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Erotica लल्लू लल्लू न रहा😇😇

PS10

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भाग १३

लल्लू कमला के कमरे से निकल कर सीधा चौबारे पर पहुंचा जहां पर माया देवी, सुधा और रत्ना तीनो बैठी हुई थी। सामने शराब की बोतल और चखना रखा हुआ था। माया देवी ने लल्लू को बैठने का इशारा किया और आज वो उस जगह बैठा जहां माया देवी बैठा करती थी यानी घर के मुखिया की कुर्सी।

माया देवी: बैठिए ठाकुर साहब, अब से ये कुर्सी आपकी है। आप ही हमारे सब कुछ है।

सुधा और रत्ना टकटकी लगाए माया देवी को ही देख रही थी। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है। सुधा ने इशारे से माया देवी को बुलाया एक किनारे में।

सुधा: दीदी ये आप क्या कर रही है। लल्लू क्या गांव की जिम्मेदारी उठा पाएगा। जल्दबाजी तो नहीं कर रही आप।

माया देवी: सुधा गांव की नहीं केवल अभी इस घर का मुखिया बना रही हूं। और मैं वहीं कर रही हूं जैसा कि डॉक्टर ने बोला था। लल्लू को इस एहसास से बाहर निकलना है कि वो मंदबुद्धि है। वो हर चीज करने में सक्षम है ऐसा उसे एहसास दिलाना होगा। समझी और जो मै कर रही हूँ उसपे सवाल मत करो बल्कि मेरा साथ दो।

सुधा ने सिर हिलाया और वापस अपनी जगह पर आकर बैठ गई। माया देवी सब के गिलास में शराब डालने लगी और जब लल्लू के गिलास में शराब डालने लगी तो सुधा कुछ बोलने लगी पर माया देवी ने उसे इशारे से मना कर दिया। सब के गिलास भर दिए गए। और शराब का दौर चलने लगा। माया देवी बीते दो दिनों का हालचाल लेने लगी सुधा से की गांव में क्या क्या हुआ। सुधा भी बताने लगी और दोनों मसरूफ हो गए। रत्ना को कोई ज्ञान नहीं था कि दोनो क्या बात कर रहे है। उसका ध्यान लल्लू की तरफ गया तो उसने पाया लल्लू एक टक उसको देख रहा है। उसने ध्यान दिया कि लल्लू की निगाहे उसकी छातियों के उठान पर केंद्रित है।


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वो उसके वक्ष स्थल को घूरते हुए अपने लोड़े को सहला रहा था। थोड़ा असहज तो लगा रत्ना को पर उसकी चूत रिसने लगी। रत्ना को थोड़ा गीलेपने का एहसास हुआ न जाने क्यों उसकी निगाहे भी लल्लू के जांघों के जोड़ पर टिक गई। रत्ना की निप्पल एक दम टाइट होकर खड़ी हो गई और वो एक बार फिर से चरम की और बढ़ने लगी। थोड़ी ही देर में रत्ना का बैठ पाना मुश्किल हो रहा था वो बस अब अपना चरम पाना चाहती थी।

रत्ना: दीदी मै ज़रा गोश्त देख कर आती हु। पका की नहीं।

और वो उठकर रसोई घर की तरफ चल दी। रत्ना ने इस समय एक फिटिंग वाला सलवार सूट पहन रखा था। जिसमें उसकी गांड़ की थिरकन देखने लायक थी। वो फटाफट रसोईघर में दाखिल हुई और सलवार के ऊपर से ही अपनी चूत को सहलाने लगी।


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उसको एक अजीब सा सुख महसूस हो रहा था। ये पहली बार था जब वो केवल लल्लू को सोच कर अपनी चूत सहला रही थी।

रत्ना: आह ओह लल्लू क्या जादू कर दिया है तूने, आह आराम ही नहीं मिल रहा मेरी मुनिया को। आई हर समय रस बाहें जा रही है।

रत्ना के हाथ तेजी से चलने लगे पर वो अंजान थी कि झरोखे से उसे कोई देख रहा है। वो और कोई नहीं हमारा लल्लू था। रत्ना अपनी दुनिया में मस्त थी उसे बस जल्दी थी अपने चरमसुख की प्राप्ति की पर तभी उसे एक झटका लगा। किसी ने उसे पीछे से जकड़ लिया और रत्ना को अपनी आगोश में ले लिया।


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रत्ना को किसी कठोर चीज का एहसास हुआ अपनी गांड़ पर और उसके आकार को भांपते हुए रत्ना समझ गई कि ये लल्लू ही है। लल्लू ने रत्ना को बिल्कुल कस के जकड़ रखा था। हवा भी दोनो के बीच से नहीं गुजर सकती थी। लल्लू धीरे धीरे रत्ना की गांड़ पे धक्के मारने लगा। जो रत्ना चाहती थी वो हो तो रहा है पर उसे डर भी था कि कही उन दोनों को कोई देख न ले।

रत्ना: आह क्या ओह उई क्या कर रहा है लल्लू।

लल्लू: अपनी चाची से प्यार। और तुम भी तो यही चाहती हो रत्ना।

लल्लू के मुंह से अपना नाम सुनकर रत्ना एक दम अचंभित हो गई। रत्ना का झूठमूठ का गुस्सा भी जाता रहा। लल्लू ने इसी का फायदा उठाया और रत्ना की गर्दन पर जुबान चलाने लगा।


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रत्ना: आह लल्लू मत कर, कोई देख लेगा।

लल्लू: कोई नहीं देख रहा। तू बस मज़ा ले।

लल्लू की पकड़ रत्ना की कमर पर बढ़ती जा रही थी। उसके धक्कों की रफ्तार रत्ना के लिए एक नया अनुभव थी जो कि उसने आज तक महसूस नहीं किया। रत्ना की आंखे मदहोशी से बंद होती जा रही थी। उसपे नशा सा छा रहा था।


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रत्ना: आह आह ओह ह मां लल्लू।

लल्लू भी कम खिलाड़ी नहीं था उसने अब रत्ना की अनछुई चूचियों को दबाना शुरू कर दिया। इस हमले के लिए रत्ना तैयार नहीं थी। लल्लू ने दोनो चूचियों को अपनी गिरफ्त में ले लिया और तेज तेज धक्के मारने लगा।

रत्ना: ओह आह लल्लू करता रह मेरा होने वाला है।

लल्लू: इस लिए तो आया हूं मेरी जान की तेरा भोज हल्का हो जाए।

रत्ना के हाथ की रफ्तार भी लल्लू के धक्कों के साथ बढ़ती जा रही थी और उसकी गांड़ की थिरकन भी लल्लू के धक्कों के साथ सुर मिल रही थी और वो क्षण भी आया जब रत्ना के सब्र का बांध टूट गया और उसकी कुंवारी चूत ने भलभला कर अपना अमृत रस छोड़ दिया। रत्ना की सांसे उसके बस में नहीं थी। वो बस इस पल को समेटना चाहती थी। उसका किसी पुरुष स्पर्श से ये पहला चरम था जिसका एहसास उसके लिए स्वर्णिम था। जब सांस दुरुस्त हुई तब रत्ना को एहसास हुआ कि अभी रसोईघर में क्या हुआ और सोचते ही उसकी आँखें शर्म से झुक गई। उसने लल्लू को एक तेज धक्का दिया और भाग गई अपने कमरे की तरफ।

सुधा और माया देवी ने रत्ना को भागते हुए देखा और रत्ना को आवाज लगाई पर रत्ना न रुकी और भागते हुए अपने कमरे में पहुंचकर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। तभी रसोईघर से लल्लू निकला जिसे देखते ही माया देवी समझ गई कि क्या हुआ होगा, पर सुधा अभी भी अंजान थी।

सुधा: क्या हुआ लल्लू, ये रत्ना भाग कर क्यों गई।

लल्लू: मटकी का पानी निकल गया माई।

सुधा: मटकी का पानी, क्या कह रहा है तू।

लल्लू: अरे माई मटकी का पानी चाची के ऊपर गिर गया। सारे कपड़े गिले हो गए उनके।

सुधा: जरूर तूने कोई शैतानी करी होगी। जा मै देखती हूं।

सुधा उठने को हुई तो माया देवी ने उसका हाथ पकड़ कर रोक दिया।

माया देवी: बच्ची नहीं है वो सुधा अभी आ जाएगी, पानी गिर गया होगा। और हर समय ठाकुर साहब को दोष मत दिया कर। समझी।

सुधा आश्चर्य से सिर झुका कर रह गई।

उधर रत्ना ने जब अपने कपड़े उतारे तो वो हैरान थी कि इतना पानी कैसे छोड़ सकती है वो। पूरी सलवार और पैंटी उसके मदन रस से तर थी। उसने खुद को आइने में देखा और खुद के जिस्म की अकड़ को निहारने लगी और खुद से ही बोलने लगी।


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रत्ना: तेरी अकड़ निकलने वाला आ गया है। एक एक कस बल निकालेगा तेरे।

और खुद ही अपनी चूचियों का मर्दन करने लगी। एक बार फिरसे उसे लल्लू की कमी महसूस होने लगी। वो एक बार फिर भावनाओं में बहने लगी की तभी किसी ने उसका दरवाजा पीट दिया। और जो आवाज सुनी उससे उसका उत्साह सारा ठंडा पड़ गया। हालांकि ये आवाज उसे पसंद थी पर अब उसे सिर्फ लल्लू की आवाज ही सुननी थी।

कमला: चाची सब लोग नीचे बोला रहे है।

रत्ना: तू चल मै दो मिनिट में आती हूं।

कमला भी नीचे आ गई और थोड़ी देर बाद रत्ना भी। शराब का दूसरा दौर शुरू हुआ और फिर तीसरा भी। माया देवी ने सिगरेट जलाई और लल्लू को तरफ बढ़ा दी। सुधा कुछ बोलने को हुई पर माया देवी की आंखों के सामने उसकी एक न चली। लल्लू ने सिगरेट ली और कश लगाने लगा। सुधा को छोड़कर सब लल्लू का ये मर्दाना रूप देखकर खुश थे। सुधा भी खुश तो थी वो भी अपने नए पति को निहार तो रही थी पर वो चाहती थी कि लल्लू सिर्फ उसके साथ ही सब करे। जलन थी उसके अंदर पर वो कुछ कह नहीं पाई। थोड़ी देर बाद खाना पीना सब हो गया। लल्लू सीधे अपने कमरे की तरफ चल दिया और सारी औरते माया देवी के कमरे में आखिर माया देवी सब के लिए शहर से क्या लाई है।

माया देवी: देखो जो भी सामान है इस बार सब लल्लू की पसंद का है।

कमला: तो क्या हमारी वो भी लल्लू की पसंद की है।

माया देवी: हां मेरी रंडियों तुम्हारी ब्रा पैंटी भी लल्लू की पसंद की है। और एक बात लल्लू नहीं उसे ठाकुर साहब बोलने की आदत डालो। समझी नहीं तो खाल खींच लूंगी सबकी।

तीनो की तीनो एक साथ चुप हो गई। माया देवी एक एक करके सबको कपड़े दिखाने लगी। सब उन कपड़ों तो आंखे फाड़कर देखने लगी।

रत्ना: दीदी ये कपड़े ढकेंगे कम और दिखाएंगे ज्यादा।

सुधा: ये इतनी छोटी छोटी नाइटी हम कहां पहनेंगे।


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माया देवी: शहर में सब पहनते है तो ठाकुर साहब बोले कि हमारे घर की औरतें क्यों नहीं। मैने तो एक रात पहन के भी देखी, बड़ा आराम मिलता है, बड़ा हल्का हल्का लगता है। सांकल चढ़ाने के बाद घर पहन लिया करना।

फिर कुछ सारी और कुछ सलवार कुर्ते और कमला के लिए अति आधुनिक परिधान जैसे जींस टॉप और मिनी स्कर्ट। सब अपने अपने कपड़े को लेकर अपने कमरों में चली गई।

सुधा ने जैसे ही अपने कमरे में प्रवेश किया उसका सारा उत्साह काफ़ूर हो गया। लल्लू घोड़े बेच के सो चुका था। सुधा मन ही मन बुदबुदाने लगी।

सुधा: कमीना कहीं का। दो दिन बाद आया है और कैसे घोड़े बेच के सो रहा हैं। अपनी पत्नी की खुशी का बिल्कुल एहसास ही नहीं है। सोएगा क्यों नहीं दारु जो पीने लग गया है।

सुधा गुस्सा तो बहुत थी लल्लू के मर्दाना जिस्म को निहार रही थी। लल्लू सो रहा था पर उसका अजगर अब भी जग रहा था। सुधा उस अजगर को ललचाई नजरों से निहार रही थी।


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मन तो उसका कर रहा था कि अभी लल्लू के अजगर के साथ खेले पर अब भी उसके अंदर की हया उसे ये करने से रोक रही थी।

सुधा ने अपनी साड़ी उतारी और लल्लू के बगल में लेट गई। लल्लू या यू कहूं पिशाच सुधा की मनोस्थिति देख कर बहुत खुश हो रहा था। वो बंद आंखों से सुधा के यौवन का रसपान कर रहा था।

उधर कमला और रत्ना एक दूसरे को लल्लू की हरकते बता रहे थे। दोनो एक दम नंगी थी और एक दूसरे के अंगों से छेड़छाड़ कर रही थी।


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रत्ना: लल्लू के लंड एहसास होते ही मेरी मुनिया तो बहने लगती है। कितना बड़ा लन्ड है उसका।

कमला: सही में चाची एक बार घुस जाए तो फाड़ कर रख देखा।

रत्ना: अपने भाई के लन्ड की बाते कर रही है छिनाल।

कमला: तुम भी तो अपने बेटे समान भतीजे के लन्ड को याद करके अपनी मुनिया बहा रही हूं।

ऐसी ही हल्की फुल्की बाते करते हुए दोनों एक दूसरे को शनिक तृप्ति प्रदान करने पर तुली हुई थी।

रात गहरे सन्नाटे में खोई हुई थी। रात का अंधेरा पूर्ण रूप चांद की चांदनी को निगल चुका था। सुधा की नींद अचानक ही खुल गई। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे झंझोर कर उठाया हो। सुधा ने जब अपनी बगल में देखा तो पाया लल्लू बिस्तर पर नहीं है। लल्लू को वहां न देख कर उसका मन विचलित हो गया। सुधा ने देखा उसके कमरे का दरवाजा खुला हुआ है जबकि वो पूर्ण रूप से आश्वस्त थी कि उसने कुंडी लगाई है। वो डरते डरते कमरे से बाहर निकली। पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था। एक धुंधली सी रोशनी सुधा को दिखाई दी। वो उस रोशनी का पीछा करती हुई उस तरफ ही चल दी। जब वो तबेले पर पहुंची तो उसे कुछ आवाजें सुनाई दी। वो खूब समझती थी कि ये आवाजें कैसी है। पर कौन हो सकता है ये। सुधा धीरे धीरे बिल्कुल उस जगह पहुंच चुकी थी जहां से उन आवाजों का स्त्रोत्र था। भूसे के ढेर पे उसे दो जिस्म नजर आए। स्त्री पुरुष के ऊपर थी और जोर जोर से उछल रही थी। और वो पुरुष उस स्त्री की गांड़ के पर्वत को अपने हाथ से दबा रहा था।


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सुधा की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी कि आखिर दोनो कौन है। जैसे ही उसने पुरुष की आवाज सुनी तो बस उसके ज़हन में एक ही नाम था "लल्लू"।

Nice update
 
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भाग १२

माया देवी और लल्लू गांव की तरफ रवाना हो चुके थे। थोड़ी बहुत छेड़खानी के बाद दोनो नींद की आगोश में चले गए। जब गांव के अंदर प्रविष्ट हुए तब जाकर माया देवी की आंख खुली। उन्होंने लल्लू को जगाया। थोड़ी देर में ही गाड़ी घर के द्वार पर खड़ी थी।

सब के लिए ही ये चौकने की बात थी क्योंकि किसी को भी नही पता था कि माया देवी और लल्लू आने वाले हैं। गाड़ी की आवाज सुनते ही पूरे घर में जैसे हलचल सी मच गई। सुधा ने जैसी ही गाड़ी उसके चेहरे की उदासी इक दम से मुस्कुराहट में बदल गई। उसके कदम उठे पर कुछ सोच कर उसने अपने कदम थाम लिए। उसके मन ने कहा " अगर तू पत्नी होकर तड़पी है तो पति को भी तो कुछ तड़प होनी चाहिए" और मन मसोस कर वो किचन के दरवाजे की ओट में छुप गई।

कमला का दिल गाड़ी की आवाज सुनकर जोरों से धड़कने लगा। उसे छत पर लल्लू के साथ बिताया हुआ हर एक पल याद आने लगा। पूरे जिस्म में सुरसुरी दौड़ गई। उसके निप्पल तन कर खड़े हो गए और चूत में मीठी मीठी सनसनी कौंध गई। वो भी अपने कमरे के दरवाजे की ओट से लल्लू को निहारने लगी।


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रत्ना ने जब गाड़ी की आवाज सुनी तो उसकी आंखो के सामने लल्लू का विशालकाई लौड़ा घूमने लगा। उसकी अनछुई चूत उबाल मारने लगी। वो अपनी जांघो से ही अपनी चूत को दबाने लगी।



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सब अपने अपने कमरों में छुपे हुए लल्लू की झलक का इंतजार कर रहे थे। लल्लू को सबके मन की मनोस्थिति ज्ञात थी। वो मंद मंद ही मुस्कुरा रहा था। माया देवी को गाड़ी से उतरे हुए कुछ पल बीत चुके थे और किसी को घर की चौखट पे ना आता देख कर उनका गुस्सा सातवें आसमान पर था।

माया देवी: कहा मर गई सारी कुत्तियां। रंडिया कौन से बिल में घुस कर बैठी है।

माया देवी के चिल्लाने की आवाज सुन कर सब जैसे नींद से जागी हो। तुरंत ही अपनी भावनाओं को दबाए सब की सब दरवाजे की ओर बड चली। वहा पहुंचते ही तीनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और तीनो की आंखे नीची हो गई। तीनो एक दूसरे की मन की बात से अंजान थी। तीनो में से किसी की हिम्मत नही हुई की वो माया देवी की तरफ देख भी सके।

माया देवी: कहां गांड़ मरा रही थी सब की सब।

सुधा: ( थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए) वो दीदी गाड़ी की आवाज नही आई और अपने बताया भी तो नही था, नही तो आरती का थाल न सजाती।

लल्लू की आंखे तीनो का जायजा ले रही थी। तीनो भी चोर निगाहों से लल्लू को ही निहार रही थी। तीनो को अब लल्लू के अंदर एक पूर्ण पुरुष नजर आ रहा था। खैर लल्लू ने तीनो में से किसी को भी भाव नही दिया और वो घर के अंदर चल पड़ा। सबसे ज्यादा सुधा को अजीब सा लगा क्योंकि लल्लू अगर कभी भी बाहर से घर आता था तो माई माई चिल्लाता हुआ उसके गले लग जाता है। पर आज तो उसने सुधा की तरफ देखा भी नहीं।

सुधा : दीदी इसे क्या हुआ। ये तो बदला बदला सा लग रहा है।

माया देवी: डॉक्टर ने बताया कि अपना लल्लू अब धीरे धीरे ठीक हो रहा है। उसके सोचने समझने की शक्ति बढ़ती जा रही हैं। लल्लू को यह एहसास दिलाना होगा की वोही अब इस गांव का ठाकुर है। सब चीजे उसके कहे अनुसार होनी चाहिए।

रत्ना: तो इसका मतलब हमारा लल्लू अब पूर्ण रूप से ठीक हो चुका है।

माया देवी: नही री अभी धीरे धीरे ठीक होने की राह पर चल चुका है।

तभी माया देवी के कानो में लल्लू की आवाज पड़ी।

लल्लू: ताई मां ओ ताई मां।

माया देवी: आई ठाकुर साहब।

माया देवी के मुंह से ठाकुर साहब सुन कर तीनो की तीनो अचंभे में पड़ गई, पर माया देवी इन तीनों की बिना परवाह किए वो अंदर की तरफ चल दी।

लल्लू: ताई मां किसी ने हमारे नहाने का और न ही जलपान का बंदोबस्त किया है।

माया देवी: सुधा और रत्ना दोनो ठाकुर साहब के नहाने का और जलपान का इंतजाम करो।

दोनो हैरत से अपनी मुंडी हिलाने लगी। सुधा भागी रसोईघर की तरफ और रत्ना भागी बाथरूम की तरफ। कमला भी अपने कमरे की तरफ जाने लगी तब उसने लल्लू की तरफ देखा तो लल्लू को खुद को निहारता पाया। दोनो की आंखे टकराई तो लल्लू ने उसे आंख मार दी, कमला एक दम से सकपका गई और भाग कर अपने कमरे में बंद हो गई। कमला की हालत देख माया देवी की हसी छूट गई।

माया देवी: इसे भी नही छोड़ेंगे मालिक।

लल्लू: किसी को भी नही न तुझे न तेरी बेटियों को न सुधा और उसकी बेटियों को और न ही रत्ना को समझी।

इतना बोलकर लल्लू ने एक जोरदार चपत माया देवी की गांड़ पे मार दी।

मायादेवी: कितने कमीने हो आप मालिक।

लल्लू: कमीना तो मैं हूं। इस घर में तुम सब को नंगी रखूंगा।

और इतना बोलकर लल्लू स्नानघर की तरफ चल पड़ा। लल्लू जब स्नानघर पहुंचा तो आदत अनुसार लल्लू ने एक एक करके सारे कपड़े उतार दिए। लल्लू के कच्छे में उसके अजगर का फन साफ साफ दिखाई दे रहा था।


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रत्ना की आंखे वही पे जम कर रह गई। लल्लू ने रत्ना की आंखों के सामने ही अपने अजगर के फन को उमेठ दिया तो रत्ना के जिस्म मे कपकपी दौड़ गई। रत्ना के होंठ पूर्ण रूप से सूख चुके थे। उसकी सांसे रेलगाड़ी के इंजन से भी तेज दौड़ रही थी। उसकी जांघें यकायक आपस में भिड़ गई तो उसे एहसास हुआ की उसकी चूत पानी छोड़ चुकी है। खुद को शर्मिंदा होने से बचाने के लिए वो लल्लू से बोली।

रत्ना: गरम पानी रख दिया है, तो तू खुद नहा ले लल्लू।

लल्लू: चाची मां आज तक तो मैं कभी खुद नही नहाया फिर आज क्यों। ठीक है आप जाइए, में ताई मां को बुलाता हूं।

माया देवी का नाम सुनते ही रत्ना की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई।

रत्ना: अच्छा रोक मैं नहलाती हूं।

इतना सुनते ही लल्लू ने वो किया जो रत्ना जानती थी की होगा पर लल्लू इस तरह से करेगा ये नही मालूम था। लल्लू ने एक झटके में अपना कच्छा उतार कर फेक दिया और लल्लू अब रत्ना की आंखों के सामने पूर्ण रूप से नंगा था। लल्लू की तोप रत्ना की बिन चूदी जवानी को सलामी दे रही थी।


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रत्ना के होठ पूर्ण रूप से सूख चुके थे। उसकी सांसे किसी मशीन की तरह चल रही थी। रत्ना बार बार अपने होठों पे जुबान फेर रही थी। रत्ना को जिस चीज की चाहत थी वो उसके समक्ष खड़ी थी। उसका मन कर रहा था की वो हाथ बड़ा कर उस भीमकायी लन्ड को अपनी मुट्ठी में भर ले और उसकी सारी अकड़ निकाल दे। पर वो जिस कश्मकश में थी उसके अंतर्मन में द्वंद चल रहा था। तभी लल्लू ने उसको उसकी नींद से जगाया।

लल्लू: चाची मां स्नान कराओ न।

रत्ना ऐसे चौकी जैसे किसी गहरी नींद से जागी हो।

रत्ना: ओह हां......चल बैठ जा नीचे।

लल्लू: नही नीचे नही मुझे खड़े होके नहाना है।

उसकी ज़िद्द के आगे रत्ना की एक न चली। रत्ना लल्लू को नहलाने लगी। जैसे जैसे रत्ना के हाथ लल्लू के बलिष्ट जिस्म पर रेंगने लगे लल्लू का नाग और फन उठाने लगा। रत्ना लल्लू के मर्दाना जिस्म पर मर मिटी। लल्लू की कठोर छाती, उसकी मजबूत बुझाए, सख्त जांघें और जांघों के जोड पर फंफनता हुआ नाग जो रत्ना को किसी भी क्षण डसने को तैयार बैठा था।


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रत्ना जैसे ही जांघो के जोड पर पहुंची उसका गला सूखने लगा। वो सोच रही थी क्या करे। जांघो को मलते हुए लल्लू का लौड़ा उसके गालों को चूम रहा था। इतना गर्म था की अगर किसी लोहे पर रख दो तो लोहा पिघल जाए। जैसे ही रत्ना को लल्लू के लन्ड ने पहली बार स्पर्श किया, रत्ना की चूत बहने लगी, और बहती चली गई क्युकी आज कोई बांध इस नदी के वेग को नही रोक सकता था। रत्ना धीरे धीरे लल्लू के नीचे की टांगो पे साबुन मलने लगी। वो अब पानी डालने ही चली थी की उसके कान से धुआं निकलने लगा।

लल्लू: चाची मां लन्ड पे भी तो साबुन लगाओ।

रत्ना का मुंह खुला का खुला रह गया, उसके कान गरम हो गए और उसकी चूत धधकने लगी। लल्लू ने आज पहली बार उसके सामने कुछ ऐसा शब्द बोला था।

रत्ना: ये गलत शब्द है। किसने सिखाया तुम्हे ये।

रत्ना ने हल्का सा झूटा गुस्सा दिखाया और लल्लू ने भी डरने का पूरा नाटक किया।

लल्लू: ताई मां और डॉक्टरनी ने। वो कहती है की जब आपकी नुनु इतनी बड़ी हो जाए तो उसे लन्ड या लौड़ा बोलते हैं।

रत्ना अपने मन में कह तो सही रही है लौड़ा भी नही पूरा मूसल है ये तो।

रत्ना: कह वो सही रही है पर ये शब्द केवल अपने दोस्तो के साथ बोलते है। ऐसे घर में नही।

लल्लू: तो फिर घर पर क्या बोलूं।

रत्ना: (असमंजस में) इसको तुम, अपना लिंग बोल सकते हो।

और जैसे ही रत्ना ने लल्लू के लन्ड पर साबुन लगाया वो और ज्यादा सख्त होने लगा और एक दम कड़ा हो गया।


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और लल्लू ने अपना नाटक शुरू किया।

लल्लू: आई चाची आह।

रत्ना: क्या हुआ लल्लू। लगी क्या।

लल्लू: चाची लिंग मैं एक दम से बहुत दर्द हो रहा है।

रत्ना प्यार से लल्लू के लन्ड को सहलाने लगी।

रत्ना: अब ठीक लग रहा है लल्लू।

लल्लू: हां चाची अब ठीक लग रहा है।

रत्ना जैसे जैसे लल्लू के लन्ड को सहला रही थी वैसे वैसे उसकी खुमारी बढ़ती जा रही थी। अब वो भूल चुकी थी की वो लल्लू को स्नान कराने के लिए आई थी, बल्कि वो पूर्ण रूप से वासना में लिप्त हो चुकी थी। उसके हाथ लन्ड पर कसते जा रहे थे और सहलाना कब मुठियाना में बदल गया उसे पता भी नही चला।




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रत्ना कोई फर्क नहीं पड़ रहा था की बाहर उसकी जेठानिया बैठी हुई है। रत्ना का हाथ अब तेजी से लल्लू के लन्ड को हिलाने लगा। उसका खुद का एक हाथ कब खुद उसकी मुनिया को सहलाने लगा। वो खुद को चरम के समीप पाने लगी और लावा जो उसके अंदर कब से बंद था वो उफ्फान मरने लगा। उसके हाथ हल्के हल्के दर्द करने लगे तब भी वो रुकी नहीं जैसे आज उसका उद्देश्य केवल लल्लू के लन्ड से मलाई निकालना हो। वही लल्लू केवल आंखे बंद किए हुए हर एक पल का आनंद ले रहा था। रत्ना बस कुछ ही क्षण दूर थी अपने सम्पूर्ण चरम से तभी जान मूचकर लल्लू ने बांध खोल दिया और उसके वेग से रत्ना पूरी तरह से भीग गई। इतनी बौंचार हुई की रत्ना का संपूर्ण चेहरा लल्लू के रस से भर गया। लल्लू अभी भी आंखे बंद किए हुए ही खड़ा था।


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जैसे ही थोड़ी सी शांति हुई लल्लू तुरंत ही अपने शरीर पर पानी डाल कर तोलिया लपेट कर बाथरूम से बाहर निकल गया और अंदर रह गई तो बस रत्ना जो अभी भी उस सैलाब से उबरने की कोशिश कर रही थी। उसके पूरे चेहरे पर लल्लू का मॉल लगा हुआ था। रत्ना की प्यास अभी भी तृप्त नहीं हुई। रत्ना के चेहरे पर पड़ा हुआ लल्लू का मॉल रत्ना को मदहोश कर रहा था। उसकी खुशबू उसकी सांसों में बस चुकी थी। रत्ना ने एक उंगली से लल्लू का मॉल अपने गाल से हटाया और अपनी ज़बान पर रख चखने लगी। दे


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खते देखते वो सारी मलाई चट कर गई। तभी माया देवी की आवाज से रत्ना की तंत्रा भंग हुई।

माया देवी: रत्ना क्या हुआ। अंदर क्या कर रही है।

रत्ना: कुछ नही ये लल्लू ने मुझे भी भिगो दिया। कमला को बोल कर कुछ कपड़े भिजवा दो।

माया देवी समझ गई की लल्लू ने रत्ना को अपने जलवे दिखा दिए। उन्होंने कमला को निर्देश दिया की रत्ना को उसके कपड़े लाकर दे और सुधा को रसोई घर में काम करता हुआ छोड़ कर खुद चल दी लल्लू के कमरे की तरफ।

जैसे ही माया देवी लल्लू के कमरे में पहुंची लल्लू ने माया देवी को अपनी में उठा लिया और उनके अधरों का रसपान करने लगा।



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माया देवी भी उसका पूर्ण सहयोग करने लगी। कोई ५ मिनट के बाद लल्लू ने माया देवी को नीचे उतारा। दोनो अलग हुए तो दोनो की आंखों में अभी भी प्यास बाकी थी।

माया देवी: चोद दिया किया रत्ना को।

लल्लू: अभी कहा मेरी जान, अभी और तड़पाउंगा जब तक वो खुद खोल के खड़ी नही हो जाती।

माया देवी: तो फिर रात का क्या प्रोग्राम है।

लल्लू: रात को तू मेरे लोड़े की सवारी करेगी।

इतना बोल कर लल्लू ने माया देवी के दोनो दूध से भरे कलशो को थाम लिया और मरोड़ दिया।

माया देवी: आह मालिक, इतनी जोर से करते हो।

लल्लू: चुप कर साली रण्डी। अच्छा जो कहा था वो लाई है।

माया देवी ने लल्लू के हाथ में एक पैकेट थमा दिया। लल्लू कमरे से निकला और।

लल्लू: मैं अभी आता हूं तब तक तू महफिल सजा।

लल्लू ये बोल कर कमरे से बाहर निकल गया और माया देवी इतना ही सोच पाई की मालिक कितने कमीने है।

लल्लू सीधे चलते हुए कमला के कमरे बाहर रुका। कमला जो की रत्ना की हालत देख चुकी थी। उसे समझ नही आ रहा था की लल्लू ने रत्ना के साथ ऐसा क्या किया। तभी उसे किसी की आहट हुई, उसने देखा तो सामने लल्लू को पाया। लल्लू बहुत ही कम उसके कमरे में आता था।

कमला: तू यहा क्या कर रहा है।

लल्लू: (शैतानी मुस्कुराहट के साथ) एक काम अधूरा रह गया था वो ही पूरा करने आया हूं।

कमला: (सकपकाते हुए) कौन सा काम।

लल्लू: वो ही जो उस दिन छत पर कर रहा था पर अधूरा रह गया था।

कमला के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। वो शर्म से पानी पानी हो गई। उसे लल्लू से इतनी बेबाकी की उम्मीद नहीं थी।

कमला: (झूठा गुस्सा दिखाते हुए) शर्म नही आती तुझे। अभी माई को बताती हूं।

इतना बोल कर वो पलंग से खड़ी हुई और बाहर की ओर चलने लगी। लल्लू ने तुरंत कमला का हाथ पकड़ा और उसे झटका दिया, कमला किसी फूल की भांति लल्लू की बाहों में सिमटती चली गई। लल्लू ने कमला को अपनी आगोश में भर लिया। एक बार फिर कमला को लल्लू के जिस्म का एहसास होने लगा। लल्लू के हाथ कमला की पूरी पीठ टटोल रहे थे और यकायक लल्लू के हाथो में कमला की गांड़ के उभार थे।


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लल्लू अपना मुंह बिलकुल कमला के कान के पास ले गया।

लल्लू: अगर मां को बुलाना होता तो तू अब तक बता चुकी होती।

और कमला की गांड़ दबा दी। कमला एक दम से चिहुंक उठी।

लल्लू: और तुझे भी तो छत पे मजा आया था। ( और एक दम से कमला को छोड़ दिया) जा बता दे माई को।

और कमला के पास इस वार को कोई जवाब न था। कमला वही आंखे नीचे करे खड़ी रही। उसकी हिम्मत उसका साथ छोड़ चुकी थी। वो तो खुद लल्लू के बाहों में समाने को बेताब थी। लल्लू ने अबकी बार कमला को पीछे से जकड़ा और एक बार फिर कमला की गांड़ और लल्लू के लन्ड का मिलाप हो गया। कमला चौंक गई ये देखकर की लल्लू का लन्ड पूरी तरह से खड़ा है। कमला की सांसे भारी होने लगी और उसकी छाती धौकनी की तरह चलने लगी। लल्लू धीरे धीरे कमला की गांड़ पर घर्षण करने लगा और अपने एक हाथ से उसकी चूची दबाने लगा।

कमला: आह ओह लल्लू मत कर।

लल्लू: क्यू मजा नही आ रहा।

कमला: आह सब नीचे बैठे है। प्लीज रुक जा।

लल्लू: तू उनकी चिंता मत कर बस मजे कर।

लल्लू कमला को दूसरी दुनिया में ले गया। अब कमला भी लल्लू का पूरा साथ दे रही थी। कमला की गांड़ लल्लू के धक्कों से ताल से ताल मिला रही थी।


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तभी एक आवाज से दोनो वापस इस दुनिया में आ गए।

सुधा: लल्लू ताई मां बुला रही है। नीचे आजा।

लल्लू: आया माई।

लल्लू ने कमला को छोड़ दिया और कमला ने ऐसे देखा लल्लू को जैसे पूछ रही हों क्यू छोड़ दिया। लल्लू कमला के कमरे से निकल पड़ा। और एक पैकेट कमला की ओर फेका।

लल्लू: ये कल रात को पहन के रखना।

इतना बोल कर वो निकल गया और कमला बेसुध सी उसे जाता हुआ देखने लगी। फिर एक दम से उसने पैकेट खोला जिससे देखकर कमला के होश उड़ गए। वो एक ब्रा पैंटी का सेट था जो पहना न पहना बराबर था।



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उसे देख कर कमला सिर्फ इतना बोल पाई " ये क्या हैं लल्लू"।
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भाग १३

लल्लू कमला के कमरे से निकल कर सीधा चौबारे पर पहुंचा जहां पर माया देवी, सुधा और रत्ना तीनो बैठी हुई थी। सामने शराब की बोतल और चखना रखा हुआ था। माया देवी ने लल्लू को बैठने का इशारा किया और आज वो उस जगह बैठा जहां माया देवी बैठा करती थी यानी घर के मुखिया की कुर्सी।

माया देवी: बैठिए ठाकुर साहब, अब से ये कुर्सी आपकी है। आप ही हमारे सब कुछ है।

सुधा और रत्ना टकटकी लगाए माया देवी को ही देख रही थी। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है। सुधा ने इशारे से माया देवी को बुलाया एक किनारे में।

सुधा: दीदी ये आप क्या कर रही है। लल्लू क्या गांव की जिम्मेदारी उठा पाएगा। जल्दबाजी तो नहीं कर रही आप।

माया देवी: सुधा गांव की नहीं केवल अभी इस घर का मुखिया बना रही हूं। और मैं वहीं कर रही हूं जैसा कि डॉक्टर ने बोला था। लल्लू को इस एहसास से बाहर निकलना है कि वो मंदबुद्धि है। वो हर चीज करने में सक्षम है ऐसा उसे एहसास दिलाना होगा। समझी और जो मै कर रही हूँ उसपे सवाल मत करो बल्कि मेरा साथ दो।

सुधा ने सिर हिलाया और वापस अपनी जगह पर आकर बैठ गई। माया देवी सब के गिलास में शराब डालने लगी और जब लल्लू के गिलास में शराब डालने लगी तो सुधा कुछ बोलने लगी पर माया देवी ने उसे इशारे से मना कर दिया। सब के गिलास भर दिए गए। और शराब का दौर चलने लगा। माया देवी बीते दो दिनों का हालचाल लेने लगी सुधा से की गांव में क्या क्या हुआ। सुधा भी बताने लगी और दोनों मसरूफ हो गए। रत्ना को कोई ज्ञान नहीं था कि दोनो क्या बात कर रहे है। उसका ध्यान लल्लू की तरफ गया तो उसने पाया लल्लू एक टक उसको देख रहा है। उसने ध्यान दिया कि लल्लू की निगाहे उसकी छातियों के उठान पर केंद्रित है।


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वो उसके वक्ष स्थल को घूरते हुए अपने लोड़े को सहला रहा था। थोड़ा असहज तो लगा रत्ना को पर उसकी चूत रिसने लगी। रत्ना को थोड़ा गीलेपने का एहसास हुआ न जाने क्यों उसकी निगाहे भी लल्लू के जांघों के जोड़ पर टिक गई। रत्ना की निप्पल एक दम टाइट होकर खड़ी हो गई और वो एक बार फिर से चरम की और बढ़ने लगी। थोड़ी ही देर में रत्ना का बैठ पाना मुश्किल हो रहा था वो बस अब अपना चरम पाना चाहती थी।

रत्ना: दीदी मै ज़रा गोश्त देख कर आती हु। पका की नहीं।

और वो उठकर रसोई घर की तरफ चल दी। रत्ना ने इस समय एक फिटिंग वाला सलवार सूट पहन रखा था। जिसमें उसकी गांड़ की थिरकन देखने लायक थी। वो फटाफट रसोईघर में दाखिल हुई और सलवार के ऊपर से ही अपनी चूत को सहलाने लगी।


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उसको एक अजीब सा सुख महसूस हो रहा था। ये पहली बार था जब वो केवल लल्लू को सोच कर अपनी चूत सहला रही थी।

रत्ना: आह ओह लल्लू क्या जादू कर दिया है तूने, आह आराम ही नहीं मिल रहा मेरी मुनिया को। आई हर समय रस बाहें जा रही है।

रत्ना के हाथ तेजी से चलने लगे पर वो अंजान थी कि झरोखे से उसे कोई देख रहा है। वो और कोई नहीं हमारा लल्लू था। रत्ना अपनी दुनिया में मस्त थी उसे बस जल्दी थी अपने चरमसुख की प्राप्ति की पर तभी उसे एक झटका लगा। किसी ने उसे पीछे से जकड़ लिया और रत्ना को अपनी आगोश में ले लिया।


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रत्ना को किसी कठोर चीज का एहसास हुआ अपनी गांड़ पर और उसके आकार को भांपते हुए रत्ना समझ गई कि ये लल्लू ही है। लल्लू ने रत्ना को बिल्कुल कस के जकड़ रखा था। हवा भी दोनो के बीच से नहीं गुजर सकती थी। लल्लू धीरे धीरे रत्ना की गांड़ पे धक्के मारने लगा। जो रत्ना चाहती थी वो हो तो रहा है पर उसे डर भी था कि कही उन दोनों को कोई देख न ले।

रत्ना: आह क्या ओह उई क्या कर रहा है लल्लू।

लल्लू: अपनी चाची से प्यार। और तुम भी तो यही चाहती हो रत्ना।

लल्लू के मुंह से अपना नाम सुनकर रत्ना एक दम अचंभित हो गई। रत्ना का झूठमूठ का गुस्सा भी जाता रहा। लल्लू ने इसी का फायदा उठाया और रत्ना की गर्दन पर जुबान चलाने लगा।


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रत्ना: आह लल्लू मत कर, कोई देख लेगा।

लल्लू: कोई नहीं देख रहा। तू बस मज़ा ले।

लल्लू की पकड़ रत्ना की कमर पर बढ़ती जा रही थी। उसके धक्कों की रफ्तार रत्ना के लिए एक नया अनुभव थी जो कि उसने आज तक महसूस नहीं किया। रत्ना की आंखे मदहोशी से बंद होती जा रही थी। उसपे नशा सा छा रहा था।


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रत्ना: आह आह ओह ह मां लल्लू।

लल्लू भी कम खिलाड़ी नहीं था उसने अब रत्ना की अनछुई चूचियों को दबाना शुरू कर दिया। इस हमले के लिए रत्ना तैयार नहीं थी। लल्लू ने दोनो चूचियों को अपनी गिरफ्त में ले लिया और तेज तेज धक्के मारने लगा।

रत्ना: ओह आह लल्लू करता रह मेरा होने वाला है।

लल्लू: इस लिए तो आया हूं मेरी जान की तेरा भोज हल्का हो जाए।

रत्ना के हाथ की रफ्तार भी लल्लू के धक्कों के साथ बढ़ती जा रही थी और उसकी गांड़ की थिरकन भी लल्लू के धक्कों के साथ सुर मिल रही थी और वो क्षण भी आया जब रत्ना के सब्र का बांध टूट गया और उसकी कुंवारी चूत ने भलभला कर अपना अमृत रस छोड़ दिया। रत्ना की सांसे उसके बस में नहीं थी। वो बस इस पल को समेटना चाहती थी। उसका किसी पुरुष स्पर्श से ये पहला चरम था जिसका एहसास उसके लिए स्वर्णिम था। जब सांस दुरुस्त हुई तब रत्ना को एहसास हुआ कि अभी रसोईघर में क्या हुआ और सोचते ही उसकी आँखें शर्म से झुक गई। उसने लल्लू को एक तेज धक्का दिया और भाग गई अपने कमरे की तरफ।

सुधा और माया देवी ने रत्ना को भागते हुए देखा और रत्ना को आवाज लगाई पर रत्ना न रुकी और भागते हुए अपने कमरे में पहुंचकर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। तभी रसोईघर से लल्लू निकला जिसे देखते ही माया देवी समझ गई कि क्या हुआ होगा, पर सुधा अभी भी अंजान थी।

सुधा: क्या हुआ लल्लू, ये रत्ना भाग कर क्यों गई।

लल्लू: मटकी का पानी निकल गया माई।

सुधा: मटकी का पानी, क्या कह रहा है तू।

लल्लू: अरे माई मटकी का पानी चाची के ऊपर गिर गया। सारे कपड़े गिले हो गए उनके।

सुधा: जरूर तूने कोई शैतानी करी होगी। जा मै देखती हूं।

सुधा उठने को हुई तो माया देवी ने उसका हाथ पकड़ कर रोक दिया।

माया देवी: बच्ची नहीं है वो सुधा अभी आ जाएगी, पानी गिर गया होगा। और हर समय ठाकुर साहब को दोष मत दिया कर। समझी।

सुधा आश्चर्य से सिर झुका कर रह गई।

उधर रत्ना ने जब अपने कपड़े उतारे तो वो हैरान थी कि इतना पानी कैसे छोड़ सकती है वो। पूरी सलवार और पैंटी उसके मदन रस से तर थी। उसने खुद को आइने में देखा और खुद के जिस्म की अकड़ को निहारने लगी और खुद से ही बोलने लगी।


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रत्ना: तेरी अकड़ निकलने वाला आ गया है। एक एक कस बल निकालेगा तेरे।

और खुद ही अपनी चूचियों का मर्दन करने लगी। एक बार फिरसे उसे लल्लू की कमी महसूस होने लगी। वो एक बार फिर भावनाओं में बहने लगी की तभी किसी ने उसका दरवाजा पीट दिया। और जो आवाज सुनी उससे उसका उत्साह सारा ठंडा पड़ गया। हालांकि ये आवाज उसे पसंद थी पर अब उसे सिर्फ लल्लू की आवाज ही सुननी थी।

कमला: चाची सब लोग नीचे बोला रहे है।

रत्ना: तू चल मै दो मिनिट में आती हूं।

कमला भी नीचे आ गई और थोड़ी देर बाद रत्ना भी। शराब का दूसरा दौर शुरू हुआ और फिर तीसरा भी। माया देवी ने सिगरेट जलाई और लल्लू को तरफ बढ़ा दी। सुधा कुछ बोलने को हुई पर माया देवी की आंखों के सामने उसकी एक न चली। लल्लू ने सिगरेट ली और कश लगाने लगा। सुधा को छोड़कर सब लल्लू का ये मर्दाना रूप देखकर खुश थे। सुधा भी खुश तो थी वो भी अपने नए पति को निहार तो रही थी पर वो चाहती थी कि लल्लू सिर्फ उसके साथ ही सब करे। जलन थी उसके अंदर पर वो कुछ कह नहीं पाई। थोड़ी देर बाद खाना पीना सब हो गया। लल्लू सीधे अपने कमरे की तरफ चल दिया और सारी औरते माया देवी के कमरे में आखिर माया देवी सब के लिए शहर से क्या लाई है।

माया देवी: देखो जो भी सामान है इस बार सब लल्लू की पसंद का है।

कमला: तो क्या हमारी वो भी लल्लू की पसंद की है।

माया देवी: हां मेरी रंडियों तुम्हारी ब्रा पैंटी भी लल्लू की पसंद की है। और एक बात लल्लू नहीं उसे ठाकुर साहब बोलने की आदत डालो। समझी नहीं तो खाल खींच लूंगी सबकी।

तीनो की तीनो एक साथ चुप हो गई। माया देवी एक एक करके सबको कपड़े दिखाने लगी। सब उन कपड़ों तो आंखे फाड़कर देखने लगी।

रत्ना: दीदी ये कपड़े ढकेंगे कम और दिखाएंगे ज्यादा।

सुधा: ये इतनी छोटी छोटी नाइटी हम कहां पहनेंगे।


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माया देवी: शहर में सब पहनते है तो ठाकुर साहब बोले कि हमारे घर की औरतें क्यों नहीं। मैने तो एक रात पहन के भी देखी, बड़ा आराम मिलता है, बड़ा हल्का हल्का लगता है। सांकल चढ़ाने के बाद घर पहन लिया करना।

फिर कुछ सारी और कुछ सलवार कुर्ते और कमला के लिए अति आधुनिक परिधान जैसे जींस टॉप और मिनी स्कर्ट। सब अपने अपने कपड़े को लेकर अपने कमरों में चली गई।

सुधा ने जैसे ही अपने कमरे में प्रवेश किया उसका सारा उत्साह काफ़ूर हो गया। लल्लू घोड़े बेच के सो चुका था। सुधा मन ही मन बुदबुदाने लगी।

सुधा: कमीना कहीं का। दो दिन बाद आया है और कैसे घोड़े बेच के सो रहा हैं। अपनी पत्नी की खुशी का बिल्कुल एहसास ही नहीं है। सोएगा क्यों नहीं दारु जो पीने लग गया है।

सुधा गुस्सा तो बहुत थी लल्लू के मर्दाना जिस्म को निहार रही थी। लल्लू सो रहा था पर उसका अजगर अब भी जग रहा था। सुधा उस अजगर को ललचाई नजरों से निहार रही थी।


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मन तो उसका कर रहा था कि अभी लल्लू के अजगर के साथ खेले पर अब भी उसके अंदर की हया उसे ये करने से रोक रही थी।

सुधा ने अपनी साड़ी उतारी और लल्लू के बगल में लेट गई। लल्लू या यू कहूं पिशाच सुधा की मनोस्थिति देख कर बहुत खुश हो रहा था। वो बंद आंखों से सुधा के यौवन का रसपान कर रहा था।

उधर कमला और रत्ना एक दूसरे को लल्लू की हरकते बता रहे थे। दोनो एक दम नंगी थी और एक दूसरे के अंगों से छेड़छाड़ कर रही थी।


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रत्ना: लल्लू के लंड एहसास होते ही मेरी मुनिया तो बहने लगती है। कितना बड़ा लन्ड है उसका।

कमला: सही में चाची एक बार घुस जाए तो फाड़ कर रख देखा।

रत्ना: अपने भाई के लन्ड की बाते कर रही है छिनाल।

कमला: तुम भी तो अपने बेटे समान भतीजे के लन्ड को याद करके अपनी मुनिया बहा रही हूं।

ऐसी ही हल्की फुल्की बाते करते हुए दोनों एक दूसरे को शनिक तृप्ति प्रदान करने पर तुली हुई थी।

रात गहरे सन्नाटे में खोई हुई थी। रात का अंधेरा पूर्ण रूप चांद की चांदनी को निगल चुका था। सुधा की नींद अचानक ही खुल गई। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे झंझोर कर उठाया हो। सुधा ने जब अपनी बगल में देखा तो पाया लल्लू बिस्तर पर नहीं है। लल्लू को वहां न देख कर उसका मन विचलित हो गया। सुधा ने देखा उसके कमरे का दरवाजा खुला हुआ है जबकि वो पूर्ण रूप से आश्वस्त थी कि उसने कुंडी लगाई है। वो डरते डरते कमरे से बाहर निकली। पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था। एक धुंधली सी रोशनी सुधा को दिखाई दी। वो उस रोशनी का पीछा करती हुई उस तरफ ही चल दी। जब वो तबेले पर पहुंची तो उसे कुछ आवाजें सुनाई दी। वो खूब समझती थी कि ये आवाजें कैसी है। पर कौन हो सकता है ये। सुधा धीरे धीरे बिल्कुल उस जगह पहुंच चुकी थी जहां से उन आवाजों का स्त्रोत्र था। भूसे के ढेर पे उसे दो जिस्म नजर आए। स्त्री पुरुष के ऊपर थी और जोर जोर से उछल रही थी। और वो पुरुष उस स्त्री की गांड़ के पर्वत को अपने हाथ से दबा रहा था।


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सुधा की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी कि आखिर दोनो कौन है। जैसे ही उसने पुरुष की आवाज सुनी तो बस उसके ज़हन में एक ही नाम था "लल्लू"।
Behtreen update
 

sunoanuj

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Bahut he jabardast update hai….
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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भाग १३

लल्लू कमला के कमरे से निकल कर सीधा चौबारे पर पहुंचा जहां पर माया देवी, सुधा और रत्ना तीनो बैठी हुई थी। सामने शराब की बोतल और चखना रखा हुआ था। माया देवी ने लल्लू को बैठने का इशारा किया और आज वो उस जगह बैठा जहां माया देवी बैठा करती थी यानी घर के मुखिया की कुर्सी।

माया देवी: बैठिए ठाकुर साहब, अब से ये कुर्सी आपकी है। आप ही हमारे सब कुछ है।

सुधा और रत्ना टकटकी लगाए माया देवी को ही देख रही थी। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है। सुधा ने इशारे से माया देवी को बुलाया एक किनारे में।

सुधा: दीदी ये आप क्या कर रही है। लल्लू क्या गांव की जिम्मेदारी उठा पाएगा। जल्दबाजी तो नहीं कर रही आप।

माया देवी: सुधा गांव की नहीं केवल अभी इस घर का मुखिया बना रही हूं। और मैं वहीं कर रही हूं जैसा कि डॉक्टर ने बोला था। लल्लू को इस एहसास से बाहर निकलना है कि वो मंदबुद्धि है। वो हर चीज करने में सक्षम है ऐसा उसे एहसास दिलाना होगा। समझी और जो मै कर रही हूँ उसपे सवाल मत करो बल्कि मेरा साथ दो।

सुधा ने सिर हिलाया और वापस अपनी जगह पर आकर बैठ गई। माया देवी सब के गिलास में शराब डालने लगी और जब लल्लू के गिलास में शराब डालने लगी तो सुधा कुछ बोलने लगी पर माया देवी ने उसे इशारे से मना कर दिया। सब के गिलास भर दिए गए। और शराब का दौर चलने लगा। माया देवी बीते दो दिनों का हालचाल लेने लगी सुधा से की गांव में क्या क्या हुआ। सुधा भी बताने लगी और दोनों मसरूफ हो गए। रत्ना को कोई ज्ञान नहीं था कि दोनो क्या बात कर रहे है। उसका ध्यान लल्लू की तरफ गया तो उसने पाया लल्लू एक टक उसको देख रहा है। उसने ध्यान दिया कि लल्लू की निगाहे उसकी छातियों के उठान पर केंद्रित है।


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वो उसके वक्ष स्थल को घूरते हुए अपने लोड़े को सहला रहा था। थोड़ा असहज तो लगा रत्ना को पर उसकी चूत रिसने लगी। रत्ना को थोड़ा गीलेपने का एहसास हुआ न जाने क्यों उसकी निगाहे भी लल्लू के जांघों के जोड़ पर टिक गई। रत्ना की निप्पल एक दम टाइट होकर खड़ी हो गई और वो एक बार फिर से चरम की और बढ़ने लगी। थोड़ी ही देर में रत्ना का बैठ पाना मुश्किल हो रहा था वो बस अब अपना चरम पाना चाहती थी।

रत्ना: दीदी मै ज़रा गोश्त देख कर आती हु। पका की नहीं।

और वो उठकर रसोई घर की तरफ चल दी। रत्ना ने इस समय एक फिटिंग वाला सलवार सूट पहन रखा था। जिसमें उसकी गांड़ की थिरकन देखने लायक थी। वो फटाफट रसोईघर में दाखिल हुई और सलवार के ऊपर से ही अपनी चूत को सहलाने लगी।


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उसको एक अजीब सा सुख महसूस हो रहा था। ये पहली बार था जब वो केवल लल्लू को सोच कर अपनी चूत सहला रही थी।

रत्ना: आह ओह लल्लू क्या जादू कर दिया है तूने, आह आराम ही नहीं मिल रहा मेरी मुनिया को। आई हर समय रस बाहें जा रही है।

रत्ना के हाथ तेजी से चलने लगे पर वो अंजान थी कि झरोखे से उसे कोई देख रहा है। वो और कोई नहीं हमारा लल्लू था। रत्ना अपनी दुनिया में मस्त थी उसे बस जल्दी थी अपने चरमसुख की प्राप्ति की पर तभी उसे एक झटका लगा। किसी ने उसे पीछे से जकड़ लिया और रत्ना को अपनी आगोश में ले लिया।


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रत्ना को किसी कठोर चीज का एहसास हुआ अपनी गांड़ पर और उसके आकार को भांपते हुए रत्ना समझ गई कि ये लल्लू ही है। लल्लू ने रत्ना को बिल्कुल कस के जकड़ रखा था। हवा भी दोनो के बीच से नहीं गुजर सकती थी। लल्लू धीरे धीरे रत्ना की गांड़ पे धक्के मारने लगा। जो रत्ना चाहती थी वो हो तो रहा है पर उसे डर भी था कि कही उन दोनों को कोई देख न ले।

रत्ना: आह क्या ओह उई क्या कर रहा है लल्लू।

लल्लू: अपनी चाची से प्यार। और तुम भी तो यही चाहती हो रत्ना।

लल्लू के मुंह से अपना नाम सुनकर रत्ना एक दम अचंभित हो गई। रत्ना का झूठमूठ का गुस्सा भी जाता रहा। लल्लू ने इसी का फायदा उठाया और रत्ना की गर्दन पर जुबान चलाने लगा।


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रत्ना: आह लल्लू मत कर, कोई देख लेगा।

लल्लू: कोई नहीं देख रहा। तू बस मज़ा ले।

लल्लू की पकड़ रत्ना की कमर पर बढ़ती जा रही थी। उसके धक्कों की रफ्तार रत्ना के लिए एक नया अनुभव थी जो कि उसने आज तक महसूस नहीं किया। रत्ना की आंखे मदहोशी से बंद होती जा रही थी। उसपे नशा सा छा रहा था।


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रत्ना: आह आह ओह ह मां लल्लू।

लल्लू भी कम खिलाड़ी नहीं था उसने अब रत्ना की अनछुई चूचियों को दबाना शुरू कर दिया। इस हमले के लिए रत्ना तैयार नहीं थी। लल्लू ने दोनो चूचियों को अपनी गिरफ्त में ले लिया और तेज तेज धक्के मारने लगा।

रत्ना: ओह आह लल्लू करता रह मेरा होने वाला है।

लल्लू: इस लिए तो आया हूं मेरी जान की तेरा भोज हल्का हो जाए।

रत्ना के हाथ की रफ्तार भी लल्लू के धक्कों के साथ बढ़ती जा रही थी और उसकी गांड़ की थिरकन भी लल्लू के धक्कों के साथ सुर मिल रही थी और वो क्षण भी आया जब रत्ना के सब्र का बांध टूट गया और उसकी कुंवारी चूत ने भलभला कर अपना अमृत रस छोड़ दिया। रत्ना की सांसे उसके बस में नहीं थी। वो बस इस पल को समेटना चाहती थी। उसका किसी पुरुष स्पर्श से ये पहला चरम था जिसका एहसास उसके लिए स्वर्णिम था। जब सांस दुरुस्त हुई तब रत्ना को एहसास हुआ कि अभी रसोईघर में क्या हुआ और सोचते ही उसकी आँखें शर्म से झुक गई। उसने लल्लू को एक तेज धक्का दिया और भाग गई अपने कमरे की तरफ।

सुधा और माया देवी ने रत्ना को भागते हुए देखा और रत्ना को आवाज लगाई पर रत्ना न रुकी और भागते हुए अपने कमरे में पहुंचकर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। तभी रसोईघर से लल्लू निकला जिसे देखते ही माया देवी समझ गई कि क्या हुआ होगा, पर सुधा अभी भी अंजान थी।

सुधा: क्या हुआ लल्लू, ये रत्ना भाग कर क्यों गई।

लल्लू: मटकी का पानी निकल गया माई।

सुधा: मटकी का पानी, क्या कह रहा है तू।

लल्लू: अरे माई मटकी का पानी चाची के ऊपर गिर गया। सारे कपड़े गिले हो गए उनके।

सुधा: जरूर तूने कोई शैतानी करी होगी। जा मै देखती हूं।

सुधा उठने को हुई तो माया देवी ने उसका हाथ पकड़ कर रोक दिया।

माया देवी: बच्ची नहीं है वो सुधा अभी आ जाएगी, पानी गिर गया होगा। और हर समय ठाकुर साहब को दोष मत दिया कर। समझी।

सुधा आश्चर्य से सिर झुका कर रह गई।

उधर रत्ना ने जब अपने कपड़े उतारे तो वो हैरान थी कि इतना पानी कैसे छोड़ सकती है वो। पूरी सलवार और पैंटी उसके मदन रस से तर थी। उसने खुद को आइने में देखा और खुद के जिस्म की अकड़ को निहारने लगी और खुद से ही बोलने लगी।


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रत्ना: तेरी अकड़ निकलने वाला आ गया है। एक एक कस बल निकालेगा तेरे।

और खुद ही अपनी चूचियों का मर्दन करने लगी। एक बार फिरसे उसे लल्लू की कमी महसूस होने लगी। वो एक बार फिर भावनाओं में बहने लगी की तभी किसी ने उसका दरवाजा पीट दिया। और जो आवाज सुनी उससे उसका उत्साह सारा ठंडा पड़ गया। हालांकि ये आवाज उसे पसंद थी पर अब उसे सिर्फ लल्लू की आवाज ही सुननी थी।

कमला: चाची सब लोग नीचे बोला रहे है।

रत्ना: तू चल मै दो मिनिट में आती हूं।

कमला भी नीचे आ गई और थोड़ी देर बाद रत्ना भी। शराब का दूसरा दौर शुरू हुआ और फिर तीसरा भी। माया देवी ने सिगरेट जलाई और लल्लू को तरफ बढ़ा दी। सुधा कुछ बोलने को हुई पर माया देवी की आंखों के सामने उसकी एक न चली। लल्लू ने सिगरेट ली और कश लगाने लगा। सुधा को छोड़कर सब लल्लू का ये मर्दाना रूप देखकर खुश थे। सुधा भी खुश तो थी वो भी अपने नए पति को निहार तो रही थी पर वो चाहती थी कि लल्लू सिर्फ उसके साथ ही सब करे। जलन थी उसके अंदर पर वो कुछ कह नहीं पाई। थोड़ी देर बाद खाना पीना सब हो गया। लल्लू सीधे अपने कमरे की तरफ चल दिया और सारी औरते माया देवी के कमरे में आखिर माया देवी सब के लिए शहर से क्या लाई है।

माया देवी: देखो जो भी सामान है इस बार सब लल्लू की पसंद का है।

कमला: तो क्या हमारी वो भी लल्लू की पसंद की है।

माया देवी: हां मेरी रंडियों तुम्हारी ब्रा पैंटी भी लल्लू की पसंद की है। और एक बात लल्लू नहीं उसे ठाकुर साहब बोलने की आदत डालो। समझी नहीं तो खाल खींच लूंगी सबकी।

तीनो की तीनो एक साथ चुप हो गई। माया देवी एक एक करके सबको कपड़े दिखाने लगी। सब उन कपड़ों तो आंखे फाड़कर देखने लगी।

रत्ना: दीदी ये कपड़े ढकेंगे कम और दिखाएंगे ज्यादा।

सुधा: ये इतनी छोटी छोटी नाइटी हम कहां पहनेंगे।


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माया देवी: शहर में सब पहनते है तो ठाकुर साहब बोले कि हमारे घर की औरतें क्यों नहीं। मैने तो एक रात पहन के भी देखी, बड़ा आराम मिलता है, बड़ा हल्का हल्का लगता है। सांकल चढ़ाने के बाद घर पहन लिया करना।

फिर कुछ सारी और कुछ सलवार कुर्ते और कमला के लिए अति आधुनिक परिधान जैसे जींस टॉप और मिनी स्कर्ट। सब अपने अपने कपड़े को लेकर अपने कमरों में चली गई।

सुधा ने जैसे ही अपने कमरे में प्रवेश किया उसका सारा उत्साह काफ़ूर हो गया। लल्लू घोड़े बेच के सो चुका था। सुधा मन ही मन बुदबुदाने लगी।

सुधा: कमीना कहीं का। दो दिन बाद आया है और कैसे घोड़े बेच के सो रहा हैं। अपनी पत्नी की खुशी का बिल्कुल एहसास ही नहीं है। सोएगा क्यों नहीं दारु जो पीने लग गया है।

सुधा गुस्सा तो बहुत थी लल्लू के मर्दाना जिस्म को निहार रही थी। लल्लू सो रहा था पर उसका अजगर अब भी जग रहा था। सुधा उस अजगर को ललचाई नजरों से निहार रही थी।


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मन तो उसका कर रहा था कि अभी लल्लू के अजगर के साथ खेले पर अब भी उसके अंदर की हया उसे ये करने से रोक रही थी।

सुधा ने अपनी साड़ी उतारी और लल्लू के बगल में लेट गई। लल्लू या यू कहूं पिशाच सुधा की मनोस्थिति देख कर बहुत खुश हो रहा था। वो बंद आंखों से सुधा के यौवन का रसपान कर रहा था।

उधर कमला और रत्ना एक दूसरे को लल्लू की हरकते बता रहे थे। दोनो एक दम नंगी थी और एक दूसरे के अंगों से छेड़छाड़ कर रही थी।


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रत्ना: लल्लू के लंड एहसास होते ही मेरी मुनिया तो बहने लगती है। कितना बड़ा लन्ड है उसका।

कमला: सही में चाची एक बार घुस जाए तो फाड़ कर रख देखा।

रत्ना: अपने भाई के लन्ड की बाते कर रही है छिनाल।

कमला: तुम भी तो अपने बेटे समान भतीजे के लन्ड को याद करके अपनी मुनिया बहा रही हूं।

ऐसी ही हल्की फुल्की बाते करते हुए दोनों एक दूसरे को शनिक तृप्ति प्रदान करने पर तुली हुई थी।

रात गहरे सन्नाटे में खोई हुई थी। रात का अंधेरा पूर्ण रूप चांद की चांदनी को निगल चुका था। सुधा की नींद अचानक ही खुल गई। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे झंझोर कर उठाया हो। सुधा ने जब अपनी बगल में देखा तो पाया लल्लू बिस्तर पर नहीं है। लल्लू को वहां न देख कर उसका मन विचलित हो गया। सुधा ने देखा उसके कमरे का दरवाजा खुला हुआ है जबकि वो पूर्ण रूप से आश्वस्त थी कि उसने कुंडी लगाई है। वो डरते डरते कमरे से बाहर निकली। पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था। एक धुंधली सी रोशनी सुधा को दिखाई दी। वो उस रोशनी का पीछा करती हुई उस तरफ ही चल दी। जब वो तबेले पर पहुंची तो उसे कुछ आवाजें सुनाई दी। वो खूब समझती थी कि ये आवाजें कैसी है। पर कौन हो सकता है ये। सुधा धीरे धीरे बिल्कुल उस जगह पहुंच चुकी थी जहां से उन आवाजों का स्त्रोत्र था। भूसे के ढेर पे उसे दो जिस्म नजर आए। स्त्री पुरुष के ऊपर थी और जोर जोर से उछल रही थी। और वो पुरुष उस स्त्री की गांड़ के पर्वत को अपने हाथ से दबा रहा था।


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सुधा की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी कि आखिर दोनो कौन है। जैसे ही उसने पुरुष की आवाज सुनी तो बस उसके ज़हन में एक ही नाम था "लल्लू"।
Shandar hot update 🔥 🔥
 

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भाग १३

लल्लू कमला के कमरे से निकल कर सीधा चौबारे पर पहुंचा जहां पर माया देवी, सुधा और रत्ना तीनो बैठी हुई थी। सामने शराब की बोतल और चखना रखा हुआ था। माया देवी ने लल्लू को बैठने का इशारा किया और आज वो उस जगह बैठा जहां माया देवी बैठा करती थी यानी घर के मुखिया की कुर्सी।

माया देवी: बैठिए ठाकुर साहब, अब से ये कुर्सी आपकी है। आप ही हमारे सब कुछ है।

सुधा और रत्ना टकटकी लगाए माया देवी को ही देख रही थी। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है। सुधा ने इशारे से माया देवी को बुलाया एक किनारे में।

सुधा: दीदी ये आप क्या कर रही है। लल्लू क्या गांव की जिम्मेदारी उठा पाएगा। जल्दबाजी तो नहीं कर रही आप।

माया देवी: सुधा गांव की नहीं केवल अभी इस घर का मुखिया बना रही हूं। और मैं वहीं कर रही हूं जैसा कि डॉक्टर ने बोला था। लल्लू को इस एहसास से बाहर निकलना है कि वो मंदबुद्धि है। वो हर चीज करने में सक्षम है ऐसा उसे एहसास दिलाना होगा। समझी और जो मै कर रही हूँ उसपे सवाल मत करो बल्कि मेरा साथ दो।

सुधा ने सिर हिलाया और वापस अपनी जगह पर आकर बैठ गई। माया देवी सब के गिलास में शराब डालने लगी और जब लल्लू के गिलास में शराब डालने लगी तो सुधा कुछ बोलने लगी पर माया देवी ने उसे इशारे से मना कर दिया। सब के गिलास भर दिए गए। और शराब का दौर चलने लगा। माया देवी बीते दो दिनों का हालचाल लेने लगी सुधा से की गांव में क्या क्या हुआ। सुधा भी बताने लगी और दोनों मसरूफ हो गए। रत्ना को कोई ज्ञान नहीं था कि दोनो क्या बात कर रहे है। उसका ध्यान लल्लू की तरफ गया तो उसने पाया लल्लू एक टक उसको देख रहा है। उसने ध्यान दिया कि लल्लू की निगाहे उसकी छातियों के उठान पर केंद्रित है।


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वो उसके वक्ष स्थल को घूरते हुए अपने लोड़े को सहला रहा था। थोड़ा असहज तो लगा रत्ना को पर उसकी चूत रिसने लगी। रत्ना को थोड़ा गीलेपने का एहसास हुआ न जाने क्यों उसकी निगाहे भी लल्लू के जांघों के जोड़ पर टिक गई। रत्ना की निप्पल एक दम टाइट होकर खड़ी हो गई और वो एक बार फिर से चरम की और बढ़ने लगी। थोड़ी ही देर में रत्ना का बैठ पाना मुश्किल हो रहा था वो बस अब अपना चरम पाना चाहती थी।

रत्ना: दीदी मै ज़रा गोश्त देख कर आती हु। पका की नहीं।

और वो उठकर रसोई घर की तरफ चल दी। रत्ना ने इस समय एक फिटिंग वाला सलवार सूट पहन रखा था। जिसमें उसकी गांड़ की थिरकन देखने लायक थी। वो फटाफट रसोईघर में दाखिल हुई और सलवार के ऊपर से ही अपनी चूत को सहलाने लगी।


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उसको एक अजीब सा सुख महसूस हो रहा था। ये पहली बार था जब वो केवल लल्लू को सोच कर अपनी चूत सहला रही थी।

रत्ना: आह ओह लल्लू क्या जादू कर दिया है तूने, आह आराम ही नहीं मिल रहा मेरी मुनिया को। आई हर समय रस बाहें जा रही है।

रत्ना के हाथ तेजी से चलने लगे पर वो अंजान थी कि झरोखे से उसे कोई देख रहा है। वो और कोई नहीं हमारा लल्लू था। रत्ना अपनी दुनिया में मस्त थी उसे बस जल्दी थी अपने चरमसुख की प्राप्ति की पर तभी उसे एक झटका लगा। किसी ने उसे पीछे से जकड़ लिया और रत्ना को अपनी आगोश में ले लिया।


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रत्ना को किसी कठोर चीज का एहसास हुआ अपनी गांड़ पर और उसके आकार को भांपते हुए रत्ना समझ गई कि ये लल्लू ही है। लल्लू ने रत्ना को बिल्कुल कस के जकड़ रखा था। हवा भी दोनो के बीच से नहीं गुजर सकती थी। लल्लू धीरे धीरे रत्ना की गांड़ पे धक्के मारने लगा। जो रत्ना चाहती थी वो हो तो रहा है पर उसे डर भी था कि कही उन दोनों को कोई देख न ले।

रत्ना: आह क्या ओह उई क्या कर रहा है लल्लू।

लल्लू: अपनी चाची से प्यार। और तुम भी तो यही चाहती हो रत्ना।

लल्लू के मुंह से अपना नाम सुनकर रत्ना एक दम अचंभित हो गई। रत्ना का झूठमूठ का गुस्सा भी जाता रहा। लल्लू ने इसी का फायदा उठाया और रत्ना की गर्दन पर जुबान चलाने लगा।


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रत्ना: आह लल्लू मत कर, कोई देख लेगा।

लल्लू: कोई नहीं देख रहा। तू बस मज़ा ले।

लल्लू की पकड़ रत्ना की कमर पर बढ़ती जा रही थी। उसके धक्कों की रफ्तार रत्ना के लिए एक नया अनुभव थी जो कि उसने आज तक महसूस नहीं किया। रत्ना की आंखे मदहोशी से बंद होती जा रही थी। उसपे नशा सा छा रहा था।


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रत्ना: आह आह ओह ह मां लल्लू।

लल्लू भी कम खिलाड़ी नहीं था उसने अब रत्ना की अनछुई चूचियों को दबाना शुरू कर दिया। इस हमले के लिए रत्ना तैयार नहीं थी। लल्लू ने दोनो चूचियों को अपनी गिरफ्त में ले लिया और तेज तेज धक्के मारने लगा।

रत्ना: ओह आह लल्लू करता रह मेरा होने वाला है।

लल्लू: इस लिए तो आया हूं मेरी जान की तेरा भोज हल्का हो जाए।

रत्ना के हाथ की रफ्तार भी लल्लू के धक्कों के साथ बढ़ती जा रही थी और उसकी गांड़ की थिरकन भी लल्लू के धक्कों के साथ सुर मिल रही थी और वो क्षण भी आया जब रत्ना के सब्र का बांध टूट गया और उसकी कुंवारी चूत ने भलभला कर अपना अमृत रस छोड़ दिया। रत्ना की सांसे उसके बस में नहीं थी। वो बस इस पल को समेटना चाहती थी। उसका किसी पुरुष स्पर्श से ये पहला चरम था जिसका एहसास उसके लिए स्वर्णिम था। जब सांस दुरुस्त हुई तब रत्ना को एहसास हुआ कि अभी रसोईघर में क्या हुआ और सोचते ही उसकी आँखें शर्म से झुक गई। उसने लल्लू को एक तेज धक्का दिया और भाग गई अपने कमरे की तरफ।

सुधा और माया देवी ने रत्ना को भागते हुए देखा और रत्ना को आवाज लगाई पर रत्ना न रुकी और भागते हुए अपने कमरे में पहुंचकर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। तभी रसोईघर से लल्लू निकला जिसे देखते ही माया देवी समझ गई कि क्या हुआ होगा, पर सुधा अभी भी अंजान थी।

सुधा: क्या हुआ लल्लू, ये रत्ना भाग कर क्यों गई।

लल्लू: मटकी का पानी निकल गया माई।

सुधा: मटकी का पानी, क्या कह रहा है तू।

लल्लू: अरे माई मटकी का पानी चाची के ऊपर गिर गया। सारे कपड़े गिले हो गए उनके।

सुधा: जरूर तूने कोई शैतानी करी होगी। जा मै देखती हूं।

सुधा उठने को हुई तो माया देवी ने उसका हाथ पकड़ कर रोक दिया।

माया देवी: बच्ची नहीं है वो सुधा अभी आ जाएगी, पानी गिर गया होगा। और हर समय ठाकुर साहब को दोष मत दिया कर। समझी।

सुधा आश्चर्य से सिर झुका कर रह गई।

उधर रत्ना ने जब अपने कपड़े उतारे तो वो हैरान थी कि इतना पानी कैसे छोड़ सकती है वो। पूरी सलवार और पैंटी उसके मदन रस से तर थी। उसने खुद को आइने में देखा और खुद के जिस्म की अकड़ को निहारने लगी और खुद से ही बोलने लगी।


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रत्ना: तेरी अकड़ निकलने वाला आ गया है। एक एक कस बल निकालेगा तेरे।

और खुद ही अपनी चूचियों का मर्दन करने लगी। एक बार फिरसे उसे लल्लू की कमी महसूस होने लगी। वो एक बार फिर भावनाओं में बहने लगी की तभी किसी ने उसका दरवाजा पीट दिया। और जो आवाज सुनी उससे उसका उत्साह सारा ठंडा पड़ गया। हालांकि ये आवाज उसे पसंद थी पर अब उसे सिर्फ लल्लू की आवाज ही सुननी थी।

कमला: चाची सब लोग नीचे बोला रहे है।

रत्ना: तू चल मै दो मिनिट में आती हूं।

कमला भी नीचे आ गई और थोड़ी देर बाद रत्ना भी। शराब का दूसरा दौर शुरू हुआ और फिर तीसरा भी। माया देवी ने सिगरेट जलाई और लल्लू को तरफ बढ़ा दी। सुधा कुछ बोलने को हुई पर माया देवी की आंखों के सामने उसकी एक न चली। लल्लू ने सिगरेट ली और कश लगाने लगा। सुधा को छोड़कर सब लल्लू का ये मर्दाना रूप देखकर खुश थे। सुधा भी खुश तो थी वो भी अपने नए पति को निहार तो रही थी पर वो चाहती थी कि लल्लू सिर्फ उसके साथ ही सब करे। जलन थी उसके अंदर पर वो कुछ कह नहीं पाई। थोड़ी देर बाद खाना पीना सब हो गया। लल्लू सीधे अपने कमरे की तरफ चल दिया और सारी औरते माया देवी के कमरे में आखिर माया देवी सब के लिए शहर से क्या लाई है।

माया देवी: देखो जो भी सामान है इस बार सब लल्लू की पसंद का है।

कमला: तो क्या हमारी वो भी लल्लू की पसंद की है।

माया देवी: हां मेरी रंडियों तुम्हारी ब्रा पैंटी भी लल्लू की पसंद की है। और एक बात लल्लू नहीं उसे ठाकुर साहब बोलने की आदत डालो। समझी नहीं तो खाल खींच लूंगी सबकी।

तीनो की तीनो एक साथ चुप हो गई। माया देवी एक एक करके सबको कपड़े दिखाने लगी। सब उन कपड़ों तो आंखे फाड़कर देखने लगी।

रत्ना: दीदी ये कपड़े ढकेंगे कम और दिखाएंगे ज्यादा।

सुधा: ये इतनी छोटी छोटी नाइटी हम कहां पहनेंगे।


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माया देवी: शहर में सब पहनते है तो ठाकुर साहब बोले कि हमारे घर की औरतें क्यों नहीं। मैने तो एक रात पहन के भी देखी, बड़ा आराम मिलता है, बड़ा हल्का हल्का लगता है। सांकल चढ़ाने के बाद घर पहन लिया करना।

फिर कुछ सारी और कुछ सलवार कुर्ते और कमला के लिए अति आधुनिक परिधान जैसे जींस टॉप और मिनी स्कर्ट। सब अपने अपने कपड़े को लेकर अपने कमरों में चली गई।

सुधा ने जैसे ही अपने कमरे में प्रवेश किया उसका सारा उत्साह काफ़ूर हो गया। लल्लू घोड़े बेच के सो चुका था। सुधा मन ही मन बुदबुदाने लगी।

सुधा: कमीना कहीं का। दो दिन बाद आया है और कैसे घोड़े बेच के सो रहा हैं। अपनी पत्नी की खुशी का बिल्कुल एहसास ही नहीं है। सोएगा क्यों नहीं दारु जो पीने लग गया है।

सुधा गुस्सा तो बहुत थी लल्लू के मर्दाना जिस्म को निहार रही थी। लल्लू सो रहा था पर उसका अजगर अब भी जग रहा था। सुधा उस अजगर को ललचाई नजरों से निहार रही थी।


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मन तो उसका कर रहा था कि अभी लल्लू के अजगर के साथ खेले पर अब भी उसके अंदर की हया उसे ये करने से रोक रही थी।

सुधा ने अपनी साड़ी उतारी और लल्लू के बगल में लेट गई। लल्लू या यू कहूं पिशाच सुधा की मनोस्थिति देख कर बहुत खुश हो रहा था। वो बंद आंखों से सुधा के यौवन का रसपान कर रहा था।

उधर कमला और रत्ना एक दूसरे को लल्लू की हरकते बता रहे थे। दोनो एक दम नंगी थी और एक दूसरे के अंगों से छेड़छाड़ कर रही थी।


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रत्ना: लल्लू के लंड एहसास होते ही मेरी मुनिया तो बहने लगती है। कितना बड़ा लन्ड है उसका।

कमला: सही में चाची एक बार घुस जाए तो फाड़ कर रख देखा।

रत्ना: अपने भाई के लन्ड की बाते कर रही है छिनाल।

कमला: तुम भी तो अपने बेटे समान भतीजे के लन्ड को याद करके अपनी मुनिया बहा रही हूं।

ऐसी ही हल्की फुल्की बाते करते हुए दोनों एक दूसरे को शनिक तृप्ति प्रदान करने पर तुली हुई थी।

रात गहरे सन्नाटे में खोई हुई थी। रात का अंधेरा पूर्ण रूप चांद की चांदनी को निगल चुका था। सुधा की नींद अचानक ही खुल गई। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे झंझोर कर उठाया हो। सुधा ने जब अपनी बगल में देखा तो पाया लल्लू बिस्तर पर नहीं है। लल्लू को वहां न देख कर उसका मन विचलित हो गया। सुधा ने देखा उसके कमरे का दरवाजा खुला हुआ है जबकि वो पूर्ण रूप से आश्वस्त थी कि उसने कुंडी लगाई है। वो डरते डरते कमरे से बाहर निकली। पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था। एक धुंधली सी रोशनी सुधा को दिखाई दी। वो उस रोशनी का पीछा करती हुई उस तरफ ही चल दी। जब वो तबेले पर पहुंची तो उसे कुछ आवाजें सुनाई दी। वो खूब समझती थी कि ये आवाजें कैसी है। पर कौन हो सकता है ये। सुधा धीरे धीरे बिल्कुल उस जगह पहुंच चुकी थी जहां से उन आवाजों का स्त्रोत्र था। भूसे के ढेर पे उसे दो जिस्म नजर आए। स्त्री पुरुष के ऊपर थी और जोर जोर से उछल रही थी। और वो पुरुष उस स्त्री की गांड़ के पर्वत को अपने हाथ से दबा रहा था।


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सुधा की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी कि आखिर दोनो कौन है। जैसे ही उसने पुरुष की आवाज सुनी तो बस उसके ज़हन में एक ही नाम था "लल्लू"।
Nice and superb update...
 

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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भाग १३

लल्लू कमला के कमरे से निकल कर सीधा चौबारे पर पहुंचा जहां पर माया देवी, सुधा और रत्ना तीनो बैठी हुई थी। सामने शराब की बोतल और चखना रखा हुआ था। माया देवी ने लल्लू को बैठने का इशारा किया और आज वो उस जगह बैठा जहां माया देवी बैठा करती थी यानी घर के मुखिया की कुर्सी।

माया देवी: बैठिए ठाकुर साहब, अब से ये कुर्सी आपकी है। आप ही हमारे सब कुछ है।

सुधा और रत्ना टकटकी लगाए माया देवी को ही देख रही थी। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है। सुधा ने इशारे से माया देवी को बुलाया एक किनारे में।

सुधा: दीदी ये आप क्या कर रही है। लल्लू क्या गांव की जिम्मेदारी उठा पाएगा। जल्दबाजी तो नहीं कर रही आप।

माया देवी: सुधा गांव की नहीं केवल अभी इस घर का मुखिया बना रही हूं। और मैं वहीं कर रही हूं जैसा कि डॉक्टर ने बोला था। लल्लू को इस एहसास से बाहर निकलना है कि वो मंदबुद्धि है। वो हर चीज करने में सक्षम है ऐसा उसे एहसास दिलाना होगा। समझी और जो मै कर रही हूँ उसपे सवाल मत करो बल्कि मेरा साथ दो।

सुधा ने सिर हिलाया और वापस अपनी जगह पर आकर बैठ गई। माया देवी सब के गिलास में शराब डालने लगी और जब लल्लू के गिलास में शराब डालने लगी तो सुधा कुछ बोलने लगी पर माया देवी ने उसे इशारे से मना कर दिया। सब के गिलास भर दिए गए। और शराब का दौर चलने लगा। माया देवी बीते दो दिनों का हालचाल लेने लगी सुधा से की गांव में क्या क्या हुआ। सुधा भी बताने लगी और दोनों मसरूफ हो गए। रत्ना को कोई ज्ञान नहीं था कि दोनो क्या बात कर रहे है। उसका ध्यान लल्लू की तरफ गया तो उसने पाया लल्लू एक टक उसको देख रहा है। उसने ध्यान दिया कि लल्लू की निगाहे उसकी छातियों के उठान पर केंद्रित है।


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वो उसके वक्ष स्थल को घूरते हुए अपने लोड़े को सहला रहा था। थोड़ा असहज तो लगा रत्ना को पर उसकी चूत रिसने लगी। रत्ना को थोड़ा गीलेपने का एहसास हुआ न जाने क्यों उसकी निगाहे भी लल्लू के जांघों के जोड़ पर टिक गई। रत्ना की निप्पल एक दम टाइट होकर खड़ी हो गई और वो एक बार फिर से चरम की और बढ़ने लगी। थोड़ी ही देर में रत्ना का बैठ पाना मुश्किल हो रहा था वो बस अब अपना चरम पाना चाहती थी।

रत्ना: दीदी मै ज़रा गोश्त देख कर आती हु। पका की नहीं।

और वो उठकर रसोई घर की तरफ चल दी। रत्ना ने इस समय एक फिटिंग वाला सलवार सूट पहन रखा था। जिसमें उसकी गांड़ की थिरकन देखने लायक थी। वो फटाफट रसोईघर में दाखिल हुई और सलवार के ऊपर से ही अपनी चूत को सहलाने लगी।


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उसको एक अजीब सा सुख महसूस हो रहा था। ये पहली बार था जब वो केवल लल्लू को सोच कर अपनी चूत सहला रही थी।

रत्ना: आह ओह लल्लू क्या जादू कर दिया है तूने, आह आराम ही नहीं मिल रहा मेरी मुनिया को। आई हर समय रस बाहें जा रही है।

रत्ना के हाथ तेजी से चलने लगे पर वो अंजान थी कि झरोखे से उसे कोई देख रहा है। वो और कोई नहीं हमारा लल्लू था। रत्ना अपनी दुनिया में मस्त थी उसे बस जल्दी थी अपने चरमसुख की प्राप्ति की पर तभी उसे एक झटका लगा। किसी ने उसे पीछे से जकड़ लिया और रत्ना को अपनी आगोश में ले लिया।


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रत्ना को किसी कठोर चीज का एहसास हुआ अपनी गांड़ पर और उसके आकार को भांपते हुए रत्ना समझ गई कि ये लल्लू ही है। लल्लू ने रत्ना को बिल्कुल कस के जकड़ रखा था। हवा भी दोनो के बीच से नहीं गुजर सकती थी। लल्लू धीरे धीरे रत्ना की गांड़ पे धक्के मारने लगा। जो रत्ना चाहती थी वो हो तो रहा है पर उसे डर भी था कि कही उन दोनों को कोई देख न ले।

रत्ना: आह क्या ओह उई क्या कर रहा है लल्लू।

लल्लू: अपनी चाची से प्यार। और तुम भी तो यही चाहती हो रत्ना।

लल्लू के मुंह से अपना नाम सुनकर रत्ना एक दम अचंभित हो गई। रत्ना का झूठमूठ का गुस्सा भी जाता रहा। लल्लू ने इसी का फायदा उठाया और रत्ना की गर्दन पर जुबान चलाने लगा।


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रत्ना: आह लल्लू मत कर, कोई देख लेगा।

लल्लू: कोई नहीं देख रहा। तू बस मज़ा ले।

लल्लू की पकड़ रत्ना की कमर पर बढ़ती जा रही थी। उसके धक्कों की रफ्तार रत्ना के लिए एक नया अनुभव थी जो कि उसने आज तक महसूस नहीं किया। रत्ना की आंखे मदहोशी से बंद होती जा रही थी। उसपे नशा सा छा रहा था।


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रत्ना: आह आह ओह ह मां लल्लू।

लल्लू भी कम खिलाड़ी नहीं था उसने अब रत्ना की अनछुई चूचियों को दबाना शुरू कर दिया। इस हमले के लिए रत्ना तैयार नहीं थी। लल्लू ने दोनो चूचियों को अपनी गिरफ्त में ले लिया और तेज तेज धक्के मारने लगा।

रत्ना: ओह आह लल्लू करता रह मेरा होने वाला है।

लल्लू: इस लिए तो आया हूं मेरी जान की तेरा भोज हल्का हो जाए।

रत्ना के हाथ की रफ्तार भी लल्लू के धक्कों के साथ बढ़ती जा रही थी और उसकी गांड़ की थिरकन भी लल्लू के धक्कों के साथ सुर मिल रही थी और वो क्षण भी आया जब रत्ना के सब्र का बांध टूट गया और उसकी कुंवारी चूत ने भलभला कर अपना अमृत रस छोड़ दिया। रत्ना की सांसे उसके बस में नहीं थी। वो बस इस पल को समेटना चाहती थी। उसका किसी पुरुष स्पर्श से ये पहला चरम था जिसका एहसास उसके लिए स्वर्णिम था। जब सांस दुरुस्त हुई तब रत्ना को एहसास हुआ कि अभी रसोईघर में क्या हुआ और सोचते ही उसकी आँखें शर्म से झुक गई। उसने लल्लू को एक तेज धक्का दिया और भाग गई अपने कमरे की तरफ।

सुधा और माया देवी ने रत्ना को भागते हुए देखा और रत्ना को आवाज लगाई पर रत्ना न रुकी और भागते हुए अपने कमरे में पहुंचकर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। तभी रसोईघर से लल्लू निकला जिसे देखते ही माया देवी समझ गई कि क्या हुआ होगा, पर सुधा अभी भी अंजान थी।

सुधा: क्या हुआ लल्लू, ये रत्ना भाग कर क्यों गई।

लल्लू: मटकी का पानी निकल गया माई।

सुधा: मटकी का पानी, क्या कह रहा है तू।

लल्लू: अरे माई मटकी का पानी चाची के ऊपर गिर गया। सारे कपड़े गिले हो गए उनके।

सुधा: जरूर तूने कोई शैतानी करी होगी। जा मै देखती हूं।

सुधा उठने को हुई तो माया देवी ने उसका हाथ पकड़ कर रोक दिया।

माया देवी: बच्ची नहीं है वो सुधा अभी आ जाएगी, पानी गिर गया होगा। और हर समय ठाकुर साहब को दोष मत दिया कर। समझी।

सुधा आश्चर्य से सिर झुका कर रह गई।

उधर रत्ना ने जब अपने कपड़े उतारे तो वो हैरान थी कि इतना पानी कैसे छोड़ सकती है वो। पूरी सलवार और पैंटी उसके मदन रस से तर थी। उसने खुद को आइने में देखा और खुद के जिस्म की अकड़ को निहारने लगी और खुद से ही बोलने लगी।


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रत्ना: तेरी अकड़ निकलने वाला आ गया है। एक एक कस बल निकालेगा तेरे।

और खुद ही अपनी चूचियों का मर्दन करने लगी। एक बार फिरसे उसे लल्लू की कमी महसूस होने लगी। वो एक बार फिर भावनाओं में बहने लगी की तभी किसी ने उसका दरवाजा पीट दिया। और जो आवाज सुनी उससे उसका उत्साह सारा ठंडा पड़ गया। हालांकि ये आवाज उसे पसंद थी पर अब उसे सिर्फ लल्लू की आवाज ही सुननी थी।

कमला: चाची सब लोग नीचे बोला रहे है।

रत्ना: तू चल मै दो मिनिट में आती हूं।

कमला भी नीचे आ गई और थोड़ी देर बाद रत्ना भी। शराब का दूसरा दौर शुरू हुआ और फिर तीसरा भी। माया देवी ने सिगरेट जलाई और लल्लू को तरफ बढ़ा दी। सुधा कुछ बोलने को हुई पर माया देवी की आंखों के सामने उसकी एक न चली। लल्लू ने सिगरेट ली और कश लगाने लगा। सुधा को छोड़कर सब लल्लू का ये मर्दाना रूप देखकर खुश थे। सुधा भी खुश तो थी वो भी अपने नए पति को निहार तो रही थी पर वो चाहती थी कि लल्लू सिर्फ उसके साथ ही सब करे। जलन थी उसके अंदर पर वो कुछ कह नहीं पाई। थोड़ी देर बाद खाना पीना सब हो गया। लल्लू सीधे अपने कमरे की तरफ चल दिया और सारी औरते माया देवी के कमरे में आखिर माया देवी सब के लिए शहर से क्या लाई है।

माया देवी: देखो जो भी सामान है इस बार सब लल्लू की पसंद का है।

कमला: तो क्या हमारी वो भी लल्लू की पसंद की है।

माया देवी: हां मेरी रंडियों तुम्हारी ब्रा पैंटी भी लल्लू की पसंद की है। और एक बात लल्लू नहीं उसे ठाकुर साहब बोलने की आदत डालो। समझी नहीं तो खाल खींच लूंगी सबकी।

तीनो की तीनो एक साथ चुप हो गई। माया देवी एक एक करके सबको कपड़े दिखाने लगी। सब उन कपड़ों तो आंखे फाड़कर देखने लगी।

रत्ना: दीदी ये कपड़े ढकेंगे कम और दिखाएंगे ज्यादा।

सुधा: ये इतनी छोटी छोटी नाइटी हम कहां पहनेंगे।


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माया देवी: शहर में सब पहनते है तो ठाकुर साहब बोले कि हमारे घर की औरतें क्यों नहीं। मैने तो एक रात पहन के भी देखी, बड़ा आराम मिलता है, बड़ा हल्का हल्का लगता है। सांकल चढ़ाने के बाद घर पहन लिया करना।

फिर कुछ सारी और कुछ सलवार कुर्ते और कमला के लिए अति आधुनिक परिधान जैसे जींस टॉप और मिनी स्कर्ट। सब अपने अपने कपड़े को लेकर अपने कमरों में चली गई।

सुधा ने जैसे ही अपने कमरे में प्रवेश किया उसका सारा उत्साह काफ़ूर हो गया। लल्लू घोड़े बेच के सो चुका था। सुधा मन ही मन बुदबुदाने लगी।

सुधा: कमीना कहीं का। दो दिन बाद आया है और कैसे घोड़े बेच के सो रहा हैं। अपनी पत्नी की खुशी का बिल्कुल एहसास ही नहीं है। सोएगा क्यों नहीं दारु जो पीने लग गया है।

सुधा गुस्सा तो बहुत थी लल्लू के मर्दाना जिस्म को निहार रही थी। लल्लू सो रहा था पर उसका अजगर अब भी जग रहा था। सुधा उस अजगर को ललचाई नजरों से निहार रही थी।


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मन तो उसका कर रहा था कि अभी लल्लू के अजगर के साथ खेले पर अब भी उसके अंदर की हया उसे ये करने से रोक रही थी।

सुधा ने अपनी साड़ी उतारी और लल्लू के बगल में लेट गई। लल्लू या यू कहूं पिशाच सुधा की मनोस्थिति देख कर बहुत खुश हो रहा था। वो बंद आंखों से सुधा के यौवन का रसपान कर रहा था।

उधर कमला और रत्ना एक दूसरे को लल्लू की हरकते बता रहे थे। दोनो एक दम नंगी थी और एक दूसरे के अंगों से छेड़छाड़ कर रही थी।


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रत्ना: लल्लू के लंड एहसास होते ही मेरी मुनिया तो बहने लगती है। कितना बड़ा लन्ड है उसका।

कमला: सही में चाची एक बार घुस जाए तो फाड़ कर रख देखा।

रत्ना: अपने भाई के लन्ड की बाते कर रही है छिनाल।

कमला: तुम भी तो अपने बेटे समान भतीजे के लन्ड को याद करके अपनी मुनिया बहा रही हूं।

ऐसी ही हल्की फुल्की बाते करते हुए दोनों एक दूसरे को शनिक तृप्ति प्रदान करने पर तुली हुई थी।

रात गहरे सन्नाटे में खोई हुई थी। रात का अंधेरा पूर्ण रूप चांद की चांदनी को निगल चुका था। सुधा की नींद अचानक ही खुल गई। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे झंझोर कर उठाया हो। सुधा ने जब अपनी बगल में देखा तो पाया लल्लू बिस्तर पर नहीं है। लल्लू को वहां न देख कर उसका मन विचलित हो गया। सुधा ने देखा उसके कमरे का दरवाजा खुला हुआ है जबकि वो पूर्ण रूप से आश्वस्त थी कि उसने कुंडी लगाई है। वो डरते डरते कमरे से बाहर निकली। पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था। एक धुंधली सी रोशनी सुधा को दिखाई दी। वो उस रोशनी का पीछा करती हुई उस तरफ ही चल दी। जब वो तबेले पर पहुंची तो उसे कुछ आवाजें सुनाई दी। वो खूब समझती थी कि ये आवाजें कैसी है। पर कौन हो सकता है ये। सुधा धीरे धीरे बिल्कुल उस जगह पहुंच चुकी थी जहां से उन आवाजों का स्त्रोत्र था। भूसे के ढेर पे उसे दो जिस्म नजर आए। स्त्री पुरुष के ऊपर थी और जोर जोर से उछल रही थी। और वो पुरुष उस स्त्री की गांड़ के पर्वत को अपने हाथ से दबा रहा था।


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सुधा की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी कि आखिर दोनो कौन है। जैसे ही उसने पुरुष की आवाज सुनी तो बस उसके ज़हन में एक ही नाम था "लल्लू"।
बहुत शानदार...
 
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