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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Rajesh

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👉सत्रहवां अपडेट
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तापस की नजर उस बेड पर स्थिर हो गई, जिस तरफ इंस्पेक्टर ने इशारा कर दिखाया l तापस उसके पास जाकर देखा, वह मुज़रिम आधी बेहोशी की हालत में पड़ा हुआ है, उसके चेहरे की हालत बहुत बुरी लग रही है l दाहिना जबड़ा सूजा हुआ है l बायीं आँख इतनी सूजी हुई है कि शायद उसकी आँखे खुल ही नहीं पा रहा हो, दायीं आँख की हालत भी ठीक नहीं लग रही है l बदन के हर हिस्से पर थर्ड डिग्री टॉर्चर साफ दिख रहा है l और दायीं जांघ पर पट्टी की गई है, शायद वहीँ गोली लगी है l

अपनी नौकरी जीवन में हमेशा अपराधियों से असंवेदनशील रहने वाला तापस भी उसकी हालत देख कर हिल गया l
तापस - यह उसकी ऐसी हालत किसने की....
इंस्पेक्टर - किसने की मतलब.... साढ़े सात सौ करोड़ रुपये का लुटेरा है... गोदी में रख कर पुचकारते हुए पूछ तो नहीं सकते थे... बोल वह पैसे कहाँ है.....
तापस को उसका इस लहजे में बात करना और ऐसे ज़वाब देना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा l पास खड़े डॉक्टर से पूछा,
तापस - डॉक्टर साहब कैसी हालत है इसकी...
डॉक्टर - थोड़ी खराब है...
तापस - ह्म्म्म्म... कब तक ठीक होने के चांसेस है...
डॉक्टर - यह तो जांच करने के बाद ही कुछ कह सकते हैं....
इंस्पेक्टर - अरे डॉक्टर साहब... इसमें जांच करने वाली बात क्या है... लौंडा ( अपना हाथ उस मुजरिम के जांघ के ज़ख़्म पर रख कर जोर से मसलते हुए) बहुत मजबूत है....
मुजरिम की आंखे खुल जाती है l वह दर्द के मारे कराहने लगता है l
इंस्पेक्टर - देखा... साला बहुत ऐक्टिंग कर रहा है.... बहुत खेला खाया हुआ जो है....
तापस इंस्पेक्टर को डॉक्टर और उसके सामने मुज़रिम के साथ ऐसा करते हुए देख कर रह नहीं पाता, पर हैरानी उसे और भी होती है, जब डॉक्टर कुछ प्रतिक्रिया दिए बगैर ऐसे खड़ा है, जैसे मुज़रिम की तकलीफ से कोई मतलब ही ना हो l
तापस उस मुजरिम की तकलीफ नहीं देख पाता है,
तापस- (इंस्पेक्टर को रोकते हुए) यह तुम कर क्या रहे हो...
इंस्पेक्टर - इलाज .... इस लाइलाज नासूर का इलाज...
तापस - स्टॉप इट.... (इंस्पेक्टर रुक जाता है) तुमने इसे मेरे हवाले कर दिया है... अब यह मेरी जिम्मेदारी में है.... और तुम यह मत भूलो... तुम सामने किस रैंक वाले ऑफिसर के सामने खड़े हो...
इंस्पेक्टर - ओह सॉरी सर.... वो काग़ज़ी कारवाई बाकी है...
तापस - दास... इनकी हैंड ओवर कागजात चेक कर लो...
दास उस इंस्पेक्टर से काग़ज़ात लेकर देखता है, और तापस को साइन करने के लिए कहता है l तापस साइन कर कागजात दे देता है l
तापस - अब तुम जा सकते हो इंस्पेक्टर...
इंस्पेक्टर अपना सर हिलाते हुए सैल्यूट कर वहाँ से अपनी सिपाहियों को लेकर निकलने होता है, कि वह डॉक्टर को भी इशारे से बाहर बुलाता है l डॉक्टर उस इंस्पेक्टर के साथ बाहर चला जाता है l यह सब देख कर तापस कुछ सोच कर दास को सारे काग़ज़ात मांगता है और एक काग़ज़ पर कुछ लिख कर दास के कानों में कुछ कहता है l दास अपना सर हिलाता है जैसे सब कुछ समझ गया हो, फिर दास भी सारे कागजात ले कर बाहर निकल जाता है l
दास के जाते ही तापस उस मुज़रिम पर नजर डालता है, वह ज़ख़्म जहां गोली लगी थी और जिस ज़ख़्म को इंस्पेक्टर ने बेरहमी से मसला था वहाँ पर खुन की ताज़ा दाग नजर आ रहा था l
कुछ देर बाद वह डॉक्टर अंदर आता है,

तापस - डॉक्टर... क्या मैं आपसे कुछ पुछ सकता हूँ...
डॉक्टर - जी सर... पूछिये...
तापस - यह कानून का मुज़रिम बेशक है... पर जब तक यह इस हस्पताल के बेड पर है तब तक आपका मरीज़ आपकी जिम्मेदारी है... जब इंस्पेक्टर ने इसकी ज़ख्मों को मसल रहा था... आप इतने शांत कैसे और क्यूँ खड़े थे....
डॉक्टर - (पहले तो सकपका गया, फ़िर खुदको सम्भाल कर) सर एक मुज़रिम के लिए कौन अपने दिल में कोई भावना रखेगा....
उसकी सकपकाहट तापस की पारखी नजर से बच ना पाया
तापस - यह मुजरिम अभीतक एकयुसड है... कंविक्टेड नहीं है... अदालत अभी तक नतीजे पर नहीं पहुची है.... आप कैसे नतीजे पर पहुंच गए....
तापस की इस सवाल पर डॉक्टर अपना अगल बगल झांकने लगा l उससे कुछ जवाब ना मिलने पर
तापस - ह्म्म्म्म... कोई बात नहीं.... मैं इस मुज़रिम को अपनी कस्टडी में भुवनेश्वर कैपिटल हॉस्पिटल ले जाना चाहता हूँ... आप कागजात तैयार कीजिए...
डॉक्टर - य.. यह... यह कैसे हो सकता है.... मैं इसकी इजाजत नहीं दे सकता....
तापस - डॉक्टर साहब क्यूँ.... यह सरकारी मेहमान है... और सेंट्रल जैल भुवनेश्वर में है.... और मुझे इसकी हिफाज़त भी करनी है...
डॉक्टर - नहीं... आप इसे नहीं ले जा सकते...
तभी एक लड़की पच्चीस छब्बीस साल की आती है और डाक्टर से कहती है - हाँ ताकि उसके पैर को काट कर उसे तू अपाहिज कर सके....
तापस - ऐ लड़की... कौन हो तुम... और ऐसे अंदर आ कर किसी पर इल्ज़ाम कैसे लगा सकती हो...
लड़की - साहब... नमस्ते (अपनी दोनों हाथ जोड़ कर) यह मेरा भाई है... (मुज़रिम को दिखा कर)
अभी अभी यह डॉक्टर उस इंस्पेक्टर से बात करते हुए मैंने सुना है.... यह लोग मेरे भाई की पैर काट कर हमेशा के लिए अपाहिज कर देना चाहते हैं.... इसके लिए इस डॉक्टर को पैसे मिलने वाले हैं....
डॉक्टर - व्हाट... स.. सर... यह सरासर झूट बोल रही है... शी इज़ एब्युसिंग माय प्रोफेशन...
इतना कह कर डॉक्टर उस लड़की की तरफ बढ़ने लगा, तापस उसे रोक देता है l
तापस - मुझे इस लड़की से कोई मतलब नहीं है.... डॉक्टर... मैंने बस आप से कहा कि मैं अपने मुज़रिम को यहां से ले जाऊँगा...
डॉक्टर - न.... नहीं...
आप ऐसे नहीं ले जा सकते.... मैं आपको ऐसे इसे ले जाने नहीं दूँगा....
तभी दास अंदर आता है, तापस इशारे से पूछता है, दास भी इशारे से अपना सर हिला कर हाँ में इशारा करता है
तापस - डॉक्टर... अब मेरे पास सरकारी फरमान है... (दास की तरफ हाथ बढ़ाता है, तो दास उसके हाथ में एक काग़ज़ रख देता है) यह अदालत से लाई गई फरमान और आपके सीडीएमएओ जी की दस्तखत....
डॉक्टर की आंखें हैरानी से आँखे फैल जाती है, वह एक हारे हुए आदमी की तरह तापस को देखता है, तापस भी उसके सारे भावों को समझ जाता है
तापस - अब आप एंबुलेंस से मेरे मुजरिम को कैपिटल हॉस्पिटल भेजने की कागजात तैयार कीजिए...वह भी सिर्फ आधे घंटे में....
डॉक्टर अपना सर झुकाए बाहर निकल जाता है, वह लड़की बहुत ही कृतज्ञ दृष्टि से तापस देख रही थी, जैसे ही तापस की नजर उस पड़ी तो वह लड़की हाथ जोड़ कर अपनी कृतज्ञता व्यक्त करती है l
तापस - (उस लड़की से नजर हटा कर) गुड जॉब दास...
दास - थैंक्यू... सर...
तापस - (उस लड़की को देखते हुए) हम्म तो तुम इसकी बहन हो... (लड़की अपना सर हाँ में हिलती है) क्या नाम है तुम्हारा...
लड़की - जी वैदेही...
तापस - हाँ तो वैदेही... यह तुम्हारा भाई है...
लड़की - जी विश्वा मेरा भाई है, स.. सगा नहीं है... पर सगे से भी बढ़ कर है....
तापस - देखो वैदेही... हम तुम्हारे भाई विश्वा को अपने साथ भुवनेश्वर ले जाएंगे.... जब इसके हालत में सुधार होगी.... तब हम अदालत में पेश करेंगे... चूंकि यह हमारी निगरानी में रहेगा.... इसलिए तुम अपने घर चले जाओ....
वैदेही - मैं अपने भाई को छोड़ कर.... कहीं नहीं जाऊँगी....

तापस - देखो तुम्हारा भाई है... ज़ख्मी है... तुम्हारी भावनायें समझ सकता हूँ... पर चूंकि यह अब कानून की निगरानी में रहेगा.... इसलिए जिद मत करो....
वैदेही - (अपनी हाथ जोड़ कर) साहब मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है... सिवाय इसके.... इसपर झूठे इल्ज़ाम लगाया गया है.... अपराध के पीछे बहुत बड़े बड़े लोग हैं.... अपनी करनी को इस बेगुनाह के माथे मढ दिया है.... और अब इसकी जान लेने पर तूल गए हैं.... नहीं साहब मैं इसे छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगी....
तापस - देखो वैदेही... हो सकता है जो तुम कह रही हो... वह सब सच हो... और अदालत में इसे साबित भी तो करना है.... देखो अब यह मेरे जिम्मे है... मुझे अदालत में इसे सही सलामत खड़ा करना है.... इस बीच तुम किसी अच्छे वकील से बात करो.... ताकि अपने भाई को बेगुनाह साबित कर सको.....इसकी इलाज की फ़िक्र ना करो... सरकार इसकी इलाज करवायेगी... इसलिए अभी तुम वापस जाओ...
वैदेही - ठीक है साहब.... मैं आप पर भरोसा करती हूँ... पर अगली बार मिलना चाहूँ तो... मेरा मतलब है... मैं उससे मिलकर खैर ख़बर लेना चाहूँ तो....
तापस - अच्छा एक काम करो.... तुम मेरा मोबाइल नंबर रख लो आज से ठीक सात दिन बाद मुझसे जानकारी ले लो.... अगर मुझ पर भरोसा है तो...
वैदेही - कैसी बातेँ कर रहे हैं साहब.... आपने अभी अभी मेरे भाई को अपाहिज होने से बचाया है.... मैंने आपकी और उस डॉक्टर की सारी बातेँ भी सुनी है....
तापस - तो मुझ पर भरोसा रखो.... और मेरी बात मानो... जाओ यहां से... अगली बार जब आओ एक अच्छे वकील से बात कर अपने भाई को बचाने की कोशिश करना....
वैदेही कुछ नहीं कहती, अपनी दोनों हाथों को जोड़ कर कृतज्ञता से अपना सर हाँ में हिलाती है l
कुछ देर मैं वह डॉक्टर अपने हाथों में विश्वा के ट्रांसफ़र कागजात ले कर आता है और स्ट्रेचर के साथ दो लोग आते हैं l जब वे लोग विश्वा को स्ट्रेचर पर सुलाते हैं, विश्वा के मुहँ से दर्द भरे कराह निकलता है l उसकी कराह सुन कर वैदेही की रुलाई फुट पड़ती है l वह विश्वा के माथे पर एक चुंबन देती है, और तापस को आँखों में आंसू लिए याचना भरे दृष्टि से देखती है l
तापस - वैदेही... तुम्हारा भाई अब मेरे जिम्मे है.... मैं सिर्फ इतना वादा कर सकता हूँ... तुम्हारा भाई स्वस्थ हो कर अदालत में खड़ा होगा.... इसलिए मैंने अभी जो तुमसे कहा है... तुम जा कर उस पर अमल करो...
फिर सब स्ट्रेचर के साथ बाहर एम्बुलेंस में विश्वा को चढ़ा देते हैं l एम्बुलेंस भुवनेश्वर की ओर चली जाती है l तापस भी अपनी सरकारी गाड़ी से हस्पताल के बाहर निकल जाता है, ड्राइवर को हाई कोर्ट ले जाने को कहता है l हाई कोर्ट के बाहर बार काउंसिल के बाहर पहुंच कर फोन लगाता है l थोड़ी देर बाद प्रतिभा हाथों में कुछ फाइलें व गाउन ले कर आती है और तापस के बगल में बैठ जाती है l
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तो सेनापति जी... अपने दास को भेज कर मेरे जरिए उस मुजरिम को कैपिटल हॉस्पिटल क्यूँ शिफ्ट करा दिया....
तापस - यहां मुजरिम की जान को खतरा था... मैंने मेहसूस कर लिया... इसलिए उसे शिफ्ट करवा दिया....
प्रतिभा - तुम ने एक मुजरिम के लिए ऐसा किया...
तापस - देखो... जान... वह जब मेरे कस्टडी में आ गया... तो उसे सही सलामत अदालत में पेश करना मेरा काम है.... तुम जानती हो... डिपार्टमेंट की राय मेरे बारे क्या है या रही है... जब वह मेरे कस्टडी में आ गया तो जब तक अदालत में उसे सही सलामत खड़ा नहीं कर देता... तब तक तो मैं...

प्रतिभा - अच्छा अच्छा ठीक है....
तापस - वैसे थैंक्स...
प्रतिभा - वह किसलिए...
तापस - वह इसलिए के तुमने... बहुत ही जल्दी विश्वा की शिफ्ट करने की ऑर्डर निकलवाने के लिए...
प्रतिभा - वह इसलिए हो पाया.... क्यूंकि विश्वा के खिलाफ सरकारी वकील मैं हूँ...
तापस - ओ....
ऐसे बात चित करते हुए दोनों भुवनेश्वर पहुंच जाते हैं l प्रतिभा को क्वार्टर में उतार देता है और जा कर कैपिटल हॉस्पिटल पहुंच जाता है l रिसेप्शन में पहुंच कर पूछ ताछ के बाद एक कमरे में पहुंचता है जहां एक डॉक्टर विश्वा को चेक कर रहा था l
तापस - हाँ तो डॉक्टर विजय जी... कैसा हाल है इस मरीज़ का...
डॉ. विजय - आओ तापस... बिल्कुल सही टाइम पर आए हो.... तुम्हारे इस मुजरिम की हालत बहुत ही खराब है.... गोली अभी भी पांव में है अगर जल्दी निकाला ना गया तो इन्फेक्शन हो जाएगा.... तब शायद पैर काटना पड़े.. इसको प्राइमरी फर्स्ट ऐड भी प्रॉवाइड नहीं किया गया है....
तापस - ह्म्म्म्म मुझे भी देख कर यही शक हुआ.... ठीक है... तुम इसका ऑपरेशन कर दो... जो फॉर्मालिटी है मैं पूरा कर देता हूँ...
डॉ. विजय - ह्म्म्म्म चलो...
तापस हस्पताल में सारी फॉर्मालिटी पूरा कर लॉबी में बैठ जाता है l लॉबी में बहुत सारे लोग बैठे हुए हैं और दीवार पर लगी टीवी पर न्यूज चल रहा है

"पुरे राज्य को हिला कर रख देने वाले मनरेगा के पैसों की हेर-फेर पर सरकार की तरफ से बैठक पर बैठक हो रही है l कभी अंग्रेजों से लोहा लेने वाले राजगड़ के प्रतिष्ठित परिवार के पिनाक सिंह क्षेत्रपाल जी ने हमारे संवाददाता के साथ इस बारे में बात की
सम्वाददाता - आज हमारे साथ पूरे राज्य की सम्मानित परिवार के एक महत्त्वपूर्ण सदस्य श्री पिनाक सिंह क्षेत्रपाल जी उपस्थित हैं...
हाँ तो श्री क्षेत्रपाल जी... यह जो अभी कांड हुआ है... जो पूरे राज्य को हिला कर रख दिया है... हमारे राज्य की भाव मूर्ति मैली हुई है... और विडंबना यह है कि यह क्षेत्रपाल जी क्षेत्र में हुआ है...
पिनाक - यह वाकई बहुत क्षोभ का विषय है... इतिहास कहता है... हमारा परिवार कैसे अंग्रेजों से लोहा लिया था... इसलिए आज जो हमारा हमारे क्षेत्र का मान सम्मान इस राज्य में है हमारे उन पुरखों की देन है.... पर आज हम बहुत दुखी हैं... पूरे ओड़िशा में जो अनैतिक अर्थ का हेर-फेर हुआ हमारे प्रांत में हुआ... इसलिए हम पुरे राज्य की जनता को और राज्य सरकार को आस्वस्त करना चाहते हैं.... वह पाखंडी विश्व प्रताप जो जनता की पाई पाई को लुटा है... उससे कानून तो हिसाब करेगा... हम भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे कि उसे सजा पर्याप्त मिले और जनता को न्याय मिले...
सम्वाददाता - तो यह थे श्री पिनाक सिंह क्षेत्रपाल जी... कैमरा मैन अभिजीत के साथ....
न्यूज सुनने के बाद तापस वहाँ से उठता है और ऑपरेशन थिएटर के सामने खड़ा हो जाता है l पुरे तीन घंटे के बाद डॉ. विजय बाहर निकालता है तापस की और देखता है और कहता है
डॉ. विजय - यार तापस, एक बात बोलूँ... तुमने सही समय पर उसे यहां ले आए... उसके पैर में इंफेक्शन शुरू हो गया था.... हमने सही टाइम में ऑपरेशन किया.... वरना इसका पैर काटने की नौबत आ जाती...
तापस - थैंक्स यार.... सच कहूँ तो मुझे भी ऐसा ही कुछ लगा था... इसलिए मैं इसे यहाँ शिफ्ट कर दिया....
डॉ. विजय - बहुत अच्छा किया....
तापस - ह्म्म्म्म वैसे कब तक यह ठीक हो जाएगा...
डॉ. विजय - यह मेडिसन पर रेस्पांस कैसे करता है उसपर डिपेंड करता है... पर एक महीने के अंदर ठीक हो जाएगा पर दो तीन महीने तक लंगड़ा कर चलेगा क्यूंकि मांस पेशियां सूखने से और सिकुड़ ने में टाइम लगेगा
तापस - ओह... ह्म्म्म्म
डॉ. विजय - अच्छा इन बातों को साइड में लगा और बोल मेरा होने वाला जमाई कैसा है....

तापस - हाँ मालूम है...उसे भड़का कर मेडिकल पढ़ने का आइडिया तेरा ही था...
डॉ. विजय - अररे बंधु... एक सिंपल सा लॉजिक है.... एमबीबीएस सर्टिफिकेट हाथ में हो तो एक कैबिन में भी बैठ कर स्वरोजगार हो सकता है....
तापस - बस बस यह क्यूँ नहीं बता रहे... की ढलती उम्र में जो नर्सिंग होम बनाने वाले हो उसे चलाने के लिए एक डॉक्टर दामाद की जरूरत है....
डॉ. विजय - तो गलत क्या कर रहा हूँ.... जब बेटी और दामाद दोनों डॉक्टर होंगे तो दहेज में नर्सिंग होम दे ही सकता हूँ...
तापस - पुलिस वाले को दहेज का लालच दे रहे हो....
दोनों कुछ देर के लिए ख़ामोश हो जाते हैं फिर दोनों हंस देते हैं l
तापस - अच्छा और एक सवाल का जवाब दो.... उसे गोली कब मारी गई होगी... टॉर्चर से पहले या बाद....
डॉ. विजय - बंधु मैं कोई फॉरेंसिक डॉक्टर नहीं हूँ..... पर अपने अनुभव के दम पर कह सकता हूँ... पहले बुरी तरह से टॉर्चर किया गया फिर उसे गोली मारी गई...
तापस - ओह.... ओके... (हाथ मिलाने के लिए बढ़ाते हुए) मैं चलता हूँ...
डॉ. विजय से विदा ले कर घर तापस पहुंचता है l प्रत्युष कहीं बाहर जाने की तैयार हो रहा है l प्रत्युष को इशारे से पूछता है कहाँ जा रहा है, प्रत्युष भी इशारे से तापस से चुप रहने को कहता है और इशारे से बताता है हॉकी देखने को जा रहा है l तापस इशारे से प्रतिभा के बारे में पूछता है, प्रत्युष भी इशारे से बताता है कि प्रतिभा फाइल पलट कर देख रही है और कुछ लिख रही है l तापस ऐसे अपना सर हिलाता है जैसे उसे सब मालूम हो गया फिर इशारे से प्रत्युष को बाहर जाने को कहता है, जिसे देख कर प्रत्युष इशारे से अपनी खुशी जाहिर करता है और प्रतिभा को सम्भालने के लिए तापस से इशारे से अनुरोध करता है, तापस उसे इशारे अपनी सहमती देता है तो प्रत्युष तापस को फ्लाइंग किस देता है और चुपके से बाहर निकल जाता है l प्रत्युष के जाने के बाद तापस अपने कपड़े बदल कर फ्रेश होता है और बैठक में आता है l इतने में प्रतिभा एक चाय की प्याली लाकर तापस को देती है l तापस चाय पीते हुए प्रतिभा को देखता है l प्रतिभा उसे देख कर मुस्करा रही है l
तापस - ऐसे क्यूँ देख रही हो.... और ऐसे हंस रहे हो जैसे मेरी कोई चोरी पकड़ ली है तुमने...
प्रतिभा - कोई शक़...
तापस - क्या मतलब....
प्रतिभा - तुम जब घर आए.. तब मैं अपना काम रोक कर तुम्हारे पास आ रही थी.... तब तुम बाप बेटे की मूक गुफ़्तगू देख ली थी...
तापस - ओह... तो ऐसा हो गया.... मतलब स्टेडियम में फ्लॉड लाइट लगा कर लुका छुपी खेल रहे थे....
प्रतिभा - हा हा हा हा हा.. जी जनाब...
तापस - तो तुमने रोका क्यूँ नहीं.... तुम्हें तो उसका बाहर जाना पसंद नहीं है ना...
प्रतिभा - ऐसी बात नहीं है... हाँ उसके बाहर जाने पर थोड़ा प्रतिबंध लगाती हूँ... क्यूंकि वह मेडिकल पढ़ रहा है... मस्तियाँ ठीक है पर ज्यादा बाहर घूमने पर पढ़ाई पर असर हो सकता है... इसलिए उसके बाहर जाने पर रोकती हूँ.... वैसे तो बिल्ली आँख मूँद कर दूध पीती है पर इधर बाप बेटे बिल्ला बन कर आँखे मूँद कर दूध पी कर खुश हो रहे थे... की माँ को कुछ पता नहीं चल पा रहा है... तो तुम बेवकुफ हो.... मैं आपको यह बताने आई थी सेनापति जी....
तापस - अच्छा ठीक है... पर उसे फोन कर के बता दो... के रात को जल्दी आ जाए... वरना कल उसके टांगे तोड़ दूँगा...
प्रतिभा - वैसे सेनापति जी... यह आपने लगता है एक सौ इक्कीस बार कह चुके हैं...
तापस - पर यह आखिरी बार है...
प्रतिभा - तो फिर ठीक है... मैं अभी उसको फोन कर बताती हूँ..
तापस - हाँ... अच्छी बात है... और आज तुम्हारा क्या हुआ...
प्रतिभा - आज जैसे ही कोर्ट पहुंची.. मुझे विश्व प्रताप महापात्र की केस फाइल थमा दी गई... मैं सोच रही थी... बहुत बड़ी केस है.... कोई और देख ले तो अच्छा होगा... पर इतने में तुम्हारा दास आया तुम्हारा रिक्वेस्ट लेटर ले कर... तो मैंने अपनी चैनल लगा कर तुम्हारा काम कर दिआ... तो बदले में मुझे यह केस लेने के इमोशनल बाध्य किया गया...
तापस प्रतिभा का हाथ पकड़ कर - सॉरी...
प्रतिभा - अरे कोई नहीं..... आखिर मैं भी तो पब्लिक प्रोसिक्यूटर हूँ...
तभी बैठक में लैंड लाइन फोन रिंग होती है l प्रतिभा फोन उठाती है फिर तापस को देती है l फोन पर बात कर लेने के बाद तापस प्रतिभा से कहता है - अच्छा मैं ऑफिस जा रहा हूँ... ऑडिट चल रहा है... आते आते देर हो सकती है...
प्रतिभा - कोई बात नहीं... ड्यूटी आफ्टर ऑल ड्यूटी.... आप जाइए... आपके आने का इंतजार करूंगी... और आने के बाद मिलकर ही डिनर करेंगे...
तापस - ठीक है जान...
इतना कह कर तैयार हो कर तापस निकल जाता है
तापस के जाने के बाद प्रतिभा वह केस की फाइल निकाल कर अपनी तैयारी करने लगती है l इस तरह वक्त कुछ बीत जाती है l फिर फाइल रख कर खाना बनाने के लिए किचन में आती है l
तभी घर की लैंड लाइन बजने लगती है, प्रतिभा जाकर फोन उठाती है तो दूसरे तरफ से तापस था
तापस - हाँ जान मुझे आते आते साढ़े दस बज जाएंगे तो तुम माँ बेटे खा लो... और मेरे लिए टेबल पर खाना लगा कर सो जाना l
इतना सुनते ही प्रतिभा अपनी दांतों तले जीभ दबा लेती है और कहती है - हाँ ठीक है....
और फोन रख देती है l
फिर प्रत्युष को तुरंत फोन लगाती है, और फोन लगते ही
प्रतिभा - तू कहाँ है...
प्रत्युष - माँ हॉकी की प्रिमीयर लीग चल रही है... अभी हम स्टेडियम के बाहर आये हैं... दूसरा मैच खत्म होते ही आ जाऊँगा और हाँ मैं आज बाहर ही खा लूँगा....
प्रतिभा - क्या.... तेरे डैडी तुझे बाहर क्या भेजे... तेरे पंख निकल आये हैं.... तु अपने डैडी से इजाज़त लेले....
प्रत्युष - माँ... मेरी प्यारी माँ... तु... कितनी अच्छी है... तु कितनी प्यारी है.... ओ माँ प्यारी माँ...
प्रतिभा - अच्छा तु मस्का मार रहा है... या उल्लू बना रहा है...
प्लीज माँ प्लीज... सिचुएशन थोड़ी है टाइट ... क्या मिलेगा तुम्हें देख कर बाप बेटे की फाइट... मैं जानता हूँ.. मेरा बाहर आना आप अच्छी तरह से जानते हो... पर यह देर से आने वाली सिचुएशन सम्भाल लो ना प्लीज....
प्रतिभा - अच्छा ठीक है... मैं कुछ करती हूँ... और सुन... घर आकर कॉलिंग बेल मत बजाना... मैं फोन को वाइब्रेशन मोड़ में रखूंगी... घर पहुंचते ही कॉल करना...
प्रत्युष - ओह.. थैंक्यू मोम.. थैंक्यू... एंड आई लव यू.. उम्म्म्म्म् आ...
प्रतिभा - लव यू ठु... पर यह लास्ट टाइम है....
प्रत्युष - ओह यीएह...
प्रतिभा हंसते हुए फोन रख देती है l और सीधे जा कर प्रत्युष के कमरे में आती है l दो तकिये और चादरों को बिस्तर पर कुछ ऐसे सजाती है कि कोई देखेगा तो उसे लगेगा कोई सोया हुआ है l फिर आकर किचन में बिजी हो जाती है l
ठीक साढ़े दस बजे तापस घर आता है तो पाता है प्रतिभा उसकी इंतजार कर रही है l
तापस - अरे जान तुम सोई नहीं... प्रत्युष अभी तक आया नहीं है क्या....
प्रतिभा - वह कब का आकार.. खाना खा कर सो गया है....
तापस - अच्छा... इतना फर्माबर्दार हो गया है... जरा देखूँ तो...
तापस, प्रत्युष के कमरे की और बढ़ता है और दरवाजा खोल कर अंदर झांकता है तो उसे तापस अपने बिस्तर पर चादर ढक कर सोया हुआ मिलता है, तापस आगे बढ़ने ही वाला होता है कि प्रतिभा पीछे से उसका हाथ पकड़ लेती है,
प्रतिभा -(धीमी आवाज़ में) खबरदार जो मेरे बच्चे को जगाया तो....
तापस अपना सर हिला कर कमरे से बाहर निकालता है और अपने हाथ पैर और मुहँ धो लेता है l फ़िर पति पत्नी अपना डिनर खतम कर अपने कमरे में सोने जाते हैं l बिस्तर पर गिरते ही तापस को नींद आ जाती है, पर प्रतिभा सो नहीं पाती l ठीक साढ़े बारह बजे उसकी फोन वाइब्रेट होने लगती है l प्रतिभा फोन निकालती है और कॉल काट देती है l फिर तापस की ओर देखती है l उसे यक़ीन हो जाता है कि तापस घोड़े बेच कर सोया हुआ है
प्रतिभा बहुत धीरे से अपने बिस्तर से उठती है l और बाहर बैठक में आकर दरवाजे के पास खड़ी होती है l फिर वह पीछे मुड़ कर देखती है कि कोई नहीं है l एक गहरी चैन की साँस लेती है फिर धीरे धीरे दरवाजे की हूक खोलती है l हूक भी बिना आवाज किए खुल जाती है l प्रतिभा कोशिश करती है कि दरवाजा खुलते वक्त कोई आवाज़ ना करे पर किसी हॉरर फ़िल्म की सीन की तरह कर्र्र्र्र्र्र्र् की आवाज़ से खुलती है l बाहर प्रत्युष खड़ा हुआ है, वह प्रतिभा को इशारे से तापस के बारे में पूछता है तो उसे प्रतिभा इशारे से तापस सोया हुआ है बताती है और प्रत्युष को पहले जुते खोलने को बोलती है l प्रत्युष अपना जुते उतार देता है l अब प्रतिभा उसे चुप चाप अंदर आने को इशारा करती है l प्रत्युष कोई आवाज़ किए बिना अंदर आता है और अपने कमरे में पहुंच जाता है, उसके कमरे में जाते ही प्रतिभा धीरे से बाहर का दरवाजा बंद कर देती है l दरवाजा बंद होते ही प्रतिभा एक गहरी सांस छोड़ती है और प्रत्युष के कमरे में आती है, अंदर आते ही प्रत्युष के पीठ पर एक थप्पड़ मारती जिससे थोड़ी धप की आवाज़ आती है, मार लगते ही प्रत्युष मुड़ता है तो प्रतिभा उसे इशारे से चुप रहने की इशारा करती है, प्रत्युष भी अपने मुहँ पर उंगली रख कर चुप रहता है और फ़िर प्रतिभा धीरे से कमरे का दरवाजा बंद कर के प्रत्युष की कान खींचती है... प्रत्युष हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगता है, प्रतिभा उसका कान छोड़ देती है और चुप चाप बिस्तर पर जाने को कहती है, बिस्तर पर पहले से ही अरेंजमेंट देख कर अपनी माँ को फ्लाइंग किस देता है l प्रतिभा मुस्कराते हुए फ़िर मारने की इशारा करते हुए बाहर निकल जाती है और अपने कमरे में वापस आती है l वह तापस को जैसा छोड़ गई थी तापस वैसा ही लेता हुआ है l प्रतिभा अपने सीने में हाथ रख कर एक चैन सांस लेती है और चादर ओढ़ कर तापस के बगल में लेट जाती है l
"हाँ तो बिल्ला की माँ बिल्ली आँखे मूँद कर दुध पी आई" कमरे में तापस की आवाज़ आती है l
प्रतिभा - (धीरे से) क्यूँ जी आप अभी तक सोये नहीं...
तापस - (प्रतिभा की ओर मुड़कर, धीरे से ) भई बेटा बाहर है... मुझे नींद कैसे आएगी....
प्रतिभा - (धीमी आवाज़ में) तो आप मुझे बेवकुफ बनाया...
तापस - जान... शाम को तुमने मुझे बिल्ला बनाया... मैंने रात को तुम्हें बिल्ली बनाया...
प्रतिभा - अजी.. एक बात कहूँ आज ना... आपका शरारत देख कर ना मुझे आप पर बड़ा प्यार आ रहा है.....
तापस-अरे जान.... आज मुझे भी तुम पर बड़ा प्यार आ रहा है..
प्रतिभा - अच्छा जी.... आज बुढ़ापे में हम पर फिर प्यार आया है....
तापस - वह कहते हैं हमसे
अभी उमर नहीं है प्यार की
नादां है वह क्या जाने
कब खिली कली बाहर की
प्रतिभा - यह कौनसी फिल्म का गाना है...
तापस - पता नहीं आज जैल में सुना था इसलिए तुम्हें चेप दिआ..
प्रतिभा उसके गाल पर प्यार से हाथ फ़ेरती है और अपना होंठ बढ़ाती है,तापस भी अपना होंठ उसके होंठो पर रख देता है और अपनी बाहों में जोर से भिंच लेता है l
इस तरह से कुछ दिन बीत जाते हैं l इन कुछ दिन में हर रोज तापस हस्पताल जा कर विश्वा की खैर खबर लेता रहा l आज सुबह अपना ऑफिस जाने से पहले हस्पताल पहुंच कर डॉ. विजय से मिल कर विश्वा की हालत जानना चाहा
डॉ. विजय - आओ जैलर आओ... क्या खबर लेने आए हो.... जो भी खबर सुनोगे... बहुत खुश होगे.... शाबासी भी दोगे...
तापस - क्यूँ.. भाई... मैं तो सिर्फ विश्वा की खैरियत जानने आया हूँ....
डॉ. विजय - अररे बंधु.... यह जो तुम्हारा मुजरिम है.... बड़ा ही जबर्दस्त प्राणी है.... मेडिसन और ट्रीटमेंट पर उसकी बॉडी बढ़िया रेस्पांस कर रही है.... तुम फिटनेस का हवाला देते हुए केस की तारीख़ निकाल सकते हो...
तापस - चलो... अच्छी खबर दी है तुमने... तुम्हारा हस्पताल का बिल सरकारी खाते से जल्दी मिल जाए मैं कोशिश करूंगा...
डॉ. विजय - आ.. ह... लिव ईट... अब बताओ अपना हीरो कैसा है...
तापस - हाँ... यह हॉकी ला लीग खत्म हो जाए तो वह पढ़ाई में ध्यान देगा....
डॉ. विजय - ओह.. कॉम ऑन... यार पढ़ाई के प्रेसर से इस तरह की लीग रिलैक्स करते हैं... अब इस उम्र में यह नहीं करेगा तो कब करेगा... जिस दिन जिम्मेदारी सम्भाल लेगा... यह सब भी छुट जाएगा....
तापस - हाँ शायद तुम ठीक कह रहे हो....
फिर डॉ. विजय से हाथ मिला कर अपने क्वार्टर की तरफ निकल जाता है l क्वार्टर पहुंचते ही उसे अपने क्वार्टर के गेट के गेट बाहर वैदेही को खड़ी हुई दिखती है l
तापस - तुम.... विश्व की बहन.. हो... वैदेही.. है नाम तुम्हारा... हैं ना..
वैदेही - जी... सुप्रीनटेंडेंट साहब...
तापस - पर तुम यहाँ...
वैदेही - जी वो... अपने कहा था... विश्वा की खबर लेने के लिए... आपसे...
तापस - पर तुम्हें... मैंने अपना फोन नंबर दिया था... ना... तुम फोन पर उसकी खबर ले सकती थी... यहाँ तक आने की क्या जरूरत थी...
वैदेही - वो... आपने विशु के लिए एक अच्छा वकील देखने के लिए कहा था ना... इसलिए..
तापस - विशु.... ओ.. अच्छा... तुम विश्वा की बात कर रही हो...
वैदेही - जी....
तापस - देखो हम कब तक यहाँ गेट पर खड़े होकर बात करते रहेंगे... एक काम करो अंदर आओ... वहीँ बात चित करते हैं और मुझे ड्यूटी भी जाना है...
वैदेही अपने हाथ में लाई बोतल की पानी से अपने पैर धोती है और फिर तापस के साथ बैठक में आती है l प्रतिभा बैठक में आकर तापस से कुछ कहने को होती है कि वैदेही को देख कर चुप हो जाती है और तापस को आँखों के इशारे से वैदेही के बारे में पूछती है l
तापस - यह वैदेही है... तुम्हारे उस मुज़रिम की बहन लगती है... मुझसे उसका हाल चाल पूछने आई है...
वैदेही प्रतिभा को नमस्कार करती है l प्रतिभा भी उसका ज़वाब नमस्कार से देती है l
तापस - हाँ तो वैदेही....बैठो (वैदेही और कहो.... तुमने अपने विशु के लिए वकील मुकर्रर कर ली...
वैदेही - जी अभी तक कोई नहीं है.... मैंने जितने वकीलों से बात की... सारे इतने पैसे मांग रहे हैं कि... अब हम इतने पैसे कहाँ से लाएँ.... अगर आपकी पहचान की कोई वकील हो तो....
तापस - देखो वैदेही... नाउ दिस इस लिमिट.... ना तो तुम पहचान की हो और ना ही कोई रिश्तेदार.... अगर होती भी... तब भी मैं तुम्हारी कोई मदत नहीं करता.... यह मेरी वसूल और जॉब प्रोफेशन के विरुद्ध है....
वैदेही - (अपनी दोनों हाथ जोड़ कर) साहब मेरा भाई निर्दोष है.... उसे सब सफ़ेद पोश लोगों ने मिलकर फंसाया है.... इसलिए मैं.... मेरा मतलब है.... आप ने देखा ना... कैसे वह लोग मेरे भाई के जान के पीछे पड़े हुए हैं.... चूंकि आप अच्छे हैं और आपने मेरे भाई को बचाया है..... इसलिए आपसे मदत मांग रही हूँ....
तापस - जितनी मेरी ड्यूटी थी... मैंने उसे पूरी ईमानदारी से निभाया है... और वह एक्वुशड है... उसके लिए वकील तुम्हें ढूंढना है.... मैं कैसे बता सकता हूँ....
वैदेही कुछ कह नहीं पाती अपने आंखों में आंसू लिए हाथ जोड़कर तापस की ओर उम्मीद भरी नजरों से ताक रही होती है l प्रतिभा जो इतनी देर से देख व सुन रही थी, उससे रहा ना गया,
प्रतिभा - वैदेही.... तुम अपनी भाई को निर्दोष मान सकती हो... पर पुलिस तहकीकात व रिपोर्ट कुछ और ही बयान कर रही है... तुम्हारा भाई एक चालाक और शातिर मुज़रिम है जो कुछ सरकारी अधिकारियों के मिली भगत से साढ़े सात सौ करोड़ रुपयों का गवन किया है...
वैदेही - मेम साहब.... जब तक अदालत में अपराध साबित ना हो जाए... उसे कोई भी दोषी नहीं ठहरा सकता है....
प्रतिभा - ठीक.... बिल्कुल... ठीक कहा तुमने.... पर तुम तुम जिस घर में आई हो वह एक पब्लिक प्रोसिक्यूटर का घर है.... जिसका काम है पुलिस की छानबीन को सही साबित करना.... शूकर करो उसके ऊपर हत्या का संदेह है... अगर छानबीन में आगे पता चले या सबूत मिले तो मैं उसके लिए फांसी की सजा तक कि मांग कर सकती हूँ....
वैदेही - (थोड़े गुस्से में) वह बेगुनाह है.... आप जानती हैं... जिस रकम की बात कर रही हैं... उसमें कितने शुन्य है... हमे नहीं पता....... और मैं यहां इसलिए आई थी... के उस दिन सुपरिटेंडेंट साहब को शायद एहसास हो गया कि... विशु निर्दोष है और उसे कुछ लोग क्यूँ मारना चाहते हैं..... पर आप लोग तो उसे दोषी मान कर चल रहे हैं.....
प्रतिभा - (थोड़ी ऊंची आवाज में) आवाज़ नीचे... सुपरिटेंडेंट साहब अगर तुम्हारे विशु को बचाए हैं.... तो यह उनका फ़र्ज़ था.... और तुम्हारे विशु को दोषी अदालत में ठहराउं... यह मेरा फ़र्ज़ है.... और हम दोनों अपने अपने जॉब प्रोफेशन के प्रति समर्पित व ईमानदार हैं.... कानून कभी जज्बातों को नहीं देखती... सिर्फ़ सबूत देखती है और सुनती है.... और मेरे पास जितने सबूत हैं... उसके बिना पर कह सकती हूँ... तुम्हारा भाई अपने कुकर्म से किसी भी पेशेवर मुज़रिम को मात दी है....
वैदेही - वाह... वकील साहिबा वाह.... एक इक्कीस साल का नौजवान... इतना बड़ा रकम लूट ले आप इसपर यक़ीन कर सकती हैं....
प्रतिभा - इक्कीस साल.... तुमने दिल्ली के डीटीसी बस में हुई बलात्कार कांड सुनी है ना.... कितने उम्र के थे वह अपराधी.... एक तो नाबालिग था... इसलिए यह बहस बेकार है...
वैदेही - (अपने हाथ जोड़ कर) मुझे माफ कर दीजिए.... मैं बस इतना कहना चाहती हूं.... आप अपने जॉब के प्रति समर्पित हैं... ईमानदार हैं... आज जिस ओहदे पर हैं, समाज के प्रति कुछ जिम्मेदारियां भी है.... हर सिक्के का दूसरा पहलू भी होता है.... आज आप वही एक पहलू देख रहे हैं... जो आपको दिखाया गया है... जिसके आधार पर आप विशु को दोषी मान रहे हैं.... पर एक सवाल है.... जब विशु को सजा हो जाए.... और आपको मालूम पड़े के आपने जिसे सजा दिलवाई है... वह निर्दोष था... और असली अपराधी तो कोई और था... तब क्या आप अपने आपको क्षमा कर पाएँगी.....
प्रतिभा - लुक... आई नो व्हाट आई एम डुइंग.... सिक्के का दूसरा पहलु देखना या दिखाना डिफेंस लॉयर का काम है... एंड आई कैन नॉट एडवाइस यु... हू कैन बी गुड फॉर योर केस... आई एम अ पब्लिक प्रोसिक्यूटर एंड आई एम प्रोफेशनल...
तापस - बस.... बहुत हुआ.... वैदेही.... तुम्हें अपनी भावनाओं पर काबु रखना चाहिए.... और प्रतिभा तुम्हें भी....
वैदेही तुम्हें हमारी पेशावर मजबूरी को समझना चाहिए.... इसलिए प्लीज.... हमसे तुम ऐसा कुछ उम्मीद मत करो... यह लड़ाई तुम्हारी और तुम्हारे भाई की है.... सो प्लीज....
वैदेही - मैं फिर से माफ़ी चाहूँगी..... मैं वाकई भूल गई... जब अपने गांव में किसीने हमारा साथ ना दिया... तो मैं कैसे आपसे उम्मीद लगा बैठी.... पर भगवान से यह दुआ जरूर मांगूंगी... न्याय की बिजली कभी भी आपके इस घर पर ना गिरे..... के आपकी ईमानदारी जो आज आपकी ताकत भले ही है... पर आज इसे आपने अपना अहम बना दिया है.... वह कभी आपकी बेबसी ना बन जाएं.... अब मैं चलती हूँ सुपरिटेंडेंट साहब... अब जो भाग्य में लिखा होगा वह होगा.... आपने मेरी इतनी मदत की इसलिए तह दिल से धन्यबाद....


Very nice update bro
 

Rajesh

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तापस डॉ. विजय से विश्व की फिटनेस सर्टिफिकेट लेने के बाद सीधे विश्व जिस वार्ड में था, उसी वार्ड में आकर पहुंच जाता है l
अंदर विश्व एक कैजुअल पहनावे के साथ खड़ा हुआ था l
तापस - तो विश्व तैयार हो....
विश्व - जी सुपरिटेंडेंट साहब.... पर मुझ जैसे कैदी को लेने आप जैसे पदाधिकारी....
तापस - आई बी अलर्ट है.... तुम पर हमला हो सकता है.... जब से मीडिया मैं.... न्यूज चल रहा है... आज तुम्हारी पहली, पेशी है... तब से कटक में जमावाड़ा बढ़ गया है....
विश्व- आप फिक्र ना करें.... सुपरिटेंडेंट साहब.... वे लोग कुछ भी कर सकते हैं.... पर मेरी जान नहीं लेंगे.... या फिर यूँ कहूँ कि उन लोगों को मुझे हानि पहुंचाने की इजाजत तो है पर जान से मारने की नहीं.....
तापस - व्हाट.... यह तुम किस बिना पर कह सकते हो....
विश्व - अगर उन्हें मारना ही होता... तो मुझे राजगड़ में ही मार सकते थे....
तापस - हो सकता है... भीड़ को उकसा कर मरवाने का प्लान हो उनका....
विश्व - नहीं... सुपरिटेंडेंट साहब.... मैं अगर मर गया तो.... वह हार जाएगा....
तापस - कौन...
विश्व - वही जिसने यह खेल रचा है.... जिसकी मंसा यह थी के मेरी बाकी की जिंदगी.... राजगड़ के गालियों में लंगड़ाते हुए... भीख मांगते हुए गुजर जाएगी.... पर आपने उसकी पहली मंसूबे पर पानी फ़ेर दिया है.... मेरी टांग बचा कर....
तापस - ओह तो फिर.....
विश्व - चलिए चलते हैं.... आगे क्या होगा बस आप देखते जाइए....
तापस मन ही मन में सोचने लगा "यह इतना शांत लग रहा है, कोई डर भी नहीं है.... क्या पता इस उम्र में प्रोफेशनल की तरह बात कर रहा है.... हो सकता है... जो भी इल्ज़ाम लगे हैं.... शायद सच हो..."
तापस और विश्व एक जालीदार वैन में बैठ कर कोर्ट की ओर निकल जाते हैं l तापस देखता है बहुत सारे मीडिया चैनल वाले उनके पीछे लगे हुए हैं l आख़िर कार वैन कोर्ट में पहुंच जाते हैं l तापस गाड़ी से उतर कर विश्व की तरफ वाली दरवाजा की ओर बढ़ रहा है कि एक पेट्रोल बॉम्ब उस गाड़ी के छत पर आकर गिरता है, तो गाड़ी के छत पर आग लग जाती है l आग लगते ही आस पास खड़े लोगों में अफरा-तफरी मच जाती है l अफरा-तफरी के बीच तापस विश्व को किसी तरह से कोर्ट के भीतर ले जा कर जज के सामने खड़ा कर देता है, और विश्व
की मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट प्रतिभा के हाथों से जज तक पहुंचाता है, विश्व की सर्टिफिकेट देखने के बाद कोर्ट की कारवाई में,
जज - अभियोजन पक्ष की तैयारी पूरी है... पर अभियुक्त पक्ष की तैयारी अधूरी है... अभियुक्त पक्ष को एक माह का समय दिया जाता है.... ताकि वे अपनी तैयारी पूरी कर आयें.... अगली सुनवाई **** तारीख को होगी.... तब तक आरोपी श्री विश्व प्रताप महापात्र को केंद्रीय कारागृह में रखा जाए...
यह सुन कर वैदेही दुखी हो कर वहीं बैठ जाती है l विश्व को जैल ले जाने के लिए संत्री विश्व के हाथों में हथकड़ी डाल कर बाहर ले जाते हैं l वैदेही बाहर दौड़ कर आती है l विश्व के साथ साथ गाड़ी तक जाते हुए,
विश्व - दीदी... आप क्यूँ यहाँ आई हो... मुझे मेरे हाल पर छोड़ क्यूँ नहीं देती....
वैदेही - (रोते हुए) चुप कर... जिस उम्र में लड़कियां खिलौने से खेलती हैं... उस उम्र में मैंने तुझे माँ बन कर पाला है... बड़ा किया है... तुझे ऐसे कैसे इस हाल में छोड़ दूँ....
विश्व - दीदी... मेरी तो सिर्फ इज़्ज़त दाव पर लगी है.... जब कि उस क्षेत्रपाल की दौलत, ताकत और रुतबा दाव पर लगी हुई है....
वैदेही - हाँ जानती हूँ शायद इसलिए कोई वकील तेरा केस नहीं ले रहा है.....
विश्व - दीदी... इसलिए कह रहा हूँ.... आप गांव चली जाओ.... इस केस में मुझे फांसी नहीं होगी.... हाँ कुछ सालों के लिए... जैल होगी...
वैदेही - नहीं मैं पूरी कोशिश करूंगी....
विश्व गाड़ी में चढ़ जाता है l वैदेही वहीँ नीचे खड़ी रह जाती है l गाड़ी में बैठने के बाद विश्व अपना चेहरा घुमा लेता है और कोर्ट छोड़ने तक पीछे मुड़ कर नहीं देखता है l वैदेही रो रो कर वहीं नीचे बैठ जाती है l
यह सब ख़ामोशी से देखते हुए तापस सोचने लगता है "आख़िर माजरा क्या है.... यह क्षेत्रपाल कहाँ से आ गया..... खैर मुझे क्या...."
गाड़ी जैल के मुख्य फाटक से गुजर कर भीतर पहुंचता है l विश्व गाड़ी से उतरता है l फौरन एक संत्री आकर उसे ऑफिस के भीतर ले जाता है और दास के सामने खड़ा कर देता है l

दास - विश्व अपने साथ जो भी यहाँ ले कर आए हो... वह सब यहाँ पर जमा कर दो....
विश्व - मेरे पर मेरे इन्हीं कपड़ों के सिवा कुछ और नहीं है....
दास - ठीक है उस कमरे में जाओ.... अपने कपड़े उतार कर यह कपड़े पहन कर आओ....
विश्व दास के दिए जैल के यूनीफॉर्म लेकर एक छोटे से कमरे में आता है और अपने सारे कपड़े उतार कर जैल के कपड़े पहन लेता है और अपने कपड़े लेकर दास के पास आता है l दास एक काग़ज़ पर उसके दसों उँगलियों के निशान लेता है l फ़िर उसे एक स्लेट थमा देता है और एक सफ़ेद पर्दे के सामने खड़ा कर देता हैदास उस स्लेट पर 511 लिख देता है l उसके बाद एक फोटो ग्राफर कुछ फोटो ले लेता है l फोटो उठा लेने के बाद विश्व दास के पास जाता है l दास उससे स्लेट ले लेता है और विश्व को एक बाल्टी, एक मग, एक कंबल और एक चादर देता है l उसके बाद पास खड़े संत्री को कहता है
दास - इसे बैरक नंबर 3 के ग्यारह नंबर के सेल में ले जाओ....
संत्री - (सैल्यूट दे कर) जी सर...
विश्व उस संत्री के साथ चला जाता है l रास्ते में उसे कई तरह के कैदी दिखाई देते हैं l कुछ कैदी उस पर तंज कसते हैं
एक - ऑए होय... क्या चिकना है रे...
दूसरा - अबे यह लंगड़ा क्यूँ रहा है....
एक - लगता है आपने मामू लोगों के साथ भांगडा करते करते लंगड़ा गया....
तीसरा - अबे मुझे तो कुछ और लग रहा है....
एक - क्या....
तीसरा - किसीने बिना चड्डी उतारे पीछे से लेली इसकी.... इसलिए लंगड़ा रहा है....
सारे कैदी एक साथ - हा हा हा हा हा हा....
चौथा - पर इसकी ली किसने होगी....
तीसरा - जरूर किसी हिजड़े ने ली होगी.....
सारे - हा हा हा हा....
संत्री विश्व को उसके सेल में पहुंचा देता है l विश्व सेल के अंदर जाता है, उसके अंदर जाते ही संत्री बाहर ताला लगा कर चल देता है l विश्व उस आठ बाई दस की कोठरी को देखता है l एक कोने में संढास है, और एक कोने में वश बेसिन के साथ पानी का टाप भी है और उस पर एक आईना भी लगा हुआ है l छत पर एक पंखा और दीवार एक बल्ब भी है l यह सब देखकर विश्व एक गहरी सांस लेता है और अपने साथ लाए हुए सारी चीजों को एक कोने में ले जा कर रख देता है, फिर दीवार से सट कर बैठ जाता है l फिर अचानक से रोने लगता है, रोते रोते वह फर्श पर लेट कर छत की ओर देखने लगता है l

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अपनी गाड़ी में तापस और प्रतिभा सज धज कर कहीं जा रहे हैं l
प्रतिभा - आज रात की पार्टी में हम दोनों इंवाइटेड हैं.... पर अलग अलग जरिए से... पर क्यूँ
तापस - हाँ.... मुझे शाम को अचानक कमिश्नर जी का फोन आया... और कहा कि सेनापति अटॉर्नी जनरल यहाँ आज पार्टी है और आप विशेष निमंत्रित अतिथि हो.... इसलिए आठ बजने से पहले पहुंच जाना..... मैं समझ नहीं पाया के अटॉर्नी जनरल जी को मुझसे क्या काम पड़ गया है...
प्रतिभा - मुझे भी समझ में नहीं आ रहा है.... आज बार काउंसिल में हम बैठ कर कुछ विषयों पर चर्चा कर रहे थे कि तभी मुझे भी फोन आया... की मैं आज रात आठ बजे अटॉर्नी जनरल के यहाँ पहुंच जाऊँ..... जब कारण पुछा तो मुझे सिर्फ इतना बताया गया.... जो लोग न्याय व कानून व्यवस्था से जुड़े हुए हैं.... उन्हीं लोगों के साथ उनकी खास मीटिंग है....
ताप - वही तो.... ज़रूर कोई इमर्जेंसी होगी.... या तो राज्य के लिए... या फिर किसी और विषय में जो राज्य के तंत्र व प्रशासन से संबंधित हो.....
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... हम सिर्फ़ अनुमान ही लगा रहे हैं.... असली बात तो वहाँ पहुँचते ही मालुम पड़ेगा....
तापस - हाँ देखते हैं....
उधर एक बड़ी सी रोल्स रॉयस कार में नागेंद्र सिंह, भैरव सिंह और पिनाक सिंह तीनों आमने सामने बैठे हुए हैं l
पिनाक - यह हम अटॉर्नी जनरल के यहाँ क्यूँ जा रहे हैं.....
भैरव - हम अटॉर्नी जनरल के यहाँ पार्टी रखी है... इसलिए जा रहे हैं....
पिनाक - क्या उसके यहाँ पार्टी रखने की क्या जरूरत थी..... हम होटल अशोका या और किसी बड़े रिसॉर्ट में भी रख सकते थे....
नागेंद्र - (थोड़े खांसते हुए) छोटे राजा जी.... थोड़ा धीरज रखें.... राजा जी ने बड़ी दूर की सोची है....(थोड़ी देर के लिए चुप हो गया)
नागेंद्र - यह (खरास लेते हुए) सपोला विश्व... कम्बख्त बड़ा खेल गया.... यह तो जानते ही हैं....(थोड़ी गहरी सांस लेते हुए)
भैरव - (टोकते हुए) बड़े राजा जी.... आप मुझे इजाजत दें.... मैं छोटे राजा जी को विस्तार से बताता हूँ.....
नागेंद्र - (खांसते हुए, और भैरव को हाथ दिखाते हुए) कितनी बार कहे हैं.... खुद को मैं नहीं... हम कहा कीजिए.... और अपनों को तुम नहीं आप कहा कीजिए....
भैरव - जी आगे से हम ध्यान रखेंगे....
नागेंद्र हाथ के इशारे से बात को आगे बढ़ाने के लिए कहता है l
भैरव - हाँ तो छोटे राजाजी.... वह हराम का जना... विश्व हमारे विरुद्ध सात जगहों पर शिकायत लिख कर भेजा था... यह तो आप जानते ही होंगे....
पिनाक - हाँ.... हम जानते हैं.....
भैरव - तो यूँ समझिए.... विश्व ने अब हमें अपनी मांद से निकलने के लिए मजबूर कर दिया....
पिनाक - अच्छा..... तो फ़िर उस हराम जादे को सारी रकम में क्यूँ नहीं लपेट लिए.... सिर्फ साढ़े सात सौ करोड़ रुपए की मामूली रकम में ही लपेट लिए....
भैरव - आप पागल तो नहीं हो गए..... एक मामूली सा सरपंच.... के लिए साढ़े सात सौ करोड़... बहुत बड़ी रकम होता है.... पूरा का पूरा रकम अगर हम सामने लाते तो.... एजेंसीस् को हम पर भी शक़ हो जाता...
पिनाक - ठीक है... पर इसके लिए हमे भुवनेश्वर कूच करने की क्या जरूरत थी....
भैरव - हाँ अब हम सिर्फ खुदको राजगड़ में सिमित नहीं रख सकते.... एक कुए की मेंढक की तरह..... अब यह पूरा राज्य हमारा जागीर होगा.... इस राज्य का सिस्टम पानी और.... हम.... हम इस पानी के मगरमच्छ....
पिनाक - ओ...
भैरव - हाँ इसके लिए अब हमें प्रत्यक्ष राजनीति में आना होगा...
पिनाक - क्या....
भैरव - हाँ छोटे राजा.... हाँ...
पिनाक - इसका मतलब... हम किसीके आगे झुकेंगे....
नागेंद्र - हम ने आपको धीरज धरने के लिए कहा था....
पिनाक - क्षमा... कीजिए...
नागेंद्र - (भैरव को रोक कर) अब आप रुकिए... हम समझाते हैं छोटे राजा जी को....(पिनाक को देखते हुए) हम जहां भी जाएंगे या रहेंगे... अपना गुरुर नहीं छोड़ेंगे.... आप अभी फ़िलहाल पार्टी जॉइन कर रहे हैं.... और अगले दो वर्ष बाद आप भुवनेश्वर में मेयर के पदवी पर आसीन होंगे.... एक मेयर अपने शहर का राजा ही होता है.... और यह यह राजधानी है... और इस राजधानी के राजा आप होंगे.... क्यूंकि यह शहर अब फैल रहा है... बढ़ रहा है.... राक्षस बन चुका है.... यह आस पास के इलाकों को संप्रसारण व विकास के नाम पर निगल रहा है.... यहाँ बेहिसाब दौलत की बारिस हो रही है... जिसे अब आपको आपने दोनों हाथों से बटोरना है...
पिनाक - फिर राजगड़....
नागेंद्र - राजगड़.... राजगड़ वैसे ही हमारे शासन में रहेगी... जहां किसीकी भी दखल नहीं होगी.... जिसकी जिम्मेदारी राजा जी की होगी.... याद रहे.... जो अपनी जमीन या जड़ से उखड़ गया.... वह कहीं भी नहीं ठहर सकता....
पिनाक - जी बेहतर...
नागेन्द्र - देखिए.... और याद रखिए..... राज या हुकूमत करने के लिए किसी के पास या तो बेहिसाब दौलत होनी चाहिए या फिर बेहिसाब ताकत.... यह दोनों हमारे पास है... और इसको बढ़ाते जाना है....
पिनाक - जी....
नागेंद्र - राजा जी...
भैरव - जी बड़े राजा जी...
नागेंद्र - अब समय की मांग है.... युवराज और राजकुमार.... दोनों को इस शहर में राज करने योग्य बनाएं...
भैरव - पर वे दोनों तो कलकत्ता में पढ़ रहे हैं....
नागेंद्र - तो उन दोनों को यहां पर बुलाइये और.... अपना दबदबा कायम लीजिए .... उन दोनों को हथियार बनाएं.... और समय आने पर यह राज पाठ उनके हवाले कर सकें
भैरव - जैसी आपकी इच्छा....
फिर गाड़ी में सब शांत हो जाते हैं, और गाड़ी कटक की और बड़ी जोर से भाग रही है l
इधर अटॉर्नी जनरल के घर पर पहुंचने के बाद तापस व प्रतिभा दोनों देखते हैं कि राजनीति व कानून से जुड़े बहुत से शख्सियतों का जमावड़ा है l तभी कमिश्नर उनके पास आता है,
कमिश्नर - आइए सेनापति दंपति आइए....
कमिश्नर को देख कर जहां तापस सैल्यूट करता है वहीँ प्रतिभा कमिश्नर को हाथ जोड़ कर नमस्कार करती है l फिर कमिश्नर उन्हें पार्टी के एक टेबल के पास लाकर छोड़ देता है l
अटॉर्नी जनरल भी वहाँ उनके पास पहुंचता है और दोनों का अभिवादन करता है l दोनों पति पत्नी अपनी अपनी तरीके से उसका अभिवादन स्वीकार करते हुए प्रति अभिवादन करते हैं l
पार्टी के बीचों-बीच एक पंडाल में एक इलेक्ट्रॉनिक घड़ी लगी हुई है जिसमें सात उनसठ बजे हुए हैं l अटॉर्नी जनरल तभी पंडाल पर आकर अपने हाथ में माइक लेता है और कहता है - देवियों और सज्जनों... मेरे अचानक बुलाने पर आप सबके यहाँ पर उपस्थित होने के लिए धन्यबाद..... आज हमारे मध्य एक ऐसा परिवार उपस्थित होने जा रहे हैं जिनके बारे में उनके अपने प्रांत में कहा जाता है के वे समय के साथ नहीं चलते हैं बल्कि समय को अपने साथ लिए चलते हैं.... जिसका जीता जागता उदाहरण आप ठीक कुछ सेकंड बाद देख पाएंगे...
इतना कह कर अटॉर्नी जनरल माइक को दे देता है और पार्टी एरिया के सारे लाइट बुझा दिए जाते हैं l एक स्पॉट लाइट ठीक एंट्रेंस गेट पर पड़ती है l सबकी नजरें उस गेट पर टिक जाती है l एक बड़ी रॉल्स रॉयस गाड़ी भीतर आकर रुकती है l बड़े बड़े अधिकारी व कुछ नेता भाग कर उस गाड़ी के पास जाते हैं l गाड़ी से नागेंद्र, भैरव, और पिनाक उतरते हैं l तीनों पर फूलों की बरसात होती है, और वहाँ पर मौजूद सभी लोग ताली मार कर स्वागत करते हैं l अटॉर्नी जनरल तीनों को एक राजकीय साज सज्जा में सजी हुई एक टेबल के पास बिठाता है l फिर सारे लाइट जल उठती हैं, अटॉर्नी जनरल पंडाल पर आकर माइक संभालता है l
अ.ज - यहाँ पर उपस्थित सज्जन मंडली... इस पार्टी के मुख्य आकर्षण हमारे मध्य विराजमान हैं l उनके स्वागत के लिए आप सब से ज़ोरदार तालियों की उम्मीद कर रहा हूँ....
पूरा माहौल तालियों से गूंज जाती है l
अ.ज - यह सच है कि आज अपना राज्य पूरे देश में एक विशेष कारण से चर्चित है.... पर किसी गर्व या गौरव के क्षण के लिए नहीं.... महात्मा गांधी जी के नाम पर गरीब तबके और बेरोजगार लोगों को साल भर में कम से कम सौ दिन की रोज़गार ग्यारंटी मिले, उस मनरेगा योजना के पैसों की हेर-फेर के लिए चर्चित है... पर अब उचित न्याय होगा और जनता के पैसों का हिसाब होगा.....
यह घटना कितनी दुखदायी है.... के उस प्रांत के राज परिवार को बाध्य कर दिया के वे जनता को न्याय दिलाने के लिए.... राजधानी का रुख करें..... यह राज परिवार जनता को न्याय दिलाने के लिए कितना जागरूक व सजग है.... मैं आज आपको बताने जा रहा हूँ....
विश्व प्रताप महापात्र के सरपंच बनने के छह महीने बाद.... गांव के एक साधारण नागरिक ने आदरणीय श्री भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी से मेरा मतलब है कि राजा साहब जी से गुहार लगाई के विश्व प्रताप पैसों का हेर-फेर कर रहा है.... तब राजा साहब ने माननीय मुख्यमंत्री जी से दरख्वास्त की इस बारे में.... संज्ञान लेने के लिए....
मुख्यमंत्री जी राजा साहब जी का मान रखते हुए.... तीन महीने पहले एक SIT (स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम) का गठन किया था.... उस टीम के रिपोर्ट को आधार बनाकर जब पुलिस ने विश्व व उसके टीम को गिरफ्तार करने पहुंची... तब पहले से खबर पा कर उसके दो साथी अपने परिवार समेत फरार हो गए..... सूत्र बताते हैं कि वे लोग सपरिवार विदेश भाग गए......
हाँ यह हमारी लचर कानून व्यवस्था की लापरवाही कहा जा सकता है..... पर ह्युमन एरर तो हर जगह होती है.... इंसानी गलतियां... जिसका खामियाजा आज कानून को भी चुकाना पड़ा.... लेकिन संतोष की बात यह है कि... कम से कम एक अपराधी हाथ तो लगा...
अब उसे सजा देना कानून व समाज का कर्त्तव्य है....
यहाँ आप सब लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस केस से जुडे हुए हैं.... इसलिए मैंने यहाँ आपको बुलाया है..... और उस विश्व को सजा दिलवाने की चेष्टा कर कानून व राज्य को गौरवांवित करें.... धन्यबाद.....
सब इतने बड़े भाषण सुनने के बाद सब कुछ देर खामोश रहे l सबको खामोश देख कर अटॉर्नी जनरल खुद ताली बजाता है l उसे ताली बजाता देख बाकी सब लोग भी ताली बजाते हैं l
कमिश्नर तापस और प्रतिभा के पास आता है और दोनों से मुखातिब हो कर कहता है,
कमिश्नर - आइए सेनापति दंपति... आप से राजा साहब जी मिलना चाहते हैं.....
प्रतिभा - हम से..... पर क्यूँ....
कमिश्नर - अररे... आज आप दोनों ही इस पार्टी के स्पेशल गेस्ट जो हैं...
तापस और प्रतिभा एक दूसरे को देखते हैं l फिर अपने जगह से उठ कर कमिश्नर के पीछे चल देते हैं l
तापस और प्रतिभा कमिश्नर के साथ क्षेत्रपाल बाप बेटों के पास पहुंचते हैं l
प्रतिभा सबको नमस्कार करती है l तापस पहले नागेंद्र को नमस्कार करता है और भैरव सिंह के तरफ अपना हाथ मिलाने के लिए बढ़ाता है, पर भैरव सिंह हाथ मिलाने के वजाए अपने दोनों हाथ अपने जेब में रख कर वैसे ही खड़ा रहता है और तापस को अजीब सी नजरों से घूरता है l
कमिश्नर - अरे तापस... यह क्या कर रहे हो.... यह राजा साहब हैं.... वे सिर्फ अपने दोस्तों को छोड़ किसीसे हाथ नहीं मिलते हैं....
तापस - ओह सॉरी... राजा क्षेत्रपाल जी.... मुझे यह बात नहीं मालुम था...
कमिश्नर - राजा साहब जी.... यह हैं तापस सेनापति.... इन्हीं के जैल में वह विश्व कैद है.... और यह हैं प्रतिभा सेनापति जो विश्व को जैल के सलाखों के पीछे पहुंचाएगी..... यह हाई कोर्ट में सरकारी वकील हैं....
तापस - कमिश्नर साहब ने एक गलत बात कह दी..... विश्व मेरे जैल में नहीं है.... बल्कि सरकारी जैल में है... और उस जैल का मैं सरकारी पदाधिकारी हूँ....
भैरव - हूँ... तो मोहतरमा जी... क्या कमिश्नर ने आपका परिचय सटीक दिया है.... या आप भी कुछ कहेंगी....
प्रतिभा - जी नहीं राजा साहब.... मेरे बारे में कमिश्नर साहब ने सटीक बात कही है....
पिनाक - तो अब तक उस चोर के बारे में... क्या सोचा है...
प्रतिभा - सोचा है मतलब....
पिनाक - मेरा मतलब है.... क्या तैयारी की है आपने....
प्रतिभा - मैंने तो अपनी पूरी तैयारी कर ली है.... पर जब तक डिफेंस लॉयर केस नहीं सम्हालते तब तक कुछ कहना संभव नहीं है.....
भैरव - और जैलर... तुम बताओ... जैल में कैसा है विश्व...
भैरव सिंह जैसा अपरिचित व्यक्ति तापस को तुम कहना, तापस को बुरा लगा l
तापस - आज ही वह जैल पहुंचा है.... अब अगर सजा बढ़ी तो तब मालूम होगा उसका हाल चाल...
भैरव - ठीक है... आप दोनों दंपति से निवेदन है.... उस पर जरा भी रहम ना करें.... कानून के किताब में इस अपराध के लिए.... जितनी कड़ी से कड़ी सजा हो दिलवाईये.... हम आपके साथ हैं....
और तापस जैल के भीतर इतना खयाल रखना की जब वह राजगड़ में वापस आए तो भीख के लिए भी दर दर की ठोकरे खाता रहे....
तापस - अगर वह अदालत में... निर्दोष करार दिया गया... तो
भैरव - वह कभी निर्दोष करार नहीँ दिया जा सकता.... आप बस जैल में जितनी मेहनत करवा सकें तो कीजिए....
तापस - जी... मैं याद रखूँगा....

उधर जैल में रात के खाने की घंटी बजती है l जैल की इस रूटीन से बेख़बर विश्वा अपने सेल में लेटा हुआ है l कुछ देर बाद एक संत्री आता है और कहता है - नंबर 511....
विश्वा यह सुन कर उसके तरफ देखता है,
संत्री - रात के खाने का टाइम हो गया है... चलो खा कर आ जाओ...(इतना कह कर संत्री सेल की दरवाज़ा खोल देता है)
विश्वा बाहर निकल कर देखता है उसके बैरक में से कैदी निकल कर सब एक और जा रहे हैं l विश्वा भी उनके साथ हो लेता है l
एक बड़े से डायनिंग हॉल में सारे कैदी लाइन में लगे हुए हैं l बहुत से जिंक के डायनिंग टेबल पड़े हुए हैं l हर टेबल पर आठ लोगों की बैठने की व्यवस्था है l शायद पचास या साठ कैदी होंगे l सब खाना लेकर डायनिंग टेबल पर बैठ कर खा रहे हैं l विश्व भी लाइन में लग जाता है l अचानक उसे पीछे से धक्का लगता है तो विश्व आगे वाले कैदी से टकरा जाता है l आगे वाला कैदी पीछे मुड़ कर विश्व को घूर के देखता है l
विश्व - ज.. ज. जी म म माफ कर दीजिए... म म मुझे क क किसीने पीछे से धक्का दिया था...
वह कैदी विश्व के पीछे जितने खड़े थे उनको घूरता है l उनमें से एक कहता है - डैनी भाई... यह आज नवा नवा आया है... और झूठ बोल रहा है... इसीने आपको धक्का दिया.... और हम पर इल्ज़ाम लगा रहा है....
डैनी विश्व को गौर से देखता है और विश्व को अपने आगे खड़ा कर देता है l विश्व अपना थाली लेने के बाद एक खाली डायनिंग टेबल पर जा कर बैठ कर खाना शुरू करता है l कुछ देर बाद उसके टेबल पर डैनी अपना थाली लिए बैठता है l
विश्व - (डैनी को देखते हुए) धन्यबाद....
डैनी - वह किसलिए...
विश्व - वह आपने मेरा विश्वास किया... और उनसे तंग होने से बचाया इसलिए....
डैनी - देख बे... अखरोट... तु जिस तरह से हकलाया... मेरे को लगा ही था कि तुने जान बुझ कर मेरे को धक्का दिआ.... पर दुनिया देखी है मैंने.... मेरे को तेरे आँखों में मासूमियत और सच्चाई दिख गई... इसलिए तेरे को छोड़ दिआ.... समझा...
विश्व ने हाँ में अपना सर हिलाया l फिर दोनों खाना खतम कर अपना थाली धो कर डायनिंग हॉल में जमा कर चल दिए l विश्व अपने सेल की ओर जा रहा था कि उसे किसीने टंगड़ी मार दी l विश्व मुँह के बल गिर जाता है l तभी दो लोग उसके पीठ पर घुटना लगा कर बैठ जाते हैं और उसके दोनों हाथों को मोड़ कर कब्जा कर देते हैं l उनमें से एक विश्व के मुहँ पर हाथ रख देता है, ताकि विश्व चिल्ला ना पाए l एक और आदमी विश्व की पजामा के साथ लंगोट भी खिंच देता है और बोलता है,
- वाह क्या चिकना गांड है बे तेरी...
जो दो लोग उसे पकड़े हुए थे हंसने लगते हैं l
विश्व छटपटाने लगता है और चिल्लाने की कोशिश करता है l वे तीन लोग हंसते हैं l
- अरे घबरा मत.... आज तेरी गांड नहीं मारेंगे रे.... तु अपनी किए जुर्म के लिए बहुत लंबा जाने वाला है... मालुम है हम को... और हम पहले से ही लंबे हो कर पड़े हुए हैं...तु जब जैल से जाएगा तो तेरी रोज़गार की व्यवस्था हो जाएगा.... तुने राजा जी की मारने की सोची... और राजा साहब ने तेरी रोज मरवा ने के लिए हमें इस जैल में भिजवाया है... तु फ़िकर मत कर.... तु जब जैल से निकलेगा तो राजगड़ में गांडु महापात्र के नाम से जाना जाएगा....
फिर विश्व के गांड पर हाथ फेरते हुए - आह क्या चिकना गांड है... तेरी इतनी मारेंगे की तु जैल से निकल कर अपनी रोजी रोटी के लिए तेरे पास सिर्फ गांड मरवाना ही रह जाएगा पर कोई नहीं मारेगा... इतना चौड़ा कर देंगे....
सब मिलकर हंसते हैं फ़िर विश्व को अपने पिछवाड़े पर गरम पानी गिरता हुआ महसुस करता है l उस पानी की बदबू से विश्व समझ जाता है कि वह गरम पानी पेशाब है l फिर वह तीनों आदमी विश्व को वैसे ही हाल में छोड़ कर चले जाते हैं l विश्व अपना पजामा और लंगोट उठा कर नंगा ही अपने सेल की ओर बढ़ जाता है l सेल के बाहर संत्री उसे उस हालत में देख कर रोकता है और कहता है,
- छी... यह क्या... छी.. पेशाब कर दिए.... कितने गंदे हो तुम...
इतना कहकर संत्री विश्व को देखता है तो पाता है विश्व की आंखे व चेहरा आंसुओं से भीगे हुए हैं और अपमान से उसका चेहरा आग के मानिंद जलता हुआ लग रहा है l उसकी ऐसी हालत देख कर संत्री एक तरफ हट जाता है l विश्व अपने सेल के अंदर जा कर संढास में घुस जाता है और अपने ऊपर पानी डाल कर नहाता है l

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घर पर पहुंच कर तापस धप कर सोफ़े पर बैठता है l उसकी ऐसी हालत देख कर प्रतिभा भाग कर किचन जाती है और एक ग्लास पानी लाकर तापस को देती है l तापस पानी लेने से अपना सर हिला कर मना कर देता है l
प्रतिभा - क्या हुआ आपको....
तापस - जान... (प्रतिभा की और देखते हुए) कहीं हम अनजाने में किसी कंस्पिरेसी में मेरे मतलब है... की कहीं अनजाने में... अनचाहे किसी षड्यंत्र में शामिल तो नहीं हो रहे हैं.....
प्रतिभा - (टी पोए पर ग्लास रखते हुए) आप ऐसा क्यूँ सोच रहे हैं....
तापस - जान एक साधारण आदमी के लिए... सात सौ पचास करोड़ बहुत होते हैं... पर भारत में इससे कई गुना पैसों की हेरा फेरी हुई है.... पर इस केस को जिस तरह से उछाला जा रहा है... प्रशासन और राजनयिक गलियारों में बड़े बड़े दिग्गज जिस तरह से इस केस में इंट्रेस्ट ले रहे हैं.... और जिस तरह से घड़ी घड़ी मीडिया ट्रायल हो रहा है.... मेरे कानों में वैदेही की वह बात रह रह गूंज रही है... के कुछ सफ़ेद पोश लोगों ने मिलकर विश्व को फंसाया है... कहीं अगर विश्व को सजा हो गई और कुछ सालों बाद हमे मालूम पड़ा के विश्व निर्दोष था.... तब हम पर क्या गुजरेगा....
प्रतिभा - हो गया.... सेनापति जी.... आपने वहाँ पर सुना ना... तीन महीने पहले से ही राज्य सरकार जे तरफ से एस आई टी का गठन किया जा चुका था..... और सारे एजेंसी ने विश्व को दोषी पाया है.... हम शक़ करें तो किस पर... किसकी मंशा पर सवाल उठाएं... वैसे भी मैं विश्व के खिलाफ़ सरकारी वकील मुक़र्रर हुई हूँ... और अब मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूँ.... वह दोषी है.... और मैं कोशिश भी करूंगी उसे कठोर से कठोर सजा दी जाए....
तापस - तुम्हारी नजरिए से तुम सही हो... पर सोचो.... गिरफ्तारी हुई, सरकार ने इसे गम्भीरता लीआ है.... ऐसा मीडिया में आया.... पर एस आई टी के बारे आज अटॉर्नी जनरल ने बताया.... पर पब्लिकली नहीं....
प्रतिभा - यह उन लोगों की स्ट्रैटिजी हो..... खैर... हमे क्या... आई एम डैम श्योर... विश्व प्रताप महापात्र हंड्रेड पर्सेंट गिल्टी एंड विल बी कंविक्टेड शुन एट कोर्ट
Superb update bro
 

Rajesh

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👉उन्नीसवां अपडेट
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सुबह सुबह का वकिंग खतम कर तापस अपने क्वार्टर में आता है l बैठक में सोफ़े पर बैठते हुए टीवी ऑन करता है l ताजा खबर जानने के लिए न्यूज चैनल लगाता है,
ब्रेकिंग न्यूज -
"जैसे ही कल क्षेत्रपाल परिवार का आगमन भुवनेश्वर में हुआ था, उससे राजनीतिक गलियारों में तरह तरह के कयास लगाए जा रहे थे, कल देर रात सभी कयासों में विराम लग गया और नए सम्भावनाओं को जन्म देने लगा है...
कल अचानक से राज्य के स्वास्थ्य मंत्री श्री ओंकार ईश्वरचंद्र चेट्टी जी जो राज्य के जनता मध्य ओ. आई. सी. नाम से परिचित हैं,वह अपने नीवास भवन में देर रात को अपनी पार्टी में श्री पिनाक सिंह क्षेत्रपाल के योगदान की घोषणा कर सबको चौंका दिया....
श्री चेट्टी ने कहा कि छोटे राजा जी के पार्टी में आने से पार्टी ना सिर्फ़ बहुत मजबूत हुई है.... बल्कि अब राज्य में उनकी पार्टी अजय हो गई है....
इस संदर्भ में हमारे संवाददाता ने राज्य के जन मानस में छोटे राजा जी के नाम से लोकप्रिय श्री क्षेत्रपाल जी से वार्तालाप की....
रिपोर्टर - आज हमारे साथ हैं, राज्य के जन मानस में छोटे राजा जी के नाम से सुपरिचित आदरणीय श्री पिनाक सिंह क्षेत्रपाल जी.... हाँ तो छोटे राजा जी... आज आप सपरिवार अटॉर्नी जनरल जी के यहाँ आये थे.... और खबर यह थी कि राज्य में हुई मनरेगा योजना में पैसों की हेर-फेर पर तुरंत कारवाई के लिए कानूनी राह पर बात चित करने.... पर अचानक से आपका राजनीति में आना वह भी राज्य के स्वास्थ्य मंत्री जी के द्वारा घोषणा किए जाना सबको चौंका दिया आपने....
पिनाक - हा हा हा हा.... देखिए इसमें चौंकाने वाली क्या बात है.... हम राज परिवार से हैं.... और राजनीति हमारे खुन में दौड़ती है....
रिपोर्टर - हाँ... इसमें कोई शक़ नहीं है.... पर अबतक राज्य की राजनीति में.... क्षेत्रपाल परिवार किंग् मेकर की भूमिका में थी... अब आपकी कैसी भूमिका रहेगी....
पिनाक - देखिए.... आज अगर हम सक्रिय राजनीति में होते... तो निःसंदेह हमारे ही क्षेत्र में कभी मनरेगा कांड ना हुआ होता.... रही आने वाली समय में.... तो हम सबको आश्वस्त करना चाहते हैं.... हम एक साधारण कार्यकर्त्ता की तरह जनता और पार्टी की सेवा करने आए हैं....
रिपोर्टर - छोटे राजा जी.... सुना है आपकी अगली पीढ़ी भी अब राजनीति में आपनी योगदान देने वाली है....
पिनाक - कल क्या होगा यह कल पर ही छोड़ दें...... (इतना कह कर पिनाक सिंह मुड़ कर चला जाता है)
रिपोर्टर - तो यह थे छोटे राजा जी.... कैमरा मैन अभिजीत के साथ...

तापस टीवी बंद कर देता है l इतने में प्रत्युष तैयार हो कर अंदर आता है...
प्रत्युष - डैड... आपने टीवी क्यूँ बंद कर दिया....
तापस - मुझे सुबह सुबह.. यह पोलिटिकल न्यूज दिमाग खराब कर देती हैं....
प्रत्युष - पर टीवी पर हमारे हॉस्पिटल मैनेजमेंट के चेयरमैन ओंकार ईश्वरचंद्र चेट्टी जी आ रहे थे.... और आप तो जानते हैं.... वह स्टेट के हेल्थ मिनिस्टर भी हैं...
तापस - तो....
प्रत्युष - डैड... आपको पूरा न्यूज देखना चाहिए था....
तापस - हाँ तो.... कहाँ मैंने आधा अधूरा देखा है....
प्रत्युष - अधूरा ही तो है....
तापस - अच्छा... मैंने जो न्यूज देखा... वह अधूरा है.... आप जो सूरज सर पर होने के बाद उठते हैं.... पूरा न्यूज जानते हैं....
प्रत्युष - (अपना मुहँ बना कर) डैड.. आप अपने कपड़े देखिए.... और मेरे कपड़े देखिए.... यह मेरे घर से बाहर जाने के कपड़े हैं... और आपके अंदर....
तापस - (प्रत्युष को घूरते हुए) मेरा कभी कभी मन करता है... तेरा कान खिंचु... मन भरने तक कुटाई करूँ....
प्रत्युष - मुझे मालुम था.... आप मुझसे जलते हैं... क्यूंकि मैं आपसे ज्यादा इंटेलिजेंट हूँ....
तापस - (उसे घूरते हुए) अच्छा अब पूरी खबर बता....
प्रत्युष - डैड.... पूरी खबर यह है कि.... कल स्वास्थ मंत्री जी के पास... क्षेत्रपाल जी अपने प्रांत के लिए सारी सुविधाओं से लैस उनके हॉस्पिटल चैन निरोग का एक ब्रांच हस्पताल का प्रस्ताव लेकर गए थे..... उनके प्रस्ताव सहसा श्री स्वस्थ्य मंत्री ने स्वीकार किया और उन्हें राजनीति में आने के लिए आमंत्रण दिया...... ताकि हस्पताल का काम उनके देख रेख में पूरा हो.... कोई मनरेगा जैसा कांड न हो..... जिसे सुन कर श्री क्षेत्रपाल जी ने भी सहसा स्वीकार किया.... यह है पूरा न्यूज...
तापस - ओ.. अच्छा अच्छा... तो अब आप डॉक्टरी के साथ साथ रिपोर्टरी भी करने लगे हो...
प्रत्युष - यह ताना था... या तारीफ़.... खैर जो भी हो... एक पिता दे और बेटा ना ले.... यह हो नहीं सकता....
तापस - प्रतिभा.....
प्रतिभा - (चाय का प्याला लाकर) क्या हुआ...
तापस - अपने लाडले को जल्दी से नाश्ता देकर विदा करो... तब से मेरा दिमाग खा रहा है...
प्रतिभा - (प्रत्युष को आँखे दिखा कर) कितनी बार कहा है.... कुछ ढंग का खाया कर.... सुबह सुबह इनके कैलरी लेस दिमाग खाएगा तो एनर्जी कहाँ से लाएगा....
तापस प्रतिभा को घूर कर देखता है पर चुप रहता है, उसे यूँ चुप देख कर प्रतिभा मुस्करा कर प्रत्युष को इशारे से बाहर जाने को कहती है l प्रत्युष भी अपनी हंसी दबाये बिना शोर शराबे के चुपके से बाहर निकल जाता है l उसके जाते ही.,
प्रतिभा - क्या बात है सेनापति जी.... कल रात से आप कुछ कंफ्यूजड हैं....
तापस - हाँ.... यह क्षेत्रपाल परिवार का अचानक राजनीति में आना.... वह भी तब... जब उनके क्षेत्र में एक बहुत ही बड़ा करप्शन हुआ है...
प्रतिभा - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) देखिए... फ़िलहाल.... मैं इस पर कुछ भी डिबेट करना नहीं चाहती.... क्यूंकि आपकी सुई फ़िर वहीँ पर अटक जाएगी.... और मेरा दिन और दिमाग दोनों खराब हो जाएगी....आप बेशक पुलिस वाले हैं पर फील्ड में नहीं हैं.... जैल सुपरिटेंडेंट हैं.... अब आप से मैं बस इतना ही कहना चाहती हूँ .... वक्त सबका ज़वाब दे देगा....
तापस - हूँ... तुम... सही कह रही हो... अब वक्त ही ज़वाब देगा...

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कैदी नंबर 511.... यह सुन कर विश्व सेल के बाहर देखता है l एक नया संत्री था l
संत्री - तुम्हारा पैर पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ है.... क्या तुम रंजन को खाना बनाने में मदद करोगे....
विश्व - जी बिलकुल....

संत्री सेल की दरवाजा खोल देता है l
संत्री - आओ फ़िर...

विश्व संत्री के साथ जैल के रसोई में आता है l वहाँ के मुख्य रसोईया रंजन कुछ क़ैदियों के मदद से सब्जियाँ कटवा रहा था l रंजन विश्व को देखता है और पूछता है,
रंजन - हाँ तो विश्व.... क्या तुम्हें इस तरह के काम की आदत है...
विश्व - आपको... मेरा नाम...
रंजन - आरे भाई.... तुम सिर्फ इस जैल में ही नहीं.... पूरे राज्य में मशहूर हो चुके हो.... और तुम्हारे आते ही... सब यहां पर तुम्हारे बारे में काना फुंसी कर के ही सब तुम्हारे बारे में मालूम कर चुके हैं......
विश्व चुप रहता है l रंजन विश्व के हाथ में एक छुरी देता है और एक बड़े से टोकरी भर सब्जी दे कर काटने को इशारा करता है l विश्व पहले कटे हुए सब्जियों को देखता है l फिर विश्व सब्जियां काटना शुरू करता है l सिर्फ पैंतीस मिनट में सारे सब्जियां काट कर रंजन के हवाले कर देता है l रंजन, संत्री और दूसरे कैदी जो उसे अब तक देख रहे थे सबका मुहं हैरानी से खुला रह जाता है l
रंजन - तुमने सब्जियां इतनी जल्दी काट दी.... क्या तुम्हें इसकी पहले आदत है...
विश्व - मेहनती हूँ... ऐसे कामों में अभिज्ञ हूँ..
इतना कह कर विश्व वापस जाता है l रास्ते में फ़िर से कुछ कैदी विश्व पर तंग कसते हैं l
एक - सुना है... लंगड़ा अपना पिछवाड़ा किसीके मूत से साफ किया...
दूसरा - क्यूँ भई.... क्या हमारे यहाँ पानी खतम हो गया है...
तीसरा - ना ना... अपना पिछवाड़ा के उद्घाटन की तैयारी कर रहा था...
सब हंसते हैं l विश्व थोड़ा जोर से चलने लगता है l पीछे से आवाज़ आती है "ऑए लंगड़े भाग ना जैयो..." विश्व और जोर से चलने लगता है l तभी विश्व को एक आवाज आता है "ऑए गांडु महापात्र".... यह सुनते ही विश्व रुक जाता है और पीछे गुस्से से मुड़ कर देखता है l सब ताली मार कर ठहाका लगाते हैं l उनमें से एक कहता है - देखा मैंने बुलाया... उसे सुन कर वह रुक गया.... लौडा वाला मजनू बुलाये और गांडु लैला महापात्र ना रुके... ऐसा हो ही नहीं सकता....
सब और जोर से ठहाका लगा कर हंसते हैं l विश्व अपमानित महसूस करता है, उसकी आँखों में आंसू छलक जाता है l वहाँ से जल्दी से जल्दी चला जाना चाहता है,
विश्व अपने बैरक की करिडर में पहुंचा ही था के वे चार कैदी उसके पीछे पीछे पहुंच जाते हैं l एक उसके सामने आकर खड़ा हो जाता है l
एक - क्यूँ बे.... गांडु लैला... तेरा मजनूं बुला रहा है... साले हरामी.. गांड मटका कर किससे मरवाने भाग रहा था बे....
विश्व का चेहरा लाल हो जाता है और उसे गुस्से से देखने लगता है l
एक - उइ माँ... मैं तो डर गया.... अरे भाई लोग... गौर से देखो इस गांडु को... यह लैला अपने मजनूं को आंख दिखा रहा है....
दूसरा - पता नहीं रंगा भाई... पर मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है.... यह आपको आँख नहीं दिखा रहा है.... बल्कि इशारे से किसी अंधेरे कोने में बुला रहा है.....
सब ठहाका मार कर हंसने लगते हैं l
तभी व्हिसिल की आवाज़ सुनाई देती है l तो सब विश्व से थोड़ी दूर जा कर खड़े हो जाते हैं l थोड़ी देर बाद वहाँ पर तापस कुछ संत्रीयों के साथ पहुंचता है l रंगा और उसके साथियों के पास आकर रुक जाता है l
तापस - तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो...
रंगा - वह... अपना यार आया है... तो जान पहचान बना रहे थे...
तापस - क्यूँ इससे पहले भी जान पहचान है क्या तुम्हारा....
रंगा - जी नहीं.... हम तो महीने भर से यहाँ आए हैं... यह नया नया आया है... तो दोस्त बनाने आए थे...
तापस - ओके... तुम लोग... निकलो यहाँ से...
रंगा - ओके... सर... बाय... विश्व... बाय... बाद में मिलते हैं...

इतना कह कर अपने साथियों के साथ वहाँ से चला जाता है l तापस विश्व को इशारे से अपने सेल की ओर जाने को कहता है l विश्व अपने सेल के भीतर पहुंच कर रंगा के बारे में सोचने लगता है l
"क्षेत्रपाल अब जैल में इसके मदद से... मुझे जलील करने की ठानी है..... इसका नाम रंगा है.... मुझे कुछ ना कुछ करना ही होगा.... मगर क्या.... मैं क्या कर सकता हूँ... अगर उसने मेरे साथ कुछ भी गलत करने की कोशिश की.... तो... तो मैं उसे जान से मार दूँगा....हाँ मार दूँगा.... मगर कैसे... वह मुझसे अकेला नहीं लड़ेगा... और मैं इतना ताकतवर हूँ नहीं के चार चार से भीड़ जाऊँ..... पता नहीं अब मुझे क्या क्या सहना होगा.... आह... नहीं नहीं नहीं....
क्षेत्रपाल महल में मेरे साथ जो हुआ वह आखरी बार था.... अब कोई भी मुझे जलील नहीं कर सकता.... मुझे कुछ करना होगा.... हाँ कुछ करना होगा...
ऐसे सोचते सोचते दोपहर हो जाती है l जैल में खाने के लिए इकट्ठा होने के लिए बेल बजती है l संत्री आकर सेल का दरवाज़ा भी खोल देता है l पर विश्व अपने में खोया हुआ है, उसे संत्री का दरवाज़ा खोलना या खाने की बेल बजना कुछ होश नहीं l
संत्री सेल के दरवाजे पर अपनी लाठी से ठोकता है, जिसकी आवाज़ भी विश्व को सोच से बाहर ना निकाल पाई l
संत्री - ऐ... 511... आज तेरा उपवास है क्या... खाना खाने नहीं जाना है क्या....
विश्व उसे देखता है और अपनी जगह से उठ कर बाहर निकालता है l विश्व धीरे धीरे डायनिंग हॉल की ओर बढ़ता है l रास्ते में रंगा और उसके साथी विश्व को छेड़ते हुए पीछे लग जाते हैं l विश्व उनसे दूर जाने की कोशिश करता है, पर फिरभी वे लोग विश्व को आजू बाजू घेर लेते हैं और विश्व सुन सके ऐसे -"गांडु लैला... कब लेगा तेरे मजनूं का केला" कह कर हाथ उसे लगाने की कोशिश करते हैं l विश्व अपना थाली लेकर नजर घुमाता है, उसे एक टेबल पर डैनी दिख जाता है l विश्व उस टेबल पर आकर बैठ जाता है l डैनी उसे देखकर मुस्कराता है l
डैनी - हाँ तो विश्व... कैसी कटी तेरी रात...
विश्व - (अपना चेहरा झुका कर खाना खाते हुए) जी अच्छी...
डैनी - हा हा हा क्यों बे ... वह रंगा तेरा पिछवाड़ा भिगो दिया तो तुझे इतना अच्छा लगा.....
विश्व के गले में निवाला अटक जाता है और वह खांसने लगता है l डैनी उसे पानी का ग्लास देता है l
डैनी - ले.... पि... ले...
विश्व पानी की एक घूंट पिता है, और उसके आंखों में आंसू निकल आते हैं l
डैनी - सुन.. विश्व.... यह दुनिया बहुत बेरहम है... इतना बेरहम के तुम सोच भी नहीं सकता....
विश्व अपनी आंखों में पानी लिए डैनी की तरफ देखता है l डैनी विश्व को देखे बगैर खाना खा रहा है l
डैनी - तेरे को इन डेढ़ दिनों में एक बात मालूम हो गया ना .... के इस जैल में कोई मुझसे पंगा लेने की कोशिश भी नहीं कर रहा.... इसी लिए तुने अपनी थाली ले कर यहाँ मेरे पास बैठ गया.... थोडे समय के लिए... उनसे बचने के लिए अच्छा तरीका है..... पर कब तक.....
विश्व डैनी को गौर से देखने लगा, पर डैनी उसके चेहरे पर आए भाव को नजर अंदाज करते हुए अपना खाना खा रहा है l
डैनी - कब तक... कल अगर मैं यहाँ नहीं रहा तो..... तब तु उनसे कैसे बचेगा..... क्या सुपरिटेंडेंट के पास शिकायत ले कर जाएगा...
विश्व अपना सर झुका कर मौन रहता है l
डैनी - जाएगा तो भी... क्या शिकायत करेगा.....
विश्व - मैं क्या करूं....
डैनी - यह मैं कैसे कह सकता हूँ.... प्रॉब्लम तेरा है... तेरे को ही शॉल्व करना है....
विश्व के आंखों में फ़िर से आँसू आ जाते हैं l
डैनी - बी अ मैन विश्व.... बी अ मैन.... आँसू बुजदिली की निशानी है... तु तो अपने इलाके के सबसे ताकतवर आदमी से भीड़ गया था...... उसके आगे यह रंगा किस खेत का मूली है.....
विश्व की आंखे फैल जाती है l वह हैरानी से अपने सामने बैठे आदमी को देखने लगता है l
डैनी - तुम मेरे बारे में जानते नहीं हो.... इसलिए मेरे साथ मेरे सामने बैठे हुए हो.... वह जो जानते हैं... वे सब मुझसे दूर बैठते हैं....देख लो..
विश्व डायनिंग हॉल के चारो तरफ नजर दौड़ाता है l वह देखता है कि हर टेबल पर पांच से लेकर आठ लोग बैठे हुए हैं, पर वह खुद जिस टेबल पर बैठा हुआ है वहाँ पर सिर्फ़ वह और डैनी ही बैठे हुए हैं l
विश्व - आपको मेरे बारे में... कैसे... मेरा मतलब है... जो पुलिस भी नहीं जानती... वह आप....
डैनी - (मुस्कराते हुए) मेरे अपने सोर्सेस हैं... कल तु जैल में आया बेशक... पर तेरे चर्चे कई दिनों से पूरे राज्य में हो रहे हैं.... इसलिए तुझे देखने की बड़ी ख्वाहिश थी... जैसे ही देखा तो तुरंत समझ गया... मैं एक बकरे को देख रहा हूँ.....
विश्व - काश... कानून को मानने व पालने वालों की भी नजर आप जैसी होती.....
डैनी - हा हा हा... मैं जुर्म की दुनिया का मंज़ा हुआ खिलाड़ी हूँ.... मैं जुर्म और मुज़रिम को सूँघ लेता हूँ.... देखते ही पहचान लेता हूँ...
विश्व अपने सामने बैठे उस शख्स को देख कर हैरान रह जाता है l
विश्व - आपने बताया नहीं... आपको कैसे मालुम हुआ... मेरे बारे में...
डैनी - कहा ना... मेरे अपने सोर्सेस हैं... अब तु बता.... तु उस रंगा से डरता क्यूँ है...
विश्व - मैं डरता नहीं हूँ... पर उनसे जीत भी नहीं सकता हूँ... वे चार हैं और मैं अकेला....
डैनी - सोच... अगर रंगा ने जो कहा है कि... उसने कर दिखाया... तो...
विश्व अपने मुट्ठीयों को भींच कर जवड़े कस लेता है l
विश्व - ऐसा करने की कोशिश की... तो मार डालूंगा.... सबको मार डालूंगा....
डैनी - तेरे दुश्मन भी शायद यही चाहते हैं..... तेरे ऊपर जितने चार्जेस लगे हुए हैं.... उसमें कुछ और जुड़ जाएंगे.... इस तरह से.... तु कभी इस जैल से निकल नहीं पाएगा.....
विश्व - तो मैं क्या करूं.... आप आप यह कैसे जानते हैं....
डैनी - तु कितने उम्र का है...
विश्व - जी अभी कुछ दिनों में बाइस का होने वाला हूँ...
डैनी - मैं तुझसे दुगने उम्र से भी एक साल बड़ा हूँ... एकसपेरियंस... अनुभव...
विश्व - तो मुझे क्या करना चाहिए....
डैनी - यह तु जाने.... मैं सिर्फ तेरे को आगाह कर रहा हूँ....
विश्व बेबसी से अपना हाथ मल रहा है l
डैनी - देखो विश्व.... यह जैल है... और यहाँ चार्ल्स डार्विन की थ्योरी ही काम आती है...
विश्व डैनी के चेहरे को सवालिया दृष्टि से देखता है l
डैनी - सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट...
विश्व कुछ समझ नहीं पाता
डैनी - यह प्रकृति का नियम है... यहाँ वही टिक सकता है... जो अपनी हालातों से जुझ सकता है... और यहाँ वही राज कर सकता है... जो हालातों को अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ सकता है....
विश्व उसकी बातों पर गौर करता है और समझने की कोशिश में अपना सर हाँ में हिलाता है l
डैनी - यहाँ जंगल राज है... जंगल में शेर बेशक जंगली सुवर का शिकार करता है.... पर कभी कभी सुवर की पलट वार से शेर भी ढेर हो जाता है.... और जिस दिन जंगल में शेर, सुवर से हार जाता है.... उस दिन जंगल में शेर जीते जी मर जाता है....
अब विश्व अपने अंदर में एक ऊर्जा को मेहसूस करता है, उसके चेहरे पर दर्द नहीं दिखता,एक अलग भाव दिखता है l जिसे देखकर डैनी के चेहरे पर छोटी सी मुस्कान आ जाती है l
डैनी - वह जिस तरह से तुझ पर नजर रख रहे हैं... तु भी उन पर अपने तरीके से नजर रख..... खुद को सब के साथ सबके पास रखो.... वे लोग तुम्हें अकेले में धर ने की कोशिश करेंगे.... तुझे छेड़ने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगे.... तुझे उकसाने की कोशिश करेंगे... पर तु रियाक्ट मत हो जाना... जितना हो सके उनको उस मौके से महरूम रख..... फिर अपना दाव लगा.... मगर ध्यान रहे... तुझे किसीकी नजर में नहीं आना है... वरना कुछ और धाराएं तेरे पर लग जाएंगी... और तु जैल और अदालत के चक्कर काटते रह जाएगा.....
इतना कह कर डैनी वहाँ से अपना खाली थाली लेकर निकल जाता है l विश्व उसे जाते देखता है l फिर विश्व अपना खाना खतम करता है और थाली साफ कर वहाँ जमा कर वापस अपने बैरक की और चला जाता है l जैसे कि अंदेशा था वे लोग विश्व के पीछे आते हैं और तंज कसने लग जाते हैं l
रंगा - अबे पंटरों... मैंने कुछ दिन पहले एक फिलम देखी थी....
एक - कौनसी फिलम रंगा भाई.....
रंगा - अबे... उस फिलम नाम था "तेरे मेरे सपने".... उसमें एक गाना था... आँख मारे वह लड़की आँख मारे...
दूसरा - वाह.. रंगा भाई... वाह..
रंगा - अबे... इसमे... वाह वाली क्या बात है.... इसकी रीमिक्स जब गांडु गायेगा... उस पर तुम लोग वाह वाह करना....
एक - वह गाना क्या होगा.... रंगा भाई...
रंगा - गांड मारे... रंगा मेरा गांड मारे... थूक लगाए... बिन कॉन्डोम के मारे...
अब सब रंगा के साथ मिलकर जोर जोर से गाने लग जाते हैं l
विश्व सुन कर गुस्सा तो होता है पर उसे डैनी की कही बातेँ याद आती है, विश्व अब उन पर ध्यान हटाता है और सीधे अपने सेल में चला जाता है l ऐसे ही दोपहर बीत जाता है और शाम को जैल में राउंड लगाते हुए तापस जब वहाँ पहुंचता है l
विश्व - सर...
तापस - हाँ बोलो विश्व...
विश्व - सर सुबह मैं सिर्फ सब्जी काटने गया था.... क्या और कोई काम है जिसे करना चाहिए.... मेहनत वाला... वरना नींद नहीं आएगी....
तापस - है तो... पर तुम अभी... एक्युसड हो... तुम्हें सजा नहीं सुनाई गई है...
विश्व - सर... उसकी कोई आवश्यकता नहीं... मैं बस शरीर थकने तक काम करना चाहता हूँ...
तापस - पर तुम्हारा एक पैर...
विश्व - सर... मांस पेशी में खिंचाव है... वह भी कुछ दिन में ठीक हो जाएगा...
तापस - दास.... कल ऐसा कुछ काम है क्या...
दास - जी सर... अगर विश्व चाहे तो... कल सारे चादर और कंबल धोए जाएंगे...
विश्व - ठीक है सर.... मुझे मंजूर है... प्लीज...
तापस - ठीक है... दास कल इसे एनगैज कराना तुम्हारे जिम्मे...
दास - ओके सर....
फिर तापस और दूसरे अधिकारी वहाँ से चले जाते हैं l विश्व अपने सेल में बिछाए अपने बिस्तर पर एक संतुष्टि के भाव लिए बैठ कर सोचने लगता है l

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अगले दिन सुबह विश्व अपनी सेल में जल्दी तैयार हो जाता है l कुछ देर बाद नाश्ता करने डायनिंग हॉल में पहुँच जाता है l सब जो पिछले दो दिन से विश्व को देख रहे हैं, उन्हें आज विश्व के चेहरे पर कुछ अलग ही भाव दिख रहा है l रंगा और उसके पंटर भी हैरान हैं l दो दिन से किसी हारा हुआ, बिखरा हुआ लगने वाला विश्व में आज बॉडी लैंग्वेज कुछ और बयान कर रहा है l
आज विश्व दूसरों से बात करने की कोशिश भी कर रहा है l
विश्व जल्दी अपना नाश्ता खतम करता है और ऑफिस में पहुंचता है l ऑफिस के पास संत्री उसे रोक देता है l
विश्व - वो कल ASI जी ने बुलाया था....
संत्री - ठीक है... रुको यहाँ... मैं पूछ कर आता हूँ....
संत्री अंदर जाता है और थोड़ी देर बाद बाहर आकर विश्व को अंदर जाने को कहता है l विश्व अंदर जाता है और पूछते हुए ASI दास के पास पहुंचता है l
दास - आओ विश्व आओ...
इतना कह कर दास बेल बजाता है l एक आदमी जैल के पोशाक में आता है l
दास - बालू... यह है विश्व... इन्हें आज ले जाओ... आज जो चादर और कंबल धुलेंगे... इन्हें भी सामिल करो... यह तुम्हारे हाथ बटायेंगे...
बालू - जी सर... आओ... विश्व...
विश्व बालू के साथ निकल जाता है...
उधर रंगा और उसके साथी बैठे हुए हैं l रंगा के साथी रंगा से,
एक - भाई.. यह चिकना रात को कौनसी घुट्टी पि ली थी... साला आज कुछ अलग ही दिख रहा था....
रंगा - लगता है... उस डैनी ने कुछ बोला है उसको.... पर डैनी भी यहाँ के नियम से वाकिफ़ है.... "यहाँ कोई किसी दूसरे के फटे में टांग नहीं घुसाता"
दूसरा - वही तो...
रंगा - देखते हैं... आज शाम को मिलेगा तो सही... वैसे भी अपने पास... टाइम बहुत है... सुनवाई के कुछ दिन पहले.... मेरे को इस हरामी की गांड मारनी है...
एक - कोई नहीं रंगा भाई... उद्घाटन आप करना... हम लाइन देंगे....
सब हंसने लगते हैं
दोपहर के बाद खाने के समय विश्व खाने की थाली लेकर फिर से डैनी के बैठे हुए टेबल पर पहुंच जाता है l
डैनी उसे मुस्कराते हुए देखता है l ज़वाब में विश्व भी मुस्कराता है l
डैनी - ह्म्म्म्म... बहुत जल्दी सीख रहे हो.... और खुदको हालात में ढाल भी रहे हो...
विश्व - यह सब आपके... हौसला अफजाई के वजह से.....
डैनी - मैंने कुछ नहीं कहा है.... सिर्फ़ आगाह किया था...
विश्व - फिरभी... मैं हर तरह के आघात सह सकता था.... पर....
विश्व कुछ कह नहीं पाता चुप हो जाता है l डैनी उसे देखता है और अपना सर हिलाता है l
डैनी - बलात्कार....
विश्व के गले में निवाला फ़िर से अटक जाता है l डैनी विश्व को पानी की ग्लास देता है l विश्व पानी पीने के बाद फ़िर से खाना चालू करता है l
डैनी - जानता है... किसीको... आत्मा से तोड़ने के लिए... बलात्कार एक अचूक हथियार है....
विश्व - हाँ... आप सही कह रहे हैं....
डैनी - किसी औरत की बलात्कार.... उस औरत की वज़ूद व अस्तित्व को इतना हिला कर रख देती है... की.... उसमें जीने की चाह को खतम कर देती है....
विश्व - (आवाज़ थर्रा जाती है) जानता हूँ... (आँखे भीग जाती हैं)
डैनी - (उसे देखते हुए) मर्द के भी फिलिंगस भी अलग नहीं हो सकता... उस घिनौना सच से...
(दोनों के बीच कुछ देर के लिए ख़ामोशी छा जाती है) तेरे अंदर के मर्द को हमेशा के लिए खतम करने के लिए..... तेरे दुश्मनों की यह अचूक चाल है... अब उन्होंने तेरे को तोड़ने के लिए जिन् लोगों को हथियार बनाए हैं.... उन्हें तु तोड़.... मगर किसीके नजर में आए बगैर....
विश्व - कैसे.....
डैनी - देख... यहाँ अगर टिकना है... तो तुझे खुद के लिए सोचना होगा.... रिमेंबर... ऑलवेज फाइट यु योर वोन बैटल....
इतना कह कर डैनी वहाँ से अपना थाली उठाए धोने चला जाता है l उसके जाते ही विश्व भी अपना खाना खतम करता है और थाली जमा करने के बाद अपने सेल में आकर आराम करते करते सोच में डूब जाता है l

***दस दिन बाद***

रात के डिनर के लिए तापस और प्रत्युष दोनों अपने डायनिंग टेबल पर बैठे हुए हैं, प्रतिभा उन दोनों को खाना परोस रही है कि कॉलिंग बेल बजने लगती है l

तापस - ओ... हो.... यह खाने के समय में कौन मरा जा रहा है....(कह कर उठने को होता है, कि प्रतिभा उसे वापस बिठा देती है)
प्रतिभा - आप खाना खाइए.... बीच खाने से मत उठिए.... मैं देखती हूँ... कौन है....
प्रतिभा दरवाजा खोलती है तो सामने जगन को खड़ा हुआ पति है l जगन कुछ कहने को होता है,
प्रतिभा - नहीं.. नहीं... बिल्कुल नहीं... देखो जगन माना के तुम सेनापति जी के अर्दली हो.... पर ऑफिस में... यहाँ पर भी अर्दली बनने की कोशिश ना करो.... मैं यहाँ अपने परिवार की देखभाल कर सकती हूँ... और घर के बाकी काम भी... पर तुम जिद करते हो इसलिए कभी कभी घर में कुछ काम करने देती हूँ.... पर खाना बनाने नहीं दे सकती तुम्हें.... हाँ अगर खाना चाहो तो.... सेनापति जी के बगल में बैठ जाओ... मैं खाना लगा दूंगी....
तापस - अरे भाग्यवान... उसे पहले कुछ कहने तो दो... हाँ.. जगन.. बोलो... कैसे आना हुआ...
जगन - सर.. वह...
तापस - हाँ हाँ... बोलो... कुछ गडबड तो नहीं हो गया...
जगन - सर... हाँ...
तापस - क्या हुआ है...
जगन - सर... वह.. रंगा को हस्पताल ले जाया गया है....
तापस - व्हाट... क्या हुआ उसे..
जगन - सर... उस पर हमला हुआ है... लहू-लुहान हो कर पड़ा हुआ था.... तो नाइट् ड्यूटी पर सतपाथी जी थे उन्होंने एम्बुलेंस बुलाकर उसे कैपिटल हस्पताल में भेज दिया है.....
तापस - व्हाट.... यह कब हुआ..... और मुझे फोन क्यूँ नहीं किया गया....
जगन - सर... सब परेशान थे... किसी तरह रंगा को हस्पताल पहुंचाने के लिए... उसके बाद आपको लैंडलाइन पर इन्फॉर्म करने की कोशिश की गई... पर लैंडलाइन एंगेज आ रहा था....
तापस और प्रतिभा यह सुन कर दोनों प्रत्युष को देखने लगते हैं l प्रत्युष अपना जीभ दांतों तले दबा कर अपने कमरे को ओर भाग जाता है l
तापस - (जगन को देखते हुए) क्यूँ... मोबाइल पर भी तो इन्फॉर्म कर सकते थे.....
जगन - बहुत बार किया गया.... पर आपने उठाया नहीं....
यह सुन कर तापस अपना मोबाइल ढूंढने लगता है l फिर उसे मोबाइल सोफ़े पर कुशन के नीचे मिलता है l तापस मोबाइल चेक करता है
तापस - ओह माय गॉड... बत्तीस मिस कॉल.... अरे यह क्या... फोन म्यूट है.... प्रतिभा.... मैं जगन के साथ हस्पताल जा रहा हूँ.... आकर खाना खा लूँगा....
इतना कह कर उन्हीं कैजुअल कपड़ों में ही जगन के साथ कैपिटल हॉस्पिटल को निकल जाता है l इधर प्रतिभा सिर्फ़ प्रत्युष के प्लेट को छोड़ कर सारे प्लेटस् उठा लेती है l
उधर हस्पताल में ऑपरेशन थिएटर के सामने दास, सतपाथी और कुछ स्टाफ खड़े थे l वहाँ पहुँच कर
तापस - सॉरी सतपाथी... फॉर बीइंग लेट...
सतपाथी - इटस् ओके सर.... प्रॉब्लम वाज देयर, बट नथींग सिरीयस....
तापस - ओके.... कैन.. एनी बॉडी एक्सप्लेन....
दास - सर.... मै... आइ....
तापस - (हाँ में अपना सर हिलाकर) ह्म्म्म्म कहो....
दास - सर... कुछ लोग ताक में रहते हैं... की किसी और की मैदान मारने की.... वैसे लोग जल्दबाजी में अपनी ही मैदान मरवा लेते हैं....
तापस - व्हाट.... समझ में आए.. ऐसे बोलो.... किसने रंगा की हालत ऐसे की...
दास - कोई नहीं जानता.... यहाँ तक रंगा भी नहीं जानता.....
तापस - तुम मुझे एक्सप्लेन कर रहे हो... या कन्फ्यूज कर रहे हो....
दास - सर.... इसकी... मेरा मतलब रंगा की एक आदत है.... रात के खाने के बाद..... दो मिनट के लिए गांजा फुंकता है....
तापस - व्हाट.... हमारे जैल में गांजा.... उसके पास.... कैसे....
दास - यह बताना... थोड़ी मुश्किल है.... हो सकता है... हमारे ही स्टाफ में से कोई उससे मिला हुआ हो....
तापस वहाँ पर मौजूद सबको पैनी नजर से देखता है फिर दास को देखता है l
दास - सर रंगा हमेशा रात को आधा पेट खाता है... और बाहर जाकर दो नंबर बैरक के लॉबी के एक कोने में रोज सबका खाना खतम होने से पहले गांजा फूंकना उसका कुछ दिन का रूटीन था... आज वहाँ पर कोई उसकी ताक में था.... जैसे ही वहाँ पहुंचा रंगा के आंखों में लाल मिर्च के पाउडर फेंक दी.... रंगा... दर्द से बिलबिला उठा... पर कहीं भाग नहीं पाया...और नीचे गिर गया..... तब उस पर मिर्च पाउडर से हमला करने वाला रंगा का पजामा और लंगोट खिंच कर उल्टा कर दिया और...
तापस - और....
दास - और रंगा के गुद्दे के पास तेज धार वाली किसी हथियार से चार इंच लंबा कट मार दिया.... इसलिए रंगा को भी नहीं मालूम.... किसने और क्यूँ किया....

तापस दास का हाथ पकड़ कर अपने स्टाफ से कुछ दूर ले जाता है l

तापस - अब तक तुमने जो बताया... वह ऑफिसियल था.... अब मुझे डिटेल्स में....... ऑन-ऑफिसियल बात बताओ..... देखो मैं जानता हूँ.... तुम्हें सिर्फ अंदाजा ही नहीं बल्कि पक्की पूरी खबर भी होगी... कौन और क्यूँ यह सब किया....
दास - सर इसकी ऐसी हालत के लिए... यह खुद जिम्मेदार है और हाँ इसकी ऐसी हालत जरूर विश्व ने ही किया है.....
तापस - (हैरानी से) विश्व... कैसे... और क्यूँ...
दास - सर... क्यूँ... यह आप भी अच्छी तरह से जानते होंगे.... आप दूसरे दिन दो बार राउंड पर इसलिए तो गए थे... इनडायरेक्टली विश्व की खैर खबर लेने.... और यह वह बात थी के विश्व को बताते हुए भी शर्म आ रही थी.... इसलिए उसने उस दिन कुछ कहा नहीं....
तापस का सर झुक जाता है l
दास - सर... विश्व को अपने आपको बचाना था... और अपमान का बदला भी लेना था...
तापस - पर विश्व के पास.... धार धार हथियार कहाँ से आया.....और कब...
दास - सर आज ही आया... और नाई से हासिल किया ब्लेड...
तापस -अब डिटेल्स में खतम करो....
दास - सर... आज सुबह नाई आया था... विश्व उसके पास अपने बाल और दाढ़ी बनाने गया.... और उससे ब्लेड हासिल कर ली.... उसके बाद रंजन को खाना बनाने में मदद के बहाने कुछ मिर्च के पाउडर भी ले लिया... कुछ दिन पहले उसने चादर और कंबल की धुलाई इतनी करी थी के... एक एक्स्ट्रा कंबल भी अपने साथ ले ली थी....
कुछ दिनों से रंगा विश्व पर और विश्व रंगा पर नजर रख रहे थे..... दोनों मौके की तलाश में थे.... रंगा को जल्दी नहीं थी और वह कंफीडेंट था...... पर विश्व जल्दी में...
आज विश्व को मौका मिल गया.... सब जब खाने के लिए बैठे थे... बीच में थाली टेबल पर छोड़ कर विश्व उठ कर सब गवाह बन सके ऐसे टॉयलेट को गया.... इतने में रंगा अपना खाना खतम कर अपनी रूटीन के अनुसार... अपनी जगह पहुंच गया... पर वहाँ पहले से ही विश्व रंगा के इंतजार में था... खुद को कंबल में ढक कर हाथ में मिर्च पाउडर रंगा के आँखों पर सटीक निशाना लगा कर फेंका... रंगा... चिल्ला कर पीछे मुड़कर भागता पर पिलर से टकरा कर गिर गया... उसके गिरते ही बिना देर किए... विश्व ने उसका पजामा लंगोट समेत खिंच कर निकाल दिया..
रंगा आँखों की जलन से चिल्ला रहा था... बस विश्व ने ब्लेड निकाला और रंगा के गुद्दे की पास चला दिया... करीब करीब चार इंच का कट... सिर्फ आधे मिनिट में विश्व का काम हो चुका था... विश्व अब सबके सामने टॉयलेट से आकर अपने थाली के पास बैठ गया... रंगा के कान फाड़ देने वाले चित्कार सुन कर सब वहीँ भागे...
सबके साथ विश्व भी वहाँ पहुंचा.... इसलिए अब विश्व पर कोई शक़ नहीं कर सकता है.... बस यही हुआ है... सर...
तापस - आधे मिनट में... क्वाइट इंपॉसिबल...
दास - विश्व के लिए नहीं सर....
तापस - हाओ.....
दास - सर जहां रंजन और उसके टीम को... सब्जियां काटने के लिए दो घंटे लगते हैं... वहीँ विश्व अकेले को सिर्फ आधा घंटा लगता है.... जहाँ बालू और उसके साथी पूरा एक दिन लेते हैं चादर और कंबल साफ करने के लिए.... वहीँ विश्व सिर्फ आधे दिन में काम खतम कर दिया था....
तापस - क्या... हम कुछ कर सकते हैं...
दास - नहीं सर... हम कुछ ना करें... यही बेहतर रहेगा.... क्यूंकि विश्व के खिलाफ़ कोई सबूत नहीं है.... और रंगा के पास गांजा और गांजे के सिगरेट बरामद हुए हैं..... इससे हमारे ही डिपार्टमेंट की बदनामी होगी.... आगे आप जैसा कहें सर....
ऑपरेशन थिएटर का बल्ब बंद होता है l डॉ. विजय बाहर आता है l
डॉ. विजय - (तापस को देख कर) मेरे चैम्बर में चलें....
तापस अपना सर हिला कर हाँ कहता है और डॉ. विजय के साथ उसके चैम्बर की चल देता है l
चैम्बर में
डॉ. विजय - क्या यार.... तुम्हारा कोई भी मुज़रिम... हमेशा किसी अलग ही हालत में क्यूँ आते हैं....
तापस - टांग खींचना छोड़ कर मुद्दे पर आओ.... और उसकी रिपोर्ट क्या है बोलो...
डॉ. विजय - ह्म्म्म्म... ठीक है... सुनो फिर... किसी अनाड़ी ने... ऑन-प्रोफेशनल ने यह कांड किया है.... पर प्रोफेशनल की तरह..... उसने ठीक गुद्दे के उपर से किसी पतले मगर धार वाली हथियार से करीब करीब चार इंच लंबा और आधा इंच गहरा कट मारा है..... शयद ब्लेड से.... अब प्रॉब्लम यह है कि इसे पेट के बल घाव सूखने तक लेटे रहना होगा....
तापस - व्हाट...
डॉ. विजय - हाँ.... क्यूंकि दर्द के मारे पीठ के बल लेट नहीं पाएगा.... क्यूंकि पीठ के बल लेट कर हिलने से घाव के टांके उखड़ जाएंगे.... और पेट के बल लेटे रहना लंबे समय तक बहुत ही मुश्किल है...
यह सुन कर तापस का मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है l
तापस - यार कुछ करो....
डॉ. विजय - हाँ वह तो करना ही पड़ेगा.... इसे पूरे एक महीने के लिए यहाँ छोड़ दो....

तापस - ओके..... और... थैंक्यू...
👉उन्नीसवां अपडेट
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सुबह सुबह का वकिंग खतम कर तापस अपने क्वार्टर में आता है l बैठक में सोफ़े पर बैठते हुए टीवी ऑन करता है l ताजा खबर जानने के लिए न्यूज चैनल लगाता है,
ब्रेकिंग न्यूज -
"जैसे ही कल क्षेत्रपाल परिवार का आगमन भुवनेश्वर में हुआ था, उससे राजनीतिक गलियारों में तरह तरह के कयास लगाए जा रहे थे, कल देर रात सभी कयासों में विराम लग गया और नए सम्भावनाओं को जन्म देने लगा है...
कल अचानक से राज्य के स्वास्थ्य मंत्री श्री ओंकार ईश्वरचंद्र चेट्टी जी जो राज्य के जनता मध्य ओ. आई. सी. नाम से परिचित हैं,वह अपने नीवास भवन में देर रात को अपनी पार्टी में श्री पिनाक सिंह क्षेत्रपाल के योगदान की घोषणा कर सबको चौंका दिया....
श्री चेट्टी ने कहा कि छोटे राजा जी के पार्टी में आने से पार्टी ना सिर्फ़ बहुत मजबूत हुई है.... बल्कि अब राज्य में उनकी पार्टी अजय हो गई है....
इस संदर्भ में हमारे संवाददाता ने राज्य के जन मानस में छोटे राजा जी के नाम से लोकप्रिय श्री क्षेत्रपाल जी से वार्तालाप की....
रिपोर्टर - आज हमारे साथ हैं, राज्य के जन मानस में छोटे राजा जी के नाम से सुपरिचित आदरणीय श्री पिनाक सिंह क्षेत्रपाल जी.... हाँ तो छोटे राजा जी... आज आप सपरिवार अटॉर्नी जनरल जी के यहाँ आये थे.... और खबर यह थी कि राज्य में हुई मनरेगा योजना में पैसों की हेर-फेर पर तुरंत कारवाई के लिए कानूनी राह पर बात चित करने.... पर अचानक से आपका राजनीति में आना वह भी राज्य के स्वास्थ्य मंत्री जी के द्वारा घोषणा किए जाना सबको चौंका दिया आपने....
पिनाक - हा हा हा हा.... देखिए इसमें चौंकाने वाली क्या बात है.... हम राज परिवार से हैं.... और राजनीति हमारे खुन में दौड़ती है....
रिपोर्टर - हाँ... इसमें कोई शक़ नहीं है.... पर अबतक राज्य की राजनीति में.... क्षेत्रपाल परिवार किंग् मेकर की भूमिका में थी... अब आपकी कैसी भूमिका रहेगी....
पिनाक - देखिए.... आज अगर हम सक्रिय राजनीति में होते... तो निःसंदेह हमारे ही क्षेत्र में कभी मनरेगा कांड ना हुआ होता.... रही आने वाली समय में.... तो हम सबको आश्वस्त करना चाहते हैं.... हम एक साधारण कार्यकर्त्ता की तरह जनता और पार्टी की सेवा करने आए हैं....
रिपोर्टर - छोटे राजा जी.... सुना है आपकी अगली पीढ़ी भी अब राजनीति में आपनी योगदान देने वाली है....
पिनाक - कल क्या होगा यह कल पर ही छोड़ दें...... (इतना कह कर पिनाक सिंह मुड़ कर चला जाता है)
रिपोर्टर - तो यह थे छोटे राजा जी.... कैमरा मैन अभिजीत के साथ...

तापस टीवी बंद कर देता है l इतने में प्रत्युष तैयार हो कर अंदर आता है...
प्रत्युष - डैड... आपने टीवी क्यूँ बंद कर दिया....
तापस - मुझे सुबह सुबह.. यह पोलिटिकल न्यूज दिमाग खराब कर देती हैं....
प्रत्युष - पर टीवी पर हमारे हॉस्पिटल मैनेजमेंट के चेयरमैन ओंकार ईश्वरचंद्र चेट्टी जी आ रहे थे.... और आप तो जानते हैं.... वह स्टेट के हेल्थ मिनिस्टर भी हैं...
तापस - तो....
प्रत्युष - डैड... आपको पूरा न्यूज देखना चाहिए था....
तापस - हाँ तो.... कहाँ मैंने आधा अधूरा देखा है....
प्रत्युष - अधूरा ही तो है....
तापस - अच्छा... मैंने जो न्यूज देखा... वह अधूरा है.... आप जो सूरज सर पर होने के बाद उठते हैं.... पूरा न्यूज जानते हैं....
प्रत्युष - (अपना मुहँ बना कर) डैड.. आप अपने कपड़े देखिए.... और मेरे कपड़े देखिए.... यह मेरे घर से बाहर जाने के कपड़े हैं... और आपके अंदर....
तापस - (प्रत्युष को घूरते हुए) मेरा कभी कभी मन करता है... तेरा कान खिंचु... मन भरने तक कुटाई करूँ....
प्रत्युष - मुझे मालुम था.... आप मुझसे जलते हैं... क्यूंकि मैं आपसे ज्यादा इंटेलिजेंट हूँ....
तापस - (उसे घूरते हुए) अच्छा अब पूरी खबर बता....
प्रत्युष - डैड.... पूरी खबर यह है कि.... कल स्वास्थ मंत्री जी के पास... क्षेत्रपाल जी अपने प्रांत के लिए सारी सुविधाओं से लैस उनके हॉस्पिटल चैन निरोग का एक ब्रांच हस्पताल का प्रस्ताव लेकर गए थे..... उनके प्रस्ताव सहसा श्री स्वस्थ्य मंत्री ने स्वीकार किया और उन्हें राजनीति में आने के लिए आमंत्रण दिया...... ताकि हस्पताल का काम उनके देख रेख में पूरा हो.... कोई मनरेगा जैसा कांड न हो..... जिसे सुन कर श्री क्षेत्रपाल जी ने भी सहसा स्वीकार किया.... यह है पूरा न्यूज...
तापस - ओ.. अच्छा अच्छा... तो अब आप डॉक्टरी के साथ साथ रिपोर्टरी भी करने लगे हो...
प्रत्युष - यह ताना था... या तारीफ़.... खैर जो भी हो... एक पिता दे और बेटा ना ले.... यह हो नहीं सकता....
तापस - प्रतिभा.....
प्रतिभा - (चाय का प्याला लाकर) क्या हुआ...
तापस - अपने लाडले को जल्दी से नाश्ता देकर विदा करो... तब से मेरा दिमाग खा रहा है...
प्रतिभा - (प्रत्युष को आँखे दिखा कर) कितनी बार कहा है.... कुछ ढंग का खाया कर.... सुबह सुबह इनके कैलरी लेस दिमाग खाएगा तो एनर्जी कहाँ से लाएगा....
तापस प्रतिभा को घूर कर देखता है पर चुप रहता है, उसे यूँ चुप देख कर प्रतिभा मुस्करा कर प्रत्युष को इशारे से बाहर जाने को कहती है l प्रत्युष भी अपनी हंसी दबाये बिना शोर शराबे के चुपके से बाहर निकल जाता है l उसके जाते ही.,
प्रतिभा - क्या बात है सेनापति जी.... कल रात से आप कुछ कंफ्यूजड हैं....
तापस - हाँ.... यह क्षेत्रपाल परिवार का अचानक राजनीति में आना.... वह भी तब... जब उनके क्षेत्र में एक बहुत ही बड़ा करप्शन हुआ है...
प्रतिभा - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) देखिए... फ़िलहाल.... मैं इस पर कुछ भी डिबेट करना नहीं चाहती.... क्यूंकि आपकी सुई फ़िर वहीँ पर अटक जाएगी.... और मेरा दिन और दिमाग दोनों खराब हो जाएगी....आप बेशक पुलिस वाले हैं पर फील्ड में नहीं हैं.... जैल सुपरिटेंडेंट हैं.... अब आप से मैं बस इतना ही कहना चाहती हूँ .... वक्त सबका ज़वाब दे देगा....
तापस - हूँ... तुम... सही कह रही हो... अब वक्त ही ज़वाब देगा...

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कैदी नंबर 511.... यह सुन कर विश्व सेल के बाहर देखता है l एक नया संत्री था l
संत्री - तुम्हारा पैर पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ है.... क्या तुम रंजन को खाना बनाने में मदद करोगे....
विश्व - जी बिलकुल....

संत्री सेल की दरवाजा खोल देता है l
संत्री - आओ फ़िर...

विश्व संत्री के साथ जैल के रसोई में आता है l वहाँ के मुख्य रसोईया रंजन कुछ क़ैदियों के मदद से सब्जियाँ कटवा रहा था l रंजन विश्व को देखता है और पूछता है,
रंजन - हाँ तो विश्व.... क्या तुम्हें इस तरह के काम की आदत है...
विश्व - आपको... मेरा नाम...
रंजन - आरे भाई.... तुम सिर्फ इस जैल में ही नहीं.... पूरे राज्य में मशहूर हो चुके हो.... और तुम्हारे आते ही... सब यहां पर तुम्हारे बारे में काना फुंसी कर के ही सब तुम्हारे बारे में मालूम कर चुके हैं......
विश्व चुप रहता है l रंजन विश्व के हाथ में एक छुरी देता है और एक बड़े से टोकरी भर सब्जी दे कर काटने को इशारा करता है l विश्व पहले कटे हुए सब्जियों को देखता है l फिर विश्व सब्जियां काटना शुरू करता है l सिर्फ पैंतीस मिनट में सारे सब्जियां काट कर रंजन के हवाले कर देता है l रंजन, संत्री और दूसरे कैदी जो उसे अब तक देख रहे थे सबका मुहं हैरानी से खुला रह जाता है l
रंजन - तुमने सब्जियां इतनी जल्दी काट दी.... क्या तुम्हें इसकी पहले आदत है...
विश्व - मेहनती हूँ... ऐसे कामों में अभिज्ञ हूँ..
इतना कह कर विश्व वापस जाता है l रास्ते में फ़िर से कुछ कैदी विश्व पर तंग कसते हैं l
एक - सुना है... लंगड़ा अपना पिछवाड़ा किसीके मूत से साफ किया...
दूसरा - क्यूँ भई.... क्या हमारे यहाँ पानी खतम हो गया है...
तीसरा - ना ना... अपना पिछवाड़ा के उद्घाटन की तैयारी कर रहा था...
सब हंसते हैं l विश्व थोड़ा जोर से चलने लगता है l पीछे से आवाज़ आती है "ऑए लंगड़े भाग ना जैयो..." विश्व और जोर से चलने लगता है l तभी विश्व को एक आवाज आता है "ऑए गांडु महापात्र".... यह सुनते ही विश्व रुक जाता है और पीछे गुस्से से मुड़ कर देखता है l सब ताली मार कर ठहाका लगाते हैं l उनमें से एक कहता है - देखा मैंने बुलाया... उसे सुन कर वह रुक गया.... लौडा वाला मजनू बुलाये और गांडु लैला महापात्र ना रुके... ऐसा हो ही नहीं सकता....
सब और जोर से ठहाका लगा कर हंसते हैं l विश्व अपमानित महसूस करता है, उसकी आँखों में आंसू छलक जाता है l वहाँ से जल्दी से जल्दी चला जाना चाहता है,
विश्व अपने बैरक की करिडर में पहुंचा ही था के वे चार कैदी उसके पीछे पीछे पहुंच जाते हैं l एक उसके सामने आकर खड़ा हो जाता है l
एक - क्यूँ बे.... गांडु लैला... तेरा मजनूं बुला रहा है... साले हरामी.. गांड मटका कर किससे मरवाने भाग रहा था बे....
विश्व का चेहरा लाल हो जाता है और उसे गुस्से से देखने लगता है l
एक - उइ माँ... मैं तो डर गया.... अरे भाई लोग... गौर से देखो इस गांडु को... यह लैला अपने मजनूं को आंख दिखा रहा है....
दूसरा - पता नहीं रंगा भाई... पर मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है.... यह आपको आँख नहीं दिखा रहा है.... बल्कि इशारे से किसी अंधेरे कोने में बुला रहा है.....
सब ठहाका मार कर हंसने लगते हैं l
तभी व्हिसिल की आवाज़ सुनाई देती है l तो सब विश्व से थोड़ी दूर जा कर खड़े हो जाते हैं l थोड़ी देर बाद वहाँ पर तापस कुछ संत्रीयों के साथ पहुंचता है l रंगा और उसके साथियों के पास आकर रुक जाता है l
तापस - तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो...
रंगा - वह... अपना यार आया है... तो जान पहचान बना रहे थे...
तापस - क्यूँ इससे पहले भी जान पहचान है क्या तुम्हारा....
रंगा - जी नहीं.... हम तो महीने भर से यहाँ आए हैं... यह नया नया आया है... तो दोस्त बनाने आए थे...
तापस - ओके... तुम लोग... निकलो यहाँ से...
रंगा - ओके... सर... बाय... विश्व... बाय... बाद में मिलते हैं...

इतना कह कर अपने साथियों के साथ वहाँ से चला जाता है l तापस विश्व को इशारे से अपने सेल की ओर जाने को कहता है l विश्व अपने सेल के भीतर पहुंच कर रंगा के बारे में सोचने लगता है l
"क्षेत्रपाल अब जैल में इसके मदद से... मुझे जलील करने की ठानी है..... इसका नाम रंगा है.... मुझे कुछ ना कुछ करना ही होगा.... मगर क्या.... मैं क्या कर सकता हूँ... अगर उसने मेरे साथ कुछ भी गलत करने की कोशिश की.... तो... तो मैं उसे जान से मार दूँगा....हाँ मार दूँगा.... मगर कैसे... वह मुझसे अकेला नहीं लड़ेगा... और मैं इतना ताकतवर हूँ नहीं के चार चार से भीड़ जाऊँ..... पता नहीं अब मुझे क्या क्या सहना होगा.... आह... नहीं नहीं नहीं....
क्षेत्रपाल महल में मेरे साथ जो हुआ वह आखरी बार था.... अब कोई भी मुझे जलील नहीं कर सकता.... मुझे कुछ करना होगा.... हाँ कुछ करना होगा...
ऐसे सोचते सोचते दोपहर हो जाती है l जैल में खाने के लिए इकट्ठा होने के लिए बेल बजती है l संत्री आकर सेल का दरवाज़ा भी खोल देता है l पर विश्व अपने में खोया हुआ है, उसे संत्री का दरवाज़ा खोलना या खाने की बेल बजना कुछ होश नहीं l
संत्री सेल के दरवाजे पर अपनी लाठी से ठोकता है, जिसकी आवाज़ भी विश्व को सोच से बाहर ना निकाल पाई l
संत्री - ऐ... 511... आज तेरा उपवास है क्या... खाना खाने नहीं जाना है क्या....
विश्व उसे देखता है और अपनी जगह से उठ कर बाहर निकालता है l विश्व धीरे धीरे डायनिंग हॉल की ओर बढ़ता है l रास्ते में रंगा और उसके साथी विश्व को छेड़ते हुए पीछे लग जाते हैं l विश्व उनसे दूर जाने की कोशिश करता है, पर फिरभी वे लोग विश्व को आजू बाजू घेर लेते हैं और विश्व सुन सके ऐसे -"गांडु लैला... कब लेगा तेरे मजनूं का केला" कह कर हाथ उसे लगाने की कोशिश करते हैं l विश्व अपना थाली लेकर नजर घुमाता है, उसे एक टेबल पर डैनी दिख जाता है l विश्व उस टेबल पर आकर बैठ जाता है l डैनी उसे देखकर मुस्कराता है l
डैनी - हाँ तो विश्व... कैसी कटी तेरी रात...
विश्व - (अपना चेहरा झुका कर खाना खाते हुए) जी अच्छी...
डैनी - हा हा हा क्यों बे ... वह रंगा तेरा पिछवाड़ा भिगो दिया तो तुझे इतना अच्छा लगा.....
विश्व के गले में निवाला अटक जाता है और वह खांसने लगता है l डैनी उसे पानी का ग्लास देता है l
डैनी - ले.... पि... ले...
विश्व पानी की एक घूंट पिता है, और उसके आंखों में आंसू निकल आते हैं l
डैनी - सुन.. विश्व.... यह दुनिया बहुत बेरहम है... इतना बेरहम के तुम सोच भी नहीं सकता....
विश्व अपनी आंखों में पानी लिए डैनी की तरफ देखता है l डैनी विश्व को देखे बगैर खाना खा रहा है l
डैनी - तेरे को इन डेढ़ दिनों में एक बात मालूम हो गया ना .... के इस जैल में कोई मुझसे पंगा लेने की कोशिश भी नहीं कर रहा.... इसी लिए तुने अपनी थाली ले कर यहाँ मेरे पास बैठ गया.... थोडे समय के लिए... उनसे बचने के लिए अच्छा तरीका है..... पर कब तक.....
विश्व डैनी को गौर से देखने लगा, पर डैनी उसके चेहरे पर आए भाव को नजर अंदाज करते हुए अपना खाना खा रहा है l
डैनी - कब तक... कल अगर मैं यहाँ नहीं रहा तो..... तब तु उनसे कैसे बचेगा..... क्या सुपरिटेंडेंट के पास शिकायत ले कर जाएगा...
विश्व अपना सर झुका कर मौन रहता है l
डैनी - जाएगा तो भी... क्या शिकायत करेगा.....
विश्व - मैं क्या करूं....
डैनी - यह मैं कैसे कह सकता हूँ.... प्रॉब्लम तेरा है... तेरे को ही शॉल्व करना है....
विश्व के आंखों में फ़िर से आँसू आ जाते हैं l
डैनी - बी अ मैन विश्व.... बी अ मैन.... आँसू बुजदिली की निशानी है... तु तो अपने इलाके के सबसे ताकतवर आदमी से भीड़ गया था...... उसके आगे यह रंगा किस खेत का मूली है.....
विश्व की आंखे फैल जाती है l वह हैरानी से अपने सामने बैठे आदमी को देखने लगता है l
डैनी - तुम मेरे बारे में जानते नहीं हो.... इसलिए मेरे साथ मेरे सामने बैठे हुए हो.... वह जो जानते हैं... वे सब मुझसे दूर बैठते हैं....देख लो..
विश्व डायनिंग हॉल के चारो तरफ नजर दौड़ाता है l वह देखता है कि हर टेबल पर पांच से लेकर आठ लोग बैठे हुए हैं, पर वह खुद जिस टेबल पर बैठा हुआ है वहाँ पर सिर्फ़ वह और डैनी ही बैठे हुए हैं l
विश्व - आपको मेरे बारे में... कैसे... मेरा मतलब है... जो पुलिस भी नहीं जानती... वह आप....
डैनी - (मुस्कराते हुए) मेरे अपने सोर्सेस हैं... कल तु जैल में आया बेशक... पर तेरे चर्चे कई दिनों से पूरे राज्य में हो रहे हैं.... इसलिए तुझे देखने की बड़ी ख्वाहिश थी... जैसे ही देखा तो तुरंत समझ गया... मैं एक बकरे को देख रहा हूँ.....
विश्व - काश... कानून को मानने व पालने वालों की भी नजर आप जैसी होती.....
डैनी - हा हा हा... मैं जुर्म की दुनिया का मंज़ा हुआ खिलाड़ी हूँ.... मैं जुर्म और मुज़रिम को सूँघ लेता हूँ.... देखते ही पहचान लेता हूँ...
विश्व अपने सामने बैठे उस शख्स को देख कर हैरान रह जाता है l
विश्व - आपने बताया नहीं... आपको कैसे मालुम हुआ... मेरे बारे में...
डैनी - कहा ना... मेरे अपने सोर्सेस हैं... अब तु बता.... तु उस रंगा से डरता क्यूँ है...
विश्व - मैं डरता नहीं हूँ... पर उनसे जीत भी नहीं सकता हूँ... वे चार हैं और मैं अकेला....
डैनी - सोच... अगर रंगा ने जो कहा है कि... उसने कर दिखाया... तो...
विश्व अपने मुट्ठीयों को भींच कर जवड़े कस लेता है l
विश्व - ऐसा करने की कोशिश की... तो मार डालूंगा.... सबको मार डालूंगा....
डैनी - तेरे दुश्मन भी शायद यही चाहते हैं..... तेरे ऊपर जितने चार्जेस लगे हुए हैं.... उसमें कुछ और जुड़ जाएंगे.... इस तरह से.... तु कभी इस जैल से निकल नहीं पाएगा.....
विश्व - तो मैं क्या करूं.... आप आप यह कैसे जानते हैं....
डैनी - तु कितने उम्र का है...
विश्व - जी अभी कुछ दिनों में बाइस का होने वाला हूँ...
डैनी - मैं तुझसे दुगने उम्र से भी एक साल बड़ा हूँ... एकसपेरियंस... अनुभव...
विश्व - तो मुझे क्या करना चाहिए....
डैनी - यह तु जाने.... मैं सिर्फ तेरे को आगाह कर रहा हूँ....
विश्व बेबसी से अपना हाथ मल रहा है l
डैनी - देखो विश्व.... यह जैल है... और यहाँ चार्ल्स डार्विन की थ्योरी ही काम आती है...
विश्व डैनी के चेहरे को सवालिया दृष्टि से देखता है l
डैनी - सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट...
विश्व कुछ समझ नहीं पाता
डैनी - यह प्रकृति का नियम है... यहाँ वही टिक सकता है... जो अपनी हालातों से जुझ सकता है... और यहाँ वही राज कर सकता है... जो हालातों को अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ सकता है....
विश्व उसकी बातों पर गौर करता है और समझने की कोशिश में अपना सर हाँ में हिलाता है l
डैनी - यहाँ जंगल राज है... जंगल में शेर बेशक जंगली सुवर का शिकार करता है.... पर कभी कभी सुवर की पलट वार से शेर भी ढेर हो जाता है.... और जिस दिन जंगल में शेर, सुवर से हार जाता है.... उस दिन जंगल में शेर जीते जी मर जाता है....
अब विश्व अपने अंदर में एक ऊर्जा को मेहसूस करता है, उसके चेहरे पर दर्द नहीं दिखता,एक अलग भाव दिखता है l जिसे देखकर डैनी के चेहरे पर छोटी सी मुस्कान आ जाती है l
डैनी - वह जिस तरह से तुझ पर नजर रख रहे हैं... तु भी उन पर अपने तरीके से नजर रख..... खुद को सब के साथ सबके पास रखो.... वे लोग तुम्हें अकेले में धर ने की कोशिश करेंगे.... तुझे छेड़ने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगे.... तुझे उकसाने की कोशिश करेंगे... पर तु रियाक्ट मत हो जाना... जितना हो सके उनको उस मौके से महरूम रख..... फिर अपना दाव लगा.... मगर ध्यान रहे... तुझे किसीकी नजर में नहीं आना है... वरना कुछ और धाराएं तेरे पर लग जाएंगी... और तु जैल और अदालत के चक्कर काटते रह जाएगा.....
इतना कह कर डैनी वहाँ से अपना खाली थाली लेकर निकल जाता है l विश्व उसे जाते देखता है l फिर विश्व अपना खाना खतम करता है और थाली साफ कर वहाँ जमा कर वापस अपने बैरक की और चला जाता है l जैसे कि अंदेशा था वे लोग विश्व के पीछे आते हैं और तंज कसने लग जाते हैं l
रंगा - अबे पंटरों... मैंने कुछ दिन पहले एक फिलम देखी थी....
एक - कौनसी फिलम रंगा भाई.....
रंगा - अबे... उस फिलम नाम था "तेरे मेरे सपने".... उसमें एक गाना था... आँख मारे वह लड़की आँख मारे...
दूसरा - वाह.. रंगा भाई... वाह..
रंगा - अबे... इसमे... वाह वाली क्या बात है.... इसकी रीमिक्स जब गांडु गायेगा... उस पर तुम लोग वाह वाह करना....
एक - वह गाना क्या होगा.... रंगा भाई...
रंगा - गांड मारे... रंगा मेरा गांड मारे... थूक लगाए... बिन कॉन्डोम के मारे...
अब सब रंगा के साथ मिलकर जोर जोर से गाने लग जाते हैं l
विश्व सुन कर गुस्सा तो होता है पर उसे डैनी की कही बातेँ याद आती है, विश्व अब उन पर ध्यान हटाता है और सीधे अपने सेल में चला जाता है l ऐसे ही दोपहर बीत जाता है और शाम को जैल में राउंड लगाते हुए तापस जब वहाँ पहुंचता है l
विश्व - सर...
तापस - हाँ बोलो विश्व...
विश्व - सर सुबह मैं सिर्फ सब्जी काटने गया था.... क्या और कोई काम है जिसे करना चाहिए.... मेहनत वाला... वरना नींद नहीं आएगी....
तापस - है तो... पर तुम अभी... एक्युसड हो... तुम्हें सजा नहीं सुनाई गई है...
विश्व - सर... उसकी कोई आवश्यकता नहीं... मैं बस शरीर थकने तक काम करना चाहता हूँ...
तापस - पर तुम्हारा एक पैर...
विश्व - सर... मांस पेशी में खिंचाव है... वह भी कुछ दिन में ठीक हो जाएगा...
तापस - दास.... कल ऐसा कुछ काम है क्या...
दास - जी सर... अगर विश्व चाहे तो... कल सारे चादर और कंबल धोए जाएंगे...
विश्व - ठीक है सर.... मुझे मंजूर है... प्लीज...
तापस - ठीक है... दास कल इसे एनगैज कराना तुम्हारे जिम्मे...
दास - ओके सर....
फिर तापस और दूसरे अधिकारी वहाँ से चले जाते हैं l विश्व अपने सेल में बिछाए अपने बिस्तर पर एक संतुष्टि के भाव लिए बैठ कर सोचने लगता है l

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अगले दिन सुबह विश्व अपनी सेल में जल्दी तैयार हो जाता है l कुछ देर बाद नाश्ता करने डायनिंग हॉल में पहुँच जाता है l सब जो पिछले दो दिन से विश्व को देख रहे हैं, उन्हें आज विश्व के चेहरे पर कुछ अलग ही भाव दिख रहा है l रंगा और उसके पंटर भी हैरान हैं l दो दिन से किसी हारा हुआ, बिखरा हुआ लगने वाला विश्व में आज बॉडी लैंग्वेज कुछ और बयान कर रहा है l
आज विश्व दूसरों से बात करने की कोशिश भी कर रहा है l
विश्व जल्दी अपना नाश्ता खतम करता है और ऑफिस में पहुंचता है l ऑफिस के पास संत्री उसे रोक देता है l
विश्व - वो कल ASI जी ने बुलाया था....
संत्री - ठीक है... रुको यहाँ... मैं पूछ कर आता हूँ....
संत्री अंदर जाता है और थोड़ी देर बाद बाहर आकर विश्व को अंदर जाने को कहता है l विश्व अंदर जाता है और पूछते हुए ASI दास के पास पहुंचता है l
दास - आओ विश्व आओ...
इतना कह कर दास बेल बजाता है l एक आदमी जैल के पोशाक में आता है l
दास - बालू... यह है विश्व... इन्हें आज ले जाओ... आज जो चादर और कंबल धुलेंगे... इन्हें भी सामिल करो... यह तुम्हारे हाथ बटायेंगे...
बालू - जी सर... आओ... विश्व...
विश्व बालू के साथ निकल जाता है...
उधर रंगा और उसके साथी बैठे हुए हैं l रंगा के साथी रंगा से,
एक - भाई.. यह चिकना रात को कौनसी घुट्टी पि ली थी... साला आज कुछ अलग ही दिख रहा था....
रंगा - लगता है... उस डैनी ने कुछ बोला है उसको.... पर डैनी भी यहाँ के नियम से वाकिफ़ है.... "यहाँ कोई किसी दूसरे के फटे में टांग नहीं घुसाता"
दूसरा - वही तो...
रंगा - देखते हैं... आज शाम को मिलेगा तो सही... वैसे भी अपने पास... टाइम बहुत है... सुनवाई के कुछ दिन पहले.... मेरे को इस हरामी की गांड मारनी है...
एक - कोई नहीं रंगा भाई... उद्घाटन आप करना... हम लाइन देंगे....
सब हंसने लगते हैं
दोपहर के बाद खाने के समय विश्व खाने की थाली लेकर फिर से डैनी के बैठे हुए टेबल पर पहुंच जाता है l
डैनी उसे मुस्कराते हुए देखता है l ज़वाब में विश्व भी मुस्कराता है l
डैनी - ह्म्म्म्म... बहुत जल्दी सीख रहे हो.... और खुदको हालात में ढाल भी रहे हो...
विश्व - यह सब आपके... हौसला अफजाई के वजह से.....
डैनी - मैंने कुछ नहीं कहा है.... सिर्फ़ आगाह किया था...
विश्व - फिरभी... मैं हर तरह के आघात सह सकता था.... पर....
विश्व कुछ कह नहीं पाता चुप हो जाता है l डैनी उसे देखता है और अपना सर हिलाता है l
डैनी - बलात्कार....
विश्व के गले में निवाला फ़िर से अटक जाता है l डैनी विश्व को पानी की ग्लास देता है l विश्व पानी पीने के बाद फ़िर से खाना चालू करता है l
डैनी - जानता है... किसीको... आत्मा से तोड़ने के लिए... बलात्कार एक अचूक हथियार है....
विश्व - हाँ... आप सही कह रहे हैं....
डैनी - किसी औरत की बलात्कार.... उस औरत की वज़ूद व अस्तित्व को इतना हिला कर रख देती है... की.... उसमें जीने की चाह को खतम कर देती है....
विश्व - (आवाज़ थर्रा जाती है) जानता हूँ... (आँखे भीग जाती हैं)
डैनी - (उसे देखते हुए) मर्द के भी फिलिंगस भी अलग नहीं हो सकता... उस घिनौना सच से...
(दोनों के बीच कुछ देर के लिए ख़ामोशी छा जाती है) तेरे अंदर के मर्द को हमेशा के लिए खतम करने के लिए..... तेरे दुश्मनों की यह अचूक चाल है... अब उन्होंने तेरे को तोड़ने के लिए जिन् लोगों को हथियार बनाए हैं.... उन्हें तु तोड़.... मगर किसीके नजर में आए बगैर....
विश्व - कैसे.....
डैनी - देख... यहाँ अगर टिकना है... तो तुझे खुद के लिए सोचना होगा.... रिमेंबर... ऑलवेज फाइट यु योर वोन बैटल....
इतना कह कर डैनी वहाँ से अपना थाली उठाए धोने चला जाता है l उसके जाते ही विश्व भी अपना खाना खतम करता है और थाली जमा करने के बाद अपने सेल में आकर आराम करते करते सोच में डूब जाता है l

***दस दिन बाद***

रात के डिनर के लिए तापस और प्रत्युष दोनों अपने डायनिंग टेबल पर बैठे हुए हैं, प्रतिभा उन दोनों को खाना परोस रही है कि कॉलिंग बेल बजने लगती है l

तापस - ओ... हो.... यह खाने के समय में कौन मरा जा रहा है....(कह कर उठने को होता है, कि प्रतिभा उसे वापस बिठा देती है)
प्रतिभा - आप खाना खाइए.... बीच खाने से मत उठिए.... मैं देखती हूँ... कौन है....
प्रतिभा दरवाजा खोलती है तो सामने जगन को खड़ा हुआ पति है l जगन कुछ कहने को होता है,
प्रतिभा - नहीं.. नहीं... बिल्कुल नहीं... देखो जगन माना के तुम सेनापति जी के अर्दली हो.... पर ऑफिस में... यहाँ पर भी अर्दली बनने की कोशिश ना करो.... मैं यहाँ अपने परिवार की देखभाल कर सकती हूँ... और घर के बाकी काम भी... पर तुम जिद करते हो इसलिए कभी कभी घर में कुछ काम करने देती हूँ.... पर खाना बनाने नहीं दे सकती तुम्हें.... हाँ अगर खाना चाहो तो.... सेनापति जी के बगल में बैठ जाओ... मैं खाना लगा दूंगी....
तापस - अरे भाग्यवान... उसे पहले कुछ कहने तो दो... हाँ.. जगन.. बोलो... कैसे आना हुआ...
जगन - सर.. वह...
तापस - हाँ हाँ... बोलो... कुछ गडबड तो नहीं हो गया...
जगन - सर... हाँ...
तापस - क्या हुआ है...
जगन - सर... वह.. रंगा को हस्पताल ले जाया गया है....
तापस - व्हाट... क्या हुआ उसे..
जगन - सर... उस पर हमला हुआ है... लहू-लुहान हो कर पड़ा हुआ था.... तो नाइट् ड्यूटी पर सतपाथी जी थे उन्होंने एम्बुलेंस बुलाकर उसे कैपिटल हस्पताल में भेज दिया है.....
तापस - व्हाट.... यह कब हुआ..... और मुझे फोन क्यूँ नहीं किया गया....
जगन - सर... सब परेशान थे... किसी तरह रंगा को हस्पताल पहुंचाने के लिए... उसके बाद आपको लैंडलाइन पर इन्फॉर्म करने की कोशिश की गई... पर लैंडलाइन एंगेज आ रहा था....
तापस और प्रतिभा यह सुन कर दोनों प्रत्युष को देखने लगते हैं l प्रत्युष अपना जीभ दांतों तले दबा कर अपने कमरे को ओर भाग जाता है l
तापस - (जगन को देखते हुए) क्यूँ... मोबाइल पर भी तो इन्फॉर्म कर सकते थे.....
जगन - बहुत बार किया गया.... पर आपने उठाया नहीं....
यह सुन कर तापस अपना मोबाइल ढूंढने लगता है l फिर उसे मोबाइल सोफ़े पर कुशन के नीचे मिलता है l तापस मोबाइल चेक करता है
तापस - ओह माय गॉड... बत्तीस मिस कॉल.... अरे यह क्या... फोन म्यूट है.... प्रतिभा.... मैं जगन के साथ हस्पताल जा रहा हूँ.... आकर खाना खा लूँगा....
इतना कह कर उन्हीं कैजुअल कपड़ों में ही जगन के साथ कैपिटल हॉस्पिटल को निकल जाता है l इधर प्रतिभा सिर्फ़ प्रत्युष के प्लेट को छोड़ कर सारे प्लेटस् उठा लेती है l
उधर हस्पताल में ऑपरेशन थिएटर के सामने दास, सतपाथी और कुछ स्टाफ खड़े थे l वहाँ पहुँच कर
तापस - सॉरी सतपाथी... फॉर बीइंग लेट...
सतपाथी - इटस् ओके सर.... प्रॉब्लम वाज देयर, बट नथींग सिरीयस....
तापस - ओके.... कैन.. एनी बॉडी एक्सप्लेन....
दास - सर.... मै... आइ....
तापस - (हाँ में अपना सर हिलाकर) ह्म्म्म्म कहो....
दास - सर... कुछ लोग ताक में रहते हैं... की किसी और की मैदान मारने की.... वैसे लोग जल्दबाजी में अपनी ही मैदान मरवा लेते हैं....
तापस - व्हाट.... समझ में आए.. ऐसे बोलो.... किसने रंगा की हालत ऐसे की...
दास - कोई नहीं जानता.... यहाँ तक रंगा भी नहीं जानता.....
तापस - तुम मुझे एक्सप्लेन कर रहे हो... या कन्फ्यूज कर रहे हो....
दास - सर.... इसकी... मेरा मतलब रंगा की एक आदत है.... रात के खाने के बाद..... दो मिनट के लिए गांजा फुंकता है....
तापस - व्हाट.... हमारे जैल में गांजा.... उसके पास.... कैसे....
दास - यह बताना... थोड़ी मुश्किल है.... हो सकता है... हमारे ही स्टाफ में से कोई उससे मिला हुआ हो....
तापस वहाँ पर मौजूद सबको पैनी नजर से देखता है फिर दास को देखता है l
दास - सर रंगा हमेशा रात को आधा पेट खाता है... और बाहर जाकर दो नंबर बैरक के लॉबी के एक कोने में रोज सबका खाना खतम होने से पहले गांजा फूंकना उसका कुछ दिन का रूटीन था... आज वहाँ पर कोई उसकी ताक में था.... जैसे ही वहाँ पहुंचा रंगा के आंखों में लाल मिर्च के पाउडर फेंक दी.... रंगा... दर्द से बिलबिला उठा... पर कहीं भाग नहीं पाया...और नीचे गिर गया..... तब उस पर मिर्च पाउडर से हमला करने वाला रंगा का पजामा और लंगोट खिंच कर उल्टा कर दिया और...
तापस - और....
दास - और रंगा के गुद्दे के पास तेज धार वाली किसी हथियार से चार इंच लंबा कट मार दिया.... इसलिए रंगा को भी नहीं मालूम.... किसने और क्यूँ किया....

तापस दास का हाथ पकड़ कर अपने स्टाफ से कुछ दूर ले जाता है l

तापस - अब तक तुमने जो बताया... वह ऑफिसियल था.... अब मुझे डिटेल्स में....... ऑन-ऑफिसियल बात बताओ..... देखो मैं जानता हूँ.... तुम्हें सिर्फ अंदाजा ही नहीं बल्कि पक्की पूरी खबर भी होगी... कौन और क्यूँ यह सब किया....
दास - सर इसकी ऐसी हालत के लिए... यह खुद जिम्मेदार है और हाँ इसकी ऐसी हालत जरूर विश्व ने ही किया है.....
तापस - (हैरानी से) विश्व... कैसे... और क्यूँ...
दास - सर... क्यूँ... यह आप भी अच्छी तरह से जानते होंगे.... आप दूसरे दिन दो बार राउंड पर इसलिए तो गए थे... इनडायरेक्टली विश्व की खैर खबर लेने.... और यह वह बात थी के विश्व को बताते हुए भी शर्म आ रही थी.... इसलिए उसने उस दिन कुछ कहा नहीं....
तापस का सर झुक जाता है l
दास - सर... विश्व को अपने आपको बचाना था... और अपमान का बदला भी लेना था...
तापस - पर विश्व के पास.... धार धार हथियार कहाँ से आया.....और कब...
दास - सर आज ही आया... और नाई से हासिल किया ब्लेड...
तापस -अब डिटेल्स में खतम करो....
दास - सर... आज सुबह नाई आया था... विश्व उसके पास अपने बाल और दाढ़ी बनाने गया.... और उससे ब्लेड हासिल कर ली.... उसके बाद रंजन को खाना बनाने में मदद के बहाने कुछ मिर्च के पाउडर भी ले लिया... कुछ दिन पहले उसने चादर और कंबल की धुलाई इतनी करी थी के... एक एक्स्ट्रा कंबल भी अपने साथ ले ली थी....
कुछ दिनों से रंगा विश्व पर और विश्व रंगा पर नजर रख रहे थे..... दोनों मौके की तलाश में थे.... रंगा को जल्दी नहीं थी और वह कंफीडेंट था...... पर विश्व जल्दी में...
आज विश्व को मौका मिल गया.... सब जब खाने के लिए बैठे थे... बीच में थाली टेबल पर छोड़ कर विश्व उठ कर सब गवाह बन सके ऐसे टॉयलेट को गया.... इतने में रंगा अपना खाना खतम कर अपनी रूटीन के अनुसार... अपनी जगह पहुंच गया... पर वहाँ पहले से ही विश्व रंगा के इंतजार में था... खुद को कंबल में ढक कर हाथ में मिर्च पाउडर रंगा के आँखों पर सटीक निशाना लगा कर फेंका... रंगा... चिल्ला कर पीछे मुड़कर भागता पर पिलर से टकरा कर गिर गया... उसके गिरते ही बिना देर किए... विश्व ने उसका पजामा लंगोट समेत खिंच कर निकाल दिया..
रंगा आँखों की जलन से चिल्ला रहा था... बस विश्व ने ब्लेड निकाला और रंगा के गुद्दे की पास चला दिया... करीब करीब चार इंच का कट... सिर्फ आधे मिनिट में विश्व का काम हो चुका था... विश्व अब सबके सामने टॉयलेट से आकर अपने थाली के पास बैठ गया... रंगा के कान फाड़ देने वाले चित्कार सुन कर सब वहीँ भागे...
सबके साथ विश्व भी वहाँ पहुंचा.... इसलिए अब विश्व पर कोई शक़ नहीं कर सकता है.... बस यही हुआ है... सर...
तापस - आधे मिनट में... क्वाइट इंपॉसिबल...
दास - विश्व के लिए नहीं सर....
तापस - हाओ.....
दास - सर जहां रंजन और उसके टीम को... सब्जियां काटने के लिए दो घंटे लगते हैं... वहीँ विश्व अकेले को सिर्फ आधा घंटा लगता है.... जहाँ बालू और उसके साथी पूरा एक दिन लेते हैं चादर और कंबल साफ करने के लिए.... वहीँ विश्व सिर्फ आधे दिन में काम खतम कर दिया था....
तापस - क्या... हम कुछ कर सकते हैं...
दास - नहीं सर... हम कुछ ना करें... यही बेहतर रहेगा.... क्यूंकि विश्व के खिलाफ़ कोई सबूत नहीं है.... और रंगा के पास गांजा और गांजे के सिगरेट बरामद हुए हैं..... इससे हमारे ही डिपार्टमेंट की बदनामी होगी.... आगे आप जैसा कहें सर....
ऑपरेशन थिएटर का बल्ब बंद होता है l डॉ. विजय बाहर आता है l
डॉ. विजय - (तापस को देख कर) मेरे चैम्बर में चलें....
तापस अपना सर हिला कर हाँ कहता है और डॉ. विजय के साथ उसके चैम्बर की चल देता है l
चैम्बर में
डॉ. विजय - क्या यार.... तुम्हारा कोई भी मुज़रिम... हमेशा किसी अलग ही हालत में क्यूँ आते हैं....
तापस - टांग खींचना छोड़ कर मुद्दे पर आओ.... और उसकी रिपोर्ट क्या है बोलो...
डॉ. विजय - ह्म्म्म्म... ठीक है... सुनो फिर... किसी अनाड़ी ने... ऑन-प्रोफेशनल ने यह कांड किया है.... पर प्रोफेशनल की तरह..... उसने ठीक गुद्दे के उपर से किसी पतले मगर धार वाली हथियार से करीब करीब चार इंच लंबा और आधा इंच गहरा कट मारा है..... शयद ब्लेड से.... अब प्रॉब्लम यह है कि इसे पेट के बल घाव सूखने तक लेटे रहना होगा....
तापस - व्हाट...
डॉ. विजय - हाँ.... क्यूंकि दर्द के मारे पीठ के बल लेट नहीं पाएगा.... क्यूंकि पीठ के बल लेट कर हिलने से घाव के टांके उखड़ जाएंगे.... और पेट के बल लेटे रहना लंबे समय तक बहुत ही मुश्किल है...
यह सुन कर तापस का मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है l
तापस - यार कुछ करो....
डॉ. विजय - हाँ वह तो करना ही पड़ेगा.... इसे पूरे एक महीने के लिए यहाँ छोड़ दो....

तापस - ओके..... और... थैंक्यू...
Bahut hi shandaar update hai bhai
 

Rajesh

Well-Known Member
3,634
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158
👉बीसवां अपडेट
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एक बड़ा सा गल्फ कोर्ट है, बहुत बड़ा तो नहीं है, पर छोटा भी नहीं है l हरे रंग के मैदान को हरे रंग के नेट से चारो ओर से घेर रखा गया है l वहीँ मैदान के एक कोने में एक बड़ा सा छाता गड़ा हुआ है l उस छाते के साये के नीचे भैरव सिंह एक सिंहासन नुमा कुर्सी पर दोनों हाथों को फैला कर और बाएं पैर पर पैर रख कर बैठा हुआ है l उसके पास भीमा और भीमा के सारे साथी भैरव सिंह के आसपास खड़े हुए हैं l
तब एक लक्जरी कार आकर मैदान के बाहर रुकती है l एक आदमी उस कार में से उतरता है और सीधे भैरव सिंह के पास जा कर पहुंचता है l
उसे देखते ही भैरव सिंह अपना घड़ी देखता है और मुस्करा देता है l
भैरव - आओ ... तहसीलदार ... आओ... वक्त के बड़े पाबंद हो... बिल्कुल घड़ी के सुई की साथ चलते हो....
तहसीलदार - जी राजा साहब.... मैं हमेशा वक्त के साथ चलता हूँ.... और मैं यह भी जनता हूँ... वक्त को आप अपने साथ लिए चलते हैं.... या यूँ कहूँ... वक्त आपके साथ चलता है....
भैरव - बहुत अच्छे... तुम पूरी खबर रखे हुए हो....
तहसीलदार - हाँ... यह हमारे प्रोफेशनल रिक्वेर्मेंट है.... वाकई... यशपुर में तो जैसे व्यक्त रुक गया है.... कछुए ली रफ्तार से रेंग रहा है...
भैरव - ह्म्म्म्म....
तहसीलदार - जबकि... वक्त के साथ दुनिया.... कहाँ से कहाँ पहुंच गया है....
भैरव - तुम्हारा वक्त क्या कह रहा है.... मिस्टर. तहसीलदार...

तहसीलदार - आप तो सबकी खबर रखते हैं.... बिना आपकी मर्जी के... यशपुर और राजगड़ में किसी भी सरकारी अधिकारी की पोस्टिंग हो ही नहीं सकती.... और राजा साहब मेरा वक्त कह रहा है..... मुझे बहुत पैसा कमा लेना चाहिए....
भैरव - हा हा हा हा... तुम बहुत ही शार्प हो... चलो एक एक स्ट्रोक हो जाए.... अपना क्लब चुन लो.... (कह कर भैरव एक बैग के तरफ इशारा करता है) भीमा...
भीमा - हुकुम....
भैरव - देखो तहसीलदार को क्या जरूरत पड़ेगी...
भीमा - जी हुकुम....
भीमा बॉल को सेट कर देता है, तहसीलदार अपना स्टैंड सही करता है और ऐम बना कर स्ट्रोक मारता है l भैरव सिंह ताली मारते हुए
- वाह... बहुत खूब.... बहुत अच्छे...
फिर भैरव एक क्लब लेता है और वह भी अपना स्ट्रोक खेलता है l
कलेक्टर - वाव... राजा साहब... माइंड ब्लोइंग....
भैरव - तुम भी कुछ कम नहीं हो....
तहसीलदार - नॉट गुड एज यु.... राजा साहब...

ज़वाब में भैरव सिंह मुस्करा देता है l
भैरव - (अपना हाथ मिलाने को बढ़ाते हुए) माय... कंप्लीमेंट...

तहसीलदार - ना राजा साहब... ना... मुझे अपनी हद व औकात की पहचान है.... मुझे आपके छत्रछाया में रह कर काम करना है... आपके हाथ के नीचे.... और आपसे हाथ मिलाने के लिए... या तो मुझे आपका दोस्त होना चाहिए.... या फिर आपके बराबर.... और यह दोनों.... इस जनम में तो होने से रहे.....
भैरव सिंह, के चेहरे पर मुस्कान गहरी हो गई l उसने अपना गोल्फ क्लब बैग में रख दिया और कलेक्टर के तरफ मुड़ कर कहा,
-वेलकम मिस्टर. नरोत्तम पत्रि एज मजिस्ट्रेट ऑफ यशपुर...
पत्रि- थैंक्यू... राजा साहब....
तभी एक नौकर हाथ में एक चांदी की थाली में वायर लेस फ़ोन लेकर दौड़ते हुए आता है और भैरव की ओर बढ़ाता है l
नौकर - राजा साहब... छोटी रानी जी.... महल से...
भैरव - (फोन उठा कर अपने कान मेँ लगाता है) हाँ बोलिए.... छोटी रानी...
सुषमा - प्रणाम.... राजा साहब... वह... बड़े राजा जी को सांस लेने मेँ... तकलीफ हो रही है.... कृपया.... डॉक्टर को खबर भिजवा दीजिए....
भैरव - ह्म्म्म्म (फोन काट कर नौकर को देते हुए) डॉक्टर को फोन लगाओ....
नौकर फोन लेकर डॉक्टर को लगाता है और फोन पर डॉक्टर के मिलते ही भैरव सिंह को बढ़ा देता है l
भैरव - हैलो... डॉक्टर... बड़े राजा जी की हालत थोड़ी नासाज़ है.... उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही..... जल्दी महल पहुंच कर उनके लिए कुछ बंदोबस्त करो....
इतना कह कर भैरव सिंह फोन काट देता है और नौकर को दे देता है l
पत्रि - गुस्ताखी माफ राजा साहब... आपने डॉक्टर के ज़वाब का इंतजार नहीं किया....
भैरव - हम किसीके सुनने की आदि नहीं हैं.... तकलीफ उसे है जो हमें ना सुने...
पत्रि - जी समझ गया... और गांठ भी बांध ली...
भैरव - बहुत अच्छे पत्रि..... एंड वन्स ऐगेन वेलकम... टू... राजगड़....

पत्रि - थैंक्यू राजा साहब... थैंक्यू... अ... लॉट....
भैरव - ह्म्म्म्म... अब तुम... जा सकते हो... पत्रि....
पत्रि - जी बेहतर.... थैंक्यू...
पत्रि अपनी गाड़ी के तरफ जाता है और गाड़ी में बैठ कर निकल जाता है l उसके जाने के बाद भीमा भैरव सिंह के पास आता है,
भीमा - हुकुम.... इसे यहाँ बुलाकर.... यह सब करने की क्या जरूरत थी....
भैरव - भीमा.... आज से तकरीबन आठ या नौ साल पहले.... याद है.... हमने... एक तहसीलदार को उसी के ऑफिस में... सबके सामने... उसीके पियोन के जुतोंसे पिटाई कारवाई थी....
भीमा - हाँ... याद है... हुकुम....
भैरव - तुझे याद है उस कलेक्टर का नाम....
भीमा - नहीं.... हुकुम...
भैरव - उसका नाम राधे श्याम पत्रि था..... यह उसका बेटा है....
भीमा - पर हुकुम.... उसे.. फिर आपने राजगड़ में उसे आने क्यूँ दिया....
भैरव - हम उसे टटोल रहे थे..... हम पहले ही उसका फाइल चेक कर चुके हैं.... यह अपने बाप के उलट... करप्ट और रंडीबाज है.... पर कहीं यह बाप के इगो के लिए यहाँ आया तो नहीं.... बस यही सोच कर उसे यहाँ बुलाया था....
वैसे भी जिंदगी में चैलेंजस होने चाहिए.... वरना कुछ मजा नहीं आयेगा.... इस पर नजर रखो...
भीमा - जी हुकुम....

तभी वह नौकर फ़िर से भागते हुए आता है और थाली को बढ़ाते हुए कहता है - छोटे राजा जी.... हुकुम...
भैरव सिंह थाली से फोन उठाता है - हैलो....
पिनाक - वह... राजा साहब... एक... गड़बड़ हो गई है....
भैरव की भौंहे तन जाती है और पूछता - किसके तरफ से....
पिनाक - हमारे तरफ से नहीं.... वह.... रंगा के तरफ से....
भैरव - कौन रंगा....
पिनाक - रंगा... वह जिसे... हमने... विश्व को तोड़ने के लिए जैल में डाला था....
भैरव - तो....
पिनाक - विश्व ने... रंगा पर हमला कर दिया.... और रंगा अभी हस्पताल में है...
भैरव - क्यूँ...... कैसे... विश्व ने रंगा को... आपने रंगा को आगाह नहीं किया था....... रंगा को विश्व से सावधान रहने को...... रंगा ने ऐसा क्या किया .......
पिनाक - विश्व को देख कर.... रंगा को जोश आ गया... इसलिए वह उसे... बार बार छेड़ने लगा था शायद.... जिससे विश्व ने...... प्रतिक्रिया में उस पर हमला कर दिया.....
भैरव - ह्म्म्म्म... तो फिर कुछ दिनों के लिए विश्व को भूल जाओ...
पिनाक - और रंगा....
भैरव - जो चूक जाए.... उसे थूक दो... अब वह हमारे किसी काम का नहीं है.... उसे भाड़ में भेजो...
पिनाक - मतलब...
भैरव - उसे... किसी सब-जैल में शिफ्ट करा दो... और उसे भी भूल जाओ.....
पिनाक - जी बेहतर....
इतना कहकर पिनाक फोन रख देता है l
पिनाक इस वक्त भुवनेश्वर में एक होटल के कमरे में है l उसके सामने एक वकील बैठा हुआ है l वकील को देख कर,
पिनाक - सुन बे काले कोट वाले.... उस रंगा को किसी दूसरे जैल में शिफ्ट कर दे....
वकील - जी... पर वह अब... हस्पताल में है....
पिनाक - तो हम क्या करें.... ज्यादा चूल मची थी.... हरामी के गांड में... सुलेमानी कीड़ा कुलबुला रहा था उसके गांड में... उसे... बोला गया था.... विश्व से सावधान रहे और धीरे धीरे अपने काम को अंजाम दे...... अगर इतना ही चूल मची थी तो बिना देरी किए.... अपना खुजली उतार लेना चाहिए था.... पर नहीं.... खुजली इतनी मची थी कि... इलाज कराने सीधे.... विश्व के पास गया.... अब विश्व ने उसका इलाज कर दी है.... साला हरामी.... अब ना सीधा ना टेढ़ा कैसे भी नहीं सो पा रहा है... बैठ भी नहीं सकता.... चला था विश्व के गांड मारने.... विश्व ने ऐसी मारी है... के साला उसे अब वह गांडु कहलाएगा.... इसलिए उसे किसी और जैल में शिफ्ट करा दो... बादमें देखते हैं.... विश्व का क्या करना है... जाओ...
वकील पिनाक का फ्रस्ट्रेशन भरा भाषण सुनने के बाद रुकना भी मुनासिब नहीं समझा l बिना देरी किए वहाँ से निकल गया l
उसके जाते ही इंटरकॉम में डायल करता है l दुसरे तरफ से हैलो की आवाज़ सुनते ही.,
पिनाक - आप दोनों जल्दी से फ्रेश हो जाएं फ़िर मेरे... मतलब हमारे कमरे में आयें.... (इतना कह कर इंटरकॉम रख देता है I

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जैल में विश्व नाश्ते के लिए डायनिंग हॉल में पहुंचता है l विश्व के वहाँ पहुँचते ही कुछ कैदी विश्वा भाई कहकर बुलाते हैं और सलाम करते हैं l

विश्व उनके सलाम का जवाब तो देता है पर उसे बड़ा अजीब लगता है l वह अपना थाली में नाश्ता ले कर जैसे ही मुड़ता है l कुछ कैदी उसे अपने टेबल पर बुलाते हैं l पर विश्व देखता है डैनी एक कोने में बैठा अपना नाश्ता कर रहा है, तो सीधे डैनी के टेबल पर पहुंच कर डैनी के सामने बैठ जाता है l
डैनी - ह्म्म्म्म... बड़ा नाम हो गया है तेरा.... सब इज़्ज़त दे रहे हैं तुझे....
विश्व - मुझे इनकी हरकत समझ में नहीं आ रहा है..... जब पहले दिन मैं टेबल ढूंढ रहा था... किसी ने अपने टेबल पर नहीं बुलाया था.... किसी किसी टेबल पर तो इशारे से ना आने को बोला था.... पर आज... सब मुझे अपने टेबल पर बुला रहे हैं....
डैनी - यही तो खेल है... प्यारे.... यह जो इज़्ज़त दे रहे हैं... असल में इनके अंदर का खौफ है... इस खौफ और इज़्ज़त के बीच एक बहुत पतली सी लाइन है.... इसे मेंटेन कर बनाए रखना.... वरना इनके आँखों से इज़्ज़त और खौफ उतरते देर नहीं लगेगी.....
विश्व - मुझे... इनसे इज़्ज़त नहीं लेनी...
डैनी - कल तक तु इस जंगल में एक सुवर था.... तुने एक शेर को ढेर कर दिया.... और अब तेरा इवोल्यूशन हो चुका है.... अब इस जंगल का तु एक शेर है.... और शेर शेर बना रहे यह शेर का धर्म है...
विश्व - (विश्व एक हंसी हंसकर) क्या वक्त आ गया.... इंसानों को अब इंसानी पहचान के वजाए..... जानवरों की पहचान से पहचाना जा रहा है....
डैनी - यही सच है.... कहने को सब इंसान हैं..... मगर सब के सब इंसानी खोल में छुपे जानवर हैं.... और हर कोई इस इंसानी समाज रूपी जंगल में अपना राज कायम करना चाहता है.... कोई धर्म के नाम पर, कोई मजहब के नाम पर, कोई जाति वाद पर कोई समाज वाद के नाम पर, कोई साम्यवाद के नाम पर, कोई एकछत्र वाद पर और कोई गणतंत्र के नाम पर .... बस किसी तरह से इंसानी रूपी जानवर पर शेर बन कर राज करना चाहता है.....
विश्व - मुझे ऐसे समाज का हिस्सा नहीं बनना...
डैनी - यह तुम्हारा भ्रम... है... पूरे संसार में ऐसा कोई समाज नहीं है... जहां इंसानी रूपी जानवर ना रहाता हो.... प्रकृति का नियम है.... मरे हुए को चींटी खाती है... चींटी को टिड्डी, टिड्डी को मेढ़क, मेढ़क को सांप, सांप को नेवला, नेवले को भेड़िया, भेड़िया को बाघ.... यह समाज जहां हम रह रहे हैं.... यह भी इस नियम से अछूता नहीं है...... यहां अपने से कमजोर पर राज करने के लिए हर कोई तैयार रहता है....
हर तरफ सिर्फ़ प्यार विश्वास बसता हो....
हाँ ऐसा समाज मुमकिम हो सकता है.... बशर्ते वहां सिर्फ़ इंसान ही बसते हों.....


विश्व खामोश हो जाता है, पर डैनी का नाश्ता खतम हो चुका था, वह अपनी थाली लेकर वहाँ से चला जाता है, पर विश्व वहीँ बैठा डैनी के बातों के गहराई को अनुभव कर रहा है l

अपने चैम्बर में तापस बैठा कुछ फाइलों पर काम कर रहा है l तभी जगन वहाँ आता है और एक काग़ज़ की पर्ची देता है l काग़ज़ की पर्ची पर वैदेही महापात्र लिखा हुआ है l कुछ सोचने के बाद तापस जगन को कहता है -
- जाओ उसे ले आओ यहाँ....
जगन बाहर चला जाता है और थोड़ी देर बाद तापस के चैम्बर में वैदेही आती है l
तापस - आओ वैदेही... आओ बैठो....
वैदेही - नहीं सर... मैं ठीक हुँ...
तापस - अरे.. तुम... तुम कोई मुज़रिम नहीं हो... तुम आम नागरिक हो... बैठो तो सही.... वरना मुझे खड़ा होना पड़ेगा....
वैदेही - ठीक है... सर... मैं... बैठ जाती हूँ.... (कह कर बैठ जाती है)
तापस - तो... तुम अपने भाई से मिलने आई हो....
वैदेही - नहीं सर नहीं... मैं बस उसे एक नजर देख कर चली जाना चाहती हूँ....
तापस - क्यूँ.... क्यूँ नहीं मिलना चाहती.....
वैदेही के आँखों में आँसू आ जाते हैं l
वैदेही - उसे मैं.. डॉक्टर बनते देखना चाहती थी... पर भाग्य को मंजूर ना था... तो उसे सरपंच बनते देखा तो सोचा.... डॉक्टर बनकर लोगों का इलाज ना कर पाया तो क्या हुआ.... सरपंच बन कर अपने लोगों के दुखों का कष्टों का इलाज तो कर पाएगा.... पर भाग्य को यह भी मंजूर नहीं हुआ... आज एक अपराधी के रूप में इस जैल में है....
तापस - तो तुम इसलिए उससे नहीं मिलना चाहती..... सिर्फ़ दूर से एक नजर देख कर चली जाना चाहती हो...
वैदेही - हाँ सर.... माँ ने इसे पैदा कर मेरे ही हाथों में सौंप कर चल बसी थी... मैं इसे माँ, दीदी और गुरु बन कर पाल पोष कर बड़ा किया.... पर यह दिन देखने के लिए तो नहीं.... उसकी ऐसी हालत देखने के लिए तो नहीं....

तापस को उसके दर्द का एहसास होता है, वह एक गहरी सांस छोड़ कर वैदेही को पूछता है,
- ह्म्म्म्म क्या तुम... अपने भाई को देखना चाहोगी....
वैदेही अपना सर हिला कर अपना सम्मति देती है l तापस उसे इशारे से अपने पीछे आने को कहता है l वैदेही उसके पीछे चल देती है और दोनों ऑफिस के दूसरे माले पर पहुंचते हैं l
वैदेही देखती है एक लंबा सा टेबल बीच कमरे में पड़ी है, कम से कम पच्चीस तीस कुर्सियां पड़ी हुई हैं, बीच दीवार पर एक टीवी लगी है, और कमरे अलमारियां भरी हुई हैं और हर आलमारी किताबों से भरी हुई है l
तापस-(वैदेही को कमरे को ऐसे घूरते हुए देख) यह इस जैल की लाइब्रेरी है.... पढ़ कर समय व्यतीत करने के लिए यह लाइब्रेरी बनाई गई.... ह्यूमन राइट्स वालों की डिमांड पर... पर अफ़सोस.... कोई भी यहां नहीं आता....
तापस एक खिड़की के पास खड़े हो कर कॉटन को हल्का सा खिंचता है, फ़िर वैदेही को पास बुलाता है और दूर विश्व को कोई काम करते हुए दिखाता है l विश्व को देखते ही वैदेही के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है पर अगले ही क्षण उसके चेहरे पर मायूसी छा जाती है l
वैदेही - कितना... भोला... कितना मासूम लग रहा है... मेरा भाई.... भगवान करे वह ऐसे ही हमेशा रहे.....
तापस - नहीं वैदेही.... विश्व जब जैल से निकलेगा.... मुझे अफ़सोस हो रहा है... यह कहते हुए.... वह ना मासूम रहेगा ना भोला....
वैदेही - यह आप.... क्या कह रहे हैं सर....
तापस - मैं सच कह रहा हूँ वैदेही.... हाल के दिनों में क्या हुआ है उसके साथ.... और मैं कहना भी नहीं चाहता... तुम नहीं जानती.... इस जैल में हर कदम पर... हर मोड़ पर उसे तरह तरह के लोग मिलते रहेंगे..... और हर मिलने वाला उससे उसकी मासूमियत और भोला पन को निचोड़ता रहेगा... और जिस दिन वह अपनी सजा काट कर बाहर निकलेगा.... तब वह तुम्हारा मासूम और भोला विश्व नहीं रहेगा.... पता नहीं क्या हो गया होगा.....
वैदेही तापस को एक टक देखे जा रही है, तापस जब वापस वैदेही को देखता है तो वैदेही के आँखों में कुछ पढ़ने की कोशिश करता है l
वैदेही अपनी नजर हटा लेती है और खिड़की से विश्व को देखते हुए तापस से कहती है
- अगर नियति को यही मंजूर है..... तो यही सही.... वह भोला और मासूम बना रहा... इसलिए आज उसकी यह हालत है.... अगर वह भोला और मासूम ना होता तो कहानी कुछ और ही होती ना सर....
तापस वैदेही के आक्रोश को अंदर तक महसूस करता है l

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कुछ देर बाद पिनाक के कमरे के दरवाजे पर धक्का लगता है और उस कमरे में एक नौजवान और एक किशोर प्रवेश करते हैं l
पिनाक - आओ आओ युवराज... आओ राजकुमार....
(यह दोनों सात साल पहले वाले विक्रम और वीर हैं)
विक्रम - छोटे राजा जी... हमे यूँ.. अचानक कलकत्ते से क्यूँ बुलाया गया.... हमे कुछ समझ में नहीं आया....
पिनाक - वही समझाने तो आप लोगों को यहां पर बुलाया गया है.... बैठिए आप दोनों....
विक्रम और वीर दोनों पास के सोफ़े पर बैठ जाते हैं l
पिनाक - युवराज आप अभी बीस वर्ष के हैं...
और वीर आप सत्रह वर्ष के....
सो युवराज आपकी कॉमर्स की ग्रैजुएशन ख़त्म होने को है.... और राजकुमार आपका इंटर का भी यह आखरी साल है.... पर आप दोनों आपका अपना पढ़ाई अब यहीं पर खतम करेंगे....
दोनों भाई एक दूसरे को देखते हुए - क्या.... पर क्यूँ....
पिनाक - बड़े राजा जी ने... हम तीनों को मिशन दिया है... जिसे हम तीनों मिलकर पुरा करना है.....
विक्रम - कैसा मिशन...
पिनाक - अब आप न्यूज चैनल्स के ज़रिए समझ चुके होंगे.... हम अभी रूलिंग पार्टी की सदस्यता ली है....
विक्रम - जी....
पिनाक - वह इसलिए.... के आने वाले दो साल बाद.... हमे भुवनेश्वर सहर का मेयर बनना है....
विक्रम - क्या.... राजगड़ से बाहर.... राजनीतिक पदवी.... पर क्यूँ...
पिनाक - कुछ हालात ऐसे बन गए हैं... की हमे खुदको राजगढ़ में सीमित रखना असंभव हो गया है.... यह राजधानी है... समूचे राज्य के राजनीतिक गड़.... यहाँ पर नजर भी रखना है... और पीछे रहकर परिचालन भी करना है...
विक्रम - ठीक है.... आपका तो समझ में आ गया.... हमे क्या करना होगा....
पिनाक - आप दोनों को ******* कॉलेज में एडमिशन लेनी होगी.. आगे की पढ़ाई के लिए....
विक्रम - और... कॉलेज में... हमे क्या करना होगा.....
पिनाक - आपको कॉलेज में इलेक्शन लड़ना होगा.... स्टूडेंट्स यूनियन का प्रेसिडेंट बनना होगा....
विक्रम - उससे... होगा क्या...
पिनाक - युवराज.... हमे लक्ष दिया गया है.... दो साल बाद मेयर बनने के लिए.... और आपको सारे स्टूडेंट्स को लीड करना है.... फिर पार्टी में.... युवा मंच का चेहरा बनना है.... उसका अध्यक्ष बनना है....
वीर - और मेरा क्या काम है.....
पिनाक - आप युवराज जी को फॉलो करेंगे... उनके बाद कॉलेज के यूनियन के प्रेसिडेंट बनेंगे... और हाँ आइंदा ध्यान रहे... बड़े राजा जी या राजा साहब जी के सामने मैं, या तुम हरगिज़ मत कहिएगा... सिर्फ हम या आप...
वीर - ठीक है....
विक्रम - इस साल हम कॉलेज में जॉइन करेंगे... और इसी साल हमे स्टूडेंट्स इलेक्शन जितना भी होगा....
पिनाक - हाँ... युवराज... क्यूंकि कॉलेज से ही नई पीढ़ी वोट देने निकलती है... उसी नई पीढ़ी के हीरो बनना है आपको.... बाई हूक ओर क्रुक.... आप अपने कॉलेज के बॉक्सिंग चैंपियन रहे हैं... इसलिए उस जरिए भी आपको काम लेना होगा....
विक्रम - क्या यह आपको इतना आसान लगता है....
पिनाक - नहीं बिल्कुल भी नहीं.... पर जो आसानी से हो जाए... उसे करने में मजा ही क्या....
विक्रम - किसीकी बने बनाए खेल में घुस कर अपने नाम करना है... किसीका जमाया हुआ सिक्का अपने नाम करना है... वह भी एक साल में...
पिनाक - हाँ.... युवराज... आप क्षेत्रपाल हैं.... यह ना भूलें.... आज हमारे वंश का एक महा मंत्र आप दोनों को प्रदान करता हूं.... क्षेत्रपाल परिवार के पुरुषों के हाथ कभी आकाश की ओर नहीं होती..... सिर्फ ज़मीन की ओर होती है.... हम कुछ दे सकते हैं या फिर छीन सकते हैं.... पर हाथ ऊपर कर मांग नहीं सकते.... इसलिए चाहे कोई भी हो..... जिसका बना बनाया या जमाया हुआ सिक्का... आपको छिनना है.... कैसे यह आप तय करें....
विक्रम यह सब सुनने के बाद एक गहरी सांस लेता है और चल कर खिड़की के पास खड़ा होता है l नीचे जाते हुए गाड़ियों को देखता है l
पिनाक उसके पास आकर खड़ा होता है l
पिनाक - क्या सोचने लगे युवराज....
विक्रम - इस सहर पर राज करना है.... पर कैसे और कहाँ से शुरू करें....
पिनाक - राजगढ़ में जैसा है वैसे तो बिल्कुल नहीं..... सबके मन में खौफ को इज़्ज़त के साथ बिठाना है.... खौफ और इज़्ज़त के बीच एक पतली सी लाइन होनी चाहिए.....
विक्रम पिनाक की ओर देखता है और फिर कमरे में चहल कदम करने लगता है l पिनाक आकर वीर के पास बैठ जाता है और इंटरकॉम में तीन चाय के लिए ऑर्डर करता है l

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वैदेही जा चुकी है, तापस वैदेही को बाहर छोड़ कर अपने चैम्बर की ओर जा रहा है l तभी उसकी मोबाइल बजने लगता है l मोबाइल निकाल कर देखता है तो उसे स्क्रीन पर प्रतिभा का नाम दिखता है तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है l फोन उठा कर - हैलो जान....
प्रतिभा - एक खबर है.... शायद आपको खुश करदे....
तापस को शरारत सूझती है - मुझे खुश करदे.... वाव... अररे.... जान घर पर नया मेहमान आने वाला है... वाव... मुझे तो तुम्हारे फोन से ही मालुम हो गया है.... के मुझे यह खुश खबरी सिर्फ़ अपने स्टाफ वालों से ही नहीं..... बल्कि पूरे मोहल्ले में मिठाई बंटवा देता हूं.... प्रत्युष को भी खबर कर देता हूँ.... आख़िर इतने सालों बाद खुशी का मौका हाथ लगा है....
प्रतिभा - (गुस्से से) हो गया...
तापस - अररे अभी कहाँ.... मैंने जगन के हाथों से मिठाई.. अभी तक मंगवाया नहीं है....
प्रतिभा - (अपनी दांत पिसते हुए) अगर अभी आप चुप नहीं हुए.... तो आज ड्रॉइंग रूम में सोईयेगा....
तापस - इतनी छोटी गुस्ताखी के लिए.... इतना बड़ा सजा.....
प्रतिभा - मैं... अब... अपना फोन काटती हूँ...
तापस - अरे.... गुस्सा... थूक दो.... यार थोड़ा मज़ाक कर रहा था..... सुबह से इधर उधर की सोच सोच कर टेंशन में था.... तुमसे बात की.... तो सारा टेंशन दूर हो गया....
प्रतिभा - ठीक है... ठीक है.....
तापस - अरे यार... थोड़ा मुस्कराते हुए.... कहो ना...

प्रतिभा - हाँ तो सुनो..... तुम्हारे जैल में जो कांड हुआ है ना.... विश्व और रंगा वाला.....
तापस - हाँ क्या हुआ....
प्रतिभा - अरे कुछ नहीं.... उस रंगा का वकील.... रंगा के झारपडा सब जैल को शिफ्ट कराने के लिए पीटीशन फाइल किया है....
तापस - ओह.... उसने वजह क्या डाला है....
प्रतिभा - यही तो खुशी की बात है......... उसने वजह हेल्थ लिखा है..... कोई सेक्यूरिटी की बात लिखी नहीं है.... और यह भी लिखा है.... डॉक्टर के फिटनेस सर्टिफिकेट देने के तुरंत बाद सेंट्रल जैल के बजाय सीधे... झारपडा सब जैल को शिफ्ट कराया जाए.....
तापस - यह वाकई.... बहुत अच्छी खबर दी है तुमने....
प्रतिभा - अच्छा ठीक है.... फोन रखती हूँ.... अब.... और हाँ शाम को मिठाई तैयार रखना....
तापस - क्यूँ... मौहल्ले में बंटवाना है क्या....
प्रतिभा - आ..... ह..... आज तो तुम्हें... मैं बेड रूम में घुसने नहीं दूंगी....
इतना कह कर प्रतिभा फोन काट देती है l तापस के चेहरे पर एक शरारत भरा मुस्कान नाच रही है l फोन रख कर मुड़ा तो देखा उसके पास दास खड़ा है l
तापस - अरे दास... आओ... एक अच्छी खबर है...
फिर तापस दास को रंगा के शिफ्ट होने की बात बताता है l
दास - यह अच्छी खबर तो है..... पर....
तापस - पर क्या दास...
दास - सर... सॉरी फॉर अब्युसिव लैंग्वेज... बट.... विथ योर परमिशन... सर....
तापस दास को घूर के देखता है फ़िर अपना सर हिलाते हुए - ओके दास... कंटिन्यु....
दास - सर थ्योरी के हिसाब से बात दिल की होती है.... पर लोग प्रैक्टिकल में लोग गांड की बात करते हैं....
तापस - (आवाज़ को कड़क करते हुए) दास.....
दास - सर इसीलिए तो आपसे..
परमिशन ली थी....
तापस - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म.... ठीक है..... आगे बोलो......
दास - सर अगर दिल कमजोर हो तो.... किसी किसी परिस्थिति में डर लगना स्वाभाविक है.... यह थ्योरी है.... पर लोग प्रैक्टिकल में गांड फटना कहते हैं....
दास ने जिस तरह से कहा तापस की हंसी छूट जाती है l पर दास नहीं हंस रहा है, तो तापस इशारे में आगे बोलने को कहता है l
दास - और सर अगर कोई डर को जीत जाता है.... आई मिन हरा देता है... तो थ्योरी के हिसाब से दिल मजबुत होना कहते हैं.... पर प्रैक्टिकली लोग गांड में दम होना कहते हैं....
तापस - (अपनी हंसी को रोकते हुए) ह्म्म्म्म तो....
दास - सर अब आते हैं असली मुद्दे पर.... रंगा अपने इलाके में मशहूर था.... आख़िर अपने इलाके का नामचीन पहलवान था.... फिर गुंडागर्दी में नाम और रुतबा कमाया....
तापस अब दास को सिरीयस हो कर सुनने लगा l
दास - रंगा का सब कुछ सही जा रहा था... के उसके गांड के दम में विश्व ने आधा इंच गहरा और चार साढ़े चार इंच चीरा मार दिया...
एक ऐसी जगह.... जहां का तकलीफ ना रंगा खुद देख पा रहा है.... ना आगे चलकर किसीको दिखा पाएगा....
तापस - तुम कहना क्या चाहते हो दास.....
दास - यही.... के विश्व ने रंगा की गांड फाड़ दी है प्रैक्टिकली...
तापस - दास... आखिर कहाना क्या चाहते हो......
दास - रंगा.... वापस आएगा सर.... विश्व से बदला लेने.... अभी तो नहीं.... पर आएगा जरूर.... अपना रौब और रुतबा फिरसे कायम करने..... और तब शायद जैल में एक खूनी मंज़र देखने को मिले.....
तापस के माथे पर अब चिंता दिखने लगता है

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होटल के कमरे में वीर बेड पर लेटा हुआ है, विक्रम एक कोने से दूसरे कोने तक चहल कदम कर रहा है और पिनाक एक सोफ़े पर बैठा हुआ है l
पिनाक - युवराज जी... चाय नाश्ता खतम हो चुका है.... कुछ सोच लिए हों... तो प्रकाश करें...
विक्रम - छोटे राजा जी आप हमसे क्या चाहते हैं....
पिनाक - यहाँ के पुराने खिलाड़ियों के बसे बसाये को उजाड़ना और जमे जमाये को हथियाना है....
विक्रम - और यह सब तब होगा... जब इस सहर में हमारा सिक्का चलेगा.... राइट्
पिनाक - राइट्....
विक्रम - और उसके लिए... हमे डेयर एंड डेविल होना पड़ेगा...
पिनाक - राइट्...
विक्रम - इसका मतलब यह हुआ कि.... हमे इस सहर में.... एक पैरालाल सरकार चलानी है...
पिनाक - राइट्....
विक्रम - तो फिर उसके लिए हमे एक डेविल हाउस चाहिए.... ठीक राज भवन के विपरीत दिशा में.... पर सहर के बीचों-बीच.... जहां दो मीटिंग हॉल होने चाहिए.... एक प्राइवेट मीटिंग हॉल... जो नॉर्मली हर घर में होती है.... और एक पब्लिक मीटिंग हॉल जो घर के साथ अटैच हो.... और उस घर के बगल में एक जीम भी हो.....
पिनाक - ह्म्म्म्म पहली बॉल पर छक्का... गुड...
पिनाक - डेविल हाउस का नाम होगा "द हेल"...
वीर - वाव... क्या बात है...
पिनाक - आप शांत रहेंगे.... राजकुमार जी....
विक्रम - डेयर एंड डेविल के लिए एक डेविल आर्मी चाहिए.... वह भी ऑफिसीयल रजिस्टर्ड....

पिनाक - मतलब.....
विक्रम - हम एक प्राइवेट सेक्योरिटी संस्था बनाएंगे.... आज कल बड़े बड़े कॉर्पोरेट ऑफिस, बड़े बड़े बैंक, बड़े बड़े हस्पताल, बड़े बड़े होटल सब प्राइवेट सेक्यूरिटी एडोप्ट करते हैं....
तो हम भी प्राइवेट सेक्यूरिटी संस्था बनाएंगे और सबको सुरक्षा प्रदान करेंगे.... पर असल में वह हमारी आर्मी होगी....
पिनाक - वाह क्या बात है.... अब तो आपने सेंचुरी मार दी.....
विक्रम - हम जो प्राइवेट आर्मी बनाएंगे.... उसकी ऑफिस और ट्रेनिंग सेंटर भी होगी.... जिसके जरिए हम अपनी आर्मी को सबसे सक्षम बनाएंगे.... जिसकी अपनी इंटेलिजंस विंग भी होगी.... आज की डेट में किसी भी सरकारी एजेंसी को मात दे दे... हम अपनी आर्मी को उतना कॉम्पिटेटीव बनाएंगे....
पिनाक - (ताली मारते हुए) बहुत दूर की सोची है.... शाबाश....
वीर - पर यह इतना आसान नहीं है....
पिनाक - आपको क्यूँ तकलीफ़ हो रही है....
वीर - मुझे नहीं अब आपको होगी.... सेक्योरिटी संस्था का रजिस्ट्रेशन आसान नहीं होता.... उसके लिए एक्स आर्मी पर्सन या किसी बड़े ओहदे वाले एक्स पुलिस पर्सन की जरूरत पड़ेगी....
विक्रम - हाँ यह तो सच है....
पिनाक - तो उसका जुगाड़....
विक्रम - आप पहले घर की तलाश कीजिए.... बाकी मैं तलाशता हूँ....
वीर - और हम... हम क्या करें....
पिनाक - जस्ट फॉलो योर युवराज....
Nice update bro
 

Rajesh

Well-Known Member
3,634
8,050
158
👉इक्कीसवां अपडेट
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पंद्रह दिन बाद कैपिटल हॉस्पिटल में दास को लेकर तापस पहुंचता है l
तापस - यह क्या है दास... हमें आज विश्व को लेकर कोर्ट जाना है.... यह रंगा का सिरदर्द क्या है....
दास - सर... उसके वकील ने बुलाया है.... रंगा किसी बात पर आनाकानी कर रहा है.....
दोनों स्पेशल ट्रीटमेंट सेल में पहुंच कर देखते हैं, बिस्तर पर रंगा पेट के बल लेटा हुआ है l और खिड़की के पास एक कुर्सी पर एक वकील बैठा हुआ है l इन दोनों को देखते ही वकील अपने हाथ में फाइल ले कर खड़ा होता है l

वकील - रंगा... सुपरिटेंडेंट सर आ गए हैं...
रंगा - (आवाज़ में थोड़ी दर्द व कराह है) सुपरिटेंडेंट साहब....
तापस - हाँ रंगा... क्या बात है... कहो...
रंगा - मेरी हेल्थ इशू लिख कर.... यह वकील मुझे अलग जैल में शिफ्ट करवा रहा है....
तापस - ओ... अच्छा... तो मैं इसमे क्या कर सकता हूं....
रंगा - पर.... सुपरिटेंडेंट सर.... मैं.... ठीक होने के बाद.... आपके जैल में जाना चाहता हूँ.... अपना बचा खुचा सजा आपके जैल में... पूरा करना चाहता हूँ....
तापस के कान खड़े हो जाते हैं l वह दास की ओर देखता है l दास भी अपना सर हिला कर कुछ इशारा करता है l फ़िर तापस रंगा की ओर देखता है,
तापस - रंगा.... यह तुम और तुम्हारे वकील के बीच की बात है.... इसमें मैं क्या कर सकता हूँ...
रंगा - आप कुछ भी कीजिए.... मुझे मेरे ठीक होने के बाद... आपके जैल में ही पहुंचा दीजिए.... भले ही एक महीने के लिए ही क्यूँ नहीं.....
तापस - एक महीने के लिए.... वह क्यूँ... रंगा...
रंगा - (हंसने की कोशिश) हा हा हा.. आ... ह... आप इतने बेवकुफ तो लगते नहीं है.... सुपरिटेंडेंट साहब...
तापस रंगा की मंशा को समझ जाता है
तापस - रंगा.... मेरे जैल में... नशा करने वालों की... कोई जगह नहीं है...
रंगा - और हाफ मर्डर करने वालों की जगह है.... आपके जैल में...
तापस अब एक कुर्सी खिंच कर रंगा के पास बैठता है l

तापस - रंगा... तुम भी... मासूम बनने की कोशिश ना ही करो... तो बेहतर होगा.... मत भूलो... इस पर तुमने कोई स्टेटमेंट भी रिकॉर्ड नहीं कराया है... और ना ही कोई सबूत है..... इसलिए तुम अपने वकील का कहा मानों और दुसरे जैल में शिफ्ट हो जाओ... वहीँ पर तुम अपना बाकी की सजा पूरा करो... यही तुम्हारे लिए अच्छा होगा.....
रंगा - तो इसमें आप मेरी कोई मदद नहीं करेंगे....
तापस - रंगा.... अब तक... मैं तुझे... इंसानियत के नाते मान दे रहा था... तू मुझे समझता क्या है.... जो तू कहेगा और मैं तेरी बात मान लूँगा.... अपनी औकात और हद भूलना मत....
वकील - सुपरिटेंडेंट साहब... जरा तमीज के साथ बात किजिए... मेरे क्लाइंट से...
तापस ग़ुस्से के साथ वकील को देखता है l वकील की फट जाती है, तापस की आंख जलते हुए भट्टी की तरह लाल दिख रहा है l
तापस - मिस्टर लॉयर.... यह तो अच्छा हुआ कि तुमने इसे शिफ्ट कराने की पहल की है.... वरना इसकी खून की मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर.... मैं भी ऑफिसियली किसी दूसरे जैल में शिफ्ट करवा सकता था....
वकील की बोलती बंद हो जाती है l
तापस - सुन बे रंगा... उर्फ़ रंग चरण सेठी.... तु होगा कोई तोप... पर तेरी तोप गिरी.... मुझ पर झाड़ने की कोशिश भी मत करना.... इससे पहले मैं फील्ड ऑफिसर था.... और तेरे जैसों को ना सिर्फ़ अपने जुतों के तले रौंदा है.... बल्कि ठोका भी है.... अब दुबारा कभी मुझे यहाँ बुलाया तो तेरी गांड में ही दो चार बुलेट उतार दूँगा....
इतना कह कर तापस बाहर निकल जाता है l दास भी उसके पीछे पीछे बाहर निकल जाता है l
बाहर कॉरिडोर में तापस को खड़ा पाता है l दास उसके करीब आता है l
दास - वेल डॉन सर.... बहुत ही अच्छे से हैंडल किया आपने......

तापस - दास... तुम ठीक कह रहे थे.... वैसे मैंने सिचुएशन को थोड़े समय के लिए अवॉइड किया है.... पर सच यह भी है.... विश्व को शायद एक लंबी सजा होगी.... आज नहीं तो कल रंगा ठीक भी हो जाएगा.... उसने अब अपने मन में ठान लिया है.... इसलिए अभी के लिए वह सब जैल में सजा पूरा ज़रूर करेगा..... पर सजा पूरा करने के बाद.... वह फिर एक जुर्म करेगा.... सेंट्रल जैल में आएगा.... और शायद तब....
दास - येस सर.... यू आर.. एब्सोल्युटली करेक्ट सर..
तापस - नो... दास.. नो.. यू आर करेक्ट.... और थैंक्स... के तुमने मुझे पहले से ही आगाह कर दिया था....
दास - इटस ओके सर...
तापस - तुम तो समझ ही चुके होगे.... रंगा क्यूँ... थोड़े दिनों के लिए भी... हमारे जैल में आना चाहता है....
दास - हाँ सर.... अच्छी तरह से.... रंगा... एक आखिरी बार... अपना बिखरा हुआ इज़्ज़त को समेटना चाहता है.... क्यूंकि इस ज़ख़्म को लेकर.... वह कहीं भी चला जाए.... इस वक्त उसकी औकात एक गली के बीमार कुत्ते से ज्यादा नहीं है...
तापस - ह्म्म्म्म... हमे आने वाले कल के लिए.... सावधानी बरतनी होगी... लेटस गो...
दोनों हस्पताल से अब जैल की ओर निकल जाते हैं l जैल में पहुंचते ही,
तापस - दास.... आज शायद विश्व की सुनवाई है हाई कोर्ट में...
दास - येस सर....
तापस - वैन निकाल ने के लिए कहो.... और कागजात तैयार करो.... मैं खुद विश्व को लेकर जाना चाहता हूँ....
दास - ठीक है सर... पर आज आप ना जाएं तो शायद ठीक रहेगा....
तापस - क्यूँ...
दास - सर... डोंट.. माइंड... आज सुबह सुबह आपका मुड़ को रंगा ने खराब कर दिया....
तापस - लिव इट... कोई जंग को नहीं जा रहा हूँ... तुम जानते हो ना... पिछली बार... हमारे वैन पर पेट्रोल बम से हमला हुआ था..... इसलिए जब तक विश्व के केस की सुनवाई नहीं हो जाती.... तब तक विश्व मेरी जिम्मेदारी है....
दास कुछ नहीं कहता है, वहाँ से चला जाता है l
थोड़ी देर के बाद वैन में विश्व को बिठा दिया जाता है l और वैन के आगे टोयोटा की लीवा सरकारी गाड़ी में तापस और एक अधिकारी निकलते हैं l
हाई कोर्ट के बाहर जबर्दस्त भीड़ इक्कठा हुआ है l ज्यादातर लोगों के हाथ में प्लाकार्ड दिख रहा है l हर प्लाकार्ड में विश्व के खिलाफ़ लिखा हुआ है l

लुटेरा विश्व को फांसी दो

जनता के पैसे खाने वाले को सजा दो
मनरेगा के दुश्मन विश्व को बीच चौराहे पर सजा दो

ऐसे नजाने कितने प्लाकार्डस देखने को मिले l तापस पहले अपने गाड़ी से उतरता है, उधर वैन से विश्व भी उतरता है l तापस विश्व के उतरते ही सीधे विश्व के सामने खड़ा हो जाता है l कुछ लोग भीड़ के बीच से पत्थर मारने की कोशिश करते हैं l पर फाइबर के आरमर से ढक के विश्व को कोर्ट के भीतर ले लिया जाता है l यह सब देख कर भीड़ पुलिस के विरुद्ध नारा बाजी करने लगती है l
तापस विश्व को कोर्ट रूम के भीतर ले आता है l कोर्ट रूम के भीतर सब अपने अपने जगह बैठे हुए हैं l सिर्फ दो ही कुर्सी खाली है l पहला जज की और दुसरा डिफेंस लॉयर की l
कुछ देर बाद जज का आगमन होता है l अपने कुर्सी पर बैठने के बाद
जज - अदालत की कारवाई शुरू की जाए....
एक हॉकर आवाज़ लगाता "मुज़रिम को हाजिर किया जाए l"
विश्व को एक अधिकारी मुजरिम के कटघरे में खड़ा कर देता है l
जज - हाँ तो विश्व प्रताप... आपका स्वस्थ्य पिछले बार से कुछ अच्छा लग रहा है....
विश्व - जी....
जज - तो आज की कारवाई में अभियोजन की पक्ष की तैयारी दिख रही है.... पर अभियुक्त पक्ष की कोई तैयारी नहीं है l तो जनाब विश्व प्रताप... आपके तरफ से कोई रिस्तेदार मौजूद हैं..
वैदेही - (अपने बेंच से खड़े हो कर) जी मैं हूं.. जज साहब...
जज - आप विटनेस बॉक्स में आइये और बताईये....
वैदेही को एक मुलाजिम रास्ता दिखाता है और वैदेही विटनेस बॉक्स में पहुंचती है l
जज - हाँ तो मोहतरमा.. पहले अपना परिचय दीजिए और कहिए... आपके वकील कहाँ हैं...
वैदेही - (आखों में आंसू लिए, हाथ जोड़ कर) जज साहब.... मैं वैदेही महापात्र... वह सामने जो खड़ा है... मैं उसकी बड़ी बहन हूँ...
जज साहब.... पिछले दो महीनों से मैं इस सहर की हर गली... हर नुक्कड़ पर घुम घुम कर अपने जीवन भर की जमा पूंजी साथ लिए...... वकीलों के पास दर दर भटक रही हूँ.... पर कोई भी वकील हमारा केस हाथों लेना नहीं चाहता.... इसलिए आपसे मेरी बिनती है.... आप ही हमारे लिए कोई वकील की बंदोबस्त कर दीजिए.... (इतना कहने के बाद वैदेही की रुलाई फुट पड़ती है)
जज - ऑर्डर... ऑर्डर... यह एक पेचीदा मामला है.... इस मामले में प्रोसिक्युशन की क्या राय है....
प्रतिभा - (अपनी कुर्सी से उठ कर) माय लॉर्ड... हमारा कानून में इसकी व्यवस्था है... राइट टू कउंसल के तहत..... आप सरकार को आदेश दे सकते हैं कि वह मक्तुल की राइट टू फेयर ट्रायल के लिए एक सरकारी वकील मुकर्रर करें.......
जज - क्या इससे प्रोसिक्युशन को आपत्ति है....
प्रतिभा - नो... माय लॉर्ड... नो...
जज - ठीक है.... यह अदालत... सरकार को आदेश देती है... की अगले महीने *** तारीख़ से पहले मक्तुल को एक वकील मुहैया कराए.... ताकि जल्द से जल्द इस केस की सुनवाई हो और न्याय हो..... इसीके साथ ही आज की अदालत यहीं स्थगित की जाती है......
जज इतना कह कर कोर्ट रूम से प्रस्थान करता है l उसके जाते ही वैदेही अपने जगह से निकल कर प्रतिभा के पैरों में आकर गिर जाती है l
प्रतिभा - अरे अरे.. यह क्या कर रही हो...
वैदेही के आँखों में कृतज्ञता दिख रही है l
वैदेही - धन्यबाद... वकील साहिबा... आज आपके वजह से विशु के लिए.... खुद सरकार अब वकील देगी....
प्रतिभा - (अपनी पैरों को छुड़ाते हुए) देखो मैंने कुछ नहीं किया.... यह तुम्हारे भाई को मिला हुआ संवैधानिक अधिकार है....
वैदेही - फिर भी आपने जज साहब से कहा.... और जज साहब ने तुरंत मान भी लिया... इसलिए आपका बहुत बहुत धन्यबाद....
प्रतिभा - ओ.... हो.... बेवक़ूफ़ लड़की.... ठीक है जाओ.. अगले महीने आना....
वैदेही - (खुशी के मारे उठती है) ठीक है...
इतना कह कर प्रतिभा के गले लग जाती है, इससे पहले प्रतिभा इस शॉक से बाहर निकल कर होश में आती, वैदेही खुशी के मारे वहाँ से बाहर चली जाती है l प्रतिभा को कुछ समझ में नहीं आता l वह एक गहरी सांस छोड़ती है जैसे कहीं दूर से भाग के आयी हो l
उस तरफ विश्व को मीडिया वालों से बचाते हुए, तापस विश्व को वैन में बिठाता है, और खुद जा कर अपने सरकारी गाड़ी में बैठ जाता है l फिर दोनों गाड़ी भुवनेश्वर का रुख करते हैं l
मीडिया वाले फिरभी कटक हाई कोर्ट से पीछे लग जाते हैं और भुवनेश्वर के सेंट्रल जैल तक पीछा करते हैं l
शाम को घर में टीवी पर दिन भर की खबर प्रसारित हो रही है l प्रत्युष बड़े चाव से न्यूज देख रहा है l
तापस उस वक़्त घर के अंदर आता है l प्रत्युष को टीवी देखता देख,
तापस - क्यूँ माँ के लाडले..... आज आपकी पढ़ाई से छुट्टी है क्या....
प्रत्युष - डैड... आज टीवी पर सिर्फ माँ ही छाई हुई है.... देखना तो बनता है ना....
तापस - क्यूँ तेरी माँ ने आज ऐसा कौनसा तीर मार डाला.... के टीवी वाले अपना चैनल महानदी में डुबो रहे हैं....
प्रत्युष - देखीये डैड..... इस वक्त आप जे-सींड्रोम से पीड़ित हैं.... आई मिन टू से... आप ग्रसित हैं... जे-सींड्रोम से
तापस - अछा.... वह होता क्या है....
प्रत्युष - जलन डैड जलन... आप माँ की नेम और फेम से जल रहे हैं....
तापस प्रत्युष को देख कर मुस्कराता है और अपना बेल्ट निकालता है l इससे पहले कि तापस अपना बेल्ट पुरी तरह से निकाल पता, प्रत्युष तापस के पैरों के नीचे गिर जाता है और चिल्लाता है,
प्रत्युष - आ.. ह... मर गया.. मर गया... आ.. ह.. माँ बचाओ...
प्रतिभा दौड़कर आती है और देखती है प्रत्युष तापस के पैरों के पास पड़ा है,और तापस के हाथों में बेल्ट है l प्रतिभा को देखते ही तापस की हालत पतली हो जाती है l
प्रतिभा - सेनापति जी.... यह आप क्या कर रहे हैं....
तापस - अरे भाग्यवान.... अभी तक किया कहाँ है.... इससे पहले कुछ करता.... आपके लाडले ने मेरी वाट लगा दी.....
प्रतिभा - अच्छा... यह बात है... दीजिए मुझे यह बेल्ट...
तापस - (खिसियाते हुए) देखो भाग्यवान बेटे के सामने नहीं.....
प्रतिभा - मैं कहती हूँ.... दीजिए बेल्ट....
तापस बड़ी मुश्किल से बेल्ट प्रतिभा को थमाता है....
अपनी माँ का यह अवतार देख कर खुश होते हुए और हैरानी से प्रत्युष मुहँ और आँखे फाड़े अपनी माँ के पास खड़ा हो जाता है और इंतजार करता है कि अब आगे क्या होगा l
प्रतिभा बेल्ट हाथो में लेती है और मारने के लिए उठाती है l तापस, प्रतिभा को हैरान हो कर देख रहा है कि तभी प्रत्युष की चीख निकल जाती है l क्यूंकि बेल्ट की मार प्रत्युष के पिछवाड़े पर लगती है l
प्रत्युष - आ... ह... माँ... मुझे लगा...
प्रतिभा - तुझे लगना ही चाहिए..... नालायक अपने बाप की टांगे... खिंचता है... (कह कर प्रतिभा प्रत्युष के पीछे भागती है)
प्रत्युष- डैड मुझे बचाओ...
तापस - अरे... भाग्यवान रुक जाओ....
प्रतिभा रुक जाती है, तो प्रत्युष तापस के पास आकर गले लग जाता है l
प्रतिभा - सेनापति जी... क्या आप बताने की कष्ट करेंगे... इस नालायक की तरफदारी क्यूँ कर रहे हैं....
तापस - अरे जान... कौन इस नालायक की तरफदारी कर रहा है.... मैं तो कह रहा था... की क्यूँ ना तुम... बेल्ट को उल्टा पकड़ कर.. बकल के तरफ से मारो....
प्रत्युष - डैड... मैं सोच भी नहीं सकता था... के आप इतने कठोर हृदय वाले निकलोगे.....
तापस - कठोर वह क्या होता है....(फिर प्रत्युष को गले लगा कर) अरे यार... तू ही तो एक है... जो इस घर का रौनक है... तु जिस दिन मुझे छेड़ेगा नहीं... तो उस दिन मेरा दिन ही खराब हो जाएगा...
प्रत्युष - जानता हूँ डैड... माँ भी मुझे कहाँ मारती है.... पर कभी कभी दुसरे लड़कों को देखता हूँ... तो उनके किस्मत से रस्क होता है मुझे.... उन्हें अपने माँ बाप का प्यार ही नहीं मार भी मिलाता है.... पर मेरे किस्मत में तो सिर्फ़.. प्यार ही प्यार वह भी बेशुमार मिलता है.... इसलिए मार खाने के लिए यह सब करता हूँ... फिर भी देखिए ना माँ जब बेल्ट से मारती है..... तो ऐसा लगता है जैसे वह मार नहीं रही है .. गुदगुदी कर रही है...
प्रतिभा - ऐ... देख मैं... सच में तुझे मारूंगी... हाँ..
फिर प्रतिभा दोनों के गले लग जाती है l तभी घर की लैंड लाइन बजने लगती है l सबका ध्यान फोन के तरफ जाती है l प्रतिभा दोनों को सोफ़े पर बैठने के लिए कह कर फोन उठाती है,
प्रतिभा - हैलो...
- क्या आप... पब्लिक प्रोसिक्यूटर प्रतिभा जी बोल रहे हैं...
प्रतिभा - जी बोल रही हूँ...
- यह आप लगा क्या रखी हैं...
प्रतिभा - व्हाट डु यु मीन.... और आप हो कौन...
तापस प्रतिभा का मुड़ बदलते देख उसके पास आकर खड़ा हो जाता है l
प्रतिभा - आप कौन हैं... और आपको किस बात की तकलीफ़ है मुझसे....
- हम... छोटे राजा... पिनाक सिंह क्षेत्रपाल... बोल रहे हैं....
प्रतिभा - छोटे राजा जी... आप मुझसे ऐसे क्यूँ....
पिनाक - आप को कहा गया था... विश्व को सजा देने के लिए... आप उसे बचाने का फार्मूला जज को दे आईं...
प्रतिभा - देखिए... मनानीय क्षेत्रपाल जी... विश्व की मैंने कोई मदद नहीं की... ना ही जज साहब को मैंने कोई सुझाव दिया है.... वह एक कानूनी प्रक्रिया है... जिसे कोर्ट में कारवाई के अपनाया गया.... और आप इतने बड़े राजनीतिज्ञ हैं..... आपको इसके बारे में जानकारी होनी चाहिए...
पिनाक - हाँ है... हम तो सिर्फ इस केस के प्रति.. प्रतिबद्धता माप रहे थे...
प्रतिभा - तो क्या देखा आपने....
पिनाक - आगे पता चलेगा..... (कह कर फोन काट देता है)
प्रतिभा भी फोन रख देती है l और मूड कर तापस से कहती है
प्रतिभा - सेनापति जी पता नहीं क्यूँ.... उसने जैसे ही अपना नाम क्षेत्रपाल बताया.... मेरे भीतर से कंपकंपी छूट गई...
तापस उसे गले लगा लेता है, और प्रत्युष भी प्रतिभा के गले लग जाता है l
प्रतिभा से बात चित के बाद पिनाक अपने कमरे में टीवी पर न्यूज पर ध्यान देता है, और वीर के और देखता है तो देखता है वीर बेड पर लेटा मोबाइल पर गेम खेल रहा है l
पिनाक अपना मोबाइल फोन उठा कर यशपुर में अपने लीगल एडवाइजर बल्लभ प्रधान का नंबर डायल करता है l उस तरफ बल्लभ के फोन उठाते ही,
पिनाक - प्रधान....
बल्लभ - जी... छोटे राजा जी...
पिनाक - तुमने... न्यूज देखा...
बल्लभ - जी देख रहा हूँ... छोटे राजा जी...
पिनाक - यह कहाँ तक सही है..... वह औरत जज को कैसे सिफारिश कर सकती है... उस विश्व के लिए सरकारी वकील के लिए...
बल्लभ - छोटे राजा जी... आप जिस औरत की बात कर रहे हैं... वह निहायत ही शरीफ और ईमानदार है.... और उसने जो किया वह कोर्ट के प्रोसिजर में... ऐसा ही होता है.... जज प्रोसिक्यूशन को टटोलने के लिए भी ऐसा करते हैं.... कहीं वह विरोध ना करे किसी निजी हित साधने के लिए....
पिनाक - ह्म्म्म्म अच्छा... तो यह बात है...
बल्लभ - हाँ... और यह सच है.... अगर कानूनी कार्रवाई कोर्ट तक पहुंचती है... उस हालत में... बिना डिफेंस लॉयर के..... मक्तुल को कोई भी अदालत सजा नहीं दे सकती....
पिनाक - वह तो ठीक है.... पर अदालत ने उसके लिए सरकार को आदेश दिया है.... विश्व के लिए... सरकारी वकील मुकर्रर करने के लिए.... जानते हो ना... यह केस राजा साहब की नाक और मूछ है...
बल्लभ - जानता हूं.... उससे कुछ नहीं होता... छोटे राजा जी... कानून और कोर्ट हमेशा... सबूतों के बैसाखी के सहारे रेंगते हैं... और विश्व के खिलाफ़ हमने इतने सबूत बनाए हैं... के उसे राष्ट्रपति तक सजा दिलाने से नहीं बचा सकते हैं.....
पिनाक - ह्म्म्म्म... तो फिर... ठीक है....
प्रधान से बात करने के बाद फोन रख कर कमरे में पिनाक चहल कदम कर रहा है l वीर उसे देखता,
वीर - क्या बात है... छोटे राजा जी.... आप किस बात से इतना परेशान लग रहे हैं.... आप इधर उधर फोन कर... अपना टाइम पास करने की कोशिश कर रहे हैं....
पिनाक वीर की ओर देखता है और पूछता है,
पिनाक - आज आपका कॉलेज कैसा गया राजकुमार....
वीर - हम कब तक... होटल में रहेंगे... छोटे राजा जी... युवराज ने आपको घर या घर के लिए जगह देखने के लिए कहा था....
पिनाक - (बिदक कर) हमने आपसे पहले कुछ पूछा है....
वीर - कॉलेज में होता क्या है.... छोटे राजा जी... कुछ भी तो नहीं....
पिनाक - क्या आप जानते हैं.... युवराज अब कहाँ हो सकते हैं...
वीर - युवराज जी अपने मिशन के अगले पड़ाव पर पहुंच चुके हैं....
पिनाक - क्या मतलब....
वीर - आज युवराज जी... कॉलेज के ... तुर्रम खान को... और उसके के चेलों को..... होटल ऐरा.. में पार्टी दे रहे हैं.... और आज ऑफिसियली डिक्लेर होगा... अगला प्रेसिडेंट कॉलेज इलेक्शन का... वह भी अन-कंटेस्टेंट....
पिनाक - ओ....
वीर - इसलिए तो आपसे... मैंने घर की बात पुछा.... युवराज अपने मिशन पर बढ़ते ही जा रहे हैं....
पिनाक - मैंने अपने आदमियों को दौड़ाया है... बहुत जल्द... प्लॉट या घर देख कर... हमे इत्तला करेंगे.... घर मिल जाए तो हम अपना मोडिफीकेशन कर सकते हैं....
यह सुन कर वीर चुप रहा और मोबाइल पर गेम में डूब जाता है l
होटल ऐरा....
विक्रम अपनी गाड़ी से आकर गाड़ी की चाबी गार्ड को देता है और टीप में उसे पांच सौ रुपये देता है l गार्ड विक्रम को सैल्यूट कर गाड़ी पार्किंग में ले जाता है और रजिस्टर में गाड़ी के नंबर लिख कर अपने पास चाबी जमा कर देता है l विक्रम आकर सीधे लॉबी में पड़े सोफ़े पर बैठ जाता है l
उधर होटल के एक रॉयल शूट नंबर 702 में बारह तेरह लड़कों का ग्रुप बैठ कर आपस में बात कर रहे हैं l
उनमे से एक ने पूछा....
एक - अरे यार... विनय... तुने उसे क्या टाइम बताया था....
विनय - अबे.. मैंने उसे करेक्ट आठ बजे पहुंचने को बोला था....
दुसरा - अबे तो आठ कबका बज चुका है.... कहीं वह हमें सैंडी तो नहीं लगा दिया होगा.....
विनय - अबे क्या पता.... लगाया भी हो....
एक - अबे.... तो इतना माल हम..... किसके बाप का हम ठूंस रहे हैं....
विनय - रिलैक्स... गयज.... वह... पार्टी देगा पार्टी देगा बोल रहा था... तो मैंने भी अपनी शर्तों पर पार्टी को राजी हो गया.... मैं उसे बोला मुझे और मेरे यार लोगों को सेवन स्टार वाला होटल ऐरा.. के रॉयल शूट में पार्टी चाहिए.... तो मैंने ही उसके सामने यह शूट बुक कराया है... और उसने तुरंत पेमेंट भी कर दिया था....
तीसरा - अबे... तो उस हालत में.... हमे उससे इंतजार करवाना चाहिए था.... हम बेकार में... उसका इंतजार कर रहे हैं.....
पांचवां - हाँ यार विनय... उसका हमारे पास काम था तो हमे.... उससे इंतजार करवाना चाहिए था....
एक - और नहीं तो क्या... वह नया लौंडा हमे इंतजार करवा रहा है... वह भी कॉलेज प्रेसिडेंट विनय कुमार महानायक से....
दूसरा - वही तो.... यार यह खाने पीने की बात अलग.... और इज़्ज़त अलग....
छटा - लगा... उसे फोन लगा.... हम क्या उसके दिए पार्टी के बगैर मर जायेंगे.... साला होस्ट ही गायब है....
दुसरा - और नहीं तो... देख विनय.... लगता है... उसका कोई जरूरी काम है तुझसे... इसलिए यहाँ लाकर हमे पार्टी दे रहा है.... साला उसे अपना उल्लू सीधा करवाना है... वह भी हमसे.... और खुद गायब है... लगा उसको फोन.... और बोल तू कौन है....
विनय यह सब सुनकर अपना मोबाइल निकालता है और विक्रम को फोन लगाता है l
विक्रम होटल के लॉबी में बैठा कोई मैग्ज़ीन खोले पढ़ रहा था कि उसका फोन बजने लगा l विक्रम फोन निकाल कर देखता है, उसमें विनय का नंबर देख कर मुस्कराता है, पर फोन नहीं उठाता है l फोन कट होने पर अब विक्रम भी खीजने लगता है l
एक - देखा... वह महा कमीना निकला.... मादरचोद हमे इस रूम के और खाने के बिल में फंसा दिया....
विनय अब फ़िर से विक्रम को फोन लगाता है l विक्रम देखता है और इसबार फोन उठाता है
विक्रम - हैलो...
विनय - ऑए... हमे आठ बजे बुलाकर तू किधर है रे ...
विक्रम - आठ बजे... विनय साहब.... वेन्यू और मेन्यू और टाइम आपका और बिल मेरा... यही डिसाइड हुआ था...
विनय - हाँ... तो.. तुझे... आठ बजे आ जाना चाहिए था.. ना...
विक्रम - क्या... आठ बजे.... मुझे लगा कि आप आठ बजे घर से निकल ने के लिए बोले हो....
विनय - क्या... अभी तू बता.. कहाँ है तू...
विक्रम - आरे विनय साहब... मैं इस वक़्त गाड़ी में हूँ और गाड़ी चला भी रहा हूँ....
विनय - तो कब तक पहुंच सकता है.....
विक्रम - शायद साढ़े आठ बज जाएंगे.... आप एक काम करो... मैनेजर से बात करके रूम की चाबी ले लो... मैं आकर आपको सीधे जॉइन करता हूँ.....
विनय - ठीक है ... अगर तू साढ़े आठ बजे ना आया.... तो हम सब चले जाएंगे....
विक्रम - ठीक है विनय साहब......
इतना कह कर विक्रम मुस्करा देता है, और अपना घड़ी देखता है साढ़े आठ बजने को है l विक्रम मैग्जीन को रखता है और रिसेप्शन की ओर जाता है l रिसेप्शन में पहुंच कर मैनेजर को बुलाता है l मैनेजर अपने कमरे से बाहर निकल कर रिसेप्शन पहुंचता है l

विक्रम - मैनेजर साहब..... रॉयल शूट नंबर 702 का जो भी बिल हुआ कहिए.... हम अभी पेमेंट कर देंगे...
मैनेजर - जी बहुत अच्छा...
मैनेजर रिसेप्शन से बिल पूछता है और पूछता है - सर क्या आप चेक आउट करने वाले हैं...
विक्रम - नहीं... बिल पेमेंट अभी हो जाएगा.... पर चेक आउट कल ही होगा....
मैनेजर - जी बहुत अच्छा....
फिर बिल बना कर विक्रम को देता है l विक्रम 92 हजार का बिल देख कर मुस्करा देता है l
विक्रम अपना क्रेडिट कार्ड रिसेप्शनीष्ट को देते हुए मैनेजर से
विक्रम - अच्छा मैनेजर... उस कमरे का इंश्योरेंस है...
मैनेजर विक्रम को घूर कर देखता है l
रिसेप्शनीष्ट पेमेंट क्लीयर कर बिल मैनेजर को दे देती है l मैनेजर बिल में क्षेत्रपाल नाम पढ़ते ही आँखे फाड़ कर विक्रम को देखने लगता है l
मैनेजर - स... स... सर आप...
विक्रम - इस स्टेट में... एक ही राजा साहब हैं... जानते हो...
मैनेजर - ज.. ज.. जी.. भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी..
विक्रम - हम उनके युवराज हैं...
मैनेजर - जी...
विक्रम - अब बोलो... क्या उस कमरे का इंश्योरेंस है....
मैनेजर - जी है... बिल्कुल है....
विक्रम - गुड... कल अपने इंश्योरेंस एजेंट को बुला लेना....
मैनेजर - जी...
इतना कह कर विक्रम अपना कार्ड लेकर पलट कर लिफ्ट की ओर बढ़ता है l तभी उसका फोन बजने लगता है l विक्रम अपने जेब से फोन निकालने को होता ही है कि उससे कोई टकरा जाता है l इम्पैक्ट ऐसा था के दोनों ही गिर जाते हैं l विक्रम गुस्से से उसे देखता है कि देखता ही रह जाता है l एक बहुत ही खूबसूरत लड़की l उसकी खूबसूरती देख कर विक्रम का मुहँ खुला रह जाता है l वह लड़की उठती है और विक्रम की ओर अपना हाथ बढ़ाती है l विक्रम उस लड़की का हाथ थाम लेता है और धीरे धीरे उठता है l
लड़की - सॉरी सॉरी... वह मैं थोड़ी जल्दी में थी इसलिए... डोंट माइंड...
इतना कह कर वह लड़की होटल के रेस्टोरेंट की और भाग जाती है l विक्रम भी उसके पीछे जाता है l तभी फिरसे विक्रम का फोन बजता है, विक्रम जो हिप्नोटाइज हो गया था, उसे होश आता है l
विक्रम - (फोन उठा कर) हैलो
विनय - अबे कहाँ मर गया तु.... जल्दी आ... वरना...
विक्रम - (चेहरे का भाव अचानक बदल कर) सिर्फ़ दो मिनट... (फोन काट कर लिफ्ट में घुस जाता है)
उधर कमरे में
विनय - अबे वह... होटल में पहुंच गया है... दो मिनट में पहुंचने वाला है.... सो एंजॉय... फ्रेंड्स..
सब खुशी से चिल्लाने लगते हैं l
कॉलिंग बेल बजती है, उनमे से एक जाकर दरवाजा खोलता है l
एक - अबे तू यहाँ लड़की देखने आया है क्या बे.... जो तु लेट करेगा... और हम तेरी राह ताकते रहेंगे...
विनय - अरे... जाने दे यार... यह पार्टी यही दे रहा है.... लेटस् चीयर हिम...
विनय, विक्रम को अंदर आने को कहता है l विक्रम आकर विनय के सामने पड़ा एक कुर्सी पर बैठ जाता है l
विनय - यार... मजा आ गया... हम मैनेजर से चाबी ले कर आए तो देखा सब पहले से ही अरेंजमेंट है... बस क्या.... हम शुरू हो गए... हा हा हा हा
विक्रम भी मुस्करा देता है l
विनय - अच्छा बोल... तुझे क्या चाहिए... हम लोग सब बहुत खुश हैं तुझसे....
विक्रम - ह्म्म्म्म, मैं कभी मांगता नहीं हूँ....
विनय - ओके... जो तुझे चाहिए लेले फिर.... हा हा हा हा...
विक्रम - ह्म्म्म्म इसबार... विनय तु स्टूडेंट इलेक्शन नहीं लड़ेगा.... इसबार मैं प्रेसिडेंट कैंडीडेट हूँ..
वह भी अनकंटेस्ट...
सब खामोश हो जाते हैं, कमरे में इतनी शांति छा जाती है, के अगर सुई गिर जाए तो सुनाई दे l
फिर अचानक से विनय हंसने लगता है l उसे हंसता देख कर उसके साथी भी हंसने लगते हैं l
विनय - ओह कॉम ऑन... विक्रम.... यार यह खाने पीने का टाइम है.... ऐसे जोक मत मारो के हंसते हंसते पेट भर जाए (कह कर जोर जोर से हंसने लगता है)
विनय के साथ उसके सारे दोस्त भी हंसने लगते हैं l
विक्रम एक ग्लास हाथ में लेता है और नीचे छोटे टी पोए पर गिरा देता है l ग्लास एक आवाज़ के साथ टूट जाता है l ग्लास के टूटने के साथ ही विनय व साथियों की हंसी रुक जाती है l विनय पहले अपने दोस्तों को देखता है और फिर विक्रम को घूरते हुए देखता है l
विक्रम - क्यूँ बे.. तु मेरा साला लगता है क्या... जो मैं तुझे जोक मरूंगा....
विनय का चेहरा गुस्से से तमतमा जाता है और उसके हाथ में जो ग्लास था उसे नीचे फेंक मारता है l
विनय - एक पार्टी की कीमत पर तुझे प्रेसिडेंट बनना है... भोषड़ी के... तुने यहाँ मुझे और मेरे साथियों को नहीं बुलाया है.... तुने अपनी मौत का अरेंजमेंट खुद किया है.... तु मुझे जानता नहीं है.... आज इस कमरे से तेरी लाश बाहर जाएगी.... क्यूंकि आज मैं तुझे मार डालूंगा कुत्ते

विक्रम, विनय की बात सुनकर, उसे देखकर मुस्कराता है l उसे मुस्कराते देख कर विनय की सुलग जाती है l विनय जो विक्रम के बैठा हुआ है अपना पैर विक्रम के आगे टी पोए पर रख देता है l
विनय - बे कुत्ते... नाम के आगे सिंह लगा लेने से कोई सिंह नहीं हो जाता.... शेर के मांद में आया है.... और शेर से कुर्सी छोड़ने को कह रहा है...
विश्व उसकी बातों को अनसुना कर अपना बायां पैर दाहिने घुटने पर रखता है और और अपने दाएं हाथ के नाखूनों को देखने लगता है l
विनय - बे कुत्ते.....
चल आज मेरे जुते साफ कर.... मैं तुझे तेरे जोक पर तेरी जान बक्स कर जान का टीप दे कर विदा करूंगा... चल जल्दी से साफ कर.... अगर तुने मेरे जुते साफ नहीं किया.... तो आज.......
Superb update bro
 

Rajesh

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विनय - बे कुत्ते..... चल आज मेरे जुते साफ कर.... मैं तुझे तेरे जोक पर तेरी जान बक्स कर जान का टीप दे कर विदा करूंगा... चल जल्दी से साफ कर.... अगर तुने मेरे जुते साफ नहीं किया.... तो आज.......
विक्रम - (अपनी होंठ पर उंगली रख कर) श्.. श्.. श्... श् (विनय चुप हो जाता है) जुबान उतना ही लंबा कर... जितना हलक में वापस घुसेड़ सके..... बात उतनी बड़ी कर... जिसके साये में अपनी औकात ढक सके...
विनय अपने बैठे हुए जगह से उठ जाता है और एक खतरनाक हंसी हंसते हुए, विक्रम की उंगली दिखाते हुए
विनय - हे...इ.. हे...इ... यु डोंट नो... मि.. हाँ.. तु यहाँ जिनको मेरे साथ देख कर स्टूडेंट्स समझ रहा है ना.... गौर से देख इन्हें.... यह कोई स्टूडेंट्स नहीं हैं.... यह सारे के सारे छटे हुए क्रिमिनलस हैं... भुवनेश्वर में किसी भी पुलिस स्टेशन में देख लेना... इनके चेहरे वांटेड लिस्ट में दिख जाएंगे... और यह लोग हर वक्त तैयार रहते हैं.....
विक्रम बेफिक्री में बैठा अपने दाहिने हाथ के उंगलियों को अपने अंगूठे से मालिश कर रहा था l उसका ऐसे बिना डरे, बिना भाव दिए अपने में व्यस्त रहना विनय को और भी सुलगा दिया l
विनय - तु... होगा कोई क्षेत्रपाल... राजगड़ वाला... यह भुवनेश्वर है... बच्चे... (विनय अपने साथियों से) आज इसकी दी हुई दारू और कबाब के बदले इस हराम जादे की हड्डी पसली ऐसे तोड़ना... के कोई डॉक्टर जोड़ नहीं पाएगा.... हा हा हा...
इतना कह कर विनय अपने हाथ में शराब का एक ग्लास उठाता है और बड़े स्टाइल में विक्रम के सामने बैठ कर घूंट भरता है।
इतने में चार पांच लड़कों में से एक अपना बेल्ट निकालता है जिसमें छोटे
छोटे नुकीले कांटे लगे हुए हैं, और एक अपनी कार्गो प्यांट के जेब से साइकिल चेन निकालता है, और एक साइकिल की चेन की फ्री व्हील से बने एक कांटे दार पंच निकालता है, और एक लोहे की रॉड निकालता है और पांचवां चाकू निकालता है l पांचो विक्रम के तरफ बढ़ते हैं l विनय उन्हें रोक देता है और कहता है
विनय - रुको... यार..इसकी दी हुई दारू पी है... बेचारे पर बिल फाड़ा है... मैं उधर घुम कर खड़ा हो जाता हूँ... तुम लोग शुरू हो जाना... ठीक... हाँ...
सब हंसने लगते हैं, और विनय हाथ में ग्लास लिए कुर्सी से उठ जाता है और मुड़ कर थोड़ी दूर जाता है l इतने में कुछ टूटने की आवाज़ आती है l विनय के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है l और वह ग्लास खाली कर जब वापस मुड़ता है तो देखता है उसके पांचो साथी खुन से लथपथ नीचे गिर कर कराह रहे हैं l विक्रम वैसे ही अपने अंदाज में कुर्सी पर बैठा हुआ है पर इस बार उसके दाहिने हाथ में एक टूटी हुई खून से सनी बोतल का मुहँ है l
विनय की आँखें और मुहँ हैरानी से खुल जाती है l वह अपने दुसरे साथियों को देखता है, उनकी भी विनय के जैसा हाल है l सब ऐसे हैरान हो कर विक्रम को देख रहे हैं के जैसे मानो कोई भूत देख रहे हों l
विनय, विक्रम के हाथ में टुटे हुए बोतल को देख कर अपने सर पर खुद चपत लगाता है और अनुमान लगाने की कोशिश करता है l
***जैसे ही विनय मुड़ा, वह पांच आदमी विक्रम के पास पहुंचे, विक्रम तेजी से सामने रखे बोतल को उठा कर पहले के सिर पर दे मारा, बोतल की मार से उसका सर फट गया और नीचे गिर गया, बोतल के सर पर लगने से बोतल टुट भी गया l विक्रम फिर झुक कर टुटे हुए बोतल को दुसरे के जांघ पर घोंप दिया, फ़िर तीसरे के दाहिने बांह में बोतल घोंप दिया, इतने में चौथा अपना चाकू वाला हाथ चलाया विक्रम झुक कर तेजी से उसके पीछे पहुंचा और बोतल को उसके पिछवाड़े घोंप दिया और पांचवां कुछ समझ पाता विक्रम उसके कंधे पर बोतल घोंप कर निकाल देता है और फ़िर अपनी जगह आकर बैठ जाता है l***
हाँ ऐसा ही हुआ है... विनय अपने मन में सोचता है और चिल्ला कर
विनय - आ... ह... मार डालो इस हरामी को... पैसों की चिंता मत करो... इसकी लाश के वजन बराबर पैसों से तोल दूंगा मैं तुम सबको....
सब अपने हाथों में अपना अपना हथियार निकाल कर विक्रम पर टूट पड़ते हैं l अंजाम वही सब के सब कुछ ही देर में फर्श पर गिर कर छटपटा रहे हैं l
यह सब देख कर विनय के चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने लगते हैं l वह ग्लास को विक्रम पर फेंक मारता है और पीछे मुड़ कर दरवाजे की और भागने लगता है l विक्रम भी उसकी फेंकी हुई ग्लास से झुक कर खुदको बचाता है और तेजी से बोतल उठा कर विनय के सर की ओर फेंक मारता है l बोतल सटीक अपने निशाने पर लगता है l विनय गिर जाता है और बेहोश हो जाता है l
विनय जब अपनी आँखे खोलता है तो छत के झूमर नजर आते हैं l उसे अपने चेहरे पर कुछ गिला गिला सा महसूस होता है l अचानक उसके मुहँ से कराह निकालता है l उसे उसके सर के पीछे दर्द महसूस होता है तो अपना हाथ लगा कर देखता है तो उसके हाथ में खुन देख कर झट से उठ बैठता है, तो खुद को फर्श पर पड़े नर्म दरी पर पाता है l अपने चारो तरफ नजर दौड़ा कर देखता है l उसके सारे साथी जिनको ले कर आज जम कर पार्टी कर विक्रम के नाम पर बिल फाड़ने के आया था, सब के सब फर्श गिर कर दर्द से कराह रहे हैं l सारे कमरे की हालत खराब है l कुछ चेयर और कुछ टेबल टुटे हुए हैं, और तो और एक बड़ा सा कांच का दीवार था वह भी टुट कर बिखरा हुआ है l विनय दुसरी तरफ नजर घुमाता है तो देखता है विक्रम डायनिंग टेबल पर खाना खा रहा है l विनय को होश में आया देख कर विक्रम मुस्कराता है,
विक्रम - बड़ी जल्दी होश में आ गए... अकल भी ठिकाने आ गई होगी...
विनय को अब सब याद आता है l उस कमरे में क्या क्या हुआ है और अपने साथियों को देखता है l सभी दर्द के मारे छटपटा रहे हैं l विनय दरवाजे की ओर भागता है l पर दरवाजा बंद मिलता है सेवन लॉक सिस्टम से बंद है दरवाजा l अंदर से विनय चिल्लाता है और दरवाजे पर ठोकर मारता है l

विक्रम - ऐ कुत्ते... चु... चु... चु.... इधर आ....
विनय अपना फोन निकालने की कोशिश करता है पर उसे अपना फोन नहीं मिलता l
विक्रम - कहीं इसे तो नहीं ढूंढ रहा है....
विक्रम के हाथ में विनय अपना फोन देखता है l विक्रम डायनिंग टेबल से उठता है और और एक सोफ़े पर आ कर बैठ जाता है l विक्रम, विनय के फोन को टी पोए पर रख देता है और अपने उंगली से इशारे से विनय को पास बुलाता है l विनय डरते हुए विक्रम के पास आता है l
विक्रम - समझाया था... पर... वो एक कहावत है... कुत्तों को घि... और सुवरों को छेनापोडो हज़म नहीं होते.... और तुझे सही बात...
विनय बदहवास विक्रम को देख रहा है l
विक्रम - मैं तेरे... और तेरे चमचों के बारे में... पहले से ही अच्छी तरह से जानता हूँ....
अब तुझे तेरी औकात बताने का वक्त आ गया है..... यह रहा तेरा फोन.... लगा अपने बाप को...
विनय झट से अपना फोन उठा कर अपने बाप को लगाता है l
विक्रम - स्पीकर पर डाल...
विनय फोन का स्पीकर ऑन करता है l फोन पर रिंग जा रही है l उधर से
- हैलो बेटे... और कैसी रही तेरी पार्टी....
विनय - (रोते हुए) पापा यह कमीना... मुझे बहुत मारा... मेरे लोगों को भी बहुत मारा... मुझे यहाँ से ले जाओ पापा... प्लीज...
- अबे कौन है वह... जिसने अपने मौत को छेड़ा है...
विनय - वह... हमारी बात सुन रहा है पापा... फोन स्पीकर पर है...
- बे कौन है बे तु... मेरे बेटे को हाथ लगाने की जुर्रत भी कैसे की... हराम के पिल्लै.... मैं तेरी बोटी बोटी कर सहर के हर कुत्तों को खिलाउंगा... कुत्ते...
अपने बाप की रौबदार धमकी सुनकर विनय बहुत खुश हो जाता है l उसके चेहरे पर हंसी आ जाती है l
विक्रम - मिस्टर. कमल कांत महानायक... हम युवराज बोल रहे हैं....
कमल - कौन युवराज....
विक्रम - इस राज्य में एक ही शेर को राजा साहब कहा जाता है....
कमल - क... क.. कौन... भैरव सिंह क्षेत्रपाल....
विक्रम - हाँ... हम उनके युवराज.... विक्रम सिंह क्षेत्रपाल बोल रहे हैं....
कमल - य.. यु.. युवराज जी आप... मेरे बेटे को माफ कर दीजिए.... मैं उसके तरफ से माफी मांगता हूं आपसे....
विक्रम - अभी तो मेरी बोटीयों को कुत्तों में बांटने की बात कर रहे थे....
कमल - जी... जी.. व.. वह... चमड़ी की जुबान थी... फ़िसल गई...
विक्रम - ठीक है.... फोन रख... तेरे बेटे को... दुनियादारी समझा कर छोड़ दूँगा....
कमल - जी.. शुक्रिया... युवराज जी... शुक्रिया...
विक्रम - फोन रख....
उधर से फोन कट जाता है l विक्रम मुस्कराते हुए विनय को देखता है l विनय का चेहरा बुरी तरह उतर गया है l चेहरे पर डर साफ दिख रहा है l उसे इस हालत में देख कर विक्रम अपना पैर टी पोए पर रखता है l
विक्रम - आज तुम्हारे वजह से.... मेरे जुते खराब हो गए हैं... देखो खुन से सन गए हैं... ऐसे गंदे जुते पहन कर मैं कैसे इस कमरे से बाहर निकालूँगा....
इतना सुनते ही विनय फौरन झुक जाता है और अपने आस्तीन से विक्रम के जुते साफ़ करने लगता है l जुते साफ होते ही,
विक्रम - कुत्ता हमेशा कुत्ता ही रहता है... चाहे नाम में महानायक ही क्यूँ ना हो... और शेर हमेशा शेर ही रहता है... चाहे नाम में सिंह हो या ना हो....
विनय - जी... जी.. युवराज.....
विक्रम - शाबाश... अब आ गए ना लाइन पर... चलो इस बात पर मैं तुझे तेरे जान की टीप देता हूँ....
इतना कह कर विक्रम उठता है और दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल जाता है l रिसेप्शन में पहुंच कर मैनेजर को बुलाता है,
मैनेजर - जी कहिए... क्षेत्रपाल सर...
विक्रम - मैनेजर... एम्बुलेंस बुलाओ.... और 702 कमरे से सभी लोगों को फायर एक्जिट के रास्ते हस्पताल पहुंचाओ.... और जो भी बिल हो वह... (अपना कार्ड देते हुए) इस नाम पर बना देना....
मैनेजर का मुहँ डर व हैरानी से खुला रह जाता है l विक्रम उसे उसी हालत में छोड़ कर बाहर निकल कर गार्ड को इशारा करता है l गार्ड गरम जोशी के साथ सैल्यूट मारता है और विक्रम के गाड़ी को लेने पार्किंग के अंदर भाग कर जाता है l थोड़ी देर बाद गार्ड गाड़ी लेकर विक्रम के पास रुकता है और फिर से सैल्यूट कर गाड़ी की चाबी देता है l विक्रम गाड़ी लेकर होटल के गेट तक पहुंचा ही था कि एक लड़की उसकी गाड़ी के आगे दोनों हाथ फैलाए खड़ी हो कर गाड़ी को रोक देती है, जैसे ही विक्रम की गाड़ी रुकती है वह लड़की तुरंत ड्राइविंग साइड पर आकर झुक कर विंडों ग्लास नीचे करने को कहती है l विक्रम ग्लास उतार कर देखता है यह वही लड़की है जो उससे होटल की लॉबी में टकरायी थी l
लड़की - एक्शक्युज मी... क्या आप मुझे वह आगे की जंक्शन पर ड्रॉप कर देंगे....
विक्रम अपना सर हिला कर अपना सहमती देता है l लड़की आकर दूसरे तरफ बैठ जाती है l विक्रम को गाड़ी के अंदर एक जबरदस्त खुशबु महसूस होती है l
लड़की - चलिए.... चलिए... जल्दी... चलिए...
विक्रम गाड़ी स्टार्ट करता है l गाड़ी होटल से बाहर निकल कर सड़क पर दौड़ने लगती है l विक्रम देखता है कि लड़की अपने आप से कुछ बड़बड़ा रही है l उसे यूँ बड़बड़ाते हुए देख विक्रम हंस देता है l विक्रम को हंसता देख लड़की पूछती है,
लड़की - आप क्यूँ बे वजह हंस रहे हैं...
विक्रम - पहली बार देख रहा हूँ... किसीको खुद से बात करते हुए....
लड़की चुप हो जाती है l उसके चुप होते ही विक्रम को बुरा लगता है l
विक्रम - सॉरी... शायद आपको मेरी बात बुरी लगी....
लड़की - नहीं.. ऐसी बात नहीं...
विक्रम - आप... किसी बात से रूठी हुई लग रही हैं..
लड़की - हाँ (उखड़ कर ज़वाब देती है)
विक्रम कुछ नहीं कहता, उसकी उखड़ी हुई जवाब सुन कर l
विक्रम - अगैन.. सॉरी...
लड़की - क्यूँ...
विक्रम - वह शायद आपको मेरा बात करना अच्छा नहीं लगा....
लड़की - नहीं ऐसी बात नहीं है.... मैं अपने मॉमा और पापा से उखड़ी हुई हूँ... और सॉरी आपसे लिफ्ट ली है... और आप पर उनका गुस्सा उतार दिया...
विक्रम - कोई नहीं... पर आप अपने माँ बाप से क्यूँ गुस्सा हैं...
लड़की - मुझे उनकी पिछड़ी मानसिकता से प्रॉब्लम है.... लड़की अट्ठारह साल की हुई नहीं की उसकी शादी करा दो... जैसे वह बेटी नहीं कोई बोझ है...
विक्रम - कोई माँ बाप ऐसे हो नहीं सकते... आप को शायद कोई गलत फहमी हो गया हो....
लड़की - आप जानते हैं... हम इस होटल में क्यूँ आए हैं... आज मेरा जनम दिन है...
विक्रम - ओ अच्छा... मैनी मैनी हैप्पी रिटर्नस ऑफ दी डे.... माय बेस्ट विश फॉर अ ब्यूटीफुल गर्ल...
लड़की - थैंक्यू... पर आपने मुझे बीच में टोका क्यूँ...
विक्रम - अरे... क्या बात कर रही हैं.... आज आपका जनम दिन है... और मैंने आपको विश भी नहीं करूँ...
लड़की - ठीक है... पर फिलहाल आप चुप रहिए....
विक्रम चुप हो जाता है l
लड़की - हाँ तो.. आज मेरा बर्थ डे... इस होटल में सेलिब्रिट करने के बहाने... मेरे पेरेंट्स आज मेरी मंगनी कराने के लिए प्लान किए थे... इसलिए उन्हें वहीँ छोड़ कर भाग आई... और सीधे अपनी सहेली के घर जा रही हूँ...
विक्रम - ओ... तो यह बात है... वैसे एक ना एक दिन आपको शादी तो करनी पड़ेगी ना...
लड़की - हाँ शायद.. पर शादी से पहले... मुझे जिंदगी में कुछ एचीव करना है... आई वांट टू डु सम थिंग इन माय लाइफ... लड़की होने का मतलब यह तो नहीं कि बालिग होते ही शादी करले और बच्चे पैदा करे... रुकिए.. रुकिए... यहीं गाड़ी रोक दीजिए...
विक्रम गाड़ी रोक देता है l लड़की तुरंत उतर जाती है l
लड़की - थैंक्यू... (कह कर मुड़ने को हुई)
विक्रम - सुनिए....
लड़की - जी कहिए...
विक्रम - आपने अपना नाम बताया नहीं...
लड़की - आपने मुझे लिफ्ट दी... उसके लिए शुक्रिया.... और अगर संयोग से हम फिर कभी मिले तब सोचेंगे.... तब तक के लिए हमे अजनबी ही रहने दीजिए...
इतना कह कर लड़की पलट कर चली जाती है l विक्रम उसे अपनी आँखों से ओझल होते देखता है l फिर विक्रम एक गहरी सांस लेता है l उसके नथुनों में उस लड़की के फ्रैगनेंस की खुशबु खिल जाती है l विक्रम के होठों पर एक मुस्कराहट खिल उठता है l विक्रम उसके खयालों में खोया हुआ था के उसका फोन बजने लगता है l विक्रम फोन उठाता है और कुछ सुनने के बाद वह गाड़ी स्टार्ट कर दौड़ता है l कुछ देर बाद *** पुलिस स्टेशन में पहुंचता है l
पुलिस स्टेशन के अंदर सीधे इंस्पेक्टर के पास पहुँचता है l
विक्रम - हैलो.. इंस्पेक्टर...
इंस्पेक्टर अपना सर उठा कर देखता है l
इंस्पेक्टर - जी... कौन हैं आप... और यहाँ आने की वजह....
विक्रम - अभी कुछ देर पहले... आपके पुलिस वालों ने... एक आदमी को गिरफ्तार किया है... जिसका नाम अशोक महांती है....
इंस्पेक्टर - ओ... तो... तुम... उस शराबी की ज़मानत देने आए हो....
विक्रम - क्या मैं जान सकता हूँ... वह गिरफ्तार हो जाए... ऐसा क्या गुनाह किया है....
इंस्पेक्टर - वह... शराब के नशे में धुत... आर ग्रुप सिक्योरिटी सर्विस के ऑफिस में दंगा कर रहा था....
विक्रम - क्या मैं... उनका एफ आई आर की कॉपी देख सकता हूँ....
इंस्पेक्टर - क्यूँ... आप क्या उसके वकील हो... वैसे आपको मालूम कैसे हुआ... वह गिरफ्तार हुआ है....
विक्रम - वह क्या है कि... इंस्पेक्टर... मैं उसका बहुत जबरा फैन हूँ... इसलिए उसके गिरफ्तार होते ही... मुझे खबर लग गई...
इंस्पेक्टर - ऑए... होश में तो है ना... या उसके तरह... तु भी पी कर यहाँ दंगा करने आया है क्या.... चल जा यहाँ से... यह सुबह तक यहाँ बंद रहेगा.... सुबह आ कर ले जाना...
विक्रम - मुझे... अभी... इसी वक्त... इसे लेकर जाना है.... और आप ज्यादा देर तक मेरा वक्त खोटी ना करें... और उसे छोड़ दें...
इंस्पेक्टर - अच्छा... तु तो ऐसे हुकुम दे रहा है ... जैसे तु कोई तोप है.....
विक्रम - हम युवराज हैं...
इंस्पेक्टर - कौन युवराज.... लुक... मिस्टर.. हू द हेल् यू आर.... आई डोंट केयर... कल आ कर अपने सुपर स्टार को ले जाना....
विक्रम अपना मोबाइल निकाल कर कहीं फोन लगाता है l और थाना, थाने का इंचार्ज और अशोक महांती के बारे में बात करता है l यह सब देख कर इंस्पेक्टर को गुस्सा आता है l
इंस्पेक्टर - ऐ... हवलदार... निकालो इसको यहाँ से...
तभी एक हवलदार आता है और विक्रम को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाता है l विक्रम उसे इशारे से रुकने को कहता है l हवलदार रुक जाता है, फ़िर विक्रम उसे टेबल पर रखे फोन के तरफ इशारा करता है l हवलदार और इंस्पेक्टर दोनों ही फोन के तरफ देखते हैं l फोन बजने लगता है l
इंस्पेक्टर - (फोन उठा कर) हैलो... (अपनी जगह से उठ कर, सैल्यूट मारते हुए) सर... यस सर.... जी सर... ओके सर... यस सर.... कहकर फोन रख देता है और हवलदार को बाहर जाने के लिए हाथ से इशारा करता है l हवलदार के जाते ही, विक्रम धीरे धीरे चल कर इंस्पेक्टर के सीट पर बैठ जाता है, उसका यह रूप देखकर इंस्पेक्टर अपने हलक से थूक निगलता है और,अपना हाथ जोड़ते हुए
इंस्पेक्टर - आप कौन साहब हैं... सर...
विक्रम - इस पुरे राज्य में... एक ही आदमी राजा साहब के नाम से जाने जाते हैं....
इंस्पेक्टर - जी... भैरव सिंह क्षेत्रपाल....
विक्रम - हम उनके युवराज हैं... और इस नाम की आदत डाल लो... इंस्पेक्टर.... क्यूंकि कुछ ही अर्से में यह नाम गूंजने वाली है... जाओ उस अशोक महांती को मेरे हवाले करो....
इंस्पेक्टर - जी... जी युवराज जी...
इंस्पेक्टर खुद चाबी लेकर कमरे से बाहर जाता है और कुछ देर बाद अशोक महांती को लेकर आता है l विक्रम इंस्पेक्टर के सीट से उठ कर अशोक महांती के पास जा कर उसे गौर से देखता है l महांती के चेहरे पर थोड़ी मार पीट की निशानी दिखती है l विक्रम इंस्पेक्टर के तरफ मुड़ता है
विक्रम - क्या मैं इनका ज़मानत कर सकता हूँ...
इंस्पेक्टर - ज़मानत की कोई जरूरत नहीं है.... युवराज जी.... इन पर अभी तक एफ आइ आर नहीं हुआ है.... नशे में थे... सिर्फ सुबह तक हवालात में रख कर छोड़ने के लिए कहा गया था......
विक्रम - ठीक है... इंस्पेक्टर... गुड नाइट...
इंस्पेक्टर - जी... गुड नाइट...
विक्रम और महांती दोनों बाहर आते हैं l बाहर आते ही महांती विक्रम से,
महांती - हे...तुम जो भी हो... थैंक्स... तुम्हारा... उपकार रहा मुझ पर... मौका मिला तो चुका दूँगा....
विक्रम - अभी मौका ले लो....
महांती उसे मुड़ कर देखता है,
विक्रम - यहाँ... थोड़ी दूर... एक बार एंड रेस्टोरेंट है... हाईवे 24/7.... मुझे थोड़ी देर के लिए कंपनी दे दो... तुम्हारा उपकार चुकता हो जाएगा....
महांती उसे घूरते हुए देखता है और अपना सर हिला कर हामी भरता है l विक्रम अपनी गाड़ी में बैठता है और उसके बगल में महांती बैठता है l दोनों हाईवे 24/7 को आते हैं l विक्रम काउन्टर के पास जा कर एक कैबिन बुक करता है, और एक बैरा को पांच सौ का टीप देते हुए ड्रिंक के लिए ऑर्डर करता है l उसके बाद विक्रम, महांती को लेकर एक कैबिन के अंदर आता है l कैबिन के अंदर बैठते ही,
विक्रम - हाँ तो महांती.... क्या लेना पसंद करोगे....
महांती - मुहँ पर तुम्हारे नए नए मूँछ उग रहे हैं... उन्हें भाव देने की आदत डालो.... उनपर ताव देने की उम्र नहीं है तुम्हारी.... मुझे या मेरी पसंद ऑफर्ड कर सको... यह औकात नहीं है... तुम्हारी....
उसकी बात सुनकर विक्रम मुस्करा देता है l इतने में बैरा एक ट्रे में एक कपड़े से ढका बोतल, एक सोडा बोतल, एक पानी का बोतल और एक खाली ग्लास रख देता है l
बैरा - सर चखने में क्या लेंगे....
विक्रम - सलाद, तंदूर मुर्गा और चिकन 65..
महांती हैरानी से विक्रम को देखता है l बैरा के जाते ही विक्रम बोतल से कवर हटाता है l बोतल को देखते ही महांती की आंखे चौड़ी हो जाती है l वह हैरानी से विक्रम को देखने लगता है l क्यूंकि शराब पीते वक्त उसके पसंदीदा चखना का ऑर्डर हो चुका था और उसके सामने उसका फेवरेट ब्रांड जॉनी वकर था l महांती इसबार जब विक्रम को देखता है तो विक्रम अपने मूँछों पर ताव देता है l
महांती - लगता है तुम... मेरे बारे में... बहुत कुछ जानते हो...
विक्रम - बहुत कुछ नहीं.. सब कुछ....
महांती - सब कुछ या तो दोस्त जानते हैं.... या फिर दुश्मन....
विक्रम - ना मैं दोस्त हूँ... ना दुश्मन.... फ़िलहाल हम एक दुसरे के ज़रूरत हैं...
महांती कुछ नहीं कहता, विक्रम जॉनीवकर खोलता है और ग्लास में एक लार्ज पेग बनाता है l उसमे आधा सोडा और आधा पानी डालता है l
विक्रम - अशोक महांती,... घर आठगड़.... , 2007 के बैच के एन डी ए पास आउट.... मेजर प्रमोशन मिलने के बाद आई बी में सात साल सर्विस दिए.... फिर आर्म्स स्मगलिंग में नाम उछला.... पर कोर्ट मार्शल में साफ बच गए.... नौकरी से वी. आर. एस ले लिया... फिर सुकांत रॉय के साथ मिल कर आर ग्रुप सिक्योरिटी सर्विस से एक प्राइवेट संस्था शुरू की..... जिसमें तुम सेक्यूरिटी कंसल्टेंट थे... अब चूँकि धंधा जम चुका था... रॉय को तुम्हारी कोई जरूरत नहीं पड़ी.... इसलिए तुम्हें निकाल दिया और तुम्हारे बकाया पैसे भी नहीं दिया.... उल्टा तुम्हें ऑफिस से धक्के मार कर निकाल दिया.....
इतने में कैबिन का दरवाजा खुलता है l बैरा अंदर आता है और थाली रख कर विक्रम को देखने लगता है l विक्रम उसे और एक पांच सौ देता है तो बैरा खुश हो कर सैल्यूट कर पैसा ले कर बाहर निकल जाता है l उसके जाते ही,
महांती - ह्म्म्म्म तुम मेरी कुंडली जानते हो.... अब बको.. तुम कौन हो और तुमको मुझसे क्या काम है....
विक्रम - महांती.... अगर सरकार और पालिटिक्स के बारे में कुछ खबर रखते हो.... तो तुम यह जानते ही होगे.... इस स्टेट में राजा साहब किन्हें कहा जाता है....
महांती - हाँ बेशक... स्टेट पालिटिक्स के किंग् मेकर..... भैरव सिंह क्षेत्रपाल....
विक्रम - हम उनके युवराज हैं.... विक्रम सिंह क्षेत्रपाल.....
महांती के चेहरे पर हैरानी छा जाती है l
महांती - आप को मुझसे क्या काम पड़गया....
विक्रम - मुझे... इस सहर में... राज करना है... इसके लिए मुझे.... एक प्राइवेट रजिस्टर्ड आर्मी चाहिए.... और उस आर्मी के तुम कमांडर होगे.....
महांती - मुझे... ब्रीफिंग कर समझायेंगे....
विक्रम - देखो महांती.... हम एक प्राइवेट सिक्युरिटी सर्विस शुरू करेंगे.... तुम उसके पार्टनर, डायरेक्टर और कंसल्टेंट भी रहोगे.... तुमको पूरी आजादी होगी लोगों को चुनने की.... उन्हें ट्रेन्ड करने की.... हमारे सर्विस गार्ड्स किसी भी आर्मी कमांडोज से कम नहीं होंगे.... हमारी अपनी इंटेलिजंस विंग होगी.... हमारे गार्ड्स इतने क़ाबिल होंगे कि... लोग अपनी पर्सनल सेक्यूरिटी तक सरकार के वजाए हमसे मांगेंगे.... एक दिन पुरे ओड़िशा में... हर संस्थान में... हमारे ही सेक्यूरिटी सर्विस के लोग होंगे.... यहां तक सीसी टीवी सर्विलांस के लिए भी... ऑर्गनाइजेशन हमसे सर्विस मांगेंगे....
महांती - कल को आप कहीं रॉय की तरह रंग बदला तो....
विक्रम - रॉय छोटी सोच का है... और मेरा लक्ष... यहाँ के पॉलिटिशियन से लेकर हर ऑर्गनाइजेशन और हर बिजनैस मैन पर मुझे राज करना है... मैं बहुत बड़ी सोच रखने वाला.... युवराज हूँ...
वैसे भी तुमने वह कहावत तो सुनी ही होगी.... दूध का जला... छाछ भी फूंक फूंक कर पिता है....
महांती के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है l और अपना ग्लास उठाता है पर रुक जाता है
महांती - यह क्या युवराज.... आपका ग्लास कहाँ है.... आपने तो मुझे कंपनी देने के लिए बुलाया था....
विक्रम - आज... तुम्हारा दिन है... महांती... पीलो... आज... हम अभी तक एलीजीबल नहीं हुए हैं....
महांती जिस दिन हमे हमारे राजा साहब... रंग महल को लेके जाएंगे.... उस दिन के बाद हम शराब पीने के लिए एलीजीबल हो जाएंगे....
महांती - ठीक है युवराज जी....
विक्रम - एक बात और महांती... हम क्षेत्रपाल हैं.... हमे अच्छा समझने की भूल मत करना.... महांती - युवराज जी.... मुझे अच्छे लोगों से डर लगता है
.... और मुझे खुशी है कि आप.... अच्छे नहीं है...
विक्रम मुस्कराता है l तभी महांती चिल्ला कर,
महांती - इन द नेम ऑफ... एक मिनिट... हम अपना सिक्योरिटी सर्विस का क्या नाम रखेंगे....
विक्रम - ह्म्म्म्म अभी तक सोचा नहीं है.... अब तुम डायरेक्टर हो... सोचो क्या हो सकता है....
महांती कुछ देर सोचता है और चेहरे पर खुशी छा जाती है l महांती अपना ग्लास उठा कर,
महांती - लेट चीयर्स फॉर एक्जिक्युटीव सिक्योरिटी सर्विस....
विक्रम - चीयर्स... (कहकर ताली मारता है)
महांती - युवराज जी.... अगर बुरा ना मानो तो आज की राज मैं.. इस कैबिन में बिताना चाहता हूँ.... कल आपकी सेवा में हाजिर हो जाऊँगा...
विक्रम - जरूर... इंजॉय.. द नाइट...
इतना कह कर विक्रम महांती को कैबिन में छोड़ कर बाहर आता है, बाहर उसे वह बैरा खड़ा मिलता है l विक्रम उसे फिरसे दो पांच सौ रुपये देता है और कहता है
विक्रम - मेरा बिल करा दो..... आज रात यह इस कैबिन में रहेगा.... जब होश में आएगा... उसे यह कार्ड दे देना....
बैरा टीप के पैसे लेकर बिल बना कर विक्रम को दे देता है l विक्रम पेमेंट कर बाहर अपनी गाड़ी में आता है l गाड़ी खोल कर ड्राइविंग सीट पर बैठता है और अपने पास सीट के ओर देखता है l अचानक उसे एक मोती की झूमका जैसा मिलता है जिसमें धागों के रेसे दिखते हैं l शायद उस लड़की के लेहंगे से टुट कर गिरा है l विक्रम उस मोती को उठा लेता है और मन ही मन मुस्कराते हुए बुदबुदाता है
मुझे किस्मत पर कभी भरोसा नहीं था... पर तुम आज दो बार मिली... मेरे दोनों काम आज हो गए.... आज ऐसा लग रहा है.... तुम ही मेरी किस्मत हो... और मुझे तुमको हासिल करना ही होगा......
Awesome update bro
 

Rajesh

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कुछ दिनों बाद
राजगड़ में अपने घर के बाहर बरांदे पर दीवार के सहारे टेक लगा कर वैदेही बैठी हुई है l तभी गांव की एक औरत प्रमिला अपने बेटे गुल्लु को मारने के लिए भाग रही है l गुल्लु भागते हुए वैदेही के पास आता है l

गुल्लु - मौसी... मौसी बचाओ... मुझे.. (कह कर वैदेही के पीछे छुप जाता है)
प्रमिला वैदेही के पास नहीं आती, वह वैदेही से थोड़ी दूर खड़ी हो कर
प्रमिला - ऐ... गुल्लु... बाहर आ...
वैदेही - थोड़ी देर इसे यहीं रहने दे ना प्रमिला....
प्रमिला - देख वैदेही... तेरा एक साल के लिए और तेरे भाई का... पांच साल के लिए इस गांव के बड़ो ने, तुम लोगों का हुक्का पानी बंद करा रखा है..... मुझे अगर किसीने तुझसे बात करते देख लिया.... तो तु जानती है.... हमारा भी हुक्का पानी बंद हो सकता है.... इसलिए तु गुल्लु को भेज दे... मैं हाथ जोड़ती हूँ....
यह सुनकर वैदेही के आँखों में आंसू आ जाते हैं l अपना सर हिलाते हुए और अपनी आँखों से आँसू पोछने के बाद, वैदेही - ठीक है प्रमिला तु जा यहाँ से... मैं कुछ देर बाद गुल्लु को तेरे पास भेज दूंगी....
प्रमिला - ठीक है वैदेही.... मैं जाती हूँ... और माफ कर देना मुझे... तेरी इस दुख की घड़ी में.... तेरा साथ नहीं दे पा रही हूँ...
वैदेही - कोई बात नहीं... इतना कह कर वैदेही चुप हो जाती है l प्रमिला वहाँ से अपने घर चली जाती है l वैदेही अपने पीछे से गुल्लु को खिंच कर बाहर लाती है और पूछती है,
वैदेही - क्यूँ रे... क्यूँ अपने माँ को परेशान कर रहा है....
गुल्लु - कहाँ मौसी.... मैं तो अपने किताब में से एक सवाल पूछा.... बदले में माँ मेरी पिटाई करने उठ पड़ी... इसलिए मैं भी पिटाई से बचने के लिए..... वहाँ से भाग आया....
वैदेही - (मुस्कराते हुए) ऐसा क्या सवाल पूछ लिया तुमने... जो तेरी माँ को जवाब में... झाड़ु उठाना पड़ा....
गुल्लु - मौसी... हमारे किताब में लिखा है... हमारे राज्य में... बारह मास में.. तेरह पर्व मनाते हैं... और जिन जिन पर्व के दिन हमें छुट्टी दी जाती है.... वह हम अपने गांव में क्यूँ नहीं मनाते... जिस तरह किताबों में लिखा है....
वैदेही - (कुछ देर शुन हो जाती है) कौन कौन से पर्व गुल्लु....
गुल्लु - जैसे गणपति पूजा, रथयात्रा, दशहरा, दीवाली, होली..... हमारे गांव में यह सब क्यूँ नहीं मनाया जाता है....
गुल्लु यह सवाल सुन कर वैदेही को कुछ ज़वाब नहीं सूझती है l
गुल्लु - बोलो ना मौसी.. जैसे किताबों में लिखा है... हमारे यहां वैसे क्यूँ नहीं मनाया जाता....
वैदेही - क्यूँ के हमारे राजगड़ में... भगवान वनवास में हैं... जैसे राम जी वन वास हुआ था ना... और राम जी तो चौदह वर्ष के बाद आ गए थे.... पर हमारे भगवान.... देखना एक दिन जरूर आयेंगे.... जरूर आयेंगे (उसके गालों को सहलाते हुए) और तु ज़रूर देखेगा.. अब जा अपने माँ के पास...
गुल्लु वहाँ से चला जाता है, उसी वक़्त एक डाकिया आकर एक रजिस्ट्री चिट्ठी दे कर वैदेही से दस्तख़त ले कर चला जाता है l

वैदेही चिट्ठी खोल कर पढ़ती है और पढ़ते पढ़ते खुशी से झूम उठती है l वह तुरंत बरंदा से उठ कर घर के अंदर जाती है और घर के मंदिर में माथा टेकती है l फिर अपने कुछ सामान पैकिंग कर घर में ताला लगा कर बाहर निकल जाती है राजगड़ की बस स्टैंड की ओर l
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विक्रम अपने कमरे में बैठा खिड़की की ओर देखते हुए, एक अंगुठी को अपने उंगली में घुमा रहा है और किसी ख़यालों में खोया हुआ है l तभी उस कमरे में इंटरकॉम बजने लगती है तो उसका खयाल टूटता है, वह इंटरकॉम उठाता है l

- युवराज...
विक्रम - जी छोटे राजा जी.....
पिनाक - आप हमारे कमरे में आने का कष्ट करेंगे... ब्रोकर आया है... प्लॉट और घर की बात करने....
विक्रम - जी अभी उपस्थित हो रहे हैं....
विक्रम इंटरकॉम रख देता है और उठ कर पिनाक के कमरे की ओर चला जाता है l पहुंच कर देखता है, दरवाजा खुला है l
पिनाक - (अंदर से) आइए युवराज.... आइए... आपका ही इंतजार हो रहा है....
विक्रम अंदर आकर देखता है एक आदमी अपने काख के नीचे एक काला बैग दबाये खड़ा है और उसके हाथ में एक फाइल भी है l विक्रम सीधे जा कर एक कुर्सी पर बैठ जाता है l विक्रम के बैठते ही,
ब्रोकर एक घर की कुछ फोटोस् रख देता है, और कहता है - युवराज जी.... यह देखिए... यह भुवनेश्वर के राज भवन से दस किलोमीटर दूर ***विहार में है.... इस घर में एक बुढ़े दंपति रहा करते थे.... पिछले साल उनके मृत्यु के बाद उनके बच्चे.... जो विदेश में सेटलड हैं... उन्होंने मुझे इसे बेचने को कहा है... यह घर और इसके आसपास के जगह पूरे डेढ़ एकड़ का है....
विक्रम - ह्म्म्म्म अच्छी जगह है....इलाक़ा भी काफी पॉश इलाक़ा है.... आपको आर्किटेक्चर को भी साथ लेकर आना चाहिए था... ब्रोकर महाशय...
ब्रोकर - युवराज जी... उसे भी लाया हूँ.... वह नीचे लॉबी में बैठा हुआ है....
विक्रम - तो फिर... उसे नीचे क्यूँ छोड़ आए...
ब्रोकर - वो... अगर... आपको यह घर... पसंद ना आता... तो उसका यहाँ होना बेकार हो जाता.....
विक्रम - ठीक है... बुलाओ उसे....
ब्रोकर अपना मोबाइल निकाल कर किसीको फोन मिलाता है, और फोन पर उसे ऊपर कमरा नंबर *** को आने को कहता है l कुछ देर बाद एक अधेड़ उम्र का आदमी उस कमरे में आता है l सबको हाथ जोड़ कर नमस्कार होता है l
विक्रम - आइए... आर्किटेक्चर जी... आपको इस घर में कुछ बदलाव करने हैं....

आर्किटेक्चर - जी युवराज जी... कहिए आपको क्या चाहिए... मैं आपको डिजाइन बना कर जल्दी ही आपकी सेवा में पेश करूंगा....
विक्रम - हम... राजवंशी हैं.... महलों की आदत है हमे... इसलिए... ध्यान रहे घर, बाहर से चाहे कैसा भी दिखे.... पर अंदर से महल जैसी फिलिंग आनी चाहिए....
आर्किटेक्चर - जी... युवराज...
विक्रम - हाँ.. जैसे कि एक राज महल में होता है... दिवान ए खास यानी प्राइवेट ड्रॉइंग रूम और दिवाने आम यानी पब्लिक मीटिंग हॉल... ऐसा इस घर में एक्स्ट्रा बनाएं.... जो इस घर से अटैचड हो...
आर्किटेक्चर - जी युवराज और....
विक्रम - एक जीम भी कुछ ऐसे डिजाइन करो.....बाहर के लोग अगर हॉल के वजाए जीम में मिलना चाहे तो.... बाहर से प्रवेश करें और... घर के लोग अंदर से....
आर्किटेक्चर - जी बेहतर...
विक्रम - कितने दिन में प्लान दे सकते हैं....
आर्किटेक्चर - युवराज जी... अभी तक मैंने सिर्फ पेपर और फोटो में घर को देखा है.... मुझे ऑन द स्पॉट जाकर... आईडीआ लेनी होगी.... फिर कम से कम दस या पंद्रह दिन...
विक्रम - (दोनों से) ठीक है आप दोनों आपस में तालमेल बिठा कर.... प्रॉपर्टी हैंडओवर और डिजाइन फाइनल कर आज से पंद्रह दिन बाद यहाँ पर आयें....
दोनों - जी बेहतर... (कह कर दोनों चले जाते हैं)
पिनाक - क्या बात है युवराज... आजकल आप जितनी तेजी से काम कर रहे हैं... उतने ही खोए खोए रहने लगे हैं....
विक्रम अपनी उंगली में पहने उस अंगुठी को देखते हुए
विक्रम - नहीं तो...
पिनाक - यह अंगुठी... आपके हाथ में.. कब ली...
विक्रम - हाल ही में बनवाया है...
पिनाक - ह्म्म्म्म मोती की लगती है.... कोई खास मोती है क्या...
विक्रम - बहुत ही खास... जब से यह मेरी जिंदगी में आयी है... सारे काम सिर्फ हो ही नहीं रहे हैं.... बल्कि दौड़ रहे हैं....
पिनाक - ह्म्म्म्म तो यह बात है.... लकी पर्ल है...
विक्रम - (हंसता है, और कहता है) पर्ल नहीं है... प्लास्टिक फाइबर की है....
पिनाक - (हैरान हो कर) व्हाट....
विक्रम - पर यह हमारे लिए कोहिनूर से भी महंगा है...
पिनाक - क्या.... एक मामूली सी प्लास्टिक फाइबर...

विक्रम - (बीच में टोक कर) यह मेरी लकी चार्म है.....
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वैदेही बस से कटक में पहुंच कर एक ऑटो से सीधे हाईकोर्ट के पास एक एक छोटे से घर में पहुंचती है l उस घर के दरवाजे पर एक नेम प्लेट लगा हुआ है l उस नेम प्लेट में नाम - 'जयंत कुमार राउत ' लिखा हुआ है l पर वैदेही को कॉलिंग बेल कहीं नहीं मिलती तो दरवाजा खटखटाती है l
अंदर से आवाज़ आती है
- सुश्री वैदेही महापात्र अंदर आ जाइए....
वैदेही हैरानी के साथ दरवाजे को धक्का दे कर अंदर आती है l अंदर एक अधेड़ उम्र का एक आदमी साधारण वेश भूसा में बेंत के सोफ़े पर बैठ कर कुछ फाइलें चेक कर रहा है l वह आदमी अपना चश्मा दुरुस्त करता है और वैदेही की ओर देखता है l
आदमी - आइए वैदेही जी आइए....
वैदेही - आप...
आदमी - मैं ही हूँ जयंत... हैरान मत होइए... मैं आपके यहां आने के बारे में... कैसे इतनी सटीकता से जान गया....
वैदेही - जी....
आदमी - बैठिए... क्यूंकि मैं अपने घर में.. केवल आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा था....
बेंत की चेयर को दिखा कर वैदेही को बैठने लिए कहता है पर वैदेही बैठने के लिए झिझकती है l
जयंत - वैदेही जी... यह मेरा गरीब खाना है.... और सरकार ने मुझे आपके भाई के तरफ से लड़ने के लिए नियुक्त किया है.... मैंने ही आपको रजिस्ट्री के जरिए लेटर किया था... आपसे भेंट करने के लिए....
वैदेही - जी आपके मिले चिट्ठी से... मुझे मालुम हो गया था...
जयंत - फिर आपको झिझक किस बात की है....
वैदेही चुप रहती है, शायद जयंत उसकी झिझक को समझ जाता है l
जयंत - वैदेही जी... बेशक यह केस बहुत बड़ा है.... पर मेरे क़ाबिलियत पर शक ना करें... वैसे मैं कोई सेल्स मैन तो नहीं हूँ... जो अपनी प्रोडक्ट सर्विस की ग्यारंटी दूँ.... पर मैं आपको आश्वासन दे सकता हूँ.... मैं अपना सौ फीसद दे कर आपके भाई को बचाने के लिए प्रयास करूँगा.... और वैदेही जी... मैं वकील बड़ा घर या गाड़ी वाला नहीं हूँ... पर विश्वास रखें... बहुत बड़ा नाम वाला, बहुत बड़ा जिगर वाला हूँ....
वैदेही अपना झिझक को थोड़ा कम करते हुए बैठ जाती है l
वैदेही के बैठने के बाद,
जयंत - मेरे यहाँ वैसे कोई नहीं आता.... जो अभी आया है..... उसे मैंने ही बुलाया है... इसलिए आपने दस्तक दी... तो मैं यह समझ गया आप ही होंगी....
वैदेही - ओ...
जयंत - (फाइलों पर ध्यान गडाते हुए) आप मेरे वेश भूसा या परिधान पर मत जाइए.... आपके भाई के केस के प्रति मैं ईमानदार रहूँगा.... बस इतना ही कह सकता हूँ...
यह सुनने के बाद, वैदेही एक उम्मीद भरी नजरों से जयंत को देख कर अपनी होठों पर मुस्कान लाने की कोशिश करती है l
जयंत - तो.... वैदेही जी... जैसे ही मुझे सरकारी आदेश प्राप्त हुआ... मैं तुरंत अपने काम में लग गया... और मैंने इस केस के संबंधित सारे कागजात हासिल किए.... जिन्हें पुलिस के चार्ज शीट के आधार पर... प्रोसिक्यूशन के वकील ने अभियोजन पक्ष के तरफ से तैयार कर कोर्ट में दाख़िल किए थे....
वैदेही - जी...
जयंत - आपको क्या लगता है.... वैदेही जी... आपके केस लेने से सारे वकील मना क्यूँ करने लगे.....
वैदेही - सभी यह समझ रहे हैं... की हमारे पास पैसे हैं.. और हमसे उन पैसों में से अपना हिस्सा मांग रहे थे....
जयंत - ह्म्म्म्म स्वाभाविक है.... यह सच भी है.... पर इस सच का और एक दूसरा पक्ष भी है....
वैदेही - (हैरानी से जयंत को देखते हुए) जी....दूसरा....
जयंत - जी हां वैदेही जी.... यह केस नहीं है... एक आग का गोला है... जिससे हाथ ही नहीं... पुरा कैरियर भी जल सकता है... इसलिए इस केस से ज्यादतर वकीलों ने दूरी बनाना.. अपने लिए सही समझा....
वैदेही चुप रहती है, जयंत उससे कुछ ज़वाब ना पा कर,
जयंत - वैदेही जी... मैंने कुछ कहा...
वैदेही - जी...
जयंत - खैर... अब मैं इस केस के बावत... चंद सवालात आपसे करूंगा... और आप मुझे.. सही सही ज़वाब दीजिएगा....
वैदेही - जी पूछिए...
जयंत एक डायरी निकालता है और उसमें कुछ लिखता है, फ़िर एक छोटा सा टेप रिकार्डर निकल कर वैदेही के सामने रख देता है l
जयंत - हाँ तो वैदेही जी... आपके भाई.. श्री विश्व प्रताप महापात्र कहाँ तक पढ़े लिखे हैं....
वैदेही - जी वह इंटर में टॉप लिया था पूरे यश पुर में....
जयंत - ग्रैजुएशन क्यूँ नही कि....
वैदेही - राजगड़ में कोई कॉलेज नहीं है.... इसलिए उस प्रांत में कोई भी ग्रैजुएट नहीं हैं...
जयंत - क्यूँ... कोई दूर जा कर... उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं की... किसीने...
वैदेही - राजगड़ में... ग्रैजुएट होना केवल राज परिवार का अधिकार है...
जयंत - ओ... अच्छा... अगर कोई ग्रैजुएशन करना चाहे तो...
वैदेही - तो उसे राजगड़ छोड़ना पड़ेगा.... और राजगड़ से हमेशा के लिए रिस्ता तोड़ना पड़ेगा..
जयंत - ह्म्म्म्म... तो वैदेही जी... आपका भाई गांव में सरपंच बनने से पहले क्या करते थे....
वैदेही - हमारी आमदनी अपने खेतों से हो जाती थी.... और कभी कभी राजा साहब जी घर में भी काम करता था...
जयंत - ह्म्म्म्म... अच्छा विश्व जी को सरपंच बनने का खयाल कैसे आया....
वैदेही - आया नहीं था वकील साहब... उसके दिमाग में डाला गया था...
जयंत - डाला गया था... मतलब...
वैदेही - एक दिन राजा साहब ने उसे... महल से उसके लिए बुलावा भेजा.... जब वह पहुंचा तो... गांव की बेहतरी के लिए उसे सरपंच बनने को कहा....
जयंत - ओ... तो यहाँ भी राज परिवार... ह्म्म्म्म
वैदेही - हाँ.... वकील साहब.... विश्व की नॉमिनेशन फाइल के वक्त राजा साहब उसके प्रॉपोजर भी थे....
जयंत - वाव... इंट्रेस्टिंग... अच्छा... वैदेही जी... चलिए एक काम करते हैं....
वैदेही उसे सवालिया दृष्टि से देखती है l
जयंत - हम अभी के अभी... सेंट्रल जैल जाएंगे.... और आपकी उपस्थिति में विश्व जी से भी कुछ जानकारी हासिल करेंगे.... फिर उसके बाद आप अपने गांव चले जाइएगा... और सुनवाई के दिन हाजिर हो जाइएगा.....
इतना कह कर अपने एक बैग में सारी फाइलें भर देता है l टेप रिकार्डर ऑफ कर देता है... और एक काले रंग के कोट निकाल कर पहन लेता है l वैदेही उसे हैरानी से देख रही है, कैसे अभी सवाल ज़वाब करने के बाद अचानक विश्व से मिलने भुवनेश्वर जाने के लिए तैयार भी हो गया है l
जयंत - तो.. वैदेही जी चलें....
वैदेही - जी... जी चलिए....
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जैल में कुछ सिंटेक्स के पानी की टंकीयों के नीचे सिमेंट के फर्श पर विश्व, बालू के साथ मिल कर कबंल धो रहा है l एक संत्री उसके पास आता है और कहता है,
-विश्व, अरे ओ विश्व.....(विश्व उसकी आवाज सुनकर रुक जाता है) तुमको सुपरिटेंडेंट साहब बुला रहे हैं...
विश्व कंबल धोने का काम बालू के हवाले कर संत्री के साथ तापस के चैम्बर में पहुंचता है l
तापस - हाँ ... विश्व.. आओ.. आओ... तुमसे मिलने तुम्हारी दीदी वकील ले कर आई है...
विश्व - क्या...
तापस - क्यूँ.. तुम्हें खुशी नहीं हुई....
विश्व - (पसीने को पोछते हुए) खुशी.... पता... नहीं...
तापस - वह एक नामी और माने हुए वकील हैं.... तुम्हारे लिए सरकार के तरफ से नियुक्त किए गए हैं.... उनकी हमे खास हिदायत है... के वह , तुम्हारी और तुम्हारी दीदी के साथ मीटिंग करेंगे... अकेले में... इसलिए मैंने तुम लोगों की मीटिंग की अरेंजमेंट उपर लाइब्रेरी में कर दिया है....
विश्व कुछ नहीं कहता, सिर्फ़ अपना सिर हिला कर तापस की ओर देखता है l
तापस - अरे... वे लोग तुम्हारा लाइब्रेरी में इंतजार कर रहे हैं... और तुम्हारे वकील साहब का स्ट्रिक्टली इंस्ट्रक्शन है... वहाँ पर तुम तीनों के अलावा कोई और ना हो.... इसलिए तुम खुद लाइब्रेरी में अकेले जाओ...
विश्व फिर मुड़ कर लाइब्रेरी की ओर जाता है l उपर पहुच कर देखता है, लाइब्रेरी में टेबल के एक तरफ वैदेही और बीच में एक आदमी काले कोट में बैठा हुआ है l विश्व दरवाजे के पास रुक जाता है,
जयंत - आओ विश्व आओ.... मेरा नाम जयंत कुमार राउत है.... सरकार ने मुझे ही, इस साढ़े सात सौ करोड़ घोटाले की अदालती कार्यवाही में..... तुम्हारी पैरवी करने के लिए नियुक्त किया है.....
विश्व यह सुनकर जयंत को हाथ जोड़ कर नमस्कार करता है,
जयंत - हमारे यहाँ आने की कारण... तुमको सुपरिटेंडेंट साहब बता चुके होंगे....
विश्व अपना सर हिला कर हामी भरता है l
जयंत - अरे.. यहाँ आकर बैठो... कब तक खड़े रहोगे...
विश्व आकर दोनों के पास बैठ टेबल के दुसरे तरफ बैठ जाता है l
जयंत - हाँ.. तो विश्व... अभी तुम राज्य में बहुत मशहूर व्यक्तित्व हो चुके हो... जानते ही होगे.... अब चौबीसों घंटे.... तुम्हारे सुरक्षा के लिए.... तुम्हारे आगे पीछे पुलिस... घर घर में... चर्चा में रखने के लिए मीडिया वाले... और तुम्हें गाली दे दे कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते हुए पालिटिसियन... सब तुम्हारे ही कारण व्यस्त हैं...
विश्व को यह सब सुन कर बहुत बुरा लगता, उसकी सांसे भारी होने लगती है, नथुनों से जोर जोर से सांस लेने की कोशिश करता है, बड़ी मुश्किल से अपना रुलाई रोके रखता है l
अपनी पैनी दृष्टि से विश्व के हालात को गौर कर रहा है जयंत l वैदेही की भी अनुरूप हालत है l
जयंत - रिलैक्स विश्व... रिलैक्स... तुम्हें अदालत में.. इससे भी ज्यादा तीखे तानों से और सवालों का सामना करना पड़ेगा...
विश्व खुद को सम्भालने की कोशिश करता है l
जयंत - हाँ तो विश्व... केस पर चर्चा करें....
विश्व अपना भारी सर हिलाकर हामी भरता है l
जयंत - विश्व... मुझे तुम अपने पारिवारिक पृष्ठ भूमि पर कुछ कहो...
विश्व - (जयंत को बिना देखे) मेरे पिताजी का नाम स्वर्गीय श्री रघुनाथ महापात्र है... और माता जी का नाम स्वर्गीय सरला महापात्र है.... और यह जो यहाँ बैठी हैं... वह मेरी बड़ी बहन सुश्री वैदेही महापात्र है....
जयंत - हाँ... इनके बारे में जानकारी है मुझे...
विश्व - मेरे पिता यशपुर इरिगेशन डिपार्टमेंट में क्लर्क थे.... वे राजगड़ में इसी सिलसिले में ट्रांसफर हो कर आए थे... उनके समय में एक नहर का काम शुरू हुआ.... जब मैं तेरह वर्ष का था... तभी वह इस संसार को छोड़ कर चले गए...उसके बाद...
जयंत - ह्म्म्म्म मतलब छोटी उम्र में ही अनाथ हो गए.... तो तुमने इंटर कैसे पूरा किया...
विश्व - उमाकांत आचार्य सर के वजह से... वे हमारे पाइकपडा वार्ड में हमारे ही पड़ोसी और पारिवारिक मित्र थे...
जयंत - थे मतलब...
विश्व - जी वे हमारे पंचायत समिति के सभ्य भी थे.... पर मेरे सरपंच बनने के तीन महीने बाद ही... नदी किनारे में सांप के काटने से चल बसे....
जयंत - ओह... अछा... ह्म्म्म्म... हाँ... तुम दोनों अपने पिता के गुजरने के बाद.... गुजारा कैसे किया....
विश्व, वैदेही को देखता है l वैदेही कुछ ऑन-कंफर्टेबल सी दीखने लगती है l
विश्व - (जयंत के आँखों में देखते हुए) जी मैं बाबा के गुजर जाने के बाद... राजा साहब के यहाँ काम कर अपना गुजारा करता था....
जयंत - ओ... ह्म्म्म्म... तो तुम राजा साहब जी के मुलाजिम थे....
विश्व - जी... पर पिछले दो सालों से नहीं....
जयंत - क्यूँ..... जब कि वह तो चुनाव में तुम्हारे प्रपोजर थे....
विश्व - जी बस.. मैं अपने खेतों में काम कर आत्मनिर्भर बनना चाहता था....
जयंत - ओ... अच्छा... आत्मनिर्भर... ह्म्म्म्म फिर यह इलेक्शन लड़ने का विचार कैसे आया....
विश्व - वह राजा साहब ने एक बार महल बुला कर... खड़े होने के लिय समझाया था....
जयंत - ह्म्म्म्म... अच्छा.... वैसे... क्या समझाया था..
विश्व - यही के... तुम युवक हो.... इसलिए अब तक विकास से महरूम... अपने गांव के विकास के लिए आगे आना चाहिए....
जयंत - ओ... इसलिए तुम आगे आए... और इतने आगे निकल गए.... के सब अब तुम्हारे पीछे पड़े हुए हैं... ह्म्म्म्म...
च्छा... तुम्हारा नॉमिनेशन पेपर में सेकंडर कौन था....
विश्व - जी आचार्य सर... मतलब... उमाकांत आचार्य सर....
जयंत - हाँ... जो आगे चलकर... सांप के काटने से... सिधार गए.... ह्म्म्म्म... वैसे विश्व... तुमने ग्रैजुएशन क्यूँ नहीं की....
वैदेही कुछ कहने को होती है, पर जयंत अपना हाथ दिखा कर वैदेही को कहने से रोक देता है l
विश्व - हमारे राजगड़ में डिग्री कॉलेज नहीं है.... और जिसे डिग्री चाहिए होता है.... उसे राजगड़ से हमेशा के लिए रिस्ता तोड़ना होता है...
जयंत - क्यूँ.. ऐसा क्यूँ...
विश्व - डिग्री पढ़ने का और हासिल करने का सिर्फ एक ही परिवार को हक़ है... राजगड़ में... क्षेत्रपाल परिवार का... किसी भी क्षेत्र में कोई भी राजगड़ वासी क्षेत्रपाल परिवार के बराबरी पर नहीं आने चाहिए.....
जयंत - ह्म्म्म्म तो यह बात है.....
विश्व - पर मैंने करेसपंडिंग में इग्नू के जरिए बीए की शुरुआत कर ली थी....
जयंत - क्या... कब... पर तुम्हारे पंचायत चुनाव के डीक्लेयर फॉर्म में क्वालिफीकेशन कॉलम में इंटर विज्ञान भरा है...
विश्व - जी इसलिए.. क्यूँ की तब मैं इग्नू में केवल जॉइन हुआ था....
जयंत - ह्म्म्म्म... ठीक है... विश्व... मुझे जो जानना था... मैंने जान लिया... अब हम अदालत में मिलेंगे....
दोनों भाई बहन हैरानी से एक दूसरे को देखते हैं,
वैदेही - यह... यह क्या वकील साहब.... अपने तो विश्व से कुछ पूछा ही नहीं.... उसके अतीत के बारे में... उसके साथ हुए धोखे और अत्याचार के बारे में....
जयंत - (एक दम से भाव हीन तरीके से) मुझे किसकी कहानी को जानने में... कोई दिलचस्पी नहीं है.... क्यूंकि मैं नहीं चाहता... अपने क्लाइंट के प्रति सम्वेदना या सहानुभूति रखूं.... या फिर इमोशनली अटैच होऊँ...
वैदेही का चेहरा मुर्झा जाता है, और उसका सर दुख के मारे झुक जाती है l
जयंत - देखो.... कानून अंधा होता है.... उसे न्याय के लिए सबूत और गवाह चाहिए.... मैंने विश्व के खिलाफ चार्ज शीट से लेकर सबूत और गवाहों के रिकॉर्ड किए गए बयान देख व पढ़ चुका हूँ... और यक़ीन मानो... विश्व के विरुद्ध इतने संगठित रूप से कागजीय सबूतों को बनाया गया है.. (इतना कह कर जयंत अपने कुर्सी से उठ जाता है)
की विश्व इस केस में अभिमन्यु बन चुका है... हमारे पास कोई सबूत नहीं है... केवल और केवल दलीलें हैं.... जिनके आधार पर सबूतों को और गवाहों को झुठलाना है....पर विश्व... मैं.. तुम्हें इतना आश्वस्त कर सकता हूँ... के मैं पूरी कोशिश करूंगा....
वैदेही और विश्व जयंत को सुन रहे थे l वैदेही से अब रहा नहीं जाता, वह गुस्से में मायूसी के साथ रोते हुए,
वैदेही - वकील साहब... आप विश्व से मिले... क्या जाना... उसके बारे में... के उसके घर घर में चर्चे हैं... इसलिए के उसने साढ़े सात सौ करोड़ रुपए लुटे हैं... पुलिस उसके हिफाज़त में आगे पीछे दौड़ रही है... इसलिए , की वह साढ़े सात सौ करोड़ रुपए का लुटेरा है.... राजनीतिक गलियारों में विश्व को सजा देने के लिए होड़ लगी हुई है... क्यूँ... इसलिए कि विश्व साढ़े सात सौ करोड़ लुटा है.... मैं... दर दर भटकती रही... वकील तलाश करती रही... और सरकार ने आपको मेरे विश्व के लिए नियुक्त किया... क्या यह सुनने के लिए.... की विश्व की हालत अभिमन्यु जैसे है.... (वैदेही की रुलाई फुट पड़ती है) यह मेरा भाई ही नहीं मेरा बेटा भी है..... आपसे कुछ उम्मीद थी... पर....
जयंत - उम्मीद... मुझसे... क्यूँ... किसलिए.... क्यूंकि मैं विश्व का वकील हूँ इसलिए.....
जयंत दोनों को देखता है और वे दोनों भी जयंत को देखते हैं फिर,
जयंत - मैंने तुम्हें पहले ही कहा था... की मैं कोई सेल्स मैन नहीं हूँ... जो किसी प्रोडक्ट की सर्विस की ग्यारंटी देता फिरूँ...
और विश्व के बारे में मुझे क्या जानना चाहिए... यह तुम मुझे बताओगी..... वैसे तुम यह अपनी रोना रो रो कर दुनिया को क्या दिखाना चाहती हो... के दुनिया में... सबसे दुखी आत्मा तुम हो.... ताकि दुनिया की ध्यान तुम्हारी तरफ हो जाए... लोग तुम्हारे दुख से दुखी हो कर, आह.. आ.. ओह.. ओ... चु चु... करे... अरे इसका मतलब तो यह हुआ... की तुम लोग दुनिया वालों से सिंपथी चाहते हो... ना कि न्याय....
यह बात सुन कर वैदेही चुप हो जाती है और उसके साथ विश्व भी शुन हो जाता है l
जयंत - विश्व पर इल्ज़ाम संगीन है... सबूत और गवाह भरपूर है.... पर विश्व या तुम्हारे पास है क्या.... सिवाय अपना दुखड़ा रोने और दिखाने के..... मैं यहां सिर्फ़ अपने तरफ से विश्व को परख ने आया था.... और विश्व ने अपने आचार व विचार से प्रभावित किया है... मैंने उसे उसके माँ बाप के बारे में पूछा.... तो उसने भले ही स्वर्गीय शब्द लगाया पर उनके लिए हैं कहा..... थे कहीं पर भी नहीं कहा... थे शब्द सिर्फ़ आचार्य सर के लिए कहा था... बस यही काफी था... मेरे लिए... उसकी भावनाओं को समझने के लिए....
जयंत इतना कह कर चुप हो गया और दोनों के तरफ देखने लगा l दोनों जयंत को देख ऐसे आँखे फाड़े देख रहे थे जैसे आश्चर्य चकित हो कर सुन नहीं देख रहे हो l
जयंत - देखो विश्व... इस दुनिया में उम्मीद सिर्फ़ खुद से रखो... और विश्वास भी तुम खुद पर करो.... क्यूंकि किसको अपना समझ कर उम्मीद या विश्वास लगाए बैठोगे... तो जब दोनों टूटेंगी.... तब तुम भी टूट जाओगे.... जरा सोचो.. जिन्होंने तुमसे दुश्मनी करते हुए... तुमको फंसाया है... वह निस्संदेह बहुत ताकतवर हैं... पर तुम कहां से कम हो उनसे.... अगर तुम ताकतवर ना होते... क्या तुम उनसे टकराते.... उनको तुम्हारे भीतर के ताकत का अंदाजा है.... पर तुम्हें क्यूँ नहीं है....
विश्व और वैदेही जयंत को शांत हो कर सुन रहे हैं l लाइब्रेरी में शांति ऐसी छाई है जैसे बर्षों से उस कमरे में कोई नहीं है l
जयंत - अंत में विश्व... मैं यह फ़िर से कहूँगा.... तुम्हारे लिए... मैं अपनी पूरी कोशिश करूंगा.... इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कह सकता हूँ....तुम चाहो तो... सरकार से वकील बदलने के लिए दरख्वास्त कर सकते हो....
विश्व - (एक आत्मविश्वास भरे स्वर में) नहीं... बिल्कुल नहीं.... वकील साहब...अब अंजाम चाहे कुछ भी हो... मेरा यह केस... अब आप ही लड़ेंगे....
जयंत - तुम फिर सोच लो....
वैदेही - नहीं वकील साहब नहीं.... आपने ठीक कहा.... कमजोरों की तरह... हम अपनी आँसू और ज़ख़्म दिखा कर... दुनिया से सहानुभूति की उम्मीद कर रहे हैं.... लेकिन अब और नहीं.... अब अंजाम जो चाहे हो.... अब हमे सहानुभूति नहीं चाहिए... आपका बहुत बहुत शुक्रिया... वकील साहब...
जयंत - ठीक है... वैदेही... मेरा यहाँ काम समाप्त हो चुका है.... अब हम अदालत में मिलेंगे....
दोनों - जी वकील साहब
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टीवी पर न्यूज चल रही है,
"आज मंत्रालय में कैबिनेट की अहम बैठक हुई.... जिसमें यह निर्णय लिया गया कि अब राजगढ़ मनरेगा घोटाले पर सुनवाई.... बिना देरी के अदालती कार्यवाही को लगातार करवाने पर चर्चा हुइ.... इस बाबत कैबिनेट में पास हुई यह प्रस्ताव को तुरंत राज्यपाल जी तक पहुंचा दिया गया है.... अब जानकार कह रहे हैं... उच्च न्यायालय को कल तक राज्यपाल जी से पत्र मिल जाएगा.... और हमारे सूत्रों के अनुसार अभियुक्त विश्व के पक्ष रखने के लिए सरकार ने अपने क्षेत्र के अनुभवी वक़ील श्री जयंत कुमार राउत को नियुक्त किया है.... यह देखना अब दिलचस्प होगा कि अभियोजन पक्ष और अभियुक्त पक्ष के वकील दोनों ही सरकारी हैं और दोनों के तर्को से न्यायलय में... न्याय की नई परिभाषा कैसे लिखी जाएगी..... "
प्रतिभा टीवी ऑफ कर देती है और बड़बड़ाने लगती है
- छी... इनकी न्यूज ब्रीफिंग देखो... ऐसे चटखारे लगा कर बोल रहे हैं... जैसे अगली कड़ी में सिमर अपने ससुराल में बिरियानी में कौनसी मसाला डालेगी....
प्रत्युष वहीं बैठा हुआ था, अपनी माँ को बड़बड़ाते देख हंसने लगता है l प्रतिभा देखती है कि प्रत्युष पेट पकड़ कर सोफ़े पर लोटपोट हो कर हंस रहा है l यह देख प्रतिभा और भी चिढ़ जाती है l
प्रतिभा - बड़ा हंस रहा है... मैंने कोई जोक मारा है क्या...
प्रत्युष - अरे माँ.... जहां तक मुझे मालूम है... आप कभी सास बहु वाली टीवी सीरिअल देखती नहीं है.... पर आज... आप ससुराल सिमर वाली सिमर की बिरियानी याद कर रहे हो... हो हो हो..
प्रतिभा - आगे कुछ भी बोला तो... ठीक है... इसबार रात को लेट आने पर अपने डैड को बुलाना... दरवाजा खोलने के लिए....
प्रत्युष - (अपनी जगह से उठ कर धर्मेंद्र के स्टाइल में) माँ... एक सिमर की बात क्या छेड़ दी... तुमने मुझे इतना पराया कर दिया.... क्या लगती है आखिर यह सिमर तुम्हारी.... जिसकी बिरियानी के ख़ातिर अपने बेटे को... उसके हिटलर बाप के हवाले कर रही हो...
इतने में किसीने पीछे से उसके कान पकड़ता है l
प्रत्युष - कौन है... देख नहीं रहे हो... राज माता शिवगामी से उनका सुपुत्र बाहुबली बात कर रहा है....
आवाज - मैं.. बाहुबली का हिटलर बाप बोल रहा हूँ...
प्रत्युष - डैड.... थोड़ा तो डरीये... झाँसी रानी के सामने उसके बेटे के कान खींचना... कितना बड़ा दुशाहस... है... जानते हैं...
तापस - वह तो बाद की बात है.... पहले यह बता... यह हिटलर किसका बाप है... बाहुबली का... या दामोदर का...
प्रत्युष - डैड... आह.. आप कान छोड़ोगे... तो बोलूंगा ना....
तापस कान छोड़ देता है l इनकी अब तक यह हरकत देख कर प्रतिभा हंस रही थी l
तापस - हाँ तो लाट साहब बोलिए... हिटलर किसका बाप था....
प्रत्युष - वह तो मुझे नहीं पता.... पर इतना जरूर पता है... बाहुबली का बाप कटप्पा नहीं था....
इतना कह कर प्रत्युष वहाँ से भाग कर अपने कमरे में घुस जाता है और अंदर से दरवाजा बंद कर देता है l यह देखकर प्रतिभा की हंसी फुट जाती है l वह सोफ़े पर बैठ कर पेट पकड़ कर जोर जोर से हंसने लगती है l तापस प्रतिभा को ऐसे देखता है जैसे उसने बेहत खट्टी इमली खा लिया हो l
तापस - देखा भाग्यवान.... आपका लाडला कैसे... मेरा टांग खिंच रहा है....
प्रतिभा - (सोफ़े से उठ कर तापस को गले लगा कर) इस जादू की झप्पी से... ठंडा हो जाइए सेनापति जी... कुछ देर पहले... मेरा मुड़ उखड़ा हुआ था.... आपके लाट साहब ने मुझे हंसाने के लिए ऐसा किया....
तापस - (प्रतिभा को गले से लगा कर) जानता हूँ... जान.... मैं भी तो उसकी नटखट ठिठोलीयों के लिए यह सब करता हूँ...
प्रतिभा - भगवान उसे लंबी उम्र दे... वह बहुत नाम कमाए.... बस और कुछ नहीं...
Superb update bro
 
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