Umakant007
चरित्रं विचित्रं..
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भाग १२
माया देवी और लल्लू गांव की तरफ रवाना हो चुके थे। थोड़ी बहुत छेड़खानी के बाद दोनो नींद की आगोश में चले गए। जब गांव के अंदर प्रविष्ट हुए तब जाकर माया देवी की आंख खुली। उन्होंने लल्लू को जगाया। थोड़ी देर में ही गाड़ी घर के द्वार पर खड़ी थी।
सब के लिए ही ये चौकने की बात थी क्योंकि किसी को भी नही पता था कि माया देवी और लल्लू आने वाले हैं। गाड़ी की आवाज सुनते ही पूरे घर में जैसे हलचल सी मच गई। सुधा ने जैसी ही गाड़ी उसके चेहरे की उदासी इक दम से मुस्कुराहट में बदल गई। उसके कदम उठे पर कुछ सोच कर उसने अपने कदम थाम लिए। उसके मन ने कहा " अगर तू पत्नी होकर तड़पी है तो पति को भी तो कुछ तड़प होनी चाहिए" और मन मसोस कर वो किचन के दरवाजे की ओट में छुप गई।
कमला का दिल गाड़ी की आवाज सुनकर जोरों से धड़कने लगा। उसे छत पर लल्लू के साथ बिताया हुआ हर एक पल याद आने लगा। पूरे जिस्म में सुरसुरी दौड़ गई। उसके निप्पल तन कर खड़े हो गए और चूत में मीठी मीठी सनसनी कौंध गई। वो भी अपने कमरे के दरवाजे की ओट से लल्लू को निहारने लगी।
रत्ना ने जब गाड़ी की आवाज सुनी तो उसकी आंखो के सामने लल्लू का विशालकाई लौड़ा घूमने लगा। उसकी अनछुई चूत उबाल मारने लगी। वो अपनी जांघो से ही अपनी चूत को दबाने लगी।
सब अपने अपने कमरों में छुपे हुए लल्लू की झलक का इंतजार कर रहे थे। लल्लू को सबके मन की मनोस्थिति ज्ञात थी। वो मंद मंद ही मुस्कुरा रहा था। माया देवी को गाड़ी से उतरे हुए कुछ पल बीत चुके थे और किसी को घर की चौखट पे ना आता देख कर उनका गुस्सा सातवें आसमान पर था।
माया देवी: कहा मर गई सारी कुत्तियां। रंडिया कौन से बिल में घुस कर बैठी है।
माया देवी के चिल्लाने की आवाज सुन कर सब जैसे नींद से जागी हो। तुरंत ही अपनी भावनाओं को दबाए सब की सब दरवाजे की ओर बड चली। वहा पहुंचते ही तीनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और तीनो की आंखे नीची हो गई। तीनो एक दूसरे की मन की बात से अंजान थी। तीनो में से किसी की हिम्मत नही हुई की वो माया देवी की तरफ देख भी सके।
माया देवी: कहां गांड़ मरा रही थी सब की सब।
सुधा: ( थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए) वो दीदी गाड़ी की आवाज नही आई और अपने बताया भी तो नही था, नही तो आरती का थाल न सजाती।
लल्लू की आंखे तीनो का जायजा ले रही थी। तीनो भी चोर निगाहों से लल्लू को ही निहार रही थी। तीनो को अब लल्लू के अंदर एक पूर्ण पुरुष नजर आ रहा था। खैर लल्लू ने तीनो में से किसी को भी भाव नही दिया और वो घर के अंदर चल पड़ा। सबसे ज्यादा सुधा को अजीब सा लगा क्योंकि लल्लू अगर कभी भी बाहर से घर आता था तो माई माई चिल्लाता हुआ उसके गले लग जाता है। पर आज तो उसने सुधा की तरफ देखा भी नहीं।
सुधा : दीदी इसे क्या हुआ। ये तो बदला बदला सा लग रहा है।
माया देवी: डॉक्टर ने बताया कि अपना लल्लू अब धीरे धीरे ठीक हो रहा है। उसके सोचने समझने की शक्ति बढ़ती जा रही हैं। लल्लू को यह एहसास दिलाना होगा की वोही अब इस गांव का ठाकुर है। सब चीजे उसके कहे अनुसार होनी चाहिए।
रत्ना: तो इसका मतलब हमारा लल्लू अब पूर्ण रूप से ठीक हो चुका है।
माया देवी: नही री अभी धीरे धीरे ठीक होने की राह पर चल चुका है।
तभी माया देवी के कानो में लल्लू की आवाज पड़ी।
लल्लू: ताई मां ओ ताई मां।
माया देवी: आई ठाकुर साहब।
माया देवी के मुंह से ठाकुर साहब सुन कर तीनो की तीनो अचंभे में पड़ गई, पर माया देवी इन तीनों की बिना परवाह किए वो अंदर की तरफ चल दी।
लल्लू: ताई मां किसी ने हमारे नहाने का और न ही जलपान का बंदोबस्त किया है।
माया देवी: सुधा और रत्ना दोनो ठाकुर साहब के नहाने का और जलपान का इंतजाम करो।
दोनो हैरत से अपनी मुंडी हिलाने लगी। सुधा भागी रसोईघर की तरफ और रत्ना भागी बाथरूम की तरफ। कमला भी अपने कमरे की तरफ जाने लगी तब उसने लल्लू की तरफ देखा तो लल्लू को खुद को निहारता पाया। दोनो की आंखे टकराई तो लल्लू ने उसे आंख मार दी, कमला एक दम से सकपका गई और भाग कर अपने कमरे में बंद हो गई। कमला की हालत देख माया देवी की हसी छूट गई।
माया देवी: इसे भी नही छोड़ेंगे मालिक।
लल्लू: किसी को भी नही न तुझे न तेरी बेटियों को न सुधा और उसकी बेटियों को और न ही रत्ना को समझी।
इतना बोलकर लल्लू ने एक जोरदार चपत माया देवी की गांड़ पे मार दी।
मायादेवी: कितने कमीने हो आप मालिक।
लल्लू: कमीना तो मैं हूं। इस घर में तुम सब को नंगी रखूंगा।
और इतना बोलकर लल्लू स्नानघर की तरफ चल पड़ा। लल्लू जब स्नानघर पहुंचा तो आदत अनुसार लल्लू ने एक एक करके सारे कपड़े उतार दिए। लल्लू के कच्छे में उसके अजगर का फन साफ साफ दिखाई दे रहा था।
रत्ना की आंखे वही पे जम कर रह गई। लल्लू ने रत्ना की आंखों के सामने ही अपने अजगर के फन को उमेठ दिया तो रत्ना के जिस्म मे कपकपी दौड़ गई। रत्ना के होंठ पूर्ण रूप से सूख चुके थे। उसकी सांसे रेलगाड़ी के इंजन से भी तेज दौड़ रही थी। उसकी जांघें यकायक आपस में भिड़ गई तो उसे एहसास हुआ की उसकी चूत पानी छोड़ चुकी है। खुद को शर्मिंदा होने से बचाने के लिए वो लल्लू से बोली।
रत्ना: गरम पानी रख दिया है, तो तू खुद नहा ले लल्लू।
लल्लू: चाची मां आज तक तो मैं कभी खुद नही नहाया फिर आज क्यों। ठीक है आप जाइए, में ताई मां को बुलाता हूं।
माया देवी का नाम सुनते ही रत्ना की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई।
रत्ना: अच्छा रोक मैं नहलाती हूं।
इतना सुनते ही लल्लू ने वो किया जो रत्ना जानती थी की होगा पर लल्लू इस तरह से करेगा ये नही मालूम था। लल्लू ने एक झटके में अपना कच्छा उतार कर फेक दिया और लल्लू अब रत्ना की आंखों के सामने पूर्ण रूप से नंगा था। लल्लू की तोप रत्ना की बिन चूदी जवानी को सलामी दे रही थी।
रत्ना के होठ पूर्ण रूप से सूख चुके थे। उसकी सांसे किसी मशीन की तरह चल रही थी। रत्ना बार बार अपने होठों पे जुबान फेर रही थी। रत्ना को जिस चीज की चाहत थी वो उसके समक्ष खड़ी थी। उसका मन कर रहा था की वो हाथ बड़ा कर उस भीमकायी लन्ड को अपनी मुट्ठी में भर ले और उसकी सारी अकड़ निकाल दे। पर वो जिस कश्मकश में थी उसके अंतर्मन में द्वंद चल रहा था। तभी लल्लू ने उसको उसकी नींद से जगाया।
लल्लू: चाची मां स्नान कराओ न।
रत्ना ऐसे चौकी जैसे किसी गहरी नींद से जागी हो।
रत्ना: ओह हां......चल बैठ जा नीचे।
लल्लू: नही नीचे नही मुझे खड़े होके नहाना है।
उसकी ज़िद्द के आगे रत्ना की एक न चली। रत्ना लल्लू को नहलाने लगी। जैसे जैसे रत्ना के हाथ लल्लू के बलिष्ट जिस्म पर रेंगने लगे लल्लू का नाग और फन उठाने लगा। रत्ना लल्लू के मर्दाना जिस्म पर मर मिटी। लल्लू की कठोर छाती, उसकी मजबूत बुझाए, सख्त जांघें और जांघों के जोड पर फंफनता हुआ नाग जो रत्ना को किसी भी क्षण डसने को तैयार बैठा था।
रत्ना जैसे ही जांघो के जोड पर पहुंची उसका गला सूखने लगा। वो सोच रही थी क्या करे। जांघो को मलते हुए लल्लू का लौड़ा उसके गालों को चूम रहा था। इतना गर्म था की अगर किसी लोहे पर रख दो तो लोहा पिघल जाए। जैसे ही रत्ना को लल्लू के लन्ड ने पहली बार स्पर्श किया, रत्ना की चूत बहने लगी, और बहती चली गई क्युकी आज कोई बांध इस नदी के वेग को नही रोक सकता था। रत्ना धीरे धीरे लल्लू के नीचे की टांगो पे साबुन मलने लगी। वो अब पानी डालने ही चली थी की उसके कान से धुआं निकलने लगा।
लल्लू: चाची मां लन्ड पे भी तो साबुन लगाओ।
रत्ना का मुंह खुला का खुला रह गया, उसके कान गरम हो गए और उसकी चूत धधकने लगी। लल्लू ने आज पहली बार उसके सामने कुछ ऐसा शब्द बोला था।
रत्ना: ये गलत शब्द है। किसने सिखाया तुम्हे ये।
रत्ना ने हल्का सा झूटा गुस्सा दिखाया और लल्लू ने भी डरने का पूरा नाटक किया।
लल्लू: ताई मां और डॉक्टरनी ने। वो कहती है की जब आपकी नुनु इतनी बड़ी हो जाए तो उसे लन्ड या लौड़ा बोलते हैं।
रत्ना अपने मन में कह तो सही रही है लौड़ा भी नही पूरा मूसल है ये तो।
रत्ना: कह वो सही रही है पर ये शब्द केवल अपने दोस्तो के साथ बोलते है। ऐसे घर में नही।
लल्लू: तो फिर घर पर क्या बोलूं।
रत्ना: (असमंजस में) इसको तुम, अपना लिंग बोल सकते हो।
और जैसे ही रत्ना ने लल्लू के लन्ड पर साबुन लगाया वो और ज्यादा सख्त होने लगा और एक दम कड़ा हो गया।
और लल्लू ने अपना नाटक शुरू किया।
लल्लू: आई चाची आह।
रत्ना: क्या हुआ लल्लू। लगी क्या।
लल्लू: चाची लिंग मैं एक दम से बहुत दर्द हो रहा है।
रत्ना प्यार से लल्लू के लन्ड को सहलाने लगी।
रत्ना: अब ठीक लग रहा है लल्लू।
लल्लू: हां चाची अब ठीक लग रहा है।
रत्ना जैसे जैसे लल्लू के लन्ड को सहला रही थी वैसे वैसे उसकी खुमारी बढ़ती जा रही थी। अब वो भूल चुकी थी की वो लल्लू को स्नान कराने के लिए आई थी, बल्कि वो पूर्ण रूप से वासना में लिप्त हो चुकी थी। उसके हाथ लन्ड पर कसते जा रहे थे और सहलाना कब मुठियाना में बदल गया उसे पता भी नही चला।
रत्ना कोई फर्क नहीं पड़ रहा था की बाहर उसकी जेठानिया बैठी हुई है। रत्ना का हाथ अब तेजी से लल्लू के लन्ड को हिलाने लगा। उसका खुद का एक हाथ कब खुद उसकी मुनिया को सहलाने लगा। वो खुद को चरम के समीप पाने लगी और लावा जो उसके अंदर कब से बंद था वो उफ्फान मरने लगा। उसके हाथ हल्के हल्के दर्द करने लगे तब भी वो रुकी नहीं जैसे आज उसका उद्देश्य केवल लल्लू के लन्ड से मलाई निकालना हो। वही लल्लू केवल आंखे बंद किए हुए हर एक पल का आनंद ले रहा था। रत्ना बस कुछ ही क्षण दूर थी अपने सम्पूर्ण चरम से तभी जान मूचकर लल्लू ने बांध खोल दिया और उसके वेग से रत्ना पूरी तरह से भीग गई। इतनी बौंचार हुई की रत्ना का संपूर्ण चेहरा लल्लू के रस से भर गया। लल्लू अभी भी आंखे बंद किए हुए ही खड़ा था।
जैसे ही थोड़ी सी शांति हुई लल्लू तुरंत ही अपने शरीर पर पानी डाल कर तोलिया लपेट कर बाथरूम से बाहर निकल गया और अंदर रह गई तो बस रत्ना जो अभी भी उस सैलाब से उबरने की कोशिश कर रही थी। उसके पूरे चेहरे पर लल्लू का मॉल लगा हुआ था। रत्ना की प्यास अभी भी तृप्त नहीं हुई। रत्ना के चेहरे पर पड़ा हुआ लल्लू का मॉल रत्ना को मदहोश कर रहा था। उसकी खुशबू उसकी सांसों में बस चुकी थी। रत्ना ने एक उंगली से लल्लू का मॉल अपने गाल से हटाया और अपनी ज़बान पर रख चखने लगी। दे
खते देखते वो सारी मलाई चट कर गई। तभी माया देवी की आवाज से रत्ना की तंत्रा भंग हुई।
माया देवी: रत्ना क्या हुआ। अंदर क्या कर रही है।
रत्ना: कुछ नही ये लल्लू ने मुझे भी भिगो दिया। कमला को बोल कर कुछ कपड़े भिजवा दो।
माया देवी समझ गई की लल्लू ने रत्ना को अपने जलवे दिखा दिए। उन्होंने कमला को निर्देश दिया की रत्ना को उसके कपड़े लाकर दे और सुधा को रसोई घर में काम करता हुआ छोड़ कर खुद चल दी लल्लू के कमरे की तरफ।
जैसे ही माया देवी लल्लू के कमरे में पहुंची लल्लू ने माया देवी को अपनी में उठा लिया और उनके अधरों का रसपान करने लगा।
माया देवी भी उसका पूर्ण सहयोग करने लगी। कोई ५ मिनट के बाद लल्लू ने माया देवी को नीचे उतारा। दोनो अलग हुए तो दोनो की आंखों में अभी भी प्यास बाकी थी।
माया देवी: चोद दिया किया रत्ना को।
लल्लू: अभी कहा मेरी जान, अभी और तड़पाउंगा जब तक वो खुद खोल के खड़ी नही हो जाती।
माया देवी: तो फिर रात का क्या प्रोग्राम है।
लल्लू: रात को तू मेरे लोड़े की सवारी करेगी।
इतना बोल कर लल्लू ने माया देवी के दोनो दूध से भरे कलशो को थाम लिया और मरोड़ दिया।
माया देवी: आह मालिक, इतनी जोर से करते हो।
लल्लू: चुप कर साली रण्डी। अच्छा जो कहा था वो लाई है।
माया देवी ने लल्लू के हाथ में एक पैकेट थमा दिया। लल्लू कमरे से निकला और।
लल्लू: मैं अभी आता हूं तब तक तू महफिल सजा।
लल्लू ये बोल कर कमरे से बाहर निकल गया और माया देवी इतना ही सोच पाई की मालिक कितने कमीने है।
लल्लू सीधे चलते हुए कमला के कमरे बाहर रुका। कमला जो की रत्ना की हालत देख चुकी थी। उसे समझ नही आ रहा था की लल्लू ने रत्ना के साथ ऐसा क्या किया। तभी उसे किसी की आहट हुई, उसने देखा तो सामने लल्लू को पाया। लल्लू बहुत ही कम उसके कमरे में आता था।
कमला: तू यहा क्या कर रहा है।
लल्लू: (शैतानी मुस्कुराहट के साथ) एक काम अधूरा रह गया था वो ही पूरा करने आया हूं।
कमला: (सकपकाते हुए) कौन सा काम।
लल्लू: वो ही जो उस दिन छत पर कर रहा था पर अधूरा रह गया था।
कमला के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। वो शर्म से पानी पानी हो गई। उसे लल्लू से इतनी बेबाकी की उम्मीद नहीं थी।
कमला: (झूठा गुस्सा दिखाते हुए) शर्म नही आती तुझे। अभी माई को बताती हूं।
इतना बोल कर वो पलंग से खड़ी हुई और बाहर की ओर चलने लगी। लल्लू ने तुरंत कमला का हाथ पकड़ा और उसे झटका दिया, कमला किसी फूल की भांति लल्लू की बाहों में सिमटती चली गई। लल्लू ने कमला को अपनी आगोश में भर लिया। एक बार फिर कमला को लल्लू के जिस्म का एहसास होने लगा। लल्लू के हाथ कमला की पूरी पीठ टटोल रहे थे और यकायक लल्लू के हाथो में कमला की गांड़ के उभार थे।
लल्लू अपना मुंह बिलकुल कमला के कान के पास ले गया।
लल्लू: अगर मां को बुलाना होता तो तू अब तक बता चुकी होती।
और कमला की गांड़ दबा दी। कमला एक दम से चिहुंक उठी।
लल्लू: और तुझे भी तो छत पे मजा आया था। ( और एक दम से कमला को छोड़ दिया) जा बता दे माई को।
और कमला के पास इस वार को कोई जवाब न था। कमला वही आंखे नीचे करे खड़ी रही। उसकी हिम्मत उसका साथ छोड़ चुकी थी। वो तो खुद लल्लू के बाहों में समाने को बेताब थी। लल्लू ने अबकी बार कमला को पीछे से जकड़ा और एक बार फिर कमला की गांड़ और लल्लू के लन्ड का मिलाप हो गया। कमला चौंक गई ये देखकर की लल्लू का लन्ड पूरी तरह से खड़ा है। कमला की सांसे भारी होने लगी और उसकी छाती धौकनी की तरह चलने लगी। लल्लू धीरे धीरे कमला की गांड़ पर घर्षण करने लगा और अपने एक हाथ से उसकी चूची दबाने लगा।
कमला: आह ओह लल्लू मत कर।
लल्लू: क्यू मजा नही आ रहा।
कमला: आह सब नीचे बैठे है। प्लीज रुक जा।
लल्लू: तू उनकी चिंता मत कर बस मजे कर।
लल्लू कमला को दूसरी दुनिया में ले गया। अब कमला भी लल्लू का पूरा साथ दे रही थी। कमला की गांड़ लल्लू के धक्कों से ताल से ताल मिला रही थी।
तभी एक आवाज से दोनो वापस इस दुनिया में आ गए।
सुधा: लल्लू ताई मां बुला रही है। नीचे आजा।
लल्लू: आया माई।
लल्लू ने कमला को छोड़ दिया और कमला ने ऐसे देखा लल्लू को जैसे पूछ रही हों क्यू छोड़ दिया। लल्लू कमला के कमरे से निकल पड़ा। और एक पैकेट कमला की ओर फेका।
लल्लू: ये कल रात को पहन के रखना।
इतना बोल कर वो निकल गया और कमला बेसुध सी उसे जाता हुआ देखने लगी। फिर एक दम से उसने पैकेट खोला जिससे देखकर कमला के होश उड़ गए। वो एक ब्रा पैंटी का सेट था जो पहना न पहना बराबर था।
उसे देख कर कमला सिर्फ इतना बोल पाई " ये क्या हैं लल्लू"।
Very very sexy update.भाग १२
माया देवी और लल्लू गांव की तरफ रवाना हो चुके थे। थोड़ी बहुत छेड़खानी के बाद दोनो नींद की आगोश में चले गए। जब गांव के अंदर प्रविष्ट हुए तब जाकर माया देवी की आंख खुली। उन्होंने लल्लू को जगाया। थोड़ी देर में ही गाड़ी घर के द्वार पर खड़ी थी।
सब के लिए ही ये चौकने की बात थी क्योंकि किसी को भी नही पता था कि माया देवी और लल्लू आने वाले हैं। गाड़ी की आवाज सुनते ही पूरे घर में जैसे हलचल सी मच गई। सुधा ने जैसी ही गाड़ी उसके चेहरे की उदासी इक दम से मुस्कुराहट में बदल गई। उसके कदम उठे पर कुछ सोच कर उसने अपने कदम थाम लिए। उसके मन ने कहा " अगर तू पत्नी होकर तड़पी है तो पति को भी तो कुछ तड़प होनी चाहिए" और मन मसोस कर वो किचन के दरवाजे की ओट में छुप गई।
कमला का दिल गाड़ी की आवाज सुनकर जोरों से धड़कने लगा। उसे छत पर लल्लू के साथ बिताया हुआ हर एक पल याद आने लगा। पूरे जिस्म में सुरसुरी दौड़ गई। उसके निप्पल तन कर खड़े हो गए और चूत में मीठी मीठी सनसनी कौंध गई। वो भी अपने कमरे के दरवाजे की ओट से लल्लू को निहारने लगी।
रत्ना ने जब गाड़ी की आवाज सुनी तो उसकी आंखो के सामने लल्लू का विशालकाई लौड़ा घूमने लगा। उसकी अनछुई चूत उबाल मारने लगी। वो अपनी जांघो से ही अपनी चूत को दबाने लगी।
सब अपने अपने कमरों में छुपे हुए लल्लू की झलक का इंतजार कर रहे थे। लल्लू को सबके मन की मनोस्थिति ज्ञात थी। वो मंद मंद ही मुस्कुरा रहा था। माया देवी को गाड़ी से उतरे हुए कुछ पल बीत चुके थे और किसी को घर की चौखट पे ना आता देख कर उनका गुस्सा सातवें आसमान पर था।
माया देवी: कहा मर गई सारी कुत्तियां। रंडिया कौन से बिल में घुस कर बैठी है।
माया देवी के चिल्लाने की आवाज सुन कर सब जैसे नींद से जागी हो। तुरंत ही अपनी भावनाओं को दबाए सब की सब दरवाजे की ओर बड चली। वहा पहुंचते ही तीनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और तीनो की आंखे नीची हो गई। तीनो एक दूसरे की मन की बात से अंजान थी। तीनो में से किसी की हिम्मत नही हुई की वो माया देवी की तरफ देख भी सके।
माया देवी: कहां गांड़ मरा रही थी सब की सब।
सुधा: ( थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए) वो दीदी गाड़ी की आवाज नही आई और अपने बताया भी तो नही था, नही तो आरती का थाल न सजाती।
लल्लू की आंखे तीनो का जायजा ले रही थी। तीनो भी चोर निगाहों से लल्लू को ही निहार रही थी। तीनो को अब लल्लू के अंदर एक पूर्ण पुरुष नजर आ रहा था। खैर लल्लू ने तीनो में से किसी को भी भाव नही दिया और वो घर के अंदर चल पड़ा। सबसे ज्यादा सुधा को अजीब सा लगा क्योंकि लल्लू अगर कभी भी बाहर से घर आता था तो माई माई चिल्लाता हुआ उसके गले लग जाता है। पर आज तो उसने सुधा की तरफ देखा भी नहीं।
सुधा : दीदी इसे क्या हुआ। ये तो बदला बदला सा लग रहा है।
माया देवी: डॉक्टर ने बताया कि अपना लल्लू अब धीरे धीरे ठीक हो रहा है। उसके सोचने समझने की शक्ति बढ़ती जा रही हैं। लल्लू को यह एहसास दिलाना होगा की वोही अब इस गांव का ठाकुर है। सब चीजे उसके कहे अनुसार होनी चाहिए।
रत्ना: तो इसका मतलब हमारा लल्लू अब पूर्ण रूप से ठीक हो चुका है।
माया देवी: नही री अभी धीरे धीरे ठीक होने की राह पर चल चुका है।
तभी माया देवी के कानो में लल्लू की आवाज पड़ी।
लल्लू: ताई मां ओ ताई मां।
माया देवी: आई ठाकुर साहब।
माया देवी के मुंह से ठाकुर साहब सुन कर तीनो की तीनो अचंभे में पड़ गई, पर माया देवी इन तीनों की बिना परवाह किए वो अंदर की तरफ चल दी।
लल्लू: ताई मां किसी ने हमारे नहाने का और न ही जलपान का बंदोबस्त किया है।
माया देवी: सुधा और रत्ना दोनो ठाकुर साहब के नहाने का और जलपान का इंतजाम करो।
दोनो हैरत से अपनी मुंडी हिलाने लगी। सुधा भागी रसोईघर की तरफ और रत्ना भागी बाथरूम की तरफ। कमला भी अपने कमरे की तरफ जाने लगी तब उसने लल्लू की तरफ देखा तो लल्लू को खुद को निहारता पाया। दोनो की आंखे टकराई तो लल्लू ने उसे आंख मार दी, कमला एक दम से सकपका गई और भाग कर अपने कमरे में बंद हो गई। कमला की हालत देख माया देवी की हसी छूट गई।
माया देवी: इसे भी नही छोड़ेंगे मालिक।
लल्लू: किसी को भी नही न तुझे न तेरी बेटियों को न सुधा और उसकी बेटियों को और न ही रत्ना को समझी।
इतना बोलकर लल्लू ने एक जोरदार चपत माया देवी की गांड़ पे मार दी।
मायादेवी: कितने कमीने हो आप मालिक।
लल्लू: कमीना तो मैं हूं। इस घर में तुम सब को नंगी रखूंगा।
और इतना बोलकर लल्लू स्नानघर की तरफ चल पड़ा। लल्लू जब स्नानघर पहुंचा तो आदत अनुसार लल्लू ने एक एक करके सारे कपड़े उतार दिए। लल्लू के कच्छे में उसके अजगर का फन साफ साफ दिखाई दे रहा था।
रत्ना की आंखे वही पे जम कर रह गई। लल्लू ने रत्ना की आंखों के सामने ही अपने अजगर के फन को उमेठ दिया तो रत्ना के जिस्म मे कपकपी दौड़ गई। रत्ना के होंठ पूर्ण रूप से सूख चुके थे। उसकी सांसे रेलगाड़ी के इंजन से भी तेज दौड़ रही थी। उसकी जांघें यकायक आपस में भिड़ गई तो उसे एहसास हुआ की उसकी चूत पानी छोड़ चुकी है। खुद को शर्मिंदा होने से बचाने के लिए वो लल्लू से बोली।
रत्ना: गरम पानी रख दिया है, तो तू खुद नहा ले लल्लू।
लल्लू: चाची मां आज तक तो मैं कभी खुद नही नहाया फिर आज क्यों। ठीक है आप जाइए, में ताई मां को बुलाता हूं।
माया देवी का नाम सुनते ही रत्ना की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई।
रत्ना: अच्छा रोक मैं नहलाती हूं।
इतना सुनते ही लल्लू ने वो किया जो रत्ना जानती थी की होगा पर लल्लू इस तरह से करेगा ये नही मालूम था। लल्लू ने एक झटके में अपना कच्छा उतार कर फेक दिया और लल्लू अब रत्ना की आंखों के सामने पूर्ण रूप से नंगा था। लल्लू की तोप रत्ना की बिन चूदी जवानी को सलामी दे रही थी।
रत्ना के होठ पूर्ण रूप से सूख चुके थे। उसकी सांसे किसी मशीन की तरह चल रही थी। रत्ना बार बार अपने होठों पे जुबान फेर रही थी। रत्ना को जिस चीज की चाहत थी वो उसके समक्ष खड़ी थी। उसका मन कर रहा था की वो हाथ बड़ा कर उस भीमकायी लन्ड को अपनी मुट्ठी में भर ले और उसकी सारी अकड़ निकाल दे। पर वो जिस कश्मकश में थी उसके अंतर्मन में द्वंद चल रहा था। तभी लल्लू ने उसको उसकी नींद से जगाया।
लल्लू: चाची मां स्नान कराओ न।
रत्ना ऐसे चौकी जैसे किसी गहरी नींद से जागी हो।
रत्ना: ओह हां......चल बैठ जा नीचे।
लल्लू: नही नीचे नही मुझे खड़े होके नहाना है।
उसकी ज़िद्द के आगे रत्ना की एक न चली। रत्ना लल्लू को नहलाने लगी। जैसे जैसे रत्ना के हाथ लल्लू के बलिष्ट जिस्म पर रेंगने लगे लल्लू का नाग और फन उठाने लगा। रत्ना लल्लू के मर्दाना जिस्म पर मर मिटी। लल्लू की कठोर छाती, उसकी मजबूत बुझाए, सख्त जांघें और जांघों के जोड पर फंफनता हुआ नाग जो रत्ना को किसी भी क्षण डसने को तैयार बैठा था।
रत्ना जैसे ही जांघो के जोड पर पहुंची उसका गला सूखने लगा। वो सोच रही थी क्या करे। जांघो को मलते हुए लल्लू का लौड़ा उसके गालों को चूम रहा था। इतना गर्म था की अगर किसी लोहे पर रख दो तो लोहा पिघल जाए। जैसे ही रत्ना को लल्लू के लन्ड ने पहली बार स्पर्श किया, रत्ना की चूत बहने लगी, और बहती चली गई क्युकी आज कोई बांध इस नदी के वेग को नही रोक सकता था। रत्ना धीरे धीरे लल्लू के नीचे की टांगो पे साबुन मलने लगी। वो अब पानी डालने ही चली थी की उसके कान से धुआं निकलने लगा।
लल्लू: चाची मां लन्ड पे भी तो साबुन लगाओ।
रत्ना का मुंह खुला का खुला रह गया, उसके कान गरम हो गए और उसकी चूत धधकने लगी। लल्लू ने आज पहली बार उसके सामने कुछ ऐसा शब्द बोला था।
रत्ना: ये गलत शब्द है। किसने सिखाया तुम्हे ये।
रत्ना ने हल्का सा झूटा गुस्सा दिखाया और लल्लू ने भी डरने का पूरा नाटक किया।
लल्लू: ताई मां और डॉक्टरनी ने। वो कहती है की जब आपकी नुनु इतनी बड़ी हो जाए तो उसे लन्ड या लौड़ा बोलते हैं।
रत्ना अपने मन में कह तो सही रही है लौड़ा भी नही पूरा मूसल है ये तो।
रत्ना: कह वो सही रही है पर ये शब्द केवल अपने दोस्तो के साथ बोलते है। ऐसे घर में नही।
लल्लू: तो फिर घर पर क्या बोलूं।
रत्ना: (असमंजस में) इसको तुम, अपना लिंग बोल सकते हो।
और जैसे ही रत्ना ने लल्लू के लन्ड पर साबुन लगाया वो और ज्यादा सख्त होने लगा और एक दम कड़ा हो गया।
और लल्लू ने अपना नाटक शुरू किया।
लल्लू: आई चाची आह।
रत्ना: क्या हुआ लल्लू। लगी क्या।
लल्लू: चाची लिंग मैं एक दम से बहुत दर्द हो रहा है।
रत्ना प्यार से लल्लू के लन्ड को सहलाने लगी।
रत्ना: अब ठीक लग रहा है लल्लू।
लल्लू: हां चाची अब ठीक लग रहा है।
रत्ना जैसे जैसे लल्लू के लन्ड को सहला रही थी वैसे वैसे उसकी खुमारी बढ़ती जा रही थी। अब वो भूल चुकी थी की वो लल्लू को स्नान कराने के लिए आई थी, बल्कि वो पूर्ण रूप से वासना में लिप्त हो चुकी थी। उसके हाथ लन्ड पर कसते जा रहे थे और सहलाना कब मुठियाना में बदल गया उसे पता भी नही चला।
रत्ना कोई फर्क नहीं पड़ रहा था की बाहर उसकी जेठानिया बैठी हुई है। रत्ना का हाथ अब तेजी से लल्लू के लन्ड को हिलाने लगा। उसका खुद का एक हाथ कब खुद उसकी मुनिया को सहलाने लगा। वो खुद को चरम के समीप पाने लगी और लावा जो उसके अंदर कब से बंद था वो उफ्फान मरने लगा। उसके हाथ हल्के हल्के दर्द करने लगे तब भी वो रुकी नहीं जैसे आज उसका उद्देश्य केवल लल्लू के लन्ड से मलाई निकालना हो। वही लल्लू केवल आंखे बंद किए हुए हर एक पल का आनंद ले रहा था। रत्ना बस कुछ ही क्षण दूर थी अपने सम्पूर्ण चरम से तभी जान मूचकर लल्लू ने बांध खोल दिया और उसके वेग से रत्ना पूरी तरह से भीग गई। इतनी बौंचार हुई की रत्ना का संपूर्ण चेहरा लल्लू के रस से भर गया। लल्लू अभी भी आंखे बंद किए हुए ही खड़ा था।
जैसे ही थोड़ी सी शांति हुई लल्लू तुरंत ही अपने शरीर पर पानी डाल कर तोलिया लपेट कर बाथरूम से बाहर निकल गया और अंदर रह गई तो बस रत्ना जो अभी भी उस सैलाब से उबरने की कोशिश कर रही थी। उसके पूरे चेहरे पर लल्लू का मॉल लगा हुआ था। रत्ना की प्यास अभी भी तृप्त नहीं हुई। रत्ना के चेहरे पर पड़ा हुआ लल्लू का मॉल रत्ना को मदहोश कर रहा था। उसकी खुशबू उसकी सांसों में बस चुकी थी। रत्ना ने एक उंगली से लल्लू का मॉल अपने गाल से हटाया और अपनी ज़बान पर रख चखने लगी। दे
खते देखते वो सारी मलाई चट कर गई। तभी माया देवी की आवाज से रत्ना की तंत्रा भंग हुई।
माया देवी: रत्ना क्या हुआ। अंदर क्या कर रही है।
रत्ना: कुछ नही ये लल्लू ने मुझे भी भिगो दिया। कमला को बोल कर कुछ कपड़े भिजवा दो।
माया देवी समझ गई की लल्लू ने रत्ना को अपने जलवे दिखा दिए। उन्होंने कमला को निर्देश दिया की रत्ना को उसके कपड़े लाकर दे और सुधा को रसोई घर में काम करता हुआ छोड़ कर खुद चल दी लल्लू के कमरे की तरफ।
जैसे ही माया देवी लल्लू के कमरे में पहुंची लल्लू ने माया देवी को अपनी में उठा लिया और उनके अधरों का रसपान करने लगा।
माया देवी भी उसका पूर्ण सहयोग करने लगी। कोई ५ मिनट के बाद लल्लू ने माया देवी को नीचे उतारा। दोनो अलग हुए तो दोनो की आंखों में अभी भी प्यास बाकी थी।
माया देवी: चोद दिया किया रत्ना को।
लल्लू: अभी कहा मेरी जान, अभी और तड़पाउंगा जब तक वो खुद खोल के खड़ी नही हो जाती।
माया देवी: तो फिर रात का क्या प्रोग्राम है।
लल्लू: रात को तू मेरे लोड़े की सवारी करेगी।
इतना बोल कर लल्लू ने माया देवी के दोनो दूध से भरे कलशो को थाम लिया और मरोड़ दिया।
माया देवी: आह मालिक, इतनी जोर से करते हो।
लल्लू: चुप कर साली रण्डी। अच्छा जो कहा था वो लाई है।
माया देवी ने लल्लू के हाथ में एक पैकेट थमा दिया। लल्लू कमरे से निकला और।
लल्लू: मैं अभी आता हूं तब तक तू महफिल सजा।
लल्लू ये बोल कर कमरे से बाहर निकल गया और माया देवी इतना ही सोच पाई की मालिक कितने कमीने है।
लल्लू सीधे चलते हुए कमला के कमरे बाहर रुका। कमला जो की रत्ना की हालत देख चुकी थी। उसे समझ नही आ रहा था की लल्लू ने रत्ना के साथ ऐसा क्या किया। तभी उसे किसी की आहट हुई, उसने देखा तो सामने लल्लू को पाया। लल्लू बहुत ही कम उसके कमरे में आता था।
कमला: तू यहा क्या कर रहा है।
लल्लू: (शैतानी मुस्कुराहट के साथ) एक काम अधूरा रह गया था वो ही पूरा करने आया हूं।
कमला: (सकपकाते हुए) कौन सा काम।
लल्लू: वो ही जो उस दिन छत पर कर रहा था पर अधूरा रह गया था।
कमला के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। वो शर्म से पानी पानी हो गई। उसे लल्लू से इतनी बेबाकी की उम्मीद नहीं थी।
कमला: (झूठा गुस्सा दिखाते हुए) शर्म नही आती तुझे। अभी माई को बताती हूं।
इतना बोल कर वो पलंग से खड़ी हुई और बाहर की ओर चलने लगी। लल्लू ने तुरंत कमला का हाथ पकड़ा और उसे झटका दिया, कमला किसी फूल की भांति लल्लू की बाहों में सिमटती चली गई। लल्लू ने कमला को अपनी आगोश में भर लिया। एक बार फिर कमला को लल्लू के जिस्म का एहसास होने लगा। लल्लू के हाथ कमला की पूरी पीठ टटोल रहे थे और यकायक लल्लू के हाथो में कमला की गांड़ के उभार थे।
लल्लू अपना मुंह बिलकुल कमला के कान के पास ले गया।
लल्लू: अगर मां को बुलाना होता तो तू अब तक बता चुकी होती।
और कमला की गांड़ दबा दी। कमला एक दम से चिहुंक उठी।
लल्लू: और तुझे भी तो छत पे मजा आया था। ( और एक दम से कमला को छोड़ दिया) जा बता दे माई को।
और कमला के पास इस वार को कोई जवाब न था। कमला वही आंखे नीचे करे खड़ी रही। उसकी हिम्मत उसका साथ छोड़ चुकी थी। वो तो खुद लल्लू के बाहों में समाने को बेताब थी। लल्लू ने अबकी बार कमला को पीछे से जकड़ा और एक बार फिर कमला की गांड़ और लल्लू के लन्ड का मिलाप हो गया। कमला चौंक गई ये देखकर की लल्लू का लन्ड पूरी तरह से खड़ा है। कमला की सांसे भारी होने लगी और उसकी छाती धौकनी की तरह चलने लगी। लल्लू धीरे धीरे कमला की गांड़ पर घर्षण करने लगा और अपने एक हाथ से उसकी चूची दबाने लगा।
कमला: आह ओह लल्लू मत कर।
लल्लू: क्यू मजा नही आ रहा।
कमला: आह सब नीचे बैठे है। प्लीज रुक जा।
लल्लू: तू उनकी चिंता मत कर बस मजे कर।
लल्लू कमला को दूसरी दुनिया में ले गया। अब कमला भी लल्लू का पूरा साथ दे रही थी। कमला की गांड़ लल्लू के धक्कों से ताल से ताल मिला रही थी।
तभी एक आवाज से दोनो वापस इस दुनिया में आ गए।
सुधा: लल्लू ताई मां बुला रही है। नीचे आजा।
लल्लू: आया माई।
लल्लू ने कमला को छोड़ दिया और कमला ने ऐसे देखा लल्लू को जैसे पूछ रही हों क्यू छोड़ दिया। लल्लू कमला के कमरे से निकल पड़ा। और एक पैकेट कमला की ओर फेका।
लल्लू: ये कल रात को पहन के रखना।
इतना बोल कर वो निकल गया और कमला बेसुध सी उसे जाता हुआ देखने लगी। फिर एक दम से उसने पैकेट खोला जिससे देखकर कमला के होश उड़ गए। वो एक ब्रा पैंटी का सेट था जो पहना न पहना बराबर था।
उसे देख कर कमला सिर्फ इतना बोल पाई " ये क्या हैं लल्लू"।
Bahut hi badhiya update diya hai mitzerotics bhai....भाग १२
माया देवी और लल्लू गांव की तरफ रवाना हो चुके थे। थोड़ी बहुत छेड़खानी के बाद दोनो नींद की आगोश में चले गए। जब गांव के अंदर प्रविष्ट हुए तब जाकर माया देवी की आंख खुली। उन्होंने लल्लू को जगाया। थोड़ी देर में ही गाड़ी घर के द्वार पर खड़ी थी।
सब के लिए ही ये चौकने की बात थी क्योंकि किसी को भी नही पता था कि माया देवी और लल्लू आने वाले हैं। गाड़ी की आवाज सुनते ही पूरे घर में जैसे हलचल सी मच गई। सुधा ने जैसी ही गाड़ी उसके चेहरे की उदासी इक दम से मुस्कुराहट में बदल गई। उसके कदम उठे पर कुछ सोच कर उसने अपने कदम थाम लिए। उसके मन ने कहा " अगर तू पत्नी होकर तड़पी है तो पति को भी तो कुछ तड़प होनी चाहिए" और मन मसोस कर वो किचन के दरवाजे की ओट में छुप गई।
कमला का दिल गाड़ी की आवाज सुनकर जोरों से धड़कने लगा। उसे छत पर लल्लू के साथ बिताया हुआ हर एक पल याद आने लगा। पूरे जिस्म में सुरसुरी दौड़ गई। उसके निप्पल तन कर खड़े हो गए और चूत में मीठी मीठी सनसनी कौंध गई। वो भी अपने कमरे के दरवाजे की ओट से लल्लू को निहारने लगी।
रत्ना ने जब गाड़ी की आवाज सुनी तो उसकी आंखो के सामने लल्लू का विशालकाई लौड़ा घूमने लगा। उसकी अनछुई चूत उबाल मारने लगी। वो अपनी जांघो से ही अपनी चूत को दबाने लगी।
सब अपने अपने कमरों में छुपे हुए लल्लू की झलक का इंतजार कर रहे थे। लल्लू को सबके मन की मनोस्थिति ज्ञात थी। वो मंद मंद ही मुस्कुरा रहा था। माया देवी को गाड़ी से उतरे हुए कुछ पल बीत चुके थे और किसी को घर की चौखट पे ना आता देख कर उनका गुस्सा सातवें आसमान पर था।
माया देवी: कहा मर गई सारी कुत्तियां। रंडिया कौन से बिल में घुस कर बैठी है।
माया देवी के चिल्लाने की आवाज सुन कर सब जैसे नींद से जागी हो। तुरंत ही अपनी भावनाओं को दबाए सब की सब दरवाजे की ओर बड चली। वहा पहुंचते ही तीनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और तीनो की आंखे नीची हो गई। तीनो एक दूसरे की मन की बात से अंजान थी। तीनो में से किसी की हिम्मत नही हुई की वो माया देवी की तरफ देख भी सके।
माया देवी: कहां गांड़ मरा रही थी सब की सब।
सुधा: ( थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए) वो दीदी गाड़ी की आवाज नही आई और अपने बताया भी तो नही था, नही तो आरती का थाल न सजाती।
लल्लू की आंखे तीनो का जायजा ले रही थी। तीनो भी चोर निगाहों से लल्लू को ही निहार रही थी। तीनो को अब लल्लू के अंदर एक पूर्ण पुरुष नजर आ रहा था। खैर लल्लू ने तीनो में से किसी को भी भाव नही दिया और वो घर के अंदर चल पड़ा। सबसे ज्यादा सुधा को अजीब सा लगा क्योंकि लल्लू अगर कभी भी बाहर से घर आता था तो माई माई चिल्लाता हुआ उसके गले लग जाता है। पर आज तो उसने सुधा की तरफ देखा भी नहीं।
सुधा : दीदी इसे क्या हुआ। ये तो बदला बदला सा लग रहा है।
माया देवी: डॉक्टर ने बताया कि अपना लल्लू अब धीरे धीरे ठीक हो रहा है। उसके सोचने समझने की शक्ति बढ़ती जा रही हैं। लल्लू को यह एहसास दिलाना होगा की वोही अब इस गांव का ठाकुर है। सब चीजे उसके कहे अनुसार होनी चाहिए।
रत्ना: तो इसका मतलब हमारा लल्लू अब पूर्ण रूप से ठीक हो चुका है।
माया देवी: नही री अभी धीरे धीरे ठीक होने की राह पर चल चुका है।
तभी माया देवी के कानो में लल्लू की आवाज पड़ी।
लल्लू: ताई मां ओ ताई मां।
माया देवी: आई ठाकुर साहब।
माया देवी के मुंह से ठाकुर साहब सुन कर तीनो की तीनो अचंभे में पड़ गई, पर माया देवी इन तीनों की बिना परवाह किए वो अंदर की तरफ चल दी।
लल्लू: ताई मां किसी ने हमारे नहाने का और न ही जलपान का बंदोबस्त किया है।
माया देवी: सुधा और रत्ना दोनो ठाकुर साहब के नहाने का और जलपान का इंतजाम करो।
दोनो हैरत से अपनी मुंडी हिलाने लगी। सुधा भागी रसोईघर की तरफ और रत्ना भागी बाथरूम की तरफ। कमला भी अपने कमरे की तरफ जाने लगी तब उसने लल्लू की तरफ देखा तो लल्लू को खुद को निहारता पाया। दोनो की आंखे टकराई तो लल्लू ने उसे आंख मार दी, कमला एक दम से सकपका गई और भाग कर अपने कमरे में बंद हो गई। कमला की हालत देख माया देवी की हसी छूट गई।
माया देवी: इसे भी नही छोड़ेंगे मालिक।
लल्लू: किसी को भी नही न तुझे न तेरी बेटियों को न सुधा और उसकी बेटियों को और न ही रत्ना को समझी।
इतना बोलकर लल्लू ने एक जोरदार चपत माया देवी की गांड़ पे मार दी।
मायादेवी: कितने कमीने हो आप मालिक।
लल्लू: कमीना तो मैं हूं। इस घर में तुम सब को नंगी रखूंगा।
और इतना बोलकर लल्लू स्नानघर की तरफ चल पड़ा। लल्लू जब स्नानघर पहुंचा तो आदत अनुसार लल्लू ने एक एक करके सारे कपड़े उतार दिए। लल्लू के कच्छे में उसके अजगर का फन साफ साफ दिखाई दे रहा था।
रत्ना की आंखे वही पे जम कर रह गई। लल्लू ने रत्ना की आंखों के सामने ही अपने अजगर के फन को उमेठ दिया तो रत्ना के जिस्म मे कपकपी दौड़ गई। रत्ना के होंठ पूर्ण रूप से सूख चुके थे। उसकी सांसे रेलगाड़ी के इंजन से भी तेज दौड़ रही थी। उसकी जांघें यकायक आपस में भिड़ गई तो उसे एहसास हुआ की उसकी चूत पानी छोड़ चुकी है। खुद को शर्मिंदा होने से बचाने के लिए वो लल्लू से बोली।
रत्ना: गरम पानी रख दिया है, तो तू खुद नहा ले लल्लू।
लल्लू: चाची मां आज तक तो मैं कभी खुद नही नहाया फिर आज क्यों। ठीक है आप जाइए, में ताई मां को बुलाता हूं।
माया देवी का नाम सुनते ही रत्ना की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई।
रत्ना: अच्छा रोक मैं नहलाती हूं।
इतना सुनते ही लल्लू ने वो किया जो रत्ना जानती थी की होगा पर लल्लू इस तरह से करेगा ये नही मालूम था। लल्लू ने एक झटके में अपना कच्छा उतार कर फेक दिया और लल्लू अब रत्ना की आंखों के सामने पूर्ण रूप से नंगा था। लल्लू की तोप रत्ना की बिन चूदी जवानी को सलामी दे रही थी।
रत्ना के होठ पूर्ण रूप से सूख चुके थे। उसकी सांसे किसी मशीन की तरह चल रही थी। रत्ना बार बार अपने होठों पे जुबान फेर रही थी। रत्ना को जिस चीज की चाहत थी वो उसके समक्ष खड़ी थी। उसका मन कर रहा था की वो हाथ बड़ा कर उस भीमकायी लन्ड को अपनी मुट्ठी में भर ले और उसकी सारी अकड़ निकाल दे। पर वो जिस कश्मकश में थी उसके अंतर्मन में द्वंद चल रहा था। तभी लल्लू ने उसको उसकी नींद से जगाया।
लल्लू: चाची मां स्नान कराओ न।
रत्ना ऐसे चौकी जैसे किसी गहरी नींद से जागी हो।
रत्ना: ओह हां......चल बैठ जा नीचे।
लल्लू: नही नीचे नही मुझे खड़े होके नहाना है।
उसकी ज़िद्द के आगे रत्ना की एक न चली। रत्ना लल्लू को नहलाने लगी। जैसे जैसे रत्ना के हाथ लल्लू के बलिष्ट जिस्म पर रेंगने लगे लल्लू का नाग और फन उठाने लगा। रत्ना लल्लू के मर्दाना जिस्म पर मर मिटी। लल्लू की कठोर छाती, उसकी मजबूत बुझाए, सख्त जांघें और जांघों के जोड पर फंफनता हुआ नाग जो रत्ना को किसी भी क्षण डसने को तैयार बैठा था।
रत्ना जैसे ही जांघो के जोड पर पहुंची उसका गला सूखने लगा। वो सोच रही थी क्या करे। जांघो को मलते हुए लल्लू का लौड़ा उसके गालों को चूम रहा था। इतना गर्म था की अगर किसी लोहे पर रख दो तो लोहा पिघल जाए। जैसे ही रत्ना को लल्लू के लन्ड ने पहली बार स्पर्श किया, रत्ना की चूत बहने लगी, और बहती चली गई क्युकी आज कोई बांध इस नदी के वेग को नही रोक सकता था। रत्ना धीरे धीरे लल्लू के नीचे की टांगो पे साबुन मलने लगी। वो अब पानी डालने ही चली थी की उसके कान से धुआं निकलने लगा।
लल्लू: चाची मां लन्ड पे भी तो साबुन लगाओ।
रत्ना का मुंह खुला का खुला रह गया, उसके कान गरम हो गए और उसकी चूत धधकने लगी। लल्लू ने आज पहली बार उसके सामने कुछ ऐसा शब्द बोला था।
रत्ना: ये गलत शब्द है। किसने सिखाया तुम्हे ये।
रत्ना ने हल्का सा झूटा गुस्सा दिखाया और लल्लू ने भी डरने का पूरा नाटक किया।
लल्लू: ताई मां और डॉक्टरनी ने। वो कहती है की जब आपकी नुनु इतनी बड़ी हो जाए तो उसे लन्ड या लौड़ा बोलते हैं।
रत्ना अपने मन में कह तो सही रही है लौड़ा भी नही पूरा मूसल है ये तो।
रत्ना: कह वो सही रही है पर ये शब्द केवल अपने दोस्तो के साथ बोलते है। ऐसे घर में नही।
लल्लू: तो फिर घर पर क्या बोलूं।
रत्ना: (असमंजस में) इसको तुम, अपना लिंग बोल सकते हो।
और जैसे ही रत्ना ने लल्लू के लन्ड पर साबुन लगाया वो और ज्यादा सख्त होने लगा और एक दम कड़ा हो गया।
और लल्लू ने अपना नाटक शुरू किया।
लल्लू: आई चाची आह।
रत्ना: क्या हुआ लल्लू। लगी क्या।
लल्लू: चाची लिंग मैं एक दम से बहुत दर्द हो रहा है।
रत्ना प्यार से लल्लू के लन्ड को सहलाने लगी।
रत्ना: अब ठीक लग रहा है लल्लू।
लल्लू: हां चाची अब ठीक लग रहा है।
रत्ना जैसे जैसे लल्लू के लन्ड को सहला रही थी वैसे वैसे उसकी खुमारी बढ़ती जा रही थी। अब वो भूल चुकी थी की वो लल्लू को स्नान कराने के लिए आई थी, बल्कि वो पूर्ण रूप से वासना में लिप्त हो चुकी थी। उसके हाथ लन्ड पर कसते जा रहे थे और सहलाना कब मुठियाना में बदल गया उसे पता भी नही चला।
रत्ना कोई फर्क नहीं पड़ रहा था की बाहर उसकी जेठानिया बैठी हुई है। रत्ना का हाथ अब तेजी से लल्लू के लन्ड को हिलाने लगा। उसका खुद का एक हाथ कब खुद उसकी मुनिया को सहलाने लगा। वो खुद को चरम के समीप पाने लगी और लावा जो उसके अंदर कब से बंद था वो उफ्फान मरने लगा। उसके हाथ हल्के हल्के दर्द करने लगे तब भी वो रुकी नहीं जैसे आज उसका उद्देश्य केवल लल्लू के लन्ड से मलाई निकालना हो। वही लल्लू केवल आंखे बंद किए हुए हर एक पल का आनंद ले रहा था। रत्ना बस कुछ ही क्षण दूर थी अपने सम्पूर्ण चरम से तभी जान मूचकर लल्लू ने बांध खोल दिया और उसके वेग से रत्ना पूरी तरह से भीग गई। इतनी बौंचार हुई की रत्ना का संपूर्ण चेहरा लल्लू के रस से भर गया। लल्लू अभी भी आंखे बंद किए हुए ही खड़ा था।
जैसे ही थोड़ी सी शांति हुई लल्लू तुरंत ही अपने शरीर पर पानी डाल कर तोलिया लपेट कर बाथरूम से बाहर निकल गया और अंदर रह गई तो बस रत्ना जो अभी भी उस सैलाब से उबरने की कोशिश कर रही थी। उसके पूरे चेहरे पर लल्लू का मॉल लगा हुआ था। रत्ना की प्यास अभी भी तृप्त नहीं हुई। रत्ना के चेहरे पर पड़ा हुआ लल्लू का मॉल रत्ना को मदहोश कर रहा था। उसकी खुशबू उसकी सांसों में बस चुकी थी। रत्ना ने एक उंगली से लल्लू का मॉल अपने गाल से हटाया और अपनी ज़बान पर रख चखने लगी। दे
खते देखते वो सारी मलाई चट कर गई। तभी माया देवी की आवाज से रत्ना की तंत्रा भंग हुई।
माया देवी: रत्ना क्या हुआ। अंदर क्या कर रही है।
रत्ना: कुछ नही ये लल्लू ने मुझे भी भिगो दिया। कमला को बोल कर कुछ कपड़े भिजवा दो।
माया देवी समझ गई की लल्लू ने रत्ना को अपने जलवे दिखा दिए। उन्होंने कमला को निर्देश दिया की रत्ना को उसके कपड़े लाकर दे और सुधा को रसोई घर में काम करता हुआ छोड़ कर खुद चल दी लल्लू के कमरे की तरफ।
जैसे ही माया देवी लल्लू के कमरे में पहुंची लल्लू ने माया देवी को अपनी में उठा लिया और उनके अधरों का रसपान करने लगा।
माया देवी भी उसका पूर्ण सहयोग करने लगी। कोई ५ मिनट के बाद लल्लू ने माया देवी को नीचे उतारा। दोनो अलग हुए तो दोनो की आंखों में अभी भी प्यास बाकी थी।
माया देवी: चोद दिया किया रत्ना को।
लल्लू: अभी कहा मेरी जान, अभी और तड़पाउंगा जब तक वो खुद खोल के खड़ी नही हो जाती।
माया देवी: तो फिर रात का क्या प्रोग्राम है।
लल्लू: रात को तू मेरे लोड़े की सवारी करेगी।
इतना बोल कर लल्लू ने माया देवी के दोनो दूध से भरे कलशो को थाम लिया और मरोड़ दिया।
माया देवी: आह मालिक, इतनी जोर से करते हो।
लल्लू: चुप कर साली रण्डी। अच्छा जो कहा था वो लाई है।
माया देवी ने लल्लू के हाथ में एक पैकेट थमा दिया। लल्लू कमरे से निकला और।
लल्लू: मैं अभी आता हूं तब तक तू महफिल सजा।
लल्लू ये बोल कर कमरे से बाहर निकल गया और माया देवी इतना ही सोच पाई की मालिक कितने कमीने है।
लल्लू सीधे चलते हुए कमला के कमरे बाहर रुका। कमला जो की रत्ना की हालत देख चुकी थी। उसे समझ नही आ रहा था की लल्लू ने रत्ना के साथ ऐसा क्या किया। तभी उसे किसी की आहट हुई, उसने देखा तो सामने लल्लू को पाया। लल्लू बहुत ही कम उसके कमरे में आता था।
कमला: तू यहा क्या कर रहा है।
लल्लू: (शैतानी मुस्कुराहट के साथ) एक काम अधूरा रह गया था वो ही पूरा करने आया हूं।
कमला: (सकपकाते हुए) कौन सा काम।
लल्लू: वो ही जो उस दिन छत पर कर रहा था पर अधूरा रह गया था।
कमला के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। वो शर्म से पानी पानी हो गई। उसे लल्लू से इतनी बेबाकी की उम्मीद नहीं थी।
कमला: (झूठा गुस्सा दिखाते हुए) शर्म नही आती तुझे। अभी माई को बताती हूं।
इतना बोल कर वो पलंग से खड़ी हुई और बाहर की ओर चलने लगी। लल्लू ने तुरंत कमला का हाथ पकड़ा और उसे झटका दिया, कमला किसी फूल की भांति लल्लू की बाहों में सिमटती चली गई। लल्लू ने कमला को अपनी आगोश में भर लिया। एक बार फिर कमला को लल्लू के जिस्म का एहसास होने लगा। लल्लू के हाथ कमला की पूरी पीठ टटोल रहे थे और यकायक लल्लू के हाथो में कमला की गांड़ के उभार थे।
लल्लू अपना मुंह बिलकुल कमला के कान के पास ले गया।
लल्लू: अगर मां को बुलाना होता तो तू अब तक बता चुकी होती।
और कमला की गांड़ दबा दी। कमला एक दम से चिहुंक उठी।
लल्लू: और तुझे भी तो छत पे मजा आया था। ( और एक दम से कमला को छोड़ दिया) जा बता दे माई को।
और कमला के पास इस वार को कोई जवाब न था। कमला वही आंखे नीचे करे खड़ी रही। उसकी हिम्मत उसका साथ छोड़ चुकी थी। वो तो खुद लल्लू के बाहों में समाने को बेताब थी। लल्लू ने अबकी बार कमला को पीछे से जकड़ा और एक बार फिर कमला की गांड़ और लल्लू के लन्ड का मिलाप हो गया। कमला चौंक गई ये देखकर की लल्लू का लन्ड पूरी तरह से खड़ा है। कमला की सांसे भारी होने लगी और उसकी छाती धौकनी की तरह चलने लगी। लल्लू धीरे धीरे कमला की गांड़ पर घर्षण करने लगा और अपने एक हाथ से उसकी चूची दबाने लगा।
कमला: आह ओह लल्लू मत कर।
लल्लू: क्यू मजा नही आ रहा।
कमला: आह सब नीचे बैठे है। प्लीज रुक जा।
लल्लू: तू उनकी चिंता मत कर बस मजे कर।
लल्लू कमला को दूसरी दुनिया में ले गया। अब कमला भी लल्लू का पूरा साथ दे रही थी। कमला की गांड़ लल्लू के धक्कों से ताल से ताल मिला रही थी।
तभी एक आवाज से दोनो वापस इस दुनिया में आ गए।
सुधा: लल्लू ताई मां बुला रही है। नीचे आजा।
लल्लू: आया माई।
लल्लू ने कमला को छोड़ दिया और कमला ने ऐसे देखा लल्लू को जैसे पूछ रही हों क्यू छोड़ दिया। लल्लू कमला के कमरे से निकल पड़ा। और एक पैकेट कमला की ओर फेका।
लल्लू: ये कल रात को पहन के रखना।
इतना बोल कर वो निकल गया और कमला बेसुध सी उसे जाता हुआ देखने लगी। फिर एक दम से उसने पैकेट खोला जिससे देखकर कमला के होश उड़ गए। वो एक ब्रा पैंटी का सेट था जो पहना न पहना बराबर था।
उसे देख कर कमला सिर्फ इतना बोल पाई " ये क्या हैं लल्लू"।
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गयाभाग १२
माया देवी और लल्लू गांव की तरफ रवाना हो चुके थे। थोड़ी बहुत छेड़खानी के बाद दोनो नींद की आगोश में चले गए। जब गांव के अंदर प्रविष्ट हुए तब जाकर माया देवी की आंख खुली। उन्होंने लल्लू को जगाया। थोड़ी देर में ही गाड़ी घर के द्वार पर खड़ी थी।
सब के लिए ही ये चौकने की बात थी क्योंकि किसी को भी नही पता था कि माया देवी और लल्लू आने वाले हैं। गाड़ी की आवाज सुनते ही पूरे घर में जैसे हलचल सी मच गई। सुधा ने जैसी ही गाड़ी उसके चेहरे की उदासी इक दम से मुस्कुराहट में बदल गई। उसके कदम उठे पर कुछ सोच कर उसने अपने कदम थाम लिए। उसके मन ने कहा " अगर तू पत्नी होकर तड़पी है तो पति को भी तो कुछ तड़प होनी चाहिए" और मन मसोस कर वो किचन के दरवाजे की ओट में छुप गई।
कमला का दिल गाड़ी की आवाज सुनकर जोरों से धड़कने लगा। उसे छत पर लल्लू के साथ बिताया हुआ हर एक पल याद आने लगा। पूरे जिस्म में सुरसुरी दौड़ गई। उसके निप्पल तन कर खड़े हो गए और चूत में मीठी मीठी सनसनी कौंध गई। वो भी अपने कमरे के दरवाजे की ओट से लल्लू को निहारने लगी।
रत्ना ने जब गाड़ी की आवाज सुनी तो उसकी आंखो के सामने लल्लू का विशालकाई लौड़ा घूमने लगा। उसकी अनछुई चूत उबाल मारने लगी। वो अपनी जांघो से ही अपनी चूत को दबाने लगी।
सब अपने अपने कमरों में छुपे हुए लल्लू की झलक का इंतजार कर रहे थे। लल्लू को सबके मन की मनोस्थिति ज्ञात थी। वो मंद मंद ही मुस्कुरा रहा था। माया देवी को गाड़ी से उतरे हुए कुछ पल बीत चुके थे और किसी को घर की चौखट पे ना आता देख कर उनका गुस्सा सातवें आसमान पर था।
माया देवी: कहा मर गई सारी कुत्तियां। रंडिया कौन से बिल में घुस कर बैठी है।
माया देवी के चिल्लाने की आवाज सुन कर सब जैसे नींद से जागी हो। तुरंत ही अपनी भावनाओं को दबाए सब की सब दरवाजे की ओर बड चली। वहा पहुंचते ही तीनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और तीनो की आंखे नीची हो गई। तीनो एक दूसरे की मन की बात से अंजान थी। तीनो में से किसी की हिम्मत नही हुई की वो माया देवी की तरफ देख भी सके।
माया देवी: कहां गांड़ मरा रही थी सब की सब।
सुधा: ( थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए) वो दीदी गाड़ी की आवाज नही आई और अपने बताया भी तो नही था, नही तो आरती का थाल न सजाती।
लल्लू की आंखे तीनो का जायजा ले रही थी। तीनो भी चोर निगाहों से लल्लू को ही निहार रही थी। तीनो को अब लल्लू के अंदर एक पूर्ण पुरुष नजर आ रहा था। खैर लल्लू ने तीनो में से किसी को भी भाव नही दिया और वो घर के अंदर चल पड़ा। सबसे ज्यादा सुधा को अजीब सा लगा क्योंकि लल्लू अगर कभी भी बाहर से घर आता था तो माई माई चिल्लाता हुआ उसके गले लग जाता है। पर आज तो उसने सुधा की तरफ देखा भी नहीं।
सुधा : दीदी इसे क्या हुआ। ये तो बदला बदला सा लग रहा है।
माया देवी: डॉक्टर ने बताया कि अपना लल्लू अब धीरे धीरे ठीक हो रहा है। उसके सोचने समझने की शक्ति बढ़ती जा रही हैं। लल्लू को यह एहसास दिलाना होगा की वोही अब इस गांव का ठाकुर है। सब चीजे उसके कहे अनुसार होनी चाहिए।
रत्ना: तो इसका मतलब हमारा लल्लू अब पूर्ण रूप से ठीक हो चुका है।
माया देवी: नही री अभी धीरे धीरे ठीक होने की राह पर चल चुका है।
तभी माया देवी के कानो में लल्लू की आवाज पड़ी।
लल्लू: ताई मां ओ ताई मां।
माया देवी: आई ठाकुर साहब।
माया देवी के मुंह से ठाकुर साहब सुन कर तीनो की तीनो अचंभे में पड़ गई, पर माया देवी इन तीनों की बिना परवाह किए वो अंदर की तरफ चल दी।
लल्लू: ताई मां किसी ने हमारे नहाने का और न ही जलपान का बंदोबस्त किया है।
माया देवी: सुधा और रत्ना दोनो ठाकुर साहब के नहाने का और जलपान का इंतजाम करो।
दोनो हैरत से अपनी मुंडी हिलाने लगी। सुधा भागी रसोईघर की तरफ और रत्ना भागी बाथरूम की तरफ। कमला भी अपने कमरे की तरफ जाने लगी तब उसने लल्लू की तरफ देखा तो लल्लू को खुद को निहारता पाया। दोनो की आंखे टकराई तो लल्लू ने उसे आंख मार दी, कमला एक दम से सकपका गई और भाग कर अपने कमरे में बंद हो गई। कमला की हालत देख माया देवी की हसी छूट गई।
माया देवी: इसे भी नही छोड़ेंगे मालिक।
लल्लू: किसी को भी नही न तुझे न तेरी बेटियों को न सुधा और उसकी बेटियों को और न ही रत्ना को समझी।
इतना बोलकर लल्लू ने एक जोरदार चपत माया देवी की गांड़ पे मार दी।
मायादेवी: कितने कमीने हो आप मालिक।
लल्लू: कमीना तो मैं हूं। इस घर में तुम सब को नंगी रखूंगा।
और इतना बोलकर लल्लू स्नानघर की तरफ चल पड़ा। लल्लू जब स्नानघर पहुंचा तो आदत अनुसार लल्लू ने एक एक करके सारे कपड़े उतार दिए। लल्लू के कच्छे में उसके अजगर का फन साफ साफ दिखाई दे रहा था।
रत्ना की आंखे वही पे जम कर रह गई। लल्लू ने रत्ना की आंखों के सामने ही अपने अजगर के फन को उमेठ दिया तो रत्ना के जिस्म मे कपकपी दौड़ गई। रत्ना के होंठ पूर्ण रूप से सूख चुके थे। उसकी सांसे रेलगाड़ी के इंजन से भी तेज दौड़ रही थी। उसकी जांघें यकायक आपस में भिड़ गई तो उसे एहसास हुआ की उसकी चूत पानी छोड़ चुकी है। खुद को शर्मिंदा होने से बचाने के लिए वो लल्लू से बोली।
रत्ना: गरम पानी रख दिया है, तो तू खुद नहा ले लल्लू।
लल्लू: चाची मां आज तक तो मैं कभी खुद नही नहाया फिर आज क्यों। ठीक है आप जाइए, में ताई मां को बुलाता हूं।
माया देवी का नाम सुनते ही रत्ना की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई।
रत्ना: अच्छा रोक मैं नहलाती हूं।
इतना सुनते ही लल्लू ने वो किया जो रत्ना जानती थी की होगा पर लल्लू इस तरह से करेगा ये नही मालूम था। लल्लू ने एक झटके में अपना कच्छा उतार कर फेक दिया और लल्लू अब रत्ना की आंखों के सामने पूर्ण रूप से नंगा था। लल्लू की तोप रत्ना की बिन चूदी जवानी को सलामी दे रही थी।
रत्ना के होठ पूर्ण रूप से सूख चुके थे। उसकी सांसे किसी मशीन की तरह चल रही थी। रत्ना बार बार अपने होठों पे जुबान फेर रही थी। रत्ना को जिस चीज की चाहत थी वो उसके समक्ष खड़ी थी। उसका मन कर रहा था की वो हाथ बड़ा कर उस भीमकायी लन्ड को अपनी मुट्ठी में भर ले और उसकी सारी अकड़ निकाल दे। पर वो जिस कश्मकश में थी उसके अंतर्मन में द्वंद चल रहा था। तभी लल्लू ने उसको उसकी नींद से जगाया।
लल्लू: चाची मां स्नान कराओ न।
रत्ना ऐसे चौकी जैसे किसी गहरी नींद से जागी हो।
रत्ना: ओह हां......चल बैठ जा नीचे।
लल्लू: नही नीचे नही मुझे खड़े होके नहाना है।
उसकी ज़िद्द के आगे रत्ना की एक न चली। रत्ना लल्लू को नहलाने लगी। जैसे जैसे रत्ना के हाथ लल्लू के बलिष्ट जिस्म पर रेंगने लगे लल्लू का नाग और फन उठाने लगा। रत्ना लल्लू के मर्दाना जिस्म पर मर मिटी। लल्लू की कठोर छाती, उसकी मजबूत बुझाए, सख्त जांघें और जांघों के जोड पर फंफनता हुआ नाग जो रत्ना को किसी भी क्षण डसने को तैयार बैठा था।
रत्ना जैसे ही जांघो के जोड पर पहुंची उसका गला सूखने लगा। वो सोच रही थी क्या करे। जांघो को मलते हुए लल्लू का लौड़ा उसके गालों को चूम रहा था। इतना गर्म था की अगर किसी लोहे पर रख दो तो लोहा पिघल जाए। जैसे ही रत्ना को लल्लू के लन्ड ने पहली बार स्पर्श किया, रत्ना की चूत बहने लगी, और बहती चली गई क्युकी आज कोई बांध इस नदी के वेग को नही रोक सकता था। रत्ना धीरे धीरे लल्लू के नीचे की टांगो पे साबुन मलने लगी। वो अब पानी डालने ही चली थी की उसके कान से धुआं निकलने लगा।
लल्लू: चाची मां लन्ड पे भी तो साबुन लगाओ।
रत्ना का मुंह खुला का खुला रह गया, उसके कान गरम हो गए और उसकी चूत धधकने लगी। लल्लू ने आज पहली बार उसके सामने कुछ ऐसा शब्द बोला था।
रत्ना: ये गलत शब्द है। किसने सिखाया तुम्हे ये।
रत्ना ने हल्का सा झूटा गुस्सा दिखाया और लल्लू ने भी डरने का पूरा नाटक किया।
लल्लू: ताई मां और डॉक्टरनी ने। वो कहती है की जब आपकी नुनु इतनी बड़ी हो जाए तो उसे लन्ड या लौड़ा बोलते हैं।
रत्ना अपने मन में कह तो सही रही है लौड़ा भी नही पूरा मूसल है ये तो।
रत्ना: कह वो सही रही है पर ये शब्द केवल अपने दोस्तो के साथ बोलते है। ऐसे घर में नही।
लल्लू: तो फिर घर पर क्या बोलूं।
रत्ना: (असमंजस में) इसको तुम, अपना लिंग बोल सकते हो।
और जैसे ही रत्ना ने लल्लू के लन्ड पर साबुन लगाया वो और ज्यादा सख्त होने लगा और एक दम कड़ा हो गया।
और लल्लू ने अपना नाटक शुरू किया।
लल्लू: आई चाची आह।
रत्ना: क्या हुआ लल्लू। लगी क्या।
लल्लू: चाची लिंग मैं एक दम से बहुत दर्द हो रहा है।
रत्ना प्यार से लल्लू के लन्ड को सहलाने लगी।
रत्ना: अब ठीक लग रहा है लल्लू।
लल्लू: हां चाची अब ठीक लग रहा है।
रत्ना जैसे जैसे लल्लू के लन्ड को सहला रही थी वैसे वैसे उसकी खुमारी बढ़ती जा रही थी। अब वो भूल चुकी थी की वो लल्लू को स्नान कराने के लिए आई थी, बल्कि वो पूर्ण रूप से वासना में लिप्त हो चुकी थी। उसके हाथ लन्ड पर कसते जा रहे थे और सहलाना कब मुठियाना में बदल गया उसे पता भी नही चला।
रत्ना कोई फर्क नहीं पड़ रहा था की बाहर उसकी जेठानिया बैठी हुई है। रत्ना का हाथ अब तेजी से लल्लू के लन्ड को हिलाने लगा। उसका खुद का एक हाथ कब खुद उसकी मुनिया को सहलाने लगा। वो खुद को चरम के समीप पाने लगी और लावा जो उसके अंदर कब से बंद था वो उफ्फान मरने लगा। उसके हाथ हल्के हल्के दर्द करने लगे तब भी वो रुकी नहीं जैसे आज उसका उद्देश्य केवल लल्लू के लन्ड से मलाई निकालना हो। वही लल्लू केवल आंखे बंद किए हुए हर एक पल का आनंद ले रहा था। रत्ना बस कुछ ही क्षण दूर थी अपने सम्पूर्ण चरम से तभी जान मूचकर लल्लू ने बांध खोल दिया और उसके वेग से रत्ना पूरी तरह से भीग गई। इतनी बौंचार हुई की रत्ना का संपूर्ण चेहरा लल्लू के रस से भर गया। लल्लू अभी भी आंखे बंद किए हुए ही खड़ा था।
जैसे ही थोड़ी सी शांति हुई लल्लू तुरंत ही अपने शरीर पर पानी डाल कर तोलिया लपेट कर बाथरूम से बाहर निकल गया और अंदर रह गई तो बस रत्ना जो अभी भी उस सैलाब से उबरने की कोशिश कर रही थी। उसके पूरे चेहरे पर लल्लू का मॉल लगा हुआ था। रत्ना की प्यास अभी भी तृप्त नहीं हुई। रत्ना के चेहरे पर पड़ा हुआ लल्लू का मॉल रत्ना को मदहोश कर रहा था। उसकी खुशबू उसकी सांसों में बस चुकी थी। रत्ना ने एक उंगली से लल्लू का मॉल अपने गाल से हटाया और अपनी ज़बान पर रख चखने लगी। दे
खते देखते वो सारी मलाई चट कर गई। तभी माया देवी की आवाज से रत्ना की तंत्रा भंग हुई।
माया देवी: रत्ना क्या हुआ। अंदर क्या कर रही है।
रत्ना: कुछ नही ये लल्लू ने मुझे भी भिगो दिया। कमला को बोल कर कुछ कपड़े भिजवा दो।
माया देवी समझ गई की लल्लू ने रत्ना को अपने जलवे दिखा दिए। उन्होंने कमला को निर्देश दिया की रत्ना को उसके कपड़े लाकर दे और सुधा को रसोई घर में काम करता हुआ छोड़ कर खुद चल दी लल्लू के कमरे की तरफ।
जैसे ही माया देवी लल्लू के कमरे में पहुंची लल्लू ने माया देवी को अपनी में उठा लिया और उनके अधरों का रसपान करने लगा।
माया देवी भी उसका पूर्ण सहयोग करने लगी। कोई ५ मिनट के बाद लल्लू ने माया देवी को नीचे उतारा। दोनो अलग हुए तो दोनो की आंखों में अभी भी प्यास बाकी थी।
माया देवी: चोद दिया किया रत्ना को।
लल्लू: अभी कहा मेरी जान, अभी और तड़पाउंगा जब तक वो खुद खोल के खड़ी नही हो जाती।
माया देवी: तो फिर रात का क्या प्रोग्राम है।
लल्लू: रात को तू मेरे लोड़े की सवारी करेगी।
इतना बोल कर लल्लू ने माया देवी के दोनो दूध से भरे कलशो को थाम लिया और मरोड़ दिया।
माया देवी: आह मालिक, इतनी जोर से करते हो।
लल्लू: चुप कर साली रण्डी। अच्छा जो कहा था वो लाई है।
माया देवी ने लल्लू के हाथ में एक पैकेट थमा दिया। लल्लू कमरे से निकला और।
लल्लू: मैं अभी आता हूं तब तक तू महफिल सजा।
लल्लू ये बोल कर कमरे से बाहर निकल गया और माया देवी इतना ही सोच पाई की मालिक कितने कमीने है।
लल्लू सीधे चलते हुए कमला के कमरे बाहर रुका। कमला जो की रत्ना की हालत देख चुकी थी। उसे समझ नही आ रहा था की लल्लू ने रत्ना के साथ ऐसा क्या किया। तभी उसे किसी की आहट हुई, उसने देखा तो सामने लल्लू को पाया। लल्लू बहुत ही कम उसके कमरे में आता था।
कमला: तू यहा क्या कर रहा है।
लल्लू: (शैतानी मुस्कुराहट के साथ) एक काम अधूरा रह गया था वो ही पूरा करने आया हूं।
कमला: (सकपकाते हुए) कौन सा काम।
लल्लू: वो ही जो उस दिन छत पर कर रहा था पर अधूरा रह गया था।
कमला के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। वो शर्म से पानी पानी हो गई। उसे लल्लू से इतनी बेबाकी की उम्मीद नहीं थी।
कमला: (झूठा गुस्सा दिखाते हुए) शर्म नही आती तुझे। अभी माई को बताती हूं।
इतना बोल कर वो पलंग से खड़ी हुई और बाहर की ओर चलने लगी। लल्लू ने तुरंत कमला का हाथ पकड़ा और उसे झटका दिया, कमला किसी फूल की भांति लल्लू की बाहों में सिमटती चली गई। लल्लू ने कमला को अपनी आगोश में भर लिया। एक बार फिर कमला को लल्लू के जिस्म का एहसास होने लगा। लल्लू के हाथ कमला की पूरी पीठ टटोल रहे थे और यकायक लल्लू के हाथो में कमला की गांड़ के उभार थे।
लल्लू अपना मुंह बिलकुल कमला के कान के पास ले गया।
लल्लू: अगर मां को बुलाना होता तो तू अब तक बता चुकी होती।
और कमला की गांड़ दबा दी। कमला एक दम से चिहुंक उठी।
लल्लू: और तुझे भी तो छत पे मजा आया था। ( और एक दम से कमला को छोड़ दिया) जा बता दे माई को।
और कमला के पास इस वार को कोई जवाब न था। कमला वही आंखे नीचे करे खड़ी रही। उसकी हिम्मत उसका साथ छोड़ चुकी थी। वो तो खुद लल्लू के बाहों में समाने को बेताब थी। लल्लू ने अबकी बार कमला को पीछे से जकड़ा और एक बार फिर कमला की गांड़ और लल्लू के लन्ड का मिलाप हो गया। कमला चौंक गई ये देखकर की लल्लू का लन्ड पूरी तरह से खड़ा है। कमला की सांसे भारी होने लगी और उसकी छाती धौकनी की तरह चलने लगी। लल्लू धीरे धीरे कमला की गांड़ पर घर्षण करने लगा और अपने एक हाथ से उसकी चूची दबाने लगा।
कमला: आह ओह लल्लू मत कर।
लल्लू: क्यू मजा नही आ रहा।
कमला: आह सब नीचे बैठे है। प्लीज रुक जा।
लल्लू: तू उनकी चिंता मत कर बस मजे कर।
लल्लू कमला को दूसरी दुनिया में ले गया। अब कमला भी लल्लू का पूरा साथ दे रही थी। कमला की गांड़ लल्लू के धक्कों से ताल से ताल मिला रही थी।
तभी एक आवाज से दोनो वापस इस दुनिया में आ गए।
सुधा: लल्लू ताई मां बुला रही है। नीचे आजा।
लल्लू: आया माई।
लल्लू ने कमला को छोड़ दिया और कमला ने ऐसे देखा लल्लू को जैसे पूछ रही हों क्यू छोड़ दिया। लल्लू कमला के कमरे से निकल पड़ा। और एक पैकेट कमला की ओर फेका।
लल्लू: ये कल रात को पहन के रखना।
इतना बोल कर वो निकल गया और कमला बेसुध सी उसे जाता हुआ देखने लगी। फिर एक दम से उसने पैकेट खोला जिससे देखकर कमला के होश उड़ गए। वो एक ब्रा पैंटी का सेट था जो पहना न पहना बराबर था।
उसे देख कर कमला सिर्फ इतना बोल पाई " ये क्या हैं लल्लू"।