी अशोक। तुम्हारे ऑफिस जाते ही मैं सुमन और रानी के पास जाऊॅगी। सुमन को मनाऊॅगी मैं। अपनी बेटी से माफ़ी मागूॅगी अशोक। पचपन से आज तक कभी मैने उसे प्यार की नज़र से नहीं देखा। मैं उसे अपने सीने से लगा कर खूब सारा प्यार करूॅगी।"

"रानी तो काॅलेग चली गई होगी।" अशोक के चेहरे पर खुशी के भाव थे, बोला___"इस वक्त तो सुमन ही होगी वहाॅ।"
"कोई बात नहीं अशोक।" रेखा ने कहा__"मैं रानी से कल मिल लूॅगी। सुमन से कहूॅगी कि वो मेरी बेटी को भी साथ में लेकर आएगी।"

"चलो अच्छी बात है।" अशोक ने कहा___"तुम नहीं जानती रेखा कि तुम्हारी इन बातों से मुझे कितनी खुशी हुई है। हमारा ये घर जहाॅ पर अब तक सन्नाटे और वीरानियों का बसेरा था, अब फिर से खुशियों से खिल उठेगा।"

अशोक ने बिना कुछ खाए ही कुर्सी से उठ बैठा।
"क्या हुआ, उठ क्यों गए अशोक?" रेखा ने चौंकते हुए कहा___"नास्ता नहीं करना क्या?"
"आज तो खुशी से ही पेट भर गया मेरा।" अशोक ने मुस्कुराते हुए कहा___"आज मैं जल्दी ही ऑफिस से आ जाऊॅगा। कल के लिए बहुत से अरेंजमेंट्स करने हैं मुझे। अच्छा अब चलता हूॅ मैं।"

अशोक सोफे से ब्रीफकेस उठा कर घर से बाहर खुशी खुशी निकल गया। जबकि रेखा मंद मंद मुस्कुराती हुई अशोक की प्लेट पर रखे नास्ते को खुद ही खाने लगी।

नास्ता करने के बाद रेखा ने प्लेट उठाई और उसे किचेन में एक तरफ धुलने के लिए रख दिया। उसके बाद वह अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। कमरे में पहुॅच कर उसने कमरे का दरवाजा बंद किया और अपने जिस्म से सारी निकालने लगी। आलमारी से दूसरी सारी ब्लाउज निकाल कर उसने उन्हें पहना और फिर ड्रेसिंक टेबल के सामने जा कर उसने थोड़ा बहुत मेक-अप किया। इसके बाद वह कमरे से बाहर जाने के लिए दरवाजा खोल कर बाहर आ गई।

घर से बाहर आकर उसने गैराज से स्विफ्ट डिजायर कार निकाली और मेन गेट से बाहर निकल गई। लगभग दस या पन्द्रह मिनट बाद उसकी कार सुमन वाले मकान के बाहर लोहे वाले गेट के पास पहुॅच कर रुकी। ड्राइविंग डोर खोल कर रेखा कार से बाहर आई।

लोहे वाले गेट को खोल कर वह अंदर आ गई। लान से चलते हुए वह घर के मुख्य द्वार पर आ कर रुकी। दरवाजे के बगल से लगी डोर बेल पर उसने अपने दाहिने हाथ की उॅगली रखी। परिणामस्वरूप अंदर कहीं बेल बजने की आवाज़ सुनाई दी।

थोड़ी ही देर में दरवाजा खुला और दरवाजे पर सुमन नमूदार हुई। बाहर रेखा को खड़े देख कर सुमन पहले तो चौंकी, उसे हैरानी भी हुई। फिर सहसा मुस्कुरा उठी वह।

"दीदी आप यहाॅ?" सुमन ने खुशी से कहा।
"क्यों यहाॅ नहीं आ सकती मैं?" रेखा ने भी मुस्कुरा कर कहा।
"अरे बिलकुल आ सकती हैं दीदी।" सुमन ने दरवाजे से हटते हुए कहा___"अंदर आइये न।"

रेखा ने दरवाजे के अंदर क़दम रखा। रेखा के अंदर आते ही सुमन ने पुनः दरवाजा बंद कर दिया और फिर रेखा के पीछे पीछे चलते हुए ही वो ड्राइंगरूम में आ गई।

"बैठिये दीदी।" सुमन ने सोफे की तरफ इशारा करते हुए कहा___"मैं आपके लिए चाय पानी लेकर आती हूॅ।"
"अरे रहने दे सुमन।" रेखा ने सहसा सुमन का हाॅथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा__"तुम बस मेरे पास बैठो। मैं नास्ता पानी करके आई हूॅ। मेरे पास बैठो तुम, मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना भी है और अपने किये की मुआफ़ी भी माॅगनी है तुमसे।"

"ये आप क्या कह रही हैं दीदी?" सुमन के मनो मस्तिष्क में विस्फोट सा हुआ। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि रेखा उससे ये क्या कह रही थी वो भी इतने प्यार से।
"मैं जानती हूॅ सुमन कि मैने हमेशा तुम्हारा अपमान किया है।" रेखा ने सहसा गंभीर और दुखी भाव से कहा___"पर मैं जानती हूॅ कि तुम इतनी नेक दिल हो कि मेरे हर अपराध के लिए मुझे क्षमा कर दोगी।"

"ऐसा कुछ नहीं दीदी।" सुमन ने कहा___"आप मुझसे हर तरह से बड़ी हैं। आपका पूरा हक़ है मुझ पर। आप जो चाहें मुझे कह सकती हैं मुझे बुरा नहीं लगेगा। बुरा तो सिर्फ इस बात का लगा था कि जिसे मैं अपनी बड़ी बहन मानती थी वो हमेशा खुद को दुखी रखती थीं।"

"ओह सुमन तुम कितनी अच्छी हो।" रेखा ने खींच कर सुमन को अपने गले से लगा लिया___"मेरे द्वारा इतना जलील और अपमानित किये जाने पर भी तुम मुझे इतनी इज्ज़त दे रही हो।? तुम सचमुच महान हो सुमन। कितनी नासमझ और बद्किस्मत थी मैं कि तुम्हें कभी समझ ही नहीं पाई।"

"तो क्या हुआ दीदी।" सुमन ने कहा___"आज आपको इस रूप में देख कर मैं बहुत खुश हूॅ। आपने मुझे अपने गले से लगा लिया ये मेरे लिए सबसे ज्यादा खुशी की बात है। मेरी दीदी मुझे मिल गई, यही बड़ी बात है। आज तक क्या हुआ क्या नहीं उससे मुझे कोई लेना देना नहीं है दीदी। मुझे मेरी दीदी मिल गई बस।"

"बहुत बड़ा दिल है तेरा।" रेखा ने सुमन को खींच कर उसके माथे पर प्यार से चूमा फिर बोली___"मेरे पास इतनी अच्छी मेरी छोटी बहन थी और मैं मूरख उसको ही गर से निकालने में लगी थी। मुझे माफ़ कर दे छोटी।"
"नही दीदी।" सुमन की रुलाई फूट गई__"ये आप क्या कह रही हैं? कैसी माफ़ी और किस बात की माफ़ी दीदी? मैं तो बस ये जानती हूॅ कि मुझे मेरी दीदी मिल गई। दुनिया में मेरा अपना कोई नहीं था। बस आप ही सब थे और आज आपको पाकर मैं बहुत खुश हूॅ।"

"रानी काॅलेज गई है न?" रेखा ने पूछा।
"हाॅ दीदी।" सुमन ने कहा___"अब तो शाम चार बजे के आस पास ही आएगी।"
"कैसी है वो?" रेखा की ऑखों में ऑसू थे___"कितनी अभागिन है वो। बचपन से आज तक उसने सिर्फ मेरी नफ़रत ही पाई है। और कितनी पापिन मैं हूॅ सुमन कि अपनी फूल सी बेटी को हमेशा दुत्कारती रही। हमेशा उसे अपने बेटे के खो जाने का जिम्मेदार ठहराती रही। भला उसकी क्या ग़लती थी? वो तो बच्ची ही थी उस वक्त।"

"जाने दीजिए न दीदी।" सुमन ने रेखा की ऑखों से ऑसू पोंछते हुए कहा__"जो कुछ भी हुआ वो सब भाग्य की बातें थी। मगर आज जो कुछ हो रहा है वो खुशी की बात है। सब कुछ भूल जाइये दीदी। हम सब मिलकर एक नई शुरुआत करेंगे।"

"तुम सच कहती हो सुमन।" रेखा ने कहा__"हम नई शुरुआत करेंगे। हम सब एक साथ में रहेंगे। तुम्हें और रानी को अब यहाॅ रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम दोनो वापस हमारे उसी घर में चलो। हम सब उस घर में अब खुशी खुशी रहेंगे। अरे हाॅ, तुम्हें पता है सुमन। अशोक मेरा जन्मदिन मनाने कह रहे थे आज। उन्होंने मुझे समझाया, मुझे एहसास कराया कि मैं ये जो कुछ भी कर रही हूॅ वो कहीं से भी उचित नहीं है। मुझे उनकी बातों से एहसास हुआ कि वो यकीनन सच कह रहे हैं। इस लिए मैं अब खुद को बदल रही हूॅ सुमन। कल मेरे जन्मदिन पर शाम को पार्टी का आयोजन भी कर रहे हैं अशोक। मैं यहाॅ अपनी छोटी बहन और अपनी बेटी को मना कर उन्हें लेने आई हूॅ। तुम चलोगी न मेरे साथ सुमन?"

"आपका हर आदेश सिर ऑखों पर है दीदी?" सुमन ने भर्राए गले से कहा___"हम सब वही करेंगे जो आप कहेंगी। और एक बात तो आप भी अपनी इस छोटी बहन की सुन लीजिए।"
"हाॅ हाॅ कहो सुमन।" रेखा ने खुशी से कहा।
"वो ये है कि अब से अगर आपने एक पल के लिए मेरी प्यारी सी दीदी को दुखी करके रुलाया तो ठीक नहीं होगा।" सुमन ने कहा___"अगर ऐसा हुआ तो मैं बात नहीं करूॅगी आपसे। सोच लीजिएगा।"

"ऐसी बातें न कर रे।" रेखा ने सुमन को फिर से खींचकर गले से लगा लिया। रोते हुए कहा उसने___"मेरा हृदय ये बातें बर्दास्त नहीं कर पाएगा। हे भगवान, ये मैं क्या कर रही थी अब तक? अपनी इतनी अच्छी बहन और बेटी को दुख दे रही मैं।"

दोनो काफी देर तक यूॅ ही गले लगी रहीं। दोनो की ऑखों से ऑसुओं की अविरल धारा बहती रही। पर कदाचित ऑसुओं के न बहने का अब समय आने वाला था। या फिर अभी ऐसे ऑसू बहना बाॅकी थे जो खुशी में भी बहा करते हैं।


अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,,
साला भयंकर इमोशनल कर दिया रे The_InnoCent भाई ने। सुपर इमोशनल अपडेट।
 

Lib am

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 23 )


अब तक,,,,,,,,

"तुम सच कहती हो सुमन।" रेखा ने कहा__"हम नई शुरुआत करेंगे। हम सब एक साथ में रहेंगे। तुम्हें और रानी को अब यहाॅ रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम दोनो वापस हमारे उसी घर में चलो। हम सब उस घर में अब खुशी खुशी रहेंगे। अरे हाॅ, तुम्हें पता है सुमन। अशोक मेरा जन्मदिन मनाने कह रहे थे आज। उन्होंने मुझे समझाया, मुझे एहसास कराया कि मैं ये जो कुछ भी कर रही हूॅ वो कहीं से भी उचित नहीं है। मुझे उनकी बातों से एहसास हुआ कि वो यकीनन सच कह रहे हैं। इस लिए मैं अब खुद को बदल रही हूॅ सुमन। कल मेरे जन्मदिन पर शाम को पार्टी का आयोजन भी कर रहे हैं अशोक। मैं यहाॅ अपनी छोटी बहन और अपनी बेटी को मना कर उन्हें लेने आई हूॅ। तुम चलोगी न मेरे साथ सुमन?"

"आपका हर आदेश सिर ऑखों पर है दीदी?" सुमन ने भर्राए गले से कहा___"हम सब वही करेंगे जो आप कहेंगी। और एक बात तो आप भी अपनी इस छोटी बहन की सुन लीजिए।"
"हाॅ हाॅ कहो सुमन।" रेखा ने खुशी से कहा।
"वो ये है कि अब से अगर आपने एक पल के लिए मेरी प्यारी सी दीदी को दुखी करके रुलाया तो ठीक नहीं होगा।" सुमन ने कहा___"अगर ऐसा हुआ तो मैं बात नहीं करूॅगी आपसे। सोच लीजिएगा।"

"ऐसी बातें न कर रे।" रेखा ने सुमन को फिर से खींचकर गले से लगा लिया। रोते हुए कहा उसने___"मेरा हृदय ये बातें बर्दास्त नहीं कर पाएगा। हे भगवान, ये मैं क्या कर रही थी अब तक? अपनी इतनी अच्छी बहन और बेटी को दुख दे रही मैं।"

दोनो काफी देर तक यूॅ ही गले लगी रहीं। दोनो की ऑखों से ऑसुओं की अविरल धारा बहती रही। पर कदाचित ऑसुओं के न बहने का अब समय आने वाला था। या फिर अभी ऐसे ऑसू बहना बाॅकी थे जो खुशी में भी बहा करते हैं।
__________________________


अब आगे,,,,,,,,

शाम को काॅलेज की छुट्टी होने के बाद हम सभी दोस्त कालेज के बाहर एकत्रित हुए। रानी ने उन सबको कल शाम को अपने घर आने का निमंत्रण दिया। हम सब एक दूसरे से गले मिले और फिर मैं रानी को लेकर बाहर आ गया। पार्किंग से अपनी कार लाकर मैने अपने बगल वाला डोर खोला तो रानी आकर मेरे बगल की सीट पर बैठ गई।

"तुमने उन सबको अभी से निमंत्रण क्यों दे दिया रानी?" मैने कार ड्राइव करते हुए कार के अंदर की खामोशी तोड़ी___"जबकि अभी यही कन्फर्म नहीं हुआ है कि माॅ अपना जन्मदिन मनाएॅगी कि नहीं। क्योंकि अगर वो अपना जन्मदिन मनाने और पार्टी के लिए मना कर दिया तो सारा प्लान चौपट ही हो जाना है।"

"मुझे पूरी उम्मीद है भइया कि माॅ इस सबके लिए ज़रूर मान जाएॅगी।" रानी ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा___"क्योंकि पिछले कुछ समय से उनमें काफी परिवर्तन आ गया है। पापा बता रहे थे कि माॅ ने उनसे वादा किया है कि वो अब खुद पहले की तरह उदास या दुखी नहीं रखेंगी। पापा ने ज़रूर उन्हें समझाया होगा। हलाॅकि समझाते तो वो पहले भी थे किन्तु संभव है पहले की अपेक्षा अब उन्हें एहसास हुआ है कि पापा उन्हें अच्छे के लिए ही समझा रहे हैं। उनको ये एहसास हुआ होगा कि सचमुच किसी एक चीज़ को लेकर बैठ जाने से जीवन में आगे नहीं बढ़ा जा सकता और ना ही इसके लिए बाॅकी सभी घर के सदस्यों को दुखी किया जाता है। इस लिए मुझे यकीन है भइया कि पापा ने इसके लिए भी उन्हें बहुत अच्छी तरह समझाया होगा।"

"भगवान करे ऐसा ही हो।" मैने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"ख़ैर, ये तो अब तभी पता चलेगा जब तुम घर पहुॅचोगी। माॅ(सुमन) ज़रूर बताएॅगी कि कल का प्रग्राम फाइनल हुआ या नहीं।"

"सही कह रहे हैं आप।" रानी ने कहा__"घर जाकर माॅ से सबसे पहले इसी बारे में पूछूॅगी। जो भी होगा मैं आपको फोन करके बता दूॅगी।"
"फोन कैसे करोगी?" मैने हैरानी से कहा___"न तुम्हारे पास फोन है और ना ही मेरे पास है।"

"अरे आपके यहाॅ लैण्डलाइन फोन तो होगा ही न?" रानी ने कहा___"मेरे यहाॅ भी लैण्डलाइन फोन है। आप अपने यहाॅ का नंबर दीजिए मैं आपको फोन कर दूॅगी।"
"मुझे याद ही नहीं है नंबर।" मैने कहा__"इस की ज़रूरत ही अभी नहीं पड़ी थी और मोबाइल फोन लेने का ख़याल ही नहीं आया मुझे। पर तुमने क्यों नहीं लिया मोबाइल फोन?"

"मेरा फोन में इंट्रेस्ट ही नहीं था भइया।" रानी ने मुस्कुराते हुए कहा___"लेकिन अब ज़रूर लूॅगी मैं। रात में आपको फोन लगा कर आपसे बातें किया करूॅगी।"
"एक काम करते हैं।" मैने कहा___"हम दोनो अभी इसी वक्त एक एक मोबाइल फोन खरीदते हैं। आजकल तो वैसे भी मोबाइल फोन की उपयोगिता बहुत है। चलो हम किसी मोबाइल स्टोर की तरफ चलते हैं।"

"वाह भइया, ये हुई न बात।" रानी एकदम से खुश हो गई थी।
मैं उसे खुश देख कर मुस्कुरा उठा। कुछ ही देर में हम एक अच्छे से मोबाइल के शोरूम के पास पहुॅच गए। कार से उतर हम दोनो शोरूम के अंदर चले गए।

शोरूम काफी बढ़िया था। जैसे ही हम दोनो अंदर दाखिल हुए तो एक आदमी हमारे पास आया और बोला___"वेलकम सर!"
हम दोनो उसके साथ चलते हुए एक बड़े से काउंटर के पास खड़े हो गए।

"जी कहिए सर!।" काउंटर के उस पार खड़े ब्यक्ति ने अदब से कहा___"किस तरह के मोबाइल सेट दिगाएॅ आपको?"
"जो आपके यहाॅ सबसे ज्यादा लेटेस्ट एण्ड यूनीक हो।" मैने कहा___"वही सेट दिखाइये।"

"ओके सर।" उस आदमी ने कहा और पलट कर वह अलग अलग जगहों पर रखे अलग अलग मोबाइल फोन्स की तरफ देखने लगा।

कुछ ही देर में उसने दो तीन मोबाईल सेट अलग अलग कंपनियों के लाकर काउंटर पर रख दिया और उन मोबाईलों के बारे में बताने लगा। मैने रानी की तरफ देख कर कहा कि उसे जो पसंद आए ले ले। रानी ने कहा कि जैसा आप लेंगे वैसा ही मैं भी ले लूॅगी।

मैने उस आदमी से कहा कि हाई रेंज़ वाला आई फोन के दो सेट दे दे। उस आदमी ने कुछ पल तो हम दोनो के चेहरों की तरफ देखा फिर पलट गया। थोड़ी ही देर में वह आई फोन के दो सेट लाकर दे दिया।

"सर वैसे तो हम हाई रेंज वाले आई फोन यहाॅ पर रखते नहीं हैं।" आदमी ने कहा__"पर ये दो सेट खास आर्डर पर मॅगवाए थे हमने। आप ले जाइये इन्हें हम आर्डर देने वाले को फिर से मॅगवा देंगे।"

"ओके फाइन।" मैने कहा___"सबकुछ रेडी कर दो इनमें। आई मीन सिम वगैरा सब डाल दो।"
"सर सिम के लिए आपको अपना आधार कार्ड देना पड़ेगा।" उस आदमी ने कहा__"आपको तो पता ही होगा कि सरकार ने नया कानून बना दिया है।"

"यस आई नो।" मैने कहा और अपने पैन्ट की पाॅकेट से अपना पर्स निकाला। उसमें से आधार कार्ड निकाल कर आदमी को दे दिया। फिर मैने रानी से कहा__"क्या तुमने अपना आधार कार्ड लिया है?"
"हाॅ शायद मेरे मिनी पर्स में होगा।" रानी ने बैग से मिनी पर्स निकाल कर उसमे से अपना आधार कार्ड निकाल कर मुझे दे दिया। मैने उसे उस आदमी को पकड़ा दिया।

ख़ैर कुछ ही समय में उस आदमी ने सब कुछ कंप्लीट करके हमारा सामान हमें दे दिया। मैने मेन काउंटर पर जाकर कार्ड से दोनो फोन्स की पेमेन्ट कर दी। पेमेन्ट की रसीद लेकर हम दोनो शोरूम से बाहर आ गए और कार में बैठ कर वहाॅ से निकल लिए।

"चलो ये काम तो सही हो गया।" मैने कार चलाते हुए कहा___"मेरे वाले फोन में तुम अपना नंबर फीड कर दो और अपने वाले में मेरा।"
"हाॅ मैं भी यही सोच रही थी।" रानी ने कहा और थैले से दोनो फोन्स निकाल कर उन्हे डिब्बों से बाहर निकाला। सिम के पैकेट में लिखे नंबरों से रानी ने हम दोनो के नंबर एक दूसरे के मोबाइल में फीड कर दिया।

"अभी इनको ठीक से चलाने में थोड़ा समय लगेगा भइया।" रानी ने कहा___"इसमें व्हाट्सएप भी है। मैने इसे चालू कर दिया है आप देख लीजिएगा।"
"ठीक है।" मैने कहा___"ये लो तुम्हारा घर आ गया। वो कुछ दूरी पर दिख रहा है। कल से मैं तुम्हें लेने आ जाया करूॅगा ठीक है न?"

"ठीक है भइया।" रानी ने कार से उतरते हुए कहा___"एण्ड थैंक्यू सो मच भइया। ये मोबाइल मेरे लिए जान से भी ज्यादा कीमती होगा।"
"ग़लत बात।" मैने कहा___"तेरी जान मेरी जान है। तुझसे कीमती दुनियाॅ में कुछ भी नहीं है।"

मेरी इस बात से रानी की ऑखों में पलक झपकते ही ऑसू तैरते दिखने लगे। उसने मुझे ऐसी मोहब्बत भरी नज़र से देखा कि मैं अंदर तक हिल गया। एक अनजानी सी लहर दौड़ गई मेरे समूचे अस्तित्व में। धड़कने अनायास ही तेज़ हो गई थी।

"चल मैं चलता हूॅ अब।" मुझसे अब वहाॅ पर रुका नहीं जा रहा था, बोला__"अपना ख़याल रखाना।"
मेरे ऐसा कहने पर रानी ने हाॅ में गर्दन हिलाई, जबकि मैंने कार को बढ़ा कर यू टर्न लिया और फिर अपने घर की तरफ बढ़ गया। बैक मिरर में रानी अपने ऑसू पोंछती हुई दिखी मुझे। मेरे दिल में एक टीस सी उभरती चली गई।

घर पहुॅच कर मैं थोड़ी देर अपनी दोनो माॅ के पास बैठा और फिर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। फ्रेश होकर कपड़े चेंज किये और बेड पर लेट गया। कुछ देर ऑखें बंद कर मैं रानी के बारे में सोचता फिर सहसा मुझे कुछ ख़याल आया मैने तुरंत काल को याद किया।

मेरे याद करते ही काल मेरे सामने हाज़िर हो गया। मैने उससे कुछ ज़रूरी बातें पूछी और उसे एक ज़रूरी काम देकर उसे वापस भेज कर मैंने फिर से ऑखें बंद कर ली।
____________________________

उधर शाम को जब अशोक घर आया तो रेखा ने उसे बताया कि वह सुमन से मिलने गई थी। उसने सुमन से अपने किये कि मुआफ़ी माॅगी, ये अलग बात है कि सुमन उसे किसी बात के दोषी नहीं मानती थी। उसने ये भी बताय कि उसने सुमन से साफ तौर पर कह दिया है कि अब हम सब इसी घर में एक साथ रहेंगे। रेखा की ये बातें सुन कर अशोक खुश हो गया था और उसने रेखा को अपने सीने से लगा कर अपनी खुशी का इज़हार किया।

"ये तुमने बहुत अच्छा किया रेखा।" अशोक ने कहा___"हम सब साथ रहेंगे। एक दूसरे के साथ दुख सुख बाॅटेंगे। हम एक नये सिरे से सबके साथ जीवन में आगे बढ़ेंगे।"
"हाॅ अशोक।" रेखा ने कहा___"मैं इतने साल इस घर की खुशियों ग्रहण सा लगाए रखा था। मगर अब मैं सब ठीक कर दूॅगी। अपनी उस बेटी को सीने से लगा कर ढेर सारा प्यार दूॅगी जिस बेटी को मैं कभी देखना भी पसंद नहीं करती थी। मैं उसकी एक अच्छी माॅ बन कर दिखाऊॅगी अशोक। उसे अपनी पलकों पर बिठा कर रखूॅगी।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है रेखा।" अशोक ने कहा___"और यकीन मानो तुम्हारे ऐसा करने से रानी पल भर में अपने सारे दुख दर्द भूल जाएगी। ख़ैर, मैने सारा इंतजाम कर दिया है। कल सुबह ही कुछ लोग सारा सामान लेकर आएंगे और हमारे इस घर को किसी दुल्हन की तरह सजाना शुरू कर देंगे। शाम को एक छोटी सी पार्टी रखी है मैं। जिसमें हम सब अपने परिवार के लोग रहेंगे और मेरे कुछ खास मित्र लोग भी आएॅगे।"

"ठीक है अशोक।" रेखा ने कहा___"मैने भी सुमन से कह दिया है कि कल से वो हमारे साथ ही रहेगी। इस लिए कल हम दोनो सुबह ही उसे और अपनी बेटी को लेने चलेंगे वहाॅ।"

"बिलकुल।" अशोक ने कहा___"कल मैं ऑफिस नहीं जाऊॅगा बल्कि सारा दिन और रात यहाॅ के सारे अरेंजमेंट देखूॅगा। मैं चाहता हूॅ कि कहीं पर भी किसी चीज़ की कोई कमी न रहे। आखिर मेरी उस बीवी का जन्मदिन है जो दुनियाॅ की सबसे हसींन लड़की है।"

"ल लड़की???" रेखा की ऑखें हैरत से फैल गई, बोली___"मैं और लड़की?
"और नहीं तो क्या?" अशोक ने मुस्कुराते हुए कहा___"तुम आज भी किसी लड़की से कम नहीं लगती मेरी जान। तुम्हारे साथ अगर रानी को खड़ा कर दिया जाए तो सब यही कहेंगे कि देखो दो बहनें खड़ी हैं।"

"उफ्फ अशोक तुम भी न।" रेखा के चेहरे पर शर्म की सुर्खी आ गई___"पता नहीं क्या उटपटाॅग बोलते हो? मैं भला किस एंगल से तुम्हें लड़की नज़र आती हूॅ? मत भूलो कि दो दो बच्चों की माॅ हूॅ मैं।"
"तो क्या हुआ?" अशोक ने कहा___"मेरी नज़र में तो तुम लड़की ही लगती हो। दुनिया की सबसे हसीन लड़की। जिस पर कोई भी फना हो जाए।"

"हे भगवान ! अब बस भी करो।" रेखा की हैरानी से कहा___"कहीं पी वी कर तो नहीं आ गए तुम? जो ऐसी बहकी बहकी बातें किये जा रहे हो?"
"दुनिया की किसी शराब में वो नशा है ही नहीं जो तुम्हारी ऑखों में है।" अशोक ने कहा___"और तुम्हारे इन होठों में है। मैं तो इनका ही जाम पीना चाहता हूॅ डियर। कितने बरस बीत गए रेखा हमने एक दूसरे को प्यार नहीं किया। अब जबकि हम नये सिरे से जीवन की शुरुआत कर ही रहे हैं तो क्यों न सब कुछ शुरू से करें। कल तुम्हारा जन्मदिन है और कल ही हम ये सोच लें कि हमारी नई नई शादी हुई है। हम रात में अपनी नई शादी की सुहागरात मनाएॅ।"

"ये तुम क्या कह रहे हो अशोक?" रेखा ने चकित भाव से कहा___"अब इस उमर में ये सब मुमकिन नहीं है। मत भूलो कि हमारी बेटी अब बड़ी हो गई है।"
"अरे तो क्या हो गया रेखा?" अशोक ने कहा___"तुम्हें याद है न कि जब तुम्हारे बच्चे हुए थे तब तुम कम उमर की ही थी। दो जुड़वा बच्चों के पाॅच साल बाद हमने फिर से बच्चे का प्लान किया था मगर उस हादसे ने सब कुछ बदल दिया था। मगर आज हम फिर से बच्चे का प्लान कर सकते हैं रेखा। अभी तो कुछ भी नहीं बिगड़ा है। क्या तुम नहीं चाहती कि जो राज हमसे दूर हो गया था वर्षों पहले वो एक नये रूप में तुम्हारी कोख से पैदा हो जाए? ज़रूर हो सकता है रेखा, जीवन में आगे बढ़ने के लिए और खुशियाॅ ढूॅढ़ने के लिए हमें कुछ न कुछ करना ही पड़ता है।"

"मुझे इस बारे में सोचने का वक्त चाहिए अशोक।" रेखा ने कुछ सोचते हुए गंभीर भाव से कहा___"क्योंकि अभी मैं इस सबके के लिए मानसिक तौर पर तैयार नहीं हूॅ। तुम मेरी बात समझ रहे हो न?"
"मैं समझता हूॅ रेखा।" अशोक ने कहा__"इस लिए तुम्हें जितना वक्त चाहिए सोचने के लिए ले लो। मगय ये ज़रूर ध्यान में रखना कि ये हर तरह से उचित बात है।"

रेखा ने हाॅ में सिर को ख़म किया। उसके चेहरे पर इस वक्त कई तरह के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे। अचानक ही जाने किन ख़यालों में खोई हुई नज़र आने लगी थी वह।

"चलो अब डिनर करते हैं।" अशोक ने कहा___"फिर जल्दी सोना भी है क्योंकि सुबह जल्दी उठ कर बहुत सारे काम भी करने हैं।"
"आं हाॅ चलो।" रेखा ने तंद्रा टूटते ही कहा___"मैने डिनर तैयार कर दिया है। तुम फ्रेश होकर आओ तब तक मैं खाना लगाती हूॅ।"

रेखा के कहने पर अशोक अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। उसके चेहरे पर खुशी के भाव दिख रहे थे। जबकि रेखा फिर से ख़यालों में खोई हुई किचेन की तरफ बढ़ गई।

खाना खाने के बाद दोनो ही अपने अपने कमरों में सोने के लिए चले गए। रेखा का कमरा अलग ही था। वो वर्षों से अकेले ही अलग कमरे में सोती थी। अशोक के साथ एक ही कमरे में सोने से उसने पहले ही इंकार कर दिया। कदाचित इस लिए कि बेटे के खो जाने के ग़म ने पागल सा बना दिया था। उसे घर का किसी भी सदस्य से कोई लगाव नहीं रह गया था।

ख़ैर, कमरे में पहुॅच कर रेखा ने दरवाजा बंद कर कुंडी लगाई और फिर अपनी साड़ी उतारने लगी। साड़ी ब्लाउज व पेटीकोट उतार कर वह आलमारी की तरफ बढ़ी। आलमारी से एक नाइटी निकाल कर उसने अपने खूबसूरत बदन पर डाला और फिर नाइट बल्ब ऑन कर उसने तेज़ प्रकाश वाला बल्ब बुझा दिया। इसके बाद बेड पर जाकर वह लेट गई।

ऊपर छत पर तेज़ गति से घूम रहे पंखे पर उसकी निगाहें ठहर गईं। दिमाग़ में अशोक द्वारा कही गई बाते घूमने लगी। काफी देर तक वह इस सबके बारे में सोचती रही। इधर से उधर करवॅट बदलते हुए उसे पता ही नहीं चला कि उसकी पलकें झपक गईं और वह नीद की आगोश में पहुॅच गई।

रेखा को बेड पर सोये हुए क़रीब आधा घंटा ही हुआ था कि सहसा कमरे के दरवाजे की निचली सतह से एकाएक ही सफेद धुआॅ कमरे के अंदर की तरफ आने लगा। गाढ़ा सफेद धुऑ कमरे में एक जगह एकत्रित होकर इंसानी मानव आकृति में बदल गया।

कमरे का वातावरण एकाएक ही बड़ा रहस्यमय लगने लगा था। उस मानव आकृति ने सामने बेड पर सोई पड़ी रेखा को अपने दोनो हाॅथ जोड़ कर प्रणाम किया और फिर बेड की तरफ वह मानव आकृति बढ़ने लगी।

बेड के क़रीब पहुॅच कर वह मानव आकृति रेखा के सिरहाने पर जाकर खड़ी हो गई। कुछ पल तक रेखा के चेहरे को देखने के बाद उसने अपना एक हाथ बढ़ा कर रेखा के सिर पर हौले से रख दिया। हाॅथ रखते ही उसकी हथेली से एक सफेद रोशनी निकल कर रेखा के सिर पर फैल गई और फिर देखते ही देखते वह रोशनी लुप्त भी हो गई। बेड पर सोई हुई रेखा का जिस्म एक सेकण्ड के लिए झटका खाया था फिर शान्त पड़ गया था पहले की तरह।

मानव आकृति ने रेखा के सिर से अपना हाॅथ हटा लिया और वापस दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी। दरवाजे के पास पहुॅच कर वह मानव आकृति फिर से सफेद धुएॅ के रूप में दरवाजे की निचली दरारों से बाहर निकल गई।
___________________________


दोस्तो छोटा सा अपडेट हाज़िर है,,,,,
मेरे रिलेटिव्स में शादी है इस लिए मुझे फिर से आज घर के लिए निकलना है। इस लिए अपडेट आने में समय लग जाएगा। मेरी आप सभी से गुज़ारिश है कि आप नाराज़ मत होना। घर से लौटते ही अपडेट कान्टीन्यू करने लगूॅगा।
अति सुंदर अपडेट
 

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)

""अपडेट"" ( 24 )


अब तक,,,,,,,,,

रेखा को बेड पर सोये हुए क़रीब आधा घंटा ही हुआ था कि सहसा कमरे के दरवाजे की निचली सतह से एकाएक ही सफेद धुआॅ कमरे के अंदर की तरफ आने लगा। गाढ़ा सफेद धुऑ कमरे में एक जगह एकत्रित होकर इंसानी मानव आकृति में बदल गया।

कमरे का वातावरण एकाएक ही बड़ा रहस्यमय लगने लगा था। उस मानव आकृति ने सामने बेड पर सोई पड़ी रेखा को अपने दोनो हाॅथ जोड़ कर प्रणाम किया और फिर बेड की तरफ वह मानव आकृति बढ़ने लगी।

बेड के क़रीब पहुॅच कर वह मानव आकृति रेखा के सिरहाने पर जाकर खड़ी हो गई। कुछ पल तक रेखा के चेहरे को देखने के बाद उसने अपना एक हाथ बढ़ा कर रेखा के सिर पर हौले से रख दिया। हाॅथ रखते ही उसकी हथेली से एक सफेद रोशनी निकल कर रेखा के सिर पर फैल गई और फिर देखते ही देखते वह रोशनी लुप्त भी हो गई। बेड पर सोई हुई रेखा का जिस्म एक सेकण्ड के लिए झटका खाया था फिर शान्त पड़ गया था पहले की तरह।

मानव आकृति ने रेखा के सिर से अपना हाॅथ हटा लिया और वापस दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी। दरवाजे के पास पहुॅच कर वह मानव आकृति फिर से सफेद धुएॅ के रूप में दरवाजे की निचली दरारों से बाहर निकल गई।
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अब आगे,,,,,,,,

रात में खाना पीना करके मैं अपने कमरे में बेड पर लेटा हुआ था। मेरे मन में तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे। कल मेरी असल माॅ का जन्मदिन है। अपनी जन्मदायनी माॅ से मिलने के लिए अब कुछ ज्यादा ही बेक़रारी और अधीरता छा रही थी मन में।

कभी कभी इंसान को अपनी सबसे अज़ीज़ चीज़ के मिलने की इतनी ज्यादा खुशी होती है कि वो उस खुशी को अपने अंदर जज़्ब ही नहीं कर पाता। मैं अच्छी तरह समझ सकता था कि ऐसा ही कुछ हाल मेरी उस असल माॅ का हो सकता था इसी लिए तो मैने काल को भेजा था उनके पास ताकि वो मेरी माॅ को ऐसी शक्ति प्रदान कर सके जिससे मेरी माॅ अपने बेटे के मिलने की उस खुशी को आसानी से जज़्ब कर सके। मेरे कहने पर काल ने वही किया था। यानी वह मेरी माॅ के पास गया और मेरी सोती हुई माॅ को शक्ति प्रदान कर वह वहाॅ से चला आया था।

रात के ग्यारह से ऊपर का समय हो गया था लेकिन मेरी ऑखों में नींद का दूर दूर तक कोई नामो निशान तक न था। मुझे लग रहा था कि ये रात कितना जल्दी गुज़र जाए और अगला दिन भी गुज़र जाए। उसके बाद शाम हो और मैं अपनी माॅ के जन्मदिन पर उनसे मिलने जाऊॅ। मगर ये शब तो जैसे एक ही जगह पर मुकीम हो गई थी।

अभी मैं सोचो के गहरे समुद्र में डूबा हुआ ही था कि मेरे बाएॅ साइड सिरहाने पर रखे मेरे फोन पर मैसेज टोन बजी। टोन के बजने से मैं ख़यालों के अथाह सागर से बाहर आ गया। हाथ बढ़ा कर मोबाइल उठाया और फिर जलती हुई स्क्रीन पर नज़र आ रहे मैसेज को देखा तो मेरे होठों पर मुस्कान उभर आई। मैसेज रानी का था। उसने कोई ग़ज़ल भेजी थी जो इस प्रकार थी।


ख्वाब से निकल कर रूबरू मिला कीजिए।
पास रह कर अब यूॅ न फांसिला कीजिए।।

कोई चाहत कोई हसरत कोई आरज़ू क्या है,
हम बताएॅगे नहीं आप खुद पता कीजिए।।

हमको भी कभी नसीब-ए-विसाले यार हो,
हुज़ूर हमारे वास्ते बस यही दुवा कीजिए।।

एक मुद्दत से मरीज़ ए इश्क़ हुए बैठे हैं हम,
थाम कर बाहों में इस दिल की दवा कीजिए।।

इस दर्द से हमें कोई गिला तो नहीं है मगर,
सौगात ए हिज्र अब और न अता कीजिए।।


मैने रानी की भेजी हुई ये ग़ज़ल पढ़ी। उसकी इस ग़ज़ल का हर लफ्ज़ मेरे दिल में उतरता चला गया। मुझे समझने में कतई देरी न हुई कि रानी कहना क्या चाहती है। मैं समझ सकता था कि वो इस ग़ज़ल के ज़रिये मुझसे अपने प्रेम का इज़हार कर रही थी। मुझे तुरंत कुछ समझ में न आया कि मैं उसको क्या जवाब दूॅ? काफी देर तक मैं बस सोचता रहा। तभी मोबाइल पर फिर से उसका मैसेज आया।

"कैसी लगी आपको वो ग़ज़ल भइया?" रानी ने मैसेज में लिखा था___"दरअसल, मैं न आज कल पोएट्री लिखती हूॅ। सोचा आपको भेज दूॅ और फिर पूछूॅ कि कैसी है मेरी लिखी हुई पोएट्री?"

"हाॅ वो मैं पढ़ ही रहा था रानी।" मैने मैसेज टाइप किया___"बहुत अच्छा लिखती हो तुम? लेकिन ये सब तुम्हारे दिमाग़ में आता कैसे है?"
"पता नहीं भइया।" रानी ने मैसेज भेजा___"बस मन में जैसा ख़याल आता है उसे पोएट्री की शक्ल में लिख देती हूॅ।"

"ओह आई सी।" मैने मैसेज टाइप किया__"तो ये बात है। लेकिन तुम्हारे मन में ऐसे ख़याल क्यों आते हैं बहना? ग़ज़ल को पढ़ कर तो यही लगता है कि जो कुछ इसमें है वो सब सच है और ये सब तुम्हारे खुद के ही दिल का हाल है। आम तौर पर शेरो शायरी या ग़ज़ल इंसान तभी लिखता है या करता है जब उस तरह का माहौल खुद के अंदर भी हो।"

"पता नहीं भइया।" रानी का मैसेज आया__"मुझे अपने अंदर का तो कुछ पता ही नहीं है। ख़ैर छोंड़िये ये बात और ये बताइये कि कल का क्या सोचा है आपने?"
"कल का तो मैने कुछ भी नहीं सोचा है।" मैने मैसेज किया___"बस वक्त और हालात के ऊपर है कि उस समय क्या होगा।"

"कल मैं आपके यहाॅ आऊॅगी।" रानी ने मैसेज भेजा___"और वहाॅ पर सबको माॅ के जन्मदिन पर आने के लिए निमंत्रित करूॅगी।"
"वैसे तो सबको निमंत्रित करने की ज़रूरत नहीं है बहना।" मैने मैसेज भेजा___"क्योंकि मैं सबको लेकर ही आऊॅगा। पर अगर तुम यहाॅ आना चाहती हो तो ये तुम्हारी मर्ज़ी की बात है।"

"मैं ज़रूर आऊॅगी भइया।" रानी ने मैसेज भेजा___"और वहाॅ सबसे मिलूॅगी भी।"
"चलो अच्छी बात है।" मैने मैसेज भेजा__"और अब सो जाओ, बहुत रात हो गई है।"
"अभी तो ऑखों में नींद ही नहीं है।" रानी ने मैसेज भेजा___"क्या आपको नींद आ रही है भइया? कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं आपकी नींद ख़राब कर रही हूॅ?"

"नहीं रे पागल ऐसा कुछ नहीं है।" मैने मैसेज भेजा___"नींद तो मुझे भी नहीं आ रही।"
"आपको नींद क्यों नहीं आ रही?" रानी ने मैसेज में पूछा।
"कल का सोच सोच कर रानी।" मैने मैसेज भेजा___"मुझे लग रहा कितना जल्दी वो पल आए जब मैं अपनी माॅ के सामने पहुॅच जाऊॅ और....और माॅ मुझे अपने गले से लगा ले। मुझे अपने ममता के ऑचल में छुपा कर मुझे प्यार करे। ये रात ये पल जल्दी से गुज़र क्यों नहीं जाता बहना? अभी तक तो किसी तरह गुज़र ही जाता था मगर अब....अब ये पल नहीं गुज़र रहा।"

"आप अधीर न हों भइया।" रानी ने मैसेज में कहा___"जब तेरह साल का वक्त गुज़र गया है तो ये रात का वक्त भी गुज़र ही जाएगा। जिस तरह का हाल आपका है वैसा ही हाल मेरा भी है। मैं भी तो पिछले तेरह साल से अपनी माॅ के प्यार के लिए तरस रही हूॅ। आपको पता है भइया, आज माॅ(रेखा) यहाॅ हमारे इस घर में आई थी। वो मेरी माॅ(सुमन) से मिली और अपने किये की उनसे माफ़ी माॅग रही थी। इतना ही नहीं माॅ ने बताया कि वो कह रही थी कि कल से हम सब उसी घर में साथ साथ रहेंगे और ये भी कहा कि मैं अपनी फूल सी बच्ची को खूब प्यार दूॅगी।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है।" मैने मैसेज में कहा___"अब कल से तुम सब एक साथ ही माॅ पापा के पास रहोगे।"
"और आप भी रहेंगे में।" रानी ने मैसेज में कहा___"जब माॅ को पता चल जाएगा कि आप उनके बेटे ही हैं तो फिर भला वो कैसे आपको खुद से दूर रहने देंगी?"

"देखते हैं क्या होता है रानी।" मैने गहरी साॅस लेते हुए मैसेज किया___"अभी तो सबसे बड़ी समस्या ये है कि ये रात ही नहीं गुज़र रही।"
"देखना क्या है भइया?" रानी ने मैसेज में कहा___"ये तो पक्की बात है कि माॅ आपको पहचान जाएॅगी और फिर आपको वो अपने से दूर जाने ही नहीं देंगी। इस लिए अब आप भी यहीं पर रहने की तैयारी कर लीजिए।"

"मैं अकेला वहाॅ नहीं रहूॅगा रानी।" मैने मैसेज भेजा___"तुम जानती हो कि यहाॅ भी मेरे पास मेरी दो माॅ हैं, एक मामा हैं और एक चाचू हैं। मैं इन सबको छोंड़ कर वहाॅ रहने के बारे में सोच भी नहीं सकता। मैं जहाॅ भी रहूॅगा ये सब मेरे साथ ही रहेंगे।"

"मैं जानती हूॅ भइया।" रानी ने मैसेज में कहा___"जब माॅ को उन सबके बारे में पता चलेगा तो वो उन सबको भी अपने साथ ही रहने को कहेंगी।"
"अब ये तो कल ही पता चलेगा कि क्या क्या होता है।" मैने मैसेज में कहा___"चलो अब सो जाओ, कल मिलते हैं फिर।"

"ठीक है भइया।" रानी ने मैसेज में कहा__"गुड नाइट एण्ड स्वीट ड्रीम्स।"
"गुड नाइट।" मैने मैसेज किया और फोन रख दिया।

मैं रानी से मैसेज में बात करने के बाद आराम से ऑखें बंद किये लेट गया था। ज़ेहन में उसकी बातें अभी भी कत्थक कर रहीं थी। ख़ैर, काफी देर तक मैं करवॅटें बदलता रहा और फिर जाने कब मेरी ऑखों पर नींद की नज़रे इनायत हो गई।

सुबह हुई!
एक खूबसूरत दिन की शुरूआत हुई। जैसे ही मेरी ऑखें खुली तो मेरी नज़र सामने खड़ी मेरी दोनो माॅ यानी मेनका और काया पर पड़ी। वो दोनो मुझे देख कर मुस्कुराए जा रही थी। उनकी मुस्कुराते देख मेरे होठों पर भी मुस्कान उभर आई।

"तो हमारे बेटे की नींद खुल गई?" काया माॅ ने मुस्कुराते हुए मगर नाटकीय अंदाज़ में कहा__"चलो शुकर है कि खुल गई। वरना जाने कब तक इन्तज़ार करना पड़ता?"
"ऐसा क्यों कह रही हैं आप?" मैने उठते हुए कहा था।
"वो क्या है न कि दिन के नौ बज रहे हैं।" काया माॅ ने कहा___"और हम दोनो पिछले दो घण्टे में जाने कितनी बार तुम्हारे कमरे में तुम्हें देखने आ चुके हैं। सोचा शायद अब जग गए होगे। मगर क्या पता था कि हमेशा ब्रम्हमुहूर्त में उठने वाला हमारा बेटा आज रामायण काल का कुम्भकर्ण बन गया है।"

"क्या कहा आपने, नौ बज गए?" मैं बुरी तरह उछल पड़ा___"ओफ्फो आपने मुझे जगाया क्यों नहीं?"
"लो कर लो बात।" काया माॅ ने हाॅथ नचाते हुए कहा___"हमने सोचा था कि गहरी नींद में हो भला क्यों जगाएॅ तुम्हें? जब नींद पूरी हो जाएगी तो खुद ही जग जाओगे। जैसे अभी जग गए हो।"

"क्यों तंग कर रही हो तुम मेरे बेटे को?" तभी मेनका माॅ ने प्यार से कहा___"नौ बजे तक सोए या सारा दिन सोए उसकी मर्ज़ी है। कौन सा पहाड़ टूट पड़ा है उसके सोए रहने से?"
"अरे तो मैने कब कहा दीदी कि पहाड़ टूट पड़ा है?" काया माॅ ने चौंकते हुए कहा__"मैं तो वैसे भी तसल्ली से उसे सोता हुआ देख ही रही थी। आप ही ने आकर उसे जगा दिया है। हाय मेरा बेटा कितना सुंदर और मासूम लग रहा था सोते हुए।"

"अब अगर उसे देख कर तुम्हारा मन भर गया हो तो चलें यहाॅ से?" मेनका माॅ ने हॅसते हुए कहा___"उसे अब फ्रेश होने दो। कालेज के लिए देर हो जाएगी उसे।"
"काश! मैं भी अपने बेटे के साथ उसके कालेज जाती।" काया माॅ ने कहा___"मैं भी देख पाती कि इंसानी दुनियाॅ में स्कूल कालेज कैसे होते हैं और वहाॅ पर किस तरह की पढ़ाई होती है?"

"हाहाहाहा आप और कालेज??" मुझे ज़ोर की हॅसी आई थी।
"ओए तुम हॅस क्यों रहे हो इस तरह?" काया माॅ ने कहा___"क्या तुम मुझे चिढ़ा रहे हो?
"नहीं माॅ, मैं भला आपको क्यों चिढ़ाऊॅगा?" मैने कहा___"मुझे तो बस इस लिए हॅसी आ गई कि आपने ये बात कहा ही ऐसे अंदाज़ में था जैसे कोई छोटा बच्चा हो।"

"हाॅ हाॅ मैं तो अभी बच्ची ही हूॅ।" काया माॅ ने कहा___"मैं जब चाहूॅ तुम्हारे जैसे कालेज जा सकती हूॅ। इसमें कौन सी बड़ी बात है?"
"हाॅ ये तो है।" मैने कहा___"बस कालेज में आपको देख कर कोई ऑटी जी न कह बैठे।"

"क्या बोला?" काया माॅ की ऑखें फैल गई, बोली___"क्या मतलब हुआ ऑटी जी न कह बैठे? रुक अभी तुझे बताती हूॅ मैं।"

काया माॅ झपटते हुए बेड की तरफ बढ़ी जबकि बेड पर उनके पहुॅचने से पहले ही मैं जम्प मार कर अटैच बाथरूम में घुस गया था। बाथरूम का दरवाजा बंद कर अंदर से कुण्डी लगा ली थी मैने।

"देखा दीदी इसने क्या कहा मुझे?" कमरे में काया माॅ मेनका माॅ से मेरी शिकायत कर रही थी___"क्या मैं ऑटी जैसी लगती हूॅ?"
"अरे वो तो तुम्हें छेड़ रहा था।" मेनका माॅ ने मुस्कुराते हुए कहा___"तुम तो किसी भी एंगल से ऑटी नहीं लगती हो। सिर्फ अमा ही लगती हो।"

"क्या???? आप भी??" काया माॅ ने बुरा सा मुह बना लिया___"आप भी उसका पक्ष ले रही हैं।"
"अरे तो क्या ग़लत कहा मैने?" मेनका माॅ ने कहा___"तुम तो राज की अम्मा ही हो न।"
"हाॅ ये तो है।" काया माॅ ने कहा___"मैं राज की माॅ ही तो हूॅ। वो मेरा बेटा है। मेरा प्यारा बेटा। पता है दीदी, जब वो मुझे इस तरह तंग करता है और छेड़ता है तो मुझे भी बहुय मज़ा आता है।"

"हाॅ मैं जानती हूॅ कि तुम जानबूझ कर ऐसी हरकतें करती रहती हो जिससे वो तुम्हें छेंड़े है ना?" मेनका माॅ ने कहा।
"हाॅ ये सच है दीदी।" काया माॅ ने कहा__"इस दुनियाॅ में इंसान बन कर हर तरह से जीने का आनंद ही कुछ अलग है। उस शैतानी दुनियाॅ में तो हमने इन छोटी छोटी खुशियों की कल्पना भी न की थी।"

"तुम भले ही ढाई सौ साल की हो गई हो काया।" मेनका माॅ ने कहा___"मगर तुम्हारे अंदर एक छोटी सी बच्ची अभी भी मौजूद है।"

मेनका माॅ ने काया माॅ को अपने गले से लगा लिया। फिर वो दोनो कमरे से बाहर चली गई। मैं भी नहा कर बाथरूम से बाहर आया। कमरे में आकर मैने कालेज का यूनीफार्म पहना और फिर बैग लेकर नीचे आ गया। नीचे सब लोग मेरा ही इन्तज़ार कर रहे थे।

मैं भी अपनी दोनो माॅ के बीच कुर्सी पर बैठ गया। उसके बाद सब नास्ता करने लगे। मेरी दोनो माॅ हमेशा की तरह मुझे अपने हाॅथ से खिला रही थी।

"तो आज तुम्हारी असल माॅ का जन्मदिन है राज बेटे?" वीर चाचू ने कहा___"और तुम्हें उनके जन्मदिन की पार्टी पर जाना भी है। ये बहुत अच्छी बात है। आख़िर वो समय आ ही गया जब तुम्हें अपने लोगों से मिलना होगा।"
"मैं अकेला वहाॅ पर नहीं जाऊॅगा चाचू।" मैने कहा___"बल्कि आप सबको भी मेरे साथ वहाॅ चलना पड़ेगा। मेरी बहन रानी आप सबको लेने यहाॅ खुद आएगी।"

"अरे वाह हमारी बच्ची हम सबको लेने यहाॅ आएगी।" रिशभ मामा खुशी से कह उठे___"फिर तो आज आफिस जाना कैंसिल है हमारा। क्यों वीर?"
"बिलकुल रिशभ।" वीर चाचू ने कहा__"हम रानी के आने का यहीं पर इन्तज़ार करेंगे। वैसे राज कब तक आएगी वो यहाॅ?"

"अभी तो हम काॅलेज जाएॅगे।" मैने कहा___"कालेज में अपने ग्रुप के दोस्तों को शाम को आने का कह कर वापस आ जाएॅगे। रानी मेरे साथ ही यहाॅ आएगी।"
"ओह फिर तो ठीक है।" वीर चाचू ने कहा__"लेकिन जल्दी आना। हम भी अपनी बच्ची को अपनी ऑखों के सामने देखना चाहते हैं। उस बच्ची को जो तुम्हारी तरह ही अद्भुत है।"

"हाॅ लेकिन वो ये नहीं जानती कि वो असल में क्या चीज़ है?" मैने कहा___"और तब तक जानेगी भी नहीं जब तक उसे उसकी असलियत के बारे में बताया न जाए।"
"समय आने पर उसे बताना ही पड़ेगा राज बेटे।" रिशभ मामा ने कहा___"इंसान की वास्तविकता ज्यादा देर तक छुपी नहीं रह सकती।"

"वो सब बाद में देखा जाएगा मामा जी।" मैने कहा___"अभी तो हम सब आज उस जगह जाएॅगे जिस जगह पर मेरी माॅ रहती है।"

अभी हम सब बातें ही कर रहे थे कि सहसा हमारे बीच काल आ गया। सबने उसे देखा। इस वक्त वो एकदम नार्मल इंसानों जैसा था। काल मेरा हमशक्ल था। अंतर सिर्फ इतना था कि वो रंगत से साॅवला था जबकि मैं गोरा था।

"क्या बात है काल?" मैने कहा___"तुम इस तरह यहाॅ कैसे?"
"आपको कुछ ज़रूरी सूचना देना है।" काल ने कहा।
"कैसी सूचना?" मैने कहा___"सब कुछ ठीक तो है न?"
"बाॅकी सब तो ठीक ही है लेकिन एक चीज़ ठीक नहीं है।" काल ने कहा___"आपके नाना जी यानी शैतानों के भूतपूर्व सम्राट विराट आपको पुनः हासिल करने के लिए साजिश और प्लान बना रहैं। अगर आपकी इजाज़त हो तो एक झटके में उन्हें वहीं पर गर्क कर दूॅ।"

"नहीं काल।" मैने कहा___"आज खुशी का दिन है। आज मेरी माॅ का जन्मदिन है। आज मैं वर्षों बाद अपनी माॅ के सामने जाऊॅगा। इस खुशी के अवसर पर किसी की ज़िंदगी को खत्म करना अच्छी बात नहीं है। उनको जो करना है करने दो। अगर नियति में उनका मेरे हाॅथों मर जाना ही लिखा है तो वो ज़रूर होगा।"

"मैं तो उसी दिन उस दुरात्मा को खत्म कर देना चाहता था राज।" सहसा मामा जी ने आवेश में कहा___"लेकिन तुमने मुझे रोंक लिया था वरना आज ये नौबत ही न आती।"
"हर इंसान को एक बार सुधरने का मौका देना चाहिए मामा जी।" मैने कहा___"इसके बाद भी अगर सामने वाला नहीं सुधरता तो फिर उसे सबक सिखाना या दंड देना निश्चित हो जाता है।"

"तो अब ये साबित हो गया है कि वो दुस्ट दिये गए मौके में सुधरने की बजाय फिर से उसी रास्ते पर चल पड़ा है।" मामा जी ने कहा___"इस लिए अब तुम मुझे हर्गिज़ रोंकने की कोशिश मत करना राज। मैं खुद अपने हाॅथों से उस नीच का अंत करूॅगा।"

"ठीक है नहीं रोकूॅगा आपको।" मैने गहरी साॅस लेकर कहा__"फिलहाल तो शान्त हो जाइये और नास्ता कीजिए।"
"काल तुम जाओ और उनकी हर गतिविधि पर नज़र रखना।" मैने काल से कहा।

काल, सिर को हल्का सा ख़म करके चला गया। उसके बाद हम सबने नास्ता किया। नास्ता करने के बाद मैं अपना बैग लेकर बाहर आ गया। गैराज से अपनी कार लेकर मैं रानी को लेने चला गया। रानी को उसके घर से पहले ही पिक करके मैं कालेज के निकल गया। रास्ते में रानी ने मुझे बताया कि आज सुबह ही माॅ और पापा हमें लेने आए थे। माॅ मुझसे मिली और मुझसे माफ़ी माग रही थी। उन्होने मुझे अपने सीने से लगाया और खूब रोई। उसके बाद साथ चलने को कहा तो मैने माॅ से कहा कि मैं कालेज के बाद खुद ही आ जाऊॅगी। फिर माॅ और पापा माॅ(सुमन) को लेकर चले गए और मैं आपके साथ कालेज आ गई।

रानी की इस बात से मुझे खुशी हुई। रानी का चेहरा आज काफी खिला खिला लग रहा था। आख़िर लगे क्यों न, आज माॅ ने उसे अपने सीने से लगा कर प्यार जो किया था। ख़ैर, कालेज में पहुॅच कर हम अपने दोस्तों से मिले। रानी ने सबको शाम सात बजे तक घर पहुॅचने को कहा। सभी दोस्त उसकी निमंत्रण से खुश हो गए। उसके बाद हम सब क्लास में चले गए। क्लास में एक दो पीरियड अटेन्ड करने के बाद मैं और रानी मेरे घर के लिए निकल पड़े।

घर आ कर मैने सबसे रानी को मिलवाया। सब रानी से मिल कर बेहद खुश हुए। मेरी दोनो माॅ तो रानी को अपने बीच में ही बैठा लिया था और बड़ा लाड प्यार कर रही थी उसे। वीर चाचू और मामा जी रानी को देख कर बहुत खुश हुए और उसे प्यार और दुवाएॅ दी।

"एक बेटी की कमी थी सो आज एक बेटी भी मिल गई मुझे।" मेनका माॅ ने कहा___"आज का दिन बहुत ही ज्यादा खुशी का दिन है। जैसा मैने सोचा था उससे कहीं ज्यादा प्यारी है मेरी बच्ची। किसी की नज़र न लगे।"

"आपने सही कहा दीदी।" काया माॅ ने कहा___"कितने खुशनसीब हैं हम जो एक ही जीवनकाल में इतना कुछ मिल गया हमे। इससे ज्यादा और क्या चाहिए हमे?"
"अच्छा ये बता बेटी कि ये राज तुझे ज्यादा तंग तो नहीं करता न?" मेनका माॅ ने रानी से पूछा था।

"नहीं माॅ।" रानी ने भोलेपन से कहा__"बल्कि मैं ही इन्हें तंग करती हूॅ।"
"बिलकुल ठीक करती है तू।" मेनका माॅ ने मुस्कुरा कर कहा___"ऐसे ही इसे तंग करना। ये तेरा हक़ है और अगर ये तुझे कुछ कहे तो मुझसे बताना। मैं इसकी पिटाई करूॅगी।"

"वाह क्या बात है।" मैने कहा__"बेटी मिल गई तो बेटे को पराया कर दिया। वाह माॅ बहुत खूब। मुझ मासूम पर अब यही सितम होना बाॅकी रह गया था।"
"तू चिंता मत कर राज।" काया माॅ ने मुझे अपने पास बैठाते हुए कहा___"मैं तो तेरे साथ ही हूॅ। मैं तुझे कभी पराया नहीं करूॅगी।"

"ओह माॅ बस आप ही का सहारा है अब।" मैने काया माॅ से छुपकते हुए कहा__"एक माॅ ने तो बेटी के मिलते ही पल्ला बदल लिया।"
"ऐसा कुछ नहीं है भइया।" रानी ने कहा__"माॅ तो आपसे ही ज्यादा प्यार करती हैं। पर मैं छोटी हूॅ न इस लिए मुझे थोड़ा आपसे ज्यादा इस वक्त लाड प्यार मिल रहा है।"

"देख ले तुझसे ज्यादा तो मेरी बेटी समझदार है।" मेनका माॅ ने कहा__"मेरी बेटी से कुछ बुद्धि ले ले अब।"
"हाॅ अब तो इससे ट्यूशन लेना ही पड़ेगा मुझे।" मैने कहा___"तो बताइये कब आऊॅ ट्यूशन पढ़ने?"

"ओए अब बस भी करो।" वीर चाचू ने कहा___"बातों के चक्कर में ये भी भूल गए कि रानी बेटी पहली बार गर आई है इस लिए उसे कुछ खिलाओ पिलाओ।"
"अरे हाॅ ये तो हम भूल ही गईं।" काया माॅ ने कहा___"रुको अभी अपनी बेटी के लिए कुछ स्पेशल लेकर आती हूॅ।"

काया माॅ ने रानी को प्यार से खूब आव भगत की और खिलाया पिलाया। ये अलग बात है कि रानी मना करते करते थक गई थी। उसके बाद रानी ने सबको शाम की पार्टी में आने के लिए कहा। कुछ देर और बैठने के बाद रानी घर जाने के लिए कहने लगी तो मैं उसे कार से घर के कुछ पास तक भेज आया। रानी को भेजने के बाद मैं वापस घर आ गया।

घर आया तो पता चला कि सब बाहर जा रहे हैं कुछ सामान खरीदने के लिए। मुझे भी जाने को कहा सबने मगर मैं न गया।
____________________________

वहीं दूसरी तरफ!
वैम्पायर्स के भूतपूर्व किंग सम्राट और वेयरवोल्फ किंग अनंत एक बार फिर उस गुफा के अंदर आमने सामने बैठे हुए थे। लेकिन उन सबके बीच जो एक चेहरा दिख रहा था वो चेहरा नितान्त अजनबी था। उसका पहनावा और वेशभूषा सब अलग थी।

"मित्र इनसे मिलो।" सम्राट अनंत कह रहा था___"ये हैं मोनिका। इनके द्वारा आपका मकसद ज़रूर पूरा हो जाएगा।"
"ये हैं कौन और आप इन्हें कहाॅ से लेकर आए हैं मित्र?" विराट ने न समझने वाले भाव से कहा___"और भला इनके द्वारा हमारा मकसद कैसे पूरा हो जाएगा?"

"आप इन्हें साधारण न समझें मित्र।" अनंत ने कहा___"इनके पास काफी अद्भुत शक्तियाॅ हैं। ये किसी भी ब्यक्ति का रूप बदल सकती हैं।"
"रूप तो हम और आप भी बदल सकते हैं मित्र।" विराट ने कहा___"इसमें कौन सी बड़ी बात है?"

"बड़ी बात ये है मित्र हमारे रूप बदलने से हमारी असलियत उस बला के सामने आ जाती है जिस बला को उस बालक ने खुद बनाया है उन चारो की सुरक्षा के लिए।" अनंत ने कहा___"हाॅ मित्र। अच्छा हुआ हम उस बालक के पास नहीं गए वर्ना उस बालक के बनाए हुए काल की नज़र में आ जाते। मोनिका ने ही बताया कि उस बालक के सभी चाहने वालों की देख रेख और सुरक्षा काल करता है।"

"अब ये काल कौन है मित्र?" विराट की ऑखें फैल गई___"और ये कहाॅ से आ गया?"
"काल रूपी बला को उस बालक ने ही बनाया है मित्र।" अनंत ने कहा___"जिसके बारे में अभी तक हम जानते ही नहीं थे। अगर हम वहाॅ जाते तो ज़रूर काल के द्वारा पकड़े जाते।"

"ये तो सचमुच हैरातअंगेज बात है महाराज अनंत।" विराट ने कहा___"तो अब हम क्या करेंगे?"
"अब हम कुछ नहीं करेंगे मित्र।" अनंत ने कहा___"बल्कि अब जो कुछ करना है वो मोनिका करेगी। ये हमारी ही दुनियाॅ की है मगर हम सबसे अलग भी है। इनके पिता हमारे राजगुरू हुआ करते थे। उन्होंने अपनी मौत से पहले अपनी बेटी को अपनी समस्त शक्तियाॅ दे दी थी। मगर उनकी ये शक्तियाॅ तभी काम करेंगी जब ये उन शक्तियों को सम्हालने लायक हो जाती। इसके लिए इन्हें सौ वर्ष तक कठोर तप करना था। हम पिछली बार जब आपसे मिल कर गए थे तभी इनका सौ वर्षों का तप पूरा हुआ था और ये हमारे दूसरे दिन हमारे राजमहल में आई थी। अब ये हर तरह से उस बालक से टकराने के लिए सक्षम हैं।"

"ओह तो ये बात है।" विराट के चेहरे पर खुशी और उम्मीद की किरण नज़र आई, बोला___"फिर तो बहुत अच्छी बात है मित्र। इनसे कहो कि ये उस बालक को हमारे क़दमों में लाकर लेटा दें। हम उस बालक को अपनी उगलियों पर नचाएॅगे।"

"ज़रूर ऐसा ही होगा मित्र।" अनंत ने मुस्कुरा कर कहा___"ये वहाॅ जाकर उस बालक को पकड़ कर आपके पास लाएगी।"
"उस बालक को नहीं मित्र।" विराट के चेहरे पर कठोरता आ गई___"बल्कि उन चारों को यहाॅ लाना है। वो बालक तो खुद ही यहाॅ आएगा उनके लिए।"

"ऐसा ही होगा महाराज।" मोनिका ने अजीब भाव से कहा___"आप बिलकुल निश्चिंत रहें। बहुत जल्द वो चारो आपके सामने बंधनों में जकड़े हुए नज़र आएॅगे।"
"ठीक है हम उस पल का बेसब्री से इन्तज़ार करेंगे।" विराट ने कहा___"और आपका बहुत बहुत धन्यवाद महाराज अनंत आपकी मित्रता पूज्यनीय है। हम हमेशा आपके ऋणी रहेंगे।"

"ऐसा न कहें मित्र।" अनंत ने कहा__"हम तो बस अपनी मित्रता का फर्ज़ निभा रहे हैं।"
"अगर मोनिका ने ये सब कर दिया तो हम भी अपना वादा निभाएॅगे मित्र।" विराट ने कहा___"हमें याद है। आपके बेटे जयंत के साथ हम अपनी बड़ी बेटी मेनका की शादी करेंगे।"

"मोनिका अपने काम में ज़रूर सफल होगी मित्र।" अनंत ने कहा___"हमें इनके ऊपर पूर्ण विश्वास है।"
"तो ये काम कब शुरू करना है?" विराट ने पूछा___"क्योंकि अब तो हमसे पल भर का भी इन्तज़ार नहीं होगा। दूसरी बात ये भी है कि हमे हमारा राज्य भी वापस चाहिए।"

"तो फिर आप ही बताइये महाराज।" मोनिका ने कहा___"सबसे पहले कौन सा काम करूॅ मैं? वैसे सबसे पहले यही करना चाहिए कि राज्य पर अपना अधिकार पुनः स्थापित किया जाय। सोलेमान की शक्तियों का मैने मुआयना कर लिया है वो मेरी शक्तियों के सामने कुछ भी नहीं है।"

"मोनिका बिलकुल सही कह रही है महाराज विराट।" अनंत ने कहा___"सबसे पहले राज्य पर आपका अधिकार होना चाहिए। उसके बाद ही दूसरे काम को किया जाए। आख़िर कब तक आप सोलेमान के डर से यहाॅ गुफा में छुपे बैठे रहेंगे?"

"आप सही कह रहे हैं मित्र।" विराट ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"हमें सबसे पहले अपने राज्य को ही वापस हासिल करना चाहिए। तो फिर ठीक है, हम सबसे पहले सोलेमान से अपना राज्य ही हासिल करेंगे।"

"ठीक है महाराज।" मोनिका ने कहा__"मुझे आज्ञा दीजिए। मैं आपसे परसों मिलूॅगी। क्योंकि अभी मुझे कुछ ज़रूरी काम करना है। तब तक आप भी तैयारियाॅ कर लीजिएगा।"

"ठीक है हम इन्तज़ार करेंगे तुम्हारा।" विराट ने कहा।
विराट की बात सुन कर मोनिका पल भर में अपनी जगह से गायब हो गई। ये देख कर विराट हैरान भी हुआ और खुश भी।

"ये ज़रूर हमारी उम्मीदों को पूरा करेगी महाराज अनंत।" विराट ने कहा___"और ये सब आपकी वजह से हुआ है। आप सच में हमारे सबसे अच्छे मित्र बन गए हैं।"

कुद देर और ऐसी ही उनके बीच बातें होती रहीं फिर सम्राट अनंत गुफा से अपने राज्य की तरफ चला गया। जबकि विराज आने वाले समय के सुनहरे ख़यालों में खोने सा लगा था।



दोस्तो, अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,,

मुझे पता है आप बड़ी शिद्दत से अपडेट का इन्तज़ार कर रहे हैं। ये अपडेट मैने समय निकाल कर दो दिन में थोड़ा थोड़ा करके लिखा है। हो सकता है ये अपडेट आपकी उम्मीदों पर खरा न उतरे। क्योंकि आप सबने तो कुछ और ही उम्मीद कर रखी है। लेकिन धैर्य रखें....वो समय भी आएगा दोस्तो,,,,,,
मोनिका भी गलत ही है या ये विराट और अनंत का भेद जानने के लिए ये सब कर रही है। कहीं ये सचमुच तो किंग सोलोमन को हानि तो नही पहुंचने वाली।
 

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)

""अपडेट"" ( 25 )


अब तक,,,,,,,,

"आप सही कह रहे हैं मित्र।" विराट ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"हमें सबसे पहले अपने राज्य को ही वापस हासिल करना चाहिए। तो फिर ठीक है, हम सबसे पहले सोलेमान से अपना राज्य ही हासिल करेंगे।"

"ठीक है महाराज।" मोनिका ने कहा__"मुझे आज्ञा दीजिए। मैं आपसे परसों मिलूॅगी। क्योंकि अभी मुझे कुछ ज़रूरी काम करना है। तब तक आप भी तैयारियाॅ कर लीजिएगा।"

"ठीक है हम इन्तज़ार करेंगे तुम्हारा।" विराट ने कहा।
विराट की बात सुन कर मोनिका पल भर में अपनी जगह से गायब हो गई। ये देख कर विराट हैरान भी हुआ और खुश भी।

"ये ज़रूर हमारी उम्मीदों को पूरा करेगी महाराज अनंत।" विराट ने कहा___"और ये सब आपकी वजह से हुआ है। आप सच में हमारे सबसे अच्छे मित्र बन गए हैं।"

कुद देर और ऐसी ही उनके बीच बातें होती रहीं फिर सम्राट अनंत गुफा से अपने राज्य की तरफ चला गया। जबकि विराट आने वाले समय के सुनहरे ख़यालों में खोने सा लगा था।
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अब आगे,,,,,,,,

उधर अशोक श्रीवास्तव की कोठी आज किसी नई नवेली दुल्हन की तरह सजी थी। सारा दिन डेकोरेशन वाले इसी काम में लगे रहे थे। अशोक का आदेश था कि कहीं भी किसी भी चीज़ की कमी न रहने पाए। आज बड़ी मुद्दतों के बाद इस घर में कोई जश्न कोई खुशियाॅ मनाई जा रही थी।

अशोक की पहली पत्नी यानी रेखा खुद भी आज दुल्हन की तरह सजी हुई थी। उसके नूर टपकते चेहरे पर इस वक्त भले ही सबको खुशियाॅ नज़र आ रही थी मगर कोई नहीं ताड़ सकता था कि उस महज़बीं के खूबसूरत से चेहरे पर भी एक दर्द की बहुत ही हल्की शिकन थी। जो इस बात की गवाह थी कि वो इस खुशी के मौके पर भी पूरी तरह खुश नहीं थी। सुमन ने अपने हाॅथों से उसका बड़े प्यार से श्रंगार किया था। अशोक तो अपनी पत्नी की खूबसूरती को देख कर ढगा सा खड़ा रह गया था। उसे अपने आप पर गर्व हो रहा था कि रेखा जैसी हुस्न की मल्लिका उसकी अपनी पत्नी थी। वह अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझ रहा था।

मगर उसे भी नहीं पता था कि थोड़ी देर पहले उसकी इस पत्नी ने बंद कमरे में क्या किया था? दरअसल सुमन जब रेखा को तैयार कर चुकी तो रेखा ने कहा कि तुम सब बाहर जाओ मैं कुछ देर में ज़रूरी काम करके आती हूॅ। सुमन उसकी इस बात से जाने क्या सोच कर मुस्कुराई और फिर सुमन के साथ साथ जो एक दो औरतें और थी वो सब कमरे से बाहर चली गई थी।

उन सबके जाते ही रेखा ने अपने कमरे का दरवाजा बंद किया और भागते हुए कमरे में रखी आलमारी के पास पहुॅची। आलमारी को खोल कर उसमे से उसने एक एलबम निकाला और उसे लेकर बेड पर आ गई। एलबम को खोल कर उसने पहले ही पेज पर अपने बेटे राज की तस्वीर को देखा। पलक झपकते ही उसकी ऑखों से ऑसू छलक पड़े। बेटे की तस्वीर पर हाॅथ फेरते हुए उसने उस तस्वीर को अपने सीने से लगा लिया और फिर फूट फूट कर रो पड़ी।

"ये मुझसे नहीं होगा।" रेखा रोते बिलखते हुए कहने लगी___"नहीं होगा मुझसे। तेरे बिना ये खुशियाॅ मैं नहीं मना सकती मेरे बेटे। मेरी सारी खुशी तो सिर्फ तू है। तू मुझे मिल जा तो मैं समझूॅगी कि मुझे संसार की हर दौलत हर खुशी मिल गई। मगर तेरे बिना तो मेरे लिए सब कुछ ज़हर के समान है बेटे। मुझसे ये सब नहीं होगा। यहाॅ की हर चीज़ में मुझे तेरी कमी नज़र आती है। मेरा दिल मेरी ममता सिर्फ तुझे चाहती है। तू अपनी इस दुखियारी माॅ के पास आजा मेरे लाल। हे भगवान! मेरे बेटे को मेरे पास भेज दे, मैं तुझसे अपने बेटे की भीख माॅगती हूॅ। बदले में तू चाहे तो कुछ भी माग ले मुझसे मगर मेरे लाल को मुझसे मिला दे ईश्वर।"

जाने क्या क्या कहती हुई रेखा अपने बेटे की तस्वीर को सीने से लगाए रोये जा रही थी। फिर सहसा जैसे उसे कुछ याद आया। उसने जल्दी से उस तस्वीर को अपने सीने से अलग किया और अपने सारी के ऑचल से उस तस्वीर को अच्छे से साफ किया। फिर वह बेड से उठ कर पुनः आलमारी के पास गई। कपड़ों के बीच से एक थैला निकाल कर वापस बेड पर आ गई।

थैले से उसने एक पाॅलिथिन निकाली। उस पाॅलिथिन में पिंक कलर का शूट था। शूट बिलकुल किसी पाॅच साल के बच्चे की साइज़ का था। उस शूट को खोल कर रेखा ने उस तस्वीर की तरफ ऑसू भरी ऑखों से देख कर कहा___"ये देख मेरे लाल ये शूट भी बिलकुल वैसा ही है जैसा इस वक्त तूने पहन रखा है। बड़ी मुश्किल से बाज़ार में मिला है मुझे। मैने भी सोच लिया था कि मेरा बेटा पहनेगा तो सिर्फ वैसा ही शूट इस लिए कल मैने शहर की सारी दुकाने छान मारी थी और फिर ये शूट मिल ही गया। चल अब बता मुझे कि तुझे पसंद आया कि नहीं ये शूट?"

रेखा इस उम्मीद में बेटे की तस्वीर की तरफ देखती रही कि तस्वीर में बैठा उसका बेटा उसके सवाल का जवाब देगा मगर जब काफी देर तक भी उस तस्वीर से कोई आवाज़ न आई तो रेखा की ऑखों से ऑसू बह चले।

"तू न बहुत बिगड़ गया है आज कल।" रेखा ने अपने ऑसू पोंछते हुए मगर तुनक मिजाज़ के से भाव में कहा___"अपनी माॅ की किसी भी बात का जवाब नहीं देता तू। इतना ज्यादा मिजाज़ अच्छा नहीं होता। पर तू तो मिजाज़ी है ना, मेरा बेटा जो ठहरा।"

रेखा ने अपनी भावनाओं को इन बातों से कुछ हल्का किया और फिर उस तस्वीर की तरफ देख कर बोली___"मैने तेरे लिए शूट निकाल कर रख दिया है। अगर दिल करे तो पहन लेना और जल्दी से बाहर आ जाना। अगर तू मिजाज़ी है तो मैं भी हूॅ। तेरी माॅ हूॅ ये याद रखना।"

रेखा के होठों पर फीकी सी मुस्कान उभरी और फिर वो उस तस्वीर को और उस शूट को बेड पर ही छोंड़ कर बाथरूम मे चली गई। थोड़ी देर बाद वह बाहर निकली और फिर आईने के सामने आकर उसने खुद के हुलिए को दुरुस्त किया। उसके बाद वह एक नज़र तस्वीर और शूट की तरफ देखते हुए कमरे से बाहर चली गई।


बाहर हर तरफ आज अलग ही रौनक थी। अशोक के कुछ खास जान पहचान वाले और कुछ उसकी कंपनी के एम्प्लाई भी आए हुए थे। कोठी तो दुल्हन की तरह सजी ही थी बाहर का लम्बा चौड़ा बड़ा सा लान भी बड़े करीने से सजा हुआ था।

एक तरफ म्यूजिक और डीजे चल रहा था। जहाॅ पर आए हुए कुछ मेहमानों के बच्चे नाच रहे थे। लाॅन में ही एक बड़ा सा मगर खूबसूरत स्टेज बनाया गया था। उसी में केक काटने का प्रोग्राम था।

अपनी माॅ को दुल्हन की तरह सजी देख रानी बहुत खुश हो रही थी। वो सीधा जाकर अपनी माॅ के पास पहुॅच गई थी। रेखा ने उसे अपने से छुपका लिया। जाने क्या सोच कर उसकी ऑखें नम हो गई लेकिन उसने खुद को सम्हाला और रानी के सुंदर से माथे पर प्यार से चूम लिया। सुमन पास में ही थी, वो खुद भी बहुत खूबसूरत लग रही थी किन्तु उसे सादगी में रहना पसंद था।

शाम के लगभग सात बज रहे थे। रानी बार बार लाॅन के बाहर लोहे वाले गेट की तरफ देख रही थी। उसके चेहरे पर बेचैनी साफ दिख रही थी। सुमन उसकी इस बेचैनी को भाॅफ चुकी थी। किन्तु उसे पता था कि रानी किसके आने इन्तज़ार कर रही है।

बड़े बड़े बिजनेसमैन्स की बीवियाॅ भी थी जो अपने पतियों के साथ आई हुईं थी। इस वक्त सब रेखा के पास ही वहीं लान में रखे सोफों पर बैठी गप शप कर रही थी। लाॅन के दूसरे छोर पर सबके खाने पीने का भी इन्तजाम किया गया था।

अशोक अपने उन खास जान पहचान वालों के पास ही था जिनसे उसके गहरे ताल्लुकात थे। वो सब अशोक को इस बात के लिए छेंड़ रहे थे कि अशोक दो दो बीवियों का पति था। उनका कहना था कि उनसे अपनी एक बीवी सम्हाली नहीं जाती और वो दो बीवियों के बीच अब तक सही सलामत कैसे बचा हुआ है? अब भला वो बेचारा क्या बताता कि उसके पास कहने के लिए दो बीवियाॅ थी मगर एक अरसे से वो उनके साथ एक ही बेड पर सोया नहीं था।

उधर रानी की बेचैनी पल पल बढ़ती जा रही थी। उसके काॅलेज के कोई भी दोस्त अब तक नहीं आए थे। जबकि उसने उन सबसे साफ शब्दों में कहा था कि सात बजे तक हर हाल में पहुॅच जाना।

"बेटा तुम्हारे दोस्तों में से तो अब तक कोई नहीं आया?" सहसा सुमन ने रानी से धीरे स्वर में कहा___"तुमने उन सबको समय तो ठीक से बताया था न?"
"हाॅ माॅ मैने उन सबको कहा था कि वो सब सात बजे तक आ जाएॅ यहाॅ।" रानी ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"पर सात तो बज चुके हैं मगर वो लोग अब तक नहीं आए। अभी थोड़ी ही देर माॅ केक भी काटने के लिए स्टेज पर आ जाएॅगी।"

"और वो तेरा दोस्त जिसका नाम भी तेरे भाई राज जैसा है वो भी नहीं आया अब तक।" सुमन ने कहा___"तूने उसे ठीक से कहा तो था न?"
"हाॅ माॅ उसने बोला था कि वो अपनी फैमिली के साथ टाइम से पहुॅच जाएगा।" रानी ने कहा___"शायद वो सब आते ही होंगे।"

अभी सुमन कुछ बोलने ही वाली थी कि सामने गेट से अंदर दाखिल होते हुए रानी के सारे दोस्त नज़र आए। ये देख कर रानी के चेहरे पर थोड़ी राहत और खुशी के भाव पैदा हुए। मगर उसको इन्तज़ार तो अपने भाई के आने का था। ये सारा ताम झाम तो उसी के लिए था। माॅ का जन्मदिन तो था ही साथ में माॅ की उनके जन्मदिन पर उनके बेटे को तोहफे के रूप में पेश करना था।

कुछ ही पलों में रानी के दोस्त जिनमें लड़के और लड़कियाॅ दोनो थे वो सब रानी के पास आ गए। सबने एक दूसरे को हैलो हाय किया। रानी ने उन सबको बताया कि सुमन उसकी माॅ है तो उन सबने सुमन से नमस्ते किया। जवाब में सुमन ने भी उसका जवाब मुस्कुरा कर दिया।

"अच्छा बेटा तुम अपने दोस्तों को कंपनी दो मैं ज़रा दीदी के पास जा रही हूॅ।" सुमन ने कहा।
"ओके माॅ।" रानी ने कहा।

सुमन चली गई तो ये सब आपस में बातें करने लगे।
"राज अभी आया नहीं क्या?" पंकज ने रानी से पूछा था।
"आते ही होंगे।" रानी ने कहा___"शायद रास्ते में होंगे।"
"वैसे रानी कितनी वण्डरफुल बात है न कि अपनी माॅ के जन्मदिन पर वर्षों का खोया हुआ बेटा खुद को तोहफे के रूप में आकर अपनी माॅ को मिल जाएगा।" दीक्षा ने कहा___"अमेज़िंग यार रियली।"

"ये तुमने सही कहा दीक्षा।" सुधीर ने कहा___"ये अमेज़िंग तो है ही लेकिन, उससे भी बड़ी बात ये है कि वर्षों से अंदर ही अंदर तिल तिल कर मरती हुई माॅ को उसका बेटा मिल जाएगा और उसकी दुखी ममता को चैन मिल जाएगा।"

"यू आर राइट भाई।" पंकज बोला__"लेकिन जिसका सबको इन्तज़ार है वो महाशय हैं कहाॅ? अभी तक आए क्यों नहीं यार?"
"बंदा हाज़िर है भाई।" सहसा पंकज के पीछे से आते हुए मैने कहा___"इतनी मोहब्बत से कोई बुलाए तो तत्काल हाज़िर होना लाज़मी है न।"

मेरी आवाज़ सुन कर सब के सब पीछे पलटे और मुझे देख कर सब खुश हो गए। मगर मेरे साथ आए दो मर्द और दो औरतों को देख कर उनके चेहरों पर सवालिया भाव उभरे। मैने उन सबको बताया कि वो सब कौन हैं। मेरे बताने पर सबने मेरी दोनो माॅ और मामा, चाचू को नमस्ते किया।

तभी हम सबके कानों में एनाउंसमेन्ट की आवाज़ पड़ी। एनाउंसमेन्ट की आवाज़ स्टेज से आ रही थी। हम सब उस तरफ देखने लगे। मैने रानी को इशारा किया तो वो मेरी दोनो माॅ को अपने साथ ले गई।

हम सब दोस्त भी स्टेज की तरफ चल दिये। इधर मेरे दिल की धड़कन अनायास ही बढ़ चली थी। मुझे समझ न आया कि अपने अंदर के जज़्बातों को कैसे सम्हालूॅ?

उधर स्टेज के पास पहुॅच कर हम सभी दोस्त कुछ दूरी पर रुक गए। मैं सामने न जाकर कुछ लोगों के पीछे इस तरह खड़ा हो गया कि स्टेज पर से किसी को भी मेरा चेहरा स्पष्ट रूप से न दिखे। मैने देखा स्टेज पर मेरे पिता, उनके साथ उनके कुछ खास दोस्त तथा मेरी दो माॅ(रेखा,सुमन) एवं उनके साथ कुछ औरतें भी मौजूद थीं। तभी मैने देखा कि रानी मेरी दोनो माॅ (मेनका,काया) को लेकर स्टेज पर पहुॅच गई।

मैने एक बात ग़ौर की कि स्टेज में केक के पास खड़ी मेरी माॅ(रेखा) अजीब सी ब्याकुलता से स्टेज के सामने की तरफ हर चेहरे को देख रही थी। उनकी ऑखों की थिरकन से ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो अपने सामने के जनसमूह पर किसी अपने को खोज रही हैं। माॅ का हृदय था न, शायद उन्हें आभास हो गया होगा कि उनके सामने दिख रहे इस जनसमूह में कहीं उनका बेटा मौजूद है।

ख़ैर, उधर पिता जी ने सबको संबोधित करने के बाद केक काटने वाले प्रोग्राम को आगे बढ़ाने के लिए माॅ के पास जाने लगे। तभी रानी पापा के पास पहुॅची और उनसे कुछ कहा तो पापा ने उनके सिर पर प्यार से हाॅथ फेरा फिर माइक को मुह के पास लाकर कहा___"अभी अभी मेरी बेटी ने कहा कि आप सबके साथ साथ मैं इसके सभी दोस्तों को भी इस स्टेज पर बुला लूॅ। उसके बाद ही केक काटा जाए। इस लिए आप सब आ जाएॅ यहाॅ पर प्लीज़।"

"चलो भाई स्टेज पर चलते हैं।" सुधीर ने मेरे कंधे पर हाॅथ का दबाव देते हुए कहा__"अब सामने आने का समय हो गया है।"
"तुम चलो मैं आता हूॅ।" मैने सुधीर से कहा तो वो मेरी तरफ अजीब भाव से देखने लगा तो मैने कहा___"क्या हुआ चलो न।"

सुधीर को कुछ समझ न आया लेकिन इतना ज़रूर हुआ कि वो पलट कर स्टेज की तरफ जाने लगा। उसके जाते ही मैंने अपनी ऑखें बंद कर काल को इशारा किया। काल की आवाज़ मुझे मन में सुनाई दी। वो कह रहा था कि ठीक है मैं पहुॅच जाऊॅगा।

उधर स्टेज पर केक काटने की तैयारी हो चुकी थी। मेरी माॅ(रेखा) खूबसूरती से सजे टेबल पर रखे एक बड़े से केक के पास खड़ी थी। उनके बगल से रानी, सुमन माॅ, पापा, और फिर मेरी दूसरी माॅ(मेनका,काया)। बाॅकी सब लोग चारो तरफ से घेरा बना कर खड़े थे। टेबल पर बड़ा सा केक रखा हुआ था जिसके चारो तरफ कैण्डल लगे हुए थे।

माॅ अभी भी बार बार सबकी तरफ देख रही थी। उनके जैसा ही हाल रानी का और मेरी दोनो माॅ(मेनका,काया) का भी था। तभी पापा ने माॅ से केक काटने के लिए कहा। सुमन माॅ ने उससे पहले सारी कैण्डल्स को जला दिया था। केक के पास ही एक प्लास्टिक का चाकू रखा हुआ था।

माॅ ने एक बार फिर से चारो तरफ दिख रहे चेहरों की तरफ देखा। इस बार उनकी ऑखों में नमी साफ दिखी मुझे। ख़ैर, पापा के कहने पर माॅ ने बुझे मन से प्लास्टिक के उस चाकू को पकड़ा और केक के पास चारो तरफ जलती हुई कैण्डल्स को फूॅक मार कर बुझाने के लिए झुकी ही थी कि सहसा वो चौंक पड़ी। इतना ही नहीं वो एकदम से स्टैचू में तब्दील होती चली गईं। ऑखों में पहले तो आश्चर्य के भाव उभरे और फिर एकाएक ही उनके चेहरे के भाव बड़ी तेज़ी से बदले। कुछ कहने के लिए उनके गुलाबी होंठ थरथराए मगर कोई मुख से कोई लफ्ज़ न निकल सका।

उनकी ये हालत देख कर चारो तरफ खड़े सब लोग भौचक्के से रह गए। किसी को समझ न आया कि इन्हें अचानक क्या हो गया है? सबसे पहले रानी ने माॅ की नज़रों का पीछा किया और जो उसे नज़र आया उसे देख कर वो भी हैरान रह गई। इससे पहले कि कोई कुछ कह पाता मेरी माॅ के मुख से चीख निकल गई।

"मेरा बेऽऽटाऽऽऽ....।" थरथरा रहे होठों के बीच से देरी से ही सही मगर ये शब्द निकल ही गए।

माॅ के इन शब्दों को सुन कर सब बुरी तरह चौंके। सबने देखा कि मेरी माॅ कैसे एकदम से पागल सी नज़र आने लगी थी। वो अपने सामने टेबल के उस पार खड़े राज को देखे जा रही थी। उस राज को जो इस वक्त बिलकुल पाॅच साल के बच्चे के रूप में था और टेबल के उस पार खड़ा था। उसके बदन पर इस वक्त वही कपड़े थे जिसे माॅ कमरे में राज को पहनने का कह कर आई थी। मैंने काल को इसी बात का इशारा किया था कि वो माॅ के सामने उनका पाॅच साल का बेटा बनकर और उन्हीं कपड़ों को पहन कर जाए जिन कपड़ों को वो कमरे में अपने बेटे को पहन कर आने के लिए कह कर आई थी।

रेखा माॅ की अचानक बदली इस हालत से हर कोई हैरान था। जिस जगह पर उनकी नज़रें अपलक टिकी हुई थी उस जगह किसी को कुछ नहीं दिख रहा था। जबकि रेखा माॅ उसी जगह खड़े अपने पाॅच साल के बेटे को देख रही थी। वो उसे देख कर मुस्कुरा रहा था। रानी खुद भी हैरान थी कि ऐसा कैसे हो सकता है? सुमन माॅ या बाॅकी मेरी दोनो माॅ उनको भी कुछ नहीं दिख रहा था। मैं सिर्फ अपनी माॅ और बहन को दिखाई दे रहा था।

रेखा माॅ बिजली की सी तेजी से अपनी जगह से भागी और टेबल के उस पार खड़े अपने बेटे के पास पहुॅच गई। चारो तरफ खड़े लोग उनके इस तरह भागने से छितर बितर हो गए थे। हर कोई हैरान था ये देख कर।

उधर मेरी माॅ मेरे पास आते ही झपट कर मुझे अपने सीने से लगा कर फूट फूट कर रोने लगी। वो मुझे कस कर अपने कलेजे से लगा चुकी थी। जैसे डर हो कि उनके छोंड़ते ही मैं फिर से कहीं खो जाऊॅगा। वो कुछ बोल नहीं पा रही थी बस रोये जा रही थी। मैं भी बच्चे के रूप में अपनी माॅ के हृदय से लगा असीम तृप्ति का अनुभव कर रहा था।

"कहाॅ चला गया था तू मुझे छोंड़ कर?" फिर माॅ ने मुझे सीने से लगाए हुए ही बिलखते हुए कहा___"तुझे पता भी है कि तेरे जाने के बाद से अब तक मैं कितनी बार मर चुकी हूॅ। तुझे अपनी माॅ का ज़रा सा भी ख़याल नहीं आया कि तेरे बिना कैसे मर मर के जीती रही हूॅ मैं?"

रानी को जैसे होश आया, वो अपनी जगह से हिली और माॅ के पास पहुॅची। उसने माॅ के कंधे पर हाॅथ रखा तो माॅ ने सिर को पीछे की तरफ करके रानी को देखा।

"बेऽऽटीऽऽ।" माॅ ने उसे भी एक हाथ से पकड़ कर खींचा और फिर उसे भी छुपका लिया, फिर रोते हुए बोली____"आज मुझे मेरे दोनो बच्चे मिल गए। अब मैं तुम दोनो को कहीं नहीं जाने दूॅगी। हमेशा अपने सीने से लगाए रखूॅगी।"

रानी कुछ बोल न सकी बस ऑखों से उसके ऑसू बहते रहे। वक्त जैसे ठहर गया था। चारो तरफ खड़े लोग जैसे पुतले बन गए थे। उधर मेरी दोनो माॅ और मामा चाचू हैरान थे कि मैं उन्हें दिख क्यों नहीं रहा? वो आस पास भी देख रहे थे मगर मैं कहीं नहीं था।

"ये क्या पागलपन है रेखा?" तभी वहाॅ छाए सन्नाटे में पापा की आवाज़ गूॅजी जो माॅ के पास आकर ज़रा बदहवास से बोल पड़े थे।
माॅ ने पलट कर देखा उनकी तरफ। उफ्फ माॅ का ऑसुओं से तर चेहरा देख कर उनका कलेजा हिल गया।

"ये तुम क्या कर रही हो रेखा?" फिर पापा ने दुखी भाव से कहा___"फिर से वही सब? तुमने मुझसे वादा किया था न कि अब से तुम वैसा हाल नहीं बनाओगी खुद का। फिर क्यों रेखा, तुम फिर से ऐसा क्यों करने लगी?"

"अरे ये तुम क्या कह रहे हो अशोक?" माॅ ने कहा___"देख नहीं रहे मैं अपने बेटे से मिल रही हूॅ। देख लो मेरा बेटा आ गया है मेरे पास। मैं कहती थी न कि मेरा बेटा अपनी माॅ के पास ज़रूर आएगा। देख लो अशोक, हमारा बेटा आ गया है। आज मैं बहुत खुश हूॅ। अपने बेटे के आने पर पूरे शहर को मिठाईयाॅ बाटूॅगी मैं। देखो न अशोक, हमारा बेटा बिलकुल वैसा ही है जैसा आज से पहले तब था जब ये मुझे छोंड़ कर गया था।"

"उफ्फ रेखा, होश में आओ प्लीज़।" पापा का जी चाहा कि वो अपने बाल नोंचने लगें, मगर खुद को सम्हालते हुए बोले___"देखो रेखा। यहाॅ सबके सामने ये तमाशा मत करो। सब क्या सोचेंगे हमारे बारे में?"

"तुम्हारा दिमाग़ ख़राब हो गया है क्या अशोक?" माॅ के हलक से गुर्राहट निकली, बोली___"तुम्हें दिख नहीं रहा कि मैं अपने दोनो बच्चों को प्यार से गले लगाए हुए हूॅ। मेरा बेटा राज आ गया है और मेरी बेटी रानी भी आ गई है। देखो मेरा बेटा कैसे मेरे सीने से लगा हुआ है?"

"कहाॅ है तुम्हारा बेटा रेखा?" पापा ने चीखते हुए कहा___"मुझे तो कहीं नहीं दिख रहा। प्लीज़ रेखा, ये पागलपन बंद कर दो और आओ केक काटो। देखो सब लोग यहाॅ पर तुम्हारे केक काटने का इन्तज़ार कर रहे हैं।"

पापा की बात पर माॅ ने उन्हें अजीब भाव से देखा। फिर अपने दाहिने तरफ छुपकाए मेरी तरफ देखा तो चौंक पड़ी। अब वहाॅ पर मैं नहीं था। ये देख कर माॅ की हालत फिर से खराब होने लगी।

"नहींऽऽऽऽ।" माॅ के हलक से चीख़ निकल गई, बोली___"तू मुझे फिर से छोंड़ कर नहीं जा सकता। अगर तू फिर से चला गया तो मैं मर जाऊॅगी मेरे लाल। वापस आ जा, अपनी माॅ के पास वापस आजा मेरे बेटे।"

रानी माॅ से अलग होकर उन्हें सम्हालने लगी। तभी माॅ की नज़र मुझ पर पड़ी। वैसे ही पिंक शूट पहने मैं स्टेज के ऊपर आ रहा था। किन्तु इस वक्त मैं अब कोई पाॅच साल का बच्चा नहीं दिख रहा था बल्कि उन्नीस साल का नवजवान दिख रहा था। मैं चलते हुए आया और अपने दोस्त सुधीर के पास खड़ा हो गया।

माॅ मुझे एकटक देखे जा रही थी। मैं भी उन्हें देख रहा था। रानी की नज़र भी मुझ पर पड़ चुकी थी। किन्तु रानी के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो दुखी तो है माॅ की हालत देख कर मगर उसे थोड़ी देर पहले के दृष्य ने विष्मय में डाला हुआ था।

उधर एकटक मेरी तरफ देखती हुई माॅ अपनी जगह से उठी और धीरे धीरे चलते हुए मेरी तरफ आने लगी। ये देख कर मेरे दिल की धड़कने मुझे रुकती हुई सी महसूस हुई। मुझे ऐसा लगने लगा जैसे हर तरफ सन्नाटा फैल गया हो। हर कोई माॅ को मूर्खों की तरह देखे जा रहा था। मेरी तरफ बढ़ती हुई माॅ सहसा रुक गईं और पलट कर रानी की तरफ देखा।

"बेटी, ये कौन है?" माॅ ने मेरी तरफ उॅगली का इशारा करते हुए पूछा था।
"म माॅ ये..... ।" रानी ने कहते हुए मेरी तरफ देखी तो मैने न में ईशारा किया उसे। तो रानी बोली___"ये मेरे कालेज के फ्रैण्ड्स हैं सब।"

रानी की बात सुन कर माॅ ने रानी को अजीब भाव से देखा। तभी रानी के पास सुमन माॅ भी आ गई। उन्होंने रानी से ऑखों ही ऑखों से कुछ कहा तो रानी ने पलकें झपका दी। सुमन माॅ मेरी तरफ देखने लगी। मैने उनसे अपनी नज़रें हटा ली।

तभी पापा माॅ के पास आए और बोले___"अब अगर पागलपन उतर गया हो तो केक भी काट दो रेखा। इन सब लोगों ने बहुत तमाशा देख लिया तुम्हारा। यही सब करना था तो पहले बता देती मुझे। मैं इन लोगों नहीं बुलाता यहाॅ।"

पापा के स्वर में कठोरता थी। उनकी इस बात से वापस पलट कर केक के पास उसी जगह चली गईं जहाॅ पर वो पहले खड़ी थी। वहाॅ पर उपस्थित सब लोग माॅ की तरफ अजीब भाव से देख रहे थे। मेरी दोनो माॅ (मेनका,काया) भी ही देख रही थी। उनकी ऑखों में मुझे गुस्सा नज़र आया। मैं समझ न पाया कि ऐसा क्यों? ख़ैर, माॅ ने केक के चारो तरफ लगी कैण्डल्स को फूॅक मार कर बुझाया फिर प्लास्टिक के चाकू से केक काटा। सबने ज़ोरदार तालियाॅ बजाई और हर तरफ से हैप्पी बर्थडे टू यू का शोर गूॅजने लगा।

केक काटने के बाद माॅ ने सबसे पहले केक का हल्का सा पीस रानी को खिलाया, रानी ने भी माॅ को खिलाया। फिर माॅ ने पापा को खिलाया, तो पापा ने भी माॅ को खिलाया। सुमन माॅ को माॅ ने खिलाया। पास में खड़ी मेरी दूसरी माॅ ने भी उनको खिलाया। रानी की नज़र मुझ पर बार बार पड़ रही थी। उसकी ऑखों में नमी थी।

सुधीर ने मेरे कान में कहा___"भाई मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुम अपनी माॅ को कब बताओगे कि तुम उनके बेटे हो। यार तुम्हें ज़रा भी दया नहीं आती अपनी माॅ की हालत देख कर? मुझसे तो देखा नहीं जा रहा ये सब। तुम्हारे यहाॅ आने का मतलब ही क्या रहा फिर।"

सुधीर की बात का बाॅकी सब दोस्तों ने भी समर्थन किया। मैं जानता था कि वो सब सही कह रहे थे मगर मेरे मन में तो कुछ और ही था। मैंने उन लोगों को कोई जवाब न दिया बल्कि माॅ की तरफ जाने लगा। उधर सब लोग माॅ को शुभकामनाएॅ और उपहार वग़ैरा दे रहे थे।

मैं कुछ ही पल में उनके पास पहुॅच गया। रानी ने मुझे दुखी भाव से देखा। मेरी दोनो माॅ भी माॅ को उपहार दे चुकी थी। मैने प्लास्टिक का चाकू रानी के हाथ से लिया और उस केक से थोड़ा सा केक काटकर अपनी माॅ की तरफ देखा। सब के सब मेरी तरफ देखने लगे। माॅ भी ब्याकुल भाव से मुझे देखने लगी थी।

"जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएॅ माॅ।" मैने नम ऑखों से जैसे धमाका किया, और उस केक के छोटे से पीस को अपने हाॅ में लेकर माॅ के मुख की तरफ बढ़ा दिया।

माॅ का मुख स्वतः ही खुल गया और मैने उनको केक का वो पीस खिला दिया। उनकी ऑखों से ऑसू बह चले।

"आपके जन्मदिन पर तोहफे के रूप में आपका बेटा हाज़िर है माॅ।" मैने कहा_" मुझे माफ़ कीजिए मैने आपको बहुत रुलाया माॅ। लेकिन अब नहीं रुलाऊॅगा आपको।"

मेरी बातों से जहाॅ माॅ की ऑखों से ऑसू बहने लगे थे वहीं बाॅकी सब लोग एक बार फिर से बुरी तरह हैरान रह गए थे।
"ऐ लड़के ये सब क्या बकवास है?" तभी पापा गुस्से में लाल पीले हुए मेरी तरफ बढ़े मगर माॅ की आवाज़ सुनकर रुक गए।

"ख़बरदार अशोक।" माॅ की आवाज़ में कठोरता थी, बोली___"ये मेरा बेटा है। मैं जानती थी कि मेरा बेटा मेरे आस पास ही कहीं है और इस बात का आभास मुझे शुरू से ही हो रहा था। और अब मेरा बेटा खुद मेरे सामने आ गया है।"

"तुम्हारे पागलपन की कोई सीमा नहीं है रेखा।" पापा ने कहा___"तुम किसी को भी अपना बेटा मान सकती हो। मगर मैं जानता हूॅ ये लड़का तुम्हारा बेटा नहीं है।"

"एक माॅ ने तो पहचान लिया कि ये लड़का उसका ही बेटा है मगर।" तभी मेनका माॅ सामने आकर बोल पड़ी___"मगर एक बाप को पहचान कराने के लिए सबूत देना पड़ेगा।"

"आप बीच में बोलने वाली होती कौन हैं? ये हमारे घर की बात है।" पापा बोले__"बेहतर होगा कि आप इस बारे में कोई टीका टिप्पड़ी न करें।"
"मैं राज की माॅ हूॅ भाई साहब।" मेनका माॅ ने कहा___"उस राज की जो आज से तेरह साल पहले आधी रात को माधवगढ़ के जंगल में मिला था। उस वक्त उसकी उमर पाॅच साल थी।"

"ये सच कह रही हैं पापा।" रानी ने कहा_"ये मेरे राज भइया ही हैं। आपको याद है जब आप मेरा एडमीशन कराने मेरे कालेज गए थे। तब कालेज की पार्किंग में मैने आपसे कहा था कि मैंने राज भइया को देखा है। मगर आप मेरी बात मेरा भ्रम कह रहे थे। जबकि उस दिन मैने इन्हें ही देखा था वहाॅ।"

रानी की बात से पापा को झटका लगा। वहाॅ मौजूद सब लोग तो चकित भाव से देख रहे थे। चौंकी तो माॅ (रेखा) भी थी और वो रानी की तरफ हैरानी से देखने लगी थी।

"अगर ये सच है तो फिर ये हमारे पास अब तक क्यों नहीं आया था?" पापा ने कहा।
"इसका जवाब हम देंगे पुत्र।" तभी वहाॅ पर जो आवाज़ गूॅजी उसने मुझे चौंका दिया। बाॅकी सब भी पलट कर आवाज़ की दिशा में देखने लगे।

स्टेज के नीचे तरफ गुरूदेव खड़े थे। उनके तेजस्वी शरीर से अलग ही आभा निकल रही थी। गुरूदेव को देखकर वहाॅ मौजूद हर कोई हत्प्रभ रह गया। जबकि मैं, मेरी दो माॅ और मामा चाचू स्टेज से उतर कर गुरुदेव के पास आए और उनके चरणों में नतमस्तक हो गए।

गुरूदेव का ब्यक्तित्व और प्रभाव ऐसा था कि वहाॅ पर मौजूद हर कोई उनके सामने श्रद्धा से झुक गया। मेरे माता पिता और रानी सब स्टेज से नीचे आ गए।

"तुम सबका कल्याण हो पुत्रो।" गुरूदेव ने सबकी तरफ देखते हुए फिर मेरे पिता जी की तरफ देखते हुए कहा___"पुत्र नियति को कोई नहीं बदल सकता। वक्त और हालात के सामने मजबूर ब्यक्ति वहीं करता है जो विधना उससे करवाती है। तुम्हारे इस बेटे के साथ भी वही हुआ जो इसके भाग्य के लेख में था। तेरह साल पहले जिस जंगल में ये बालक पाॅच साल की अल्पायु में इन चारों को मिला था उस जंगल में किसी भी प्राणी का जीवित बच जाना असंभव था किन्तु ये बालक बच गया। क्योंकि इसके भाग्य में जीवन शेष था। ये अलग बात है कि इसे अपहरण करने वाले उस जंगल में उसी रात मृत्यु को प्राप्त हो गए थे। अब रहा तुम्हारे सवाल का जवाब कि ये अब तक तुम्हारे पास आया क्यों नहीं तो इसका जवाब ये है पुत्र कि तब से लेकर अब तक ये हमारे पास रहा।"

"क्या????" मेरी दोनो माॅ और पापा तो चौंके ही रानी भी बुरी तरह चौंकी थी, साथ में वहाॅ मौजूद लोग भी, जबकि पापा बोले__"ये आपके कैसे पहुॅच गया महात्मन?"
"इसे इसकी नियति हमारे पास खींच कर लाई पुत्र।" गुरुदेव ने कहा___"ख़ैर, बाॅकी सब बातें हम बाद में तुम्हें विस्तार से बताएॅगे। अभी के लिए इतना ही जान लेना काफी है कि ये तुम्हारा वही बेटा है जो तेरह साल पहले खो गया था।"

गुरूदेव की बात सुन कर पापा की ऑखों में ऑसू आ गए। वो मुझे करुण भाव से देखे जा रहे थे। जबकि माॅ एक पल भी अपनी जगह खड़ी न रह सकी। वो भाग कर मेरे पास आई और मुझे पकड़ कर अपने सीने से लगा लिया। मैने भी उनको कस लिया। मुझे सीने से लगाए माॅ रोये जा रही थी।

"मैं तो पहले से ही जानती थी कि तू मेरा ही बेटा है।" माॅ रोते हुए कह रही थी___"मेरी अंतर्आत्मा चीख चीख कर कह रही थी कि तू ही मेरा बेटा है। तू आ गया मेरे पास। मेरा लाल अपनी माॅ के पास आ गया। आज तेरे मिलने से मुझे इतनी खुशी मिली है मेरे बच्चे कि अब अगर मुझे मौत भी आ जाए तो मुझे कोई ग़म न होगा।"

"नहीं माॅ नहीं।" मैने माॅ को ज़ोर से छुपकाते हुए कहा___"ऐसा कभी मत कहना। मुझे आपका प्यार और आपकी ममता का सहारा चाहिए जीवन भर।"
"हाॅ मेरे बच्चे।" माॅ ने मेरे माथे पर चूमते हुए कहा___"मैं तुझे जी भर के प्यार करूॅगी। हमेशा अपनी गोंद में लिये रहूॅगी। अब तुझे कहीं नहीं जाने दूॅगी।"

"र रेखा।" सहसा पापा हमारे पास में आते हुए माॅ से बोले___"मुझे भी तो अपने बेटे से मिलने दो। मुझे भी तो इसे अपने सीने से लगाने दो। वर्षों से विरह की आग को सीने में दबाये मैं जल रहा हूॅ। अपने बेटे को सीने से लगाऊॅगा तभी ये आग ठंडी होगी।"

माॅ ने मुझे खुद से अलग किया और पापा की तरफ देखा। मैने भी पापा की तरफ देखा। पापा की ऑखों पर इस वक्त ऑसुओं का समुंदर हिलोरें ले रहा था। झपट कर उन्होने मुझे अपने से छुपका लिया और फूट फूट कर रो पड़े। आज वो खुद को सम्हाल नहीं पाए। हृदय में भावनाओं और जज़्बातों का तूफान रुक नहीं सका बल्कि बाहर आ गया।

पापा मुझे बहुत देर तक यूॅ ही छुपकाए रोते रहे। फिर जब माॅ ने उनके कंधे पर अपना हाॅथ रखा था तो उन्होंने मुझे खुद से अलग किया। उनका चेहरा ऑसुओं से तर था। अपने माता पिता से मिल कर मेरी हालत भी खराब थी। मुझे लग रहा था कि मैं बस उनसे वैसे ही छुपका रहूॅ। रानी दौड़ कर आई और मुझसे लिपट गई। उसकी ऑखों में भी ऑसू थे। हम दोनो बहन भाई को इस तरह लिपटे देख मेरे माता पिता खुश हो गए।

"बेटी मुझे भी तो अपने बेटे से मिलने दो।" तभी सुमन माॅ ने रानी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा तो रानी मुझसे अलग हुई।

माॅ ने मुझे करुण भाव से देखा और फिर मुझे खुद से छपका लिया। आस पास मौजूद सब लोग इस वक्त खुश दिखाई दे रहे थे। काफी देर तक मिलना मिलाना चलता रहा। फिर गुरूदेव ने अपनी आवाज़ से हम सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा।

"अब हम चलते हैं पुत्र राजवर्धन।" गुरूदेव ने कहा___"अपने माता पिता के साथ सुखपूर्वक रहो और संसार का कल्याण करो।"
"जी गुरूदेव।" मैने श्रद्धा से हाॅथ जोड़ कर प्रणाम करते हुए कहा।

"हमारे यहाॅ आने का दृष्य और हमारी बातें बाॅकी किसी को याद नहीं रहेगी।" गुरूदेव ने कहा___"बस तुम लोगों को ही याद रहेंगी। अब हम जा रहे हैं। सदा कल्याण हो तुम सबका।"

कहने के साथ ही गुरूदेव गायब हो गए। उनके गायब होते ही बाॅकी सब लोगों ने एक साथ एक गहरी साॅस ली और उनके मन से गुरूदेव के आने से जाने तक का सारा दृष्य मिट गया। सब लोग ऐसा बर्ताव कर रहे थे जैसे कुछ ही न हो।

इसके बाद वहाॅ मौजूद लोगों ने खाना पीना किया और सब लोग वहाॅ से चले गए। मेरे कालेज के दोस्त लोग भी चले गए। अब वहाॅ पर हम सब घर वाले ही रह गए थे। मेरे पिता, चारो माॅ, रानी, मैं, और मामा चाचू।

मैने अपने माता पिता को बताया कि मेनका माॅ और काया माॅ ये दोनो भी मेरी सगी माॅ जैसी ही हैं। फिर राशभ मामा के बारे और चाचू के बारे में भी बताया उन्हें। सारी बातें सुनने के बाद पिता जी बड़ा खुश हुए। रेखा माॅ तो मुझे छोंड़ ही नहीं रही थी। उन्होंने अपने हाॅथ में मेरा हाॅथ लिया हुआ था।

घर के सभी नौकर चाकर भी ये जान कर खुश थे कि मैं वापस आ गया हूॅ। सब मुझसे मिले भी। कुछ ऐसे थे जिन्होंने मुझे देखा नहीं था कभी और कुछ ऐसे थे जो मुझे बचपन में देख चुके थे।

हम सब घर के अंदर आ चुके थे और इस वक्त ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर बैठे हुए थे। पिता जी के पूछने पर मेरी दोनो माॅ(मेनका,काया) और मामा चाचू उन्हें मेरी सारी कहानी बता रहे थे। कहानी में ये नहीं बताया उन्होंने कि वो सब कौन थे और कैसे इंसान बने, और ना ही ये बताया कि मुझमें अद्भुत शक्तियाॅ हैं।

उस रात मैं अपनी माॅ(रेखा) के साथ ही उनके कमरे में सोया। बाॅकी सब भी किसी न किसी कमरे में सो गए थे। मैं अपनी माॅ के साथ आज पहली बार चैन की नींद सो रहा था। मुझे नहीं पता कि माॅ भी मेरी तरह सो रही थी या पहले की ही तरह वो मुझे बस एकटक देखे जा रही थी।



दोस्तो, अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,,,
आखिरकार राज का अपने परिवार से मिलन हो ही गया। देखते है अब विराट, अनंत और मोनिका क्या खेल खेलते है
 

Lib am

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)

""अपडेट"" ( 26 )


अब तक,,,,,,,,

मैने अपने माता पिता को बताया कि मेनका माॅ और काया माॅ ये दोनो भी मेरी सगी माॅ जैसी ही हैं। फिर राशभ मामा के बारे और चाचू के बारे में भी बताया उन्हें। सारी बातें सुनने के बाद पिता जी बड़ा खुश हुए। रेखा माॅ तो मुझे छोंड़ ही नहीं रही थी। उन्होंने अपने हाॅथ में मेरा हाॅथ लिया हुआ था।

घर के सभी नौकर चाकर भी ये जान कर खुश थे कि मैं वापस आ गया हूॅ। सब मुझसे मिले भी। कुछ ऐसे थे जिन्होंने मुझे देखा नहीं था कभी और कुछ ऐसे थे जो मुझे बचपन में देख चुके थे।

हम सब घर के अंदर आ चुके थे और इस वक्त ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर बैठे हुए थे। पिता जी के पूछने पर मेरी दोनो माॅ(मेनका,काया) और मामा चाचू उन्हें मेरी सारी कहानी बता रहे थे। कहानी में ये नहीं बताया उन्होंने कि वो सब कौन थे और कैसे इंसान बने, और ना ही ये बताया कि मुझमें अद्भुत शक्तियाॅ हैं।

उस रात मैं अपनी माॅ(रेखा) के साथ ही उनके कमरे में सोया। बाॅकी सब भी किसी न किसी कमरे में सो गए थे। मैं अपनी माॅ के साथ आज पहली बार चैन की नींद सो रहा था। मुझे नहीं पता कि माॅ भी मेरी तरह सो रही थी या पहले की ही तरह वो मुझे बस एकटक देखे जा रही थी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~


अब आगे,,,,,,,

सुबह जब मेरी नींद खुली तो मैने देखा कि मेरी माॅ(रेखा) मेरे सिर पर प्यार से हाॅथ फेरते हुए एकटक मुझे ही देखे जा रही थी। उनकी ऑखों में अपने लिए प्यार और स्नेह का अथाह सागर नज़र आया मुझे। मैं तुरंत ही बेड पर उठ कर बैठ गया तो जैसे माॅ की तंद्रा टूटी।

"अरे उठ गया मेरा बेटा?" माॅ ने मुस्कुराते हुए मेरे माथे पर चूमा फिर बोली___"मैं तो तुझमें ही खोई हुई थी। मेरा दिल करता है कि बस तुझे यूॅ ही देखती रहूॅ।"
"इतना प्यार मत कीजिए मुझसे माॅ।" मैने हॅस कर कहा___"ये प्यार ये माया मोह बहुत ख़राब चीज़ें होती हैं। अच्छे भले इंसान को पागल और कमज़ोर बना देती हैं।"

"मैं तेरी माॅ हूॅ मेरे लाल।" माॅ ने डबडबा आई ऑखों से कहा___"वर्षों बाद तू मुझे वापस मिला है। तेरे लिए अब तक कितना तड़पी हूॅ इसका तो मुझे खुद पता नहीं। तू मेरे जिगर का टुकड़ा है मेरी जान है तू। तुझसे प्यार करना मेरा ही मेरा धर्म है और तू ऐसा क्यों कहता है कि ये प्यार ये माया मोह ख़राब चीज़ें हैं? अरे बेटा इन्हीं सबके सहारे तो ये दुनियाॅ अब तक टिकी हुई है। जिस संसार में प्रेम या प्यार नहीं होगा वो संसार पल भर में नस्ट हो जाएगा। माॅ का अपने बेटे से वैसा ही प्रेम और स्नेह होता है जैसे किसी प्रेमी का अपने प्रेमिका से होता है। अपने दिलो दिमाग़ से किसी के लिए प्यार निकाल देना किसी के बस में नहीं होता बेटे। तुझमें मेरी आत्मा बसती है, तू है तो मैं हूॅ वर्ना कुछ भी नहीं है।"

"आप सही कहती हैं माॅ।" मैने माॅ की गोंद में अपना सिर रखते हुए कहा__"प्रेम नहीं तो कुछ भी नहीं। मैं बहुत खुशनसीब हूॅ माॅ कि मुझे एक ही जन्म में चार चार प्यार करने वाली माॅ मिली हैं। आपको पता है माॅ बचपन से लेकर अब तक मुझे माॅ के प्यार की कमी महसूस नहीं हुई, क्योंकि ईश्वर ने मुझे एक माॅ से जुदा किया तो मेरे लिए दो दो माओं का बंदोबस्त पहले ही कर दिया था। उन दोनों ने मुझे बहुत प्यार और स्नेह दिया माॅ। उनके लिए मैं ही सब कुछ हूॅ।"

"तू सच कह रहा है बेटे।" माॅ ने कहा__"तेरी वो दोनो माएॅ सचमुच पूज्यनीय हैं। तुम उनको कभी पराया मत करना बेटा। भले ही तू मुझे पराया कर देना मगर उनको खुद से अलग मत करना।"
"आपने ये कह कर मेरी दुविधा और मेरे अंदर के एक बोझ को खत्म कर दिया माॅ।" मैने माॅ से कहा___"मैं इसी सोच में था कि आपके पास आ जाने के बाद मैं किस तरह उनका बेटा होने का फर्ज़ अदा कर पाऊॅगा? मगर आपने मेरी मुश्किल आसान कर दी माॅ। मुझे आपसे यही उम्मीद थी।"

"मैं तेरी माॅ ज़रूर हूॅ मेरे लाल।" माॅ ने मेरे चेहरे पर हाॅथ से सहलाते हुए कहा___"मगर मैं इतनी स्वार्थी नहीं हूॅ कि किसी का हक़ भी छीन लूॅ। मैने तुझे जन्म दिया है मगर पाल पोस कर तो तुझे तेरी उन माओं ने ही बड़ा किया है न। इस लिए तुझ पर उनका हक़ मुझसे ज्यादा है। मुझे तो बस इतने से ही बेहद खुशी मिल गई है कि मेरा बेटा मुझे सही सलामत वापस मिल गया है।"


अभी मैं कुछ कहने ही वाला था कि तभी कमरे में सब लोग आ गए। पापा, रानी, सुमन माॅ, मेनका/काया माॅ,रिशभ मामा और वीर चाचू। सब एक साथ मेरे कमरे में आ गए थे।

"हम सबको भी तो अपने बेटे से मिलने दो रेखा।" पापा ने मुस्कुराते हुए कहा___"तुम ही अकेले अकेले उससे मिल रही हो। अरे भाई हम सब भी लाइन में खड़े हैं।"
"अरे तो मैने कब मना किया है?" रेखा माॅ ने हॅसते हुए कहा__"आप सब भी मिल लो राज से। मगर इस पहले सुबह के काम से फुर्सत तो हो जाने दो।"

"फुर्सत तो वो तब होगा न जब तुम्हारे पास से उसे जाने का मौका मिलेगा।" पापा ने हॅसते हुए कहा___"राज बेटा, जाओ तुम फ्रेश हो लो। हम सब नास्ते की टेबल पर ही तुमसे मिल लेंगे।"
"जी पापा।" मैने कहा और बेड से उतर कर बाथरूम की तरफ बढ़ गया।

मेरे बाथरूम में चले जाने से सब लोग वापस कमरे से बाहर चले गए। बाथरूम में मैं फ्रेश हुआ और नहाया धोया। उसके बाद कपड़े पहन कर मैं बाहर आ गया। मैने रात वाले ही कपड़े पहन लिए थे क्योंकि मेरे सारे कपड़े तो मेरे उस वाले घर में ही थे।

नास्ते की टेबल के पास पहुॅच कर मैं सीधा मेनका और काया माॅ के बीच वाली कुर्सी पर बैठ गया। रेखा माॅ ने मुझे उस जगह बैठते देखा तो उनके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई। मेनका और काया माॅ को शायद इस बात का आभास हो चुका था।

"राज, आज से तुम रेखा बहन के हाॅथ से ही खाना खाओगे।" मेनका माॅ ने कहा__"हम दोनो तो तुम्हें बचपन से ही अपने हाॅथ से खिलाते रहे हैं मगर अब ये हक़ तुम्हारी असल माॅ को भी मिलना चाहिए। उनकी ममता और उनके हृदय में बसे अथाह प्यार का लुत्फ भी लेना चाहिए तुम्हें।"

"नहीं मेनका बहन।" रेखा माॅ ने झट से कहा___"राज को आप दोनो ही अपने हाथों से खाना खिलाएॅगी। मुझे तो ये देख कर ही खुशी मिल जाएगी। और हाॅ, मैं अपनी बेटी को अपने हाॅथ से खाना खिलाऊॅगी। वर्षों बाद मैने इसे अपनी बेटी की नज़र से देखा है। मैने अपनी बेटी को बहुत दुख दिये हैं, वो मेरे प्यार के लिए वर्षों से तरस रही है। इस लिए अब मैं अपनी बेटी को खूब प्यार दूॅगी। सुमन, आओ न मेरे पास बैठो। हम दोनो ही अपनी बेटी को अपने हाॅथ से खिलाएॅगे।"

माॅ की बातें सुन कर सब खुश हो गए। सुमन माॅ अपनी जगह से उठ कर माॅ के पास आ गई। रानी उन दोनो के बीच में बैठ गई थी। उसकी ऑखों में खुशी के ऑसूॅ तैरते नज़र आने लगे थे। उसने मेरी तरफ देखा तो मैने उसे देख कर अपनी पलकें झपका दी। पापा, रिशभ मामा और वीर चाचू ये सब मुस्कुराते हुए देख रहे थे।

"आज वर्षों बाद इस घर में इतनी खुशियाॅ आईं हैं।" पापा कह उठे___"मेरा दिल करता है कि सारी दुनियाॅ के सामने खड़ा होकर खूब नाचूॅ गाऊॅ। भगवान का लाख लाख शुकर है कि उसने हमारे बेटे को हमारे पास वापस भेज दिया। इतना ही नहीं मेरे बेटे को प्यार करने वाली ऐसी माएॅ और ऐसे मामा और चाचू दिया।"

"तुमने बिलकुल सही कहा अशोक।" रेखा माॅ ने कहा___"और अब मैं ये कह रही हूॅ कि हम सब एक ही घर में साथ साथ रहें। मेनका बहन प्लीज मेरी आपसे विनती है कि आप सब यहीं हमारे साथ ही रहिये।"
"ये तुमने बहुत अच्छी बात कही रेखा।" पापा ने कहा___"मैं खुद भी यही कहना चाहता था। अब तो हम सब एक ही हैं इस लिए एक ही घर में हम सब रहें तो कितना अच्छा लगेगा।"

"जैसा आप कहें भाई साहब।" मेनका माॅ ने कहा___"हम सब अब यहीं रहेंगे। रिशभ वीर तुम दोनो उस घर से हमारा सारा सामान लाने की ब्यवस्था करो।"
"ठीक है बहना।" रिशभ मामा ने कहा__"हम दोनो नास्ता करने के बाद वहाॅ से सारा सामान ले आएॅगे।"

"अच्छा मैं एक बात आप लोगों से पूछना चाहता हूॅ।" सहसा पापा ने रिशभ मामा आदि लोगों की तरफ देखते हुए कहा__"कल वो महात्मा जो आए थे वो कौन थे? उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो कोई ब्रम्हॠषि हों। कितना तेज़ था उनके चेहरे पर।"

"वो हमारे गुरूदेव हैं भाई साहब।" वीर चाचू ने कहा___"वो हिमालय से आए थे। हम पिछले तेरह साल से हिमालय में उनके पास ही तो थे।"
"क्या????" पापा के साथ साथ बाॅकी सब भी चौंक पड़े, जबकि पापा ने कहा__"आप हिमालय में कैसे पहुॅच गए थे?"

वीर चाचू ने पापा की बात पर मेनका माॅ की तरफ देखा तो माॅ ने कहा___"जब राज हमें मिला था तभी हम हिमालय चले गए थे। ये सब कैसे हुआ इसका जवाब तो ईश्वर या गुरूदेव ही दे सकते हैं। हलाॅकि गुरूदेव कह रहे थे कि ये सब ईश्वर का ही विधान था।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है कि आप लोग इतने पवित्र स्थान पर और इतने तेजस्वी गुरूदेव के पास रहे।" पापा ने कहा__"और अब मेरे मन में भी ये इच्छा जागृत हो चुकी है कि हम सब एक बार उस पवित्र स्थान पर जाएॅ और उन महात्मन से मिलें। उनका आशीर्वाद लें। क्या कहती हो रेखा?"

"मेरी भी यही इच्छा है अशोक।" रेखा माॅ ने कहा___"हमें उस पवित्र धरा पर ज़रूर जाना चाहिए और इनके गुरूदेव से मिलना चाहिए। तुम्हें याद है न कल उन्होने कहा था कि बाॅकि बातें वो हमें बाद में बताएॅगे। इस लिए हमें वहाॅ जाना चाहिए।"

"ठीक है तो फिर हम कल ही हिमालय के लिए प्रस्थान करेंगे यहाॅ से।" पापा ने कहने के साथ ही मेनका माॅ की तरफ देखा__"आप क्या कहती हैं इस बारे में?"
"ये तो खुशी की बात है भाई साहब।" मेनका माॅ ने कहा___"हमें तो बहुत खुशी होगी अगर हम उस पवित्र जगह पर फिर से पहुॅच जाएॅगे तो। हमारे लिए तो वो जगह सबसे अनमोल है।"

"तो फिर ये फैसला हो गया कि हम कल ही यहाॅ से हिमालय के लिए निकलेंगे।" पापा ने कहा___"आप सब लोग इसकी तैयारी कर लीजिएगा। हम सुबह बाई कार यहाॅ से चलेंगे।"

कुछ देर और इसी विषय पर बातें होती रही उसके बाद पापा, रिशभ मामा और चाचू अपने अपने ऑफिस के लिए निकल गए। मैं और रानी काॅलेज जाने के लिए रेडी होने के लिए कहा तो माॅ ने मना कर दिया। उनका कहना था कि आज मैं उनके पास ही रहूॅ। तो मैने कहा कि कल हम सबको हिमालय जाना है इस लिए उसके लिए हमें काॅलेज से छुट्टी लेनी होगी और छुट्टी के लिए कालेज जाना पड़ेगा। मेरी इस बात से माॅ ने हमें काॅलेज जाने की इजाज़त दे दी। उनकी इजाज़त मिलने पर मैं और रानी काॅलेज जाने के लिए तैयार होने लगे। मेरे कपड़े यहाॅ पर नहीं थे इस लिए मुझे यहाॅ से पहले अपने उस घर जाना था। रानी के तैयार होने पर मैं उसे लेकर अपने उस वाले घर की तरफ कार से निकल गया।
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माधवगढ़ पुलिस स्टेशन!
पुलिस इंस्पेक्टर की वर्दी पहने उस शख्स का नाम मेघनाद शर्मा था। ऊम्र यही कोई तीस के आस पास थी उसकी। पुलिस की वर्दी उसके कसरती बदन पर खूब जॅच रही थी। इस वक्त वो अपने केबिन में टेबल के उस पार रखी कुर्सी पर बैठा अखबार पर ऑखें गड़ाए बैठा था। उसके सामने टेबल के इस पार एक चालीस साल का मामूली सा हवलदार खड़ा था।

"तिवारी जी।" सहसा उस इंस्पेक्टर मेघनाद ने अखबार पर नज़रें गड़ाए हुए ही कहा___"ये साले अख़बार वालों के पास कोई दूसरी ख़बर नहीं होती क्या?"
"का बात है सर?" हवलदार तिवारी ने ना समझने वाले भाव से कहा___"ऐसा काहे कह रहे हैं आप?"

"मैं पिछले तीन दिनों से देख रहा हूॅ कि अख़बार वाला राइटर एक ही ख़बर को रोज़ाना छाप रहा है अपने अख़बार में।" मेघनाद ने कहा___"इसका मतलब ये है कि अब तक इस ख़बर पर हमारी सरकार का ध्यान नहीं गया है।"

"ऐसी का ख़बर है सर?" हवलदार तिवारी ने कहा___"जिस पर हमारी सरकार का ध्यान न गया अब तक? कौनव ख़ास ख़बर है का सर?"
"ख़बर ये है कि पिछले पंद्रह दिनों के भीतर माधवगढ़ से काफी लड़कियाॅ लापता हो चुकी हैं।" इंस्पेक्टर ने कहा___"और इस बारे में सरकार का ध्यान अभी तक नहीं गया। ये सारी लड़कियाॅ माधवगढ़ के अलग अलग इलाकों की हैं। हमारे थाना क्षेत्र में अभी तक ऐसा कोई वाक्या नहीं हुआ है। मगर सवाल ये है कि जिन इलाकों से लड़कियाॅ लापता हुई हैं उन लड़कियों के पैरेन्ट्स ने क्या इसकी रिपोर्ट अपने इलाके के थानों में नहीं की क्या?"

"ऐसा होना तो न चाहिए सर।" हवलदार तिवारी ने कहा___"मगर ख़बर से तो यही ज़ाहिर होता है कि अब तक तो किसी पैरेंट्स ने ऐसी कोई रिपोर्ट किसी थाने में दर्ज़ नहीं की है।"
"ये तो कमाल और हैरत की बात है तिवारी जी।" मेघनाद ने कहा___"कैसे पैरेंट्स हैं जिन्हें अपनी लड़कियों के लापता होने का कोई रंज़ ही नहीं है।"

"बात तो आपकी ठीक है सर।" तिवारी ने सोचने वाले भाव से कहा___"मगर ये बात अख़बार वाले को कैसे पता चली कि पिछले पंद्रह दिनों में माधवगढ़ से कितनी लड़कियाॅ लापता हुई हैं? आमतौर पर होता तो यही है कि ऐसे मामले में ऐसी ख़बर पीड़ित ब्यक्ति के द्वारा ही पुलिस या अख़बार वालों को होती है।"

अभी इंस्पेक्टर तिवारी की बात का जवाब देने ही वाला था कि सहसा तभी केबिन के बाहर से किसी के चिल्लाने की आवाज़ें आईं।
"तिवारी जी ये बाहर कौन चिल्ला रहा है?" मेघनाद ने कहा___"ज़रा देखिये तो।"
"जी सर अभी देखता हूॅ।" तिवारी कहने के साथ ही पलटा___"साला कौन ससुरा गला फाड़ रहा है हमरे थाने में?"

तिवारी केबिन के दरवाजे के पास पहुॅचा ही था कि एक अन्य हवलदार ऑधी की तरह केबिन में दाखिल हुआ फिर बोला___"सर एक आदमी और एक औरत आई है। और चिल्ला चिल्ला कर कह रहे हैं कि दरोगा जी से मिलना है। मैने पूछा कि बात क्या है मगर वो एक ही रट लगाए हुए हैं कि आपसे मिलना है।"

"चलो देखते हैं कौन हैं वो?" मेघनाद ने कुर्सी से उठते हुए कहा__"और क्यों हमसे मिलने के लिए इतना चिल्ला रहे हैं?"
कहते हुए मेघनाद केबिन से बाहर निकल कर बाहर आ गया। उसके पीछे दोनो हवलदार भी आ गए।

बाहर आकर मेघनाद ने देखा कि दो लोग अजीब सी हालत में इधर उधर देखे जा रहे हैं। उन दोनो के पास पहुॅच कर मेघनाद ने उनसे कहा___"जी कहिए आपको क्या परेशानी है?"
"इंस्पेक्टर साहब।" वो आदमी बदहवास सा बोल पड़ा___"मेरी बेटी आशा कल शाम से घर नहीं लौटी है। मुझे लगता है कि अन्य लड़कियों की तरह मेरी बेटी भी लापता हो गई है। भगवान के लिए उसे ढूॅढ़ दीजिए। वो हमारी इकलौती बेटी है। कल कालेज गई थी उसके बाद से अब तक घर नहीं लौटी है।"

"तो आप ये कह रहे हैं कि आपकी बेटी भी अन्य लड़कियों की तरह लापता हो गई?" मेघनाद ने मन ही मन चौंकते हुए पूछा था।
"हाॅ इंस्पेक्टर साहब।" आदमी ने कहा__"कल से मेरी बेटी घर नहीं लौटी है। मैने हर जगह तलाश किया उसे मगर वो कहीं नहीं मिली। आज जब अखबार में और भी लड़कियों के लापता होने की ख़बर पढ़ी तो मेरे होश उड़ गए। मेरी बेटी को ढूॅढ़ दीजिए इंस्पेक्टर साहब। वो हमारी इकलौती औलाद है। उसके बिना हम दोनो मियां बीवी मर जाएॅगे। भगवान के लिए हमारी बेटी को ढूॅढ़ दीजिए।"

"आप चिंता मत कीजिए आपकी बेटी जहाॅ भी होगी हम उसे ज़रूर ढूॅढ़ लेंगे।" इंस्पेक्टर ने दिलासा देते हुए कहा___"सबसे पहले आप अपनी बेटी की गुमशुदगी की एफ आई आर करवाइये। उसके बाद अपनी बेटी की कोई साफ सुथरी फोटो हमें दीजिए। हम जल्द ही इसकी कार्यवाही करेंगे। ये मामला कोई साधारण मामला नहीं है। पिछले कुछ दिनों के भीतर भीतर कई सारी लड़कियों के लापला होने की ख़बर अख़बार में छप चुकी है। इस मामले किसी ऐसे संगठन का हाॅथ लगता है जो ग़ैर कानूनी तरीके से लड़कियों की तश्करी करता है।"

"हे भगवान अब क्या होगा?" आदमी के साथ आई औरत ने मानो गुहार लगाते हुए कहा___"वो लोग मेरी बेटी को कहीं बेंच देंगे। हाय मेरी बेटी के साथ जाने कैसा कैसा जुलम करेंगे वो लोग।"

"शान्त हो जाओ सावित्री।" आदमी ने सावित्री नाम की अपनी बीवी को सांत्वना देते हुए कहा___"हमारी बेटी को कुछ नहीं होगा। भगवान पर भरोसा रखो और इंस्पेक्टर साहब पर भी। ये बहुत जल्द हमारी बेटी को सुरक्षित हमारे पास ले आएॅगे।"

"देखिये इस तरह रोने धोने से कुछ नहीं होगा।" इंस्पेक्टर ने कहा__"आप प्लीज़ धैर्य रखिए। पुलिस एड़ी से चोटी तक का ज़ोर लगा देगी आपकी बेटी को ढूॅढ़ने के लिए।"

इंस्पेक्टर के कहने पर और उस आदमी के समझाने पर किसी तरह वो औरत शान्त हो गई। ख़ैर, एफ आई आर दर्ज़ करवा कर और अपनी बेटी की एक फोटो इंस्पेक्टर को सौंप कर वो दोनो मियां बीवी चले गए वहाॅ से।

"लो जी साहब जी।" उनके जाते ही हवलदार तिवारी कह उठा___"आप तो कह रहे थे कि अभी तक कोई माई बाप अपनी लड़की के लापता होने की रपट लिखाने नहीं आए, लेकिन अब तो इस मामले में रपट लिखा भी दी गई। अब आप क्या करेंगे?"

"करना क्या है तिवारी जी।" मेघनाद ने कहा__"अब तो इस मामले की तफ्तीश शुरू करेंगे हम। ये लड़कियों के लापता होने का एक ही कारण समझ में आता है और वो यही है कि इतनी सारी लड़कियों की कोई तश्करी कर रहा है। साले ऐसे लोगों को तो बीच चौराहे पर नंगा करके उनकी गाॅड में गोली मारना चाहिए।"

"ये आपने बिलकुल सही कहा सर।" तिवारी ने कहा___"सरवा हमरे देश मा अइसन लोगन का इहै सजा देवै का चाही। मगर सर जी ई काम हम कहाॅ कर सकत हैं? सरवा हमरे हाॅथ कानून की मोटी मोटी ज़जीरन मा बॅधे हैं।"

"ये सब छोड़िये तिवारी जी।" इंस्पेक्टर मेघनाद ने कहा___"और अपने रिकार्ड से ऐसे मुजरिमों की लिस्ट निकालिये जो ऐसे काम करते हैं।"
"ठीक सर जी।" तिवारी ने कहा और एक तरफ दीवार से सटी आलमारी की तरफ बढ़ गया।
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उधर एक तरफ!
महेंद्र सिंह और रंगनाथ इस वक्त एक ऐसी जगह पर आमने सामने बैठे हुए थे जिस जगह पर वर्षों से बंद एक कारखाना था। एक छोटे से हाल में दो कुर्सियों पर इस वक्त दोनो बैठे हुए थे। रंगनाथ अभी थोड़ी देर पहले ही आया था। उसके हाॅथ में आज का अख़बार था। उस छपी ख़बर को वह महेन्द्र सिंह को सुना चुका था।

"इसका मतलब ये हुआ कि मामला गर्म हो गया है मित्र।" महेन्द्र ने कहा___"और अब बहुत जल्द पुलिस इस मामले में अपना काम शुरू कर देगी। इस लिए हमें जल्द से जल्द इन लड़कियों को अपने अड्डे पर ले जाना होगा। वरना इतने दिनों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा।"

"बात तो तुम्हारी सही है मित्र।" रंगनाथ ने सोचते हुए कहा___"लेकिन इतनी लड़कियों को हम एक साथ अपने अड्डे पर कैसे ले जा सकेंगे? हमने शुरू से ही ग़लती की थी। हमें जैसे जैसे पूनम या अमावश्या की रात को जन्मी लड़की मिलती जाती तो हम उन्हें एक एक कर के अपने अड्डे पर चुपचाप पहुॅचा देते। मगर अब जबकि मामला पुलिस तक पहुॅच गया है तो हम ये काम अतिसीघ्र नहीं कर सकते। किसी भी वक्त हम पकड़े जाएॅगे।"

"कुछ तो करना ही पड़ेगा यार।" महेन्द्र सिंह ने कहा___"इतनी मुश्किल से इतनी लड़कियों का इंतजाम हुआ है तो हम इन्हें हाॅथ से जाने नहीं देंगे। अभी मामला इतना गर्म नहीं हुआ है। इस लिए हम आज रात ही इन लड़कियों को यहाॅ से अपने अड्डे पर ले जाएंगे। तुम किसी ऐसे वाहन का बंदोबस्त करो जिसमें एक साथ ये सारी लड़कियाॅ आ सकें। लेकिन ध्यान रहे वो वाहन ऐसा हो जिसके अंदर मौजूद इन लड़कियों को कोई देख न सके। दूसरी बात उस वाहन में ड्राइवर कोई दूसरा न हो बल्कि तुम खुद ही रहो।"

"अरे सीधा सीधा बोलो न कि इस तरह का वाहन मैं कहीं से चोरी करके लाऊॅ।" रंगनाथ ने कहा___"हो जाएगा। मेरी नज़र में इस तरह का वाहन आ चुका है और मैने तरकीब भी सोच रखी है। उस तरकीब से हम बड़े आराम से इन सारी लड़कियों को सुरक्षित ले जा सकते हैं।"

"अरे वाह।" महेन्द्र सिंह कह उठा___"बताओ कैसी तरकीब है वो?"
"अपना कान इधर लाओ।" रंगनाथ ने मुस्कुराते हुए कहा___"मैं वो तरकीब तुम्हारे कान में ही बताऊॅगा।"

महेन्द्र सिंह ने उसे अजीब भाव से देखा फिर उठ कर उसके पास गया और उसके मुख के पास अपना कान कर दिया। रंगनाथ ने उसके कान में जो कुछ कहा उसे सुन कर महेन्द्र सिंह खुश हो गया।

"ये सही तरकीब सोची है तुमने।" महेन्द्र सिंह ने कहा___"ऐसे में यकीनन हम बड़ी आसानी से इन सारी लड़कियों को यहाॅ से ले जाएॅगे।"
"अब इस समस्या से तो मुक्ति मिल गई लेकिन अपने अंदर की समस्या से मुक्ति कैसे मिले?" रंगनाथ ने कहा___"बीस दिन हो गए यार। किसी औरत या लड़की को उस नज़र से देखा भी नहीं है हमने। कृत्या के साथ संभोग कर करके हमारे अंदर भी वैसी ही हवस की भूख बढ़ गई है।"

"ये सच कहा तुमने यार।" महेन्द्र सिंह ने आह सी भरते हुए कहा___"अब तो किसी से भरपूर तरीके से संभोग करने का मन कर रहा है। लड़कियाॅ तो बहुत हैं अपने पास मगर हम इनके साथ कुछ कर नहीं सकते क्योंकि संभोग के बाद ये कुवाॅरी नहीं रह जाएॅगी। जबकि महाशैतान के सामने हमें कुवाॅरी लड़कियाॅ लेकर जाना है।"

"रात तक की बात है मित्र।" रंगनाथ ने गहरी साॅस ली, बोला___"इन लड़कियों को सही सलामत कृत्या के पास पहुॅचा कर हम कृत्या के साथ भरपूर संभोग का मज़ा लूटेंगे। उसके जैसा मज़ा इस दुनियाॅ की कोई औरत नहीं दे सकती।"

"ठीक है यार।" महेन्द्र सिंह ने कहा__"तब तक के लिए किसी तरह अपने अंदर की गर्मी को शान्त रखना होगा। अब तुम जाओ और उस वाहन का बंदोबस्त करो और साथ ही उस सबका भी।"
"ठीक है मित्र।" रंगनाथ ने कुर्सी से उठते हुए कहा___"मैं जा रहा हूॅ सारी चीज़ों की ब्यवस्था करने। तुम उन लड़कियों पर भी ध्यान देना। मैं शाम तक आ जाऊॅगा।"

रंगनाथ की बात सुन कर महेन्द्र सिंह ने हाॅ में सिर हिलाया जबकि रंगनाथ बाहर की तरफ बढ़ता चला गया।



दोस्तो अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,,,,
ये कुत्ते की पूंछ कभी सीधी नहीं हो सकती। मारो सालो को।
 

Lib am

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)

""अपडेट"" ( 27 )


अब तक,,,,,,,

"ये सच कहा तुमने यार।" महेन्द्र सिंह ने आह सी भरते हुए कहा___"अब तो किसी से भरपूर तरीके से संभोग करने का मन कर रहा है। लड़कियाॅ तो बहुत हैं अपने पास मगर हम इनके साथ कुछ कर नहीं सकते क्योंकि संभोग के बाद ये कुवाॅरी नहीं रह जाएॅगी। जबकि महाशैतान के सामने हमें कुवाॅरी लड़कियाॅ लेकर जाना है।"

"रात तक की बात है मित्र।" रंगनाथ ने गहरी साॅस ली, बोला___"इन लड़कियों को सही सलामत कृत्या के पास पहुॅचा कर हम कृत्या के साथ भरपूर संभोग का मज़ा लूटेंगे। उसके जैसा मज़ा इस दुनियाॅ की कोई औरत नहीं दे सकती।"

"ठीक है यार।" महेन्द्र सिंह ने कहा__"तब तक के लिए किसी तरह अपने अंदर की गर्मी को शान्त रखना होगा। अब तुम जाओ और उस वाहन का बंदोबस्त करो और साथ ही उस सबका भी।"
"ठीक है मित्र।" रंगनाथ ने कुर्सी से उठते हुए कहा___"मैं जा रहा हूॅ सारी चीज़ों की ब्यवस्था करने। तुम उन लड़कियों पर भी ध्यान देना। मैं शाम तक आ जाऊॅगा।"

रंगनाथ की बात सुन कर महेन्द्र सिंह ने हाॅ में सिर हिलाया जबकि रंगनाथ बाहर की तरफ बढ़ता चला गया।
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अब आगे,,,,,,,,

मैं रानी को लेकर पहले अपने घर गया, वहाॅ पर मैने अपने कपड़े बदले और फिर रानी के साथ अपनी कार से मैं कालेज चला गया। वहाॅ पर मैंने प्रिंसिपल के पास छुट्टी की अप्लीकेशन दी और फिर मैं वापस रानी के साथ घर आ गया। घर पर जब मैं आया तो देखा कि रिशभ मामा और वीर चाचू सारा सामान लेकर आ गए थे। जिसे वो अलग अलग कमरों में सजा रहे थे।

मैं ये चाह रहा था कि मुझे अपने लिए एक अलग कमरा मिल जाए ताकि मैं स्वतंत्र रूप से अपने किसी भी काम को कर सकूॅ। इसके लिए मैने किसी से कहा नहीं। क्योंकि मैं समझ चुका था कि मुझे अब से माॅ(रेखा) के साथ ही उनके कमरे में सोना होगा। उन्होंने ये बात पहले ही सबको बता दी थी और मैं इस बारे में उनसे कुछ कह नहीं सकता था। मुझे लगता था कि मेरे ऐसा कहने पर उन्हें दुख लगेगा। बात भी सही थी, मैं उन्हें आज वर्षों बाद मिला था इस लिए कोई भी माॅ यही चाहेगी कि उसका बेटा हर पल उसके पास ही रहे। हलाॅकि उन्होंने मेनका और काया माॅ के संबंध में अपनी बात साफ कर दी थी।

मेरे असल माता पिता और बहन मेरी उस असलियत से नावाकिफ़ थे। वो नहीं जानते थे कि मैं कोई आम इंसान नहीं हूॅ बल्कि अद्भुत शक्तियों से संपन्न एक असाधारण इंसान हूॅ। जिसे खुद ईश्वर ने संसार के कल्याण हेतु चुना था। हलाॅकि मुझे अभी तक ये पता नहीं था कि इतनी अद्भुत शक्तियों से विभूषित मैं ऐसा कौन सा काम करने वाला हूॅ भविष्य में? किन्तु इतना अवश्य समझ रहा था कि आने वाले समय में मुझे कोई बहुत बड़ा काम करना था। कोई ऐसा काम जो सिर्फ ऐसी अद्भुत शक्तियों के द्वारा ही हो सकेगा।

मेरे सामने अब नई समस्या यही थी कि अपनी इन शक्तियों के बारे में मुझे अपने असल माता पिता से किसी भी हाल में छुपा कर ही रखना था। माॅ के साथ उनके कमरे में रहने से आने वाले समय में मेरे लिए समस्या हो सकती थी। इस लिए मैंने इस समस्या से निजात पाने के लिए मेनका माॅ के पास गया और उनसे इस बारे में बात की।

"तो तुम ये चाहते हो कि तुम स्वतंत्र रूप से एक अलग कमरे में रहो।" मेनका माॅ ने सारी बात सुनने के बाद कहा___"ताकि किसी भी काम को करने में तुम्हें कोई परेशानी न हो सके। तुम्हें लगता है कि माॅ कमरे में उनके साथ रहते हुए किसी दिन तुम अपने असल काम में पकड़े न जाओ?"

"जी बिलकुल।" मैने कहा___"ये सब मेरी उस असलियत को हजम नहीं कर पाएॅगे माॅ। इस लिए मैं ऐसा चाहता हूॅ। अब आप ही कुछ कीजिए ऐसा जिससे मैं एक अलग कमरे में रह सकूॅ।"

"बात तो तुम्हारी यकीनन सही है।" मेनका माॅ ने कहा___"लेकिन तुम्हारे अलग कमरे में रहने की बात तुम्हारी अपनी माॅ से कौन कह सकता है और किस तरह कह सकता है? उनको इसकी क्या वजह बताएॅगे?"
"कोई न कोई ठोस वजह उन्हें बतानी ही पड़ेगी माॅ।" मैने कहा___"वरना आपको पता है कि ऐसे में किसी दिन उनको पता चल ही जाएगा।"

"कल हम सब हिमालय गुरूदेव के पास जा रहे हैं।" माॅ ने कहा___"उनसे ही इस बारे में बात करेंगे। वही बताएॅगे कि ऐसी परिस्थिति में हमें क्या करना चाहिए?"
"हाॅ ये आपने सही कहा माॅ।" मैने खुशी से कहा___"गुरूदेव यकीनन इस समस्या का कोई न कोई समाधान बताएॅगे हमे। ठीक है फिर, अब गुरूदेव से बात करने के बाद ही आगे का काम करेंगे।"

"अच्छा एक बात बता मुझे।" मेनका माॅ ने कुछ सोचते हुए कहा___"रानी के बारे में क्या सोचा है तुमने?"
"क्या मतलब?" मैने सहसा चौंकते हुए कहा__"आप कहना कहना क्या चाहती हैं माॅ?"

"मैं क्या कहना चाहती हूॅ ये तू बखूबी समझ चुका है राज।" माॅ ने कहा___"फिर भी अगर मेरे मुख से ही सुनना चाहता है तो ठीक है सुन___मैने रानी की ऑखों में तेरे लिए बेपनाह मोहब्बत देखी है। और ये भी समझ सकती हूॅ कि वो तेरे लिए कितना तड़प रही है। इस लिए मैं ये कहना चाहती हूॅ कि तू उसके प्रेम को कब स्वीकार करेगा? सब कुछ जानते बूझते हुए भी तू उस मासूम को इतनी तक़लीफ क्यों दे रहा है?"

"मैं जानता हूॅ माॅ कि रानी को तक़लीफ देकर मैं ग़लत कर रहा हूॅ।" मैने गंभीर लहजे से कहा__"और यकीन मानिये ये सब करके मैं ज़रा भी खुश नहीं हूॅ। रानी को तक़लीफ देने का मतलब है कि मैं अपने आपको ही तक़लीफ़ दे रहा हूॅ।"

"अगर ऐसा सोचता है तू तो फिर ऐसा कर ही क्यों रहा है बेटे?" मेनका माॅ ने नासमझने वाले भाव से कहा___"उस मासूम के प्रेम को खुले दिल से स्वीकार क्यों नहीं कर लेता? सबके सामने हॅसते मुस्कुराते रहने वाली वो लड़की तन्हाईयों में कितना तड़पती होगी इसका एहसास है तुझे?"

"मुझे हर बात का एहसास है माॅ।" मैने पूर्वत गंभीरता से ही कहा__"मगर आप जानती हैं कि अगर मैं उसके प्रेम को स्वीकार कर लूॅगा और उसके बाद जब हम दोनों प्रेमी प्रेमिका जैसा बर्ताव करने लगेंगे तो ये बाद ज्यादा दिनों तक मेरे असल माता पिता से छुपी नहीं रह पाएगी। हलाॅकि मैं ये बात जानता हूॅ कि वो भी ये जानते हैं कि रानी अपने ही भाई से प्रेम करती है, मगर उनकी नज़र में उसका वो प्रेम उस सूरत में ज्यादा मायने नहीं रखता था जबकि उनको ये यकीन हो चुका था कि मैं इस दुनियाॅ में कहीं हूॅ ही नहीं। और जब मैं उनकी नज़र में कहीं था ही नहीं तो रानी के उस प्रेम से उन पर किसी तरह की कोई बात आती ही नहीं। मगर अब हालात बदल गए हैं माॅ, अब तो मैं उनकी नज़र में सही सलामत जीवित मौजूद हो गया हूॅ। ऐसी सूरत में जब उन्हें ये नज़र आएगा कि रानी और मैं दोनो ही एक दूसरे से प्रेम करते हैं तो सोचिए उन्हें इस बात से कितनी तक़लीफ होगी? इस संसार में कोई हमारे इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगा।क्योंकि सगे भाई बहन के बीच ऐसा रिश्ता सर्वथा अनुचित कहलाता है, और पाप भी। समाज के बीच बनी अपने पिता की ऊॅची इज्ज़त और शान को मैं ये सब दिखा कर मिट्टी में नहीं मिलाना चाहता माॅ।"

"इसका मतलब तो यही हुआ कि।" मेनका माॅ ने कहा___"तू रानी के प्रेम को ये सोच कर नहीं स्वीर करेगा कभी कि इससे तेरे पिता की इज्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी।"
"मजबूरी है माॅ।" मैने हताश भाव से कहा__"इतने वर्षों बाद मैं अपने माता पिता को मिला हूॅ, उनको खुशियाॅ देने की बजाय ये सब करके दुख नहीं देना चाहता मैं। मेरे ऐसा करने से उनके मन में यही ख़याल आएगा कि काश मैं लौट कर वापस आता ही नहीं।"

"बात तो तेरी एकदम सही है राज।" मेनका माॅ ने कहा___"यकीनन ऐसा होने से तेरे माता पिता के मन में यही बात आएगी। तो अब क्या करेगा तू? क्या सारी ज़िंदगी ऐसे ही तुम दोनो एक दूसरे के लिए तड़पते रहोगे?"
"शायद यही नसीब में है माॅ।" मैने भारी मन से कहा___"ख़ैर छोड़िये, जो होगा देखा जाएगा।"

मैंने कहा और माॅ के पास से वापस आकर सीधा बाहर की तरफ निकलता चला गया। मेरा मन बहुत भारी सा हो गया था। कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था मुझे। जब मैं बाहर आया तो मेरी नज़र एक तरफ खड़ी मेरी कार पर पड़ी। मेरी क़दम स्वतः ही उस तरफ बढ़ चले। कार के पास पहुॅच कर मैने का ड्राइंविंग डोर खोला और उसके अंदर शीट पर बैठ गया। पाॅकेट से कार की चाभी निकाल कर मैने उसे इग्नीशन पर लगा कर घुमाया तो कार स्टार्ट हो गई। कार के स्टार्ट होते ही मैने गियर लगाया और कार को मेन सड़क की तरफ दौड़ा दिया। मुझे नहीं पता था कि मैं अब कहाॅ जा रहा था? ख़ैर, शाम तक मैं यूॅ ही माधवगढ़ की सड़कों पर कार को घुमाता रहा। इस बीच मैने दो बार कार में पेट्रोल भी भरवाया था।

शाम का अॅधेरा जब छाने लगा तो मैने कार की हेडलाइट चालू की तब मुझे एहसास हुआ कि मैं सारा दिन यूॅ ही बावजह सड़कों पर भटकता रहा हूॅ। मेरे दिमाग़ ने काम करना शुरू किया। मन में एक ही ख़याल आया कि अब तक किसी ने मुझे फोन क्यों नहीं किया? मैने पैन्ट की पाॅकिट में अपना मोबाइल तलाश किया तो मोबाइल पाॅकेट में था ही नहीं। इसका मतलब मोबाइल मैं घर पर ही भूल आया था। मुझे समझते देर न लगी कि घर में सब लोग मेरे लिए परेशान होंगे। खासकर माॅ की तो हालत ख़राब हो गई होगी। ये ख़याल आते ही मैने कार को घर की तरफ मोड़ दिया और स्पीड से चल पड़ा घर की तरफ।

कुछ ही समय में मैं गर पहुॅच गया। सब लोग ड्राइंगरूम में ही बैठे थे। सबके चेहरों पर चिंता और परेशानी झलक रही थी। मुझे देखते ही सब के सब मुझसे सवाल करने लगे कि सारा दिन में कहाॅ रहा? उन सबके सवालों का जवाब मैंने अपने तरीके से देकर उन सबके मन को शान्त किया।

रात में खाना पीना खाने के बाद हम सब अपने अपने कमरे में सोने के लिए चले गए। मैं माॅ के साथ उनके ही कमरे में था। माॅ ने मुझसे पहले ढेर सारी बातें की फिर मुझे अपने सीने से छुपका कर सो जाने को कह दिया। मैंने भी उनकी बात मान कर अपनी ऑखें बंद कर ली।

अभी मुझे ऑख बंद किये कुछ ही देर हुई थी कि मेरे मोबाइल पर हल्की सी बीप की आवाज़ हुई। मैं हिल नहीं सकता था क्योंकि संभव है कि माॅ अभी सोई न हों, दूसरी बात उनका एक हाॅथ मेरी पीठ पर था। जिसके सहारे वो मुझे अपनी छाती पर छुपकाए हुए थीं। मैने माॅ की साॅसों को महसूस किया तो पता चला कि माॅ गहरी नींद में जा चुकी हैं। ये जान कर मैंने आहिस्ता से उनके हाथ को अपनी पीठ पर से हटा कर खुद को उनसे दूर किया। उसके बाद मैने अपनी पाॅकेट से मोबाइल निकाला। मोबाइल की स्क्रीन पर रानी के मैसेज का नोटीफिकेशन शो कर रहा था। मैने उसे टच करके ओपेन किया और ये देख कर मेरे होठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई कि रानी ने आज फिर से एक ग़ज़ल लिख कर भेजी थी। जो इस प्रकार थी,,,,,,,


किसी दिन हद से गुज़र जाते तो अच्छा था।
हाय उनकी याद में मर जाते तो अच्छा था।।

हम रो देते तो तौहीने वफ़ा हो जाती वर्ना,
अश्क़ ऑखों से गिर जाते तो अच्छा था।।

बंद पलकों की तरह हक़ीक़त में भी कभी,
मेरे कुछ ख़्वाब सवॅर जाते तो अच्छा था।।

फक़त इक यही आरज़ू थी के हर सू उनके,
ख़ुशबू की तरह बिखर जाते तो अच्छा था।।

समंदर के पास होने से तिश्नगी नहीं बुझती,
कभी समंदर में उतर जाते तो अच्छा था।।


रानी की ये ग़ज़ल पढ़ने के बाद मुझे समझ न आया कि मैं उसे क्या जवाब दूॅ? मैं समझ रहा था कि वो ग़ज़लों के बहाने अपने दिल का हाल मुझे बता देती है, मगर मैं सब कुछ समझते हुए भी उसकी बेहाल हो चुकी हालत के लिए कुछ कर नहीं पा रहा था। अभी तक तो ये था कि भले ही हम दोनो को एहसास है कि हम एक दूसरे से प्यार करते हैं मगर ये बात लबों के बाहर नहीं आई है। जिस दिन बाहर आ जाएगी उस दिन से वक्त और हालात बदल जाएॅगे। अभी तो हम भाई बहन की तरह बर्ताव करते हैं मगर इस सबके होने के बाद भाई बहन वाला चक्कर नहीं रह जाएगा। बल्कि हम प्रेमी प्रेमिका बन जाएॅगे और उस सूरत में हमारे बीच बहुत सी ऐसी बातें हो सकती हैं जो हमारे उस रिश्ते को किसी दिन सबके सामने उजागर भी कर सकती थीं।

मैं नहीं चाहता था कि इस सबसे एक नया बखेड़ा और एक नया दुख मेरे माता पिता के ऊपर आ जाए। कुछ देर तक रानी की भेजी हुई ग़ज़ल को देखता रहा उसके बाद मैने भारी मन से मोबाइल को एक तरफ रख दिया। बेड के एक तरफ पड़ा मैं काफी देर तक यूॅ ही लेता रहा कि तभी,,,,,,,,


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रंगनाथ जब वापस आया तो पूरी तरह शाम हो चुकी थी। उसके हाथ में एक मध्यम साइज का बैग था। जिसके अंदर शायद कुछ सामान मौजूद था। कारखाने के अंदर आकर वह महेन्द्र से मिला।

"बड़ा समय लगा दिया तुमने।" महेन्द्र ने उसे देखते हुए कहा___"साला खाली पेट इन्तज़ार करते करते मेरी तो हालत ख़राब हो गई।"
"टेंशन मत लो मित्र।" रंगनाथ ने कंधे से बैग उतारते हुए कहा___"खाली पेट का भी इंतजाम करके ही आया हूॅ। लो पहले खाना खा लो। उसके बाद काम शुरू करेंगे।"

"वो तो होगा ही।" महेन्द्र ने रंगनाथ के हाथ से उस पैकेट को पकड़ते हुए कहा जिस पैकेट को रंगनाथ ने बैग से निकाला था, फिर बोला___"लेकिन उससे पहले भरपेट खाना खाऊॅगा मैं।"

पैकेट को खोल कर महेन्द्र ने देखा उसमें काफी सारी रोटियाॅ थी और एक पाॅलिथिन में गरम गरम सब्जी थी। ये देख महेन्द्र ने अपने सूखे होठों पर जीभ फिराई और फिर टूट पड़ा सब्जी रोटी पर।

"ये सेविंग करने का सामान है।" रंगनाथ ने कहा___"जब तक तुम खाना खाओगे तब तक मैं अपनी दाढ़ी बना लेता हूॅ। उसके बाद तुम भी बना लेना। वरना इतनी बड़ी दाढ़ियों में उस पोशाक में कोई भी हम पर शक कर सकता है।"

"हाॅ ये तो सही कहा तुमने।" महेन्द्र ने कहा___"और वो वाहन ठीक ठाक है न? जिसमें हमे उन लड़कियों को ले चलना है?"
"अरे ऐसे वाहन बेहतर ही होते हैं।" रंगनाथ ने कहा___"गड़बड़ी का कोई चान्स ही नहीं होता उनमें। इस लिए बेफिकर रहो।"

"फिर तो अच्छी बात है।" महेन्द्र ने कहा और चुपचाप खाना खाने लगा। जबकि रंगनाथ अपनी दाढ़ी बनाने में लग गया।

लगभगर आधे घण्टे बाद दोनो यार तैयार थे। दोनो ने एक दूसरे के सिर के बालों को भी काट दिया था। सब कुछ करने के बाद रंगनाथ ने बैग से जो सामान निकाला वो आर्मी की पोशाक थी। दोनो ने उस पोशाक को पहनने के बाद सिर पर कैप भी लगा ली।

अब कोई भी उन्हें देख कर यही कहता कि ये दोनो हिन्दुस्तान के फौजी हैं। सिर से लेकर पाॅव तक सब कुछ फौजियों जैसा ही था। ख़ैर, दोनो तैयार होकर उस तरफ चल पड़े जिस तरफ इन लोगों ने लड़कियों को बेहोश करके रखा हुआ था। कुछ ही देर में ये दोनो एक हाल जैसे कमरे में पहुॅचे। हाल के फर्स पर सभी लड़किया अस्त ब्यस्त हालत में पड़ी हुई थी। सबके हाॅथ पीछे की तरफ बॅधे हुए थे और सबके मुख पर टेप लगा हुआ था ताकि किसी के मुझ से किसी तरह की आवाज़ न निकले।

"ये सब तो अभी भी बेहोश हैं मित्र।" रंगनाथ ने सभी लड़कियों की तरफ देखते हुए कहा__"क्या फिर से इन सबको इंजेक्शन दिया है तुमने?"
"वो तो देना ही था।" महेन्द्र ने कहा__"वो क्या है कि टाइम हो गया था इनके होश में आने का। इस लिए इन सबके पिछवाड़ों पर फिर से ठोंक दिया इंजेक्शन मैने।"

"चलो अच्छा ही है।" रंगनाथ ने कहा__"इस हालत में इन्हें यहाॅ से ले जाकर उस आर्मी वाले डग्गे में डालने में आसानी ही होगी। अब चलो, हमें देर नहीं करना चाहिए।"
"सही कहा।" महेन्द्र ने कहा__"चलो इन सबको उस डग्गे में डालते हैं।"

दोनो ही आगे बढ़े और फिर दोनो ही एक एक करके उन सभी लड़कियों को हाल से उठा कर बाहर अॅधेरे में खड़े डग्गे पर डाल दिया और फिर डग्गे से नीचे उतर कर दोनो ने डग्गे का पीछे वाला वो फटका बंद कर किया। डग्गे में पीछे साइड ही एक मोटा सा खाकी का कपड़ा लगा हुआ था, जिसे खींच कर इन दोनो ने डग्गे का पिछला सारा पोर्शन भी ढॅक दिया।

"यहाॅ पर अपना कोई सामान तो नहीं रह गया है न?" महेन्द्र ने कहा___"एक बार अंदर जाकर ठीक तरह से चेक कर के आओ।"

महेन्द्र के कहने पर रंगनाथ कारखाने के अंदर चला गया। थोड़ी देर बाद वह आया और डग्गे में ड्राइविंग शीट पर बैठे महेन्द्र के बगल वाली शीट पर बैठ गया। महेन्द्र ने उस ट्रक जैसे डग्गे को स्टार्ट किया और आगे बढ़ा दिया। फौजी डग्गा था और ये लोग भी फौजी के भेष में ही थे इस लिए कहीं भी इन लोगों को समस्या नहीं हुई। माधवगढ़ की आबादी से निकल कर ये शहर से बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ते चले गए।

"देखा मित्र।" रंगनाथ ने बड़े गर्व के साथ कहा___"हम दोनो बड़े आराम से आबादी से बाहर आ गए। कहीं पर भी किसी ने हमें नहीं रोंका, तलाशी लेने की तो बहुत दूर की बात है। साला कोई सोच भी नहीं सकता था कि हम लड़कियों को लेकर ऐसे बड़ी आसानी से निकल जाएॅगे।"

"मानना पड़ेगा मित्र।" महेन्द्र ने मुस्कुराते हुए कहा___"वहाॅ से सुरक्षित निकलने की क्या फाड़ू तरकीब निकाली थी तुमने। लेकिन यार, ये फौजी डग्गा तुम्हें मिल कैसे गया?"
"तुम्हें क्या लगता है दोस्त?" महेन्द्र ने कहा___"ये डग्गा सच में आर्मी वालों का हैं?"

"क्या मतलब?" महेन्द्र के माथे पर बल पड़ता चला गया।
"अरे इसे मैने मुहमागी रकम देकर बनवाया है डियर।" रंगनाथ ने कहा___"रियल फौजी डग्गा भला कैसे मिल जाता मुझे? इस लिए मैं एक ऐसे आदमी से मिला जो दो नंबर वाले काम करने में माहिर है। उसको मैने बताया कि फौजी डग्गा चाहिए। बस, वो समझ गया मेरी बात, इस लिए ज्यादा पैसों के लिए अपना मुह भाड़ की तरह फाड़ दिया। मैने भी सोचा यार गरज तो अपनी ही है। इस लिए ना नुकुर नहीं की मैने और उसे उसकी मुहमाॅगी कीमत दी। नतीजा तुम्हारे सामने है दोस्त।"

"और ये फौज की वर्दी और ये जूते?" महेन्द्र ने पूछा___"ये कहाॅ से लाए तुम?"
"यार आज कल मार्केट में हर चीज़ मिल जाती है।" रंगनाथ ने कहा___"ये सब भी मिल गया। अपना काम तसल्ली हो गया न?"
"हाॅ दोस्त।" महेन्द्र ने कहा___"ये ऐसा काम था जिसके लिए हमने जाने क्या क्या पापड़ नहीं बेले हैं अब तक?"

"पापड़ तो बेलने ही थे मित्र।" रंगनाथ ने गहरी साॅस ली___"हमें ऐसी लड़कियों को खोज कर उठाना था जिनका जन्म अमावश्या या पूनम की रात को ही हुआ हो। इस लिए ऐसे मुश्किल काम में इतने पापड़ तो बेलने ही पड़ते। आम लड़कियों को उठाना होता तो वो काम बहुत ही आसान था।"

"ये तो बिलकुल सही कहा मित्र।" महेन्द्र सिंह ने कहा___"ऐसी लड़कियों की खोज करना ही बड़ा मुश्किल काम था। ख़ैर, अब तो ये सब हो ही गया। इन सबको महाशैतान को सुपुर्द करने के बाद हमें ऐसी ऐसी शक्तियाॅ मिल जाएॅगी जिसकी वजह से हम कुछ भी कर सकेंगे।"

"सही कहा मित्र।" रंगनाथ ने कहा__"उन शक्तियों से सबसे पहले हम उस छोकरे से निपटेंगे जिसने उस दिन हमें छठी का दूध याद दिला दिया था।"
"हाॅ मित्र।" महेन्द्र की ऑखों के सामने उस रात का दृश्य घूम गया जब राज ने उसे और रंगनाथ को जंगल के किनारे जान से मारते मारते बचाया था, बोला___"उससे हम सबसे पहले निपटेंगे। उससे अपनी हार और अपने अपमान का बदला ज़रूर लेंगे हम। लेकिन मित्र, एक बात समझ में नहीं आई कि उसके पास इतनी खतरनाक शक्तियाॅ आई कहाॅ से? जिस तरह से उसे हमने वो सब करते देखा था तो यही लगता था जैसे कोई देव दूत धरती पर आ गया हो। किसी आम इंसान में ऐसी अद्भुत शक्तियों के होने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता।"

"कहीं न कहीं से तो मिली ही हैं उसे ऐसी शक्तियाॅ।" रंगनाथ ने कहा___"पिछले तेरह साल से वह गायब था। इन तेरह सालों में वह कहाॅ रहा और क्या करता रहा ये हम नहीं जानते। उसकी समस्त शक्तियाॅ ईश्वरी शक्तियों की तरह हैं। ऐसी शक्तियाॅ तो आज के युग में जीवन भर तप करने के बाद भी किसी इंसान को नहीं मिल सकती। लेकिन हैरत की बात है कि उसके पास ऐसी शक्तियों मानो भण्डार जमा है। इन तेरह सालों में उसने ऐसा क्या किया है कि उसके पास ऐसी शक्तियाॅ आ गईं?"

"कुछ तो ज़रूर किया है मित्र।" महेन्द्र सिंह ने सोचने वाले भाव से कहा___"काश हमें भी ऐसी कोई तरकीब मिल जाए जिससे हमारे पास भी उसके जैसी ही शक्तियाॅ हो जाएॅ।"
"चिंता मत करो दोस्त।" रंगनाथ ने महेन्द्र के कंधे को अपने एक हाॅथ से हल्का सा दबाते हुए कहा___"हमारे पास भी ऐसी शक्तियाॅ होंगी। बहुत जल्द हम भी शक्तिमान बन जाएॅगे।"

अभी रंगनाथ ने ये सब कहा ही था कि अचानक ही महेन्द्र ने उस ट्रक जैसे दिखने वाले डग्गे की स्पीड कम करके ब्रेक लगाया। रंगनाथ का बैलेन्स बिगड़ गया। अचानक ही ब्रेक लगाने से उसका पूरा जिस्म झोंक में सामने की तरफ तेज़ी से गया और डग्गे के सामने डायस से ज़ोर से टकराया। शुकर था कि सामने शीशे से नहीं टकराया वरना उसका सिर भी फट सकता था। ख़ैर, कुछ ही पल में महेन्द्र ने डग्गे को बीच सड़क पर रोंक दिया।

"क्या हुआ यार?" रंगनाथ ने खुद को सम्हालने के बाद ठीक से अपनी जगह पर बैठते हुए कहा___"इस तरह भी कोई ब्रेक मारता है क्या? मेरी तो कसम से जान हलक में आ गई थी। वैसे इस तरह से अचानक ब्रेक लगाने क्या ज़रूरत आ पड़ी थी?"

"सामने देखो।" महेन्द्र ने शीशे के उस पार हेडलाइट की रोशनी की तरफ एकटक देखते हुए कहा___"तुम्हें खुद ही पता चल जाएगा कि मैने अचानक इस तरह ब्रेक क्यों लगाया है?"

महेन्द्र सिंह के कहने पर रंगनाथ ने सामने शीशे के उस पार हेडलाइट की रोशनी की तरफ देखा और जिस चीज़ पर उसकी नज़र पड़ी उसने उसे बुरी तरह चौंका दिया। पलक झपकते ही उसकी हालत ख़राब हो गई। यही हाल स्टेयरिंग को दोनो हाथों से पकड़े महेन्द्र का भी हो गया था।

"ये ये यहाॅ कैसे आ गया?" रंगनाथ ने सहमे हुए लहजे मे कहा___"हे भगवान अब क्या होगा? आज ये हमें ज़िन्दा नहीं छोंड़ेगा मित्र। ये हम दोनो को जान से मार देगा आज।"
"जान से तो तब मारेगा दोस्त।" महेन्द्र ने सहसा कठोर भाव से कहा___"जब ये हमें जान से मारने के लिए जीवित बचेगा।"

"क्या मतलब?" रंगनाथ बुरी तरह चौंका।
"इसका किस्सा ही खत्म कर देता हूॅ में।" महेन्द्र ने गियर लगाते हुए कहा___"साले को इस डग्गे से कुचल देता हूॅ अभी।"
"क्या???" रंगनाथ ने हैरत से कहा था।

मगर महेन्द्र सिंह ने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि जबड़ों को कसे वह पूरी स्पीड से डग्गे को आगे सड़क पर दौड़ा दिया। उधर हेडलाइट की रोशनी में दिख रहे राज के समीप डग्गा पहुॅचा ही था कि सड़क पर खड़ा राज ऊपर की तरफ उछल गया। स्पीड में दौड़ता हुआ डग्गा काफी आगे तक चला गया। मगर महेन्द्र ने उसे रोंक लिया और बैक गीयर डाल कर फिर दौड़ा दिया उसे।

मगर पीछे तो कोई था ही नहीं। काफी दूर तक आ जाने के बाद भी कुछ ऐसा महसूस न हुआ जिससे पता चले कि कोई डग्गे से टकराया हो। डग्गा रोंक कर महेन्द्र ने सामने की तरफ देखा तो चौंक गया। क्यों कि राज तो अभी भी सामने तरफ ही खड़ा दिख रहा था। महेन्द्र को समझ न आया कि वो सामने तरफ कब और कैसे आ गया?
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बेड पर ऑखें बंद किये लेटे हुए सहसा मुझे कुछ महसूस हुआ। मैने पट से अपनी ऑखें खोल दी। मेरी नज़र बंद दरवाजे पर पड़ी। दरवाजे की निचली सतह पर मुझे गाढ़ा सफेद धुऑ अंदर की तरफ आता दिखा। ये देख कर मेरे मन में एक ही ख़याल आया___काल।

थोड़ी ही देर में वो गाढ़ा धुआॅ कमरे में आ गया और फिर कुछ ही पल में वो एक मानव आकृति का रूप लेते हुए स्पष्टरूप से मानव बन गया। तब तक मैं भी बेड पर आहिस्ता से उठ कर बैठ गया था।

"क्या बात है काल?" मैने एक नज़र माॅ की तरफ देखने के बाद कहा___"इस तरह यहाॅ आने का क्या कारण है? अगर कोई बात थी तो मन के द्वारा भी मुझे बता सकते थे।"
"माफ़ करना राज।" काल ने कहा___"वो मुझे जल्दी के चक्कर में ध्यान ही नहीं आया। इस लिए ऐसे आ गया मैं।"

"ख़ैर, छोड़ो ये बात।" मैने कहा___"अब बताओ ऐसी क्या बात थी जो इतना जल्दी थी तुम्हें यहाॅ आने की?"
"इस शहर में एक नया मामला सामने आया है।" काल ने कहा___"आज के अख़बार में इस मामले की ख़बर भी छपी थी।"

"कैसा मामला?" मैने पूछा।
"इस शहर में पिछले कई दिनों के भीतर काफी सारी लड़कियों के गायब होने का मामला है राज।" काल ने कहा___"मैने इस बारे में अपने तरीके से पता किया तो इस मामले में जिसका हाॅथ नज़र आया उसे तुम बखूबी जानते हो।"


काल की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गया। एकाएक ही मेरे दिमाग़ की बत्ती जल उठी।
"कहीं तुम महेन्द्र सिंह और रंगनाथ की बात तो नहीं कर रहे?" मैने कहा।
"मैं उन्हीं दोनो की बात कर रहा हूॅ।" काल ने कहा___"इन दोनो ने मिल कर पिछले कुछ दिनों के भीतर ही काफी सारी लड़कियों को अपने कब्जे में किया है, और अब ये लोग उन सारी लड़कियों को ले जा रहे हैं। मैं चाहता तो उन दोनो को उनके इस जघन्य अपराध की सज़ा ज़रूर देता मगर मुझे याद आया कि तुमने इन लोगों को कहा था कि दुबारा इस तरह अगर मुलाक़ात हुई तो तुम उन्हें ज़िंदा नहीं छोंड़ोगे। इस लिए मैने उन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।"

"वो लोग इस समय हैं कहाॅ?" मैने काल से पूछा___"आज उनको सच में ऐसे अपराध की सज़ा मौत ही मिलेगी।"
"वो लोग माधवखढ़ से आर्मी के डग्गे में उन लड़कियों को भर कर निकले हैं।" काल ने कहा___"वो दोनो खुद भी फौजी के भेष में हैं। इस वक्त वो माधवगढ़ की सीमा से बाहर पहुॅच गए होंगे। मेरे ख़याल से तुम्हें जल्द ही उन लोगों को रास्ते पर ही रोंक लेना चाहिए। अगर वो उस भयानक और खतरनाक जंगल की सीमा के अंदर दाखिल हो गए तो फिर तुम उनका कुछ नहीं कर पाओगे। रात में मायवी या आसुरी शक्तियाॅ बहुत प्रबल हो जाती हैं।"

"हाॅ ये सही कहा तुमने।" मैने बेड से उतरते हुए कहा___"मुझे जल्द ही वहाॅ पहुॅचना होगा। तुम यहीं घर के आस पास ही रहना।"
"ठीक है।" काल ने कहा___"मैं यहीं आस पास ही रहूॅगा। तुम ज़रा सावधान रहना और खुद का ख़याल भी रखना।"

मैं काल की बात पर मुस्कुराया और कमरे से गायब हो गया। मैं उस जगह पर प्रकट हुआ जिस रास्ते पर महेन्द्र और रंगनाथ रहे थे। ये रास्ता सीधा शहर से बाहर की तरफ जाता था। इसी रास्ते पर आगे वो जंगल पड़ता था। मैं उस जंगल के पहले ही इन लोगों को रोंक कर इन दोनो का काम तमाम करने वाला था।

थोड़ी ही देर में मुझे सामने तरफ से आते हुए किसी वाहन की हेडलाइट की रोशनी दिखी। मैं समझ गया ये वही डग्गा है जिसमें महेन्द्र और रंगनाथ लड़कियों को लिए आ रहे थे। कुछ ही देर में वो डग्गा मेरे पास आ गया। मैं बीच सड़क पर ही खड़ा था। इस वक्त मेरे जिस्म पर चुस्त दुरुस्त लिबास था जो कि ब्लैक लेदर का था।

मेरे नज़दीक पहुॅचते ही वो डग्गा अचानक से रुका। कदाचित् उन लोगों ने मुझे देखा नहीं था। ख़ैर,जैसे ही उन लोगों की मुझ पर नज़र पड़ी तो उन लोगों के होश उड़ गए। कुछ देर बाद ही टुस डग्गे को झटका लगा और वो तेज़ रफ्तार से चलता हुआ मेरी तरफ बढ़ा। जैसे ही डग्गा मेरी तरफ आया मैं अपनी जगह से गायब हो गया। कुछ ही देर में फिर से वो डग्गा बैक होते हुए स्पीड से आया तो मैं फिर से गायब हो गया और डग्गे के सामने ही कुछ दूरी पर प्रकट हो गया।

महेन्द्र और रंगनाथ को कदाचित इतने में ही समझ आ चुका था कि वो इस तरह में मेरा बाल भी बाॅका नहीं कर सकते थे। मैं कुछ देर तक उनके किसी ऐक्शन का इन्तज़ार करता रहा जब उस तरफ से इस बार कुछ न किया गया तो मैं डग्गे की तरफ बढ़ चला।

कुछ ही देर में मैं डग्गे के पास पहुॅच गया। ड्राइविंग डोर के पास पहुॅच कर मैने झटके से गेट खोला और उछल कर महेन्द्र का कालर पकड़ कर उसे बाहर खींच लिया। मेरे ऐसा करते ही महेन्द्र की चीख निकल गई। दूसरी तरफ बैठा रंगनाथ सकते की सी हालत में था, जैसे उसके सारे देवता कूच कर गए हों।

महेन्द्र को खींच कर मैने उसे सड़क पर पटक दिया। पक्की सड़क से जब उसका जिस्म ज़ोर से टकराया तो उसके कंठ से घुटी घुटी सी चीख निकल गई। मैने उसे उठने का मौका नहीं दिया बल्कि लातों की ठोकरों पर रख दिया से। वो चीखता चिल्लाता रहा। इधर पीछे मुझे किसी चीज़ की आहट हुई तो मैं बिजली की सी तेज़ी से पलटा।

रंगनाथ हाॅथ में लोहे का मोटा सा राड लिए बड़ी तेज़ी से मेरी तरफ आ रहा था। वो राड शायद डग्गे में ही उसे मिला था। मेरे पास आते ही उसने उस राड को मेरे सिर पर ज़ोर से चलाया तो मैं झुक गया। नतीजा ये हुआ कि राड मेरे सिर के ऊपर से निकल गया। ऊपर उठते ही मैने ज़ोर की फ्लाइंग किक रंगनाथ की पीठ पर मारी। किक ज़ोरदार थी, इस लिए रंगनाथ के हलक से हिचकी सी निकली और वह वहीं सड़क पर मुह के बल पसरता चला गया। वो राड उसके हाथ से छूट कर सड़क पर ही कुछ दूर जा गिरा था।

मैने रंगनाथ के नाटे जिस्म को पीछे से उठाया और सिर से ऊपर तक उठा कर उसे फिर से सड़क पर पटक दिया। रंगनाथ इस बार हलाल होते बकरे की तरह दर्द से चिल्लाया। वह उठने की हालत में नहीं रह गया था। सड़क पर पड़ा वह बिन पानी के मछली की तरह तड़पने लगा था। उसके कुछ ही दूरी पर महेन्द्र सिंह पड़ा था। उसके मुह और नाक से खून बह रहा था।

"तुम दोनो को मैने पहले ही चेतावनी दे दी थी।" मैने गुर्राते हुए खतरनाक भाव से कहा___"मगर तुम दोनो ने मेरी उस चेतावनी को नज़रअंदाज़ करके फिर वैसा ही घटिया काम कर दिया जिसके लिए अब तुम दोनो को मौत नसीब हो रही है।"

"हमे माफ़ कर दो बेटा।" महेन्द्र बड़ी मुश्किल से खिसक कर मेरे पैरों के पास आया, और फिर मेरे पैर पकड़ कर बोला___"हमसे ग़लती हो गई। अब ऐसा कुछ नहीं करेंगे हम। बस आख़िरी बार हमे माफ़ कर दो।"

"अब तो माफ़ी देने का सवाल ही पैदा नहीं होता।" मैने कठोर भाव से कहा__"अब तो इस अपराध के लिए तुम दोनो को मौत ही मिलेगी। मैं किसी भी इंसान को सिर्फ एक बार ही सुधरने का मौका देता हूॅ। दूसरी बार तो सिर्फ मौत देता हूॅ। तुम दोनो ने अपना पहला और आख़िरी मौका गवाॅ दिया इस लिए अब मरने के लिए तैयार हो जाओ।"

"नहीं बेटा नहीं।" महेन्द्र मेरे पैरों पर लगभग लोट गया था, बोला___"अरे मैं तेरा चाचा लगता हूॅ। तू अपने चाचा को कैसे मार देगा बेटा। मैं मानता हूॅ कि मुझसे ग़लती हुई है और मैने तेरे दिये हुए मौके का सही उपयोग भी नहीं किया है मगर फिर भी बस अब की बार और माफ़ कर दे हमे। हम अपनी क़सम खाकर कहते हैं कि अब दुबारा कभी ऐसा काम नहीं करेंगे।"

"जब मौत सिर पर आई तो रिश्तेदारी जोड़ने लगे तुम।" मैने ज़ोर का झटका देकर उसे अपने पैरों से दूर उछाल दिया___"सब जानता हूॅ मैं तेरे बारे में। तेरी फितरत से भी अच्छी तरह वाक़िफ हूॅ मैं। तू तो वैसा ही है जैसे कुत्ते की पूॅछ होती है। जो कभी सीधी नहीं हो सकती। मुझे पता है कि अगर तुझे ऐसे हज़ार मौके भी दे दिये जाएॅ तब भी तू ऐसा ही घटिया काम करेगा।"

"अब नहीं करूॅगा बेटा।" महेन्द्र सिंह एक बार मेरे पास आकर घुटनों के बल बैठ गया, बोला___"और अगर करता हुआ पाया जाऊॅ तो तू बेझिझक मुझे जान से मार देना। मगर इस बार मुझे माफ़ कर दे।"

"हाॅ राज बेटा।" रंगनाथ भी वहीं पर आ गया था, बोला___"बस आख़िरी बार और माफ़ दो हमे। हम सच कहते हैं, अब से ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जो ग़लत हो।"
"तुम दोनो चाहे जितनी रहम की भीख माॅग लो मुझसे।" मैने कहा___"उससे मेरे फैसले पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। मैं अपना उसूल और सिद्धान्त नहीं तोड़ता। इस लिए तुम दोनो को मेरे हाथों अब मौत से कोई नहीं बचा सकता।"

"ग़लतफहमी है तुम्हारी लड़के।" सहसा तभी एक नारी आवाज़ गूॅजी वहाॅ पर। मैने पलट कर देखा तो कुछ ही दूरी पर कृत्या खड़ी थी। कृत्या पर जैसे ही महेन्द्र और रंगनाथ की नज़र पड़ी तो उन दोनो में जाने कहाॅ से जान आ गई कि दोनो ही उठ कर खड़े हो गए और भागते हुए वो दोनो कृत्या के समीप पहुॅच गए। मैने उन दोनो की तरफ देखा तो अब उनके चेहरों के भाव बदल चुके थे।

"मौत तो अब तेरी होगी बेटा।" महेन्द्र ने कमीनी मुस्कान के साथ कहा___"अपनी शक्तियों का बड़ा प्रदर्शन कर रहा था न तू उस दिन। अब कृत्या से मुकाबला करके दिखा। अब पता चलेगा तुझे ताकत और शक्ति क्या होती है?"

"मैने कहा था न महेन्द्र सिंह।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"कि तुम दोनो को अगर हज़ार मौके भी दिये जाएॅ तब भी तुम दोनो सुधर नहीं सकते। अपनी इस अम्मा के आ जाने से तुम जो शेर बन रहे हो न उसका भी पता चल जाएगा तुम्हें।"

"बहुत बड़ी बड़ी बातें करता है लड़के।" कृत्या ने कहा___"मगर यहाॅ बड़ी बड़ी बातों से जंग नहीं जीती जाती। उसके लिए मुकाबला करना होता है। अभी तक तो तू कमज़ोरों से मुकाबला कर रहा था, अब मुझसे कर मुकाबला।"

"ज़रूर।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"तो फिर सबसे पहले वार करने का मौका मैं तुम्हें ही देता हूॅ कृत्या। क्योंकि मेरे वार के बाद तो तुम्हारा किस्सा ही खत्म हो जाएगा।"

कृत्या मेरी इस बात से तिलमिला गई। ऑखों में गुस्से की ज्यादती के कारण खून उतर आया उसके। अपने हाॅथ में पकड़ी एक छड़ी को उसने मेरी तरफ किया। उसकी छड़ी से एक आग का गोला निकल कर मेरी तरफ बढ़ा। मैं अपनी जगह पर शान्त खड़ा रहा। वो गोला जैसे ही मेरे पास आया वैसे ही मेरे चारो तरफ एक सुरक्षा कवच बन गया। जिससे उसका वो गोला टकराते ही नस्ट हो गया।

अपने गोले के नस्ट होते ही कृत्या हैरान रह गई। उसने तुरंत ही ऑखें बंद करके मुख से कुछ बुदबुदाया और फिर ऑखें खोल कर छड़ी को मेरी तरफ कर दिया। छड़ी से बिजली की तरंगे निकल कर मेरी तरफ बढ़ी। मगर मेरे चारो तरफ बने सुरक्षा कवच से टकराकर वो बिजली की तरंगें भी नस्ट हो गईं।

महेन्द्र और रंगनाथ ये सब ऑखें फाड़े देख रहे थे। उधर कृत्या ने फिर से कुछ बुदबुदा कर छड़ी को मेरी तरफ कर दिया। इस बार छड़ी से ढेर सारे पत्थर निकले और उड़ते हुए मेरी तरफ आए। मगर सुरक्षा कवच से टकरा वो सारे पत्थर भी नस्ट हो गए। ये सब देख कर कृत्या फिर हैरान हुई।

मैं चुप चाप सुरक्षा कवच के भीतर खड़ा उसका ये तमाशा देख रहा था। इस बार कृत्या ने छड़ी को अपने माथे से लगाया और ऑखें बंद कर कुछ बुदबुदाने लगी। कुछ ही देर में वातावरण एकदम से बदलने लगा। हवा जो अब तक सामान्य थी वो अब तीब्र वेग से चलने लगी थी। देखते ही देखते हवा की तीब्रता इतनी बढ़ गई कि उसने भयंकर ऑधी तूफान का रूप ले लिया। आस पास के पेड़ पौधे ज़ोर ज़ोर से हिलते हुए टूट कर गिरने लगे।

तभी मैने देखा कि कृत्या के चारो तरफ काला धुऑ छाने लगा और कुछ ही देर में वो धुऑ इतना छा गया कि कृत्या उस धुएॅ में पूरी तरह ढॅक गई। अचानक ही वो धुऑ बड़ी तेज़ी से गोल गोल घूमने लगा। आसमान में भयंकर काले बादल छा गए और उस पर बिजलियाॅ कड़कने लगीं। गोल गोल घूमता हुआ वो धुऑ ऊपर की तरफ उठने लगा और कुछ ही देर में वो धुऑ छटने लगा। धुऑ जब पूरी तरह छॅट गया तो मैने देखा कि वहाॅ पर बहुत ही भयानक चेहरे वाली कोई राक्षसिनी खड़ी थी। उसका आकार लगभग बीस या बच्चीस फुट से कम न था।

महेन्द्र और रंगनाथ अपने इतने समीप उस बला को देखते ही थर थर काॅपने लगे। उधर भयानक चेहरे व आकार वाली वो राक्षसिनी ज़ोर का अट्टहास लगाते हुए तथा मेरी तरफ देखते हुए अपना मुह खोल दिया। नतीजतन उसके मुख से भयंकर आग निकलने लगी। किन्तु उसकी वो आग मेरे सुरक्षा कवच से टकरा कर नस्ट हो गई। उसके बाद तो कृत्या ने बार बार कोई न कोई उपाय किया जिससे वो मुझे मार सके मगर वो कुछ न कर सकी। इस बात से उसे बेहद गुस्सा आया और वो मेरी तरफ तेज़ी से बढ़ी। मैने भी अपने चारो तरफ बने सुरक्षा कवच को हटा दिया और उससे खुल कर मुकाबला करने के लिए तैयार हो गया।

मैने कुछ ही पल में अपना आकार बढ़ा लिया और उसके जितना लम्बा हो गया। तीब्र वेग में भागते हुए वो जैसे ही मेरे पास आई मैने पूरी शक्ति से उसके चेहरे पर एक मुक्का जड़ दिया। परिणामस्वरूप वो उतनी ही तेज़ी से पीछे की तरफ उड़ते हुए गई और एक तरफ लगे मोटे से पेड़ से जा टकराई। पेड़ से टकराते ही वो पेड़ को तोड़ते हुए उसके ऊपर गिरी। मैं भागते हुए उसके पास गया। वो उठने की कीशिश कर रही थी। उसके मुख से बड़ी बयानक आवाज़ें निकल रही थी गुर्राने की। उसके पास पहुॅच कर मैने अपने दाहिने हाॅथ को हवा में किया तो मेरे हाथ में एक तेज़ रोशनी के साथ एक तलवार प्रकट हुई।

उस चमचमाती हुई तलवार को मैने घुमा कर कृत्या के सीने में दिल वाले स्थान पर घोंप दिया। राक्षसिनी बनी कृत्या के मुख से बहुत ही भयानक आवाज़ें निकलने लगी। उसके दिल वाले स्थान पर तलवार के घुसते सी उसका सम्पूर्ण जिस्म जलने लगा। वो ज़ोर ज़ोर से चीखने चिल्लाने लगी। उसके पूरे जिस्म से गाढ़ा काला धुऑ निकलते हुए उससे दूर जाने लगा था।

कुछ ही देर में वो जल कर खाक़ में मिल गई। ये सब देख कर महेन्द्र और रंगनाथ सकते में आ गए। कृत्या का ये हाल देख कर महेन्द्र और रंगनाथ की घिग्गी सी बॅध गई थी। कृत्या को खाक़ में मिलाने के बाद मैं पलटा। मेरी नज़र भागते हुए महेन्द्र और रंगनाथ पर पड़ी।

मैं एक दो क़दम में ही उन दोनो के पास पहुॅच गया। वो दोनो मुझे बिलकुछ छोटे से बच्चे की तरह दिख रहा थे। मैने हाॅथ बढ़ा कर उन दोनो को एक साथ ही मुट्ठी में पकड़ लिया। वो दोनो डर व भय से बुरी तरह चीखे जा रहे थे। उन दोनो को अपने चेहरे के पास लाकर मैने उनकी तरफ देखा।

"मौत से जितना भागोगे वो उतना ही तुम्हारे क़रीब आएगी मूर्ख।" मैने कहा___"मौत नाम की खूबसूरत बला से कोई नहीं बच सकता।"
"हमें छोंड़ दो।" दोनो एक साथ गिड़गिड़ाने लगे___"हमे माफ़ कर दो। हम कभी ऐसा काम नहीं करेंगे। बस एक बार हम पर रहम कर दो।"

उन दोनो के इस तरह गिड़गिड़ाने से मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ा। बल्कि गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले इन लोगों का चेहरा देखते ही मुझ पर गुस्सा छा गया। मैने अपनी मुट्ठी में पकड़े उन दोनो को मुट्ठी को कस कर दबा कर चटनी बना दिया। दोनो किसी टमाटर की तरह दबाव लगते ही फट कर चटनी बन गए और उनकी प्राण पखेरू उनके जिस्मों से निकल कर भाग गए।

मुट्ठी खोल कर मैने उन दोनो को एक तरफ उछाल दिया और वहीं पेड़ के पत्तों से अपने हाॅथ की हथेली पर फैले उन दोनो के खून को साफ कर लिया। उसके बाद मैने अपना आकर छोटा कर लिया। कुछ देर पहले जो वातावरण भयावह हो गया था वो अब बिलकुल सामान्य हो गया था। तीनो का काम तमाम करने का बाद मैं डग्गे के पास आया और डग्गे की ड्राइविंग शीट पर बैठ कर उसे स्टार्ट किया। डग्गे को वापस मोड़ कर मैं चल दिया माधवगढ़ की तरफ। शहर की आबादी के भीतर पहुॅच कर मैने डग्गे को ऐसे स्थान पर खड़ा किया जहाॅ पर सड़क के किनारे एक टेलीफोन बूथ लगा हुआ था।

डग्गे से उतर कर मैं उस टालीफोन बूथ के अंदर गया और अंदर रखे फोन पर पुलिस का नंबर डायल कर दिया। कुछ देर घण्टी बजती रही। उसके बाद उधर से एक आवाज़ उभरी। जो कह रहा था___"इंस्पेक्टर मेघनाद स्पीकिंग हेयर।"

"जिन लड़कियों के गायब होने की ख़बर आज तुमने अख़बार में पढ़ी थी।" मैने मोटी आवाज़ बना कर कहा___"वो सब लड़कियाॅ इस वक्त गली नंबर सत्रह के पास खड़े एक फौजी डग्गे में हैं।"

"कौन बोल रहे हो तुम?" उधर से मेघनाद की आवाज़ आई।
"इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए इंस्पेक्टर।" मैने मोटी आवाज़ में कहा__"मेरा काम तम्हें सूचना देना था, सो दे दिया। अब ये तुम्हारा काम है कि तुम यहाॅ आकर इन सभी लड़कियों को ले जाकर उन्हें उनके परिवार वालों को सौंप दो। गुड बाए।"

इतना कह कर मैने फोन रखा और बूथ से बाहर आकर मैं सड़क के उस पार एक ऐसे स्थान पर छिप गया जहाॅ से मैं बूथ के पास खड़े उस फौजी डग्गे को अच्छी तरह देख सकूॅ, किन्तु मुझे कोई न देख सके। ख़ैर, काफी देर बाद एक पुलिस जिप्सी आकर उस डग्गे के सामने रुकी। उसमें से इंस्पेक्टर मेघनाद और उसके साथ आए हुए कुछ पुलिस के शिपाही उतरे। मेघनाद के निर्देश पर उन शिपाहियों ने डग्गे की तलाशी लेना शुरू कर दिया। डग्गे के पीछे ढॅके कपड़े को हटा कर अंदर की तरफ दो शिपाहियों ने देखा, दोनो के हाॅथ में बड़ी सी टार्चें थी। अंदर देखने के तुरंत बाद ही वो दोनो शिपाही बाहर एक तरफ खड़े मेघनाद की तरफ देखते हुए ज़रा ऊॅची आवाज़ में कहा___"सर, यहाॅ तो सच में काफी सारी लड़कियाॅ मौजूद हैं। लेकिन लगता है ये सब बेहोशी की हालत में हैं अभी।"

"ओह! चलो ठीक है।" मेघनाद ने उन दोनो से कहा___"एक काम करो इस फौजी डग्गे को सीधा पुलिस स्टेशन ले चलो। मैं तुम लोगों के पीछे पीछे आता हूॅ।"
"ठीक है सर।" दोनो शिपाहियों ने एक साथ कहा और दोनो एक एक तरफ से डग्गे के आगे चढ़ गए। कुछ ही देर में वो डग्गा पुलिस जिप्सी के साइड से आगे बढ़ गया।

इधर बीच सड़क पर खड़े इंस्पेक्टर मेघनाद की नज़र टेलीफोन बूथ पर गई तो वो बूथ की तरफ बढ़ गया। बूथ के अंदर अच्छी तरह देखने के बाद वह बूथ से बाहर आया और सड़क के दोनो तरफ बड़ी बारीकी से देखने लगा। अपने दाहिने हाथ में पकड़ मे पुलिसिया रुल को वह बाईं हथेली पर हल्के हल्के मारता भी जा रहा था। काफी देर तक वह इधर उधर जाकर देखता रहा। उसके बाद वह अपनी जिप्सी की तरफ बढ़ गया। जिप्सी में बैठने के बाद भी उसने एक बार दोनो तरफ खोजी दृष्टि से देखा। फिर उसने जिप्सी को स्टार्ट किया और गियर में डाल कर उसने जिप्सी को यूटर्न दिया और जिस तरफ से आया उस तरफ जिप्सी को दौड़ाता चला गया।

इंस्पेक्टर मेघनाद के जाने के बाद झाड़ियों के पास छिपा मैं भी गायब हो गया और सीधा घर में माॅ के कमरे में प्रकट हुआ। मैने देखा माॅ अभी भी गहरी नींद में सोई पड़ी थी। मैं भी आहिस्ता हे बेड में चढ़ा और चुपचाप लेट गया। इस वक्त मेरे जिस्म पर वही रात के कपड़े थे जिन्हें पहने मैं यहाॅ से जाने से पहले सो रहा था। मेरे मन में अभी कुछ समय पहले हुई वो घटना घूमती रही। उसके बाद मैंने अपने मन को सभी तरह के विचारों से मुक्त कर सो गया। अगली सुबह हम सबको हिमालय के लिए भी निकलना था। वहाॅ गुरूदेव से मिल कर कुछ बातों के लिए मार्गदर्शन लेना था मुझे।



दोस्तो, अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,


अपडेट की देरी के लिए आप सबसे मुआफ़ी चाहता हूॅ। मगर इसमें मेरी कोई ग़लती नहीं थी दोस्तो। दरअसल अपडेट तो मैं पहले ही लगभग पूरा लिख चुका था मगर एक ट्रेजडी हो गई मेरे साथ। जैसे ही मैने पेज ओपेन किया तो ग़लती से रिप्लाई के ऑप्शन पर मेरी उॅगली रख गई, उससे हुआ ये कि जिस बंदे के कमेंट के पास रिप्लाई के ऑप्शन पर उॅखली रखी थी उसी बंदे का कमेंट ब्रैकेट में आ गया और जो अपडेट मैने लिखा था वो सारा हट गया। यकीन मानिये दोस्तो, इस सबसे मेरा इतना ज्यादा दिमाग़ ख़राब हुआ कि लगा कि फोन को फर्स पर पटक दूॅ।

ख़ैर, अब क्या हो सकता था भला? मैने खुद के गुस्से को शान्त किया और सारा अपडेट फिर से लिखना शुरू किया। मुझे याद ही नहीं था कि मैने क्या क्या लिख डाला था पहले?


इस अपडेट के चक्कर में मैं अपनी पहली कहानी एक नया संसार का अपडेट भी नहीं लिख पाया। दोस्तो एक बार फिर से मुआफ़ी चाहता हूॅ आप सबसे। क्या करूॅ यारो, अब ग़लती तो हो ही गई।
कोई नही बस अब इस कहानी को पूरा जरूर करना।
 

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
अपडेट- ( 28 )

अब तक,,,,,,,,,
"ओह! चलो ठीक है।" मेघनाद ने उन दोनो से कहा___"एक काम करो इस फौजी डग्गे को सीधा पुलिस स्टेशन ले चलो। मैं तुम लोगों के पीछे पीछे आता हूॅ।"
"ठीक है सर।" दोनो शिपाहियों ने एक साथ कहा और दोनो एक एक तरफ से डग्गे के आगे चढ़ गए। कुछ ही देर में वो डग्गा पुलिस जिप्सी के साइड से आगे बढ़ गया।

इधर बीच सड़क पर खड़े इंस्पेक्टर मेघनाद की नज़र टेलीफोन बूथ पर गई तो वो बूथ की तरफ बढ़ गया। बूथ के अंदर अच्छी तरह देखने के बाद वह बूथ से बाहर आया और सड़क के दोनो तरफ बड़ी बारीकी से देखने लगा। अपने दाहिने हाथ में पकड़ मे पुलिसिया रुल को वह बाईं हथेली पर हल्के हल्के मारता भी जा रहा था। काफी देर तक वह इधर उधर जाकर देखता रहा। उसके बाद वह अपनी जिप्सी की तरफ बढ़ गया। जिप्सी में बैठने के बाद भी उसने एक बार दोनो तरफ खोजी दृष्टि से देखा। फिर उसने जिप्सी को स्टार्ट किया और गियर में डाल कर उसने जिप्सी को यूटर्न दिया और जिस तरफ से आया उस तरफ जिप्सी को दौड़ाता चला गया।

इंस्पेक्टर मेघनाद के जाने के बाद झाड़ियों के पास छिपा मैं भी गायब हो गया और सीधा घर में माॅ के कमरे में प्रकट हुआ। मैने देखा माॅ अभी भी गहरी नींद में सोई पड़ी थी। मैं भी आहिस्ता हे बेड में चढ़ा और चुपचाप लेट गया। इस वक्त मेरे जिस्म पर वही रात के कपड़े थे जिन्हें पहने मैं यहाॅ से जाने से पहले सो रहा था। मेरे मन में अभी कुछ समय पहले हुई वो घटना घूमती रही। उसके बाद मैंने अपने मन को सभी तरह के विचारों से मुक्त कर सो गया। अगली सुबह हम सबको हिमालय के लिए भी निकलना था। वहाॅ गुरूदेव से मिल कर कुछ बातों के लिए मार्गदर्शन लेना था मुझे।
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अब आगे,,,,,,,,,
सुबह हुई!
आज का दिन सबके लिए बेहद खास था क्योंकि सबको एक साथ गुरुदेव से मिलने तथा उनका आशीर्वाद लेने के लिए हिमालय जाना था। हर कोई सुबह पाॅच बजे ही उठ गया था। सब अपने नित्यकर्मों से फारिग़ हो कर तैयार हो चुके थे।

सुबह आठ बजे तक सबने थोड़ा बहुत नास्ता किया उसके बाद सब लोग बाहर आ गए। घर के नौकरों ने सबका जो भी थोड़ा बहुत सामान था उन्हें बाहर खड़ी गाड़ियों में लाद दिया था। अशोक ने तीन गाड़ियाॅ तैयार की थीं। हलाॅकि तीन कारों की ज़रूरत नहीं थी। किन्तु राज ने अपनी भी एक कार ले ली थी जिसमें वो और रानी ही बस बैठ कर साथ में जाने वाला था। बाॅकी की एक कार में अशोक के साथ उसकी दोनों बीवियाॅ थीं जबकि दूसरी कार में मेनका, काया, रिशभ व वीर आदि जाने वाले थे।

सुबह के साढ़े आठ बजे तीनों कारों का क़ाफिला घर से हिमालय तक की लम्बी यात्रा के लिए निकल चुका था। सबसे आगे वीर आदि की कार थी। जिसमें वीर ही कार को ड्राइव कर रहा था तथा आगे जाने के लिए बाॅकी की पीछे वाली कारों का मार्गदर्शन कर रहा था।

सब लोग बेहद खुश थे और जल्द से जल्द हिमालय पहुॅच जाना चाहते थे। सबसे पीछे राज और रानी थे। राज की कार सबसे अलग ही नज़र आ रही थी। रानी बेहद खुश थी कि वो अपने भाई राज व अपने प्रियतम के साथ बैठी थी। उसने सारी रात ईश्वर से यही विनती कर कर के गुज़ार दी थी कि हे भगवान जी कल मैं और राज जी दोनो एक ही कार में साथ जाएॅ और दूसरा हमारे बीच कोई न हो। अब जबकि उसकी फरियाद को उसके भगवान जी ने क़ुबूल कर लिया था तो वो अंदर से बेहद खुश थी किन्तु उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो इस माकूल मौके पर राज से कैसे और क्या बात करे? उसे एक भाई से बात करने में कोई झिझक नहीं हो रही थी किन्तु राज उसका भाई होने के साथ साथ उसका प्रियतम भी था जिससे उस रिश्ते से बात करने में उसे बेहद झिझक महसूस हो रही थी। सच तो ये था कि उसमें इतनी हिम्मत ही नहीं थी कि वो राज से अपने प्रेम से संबंधित कोई बात कर सके। ग़ज़ल के माध्यम से उसने कई बार अपने प्रेम को अपने प्रतियतम के सामने उजागर कर दिया था किन्तु वो सब एक अप्रत्यक्ष वाली बात थी जिसमें वास्तविकता का अंश होते हुए भी नज़र न आया था।

"क्या बात है?" मैंने कार के अंदर छाई ख़ामोशी को चीरते हुए कहा____"इतनी चुप चुप सी क्यों बैठी हो बहना? क्या कुछ सोच रही हो?"
"न..नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है भइया?" रानी एकदम से सकपका गई थी, बोली____"आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?"

"अच्छा एक बात बता मुझे?" मैंने उसकी तरफ एक नज़र देखने के बाद कहा।
"जी पूछिए।" रानी ने धड़कते दिल से कहा।
"हम दोनो जुड़वा हैं न?" मैंने कहा।
"हाॅ..तो??" रानी ने पलट कर मेरी तरफ नासमझने वाले भाव से देखा।

"तो ये कि तू मुझे इतनी इज्ज़त क्यों दे रही है?" मैंने सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"जहाॅ तक मुझे पता है मैने यही देखा है कि जुड़वा भाई बहन के बीच इतना प्यार होता है कि वो कभी एक दूसरे को इज्ज़त दे ही नहीं सकते। उनके बीच इतनी अच्छी अण्डरस्टैण्डिंग होती है कि उनकी आपस में कभी बनती ही नहीं है। हलाॅकि इसके कुछ अपवाद भी हैं मगर ज्यादातर तो ऐसा ही देखने को मिलता है। मगर हमारे बीच ऐसा क्यों नहीं है?"

"तो आप भी उनकी तरह यही चाहते हैं कि हमारे बीच भी वैसा ही माहौल होना चाहिए?" रानी ने इस बार मुस्कुरा कर कहा____"यानी हम आपस में जब देखो लड़ते झगड़ते ही रहें और एक दूसरे से तू तड़ाक में बातें करें?"

"बेशक।" मैने कहा___"मुझे लगता है कि इससे हमारे बीच किसी किस्म का पर्दा नहीं रहेगा और ना ही एक दूसरे से कुछ कहने में झिझक महसूस होगी। यानी अगर कोई ऐसी बात है जिसे हम आम हालत में कह नहीं सकते तो ऐसे में हम उस बात को बड़े आराम से कह सकते हैं। फिर भले ही उस बात को कहने का तरीका भाव के विपरीत हो। यानी अगर कोई बात सीरियस है तो उस बात को सीरियसली न कह के मज़ाक में अथवा गुस्से से झगड़ते हुए कह डालें।"

"पता नहीं कैसी ऊल जुलूल बातें कर रहे हैं आप?" रानी के माॅथे पर उलझन के भाव आ गए____"मेरे तो कुछ पल्ले ही नहीं पड़ीं।"

"अच्छा।" मैं हॅस पड़ा___"पर मैने तो बड़े ही सरल तरीके से ही कही थी ये बातें। ख़ैर, मैं ये कह रहा हूॅ कि हमारे बीच भी वैसी ही बाण्डिंग होनी चाहिए। सोचो कि अगर हम तेरह साल एक दूसरे से दूर न होते तो बचपन से हमारे बीच कैसा माहौल बनता? वैसा ही न जैसे की अभी मैं बातें कर रहा था? यानी हम बचपन में जब नादान व नासमझ होते तो अक्सर हमारे बीच किसी न किसी बात को लेकर झगड़ा होता और कई तरह की नोंक झोंक भी होती। किन्तु नियति में तो ये लिखा था कि मुझे तुम सबसे बिछड़ जाना था और फिर तेरह साल बाद जब मिले तो हमारे बीच एक दूसरे के प्रति आदर व सम्मान करने की भावना आ गई। जबकि मैं यही उम्मीद कर रहा था कि हम भी संसार के सभी भाई बहनों की तरह ही होंगे
और उनके जैसा ही हमारे बीच माहौल होगा।"

"आदर सम्मान की भावना रखना ग़लत तो नहीं है न भइया?" रानी ने कहा____"मैं मानती हूॅ कि आज के युग के भाई बहन के बीच कैसा माहौल रहता है, किन्तु ऐसे भी बहुत से भाई हैं जिनके बीच आदर सम्मान वाली बात होती है। दूसरी बात ये है कि मुझे अच्छा लगता है आपको सम्मान देना। पता नहीं क्यों पर मेरा ज़मीर आपसे तू तड़ाक में बात करने की इजाज़त नहीं देता।"

"मैं तुम्हारी इन भावनाओं की कद्र करता हूॅ रानी।" मैने कहा____"किन्तु ये भी कहूॅगा कि अगर हम तेरह साल बाद मिले हैं तो क्यों न हम अपने बचपन के दिनों को वैसे ही जियें जैसे कि बचपन में हम दोनो एक साथ रह कर जी सकते थे।"

रानी ने मेरी बात पर बड़े ग़ौर से मेरी तरफ देखा। मेरा चेहरा सामने रास्ते की तरफ था। वो मेरे चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी। जैसे समझना चाहती हो कि मेरे ऐसा कहने का और क्या मतलब हो सकता है?

"मैं जानता हूॅ रानी।" मैने सामने की तरफ ही देखते हुए सहसा गंभीरता से कहा____"कि जिस तरह मैं तुम सबसे दूर रह कर अपने बचपन को उस तरह नहीं जी पाया वैसे ही तुम भी नहीं जी पाई हो। बल्कि अगर ये कहूॅ तो ग़लत न होगा कि मुझसे कहीं ज्यादा दुख तक़लीफ में तुम्हारा बचपन गुज़रा है। दरअसल हम दोनो इस एहसास से महरूम ही रहे कि बचपना क्या होता है। इसी लिए तो कह रहा हूॅ कि क्यों न हम दोनों वापस अपने बचपन के समय में लौट चलें और उस ऊम्र के हर पल को जी भर के जियें।"

मेरी बात सुनते ही पता नहीं रानी को क्या हुआ कि वो एकदम से खिसक कर मेरे पास आई और बगल से ही मुझसे लिपट कर सिसकने लगी। मैं समझ सकता था कि उसे मेरी बातों का अर्थ समझ में आ गया था। वो खुद भी कदाचित यही चाहती थी। जैसा कि मुझे पता था उसे एक भाई बहन के रिश्ते से मुझसे बात करने में कोई झिझक नहीं थी कि किन्तु प्रेम वाले रिश्ते में उसके अंदर झिझक व शर्म दोनो उत्पन्न हो जाती थी।

"क्या हुआ?" मैने कार की रफ्तार को हल्का सा कम करते हुए कहा____"इस तरह रोने क्यों लगी तुम? तुम्हारी ऑखों से जितने ऑसू बहने थे वो बह चुके हैं अब और नहीं। अब इन ऑखों से ऑसू नहीं बहने चाहिए बहना। मैं तेरी ऑखों से बहते हुए ये ऑसू नहीं देख सकता। क्योंकि इससे मुझे बेहद तक़लीफ होने लगती है जो कि असहनीय हो जाती है।"

"रो लेने दीजिए न भइया।" रानी और भी बुरी तरह मुझसे लिपट कर रोने लगी____"बस ये समझ लीजिए कि ये मेरे आख़िरी ऑसू हैं। जिनका बह जाना बेहद ज़रूरी है। आप नहीं जानते कि आपसे इस तरह लिपट कर रोने के लिए कितना तड़प रही थी मैं। आज मुझे जी भर के रो लेने दीजिए।"

उसकी इस बात पर मैं कुछ कह न सका। मैं जानता था कि वो भाई बहन के रिश्ते की आड़ में अपने उस रिश्ते की पीड़ा को अपनी ऑखों के रास्ते से बहा देना चाहती थी जो रिश्ता एक प्रेम का था और जिस प्रेम के रिश्ते के चलते वह अब तक पीड़ा में तड़प रही थी। ख़ैर काफी देर तक वह मुझसे उसी तरह लिपटी रोती रही। उसके बाद वह मुझसे अलग हुई। किन्तु वह मेरे पास ही सट कर बैठी रही।

"अब कैसा लग रहा है?" मैने हल्के से मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखा____"रो लेने से मन का बोझ हल्का हुआ कि नहीं?"
"जी....मैं कुछ समझी नहीं?" रानी ने उलझनपूर्ण भाव से मेरी तरफ देखा था।
"अरे तुम्हीं तो कह रही थी न।" मैने कहा____"कि तुम्हें जी भर के रो लेने दूॅ तो अब तो रो लिया न तुमने? अब कैसा लग रहा है?"

"कुछ कुछ अच्छा लग रहा है।" उसने नज़रें नीची करते हुए कहा।
"कुछ कुछ क्यों?" मैने हैरानी ज़ाहिर करते हुए पुनः उसकी तरफ देखा____"मुझे तो लगा कि इतना ज्यादा रो लेने से अब तुम्हें काफी अच्छा महसूस हो रहा होगा।"
"ये सब कहने की बातें हैं।" उसने नज़रें नीचे किये हुए ही धीमे स्वर में कहा___"जबकि असल में ऐसा होता नहीं है। कम से कम मुझे तो ऐसा नहीं लग रहा।"

"इसका तो एक ही मतलब है रानी।" मैने सामने की तरफ देखते हुए कहा___"कि तुम जिस बात के लिए रोना चाहती थी उसमें अभी कोई कमी रह गई है।"
"तो क्या मुझे अभी और रोना चाहिए?" रानी ने बड़ी मासूमियत से सिर उठा कर मेरी तरफ देखा।

"अरे नहीं पागल।" मैं उसकी इस मासूमियत भरी बात पर हॅस पड़ा था, बोला____"अब अगर तूने ऑसू बहाया तो देख लेना अच्छा नहीं होगा।"
"तो फिर आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?" रानी ने मेरी तरफ देखते हुए ही कहा____"कि मेरे रोने में अभी कोई कमी रह गई है।"

"मेरे कहने का मतलब ये नहीं था कि तुम फिर से रोना शुरू कर दो।" मैने उसकी तरफ देखा___"बल्कि मैं ये कह रहा था कि तुम जिस बात के चलते रो रही थी उसके आधार पर तुमने ऑसू तो बहा लिए मगर वो बात तो तुम्हारे अंदर ही रह गई न। इंसान तभी रोता है जब कोई बात होती है। अगर वो बात ही खत्म हो जाए तो फिर आदमी रोएगा ही क्यों? इस लिए मैं कह रहा था कि अभी कमी रह गई है। अतः तुम्हें उस बात को ही खत्म करना चाहिए था।"

"और वो बात कैसे खत्म होगी?" रानी ने एक बार पुनः मासूमियत से देखा मेरी तरफ।
"जब वो बात ज़ुबां से बाहर निकल जाएगी।" मैने भी पलट कर उसकी तरफ देखा____"क्योंकि जब तक वो बात तुम्हारे अंदर रहेगी तब तक वो तुम्हें दुखी करती रहेगी और फिर तुम उस दुख से रोती रहोगी। इस लिए बेहतर यही है कि उस बात को अपने अंदर से निकालो और दुख की इस जड़ को खत्म कर दो।"

"और अगर उस बात को अंदर से निकालना आसान न हो तो??" रानी की नज़रें पुनः झुकती चली गईं। कदाचित उसके अंदर एकाएक ही कोई तूफान चलने लगा था। शायद वो ये सोचने लगी थी कि मैं उसके दिल का हाल जान गया हूॅ। जिसकी वजह से उसके दिल की धड़कनें बढ़ चली थीं और वो मुझसे नज़रें मिलाने पर कतराने लगी थी।

"यूॅ तो दुनियाॅ में कोई भी चीज़ आसान नहीं है रानी।" मैने दार्शनिकों वाले अंदाज़ से कहा___"मगर इंसान को उसे आसान बनाना पड़ता है। कठिन से कठिन हालात का सामना करना पड़ता है। हालातों से अगर हम घबरा गए और उसका सामना न किया तो फिर हम हालातों में ही फॅसे रह जाते हैं और उससे मिलने वाले दर्द से ब्यथित होते रहते हैं। इस लिए हर इंसान को किसी भी परिस्थित से मुकाबला करने के लिए मजबूती से तैयार रहना चाहिए।"

"हर कोई आप जैसा साहसी अथवा समझदार नहीं हो सकता भइया।" रानी ने एक बार फिर से मेरी तरफ देखा, बोली____"कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनमें साहस व धैर्य की कमी भी होती है। कुछ ऐसे भी होते हैं जो स्वभाव से ही कमज़ोर होते हैं तथा कुछ लोगों को प्रकृति पहले से ही ऐसा बना देती है जो मुश्किल समय में हालात का सामना कर ही नहीं सकते।"

"बात तो तुम्हारी सही है रानी।" मैने कहा___"किन्तु ध्यान देने योग्य बात ये है कि ऐसे लोगों के लिए ही वो लोग उदाहरण स्वरूप होते हैं जो मुश्किल वक्त में हालातों का सामना करते हैं। हर इंसान जब जन्म लेता है तो एक जैसा ही रहता है किन्तु समय के साथ जब वो बड़ा होता जाता है तो उसमें हर चीज़ का विकास होता रहता है। कुछ लोगों में ये सोच दृढ़ होने लगती है कि हमें ऐसा काम करना है जो सामान्य न होकर खतरनाॅक हो। उन्हें लगता है कि सामान्य कार्य तो हर आम मनुष्य कर लेगा जबकि मुझे कुछ अलग और कठिन काम करना चाहिए और कुछ ऐसे होते हैं जिनमें काबीलियत होते हुए भी आलस्य के चलते सामान्य कार्य भी करने से कतराते हैं। कहने का मतलब ये कि हम अपनी सोच को एक दिन अपनी आदत बना लेते हैं और फिर धीरे धीरे ऐसा समय आ जाता है जब वही इंसान ये कहने लगता है कि ईश्वर ने उसे कमज़ोर बना दिया है जिसके चलते वो कुछ कर ही नहीं सकता। वो खुद को दोष नहीं देता कि उसने शुरू से ऐसा क्यों किया था?"

मेरी बातों को रानी बड़े ध्यान से सुन रही थी। मैं चुप हुआ तब भी वो कुछ न बोली। कदाचित मेरी बातों को सोचते हुए वो ये समझने की कोशिश कर रही थी कि मेरी बातों का सार क्या हो सकता है?

"ख़ैर जाने दो बहना।" मैं उसे चुप देख कर बोला___"ये संसार हर तरह के लोगों से भरा पड़ा है। हर इंसान किसी न किसी की नकल करता है, कुछ ऐसे भी होते हैं जो खुद ये सोच कर कुछ अलग करते हैं कि दूसरे लोग उसकी नकल करेंगे। ऐसा होता है कि हम नकल करने भी लगते हैं, ये अलग बात है कि हम उन्हीं चीज़ों की नकल करते हैं जो हमारे लिए उपयोगी अथवा सरल होती हैं। कोई अच्छी चीज़ों की नकल करता है तो कोई बुरी चीज़ों की। ख़ैर, मैं तो बस इतना जानता हूॅ कि कोई भी काम करो मगर पूरी ईमानदारी से और बेझिझक हो कर। किसी से कुछ कहो भी तो बेझिझ हो कर। बस इस बात का ख़याल रहे कि हमारे काम से तथा हमारी बात से किसी का दिल न दुखे।"

"अब ये बताइये भइया कि आप कहना क्या चाहते हैं?" रानी ने एक बार पुनः मेरी तरफ मासूमियत से देखा।
"यही सवाल तो मैं तुमसे करना चाह रहा था रानी।" मैंने भी उसकी तरफ देखा___"इतनी सारी बातों का यही मतलब है कि तुम्हारे अंदर जो बात है तथा जिस बात ने तुम्हें दुखी करके रोने पर मजबूर किया उस बात को अपने अंदर से निकाल दो। मैं तुम्हारा भाई हूॅ, हम दोनो की उमर में सिर्फ इतना ही अंतर है कि मैं तुमसे सिर्फ पाॅच मिनट का बड़ा हूॅ। आज के समय के अनुसार तो तुम्हें मुझसे हर बात खुल कर करना चाहिए। मुझे अपना भाई के साथ साथ अपना दोस्त अथवा मित्र भी समझ सकती हो। एक ऐसा दोस्त जिससे अपने दिल की अथवा अपने मन की हर बात शेयर की जा सकें। मैं जानता हूॅ कि तुम एक लड़की भी हो एवं मैं एक लड़का और ऊपर से दोनो ही भाई बहन भी हैं जिसके चलते हर बात शेयर नहीं की जा सकती क्योंकि हमारे बीच कुछ मर्यादाएॅ भी हैं। किन्तु उन बातों को तो शेयर किया ही जा सकता है न जिनमें मर्यादा जैसी कोई बात ही न हो?"

"आपको क्या लगता है?" रानी ने अपनी नज़रें सामने की तरफ करके कहा___"मेरे अंदर ऐसी कौन सी बात हो सकती है जिसकी वजह से मुझे दुख होता है और फिर मुझे रोना आ जाता है?"

"ये मैं कैसे बता सकता हूॅ भला?" मैने एक बार उसकी तरफ देखने के बाद कहा____"मैं कोई ऐसा इंसान तो हूॅ नहीं जो किसी का भूत वर्तमान व भविष्य बता सकता है।"
"तो फिर आपने कैसे कह दिया?" रानी ने कहा____"कि मेरे अंदर ऐसी कोई बात है जिसकी वजह से मुझे दुख होता है?"

"तुम्हारी बातों से और तुम्हारे चेहरे के भावों को महसूस करके।" मैने कहा___"कहते हैं कि इंसान की ऑखें और चेहरा ऐसे होते हैं जो अपने अंदर का वास्तविक हाल जता देते हैं। मैं तुम्हारी ऑखों और चेहरे के भावों को देख कर इतना तो महसूस कर सकता हूॅ कि तुम्हारे अंदर कुछ है लेकिन वो क्या है ये नहीं बता सकता? इस लिए वो तुम्हें खुद बताना पड़ेगा।"

"बात तो वही हो गई भइया।" रानी ने गहरी साॅस ली___"कि कुछ बातें बताने के लिए कभी कभी इंसान ना तो साहस जुटा पाता है और ना ही उसमें हिम्मत होती है। मेरा भी वही हाल है।"

"इसका मतलब ये हुआ।" मैने उस पर एक नज़र फिर डाली____"कि मेरे इतने लम्बे चौड़े भाषण का कोई मतलब नहीं रह गया और ये भी कि हम दोनो चाह कर भी फिर से अपना बचपन नहीं जी सकते।"

"ऐसा तो मैने नहीं कहा आपसे।" रानी चौंकी____"किन्तु ये ज़रूर है कि फिर से बचपन जीने के लिए मुझे थोड़ा समय लग सकता है। मुझे खुद को मानसिक रूप से तैयार करना पड़ेगा। मेरे लिए ये बहुत मुश्किल है कि मैं एकाएक ही अपनी फितरत के विपरीत जा कर उस तरह का ब्यौहार करने लग जाऊॅ।"

"शुरू शुरू में ही मुश्किल होती है रानी।" मैने उसकी तरफ पुनः देखने के बाद कहा____"एक बार शुरुआत हो गई तो फिर सब कुछ बड़ा आसान सा हो जाता है। तुम्हें पता है मैं काया माॅ को अक्सर छेंड़ता रहता हूॅ और वो खुद भी मुझे छेंड़ती रहती हैं जबकि वो मेरी माॅ हैं और मुझसे उमर में बहुत बड़ी हैं। शुरू शुरू में हम दोनो को ही बड़ा अजीब लगा करता था किन्तु उसके बाद फिर इस सबकी आदत हो गई और अब तो ऐसा आलम है कि वो जानबूझ कर मुझे ऐसा अवसर देती हैं कि मैं उन्हें छेंड़ूॅ। हम दोनो के बीच ऐसा माहौल बन जाता है जैसे कि हम दोनो बच्चे हों और आपस में लड़ झगड़ रहे हों। बाॅकी सब लोग हम दोनो का तमाशा देख देख कर मज़ा लेते रहते हैं। अब सोचने वाली बात है कि ये सब करना क्या इतना आसान रहा होगा हमारे लिए? बिलकुल भी नहीं, लेकिन हमने शुरूआत की, भले ही वो शुरुआत अंजाने में हुई थी। कभी कभी ऐसा माहौल पहले से ही बना होता है कि हम हॅसी हॅसी में किसी को कुछ कह देते हैं और सामने वाला उस पर कोई ऐतराज़ नहीं करता बल्कि वो खुद भी हमारे साथ शामिल हो जाता है। तो कहने मतलब यही है कि माहौल अगर पहले से नहीं बना है तो खुद बनाओ। शुरुआत छोटी सी और धीरे धीरे करो मगर करो। फिर तो बाद में सब कुछ आसान लगने लगेगा।"

"कोशिश करूॅगी।" रानी ने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"लेकिन आपने कहा कि आप काया माॅ को छेंड़ते रहते हैं अक्सर तो क्या ये सच कह रहे हैं आप?"
"भला मैं तुमसे झूॅठ क्यों बोलूॅगा?" मैने रानी की तरफ देखा____"तुम खुद पूछ लेना उनसे। वो खुद भी मुझे छेंड़ती हैं। हम दोनो बच्चों की तरह झगड़ने लगते हैं मगर वो सब भी एक प्यार दुलार ही होता है। हम दोनो को उससे खुशी मिलती है।"

"क्या मेनका माॅ से भी ऐसे ही आप झगड़ते हैं?" रानी ने हैरत से पूछा था।
"नहीं, उनसे नहीं।" मैने कहा___"वो उन सबसे बड़ी हैं और हमेशा बड़ों की तरह ही ब्यौहार करती हैं। दरअसल उन दोनो बहनों में एक यही अंतर है कि एक गंभीर स्वभाव की हैं और एक हॅसमुख स्वभाव की जिन्हें हॅसी मज़ाक करते रहना पसंद है और इसी में उन्हें आनंद मिलता है।"

"फिर तो आप बड़े भाग्यशाली हैं भइया।" रानी ने सहसा उदास भाव से कहा____"आप हमेशा हॅसी खुशी के माहौल में पले बढ़े और एक मैं थी जो तनाव से भरे वातावरण में बचपन से ही घुटती रही थी। माॅ(सुमन) ने मुझे प्यार दुलार करने में कभी कोई कमी नहीं की थी किन्तु उनके इतने सारे प्यार दुलार पर माॅ(रेखा) की बेरुखी व उनकी तीखी बातें भारी पड़ जाती थीं। जिसकी वजह से मैं अक्सर दुखी ही रहती और रोती भी।"

"हाॅ मैं जानता हूॅ।" मैने कहा____"और इसी लिए कह रहा हूॅ कि हम दोनो अपने बचपन को फिर से जीते हैं किन्तु साथ साथ।"
"आप ठीक कह रहे हैं।" रानी ने कहा____"कदाचित इससे हमारी वो तक़लीफें दूर हो जाएॅ जो हमें बचपन से मिली थीं और हम एक बार फिर से उस ऊम्र को जी लें जिसको हमने जाना समझा ही नहीं।"

"बिलकुल।" मैने कहा____"दूसरी बात इससे हमारे माता पिता को भी हमारा बचपन फिर से देखने को मिल जाएगा।"
"तो कब से शुरू करना है ये वाला खेल?" रानी ने मेरी तरफ हल्के से मुस्कुराते हुए देखा था।
"ये खेल नहीं है बहना।" मैने उसकी ऑखों में देखा___"ये तो वास्तविकता वाली बात है। इसे खेल की दृष्टि से मत देखो। रही बात शुरुआत की तो हिमालय से लौटने के बाद हम इसकी शुरुआत करेंगे।"

मेरी बात पर रानी बस मुस्कुरा कर रह गई। कुछ देर के लिए हमारे बीच सन्नाटा छाया रहा। जैसे अब हमारे पास कहने के लिए कुछ था ही नहीं। किन्तु ऐसा था नहीं। कहने को तो एक दूसरे से बातें करने के लिए बहुत कुछ है मगर कहा नहीं जा सकता।"

"अच्छा ये बताइये कि।" रानी ने सहसा पहलू बदला___"कि इतने सालों से हिमालय में क्या करते रहे थे आप? और एक सबसे ज़रूरी बात ये कि उस रात जब आप माॅ के जन्मदिन पर आए थे तब आप एकदम से वैसे ही कैसे दिखने लगे थे जैसे आप आज से तेरह साल पहले दिखते थे? आई मीन पाॅच साल के बच्चे की तरह और फिर अचानक से गायब भी हो गए? मैं और माॅ आपको देख रहे थे और जब पापा को माॅ बता रही थी कि देखो मेरा बेटा आ गया है तो आप उन्हें नहीं दिख रहे थे। अगर दिख रहे होते तो पापा उस समय ये कभी न कहते माॅ को कि फिर से पागलपन की बातें मत करो। मतलब साफ है कि आप उन्हें नहीं दिख रहे थे और वो यही समझ रहे थे कि माॅ आपको कल्पनाओं में देख रही हैं और साथ ही ऐसा ब्यौहार कर रही हैं। तो वो सब क्या था भइया?"

मैं रानी के इन सवालों को सुन कर एकदम कुछ बोल न सका। दरअसल उसके इस सवाल ने मेरे दिमाग़ को झनझना दिया था। मुझे लगा कहीं ऐसा तो नहीं कि रानी को यकीन हो गया हो कि जो कुछ उस रात दिखा था वो सब सच ही हो, यानी कोई भ्रम न हो?

"जवाब दीजिए न।" रानी ने मुझे चुप देख कर पुनः कहा___"आख़िर वो सब क्या था और अगर वो सब वास्तव में सच था तो वैसा कुछ कैसे संभव हो सकता है?"
"लेकिन मैने तो ऐसा कुछ नहीं देखा था वहाॅ।" मैने साफ झूॅठ बोल देना ही बेहतर समझा___"और शायद किसी ने भी नहीं देखा था वैसा कुछ जैसे कि तुम बात कर रही हो।"

"क्या आप सच कह रहे हैं?" रानी के चेहरे के भाव बता रहे थे कि उसे मेरी बात पर बिलकुल भी यकीन नहीं हो रहा था।
"भला मैं झूॅठ क्यों बोलूॅगा तुमसे।" मैने भी तर्क दिया।
"वो जो साधू बाबा आए थे।" रानी कह रही थी___"और जो कुछ भी बोले तथा उसके बाद जब वो हम सबको आशीर्वाद देकर जाने लगे तो यही बोले थे कि उनके आने और जाने वाला सारा दृष्य और वो सब बातें किसी को याद नहीं रहेंगी। तो सवाल ये है कि ऐसा क्यों? मैने साफ देखा था कि वो साधू बाबा एकदम से गायब हो गए थे। ज़रूर उनमें कोई अलौकिक शक्ति थी। आप तेरह साल उनके पास रहे, और इस घटना के बाद से ये ज़ाहिर हो जाता है कि इन तेरह सालों में आप उन साधू बाबा के साथ रह कर कुछ तो ऐसा किया है जो कि आम इंसान नहीं कर सकता। तो बताइये न भइया कि माज़रा क्या है?"

"ऐसा कुछ भी नहीं है रानी।" मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उसे क्या जवाब दूॅ____"बेवजह ही तुम्हें ऐसा वैसा लग रहा है।"
"वैसे तो मेरी इन ऑखों ने उस शाम कोई धोखा नहीं खाया था।" रानी ने अजीब भाव से मेरी तरफ देखते हुए कहा___"किन्तु अगर आप सच्चाई बताना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं।"

मैं रानी की ये बात सुन कर तुरंत कुछ बोल न सका। मैं समझता था कि उस शाम का वो अद्भुत व हैरतअंगेज कारनामा उसके ज़हन से मिट गया होगा मगर नहीं, उसके ज़हन में तो अभी भी वो विद्यमान था। मतलब साफ था कि वो उस बारे में अक्सर सोचती रहती थी। कदाचित मुझसे वो इस बारे में पूछना भी चाहती रही होगी किन्तु उसे उस तरह का माकूल वक्त ही न मिला था। आज जब कि हम दोनो एक ही कार में अकेले ही थे तो जैसे उसे ध्यान आ गया था और उसने अपने मन में उठे उन विचारों का समाधान करने हेतु मुझसे पूछ लिया था।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि रानी से इस बारे में क्या कहूॅ? मुझे पता था कि उसके मन में ये बात छप चुकी है कि उस शाम वो चमत्कार कोई भ्रम नहीं बल्कि सच्चाई का प्रतिबिंब था, और आज उसके पूछने पर मैं उसे सच्चाई न बता कर उस कारनामे को उसे उसका भ्रम कह रहा था। मुझे दुख तो हुआ कि मैने रानी को सच्चाई नहीं बताई किन्तु अभी समय ऐसा था कि मैं बता भी नहीं सकता था।

"इस बारे में मैं बस यही कहूॅगा रानी।" फिर मैने गहरी साॅस लेते हुए कहा____"कि उचित समय आने पर तुम्हें तुम्हारे हर सवालों के जवाब मिल जाएॅगे। ख़ैर, मुझे लगता है कि तुमने जानबूझ कर विषय को बदला था।"

"किस विषय को??" रानी ने हैरानी से मेरी तरफ देखा।
"उसी विषय को जिस विषय पर हम इसके पहले बात कर रहे थे।" मैने उसे याद दिलाया____"ख़ैर कोई बात नहीं। अच्छा ये बताओ कि इतने सालों में क्या किया तुमने? मेरा मतलब है कि पिछले तेरह सालों से मैं यहाॅ नहीं था तो इन तेरह सालों में यहाॅ पर तुमने और बाॅकी सब ने किस तरह से अपना समय ब्यतीत किया था?"

"मुझे लगता है कि।" रानी ने सामने की तरफ नज़रें घुमाते हुए कहा___"इस बारे में कुछ भी बताया नहीं जा सकता। बस आप उस चीज़ को महसूस कीजिए कि जिसे हम सबसे ज्यादा प्यार करते हैं वो अगर अचानक गायब हो जाए तो उसके चाहने वालों पर क्या गुज़रती होगी?"

"तुमने ठीक कहा।" मैने कहा___"इस बात को एक्सप्लेन नहीं किया जा सकता।"
"एक सवाल मैं भी पूछना चाहती हूॅ।" रानी ने एक बार पुनः मेरी तरफ देखा____"अगर आप बताना चाहें तो।"

"हाॅ बिलकुल पूछो।" मैने बेफिक्री से अपने कंधे उचका कर कहा।
"जैसे ये तो पता चल गया कि।" रानी ने कहा___"आप पिछले तेरह सालों से हिमालय में उस साधू बाबा के पास ही रहे, तो मैं ये जानना चाहती हूॅ कि वहाॅ पर आपने इतने सालों में क्या किया? आपकी पढ़ाई लिखाई किस तरह हुई और....और फिर अचानक वापस यहाॅ कैसे आ गए आप? और आए भी तो ऐसे कि शुरू शुरू में आपने मुझे पहचानने से भी इंकार कर दिया था? वो तो मैं थी कि मैने ज़िद करके आपसे कहलवा ही लिया कि आप ही मेरे भइया हैं।"

"इतने सारे सवाल????" मैने मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखा।
"हाॅ तो?" उसने भी मेरी तरफ मासूमियत से देखा___"आप जवाब दीजिए बस।"

"ओके फाइन।" मैने मानो अपने हथियार डालने वाले अंदाज़ से कहा____"हिमालय में मैने इतने साल क्या किया ये बाद में बताऊॅगा या ये भी हो सकता है कि गुरूदेव खुद ही तुम सबको बताएॅ। ख़ैर, यहाॅ काॅलेज में मैने तुम्हें पहचानने से इस लिए इंकार किया क्योंकि मैं देखना चाहता था कि इतने सालों बाद जब मेरी मुलाक़ात तुमसे होगी तो तुम कैसा बर्ताव करोगी? मैं देखना चाहता था कि एक बहन अपने भाई के लिए कितना तड़प रही है?"

"तो फिर क्या नज़र आया आपको?" रानी की ऑखों में नमी झलकने लगी थी।
"यही कि।" मैने कहा___"जितना मैं अपनी बहन के लिए तड़प रहा था उससे कहीं ज्यादा तुम अपने इस भाई के लिए तड़प रही हो। काॅलेज में मैं तुमसे जिस कठोरता से बात करता था बाद में मैं खुद को सज़ा भी देता था कि मैं अपनी मासूम सी बहन को ऐसी तक़लीफ कैसे दे सकता हूॅ? मगर फिर भी कुछ दिन यही माहौल रखना चाहता था।"

मेरी बात सुन कर रानी एक बार फिर मुझसे लिपट कर रोने लगी। किन्तु इस बार वो मुझे हल्के हाॅथ से मार भी रही थी। मैं उसकी इस हरकत पर मुस्कुरा उठा। हलाॅकि उसके रोने से मेरा दिल बैठा जा रहा था। मगर मैने खुद के जज़्बातों को शख्ती से काबू किया हुआ था।

"ये ग़लत बात है बहना।" मैने उसके सिर पर प्यार से हाॅथ फेरा____"अभी मैने कहा था न कि अब से तुम रोओगी नहीं। फिर ये सब क्यों?"
"हाॅ तो मैने भी तो कहा था कि।" रानी मुझसे अलग होकर मेरी तरफ देखते हुए बोली___"कोशिश करूॅगी।"

"ये कैसी कोशिश है फिर?" मैने पुनः उसकी तरफ देखा।
"बस है तो है।" उसने बच्चों जैसी शकल बना कर कहा तो मैं मुस्कुरा उठा। वो सच में बच्ची ही लग रही थी इस वक्त।

ऐसे ही हॅसी खुशी का माहौल बनाते हुए हम तेज़ी से आगे बढ़ते जा रहे थे। मैने महसूस किया था कि रानी अब पहले से ज्यादा मुझसे खुल चुकी थी। उसका सबूत ये था कि इसके पहले जहाॅ वो मुझसे अलग बैठी हुई थी वहीं अब वो मुझसे चिपक कर छुपकी हुई बैठी थी। दूसरी बात ये कि पहले वो कोई भी बात करने से पहले झिझकती थी किन्तु अब वैसी बात नहीं थी। हलाॅकि वो पूरी तरह से खुली नहीं थी किन्तु पहले से अब परिवर्तन दिखाई दे रहा था।

□□□□□
दोपहर को हम सब एक अच्छे से होटेल के पास रुके और पापा ने कहा कि कुछ खाना वगैरह कर लिया जाए। उसके बाद आगे का सफ़र शुरू करेंगे। हलाॅकि मुझे मेनका/काया माॅ वीर चाचू व रिशभ मामा को भूख का कोई एहसास नहीं था। किन्तु बाॅकी तो सब साधारण इंसान ही थे, इस लिए कदाचित उन्हें भूख का एहसास हो रहा था।

होटेल में हम सबने खाना खाया। इस बीच रानी मेनका व काया माॅ के पास ही रही। जबकि मैं अपनी दोनो माॅ और पापा के साथ था। मैं देख रहा था कि मेनका/काया माॅ रानी को खुद अपने हाॅथ से खाना खिला रही थीं। वो बीच बीच में मेरी तरफ देखती और मुस्कुरा भी देती। इधर मेरी असल माएॅ भी मुझे खिला रही थी। पापा ये सब देख कर बेहद खुश नज़र आ रहे थे।

लगभग एक घंटे बाद हम लोग फिर से सफ़र पर चल पड़े थे। इस बार मेरी कार सबसे आगे थी जबकि पापा वाली कार बीच में और उनके पीछे वीर चाचू की कार। तीनों कारों में सब लोग वैसे ही बैठे थे जैसे इसके पहले बैठे थे। पापा ने चलते समय मुझसे ये ज़रूर कहा था कि बेटा आराम से ही चलना। मैं समझ सकता था कि वो ऐसा स्नेह वश कह रहे थे।

"ज्यादा तो नहीं खिला दिया मेरी दोनो माॅओं ने?" रास्ते में मैने रानी से मुस्कुराते हुए पूछा।
"आप ज्यादा की बात कर रहे हैं?" रानी ने अपनी ऑखें फैला कर कहा____"उन्होंने तो मुझे गले तक खिला दिया है। अब तो ये हाल है कि मुझसे बैठा नहीं जा रहा। बहुत अजीब सा फील हो रहा है।"

"हाहाहाहा।" मैं उसकी इस बात पर ज़ोर से हॅसा___"चलो अब तुम्हें कुछ दिन खाना खाने की ज़हमत नहीं उठानी पड़ेगी।"
"आपको इसमें मज़ा आ रहा है।" रानी ने बुरा सा मुह बनाया____"जबकि मुझे अब धीरे धीरे तक़लीफ़ भी होने लगी है।"

रानी की बात सुन कर मैं एकदम से सीरियस हो गया। मैं समझ सकता था कि हद से ज्यादा खा लेने पर तक़लीफ़ हो ही जाती है और मैं रानी को तक़लीफ़ में कैसे देख सकता था? किन्तु मुझे समझ न आया कि रानी की इस तक़लीफ़ को कैसे दूर करूॅ? हलाॅकि मैं चाहता तो पलक झपकते ही रानी का पेट खाली करके उसकी तक़लीफ़ मिटा देता मगर उसके लिए मुझे उसके सामने ही मैज़िक करना पड़ता। मैज़िक देख कर वो मुझसे सवाल पर सवाल करने लगती।

मैने देखा कि रानी अपने दोनों हाॅथों से बार बार अपना पेट पकड़ रही थी। उसके चेहरे पर भी स्पष्ट दिख रहा था कि उसे तक़लीफ़ हो रही है। उसे इस हाल में देख कर मैं बेहद चिंतित व परेशान हो गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं उसकी जानकारी में आए बिना कैसे उसकी तक़लीफ़ दूर करूॅ? तभी मुझे एक बढ़िया उपाय सूझा। होटेल से चलते वक्त ही मैने एक बाॅटल पानी रख लिया
था।

मैने पानी का वो बाॅटल निकाला और एक बार रानी की तरफ देखा। वो अपनी ऑखें बंद किये हुए थी। सीट की पिछली पुश्त से सिर टिकाए वह बार बार अपने पेट को इधर उधर से दबा रही थी। चेहरे पर तक़लीफ़ के भाव गर्दिश कर रहे थे। मैने जब देखा कि रानी अपने ऑखें बंद किये हुए है तो कार की स्टेयरिंग से अपने दोनों हाॅथ हटा लिए और फिर आराम से बाॅटल का ढक्कन खोला।

बाॅटल का ढक्कन खुलते ही मैने बाॅटल के अग्रिम सिरे को अपने होठों के क़रीब लाया और एक बार पुनः रानी को देखने के बाद जल्दी जल्दी ऑख बंद करके मंत्र पढ़ने लगा। कुछ ही पलों में मैंने मंत्र पढ़ कर उस बाॅटल के अंदर मौजूद पानी में एक फूॅक मारी और फिर एक हाॅथ से कार की स्टेयरिंग पकड़ कर रानी की तरफ देखा।

"लो पानी पी लो।" फिर मैने पानी का बाॅटल रानी की तरफ बढ़ाते हुए उसे आवाज़ दी। मेरे कहने पर उसने ऑखें खोल कर मेरी तरफ देखा।
"नहीं भइया।" उसने पीड़ायुक्त भाव से इंकार करते हुए कहा____"एक तो वैसे ही पेट में जगह नहीं है और अब अगर ये पानी भी पी लूॅगी तो सच में बहुत दिक्कत हो जाएगी।"

"कुछ नहीं होगा बहना।" मैने प्यार से कहा___"मेरे रहते हुए तुम्हें कुछ हो ही नहीं सकता। चलो अब ये पानी थोड़ा सा पी लो। देखना कुछ ही देर में तुम्हें पूरी तरह से आराम मिल जाएगा।"

मेरे कहने पर रानी ने मुझे अजीब भाव से देखा। उसके माॅथे पर कुछ सोचने के भाव उभरे और फिर गायब भी हो गए। उसके होठों पर अनायास ही एक फीकी सी मुस्कान उभरी और उसने मेरे हाॅथ से पानी का बाॅटल ले लिया। मेरी तरफ देखते हुए ही उसने बाॅटल को अपने होठों से लगाया और उससे पानी पीने लगी। जबकि मैं कभी उसकी तरफ देखता तो कभी सामने रास्ते की तरफ।

रानी ने थोड़ा सा पानी पिया और मेरी तरफ बढ़ा दिया। मैंने पास में ही रखे बाॅटल के ढक्कन को एक हाॅथ से उठा कर उसकी तरफ बढ़ा दिया। उसने मेरे हाॅथ से ढक्कन लिया और बाॅटल को बंद करके वहीं पर रख दिया।

"देखना अभी कुछ ही पलों में तुम्हारी सारी तक़लीफ़ दूर हो जाएगी।" मैने उसकी तरफ देखते हुए कहा___"और तुम्हें ऐसा लगेगा जैसे कि तुम्हारे पेट में अब हिसाब भर का ही खाना रह गया है।"

"इसका मतलब आपने कोई मैज़िक किया है।" रानी ने मेरी तरफ बड़े ध्यान से देखते हुए कहा___"शायद वैसा ही मैज़िक जैसा कि माॅ के जन्मदिन वाली शाम को किया था आपने। है ना???"

"अरे ये कोई मैज़िक वैज़िक नहीं है पागल।" मैने हॅसते हुए कहा____"गुरूदेव ने मुझे कुछ ऐसे मंत्र सिखाए थे जिनके फलस्वरूप इस तरह की तक़लीफ़ों से राहत मिल जाती है। साधारण लोग भी तो ऐसे मंत्रों के द्वारा छोटे मोटे उपचार करते रहते हैं। मुझे ये सब इस लिए आता है क्योंकि मैं हिमालय में गुरूदेव के पास रहा हूॅ। उन्होंने ही ये सब थोड़ी बहुत विद्याएॅ सिखाईं है मुझे।"

"ओह आई सी।" रानी को जैसे सब कुछ समझ आ गया लगता था___"तो ये सब आप ऐसे ही किन्हीं मंत्रों के आधार पर कर लेते हैं।"
"कर लेता हूॅ से क्या मतलब है तुम्हारा?" मैं उसकी बात सुन कर चौंका था।

"यही कि हो सकता है कि आपने उस शाम भी ऐसा ही कुछ किया हो।" रानी ने कहा____"अरे! अब मुझे बिलकुल भी तक़लीफ़ नहीं हो रही भइया और ऐसा लग रहा है कि मेरे पेट से किसी ने एक्सट्रा खाना गायब कर दिया है। अनबिलीवेवल....ये तो सच में चमत्कार हो गया। आप सही कह रहे थे कि मुझे कुछ ही पलों में आराम मिल जाएगा। ख़ैर, तो मैं ये कह रही थी कि उस दिन जो आप मुझे और माॅ को पाॅच साल के बच्चे जैसे दिखाई दे रहे थे वो शायद ऐसे ही किसी मंत्र का चमत्कार रहा होगा।"

"तुम भी न एक ही बात को लिए बैठी हो।" मैंने बुरा सा मुह बनाया___"ऐसा भी कभी हो सकता है क्या?"
"अच्छा छोंड़िये इस बात को।" रानी को लगा कि मैं उसकी एक ही बात की रट से नाराज़ हो गया हूॅ तो उसने बात को बदलने की गरज़ से कहा____"कोई दूसरी बात करते हैं।"

अभी मैं उसकी बात पर कुछ कहने ही वाला था कि सहसा मेरी नज़र सामने की तरफ पड़ी और इसके साथ ही रानी की एक ज़ोरदार चीख़ मेरे कानों से टकराई। मैं उसकी तरफ देखा तो वो सामने की तरफ चेहरा किये ज़ोर से अपनी ऑखें बंद किये एकदम से सिमटी हुई बैठी हुई नज़र आई। मैं समझ गया कि ये सामने का नज़ारा देख कर बुरी तरह डर गई है। रानी की तरफ से नज़रें हटा कर मैने सामने की तरफ देखा और कार की रफ्तार को कम करने लगा।

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दोस्तो, आप सब के सामने अपडेट हाज़िर है। आशा करता हूॅ कि आप सबको पसंद आएगा। मैने सोचा था कि इस कहानी का भी एक अपडेट आप सबके सामने प्रस्तुत कर दूॅ।

आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा।
Beautiful update
 

Lib am

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The_InnoCent भाई अब तो आपकी बेगुनाह स्टोरी और दूसरी स्टोरीज भी कंप्लीट हो गई है और उंगली वाले बाबा ने भी 24-January-2022 का महुरत निकाल दिया है तो अब तो इस बेहतरीन कहानी को शुरू कर दो। माना की आपके यूजर नेम में Black है तो इसका मतलब ये तो नही की आप पाठको को इमोशनल ब्लैकमेल करना शुरू कर दे। ये अच्छी बात नहीं है।
 
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