ब्रह्मराक्षस का वरदान
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क्या आपने अपनी मम्मी के साथ कुछ ऐसा सोचा है।- - आपको मेरी कहानी - पड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे - में कुछ ऐसे ऐसे और अन्य रंग भी मिलेंगे
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तरुण ने अपने आप को फीर से उस जगह पाया, जहाँ से उसे यह सारी शक्तियां मिली थी, वही कृतानंद ऋषि का आश्रम वहां उसे अयाना वह ऋषिपत्नी संपूर्ण नग्न अवस्था में मिली। वह जैसे वहाँ खड़ी तरुण का इंतजार कर रही थी उसे इस अवस्था में देख तरुण ने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया और उसके मोटे मोटे उरोजों को दबाने लगा तब अयाना उसे बोली, “तरुण में यहां तुम्हारी गुलाम हुं और तुम्हारी हर चिंता का समाधान मै करूंगी।”
तरुण ने पुछा, “मेरे ऐसे स्पर्श करने से कोई भी औरत कामोत्तेजित हो जायेगी मगर तुम तो ना ही उत्तेजित हो रही हो, ना ही विरोध कर रही हो, कैसे क्या मुझमें सचमुच ऐसी शक्तियां है? क्या वह सचमुच असीमित है?”
अयाना ने उसे जवाब देते हुये कहा , “तरुण हां! यह बात सच है की तुम्हारे पास परमात्मा से भी अनंत गुणा शक्तियां है, मगर जब तक तुम्हें उनकी जानकारी ना हो तुम उनका उपयोग नहीं कर सकते।”
तरुण ने अयाना से पुछा, “अगर में इतना ही शक्तिशाली हूं तो मुझे तुम्हारी आवश्यकता क्या है?”
अयाना ने जवाब दिया, “मेरा कार्य तुम्हारी शक्तियों को नियंत्रण में रखना है, अगर ऐसा ना किया जाये तो तुम्हारी शक्तियाँ इतनी फैल जायेगी की हर मादा तुम्हारी तरफ आकर्षित होगी चाहे वह मनुष्य हो, पशु हो, पक्षी हो या कीट हो।”
तरुण इससे चौंक गया, उसने एक और सवाल पूछा,“क्या मै किसी भी लड़की को अपने और आकर्षित कर सकता हूँ?”
अयाना बोली, “ तुम्हारी इच्छा पर निर्भर है की तुम्हें क्या चाहिये तुम चाहो तो किसी भी कन्या को अपने लिये उत्तेजित करके उसके योन का फल चख सकते हो, तुम चाहो ताजी कच्ची कलियाँ फूला सकते हो, मगर तुम हो की बासी और जूठे फल तोड़ रहे हो।”
तरुण ने कहा, “तुम तो एक आत्मा हो, तो तुम नग्न कैसे हो?”
अयाना ने कहा, “देह ही आत्मा के वस्त्र होते है, तो बिना वस्त्र की आत्मा तो नग्न ही होगी।”
तरुण, “ तुम क्या मुझे जरुरत के हिसाब से हर शक्ति दे सकती हो?”
अयाना, “हाँ, जितनी तुम चाहो या तुम्हें जितनी आवश्यकता होगी।”
तब तरुण अयाना का हाथ पकड़कर, उसे अपनी और खींचकर उसके स्तन दबाने लगा और पूछा ,“मै कितने समय तक बिना झडे कर सकता हुं?”
अयाना ने कहा, “ तुम अनंत काल तक बिना झडे रह सकते हो, और तुम्हारे वीर्य को भी कोई मर्यादा नहीं है, तुम दुनिया भर की महिलाओं को खुश करके भी तुम्हारा लिंग सक्त ही रहेगा।”
तरुण कुछ पूछता इसके पहले उसकी आँख खुल गई, उसने देखा की वह जिसके स्तन दबा रहा था वह रानी थी। रानी तरुण के सामने पूरी तरह से नग्न थी, वह उसकी योनी का भंग तो कर ही चुका था, मगर उसकी और करने की इच्छा हो रही थी। तरुण के सामने रानी के भरे हुये स्तन थें, जोकि बालों से ढके हुये थें। तरुण ने बालों की लताओं में उंगली डालकर, रानी के स्तनाग्र रूपी फलों को चखने के लिये जैसे ही दबाया, रानी बोली, “तरुण रात भर बहुत हो चुका है, और अब...”, इतने में तरुण के लिंग पर रानी की नजर पड़ी, और उसने जो देखा वह देखकर वह दंग रह गई, तरुण का लिंग अभी भी लोहे की तरह सक्त था। यह देख रानी चौंककर शर्माकर तरुण को देखने लगी, अब शर्म के मारे उसके गाल भी लाल होने लगे थे, वह तरुण को बोली, “अब बस हो गया, बाकी सब घर जाकर करेंगे!” तब तरुण और सरिता तैयार हो गये और शहर के लिये निकल गये।
वह कुछ ही घंटों में वापस कोमल के पास पहुंच गये, अपनी माँ रानी को देखकर खुशी से फूली नहीं समा रही थी, वह तो सीधे घर में से भागकर आयी और अपनी माँ को गले लगाकर फुट फुटकर रोने लगी, उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। जीस माँ का वह इतने सालों से इंतजार कर रही थी, जिसके लिये उसने जेल की चक्की पीसी थी वह आज खुद उसके सामने थी। तब रानी ने कोमल को बताया की कैसे तरुण ने उसकी जान बचाकर, उसे उस गैंग की चंगुल से आझाद कराया था। कोमल ने माँ(रानी) को अंदर बुलाया और उसे कमरे में ले जाकर आराम करने को कहा। रानी सफर और तरुण के साथ हुये संभोग की वजह से काफी थकान, महसूस कर रही थी, इसलिए वह एक कमरे में जाकर सो गई। तरुण को एक कमरे में ले जाकर कोमल ने उससे कहा, “तुम सोच भी नहीं सकते तरुण की, आज तुमने मुझ पर कितना बड़ा एहसान किया है, मुझे समझ ही नहीं आ रहा की तुम्हारा यह एहसान कैसे चुकाना है!”
तरुण कोमल को उपर से नीचे देखने लगा, उसने एक टी शर्ट और शॉर्ट पैंट पहन रखी थी, जैसे वह नियमित रूप से घर में पहना करती थी। तरुण ने उसका हाथ कोमल की खुली जाँघ पर रखा, और उसकी पैंट के अंदर हाथ डालकर उसकी जंघाओं को सहलाते हुये कहा, “कोमल तुम जानती हो मुझे क्या चाहिये, यु बनो मत।” कोमल उसका साथ तो नहीं दे रही थी, क्योंकि उसके मन में द्वन्द्व चल रहा था, उसकी दो विचारों के बीच। जहाँ उसका एक विचार कह रहा था, “कोमल यह क्या कर रही हो, वह जो भी करेगा वह तुम उसे करने दोगी, तुम्हारी कोई सेल्फ रिस्पेक्ट नहीं है क्या?”
फिर उसकी दूसरी विचारधारा उसे कहने लगी, “सेल्फ रिस्पेक्ट है तुम्हारे पास? तुम तो पहले ही एक बच्चा गिरा चुकी हो, और उसके बाप को अपने उपर रेप करने का झुठा केस डालकर अंदर करवाया था।”
फिर पहली विचारधारा ने बोला, “वो तुमने अपनी माँ की जान बचाने के लिये किया था, उसमें शर्म वाली कोई बात ही नहीं थी।”
फिर दूसरे विचारधारा बोली, “अगर तुम अपनी माँ की जान बचाने के लिये, किसी के साथ एक साल राते बीता सकती हो, तो क्या जिसने तुम्हारी उसी माँ की जान बचायी उसके साथ एक रात नहीं बिता सकती, उसके एहसान के बदले उसे एक रात की खुशी नहीं दे सकती?”
इसके दौरान तरुण अपना हाथ उसकी पैंट में डालकर उसके नितम्ब दबा रहा था। कोमल अब उत्तेजित हो चुकी थी, उसके अंदर कामुकता की आग लग चुकी थी, वह अब तक तरुण का साथ तो नहीं दे रही थी, परंतु उसका विरोध भी नहीं कर रही थी। तरुण तो कोमल के विचार पढ़ सकता था, वह यह बात अच्छी तरह से जानता था की कोमल की तरफ से, उसे पूरी स्वतंत्रता है, मगर वह उसे और उत्तेजित करना चाहता था। तरुण ने कोमल को और उत्तेजित करने के लिये उसके टी शर्ट में हाथ डालकर उसकी कमर सहलाने लगा और अपने दुसरे हाथ से उसके गुद्द्वार और योनी में अपनी उंगलियों को फेर रहा था। इससे कोमल के अंदर लगी वासना की आग को उत्तेजना की हवा मिलने लगी। कोमल, “आह! आह!” करके सिसकारिया देने लगी, तभी तरुण ने अपना हाथ कोमल की पीठ पर घुमाने लगा, तब उसे उसकी पीठ नग्न प्रतीत हुई। उसे पता चला की कोमल ने अंदर से कुछ नहीं पहना है, तरुण ने कोमल को पीछे मोड़कर खड़ा किया। अब तरुण अपना दायां हाथ उसके पेट पर रखकर उसे घुमाकर ऊपर की और ले जाकर उसके स्तन दबाने लगा। तभी उसने नाडा खोलकर उसकी शाँर्ट और टी शर्ट उतार दी। अब कोमल पूरी तरह से नग्न थी, तरुण उसके स्तनों को तरुण दोनों हाथों से दबा रहा था और साथ ही साथ वह उंगलियों से उसके स्तनाग्र मसलने भी लगा था, जिस वजह से कोमल के अंदर वासना की आग ज्वाला की तरह भड़क रही थी, इस वजह से कोमल, “म्! म्! म्!” करके सिसकारिया निकाल रही थी।
अब तरुण ने अपने पैंट भी उतार दी और अपना लिंग कोमल के दोनों पैरों के बीच उसकी योनी पर घुमाने लगा और आगे पीछे करके रगड़ने लगा, तरुण का लिंग किसी वज्र की तरह सक्त था, और २० इंच लंबा और तीन इंच मोटा था। कोमल तरुण को लिंग का आकार महसूस कर सकती थी, मगर इससे वह ज्यादा ही उत्तेजित हो रही थी, उसकी योनी ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया था। कोमल अब पीछे मुड़कर तरुण की तरफ देखने लगी, तरुण उसकी आँखों में आँखें डालकर देखने लगा वह शर्माकर नीचे देखने लगी तभी उसकी नज़र तरुण के विशालकाय लिंग पर पड़ी, वैसे तो वह कई बार संभोग ले चुकी थी मगर उसने इतना बड़ा लिंग नहीं देखा था, इसीलिए उसकी नज़र वही अटक गई। कोमल अब अपने घुटनों पर आ गई और तरुण के लिंग चूमने लगी जिससे वह और सक्त हो गया, फिर वह अपनी जीभ निकालकर उसके लिंग पर घुमाने लगी, थोड़ी देर ऐसा करने के बाद कोमल तरुण का लिंग अपने मुंह में ले रही थी मगर वह पूरा लेने में असमर्थ थी। अब कोमल का खुद पर नियंत्रण नहीं रहा, अब वह स्वयं ही पलंग पर लेट गई और उसने अपने पैर मोड़कर फैला दिये, ताकि तरुण सहजता से अपना लिंग डाल सके, अब तरुण ने कोमल के पास आकर अपना लिंग उसकी योनी पर रखा, और एक जोर का झटका देकर उसकी यॊनी मॆं डाल दिया, कॊमल पहलॆ भी सम्भॊग कर चुकि थी इसलियॆ, तरुण का लिंग उसकी यॊनी मॆं गर्भाषय तक पहुंच गया। कॊमल नॆ इतना बडा लिंग कभी अपनी यॊनी मॆं नही लिया था, उपर सॆ तरुण नॆ दियॆ झटकॆ की वजह सॆ उसॆ इतना दर्द हुआ की वह चिल्ला उठी," आ! तरुण! क्या ? है यह इतना बडा!!! और कडक लंड है या लोहे का डंडा," फिर तरुण ने लिंग बाहर निकाला और बोला, "तेरे लिये कौन सा मुश्किल है? तु तो सतीश से कै बार चुद चुकी है, और सतीश से बच्चा भी कर चुकी है, तो क्या कहूँ तुझे रां...।" इतना बोलते ही तरुण ने कोमल को एक जोरदार धक्का देकर तरुण ने अपना लिंग कोमल की योनी में डाल दिया। भले ही कोमल पहले राज और सतीश से कई बार संभोग कर चुकी हो, मगर तरुण का विशालकाय लिंग अंदर जाने से उसे बहुत तेज दर्द हुआ और वह, "आ! आ! आ! मर गई!!!" करके चीख उठी। उसकी इस चीख की वजह से बगल के कमरे में सो रही रानी की नींद उड़ गई वह उठकर दीवार को कान लगाकर कमरे में क्या हो रहा है यह सुन रही थी। यहां पहला झटका देते ही तरुण ने अपना लिंग कोमल की योनी में डालकर थोड़ा बाहर निकाला और एक झटका दिया, अब वह फिर जोर से, "आ!!हा" करके चीखने लगी, तरुण ने झटके देना चालू रखा। कोमल के अंदर भड़कती वासना की आग अब और ज्यादा भड़क रही थी, और उसकी लपटे रानी तक पहुंचने लगी थी। रानी के मन में तरुण और उसके विशालकाय लिंग के खयाल आने लगे। यहाँ तरुण ने अपने झटके की रफ्तार बढ़ा दी थी, और इसके साथ कोमल की चीखने की आवाज भी तेज हो चुकी थी। वह अपने मुंह से, "आ!!!ह!! आ!!!ह!! की आवाजें लगातार आने लगी, वह आवाजें रानी साफ सुन सकती थी।
कोमल की यह सिसकारिया रानी के लिये उसकी वासना की आग में घी का काम कर रही थी उसने अपना लहंगा उठाया और अपनी उंगली अपनी योनी में डालकर घुमाने लगी। तरुण के पास तो दीवारों के भी आर पार देखने की क्षमता थी, वह उससे यह जान गया था की रानी के अंदर वासना की आग भड़क गई है। वह चाहता तो पहले ही अपने होठों को कोमल के होठों पर रखकर उसकी चीख दबा सकता था, मगर उसका इरादा तो कुछ और ही था। कोमल का वह पतला शरीर, वह भरे हुये स्तन वह एक लय के साथ लहरा रहे थे। उसके अंदर अब शर्म खत्म हो चुकी थी, अब वह भी तरुण के पीठ में हाथ डालकर अपने नाखून गाड़ना चाहती थी मगर तरुण ने उसे हाथों के पंजों को बिस्तर से
सटाकर पकड़ रखे थे। इसलिए कोमल ने अपने पैरों से तरुण की कमर को जकड़ लिया, अब वह अपने चरम पर थी, और उसका जल्द ही पानी निकल गया तरुण का अभी भी नहीं निकला था। पानी निकलते ही तरुण की कमर पर जो कोमल ने अपने पैर लपेट रखे थे, वह पकड़ अब छुट गई। कोमल अब थक चुकी थी मगर तरुण अभी भी जोश में था। वह उसे और उत्तेजित करने के लिये कोमल के स्तनों को दबाने लगा, और उसके स्तनाग्रों को चूसने और मसलने भी लगा कोमल के अंदर इच्छा तो जग रही थी मगर वह थकी हुई भी बहुत थी, इसलिए वह सो गई।
तब रानी को आवाजें आना बंद हो गई, वह उत्सुकता से क्या हुआ यह देखने बाहर निकल आई। तभी तरुण ने उसे देख लिया, अक्सर रानी सोते वक्त अपनी साड़ी उतारकर सोती थी, वह सिर्फ ब्लाउज और लहंगा पहनती थी। वह उसी अवस्था में बरामदे में घूम रही थी। तरुण ने वहाँ जाकर रानी को पीछे से पकड़ लिया तब रानी तरुण के साथ बिताये हुये पल याद आ रहे थे। तरुण के रानी को अचानक पकड़कर उसके अंदर लगी हुई वासना की आग भड़क उठी, वह पीछे मुड़कर तरुण को चूमने लगी। रानी ने अब अपने होंठ तरुण के होठों पर रखे फिर तरुण के चेहरे को दायीं और अपना चेहरा बायीं और झुकाकर अपने होंठ थोड़े खोले, इसी बीच तरुण ने भी उसके होंठ खोलकर थोड़े खोले फिर दोनों अपनी अपनी जुबान एक दुसरे के मुंह में डालकर घुमाने लगे। तरुण ने अपना हाथ रानी की कमर पर घुमाकर उसे उसकी पीठ पर ले गया और उसके ब्लाउज के अंदर डाल दिया, और उसकी पीठ को सहलाने लगा। तब उसे यह पता चला की रानी ने ब्लाउज के अंदर कुछ भी नहीं पहना है और उसका ब्लाउज भी पीछे से खुलता है। तरुण ने एक झटके में उसे खोल दिया और रानी के हाथों को पंजों से पकड़कर उसे खंबे से सटा दिया और उसे होठों से उतरकर उसके गले पर चूमने लगा। फिर वहां से चूमते हुये उसके दायें कंधे तक पहुंचा और उसके ब्लाक की पट्टी उसके कंधे से हटा दी, फिर वहा से चूमते हुये उसके दुसरे कंधे पर पहुंचा और दूसरी पट्टी भी अपने मुंह से उतार दी। अब वह कंधे से चूमते हुये छाती तक आया और उसके दोनों स्तनों के बीच की गहराई से चूमते हुये उसकी नाभि तक आया और नाभि में अपनी जुबान डालकर घुमाने लगा। अब रानी काफी उत्तेजित और गर्म हो चुकी थी, वह उत्तेजना के मारे," आ!!ह, तरुण क्या कर रहे हो आहा!आह!आह!", करके सिसकारिया निकाल रही थी। तभी तरुण ने थोड़ा सा नीचे जाकर अपने मुंह से ही रानी के लहंगे का नाडा खींचकर उसका लहंगा उतार लिया, अब रानी की योनी तरुण के सामने नग्न थी, वह तरुण से पहले भी संभोग कर चुकी थी इसीलिए वह खुली थी। तरुण ने रानी का हाथ छोड़कर उसकी कमर को पकड़ लिया और उसकी योनी में अपनी जुबान डालकर उसे चाटने लगा। रानी की वासना अब चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी, रानी अपने हाथों से तरुण का सर दबाकर उसे बोल रही थी की,"तरुण आ!ह!!, आह!!,आह!!,आह!!, चाटो और आह!! सब तुम्हारा ही है," तभी उसकी चीख निकली,"आ!!!" और रानी की योनी ने पानी छोड़ दिया तरुण ने वह पानी पी लिया। अब रानी ने तरुण का सिर भी छोड़ दिया, तरुण अब रानी को उठाकर उसके कमरे में ले गया और उसके पलंग पर लेटा दिया। अब तरुण ने रानी के पैरों को मोड़कर फैलाया और अपने कंधे पर ले लिया और अपना लिंग उसकी योनी पर रखा और एक धक्का दिया जिससे वह लिंग एक झटके में सरिता की योनी के अंदर चला गया। सरिता जोर से चिल्लाकर बोली,"तरुण!!! धीरे करो!! दर्द हो रहा है। आऊ!"
तरुण बोला,"आप तो ऐसे चिल्ला रही है जैसे मेरे साथ पहली बार कर रही है।" इतना कहकर तरुण ने लिंग आधी योनी से बाहर निकाला और एक झटका दिया, जिससे रानी को दर्द हुआ और वस चीखकर बोली ,"आऊच!! हाये में मर गई रे!", तरुण को इससे काफी जोश आया और उसने और झटके जोर के और तेज कर दिये। तरुण बोला,"पहले तो काफी मजा आ रहा था ना, नाटक बंद करो!" तरुण के ऐसा बोलते ही रानी भी उसे कमर से झटके देकर उसका साथ दे रही थी। तरुण ने अब उसके एक स्तनाग्र को चूसना शुरु किया, इससे रानी और उत्तेजित होने लगी और वह, अपने मुंह से,"आ!!!हा, आ!!!ह और!!! तरुण और!!!" कहते हुये अपने पैर तरुण पर लपेट लिये, और अपनी कमर के झटके तेज कर दिये, दोनों एक दुसरे का पूरा साथ दे रहे थे, तभी रानी की योनी ने पानी छोड़ दिया और वह नीढाल हो गई। तब तरुण ने उसे पलटकर रखा और अपना हाथ उसकी कमर पर घुमाने लगा, यह एहसास रानी को अच्छा लगा। फिर तरुण ने वह हाथ घुमाते हुये उसके नीतम्ब की मालिश करने लगा इससे रानी और उत्तेजित हो गई, और वह उसे बोलने लगी," तरुण वाह! मजा आ रहा है और करो।" तरुण इसे हामी समझकर तैयार हुआ और अपना लिंग उसके गुद्द्वार पर आगे पीछे करने लगा जिससे रानी को मजा आने लगा। फिर तरुण ने नितम्बों के बीच तेल डालकर अपने लिंग की गति बढाने लगा, जिससे तरुण का लिंग चिकना हो गया। अब तरुण को लगा की यह सही अवसर है, उसने अपना लिंग झटका देकर उसके गुद्द्वार में डाल दिया, रानी,"आ!!!! तरुण!!!! मर गई में!! हाय!!! कहाँ डाल दिया!!!, जल्दी बाहर निकाल!!" ऐसे वह चिल्लाने लगी और वह आगे पेट के बल रेंगकर खिसक गई तरुण ने भी अपना लिंग पीछे लिया। तरुण जब लिंग पीछे निकाल रहा था तब उसके स्पर्श से वह राहत से,"हम्!! आहा!!आहा!!आहा!!" करके सिसकारिया ले रही थी। तभी पूरा निकालने से पहले तरुण ने रानी के स्तनों को जकड़ के एक झटका दिया, और अपना लिंग गुद्द्वार में और गहराई में डाल दिया, उससे रानी की,"आ!!!!" करके चीख निकल गई। अब तरुण रानी को झटके दिये जा रहा था और रानी कभी ,"आ!!" "ई!!!" करके चीखकर उसका जोश बढाने लगी थी। अब रानी को भी मजा आ रहा था उसकी चीखे अब सिसकारिया बन गई थी। तभी रानी की योनी ने पानी छोड़ दिया और वह थकान की वजह से नीढाल हो गई, और सो गई। तरुण तो बिना वीर्य पात के अनंत काल तक रह सकता था, और वह नहीं झडा था। वह और करना चाहता था, मगर रानी थक चुकी थी, और सो गई और तरुण भी उसे लिपट कर सो गया।
यहाँ तरुण ने सपने में देखा की वह उसी जगह ऋषि कृतानंद के आश्रम में है और अयाना नग्न अवस्था में उसके साथ पलंग पर लेटी है। तरुण के मन में सैतानासुर के जन्म को लेकर काफी प्रश्न थे।
तरुण ने अपना हाथ अयाना के स्तनों पर रखा और पूछा की,"सैतानासुर क्यों नहीं मरा, जैसे बाकी असुर मारे गये वैसे?" तब अयाना ने बताया, "सैतानासुर कोई साधारण असुर नहीं था, उसके पीता तो असुर थे मगर माँ एक देवी थी"
चौंककर तरुण ने पूछा,"देवी? कौन सी देवी?"
आयाना ने कहां, "कामदेव की पत्नी देवी रति"
तब तरुण की उत्सुकता बढ़ी और उसने पूछा,"कैसे?"
तब अयाना ने कहा," इसके पीछे एक कहानी है, तुम कहो तो सुनाती हूं?"
तरुण बोला ,"सुनाओ।"
तब अयाना ने उसे कथा सुनाई वह ऐसे:-
एक बार सतयुग में एक असुर हुआ करता था। उसका नाम मण्डूकासुर था, वह रूप से काफी कुरूप था मनुष्य तो छोड़ो असुरकन्या, राक्षसी भी उससे विवाह करने को तैयार नहीं थी, उसका मुख भी देखा पसंद नहीं करती थी। वह कई बार अपमानित हो चुका था, उसने सोचा की वह अब सबको सुन्दर और आकर्षक व्यक्ति बनकर दिखायेगा। उसने सुंदरता की देवी, रति की तपस्या आरम्भ कर दी, उसकी यह तपस्या इतनी घोर थी की, उससे अर्जित तपोबल से देवराज इंद्र का सिंहासन अस्थिर होने लगा।
देवराज इंद्र: यह सब क्या हो रहा है, कौन सा संकट आयेगा अब स्वर्ग पर?
(तभी देव ऋषि नारद वहाँ प्रकट हुये)
इंद्रदेव: आपका स्वागत है, देव ऋषि नारद।
नारद : इस असुर से आपके सिंहासन को कोई संकट नहीं है, देवराज।
इंद्रदेव: परंतु सावधान रहना तो आवश्यक है, और भले इससे ना हो लेकिन इसकी तपस्या से तो है।
तब इंद्रदेव ने अप्सराओं को उसके पास उसकी तपस्या भंग करने भेजा मगर अप्सराओं के लाख प्रयास करने के बाद भी वह उसकी तपस्या करने में बाधा ना डाल सकीं। तब उन्होंने कामदेव और रति को वहां भेजा कामदेव ने अपने पुष्पबाण चलाकर उसकी तपस्या भंग करनी चाही, मगर सौ पुष्पबान चलाने पर भी वह ऐसा करने में आसमर्थ थे। उसकी तपस्या चरम पर पहुंच गई और देवी रति को उसके सामने आने के लिये विवश होना पड़ा।
देवी रति मण्डूकासुर के सामने प्रकट हुई और बोली,"आँखें खोलो मण्डूकासुर, मै तुम्हारी तपस्या से बहुत प्रसन्न हूं, बताओ क्या वरदान चाहिये तुम्हें?"
तब मण्डूकासुर ने बोला,"हे देवी मुझे कुछ ऐसा वरदान दीजिए की जिससे मै जिस स्त्री को चाहू उसे अपनी और आकर्षित कर सकूं, और अपने प्रति उसके मन में कामुकता जगा सकूं।"
स्वर्ग से यह सब देवराज इंद्र देख रहे थे, वह हंसकर बोले,"यह इसलिए तप कर रहा था! हम तो मिथ्या ही चिंता कर रहे थे।"
तब देवी रति ने उसे एक तावीज दिया और कहा," यह लो मण्डूकासुर, तुम इसे दोनों हाथों मे पकड़कर जीस भी स्त्री का नाम लोगे वह तुम्हारे साथ संभोग करने के लिये तत्पर हो जायेगी। वह उनसे लेकर
मण्डूकासुर ने कहा,"धन्यवाद देवी रति!"।
असल में तब मण्डूकासुर ने अपने दोनों हाथों में उसे पकड़कर देवी को प्रनाम किया, और यह कहा था। उस वरदान में देवियां भी आती थी, इससे रति प्रभावित हुई और वह नीचे भूमि पर लेट गई। उन्होंने अपना एक पैर घुटने से मोड़कर अपने दोनों हाथों को अपने सिर के पीछे अपने दोनों हाथों को रखकर एक कामुकता भरी मुद्रा दिखाई। तब मण्डूकासुर पर कामदेव के सौ बाणों का प्रभाव शुरू हुआ, वह अब देवी रति की और बढ़ा, उसने उनके वस्त्र उतारकर उन्हें नग्न किया और अपने होंठ उसके होठों पर रखकर चूमने लगा और अपना लिंग उसकी योनी में डालकर उसके साथ सम्भोग करने लगा और देवी रति भी उसका साथ देने लगी दोनों तीन दिन तक सम्भोग करते रहे। फिर मण्डूकासुर का वीर्य पात हुआ और उससे देवी रति का गर्भाधान हुआ, नौ महीने बाद उन्होंने एक आकर्षक पुत्र को जन्म दिया। जन्म देने के बाद देवी रति स्वर्ग के लिये प्रस्थान करने लगी, तब मण्डूकासुर ने उसे कहा,"देवी आप इसकी माता है, अगर आप नहीं होगी तो इसे दूध कौन पीलायेगा?" तब देवी ने एक अक्षय पात्र प्रकट किया और उसमें अपने स्तन से कुछ बूंद दूध डाला, मगर जैसे ही वह बूंद पात्र में गिरी वह पात्र दूध से भर गया। देवी रति ने कहा, "यह अक्षय पात्र है, इसमें अगर किसी पदार्थ की थोड़ी सी मात्रा भी डाल दी जायें तो उसका अनंत स्त्रोत बन जाता है, यह उसकी माँ के दूध की आवश्यकता को पूरा करेगा।" यह कहकर देवी रति स्वर्ग के लिये निकल गई। फिर बारा दिन बाद उसका नामकरण कराया, वहाँ समस्त असुर संप्रदाय के साथ असुर गुरु शुक्राचार्य भी उपस्थित थे। तब उन्होंने उसकी कुंडली का अभ्यास किया और वह खुश भी हुये और चकित भी हुये। उनके यह भाव देखकर मण्डूकासुर ने उनसे पूछा,"क्या हुआ गुरुदेव? कोई समस्या है क्या?"
तब उन्होंने कहा,"हे मण्डूकासुर, ऐसी कुंडली हमने आज तक नहीं देखी, यह तो मरने के उपरांत भी जीवित रहने की क्षमता रखता हे!"
मण्डूकासुर ने कहा, "मुझे आपसे कुछ बात करनी है।"
शुक्राचार्य ने कहा," संकोच कैसा? बताओ।"
मण्डूकासुर,"यहां नहीं, एकान्त में।"
शुक्राचार्य ने हाथ से सब को इशारा करके बाहर भेज दिया।
शुक्राचार्य ने कहा ,"अब बताओ।"
मण्डूकासुर, "इसका पीता तो मैं हूं, मगर उसकी माता देवी रति है।"
शुक्राचार्य ने पूछा,"सत्य में! कैसे?"
फिर मण्डूकासुर ने उन्हें सारा सार सुनाया। शुक्राचार्य प्रसन्न होकर बोले,"अरे वाह मण्डूकासुर, तुमने तो वह कर दिखाया जो मेरे, अजय शिष्य भी प्राप्त ना कर सके, तुमने एक देवी से उत्पन्न पुत्र प्राप्त किया है,इसके रक्त में अमृत के अंश है, परन्तु तुम छह मास तक इसकी दूध की आवश्यकता कैसे पूर्ण करोगे?"
तब वह रोने लगा, तब मण्डूकासुर ने उसे अक्षय पात्र से कुछ दूध पिलाया। और शुक्राचार्य से कहा,"देवी रति ने उसे यह अक्षय पात्र दिया है जो अनंत काल तक दूध की धारा प्रदान कर सकता है।"
तब शुक्राचार्य ने कहा,"अगर ऐसा है तो तुम पूरी आयु इसे यह दुग्ध देते रहो, इससे ना केवल उसकी दुग्ध की आवश्यकता पूर्ण होगी, इसके साथ उसे कामदेव की दिव्य शक्तियां और अमृत भी प्राप्त होगा।"
फिर शुक्राचार्य ने सब को भीतर बुलाया और नामकरण विधि संपन्न की उसका नाम सैतानासुर रखा गया। फिर शुक्राचार्य ने वहाँ से प्रस्थान किया।
यहा कथा खत्म करने के बाद अयाना तरुण से बोली, "यह तो है सैतानासुर के जन्म का रहस्य"