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Incest रिश्तों का कामुक संगम

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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कामज्वर भाग-१

वासना की अग्नि में जब अरमान और चाहतें धीमी आंच पर सुलगती हैं, तो मन बहकने लगता है और ना खुद पर किसी तरह का काबू रहता है। तन मन बदन सब उस वासना के समुंदर में डूब जाना चाहते हैं, जिसके किनारे बैठ लोग मिलन के कामुक सपने देखते हैं। स्त्री या पुरुष जिस साथी के साथ मिलन करना चाहते हैं, उसका स्पर्श अनुपम और नवीन लगता है। जब तक उससे मिलन ना हो तब तक कामाग्नि शांत ही नहीं होती। बदन उसके कामुक स्पर्श के लिए जलता है और मन रात दिन बहकता है। ऐसे में बदन ज्वर में जलता है,जिसे कामज्वर कहते हैं।

गुड्डी का सारा काम खत्म करके अपने कमरे में आ गयी थी। उसका पति आज नाईट ड्यूटी पर था। इसलिए कमरे में कोई नहीं था। आंगन में पूरी खामोशी थी। गुड्डी अपने आँचल में एक खीरा छिपाकर ले जा रही थी। वो तेज कदमों से अपने कमरे में घुस गई। फिर दरवाज़ा लगाकर अपने कमरे के बीचों बीच लगे बिस्तर पर बैठ खीरा को बगल में रख दिया। उमस भरी रात थी तो उसने पंखा चालू कर दिया था। उसने अपनी लाल साड़ी का आँचल लुढ़का दिया था, और ब्लाउज के बटन खोल बैठी थी। उसके चूचियों की घाटी में पसीना गले से उतर रहा था। उसके कांख पर रेशमी बाल, और ब्लाउज की कसावट से पसीना वहां कुछ ज़्यादा ही था और गीला हो चुका था। उसने अपने बाल खोल दिये और लहरा दिया। उस नवविवाहित लड़की के जीवन में चुदाई के अभाव में कामेच्छायें दिल में रह रहकर उमड़ रही थीं। एक तो उसका पति मर्द के नाम पर एक बदनुमा दाग था, और दूसरा कि वो दिल से राजू के अलावे किसी और के साथ खुद को सौंप नहीं सकती थी। राजू को तो उसने अपना दिल और जिस्म दोनों दे दिया था। वो चाहती तो अपने पति के साथ मुख मैथुन, हस्त मैथुन का सुख ले सकती थी, पर राजू के अलावा वो किसी और को अपना तन सौंपना ही नहीं चाहती थी। बिस्तर पर लेटे लेटे वो राजू के साथ बिताए अंतरंग क्षणों को याद कर शरमा रही थी। उसकी साड़ी ना जाने कब खुलकर बिस्तर पर सिमट चुकी थी। उसका साया जांघों से भी काफी उपर सिमट चुका था। उसने कच्छी उतार कर घुटनों तक कर दी थी। वो अपने बूर पर खड़ी फसल को महसूस करते हुए, मचल उठी। उसके होठ अपने आप दांतों तले चले गए। उसने खीरा को अपनी बूर पर मला और बूर के रिसते पानी से खीरा पूरा गीला हो गया। बूर तो पानी छोड़ पहले ही चिकनी हुई पड़ी थी। गीली बूर पर खीरा फिसलके उसकी गहराई को चूमने लगा। गुड्डी ने बूर को बेवकूफ बनाते हुए उसे लौड़े का एहसास दिलाया। बूर ने खुद को उसके चारों ओर कसा हुआ फंदा लगाया। गुड्डी के हाथ बूर में खीरा को अनायास ही अंदर बाहर करने लगे। गुड्डी मस्ता चुकी थी। बूर में राजू का लण्ड ना सही, पर खीरे ने उसे थोड़ी राहत तो दी थी। अपने कमरे में उसकी आहें सिर्फ उसके कानों से टकड़ा रही थी। बूर की फांकों के बीच हरा खीरा बड़ा भिन्न लग रहा था। उसने ब्लाउज से अपनी मदमस्त फूली चूचियाँ निकाल दी थी, और भूरे चूचक कड़क होकर किसी पुरुष के गीले मुख में चूसे जाने को आतुर हो रहे थे। चूचियाँ तनी और फूली हुई आटे की तरह मसले जाने के लिए इधर उधर लुढ़क रही थी। उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। अपने लाल लबों से मदहोशी का जाम वो पिलाना चाहती थी। पर इस समय उसके पास उसकी अर्धनग्नता का प्रदर्शन देखने कोई नहीं था। उसकी हाथों की चूड़ियां और पैरों में पायल कमरे में उसकी अश्लील और हवसी हरकतों की दुहाई दे रही थी। कुछ देर बाद उसने अपनी ब्लाउज उतार फेंकी और अगले ही पल साया को भी उतार कर बिस्तर से नीचे फेंक दिया। लेकिन घुटनो में कच्छी अभी भी फंसी थी। गुड्डी एक हाथ से बूर में खीरा पेल रही थी, और उसी हाथ के अंगूठे से बूर के खड़े दाने को सहला रही थी। दूसरे हाथ से वो अपनी चूचियाँ दबाती तो कभी अपने अंग को सहलाती। उसके मुंह से रह रहकर राजू का नाम फूट रहा था," आह...आह.... राजू.....ररर...राजू....आजा..... हम पियासल बानि। मोर.... राजा.....तहार ....रररानी.... बेचैन बिया......आह...उऊऊऊ... ऊहह..." ऐसा बोल वो अपने गाल और गर्दन सहलाते हुए होठों को काट रही थी। ऐसी नवविवाहित लड़की जिसे शादी से पहले ही लण्ड की आदत लग चुकी हो, और अब नामर्द पति मिले तो वासना उसके अंदर नागिन की तरह फुंफकारती है। वो इस बिस्तर पर वैसे ही सिसकारी मारते हुए बलखा रही थी। उसके अंदर जो वासना लावा बनकर फूट रही थी, उसे सिर्फ राजू ही काबू कर सकता था। कोई अन्य पुरुष तो गुड्डी के गर्मी के सामने पलक झंपकते पिघल जाता। कामुक स्त्री जब बेलगाम हो जाती है तो उसे, फिर साधारण पुरुष नहीं बल्कि उसकी लगाम खींचकर काबू करने के लिए प्रभुत्व से सम्पन्न पुरुष चाहिए, जो भोग विलास में उन्हें स्त्री होने का गौरव प्रदान कर सके। ऐसे में गुड्डी जैसी कामुक नारी बिन चुदाई के खुद को हस्त मैथुन से संतुष्ट करना चाहती थी। पर उसे ये नहीं पता था कि ये क्रियाएं कुछ पल के लिए शांति देती हैं, पर कुछ देर बाद ही वासना दुगने प्रभाव से शरीर में आग लगाती है। दबी कामेच्छायें दिन पर दिन बढ़ती जाती हैं जिससे स्त्री खुदको अनछुया नहीं रख पाती। कुछ देर बाद गुड्डी की बूर तेजी से फड़कने लगी और बदन अकड़ने लगा। उसकी भंवे तन गयी और वो दांत से होठो को काटते हुए बूर से फव्वारा छोड़ने लगी। धीरे धीरे वो तीन चार बार बूर से पानी फेंकी और वो द्रव्य बिस्तर को गीला कर गया। गुड्डी नंगी ही लेटी थी, वो तेजी से हांफ रही थी। वो उसी तरह नंग धरंग बिस्तर में फैल गयी।

राजू के जाने के बाद बीना बुझ सी गयी थी। उसे राजू की गंदी छेड़छाड़ की आदत पड़ चुकी थी। बीना घर पर खाना बनाते हुए, राजू की यादों में खोई हुई थी। वो राजू से शारीरिक तौर पर काफी हद तक नंगी ही हो चुकी थी। राजू ने उसकी बूर के अलावा अब तक पूरा नग्न शरीर देखा था। बीना को शर्म भी आ रही थी, पर मन उस बहकने को उचित भी बता रहा था। राजू के साथ बिताई हुई पिछली रात उसे रोमांचित और भयभीत दोनों कर रही थी। राजू की बातें, उसकी ज़िद, बीना के प्रति उसका चुम्बकीय आकर्षण सब बीना अपने दिलो दिमाग में महसूस कर रही थी। वो मन में सोचने लगी
" का राजू हमार सूखल जीवन में सावन जइसन आइल बा। हर औरत के प्यार खातिर एक अइसन मरद चाहि जउन, तन अउर मन से एकदम स्त्री के अपनावे। जीवन में मानसिक प्रेम के साथ साथ भौतिक प्रेम भी उतना ही जरूरी बा। एहीसे दुनिया में मरद अउर औरत बियाह करेलन सँ। अब तक जीवन में हमार मरद हमेशा मन मर्जी करेलन। जब जवान रहलन त खूब चोदत रहलन। सारा सारा रात सेजिया पर जगा के बूर चोद के मज़ा लूटत रहलन। मन से त कभू ना कहलन कि उ हमसे केतना प्यार करेलन। लेकिन तन के चूस चूस के खाली आपन प्यास बुझौलन। शिकायत ई ना हअ कि उ आपन प्यास बुझौले, पर हमार तन सुलगा के अब छोड़ देवलन। ई तन के आगिया दिन पर दिन सुलग रहल बा। बड़ा दिन से इके चांप के रखले बानि। लेकिन ई बदन अब एतना तंग करेला, अउर अब त उंगली, खीरा, बैगन, ककड़ी, मूली के भी ना मानेला। अब त एगो मजबूत लांड चाही, जउन बूर में खलबली मचा दी, अइसन मजबूत बांहिया चाही जउन में कैद होके भी हम आज़ाद हो जाई। अइसन मरद जउन आपन साथ साथ हमके भी चरमसुख तक पहुंचाई। ओकरा हाथ से इस्तेमाल होखे में भी अलग आनंद आयी। ई वासना, ई उत्तेजना, ई अगन, हमार तन बदन सब ओकरा समर्पित कर कामसुख के प्राप्त कर लेब। अइसन बलिष्ठ और प्रभुत्व वाला मरद ही स्त्री के संतुष्ट, सुखी अउर सौभाग्यवती रखि। अइसन मरद के सेवा करे में कइसन लाज कइसन शरम। हमार राजू में ई सब गुण बा। राजू जेकरा भाग में होई उ स्त्री बहुत भाग्यशाली होई। उ आपन औरत के खूब खुश रखि। काश उ औरत हम बनि। लेकिन उ हमार बेटा बा अउर हम ओकर माई। का ई ठीक होई, एक सगी माई आपन बेटा के साथ मेहरु मरद जइसन रही। बेटा भी मरद बा, माई भी तऔरत बिया। तन बदन त दुनु के सुलगेला। वासना के आग त दुनु के शरीर में भड़केला। हम त अइसने पियासल रहत बानि, अगर तनि राजू पानी पिया दे त केहू के का पता चली। घर के इज़्ज़त त हम ही बानि। जइसन हमार हाल बा, कहीं हम बहक जाई अउर घर के मान मर्यादा मिट्टी में मिल जायीं। आपन जवान बेटा के साथ शारीरिक संबंध ऊफ़्फ़...हाय दैय्या...केतना गंदा, अनुचित अउर पाप बुझाता। माई बेटा के बिछौना में लंगटी रहि, अउर बेटा चोदी माई के। माई के बूर में बेटा लांड घुसाई, अउर माई बूर चियार के स्वागत करि। माई के शरम लिहाज के कउनु चिंता न रहि, बस उ पाप के भी पवित्र रिश्ता के ओट में छुपा ली। एमे राजू के का गलती बा कि उ हमार कोख से जनमल, चाहे हमार का कि हम ओकर माई बानि। ई रिश्ता के साथ साथ हमार प्यार भी त उतना ही सच बा। प्यार के इज़हार भी त राजू से हम कइले बानि, अउर उ भी हमके हद से ज्यादा प्यार करेला। हम दुनु माई बेटा के रिश्ता के डोर से आज़ाद त ना हो सकेनि, पर अब किस्मत हमनी के जउन रिश्ता से जोड़ दिहले बा उ भी एगो सच्चाई बा। राजू के साथ ई नया रिश्ता के शुरुआत अनुचित होखे के साथ रोमांचकारी बा। ई सावन जीवन के पहिल सावन बा जउन एतना उमंग से भर गईल बा।"
बीना जाने क्या क्या सोचे जा रही थी और मन ही मन बड़बड़ा रही थी। तभी घर के बाहर से रंजू की आवाज़ आयी। बीना जो अनायास ही खुद को सहला रही थी, अचानक से सतर्क हो उठी। उसने अपनी साड़ी ठीक की और चूल्हे पर चढ़ी कढ़ाई में करछी चलाने लगी। रंजू घर के अंदर आते ही बोली," बीना, कइसन बिया तू?
बीना करछी चलाते हुए बोली," ठीक बानि, अभियो बुखार बरले बा।"
रंजू," दवाई त धरम भैया लाके देलन न?
बीना," हां, खइनि तनि राहत होखेला पर फेर बुखार आपस आ जाता।"
रंजू," चल, त फेर गांव में जउन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बा, ऊंहा दिखा लअ। डॉक्टर से जांच कराके दवाई लेबु त आराम होई। देख तहार होठ कइसन सुख गईल बा। आँखिया के आसपास कारी कारी झांहि भी दिख रहल बा।"
बीना," रहे दे अपने ठीक हो जाई। कहां जाईब बरखा भी होत बा।"
रंजू," अरे अभी दिखाईबु त जल्दी ठीक हो जइबू, चल जल्दी तैयार हो।"
बीना," अच्छा, ठीक बा। बस ई सब्जी हो गइल।" थोड़ी देर बाद बीना कड़ाही उतार के कमरे में गयी। बाल सँवारे, और छाता लेकर घर से दोनों बाहर निकल गए। थोड़ी ही देर में दोनों गांव की मुख्य सड़क पर आ गयी थी। हल्की हल्की बारिश हो रही थी, पर इतनी नहीं कि छाते की जरूरत पड़े। तभी पीछे से गांव का एक आदमी भैंसों को हांकता हुआ आगे आ रहा था। उसने एक भैंस पर जोर की लाठी मारी तो, भैंस जोर से आगे भागी जिसे देख बीना डर गई। बीना और रंजू टकराई तो उनकी चूचियाँ आपस में टकड़ा गयी। दोनों को इस बात का एहसास हुआ, तो रंजू हंस पड़ी। बीना बोली," देख के भैंसन के हांक ना सकेला का?
आदमी कुछ नहीं बोला सिर्फ मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गया। बीना और रंजू चलते हुए, आखिर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पहुंच गए। द्वार पर ही एक आवारा सांड, पसरे हुए उनका स्वागत कर रहा था। अंदर जाते ही, टूटी हुई दो तीन बेंच बरामदे पर रखी हुई थी। बाहर एक पुरानी एम्बुलेंस धूल खा रही थी। वहां तीन चार कमरे थे, सबमें हरे पर्दे लगे हुए थे। कर्मचारी के नाम पर गांव का महेश ठाकुर था जो कि सफाई कर्मचारी के साथ कम्पाउण्डर का भी काम करता था। वहां का सारा हिसाब किताब वही देखता था। डॉक्टर हफ्ते में एक या दो दिन आते थे, कभी कभार नहीं भी आते थे। डिस्पेंसरी में एक नियोजित कर्मचारी था जो कि मुश्किल से 20 साल का होगा। बीना और रंजू वहां पहुंचे तो महेश वहीं कमरे में कुर्सी पर बैठे तम्बाकू घिस रहा था। उनको देखते हुए बोला," का बात बा, कइसे इँहा आइल बारू?
रंजू और बीना सर पर घूंघट किये उसकी ओर घूम गयी। रंजू बोली," देखाबे के बा डॉक्टर साहब से, तीन दिन से बुखार बा।"
महेश," केकरा बुखार बा तहरा का?
रंजू," ना, हमरा ना एकरा। डॉक्टर साहब बानि का?
महेश तम्बाकू मुंह में रखते हुए बोला," न नइखे आइहन, उ आज। ऊंहा लेट जो हम देखत बानि। दवाई मिल जाइ।"
रंजू," लेकिन हम त डॉक्टर साहब से देखाबे खातिर आइल रहनि। दवाई त पहिले भी खइले बारि, पर ठीक ना भईल।"
महेश जो थोड़ा ठरकी किस्म का आदमी था और गांव की महिलाओं को चेक उप के बहाने छेड़ता था। वो बोला," हम पिछला सत्रह साल से इँहा काम करत बानि। छोट मोट इलाज त हमहुँ कर देब, लेटी ऊंहा स्ट्रेचर पर।"
रंजू से इशारे में अनुमति पाकर, बीना स्ट्रेचर पर लेट गयी।

बीना ने महेश के कहने पर अपना आँचल हटा दिया और काली ब्लाउज में ढके उसकी उन्नत चूचियाँ और नंगा पेट सामने आ गया। उसके पेट पर जमी चर्बी उसके आकर को और आकर्षकता प्रदान कर रही थी। उसकी गहरी नाभि देख महेश की आंखे वहीं चिपक सी गयी थी। महेश ने जांचने के बहाने उसके ब्लाउज के ठीक नीचे से हाथ फेरते हुए उसकी कोमल त्वचा को छेड़ने लगा। वो उसे थामता, दबाता और फिर सहलाता। बीना जो वासना से पहले ही लबरेज, बदन को ज्वर में झोंक बैठी थी, एक अनजान पुरुष का स्पर्श बेहद संतोषजनक लग रहा था।
महेश,"भउजी, कइसन बुझा रहल हअ, दरद होत होई त बताई?
बीना," ना, अभी ना होता, होई त बताईब?
महेश," केतना दिन से बुखार बा भउजी?
बीना," इहे पिछला तीन दिन से देहिया आग बनल बा।महेश उसकी चूचियाँ ताड़ते हुए बोला," भउजी, रउवा एतना तंदुरुस्त बिया, फिर भी राउर तबियत खराब हो गइल, गजब बात बा?
बीना," का करि अकेले संभालत बानि ना हो, केहू सँभारे वाला नइखे।"
महेश," का भउजी?
बीना," हमार घर अउर का।"
महेश उसके पूरे नंगे पेट के हर हिस्से को सहलाता रहा, महसूस करता रहा और दबा दबा के देखता रहा। बीना ने कोई विरोध नहीं किया। बल्कि वो बेचारी बिरहा की मारी अपने कमर के हर हिस्से को जांच की आड़ में बेपर्दा कर चुकी थी।
बीना की कामुक नाभि ऐसी प्रतीत होती थी जैसे कोई सूक्ष्म शंख का आगे का खुला हिस्सा। वो गहरी और उतनी ही लुभावनी थी। महेश उससे छेड़छाड़ किये बिना कैसे रहता। पहले तो उसने उस कातिल नाभि में उंगली डाला और दबाते हुए बोला," हम दबा रहल बानि, अगर दरद होई तहके त बता दिहा।"
बीना ने सर हिला के इशारे में हाँ कह दिया। महेश ने उसके पेट को पूरा सहलाया, इस क्रम में उसने बीना की साड़ी कमर से, और नीचे खिसका दी। साड़ी बेहद नीचे तक आ चुकी थी जहां से उसके जांघों के ऊपर का त्रिकोण बन रहा था। अपने सामने इतनी मस्त चिकनी माल को देखकर महेश पूरा ऐसे महसूस किए जा रहा था मानो वो कोई मलाई की कटोरी हो। उसका मन हो रहा था कि बीना के ढोढ़ी को चाट ले। वो मन ही मन उसके बूर की कल्पना भी करने लगा था। अचानक उसने जोर से दबा दिया तो,बीना चिंहुक उठी।
फिर महेश ने पूछा," का भईल?
बीना," दरद हो गइल।
महेश," अच्छा, लेकिन इँहा त सब ठीक लागतअ। अरे देखआ बतियावे में भूल गइनी कि तहरा मुँह में देबे न कइनी।"
बीना," का देबू मुंहवा में।"
महेश," अरे थरमामीटर?
बीना," ओ, बुखार नापे वाला ना।"
महेश थरमामीटर झाड़ते हुए मुस्कुराया और बीना से मुंह खोलने को बोला। बीना के गुलाबी होठ शून्य का आकार बना खुल गए थे। महेश ने उसे जीभ उठाने को कहा तो उसने जीभ उठाई। फिर महेश ने उसके मुंह में थरमामीटर घुसा दिया और बोला," एकरा जीभ के नीचा में दबा लआ।" बीना के जीभ की उठती और दबती हरकत भी उसे कामुक लग रही थी। बीना की चूचियों जो ब्लाउज के उपरी हिस्से से झांक रही थी, उसमें दोनों चूचियों के बीच की घाटी उसके दिल में हलचल मचा रही थी।
महेश बोला," भउजी, तहार दिलके जांच भी करेके बा।" ऐसा बोल उसने स्टेथोस्कोप उठा गले से कानों में लगा लिया। फिर उसका दूसरा सिरा बीना की उभरी हुई छाती या यूं कहें चूंचियों के ऊपर लगा दिया। बीना के दिल की धड़कन जोर जोर से चल रही थी, उसे लब-डब की आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी।
महेश ने फिर बीना से कहा," भउजी, ऊपर वाला बटन खोलि, तनि गहराई से जांच कर ली।"
बीना ने उसकी बात मान अपने ब्लाउज के ऊपर के दो बटन खोल दिये। उसके चूंचियों के बीच की घाटी और दरार और नंगी हो गयी। महेश ने उसका फायदा उठाया और उसके ब्लाउज के अंदर स्टेथोस्कोप घुसा दिया। इस बहाने वो बीना की कोमल चूंचियों का स्पर्श पा रहा था। बीना को अब उसकी हरकतों पर थोड़ा थोड़ा संदेह होने लगा था। पर वो कुछ बोली नहीं। पुरुष का स्पर्श उसके शरीर को अच्छा लग रहा था। बीना के मुँह में थरमामीटर, गिरा हुआ आँचल, अधनंगी चूचियों पर स्टेथोस्कोप, उसके अंदर की दबी वासना और चाहत उसे बहका रही थी। तभी देखते देखते, महेश उसके एकदम पास आ गया और बीना के होठों के बेहद करीब आकर मुँह से थरमामीटर निकाल लिया और देख बोला," भउजी, तहरा त एक सौ दु बुख़ार बा। लेकिन जांच में कुछ पता नइखे चलत।"
बीना कांपते होठों से बोली," भैया, त हम ठीक कइसे होखब?
महेश ने मौके का फायदा उठाया, और उसके कमर में हाथ डाल दिया और बोला," तू खुल के बताबा का होता तहरा?
बीना कामुक थी, पर थोड़ी डरी हुई थी। उसने डरते डरते कहा," महेश भैया, मन बेचैन रहेला, कभू शांत ना होखेला। रह रहके पियास लागतआ, देहिया में मीठा मीठा दरद होखेला। हमार भतार दवाई लाके दिहले, पर ठीक न भईल।"
महेश," रात के नींद आवेला? भूख कइसन बा?
बीना," ना बेचैनी रहेला अउर भूख भी कम लागत बा।"
महेश," एगो अउर बात बताबा, बुरा मत मानिहआ। भतार खुश रखेला कि ना?
बीना आंखे बड़ी कर बोली," ई कइसन सवाल बा? ई तहरा काहे बताई?
महेश," तहरा ठीक करे खातिर पूछत बानि।
बीना ने उसकी ओर देख कहा," हाँ, रखेला हमार पूरा ध्यान राखेलन।"
महेश उसके कंधों पर सर रख बोला," तू बुझलु ना तहार शारीरिक जरूरत के ध्यान रखेला कि ना?" वो उसके चूचियों को पकड़ने को हुआ।
बीना उसकी ओर देख बोली," ई का करत बारू?
महेश," उहे जउन तहार पति न करेला।"
बीना," खबरदार हमरा छोड़ दआ।" उसके इतना बोलने से पहले महेश ब्लाउज के भीतर अपना हाथ डाल दिया। बीना जो कामुकता से लबरेज थी उसकी आँखें बन्द हो गयी। महेश बीना को गर्दन पर चूमने लगा, बीना बोली," आह... छोड़ दआ, ई तू ठीक नइखे कर रहलु।"
महेश," तहरा इहे चाही भउजी, इहे खातिर तहरा बुखार बा?
बीना भी थोड़ा बहक गयी थी इसलिए वो ठीक से प्रतिरोध नहीं कर पा रही थी। लेकिन तभी बीना को एहसास हुआ कि वो जो भी कर रही है वो ठीक नहीं है। इसलिए वो उसे धक्का देकर चिल्लाई। महेश उससे दूर जा टेबल से टकराया और रंजू आवाज़ सुन अंदर आ गयी। रंजू ने एक नज़र बीना को देखा और फिर महेश को उसे समझते देर न लगी कि महेश ने बीना के साथ छेड़छाड़ की होगी।
रंजू सबसे पहले बीना के पास गई वहां बीना को स्ट्रेचर से उतारी और दोनों ने मिलके कपड़े व्यवस्थित किये। रंजू फिर बीना से पूछी," का भईल?
बीना रोते हुए," ई.. हरामी हमरा संगे...उनन्हू...उँ" बीना रोने लगी।
रंजू फिर महेश के तरफ घूम बोली," का रे कुत्ता, शरम नइखे आवत गांव के औरतिया के साथ गंदा हरकत करत। महेश ने खुद को संभालते हुए कहा," अरे हम कुछ ना कइनी, इहे हमके बांहिया में खींच लेलस। हम समझौनी पर फिर भी अंचरा उतारके हमरा थाम लेलस।"
रंजू ने महेश को तमाचा मारा और बोली," हम खूब बढ़िया से जानत बानि, तू उ पिंटू सिंह के आदमी बारआ ना। तहार गंदा गंदा हरकत के बारे में दुनु गांव में हल्ला बा। हमनी राघोपुर गांव के बानि, पर पंचायत इहे पड़ेला। जइसन उ दुष्ट बा, वसही तू भी बारू। तहार दुनु के सारा भांडा फोड़ देब। ई बेरा चुनाव न जीत पाइन्ह। ओकर बाद तहरा देखब।"

महेश अपने गाल पर तमाचा पा, बिल्कुल बेइज्जत महसूस कर रहा था। वो भी घमंड से बोला," ई थप्पड़ हम याद रखब, तहरा एकर कीमत चुकाबे के पड़ी। तहार जइसन औरतिया सरपंचजी के बिछौना में रात दिन पड़ल रहेला। का बुझत बारू तू सब विश्व सुंदरी बारू। अरे सब औरत के पास एक्के चीज होखेला। औरत के मरद चाही चाहे उ केहू रहे। हम त जानत बानि कि ई भी बहक गईल रहे। भतार सुख न देवेला त केहू अउर से लेलआ।"

रंजू और बीना ने उसे घृणित नज़रों से देखा, जबकि वो अब भी मुस्कुरा रहा था।

रंजू," तहार मरद होबे के सारा गलतफहमी दूर हो जाई। बहुत जल्दी तहरा, तहार औकात देखाएब। उ दिन तू भरा पंचायत में माफी माँगबु। काहे अब अगला चुनाव में हम सरपंच पद खातिर खड़ा होखब।"

ऐसा बोल वो दोनों बाहर निकल गयी, पीछे से महेश मुस्कुराते हुए बोला," सातों जनम में तहार इच्छा पूरा न होई, काहे अब तलिक ई सीट से सरपंच जी के परिवार ही जीतत बाटे। भूल जो...."

वो दोनों जो बाहर निकली तो डिस्पेंसरी वाला लड़का काली पन्नी में सेनेटरी पैड लेकर उन दोनों को देना चाहा। ये सरकार कि योजना" सच्ची सहेली" के अंतर्गत मुफ्त दिया जाता था। रंजू वो लेकर बाहर आ गयी। दोनों तेजी से निकलकर घर की ओर बढ़ रहे थे। दोनों कुछ देर बाद घर पहुंच गए।

रंजू," सच बताबा, तू बहक गईल रहलु का?

बीना का चेहरा लाल हो चुका था,वो कुछ नहीं बोली। रंजू ने फिर जोर देकर पूछा," बीना तू सच में बहक गईल रहलु का?

बीना नज़रें झुकाए बोली," बस तनि देर खातिर।"

रंजू," तू भी ना हद करआ तारू? अइसन घटिया आदमी बा उ हरामजादा। तहार पूरा बदनामी कर दी। पराया मरद शरीफ औरत के फंसा लेलन, मज़ा पूरा लेके फेर अगर मामला उलझेला त तहरा बदनाम कइके खुद बच जात बारन स।"

बीना झुंझलाते हुए बोली," त का करि, अब भतार त छुअत भी नइखे। मरद खातिर देहिया तरसेला।"

रंजू," अरे तहरा कइसे समझाई। जब जवान बेटा घर में बा त काहे केहू बाहर वाला के मौका दे रहल बारू। बगल में छोड़ा, शहर में ढिंढोरा। मरद खातिर एतना पियास बा त बेटा के ही सैयां बना लअ। ना त अइसन भंवरा सब हमार तहार जइसन फूल के रस चूसे खातिर भीड़ल रहेला। जब लुटाबे के बा, त घर के मरद काहे ना मज़ा लूटे।"

बीना," तू का कहे चाह रहल बारू?

रंजू," इहे कि घर के बात घर में रहे के चाही। देख बीना, हम अउर तू उमर के अइसन पड़ाव पर बानि कि कामुकता चरम पर बा। बेटा तहार जवान बाटे, मस्त लड़का बा। ओकरा पास भी उहे बा, जउन धरम भैया के पास बा। केहू बाहर वाला काहे तहार कमजोरी के फायदा उठाये।"

बीना," जइसे तू उठा रहल बारू, अरुण के साथ।"

रंजू," त ऐमे गलत का बा, ई उमर में के हमरा से बियाह करि। अउर हमार देहिया में वासना फूटत रहे। घर के बाहर कुछ करति, त बदनामी हो जाइत। अरुण अउर हम अकेले रहनि, अउर फेर दुनु एक दोसर के प्यार में पड़ गइनी। अब रिश्ता नाता त हमनी के हाथ में बा ना। अउर जब अरुण हमके छूलस, त हम मोम जइसन पिघलके ओकरा से लिपट गइनी। बेटा माँ के रिश्ता से सैयां सजनी के रिश्ता भी जोड़ लेनी। अउर सच बताई त उ रिश्ता अभी भी पवित्र बा, जेतना हमनी के नया रिश्ता।"

बीना," रंजू प्यार त हमहुँ कर बईठनी, राजू से। राजू भी हमके खूब चाहेला। लेकिन डर लागेला, अगर राजू के बाबूजी के पता चल जाई त का होई, केहू अउर के पता चल जाइ त का होई।"

रंजू ने उसके माथे को छुआ और आंखों में देख बोली," अब समझनी, तहरा ई बुखार काहे बा। जबसे राजू गईल बा तबसे ई भईल बा ना?

बीना," हाँ।"

रंजू," अब समझ में आईल, दवाई से तू ठीक काहे ना हो रहल बारू। तहरा अंदर तूफान उठल बा। तहरा आपन मन पर काबू नइखे।"

बीना," रंजू, तू सच कहेलु। दिन रात बेचैन रहेनी। मन करेला केहू हमके थाम ली। हमके ई बेचैनी से बचा ली।"
रंजू," राजू थामी तब, तहरा चैन मिली।" राजू का नाम सुनते ही बीना की आंखें बंद हो गयी, और मुँह से ऊफ़्फ़ कि आवाज़ निकल गयी। बीना की हालत देख रंजू मैन ही मन मुस्काई।

रंजू," हम जात बानि, कल आइब। तहरा मलंग बाबा से देखाबे के पड़ी।" रंजू चली गयी।

बीना अपने आंगन में चारपाई पर लेट गयी, और राजू को याद कर अपने चूचियों का मर्दन करने लगी। काम वासना से तपता शरीर जैसे मचल उठा। बीना की बूर तो जैसे काम रस बहाकर कच्छी गीली कर गयी। बीना तड़पती हुई राजू के साथ ब्लू फ़िल्म की गंदी हरकतों को अपने ख्यालों में महसूस करने लगी। उसे महसूस हुआ कि राजू उसके ऊपर चढ़ के उसे चोद रहा है। बीना काम वासना से वशीभूत खुद को लंपट लहरों में बहाने लगी। बीना ने साड़ी उतार फेंकी और साया को कमर से ऊपर उठा, अपनी कच्छी उतार फेंकी। अपनी बूर से प्रचुर मात्रा में बहती काम रस को बूर पर पूरी तरह मलते हुए, सिसिया रही थी। बीना ने खुद को इतना असहाय कभी महसूस नहीं किया था। इस समय बीना को देख ये प्रतीत होता था कि स्त्री की कामुक तड़प कैसी होती है। बीना बूर के दाने को रगड़ते हुए राजू का नाम ले रही थी। बीना की प्यासी जवानी, राजू के लिए तड़प रही थी। इस परिस्थिति में स्त्री वासना के भंवर में डूब जाती है।

तभी जैसे एक चमत्कार हुआ, मलंग बाबा बीना के घर में घुस आए। बीना को ध्यान ही नहीं रहा कि, उसके घर का दरवाज़ा खुला है। उसके अंदर घुसते ही बीना, ने खुद को साड़ी में लपेट लिया।

बीना के चेहरे पर कामुकता और शर्म का भाव था, जिससे उसका चेहरा लाल हो रहा था। बीना उठी और बाबा के सामने वैसे ही खड़ी हो गयी। मलंग बाबा ने उसकी ओर देखा, उसकी कामुक आंखें, खुले बाल, बदन पर जैसे तैसे लिपटी साड़ी।

मलंग बाबा," तू हमरा पास आवा।"

बीना धीरे धीरे उसके करीब आयी। उसके बदन में मस्ती और लचीलापन आ गया था, जिससे उसकी चाल बहकी और बेपरवाह हो गयी थी

बाबा ने उसकी हालत देखी और एक बार पूछा," का भईल बेटी?

बीना," बाबा का बताई, हम त बेबस हो गइल बानि।"

बाबा," काहे का भईल?

बीना," बाबा रउवा ठीक कहने रहलु कि हमार जीवन में केहू आई। बात बहुत लाज शरम के बा।"

बाबा," तू अभी का करत रहलु, हम जानत बानि। लेकिन ई लाज शरम के बात नइखे। हर स्त्री पुरुष ई करेला। का तहरा पति साथे सुख ना मिलेला?

बीना," बाबा, पति अगर ठीक से सुख दी, त शायद अइसन बात ना होत। का करि बाबा ई बहुत लज्जा के बात ह, कइसे बताई।"

बाबा," समस्या अगर बा त समाधान होई। तू बताबा ना।"

बीना सर झुकाए बोली," बाबा का सगा संबंधी में मरद औरत वाला प्यार होता। हमरा साथ उहे हो रहल बा।"

बाबा," हो सकेला, ई कउनु नया बात नइखे।"

बीना," माई बेटा के बीच भी।"

बाबा," हाँ, ई आकर्षण बिल्कुल संभव बा। काहे कि बेटा जउन स्त्री शरीर के करीब अउर पहिले से देखेला उ माई के शरीर ही होखेला। माई भी त एगो स्त्री बिया, अउर बेटा पुरुष। कोई भी विपरीत लिंग के बीच प्रेम आकर्षण संभव बा।"

बीना," लेकिन बाबा माई बेटा के रिश्ता त पवित्र होखेला ना। ई केतना घटिया बात होई अगर कोई माई आपन सगा बेटा के साथ प्रेम करे लगी।"

बाबा," प्रेम कोई गलत चीज़ नइखे। अउर अगर प्यार होखेला त उ स्वाभाविक बा। तू हमरा पास आवा अउर सच सच बात खुलके बताबा।"

बीना बाबा के पास बैठ गयी, तो बाबा ने उसका चेहरा देखा। बीना का बदन तप रहा था। उसके तन बदन में, नसों में ऊष्मा फूट रही थी। बीना के आंखों के आसपास थोड़ी काली झांहिया आ गयी थी। उसके होठ प्यासे लग रहे थे। चेहरे पर एक लालायित और आतुर भाव झलक रहा था।

बाबा," तहरा त तेज बुखार बा, लेकिन ई साधारण बुखार नइखे। इ बुखार त बुझाता तहार आत्मा से जुड़ल बा। वासना अउर काम के खातिर तहार आत्मा और शरीर दुनु पियासल बा। अइसे तहके खुद पर नियंत्रण ना होत होई। दिन रात तहरा गंदा गन्दा ख्याल आत होई।"

बीना," बाबा रउवा बिल्कुल सच कहत बानि। मन में गंदा गंदा ख्याल आता लेकिन बहुत अच्छा लागेला। बदन में मीठा मीठा दरद रहेला। अगर केहू के बताईब त हमरा सब कुलक्षिणी कही। बाते एतना शर्मनाक अउर घटिया बा।"

बाबा," तहरा, कामज्वर बा। ई ज्वर सामान्यतः कउनु दवाई से ना बल्कि संभोग द्वारा प्राप्त चरमसुख से मिलेला। तहरा चाही संभोग, जउन पुरुष के तू चाहेलु उ जब तक तहरा भोगी ना, तहरा चैन ना मिली। तहार काम वासना के शांति भी उहे पुरुष दी, जेकरा खातिर तू एतना बेचैन बारू।"

बीना," राजू..." बोलते बोलते चुप हो गयी।

बाबा," त उ राजू बा, यानि तहार बेटा। उहे तहार कामज्वर शांत करि। तहार देहिया और आत्मा के तृप्ति तभी मिली जब राजू ओकर साथ संभोग, ओकर भोग अउर उपभोग करि।


भाग अभी जारी है......
Shaandar super hot Seductive update 🔥 🔥 🔥
Raju Beena ke milan ka samay aa gaya :sex:
 
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sunoanuj

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बहुत ही शानदार अपडेट है! भरपूर कामुकता !
 
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Sunnyboy001

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shandaar update
 

liverpool244

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Best best story on xforum
 

Rajadopyaja

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Ab bus jaldi se Beena ka kaamjuar jaldi utar do.
 
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Motaland2468

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कामज्वर भाग-१

वासना की अग्नि में जब अरमान और चाहतें धीमी आंच पर सुलगती हैं, तो मन बहकने लगता है और ना खुद पर किसी तरह का काबू रहता है। तन मन बदन सब उस वासना के समुंदर में डूब जाना चाहते हैं, जिसके किनारे बैठ लोग मिलन के कामुक सपने देखते हैं। स्त्री या पुरुष जिस साथी के साथ मिलन करना चाहते हैं, उसका स्पर्श अनुपम और नवीन लगता है। जब तक उससे मिलन ना हो तब तक कामाग्नि शांत ही नहीं होती। बदन उसके कामुक स्पर्श के लिए जलता है और मन रात दिन बहकता है। ऐसे में बदन ज्वर में जलता है,जिसे कामज्वर कहते हैं।

गुड्डी का सारा काम खत्म करके अपने कमरे में आ गयी थी। उसका पति आज नाईट ड्यूटी पर था। इसलिए कमरे में कोई नहीं था। आंगन में पूरी खामोशी थी। गुड्डी अपने आँचल में एक खीरा छिपाकर ले जा रही थी। वो तेज कदमों से अपने कमरे में घुस गई। फिर दरवाज़ा लगाकर अपने कमरे के बीचों बीच लगे बिस्तर पर बैठ खीरा को बगल में रख दिया। उमस भरी रात थी तो उसने पंखा चालू कर दिया था। उसने अपनी लाल साड़ी का आँचल लुढ़का दिया था, और ब्लाउज के बटन खोल बैठी थी। उसके चूचियों की घाटी में पसीना गले से उतर रहा था। उसके कांख पर रेशमी बाल, और ब्लाउज की कसावट से पसीना वहां कुछ ज़्यादा ही था और गीला हो चुका था। उसने अपने बाल खोल दिये और लहरा दिया। उस नवविवाहित लड़की के जीवन में चुदाई के अभाव में कामेच्छायें दिल में रह रहकर उमड़ रही थीं। एक तो उसका पति मर्द के नाम पर एक बदनुमा दाग था, और दूसरा कि वो दिल से राजू के अलावे किसी और के साथ खुद को सौंप नहीं सकती थी। राजू को तो उसने अपना दिल और जिस्म दोनों दे दिया था। वो चाहती तो अपने पति के साथ मुख मैथुन, हस्त मैथुन का सुख ले सकती थी, पर राजू के अलावा वो किसी और को अपना तन सौंपना ही नहीं चाहती थी। बिस्तर पर लेटे लेटे वो राजू के साथ बिताए अंतरंग क्षणों को याद कर शरमा रही थी। उसकी साड़ी ना जाने कब खुलकर बिस्तर पर सिमट चुकी थी। उसका साया जांघों से भी काफी उपर सिमट चुका था। उसने कच्छी उतार कर घुटनों तक कर दी थी। वो अपने बूर पर खड़ी फसल को महसूस करते हुए, मचल उठी। उसके होठ अपने आप दांतों तले चले गए। उसने खीरा को अपनी बूर पर मला और बूर के रिसते पानी से खीरा पूरा गीला हो गया। बूर तो पानी छोड़ पहले ही चिकनी हुई पड़ी थी। गीली बूर पर खीरा फिसलके उसकी गहराई को चूमने लगा। गुड्डी ने बूर को बेवकूफ बनाते हुए उसे लौड़े का एहसास दिलाया। बूर ने खुद को उसके चारों ओर कसा हुआ फंदा लगाया। गुड्डी के हाथ बूर में खीरा को अनायास ही अंदर बाहर करने लगे। गुड्डी मस्ता चुकी थी। बूर में राजू का लण्ड ना सही, पर खीरे ने उसे थोड़ी राहत तो दी थी। अपने कमरे में उसकी आहें सिर्फ उसके कानों से टकड़ा रही थी। बूर की फांकों के बीच हरा खीरा बड़ा भिन्न लग रहा था। उसने ब्लाउज से अपनी मदमस्त फूली चूचियाँ निकाल दी थी, और भूरे चूचक कड़क होकर किसी पुरुष के गीले मुख में चूसे जाने को आतुर हो रहे थे। चूचियाँ तनी और फूली हुई आटे की तरह मसले जाने के लिए इधर उधर लुढ़क रही थी। उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। अपने लाल लबों से मदहोशी का जाम वो पिलाना चाहती थी। पर इस समय उसके पास उसकी अर्धनग्नता का प्रदर्शन देखने कोई नहीं था। उसकी हाथों की चूड़ियां और पैरों में पायल कमरे में उसकी अश्लील और हवसी हरकतों की दुहाई दे रही थी। कुछ देर बाद उसने अपनी ब्लाउज उतार फेंकी और अगले ही पल साया को भी उतार कर बिस्तर से नीचे फेंक दिया। लेकिन घुटनो में कच्छी अभी भी फंसी थी। गुड्डी एक हाथ से बूर में खीरा पेल रही थी, और उसी हाथ के अंगूठे से बूर के खड़े दाने को सहला रही थी। दूसरे हाथ से वो अपनी चूचियाँ दबाती तो कभी अपने अंग को सहलाती। उसके मुंह से रह रहकर राजू का नाम फूट रहा था," आह...आह.... राजू.....ररर...राजू....आजा..... हम पियासल बानि। मोर.... राजा.....तहार ....रररानी.... बेचैन बिया......आह...उऊऊऊ... ऊहह..." ऐसा बोल वो अपने गाल और गर्दन सहलाते हुए होठों को काट रही थी। ऐसी नवविवाहित लड़की जिसे शादी से पहले ही लण्ड की आदत लग चुकी हो, और अब नामर्द पति मिले तो वासना उसके अंदर नागिन की तरह फुंफकारती है। वो इस बिस्तर पर वैसे ही सिसकारी मारते हुए बलखा रही थी। उसके अंदर जो वासना लावा बनकर फूट रही थी, उसे सिर्फ राजू ही काबू कर सकता था। कोई अन्य पुरुष तो गुड्डी के गर्मी के सामने पलक झंपकते पिघल जाता। कामुक स्त्री जब बेलगाम हो जाती है तो उसे, फिर साधारण पुरुष नहीं बल्कि उसकी लगाम खींचकर काबू करने के लिए प्रभुत्व से सम्पन्न पुरुष चाहिए, जो भोग विलास में उन्हें स्त्री होने का गौरव प्रदान कर सके। ऐसे में गुड्डी जैसी कामुक नारी बिन चुदाई के खुद को हस्त मैथुन से संतुष्ट करना चाहती थी। पर उसे ये नहीं पता था कि ये क्रियाएं कुछ पल के लिए शांति देती हैं, पर कुछ देर बाद ही वासना दुगने प्रभाव से शरीर में आग लगाती है। दबी कामेच्छायें दिन पर दिन बढ़ती जाती हैं जिससे स्त्री खुदको अनछुया नहीं रख पाती। कुछ देर बाद गुड्डी की बूर तेजी से फड़कने लगी और बदन अकड़ने लगा। उसकी भंवे तन गयी और वो दांत से होठो को काटते हुए बूर से फव्वारा छोड़ने लगी। धीरे धीरे वो तीन चार बार बूर से पानी फेंकी और वो द्रव्य बिस्तर को गीला कर गया। गुड्डी नंगी ही लेटी थी, वो तेजी से हांफ रही थी। वो उसी तरह नंग धरंग बिस्तर में फैल गयी।

राजू के जाने के बाद बीना बुझ सी गयी थी। उसे राजू की गंदी छेड़छाड़ की आदत पड़ चुकी थी। बीना घर पर खाना बनाते हुए, राजू की यादों में खोई हुई थी। वो राजू से शारीरिक तौर पर काफी हद तक नंगी ही हो चुकी थी। राजू ने उसकी बूर के अलावा अब तक पूरा नग्न शरीर देखा था। बीना को शर्म भी आ रही थी, पर मन उस बहकने को उचित भी बता रहा था। राजू के साथ बिताई हुई पिछली रात उसे रोमांचित और भयभीत दोनों कर रही थी। राजू की बातें, उसकी ज़िद, बीना के प्रति उसका चुम्बकीय आकर्षण सब बीना अपने दिलो दिमाग में महसूस कर रही थी। वो मन में सोचने लगी
" का राजू हमार सूखल जीवन में सावन जइसन आइल बा। हर औरत के प्यार खातिर एक अइसन मरद चाहि जउन, तन अउर मन से एकदम स्त्री के अपनावे। जीवन में मानसिक प्रेम के साथ साथ भौतिक प्रेम भी उतना ही जरूरी बा। एहीसे दुनिया में मरद अउर औरत बियाह करेलन सँ। अब तक जीवन में हमार मरद हमेशा मन मर्जी करेलन। जब जवान रहलन त खूब चोदत रहलन। सारा सारा रात सेजिया पर जगा के बूर चोद के मज़ा लूटत रहलन। मन से त कभू ना कहलन कि उ हमसे केतना प्यार करेलन। लेकिन तन के चूस चूस के खाली आपन प्यास बुझौलन। शिकायत ई ना हअ कि उ आपन प्यास बुझौले, पर हमार तन सुलगा के अब छोड़ देवलन। ई तन के आगिया दिन पर दिन सुलग रहल बा। बड़ा दिन से इके चांप के रखले बानि। लेकिन ई बदन अब एतना तंग करेला, अउर अब त उंगली, खीरा, बैगन, ककड़ी, मूली के भी ना मानेला। अब त एगो मजबूत लांड चाही, जउन बूर में खलबली मचा दी, अइसन मजबूत बांहिया चाही जउन में कैद होके भी हम आज़ाद हो जाई। अइसन मरद जउन आपन साथ साथ हमके भी चरमसुख तक पहुंचाई। ओकरा हाथ से इस्तेमाल होखे में भी अलग आनंद आयी। ई वासना, ई उत्तेजना, ई अगन, हमार तन बदन सब ओकरा समर्पित कर कामसुख के प्राप्त कर लेब। अइसन बलिष्ठ और प्रभुत्व वाला मरद ही स्त्री के संतुष्ट, सुखी अउर सौभाग्यवती रखि। अइसन मरद के सेवा करे में कइसन लाज कइसन शरम। हमार राजू में ई सब गुण बा। राजू जेकरा भाग में होई उ स्त्री बहुत भाग्यशाली होई। उ आपन औरत के खूब खुश रखि। काश उ औरत हम बनि। लेकिन उ हमार बेटा बा अउर हम ओकर माई। का ई ठीक होई, एक सगी माई आपन बेटा के साथ मेहरु मरद जइसन रही। बेटा भी मरद बा, माई भी तऔरत बिया। तन बदन त दुनु के सुलगेला। वासना के आग त दुनु के शरीर में भड़केला। हम त अइसने पियासल रहत बानि, अगर तनि राजू पानी पिया दे त केहू के का पता चली। घर के इज़्ज़त त हम ही बानि। जइसन हमार हाल बा, कहीं हम बहक जाई अउर घर के मान मर्यादा मिट्टी में मिल जायीं। आपन जवान बेटा के साथ शारीरिक संबंध ऊफ़्फ़...हाय दैय्या...केतना गंदा, अनुचित अउर पाप बुझाता। माई बेटा के बिछौना में लंगटी रहि, अउर बेटा चोदी माई के। माई के बूर में बेटा लांड घुसाई, अउर माई बूर चियार के स्वागत करि। माई के शरम लिहाज के कउनु चिंता न रहि, बस उ पाप के भी पवित्र रिश्ता के ओट में छुपा ली। एमे राजू के का गलती बा कि उ हमार कोख से जनमल, चाहे हमार का कि हम ओकर माई बानि। ई रिश्ता के साथ साथ हमार प्यार भी त उतना ही सच बा। प्यार के इज़हार भी त राजू से हम कइले बानि, अउर उ भी हमके हद से ज्यादा प्यार करेला। हम दुनु माई बेटा के रिश्ता के डोर से आज़ाद त ना हो सकेनि, पर अब किस्मत हमनी के जउन रिश्ता से जोड़ दिहले बा उ भी एगो सच्चाई बा। राजू के साथ ई नया रिश्ता के शुरुआत अनुचित होखे के साथ रोमांचकारी बा। ई सावन जीवन के पहिल सावन बा जउन एतना उमंग से भर गईल बा।"
बीना जाने क्या क्या सोचे जा रही थी और मन ही मन बड़बड़ा रही थी। तभी घर के बाहर से रंजू की आवाज़ आयी। बीना जो अनायास ही खुद को सहला रही थी, अचानक से सतर्क हो उठी। उसने अपनी साड़ी ठीक की और चूल्हे पर चढ़ी कढ़ाई में करछी चलाने लगी। रंजू घर के अंदर आते ही बोली," बीना, कइसन बिया तू?
बीना करछी चलाते हुए बोली," ठीक बानि, अभियो बुखार बरले बा।"
रंजू," दवाई त धरम भैया लाके देलन न?
बीना," हां, खइनि तनि राहत होखेला पर फेर बुखार आपस आ जाता।"
रंजू," चल, त फेर गांव में जउन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बा, ऊंहा दिखा लअ। डॉक्टर से जांच कराके दवाई लेबु त आराम होई। देख तहार होठ कइसन सुख गईल बा। आँखिया के आसपास कारी कारी झांहि भी दिख रहल बा।"
बीना," रहे दे अपने ठीक हो जाई। कहां जाईब बरखा भी होत बा।"
रंजू," अरे अभी दिखाईबु त जल्दी ठीक हो जइबू, चल जल्दी तैयार हो।"
बीना," अच्छा, ठीक बा। बस ई सब्जी हो गइल।" थोड़ी देर बाद बीना कड़ाही उतार के कमरे में गयी। बाल सँवारे, और छाता लेकर घर से दोनों बाहर निकल गए। थोड़ी ही देर में दोनों गांव की मुख्य सड़क पर आ गयी थी। हल्की हल्की बारिश हो रही थी, पर इतनी नहीं कि छाते की जरूरत पड़े। तभी पीछे से गांव का एक आदमी भैंसों को हांकता हुआ आगे आ रहा था। उसने एक भैंस पर जोर की लाठी मारी तो, भैंस जोर से आगे भागी जिसे देख बीना डर गई। बीना और रंजू टकराई तो उनकी चूचियाँ आपस में टकड़ा गयी। दोनों को इस बात का एहसास हुआ, तो रंजू हंस पड़ी। बीना बोली," देख के भैंसन के हांक ना सकेला का?
आदमी कुछ नहीं बोला सिर्फ मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गया। बीना और रंजू चलते हुए, आखिर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पहुंच गए। द्वार पर ही एक आवारा सांड, पसरे हुए उनका स्वागत कर रहा था। अंदर जाते ही, टूटी हुई दो तीन बेंच बरामदे पर रखी हुई थी। बाहर एक पुरानी एम्बुलेंस धूल खा रही थी। वहां तीन चार कमरे थे, सबमें हरे पर्दे लगे हुए थे। कर्मचारी के नाम पर गांव का महेश ठाकुर था जो कि सफाई कर्मचारी के साथ कम्पाउण्डर का भी काम करता था। वहां का सारा हिसाब किताब वही देखता था। डॉक्टर हफ्ते में एक या दो दिन आते थे, कभी कभार नहीं भी आते थे। डिस्पेंसरी में एक नियोजित कर्मचारी था जो कि मुश्किल से 20 साल का होगा। बीना और रंजू वहां पहुंचे तो महेश वहीं कमरे में कुर्सी पर बैठे तम्बाकू घिस रहा था। उनको देखते हुए बोला," का बात बा, कइसे इँहा आइल बारू?
रंजू और बीना सर पर घूंघट किये उसकी ओर घूम गयी। रंजू बोली," देखाबे के बा डॉक्टर साहब से, तीन दिन से बुखार बा।"
महेश," केकरा बुखार बा तहरा का?
रंजू," ना, हमरा ना एकरा। डॉक्टर साहब बानि का?
महेश तम्बाकू मुंह में रखते हुए बोला," न नइखे आइहन, उ आज। ऊंहा लेट जो हम देखत बानि। दवाई मिल जाइ।"
रंजू," लेकिन हम त डॉक्टर साहब से देखाबे खातिर आइल रहनि। दवाई त पहिले भी खइले बारि, पर ठीक ना भईल।"
महेश जो थोड़ा ठरकी किस्म का आदमी था और गांव की महिलाओं को चेक उप के बहाने छेड़ता था। वो बोला," हम पिछला सत्रह साल से इँहा काम करत बानि। छोट मोट इलाज त हमहुँ कर देब, लेटी ऊंहा स्ट्रेचर पर।"
रंजू से इशारे में अनुमति पाकर, बीना स्ट्रेचर पर लेट गयी।

बीना ने महेश के कहने पर अपना आँचल हटा दिया और काली ब्लाउज में ढके उसकी उन्नत चूचियाँ और नंगा पेट सामने आ गया। उसके पेट पर जमी चर्बी उसके आकर को और आकर्षकता प्रदान कर रही थी। उसकी गहरी नाभि देख महेश की आंखे वहीं चिपक सी गयी थी। महेश ने जांचने के बहाने उसके ब्लाउज के ठीक नीचे से हाथ फेरते हुए उसकी कोमल त्वचा को छेड़ने लगा। वो उसे थामता, दबाता और फिर सहलाता। बीना जो वासना से पहले ही लबरेज, बदन को ज्वर में झोंक बैठी थी, एक अनजान पुरुष का स्पर्श बेहद संतोषजनक लग रहा था।
महेश,"भउजी, कइसन बुझा रहल हअ, दरद होत होई त बताई?
बीना," ना, अभी ना होता, होई त बताईब?
महेश," केतना दिन से बुखार बा भउजी?
बीना," इहे पिछला तीन दिन से देहिया आग बनल बा।महेश उसकी चूचियाँ ताड़ते हुए बोला," भउजी, रउवा एतना तंदुरुस्त बिया, फिर भी राउर तबियत खराब हो गइल, गजब बात बा?
बीना," का करि अकेले संभालत बानि ना हो, केहू सँभारे वाला नइखे।"
महेश," का भउजी?
बीना," हमार घर अउर का।"
महेश उसके पूरे नंगे पेट के हर हिस्से को सहलाता रहा, महसूस करता रहा और दबा दबा के देखता रहा। बीना ने कोई विरोध नहीं किया। बल्कि वो बेचारी बिरहा की मारी अपने कमर के हर हिस्से को जांच की आड़ में बेपर्दा कर चुकी थी।
बीना की कामुक नाभि ऐसी प्रतीत होती थी जैसे कोई सूक्ष्म शंख का आगे का खुला हिस्सा। वो गहरी और उतनी ही लुभावनी थी। महेश उससे छेड़छाड़ किये बिना कैसे रहता। पहले तो उसने उस कातिल नाभि में उंगली डाला और दबाते हुए बोला," हम दबा रहल बानि, अगर दरद होई तहके त बता दिहा।"
बीना ने सर हिला के इशारे में हाँ कह दिया। महेश ने उसके पेट को पूरा सहलाया, इस क्रम में उसने बीना की साड़ी कमर से, और नीचे खिसका दी। साड़ी बेहद नीचे तक आ चुकी थी जहां से उसके जांघों के ऊपर का त्रिकोण बन रहा था। अपने सामने इतनी मस्त चिकनी माल को देखकर महेश पूरा ऐसे महसूस किए जा रहा था मानो वो कोई मलाई की कटोरी हो। उसका मन हो रहा था कि बीना के ढोढ़ी को चाट ले। वो मन ही मन उसके बूर की कल्पना भी करने लगा था। अचानक उसने जोर से दबा दिया तो,बीना चिंहुक उठी।
फिर महेश ने पूछा," का भईल?
बीना," दरद हो गइल।
महेश," अच्छा, लेकिन इँहा त सब ठीक लागतअ। अरे देखआ बतियावे में भूल गइनी कि तहरा मुँह में देबे न कइनी।"
बीना," का देबू मुंहवा में।"
महेश," अरे थरमामीटर?
बीना," ओ, बुखार नापे वाला ना।"
महेश थरमामीटर झाड़ते हुए मुस्कुराया और बीना से मुंह खोलने को बोला। बीना के गुलाबी होठ शून्य का आकार बना खुल गए थे। महेश ने उसे जीभ उठाने को कहा तो उसने जीभ उठाई। फिर महेश ने उसके मुंह में थरमामीटर घुसा दिया और बोला," एकरा जीभ के नीचा में दबा लआ।" बीना के जीभ की उठती और दबती हरकत भी उसे कामुक लग रही थी। बीना की चूचियों जो ब्लाउज के उपरी हिस्से से झांक रही थी, उसमें दोनों चूचियों के बीच की घाटी उसके दिल में हलचल मचा रही थी।
महेश बोला," भउजी, तहार दिलके जांच भी करेके बा।" ऐसा बोल उसने स्टेथोस्कोप उठा गले से कानों में लगा लिया। फिर उसका दूसरा सिरा बीना की उभरी हुई छाती या यूं कहें चूंचियों के ऊपर लगा दिया। बीना के दिल की धड़कन जोर जोर से चल रही थी, उसे लब-डब की आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी।
महेश ने फिर बीना से कहा," भउजी, ऊपर वाला बटन खोलि, तनि गहराई से जांच कर ली।"
बीना ने उसकी बात मान अपने ब्लाउज के ऊपर के दो बटन खोल दिये। उसके चूंचियों के बीच की घाटी और दरार और नंगी हो गयी। महेश ने उसका फायदा उठाया और उसके ब्लाउज के अंदर स्टेथोस्कोप घुसा दिया। इस बहाने वो बीना की कोमल चूंचियों का स्पर्श पा रहा था। बीना को अब उसकी हरकतों पर थोड़ा थोड़ा संदेह होने लगा था। पर वो कुछ बोली नहीं। पुरुष का स्पर्श उसके शरीर को अच्छा लग रहा था। बीना के मुँह में थरमामीटर, गिरा हुआ आँचल, अधनंगी चूचियों पर स्टेथोस्कोप, उसके अंदर की दबी वासना और चाहत उसे बहका रही थी। तभी देखते देखते, महेश उसके एकदम पास आ गया और बीना के होठों के बेहद करीब आकर मुँह से थरमामीटर निकाल लिया और देख बोला," भउजी, तहरा त एक सौ दु बुख़ार बा। लेकिन जांच में कुछ पता नइखे चलत।"
बीना कांपते होठों से बोली," भैया, त हम ठीक कइसे होखब?
महेश ने मौके का फायदा उठाया, और उसके कमर में हाथ डाल दिया और बोला," तू खुल के बताबा का होता तहरा?
बीना कामुक थी, पर थोड़ी डरी हुई थी। उसने डरते डरते कहा," महेश भैया, मन बेचैन रहेला, कभू शांत ना होखेला। रह रहके पियास लागतआ, देहिया में मीठा मीठा दरद होखेला। हमार भतार दवाई लाके दिहले, पर ठीक न भईल।"
महेश," रात के नींद आवेला? भूख कइसन बा?
बीना," ना बेचैनी रहेला अउर भूख भी कम लागत बा।"
महेश," एगो अउर बात बताबा, बुरा मत मानिहआ। भतार खुश रखेला कि ना?
बीना आंखे बड़ी कर बोली," ई कइसन सवाल बा? ई तहरा काहे बताई?
महेश," तहरा ठीक करे खातिर पूछत बानि।
बीना ने उसकी ओर देख कहा," हाँ, रखेला हमार पूरा ध्यान राखेलन।"
महेश उसके कंधों पर सर रख बोला," तू बुझलु ना तहार शारीरिक जरूरत के ध्यान रखेला कि ना?" वो उसके चूचियों को पकड़ने को हुआ।
बीना उसकी ओर देख बोली," ई का करत बारू?
महेश," उहे जउन तहार पति न करेला।"
बीना," खबरदार हमरा छोड़ दआ।" उसके इतना बोलने से पहले महेश ब्लाउज के भीतर अपना हाथ डाल दिया। बीना जो कामुकता से लबरेज थी उसकी आँखें बन्द हो गयी। महेश बीना को गर्दन पर चूमने लगा, बीना बोली," आह... छोड़ दआ, ई तू ठीक नइखे कर रहलु।"
महेश," तहरा इहे चाही भउजी, इहे खातिर तहरा बुखार बा?
बीना भी थोड़ा बहक गयी थी इसलिए वो ठीक से प्रतिरोध नहीं कर पा रही थी। लेकिन तभी बीना को एहसास हुआ कि वो जो भी कर रही है वो ठीक नहीं है। इसलिए वो उसे धक्का देकर चिल्लाई। महेश उससे दूर जा टेबल से टकराया और रंजू आवाज़ सुन अंदर आ गयी। रंजू ने एक नज़र बीना को देखा और फिर महेश को उसे समझते देर न लगी कि महेश ने बीना के साथ छेड़छाड़ की होगी।
रंजू सबसे पहले बीना के पास गई वहां बीना को स्ट्रेचर से उतारी और दोनों ने मिलके कपड़े व्यवस्थित किये। रंजू फिर बीना से पूछी," का भईल?
बीना रोते हुए," ई.. हरामी हमरा संगे...उनन्हू...उँ" बीना रोने लगी।
रंजू फिर महेश के तरफ घूम बोली," का रे कुत्ता, शरम नइखे आवत गांव के औरतिया के साथ गंदा हरकत करत। महेश ने खुद को संभालते हुए कहा," अरे हम कुछ ना कइनी, इहे हमके बांहिया में खींच लेलस। हम समझौनी पर फिर भी अंचरा उतारके हमरा थाम लेलस।"
रंजू ने महेश को तमाचा मारा और बोली," हम खूब बढ़िया से जानत बानि, तू उ पिंटू सिंह के आदमी बारआ ना। तहार गंदा गंदा हरकत के बारे में दुनु गांव में हल्ला बा। हमनी राघोपुर गांव के बानि, पर पंचायत इहे पड़ेला। जइसन उ दुष्ट बा, वसही तू भी बारू। तहार दुनु के सारा भांडा फोड़ देब। ई बेरा चुनाव न जीत पाइन्ह। ओकर बाद तहरा देखब।"

महेश अपने गाल पर तमाचा पा, बिल्कुल बेइज्जत महसूस कर रहा था। वो भी घमंड से बोला," ई थप्पड़ हम याद रखब, तहरा एकर कीमत चुकाबे के पड़ी। तहार जइसन औरतिया सरपंचजी के बिछौना में रात दिन पड़ल रहेला। का बुझत बारू तू सब विश्व सुंदरी बारू। अरे सब औरत के पास एक्के चीज होखेला। औरत के मरद चाही चाहे उ केहू रहे। हम त जानत बानि कि ई भी बहक गईल रहे। भतार सुख न देवेला त केहू अउर से लेलआ।"

रंजू और बीना ने उसे घृणित नज़रों से देखा, जबकि वो अब भी मुस्कुरा रहा था।

रंजू," तहार मरद होबे के सारा गलतफहमी दूर हो जाई। बहुत जल्दी तहरा, तहार औकात देखाएब। उ दिन तू भरा पंचायत में माफी माँगबु। काहे अब अगला चुनाव में हम सरपंच पद खातिर खड़ा होखब।"

ऐसा बोल वो दोनों बाहर निकल गयी, पीछे से महेश मुस्कुराते हुए बोला," सातों जनम में तहार इच्छा पूरा न होई, काहे अब तलिक ई सीट से सरपंच जी के परिवार ही जीतत बाटे। भूल जो...."

वो दोनों जो बाहर निकली तो डिस्पेंसरी वाला लड़का काली पन्नी में सेनेटरी पैड लेकर उन दोनों को देना चाहा। ये सरकार कि योजना" सच्ची सहेली" के अंतर्गत मुफ्त दिया जाता था। रंजू वो लेकर बाहर आ गयी। दोनों तेजी से निकलकर घर की ओर बढ़ रहे थे। दोनों कुछ देर बाद घर पहुंच गए।

रंजू," सच बताबा, तू बहक गईल रहलु का?

बीना का चेहरा लाल हो चुका था,वो कुछ नहीं बोली। रंजू ने फिर जोर देकर पूछा," बीना तू सच में बहक गईल रहलु का?

बीना नज़रें झुकाए बोली," बस तनि देर खातिर।"

रंजू," तू भी ना हद करआ तारू? अइसन घटिया आदमी बा उ हरामजादा। तहार पूरा बदनामी कर दी। पराया मरद शरीफ औरत के फंसा लेलन, मज़ा पूरा लेके फेर अगर मामला उलझेला त तहरा बदनाम कइके खुद बच जात बारन स।"

बीना झुंझलाते हुए बोली," त का करि, अब भतार त छुअत भी नइखे। मरद खातिर देहिया तरसेला।"

रंजू," अरे तहरा कइसे समझाई। जब जवान बेटा घर में बा त काहे केहू बाहर वाला के मौका दे रहल बारू। बगल में छोड़ा, शहर में ढिंढोरा। मरद खातिर एतना पियास बा त बेटा के ही सैयां बना लअ। ना त अइसन भंवरा सब हमार तहार जइसन फूल के रस चूसे खातिर भीड़ल रहेला। जब लुटाबे के बा, त घर के मरद काहे ना मज़ा लूटे।"

बीना," तू का कहे चाह रहल बारू?

रंजू," इहे कि घर के बात घर में रहे के चाही। देख बीना, हम अउर तू उमर के अइसन पड़ाव पर बानि कि कामुकता चरम पर बा। बेटा तहार जवान बाटे, मस्त लड़का बा। ओकरा पास भी उहे बा, जउन धरम भैया के पास बा। केहू बाहर वाला काहे तहार कमजोरी के फायदा उठाये।"

बीना," जइसे तू उठा रहल बारू, अरुण के साथ।"

रंजू," त ऐमे गलत का बा, ई उमर में के हमरा से बियाह करि। अउर हमार देहिया में वासना फूटत रहे। घर के बाहर कुछ करति, त बदनामी हो जाइत। अरुण अउर हम अकेले रहनि, अउर फेर दुनु एक दोसर के प्यार में पड़ गइनी। अब रिश्ता नाता त हमनी के हाथ में बा ना। अउर जब अरुण हमके छूलस, त हम मोम जइसन पिघलके ओकरा से लिपट गइनी। बेटा माँ के रिश्ता से सैयां सजनी के रिश्ता भी जोड़ लेनी। अउर सच बताई त उ रिश्ता अभी भी पवित्र बा, जेतना हमनी के नया रिश्ता।"

बीना," रंजू प्यार त हमहुँ कर बईठनी, राजू से। राजू भी हमके खूब चाहेला। लेकिन डर लागेला, अगर राजू के बाबूजी के पता चल जाई त का होई, केहू अउर के पता चल जाइ त का होई।"

रंजू ने उसके माथे को छुआ और आंखों में देख बोली," अब समझनी, तहरा ई बुखार काहे बा। जबसे राजू गईल बा तबसे ई भईल बा ना?

बीना," हाँ।"

रंजू," अब समझ में आईल, दवाई से तू ठीक काहे ना हो रहल बारू। तहरा अंदर तूफान उठल बा। तहरा आपन मन पर काबू नइखे।"

बीना," रंजू, तू सच कहेलु। दिन रात बेचैन रहेनी। मन करेला केहू हमके थाम ली। हमके ई बेचैनी से बचा ली।"
रंजू," राजू थामी तब, तहरा चैन मिली।" राजू का नाम सुनते ही बीना की आंखें बंद हो गयी, और मुँह से ऊफ़्फ़ कि आवाज़ निकल गयी। बीना की हालत देख रंजू मैन ही मन मुस्काई।

रंजू," हम जात बानि, कल आइब। तहरा मलंग बाबा से देखाबे के पड़ी।" रंजू चली गयी।

बीना अपने आंगन में चारपाई पर लेट गयी, और राजू को याद कर अपने चूचियों का मर्दन करने लगी। काम वासना से तपता शरीर जैसे मचल उठा। बीना की बूर तो जैसे काम रस बहाकर कच्छी गीली कर गयी। बीना तड़पती हुई राजू के साथ ब्लू फ़िल्म की गंदी हरकतों को अपने ख्यालों में महसूस करने लगी। उसे महसूस हुआ कि राजू उसके ऊपर चढ़ के उसे चोद रहा है। बीना काम वासना से वशीभूत खुद को लंपट लहरों में बहाने लगी। बीना ने साड़ी उतार फेंकी और साया को कमर से ऊपर उठा, अपनी कच्छी उतार फेंकी। अपनी बूर से प्रचुर मात्रा में बहती काम रस को बूर पर पूरी तरह मलते हुए, सिसिया रही थी। बीना ने खुद को इतना असहाय कभी महसूस नहीं किया था। इस समय बीना को देख ये प्रतीत होता था कि स्त्री की कामुक तड़प कैसी होती है। बीना बूर के दाने को रगड़ते हुए राजू का नाम ले रही थी। बीना की प्यासी जवानी, राजू के लिए तड़प रही थी। इस परिस्थिति में स्त्री वासना के भंवर में डूब जाती है।

तभी जैसे एक चमत्कार हुआ, मलंग बाबा बीना के घर में घुस आए। बीना को ध्यान ही नहीं रहा कि, उसके घर का दरवाज़ा खुला है। उसके अंदर घुसते ही बीना, ने खुद को साड़ी में लपेट लिया।

बीना के चेहरे पर कामुकता और शर्म का भाव था, जिससे उसका चेहरा लाल हो रहा था। बीना उठी और बाबा के सामने वैसे ही खड़ी हो गयी। मलंग बाबा ने उसकी ओर देखा, उसकी कामुक आंखें, खुले बाल, बदन पर जैसे तैसे लिपटी साड़ी।

मलंग बाबा," तू हमरा पास आवा।"

बीना धीरे धीरे उसके करीब आयी। उसके बदन में मस्ती और लचीलापन आ गया था, जिससे उसकी चाल बहकी और बेपरवाह हो गयी थी

बाबा ने उसकी हालत देखी और एक बार पूछा," का भईल बेटी?

बीना," बाबा का बताई, हम त बेबस हो गइल बानि।"

बाबा," काहे का भईल?

बीना," बाबा रउवा ठीक कहने रहलु कि हमार जीवन में केहू आई। बात बहुत लाज शरम के बा।"

बाबा," तू अभी का करत रहलु, हम जानत बानि। लेकिन ई लाज शरम के बात नइखे। हर स्त्री पुरुष ई करेला। का तहरा पति साथे सुख ना मिलेला?

बीना," बाबा, पति अगर ठीक से सुख दी, त शायद अइसन बात ना होत। का करि बाबा ई बहुत लज्जा के बात ह, कइसे बताई।"

बाबा," समस्या अगर बा त समाधान होई। तू बताबा ना।"

बीना सर झुकाए बोली," बाबा का सगा संबंधी में मरद औरत वाला प्यार होता। हमरा साथ उहे हो रहल बा।"

बाबा," हो सकेला, ई कउनु नया बात नइखे।"

बीना," माई बेटा के बीच भी।"

बाबा," हाँ, ई आकर्षण बिल्कुल संभव बा। काहे कि बेटा जउन स्त्री शरीर के करीब अउर पहिले से देखेला उ माई के शरीर ही होखेला। माई भी त एगो स्त्री बिया, अउर बेटा पुरुष। कोई भी विपरीत लिंग के बीच प्रेम आकर्षण संभव बा।"

बीना," लेकिन बाबा माई बेटा के रिश्ता त पवित्र होखेला ना। ई केतना घटिया बात होई अगर कोई माई आपन सगा बेटा के साथ प्रेम करे लगी।"

बाबा," प्रेम कोई गलत चीज़ नइखे। अउर अगर प्यार होखेला त उ स्वाभाविक बा। तू हमरा पास आवा अउर सच सच बात खुलके बताबा।"

बीना बाबा के पास बैठ गयी, तो बाबा ने उसका चेहरा देखा। बीना का बदन तप रहा था। उसके तन बदन में, नसों में ऊष्मा फूट रही थी। बीना के आंखों के आसपास थोड़ी काली झांहिया आ गयी थी। उसके होठ प्यासे लग रहे थे। चेहरे पर एक लालायित और आतुर भाव झलक रहा था।

बाबा," तहरा त तेज बुखार बा, लेकिन ई साधारण बुखार नइखे। इ बुखार त बुझाता तहार आत्मा से जुड़ल बा। वासना अउर काम के खातिर तहार आत्मा और शरीर दुनु पियासल बा। अइसे तहके खुद पर नियंत्रण ना होत होई। दिन रात तहरा गंदा गन्दा ख्याल आत होई।"

बीना," बाबा रउवा बिल्कुल सच कहत बानि। मन में गंदा गंदा ख्याल आता लेकिन बहुत अच्छा लागेला। बदन में मीठा मीठा दरद रहेला। अगर केहू के बताईब त हमरा सब कुलक्षिणी कही। बाते एतना शर्मनाक अउर घटिया बा।"

बाबा," तहरा, कामज्वर बा। ई ज्वर सामान्यतः कउनु दवाई से ना बल्कि संभोग द्वारा प्राप्त चरमसुख से मिलेला। तहरा चाही संभोग, जउन पुरुष के तू चाहेलु उ जब तक तहरा भोगी ना, तहरा चैन ना मिली। तहार काम वासना के शांति भी उहे पुरुष दी, जेकरा खातिर तू एतना बेचैन बारू।"

बीना," राजू..." बोलते बोलते चुप हो गयी।

बाबा," त उ राजू बा, यानि तहार बेटा। उहे तहार कामज्वर शांत करि। तहार देहिया और आत्मा के तृप्ति तभी मिली जब राजू ओकर साथ संभोग, ओकर भोग अउर उपभोग करि।


भाग अभी जारी है......
Zabardast update bhai
 

Enjoywuth

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Wah kya update Diya hai do do be Raju ke sath karne ke salah de di hai ab Sayad rukhna mushkil hoga
 

Enjoywuth

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Next update ke liye abhi se intjar karna suru kar diya hai
 

Mrxr

The eyes reflect what is in the heart and soul.
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कामज्वर भाग-१

वासना की अग्नि में जब अरमान और चाहतें धीमी आंच पर सुलगती हैं, तो मन बहकने लगता है और ना खुद पर किसी तरह का काबू रहता है। तन मन बदन सब उस वासना के समुंदर में डूब जाना चाहते हैं, जिसके किनारे बैठ लोग मिलन के कामुक सपने देखते हैं। स्त्री या पुरुष जिस साथी के साथ मिलन करना चाहते हैं, उसका स्पर्श अनुपम और नवीन लगता है। जब तक उससे मिलन ना हो तब तक कामाग्नि शांत ही नहीं होती। बदन उसके कामुक स्पर्श के लिए जलता है और मन रात दिन बहकता है। ऐसे में बदन ज्वर में जलता है,जिसे कामज्वर कहते हैं।

गुड्डी का सारा काम खत्म करके अपने कमरे में आ गयी थी। उसका पति आज नाईट ड्यूटी पर था। इसलिए कमरे में कोई नहीं था। आंगन में पूरी खामोशी थी। गुड्डी अपने आँचल में एक खीरा छिपाकर ले जा रही थी। वो तेज कदमों से अपने कमरे में घुस गई। फिर दरवाज़ा लगाकर अपने कमरे के बीचों बीच लगे बिस्तर पर बैठ खीरा को बगल में रख दिया। उमस भरी रात थी तो उसने पंखा चालू कर दिया था। उसने अपनी लाल साड़ी का आँचल लुढ़का दिया था, और ब्लाउज के बटन खोल बैठी थी। उसके चूचियों की घाटी में पसीना गले से उतर रहा था। उसके कांख पर रेशमी बाल, और ब्लाउज की कसावट से पसीना वहां कुछ ज़्यादा ही था और गीला हो चुका था। उसने अपने बाल खोल दिये और लहरा दिया। उस नवविवाहित लड़की के जीवन में चुदाई के अभाव में कामेच्छायें दिल में रह रहकर उमड़ रही थीं। एक तो उसका पति मर्द के नाम पर एक बदनुमा दाग था, और दूसरा कि वो दिल से राजू के अलावे किसी और के साथ खुद को सौंप नहीं सकती थी। राजू को तो उसने अपना दिल और जिस्म दोनों दे दिया था। वो चाहती तो अपने पति के साथ मुख मैथुन, हस्त मैथुन का सुख ले सकती थी, पर राजू के अलावा वो किसी और को अपना तन सौंपना ही नहीं चाहती थी। बिस्तर पर लेटे लेटे वो राजू के साथ बिताए अंतरंग क्षणों को याद कर शरमा रही थी। उसकी साड़ी ना जाने कब खुलकर बिस्तर पर सिमट चुकी थी। उसका साया जांघों से भी काफी उपर सिमट चुका था। उसने कच्छी उतार कर घुटनों तक कर दी थी। वो अपने बूर पर खड़ी फसल को महसूस करते हुए, मचल उठी। उसके होठ अपने आप दांतों तले चले गए। उसने खीरा को अपनी बूर पर मला और बूर के रिसते पानी से खीरा पूरा गीला हो गया। बूर तो पानी छोड़ पहले ही चिकनी हुई पड़ी थी। गीली बूर पर खीरा फिसलके उसकी गहराई को चूमने लगा। गुड्डी ने बूर को बेवकूफ बनाते हुए उसे लौड़े का एहसास दिलाया। बूर ने खुद को उसके चारों ओर कसा हुआ फंदा लगाया। गुड्डी के हाथ बूर में खीरा को अनायास ही अंदर बाहर करने लगे। गुड्डी मस्ता चुकी थी। बूर में राजू का लण्ड ना सही, पर खीरे ने उसे थोड़ी राहत तो दी थी। अपने कमरे में उसकी आहें सिर्फ उसके कानों से टकड़ा रही थी। बूर की फांकों के बीच हरा खीरा बड़ा भिन्न लग रहा था। उसने ब्लाउज से अपनी मदमस्त फूली चूचियाँ निकाल दी थी, और भूरे चूचक कड़क होकर किसी पुरुष के गीले मुख में चूसे जाने को आतुर हो रहे थे। चूचियाँ तनी और फूली हुई आटे की तरह मसले जाने के लिए इधर उधर लुढ़क रही थी। उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। अपने लाल लबों से मदहोशी का जाम वो पिलाना चाहती थी। पर इस समय उसके पास उसकी अर्धनग्नता का प्रदर्शन देखने कोई नहीं था। उसकी हाथों की चूड़ियां और पैरों में पायल कमरे में उसकी अश्लील और हवसी हरकतों की दुहाई दे रही थी। कुछ देर बाद उसने अपनी ब्लाउज उतार फेंकी और अगले ही पल साया को भी उतार कर बिस्तर से नीचे फेंक दिया। लेकिन घुटनो में कच्छी अभी भी फंसी थी। गुड्डी एक हाथ से बूर में खीरा पेल रही थी, और उसी हाथ के अंगूठे से बूर के खड़े दाने को सहला रही थी। दूसरे हाथ से वो अपनी चूचियाँ दबाती तो कभी अपने अंग को सहलाती। उसके मुंह से रह रहकर राजू का नाम फूट रहा था," आह...आह.... राजू.....ररर...राजू....आजा..... हम पियासल बानि। मोर.... राजा.....तहार ....रररानी.... बेचैन बिया......आह...उऊऊऊ... ऊहह..." ऐसा बोल वो अपने गाल और गर्दन सहलाते हुए होठों को काट रही थी। ऐसी नवविवाहित लड़की जिसे शादी से पहले ही लण्ड की आदत लग चुकी हो, और अब नामर्द पति मिले तो वासना उसके अंदर नागिन की तरह फुंफकारती है। वो इस बिस्तर पर वैसे ही सिसकारी मारते हुए बलखा रही थी। उसके अंदर जो वासना लावा बनकर फूट रही थी, उसे सिर्फ राजू ही काबू कर सकता था। कोई अन्य पुरुष तो गुड्डी के गर्मी के सामने पलक झंपकते पिघल जाता। कामुक स्त्री जब बेलगाम हो जाती है तो उसे, फिर साधारण पुरुष नहीं बल्कि उसकी लगाम खींचकर काबू करने के लिए प्रभुत्व से सम्पन्न पुरुष चाहिए, जो भोग विलास में उन्हें स्त्री होने का गौरव प्रदान कर सके। ऐसे में गुड्डी जैसी कामुक नारी बिन चुदाई के खुद को हस्त मैथुन से संतुष्ट करना चाहती थी। पर उसे ये नहीं पता था कि ये क्रियाएं कुछ पल के लिए शांति देती हैं, पर कुछ देर बाद ही वासना दुगने प्रभाव से शरीर में आग लगाती है। दबी कामेच्छायें दिन पर दिन बढ़ती जाती हैं जिससे स्त्री खुदको अनछुया नहीं रख पाती। कुछ देर बाद गुड्डी की बूर तेजी से फड़कने लगी और बदन अकड़ने लगा। उसकी भंवे तन गयी और वो दांत से होठो को काटते हुए बूर से फव्वारा छोड़ने लगी। धीरे धीरे वो तीन चार बार बूर से पानी फेंकी और वो द्रव्य बिस्तर को गीला कर गया। गुड्डी नंगी ही लेटी थी, वो तेजी से हांफ रही थी। वो उसी तरह नंग धरंग बिस्तर में फैल गयी।

राजू के जाने के बाद बीना बुझ सी गयी थी। उसे राजू की गंदी छेड़छाड़ की आदत पड़ चुकी थी। बीना घर पर खाना बनाते हुए, राजू की यादों में खोई हुई थी। वो राजू से शारीरिक तौर पर काफी हद तक नंगी ही हो चुकी थी। राजू ने उसकी बूर के अलावा अब तक पूरा नग्न शरीर देखा था। बीना को शर्म भी आ रही थी, पर मन उस बहकने को उचित भी बता रहा था। राजू के साथ बिताई हुई पिछली रात उसे रोमांचित और भयभीत दोनों कर रही थी। राजू की बातें, उसकी ज़िद, बीना के प्रति उसका चुम्बकीय आकर्षण सब बीना अपने दिलो दिमाग में महसूस कर रही थी। वो मन में सोचने लगी
" का राजू हमार सूखल जीवन में सावन जइसन आइल बा। हर औरत के प्यार खातिर एक अइसन मरद चाहि जउन, तन अउर मन से एकदम स्त्री के अपनावे। जीवन में मानसिक प्रेम के साथ साथ भौतिक प्रेम भी उतना ही जरूरी बा। एहीसे दुनिया में मरद अउर औरत बियाह करेलन सँ। अब तक जीवन में हमार मरद हमेशा मन मर्जी करेलन। जब जवान रहलन त खूब चोदत रहलन। सारा सारा रात सेजिया पर जगा के बूर चोद के मज़ा लूटत रहलन। मन से त कभू ना कहलन कि उ हमसे केतना प्यार करेलन। लेकिन तन के चूस चूस के खाली आपन प्यास बुझौलन। शिकायत ई ना हअ कि उ आपन प्यास बुझौले, पर हमार तन सुलगा के अब छोड़ देवलन। ई तन के आगिया दिन पर दिन सुलग रहल बा। बड़ा दिन से इके चांप के रखले बानि। लेकिन ई बदन अब एतना तंग करेला, अउर अब त उंगली, खीरा, बैगन, ककड़ी, मूली के भी ना मानेला। अब त एगो मजबूत लांड चाही, जउन बूर में खलबली मचा दी, अइसन मजबूत बांहिया चाही जउन में कैद होके भी हम आज़ाद हो जाई। अइसन मरद जउन आपन साथ साथ हमके भी चरमसुख तक पहुंचाई। ओकरा हाथ से इस्तेमाल होखे में भी अलग आनंद आयी। ई वासना, ई उत्तेजना, ई अगन, हमार तन बदन सब ओकरा समर्पित कर कामसुख के प्राप्त कर लेब। अइसन बलिष्ठ और प्रभुत्व वाला मरद ही स्त्री के संतुष्ट, सुखी अउर सौभाग्यवती रखि। अइसन मरद के सेवा करे में कइसन लाज कइसन शरम। हमार राजू में ई सब गुण बा। राजू जेकरा भाग में होई उ स्त्री बहुत भाग्यशाली होई। उ आपन औरत के खूब खुश रखि। काश उ औरत हम बनि। लेकिन उ हमार बेटा बा अउर हम ओकर माई। का ई ठीक होई, एक सगी माई आपन बेटा के साथ मेहरु मरद जइसन रही। बेटा भी मरद बा, माई भी तऔरत बिया। तन बदन त दुनु के सुलगेला। वासना के आग त दुनु के शरीर में भड़केला। हम त अइसने पियासल रहत बानि, अगर तनि राजू पानी पिया दे त केहू के का पता चली। घर के इज़्ज़त त हम ही बानि। जइसन हमार हाल बा, कहीं हम बहक जाई अउर घर के मान मर्यादा मिट्टी में मिल जायीं। आपन जवान बेटा के साथ शारीरिक संबंध ऊफ़्फ़...हाय दैय्या...केतना गंदा, अनुचित अउर पाप बुझाता। माई बेटा के बिछौना में लंगटी रहि, अउर बेटा चोदी माई के। माई के बूर में बेटा लांड घुसाई, अउर माई बूर चियार के स्वागत करि। माई के शरम लिहाज के कउनु चिंता न रहि, बस उ पाप के भी पवित्र रिश्ता के ओट में छुपा ली। एमे राजू के का गलती बा कि उ हमार कोख से जनमल, चाहे हमार का कि हम ओकर माई बानि। ई रिश्ता के साथ साथ हमार प्यार भी त उतना ही सच बा। प्यार के इज़हार भी त राजू से हम कइले बानि, अउर उ भी हमके हद से ज्यादा प्यार करेला। हम दुनु माई बेटा के रिश्ता के डोर से आज़ाद त ना हो सकेनि, पर अब किस्मत हमनी के जउन रिश्ता से जोड़ दिहले बा उ भी एगो सच्चाई बा। राजू के साथ ई नया रिश्ता के शुरुआत अनुचित होखे के साथ रोमांचकारी बा। ई सावन जीवन के पहिल सावन बा जउन एतना उमंग से भर गईल बा।"
बीना जाने क्या क्या सोचे जा रही थी और मन ही मन बड़बड़ा रही थी। तभी घर के बाहर से रंजू की आवाज़ आयी। बीना जो अनायास ही खुद को सहला रही थी, अचानक से सतर्क हो उठी। उसने अपनी साड़ी ठीक की और चूल्हे पर चढ़ी कढ़ाई में करछी चलाने लगी। रंजू घर के अंदर आते ही बोली," बीना, कइसन बिया तू?
बीना करछी चलाते हुए बोली," ठीक बानि, अभियो बुखार बरले बा।"
रंजू," दवाई त धरम भैया लाके देलन न?
बीना," हां, खइनि तनि राहत होखेला पर फेर बुखार आपस आ जाता।"
रंजू," चल, त फेर गांव में जउन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बा, ऊंहा दिखा लअ। डॉक्टर से जांच कराके दवाई लेबु त आराम होई। देख तहार होठ कइसन सुख गईल बा। आँखिया के आसपास कारी कारी झांहि भी दिख रहल बा।"
बीना," रहे दे अपने ठीक हो जाई। कहां जाईब बरखा भी होत बा।"
रंजू," अरे अभी दिखाईबु त जल्दी ठीक हो जइबू, चल जल्दी तैयार हो।"
बीना," अच्छा, ठीक बा। बस ई सब्जी हो गइल।" थोड़ी देर बाद बीना कड़ाही उतार के कमरे में गयी। बाल सँवारे, और छाता लेकर घर से दोनों बाहर निकल गए। थोड़ी ही देर में दोनों गांव की मुख्य सड़क पर आ गयी थी। हल्की हल्की बारिश हो रही थी, पर इतनी नहीं कि छाते की जरूरत पड़े। तभी पीछे से गांव का एक आदमी भैंसों को हांकता हुआ आगे आ रहा था। उसने एक भैंस पर जोर की लाठी मारी तो, भैंस जोर से आगे भागी जिसे देख बीना डर गई। बीना और रंजू टकराई तो उनकी चूचियाँ आपस में टकड़ा गयी। दोनों को इस बात का एहसास हुआ, तो रंजू हंस पड़ी। बीना बोली," देख के भैंसन के हांक ना सकेला का?
आदमी कुछ नहीं बोला सिर्फ मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गया। बीना और रंजू चलते हुए, आखिर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पहुंच गए। द्वार पर ही एक आवारा सांड, पसरे हुए उनका स्वागत कर रहा था। अंदर जाते ही, टूटी हुई दो तीन बेंच बरामदे पर रखी हुई थी। बाहर एक पुरानी एम्बुलेंस धूल खा रही थी। वहां तीन चार कमरे थे, सबमें हरे पर्दे लगे हुए थे। कर्मचारी के नाम पर गांव का महेश ठाकुर था जो कि सफाई कर्मचारी के साथ कम्पाउण्डर का भी काम करता था। वहां का सारा हिसाब किताब वही देखता था। डॉक्टर हफ्ते में एक या दो दिन आते थे, कभी कभार नहीं भी आते थे। डिस्पेंसरी में एक नियोजित कर्मचारी था जो कि मुश्किल से 20 साल का होगा। बीना और रंजू वहां पहुंचे तो महेश वहीं कमरे में कुर्सी पर बैठे तम्बाकू घिस रहा था। उनको देखते हुए बोला," का बात बा, कइसे इँहा आइल बारू?
रंजू और बीना सर पर घूंघट किये उसकी ओर घूम गयी। रंजू बोली," देखाबे के बा डॉक्टर साहब से, तीन दिन से बुखार बा।"
महेश," केकरा बुखार बा तहरा का?
रंजू," ना, हमरा ना एकरा। डॉक्टर साहब बानि का?
महेश तम्बाकू मुंह में रखते हुए बोला," न नइखे आइहन, उ आज। ऊंहा लेट जो हम देखत बानि। दवाई मिल जाइ।"
रंजू," लेकिन हम त डॉक्टर साहब से देखाबे खातिर आइल रहनि। दवाई त पहिले भी खइले बारि, पर ठीक ना भईल।"
महेश जो थोड़ा ठरकी किस्म का आदमी था और गांव की महिलाओं को चेक उप के बहाने छेड़ता था। वो बोला," हम पिछला सत्रह साल से इँहा काम करत बानि। छोट मोट इलाज त हमहुँ कर देब, लेटी ऊंहा स्ट्रेचर पर।"
रंजू से इशारे में अनुमति पाकर, बीना स्ट्रेचर पर लेट गयी।

बीना ने महेश के कहने पर अपना आँचल हटा दिया और काली ब्लाउज में ढके उसकी उन्नत चूचियाँ और नंगा पेट सामने आ गया। उसके पेट पर जमी चर्बी उसके आकर को और आकर्षकता प्रदान कर रही थी। उसकी गहरी नाभि देख महेश की आंखे वहीं चिपक सी गयी थी। महेश ने जांचने के बहाने उसके ब्लाउज के ठीक नीचे से हाथ फेरते हुए उसकी कोमल त्वचा को छेड़ने लगा। वो उसे थामता, दबाता और फिर सहलाता। बीना जो वासना से पहले ही लबरेज, बदन को ज्वर में झोंक बैठी थी, एक अनजान पुरुष का स्पर्श बेहद संतोषजनक लग रहा था।
महेश,"भउजी, कइसन बुझा रहल हअ, दरद होत होई त बताई?
बीना," ना, अभी ना होता, होई त बताईब?
महेश," केतना दिन से बुखार बा भउजी?
बीना," इहे पिछला तीन दिन से देहिया आग बनल बा।महेश उसकी चूचियाँ ताड़ते हुए बोला," भउजी, रउवा एतना तंदुरुस्त बिया, फिर भी राउर तबियत खराब हो गइल, गजब बात बा?
बीना," का करि अकेले संभालत बानि ना हो, केहू सँभारे वाला नइखे।"
महेश," का भउजी?
बीना," हमार घर अउर का।"
महेश उसके पूरे नंगे पेट के हर हिस्से को सहलाता रहा, महसूस करता रहा और दबा दबा के देखता रहा। बीना ने कोई विरोध नहीं किया। बल्कि वो बेचारी बिरहा की मारी अपने कमर के हर हिस्से को जांच की आड़ में बेपर्दा कर चुकी थी।
बीना की कामुक नाभि ऐसी प्रतीत होती थी जैसे कोई सूक्ष्म शंख का आगे का खुला हिस्सा। वो गहरी और उतनी ही लुभावनी थी। महेश उससे छेड़छाड़ किये बिना कैसे रहता। पहले तो उसने उस कातिल नाभि में उंगली डाला और दबाते हुए बोला," हम दबा रहल बानि, अगर दरद होई तहके त बता दिहा।"
बीना ने सर हिला के इशारे में हाँ कह दिया। महेश ने उसके पेट को पूरा सहलाया, इस क्रम में उसने बीना की साड़ी कमर से, और नीचे खिसका दी। साड़ी बेहद नीचे तक आ चुकी थी जहां से उसके जांघों के ऊपर का त्रिकोण बन रहा था। अपने सामने इतनी मस्त चिकनी माल को देखकर महेश पूरा ऐसे महसूस किए जा रहा था मानो वो कोई मलाई की कटोरी हो। उसका मन हो रहा था कि बीना के ढोढ़ी को चाट ले। वो मन ही मन उसके बूर की कल्पना भी करने लगा था। अचानक उसने जोर से दबा दिया तो,बीना चिंहुक उठी।
फिर महेश ने पूछा," का भईल?
बीना," दरद हो गइल।
महेश," अच्छा, लेकिन इँहा त सब ठीक लागतअ। अरे देखआ बतियावे में भूल गइनी कि तहरा मुँह में देबे न कइनी।"
बीना," का देबू मुंहवा में।"
महेश," अरे थरमामीटर?
बीना," ओ, बुखार नापे वाला ना।"
महेश थरमामीटर झाड़ते हुए मुस्कुराया और बीना से मुंह खोलने को बोला। बीना के गुलाबी होठ शून्य का आकार बना खुल गए थे। महेश ने उसे जीभ उठाने को कहा तो उसने जीभ उठाई। फिर महेश ने उसके मुंह में थरमामीटर घुसा दिया और बोला," एकरा जीभ के नीचा में दबा लआ।" बीना के जीभ की उठती और दबती हरकत भी उसे कामुक लग रही थी। बीना की चूचियों जो ब्लाउज के उपरी हिस्से से झांक रही थी, उसमें दोनों चूचियों के बीच की घाटी उसके दिल में हलचल मचा रही थी।
महेश बोला," भउजी, तहार दिलके जांच भी करेके बा।" ऐसा बोल उसने स्टेथोस्कोप उठा गले से कानों में लगा लिया। फिर उसका दूसरा सिरा बीना की उभरी हुई छाती या यूं कहें चूंचियों के ऊपर लगा दिया। बीना के दिल की धड़कन जोर जोर से चल रही थी, उसे लब-डब की आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी।
महेश ने फिर बीना से कहा," भउजी, ऊपर वाला बटन खोलि, तनि गहराई से जांच कर ली।"
बीना ने उसकी बात मान अपने ब्लाउज के ऊपर के दो बटन खोल दिये। उसके चूंचियों के बीच की घाटी और दरार और नंगी हो गयी। महेश ने उसका फायदा उठाया और उसके ब्लाउज के अंदर स्टेथोस्कोप घुसा दिया। इस बहाने वो बीना की कोमल चूंचियों का स्पर्श पा रहा था। बीना को अब उसकी हरकतों पर थोड़ा थोड़ा संदेह होने लगा था। पर वो कुछ बोली नहीं। पुरुष का स्पर्श उसके शरीर को अच्छा लग रहा था। बीना के मुँह में थरमामीटर, गिरा हुआ आँचल, अधनंगी चूचियों पर स्टेथोस्कोप, उसके अंदर की दबी वासना और चाहत उसे बहका रही थी। तभी देखते देखते, महेश उसके एकदम पास आ गया और बीना के होठों के बेहद करीब आकर मुँह से थरमामीटर निकाल लिया और देख बोला," भउजी, तहरा त एक सौ दु बुख़ार बा। लेकिन जांच में कुछ पता नइखे चलत।"
बीना कांपते होठों से बोली," भैया, त हम ठीक कइसे होखब?
महेश ने मौके का फायदा उठाया, और उसके कमर में हाथ डाल दिया और बोला," तू खुल के बताबा का होता तहरा?
बीना कामुक थी, पर थोड़ी डरी हुई थी। उसने डरते डरते कहा," महेश भैया, मन बेचैन रहेला, कभू शांत ना होखेला। रह रहके पियास लागतआ, देहिया में मीठा मीठा दरद होखेला। हमार भतार दवाई लाके दिहले, पर ठीक न भईल।"
महेश," रात के नींद आवेला? भूख कइसन बा?
बीना," ना बेचैनी रहेला अउर भूख भी कम लागत बा।"
महेश," एगो अउर बात बताबा, बुरा मत मानिहआ। भतार खुश रखेला कि ना?
बीना आंखे बड़ी कर बोली," ई कइसन सवाल बा? ई तहरा काहे बताई?
महेश," तहरा ठीक करे खातिर पूछत बानि।
बीना ने उसकी ओर देख कहा," हाँ, रखेला हमार पूरा ध्यान राखेलन।"
महेश उसके कंधों पर सर रख बोला," तू बुझलु ना तहार शारीरिक जरूरत के ध्यान रखेला कि ना?" वो उसके चूचियों को पकड़ने को हुआ।
बीना उसकी ओर देख बोली," ई का करत बारू?
महेश," उहे जउन तहार पति न करेला।"
बीना," खबरदार हमरा छोड़ दआ।" उसके इतना बोलने से पहले महेश ब्लाउज के भीतर अपना हाथ डाल दिया। बीना जो कामुकता से लबरेज थी उसकी आँखें बन्द हो गयी। महेश बीना को गर्दन पर चूमने लगा, बीना बोली," आह... छोड़ दआ, ई तू ठीक नइखे कर रहलु।"
महेश," तहरा इहे चाही भउजी, इहे खातिर तहरा बुखार बा?
बीना भी थोड़ा बहक गयी थी इसलिए वो ठीक से प्रतिरोध नहीं कर पा रही थी। लेकिन तभी बीना को एहसास हुआ कि वो जो भी कर रही है वो ठीक नहीं है। इसलिए वो उसे धक्का देकर चिल्लाई। महेश उससे दूर जा टेबल से टकराया और रंजू आवाज़ सुन अंदर आ गयी। रंजू ने एक नज़र बीना को देखा और फिर महेश को उसे समझते देर न लगी कि महेश ने बीना के साथ छेड़छाड़ की होगी।
रंजू सबसे पहले बीना के पास गई वहां बीना को स्ट्रेचर से उतारी और दोनों ने मिलके कपड़े व्यवस्थित किये। रंजू फिर बीना से पूछी," का भईल?
बीना रोते हुए," ई.. हरामी हमरा संगे...उनन्हू...उँ" बीना रोने लगी।
रंजू फिर महेश के तरफ घूम बोली," का रे कुत्ता, शरम नइखे आवत गांव के औरतिया के साथ गंदा हरकत करत। महेश ने खुद को संभालते हुए कहा," अरे हम कुछ ना कइनी, इहे हमके बांहिया में खींच लेलस। हम समझौनी पर फिर भी अंचरा उतारके हमरा थाम लेलस।"
रंजू ने महेश को तमाचा मारा और बोली," हम खूब बढ़िया से जानत बानि, तू उ पिंटू सिंह के आदमी बारआ ना। तहार गंदा गंदा हरकत के बारे में दुनु गांव में हल्ला बा। हमनी राघोपुर गांव के बानि, पर पंचायत इहे पड़ेला। जइसन उ दुष्ट बा, वसही तू भी बारू। तहार दुनु के सारा भांडा फोड़ देब। ई बेरा चुनाव न जीत पाइन्ह। ओकर बाद तहरा देखब।"

महेश अपने गाल पर तमाचा पा, बिल्कुल बेइज्जत महसूस कर रहा था। वो भी घमंड से बोला," ई थप्पड़ हम याद रखब, तहरा एकर कीमत चुकाबे के पड़ी। तहार जइसन औरतिया सरपंचजी के बिछौना में रात दिन पड़ल रहेला। का बुझत बारू तू सब विश्व सुंदरी बारू। अरे सब औरत के पास एक्के चीज होखेला। औरत के मरद चाही चाहे उ केहू रहे। हम त जानत बानि कि ई भी बहक गईल रहे। भतार सुख न देवेला त केहू अउर से लेलआ।"

रंजू और बीना ने उसे घृणित नज़रों से देखा, जबकि वो अब भी मुस्कुरा रहा था।

रंजू," तहार मरद होबे के सारा गलतफहमी दूर हो जाई। बहुत जल्दी तहरा, तहार औकात देखाएब। उ दिन तू भरा पंचायत में माफी माँगबु। काहे अब अगला चुनाव में हम सरपंच पद खातिर खड़ा होखब।"

ऐसा बोल वो दोनों बाहर निकल गयी, पीछे से महेश मुस्कुराते हुए बोला," सातों जनम में तहार इच्छा पूरा न होई, काहे अब तलिक ई सीट से सरपंच जी के परिवार ही जीतत बाटे। भूल जो...."

वो दोनों जो बाहर निकली तो डिस्पेंसरी वाला लड़का काली पन्नी में सेनेटरी पैड लेकर उन दोनों को देना चाहा। ये सरकार कि योजना" सच्ची सहेली" के अंतर्गत मुफ्त दिया जाता था। रंजू वो लेकर बाहर आ गयी। दोनों तेजी से निकलकर घर की ओर बढ़ रहे थे। दोनों कुछ देर बाद घर पहुंच गए।

रंजू," सच बताबा, तू बहक गईल रहलु का?

बीना का चेहरा लाल हो चुका था,वो कुछ नहीं बोली। रंजू ने फिर जोर देकर पूछा," बीना तू सच में बहक गईल रहलु का?

बीना नज़रें झुकाए बोली," बस तनि देर खातिर।"

रंजू," तू भी ना हद करआ तारू? अइसन घटिया आदमी बा उ हरामजादा। तहार पूरा बदनामी कर दी। पराया मरद शरीफ औरत के फंसा लेलन, मज़ा पूरा लेके फेर अगर मामला उलझेला त तहरा बदनाम कइके खुद बच जात बारन स।"

बीना झुंझलाते हुए बोली," त का करि, अब भतार त छुअत भी नइखे। मरद खातिर देहिया तरसेला।"

रंजू," अरे तहरा कइसे समझाई। जब जवान बेटा घर में बा त काहे केहू बाहर वाला के मौका दे रहल बारू। बगल में छोड़ा, शहर में ढिंढोरा। मरद खातिर एतना पियास बा त बेटा के ही सैयां बना लअ। ना त अइसन भंवरा सब हमार तहार जइसन फूल के रस चूसे खातिर भीड़ल रहेला। जब लुटाबे के बा, त घर के मरद काहे ना मज़ा लूटे।"

बीना," तू का कहे चाह रहल बारू?

रंजू," इहे कि घर के बात घर में रहे के चाही। देख बीना, हम अउर तू उमर के अइसन पड़ाव पर बानि कि कामुकता चरम पर बा। बेटा तहार जवान बाटे, मस्त लड़का बा। ओकरा पास भी उहे बा, जउन धरम भैया के पास बा। केहू बाहर वाला काहे तहार कमजोरी के फायदा उठाये।"

बीना," जइसे तू उठा रहल बारू, अरुण के साथ।"

रंजू," त ऐमे गलत का बा, ई उमर में के हमरा से बियाह करि। अउर हमार देहिया में वासना फूटत रहे। घर के बाहर कुछ करति, त बदनामी हो जाइत। अरुण अउर हम अकेले रहनि, अउर फेर दुनु एक दोसर के प्यार में पड़ गइनी। अब रिश्ता नाता त हमनी के हाथ में बा ना। अउर जब अरुण हमके छूलस, त हम मोम जइसन पिघलके ओकरा से लिपट गइनी। बेटा माँ के रिश्ता से सैयां सजनी के रिश्ता भी जोड़ लेनी। अउर सच बताई त उ रिश्ता अभी भी पवित्र बा, जेतना हमनी के नया रिश्ता।"

बीना," रंजू प्यार त हमहुँ कर बईठनी, राजू से। राजू भी हमके खूब चाहेला। लेकिन डर लागेला, अगर राजू के बाबूजी के पता चल जाई त का होई, केहू अउर के पता चल जाइ त का होई।"

रंजू ने उसके माथे को छुआ और आंखों में देख बोली," अब समझनी, तहरा ई बुखार काहे बा। जबसे राजू गईल बा तबसे ई भईल बा ना?

बीना," हाँ।"

रंजू," अब समझ में आईल, दवाई से तू ठीक काहे ना हो रहल बारू। तहरा अंदर तूफान उठल बा। तहरा आपन मन पर काबू नइखे।"

बीना," रंजू, तू सच कहेलु। दिन रात बेचैन रहेनी। मन करेला केहू हमके थाम ली। हमके ई बेचैनी से बचा ली।"
रंजू," राजू थामी तब, तहरा चैन मिली।" राजू का नाम सुनते ही बीना की आंखें बंद हो गयी, और मुँह से ऊफ़्फ़ कि आवाज़ निकल गयी। बीना की हालत देख रंजू मैन ही मन मुस्काई।

रंजू," हम जात बानि, कल आइब। तहरा मलंग बाबा से देखाबे के पड़ी।" रंजू चली गयी।

बीना अपने आंगन में चारपाई पर लेट गयी, और राजू को याद कर अपने चूचियों का मर्दन करने लगी। काम वासना से तपता शरीर जैसे मचल उठा। बीना की बूर तो जैसे काम रस बहाकर कच्छी गीली कर गयी। बीना तड़पती हुई राजू के साथ ब्लू फ़िल्म की गंदी हरकतों को अपने ख्यालों में महसूस करने लगी। उसे महसूस हुआ कि राजू उसके ऊपर चढ़ के उसे चोद रहा है। बीना काम वासना से वशीभूत खुद को लंपट लहरों में बहाने लगी। बीना ने साड़ी उतार फेंकी और साया को कमर से ऊपर उठा, अपनी कच्छी उतार फेंकी। अपनी बूर से प्रचुर मात्रा में बहती काम रस को बूर पर पूरी तरह मलते हुए, सिसिया रही थी। बीना ने खुद को इतना असहाय कभी महसूस नहीं किया था। इस समय बीना को देख ये प्रतीत होता था कि स्त्री की कामुक तड़प कैसी होती है। बीना बूर के दाने को रगड़ते हुए राजू का नाम ले रही थी। बीना की प्यासी जवानी, राजू के लिए तड़प रही थी। इस परिस्थिति में स्त्री वासना के भंवर में डूब जाती है।

तभी जैसे एक चमत्कार हुआ, मलंग बाबा बीना के घर में घुस आए। बीना को ध्यान ही नहीं रहा कि, उसके घर का दरवाज़ा खुला है। उसके अंदर घुसते ही बीना, ने खुद को साड़ी में लपेट लिया।

बीना के चेहरे पर कामुकता और शर्म का भाव था, जिससे उसका चेहरा लाल हो रहा था। बीना उठी और बाबा के सामने वैसे ही खड़ी हो गयी। मलंग बाबा ने उसकी ओर देखा, उसकी कामुक आंखें, खुले बाल, बदन पर जैसे तैसे लिपटी साड़ी।

मलंग बाबा," तू हमरा पास आवा।"

बीना धीरे धीरे उसके करीब आयी। उसके बदन में मस्ती और लचीलापन आ गया था, जिससे उसकी चाल बहकी और बेपरवाह हो गयी थी

बाबा ने उसकी हालत देखी और एक बार पूछा," का भईल बेटी?

बीना," बाबा का बताई, हम त बेबस हो गइल बानि।"

बाबा," काहे का भईल?

बीना," बाबा रउवा ठीक कहने रहलु कि हमार जीवन में केहू आई। बात बहुत लाज शरम के बा।"

बाबा," तू अभी का करत रहलु, हम जानत बानि। लेकिन ई लाज शरम के बात नइखे। हर स्त्री पुरुष ई करेला। का तहरा पति साथे सुख ना मिलेला?

बीना," बाबा, पति अगर ठीक से सुख दी, त शायद अइसन बात ना होत। का करि बाबा ई बहुत लज्जा के बात ह, कइसे बताई।"

बाबा," समस्या अगर बा त समाधान होई। तू बताबा ना।"

बीना सर झुकाए बोली," बाबा का सगा संबंधी में मरद औरत वाला प्यार होता। हमरा साथ उहे हो रहल बा।"

बाबा," हो सकेला, ई कउनु नया बात नइखे।"

बीना," माई बेटा के बीच भी।"

बाबा," हाँ, ई आकर्षण बिल्कुल संभव बा। काहे कि बेटा जउन स्त्री शरीर के करीब अउर पहिले से देखेला उ माई के शरीर ही होखेला। माई भी त एगो स्त्री बिया, अउर बेटा पुरुष। कोई भी विपरीत लिंग के बीच प्रेम आकर्षण संभव बा।"

बीना," लेकिन बाबा माई बेटा के रिश्ता त पवित्र होखेला ना। ई केतना घटिया बात होई अगर कोई माई आपन सगा बेटा के साथ प्रेम करे लगी।"

बाबा," प्रेम कोई गलत चीज़ नइखे। अउर अगर प्यार होखेला त उ स्वाभाविक बा। तू हमरा पास आवा अउर सच सच बात खुलके बताबा।"

बीना बाबा के पास बैठ गयी, तो बाबा ने उसका चेहरा देखा। बीना का बदन तप रहा था। उसके तन बदन में, नसों में ऊष्मा फूट रही थी। बीना के आंखों के आसपास थोड़ी काली झांहिया आ गयी थी। उसके होठ प्यासे लग रहे थे। चेहरे पर एक लालायित और आतुर भाव झलक रहा था।

बाबा," तहरा त तेज बुखार बा, लेकिन ई साधारण बुखार नइखे। इ बुखार त बुझाता तहार आत्मा से जुड़ल बा। वासना अउर काम के खातिर तहार आत्मा और शरीर दुनु पियासल बा। अइसे तहके खुद पर नियंत्रण ना होत होई। दिन रात तहरा गंदा गन्दा ख्याल आत होई।"

बीना," बाबा रउवा बिल्कुल सच कहत बानि। मन में गंदा गंदा ख्याल आता लेकिन बहुत अच्छा लागेला। बदन में मीठा मीठा दरद रहेला। अगर केहू के बताईब त हमरा सब कुलक्षिणी कही। बाते एतना शर्मनाक अउर घटिया बा।"

बाबा," तहरा, कामज्वर बा। ई ज्वर सामान्यतः कउनु दवाई से ना बल्कि संभोग द्वारा प्राप्त चरमसुख से मिलेला। तहरा चाही संभोग, जउन पुरुष के तू चाहेलु उ जब तक तहरा भोगी ना, तहरा चैन ना मिली। तहार काम वासना के शांति भी उहे पुरुष दी, जेकरा खातिर तू एतना बेचैन बारू।"

बीना," राजू..." बोलते बोलते चुप हो गयी।

बाबा," त उ राजू बा, यानि तहार बेटा। उहे तहार कामज्वर शांत करि। तहार देहिया और आत्मा के तृप्ति तभी मिली जब राजू ओकर साथ संभोग, ओकर भोग अउर उपभोग करि।


भाग अभी जारी है......
Guddi ki ek jhalak toh mili,dil ko sukoon Mila.🥹🥹 ab jaldi se guddi ko wapas le aoo bhai I can't wait anymore. 🥺🥺

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