ब्रह्मराक्षस का वरदान
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Previous Part अद्याय ८ सैतानासुर वनरक्षक तभी तरुण को दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनाई देती है। बाहर उसके डाॅ चुतिया की सेक्रेट्री नीता खडी थी, वह आधे घण्टे से बाहर थी। अंदर से कुछ भी प्रतिक्रिया ना आने के कारण वह दरवाजे पर टेका देकर खड़ी थी। तरुण ने जैसे ही दरवाजा खोलकर देखा तो उसका संतुलन खराब हुआ और वह अंदर की तरफ गिर पडी, तरुण ने उसे समाला तो उसके हाथ में उसके भरे हुये स्तन आ गए। वह चौंककर तरुण को देखने लगी, वह अपनेआप को समलकर बोली,"आप तरुण है?" तरुण बोला, "हाँ।" उसने कहा, "डॉक्टर साहब ने यह कागजात भेजे है।" नीता उसे वह कागजात देकर चली गई। अगले दिन वह दिल्ली चले गए, वही IIT दिल्ली में तरुण ने दाखिला ले लिया, और वही तेजल के पिता की कम्पनी थी। वहा तरुण पहले दिन वहा गया, वहा उन्हे जीम, लाइब्रेरी, लैब सब दिखाकर सब कुछ समझाया। तरुण को वहा एक लडकी दिखी, वह सच में आकर्षक थी, कसा हुआ बदन और घुमावदार सीने के उभार उसकी सुंदरता को और बेहतर बना रहे थे।उसका रंग थोड़ा सांवला और फिगर 38, 26, 36 की थी, उसकी उम्र 25 साल थी। उसका नाम सीमा था। तरुण उसे कहा "मैम।" तो उसने कहा,"क्लास में बैठो, मै आ रही हू।" तरुण ने कहा,"मैम कौन-सी बुक्स लू?" वह उसे कुछ किताबें देती है, और वहा से चली जाती है। तरुण मन मै कहता है,"क्या मस्त माल है यार!" तरुण जाकर क्लास मै बैठ जाता है, और सारी किताबे पढकर खत्म कर देता है। वह पढाना शुरू करती है, बीच बीच में कुछ सवाल भी पूछती है, तरुण ने उन सारे सवालों के सही सही जवाब दिए। यह देखकर वह थोड़ी चौक जाती है, की एक पहले साल के लड़के को पहली ही क्लास में इतना कैसे पता। क्लास खत्म होने के बाद वह उसे कहती है की,"शाम को कॉलेज खत्म होने के बाद मूझे केबिन में आकर मिलो।" उसकी इस बात पर तरुण हाँ बोल देता है। फिर तरुण की क्लास खत्म हो जाती है, वह मैडम की कैबिन में जाता है। वहा जब तब तरुण गया तो सीमा ने उसे कहा,"तरुण यह सब जो क्लास में पढ़ाया गया था, क्या तुम ने आज से पहले पढ़ा था?" तरुण ,"नही मैम।" सीमा तो ठीक है, "तुम मुझे मेरे घर आकर मिलो। " इतना कहकर वह वापस चली गई। तरुण कुछ समझ पाता, इससे पहले ही बेल बजकर काँलेज छूट गया। तरुण सीमा के पास गया और उससे पूछा, "क्या मै आपके साथ आपके घर आ सकता हू?" सीमा ने हा कहकर उसे पीछे बैठने को कहा, तरुण स्कूटी पर उसके पीछे बैठ गया। सीमा ने स्कूटी स्टार्ट करते हुए कहा की " पकड़कर बैठो।", और स्कूटी चलने लगी। तरुण ने फिर उसकी कमर पर हाथ रखकर उसकी कमर पकड़कर बैठ गया। उसने फिर पूछा,"यह क्या कर रहे हों तरूण?" तरुण ने बताया, "आप ने ही तो कहा था कसकर पकड़कर बैठने के लिए।" वह मुस्कराकर स्कूटी चलाने लगी, तरुण उसकी कमर कसकर पकड़कर बैठ गया। थोड़ी ही देर में सीमा का घर आ गया, वह दोनों उतरकर अंदर चले गये। सीमा ने उसके कहा,"तरुण तुम बैठो मै, फ्रेश होकर आती हूँ।" इतना कहकर वह अंदर चली गई। तरुण ने हाँल में पड़ी एक किताब ली और थोड़ी ही देर में उसे पढ़कर खत्म कर दी, ऐसा करते करते उसने एक घंटे में वहाँ रखी सारी किताबें पढ़कर खत्म कर दी। तभी सीमा वहाँ आकर बोली तरुण एक काम करो, यह किताब लो और पढ़ो ऐसा कहते हुये उसने तरुण को एक किताब दी। तरुण ने कहा "मैम मैने तो पढ़ ली।", सीमा ने पूछा "कौनसी?" तरुण :- सारी। सीमा ने चौंककर बोला," इतनी जल्दी!" तरुण हाँ। (इसके आगे की कहानी तरुण की जबान से होगी ) सीमा ने मुझे पूछा," तो अगर मै तुम्हें कोई सवाल पूछती हूँ तो क्या तुम उसका जवाब दे पाओगे।" तरुण बोला, "हाँ।" उसने मुझसे पूछा," मैने उसका जवाब आसानी से दे दिया।" वह चौंक गई, और बोली" क्या बात है।" तभी वह अंदर गई और एक और किताब ले आई वह किताब किसी के पढ़ने का सवाल ही नही था, क्योंकि वह उनका प्रबन्ध था। उन्होंने कहा की "मै तुम्हें एक घंटा और देती हूं, तुम्हें यह किताब पूरी पढ़कर याद करनी होगी और फिर मेरे सवालों का जवाब देना होगा मै तुम्हें तब तक सवाल पूछुंगी जबतक तुम कोई गलत जवाब नहीं दे देते।" मैने कहा," ठीक है।" उन्होंने मुझे दस सवाल पूछे जिनके मैने सही जवाब दे दिये। वह बोली, "क्या बात है, इतनी शार्प मेमरी!" वह फिर मेरे साथ आकर बैठ गई हमने कुछ बातें की और उसने मुझे घर छोड़ दिया।उस दिन मैने गृह कार्य खत्म किया और सो गया। नींद में मुझे फिर से वही सपना आया और सपने में मुझे अयाना मिली। मैने अयाना से पूछा," फिर क्या हुआ, सैतानासुर ने अपने अंश कैसे छोड़े?" अयाना फिर आगे की कहानी सुनाने लगी :- फिर सैतानासुर ने गुरुकुल जाकर अपने गुरु शुक्र को अपने हाथ में वह अंश दिखाया जो रती और उसके मिलन से बना था। शुक्राचार्य ने उसे कहा, "वत्स यह एक ऐसा अंश है, की अगर इसे तुम किसी के घर में रख दो तो वहा कामवासना का नग्न नृत्य शुरू हो जायेगा, रिश्तों की सारी मर्यादा भूलकर सारे सदस्य आपस में ही सम्बन्ध बनाने लगेंगे।" सैतानासुर : तो क्या मै इससे वह प्राप्त कर सकता हूँ , जो मुझे चाहिए। शुक्र : हाँ , अवश्य , परन्तु यह सब तुमने किया कैसे? तब सैतानासुर ने शुक्राचार्य को सारी घटना बताई, शुक्राचार्य खुश होकर बोले," तुमने मेरा मन प्रसन्न कर दिया, अब तुम्हें आगे उचित कन्या से विवाह कर अपने अंश को यहाँ लाना होगा।" सैतानासुर: आप बस आज्ञा दे, मै उसे अभी सम्मोहित कर... शुक्राचार्य : नहीं, ऐसा कदापि मत करना, यह उपाय स्थायी नहीं है। तुम्हें उसका मन जीतकर उसके साथ विवाह करना होगा, फिर अपने पुत्र को उसके साथ , संबंध बनवाने होंगे।" सैतानासुर :- अब मै कन्या का मन कैसे जीतुंगा? शुक्राचार्य :- कन्या तीन तरह की होती है, पहली जो अहंकारी और पुरुष को कम आँकनेवाली होती है। अगर कोई पुरुष उसे जिस चीज पर अहंकार है, उसमे उसे परास्त करे तो उसका अहंकार टूट जाता है, और उसे उस पुरुष से प्रेम हो जाता है, दूसरी होती है, वह जो एक परिकथा की राजकुमारी की तरह अपने राजकुमार की राह देखती रहती है। अगर उसे वह मील जाये तो वह उसकी।" सैतानासुर :- और तीसरी गुरुदेव? शुक्राचार्य :- यह कन्याएँ अलग ही होती है, उन्हें दिल से अच्छे लड़के चाहिए होते है, मगर ऐसी कन्याएँ मिलना कठिन है। सैतानासुर अपने जंगलों में जाता है, रक्ष यानी राक्षस समुदाय में उन्हें वनों और वन्य पशुओं की रक्षा का दायित्व दिया जाता था। असल में मनुष्यों की उत्क्रांती के बाद वह वनों का नाश करने लगे थे, इससे सृष्टि का संतुलन बिघड रहा था। संतुलन बनाने के लिये परमात्मा ने राक्षस जाती का निर्माण किया था, जिनका कर्तव्य वनों कि और वन्य जीवों की रक्षा करना था। अब सैतानासुर सासन नामक वन का रक्षक था। उसी वन के बगल में पालनपूर नाम का राज्य था, जिसके राजा थे ठाकुर भानुप्रताप सिंह जिनकी दो बेटीयाँ थीं, कर्कता और ममता, जिनकी माता के देहान्त के बाद राजा ने कामिनी नाम की नर्तकी से विवाह किया था। कामिनी की आयु २५ वर्ष थी, और उसका एक बेटा था, उसका नाम अक्षर था। राजा की दो बेटियों में से एक कर्कता एक अहंकारी और मर्दों को कम आँकनेवाली थी, वह तलवारबाजी, धनुर्विद्या जैसी युद्धकलाओं में निपून थी। वही ममता प्रेम से भरी हुई एक निर्मल ह्रदय वाली कन्या थी, वह वैदिक शास्त्र में निपुण थी। राजा की दोनों बेटीयाँ १८ साल की सडपातल शरीर की कन्याएँ थी, जिनके देह पर जरा सी भी स्थुलता नहीं थी, लेकिन जहाँ होनी चाहिए वहाँ भरपूर थी। वही रानी कामिनी एक भरे हुये शरीर की मालकिन थी, उसके स्तन और नितम्ब काफी भरे हुये थे लेकिन कमर लचीली और पतली थी, उसकी यह शरिरयष्टी उसके साड़ी पहनने के बाद भी दिखाई देती थी। कर्कता को शिकार का बड़ा शौक था उसके शिकार की वजह से वन के सारे जीव परेशान होते थे। सैतानासुर ने फिर सभी सासन के पशुओं की सभा बुलाई जिसमें शेर जैसे खूंखार जीव भी थे और मुशक जैसे छोटे भी, सभा में आते ही सैतानासुर ने सभी पशुओं से कहा," यहाँ उपस्थित सभी पशु, पक्षी और किट गणों को मेरा शत शत प्रणाम, जैसे की आप जानते है की गुरुदेव शुक्राचार्य ने मुझे इस वन का राक्षस नियुक्त कर इस वन की सुरक्षा और सुव्यवस्था की जबाबदारी मुझे दी है, मै चाहता हूँ की आप अपने जो भी कष्ट है वो हमें बताये, मै वचन देता हूँ की मै अपनी पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ समस्या सुलझाने का प्रयास करुंगा।" तभी एक बाघ का बच्चा रोते हुये उसके पास आया और बोला, " महाराज राजकुमारी कर्कता का अत्याचार बढ़ता ही जा रहा है, वह अपनी शान के लिये हम पशुओं कि आखेट आखेट करती रहती है, और..." "और क्या आगे बोलों, क्या हुआ बेटा ", सैतानासुर ने पूछा। "मै बताता हूँ महाराज", एक बुजुर्ग भालू बीच में हस्तक्षेप करता हुआ बोला,"एक बार जब इसकी माँ वन में अपने भोजन हेतु मांस लाने गई थी, तब राजकुमारी कर्कता ने उसकी माता को इसलिए मारा ताकि उसकी त्वचा से, अपने रथ का आसन सजा सके, और इतना ही नहीं जब उस राजकुमारी ने इस बच्चे की मा को मारा, उसके साथ वह बच्चा भी मर गया।" यह सुनकर सैतानासुर ने कहा, "मै वचन देता हूँ की अगली बार जब वह राजकुमारी इस वन में आखेट करने आयेगी, तो उसे ऐसा दंड देंगे की जो किसी भी नारी के लिये जीवन भर पश्चाताप का कारण होता है।" तभी एक गिद्ध बोला,"महाराज वह कभी भी अकेली नहीं आती, अपने साथ बीस अंगरक्षकों का पूरा झुंड होता है, उसमें सारे घोड़ों पर आते है, और राजकुमारी के पास एक ऐसा रथ है की जिसपर हमारे वार का कोई प्रभाव नहीं पडेगा।" सैतानासुर ने कहा, "क्या हो अगर हम उसे रथ से बाहर निकलने पर विवश करें।" बुजुर्ग भालू ने पूछा," मगर कैसे नायक?" फिर सैतानासुर ने सारी योजना बताई और योजना के अनुसार सब काम पे लग गये, चूहे और खरगोश ने मिलकर जंगल की तरफ आनेवाले सभी मार्गों के नीचे की जमीन खोखली कर दी, गिद्ध पहाड़ों की ऊंची चोटियों पर जाकर बैठ गये, बांझ अपने पैरों में तीर लेकर हवा में उड़ गये, सारे जवान नर हिरन अपनी स्थिति में खडे हो गये, सारी मादायें अपने बच्चों को लेकर गुफाओं में छिप गई। तभी एक पक्षी आकर सैतानासुर से बोला,"महाराज मै भी आपकी इस योजना में योगदान देना चाहता हूँ।" सैतानासुर ने पूछा,"क्या कर सकते हो तुम?" "मै किसी की भी आवाज की नकल कर सकता हूं।" "अच्छा! कैसे?" फिर टकाचोर ने हुबहु सैतानासुर की आवाज में कहा,"अच्छा! कैसे?" सैतानासुर इससे खुश हुआ और उसको भी अपनी योजना में सम्मिलित कर लिया। फिर सैतानासुर ने योजना शूरू की, बांझ हवा में उड़ते हुये गश्त लगाने लगे, जंगली भैंसे और शेर अपनी स्थिति लेकर खड़े हो गये। राजकुमारी कर्कता अपना रथ लिये जंगल में आ गई, वह कोई साधारण रथ नहीं था, उसे बीस घोड़े खींचकर ला रहे थे, जिनमें हर घोड़े के उपर एक सैनिक बैठा हुआ था, वह रथ पहियों पर चल रहा था, उस रथ का ऊपरी हिस्सा लोहे का बना हुआ था, जो बिल्कुल किसी किले के आकार का था , उसमें तीन इंच मोटी लोहे की दीवारें थी, उनमें चारों और दो इंच चौड़ी गोलाकार खिड़कियां थी जिनसे अंदर से बाहर की और सहजता से निशाना साधा जा सकता था। हाथी पेड़ों के पीछे छिपकर उसके रथ को देख रहे थे, एक हाथी ने कहा,"शिकार सामने है, हमला करें?" दूसरा हाथी,"नहीं, रुको, हमे महाराज का इशारा मिलने पर ही पेड़ गिराने है, उनकी जरुर कोई योजना होगी।" तभी राजकुमारी का रथ आगे जाकर जमीन में धंस जाता है, और तभी आसमान में उड़ता बाँझ अपने पंजे से तीर गिरा देते है, जो हाथियों के लिये इशारा था। हाथी भारी चट्टानों और पेड़ों को धक्का देकर नीचे गीरा देते है जिससे राजकुमारी और सैनिकों का जंगल के बाहर जाने का रास्ता बंद हो जाता है। तभी सैनिकों को रास्ते में हिरण दिखाई देता है,जिससे एक मनमोहक गंध आ रही थी,वह कोई साधारण हिरण नहीं बल्कि एक कस्तूरी मृग था। जो सैनिकों को देखते ही भागने लगा, राजकुमारी ने आज्ञा दी जो कोई उसे पकड़कर लायेगा उसे एक सहस्र स्वर्ण मुद्राएँ मिलेगी। ऐसा सुनते ही सारे सिपाही अपने अश्व रथ से अलग करके हिरण के पीछे चले गये। राजकुमारी अब अकेली रथ के लोहे के कक्ष के भीतर थी, उसे लगा की वह यहा सुरक्षित है, मगर उसे कुछ हलचल महसूस हुई। वह कोई सामान्य हलचल नहीं थी, बल्कि कई सारे गेंडे राजकुमारी के रथ की और भागकर आ रहे थे। राजकुमारी ने अपनी तर्कश से एक तीर निकालकर कमान पर रखा और खिड़की से निशाना साध कर एक गेंडे पर छोड़ा, मगर गेंडे की मोटी चमड़ी को कहा कुछ होने वाला था, वह तीर एक तिनके के भांति गेंडे की त्वचा को छूकर निकल गया। इसके पहले की राजकुमारी दूसरा तीर चलाती, गेंडे ने तेजी से आकर रथ को टक्कर मार दी, जिससे ऊपरी कक्ष तो नहीं टूटा मगर उसमें एक गड्ढा हो गया और गेंडे का सींग टूट गया। उसके पीछे आये गेंडे का सींग सीधे उस रथ की दीवार में धंस गया, उस गेंडे ने अपना सींग निकालने की कोशिश की तो उसे पता चला की जिस हिस्से पर उसने वार किया है, वह बाकी हिस्सों से अलग है। सारे हिस्से तो लोहे के थे, मगर वह हिस्सा तांबे का था, शायद यहाँ लोहे की दीवारों को सांधा गया होगा। गेंडे ने वापस उसी छेद में वापस अपना सींग घुसा कर उस हिस्से को उखाड़ने लगा, तभी एक और गेंडे ने धड़क दी जिससे वह लोहे का रथ ध्वस्त हो गया। राजकुमारी अपनी तर्कश और कमान लेकर वहाँ से बाहर भागने लगी, यहाँ गेंडों के झुंड ने सारा रथ नष्ट कर दिया, यहा जैसे ही राजकुमारी जंगल से बाहर भागी वहाँ रास्ता चट्टानों और पेड़ों की सहायता से पहले से ही बंद था। राजकुमारी कर्कता अब घिर चुकी थी, पीछे गेंडे और आगे चट्टानें। मगर जैसे ही वह आगे बढ़ती, उसके सामने सैतानासुर खड़ा हो गया।
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अद्याय ८
सैतानासुर वनरक्षक
तभी तरुण को दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनाई देती है। बाहर उसके डाॅ चुतिया की सेक्रेट्री नीता खडी थी, वह आधे घण्टे से बाहर थी। अंदर से कुछ भी प्रतिक्रिया ना आने के कारण वह दरवाजे पर टेका देकर खड़ी थी। तरुण ने जैसे ही दरवाजा खोलकर देखा तो उसका संतुलन खराब हुआ और वह अंदर की तरफ गिर पडी, तरुण ने उसे समाला तो उसके हाथ में उसके भरे हुये स्तन आ गए। वह चौंककर तरुण को देखने लगी, वह अपनेआप को समलकर बोली,"आप तरुण है?"
तरुण बोला, "हाँ।"
उसने कहा, "डॉक्टर साहब ने यह कागजात भेजे है।"
नीता उसे वह कागजात देकर चली गई।
अगले दिन वह दिल्ली चले गए, वही IIT दिल्ली में तरुण ने दाखिला ले लिया, और वही तेजल के पिता की कम्पनी थी। वहा तरुण पहले दिन वहा गया, वहा उन्हे जीम, लाइब्रेरी, लैब सब दिखाकर सब कुछ समझाया। तरुण को वहा एक लडकी दिखी, वह सच में आकर्षक थी, कसा हुआ बदन और घुमावदार सीने के उभार उसकी सुंदरता को और बेहतर बना रहे थे।उसका रंग थोड़ा सांवला और फिगर 38, 26, 36 की थी, उसकी उम्र 25 साल थी। उसका नाम सीमा था।
तरुण उसे कहा "मैम।"
तो उसने कहा,"क्लास में बैठो, मै आ रही हू।"
तरुण ने कहा,"मैम कौन-सी बुक्स लू?"
वह उसे कुछ किताबें देती है, और वहा से चली जाती है।
तरुण मन मै कहता है,"क्या मस्त माल है यार!" तरुण जाकर क्लास मै बैठ जाता है, और सारी किताबे पढकर खत्म कर देता है। वह पढाना शुरू करती है, बीच बीच में कुछ सवाल भी पूछती है, तरुण ने उन सारे सवालों के सही सही जवाब दिए। यह देखकर वह थोड़ी चौक जाती है, की एक पहले साल के लड़के को पहली ही क्लास में इतना कैसे पता। क्लास खत्म होने के बाद वह उसे कहती है की,"शाम को कॉलेज खत्म होने के बाद मूझे केबिन में आकर मिलो।" उसकी इस बात पर तरुण हाँ बोल देता है। फिर तरुण की क्लास खत्म हो जाती है, वह मैडम की कैबिन में जाता है। वहा जब तब तरुण गया तो सीमा ने उसे कहा,"तरुण यह सब जो क्लास में पढ़ाया गया था, क्या तुम ने आज से पहले पढ़ा था?"
तरुण ,"नही मैम।"
सीमा तो ठीक है, "तुम मुझे मेरे घर आकर मिलो। " इतना कहकर वह वापस चली गई।
तरुण कुछ समझ पाता, इससे पहले ही बेल बजकर काँलेज छूट गया। तरुण सीमा के पास गया और उससे पूछा, "क्या मै आपके साथ आपके घर आ सकता हू?"
सीमा ने हा कहकर उसे पीछे बैठने को कहा, तरुण स्कूटी पर उसके पीछे बैठ गया। सीमा ने स्कूटी स्टार्ट करते हुए कहा की " पकड़कर बैठो।", और स्कूटी चलने लगी। तरुण ने फिर उसकी कमर पर हाथ रखकर उसकी कमर पकड़कर बैठ गया। उसने फिर पूछा,"यह क्या कर रहे हों तरूण?" तरुण ने बताया, "आप ने ही तो कहा था कसकर पकड़कर बैठने के लिए।"
वह मुस्कराकर स्कूटी चलाने लगी, तरुण उसकी कमर कसकर पकड़कर बैठ गया। थोड़ी ही देर में सीमा का घर आ गया, वह दोनों उतरकर अंदर चले गये। सीमा ने उसके कहा,"तरुण तुम बैठो मै, फ्रेश होकर आती हूँ।" इतना कहकर वह अंदर चली गई। तरुण ने हाँल में पड़ी एक किताब ली और थोड़ी ही देर में उसे पढ़कर खत्म कर दी, ऐसा करते करते उसने एक घंटे में वहाँ रखी सारी किताबें पढ़कर खत्म कर दी। तभी सीमा वहाँ आकर बोली तरुण एक काम करो, यह किताब लो और पढ़ो ऐसा कहते हुये उसने तरुण को एक किताब दी। तरुण ने कहा "मैम मैने तो पढ़ ली।", सीमा ने पूछा "कौनसी?"
तरुण :- सारी।
सीमा ने चौंककर बोला," इतनी जल्दी!"
तरुण हाँ।
(इसके आगे की कहानी तरुण की जबान से होगी )
सीमा ने मुझे पूछा," तो अगर मै तुम्हें कोई सवाल पूछती हूँ तो क्या तुम उसका जवाब दे पाओगे।"
तरुण बोला, "हाँ।"
उसने मुझसे पूछा," मैने उसका जवाब आसानी से दे दिया।"
वह चौंक गई, और बोली" क्या बात है।"
तभी वह अंदर गई और एक और किताब ले आई वह किताब किसी के पढ़ने का सवाल ही नही था, क्योंकि वह उनका प्रबन्ध था।
उन्होंने कहा की "मै तुम्हें एक घंटा और देती हूं, तुम्हें यह किताब पूरी पढ़कर याद करनी होगी और फिर मेरे सवालों का जवाब देना होगा मै तुम्हें तब तक सवाल पूछुंगी जबतक तुम कोई गलत जवाब नहीं दे देते।"
मैने कहा," ठीक है।" उन्होंने मुझे दस सवाल पूछे जिनके मैने सही जवाब दे दिये। वह बोली, "क्या बात है, इतनी शार्प मेमरी!"
वह फिर मेरे साथ आकर बैठ गई हमने कुछ बातें की और उसने मुझे घर छोड़ दिया।उस दिन मैने गृह कार्य खत्म किया और सो गया।
नींद में मुझे फिर से वही सपना आया और सपने में मुझे अयाना मिली।
मैने अयाना से पूछा," फिर क्या हुआ, सैतानासुर ने अपने अंश कैसे छोड़े?"
अयाना फिर आगे की कहानी सुनाने लगी :-
फिर सैतानासुर ने गुरुकुल जाकर अपने गुरु शुक्र को अपने हाथ में वह अंश दिखाया जो रती और उसके मिलन से बना था। शुक्राचार्य ने उसे कहा, "वत्स यह एक ऐसा अंश है, की अगर इसे तुम किसी के घर में रख दो तो वहा कामवासना का नग्न नृत्य शुरू हो जायेगा, रिश्तों की सारी मर्यादा भूलकर सारे सदस्य आपस में ही सम्बन्ध बनाने लगेंगे।"
सैतानासुर : तो क्या मै इससे वह प्राप्त कर सकता हूँ , जो मुझे चाहिए।
शुक्र : हाँ , अवश्य , परन्तु यह सब तुमने किया कैसे?
तब सैतानासुर ने शुक्राचार्य को सारी घटना बताई,
शुक्राचार्य खुश होकर बोले," तुमने मेरा मन प्रसन्न कर दिया, अब तुम्हें आगे उचित कन्या से विवाह कर अपने अंश को यहाँ लाना होगा।"
सैतानासुर: आप बस आज्ञा दे, मै उसे अभी सम्मोहित कर...
शुक्राचार्य : नहीं, ऐसा कदापि मत करना, यह उपाय स्थायी नहीं है। तुम्हें उसका मन जीतकर उसके साथ विवाह करना होगा, फिर अपने पुत्र को उसके साथ , संबंध बनवाने होंगे।"
सैतानासुर :- अब मै कन्या का मन कैसे जीतुंगा?
शुक्राचार्य :- कन्या तीन तरह की होती है, पहली जो अहंकारी और पुरुष को कम आँकनेवाली होती है। अगर कोई पुरुष उसे जिस चीज पर अहंकार है, उसमे उसे परास्त करे तो उसका अहंकार टूट जाता है, और उसे उस पुरुष से प्रेम हो जाता है, दूसरी होती है, वह जो एक परिकथा की राजकुमारी की तरह अपने राजकुमार की राह देखती रहती है। अगर उसे वह मील जाये तो वह उसकी।"
सैतानासुर :- और तीसरी गुरुदेव?
शुक्राचार्य :- यह कन्याएँ अलग ही होती है, उन्हें दिल से अच्छे लड़के चाहिए होते है, मगर ऐसी कन्याएँ मिलना कठिन है।
सैतानासुर अपने जंगलों में जाता है, रक्ष यानी राक्षस समुदाय में उन्हें वनों और वन्य पशुओं की रक्षा का दायित्व दिया जाता था।
असल में मनुष्यों की उत्क्रांती के बाद वह वनों का नाश करने लगे थे, इससे सृष्टि का संतुलन बिघड रहा था। संतुलन बनाने के लिये परमात्मा ने राक्षस जाती का निर्माण किया था, जिनका कर्तव्य वनों कि और वन्य जीवों की रक्षा करना था।
अब सैतानासुर सासन नामक वन का रक्षक था। उसी वन के बगल में पालनपूर नाम का राज्य था, जिसके राजा थे ठाकुर भानुप्रताप सिंह जिनकी दो बेटीयाँ थीं, कर्कता और ममता, जिनकी माता के देहान्त के बाद राजा ने कामिनी नाम की नर्तकी से विवाह किया था। कामिनी की आयु २५ वर्ष थी, और उसका एक बेटा था,
उसका नाम अक्षर था। राजा की दो बेटियों में से एक कर्कता एक अहंकारी और मर्दों को कम आँकनेवाली थी, वह तलवारबाजी, धनुर्विद्या जैसी युद्धकलाओं में निपून थी। वही ममता प्रेम से भरी हुई एक निर्मल ह्रदय वाली कन्या थी, वह वैदिक शास्त्र में निपुण थी। राजा की दोनों बेटीयाँ १८ साल की सडपातल शरीर की कन्याएँ थी, जिनके देह पर जरा सी भी स्थुलता नहीं थी, लेकिन जहाँ होनी चाहिए वहाँ भरपूर थी। वही रानी कामिनी एक भरे हुये शरीर की मालकिन थी, उसके स्तन और नितम्ब काफी भरे हुये थे लेकिन कमर लचीली और पतली थी, उसकी यह शरिरयष्टी उसके साड़ी पहनने के बाद भी दिखाई देती थी।
कर्कता को शिकार का बड़ा शौक था उसके शिकार की वजह से वन के सारे जीव परेशान होते थे। सैतानासुर ने फिर सभी सासन के पशुओं की सभा बुलाई जिसमें शेर जैसे खूंखार जीव भी थे और मुशक जैसे छोटे भी,
सभा में आते ही सैतानासुर ने सभी पशुओं से कहा," यहाँ उपस्थित सभी पशु, पक्षी और किट गणों को मेरा शत शत प्रणाम, जैसे की आप जानते है की गुरुदेव शुक्राचार्य ने मुझे इस वन का राक्षस नियुक्त कर इस वन की सुरक्षा और सुव्यवस्था की जबाबदारी मुझे दी है, मै चाहता हूँ की आप अपने जो भी कष्ट है वो हमें बताये, मै वचन देता हूँ की मै अपनी पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ समस्या सुलझाने का प्रयास करुंगा।"
तभी एक बाघ का बच्चा रोते हुये उसके पास आया और बोला, " महाराज राजकुमारी कर्कता का अत्याचार बढ़ता ही जा रहा है, वह अपनी शान के लिये हम पशुओं कि आखेट आखेट करती रहती है, और..."
"और क्या आगे बोलों, क्या हुआ बेटा ", सैतानासुर ने पूछा।
"मै बताता हूँ महाराज", एक बुजुर्ग भालू बीच में हस्तक्षेप करता हुआ बोला,"एक बार जब इसकी माँ वन में अपने भोजन हेतु मांस लाने गई थी, तब राजकुमारी कर्कता ने उसकी माता को इसलिए मारा ताकि उसकी त्वचा से, अपने रथ का आसन सजा सके, और इतना ही नहीं जब उस राजकुमारी ने इस बच्चे की मा को मारा, उसके साथ वह बच्चा भी मर गया।"
यह सुनकर सैतानासुर ने कहा, "मै वचन देता हूँ की अगली बार जब वह राजकुमारी इस वन में आखेट करने आयेगी, तो उसे ऐसा दंड देंगे की जो किसी भी नारी के लिये जीवन भर पश्चाताप का कारण होता है।"
तभी एक गिद्ध बोला,"महाराज वह कभी भी अकेली नहीं आती, अपने साथ बीस अंगरक्षकों का पूरा झुंड होता है, उसमें सारे घोड़ों पर आते है, और राजकुमारी के पास एक ऐसा रथ है की जिसपर हमारे वार का कोई प्रभाव नहीं पडेगा।"
सैतानासुर ने कहा, "क्या हो अगर हम उसे रथ से बाहर निकलने पर विवश करें।"
बुजुर्ग भालू ने पूछा," मगर कैसे नायक?"
फिर सैतानासुर ने सारी योजना बताई और योजना के अनुसार सब काम पे लग गये, चूहे और खरगोश ने मिलकर जंगल की तरफ आनेवाले सभी मार्गों के नीचे की जमीन खोखली कर दी, गिद्ध पहाड़ों की ऊंची चोटियों पर जाकर बैठ गये, बांझ अपने पैरों में तीर लेकर हवा में उड़ गये, सारे जवान नर हिरन अपनी स्थिति में खडे हो गये, सारी मादायें अपने बच्चों को लेकर गुफाओं में छिप गई। तभी एक पक्षी आकर सैतानासुर से बोला,"महाराज मै भी आपकी इस योजना में योगदान देना चाहता हूँ।"
सैतानासुर ने पूछा,"क्या कर सकते हो तुम?"
"मै किसी की भी आवाज की नकल कर सकता हूं।"
"अच्छा! कैसे?"
फिर टकाचोर ने हुबहु सैतानासुर की आवाज में कहा,"अच्छा! कैसे?"
सैतानासुर इससे खुश हुआ और उसको भी अपनी योजना में सम्मिलित कर लिया। फिर सैतानासुर ने योजना शूरू की, बांझ हवा में उड़ते हुये गश्त लगाने लगे, जंगली भैंसे और शेर अपनी स्थिति लेकर खड़े हो गये।
राजकुमारी कर्कता अपना रथ लिये जंगल में आ गई,
वह कोई साधारण रथ नहीं था, उसे बीस घोड़े खींचकर ला रहे थे, जिनमें हर घोड़े के उपर एक सैनिक बैठा हुआ था, वह रथ पहियों पर चल रहा था, उस रथ का ऊपरी हिस्सा लोहे का बना हुआ था, जो बिल्कुल किसी किले के आकार का था , उसमें तीन इंच मोटी लोहे की दीवारें थी, उनमें चारों और दो इंच चौड़ी गोलाकार खिड़कियां थी जिनसे अंदर से बाहर की और सहजता से निशाना साधा जा सकता था।
हाथी पेड़ों के पीछे छिपकर उसके रथ को देख रहे थे, एक हाथी ने कहा,"शिकार सामने है, हमला करें?"
दूसरा हाथी,"नहीं, रुको, हमे महाराज का इशारा मिलने पर ही पेड़ गिराने है, उनकी जरुर कोई योजना होगी।"
तभी राजकुमारी का रथ आगे जाकर जमीन में धंस जाता है, और तभी आसमान में उड़ता बाँझ अपने पंजे से तीर गिरा देते है, जो हाथियों के लिये इशारा था। हाथी भारी चट्टानों और पेड़ों को धक्का देकर नीचे गीरा देते है जिससे राजकुमारी और सैनिकों का जंगल के बाहर जाने का रास्ता बंद हो जाता है। तभी सैनिकों को रास्ते में हिरण दिखाई देता है,जिससे एक मनमोहक गंध आ रही थी,वह कोई साधारण हिरण नहीं बल्कि एक कस्तूरी मृग था। जो सैनिकों को देखते ही भागने लगा, राजकुमारी ने आज्ञा दी जो कोई उसे पकड़कर लायेगा उसे एक सहस्र स्वर्ण मुद्राएँ मिलेगी। ऐसा सुनते ही सारे सिपाही अपने अश्व रथ से अलग करके हिरण के पीछे चले गये। राजकुमारी अब अकेली रथ के लोहे के कक्ष के भीतर थी, उसे लगा की वह यहा सुरक्षित है, मगर उसे कुछ हलचल महसूस हुई। वह कोई सामान्य हलचल नहीं थी, बल्कि कई सारे गेंडे राजकुमारी के रथ की और भागकर आ रहे थे। राजकुमारी ने अपनी तर्कश से एक तीर निकालकर कमान पर रखा और खिड़की से निशाना साध कर एक गेंडे पर छोड़ा, मगर गेंडे की मोटी चमड़ी को कहा कुछ होने वाला था, वह तीर एक तिनके के भांति गेंडे की त्वचा को छूकर निकल गया। इसके पहले की राजकुमारी दूसरा तीर चलाती, गेंडे ने तेजी से आकर रथ को टक्कर मार दी, जिससे ऊपरी कक्ष तो नहीं टूटा मगर उसमें एक गड्ढा हो गया और गेंडे का सींग टूट गया। उसके पीछे आये गेंडे का सींग सीधे उस रथ की दीवार में धंस गया, उस गेंडे ने अपना सींग निकालने की कोशिश की तो उसे पता चला की जिस हिस्से पर उसने वार किया है, वह बाकी हिस्सों से अलग है। सारे हिस्से तो लोहे के थे, मगर वह हिस्सा तांबे का था, शायद यहाँ लोहे की दीवारों को सांधा गया होगा। गेंडे ने वापस उसी छेद में वापस अपना सींग घुसा कर उस हिस्से को उखाड़ने लगा, तभी एक और गेंडे ने धड़क दी जिससे वह लोहे का रथ ध्वस्त हो गया। राजकुमारी अपनी तर्कश और कमान लेकर वहाँ से बाहर भागने लगी, यहाँ गेंडों के झुंड ने सारा रथ नष्ट कर दिया, यहा जैसे ही राजकुमारी जंगल से बाहर भागी वहाँ रास्ता चट्टानों और पेड़ों की सहायता से पहले से ही बंद था। राजकुमारी कर्कता अब घिर चुकी थी, पीछे गेंडे और आगे चट्टानें। मगर जैसे ही वह आगे बढ़ती, उसके सामने सैतानासुर खड़ा हो गया।
Superb update brother..9 राजकु का टूटा घमंड
वह उसके समक्ष केवल एक धोती में था, और कर्कता यहाँ लोहे के कवच घिरी हुई थी। कर्कता हंसते हंसते बोली,"क्या परिहास करते हो असुर, हम यहाँ कवच से लदे हुये है, और तुम बिना किसी कवच के केवल एक तलवार लिये हमारे समक्ष आ गये।"
सैतानासुर ने कहा,"केवल शस्त्र होने से कुछ नहीं होता राजकुमारी, कौशल होना भी आवश्यक है।"
कर्कता उसपर तीर चलाने लगी, मगर सैतानासुर ने अपनी तलवारबाजी की कला दिखाते हुये, तलवार को म्यान से अलग किये बिना ही, सारे तीर काट दिये। कर्कता उसका युद्धकौशल देख काफ़ी प्रभावित हो गई, सैतानासुर अब कर्कता से सामने आ गया, कर्कता ने उसपर अपनी तलवार से एक वार किया, मगर सैतानासुर ने वह वार सहजता से चुकाकर उसके कवच का नाडा काट दिया, उस नाडे से ही कवच उसके बदन से बंधा हुआ था। अब सैतानासुर ने अपनी तलवार से उसकी तलवार पर वार किया, और कर्कता की तलवार टूट गई। सैतानासुर ने कर्कता के सिने पर तलवार रखकर उसे निचे घुमाकर कर्कता की चोली और धोती काटकर निचे गीरा दी। कर्कता पहलीबार कीसी पराये पुरुष के सामने संपूर्ण नग्न अवस्था में उससे पराजित होकर खड़ी थी, वह थोड़ी भयभीत भी थी। उसके मन में पहलीबार किसी पुरुष के लिए आकर्षण था, वह उसके रणकौशल से काफी प्रभावित हो रही थी।
कर्कता ने उसे पुछा,"कही तुम हमारे साथ कुछ गलत तो नही ... "
वह पूरा बोल पाती उसके पहले ही सैतानासुर खुद भी नग्न हो गया और उसका विशालकाय 14 इंच का लिंग उसके सामने आ गया, सैतानासुर ने उसे पकड़कर निचे लेटा दिया और अपना लिंग उसकी योनी पर रखकर एक तेज धक्का देकर काफ़ी अंदर तक पहुंचा दिया, कर्कता जोर से चिल्लाकर रोने लगी और लगातार सैतानासुर से छोड़ने की मांग करने लगी, मगर सैतानासुर बिना कोई परवाह किए उसे जोर जोर से धकेल कर संभोग किए जा रहा था, एक घन्टे बाद कार्कता की योनी सैतानासुर के लिंग के आसपास कसने लगी और उस ने पानी छोड दिया।'
इतनी कहानी हुई थी की सुबह हो गई और मै नींद से जाग गया, फिर सुबह के सारे काम खत्म कर के में महाविद्यालय जाने के लिए निकल गया, और एक क्षण के अंदर अंदर मै पहुंच गया क्यों की मेरी गती अब मन से भी तेज हो चुकि थी। फिर वही रोज की तरह लेक्चर हुए और मै सीमा मैम के पास गया, आज सीमा साड़ी पहनकर और स्लीवलेस और बैकलेस ब्लाउज पहनकर आयी थी, लेक्चर में तो पता नहीं चला क्योंकी उसने तब ब्लेझर पहनकर आई थी। उसने स्कूटी पर बैठने से पहले ब्लेझर उतार कर डिक्की में रख दिया।
वह एकदम आकर्षक लग रही थी, जैसे कामरस में भिगोकर उसे बनाया गया हो। उसने कहा,"तरुण आज भी तुम मेरे घर ट्यूशन के लिए रुक सकते हो, और चाहिए तो मेरे साथ स्कूटी पर आ सकते हो।"
मै उसके पिछे बैठ कर उसे बोला,"तो मैम चले फिर।"
उसने बोला, "कसकर पकड़कर बैठना ।" उसके इतना कहते ही मैने उसकी कमर हाथों से कसकर पकड़ ली, वह बोली,"आह! इतना कसकर... " उसके कुछ बोलने से पहले ही मैं बोला," तुम ही तो बोली की कसकर पकड़कर बैठना"
वह मेरे मुंह से "तुम" सुनकर चौंककर मुझे देखने लगी, वह थोड़ी-बहुत गुस्सा थी मगर प्रभावित भी थी मेरी हिम्मत देखकर।
मैने उसकी कमर अपनी तरफ खींचकर कहा,
"ऐसे क्या देख रही हो, अब चलो भी।"
अगर चोली की पट्टी छोड़कर देखे तो उसकी पीठ पूरी नग्न थी। उसने एक्सीलेटर घुमाया और वह चल पडी उसके घर की और, मै ने अपना हाथ उसकी कमर पर और जोर से कस लिया, और अपनी उँगली से उसकी नाभि सहलाकर उसे उत्तेजित करता रहा। मेरा लिंग अब कठोर होकर बाहर आने को बेताब था, अब थोड़ी देर बाद उसका घर भी आ गया। पहले मै उतरा और सोचा की लिंग को एडजस्ट कर लू, फिर सोचा अगर औरत अपने स्तन और नितम्ब के उभार दिखाकर हमे बेचैन करती है, तो लिंग का उभार भी उन्हे बेचैन कर सकता है, मैने अपनी फॉर्मल पेंट को इस तरह एडजस्ट किया कि वह उसे अच्छे से दिखाई दे। उसने स्कूटर लगाकर जब पीछे मुड़कर देखा तो वह आकार देखकर हैरान हो गई, उसका ध्यान इस तरह उसपर था की उसे यह पता ही नही चला की हवा के एक झोंके ने उसका पल्लू ब्लाउज से हट गया है और मै उसके वह स्तन देख पा रहा हु जो ब्लाउज के बाहर आने के लिए बेताब थे। मै उसके नजदीक गया और उसके पास जाकर खडा हो गया, जैसे ही उसने मेरे पैंट में बने तम्बू पर हाथ रखा, मैने अपने दोनो हाथ उसकी पीठ पर ले जाकर उसकी चोली की गांठ खोल कर उतार दिया। वह कुछ समझ पाती इससे पहले मै पिछे होकर उसे लहराया, उसने नीचे देखा और और अपने स्तन हाथों से ढक कर अंदर भाग गई। मै भी उसके पिछे चल पडा। वह जल्द-से-जल्द उसके बेडरुम तक पहुंची, और दरवाजा लगाकर कपड़े बदलने लगी। मै जब उसके बेडरुम के दरवाजे पर गया, तो दरवाजे का लाॅक खुला हुआ था। अंदर वह कपडे बदल रही थी, मेरी नजर उसपर पडी, उसकी वह चिकनी पीठ जो बिल्कुल एक कमसीन आकर में थी, उसके वह भरे हुए नितम्ब जो उसकी कमर के साथ एकाकार होकर उसके कमसीन बदन की शोभा बढ़ाए जा रहे थे। वह टी शर्ट और शॉर्ट पहनकर बाहर आ गई, मैने देखा की उसने अंदर ब्रा या पैंटी कुछ भी नही पहना था। वह जैसे जैसे चल रही थी वैसे वैसे उसके स्तन हील रहे थे, वह दरवाजे तक पहुंच गई और उसने दरवाजा खुला देखा। वह बोली,"क्या देख रहे थे तुम?"
मै थोड़ा चौंककर बोला,"वह दरवाजा खुला रह गया था।"
उसने मेरी आँखों में ऑंखे डालकर अपना चेहरा मेरे चेहरे की और लाकर कहा,"अगर तुम कभी किसी हाॅट लडकी को कपड़े उतारते हुए देखो तो, एक वहा से चले जाना या, या फिर अंदर जाकर सीधे पकड़कर शूरू हो जाना"
फिर मेरे कान के पास आकर उसने कहा,"कसम से मुझे अन-एक्स्पेक्टेड पसंद है।"
और वह जाने लगी, मैने उसका हाथ पकड़कर उसे अपने करीब खींचकर उसे पिछे से पकड़कर उसके टी-शर्ट में हाथ डालकर अंदर उसकी नाभी में उँगली डालकर घुमाने लगा।
वह बोली,"उफ्फ्फ, तरुण यह तुम क्या कर रहे हो!!!"
मै बोला,"मौके का लाभ उठाकर दिखा रहा हूं।"
और मैने अपना दूसरा हाथ उसकी शाँर्ट में डालकर उसकी यौनी पर उंगली करना शुरु किया। वह मेरे हाथ को पकड़कर दूर करने का प्रयास कर रही थी, मगर वह प्रयास वास्तविक नही लग रहा था, या तो वरदान के कारण मुझमे असीमित बल आ गया था, या उसकी भी यही इच्छा थी। मैने अपनी उँगली उसके यौनांग के और भीतर डालकर घुमाने लगा, और अपने दूसरे हाथ से उसके स्तनाग्र पर दबाव बढाने लगा। वह चीखकर बोलने लगी," तरुण!! छोड दे मुझे, आह!! आह!!!"
लेकिन उसका शरीर जैसे कूछ और ही चाहता था, मेरे उसके यौनांग में उँगली डालने से वह और अधिक कांपने लगी जैसे उसके पूर्ण शरीर में विद्युत की धारा बहने लगी हो। थोड़ी ही देर में उसका यौनांग कसने लगा और वह और बल लगाकर मेरे हाथों को पकड़कर खिंचकर अपने शरीर से दूर करने का प्रयास कर रही थी, और छटपटाने लगी, मगर उसके प्रयास विफल प्रतित हो रहे थे। मै जैसे जैसे अपनी उंगली उसके यौनांग में डाल रहा था, वह कसकर दबाव उत्पन्न कर रही थी। थोडी ही देर में उसकी यौनांग ने काम रस बहा दिया, उसका विरोध शिथिल हो गया वह,"आ!!!!" करते हुए जोर से चिल्लाकर हाँफने लगी। मैने उसे पलटकर, उसका मुख अपनी और कर दिया। मैने उसका कामरस जो मेरे हाथ पर लगा हुआ था, उसकी गंध ली वह सच में मादक थी। मेरे हाथ मे अपना काम रस देखकर वह शर्माकर निचे देखने लगी, मै उसकी और देखकर हैरान था, कॉलेज की सबसे निडर औरत मेरे सामने अपना सर झुकाकर खड़ी थी। उसके शरीर की वासना श्वेत बनकर उसके स्तनों पर जमा हो गई, उस पसीने के कारण उसकी टॉप भीग कर उसके सीने से चिपक चुकी थी और उस वजह से उसके स्तन और स्तनाग्रों के उभार उसके टॉप के उपर से भी साफ साफ दिखाई दिए। मैने उसके कंधो को पकड़कर उसे अपने पास खींचकर उसे अपने आगोश में लेकर उसके होंठोंपर अपने होंठ रख दिए और उसे लगातार चूमने लगा, फिर हम दोंनो अपना मुंह खोलकर एक दूसरे की जबान पर जबान डालकर घुमाकर चूसने लगे। इसके बीच मैने उसकी शाँर्ट का नाडा खोल कर उतार दी, और उसने भी मेरी बेल्ट खोलकर मेरी पैंट उतारने लगी तभी मैने उसकी टाँप को पकड़कर उपर खींचकर उतारकर उसे पूर्ण नग्न कर दिया। वह अपने स्तनों को हाथों से ढककर सीर नीचे करके खडी थी, मैने भी अपने सारे कपड़े उतारकर नग्न होकर उस के हाथों को पकड़कर उसके स्तन से हटा दिए और उसपर चूम्बन देकर उसका दाया स्तनाग्र चूसने लगा और बाये को हाथ से मसलने लगा। वह आह! आह! करते हुए सिसक रही थी, वह मेरे बाल पकड़कर मेरा सिर उसके स्तन पर जोर देकर दबा रही थी, फिर मैने अपने दूसरे हाथ से उसके यौनांग में उँगली करना शुरू किया जिस वजह से वह थोड़ी ही देर में झड गई, उसके यौनांग ने काम रस छोड दिया, फिर मैने उसके दुसरे स्तन पर होंठ रखकर चूसना शुरू किया जिससे वह और गर्म होने लगी, मैने फिर उसे उठाकर बेड रूम ले गया और उसे पलंग पर पीठ के बल लेटा दिया। मै थोड़ा पिछे होकर उसकी टांग खोलकर अपने लिंग को उसकी यौनी पर रख दिया और एक जोरदार धक्का देकर उसके टोप यानी अग्र भाग को अंदर डाल दिया वह "आ!!! " करके चीख निकल गई। मेरा(तरुण का) लिंग बहुत विशालकाय था, वह छटपटाने लगी मैने अपना मुंह उसके मुंह पर रखकर एक और बार धक्का देकर अंदर डाल दिया, वह छटपटाने लगी, उसके आँख से आंसू निकल गए। मैने रूककर और एक धक्का मारा जिस से वह उसके गर्भाशय तक पहुंच गया लेकीन वह तो एक चौथाई से भी कम था जो अंदर गया था,