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भाग १३
लल्लू कमला के कमरे से निकल कर सीधा चौबारे पर पहुंचा जहां पर माया देवी, सुधा और रत्ना तीनो बैठी हुई थी। सामने शराब की बोतल और चखना रखा हुआ था। माया देवी ने लल्लू को बैठने का इशारा किया और आज वो उस जगह बैठा जहां माया देवी बैठा करती थी यानी घर के मुखिया की कुर्सी।
माया देवी: बैठिए ठाकुर साहब, अब से ये कुर्सी आपकी है। आप ही हमारे सब कुछ है।
सुधा और रत्ना टकटकी लगाए माया देवी को ही देख रही थी। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है। सुधा ने इशारे से माया देवी को बुलाया एक किनारे में।
सुधा: दीदी ये आप क्या कर रही है। लल्लू क्या गांव की जिम्मेदारी उठा पाएगा। जल्दबाजी तो नहीं कर रही आप।
माया देवी: सुधा गांव की नहीं केवल अभी इस घर का मुखिया बना रही हूं। और मैं वहीं कर रही हूं जैसा कि डॉक्टर ने बोला था। लल्लू को इस एहसास से बाहर निकलना है कि वो मंदबुद्धि है। वो हर चीज करने में सक्षम है ऐसा उसे एहसास दिलाना होगा। समझी और जो मै कर रही हूँ उसपे सवाल मत करो बल्कि मेरा साथ दो।
सुधा ने सिर हिलाया और वापस अपनी जगह पर आकर बैठ गई। माया देवी सब के गिलास में शराब डालने लगी और जब लल्लू के गिलास में शराब डालने लगी तो सुधा कुछ बोलने लगी पर माया देवी ने उसे इशारे से मना कर दिया। सब के गिलास भर दिए गए। और शराब का दौर चलने लगा। माया देवी बीते दो दिनों का हालचाल लेने लगी सुधा से की गांव में क्या क्या हुआ। सुधा भी बताने लगी और दोनों मसरूफ हो गए। रत्ना को कोई ज्ञान नहीं था कि दोनो क्या बात कर रहे है। उसका ध्यान लल्लू की तरफ गया तो उसने पाया लल्लू एक टक उसको देख रहा है। उसने ध्यान दिया कि लल्लू की निगाहे उसकी छातियों के उठान पर केंद्रित है।
वो उसके वक्ष स्थल को घूरते हुए अपने लोड़े को सहला रहा था। थोड़ा असहज तो लगा रत्ना को पर उसकी चूत रिसने लगी। रत्ना को थोड़ा गीलेपने का एहसास हुआ न जाने क्यों उसकी निगाहे भी लल्लू के जांघों के जोड़ पर टिक गई। रत्ना की निप्पल एक दम टाइट होकर खड़ी हो गई और वो एक बार फिर से चरम की और बढ़ने लगी। थोड़ी ही देर में रत्ना का बैठ पाना मुश्किल हो रहा था वो बस अब अपना चरम पाना चाहती थी।
रत्ना: दीदी मै ज़रा गोश्त देख कर आती हु। पका की नहीं।
और वो उठकर रसोई घर की तरफ चल दी। रत्ना ने इस समय एक फिटिंग वाला सलवार सूट पहन रखा था। जिसमें उसकी गांड़ की थिरकन देखने लायक थी। वो फटाफट रसोईघर में दाखिल हुई और सलवार के ऊपर से ही अपनी चूत को सहलाने लगी।
उसको एक अजीब सा सुख महसूस हो रहा था। ये पहली बार था जब वो केवल लल्लू को सोच कर अपनी चूत सहला रही थी।
रत्ना: आह ओह लल्लू क्या जादू कर दिया है तूने, आह आराम ही नहीं मिल रहा मेरी मुनिया को। आई हर समय रस बाहें जा रही है।
रत्ना के हाथ तेजी से चलने लगे पर वो अंजान थी कि झरोखे से उसे कोई देख रहा है। वो और कोई नहीं हमारा लल्लू था। रत्ना अपनी दुनिया में मस्त थी उसे बस जल्दी थी अपने चरमसुख की प्राप्ति की पर तभी उसे एक झटका लगा। किसी ने उसे पीछे से जकड़ लिया और रत्ना को अपनी आगोश में ले लिया।
रत्ना को किसी कठोर चीज का एहसास हुआ अपनी गांड़ पर और उसके आकार को भांपते हुए रत्ना समझ गई कि ये लल्लू ही है। लल्लू ने रत्ना को बिल्कुल कस के जकड़ रखा था। हवा भी दोनो के बीच से नहीं गुजर सकती थी। लल्लू धीरे धीरे रत्ना की गांड़ पे धक्के मारने लगा। जो रत्ना चाहती थी वो हो तो रहा है पर उसे डर भी था कि कही उन दोनों को कोई देख न ले।
रत्ना: आह क्या ओह उई क्या कर रहा है लल्लू।
लल्लू: अपनी चाची से प्यार। और तुम भी तो यही चाहती हो रत्ना।
लल्लू के मुंह से अपना नाम सुनकर रत्ना एक दम अचंभित हो गई। रत्ना का झूठमूठ का गुस्सा भी जाता रहा। लल्लू ने इसी का फायदा उठाया और रत्ना की गर्दन पर जुबान चलाने लगा।
रत्ना: आह लल्लू मत कर, कोई देख लेगा।
लल्लू: कोई नहीं देख रहा। तू बस मज़ा ले।
लल्लू की पकड़ रत्ना की कमर पर बढ़ती जा रही थी। उसके धक्कों की रफ्तार रत्ना के लिए एक नया अनुभव थी जो कि उसने आज तक महसूस नहीं किया। रत्ना की आंखे मदहोशी से बंद होती जा रही थी। उसपे नशा सा छा रहा था।
रत्ना: आह आह ओह ह मां लल्लू।
लल्लू भी कम खिलाड़ी नहीं था उसने अब रत्ना की अनछुई चूचियों को दबाना शुरू कर दिया। इस हमले के लिए रत्ना तैयार नहीं थी। लल्लू ने दोनो चूचियों को अपनी गिरफ्त में ले लिया और तेज तेज धक्के मारने लगा।
रत्ना: ओह आह लल्लू करता रह मेरा होने वाला है।
लल्लू: इस लिए तो आया हूं मेरी जान की तेरा भोज हल्का हो जाए।
रत्ना के हाथ की रफ्तार भी लल्लू के धक्कों के साथ बढ़ती जा रही थी और उसकी गांड़ की थिरकन भी लल्लू के धक्कों के साथ सुर मिल रही थी और वो क्षण भी आया जब रत्ना के सब्र का बांध टूट गया और उसकी कुंवारी चूत ने भलभला कर अपना अमृत रस छोड़ दिया। रत्ना की सांसे उसके बस में नहीं थी। वो बस इस पल को समेटना चाहती थी। उसका किसी पुरुष स्पर्श से ये पहला चरम था जिसका एहसास उसके लिए स्वर्णिम था। जब सांस दुरुस्त हुई तब रत्ना को एहसास हुआ कि अभी रसोईघर में क्या हुआ और सोचते ही उसकी आँखें शर्म से झुक गई। उसने लल्लू को एक तेज धक्का दिया और भाग गई अपने कमरे की तरफ।
सुधा और माया देवी ने रत्ना को भागते हुए देखा और रत्ना को आवाज लगाई पर रत्ना न रुकी और भागते हुए अपने कमरे में पहुंचकर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। तभी रसोईघर से लल्लू निकला जिसे देखते ही माया देवी समझ गई कि क्या हुआ होगा, पर सुधा अभी भी अंजान थी।
सुधा: क्या हुआ लल्लू, ये रत्ना भाग कर क्यों गई।
लल्लू: मटकी का पानी निकल गया माई।
सुधा: मटकी का पानी, क्या कह रहा है तू।
लल्लू: अरे माई मटकी का पानी चाची के ऊपर गिर गया। सारे कपड़े गिले हो गए उनके।
सुधा: जरूर तूने कोई शैतानी करी होगी। जा मै देखती हूं।
सुधा उठने को हुई तो माया देवी ने उसका हाथ पकड़ कर रोक दिया।
माया देवी: बच्ची नहीं है वो सुधा अभी आ जाएगी, पानी गिर गया होगा। और हर समय ठाकुर साहब को दोष मत दिया कर। समझी।
सुधा आश्चर्य से सिर झुका कर रह गई।
उधर रत्ना ने जब अपने कपड़े उतारे तो वो हैरान थी कि इतना पानी कैसे छोड़ सकती है वो। पूरी सलवार और पैंटी उसके मदन रस से तर थी। उसने खुद को आइने में देखा और खुद के जिस्म की अकड़ को निहारने लगी और खुद से ही बोलने लगी।
रत्ना: तेरी अकड़ निकलने वाला आ गया है। एक एक कस बल निकालेगा तेरे।
और खुद ही अपनी चूचियों का मर्दन करने लगी। एक बार फिरसे उसे लल्लू की कमी महसूस होने लगी। वो एक बार फिर भावनाओं में बहने लगी की तभी किसी ने उसका दरवाजा पीट दिया। और जो आवाज सुनी उससे उसका उत्साह सारा ठंडा पड़ गया। हालांकि ये आवाज उसे पसंद थी पर अब उसे सिर्फ लल्लू की आवाज ही सुननी थी।
कमला: चाची सब लोग नीचे बोला रहे है।
रत्ना: तू चल मै दो मिनिट में आती हूं।
कमला भी नीचे आ गई और थोड़ी देर बाद रत्ना भी। शराब का दूसरा दौर शुरू हुआ और फिर तीसरा भी। माया देवी ने सिगरेट जलाई और लल्लू को तरफ बढ़ा दी। सुधा कुछ बोलने को हुई पर माया देवी की आंखों के सामने उसकी एक न चली। लल्लू ने सिगरेट ली और कश लगाने लगा। सुधा को छोड़कर सब लल्लू का ये मर्दाना रूप देखकर खुश थे। सुधा भी खुश तो थी वो भी अपने नए पति को निहार तो रही थी पर वो चाहती थी कि लल्लू सिर्फ उसके साथ ही सब करे। जलन थी उसके अंदर पर वो कुछ कह नहीं पाई। थोड़ी देर बाद खाना पीना सब हो गया। लल्लू सीधे अपने कमरे की तरफ चल दिया और सारी औरते माया देवी के कमरे में आखिर माया देवी सब के लिए शहर से क्या लाई है।
माया देवी: देखो जो भी सामान है इस बार सब लल्लू की पसंद का है।
कमला: तो क्या हमारी वो भी लल्लू की पसंद की है।
माया देवी: हां मेरी रंडियों तुम्हारी ब्रा पैंटी भी लल्लू की पसंद की है। और एक बात लल्लू नहीं उसे ठाकुर साहब बोलने की आदत डालो। समझी नहीं तो खाल खींच लूंगी सबकी।
तीनो की तीनो एक साथ चुप हो गई। माया देवी एक एक करके सबको कपड़े दिखाने लगी। सब उन कपड़ों तो आंखे फाड़कर देखने लगी।
रत्ना: दीदी ये कपड़े ढकेंगे कम और दिखाएंगे ज्यादा।
सुधा: ये इतनी छोटी छोटी नाइटी हम कहां पहनेंगे।
माया देवी: शहर में सब पहनते है तो ठाकुर साहब बोले कि हमारे घर की औरतें क्यों नहीं। मैने तो एक रात पहन के भी देखी, बड़ा आराम मिलता है, बड़ा हल्का हल्का लगता है। सांकल चढ़ाने के बाद घर पहन लिया करना।
फिर कुछ सारी और कुछ सलवार कुर्ते और कमला के लिए अति आधुनिक परिधान जैसे जींस टॉप और मिनी स्कर्ट। सब अपने अपने कपड़े को लेकर अपने कमरों में चली गई।
सुधा ने जैसे ही अपने कमरे में प्रवेश किया उसका सारा उत्साह काफ़ूर हो गया। लल्लू घोड़े बेच के सो चुका था। सुधा मन ही मन बुदबुदाने लगी।
सुधा: कमीना कहीं का। दो दिन बाद आया है और कैसे घोड़े बेच के सो रहा हैं। अपनी पत्नी की खुशी का बिल्कुल एहसास ही नहीं है। सोएगा क्यों नहीं दारु जो पीने लग गया है।
सुधा गुस्सा तो बहुत थी लल्लू के मर्दाना जिस्म को निहार रही थी। लल्लू सो रहा था पर उसका अजगर अब भी जग रहा था। सुधा उस अजगर को ललचाई नजरों से निहार रही थी।
मन तो उसका कर रहा था कि अभी लल्लू के अजगर के साथ खेले पर अब भी उसके अंदर की हया उसे ये करने से रोक रही थी।
सुधा ने अपनी साड़ी उतारी और लल्लू के बगल में लेट गई। लल्लू या यू कहूं पिशाच सुधा की मनोस्थिति देख कर बहुत खुश हो रहा था। वो बंद आंखों से सुधा के यौवन का रसपान कर रहा था।
उधर कमला और रत्ना एक दूसरे को लल्लू की हरकते बता रहे थे। दोनो एक दम नंगी थी और एक दूसरे के अंगों से छेड़छाड़ कर रही थी।
रत्ना: लल्लू के लंड एहसास होते ही मेरी मुनिया तो बहने लगती है। कितना बड़ा लन्ड है उसका।
कमला: सही में चाची एक बार घुस जाए तो फाड़ कर रख देखा।
रत्ना: अपने भाई के लन्ड की बाते कर रही है छिनाल।
कमला: तुम भी तो अपने बेटे समान भतीजे के लन्ड को याद करके अपनी मुनिया बहा रही हूं।
ऐसी ही हल्की फुल्की बाते करते हुए दोनों एक दूसरे को शनिक तृप्ति प्रदान करने पर तुली हुई थी।
रात गहरे सन्नाटे में खोई हुई थी। रात का अंधेरा पूर्ण रूप चांद की चांदनी को निगल चुका था। सुधा की नींद अचानक ही खुल गई। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे झंझोर कर उठाया हो। सुधा ने जब अपनी बगल में देखा तो पाया लल्लू बिस्तर पर नहीं है। लल्लू को वहां न देख कर उसका मन विचलित हो गया। सुधा ने देखा उसके कमरे का दरवाजा खुला हुआ है जबकि वो पूर्ण रूप से आश्वस्त थी कि उसने कुंडी लगाई है। वो डरते डरते कमरे से बाहर निकली। पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था। एक धुंधली सी रोशनी सुधा को दिखाई दी। वो उस रोशनी का पीछा करती हुई उस तरफ ही चल दी। जब वो तबेले पर पहुंची तो उसे कुछ आवाजें सुनाई दी। वो खूब समझती थी कि ये आवाजें कैसी है। पर कौन हो सकता है ये। सुधा धीरे धीरे बिल्कुल उस जगह पहुंच चुकी थी जहां से उन आवाजों का स्त्रोत्र था। भूसे के ढेर पे उसे दो जिस्म नजर आए। स्त्री पुरुष के ऊपर थी और जोर जोर से उछल रही थी। और वो पुरुष उस स्त्री की गांड़ के पर्वत को अपने हाथ से दबा रहा था।
सुधा की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी कि आखिर दोनो कौन है। जैसे ही उसने पुरुष की आवाज सुनी तो बस उसके ज़हन में एक ही नाम था "लल्लू"।
Nice update
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