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Incest रिश्तों का कामुक संगम

vyabhichari

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अनोखी दोस्ती भाग-१

बीना के मन में उत्तेजना, उत्साह और शर्म का मिलाजुला अनुभव था। अपने बेटे को अपने अंतःवस्त्रों को सौंपकर उसे नए पैंटी और पैड लाने को कहना उसके अंदर एक अलग रोमांच पैदा कर रहा था। बीना किसी नवयुवती की भांति रह रह के कभी मुस्का रही थी। जाने राजू उसके लिए कौनसी और कैसी कच्छी लेकर आएगा। बीना की बूर रिस रही थी। बीना ने सोचा कि वो घर पर अकेली है, उसे टोकने वाला कोई नहीं है। वो आईने के सामने गयी और सबसे पहले अपने बालों से क्लिप खोल अपने बालों को लहराया। फिर उसने अपनी साड़ी को धीरे धीरे बदन से अलग करके वहीं फेंक दिया। उसके बाद उसने अपनी ब्लाउज उतार दी, फिर अपनी ब्रा की क्लिप खोल दी। ब्रा सिमट के उसके हाथों में आ गयी। ब्रा के खुलते ही चुलबुली चूचियाँ आज़ाद हो गयी। बीना अपने चुच्चियों को बड़े गौर से देख रही थी, मदमस्त बड़ी बड़ी और उसपे आंखों की तरह अंकित भूरे भूरे तने हुए चूचक। बीना एक पल को शरमाई फिर कपड़े उतारने के क्रम में साया का धागा जो उसकी कमर से कसके बंधा हुआ था, उसे खींच लिया। उसके खींचते ही, साया उतरके उसके कदमों के इर्द गिर्द बिखर गया। बीना ने एक कदम आगे बढ़ा खुद को साया के घेरे से बाहर निकाला। फिर अपनी बैंगनी कच्छी की ओर देखा, जो कि उसकी मोटी जांघों के बीच डरी सहमी सी खुद को ना उतारने की मानो अपील कर रही थी। पर अगले ही पल बीना को पता नहीं क्या सूझा उसने कमर से कच्छी की इलास्टिक पकड़ी और उसे उतार कर पैरों से निकाल दिया। बीना का गोरा बदन उस कमरे में रोशनी ले आया। अपनी सम्पूर्ण नग्नता देख, वो खुद अचंभित थी। उम्र ने उसके शरीर में कामुकता एवं वासना के लिए सही उभार और गहराई बनाये थे। बीना खुद को अलमीरा में लगे आदमकद शीशे में नंगी देख गर्व महसूस कर रही थी। इतना सुंदर चेहरा, गोरे गोरे गाल, गुलाबी होठ, काली जुल्फें, कमर तक लंबे बाल, बड़े बड़े दूध से भरने को उतारू चूचियाँ, जिनमें उसके बेटे राजू और बेटी गुड्डी के अलावा धरमदेव ने भी खूब दूध चूसा था। बीना ने उन दोनों चुचकों को उंगलियों से छेड़ा और कड़ा कर लिया। उसके चूचक मोटे और तने हुए थे। बीना ने फिर अपने स्तनों को पकड़के कसके पंजों से भींच लिया। उसके मुंह से उत्तेजना भरी सिसकी निकल गयी। फिर बीना ने अपने निचले होठ काटके,अपने वक्षों को नीचे से हल्के से थप्पड़ मारा। बीना ने फिर अपनी कमर पर हाथ रख अपने शरीर को निहारा। उसका भरा पूरा शरीर किसी व्यक्ति के लिए जीत की ट्रॉफी ही थी। बीना अपने कमर पर हाथ रख दूसरे हाथ से झांट से भड़ी बूर को सहलाते हुए महसूस किया। बूर काफी गीली थी। उसने बूर को मसलते हुए बूर का पानी हाथों में लिया और अपनी एक उंगली मुंह मे डालके स्वाद चख ली। उसका कसैला और नमकीन स्वाद उसे बेहद उत्तेजक लगने लगा। बीना की बूर शुरू से ही ऐसी थी, जो खूब बहती थी। उसे याद था, जब उसने अपनी माँ को ये बात बताई थी तो उसकी माँ ने उसे ये बात किसीको बताने से मना किया था। उसने बोला था कि बूर से पानी जब भी बहे तो, खुद लंबी सांसे लो और पानी पियो। बीना वैसा करती तो कुछ देर बूर शांत रहती थी उसके बाद फिर बहने लगती थी। बीना की माँ समझ गयी थी कि बीना एक अत्यंत कामुक स्त्री है, इसलिए उसे ज्यादा घर से निकलने नहीं देती थी और वक़्त से पहले ही उसकी शादी धरमदेव से करा दी थी। बीना ने बूर पर थपकी देते हुए कहा," जाने कब जान छोड़ी ई।" फिर वो पीछे मुड़ी और अपने यौवन का अंतिम और बेहतरीन खजाना देखने लगी। उसके बड़े बड़े चूतड़। दो बड़े बड़े खरबूजे की तरह उठी, गोल और कड़क किसी भी आदमी को लुभा सकती थी। बीना ने चूतड़ों को दोनों हाथों से सहलाया और अपनी नंगी जवानी को पूरा महसूस किया। बीना इस समय उन लड़कियों से कम नहीं लग रही थी जो राजू की किताबों में नंगी तस्वीरों में कैद थी। बल्कि बीना तो उनसे ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। बीना अपने अंग अंग को निहार रही थी। दरअसल बीना खुद को उन स्त्रियों के यौवन से मेल करा रही थी। बीना को उन किताबों के बारे में याद आया तो वो नंगी ही घर के आंगन से होते हुए राजू के कमरे में गयी। फिर उन किताबों को उठाया और फिर शर्माते हुए राजू की चड्डी उठा ली। बीना ने उस चड्डी को अपनी बूर से सटा लिया। फिर वो थिरकते चूतड़ों और उछलती चूचियों की मतवाली चाल से अपने कमरे की ओर चल दी। बीना ने अपना भारी शरीर बिस्तर पर पटक दिया। वो पेट के बल लेटी उन किताबों को निहार निहार कर देख रही थी। राजू की चड्डी उसके रिसते गीले बूर से भीग रही थी। उसे इस वक़्त उन तस्वीरों की औरतों से इर्ष्या हो रही थी। वो काम वासना से लिप्त उनकी किस्मत में लिखे लौड़े को देख परेशान हो रही थी। उसकी आँखों में बस लण्ड की प्यास साफ दिख रही थी। उसने मन ही मन कहा," केतना मस्त किस्मतवाली सब बिया, एतना मोटा मोटा और मस्त लौड़ा एकर सबके किस्मत में बा। पइसा भी कमावत बिया अउर खूब चुदा चुदा के मज़ा भी लेवेली।" उसने उन तगड़े लौंडों की मेल अपने पति से की तो, धरमदेव के ढलते उमर के साथ ढीले लौड़े को याद कर उसे गुस्सा आ गया। फिर उसे राजू का लण्ड याद आया, उसका लण्ड यादकर उसने गहरी सांस ली और बूर पर चड्डी कसके दबा ली। एक जवान शादीशुदा बेटी की माँ अपने ही बेटे के लण्ड को याद कर, नंगी बिस्तर में बूर के दाने को मसल रही थी। बीना को इस बात का एहसास था कि ये व्यभिचार है, किंतु इसमें इतना मज़ा क्यों उसे आ रहा था?
वो अपने बूर को मलते हुए, अब सिसकने लगी थी। उसका नंगा बदन उसके अंदर की वासना को बिखेर रहा था। व्यभिचार और वासना एक संस्कारी स्त्री को भी किसी रण्डी की तरह मचलने पर मजबूर कर देते हैं। बीना इस वक़्त किसी प्यासी रण्डी की भांति, मचल रही थी। अगर अभी राजू रहता तो, शायद वो उसका लण्ड भी ले लेती। बीना थोड़ी देर में हांफते हुए, अकड़ने लगी। उसकी जुल्फें बिखर गई थी। उसकी आंखें चरम सुख की प्राप्ति से बंद हो गयी थी। अपने बूर के रस से बेटे की गीली चड्डी उसके जांघों में फंसी थी।
उधर राजू दुकान के बाहर खड़े पुतलों पर चढ़ी पैंटी बड़े गौर से देख रहा था। अपनी माँ की चिकनी जांघों के बीच फंसी पैंटी उसे अभी भी याद थी। वो एक बड़े महिलाओं के अंतःवस्त्रों के दुकान के बाहर खड़ा था। वहां काफी महिलाएं थी, इसलिए वो अंदर जाने से हिचकिचा रहा था। वो बाहर खड़ा उन पुतलों को देख, अपनी माँ को उन कच्छियों में कल्पना कर रहा था। राजू को थोड़ी देर वहां खड़ा देख, दुकान का मारवाड़ी मालिक बोला," क्या बात है भाई? क्या चाहिए, कुछ लेना है?
राजू," हाँ, चाही हमके लेडीज आइटम चाही।"
मारवाड़ी जो कई पीढ़ियों से बिहार की मिट्टी से मिल चुका था, फौरन ग्राहक को पहचान बोला," हाँ हाँ आवा आवा अंदर आवा। का चाही बतावा?
राजू संकुचाते हुए बोला," हमके उ....अ... का बोलेला "
मारवाड़ी," अरे बेटा, खुलके बोलअ, इँहा कउनु लाज शरम मत करआ। सब औरत ब्रा पैंटी पेनहली। सबके घर में माई बहिन औरत बहु बेटी सब पेनहली। तहरा केकरा खातिर चाही, कउनु गिरलफ्रेंड बा का?
राजू," ना, हमरा त ई साइज के कच्छी चाही, आपन माई खातिर।" ऐसा बोल उसने अपने बैग से कच्छी निकाल के दे दी।
मारवाड़ी को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि माँ की कच्छी लेने बेटा आया है, पर उसे तो अपने धंधे से मतलब था। उसने अपने एक सेल्सगर्ल को उसके साथ लगाया और उसे कच्छी दिखाने को कहा। उस महिला ने कच्छी के साइज के हिसाब से तरह तरह के पैंटी अलग अलग रंगों में दिखाया, राजू को उनमें गुलाबी और फिरोजी रंग की कच्छी पसंद आई।
सेल्सगर्ल," ई रउवा केकरा खातिर लेत बानि?
राजू," उ हमार माई खातिर चाही। ई पैंटी ओकरे हआ।"
सेल्सगर्ल," केतना उमर बा?
राजू," चालीस बयालीस होई।"
सेल्सगर्ल," ई चटक रंग सब चली ना। माई काहे ना अइलन तहार।"
राजू," उ कभू बाजार आके खुद से ना ख़रीदले बिया।"
सेल्सगर्ल," अच्छा...अच्छा बूझ गइनी। ठीक बा फिर त ले जायीं।"
राजू ने उनदोनो कच्छी को पैक करवा कर, उसका दाम दे दिया, और बाहर आ गया। वो अब अगले पड़ाव की ओर बढ़ा जहाँ, उसे अपनी माँ के लिए पैड खरीदने थे। वो अब थोड़ा खुल चुका था। एक बड़े जनरल स्टोर में घुसकर उसने बोला," भैया, एगो व्हिस्पर दे दआ,।
दुकानवाला," व्हिस्पर त नइखे कोटेक्स बा लेबु?
राजू," दे दआ।"
दुकानवाला," साइज मीडियम, लार्ज, एक्स्ट्रा लार्ज ?
राजू अपनी माँ को याद कर बोला," लार्ज।"
दुकान वाले ने उसे पैड पैक कर दे दिया, राजू ने उसके दाम दिए और थैली में लेकर दुकान से वापस बाहर निकल आया। आज उसने अपनी माँ के लिए कच्छी और पैड खरीदी थी, जो हर इंसान केवल अपनी स्त्री के लिए करता है। ये उसके लिए इशारे थे, जो वो अब थोड़ा थोड़ा समझ रहा था। राजू अपनी धुन में चला जा रहा था, वो तेज़ कदमों से साईकल की पैडल मार रहा था। वो चाभ रहा था कि जल्दी से घर पहुँचके बीना को अपनी खरीददारी दिखाए। वो अपने बाप से पहले घर पहुंचना चाहता था, ताकि बीना के साथ समय बिताए। उसे घर पहुंचते पहुंचते शाम हो गयी थी। उसका बाप घर आ चुका था। उसका सपना चकनाचूर हो गया। उसकी माँ चूल्हे पर खाना बना रही थी, और उसका बाप बीड़ी पीते हुए खाट पर लेटा था। इस वक़्त बीना बिल्कुल घरेलू स्त्री लग रही थी, जो दोपहर को बेटे की चड्डी के साथ बिस्तर में नंगी लेट बूर रगड़ रही थी। उसे देख कोई नहीं कह सकता था कि वो अकेले में काम वासना से वशीभूत बिस्तर में लण्ड के लिए तड़प रही थी। राजू ने बीना की ओर देख थैले की ओर इशारा किया तो बीना ने चुपचाप उसे थैला कमरे में रखने का इशारा किया। राजू चुपचाप थैला घर के अंदर रख आया। राजू बस्ता रख, कपड़े बदल लिया और बाल्टी उठा दूध दूहने खटाल की ओर चल दिया। वहां उसने गाय के थन को थाम दूध दुहना शुरू कर दिया। उसके सामने अचानक उसके माँ की तस्वीर झलकी जिसमें वो उसके द्वारा लायी पैंटी में खड़ी थी। अगले ही पल वो गायब हो गयी। वो उसका भ्रम था, दरअसल वो इतना बेताब था बीना को उस कच्छी में देखने को कि उसे उसकी झलक मिल जाती थी। थोड़ी देर बाद गाय दुह कर जब वो बाहर आया, तो उसकी माँ खाना बना चुकी थी। राजू दूध अपनी माँ के पास लाकर रख दिया, जो उसे बघौने में डालके उबालने लगी। राजू खुद कमरे में पढ़ाई करने चला गया। पर उसका मन पढाई में नहीं लग रहा था। राजू ने पढ़ाई की किताब छोड़, Xforum पर incest कैटेगरी में माँ बेटे की चुदाई की मस्त कहानी पढ़ने लगा। उस कहानी में बेटा अपनी माँ को किसी कोठे की रण्डी की तरह चोद रहा था। राजू का लण्ड कड़ा था। वो मजे से लण्ड कमर के सहारे मसलते हुए पढ़ रहा था। राजू को इस बात का पता ही नहीं चला कि उसकी माँ कब उसके पास कमरे में आई। कहानी में कुछ चुदाई की गंदी तस्वीरें भी शामिल थी, जिसे बीना ने देख लिया।
तभी बीना बोली," राजू...ई का पढ़त बारू?
राजू हड़बड़ाते हुए," माई...तू कब आइलू? बाबूजी सूत गइलन का?
बीना," हाँ, सूत गइलन। पर तु ई का गंदा गंदा चीज़ सब देखत बारआ। हम देखनि ह, तहरा पास ढेरी गंदा गंदा लंगटे लइकियाँ सबके किताब बा।"
राजू," न...न...ना... उ हमार नइखे।"
बीना," झूठ मत बोल, बेशरम लइका। झूठ बोलत तहरा शरम नइखे आवत?
राजू," म...मा...माई...उ...सब अरुण के रहलस।" उसने सारा ठीकरा अरुण के माथे फोड़ दिया। बीना उसकी घबराहट देख अंदर ही अंदर हंस रही थी। उसे राजू को छेड़ना अच्छा लग रहा था। पर वो उसकी माँ थी, तो उसे डांटना तो बनता है।
बीना," अच्छा, उ अरुण के रहलस, पर ई मोबाइल में जउन तू देखत रहुवे, उ त तू खुद करत रहलु ना।"
राजू," माई, माई....." ऐसा बोल वो नज़रे झुकाए बैठा था। बीना उसके सामने खड़ी थी। उसने राजू के सर पर हाथ फेरा और बोली," उ अरुण से दूर रहल करआ, तहरा से पहिले कहत रहनि ना। उ तहरा बिगाड़ देले बा। तहरा ई गंदा गंदा चीज़ सब दिमाग में भर दिहले बा। बता दी तहरा बाबूजी के?
राजू," ना... ना माई।"
बीना," अबसे ई सब छोड़ दआ। तू बढ़िया लइका बारू। ई सब चीज़ से दूर रहल करआ।"
राजू," हम का करि माई, हम कोशिश करेनी पर जाने हमके का होवेला, औरत के शरीर के प्रति हमके बड़ा जिज्ञासा बा। औरत के नंगा बदन के बारे में हम हमेशा सोचेनि। मन होखेला कब कोई लइकी मिली जउन के साथे हम आपन हर इच्छा पूरा करि।"
बीना," औरत के शरीर के प्रति जिज्ञासा ई उमर में आम बात बा। लेकिन तहार बियाह में अभी समय बा बेटा, जउन इच्छा तू पूरा करे चाहेलु उ त मेहरारू देवेली। हाँ, तहार कउनु जिज्ञासा बा त हम ओकर जवाब दे देब, जउन तू जाने चाहेलु।"
राजू चुप था, वो कुछ नहीं बोला। बीना अपने बेटे को देख रही थी उसका लण्ड अभी भी तना हुआ था, जिसे देख उसे खुद उसे छूने की इच्छा होने लगी। बीना ने फिर राजू से बोला," ऐ बबुआ, हमरा खातिर जइसे गुड्डी बा वइसे तू बारआ, तहरा अउर ओकरा में कउनु अंतर नइखे। तू दुनु हमार कोखिया से निकलल बारू। गुड्डी त चल गईल आपन ससुराल, अब त तुहि हमार सहारा बारू। काहे ई करआ तारू?
राजू उसकी ओर देख बोला," अंतर बा माई, गुड्डी दीदी लइकी बिया अउर हम लइका। तू कभू हमरा से एतना नज़दीक ना हो पाइब,जेतना गुड्डी दीदी के। हमार उमर में लइका सबके बीच ई आम बात बा। सब कहानी पढ़े लन अउर फ़िल्म फोटो देख मन शांत करेले। तू हमके बेटा ना एक लइका अउर एक दोस्त के नज़र से देखबु ना त तहरा पता चली।"
बीना," अच्छा, अइसन बात बा त तू अबसे हमके आपन दोस्त बूझआ, अउर हमसे जे भी इच्छा होए खुलके बोलल करा।" ऐसा बोल वो राजू के तने लण्ड पर निगाहें दौड़ाने लगी।
राजू ने उसे देखा तो, लण्ड को एडजस्ट करने लगा। फिर बीना ने उसकी ओर देखा और बोली," बबुआ, आज हमार कच्छी लेके आइलू, त उ दे दअ।"
राजू दीवार पर टंगे झोले से अपनी माँ के लिए खरीदी दोनों कच्छियां निकाल के दे दी। बीना ने दोनों कच्छियों को खोला और पूरा फैलाके देखा। वो बोली," उहे नाप से ले लआ ना? राजू ने बोला," हाँ, तहार पुरान कच्छी के नाप से।" बीना ने फिर अपनी कच्छी वापिस ले ली तो राजू बोला," ई रहे दे, हम इसे साईकल पोछब।"
बीना ने फिर कहा," ठीक बा, उ पैड भी लेलु का।"
राजू ने पैड का पैकेट बढ़ाते हुए बोला," हाँ ई लआ।"
राजू के हाथ से पैड का पैकेट ले, वो शरम महसूस कर रही थी। राजू ने उन दोनों चीजों को देने में एक अजीब सी सुखद और संतुष्टि का अनुभव किया। बीना उठकर जाने लगी तो, राजू ने कहा," माई, ई कच्छी पहन के देख ना, ठीक बा कि ना ज्यादा टाइट नइखे ना।"
बीना," अभी पेन्ही का, तहरा सामने?
राजू," त का भईल कल भी त देखौले रहु। अउर अभी त कहलु कि गुड्डी दीदी अउर हमरा में कउनु अंतर नइखे। गुड्डी दीदी के देखा सकेलु त हमरा काहे ना।" वो एक सांस में बोल गया। बीना की ओर उसने अपने शब्दों की जाल का फंदा फेंका। बीना खड़ी खड़ी कुछ सोच बोली," तहार बाबूजी जग जाइ तब?
राजू," उ एक बेर सुतले के बाद, भोर से पहिले कहाँ उठत बारे। ई बतिया त तू, हमरा से बेहतर जानआ तारआ।"
बीना बोली," कल देख लिहा ना अभी रहे दआ।" राजू बोला," ना हम अभी देखे चाहेनि। दोस्त बारू ना तू हमार।"
बीना अपने ही जाल में फंस गई। उसने राजू की तरफ देखा, और फिर बोली," ठीक बा, रुकअ।" बीना वापिस आयी और हाथ में रखा पैड और पैंटी बिस्तर पर रख दिया। फिर वो बेटे के सामने आ गयी। उसकी नाभि राजू की आंख से कोई ढेड़ मीटर दूर थी। बीना ने फिर राजू से कहा," बेटा तनि नज़र घुमा लआ, कच्छी उतारब ना जउन पेन्हने बानि।" राजू ने कुछ नहीं कहा बल्कि और गौर से उसे देखने लगा। बीना समझ गयी कि राजू अपनी नज़रे फेरने वाला नहीं है। बीना ने फिर साड़ी और साया घुटनों तक उठाया और कच्छी की इलास्टिक पकड़के पैंटी उतारने लगी। बीना राजू की आंखों में आंखे डाले देख रही थी। अपने बेटे की आंखों में अपने लिए हवस उसे साफ दिख रही थी। बीना ने कच्छी पैरों से निकाली और बिस्तर की ओर हल्के से फेंका। राजू ने उसे हवा में ही लपक लिया। उस कच्छी में बीना के शरीर की गर्माहट थी। साथ ही पेशाब और पसीने की मिलीजुली खुशबू। राजू ने उसे नाक के पास लाकर सूंघ लिया। बीना उसे ऐसा करते देख बोली," उ गंदा बा, छि...उ काहे सूँघत बारआ।" राजू ने फिर उसे दिखा और सूंघने लगा। बीना ने फिर कुछ नहीं कहा और गुलाबी कच्छी ले उसमें पैर घुसा ऊपर की ओर खींचने लगी। जब वो कच्छी घुटनों से ऊपर ले गयी तो, राजू एकटक वहीं देख रहा रहा। बीना ने कच्छी ऊपर तक खींच ली, और फिर साड़ी और साया एक साथ उठाके बोली," देखआ कइसन बुझावेला, ई नया कच्छी तोर माई पर।" राजू प्यासी नज़रों से अपनी माँ को चड्डी में देख रहा था। बीना अपनी साड़ी और साया उठाये खड़ी थी। राजू ने हाथों से इशारा कर उसे अपने पास बुलाया। बीना सहमी हुई उसके पास आ गयी। उन दोनों की ही सांसें तेज चल रही थी। राजू ने बीना से पूछा," ज्यादा टाइट नइखे ना।"
बीना उसकी ओर बिना देखे बोली," ना, फिटिंग बा।"
राजू ने पैंटी लाइन पर देखा और बोला," रुक देखे दे।" ऐसा बोल उसने कच्छी की पैंटी लाइन, में उंगली घुसा दी। बीना की चमड़ी और पैंटी लाइन के बीच उंगली चलाने में मज़ा आ रहा था। उसने देखा वाकई पैंटी की फिटिंग जबरदस्त थी। तभी उसे बीना के बूर के कुछ बाल बाहर झांकते हुए दिखे। राजू ने पैंटी और अंदरूनी जांघों के बीच उन बालों को छूकर बोला," इँहा के बाल नइखे काटत बारू का। तहार कच्छी में भी नइखे समात।"
बीना कुछ नहीं बोली। राजू जब इतने करीब था तो बीना की बूर के रिसाव की मादक गंध उसके नथुनों में समा रही थी। बीना इस क्षण उत्तेजित होने लगी थी। राजू ने किसी तरह खुद पर काबू किये रखा, फिर उसने बीना को पीछे मुड़ने को कहा। बीना पीछे घूम गयी। उसके बड़े भारी चूतड़ पैंटी, से चिपके पड़े थे। उसके गाँड़ की ऊपरी दरार साफ नजर आ रही थी। ऊफ़्फ़ कितनी कामुक लग रही थी वो। राजू ने उस दरार में उंगली डाल दी, और जान बूझकर एक दो बार नीचे कर उसको महसूस किया, फिर कच्छी ऊपर कर उसे ढक दिया। बीना के चूतड़ों के चारों ओर पैंटी की लाइन की फिटिंग बहुत बढ़िया आयी थी। राजू उसे देख प्रसन्न और रोमांचित था। फिर राजू को शैतानी सूझी, उसने बीना से बिना कुछ कहे उसकी साड़ी खींचकर उतारने लगा। बीना साड़ी पकड़े खड़ी थी, तो उसे साड़ी निकलती हुई महसूस हुई। उसने राजू की ओर देखा, और बोली," ई का करआ तारआ, राजू?
राजू," साड़ी अउर साया उतारके देखा दआ।"
बीना," ना राजू छोड़ दअ, साड़ी मत खोल। हमके लाज लग रहल बा।"
राजू उसकी कहां सुनने वाला था, उसने साड़ी खींचकर अलग कर दिया। बीना शर्म से अपने ही बेटे के हाथों साड़ी उतरवा बैठी। राजू ने अब उसके साया का नाड़ा पकड़ खींचने को हुआ तो, बीना ने अपना चेहरा हाथों से ढक लिया। राजू ने नाड़ा के पास जो कटा हुआ हिस्सा होता है, बीना की गोरी चमड़ी जो बाहर झांक रही थी, उसे जानबूझकर छूते हुए महसूस किया। फिर उसने साया का नाड़ा खींच दिया। साया सरसराते हुए, बीना के पैरों में गिर गया। बीना अब बेटे के सामने सिर्फ ब्लाउज में और पैंटी में खड़ी थी। अहा क्या दृश्य था। बीना के गोरे बदन पर ये गुलाबी पैंटी बहुत ही फब रही थी। बीना इस उम्र में भी काफी तंदुरुस्त थी। कमर, पेट और जांघों पर हल्की चर्बी थी, जो इस उम्र में स्वाभाविक थी, वो भद्दी नहीं बल्कि उसे और आकर्षक बना रही थी। राजू ने बीना के कमर पर लगती पैंटी की इलास्टिक में उंगली डाली, और कमर पर उसके कसाव का जायजा लिया। उसने बीना के कमर के एक छोड़ से दूसरे छोड़ तक उंगली घुमाके देखा। बीना कुछ बोली नहीं, लेकिन उसके मुंह से सिसकारी फूट पड़ी। राजू ने देखा कि बीना की बूर की दरार पैंटी के कसाव की वजह से उभर गयी थी। बीना की बूर अब पानी भी छोड़ रही थी, जिस वजह से वो हल्की गीली भी हो चुकी थी। उसकी खुशबू राजू महसूस कर रहा था। उसने बीना के बूर के उपर पैंटी पर हाथ डाल दिया। बीना के मुंह से,"इशहह.... आह.... निकला।
राजू," का भईल माई, इँहा कच्छी ज्यादा टाइट बा का, दर्द होता का?
बीना कुछ नहीं बोली, बस आँखें मूंद खड़ी थी। राजू ने फिर कहा," बोल ना माई, देख अब हम अउर तू दोस्त बानि। खुलके बोलना, अगर टाइट होई त काल एकरा बदल देब।"
बीना," ना टाइट नइखे, तू छोड़ दआ हाथ हटा लआ।"
राजू," लेकिन इँहा गीला काहे बा?
बीना," गर्मी से पसीना आ गईल हआ, छोड़ दआ।"
राजू ने उसकी पैंटी के पास नाक लगाकर सूंघ लिया, और बोला," हहम्म, लागत बा ढेरी पसीना चू रहल बा। लेकिन एकर गंध अलग बा।"
बीना को इस छेड़छाड़ में मज़ा आ रहा था और थोड़ी ग्लानि भी, पर इसमें मज़ा का पलड़ा भारी था। राजू बोला," माई, जानत बारू तहरा, पसीना काहे आ रहल बा?
बीना धीरे से बोली," काहे?
राजू," काहे कि तहरा इँहा बहुल घना बाल बा। एकरा काटत काहे ना।"
बीना," फुरसत नइखे मिलत काम से, कब काटी?
राजू," हम काट देब, अभी लेके आवत बानि हमार रेजर वाला पत्ती।"
बीना," ना अभी मत कर राजू, काल कर दिहा। अउर भी जगह ढेरी बाल बा"
राजू," अउर कहां बाल बा?
बीना," इँहा कंखिया में।" बीना ने बांया हाथ ऊपर कर काँख दिखाते हुए बोला।
राजू," पर पता नइखे लागत ब्लाउज के ऊपर से, ब्लाउज उतार के देखा दआ।"
बीना बोली," हम अंदर कुछ पहनने नइखे, ब्लाउज कइसे उतारी।"
राजू," त का भईल, अइसन का बा भीतरी जउन हम ना देखने बानि। बच्चा में ई चुच्ची से केतना दूध पिनी हम।"
बीना," तब तू बच्चा रहलु, अब सियान बारू। हम तहरा सामने अब उ खोलके कइसे दिखाई।"
राजू," ठीक बा, अइसे कर तू एक हाथ से दुनु चुच्ची छुपा लिहा ब्लाउज खोलके, अउर हम बारि बारि तहार दुनु कंखिया के बाल देख लेब। ठीक बा।"
बीना," ठीक बा लेकिन तू उधर मुंह घुमा लआ।" राजू दूसरी ओर मुँह घुमा लिया और बीना अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी। बीना ने सारे बटन खोल ब्लाउज उतार कर बिस्तर पर डाल दिया। उसने ब्रा नहीं पहनी थी। उसने अपने दोनों चूचियों को बांये हाथ को लंबा कर ढक लिया, जिससे उसके चूचकों के इर्द गिर्द की जगह ही ढकी गयी। बीना ने राजू से फिर पीछे मुड़ने को कहा," राजू, हम ब्लाउज उतार देनि हअ।"
राजू बीना की ओर पलटा, तो बीना अपना दाहिना हाथ ऊपर कर सर के पीछे ली हुई, अपने बांये हाथ से चूचियों को ढकी हुई, किसी फिल्मी मॉडल की तरह खड़ी थी। राजू का लण्ड पूरा टनटना गया। वो भी सिर्फ चड्डी में था, तो उसका उभार भी साफ पता चल रहा था। बीना की नज़र भी उस उभार को देखे बिना नहीं रह पाई। राजू ने देखा, उसके काँखों में काफी बाल थे। वो काफी घने, काले, घुंघराले और चमकदार थे। बीना के करीब आकर उसने बड़े गौर से देखा और बोला," माई, तू त परेशान हो जात होखब, जाने केतना दिन से ई बालवा तू काटले नइखे। बाप रे बाप पसीना से त इँहा खुजली ना हो जाये। एकरा त काटे के पड़ी। दोसर कांखिया देखाबा।"
बीना ने उसकी बात मानते हुए अपना दूसरा हाथ ऊपर उठा दिया, लेकिन वो अपनी उन्नत चूचियों को दूसरे हाथ से ढक ली। बीना ने ये इतनी जल्दी किया कि राजू, कुछ स्पष्ट देख नहीं पाया। राजू ने दूसरे काँख में हाथ फेरा, तो बीना को गुदगुदी हुई, बीना हंस पड़ी। राजू ने कहा," बड़ा बाल बा माई, एकरा काट लअ।"
बीना," हम कभू ना काटनी ह। एतना दिन में त कुछ ना भईल। लेकिन फिर भी तू कहेलु त काल काट दिहा।"
राजू," काल काहे, ई त हम अभिये काट देब।" ऐसा बोलके वो फौरन अपने रैक पर रखी, साधारण कैंची झटके से ले आया। और बीना को स्थिर खड़े होने को कहा।
बीना अपने बेटे के बताए अनुसार हाथ ऊपर करके खड़ी थी, वहीं राजू उसके काँख के बाल काटने लगा। उसने बीना के बाल काटके काफी छोटे कर दिए। बीना ने फिर दूसरा हाथ ऊपर किया, और राजू ने उसके बाल भी काट दिए। बीना अपनी चूचियों को ढक तब तक शांति से खड़ी थी। बाल कटने पर उसे काफी हल्का महसूस हो रहा था। इस दौरान वो राजू की ओर देखती रही, जबकि राजू पूरे ध्यान से उसके बालों की छटाई कर रहा था साथ ही उसके काँखों की महक को अपने मन में समा रहा था। वो बार बार बीना के काँखों को कैंची चला के हथेली से झाड़ता था। उससे बीना को गुदगुदी महसूस होती थी। राजू को बीना के हल्के बाल अब अच्छे लग रहे थे। राजू ने फिर पूछा," बताबा, कइसन बुझाता?

बीना," बड़ा हल्का बुझा रहल बा। अब पसीना भी कम आयी। राजू," हाँ अब तहरा आराम आयी। निचवा के बाल भी काट दी का?
बीना," ना.. तू छोड़ द, हम खुद काल काट लेब। अब हम बूझ गइनी कि केसिया कइसे कटाई। ई कैंची हमके दे दअ।"
राजू," ना अपने से ना हो पाई, कहूँ कट जाई तब।"
बीना," ना, हम कर लेब। तू छोड़ दअ।"
बीना ने फिर अपनी ब्लाउज पहनी, और फिर साया। उसने साड़ी नहीं पहनी क्योंकि उसमें समय ज्यादा लगता। बीना बोली," अब साड़ी का पेन्ही, जाके सुतेके बा। ई साड़ी साया, ब्लाउज में सूते में बड़ा दिक्कत होखेला।" ऐसा बोलके वो चली गयी। राजू ने मन में ही सोचा," माई खातिर, एगो मैक्सी ले आइब त आराम हो जाई माई के।"
बीना को जाते देख, राजू लण्ड मसल रहा था। उसे ये जानकर अच्छा लगा कि बीना को उसकी गंदी हरकतों के बारे में पता चल गया था। अब उसे कोई डर नहीं था, ऊपर से बीना उससे दोस्ती कर बैठी थी। उसे सबकुछ साफ साफ बात करने और समझाने का वादा किया था। बीना उसकी माँ के साथ साथ दोस्त भी बन चुकी थी।
उन दोनों के बीच अनोखी दोस्ती शुरू हो चुकी थी।
 

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अनोखी दोस्ती भाग-१

बीना के मन में उत्तेजना, उत्साह और शर्म का मिलाजुला अनुभव था। अपने बेटे को अपने अंतःवस्त्रों को सौंपकर उसे नए पैंटी और पैड लाने को कहना उसके अंदर एक अलग रोमांच पैदा कर रहा था। बीना किसी नवयुवती की भांति रह रह के कभी मुस्का रही थी। जाने राजू उसके लिए कौनसी और कैसी कच्छी लेकर आएगा। बीना की बूर रिस रही थी। बीना ने सोचा कि वो घर पर अकेली है, उसे टोकने वाला कोई नहीं है। वो आईने के सामने गयी और सबसे पहले अपने बालों से क्लिप खोल अपने बालों को लहराया। फिर उसने अपनी साड़ी को धीरे धीरे बदन से अलग करके वहीं फेंक दिया। उसके बाद उसने अपनी ब्लाउज उतार दी, फिर अपनी ब्रा की क्लिप खोल दी। ब्रा सिमट के उसके हाथों में आ गयी। ब्रा के खुलते ही चुलबुली चूचियाँ आज़ाद हो गयी। बीना अपने चुच्चियों को बड़े गौर से देख रही थी, मदमस्त बड़ी बड़ी और उसपे आंखों की तरह अंकित भूरे भूरे तने हुए चूचक। बीना एक पल को शरमाई फिर कपड़े उतारने के क्रम में साया का धागा जो उसकी कमर से कसके बंधा हुआ था, उसे खींच लिया। उसके खींचते ही, साया उतरके उसके कदमों के इर्द गिर्द बिखर गया। बीना ने एक कदम आगे बढ़ा खुद को साया के घेरे से बाहर निकाला। फिर अपनी बैंगनी कच्छी की ओर देखा, जो कि उसकी मोटी जांघों के बीच डरी सहमी सी खुद को ना उतारने की मानो अपील कर रही थी। पर अगले ही पल बीना को पता नहीं क्या सूझा उसने कमर से कच्छी की इलास्टिक पकड़ी और उसे उतार कर पैरों से निकाल दिया। बीना का गोरा बदन उस कमरे में रोशनी ले आया। अपनी सम्पूर्ण नग्नता देख, वो खुद अचंभित थी। उम्र ने उसके शरीर में कामुकता एवं वासना के लिए सही उभार और गहराई बनाये थे। बीना खुद को अलमीरा में लगे आदमकद शीशे में नंगी देख गर्व महसूस कर रही थी। इतना सुंदर चेहरा, गोरे गोरे गाल, गुलाबी होठ, काली जुल्फें, कमर तक लंबे बाल, बड़े बड़े दूध से भरने को उतारू चूचियाँ, जिनमें उसके बेटे राजू और बेटी गुड्डी के अलावा धरमदेव ने भी खूब दूध चूसा था। बीना ने उन दोनों चुचकों को उंगलियों से छेड़ा और कड़ा कर लिया। उसके चूचक मोटे और तने हुए थे। बीना ने फिर अपने स्तनों को पकड़के कसके पंजों से भींच लिया। उसके मुंह से उत्तेजना भरी सिसकी निकल गयी। फिर बीना ने अपने निचले होठ काटके,अपने वक्षों को नीचे से हल्के से थप्पड़ मारा। बीना ने फिर अपनी कमर पर हाथ रख अपने शरीर को निहारा। उसका भरा पूरा शरीर किसी व्यक्ति के लिए जीत की ट्रॉफी ही थी। बीना अपने कमर पर हाथ रख दूसरे हाथ से झांट से भड़ी बूर को सहलाते हुए महसूस किया। बूर काफी गीली थी। उसने बूर को मसलते हुए बूर का पानी हाथों में लिया और अपनी एक उंगली मुंह मे डालके स्वाद चख ली। उसका कसैला और नमकीन स्वाद उसे बेहद उत्तेजक लगने लगा। बीना की बूर शुरू से ही ऐसी थी, जो खूब बहती थी। उसे याद था, जब उसने अपनी माँ को ये बात बताई थी तो उसकी माँ ने उसे ये बात किसीको बताने से मना किया था। उसने बोला था कि बूर से पानी जब भी बहे तो, खुद लंबी सांसे लो और पानी पियो। बीना वैसा करती तो कुछ देर बूर शांत रहती थी उसके बाद फिर बहने लगती थी। बीना की माँ समझ गयी थी कि बीना एक अत्यंत कामुक स्त्री है, इसलिए उसे ज्यादा घर से निकलने नहीं देती थी और वक़्त से पहले ही उसकी शादी धरमदेव से करा दी थी। बीना ने बूर पर थपकी देते हुए कहा," जाने कब जान छोड़ी ई।" फिर वो पीछे मुड़ी और अपने यौवन का अंतिम और बेहतरीन खजाना देखने लगी। उसके बड़े बड़े चूतड़। दो बड़े बड़े खरबूजे की तरह उठी, गोल और कड़क किसी भी आदमी को लुभा सकती थी। बीना ने चूतड़ों को दोनों हाथों से सहलाया और अपनी नंगी जवानी को पूरा महसूस किया। बीना इस समय उन लड़कियों से कम नहीं लग रही थी जो राजू की किताबों में नंगी तस्वीरों में कैद थी। बल्कि बीना तो उनसे ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। बीना अपने अंग अंग को निहार रही थी। दरअसल बीना खुद को उन स्त्रियों के यौवन से मेल करा रही थी। बीना को उन किताबों के बारे में याद आया तो वो नंगी ही घर के आंगन से होते हुए राजू के कमरे में गयी। फिर उन किताबों को उठाया और फिर शर्माते हुए राजू की चड्डी उठा ली। बीना ने उस चड्डी को अपनी बूर से सटा लिया। फिर वो थिरकते चूतड़ों और उछलती चूचियों की मतवाली चाल से अपने कमरे की ओर चल दी। बीना ने अपना भारी शरीर बिस्तर पर पटक दिया। वो पेट के बल लेटी उन किताबों को निहार निहार कर देख रही थी। राजू की चड्डी उसके रिसते गीले बूर से भीग रही थी। उसे इस वक़्त उन तस्वीरों की औरतों से इर्ष्या हो रही थी। वो काम वासना से लिप्त उनकी किस्मत में लिखे लौड़े को देख परेशान हो रही थी। उसकी आँखों में बस लण्ड की प्यास साफ दिख रही थी। उसने मन ही मन कहा," केतना मस्त किस्मतवाली सब बिया, एतना मोटा मोटा और मस्त लौड़ा एकर सबके किस्मत में बा। पइसा भी कमावत बिया अउर खूब चुदा चुदा के मज़ा भी लेवेली।" उसने उन तगड़े लौंडों की मेल अपने पति से की तो, धरमदेव के ढलते उमर के साथ ढीले लौड़े को याद कर उसे गुस्सा आ गया। फिर उसे राजू का लण्ड याद आया, उसका लण्ड यादकर उसने गहरी सांस ली और बूर पर चड्डी कसके दबा ली। एक जवान शादीशुदा बेटी की माँ अपने ही बेटे के लण्ड को याद कर, नंगी बिस्तर में बूर के दाने को मसल रही थी। बीना को इस बात का एहसास था कि ये व्यभिचार है, किंतु इसमें इतना मज़ा क्यों उसे आ रहा था?
वो अपने बूर को मलते हुए, अब सिसकने लगी थी। उसका नंगा बदन उसके अंदर की वासना को बिखेर रहा था। व्यभिचार और वासना एक संस्कारी स्त्री को भी किसी रण्डी की तरह मचलने पर मजबूर कर देते हैं। बीना इस वक़्त किसी प्यासी रण्डी की भांति, मचल रही थी। अगर अभी राजू रहता तो, शायद वो उसका लण्ड भी ले लेती। बीना थोड़ी देर में हांफते हुए, अकड़ने लगी। उसकी जुल्फें बिखर गई थी। उसकी आंखें चरम सुख की प्राप्ति से बंद हो गयी थी। अपने बूर के रस से बेटे की गीली चड्डी उसके जांघों में फंसी थी।
उधर राजू दुकान के बाहर खड़े पुतलों पर चढ़ी पैंटी बड़े गौर से देख रहा था। अपनी माँ की चिकनी जांघों के बीच फंसी पैंटी उसे अभी भी याद थी। वो एक बड़े महिलाओं के अंतःवस्त्रों के दुकान के बाहर खड़ा था। वहां काफी महिलाएं थी, इसलिए वो अंदर जाने से हिचकिचा रहा था। वो बाहर खड़ा उन पुतलों को देख, अपनी माँ को उन कच्छियों में कल्पना कर रहा था। राजू को थोड़ी देर वहां खड़ा देख, दुकान का मारवाड़ी मालिक बोला," क्या बात है भाई? क्या चाहिए, कुछ लेना है?
राजू," हाँ, चाही हमके लेडीज आइटम चाही।"
मारवाड़ी जो कई पीढ़ियों से बिहार की मिट्टी से मिल चुका था, फौरन ग्राहक को पहचान बोला," हाँ हाँ आवा आवा अंदर आवा। का चाही बतावा?
राजू संकुचाते हुए बोला," हमके उ....अ... का बोलेला "
मारवाड़ी," अरे बेटा, खुलके बोलअ, इँहा कउनु लाज शरम मत करआ। सब औरत ब्रा पैंटी पेनहली। सबके घर में माई बहिन औरत बहु बेटी सब पेनहली। तहरा केकरा खातिर चाही, कउनु गिरलफ्रेंड बा का?
राजू," ना, हमरा त ई साइज के कच्छी चाही, आपन माई खातिर।" ऐसा बोल उसने अपने बैग से कच्छी निकाल के दे दी।
मारवाड़ी को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि माँ की कच्छी लेने बेटा आया है, पर उसे तो अपने धंधे से मतलब था। उसने अपने एक सेल्सगर्ल को उसके साथ लगाया और उसे कच्छी दिखाने को कहा। उस महिला ने कच्छी के साइज के हिसाब से तरह तरह के पैंटी अलग अलग रंगों में दिखाया, राजू को उनमें गुलाबी और फिरोजी रंग की कच्छी पसंद आई।
सेल्सगर्ल," ई रउवा केकरा खातिर लेत बानि?
राजू," उ हमार माई खातिर चाही। ई पैंटी ओकरे हआ।"
सेल्सगर्ल," केतना उमर बा?
राजू," चालीस बयालीस होई।"
सेल्सगर्ल," ई चटक रंग सब चली ना। माई काहे ना अइलन तहार।"
राजू," उ कभू बाजार आके खुद से ना ख़रीदले बिया।"
सेल्सगर्ल," अच्छा...अच्छा बूझ गइनी। ठीक बा फिर त ले जायीं।"
राजू ने उनदोनो कच्छी को पैक करवा कर, उसका दाम दे दिया, और बाहर आ गया। वो अब अगले पड़ाव की ओर बढ़ा जहाँ, उसे अपनी माँ के लिए पैड खरीदने थे। वो अब थोड़ा खुल चुका था। एक बड़े जनरल स्टोर में घुसकर उसने बोला," भैया, एगो व्हिस्पर दे दआ,।
दुकानवाला," व्हिस्पर त नइखे कोटेक्स बा लेबु?
राजू," दे दआ।"
दुकानवाला," साइज मीडियम, लार्ज, एक्स्ट्रा लार्ज ?
राजू अपनी माँ को याद कर बोला," लार्ज।"
दुकान वाले ने उसे पैड पैक कर दे दिया, राजू ने उसके दाम दिए और थैली में लेकर दुकान से वापस बाहर निकल आया। आज उसने अपनी माँ के लिए कच्छी और पैड खरीदी थी, जो हर इंसान केवल अपनी स्त्री के लिए करता है। ये उसके लिए इशारे थे, जो वो अब थोड़ा थोड़ा समझ रहा था। राजू अपनी धुन में चला जा रहा था, वो तेज़ कदमों से साईकल की पैडल मार रहा था। वो चाभ रहा था कि जल्दी से घर पहुँचके बीना को अपनी खरीददारी दिखाए। वो अपने बाप से पहले घर पहुंचना चाहता था, ताकि बीना के साथ समय बिताए। उसे घर पहुंचते पहुंचते शाम हो गयी थी। उसका बाप घर आ चुका था। उसका सपना चकनाचूर हो गया। उसकी माँ चूल्हे पर खाना बना रही थी, और उसका बाप बीड़ी पीते हुए खाट पर लेटा था। इस वक़्त बीना बिल्कुल घरेलू स्त्री लग रही थी, जो दोपहर को बेटे की चड्डी के साथ बिस्तर में नंगी लेट बूर रगड़ रही थी। उसे देख कोई नहीं कह सकता था कि वो अकेले में काम वासना से वशीभूत बिस्तर में लण्ड के लिए तड़प रही थी। राजू ने बीना की ओर देख थैले की ओर इशारा किया तो बीना ने चुपचाप उसे थैला कमरे में रखने का इशारा किया। राजू चुपचाप थैला घर के अंदर रख आया। राजू बस्ता रख, कपड़े बदल लिया और बाल्टी उठा दूध दूहने खटाल की ओर चल दिया। वहां उसने गाय के थन को थाम दूध दुहना शुरू कर दिया। उसके सामने अचानक उसके माँ की तस्वीर झलकी जिसमें वो उसके द्वारा लायी पैंटी में खड़ी थी। अगले ही पल वो गायब हो गयी। वो उसका भ्रम था, दरअसल वो इतना बेताब था बीना को उस कच्छी में देखने को कि उसे उसकी झलक मिल जाती थी। थोड़ी देर बाद गाय दुह कर जब वो बाहर आया, तो उसकी माँ खाना बना चुकी थी। राजू दूध अपनी माँ के पास लाकर रख दिया, जो उसे बघौने में डालके उबालने लगी। राजू खुद कमरे में पढ़ाई करने चला गया। पर उसका मन पढाई में नहीं लग रहा था। राजू ने पढ़ाई की किताब छोड़, Xforum पर incest कैटेगरी में माँ बेटे की चुदाई की मस्त कहानी पढ़ने लगा। उस कहानी में बेटा अपनी माँ को किसी कोठे की रण्डी की तरह चोद रहा था। राजू का लण्ड कड़ा था। वो मजे से लण्ड कमर के सहारे मसलते हुए पढ़ रहा था। राजू को इस बात का पता ही नहीं चला कि उसकी माँ कब उसके पास कमरे में आई। कहानी में कुछ चुदाई की गंदी तस्वीरें भी शामिल थी, जिसे बीना ने देख लिया।
तभी बीना बोली," राजू...ई का पढ़त बारू?
राजू हड़बड़ाते हुए," माई...तू कब आइलू? बाबूजी सूत गइलन का?
बीना," हाँ, सूत गइलन। पर तु ई का गंदा गंदा चीज़ सब देखत बारआ। हम देखनि ह, तहरा पास ढेरी गंदा गंदा लंगटे लइकियाँ सबके किताब बा।"
राजू," न...न...ना... उ हमार नइखे।"
बीना," झूठ मत बोल, बेशरम लइका। झूठ बोलत तहरा शरम नइखे आवत?
राजू," म...मा...माई...उ...सब अरुण के रहलस।" उसने सारा ठीकरा अरुण के माथे फोड़ दिया। बीना उसकी घबराहट देख अंदर ही अंदर हंस रही थी। उसे राजू को छेड़ना अच्छा लग रहा था। पर वो उसकी माँ थी, तो उसे डांटना तो बनता है।
बीना," अच्छा, उ अरुण के रहलस, पर ई मोबाइल में जउन तू देखत रहुवे, उ त तू खुद करत रहलु ना।"
राजू," माई, माई....." ऐसा बोल वो नज़रे झुकाए बैठा था। बीना उसके सामने खड़ी थी। उसने राजू के सर पर हाथ फेरा और बोली," उ अरुण से दूर रहल करआ, तहरा से पहिले कहत रहनि ना। उ तहरा बिगाड़ देले बा। तहरा ई गंदा गंदा चीज़ सब दिमाग में भर दिहले बा। बता दी तहरा बाबूजी के?
राजू," ना... ना माई।"
बीना," अबसे ई सब छोड़ दआ। तू बढ़िया लइका बारू। ई सब चीज़ से दूर रहल करआ।"
राजू," हम का करि माई, हम कोशिश करेनी पर जाने हमके का होवेला, औरत के शरीर के प्रति हमके बड़ा जिज्ञासा बा। औरत के नंगा बदन के बारे में हम हमेशा सोचेनि। मन होखेला कब कोई लइकी मिली जउन के साथे हम आपन हर इच्छा पूरा करि।"
बीना," औरत के शरीर के प्रति जिज्ञासा ई उमर में आम बात बा। लेकिन तहार बियाह में अभी समय बा बेटा, जउन इच्छा तू पूरा करे चाहेलु उ त मेहरारू देवेली। हाँ, तहार कउनु जिज्ञासा बा त हम ओकर जवाब दे देब, जउन तू जाने चाहेलु।"
राजू चुप था, वो कुछ नहीं बोला। बीना अपने बेटे को देख रही थी उसका लण्ड अभी भी तना हुआ था, जिसे देख उसे खुद उसे छूने की इच्छा होने लगी। बीना ने फिर राजू से बोला," ऐ बबुआ, हमरा खातिर जइसे गुड्डी बा वइसे तू बारआ, तहरा अउर ओकरा में कउनु अंतर नइखे। तू दुनु हमार कोखिया से निकलल बारू। गुड्डी त चल गईल आपन ससुराल, अब त तुहि हमार सहारा बारू। काहे ई करआ तारू?
राजू उसकी ओर देख बोला," अंतर बा माई, गुड्डी दीदी लइकी बिया अउर हम लइका। तू कभू हमरा से एतना नज़दीक ना हो पाइब,जेतना गुड्डी दीदी के। हमार उमर में लइका सबके बीच ई आम बात बा। सब कहानी पढ़े लन अउर फ़िल्म फोटो देख मन शांत करेले। तू हमके बेटा ना एक लइका अउर एक दोस्त के नज़र से देखबु ना त तहरा पता चली।"
बीना," अच्छा, अइसन बात बा त तू अबसे हमके आपन दोस्त बूझआ, अउर हमसे जे भी इच्छा होए खुलके बोलल करा।" ऐसा बोल वो राजू के तने लण्ड पर निगाहें दौड़ाने लगी।
राजू ने उसे देखा तो, लण्ड को एडजस्ट करने लगा। फिर बीना ने उसकी ओर देखा और बोली," बबुआ, आज हमार कच्छी लेके आइलू, त उ दे दअ।"
राजू दीवार पर टंगे झोले से अपनी माँ के लिए खरीदी दोनों कच्छियां निकाल के दे दी। बीना ने दोनों कच्छियों को खोला और पूरा फैलाके देखा। वो बोली," उहे नाप से ले लआ ना? राजू ने बोला," हाँ, तहार पुरान कच्छी के नाप से।" बीना ने फिर अपनी कच्छी वापिस ले ली तो राजू बोला," ई रहे दे, हम इसे साईकल पोछब।"
बीना ने फिर कहा," ठीक बा, उ पैड भी लेलु का।"
राजू ने पैड का पैकेट बढ़ाते हुए बोला," हाँ ई लआ।"
राजू के हाथ से पैड का पैकेट ले, वो शरम महसूस कर रही थी। राजू ने उन दोनों चीजों को देने में एक अजीब सी सुखद और संतुष्टि का अनुभव किया। बीना उठकर जाने लगी तो, राजू ने कहा," माई, ई कच्छी पहन के देख ना, ठीक बा कि ना ज्यादा टाइट नइखे ना।"
बीना," अभी पेन्ही का, तहरा सामने?
राजू," त का भईल कल भी त देखौले रहु। अउर अभी त कहलु कि गुड्डी दीदी अउर हमरा में कउनु अंतर नइखे। गुड्डी दीदी के देखा सकेलु त हमरा काहे ना।" वो एक सांस में बोल गया। बीना की ओर उसने अपने शब्दों की जाल का फंदा फेंका। बीना खड़ी खड़ी कुछ सोच बोली," तहार बाबूजी जग जाइ तब?
राजू," उ एक बेर सुतले के बाद, भोर से पहिले कहाँ उठत बारे। ई बतिया त तू, हमरा से बेहतर जानआ तारआ।"
बीना बोली," कल देख लिहा ना अभी रहे दआ।" राजू बोला," ना हम अभी देखे चाहेनि। दोस्त बारू ना तू हमार।"
बीना अपने ही जाल में फंस गई। उसने राजू की तरफ देखा, और फिर बोली," ठीक बा, रुकअ।" बीना वापिस आयी और हाथ में रखा पैड और पैंटी बिस्तर पर रख दिया। फिर वो बेटे के सामने आ गयी। उसकी नाभि राजू की आंख से कोई ढेड़ मीटर दूर थी। बीना ने फिर राजू से कहा," बेटा तनि नज़र घुमा लआ, कच्छी उतारब ना जउन पेन्हने बानि।" राजू ने कुछ नहीं कहा बल्कि और गौर से उसे देखने लगा। बीना समझ गयी कि राजू अपनी नज़रे फेरने वाला नहीं है। बीना ने फिर साड़ी और साया घुटनों तक उठाया और कच्छी की इलास्टिक पकड़के पैंटी उतारने लगी। बीना राजू की आंखों में आंखे डाले देख रही थी। अपने बेटे की आंखों में अपने लिए हवस उसे साफ दिख रही थी। बीना ने कच्छी पैरों से निकाली और बिस्तर की ओर हल्के से फेंका। राजू ने उसे हवा में ही लपक लिया। उस कच्छी में बीना के शरीर की गर्माहट थी। साथ ही पेशाब और पसीने की मिलीजुली खुशबू। राजू ने उसे नाक के पास लाकर सूंघ लिया। बीना उसे ऐसा करते देख बोली," उ गंदा बा, छि...उ काहे सूँघत बारआ।" राजू ने फिर उसे दिखा और सूंघने लगा। बीना ने फिर कुछ नहीं कहा और गुलाबी कच्छी ले उसमें पैर घुसा ऊपर की ओर खींचने लगी। जब वो कच्छी घुटनों से ऊपर ले गयी तो, राजू एकटक वहीं देख रहा रहा। बीना ने कच्छी ऊपर तक खींच ली, और फिर साड़ी और साया एक साथ उठाके बोली," देखआ कइसन बुझावेला, ई नया कच्छी तोर माई पर।" राजू प्यासी नज़रों से अपनी माँ को चड्डी में देख रहा था। बीना अपनी साड़ी और साया उठाये खड़ी थी। राजू ने हाथों से इशारा कर उसे अपने पास बुलाया। बीना सहमी हुई उसके पास आ गयी। उन दोनों की ही सांसें तेज चल रही थी। राजू ने बीना से पूछा," ज्यादा टाइट नइखे ना।"
बीना उसकी ओर बिना देखे बोली," ना, फिटिंग बा।"
राजू ने पैंटी लाइन पर देखा और बोला," रुक देखे दे।" ऐसा बोल उसने कच्छी की पैंटी लाइन, में उंगली घुसा दी। बीना की चमड़ी और पैंटी लाइन के बीच उंगली चलाने में मज़ा आ रहा था। उसने देखा वाकई पैंटी की फिटिंग जबरदस्त थी। तभी उसे बीना के बूर के कुछ बाल बाहर झांकते हुए दिखे। राजू ने पैंटी और अंदरूनी जांघों के बीच उन बालों को छूकर बोला," इँहा के बाल नइखे काटत बारू का। तहार कच्छी में भी नइखे समात।"
बीना कुछ नहीं बोली। राजू जब इतने करीब था तो बीना की बूर के रिसाव की मादक गंध उसके नथुनों में समा रही थी। बीना इस क्षण उत्तेजित होने लगी थी। राजू ने किसी तरह खुद पर काबू किये रखा, फिर उसने बीना को पीछे मुड़ने को कहा। बीना पीछे घूम गयी। उसके बड़े भारी चूतड़ पैंटी, से चिपके पड़े थे। उसके गाँड़ की ऊपरी दरार साफ नजर आ रही थी। ऊफ़्फ़ कितनी कामुक लग रही थी वो। राजू ने उस दरार में उंगली डाल दी, और जान बूझकर एक दो बार नीचे कर उसको महसूस किया, फिर कच्छी ऊपर कर उसे ढक दिया। बीना के चूतड़ों के चारों ओर पैंटी की लाइन की फिटिंग बहुत बढ़िया आयी थी। राजू उसे देख प्रसन्न और रोमांचित था। फिर राजू को शैतानी सूझी, उसने बीना से बिना कुछ कहे उसकी साड़ी खींचकर उतारने लगा। बीना साड़ी पकड़े खड़ी थी, तो उसे साड़ी निकलती हुई महसूस हुई। उसने राजू की ओर देखा, और बोली," ई का करआ तारआ, राजू?
राजू," साड़ी अउर साया उतारके देखा दआ।"
बीना," ना राजू छोड़ दअ, साड़ी मत खोल। हमके लाज लग रहल बा।"
राजू उसकी कहां सुनने वाला था, उसने साड़ी खींचकर अलग कर दिया। बीना शर्म से अपने ही बेटे के हाथों साड़ी उतरवा बैठी। राजू ने अब उसके साया का नाड़ा पकड़ खींचने को हुआ तो, बीना ने अपना चेहरा हाथों से ढक लिया। राजू ने नाड़ा के पास जो कटा हुआ हिस्सा होता है, बीना की गोरी चमड़ी जो बाहर झांक रही थी, उसे जानबूझकर छूते हुए महसूस किया। फिर उसने साया का नाड़ा खींच दिया। साया सरसराते हुए, बीना के पैरों में गिर गया। बीना अब बेटे के सामने सिर्फ ब्लाउज में और पैंटी में खड़ी थी। अहा क्या दृश्य था। बीना के गोरे बदन पर ये गुलाबी पैंटी बहुत ही फब रही थी। बीना इस उम्र में भी काफी तंदुरुस्त थी। कमर, पेट और जांघों पर हल्की चर्बी थी, जो इस उम्र में स्वाभाविक थी, वो भद्दी नहीं बल्कि उसे और आकर्षक बना रही थी। राजू ने बीना के कमर पर लगती पैंटी की इलास्टिक में उंगली डाली, और कमर पर उसके कसाव का जायजा लिया। उसने बीना के कमर के एक छोड़ से दूसरे छोड़ तक उंगली घुमाके देखा। बीना कुछ बोली नहीं, लेकिन उसके मुंह से सिसकारी फूट पड़ी। राजू ने देखा कि बीना की बूर की दरार पैंटी के कसाव की वजह से उभर गयी थी। बीना की बूर अब पानी भी छोड़ रही थी, जिस वजह से वो हल्की गीली भी हो चुकी थी। उसकी खुशबू राजू महसूस कर रहा था। उसने बीना के बूर के उपर पैंटी पर हाथ डाल दिया। बीना के मुंह से,"इशहह.... आह.... निकला।
राजू," का भईल माई, इँहा कच्छी ज्यादा टाइट बा का, दर्द होता का?
बीना कुछ नहीं बोली, बस आँखें मूंद खड़ी थी। राजू ने फिर कहा," बोल ना माई, देख अब हम अउर तू दोस्त बानि। खुलके बोलना, अगर टाइट होई त काल एकरा बदल देब।"
बीना," ना टाइट नइखे, तू छोड़ दआ हाथ हटा लआ।"
राजू," लेकिन इँहा गीला काहे बा?
बीना," गर्मी से पसीना आ गईल हआ, छोड़ दआ।"
राजू ने उसकी पैंटी के पास नाक लगाकर सूंघ लिया, और बोला," हहम्म, लागत बा ढेरी पसीना चू रहल बा। लेकिन एकर गंध अलग बा।"
बीना को इस छेड़छाड़ में मज़ा आ रहा था और थोड़ी ग्लानि भी, पर इसमें मज़ा का पलड़ा भारी था। राजू बोला," माई, जानत बारू तहरा, पसीना काहे आ रहल बा?
बीना धीरे से बोली," काहे?
राजू," काहे कि तहरा इँहा बहुल घना बाल बा। एकरा काटत काहे ना।"
बीना," फुरसत नइखे मिलत काम से, कब काटी?
राजू," हम काट देब, अभी लेके आवत बानि हमार रेजर वाला पत्ती।"
बीना," ना अभी मत कर राजू, काल कर दिहा। अउर भी जगह ढेरी बाल बा"
राजू," अउर कहां बाल बा?
बीना," इँहा कंखिया में।" बीना ने बांया हाथ ऊपर कर काँख दिखाते हुए बोला।
राजू," पर पता नइखे लागत ब्लाउज के ऊपर से, ब्लाउज उतार के देखा दआ।"
बीना बोली," हम अंदर कुछ पहनने नइखे, ब्लाउज कइसे उतारी।"
राजू," त का भईल, अइसन का बा भीतरी जउन हम ना देखने बानि। बच्चा में ई चुच्ची से केतना दूध पिनी हम।"
बीना," तब तू बच्चा रहलु, अब सियान बारू। हम तहरा सामने अब उ खोलके कइसे दिखाई।"
राजू," ठीक बा, अइसे कर तू एक हाथ से दुनु चुच्ची छुपा लिहा ब्लाउज खोलके, अउर हम बारि बारि तहार दुनु कंखिया के बाल देख लेब। ठीक बा।"
बीना," ठीक बा लेकिन तू उधर मुंह घुमा लआ।" राजू दूसरी ओर मुँह घुमा लिया और बीना अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी। बीना ने सारे बटन खोल ब्लाउज उतार कर बिस्तर पर डाल दिया। उसने ब्रा नहीं पहनी थी। उसने अपने दोनों चूचियों को बांये हाथ को लंबा कर ढक लिया, जिससे उसके चूचकों के इर्द गिर्द की जगह ही ढकी गयी। बीना ने राजू से फिर पीछे मुड़ने को कहा," राजू, हम ब्लाउज उतार देनि हअ।"
राजू बीना की ओर पलटा, तो बीना अपना दाहिना हाथ ऊपर कर सर के पीछे ली हुई, अपने बांये हाथ से चूचियों को ढकी हुई, किसी फिल्मी मॉडल की तरह खड़ी थी। राजू का लण्ड पूरा टनटना गया। वो भी सिर्फ चड्डी में था, तो उसका उभार भी साफ पता चल रहा था। बीना की नज़र भी उस उभार को देखे बिना नहीं रह पाई। राजू ने देखा, उसके काँखों में काफी बाल थे। वो काफी घने, काले, घुंघराले और चमकदार थे। बीना के करीब आकर उसने बड़े गौर से देखा और बोला," माई, तू त परेशान हो जात होखब, जाने केतना दिन से ई बालवा तू काटले नइखे। बाप रे बाप पसीना से त इँहा खुजली ना हो जाये। एकरा त काटे के पड़ी। दोसर कांखिया देखाबा।"
बीना ने उसकी बात मानते हुए अपना दूसरा हाथ ऊपर उठा दिया, लेकिन वो अपनी उन्नत चूचियों को दूसरे हाथ से ढक ली। बीना ने ये इतनी जल्दी किया कि राजू, कुछ स्पष्ट देख नहीं पाया। राजू ने दूसरे काँख में हाथ फेरा, तो बीना को गुदगुदी हुई, बीना हंस पड़ी। राजू ने कहा," बड़ा बाल बा माई, एकरा काट लअ।"
बीना," हम कभू ना काटनी ह। एतना दिन में त कुछ ना भईल। लेकिन फिर भी तू कहेलु त काल काट दिहा।"
राजू," काल काहे, ई त हम अभिये काट देब।" ऐसा बोलके वो फौरन अपने रैक पर रखी, साधारण कैंची झटके से ले आया। और बीना को स्थिर खड़े होने को कहा।
बीना अपने बेटे के बताए अनुसार हाथ ऊपर करके खड़ी थी, वहीं राजू उसके काँख के बाल काटने लगा। उसने बीना के बाल काटके काफी छोटे कर दिए। बीना ने फिर दूसरा हाथ ऊपर किया, और राजू ने उसके बाल भी काट दिए। बीना अपनी चूचियों को ढक तब तक शांति से खड़ी थी। बाल कटने पर उसे काफी हल्का महसूस हो रहा था। इस दौरान वो राजू की ओर देखती रही, जबकि राजू पूरे ध्यान से उसके बालों की छटाई कर रहा था साथ ही उसके काँखों की महक को अपने मन में समा रहा था। वो बार बार बीना के काँखों को कैंची चला के हथेली से झाड़ता था। उससे बीना को गुदगुदी महसूस होती थी। राजू को बीना के हल्के बाल अब अच्छे लग रहे थे। राजू ने फिर पूछा," बताबा, कइसन बुझाता?

बीना," बड़ा हल्का बुझा रहल बा। अब पसीना भी कम आयी। राजू," हाँ अब तहरा आराम आयी। निचवा के बाल भी काट दी का?
बीना," ना.. तू छोड़ द, हम खुद काल काट लेब। अब हम बूझ गइनी कि केसिया कइसे कटाई। ई कैंची हमके दे दअ।"
राजू," ना अपने से ना हो पाई, कहूँ कट जाई तब।"
बीना," ना, हम कर लेब। तू छोड़ दअ।"
बीना ने फिर अपनी ब्लाउज पहनी, और फिर साया। उसने साड़ी नहीं पहनी क्योंकि उसमें समय ज्यादा लगता। बीना बोली," अब साड़ी का पेन्ही, जाके सुतेके बा। ई साड़ी साया, ब्लाउज में सूते में बड़ा दिक्कत होखेला।" ऐसा बोलके वो चली गयी। राजू ने मन में ही सोचा," माई खातिर, एगो मैक्सी ले आइब त आराम हो जाई माई के।"
बीना को जाते देख, राजू लण्ड मसल रहा था। उसे ये जानकर अच्छा लगा कि बीना को उसकी गंदी हरकतों के बारे में पता चल गया था। अब उसे कोई डर नहीं था, ऊपर से बीना उससे दोस्ती कर बैठी थी। उसे सबकुछ साफ साफ बात करने और समझाने का वादा किया था। बीना उसकी माँ के साथ साथ दोस्त भी बन चुकी थी।
उन दोनों के बीच अनोखी दोस्ती शुरू हो चुकी थी।
wow
 

liverpool244

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Bahut mast update......waiting jab Beena kud apna saya apni gaand tak uta kar Raju ke paas jaye aur bole malik apni Beena ko kote ki randi ki tarah chodiye...
 

Motaland2468

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अनोखी दोस्ती भाग-१

बीना के मन में उत्तेजना, उत्साह और शर्म का मिलाजुला अनुभव था। अपने बेटे को अपने अंतःवस्त्रों को सौंपकर उसे नए पैंटी और पैड लाने को कहना उसके अंदर एक अलग रोमांच पैदा कर रहा था। बीना किसी नवयुवती की भांति रह रह के कभी मुस्का रही थी। जाने राजू उसके लिए कौनसी और कैसी कच्छी लेकर आएगा। बीना की बूर रिस रही थी। बीना ने सोचा कि वो घर पर अकेली है, उसे टोकने वाला कोई नहीं है। वो आईने के सामने गयी और सबसे पहले अपने बालों से क्लिप खोल अपने बालों को लहराया। फिर उसने अपनी साड़ी को धीरे धीरे बदन से अलग करके वहीं फेंक दिया। उसके बाद उसने अपनी ब्लाउज उतार दी, फिर अपनी ब्रा की क्लिप खोल दी। ब्रा सिमट के उसके हाथों में आ गयी। ब्रा के खुलते ही चुलबुली चूचियाँ आज़ाद हो गयी। बीना अपने चुच्चियों को बड़े गौर से देख रही थी, मदमस्त बड़ी बड़ी और उसपे आंखों की तरह अंकित भूरे भूरे तने हुए चूचक। बीना एक पल को शरमाई फिर कपड़े उतारने के क्रम में साया का धागा जो उसकी कमर से कसके बंधा हुआ था, उसे खींच लिया। उसके खींचते ही, साया उतरके उसके कदमों के इर्द गिर्द बिखर गया। बीना ने एक कदम आगे बढ़ा खुद को साया के घेरे से बाहर निकाला। फिर अपनी बैंगनी कच्छी की ओर देखा, जो कि उसकी मोटी जांघों के बीच डरी सहमी सी खुद को ना उतारने की मानो अपील कर रही थी। पर अगले ही पल बीना को पता नहीं क्या सूझा उसने कमर से कच्छी की इलास्टिक पकड़ी और उसे उतार कर पैरों से निकाल दिया। बीना का गोरा बदन उस कमरे में रोशनी ले आया। अपनी सम्पूर्ण नग्नता देख, वो खुद अचंभित थी। उम्र ने उसके शरीर में कामुकता एवं वासना के लिए सही उभार और गहराई बनाये थे। बीना खुद को अलमीरा में लगे आदमकद शीशे में नंगी देख गर्व महसूस कर रही थी। इतना सुंदर चेहरा, गोरे गोरे गाल, गुलाबी होठ, काली जुल्फें, कमर तक लंबे बाल, बड़े बड़े दूध से भरने को उतारू चूचियाँ, जिनमें उसके बेटे राजू और बेटी गुड्डी के अलावा धरमदेव ने भी खूब दूध चूसा था। बीना ने उन दोनों चुचकों को उंगलियों से छेड़ा और कड़ा कर लिया। उसके चूचक मोटे और तने हुए थे। बीना ने फिर अपने स्तनों को पकड़के कसके पंजों से भींच लिया। उसके मुंह से उत्तेजना भरी सिसकी निकल गयी। फिर बीना ने अपने निचले होठ काटके,अपने वक्षों को नीचे से हल्के से थप्पड़ मारा। बीना ने फिर अपनी कमर पर हाथ रख अपने शरीर को निहारा। उसका भरा पूरा शरीर किसी व्यक्ति के लिए जीत की ट्रॉफी ही थी। बीना अपने कमर पर हाथ रख दूसरे हाथ से झांट से भड़ी बूर को सहलाते हुए महसूस किया। बूर काफी गीली थी। उसने बूर को मसलते हुए बूर का पानी हाथों में लिया और अपनी एक उंगली मुंह मे डालके स्वाद चख ली। उसका कसैला और नमकीन स्वाद उसे बेहद उत्तेजक लगने लगा। बीना की बूर शुरू से ही ऐसी थी, जो खूब बहती थी। उसे याद था, जब उसने अपनी माँ को ये बात बताई थी तो उसकी माँ ने उसे ये बात किसीको बताने से मना किया था। उसने बोला था कि बूर से पानी जब भी बहे तो, खुद लंबी सांसे लो और पानी पियो। बीना वैसा करती तो कुछ देर बूर शांत रहती थी उसके बाद फिर बहने लगती थी। बीना की माँ समझ गयी थी कि बीना एक अत्यंत कामुक स्त्री है, इसलिए उसे ज्यादा घर से निकलने नहीं देती थी और वक़्त से पहले ही उसकी शादी धरमदेव से करा दी थी। बीना ने बूर पर थपकी देते हुए कहा," जाने कब जान छोड़ी ई।" फिर वो पीछे मुड़ी और अपने यौवन का अंतिम और बेहतरीन खजाना देखने लगी। उसके बड़े बड़े चूतड़। दो बड़े बड़े खरबूजे की तरह उठी, गोल और कड़क किसी भी आदमी को लुभा सकती थी। बीना ने चूतड़ों को दोनों हाथों से सहलाया और अपनी नंगी जवानी को पूरा महसूस किया। बीना इस समय उन लड़कियों से कम नहीं लग रही थी जो राजू की किताबों में नंगी तस्वीरों में कैद थी। बल्कि बीना तो उनसे ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। बीना अपने अंग अंग को निहार रही थी। दरअसल बीना खुद को उन स्त्रियों के यौवन से मेल करा रही थी। बीना को उन किताबों के बारे में याद आया तो वो नंगी ही घर के आंगन से होते हुए राजू के कमरे में गयी। फिर उन किताबों को उठाया और फिर शर्माते हुए राजू की चड्डी उठा ली। बीना ने उस चड्डी को अपनी बूर से सटा लिया। फिर वो थिरकते चूतड़ों और उछलती चूचियों की मतवाली चाल से अपने कमरे की ओर चल दी। बीना ने अपना भारी शरीर बिस्तर पर पटक दिया। वो पेट के बल लेटी उन किताबों को निहार निहार कर देख रही थी। राजू की चड्डी उसके रिसते गीले बूर से भीग रही थी। उसे इस वक़्त उन तस्वीरों की औरतों से इर्ष्या हो रही थी। वो काम वासना से लिप्त उनकी किस्मत में लिखे लौड़े को देख परेशान हो रही थी। उसकी आँखों में बस लण्ड की प्यास साफ दिख रही थी। उसने मन ही मन कहा," केतना मस्त किस्मतवाली सब बिया, एतना मोटा मोटा और मस्त लौड़ा एकर सबके किस्मत में बा। पइसा भी कमावत बिया अउर खूब चुदा चुदा के मज़ा भी लेवेली।" उसने उन तगड़े लौंडों की मेल अपने पति से की तो, धरमदेव के ढलते उमर के साथ ढीले लौड़े को याद कर उसे गुस्सा आ गया। फिर उसे राजू का लण्ड याद आया, उसका लण्ड यादकर उसने गहरी सांस ली और बूर पर चड्डी कसके दबा ली। एक जवान शादीशुदा बेटी की माँ अपने ही बेटे के लण्ड को याद कर, नंगी बिस्तर में बूर के दाने को मसल रही थी। बीना को इस बात का एहसास था कि ये व्यभिचार है, किंतु इसमें इतना मज़ा क्यों उसे आ रहा था?
वो अपने बूर को मलते हुए, अब सिसकने लगी थी। उसका नंगा बदन उसके अंदर की वासना को बिखेर रहा था। व्यभिचार और वासना एक संस्कारी स्त्री को भी किसी रण्डी की तरह मचलने पर मजबूर कर देते हैं। बीना इस वक़्त किसी प्यासी रण्डी की भांति, मचल रही थी। अगर अभी राजू रहता तो, शायद वो उसका लण्ड भी ले लेती। बीना थोड़ी देर में हांफते हुए, अकड़ने लगी। उसकी जुल्फें बिखर गई थी। उसकी आंखें चरम सुख की प्राप्ति से बंद हो गयी थी। अपने बूर के रस से बेटे की गीली चड्डी उसके जांघों में फंसी थी।
उधर राजू दुकान के बाहर खड़े पुतलों पर चढ़ी पैंटी बड़े गौर से देख रहा था। अपनी माँ की चिकनी जांघों के बीच फंसी पैंटी उसे अभी भी याद थी। वो एक बड़े महिलाओं के अंतःवस्त्रों के दुकान के बाहर खड़ा था। वहां काफी महिलाएं थी, इसलिए वो अंदर जाने से हिचकिचा रहा था। वो बाहर खड़ा उन पुतलों को देख, अपनी माँ को उन कच्छियों में कल्पना कर रहा था। राजू को थोड़ी देर वहां खड़ा देख, दुकान का मारवाड़ी मालिक बोला," क्या बात है भाई? क्या चाहिए, कुछ लेना है?
राजू," हाँ, चाही हमके लेडीज आइटम चाही।"
मारवाड़ी जो कई पीढ़ियों से बिहार की मिट्टी से मिल चुका था, फौरन ग्राहक को पहचान बोला," हाँ हाँ आवा आवा अंदर आवा। का चाही बतावा?
राजू संकुचाते हुए बोला," हमके उ....अ... का बोलेला "
मारवाड़ी," अरे बेटा, खुलके बोलअ, इँहा कउनु लाज शरम मत करआ। सब औरत ब्रा पैंटी पेनहली। सबके घर में माई बहिन औरत बहु बेटी सब पेनहली। तहरा केकरा खातिर चाही, कउनु गिरलफ्रेंड बा का?
राजू," ना, हमरा त ई साइज के कच्छी चाही, आपन माई खातिर।" ऐसा बोल उसने अपने बैग से कच्छी निकाल के दे दी।
मारवाड़ी को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि माँ की कच्छी लेने बेटा आया है, पर उसे तो अपने धंधे से मतलब था। उसने अपने एक सेल्सगर्ल को उसके साथ लगाया और उसे कच्छी दिखाने को कहा। उस महिला ने कच्छी के साइज के हिसाब से तरह तरह के पैंटी अलग अलग रंगों में दिखाया, राजू को उनमें गुलाबी और फिरोजी रंग की कच्छी पसंद आई।
सेल्सगर्ल," ई रउवा केकरा खातिर लेत बानि?
राजू," उ हमार माई खातिर चाही। ई पैंटी ओकरे हआ।"
सेल्सगर्ल," केतना उमर बा?
राजू," चालीस बयालीस होई।"
सेल्सगर्ल," ई चटक रंग सब चली ना। माई काहे ना अइलन तहार।"
राजू," उ कभू बाजार आके खुद से ना ख़रीदले बिया।"
सेल्सगर्ल," अच्छा...अच्छा बूझ गइनी। ठीक बा फिर त ले जायीं।"
राजू ने उनदोनो कच्छी को पैक करवा कर, उसका दाम दे दिया, और बाहर आ गया। वो अब अगले पड़ाव की ओर बढ़ा जहाँ, उसे अपनी माँ के लिए पैड खरीदने थे। वो अब थोड़ा खुल चुका था। एक बड़े जनरल स्टोर में घुसकर उसने बोला," भैया, एगो व्हिस्पर दे दआ,।
दुकानवाला," व्हिस्पर त नइखे कोटेक्स बा लेबु?
राजू," दे दआ।"
दुकानवाला," साइज मीडियम, लार्ज, एक्स्ट्रा लार्ज ?
राजू अपनी माँ को याद कर बोला," लार्ज।"
दुकान वाले ने उसे पैड पैक कर दे दिया, राजू ने उसके दाम दिए और थैली में लेकर दुकान से वापस बाहर निकल आया। आज उसने अपनी माँ के लिए कच्छी और पैड खरीदी थी, जो हर इंसान केवल अपनी स्त्री के लिए करता है। ये उसके लिए इशारे थे, जो वो अब थोड़ा थोड़ा समझ रहा था। राजू अपनी धुन में चला जा रहा था, वो तेज़ कदमों से साईकल की पैडल मार रहा था। वो चाभ रहा था कि जल्दी से घर पहुँचके बीना को अपनी खरीददारी दिखाए। वो अपने बाप से पहले घर पहुंचना चाहता था, ताकि बीना के साथ समय बिताए। उसे घर पहुंचते पहुंचते शाम हो गयी थी। उसका बाप घर आ चुका था। उसका सपना चकनाचूर हो गया। उसकी माँ चूल्हे पर खाना बना रही थी, और उसका बाप बीड़ी पीते हुए खाट पर लेटा था। इस वक़्त बीना बिल्कुल घरेलू स्त्री लग रही थी, जो दोपहर को बेटे की चड्डी के साथ बिस्तर में नंगी लेट बूर रगड़ रही थी। उसे देख कोई नहीं कह सकता था कि वो अकेले में काम वासना से वशीभूत बिस्तर में लण्ड के लिए तड़प रही थी। राजू ने बीना की ओर देख थैले की ओर इशारा किया तो बीना ने चुपचाप उसे थैला कमरे में रखने का इशारा किया। राजू चुपचाप थैला घर के अंदर रख आया। राजू बस्ता रख, कपड़े बदल लिया और बाल्टी उठा दूध दूहने खटाल की ओर चल दिया। वहां उसने गाय के थन को थाम दूध दुहना शुरू कर दिया। उसके सामने अचानक उसके माँ की तस्वीर झलकी जिसमें वो उसके द्वारा लायी पैंटी में खड़ी थी। अगले ही पल वो गायब हो गयी। वो उसका भ्रम था, दरअसल वो इतना बेताब था बीना को उस कच्छी में देखने को कि उसे उसकी झलक मिल जाती थी। थोड़ी देर बाद गाय दुह कर जब वो बाहर आया, तो उसकी माँ खाना बना चुकी थी। राजू दूध अपनी माँ के पास लाकर रख दिया, जो उसे बघौने में डालके उबालने लगी। राजू खुद कमरे में पढ़ाई करने चला गया। पर उसका मन पढाई में नहीं लग रहा था। राजू ने पढ़ाई की किताब छोड़, Xforum पर incest कैटेगरी में माँ बेटे की चुदाई की मस्त कहानी पढ़ने लगा। उस कहानी में बेटा अपनी माँ को किसी कोठे की रण्डी की तरह चोद रहा था। राजू का लण्ड कड़ा था। वो मजे से लण्ड कमर के सहारे मसलते हुए पढ़ रहा था। राजू को इस बात का पता ही नहीं चला कि उसकी माँ कब उसके पास कमरे में आई। कहानी में कुछ चुदाई की गंदी तस्वीरें भी शामिल थी, जिसे बीना ने देख लिया।
तभी बीना बोली," राजू...ई का पढ़त बारू?
राजू हड़बड़ाते हुए," माई...तू कब आइलू? बाबूजी सूत गइलन का?
बीना," हाँ, सूत गइलन। पर तु ई का गंदा गंदा चीज़ सब देखत बारआ। हम देखनि ह, तहरा पास ढेरी गंदा गंदा लंगटे लइकियाँ सबके किताब बा।"
राजू," न...न...ना... उ हमार नइखे।"
बीना," झूठ मत बोल, बेशरम लइका। झूठ बोलत तहरा शरम नइखे आवत?
राजू," म...मा...माई...उ...सब अरुण के रहलस।" उसने सारा ठीकरा अरुण के माथे फोड़ दिया। बीना उसकी घबराहट देख अंदर ही अंदर हंस रही थी। उसे राजू को छेड़ना अच्छा लग रहा था। पर वो उसकी माँ थी, तो उसे डांटना तो बनता है।
बीना," अच्छा, उ अरुण के रहलस, पर ई मोबाइल में जउन तू देखत रहुवे, उ त तू खुद करत रहलु ना।"
राजू," माई, माई....." ऐसा बोल वो नज़रे झुकाए बैठा था। बीना उसके सामने खड़ी थी। उसने राजू के सर पर हाथ फेरा और बोली," उ अरुण से दूर रहल करआ, तहरा से पहिले कहत रहनि ना। उ तहरा बिगाड़ देले बा। तहरा ई गंदा गंदा चीज़ सब दिमाग में भर दिहले बा। बता दी तहरा बाबूजी के?
राजू," ना... ना माई।"
बीना," अबसे ई सब छोड़ दआ। तू बढ़िया लइका बारू। ई सब चीज़ से दूर रहल करआ।"
राजू," हम का करि माई, हम कोशिश करेनी पर जाने हमके का होवेला, औरत के शरीर के प्रति हमके बड़ा जिज्ञासा बा। औरत के नंगा बदन के बारे में हम हमेशा सोचेनि। मन होखेला कब कोई लइकी मिली जउन के साथे हम आपन हर इच्छा पूरा करि।"
बीना," औरत के शरीर के प्रति जिज्ञासा ई उमर में आम बात बा। लेकिन तहार बियाह में अभी समय बा बेटा, जउन इच्छा तू पूरा करे चाहेलु उ त मेहरारू देवेली। हाँ, तहार कउनु जिज्ञासा बा त हम ओकर जवाब दे देब, जउन तू जाने चाहेलु।"
राजू चुप था, वो कुछ नहीं बोला। बीना अपने बेटे को देख रही थी उसका लण्ड अभी भी तना हुआ था, जिसे देख उसे खुद उसे छूने की इच्छा होने लगी। बीना ने फिर राजू से बोला," ऐ बबुआ, हमरा खातिर जइसे गुड्डी बा वइसे तू बारआ, तहरा अउर ओकरा में कउनु अंतर नइखे। तू दुनु हमार कोखिया से निकलल बारू। गुड्डी त चल गईल आपन ससुराल, अब त तुहि हमार सहारा बारू। काहे ई करआ तारू?
राजू उसकी ओर देख बोला," अंतर बा माई, गुड्डी दीदी लइकी बिया अउर हम लइका। तू कभू हमरा से एतना नज़दीक ना हो पाइब,जेतना गुड्डी दीदी के। हमार उमर में लइका सबके बीच ई आम बात बा। सब कहानी पढ़े लन अउर फ़िल्म फोटो देख मन शांत करेले। तू हमके बेटा ना एक लइका अउर एक दोस्त के नज़र से देखबु ना त तहरा पता चली।"
बीना," अच्छा, अइसन बात बा त तू अबसे हमके आपन दोस्त बूझआ, अउर हमसे जे भी इच्छा होए खुलके बोलल करा।" ऐसा बोल वो राजू के तने लण्ड पर निगाहें दौड़ाने लगी।
राजू ने उसे देखा तो, लण्ड को एडजस्ट करने लगा। फिर बीना ने उसकी ओर देखा और बोली," बबुआ, आज हमार कच्छी लेके आइलू, त उ दे दअ।"
राजू दीवार पर टंगे झोले से अपनी माँ के लिए खरीदी दोनों कच्छियां निकाल के दे दी। बीना ने दोनों कच्छियों को खोला और पूरा फैलाके देखा। वो बोली," उहे नाप से ले लआ ना? राजू ने बोला," हाँ, तहार पुरान कच्छी के नाप से।" बीना ने फिर अपनी कच्छी वापिस ले ली तो राजू बोला," ई रहे दे, हम इसे साईकल पोछब।"
बीना ने फिर कहा," ठीक बा, उ पैड भी लेलु का।"
राजू ने पैड का पैकेट बढ़ाते हुए बोला," हाँ ई लआ।"
राजू के हाथ से पैड का पैकेट ले, वो शरम महसूस कर रही थी। राजू ने उन दोनों चीजों को देने में एक अजीब सी सुखद और संतुष्टि का अनुभव किया। बीना उठकर जाने लगी तो, राजू ने कहा," माई, ई कच्छी पहन के देख ना, ठीक बा कि ना ज्यादा टाइट नइखे ना।"
बीना," अभी पेन्ही का, तहरा सामने?
राजू," त का भईल कल भी त देखौले रहु। अउर अभी त कहलु कि गुड्डी दीदी अउर हमरा में कउनु अंतर नइखे। गुड्डी दीदी के देखा सकेलु त हमरा काहे ना।" वो एक सांस में बोल गया। बीना की ओर उसने अपने शब्दों की जाल का फंदा फेंका। बीना खड़ी खड़ी कुछ सोच बोली," तहार बाबूजी जग जाइ तब?
राजू," उ एक बेर सुतले के बाद, भोर से पहिले कहाँ उठत बारे। ई बतिया त तू, हमरा से बेहतर जानआ तारआ।"
बीना बोली," कल देख लिहा ना अभी रहे दआ।" राजू बोला," ना हम अभी देखे चाहेनि। दोस्त बारू ना तू हमार।"
बीना अपने ही जाल में फंस गई। उसने राजू की तरफ देखा, और फिर बोली," ठीक बा, रुकअ।" बीना वापिस आयी और हाथ में रखा पैड और पैंटी बिस्तर पर रख दिया। फिर वो बेटे के सामने आ गयी। उसकी नाभि राजू की आंख से कोई ढेड़ मीटर दूर थी। बीना ने फिर राजू से कहा," बेटा तनि नज़र घुमा लआ, कच्छी उतारब ना जउन पेन्हने बानि।" राजू ने कुछ नहीं कहा बल्कि और गौर से उसे देखने लगा। बीना समझ गयी कि राजू अपनी नज़रे फेरने वाला नहीं है। बीना ने फिर साड़ी और साया घुटनों तक उठाया और कच्छी की इलास्टिक पकड़के पैंटी उतारने लगी। बीना राजू की आंखों में आंखे डाले देख रही थी। अपने बेटे की आंखों में अपने लिए हवस उसे साफ दिख रही थी। बीना ने कच्छी पैरों से निकाली और बिस्तर की ओर हल्के से फेंका। राजू ने उसे हवा में ही लपक लिया। उस कच्छी में बीना के शरीर की गर्माहट थी। साथ ही पेशाब और पसीने की मिलीजुली खुशबू। राजू ने उसे नाक के पास लाकर सूंघ लिया। बीना उसे ऐसा करते देख बोली," उ गंदा बा, छि...उ काहे सूँघत बारआ।" राजू ने फिर उसे दिखा और सूंघने लगा। बीना ने फिर कुछ नहीं कहा और गुलाबी कच्छी ले उसमें पैर घुसा ऊपर की ओर खींचने लगी। जब वो कच्छी घुटनों से ऊपर ले गयी तो, राजू एकटक वहीं देख रहा रहा। बीना ने कच्छी ऊपर तक खींच ली, और फिर साड़ी और साया एक साथ उठाके बोली," देखआ कइसन बुझावेला, ई नया कच्छी तोर माई पर।" राजू प्यासी नज़रों से अपनी माँ को चड्डी में देख रहा था। बीना अपनी साड़ी और साया उठाये खड़ी थी। राजू ने हाथों से इशारा कर उसे अपने पास बुलाया। बीना सहमी हुई उसके पास आ गयी। उन दोनों की ही सांसें तेज चल रही थी। राजू ने बीना से पूछा," ज्यादा टाइट नइखे ना।"
बीना उसकी ओर बिना देखे बोली," ना, फिटिंग बा।"
राजू ने पैंटी लाइन पर देखा और बोला," रुक देखे दे।" ऐसा बोल उसने कच्छी की पैंटी लाइन, में उंगली घुसा दी। बीना की चमड़ी और पैंटी लाइन के बीच उंगली चलाने में मज़ा आ रहा था। उसने देखा वाकई पैंटी की फिटिंग जबरदस्त थी। तभी उसे बीना के बूर के कुछ बाल बाहर झांकते हुए दिखे। राजू ने पैंटी और अंदरूनी जांघों के बीच उन बालों को छूकर बोला," इँहा के बाल नइखे काटत बारू का। तहार कच्छी में भी नइखे समात।"
बीना कुछ नहीं बोली। राजू जब इतने करीब था तो बीना की बूर के रिसाव की मादक गंध उसके नथुनों में समा रही थी। बीना इस क्षण उत्तेजित होने लगी थी। राजू ने किसी तरह खुद पर काबू किये रखा, फिर उसने बीना को पीछे मुड़ने को कहा। बीना पीछे घूम गयी। उसके बड़े भारी चूतड़ पैंटी, से चिपके पड़े थे। उसके गाँड़ की ऊपरी दरार साफ नजर आ रही थी। ऊफ़्फ़ कितनी कामुक लग रही थी वो। राजू ने उस दरार में उंगली डाल दी, और जान बूझकर एक दो बार नीचे कर उसको महसूस किया, फिर कच्छी ऊपर कर उसे ढक दिया। बीना के चूतड़ों के चारों ओर पैंटी की लाइन की फिटिंग बहुत बढ़िया आयी थी। राजू उसे देख प्रसन्न और रोमांचित था। फिर राजू को शैतानी सूझी, उसने बीना से बिना कुछ कहे उसकी साड़ी खींचकर उतारने लगा। बीना साड़ी पकड़े खड़ी थी, तो उसे साड़ी निकलती हुई महसूस हुई। उसने राजू की ओर देखा, और बोली," ई का करआ तारआ, राजू?
राजू," साड़ी अउर साया उतारके देखा दआ।"
बीना," ना राजू छोड़ दअ, साड़ी मत खोल। हमके लाज लग रहल बा।"
राजू उसकी कहां सुनने वाला था, उसने साड़ी खींचकर अलग कर दिया। बीना शर्म से अपने ही बेटे के हाथों साड़ी उतरवा बैठी। राजू ने अब उसके साया का नाड़ा पकड़ खींचने को हुआ तो, बीना ने अपना चेहरा हाथों से ढक लिया। राजू ने नाड़ा के पास जो कटा हुआ हिस्सा होता है, बीना की गोरी चमड़ी जो बाहर झांक रही थी, उसे जानबूझकर छूते हुए महसूस किया। फिर उसने साया का नाड़ा खींच दिया। साया सरसराते हुए, बीना के पैरों में गिर गया। बीना अब बेटे के सामने सिर्फ ब्लाउज में और पैंटी में खड़ी थी। अहा क्या दृश्य था। बीना के गोरे बदन पर ये गुलाबी पैंटी बहुत ही फब रही थी। बीना इस उम्र में भी काफी तंदुरुस्त थी। कमर, पेट और जांघों पर हल्की चर्बी थी, जो इस उम्र में स्वाभाविक थी, वो भद्दी नहीं बल्कि उसे और आकर्षक बना रही थी। राजू ने बीना के कमर पर लगती पैंटी की इलास्टिक में उंगली डाली, और कमर पर उसके कसाव का जायजा लिया। उसने बीना के कमर के एक छोड़ से दूसरे छोड़ तक उंगली घुमाके देखा। बीना कुछ बोली नहीं, लेकिन उसके मुंह से सिसकारी फूट पड़ी। राजू ने देखा कि बीना की बूर की दरार पैंटी के कसाव की वजह से उभर गयी थी। बीना की बूर अब पानी भी छोड़ रही थी, जिस वजह से वो हल्की गीली भी हो चुकी थी। उसकी खुशबू राजू महसूस कर रहा था। उसने बीना के बूर के उपर पैंटी पर हाथ डाल दिया। बीना के मुंह से,"इशहह.... आह.... निकला।
राजू," का भईल माई, इँहा कच्छी ज्यादा टाइट बा का, दर्द होता का?
बीना कुछ नहीं बोली, बस आँखें मूंद खड़ी थी। राजू ने फिर कहा," बोल ना माई, देख अब हम अउर तू दोस्त बानि। खुलके बोलना, अगर टाइट होई त काल एकरा बदल देब।"
बीना," ना टाइट नइखे, तू छोड़ दआ हाथ हटा लआ।"
राजू," लेकिन इँहा गीला काहे बा?
बीना," गर्मी से पसीना आ गईल हआ, छोड़ दआ।"
राजू ने उसकी पैंटी के पास नाक लगाकर सूंघ लिया, और बोला," हहम्म, लागत बा ढेरी पसीना चू रहल बा। लेकिन एकर गंध अलग बा।"
बीना को इस छेड़छाड़ में मज़ा आ रहा था और थोड़ी ग्लानि भी, पर इसमें मज़ा का पलड़ा भारी था। राजू बोला," माई, जानत बारू तहरा, पसीना काहे आ रहल बा?
बीना धीरे से बोली," काहे?
राजू," काहे कि तहरा इँहा बहुल घना बाल बा। एकरा काटत काहे ना।"
बीना," फुरसत नइखे मिलत काम से, कब काटी?
राजू," हम काट देब, अभी लेके आवत बानि हमार रेजर वाला पत्ती।"
बीना," ना अभी मत कर राजू, काल कर दिहा। अउर भी जगह ढेरी बाल बा"
राजू," अउर कहां बाल बा?
बीना," इँहा कंखिया में।" बीना ने बांया हाथ ऊपर कर काँख दिखाते हुए बोला।
राजू," पर पता नइखे लागत ब्लाउज के ऊपर से, ब्लाउज उतार के देखा दआ।"
बीना बोली," हम अंदर कुछ पहनने नइखे, ब्लाउज कइसे उतारी।"
राजू," त का भईल, अइसन का बा भीतरी जउन हम ना देखने बानि। बच्चा में ई चुच्ची से केतना दूध पिनी हम।"
बीना," तब तू बच्चा रहलु, अब सियान बारू। हम तहरा सामने अब उ खोलके कइसे दिखाई।"
राजू," ठीक बा, अइसे कर तू एक हाथ से दुनु चुच्ची छुपा लिहा ब्लाउज खोलके, अउर हम बारि बारि तहार दुनु कंखिया के बाल देख लेब। ठीक बा।"
बीना," ठीक बा लेकिन तू उधर मुंह घुमा लआ।" राजू दूसरी ओर मुँह घुमा लिया और बीना अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी। बीना ने सारे बटन खोल ब्लाउज उतार कर बिस्तर पर डाल दिया। उसने ब्रा नहीं पहनी थी। उसने अपने दोनों चूचियों को बांये हाथ को लंबा कर ढक लिया, जिससे उसके चूचकों के इर्द गिर्द की जगह ही ढकी गयी। बीना ने राजू से फिर पीछे मुड़ने को कहा," राजू, हम ब्लाउज उतार देनि हअ।"
राजू बीना की ओर पलटा, तो बीना अपना दाहिना हाथ ऊपर कर सर के पीछे ली हुई, अपने बांये हाथ से चूचियों को ढकी हुई, किसी फिल्मी मॉडल की तरह खड़ी थी। राजू का लण्ड पूरा टनटना गया। वो भी सिर्फ चड्डी में था, तो उसका उभार भी साफ पता चल रहा था। बीना की नज़र भी उस उभार को देखे बिना नहीं रह पाई। राजू ने देखा, उसके काँखों में काफी बाल थे। वो काफी घने, काले, घुंघराले और चमकदार थे। बीना के करीब आकर उसने बड़े गौर से देखा और बोला," माई, तू त परेशान हो जात होखब, जाने केतना दिन से ई बालवा तू काटले नइखे। बाप रे बाप पसीना से त इँहा खुजली ना हो जाये। एकरा त काटे के पड़ी। दोसर कांखिया देखाबा।"
बीना ने उसकी बात मानते हुए अपना दूसरा हाथ ऊपर उठा दिया, लेकिन वो अपनी उन्नत चूचियों को दूसरे हाथ से ढक ली। बीना ने ये इतनी जल्दी किया कि राजू, कुछ स्पष्ट देख नहीं पाया। राजू ने दूसरे काँख में हाथ फेरा, तो बीना को गुदगुदी हुई, बीना हंस पड़ी। राजू ने कहा," बड़ा बाल बा माई, एकरा काट लअ।"
बीना," हम कभू ना काटनी ह। एतना दिन में त कुछ ना भईल। लेकिन फिर भी तू कहेलु त काल काट दिहा।"
राजू," काल काहे, ई त हम अभिये काट देब।" ऐसा बोलके वो फौरन अपने रैक पर रखी, साधारण कैंची झटके से ले आया। और बीना को स्थिर खड़े होने को कहा।
बीना अपने बेटे के बताए अनुसार हाथ ऊपर करके खड़ी थी, वहीं राजू उसके काँख के बाल काटने लगा। उसने बीना के बाल काटके काफी छोटे कर दिए। बीना ने फिर दूसरा हाथ ऊपर किया, और राजू ने उसके बाल भी काट दिए। बीना अपनी चूचियों को ढक तब तक शांति से खड़ी थी। बाल कटने पर उसे काफी हल्का महसूस हो रहा था। इस दौरान वो राजू की ओर देखती रही, जबकि राजू पूरे ध्यान से उसके बालों की छटाई कर रहा था साथ ही उसके काँखों की महक को अपने मन में समा रहा था। वो बार बार बीना के काँखों को कैंची चला के हथेली से झाड़ता था। उससे बीना को गुदगुदी महसूस होती थी। राजू को बीना के हल्के बाल अब अच्छे लग रहे थे। राजू ने फिर पूछा," बताबा, कइसन बुझाता?

बीना," बड़ा हल्का बुझा रहल बा। अब पसीना भी कम आयी। राजू," हाँ अब तहरा आराम आयी। निचवा के बाल भी काट दी का?
बीना," ना.. तू छोड़ द, हम खुद काल काट लेब। अब हम बूझ गइनी कि केसिया कइसे कटाई। ई कैंची हमके दे दअ।"
राजू," ना अपने से ना हो पाई, कहूँ कट जाई तब।"
बीना," ना, हम कर लेब। तू छोड़ दअ।"
बीना ने फिर अपनी ब्लाउज पहनी, और फिर साया। उसने साड़ी नहीं पहनी क्योंकि उसमें समय ज्यादा लगता। बीना बोली," अब साड़ी का पेन्ही, जाके सुतेके बा। ई साड़ी साया, ब्लाउज में सूते में बड़ा दिक्कत होखेला।" ऐसा बोलके वो चली गयी। राजू ने मन में ही सोचा," माई खातिर, एगो मैक्सी ले आइब त आराम हो जाई माई के।"
बीना को जाते देख, राजू लण्ड मसल रहा था। उसे ये जानकर अच्छा लगा कि बीना को उसकी गंदी हरकतों के बारे में पता चल गया था। अब उसे कोई डर नहीं था, ऊपर से बीना उससे दोस्ती कर बैठी थी। उसे सबकुछ साफ साफ बात करने और समझाने का वादा किया था। बीना उसकी माँ के साथ साथ दोस्त भी बन चुकी थी।
उन दोनों के बीच अनोखी दोस्ती शुरू हो चुकी थी।
Kash bhai is update main pics or gif bhi hoti to or maza aata dhanyawad itna shaandar update dene ke liye
 

LUSSY

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WAH MERE BHAI OUTSTANDING MAJA AA GAYAL HO IS KAHANI SUN KE ISKA KE BANA KA RAKHA. MALIK TUHRA KE DIN RAT TAKI DEVE DHANYABAD
 

rajeev13

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