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Incest रिश्तों का कामुक संगम

Ravi2019

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Wah Bhai wah, maja aa gail, e ta super duper update ba bhai, aaj tak incest ma beta aa bhai bahan par etna badhiya story naikhe likhal gail,,tahar lekhni din par dun badhiya hot jata,,,, Beena aa Raju ke bich ke kamuk sambandh aur sanwad me intjar ba aa aage dhansu update ke bhi intejar rahi
 

Raz-s9

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Vai story bohut acchi hai...but Bhojpuri language samaj mai nehi aatii vai...app plz Hindi mai lekhiyee...kyun bhojpuri thoda bohut samajh mai ATI hai...but 90% nehi samaj ataa....tho story ko hum 100 % feel nehi kar paa rahe hum...plz vai Hindi mai lekhiyee...
Yes ,Hindi me likhiye plz
 

Raz-s9

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जउन के साथे हम आपन हर इच्छा पूरा करि।"
बीना," औरत के शरीर के प्रति जिज्ञासा ई उमर में आम बात बा। लेकिन तहार बियाह में अभी समय बा बेटा, जउन इच्छा तू पूरा करे चाहेलु उ त मेहरारू देवेली। हाँ, तहार कउनु जिज्ञासा बा त हम ओकर जवाब दे

अनोखी दोस्ती भाग २

सुबह से ही आज काफी तेज़ बारिश हो रही थी। सावन का महीना अपने असली रंग में आ चुका था। चारों ओर खिली हरियाली, और बारिश के शोर के साथ गीलापन घरों से लेकर खेतों तक व्याप्त था। बारिश की बूंदे तेज़ गिर रही थी, धरमदेव ऐसे मौसम में भी छाता लेकर खेतों की ओर निकल पड़े थे। खेतों में ज्यादा पानी ना भर जाए, इसलिए वहाँ नालों की निगरानी के लिए, जाना जरूरी था। वैसे तो अभी सात बज चुके थे, पर आसमान में घिरे बादल से अंधेरा पूरी तरह छाया हुआ था। बीना भी सुबह उठकर नहाकर, घर में खाना पका रही थी। उसके मन में रह रह के, कल रात की बातें याद आ रही थी। कैसे वो और राजू माँ बेटे होकर भी वो किया था, जो उन्हें नहीं करना चाहिए था। लेकिन बीना का मन इस बात से पूरी तरह राजी नहीं था,कि उसने कुछ अनैतिक किया है। राजू ने तो बस उसके काँख के बाल काटे थे, और उसने नई पैंटी पहनके दिखाई ही तो थी। इसमें गलत अगर है भी तो, उसे ग्लानि होने के बजाय रोमांच क्यों महसूस हो रहा था। घर की बेटी होने के नाते गुड्डी, को तो वो ये सब दिखाती ही, राजू भी तो उसका ही खून था। अब घर में गुड्डी के बाद कोई उसकी संतान थी तो वो राजू ही था। राजू का उसपर उतना ही हक़ था जितना गुड्डी का। मां और बेटे के बीच दोस्ती का एक नया रंग भी आ चुका था। लेकिन बीना और राजू का असली सच शायद ये था कि दोनों ही काम वासना में लीन होना चाहते थे। राजू जो अभी युवा था, और अपनी बड़ी बहन के साथ व्यभिचारिक काम क्रीड़ा का आनंद उठा चुका था, उसे भली भांति मालूम था कि घर की लड़की को चोदने में कितना मज़ा आता है। उसके अंदर जवानी का भरपूर जोश भरा हुआ था। दूसरी तरफ थी उसकी माँ बीना, जो कि जीवन के लगभग चालीस बसंत पार कर चुकी थी, काम कला में निपुण, उत्तेजना और वासना उसके शरीर से बूर के पानी के माध्यम से रिसती रहती थी। इस उम्र में उसे चुदाई की भरपूर आवश्यकता थी, उसे ऐसा मर्द चाहिए था जो उसे बिस्तर में सोने ना दे, बल्कि सारी रात उसके बूर में लण्ड घुसाके चोदता रहे, जो उसे अपने पति से मिल नहीं रही थी। अपने बेटे को देख उसे ना जाने,क्यों उसे एक मर्द की झलक मिलती थी। उधर राजू भी अपनी माँ की प्यास और गर्मी से अच्छे से वाकिफ था, वो तो उसके पीछे लट्टू था। बीना ने भी उसे थोड़ी सी छूट दे दी थी, जबसे उसने उससे पैंटी मंगवाई थी। बीना जिस तरीक़े से राजू के सामने खुल रही थी, वो समझ चुका था कि उसकी माँ के अंदर चुदाई की चिंगारी सुलग रही थी। जिस दिन वो चिंगारी भड़केगी वो खुद राजू को अपनी आग़ोश में लेकर वासना के समुंदर में डुबकी लगाएगी। राजू उस वासना के समुंदर में डूबकर अपनी माँ बीना को वो अधूरी खुशी देगा जो उसका बाप उसे दे ना सका।
आज रविवार था, तो गाय का दूध धरमदेव निकाल के गया था। राजू आज सोया ही हुआ था। बीना ने उसे उठने को नहीं कहा था। खाना पकाते हुए सुबह के आठ बज चुके थे। बीना अब राजू को उठाने और कमरे में झाड़ू लगाने के लिए उसके कमरे में गयी। राजू सोया हुआ था,लेकिन उसका लण्ड उठा हुआ बीना के स्वागत में सलामी दे रहा था। बीना उसकी ओर देख उसके लंबाई का अनुमान लगा रही थी। बेटे के तने लण्ड को देख, उसकी बूर पनियाने लगी थी। एक प्यासे को अगर कुँआ दिख जाए, तो उसका उत्तेजित होना स्वाभाविक है। बीना कमरे में अंदर आकर राजू के बिस्तर के पास खड़ी हो गयी। उसने अंदाज़ा लगाया कि राजू काफी गहरी नींद में है। बीना झाड़ू को छोड़, बिस्तर के किनारे बैठ गयी और राजू के तने हुए लण्ड को घूरने लगी। वैसे तो उसका लण्ड चड्डी के अंदर था पर उसका सुपाड़ा चड्डी के बाहर झांक रहा था। बीना उस फूले हुए सुपाड़े को देख बेचैन हो उठी। बहुत दिन बाद उसे किसी लण्ड के शिश्न के दर्शन जो हुए थे। बीना ने उंगली से उस झांकते हुए सुपाड़े को छूने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, लेकिन अगले ही पल हाथ वापिस खींच लिया। उसने फिर कुछ सोचा और हाथ फिर आगे बढ़ाया और सुपाड़े को छू लिया। ये वही लण्ड था जिसकी वो बचपन में सरसों तेल से खूब मालिश करती थी। वो लुल्ली अब विकराल लण्ड का रूप ले चुकी थी। अपने बेटे की ओर देख, वो उसके मर्दाना जिस्म पर गर्व कर रही थी। उसका गठीला बदन और छाती पर उभरते बाल उसे बता रहे थे कि राजू अब उसका वो लल्ला नहीं रहा जो घर के आंगन में बचपन में नंगा ही घूमता था। बीना उसके पीछे दौड़ती थी, और उसे गोद में उठा लेती। फिर उसे लाड़ प्यार करती थी। बीना ने उसे देख मन में कहा," केतना बड़ा हो गइल हमार राजू। पूरा जवान हो गइल बा।"
उसके सुपाड़े को छू उसने उंगली सूंघ लिया। उसमें कल रात राजू के लण्ड से बहे मूठ की सौंधी सी खुशबू थी। राजू की गंदी चड्डी भी ऐसी ही महकती थी। बीना अपनी नाक ले जाकर उसका सुपाड़ा सूंघ रही थी। बीना की बूर बह रही थी, क्योंकि जो चीज़ उसकी काम वासना की प्यास बुझा सकता था, वो उसके सामने थी। बीना बेटे के तगड़े लण्ड से प्रभावित थी। उसकी सांसें तेज चल रही थी और दिल जोड़ों से धड़क रहा था। बीना पूरी तरह बहकने लगी थी। वो जैसे ही उसका लण्ड पकड़ने वाली थी, कि राजू उठ गया। बीना हड़बड़ा कर झाड़ू उठा बोली," के...केतना देर तक सुतल बारे, देख देर हो गइल। उठ जल्दी मुँह हाथ धो अउर नहा ले, हम खाना लगा देब। तब हमहुँ नहाएब।"
राजू," हाँ जात बानि, बाबूजी गइलन का?
बीना," हाँ, उ त सवेरे गइलन बेटा, खेत पर।
राजू," खेत पर ?
बीना," हाँ, खेत के देखभाल जरूरी बा। आपन जमीन के ध्यान अब तहरो रखे के चाही। अब तू भी सारा संपत्ति अउर आपन हक़ के हर चीज़ के देखल करअ।"
राजू," सब वक़्त पर अपने चल आई हमरा पास।"
बीना मुस्कुराते हुए झाड़ू लगा रही थी, ऐसा करते हुए उसकी बड़ी गाँड़ साड़ी के ऊपर से भी कहर ढ़ा रही थी। राजू को बीना के उभार देख मन मचल रहा था। बीना की गाँड़ भी अच्छे से मटक रही थी। राजू का मन हो रहा था, कि उसके बड़े बड़े चूतड़ों को थाम महसूस करे। बीना जान रही थी, कि राजू उसकी ओर ही देख रहा है। वो भी राजू को अपने पिछले उभार लहरा लहरा के दिखा रही थी। बीना तभी राजू से बोली," बेटा, तनि हमके छज्जा साफ करेके बा। तू कर देबु का?
राजू," माई तू जेतना बढ़िया करबू, उतना बढ़िया हम न कर पाइब। हम तहरा गोदी में उठाके रखब, तू सफाई कर लिहा।"
बीना कुछ नहीं बोली बस मुस्कुराई। राजू उसके पीछे आया और अपने हाथों को उसके कमर के इर्द गिर्द बांध उसे गोद में उठा लिया। बीना के चूतड़ राजू के लण्ड को अपनी दरार के बीचों बीच महसूस कर रहे थे। राजू की तो लॉटरी लग गयी थी, भई अंधा क्या मांगे दो आँखे। बीना अपने चूतड़ पर उसका लण्ड बड़े मजे से महसूस कर रही थी। वो अपने चूतड़ से उसका लण्ड मसल रही थी। बीना और राजू सफाई कम एक दूसरे के बदन को ज्यादा महसूस कर रहे थे। बीना भारी थी पर राजू को उसे उठाने में बोझ बिल्कुल महसूस नहीं हो रहा था। बीना की बूर से तो जैसे पानी की नदी बह गई थी।
बीना," राजू हम ज्यादा भारी बानि का। तनि बढ़िया से सफाई करेके बा। तनि देर असही रहे के पड़ी।"
राजू का चेहरा उसके कंधे के पास था," ना माई तू आराम से रगड़ रगड़ के सफाई कर हम पूरा साथ देब। तू चिंता मत कर हम उठाके रखब।"
बीना," बेटा, रगड़ाई बढ़िया से करब तभी त मन संतुष्ट होई ना। तू खाली खड़ा कइके रखिहा।"
राजू," का खड़ा करके रखी माई?
बीना शरारती मुस्कान से बोली," हमके राजू।"
राजू उसे गोद में उठाये हुए पूरा छज्जा साफ करवाया। राजू ने फिर बीना को उतारा तो बीना बोली," अब तू रुक जो, हमके नहाय दे। बहुत गंदा पड़ गईल बा। तू बाद में नहा लिहा।"
राजू," ठीक बा, तब तक गाय सबके चारा दे देब।"
बीना फिर अपने कमरे में चली गयी। वो नहाने का साबुन सर्फ कपड़े इत्यादि ले कमरे से बाहर निकलने वाली थी।
तभी उसे याद आया कि बूर के घने घुंघराले बाल काटने हैं। हमेशा कच्छी और घने बालों के बीच बूर गीली होने की वजह से खुजली सी होने लगी थी। उसने चुपके से कपड़ों के बीच कैंची रख ली। फिर नहाने चली गयी। स्नानागार में पहुंच उसने अपने कपड़े रस्सी पर डाले, फिर अपनी साड़ी उतारी, ब्लाउज, साया भी उतार दिया। घर के अंदर उसने ना तो कच्छी पहनी थी और ना ही ब्रा। वो इस समय सम्पूर्ण नंगी थी। बीना ने फिर बूर की ओर देखा और घने बालों को ऊपर से सहलाया। उसने कभी भी बूर के बाल नहीं काटे थे। उसने आंखे मीच कर कैंची से बाल काटना शुरू किया। उसकी सुंदर बूर झांटों के बीच फंसी हुई थी। बीना ने बाल्टी उल्टी कर एक पैर उपसर डाला और फिर झांटों की छटाई करने लगी। बूर के बालों की छंटाई शुरू में तो आसान थी, पर बाद में जांघों के किनारों और बूर के चीरे के आसपास बालों की कटाई टेढ़ी खीर थी। बीना ने कभी काटी नहीं थी। वो काटते हुए डर भी रही थी। उसे बूर के बाल कटने से वहां काफी हल्का महसूस हो रहा था। बूर उन झांटों से आज़ाद होकर, खुद को स्वच्छंद महसूस कर रही थी। ताज़ी हवा बूर को जब छू रही थी तो, वो सिहक उठती थी। बीना शरमाते हुए बाल काट रही थी, उसने देखा पैरों के नीचे बालों का ढेर लग गया था। अचानक से बाल काटते हुए, उसने गलती से बूर के पास दाहिने हिस्से पर चमड़ी ही काट ली। उसकी जोर की सिसकी ली और वहां से खून निकलने लगा। बीना बूर से बाल काटना छोड़ रोने लगी। घाव गहरा हो गया था और लहू भी खूब बह रहा था। राजू जो गाय को चारा देने खटाल में था, वहां अपनी माँ का शोर सुन तेज़ कदमों से पहुंचा। बीना अंदर रो रही थी, राजू ने खुले दरवाज़े को धक्का देकर अंदर गया। बीना उसे देख अपने बदन को हाथों से ढकने लगी। बीना ने एक हाथ से चूचियाँ और दूसरे से बूर को ढके खड़ी रो रही थी। राजू अपनी माँ को इस अवस्था में देख उत्तेजित हो उठा। उसके खुले बाल और नंगा जिस्म उसके अंदर के मर्द को जगाने लगा। राजू उसे सर से लेकर पैरों तक घूर के देख रहा था।
बीना," राजू बेटा, इँहा से जो देखत नइखे, हम लंगटे बानि। हम नहाय खातिर इँहा अपन कपड़ा उतार देले बानि।" वो सुबकते हुए बोली।"
राजू," उ त ठीक बा, पर तु कानत काहे बारे? का भईल बोल ना।"
बीना," उ..उ... उ बाल काटत रहनि।'
राजू," का... कउन बाल अउर कइसे?
बीना," ऊंहा के बाल, राजू।"
राजू," ना बुझनी माई बोल ना स्पष्ट कहां के।"
बीना," बूर के बाल, पहिल बेर काटत रहनि, राजू लग गईल।"
राजू," कहाँ, बूर में लग गईल का?
बीना," बूर के पास, इँहा।" उंगली से इशारे कर जवाब देते हुए बोली।
राजू," अरे बाप रे, कैंची से काटत रहलु का। अरे उ कहीं सेप्टिक ना हो जाये। ऊंहा त डेटोल लगावे के पड़ी।"
बीना," आह, राजू बहुत छनछनाता, बड़ा दुख रहल बा।"
राजू," रुक हम लेके आवत हईं, तू अइसे ही खड़ा रह।"
राजू बाहर निकलकर सीधा अपने कमरे में गया और डेटोल की शीशी ले आया। बीना अभी भी वैसे ही खड़ी थी। बीना उसे करीब आता देख, थोड़ी संकुचाई और संशय में थी। उसे अपने बेटे के लण्ड का तनाव स्पष्ट दिख रहा था। वो अच्छी तरह जानती थी कि इसकी वजह उसका ये नंगा यौवन है, जो अपनी ही सगी माँ को देख उत्तेजित हो उठा है। क्या सच में वो अभी भी किसी नवयौवना की भांति, मर्द को संभोग के लिए अपने निर्वस्त्र शरीर से निमंत्रण दे सकती है। राजू तो उसके नंगे नारीत्व को देख, उसे स्त्री के दृष्टि से देख रहा था।
वो बीना के करीब आया और उसके सामने घुटनों पर बैठ गया। बीना उसे देख रही थी, उसने रुई ली और बीना का हाथ बूर से हटाने को बोला। बीना उसकी ओर देख संशय से रोते हुए बोली," राजू हम तहार माई बानि। हम तहरा सामने लंगटे बानि। हमके लाज आवेला, तहरा लाज नइखे लागत का बेशरम। ला हमके दे दे हम लगा लेब।"
राजू," माई, एमे लाज के का बात बा? इँहा इलाज के बात बा। तहरा कट गईल एहीसे त हम डेटोल लगावे खातिर आईल बानि। तू का समझआ तारू?
बीना," तू दे दआ, हम अपने से कर लेब बेटा।"
राजू," तू चुप कर, शरम छोड़ अउर हमके उपचार करे दे, चल हाथ हटा।"
बीना," राजू, पर....कइसे,, हाय राम का करि।"
राजू," ठीक बा, खाली कटल जगह घाव देखा दअ। बाकी ढक ले।"
बीना को ये बात ठीक लगी, उसने बड़ी ही सावधानी से बूर का चीरा को ढक लिया, और घाव जो बूर के बेहद करीब थी, उसे उजागर किया। राजू ने उसे बड़े करीब से देखा और उस पर रुई से डेटोल लगाने लगा। बीना को छनछनाहट महसूस हुई, तो वो इसस..इस..कर आवाज़ें निकालते हुए रो रही थी। राजू उसे बार बार चुप रहने को बोल रहा था। बीना लेकिन चुप नहीं हो रही थी। राजू अपने सामने अपनी निर्वस्त्र माँ को, देख उत्तेजित तो था ही, पर उसे ये चुभ रहा था कि उसने अभी तक अपने यौनांग उससे छुपाए रखे थे। साथ ही वो छोटा सा दर्द बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
राजू," चुप कर माई, तू एतना दरद भी ना बर्दाश्त कर सकेलु का? औरत के त दरद सहे के आदत होखेला। जाने दू दू बच्चा के कइसे जनम देलु। ई छोट घाव से तू एतना परेशान होबु त काम ना चली।"
बीना कुछ न बोली, लेकिन वो अब राजू की बात सुन चुप हो गयी। दरअसल राजू के छुवन से उसे भी ठरक थोड़ी थोड़ी चढ़ रही थी। राजू उसकी जाँघे धीरे धीरे सहला रहा था। वो घाव के बेहद करीब जाकर फूंक रहा था। गीली बूर हथेली से चिपकी हुई थी, राजू गीलापन उसकी उंगली पर देख सकता था। बीना के हाथों में चूड़ी और पैरों में पायल बहुत मस्त लग रही थी। बीना राजू को लगातार देख रही थी।
बीना," राजू हो गइल का?
राजू," हाँ, लगभग।
बीना," हमके अब नहाय दअ।"
राजू," का बात करअ तारू? तू अब ना नहो। घाव गीला होई त नुकसान होई। चल घर के अंदर अउर आराम कर।"
बीना," अच्छा, लेकिन हमार बाकी झांट के काटी? वो राजू की ओर कैंची दिखाते हुए बोली।
राजू उसके हाथ से कैंची लेकर बोला," हम काट देब, लेकिन तू नहो मत। इँहा काट दी का?
बीना," काट दअ बड़ा हल्का लागत बा। हमरा से गलती हो गइल की तहरा से ना कटवईनी, अब देखआ तहरे से कटाबे के पड़ी।"
राजू बात बनती देख बोला," अरे हम बानि काहे तहरा खातिर ना, लावा हमार जांघ पर पैरवा रखआ।" उसने हाथों से जांघ पीटते हुए, बीना को पैर रखने को कहा। बीना ने वैसा ही किया। बीना अब अपनी बूर के चीरा को दो उंगली से ढक ली और बाकि खुला छोड़ दिया। राजू बिना देर किये उसके बाल काटने लगा। राजू को उसके घुंघराले बाल देख, जिज्ञासा और उत्तेजना महसूस हो रही थी। बीना अपनी बूर को उतना ढक उसे उत्तेजित कर रही थी। राजू किसी तरह बीना की उन दोनों उंगलियों को हटा देना चाहता था, क्योंकि उसके पीछे वो द्वार था जिससे वो इस दुनिया में आया था, बीना की बूर। बीच बीच में उन दोनों की निगाहें टकराती पर कोई कुछ नहीं बोलता। दोनों की प्यासी आंखें एक दूसरे के अंदर की वासना टटोलने का प्रयास कर रही थी, हालांकि माँ बेटे के रिश्ते में लंपट व्यभिचार की जगह ही नहीं है। लेकिन ये रिश्ते नाते जिस्म की आग में जल ही जाते हैं। बीना अपने बूर के बाल अच्छे से खड़े होकर कटवा रही थी, उसकी विशेष हजामत अब खत्म हो चुकी थी। राजू बार बार बूर और जांघों की जोड़ की जगह को हाथों से साफ कर रहा था, ताकि छोटे बाल अटक ना जाये। बीना के बूर के ऊपर बालों का पतला गुच्छा रह गया था, जो राजू को अच्छा लग रहा था। राजू ने उसे रहने दिया।
बीना," राजू तनि झांट के बाल रह गईल बा?
राजू," उ रहे दे, अच्छा लागेला।"
बीना," चल बेटा, अब हमके नहाय दे।"
राजू ने ऊपर से लेकर नीचे तक उसे देखते हुए कहा," अब कच्छी में गर्मी ना बुझाई, ना बाल कच्छी से बाहर झांकी।"
बीना," राजू, हाय सच कहअ तारे, जानत बारू एक त कच्छी, फेर साया अउर ऊपर से साड़ी, बहुत गर्मी बुझावेला, ढ़ेरी पसीना चुएला। अब बहुत राहत रही।" बीना अभी भी चूचियों और बूर को ढ़के हुए खड़ी थी। वो भी थोड़ी खुल चुकी थी। उसे अब जलन से आराम भी हो चुका था। राजू से वो कुछ बोलती इससे पहले राजू ने उसे देख कहा," सखि, जल्दी से नहा लआ, फेर अभी उ मैक्सी पेन्ह लिहा,हीरोइन लगबु।"
बीना मुस्कुराते हुए," कउन हीरोइन, तहार किताब जइसन का?
राजू," कसम से माई, उ किताब सब अब छोड़ देनी, जबसे तू कहलु?
बीना," अच्छा, मरद जात कुत्ता के पूँछिया जइसन होखेला, तू किताब छोड़ कुछ अउर करत होखब, हम बुझत बानि। आजकल सब गंदा गंदा फिलिम भी बनावेली, उ सब त नइखे देखत बारू।"
राजू," तू, ई का कहत बारू, हम जात हईं तू नहा ले।"
राजू के बाहर निकलते ही बीना हंस पड़ी। उसे राजू को छेड़ने में मज़ा आ रहा था। बीना नहाने लगी। उसने बदन पर ताज़ा ताज़ा ठंढा पानी डाला, और अपने खूबसूरत जिस्म को रगड़ के साफ करने लगी। बीना मग से पानी अपने बदन पर डाल रही थी। बीना का अंग अंग चमक रहा था। पानी में भीगने से उसका जिस्म और अधिक कामुक हो गयी थी। उसने अपने पूरे बदन पर पानी गिराने के बाद, अपने हाथों से बदन को मल रही थी। उसे खुद को अच्छे से साफ करना था इसलिए उसने धीरे धीरे बदन पर साबुन लगाना शुरू कर दिया। बीना के गोरे बदन पर झाग फैलने लगा। उसका नंगा बदन साबुन की झाग में पिरो गया था। बीना अपनी चूचियों और चूचक को सहलाते हुए साबुन मल रही थी। फिर उसने अपने पेट, पर साबुन मला साबुन की झाग उसकी लटकती चर्बी से गिरने लगा। कमर पर साबुन लगा लिया और फिर अपने नारीत्व की पहचान अपनी बूर पर साबुन को अच्छे से लगाने लगी। बीना अपनी बूर के चीरे पर गुलाबी बूर को साबुन से रगड़ रही थी। वो इस बात से अनजान थी कि राजू चुपके से उसे देख रहा है। वैसे तो राजू ने कई बार बीना को नंगी देखा था, पर आज वो उसके बेहद करीब थी। उसने अपनी माँ को सम्पूर्ण नंगी इतने करीब से नहीं देखा था। उसके और बीना के बीच केवल एक दीवार थी। लेकिन बीना के नंगे बदन और उसकी आंखें एक छेद से मिल रही थी। राजू ने बीना को गुड्डी से मिलाने का प्रयास किया। गुड्डी बीना की जवानी का प्रतिबिंब थी। बीना अभी अपने चूतड़ों की दरार में साबुन मल रही थी। उसके भारी भरकम चूतड़ उसकी हरकत से थिरक रहे थे। बीना अपनी गाँड़ की छेद और बूर के पास हाथों से साबुन मल रही थी। राजू का लण्ड उफान मार रहा था। अपनी सगी मां को अभी वो सिर्फ स्त्री की नज़र से देख रहा था। बीना फिर झुककर पैरों में साबुन मल रही थी। उसकी गाँड़ राजू के सामने पूरी फैली हुई थी। बीना की पायल और बिछिया से सजे पैर झनक रही थी। उसके हाथों की चूड़ी भी खनक रही थी जो राजू के लिए संगीत था। इतनी खूबसूरत माँ हो तो बेटा भी पागल हो जाये, उसने मन ही मन सोचा आखिर सामने एक स्त्री ही तो है और वो एक मर्द। स्त्री को पुरुष चाहिए, उसकी माँ की अधूरी कामुक इच्छाएं भी तो किसी मर्द को पूरी करनी होगी। नहीं तो आज नहीं तो कल उसे कोई ना कोई जरूर फंसा लेगा। गांव में तो जरूर लोग उसके माँ के बारे में गंदी बातें करते होंगे। अगर उसने उसकी इच्छा पूरी नहीं कि, तो अधूरी प्यासी औरत को पटाना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं हैं। अपने घर की चीज़ें तो उसे खुद संवारनी होगी। राजू ये सब सोचते हुए अपना लण्ड निकालके मूठ मारने लगा था। इतने में बीना अपने बदन पर दुबारा पानी डालके, झाग निकाल रही थी। उसने आसमान की ओर देखते हुए पानी अपने नंगे बदन के ऊपर डाल रही थी।चूचियों और चुचकों से टपकता पानी बेहद कामुक लग रहा था। वो पानी सरकता हुआ उसके पेट से उसकी बूर की त्रिकोण की ओर बढ़ चला। और उसकी ताज़ी चिकनी सांवली बूर को साफ कर गया। बीना अपनी बूर पर पानी डालते हुए बूर को साफ कर रही थी। बीना ने बूर की फांकों को फैलाया तो उसकी गुलाबी बूर अंदर से झांक गयी। राजू की ये देख सांसे अटक गई थी। अपनी माँ की बूर देख राजू का पानी निकल गया। वो वहां मूठ गिराके चला गया।

राजू अगले दिन जब पढ़ाई करने गया तो, बाजार से उसी दुकान से अपनी माँ के लिए एक मैरून कलर की मैक्सी खरीद लाया। जब घर पहुंचा तो बीना घर में धरमदेव के पैर दबा रही थी। उसने बीना को इशारा कर अपने कमरे में बुलाया। धरमदेव सो चुका था। बीना उठकर राजू के कमरे में गयी। राजू ने उसे पकड़कर दरवाज़े के पीछे छुपा लिया। राजू बीना की ओर देख मुस्कुराया। बीना उसकी आँखों में देख बोली," का बात बा मुस्कुरात काहे बाटे?
राजू," तहरा अब रात में आराम हो जाई?
बीना," अच्छा कइसे?
राजू उसके करीब आ थैला दिखाया।
बीना ने पूछा," का बाटे?
राजू ने बोला," तहरा खातिर हम मैक्सी ले आइनी ह। ई देखअ।"
बीना उसकी ओर देख बोली," लेकिन काहे?
राजू," उ रतिया में तू कहत रहलु ना कि, साड़ी साया में दिक्कत होता सूते में,एहीसे हम तहरा खातिर ई लेनी ह, ई में तहरा बहुत आराम होई।"
बीना," लेकिन राजू तू ई सब खरीदलु कइसे। तहरा पइसा कहाँ से आईल। कहीं तू कुछ गलत काम धंधा त नइखे करत। सच सच बताबा?
राजू," माई, हम कुछ गलत न कइनी।"
बीना," त पइसा कहां से आईल?
राजू," माई तू नाराज़ मत हो, हम बतावत बानि। तहरा खातिर हम कुछ भी कर सकेलि। लेकिन अगर हम तहरा बताईब त तू खिसिया मत जहिया।"
बीना," राजू, तू पहिले मोर कसम खाके बोलअ कहीं तू जुआ उआ त नइखे खेलत, कउनु गलत काम....बाप रे बाप?
राजू," माई, हम तहार कसम खाके कहत बानि कि हम कउनु गैर कानूनी काम ना कइनी। तू चिंता मत करअ, काहे कि ई पइसा हम हमार छात्रवृत्ति से निकलनी। पांच हज़ार आईल रहे, उ में से 1000 निकलने रहनि। एहि से तहरा खातिर सबसे पहिले ई सुंदर मैक्सी ले आउनी।"
बीना की आंखों में आँसू आ गए, बेटे ने अपनी छात्रवृत्ति से उसके लिए मैक्सी खरीद लायी थी।
राजू ने उसकी आँखों से आंसू पोछते हुए कहा," अइसन सुंदर आँखिया में ई मोट मोट आंसू बढ़िया नइखे लागत।"
बीना उससे बोली," मोर राजा बेटा, हमका माफ कर दआ, हम तहरा पर शक कइनी। हम जानत बानि कि तू गलत काम नइखे कर सकत। लेकिन उ तहार पढ़ाई खातिर रहे, उमे से काहे निकाललु पइसा? हमके एकर कउनु खास जरूरत नइखे।"
राजू," जरूरत काहे नइखे, एमे तहरा बहुत आराम रही।सूते के समय तहरा खाली इहे पेन्हे के बा। घर में काम काज के बेर में भी तू ई पहन सकेलु। पढ़ाई के खातिर पइसा बहुत बा। हम तहार बेटा बानि, लेकिन ई उपहार हम तहरा एक सहेली के हैसियत से देत बानि।"
बीना," अच्छा अब सहेली दी, त लेवे के पड़ी। लेकिन ई हम पेनहब कइसे, तहार बाबूजी पूछिहं त का जवाब देब, काहे से हम कभू ई सब पहनली ना ना?
राजू," हहम्म... ई बात बा। लेकिन तू ई बात बतहिया कि गुड्डी दीदी फोन पर, तहरा से मैक्सी के बारे में बताइल्स। एहि से तू बाजार से ख़रीदके ले आइलु।"
बीना," लेकिन राजू ई त झूठ बात बा ना, सच त इहे बा कि हमके हमार सहेली ई देले बा।"
राजू," अच्छा, त ठीक बा इहे बता दिहा।"
बीना," तहार बाबूजी खिसिया जायीं, बूझला रहे द, हम गुड्डी के ही नाम कह देब।"
राजू," ई मैक्सी पहन के देखाबा, सखि? राजू जानता था कि उसकी माँ अपनी सहेलियों को सखि ही बोलती है इसलिए उसने जानबूझ कर उसे सखि बोल संबोधित किया।
बीना," अच्छा, तहरा अब अपना माई के मैक्सी में देखे के बा सखी।" राजू की बात में सखी शब्द का जवाब उसने भी सखी से ही दिया। दोनों ने पहली बार स्पष्ट रूप से एक दूसरे को सखी कहा।
बीना उठके अंदर चली गयी। राजू उसे कमरे के अंदर जाके देखता रहा। थोड़ी ही देर में बीना अपनी साड़ी और ब्लाउज उतार चुकी थी। उसने फिर साया भी खोला और ऊपर से मैक्सी पहन ली। उस मैरून रंग की मैक्सी में वो बेहद खूबसूरत लग रही थी। बीना कमरे के बाहर निकल आयी। सामने राजू उसे देखने को बेताब था। उसके खुले बाल, उसका मासूम चेहरा, उसकी कजरारी आंखे, उसका शरीर बस उस कॉटन की मैक्सी से ढकी हुई थी, उसे देख राजू के मुंह से आह निकल गयी। बीना देहाती होते हुए भी, इस समय उस मैक्सी में किसी हाई क्लास औरत की तरह ही दिख रही थी। राजू उसके करीब पहुंचा, और उसके चारों ओर घूमके देखने लगा। बीना मुस्कुराते हुए खड़ी थी।
बीना," कइसन लागत बा?
राजू," जबरदस्त माई, तू एकदम कउनु हीरोइन से कम नइखे लागत।"
बीना," हट, बदमाश... झूठ केतना बोलत बारे।"
राजू," ना सच में, तू गर्दा बुझा रहल बारू। एकर फिटिंग भी बढ़िया बा।"
बीना," हाँ, फिटिंग बढ़िया बा। लेकिन ई में हमार बांहिया उघार रही। खाली कंधे तक कपड़ा बा।"
राजू," बढ़िया बा, गर्मी महीना तहरा खुलल खुलल बुझाई। वइसे भी कंखिया में हवा लगी, त पसीना सूख जाई।"
बीना ने अपने काँख उठाके सहलाया और बोली," हाँ, ई बात त बा सखि ।"
राजू," सखि, ई बताबा साड़ी साया से हल्का बुझा रहल बा कि ना?
बीना बोली," हाँ सखि, ई बहुत हल्का बा। अइसन बुझा रहल बा कि हम कुछ पहनने नइखे।" बीना और राजू एक दूसरे के सामने बेहद करीब खड़े थे। अचानक से राजू ने बीना को पकड़के अपने करीब खींच लिया। बीना उसके सीने से तेज़ी से टकराई। उसकी बड़ी चूचियों ने शॉक अब्सॉर्बेर का काम किया। बीना की जुल्फें पूरबाई से लहरा रही थी। बीना और उसकी आंखें टकरा गई, बीना बोली," अइसे काहे बन्हिया में खींच लेलु, कुछो चाही का?
राजू," माई हम सच बताईं त हम तहरा जइसन मेहरु चाहत बानि, जउन तहरा जइसे घर सँभारे, तहरा जइसन कद काठी हो, तहरा जइसन चाल ढाल होए, तहार जइसन सुंदर चेहरा, तहार जइसन आँखिया, तहार जइसन लाल ओठवाँ, तहार जइसन ई कारी कारी केसिया।"
बीना," अच्छा, कहीं हमहि तहरा पसंद त नइखे सखि।"
राजू," सखि, काश तू कुमारी रहित, त तहराके बियाह करके ले आउती। तहरा रानी बनाके रखति।"
बीना उसकी आँखों में देख बोली," सब मरद असही बोलेला, एक बेर बियाह हो जाता ओकरा बाद पत्नी के ध्यान ना देवेलन।"
राजू बीना को चूतड़ों से भींचके अपने करीब ले आया और बोला," हमार आँखिया में देखके बोलआ सखि, तहरा का बुझाता कि हम आपन पत्नी के प्यार ना करब का?
बीना ने उसकी ओर देखा उसके और राजू के चेहरे के बीच बहुत कम दूरी थी। बीना उसकी आँखों में देखते हुए जाने कब अपने होठ राजू के होंठ से मिला दिए। बीना राजू के सर को थामे अपने होठों को उसके होठों से मल रही थी। ये पहला मौका था कि बीना राजू के प्यार को देख बहक उठी। उसे राजू की मजबूत बांहों में समर्पित होना अच्छा लग रहा था। बीना उसके साथ बहक उठी थी और दोनों चुम्बन में लीन थे। राजू बीना को अपनी बांहों में कसके थामे था। उसी वक़्त बाहर तेज़ बिजली चमकी और बीना जो चुम्बन में खोई हुई थी, उसे होश आया। खुदको राजू से अलग किया उसकी ओर देखते हुए पीछे हटने लगी। राजू उसकी ओर हाथ बढ़ाये हुए था, पर बीना पीछे हटती रही। आखिर में बीना जल्दी से भागते हुए अपने कमरे में पहुंच गई और दरवाज़ा बंद कर लिया। बाहर तेज बारिश शुरू हो चुकी थी, जिसके छींटे अब राजू और बीना के बदन के साथ साथ दिल पर भी गिर रहे थे। दो जिस्म अब एक दूसरे की चाह में सावन में जल रहे थे
Gojob ki khushi I boss
 

liverpool244

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Bhai bas itna bata do update kab tak aa sakta hai..??
 

moms_bachha

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कामज्वर भाग-१

वासना की अग्नि में जब अरमान और चाहतें धीमी आंच पर सुलगती हैं, तो मन बहकने लगता है और ना खुद पर किसी तरह का काबू रहता है। तन मन बदन सब उस वासना के समुंदर में डूब जाना चाहते हैं, जिसके किनारे बैठ लोग मिलन के कामुक सपने देखते हैं। स्त्री या पुरुष जिस साथी के साथ मिलन करना चाहते हैं, उसका स्पर्श अनुपम और नवीन लगता है। जब तक उससे मिलन ना हो तब तक कामाग्नि शांत ही नहीं होती। बदन उसके कामुक स्पर्श के लिए जलता है और मन रात दिन बहकता है। ऐसे में बदन ज्वर में जलता है,जिसे कामज्वर कहते हैं।

गुड्डी का सारा काम खत्म करके अपने कमरे में आ गयी थी। उसका पति आज नाईट ड्यूटी पर था। इसलिए कमरे में कोई नहीं था। आंगन में पूरी खामोशी थी। गुड्डी अपने आँचल में एक खीरा छिपाकर ले जा रही थी। वो तेज कदमों से अपने कमरे में घुस गई। फिर दरवाज़ा लगाकर अपने कमरे के बीचों बीच लगे बिस्तर पर बैठ खीरा को बगल में रख दिया। उमस भरी रात थी तो उसने पंखा चालू कर दिया था। उसने अपनी लाल साड़ी का आँचल लुढ़का दिया था, और ब्लाउज के बटन खोल बैठी थी। उसके चूचियों की घाटी में पसीना गले से उतर रहा था। उसके कांख पर रेशमी बाल, और ब्लाउज की कसावट से पसीना वहां कुछ ज़्यादा ही था और गीला हो चुका था। उसने अपने बाल खोल दिये और लहरा दिया। उस नवविवाहित लड़की के जीवन में चुदाई के अभाव में कामेच्छायें दिल में रह रहकर उमड़ रही थीं। एक तो उसका पति मर्द के नाम पर एक बदनुमा दाग था, और दूसरा कि वो दिल से राजू के अलावे किसी और के साथ खुद को सौंप नहीं सकती थी। राजू को तो उसने अपना दिल और जिस्म दोनों दे दिया था। वो चाहती तो अपने पति के साथ मुख मैथुन, हस्त मैथुन का सुख ले सकती थी, पर राजू के अलावा वो किसी और को अपना तन सौंपना ही नहीं चाहती थी। बिस्तर पर लेटे लेटे वो राजू के साथ बिताए अंतरंग क्षणों को याद कर शरमा रही थी। उसकी साड़ी ना जाने कब खुलकर बिस्तर पर सिमट चुकी थी। उसका साया जांघों से भी काफी उपर सिमट चुका था। उसने कच्छी उतार कर घुटनों तक कर दी थी। वो अपने बूर पर खड़ी फसल को महसूस करते हुए, मचल उठी। उसके होठ अपने आप दांतों तले चले गए। उसने खीरा को अपनी बूर पर मला और बूर के रिसते पानी से खीरा पूरा गीला हो गया। बूर तो पानी छोड़ पहले ही चिकनी हुई पड़ी थी। गीली बूर पर खीरा फिसलके उसकी गहराई को चूमने लगा। गुड्डी ने बूर को बेवकूफ बनाते हुए उसे लौड़े का एहसास दिलाया। बूर ने खुद को उसके चारों ओर कसा हुआ फंदा लगाया। गुड्डी के हाथ बूर में खीरा को अनायास ही अंदर बाहर करने लगे। गुड्डी मस्ता चुकी थी। बूर में राजू का लण्ड ना सही, पर खीरे ने उसे थोड़ी राहत तो दी थी। अपने कमरे में उसकी आहें सिर्फ उसके कानों से टकड़ा रही थी। बूर की फांकों के बीच हरा खीरा बड़ा भिन्न लग रहा था। उसने ब्लाउज से अपनी मदमस्त फूली चूचियाँ निकाल दी थी, और भूरे चूचक कड़क होकर किसी पुरुष के गीले मुख में चूसे जाने को आतुर हो रहे थे। चूचियाँ तनी और फूली हुई आटे की तरह मसले जाने के लिए इधर उधर लुढ़क रही थी। उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। अपने लाल लबों से मदहोशी का जाम वो पिलाना चाहती थी। पर इस समय उसके पास उसकी अर्धनग्नता का प्रदर्शन देखने कोई नहीं था। उसकी हाथों की चूड़ियां और पैरों में पायल कमरे में उसकी अश्लील और हवसी हरकतों की दुहाई दे रही थी। कुछ देर बाद उसने अपनी ब्लाउज उतार फेंकी और अगले ही पल साया को भी उतार कर बिस्तर से नीचे फेंक दिया। लेकिन घुटनो में कच्छी अभी भी फंसी थी। गुड्डी एक हाथ से बूर में खीरा पेल रही थी, और उसी हाथ के अंगूठे से बूर के खड़े दाने को सहला रही थी। दूसरे हाथ से वो अपनी चूचियाँ दबाती तो कभी अपने अंग को सहलाती। उसके मुंह से रह रहकर राजू का नाम फूट रहा था," आह...आह.... राजू.....ररर...राजू....आजा..... हम पियासल बानि। मोर.... राजा.....तहार ....रररानी.... बेचैन बिया......आह...उऊऊऊ... ऊहह..." ऐसा बोल वो अपने गाल और गर्दन सहलाते हुए होठों को काट रही थी। ऐसी नवविवाहित लड़की जिसे शादी से पहले ही लण्ड की आदत लग चुकी हो, और अब नामर्द पति मिले तो वासना उसके अंदर नागिन की तरह फुंफकारती है। वो इस बिस्तर पर वैसे ही सिसकारी मारते हुए बलखा रही थी। उसके अंदर जो वासना लावा बनकर फूट रही थी, उसे सिर्फ राजू ही काबू कर सकता था। कोई अन्य पुरुष तो गुड्डी के गर्मी के सामने पलक झंपकते पिघल जाता। कामुक स्त्री जब बेलगाम हो जाती है तो उसे, फिर साधारण पुरुष नहीं बल्कि उसकी लगाम खींचकर काबू करने के लिए प्रभुत्व से सम्पन्न पुरुष चाहिए, जो भोग विलास में उन्हें स्त्री होने का गौरव प्रदान कर सके। ऐसे में गुड्डी जैसी कामुक नारी बिन चुदाई के खुद को हस्त मैथुन से संतुष्ट करना चाहती थी। पर उसे ये नहीं पता था कि ये क्रियाएं कुछ पल के लिए शांति देती हैं, पर कुछ देर बाद ही वासना दुगने प्रभाव से शरीर में आग लगाती है। दबी कामेच्छायें दिन पर दिन बढ़ती जाती हैं जिससे स्त्री खुदको अनछुया नहीं रख पाती। कुछ देर बाद गुड्डी की बूर तेजी से फड़कने लगी और बदन अकड़ने लगा। उसकी भंवे तन गयी और वो दांत से होठो को काटते हुए बूर से फव्वारा छोड़ने लगी। धीरे धीरे वो तीन चार बार बूर से पानी फेंकी और वो द्रव्य बिस्तर को गीला कर गया। गुड्डी नंगी ही लेटी थी, वो तेजी से हांफ रही थी। वो उसी तरह नंग धरंग बिस्तर में फैल गयी।

राजू के जाने के बाद बीना बुझ सी गयी थी। उसे राजू की गंदी छेड़छाड़ की आदत पड़ चुकी थी। बीना घर पर खाना बनाते हुए, राजू की यादों में खोई हुई थी। वो राजू से शारीरिक तौर पर काफी हद तक नंगी ही हो चुकी थी। राजू ने उसकी बूर के अलावा अब तक पूरा नग्न शरीर देखा था। बीना को शर्म भी आ रही थी, पर मन उस बहकने को उचित भी बता रहा था। राजू के साथ बिताई हुई पिछली रात उसे रोमांचित और भयभीत दोनों कर रही थी। राजू की बातें, उसकी ज़िद, बीना के प्रति उसका चुम्बकीय आकर्षण सब बीना अपने दिलो दिमाग में महसूस कर रही थी। वो मन में सोचने लगी
" का राजू हमार सूखल जीवन में सावन जइसन आइल बा। हर औरत के प्यार खातिर एक अइसन मरद चाहि जउन, तन अउर मन से एकदम स्त्री के अपनावे। जीवन में मानसिक प्रेम के साथ साथ भौतिक प्रेम भी उतना ही जरूरी बा। एहीसे दुनिया में मरद अउर औरत बियाह करेलन सँ। अब तक जीवन में हमार मरद हमेशा मन मर्जी करेलन। जब जवान रहलन त खूब चोदत रहलन। सारा सारा रात सेजिया पर जगा के बूर चोद के मज़ा लूटत रहलन। मन से त कभू ना कहलन कि उ हमसे केतना प्यार करेलन। लेकिन तन के चूस चूस के खाली आपन प्यास बुझौलन। शिकायत ई ना हअ कि उ आपन प्यास बुझौले, पर हमार तन सुलगा के अब छोड़ देवलन। ई तन के आगिया दिन पर दिन सुलग रहल बा। बड़ा दिन से इके चांप के रखले बानि। लेकिन ई बदन अब एतना तंग करेला, अउर अब त उंगली, खीरा, बैगन, ककड़ी, मूली के भी ना मानेला। अब त एगो मजबूत लांड चाही, जउन बूर में खलबली मचा दी, अइसन मजबूत बांहिया चाही जउन में कैद होके भी हम आज़ाद हो जाई। अइसन मरद जउन आपन साथ साथ हमके भी चरमसुख तक पहुंचाई। ओकरा हाथ से इस्तेमाल होखे में भी अलग आनंद आयी। ई वासना, ई उत्तेजना, ई अगन, हमार तन बदन सब ओकरा समर्पित कर कामसुख के प्राप्त कर लेब। अइसन बलिष्ठ और प्रभुत्व वाला मरद ही स्त्री के संतुष्ट, सुखी अउर सौभाग्यवती रखि। अइसन मरद के सेवा करे में कइसन लाज कइसन शरम। हमार राजू में ई सब गुण बा। राजू जेकरा भाग में होई उ स्त्री बहुत भाग्यशाली होई। उ आपन औरत के खूब खुश रखि। काश उ औरत हम बनि। लेकिन उ हमार बेटा बा अउर हम ओकर माई। का ई ठीक होई, एक सगी माई आपन बेटा के साथ मेहरु मरद जइसन रही। बेटा भी मरद बा, माई भी तऔरत बिया। तन बदन त दुनु के सुलगेला। वासना के आग त दुनु के शरीर में भड़केला। हम त अइसने पियासल रहत बानि, अगर तनि राजू पानी पिया दे त केहू के का पता चली। घर के इज़्ज़त त हम ही बानि। जइसन हमार हाल बा, कहीं हम बहक जाई अउर घर के मान मर्यादा मिट्टी में मिल जायीं। आपन जवान बेटा के साथ शारीरिक संबंध ऊफ़्फ़...हाय दैय्या...केतना गंदा, अनुचित अउर पाप बुझाता। माई बेटा के बिछौना में लंगटी रहि, अउर बेटा चोदी माई के। माई के बूर में बेटा लांड घुसाई, अउर माई बूर चियार के स्वागत करि। माई के शरम लिहाज के कउनु चिंता न रहि, बस उ पाप के भी पवित्र रिश्ता के ओट में छुपा ली। एमे राजू के का गलती बा कि उ हमार कोख से जनमल, चाहे हमार का कि हम ओकर माई बानि। ई रिश्ता के साथ साथ हमार प्यार भी त उतना ही सच बा। प्यार के इज़हार भी त राजू से हम कइले बानि, अउर उ भी हमके हद से ज्यादा प्यार करेला। हम दुनु माई बेटा के रिश्ता के डोर से आज़ाद त ना हो सकेनि, पर अब किस्मत हमनी के जउन रिश्ता से जोड़ दिहले बा उ भी एगो सच्चाई बा। राजू के साथ ई नया रिश्ता के शुरुआत अनुचित होखे के साथ रोमांचकारी बा। ई सावन जीवन के पहिल सावन बा जउन एतना उमंग से भर गईल बा।"
बीना जाने क्या क्या सोचे जा रही थी और मन ही मन बड़बड़ा रही थी। तभी घर के बाहर से रंजू की आवाज़ आयी। बीना जो अनायास ही खुद को सहला रही थी, अचानक से सतर्क हो उठी। उसने अपनी साड़ी ठीक की और चूल्हे पर चढ़ी कढ़ाई में करछी चलाने लगी। रंजू घर के अंदर आते ही बोली," बीना, कइसन बिया तू?
बीना करछी चलाते हुए बोली," ठीक बानि, अभियो बुखार बरले बा।"
रंजू," दवाई त धरम भैया लाके देलन न?
बीना," हां, खइनि तनि राहत होखेला पर फेर बुखार आपस आ जाता।"
रंजू," चल, त फेर गांव में जउन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बा, ऊंहा दिखा लअ। डॉक्टर से जांच कराके दवाई लेबु त आराम होई। देख तहार होठ कइसन सुख गईल बा। आँखिया के आसपास कारी कारी झांहि भी दिख रहल बा।"
बीना," रहे दे अपने ठीक हो जाई। कहां जाईब बरखा भी होत बा।"
रंजू," अरे अभी दिखाईबु त जल्दी ठीक हो जइबू, चल जल्दी तैयार हो।"
बीना," अच्छा, ठीक बा। बस ई सब्जी हो गइल।" थोड़ी देर बाद बीना कड़ाही उतार के कमरे में गयी। बाल सँवारे, और छाता लेकर घर से दोनों बाहर निकल गए। थोड़ी ही देर में दोनों गांव की मुख्य सड़क पर आ गयी थी। हल्की हल्की बारिश हो रही थी, पर इतनी नहीं कि छाते की जरूरत पड़े। तभी पीछे से गांव का एक आदमी भैंसों को हांकता हुआ आगे आ रहा था। उसने एक भैंस पर जोर की लाठी मारी तो, भैंस जोर से आगे भागी जिसे देख बीना डर गई। बीना और रंजू टकराई तो उनकी चूचियाँ आपस में टकड़ा गयी। दोनों को इस बात का एहसास हुआ, तो रंजू हंस पड़ी। बीना बोली," देख के भैंसन के हांक ना सकेला का?
आदमी कुछ नहीं बोला सिर्फ मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गया। बीना और रंजू चलते हुए, आखिर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पहुंच गए। द्वार पर ही एक आवारा सांड, पसरे हुए उनका स्वागत कर रहा था। अंदर जाते ही, टूटी हुई दो तीन बेंच बरामदे पर रखी हुई थी। बाहर एक पुरानी एम्बुलेंस धूल खा रही थी। वहां तीन चार कमरे थे, सबमें हरे पर्दे लगे हुए थे। कर्मचारी के नाम पर गांव का महेश ठाकुर था जो कि सफाई कर्मचारी के साथ कम्पाउण्डर का भी काम करता था। वहां का सारा हिसाब किताब वही देखता था। डॉक्टर हफ्ते में एक या दो दिन आते थे, कभी कभार नहीं भी आते थे। डिस्पेंसरी में एक नियोजित कर्मचारी था जो कि मुश्किल से 20 साल का होगा। बीना और रंजू वहां पहुंचे तो महेश वहीं कमरे में कुर्सी पर बैठे तम्बाकू घिस रहा था। उनको देखते हुए बोला," का बात बा, कइसे इँहा आइल बारू?
रंजू और बीना सर पर घूंघट किये उसकी ओर घूम गयी। रंजू बोली," देखाबे के बा डॉक्टर साहब से, तीन दिन से बुखार बा।"
महेश," केकरा बुखार बा तहरा का?
रंजू," ना, हमरा ना एकरा। डॉक्टर साहब बानि का?
महेश तम्बाकू मुंह में रखते हुए बोला," न नइखे आइहन, उ आज। ऊंहा लेट जो हम देखत बानि। दवाई मिल जाइ।"
रंजू," लेकिन हम त डॉक्टर साहब से देखाबे खातिर आइल रहनि। दवाई त पहिले भी खइले बारि, पर ठीक ना भईल।"
महेश जो थोड़ा ठरकी किस्म का आदमी था और गांव की महिलाओं को चेक उप के बहाने छेड़ता था। वो बोला," हम पिछला सत्रह साल से इँहा काम करत बानि। छोट मोट इलाज त हमहुँ कर देब, लेटी ऊंहा स्ट्रेचर पर।"
रंजू से इशारे में अनुमति पाकर, बीना स्ट्रेचर पर लेट गयी।

बीना ने महेश के कहने पर अपना आँचल हटा दिया और काली ब्लाउज में ढके उसकी उन्नत चूचियाँ और नंगा पेट सामने आ गया। उसके पेट पर जमी चर्बी उसके आकर को और आकर्षकता प्रदान कर रही थी। उसकी गहरी नाभि देख महेश की आंखे वहीं चिपक सी गयी थी। महेश ने जांचने के बहाने उसके ब्लाउज के ठीक नीचे से हाथ फेरते हुए उसकी कोमल त्वचा को छेड़ने लगा। वो उसे थामता, दबाता और फिर सहलाता। बीना जो वासना से पहले ही लबरेज, बदन को ज्वर में झोंक बैठी थी, एक अनजान पुरुष का स्पर्श बेहद संतोषजनक लग रहा था।
महेश,"भउजी, कइसन बुझा रहल हअ, दरद होत होई त बताई?
बीना," ना, अभी ना होता, होई त बताईब?
महेश," केतना दिन से बुखार बा भउजी?
बीना," इहे पिछला तीन दिन से देहिया आग बनल बा।महेश उसकी चूचियाँ ताड़ते हुए बोला," भउजी, रउवा एतना तंदुरुस्त बिया, फिर भी राउर तबियत खराब हो गइल, गजब बात बा?
बीना," का करि अकेले संभालत बानि ना हो, केहू सँभारे वाला नइखे।"
महेश," का भउजी?
बीना," हमार घर अउर का।"
महेश उसके पूरे नंगे पेट के हर हिस्से को सहलाता रहा, महसूस करता रहा और दबा दबा के देखता रहा। बीना ने कोई विरोध नहीं किया। बल्कि वो बेचारी बिरहा की मारी अपने कमर के हर हिस्से को जांच की आड़ में बेपर्दा कर चुकी थी।
बीना की कामुक नाभि ऐसी प्रतीत होती थी जैसे कोई सूक्ष्म शंख का आगे का खुला हिस्सा। वो गहरी और उतनी ही लुभावनी थी। महेश उससे छेड़छाड़ किये बिना कैसे रहता। पहले तो उसने उस कातिल नाभि में उंगली डाला और दबाते हुए बोला," हम दबा रहल बानि, अगर दरद होई तहके त बता दिहा।"
बीना ने सर हिला के इशारे में हाँ कह दिया। महेश ने उसके पेट को पूरा सहलाया, इस क्रम में उसने बीना की साड़ी कमर से, और नीचे खिसका दी। साड़ी बेहद नीचे तक आ चुकी थी जहां से उसके जांघों के ऊपर का त्रिकोण बन रहा था। अपने सामने इतनी मस्त चिकनी माल को देखकर महेश पूरा ऐसे महसूस किए जा रहा था मानो वो कोई मलाई की कटोरी हो। उसका मन हो रहा था कि बीना के ढोढ़ी को चाट ले। वो मन ही मन उसके बूर की कल्पना भी करने लगा था। अचानक उसने जोर से दबा दिया तो,बीना चिंहुक उठी।
फिर महेश ने पूछा," का भईल?
बीना," दरद हो गइल।
महेश," अच्छा, लेकिन इँहा त सब ठीक लागतअ। अरे देखआ बतियावे में भूल गइनी कि तहरा मुँह में देबे न कइनी।"
बीना," का देबू मुंहवा में।"
महेश," अरे थरमामीटर?
बीना," ओ, बुखार नापे वाला ना।"
महेश थरमामीटर झाड़ते हुए मुस्कुराया और बीना से मुंह खोलने को बोला। बीना के गुलाबी होठ शून्य का आकार बना खुल गए थे। महेश ने उसे जीभ उठाने को कहा तो उसने जीभ उठाई। फिर महेश ने उसके मुंह में थरमामीटर घुसा दिया और बोला," एकरा जीभ के नीचा में दबा लआ।" बीना के जीभ की उठती और दबती हरकत भी उसे कामुक लग रही थी। बीना की चूचियों जो ब्लाउज के उपरी हिस्से से झांक रही थी, उसमें दोनों चूचियों के बीच की घाटी उसके दिल में हलचल मचा रही थी।
महेश बोला," भउजी, तहार दिलके जांच भी करेके बा।" ऐसा बोल उसने स्टेथोस्कोप उठा गले से कानों में लगा लिया। फिर उसका दूसरा सिरा बीना की उभरी हुई छाती या यूं कहें चूंचियों के ऊपर लगा दिया। बीना के दिल की धड़कन जोर जोर से चल रही थी, उसे लब-डब की आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी।
महेश ने फिर बीना से कहा," भउजी, ऊपर वाला बटन खोलि, तनि गहराई से जांच कर ली।"
बीना ने उसकी बात मान अपने ब्लाउज के ऊपर के दो बटन खोल दिये। उसके चूंचियों के बीच की घाटी और दरार और नंगी हो गयी। महेश ने उसका फायदा उठाया और उसके ब्लाउज के अंदर स्टेथोस्कोप घुसा दिया। इस बहाने वो बीना की कोमल चूंचियों का स्पर्श पा रहा था। बीना को अब उसकी हरकतों पर थोड़ा थोड़ा संदेह होने लगा था। पर वो कुछ बोली नहीं। पुरुष का स्पर्श उसके शरीर को अच्छा लग रहा था। बीना के मुँह में थरमामीटर, गिरा हुआ आँचल, अधनंगी चूचियों पर स्टेथोस्कोप, उसके अंदर की दबी वासना और चाहत उसे बहका रही थी। तभी देखते देखते, महेश उसके एकदम पास आ गया और बीना के होठों के बेहद करीब आकर मुँह से थरमामीटर निकाल लिया और देख बोला," भउजी, तहरा त एक सौ दु बुख़ार बा। लेकिन जांच में कुछ पता नइखे चलत।"
बीना कांपते होठों से बोली," भैया, त हम ठीक कइसे होखब?
महेश ने मौके का फायदा उठाया, और उसके कमर में हाथ डाल दिया और बोला," तू खुल के बताबा का होता तहरा?
बीना कामुक थी, पर थोड़ी डरी हुई थी। उसने डरते डरते कहा," महेश भैया, मन बेचैन रहेला, कभू शांत ना होखेला। रह रहके पियास लागतआ, देहिया में मीठा मीठा दरद होखेला। हमार भतार दवाई लाके दिहले, पर ठीक न भईल।"
महेश," रात के नींद आवेला? भूख कइसन बा?
बीना," ना बेचैनी रहेला अउर भूख भी कम लागत बा।"
महेश," एगो अउर बात बताबा, बुरा मत मानिहआ। भतार खुश रखेला कि ना?
बीना आंखे बड़ी कर बोली," ई कइसन सवाल बा? ई तहरा काहे बताई?
महेश," तहरा ठीक करे खातिर पूछत बानि।
बीना ने उसकी ओर देख कहा," हाँ, रखेला हमार पूरा ध्यान राखेलन।"
महेश उसके कंधों पर सर रख बोला," तू बुझलु ना तहार शारीरिक जरूरत के ध्यान रखेला कि ना?" वो उसके चूचियों को पकड़ने को हुआ।
बीना उसकी ओर देख बोली," ई का करत बारू?
महेश," उहे जउन तहार पति न करेला।"
बीना," खबरदार हमरा छोड़ दआ।" उसके इतना बोलने से पहले महेश ब्लाउज के भीतर अपना हाथ डाल दिया। बीना जो कामुकता से लबरेज थी उसकी आँखें बन्द हो गयी। महेश बीना को गर्दन पर चूमने लगा, बीना बोली," आह... छोड़ दआ, ई तू ठीक नइखे कर रहलु।"
महेश," तहरा इहे चाही भउजी, इहे खातिर तहरा बुखार बा?
बीना भी थोड़ा बहक गयी थी इसलिए वो ठीक से प्रतिरोध नहीं कर पा रही थी। लेकिन तभी बीना को एहसास हुआ कि वो जो भी कर रही है वो ठीक नहीं है। इसलिए वो उसे धक्का देकर चिल्लाई। महेश उससे दूर जा टेबल से टकराया और रंजू आवाज़ सुन अंदर आ गयी। रंजू ने एक नज़र बीना को देखा और फिर महेश को उसे समझते देर न लगी कि महेश ने बीना के साथ छेड़छाड़ की होगी।
रंजू सबसे पहले बीना के पास गई वहां बीना को स्ट्रेचर से उतारी और दोनों ने मिलके कपड़े व्यवस्थित किये। रंजू फिर बीना से पूछी," का भईल?
बीना रोते हुए," ई.. हरामी हमरा संगे...उनन्हू...उँ" बीना रोने लगी।
रंजू फिर महेश के तरफ घूम बोली," का रे कुत्ता, शरम नइखे आवत गांव के औरतिया के साथ गंदा हरकत करत। महेश ने खुद को संभालते हुए कहा," अरे हम कुछ ना कइनी, इहे हमके बांहिया में खींच लेलस। हम समझौनी पर फिर भी अंचरा उतारके हमरा थाम लेलस।"
रंजू ने महेश को तमाचा मारा और बोली," हम खूब बढ़िया से जानत बानि, तू उ पिंटू सिंह के आदमी बारआ ना। तहार गंदा गंदा हरकत के बारे में दुनु गांव में हल्ला बा। हमनी राघोपुर गांव के बानि, पर पंचायत इहे पड़ेला। जइसन उ दुष्ट बा, वसही तू भी बारू। तहार दुनु के सारा भांडा फोड़ देब। ई बेरा चुनाव न जीत पाइन्ह। ओकर बाद तहरा देखब।"

महेश अपने गाल पर तमाचा पा, बिल्कुल बेइज्जत महसूस कर रहा था। वो भी घमंड से बोला," ई थप्पड़ हम याद रखब, तहरा एकर कीमत चुकाबे के पड़ी। तहार जइसन औरतिया सरपंचजी के बिछौना में रात दिन पड़ल रहेला। का बुझत बारू तू सब विश्व सुंदरी बारू। अरे सब औरत के पास एक्के चीज होखेला। औरत के मरद चाही चाहे उ केहू रहे। हम त जानत बानि कि ई भी बहक गईल रहे। भतार सुख न देवेला त केहू अउर से लेलआ।"

रंजू और बीना ने उसे घृणित नज़रों से देखा, जबकि वो अब भी मुस्कुरा रहा था।

रंजू," तहार मरद होबे के सारा गलतफहमी दूर हो जाई। बहुत जल्दी तहरा, तहार औकात देखाएब। उ दिन तू भरा पंचायत में माफी माँगबु। काहे अब अगला चुनाव में हम सरपंच पद खातिर खड़ा होखब।"

ऐसा बोल वो दोनों बाहर निकल गयी, पीछे से महेश मुस्कुराते हुए बोला," सातों जनम में तहार इच्छा पूरा न होई, काहे अब तलिक ई सीट से सरपंच जी के परिवार ही जीतत बाटे। भूल जो...."

वो दोनों जो बाहर निकली तो डिस्पेंसरी वाला लड़का काली पन्नी में सेनेटरी पैड लेकर उन दोनों को देना चाहा। ये सरकार कि योजना" सच्ची सहेली" के अंतर्गत मुफ्त दिया जाता था। रंजू वो लेकर बाहर आ गयी। दोनों तेजी से निकलकर घर की ओर बढ़ रहे थे। दोनों कुछ देर बाद घर पहुंच गए।

रंजू," सच बताबा, तू बहक गईल रहलु का?

बीना का चेहरा लाल हो चुका था,वो कुछ नहीं बोली। रंजू ने फिर जोर देकर पूछा," बीना तू सच में बहक गईल रहलु का?

बीना नज़रें झुकाए बोली," बस तनि देर खातिर।"

रंजू," तू भी ना हद करआ तारू? अइसन घटिया आदमी बा उ हरामजादा। तहार पूरा बदनामी कर दी। पराया मरद शरीफ औरत के फंसा लेलन, मज़ा पूरा लेके फेर अगर मामला उलझेला त तहरा बदनाम कइके खुद बच जात बारन स।"

बीना झुंझलाते हुए बोली," त का करि, अब भतार त छुअत भी नइखे। मरद खातिर देहिया तरसेला।"

रंजू," अरे तहरा कइसे समझाई। जब जवान बेटा घर में बा त काहे केहू बाहर वाला के मौका दे रहल बारू। बगल में छोड़ा, शहर में ढिंढोरा। मरद खातिर एतना पियास बा त बेटा के ही सैयां बना लअ। ना त अइसन भंवरा सब हमार तहार जइसन फूल के रस चूसे खातिर भीड़ल रहेला। जब लुटाबे के बा, त घर के मरद काहे ना मज़ा लूटे।"

बीना," तू का कहे चाह रहल बारू?

रंजू," इहे कि घर के बात घर में रहे के चाही। देख बीना, हम अउर तू उमर के अइसन पड़ाव पर बानि कि कामुकता चरम पर बा। बेटा तहार जवान बाटे, मस्त लड़का बा। ओकरा पास भी उहे बा, जउन धरम भैया के पास बा। केहू बाहर वाला काहे तहार कमजोरी के फायदा उठाये।"

बीना," जइसे तू उठा रहल बारू, अरुण के साथ।"

रंजू," त ऐमे गलत का बा, ई उमर में के हमरा से बियाह करि। अउर हमार देहिया में वासना फूटत रहे। घर के बाहर कुछ करति, त बदनामी हो जाइत। अरुण अउर हम अकेले रहनि, अउर फेर दुनु एक दोसर के प्यार में पड़ गइनी। अब रिश्ता नाता त हमनी के हाथ में बा ना। अउर जब अरुण हमके छूलस, त हम मोम जइसन पिघलके ओकरा से लिपट गइनी। बेटा माँ के रिश्ता से सैयां सजनी के रिश्ता भी जोड़ लेनी। अउर सच बताई त उ रिश्ता अभी भी पवित्र बा, जेतना हमनी के नया रिश्ता।"

बीना," रंजू प्यार त हमहुँ कर बईठनी, राजू से। राजू भी हमके खूब चाहेला। लेकिन डर लागेला, अगर राजू के बाबूजी के पता चल जाई त का होई, केहू अउर के पता चल जाइ त का होई।"

रंजू ने उसके माथे को छुआ और आंखों में देख बोली," अब समझनी, तहरा ई बुखार काहे बा। जबसे राजू गईल बा तबसे ई भईल बा ना?

बीना," हाँ।"

रंजू," अब समझ में आईल, दवाई से तू ठीक काहे ना हो रहल बारू। तहरा अंदर तूफान उठल बा। तहरा आपन मन पर काबू नइखे।"

बीना," रंजू, तू सच कहेलु। दिन रात बेचैन रहेनी। मन करेला केहू हमके थाम ली। हमके ई बेचैनी से बचा ली।"
रंजू," राजू थामी तब, तहरा चैन मिली।" राजू का नाम सुनते ही बीना की आंखें बंद हो गयी, और मुँह से ऊफ़्फ़ कि आवाज़ निकल गयी। बीना की हालत देख रंजू मैन ही मन मुस्काई।

रंजू," हम जात बानि, कल आइब। तहरा मलंग बाबा से देखाबे के पड़ी।" रंजू चली गयी।

बीना अपने आंगन में चारपाई पर लेट गयी, और राजू को याद कर अपने चूचियों का मर्दन करने लगी। काम वासना से तपता शरीर जैसे मचल उठा। बीना की बूर तो जैसे काम रस बहाकर कच्छी गीली कर गयी। बीना तड़पती हुई राजू के साथ ब्लू फ़िल्म की गंदी हरकतों को अपने ख्यालों में महसूस करने लगी। उसे महसूस हुआ कि राजू उसके ऊपर चढ़ के उसे चोद रहा है। बीना काम वासना से वशीभूत खुद को लंपट लहरों में बहाने लगी। बीना ने साड़ी उतार फेंकी और साया को कमर से ऊपर उठा, अपनी कच्छी उतार फेंकी। अपनी बूर से प्रचुर मात्रा में बहती काम रस को बूर पर पूरी तरह मलते हुए, सिसिया रही थी। बीना ने खुद को इतना असहाय कभी महसूस नहीं किया था। इस समय बीना को देख ये प्रतीत होता था कि स्त्री की कामुक तड़प कैसी होती है। बीना बूर के दाने को रगड़ते हुए राजू का नाम ले रही थी। बीना की प्यासी जवानी, राजू के लिए तड़प रही थी। इस परिस्थिति में स्त्री वासना के भंवर में डूब जाती है।

तभी जैसे एक चमत्कार हुआ, मलंग बाबा बीना के घर में घुस आए। बीना को ध्यान ही नहीं रहा कि, उसके घर का दरवाज़ा खुला है। उसके अंदर घुसते ही बीना, ने खुद को साड़ी में लपेट लिया।

बीना के चेहरे पर कामुकता और शर्म का भाव था, जिससे उसका चेहरा लाल हो रहा था। बीना उठी और बाबा के सामने वैसे ही खड़ी हो गयी। मलंग बाबा ने उसकी ओर देखा, उसकी कामुक आंखें, खुले बाल, बदन पर जैसे तैसे लिपटी साड़ी।

मलंग बाबा," तू हमरा पास आवा।"

बीना धीरे धीरे उसके करीब आयी। उसके बदन में मस्ती और लचीलापन आ गया था, जिससे उसकी चाल बहकी और बेपरवाह हो गयी थी

बाबा ने उसकी हालत देखी और एक बार पूछा," का भईल बेटी?

बीना," बाबा का बताई, हम त बेबस हो गइल बानि।"

बाबा," काहे का भईल?

बीना," बाबा रउवा ठीक कहने रहलु कि हमार जीवन में केहू आई। बात बहुत लाज शरम के बा।"

बाबा," तू अभी का करत रहलु, हम जानत बानि। लेकिन ई लाज शरम के बात नइखे। हर स्त्री पुरुष ई करेला। का तहरा पति साथे सुख ना मिलेला?

बीना," बाबा, पति अगर ठीक से सुख दी, त शायद अइसन बात ना होत। का करि बाबा ई बहुत लज्जा के बात ह, कइसे बताई।"

बाबा," समस्या अगर बा त समाधान होई। तू बताबा ना।"

बीना सर झुकाए बोली," बाबा का सगा संबंधी में मरद औरत वाला प्यार होता। हमरा साथ उहे हो रहल बा।"

बाबा," हो सकेला, ई कउनु नया बात नइखे।"

बीना," माई बेटा के बीच भी।"

बाबा," हाँ, ई आकर्षण बिल्कुल संभव बा। काहे कि बेटा जउन स्त्री शरीर के करीब अउर पहिले से देखेला उ माई के शरीर ही होखेला। माई भी त एगो स्त्री बिया, अउर बेटा पुरुष। कोई भी विपरीत लिंग के बीच प्रेम आकर्षण संभव बा।"

बीना," लेकिन बाबा माई बेटा के रिश्ता त पवित्र होखेला ना। ई केतना घटिया बात होई अगर कोई माई आपन सगा बेटा के साथ प्रेम करे लगी।"

बाबा," प्रेम कोई गलत चीज़ नइखे। अउर अगर प्यार होखेला त उ स्वाभाविक बा। तू हमरा पास आवा अउर सच सच बात खुलके बताबा।"

बीना बाबा के पास बैठ गयी, तो बाबा ने उसका चेहरा देखा। बीना का बदन तप रहा था। उसके तन बदन में, नसों में ऊष्मा फूट रही थी। बीना के आंखों के आसपास थोड़ी काली झांहिया आ गयी थी। उसके होठ प्यासे लग रहे थे। चेहरे पर एक लालायित और आतुर भाव झलक रहा था।

बाबा," तहरा त तेज बुखार बा, लेकिन ई साधारण बुखार नइखे। इ बुखार त बुझाता तहार आत्मा से जुड़ल बा। वासना अउर काम के खातिर तहार आत्मा और शरीर दुनु पियासल बा। अइसे तहके खुद पर नियंत्रण ना होत होई। दिन रात तहरा गंदा गन्दा ख्याल आत होई।"

बीना," बाबा रउवा बिल्कुल सच कहत बानि। मन में गंदा गंदा ख्याल आता लेकिन बहुत अच्छा लागेला। बदन में मीठा मीठा दरद रहेला। अगर केहू के बताईब त हमरा सब कुलक्षिणी कही। बाते एतना शर्मनाक अउर घटिया बा।"

बाबा," तहरा, कामज्वर बा। ई ज्वर सामान्यतः कउनु दवाई से ना बल्कि संभोग द्वारा प्राप्त चरमसुख से मिलेला। तहरा चाही संभोग, जउन पुरुष के तू चाहेलु उ जब तक तहरा भोगी ना, तहरा चैन ना मिली। तहार काम वासना के शांति भी उहे पुरुष दी, जेकरा खातिर तू एतना बेचैन बारू।"

बीना," राजू..." बोलते बोलते चुप हो गयी।

बाबा," त उ राजू बा, यानि तहार बेटा। उहे तहार कामज्वर शांत करि। तहार देहिया और आत्मा के तृप्ति तभी मिली जब राजू ओकर साथ संभोग, ओकर भोग अउर उपभोग करि।


भाग अभी जारी है......
Osm ❤️❤️❤️❤️
 

Gokb

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Bahut badhiya update diya hai apne
 
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