बाप बेटी और मां बेटा चारों के तन बदन में एक दूसरे के प्रति आकर्षण की ज्वाला भड़कने लगी थी,,, रिश्तो के बीच में आकर्षण जलती हुई आग में घी का काम करती है,,, अगर आपसी रिश्तो के बीच शारीरिक आकर्षण हो जाए तो वासना की दलदल में डूबने से फिर कोई नहीं रोक सकता,, और अब यही इन लोगों के साथ हो रहा था सोनू जो अब तक इन सब बातों से अछूता था अब वह भी अपनी मां के खूबसूरत बेहतरीन भराव दार बदन के आकर्षण में अपने आप को डुबोना शुरू कर दिया था,,,। अब वह किसी ना किसी बहाने अपनी मां के खूबसूरत बदन को निहारने लगा था,,,, अधिकांशतः उसकी कोशिश यही रहती थी कि वह अपनी मां के नंगे बदन की झलक पा सके लेकिन ऐसा होता नहीं था,, शायद अभी उसकी किस्मत इतनी तेज नहीं थी,,,
लेकिन अपनी मां के नितंबों पर अपने लंड के कड़क पन की रगड़ उसे अब तक मदहोश कर देती थी,,, साड़ी के ऊपर से ही सही लेकिन सोनू इतना तो समझ गया था कि उसकी मां की गांड एकदम रुई की तरह नरम नरम है,,,।
पहले ऐसा कभी नहीं होता था,,, लेकिन अब तो अपनी मां का ख्याल आते ही सोनू का लंड खड़ा हो जाता था,,, और यही हाल संध्या का भी था फुटपाथ पर खड़े दोनों लड़कों की बातों ने उसके दिमाग में अपने ही बेटे के प्रति ऐसा आकर्षण जगाया था कि चाह कर भी उसके दिमाग से अपने बेटे को लेकर गंदी बातें निकलने का नाम ही नहीं लेती थी,,, पहले तो शायद उसने इस बात पर ध्यान नहीं देती लेकिनअब उसे लगने लगा था कि उसका बेटा उसे उसी नजर से देखता है जिस तरह की बातें वह दोनों लड़के कर रहे थे,,, और बगीचे वाली बात भी उसे अच्छी तरह से आती थी जब वह झाड़ियों के बीच में हो रही चुदाई को अपनी आंखों से देख रही थी तो उसका बेटा भी उस नजारे को उसके साथ ही देखा था और तब उसने अपने नितंबों पर अपने बेटे के लंड के कड़क पन को बहुत अच्छी तरह से महसूस की थी,,,संध्या बार-बार यही सोचती थी कि जिस तरह से वह झाड़ियों के अंदर वाले दृश्य को देखकर मस्त हुई थी तो उसका बेटा भी झाड़ियों के बीच की चुदाई को देखकर मस्त हो गया होगा तभी तो उसका लंड खड़ा हो गया था और दौड़ते समय बार-बार उसका ध्यान उसकी बड़ी-बड़ी हिलती हुई कांड पर और उसकी चुचियों पर चली जा रही थी,,, तो क्या उसका बेटा भी दूसरे लड़कों की तरह उसे देख कर मस्त हो जाता है खास करके उसे दृश्य को देखकर जब दोनों मां बेटी एक साथ झाड़ियों के बीच की चुदाई देख रही थी वह औरत भी तो उसकी ही उम्र की थी और से चोदने वाला लड़का सोनू की उम्र का था,,, तो क्या उम्र के बीच इतना फासला होने के बावजूद भी दोनों के बीच चुदाई संभव होती है,,,,, अगर यह सच है तब तो सोनू भी उसे चोद सकता,है,,,, तो क्या सोनू उसे चोदेगा,,,,अपने मन में आए सवाल का जवाब और खुद ही अपने मन में देते हुए सोची,,, क्यों नहीं चोदेगा क्या कमी है उसमें,,, सब कुछ तो है जो एक जवान लड़के को चाहिए,,, और वैसे भी उसका बेटा खुद उसे प्यासी नजरों से देखता है अगर ऐसा ना होता तो झाड़ियों के बीच के दृश्य को देखते हुए वह उससे पीछे से एकदम सटकर खड़ा नहीं होता,,, और ऊसका लंड यों खड़ा नहीं होता,,,,,लेकिन अपने बेटे के बारे में यह ख्याल आते ही उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी उसकी सांसों की गति तेज हो गई अपने मन में यह ख्याल आते ही उसे लगने लगा कि जो कुछ भी वह सोच रही है गलत है ऐसा नहीं होना चाहिए उसके मन में ऐसा ख्याल आना भी पाप है लेकिन इन ख्यालों की वजह से उसके तन बदन में जिस तरह की हलचल जिस तरह की कंपन पैदा हो रही थी उसी अजीब सा सुख दे रही थी जिसके बारे में उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी खास करके उसकी दोनों टांगों के बीच छोटी सी पतली दरार में अद्भुत एहसास हो रहा था उसे ऐसा लग रहा था कि अपने बेटे के बारे में गंदे विचार अपने मन में लाकर उसके बुर के गुलाबी पत्तियां अपने आप ही फुदकने लगी है,,,। मदन रस की बुंदे अपने बेटे के रंगीन ख्याल से,,, बुर की अंदरूनी कसी हुई मांसल दीवारों से पसीजती हुई,,,, धीरे धीरे बुर के गुलाबी छेद से मदन रस की बूंदें अमृत की धार बनकर फूट रही थी जिससे उसकी पेंटिं गीली होती जा रही थी,,,,,, उससे अपने बदन की गर्मी बर्दाश्त नहीं हुई और वह सीधा बाथरूम में घुस गई और अंदर घुसते ही अपनी साड़ी को उतार कर नीचे फेंक दी उसका इरादा बिल्कुल भी अपने कपड़े उतारने का नहीं था लेकिन मन में 30 तरह के ख्याल हलचल मचाए हुए थे वहअपने आप को रोक नहीं पाई वह देखते ही देखते अपने सारे वस्त्र उतार कर बाथरूम के अंदर नंगी हो गई,,,, बदन की गर्मी शांत करने के लिए हमेशा वह संजय के मोटे तगड़े लंड का उपयोग करते आ रही थी,,, लेकिन इस समय अपनी गर्मी शांत करने का उसके पास अपनी दो उंगलियों के सिवा और कोई रास्ता नहीं था,,, इसलिए वह अपना एक पैर कमोड पर रखकर अपनी दोनों टांगों को अच्छी तरह से फैला ली,,, और अपनी नजरों को अपनी दोनों टांगों के बीच अपनी फूली हुई बुर पर टिका कर एक साथ अपनी दो उंगली को अपनी गुलाबी छेद में प्रवेश करने की इजाजत दे दी और उसे अंदर बाहर करते हुए अपनी कल्पनाओं के घोड़े को दौड़ाने लगी,,, कल्पना में वह झाड़ियों के बीच में उस औरत और उस लड़के की जगह अपने आप को और सोनू को रखकर कल्पना करने के लिए अक्सर वो इस तरह की कल्पना करने लगी थी जब से वह दृश्य देखी थी,,,,देखते ही देखते उसकी उंगली की रफ्तार बढ़ने लगी बाथरूम के अंदर उसकी गरम सिसकारी की आवाज गुंजने लगी पर थोड़ी ही देर में उसका गर्म लावा पिघल कर बाहर आ गया,,,, वासना का तूफान शांत हो चुका था,,,, और ठंडे पानी का सावर चालू करके अपनी गर्म बदन को ठंडा करने की कोशिश करने लगी,,,,।
कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए,,,, अपने मन में आए इस तरह के भावनाओं से उन चारों का मन ग्लानि से भर जाता था उन्हें अपने आप पर ही गुस्सा आता था और हर बार वह इस तरह की गलती दोबारा न करने की अपने मन में ही कसम खा लेते थे लेकिन,,,, किस तरह का ख्याल कोई गलती नहीं बल्कि नशा का रूप धारण कर चुकी थी जब तक वह चारों इस तरह की कल्पना नहीं करते थे इस तरह के सवाल अपने मन में मिलाकर कोई तब तक उनका मन बेचैन रहता था,,,। और ना चाहते हुए भी उनके मन में इस तरह के ख्याल आ ही जाते थे,,,।
ऐसे ही 1 दिन घर पर कोई नहीं था,,, किराने की दुकान से दुकान वाले ने घर के लिए चावल और दाल की बोरियां भेजी थी और दुकान पर काम करने वाले लड़के ने चावल की बोरी और दाल की बोरी दरवाजे पर ही रख कर चला गया,,, जब इस बारे में संध्या को पता चला तो वह,,,दुकानदार को फोन करके इस बारे में शिकायत की दुकानदार को जब इस बारे में पता चला तो वह संध्या से माफी मांगते हुए बोला,,,।
मैडम जी नया कारीगर था इसलिए उसे नहीं पता था कि कहां रखना इसलिए मैं दरवाजे पर आकर चला गया इस बारे मैं उसी से मैं जरूर बात करूंगा अभी तो वह फिलहाल अपने घर पर गया है इसके लिए मैं माफी चाहता हूं,,, आप अपने तरीके से उसे उठवा कर रखवा लीजिए,, आइंदा से ऐसी गलती नहीं होगी,,,।
ठीक है,,,,(इतना कहकर संध्या फोन काट दी,,,, घर पर कोई नहीं था और अनाज की बोरी दरवाजे पर ही पड़ी थी जिसे घर में ले जाना जरूरी था वह खुद ही कोशिश करने लगी उसे उठाने की,,, 25 25 किलो की 4 बोरियां थी जिसमें से तो वह जैसे तैसे करके दो बोरी रख आई,,, दो बोरी रखने के बाद उसे अपने ऊपर आत्म विश्वास हो गया कि वह चारों बोरी रख लेगी,,,, और तीसरी बोरी उठाकर जैसे ही वह उठाने चली उसकी कमर एकदम से लचक पड़ी और वह बोरी के भार के साथ-साथ अपना भार भी नहीं संभाल पाई और लड़खड़ा कर गिर गई,,,, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह गिर गई है बेहद शर्मिंदगी का अहसास उसे हो रहा था वह हड़बड़ाहट में चारों तरफ देखने लगी कि कहीं कोई उसे देख तो नहीं रहा है,,, उसे अपने आप पर शर्म आ रही थी,,,,जब उसने तसल्ली कर ली कि उसे गिरते हुए किसी ने नहीं देखा है तो वह थोड़ा संतुष्ट हुई और उठने की कोशिश करने लगी लेकिन उठ नहीं पाई क्योंकि उसकी कमर बड़े जोरों की दुखने लगी थी,,,, उससे उठा नहीं जा रहा था,,, वह रोने जैसी हो गई,,,, दर्द के मारे उसे रोना भी आने लगा उसे दर्द कर रहा था कमर की नस में खिंचाव सा आ गया था,,, वह घबरा सी गई थी घर पर कोई नहीं था मोबाइल घर में रखा हुआ था वहां तक जाने की उसकी हिम्मत बिल्कुल भी नहीं थी,,,,बार-बार उठने की कोशिश कर रही थी लेकिन उससे उठा नहीं जा रहा था उसे अपने आप पर गुस्सा आने लगा कि अकेले ही बोरी उठाने की क्या जरूरत थी,,,,। वह वहीं पर दीवार का सहारा लेकर बैठी रह गई,,,, तभी मोटरसाइकिल की आवाज आई उसके चेहरे पर खुशी के भाव से रखने लगी क्योंकि वह जानती थी कि उसका बेटा सोनू आ गया है,,,, बाहर बाइक खड़ी करके जैसे ही सोनू गेट खोल कर अंदर प्रवेश किया तो वैसे ही दीवार का सहारा देकर बेटी अपनी मां पर नजर पड़ते ही वह एकदम से घबरा गया,,,,
क्या हुआ मम्मी ऐसे क्यों बैठी है,,,,?
सोनू मुझसे उठा नहीं जा रहा है मेरी कमर में दर्द हो रहा है,,,
लेकिन यह कैसे हो गया,,,,
यह अनाज की बोरी उठाते समय,,, लगता है कि मेरी कमर की नस खींचा गई है,,,,(संध्या दर्द से कराहते हुए बोली,,,)
चलो मम्मी मैं तुम्हें अपने हॉस्पिटल ले चलता हूं,,,।
नहीं नहीं बेटा,,,, अपना हॉस्पिटल तो बहुत दूर है एक घंटा लग जाएगा वह पहुंचने में,,, यही पास में क्लीनिक है वही चलते हैं,,,,
ठीक है मम्मी,,,,,(इतना कहकर सोनू अपनी मां का बांह पकड़कर ऊसे उठाने की कोशिश करने लगा,,, संध्या अपने बेटे का हाथ पकड़कर धीरे-धीरे उठने की कोशिश करने लगे उसे कमर में बहुत दर्द हो रहा था उससे उठा नहीं जा रहा था,,, जैसे तैसे वहअपने बेटे का सहारा लेकर खड़ी हुई जैसे यह कदम आगे बढ़ाई वैसे फिर से लड़खड़ा गई,,, सोनू तुरंत अपना हाथ अपनी मां की कमर में डालकर उसे अपने बदन का सहारा दे दिया,,,, लड़खड़ा करवा एकदम से गिरने वाली थी अपनी लेकिन अपने बेटे का सहारा पाकर उसके मुंह से बस आह निकल गई,,,,, सोनू एकदम से उत्तेजित हो गया था क्योंकि उसका हाथ उसकी मां की कमर पर था वह चिकनी मखमली एकदम मक्खन जैसी,,, पहली बार वह अपनी मां को इस तरह से पकड़े हुए था,,,, संध्या का बदन पूरी तरह से सोनू के बदन से सटा हुआ था वह अपनी मां को उसकी कमर में अपना हाथ डालकर सहारा देकर आगे की तरफ ले जा रहा था संध्या भी अपना एक हाथ अपने बेटे की कमर में डालकर उसका सहारा लेकर चल रही थी इतने दर्द होने के बावजूद भी जिस तरह से सोनू ने उसे अपना हाथ का सहारा देकर उसकी कमर को थामा था उससे वह अपने तन बदन में उत्तेजना की लहर को दौड़ते हुए साफ महसूस कर रही थी,,, अपने बेटे की इस हरकत पर वह पूरी तरह से लुभा गई थी,,, संध्या को अब अपनी बेटी का सहारा लेने में मजा आ रहा था खास करके उसे सहारा देते समय उसका हाथ इधर-उधर हो रहा था उससे वह काफी उत्तेजना महसूस कर रही थी,,,संध्या का अपने बेटे का सहारा बराबर मिल चुका था वह आराम से धीरे-धीरे अपने कदम आगे बढ़ा रही थी लेकिन उसके मन में ऐसे हालात में भी ना जाने क्यों शरारत करने की सुझ रही थी,,, दर्द तो उसे अभी भी अपनी कमर में कुछ ज्यादा ही हो रहा था एक बार फिर वह जानबूझकर लड़खडाने की कोशिश करते हुए आगे की तरफ झुक गई,,, और इस बार हड़बड़ाहट में सोनू का हाथ ऐसी जगह चला गया जहां वह सपने में भी नहीं सोचा था बस कल्पना किया करता था अपनी मां को संभालने के चक्कर में उसका हाथ आगे की तरफ आ कर एक उसकी चूची पर चला गया और वह अपनी मां को संभालने के चक्कर में उसे पकड़कर उठाने के चक्कर में अपनी मां की बाईं चूची को कस के पकड़ लिया,, और उसे फिर से सहारा देने लगा लेकिन जब उसे इस बात का एहसास हुआ कि वह हड़बड़ाहट में अपनी मां की चूची को पकड़ लिया है तो इस बात से वह पूरी तरह से मदहोश हो गया उत्तेजना के परम शिखर पर पहुंच गया झट से उसके पेंट के आगे वाला भाग तंबू की शक्ल ले लिया,,, सोनू की सांसे बड़ी तेजी से चलने लगी थी मुझे भी इस बात का एहसास संध्या को हुआ कि उसका बेटा उसे संभालने के चक्कर में उसकी चूची को पकड़ लिया है तो इस बात से वह पूरी तरह से गदगद हो गई,,, उसने तो बस तुक्का आजमाया था लेकिन उसकी सोच से भी ज्यादा कुछ हो गया था जिस तरह से सोनू अपनी मां की चूची को ब्लाउज के ऊपर से जोर से दबा कर उसे संभाला था उसकी मजबूत हथेलियों की पकड़ का एहसास संध्या को अच्छी तरह से हो गया था वह अपने बाप से भी तेज था उसकी मजबूत हथेलियों में उसकी मदमस्त खरबूजे जैसी चूची पूरी की पूरी समा तो नहीं पाई थी लेकिन आधे से ज्यादा आ गई थी,,,, जैसे ही सोनू अपनी मां की चूची को पकड़कर उसे संभाला था वैसे ही तुरंत चूची को जोर से पकड़े ने की वजह से दर्द के मारे संध्या के मुंह से आह निकल गई थी संध्या संभल चुकी थी अपने बेटे का सहारा पाकर चार पांच सेकेंड तक सोनू अपनी मां की चूची को अपनी हथेली में धरे रह गया उसका मन नहीं कर रहा था अपनी मां की चूची पर से अपना हाथ हटाने का लेकिन मजबूर था क्योंकि वह नहीं चाहता था कि उसकी मां को इस बात का अहसास हो कि वह ,,, उसकी चूची को पकड़ लिया है,,,, और संध्या जानबूझकर अपने चेहरे पर हैरानी के भाव को आने देना नहीं चाहती कि उसके बेटे को इस बात का पता चले कि उसका हाथ उसकी चूची पर आ गया है इसलिए वह एकदम सहज बनी रही,,, इस बारे में अपने बेटे को अहसास तक नहीं होने दी कि उसे पता चल गया है वह वैसे ही अपने बेटे का सहारा लेकर चलती रही और सोनू भी अपनी मां की चूची पर से हाथ हटा दिया था वैसे तो वह अपनी मां की सूची को पकड़े रहना चाहता था उसे दबाना चाहता था उस से खेलना चाहता था लेकिन ऐसा संभव नहीं था,,, सोनू अपनी मां को सहारा देकर गेट तक आ गया था जिस तरह से संध्या लड़खड़ा जा रही थी उससे उसे थोड़ा सा भी छोड़ देना मतलब साफ था कि वकील जाएगी इसलिए सोनू नहीं चाहता था कि उसकी मां फिर से नीचे गिर जाए इसलिए मैं गेट पर पहुंचकर वह गेट खोलने के लिए अपनी मां को ठीक अपने सामने ले लिया और अपना हाथ उसके दोनों बाजुओं से उठाता हुआ गेट खोलने लगा जिससे संध्या एकदम से मदहोश होने लगी क्योंकि इस पोजीशन में वह ठीक अपनी बेटी के आगे खड़ी थी और उसका बेटा दरवाजा खोलते समय उसे पूरा का पूरा अपने ऊपर ले लिया था संध्या भी जानबूझकर अपनी पीठ को अपने बेटे की छाती से सटाई हुए थी,,, और ऐसा करने में उसकी भारी-भरकम गांड ठीक उसके पेंट में बने तंबू पर स्पर्श हो रही थी अपने बेटे के मोटे तगड़े लंड की चुभन उसे अपनी गांड पर महसूस होते ही वह पूरी तरह से पिघलने लगी,,, गजब का ऐहसास ऊसके तन बदन को अपने आगोश में ले रहा था,,,, पल भर में संध्या की सांसे तेज चलने लगी सोनू अपने आगे वाले भाग को अपनी मां की गांड पर स्पर्श होता हुआ महसूस करते ही उसके तन बदन में आग लग गई,, ऊतेजना कि मारे सोनू का गला सूख रहा था,,, वह बार-बार अपने थुक से अपना गला गीला करने की कोशिश कर रहा था,,,। सोनू अपनी मां की भारी-भरकम गांड को अपने लंड पर रगड़ खाता हुआ महसूस कर रहा था उसकी मां अपने आप को संभालने की कोशिश में जानबूझकर अपनी गांड को गोल गोल नचा रही थी,,।अपनी मां की हरकत की वजह से सोनू की उत्तेजना बढ़ने लगी थी सोनू का लंड पूरी तरह से खड़ा हो गया था जिस बात का एहसास संध्या को भी अच्छी तरह से हो गया था,, सोनू जानबूझकर गेट खोलने में ज्यादा समय ले रहा था,,, तभी एक बार फिर से संध्या को शरारत करने की सुझी और वह जानबूझकर गिरने का नाटक करने लगी तो इस बार सोनू अपनी मां को संभालने की कोशिश करते हुए उसे अपनी बाहों में भर लिया,,,। ऐसा करते हुए संध्या पूरी तरह से अपने बेटे की बाहों में समा गई,,, और सोनू के पेंट में बना तंबू संध्या कि गांड के बीचो बीच दरार के अंदर घुस गया और सीधा जाकर साड़ी सहित पैंटी के ऊपर से ही उसकी बुर के मुख्य द्वार पर दस्तक देने लगा,,, संध्या एकदम से मदहोश हो गई उसकी सांसे एकदम भारी चलने लगी,, सोनू को इस बात का एहसास हो गया कि वह जिस पोजीशन में अपनी मां को पीछे से पकड़ा हुआ है वह पोजीशन अक्सर किस वजह से ली जाती है,,,इस बात का एहसास सोनू के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ आने लगा और पूरी तरह से मदहोशी के आलम में अपने आपको डुबोने लगा,,उसकी बिल्कुल भी इच्छा नहीं हो रही अपनी मां को अपनी पकड़ से आजाद करने के लिए वह उसी तरह से अपनी मां को पकड़े रह गया और उसकी मां अपने एकदम मदहोश होकर अपनी आंखों को बंद कर ली,,, तकरीबन 10 सेकंड तक सोनू का लंड जोकी तंबू के सक्ल में था,,, ऊसकी मां की गांड की दरार के बीचो बीच फंसा रहा,,, जिस तरह से संध्या ने अपने बेटे के लंड को साड़ी सहित पेंटिं के ऊपरअपनी पुर पर दस्तक देता हुआ महसूस की थी इस बात का एहसास हो गया कि उसके बेटे का लंड कितना मजबूत और लंबा है,,, उसे अच्छी तरह से समझ में आ गया कि बेटा बाप से एक कदम आगे ही है,,,,संध्या का भी मन कर रहा था कि सोनू इसी तरह से अपनी बाहों में लेकर अपने लंड को उसकी गांड के बीचों-बीच धंसाए रहे,,,लेकिन सोनू को इस बात का अहसास हो गया कि इधर पर इस स्थिति में कोई भी देख सकता है इसलिए वह जल्दी से गेट खोल कर अपनी मां को संभालते हुए गेट के बाहर ले आया और जैसे तैसे करके अपनी मोटरसाइकिल पर बिठाकर उसे क्लीनिक की तरफ ले गया,,,।