कामज्वर- भाग २
बीना," ई रउवा का कहत बानि। हमार बेटा ही हमके भोगी,त ई कामज्वर शांत होई। अइसन काहे?
मलंग बाबा," कामज्वर साधारण स्त्री के ना आवेला, ई त हस्तिनी नारी के ही आवेला, उहू तब जब उ कुंवारी रहेली। पर तहार उमर अउर अवस्था में ई कउनु साधारण बात नइखे। विवाहित स्त्री उ पर से दु जवान बच्चा तभू कामज्वर आ गईल, सोचे वाला बात बा। एकर मतलब ई भईल भतार तहरा ठीक से संतुष्ट ना करेला, अउर तहार काम पिपासा बुझत नइखे। हस्तिनी नारी के ई गुण बा, ओकरा हमेशा संभोग के सुख चाही। संभोग के चाह कउनु गलत बात नइखे। लेकिन अगर कउनु पुरुष विशेष के चाहत ही ई प्रकार के नारी के साथ संभोग करि तभि मन संतुष्ट होई। उ त कोई भी हो सकेला। तहरा मन में अखनी ओकरे चाहत बा।"
बीना," पर बेटा ही काहे बाबा, केहू अउर काहे ना?
मलंग बाबा," केहू अउर करि त देहिया क्षणिक शांति के प्राप्त करि। आत्मा पियासल रह जाई। राजू तहार शरीर न आत्मा के भी संतुष्ट करि। तहार शरीर अउर आत्मा के खाली शारीरिक मिलन ना, मन से भी मिलन होई। तहार मन ओकरे खोजत बा। केहू अउर तहरा मन से ना अपनाई, ना तहरा सम्पूर्ण संतुष्टि दी।"
बीना," पर बाबा बेटा के साथ...?
मलंग बाबा," बेटी, तू ई काहे देखत बारू कि उ तहार बेटा बा, ना उ अब एगो जवान मरद बा। हॉं, उ तहार कोख से पैदा भईल बा, पर हर इंसान केहू न केहू के कोखिया से ही पैदा भईल बाटे। अब अगर उ तहरा चाहेला अउर तू ओकरा तरफ आकर्षित भईल बारू त ई नियति बा। तहार कोख से उ निकल के तहरा प्यार कर ली त तहार देहिया गल जाई का? ना ना। मरद अउर औरत के बीच हमेशा ही आकर्षण होखेला। स्त्री हमेशा पुरुष के न चाहत हुए भी अपना तरफ खींच लेबे ली। बेटा- माई, भाई-बहन, बाप-बेटी, सब एगो सामाजिक बंधन बा, काहे एसे अनाचार रोकल जा सके। हालांकि जेकरा लोक अनाचार कहेला उ अनाचार नइखे, उ पाशविक सत्य बा।"
बीना," पर बाबा समाज के नियम कुछ सोचके बनल बा ना?
मलंग बाबा," हाँ, बनल बा। तू हमार बात ठीक से ना सुनलु। अनाचार रोके के प्रयास बा, पर अनाचार का रुकल रहेला? अब देखआ, सरकार सड़क पर चले खातिर ढेर नियम बनौले बा ताकि दुर्घटना ना होई, पर तभू लोक सड़क पर असही चलेला। का दुर्घटना हर बेर होखेला ना। वसही समाज में नियम कायदा बनाईल गईल बा, ताकि लोक खुले आम व्यभिचार न करे। लेकिन व्यभिचार समाज में ना, आदमी-औरत के अंदर होखेला। जब अकेले में होइन्हें त एक दोसर के चाह भड़कबे करि। उ समय समाज के बंधन से खुलि के स्वतंत्रता से जीवन के असली आनंद लेवे लन। रिश्ता नाता सब एगो ढोंग बा।"
बीना," पर बाबा, जउन समाज में एतना दिन से इहे सब सिखनि कि ई कुल गलत बा, अब ओकरा स्वीकार कइसे करि?
मलंग बाबा," हाँ, ई त मुश्किल बा। लेकिन एगो बात बताबा, अगर काम मुश्किल होई त काम ना करेके चाही का। सत्य त इहे बा, अब तहरा पर बा तू एकरा कइसे स्वीकार करेलु। समाज के बंधन से निकलल आसान त नइखे, पर अगर तू ई तुच्छ विचार से बाहर निकल जइबू त जीवन के असली आनंद तहरा भोगे के मिली। पहिले त मन से निकाल दअ कि व्यभिचार, अनाचार, जइसन कुछ गलत चीज़ होखेला। जउन चीज़ में खुशी मिलेला उ कर लअ। तू स्त्री बारू अउर स्त्री के नैसर्गिक गुण बा पुरुष के साथ मिलन। रिश्ता नाता के बंधन से मानसिक तौर पर पहिले स्वतंत्र हो जो। फेर फरक ना पड़ी सामने भतार बा कि बेटा। तब तहार मन शांत होई और तू मानसिक और शारीरिक सुख के असीम आनंद के प्राप्त करबू।"
बीना," इहे शरीर से बेटा के जन्म देनी, अब ई शरीर के बेटा ही भोगी। अजीब लागेला सोचके बाबा?
मलंग बाबा," शरीर त नश्वर बा बेटी। आत्मा अमर रहेला। शरीर आत्मा के संतुष्ट करेके माध्यम बा। जब संभोग होखेला त खाली शरीर ना मिलेला बल्कि आत्मा से आत्मा भी मिलेला। शारिरिक संतुष्टि के साथ साथ आत्मिक संतुष्टि भी जरूरी बा प्राप्त करेके। उ ओकरे से मिली जेकरा साथ तू दिल से चाहेलु। अब उ अगर तहार बेटा ही बा त ऐमे तहार अउर ओकर कउनु कसूर नइखे। बेटा लंग भी उहे बा जउन अउर मरद लंग बा। बल्कि उ तहरा प्यार करे में कउनु कसर ना छोड़ि। तू जब तलिक तृप्त ना हो जइबू, उ तहरा साथे लागल रहि।"
बीना," बाबा, अगर केहुके पता लग गईल त, बदनामी होई ढेरी ना?
तभी पीछे से रंजू की आवाज़ आयी," पता लगी तब ना।"
वो आके बीना के बगल में बैठ गयी। वो बड़ी देर से उनकी बातें सुन रही थी।
मलंग बाबा मुस्कुराते हुए बोला," सच कहेलु, अगर डर लगतआ, त परोक्ष में कर लअ। के जानेला कि घर के भीतरी का चलेला। सब परदा में करल करआ।"
रंजू," बाबा रउवा ठीक कहनि। अइसन हरकत त बहुते घर में होखेला। लेकिन पता न चलेला। केतना बेटी-बहु घर में ही बाप, ससुर अउर जेठ- देवर से चुदाबेली। भाई-बहन के जाने केतना बार घर में ही चक्कर चलेला। बचपन में त खेल खेलत रहिअनस, धीरे धीरे जब बहिन बड़ होत जात बिया त देहिया के जवानी खिलअता,त भाई के गंदा नज़र पड़बे करेला। जवानी के दहलीज पर जिज्ञासा अउर कामुकता के प्यास भड़कत रहेला अउर बहिनिया आपन जोबन के खजाना भाई के हाथ लुटवा देत बिया। उंहे बेटियन सबके बाप लोक कहाँ छोडत बारे, जहाँ मउका मिलल कि बेटी के कुंवारीपन चुरा लेलन। आय काल बेटी सब भी एमे सहमति देवेली। सबकुछ सहमति से होखेला। केतना बेटी सब त बाप से ही पेट से हो जावेली। समझ में नइखे आवत कि उ ओकरा बेटा कही या भाई।"
बीना," का पेट से भी हो जात बारन का?
रंजू," अउर का...उ रमेसर नइखे उ आपन बेटी के ही चोदेला। ओकर बेटी रानी के ओकरा से एगो बच्चा भी बा। बीना," सच में, कउन रमेसर ? उ मजदूर जे बा उहे ना।
रंजू," हॉं, उहे उ भी बेशरम आपन ससुरारि छोड़ बाप के संगे रहेली।"
मलंग बाबा," अच्छा अब हम जात बानि, तू लोग बतियाबा। हमरा यज्ञ खातिर जायके बा, देरी होता। जीवन में मस्त रहा, चिंता छोड़ दअ। बाकी के फैसला ऊपरवाला पर छोड़ दअ।"
बीना और रंजू ने बाबा के पैर छुए तो बाबा बोले," सदा सुखी रहअ।" ऐसा बोल वो तेजी से निकल गए। बीना और रंजू आपस में बैठ बात करने लगे।
बीना," रंजू, सच में रमेसर आपन बेटी रानी के चोदेला?
रंजू," हाँ, सच कहत बानि कसम से। हम त अपना आँखिया से देखनि। रमेसर मड़ई में आपन बेटी के लंगटी कइके चोदत रहे।"
बीना," केकर मड़ई में हो?
रंजू," खेतवा में मड़ई बनौले बा, उंहे। हम गईल रहनि जब इलाहाबाद, त ओकरा खेतवा ओगरे खातिर कहे गईल रहनि। ऊंहा देखनि।"
बीना," ओकरे बाद तू भी आपन बेटा के साथ त ई कुल करे लगलु।"
रंजू," त का करि बताबा, हम फौजी के विधवा बानि। दोसर बियाह करब त पेंशन बंद हो जाई। लेकिन ई शरीर के भूख के शांत करि। बाहर केकरा संगे रासलीला करि, बदनामी के ढेरी डर बा। उ मज़ा भी ले लिहन अउर बदनाम भी कर दी। जवान बेटा से बढ़के अउर कउन मरद होई, जउन आपन घर के साथ साथ घर के औरत के जिम्मेदारी उठा ली। खेत-खलिहान, जमीन, घर, धन-संपत्ति जइसन, औरत भी एगो संपत्ति ही बिया। औरत के जिम्मेवारी त मरद ही उठावेला उ माई होखो बहन होखो बेटी होखो, या बीवी होखो। तहरा त पहिने भी कहने रहनि, घर के बात घर में रहेला। हमनी के शारिरिक सुख मिलेला, बेटा कहूँ भटकेला ना, सब त ओकरा कुल घरवा में ही मिलेला।"
बीना," बेटा लगभग आधा उमर के बा हमरा तहरा से, ओकरा साथ ई कुल करे में शरम ना आई का?
रंजू," ई कुल का कहत बारू, चुदाई बोल ना, काहे लजात बारू। बेटा के नाम से बूरिया में ऊँगरी करेलु, तब लाज नइखे आवत का।"
बीना," हां, हम तहरा जइसन बेशरम आ निर्लज्ज नइखे।"
रंजू," अच्छा, उ देखब बाद में जब राजू के संग बिछौना पर लंगटी होके ओकरा नीचे पड़ल रहबू। बूर में जब बेटा लांड पेल दी ना तब, अपने शरम लाज बूर से पानी बनके बह जाई। आ कहबू, बेटा तू बन गईलु हमार सैंया।"
बीना मुस्कुराते हुए," धत, केतना बेशरम बिया तू। बेटा से चुदवा के तू निर्लज्ज हो गइल बारू। पर एगो बात बा, तू खुश बहुत लागेलु अब। एतना मज़ा मस्ती आवेला का अरुण के लांड से।"
रंजू," एक बेर तू भी चुद जइबू, त अपने बुझबू एकर मज़ा। बेटा के लांड, जब माई के बूर के अंदर घुसेला ना त व्यभिचार के पराकाष्ठा होखेला। देखअ, बूर त अउर भी औरत के पास होखेला अउर लांड अउर मरद के पास। लेकिन जब बेटा के लांड माई के रिसत बूर में घुसेला, त रिश्ता के मर्यादा भले टूटेला, पर चुदाई के आनंद, सुख अउर संतुष्टि आपन चरम पर चल जाता। साधारण चुदाई अउर माई- बेटा के व्यभिरिक चुदाई में बस इहे अंतर बा।"
रंजू सांस लेकर फिर बोली," जब बूर के गहराई में बेटा के लांड घुसके खलबली मचावेला, त बेटा में बेटा ना मस्त मरद लउकेला। सच बताई त बेटा जब माई माई बोलके बूर चोदेला, त मन में एक अलग तरंग अउर झनझनाहट उठेला। उ चुदाई के आनंद के दुगुना ना चौगुना कर देवेला। हमार मानि त हर माई के बेटा से चुदाबे चाही।"
बीना," सच, रंजू एतना मज़ा आवेला का? भतार के पानी से जनल, बेटा के लांड में एतना दम होखेला?
रंजू," खाली उहे ना, तहार दूध के भी ताकत रहेला ना उ लांड में। तहरा गर्व बुझाई कि अइसन मरद जनले बिया तू।"
बीना," आह... एतना गंदा, घटिया अउर घिनौना बात सुनके भी, केतना मज़ा आ रहल बा। बूर पनिया गईल बिया। जाने कब.....
रंजू उसकी साड़ी उठा बूर को दबोच ली और बोली," बोल ना चुप काहे हो गईलु। हाय दैय्या बूरिया त एकदम पानी से गीला बा। सच में तहरा कामज्वर बहुत तेज लागल बा।"
बीना उसका हाथ पर हाथ रख बोली," हमार कामज्वर उतारे वाला त पटना में बा। तब तक कइसे सँभारि अपना आप के।"
रंजू," इहे सैयम देखाबे के घड़ी बा, तहार बेटा चार पांच दिन में आई, तब तक अपना के संभार के रख। जब आई त तहार कामज्वर उतारी।"
दोनों एक दूसरे के करीब आयी और एक दूसरे के यौनांग को छूने सहलाने लगी। एक दूसरे के करीब आते ही, उनके होठ मिल गए। बीना रंजू को बेतहासा चूम रही थी, वहीं दोनों चारपाई पर लेट गए। दोनों ही स्त्रियां कामोत्तेजना में एक दूसरे की साड़ी उतार कर ब्लाउज के बटन खोल, अपने चूचियों को दूसरे की चूचियों में रगड़ रही थी। दोनों बेचारी माएँ बेटों के अभाव में एक दूसरे का सहारा बन रही थी। ऐसे में माहौल काफी गर्म हो चुका था। रंजू और बीना टांगे फैलाके अपनी बूरों को आपस में रगड़ रही थी। रंजू और बीना थोड़ी देर ऐसे करते हुए हांफने लगी। कुछ ही देर में रंजू की बूर से संतुष्टि का कामरस बह निकला। लेकिन बीना अभी भी उत्तेजना से मचल रही थी। वो रंजू के चूतड़ों को थामे, उसे अपने उपर चिपकाए हुए थी। रंजू उठने को हुई तो बीना बोली," जात बारू का, अभी त हमरा कुछ ना भईल।"
रंजू," तहरा शांति अभी ना राजू के साथ चुदाई से मिली।"
बीना," आह... सोचके ही बूर में पानी अउर देहिया सिहर जाता। रंजू तनि देर अउर रुक जो।"
रंजू," धरम भैया आवत होइन्हें, दुनु के अइसे लंगटी देखिहन त तहरा संग संग हमरा भी चोद दिहिन।"
बीना," एगो त ठीक से चोदत नइखे, दू गो औरत के कइसे सँभारि।"
रंजू खाट से उतरके कपड़े पहन ली थी, और बोली," हमरा सँभारे वाला त पटना गईल बा, जाने का करत होई, मउसी के साथ।"
भीनी भीनी बारिश हो रही थी। अंजू के घर का दरवाज़ा बंद था। घर के अंदर उसकी नवजात बेटा सो रहा था। घर में पिछले तीन दिन से झाड़ू भी नहीं लगा था। घर के फर्श पर काफी गंदगी हो चुकी थी। बारिश के मौसम की वजह से दीवारों पर थोड़ी बहुत शीलन भी मौजूद थी। अंदर एक अजीब सी महक फैली हुई थी। अंजू के कमरे की फर्श पर, उसकी साड़ी, साया, थोड़ी दूर पर ब्लाउज बिखड़े पड़े थे। उसकी पैंटी और अरुण की चड्डी बिस्तर के कोने में मसली हुई सी दुबकी हुई थी। कमरे में बारिश की वजह से उमस फैली हुई थी। घर की खिड़कियां भी बंद थी और अंदर ट्यूबलाइट जल रही थी। पंखा धीरे धीरे चल रहा था, जिसपर अंजू की ब्रा अटकी हुई थी। फर्श पर और भी कुछ सामान बिखड़ा हुआ था। चिप्स के पैकेट, चॉक्लेट के पैकेट। मेज़ पर जूठे प्लेट,गिलास, उनमें जूठा खाना। दारू की बोतल और एक दो डिस्पोजल भी पड़े हुए थे। बिस्तर के बार बार हिलने से, उसकी ," चूं....चूं.ची....ची" की आवाज़ हो रही थी। अंजू अरुण के लण्ड को बूर में कूद कूद कर लेते हुए उछल रही थी। अरुण का लण्ड उसके बूर की गहराईयों में समाया हुआ था। अंजू बिल्कुल नंगी थी। वो पसीने से लतपथ, अरुण के कंधों पर हाथ रख अपनी भारी गाँड़ तेज तेज से पटक रही थी। अंजू के बाल जो उसके कंधों और पीठ से सीधे संपर्क में थे चिपके हुए थे। अरुण के हाथ कभी अंजू की गाँड़ पर थपकियां तो कभी थप्पड़ बरसा रहे थे। अंजू के चूतड़ उसके असर से लाल हो चुके थे। अंजू के मुंह से सिसकारियां निकल रही थी, और अरुण के मुंह से आहें। अंजू के आंखों में काम वासना साफ दिख रही थी। अरुण उसकी आँखों में देख बोला," ऊफ़्फ़....अंजू मौसी का मज़ा आ रहल बा। तू त एकदम छिनार लागत हउ।"
अंजू अपने होठ काटते हुए बोली," तू अब हमके मौसी कहु चाहे छिनार कउनु फरक न पड़ी। हम त एगो पियासल औरत बानि, जेकर मरद बाहर रहेला। तू का बुझबू जब शादीशुदा औरत के लांड के बिना जिये पड़ेला। केतना दिन से पियासल बानि तहरा अंदाजा नइखे।"
अरुण उसके चूतड़ पर एक कड़क तमाचा लगा बोला," पिछला तीन दिन से दिन रात खाली चुदाई होता। खाली खाना बनाबे, खाय अउर हगे-मूते खातिर तू उतरत बारू। एतना बड़की चुदक्कड़ बिया साली तू।"
अंजू अरुण के छाती सहलाती हुई बोली," पिछले सात महीना से तोर बच्चा पेट में रहल हअ। तू आवत भी न रहलु, डिलीवरी के बाद हम अऊर एक महीना कुछ ना कर पइनी। तहरा का पता पूरा देहिया चुदे खातिर मचलत रहला। अब जाके तहरा हमार याद आईल। अब आ गईलु त देहिया के अगन बुझा दआ।"
अरुण उसकी नंगी कमर में हाथ डालके बोला," तू चिंता मत कर। तहार देहिया के सब गर्मी ई सावन में उतार देब। अभी अउर सात दिन बानि, तहार कर्जा उतार देब।"
अंजू अपने हाथ कमर पर रख बोली," कइसन कर्जा?
अरुण उसके चुच्चियों को थाम बोला," सात आठ महीना तहरा जउन तड़पत छोड़नी उहे। एतना चोदब तहरा कि तू याद करबू रण्डी साली।"
अंजू हंस दी," सात दिन में का होई तहार ई रण्डी के? रोज़ शिलाजीत खाके करेलु तब हमेशा लांड खड़ा रहेला। हमरा दिन रात बूर में लांड चाही।"
अरुण उसकी चूचियों को चुचकों के पास पकड़ जोर से दबाया तो दोनों भूरे चुचकों से दूध की धार फूट पड़ी, जो सीधा अरुण के मुंह के ऊपर गिरी। अंजू की सीत्कार पूरे कमरे में गूंज उठी। वो अरुण के लण्ड पर सवार, बिना कपड़ों के, अपने दोनों हाथ सर के पीछे रखे हुए, छत की ओर देख रही थी। तने हुए गहरे भूरे चूचकों से बहती दूध की धार अत्यंत कामुक लग रही थी। अंजू की मोटी जाँघे, उसके पेट पर बढ़ी चर्बी, और मदमस्त भारी चूतड़ उसे और कामुक बना रहे थे। अरुण उसके दूध को मुंह में लपकने का प्रयास कर रहा था। अंजू उसकी ओर देख कामुकता से मुस्कुरा रही थी।
अंजू," आपन बेटा खातिर दूध छोड़ द, चुचिया में राजा। सब अपने पी लेबु त बेटी का पीई?
अरुण," ई दूध पर हमार भी उतने हक़ बा, जेतना हमार बेटा के। ई त ना छोड़ब।"
अंजू अपने दांयी चुच्ची पकड़ बोली," त चूस ले, के रोकले बा, तहार बेटा के तनि दूध से काम हो जाता, बाकी दूध त तू पी ही सकेलु।"
अरुण उठके अंजू के चुच्ची को चूसने लगा। अंजू अभी भी उसके गोद में बैठी हुई थी। दोनों एक दूसरे से चिपके हुए एक दूसरे को आलिंगन में बांधे हुए थे। अरुण को अपने चूचियाँ पिलाते हुए, अंजू बोली," चूस लआ सारा दूध, खाली कर दआ दुनु चुच्ची के। आह...बूर में लांड लेके चुच्ची चुसाबे में केतना मज़ा आता।"
तभी अरुण ने उसके गाँड़ की दरार को छेड़ते हुए, गाँड़ की छेद पर चिकोटी काट ली। फिर उसे कुरेदने लगा, और फिर उसने अपनी उंगली अंजू की गाँड़ में घुसानी चाही। पर सूखे होने की वजह से, गाँड़ की छेद खुली नही। फिर अंजू ने अपने मुँह से अपनी हथेली पर थूक उगला और गाँड़ के छेद पर मल दिया। फिर अरुण की उंगली गीली कर, गाँड़ के छेद पर टिका दी," अब घुसाबा, घुस जाई लेकिन तनि आराम से।" अरुण ने धीरे धीरे उंगली सरकाई और अंजू की गाँड़ उसकी उंगली लील गयी। अंजू के मुंह से सिसकारी फूट पड़ी, जो अरुण को काफी सुकून दे रही थी। तभी उसने दूसरी उंगली भी गाँड़ में घुसाई, तो अंजू दर्दभरी सिसकारी मार उठी।
अरुण," का भईल?
अंजू दर्दभरी आंखों से बोली," दरद होता।"
अरुण," अच्छा, त निकाल ली का।
अंजू," ना...ना...ढुकईले रखआ। गाँड़ के छेद बड़ा संकड़ा होता एहीसे, अभी तनि देर में सब सही हो जाई।"
अरुण और अंजू कुछ देर तक इसी आसन में चुदाई करते रहे। अरुण अंजू के चूचियों का दूध काफी पी चुका था,अंजू अपनी रिसती बूर में काफी देर से खड़े लण्ड को घुसाए उछल रही थी। कहने को तो दोनों मौसी भांजा थे, पर रंजू की जुड़वा बहन होने की वजह से अरुण को अपनी मौसी में भी माँ चोदने जितना सुकून और मज़ा मिलता था। थोड़ी देर बाद अरुण ने अंजू को कुतिया बनने को बोला और अंजू लण्ड से उठ फौरन कुतिया की तरह चौपाया हो अपनी गाँड़ उठा ली। अरुण का खड़ा लण्ड बूर के बहते पानी से गीला हो चमक रहा था। अंजू की बूर तो इतनी गीली थी कि, ऐसा लग रहा था कि कोई जल प्रपात का श्रोत हो। अंजू अपनी चूतड़ थाम, अपनी बूर और गाँड़ को अरुण के लिए दर्शनी पर लगाये थी। लेकिन कुछ ही देर में वो बेचैन हो उठी, और बोली," देखत का बारआ, जल्दी से लांड बूर में डाल दआ।"
अरुण उसके चूतड़ों के ठीक पीछे आ गया और उसके बूर के मुंहाने पर लण्ड का शिश्न रगड़ने लगा। अंजू सिसिया उठी और उसकी गर्दन अकड़के ऊपर हो उठी। अरुण ने उसके लंबे काले घने बाल पकड़ उसकी लगाम कस दी। अंजू की आहें और सिसकारियों से कमरा गूंज रहा था। अंजू लण्ड के लिए पगला गयी थी, बोली," जल्दी से घुसाबा ना भीतरी।"
अरुण मजे लेते हुए बोला," का घुसाई अउर कहां कुत्ती साली।"
अंजू," ऊफ़्फ़... आपन लांड घुसाबा हमार बूर में कुत्ता कहीं के।"
अरुण," पक्का छिनार हो गइल बारू। शरम नइखे आवत बेटा समान भांजा से बूर चोदाबे खातिर लंगटी कुतिया बनल बारू। रण्डी कहीं के।" अंजू के बालों के गुच्छे को कसके हिलाते हुए बोला।
अंजू बोली," आ..हा... तहरा जइसन मादरचोद से कइसन लाज शरम करि, जउन आपन माई के भी चोद लिहलस। शुरू शुरू में आवत रहे लाज शरम पर बूरवा के बहत पानी के साथे उहू बह गईल राजा। सच बताई त पूरा लंगटी होखे चुदाबे में अलगे मज़ा बा। कउनु परदा ना, कुछो झाँपे के ना, खाली चुदाई के नशा में डुबल रही।"
अरुण," अंजू मौसी....
अंजू," अभी खाली अंजू बोल ना अरुण। तहार अंजू बानि, मौसी छोड़ कुछ भी बोल।"
अरुण," हाँ, अंजू तू हमार छिनार अंजू बारू। हमार खास रण्डी।" ऐसा बोल उसने लण्ड अंजू की बूर में घुसाना चाहा तो बूर में लण्ड एक पल में समा गया। अंजू के मुंह से सिसकारी फूट पड़ी। अरुण उसकी बूर में घपघप लण्ड पेलने लगा, जैसे किसी घोड़ी की सवारी कर रहा हो। इस अवस्था में अरुण का लण्ड सीधा अंजू की बूर रूपी मार्ग से होते हुए उसकी बच्चेदानी तक पहुंच रहा था। अरुण कभी उसकी गाँड़ सहलाता, तो कभी उसे मसल रहा था। अंजू पिछले एक घंटे से लगातार चुद रही थी,लेकिन अपनी टांगे फैलाये हुए चुदवाने की लालसा कम नहीं हो रही थी। आखिर में अरुण ने कहा," अंजू हमार मूठ निकले वाला बा। बूर में ही डाल दी?
अंजू," आह... न .. ना अभी ना फेर बच्चा ठहर जाई।"
अरुण," त बाहर निकाल दी का?
अंजू," बरबाद मत कर, लावा हमरा तरफ लांड के सब मूठ पियब।"
अरुण," अच्छा...ई ल।" अंजू की बूर से लण्ड निकाल लिया और अंजू उसके सामने घुटनों पर बैठ गयी। अंजू उसका लण्ड पकड़ मुठियाने लगी। थोड़ी ही देर में लण्ड से मूठ की सफेद गाढ़ी धार अंजू के होंठों और गालों पर बह गई। अरुण हांफ रहा था और अंजू उसके लण्ड से एक एक बूंद निचोड़ने में लगी हुई थी। इतनी मूठ से उसका मुंह भर चुका था। उसने पहले एक अच्छी चुदक्कड़ की तरह मुंह में भरा पूरा पानी पी लिया और गालों और होठों पर लगा मूठ हाथ से समेट कर पीने लगी। वो चटखारे लेते हुए सारा सफाचट कर गई, जैसे वो मलाई हो। अरुण बिस्तर पर निढाल हो गया, अंजू उसे देख मुस्कुराई और फिर से उसका लण्ड पकड़ बचा खुचा मूठ की एक एक बूँद निचोड़ निचोड़ कर निकालने लगी। थोड़ा सा निकला तो वो उसे जीभ से चाट गयी। इसके बाद अंजू अरुण के बगल में लेट गयी, और खुद उसके बाल सहलाते हुए, बोली," का खाइबू, पनीर के सब्ज़ी बना दी?
अरुण," बना द, लेकिन पहिले एक कप चाय चाही।"
अंजू," ठीक बा, अभी लावत बानि।" अंजू बिस्तर से उठी और बदन पर तौलिया लपेट कर किचन में चली गयी। अरुण बिस्तर पर लेटा, हुआ अपनी किस्मत पर खुश हो रहा था। उसने अपनी माँ, मौसी और उसकी बेटी को अपने हवस का शिकार बनाया था। वो तीनों भी उसके पास आकर खुश थी। थोड़ी देर में अंजू चाय ले आयी और अरुण को चाय दी। अरुण चाय पीने लगा अंजू उसके पास खड़ी मुस्कुरा रही थी। अरुण ने चाय की चुस्की ली तो अंजू ने पूछा," चाय कइसन बा?
अरुण," बहुत बढ़िया, कुछ अलग बा।
अंजू," हम आपन दूध से बनौनी।" और शरमा गयी। अरुण ने चाय की प्याली रख अंजू को बांहों में भर लिया। अंजू उसकी गोद में बैठ गयी और अरुण की हरकतों का मज़ा लेने लगी। अरुण अंजू के बदन से तौलिया हटा चुका था।
अरुण," मौसी, अइसन चाय हम कभू ना पीनी।"
अंजू," हमरा पास रहबू, त रोज़ इहे चाय पियायब।"
अरुण," तीन दिन से हमनी खाली चुदाई कर रहल बानि। ई लगाके लागेला दस बेरा हो गइल होई।"
अंजू शरमाते हुए," ना... तेरह बेरा हो गइल बा।" ऐसा बोल उसने अरुण के सीने में मुंह छुपा लिया। अरुण उसके बाल सहलाते हुए," पूरा गिनत बारू ना।" अंजू मुस्कुराते हुए हहम्मम्म बोली।" तभी उसकी बेटे के रोने की आवाज़ आयी, अंजू उठके उसे गोद में अरुण के पास ले आयी और उसके सामने ही अपने चूचक उसके मुंह में घुसा उसे दूध पिलाने लगी। अरुण अंजू को अपनी संतान को दूध पिलाते देख, काफी संतुष्ट महसूस कर रहा था। आखिर उसने अपनी माँ की उमर की औरत को माँ बनाया था। अंजू के अंग अंग पर अरुण के काटने के निशान स्पष्ट थे। अरुण ने एक पेग बनाया और सिगरेट जला लिया। थोड़ी देर बाद अंजू ने बच्ची को दूध पिलाकर वापिस सुला दिया, और अरुण के बगल में ही रख दिया। अंजू बोली," आपन बेटा के ध्यान रखहिया।" अंजू ये बोल खाना बनाने चली गयी। अरुण उसके हिलते चूतड़ देखता रहा जब तक वो निकल ना गयी। अरुण ने अपनी बेटे की ओर देखा उसके नाक और होठ अंजू पर गए थे। अरुण ने झुककर अपने बेटे के माथे को चूमा। अरुण फिर पेग खत्म कर उठा और किचन में जाकर अंजू को पीछे से पकड़ बोला," केतना देर लगी?
अंजू," काहे कुछ बात बा का?
अरुण," फेर सांप फंफनाईल बा।
अंजू," अरुणजी, त हम का करि?
अरुण," घुसे खातिर बिल खोज रहल बा।
अंजू सब्ज़ी में करछी चला समझ गयी थी कि सब्जी बन चुकी है। गैस चूल्हा बंद करके बोली,"आगे वाला बिल या पिछेवाला, सटल त बा कहूँ अउर।"
अरुण उसकी गाँड़ सहलाते हुए बोला," आगे वाला में त घुस गईल, अबकी पाँछा वाला में घुसी।"
अंजू," पिछेवाला बिल बड़ा तंग बा हो, सांप मोट बा। कइसे ढूकैबु।"
अरुण उसे अपने गोद में उठा कर कंधे पर डाल बोला," बिल में जगह सांप अपने बना ली।"
अंजू," अरे लेकिन खाना।"
अरुण उसे लेकर कमरे की ओर बढ़ गया और बोला," पहिले चुदाई फेर खाई अउर फेर पेलाई।"
अंजू हंसने लगी और अरुण उसे लेकर कमरे में घुस गया और दरवाज़ा बन्द हो गया। वो दोनों कामसुख की तलाश में फिर जुट गए। अंजू उसे रोज़ दूध में दवाई दे रही थी, जिससे अरुण का मन सिर्फ चुदाई में लगा रहे और लण्ड खड़ा रहे।
उधर पटना के दूसरे भाग में ही राजू अपने कमरे में सो रहा था। अचानक से राजू की नींद बीच रात में खुली। रात के साढ़े बारह बज रहे थे। उसने देखा सामने बीना खड़ी थी। बीना उसके सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी। राजू बीना को देख अचंभित था।
राजू,"तू इँहा कइसे?
बीना उसके करीब आ बोली,"तहार प्यार हमरा इँहा आवे पर मजबूर कर दिहलस। सच बताई हमरा अब चैन नइखे।"
राजू," चैन त हमरो नइखे, हम हमेशा तहरा बारे में सोचत रहनि।"
बीना," सोचे से कुछ ना होखेला, कुछ करबू तब ना होई।"
राजू" तू मौका देबु तब ना?
बीना," औरत से मौका ना माँगल जाता, उ खुद मौका बा। बस मौका दबोच लअ। हम भी एगो मौके बानि।"
राजू उठा और उसके पास तेज कदमों से चलके गया और बांहों में भींच लिया। उसने भी उसे गले लगा लिया। दोनों एक दूसरे को कसके गले लगाये हुए थे। इतने में वो बोली," बाप के बाद तुहि एगो मरद बारअ, जउन हमके मोह लिहलस।"
राजू ये सुन चौंका वो उससे अलग हुआ तो देखा वो उसकी माँ नहीं बल्कि मकानमालिक की बेटी थी। वो राजू को पहले से ही चाहती थी। राजू ने कहा," तू ?
निधि," हाँ हम, घर में आज केहू नइखे।"
राजू," तू भोजपुरी कइसे बोलत बारू?
निधि," भोजपुरी त बोलेला हम जानते बानि, बस शहर में लोग हिंदी बोलेला, एहीसे।"
राजू," तहार पापा त डयूटी पर होइन्हें, मम्मी कहाँ बा?
निधि," उ मामा के इँहा गईल बिया। हम घर में अकेले बानि।"
राजू," त इँहा काहे आइलु?
निधि राजू के करीब आ बोली," तहरा से प्यार करेनी। हम कइसन बुझात बानि तहरा। तहरा पर हम पहिल नज़र में फिदा हो गइनी।"
राजू," पर निधि, हम त तहरा कभू उ नज़र से ना देखनि।"
निधि," पर तु अभी अभी जउन कहत रहलु उ?
राजू," हमसे धोखा भईल, हमके बुझाईल हमार म.... जाये दअ।"
निधि," राजू गुड्डी दीदी के बाद तू अकेले बारआ, हम तहार अकेलापन दूर कर देब। हम तहरा बहुत प्यार देब राजा।"
राजू," निधि तू बहुत अच्छी लड़की बारू। जेकर बियाह तहरा से होई उ बहुत भाग्यशाली होई, पर सच में तहरा प्रति हमार तनिक भी आकर्षण नइखे। हम गुड्डी दीदी और केहू अउर के भी चाहेनि, उ भी घर के ही औरत बिया।"
निधि उसे बांहों में भर बोली," हमरा तरफ देखअ, हम कहां कहत बानि कि तू ओकरा छोड़ दअ। हमार प्यार के भी आनंद ले लअ। सच में तहार हर मांग पूरा करब, जइसे चाहबू वइसे ले लिहा, एक बेर भी ना रोकब।"
राजू उसकी ओर देख बोला," सच बताई, त हमके बाहर के औरत लइकी में कउनु रुचि ना आवेला। अगर तू हमार बहिन रहति, त सच बताई तहरा हम चोद देने रहती।"
निधि," बहिन समझके चोद लअ।"
राजू," हमरा से ना हो पाई।"
निधि एक पल को चुप हो गयी और राजू से दूर हो सलवार सूट उतार दी। उसने अंदर ना ब्रा पहनी थी, ना पैंटी। अगले ही पल वो नंगी थी। फिर राजू का हाथ पकड़ अपने चूचियों पर और दूसरा हाथ अपनी बूर पर रख बोली," अइसन ही चुच्ची और बूर होई तहरा बहिन के। सब लइकी के अइसन होखेला। अभी लांड खड़ा हो जाई, तुरंत।"
राजू का लण्ड खड़ा होने लगा तो निधि ने उसका लण्ड थाम लिया और बोली," अब आइलु लाइन पर, लंगटी लइकी के चुच्ची बूर थाम लेलू, त खड़ा होखे लागल ना।"
राजू अभी भी वैसे ही खड़ा था, उसने निधि से कहा," अगर ना खड़ा होई, त हम मरद कइसन। लेकिन तहरा चोदब ना।"
निधि," अइसन काहे, खुला मौका मिल रहल बा। हमरा जइसन माल बेर बेर ना मिली। एहीसे कहत बानि हमरा साथ निचवा चलआ, ऊंहा दारू भी मिली अउर हमार लंगटा प्यार भी।"
राजू," निधि, हम सच बतावत बानि, हमार दिल में केहू अउर बा, अउर हम जब तक ओकरा चोदब ना, केहू अउर के ना चोदब। हमार प्यास ओकरा चोदे से मिटी।"
निधि," अच्छा अइसन के ह, के बा उ ?
राजू," हमार माई... ओकरा ही दिन रात सपना में देखेनि। ओकरा ही ई एहसास दिलाबे खातिर शहर में आईल बानि कि ओकरा हमरा साथ चुदाई करेके पड़ी। जब से आईल बानि हमके बुखार आ रहल बा, जाने उ कइसन होई।"
निधि," तू आपन माई के चोदे चाहेलु? त हम तहार माई बन जाई। आवा ना बेटा।"
राजू," तू उ कभू ना बन सकेलु। न हम तहरा ओकरा जगह कल्पना कर सकेनि।"
निधि मुस्कुराई और बोली," हम जानत बानि, काहे हमार पापा भी हमके चोदेला। पापा के साथ जउन यौन सुख मिलेला, ओकर जवाब नइखे। अच्छा ई बताबा, तू कइसे आपन माई पर आकर्षित भइलु?
राजू," लंबा कहानी बा।
निधि," ई रात भी लंबा बा। रुक हम दारू लेके आवत बानि, दुनु छत पर खुला आसमान के नीचे बइठके पियब अउर तहार कहानी सुनब।"
निधि ने वहां पड़ा तौलिया लपेट लिया और नीचे चली गयी। थोड़ी देर बाद दोनों छत पर टंकी के पास दारू की बोतल के साथ बैठे थे। निधि ने दो पेग बना लिए और एक राजू को दिया। छत पर हल्की बूंदाबांदी हो रही थी।
निधि बोली," राजू, अब कहानी सुनाबअ। लेकिन हम तहार गोद में बइठके कहानी सुनब, एतना इजाज़त दे दअ।"
राजू मुस्कुरा दिया, और बोला," ठीक बा।" निधि उसके गोद में बैठ गयी और राजू ने उसे कहानी सुनानी शुरू कर दी। वो एक एक बात, वो एक एक क्षण सब जैसे निधि को अपने सामने होता महसूस हो रहा था। वो राजू की बातों को बड़े गौर से सुन रही थी। राजू किसी मासूम बच्चे की तरह उसे हर बात विस्तार से बता रहा था। निधि को उसकी कहानी बहुत दिलचस्प भी लग रही थी। रात अपनी रफ्तार में बीत रही थी, और राजू की कहानी भी। दारू के साथ साथ दोनों को नशा भी हो रहा था। ऐसे में निधि ने कई बार उसके गालों को चूम लिया। राजू के कड़क लण्ड को अपने चूतड़ों से मसल रही थी। राजू सब समझ रहा था, लेकिन वो निधि की हरकतों से बहका नहीं। राजू खुद कामज्वर में था, लेकिन उसका नियंत्रण जबरदस्त था। निधि जैसी खुली तिजोरी उसके सामने लुटने बैठी थी, पर राजू एक ईमानदार लुटेरा था। वो जानता था कि ये लूट उसके हक़ की नहीं है। ऐसी तिजोरी लूटने में भी मज़ा नहीं जो खुद खुली बैठी हो। निधि उसकी कहानी सुनते हुए, बूर सहला रही थी। राजू उसे देख बोला," का भईल?
निधि," तहार कहानी सुनके, बूर पनिया गईल। सच में तहार लालसा जायज बा। उहे बूर चोदे में केतना मज़ा आयी, जउन बूर से मरद पैदा भईल। हमके भी आपन पापा से चुदाबे में बड़ा मजा आवेला।"
राजू," तू बड़ा किस्मत वाली बारू, कि घर में ही तहार पापा तहरा चोदेला। तू ओकरा धोखा मत दे।"
निधि," पर राजू, एक न एक दिन हमार बियाह होई, केहू हमके पत्नी बना के ले जाई। तब का करब, ओकरा साथ त चुदाई करे पड़ी ना।"
राजू," त बियाह मत करिहा, जइसे हम सोचने बानि। बियाह के बिना भी त लोग रहेला।"
निधि," ई समाज लइकी के बड़ा हीन दृष्टि से देखेला, जेकर बियाह ना होखेला। तहार का बा, मरद के केहू ना कोई पूछेला।"
राजू," तब त एगो उपाय बा तू एतना काबिल बन, बड़ा अफसर बन कि कोई चाह के भी कुछ ना कह सके।"
निधि," ओकरा बाद?
राजू," ओकरा बाद आपन पापा के साथ रख। केहू शक भी ना करि। तू तहार पापा अउर मस्ती ही मस्ती।"
निधि," तब त आई ए एस, पी एस सी निकाले के पड़ी। मेहनत करे के पड़ी।"
राजू," बिना मेहनत का मिलेला।"
निधि," तू भी बन जो, तू भी आपन माई बहन के साथ रख लिहा।"
राजू," अभी ना, अभी हमरा ऊपर ढ़ेर जिम्मेवारी बा। तू कर सकेलु।"
निधि," तू का....' ऐसा बोलते हुए वो राजू के कंधे पर लुढ़क गयी। निधि बेहोश हो गयी थी। वो निधि को उठाकर अपने कमरे में ले गया। उसे बिस्तर पर लिटाकर, वो खुद लेट गया। उसे महसूस हुआ कि, उसे फिर तेज़ बुखार आया है। वो दवाई खाके लेट गया। कुछ देर बाद उसे महसूस हुआ कि कोई उसका लण्ड चूस रही है। वो जागा तो देखा, निधि होश में लौटकर उसके लण्ड को चूस रही थी। दरअसल निधि ने बेहोश होने का नाटक किया था। राजू ने निधि के बाल पकड़ उसे बोला," तहरा मना कइले रहनि ना। त ई काहे करत बारू?
निधि उसकी आँखों में देख बोली," बर्दाश्त नइखे भईल राजू, एतना सुंदर लांड बा तहार। चूस लेबे दअ।"
राजू," ई लांड पर गुड्डी अउर बीना के खाली हक़ बा। तहरा हम ना दे सकेनि।"
निधि," अच्छा, लेकिन एगो बात बताबा। अगर गुड्डी अउर बीना एक साथ आ जाई, तब केकरा देबु आपन लांड?
राजू," तहरा उ से का? चुपचाप चल जो।
निधि," राजू, देख तहरा बुखार चुदाई खातिर आ रहल बा। जब तू आपन माई के कहानी सुनावत रहलु त तहार आँखिया में काम पिपासा जउन देखनि, उ स्त्री देह खातिर बा। हम तहरा संतुष्ट कर देब, त आराम हो जाई।"
राजू," तू सच कहेलु का?
निधि," मम्मी कसम कहत बानि। हम तहार मन के राहत देब, अगर तू लांड चूसे देबू।"
राजू उसकी ओर देखा, बदन और लण्ड की जलन शांत करने के लिए उसने उसे लण्ड चूसने की छूट दे दी। निधि मस्ती से लण्ड चूसने लगी। राजू खुद उठके बिस्तर पर बैठ गया और निधि नीचे बैठकर मुख मैथुन कर रही थी। राजू दारू की बोतल उठा दो चार घूंट ऐसे ही मार गया। उसके ऊपर नशा छा गया। । निधि को फर्क नहीं पड़ रहा था, राजू क्या कर रहा है। निधि उसके लण्ड की जी तोड़ सेवा अपनी जीभ और होंठों से कर रही थी। लगभग एक घंटे तक निधि लगी रही, राजू के लण्ड ने पानी नहीं छोड़ा। निधि का जबड़ा दुख चुका था।
राजू," का भईल थक गईलु का?
निधि," हाँ, हम समझ गइनी, तहार काम पिपासा बीना तहार माई ही बुझा पाई। तहार कामज्वर उहे उतारी। तू हमरा चोद के शांत कर दे, प्लीज़।"
राजू," तहरा कइसे चोदी? हमरा बीना माई चाही।"
निधि ने कलम उठायी और राजू की ओर बढ़ाते हुए बोली," हमार माथा पर बीना लिख दअ। तहरा कुछ सुकून मिली।"राजू ने उससे कलम ली और निधि के माथे के ऊपर बीना लिख दिया। इसके बाद निधि को पीठ के बल लिटाकर उसके बूर में लण्ड पेल दिया। निधि मुश्किल से दस मिनट चुदी होगी, कि उसका पानी निकल गया पर राजू उसे चोदता रहा लगभग एक घंटे तक। लेकिन उसका पानी नहीं निकला उसने निधि के बूर से लण्ड निकाल लिया और बोला," कुछ मज़ा न आईल, ना मन शांत भईल। ऊपर से काम ज्वाला अउर भड़क गईल। सगरो देहिया तप रहल बा।"
निधि," छोड़ दअ हमके, तू त पूरा जानवर बारू। बाप रे दु घंटा से लांड खड़ा बा अउर पानी ना गिरल। हमार बूर में जलन हो रहल बा, पूरा बदन टूट रहल बा। सारा नशा टूट गईल। हाय दैय्या।"
राजू ने उसके बाल पकड़ उसे उठाया और उसके चूतड़ पर थप्पड़ मार बोला," एकरे काम ज्वर कहल जाला।"
निधि अपनी जान छुड़ा कर, वहां से नंगी ही भाग गई। राजू बिस्तर पर यूंही लेट गया। वो बीना की यादों में फिर से खो गया।