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Incest रेखा भाभी

tpk

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अभी तक आपने पढा की घर पर भैया के आ जाने के कारण मेरे अपनी भाभी से तो सम्बन्ध बन नही पा रहे थे इसलिये पापा के कहने पर मै गाँव आ गया अब उसके आगे...

मेरे गाँव जाने पर रानेसर चाचाजी के सभी घर वाले बड़े खुश हो गए। उनके घर में चाचा-चाची, उनकी लड़की सुमन, रेखा भाभी व उनका छः साल का लड़का सोनू है।

रेखा भाभी विधवा हैं उनके पति विनोद भैया का दो साल पहले ही खेत में पानी लगाते समय साँप काटने के कारण स्वर्गवास हो गया था। वैसे तो चाचा जी का एक बङा लङका भी है मगर वो शहर मे नौकरी करता है इसलिये उसका पुरा परिवार शहर मे ही रहता है।

मैं देर शाम से गाँव पहुंचा था इसलिए कुछ देर सभी से बातें करते-करते ही खाने का समय हो गया। वैसे भी गाँव में सब लोग जल्दी खाना खा कर जल्दी सो जाते हैं और सुबह जल्दी उठ भी जाते हैं। इसलिये खाना खाने के बाद सब सोने की तैयारी करने लगे।

गर्मियों के दिन थे और गर्मियों के दिनों में गाँव के लोग अधिकतर बाहर ही सोते हैं इसलिए मेरी चारपाई भी चाचाजी के पास घर के आँगन में ही लगा दी गई।

वैसे तो उनका घर काफी बड़ा है.. जिसमें चार कमरे और बड़ा सा आँगन है, मगर इस्तेमाल में वो दो ही कमरे लाते हैं। जिसमें से एक कमरे में चाची व रेखा भाभी‌का लङका सोनू सो गए और दूसरे कमरे में सुमन दीदी व रेखा भाभी सो गए। बाकी के कमरों में अनाज, खेती व भैंस का चारा आदि रखा हुआ था।

खैर.. कुछ देर चाचाजी मुझसे बातें करते रहे फिर बाते करते करते चाचा जी तो सो गये मगर उस रात मै रातभर करवट ही बदलता रहा पर मुझे नीँद नही आ सकी। क्योंकि मेरे लिये एक तो वो जगह नयी थी उपर से जहाँ हम सो रहे थे वही पर भैंस भी बँधी हुई थी, जिसके गोबर व मूत्र से बहुत बदबू आ रही थी, साथ ही वहाँ पर इतने अधिक मच्छर थे की बस पुछो मत...!

अब जैसे तैसे मैने वो रात बिताई। वैसे तो मुझे देर तक सोने की आदत है मगर उस रात मै सोया ही कहा था इसलिये सुबह पाँच बजे जब चाची जी भैंस का दूध दोहने के लिए उठीं तो मैं उनके साथ ही उठ गया।

वैसे मै ये बताना तो नही चाहता था मगर चाची जी ने मुझे जब इतनी सवेरे सवरे उठा देखा तो उन्होने खुद ही मुझसे पुछ ही लिया... मैने भी अब उनको सारी बात बता दी जिससे चाची जी हँसने लगीं और कहा- तुम्हें रात को ही बता देना चाहिये था, तुम‌ यहाँ पर नये हो ना.. इसलिए तुम्हें आदत नहीं है, कल से तुम रेखा व सुमन के कमरे में सो जाना।

चाची जी ने मुझे अभी रेखा व सुमन के कमरे मे सोने के लिये कहा भी मगर मैंने मना कर दिया और तैयार होकर चाचा-चाची के साथ खेतों में आ गया। रेखा भाभी के लड़के सोनू को भी हम साथ में ले आए। सुमन की परीक्षाएं चल रही थीं इसलिए वो कॉलेज चली गई। रेखा भाभी को खाना बनाना और घर व भैंस के काम करने होते हैं.. इसलिए वो घर पर ही रहीं।

अब खेतो मे फसल की कटाई चल रही थी.. इसलिए चाचा-चाची तो उसमें लग गए.. मगर मुझे कुछ करना तो आता नहीं था इसलिए मैं सोनू के साथ खेलने लग गया और ऐसे ही खेतों में घूमता रहा।

वैसे तो बाकी दिनो घर से दोपहर का खाना रेखा भाभी लेकर आती थी मगर मै उस दिन खाना लाने के लिये चाचा जी ने मुझे बताया।

मैं भी ऐसे ही फ़ालतू घूम रहा था, इसलिये ग्यारह बजे के करीब मैं खाना लेने के लिए घर आ गया मगर जब मैं घर पहुँचा तो देखा की घर पर कोई नहीं है। मैंने सोचा कि रेखा भाभी यहीं कहीं पड़ोस के घर में गई होंगी.. इसलिए मैं रेखा भाभी के कमरे में ही जाकर बैठ गया और उनके आने का इन्तजार करने लगा।

रेखा भाभी के कमरे मे बैठे हुवे मुझे अब कुछ देर ही हुई थी कि तभी रेखा भाभी दौड़ती हुई सी सीधे कमरे में आई जो की वो मात्र पेटीकोट और ब्रा पहने हुवे थी। रेखा भाभी को इस हाल मे और अचानक ऐसे आने से एक बार तो मैं भी घबरा गया मगर जब मेरा ध्यान रेखा भाभी के कपड़ों की तरफ गया तो मै सारा माजरा समझ गया।

दरअसल रेखा भाभी बाथरुम से नहाकर आई थीं.. इसलिए उन्होने नीचे बस काले रंग का पेटीकोट व ऊपर सफेद रंग की केवल एक ब्रा पहनी हुई थी। सिर के गीले बालों को उन्होने तौलिए से बाँध रखा था जिससे रेखा भाभी का संगमरमर सा सफेद बदन.. ना के बराबर ही ढका हुआ था।

मुझे देखते ही रेखा भाभी अब दरवाजे पर ही ठिठक कर रूक गईं क्योंकि उन्हें अन्दाजा भी नहीं था की कमरे में मैं बैठा हो सकता हूँ। मुझे देखकर वो अब इतनी घबरा गईं की कुछ देर तो वो सोच भी नहीं पाईं की अब क्या करें... जिससे वो कुछ देर तो वहीं बुत सी बनकर खड़ी हो गयी, फिर एकदम से हङबङाकर जल्दी से दूसरे कमरे में भाग गईं।

मगर तब तक मै उनके रँग रूप को आँखों ही आँखो से पी गया था जिससे भाभी के दूसरे कमरे में चले जाने के बाद भी मैं उनके रूप में ही खोया रहा। सच में रेखा भाभी इस रूप में इतनी कयामत लग रही थीं की ऐसा लग रहा था शायद ऊपर वाले ने उनको बड़ी ही फुर्सत से बनाया था।

गोल चेहरा.. काली व बड़ी-बड़ी आँखें, पतले सुर्ख गुलाबी होंठ, लम्बा व छरहरा शरीर, बस एक बड़े सन्तरे से कुछ ही बड़े आकार की उन्नत व सख्त गोलाइयां और भरे हुए माँसल नितम्ब.. आह्ह.. उनको देखकर कोई कह नहीं सकता था कि वो छः साल के बच्चे की माँ भी हो सकती हैं।

मै अभी भी रेखा भाभी के रँगरुप मे ही खोया हुवा था की कुछ देर बाद रेखा भाभी कपड़े पहन कर फिर से कमरे में आईं और उन्होंने मुझसे मेरे आने कारण पूछा। रेखा भाभी मुझसे अब आँखें नहीं मिला रही थीं क्योंकि शायद वो अभी भी उसी सदमे मे थी। वैसे भी वो बहुत ही शरीफ व भोली भाली ही थी ऊपर से विनोद भैया के गुजर जाने के बाद तो वो और भी गुमसुम सी हो गयी थी।

खैर मैंने भी अब भाभी से आँखें मिलाने की कोशिश नहीं की.. बस ऐसे ही उन्हें अपने आने का कारण बता दिया। रेखा भाभी ने भी जल्दी से मुझे अब खाना बाँध कर दे दिया जिसे मै भी बिना कुछ कहे चुपचाप लेकर खेतों के लिए आ गया।

अब रास्ते भर मै रेखा भाभी के बारे में ही सोचता रहा। रेखा भाभी के बारे में पहले मेरे विचार गन्दे नहीं थे.. मगर भाभी का वो रूप देखकर मेरी नियत खराब सी हो रही थी। खेत मे भी मै बस रेखा भाभी के बारे में ही सोचता रहा।

पता नही क्यो मेरे दिल में हवश का शैतान सा जाग रहा था, मैं सोच रहा था कि विनोद भैया का देहान्त हुए दो साल हो गए है इसलिए रेखा भाभी का भी दिल तो करता ही होगा। यही सब सोचते सोचते शाम हो गयी।

अब शाम को मैं चाचा-चाची के साथ ही खेत से वापस आया, घर आकर खाना खाया और फिर सभी सोने की तैयारी करने लगे। चाची ने मेरी चारपाई आज रेखा भाभी व सुमन दीदी के कमरे में लगवा दी थी और साथ ही मेरी चारपाई के नीचे मच्छर भगाने की अगरबत्ती भी जला दी।

उस कमरे में एक डबल बैड था.. जिस पर सुमन व रेखा भाभी सोते थे और साथ ही कुर्सियां टेबल, अल्मारी व कुछ अन्य सामान होने के कारण ज्यादा जगह नहीं थी.. इसलिए मेरी चारपाई बेड के बिल्कुल साथ ही लगी हुई थी।

सुमन दिदी की परीक्षाएं चल रही थीं.. इसलिए खाना खाते ही वो पढ़ाई करने बैठ गयी मगर रेखा भाभी घर के काम निपटा रही थीं.. इसलिए वो थोड़ा देर से कमरे में आईं और आकर चुपचाप सो गईं।

मैंने अब उनसे बात करने की कोशिश की.. मगर उन्होंने बात करने के लिए मना कर दिया क्योंकि सुमन दीदी भी वहीं पढ़ाई कर रही थी।

कुछ देर पढ़ाई करने के बाद सुमन दीदी भी सो गई। दीवार के किनारे की तरफ सुमन दीदी थी और मेरी चारपाई की तरफ रेखा भाभी सो रही थीं। रेखा भाभी के इतने पास होने के कारण मेरे दिल में अब एक अजीब ही गुदगुदी सी हो रही थी।


रेखा भाभी मेरे इतने पास थीं की मैं चारपाई से ही हाथ बढ़ाकर उन्हें आसानी से छू सकता था इसलिये मेरे दिल ही दिल मे उनके लिये सजीब सी भावनाएँ जाग्रत हो रही थी मगर कुछ करने कि मुझमें हिम्मत नहीं थी। वैसे भी उस समय कुछ करना मतलब अपनी इज्जत का फालूदा करवाना था।

मैं पिछली रात को ठीक से नहीं सोया था इसलिये रेखा भाभी के बारे मे सोचते सोचते ही पता नहीं कब मुझे नींद आ गयी...
nice update
 

amita

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धन्यवाद
वैसे आपकी कहानियाँ भी बहुत अच्छी है और उनका वर्णन तो बहुत ही अच्छा है पर मुझे माँ बेटे की सम्बन्ध अच्छे नही लगते, वैसे ये सब तो अपनी अपनी पसन्द ना पसन्द की बात है।
Aapka bhi bahut bahut Dhanyawad ki Aapne meri kahaniyon ko padha hai, lekin kabhi aapko un Threads par nahi dekha. Aap ek silent Reader range hain.

Aapka tahe dil se shukriya.

Janha tak baat hai ki Najdiki rishton me sambhandh, vo chhae koi bhi vo hamare samaj me galat hi mana jata hai, isliye Jijhak, sharam, laaj, dar, utkuntha jaise bahut si baatein hai jinhe shabdon me pirona bahut hi mushkil karye hai.

Aapke update padhkar Main aapse bahut hi parbhavit hui, jis aandaj me aapne bhavnayen pardarshit ki hain, vo aasan nahin hain.

Rahi baat kisi Rishte ko pasand ya napasand ki tu vo har ek ki apani hai.

Yanha par bahut sare Pathak ussi Rishte ko jayada pasand karte hain

Hame iss me na padkar inn kahaniyon ko manoranjan ki drishti se likhna aur padhna chahiye.
Dhanyawad
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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Aapka bhi bahut bahut Dhanyawad ki Aapne meri kahaniyon ko padha hai, lekin kabhi aapko un Threads par nahi dekha. Aap ek silent Reader range hain.

Aapka tahe dil se shukriya.

Janha tak baat hai ki Najdiki rishton me sambhandh, vo chhae koi bhi vo hamare samaj me galat hi mana jata hai, isliye Jijhak, sharam, laaj, dar, utkuntha jaise bahut si baatein hai jinhe shabdon me pirona bahut hi mushkil karye hai.

Aapke update padhkar Main aapse bahut hi parbhavit hui, jis aandaj me aapne bhavnayen pardarshit ki hain, vo aasan nahin hain.

Rahi baat kisi Rishte ko pasand ya napasand ki tu vo har ek ki apani hai.

Yanha par bahut sare Pathak ussi Rishte ko jayada pasand karte hain

Hame iss me na padkar inn kahaniyon ko manoranjan ki drishti se likhna aur padhna chahiye.
Dhanyawad
ये तो सही है पर मनोरंजन करने के तो और भी बहुत से साधन है। मेरा ख्याल तो ये है की अधिकतर लोग अपनी उत्तेजना को शाँत करने के लिये सैक्सी कहानियाँ पढते है, या फिर सीधे शब्दो मे ये कहुँ की हाथ से हिलाने के लिये पढते है। शायद उनमे से मै भी एक हुँ, पर मुझे माँ बेटे की‌ कहानियाँ पढने से उस उत्तेजना का अहसास नही होता जितना की किसी और रिशते की कहानी से होता है, इसलिये मुझे माँ बेटे की कहानियाँ इतना अधिक नही भाती।
 

amita

Well-Known Member
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ये तो सही है पर मनोरंजन करने के तो और भी बहुत से साधन है। मेरा ख्याल तो ये है की अधिकतर लोग अपनी उत्तेजना को शाँत करने के लिये सैक्सी कहानियाँ पढते है, या फिर सीधे शब्दो मे ये कहुँ की हाथ से हिलाने के लिये पढते है। शायद उनमे से मै भी एक हुँ, पर मुझे माँ बेटे की‌ कहानियाँ पढने से उस उत्तेजना का अहसास नही होता जितना की किसी और रिशते की कहानी से होता है, इसलिये मुझे माँ बेटे की कहानियाँ इतना अधिक नही भाती।
Aapki baat ka jawab Main pehle hi de chuki hun, shayad aapne dhyaan nahi diya hoga
 
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Chutphar

Mahesh Kumar
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Aapki baat ka jawab Main pehle hi de chuki hun, shayad aapne dhyaan nahi diya hoga
चलो हर एक पाठक को तो खुश नही‌ कर सकते, पर मेरे जैसे पाठको का भी कभी ख्याल कर लिया करो, कोई कहानी मेरे जैसे पाठको के लिये भी लिख दिजिये...
 
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