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Incest रिश्तों का कामुक संगम

moms_bachha

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अनोखी दोस्ती भाग-१

बीना के मन में उत्तेजना, उत्साह और शर्म का मिलाजुला अनुभव था। अपने बेटे को अपने अंतःवस्त्रों को सौंपकर उसे नए पैंटी और पैड लाने को कहना उसके अंदर एक अलग रोमांच पैदा कर रहा था। बीना किसी नवयुवती की भांति रह रह के कभी मुस्का रही थी। जाने राजू उसके लिए कौनसी और कैसी कच्छी लेकर आएगा। बीना की बूर रिस रही थी। बीना ने सोचा कि वो घर पर अकेली है, उसे टोकने वाला कोई नहीं है। वो आईने के सामने गयी और सबसे पहले अपने बालों से क्लिप खोल अपने बालों को लहराया। फिर उसने अपनी साड़ी को धीरे धीरे बदन से अलग करके वहीं फेंक दिया। उसके बाद उसने अपनी ब्लाउज उतार दी, फिर अपनी ब्रा की क्लिप खोल दी। ब्रा सिमट के उसके हाथों में आ गयी। ब्रा के खुलते ही चुलबुली चूचियाँ आज़ाद हो गयी। बीना अपने चुच्चियों को बड़े गौर से देख रही थी, मदमस्त बड़ी बड़ी और उसपे आंखों की तरह अंकित भूरे भूरे तने हुए चूचक। बीना एक पल को शरमाई फिर कपड़े उतारने के क्रम में साया का धागा जो उसकी कमर से कसके बंधा हुआ था, उसे खींच लिया। उसके खींचते ही, साया उतरके उसके कदमों के इर्द गिर्द बिखर गया। बीना ने एक कदम आगे बढ़ा खुद को साया के घेरे से बाहर निकाला। फिर अपनी बैंगनी कच्छी की ओर देखा, जो कि उसकी मोटी जांघों के बीच डरी सहमी सी खुद को ना उतारने की मानो अपील कर रही थी। पर अगले ही पल बीना को पता नहीं क्या सूझा उसने कमर से कच्छी की इलास्टिक पकड़ी और उसे उतार कर पैरों से निकाल दिया। बीना का गोरा बदन उस कमरे में रोशनी ले आया। अपनी सम्पूर्ण नग्नता देख, वो खुद अचंभित थी। उम्र ने उसके शरीर में कामुकता एवं वासना के लिए सही उभार और गहराई बनाये थे। बीना खुद को अलमीरा में लगे आदमकद शीशे में नंगी देख गर्व महसूस कर रही थी। इतना सुंदर चेहरा, गोरे गोरे गाल, गुलाबी होठ, काली जुल्फें, कमर तक लंबे बाल, बड़े बड़े दूध से भरने को उतारू चूचियाँ, जिनमें उसके बेटे राजू और बेटी गुड्डी के अलावा धरमदेव ने भी खूब दूध चूसा था। बीना ने उन दोनों चुचकों को उंगलियों से छेड़ा और कड़ा कर लिया। उसके चूचक मोटे और तने हुए थे। बीना ने फिर अपने स्तनों को पकड़के कसके पंजों से भींच लिया। उसके मुंह से उत्तेजना भरी सिसकी निकल गयी। फिर बीना ने अपने निचले होठ काटके,अपने वक्षों को नीचे से हल्के से थप्पड़ मारा। बीना ने फिर अपनी कमर पर हाथ रख अपने शरीर को निहारा। उसका भरा पूरा शरीर किसी व्यक्ति के लिए जीत की ट्रॉफी ही थी। बीना अपने कमर पर हाथ रख दूसरे हाथ से झांट से भड़ी बूर को सहलाते हुए महसूस किया। बूर काफी गीली थी। उसने बूर को मसलते हुए बूर का पानी हाथों में लिया और अपनी एक उंगली मुंह मे डालके स्वाद चख ली। उसका कसैला और नमकीन स्वाद उसे बेहद उत्तेजक लगने लगा। बीना की बूर शुरू से ही ऐसी थी, जो खूब बहती थी। उसे याद था, जब उसने अपनी माँ को ये बात बताई थी तो उसकी माँ ने उसे ये बात किसीको बताने से मना किया था। उसने बोला था कि बूर से पानी जब भी बहे तो, खुद लंबी सांसे लो और पानी पियो। बीना वैसा करती तो कुछ देर बूर शांत रहती थी उसके बाद फिर बहने लगती थी। बीना की माँ समझ गयी थी कि बीना एक अत्यंत कामुक स्त्री है, इसलिए उसे ज्यादा घर से निकलने नहीं देती थी और वक़्त से पहले ही उसकी शादी धरमदेव से करा दी थी। बीना ने बूर पर थपकी देते हुए कहा," जाने कब जान छोड़ी ई।" फिर वो पीछे मुड़ी और अपने यौवन का अंतिम और बेहतरीन खजाना देखने लगी। उसके बड़े बड़े चूतड़। दो बड़े बड़े खरबूजे की तरह उठी, गोल और कड़क किसी भी आदमी को लुभा सकती थी। बीना ने चूतड़ों को दोनों हाथों से सहलाया और अपनी नंगी जवानी को पूरा महसूस किया। बीना इस समय उन लड़कियों से कम नहीं लग रही थी जो राजू की किताबों में नंगी तस्वीरों में कैद थी। बल्कि बीना तो उनसे ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। बीना अपने अंग अंग को निहार रही थी। दरअसल बीना खुद को उन स्त्रियों के यौवन से मेल करा रही थी। बीना को उन किताबों के बारे में याद आया तो वो नंगी ही घर के आंगन से होते हुए राजू के कमरे में गयी। फिर उन किताबों को उठाया और फिर शर्माते हुए राजू की चड्डी उठा ली। बीना ने उस चड्डी को अपनी बूर से सटा लिया। फिर वो थिरकते चूतड़ों और उछलती चूचियों की मतवाली चाल से अपने कमरे की ओर चल दी। बीना ने अपना भारी शरीर बिस्तर पर पटक दिया। वो पेट के बल लेटी उन किताबों को निहार निहार कर देख रही थी। राजू की चड्डी उसके रिसते गीले बूर से भीग रही थी। उसे इस वक़्त उन तस्वीरों की औरतों से इर्ष्या हो रही थी। वो काम वासना से लिप्त उनकी किस्मत में लिखे लौड़े को देख परेशान हो रही थी। उसकी आँखों में बस लण्ड की प्यास साफ दिख रही थी। उसने मन ही मन कहा," केतना मस्त किस्मतवाली सब बिया, एतना मोटा मोटा और मस्त लौड़ा एकर सबके किस्मत में बा। पइसा भी कमावत बिया अउर खूब चुदा चुदा के मज़ा भी लेवेली।" उसने उन तगड़े लौंडों की मेल अपने पति से की तो, धरमदेव के ढलते उमर के साथ ढीले लौड़े को याद कर उसे गुस्सा आ गया। फिर उसे राजू का लण्ड याद आया, उसका लण्ड यादकर उसने गहरी सांस ली और बूर पर चड्डी कसके दबा ली। एक जवान शादीशुदा बेटी की माँ अपने ही बेटे के लण्ड को याद कर, नंगी बिस्तर में बूर के दाने को मसल रही थी। बीना को इस बात का एहसास था कि ये व्यभिचार है, किंतु इसमें इतना मज़ा क्यों उसे आ रहा था?
वो अपने बूर को मलते हुए, अब सिसकने लगी थी। उसका नंगा बदन उसके अंदर की वासना को बिखेर रहा था। व्यभिचार और वासना एक संस्कारी स्त्री को भी किसी रण्डी की तरह मचलने पर मजबूर कर देते हैं। बीना इस वक़्त किसी प्यासी रण्डी की भांति, मचल रही थी। अगर अभी राजू रहता तो, शायद वो उसका लण्ड भी ले लेती। बीना थोड़ी देर में हांफते हुए, अकड़ने लगी। उसकी जुल्फें बिखर गई थी। उसकी आंखें चरम सुख की प्राप्ति से बंद हो गयी थी। अपने बूर के रस से बेटे की गीली चड्डी उसके जांघों में फंसी थी।
उधर राजू दुकान के बाहर खड़े पुतलों पर चढ़ी पैंटी बड़े गौर से देख रहा था। अपनी माँ की चिकनी जांघों के बीच फंसी पैंटी उसे अभी भी याद थी। वो एक बड़े महिलाओं के अंतःवस्त्रों के दुकान के बाहर खड़ा था। वहां काफी महिलाएं थी, इसलिए वो अंदर जाने से हिचकिचा रहा था। वो बाहर खड़ा उन पुतलों को देख, अपनी माँ को उन कच्छियों में कल्पना कर रहा था। राजू को थोड़ी देर वहां खड़ा देख, दुकान का मारवाड़ी मालिक बोला," क्या बात है भाई? क्या चाहिए, कुछ लेना है?
राजू," हाँ, चाही हमके लेडीज आइटम चाही।"
मारवाड़ी जो कई पीढ़ियों से बिहार की मिट्टी से मिल चुका था, फौरन ग्राहक को पहचान बोला," हाँ हाँ आवा आवा अंदर आवा। का चाही बतावा?
राजू संकुचाते हुए बोला," हमके उ....अ... का बोलेला "
मारवाड़ी," अरे बेटा, खुलके बोलअ, इँहा कउनु लाज शरम मत करआ। सब औरत ब्रा पैंटी पेनहली। सबके घर में माई बहिन औरत बहु बेटी सब पेनहली। तहरा केकरा खातिर चाही, कउनु गिरलफ्रेंड बा का?
राजू," ना, हमरा त ई साइज के कच्छी चाही, आपन माई खातिर।" ऐसा बोल उसने अपने बैग से कच्छी निकाल के दे दी।
मारवाड़ी को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि माँ की कच्छी लेने बेटा आया है, पर उसे तो अपने धंधे से मतलब था। उसने अपने एक सेल्सगर्ल को उसके साथ लगाया और उसे कच्छी दिखाने को कहा। उस महिला ने कच्छी के साइज के हिसाब से तरह तरह के पैंटी अलग अलग रंगों में दिखाया, राजू को उनमें गुलाबी और फिरोजी रंग की कच्छी पसंद आई।
सेल्सगर्ल," ई रउवा केकरा खातिर लेत बानि?
राजू," उ हमार माई खातिर चाही। ई पैंटी ओकरे हआ।"
सेल्सगर्ल," केतना उमर बा?
राजू," चालीस बयालीस होई।"
सेल्सगर्ल," ई चटक रंग सब चली ना। माई काहे ना अइलन तहार।"
राजू," उ कभू बाजार आके खुद से ना ख़रीदले बिया।"
सेल्सगर्ल," अच्छा...अच्छा बूझ गइनी। ठीक बा फिर त ले जायीं।"
राजू ने उनदोनो कच्छी को पैक करवा कर, उसका दाम दे दिया, और बाहर आ गया। वो अब अगले पड़ाव की ओर बढ़ा जहाँ, उसे अपनी माँ के लिए पैड खरीदने थे। वो अब थोड़ा खुल चुका था। एक बड़े जनरल स्टोर में घुसकर उसने बोला," भैया, एगो व्हिस्पर दे दआ,।
दुकानवाला," व्हिस्पर त नइखे कोटेक्स बा लेबु?
राजू," दे दआ।"
दुकानवाला," साइज मीडियम, लार्ज, एक्स्ट्रा लार्ज ?
राजू अपनी माँ को याद कर बोला," लार्ज।"
दुकान वाले ने उसे पैड पैक कर दे दिया, राजू ने उसके दाम दिए और थैली में लेकर दुकान से वापस बाहर निकल आया। आज उसने अपनी माँ के लिए कच्छी और पैड खरीदी थी, जो हर इंसान केवल अपनी स्त्री के लिए करता है। ये उसके लिए इशारे थे, जो वो अब थोड़ा थोड़ा समझ रहा था। राजू अपनी धुन में चला जा रहा था, वो तेज़ कदमों से साईकल की पैडल मार रहा था। वो चाभ रहा था कि जल्दी से घर पहुँचके बीना को अपनी खरीददारी दिखाए। वो अपने बाप से पहले घर पहुंचना चाहता था, ताकि बीना के साथ समय बिताए। उसे घर पहुंचते पहुंचते शाम हो गयी थी। उसका बाप घर आ चुका था। उसका सपना चकनाचूर हो गया। उसकी माँ चूल्हे पर खाना बना रही थी, और उसका बाप बीड़ी पीते हुए खाट पर लेटा था। इस वक़्त बीना बिल्कुल घरेलू स्त्री लग रही थी, जो दोपहर को बेटे की चड्डी के साथ बिस्तर में नंगी लेट बूर रगड़ रही थी। उसे देख कोई नहीं कह सकता था कि वो अकेले में काम वासना से वशीभूत बिस्तर में लण्ड के लिए तड़प रही थी। राजू ने बीना की ओर देख थैले की ओर इशारा किया तो बीना ने चुपचाप उसे थैला कमरे में रखने का इशारा किया। राजू चुपचाप थैला घर के अंदर रख आया। राजू बस्ता रख, कपड़े बदल लिया और बाल्टी उठा दूध दूहने खटाल की ओर चल दिया। वहां उसने गाय के थन को थाम दूध दुहना शुरू कर दिया। उसके सामने अचानक उसके माँ की तस्वीर झलकी जिसमें वो उसके द्वारा लायी पैंटी में खड़ी थी। अगले ही पल वो गायब हो गयी। वो उसका भ्रम था, दरअसल वो इतना बेताब था बीना को उस कच्छी में देखने को कि उसे उसकी झलक मिल जाती थी। थोड़ी देर बाद गाय दुह कर जब वो बाहर आया, तो उसकी माँ खाना बना चुकी थी। राजू दूध अपनी माँ के पास लाकर रख दिया, जो उसे बघौने में डालके उबालने लगी। राजू खुद कमरे में पढ़ाई करने चला गया। पर उसका मन पढाई में नहीं लग रहा था। राजू ने पढ़ाई की किताब छोड़, Xforum पर incest कैटेगरी में माँ बेटे की चुदाई की मस्त कहानी पढ़ने लगा। उस कहानी में बेटा अपनी माँ को किसी कोठे की रण्डी की तरह चोद रहा था। राजू का लण्ड कड़ा था। वो मजे से लण्ड कमर के सहारे मसलते हुए पढ़ रहा था। राजू को इस बात का पता ही नहीं चला कि उसकी माँ कब उसके पास कमरे में आई। कहानी में कुछ चुदाई की गंदी तस्वीरें भी शामिल थी, जिसे बीना ने देख लिया।
तभी बीना बोली," राजू...ई का पढ़त बारू?
राजू हड़बड़ाते हुए," माई...तू कब आइलू? बाबूजी सूत गइलन का?
बीना," हाँ, सूत गइलन। पर तु ई का गंदा गंदा चीज़ सब देखत बारआ। हम देखनि ह, तहरा पास ढेरी गंदा गंदा लंगटे लइकियाँ सबके किताब बा।"
राजू," न...न...ना... उ हमार नइखे।"
बीना," झूठ मत बोल, बेशरम लइका। झूठ बोलत तहरा शरम नइखे आवत?
राजू," म...मा...माई...उ...सब अरुण के रहलस।" उसने सारा ठीकरा अरुण के माथे फोड़ दिया। बीना उसकी घबराहट देख अंदर ही अंदर हंस रही थी। उसे राजू को छेड़ना अच्छा लग रहा था। पर वो उसकी माँ थी, तो उसे डांटना तो बनता है।
बीना," अच्छा, उ अरुण के रहलस, पर ई मोबाइल में जउन तू देखत रहुवे, उ त तू खुद करत रहलु ना।"
राजू," माई, माई....." ऐसा बोल वो नज़रे झुकाए बैठा था। बीना उसके सामने खड़ी थी। उसने राजू के सर पर हाथ फेरा और बोली," उ अरुण से दूर रहल करआ, तहरा से पहिले कहत रहनि ना। उ तहरा बिगाड़ देले बा। तहरा ई गंदा गंदा चीज़ सब दिमाग में भर दिहले बा। बता दी तहरा बाबूजी के?
राजू," ना... ना माई।"
बीना," अबसे ई सब छोड़ दआ। तू बढ़िया लइका बारू। ई सब चीज़ से दूर रहल करआ।"
राजू," हम का करि माई, हम कोशिश करेनी पर जाने हमके का होवेला, औरत के शरीर के प्रति हमके बड़ा जिज्ञासा बा। औरत के नंगा बदन के बारे में हम हमेशा सोचेनि। मन होखेला कब कोई लइकी मिली जउन के साथे हम आपन हर इच्छा पूरा करि।"
बीना," औरत के शरीर के प्रति जिज्ञासा ई उमर में आम बात बा। लेकिन तहार बियाह में अभी समय बा बेटा, जउन इच्छा तू पूरा करे चाहेलु उ त मेहरारू देवेली। हाँ, तहार कउनु जिज्ञासा बा त हम ओकर जवाब दे देब, जउन तू जाने चाहेलु।"
राजू चुप था, वो कुछ नहीं बोला। बीना अपने बेटे को देख रही थी उसका लण्ड अभी भी तना हुआ था, जिसे देख उसे खुद उसे छूने की इच्छा होने लगी। बीना ने फिर राजू से बोला," ऐ बबुआ, हमरा खातिर जइसे गुड्डी बा वइसे तू बारआ, तहरा अउर ओकरा में कउनु अंतर नइखे। तू दुनु हमार कोखिया से निकलल बारू। गुड्डी त चल गईल आपन ससुराल, अब त तुहि हमार सहारा बारू। काहे ई करआ तारू?
राजू उसकी ओर देख बोला," अंतर बा माई, गुड्डी दीदी लइकी बिया अउर हम लइका। तू कभू हमरा से एतना नज़दीक ना हो पाइब,जेतना गुड्डी दीदी के। हमार उमर में लइका सबके बीच ई आम बात बा। सब कहानी पढ़े लन अउर फ़िल्म फोटो देख मन शांत करेले। तू हमके बेटा ना एक लइका अउर एक दोस्त के नज़र से देखबु ना त तहरा पता चली।"
बीना," अच्छा, अइसन बात बा त तू अबसे हमके आपन दोस्त बूझआ, अउर हमसे जे भी इच्छा होए खुलके बोलल करा।" ऐसा बोल वो राजू के तने लण्ड पर निगाहें दौड़ाने लगी।
राजू ने उसे देखा तो, लण्ड को एडजस्ट करने लगा। फिर बीना ने उसकी ओर देखा और बोली," बबुआ, आज हमार कच्छी लेके आइलू, त उ दे दअ।"
राजू दीवार पर टंगे झोले से अपनी माँ के लिए खरीदी दोनों कच्छियां निकाल के दे दी। बीना ने दोनों कच्छियों को खोला और पूरा फैलाके देखा। वो बोली," उहे नाप से ले लआ ना? राजू ने बोला," हाँ, तहार पुरान कच्छी के नाप से।" बीना ने फिर अपनी कच्छी वापिस ले ली तो राजू बोला," ई रहे दे, हम इसे साईकल पोछब।"
बीना ने फिर कहा," ठीक बा, उ पैड भी लेलु का।"
राजू ने पैड का पैकेट बढ़ाते हुए बोला," हाँ ई लआ।"
राजू के हाथ से पैड का पैकेट ले, वो शरम महसूस कर रही थी। राजू ने उन दोनों चीजों को देने में एक अजीब सी सुखद और संतुष्टि का अनुभव किया। बीना उठकर जाने लगी तो, राजू ने कहा," माई, ई कच्छी पहन के देख ना, ठीक बा कि ना ज्यादा टाइट नइखे ना।"
बीना," अभी पेन्ही का, तहरा सामने?
राजू," त का भईल कल भी त देखौले रहु। अउर अभी त कहलु कि गुड्डी दीदी अउर हमरा में कउनु अंतर नइखे। गुड्डी दीदी के देखा सकेलु त हमरा काहे ना।" वो एक सांस में बोल गया। बीना की ओर उसने अपने शब्दों की जाल का फंदा फेंका। बीना खड़ी खड़ी कुछ सोच बोली," तहार बाबूजी जग जाइ तब?
राजू," उ एक बेर सुतले के बाद, भोर से पहिले कहाँ उठत बारे। ई बतिया त तू, हमरा से बेहतर जानआ तारआ।"
बीना बोली," कल देख लिहा ना अभी रहे दआ।" राजू बोला," ना हम अभी देखे चाहेनि। दोस्त बारू ना तू हमार।"
बीना अपने ही जाल में फंस गई। उसने राजू की तरफ देखा, और फिर बोली," ठीक बा, रुकअ।" बीना वापिस आयी और हाथ में रखा पैड और पैंटी बिस्तर पर रख दिया। फिर वो बेटे के सामने आ गयी। उसकी नाभि राजू की आंख से कोई ढेड़ मीटर दूर थी। बीना ने फिर राजू से कहा," बेटा तनि नज़र घुमा लआ, कच्छी उतारब ना जउन पेन्हने बानि।" राजू ने कुछ नहीं कहा बल्कि और गौर से उसे देखने लगा। बीना समझ गयी कि राजू अपनी नज़रे फेरने वाला नहीं है। बीना ने फिर साड़ी और साया घुटनों तक उठाया और कच्छी की इलास्टिक पकड़के पैंटी उतारने लगी। बीना राजू की आंखों में आंखे डाले देख रही थी। अपने बेटे की आंखों में अपने लिए हवस उसे साफ दिख रही थी। बीना ने कच्छी पैरों से निकाली और बिस्तर की ओर हल्के से फेंका। राजू ने उसे हवा में ही लपक लिया। उस कच्छी में बीना के शरीर की गर्माहट थी। साथ ही पेशाब और पसीने की मिलीजुली खुशबू। राजू ने उसे नाक के पास लाकर सूंघ लिया। बीना उसे ऐसा करते देख बोली," उ गंदा बा, छि...उ काहे सूँघत बारआ।" राजू ने फिर उसे दिखा और सूंघने लगा। बीना ने फिर कुछ नहीं कहा और गुलाबी कच्छी ले उसमें पैर घुसा ऊपर की ओर खींचने लगी। जब वो कच्छी घुटनों से ऊपर ले गयी तो, राजू एकटक वहीं देख रहा रहा। बीना ने कच्छी ऊपर तक खींच ली, और फिर साड़ी और साया एक साथ उठाके बोली," देखआ कइसन बुझावेला, ई नया कच्छी तोर माई पर।" राजू प्यासी नज़रों से अपनी माँ को चड्डी में देख रहा था। बीना अपनी साड़ी और साया उठाये खड़ी थी। राजू ने हाथों से इशारा कर उसे अपने पास बुलाया। बीना सहमी हुई उसके पास आ गयी। उन दोनों की ही सांसें तेज चल रही थी। राजू ने बीना से पूछा," ज्यादा टाइट नइखे ना।"
बीना उसकी ओर बिना देखे बोली," ना, फिटिंग बा।"
राजू ने पैंटी लाइन पर देखा और बोला," रुक देखे दे।" ऐसा बोल उसने कच्छी की पैंटी लाइन, में उंगली घुसा दी। बीना की चमड़ी और पैंटी लाइन के बीच उंगली चलाने में मज़ा आ रहा था। उसने देखा वाकई पैंटी की फिटिंग जबरदस्त थी। तभी उसे बीना के बूर के कुछ बाल बाहर झांकते हुए दिखे। राजू ने पैंटी और अंदरूनी जांघों के बीच उन बालों को छूकर बोला," इँहा के बाल नइखे काटत बारू का। तहार कच्छी में भी नइखे समात।"
बीना कुछ नहीं बोली। राजू जब इतने करीब था तो बीना की बूर के रिसाव की मादक गंध उसके नथुनों में समा रही थी। बीना इस क्षण उत्तेजित होने लगी थी। राजू ने किसी तरह खुद पर काबू किये रखा, फिर उसने बीना को पीछे मुड़ने को कहा। बीना पीछे घूम गयी। उसके बड़े भारी चूतड़ पैंटी, से चिपके पड़े थे। उसके गाँड़ की ऊपरी दरार साफ नजर आ रही थी। ऊफ़्फ़ कितनी कामुक लग रही थी वो। राजू ने उस दरार में उंगली डाल दी, और जान बूझकर एक दो बार नीचे कर उसको महसूस किया, फिर कच्छी ऊपर कर उसे ढक दिया। बीना के चूतड़ों के चारों ओर पैंटी की लाइन की फिटिंग बहुत बढ़िया आयी थी। राजू उसे देख प्रसन्न और रोमांचित था। फिर राजू को शैतानी सूझी, उसने बीना से बिना कुछ कहे उसकी साड़ी खींचकर उतारने लगा। बीना साड़ी पकड़े खड़ी थी, तो उसे साड़ी निकलती हुई महसूस हुई। उसने राजू की ओर देखा, और बोली," ई का करआ तारआ, राजू?
राजू," साड़ी अउर साया उतारके देखा दआ।"
बीना," ना राजू छोड़ दअ, साड़ी मत खोल। हमके लाज लग रहल बा।"
राजू उसकी कहां सुनने वाला था, उसने साड़ी खींचकर अलग कर दिया। बीना शर्म से अपने ही बेटे के हाथों साड़ी उतरवा बैठी। राजू ने अब उसके साया का नाड़ा पकड़ खींचने को हुआ तो, बीना ने अपना चेहरा हाथों से ढक लिया। राजू ने नाड़ा के पास जो कटा हुआ हिस्सा होता है, बीना की गोरी चमड़ी जो बाहर झांक रही थी, उसे जानबूझकर छूते हुए महसूस किया। फिर उसने साया का नाड़ा खींच दिया। साया सरसराते हुए, बीना के पैरों में गिर गया। बीना अब बेटे के सामने सिर्फ ब्लाउज में और पैंटी में खड़ी थी। अहा क्या दृश्य था। बीना के गोरे बदन पर ये गुलाबी पैंटी बहुत ही फब रही थी। बीना इस उम्र में भी काफी तंदुरुस्त थी। कमर, पेट और जांघों पर हल्की चर्बी थी, जो इस उम्र में स्वाभाविक थी, वो भद्दी नहीं बल्कि उसे और आकर्षक बना रही थी। राजू ने बीना के कमर पर लगती पैंटी की इलास्टिक में उंगली डाली, और कमर पर उसके कसाव का जायजा लिया। उसने बीना के कमर के एक छोड़ से दूसरे छोड़ तक उंगली घुमाके देखा। बीना कुछ बोली नहीं, लेकिन उसके मुंह से सिसकारी फूट पड़ी। राजू ने देखा कि बीना की बूर की दरार पैंटी के कसाव की वजह से उभर गयी थी। बीना की बूर अब पानी भी छोड़ रही थी, जिस वजह से वो हल्की गीली भी हो चुकी थी। उसकी खुशबू राजू महसूस कर रहा था। उसने बीना के बूर के उपर पैंटी पर हाथ डाल दिया। बीना के मुंह से,"इशहह.... आह.... निकला।
राजू," का भईल माई, इँहा कच्छी ज्यादा टाइट बा का, दर्द होता का?
बीना कुछ नहीं बोली, बस आँखें मूंद खड़ी थी। राजू ने फिर कहा," बोल ना माई, देख अब हम अउर तू दोस्त बानि। खुलके बोलना, अगर टाइट होई त काल एकरा बदल देब।"
बीना," ना टाइट नइखे, तू छोड़ दआ हाथ हटा लआ।"
राजू," लेकिन इँहा गीला काहे बा?
बीना," गर्मी से पसीना आ गईल हआ, छोड़ दआ।"
राजू ने उसकी पैंटी के पास नाक लगाकर सूंघ लिया, और बोला," हहम्म, लागत बा ढेरी पसीना चू रहल बा। लेकिन एकर गंध अलग बा।"
बीना को इस छेड़छाड़ में मज़ा आ रहा था और थोड़ी ग्लानि भी, पर इसमें मज़ा का पलड़ा भारी था। राजू बोला," माई, जानत बारू तहरा, पसीना काहे आ रहल बा?
बीना धीरे से बोली," काहे?
राजू," काहे कि तहरा इँहा बहुल घना बाल बा। एकरा काटत काहे ना।"
बीना," फुरसत नइखे मिलत काम से, कब काटी?
राजू," हम काट देब, अभी लेके आवत बानि हमार रेजर वाला पत्ती।"
बीना," ना अभी मत कर राजू, काल कर दिहा। अउर भी जगह ढेरी बाल बा"
राजू," अउर कहां बाल बा?
बीना," इँहा कंखिया में।" बीना ने बांया हाथ ऊपर कर काँख दिखाते हुए बोला।
राजू," पर पता नइखे लागत ब्लाउज के ऊपर से, ब्लाउज उतार के देखा दआ।"
बीना बोली," हम अंदर कुछ पहनने नइखे, ब्लाउज कइसे उतारी।"
राजू," त का भईल, अइसन का बा भीतरी जउन हम ना देखने बानि। बच्चा में ई चुच्ची से केतना दूध पिनी हम।"
बीना," तब तू बच्चा रहलु, अब सियान बारू। हम तहरा सामने अब उ खोलके कइसे दिखाई।"
राजू," ठीक बा, अइसे कर तू एक हाथ से दुनु चुच्ची छुपा लिहा ब्लाउज खोलके, अउर हम बारि बारि तहार दुनु कंखिया के बाल देख लेब। ठीक बा।"
बीना," ठीक बा लेकिन तू उधर मुंह घुमा लआ।" राजू दूसरी ओर मुँह घुमा लिया और बीना अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी। बीना ने सारे बटन खोल ब्लाउज उतार कर बिस्तर पर डाल दिया। उसने ब्रा नहीं पहनी थी। उसने अपने दोनों चूचियों को बांये हाथ को लंबा कर ढक लिया, जिससे उसके चूचकों के इर्द गिर्द की जगह ही ढकी गयी। बीना ने राजू से फिर पीछे मुड़ने को कहा," राजू, हम ब्लाउज उतार देनि हअ।"
राजू बीना की ओर पलटा, तो बीना अपना दाहिना हाथ ऊपर कर सर के पीछे ली हुई, अपने बांये हाथ से चूचियों को ढकी हुई, किसी फिल्मी मॉडल की तरह खड़ी थी। राजू का लण्ड पूरा टनटना गया। वो भी सिर्फ चड्डी में था, तो उसका उभार भी साफ पता चल रहा था। बीना की नज़र भी उस उभार को देखे बिना नहीं रह पाई। राजू ने देखा, उसके काँखों में काफी बाल थे। वो काफी घने, काले, घुंघराले और चमकदार थे। बीना के करीब आकर उसने बड़े गौर से देखा और बोला," माई, तू त परेशान हो जात होखब, जाने केतना दिन से ई बालवा तू काटले नइखे। बाप रे बाप पसीना से त इँहा खुजली ना हो जाये। एकरा त काटे के पड़ी। दोसर कांखिया देखाबा।"
बीना ने उसकी बात मानते हुए अपना दूसरा हाथ ऊपर उठा दिया, लेकिन वो अपनी उन्नत चूचियों को दूसरे हाथ से ढक ली। बीना ने ये इतनी जल्दी किया कि राजू, कुछ स्पष्ट देख नहीं पाया। राजू ने दूसरे काँख में हाथ फेरा, तो बीना को गुदगुदी हुई, बीना हंस पड़ी। राजू ने कहा," बड़ा बाल बा माई, एकरा काट लअ।"
बीना," हम कभू ना काटनी ह। एतना दिन में त कुछ ना भईल। लेकिन फिर भी तू कहेलु त काल काट दिहा।"
राजू," काल काहे, ई त हम अभिये काट देब।" ऐसा बोलके वो फौरन अपने रैक पर रखी, साधारण कैंची झटके से ले आया। और बीना को स्थिर खड़े होने को कहा।
बीना अपने बेटे के बताए अनुसार हाथ ऊपर करके खड़ी थी, वहीं राजू उसके काँख के बाल काटने लगा। उसने बीना के बाल काटके काफी छोटे कर दिए। बीना ने फिर दूसरा हाथ ऊपर किया, और राजू ने उसके बाल भी काट दिए। बीना अपनी चूचियों को ढक तब तक शांति से खड़ी थी। बाल कटने पर उसे काफी हल्का महसूस हो रहा था। इस दौरान वो राजू की ओर देखती रही, जबकि राजू पूरे ध्यान से उसके बालों की छटाई कर रहा था साथ ही उसके काँखों की महक को अपने मन में समा रहा था। वो बार बार बीना के काँखों को कैंची चला के हथेली से झाड़ता था। उससे बीना को गुदगुदी महसूस होती थी। राजू को बीना के हल्के बाल अब अच्छे लग रहे थे। राजू ने फिर पूछा," बताबा, कइसन बुझाता?

बीना," बड़ा हल्का बुझा रहल बा। अब पसीना भी कम आयी। राजू," हाँ अब तहरा आराम आयी। निचवा के बाल भी काट दी का?
बीना," ना.. तू छोड़ द, हम खुद काल काट लेब। अब हम बूझ गइनी कि केसिया कइसे कटाई। ई कैंची हमके दे दअ।"
राजू," ना अपने से ना हो पाई, कहूँ कट जाई तब।"
बीना," ना, हम कर लेब। तू छोड़ दअ।"
बीना ने फिर अपनी ब्लाउज पहनी, और फिर साया। उसने साड़ी नहीं पहनी क्योंकि उसमें समय ज्यादा लगता। बीना बोली," अब साड़ी का पेन्ही, जाके सुतेके बा। ई साड़ी साया, ब्लाउज में सूते में बड़ा दिक्कत होखेला।" ऐसा बोलके वो चली गयी। राजू ने मन में ही सोचा," माई खातिर, एगो मैक्सी ले आइब त आराम हो जाई माई के।"
बीना को जाते देख, राजू लण्ड मसल रहा था। उसे ये जानकर अच्छा लगा कि बीना को उसकी गंदी हरकतों के बारे में पता चल गया था। अब उसे कोई डर नहीं था, ऊपर से बीना उससे दोस्ती कर बैठी थी। उसे सबकुछ साफ साफ बात करने और समझाने का वादा किया था। बीना उसकी माँ के साथ साथ दोस्त भी बन चुकी थी।
उन दोनों के बीच अनोखी दोस्ती शुरू हो चुकी थी।
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Premkumar65

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ख्वाब की सच्चाई

अरे ई कुलक्षिणी, कुलटा, बांझ कहीं के जाने कहाँ ई घर में आ गइल। जाने कउन घड़ी बेटा के बियाह एकरासे तय कइनी। एक त एकर बाप दहेज भी पूरा ना देलस, ऊपर से अभी तक ना ई उल्टी शुरू कइले, ना एकर पैर भारी भईल। जाने कब हमार घर के वारिस मिली। हमार आंगन में नन्हा किलकरी गूंजी। कब हम दादी बनब।" गुड्डी की सास किसी और बात की अपनी झुंझलाहट, गुड्डी को बुरा भला कह के निकाल रही थी। वो अक्सर गुड्डी को ये बातें सुनाया करती थी। गुड्डी को उसके पति ने कसम दे रखी थी कि उसकी माँ कुछ भी बोले उसे, पलट के जवाब ना दे। बस चुप चाप सुनले।
लाली देवी आगे बोली," अरे एकरा उमर में हमार तीन गो बच्चा हो गइल रहे, अउर एगो पेट में रहे। चार चार बच्चा हम ई परिवार के देनी। हमार सास, त तनु ( गुड्डी की ननद) के बाबूजी के पास सूते ना देत रहे, काहे से कि कहीं अउर बच्चा ना हो जाये। ई आंगन में हमार बच्चा सब खेलात रहे अउर अब ई आंगन पूरा सूना बा। जाने कब ई घर के भाग खुली।"
गुड्डी अपनी सास के ताने सुन कुढ़ रही थी। उसे भीतर ही भीतर बहुत गुस्सा आ रहा था। वो मन ही मन बोल रही थी," ई बुढ़िया के के बताई कि ई मरद ना हिजरा पैदा कइले बिया। अउर जहां तक हमार बांझ होके बात बा, हम त बियाह से पहिने ही, बीया गईल रहनि। हमार कहानी सुनी, त ई पगला जाई।"
तब तक लाली बोली," अरे कोई पानी पिया दअ। हमार गला सूख गईल बा।"
गुड्डी ने गिलास में फ्रिज से पानी निकाला और अपनी सास को देने को हुई, उसने गुस्सा निकालने के लिए पानी में थूक दिया। गिलास लेकर सास के आगे बढ़ा बोली," माई जी पानी ले ली।"
लीला उसके हाथ से झटके से पानी का गिलास खींच ली। फिर एक ही सुर में सारा पानी पी गयी। गुड्डी ने अंदर ही अंदर मुस्कुराते हुए गिलास उठा वापस चल दी। उसके दिल में हल्का सुकून आ गया था।"
वहीं बीना अब राजू के बारे में दिन रात सोचने लगी। उसने एक तो राजू का अरुण के साथ आना जाना बंद करवा दिया था। अब राजू घर पर ही रहता था। बीना भी राजू को घर पर देख खुश रहती थी। वो अक्सर राजू को अपने साथ काम करने में व्यस्त रखती थी। राजू भी अपनी माँ के महके यौवन के करीब भंवरे की तरह मंडराता रहता था। अपनी माँ के ब्लाउज से झाँकती पीठ और उसके नीचे नंगी कमर देख वो लण्ड मसलता रहता था। राजू को अब अपनी माँ बीना में एक अत्यंत वासनामयी स्त्री दिखने लगी थी, जो कि पति से असंतुष्ट थी।
बीना तो राजू की नज़रों में कई बार खुद को वासना की नदी में डुबकी लगाते देखी थी।
बीना को इस बात का एहसास था कि स्त्री देह के प्रति राजू काफी आकर्षित है, पर वो अपनी ही सगी माँ के बदन का इतना प्यासा है वो उसने कभी नहीं सोचा था। बीना ने अपने बेटे के कमरे में चुदाई की गंदी किताबें और कौटुम्बिक व्यभिचार का अश्लील साहित्य देख खुद भी इन विचारों के प्रति खुल गयी थी। रंजू और उसके बेटे के अनैतिक संबंध ने उसे खुदके और राजू के बीच इस तरह के संबंध की महीन कल्पना करने दी थी।
बीना एक दिन सारा काम करने के बाद खाना खाके लेटी हुई थी, तभी बारिश आने लगी। बीना आंगन में आई और रस्सी पर सूख रहे कपड़े उतारने लगी। उसी में उसे राजू की चड्डी मिली। वो सारे कपड़े लेकर घर के अंदर आ गयी। राजू की चड्डी उठा वो गौर से देखने लगी। वो उस नीली चड्डी को गौर से देख रही थी। अचानक उसने उस चड्डी को मुँह पर रख ली और उसकी गंध सूंघने लगी। राजू के लण्ड की मर्दाना महक उसके नथुनों में समा उसे उत्तेजित करने लगी। जाने कब चड्डी सूंघते हुए, बीना के हाथ अपनी बूर के भग्नाश्य को छेड़ने लगे। बीना की बूर तेजी से रिस रही थी। बीना खुद पर काबू नहीं कर पा रही थी। उसके ब्लाउज के बटन खुल चुके थे, और बिन ब्रा के आज़ाद चूचियाँ लुढ़क रही थी। उसके चूचक तन गए थे। बीना मुँह पर चड्डी लिए उसे चाट रही थी, साथ ही अपनी बूर को मसल रही थी। बीच बीच में अपनी उन्नत स्तनों को भी भींच लेती थी। बारिश का मौसम बीना को किसी नवयुवती की तरह बेचैन और काम पिपासु बना रहा था। बीना सोच रही थी, कि इस बेचैनी से अच्छा यही होता कि रंजू की तरह अपने ही बेटे के साथ यौन संबंध बना के सुकून ले। बारिश की गिरती बूँदे उसके चेहरे और होठो पर छिटककर उड़ रही थी। बीना उन बूंदों को चाट ले रही थी। उसे धरमशाला की रात, याद आ गयी जब राजू ने उसे चूम लिया था। बीना अपनी बूर तेजी से मसल रही थी। वो चरमसुख की ओर बढ़ रही थी, तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई," माई...माई... दरवाज़ा खोल। भीज गईल बानि।" बाहर राजू था। बीना की हालत बेहद बहकी हुई थी, खुली नंगी तनी हुई चूचियाँ और बेतरतीब बहती बूर। हाथ में जवान बेटे की चड्डी। अब वो जल्दी से उठी और सबसे पहले कपड़े व्यवस्थित किये। फिर उसने उसकी चड्डी एक किनारे रख दी। बीना ने फिर खुद की साँसों पर काबू पाते हुए, अपने बेटे के लिए दरवाज़ा खोला। राजू बारिश में पूरी तरह भीग चुका था, वहीं दरवाज़े के दूसरी ओर उसकी माँ पूरी तरह बूर से गीली थी। अपने बेटे को देख बीना साँसों को काबू करती हुई बोली," जल्दी से अंदर आवा।" राजू अंदर आते हुए पूछा," बड़ा हांफत बारू, का भईल माई?
बीना बोली," ना बेटा, लेटल रहनि, अचानक से तू दरवाज़ा खट खटईलस। त डर गइनी। एहीसे दिल जोर से धड़क रहल बा।"
राजू अंदर आकर अपना बैग रख, अपनी शर्ट उतारने लगा। उसने अंदर बनियान नहीं पहनी थी। राजू का चौड़ा सीना और गठीला भीगा बदन देख बीना स्तब्ध रह गयी। जवान लड़का इतना लुभावना भी हो सकता है, उसने नहीं सोचा था। बीना एकटक अपने बेटे को देख रही थी। राजू जानबूझकर अपना गीला बदन बीना की आंखों के प्रदर्शनी के लिए पेश कर रहा था। बीना का गला जैसे सूख गया था, उसने बड़ी मुश्किल से थूक घोंटा। ऐसी मजबूत बांहे और छाती के नए बाल उसे बेहद आकर्षित कर रहे थे। राजू ने अपनी पैंट भी उतार दी और सिर्फ गीली चड्डी में था। राजू बीना से बोला," माई तनि तौलिया दे दआ। चड्डी उतारे के बा।" बीना अपनी बालों की लटों में उंगली फिराते हुए उसे मुस्कुराते देख रही थी। उसे जैसे सुनाई ही ना दिया, कि वो क्या बोल रहा है।
राजू बोला," माई, अईसे का देखत बारू??
बीना ने ना में सर हिलाया और सूखा गमछा लेकर उसे देने गयी। राजू के गठीले शरीर को देख वो खुश थी और करीब आ बोली," तू बनियान काहे ना पेन्हे लू। अईसे में सर्दी लग जायीं"
राजू," ना माई खाली आज ना पहन ले रहनि।"
तभी राजू ने कमर पर गमछा लपेटा और अपनी चड्डी उतार के बिस्तर पर पटक दिया।
बीना," राजू लावा सब कपड़ा हमके दे दअ, धोय के पड़ी।"
राजू बिस्तर पर लेट चुका था, बोला" माई खुद ही ले लअ ना। हम थक गईल बानि।"
बीना उसके सामने से झुक कर कपड़े उठाने लगी। कपड़े उठाने के क्रम में बीना का आँचल सरक गया और ब्लाउज से आधी चुच्ची बाहर झांकने लगी। राजू ये देख मचल उठा। बीना सारे कपड़े लेकर गाँड़ मटकाते हुए, जा रही थी। इस क्रम में वो राजू के कपड़ों से उसकी मर्दाना महक सूंघ मस्त हो रही थी। बीना ने सारे कपड़े एक बाल्टी में डाल दिया। फिर जाने उसके मन में क्या आया, उसने चुपके से दांए बांये देखा और पलट के राजू को देखा, उसके पलटते ही राजू सतर्क हो दूसरी ओर देखने लगा। बीना ने झट से बेटे की गंदी चड्डी उठाके अपनी साड़ी में छुपा ली, जब उसने देखा कि राजू उसे नहीं देख रहा है। राजू ने उसे ऐसा करते हालांकि देख लिया। बीना उधर से ही राजू से पूछी," राजू खाना लगा दी बेटा? क्या शरीफ औरत बनके पूछ रही थी, उस बेटे से जिसकी चड्डी वो साड़ी में छुपा रखी थी।
राजू," ना अभी ना खाएब, हम नाश्ता कअके आईल बानि। तनि आराम क ली।"
बीना," ठीक बा, हम अंदर लेटल बानि, तहरा जब खाये के हुए, त आवाज़ दे दिहा।" ऐसा बोल बीना, पायल झंकाते हुए अंदर चली गयी। राजू ने उसे साफ देखा था अपनी चड्डी उठाते हुए। तभी राजू की नज़र बीना की पैंटी पर पड़ी। राजू ने चुपके से उठ पतले बांस की डंडे पर पड़ी बीना की बैंगनी रंग की पैंटी उठा ली।
राजू उसकी पैंटी की महक सूंघ मतवाला हो गया। उसने माँ की पैंटी सूंघते हुए, दबे पैर बीना के कमरे की खिड़की से झांका। अंदर बीना उसकी चड्डी सूंघते हुए, मचल रही थी। ये पहली बार था जब राजू ने बीना को कुछ इस तरह करते देखा था। बीना किसी नवयुवती की तरह, चड्डी सूंघ उत्साहित हो रही थी। उधर राजू ने गमछा खोलके, गिरा दिया और अपनी माँ की पैंटी सूंघते हुए, लण्ड हिलाने लगा। राजू का मन हो रहा था कि अंदर जाके बीना को रंगे हाथ पकड़ ले, पर उसने सोचा अभी फल कच्चा है थोड़ा और पकने दे। हालांकि, उसे अपनी माँ की चुदासी और काम पिपासु महिला का पर्याप्त प्रमाण मिल रहा था। अंदर बीना, साड़ी उठाके, फिर से गीली बूर से खेल रही थी। उसके चेहरे पर कामेच्छा की अलग अलग भाव तैर रहे थे। कभी वो सिसकते हुए, भंवे तानती तो कभी बूर के दाने को मसल होठ काटती। राजू की चड्डी सूंघ वो और मचल उठती। अपने बेटे की चड्डी में उसके लण्ड की गंध के साथ साथ पेशाब और पसीने की गंध भी शामिल थी। उधर राजू भी अपनी माँ की उन्ही गंधों के बीच मस्त हो रहा था। विपरीत लिंगों के प्रति, स्त्री और पुरुष का खिंचाव साफ दिख रहा था। प्रकृति ने उन दोनों में कोई भेदभाव नहीं किया, उसे उनके माँ बेटे के रिश्ते से कोई मतलब नहीं था। उसे तो उनमें दो विपरीत लिंगों के सिवा कुछ नहीं दिखा। राजू अपनी माँ को, ऐसे देख रहा था जैसे कोई मस्त हाथी अपनी संगिनी को देखता है। अपनी माँ में उसे इस वक़्त एक स्त्री की अधूरी मनोकामना साफ दिख रही थी। दूसरी तरफ बीना, बेटे की चड्डी को सूंघते हुए, चाट भी ले रही थी। वो तेजी से बूर मसल रही थी। क्या दृश्य था, माँ बेटे एक दूसरे के अंतःवस्त्रों से खेल रहे थे। थोड़ी देर में बीना की बूर ने काफी रगड़ाई के बाद पानी छोड़ दिया, दूसरी ओर राजू ने भी अपनी माँ की पैंटी को सूंघते हुए झड़ गया। बीना अपने बिस्तर पर लेटी रही और उधर राजू भी जल्दी से गमछा डालके वापिस लेट गया।
बीना ने ये कर तो लिया पर उसे अंदर से अब ग्लानि महसूस हो रही थी। वो खुदको पापिन समझ रही थी। भला कौनसी माँ अपने बेटे की चड्डी सूंघ बूर को शांत करती है। बीना रिश्तों की मर्यादा से ऊपर नहीं उठ पा रही थी।
बीना ने कपड़े व्यवस्थित किये और राजू की चड्डी से ही बूर साफ किया, क्योंकि वो जानती थी कि उसे धुलना करना है। राजू की चड्डी बूर से लगते ही, उसे एक अजीब चिंगारी सी महसूस हुई। बेटे की चड्डी और माँ की बूर आपस में मिल आग लगा रहे थे। दरअसल लगातार झांटों वाली बूर और चड्डी की रगड़ाई से स्थैतिक विद्युत पैदा हुई थी। बीना हल्के से मुस्काई, और खुदको तसल्ली दी कि वो रंजू की तरह बेटे से चुदी तो नहीं। और ये तो बस चड्डी है, जो कि बस कपड़ा है, इसमें बेटे का लण्ड थोड़े ही है। खुदको संतुष्ट कर वो राजू को खाना देने बाहर जाने लगी। उधर राजू उसकी पैंटी अभी भी हाथों में लिए सूंघ रहा था। अपनी माँ को आता देख उसने, पैंटी अपने नीचे दबा ली। इस क्रम में उसका लण्ड बाहर आ गया, जिसे वो देख नहीं पाया। बीना उसे देख मुस्कुराके रसोई में चली गयी। राजू को कुछ समझ नहीं आया, उसे तो इस बात की राहत थी कि बीना ने उसे उसकी पैंटी के साथ नहीं पकड़ा। जहां वो लेटा था, रसोई से वहां तक साफ दिखता था, इसलिए वो उठ नहीं पाया क्योंकि बीना उसे देख लेती। बीना अंदर से उसका लण्ड साफ देख रही थी। बीना अंदर से खाना लेकर बाहर आई, तो उसे राजू का लण्ड बिल्कुल करीब से दिखा। मस्त बैंगनी सुपाड़ा, उसे सलामी दे रहा था। बीना ने कहा," गमछा ठीक से बान्हल करआ। चल हाथ मुँह धो ले बेटवा, खाना खा ले।"
राजू घबराते हुए बोला," हाँ माई, तू जो हम खा लेब।"
बीना," ना ना उठ, तू हाथ धोके आवा, हम तब तक इँहा बानि, खाना के अकेले ना छोड़े के चाही।"
राजू के पास कोई चारा नहीं था, उसे उठना पड़ा। उसके उठते ही उसकी माँ बीना की पैंटी दिख गयी। बीना समझ गयी, कि तने हुए लण्ड का कारण उसकी पैंटी ही है। वो समझ गयी कि राजू, उसकी पैंटी के साथ खेल रहा था, जैसे वो थोड़ी देर पहले उसके चड्डी से खेल रही थी। बीना अंदर ही अंदर मुस्कुराई, फिर बात संभालते हुए बोली," अच्छा हमार कच्छी इँहा रहे, हम जाने कहाँ कहाँ खोजत रहनि।" बीना ने अपनी पैंटी उठायी और राजू के सामने उसे खोलके फैलाया, वो राजू के मूठ से गीली थी। बीना ने उसे राजू के आगे पूरा दिखाते हुए कहा," राजू देख ना, एमे का लाग गईल बा। बहुत चिपचिपा हअ अउर महक रहल बा। तू कुछ कइलस का बाबू?
राजू हड़बड़ाते हुए बोला," ना...ना.. माई हम कुछ ना कइनी। हाँ हम ऐसे आपन साईकल के चेन पोछने रहनि। लागत बा ग्रीज़ लग गईल बा।"
बीना," ओह बबुआ, तहरा कउनु अउर कपड़ा लेवे के चाही ना। तू हमार कच्छी से साईकल पोछ लेलु। खैर ई कच्छी वैसेहू पुरान बिया। देखआ ना केतना फइलल बा। एलास्टिक भी ढीला हो गइल बा।" बीना चड्डी के दोनों छोड़ पर इलास्टिक में उंगली फंसा खींच के दिखा रही थी। राजू भी उसे देख रहा था। राजू ने देखा उसकी माँ बेझिझक उसे पैंटी दिखा रही थी। राजू ने देखा कि जब उसकी माँ सामान्य थी तो, उसने भी बीना के हाथ से पैंटी ले ली और उसे फैलाते हुए बोला," हाँ, माई ई तहार कच्छी त पूरा डांड़ में ढीला हो गइल बा। तहार कच्छी बहुत खिया( घिस) गईल बा। तहरा नया कच्छी लेवे के पड़ी। ई देख जगह जगह से धागा भी निकल रहल बा।"
बीना," लेकिन अब गुड्डी नइखे, के लेके आयी। पहिले त उ अउर हम जाके ले आवत रहनि।"
राजू," माई हम ले आएब, तू चिंता मत कर। हम तहार बेटी ना सही बेटा बानि। माई के जरूरत बेटा ना पूरा करि त कद करि। ई कच्छी हम रख लेत हईं। एकर नाप से ले आइब।"
बीना," ठीक बा तू दोसर रख लिहा, काहे से ई त गंदा हो गइल बा हमके दे दअ धोय के पड़ी।"
राजू ने बुझे मन से कहा," ठीक बा माई। जउन डिज़ाइन के चाही उ भी बता दिहा।"
बीना," ठीक बा। एक बात अउर अबसे तू आपन चड्डी अउर बनियान दुनु हमरा दे देल करिहा, धोए खातिर।"
राजू," काहे माई ?
बीना," अरे तू बड़ हो गईलु। ई चड्डी बनियान धोवे के तहार काम नइखे। समय बची तहार उ पढ़ाई में लगाबा। हम त कपड़ा धोते बानि, तहार चड्डी बनियान भी धुल जायीं। अबसे रोज़ तू हमके खोलके दे देल करिहा।"
राजू," का ?
बीना," तहार गंदा चड्डी बनियान।" ऐसा बोलते हुए उसकी आँखों में हवस तैर गया। राजू उसकी ओर देख बोला," ठीक बा माई हम तहरा रोज़ देब।"
बीना मुस्कुराई और राजू के लिए पानी लेने गयी। फिर वापिस आकर उसने राजू को हाथ धुलवाया। राजू खाना खाने लगा।
खाना खाते हुए, बीना राजू के पास ही बैठी हुई थी। राजू ने फिर बात छेड़ी," माई, तहार कच्छी के निचला हिस्सा के रंग भी उतर गईल बा, ई देख।"
बीना," हां राजू, बहुत पुरान हो गइल ना, अउर नीचे ज्यादा रगड़ाता अउर गंदा भी ज्यादा होखेला।"
राजू," नीचे कइसे ज्यादा रगड़ावेला अउर गंदा कइसे ज्यादा होखेला। हमार संग त अइसन न होखेला।"
बीना बोली," मरद अउर औरत के शरीर में अंतर होखेला। तू अभी अनजान बारू औरत के शरीर से। एहीसे नइखे बुझत।" बीना को क्या पता था कि उसका शरीफ अनजान बेटा, उसकी ही बड़ी बेटी को चोद चोद के औरत के हर अंग को अच्छे से समझ चुका है। फिर भी भोला बनने का नाटक कर रहा है।
राजू बोला," कइसे माई बताबा ना?
बीना," उ हम ना बता पाइब, तू खुद से समझ लिहा। आपन दोस्त सबसे पूछ लिहा।"
राजू," हमार केहू लइकी से दोस्ती नइखे माई।"
बीना," त कउनु लइका से ही पूछ लिहा।"
अरुण," हमार एगो दोस्त बा अरुण ओकरा पास तू जाय नइखे देत।"
बीना," हम का बताई, उ ठीक नइखे। ओकरा साथ रहे से बढ़िया तू इँहा घर में ही रहल करा। ना त गांव में अउर लइका भी होइन्हें, ओकरा से दोस्ती कर लअ। गुड्डी के जाय के बाद, हमहुँ अकेले हो गइल बानि। तू हमरा से ही बतियाईल करा।"
राजू मुंह में एक निवाला डालते हुए बोला," माई तहरा हम पहिले भी बताउने रहनि, कि गांव के बाकी लइका सब आवरागर्दी करेलन, कुछ कमाए खातिर दिल्ली आ बम्बई चल गईल बा। अब हमार उमर के अरुण ही बा अउर उ अच्छा लइका बा।"
बीना," राजू ओकरा छोड़आ तू हमरा साथ घर में ही रहा। हम तहरा सब बताईब। तू त बड़ा शरीफ बच्चा बारू, हमार खून हउ। तहरा पर हमरा पूरा भरोसा बा, कि तू कुछ गलत ना करबू।"
राजू," माई, हम सच कहत बानि, तू जइसे कहबू हम वइसे ही करब।" उसकी आँखों में देख बोला।
बीना," देख हमार उमर चालीस हो गइल बा। हमार जांघ मोट मोट बा। एहीसे कच्छी के निचला हिस्सा खूब रगड़ावाले, दुनु जांघ के बीच। हम औरत सब जब भी मूते जात बानि ना, त बेर बेर चड्डी सड़का के घुटना तक उतारे पड़ेला। तहार सब जइसन नइखे की चड्डी के आगे छेदा बा निकाल के मूत ली।" बीना उसकी आँखों में देख बोली।
राजू खाना खा चुका था, वो थाली में हाथ धोते हुए बीना की जांघों के बीच देखते हुए बोला," माई सच में, तू हल्का मोट त बारू। लेकिन कच्छी एतना गंदा कइसे होत बिया।"
बीना समझ रही थी कि वार्तालाप कुछ अटपटा सा हो रहा है लेकिन वो भी बोली," बेटा, उ..ऊंहा... पर ढेरी पेशाब अउर पसीना लागेला ना एहीसे। जांघ के बीच में जल्दी सूखत नइखे" बीना सहजता दिखाते हुए बोली।
राजू," माई तू हमरा देखाबे का??
बीना," का?
राजू," तहार मोट मोट जांघ में तहार कच्छी कइसे फंसल रहेला।"
बीना संकुचाते हुए बोली," तू उ देख के का करबू?
राजू," माई, हमार देखे के मन बा। देखी की कच्छी के पेनी कइसे एतना घिस जावेला।"
बीना," ना हम ना देखाएब, हमके लाज लागेला।"
राजू," काहे?
बीना," काहे कि तू हमार बेटा बारू। बेटा के सामने में माई अईसे ना कर सकेली।"
राजू," बेटा के सामने ना करबू, पर बेटी के सामने कर सकेलु। ई भेदभाव काहे माई।"
बीना," राजू तू मरद बारू अउर हम एक औरत। बेटी जब बड़ होत बिया त उ माई के सहेली बन जावेली, काहे की हमनी के संरचना एक निहन बा।"
राजू," माई, अगर हम तहार बेटी रहति, तब तू देखा सकेलु। अब एमे हमार का गलती बा कि हम तहार बेटा बनके पैदा भईल बानि। अगर तू चाहबू त हम तहार दोस्त तहार सहेली बने के तैयार बानि। तू वइसे भी हमके अरुण से मिले से मना क दिहले।" राजू ने अपनी चाल चल दी।
बीना भावुक होकर बोली," बेटा जउन बतिया तू कह रहल बारू, उ माई बेटा के बीच ना हो सकेला।"
राजू," काहे ना हो सकेला, तू ही त हमरा पैदा कईलू। सब कुछ तुहि शुरू से बतेलु, आज ई काहे ना कर सकेलु।"
बीना," तू जिद कर रहल बारू। छोड़ ई बहस के।" बीना उठके जाने लगी तो राजू ने उसका हाथ पकड़ लिया। बीना पलटी अउर बोली," राजू का कर रहल बारू?
राजू," माई एक बेर देखा दआ।"
बीना का दिल जोर से धड़क रहा था, वो उसकी आँखों में देख बोली," ठीक बा एक बेर खाली। लेकिन एक शर्त बा तू हमरा छूबे ना।"
बीना अपना हाथ छुड़ा उससे थोड़ी दूर खड़ी हो गयी और अपनी साड़ी उठाने लगी। साड़ी धीरे धीरे उठ रही थी, और बीना की टांगे दिखने लगी थी। फिर घुटनों से साड़ी ऊपर आयी। अब बारी थी बीना की गोरी गोरी स्थूल जांघों की। राजू के सामने आते ही उसकी आंखें बड़ी हो गयी और बीना की आंखों में शर्म तैर आयी। राजू ने इतने करीब से बीना की जांघों को नंगी कभी नहीं देखा था।
राजू का मन मचलने लगा था बीना की नंगी जांघो को देखकर। बीना राजू को देख मादक आवाज़ में बोली," हो गईल राजू देख लिहला।"
राजू ने हाथ से इशारे करते हुए बोला," ना माई अउर उठावा साड़ी पूरा ऊपर तब तहार कच्छी दिखी।"
बीना शर्माते हुए साड़ी ऊपर उठाने लगी। बीना की जांघों के बीच फंसी हरे रंग की कच्छी साफ दिखने लगी थी। बीना की बूर के कुछ बाल बाहर निकले हुए थे। उसके बूर का आकार कसी हुई कच्छी की वजह से साफ दिख रहा था। राजू और बीना का दिल जोरों से धड़क रहा था। बीना साड़ी कमर तक उठा रखी थी। बीना की कच्छी की इलास्टिक उसके कमर और जांघों को दबा रखा था।
राजू उसे गौर से देखते हुए बोला," माई, तहरा ऐसे बड़ा कच्छी लेवे के पड़ी।"
बीना शरम से गड़ी जा रही थी, फिर भी बोली," ठीक बा ले लिहा, अब हम साड़ी गिराई।"
राजू," तहार कच्छी आगे से भीजल बा, पेशाब कर देलु का।"
बीना झुककर कच्छी छू, देख बोली," हां, हल्का लागल बा, अइसन बुझा रहल बा।" राजू उस गंध को पाने के लिए आगे झुका। इससे पहले वो कुछ कह पाता, धरमदेव के खांसने की आवाज़ गूंज गयी। बीना ने फौरन अपनी साड़ी गिरा दी और जूठे बर्तन ले अंदर चली गयी।
राजू को यकीन नहीं हुआ कि बीना ने अपनी जाँघे और चड्डी अभी अभी उसे दिखाई थी।
धरमदेव बोला," अरे गुड्डी के माई, कहाँ बारू। देख पूरा भीज गईल बानि तनि कपड़ा लेके आवा।"
बीना कुछ बोलती, इससे पहले धरमदेव, घर में आ गया। राजू उठकर कमरे में चला गया।

रात को बीना जब गहरी नींद में थी, तो उसने देखा कि राजू की चड्डी उसके सामने आ गयी है और उसमें से राजू का लण्ड बाहर निकल आया है। बीना कुछ बोल नहीं पा रही थी। अचानक वो लण्ड, लंबा होने लगा था। बीना डर के पीछे हो जाती है तो लण्ड लंबा होकर उसके और करीब आ जाता है। बीना पीछे मुड़कर भागने लगती है और लण्ड भी उसके पीछे पीछे और लंबा होता जाता है। तभी अचानक बीना की ब्लाउज गायब हो जाती है। अगले ही क्षण उसकी साड़ी का पल्लू उस लण्ड से लिपट गया और उसकी साड़ी खुलती चली गयी। लण्ड का सुपाड़ा आगे की ओर निकला हुआ था। साड़ी लण्ड की लंबाई के चारों ओर लिपटती जा रही थी। देखते ही देखते बीना साड़ी से आज़ाद हो चुकी थी। अब वो ब्रा और साया में दौड़ रही थी। अचानक से अगले ही पल उसका साया खुल के खुद ही गिर गया। बीना लेकिन गिरी नहीं वो भागे ही जा रही थी। बीना को अगर असल जीवन में बोला जाता, तो शायद ही वो इतना दौड़ पाती, पर ये सपना ही था कि वो भागे जा रही थी। उसकी पायल जोर जोर से झनक रही थी। फिर ना जाने कैसे उसकी ब्रा का स्ट्राप खुल गया और उसकी चूचियाँ पूरी आज़ाद हो गयी। दोनों चूचियाँ खुलके उछल रही थी, जैसे अपनी आज़ादी का जश्न मना रही हो। बीना उन दोनों को हथेली से छुपाने का असफल प्रयास कर रही थी। तभी उसकी चड्डी भी धीरे धीरे सरकते हुए घुटनों के नीचे आ गयी और वो भी गायब हो गयी। अब वो सम्पूर्ण नग्नावस्था में दौड़े जा रही थी। एक हाथ से बूर को ढके हुए। पीछे से लण्ड उसके करीब आता जा रहा था। उसकी भारी भारी चूतड़ आपस में टकड़ा रहे थे। बीना के बाल लहलहा रहे थे। उसके बदन पर कपड़े का एक धागा भी नहीं था। वो लण्ड और विकराल हुए जा रहा था। अचानक विकराल होते उस लण्ड को देख वो दीवार से टकड़ा गयी। उसे तीन दीवारें घेरे हुए थी और और सामने से लण्ड उसके सामने तना हुआ खड़ा था।
बीना अपनी चुच्चियाँ और बूर हथेली से ढक बोली," के बारआ तू ? अउर हमके लंगटी काहे कर दिहला?
लण्ड का सुपाड़ा हिलता हुआ बोला," हम तहार बेटा के लांड बानि। अउर जउन तू लंगटी भइलू, उ हम ना कइनी उ तहार इच्छा से भईल।"
बीना," कइसन इच्छा??
" बेटा के चड्डी से काल बूर रगड़त रहलु बिसर गईलु का। तू भी चाहत रहलु एहीसे हम चड्डी से बाहर आ गइनी।"
बीना," ना ...ना.....उ हम त खाली चड्डी लेने रहनि। हम कउनु पाप ना कइनी ह। हम लांड थोड़े ही लेनी।"
" ई जउन कपड़ा तहार उतरल बा, ई तहार शारीरिक नंगापन नइखे, बल्कि मानसिक तौर पर नंगापन बा। अउर ई तीन दीवार जउन से तू घिरल बिया, उ प्रतीकात्मक बा। एगो दीवार तहार आपन कामेच्छा बा, दोसर तहार पति के चुदाई के प्रति गिर रहल इच्छा बा, अउर तेसर तहार जीवन में मर्द के कमी बा अंत में हम बानि जउन तहार पीछा बानि। अगर तू ना कहबू त बूझ लिहा फेर कोई ना मिली।"
बीना उसकी ओर देख बोली," कोई बेटा आपन माँ कइसे चोदी। हाय हमार बच्चा बड़ा शरीफ बा, उ अरुण बिगाड़ दिहलस ओकरा। हम भी बीच बीच में बहक जात बानि अउर अंग प्रदर्शन बेटा के सामने करत बानि। हाय कइसन चरित्र बा, बेटा से ही काम सुख मिली त हमार बेटा मादरचोद बन जायीं।"
" लांड चाही की ना? हम वापस जात बानि, अगर तू ना कहबू। बोला जल्दी से?
बीना," रुक.... हम तहरा जाय खातिर, कहां कहनि। हम मानसिक तौर पर लंगटी कइसे बानि ई बताबा।"
" तू अभी असल जीवन में ना बारू, इँहा आपन सपना में बारू। तहार मन इँहा खुलके उ कर सकेला जउन तू मन में दबा के रखले बारू। जउन दिन तहार मन के लावा फूटी त तू असही खुद कपड़ा उतार फेंकबू अउर बेटा के साथ स्त्री धर्म के पालन करबू। अभी जब तू हमरा से भागत रहलु इँहा मन हावी बा एहीसे तू सम्पूर्ण लंगटे हो गईलु।"
बीना फिर उस नग्नावस्था में ही आगे बढ़ी और लण्ड के सुपाड़े को पकड़ के चूम ली। फिर वो उस लण्ड का रिसता पानी चाट ली और उसे हिलाने लगी। थोड़ी देर बीना लण्ड पर खुद चढ़ बैठी और चूचियाँ मीजते हुए उछल उछल कर हंसते हुए चुदवाने लगी। बीना चुदते हुए बूर मसल रही थी। उसके बाल लहरा रहे थे, उसकी कमर एक धुन में ऊपर नीचे हो रही थी। एक ऐसी महिला जो, संस्कारी और धार्मिक थी, उसका मानसिक नंगापन वो खुद देख रही थी। कामेच्छा और वासना बीना जैसी चुदासी स्त्रियों के लिए एक जरूरत थी। इस सपने में वो खुद ये बात महसूस कर रही थी। वो तेजी से बूर रगड़ते हुये लण्ड पर कूद रही थी। अचानक से बूर से जोड़ की पानी की तेज धार बह निकली। वो जोर से चिल्लाई। वो इतनी जोर से झड़ी कि उसकी आंखें खुल गयी। उसने देखा की उसकी साड़ी कमर से उठी हुई थी और उसका हाथ बूर पर था। बिस्तर का हिस्सा जो उसके बूर के आगे था, उसके पानी से गीला हो चुका था। बीना का गला सूख रहा था। वो तो अच्छा हुआ कि धरमदेव जागा नहीं था, नहीं तो उसकी ये दशा देखता तो उसपर छिनार का आरोप लगा देता। बीना बिस्तर से उठी और घड़े से पानी निकाल पीने लगी। फिर वो वापिस बिस्तर में आकर सोने लगी, तो उस सपने को याद कर हल्का मुस्काई। धरमदेव के खर्राटों ने उसे ध्यान से बाहर लाया। वो दूसरी ओर करवट कर सोचने लगी, वो काम वासना में जल रही है, वहीं राजू उसके रूप रंग पर फिदा है। राजू ने उसके साथ धरमशाला में मर्दों वाली गंदी बात तो की थी, पर उसने ही उसे मना किया था। बीना सोची की संभोग ना सही, पर राजू के साथ बातों से मज़ा लेने में कोई गलत बात नहीं। राजू को वैसे भी उसने घर पर रहने को बोला था, और इस उम्र में लड़कों को एक ही विषय स्थिर रख सकता है, चुदाई की बातें। इसीलिए उसने अश्लील साहित्य किताबें रख रखी थी। इस उम्र में लड़को में असल में, ये एक आम बात होती है। बीना ने सोचा अब वो अपने बेटे को ही अपनी सहेली/दोस्त बनायेगी और खुलके बात चीत शुरु करेगी। चाहे आगे चलकर ये किसी भी मोड़ पर एक नया रूप भले ही ले।
अगले दिन राजू जब घर से बाहर क्लास के लिए जा रहा था, तो बीना ने उसे रोका और कहा," राजू ई हमार कच्छी ना ले जइबू, हमके नया ला दे बढ़िया वाला। हमार साइज त तू बूझ गईलु ना।"
राजू ने मुस्कुराते हुए कच्छी ले ली और बोला," हां माई, काहे ना।"
बीना ने फिर कहा," तनि उ भी ले लिहा, का कहेला लोग ओकरा ....
राजू," का माई।"
बीना बोली," अरे भिसपर...
राजू," भिसपर... उ का होता??
बीना बोली," अरे उ माहवारी में जउन उजला वाला लंबा लंबा औरत सब लगावेली।"
राजू," ओ...पैड तहार महीना आ गईल बा का?
बीना," अभी ना, पर एक दु दिन में आ जायीं। गुड्डी असही लाके रख देत रहली। अब तुहि ला देल करिहा।"
राजू कुछ नहीं बोला और घर से बाहर निकल गया। वो बाहर आकर मुस्कुराते हुए अपनी माँ के बेबाकी पर मुस्कुराया। उसे लगने लगा था कि मां के विचार खुलने लगे है। उसने मां की पैंटी उठायी और सूंघ के वापिस रख दी। बीना बेटे को ये करते हुए खिड़की से देख ली थी और साड़ी से मुंह दबा खिलखिला उठी।
Raju and Bina are getting closer.
 

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अनोखी दोस्ती भाग-१

बीना के मन में उत्तेजना, उत्साह और शर्म का मिलाजुला अनुभव था। अपने बेटे को अपने अंतःवस्त्रों को सौंपकर उसे नए पैंटी और पैड लाने को कहना उसके अंदर एक अलग रोमांच पैदा कर रहा था। बीना किसी नवयुवती की भांति रह रह के कभी मुस्का रही थी। जाने राजू उसके लिए कौनसी और कैसी कच्छी लेकर आएगा। बीना की बूर रिस रही थी। बीना ने सोचा कि वो घर पर अकेली है, उसे टोकने वाला कोई नहीं है। वो आईने के सामने गयी और सबसे पहले अपने बालों से क्लिप खोल अपने बालों को लहराया। फिर उसने अपनी साड़ी को धीरे धीरे बदन से अलग करके वहीं फेंक दिया। उसके बाद उसने अपनी ब्लाउज उतार दी, फिर अपनी ब्रा की क्लिप खोल दी। ब्रा सिमट के उसके हाथों में आ गयी। ब्रा के खुलते ही चुलबुली चूचियाँ आज़ाद हो गयी। बीना अपने चुच्चियों को बड़े गौर से देख रही थी, मदमस्त बड़ी बड़ी और उसपे आंखों की तरह अंकित भूरे भूरे तने हुए चूचक। बीना एक पल को शरमाई फिर कपड़े उतारने के क्रम में साया का धागा जो उसकी कमर से कसके बंधा हुआ था, उसे खींच लिया। उसके खींचते ही, साया उतरके उसके कदमों के इर्द गिर्द बिखर गया। बीना ने एक कदम आगे बढ़ा खुद को साया के घेरे से बाहर निकाला। फिर अपनी बैंगनी कच्छी की ओर देखा, जो कि उसकी मोटी जांघों के बीच डरी सहमी सी खुद को ना उतारने की मानो अपील कर रही थी। पर अगले ही पल बीना को पता नहीं क्या सूझा उसने कमर से कच्छी की इलास्टिक पकड़ी और उसे उतार कर पैरों से निकाल दिया। बीना का गोरा बदन उस कमरे में रोशनी ले आया। अपनी सम्पूर्ण नग्नता देख, वो खुद अचंभित थी। उम्र ने उसके शरीर में कामुकता एवं वासना के लिए सही उभार और गहराई बनाये थे। बीना खुद को अलमीरा में लगे आदमकद शीशे में नंगी देख गर्व महसूस कर रही थी। इतना सुंदर चेहरा, गोरे गोरे गाल, गुलाबी होठ, काली जुल्फें, कमर तक लंबे बाल, बड़े बड़े दूध से भरने को उतारू चूचियाँ, जिनमें उसके बेटे राजू और बेटी गुड्डी के अलावा धरमदेव ने भी खूब दूध चूसा था। बीना ने उन दोनों चुचकों को उंगलियों से छेड़ा और कड़ा कर लिया। उसके चूचक मोटे और तने हुए थे। बीना ने फिर अपने स्तनों को पकड़के कसके पंजों से भींच लिया। उसके मुंह से उत्तेजना भरी सिसकी निकल गयी। फिर बीना ने अपने निचले होठ काटके,अपने वक्षों को नीचे से हल्के से थप्पड़ मारा। बीना ने फिर अपनी कमर पर हाथ रख अपने शरीर को निहारा। उसका भरा पूरा शरीर किसी व्यक्ति के लिए जीत की ट्रॉफी ही थी। बीना अपने कमर पर हाथ रख दूसरे हाथ से झांट से भड़ी बूर को सहलाते हुए महसूस किया। बूर काफी गीली थी। उसने बूर को मसलते हुए बूर का पानी हाथों में लिया और अपनी एक उंगली मुंह मे डालके स्वाद चख ली। उसका कसैला और नमकीन स्वाद उसे बेहद उत्तेजक लगने लगा। बीना की बूर शुरू से ही ऐसी थी, जो खूब बहती थी। उसे याद था, जब उसने अपनी माँ को ये बात बताई थी तो उसकी माँ ने उसे ये बात किसीको बताने से मना किया था। उसने बोला था कि बूर से पानी जब भी बहे तो, खुद लंबी सांसे लो और पानी पियो। बीना वैसा करती तो कुछ देर बूर शांत रहती थी उसके बाद फिर बहने लगती थी। बीना की माँ समझ गयी थी कि बीना एक अत्यंत कामुक स्त्री है, इसलिए उसे ज्यादा घर से निकलने नहीं देती थी और वक़्त से पहले ही उसकी शादी धरमदेव से करा दी थी। बीना ने बूर पर थपकी देते हुए कहा," जाने कब जान छोड़ी ई।" फिर वो पीछे मुड़ी और अपने यौवन का अंतिम और बेहतरीन खजाना देखने लगी। उसके बड़े बड़े चूतड़। दो बड़े बड़े खरबूजे की तरह उठी, गोल और कड़क किसी भी आदमी को लुभा सकती थी। बीना ने चूतड़ों को दोनों हाथों से सहलाया और अपनी नंगी जवानी को पूरा महसूस किया। बीना इस समय उन लड़कियों से कम नहीं लग रही थी जो राजू की किताबों में नंगी तस्वीरों में कैद थी। बल्कि बीना तो उनसे ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। बीना अपने अंग अंग को निहार रही थी। दरअसल बीना खुद को उन स्त्रियों के यौवन से मेल करा रही थी। बीना को उन किताबों के बारे में याद आया तो वो नंगी ही घर के आंगन से होते हुए राजू के कमरे में गयी। फिर उन किताबों को उठाया और फिर शर्माते हुए राजू की चड्डी उठा ली। बीना ने उस चड्डी को अपनी बूर से सटा लिया। फिर वो थिरकते चूतड़ों और उछलती चूचियों की मतवाली चाल से अपने कमरे की ओर चल दी। बीना ने अपना भारी शरीर बिस्तर पर पटक दिया। वो पेट के बल लेटी उन किताबों को निहार निहार कर देख रही थी। राजू की चड्डी उसके रिसते गीले बूर से भीग रही थी। उसे इस वक़्त उन तस्वीरों की औरतों से इर्ष्या हो रही थी। वो काम वासना से लिप्त उनकी किस्मत में लिखे लौड़े को देख परेशान हो रही थी। उसकी आँखों में बस लण्ड की प्यास साफ दिख रही थी। उसने मन ही मन कहा," केतना मस्त किस्मतवाली सब बिया, एतना मोटा मोटा और मस्त लौड़ा एकर सबके किस्मत में बा। पइसा भी कमावत बिया अउर खूब चुदा चुदा के मज़ा भी लेवेली।" उसने उन तगड़े लौंडों की मेल अपने पति से की तो, धरमदेव के ढलते उमर के साथ ढीले लौड़े को याद कर उसे गुस्सा आ गया। फिर उसे राजू का लण्ड याद आया, उसका लण्ड यादकर उसने गहरी सांस ली और बूर पर चड्डी कसके दबा ली। एक जवान शादीशुदा बेटी की माँ अपने ही बेटे के लण्ड को याद कर, नंगी बिस्तर में बूर के दाने को मसल रही थी। बीना को इस बात का एहसास था कि ये व्यभिचार है, किंतु इसमें इतना मज़ा क्यों उसे आ रहा था?
वो अपने बूर को मलते हुए, अब सिसकने लगी थी। उसका नंगा बदन उसके अंदर की वासना को बिखेर रहा था। व्यभिचार और वासना एक संस्कारी स्त्री को भी किसी रण्डी की तरह मचलने पर मजबूर कर देते हैं। बीना इस वक़्त किसी प्यासी रण्डी की भांति, मचल रही थी। अगर अभी राजू रहता तो, शायद वो उसका लण्ड भी ले लेती। बीना थोड़ी देर में हांफते हुए, अकड़ने लगी। उसकी जुल्फें बिखर गई थी। उसकी आंखें चरम सुख की प्राप्ति से बंद हो गयी थी। अपने बूर के रस से बेटे की गीली चड्डी उसके जांघों में फंसी थी।
उधर राजू दुकान के बाहर खड़े पुतलों पर चढ़ी पैंटी बड़े गौर से देख रहा था। अपनी माँ की चिकनी जांघों के बीच फंसी पैंटी उसे अभी भी याद थी। वो एक बड़े महिलाओं के अंतःवस्त्रों के दुकान के बाहर खड़ा था। वहां काफी महिलाएं थी, इसलिए वो अंदर जाने से हिचकिचा रहा था। वो बाहर खड़ा उन पुतलों को देख, अपनी माँ को उन कच्छियों में कल्पना कर रहा था। राजू को थोड़ी देर वहां खड़ा देख, दुकान का मारवाड़ी मालिक बोला," क्या बात है भाई? क्या चाहिए, कुछ लेना है?
राजू," हाँ, चाही हमके लेडीज आइटम चाही।"
मारवाड़ी जो कई पीढ़ियों से बिहार की मिट्टी से मिल चुका था, फौरन ग्राहक को पहचान बोला," हाँ हाँ आवा आवा अंदर आवा। का चाही बतावा?
राजू संकुचाते हुए बोला," हमके उ....अ... का बोलेला "
मारवाड़ी," अरे बेटा, खुलके बोलअ, इँहा कउनु लाज शरम मत करआ। सब औरत ब्रा पैंटी पेनहली। सबके घर में माई बहिन औरत बहु बेटी सब पेनहली। तहरा केकरा खातिर चाही, कउनु गिरलफ्रेंड बा का?
राजू," ना, हमरा त ई साइज के कच्छी चाही, आपन माई खातिर।" ऐसा बोल उसने अपने बैग से कच्छी निकाल के दे दी।
मारवाड़ी को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि माँ की कच्छी लेने बेटा आया है, पर उसे तो अपने धंधे से मतलब था। उसने अपने एक सेल्सगर्ल को उसके साथ लगाया और उसे कच्छी दिखाने को कहा। उस महिला ने कच्छी के साइज के हिसाब से तरह तरह के पैंटी अलग अलग रंगों में दिखाया, राजू को उनमें गुलाबी और फिरोजी रंग की कच्छी पसंद आई।
सेल्सगर्ल," ई रउवा केकरा खातिर लेत बानि?
राजू," उ हमार माई खातिर चाही। ई पैंटी ओकरे हआ।"
सेल्सगर्ल," केतना उमर बा?
राजू," चालीस बयालीस होई।"
सेल्सगर्ल," ई चटक रंग सब चली ना। माई काहे ना अइलन तहार।"
राजू," उ कभू बाजार आके खुद से ना ख़रीदले बिया।"
सेल्सगर्ल," अच्छा...अच्छा बूझ गइनी। ठीक बा फिर त ले जायीं।"
राजू ने उनदोनो कच्छी को पैक करवा कर, उसका दाम दे दिया, और बाहर आ गया। वो अब अगले पड़ाव की ओर बढ़ा जहाँ, उसे अपनी माँ के लिए पैड खरीदने थे। वो अब थोड़ा खुल चुका था। एक बड़े जनरल स्टोर में घुसकर उसने बोला," भैया, एगो व्हिस्पर दे दआ,।
दुकानवाला," व्हिस्पर त नइखे कोटेक्स बा लेबु?
राजू," दे दआ।"
दुकानवाला," साइज मीडियम, लार्ज, एक्स्ट्रा लार्ज ?
राजू अपनी माँ को याद कर बोला," लार्ज।"
दुकान वाले ने उसे पैड पैक कर दे दिया, राजू ने उसके दाम दिए और थैली में लेकर दुकान से वापस बाहर निकल आया। आज उसने अपनी माँ के लिए कच्छी और पैड खरीदी थी, जो हर इंसान केवल अपनी स्त्री के लिए करता है। ये उसके लिए इशारे थे, जो वो अब थोड़ा थोड़ा समझ रहा था। राजू अपनी धुन में चला जा रहा था, वो तेज़ कदमों से साईकल की पैडल मार रहा था। वो चाभ रहा था कि जल्दी से घर पहुँचके बीना को अपनी खरीददारी दिखाए। वो अपने बाप से पहले घर पहुंचना चाहता था, ताकि बीना के साथ समय बिताए। उसे घर पहुंचते पहुंचते शाम हो गयी थी। उसका बाप घर आ चुका था। उसका सपना चकनाचूर हो गया। उसकी माँ चूल्हे पर खाना बना रही थी, और उसका बाप बीड़ी पीते हुए खाट पर लेटा था। इस वक़्त बीना बिल्कुल घरेलू स्त्री लग रही थी, जो दोपहर को बेटे की चड्डी के साथ बिस्तर में नंगी लेट बूर रगड़ रही थी। उसे देख कोई नहीं कह सकता था कि वो अकेले में काम वासना से वशीभूत बिस्तर में लण्ड के लिए तड़प रही थी। राजू ने बीना की ओर देख थैले की ओर इशारा किया तो बीना ने चुपचाप उसे थैला कमरे में रखने का इशारा किया। राजू चुपचाप थैला घर के अंदर रख आया। राजू बस्ता रख, कपड़े बदल लिया और बाल्टी उठा दूध दूहने खटाल की ओर चल दिया। वहां उसने गाय के थन को थाम दूध दुहना शुरू कर दिया। उसके सामने अचानक उसके माँ की तस्वीर झलकी जिसमें वो उसके द्वारा लायी पैंटी में खड़ी थी। अगले ही पल वो गायब हो गयी। वो उसका भ्रम था, दरअसल वो इतना बेताब था बीना को उस कच्छी में देखने को कि उसे उसकी झलक मिल जाती थी। थोड़ी देर बाद गाय दुह कर जब वो बाहर आया, तो उसकी माँ खाना बना चुकी थी। राजू दूध अपनी माँ के पास लाकर रख दिया, जो उसे बघौने में डालके उबालने लगी। राजू खुद कमरे में पढ़ाई करने चला गया। पर उसका मन पढाई में नहीं लग रहा था। राजू ने पढ़ाई की किताब छोड़, Xforum पर incest कैटेगरी में माँ बेटे की चुदाई की मस्त कहानी पढ़ने लगा। उस कहानी में बेटा अपनी माँ को किसी कोठे की रण्डी की तरह चोद रहा था। राजू का लण्ड कड़ा था। वो मजे से लण्ड कमर के सहारे मसलते हुए पढ़ रहा था। राजू को इस बात का पता ही नहीं चला कि उसकी माँ कब उसके पास कमरे में आई। कहानी में कुछ चुदाई की गंदी तस्वीरें भी शामिल थी, जिसे बीना ने देख लिया।
तभी बीना बोली," राजू...ई का पढ़त बारू?
राजू हड़बड़ाते हुए," माई...तू कब आइलू? बाबूजी सूत गइलन का?
बीना," हाँ, सूत गइलन। पर तु ई का गंदा गंदा चीज़ सब देखत बारआ। हम देखनि ह, तहरा पास ढेरी गंदा गंदा लंगटे लइकियाँ सबके किताब बा।"
राजू," न...न...ना... उ हमार नइखे।"
बीना," झूठ मत बोल, बेशरम लइका। झूठ बोलत तहरा शरम नइखे आवत?
राजू," म...मा...माई...उ...सब अरुण के रहलस।" उसने सारा ठीकरा अरुण के माथे फोड़ दिया। बीना उसकी घबराहट देख अंदर ही अंदर हंस रही थी। उसे राजू को छेड़ना अच्छा लग रहा था। पर वो उसकी माँ थी, तो उसे डांटना तो बनता है।
बीना," अच्छा, उ अरुण के रहलस, पर ई मोबाइल में जउन तू देखत रहुवे, उ त तू खुद करत रहलु ना।"
राजू," माई, माई....." ऐसा बोल वो नज़रे झुकाए बैठा था। बीना उसके सामने खड़ी थी। उसने राजू के सर पर हाथ फेरा और बोली," उ अरुण से दूर रहल करआ, तहरा से पहिले कहत रहनि ना। उ तहरा बिगाड़ देले बा। तहरा ई गंदा गंदा चीज़ सब दिमाग में भर दिहले बा। बता दी तहरा बाबूजी के?
राजू," ना... ना माई।"
बीना," अबसे ई सब छोड़ दआ। तू बढ़िया लइका बारू। ई सब चीज़ से दूर रहल करआ।"
राजू," हम का करि माई, हम कोशिश करेनी पर जाने हमके का होवेला, औरत के शरीर के प्रति हमके बड़ा जिज्ञासा बा। औरत के नंगा बदन के बारे में हम हमेशा सोचेनि। मन होखेला कब कोई लइकी मिली जउन के साथे हम आपन हर इच्छा पूरा करि।"
बीना," औरत के शरीर के प्रति जिज्ञासा ई उमर में आम बात बा। लेकिन तहार बियाह में अभी समय बा बेटा, जउन इच्छा तू पूरा करे चाहेलु उ त मेहरारू देवेली। हाँ, तहार कउनु जिज्ञासा बा त हम ओकर जवाब दे देब, जउन तू जाने चाहेलु।"
राजू चुप था, वो कुछ नहीं बोला। बीना अपने बेटे को देख रही थी उसका लण्ड अभी भी तना हुआ था, जिसे देख उसे खुद उसे छूने की इच्छा होने लगी। बीना ने फिर राजू से बोला," ऐ बबुआ, हमरा खातिर जइसे गुड्डी बा वइसे तू बारआ, तहरा अउर ओकरा में कउनु अंतर नइखे। तू दुनु हमार कोखिया से निकलल बारू। गुड्डी त चल गईल आपन ससुराल, अब त तुहि हमार सहारा बारू। काहे ई करआ तारू?
राजू उसकी ओर देख बोला," अंतर बा माई, गुड्डी दीदी लइकी बिया अउर हम लइका। तू कभू हमरा से एतना नज़दीक ना हो पाइब,जेतना गुड्डी दीदी के। हमार उमर में लइका सबके बीच ई आम बात बा। सब कहानी पढ़े लन अउर फ़िल्म फोटो देख मन शांत करेले। तू हमके बेटा ना एक लइका अउर एक दोस्त के नज़र से देखबु ना त तहरा पता चली।"
बीना," अच्छा, अइसन बात बा त तू अबसे हमके आपन दोस्त बूझआ, अउर हमसे जे भी इच्छा होए खुलके बोलल करा।" ऐसा बोल वो राजू के तने लण्ड पर निगाहें दौड़ाने लगी।
राजू ने उसे देखा तो, लण्ड को एडजस्ट करने लगा। फिर बीना ने उसकी ओर देखा और बोली," बबुआ, आज हमार कच्छी लेके आइलू, त उ दे दअ।"
राजू दीवार पर टंगे झोले से अपनी माँ के लिए खरीदी दोनों कच्छियां निकाल के दे दी। बीना ने दोनों कच्छियों को खोला और पूरा फैलाके देखा। वो बोली," उहे नाप से ले लआ ना? राजू ने बोला," हाँ, तहार पुरान कच्छी के नाप से।" बीना ने फिर अपनी कच्छी वापिस ले ली तो राजू बोला," ई रहे दे, हम इसे साईकल पोछब।"
बीना ने फिर कहा," ठीक बा, उ पैड भी लेलु का।"
राजू ने पैड का पैकेट बढ़ाते हुए बोला," हाँ ई लआ।"
राजू के हाथ से पैड का पैकेट ले, वो शरम महसूस कर रही थी। राजू ने उन दोनों चीजों को देने में एक अजीब सी सुखद और संतुष्टि का अनुभव किया। बीना उठकर जाने लगी तो, राजू ने कहा," माई, ई कच्छी पहन के देख ना, ठीक बा कि ना ज्यादा टाइट नइखे ना।"
बीना," अभी पेन्ही का, तहरा सामने?
राजू," त का भईल कल भी त देखौले रहु। अउर अभी त कहलु कि गुड्डी दीदी अउर हमरा में कउनु अंतर नइखे। गुड्डी दीदी के देखा सकेलु त हमरा काहे ना।" वो एक सांस में बोल गया। बीना की ओर उसने अपने शब्दों की जाल का फंदा फेंका। बीना खड़ी खड़ी कुछ सोच बोली," तहार बाबूजी जग जाइ तब?
राजू," उ एक बेर सुतले के बाद, भोर से पहिले कहाँ उठत बारे। ई बतिया त तू, हमरा से बेहतर जानआ तारआ।"
बीना बोली," कल देख लिहा ना अभी रहे दआ।" राजू बोला," ना हम अभी देखे चाहेनि। दोस्त बारू ना तू हमार।"
बीना अपने ही जाल में फंस गई। उसने राजू की तरफ देखा, और फिर बोली," ठीक बा, रुकअ।" बीना वापिस आयी और हाथ में रखा पैड और पैंटी बिस्तर पर रख दिया। फिर वो बेटे के सामने आ गयी। उसकी नाभि राजू की आंख से कोई ढेड़ मीटर दूर थी। बीना ने फिर राजू से कहा," बेटा तनि नज़र घुमा लआ, कच्छी उतारब ना जउन पेन्हने बानि।" राजू ने कुछ नहीं कहा बल्कि और गौर से उसे देखने लगा। बीना समझ गयी कि राजू अपनी नज़रे फेरने वाला नहीं है। बीना ने फिर साड़ी और साया घुटनों तक उठाया और कच्छी की इलास्टिक पकड़के पैंटी उतारने लगी। बीना राजू की आंखों में आंखे डाले देख रही थी। अपने बेटे की आंखों में अपने लिए हवस उसे साफ दिख रही थी। बीना ने कच्छी पैरों से निकाली और बिस्तर की ओर हल्के से फेंका। राजू ने उसे हवा में ही लपक लिया। उस कच्छी में बीना के शरीर की गर्माहट थी। साथ ही पेशाब और पसीने की मिलीजुली खुशबू। राजू ने उसे नाक के पास लाकर सूंघ लिया। बीना उसे ऐसा करते देख बोली," उ गंदा बा, छि...उ काहे सूँघत बारआ।" राजू ने फिर उसे दिखा और सूंघने लगा। बीना ने फिर कुछ नहीं कहा और गुलाबी कच्छी ले उसमें पैर घुसा ऊपर की ओर खींचने लगी। जब वो कच्छी घुटनों से ऊपर ले गयी तो, राजू एकटक वहीं देख रहा रहा। बीना ने कच्छी ऊपर तक खींच ली, और फिर साड़ी और साया एक साथ उठाके बोली," देखआ कइसन बुझावेला, ई नया कच्छी तोर माई पर।" राजू प्यासी नज़रों से अपनी माँ को चड्डी में देख रहा था। बीना अपनी साड़ी और साया उठाये खड़ी थी। राजू ने हाथों से इशारा कर उसे अपने पास बुलाया। बीना सहमी हुई उसके पास आ गयी। उन दोनों की ही सांसें तेज चल रही थी। राजू ने बीना से पूछा," ज्यादा टाइट नइखे ना।"
बीना उसकी ओर बिना देखे बोली," ना, फिटिंग बा।"
राजू ने पैंटी लाइन पर देखा और बोला," रुक देखे दे।" ऐसा बोल उसने कच्छी की पैंटी लाइन, में उंगली घुसा दी। बीना की चमड़ी और पैंटी लाइन के बीच उंगली चलाने में मज़ा आ रहा था। उसने देखा वाकई पैंटी की फिटिंग जबरदस्त थी। तभी उसे बीना के बूर के कुछ बाल बाहर झांकते हुए दिखे। राजू ने पैंटी और अंदरूनी जांघों के बीच उन बालों को छूकर बोला," इँहा के बाल नइखे काटत बारू का। तहार कच्छी में भी नइखे समात।"
बीना कुछ नहीं बोली। राजू जब इतने करीब था तो बीना की बूर के रिसाव की मादक गंध उसके नथुनों में समा रही थी। बीना इस क्षण उत्तेजित होने लगी थी। राजू ने किसी तरह खुद पर काबू किये रखा, फिर उसने बीना को पीछे मुड़ने को कहा। बीना पीछे घूम गयी। उसके बड़े भारी चूतड़ पैंटी, से चिपके पड़े थे। उसके गाँड़ की ऊपरी दरार साफ नजर आ रही थी। ऊफ़्फ़ कितनी कामुक लग रही थी वो। राजू ने उस दरार में उंगली डाल दी, और जान बूझकर एक दो बार नीचे कर उसको महसूस किया, फिर कच्छी ऊपर कर उसे ढक दिया। बीना के चूतड़ों के चारों ओर पैंटी की लाइन की फिटिंग बहुत बढ़िया आयी थी। राजू उसे देख प्रसन्न और रोमांचित था। फिर राजू को शैतानी सूझी, उसने बीना से बिना कुछ कहे उसकी साड़ी खींचकर उतारने लगा। बीना साड़ी पकड़े खड़ी थी, तो उसे साड़ी निकलती हुई महसूस हुई। उसने राजू की ओर देखा, और बोली," ई का करआ तारआ, राजू?
राजू," साड़ी अउर साया उतारके देखा दआ।"
बीना," ना राजू छोड़ दअ, साड़ी मत खोल। हमके लाज लग रहल बा।"
राजू उसकी कहां सुनने वाला था, उसने साड़ी खींचकर अलग कर दिया। बीना शर्म से अपने ही बेटे के हाथों साड़ी उतरवा बैठी। राजू ने अब उसके साया का नाड़ा पकड़ खींचने को हुआ तो, बीना ने अपना चेहरा हाथों से ढक लिया। राजू ने नाड़ा के पास जो कटा हुआ हिस्सा होता है, बीना की गोरी चमड़ी जो बाहर झांक रही थी, उसे जानबूझकर छूते हुए महसूस किया। फिर उसने साया का नाड़ा खींच दिया। साया सरसराते हुए, बीना के पैरों में गिर गया। बीना अब बेटे के सामने सिर्फ ब्लाउज में और पैंटी में खड़ी थी। अहा क्या दृश्य था। बीना के गोरे बदन पर ये गुलाबी पैंटी बहुत ही फब रही थी। बीना इस उम्र में भी काफी तंदुरुस्त थी। कमर, पेट और जांघों पर हल्की चर्बी थी, जो इस उम्र में स्वाभाविक थी, वो भद्दी नहीं बल्कि उसे और आकर्षक बना रही थी। राजू ने बीना के कमर पर लगती पैंटी की इलास्टिक में उंगली डाली, और कमर पर उसके कसाव का जायजा लिया। उसने बीना के कमर के एक छोड़ से दूसरे छोड़ तक उंगली घुमाके देखा। बीना कुछ बोली नहीं, लेकिन उसके मुंह से सिसकारी फूट पड़ी। राजू ने देखा कि बीना की बूर की दरार पैंटी के कसाव की वजह से उभर गयी थी। बीना की बूर अब पानी भी छोड़ रही थी, जिस वजह से वो हल्की गीली भी हो चुकी थी। उसकी खुशबू राजू महसूस कर रहा था। उसने बीना के बूर के उपर पैंटी पर हाथ डाल दिया। बीना के मुंह से,"इशहह.... आह.... निकला।
राजू," का भईल माई, इँहा कच्छी ज्यादा टाइट बा का, दर्द होता का?
बीना कुछ नहीं बोली, बस आँखें मूंद खड़ी थी। राजू ने फिर कहा," बोल ना माई, देख अब हम अउर तू दोस्त बानि। खुलके बोलना, अगर टाइट होई त काल एकरा बदल देब।"
बीना," ना टाइट नइखे, तू छोड़ दआ हाथ हटा लआ।"
राजू," लेकिन इँहा गीला काहे बा?
बीना," गर्मी से पसीना आ गईल हआ, छोड़ दआ।"
राजू ने उसकी पैंटी के पास नाक लगाकर सूंघ लिया, और बोला," हहम्म, लागत बा ढेरी पसीना चू रहल बा। लेकिन एकर गंध अलग बा।"
बीना को इस छेड़छाड़ में मज़ा आ रहा था और थोड़ी ग्लानि भी, पर इसमें मज़ा का पलड़ा भारी था। राजू बोला," माई, जानत बारू तहरा, पसीना काहे आ रहल बा?
बीना धीरे से बोली," काहे?
राजू," काहे कि तहरा इँहा बहुल घना बाल बा। एकरा काटत काहे ना।"
बीना," फुरसत नइखे मिलत काम से, कब काटी?
राजू," हम काट देब, अभी लेके आवत बानि हमार रेजर वाला पत्ती।"
बीना," ना अभी मत कर राजू, काल कर दिहा। अउर भी जगह ढेरी बाल बा"
राजू," अउर कहां बाल बा?
बीना," इँहा कंखिया में।" बीना ने बांया हाथ ऊपर कर काँख दिखाते हुए बोला।
राजू," पर पता नइखे लागत ब्लाउज के ऊपर से, ब्लाउज उतार के देखा दआ।"
बीना बोली," हम अंदर कुछ पहनने नइखे, ब्लाउज कइसे उतारी।"
राजू," त का भईल, अइसन का बा भीतरी जउन हम ना देखने बानि। बच्चा में ई चुच्ची से केतना दूध पिनी हम।"
बीना," तब तू बच्चा रहलु, अब सियान बारू। हम तहरा सामने अब उ खोलके कइसे दिखाई।"
राजू," ठीक बा, अइसे कर तू एक हाथ से दुनु चुच्ची छुपा लिहा ब्लाउज खोलके, अउर हम बारि बारि तहार दुनु कंखिया के बाल देख लेब। ठीक बा।"
बीना," ठीक बा लेकिन तू उधर मुंह घुमा लआ।" राजू दूसरी ओर मुँह घुमा लिया और बीना अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी। बीना ने सारे बटन खोल ब्लाउज उतार कर बिस्तर पर डाल दिया। उसने ब्रा नहीं पहनी थी। उसने अपने दोनों चूचियों को बांये हाथ को लंबा कर ढक लिया, जिससे उसके चूचकों के इर्द गिर्द की जगह ही ढकी गयी। बीना ने राजू से फिर पीछे मुड़ने को कहा," राजू, हम ब्लाउज उतार देनि हअ।"
राजू बीना की ओर पलटा, तो बीना अपना दाहिना हाथ ऊपर कर सर के पीछे ली हुई, अपने बांये हाथ से चूचियों को ढकी हुई, किसी फिल्मी मॉडल की तरह खड़ी थी। राजू का लण्ड पूरा टनटना गया। वो भी सिर्फ चड्डी में था, तो उसका उभार भी साफ पता चल रहा था। बीना की नज़र भी उस उभार को देखे बिना नहीं रह पाई। राजू ने देखा, उसके काँखों में काफी बाल थे। वो काफी घने, काले, घुंघराले और चमकदार थे। बीना के करीब आकर उसने बड़े गौर से देखा और बोला," माई, तू त परेशान हो जात होखब, जाने केतना दिन से ई बालवा तू काटले नइखे। बाप रे बाप पसीना से त इँहा खुजली ना हो जाये। एकरा त काटे के पड़ी। दोसर कांखिया देखाबा।"
बीना ने उसकी बात मानते हुए अपना दूसरा हाथ ऊपर उठा दिया, लेकिन वो अपनी उन्नत चूचियों को दूसरे हाथ से ढक ली। बीना ने ये इतनी जल्दी किया कि राजू, कुछ स्पष्ट देख नहीं पाया। राजू ने दूसरे काँख में हाथ फेरा, तो बीना को गुदगुदी हुई, बीना हंस पड़ी। राजू ने कहा," बड़ा बाल बा माई, एकरा काट लअ।"
बीना," हम कभू ना काटनी ह। एतना दिन में त कुछ ना भईल। लेकिन फिर भी तू कहेलु त काल काट दिहा।"
राजू," काल काहे, ई त हम अभिये काट देब।" ऐसा बोलके वो फौरन अपने रैक पर रखी, साधारण कैंची झटके से ले आया। और बीना को स्थिर खड़े होने को कहा।
बीना अपने बेटे के बताए अनुसार हाथ ऊपर करके खड़ी थी, वहीं राजू उसके काँख के बाल काटने लगा। उसने बीना के बाल काटके काफी छोटे कर दिए। बीना ने फिर दूसरा हाथ ऊपर किया, और राजू ने उसके बाल भी काट दिए। बीना अपनी चूचियों को ढक तब तक शांति से खड़ी थी। बाल कटने पर उसे काफी हल्का महसूस हो रहा था। इस दौरान वो राजू की ओर देखती रही, जबकि राजू पूरे ध्यान से उसके बालों की छटाई कर रहा था साथ ही उसके काँखों की महक को अपने मन में समा रहा था। वो बार बार बीना के काँखों को कैंची चला के हथेली से झाड़ता था। उससे बीना को गुदगुदी महसूस होती थी। राजू को बीना के हल्के बाल अब अच्छे लग रहे थे। राजू ने फिर पूछा," बताबा, कइसन बुझाता?

बीना," बड़ा हल्का बुझा रहल बा। अब पसीना भी कम आयी। राजू," हाँ अब तहरा आराम आयी। निचवा के बाल भी काट दी का?
बीना," ना.. तू छोड़ द, हम खुद काल काट लेब। अब हम बूझ गइनी कि केसिया कइसे कटाई। ई कैंची हमके दे दअ।"
राजू," ना अपने से ना हो पाई, कहूँ कट जाई तब।"
बीना," ना, हम कर लेब। तू छोड़ दअ।"
बीना ने फिर अपनी ब्लाउज पहनी, और फिर साया। उसने साड़ी नहीं पहनी क्योंकि उसमें समय ज्यादा लगता। बीना बोली," अब साड़ी का पेन्ही, जाके सुतेके बा। ई साड़ी साया, ब्लाउज में सूते में बड़ा दिक्कत होखेला।" ऐसा बोलके वो चली गयी। राजू ने मन में ही सोचा," माई खातिर, एगो मैक्सी ले आइब त आराम हो जाई माई के।"
बीना को जाते देख, राजू लण्ड मसल रहा था। उसे ये जानकर अच्छा लगा कि बीना को उसकी गंदी हरकतों के बारे में पता चल गया था। अब उसे कोई डर नहीं था, ऊपर से बीना उससे दोस्ती कर बैठी थी। उसे सबकुछ साफ साफ बात करने और समझाने का वादा किया था। बीना उसकी माँ के साथ साथ दोस्त भी बन चुकी थी।
उन दोनों के बीच अनोखी दोस्ती शुरू हो चुकी थी।
nice friendship developing between mom and son.
 

Enjoywuth

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Lajawab bahaut badiya .. Ab dekhna ki yeh dosti kitni door tak jati hai..

Woh kahte hai na.. Baat nikli yoh door tak jayegi.. Yahan kahan tak pahunchegi.. Yeh dekhna hai
 

vyabhichari

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अनोखी दोस्ती भाग २

सुबह से ही आज काफी तेज़ बारिश हो रही थी। सावन का महीना अपने असली रंग में आ चुका था। चारों ओर खिली हरियाली, और बारिश के शोर के साथ गीलापन घरों से लेकर खेतों तक व्याप्त था। बारिश की बूंदे तेज़ गिर रही थी, धरमदेव ऐसे मौसम में भी छाता लेकर खेतों की ओर निकल पड़े थे। खेतों में ज्यादा पानी ना भर जाए, इसलिए वहाँ नालों की निगरानी के लिए, जाना जरूरी था। वैसे तो अभी सात बज चुके थे, पर आसमान में घिरे बादल से अंधेरा पूरी तरह छाया हुआ था। बीना भी सुबह उठकर नहाकर, घर में खाना पका रही थी। उसके मन में रह रह के, कल रात की बातें याद आ रही थी। कैसे वो और राजू माँ बेटे होकर भी वो किया था, जो उन्हें नहीं करना चाहिए था। लेकिन बीना का मन इस बात से पूरी तरह राजी नहीं था,कि उसने कुछ अनैतिक किया है। राजू ने तो बस उसके काँख के बाल काटे थे, और उसने नई पैंटी पहनके दिखाई ही तो थी। इसमें गलत अगर है भी तो, उसे ग्लानि होने के बजाय रोमांच क्यों महसूस हो रहा था। घर की बेटी होने के नाते गुड्डी, को तो वो ये सब दिखाती ही, राजू भी तो उसका ही खून था। अब घर में गुड्डी के बाद कोई उसकी संतान थी तो वो राजू ही था। राजू का उसपर उतना ही हक़ था जितना गुड्डी का। मां और बेटे के बीच दोस्ती का एक नया रंग भी आ चुका था। लेकिन बीना और राजू का असली सच शायद ये था कि दोनों ही काम वासना में लीन होना चाहते थे। राजू जो अभी युवा था, और अपनी बड़ी बहन के साथ व्यभिचारिक काम क्रीड़ा का आनंद उठा चुका था, उसे भली भांति मालूम था कि घर की लड़की को चोदने में कितना मज़ा आता है। उसके अंदर जवानी का भरपूर जोश भरा हुआ था। दूसरी तरफ थी उसकी माँ बीना, जो कि जीवन के लगभग चालीस बसंत पार कर चुकी थी, काम कला में निपुण, उत्तेजना और वासना उसके शरीर से बूर के पानी के माध्यम से रिसती रहती थी। इस उम्र में उसे चुदाई की भरपूर आवश्यकता थी, उसे ऐसा मर्द चाहिए था जो उसे बिस्तर में सोने ना दे, बल्कि सारी रात उसके बूर में लण्ड घुसाके चोदता रहे, जो उसे अपने पति से मिल नहीं रही थी। अपने बेटे को देख उसे ना जाने,क्यों उसे एक मर्द की झलक मिलती थी। उधर राजू भी अपनी माँ की प्यास और गर्मी से अच्छे से वाकिफ था, वो तो उसके पीछे लट्टू था। बीना ने भी उसे थोड़ी सी छूट दे दी थी, जबसे उसने उससे पैंटी मंगवाई थी। बीना जिस तरीक़े से राजू के सामने खुल रही थी, वो समझ चुका था कि उसकी माँ के अंदर चुदाई की चिंगारी सुलग रही थी। जिस दिन वो चिंगारी भड़केगी वो खुद राजू को अपनी आग़ोश में लेकर वासना के समुंदर में डुबकी लगाएगी। राजू उस वासना के समुंदर में डूबकर अपनी माँ बीना को वो अधूरी खुशी देगा जो उसका बाप उसे दे ना सका।
आज रविवार था, तो गाय का दूध धरमदेव निकाल के गया था। राजू आज सोया ही हुआ था। बीना ने उसे उठने को नहीं कहा था। खाना पकाते हुए सुबह के आठ बज चुके थे। बीना अब राजू को उठाने और कमरे में झाड़ू लगाने के लिए उसके कमरे में गयी। राजू सोया हुआ था,लेकिन उसका लण्ड उठा हुआ बीना के स्वागत में सलामी दे रहा था। बीना उसकी ओर देख उसके लंबाई का अनुमान लगा रही थी। बेटे के तने लण्ड को देख, उसकी बूर पनियाने लगी थी। एक प्यासे को अगर कुँआ दिख जाए, तो उसका उत्तेजित होना स्वाभाविक है। बीना कमरे में अंदर आकर राजू के बिस्तर के पास खड़ी हो गयी। उसने अंदाज़ा लगाया कि राजू काफी गहरी नींद में है। बीना झाड़ू को छोड़, बिस्तर के किनारे बैठ गयी और राजू के तने हुए लण्ड को घूरने लगी। वैसे तो उसका लण्ड चड्डी के अंदर था पर उसका सुपाड़ा चड्डी के बाहर झांक रहा था। बीना उस फूले हुए सुपाड़े को देख बेचैन हो उठी। बहुत दिन बाद उसे किसी लण्ड के शिश्न के दर्शन जो हुए थे। बीना ने उंगली से उस झांकते हुए सुपाड़े को छूने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, लेकिन अगले ही पल हाथ वापिस खींच लिया। उसने फिर कुछ सोचा और हाथ फिर आगे बढ़ाया और सुपाड़े को छू लिया। ये वही लण्ड था जिसकी वो बचपन में सरसों तेल से खूब मालिश करती थी। वो लुल्ली अब विकराल लण्ड का रूप ले चुकी थी। अपने बेटे की ओर देख, वो उसके मर्दाना जिस्म पर गर्व कर रही थी। उसका गठीला बदन और छाती पर उभरते बाल उसे बता रहे थे कि राजू अब उसका वो लल्ला नहीं रहा जो घर के आंगन में बचपन में नंगा ही घूमता था। बीना उसके पीछे दौड़ती थी, और उसे गोद में उठा लेती। फिर उसे लाड़ प्यार करती थी। बीना ने उसे देख मन में कहा," केतना बड़ा हो गइल हमार राजू। पूरा जवान हो गइल बा।"
उसके सुपाड़े को छू उसने उंगली सूंघ लिया। उसमें कल रात राजू के लण्ड से बहे मूठ की सौंधी सी खुशबू थी। राजू की गंदी चड्डी भी ऐसी ही महकती थी। बीना अपनी नाक ले जाकर उसका सुपाड़ा सूंघ रही थी। बीना की बूर बह रही थी, क्योंकि जो चीज़ उसकी काम वासना की प्यास बुझा सकता था, वो उसके सामने थी। बीना बेटे के तगड़े लण्ड से प्रभावित थी। उसकी सांसें तेज चल रही थी और दिल जोड़ों से धड़क रहा था। बीना पूरी तरह बहकने लगी थी। वो जैसे ही उसका लण्ड पकड़ने वाली थी, कि राजू उठ गया। बीना हड़बड़ा कर झाड़ू उठा बोली," के...केतना देर तक सुतल बारे, देख देर हो गइल। उठ जल्दी मुँह हाथ धो अउर नहा ले, हम खाना लगा देब। तब हमहुँ नहाएब।"
राजू," हाँ जात बानि, बाबूजी गइलन का?
बीना," हाँ, उ त सवेरे गइलन बेटा, खेत पर।
राजू," खेत पर ?
बीना," हाँ, खेत के देखभाल जरूरी बा। आपन जमीन के ध्यान अब तहरो रखे के चाही। अब तू भी सारा संपत्ति अउर आपन हक़ के हर चीज़ के देखल करअ।"
राजू," सब वक़्त पर अपने चल आई हमरा पास।"
बीना मुस्कुराते हुए झाड़ू लगा रही थी, ऐसा करते हुए उसकी बड़ी गाँड़ साड़ी के ऊपर से भी कहर ढ़ा रही थी। राजू को बीना के उभार देख मन मचल रहा था। बीना की गाँड़ भी अच्छे से मटक रही थी। राजू का मन हो रहा था, कि उसके बड़े बड़े चूतड़ों को थाम महसूस करे। बीना जान रही थी, कि राजू उसकी ओर ही देख रहा है। वो भी राजू को अपने पिछले उभार लहरा लहरा के दिखा रही थी। बीना तभी राजू से बोली," बेटा, तनि हमके छज्जा साफ करेके बा। तू कर देबु का?
राजू," माई तू जेतना बढ़िया करबू, उतना बढ़िया हम न कर पाइब। हम तहरा गोदी में उठाके रखब, तू सफाई कर लिहा।"
बीना कुछ नहीं बोली बस मुस्कुराई। राजू उसके पीछे आया और अपने हाथों को उसके कमर के इर्द गिर्द बांध उसे गोद में उठा लिया। बीना के चूतड़ राजू के लण्ड को अपनी दरार के बीचों बीच महसूस कर रहे थे। राजू की तो लॉटरी लग गयी थी, भई अंधा क्या मांगे दो आँखे। बीना अपने चूतड़ पर उसका लण्ड बड़े मजे से महसूस कर रही थी। वो अपने चूतड़ से उसका लण्ड मसल रही थी। बीना और राजू सफाई कम एक दूसरे के बदन को ज्यादा महसूस कर रहे थे। बीना भारी थी पर राजू को उसे उठाने में बोझ बिल्कुल महसूस नहीं हो रहा था। बीना की बूर से तो जैसे पानी की नदी बह गई थी।
बीना," राजू हम ज्यादा भारी बानि का। तनि बढ़िया से सफाई करेके बा। तनि देर असही रहे के पड़ी।"
राजू का चेहरा उसके कंधे के पास था," ना माई तू आराम से रगड़ रगड़ के सफाई कर हम पूरा साथ देब। तू चिंता मत कर हम उठाके रखब।"
बीना," बेटा, रगड़ाई बढ़िया से करब तभी त मन संतुष्ट होई ना। तू खाली खड़ा कइके रखिहा।"
राजू," का खड़ा करके रखी माई?
बीना शरारती मुस्कान से बोली," हमके राजू।"
राजू उसे गोद में उठाये हुए पूरा छज्जा साफ करवाया। राजू ने फिर बीना को उतारा तो बीना बोली," अब तू रुक जो, हमके नहाय दे। बहुत गंदा पड़ गईल बा। तू बाद में नहा लिहा।"
राजू," ठीक बा, तब तक गाय सबके चारा दे देब।"
बीना फिर अपने कमरे में चली गयी। वो नहाने का साबुन सर्फ कपड़े इत्यादि ले कमरे से बाहर निकलने वाली थी।
तभी उसे याद आया कि बूर के घने घुंघराले बाल काटने हैं। हमेशा कच्छी और घने बालों के बीच बूर गीली होने की वजह से खुजली सी होने लगी थी। उसने चुपके से कपड़ों के बीच कैंची रख ली। फिर नहाने चली गयी। स्नानागार में पहुंच उसने अपने कपड़े रस्सी पर डाले, फिर अपनी साड़ी उतारी, ब्लाउज, साया भी उतार दिया। घर के अंदर उसने ना तो कच्छी पहनी थी और ना ही ब्रा। वो इस समय सम्पूर्ण नंगी थी। बीना ने फिर बूर की ओर देखा और घने बालों को ऊपर से सहलाया। उसने कभी भी बूर के बाल नहीं काटे थे। उसने आंखे मीच कर कैंची से बाल काटना शुरू किया। उसकी सुंदर बूर झांटों के बीच फंसी हुई थी। बीना ने बाल्टी उल्टी कर एक पैर उपसर डाला और फिर झांटों की छटाई करने लगी। बूर के बालों की छंटाई शुरू में तो आसान थी, पर बाद में जांघों के किनारों और बूर के चीरे के आसपास बालों की कटाई टेढ़ी खीर थी। बीना ने कभी काटी नहीं थी। वो काटते हुए डर भी रही थी। उसे बूर के बाल कटने से वहां काफी हल्का महसूस हो रहा था। बूर उन झांटों से आज़ाद होकर, खुद को स्वच्छंद महसूस कर रही थी। ताज़ी हवा बूर को जब छू रही थी तो, वो सिहक उठती थी। बीना शरमाते हुए बाल काट रही थी, उसने देखा पैरों के नीचे बालों का ढेर लग गया था। अचानक से बाल काटते हुए, उसने गलती से बूर के पास दाहिने हिस्से पर चमड़ी ही काट ली। उसकी जोर की सिसकी ली और वहां से खून निकलने लगा। बीना बूर से बाल काटना छोड़ रोने लगी। घाव गहरा हो गया था और लहू भी खूब बह रहा था। राजू जो गाय को चारा देने खटाल में था, वहां अपनी माँ का शोर सुन तेज़ कदमों से पहुंचा। बीना अंदर रो रही थी, राजू ने खुले दरवाज़े को धक्का देकर अंदर गया। बीना उसे देख अपने बदन को हाथों से ढकने लगी। बीना ने एक हाथ से चूचियाँ और दूसरे से बूर को ढके खड़ी रो रही थी। राजू अपनी माँ को इस अवस्था में देख उत्तेजित हो उठा। उसके खुले बाल और नंगा जिस्म उसके अंदर के मर्द को जगाने लगा। राजू उसे सर से लेकर पैरों तक घूर के देख रहा था।
बीना," राजू बेटा, इँहा से जो देखत नइखे, हम लंगटे बानि। हम नहाय खातिर इँहा अपन कपड़ा उतार देले बानि।" वो सुबकते हुए बोली।"
राजू," उ त ठीक बा, पर तु कानत काहे बारे? का भईल बोल ना।"
बीना," उ..उ... उ बाल काटत रहनि।'
राजू," का... कउन बाल अउर कइसे?
बीना," ऊंहा के बाल, राजू।"
राजू," ना बुझनी माई बोल ना स्पष्ट कहां के।"
बीना," बूर के बाल, पहिल बेर काटत रहनि, राजू लग गईल।"
राजू," कहाँ, बूर में लग गईल का?
बीना," बूर के पास, इँहा।" उंगली से इशारे कर जवाब देते हुए बोली।
राजू," अरे बाप रे, कैंची से काटत रहलु का। अरे उ कहीं सेप्टिक ना हो जाये। ऊंहा त डेटोल लगावे के पड़ी।"
बीना," आह, राजू बहुत छनछनाता, बड़ा दुख रहल बा।"
राजू," रुक हम लेके आवत हईं, तू अइसे ही खड़ा रह।"
राजू बाहर निकलकर सीधा अपने कमरे में गया और डेटोल की शीशी ले आया। बीना अभी भी वैसे ही खड़ी थी। बीना उसे करीब आता देख, थोड़ी संकुचाई और संशय में थी। उसे अपने बेटे के लण्ड का तनाव स्पष्ट दिख रहा था। वो अच्छी तरह जानती थी कि इसकी वजह उसका ये नंगा यौवन है, जो अपनी ही सगी माँ को देख उत्तेजित हो उठा है। क्या सच में वो अभी भी किसी नवयौवना की भांति, मर्द को संभोग के लिए अपने निर्वस्त्र शरीर से निमंत्रण दे सकती है। राजू तो उसके नंगे नारीत्व को देख, उसे स्त्री के दृष्टि से देख रहा था।
वो बीना के करीब आया और उसके सामने घुटनों पर बैठ गया। बीना उसे देख रही थी, उसने रुई ली और बीना का हाथ बूर से हटाने को बोला। बीना उसकी ओर देख संशय से रोते हुए बोली," राजू हम तहार माई बानि। हम तहरा सामने लंगटे बानि। हमके लाज आवेला, तहरा लाज नइखे लागत का बेशरम। ला हमके दे दे हम लगा लेब।"
राजू," माई, एमे लाज के का बात बा? इँहा इलाज के बात बा। तहरा कट गईल एहीसे त हम डेटोल लगावे खातिर आईल बानि। तू का समझआ तारू?
बीना," तू दे दआ, हम अपने से कर लेब बेटा।"
राजू," तू चुप कर, शरम छोड़ अउर हमके उपचार करे दे, चल हाथ हटा।"
बीना," राजू, पर....कइसे,, हाय राम का करि।"
राजू," ठीक बा, खाली कटल जगह घाव देखा दअ। बाकी ढक ले।"
बीना को ये बात ठीक लगी, उसने बड़ी ही सावधानी से बूर का चीरा को ढक लिया, और घाव जो बूर के बेहद करीब थी, उसे उजागर किया। राजू ने उसे बड़े करीब से देखा और उस पर रुई से डेटोल लगाने लगा। बीना को छनछनाहट महसूस हुई, तो वो इसस..इस..कर आवाज़ें निकालते हुए रो रही थी। राजू उसे बार बार चुप रहने को बोल रहा था। बीना लेकिन चुप नहीं हो रही थी। राजू अपने सामने अपनी निर्वस्त्र माँ को, देख उत्तेजित तो था ही, पर उसे ये चुभ रहा था कि उसने अभी तक अपने यौनांग उससे छुपाए रखे थे। साथ ही वो छोटा सा दर्द बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
राजू," चुप कर माई, तू एतना दरद भी ना बर्दाश्त कर सकेलु का? औरत के त दरद सहे के आदत होखेला। जाने दू दू बच्चा के कइसे जनम देलु। ई छोट घाव से तू एतना परेशान होबु त काम ना चली।"
बीना कुछ न बोली, लेकिन वो अब राजू की बात सुन चुप हो गयी। दरअसल राजू के छुवन से उसे भी ठरक थोड़ी थोड़ी चढ़ रही थी। राजू उसकी जाँघे धीरे धीरे सहला रहा था। वो घाव के बेहद करीब जाकर फूंक रहा था। गीली बूर हथेली से चिपकी हुई थी, राजू गीलापन उसकी उंगली पर देख सकता था। बीना के हाथों में चूड़ी और पैरों में पायल बहुत मस्त लग रही थी। बीना राजू को लगातार देख रही थी।
बीना," राजू हो गइल का?
राजू," हाँ, लगभग।
बीना," हमके अब नहाय दअ।"
राजू," का बात करअ तारू? तू अब ना नहो। घाव गीला होई त नुकसान होई। चल घर के अंदर अउर आराम कर।"
बीना," अच्छा, लेकिन हमार बाकी झांट के काटी? वो राजू की ओर कैंची दिखाते हुए बोली।
राजू उसके हाथ से कैंची लेकर बोला," हम काट देब, लेकिन तू नहो मत। इँहा काट दी का?
बीना," काट दअ बड़ा हल्का लागत बा। हमरा से गलती हो गइल की तहरा से ना कटवईनी, अब देखआ तहरे से कटाबे के पड़ी।"
राजू बात बनती देख बोला," अरे हम बानि काहे तहरा खातिर ना, लावा हमार जांघ पर पैरवा रखआ।" उसने हाथों से जांघ पीटते हुए, बीना को पैर रखने को कहा। बीना ने वैसा ही किया। बीना अब अपनी बूर के चीरा को दो उंगली से ढक ली और बाकि खुला छोड़ दिया। राजू बिना देर किये उसके बाल काटने लगा। राजू को उसके घुंघराले बाल देख, जिज्ञासा और उत्तेजना महसूस हो रही थी। बीना अपनी बूर को उतना ढक उसे उत्तेजित कर रही थी। राजू किसी तरह बीना की उन दोनों उंगलियों को हटा देना चाहता था, क्योंकि उसके पीछे वो द्वार था जिससे वो इस दुनिया में आया था, बीना की बूर। बीच बीच में उन दोनों की निगाहें टकराती पर कोई कुछ नहीं बोलता। दोनों की प्यासी आंखें एक दूसरे के अंदर की वासना टटोलने का प्रयास कर रही थी, हालांकि माँ बेटे के रिश्ते में लंपट व्यभिचार की जगह ही नहीं है। लेकिन ये रिश्ते नाते जिस्म की आग में जल ही जाते हैं। बीना अपने बूर के बाल अच्छे से खड़े होकर कटवा रही थी, उसकी विशेष हजामत अब खत्म हो चुकी थी। राजू बार बार बूर और जांघों की जोड़ की जगह को हाथों से साफ कर रहा था, ताकि छोटे बाल अटक ना जाये। बीना के बूर के ऊपर बालों का पतला गुच्छा रह गया था, जो राजू को अच्छा लग रहा था। राजू ने उसे रहने दिया।
बीना," राजू तनि झांट के बाल रह गईल बा?
राजू," उ रहे दे, अच्छा लागेला।"
बीना," चल बेटा, अब हमके नहाय दे।"
राजू ने ऊपर से लेकर नीचे तक उसे देखते हुए कहा," अब कच्छी में गर्मी ना बुझाई, ना बाल कच्छी से बाहर झांकी।"
बीना," राजू, हाय सच कहअ तारे, जानत बारू एक त कच्छी, फेर साया अउर ऊपर से साड़ी, बहुत गर्मी बुझावेला, ढ़ेरी पसीना चुएला। अब बहुत राहत रही।" बीना अभी भी चूचियों और बूर को ढ़के हुए खड़ी थी। वो भी थोड़ी खुल चुकी थी। उसे अब जलन से आराम भी हो चुका था। राजू से वो कुछ बोलती इससे पहले राजू ने उसे देख कहा," सखि, जल्दी से नहा लआ, फेर अभी उ मैक्सी पेन्ह लिहा,हीरोइन लगबु।"
बीना मुस्कुराते हुए," कउन हीरोइन, तहार किताब जइसन का?
राजू," कसम से माई, उ किताब सब अब छोड़ देनी, जबसे तू कहलु?
बीना," अच्छा, मरद जात कुत्ता के पूँछिया जइसन होखेला, तू किताब छोड़ कुछ अउर करत होखब, हम बुझत बानि। आजकल सब गंदा गंदा फिलिम भी बनावेली, उ सब त नइखे देखत बारू।"
राजू," तू, ई का कहत बारू, हम जात हईं तू नहा ले।"
राजू के बाहर निकलते ही बीना हंस पड़ी। उसे राजू को छेड़ने में मज़ा आ रहा था। बीना नहाने लगी। उसने बदन पर ताज़ा ताज़ा ठंढा पानी डाला, और अपने खूबसूरत जिस्म को रगड़ के साफ करने लगी। बीना मग से पानी अपने बदन पर डाल रही थी। बीना का अंग अंग चमक रहा था। पानी में भीगने से उसका जिस्म और अधिक कामुक हो गयी थी। उसने अपने पूरे बदन पर पानी गिराने के बाद, अपने हाथों से बदन को मल रही थी। उसे खुद को अच्छे से साफ करना था इसलिए उसने धीरे धीरे बदन पर साबुन लगाना शुरू कर दिया। बीना के गोरे बदन पर झाग फैलने लगा। उसका नंगा बदन साबुन की झाग में पिरो गया था। बीना अपनी चूचियों और चूचक को सहलाते हुए साबुन मल रही थी। फिर उसने अपने पेट, पर साबुन मला साबुन की झाग उसकी लटकती चर्बी से गिरने लगा। कमर पर साबुन लगा लिया और फिर अपने नारीत्व की पहचान अपनी बूर पर साबुन को अच्छे से लगाने लगी। बीना अपनी बूर के चीरे पर गुलाबी बूर को साबुन से रगड़ रही थी। वो इस बात से अनजान थी कि राजू चुपके से उसे देख रहा है। वैसे तो राजू ने कई बार बीना को नंगी देखा था, पर आज वो उसके बेहद करीब थी। उसने अपनी माँ को सम्पूर्ण नंगी इतने करीब से नहीं देखा था। उसके और बीना के बीच केवल एक दीवार थी। लेकिन बीना के नंगे बदन और उसकी आंखें एक छेद से मिल रही थी। राजू ने बीना को गुड्डी से मिलाने का प्रयास किया। गुड्डी बीना की जवानी का प्रतिबिंब थी। बीना अभी अपने चूतड़ों की दरार में साबुन मल रही थी। उसके भारी भरकम चूतड़ उसकी हरकत से थिरक रहे थे। बीना अपनी गाँड़ की छेद और बूर के पास हाथों से साबुन मल रही थी। राजू का लण्ड उफान मार रहा था। अपनी सगी मां को अभी वो सिर्फ स्त्री की नज़र से देख रहा था। बीना फिर झुककर पैरों में साबुन मल रही थी। उसकी गाँड़ राजू के सामने पूरी फैली हुई थी। बीना की पायल और बिछिया से सजे पैर झनक रही थी। उसके हाथों की चूड़ी भी खनक रही थी जो राजू के लिए संगीत था। इतनी खूबसूरत माँ हो तो बेटा भी पागल हो जाये, उसने मन ही मन सोचा आखिर सामने एक स्त्री ही तो है और वो एक मर्द। स्त्री को पुरुष चाहिए, उसकी माँ की अधूरी कामुक इच्छाएं भी तो किसी मर्द को पूरी करनी होगी। नहीं तो आज नहीं तो कल उसे कोई ना कोई जरूर फंसा लेगा। गांव में तो जरूर लोग उसके माँ के बारे में गंदी बातें करते होंगे। अगर उसने उसकी इच्छा पूरी नहीं कि, तो अधूरी प्यासी औरत को पटाना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं हैं। अपने घर की चीज़ें तो उसे खुद संवारनी होगी। राजू ये सब सोचते हुए अपना लण्ड निकालके मूठ मारने लगा था। इतने में बीना अपने बदन पर दुबारा पानी डालके, झाग निकाल रही थी। उसने आसमान की ओर देखते हुए पानी अपने नंगे बदन के ऊपर डाल रही थी।चूचियों और चुचकों से टपकता पानी बेहद कामुक लग रहा था। वो पानी सरकता हुआ उसके पेट से उसकी बूर की त्रिकोण की ओर बढ़ चला। और उसकी ताज़ी चिकनी सांवली बूर को साफ कर गया। बीना अपनी बूर पर पानी डालते हुए बूर को साफ कर रही थी। बीना ने बूर की फांकों को फैलाया तो उसकी गुलाबी बूर अंदर से झांक गयी। राजू की ये देख सांसे अटक गई थी। अपनी माँ की बूर देख राजू का पानी निकल गया। वो वहां मूठ गिराके चला गया।

राजू अगले दिन जब पढ़ाई करने गया तो, बाजार से उसी दुकान से अपनी माँ के लिए एक मैरून कलर की मैक्सी खरीद लाया। जब घर पहुंचा तो बीना घर में धरमदेव के पैर दबा रही थी। उसने बीना को इशारा कर अपने कमरे में बुलाया। धरमदेव सो चुका था। बीना उठकर राजू के कमरे में गयी। राजू ने उसे पकड़कर दरवाज़े के पीछे छुपा लिया। राजू बीना की ओर देख मुस्कुराया। बीना उसकी आँखों में देख बोली," का बात बा मुस्कुरात काहे बाटे?
राजू," तहरा अब रात में आराम हो जाई?
बीना," अच्छा कइसे?
राजू उसके करीब आ थैला दिखाया।
बीना ने पूछा," का बाटे?
राजू ने बोला," तहरा खातिर हम मैक्सी ले आइनी ह। ई देखअ।"
बीना उसकी ओर देख बोली," लेकिन काहे?
राजू," उ रतिया में तू कहत रहलु ना कि, साड़ी साया में दिक्कत होता सूते में,एहीसे हम तहरा खातिर ई लेनी ह, ई में तहरा बहुत आराम होई।"
बीना," लेकिन राजू तू ई सब खरीदलु कइसे। तहरा पइसा कहाँ से आईल। कहीं तू कुछ गलत काम धंधा त नइखे करत। सच सच बताबा?
राजू," माई, हम कुछ गलत न कइनी।"
बीना," त पइसा कहां से आईल?
राजू," माई तू नाराज़ मत हो, हम बतावत बानि। तहरा खातिर हम कुछ भी कर सकेलि। लेकिन अगर हम तहरा बताईब त तू खिसिया मत जहिया।"
बीना," राजू, तू पहिले मोर कसम खाके बोलअ कहीं तू जुआ उआ त नइखे खेलत, कउनु गलत काम....बाप रे बाप?
राजू," माई, हम तहार कसम खाके कहत बानि कि हम कउनु गैर कानूनी काम ना कइनी। तू चिंता मत करअ, काहे कि ई पइसा हम हमार छात्रवृत्ति से निकलनी। पांच हज़ार आईल रहे, उ में से 1000 निकलने रहनि। एहि से तहरा खातिर सबसे पहिले ई सुंदर मैक्सी ले आउनी।"
बीना की आंखों में आँसू आ गए, बेटे ने अपनी छात्रवृत्ति से उसके लिए मैक्सी खरीद लायी थी।
राजू ने उसकी आँखों से आंसू पोछते हुए कहा," अइसन सुंदर आँखिया में ई मोट मोट आंसू बढ़िया नइखे लागत।"
बीना उससे बोली," मोर राजा बेटा, हमका माफ कर दआ, हम तहरा पर शक कइनी। हम जानत बानि कि तू गलत काम नइखे कर सकत। लेकिन उ तहार पढ़ाई खातिर रहे, उमे से काहे निकाललु पइसा? हमके एकर कउनु खास जरूरत नइखे।"
राजू," जरूरत काहे नइखे, एमे तहरा बहुत आराम रही।सूते के समय तहरा खाली इहे पेन्हे के बा। घर में काम काज के बेर में भी तू ई पहन सकेलु। पढ़ाई के खातिर पइसा बहुत बा। हम तहार बेटा बानि, लेकिन ई उपहार हम तहरा एक सहेली के हैसियत से देत बानि।"
बीना," अच्छा अब सहेली दी, त लेवे के पड़ी। लेकिन ई हम पेनहब कइसे, तहार बाबूजी पूछिहं त का जवाब देब, काहे से हम कभू ई सब पहनली ना ना?
राजू," हहम्म... ई बात बा। लेकिन तू ई बात बतहिया कि गुड्डी दीदी फोन पर, तहरा से मैक्सी के बारे में बताइल्स। एहि से तू बाजार से ख़रीदके ले आइलु।"
बीना," लेकिन राजू ई त झूठ बात बा ना, सच त इहे बा कि हमके हमार सहेली ई देले बा।"
राजू," अच्छा, त ठीक बा इहे बता दिहा।"
बीना," तहार बाबूजी खिसिया जायीं, बूझला रहे द, हम गुड्डी के ही नाम कह देब।"
राजू," ई मैक्सी पहन के देखाबा, सखि? राजू जानता था कि उसकी माँ अपनी सहेलियों को सखि ही बोलती है इसलिए उसने जानबूझ कर उसे सखि बोल संबोधित किया।
बीना," अच्छा, तहरा अब अपना माई के मैक्सी में देखे के बा सखी।" राजू की बात में सखी शब्द का जवाब उसने भी सखी से ही दिया। दोनों ने पहली बार स्पष्ट रूप से एक दूसरे को सखी कहा।
बीना उठके अंदर चली गयी। राजू उसे कमरे के अंदर जाके देखता रहा। थोड़ी ही देर में बीना अपनी साड़ी और ब्लाउज उतार चुकी थी। उसने फिर साया भी खोला और ऊपर से मैक्सी पहन ली। उस मैरून रंग की मैक्सी में वो बेहद खूबसूरत लग रही थी। बीना कमरे के बाहर निकल आयी। सामने राजू उसे देखने को बेताब था। उसके खुले बाल, उसका मासूम चेहरा, उसकी कजरारी आंखे, उसका शरीर बस उस कॉटन की मैक्सी से ढकी हुई थी, उसे देख राजू के मुंह से आह निकल गयी। बीना देहाती होते हुए भी, इस समय उस मैक्सी में किसी हाई क्लास औरत की तरह ही दिख रही थी। राजू उसके करीब पहुंचा, और उसके चारों ओर घूमके देखने लगा। बीना मुस्कुराते हुए खड़ी थी।
बीना," कइसन लागत बा?
राजू," जबरदस्त माई, तू एकदम कउनु हीरोइन से कम नइखे लागत।"
बीना," हट, बदमाश... झूठ केतना बोलत बारे।"
राजू," ना सच में, तू गर्दा बुझा रहल बारू। एकर फिटिंग भी बढ़िया बा।"
बीना," हाँ, फिटिंग बढ़िया बा। लेकिन ई में हमार बांहिया उघार रही। खाली कंधे तक कपड़ा बा।"
राजू," बढ़िया बा, गर्मी महीना तहरा खुलल खुलल बुझाई। वइसे भी कंखिया में हवा लगी, त पसीना सूख जाई।"
बीना ने अपने काँख उठाके सहलाया और बोली," हाँ, ई बात त बा सखि ।"
राजू," सखि, ई बताबा साड़ी साया से हल्का बुझा रहल बा कि ना?
बीना बोली," हाँ सखि, ई बहुत हल्का बा। अइसन बुझा रहल बा कि हम कुछ पहनने नइखे।" बीना और राजू एक दूसरे के सामने बेहद करीब खड़े थे। अचानक से राजू ने बीना को पकड़के अपने करीब खींच लिया। बीना उसके सीने से तेज़ी से टकराई। उसकी बड़ी चूचियों ने शॉक अब्सॉर्बेर का काम किया। बीना की जुल्फें पूरबाई से लहरा रही थी। बीना और उसकी आंखें टकरा गई, बीना बोली," अइसे काहे बन्हिया में खींच लेलु, कुछो चाही का?
राजू," माई हम सच बताईं त हम तहरा जइसन मेहरु चाहत बानि, जउन तहरा जइसे घर सँभारे, तहरा जइसन कद काठी हो, तहरा जइसन चाल ढाल होए, तहार जइसन सुंदर चेहरा, तहार जइसन आँखिया, तहार जइसन लाल ओठवाँ, तहार जइसन ई कारी कारी केसिया।"
बीना," अच्छा, कहीं हमहि तहरा पसंद त नइखे सखि।"
राजू," सखि, काश तू कुमारी रहित, त तहराके बियाह करके ले आउती। तहरा रानी बनाके रखति।"
बीना उसकी आँखों में देख बोली," सब मरद असही बोलेला, एक बेर बियाह हो जाता ओकरा बाद पत्नी के ध्यान ना देवेलन।"
राजू बीना को चूतड़ों से भींचके अपने करीब ले आया और बोला," हमार आँखिया में देखके बोलआ सखि, तहरा का बुझाता कि हम आपन पत्नी के प्यार ना करब का?
बीना ने उसकी ओर देखा उसके और राजू के चेहरे के बीच बहुत कम दूरी थी। बीना उसकी आँखों में देखते हुए जाने कब अपने होठ राजू के होंठ से मिला दिए। बीना राजू के सर को थामे अपने होठों को उसके होठों से मल रही थी। ये पहला मौका था कि बीना राजू के प्यार को देख बहक उठी। उसे राजू की मजबूत बांहों में समर्पित होना अच्छा लग रहा था। बीना उसके साथ बहक उठी थी और दोनों चुम्बन में लीन थे। राजू बीना को अपनी बांहों में कसके थामे था। उसी वक़्त बाहर तेज़ बिजली चमकी और बीना जो चुम्बन में खोई हुई थी, उसे होश आया। खुदको राजू से अलग किया उसकी ओर देखते हुए पीछे हटने लगी। राजू उसकी ओर हाथ बढ़ाये हुए था, पर बीना पीछे हटती रही। आखिर में बीना जल्दी से भागते हुए अपने कमरे में पहुंच गई और दरवाज़ा बंद कर लिया। बाहर तेज बारिश शुरू हो चुकी थी, जिसके छींटे अब राजू और बीना के बदन के साथ साथ दिल पर भी गिर रहे थे। दो जिस्म अब एक दूसरे की चाह में सावन में जल रहे थे।
 

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धीमे धीमे प्यार बढ़ रहा है बेटे के लंड मां की चूत का दीवाना बना जा रहा और मां भी कम हवासी नहीं पूरा
 

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अनोखी दोस्ती भाग २

सुबह से ही आज काफी तेज़ बारिश हो रही थी। सावन का महीना अपने असली रंग में आ चुका था। चारों ओर खिली हरियाली, और बारिश के शोर के साथ गीलापन घरों से लेकर खेतों तक व्याप्त था। बारिश की बूंदे तेज़ गिर रही थी, धरमदेव ऐसे मौसम में भी छाता लेकर खेतों की ओर निकल पड़े थे। खेतों में ज्यादा पानी ना भर जाए, इसलिए वहाँ नालों की निगरानी के लिए, जाना जरूरी था। वैसे तो अभी सात बज चुके थे, पर आसमान में घिरे बादल से अंधेरा पूरी तरह छाया हुआ था। बीना भी सुबह उठकर नहाकर, घर में खाना पका रही थी। उसके मन में रह रह के, कल रात की बातें याद आ रही थी। कैसे वो और राजू माँ बेटे होकर भी वो किया था, जो उन्हें नहीं करना चाहिए था। लेकिन बीना का मन इस बात से पूरी तरह राजी नहीं था,कि उसने कुछ अनैतिक किया है। राजू ने तो बस उसके काँख के बाल काटे थे, और उसने नई पैंटी पहनके दिखाई ही तो थी। इसमें गलत अगर है भी तो, उसे ग्लानि होने के बजाय रोमांच क्यों महसूस हो रहा था। घर की बेटी होने के नाते गुड्डी, को तो वो ये सब दिखाती ही, राजू भी तो उसका ही खून था। अब घर में गुड्डी के बाद कोई उसकी संतान थी तो वो राजू ही था। राजू का उसपर उतना ही हक़ था जितना गुड्डी का। मां और बेटे के बीच दोस्ती का एक नया रंग भी आ चुका था। लेकिन बीना और राजू का असली सच शायद ये था कि दोनों ही काम वासना में लीन होना चाहते थे। राजू जो अभी युवा था, और अपनी बड़ी बहन के साथ व्यभिचारिक काम क्रीड़ा का आनंद उठा चुका था, उसे भली भांति मालूम था कि घर की लड़की को चोदने में कितना मज़ा आता है। उसके अंदर जवानी का भरपूर जोश भरा हुआ था। दूसरी तरफ थी उसकी माँ बीना, जो कि जीवन के लगभग चालीस बसंत पार कर चुकी थी, काम कला में निपुण, उत्तेजना और वासना उसके शरीर से बूर के पानी के माध्यम से रिसती रहती थी। इस उम्र में उसे चुदाई की भरपूर आवश्यकता थी, उसे ऐसा मर्द चाहिए था जो उसे बिस्तर में सोने ना दे, बल्कि सारी रात उसके बूर में लण्ड घुसाके चोदता रहे, जो उसे अपने पति से मिल नहीं रही थी। अपने बेटे को देख उसे ना जाने,क्यों उसे एक मर्द की झलक मिलती थी। उधर राजू भी अपनी माँ की प्यास और गर्मी से अच्छे से वाकिफ था, वो तो उसके पीछे लट्टू था। बीना ने भी उसे थोड़ी सी छूट दे दी थी, जबसे उसने उससे पैंटी मंगवाई थी। बीना जिस तरीक़े से राजू के सामने खुल रही थी, वो समझ चुका था कि उसकी माँ के अंदर चुदाई की चिंगारी सुलग रही थी। जिस दिन वो चिंगारी भड़केगी वो खुद राजू को अपनी आग़ोश में लेकर वासना के समुंदर में डुबकी लगाएगी। राजू उस वासना के समुंदर में डूबकर अपनी माँ बीना को वो अधूरी खुशी देगा जो उसका बाप उसे दे ना सका।
आज रविवार था, तो गाय का दूध धरमदेव निकाल के गया था। राजू आज सोया ही हुआ था। बीना ने उसे उठने को नहीं कहा था। खाना पकाते हुए सुबह के आठ बज चुके थे। बीना अब राजू को उठाने और कमरे में झाड़ू लगाने के लिए उसके कमरे में गयी। राजू सोया हुआ था,लेकिन उसका लण्ड उठा हुआ बीना के स्वागत में सलामी दे रहा था। बीना उसकी ओर देख उसके लंबाई का अनुमान लगा रही थी। बेटे के तने लण्ड को देख, उसकी बूर पनियाने लगी थी। एक प्यासे को अगर कुँआ दिख जाए, तो उसका उत्तेजित होना स्वाभाविक है। बीना कमरे में अंदर आकर राजू के बिस्तर के पास खड़ी हो गयी। उसने अंदाज़ा लगाया कि राजू काफी गहरी नींद में है। बीना झाड़ू को छोड़, बिस्तर के किनारे बैठ गयी और राजू के तने हुए लण्ड को घूरने लगी। वैसे तो उसका लण्ड चड्डी के अंदर था पर उसका सुपाड़ा चड्डी के बाहर झांक रहा था। बीना उस फूले हुए सुपाड़े को देख बेचैन हो उठी। बहुत दिन बाद उसे किसी लण्ड के शिश्न के दर्शन जो हुए थे। बीना ने उंगली से उस झांकते हुए सुपाड़े को छूने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, लेकिन अगले ही पल हाथ वापिस खींच लिया। उसने फिर कुछ सोचा और हाथ फिर आगे बढ़ाया और सुपाड़े को छू लिया। ये वही लण्ड था जिसकी वो बचपन में सरसों तेल से खूब मालिश करती थी। वो लुल्ली अब विकराल लण्ड का रूप ले चुकी थी। अपने बेटे की ओर देख, वो उसके मर्दाना जिस्म पर गर्व कर रही थी। उसका गठीला बदन और छाती पर उभरते बाल उसे बता रहे थे कि राजू अब उसका वो लल्ला नहीं रहा जो घर के आंगन में बचपन में नंगा ही घूमता था। बीना उसके पीछे दौड़ती थी, और उसे गोद में उठा लेती। फिर उसे लाड़ प्यार करती थी। बीना ने उसे देख मन में कहा," केतना बड़ा हो गइल हमार राजू। पूरा जवान हो गइल बा।"
उसके सुपाड़े को छू उसने उंगली सूंघ लिया। उसमें कल रात राजू के लण्ड से बहे मूठ की सौंधी सी खुशबू थी। राजू की गंदी चड्डी भी ऐसी ही महकती थी। बीना अपनी नाक ले जाकर उसका सुपाड़ा सूंघ रही थी। बीना की बूर बह रही थी, क्योंकि जो चीज़ उसकी काम वासना की प्यास बुझा सकता था, वो उसके सामने थी। बीना बेटे के तगड़े लण्ड से प्रभावित थी। उसकी सांसें तेज चल रही थी और दिल जोड़ों से धड़क रहा था। बीना पूरी तरह बहकने लगी थी। वो जैसे ही उसका लण्ड पकड़ने वाली थी, कि राजू उठ गया। बीना हड़बड़ा कर झाड़ू उठा बोली," के...केतना देर तक सुतल बारे, देख देर हो गइल। उठ जल्दी मुँह हाथ धो अउर नहा ले, हम खाना लगा देब। तब हमहुँ नहाएब।"
राजू," हाँ जात बानि, बाबूजी गइलन का?
बीना," हाँ, उ त सवेरे गइलन बेटा, खेत पर।
राजू," खेत पर ?
बीना," हाँ, खेत के देखभाल जरूरी बा। आपन जमीन के ध्यान अब तहरो रखे के चाही। अब तू भी सारा संपत्ति अउर आपन हक़ के हर चीज़ के देखल करअ।"
राजू," सब वक़्त पर अपने चल आई हमरा पास।"
बीना मुस्कुराते हुए झाड़ू लगा रही थी, ऐसा करते हुए उसकी बड़ी गाँड़ साड़ी के ऊपर से भी कहर ढ़ा रही थी। राजू को बीना के उभार देख मन मचल रहा था। बीना की गाँड़ भी अच्छे से मटक रही थी। राजू का मन हो रहा था, कि उसके बड़े बड़े चूतड़ों को थाम महसूस करे। बीना जान रही थी, कि राजू उसकी ओर ही देख रहा है। वो भी राजू को अपने पिछले उभार लहरा लहरा के दिखा रही थी। बीना तभी राजू से बोली," बेटा, तनि हमके छज्जा साफ करेके बा। तू कर देबु का?
राजू," माई तू जेतना बढ़िया करबू, उतना बढ़िया हम न कर पाइब। हम तहरा गोदी में उठाके रखब, तू सफाई कर लिहा।"
बीना कुछ नहीं बोली बस मुस्कुराई। राजू उसके पीछे आया और अपने हाथों को उसके कमर के इर्द गिर्द बांध उसे गोद में उठा लिया। बीना के चूतड़ राजू के लण्ड को अपनी दरार के बीचों बीच महसूस कर रहे थे। राजू की तो लॉटरी लग गयी थी, भई अंधा क्या मांगे दो आँखे। बीना अपने चूतड़ पर उसका लण्ड बड़े मजे से महसूस कर रही थी। वो अपने चूतड़ से उसका लण्ड मसल रही थी। बीना और राजू सफाई कम एक दूसरे के बदन को ज्यादा महसूस कर रहे थे। बीना भारी थी पर राजू को उसे उठाने में बोझ बिल्कुल महसूस नहीं हो रहा था। बीना की बूर से तो जैसे पानी की नदी बह गई थी।
बीना," राजू हम ज्यादा भारी बानि का। तनि बढ़िया से सफाई करेके बा। तनि देर असही रहे के पड़ी।"
राजू का चेहरा उसके कंधे के पास था," ना माई तू आराम से रगड़ रगड़ के सफाई कर हम पूरा साथ देब। तू चिंता मत कर हम उठाके रखब।"
बीना," बेटा, रगड़ाई बढ़िया से करब तभी त मन संतुष्ट होई ना। तू खाली खड़ा कइके रखिहा।"
राजू," का खड़ा करके रखी माई?
बीना शरारती मुस्कान से बोली," हमके राजू।"
राजू उसे गोद में उठाये हुए पूरा छज्जा साफ करवाया। राजू ने फिर बीना को उतारा तो बीना बोली," अब तू रुक जो, हमके नहाय दे। बहुत गंदा पड़ गईल बा। तू बाद में नहा लिहा।"
राजू," ठीक बा, तब तक गाय सबके चारा दे देब।"
बीना फिर अपने कमरे में चली गयी। वो नहाने का साबुन सर्फ कपड़े इत्यादि ले कमरे से बाहर निकलने वाली थी।
तभी उसे याद आया कि बूर के घने घुंघराले बाल काटने हैं। हमेशा कच्छी और घने बालों के बीच बूर गीली होने की वजह से खुजली सी होने लगी थी। उसने चुपके से कपड़ों के बीच कैंची रख ली। फिर नहाने चली गयी। स्नानागार में पहुंच उसने अपने कपड़े रस्सी पर डाले, फिर अपनी साड़ी उतारी, ब्लाउज, साया भी उतार दिया। घर के अंदर उसने ना तो कच्छी पहनी थी और ना ही ब्रा। वो इस समय सम्पूर्ण नंगी थी। बीना ने फिर बूर की ओर देखा और घने बालों को ऊपर से सहलाया। उसने कभी भी बूर के बाल नहीं काटे थे। उसने आंखे मीच कर कैंची से बाल काटना शुरू किया। उसकी सुंदर बूर झांटों के बीच फंसी हुई थी। बीना ने बाल्टी उल्टी कर एक पैर उपसर डाला और फिर झांटों की छटाई करने लगी। बूर के बालों की छंटाई शुरू में तो आसान थी, पर बाद में जांघों के किनारों और बूर के चीरे के आसपास बालों की कटाई टेढ़ी खीर थी। बीना ने कभी काटी नहीं थी। वो काटते हुए डर भी रही थी। उसे बूर के बाल कटने से वहां काफी हल्का महसूस हो रहा था। बूर उन झांटों से आज़ाद होकर, खुद को स्वच्छंद महसूस कर रही थी। ताज़ी हवा बूर को जब छू रही थी तो, वो सिहक उठती थी। बीना शरमाते हुए बाल काट रही थी, उसने देखा पैरों के नीचे बालों का ढेर लग गया था। अचानक से बाल काटते हुए, उसने गलती से बूर के पास दाहिने हिस्से पर चमड़ी ही काट ली। उसकी जोर की सिसकी ली और वहां से खून निकलने लगा। बीना बूर से बाल काटना छोड़ रोने लगी। घाव गहरा हो गया था और लहू भी खूब बह रहा था। राजू जो गाय को चारा देने खटाल में था, वहां अपनी माँ का शोर सुन तेज़ कदमों से पहुंचा। बीना अंदर रो रही थी, राजू ने खुले दरवाज़े को धक्का देकर अंदर गया। बीना उसे देख अपने बदन को हाथों से ढकने लगी। बीना ने एक हाथ से चूचियाँ और दूसरे से बूर को ढके खड़ी रो रही थी। राजू अपनी माँ को इस अवस्था में देख उत्तेजित हो उठा। उसके खुले बाल और नंगा जिस्म उसके अंदर के मर्द को जगाने लगा। राजू उसे सर से लेकर पैरों तक घूर के देख रहा था।
बीना," राजू बेटा, इँहा से जो देखत नइखे, हम लंगटे बानि। हम नहाय खातिर इँहा अपन कपड़ा उतार देले बानि।" वो सुबकते हुए बोली।"
राजू," उ त ठीक बा, पर तु कानत काहे बारे? का भईल बोल ना।"
बीना," उ..उ... उ बाल काटत रहनि।'
राजू," का... कउन बाल अउर कइसे?
बीना," ऊंहा के बाल, राजू।"
राजू," ना बुझनी माई बोल ना स्पष्ट कहां के।"
बीना," बूर के बाल, पहिल बेर काटत रहनि, राजू लग गईल।"
राजू," कहाँ, बूर में लग गईल का?
बीना," बूर के पास, इँहा।" उंगली से इशारे कर जवाब देते हुए बोली।
राजू," अरे बाप रे, कैंची से काटत रहलु का। अरे उ कहीं सेप्टिक ना हो जाये। ऊंहा त डेटोल लगावे के पड़ी।"
बीना," आह, राजू बहुत छनछनाता, बड़ा दुख रहल बा।"
राजू," रुक हम लेके आवत हईं, तू अइसे ही खड़ा रह।"
राजू बाहर निकलकर सीधा अपने कमरे में गया और डेटोल की शीशी ले आया। बीना अभी भी वैसे ही खड़ी थी। बीना उसे करीब आता देख, थोड़ी संकुचाई और संशय में थी। उसे अपने बेटे के लण्ड का तनाव स्पष्ट दिख रहा था। वो अच्छी तरह जानती थी कि इसकी वजह उसका ये नंगा यौवन है, जो अपनी ही सगी माँ को देख उत्तेजित हो उठा है। क्या सच में वो अभी भी किसी नवयौवना की भांति, मर्द को संभोग के लिए अपने निर्वस्त्र शरीर से निमंत्रण दे सकती है। राजू तो उसके नंगे नारीत्व को देख, उसे स्त्री के दृष्टि से देख रहा था।
वो बीना के करीब आया और उसके सामने घुटनों पर बैठ गया। बीना उसे देख रही थी, उसने रुई ली और बीना का हाथ बूर से हटाने को बोला। बीना उसकी ओर देख संशय से रोते हुए बोली," राजू हम तहार माई बानि। हम तहरा सामने लंगटे बानि। हमके लाज आवेला, तहरा लाज नइखे लागत का बेशरम। ला हमके दे दे हम लगा लेब।"
राजू," माई, एमे लाज के का बात बा? इँहा इलाज के बात बा। तहरा कट गईल एहीसे त हम डेटोल लगावे खातिर आईल बानि। तू का समझआ तारू?
बीना," तू दे दआ, हम अपने से कर लेब बेटा।"
राजू," तू चुप कर, शरम छोड़ अउर हमके उपचार करे दे, चल हाथ हटा।"
बीना," राजू, पर....कइसे,, हाय राम का करि।"
राजू," ठीक बा, खाली कटल जगह घाव देखा दअ। बाकी ढक ले।"
बीना को ये बात ठीक लगी, उसने बड़ी ही सावधानी से बूर का चीरा को ढक लिया, और घाव जो बूर के बेहद करीब थी, उसे उजागर किया। राजू ने उसे बड़े करीब से देखा और उस पर रुई से डेटोल लगाने लगा। बीना को छनछनाहट महसूस हुई, तो वो इसस..इस..कर आवाज़ें निकालते हुए रो रही थी। राजू उसे बार बार चुप रहने को बोल रहा था। बीना लेकिन चुप नहीं हो रही थी। राजू अपने सामने अपनी निर्वस्त्र माँ को, देख उत्तेजित तो था ही, पर उसे ये चुभ रहा था कि उसने अभी तक अपने यौनांग उससे छुपाए रखे थे। साथ ही वो छोटा सा दर्द बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
राजू," चुप कर माई, तू एतना दरद भी ना बर्दाश्त कर सकेलु का? औरत के त दरद सहे के आदत होखेला। जाने दू दू बच्चा के कइसे जनम देलु। ई छोट घाव से तू एतना परेशान होबु त काम ना चली।"
बीना कुछ न बोली, लेकिन वो अब राजू की बात सुन चुप हो गयी। दरअसल राजू के छुवन से उसे भी ठरक थोड़ी थोड़ी चढ़ रही थी। राजू उसकी जाँघे धीरे धीरे सहला रहा था। वो घाव के बेहद करीब जाकर फूंक रहा था। गीली बूर हथेली से चिपकी हुई थी, राजू गीलापन उसकी उंगली पर देख सकता था। बीना के हाथों में चूड़ी और पैरों में पायल बहुत मस्त लग रही थी। बीना राजू को लगातार देख रही थी।
बीना," राजू हो गइल का?
राजू," हाँ, लगभग।
बीना," हमके अब नहाय दअ।"
राजू," का बात करअ तारू? तू अब ना नहो। घाव गीला होई त नुकसान होई। चल घर के अंदर अउर आराम कर।"
बीना," अच्छा, लेकिन हमार बाकी झांट के काटी? वो राजू की ओर कैंची दिखाते हुए बोली।
राजू उसके हाथ से कैंची लेकर बोला," हम काट देब, लेकिन तू नहो मत। इँहा काट दी का?
बीना," काट दअ बड़ा हल्का लागत बा। हमरा से गलती हो गइल की तहरा से ना कटवईनी, अब देखआ तहरे से कटाबे के पड़ी।"
राजू बात बनती देख बोला," अरे हम बानि काहे तहरा खातिर ना, लावा हमार जांघ पर पैरवा रखआ।" उसने हाथों से जांघ पीटते हुए, बीना को पैर रखने को कहा। बीना ने वैसा ही किया। बीना अब अपनी बूर के चीरा को दो उंगली से ढक ली और बाकि खुला छोड़ दिया। राजू बिना देर किये उसके बाल काटने लगा। राजू को उसके घुंघराले बाल देख, जिज्ञासा और उत्तेजना महसूस हो रही थी। बीना अपनी बूर को उतना ढक उसे उत्तेजित कर रही थी। राजू किसी तरह बीना की उन दोनों उंगलियों को हटा देना चाहता था, क्योंकि उसके पीछे वो द्वार था जिससे वो इस दुनिया में आया था, बीना की बूर। बीच बीच में उन दोनों की निगाहें टकराती पर कोई कुछ नहीं बोलता। दोनों की प्यासी आंखें एक दूसरे के अंदर की वासना टटोलने का प्रयास कर रही थी, हालांकि माँ बेटे के रिश्ते में लंपट व्यभिचार की जगह ही नहीं है। लेकिन ये रिश्ते नाते जिस्म की आग में जल ही जाते हैं। बीना अपने बूर के बाल अच्छे से खड़े होकर कटवा रही थी, उसकी विशेष हजामत अब खत्म हो चुकी थी। राजू बार बार बूर और जांघों की जोड़ की जगह को हाथों से साफ कर रहा था, ताकि छोटे बाल अटक ना जाये। बीना के बूर के ऊपर बालों का पतला गुच्छा रह गया था, जो राजू को अच्छा लग रहा था। राजू ने उसे रहने दिया।
बीना," राजू तनि झांट के बाल रह गईल बा?
राजू," उ रहे दे, अच्छा लागेला।"
बीना," चल बेटा, अब हमके नहाय दे।"
राजू ने ऊपर से लेकर नीचे तक उसे देखते हुए कहा," अब कच्छी में गर्मी ना बुझाई, ना बाल कच्छी से बाहर झांकी।"
बीना," राजू, हाय सच कहअ तारे, जानत बारू एक त कच्छी, फेर साया अउर ऊपर से साड़ी, बहुत गर्मी बुझावेला, ढ़ेरी पसीना चुएला। अब बहुत राहत रही।" बीना अभी भी चूचियों और बूर को ढ़के हुए खड़ी थी। वो भी थोड़ी खुल चुकी थी। उसे अब जलन से आराम भी हो चुका था। राजू से वो कुछ बोलती इससे पहले राजू ने उसे देख कहा," सखि, जल्दी से नहा लआ, फेर अभी उ मैक्सी पेन्ह लिहा,हीरोइन लगबु।"
बीना मुस्कुराते हुए," कउन हीरोइन, तहार किताब जइसन का?
राजू," कसम से माई, उ किताब सब अब छोड़ देनी, जबसे तू कहलु?
बीना," अच्छा, मरद जात कुत्ता के पूँछिया जइसन होखेला, तू किताब छोड़ कुछ अउर करत होखब, हम बुझत बानि। आजकल सब गंदा गंदा फिलिम भी बनावेली, उ सब त नइखे देखत बारू।"
राजू," तू, ई का कहत बारू, हम जात हईं तू नहा ले।"
राजू के बाहर निकलते ही बीना हंस पड़ी। उसे राजू को छेड़ने में मज़ा आ रहा था। बीना नहाने लगी। उसने बदन पर ताज़ा ताज़ा ठंढा पानी डाला, और अपने खूबसूरत जिस्म को रगड़ के साफ करने लगी। बीना मग से पानी अपने बदन पर डाल रही थी। बीना का अंग अंग चमक रहा था। पानी में भीगने से उसका जिस्म और अधिक कामुक हो गयी थी। उसने अपने पूरे बदन पर पानी गिराने के बाद, अपने हाथों से बदन को मल रही थी। उसे खुद को अच्छे से साफ करना था इसलिए उसने धीरे धीरे बदन पर साबुन लगाना शुरू कर दिया। बीना के गोरे बदन पर झाग फैलने लगा। उसका नंगा बदन साबुन की झाग में पिरो गया था। बीना अपनी चूचियों और चूचक को सहलाते हुए साबुन मल रही थी। फिर उसने अपने पेट, पर साबुन मला साबुन की झाग उसकी लटकती चर्बी से गिरने लगा। कमर पर साबुन लगा लिया और फिर अपने नारीत्व की पहचान अपनी बूर पर साबुन को अच्छे से लगाने लगी। बीना अपनी बूर के चीरे पर गुलाबी बूर को साबुन से रगड़ रही थी। वो इस बात से अनजान थी कि राजू चुपके से उसे देख रहा है। वैसे तो राजू ने कई बार बीना को नंगी देखा था, पर आज वो उसके बेहद करीब थी। उसने अपनी माँ को सम्पूर्ण नंगी इतने करीब से नहीं देखा था। उसके और बीना के बीच केवल एक दीवार थी। लेकिन बीना के नंगे बदन और उसकी आंखें एक छेद से मिल रही थी। राजू ने बीना को गुड्डी से मिलाने का प्रयास किया। गुड्डी बीना की जवानी का प्रतिबिंब थी। बीना अभी अपने चूतड़ों की दरार में साबुन मल रही थी। उसके भारी भरकम चूतड़ उसकी हरकत से थिरक रहे थे। बीना अपनी गाँड़ की छेद और बूर के पास हाथों से साबुन मल रही थी। राजू का लण्ड उफान मार रहा था। अपनी सगी मां को अभी वो सिर्फ स्त्री की नज़र से देख रहा था। बीना फिर झुककर पैरों में साबुन मल रही थी। उसकी गाँड़ राजू के सामने पूरी फैली हुई थी। बीना की पायल और बिछिया से सजे पैर झनक रही थी। उसके हाथों की चूड़ी भी खनक रही थी जो राजू के लिए संगीत था। इतनी खूबसूरत माँ हो तो बेटा भी पागल हो जाये, उसने मन ही मन सोचा आखिर सामने एक स्त्री ही तो है और वो एक मर्द। स्त्री को पुरुष चाहिए, उसकी माँ की अधूरी कामुक इच्छाएं भी तो किसी मर्द को पूरी करनी होगी। नहीं तो आज नहीं तो कल उसे कोई ना कोई जरूर फंसा लेगा। गांव में तो जरूर लोग उसके माँ के बारे में गंदी बातें करते होंगे। अगर उसने उसकी इच्छा पूरी नहीं कि, तो अधूरी प्यासी औरत को पटाना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं हैं। अपने घर की चीज़ें तो उसे खुद संवारनी होगी। राजू ये सब सोचते हुए अपना लण्ड निकालके मूठ मारने लगा था। इतने में बीना अपने बदन पर दुबारा पानी डालके, झाग निकाल रही थी। उसने आसमान की ओर देखते हुए पानी अपने नंगे बदन के ऊपर डाल रही थी।चूचियों और चुचकों से टपकता पानी बेहद कामुक लग रहा था। वो पानी सरकता हुआ उसके पेट से उसकी बूर की त्रिकोण की ओर बढ़ चला। और उसकी ताज़ी चिकनी सांवली बूर को साफ कर गया। बीना अपनी बूर पर पानी डालते हुए बूर को साफ कर रही थी। बीना ने बूर की फांकों को फैलाया तो उसकी गुलाबी बूर अंदर से झांक गयी। राजू की ये देख सांसे अटक गई थी। अपनी माँ की बूर देख राजू का पानी निकल गया। वो वहां मूठ गिराके चला गया।

राजू अगले दिन जब पढ़ाई करने गया तो, बाजार से उसी दुकान से अपनी माँ के लिए एक मैरून कलर की मैक्सी खरीद लाया। जब घर पहुंचा तो बीना घर में धरमदेव के पैर दबा रही थी। उसने बीना को इशारा कर अपने कमरे में बुलाया। धरमदेव सो चुका था। बीना उठकर राजू के कमरे में गयी। राजू ने उसे पकड़कर दरवाज़े के पीछे छुपा लिया। राजू बीना की ओर देख मुस्कुराया। बीना उसकी आँखों में देख बोली," का बात बा मुस्कुरात काहे बाटे?
राजू," तहरा अब रात में आराम हो जाई?
बीना," अच्छा कइसे?
राजू उसके करीब आ थैला दिखाया।
बीना ने पूछा," का बाटे?
राजू ने बोला," तहरा खातिर हम मैक्सी ले आइनी ह। ई देखअ।"
बीना उसकी ओर देख बोली," लेकिन काहे?
राजू," उ रतिया में तू कहत रहलु ना कि, साड़ी साया में दिक्कत होता सूते में,एहीसे हम तहरा खातिर ई लेनी ह, ई में तहरा बहुत आराम होई।"
बीना," लेकिन राजू तू ई सब खरीदलु कइसे। तहरा पइसा कहाँ से आईल। कहीं तू कुछ गलत काम धंधा त नइखे करत। सच सच बताबा?
राजू," माई, हम कुछ गलत न कइनी।"
बीना," त पइसा कहां से आईल?
राजू," माई तू नाराज़ मत हो, हम बतावत बानि। तहरा खातिर हम कुछ भी कर सकेलि। लेकिन अगर हम तहरा बताईब त तू खिसिया मत जहिया।"
बीना," राजू, तू पहिले मोर कसम खाके बोलअ कहीं तू जुआ उआ त नइखे खेलत, कउनु गलत काम....बाप रे बाप?
राजू," माई, हम तहार कसम खाके कहत बानि कि हम कउनु गैर कानूनी काम ना कइनी। तू चिंता मत करअ, काहे कि ई पइसा हम हमार छात्रवृत्ति से निकलनी। पांच हज़ार आईल रहे, उ में से 1000 निकलने रहनि। एहि से तहरा खातिर सबसे पहिले ई सुंदर मैक्सी ले आउनी।"
बीना की आंखों में आँसू आ गए, बेटे ने अपनी छात्रवृत्ति से उसके लिए मैक्सी खरीद लायी थी।
राजू ने उसकी आँखों से आंसू पोछते हुए कहा," अइसन सुंदर आँखिया में ई मोट मोट आंसू बढ़िया नइखे लागत।"
बीना उससे बोली," मोर राजा बेटा, हमका माफ कर दआ, हम तहरा पर शक कइनी। हम जानत बानि कि तू गलत काम नइखे कर सकत। लेकिन उ तहार पढ़ाई खातिर रहे, उमे से काहे निकाललु पइसा? हमके एकर कउनु खास जरूरत नइखे।"
राजू," जरूरत काहे नइखे, एमे तहरा बहुत आराम रही।सूते के समय तहरा खाली इहे पेन्हे के बा। घर में काम काज के बेर में भी तू ई पहन सकेलु। पढ़ाई के खातिर पइसा बहुत बा। हम तहार बेटा बानि, लेकिन ई उपहार हम तहरा एक सहेली के हैसियत से देत बानि।"
बीना," अच्छा अब सहेली दी, त लेवे के पड़ी। लेकिन ई हम पेनहब कइसे, तहार बाबूजी पूछिहं त का जवाब देब, काहे से हम कभू ई सब पहनली ना ना?
राजू," हहम्म... ई बात बा। लेकिन तू ई बात बतहिया कि गुड्डी दीदी फोन पर, तहरा से मैक्सी के बारे में बताइल्स। एहि से तू बाजार से ख़रीदके ले आइलु।"
बीना," लेकिन राजू ई त झूठ बात बा ना, सच त इहे बा कि हमके हमार सहेली ई देले बा।"
राजू," अच्छा, त ठीक बा इहे बता दिहा।"
बीना," तहार बाबूजी खिसिया जायीं, बूझला रहे द, हम गुड्डी के ही नाम कह देब।"
राजू," ई मैक्सी पहन के देखाबा, सखि? राजू जानता था कि उसकी माँ अपनी सहेलियों को सखि ही बोलती है इसलिए उसने जानबूझ कर उसे सखि बोल संबोधित किया।
बीना," अच्छा, तहरा अब अपना माई के मैक्सी में देखे के बा सखी।" राजू की बात में सखी शब्द का जवाब उसने भी सखी से ही दिया। दोनों ने पहली बार स्पष्ट रूप से एक दूसरे को सखी कहा।
बीना उठके अंदर चली गयी। राजू उसे कमरे के अंदर जाके देखता रहा। थोड़ी ही देर में बीना अपनी साड़ी और ब्लाउज उतार चुकी थी। उसने फिर साया भी खोला और ऊपर से मैक्सी पहन ली। उस मैरून रंग की मैक्सी में वो बेहद खूबसूरत लग रही थी। बीना कमरे के बाहर निकल आयी। सामने राजू उसे देखने को बेताब था। उसके खुले बाल, उसका मासूम चेहरा, उसकी कजरारी आंखे, उसका शरीर बस उस कॉटन की मैक्सी से ढकी हुई थी, उसे देख राजू के मुंह से आह निकल गयी। बीना देहाती होते हुए भी, इस समय उस मैक्सी में किसी हाई क्लास औरत की तरह ही दिख रही थी। राजू उसके करीब पहुंचा, और उसके चारों ओर घूमके देखने लगा। बीना मुस्कुराते हुए खड़ी थी।
बीना," कइसन लागत बा?
राजू," जबरदस्त माई, तू एकदम कउनु हीरोइन से कम नइखे लागत।"
बीना," हट, बदमाश... झूठ केतना बोलत बारे।"
राजू," ना सच में, तू गर्दा बुझा रहल बारू। एकर फिटिंग भी बढ़िया बा।"
बीना," हाँ, फिटिंग बढ़िया बा। लेकिन ई में हमार बांहिया उघार रही। खाली कंधे तक कपड़ा बा।"
राजू," बढ़िया बा, गर्मी महीना तहरा खुलल खुलल बुझाई। वइसे भी कंखिया में हवा लगी, त पसीना सूख जाई।"
बीना ने अपने काँख उठाके सहलाया और बोली," हाँ, ई बात त बा सखि ।"
राजू," सखि, ई बताबा साड़ी साया से हल्का बुझा रहल बा कि ना?
बीना बोली," हाँ सखि, ई बहुत हल्का बा। अइसन बुझा रहल बा कि हम कुछ पहनने नइखे।" बीना और राजू एक दूसरे के सामने बेहद करीब खड़े थे। अचानक से राजू ने बीना को पकड़के अपने करीब खींच लिया। बीना उसके सीने से तेज़ी से टकराई। उसकी बड़ी चूचियों ने शॉक अब्सॉर्बेर का काम किया। बीना की जुल्फें पूरबाई से लहरा रही थी। बीना और उसकी आंखें टकरा गई, बीना बोली," अइसे काहे बन्हिया में खींच लेलु, कुछो चाही का?
राजू," माई हम सच बताईं त हम तहरा जइसन मेहरु चाहत बानि, जउन तहरा जइसे घर सँभारे, तहरा जइसन कद काठी हो, तहरा जइसन चाल ढाल होए, तहार जइसन सुंदर चेहरा, तहार जइसन आँखिया, तहार जइसन लाल ओठवाँ, तहार जइसन ई कारी कारी केसिया।"
बीना," अच्छा, कहीं हमहि तहरा पसंद त नइखे सखि।"
राजू," सखि, काश तू कुमारी रहित, त तहराके बियाह करके ले आउती। तहरा रानी बनाके रखति।"
बीना उसकी आँखों में देख बोली," सब मरद असही बोलेला, एक बेर बियाह हो जाता ओकरा बाद पत्नी के ध्यान ना देवेलन।"
राजू बीना को चूतड़ों से भींचके अपने करीब ले आया और बोला," हमार आँखिया में देखके बोलआ सखि, तहरा का बुझाता कि हम आपन पत्नी के प्यार ना करब का?
बीना ने उसकी ओर देखा उसके और राजू के चेहरे के बीच बहुत कम दूरी थी। बीना उसकी आँखों में देखते हुए जाने कब अपने होठ राजू के होंठ से मिला दिए। बीना राजू के सर को थामे अपने होठों को उसके होठों से मल रही थी। ये पहला मौका था कि बीना राजू के प्यार को देख बहक उठी। उसे राजू की मजबूत बांहों में समर्पित होना अच्छा लग रहा था। बीना उसके साथ बहक उठी थी और दोनों चुम्बन में लीन थे। राजू बीना को अपनी बांहों में कसके थामे था। उसी वक़्त बाहर तेज़ बिजली चमकी और बीना जो चुम्बन में खोई हुई थी, उसे होश आया। खुदको राजू से अलग किया उसकी ओर देखते हुए पीछे हटने लगी। राजू उसकी ओर हाथ बढ़ाये हुए था, पर बीना पीछे हटती रही। आखिर में बीना जल्दी से भागते हुए अपने कमरे में पहुंच गई और दरवाज़ा बंद कर लिया। बाहर तेज बारिश शुरू हो चुकी थी, जिसके छींटे अब राजू और बीना के बदन के साथ साथ दिल पर भी गिर रहे थे। दो जिस्म अब एक दूसरे की चाह में सावन में जल रहे थे।
Bahut badhiya update bhai ab manjil dur nahi hai Raju ke liye jaldi hi beena ko chodega ..Aur bina bhi chudasi hoti jaa rahi hai apni kaam vasne mai ..

Aur bhai gajab ka scene tha beena ki jhate katne wali aisa scene woh bhi itna kamuk bhojpuri style mai ye sirf aap hi likh sakte ho..

Out standing update 💪
 
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Enjoywuth

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Bhai... Bahut hi badiya update aur last ke do lino ne toh kamal kar diya.. Waha bahi... Last ki do line ne pure update ka saar bata diya..

Prem ras aur kauk rus ne dono ko bhigona suru kar diya hai..

Agala update thoda jaldi..
 
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