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Incest रिश्तो की डोर,,,, (completed)

Vik1006

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शगुन
संजय
संध्या
सोनू
प्रीति शगुन की सहेली
रूबी नर्स
संजना सीनीयर नर्श



तुम्हारी यही आदत मुझे बहुत खराब लगती है,,, ऐसे समय तुम नखरा दिखाती हो तो मुझे अच्छा नहीं लगता,,,,,( संजय पीठ के बल बिस्तर पर लेटे लेटे अपने खड़े लंड को हिलाता हुआ बोला,,,)

मैं नखरा नहीं दिखा रही हूं तुम अच्छी तरह से जानते हो कि मुझे शर्म आती है,,,(संध्या बिस्तर के नीचे एक कोने पर खड़ी होकर अपने गाऊन के बटन पर हाथ रखे हुए बोली,,)

यार संध्या मुझे यह समझ में नहीं आता कि तो दो बच्चों की मां होने के बावजूद भी तुम्हें मुझसे ना जाने किस बात की शर्म आती है,,,।ऐसा लग रहा है कि जैसे आज पहली बार चुदवाने जा रही हो,,,।

दो दो बच्चों की मां हो गई तो क्या शर्म लिहाज सब उतार कर फेंक दु क्या,,,,,


अब यार मेरा समय मत बिगाडो जल्दी से गांऊन उतार कर बिस्तर पर आ जाओ,,,,मुझसे रहा नहीं जा रहा है,,, जल्द से जल्द में अपना यह खड़ा लंड तुम्हारी बुर में डालना चाहता हूं,,,(संजय एकदम बेशर्म की तरह बोला,,,)

थोड़ा तो शर्म करो इस तरह की बातें करते हो,,, इतने बड़े डॉक्टर हो लेकिन शर्म जरा सी भी नहीं है,,,।


हां नहीं है मेरी जान आप जल्दी से आओ,,,(संजय अपने हाथों से अपने खड़े लंड को हिलाता हुआ व्याकुल हुआ जा रहा था और उसकी पत्नी संध्या बिस्तर के नीचे एक किनारे पर खड़ी होकर अपने पति की बात मानते हुए गाउन का बटन खोलने लगी,,,।
क्रमशः
Nice start...
 
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Vik1006

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दोस्तों आज एक और नई कहानी शुरू किया हूं उम्मीद है कि यह कहानी भी आप लोगों को बेहद पसंद आएगी बस आप लोग अपने कमेंट भेजते रहिए
Congrats for new thread...
 
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Vik1006

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45 वर्षीय संजय पेसे से माना जाना डॉक्टर था जिसका खुद का हॉस्पिटल था,,,। पैसा रुतबा सब कुछ उसके पास था किसी चीज की कोई कमी नहीं थी,,। रोज सुबह उठकर घर में ही बने जिम में कम से कम 2 घंटे मेहनत करके अपने पसीने निकालता था जिसका फल उसे मिल रहा था इस उम्र में भी उसका बदन हट्टा कट्टा और गठीला था,,। 6 फीट लंबाई लिए हुए वह काफी आकर्षक लगता था,,। संजय काफी रंगीन मिजाज का था उसके ना जाने कितनी औरतों और लड़कियों के साथ नाजायज संबंध थे,,, और इस बारे में किसी को कानो कान खबर नहीं था यहां तक कि उसकी बीवी संध्या भी अपने पति के चरित्र के बारे में कुछ भी नहीं जानती थी उसे तो यही लगता था कि उसका पति सिर्फ उसी से प्यार करता है,,,। ऐसा नहीं था कि संध्या में किसी बात की कमी थी 38 की उम्र में भी वह बला की खूबसूरत लगती थी एक डॉक्टर की बीवी होने के नाते और ग्रेजुएट होने के कारण वह अपने बदन का अच्छे से ध्यान रखती थी वह भी घर में बने जीवन में योगा और कसरत करके अपने बदन को एकदम फिट रखी थी तभी तो * 30 की उम्र में भी 20 की लगती थी,,, बदन भरा हुआ था गदराया जिस्म लेकिन चर्बी का नामोनिशान नहीं था भगवान ने छाती की सजावट के लिए खरबूजे समान दोनों चूचियां इतनी आकर्षक बनाई थी कि मानो वो खुद अपने हाथों से बनाए हो,,, और इस उम्र में भी एकदम तनी हुई जरा भी लचक नहीं थी ब्लाउज पहनने के बाद मानो ऐसा लगता था कि दुनिया भर का खजाना वह अपने ब्लाउज के अंदर समेट कर रख ली हो,,, औरतों के आकर्षण का केंद्र बिंदु हमेशा से ऊभारदार नितंब ही रहे हैं,,,, और वह भगवान संध्या को तोहफे के रुप में बख्शा था,,,, जिसकी भी नजर संध्या के उभार दार नितंबों पर जाती थी वह बस देखता ही रह जाता था,,, नितंबों का घेराव और उठाव इस कदर आकर्षक लगता था कि मानो छोटी छोटी दो पहाड़िया हो,, जिन पर चढ़ाई करना सबके बस की बात नहीं थी किस्मत वाले ही वहां तक पहुंच पाते थे और संजय उसका पति बेहद किस्मत का धनी था जो कि संजय जैसी खूबसूरत औरत उसकी बीवी थी,,, 5 फुट 4 इंच की लंबाई संजय की खूबसूरती में चार चांद लगा कर रहे थे,,, चिकना समतल पेट और पेट के बीच की गहरी नाभि मानो कुदरत की बनाई हुई कोई घाटी हो,,,
मोटी चिकनी सुडौल जांघें,, इतनी चिकनी कि उस पर से नजर फिसल जाए,,, संध्या को देख कर कोई यह नहीं कह सकता था कि मैं दो बच्चों की मां है और वह भी जवान बच्चे की,,,, धन दौलत के साथ-साथ भगवान ने संजय और संध्या का दो खूबसूरत औलाद भी दिए थे जिसमें बड़ी बेटी शगुन और छोटा बेटा आकाश जीसे प्यार से घर वाले सोनू कहते थे,,,,,,,

ऐसा नहीं था कि संध्या को चुदाई में मजा नहीं आता,,, संध्या भी बिस्तर पर बेहद कामुक और सेक्सी थी जो अपनी संतुष्टि और तृप्ति का अपने तरीके से ख्याल रखती थी लेकिन वहां तक पहुंचने में उसे शर्म के चादर को उतारना पड़ता था वह काफी शर्मिली थी और संस्कारी थी,,। संजय को भी अपनी बीवी के साथ चुदाई करने में बेहद आनंद की प्राप्ति होती थी क्योंकि अच्छी तरह से जानता था कि उसकी बीवी बेहद खूबसूरत और गदराए बदन की मालकीन है,,। लेकिन वह अपनी आदत से मजबूर था घर की मुर्गी दाल बराबर यह कहावत संजय सिंह पर बराबर बैठती थी,,, लेकिन कुछ भी हो जाए उड़ता हुआ पंछी चाहे जितनी दूर चला जाए शाम को घर वापस लौटता ही है,,,।
इसलिए तो,,,, संजय सिंह अपनी बीबी संध्या की खूबसूरती और कामुकता का दीवाना था,,,,,

रात के 1:30 बज रहे थे लेकिन संजय सिंह और संध्या की नींद गायब थी क्योंकि दोनों एक दूसरे में एकाकार होने की भरपूर कोशिश कर रहे थे और संजय सिंह बिस्तर पर पीठ के बल लेटकर अपने मोटे तगड़े लंड़ को अपने हाथ से हिलाते हुए अपनी बीवी को अपना गाऊन निकाल कर बिस्तर पर आने के लिए बोल रहा था,,,। संजय सिंह यह भी जानता था कि उसकी बीवी बिस्तर पर आने से पहले जब तक गर्म नहीं हो जाती तब तक एकदम शर्मीली बनी रहती है लेकिन उसके बाद ऐसा परफॉर्मेंस देती है कि पोर्न मूवी की एक्ट्रेस भी दांतो तले उंगली दबा ले,,, संजय सिंह का दिल जोरों से धड़क रहा था क्योंकि उसकी आंखों के सामने उसकी खूबसूरत बीवी संध्या अपने गांऊन का बटन खोल रही थी,,,, यही हाल संध्या का भी था, बार-बार चोर नजरों से वह अपने पति के आसमान की तरफ मुंह उठाकर देखते हुए खड़ी लंड को देख ले रही थी,,उसकी बुर में भी कुलबुलाहट हो रही थी अपने पति के लंड को अपनी बुर की गहराई तक ले लेने के लिए,,,,, कुछ देर पहले वह शर्मा रही थी,,, लेकिन अपने पति के खड़े लंड को देखकर उसके बदन में गर्मी बढ़ने लगी थी इसलिए वह जल्द से जल्द अपे गांऊन को उतार कर नंगी हो जाना चाहती थी,,। आखिरकार वहां अपनी गाउन का आखरी बटन खोल कर जल्द से जल्द उसे अपने बदन से अलग कर दी,,,।
अब अब संध्या केवल ब्रा और पेंटी में बिस्तर के किनारे खड़ी थी,,,, अपने बीवी को केवल ब्रा और पेंटी में देखकर संजय सिंह की आंखों में वासना उतर आई,,, लाल रंग की ब्रा और पेंटी में काम की देवी लग रही थी संध्या,,, ब्रा का साइज चुचियों के साईज से छोटा ही था जिसकी वजह से उसके दोनों खरबूजे आपस में इस कदर चोटे हुए थे की बीच की लकीर कुछ ज्यादा ही लंबी और गहरी नजर आ रही थी,,,,,,।

जल्दी से आओ मेरी जान मुझसे रहा नहीं जा रहा है,,,

अरे थोड़ा तो सब्र करो तुम से तो बिल्कुल भी सब्र नहीं होता,,( इतना कहने के साथ संध्या अपने दोनों हाथ पीछे की तरफ ले जाकर अपनी ब्रा का हुक खोल दिए और अगले ही पल वह अपने बदन से ब्रा को उतार फेंकी,,, फुर्ती दिखाते हुए अपनी लाल रंग की पैंटी को भी अपनी लंबी टांगों से अलग कर दी,,, संजय सिंह की नजर संध्या की दोनों टांगों के बीच की पतली लकीर पर ही टिकी हुई थी जो कि बेहद खूबसूरत और उत्तेजना के मारे सूजी हुई लग रही थी,,, संजय सिंह अपनी बीवी की खूबसूरत बुर को देखकर अपने लंड को जोर-जोर से मुठीया रहा था,,,, और संध्या उत्तेजना में आकर अपनी हथेली को अपनी बुर पर रखकर उसे हल्के से मसलने लगी,,, और खुद ही उसके मुख से गरम सिसकारी फूट पड़ी,,,,ससहहहहहहह आहहहहहहहह,,,,,,, और अपनी बीवी के मुंह से गर्म सिसकारी की आवाज सुनकर संजय सिंह कामुकता भरे स्वर में बोला,,,।

मेरी रानी वही खड़े-खड़े मचलती रहोगी या बिस्तर पर भी आओगी,,,,।

आती हूं मेरे राजा मुझे मजा आता है तुम्हें इस तरह से तड़पते हुए देखने में,,,,।

मुझे कितना तड़पाओगी लंड जाने के बाद ऊतना जोर-जोर से चिल्लाओगी,,,,।

मुझे चिल्लाने में बहुत मजा आता है,,,(इतना कहते हुए संध्या घुटनों के बल बिस्तर पर चढ गई,,,, और देखते ही देखते अपने पति के कमर के इर्द-गिर्द अपने दोनों घुटने रखकर एक हाथ नीचे की तरफ ले जाकर के,,अपने पति के लंड को पकड़े ली और उसे अपनी बुर के गुलाबी छेद का रास्ता दिखाते हुए उसे अपने अंदर लेना शुरू कर दी,,, जैसे-जैसे संध्या आपने भारी-भरकम गोलाकार गांड का दबाव अपने पति के मोटे तगड़े लंबे लंड पर बढ़ा रही थी वैसे वैसे संजय का लंड उसकी गुलाबी बुर की गुलाबी पत्तियों को फैलाता हुआ अंदर की तरफ जा रहा था,,, और वैसे वैसे संजय सिंह के चेहरे का हाव भाव बदलता जा रहा था ऊसे अद्भुत सुख का एहसास हो रहा था,,,देखते ही देखते संध्या अपने पति के लंबे लंड को अपने बुर की गहराई में छुपा ली,,,,।

दूसरी तरफ उसकी बेटी शगुन एमबीबीएस की तैयारी करते हुए पढ़ाई कर रही थी आखिरकार बाप जो मारा जाना डॉक्टर था तो बेटी का भी फर्ज बनता था अपने बाप के नक्शे कदम पर चलना इसलिए वह दिन रात जुटी हुई थी एमबीबीएस की तैयारी करने में रात के 1:30 बजे का अलार्म हुआ हमेशा लगा कर रखी थी क्योंकि इसके बाद वह सो जाते थे और इसीलिए 1:30 का अलार्म बसते हैं अपनी किताब बंद करके सोने की तैयारी कर रही थी कि उसे जोरों की पेशाब लगी और वह अपने कमरे से बाहर आ गई बाथरूम जाने के लिए,,,वैसे तो उसके कमरे में भी बाथरुम था लेकिन उसका क्लास खराब हो चुका था इसलिए वह दूसरे बाथरूम में जाने के लिए अपने कमरे से बाहर आ गई थी,,,, जैसे ही वह अपने मम्मी पापा के कमरे के करीब पहुंची तो खिड़की खुली होने की वजह से हल्की हल्की रोशनी बाहर आती नजर आ रही थी,,, बस ऐसे ही खिड़की के पास पहुंची तो कमरे में से अजीब अजीब सी आवाज आ रही थी जो कि संध्या के सिसकारी लेने की आवाज थी लेकिन यह सब शगुन के लिए नया था,,,,, वह को तुम्हारे पास खिड़की के पास खड़ी हो गई है और हल्की सी खुली खिड़की में से अंदर झांकने की कोशिश करने लगी,,, अंदर ट्यूबलाइट की दूधिया रोशनी पूरे कमरे में फैली हुई थी,,,। जैसे ही उसकी नजर बिस्तर पर पड़ी वह दंग रह गई उसकी सांस रुक गई वह कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे अपनी आंखों से इस तरह का दृश्य देखना पड़ेगा,,, बिस्तर पर का गरमा गरम दृश्य देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई,,,, उसका गला सूखने लगा,, कर भी क्या सकती थी बिस्तर पर का दृश्य ही गरमा गरम था कि वह चाह कर भी उससे नजर नहीं फिरा पा रही थी,,,।
बिस्तर पर उसकी मां जोर-जोर से बाप के मोटे खड़े लंड पर कूद रही थी शगुन की हालत खराब होती जा रही थी क्योंकि उसे अच्छी तरह से दिखाई दे रहा था कि उसकी मां की बुर मैं उसके बाप का मोटा खड़ा लंड बहुत ही जल्दी जल्दी अंदर बाहर हो रहा था,,, जिंदगी में पहली बार ना किसी औरत और मर्द के साथ चुदाई करते हुए देख रही थी वह भी किसी गैर को नहीं बल्कि अपने ही मम्मी पापा को इसलिए तो उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी पहली बार ही उसे इस बात का अहसास हुआ था कि मर्द का लंड कैसा होता है,,,, शगुन की सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी,,, शगुन वहां से चली जाना चाहती थी लेकिन उसके पैर जवाब दे दिए थे,, वह चाह कर भी वहां से नहीं जा पा रही थी,,, वह अपनी मम्मी को जोर-जोर से अपने बाप के लंड परकुदते हुए देख रही थी,,,, पहली बार उसे इस बात का एहसास हुआ कि उसकी मां नंगी होने के बाद कितनी ज्यादा खूबसूरत लगती है अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड देखकर उसके तन बदन में भी आग लग रही थी,,, शगुन को अपनी दोनों टांगों के बीच कंपन महसूस हो रही थी,,,। सांसो की गति पर उसका जरा भी नियंत्रण नहीं था,,,,उसकी आंखों के सामने जिस तरह का नजारा था उस नजारे के बारे में उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी,,, अपनी मां को इस अवस्था में देख कर उसे शर्म महसूस हो रही थी और अपने बाप को इस तरह की हरकत करते हुए देख कर उसे अजीब लग रहा था लेकिन ना जाने क्यों उस नजारे में आकर्षण हो रहा था,,,,

शगुन की आंखों के सामने इसकी मां की गुलाबी‌ बुर के अंदर उसके बाप का लंबा लंड बड़ी तेजी से अंदर बाहर हो रहा था, कि तभी उसकी मां की बुर के अंदर से संजय का लंड छटक कर बाहर आ गया,,,, जिसे संध्या फिर से पकड़ कर उसे वापस अपनी बुर के अंदर ले ली,,यह देखकर सब उनकी हालत खराब हो गई तो ऊतेजना के मारे उसका रोम-रोम कांपने लगा,,,,उसकी सांसें और तेज़ चलने लगी क्योंकि जिंदगी में पहली बार वह खड़े लंड को देख रही थी और वह भी अपने बाप के,,, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि लंड इतना मोटा तगड़ा और लंबा भी हो सकता है,,,,वह दोनों के बीच किस तरह की बातें हो रही थी वह शगुन के कानों में तो पड रही थी लेकिन दिमाग तक नहीं पहुंच रही थी,,, क्योंकि उसका सारा ध्यान सिर्फ उसकी मां की बुर और उसके पापा के लंड पर थी,,,अत्यधिक उत्तेजना आत्मक कामुकता से भरे हुए दृश्य को और देर तक देख पाना शगुन के लिए मुश्किल हुआ जा रहा था उसके तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी और वह ज्यादा देर तक वहां रुक नहीं पाई और बाथरूम जाने के बजाय वह वापस अपने कदम मोड़ कर अपने कमरे में आ गई,,,
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Vik1006

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शगुन का दिल जोरों से धड़क रहा था वह कमरे के अंदर के कामुक दृश्य को बर्दाश्त नहीं कर पाई और वहां से अपने कमरे में आ गई उसे जोरों की पेशाब लगी लेकिन पेशाब करने के लिए भी वह बाथरूम में नहीं गई,,,,, वह अपने कमरे में बिस्तर पर नीचे जमीन पर पांव टीका कर बैठी हुई थी उसका दिल अभी भी जोरों से धड़क रहा था बार-बार उसकी आंखों के सामने उसकी मां की बड़ी बड़ी गांड नजर आ रही थी जो कि वह जोर-जोर से उसके पापा के बड़े मोटे खड़े लंड पर पटक रही थी,,,। शगुन एक खूबसूरत जवान लड़की की लेकिन अब तक वह किताबों में ही अपना दिमाग लगा दी थी ना कि इधर-उधर की बातों में,, वापस अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई को पूरा करना चाहती थी और जल्द से जल्द अपने पापा की तरह डॉक्टर बन जाना चाहती थी इसलिए वह अपनी सहेलियों के साथ इधर-उधर घूमती भी नहीं थी बस मेडिकल कॉलेज से घर और घर से मेडिकल कॉलेज बस उसका यही रूटीन था लव प्यार के चक्कर में वह कभी भी नहीं पड़ी थी ऐसा नहीं था कि उसे लव प्यार यह सब के बारे में मालूम नहीं था उसे यह सब पता तो चलता था लेकिन वह कभी भी प्रेम के चक्कर में नहीं पड़ी थी लड़के उसके पीछे जरूर पड़े हुए थे लेकिन वह किसी को भी भाव नहीं देती थी उसे बस अपने काम से मतलब था अपनी पढ़ाई से मतलब था,,,,।
लेकिन आज उसकी आंखों ने देखा था वह उसकी सोच से विपरीत था एक मेडिकल स्टूडेंट होने के बावजूद भी और एक जवान लड़की होने के बावजूद भी वह कभी अपने मम्मी पापा के बारे में इस तरह की कल्पना नहीं की थी ना ही उन्हें कभी इस तरह से संभोग रत देखी थी लेकिन आज अपनी आंखों से यह सब देख कर उसे बड़ा अजीब लग रहा था उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था वह कभी सोची नहीं थी कि उसकी मां इस तरह की हरकत करती होगी,,,।
शगुन का पूरा वजूद कांप रहा था,,, उसकी मां के मुख से निकलने वाली गर्म सिसकारियां अभी तक उसके कानों में गूंज रही थी उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि जिस तरह कि उसकी मां आवाज निकाल रही थी उसे दर्द हो रहा था या मजा आ रहा था इन दोनों के बीच के मतलब को शगुन समझ नहीं पा रही थी,,, एक औरत होने के नाते वह अपने बदन की बनावट से भलीभांति परिचित थी,, और अपने पापा के लंबे मोटे लंड को देखकर उसे बड़ा ताज्जुब हो रहा था कि छोटी सी बुर के छेद में इतना मोटा लंड बड़े आराम से जा कैसे रहा था,,, यह सोच कर उसका दिल और जोरों से धड़क रहा था,,,, अनजाने में ही वह काफी उत्तेजित हो चुकी थी उसका गला सूख रहा था वह टेबल पर पड़ा पानी का जाग उठा कर उसे कांच के गिलास में उड़ेलने लगी,,,, और एक ही सांस में पूरे गिलास का पानी गटगटा गई,,, वह बिस्तर पर पीठ के बल लेट गई और कुछ देर पहले देखे गए दृश्य के बारे में सोचने लगी,,,। उसकी आंखों के सामने बार-बार उसके पापा का मोटा खड़ा लंड जो कि उसकी सोच के बिल्कुल विपरीत साइज का था वह दृश्य के बारे में सोच कर ही उसकी टांगों के बीच हलचल होने लगती थी,,, और उसकी मां की बड़ी-बड़ी गोरी भरावदार गांड,,,, उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि उसकी मां की गांड इतनी खूबसूरत होगी,,,, यह तो अच्छी तरह से जानती थी कि उसकी मां बेहद खूबसूरत है लेकिन अब तक उसने अपनी मां को बिना कपड़ों के कभी नहीं देखी थी जिंदगी में पहली बार वह खिड़की से अपनी मां के नंगे बदन को देखकर उत्तेजना के मारे सिहर उठी थी,,, इस बात को भी अच्छी तरह से जानती थी कि उसकी मां बेहद संस्कारी और मर्यादा सील औरत है हमेशा पूजा-पाठ और अपने बच्चों का ख्याल रखने वाली मां है,,,,। शगुन अपनी मां के इस रूप के बारे में अच्छी तरह से जानती थी लेकिन आज उसकी आंखों के सामने वह अपनी मां का एक अलग नया रूप देख रही थी,,, जो कि उसके सोच के बिल्कुल विपरीत ही था,,,,।

शगुन इतना तो जानती थी कि उसके मम्मी पापा कमरे में जो क्रिया कर रहे थे उसे चुदाई कहते हैं लेकिन आज तक उसने इस शब्द को अपने होठों पर नहीं आने दी थी,,, आज अनायास ही अपने मम्मी पापा को संभोग रत देखकर उसके मन मस्तिष्क में अश्लील शब्द एक-एक करके अपना भेद खोल रहे थे,,,। वह काफी बेचैनी महसूस कर रही थी वह अपनी मम्मी पापा के बारे में सोचते हुए बिस्तर पर इधर से उधर करवट बदल रही थी उसकी टांगों के बीच की पतली दरार में से उसे कुछ रिसता हुआ महसूस हो रहा था,,,, उसे बड़ा अजीब लग रहा था उसे ऐसा समझ में आ रहा था कि कहीं जोर की पेशाब लगने की वजह से कहीं पेशाब की बूंदे तो नहीं टपक रही उसकी बुर से,,, वह नाईट ड्रेस में पैजामा और कुर्ती पहनी हुई थी अनायास ही वह अपनी बुर से निकल रहे पेशाब के बारे में जानने के लिए अपने पजामे को लेटे-लेटे ही दोनों हाथ से आगे की तरफ खींच कर अंदर की तरफ नजर दौड़ाने लगी,,,, इस तरह से उसे कुछ नजर नहीं आ रहा था बस केवल उसकी बुर की दोनों फांके फूली हुई नजर आ रही थी,,,, बस थोड़ा सा अपने पजामे को नीचे की तरफ करके ठीक से देखने के लिए वह थोड़ा सा उठ गई और अपनी दोनों टांगों के बीच की उस पतली दरार को देखने लगी जो कि उस समय एकदम चिकनी और मखमली लग रही थी बालों का रेशा तक उस पर नहीं था इसका कारण यही था कि शगुन हफ्ते में दो बार उस पर क्रीम लगाकर इसे साफ करती थी क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि ढेर सारे बालों की वजह से उसे खुजली हो,,, इसलिए तुम इस समय उसकी पुर दूध जैसी गोरी चिकनी और फूली हुई नजर आ रही थी जैसे कि मानो तवे पर रोटी सेकी गई हो,,, शगुन के लिए अपनी बुर की रचना भले ही सामान्य लग रही हो लेकिन किसी मर्द के लिए उसकी टांगों के बीच नजर डालना किसी अद्भुत अतुल्य खजाने देखने से कम नहीं था,,,
वह बड़े गौर से अपनी बुर को देख रही थी और उसमें से रिस रहे मदन रस को जिसे वह पेशाब समझ रही थी,,, वह उत्सुकता बस अपनी तो उंगली बुर के ऊपर रखकर उस रिस रहे मदन रस के बारे में जानने के लिए रखी तो वह मदन रस उसे बेहद चिपचिपा महसूस होने लगा उसे बड़ा अजीब लगा,,, क्योंकि शायद उसकी जानकारी में पहली बार उसकी बुर से इस तरह का रस निकल रहा था जो कि बेहद चिपचिपा था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या है,,,, रुमाल से अपनी उंगली को साफ की और उसी रुमाल को अपनी बुर को भी साफ कि यह सोच कर कि सुबह उसे अच्छे से धो डालेगी,,, और वह पैजामा ऊपर करके वापस पीठ के बल लेट गई,,,, फिर से उसकी आंखों के सामने वही कमरे वाला कामुक दृश्य घूमने लगा वह फिर से उसी देश के बारे में सोचते सोचते गहरी नींद में सो गई,,,

लेकिन अभी भी उसके मम्मी पापा के कमरे में उठापटक चालू थी अब पोजीशन बदल चुकी थी संध्या नीचे पीठ के बल लेटी हुई थी और अपनी दोनों टांगों को जितना हो सकता था उतना फैलाकर अपने पति संजय के मोटे तगड़े लंड को अपनी बुर की गहराई में महसूस कर रही थी,,,।

आहहहह,,आहहहह,आहहहहह,,,( संजय के जबरदस्त प्रहार के साथ संध्या की आह निकल जा रही थी लेकिन उसे बेहद आनंद की प्राप्ति भी हो रही थी,,,।)

मादरचोद रंडी भोसड़ा चोदी जब तक मेरा लंड तेरी बुर की गहराई नहीं नापता तब तक तुझे चोदने का मजा नहीं आता,,, साली रंडी,,,,( गंदी गंदी गालियां देते हुए संजय जोर-जोर से अपनी कमर हिला रहा था और संध्या संजय का हर धक्का बड़े आराम से झेलते हुए आनंद विभोर हुए जा रही थी और वह भी जवाब में गंदी गंदी गालियां दे रही थी,,,)

भोसड़ी के साले कुत्ते तू मेरा गुलाम है मादरचोद मेरी बुर चाट कर ही तुझे मजा आता है और सच कहूं तो जब तू कुत्ते की तरह मेरी बुर चाटता है तो मुझे ऐसा लगता है कि मैं हवा में उड़ रही हूं मादरचोद,,,


तो क्या करूं कुत्तिया तेरी बुर एकदम मलाईदार है और तेरी बुर से मलाई निकलती है जिसे चाटने के लिए मुझे कुत्ता बनना पड़ता है,,,,,,।


भोसड़ी के मादरचोद मेरी बुर में इतना दम है तभी तो एक जाने-माने इतनी बड़ी डॉक्टर को मेरी टांगों के बीच कुत्ता बनकर बुर चाटना पड़ता है,,,,,आहहहह आहहहहह आहहहहह,,,,, फाड़ दे मेरी बुर को मादरचोद।।
( अपनी बीवी की इतनी गंदी बात सुनकर संजय का जोश दुगुना हो गया और वह जोर-जोर से अपनी कमर हिलाने लगा पूरा पलंग चर मरा रहा था संध्या की गरम सिसकारी की आवाज पूरे कमरे में गूंज रही थी,,,, वह दोनों इस बात से बेखबर थे कि कुछ देर पहले उनकी बड़ी बेटी उन दोनों के संभोग लीला को अपनी आंखों से देख कर गई थी,,, वह दोनों अपनी मस्ती में चुदाई का आनंद ले रहे थे,,, पढ़े-लिखे सज्जन समाज में रहने के बावजूद भी संजय और संध्या संभोग रत होने के बाद,,,, किसी गंदी बस्ती के रंडी और रंडी को छोड़कर अपनी प्यास बुझाने वाला ग्राहक की तरह बातें कर के मजे लेते थे,,,, अच्छा ही हुआ था कि शगुन इस कामोत्तेजना से भरे हुए दृश्य को झेल नहीं पाई और अपने कमरे में चली गई वरना अपने मम्मी पापा के मुंह से इस तरह की गंदी गंदी बातें सुनकर वह अपनी मम्मी पापा के बारे में क्या सोचती उसे तो यकीन ही नहीं आता कि,,, उसकी आंखों के सामने बिस्तर पर चुदाई करने वाले उसके मम्मी और पापा हैं,,,,,।

आखिरकार संजय के जबरदस्त धमाकेदार प्रहार को झेलते हुए संध्या चर्मसुख के करीब पहुंचने लगी जिससे उसकी गर्म सिसकारियां और तेज गूंजने लगी,,, संजय इस नाजुक पल के बारे में अच्छी तरह से परिचित था इसलिए वह अपने धक्कों को और तेज कर दिया और देखते ही देखते दोनों एक दूसरे की बाहों में अपना गर्म पानी छोड़ने लगे,,,, दोनों एक दूसरे को संतुष्ट और तृप्त करने में किसी भी तरह की कसर नहीं छोड़ते थे इसलिए तो दोनों एक दूसरे के साथ बेहद खुश थे,,,, संजय उसी तरह से अपनी बीवी की बुर में गर्म पानी का छिड़काव करते हुए उसके ऊपर लेटा ही रह गया और संध्या भी उसे अपनी बाहों में दबोचे हुए उसकी पीठ को सहलाने लगी,,,।
Lajabab Update...
 
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Nasn

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अपडेट नदारद है।
 
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Waiting for update Rohhny bhai........
 
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rohnny4545

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अपने मन में उमड़ रहे कामोत्तेजना से भरपूर खयालों की बदौलत उसकी पेंटी बार-बार गीली होती जा रही थी जो कि उसे बेहद असहज महसूस हो रहा था और वह बार-बार अपने हाथों से अपनी पेंटिं को एडजस्ट कर रही थी,,,,,। वह नाश्ता तैयार कर रही थी सुबह का समय था,,,हालांकि बाप और बेटी दोनों जल्दी जा चुके थे सोनू अपने कमरे में तैयार हो रहा था,,,घर में और कोई मौजूद ना होने की वजह से संध्या का दिल जोरों से धड़क रहा था उसकी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी एक मां होने के बावजूद अंतर्वस्त्र और अपनी खूबसूरत अंग को अपने बेटे को दिखाने की उत्सुकता बढ़ रही थी,,,। लेकिन कैसे दिखाएं यह उसकी समझ के बिल्कुल बाहर था,,,
थोड़ी ही देर में तैयार होकर सोनू नाश्ता करने के लिए नीचे आ गया डायनिंग टेबल पर किसी को भी ना पाकर वह सीधे किचन में चला गया जहां पर उसकी मां उसके लिए नाश्ता तैयार कर रही थी और उसके आने से पहले ही वह अपनी साड़ी को थोड़ा सा ऊपर की तरफ उठाकर अपनी कमर से खोंश रखी थी,,, उसकी गोरी गोरी मांसल पिंडलिया नजर आ रही थी जिसे देखते ही सोनू के पेंट में कुंडली बनना शुरू हो गया था,,, सोनू अपनी मां के करीब पहुंचकर बोला,,,।

मम्मी दीदी और पापा कहां गए,,,

आज वो लोग जल्दी नाश्ता करके चले गए हैं,,,,,,(संध्या तवे पर रखी हुई रोटी के फुलने पर उसे दूसरी तरफ पलटते ही बोली,,,फूली हुई रोटी को देखकर यही सोच रही थी कि इस समय उसकी बुर भी रोटी की तरह फूल चुकी है,,, सोनू को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें सोनू की आंखें अपनी मां की गोलाकार नितंबों पर टिकी हुई थी जिसमें हो रही थिरकन उसके होश उड़ा रही थी,,, संध्या के भी तन बदन में गुदगुदी हो रही थी,,, अपनी जालीदार ब्रा और पेंटी दिखाने के लिए वह मचल रही थी,,, लेकिन कैसे यह अभी तक उसे समझ में नहीं आ रहा था,,,वह उसी तरह से रोटी पकाती रही,,,,

मम्मी नाश्ता तैयार हो गया है क्या,,,,,?(सोनू अपनी मां की गोल गोल गांड के साथ-साथ उसकी गोरी गोरी पिंडलियों को देखते हुए बोला,,,)

हां बेटा तैयार हो गया,,,,, थोड़ा रुक जा मैं तुझे नाश्ता देती हूं,,,,(इतना कहते हुए वह जानबूझकर अपना एक हाथ नीचे की तरफ लाकर अपनी पेंटी के ऊपर साड़ी के ऊपर से ही पकड़ कर उसे खुजलाने जैसी हरकत करने लगी,,,, और जानबूझकर अपने बेटे का ध्यान उस पर लाते हुए बोली,,,)

तेरे पसंद की पहनी हु ना,,,, और वो जालीदार है,,, इसलिए ठीक तरह से एडजस्ट नहीं हो पा रहा है,,, लगता है कि मेरी साईज से छोटी ले ली हुं,,,,।
(अपनी मां को इस तरह से अपनी पुर वाली जगह पर खिलाते हुए देखकर सोनू के तन बदन में आग लगने लगी और वह अपनी मां की बात सुनकर बोला,,,)

नहीं नहीं मम्मी आपके ही नाप की है,,,, आपने लगता है पहले कभी जालीदार पैंटी नहीं पहनी हो इसलिए आपको ऐसा महसूस हो रहा है,,,,


नहीं नहीं मुझे तो लगता है कि मेरी साईज से छोटी है,,, वरना एकदम आरामदायक महसूस होता,,,।


मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा मम्मी क्योंकि मैं,, ठीक तरह से देख कर लिया था तुम्हारे मखमली नरम नरम बदन पर वह जालीदार पेंटिं एकदम आरामदायक महसूस कराती,,
(सोनू बातों ही बातों में अपनी मां के खूबसूरत बदन की तारीफ कर दिया था जो कि संध्या को अपने बेटे की यह बात उसके मुंह से अपने खूबसूरत बदन की तारीफ सुनकर अच्छा लगा था,,,)


मैं जानती हूं बेटा की को अच्छा ही सोच कर लिया होगा लेकिन ना जाने क्यों मुझे एकदम कसी हुई महसूस हो रही है,,,,,(रोटी को तवे पर रखकर संध्या अपने बेटे की तरफ घूम कर उसकी आंखों में आंखें डालकर और एक हाथ नीचे की तरफ ले जाकर साड़ी के ऊपर से अपनी बुर खुजाते हुए बोली,,,।और सोनू अपनी मां की यह हरकत देखकर उत्तेजित होने लगा पैंट के अंदर उसका लंड खड़ा होने लगा,,, उसकी मां पेंटी के बारे में उससे इतना खुलकर बातें करेगी यह अंदाजा उसे बिल्कुल भी नहीं था,,,लेकिन अपनी मां के मुंह से इस तरह की खुली बातें सुनकर उसे अच्छा लग रहा था और उत्तेजना महसूस हो रहा था,,, अपनी मां की बात सुनकर सोनू बोला,,,)

पता नहीं ऐसा क्यों हो रहा है मम्मी लेकिन जब आपको दिक्कत हो रही है तो आपको उतार देना चाहिए था उसे पहनना नहीं चाहिए था,,,,


वह तो तेरी बात रखने के लिए मैं पहन ली क्योंकि पहली बार तो अपनी पसंद का कपड़ा मुझे पहनने के लिए बोला था,,,,(इतना कहते हुए संध्या वापस घूम कर तवे पर पड़ी रोटी को घुमा घुमा कर पलटने लगी,,,, सोनू अपनी मां की बात सुनकर खुश होने लगा खुशी ना जाने क्यों अपनी मां को अपनी बाहों में भर कर उसे प्यार करने का मन कर रहा था वह अपने आप को रोक नहीं पा रहा था इस समय संध्या की पिंक उसकी आंखों के सामने थी सोनू अपनी मां को ऊपर से नीचे की तरफ बराबर देख रहा था उसकी आंखों में वासना और उत्तेजना की चमक साफ नजर आ रही थी,,,, कमर के नीचे गजब का उभार लिए हुए संध्या के नितंब पानी भरे गुब्बारे की तरह इधर-उधर घूम रहे थे ना जाने क्यों सोने का मन उसे अपने हाथों से पकड़ कर मसलने को कर रहा था,,, अपनी मां के मुंह से बात रखने वाली बात सुनते ही आगे बढ़ाओ अपनी मां को पीछे से अपनी बाहों में भर कर उसके घर को प्यार से चुमते हुए बोला,,,)

ओहहहहह,,, मम्मी तुम कितनी प्यारी हो कि मेरी बात रखने के लिए ना चाहते हुए भी परेशानी सहकर पेंटी पहन रही हो,,,(सोनू की थोड़ा खुल कर बोलो सोनू की यह बात संध्या को भी अच्छी लग रही थी लेकिन जिस तरह से उसने अपनी बाहों में उसे पीछे से भर लिया था संध्या के तन बदन में आग लग गई थी क्योंकि सोनू के पेंट में उत्तेजना के मारे उसका लंड खड़ा हो गया था जो किसी ने उसकी दोनों गांड की फांकों के बीच की दरार में धंसने लगा था,,,,, सोनू के लंड को अपनी गांड पर महसूस करते ही,,, संध्या के रसीली बुर उत्तेजना के मारे मदन रस टपकाने लगी,,,। संध्या कुछ बोली नहीं बस अपना काम करती रही वह रोटी बेल रही थी जिसकी वजह से उसका बदन हिल रहा था,,, और साथ ही ऊसकी बड़ी बड़ी गांड भी हील रही थी जो कि सोनू की खडे लंड पर मानो चोट कर रही हो, सोनू की तो हालत खराब होती जा रही थी जिस तरह से उसकी मां की गांड उसके लंड पकड़ कर रही थी उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि कहीं उसका लंड पानी ना छोड़ दे,,,, सोनू भी काफी उत्तेजित हो चुका था वह अपनी मां के गले में दोनों बाहें डालकर खड़ा था एकदम उसके पिछवाड़े से सटके ,,,,वह भी अपनी मां को दुलारता हुआ अपनी कमर को दाएं बाएं हल्के हल्के हिला रहा था जिसे से सोनू का खड़ा लंड पेंट में होने के बावजूद भी संध्या को साड़ी पहने होने के बावजूद भी अपनी गांड पर दाएं बाएं जाता हुआ एकदम से रगड़ खाता हुआ महसूस हो रहा था,,,। संध्या अपने बेटे की हरकत से काफी उत्तेजित में जा रही थी उसे इस बात का डर था कि कहीं उत्तेजना के मारे उससे खुद से ही गलती ना हो जाए इसलिए वह अपने बेटे को प्यार से पुचकारते हुए बोली,,,।)

चल अब रहने भी दे आज तुझे बहुत प्यार आ रहा है अपनी मां पर,,,,।


आज नहीं नहीं मुझे तो रोज ही आप पर प्यार आता है,,,


क्यों ऐसा क्या खास है मुझ में,,,,?


तुम बहुत प्यारी हो बहुत खूबसूरत भी,,,,(सोनू उसी तरह से अपनी मां को बाहों में जकड़े हुए बोला,,,अपने बेटे की हरकत और उसकी बातें संध्या को बहुत अच्छी लग रही थी लेकिन तवे पर जलती हुई रोटी को देखकर वह बोली,,,)

बस कर अब छोड़ मुझे,,,, तेरी रोटी में घी लगाना है,,,, ऊपर से मुझे डिब्बा उतारना है जा स्टुल लेकर आ जा,,,,


ओहहहहह,,, मम्मी तुम मेरा कितना ख्याल रखती हो,,,,


हां तो ख्याल रखूंगी ना तू मेरा बेटा जो है,,,जा अब जल्दी जाकर स्टुल लेकर आ घी का डिब्बा उतारना है,,,,


ठीक है मम्मी मैं अभी लेकर आता हूं,,,।(इतना कहने के साथ ही सोनू स्टुल लेने के लिए किचन से बाहर चला गया,,, सोनू के कीचन से बाहर जाते ही,,, संध्या राहत की सांस लेते हुए अपने मन में बोली,,,।)

बाप रे कुछ देर और सोनू मुझे अपनी बाहों में भरे रहता तो उसके लंड की चुभन,, मैं अपनी गांड पर बर्दाश्त नहीं कर पाती और मजबूरन मुझे आज ही अपनी साड़ी कमर तक उठा देना पड़ता,,, बाप रे इसका लंड इतना मोटा और लंबा है कि पेंट में होने के बावजूद भी मुझे मेरी गांड की दरार के बीचो बीच अच्छी तरह से महसूस हो रही थी,,,,,(अपने आप से ही यह सब बातें कहते हुए उत्तेजना के मारे उसके पसीने छूट रहे थे,,, उसे अपने बेटे की लंड की चुभन अपनी गांड के ऊपर बराबर महसूस हो रही थी,, संध्या को उस दिन बगीचे वाला दृश्य याद आ गया जब वह झाड़ियों के पीछे छुप कर झाड़ियों के अंदर एक औरत और एक लड़के के बीच की जबरदस्त चुदाई को देख रही थी और सोनू की थी उसके पीछे खड़े होकर उसकी गांड पर अपना लंड धंसाते हुए उस मनोरम दृश्य का आनंद लूट रहा था,,।
दूसरी तरफ सोनू किचन के बाहर कर इधर-उधर छोटी सी स्टूल ढूंढ रहा था,,, लेकिन उसे मिल नहीं रही थी सोनू के मन में भी ढेर सारे सवालों का बवंडर उठ रहा था,,, उसे अपनी मां का बदला हुआ रवैया काफी उत्तेजित और आनंदमय लग रहा था जिस तरह से उसकी मां बेझिझक पेंटी की बातें कर रही थी,, उसे लेकर सोनू के तन बदन में और उसके अंतर्मन में अजीब सी खलबली मची हुई थी,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी मा ऊससे इस तरह की बातें क्यों करने लगी थी,,,, लेकिन जो बातें भी वर्क कर रहे थे उससे सोनू को अद्भुत सुख का अहसास होता था,,, सोनू अपने मन में यही सोच रहा था कि किचन में उसका लंड पूरी तरह से कहां पड़ा जिससे वह अपनी मां को पीछे से अपनी बाहों में भर कर खाना था और अपने लंड को उसके गांड पर रगड़ रहा था जरूर उसकी मां को भी उसके लंड की चुभन अपनी गांड के ऊपर महसूस हुई होगी,,,इसी बात को लेकर वह हैरान था कि उसकी मां उसे रोकी क्यों नहीं उसे डांटी क्यो नहीं,,, कहीं ऐसा तो नहीं कि लंड की चुभन उसे अच्छी लग रही हो,,,,एक पल के लिए यह बात सोचते ही उसके लंड ने एक बार फिर से अंगड़ाई लेना शुरू कर दिया,,,। इधर-उधर ढूंढते हुए उसे स्टुल नहीं मिली,,,। वह वापस किचन में प्रवेश करते हुए बोला,,,।)



मम्मी स्टुल तो नहीं मिली,,, लाइए में उतार देता हूं,,,,


अरे तू नहीं उतार पाएगा ऊंचाई पर है,,,,


अरे देखने तो दो,,,,(इतना कहने के साथ ही सोनू किचन के सबसे ऊपर के ड्रोअर तक हाथ पहुंचाने की कोशिश करने लगा लेकिन उसकी कोशिश नाकाम साबित हो रही थी क्योंकि ऊपर का डोवर कुछ ज्यादा ऊंचाई पर था,,,।)

देख लिया कह रही थी ना,,,,


तो आप कैसे उतरेगा मम्मी,,,,(तभी सोनू के दिमाग में युक्ति सूझी और वह बोला) इधर आओ मम्मी,,,,


क्यों क्या हुआ,,,,? (संध्या आश्चर्य से बोली)

अरे हुआ कुछ नहीं इधर आओ तो सही,,,,
(सोनू की बात सुनकर संध्या उसके करीब आ गई संध्या को इतना तो एहसास हो गया था कि सोनू क्या करने वाला है लेकिन वह उत्सुक भी थी इसलिए उसके करीब आकर खड़ी हो गई...)

ले आ गई अब,,,,

( संध्या के इतने कहते ही सोनू अपने दोनों हाथों को नीचे की तरफ लाकर उसके नितंबों के घेराव के नीचे अच्छे से पकड़कर उठाना शुरू कर दिया,,,,)

अरे अरे यह क्या कर रहा है,,, छोड़ मुझे गिर जाऊंगी,,,


अरे नहीं गिरोगी मम्मी उस पर भरोसा नहीं क्या,,,,?
(और देखते ही देखते सोने अपनी भुजाओं का बल दिखाते को अपनी मां को उठा लिया,,,, पल भर में ही संध्या उस अलमारी के खाने के करीब पहुंच गई,,, जहां से आराम से वह घी का डब्बा ले सकती थी,,,,अपने बेटे की ताकत को देखकर वह मन ही मन प्रसन्न हो रही थी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका बेटा उसे इस तरह से अपनी गोद में उठा लेगा क्योंकिअच्छी तरह से जानती थी कि उसका वजन कुछ ज्यादा ही था लेकिन जीतने आराम से उसके बेटे ने उसे उठाया था उसे यकीन नहीं हो रहा था,,,,अपने बेटे की इस हरकत की वजह से उसके तन बदन में उत्तेजना की गुदगुदी हो रही थी अपने बेटे पर उसकी ताकत देखकर गर्व के साथ साथ अत्यधिक उत्तेजना का भी अनुभव हो रहा था क्योंकि इस समय वह उसकी दोनों भुजाओं के सहारे उठी हुई थी और उसकी दोनों बुझाओ से उसके नितंबों का घेराव दबा हुआ था और जितना ऊपर वह उठाया हुआ था उसकी नाभि एकदम उसके होंठों के करीब थी,,, जहां से वह आराम से अपनी मां की नाभि में अपनी जीभ डाल कर उसे चाटने का सुख भोग सकता था लेकिन उसे डर लग रहा था लेकिन फिर भी वह हिम्मत करके अपने होठों को अपनी मां की नाभि से सटा दिया था,,,अपने बेटे के गर्म होठों को अपनी मां की पर महसूस करके संध्या अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रही थी उसकी हालत खराब होती जा रही थी खासकर के उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में भूचाल सा मचा हुआ था,,, सोनू अपनी मां को उठा रही हूं मैं उसकी नाभि पर अपने होंठ रख कर उत्तेजना बस गहरी गहरी सांसे ले रहा था,,और उसकी गर्म सांसे संध्या को साफ महसूस हो रही थी वह अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रही थी,,, नाभि से उसकी बुर की दूरी तकरीबन पांच छः लअंगुल की ही रह गई थी,,,, लेकिन सोनू के द्वारा नाभि पर हो रही हरकत उसकी बुर के अंदर सनसनी पैदा कर रही थी,,,। सोनू को भी ऐसा महसूस हो रहा था कि उसकी नाक में उसकी नाभि की खुशबू नहीं बल्कि उसकी मां क‌ी रसीली बुर की मादक खुशबू जा रही है इसलिए तो उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो चुका था,,,, संध्या को अपने बेटे की भुजाओं पर पूरा विश्वास होने लगा था इसलिए वह निश्चिंत होकर अलमारी का खाना खोलकर उसमें से घी का डब्बा निकाल रही थी,,, नरम नरम गांड को अपनी भुजाओं में भरकर सोनू अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रहा था पहला मौका था जब वह इस तरह से अपनी मां की गांड को स्पर्श कर रहा था,,,, जो हरकत सोनू अपनी मां की नाभि के ऊपर अपने होंठ रख कर कर रहा था वही हरकत सोनू अपना मुंह अपने होंठअपनी मां की बुर के ऊपर रखकर करना चाहता था भले ही इस समय साड़ी के ऊपर से ही सही लेकिन वह अपनी इच्छा को रोक नहीं पा रहा था,,,इसलिए वह थोड़ा सा और दम लगा कर अपनी मां को थोड़ा सा और उत्तर उठा लिया उतना कि जहां उसका मुंह उसकी मां की दोनों टांगों के बीच ठीक उसकी बुर वाली जगह पर आकर रुक जाए और वैसा ही होगा जैसे ही संध्या की बुर उसके होठों के बेहद करीब आ गई तब वह बोला,,,)

आराम से मम्मी कोई जल्दी नहीं है,,,,(और इतना कहने के साथ ही सोनू अपने होठों को उसके पेट के निचले हिस्से के खड्डे में जहां से उसकी जांघों के बीच कब अद्भुत हिस्सा शुरू होता है जो कि औरत का अनमोल खजाने के समान होता है जिसे पाने के लिए दुनिया का हर मर्द आंखें बिछाए रहता हैं,,, सोनू के प्यासे होठ जैसे ही उस जगह पर पहुंचे उसके तन बदन में अजीब सी झुर्झुरी पैदा होने लगी,,, गोदावास होने लगा,,, और वह धीरे से अपने होठों को अपनी मां के दोनों टांगों के बीच उसकी बुर वाली जगह पर हल्के से दबाते हुए गहरी सांस लेने लगा मानो कि वह अपनी मां की बुर की मादक खुशबू को अपने अंदर नथुनों के द्वारा उतार लेना चाहता हो,,,,अपने बेटे की हरकत की वजह से संध्या के तन बदन में आग लगने लगी और पल भर मे ही उसकी बुर से,,, पानी की धार फुट पड़ी,,,,।
 
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hellboy

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अपने मन में उमड़ रहे कामोत्तेजना से भरपूर खयालों की बदौलत उसकी पेंटी बार-बार गीली होती जा रही थी जो कि उसे बेहद असहज महसूस हो रहा था और वह बार-बार अपने हाथों से अपनी पेंटिं को एडजस्ट कर रही थी,,,,,। वह नाश्ता तैयार कर रही थी सुबह का समय था,,,हालांकि बाप और बेटी दोनों जल्दी जा चुके थे सोनू अपने कमरे में तैयार हो रहा था,,,घर में और कोई मौजूद ना होने की वजह से संध्या का दिल जोरों से धड़क रहा था उसकी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी एक मां होने के बावजूद अंतर्वस्त्र और अपनी खूबसूरत अंग को अपने बेटे को दिखाने की उत्सुकता बढ़ रही थी,,,। लेकिन कैसे दिखाएं यह उसकी समझ के बिल्कुल बाहर था,,,
थोड़ी ही देर में तैयार होकर सोनू नाश्ता करने के लिए नीचे आ गया डायनिंग टेबल पर किसी को भी ना पाकर वह सीधे किचन में चला गया जहां पर उसकी मां उसके लिए नाश्ता तैयार कर रही थी और उसके आने से पहले ही वह अपनी साड़ी को थोड़ा सा ऊपर की तरफ उठाकर अपनी कमर से खोंश रखी थी,,, उसकी गोरी गोरी मांसल पिंडलिया नजर आ रही थी जिसे देखते ही सोनू के पेंट में कुंडली बनना शुरू हो गया था,,, सोनू अपनी मां के करीब पहुंचकर बोला,,,।

मम्मी दीदी और पापा कहां गए,,,

आज वो लोग जल्दी नाश्ता करके चले गए हैं,,,,,,(संध्या तवे पर रखी हुई रोटी के फुलने पर उसे दूसरी तरफ पलटते ही बोली,,,फूली हुई रोटी को देखकर यही सोच रही थी कि इस समय उसकी बुर भी रोटी की तरह फूल चुकी है,,, सोनू को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें सोनू की आंखें अपनी मां की गोलाकार नितंबों पर टिकी हुई थी जिसमें हो रही थिरकन उसके होश उड़ा रही थी,,, संध्या के भी तन बदन में गुदगुदी हो रही थी,,, अपनी जालीदार ब्रा और पेंटी दिखाने के लिए वह मचल रही थी,,, लेकिन कैसे यह अभी तक उसे समझ में नहीं आ रहा था,,,वह उसी तरह से रोटी पकाती रही,,,,

मम्मी नाश्ता तैयार हो गया है क्या,,,,,?(सोनू अपनी मां की गोल गोल गांड के साथ-साथ उसकी गोरी गोरी पिंडलियों को देखते हुए बोला,,,)

हां बेटा तैयार हो गया,,,,, थोड़ा रुक जा मैं तुझे नाश्ता देती हूं,,,,(इतना कहते हुए वह जानबूझकर अपना एक हाथ नीचे की तरफ लाकर अपनी पेंटी के ऊपर साड़ी के ऊपर से ही पकड़ कर उसे खुजलाने जैसी हरकत करने लगी,,,, और जानबूझकर अपने बेटे का ध्यान उस पर लाते हुए बोली,,,)

तेरे पसंद की पहनी हु ना,,,, और वो जालीदार है,,, इसलिए ठीक तरह से एडजस्ट नहीं हो पा रहा है,,, लगता है कि मेरी साईज से छोटी ले ली हुं,,,,।
(अपनी मां को इस तरह से अपनी पुर वाली जगह पर खिलाते हुए देखकर सोनू के तन बदन में आग लगने लगी और वह अपनी मां की बात सुनकर बोला,,,)

नहीं नहीं मम्मी आपके ही नाप की है,,,, आपने लगता है पहले कभी जालीदार पैंटी नहीं पहनी हो इसलिए आपको ऐसा महसूस हो रहा है,,,,


नहीं नहीं मुझे तो लगता है कि मेरी साईज से छोटी है,,, वरना एकदम आरामदायक महसूस होता,,,।


मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा मम्मी क्योंकि मैं,, ठीक तरह से देख कर लिया था तुम्हारे मखमली नरम नरम बदन पर वह जालीदार पेंटिं एकदम आरामदायक महसूस कराती,,
(सोनू बातों ही बातों में अपनी मां के खूबसूरत बदन की तारीफ कर दिया था जो कि संध्या को अपने बेटे की यह बात उसके मुंह से अपने खूबसूरत बदन की तारीफ सुनकर अच्छा लगा था,,,)


मैं जानती हूं बेटा की को अच्छा ही सोच कर लिया होगा लेकिन ना जाने क्यों मुझे एकदम कसी हुई महसूस हो रही है,,,,,(रोटी को तवे पर रखकर संध्या अपने बेटे की तरफ घूम कर उसकी आंखों में आंखें डालकर और एक हाथ नीचे की तरफ ले जाकर साड़ी के ऊपर से अपनी बुर खुजाते हुए बोली,,,।और सोनू अपनी मां की यह हरकत देखकर उत्तेजित होने लगा पैंट के अंदर उसका लंड खड़ा होने लगा,,, उसकी मां पेंटी के बारे में उससे इतना खुलकर बातें करेगी यह अंदाजा उसे बिल्कुल भी नहीं था,,,लेकिन अपनी मां के मुंह से इस तरह की खुली बातें सुनकर उसे अच्छा लग रहा था और उत्तेजना महसूस हो रहा था,,, अपनी मां की बात सुनकर सोनू बोला,,,)

पता नहीं ऐसा क्यों हो रहा है मम्मी लेकिन जब आपको दिक्कत हो रही है तो आपको उतार देना चाहिए था उसे पहनना नहीं चाहिए था,,,,


वह तो तेरी बात रखने के लिए मैं पहन ली क्योंकि पहली बार तो अपनी पसंद का कपड़ा मुझे पहनने के लिए बोला था,,,,(इतना कहते हुए संध्या वापस घूम कर तवे पर पड़ी रोटी को घुमा घुमा कर पलटने लगी,,,, सोनू अपनी मां की बात सुनकर खुश होने लगा खुशी ना जाने क्यों अपनी मां को अपनी बाहों में भर कर उसे प्यार करने का मन कर रहा था वह अपने आप को रोक नहीं पा रहा था इस समय संध्या की पिंक उसकी आंखों के सामने थी सोनू अपनी मां को ऊपर से नीचे की तरफ बराबर देख रहा था उसकी आंखों में वासना और उत्तेजना की चमक साफ नजर आ रही थी,,,, कमर के नीचे गजब का उभार लिए हुए संध्या के नितंब पानी भरे गुब्बारे की तरह इधर-उधर घूम रहे थे ना जाने क्यों सोने का मन उसे अपने हाथों से पकड़ कर मसलने को कर रहा था,,, अपनी मां के मुंह से बात रखने वाली बात सुनते ही आगे बढ़ाओ अपनी मां को पीछे से अपनी बाहों में भर कर उसके घर को प्यार से चुमते हुए बोला,,,)

ओहहहहह,,, मम्मी तुम कितनी प्यारी हो कि मेरी बात रखने के लिए ना चाहते हुए भी परेशानी सहकर पेंटी पहन रही हो,,,(सोनू की थोड़ा खुल कर बोलो सोनू की यह बात संध्या को भी अच्छी लग रही थी लेकिन जिस तरह से उसने अपनी बाहों में उसे पीछे से भर लिया था संध्या के तन बदन में आग लग गई थी क्योंकि सोनू के पेंट में उत्तेजना के मारे उसका लंड खड़ा हो गया था जो किसी ने उसकी दोनों गांड की फांकों के बीच की दरार में धंसने लगा था,,,,, सोनू के लंड को अपनी गांड पर महसूस करते ही,,, संध्या के रसीली बुर उत्तेजना के मारे मदन रस टपकाने लगी,,,। संध्या कुछ बोली नहीं बस अपना काम करती रही वह रोटी बेल रही थी जिसकी वजह से उसका बदन हिल रहा था,,, और साथ ही ऊसकी बड़ी बड़ी गांड भी हील रही थी जो कि सोनू की खडे लंड पर मानो चोट कर रही हो, सोनू की तो हालत खराब होती जा रही थी जिस तरह से उसकी मां की गांड उसके लंड पकड़ कर रही थी उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि कहीं उसका लंड पानी ना छोड़ दे,,,, सोनू भी काफी उत्तेजित हो चुका था वह अपनी मां के गले में दोनों बाहें डालकर खड़ा था एकदम उसके पिछवाड़े से सटके ,,,,वह भी अपनी मां को दुलारता हुआ अपनी कमर को दाएं बाएं हल्के हल्के हिला रहा था जिसे से सोनू का खड़ा लंड पेंट में होने के बावजूद भी संध्या को साड़ी पहने होने के बावजूद भी अपनी गांड पर दाएं बाएं जाता हुआ एकदम से रगड़ खाता हुआ महसूस हो रहा था,,,। संध्या अपने बेटे की हरकत से काफी उत्तेजित में जा रही थी उसे इस बात का डर था कि कहीं उत्तेजना के मारे उससे खुद से ही गलती ना हो जाए इसलिए वह अपने बेटे को प्यार से पुचकारते हुए बोली,,,।)

चल अब रहने भी दे आज तुझे बहुत प्यार आ रहा है अपनी मां पर,,,,।


आज नहीं नहीं मुझे तो रोज ही आप पर प्यार आता है,,,


क्यों ऐसा क्या खास है मुझ में,,,,?


तुम बहुत प्यारी हो बहुत खूबसूरत भी,,,,(सोनू उसी तरह से अपनी मां को बाहों में जकड़े हुए बोला,,,अपने बेटे की हरकत और उसकी बातें संध्या को बहुत अच्छी लग रही थी लेकिन तवे पर जलती हुई रोटी को देखकर वह बोली,,,)

बस कर अब छोड़ मुझे,,,, तेरी रोटी में घी लगाना है,,,, ऊपर से मुझे डिब्बा उतारना है जा स्टुल लेकर आ जा,,,,


ओहहहहह,,, मम्मी तुम मेरा कितना ख्याल रखती हो,,,,


हां तो ख्याल रखूंगी ना तू मेरा बेटा जो है,,,जा अब जल्दी जाकर स्टुल लेकर आ घी का डिब्बा उतारना है,,,,


ठीक है मम्मी मैं अभी लेकर आता हूं,,,।(इतना कहने के साथ ही सोनू स्टुल लेने के लिए किचन से बाहर चला गया,,, सोनू के कीचन से बाहर जाते ही,,, संध्या राहत की सांस लेते हुए अपने मन में बोली,,,।)

बाप रे कुछ देर और सोनू मुझे अपनी बाहों में भरे रहता तो उसके लंड की चुभन,, मैं अपनी गांड पर बर्दाश्त नहीं कर पाती और मजबूरन मुझे आज ही अपनी साड़ी कमर तक उठा देना पड़ता,,, बाप रे इसका लंड इतना मोटा और लंबा है कि पेंट में होने के बावजूद भी मुझे मेरी गांड की दरार के बीचो बीच अच्छी तरह से महसूस हो रही थी,,,,,(अपने आप से ही यह सब बातें कहते हुए उत्तेजना के मारे उसके पसीने छूट रहे थे,,, उसे अपने बेटे की लंड की चुभन अपनी गांड के ऊपर बराबर महसूस हो रही थी,, संध्या को उस दिन बगीचे वाला दृश्य याद आ गया जब वह झाड़ियों के पीछे छुप कर झाड़ियों के अंदर एक औरत और एक लड़के के बीच की जबरदस्त चुदाई को देख रही थी और सोनू की थी उसके पीछे खड़े होकर उसकी गांड पर अपना लंड धंसाते हुए उस मनोरम दृश्य का आनंद लूट रहा था,,।
दूसरी तरफ सोनू किचन के बाहर कर इधर-उधर छोटी सी स्टूल ढूंढ रहा था,,, लेकिन उसे मिल नहीं रही थी सोनू के मन में भी ढेर सारे सवालों का बवंडर उठ रहा था,,, उसे अपनी मां का बदला हुआ रवैया काफी उत्तेजित और आनंदमय लग रहा था जिस तरह से उसकी मां बेझिझक पेंटी की बातें कर रही थी,, उसे लेकर सोनू के तन बदन में और उसके अंतर्मन में अजीब सी खलबली मची हुई थी,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी मा ऊससे इस तरह की बातें क्यों करने लगी थी,,,, लेकिन जो बातें भी वर्क कर रहे थे उससे सोनू को अद्भुत सुख का अहसास होता था,,, सोनू अपने मन में यही सोच रहा था कि किचन में उसका लंड पूरी तरह से कहां पड़ा जिससे वह अपनी मां को पीछे से अपनी बाहों में भर कर खाना था और अपने लंड को उसके गांड पर रगड़ रहा था जरूर उसकी मां को भी उसके लंड की चुभन अपनी गांड के ऊपर महसूस हुई होगी,,,इसी बात को लेकर वह हैरान था कि उसकी मां उसे रोकी क्यों नहीं उसे डांटी क्यो नहीं,,, कहीं ऐसा तो नहीं कि लंड की चुभन उसे अच्छी लग रही हो,,,,एक पल के लिए यह बात सोचते ही उसके लंड ने एक बार फिर से अंगड़ाई लेना शुरू कर दिया,,,। इधर-उधर ढूंढते हुए उसे स्टुल नहीं मिली,,,। वह वापस किचन में प्रवेश करते हुए बोला,,,।)

मम्मी स्टुल तो नहीं मिली,,, लाइए में उतार देता हूं,,,,


अरे तू नहीं उतार पाएगा ऊंचाई पर है,,,,


अरे देखने तो दो,,,,(इतना कहने के साथ ही सोनू किचन के सबसे ऊपर के ड्रोअर तक हाथ पहुंचाने की कोशिश करने लगा लेकिन उसकी कोशिश नाकाम साबित हो रही थी क्योंकि ऊपर का डोवर कुछ ज्यादा ऊंचाई पर था,,,।)

देख लिया कह रही थी ना,,,,


तो आप कैसे उतरेगा मम्मी,,,,(तभी सोनू के दिमाग में युक्ति सूझी और वह बोला) इधर आओ मम्मी,,,,


क्यों क्या हुआ,,,,? (संध्या आश्चर्य से बोली)

अरे हुआ कुछ नहीं इधर आओ तो सही,,,,
(सोनू की बात सुनकर संध्या उसके करीब आ गई संध्या को इतना तो एहसास हो गया था कि सोनू क्या करने वाला है लेकिन वह उत्सुक भी थी इसलिए उसके करीब आकर खड़ी हो गई...)

ले आ गई अब,,,,

( संध्या के इतने कहते ही सोनू अपने दोनों हाथों को नीचे की तरफ लाकर उसके नितंबों के घेराव के नीचे अच्छे से पकड़कर उठाना शुरू कर दिया,,,,)

अरे अरे यह क्या कर रहा है,,, छोड़ मुझे गिर जाऊंगी,,,


अरे नहीं गिरोगी मम्मी उस पर भरोसा नहीं क्या,,,,?
(और देखते ही देखते सोने अपनी भुजाओं का बल दिखाते को अपनी मां को उठा लिया,,,, पल भर में ही संध्या उस अलमारी के खाने के करीब पहुंच गई,,, जहां से आराम से वह घी का डब्बा ले सकती थी,,,,अपने बेटे की ताकत को देखकर वह मन ही मन प्रसन्न हो रही थी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका बेटा उसे इस तरह से अपनी गोद में उठा लेगा क्योंकिअच्छी तरह से जानती थी कि उसका वजन कुछ ज्यादा ही था लेकिन जीतने आराम से उसके बेटे ने उसे उठाया था उसे यकीन नहीं हो रहा था,,,,अपने बेटे की इस हरकत की वजह से उसके तन बदन में उत्तेजना की गुदगुदी हो रही थी अपने बेटे पर उसकी ताकत देखकर गर्व के साथ साथ अत्यधिक उत्तेजना का भी अनुभव हो रहा था क्योंकि इस समय वह उसकी दोनों भुजाओं के सहारे उठी हुई थी और उसकी दोनों बुझाओ से उसके नितंबों का घेराव दबा हुआ था और जितना ऊपर वह उठाया हुआ था उसकी नाभि एकदम उसके होंठों के करीब थी,,, जहां से वह आराम से अपनी मां की नाभि में अपनी जीभ डाल कर उसे चाटने का सुख भोग सकता था लेकिन उसे डर लग रहा था लेकिन फिर भी वह हिम्मत करके अपने होठों को अपनी मां की नाभि से सटा दिया था,,,अपने बेटे के गर्म होठों को अपनी मां की पर महसूस करके संध्या अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रही थी उसकी हालत खराब होती जा रही थी खासकर के उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में भूचाल सा मचा हुआ था,,, सोनू अपनी मां को उठा रही हूं मैं उसकी नाभि पर अपने होंठ रख कर उत्तेजना बस गहरी गहरी सांसे ले रहा था,,और उसकी गर्म सांसे संध्या को साफ महसूस हो रही थी वह अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रही थी,,, नाभि से उसकी बुर की दूरी तकरीबन पांच छः लअंगुल की ही रह गई थी,,,, लेकिन सोनू के द्वारा नाभि पर हो रही हरकत उसकी बुर के अंदर सनसनी पैदा कर रही थी,,,। सोनू को भी ऐसा महसूस हो रहा था कि उसकी नाक में उसकी नाभि की खुशबू नहीं बल्कि उसकी मां क‌ी रसीली बुर की मादक खुशबू जा रही है इसलिए तो उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो चुका था,,,, संध्या को अपने बेटे की भुजाओं पर पूरा विश्वास होने लगा था इसलिए वह निश्चिंत होकर अलमारी का खाना खोलकर उसमें से घी का डब्बा निकाल रही थी,,, नरम नरम गांड को अपनी भुजाओं में भरकर सोनू अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रहा था पहला मौका था जब वह इस तरह से अपनी मां की गांड को स्पर्श कर रहा था,,,, जो हरकत सोनू अपनी मां की नाभि के ऊपर अपने होंठ रख कर कर रहा था वही हरकत सोनू अपना मुंह अपने होंठअपनी मां की बुर के ऊपर रखकर करना चाहता था भले ही इस समय साड़ी के ऊपर से ही सही लेकिन वह अपनी इच्छा को रोक नहीं पा रहा था,,,इसलिए वह थोड़ा सा और दम लगा कर अपनी मां को थोड़ा सा और उत्तर उठा लिया उतना कि जहां उसका मुंह उसकी मां की दोनों टांगों के बीच ठीक उसकी बुर वाली जगह पर आकर रुक जाए और वैसा ही होगा जैसे ही संध्या की बुर उसके होठों के बेहद करीब आ गई तब वह बोला,,,)

आराम से मम्मी कोई जल्दी नहीं है,,,,(और इतना कहने के साथ ही सोनू अपने होठों को उसके पेट के निचले हिस्से के खड्डे में जहां से उसकी जांघों के बीच कब अद्भुत हिस्सा शुरू होता है जो कि औरत का अनमोल खजाने के समान होता है जिसे पाने के लिए दुनिया का हर मर्द आंखें बिछाए रहता हैं,,, सोनू के प्यासे होठ जैसे ही उस जगह पर पहुंचे उसके तन बदन में अजीब सी झुर्झुरी पैदा होने लगी,,, गोदावास होने लगा,,, और वह धीरे से अपने होठों को अपनी मां के दोनों टांगों के बीच उसकी बुर वाली जगह पर हल्के से दबाते हुए गहरी सांस लेने लगा मानो कि वह अपनी मां की बुर की मादक खुशबू को अपने अंदर नथुनों के द्वारा उतार लेना चाहता हो,,,,अपने बेटे की हरकत की वजह से संध्या के तन बदन में आग लगने लगी और पल भर मे ही उसकी बुर से,,, पानी की धार फुट पड़ी,,,,।
awesome update bro
 
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Naik

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अपने मन में उमड़ रहे कामोत्तेजना से भरपूर खयालों की बदौलत उसकी पेंटी बार-बार गीली होती जा रही थी जो कि उसे बेहद असहज महसूस हो रहा था और वह बार-बार अपने हाथों से अपनी पेंटिं को एडजस्ट कर रही थी,,,,,। वह नाश्ता तैयार कर रही थी सुबह का समय था,,,हालांकि बाप और बेटी दोनों जल्दी जा चुके थे सोनू अपने कमरे में तैयार हो रहा था,,,घर में और कोई मौजूद ना होने की वजह से संध्या का दिल जोरों से धड़क रहा था उसकी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी एक मां होने के बावजूद अंतर्वस्त्र और अपनी खूबसूरत अंग को अपने बेटे को दिखाने की उत्सुकता बढ़ रही थी,,,। लेकिन कैसे दिखाएं यह उसकी समझ के बिल्कुल बाहर था,,,
थोड़ी ही देर में तैयार होकर सोनू नाश्ता करने के लिए नीचे आ गया डायनिंग टेबल पर किसी को भी ना पाकर वह सीधे किचन में चला गया जहां पर उसकी मां उसके लिए नाश्ता तैयार कर रही थी और उसके आने से पहले ही वह अपनी साड़ी को थोड़ा सा ऊपर की तरफ उठाकर अपनी कमर से खोंश रखी थी,,, उसकी गोरी गोरी मांसल पिंडलिया नजर आ रही थी जिसे देखते ही सोनू के पेंट में कुंडली बनना शुरू हो गया था,,, सोनू अपनी मां के करीब पहुंचकर बोला,,,।

मम्मी दीदी और पापा कहां गए,,,

आज वो लोग जल्दी नाश्ता करके चले गए हैं,,,,,,(संध्या तवे पर रखी हुई रोटी के फुलने पर उसे दूसरी तरफ पलटते ही बोली,,,फूली हुई रोटी को देखकर यही सोच रही थी कि इस समय उसकी बुर भी रोटी की तरह फूल चुकी है,,, सोनू को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें सोनू की आंखें अपनी मां की गोलाकार नितंबों पर टिकी हुई थी जिसमें हो रही थिरकन उसके होश उड़ा रही थी,,, संध्या के भी तन बदन में गुदगुदी हो रही थी,,, अपनी जालीदार ब्रा और पेंटी दिखाने के लिए वह मचल रही थी,,, लेकिन कैसे यह अभी तक उसे समझ में नहीं आ रहा था,,,वह उसी तरह से रोटी पकाती रही,,,,

मम्मी नाश्ता तैयार हो गया है क्या,,,,,?(सोनू अपनी मां की गोल गोल गांड के साथ-साथ उसकी गोरी गोरी पिंडलियों को देखते हुए बोला,,,)

हां बेटा तैयार हो गया,,,,, थोड़ा रुक जा मैं तुझे नाश्ता देती हूं,,,,(इतना कहते हुए वह जानबूझकर अपना एक हाथ नीचे की तरफ लाकर अपनी पेंटी के ऊपर साड़ी के ऊपर से ही पकड़ कर उसे खुजलाने जैसी हरकत करने लगी,,,, और जानबूझकर अपने बेटे का ध्यान उस पर लाते हुए बोली,,,)

तेरे पसंद की पहनी हु ना,,,, और वो जालीदार है,,, इसलिए ठीक तरह से एडजस्ट नहीं हो पा रहा है,,, लगता है कि मेरी साईज से छोटी ले ली हुं,,,,।
(अपनी मां को इस तरह से अपनी पुर वाली जगह पर खिलाते हुए देखकर सोनू के तन बदन में आग लगने लगी और वह अपनी मां की बात सुनकर बोला,,,)

नहीं नहीं मम्मी आपके ही नाप की है,,,, आपने लगता है पहले कभी जालीदार पैंटी नहीं पहनी हो इसलिए आपको ऐसा महसूस हो रहा है,,,,


नहीं नहीं मुझे तो लगता है कि मेरी साईज से छोटी है,,, वरना एकदम आरामदायक महसूस होता,,,।


मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा मम्मी क्योंकि मैं,, ठीक तरह से देख कर लिया था तुम्हारे मखमली नरम नरम बदन पर वह जालीदार पेंटिं एकदम आरामदायक महसूस कराती,,
(सोनू बातों ही बातों में अपनी मां के खूबसूरत बदन की तारीफ कर दिया था जो कि संध्या को अपने बेटे की यह बात उसके मुंह से अपने खूबसूरत बदन की तारीफ सुनकर अच्छा लगा था,,,)


मैं जानती हूं बेटा की को अच्छा ही सोच कर लिया होगा लेकिन ना जाने क्यों मुझे एकदम कसी हुई महसूस हो रही है,,,,,(रोटी को तवे पर रखकर संध्या अपने बेटे की तरफ घूम कर उसकी आंखों में आंखें डालकर और एक हाथ नीचे की तरफ ले जाकर साड़ी के ऊपर से अपनी बुर खुजाते हुए बोली,,,।और सोनू अपनी मां की यह हरकत देखकर उत्तेजित होने लगा पैंट के अंदर उसका लंड खड़ा होने लगा,,, उसकी मां पेंटी के बारे में उससे इतना खुलकर बातें करेगी यह अंदाजा उसे बिल्कुल भी नहीं था,,,लेकिन अपनी मां के मुंह से इस तरह की खुली बातें सुनकर उसे अच्छा लग रहा था और उत्तेजना महसूस हो रहा था,,, अपनी मां की बात सुनकर सोनू बोला,,,)

पता नहीं ऐसा क्यों हो रहा है मम्मी लेकिन जब आपको दिक्कत हो रही है तो आपको उतार देना चाहिए था उसे पहनना नहीं चाहिए था,,,,


वह तो तेरी बात रखने के लिए मैं पहन ली क्योंकि पहली बार तो अपनी पसंद का कपड़ा मुझे पहनने के लिए बोला था,,,,(इतना कहते हुए संध्या वापस घूम कर तवे पर पड़ी रोटी को घुमा घुमा कर पलटने लगी,,,, सोनू अपनी मां की बात सुनकर खुश होने लगा खुशी ना जाने क्यों अपनी मां को अपनी बाहों में भर कर उसे प्यार करने का मन कर रहा था वह अपने आप को रोक नहीं पा रहा था इस समय संध्या की पिंक उसकी आंखों के सामने थी सोनू अपनी मां को ऊपर से नीचे की तरफ बराबर देख रहा था उसकी आंखों में वासना और उत्तेजना की चमक साफ नजर आ रही थी,,,, कमर के नीचे गजब का उभार लिए हुए संध्या के नितंब पानी भरे गुब्बारे की तरह इधर-उधर घूम रहे थे ना जाने क्यों सोने का मन उसे अपने हाथों से पकड़ कर मसलने को कर रहा था,,, अपनी मां के मुंह से बात रखने वाली बात सुनते ही आगे बढ़ाओ अपनी मां को पीछे से अपनी बाहों में भर कर उसके घर को प्यार से चुमते हुए बोला,,,)

ओहहहहह,,, मम्मी तुम कितनी प्यारी हो कि मेरी बात रखने के लिए ना चाहते हुए भी परेशानी सहकर पेंटी पहन रही हो,,,(सोनू की थोड़ा खुल कर बोलो सोनू की यह बात संध्या को भी अच्छी लग रही थी लेकिन जिस तरह से उसने अपनी बाहों में उसे पीछे से भर लिया था संध्या के तन बदन में आग लग गई थी क्योंकि सोनू के पेंट में उत्तेजना के मारे उसका लंड खड़ा हो गया था जो किसी ने उसकी दोनों गांड की फांकों के बीच की दरार में धंसने लगा था,,,,, सोनू के लंड को अपनी गांड पर महसूस करते ही,,, संध्या के रसीली बुर उत्तेजना के मारे मदन रस टपकाने लगी,,,। संध्या कुछ बोली नहीं बस अपना काम करती रही वह रोटी बेल रही थी जिसकी वजह से उसका बदन हिल रहा था,,, और साथ ही ऊसकी बड़ी बड़ी गांड भी हील रही थी जो कि सोनू की खडे लंड पर मानो चोट कर रही हो, सोनू की तो हालत खराब होती जा रही थी जिस तरह से उसकी मां की गांड उसके लंड पकड़ कर रही थी उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि कहीं उसका लंड पानी ना छोड़ दे,,,, सोनू भी काफी उत्तेजित हो चुका था वह अपनी मां के गले में दोनों बाहें डालकर खड़ा था एकदम उसके पिछवाड़े से सटके ,,,,वह भी अपनी मां को दुलारता हुआ अपनी कमर को दाएं बाएं हल्के हल्के हिला रहा था जिसे से सोनू का खड़ा लंड पेंट में होने के बावजूद भी संध्या को साड़ी पहने होने के बावजूद भी अपनी गांड पर दाएं बाएं जाता हुआ एकदम से रगड़ खाता हुआ महसूस हो रहा था,,,। संध्या अपने बेटे की हरकत से काफी उत्तेजित में जा रही थी उसे इस बात का डर था कि कहीं उत्तेजना के मारे उससे खुद से ही गलती ना हो जाए इसलिए वह अपने बेटे को प्यार से पुचकारते हुए बोली,,,।)

चल अब रहने भी दे आज तुझे बहुत प्यार आ रहा है अपनी मां पर,,,,।


आज नहीं नहीं मुझे तो रोज ही आप पर प्यार आता है,,,


क्यों ऐसा क्या खास है मुझ में,,,,?


तुम बहुत प्यारी हो बहुत खूबसूरत भी,,,,(सोनू उसी तरह से अपनी मां को बाहों में जकड़े हुए बोला,,,अपने बेटे की हरकत और उसकी बातें संध्या को बहुत अच्छी लग रही थी लेकिन तवे पर जलती हुई रोटी को देखकर वह बोली,,,)

बस कर अब छोड़ मुझे,,,, तेरी रोटी में घी लगाना है,,,, ऊपर से मुझे डिब्बा उतारना है जा स्टुल लेकर आ जा,,,,


ओहहहहह,,, मम्मी तुम मेरा कितना ख्याल रखती हो,,,,


हां तो ख्याल रखूंगी ना तू मेरा बेटा जो है,,,जा अब जल्दी जाकर स्टुल लेकर आ घी का डिब्बा उतारना है,,,,


ठीक है मम्मी मैं अभी लेकर आता हूं,,,।(इतना कहने के साथ ही सोनू स्टुल लेने के लिए किचन से बाहर चला गया,,, सोनू के कीचन से बाहर जाते ही,,, संध्या राहत की सांस लेते हुए अपने मन में बोली,,,।)

बाप रे कुछ देर और सोनू मुझे अपनी बाहों में भरे रहता तो उसके लंड की चुभन,, मैं अपनी गांड पर बर्दाश्त नहीं कर पाती और मजबूरन मुझे आज ही अपनी साड़ी कमर तक उठा देना पड़ता,,, बाप रे इसका लंड इतना मोटा और लंबा है कि पेंट में होने के बावजूद भी मुझे मेरी गांड की दरार के बीचो बीच अच्छी तरह से महसूस हो रही थी,,,,,(अपने आप से ही यह सब बातें कहते हुए उत्तेजना के मारे उसके पसीने छूट रहे थे,,, उसे अपने बेटे की लंड की चुभन अपनी गांड के ऊपर बराबर महसूस हो रही थी,, संध्या को उस दिन बगीचे वाला दृश्य याद आ गया जब वह झाड़ियों के पीछे छुप कर झाड़ियों के अंदर एक औरत और एक लड़के के बीच की जबरदस्त चुदाई को देख रही थी और सोनू की थी उसके पीछे खड़े होकर उसकी गांड पर अपना लंड धंसाते हुए उस मनोरम दृश्य का आनंद लूट रहा था,,।
दूसरी तरफ सोनू किचन के बाहर कर इधर-उधर छोटी सी स्टूल ढूंढ रहा था,,, लेकिन उसे मिल नहीं रही थी सोनू के मन में भी ढेर सारे सवालों का बवंडर उठ रहा था,,, उसे अपनी मां का बदला हुआ रवैया काफी उत्तेजित और आनंदमय लग रहा था जिस तरह से उसकी मां बेझिझक पेंटी की बातें कर रही थी,, उसे लेकर सोनू के तन बदन में और उसके अंतर्मन में अजीब सी खलबली मची हुई थी,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी मा ऊससे इस तरह की बातें क्यों करने लगी थी,,,, लेकिन जो बातें भी वर्क कर रहे थे उससे सोनू को अद्भुत सुख का अहसास होता था,,, सोनू अपने मन में यही सोच रहा था कि किचन में उसका लंड पूरी तरह से कहां पड़ा जिससे वह अपनी मां को पीछे से अपनी बाहों में भर कर खाना था और अपने लंड को उसके गांड पर रगड़ रहा था जरूर उसकी मां को भी उसके लंड की चुभन अपनी गांड के ऊपर महसूस हुई होगी,,,इसी बात को लेकर वह हैरान था कि उसकी मां उसे रोकी क्यों नहीं उसे डांटी क्यो नहीं,,, कहीं ऐसा तो नहीं कि लंड की चुभन उसे अच्छी लग रही हो,,,,एक पल के लिए यह बात सोचते ही उसके लंड ने एक बार फिर से अंगड़ाई लेना शुरू कर दिया,,,। इधर-उधर ढूंढते हुए उसे स्टुल नहीं मिली,,,। वह वापस किचन में प्रवेश करते हुए बोला,,,।)

मम्मी स्टुल तो नहीं मिली,,, लाइए में उतार देता हूं,,,,


अरे तू नहीं उतार पाएगा ऊंचाई पर है,,,,


अरे देखने तो दो,,,,(इतना कहने के साथ ही सोनू किचन के सबसे ऊपर के ड्रोअर तक हाथ पहुंचाने की कोशिश करने लगा लेकिन उसकी कोशिश नाकाम साबित हो रही थी क्योंकि ऊपर का डोवर कुछ ज्यादा ऊंचाई पर था,,,।)

देख लिया कह रही थी ना,,,,


तो आप कैसे उतरेगा मम्मी,,,,(तभी सोनू के दिमाग में युक्ति सूझी और वह बोला) इधर आओ मम्मी,,,,


क्यों क्या हुआ,,,,? (संध्या आश्चर्य से बोली)

अरे हुआ कुछ नहीं इधर आओ तो सही,,,,
(सोनू की बात सुनकर संध्या उसके करीब आ गई संध्या को इतना तो एहसास हो गया था कि सोनू क्या करने वाला है लेकिन वह उत्सुक भी थी इसलिए उसके करीब आकर खड़ी हो गई...)

ले आ गई अब,,,,

( संध्या के इतने कहते ही सोनू अपने दोनों हाथों को नीचे की तरफ लाकर उसके नितंबों के घेराव के नीचे अच्छे से पकड़कर उठाना शुरू कर दिया,,,,)

अरे अरे यह क्या कर रहा है,,, छोड़ मुझे गिर जाऊंगी,,,


अरे नहीं गिरोगी मम्मी उस पर भरोसा नहीं क्या,,,,?
(और देखते ही देखते सोने अपनी भुजाओं का बल दिखाते को अपनी मां को उठा लिया,,,, पल भर में ही संध्या उस अलमारी के खाने के करीब पहुंच गई,,, जहां से आराम से वह घी का डब्बा ले सकती थी,,,,अपने बेटे की ताकत को देखकर वह मन ही मन प्रसन्न हो रही थी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका बेटा उसे इस तरह से अपनी गोद में उठा लेगा क्योंकिअच्छी तरह से जानती थी कि उसका वजन कुछ ज्यादा ही था लेकिन जीतने आराम से उसके बेटे ने उसे उठाया था उसे यकीन नहीं हो रहा था,,,,अपने बेटे की इस हरकत की वजह से उसके तन बदन में उत्तेजना की गुदगुदी हो रही थी अपने बेटे पर उसकी ताकत देखकर गर्व के साथ साथ अत्यधिक उत्तेजना का भी अनुभव हो रहा था क्योंकि इस समय वह उसकी दोनों भुजाओं के सहारे उठी हुई थी और उसकी दोनों बुझाओ से उसके नितंबों का घेराव दबा हुआ था और जितना ऊपर वह उठाया हुआ था उसकी नाभि एकदम उसके होंठों के करीब थी,,, जहां से वह आराम से अपनी मां की नाभि में अपनी जीभ डाल कर उसे चाटने का सुख भोग सकता था लेकिन उसे डर लग रहा था लेकिन फिर भी वह हिम्मत करके अपने होठों को अपनी मां की नाभि से सटा दिया था,,,अपने बेटे के गर्म होठों को अपनी मां की पर महसूस करके संध्या अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रही थी उसकी हालत खराब होती जा रही थी खासकर के उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में भूचाल सा मचा हुआ था,,, सोनू अपनी मां को उठा रही हूं मैं उसकी नाभि पर अपने होंठ रख कर उत्तेजना बस गहरी गहरी सांसे ले रहा था,,और उसकी गर्म सांसे संध्या को साफ महसूस हो रही थी वह अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रही थी,,, नाभि से उसकी बुर की दूरी तकरीबन पांच छः लअंगुल की ही रह गई थी,,,, लेकिन सोनू के द्वारा नाभि पर हो रही हरकत उसकी बुर के अंदर सनसनी पैदा कर रही थी,,,। सोनू को भी ऐसा महसूस हो रहा था कि उसकी नाक में उसकी नाभि की खुशबू नहीं बल्कि उसकी मां क‌ी रसीली बुर की मादक खुशबू जा रही है इसलिए तो उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो चुका था,,,, संध्या को अपने बेटे की भुजाओं पर पूरा विश्वास होने लगा था इसलिए वह निश्चिंत होकर अलमारी का खाना खोलकर उसमें से घी का डब्बा निकाल रही थी,,, नरम नरम गांड को अपनी भुजाओं में भरकर सोनू अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रहा था पहला मौका था जब वह इस तरह से अपनी मां की गांड को स्पर्श कर रहा था,,,, जो हरकत सोनू अपनी मां की नाभि के ऊपर अपने होंठ रख कर कर रहा था वही हरकत सोनू अपना मुंह अपने होंठअपनी मां की बुर के ऊपर रखकर करना चाहता था भले ही इस समय साड़ी के ऊपर से ही सही लेकिन वह अपनी इच्छा को रोक नहीं पा रहा था,,,इसलिए वह थोड़ा सा और दम लगा कर अपनी मां को थोड़ा सा और उत्तर उठा लिया उतना कि जहां उसका मुंह उसकी मां की दोनों टांगों के बीच ठीक उसकी बुर वाली जगह पर आकर रुक जाए और वैसा ही होगा जैसे ही संध्या की बुर उसके होठों के बेहद करीब आ गई तब वह बोला,,,)

आराम से मम्मी कोई जल्दी नहीं है,,,,(और इतना कहने के साथ ही सोनू अपने होठों को उसके पेट के निचले हिस्से के खड्डे में जहां से उसकी जांघों के बीच कब अद्भुत हिस्सा शुरू होता है जो कि औरत का अनमोल खजाने के समान होता है जिसे पाने के लिए दुनिया का हर मर्द आंखें बिछाए रहता हैं,,, सोनू के प्यासे होठ जैसे ही उस जगह पर पहुंचे उसके तन बदन में अजीब सी झुर्झुरी पैदा होने लगी,,, गोदावास होने लगा,,, और वह धीरे से अपने होठों को अपनी मां के दोनों टांगों के बीच उसकी बुर वाली जगह पर हल्के से दबाते हुए गहरी सांस लेने लगा मानो कि वह अपनी मां की बुर की मादक खुशबू को अपने अंदर नथुनों के द्वारा उतार लेना चाहता हो,,,,अपने बेटे की हरकत की वजह से संध्या के तन बदन में आग लगने लगी और पल भर मे ही उसकी बुर से,,, पानी की धार फुट पड़ी,,,,।
Bahot shaandaar mazedaar lajawab update bhai
 
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