liverpool244
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Great update.कामज्वर भाग-३
रोशनी को नंगी आंखों से देखो तो वी सादी दिखती है, पर अगर शीशे को एक खास कोन में झुका के देखो तो, उसमें सात रंग होते हैं, जो काफी रंग बिरंगी होती हैं। स्त्री भी उसी प्रकार कई रंगों में जीना चाहती है, पर उपर से सादगी का आवरण डाल नीरस सी दिखती रहती है। उसे जरूरत होती है एक ऐसे मर्द की जो उसे सादगी के आवरण से हटा, हर रंग में रंग दे। औरत अपनी घर की मान- मर्यादा, खुद को वेश्या कहलाने के डर से अपने जीवन में रंग घोलने से डरती है। औरत जब अपने मनपसंद साथी के साथ होती है, तब वो निर्लज्ज होकर भी पवित्र होती है, वो नंगी होकर भी प्रेम के आवरण से ढकी हुई होती है, वो चोदने के साथ ही, पूज्य होती है, उसका व्यभिचार भी सदाचार ही होता है। वो कामुकता के रस में डूबकर भी उस फूल की तरह होती है जो पूजा के दौरान ईश्वर को चढ़ाई जाती है। उसके यौनांगों से बहता मदन रस, उसके समर्पण को दर्शाता है। उसकी घृणित सोच भी यौन कुंठा को तृप्त करने के लिए जागती है। स्त्री को भोगने का परम नियम है, स्त्री को खुलकर इन रंगों में रंग जाने दो। स्त्री को भी चाहिए कि जब वो भोगी जा रही हो, तो पुरुष को उससे प्यारी वस्तु कोई और ना लगे। पुरुष को पूरी आजादी दे, खुद को हर प्रकार से भोगने के लिए। एक ऐसा संबंध स्थापित हो कि, पुरुष और स्त्री के मन में एक दूसरे की चाह बढ़े, एक दूसरे के पास होने की लालसा एहसास बढ़े। स्त्री को उसके हाथों नंगी होने में भी, कोई लाज शरम ना आए, और व्यभिचार हो तो स्त्री खुद रिश्तों को ताक पर रख चुदाई का भरपूर आनंद ले। स्त्री को जब इन रंगों का नशा चढ़ता है तो, वो किसी भी चरस अफीम गांजा दारू के नशे से दोगुना मज़ा और नशा देती है।
बीना के अंदर भी अब वो रंग बिखड़ रहे थे। वो अब दिन रात राजू के आने का इंतज़ार करती थी। राजू के साथ बिताए कुछ अंतरंग पल उसे, खुशी भी देते और बेचैन भी कर देते। वो राजू के फोन का इंतज़ार करती थी, पर राजू फोन नहीं करता था। राजू को अरुण ने सख्त हिदायत दे रखी थी कि वो भूल कर भी अपनी माँ को फोन ना करे। राजू ने खुद को बड़ी मुश्किल से रोक रखा था। अरुण वहीं दूसरी ओर अंजू को ऐसे भोग रहा था जैसे कि दोनों फिर कभी मिलेंगे ही नहीं। अरुण की माँ रंजू जो खुद कामवासना की पुजारिन थी, और अरुण की याद में बह रही थी, उन दोनों को एक बार भी तंग नहीं किया। उधर बेचारी गुड्डी भी यौवन का पानी चखने के लिए, तड़प रही थी।
आखिर वो दिन आ गया जब राजू आनेवाला था। राजू स्टेशन से सीधा अपने घर की ओर गया। बीना राजू के लिए उसकी पसंद का हलवा, सब्जी और पूरी बना रही थी। थोड़ी ही देर में राजू अपने घर के दरवाजे से अंदर दाखिल हुआ।
बीना ने राजू को जैसे ही आते देखा उसका दिल जोरों से धड़क उठा। चेहरे पर अपने आप ही मुस्कान तैर गयी। वो खुद को राजू की माँ कम और महबूबा ज्यादा महसूस कर रही थी। राजू ने आंगन में खड़ी अपनी माँ के पैर छुए, तो बीना मुंह में आँचल दबाए, उसे गौर से देखने लगी। राजू भी नज़रें उठा उसे देखने लगा। राजू बीना के पैर अभी भी पकड़े हुए था। दोनों एक दूसरे को ऐसे देख रहे थे जैसे जन्मों से ना मिले हो। तभी धरमदेव बोला," अरे बेटा एतना दिन बाद घर आईल ह, थाकल होई। आशीर्वाद दअ और जल्दी से खाना दअ।"
बीना फिर स्थिति समझती हुई हड़बड़ा कर बोली," जुग जुग जियअ, तू नहा लअ हम खाना लगावत बानि।" बीना जब ये बोल रही थी तो उसकी बूर रिस रही थी। वैसे तो उसकी बूर राजू के आने की खबर सुनके ही रिस रही थी, पर राजू के आने से और ज़्यादा रिस रही थी।
राजू काफी थका हुआ था। वो जाकर अपने कमरे में लेट गया। बीना उसके लिए खाना लगाकर उसके कमरे में गयी। बीना ने राजू को आवाज़ दी और उसे उठाने लगी।
बीना," उठअ, बबुआ खाना खा लअ, फेन सुत रहिया।"
राजू ने एक बार उसकी ओर देखा, फिर खिड़की की ओर नज़र दौड़ाके बोला," बाबूजी बारे कि गइलन?
बीना,"उ त घरे बारन, आज बाहर ना जइन्हन, काहे तहरा का मतलब?
राजू बीना के गोद में सर रख बोला," माई, हमार दिल बड़ा बेचैन बा। मन में गंदा गंदा विचार आ रहल बा।"
बीना उसके सर को सहलाते हुए बोली," का भईल, बोलअ। तू ई साते दिन में सुखा गईल बारअ। ठीक से खात ना रहलु का?
राजू," खात त रहनि माई, पर जाने काहे मन खराब रहत रहला। अभियो बुखार में बानि।"
बीना राजू के सर को पकड़ अपने सीने से लगाते हुए बोली," आह...बेटा तहरा बुखार रहल, त दवाई काहे ना लेलआ, आह मोर बचवा तहार आँखियों धंस गईल बा।"
राजू बीना की बड़ी बड़ी चूंचियों के कोमल छुअन को अपने चेहरे पर महसूस कर पा रहा था। बीना ने राजू को अगले पल अपने आँचल के भीतर सीधे ब्लाउज पर सटा लिया। राजू को अपने सीने से लगाने के बाद बीना को बहुत सुकून महसूस हो रहा था। दोनों एक दूसरे की जिस्म के प्यासे थे। बीना की आंखें बंद हो गयी थी। तभी राजू ने उसकी चूचियों को चूम लिया और बोला," माई, सब त मिलेला पर तहार प्यार ना मिलल।"
बीना," केतना प्यार चाही तहरा, हमार अंचरा में ढेर प्यार बा, जेतना चाही उतना ले लअ।"
राजू बीना के कड़क चूचक ब्लाउज के ऊपर से महसूस कर सकता था। उसने जानबूझकर चूचक पर अपनी नाक रगड़ी तो बीना मचल गयी। बीना के मुंह से सिसकारी फूट पड़ी। बीना कुछ कर नहीं पा रही थी, लेकिन उसने राजू का ध्यान भटकाने के लिए बोला," राजू, ऊंहा फल ना खात रहलु का? तू ढेरी कमजोर हो गइल बारू, देखअ त केतना कांप रहल बारू।"
राजू उसके आँचल को हटा दिया जिससे उसकी चूचियाँ ऊपर से नंगी हो उठी और ब्लाउज के अंदर चूचियों की घाटी साफ दिख रही थी, अब ब्लाउज में कैद उसके दोनों चूचियां चढ़ती उतरती सांस के साथ ऊपर नीचे हो रही थी। राजू उसकी चूचियों को सहलाते हुए बोला," माई, मिलत त रहले आम ऊंहा, पर अइसन जबरदस्त न रहल। अइसन बड़ बड़। इँहा के आम बड़ा मज़ेदार होखेला।"
बीना बोली," तहरा आम ढेरी पसंद बा का?
राजू," अउर न त का। पूरा रसेदार बुझाता। मन करेला चूस ली।"
बीना," ई साधारण आम नइखे, ई आम बहुत होशियारी अउर मेहनत से मिलेला।"
राजू," आज बचपन याद करब ई आम चूसके सखी।" ऐसा बोलके वो बीना के ब्लाउज के हुक खोलने लगा। थोड़ी देर में हुक सारे खुल गए। बीना के चूचक उसकी ब्रा से ऊपर निकलना चाह रहे थे।
राजू," लागत बा अंगूर भी जबतदस्त आम के ऊपर में राखल बा। अइसन निम्मन नज़ारा कुछ ना हो सकेला।"
बीना," तू बड़ा शैतान हो गइल बारू।"
राजू," माई आज मन होता तहार फल के दुकान लूट ली।"
बीना," अच्छा, अउर का बा फल के दुकान में?
राजू," आगे आम, पाछे कटहर, अंगूर के दाना, अउर केला के थम के बीच फाटल संतरा।"
बीना अपने जननांगों की फलों से हुई तुलना से अवाक और अचंभित रह गयी।"
बीना फिर बोली," तहरा लंग का बा?
राजू," केला जउन संतरा में ढुकि।"
बीना शरमा गयी। फिर बोली," संतरा फट जाई, केला मोट होई त।"
राजू," ना, फाटि काहे संतरा पहिले काफी केला लेले बा।"
बीना," छोड़, खाना खा अभी, ई फल कुल बाद में खहिया, शैतान कहां के।" बोलके बीना उठना चाही तो, राजू ने उसका हाथ पकड़ लिया।
बीना उसकी ओर मुड़कर बोली," राजू, अभी तहार बाबूजी घर में बानि। उ शायद आज बाहर ना जंहिये।“
राजू," तू आवाज़ न करबू त हम तनि ई आम चूस लेब।"
तभी धर्मदेव ने जोर से आवाज़ देकर बीना को बुलाया। तब बीना राजू के गाल पर थपकी देते हुए बोली," आम चूसे के मन बा, त सही मौसम के इंतज़ार करआ राजा।"
ऐसा बोल बीना अपनी मोटी गाँड़ मटकाते हुए बाहर चली गयी। राजू बीना को देख मन में सोच रहा था कि बीना के सही मौसम कहने का मतलब क्या है।" राजू खाना खाकर सो गया।
अगले दिन राजू जब भैंसों को नहलाने खटाल के अंदर गया तो देखा बीना अंदर गोबर के उपले बना रही थी। बीना गोबर के गोल गोल टिकिया बना कर दीवारों पर ठोक रही थी। ऐसा करते वक़्त उसकी गाँड़ पूरी उभर जाती। उसके चुच्चियों पर हल्की गंदगी लगी हुई थी। बीना को देख राजू कुछ देर यूंही खड़ा उसे देखता रह गया। बीना बोली," का भईल कभू गोइठा ( उपले) पारत देखलु न केहू के।"
राजू हंसा और भैंसों की ओर चल दिया।
बीना अपनी कमर झुकाए गोबर ठोक रही थी। बीना के बाल खुले थे। बीना की चूचियाँ और गाँड़ सब कातिलाना अंदाज़ में राजू को लुभा रहे थे। बीना जानबूझकर राजू की तरफ अपने उभारों का प्रदर्शन कर रही थी। जब वो झुकती तो राजू को उसकी चुच्चियों के बीच की सुंदर घाटी साफ साफ दिखती। सच पूछा जाए तो वो अपने बेटे को अपने कामसुख के लिए फंसाने में लगी थी। कहते हैं ना कि भूखी शेरनी अपने बच्चे को भी खा जाती है। राजू भैंसों को नहलाने लगा। बीना गोबर ठोकते हुए अपना आँचल धीरे से सरका दी, ताकि वो कमर से ऊपर सिर्फ ब्लाउज में रहे। राजू उसकी ये हरकत देख लिया, पर कुछ नहीं बोला।
बीना नाटक करते हुए बोली," आह...राजू देखआ ना, हमार अंचरा सरक गईल ह, तनि हमरा ठीक से ओढ़ा द।"
राजू उसकी ओर देख बोला," ठीक बा, आवत हईं।"
बीना के पास तेज कदमों से राजू पहुंचा उसने, बीना का आँचल उठाया लेकिन जानबूझकर वो आँचल को गीले गोबर में डाल दिया, ताकि बीना उस आँचल को फिर ओढ़ न पाए।
बीना," ई का कइले, हमार अंचरा अउर साड़ी दुनु गंदा हो गइल।"
राजू," जान के न कइनी, गलती से हो गइल माई। एक काम करि, तहार ई साड़ी ही उतार देत बानि, ताकि अउर गंदा ना होखो।"
बीना मन ही मन तो यही चाहती थी, पर ऊपर से बोली," माई के साड़ी उतारबू, हमरा त लाज आयी।"
राजू की नज़र बीना की ढोढ़ी पर थी। बीना देख रही थी कि राजू की गंदी नज़र कहां है। राजू बोला," ई सब काम तहरा त बिना साड़ी के करेके चाही। बढ़िया साड़ी खराब हो जायीं।"
बीना," ठीक बा, निकाल द साड़ी।" ऐसा बोल वो राजू को साड़ी खींचने का इशारा कर दी। राजू अब अपनी माँ का चीरहरण करने लगा। बीना की साड़ी कमर के आसपास साये में जो धंसी थी, खिंचाव से बाहर आने लगी। बीना को अपनी साड़ी उतरवाने में मस्ती और लाज दोनों आ रही थी। राजू उसकी साड़ी खींचते हुए बोला," माई, तहार पेट पर ढोढ़ी बहुत जबरदस्त लागतआ।"
बीना," ढोढ़ी त सबके होखेला। एमे खास बात का बा।"
राजू उसके साड़ी को लगभग खींच चुका था बस आखिरी जगह से निकालना बाकी था। वहां साड़ी मजबूती से अंदर थी। तब राजू बीना के करीब आया और अपना हाथ उसके साया के अंदर घुसा दिया। और बोला," साड़ी बड़ा अंदर तक खोंसले बारू।"
बीना की सांसें तेज चल रही थी, वो उसकी ओर देख बोली," ताकि जल्दी से निकले ना।"
राजू उसकी कमर को कसके पकड़ लिया और घुटनों पर उसके पेट के सामने बैठ गया।
राजू ने बीना की कमर में हाथ डाल दिया और उसकी ढोढ़ी को छेड़ने लगा। बीना को राजू के छुअन से गुदगुदी हुई तो उसका पेट कांप सा गया। बीना उसकी ओर कामुकता भरी आंखों से देख बोली," जाय दे ना, ई का करत बारू?
राजू," माई तहार ढोढ़ी के छुअत बानि, बड़ा उकसावेला तहार अंचरा के ओट से। तहार पेट पर चार चांद लगावेला। ऐमे ऊँगरी ढुकाबे में सुकून मिलेला।"
बीना," अच्छा, हमार ढोढ़ी में अइसन का खास बात बा?
राजू," माई, तहार ढोढ़ी में लंबा चीरा बा, आकार शंख के जइसन बा। पेट पर जमल चर्बी के बीच एकर गहराई, नदी में उठल भंवर जइसन बुझाता। गहराई एतना बा कि हमार तर्जनी ऊँगरी आधा से ज्यादा घुस जावेला। मन करेला चुम्मा ले ली ढोढ़ीया के।" राजू उसकी ढोढ़ी में उंगली तेजी से अंदर बाहर कर रहा था।
बीना उसकी ओर देख बोली," तहार बाबूजी कभू अइसन बतिया ना बोललन। हमके त पता ही ना रहल कि ढोढ़ी पर भी मरद एतना फिदा रहलन।" तभी राजू झुकके बीना की ढोढ़ी को चूमने लगा। राजू बीना की कमर को थाम, ढोढ़ी में जीभ घुसाने लगा। बीना का बदन अकड़ गया और वो दीवार पर कंधों के सहारे टिक गई। राजू के हाथ उसकी पूरी कमर थी, पेट और नाभि स्वाभाविक रूप से आगे आ चुकी थी। बीना सिसिया रही थी, पर राजू उसके नाभि के अंदर जीभ घुसेड़ कर, वासना भड़का रहा था। बीना के चेहरे पर हंसी, कामुकता, अकड़न, बहकाव, रोते हुए का मिश्रित भाव था। तभी राजू ने, बीना के ढोढ़ी में थूक दिया, राजू ने बीना के दोनों हाथ अपने हाथों में जकड़ रखे थे। बीना को राजू की मजबूत पकड़ से निकलने का अवसर ही नहीं था। राजू उसकी उभरी ढोढ़ी से मनमानी कर रहा था। बीना भी उत्तेजना में आकर ढोढ़ी को पीछे की बजाय आगे बढ़ा रही थी। राजू के होठ और बीना की ढोढ़ी आपस में ऐसे रगड़ खा रहे थे, जैसे समुंदर का नाव बाजू वाली नाव के टायर से टकड़ाते हैं।
राजू अपनी माँ की ढोढ़ी की पूरी गहराई में जीभ उतार रहा था और उसके आसपास अपने दांत से काट भी रहा था। बीना ने आजतक ढोढ़ी से छेड़छाड़ गंदे अश्लील भोजपुरी गानों में सुनी थी, पर कभी किसीने उसके साथ सच में ऐसा नहीं किया था। बीना इस छेड़छाड़ से बिल्कुल किसी नागिन सी बल खा रही थी।
तभी राजू उसकी ढोढ़ी को पूरा मुँह में रख चूसने लगा। उसके चूसने में इतना जोर था कि, बीना के मुँह से दर्दभरी सिसकारी फूट पड़ी।
बीना," आह..आ..एतना जोर से काहे चुसत बारआ? ई ढोढ़ी के खा जइबू का?
राजू," माई, ई तहार ढोढ़ीया चाटे में बहुत मज़ा आ रहल बा। अइसन सुंदर अउर कामुक ढोढ़ी हम ना देखनि हअ। हमार बस चली त तहार ढोढ़ी के दिनभर चाटत रहब।"
बीना," बेटा, तू एतना बढ़िया से चाटत बारू कि हमरो चटाबे में निम्मन बुझाता।"
तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। बीना राजू की ओर देख बोली," जाने के आ गईल?
राजू," एक काम कर तू चुपचाप नहाय निकल जो। हम देखत बानि।"
बीना घबराई हुई बोली," लागत बा मौसम अभी न बनि।"
बीना ऐसा बोल वहां से सीधा पीछे स्नानागार में चली गयी। राजू ने खीजे मन से दरवाज़ा खोला तो देखा सामने उसकी बुआ बंसुरिया आयी हुई थी। उसने उसके पैर छुए। बंसुरिया एक दो दिन के लिए आई थी। वो हर साल सावन के महीने में गांव आती और पुराने शिव मंदिर में जल चढ़ाती थी। इसका मतलब ये था कि राजू का अपनी माँ के साथ अकेले में रहने का और मौका बनाने का फायदा अब कम था। बंसुरिया लगभग उसकी माँ की हमउम्र थी। बंसुरिया काफी सारी खाने पीने की चीज़ें लेकर आई थी। बीना की बंसुरिया से अच्छी बनती थी। दोनों सहेलियों सी शुरू से ही रहती थी। उसके आते ही बीना व्यस्त रहने लगी। बीना समझ रही थी कि राजू को उसके साथ छेड़खानी करने का पर्याप्त अवसर नहीं मिल रहा है। बीना को भी राजू की छेड़खानी और उसे छेड़ने में मज़ा आता था। वो भी तो उससे बदन छुआने को मचल रही थी।
अगले दिन बंसुरिया और धर्मदेव उसी मंदिर में गए हुए थे,
बीना को चूंकि बुखार था तो धर्मदेव ही बंसुरिया के साथ गया हुआ था।
राजू सुबह सुबह दूध दुह रहा था, तभी बीना के कराहने की आवाज़ आयी। राजू सब छोड़ के बीना के पास गया।
बीना बिस्तर में मचल रही थी।
बीना," आह, राजू देखअ ना हमार देहिया बहुत गनगना रहल बा। तन बदन अगियाईल बा। जाने ई कइसन बुखार लागल बा, मन मिचलात बा।" वो बिस्तर पर लेटी लेटी बोली। राजू आगे आकर बीना के माथे को छुआ और बोला," माई, थरमामीटर से नापी तहार बुखार, ऊपर से त बहुत तेज बुझा रहल बा।"
बीना," नाप लअ, बेटा अइसन बुखार त कभू न आइल।"
राजू तुरंत उसका बुखार नापने के लिए थरमामीटर ले आया। उसने बीना को देखा और बोला," माई एकरा कांखिया में डाल लअ।"
बीना," बेटा, हमार ब्लाउज त ढेरी कसाईल बा। हमार काँख में ना घुसी।"
राजू," त बुखार कइसे नपाई, मोर मईया। तहरा तब ब्लाउज खोले के पड़ी।"
बीना भोलेपन का नाटक करते हुए बोली," का ब्लाउज उतारेके पड़ी?
राजू," हाँ, उतार दअ ताकि जल्दी से बुखार नाप ली।"
बीना," ठीक बा, तू ही उतार दअ, हमार पीठि पर ब्लाउज के दुनु डोरी खोल दअ।"
राजू," माई, ब्लाउज त अंग्रेज़ी में कहल जाता। एकरा हमनी के इँहा का कहल जावेला?
बीना अपने बाल समेट कर आगे कर, अपनी गोरी पीठ राजू के सामने कर दी। सामने राजू के बीना की पीठ पर सिर्फ दो जोड़ी डोरी आपस में गुथी हुई मौजूद थी। उसकी गर्दन से लेकर कमर के निचले हिस्से तक और कोई कपड़ा नहीं था।
बीना," हमनी के इँहा एकरा चोली कहल जाता। लेकिन लोक अब ई सब शबद इस्तेमाल न करेला।"
राजू उसकी कमर को छूता हुआ, ऊपर चढ़ रहा था। तभी बीना बोली," पीठिया पर हाथ काहे फेर रहल बारू, जल्दी से डोरिया खोल दअ।"
राजू ने फिर झट से बीना की पीठ पर कसी हुई डोरी खोल दी। वहां कसाई के वजह से त्वचा पर निशान पड़ गए थे।
राजू," माई, ई चोली तहार, सही में बड़ा कसल बा। देख पीठिया पर डोरी के निशान उखड़ गईल बा।"
बीना," हाँ, ई चोलिया बहुत पुरान बा न, एहीसे।"
फिर राजू ने दूसरी डोरी भी खोल दी। अब चोली सिर्फ बीना के कंधों के सहारे टिकी थी। राजू ने फिर उसके कंधों से चोली के हिस्से को उतारा। और फिर उसकी बाजुओं से निकाल दिया। बीना के दोनों हाथ ऊपर थे तो उसकी काँख जिनमें छोटे छोटे बाल थे वो साफ दिख रही थी। राजू उनके करीब जाकर उसके काँख की सुगंध को महसूस किया। बीना कुछ बोली नहीं, पर आंखों से राजू को अपने बगल झांकते और सूंघते देखा। बीना की सांवली काँख बेहद मस्त लग रही थी। बीना ने फिर अपने आँचल से अपने चुच्चियों को ढ़क लिया और कामुक स्वर में बोली," थरमामीटर लगाबा ना, काँख में।"
राजू ने थरमामीटर लगा दिया और बीना उसे काँख में दबा ली। बीना राजू के कंधे पर पीठ टिका बैठी थी। राजू बीना के गर्दन और कान के पिछले हिस्से के पास अपने होठ रखा हुआ था। बीना राजू की गर्म सांसें अपने पास स्वयं महसूस कर रही थी। बीना की सांसें भी तेज चल रही थी और होठ कांप रहे थे।
तभी राजू ने उसके दोनों चुच्चियों के ऊपर कड़े चुचकों को आँचल के नीचे से तने देख, उसने बीना को अपनी ओर घुमा लिया। बीना ने राजू की ओर देख बोला," बेटा, बुखार बड़ी जोर के लागल बा, कइसे उतरी।"
राजू उसके गाल सहलाते हुए पर नज़र उसकी बीना के कड़क चुचकों पर थी, बोला," माई, एक बेर बुखार नाप त लेवे दे। ओकर बाद अगर दवाई खियावे के पड़े, कि सुइया दियाबे के पड़े। लेकिन तहार बुखार हम जरूर उतार देब।"
बीना," बेटा, ई बुखार त डॉक्टर साहब से भी न पकड़ाईल। जाने अब का होई।"
राजू," हर चीज़ के इलाज बा माई। बस एक बेर ओकरा चीन्हे के देरी बा। ओकर बाद त अइसन इलाज करब कि फेर ई रोग न होई।"
थोड़ी देर बाद राजू ने बीना के बगल से थरमामीटर निकाला और उसे देखा तो बीना को 101 बुखार था। बीना ने राजू से पूछा," बेटा, केतना बोखार ह?
राजू," 101 माई।" राजू ने जानबूझकर बीना के चुचकों में अपना हाथ भिड़ा दिया। बीना कुछ नहीं बोली और राजू उन कड़े चुचकों को हाथ से सहला रहा था। तभी राजू को एक आईडिया सूझा उसने बीना के चूचियों के बीच अपना हाथ रख दिया। बीना उसकी हरकत देख प्रश्न करती हुई बोली," ई का करत बारआ?
राजू," माई, तहार दिल के धड़कन देखत बानि। बड़ा जोर से धड़क रहल बा।"
बीना," अच्छा, त तनि बांया में देख ना, करेजा इँहा बा।" ऐसा बोल उसने राजू का हाथ ऐसी जगह रखा जहां उसका आधा हाथ उसकी बांई चुच्ची पर था। राजू बीना की चुच्ची को दबा कर उसकी धड़कन महसूस करने लगा।
तभी राजू बोला," माई ई अंचरा हटा दी का, सही से पता न चल रहल बा तहार करेजा के धक धक।"
बीना उसकी ओर बिना देखे बोली," जरूरी बा त हटा द।"
राजू बोला," जरूरी बा।" ऐसा बोल उसने उसके कंधे से आँचल हटा दिया और बीना की उन्नत चुच्चियाँ राजू के सामने नंगी हो उठी। बीना ने एक बार अपने चुचकों को ढकने की चेष्टा की तो राजू ने उसके हाथों को धकेल दिया। उसके गहरे भूरे रंग के चूचक किसी गुब्बारे की बंधी छोड़ की तरह उठे थे। राजू ने बीना की धड़कन सुनने के बहाने अपना सर उसके स्तनों के बीच रख दिया। राजू को अपने सीने से लगते ही वो, बहक उठी और उसे अपने चुच्चियों के बीच समा लिया। इस आलिंगन में माँ का प्यार नहीं बल्कि बीना का प्यार था।
बीना," आह, हमार करेजा देखआ कइसन धक धक कर रहल बा।"
राजू," हाँ, माई सच कहत बारू। तहार करेजा जोर से धड़क रहल बा। अइसन काहे हअ।"
बीना," हम का बताई,?
राजू," अच्छा, पेशाब कइसन होता?
बीना," काहे?
राजू," पेशाब में खून त नइखे आवत न?
बीना," न अभी तक ना। सच बताई त गौर ना कइनी।"
राजू," चल अभी मूत के देख एक बेर।"
बीना," लेकिन राजू, बाहर बारिश होता। हमके त इँहा आंगन के नाला के पास ही मूते के पड़ी।"
राजू," त का भईल मूत ना, माई गे।"
बीना," ठीक बा।" बीना बिस्तर से नीचे उतरी और जाने लगी तो बोली," कच्छी उतार देत बानि, पेशाब करे में दिक्कत हो जाई।"
राजू ने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा," हाँ, काहे ना उतारके हमरा दे दअ आपन कच्छी हमके।"
बीना ने हाथ साड़ी के नीचे से अंदर लिया और झटके से कच्छी उतार कर पैरों से निकाल ली। राजू ने झट से बीना के हाथों से कच्छी ले ली। बीना की बूर इतनी गीली थी कि कच्छी लगभग भीग चुकी थी। यहां तक बूर के पानी का चिपचिपापन कच्छी पर महसूस हो रहा था। बीना को कच्छी उतारते वक़्त उतनी शर्म नहीं आयी, जितना राजू के हाथ में अपनी गीली कच्छी देते हुए आ रही थी। राजू ने जब कच्छी हाथ में ली, तो उसने फौरन कच्छी का गीलापन महसूस कर लिया। उसके हाथों में भी बीना के बूर का चिपचिपा पानी लग गया। राजू, अब निश्चिन्त हो चुका था कि उसकी माँ बीना को कौनसी दवाई और कौन सी सुई की जरूरत है। उसने बीना की गीली कच्छी जो उतारने के क्रम में रोल हो चुकी थी, उसके सामने पूरा फैला दिया और बोला," माई, ई का तू मूत दिहलस का?
बीना शरमाते हुए," ना, बेटा हम न मूतनी हअ।
राजू," अच्छा, त फेर ई का हअ, एतना गीला कइसे बा तहार कच्छी। ई तहार पेशाब बा नु"
बीना," धत, ई पेशाब न हअ। ई त...।"
राजू," बोल न बोल, रुक काहे गईलु।"
बीना," ई...उ..उ... अब का बताई ई, बस ई बूझ ले ई पेशाब न अउर कुछ बा।"
राजू उस गीले हिस्से को छू कर बोला," सच कहेलु माई, ई पेशाब नइखे, ई बहुत चिप चिप बा। पेशाब अइसन न होखेला।"
बीना," हाँ, उहे त हम कहत बानि, ई पेशाब नइखे। अउर कुछ बा।"
राजू," का हअ?
बीना," उ हम तहरा न बता सकेनि। हम सब चीज अभी तहरा न बता सकिले।"
राजू," काहे, काहे ना बता सकेलु?"
बीना," उ... हमार जांघ के बीच में पसीना आ गईल रहे। उहे से कच्छी भीज गईल।"
राजू," तहार पसीना त पेशाब जइसन महकेला।"
बीना," ऊफ़्फ़...बेशरम कहीं के, हमरा सामने हमार कच्छी सूँघत बारआ।"
राजू," तू त हमार सखी बारू, काहे के लाज हो।" ऐसा बोल उसने बीना की कच्छी के उस हिस्से को चूम लिया जो बूर के पानी से गीली थी। बीना ने राजू की ओर मदभरी आंखों से देखा, फिर वो राजू के सामने अपने आँचल को उठा कर कंधे पर रखी और छम छम करते हुए राजू के सामने से चलते हुए नाले के पास पहुंच गई। बीना राजू के सामने साड़ी ऊपर खिसका ली और बेझिझक बैठ गयी। बीना जहाँ बैठी थी, वहाँ से राजू उसकी भारी गाँड़ के दोनों पाटों के साक्षात दर्शन कर रहा था। बीना दिन दहारे अपने बेटे के सामने ही मूतने लगी। बीना को एहसास था कि वो जो कर रही है, वो अनाचार और नाजायज संबंधों की सीढ़ी है। बीना की बूर से तेज़ सिसकारी सी आवाज़ आई और मूत की धार बह निकली। तभी राजू ने पूछा," मूत बढ़िया से निकलत बा कि ना?
बीना,"हाँ, बेटा मूत ठीक से बह रहल बा।"
राजू," कउनु जलन त नइखे ना?
बीना," न कउनु जलन नइखे।"
राजू," पेशाब के रंग कइसन बा?
बीना," पुआर के रंग जइसन पियर, बेटा।"
राजू," ठीक बा, लेकिन बुखार बा देखिहा कउनु इन्फेक्शन न होखो।"
बीना," का, इन..फकसन?
राजू," बीमारी में हो जाता इन्फेक्शन।"
बीना," हमरा न बुझाता, तनि तू आके देख ल ना।"
राजू," हम आयी का?"
बीना," हाँ, काहे ना। आके इँहा जांच लअ।"
राजू ये मौका गंवाना नहीं चाहता था। वो तेज कदमों से चलके, बीना के पास पहुंच गया। बीना अभी भी तेज धार में मूत रही थी। बीना राजू की ओर देख बोली," देख ना, हमार पेशाब के रंग ठीक बा कि ना?
राजू उसके सामने देखते हुए जहां मूत की धार गिर रही थी और उसके छींटे आस पास गिर रही थी, बोला," तनि नजदीक से देखे के पड़ी।"
बीना बोली," त देखआ ना।" ऐसा बोलके उसने राजू को अपने पास बिठा लिया। राजू बीना के पेट की चर्बी की वजह से मूत्रद्वार के दर्शन नहीं कर पा रहा था। मूत की धार की आवाज़ बिल्कुल मखमली सी थी। बीना राजू की ओर देख रही थी, जो खुले मुंह से बीना के पैरों के बीच बहती धार को निहार रहा था। इतने में राजू ने बीना की मूत की धार में हाथ लगा दिया और अपने हथेली में इकठ्ठा करने लगा। राजू का हाथ बीना के मूत की धार से पूरा गीला हो गया। राजू उसे इकठ्ठा कर मुंह के पास लाया और सूंघने लगा।
बीना जो अब मूतने के अंतिम चरण में थी बोली," ई का करत बारआ? उ हमार पेशाब बा, हाथ से काहे छुलु। अब ओकरा सूंघ रहल बारअ।"
राजू," देखत रहनि की केहू तरह के दुर्गंध नइखे ना, अउर रंग भी जाँचत रहनि। तहरा कउनु इंफेक्शन नइखे।"
बीना," अच्छा, फेर त ठीक बा।"
तभी राजू ने अपना लण्ड बाहर निकाला और साथ में ही मूतने लगा। राजू का लण्ड बीना को पहले ही प्रभावित कर चुका था। लेकिन अपने सामने उसे फिर से देख वो मचल गयी। बीना को खुद पर काबू न रहा और उसने राजू का लण्ड थाम उसे मुतवाने लगी। राजू ने कुछ कहा नहीं, बल्कि मूत की धार तेज करते हुए मुस्कुरा दिया। बीना नीचे बैठी ही उसके लण्ड को थामे हुए थी।
थोड़ी देर में दोनों मूत चुके थे। राजू का मूतना जब खत्म हुआ तो बीना ने उसका लंड छोड़ दिया। इस पर राजू ने उसका हाथ फिर से लण्ड पर रख दिया और बोला," तनि हिला द, मूत के बूंद सब हइन्जा गिर जाई।"
बीना," अच्छा, ठीक बा।" और उसका लण्ड हिलाने लगी। फिर दोनों एक साथ उठे और तभी बीना का पैर गीलेपन से फिसल गया और वो संभलने के चक्कर में आंगन में गिर गई। उसके साथ साथ राजू भी उसके ऊपर गिर गया। तेज बारिश के चलते दोनों आंगन में धीमे बहते पानी से गीले हो गए। बीना और राजू एक दूसरे के ऊपर थे। बीना सिर्फ साड़ी और साया में थी। वहीं राजू सिर्फ बनियान और छोटे कच्छे में था। बीना की साड़ी पूरी तरह गीली हो चुकी थी, उसकी चुच्चियाँ साड़ी के पतले आँचल के ऊपर से साफ दिख रही थी। चूचक तन कर खड़े थे। दोनों की आँखे एक दूजे से टकराई हुई थी। बीना चाह रही थी कि राजू उसे चूम ले। लेकिन राजू पहले खुद उठा और फिर उसे उठाया। बीना राजू का हाथ पकड़ धीमे धीमे खड़ी हुई। उसकी साड़ी के गीलेपन की वजह से उसकी गाँड़, जाँघे, चूचियाँ, कमर, उसकी नाभि सब स्पष्ट दिख रहे थे।राजू ने उसे अपनी बांहों में ले लिया। दोनों के प्यासे होठों पर बारिश की बूंदे गिर रही थी। तभी बीना को राजू ने एकदम से नजदीक खींच लिया और उसके होंठों को चूमने के लिए उसके चेहरे को उठाया। दोनों के होठ एकदम करीब आ चुके थे। तभी बीना लाज से खुद को छुड़ा के भागने को हुई तो राजू ने उसका आँचल पकड़ लिया। बीना की चूंचियों नंगी हो उठी और उसने साड़ी को पकड़ना चाहा पर राजू की पकड़ उसकी साड़ी पर मजबूत थी। बीना की साड़ी धीरे धीरे राजू खोलने लगा। और कुछ ही देर में बीना सिर्फ साये में थी। इस बार राजू ने अपनी बनियान उतारी और बीना को करीब लाकर उसके साये की डोर खींचने के लिए उसके कमर की ओर झुक गया। क्या अद्भुत कामुक दृश्य था। एक माँ बेटे की प्रेम कहानी और रोमांस की। राजू ने उसकी डोर खोली तो बीना ने कोई प्रतिरोध नहीं किया, बल्कि चिपके साये को उतारने के लिए राजू की मदद करने लगी। कुछ ही देर में उसका साया भी उसके देह को विदा कह चुका था। बीना अब अपने बेटे के सामने अपने ही आंगन में निर्वस्त्र खड़ी थी। राजू के सामने बीना यूं तो पहले भी झांट के बाल कटवाने के लिए नंगी हुई थी। पर आज बीना का जलवा ही कुछ और था। राजू ने बीना के नंगेपन से डूबे कामुक शरीर को अपनी आंखों से सर से पैर तक निहारा। बीना की उन्नत चुच्चियाँ, उसकी भरी हुई गाँड़, कोमल चिकनी जाँघे उसके लण्ड को खड़ा करने में ईंधन का काम कर रही थी।
राजू," माई, तहरा देख के अइसन बुझाता तहरा कामज्वर लागल बा। अइसन ज्वर जउन खाली काम सुख प्राप्त करे से ही जायीं। तहार अंग अंग काम के चाहत के रंग में रंगल बा। तू काम देवी के मूरत लागत बारू। तहरा शायद मालूम नइखे हम भी कामज्वर में बानि।"
बीना नज़रें झुकाए बोली," हाँ, राजू हम कामज्वर में जरत बानि। हमार रोम रोम काम सुख चाहेला। मलंग बाबा आईल रहुवे उहे कहनि कि जब तलिक हम मनपसंद मर्द के साथ कामसुख न उठाईब, ई ज्वर शांत न होई। जब से तू गईल बारू, तबसे हम तहरा याद कइके बेचैन रहनि। रोज राति तू हमरा साथ सपना में रासलीला रचावत बारू। हमके त अपना से घृणा होत रहे, पर मलंग बाबा हमार सब शंका दूर कर दिहले। माई- बेटा होके भी हम प्रेम और वासना के रस में तहरा साथ डूबे चाहत बानि। लेकिन तू केकरा खातिर कामज्वर में बारू?
राजू," तहरा खातिर, माई।"
बीना," राजू हमके माई ना एक बेर बीना बोल।
राजू," बीना हम तहरा साथ कामसुख उठावे चाहेनि।"
बीना," कामसुख के ठेठ में का बोलल जाला। उ बोल ना"
राजू," हम तहरा चोदे चाहेनि। हमरा साथ चुदाई करबू बीना।"
बीना राजू का लण्ड पकड़ बोली," अभी चोदबआ हमरा लांड से?
राजू," हाँ, बीना रानी तहरा हिंये चोदब।"
बीना और राजू एक दूसरे के होठ अनायास ही चूमने लगे। बीना अपने आंगन में अपने बेटे के सामने चुदने को तैयार थी। वो दोनों वासना में पूरी तरह बहने ही वाले थे।
तभी दरवाजे पर दस्तक हो गयी। बीना को काटो तो खून नहीं। बीना वहां से नंगी ही भागने लगी। उसने साड़ी और साया उठाया और पानी में छम छम करती हुई अपने कमरे में भाग गई। राजू हाथ मलता रह गया। उसके मन में गुस्सा था जाने कौन आया है, जिसने उसकी और उसकी माँ के कामुक क्षणों को तोड़ दिया।
राजू ने देखा उसकी बुआ बंसुरिया और उसका बाप दोनों भीगे हुए, वापिस आये थे।
रात को जब बीना खाना बनाने के लिए सिल बट्टे पर मसाला पीस रही थी तो, राजू उसके करीब आया और उसे रात को सबके सोने के बाद आने को बोला। बीना कुछ नहीं बोली। राजू रात को बारह बजे बीना का इंतज़ार कर रहा था, तभी उसे बीना के आने की आहट सुनाई दी। बीना ने चुपके से उसे घर के पीछे बुलाया। राजू उसके पीछे पीछे गया। राजू ने बीना को बांहों में भर लिया और बीना भी उसे बांहों में भर ली।
फिर सांस भरते हुये बोली," राजू सुन, अइसे में मज़ा ना आई,हमके कहीं अउर ले चल जहां खाली तू अउर हम रही। ऊंहा केहू रोक टोक न करि। कल तहार बुआ और बाबूजी चल जायीं। फेर हमनी अकेले में घर में रहब। लेकिन घर में केहू आ सकेला कभू। हम दुनु उ नदी पार गन्ना के खेत में चलब। ऊंहा तहार दोस्त अरुण के ट्यूबवेल भी बा। तू अपना हिसाब से व्यवस्था कर। ई दुनु काल सुबह तक जायीं, ओकर बाद दुनु के कामज्वर शांत होई।"
राजू को गुड्डी की याद आ गयी। गुड्डी भी इसी तरह बगैर किसी रोक टोक के मजे के लिये, राजू को व्यवस्था करने बोली थी। उसे एक पल को लगा गुड्डी ही बोल रही है। उसने मन में कहा जइसन माई, वइसन बेटी। राजू उसकी आँखों में देख बोला," बड़ा बेचैन कर दिहलु बोलके, रतिया कइसे काटी। अब त भोरे के इंतज़ार बा।"
बीना," हम भी त बेचैन बानि। लेकिन अभी जाय द।"
राजू ने बेमन से बीना को जाने दिया। तब बीना ने अपनी पहनी हुई कच्छी खोली और राजू के मुँह पर फेंक बोली," रात एहीसे मन बहलावा। काल हमार इन फक्शन के इलाज कर दिहा। देख पानी अभी भी बहुत बह रहल बा।"
राजू कच्छी सूंघते हुए," कहां से पानी चुएला?
बीना कामुक स्वर में बोली," काल बताईब।" ऐसा बोल वो भाग गई।
अगले दिन बंसुरिया को उसके ससुराल छोड़ने धर्मदेव उसके साथ निकल गया। उनके जाते जाते दोपहर हो गयी। राजू बीना के पास पहुंचा तो बीना ने उसे खेतों पर पहुंच कर तैयारी करने को बोला। साथ ही ये बोला कि वो खाना वैगरह बना के और घर अच्छे से बंद करके एक दो घंटे बाद आएगी।
राजू बीना की बात मान निकल गया और कुछ खास इंतजाम में लग गया। उधर बीना भी खाना बनाते हुए अपने आनेवाले लम्हों और खुशियों के बारे में सोच रही थी। राजू को गए दो घंटे हो चुके थे। अभी शाम के साढ़े तीन बज रहे थे। बीना घर का दरवाज़ा बंद कर और दो थैलों में समान ले गन्ने के खेतों की तरफ बढ़ चली। रंजू उसे अपनी खिड़की से देख मुस्कुरा उठी।
कामज्वर भाग-३
रोशनी को नंगी आंखों से देखो तो वी सादी दिखती है, पर अगर शीशे को एक खास कोन में झुका के देखो तो, उसमें सात रंग होते हैं, जो काफी रंग बिरंगी होती हैं। स्त्री भी उसी प्रकार कई रंगों में जीना चाहती है, पर उपर से सादगी का आवरण डाल नीरस सी दिखती रहती है। उसे जरूरत होती है एक ऐसे मर्द की जो उसे सादगी के आवरण से हटा, हर रंग में रंग दे। औरत अपनी घर की मान- मर्यादा, खुद को वेश्या कहलाने के डर से अपने जीवन में रंग घोलने से डरती है। औरत जब अपने मनपसंद साथी के साथ होती है, तब वो निर्लज्ज होकर भी पवित्र होती है, वो नंगी होकर भी प्रेम के आवरण से ढकी हुई होती है, वो चोदने के साथ ही, पूज्य होती है, उसका व्यभिचार भी सदाचार ही होता है। वो कामुकता के रस में डूबकर भी उस फूल की तरह होती है जो पूजा के दौरान ईश्वर को चढ़ाई जाती है। उसके यौनांगों से बहता मदन रस, उसके समर्पण को दर्शाता है। उसकी घृणित सोच भी यौन कुंठा को तृप्त करने के लिए जागती है। स्त्री को भोगने का परम नियम है, स्त्री को खुलकर इन रंगों में रंग जाने दो। स्त्री को भी चाहिए कि जब वो भोगी जा रही हो, तो पुरुष को उससे प्यारी वस्तु कोई और ना लगे। पुरुष को पूरी आजादी दे, खुद को हर प्रकार से भोगने के लिए। एक ऐसा संबंध स्थापित हो कि, पुरुष और स्त्री के मन में एक दूसरे की चाह बढ़े, एक दूसरे के पास होने की लालसा एहसास बढ़े। स्त्री को उसके हाथों नंगी होने में भी, कोई लाज शरम ना आए, और व्यभिचार हो तो स्त्री खुद रिश्तों को ताक पर रख चुदाई का भरपूर आनंद ले। स्त्री को जब इन रंगों का नशा चढ़ता है तो, वो किसी भी चरस अफीम गांजा दारू के नशे से दोगुना मज़ा और नशा देती है।
बीना के अंदर भी अब वो रंग बिखड़ रहे थे। वो अब दिन रात राजू के आने का इंतज़ार करती थी। राजू के साथ बिताए कुछ अंतरंग पल उसे, खुशी भी देते और बेचैन भी कर देते। वो राजू के फोन का इंतज़ार करती थी, पर राजू फोन नहीं करता था। राजू को अरुण ने सख्त हिदायत दे रखी थी कि वो भूल कर भी अपनी माँ को फोन ना करे। राजू ने खुद को बड़ी मुश्किल से रोक रखा था। अरुण वहीं दूसरी ओर अंजू को ऐसे भोग रहा था जैसे कि दोनों फिर कभी मिलेंगे ही नहीं। अरुण की माँ रंजू जो खुद कामवासना की पुजारिन थी, और अरुण की याद में बह रही थी, उन दोनों को एक बार भी तंग नहीं किया। उधर बेचारी गुड्डी भी यौवन का पानी चखने के लिए, तड़प रही थी।
आखिर वो दिन आ गया जब राजू आनेवाला था। राजू स्टेशन से सीधा अपने घर की ओर गया। बीना राजू के लिए उसकी पसंद का हलवा, सब्जी और पूरी बना रही थी। थोड़ी ही देर में राजू अपने घर के दरवाजे से अंदर दाखिल हुआ।
बीना ने राजू को जैसे ही आते देखा उसका दिल जोरों से धड़क उठा। चेहरे पर अपने आप ही मुस्कान तैर गयी। वो खुद को राजू की माँ कम और महबूबा ज्यादा महसूस कर रही थी। राजू ने आंगन में खड़ी अपनी माँ के पैर छुए, तो बीना मुंह में आँचल दबाए, उसे गौर से देखने लगी। राजू भी नज़रें उठा उसे देखने लगा। राजू बीना के पैर अभी भी पकड़े हुए था। दोनों एक दूसरे को ऐसे देख रहे थे जैसे जन्मों से ना मिले हो। तभी धरमदेव बोला," अरे बेटा एतना दिन बाद घर आईल ह, थाकल होई। आशीर्वाद दअ और जल्दी से खाना दअ।"
बीना फिर स्थिति समझती हुई हड़बड़ा कर बोली," जुग जुग जियअ, तू नहा लअ हम खाना लगावत बानि।" बीना जब ये बोल रही थी तो उसकी बूर रिस रही थी। वैसे तो उसकी बूर राजू के आने की खबर सुनके ही रिस रही थी, पर राजू के आने से और ज़्यादा रिस रही थी।
राजू काफी थका हुआ था। वो जाकर अपने कमरे में लेट गया। बीना उसके लिए खाना लगाकर उसके कमरे में गयी। बीना ने राजू को आवाज़ दी और उसे उठाने लगी।
बीना," उठअ, बबुआ खाना खा लअ, फेन सुत रहिया।"
राजू ने एक बार उसकी ओर देखा, फिर खिड़की की ओर नज़र दौड़ाके बोला," बाबूजी बारे कि गइलन?
बीना,"उ त घरे बारन, आज बाहर ना जइन्हन, काहे तहरा का मतलब?
राजू बीना के गोद में सर रख बोला," माई, हमार दिल बड़ा बेचैन बा। मन में गंदा गंदा विचार आ रहल बा।"
बीना उसके सर को सहलाते हुए बोली," का भईल, बोलअ। तू ई साते दिन में सुखा गईल बारअ। ठीक से खात ना रहलु का?
राजू," खात त रहनि माई, पर जाने काहे मन खराब रहत रहला। अभियो बुखार में बानि।"
बीना राजू के सर को पकड़ अपने सीने से लगाते हुए बोली," आह...बेटा तहरा बुखार रहल, त दवाई काहे ना लेलआ, आह मोर बचवा तहार आँखियों धंस गईल बा।"
राजू बीना की बड़ी बड़ी चूंचियों के कोमल छुअन को अपने चेहरे पर महसूस कर पा रहा था। बीना ने राजू को अगले पल अपने आँचल के भीतर सीधे ब्लाउज पर सटा लिया। राजू को अपने सीने से लगाने के बाद बीना को बहुत सुकून महसूस हो रहा था। दोनों एक दूसरे की जिस्म के प्यासे थे। बीना की आंखें बंद हो गयी थी। तभी राजू ने उसकी चूचियों को चूम लिया और बोला," माई, सब त मिलेला पर तहार प्यार ना मिलल।"
बीना," केतना प्यार चाही तहरा, हमार अंचरा में ढेर प्यार बा, जेतना चाही उतना ले लअ।"
राजू बीना के कड़क चूचक ब्लाउज के ऊपर से महसूस कर सकता था। उसने जानबूझकर चूचक पर अपनी नाक रगड़ी तो बीना मचल गयी। बीना के मुंह से सिसकारी फूट पड़ी। बीना कुछ कर नहीं पा रही थी, लेकिन उसने राजू का ध्यान भटकाने के लिए बोला," राजू, ऊंहा फल ना खात रहलु का? तू ढेरी कमजोर हो गइल बारू, देखअ त केतना कांप रहल बारू।"
राजू उसके आँचल को हटा दिया जिससे उसकी चूचियाँ ऊपर से नंगी हो उठी और ब्लाउज के अंदर चूचियों की घाटी साफ दिख रही थी, अब ब्लाउज में कैद उसके दोनों चूचियां चढ़ती उतरती सांस के साथ ऊपर नीचे हो रही थी। राजू उसकी चूचियों को सहलाते हुए बोला," माई, मिलत त रहले आम ऊंहा, पर अइसन जबरदस्त न रहल। अइसन बड़ बड़। इँहा के आम बड़ा मज़ेदार होखेला।"
बीना बोली," तहरा आम ढेरी पसंद बा का?
राजू," अउर न त का। पूरा रसेदार बुझाता। मन करेला चूस ली।"
बीना," ई साधारण आम नइखे, ई आम बहुत होशियारी अउर मेहनत से मिलेला।"
राजू," आज बचपन याद करब ई आम चूसके सखी।" ऐसा बोलके वो बीना के ब्लाउज के हुक खोलने लगा। थोड़ी देर में हुक सारे खुल गए। बीना के चूचक उसकी ब्रा से ऊपर निकलना चाह रहे थे।
राजू," लागत बा अंगूर भी जबतदस्त आम के ऊपर में राखल बा। अइसन निम्मन नज़ारा कुछ ना हो सकेला।"
बीना," तू बड़ा शैतान हो गइल बारू।"
राजू," माई आज मन होता तहार फल के दुकान लूट ली।"
बीना," अच्छा, अउर का बा फल के दुकान में?
राजू," आगे आम, पाछे कटहर, अंगूर के दाना, अउर केला के थम के बीच फाटल संतरा।"
बीना अपने जननांगों की फलों से हुई तुलना से अवाक और अचंभित रह गयी।"
बीना फिर बोली," तहरा लंग का बा?
राजू," केला जउन संतरा में ढुकि।"
बीना शरमा गयी। फिर बोली," संतरा फट जाई, केला मोट होई त।"
राजू," ना, फाटि काहे संतरा पहिले काफी केला लेले बा।"
बीना," छोड़, खाना खा अभी, ई फल कुल बाद में खहिया, शैतान कहां के।" बोलके बीना उठना चाही तो, राजू ने उसका हाथ पकड़ लिया।
बीना उसकी ओर मुड़कर बोली," राजू, अभी तहार बाबूजी घर में बानि। उ शायद आज बाहर ना जंहिये।“
राजू," तू आवाज़ न करबू त हम तनि ई आम चूस लेब।"
तभी धर्मदेव ने जोर से आवाज़ देकर बीना को बुलाया। तब बीना राजू के गाल पर थपकी देते हुए बोली," आम चूसे के मन बा, त सही मौसम के इंतज़ार करआ राजा।"
ऐसा बोल बीना अपनी मोटी गाँड़ मटकाते हुए बाहर चली गयी। राजू बीना को देख मन में सोच रहा था कि बीना के सही मौसम कहने का मतलब क्या है।" राजू खाना खाकर सो गया।
अगले दिन राजू जब भैंसों को नहलाने खटाल के अंदर गया तो देखा बीना अंदर गोबर के उपले बना रही थी। बीना गोबर के गोल गोल टिकिया बना कर दीवारों पर ठोक रही थी। ऐसा करते वक़्त उसकी गाँड़ पूरी उभर जाती। उसके चुच्चियों पर हल्की गंदगी लगी हुई थी। बीना को देख राजू कुछ देर यूंही खड़ा उसे देखता रह गया। बीना बोली," का भईल कभू गोइठा ( उपले) पारत देखलु न केहू के।"
राजू हंसा और भैंसों की ओर चल दिया।
बीना अपनी कमर झुकाए गोबर ठोक रही थी। बीना के बाल खुले थे। बीना की चूचियाँ और गाँड़ सब कातिलाना अंदाज़ में राजू को लुभा रहे थे। बीना जानबूझकर राजू की तरफ अपने उभारों का प्रदर्शन कर रही थी। जब वो झुकती तो राजू को उसकी चुच्चियों के बीच की सुंदर घाटी साफ साफ दिखती। सच पूछा जाए तो वो अपने बेटे को अपने कामसुख के लिए फंसाने में लगी थी। कहते हैं ना कि भूखी शेरनी अपने बच्चे को भी खा जाती है। राजू भैंसों को नहलाने लगा। बीना गोबर ठोकते हुए अपना आँचल धीरे से सरका दी, ताकि वो कमर से ऊपर सिर्फ ब्लाउज में रहे। राजू उसकी ये हरकत देख लिया, पर कुछ नहीं बोला।
बीना नाटक करते हुए बोली," आह...राजू देखआ ना, हमार अंचरा सरक गईल ह, तनि हमरा ठीक से ओढ़ा द।"
राजू उसकी ओर देख बोला," ठीक बा, आवत हईं।"
बीना के पास तेज कदमों से राजू पहुंचा उसने, बीना का आँचल उठाया लेकिन जानबूझकर वो आँचल को गीले गोबर में डाल दिया, ताकि बीना उस आँचल को फिर ओढ़ न पाए।
बीना," ई का कइले, हमार अंचरा अउर साड़ी दुनु गंदा हो गइल।"
राजू," जान के न कइनी, गलती से हो गइल माई। एक काम करि, तहार ई साड़ी ही उतार देत बानि, ताकि अउर गंदा ना होखो।"
बीना मन ही मन तो यही चाहती थी, पर ऊपर से बोली," माई के साड़ी उतारबू, हमरा त लाज आयी।"
राजू की नज़र बीना की ढोढ़ी पर थी। बीना देख रही थी कि राजू की गंदी नज़र कहां है। राजू बोला," ई सब काम तहरा त बिना साड़ी के करेके चाही। बढ़िया साड़ी खराब हो जायीं।"
बीना," ठीक बा, निकाल द साड़ी।" ऐसा बोल वो राजू को साड़ी खींचने का इशारा कर दी। राजू अब अपनी माँ का चीरहरण करने लगा। बीना की साड़ी कमर के आसपास साये में जो धंसी थी, खिंचाव से बाहर आने लगी। बीना को अपनी साड़ी उतरवाने में मस्ती और लाज दोनों आ रही थी। राजू उसकी साड़ी खींचते हुए बोला," माई, तहार पेट पर ढोढ़ी बहुत जबरदस्त लागतआ।"
बीना," ढोढ़ी त सबके होखेला। एमे खास बात का बा।"
राजू उसके साड़ी को लगभग खींच चुका था बस आखिरी जगह से निकालना बाकी था। वहां साड़ी मजबूती से अंदर थी। तब राजू बीना के करीब आया और अपना हाथ उसके साया के अंदर घुसा दिया। और बोला," साड़ी बड़ा अंदर तक खोंसले बारू।"
बीना की सांसें तेज चल रही थी, वो उसकी ओर देख बोली," ताकि जल्दी से निकले ना।"
राजू उसकी कमर को कसके पकड़ लिया और घुटनों पर उसके पेट के सामने बैठ गया।
राजू ने बीना की कमर में हाथ डाल दिया और उसकी ढोढ़ी को छेड़ने लगा। बीना को राजू के छुअन से गुदगुदी हुई तो उसका पेट कांप सा गया। बीना उसकी ओर कामुकता भरी आंखों से देख बोली," जाय दे ना, ई का करत बारू?
राजू," माई तहार ढोढ़ी के छुअत बानि, बड़ा उकसावेला तहार अंचरा के ओट से। तहार पेट पर चार चांद लगावेला। ऐमे ऊँगरी ढुकाबे में सुकून मिलेला।"
बीना," अच्छा, हमार ढोढ़ी में अइसन का खास बात बा?
राजू," माई, तहार ढोढ़ी में लंबा चीरा बा, आकार शंख के जइसन बा। पेट पर जमल चर्बी के बीच एकर गहराई, नदी में उठल भंवर जइसन बुझाता। गहराई एतना बा कि हमार तर्जनी ऊँगरी आधा से ज्यादा घुस जावेला। मन करेला चुम्मा ले ली ढोढ़ीया के।" राजू उसकी ढोढ़ी में उंगली तेजी से अंदर बाहर कर रहा था।
बीना उसकी ओर देख बोली," तहार बाबूजी कभू अइसन बतिया ना बोललन। हमके त पता ही ना रहल कि ढोढ़ी पर भी मरद एतना फिदा रहलन।" तभी राजू झुकके बीना की ढोढ़ी को चूमने लगा। राजू बीना की कमर को थाम, ढोढ़ी में जीभ घुसाने लगा। बीना का बदन अकड़ गया और वो दीवार पर कंधों के सहारे टिक गई। राजू के हाथ उसकी पूरी कमर थी, पेट और नाभि स्वाभाविक रूप से आगे आ चुकी थी। बीना सिसिया रही थी, पर राजू उसके नाभि के अंदर जीभ घुसेड़ कर, वासना भड़का रहा था। बीना के चेहरे पर हंसी, कामुकता, अकड़न, बहकाव, रोते हुए का मिश्रित भाव था। तभी राजू ने, बीना के ढोढ़ी में थूक दिया, राजू ने बीना के दोनों हाथ अपने हाथों में जकड़ रखे थे। बीना को राजू की मजबूत पकड़ से निकलने का अवसर ही नहीं था। राजू उसकी उभरी ढोढ़ी से मनमानी कर रहा था। बीना भी उत्तेजना में आकर ढोढ़ी को पीछे की बजाय आगे बढ़ा रही थी। राजू के होठ और बीना की ढोढ़ी आपस में ऐसे रगड़ खा रहे थे, जैसे समुंदर का नाव बाजू वाली नाव के टायर से टकड़ाते हैं।
राजू अपनी माँ की ढोढ़ी की पूरी गहराई में जीभ उतार रहा था और उसके आसपास अपने दांत से काट भी रहा था। बीना ने आजतक ढोढ़ी से छेड़छाड़ गंदे अश्लील भोजपुरी गानों में सुनी थी, पर कभी किसीने उसके साथ सच में ऐसा नहीं किया था। बीना इस छेड़छाड़ से बिल्कुल किसी नागिन सी बल खा रही थी।
तभी राजू उसकी ढोढ़ी को पूरा मुँह में रख चूसने लगा। उसके चूसने में इतना जोर था कि, बीना के मुँह से दर्दभरी सिसकारी फूट पड़ी।
बीना," आह..आ..एतना जोर से काहे चुसत बारआ? ई ढोढ़ी के खा जइबू का?
राजू," माई, ई तहार ढोढ़ीया चाटे में बहुत मज़ा आ रहल बा। अइसन सुंदर अउर कामुक ढोढ़ी हम ना देखनि हअ। हमार बस चली त तहार ढोढ़ी के दिनभर चाटत रहब।"
बीना," बेटा, तू एतना बढ़िया से चाटत बारू कि हमरो चटाबे में निम्मन बुझाता।"
तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। बीना राजू की ओर देख बोली," जाने के आ गईल?
राजू," एक काम कर तू चुपचाप नहाय निकल जो। हम देखत बानि।"
बीना घबराई हुई बोली," लागत बा मौसम अभी न बनि।"
बीना ऐसा बोल वहां से सीधा पीछे स्नानागार में चली गयी। राजू ने खीजे मन से दरवाज़ा खोला तो देखा सामने उसकी बुआ बंसुरिया आयी हुई थी। उसने उसके पैर छुए। बंसुरिया एक दो दिन के लिए आई थी। वो हर साल सावन के महीने में गांव आती और पुराने शिव मंदिर में जल चढ़ाती थी। इसका मतलब ये था कि राजू का अपनी माँ के साथ अकेले में रहने का और मौका बनाने का फायदा अब कम था। बंसुरिया लगभग उसकी माँ की हमउम्र थी। बंसुरिया काफी सारी खाने पीने की चीज़ें लेकर आई थी। बीना की बंसुरिया से अच्छी बनती थी। दोनों सहेलियों सी शुरू से ही रहती थी। उसके आते ही बीना व्यस्त रहने लगी। बीना समझ रही थी कि राजू को उसके साथ छेड़खानी करने का पर्याप्त अवसर नहीं मिल रहा है। बीना को भी राजू की छेड़खानी और उसे छेड़ने में मज़ा आता था। वो भी तो उससे बदन छुआने को मचल रही थी।
अगले दिन बंसुरिया और धर्मदेव उसी मंदिर में गए हुए थे,
बीना को चूंकि बुखार था तो धर्मदेव ही बंसुरिया के साथ गया हुआ था।
राजू सुबह सुबह दूध दुह रहा था, तभी बीना के कराहने की आवाज़ आयी। राजू सब छोड़ के बीना के पास गया।
बीना बिस्तर में मचल रही थी।
बीना," आह, राजू देखअ ना हमार देहिया बहुत गनगना रहल बा। तन बदन अगियाईल बा। जाने ई कइसन बुखार लागल बा, मन मिचलात बा।" वो बिस्तर पर लेटी लेटी बोली। राजू आगे आकर बीना के माथे को छुआ और बोला," माई, थरमामीटर से नापी तहार बुखार, ऊपर से त बहुत तेज बुझा रहल बा।"
बीना," नाप लअ, बेटा अइसन बुखार त कभू न आइल।"
राजू तुरंत उसका बुखार नापने के लिए थरमामीटर ले आया। उसने बीना को देखा और बोला," माई एकरा कांखिया में डाल लअ।"
बीना," बेटा, हमार ब्लाउज त ढेरी कसाईल बा। हमार काँख में ना घुसी।"
राजू," त बुखार कइसे नपाई, मोर मईया। तहरा तब ब्लाउज खोले के पड़ी।"
बीना भोलेपन का नाटक करते हुए बोली," का ब्लाउज उतारेके पड़ी?
राजू," हाँ, उतार दअ ताकि जल्दी से बुखार नाप ली।"
बीना," ठीक बा, तू ही उतार दअ, हमार पीठि पर ब्लाउज के दुनु डोरी खोल दअ।"
राजू," माई, ब्लाउज त अंग्रेज़ी में कहल जाता। एकरा हमनी के इँहा का कहल जावेला?
बीना अपने बाल समेट कर आगे कर, अपनी गोरी पीठ राजू के सामने कर दी। सामने राजू के बीना की पीठ पर सिर्फ दो जोड़ी डोरी आपस में गुथी हुई मौजूद थी। उसकी गर्दन से लेकर कमर के निचले हिस्से तक और कोई कपड़ा नहीं था।
बीना," हमनी के इँहा एकरा चोली कहल जाता। लेकिन लोक अब ई सब शबद इस्तेमाल न करेला।"
राजू उसकी कमर को छूता हुआ, ऊपर चढ़ रहा था। तभी बीना बोली," पीठिया पर हाथ काहे फेर रहल बारू, जल्दी से डोरिया खोल दअ।"
राजू ने फिर झट से बीना की पीठ पर कसी हुई डोरी खोल दी। वहां कसाई के वजह से त्वचा पर निशान पड़ गए थे।
राजू," माई, ई चोली तहार, सही में बड़ा कसल बा। देख पीठिया पर डोरी के निशान उखड़ गईल बा।"
बीना," हाँ, ई चोलिया बहुत पुरान बा न, एहीसे।"
फिर राजू ने दूसरी डोरी भी खोल दी। अब चोली सिर्फ बीना के कंधों के सहारे टिकी थी। राजू ने फिर उसके कंधों से चोली के हिस्से को उतारा। और फिर उसकी बाजुओं से निकाल दिया। बीना के दोनों हाथ ऊपर थे तो उसकी काँख जिनमें छोटे छोटे बाल थे वो साफ दिख रही थी। राजू उनके करीब जाकर उसके काँख की सुगंध को महसूस किया। बीना कुछ बोली नहीं, पर आंखों से राजू को अपने बगल झांकते और सूंघते देखा। बीना की सांवली काँख बेहद मस्त लग रही थी। बीना ने फिर अपने आँचल से अपने चुच्चियों को ढ़क लिया और कामुक स्वर में बोली," थरमामीटर लगाबा ना, काँख में।"
राजू ने थरमामीटर लगा दिया और बीना उसे काँख में दबा ली। बीना राजू के कंधे पर पीठ टिका बैठी थी। राजू बीना के गर्दन और कान के पिछले हिस्से के पास अपने होठ रखा हुआ था। बीना राजू की गर्म सांसें अपने पास स्वयं महसूस कर रही थी। बीना की सांसें भी तेज चल रही थी और होठ कांप रहे थे।
तभी राजू ने उसके दोनों चुच्चियों के ऊपर कड़े चुचकों को आँचल के नीचे से तने देख, उसने बीना को अपनी ओर घुमा लिया। बीना ने राजू की ओर देख बोला," बेटा, बुखार बड़ी जोर के लागल बा, कइसे उतरी।"
राजू उसके गाल सहलाते हुए पर नज़र उसकी बीना के कड़क चुचकों पर थी, बोला," माई, एक बेर बुखार नाप त लेवे दे। ओकर बाद अगर दवाई खियावे के पड़े, कि सुइया दियाबे के पड़े। लेकिन तहार बुखार हम जरूर उतार देब।"
बीना," बेटा, ई बुखार त डॉक्टर साहब से भी न पकड़ाईल। जाने अब का होई।"
राजू," हर चीज़ के इलाज बा माई। बस एक बेर ओकरा चीन्हे के देरी बा। ओकर बाद त अइसन इलाज करब कि फेर ई रोग न होई।"
थोड़ी देर बाद राजू ने बीना के बगल से थरमामीटर निकाला और उसे देखा तो बीना को 101 बुखार था। बीना ने राजू से पूछा," बेटा, केतना बोखार ह?
राजू," 101 माई।" राजू ने जानबूझकर बीना के चुचकों में अपना हाथ भिड़ा दिया। बीना कुछ नहीं बोली और राजू उन कड़े चुचकों को हाथ से सहला रहा था। तभी राजू को एक आईडिया सूझा उसने बीना के चूचियों के बीच अपना हाथ रख दिया। बीना उसकी हरकत देख प्रश्न करती हुई बोली," ई का करत बारआ?
राजू," माई, तहार दिल के धड़कन देखत बानि। बड़ा जोर से धड़क रहल बा।"
बीना," अच्छा, त तनि बांया में देख ना, करेजा इँहा बा।" ऐसा बोल उसने राजू का हाथ ऐसी जगह रखा जहां उसका आधा हाथ उसकी बांई चुच्ची पर था। राजू बीना की चुच्ची को दबा कर उसकी धड़कन महसूस करने लगा।
तभी राजू बोला," माई ई अंचरा हटा दी का, सही से पता न चल रहल बा तहार करेजा के धक धक।"
बीना उसकी ओर बिना देखे बोली," जरूरी बा त हटा द।"
राजू बोला," जरूरी बा।" ऐसा बोल उसने उसके कंधे से आँचल हटा दिया और बीना की उन्नत चुच्चियाँ राजू के सामने नंगी हो उठी। बीना ने एक बार अपने चुचकों को ढकने की चेष्टा की तो राजू ने उसके हाथों को धकेल दिया। उसके गहरे भूरे रंग के चूचक किसी गुब्बारे की बंधी छोड़ की तरह उठे थे। राजू ने बीना की धड़कन सुनने के बहाने अपना सर उसके स्तनों के बीच रख दिया। राजू को अपने सीने से लगते ही वो, बहक उठी और उसे अपने चुच्चियों के बीच समा लिया। इस आलिंगन में माँ का प्यार नहीं बल्कि बीना का प्यार था।
बीना," आह, हमार करेजा देखआ कइसन धक धक कर रहल बा।"
राजू," हाँ, माई सच कहत बारू। तहार करेजा जोर से धड़क रहल बा। अइसन काहे हअ।"
बीना," हम का बताई,?
राजू," अच्छा, पेशाब कइसन होता?
बीना," काहे?
राजू," पेशाब में खून त नइखे आवत न?
बीना," न अभी तक ना। सच बताई त गौर ना कइनी।"
राजू," चल अभी मूत के देख एक बेर।"
बीना," लेकिन राजू, बाहर बारिश होता। हमके त इँहा आंगन के नाला के पास ही मूते के पड़ी।"
राजू," त का भईल मूत ना, माई गे।"
बीना," ठीक बा।" बीना बिस्तर से नीचे उतरी और जाने लगी तो बोली," कच्छी उतार देत बानि, पेशाब करे में दिक्कत हो जाई।"
राजू ने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा," हाँ, काहे ना उतारके हमरा दे दअ आपन कच्छी हमके।"
बीना ने हाथ साड़ी के नीचे से अंदर लिया और झटके से कच्छी उतार कर पैरों से निकाल ली। राजू ने झट से बीना के हाथों से कच्छी ले ली। बीना की बूर इतनी गीली थी कि कच्छी लगभग भीग चुकी थी। यहां तक बूर के पानी का चिपचिपापन कच्छी पर महसूस हो रहा था। बीना को कच्छी उतारते वक़्त उतनी शर्म नहीं आयी, जितना राजू के हाथ में अपनी गीली कच्छी देते हुए आ रही थी। राजू ने जब कच्छी हाथ में ली, तो उसने फौरन कच्छी का गीलापन महसूस कर लिया। उसके हाथों में भी बीना के बूर का चिपचिपा पानी लग गया। राजू, अब निश्चिन्त हो चुका था कि उसकी माँ बीना को कौनसी दवाई और कौन सी सुई की जरूरत है। उसने बीना की गीली कच्छी जो उतारने के क्रम में रोल हो चुकी थी, उसके सामने पूरा फैला दिया और बोला," माई, ई का तू मूत दिहलस का?
बीना शरमाते हुए," ना, बेटा हम न मूतनी हअ।
राजू," अच्छा, त फेर ई का हअ, एतना गीला कइसे बा तहार कच्छी। ई तहार पेशाब बा नु"
बीना," धत, ई पेशाब न हअ। ई त...।"
राजू," बोल न बोल, रुक काहे गईलु।"
बीना," ई...उ..उ... अब का बताई ई, बस ई बूझ ले ई पेशाब न अउर कुछ बा।"
राजू उस गीले हिस्से को छू कर बोला," सच कहेलु माई, ई पेशाब नइखे, ई बहुत चिप चिप बा। पेशाब अइसन न होखेला।"
बीना," हाँ, उहे त हम कहत बानि, ई पेशाब नइखे। अउर कुछ बा।"
राजू," का हअ?
बीना," उ हम तहरा न बता सकेनि। हम सब चीज अभी तहरा न बता सकिले।"
राजू," काहे, काहे ना बता सकेलु?"
बीना," उ... हमार जांघ के बीच में पसीना आ गईल रहे। उहे से कच्छी भीज गईल।"
राजू," तहार पसीना त पेशाब जइसन महकेला।"
बीना," ऊफ़्फ़...बेशरम कहीं के, हमरा सामने हमार कच्छी सूँघत बारआ।"
राजू," तू त हमार सखी बारू, काहे के लाज हो।" ऐसा बोल उसने बीना की कच्छी के उस हिस्से को चूम लिया जो बूर के पानी से गीली थी। बीना ने राजू की ओर मदभरी आंखों से देखा, फिर वो राजू के सामने अपने आँचल को उठा कर कंधे पर रखी और छम छम करते हुए राजू के सामने से चलते हुए नाले के पास पहुंच गई। बीना राजू के सामने साड़ी ऊपर खिसका ली और बेझिझक बैठ गयी। बीना जहाँ बैठी थी, वहाँ से राजू उसकी भारी गाँड़ के दोनों पाटों के साक्षात दर्शन कर रहा था। बीना दिन दहारे अपने बेटे के सामने ही मूतने लगी। बीना को एहसास था कि वो जो कर रही है, वो अनाचार और नाजायज संबंधों की सीढ़ी है। बीना की बूर से तेज़ सिसकारी सी आवाज़ आई और मूत की धार बह निकली। तभी राजू ने पूछा," मूत बढ़िया से निकलत बा कि ना?
बीना,"हाँ, बेटा मूत ठीक से बह रहल बा।"
राजू," कउनु जलन त नइखे ना?
बीना," न कउनु जलन नइखे।"
राजू," पेशाब के रंग कइसन बा?
बीना," पुआर के रंग जइसन पियर, बेटा।"
राजू," ठीक बा, लेकिन बुखार बा देखिहा कउनु इन्फेक्शन न होखो।"
बीना," का, इन..फकसन?
राजू," बीमारी में हो जाता इन्फेक्शन।"
बीना," हमरा न बुझाता, तनि तू आके देख ल ना।"
राजू," हम आयी का?"
बीना," हाँ, काहे ना। आके इँहा जांच लअ।"
राजू ये मौका गंवाना नहीं चाहता था। वो तेज कदमों से चलके, बीना के पास पहुंच गया। बीना अभी भी तेज धार में मूत रही थी। बीना राजू की ओर देख बोली," देख ना, हमार पेशाब के रंग ठीक बा कि ना?
राजू उसके सामने देखते हुए जहां मूत की धार गिर रही थी और उसके छींटे आस पास गिर रही थी, बोला," तनि नजदीक से देखे के पड़ी।"
बीना बोली," त देखआ ना।" ऐसा बोलके उसने राजू को अपने पास बिठा लिया। राजू बीना के पेट की चर्बी की वजह से मूत्रद्वार के दर्शन नहीं कर पा रहा था। मूत की धार की आवाज़ बिल्कुल मखमली सी थी। बीना राजू की ओर देख रही थी, जो खुले मुंह से बीना के पैरों के बीच बहती धार को निहार रहा था। इतने में राजू ने बीना की मूत की धार में हाथ लगा दिया और अपने हथेली में इकठ्ठा करने लगा। राजू का हाथ बीना के मूत की धार से पूरा गीला हो गया। राजू उसे इकठ्ठा कर मुंह के पास लाया और सूंघने लगा।
बीना जो अब मूतने के अंतिम चरण में थी बोली," ई का करत बारआ? उ हमार पेशाब बा, हाथ से काहे छुलु। अब ओकरा सूंघ रहल बारअ।"
राजू," देखत रहनि की केहू तरह के दुर्गंध नइखे ना, अउर रंग भी जाँचत रहनि। तहरा कउनु इंफेक्शन नइखे।"
बीना," अच्छा, फेर त ठीक बा।"
तभी राजू ने अपना लण्ड बाहर निकाला और साथ में ही मूतने लगा। राजू का लण्ड बीना को पहले ही प्रभावित कर चुका था। लेकिन अपने सामने उसे फिर से देख वो मचल गयी। बीना को खुद पर काबू न रहा और उसने राजू का लण्ड थाम उसे मुतवाने लगी। राजू ने कुछ कहा नहीं, बल्कि मूत की धार तेज करते हुए मुस्कुरा दिया। बीना नीचे बैठी ही उसके लण्ड को थामे हुए थी।
थोड़ी देर में दोनों मूत चुके थे। राजू का मूतना जब खत्म हुआ तो बीना ने उसका लंड छोड़ दिया। इस पर राजू ने उसका हाथ फिर से लण्ड पर रख दिया और बोला," तनि हिला द, मूत के बूंद सब हइन्जा गिर जाई।"
बीना," अच्छा, ठीक बा।" और उसका लण्ड हिलाने लगी। फिर दोनों एक साथ उठे और तभी बीना का पैर गीलेपन से फिसल गया और वो संभलने के चक्कर में आंगन में गिर गई। उसके साथ साथ राजू भी उसके ऊपर गिर गया। तेज बारिश के चलते दोनों आंगन में धीमे बहते पानी से गीले हो गए। बीना और राजू एक दूसरे के ऊपर थे। बीना सिर्फ साड़ी और साया में थी। वहीं राजू सिर्फ बनियान और छोटे कच्छे में था। बीना की साड़ी पूरी तरह गीली हो चुकी थी, उसकी चुच्चियाँ साड़ी के पतले आँचल के ऊपर से साफ दिख रही थी। चूचक तन कर खड़े थे। दोनों की आँखे एक दूजे से टकराई हुई थी। बीना चाह रही थी कि राजू उसे चूम ले। लेकिन राजू पहले खुद उठा और फिर उसे उठाया। बीना राजू का हाथ पकड़ धीमे धीमे खड़ी हुई। उसकी साड़ी के गीलेपन की वजह से उसकी गाँड़, जाँघे, चूचियाँ, कमर, उसकी नाभि सब स्पष्ट दिख रहे थे।राजू ने उसे अपनी बांहों में ले लिया। दोनों के प्यासे होठों पर बारिश की बूंदे गिर रही थी। तभी बीना को राजू ने एकदम से नजदीक खींच लिया और उसके होंठों को चूमने के लिए उसके चेहरे को उठाया। दोनों के होठ एकदम करीब आ चुके थे। तभी बीना लाज से खुद को छुड़ा के भागने को हुई तो राजू ने उसका आँचल पकड़ लिया। बीना की चूंचियों नंगी हो उठी और उसने साड़ी को पकड़ना चाहा पर राजू की पकड़ उसकी साड़ी पर मजबूत थी। बीना की साड़ी धीरे धीरे राजू खोलने लगा। और कुछ ही देर में बीना सिर्फ साये में थी। इस बार राजू ने अपनी बनियान उतारी और बीना को करीब लाकर उसके साये की डोर खींचने के लिए उसके कमर की ओर झुक गया। क्या अद्भुत कामुक दृश्य था। एक माँ बेटे की प्रेम कहानी और रोमांस की। राजू ने उसकी डोर खोली तो बीना ने कोई प्रतिरोध नहीं किया, बल्कि चिपके साये को उतारने के लिए राजू की मदद करने लगी। कुछ ही देर में उसका साया भी उसके देह को विदा कह चुका था। बीना अब अपने बेटे के सामने अपने ही आंगन में निर्वस्त्र खड़ी थी। राजू के सामने बीना यूं तो पहले भी झांट के बाल कटवाने के लिए नंगी हुई थी। पर आज बीना का जलवा ही कुछ और था। राजू ने बीना के नंगेपन से डूबे कामुक शरीर को अपनी आंखों से सर से पैर तक निहारा। बीना की उन्नत चुच्चियाँ, उसकी भरी हुई गाँड़, कोमल चिकनी जाँघे उसके लण्ड को खड़ा करने में ईंधन का काम कर रही थी।
राजू," माई, तहरा देख के अइसन बुझाता तहरा कामज्वर लागल बा। अइसन ज्वर जउन खाली काम सुख प्राप्त करे से ही जायीं। तहार अंग अंग काम के चाहत के रंग में रंगल बा। तू काम देवी के मूरत लागत बारू। तहरा शायद मालूम नइखे हम भी कामज्वर में बानि।"
बीना नज़रें झुकाए बोली," हाँ, राजू हम कामज्वर में जरत बानि। हमार रोम रोम काम सुख चाहेला। मलंग बाबा आईल रहुवे उहे कहनि कि जब तलिक हम मनपसंद मर्द के साथ कामसुख न उठाईब, ई ज्वर शांत न होई। जब से तू गईल बारू, तबसे हम तहरा याद कइके बेचैन रहनि। रोज राति तू हमरा साथ सपना में रासलीला रचावत बारू। हमके त अपना से घृणा होत रहे, पर मलंग बाबा हमार सब शंका दूर कर दिहले। माई- बेटा होके भी हम प्रेम और वासना के रस में तहरा साथ डूबे चाहत बानि। लेकिन तू केकरा खातिर कामज्वर में बारू?
राजू," तहरा खातिर, माई।"
बीना," राजू हमके माई ना एक बेर बीना बोल।
राजू," बीना हम तहरा साथ कामसुख उठावे चाहेनि।"
बीना," कामसुख के ठेठ में का बोलल जाला। उ बोल ना"
राजू," हम तहरा चोदे चाहेनि। हमरा साथ चुदाई करबू बीना।"
बीना राजू का लण्ड पकड़ बोली," अभी चोदबआ हमरा लांड से?
राजू," हाँ, बीना रानी तहरा हिंये चोदब।"
बीना और राजू एक दूसरे के होठ अनायास ही चूमने लगे। बीना अपने आंगन में अपने बेटे के सामने चुदने को तैयार थी। वो दोनों वासना में पूरी तरह बहने ही वाले थे।
तभी दरवाजे पर दस्तक हो गयी। बीना को काटो तो खून नहीं। बीना वहां से नंगी ही भागने लगी। उसने साड़ी और साया उठाया और पानी में छम छम करती हुई अपने कमरे में भाग गई। राजू हाथ मलता रह गया। उसके मन में गुस्सा था जाने कौन आया है, जिसने उसकी और उसकी माँ के कामुक क्षणों को तोड़ दिया।
राजू ने देखा उसकी बुआ बंसुरिया और उसका बाप दोनों भीगे हुए, वापिस आये थे।
रात को जब बीना खाना बनाने के लिए सिल बट्टे पर मसाला पीस रही थी तो, राजू उसके करीब आया और उसे रात को सबके सोने के बाद आने को बोला। बीना कुछ नहीं बोली। राजू रात को बारह बजे बीना का इंतज़ार कर रहा था, तभी उसे बीना के आने की आहट सुनाई दी। बीना ने चुपके से उसे घर के पीछे बुलाया। राजू उसके पीछे पीछे गया। राजू ने बीना को बांहों में भर लिया और बीना भी उसे बांहों में भर ली।
फिर सांस भरते हुये बोली," राजू सुन, अइसे में मज़ा ना आई,हमके कहीं अउर ले चल जहां खाली तू अउर हम रही। ऊंहा केहू रोक टोक न करि। कल तहार बुआ और बाबूजी चल जायीं। फेर हमनी अकेले में घर में रहब। लेकिन घर में केहू आ सकेला कभू। हम दुनु उ नदी पार गन्ना के खेत में चलब। ऊंहा तहार दोस्त अरुण के ट्यूबवेल भी बा। तू अपना हिसाब से व्यवस्था कर। ई दुनु काल सुबह तक जायीं, ओकर बाद दुनु के कामज्वर शांत होई।"
राजू को गुड्डी की याद आ गयी। गुड्डी भी इसी तरह बगैर किसी रोक टोक के मजे के लिये, राजू को व्यवस्था करने बोली थी। उसे एक पल को लगा गुड्डी ही बोल रही है। उसने मन में कहा जइसन माई, वइसन बेटी। राजू उसकी आँखों में देख बोला," बड़ा बेचैन कर दिहलु बोलके, रतिया कइसे काटी। अब त भोरे के इंतज़ार बा।"
बीना," हम भी त बेचैन बानि। लेकिन अभी जाय द।"
राजू ने बेमन से बीना को जाने दिया। तब बीना ने अपनी पहनी हुई कच्छी खोली और राजू के मुँह पर फेंक बोली," रात एहीसे मन बहलावा। काल हमार इन फक्शन के इलाज कर दिहा। देख पानी अभी भी बहुत बह रहल बा।"
राजू कच्छी सूंघते हुए," कहां से पानी चुएला?
बीना कामुक स्वर में बोली," काल बताईब।" ऐसा बोल वो भाग गई।
अगले दिन बंसुरिया को उसके ससुराल छोड़ने धर्मदेव उसके साथ निकल गया। उनके जाते जाते दोपहर हो गयी। राजू बीना के पास पहुंचा तो बीना ने उसे खेतों पर पहुंच कर तैयारी करने को बोला। साथ ही ये बोला कि वो खाना वैगरह बना के और घर अच्छे से बंद करके एक दो घंटे बाद आएगी।
राजू बीना की बात मान निकल गया और कुछ खास इंतजाम में लग गया। उधर बीना भी खाना बनाते हुए अपने आनेवाले लम्हों और खुशियों के बारे में सोच रही थी। राजू को गए दो घंटे हो चुके थे। अभी शाम के साढ़े तीन बज रहे थे। बीना घर का दरवाज़ा बंद कर और दो थैलों में समान ले गन्ने के खेतों की तरफ बढ़ चली। रंजू उसे अपनी खिड़की से देख मुस्कुरा उठी।
Awesome update bro maza aa gya but ab jldi update Dena yrr in maa bete ki chudai pdne ko Dil bechain ho utha hai bahuढकी हुई होती है, वो चोदने के साथ ही, पूज्य होती है, उसका व्यभिचार भी सदाचार ही होता है। वो कामुकता के रस में डूबकर भी उस फूल की तरह होती है जो पूजा के दौरान ईश्वर को चढ़ाई जाती है। उसके यौनांगों से बहता मदन रस, उसके समर्पण को दर्शाता है। उसकी घृणित सोच भी यौन कुंठा को तृप्त करने के लिए जागती है। स्त्री को भोगने का परम नियम है, स्त्री को खुलकर इन रंगों में रंग जाने दो। स्त्री को भी चाहिए कि जब वो भोगी जा रही हो, तो पुरुष को उससे प्यारी वस्तु कोई और ना लगे। पुरुष को पूरी आजादी दे, खुद को हर प्रकार से भोगने के लिए। एक ऐसा संबंध स्थापित हो कि, पुरुष और स्त्री के मन में एक दूसरे की चाह बढ़े, एक दूसरे के पास होने की लालसा एहसास बढ़े। स्त्री को उसके हाथों नंगी होने में भी, कोई लाज शरम ना आए, और व्यभिचार हो तो स्त्री खुद रिश्तों को ताक पर रख चुदाई का भरपूर आनंद ले। स्त्री को जब इन रंगों का नशा चढ़ता है तो, वो किसी भी चरस अफीम गांजा दारू के नशे से दोगुना मज़ा और नशा देती है।
बीना के अंदर भी अब वो रंग बिखड़ रहे थे। वो अब दिन रात राजू के आने का इंतज़ार करती थी। राजू के साथ बिताए कुछ अंतरंग पल उसे, खुशी भी देते और बेचैन भी कर देते। वो राजू के फोन का इंतज़ार करती थी, पर राजू फोन नहीं करता था। राजू को अरुण ने सख्त हिदायत दे रखी थी कि वो भूल कर भी अपनी माँ को फोन ना करे। राजू ने खुद को बड़ी मुश्किल से रोक रखा था। अरुण वहीं दूसरी ओर अंजू को ऐसे भोग रहा था जैसे कि दोनों फिर कभी मिलेंगे ही नहीं। अरुण की माँ रंजू जो खुद कामवासना की पुजारिन थी, और अरुण की याद में बह रही थी, उन दोनों को एक बार भी तंग नहीं किया। उधर बेचारी गुड्डी भी यौवन का पानी चखने के लिए, तड़प रही थी।
आखिर वो दिन आ गया जब राजू आनेवाला था। राजू स्टेशन से सीधा अपने घर की ओर गया। बीना राजू के लिए उसकी पसंद का हलवा, सब्जी और पूरी बना रही थी। थोड़ी ही देर में राजू अपने घर के दरवाजे से अंदर दाखिल हुआ।
बीना ने राजू को जैसे ही आते देखा उसका दिल जोरों से धड़क उठा। चेहरे पर अपने आप ही मुस्कान तैर गयी। वो खुद को राजू की माँ कम और महबूबा ज्यादा महसूस कर रही थी। राजू ने आंगन में खड़ी अपनी माँ के पैर छुए, तो बीना मुंह में आँचल दबाए, उसे गौर से देखने लगी। राजू भी नज़रें उठा उसे देखने लगा। राजू बीना के पैर अभी भी पकड़े हुए था। दोनों एक दूसरे को ऐसे देख रहे थे जैसे जन्मों से ना मिले हो। तभी धरमदेव बोला," अरे बेटा एतना दिन बाद घर आईल ह, थाकल होई। आशीर्वाद दअ और जल्दी से खाना दअ।"
बीना फिर स्थिति समझती हुई हड़बड़ा कर बोली," जुग जुग जियअ, तू नहा लअ हम खाना लगावत बानि।" बीना जब ये बोल रही थी तो उसकी बूर रिस रही थी। वैसे तो उसकी बूर राजू के आने की खबर सुनके ही रिस रही थी, पर राजू के आने से और ज़्यादा रिस रही थी।
राजू काफी थका हुआ था। वो जाकर अपने कमरे में लेट गया। बीना उसके लिए खाना लगाकर उसके कमरे में गयी। बीना ने राजू को आवाज़ दी और उसे उठाने लगी।
बीना," उठअ, बबुआ खाना खा लअ, फेन सुत रहिया।"
राजू ने एक बार उसकी ओर देखा, फिर खिड़की की ओर नज़र दौड़ाके बोला," बाबूजी बारे कि गइलन?
बीना,"उ त घरे बारन, आज बाहर ना जइन्हन, काहे तहरा का मतलब?
राजू बीना के गोद में सर रख बोला," माई, हमार दिल बड़ा बेचैन बा। मन में गंदा गंदा विचार आ रहल बा।"
बीना उसके सर को सहलाते हुए बोली," का भईल, बोलअ। तू ई साते दिन में सुखा गईल बारअ। ठीक से खात ना रहलु का?
राजू," खात त रहनि माई, पर जाने काहे मन खराब रहत रहला। अभियो बुखार में बानि।"
बीना राजू के सर को पकड़ अपने सीने से लगाते हुए बोली," आह...बेटा तहरा बुखार रहल, त दवाई काहे ना लेलआ, आह मोर बचवा तहार आँखियों धंस गईल बा।"
राजू बीना की बड़ी बड़ी चूंचियों के कोमल छुअन को अपने चेहरे पर महसूस कर पा रहा था। बीना ने राजू को अगले पल अपने आँचल के भीतर सीधे ब्लाउज पर सटा लिया। राजू को अपने सीने से लगाने के बाद बीना को बहुत सुकून महसूस हो रहा था। दोनों एक दूसरे की जिस्म के प्यासे थे। बीना की आंखें बंद हो गयी थी। तभी राजू ने उसकी चूचियों को चूम लिया और बोला," माई, सब त मिलेला पर तहार प्यार ना मिलल।"
बीना," केतना प्यार चाही तहरा, हमार अंचरा में ढेर प्यार बा, जेतना चाही उतना ले लअ।"
राजू बीना के कड़क चूचक ब्लाउज के ऊपर से महसूस कर सकता था। उसने जानबूझकर चूचक पर अपनी नाक रगड़ी तो बीना मचल गयी। बीना के मुंह से सिसकारी फूट पड़ी। बीना कुछ कर नहीं पा रही थी, लेकिन उसने राजू का ध्यान भटकाने के लिए बोला," राजू, ऊंहा फल ना खात रहलु का? तू ढेरी कमजोर हो गइल बारू, देखअ त केतना कांप रहल बारू।"
राजू उसके आँचल को हटा दिया जिससे उसकी चूचियाँ ऊपर से नंगी हो उठी और ब्लाउज के अंदर चूचियों की घाटी साफ दिख रही थी, अब ब्लाउज में कैद उसके दोनों चूचियां चढ़ती उतरती सांस के साथ ऊपर नीचे हो रही थी। राजू उसकी चूचियों को सहलाते हुए बोला," माई, मिलत त रहले आम ऊंहा, पर अइसन जबरदस्त न रहल। अइसन बड़ बड़। इँहा के आम बड़ा मज़ेदार होखेला।"
बीना बोली," तहरा आम ढेरी पसंद बा का?
राजू," अउर न त का। पूरा रसेदार बुझाता। मन करेला चूस ली।"
बीना," ई साधारण आम नइखे, ई आम बहुत होशियारी अउर मेहनत से मिलेला।"
राजू," आज बचपन याद करब ई आम चूसके सखी।" ऐसा बोलके वो बीना के ब्लाउज के हुक खोलने लगा। थोड़ी देर में हुक सारे खुल गए। बीना के चूचक उसकी ब्रा से ऊपर निकलना चाह रहे थे।
राजू," लागत बा अंगूर भी जबतदस्त आम के ऊपर में राखल बा। अइसन निम्मन नज़ारा कुछ ना हो सकेला।"
बीना," तू बड़ा शैतान हो गइल बारू।"
राजू," माई आज मन होता तहार फल के दुकान लूट ली।"
बीना," अच्छा, अउर का बा फल के दुकान में?
राजू," आगे आम, पाछे कटहर, अंगूर के दाना, अउर केला के थम के बीच फाटल संतरा।"
बीना अपने जननांगों की फलों से हुई तुलना से अवाक और अचंभित रह गयी।"
बीना फिर बोली," तहरा लंग का बा?
राजू," केला जउन संतरा में ढुकि।"
बीना शरमा गयी। फिर बोली," संतरा फट जाई, केला मोट होई त।"
राजू," ना, फाटि काहे संतरा पहिले काफी केला लेले बा।"
बीना," छोड़, खाना खा अभी, ई फल कुल बाद में खहिया, शैतान कहां के।" बोलके बीना उठना चाही तो, राजू ने उसका हाथ पकड़ लिया।
बीना उसकी ओर मुड़कर बोली," राजू, अभी तहार बाबूजी घर में बानि। उ शायद आज बाहर ना जंहिये।“
राजू," तू आवाज़ न करबू त हम तनि ई आम चूस लेब।"
तभी धर्मदेव ने जोर से आवाज़ देकर बीना को बुलाया। तब बीना राजू के गाल पर थपकी देते हुए बोली," आम चूसे के मन बा, त सही मौसम के इंतज़ार करआ राजा।"
ऐसा बोल बीना अपनी मोटी गाँड़ मटकाते हुए बाहर चली गयी। राजू बीना को देख मन में सोच रहा था कि बीना के सही मौसम कहने का मतलब क्या है।" राजू खाना खाकर सो गया।
अगले दिन राजू जब भैंसों को नहलाने खटाल के अंदर गया तो देखा बीना अंदर गोबर के उपले बना रही थी। बीना गोबर के गोल गोल टिकिया बना कर दीवारों पर ठोक रही थी। ऐसा करते वक़्त उसकी गाँड़ पूरी उभर जाती। उसके चुच्चियों पर हल्की गंदगी लगी हुई थी। बीना को देख राजू कुछ देर यूंही खड़ा उसे देखता रह गया। बीना बोली," का भईल कभू गोइठा ( उपले) पारत देखलु न केहू के।"
राजू हंसा और भैंसों की ओर चल दिया।
बीना अपनी कमर झुकाए गोबर ठोक रही थी। बीना के बाल खुले थे। बीना की चूचियाँ और गाँड़ सब कातिलाना अंदाज़ में राजू को लुभा रहे थे। बीना जानबूझकर राजू की तरफ अपने उभारों का प्रदर्शन कर रही थी। जब वो झुकती तो राजू को उसकी चुच्चियों के बीच की सुंदर घाटी साफ साफ दिखती। सच पूछा जाए तो वो अपने बेटे को अपने कामसुख के लिए फंसाने में लगी थी। कहते हैं ना कि भूखी शेरनी अपने बच्चे को भी खा जाती है। राजू भैंसों को नहलाने लगा। बीना गोबर ठोकते हुए अपना आँचल धीरे से सरका दी, ताकि वो कमर से ऊपर सिर्फ ब्लाउज में रहे। राजू उसकी ये हरकत देख लिया, पर कुछ नहीं बोला।
बीना नाटक करते हुए बोली," आह...राजू देखआ ना, हमार अंचरा सरक गईल ह, तनि हमरा ठीक से ओढ़ा द।"
राजू उसकी ओर देख बोला," ठीक बा, आवत हईं।"
बीना के पास तेज कदमों से राजू पहुंचा उसने, बीना का आँचल उठाया लेकिन जानबूझकर वो आँचल को गीले गोबर में डाल दिया, ताकि बीना उस आँचल को फिर ओढ़ न पाए।
बीना," ई का कइले, हमार अंचरा अउर साड़ी दुनु गंदा हो गइल।"
राजू," जान के न कइनी, गलती से हो गइल माई। एक काम करि, तहार ई साड़ी ही उतार देत बानि, ताकि अउर गंदा ना होखो।"
बीना मन ही मन तो यही चाहती थी, पर ऊपर से बोली," माई के साड़ी उतारबू, हमरा त लाज आयी।"
राजू की नज़र बीना की ढोढ़ी पर थी। बीना देख रही थी कि राजू की गंदी नज़र कहां है। राजू बोला," ई सब काम तहरा त बिना साड़ी के करेके चाही। बढ़िया साड़ी खराब हो जायीं।"
बीना," ठीक बा, निकाल द साड़ी।" ऐसा बोल वो राजू को साड़ी खींचने का इशारा कर दी। राजू अब अपनी माँ का चीरहरण करने लगा। बीना की साड़ी कमर के आसपास साये में जो धंसी थी, खिंचाव से बाहर आने लगी। बीना को अपनी साड़ी उतरवाने में मस्ती और लाज दोनों आ रही थी। राजू उसकी साड़ी खींचते हुए बोला," माई, तहार पेट पर ढोढ़ी बहुत जबरदस्त लागतआ।"
बीना," ढोढ़ी त सबके होखेला। एमे खास बात का बा।"
राजू उसके साड़ी को लगभग खींच चुका था बस आखिरी जगह से निकालना बाकी था। वहां साड़ी मजबूती से अंदर थी। तब राजू बीना के करीब आया और अपना हाथ उसके साया के अंदर घुसा दिया। और बोला," साड़ी बड़ा अंदर तक खोंसले बारू।"
बीना की सांसें तेज चल रही थी, वो उसकी ओर देख बोली," ताकि जल्दी से निकले ना।"
राजू उसकी कमर को कसके पकड़ लिया और घुटनों पर उसके पेट के सामने बैठ गया।
राजू ने बीना की कमर में हाथ डाल दिया और उसकी ढोढ़ी को छेड़ने लगा। बीना को राजू के छुअन से गुदगुदी हुई तो उसका पेट कांप सा गया। बीना उसकी ओर कामुकता भरी आंखों से देख बोली," जाय दे ना, ई का करत बारू?
राजू," माई तहार ढोढ़ी के छुअत बानि, बड़ा उकसावेला तहार अंचरा के ओट से। तहार पेट पर चार चांद लगावेला। ऐमे ऊँगरी ढुकाबे में सुकून मिलेला।"
बीना," अच्छा, हमार ढोढ़ी में अइसन का खास बात बा?
राजू," माई, तहार ढोढ़ी में लंबा चीरा बा, आकार शंख के जइसन बा। पेट पर जमल चर्बी के बीच एकर गहराई, नदी में उठल भंवर जइसन बुझाता। गहराई एतना बा कि हमार तर्जनी ऊँगरी आधा से ज्यादा घुस जावेला। मन करेला चुम्मा ले ली ढोढ़ीया के।" राजू उसकी ढोढ़ी में उंगली तेजी से अंदर बाहर कर रहा था।
बीना उसकी ओर देख बोली," तहार बाबूजी कभू अइसन बतिया ना बोललन। हमके त पता ही ना रहल कि ढोढ़ी पर भी मरद एतना फिदा रहलन।" तभी राजू झुकके बीना की ढोढ़ी को चूमने लगा। राजू बीना की कमर को थाम, ढोढ़ी में जीभ घुसाने लगा। बीना का बदन अकड़ गया और वो दीवार पर कंधों के सहारे टिक गई। राजू के हाथ उसकी पूरी कमर थी, पेट और नाभि स्वाभाविक रूप से आगे आ चुकी थी। बीना सिसिया रही थी, पर राजू उसके नाभि के अंदर जीभ घुसेड़ कर, वासना भड़का रहा था। बीना के चेहरे पर हंसी, कामुकता, अकड़न, बहकाव, रोते हुए का मिश्रित भाव था। तभी राजू ने, बीना के ढोढ़ी में थूक दिया, राजू ने बीना के दोनों हाथ अपने हाथों में जकड़ रखे थे। बीना को राजू की मजबूत पकड़ से निकलने का अवसर ही नहीं था। राजू उसकी उभरी ढोढ़ी से मनमानी कर रहा था। बीना भी उत्तेजना में आकर ढोढ़ी को पीछे की बजाय आगे बढ़ा रही थी। राजू के होठ और बीना की ढोढ़ी आपस में ऐसे रगड़ खा रहे थे, जैसे समुंदर का नाव बाजू वाली नाव के टायर से टकड़ाते हैं।
राजू अपनी माँ की ढोढ़ी की पूरी गहराई में जीभ उतार रहा था और उसके आसपास अपने दांत से काट भी रहा था। बीना ने आजतक ढोढ़ी से छेड़छाड़ गंदे अश्लील भोजपुरी गानों में सुनी थी, पर कभी किसीने उसके साथ सच में ऐसा नहीं किया था। बीना इस छेड़छाड़ से बिल्कुल किसी नागिन सी बल खा रही थी।
तभी राजू उसकी ढोढ़ी को पूरा मुँह में रख चूसने लगा। उसके चूसने में इतना जोर था कि, बीना के मुँह से दर्दभरी सिसकारी फूट पड़ी।
बीना," आह..आ..एतना जोर से काहे चुसत बारआ? ई ढोढ़ी के खा जइबू का?
राजू," माई, ई तहार ढोढ़ीया चाटे में बहुत मज़ा आ रहल बा। अइसन सुंदर अउर कामुक ढोढ़ी हम ना देखनि हअ। हमार बस चली त तहार ढोढ़ी के दिनभर चाटत रहब।"
बीना," बेटा, तू एतना बढ़िया से चाटत बारू कि हमरो चटाबे में निम्मन बुझाता।"
तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। बीना राजू की ओर देख बोली," जाने के आ गईल?
राजू," एक काम कर तू चुपचाप नहाय निकल जो। हम देखत बानि।"
बीना घबराई हुई बोली," लागत बा मौसम अभी न बनि।"
बीना ऐसा बोल वहां से सीधा पीछे स्नानागार में चली गयी। राजू ने खीजे मन से दरवाज़ा खोला तो देखा सामने उसकी बुआ बंसुरिया आयी हुई थी। उसने उसके पैर छुए। बंसुरिया एक दो दिन के लिए आई थी। वो हर साल सावन के महीने में गांव आती और पुराने शिव मंदिर में जल चढ़ाती थी। इसका मतलब ये था कि राजू का अपनी माँ के साथ अकेले में रहने का और मौका बनाने का फायदा अब कम था। बंसुरिया लगभग उसकी माँ की हमउम्र थी। बंसुरिया काफी सारी खाने पीने की चीज़ें लेकर आई थी। बीना की बंसुरिया से अच्छी बनती थी। दोनों सहेलियों सी शुरू से ही रहती थी। उसके आते ही बीना व्यस्त रहने लगी। बीना समझ रही थी कि राजू को उसके साथ छेड़खानी करने का पर्याप्त अवसर नहीं मिल रहा है। बीना को भी राजू की छेड़खानी और उसे छेड़ने में मज़ा आता था। वो भी तो उससे बदन छुआने को मचल रही थी।
अगले दिन बंसुरिया और धर्मदेव उसी मंदिर में गए हुए थे,
बीना को चूंकि बुखार था तो धर्मदेव ही बंसुरिया के साथ गया हुआ था।
राजू सुबह सुबह दूध दुह रहा था, तभी बीना के कराहने की आवाज़ आयी। राजू सब छोड़ के बीना के पास गया।
बीना बिस्तर में मचल रही थी।
बीना," आह, राजू देखअ ना हमार देहिया बहुत गनगना रहल बा। तन बदन अगियाईल बा। जाने ई कइसन बुखार लागल बा, मन मिचलात बा।" वो बिस्तर पर लेटी लेटी बोली। राजू आगे आकर बीना के माथे को छुआ और बोला," माई, थरमामीटर से नापी तहार बुखार, ऊपर से त बहुत तेज बुझा रहल बा।"
बीना," नाप लअ, बेटा अइसन बुखार त कभू न आइल।"
राजू तुरंत उसका बुखार नापने के लिए थरमामीटर ले आया। उसने बीना को देखा और बोला," माई एकरा कांखिया में डाल लअ।"
बीना," बेटा, हमार ब्लाउज त ढेरी कसाईल बा। हमार काँख में ना घुसी।"
राजू," त बुखार कइसे नपाई, मोर मईया। तहरा तब ब्लाउज खोले के पड़ी।"
बीना भोलेपन का नाटक करते हुए बोली," का ब्लाउज उतारेके पड़ी?
राजू," हाँ, उतार दअ ताकि जल्दी से बुखार नाप ली।"
बीना," ठीक बा, तू ही उतार दअ, हमार पीठि पर ब्लाउज के दुनु डोरी खोल दअ।"
राजू," माई, ब्लाउज त अंग्रेज़ी में कहल जाता। एकरा हमनी के इँहा का कहल जावेला?
बीना अपने बाल समेट कर आगे कर, अपनी गोरी पीठ राजू के सामने कर दी। सामने राजू के बीना की पीठ पर सिर्फ दो जोड़ी डोरी आपस में गुथी हुई मौजूद थी। उसकी गर्दन से लेकर कमर के निचले हिस्से तक और कोई कपड़ा नहीं था।
बीना," हमनी के इँहा एकरा चोली कहल जाता। लेकिन लोक अब ई सब शबद इस्तेमाल न करेला।"
राजू उसकी कमर को छूता हुआ, ऊपर चढ़ रहा था। तभी बीना बोली," पीठिया पर हाथ काहे फेर रहल बारू, जल्दी से डोरिया खोल दअ।"
राजू ने फिर झट से बीना की पीठ पर कसी हुई डोरी खोल दी। वहां कसाई के वजह से त्वचा पर निशान पड़ गए थे।
राजू," माई, ई चोली तहार, सही में बड़ा कसल बा। देख पीठिया पर डोरी के निशान उखड़ गईल बा।"
बीना," हाँ, ई चोलिया बहुत पुरान बा न, एहीसे।"
फिर राजू ने दूसरी डोरी भी खोल दी। अब चोली सिर्फ बीना के कंधों के सहारे टिकी थी। राजू ने फिर उसके कंधों से चोली के हिस्से को उतारा। और फिर उसकी बाजुओं से निकाल दिया। बीना के दोनों हाथ ऊपर थे तो उसकी काँख जिनमें छोटे छोटे बाल थे वो साफ दिख रही थी। राजू उनके करीब जाकर उसके काँख की सुगंध को महसूस किया। बीना कुछ बोली नहीं, पर आंखों से राजू को अपने बगल झांकते और सूंघते देखा। बीना की सांवली काँख बेहद मस्त लग रही थी। बीना ने फिर अपने आँचल से अपने चुच्चियों को ढ़क लिया और कामुक स्वर में बोली," थरमामीटर लगाबा ना, काँख में।"
राजू ने थरमामीटर लगा दिया और बीना उसे काँख में दबा ली। बीना राजू के कंधे पर पीठ टिका बैठी थी। राजू बीना के गर्दन और कान के पिछले हिस्से के पास अपने होठ रखा हुआ था। बीना राजू की गर्म सांसें अपने पास स्वयं महसूस कर रही थी। बीना की सांसें भी तेज चल रही थी और होठ कांप रहे थे।
तभी राजू ने उसके दोनों चुच्चियों के ऊपर कड़े चुचकों को आँचल के नीचे से तने देख, उसने बीना को अपनी ओर घुमा लिया। बीना ने राजू की ओर देख बोला," बेटा, बुखार बड़ी जोर के लागल बा, कइसे उतरी।"
राजू उसके गाल सहलाते हुए पर नज़र उसकी बीना के कड़क चुचकों पर थी, बोला," माई, एक बेर बुखार नाप त लेवे दे। ओकर बाद अगर दवाई खियावे के पड़े, कि सुइया दियाबे के पड़े। लेकिन तहार बुखार हम जरूर उतार देब।"
बीना," बेटा, ई बुखार त डॉक्टर साहब से भी न पकड़ाईल। जाने अब का होई।"
राजू," हर चीज़ के इलाज बा माई। बस एक बेर ओकरा चीन्हे के देरी बा। ओकर बाद त अइसन इलाज करब कि फेर ई रोग न होई।"
थोड़ी देर बाद राजू ने बीना के बगल से थरमामीटर निकाला और उसे देखा तो बीना को 101 बुखार था। बीना ने राजू से पूछा," बेटा, केतना बोखार ह?
राजू," 101 माई।" राजू ने जानबूझकर बीना के चुचकों में अपना हाथ भिड़ा दिया। बीना कुछ नहीं बोली और राजू उन कड़े चुचकों को हाथ से सहला रहा था। तभी राजू को एक आईडिया सूझा उसने बीना के चूचियों के बीच अपना हाथ रख दिया। बीना उसकी हरकत देख प्रश्न करती हुई बोली," ई का करत बारआ?
राजू," माई, तहार दिल के धड़कन देखत बानि। बड़ा जोर से धड़क रहल बा।"
बीना," अच्छा, त तनि बांया में देख ना, करेजा इँहा बा।" ऐसा बोल उसने राजू का हाथ ऐसी जगह रखा जहां उसका आधा हाथ उसकी बांई चुच्ची पर था। राजू बीना की चुच्ची को दबा कर उसकी धड़कन महसूस करने लगा।
तभी राजू बोला," माई ई अंचरा हटा दी का, सही से पता न चल रहल बा तहार करेजा के धक धक।"
बीना उसकी ओर बिना देखे बोली," जरूरी बा त हटा द।"
राजू बोला," जरूरी बा।" ऐसा बोल उसने उसके कंधे से आँचल हटा दिया और बीना की उन्नत चुच्चियाँ राजू के सामने नंगी हो उठी। बीना ने एक बार अपने चुचकों को ढकने की चेष्टा की तो राजू ने उसके हाथों को धकेल दिया। उसके गहरे भूरे रंग के चूचक किसी गुब्बारे की बंधी छोड़ की तरह उठे थे। राजू ने बीना की धड़कन सुनने के बहाने अपना सर उसके स्तनों के बीच रख दिया। राजू को अपने सीने से लगते ही वो, बहक उठी और उसे अपने चुच्चियों के बीच समा लिया। इस आलिंगन में माँ का प्यार नहीं बल्कि बीना का प्यार था।
बीना," आह, हमार करेजा देखआ कइसन धक धक कर रहल बा।"
राजू," हाँ, माई सच कहत बारू। तहार करेजा जोर से धड़क रहल बा। अइसन काहे हअ।"
बीना," हम का बताई,?
राजू," अच्छा, पेशाब कइसन होता?
बीना," काहे?
राजू," पेशाब में खून त नइखे आवत न?
बीना," न अभी तक ना। सच बताई त गौर ना कइनी।"
राजू," चल अभी मूत के देख एक बेर।"
बीना," लेकिन राजू, बाहर बारिश होता। हमके त इँहा आंगन के नाला के पास ही मूते के पड़ी।"
राजू," त का भईल मूत ना, माई गे।"
बीना," ठीक बा।" बीना बिस्तर से नीचे उतरी और जाने लगी तो बोली," कच्छी उतार देत बानि, पेशाब करे में दिक्कत हो जाई।"
राजू ने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा," हाँ, काहे ना उतारके हमरा दे दअ आपन कच्छी हमके।"
बीना ने हाथ साड़ी के नीचे से अंदर लिया और झटके से कच्छी उतार कर पैरों से निकाल ली। राजू ने झट से बीना के हाथों से कच्छी ले ली। बीना की बूर इतनी गीली थी कि कच्छी लगभग भीग चुकी थी। यहां तक बूर के पानी का चिपचिपापन कच्छी पर महसूस हो रहा था। बीना को कच्छी उतारते वक़्त उतनी शर्म नहीं आयी, जितना राजू के हाथ में अपनी गीली कच्छी देते हुए आ रही थी। राजू ने जब कच्छी हाथ में ली, तो उसने फौरन कच्छी का गीलापन महसूस कर लिया। उसके हाथों में भी बीना के बूर का चिपचिपा पानी लग गया। राजू, अब निश्चिन्त हो चुका था कि उसकी माँ बीना को कौनसी दवाई और कौन सी सुई की जरूरत है। उसने बीना की गीली कच्छी जो उतारने के क्रम में रोल हो चुकी थी, उसके सामने पूरा फैला दिया और बोला," माई, ई का तू मूत दिहलस का?
बीना शरमाते हुए," ना, बेटा हम न मूतनी हअ।
राजू," अच्छा, त फेर ई का हअ, एतना गीला कइसे बा तहार कच्छी। ई तहार पेशाब बा नु"
बीना," धत, ई पेशाब न हअ। ई त...।"
राजू," बोल न बोल, रुक काहे गईलु।"
बीना," ई...उ..उ... अब का बताई ई, बस ई बूझ ले ई पेशाब न अउर कुछ बा।"
राजू उस गीले हिस्से को छू कर बोला," सच कहेलु माई, ई पेशाब नइखे, ई बहुत चिप चिप बा। पेशाब अइसन न होखेला।"
बीना," हाँ, उहे त हम कहत बानि, ई पेशाब नइखे। अउर कुछ बा।"
राजू," का हअ?
बीना," उ हम तहरा न बता सकेनि। हम सब चीज अभी तहरा न बता सकिले।"
राजू," काहे, काहे ना बता सकेलु?"
बीना," उ... हमार जांघ के बीच में पसीना आ गईल रहे। उहे से कच्छी भीज गईल।"
राजू," तहार पसीना त पेशाब जइसन महकेला।"
बीना," ऊफ़्फ़...बेशरम कहीं के, हमरा सामने हमार कच्छी सूँघत बारआ।"
राजू," तू त हमार सखी बारू, काहे के लाज हो।" ऐसा बोल उसने बीना की कच्छी के उस हिस्से को चूम लिया जो बूर के पानी से गीली थी। बीना ने राजू की ओर मदभरी आंखों से देखा, फिर वो राजू के सामने अपने आँचल को उठा कर कंधे पर रखी और छम छम करते हुए राजू के सामने से चलते हुए नाले के पास पहुंच गई। बीना राजू के सामने साड़ी ऊपर खिसका ली और बेझिझक बैठ गयी। बीना जहाँ बैठी थी, वहाँ से राजू उसकी भारी गाँड़ के दोनों पाटों के साक्षात दर्शन कर रहा था। बीना दिन दहारे अपने बेटे के सामने ही मूतने लगी। बीना को एहसास था कि वो जो कर रही है, वो अनाचार और नाजायज संबंधों की सीढ़ी है। बीना की बूर से तेज़ सिसकारी सी आवाज़ आई और मूत की धार बह निकली। तभी राजू ने पूछा," मूत बढ़िया से निकलत बा कि ना?
बीना,"हाँ, बेटा मूत ठीक से बह रहल बा।"
राजू," कउनु जलन त नइखे ना?
बीना," न कउनु जलन नइखे।"
राजू," पेशाब के रंग कइसन बा?
बीना," पुआर के रंग जइसन पियर, बेटा।"
राजू," ठीक बा, लेकिन बुखार बा देखिहा कउनु इन्फेक्शन न होखो।"
बीना," का, इन..फकसन?
राजू," बीमारी में हो जाता इन्फेक्शन।"
बीना," हमरा न बुझाता, तनि तू आके देख ल ना।"
राजू," हम आयी का?"
बीना," हाँ, काहे ना। आके इँहा जांच लअ।"
राजू ये मौका गंवाना नहीं चाहता था। वो तेज कदमों से चलके, बीना के पास पहुंच गया। बीना अभी भी तेज धार में मूत रही थी। बीना राजू की ओर देख बोली," देख ना, हमार पेशाब के रंग ठीक बा कि ना?
राजू उसके सामने देखते हुए जहां मूत की धार गिर रही थी और उसके छींटे आस पास गिर रही थी, बोला," तनि नजदीक से देखे के पड़ी।"
बीना बोली," त देखआ ना।" ऐसा बोलके उसने राजू को अपने पास बिठा लिया। राजू बीना के पेट की चर्बी की वजह से मूत्रद्वार के दर्शन नहीं कर पा रहा था। मूत की धार की आवाज़ बिल्कुल मखमली सी थी। बीना राजू की ओर देख रही थी, जो खुले मुंह से बीना के पैरों के बीच बहती धार को निहार रहा था। इतने में राजू ने बीना की मूत की धार में हाथ लगा दिया और अपने हथेली में इकठ्ठा करने लगा। राजू का हाथ बीना के मूत की धार से पूरा गीला हो गया। राजू उसे इकठ्ठा कर मुंह के पास लाया और सूंघने लगा।
बीना जो अब मूतने के अंतिम चरण में थी बोली," ई का करत बारआ? उ हमार पेशाब बा, हाथ से काहे छुलु। अब ओकरा सूंघ रहल बारअ।"
राजू," देखत रहनि की केहू तरह के दुर्गंध नइखे ना, अउर रंग भी जाँचत रहनि। तहरा कउनु इंफेक्शन नइखे।"
बीना," अच्छा, फेर त ठीक बा।"
तभी राजू ने अपना लण्ड बाहर निकाला और साथ में ही मूतने लगा। राजू का लण्ड बीना को पहले ही प्रभावित कर चुका था। लेकिन अपने सामने उसे फिर से देख वो मचल गयी। बीना को खुद पर काबू न रहा और उसने राजू का लण्ड थाम उसे मुतवाने लगी। राजू ने कुछ कहा नहीं, बल्कि मूत की धार तेज करते हुए मुस्कुरा दिया। बीना नीचे बैठी ही उसके लण्ड को थामे हुए थी।
थोड़ी देर में दोनों मूत चुके थे। राजू का मूतना जब खत्म हुआ तो बीना ने उसका लंड छोड़ दिया। इस पर राजू ने उसका हाथ फिर से लण्ड पर रख दिया और बोला," तनि हिला द, मूत के बूंद सब हइन्जा गिर जाई।"
बीना," अच्छा, ठीक बा।" और उसका लण्ड हिलाने लगी। फिर दोनों एक साथ उठे और तभी बीना का पैर गीलेपन से फिसल गया और वो संभलने के चक्कर में आंगन में गिर गई। उसके साथ साथ राजू भी उसके ऊपर गिर गया। तेज बारिश के चलते दोनों आंगन में धीमे बहते पानी से गीले हो गए। बीना और राजू एक दूसरे के ऊपर थे। बीना सिर्फ साड़ी और साया में थी। वहीं राजू सिर्फ बनियान और छोटे कच्छे में था। बीना की साड़ी पूरी तरह गीली हो चुकी थी, उसकी चुच्चियाँ साड़ी के पतले आँचल के ऊपर से साफ दिख रही थी। चूचक तन कर खड़े थे। दोनों की आँखे एक दूजे से टकराई हुई थी। बीना चाह रही थी कि राजू उसे चूम ले। लेकिन राजू पहले खुद उठा और फिर उसे उठाया। बीना राजू का हाथ पकड़ धीमे धीमे खड़ी हुई। उसकी साड़ी के गीलेपन की वजह से उसकी गाँड़, जाँघे, चूचियाँ, कमर, उसकी नाभि सब स्पष्ट दिख रहे थे।राजू ने उसे अपनी बांहों में ले लिया। दोनों के प्यासे होठों पर बारिश की बूंदे गिर रही थी। तभी बीना को राजू ने एकदम से नजदीक खींच लिया और उसके होंठों को चूमने के लिए उसके चेहरे को उठाया। दोनों के होठ एकदम करीब आ चुके थे। तभी बीना लाज से खुद को छुड़ा के भागने को हुई तो राजू ने उसका आँचल पकड़ लिया। बीना की चूंचियों नंगी हो उठी और उसने साड़ी को पकड़ना चाहा पर राजू की पकड़ उसकी साड़ी पर मजबूत थी। बीना की साड़ी धीरे धीरे राजू खोलने लगा। और कुछ ही देर में बीना सिर्फ साये में थी। इस बार राजू ने अपनी बनियान उतारी और बीना को करीब लाकर उसके साये की डोर खींचने के लिए उसके कमर की ओर झुक गया। क्या अद्भुत कामुक दृश्य था। एक माँ बेटे की प्रेम कहानी और रोमांस की। राजू ने उसकी डोर खोली तो बीना ने कोई प्रतिरोध नहीं किया, बल्कि चिपके साये को उतारने के लिए राजू की मदद करने लगी। कुछ ही देर में उसका साया भी उसके देह को विदा कह चुका था। बीना अब अपने बेटे के सामने अपने ही आंगन में निर्वस्त्र खड़ी थी। राजू के सामने बीना यूं तो पहले भी झांट के बाल कटवाने के लिए नंगी हुई थी। पर आज बीना का जलवा ही कुछ और था। राजू ने बीना के नंगेपन से डूबे कामुक शरीर को अपनी आंखों से सर से पैर तक निहारा। बीना की उन्नत चुच्चियाँ, उसकी भरी हुई गाँड़, कोमल चिकनी जाँघे उसके लण्ड को खड़ा करने में ईंधन का काम कर रही थी।
राजू," माई, तहरा देख के अइसन बुझाता तहरा कामज्वर लागल बा। अइसन ज्वर जउन खाली काम सुख प्राप्त करे से ही जायीं। तहार अंग अंग काम के चाहत के रंग में रंगल बा। तू काम देवी के मूरत लागत बारू। तहरा शायद मालूम नइखे हम भी कामज्वर में बानि।"
बीना नज़रें झुकाए बोली," हाँ, राजू हम कामज्वर में जरत बानि। हमार रोम रोम काम सुख चाहेला। मलंग बाबा आईल रहुवे उहे कहनि कि जब तलिक हम मनपसंद मर्द के साथ कामसुख न उठाईब, ई ज्वर शांत न होई। जब से तू गईल बारू, तबसे हम तहरा याद कइके बेचैन रहनि। रोज राति तू हमरा साथ सपना में रासलीला रचावत बारू। हमके त अपना से घृणा होत रहे, पर मलंग बाबा हमार सब शंका दूर कर दिहले। माई- बेटा होके भी हम प्रेम और वासना के रस में तहरा साथ डूबे चाहत बानि। लेकिन तू केकरा खातिर कामज्वर में बारू?
राजू," तहरा खातिर, माई।"
बीना," राजू हमके माई ना एक बेर बीना बोल।
राजू," बीना हम तहरा साथ कामसुख उठावे चाहेनि।"
बीना," कामसुख के ठेठ में का बोलल जाला। उ बोल ना"
राजू," हम तहरा चोदे चाहेनि। हमरा साथ चुदाई करबू बीना।"
बीना राजू का लण्ड पकड़ बोली," अभी चोदबआ हमरा लांड से?
राजू," हाँ, बीना रानी तहरा हिंये चोदब।"
बीना और राजू एक दूसरे के होठ अनायास ही चूमने लगे। बीना अपने आंगन में अपने बेटे के सामने चुदने को तैयार थी। वो दोनों वासना में पूरी तरह बहने ही वाले थे।
तभी दरवाजे पर दस्तक हो गयी। बीना को काटो तो खून नहीं। बीना वहां से नंगी ही भागने लगी। उसने साड़ी और साया उठाया और पानी में छम छम करती हुई अपने कमरे में भाग गई। राजू हाथ मलता रह गया। उसके मन में गुस्सा था जाने कौन आया है, जिसने उसकी और उसकी माँ के कामुक क्षणों को तोड़ दिया।
राजू ने देखा उसकी बुआ बंसुरिया और उसका बाप दोनों भीगे हुए, वापिस आये थे।
रात को जब बीना खाना बनाने के लिए सिल बट्टे पर मसाला पीस रही थी तो, राजू उसके करीब आया और उसे रात को सबके सोने के बाद आने को बोला। बीना कुछ नहीं बोली। राजू रात को बारह बजे बीना का इंतज़ार कर रहा था, तभी उसे बीना के आने की आहट सुनाई दी। बीना ने चुपके से उसे घर के पीछे बुलाया। राजू उसके पीछे पीछे गया। राजू ने बीना को बांहों में भर लिया और बीना भी उसे बांहों में भर ली।
फिर सांस भरते हुये बोली," राजू सुन, अइसे में मज़ा ना आई,हमके कहीं अउर ले चल जहां खाली तू अउर हम रही। ऊंहा केहू रोक टोक न करि। कल तहार बुआ और बाबूजी चल जायीं। फेर हमनी अकेले में घर में रहब। लेकिन घर में केहू आ सकेला कभू। हम दुनु उ नदी पार गन्ना के खेत में चलब। ऊंहा तहार दोस्त अरुण के ट्यूबवेल भी बा। तू अपना हिसाब से व्यवस्था कर। ई दुनु काल सुबह तक जायीं, ओकर बाद दुनु के कामज्वर शांत होई।"
राजू को गुड्डी की याद आ गयी। गुड्डी भी इसी तरह बगैर किसी रोक टोक के मजे के लिये, राजू को व्यवस्था करने बोली थी। उसे एक पल को लगा गुड्डी ही बोल रही है। उसने मन में कहा जइसन माई, वइसन बेटी। राजू उसकी आँखों में देख बोला," बड़ा बेचैन कर दिहलु बोलके, रतिया कइसे काटी। अब त भोरे के इंतज़ार बा।"
बीना," हम भी त बेचैन बानि। लेकिन अभी जाय द।"
राजू ने बेमन से बीना को जाने दिया। तब बीना ने अपनी पहनी हुई कच्छी खोली और राजू के मुँह पर फेंक बोली," रात एहीसे मन बहलावा। काल हमार इन फक्शन के इलाज कर दिहा। देख पानी अभी भी बहुत बह रहल बा।"
राजू कच्छी सूंघते हुए," कहां से पानी चुएला?
बीना कामुक स्वर में बोली," काल बताईब।" ऐसा बोल वो भाग गई।
अगले दिन बंसुरिया को उसके ससुराल छोड़ने धर्मदेव उसके साथ निकल गया। उनके जाते जाते दोपहर हो गयी। राजू बीना के पास पहुंचा तो बीना ने उसे खेतों पर पहुंच कर तैयारी करने को बोला। साथ ही ये बोला कि वो खाना वैगरह बना के और घर अच्छे से बंद करके एक दो घंटे बाद आएगी।
राजू बीना की बात मान निकल गया और कुछ खास इंतजाम में लग गया। उधर बीना भी खाना बनाते हुए अपने आनेवाले लम्हों और खुशियों के बारे में सोच रही थी। राजू को गए दो घंटे हो चुके थे। अभी शाम के साढ़े तीन बज रहे थे। बीना घर का दरवाज़ा बंद कर और दो थैलों में समान ले गन्ने के खेतों की तरफ बढ़ चली। रंजू उसे अपनी खिड़की से देख मुस्कुरा उठी।