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Thank you very much for the 1st comment on this storyCongratulations bhai..for your new story..
I am expecting, as usual, to be hot and exciting. All the best and will follow.
Btw, I too have started a story (now with 11 updates). Hope you can find time to visit it. Look forward to your comments. Thanks.
Ashokafun30
Definitely...am one of your fan..lovely phone sex was/is one of my favorite story from your stableThank you very much for the 1st comment on this story
Keep reading, you will enjoy more with each update.
thanksShandar update
ये कहानी है एक ऐसी लड़की की जो अपनी उम्र की हर दूसरी लड़कियों की तरह जवानी में कदम रखते ही सपनो की रंगीन दुनिया में खो जाती है
इस लड़की का नाम है चंदा
और अपने नाम की तरह ही एकदम चाँद जैसा चेहरा है इसका
चेहरा ही नही बल्कि इसका पूरा शरीर ही साँचे मे ढला हुआ है
32 के साइज़ के बूब्स और 34 के भरे हुए हिप्स उसकी सुंदरता बयान करते थे
मेरठ में रहने वाला चंदा का परिवार ज़्यादा बड़ा भी नही था
एक बड़ा भाई सूरज जो अपने पिता सुमेर सिंह के साथ खेतीबाड़ी में उनका साथ देता था
चंदा की बड़ी बहन चन्द्रिका जो पास के एक स्कूल में टीचर थी
और उसकी प्यारी माँ रागिनी जो घर की देखभाल और अपने परिवार का पूरा ध्यान रखती थी
कुल मिलाकर इन पाँच लोगो का परिवार काफ़ी मिलनसार भाव से रहता था
पर एक रात के वाक्ये ने चंदा की जिंदगी और उसका दुनिया देखने का नज़रिया बदल कर रख दिया
चंदा हमेशा की तरह अपने कॉलेज की पड़ाई करके सोई तो आधी रात को अचानक पेशाब के प्रेशर ने उसकी नींद खोल दी
टाइम देखा तो रात के 4 बज रहे थे
वो उठी और अपने कमरे से निकल कर बाहर आँगन में बने बाथरूम तक गयी और बिना दरवाजा लगाए टॉयलेट सीट के पर मोरनी बनकर बैठ गयी और गाड़े सुनहरी रंग के झरने को बाहर फेंकने लगी
अभी वो आधा ही कर पाई थी की अचानक अंदर से कोई आया और बाहर बने नलके से पानी निकालने लगा
उसके बाथरूम की लाइट बंद थी और वो अंदर बिना दरवाजा बंद किए बैठी थी
उसकी तो हलक सूख गयी
पर गनीमत थी की अंधेरे की वजह से उसे बाहर से कोई देख नही सकता था
वो अपने आप को कोस रही थी की दरवाजा क्यों बंद नही किया
वो या तो उसके पापा थे या उसका भाई
क्योंकि डील डोल मर्दो वाला ही था
कुछ देर तक तो वो बैठी रही पर फिर उसका बैठना मुश्किल हो रहा था सो वो चुपचाप उठी और अपनी सलवार को बाँध कर दरवाजे तक आई
बाहर देखा तो उसके पापा ही थे, जो नलके के किनारे एक छोटी सी चटाई पर बैठ कर एक छोटे से पीतल के थाल में पानी भरकर कुछ कर रहे थे
उसने देखने की कोशिश की पर उसे समझ नही आया की वो क्या कर रहे है
इतनी सुबह उन्हे भला ऐसा क्या काम
वो बर्तन धो रहे है क्या
पर वो भला ऐसा क्यों करेंगे
उसने गोर से देखा तो वो हाथ जोड़कर कोई मंत्र बुदबुदा रहे थे
अब उसके मन में कुछ शंका सी हुई
उसने देखा की थाल में ऐसा क्या है
तो उसने देखा की 2 छोटी प्लास्टिक की गुड़िया थी उसमें
जो छोटे बच्चे हाथ में लेकर गली-2 घूमते है
वो भला उसका क्या कर रहे है
कुछ देर तक वो वैसे ही मंत्र बुदबुदाते रहे और फिर अचानक वो उठे और अपना कुर्ता उतार कर साइड में रख दिया और फिर अपनी धोती भी उतार दी
मैं कुछ समझ पाती इस से पहले ही मेरे पिताजी मेरे सामने पूर्ण रूप से नग्न खड़े थे
मेरी तो साँसे उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गयी
ये मेरी लाइफ का पहला मौका था जब मैं किसी मर्द को नंगा देख रही थी
और वो भी अपने खुद के पिता को
स्कूल कॉलेज में मेरी सहेलियां ऐसी बातें करती रहती थी
एक दो बार मस्तराम की कहानियां भी पढ़ी थी और कुछ अश्लील चित्र भी देखे थे
पर ऐसे शादी से पहले मुझे किसी मर्द को नंगा देखने का मौका मिलेगा
ये मैं नही जानती थी
पर इसके बावजूद की वो मेरे पिता है
मैने उन्हे देखना बंद नही किया
बल्कि आँखे फाड़े उन्हे घूर-2 कर देख रही थी
उनकी चौड़ी छाती और कसा हुआ शरीर जो उन्होने खेती बाड़ी करके बनाया था इस बात का प्रमाण था की उम्र का उनपर कोई असर नही पड़ रहा है
और उनका लिंग
उफ़फ्फ़
वो उनकी टॅंगो के बीच ऐसे झूल रहा था जैसे मैने एक बार अपने बैल हीरा का देखा था
करीब 5 इंच का था उनका मोटा सा लिंग जो टॅंगो के बीच झूल रहा था
जब अकड़ कर खड़ा होगा तो कितना बड़ा हो जाएगा ये
यही सोचकर मुझे कुछ-2 होने लगा
पर फिर मैने उस विचार को झटक दिया
छीssss ये भला क्या सोचने लगी मैं अपने ही पिताजी के बारे में
मैं कुछ बोल भी नही सकती थी
बाहर भी नही निकल सकती थी
फिर उन्होने उन दोनो गुड़िया को अपने हाथ में उठाया
तब मैने नोट किया की वो दोनो आपस में बँधी हुई है एक धागे से जो करीब २-3 फ़ीट का था
फिर उन्होने उन धागे से बँधी हुई गुडियों को गमछे की तरह अपने गले में लटका लिया
अब वो दोनों गुड़िया उनके लिंग से टकरा रही थी
फिर उन्होंने उस पीतल के बड़े से थाल को उठाया और उसका पानी अपने सिर पर डाल लिया
सुबह की ठंडक में इतने ठंडे पानी से नहाकर उनके शरीर में झुरजुरी सी दौड़ गयी
झुरजुरी तो मेरे शरीर में भी दौड़ी
क्योंकि उनका लिंग जो इतनी देर से शिथिल अवस्था में लटका पड़ा था, ठंडे पानी की वजह से उसमें तनाव आने लगा था
फिर उनका हाथ अपने तने हुए लिंग पर आया और वो उसे मसलने लगे
मुझे अंदाज़ा तो नही था की वो ऐसा क्यों कर रहे है पर ये पता था की इसका मतलब क्या है
उन्हे ऐसा करता देखकर ना जाने क्यो मेरी जाँघो के बीच भी कुछ-2 होने लगा
मैं 21 साल की थी
पर आज तक मैने ऐसा कुछ भी नही किया था जिसकी वजह से मेरे शरीर में ऐसा कुछ भी एहसास हो
पर आज पहली बार ऐसा एहसास हो रहा था मुझे
पर मैं उस एहसास का पूरा मज़ा भी नही ले पा रही थी
कारण था की ये एहसास मुझे अपने खुद के पिता को देखकर हो रहा था
मैं दम साधे उनका ये क्रियाकलाप देख रही थी
और मेरे देखते ही देखते उनका लिंग अपने पूरे आकार में आ गया
वो अब करीब 7-8 इंच का बन चुका था
और मोटा इतना जैसे कोई खीरा
फिर उन्होने अपने लिंग पर घिसाई की तेज़ी को और बड़ा दिया और करीब 1 मिनट में ही उनके लिंग से सफेद रंग का गाड़ा पानी निकलने लगा
मुझे तो लगा था की मर्द के लिंग से सिर्फ पेशाब ही निकलता है
ये क्या बला है ?
कहीं ये वो वीर्य तो नही जो बायोलॉजी की क्लास में बताया था मेडम ने
पर वो तो सैक्स करने से निकलता है
और वो भी औरत की योनि में
पर पिताजी उसे ऐसे ही क्यो निकाल रहे है
मेरा भोला भाला दिमाग़ उन सब बातो से अंजान अपनी ही उधेड़बुन में लगा हुआ था
और तब मैने कुछ अजीब सा होते देखा
पिताजी ने अपने गले में लटक रही गुड़िया के जोड़े को अपने लिंग से निकल रहे गाड़े पानी से नहला दिया
दोनो गुड़िया उनके लिंग से निकले गाड़े और सफेद पानी से रंग कर सराबोर हो गयी
देखने में मुझे बड़ा अजीब सा लगा की आख़िर ये पिताजी करना क्या चाहते है
पहले तो मुझे लगा था की ये कोई पूजा करने के लिए उठे है शायद सुबह
पर ऐसी पूजा भला कौन करता है
ये मेरी समझ से परे था
कुछ देर बाद वो अपने कपड़े पहन कर अंदर चले गये
मैने भी चैन की साँस ली क्योंकि मैं भी करीब 30 मिनट से अंदर क़ैद थी
पिताजी मुझे देख लेते तो मैं उनका सामना भला कैसे कर पाती
मैं चुपचाप अपने बेड पर आकर सो गयी
मेरी दीदी गहरी नींद में मेरे करीब ही सो रही थी
मैं कुछ देर तक अपने पिताजी के बारे मे सोचती रही और फिर कब मुझे नींद आ गयी, मुझे भी पता नही चला
पर आने वाले समय में इस घटना का मेरी जिंदगी में क्या असर पड़ना था वो अगर मैं जान लेती तो कभी वहां रुककर वो सब देखने की जुर्रत ना करती
A fantastic story with a different theme.ये कहानी है एक ऐसी लड़की की जो अपनी उम्र की हर दूसरी लड़कियों की तरह जवानी में कदम रखते ही सपनो की रंगीन दुनिया में खो जाती है
इस लड़की का नाम है चंदा
और अपने नाम की तरह ही एकदम चाँद जैसा चेहरा है इसका
चेहरा ही नही बल्कि इसका पूरा शरीर ही साँचे मे ढला हुआ है
32 के साइज़ के बूब्स और 34 के भरे हुए हिप्स उसकी सुंदरता बयान करते थे
मेरठ में रहने वाला चंदा का परिवार ज़्यादा बड़ा भी नही था
एक बड़ा भाई सूरज जो अपने पिता सुमेर सिंह के साथ खेतीबाड़ी में उनका साथ देता था
चंदा की बड़ी बहन चन्द्रिका जो पास के एक स्कूल में टीचर थी
और उसकी प्यारी माँ रागिनी जो घर की देखभाल और अपने परिवार का पूरा ध्यान रखती थी
कुल मिलाकर इन पाँच लोगो का परिवार काफ़ी मिलनसार भाव से रहता था
पर एक रात के वाक्ये ने चंदा की जिंदगी और उसका दुनिया देखने का नज़रिया बदल कर रख दिया
चंदा हमेशा की तरह अपने कॉलेज की पड़ाई करके सोई तो आधी रात को अचानक पेशाब के प्रेशर ने उसकी नींद खोल दी
टाइम देखा तो रात के 4 बज रहे थे
वो उठी और अपने कमरे से निकल कर बाहर आँगन में बने बाथरूम तक गयी और बिना दरवाजा लगाए टॉयलेट सीट के पर मोरनी बनकर बैठ गयी और गाड़े सुनहरी रंग के झरने को बाहर फेंकने लगी
अभी वो आधा ही कर पाई थी की अचानक अंदर से कोई आया और बाहर बने नलके से पानी निकालने लगा
उसके बाथरूम की लाइट बंद थी और वो अंदर बिना दरवाजा बंद किए बैठी थी
उसकी तो हलक सूख गयी
पर गनीमत थी की अंधेरे की वजह से उसे बाहर से कोई देख नही सकता था
वो अपने आप को कोस रही थी की दरवाजा क्यों बंद नही किया
वो या तो उसके पापा थे या उसका भाई
क्योंकि डील डोल मर्दो वाला ही था
कुछ देर तक तो वो बैठी रही पर फिर उसका बैठना मुश्किल हो रहा था सो वो चुपचाप उठी और अपनी सलवार को बाँध कर दरवाजे तक आई
बाहर देखा तो उसके पापा ही थे, जो नलके के किनारे एक छोटी सी चटाई पर बैठ कर एक छोटे से पीतल के थाल में पानी भरकर कुछ कर रहे थे
उसने देखने की कोशिश की पर उसे समझ नही आया की वो क्या कर रहे है
इतनी सुबह उन्हे भला ऐसा क्या काम
वो बर्तन धो रहे है क्या
पर वो भला ऐसा क्यों करेंगे
उसने गोर से देखा तो वो हाथ जोड़कर कोई मंत्र बुदबुदा रहे थे
अब उसके मन में कुछ शंका सी हुई
उसने देखा की थाल में ऐसा क्या है
तो उसने देखा की 2 छोटी प्लास्टिक की गुड़िया थी उसमें
जो छोटे बच्चे हाथ में लेकर गली-2 घूमते है
वो भला उसका क्या कर रहे है
कुछ देर तक वो वैसे ही मंत्र बुदबुदाते रहे और फिर अचानक वो उठे और अपना कुर्ता उतार कर साइड में रख दिया और फिर अपनी धोती भी उतार दी
मैं कुछ समझ पाती इस से पहले ही मेरे पिताजी मेरे सामने पूर्ण रूप से नग्न खड़े थे
मेरी तो साँसे उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गयी
ये मेरी लाइफ का पहला मौका था जब मैं किसी मर्द को नंगा देख रही थी
और वो भी अपने खुद के पिता को
स्कूल कॉलेज में मेरी सहेलियां ऐसी बातें करती रहती थी
एक दो बार मस्तराम की कहानियां भी पढ़ी थी और कुछ अश्लील चित्र भी देखे थे
पर ऐसे शादी से पहले मुझे किसी मर्द को नंगा देखने का मौका मिलेगा
ये मैं नही जानती थी
पर इसके बावजूद की वो मेरे पिता है
मैने उन्हे देखना बंद नही किया
बल्कि आँखे फाड़े उन्हे घूर-2 कर देख रही थी
उनकी चौड़ी छाती और कसा हुआ शरीर जो उन्होने खेती बाड़ी करके बनाया था इस बात का प्रमाण था की उम्र का उनपर कोई असर नही पड़ रहा है
और उनका लिंग
उफ़फ्फ़
वो उनकी टॅंगो के बीच ऐसे झूल रहा था जैसे मैने एक बार अपने बैल हीरा का देखा था
करीब 5 इंच का था उनका मोटा सा लिंग जो टॅंगो के बीच झूल रहा था
जब अकड़ कर खड़ा होगा तो कितना बड़ा हो जाएगा ये
यही सोचकर मुझे कुछ-2 होने लगा
पर फिर मैने उस विचार को झटक दिया
छीssss ये भला क्या सोचने लगी मैं अपने ही पिताजी के बारे में
मैं कुछ बोल भी नही सकती थी
बाहर भी नही निकल सकती थी
फिर उन्होने उन दोनो गुड़िया को अपने हाथ में उठाया
तब मैने नोट किया की वो दोनो आपस में बँधी हुई है एक धागे से जो करीब २-3 फ़ीट का था
फिर उन्होने उन धागे से बँधी हुई गुडियों को गमछे की तरह अपने गले में लटका लिया
अब वो दोनों गुड़िया उनके लिंग से टकरा रही थी
फिर उन्होंने उस पीतल के बड़े से थाल को उठाया और उसका पानी अपने सिर पर डाल लिया
सुबह की ठंडक में इतने ठंडे पानी से नहाकर उनके शरीर में झुरजुरी सी दौड़ गयी
झुरजुरी तो मेरे शरीर में भी दौड़ी
क्योंकि उनका लिंग जो इतनी देर से शिथिल अवस्था में लटका पड़ा था, ठंडे पानी की वजह से उसमें तनाव आने लगा था
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मुझे अंदाज़ा तो नही था की वो ऐसा क्यों कर रहे है पर ये पता था की इसका मतलब क्या है
उन्हे ऐसा करता देखकर ना जाने क्यो मेरी जाँघो के बीच भी कुछ-2 होने लगा
मैं 21 साल की थी
पर आज तक मैने ऐसा कुछ भी नही किया था जिसकी वजह से मेरे शरीर में ऐसा कुछ भी एहसास हो
पर आज पहली बार ऐसा एहसास हो रहा था मुझे
पर मैं उस एहसास का पूरा मज़ा भी नही ले पा रही थी
कारण था की ये एहसास मुझे अपने खुद के पिता को देखकर हो रहा था
मैं दम साधे उनका ये क्रियाकलाप देख रही थी
और मेरे देखते ही देखते उनका लिंग अपने पूरे आकार में आ गया
वो अब करीब 7-8 इंच का बन चुका था
और मोटा इतना जैसे कोई खीरा
फिर उन्होने अपने लिंग पर घिसाई की तेज़ी को और बड़ा दिया और करीब 1 मिनट में ही उनके लिंग से सफेद रंग का गाड़ा पानी निकलने लगा
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ये क्या बला है ?
कहीं ये वो वीर्य तो नही जो बायोलॉजी की क्लास में बताया था मेडम ने
पर वो तो सैक्स करने से निकलता है
और वो भी औरत की योनि में
पर पिताजी उसे ऐसे ही क्यो निकाल रहे है
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और तब मैने कुछ अजीब सा होते देखा
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दोनो गुड़िया उनके लिंग से निकले गाड़े और सफेद पानी से रंग कर सराबोर हो गयी
देखने में मुझे बड़ा अजीब सा लगा की आख़िर ये पिताजी करना क्या चाहते है
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पर ऐसी पूजा भला कौन करता है
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कुछ देर बाद वो अपने कपड़े पहन कर अंदर चले गये
मैने भी चैन की साँस ली क्योंकि मैं भी करीब 30 मिनट से अंदर क़ैद थी
पिताजी मुझे देख लेते तो मैं उनका सामना भला कैसे कर पाती
मैं चुपचाप अपने बेड पर आकर सो गयी
मेरी दीदी गहरी नींद में मेरे करीब ही सो रही थी
मैं कुछ देर तक अपने पिताजी के बारे मे सोचती रही और फिर कब मुझे नींद आ गयी, मुझे भी पता नही चला
पर आने वाले समय में इस घटना का मेरी जिंदगी में क्या असर पड़ना था वो अगर मैं जान लेती तो कभी वहां रुककर वो सब देखने की जुर्रत ना करती
THANKS AJJU BHAISabse pehle to ek nayi story shuru karne ke liye thank you so much Ashokafun30 Bhai,
Is baar topic ekdum unique he..............ummeed he ye kahani bhi saflta ke naye naye aayam chhuvegi
Keep posting Bhai
Very sexy update.अगली सुबह रविवार था, मेरी और दीदी की छुट्टी थी
माँ ने हम दोनो को आकर उठाया और हम दोनो बहने नहा धोकर नीचे किचन में आकर माँ की मदद करने लगी
पिताजी को नाश्ता देते वक़्त मेरा दिल धाड़ -2 करके बज रहा था
पिताजी हम दोनो बहनो को बहुत प्यार करते थे,
ख़ासकर मुझे
क्योंकि मैं घर में सबसे छोटी थी इसलिए मेरी बात को कभी भी मना नही करते थे वो
माँ अक्सर मुझे डाँटती रहती पर मैं पिताजी की गोद में बैठकर अपनी बातें मनवा लेती थी
पिताजी ने मुझे आते देखा तो अख़बार साइड में रखकर मुझे देखने लगे
मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था की आज उनकी नज़रों में कुछ अलग किस्म की चाह है
वो शायद पहले से थी
जो मैने आज से पहले कभी नोट नही की थी
मैं नाश्ते की प्लेट रखकर वापिस जाने लगी तो उन्होने मुझे पुकारा : “ओ चंदा, मेरी लाडो, ऐसे गुमसुम सी होकर क्यों घूम रही है, किसी ने कुछ कहा क्या ?”
मैं : “न…नही…पिताजी…..मैं तो बस….ऐसे ही..”
पिताजी ने अपनी दाँयी बाजू मेरी तरफ फैलाई और मुझे अपनी तरफ बुलाया : “अच्छा ….यहाँ आ…मेरे पास “
वो एकटुक सी होकर अपने पिताजी को देखे जा रही थी
और कोई दिन होता तो मैं उछलकर उनकी गोद में जा चड़ती
क्योंकि पिताजी जब खुद अपने पास बुलाते थे तो मुझे जेब खर्ची के लिए कुछ ना कुछ पैसे अलग से मिलते थे
आज भी वैसा ही दिन था
पर रात की बातें याद करके मेरे दिल में उथल पुथल मची हुई थी
मेरी नज़रें उनकी गोद की तरफ थी, जिसके नीचे उनका वो भयानक काला नाग सो रहा था जिसे मैने कल रात विकराल रूप में देखा था
मुझे डर था की मेरे बैठने से वो कहीं वो पिचक ना जाए….
या शायद कहीं फिर से अपना फन ना उठा ले
नही ….नही….ऐसे कैसे….
कोई अपनी ही बेटी को देखकर भला क्यो उत्तेजित होगा
मैने अपने दिमाग़ में आए विचारों को झटका और धीरे-2 चलकर उनकी गोद में जाकर बैठ गयी
उन्होने अपना हाथ घुमा कर मेरे पेट पर रख दिया और मुझे अपनी छाती से सटा लिया
पिताजी : “अब बोल, क्या हुआ, कुछ चाहिए क्या, कॉलेज के लिए कुछ लेना है क्या, कपड़े लत्ते वगेरह “
मैने ना में सिर हिला दिया
वो मुस्कुराए और उन्होने अपने कुर्ते की जेब से 500 का नोट निकाल कर मुझे दे दिया
पर नोट निकालते वक़्त उनके हाथ मेरे स्तनों को छू गये
मेरे पुर शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गयी
कोई और मौका होता तो शायद मैं सिर्फ़ उन 500 रुपय को देखकर उछाल पड़ती और उनके गले लग जाती, पर कल रात की घटना के बाद मैं बँधी हुई सी महसूस कर रही थी
और शायद इसी वजह से मुझे उनका स्पर्श भी ‘जान बूझकर’ किया हुआ महसूस हुआ
पर ऐसा तो पहले भी कई बार हो चुका है
आज से पहले मैने कभी ध्यान नही दिया था
उल्टा मैं खुद उनके गले लगकर अपने स्तनों को उनके गले पर रखकर दबा सी देती थी
पर वो सिर्फ़ एक बाप बेटी वाला आलिंगन होता था मेरी तरफ से
मेरे कंपन को पिताजी ने भी महसूस किया
और उनकी गोद में बैठे हुए मैने अचानक उनके लिंग को अपने नितंब पर
मेरे माथे पर पसीने की बूंदे उभर आई
वो मेरे चेहरे को देखकर कुछ पढ़ने की कोशिश कर रहे थे
और साथ ही साथ मेरे पेट के नर्म माँस पर अपनी उंगलियां चला रहे थे
दूसरे हाथ से वो मेरी जांघ को सहला रहे थे
मैं तुरंत उनकी गोद से उठी और उन्हे थॅंक यू कहकर अंदर भाग गयी
मैं सीधा अपने रूम में गयी और दरवाजा बंद कर लिया, मेरी साँसे तेज़ी से चल रही थी
गला सूख रहा था
और…और…मेरी जाँघो के बीच चिपचिपाहट सी महसूस हो रही थी
ये ठीक वैसी ही थी जैसे कल रात हुई थी
पिताजी का लिंग देखने के बाद
मैने अपनी पायज़ामी का नाड़ा खोलकर उसे नीचे गिरा दिया
और कच्छी में झाँकर देखा, मेरा अंदाज़ा सही था
अंदर गाड़े रंग का द्रव्या निकल कर मुझे भिगो रहा था
क्या ये मेरा वीर्य है
नही
वो तो मर्दो का निकलता है
फिर औरतों का क्या निकलता है
मैने झट्ट से अपना मोबाइल उठाया और गूगल खोलकर उसमें लिखा
“मर्दों का वीर्य निकलता है तो औरतों का क्या निकलता है ?”
तो गूगल में लिखा हुआ आया
'जी नही योनीं से वीर्य नहीं निकलता बल्कि एक अलग प्रकार का स्राव होता है जो महिलाओं के शरीर में निर्माण होता है. यह मासिक स्राव से अलग होता है और सम्भोग उत्तेजना के समय निकलता है जो एक प्रकार से लुब्रिकंट का कार्य करता है. इससे सम्भोग में परेशानी नहीं होती और लिंग का प्रवेश आसान हो जाता है'
लिंग का प्रवेश योनि में
उफफफ्फ़
वो भला कैसे
वो तो इतना बड़ा था
मेरी इस योनि मे कैसे जाएगा
इसमें तो
उम्म्म्म
मेरी उंगली भी नही जा रही पूरी
ऐसा सोचते-2 मेरी उंगली अंदर जाने का प्रयास करने लगी
और मेरी आँखे आश्चर्य से फैलती चली गयी जब वो अपने आप अंदर तक घुसती चली गयी
ये आज से पहले कभी नही हुआ था
मैने पहले एक–दो बार कोशिश की थी पर वो इतनी टाइट थी की मुझे दर्द सा होने लगता था
पर आज
आज तो वो अंदर फिसलती चली जा रही थी
जैसे कोई अदृशय शक्ति मेरी उंगली को अंदर खींच रही हो
निगल रही हो
और उपर से मुझे मज़ा भी आ रहा था
जो तरंगे कुछ देर पहले मेरे शरीर से निकल रही थी, उनके तार तो मेरी योनि में छुपे थे
जिनपर मेरी उंगलिया लगते ही वो तरंगे मेरे शरीर को एक बार फिर से लहराने लगी
मुझे मेरा शरीर हवा में उड़ता हुआ सा महसूस हो रहा था
मेरी ऊँगली जितना अंदर जा रही थी, मेरा शरीर उतना ही ऊपर उड़ रहा था
“सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स…… अहह………. ऑहहहह मम्मीईीईईईईई……… कितना मज़ा आ रहा है……आहह”
मैने उन उंगलियों को बाहर निकाल कर देखा तो वो मेरे रस मे भीगकर एक मकड़ी का जाल बना रही थी मेरी हथेलियों पर
मैने उसे सूँघा तो बड़ी नशीली सी सुगंध लगी वो मुझे
मैने एक उंगली को थोड़ा सा चाट कर देखा तो मेरे पुर मुँह में शहद सा घुलता चला गया
मेरी योनि से निकलने वाला रस इतना मीठा है, मुझे पता भी नही था
इतने सालों से मैं शहद की हांडी लिए घूम रही हूँ और मुझे इसका अंदाजा भी नहीं है
मैने झट्ट से अपनी हथेली को चाट-चाटकार सॉफ कर दिया
जाँघो के बीच अभी भी सुरसुरी सी हो रही थी
पर वो कैसे शांत होगी, मुझे समझ नही आया
तब तक बाहर से माँ की आवाज़ें आने लगी
'काम के वक़्त कहां मर गयी ये निगोड़ी '
बाहर पिताजी माँ को समझा रहे थे की उनकी प्यारी बेटी को ऐसे सुबह -2 ना डांटे
दोनो आपस में हल्की फुल्की बहस करने में लगे थे
तब तक मैं वापिस माँ के पास पहुँच गयी
और जल्दी-2 परांठे बनाने लगी
उन्ही ‘मीठे’ हाथो से
अगला परांठा जब उन्हे देने गयी तो कुछ देर तक मैं वहां खड़ी रही
जब तक उन्होने उसका निवाला अपने मुँह में नही डाल लिया
पता नही क्यों पर मुझे अजीब सी खुशी का एहसास हुआ की मेरी 'मिठास' को पिताजी ने चख लिया
कुछ देर बाद पिताजी जब बाहर जाने लगे तो चंद्रिका दीदी ने उनसे पूछा
“पिताजी, ये खिलोने कहाँ से आए….”
बाथरूम की दीवार पर लगे कील पर लटकी दोनो गुड़िया उतारकर वो उनसे पूछ रही थी
ओह्ह माय गॉड
ये तो वही गुड़िया है जो पिताजी के हाथ में थी कल रात
और जिसपर उन्होने अपने …..अपने लिंग से निकला….वीर्य लगाया था
उसके बारे में तो मैं भूल ही गयी थी
वो बाहर की दीवार पर ही लटकी पड़ी थी कल रात से और मुझे दिखाई भी नही दी
पिताजी ने मुस्कुराते हुए कहा : “अर्रे….यो, यो ते कल टिल्लू ने जबरसती पकड़ा दी थी , बोलेया अपनी छोरियों वास्ते लेते जाओ ताऊ, मैने केया की म्हारी छोरियाँ अब इत्ती भी छोटी ना रही, पर वो मानेया ही नही, ज़बरदस्ती पकड़ा दी मन्ने , ले लो अब दोनो एक-2 गुड़िया, खेलते रहना”
इतना कहकर वो हंसते हुए बाहर निकल गये
टिल्लू हमारे दूर ले चाचा के बेटे का नाम है, जिसकी सदर बाजार में खिलोनो की दुकान है
आज तक तो उसने ऐसा कुछ दिया नही फिर अब कैसे दे दिया ये तोहफा
और उपर से पिताजी ने जो रात उनके साथ किया था, उसके बाद तो मुझे और भी हैरानी हो रही थी उन खिलोनो को देखकर
दीदी ने एक गुड़िया मुझे दे दी और दूसरी अपनी बगल में दबा कर अंदर चल दी, जैसे कोई छोटा बच्चा करता है, ठीक वैसे ही
शायद उस छोटे से खिलोने को देखकर उन्हे अपना बचपन याद आ गया था
मैने उस गुड़िया को देखा तो पाया की उसपर सफेद सी पपड़ी जमी है
यानी ये वही पिताजी का वीर्य है, जो उन्होने बिना धोए उसपर लगा रहने दिया था
रात भर मे सूखकर वो पपड़ी जैसा बन चुका था
मैने उस पपड़ी को कुरेदा और अपनी उंगलियो से मसलकर देखा
एक ही पल में वो मोम की तरह पिघलकर मेरी उंगलियो में चिपचिपा सा एहसास देने लगा
उंगली और अंगूठे को जब दूर किया तो एक रेशम की महीन सी तार बन गयी
ठीक वैसे ही जैसे कुछ देर पहले मेरी योनि से निकले पानी से मेरी हथेली पर बन रही थी
और तभी मुझे याद आया की मेरे हाथो में अभी तक मेरी योनि का पानी लगा है
और अब उसी हाथ से मैं अपने पिताजी के वीर्य को भी मसल रही थी
तो क्या इस मिलन से बच्चा हो सकता है
तर्क तो यही कहता है
पर ऐसे कैसे होगा, मेरी हथेली पर थोड़े ही आ टपकेगा एकदम से वो बच्चा
अपनी बचकानी बात पर मैं खुद ही मुस्कुरा दी
हमारे स्कूल में सैक्स शिक्षा को ज़्यादा महत्व नही दिया जाता
शायद इसलिए मैं ऐसी बेफ़िजूल की बातें सोच रही थी
और ना ही मेरी सहेलियों को ज़्यादा जानकारी थी इस बारे में
हमे तो यही सिखाया गया था की सब अपने आप सीख जाओगी शादी के बाद
पर एक ही दिन में इतना कुछ देखने को और सीखने को मिल रहा था की अब मेरा मन और भी ज़्यादा सीखने को लालायित हो गया
इसलिए मैने भी वो गुड़िया अपनी बगल में दबोची और किसी बच्चे की तरह उछलती हुई अपने कपड़े की तरफ चल दी
मैने सोच लिया था की अब इस ज्ञान को अर्जित करके ही रहूंगी
इसलिए मैने अपने मोबाइल में गूगल से हर वो बात पूछी जिसका मुझे आज तक सिर्फ़ थोड़ा सा ही पता था
और वो सब पढ़ते -2 और उनमें आ रही तस्वीरों को देखते-2 कब मेरा हाथ एक बार फिर से मेरी पायजामी में घुस कर मेरी योनि से खेलने लगा , मुझे भी पता नही चला
और इस बार वो मज़ा पहले से काई ज़्यादा था
शायद इसलिए भी क्योंकि मैने पिछली बार वो खेल बीच में ही छोड़ दिया था
मैने अपनी टांगो के बीच फंसी कच्छी और पयज़ामी नीचे खिसकायी
और अपनी कुर्ती को ऊपर करके ब्रा से अपने स्तन भी बाहर निकाल लिए
और फिर अपनी योनि को रगड़ने लगी
उसमे अपनी 2 लंबी-2 उंगलियां डालकर उससे मिल रहे मज़े का आनंद लेने लगी
“सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स…….आआआआआआआआआआआआआहह……उम्म्म्ममममममममममममममम…………”
अचानक मेने अपने हाथ मे पकड़ी उस गुड़िया को अपनी योनि पर लगाया और उसे रगड़ने लगी
और अंदर ही अंदर मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो गुड़िया नही बल्कि मेरे पिताजी का लिंग है
इस एहसास मात्र से ही मेरे पूरे शरीर में एक ऐंठन सी हुई और मेरी योनि से भरभराकर गाड़ा पानी निकल आया
मेरी चादर पूरी भीग गयी
मैं तो डर गयी एकदम से की इतना पानी कैसे निकला
गूगल पर तो लिखा था की चिकनाहट भर होती है जब स्त्री उत्तेजित हो या वो झड़े
पर यहा तो ऐसा लग रहा था जैसे मैने पेशाब कर दिया हो अपने बिस्तर पर
बरसों से जो शहद अपनी हांडी में लिए फिर रही थी मैं, आज वो टूट गयी थी
शायद ये मेरा पहला हस्तमैथुन था इसलिए
जैसा की मोबाइल मे लिखा था
तभी ये रस इतना गाड़ा और इतनी ज़्यादा मात्रा में है
मेरी आँखे बोझिल सी हो रही थी
मैं उस गुड़िया को अपनी गांघो के बीच दबाए वैसे ही सो गयी