शाम के तकरीबन 5:00 बज रहे थे,,,, संध्या का मन एक चित नहीं हो पा रहा था,,, उसका मन बहक रहा था,,, ना चाहते हुए भी बार-बार उसका ध्यान अपने बेटे की तरफ चला जा रहा था और उन्हें लड़कों की कही गई बात से अपने बेटे को जोड़कर वह अपने अंदर अजीब सी हलचल को महसूस कर रही थी,,,वह सब जानती थी कि जो कुछ भी हुआ अपने मन में सोच रही है वह बिल्कुल गलत है मर्यादा संस्कार और लोक लाज से बिल्कुल विपरीत है लेकिन फिर भी ना जाने क्यों इस तरह के ख्याल मन में आते ही उसे अजीब सा सुख का अनुभव होने लगता था अपने तन बदन में अद्भुत अहसास को महसूस करके वह अतृप्त भावना को महसूस करती थी ऐसा लगता था कि जैसे उसके बदन की प्यास और ज्यादा बढ़ जाती थी,,, इसीलिए अपना मन हल्का करने के उद्देश्य से आज वाक पर जाना चाहती थी,,,, इसलिए अपने कमरे में जाकर अपनी साड़ी को उतार कर बिस्तर पर रख दी,,, और देखते ही देखते अपने ब्लाउज के साथ-साथ अपनी पेटीकोट भी उतार कर बिस्तर पर फेंक दी,,, कमरे में वह केवल ब्रा और पेंटी में खड़ी थी,,, वाक करने के लिए जब कभी भी व जाती थी तो एक हल्का टीशर्ट और ढीला पाजामा पहन लेती थी,,, इसलिए वह अलमारी खोलकर एक टी-शर्ट और पजामी निकाल ली,,, हल्का-फुल्का व्यायाम और दौड़ने के लिए अक्सर औरतें और लड़कियां इसी तरह के कपड़ों का चुनाव करती है क्योंकि इसमें उन्हें काफी आरामदायक और हल्का महसूस होता है,,, अलमारी से कपड़े निकालने के बाद वह उसे पहन ली और आईने के सामने खड़ी होकर अपने आप को निहारने लगी,,,, जिस तरह का वह टी-शर्ट पहनी थी उसने उसकी चूचियां कुछ ज्यादा ही बड़ी नजर आती थी और वह भी अपने संपूर्ण आकार को उभारे हुए,,, जिस पर नजर पड़ते ही भांपने वाला संध्या की चूचियों का आकार का नाप आंखों ही आंखों में ले लेता था,,, और वैसे भी संध्या के पास जिस तरह की मदमस्त खरबूजे जैसी बड़ी-बड़ी चूचियां थी अक्सर मर्दों को इसी तरह की चूचियां अधिक भाती थी,,,, आईने में अपने आप को और खास करके अपनी खरबूजे जैसी चुचियों को टी-शर्ट से बाहर झांकता देखकर वह मन ही मन प्रसन्न हो गई और अपने कमरे से बाहर आ गई,,,,, नीचे आकर वह अपना स्पोर्ट्स शूज पहन कर उसकी डोरी बांधने के लिए नीचे झुक गई,,, जिस समय वह झुकी हुई थी उसी समय से ठंडे पानी की बोतल लेकर सोनु बाहर आया,,,,,किचन से बाहर आते आते हैं वह पानी की बोतल को मुंह में लगाकर पी रहा था कि तभी उसकी नजर,,, अपनी झुकी हुई मां पर पड़ी,,, और उसमें उसकी नजरों का दोष कहो या उसके मन का उसकी बड़ी बड़ी गांड की दरार के बीचो बीच फंसी हुई पजामी को देखकर पल भर में उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी,,,,,, यह हलचल सोनू के बदन में पहली बार हो रहा था जो कि इशारा था कि वह अब जवान हो चुका है,,, पहली बार सोनू की नजर इस तरह से अपनी मां की बड़ी-बड़ी गदराई गांड पर पड़ी थी,,,, वह पानी पीना भूल गया,,, और वह बोतल को उसी तरह से मुंह से लगाए रह गया,, ,,। उसकी आंख अपनी ही मां की गदराई गांड पर टिकी की टीकी रह गई,,,,, ऐसा नहीं था कि वह पहली बार अपनी मां की गांड देख रहा था,,,इससे पहले भी वह अपनी मां की गांड को देख चुका था साड़ी में जींस में और पजामी में,,, अपनी मां की मदमस्त बड़ी बड़ी गांड के जबरदस्त घेराव को पहले भी देख चुका था लेकिन देखने का नजरिया उस समय वैसा नहीं था जिस तरह का नजरिया आज उसकी आंखों में नजर आ रहा था,,,, बड़ी बड़ी गांड की गहरी दरार में फंसी पजामी सोनू के कोमल मन पर हथौड़े चला रही थी,,, उसके मन में किस तरह की हलचल हो रही थी वह उससे बिल्कुल भी वाकिफ नहीं था बस एक अजीब सा आकर्षण में बंधता चला जा रहा था,,,,, जूते की डोरी बांधते समय उसके नितंबों की थिरकन सोनू के होश उड़ा रही थी,,। पहली बार सोनु का अपनी मां की गांड को देखने का नजरिया बदला था,,,,। उसकी मां जैसे ही जूते की डोरी बांधकर खड़ी हुई वैसे ही सोनू जैसे होश में आया हो और वह अपने आप को संभाल कर पानी पीने लगा और पानी पीने के बाद अपनी मां से बोला,,,
कहां जा रही हो मम्मी,,,,
आज थोड़ा अजीब लग रहा था इसलिए सोच रही थी कि थोड़ी बाहर की हवा ले लु तो थोड़ा मन हल्का हो जाएगा,,,।
मैं भी चलूं क्या,,,? (बोतल का ढक्कन बंद करते हुए बोला)
हां हां तू भी चल,,, अच्छा ही रहेगा,,,,
(इतना कहकर संध्या आगे आगे चलने लगी और सोनू पीछे पीछे आज ना जाने क्यों उसका पूरा ध्यान अपनी मां की भारी-भरकम गांड पर चला जा रहा था,,,, अपने मन को लाख बनाने की समझाने की कोशिश कर रहा था लेकिन जब जब उसकी नजर संध्या की गांड पर पड़ती तो वह अपने होश खो दे रहा था,,, देखते ही देखते संध्या घर से बाहर निकल गई और पीछे पीछे सोनू एक अजीब सी हलचल उसे तन बदन में होने लगी थी क्योंकि इस पजामी में संध्या की गांड कुछ ज्यादा ही उभर कर बाहर नजर आती थी,,,और जैसा की भरी हुई पड़ी पड़ी कार हमेशा से मर्दों की सबसे बड़ी कमजोरी रही है और सोनू भी जवान हो चुका था और एक जवान मर्द होने के नाते बेशक उसकी भी औरतों की बड़ी-बड़ी ऊभरी हुई गांड कमजोरी बन चुकी थी जिसका आभास सोनू को बिल्कुल भी नहीं था,,,।
संध्या लंबे लंबे कदम भर रही थी जो की साड़ी में बिल्कुल भी मुमकिन नहीं था और साथ ही सोनू की अपनी मां की ताल में ताल मिला था हुआ कदम से कदम बढ़ाए जा रहा था,,, संध्या और सोनू दोनों फुटपाथ पर चल रहे थे और फुटपाथ पर चलते हुए संध्या को उन लड़कों की कही बात याद आने लगी,,, उन लड़कों का ध्यान उसकी बड़ी बड़ी गांड के साथ-साथ उसकी बड़ी बड़ी चूची होकर भी बराबर थी तभी तो वह उसके दोनों अंगों के बारे में गंदी गंदी बातें कर रहे थे,, उन लड़कों की बात याद आते ही एक अजीब सी हलचल संध्या के तन बदन में होने लगी,,, और खास करके अपने बेटे को लेकर,,, वह तेज कदमों से चलते हुए यही सोच रही थी कि अगर उन लड़कों की कही बात सच हो जाए तो क्या हो,,, यह सोचकर ही उसके तन बदन में गुदगुदी होने लगी थी,,,, अपने मन में यही सोच रही थी कि अगर सच में उसका बेटा मतलब की सोनू उस की चुदाई करें तो कैसा लगेगा,,,,,, यह ख्याल मन में आते ही वह अपने आप से ही शरमाते हुए अपने मन में बोली हाय मैं तो शर्म से मर जाऊंगी,,,,, यही सब सोचते हुए घर से थोड़ी ही दूर पर बने बगीचे में दोनों पहुंच गए जहां पर और लोग भी हल्का-फुल्का व्यायाम और दौड़ने के लिए आए थे,,,, बगीचे में पहुंचते ही,,,, संध्या सोनू से बोली,,,।
सोनू तु मेरे साथ दौड़ लगा,,,
ठीक है मम्मी,,,(इतना कहने के साथ ही सोनू की अपनी मां के साथ दौड़ लगाने लगा दोनों बड़े आराम से दौड़ रहे थे सोनू जानबूझकर अपनी मां से थोड़ा सा पीछे दौड़ रहा था न जाने क्यों उसे बार-बार अपनी मां की मटकती हुई लहराती हुई मदमस्त गांड की लहर को देखने की इच्छा हो रही थी,,, जोकि दौड़ते समय बेहद मादक होकर गांड के दोनों फाके पजामे के अंदर उछाल मार रही थी,,,, सोनू मस्त हुआ जा रहा था यह सब उसे अच्छा तो नहीं लग रहा था लेकिन वह अपनी इच्छा के आगे मजबूर हो चुका था,,,सोनू को आज पता चल रहा था कि दौड़ते समय उसकी मां और भी ज्यादा खूबसूरत दिखाई देती है,,, हवा में उसके लहराते बाल जो कि उसने एक छोटी सी रिबन लगाकर बांध रखी थी और दौड़ते समय वह ऊपर नीचे होकर उछल रहे थे,,, यह देख कर सोनू की हालत खराब होती जा रही थी,,,
ऐसा नहीं था कि सोनू पहली बार अपनी मां को दौड़ते हुए या उसके साथ पहली बार दौड़ रहा था ऐसा पहले भी वह अपनी मां का साथ देते हुए मॉर्निंग वॉक या इवनिंग ऑक पर जा चुका था ,,, लेकिन अपनी मां को और उसके खूबसूरत रंगों को इस तरह से देखने का उसका गंदा नजरिया कभी नहीं था,,, वक्त का तकाजा कहो या जवानी का असरसोनू का नजरिया अपनी मां को देखने का बिल्कुल बदलता जा रहा था इससे वह खुद हैरान था लेकिन अपने आपको अपनी मां को गंदी नजर से देखने का लालच वह दबा नहीं पा रहा था,,,, संध्या अपनी ही मस्ती में दौड़ लगा रही थी ऐसा नहीं था कि इस बगीचे में केवल सोनू और उसकी मा ही दौड़ लगा रहे थे बाकी लोग भी दौड़ लगा रहे थे और अपने अपने तरीके का व्यायाम कर रहे थे,,,,,,सोनू अभी भी अपनी मां से दो कदम पीछे दौड़ रहा था इसलिए संध्या पीछे की तरफ देख कर उसे आगे आने के लिए उसके साथ दौड़ने के लिए बोली तो उसकी नजर के सीधान को देखकर वो एकदम हैरान रह गई,,, उसके तन बदन में पल भर में हलचल सी मचने लगी,,,, संध्या को साफ पता चल रहा था कि उसका बेटा उसकी बड़ी बड़ी गांड को देख रहा था जोकि इस समय काफी हील रही थी,,,,,, संध्या एकदम हैरान रह गई लेकिन अपने चेहरे पर आई हैरानी के भाव को अपने बेटे के आगे जताना नहीं चाहती थी इसलिए वह दौड़ते हुए ही सोनू से बोली,,,।
सोनू पीछे क्यों दौड़ रहा है मेरे साथ में दौड़ लगा,,, कोई देखेगा तो क्या कहेगा कि मेरा बेटा अपनी मां से भी ज्यादा कमजोर है जो अपनी मां के साथ भी नहीं दौड़ लगा पा रहा है,,,,
(अपनी मां की यह बात सुनकर सोनू को थोड़ा खराब लगा इसलिए वह बोला)
यह बात है मम्मी तुम्हारा बेटा एकदम घोड़े की तरह दौड़ेगा अब देखना,,,,(इतना कहने के साथ ही वह तेज दौड़ने लगा और अपनी मां से आगे निकल गया तो उसकी मां रोकते हुए बोली)
अरे इतना तेज भी नहीं तोड़ना है कि मुझसे आगे निकल जाए मेरे साथ दोड़ना है,,,(संध्या दौड़ते हुए बोली तो सोनू धीरे-धीरे दौड़ने लगा,,, और उसकी मां उसके करीब आकर दौड़ने लगी दोनों साथ में दोडने लगे,,,)
देखी मम्मी मैं कितना तेज दौड़ता हूं एकदम घोड़े की तरह,,,(सोनू तोड़ते हुए अपनी मां की तरफ देख कर यह बात कह रहा था लेकिन तभी उसकी नजर टी शर्ट में उछलते हुए अपनी मां की बड़ी बड़ी चूचीयो पर गई जो कि बेहद मादक स्थिति में फुटबॉल की तरह उछल रहे थे ऐसा लग रहा था कि मानो अभी टीशर्ट फाड़ कर बाहर आ जाएंगे,,,सोनू तो टीशर्ट में अपनी मां की ऊछलती हुई चुचियों को देखकर एकदम मंत्रमुग्ध हो गया और अपनी बात को आगे बोलना एकदम भूल गया और अपनी मां की टी-शर्ट के अंदर उबलते हुए जवानी के दोनों लावा को देखने लगा,,, संध्या इस बार भी अपने बेटे की प्यासी नजर को भांप गई,,,, वह अपनी छातियों की तरफ देखी तो वाकई मेंअपनी चलती हुई चुचियों की स्थिति देखकर एकदम से शर्म से पानी पानी हो गई ऐसा लग रहा था कि उसकी चूचियां उससे एक कदम आगे दौड़ रही है,,,, संध्या अपने बेटे की नजर से एकदम से शर्मा गई थी लेकिन अपने बेटे की आंखों के सामने कुछ ऐसी हरकत नहीं करना चाहती थी कि उसे इस बात का आभास हो कि उसकी मां ने उसकी प्यासी नजरों को भांप ली है,,। वह सोनू की बात का जवाब देते हुए बोली,,,)
मुझे तुझ पर गर्व है बेटा हमेशा गधे की तरह नहीं बल्कि खोड़े कि तरह होना चाहिए,,,
लेकिन अब सोनू के पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं था,,, उसकी हालत खराब होती जा रही थी पेंट में तंबू सा बनने लगा था,,, सोनू कि इस तरह की हालत कभी नहीं हुई थी,,,लेकिन आज अपनी मां की मदमस्त जवानी की गर्मी उससे बर्दाश्त नहीं हो रही थी,,, सोनू बार-बार अपनी मां की ऊछलती हुई चूचियों पर से अपना ध्यान हटा ले रहा था लेकिन,,, जवानी की उमंग उसे बार-बार अपनी गलती को दोहराने के लिए उत्साहित कर रहा था और सोनू भी बार-बार अपनी नजरों को अपनी मां की मदमस्त जवानी दिखाकर उसे तृप्त कर दे रहा था,,,,। बगीचे में तीन चार राउंड मारने के बाद संध्या एकदम से हांफने लगी और वही रखी बेंच पर बैठ गई सोनू भी हांफते हुए अपनी मां के बगल में बैठ गया,,,। दोनों पसीने से तरबतर हो चुके थे संध्या की टीशर्ट पसीने से भीग कर दोनों गोलाईयों से चिपक सी गई थी,, जिससे अनजाने में ही संध्या की चूची की निप्पल उत्तेजना के मारे एकदम भाले की नोक की तरह नुकीली होकर टी-शर्ट से बाहर आने के लिए उतावली हो रही थी और इतना मादक और मोहक दृश्य सोनू की नजर से बच नहीं सका,,,सोनू अपनी मां की चूची की कड़ी निप्पल को एकदम साफ तौर पर देख रहा था कि वह टीशर्ट में एकदम बेहतरीन नजारा पेश कर रहे थे,,, सोनू की हालत खराब होने लगी,,,,,, सोनू को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें,,, उसके बदन में कसमसाहट हो रही थी,,, एक तरफ उसे इस तरह से अपनी मां को देखना अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन दूसरी तरफ अपनी मां की खूबसूरत आंखों को अपनी आंखों से देखने की लालच को वह खुद रोक भी नहीं पा रहा था,,,,,संध्या अभी भी हांफ रही थी गहरी गहरी सांसे ले रही थी,,, और उसकी गहरी गहरी चलती सांसो के साथ उसकी छातियों के शोभा बढ़ाते दोनों खरबूजे ऊपर नीचे हो रहे थे जिसे देखने का सुख सोनू भोग रहा था। संध्या का ध्यान अभी तक सोनू के ऊपर नहीं था लेकिन जैसे ही उसका ध्यान सोनू के ऊपर गया और वह अपनी नजरों को अपनी दोनों छातियों पर घुमाई तो पसीने से तरबतर टी-शर्ट के ऊपरी सतह पर उसकी कड़ी निप्पल नजर आने लगी या देखते ही वह एक बार फिर से शर्म से पानी-पानी हो गई,,तभी उसे फुटपाथ पर खड़े दोनों लड़कों की बात याद आ गई और उन लड़कों की बात याद आते ही संध्या के तन बदन में अजीब सी हलचल महसूस होने लगी पल भर में ही उसे यह सब अच्छा लगने लगा उसे अपने बेटे का इस तरह से अपनी बड़ी बड़ी चूचियों को घूर ना अच्छा लग रहा था,,,, संध्या अपने बेटे को इस बात का आभास तक नहीं होने देना चाहती थी कि उसकी नजरों को वह समझ गई है कहीं ऐसा आभास उसके बेटे को हो गया तो वह उसकी तरफ देखना बंद कर देगा और संध्या इस समय ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहती थी,,,। अपनी नजरों को अपने बेटे के ऊपर ना घुमा कर पूरे बगीचे में इधर-उधर घुमा कर चारों तरफ का नजारा देख रही थी लेकिन उसका ध्यान अपने बेटे की तरफ ही था,,,, सोनू के पेंट में तो गदर मचा रहा था,,, इस तरह की अद्भुत हलचल को उसने पहले कभी भी अपने बदन में महसूस नहीं किया था इससे पहले वह कभी अपनी मां को इस तरह के नजरिए से देखा ही नहीं था अपने अंदर यह जबरदस्त बदलाव कहां से और कैसे आया इस बारे में उसे बिल्कुल भी आभास तक नहीं था,,,।
सोनू यहां का नजारा कितना खूबसूरत है एक चारों तरफ फूल ही फूल खिले हुए हैं ठंडी हवा चल रही है मन करता है बस यही बैठे रहे,,,
तो बैठे रहो ना मम्मी मना कौन करता है,,,,,(सोनू एक गहरी और प्यासी नजर अपनी मां की टी-शर्ट में से झांक रही चूचियों पर डाला और दूसरी तरफ नजर करते हुए बोला)
मे यही बैठी रह गई तो घर पर खाना कौन बनाएगा,,, डॉक्टर साहिबा तो खाना बनाने से रहीं सबको घर पर भूखा ही सोना पड़ेगा,,,
हां मम्मी यह बात तो तुमने सही कही,,,, खाना बनाना दीदी के बस की बात बिल्कुल भी नहीं है,,,,( सोनू यह बात अपनी नजरों को दूसरी तरफ स्थिर करते हुए बोला वह जानबूझकर अपनी मां की तरफ से अपनी नजरों को हटाना चाहता था वह अपने मन में कंधे ख्यालात नहीं लाना चाहता था लेकिन बार-बार उसका मन ललच जा रहा था अपनी मां की मदहोश जवानी को देखने के लिए,,,)
बाप रे में तो पसीना पसीना हो गई,,,(संध्या जानबूझकर अपनी टी-शर्ट को नीचे से पकड़ कर उसे झटका देते हुए बोली,,, जिससे उसकी निप्पल कुछ ज्यादा ही कड़ी होकर टीशर्ट से बाहर आने के लिए मचल रही थी,,,इस पर सोनू की नजर फिर से अपनी मां की भारी-भरकम छातियों पर पड़ गई और उसके यह नजाकत भरी हरकत उसके सीने पर छुरियां चलाने लगी,,। सोनू के मन मेहो रही हलचल का आभास संध्या को अच्छी तरह से हो रहा था और मन ही मन वह अपने बेटे की ईस हालत पर प्रसन्न हो रही थी,,, सोनू अब वहां बिल्कुल भी रुकना नहीं चाहता था वह नहीं चाहता था कि उसकी मां को इस बात का पता चले कि वह चोर नजरों से उसकी चुचियों को देख रहा है,,, इसलिए वह एकदम से बेंच पर से खड़ा होता हुआ बोला,,,।)
मम्मी अब हमें चलना चाहिए,,,,,(सोनू के इस तरह से खड़े हो जाने से पेंट में खड़ा उसका लंड जो कि तंबू की शक्ल ले चुका था सोनू इस बात से बिल्कुल अनजान था और संध्या की हल्की सी नजर अपने बेटे के पेंट में बने तंबू पर पड़ी तो उसकी दोनों टांगों के बीच हलचल होने लगी ,,, संध्या चालाक थी वह खुले तौर पर अपने बेटे के पेंट में बने तंबू को देखना तो चाहती थी लेकिन वह ऐसा कर न सकी क्योंकि ऐसा करने से उसके बेटे को इस बात का पता चल सकता था और वह नहीं चाहती थी कि उसकी आंखों के सामने उसका बेटा शर्मिंदा हूं इसलिए चोर नजरों से अपने बेटे के पेंट में बने तंबू को देख कर वह एकदम से उत्साहित और उत्तेजित होने लगी,,,, अनुभवी आंखों में सोनू के पेंट में बने तंबू से यह आभास कर लिया की सोनू का हथियार उसके बाप से बिल्कुल भी कम नहीं था और उम्र के हिसाब से सोनू अपने बाप से चुदाई के मामले में बीस ही साबित होगा 19 नहीं,,,, यह सब सोचकर संध्या का तन बदन कसमसाने लगा,,, अपने अंदर हो रही हलचल को अच्छी तरह से समझ रही थी वह बिलकुल नादान नहीं थी कि अपने बेटे के पेंट में बनी तंबू को देखकर अपने तन बदन में हो रही हलचल को पहचान ना सके,,,,, संध्या अपनी दूसरी तरफ गुलाब के पौधों को देखते हुए बोली,,,।
सोनू बेटा वह देख गुलाब के फूल कितने सुंदर लगे हुए हैं चल एक दो फूल अपने तोड़ लेते हैं,,,,,,
हां मम्मी तुम सच कह रहे हो लेकिन इस तरह से बगीचे का फूल तोड़ना उचित है,,,(सोनू उसी तरह से खड़े खड़े ही बोला उसका ध्यान अभी तक आपने पेंट में बने तंबू पर बिल्कुल भी नहीं गया था,)
तू खामखा डर रहा है कोई कुछ नहीं बोलने वाला,,,, चल दो-तीन फूल तोड़ लेते हैं,,,,( इतना कहकर वह भी खड़ी हो गई,,, उसे अपने स्कूल का दिन याद आने लगा जब वह अपनी सारी सहेलियों में सबसे ज्यादा चंचल और शरारती भी एक बार फिर से उसे शरारत करने की सुझी थी,,, ना चाहते हुए भी सोनू को अपनी मां की बात मानना पड़ा और वह उसके साथ फूल तोड़ने के लिए चल दिया,,, शाम ढल रही थी हल्का हल्का अंधेरा छाने लगा था,,,,, और ऐसे माहौल का फायदा उठाते हुए संध्या गुलाब के खूबसूरत फूल को तोड़कर अपने अंदर छिपी स्कूल वाली संध्या को बाहर लाना चाहती थी,,,,दोनों देखते ही देखते गुलाब के पौधे के पास पहुंच गए जहां पर ढेर सारे फूल लगे हुए थे चारों तरफ झाड़ियां ही झाड़ियां थी,,,, संध्या गुलाब का फूल तोड़ना शुरू कर दी एक के बाद एक वह पांच फूल तोड़ ली,,,फूल तोड़ते हुए संध्या बेहद खूबसूरत लग रही थी और यही सोनू भी देख रहा था अपनी मां की खूबसूरती और चंचलता को देखकर वह अपनी मां की तरफ पूरी तरह से मोहित हो चुका था,,,, इस समय दोनों में से कोई एक शब्द भी नहीं बोल रहा था,,, दोनों खामोश थे फूल तोड़ने की खुशी संध्या के चेहरे पर साफ झलक रही थी कुछ देर पहले कि उन्मादकता को वह भूल चुकी थी और सोनू भी,,,
लेकिन तभी फूल तोड़ते हुए संध्या और सोनू दोनों को झाड़ियों के पीछे हलचल सी महसूस हुई एक पल के लिए तो दोनों एकदम से चौंक गए,,, लेकिन यह जानने की उत्सुकता की झाड़ियों के पीछे हो रही हलचल आखीर किस तरह की है,,, संध्या झाड़ियों के पीछे झाड़ियों में अपना मुंह डाल कर अंदर की तरफ देखने की कोशिश करते हुए बोली।
देखो तो सही आखीर यह हलचल कैसी है,,,,(इतना कहने के साथ ही संध्या घनी झाड़ियों को अपने दोनों हाथों से थोड़ा सा हटाकर अंदर की तरफ देखने की कोशिश करने लगी और सोनू भी ठीक अपनी मां के पीछे खड़ा होकर अंदर की तरफ देखने की कोशिश करने लगा थोड़ी ही देर में संध्या की नजर जिस नजारे पर पड़ी उसे देखते ही उसके होश उड़ गए,,,, उसकी सांसों की गति तेज चलने लगी वह यह बात भी भूल गई कि जो नजारे को वह देख रही है उसका बेटा भी ठीक उसके पीछे खड़ा होकर झाड़ियों में मुंह डालकर उसी नजारे को देख रहा है संध्या के कुछ सेकंड बातें ही सोनू की भी नजर उस नजारे पर पड़ गई और देखते ही देखते उसकी हालत खराब होने लगी आखिर दोनों कर भी क्या सकते थे झाड़ियों के पीछे का नजारा है इतना मादकता से भरा हुआ था कि कोई चाहकर भी वहां से नजर हटा नहीं पाता,,,, संध्या को साफ नजर आ रहा था की झाड़ियों के पीछे एक 40 वर्षीय औरत लगभग उसी के उम्र की औरत अपनी साड़ी को कमर तक उठाकर झुकी हुई थी,, और एक जवान हो रहा लड़का अपना लंड उसकी बुर में डाल कर उसके कमर को दोनों हाथों से थामैं अपनी कमर को हिलाता हुआ उसे चोद रहा था,,, संध्या तो इस नजारे को देखकर एकदम हैरान रह गई उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा है औरत उसी की उम्र की थी और उसे चोद रहा लड़का उसके बेटे की उम्र का था,,,। सोनू की अपनी आंखों के सामने के इस दृश्य को देखकर एकदम उत्तेजित हो गया,, जिंदगी में पहली बार सोनू अपनी आंखों से चुदाई का दृश्य देख रहा था यह देख कर वह पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था,,, वह अपनी मां के ठीक पीछे खड़ा था एकदम सटकर,, संध्या की बड़ी-बड़ी नितंबों से एकदम सटकर झाड़ियों के पीछे का दृश्य देखकर वह पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था,,, पेंट में सोनु का लंड पूरी तरह से खड़ा हो चुका था और एक बार फिर से तंबू की शक्ल ले चुका था,,,,संध्या को जैसे ही अपनी गांड के ऊपर चुभन सी महसूस हुई तो उसका ध्यान पीछे की तरफ गया और उसके होश उड़ गए उसे इस बात का एहसास अब जाकर हुआ कि सोनू ठीक उसके पीछे खड़ा था और वह भी उससे एकदम सटकर जिसकी वजह से उसका खडा लंड उसकी गांड पर चुभने लगा था,,, पल भर में ही संध्या उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हों गई,,, शायद इस बात का एहसास सोनू को भी हो चुका था,,,, उसे भी इस तरह से अपनी मां की गांड के पीछे अपना लंड सटाए खड़े रहने में आनंद की अनुभूति हो रही थी,,,,दोनों मस्त हुए जा रहे थे झाड़ियों के पीछे का दृश्य दोनों के तन बदन में आग लगा रहा था लड़का अपनी मां की उम्र की औरत को उसकी दोनों कमर थामें गचागच पेल रहा था।,,,,
तभी संध्या को एहसास हुआ कि कोई भी उन दोनों को इस स्थिति में देख सकता है इसलिए वह घबराकर एकदम से अपनी नजर को झाड़ियों के पीछे से हटाकर अपने बेटे से अलग हो गई,,, सोनू भी अपनी गलती को समझ गया था इसलिए दोनों बिना कुछ बोले बगीचे से बाहर निकल गए,,,।
रात के 11:00 बज रहे थे और संजय सिंह अपनी हॉस्पिटल में बने कमरे में बेसब्री से सरिता का इंतजार कर रहा था,,,