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Incest रिश्तो की डोर,,,, (completed)

rohnny4545

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आज जो कुछ भी हुआ था जो कुछ भी दोनों मां बेटो ने देखा था,, वह उनके दिलो-दिमाग पर पूरी तरह से छाया हुआ था,,,संध्या का मन बिल्कुल भी घर के कामों में नहीं लग रहा था बार-बार उसकी आंखों के सामने झाड़ियों के अंदर का दृश्य नजर आ रहा था,,, जिस तरह से वह लड़का अपनी मां को चोद रहा था और जिस तरह से मजे ले कर उसकी मां खुद अपने बेटे से चुदवा रही थी,,, वह देखकर संध्या की बुर बार-बार गीली हो जा रही थी,,, उसे नहीं है कि नहीं हो रहा था कि उसकी आंखें जो कुछ भी देखी है वह सच है,,,बार-बार उसके दिमाग में यही सवाल घूम रहा था कि एक बेटा अपनी मां को कैसे चोद सकता है और एक मां अपने बेटे से कैसे चुदवा सकती है,,,, दोनों एक दूसरे से प्रेमी प्रेमिका की तरह मजा ले रहे थे,,, खाना बनाते समय उस दृश्य को याद करके संध्या की सांसे भारी हो जा रही थी,,, और उस दृश्य को देखते हुए उसका बेटा जिस तरह से गर्म होकर अपने खड़े लंड को पजामे के अंदर से ही उसकी पजामी पर रगड़ रहा था,,, और ऊसके लंड के कड़क पन को अपनी बुर पर महसूस करके जिस तरह से वह उत्तेजित हुई थी बार-बार वह अपनी कल्पना ने उस लड़के की जगह अपने बेटे को और उस औरत किसी का अपने आप को रखकर उस कल्पना का भरपूर आनंद ले रही थी,,,अपने बेटे के साथ संभोग की कल्पना करते हुए उसे अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव रहा था,,।
जैसे तैसे करके वह खानाबना ली लेकिन अपनी बुर की गर्मी उसे सहन नहीं हो रही थी इसलिए वह बाथरुम में जाकर अपने सारे कपड़े उतार कर एकदम नंगी हो गई और आते समय फ्रीज में से एक मोटा और लंबा बैंगन साथ लेकर आई थी जिसे वह अपनी एक टांग कमोड के ऊपर रखकर अपनी बुर के अंदर उस बैगन को डालकर अंदर बाहर करने लगी,,,,अपनी बुर में वह डाल तो रही थी पर 1 अंकों लेकिन उसकी कल्पना में उसकी बुर के अंदर उस बैगन की जगह उसके बेटे का मोटा तगड़ा था जिससे उसकी उत्तेजना और ज्यादा बढ़ रही थी,,जब जब वह अपने बेटे के बारे में कल्पना करती तब तब उसकी उत्तेजना अत्यधिक तीव्र हो जाती थी और उसे अत्यधिक आनंद की अनुभूति होती थी,,, ऐसा करके तो अपनी बुर की गर्मी को शांत कर ली लेकिन सुकून नहीं मिला,,,,

दूसरी तरफ सोनू आज बिना नाश्ता किए ही कॉलेज चला गया था क्योंकि झाड़ियों के अंदर का नजारा उसके भी दिलो-दिमाग पर छाया हुआ था उस नजारे से अत्याधिक काम वेदना वह अपनी मां के पिछवाड़े पर अपना लंड रगडने की वजह से महसूस कर रहा था,,,,बार-बार उसे वहीं पर याद आ रहा था जब वह पूरी तरह से अपनी मां की कमर थामे और अनजान बन जाऊंगा उसकी चूची को दबाते हुए जिस तरह से अपने लंड को उसकी गांड पर रख रहा था वही दृश्य उसकी आंखों के सामने बार बार घूम जा रहा था,, झाड़ियों के पीछे उन दोनों मां-बेटे की गरमा गरम चुदाई देखकर अब उसका भी मन करने लगा था अपनी मां को चोदने के लिए,,,अपने मन में यही सोच रहा था कि जिस तरह से उस लड़के को अपनी मां को चोदने में मजा आ रहा था उसे भी उसी तरह का मजा आएगा और उस औरत की तरह उसकी मां भी उसके मोटे तगड़े लंड से चुदवाकर संतुष्ट हो जाएगी,,,। यह सोचकर ही कॉलेज के अंदर उसका लंड खडा हो गया,,, जैसे तैसे करके वह अपने मन को दूसरी तरफ घुमाने की कोशिश करता था लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा था,,,, बार-बार उसका ध्यान अपनी मां के ऊपर ही चला जा रहा था अब उसे अपनी मां और ज्यादा खूबसूरत लगने लगी थी ऐसा नहीं था कि वह सुंदर नहीं थी उसकी मां बेहद खूबसूरत बेहद हसीन थी लेकिन अब अपनी मां के बारे में उसका देखने और सोचने का रवैया बदल चुका था इसकी वजह से उसकी मां उसे और भी अत्यधिक खूबसूरत और मादकता से भरी हुई नजर आती थी,,,, अब उसका ध्यान बार-बार अपनी मां की दोनों टांगों के बीच की पतली दरार की कल्पना करने में ही उलझ जाता था हालांकि उसने आज तक बुर का साक्षात दर्शन नहीं किया था लेकिन फिर भी उसके बारे में कल्पना करके मस्त हो जाता था,,,,,,।

कॉलेज से छुटते ही वह अपने घर चला गया,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी मां से नजर कैसे मिलाएगा,,, दूसरी तरफ उसकी मां सोनू के नाश्ता ना करके जाने की वजह से परेशान थी वो जानती थी कि वह किस लिए नाश्ता किए बिना चला गया वह शर्मिंदा हो गया इसलिए संध्या अपने मन में यही सोच रही थी कि उसके सामने ऐसी कोई भी बात नहीं करेगी जिससे वह फिर परेशान हो जाए वह उसके सामने सामान्य बनी रहेगी पहले की तरह ताकि वह सहज हो सके,,,। शगुन मेडिकल कॉलेज से छूटकर घर नहीं गई थी क्योंकि उसे कुछ बुक खरीदनी थी जो कि शहर से थोड़ी दूरी पर मिलती थी,,। आज उसके साथ कोई जाने वाला तैयार नहीं था वैसे तो उसकी सहेली उसके साथ जाती थी लेकिन आज उसकी तबीयत ठीक नहीं थी इसलिए बात नहीं आ सकी,,,, वह सोनू को फोन करके बुलाना चाहती थी लेकिन सोनु का मोबाइल स्विच ऑफ आ रहा था,,, थक हार कर वह अपने पापा को फोन लगा दी,,, जो कि कॉलेज के ही करीब थे,,,और वो 5 मिनट में ही शकुन के पास पहुंच गए,,,, शगुन आज सफेद रंग की कुर्ती और सलवार पहनी थी जो कि एकदम चुस्त थी जिसमें उसकी गोल गोल गांड कुछ ज्यादा ही उभर कर नजर आ रही थी,,,,, संजय शगुन को देखा तो देखता ही रह गया वह बहुत खूबसूरत लग रही थी,,,, कुछ दिनों से ना जाने क्यों सगुन को देखते ही संजय के तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगती थी,,, संजय देख तो सब उनको रहा था लेकिन उसका पूरा ध्यान उसके अमरुद पर थे,,, जो कि वह अच्छी तरह से जानता था कि सगुन के अमरुद बेहद स्वादिष्ट होंगे,,। उसके मुंह के साथ-साथ उसके लंड में भी पानी आ रहा था,,, संजय कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी ही बेटी के प्रति उसके देखने का रवैया इस कदर बदल जाएगा,,, अब वह शगुन को हमेशा गंदी नजरों से ही रहता था,,,

शगुन कार में आगे वाली सीट पर बैठ गई थी,,, शगुन के भी बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी,,, संजय ब्लैक रंग की ऑफिशियल पेंट के साथ आसमानी रंग का शर्ट पहना हुआ था जिससे उसकी पर्सनालिटी में चार चांद लग रहे थे अपने पापा की पर्सनैलिटी देखकर,,, शगुन मंत्र मुग्ध हुए जा रही थी,,।


और कैसी चल रही है पढ़ाई,,,(कार चलाते हुए संजय बोला)


अच्छी चल रही है पापा,,,


90% तो आ जाएंगे ना,,,,


कोशिश तो पूरी कर रही हूं आ जाना चाहिए,,,,


अगले महीने ही है ना एग्जाम,,,

हां पापा अगले ही महीने हैं,,,



मुझे निराश मत करना तुमसे मुझे बहुत उम्मीद है,,,।


मैं पूरी कोशिश करूंगी आप की उम्मीद पर खरी उतरने की,,,


हां ऐसा होना भी चाहिए आखिरकार आगे चलकर तुम्हीं को तो हॉस्पिटल संभालना है,,,, तुम भी मेरी तरह जानी-मानी डॉक्टर बनोगी,,,।



जी पापा,,,,(फ्रंट शीशे से बाहर देखते हुए बोली,,, लेकिन संजय जब भी उससे बात कर रहा था तो उसकी नजर उसकी सफेद रंग की कुर्ती के लो कट गले के डिजाइन पर ही था जिसमें से सगुन की संतरे जैसी चूचियां नजर आ रही थी,,, उसे देख कर संजय की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,,, तकरीबन 20 मिनट कार चलाने के बाद वह दुकान आ गई जहां पर वह किताब मिलती थी,,, एक जगह पर कार खड़ी करके दोनों कार से नीचे उतर गए और शगुन किताब लेने लगी,,, काउंटर पर कुछ लोग और खड़े थे,,, शगुन भी काउंटर पकड़ के खड़ी होगी और ठीक उसके पीछे संजय खड़ा हो गया,,, दुकान वाला बहुत ही व्यस्त था,,, वह देने वाला अकेला था और लेने वाले ढेर सारे लोग थोड़ा समय लगने लगा तो कुछ लोग और दुकान पर आ गए जिससे भीड़ लगने लगी,,, और संजय को थोड़ा और आगे खसकना पड़ा,,,,,, पीछे खड़े लोग भी उस दुकानदार से किताब देने की गुजारिश कर रहे थे लेकिन वो एक साथ किसको किसको किताब देता,,, वह पारी पारी से दे रहा था,,, देखते ही देखते लाइन लगना शुरू हो गई शगुन के अगल-बगल जो लोग खड़े थे,,, शगुन के आगे हो गए सगुन उनके पीछे और संजय अपनी बेटी सगुन के पीछे,,, संजय के तन बदन में करंट सा दौड़ने लगा,,, क्योंकि वह ठीक सगुन के पीछे खड़ा था जिससे उसका आगे वाला भाग शगुन के पिछवाड़े से स्पर्श कर रहा था,,,, पल भर में ही संजय की उत्तेजना बढ़ गई,,, और पेंट के अंदर उसका लैंड खड़ा होने लगा,,,पीछे से लोग सफल नहीं रहे थे वह आगे की तरफ लगभग लगभग धक्का दे दे रहे थे जिससे संजय भी आगे की तरफ लुढ़क सा जा रहा था लेकिन ऐसा करने पर संजय का लंड जो कि पैंट के अंदर खड़ा हो चुका था वह सीधे,, जाकर शगुन की गांड से टकरा जा रहा था सगुन की हालत खराब होने लगी,,, क्योंकि उसे अच्छी तरह से समझ में आ गया कि उसकी गांड़ पर जो कठोर चीजें चूभ रही है वह क्या है,,, पहली बार जब उसे अपनी गांड पर नुकीली चीज चिली तब ऊसे समझ में नहीं आया कि वह क्या है,,, उसे इस बात का एहसास तो हो रहा था कि जो कुछ भी उसकी गांड पर चुभ रहा है वह कुछ और ही है लेकिन जब दोबारा उसे अपनी गांड की दरार के बीचो बीच वह चीज चुभी तो उसके होश उड़ गए उसे पता था कि उसके ठीक पीछे उसके पापा खड़े हैं आश्चर्य चकित हो गई वह अपने आप से ही अपने मन में बोली अरे यह तो पापा का लंड है,,,,। उसकी आंखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गई लेकिन उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी खास करके उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में,,,,यह एहसास उसे अद्भुत सुख की तरफ ले जा रहा था कि उसकी गांड पर चुभने वाला अंग उसके बाप का लंड है पहली बार उसकी गांड पर कोई मर्दाना अंग स्पर्श हुआ था,,, जिससे उसके तन बदन में सुरसुरी सी दौड़ने लगी थी,,, संजय की तो हालत खराब हो गई थी,,, उसे भी मजा आ रहा था अब उससे पीछे खड़े लोग धक्का नहीं लगा रहे थे लेकिन फिर भी वह जानबूझकर थोड़ा आगे की तरफ आ गया था जिससे लगातार उसके पेंट में बना तंबू उसकी बेटी की गांड पर स्पर्श हो रहा था,,, संजय का मन मचल रहा था वह अपने होश में नहीं था वह मदहोश होने लगा था अगर कोई और जगह होती तो शायद वह अपने हाथों से अपनी बेटी की सलवार की डोरी खोलकर सलवार को नीचे टांगो तक सरका कर उसकी बुर में अपना लंड डाल दिया होता,,, लेकिन वह भीड़ की वजह से मजबूर था और यह सब उनका भी हो रहा था वह दिन रात जिस लंड की कल्पना कीया करती थी उसका स्पर्श आज उसकी कांड पर हो रहा था और सलवार इतनी चूस्त थी कि उसे अपने पापा के लंड का स्पर्श,,, बहुत अच्छी तरह से हो रहा था,,, सलवार का कपड़ा एकदम पतला होने की वजह से,, उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे,,, उसके पापा का लंड उसकी नंगी गांड पर स्पर्श हो रहा है,, इस दुकान में आकर दोनों को अच्छा ही लग रहा था दोनों अपनी-अपनी तरह से सुख प्राप्त कर रहे थे,,,, लगातार संजय का लंड पेंट में होने के बावजूद भी शगुन की गांड से स्पर्श हो रहा था,,।
शगुन का नंबर आने वाला था और संजय एहतियात के तौर पर उसे थोड़ा सा हटके खड़ा हो गया लेकिन शगुन एकदम से मचल उठी उसकी गांड पर उसके पापा कर लंड स्पर्श ना होता देख कर वह हैरान हो गई,,, उसे अपने पापा के लंड की मजबूती उसकी कठोरता अपनी गांड पर बेहद अच्छी लग रही थी,,, इसलिए उससे रहा नहीं गया और उसका नंबर आते ही वह किताब के लिस्ट उस दुकानदार को थमा कर आराम करने की मुद्रा में उस काउंटर पर अपने दोनों हाथों की कोहनी रखकर झुक कर खड़ी हो गई और इस तरह से झुकने पर उसकी गोलाकार गाने सीधे उसके पापा की लंड के आगे वाले भाग से टकरा गई,,, अभी भी संजय की पैंट में तंबू बना हुआ था और एकाएक शगुन के झुकने की वजह से उसका संपूर्ण गोलाकार नितंब,, संजय के तंबू से टकरा गई,,, संजय के तन बदन में फिर से एक बार बिजली दौड़ने लगी उसकी इच्छा हो रही थी कि अपनी बेटी की कमर दोनों हाथों से पकड़कर सलवार के ऊपर से ही उसकी गांड पर अपना लंड रगड़ ले लेकिन वह कुछ सेकेंड तक उसी अवस्था में खड़ा रहा और वापस कदम खींच लिया तब तक सगुन की किताब निकल चुकी थी,,,

थोड़ी ही देर में दोनों दुकान से बाहर आ गए,,, संजय और सगुन दोनों की हालत खराब थी,,, संजय इस जगह पर बहुत बार आ चुका था,,, इसलिए उसे मालूम था कि थोड़ी दूर पर नाश्ते की दुकान है,,, उसे भूख लगी थी जाहिर था कि सगुन को भी लगी होगी,,, इसलिए वह सगुन से बोला,,,।


आगे ही नाश्ते की दुकान है चलो थोड़ा नाश्ता कर लेते हैं,,,(संजय कार का दरवाजा खोलते हुए बोला,, लेकिन शगुन कुछ बोल नहीं पाई क्योंकि किताबों की दुकान में जो कुछ भी हुआ था उसे से अभी भी उसके तन बदन में अजीब सी सिरहन सी दौड़ रही थी उसे साफ एहसास हो रहा था कि ऊसकी पेंटिं धीरे-धीरे गिली हो चुकी थी,,। वह भी कार का दूसरा दरवाजा खोल कर आगे की सीट पर बैठ गई और संजय कार आगे बढ़ा दिया,,,,,, संजय की हालत खराब थी आज पहली बार वह अपनी बेटी के पिछवाड़े पर अपने लंड का रगड महसूस किया था,,, संजय को उसकी बेटी ने पूरी तरह से गर्म करके रख दी थी,,, संजय को इस बात का अहसास हो गया था कि,, उसकी बेटी गर्म जवानी से भरी हुई है,,, बार-बार संजय को उसकी बेटी की वह हरकत याद आ रही थी जब वह काउंटर पर अपने दोनों कहानियों के सहारे खड़ी होकर अपनी गांड को पीछे की तरफ कर दी थी जिससे,, शगुन की गांड ठीक उसके लंड पर जाकर टकरा गई थी,,,, उस पल को और इस हरकत को याद करके अभी तक संजय कि सांसे दुरुस्त नहीं हो पाई थी,, शगुन की भी हालत ठीक संजय की ही तरह थी,,, क्योंकि जवानी के इस दौर से गुजरते हुए पहली बार उसके पिछवाड़े पर लंड की चुभन जो ऊसे महसूस हुई थी,, दोनों के लिए किताब की दुकान वाला वह पल बेहद उत्तेजना से भरा हुआ था,,।

कच्ची सड़क से कार गुजर रही थी,,, शगुन को समझ में नहीं आ रहा था कि उसके पापा कहां लिए जा रहे हैं,,, इसलिए वह अपने पापा से बोली,,,।


यहां कहां जा रहे हो पापा,,,


तुम शायद नहीं जानती,,, जहां मै ले चल रहा हूं वहां के समोसे और पकोड़े बहुत मशहूर है,,,, वो देख रही हो,,,(स्टीयरिंग संभालते हुए दूसरे हाथ की उंगली से इशारा करके दूर की दुकान दिखाने लगे जोकी दूर से कोई खास नहीं लग रही थी,,, और वह एक बड़े पेड़ के नीचे थी और चारों तरफ खेत नजर आ रहे थे यह जगह शहर से बाहर की और थी इसलिए यहां पर इस तरह के नजारे देखने को मिल ही जाते थे,,,) वहीं दुकान है समोसे और पकौड़े कि मैं जब यहां से गुजरता हूं तो,,, यहां के पकोड़े और समोसे खा कर जाता हूं तुम्हें पहली बार आई हो इसलिए सोचा कि तुम्हें भी खिला दुं,,,,,
(इतना कहते हुए संजय धीरे-धीरे कार आगे बढ़ाने लगा लेकिन आगे का रास्ता ठीक नहीं था इसलिए कार वहू खड़ी करके वह दोनों उतरकर पैदल जाने लगे थोड़ी देर में वह समोसे और पकोड़े की दुकान आ गई दुकानदार गरमा गरम पकोड़े और समोसे के साथ-साथ गरमा गरम जलेबीया भी छान रहा था,,,। गरमा गरम जलेबी को देखकर शगुन के मुंह में पानी आ गया,,, आज भीड़ भाड़ बिल्कुल कम थी इसका मतलब साफ था कि अभी ग्राहकी शुरू हुई थी शाम ढलने से पहले ही ग्राहकों का झुंड नजर आता था,,, संजय और शगुन एक टेबल पर बैठ गए और वहां काम करने वाला एक छोकरा आर्डर लेने के लिए आया,,,, संजय ने उसे समोसे पकौड़े और जलेबीया लाने के लिए बोला,,, सगुन अपने पापा से ठीक से नजर नहीं मिला पा रही थी,,, उसे शर्म महसूस हो रही थी,,,, थोड़ी ही देर में वो लड़का गरमा गरम जलेबी समोसे और पकौड़े ले आया,,,, शगुन को सबसे ज्यादा जलेबी अच्छी लग रही थी वह जलेबी खा रही थी और संजय समोसे लेकिन समोसा खाते समय वह सगुन को तिरछी नजरों से देख ले रहा था,,, और अपनी मन नहीं कह रहा था कि,,, शगुन इतनी ज्यादा खूबसूरत और सेक्सी होगी इस बात का मुझे अंदाजा नहीं था,,, कुछ पल में ही इसने तो मेरी हालत खराब कर दी अगर कुछ देर और भी अपनी गांड मेरे लंड से सटाए होती तो,,,मेरा तो पानी निकल जाता,,,।यही सोचकर बार एक बार फिर से गर्म होने लगा उसके पैंट में उसका लंड फिर से खड़ा होकर अपनी ही बेटी की जवानी को सलामी भरने लगा,,, समोसे से ज्यादा गर्म उसे अपनी बेटी शगुन लग रही थी,,, जलेबी खाते समय वहां उसके रस को जीभ बाहर निकाल कर चाट रही थी,,, और सगुन की इस अदा पर संजय पूरी तरह से फिदा हो गया अपनी बेटी को इस तरह से जी बाहर निकालकर जलेबी के रस को चाटते हुए देखकर उसकी कल्पनाओं का घोड़ा बड़ी तेजी से दौड़ने लगा वह ऐसा कल्पना करने लगा कि उसके लंड को उसकी बेटी जीभ बाहर निकाल कर चाट रही हैं,,, यह कल्पना संजय के लिए हकीकत से भी कहीं ज्यादा खूबसूरत और उन्माद से भरा हुआ महसूस हो रहा था,,, अब उसका खाने में बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था कुछ देर के लिए शगुन गरमा गरम रसीली जलेबी देख कर और उसे खाते हुए यह भूल गई थी कि किताब की दुकान में क्या हुआ था इसलिए वह पूरी तरह से सामान्य थी,,, संजय का लंड पूरी तरह से अकड चुका था पूरा बदन अपनी बेटी की गर्म जवानी की गर्मी से पिघलता हुआ महसूस हो रहा था इसलिए उसे बड़ी जोरों की पेशाब लगी हुई थी,,,वह नाश्ता कर चुका था,,, इसलिए टेबल पर से उठा और दुकान के पीछे की तरफ जाने लगा शगुन अपने पापा को दुकान के पीछे जाते हुए देख रही थी भीड़ भाड़ बिल्कुल भी नहीं थी इसलिए वो भी निश्चिंत होकर नाश्ता कर रही थी,,। नाश्ता खत्म होते ही उसे पानी पीना थाउसे लगा कि उसके पापा दुकान के पीछे पानी पीने के लिए और हाथ धोने के लिए कि नहीं इसलिए वह भी टेबल पर से उठी और दुकान के पीछे की तरफ चल दी वह अपनी मस्ती में मस्त थी,,, जैसे ही वह दुकान के पीछे पहुंची उसके पापा उसे झाड़ियों के बीच खड़े हुए दिखाई दिए उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसके पापा वहां झाड़ियों के बीच खड़े होकर क्या कर रहे हैं,,, लेकिन तभी उसे सारा माजरा समझ में आ गया जब उसकी नजर उसके पापा की खड़े लंड पर पड़ी जो कि इस समय उसके पापा के हाथ में था,,, उस नजारे को देखते ही उसकी सांसे थम गई उसकी आंखें फटी की फटी रह गई वह अपने पापा की खाड़ी लैंड को देख रही थी जो कि तकरीबन 8 इंच का था और काफी मोटा था उसके पापा के हाथ में था उसमें से पेशाब की तेज धार निकल रही थी,,, शगुन के लिए यह पहला मौका था जब वह किसी मर्द को इस तरह से पेशाब करते हुए देख रही थी और वह भी खुद के पापा को,,, अपने पापा के खड़े मोटे तगड़े लंड को देखकर उसकी टांगों के बीच सिहरन सी दौड़ने लगी,,, शगुन की नजर अपने पापा के खड़े लंड पर से हट नहीं रही थी,,, वह अपने मन में सोचने लगी कि यह वही लंड है जो कुछ देर पहले किताब की दुकान में उसकी गांड पर चुभ रहा था,,, अच्छा हुआ कि वह सलवार पहनी हुई थी वरना पापा का लंड बुर में घुस जाता,,, अपने मन में यह सोचते हुए वह पूरी तरह से उत्तेजित हुए जा रही थी और फिर अपने आप से ही बातें करते हुए वह बोली काश वह सलवार ना पहनी होती कमर के नीचे से पूरी तरह से नंगी होती तो उसके पापा का लंड उसकी बुर में घुस जाता,,, कितना मजा आता ,,, लेकिन फिर वह अपने मन में सोचने लगी कि क्या इतना मोटा और लंबा लंड उसके छोटी सी बुर की गुलाबी छेद में घुस पाता,,,, यह सोचकर उसका बदन सिहर उठा,,, दूसरी तरफ संजय इस बात से पूरी तरह से निश्चिंत की उसकी बेटी ऊसे पेशाब करती हुई देख रही है वह अपनी ही मस्ती में,,, अपने खड़े लंड को हाथ से पकड़ कर पेशाब कर रहा था,,, संजय पेशाब कर चुका है इसलिए लंड की नशो मैं ठहरी हुई आखरी बूंदों को भी बाहर निकालने के लिए वह अपने खड़े लंड को उपर नीचे करके जोर-जोर से हिलाने लगा और इस तरह से अपने पापा को वह मोटे तगड़े लंड को हिलाते हुए देखकर पूरी तरह से सिहर उठी,,,, उससे अब एक पल भी वहां रुक पाना मुश्किल हुआ जा रहा था इसलिए वह तुरंत वहां से दबे पांव वापस लौट आई,,, और टेबल पर आकर बैठ गई उसकी हालत खराब हो गई थी चेहरे पर शर्म की लाली छाने लगी थी,,,, कुछ ही देर में उसके पापा आते हुए दिखाई दिए,,, और पास में ही बनी हेडपंप पर हाथ धोने लगे,,, उसे अपनी गलती पर शर्मिंदगी महसूस होने लगी क्योंकि पास में ही नल होने के बावजूद भी उसकी नजर उस पर नहीं पड़ी और वह यही सोच रही थी कि उसके पापा दुकान के पीछे पानी पीने के लिए गए हैं,,, लेकिन एक तरह से उसे अपनी ही गलती पर,, गुस्सा नहीं आ रहा था क्योंकि उसकी गलती ने उसे ऐसा नजारा दिखाया था कि उसे मजा आ गया था,,, वह भी उठी और घर पर हाथ मुंह धो कर पानी पीकर कार की तरफ जाने लगी उसके पापा पैसे चुका रहे थे उसे भी जोरों की कसम लगी हुई थी खासकर के उत्तेजना की वजह से,,, लेकिन पेशाब कहां करें यह उसे समझ में नहीं आ रहा था,,, सोचते सोचते वह कार के पास पहुंच गई,,,, उसके पापा आप ही पी थोड़ी दूर पर थे और धीरे-धीरे आ रहे हैं,,,उसे जोड़ों की पेशाब लगी हुई थी उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था इसलिए वह कार के पीछे जा कर अपनी सलवार की डोरी खोलने लगी,,, और सलवार के ढीली होती है वह तुरंत अपनी सलवार को घुटनों तक कर के नीचे बैठ गई और सुरसुराहट की आवाज के साथ पेशाब करने लगी,,,,, शगुन कार की ओट में पीछे बैठी हुई थी इसलिए संजय को वह नजर नहीं आई थी वह चारों तरफ नजर घुमा कर उसे ढूंढ रहा था,,,
तभी सगुन पेशाब कर ली और खडी हो गई,,, संजय की नजर कार के पीछे शगुन पर पड़ी तो उसके होश उड़ गए,,, क्योंकि बहुत आगे बोलने वाली जगह की ओट के नीचे बैठ कर पेशाब कर रही थी और खड़ी होने पर उसकी गोरी गोरी गांड नजर अाने लगी संजय के तो होश उड़ गए उसकी आंखों में चमक आ गई,,, संजय को समझ पाता इससे पहले वह अपनी सलवार कमर तक उठाकर डोरी बांधने लगी थी तकरीबन 2 सेकंड का ही यह दृश्य था लेकिन इस 2 सेकेंड के अंदर उसने अपनी बेटी की भरपूर जवानी से भरी हुई गोल गोल गांड को एकदम नंगी देख चुका था,,, संजय को समझ पाता इससे पहले शगुन अपनी सलवार की डोरी बांधकर अपने कपड़ों को व्यवस्थित करके पीछे मुड़ी तो उसकी नजर अपने पापा पर पड़ी जो कि उसकी तरफ ही देख रहे थे,,, शगुन को समझते देर नहीं लगी कि,, उसके पापा ने बहुत कुछ देख लिया है खास करके उसकी गोरी गोरी गांड को,, क्योंकि वह बोले की ऊंचाई से अपनी कमर तक की लंबाई को नाप चुकी थी,,,, जहां से अच्छी तरह से उसकी गांड को देखा जा सकता था,,, उसे यकीन हो गया था कि उसके पापा ने उसकी गांड को देख लिया है,,, दोनों की नजरें आपस में टकरा चुकी थी और एक पल के लिए दोनों एक दूसरे की आंखों में देखते हुए शर्म के मारे दूसरी तरफ नजर फेर लिए,,, दोनों कार में बैठ गए और बिना कुछ बोले थोड़ी ही देर बाद घर पहुंच गए,,,।
 

Naik

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आज जो कुछ भी हुआ था जो कुछ भी दोनों मां बेटो ने देखा था,, वह उनके दिलो-दिमाग पर पूरी तरह से छाया हुआ था,,,संध्या का मन बिल्कुल भी घर के कामों में नहीं लग रहा था बार-बार उसकी आंखों के सामने झाड़ियों के अंदर का दृश्य नजर आ रहा था,,, जिस तरह से वह लड़का अपनी मां को चोद रहा था और जिस तरह से मजे ले कर उसकी मां खुद अपने बेटे से चुदवा रही थी,,, वह देखकर संध्या की बुर बार-बार गीली हो जा रही थी,,, उसे नहीं है कि नहीं हो रहा था कि उसकी आंखें जो कुछ भी देखी है वह सच है,,,बार-बार उसके दिमाग में यही सवाल घूम रहा था कि एक बेटा अपनी मां को कैसे चोद सकता है और एक मां अपने बेटे से कैसे चुदवा सकती है,,,, दोनों एक दूसरे से प्रेमी प्रेमिका की तरह मजा ले रहे थे,,, खाना बनाते समय उस दृश्य को याद करके संध्या की सांसे भारी हो जा रही थी,,, और उस दृश्य को देखते हुए उसका बेटा जिस तरह से गर्म होकर अपने खड़े लंड को पजामे के अंदर से ही उसकी पजामी पर रगड़ रहा था,,, और ऊसके लंड के कड़क पन को अपनी बुर पर महसूस करके जिस तरह से वह उत्तेजित हुई थी बार-बार वह अपनी कल्पना ने उस लड़के की जगह अपने बेटे को और उस औरत किसी का अपने आप को रखकर उस कल्पना का भरपूर आनंद ले रही थी,,,अपने बेटे के साथ संभोग की कल्पना करते हुए उसे अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव रहा था,,।
जैसे तैसे करके वह खानाबना ली लेकिन अपनी बुर की गर्मी उसे सहन नहीं हो रही थी इसलिए वह बाथरुम में जाकर अपने सारे कपड़े उतार कर एकदम नंगी हो गई और आते समय फ्रीज में से एक मोटा और लंबा बैंगन साथ लेकर आई थी जिसे वह अपनी एक टांग कमोड के ऊपर रखकर अपनी बुर के अंदर उस बैगन को डालकर अंदर बाहर करने लगी,,,,अपनी बुर में वह डाल तो रही थी पर 1 अंकों लेकिन उसकी कल्पना में उसकी बुर के अंदर उस बैगन की जगह उसके बेटे का मोटा तगड़ा था जिससे उसकी उत्तेजना और ज्यादा बढ़ रही थी,,जब जब वह अपने बेटे के बारे में कल्पना करती तब तब उसकी उत्तेजना अत्यधिक तीव्र हो जाती थी और उसे अत्यधिक आनंद की अनुभूति होती थी,,, ऐसा करके तो अपनी बुर की गर्मी को शांत कर ली लेकिन सुकून नहीं मिला,,,,

दूसरी तरफ सोनू आज बिना नाश्ता किए ही कॉलेज चला गया था क्योंकि झाड़ियों के अंदर का नजारा उसके भी दिलो-दिमाग पर छाया हुआ था उस नजारे से अत्याधिक काम वेदना वह अपनी मां के पिछवाड़े पर अपना लंड रगडने की वजह से महसूस कर रहा था,,,,बार-बार उसे वहीं पर याद आ रहा था जब वह पूरी तरह से अपनी मां की कमर थामे और अनजान बन जाऊंगा उसकी चूची को दबाते हुए जिस तरह से अपने लंड को उसकी गांड पर रख रहा था वही दृश्य उसकी आंखों के सामने बार बार घूम जा रहा था,, झाड़ियों के पीछे उन दोनों मां-बेटे की गरमा गरम चुदाई देखकर अब उसका भी मन करने लगा था अपनी मां को चोदने के लिए,,,अपने मन में यही सोच रहा था कि जिस तरह से उस लड़के को अपनी मां को चोदने में मजा आ रहा था उसे भी उसी तरह का मजा आएगा और उस औरत की तरह उसकी मां भी उसके मोटे तगड़े लंड से चुदवाकर संतुष्ट हो जाएगी,,,। यह सोचकर ही कॉलेज के अंदर उसका लंड खडा हो गया,,, जैसे तैसे करके वह अपने मन को दूसरी तरफ घुमाने की कोशिश करता था लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा था,,,, बार-बार उसका ध्यान अपनी मां के ऊपर ही चला जा रहा था अब उसे अपनी मां और ज्यादा खूबसूरत लगने लगी थी ऐसा नहीं था कि वह सुंदर नहीं थी उसकी मां बेहद खूबसूरत बेहद हसीन थी लेकिन अब अपनी मां के बारे में उसका देखने और सोचने का रवैया बदल चुका था इसकी वजह से उसकी मां उसे और भी अत्यधिक खूबसूरत और मादकता से भरी हुई नजर आती थी,,,, अब उसका ध्यान बार-बार अपनी मां की दोनों टांगों के बीच की पतली दरार की कल्पना करने में ही उलझ जाता था हालांकि उसने आज तक बुर का साक्षात दर्शन नहीं किया था लेकिन फिर भी उसके बारे में कल्पना करके मस्त हो जाता था,,,,,,।

कॉलेज से छुटते ही वह अपने घर चला गया,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी मां से नजर कैसे मिलाएगा,,, दूसरी तरफ उसकी मां सोनू के नाश्ता ना करके जाने की वजह से परेशान थी वो जानती थी कि वह किस लिए नाश्ता किए बिना चला गया वह शर्मिंदा हो गया इसलिए संध्या अपने मन में यही सोच रही थी कि उसके सामने ऐसी कोई भी बात नहीं करेगी जिससे वह फिर परेशान हो जाए वह उसके सामने सामान्य बनी रहेगी पहले की तरह ताकि वह सहज हो सके,,,। शगुन मेडिकल कॉलेज से छूटकर घर नहीं गई थी क्योंकि उसे कुछ बुक खरीदनी थी जो कि शहर से थोड़ी दूरी पर मिलती थी,,। आज उसके साथ कोई जाने वाला तैयार नहीं था वैसे तो उसकी सहेली उसके साथ जाती थी लेकिन आज उसकी तबीयत ठीक नहीं थी इसलिए बात नहीं आ सकी,,,, वह सोनू को फोन करके बुलाना चाहती थी लेकिन सोनु का मोबाइल स्विच ऑफ आ रहा था,,, थक हार कर वह अपने पापा को फोन लगा दी,,, जो कि कॉलेज के ही करीब थे,,,और वो 5 मिनट में ही शकुन के पास पहुंच गए,,,, शगुन आज सफेद रंग की कुर्ती और सलवार पहनी थी जो कि एकदम चुस्त थी जिसमें उसकी गोल गोल गांड कुछ ज्यादा ही उभर कर नजर आ रही थी,,,,, संजय शगुन को देखा तो देखता ही रह गया वह बहुत खूबसूरत लग रही थी,,,, कुछ दिनों से ना जाने क्यों सगुन को देखते ही संजय के तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगती थी,,, संजय देख तो सब उनको रहा था लेकिन उसका पूरा ध्यान उसके अमरुद पर थे,,, जो कि वह अच्छी तरह से जानता था कि सगुन के अमरुद बेहद स्वादिष्ट होंगे,,। उसके मुंह के साथ-साथ उसके लंड में भी पानी आ रहा था,,, संजय कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी ही बेटी के प्रति उसके देखने का रवैया इस कदर बदल जाएगा,,, अब वह शगुन को हमेशा गंदी नजरों से ही रहता था,,,

शगुन कार में आगे वाली सीट पर बैठ गई थी,,, शगुन के भी बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी,,, संजय ब्लैक रंग की ऑफिशियल पेंट के साथ आसमानी रंग का शर्ट पहना हुआ था जिससे उसकी पर्सनालिटी में चार चांद लग रहे थे अपने पापा की पर्सनैलिटी देखकर,,, शगुन मंत्र मुग्ध हुए जा रही थी,,।


और कैसी चल रही है पढ़ाई,,,(कार चलाते हुए संजय बोला)


अच्छी चल रही है पापा,,,


90% तो आ जाएंगे ना,,,,


कोशिश तो पूरी कर रही हूं आ जाना चाहिए,,,,


अगले महीने ही है ना एग्जाम,,,

हां पापा अगले ही महीने हैं,,,



मुझे निराश मत करना तुमसे मुझे बहुत उम्मीद है,,,।


मैं पूरी कोशिश करूंगी आप की उम्मीद पर खरी उतरने की,,,


हां ऐसा होना भी चाहिए आखिरकार आगे चलकर तुम्हीं को तो हॉस्पिटल संभालना है,,,, तुम भी मेरी तरह जानी-मानी डॉक्टर बनोगी,,,।



जी पापा,,,,(फ्रंट शीशे से बाहर देखते हुए बोली,,, लेकिन संजय जब भी उससे बात कर रहा था तो उसकी नजर उसकी सफेद रंग की कुर्ती के लो कट गले के डिजाइन पर ही था जिसमें से सगुन की संतरे जैसी चूचियां नजर आ रही थी,,, उसे देख कर संजय की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,,, तकरीबन 20 मिनट कार चलाने के बाद वह दुकान आ गई जहां पर वह किताब मिलती थी,,, एक जगह पर कार खड़ी करके दोनों कार से नीचे उतर गए और शगुन किताब लेने लगी,,, काउंटर पर कुछ लोग और खड़े थे,,, शगुन भी काउंटर पकड़ के खड़ी होगी और ठीक उसके पीछे संजय खड़ा हो गया,,, दुकान वाला बहुत ही व्यस्त था,,, वह देने वाला अकेला था और लेने वाले ढेर सारे लोग थोड़ा समय लगने लगा तो कुछ लोग और दुकान पर आ गए जिससे भीड़ लगने लगी,,, और संजय को थोड़ा और आगे खसकना पड़ा,,,,,, पीछे खड़े लोग भी उस दुकानदार से किताब देने की गुजारिश कर रहे थे लेकिन वो एक साथ किसको किसको किताब देता,,, वह पारी पारी से दे रहा था,,, देखते ही देखते लाइन लगना शुरू हो गई शगुन के अगल-बगल जो लोग खड़े थे,,, शगुन के आगे हो गए सगुन उनके पीछे और संजय अपनी बेटी सगुन के पीछे,,, संजय के तन बदन में करंट सा दौड़ने लगा,,, क्योंकि वह ठीक सगुन के पीछे खड़ा था जिससे उसका आगे वाला भाग शगुन के पिछवाड़े से स्पर्श कर रहा था,,,, पल भर में ही संजय की उत्तेजना बढ़ गई,,, और पेंट के अंदर उसका लैंड खड़ा होने लगा,,,पीछे से लोग सफल नहीं रहे थे वह आगे की तरफ लगभग लगभग धक्का दे दे रहे थे जिससे संजय भी आगे की तरफ लुढ़क सा जा रहा था लेकिन ऐसा करने पर संजय का लंड जो कि पैंट के अंदर खड़ा हो चुका था वह सीधे,, जाकर शगुन की गांड से टकरा जा रहा था सगुन की हालत खराब होने लगी,,, क्योंकि उसे अच्छी तरह से समझ में आ गया कि उसकी गांड़ पर जो कठोर चीजें चूभ रही है वह क्या है,,, पहली बार जब उसे अपनी गांड पर नुकीली चीज चिली तब ऊसे समझ में नहीं आया कि वह क्या है,,, उसे इस बात का एहसास तो हो रहा था कि जो कुछ भी उसकी गांड पर चुभ रहा है वह कुछ और ही है लेकिन जब दोबारा उसे अपनी गांड की दरार के बीचो बीच वह चीज चुभी तो उसके होश उड़ गए उसे पता था कि उसके ठीक पीछे उसके पापा खड़े हैं आश्चर्य चकित हो गई वह अपने आप से ही अपने मन में बोली अरे यह तो पापा का लंड है,,,,। उसकी आंखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गई लेकिन उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी खास करके उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में,,,,यह एहसास उसे अद्भुत सुख की तरफ ले जा रहा था कि उसकी गांड पर चुभने वाला अंग उसके बाप का लंड है पहली बार उसकी गांड पर कोई मर्दाना अंग स्पर्श हुआ था,,, जिससे उसके तन बदन में सुरसुरी सी दौड़ने लगी थी,,, संजय की तो हालत खराब हो गई थी,,, उसे भी मजा आ रहा था अब उससे पीछे खड़े लोग धक्का नहीं लगा रहे थे लेकिन फिर भी वह जानबूझकर थोड़ा आगे की तरफ आ गया था जिससे लगातार उसके पेंट में बना तंबू उसकी बेटी की गांड पर स्पर्श हो रहा था,,, संजय का मन मचल रहा था वह अपने होश में नहीं था वह मदहोश होने लगा था अगर कोई और जगह होती तो शायद वह अपने हाथों से अपनी बेटी की सलवार की डोरी खोलकर सलवार को नीचे टांगो तक सरका कर उसकी बुर में अपना लंड डाल दिया होता,,, लेकिन वह भीड़ की वजह से मजबूर था और यह सब उनका भी हो रहा था वह दिन रात जिस लंड की कल्पना कीया करती थी उसका स्पर्श आज उसकी कांड पर हो रहा था और सलवार इतनी चूस्त थी कि उसे अपने पापा के लंड का स्पर्श,,, बहुत अच्छी तरह से हो रहा था,,, सलवार का कपड़ा एकदम पतला होने की वजह से,, उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे,,, उसके पापा का लंड उसकी नंगी गांड पर स्पर्श हो रहा है,, इस दुकान में आकर दोनों को अच्छा ही लग रहा था दोनों अपनी-अपनी तरह से सुख प्राप्त कर रहे थे,,,, लगातार संजय का लंड पेंट में होने के बावजूद भी शगुन की गांड से स्पर्श हो रहा था,,।
शगुन का नंबर आने वाला था और संजय एहतियात के तौर पर उसे थोड़ा सा हटके खड़ा हो गया लेकिन शगुन एकदम से मचल उठी उसकी गांड पर उसके पापा कर लंड स्पर्श ना होता देख कर वह हैरान हो गई,,, उसे अपने पापा के लंड की मजबूती उसकी कठोरता अपनी गांड पर बेहद अच्छी लग रही थी,,, इसलिए उससे रहा नहीं गया और उसका नंबर आते ही वह किताब के लिस्ट उस दुकानदार को थमा कर आराम करने की मुद्रा में उस काउंटर पर अपने दोनों हाथों की कोहनी रखकर झुक कर खड़ी हो गई और इस तरह से झुकने पर उसकी गोलाकार गाने सीधे उसके पापा की लंड के आगे वाले भाग से टकरा गई,,, अभी भी संजय की पैंट में तंबू बना हुआ था और एकाएक शगुन के झुकने की वजह से उसका संपूर्ण गोलाकार नितंब,, संजय के तंबू से टकरा गई,,, संजय के तन बदन में फिर से एक बार बिजली दौड़ने लगी उसकी इच्छा हो रही थी कि अपनी बेटी की कमर दोनों हाथों से पकड़कर सलवार के ऊपर से ही उसकी गांड पर अपना लंड रगड़ ले लेकिन वह कुछ सेकेंड तक उसी अवस्था में खड़ा रहा और वापस कदम खींच लिया तब तक सगुन की किताब निकल चुकी थी,,,

थोड़ी ही देर में दोनों दुकान से बाहर आ गए,,, संजय और सगुन दोनों की हालत खराब थी,,, संजय इस जगह पर बहुत बार आ चुका था,,, इसलिए उसे मालूम था कि थोड़ी दूर पर नाश्ते की दुकान है,,, उसे भूख लगी थी जाहिर था कि सगुन को भी लगी होगी,,, इसलिए वह सगुन से बोला,,,।


आगे ही नाश्ते की दुकान है चलो थोड़ा नाश्ता कर लेते हैं,,,(संजय कार का दरवाजा खोलते हुए बोला,, लेकिन शगुन कुछ बोल नहीं पाई क्योंकि किताबों की दुकान में जो कुछ भी हुआ था उसे से अभी भी उसके तन बदन में अजीब सी सिरहन सी दौड़ रही थी उसे साफ एहसास हो रहा था कि ऊसकी पेंटिं धीरे-धीरे गिली हो चुकी थी,,। वह भी कार का दूसरा दरवाजा खोल कर आगे की सीट पर बैठ गई और संजय कार आगे बढ़ा दिया,,,,,, संजय की हालत खराब थी आज पहली बार वह अपनी बेटी के पिछवाड़े पर अपने लंड का रगड महसूस किया था,,, संजय को उसकी बेटी ने पूरी तरह से गर्म करके रख दी थी,,, संजय को इस बात का अहसास हो गया था कि,, उसकी बेटी गर्म जवानी से भरी हुई है,,, बार-बार संजय को उसकी बेटी की वह हरकत याद आ रही थी जब वह काउंटर पर अपने दोनों कहानियों के सहारे खड़ी होकर अपनी गांड को पीछे की तरफ कर दी थी जिससे,, शगुन की गांड ठीक उसके लंड पर जाकर टकरा गई थी,,,, उस पल को और इस हरकत को याद करके अभी तक संजय कि सांसे दुरुस्त नहीं हो पाई थी,, शगुन की भी हालत ठीक संजय की ही तरह थी,,, क्योंकि जवानी के इस दौर से गुजरते हुए पहली बार उसके पिछवाड़े पर लंड की चुभन जो ऊसे महसूस हुई थी,, दोनों के लिए किताब की दुकान वाला वह पल बेहद उत्तेजना से भरा हुआ था,,।

कच्ची सड़क से कार गुजर रही थी,,, शगुन को समझ में नहीं आ रहा था कि उसके पापा कहां लिए जा रहे हैं,,, इसलिए वह अपने पापा से बोली,,,।


यहां कहां जा रहे हो पापा,,,


तुम शायद नहीं जानती,,, जहां मै ले चल रहा हूं वहां के समोसे और पकोड़े बहुत मशहूर है,,,, वो देख रही हो,,,(स्टीयरिंग संभालते हुए दूसरे हाथ की उंगली से इशारा करके दूर की दुकान दिखाने लगे जोकी दूर से कोई खास नहीं लग रही थी,,, और वह एक बड़े पेड़ के नीचे थी और चारों तरफ खेत नजर आ रहे थे यह जगह शहर से बाहर की और थी इसलिए यहां पर इस तरह के नजारे देखने को मिल ही जाते थे,,,) वहीं दुकान है समोसे और पकौड़े कि मैं जब यहां से गुजरता हूं तो,,, यहां के पकोड़े और समोसे खा कर जाता हूं तुम्हें पहली बार आई हो इसलिए सोचा कि तुम्हें भी खिला दुं,,,,,
(इतना कहते हुए संजय धीरे-धीरे कार आगे बढ़ाने लगा लेकिन आगे का रास्ता ठीक नहीं था इसलिए कार वहू खड़ी करके वह दोनों उतरकर पैदल जाने लगे थोड़ी देर में वह समोसे और पकोड़े की दुकान आ गई दुकानदार गरमा गरम पकोड़े और समोसे के साथ-साथ गरमा गरम जलेबीया भी छान रहा था,,,। गरमा गरम जलेबी को देखकर शगुन के मुंह में पानी आ गया,,, आज भीड़ भाड़ बिल्कुल कम थी इसका मतलब साफ था कि अभी ग्राहकी शुरू हुई थी शाम ढलने से पहले ही ग्राहकों का झुंड नजर आता था,,, संजय और शगुन एक टेबल पर बैठ गए और वहां काम करने वाला एक छोकरा आर्डर लेने के लिए आया,,,, संजय ने उसे समोसे पकौड़े और जलेबीया लाने के लिए बोला,,, सगुन अपने पापा से ठीक से नजर नहीं मिला पा रही थी,,, उसे शर्म महसूस हो रही थी,,,, थोड़ी ही देर में वो लड़का गरमा गरम जलेबी समोसे और पकौड़े ले आया,,,, शगुन को सबसे ज्यादा जलेबी अच्छी लग रही थी वह जलेबी खा रही थी और संजय समोसे लेकिन समोसा खाते समय वह सगुन को तिरछी नजरों से देख ले रहा था,,, और अपनी मन नहीं कह रहा था कि,,, शगुन इतनी ज्यादा खूबसूरत और सेक्सी होगी इस बात का मुझे अंदाजा नहीं था,,, कुछ पल में ही इसने तो मेरी हालत खराब कर दी अगर कुछ देर और भी अपनी गांड मेरे लंड से सटाए होती तो,,,मेरा तो पानी निकल जाता,,,।यही सोचकर बार एक बार फिर से गर्म होने लगा उसके पैंट में उसका लंड फिर से खड़ा होकर अपनी ही बेटी की जवानी को सलामी भरने लगा,,, समोसे से ज्यादा गर्म उसे अपनी बेटी शगुन लग रही थी,,, जलेबी खाते समय वहां उसके रस को जीभ बाहर निकाल कर चाट रही थी,,, और सगुन की इस अदा पर संजय पूरी तरह से फिदा हो गया अपनी बेटी को इस तरह से जी बाहर निकालकर जलेबी के रस को चाटते हुए देखकर उसकी कल्पनाओं का घोड़ा बड़ी तेजी से दौड़ने लगा वह ऐसा कल्पना करने लगा कि उसके लंड को उसकी बेटी जीभ बाहर निकाल कर चाट रही हैं,,, यह कल्पना संजय के लिए हकीकत से भी कहीं ज्यादा खूबसूरत और उन्माद से भरा हुआ महसूस हो रहा था,,, अब उसका खाने में बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था कुछ देर के लिए शगुन गरमा गरम रसीली जलेबी देख कर और उसे खाते हुए यह भूल गई थी कि किताब की दुकान में क्या हुआ था इसलिए वह पूरी तरह से सामान्य थी,,, संजय का लंड पूरी तरह से अकड चुका था पूरा बदन अपनी बेटी की गर्म जवानी की गर्मी से पिघलता हुआ महसूस हो रहा था इसलिए उसे बड़ी जोरों की पेशाब लगी हुई थी,,,वह नाश्ता कर चुका था,,, इसलिए टेबल पर से उठा और दुकान के पीछे की तरफ जाने लगा शगुन अपने पापा को दुकान के पीछे जाते हुए देख रही थी भीड़ भाड़ बिल्कुल भी नहीं थी इसलिए वो भी निश्चिंत होकर नाश्ता कर रही थी,,। नाश्ता खत्म होते ही उसे पानी पीना थाउसे लगा कि उसके पापा दुकान के पीछे पानी पीने के लिए और हाथ धोने के लिए कि नहीं इसलिए वह भी टेबल पर से उठी और दुकान के पीछे की तरफ चल दी वह अपनी मस्ती में मस्त थी,,, जैसे ही वह दुकान के पीछे पहुंची उसके पापा उसे झाड़ियों के बीच खड़े हुए दिखाई दिए उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसके पापा वहां झाड़ियों के बीच खड़े होकर क्या कर रहे हैं,,, लेकिन तभी उसे सारा माजरा समझ में आ गया जब उसकी नजर उसके पापा की खड़े लंड पर पड़ी जो कि इस समय उसके पापा के हाथ में था,,, उस नजारे को देखते ही उसकी सांसे थम गई उसकी आंखें फटी की फटी रह गई वह अपने पापा की खाड़ी लैंड को देख रही थी जो कि तकरीबन 8 इंच का था और काफी मोटा था उसके पापा के हाथ में था उसमें से पेशाब की तेज धार निकल रही थी,,, शगुन के लिए यह पहला मौका था जब वह किसी मर्द को इस तरह से पेशाब करते हुए देख रही थी और वह भी खुद के पापा को,,, अपने पापा के खड़े मोटे तगड़े लंड को देखकर उसकी टांगों के बीच सिहरन सी दौड़ने लगी,,, शगुन की नजर अपने पापा के खड़े लंड पर से हट नहीं रही थी,,, वह अपने मन में सोचने लगी कि यह वही लंड है जो कुछ देर पहले किताब की दुकान में उसकी गांड पर चुभ रहा था,,, अच्छा हुआ कि वह सलवार पहनी हुई थी वरना पापा का लंड बुर में घुस जाता,,, अपने मन में यह सोचते हुए वह पूरी तरह से उत्तेजित हुए जा रही थी और फिर अपने आप से ही बातें करते हुए वह बोली काश वह सलवार ना पहनी होती कमर के नीचे से पूरी तरह से नंगी होती तो उसके पापा का लंड उसकी बुर में घुस जाता,,, कितना मजा आता ,,, लेकिन फिर वह अपने मन में सोचने लगी कि क्या इतना मोटा और लंबा लंड उसके छोटी सी बुर की गुलाबी छेद में घुस पाता,,,, यह सोचकर उसका बदन सिहर उठा,,, दूसरी तरफ संजय इस बात से पूरी तरह से निश्चिंत की उसकी बेटी ऊसे पेशाब करती हुई देख रही है वह अपनी ही मस्ती में,,, अपने खड़े लंड को हाथ से पकड़ कर पेशाब कर रहा था,,, संजय पेशाब कर चुका है इसलिए लंड की नशो मैं ठहरी हुई आखरी बूंदों को भी बाहर निकालने के लिए वह अपने खड़े लंड को उपर नीचे करके जोर-जोर से हिलाने लगा और इस तरह से अपने पापा को वह मोटे तगड़े लंड को हिलाते हुए देखकर पूरी तरह से सिहर उठी,,,, उससे अब एक पल भी वहां रुक पाना मुश्किल हुआ जा रहा था इसलिए वह तुरंत वहां से दबे पांव वापस लौट आई,,, और टेबल पर आकर बैठ गई उसकी हालत खराब हो गई थी चेहरे पर शर्म की लाली छाने लगी थी,,,, कुछ ही देर में उसके पापा आते हुए दिखाई दिए,,, और पास में ही बनी हेडपंप पर हाथ धोने लगे,,, उसे अपनी गलती पर शर्मिंदगी महसूस होने लगी क्योंकि पास में ही नल होने के बावजूद भी उसकी नजर उस पर नहीं पड़ी और वह यही सोच रही थी कि उसके पापा दुकान के पीछे पानी पीने के लिए गए हैं,,, लेकिन एक तरह से उसे अपनी ही गलती पर,, गुस्सा नहीं आ रहा था क्योंकि उसकी गलती ने उसे ऐसा नजारा दिखाया था कि उसे मजा आ गया था,,, वह भी उठी और घर पर हाथ मुंह धो कर पानी पीकर कार की तरफ जाने लगी उसके पापा पैसे चुका रहे थे उसे भी जोरों की कसम लगी हुई थी खासकर के उत्तेजना की वजह से,,, लेकिन पेशाब कहां करें यह उसे समझ में नहीं आ रहा था,,, सोचते सोचते वह कार के पास पहुंच गई,,,, उसके पापा आप ही पी थोड़ी दूर पर थे और धीरे-धीरे आ रहे हैं,,,उसे जोड़ों की पेशाब लगी हुई थी उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था इसलिए वह कार के पीछे जा कर अपनी सलवार की डोरी खोलने लगी,,, और सलवार के ढीली होती है वह तुरंत अपनी सलवार को घुटनों तक कर के नीचे बैठ गई और सुरसुराहट की आवाज के साथ पेशाब करने लगी,,,,, शगुन कार की ओट में पीछे बैठी हुई थी इसलिए संजय को वह नजर नहीं आई थी वह चारों तरफ नजर घुमा कर उसे ढूंढ रहा था,,,
तभी सगुन पेशाब कर ली और खडी हो गई,,, संजय की नजर कार के पीछे शगुन पर पड़ी तो उसके होश उड़ गए,,, क्योंकि बहुत आगे बोलने वाली जगह की ओट के नीचे बैठ कर पेशाब कर रही थी और खड़ी होने पर उसकी गोरी गोरी गांड नजर अाने लगी संजय के तो होश उड़ गए उसकी आंखों में चमक आ गई,,, संजय को समझ पाता इससे पहले वह अपनी सलवार कमर तक उठाकर डोरी बांधने लगी थी तकरीबन 2 सेकंड का ही यह दृश्य था लेकिन इस 2 सेकेंड के अंदर उसने अपनी बेटी की भरपूर जवानी से भरी हुई गोल गोल गांड को एकदम नंगी देख चुका था,,, संजय को समझ पाता इससे पहले शगुन अपनी सलवार की डोरी बांधकर अपने कपड़ों को व्यवस्थित करके पीछे मुड़ी तो उसकी नजर अपने पापा पर पड़ी जो कि उसकी तरफ ही देख रहे थे,,, शगुन को समझते देर नहीं लगी कि,, उसके पापा ने बहुत कुछ देख लिया है खास करके उसकी गोरी गोरी गांड को,, क्योंकि वह बोले की ऊंचाई से अपनी कमर तक की लंबाई को नाप चुकी थी,,,, जहां से अच्छी तरह से उसकी गांड को देखा जा सकता था,,, उसे यकीन हो गया था कि उसके पापा ने उसकी गांड को देख लिया है,,, दोनों की नजरें आपस में टकरा चुकी थी और एक पल के लिए दोनों एक दूसरे की आंखों में देखते हुए शर्म के मारे दूसरी तरफ नजर फेर लिए,,, दोनों कार में बैठ गए और बिना कुछ बोले थोड़ी ही देर बाद घर पहुंच गए,,,।
Bahot behtareen zaberdast shaandaar update bhai
 

Nasn

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आज जो कुछ भी हुआ था जो कुछ भी दोनों मां बेटो ने देखा था,, वह उनके दिलो-दिमाग पर पूरी तरह से छाया हुआ था,,,संध्या का मन बिल्कुल भी घर के कामों में नहीं लग रहा था बार-बार उसकी आंखों के सामने झाड़ियों के अंदर का दृश्य नजर आ रहा था,,, जिस तरह से वह लड़का अपनी मां को चोद रहा था और जिस तरह से मजे ले कर उसकी मां खुद अपने बेटे से चुदवा रही थी,,, वह देखकर संध्या की बुर बार-बार गीली हो जा रही थी,,, उसे नहीं है कि नहीं हो रहा था कि उसकी आंखें जो कुछ भी देखी है वह सच है,,,बार-बार उसके दिमाग में यही सवाल घूम रहा था कि एक बेटा अपनी मां को कैसे चोद सकता है और एक मां अपने बेटे से कैसे चुदवा सकती है,,,, दोनों एक दूसरे से प्रेमी प्रेमिका की तरह मजा ले रहे थे,,, खाना बनाते समय उस दृश्य को याद करके संध्या की सांसे भारी हो जा रही थी,,, और उस दृश्य को देखते हुए उसका बेटा जिस तरह से गर्म होकर अपने खड़े लंड को पजामे के अंदर से ही उसकी पजामी पर रगड़ रहा था,,, और ऊसके लंड के कड़क पन को अपनी बुर पर महसूस करके जिस तरह से वह उत्तेजित हुई थी बार-बार वह अपनी कल्पना ने उस लड़के की जगह अपने बेटे को और उस औरत किसी का अपने आप को रखकर उस कल्पना का भरपूर आनंद ले रही थी,,,अपने बेटे के साथ संभोग की कल्पना करते हुए उसे अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव रहा था,,।
जैसे तैसे करके वह खानाबना ली लेकिन अपनी बुर की गर्मी उसे सहन नहीं हो रही थी इसलिए वह बाथरुम में जाकर अपने सारे कपड़े उतार कर एकदम नंगी हो गई और आते समय फ्रीज में से एक मोटा और लंबा बैंगन साथ लेकर आई थी जिसे वह अपनी एक टांग कमोड के ऊपर रखकर अपनी बुर के अंदर उस बैगन को डालकर अंदर बाहर करने लगी,,,,अपनी बुर में वह डाल तो रही थी पर 1 अंकों लेकिन उसकी कल्पना में उसकी बुर के अंदर उस बैगन की जगह उसके बेटे का मोटा तगड़ा था जिससे उसकी उत्तेजना और ज्यादा बढ़ रही थी,,जब जब वह अपने बेटे के बारे में कल्पना करती तब तब उसकी उत्तेजना अत्यधिक तीव्र हो जाती थी और उसे अत्यधिक आनंद की अनुभूति होती थी,,, ऐसा करके तो अपनी बुर की गर्मी को शांत कर ली लेकिन सुकून नहीं मिला,,,,

दूसरी तरफ सोनू आज बिना नाश्ता किए ही कॉलेज चला गया था क्योंकि झाड़ियों के अंदर का नजारा उसके भी दिलो-दिमाग पर छाया हुआ था उस नजारे से अत्याधिक काम वेदना वह अपनी मां के पिछवाड़े पर अपना लंड रगडने की वजह से महसूस कर रहा था,,,,बार-बार उसे वहीं पर याद आ रहा था जब वह पूरी तरह से अपनी मां की कमर थामे और अनजान बन जाऊंगा उसकी चूची को दबाते हुए जिस तरह से अपने लंड को उसकी गांड पर रख रहा था वही दृश्य उसकी आंखों के सामने बार बार घूम जा रहा था,, झाड़ियों के पीछे उन दोनों मां-बेटे की गरमा गरम चुदाई देखकर अब उसका भी मन करने लगा था अपनी मां को चोदने के लिए,,,अपने मन में यही सोच रहा था कि जिस तरह से उस लड़के को अपनी मां को चोदने में मजा आ रहा था उसे भी उसी तरह का मजा आएगा और उस औरत की तरह उसकी मां भी उसके मोटे तगड़े लंड से चुदवाकर संतुष्ट हो जाएगी,,,। यह सोचकर ही कॉलेज के अंदर उसका लंड खडा हो गया,,, जैसे तैसे करके वह अपने मन को दूसरी तरफ घुमाने की कोशिश करता था लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा था,,,, बार-बार उसका ध्यान अपनी मां के ऊपर ही चला जा रहा था अब उसे अपनी मां और ज्यादा खूबसूरत लगने लगी थी ऐसा नहीं था कि वह सुंदर नहीं थी उसकी मां बेहद खूबसूरत बेहद हसीन थी लेकिन अब अपनी मां के बारे में उसका देखने और सोचने का रवैया बदल चुका था इसकी वजह से उसकी मां उसे और भी अत्यधिक खूबसूरत और मादकता से भरी हुई नजर आती थी,,,, अब उसका ध्यान बार-बार अपनी मां की दोनों टांगों के बीच की पतली दरार की कल्पना करने में ही उलझ जाता था हालांकि उसने आज तक बुर का साक्षात दर्शन नहीं किया था लेकिन फिर भी उसके बारे में कल्पना करके मस्त हो जाता था,,,,,,।

कॉलेज से छुटते ही वह अपने घर चला गया,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी मां से नजर कैसे मिलाएगा,,, दूसरी तरफ उसकी मां सोनू के नाश्ता ना करके जाने की वजह से परेशान थी वो जानती थी कि वह किस लिए नाश्ता किए बिना चला गया वह शर्मिंदा हो गया इसलिए संध्या अपने मन में यही सोच रही थी कि उसके सामने ऐसी कोई भी बात नहीं करेगी जिससे वह फिर परेशान हो जाए वह उसके सामने सामान्य बनी रहेगी पहले की तरह ताकि वह सहज हो सके,,,। शगुन मेडिकल कॉलेज से छूटकर घर नहीं गई थी क्योंकि उसे कुछ बुक खरीदनी थी जो कि शहर से थोड़ी दूरी पर मिलती थी,,। आज उसके साथ कोई जाने वाला तैयार नहीं था वैसे तो उसकी सहेली उसके साथ जाती थी लेकिन आज उसकी तबीयत ठीक नहीं थी इसलिए बात नहीं आ सकी,,,, वह सोनू को फोन करके बुलाना चाहती थी लेकिन सोनु का मोबाइल स्विच ऑफ आ रहा था,,, थक हार कर वह अपने पापा को फोन लगा दी,,, जो कि कॉलेज के ही करीब थे,,,और वो 5 मिनट में ही शकुन के पास पहुंच गए,,,, शगुन आज सफेद रंग की कुर्ती और सलवार पहनी थी जो कि एकदम चुस्त थी जिसमें उसकी गोल गोल गांड कुछ ज्यादा ही उभर कर नजर आ रही थी,,,,, संजय शगुन को देखा तो देखता ही रह गया वह बहुत खूबसूरत लग रही थी,,,, कुछ दिनों से ना जाने क्यों सगुन को देखते ही संजय के तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगती थी,,, संजय देख तो सब उनको रहा था लेकिन उसका पूरा ध्यान उसके अमरुद पर थे,,, जो कि वह अच्छी तरह से जानता था कि सगुन के अमरुद बेहद स्वादिष्ट होंगे,,। उसके मुंह के साथ-साथ उसके लंड में भी पानी आ रहा था,,, संजय कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी ही बेटी के प्रति उसके देखने का रवैया इस कदर बदल जाएगा,,, अब वह शगुन को हमेशा गंदी नजरों से ही रहता था,,,

शगुन कार में आगे वाली सीट पर बैठ गई थी,,, शगुन के भी बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी,,, संजय ब्लैक रंग की ऑफिशियल पेंट के साथ आसमानी रंग का शर्ट पहना हुआ था जिससे उसकी पर्सनालिटी में चार चांद लग रहे थे अपने पापा की पर्सनैलिटी देखकर,,, शगुन मंत्र मुग्ध हुए जा रही थी,,।


और कैसी चल रही है पढ़ाई,,,(कार चलाते हुए संजय बोला)


अच्छी चल रही है पापा,,,


90% तो आ जाएंगे ना,,,,


कोशिश तो पूरी कर रही हूं आ जाना चाहिए,,,,


अगले महीने ही है ना एग्जाम,,,

हां पापा अगले ही महीने हैं,,,



मुझे निराश मत करना तुमसे मुझे बहुत उम्मीद है,,,।


मैं पूरी कोशिश करूंगी आप की उम्मीद पर खरी उतरने की,,,


हां ऐसा होना भी चाहिए आखिरकार आगे चलकर तुम्हीं को तो हॉस्पिटल संभालना है,,,, तुम भी मेरी तरह जानी-मानी डॉक्टर बनोगी,,,।



जी पापा,,,,(फ्रंट शीशे से बाहर देखते हुए बोली,,, लेकिन संजय जब भी उससे बात कर रहा था तो उसकी नजर उसकी सफेद रंग की कुर्ती के लो कट गले के डिजाइन पर ही था जिसमें से सगुन की संतरे जैसी चूचियां नजर आ रही थी,,, उसे देख कर संजय की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,,, तकरीबन 20 मिनट कार चलाने के बाद वह दुकान आ गई जहां पर वह किताब मिलती थी,,, एक जगह पर कार खड़ी करके दोनों कार से नीचे उतर गए और शगुन किताब लेने लगी,,, काउंटर पर कुछ लोग और खड़े थे,,, शगुन भी काउंटर पकड़ के खड़ी होगी और ठीक उसके पीछे संजय खड़ा हो गया,,, दुकान वाला बहुत ही व्यस्त था,,, वह देने वाला अकेला था और लेने वाले ढेर सारे लोग थोड़ा समय लगने लगा तो कुछ लोग और दुकान पर आ गए जिससे भीड़ लगने लगी,,, और संजय को थोड़ा और आगे खसकना पड़ा,,,,,, पीछे खड़े लोग भी उस दुकानदार से किताब देने की गुजारिश कर रहे थे लेकिन वो एक साथ किसको किसको किताब देता,,, वह पारी पारी से दे रहा था,,, देखते ही देखते लाइन लगना शुरू हो गई शगुन के अगल-बगल जो लोग खड़े थे,,, शगुन के आगे हो गए सगुन उनके पीछे और संजय अपनी बेटी सगुन के पीछे,,, संजय के तन बदन में करंट सा दौड़ने लगा,,, क्योंकि वह ठीक सगुन के पीछे खड़ा था जिससे उसका आगे वाला भाग शगुन के पिछवाड़े से स्पर्श कर रहा था,,,, पल भर में ही संजय की उत्तेजना बढ़ गई,,, और पेंट के अंदर उसका लैंड खड़ा होने लगा,,,पीछे से लोग सफल नहीं रहे थे वह आगे की तरफ लगभग लगभग धक्का दे दे रहे थे जिससे संजय भी आगे की तरफ लुढ़क सा जा रहा था लेकिन ऐसा करने पर संजय का लंड जो कि पैंट के अंदर खड़ा हो चुका था वह सीधे,, जाकर शगुन की गांड से टकरा जा रहा था सगुन की हालत खराब होने लगी,,, क्योंकि उसे अच्छी तरह से समझ में आ गया कि उसकी गांड़ पर जो कठोर चीजें चूभ रही है वह क्या है,,, पहली बार जब उसे अपनी गांड पर नुकीली चीज चिली तब ऊसे समझ में नहीं आया कि वह क्या है,,, उसे इस बात का एहसास तो हो रहा था कि जो कुछ भी उसकी गांड पर चुभ रहा है वह कुछ और ही है लेकिन जब दोबारा उसे अपनी गांड की दरार के बीचो बीच वह चीज चुभी तो उसके होश उड़ गए उसे पता था कि उसके ठीक पीछे उसके पापा खड़े हैं आश्चर्य चकित हो गई वह अपने आप से ही अपने मन में बोली अरे यह तो पापा का लंड है,,,,। उसकी आंखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गई लेकिन उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी खास करके उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में,,,,यह एहसास उसे अद्भुत सुख की तरफ ले जा रहा था कि उसकी गांड पर चुभने वाला अंग उसके बाप का लंड है पहली बार उसकी गांड पर कोई मर्दाना अंग स्पर्श हुआ था,,, जिससे उसके तन बदन में सुरसुरी सी दौड़ने लगी थी,,, संजय की तो हालत खराब हो गई थी,,, उसे भी मजा आ रहा था अब उससे पीछे खड़े लोग धक्का नहीं लगा रहे थे लेकिन फिर भी वह जानबूझकर थोड़ा आगे की तरफ आ गया था जिससे लगातार उसके पेंट में बना तंबू उसकी बेटी की गांड पर स्पर्श हो रहा था,,, संजय का मन मचल रहा था वह अपने होश में नहीं था वह मदहोश होने लगा था अगर कोई और जगह होती तो शायद वह अपने हाथों से अपनी बेटी की सलवार की डोरी खोलकर सलवार को नीचे टांगो तक सरका कर उसकी बुर में अपना लंड डाल दिया होता,,, लेकिन वह भीड़ की वजह से मजबूर था और यह सब उनका भी हो रहा था वह दिन रात जिस लंड की कल्पना कीया करती थी उसका स्पर्श आज उसकी कांड पर हो रहा था और सलवार इतनी चूस्त थी कि उसे अपने पापा के लंड का स्पर्श,,, बहुत अच्छी तरह से हो रहा था,,, सलवार का कपड़ा एकदम पतला होने की वजह से,, उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे,,, उसके पापा का लंड उसकी नंगी गांड पर स्पर्श हो रहा है,, इस दुकान में आकर दोनों को अच्छा ही लग रहा था दोनों अपनी-अपनी तरह से सुख प्राप्त कर रहे थे,,,, लगातार संजय का लंड पेंट में होने के बावजूद भी शगुन की गांड से स्पर्श हो रहा था,,।
शगुन का नंबर आने वाला था और संजय एहतियात के तौर पर उसे थोड़ा सा हटके खड़ा हो गया लेकिन शगुन एकदम से मचल उठी उसकी गांड पर उसके पापा कर लंड स्पर्श ना होता देख कर वह हैरान हो गई,,, उसे अपने पापा के लंड की मजबूती उसकी कठोरता अपनी गांड पर बेहद अच्छी लग रही थी,,, इसलिए उससे रहा नहीं गया और उसका नंबर आते ही वह किताब के लिस्ट उस दुकानदार को थमा कर आराम करने की मुद्रा में उस काउंटर पर अपने दोनों हाथों की कोहनी रखकर झुक कर खड़ी हो गई और इस तरह से झुकने पर उसकी गोलाकार गाने सीधे उसके पापा की लंड के आगे वाले भाग से टकरा गई,,, अभी भी संजय की पैंट में तंबू बना हुआ था और एकाएक शगुन के झुकने की वजह से उसका संपूर्ण गोलाकार नितंब,, संजय के तंबू से टकरा गई,,, संजय के तन बदन में फिर से एक बार बिजली दौड़ने लगी उसकी इच्छा हो रही थी कि अपनी बेटी की कमर दोनों हाथों से पकड़कर सलवार के ऊपर से ही उसकी गांड पर अपना लंड रगड़ ले लेकिन वह कुछ सेकेंड तक उसी अवस्था में खड़ा रहा और वापस कदम खींच लिया तब तक सगुन की किताब निकल चुकी थी,,,

थोड़ी ही देर में दोनों दुकान से बाहर आ गए,,, संजय और सगुन दोनों की हालत खराब थी,,, संजय इस जगह पर बहुत बार आ चुका था,,, इसलिए उसे मालूम था कि थोड़ी दूर पर नाश्ते की दुकान है,,, उसे भूख लगी थी जाहिर था कि सगुन को भी लगी होगी,,, इसलिए वह सगुन से बोला,,,।


आगे ही नाश्ते की दुकान है चलो थोड़ा नाश्ता कर लेते हैं,,,(संजय कार का दरवाजा खोलते हुए बोला,, लेकिन शगुन कुछ बोल नहीं पाई क्योंकि किताबों की दुकान में जो कुछ भी हुआ था उसे से अभी भी उसके तन बदन में अजीब सी सिरहन सी दौड़ रही थी उसे साफ एहसास हो रहा था कि ऊसकी पेंटिं धीरे-धीरे गिली हो चुकी थी,,। वह भी कार का दूसरा दरवाजा खोल कर आगे की सीट पर बैठ गई और संजय कार आगे बढ़ा दिया,,,,,, संजय की हालत खराब थी आज पहली बार वह अपनी बेटी के पिछवाड़े पर अपने लंड का रगड महसूस किया था,,, संजय को उसकी बेटी ने पूरी तरह से गर्म करके रख दी थी,,, संजय को इस बात का अहसास हो गया था कि,, उसकी बेटी गर्म जवानी से भरी हुई है,,, बार-बार संजय को उसकी बेटी की वह हरकत याद आ रही थी जब वह काउंटर पर अपने दोनों कहानियों के सहारे खड़ी होकर अपनी गांड को पीछे की तरफ कर दी थी जिससे,, शगुन की गांड ठीक उसके लंड पर जाकर टकरा गई थी,,,, उस पल को और इस हरकत को याद करके अभी तक संजय कि सांसे दुरुस्त नहीं हो पाई थी,, शगुन की भी हालत ठीक संजय की ही तरह थी,,, क्योंकि जवानी के इस दौर से गुजरते हुए पहली बार उसके पिछवाड़े पर लंड की चुभन जो ऊसे महसूस हुई थी,, दोनों के लिए किताब की दुकान वाला वह पल बेहद उत्तेजना से भरा हुआ था,,।

कच्ची सड़क से कार गुजर रही थी,,, शगुन को समझ में नहीं आ रहा था कि उसके पापा कहां लिए जा रहे हैं,,, इसलिए वह अपने पापा से बोली,,,।


यहां कहां जा रहे हो पापा,,,


तुम शायद नहीं जानती,,, जहां मै ले चल रहा हूं वहां के समोसे और पकोड़े बहुत मशहूर है,,,, वो देख रही हो,,,(स्टीयरिंग संभालते हुए दूसरे हाथ की उंगली से इशारा करके दूर की दुकान दिखाने लगे जोकी दूर से कोई खास नहीं लग रही थी,,, और वह एक बड़े पेड़ के नीचे थी और चारों तरफ खेत नजर आ रहे थे यह जगह शहर से बाहर की और थी इसलिए यहां पर इस तरह के नजारे देखने को मिल ही जाते थे,,,) वहीं दुकान है समोसे और पकौड़े कि मैं जब यहां से गुजरता हूं तो,,, यहां के पकोड़े और समोसे खा कर जाता हूं तुम्हें पहली बार आई हो इसलिए सोचा कि तुम्हें भी खिला दुं,,,,,
(इतना कहते हुए संजय धीरे-धीरे कार आगे बढ़ाने लगा लेकिन आगे का रास्ता ठीक नहीं था इसलिए कार वहू खड़ी करके वह दोनों उतरकर पैदल जाने लगे थोड़ी देर में वह समोसे और पकोड़े की दुकान आ गई दुकानदार गरमा गरम पकोड़े और समोसे के साथ-साथ गरमा गरम जलेबीया भी छान रहा था,,,। गरमा गरम जलेबी को देखकर शगुन के मुंह में पानी आ गया,,, आज भीड़ भाड़ बिल्कुल कम थी इसका मतलब साफ था कि अभी ग्राहकी शुरू हुई थी शाम ढलने से पहले ही ग्राहकों का झुंड नजर आता था,,, संजय और शगुन एक टेबल पर बैठ गए और वहां काम करने वाला एक छोकरा आर्डर लेने के लिए आया,,,, संजय ने उसे समोसे पकौड़े और जलेबीया लाने के लिए बोला,,, सगुन अपने पापा से ठीक से नजर नहीं मिला पा रही थी,,, उसे शर्म महसूस हो रही थी,,,, थोड़ी ही देर में वो लड़का गरमा गरम जलेबी समोसे और पकौड़े ले आया,,,, शगुन को सबसे ज्यादा जलेबी अच्छी लग रही थी वह जलेबी खा रही थी और संजय समोसे लेकिन समोसा खाते समय वह सगुन को तिरछी नजरों से देख ले रहा था,,, और अपनी मन नहीं कह रहा था कि,,, शगुन इतनी ज्यादा खूबसूरत और सेक्सी होगी इस बात का मुझे अंदाजा नहीं था,,, कुछ पल में ही इसने तो मेरी हालत खराब कर दी अगर कुछ देर और भी अपनी गांड मेरे लंड से सटाए होती तो,,,मेरा तो पानी निकल जाता,,,।यही सोचकर बार एक बार फिर से गर्म होने लगा उसके पैंट में उसका लंड फिर से खड़ा होकर अपनी ही बेटी की जवानी को सलामी भरने लगा,,, समोसे से ज्यादा गर्म उसे अपनी बेटी शगुन लग रही थी,,, जलेबी खाते समय वहां उसके रस को जीभ बाहर निकाल कर चाट रही थी,,, और सगुन की इस अदा पर संजय पूरी तरह से फिदा हो गया अपनी बेटी को इस तरह से जी बाहर निकालकर जलेबी के रस को चाटते हुए देखकर उसकी कल्पनाओं का घोड़ा बड़ी तेजी से दौड़ने लगा वह ऐसा कल्पना करने लगा कि उसके लंड को उसकी बेटी जीभ बाहर निकाल कर चाट रही हैं,,, यह कल्पना संजय के लिए हकीकत से भी कहीं ज्यादा खूबसूरत और उन्माद से भरा हुआ महसूस हो रहा था,,, अब उसका खाने में बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था कुछ देर के लिए शगुन गरमा गरम रसीली जलेबी देख कर और उसे खाते हुए यह भूल गई थी कि किताब की दुकान में क्या हुआ था इसलिए वह पूरी तरह से सामान्य थी,,, संजय का लंड पूरी तरह से अकड चुका था पूरा बदन अपनी बेटी की गर्म जवानी की गर्मी से पिघलता हुआ महसूस हो रहा था इसलिए उसे बड़ी जोरों की पेशाब लगी हुई थी,,,वह नाश्ता कर चुका था,,, इसलिए टेबल पर से उठा और दुकान के पीछे की तरफ जाने लगा शगुन अपने पापा को दुकान के पीछे जाते हुए देख रही थी भीड़ भाड़ बिल्कुल भी नहीं थी इसलिए वो भी निश्चिंत होकर नाश्ता कर रही थी,,। नाश्ता खत्म होते ही उसे पानी पीना थाउसे लगा कि उसके पापा दुकान के पीछे पानी पीने के लिए और हाथ धोने के लिए कि नहीं इसलिए वह भी टेबल पर से उठी और दुकान के पीछे की तरफ चल दी वह अपनी मस्ती में मस्त थी,,, जैसे ही वह दुकान के पीछे पहुंची उसके पापा उसे झाड़ियों के बीच खड़े हुए दिखाई दिए उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसके पापा वहां झाड़ियों के बीच खड़े होकर क्या कर रहे हैं,,, लेकिन तभी उसे सारा माजरा समझ में आ गया जब उसकी नजर उसके पापा की खड़े लंड पर पड़ी जो कि इस समय उसके पापा के हाथ में था,,, उस नजारे को देखते ही उसकी सांसे थम गई उसकी आंखें फटी की फटी रह गई वह अपने पापा की खाड़ी लैंड को देख रही थी जो कि तकरीबन 8 इंच का था और काफी मोटा था उसके पापा के हाथ में था उसमें से पेशाब की तेज धार निकल रही थी,,, शगुन के लिए यह पहला मौका था जब वह किसी मर्द को इस तरह से पेशाब करते हुए देख रही थी और वह भी खुद के पापा को,,, अपने पापा के खड़े मोटे तगड़े लंड को देखकर उसकी टांगों के बीच सिहरन सी दौड़ने लगी,,, शगुन की नजर अपने पापा के खड़े लंड पर से हट नहीं रही थी,,, वह अपने मन में सोचने लगी कि यह वही लंड है जो कुछ देर पहले किताब की दुकान में उसकी गांड पर चुभ रहा था,,, अच्छा हुआ कि वह सलवार पहनी हुई थी वरना पापा का लंड बुर में घुस जाता,,, अपने मन में यह सोचते हुए वह पूरी तरह से उत्तेजित हुए जा रही थी और फिर अपने आप से ही बातें करते हुए वह बोली काश वह सलवार ना पहनी होती कमर के नीचे से पूरी तरह से नंगी होती तो उसके पापा का लंड उसकी बुर में घुस जाता,,, कितना मजा आता ,,, लेकिन फिर वह अपने मन में सोचने लगी कि क्या इतना मोटा और लंबा लंड उसके छोटी सी बुर की गुलाबी छेद में घुस पाता,,,, यह सोचकर उसका बदन सिहर उठा,,, दूसरी तरफ संजय इस बात से पूरी तरह से निश्चिंत की उसकी बेटी ऊसे पेशाब करती हुई देख रही है वह अपनी ही मस्ती में,,, अपने खड़े लंड को हाथ से पकड़ कर पेशाब कर रहा था,,, संजय पेशाब कर चुका है इसलिए लंड की नशो मैं ठहरी हुई आखरी बूंदों को भी बाहर निकालने के लिए वह अपने खड़े लंड को उपर नीचे करके जोर-जोर से हिलाने लगा और इस तरह से अपने पापा को वह मोटे तगड़े लंड को हिलाते हुए देखकर पूरी तरह से सिहर उठी,,,, उससे अब एक पल भी वहां रुक पाना मुश्किल हुआ जा रहा था इसलिए वह तुरंत वहां से दबे पांव वापस लौट आई,,, और टेबल पर आकर बैठ गई उसकी हालत खराब हो गई थी चेहरे पर शर्म की लाली छाने लगी थी,,,, कुछ ही देर में उसके पापा आते हुए दिखाई दिए,,, और पास में ही बनी हेडपंप पर हाथ धोने लगे,,, उसे अपनी गलती पर शर्मिंदगी महसूस होने लगी क्योंकि पास में ही नल होने के बावजूद भी उसकी नजर उस पर नहीं पड़ी और वह यही सोच रही थी कि उसके पापा दुकान के पीछे पानी पीने के लिए गए हैं,,, लेकिन एक तरह से उसे अपनी ही गलती पर,, गुस्सा नहीं आ रहा था क्योंकि उसकी गलती ने उसे ऐसा नजारा दिखाया था कि उसे मजा आ गया था,,, वह भी उठी और घर पर हाथ मुंह धो कर पानी पीकर कार की तरफ जाने लगी उसके पापा पैसे चुका रहे थे उसे भी जोरों की कसम लगी हुई थी खासकर के उत्तेजना की वजह से,,, लेकिन पेशाब कहां करें यह उसे समझ में नहीं आ रहा था,,, सोचते सोचते वह कार के पास पहुंच गई,,,, उसके पापा आप ही पी थोड़ी दूर पर थे और धीरे-धीरे आ रहे हैं,,,उसे जोड़ों की पेशाब लगी हुई थी उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था इसलिए वह कार के पीछे जा कर अपनी सलवार की डोरी खोलने लगी,,, और सलवार के ढीली होती है वह तुरंत अपनी सलवार को घुटनों तक कर के नीचे बैठ गई और सुरसुराहट की आवाज के साथ पेशाब करने लगी,,,,, शगुन कार की ओट में पीछे बैठी हुई थी इसलिए संजय को वह नजर नहीं आई थी वह चारों तरफ नजर घुमा कर उसे ढूंढ रहा था,,,
तभी सगुन पेशाब कर ली और खडी हो गई,,, संजय की नजर कार के पीछे शगुन पर पड़ी तो उसके होश उड़ गए,,, क्योंकि बहुत आगे बोलने वाली जगह की ओट के नीचे बैठ कर पेशाब कर रही थी और खड़ी होने पर उसकी गोरी गोरी गांड नजर अाने लगी संजय के तो होश उड़ गए उसकी आंखों में चमक आ गई,,, संजय को समझ पाता इससे पहले वह अपनी सलवार कमर तक उठाकर डोरी बांधने लगी थी तकरीबन 2 सेकंड का ही यह दृश्य था लेकिन इस 2 सेकेंड के अंदर उसने अपनी बेटी की भरपूर जवानी से भरी हुई गोल गोल गांड को एकदम नंगी देख चुका था,,, संजय को समझ पाता इससे पहले शगुन अपनी सलवार की डोरी बांधकर अपने कपड़ों को व्यवस्थित करके पीछे मुड़ी तो उसकी नजर अपने पापा पर पड़ी जो कि उसकी तरफ ही देख रहे थे,,, शगुन को समझते देर नहीं लगी कि,, उसके पापा ने बहुत कुछ देख लिया है खास करके उसकी गोरी गोरी गांड को,, क्योंकि वह बोले की ऊंचाई से अपनी कमर तक की लंबाई को नाप चुकी थी,,,, जहां से अच्छी तरह से उसकी गांड को देखा जा सकता था,,, उसे यकीन हो गया था कि उसके पापा ने उसकी गांड को देख लिया है,,, दोनों की नजरें आपस में टकरा चुकी थी और एक पल के लिए दोनों एक दूसरे की आंखों में देखते हुए शर्म के मारे दूसरी तरफ नजर फेर लिए,,, दोनों कार में बैठ गए और बिना कुछ बोले थोड़ी ही देर बाद घर पहुंच गए,,,।
Awesome update

संजय और शगुन का इतना
जबरदस्त अपडेट था।

बिना चुदाई के पानी निकल
जाए....

बहुत ही बारीकी से वर्णन किया
बुक शॉप पर दोनों ने खूब
मज़े लिए।
फिर समोसे की शॉप पर
लुकाछुपी की।
पेशाब करना और
एक दूसरे के अन्त अंग देखना
लजाबाब था....
 
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