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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
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पहली ही मुलाकात में नायक ने अपने साले साहब को बुरी तरह से रौद दिया । क्षेत्रपाल फेमिली से पुरानी दुश्मनी तो थी ही पर उस वक्त वह विश्व था । लेकिन इस बार वो उन लोगों के सामने प्रताप बन कर सामने आया था । वैसे भी भैरव सिंह से जब उसका सामना होगा या उसकी तस्वीर भैरव सिंह के सामने रखी जायेगी तो उन्हें पता चल ही जाना है कि प्रताप और विश्व दोनों एक ही शख्स हैं ।
पर लगता है अभी उसमें कुछ वक्त लगने वाला है । क्योंकि इसी दरमियान नायक और नायिका की लवस्टोरी भी शुरू होनी है । और भाई साहब दोनों प्रेमियों के बीच विलेन बनने का काम करेंगे । शायद विक्रम को अभी वक्त लगे यह समझने में कि प्रताप उनके फेमिली का बहुत पुराना जानी दुश्मन है ।

वैसे बहुत ही बेहतरीन दृश्य पेश किया आप ने जब विश्व की फाइट विक्रम और उसके शातिर कमांडो से हुई ।
इसके पहले विश्व का बुढ़ी औरत को अपने गले लगाना भी काफी इमोशनल सीन था ।
जगूआर भाई का कहना कि नंदिनी अब विश्व से बहुत ज्यादा प्रभावित होगी क्योंकि वो एकलौता शख्स था जिसने क्षेत्रपाल की सरेआम इज्जत निलाम कर दी ।

बहुत ही खूबसूरत अपडेट ब्लैक नाग भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग ।
 

Rajesh

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👉चौबीसवां अपडेट
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कोर्ट का रूम आज खचाखच भरा हुआ है l बाहर का नज़ारा पुलिस की छावनी में तब्दील हो चुकी है l
आज लोग कोर्ट के बाहर पुलिस के बनाए बैरिकेड के उस पार जमा हुए हैं l पिछली सुनवाई की तरह ही इस बार की सुनवाई के दिन भी लोग हाथों में प्लाकार्ड लिए विश्व के विरुद्ध स्लोगन दे रहे हैं l
अंदर केस से संपृक्त अधिकारी गण, वकील और प्रिंटिंग मीडिया से एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से बहुत लोग उपस्थित हैं l हॉकर जज के आने का आह्वान देता है l सभी मौजूद लोग जज के सम्मान में खड़े हो जाते हैं l जज के बैठते ही सब अपने जगह बैठ जाते हैं l कोर्ट रूम के भीतर इतनी गहरी ख़ामोशी छाई हुई है कि लोग एक दूसरे के सांस की आवाजाही भी सुन पा रहे हैं l पर आदत के अनुरूप जज अपना न्याय के हथोड़े को टेबल पर तीन बार मारते हुए ऑर्डर ऑर्डर ऑर्डर कहता है l
जज - आजकी अदालती कार्यवाही शुरू की जाए...
हॉकर - मुजरिम को हाजिर किया जाए...
दो कांस्टेबल विश्व को हथकड़ी में लेकर मुज़रिम वाले कटघरे में खड़ा कर देते हैं l
जज - हाँ तो क्या आज... अभियोजन पक्ष मौजूद हैं....
प्रतिभा -(अपनी जगह से उठ कर) येस.... माय लॉर्ड....
जज - और... अभियुक्त पक्ष...
जयंत - (अपनी जगह से उठ कर) येस माय लॉर्ड....
ठीक है इससे पहले कि हम कार्यवाही आरंभ करें... अदालत आपको सूचित करना चाहती है... की राज्य सरकार द्वारा कैबिनेट में पास किए जाने के बाद.... राज्यपाल महोदय ने अदालत को पत्र द्वारा नियमित सुनवाई करने का आग्रह किया है.... इसलिए आप दोनों के मौजदूगी में हमे दिए गए आग्रह पर.... इस केस के लिए तीन जजों का पैनल बनाया गया है... और नियमित सुनवाई के लिए हफ्ते में तीन दिनों का चयन किया गया.... सोमवार, बुधवार और शुक्रवार.... इसके बाद अगर आप लोगों को कोई आपत्ति हो... तो दर्ज करा सकते हैं.... पहले प्रोसिक्युशन के तरफ से.... कोई टिप्पणी...
प्रतिभा - नो... माय लॉर्ड.....
जज - अब डिफेंस के तरफ से.... कोई टिप्पणी...
जयंत - (अपने जगह से उठ कर) येस माय लॉर्ड...
जज - कहिए... जयंत बाबु... क्या टिप्पणी है...
जयंत - टिप्पणी नहीं.... दो दो... अभियोग कहें या अनुरोध...
जज - कहिये...

जयंत - माय लॉर्ड... मेरा यह आग्रह व अनुरोध है... कोर्ट के कार्यवाही का मीडिया कवरेज को संपूर्ण रूप से अवैध करार दिया जाए.... और कोर्ट रूम में किसी भी मीडिया पर्सन के प्रवेश पर रोक लगा दी जाए....
दर्शकों में बैठी एक औरत, तुरंत अपनी जगह से खड़ी हो गई और जज को - आई ऑब्जेक्ट... योर ऑनर...
जज - हू.. इज़...
औरत - (हाथ ऊपर कर इशारे में विटनेस बॉक्स में जाने की इजाजत मांगते हुए) मे आई....
जज - येस... यु कैन....
औरत -(विटनेस बॉक्स में आकर) सर, आई, माय सेल्फ अरुंधति पसायत... असिस्टेंट एडिटर ऑफ खबर ओड़िशा... मैं डिफेंस लॉयर के इस वक्तव्य को दृढ़ विरोध करती हूँ.... वी आर जर्नलिस्ट... एंड मिस्टर. डिफेंस लॉयर शुड नॉट फॉरगेट.... हमे द फोर्थ पिलर ऑफ डेमोक्रेसी कहा जाता है.... लोगों तक खबर पहुंचाना... हमारा कर्तव्य ही नहीं हमारा वृत्ति गत अधिकार भी है.... इसलिए मैं अदालत से दरख्वास्त करती हूँ... मिस्टर डिफेंस लॉयर की इस आवेदन पर तुरंत खारिज किया जाए....
जज - मिस्टर डिफेंस लॉयर... इस पर आप क्या कहना चाहेंगे...
जयंत -(अपने जगह से खड़े होकर) जी मैं कहाना नहीं... मिसेज पसायत से पूछना चाहूँगा.... अगर आप इजाज़त दें तो...
जज - ज़रूर....
जयंत - थैंक्यू माय लॉर्ड... हाँ तो मिसेज पसायत... अभी वह जो कटघरे में खड़ा है... वह आपके विचार में कौन है...
पसायत - जी.. वह.... एक मुज़रिम है....
जयंत - मोहतरमा... पहले आप अपना ज्ञान दुरुस्त कीजिए... वह जो कटघरे में खड़ा है... वह एक मुल्जिम है... ना कि मुज़रिम... मतलब एक्युस्ड है... ना कि कंविक्टेड...
पसायत - जी.. जी.. आइ... मेरा मतलब.. वह मुल्जिम है... ना कि मुजरिम... रॉंग प्रोनाउंशेशन... सॉरी...
जयंत - येस... यु.. शुड बी सॉरी... क्यूंकि जब से... यह घोटाला सामने आया है... तबसे आप अपने चैनल के जरिए... ना सिर्फ़ उसे मुज़रिम करार दे चुकी हैं... बल्कि... एस.एम.एस के जरिए पोल भी कराई हैं... विश्व प्रताप को फांसी की सजा दी जाए या उम्र कैद की....
पसायत - जी व... वह... असल में... हम लोगों की राय जानना चाहते थे....
जयंत - नो मिसेज़ पसायत... आप लोगों की राय जानना नहीं चाहती हैं... बल्कि अपनी राय लोगों पर थोपती हैं... आप की चैनल ने... न जाने कितने कहानी विश्व के नाम पर बनाए और बेचे.... खुद को पैरलल कोर्ट बना कर एक्युस्ड को न सिर्फ कंविक्ट बनाया... बल्कि उसके सजा पर पोल भी करवाया.... क्यूँ मिसेज पसायत क्यूँ.... अगर आज जो कटघरे में एक्युस्ड खड़ा है... कल को अगर वह विक्टीम साबित हुआ... तब....
पसायत - वेल... दिज आर ऑल पार्ट ऑफ आवर प्रोफेशन.... तब हम सॉरी कह देंगे....
जयंत - व्हाट.... तब आप सॉरी कह देंगे... रोज न्यूज चैनल में... शूली चढ़ाती हैं आप... जब वह विक्टीम साबित हो जाएगा उसे सॉरी कह देंगी..... (फिर जज के तरफ मुड़ कर) माय लॉर्ड... क्या सॉरी से किसीकी इज़्ज़त वापस आ सकती है.... अगर यह मीडिया कवरेज करना चाहती हैं... तो इनसे एक ऐफिडेविट ली जाए.... अगर इस सुनवाई में... विश्व निर्दोष व विक्टीम करार दिया जाता है.... तो विश्व को पूर्ण अधिकार होगी इनपर मानहानि दावा ठोकने की... दैट्स ऑल माय लॉर्ड....
जज - ठीक है... जयंत बाबु.... अब आप अपना दुसरा आग्रह बताये...

जयंत - माय लॉर्ड.... जबसे मैंने... मक्तुल श्री विश्व की केस को हाथ में ली है.... तब से मुझे थ्रेटस मिल रहे हैं... केस छोड़ने के लिए.... इसलिए जब तक.... इस केस की कारवाई पूरी नहीं हो जाती..... तब तक मुझे अदालत के तरफ से सरकारी सुरक्षा मुहैया कराया जाए....
जज - यह आपने... बहुत ही बड़ी बात कही है.... क्या आपने पुलिस को इस बारे में सूचना नहीं दी...
जयंत - दी थी... पूरी घाट थाने में... यह रही उस एफआईआर की कॉपी (कह कर एक काग़ज़ राइटर के हाथों से जज को बढ़ा देता है)
जज काग़ज़ देखने के बाद
जज - आज डिफेंस लॉयर जयंत राउत जी ने इस केस से संबंधित जिन तथ्यों की जानकारी दी है... उस पर अदालत गम्भीरता से विचार करेगी... अब यह अदालत एक घंटे के लिए स्थगित की जाती है... डिफेंस लॉयर के द्वारा दी गए तथ्यों पर अपना फैसला एक घंटे बाद पूरी टीम के सहित उपस्थित रह कर सुनाएगी.... (इतना कह कर जज वह हथोड़ा टेबल पर पीट कर रख कर बाहर चला जाता है)

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कोर्ट रूम पास एक कमरे में एक छोटा सा टेबल और दो कुर्सी पड़ी हैं l एक कुर्सी पर जयंत बैठा हुआ है,और दुसरे में विश्व और विश्व से थोड़ी दूर दीवार के पास वैदेही खड़ी हुई है l
विश्व - क्या.... आपको धमकी मिली है....
जयंत - (अपना सर हिलाते हुए) ह्म्म्म्म....
विश्व - हे... भगवान... तो.... फिर....
जयंत - तो फिर क्या.... मैंने तो पहले पुलिस को बताया.... अब अदालत को बता दिया है....
वैदेही - (मायूस होकर) आपको हमारे वजह से तकलीफ हो रही है....
जयंत दोनों के चेहरे को गौर से देखता है, फिर जयंत दोनों को इशारे से चुप रहने के लिए इशारा करता है l दोनों भाई बहन एक दुसरे को देखते हैं फिर जयंत को l जयंत धीरे से अपनी कुर्सी से उठता है और थोड़ा सा बाहर की तरफ झांकता है और इन दोनों के करीब आकर बहुत धीरे से उनको कहता है l
जयंत - देखो तुम मेरे क्लाइंट हो.... इसलिए बता रहा हूँ.... मुझे कोई धमकी नहीं मिली है...
दोनों - क्या... (चौंक कर)
जयंत - श्... श् श्.. (धीरे से..) क्या कर रहे हो... मरवाओगे क्या....
विश्व - (धीरे से) पर क्यूँ..
जयंत - तुम्हारे दुश्मनों के शिविर में खलबली मचाने के लिए.... एक तुक्का लगाया है.... ताकि वह लोग कुछ गलत कर जाएं....
विश्व - ओ...
जयंत - दीस इज कॉल्ड एज अ प्रोफेशनल लाइ.... एंड अ लॉयर शुड भी अ गुड लायर...
इतना कह कर जयंत अपनी दोनों आँखो को विंक करता है l कुछ ऐसे करता है कि दोनों के चेहरे पर हँसी आ जाती है l
वैदेही - तो अब जज साहब क्या करेंगे...
जयंत - अब मुझे क्या पता.... पर जो भी होगा.... हमारे ही फेवर में जाएगा....
ऐसे ही एक घंटा बीत जाता है और पुलिस आती है विश्व को अपने साथ ले जाती है l वैदेही और जयंत भी कोर्ट रूम में प्रवेश करते हैं l आज आरंभ से ही वैदेही जयंत के दलीलों से बहुत ही प्रभावित हो चुकी है l उसे अब लगने लगा है जयंत ज़रूर इस केस में कुछ उलट पलट कर सकता है l
सब इस बार देखते हैं कि इस बार जज के स्थान पर एक के जगह तीन कुर्सियां पड़ी हुई हैं l कुछ देर बाद हॉकर सबको सावधान करता है और जजों के आने का संकेत देता है l सभी कोर्ट रूम में अपने स्थान पर खड़े हो जाते हैं l तीन जज अब अपने जगह पर बैठ जाते हैं l जजों के बैठने के बाद सब अपने अपने जगहों पर बैठ जाते हैं l
मुख्य जज जो आरंभ से ही केस की सुनवाई से जुड़े हुए हैं l वह सुनवाई आरंभ करते हैं l

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शाम को डिनर के बाद प्रतिभा एक अलग कमरे में अपनी केस की फाइलों को पढ़ रही है और अपनी एक डायरी में कुछ नोट कर रही है और नोट कर लेने के बाद लॉ के कुछ मोटी लॉ के किताबें खंगाल कर उनमें पेंसिल से मार्क कर रही है l
इतने में प्रत्युष एक कॉफी का मग ले कर पहुंचता है, और प्रतिभा के सामने रख देता है l प्रतिभा अब नजर उठा कर देखती है तो प्रत्युष मुस्करा देता है l
प्रतिभा - क्या बात है बेटा... अभी तक सोया नहीं... कल क्लास के लिए जाना नहीं है क्या....
प्रत्युष - जिसकी माँ रात भर जाग रही है.... पर जागने का वजह ना तो उसका पति है.... और ना ही बेटा... तब बेटा सोचता है कि... ऐसी क्या परेशानी आन पड़ी.... के माँ को रात भर जागना पड़ रहा है....
प्रतिभा - तु... कॉलेज में पढ़ने जाता है... या.. ऐसी मीठी मीठी बातेँ सीखने....
प्रत्युष - अब जिसकी माँ... वकील हो... वह तो बातेँ करेगा ही...
प्रतिभा - (थोड़ा हंस देती है) आ बैठ... बोल... आज... क्यूँ... मेरे बेटे को... नींद नहीं आ रही है....
प्रत्युष - (पास पड़े एक कुर्सी पर बैठ जाता है) माँ... आप और डैड मुझे कितना प्यार करते हैं.... मैं जानता हूँ.... पता नहीं आपको याद है या नहीं.... पर मुझे जब भी याद आता है... तो बहुत हंसी आती है....
प्रतिभा - (अपने चेहरे को सिकुड़ कर और भोवें नचा कर) क्या याद आता है....
प्रत्युष - माँ... यह आप अच्छी तरह से जानते हो.... के मुझे... सुई लगाने से कभी डर नहीं लगता है.... पर जब भी हस्पताल में डॉक्टर मुझे सुई लगाते थे.... (हंसते हुए) डैड डर के मारे बाहर ही खड़े रहते थे... और आप आँखे मूँद लेती थी... फिर सुई लग जाने के बाद... आपके आँखों में आंसू तक आ जाते थे.... मैं जानता हूँ... यह आप दोनों का असीम प्यार है.... के मुझे सुई चुभते हुए भी देख नहीं सकते.... आप दोनों....
प्रतिभा प्यारे उसके गालों पर हाथ फेरती है और गाल को खींच कर
प्रतिभा - हर माँ बाप ऐसे ही होते हैं.... अपने बच्चों के कष्ट देख नहीं पाते.....
प्रत्युष - माँ... बिल्कुल... आप...और डैड मुझसे जितना प्यार करते हो.... मैं भी आप दोनों से उतना प्यार करता हूँ....
प्रतिभा - हाँ... यह तो हम भी जानते हैं....
प्रत्युष कुछ कहता नहीं है तो प्रतिभा उसके गाल पर हाथ फ़ेर कर पूछती है
प्रतिभा - अब बोल भी दे.... क्यूँ नींद नहीं आ रही है मेरे बच्चे को.....
प्रत्युष - (प्रतिभा के हाथ को अपने गाल से हटा कर दोनों हाथों से पकड़ लेता है) माँ.... आप रात रात भर जाग कर अपनी नींद खराब क्यूँ कर रही हो......
प्रतिभा - वह इसलिए... की परसों.... अदालत में... प्रोसिक्यूशन की तरफ से इस केस की प्रेजेंटेशन है.... इसलिए मुझे तैयारी करनी पड़ रही है....
प्रत्युष - वैसे... माँ आज अदालत में हुआ क्या था.... आज प्राइम टाइम न्यूज ब्रीफिंग पूरी तरह से बदली हुई लग रही है.... क्या आपका ओपोनेंट इतना स्ट्रॉन्ग है....
प्रतिभा - स्ट्रॉन्ग तो हैं बेटा.... उनका नाम जयंत राउत है.... जानते हो एज अ पब्लिक प्रोसिक्यूटर उन्होंने एक भी केस नहीं हारा है....
प्रत्युष - ओ... तो... उनको हराने की तैयारी कर रहे हो आप....
प्रतिभा - (हंस देती है) हाँ....
प्रत्युष - वैसे.... आज उन्होंने कोर्ट में... ऐसा क्या कह दिया... जो आज न्यूज के डिबेट में... सिर्फ वही छाए हुए हैं.....
प्रतिभा - अपने क्लाइंट को बचाने के लिए एक अच्छा वकील... जो भी कर सकता है.... जयंत सर ने वही किया....
प्रत्युष - थोड़ा ब्रीफ करके बताओ ना....
प्रतिभा - पहले तो उन्होंने अदालत को... कंविंस किया के विश्व एक्युस्ड है... ना.. की गिल्टी... इसलिए उसे दोषी बनाकर जो मीडिया ट्रायल चल रही है... उसे बंद करवा दिया...
प्रत्युष - ओ अच्छा.... तभी में बोलू.... रोज सिमर की बिरियानी परोसने वाले... आज इतने शाकाहारी कैसे हो गए हैं.....
प्रतिभा यह सुन कर प्रत्युष के गाल पर एक चपत लगाती है
प्रतिभा - और अब से कोर्ट की सारी कारवाई..... सिर्फ़ बंद कमरे में होगी.... उस पर भी जयंत सर ने मीडिया कवरेज को बैन करवा दिया.....
प्रत्युष - ओ.... तो क्या.. किसी मीडिया पर्सन ने... अपना विरोध नहीं जताया....
प्रतिभा - जताया था ना... वह खबर ओड़िशा के असिस्टेंट एडिटर अरुंधति पसायत.... उसने जयंत सर की मांग पर विरोध किया... पर अदालत ने जयंत सर की बातों को स्वीकार कर लिया....
प्रत्युष - फिर.. क्या वह पसायत चुप रही....
प्रतिभा - हाँ... चुप ना रहती तो क्या करती.... अगर कोर्ट के भीतर जज साहब के आदेश का विरोध करती तो.... वह कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट होता... और वह... नन बेलेबल ऑफ़ेंश होता...
प्रत्युष - ओ....
प्रतिभा - हाँ... तो अब तेरा डाऊट सारे क्लियर हुए या नहीं....
प्रत्युष - बस एक डाऊट है...
प्रतिभा - आप कब सोओगे.... यही ना..
प्रत्युष - वाह... यह हुई ना बात.... माँ आख़िर अपने बच्चे मन की बात समझ जाती है....
प्रतिभा - (एक चपत लगाती है प्रत्युष के गाल पर) तु अब तक सीधे ना पूछ कर... अदालत में क्या हुआ... बगैरह क्यूँ पूछ रहा था....
प्रत्युष - माँ... रात भर... किताबों के साथ उल्लू की तरह जागना... यह मेरे उम्र को शुट करता है.... आपके उम्र में नहीं... माँ बाप बच्चे के लिए चिंता में ना सोए तो बात समझ में आती है.... पर बच्चा... वह भी मुझ जैसे... डैशींग.. हैंडशम एंड इंटेलिजेंट हो.... फिर भी आप रात भर जागो... यह ठीक नहीं लगता ना....
प्रतिभा - अररे... मैं अपनी केस की डिटेल्स तैयार कर रही हूँ...
प्रत्युष - वह आप कल करलेना.... आपके पास पूरा दिन रहेगा.... और घर पर ना मैं होऊंगा ना डैड... इसलिए...
कह कर प्रतिभा के हाथ को खिंच कर उठा कर सोने के कमरे तक धक्का दे कर ले जाता है
प्रतिभा - अरे.. रुक तो...
प्रत्युष - नहीं... नहीं.... बिल्कुल नहीं....
प्रतिभा को उसके कमरे में पहुँचा कर प्रत्युष अपनी माँ के माथे को चूम कर
प्रत्युष - गुड नाइट माँ.....
प्रतिभा - गुड नाइट बेटा...
दरवाजा बंद कर बिस्तर पर आती है l जैसे ही सोने को होती है तो तापस उसकी तरफ पलटता है
तापस - हम बुलाते रहे शब् ए मुहब्बत को... वह इंकार करते रहे... लगता है औलाद की चाहत के आगे इश्क़ से बगावत कर ली उन्होंने....
प्रतिभा - ओ... तो उल्लू यहाँ पर जाग रहा है... यह क्या है सेनापति जी... अगर रोमांटिक हो रहे हैं..... तो शायरी भी ढंग का किया करो ना...
तापस - (प्रतिभा को अपने पास खिंच कर) अजी यह तो आपके हुस्न का असर है... वरना हम कहाँ और शायरी कहाँ...
तापस - बस बस... आपके बेटे ने.... मुझे रात को सोने के लिए भेजा है... जागने के लिए नहीं... आप चुप चाप सो जाइए और मुझे सोने दीजिए....
तापस - सत्यानाश कर दिया तुमने मेरे मुड़ का यार....
प्रतिभा - प्लीज....
तापस - ठीक है.. ठीक है... मैं तो यह सोच कर खुश हो रहा था.... के मेरे बेटे ने... मेरी दिल की आह भांप ली... पर...
प्रतिभा - (खिल खिला कर हंस देती है) कभी कभी लगता है... वह मेरा बेटा नहीं... मेरा बाप.... है
तापस - करेक्ट.... अब मुझे यकीन हो गया... वह... मेरा ससुर ही है... जो दोबारा जन्म ले कर आया हुआ है....
प्रतिभा - हो गया...
तापस - हाँ.. खत्म कर... सो ही जाता हूं...
इससे पहले प्रतिभा कुछ कह पति, तापस के होंठ प्रतिभा के होठों को बंद कर चुके हैं l

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एक पुलिस की जीप रात के अंधेरे में राज़गड़ के सड़कों पर दौड़ रहा है l उस जीप में बल्लभ प्रधान और इंस्पेक्टर बैठे हुए हैं l इंस्पेक्टर गाड़ी चलाते हुए बल्लभ को पूछता है,
इंस्पेक्टर - यार इतनी रात को... यह तुम मुझे ले कर... रंग महल क्यूँ जा रहे हो...
बल्लभ - पता तो मुझे भी नहीं है.... भीमा ने फोन पर बताया था... राजा साहब हम दोनों से बात करना चाहते हैं....
इंस्पेक्टर - रंग महल में (सवाल करते हुए)
बल्लभ - हाँ...
इस तरह बात करते हुए दोनों रंग महल पहुंचते हैं l एक नौकर उन्हें अंदर की ओर ले जाता है l
अंदर एक और नौकर उन्हें अखाड़े की ओर जाने को कहता है l दोनों अखाड़े में देखते हैं भैरव सिंह लंगोट में है और एक साथ दो दो पहलवानों से लड़ रहा है l कुछ ही देर में दोनों को पटक देता है l दोनों पहलवानों को पटक ने के बाद अखाड़े से बाहर निकल कर बल्लभ और इंस्पेक्टर को घूरते हुए एक टवैल शुट पहन कर अंदर आने को इशारा करता है l दोनों पहले एक दूसरे देखते हैं और भैरव सिंह के पीछे पीछे चल देते हैं l अंदर एक बैठक में आते हैं, वहाँ पर टीवी पर न्यूज चैनल में अदालत में हुए कारवाई का ख़बर पर डिबेट प्रसारित हो रहा है l भैरव सिंह टीवी बंद कर रिमोट अपने सोफ़े पर रख कर भैरव सिंह वहीँ खड़ा रहता है, वे दोनों देखते हैं कि उनके सामने एक बड़ा सा शतरंज की दरी बिछी हुई है l उस दरी पर कुछ शतरंज के गोटियाँ भी अपनी खानों से बाहर चाल, चले हुए हैं l देख कर लगता है कुछ समय पूर्व वहीं पर शतरंज का खेल हुआ है लेकिन भीमा एक डंडा लाकर भैरव सिंह को देता है जिसमें आधे गोलाकार एक क्लांप लगा हुआ है l भैरव सिंह काले गोटियों की तरफ खड़ा होता है और दुसरी तरफ से भीमा सफेद गोटीयों के तरफ खड़ा होता है l गोटियाँ आधे फुट और एक फुट के हाइट के हैं, और दोनों के हाथ में क्लांप लगी हुई डंडा है, जिससे वे गतियों को ठेल कर अपनी चालें चलते हैं l उसी शतरंज दरी के किनारे बल्लभ प्रधान, और इंस्पेक्टर खड़े हो जाते हैं l
भैरव - प्रधान.... यह क्या हुआ है... हमे विस्तार से समझाओगे....
बल्लभ - जी राजा साहब... वह डिफेंस लॉयर ने कुछ अड़चनें डालने की कोशिश की है.... पर हमारी केस बहुत ही मजबूत है...
भैरव - प्रधान.... हमने जिंदगी में जो भी फैसले लिए हैं... उसे वक्त ने हमेशा सही साबित किया है.... पर विश्व के केस में... हम गलत नहीं होना चाहते हैं..... (कह कर एक चाल चलता है)
बल्लभ - राजा साहब आप कभी गलत हुए ही नहीं..... और इस बार भी नहीं होंगे....
भीमा भी एक चाल चलते हुए एक गोटी ठेलता है l
भैरव - फ़िलहाल तुम हमे विस्तार से समझाओ.... आज कोर्ट में जो भी हुआ..... (एक चाल चलता है)
बल्लभ और इंस्पेक्टर दोनों एक दूसरे को देखते हैं
बल्लभ - राजा साहब... सरकार के सिफारिश पर तीन जजों का पैनल बना है.... अब सारी सुनवाई बंद कमरे में होगी.... कोर्ट परिसर और रूम में मीडिया प्रवेश को वर्जित किया गया है....
भैरव - ह्म्म्म्म... (भीमा के चाल पर भैरव चाल चल कर भीमा के एक प्यादे को बाहर हटा देता है) यह देख भीमा तेरा प्यादा गया.. ह्म्म बल्लभ आगे बढ़ो....
बल्लभ - इस केस पर अब किसी भी प्रकार का मीडिया ट्रायल अवैध होगी..... (भैरव जबड़ो को भिंच कर बल्लभ को देखता है) (बल्लभ अपने हलक से थूक निगलता है) राजा साहब हमने विश्व के गिरफतार होने के बाद से, हमने जितना मीडिया को स्पॉंसर किया था उससे विश्व के केस पहले से ही बहुत डैमेज हो चुका है.... उसके पास कोई पब्लिक सिंपथी नहीं है... केवल जन आक्रोश है... उसके विरुद्ध.... यह जन आक्रोश भी केस को दिशा देने में प्रमुख भूमिका निभाती है.....
भैरव - ह्म्म्म्म आगे बोलो... यह जयंत को धमका कौन रहा है...
बल्लभ और इंस्पेक्टर दोनों हैरानी से भैरव सिंह को देखने लगते हैं, बल्लभ- राजा साहब... यह बात हमे भी समझ में नहीं आया... जयंत को धमका कौन रहा है....
इंस्पेक्टर - कहीं... जयंत ने प्रांक तो नहीं खेला है....
बल्लभ - हो सकता है...
भैरव - हाँ तो मेरे हुकूमत के नौ रत्नों में से... मेरे दो अनमोल रत्न... एक इंस्पेक्टर रोणा एक एडवोकेट प्रधान... हमारी चाल पर कोई और चाल चल रहा है... क्यूँ....
दोनों चुप रहते हैं l भैरव सिंह और चाल चल कर भीमा की हाती को बाहर कर देता है l
भैरव - हमसे दुश्मनी करके... कोई जिंदा नहीं बचता.... जानते हो इस रंग महल से... पहली और आखिरी बार वैदेही ही जिंदा लौट कर गई है.... मुझे उसके जिस्म को नोचने, निचोड़ने या खुरचने में जितना मजा नहीं आया... उसे कहीं ज्यादा उसकी चीखें सुनने में और आंसू देखने में मजा आता है... आज भी... उस रंडी को महल से भगाया.... चुड़ैल बना कर लोगों से उस पर पत्थर भी फीकवाया... पर विश्व उसे बचा ले गया... विश्व.... लगता है कुछ अलग किस्मत लिखवाकर लाया है.... (और एक चाल चलने के बाद) बचपन में मार देना चाहा.... पर उस स्कुल मास्टर की बातों में आ गया... इसलिए अपने घर में उसे कुत्ता बना कर रखा और बड़ा किया..... उसने फ़िर जवानी में मेरे खिलाफ़ भोंका... इसबार भी मार देना चाहा था.... पर इस बार सोचा उसे घर के कुत्ते से अब गली का कुत्ता बनाऊँगा... जहां हर रोज रोटी और बोटी के लिए... राजगड़ के हर गली, हर गटर, हर नाली में रेंगने लगेगा.... यही सोच कर उसे ज़ख्मी कर छोड़ दिया था....(एक और चाल से भीमा के ऊंट को हटाता है) क्यूँ रोणा... तूने ही तो गोली मारी थी.... कम्बख्त की पैर भी बच गया.... मैं उसे जिंदा रख कर राजगड़ के गलीयों में भीख मंगवाना चाहता था..... मगर.... जानते हो मैं उसे क्यूँ तड़पना चाहता हूं... क्यूँ की वह मेरे मजा और वैदेही के दर्द के बीच आ गया... वह कहते हैं ना... गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है....
इतना कह कर भैरव दोनों को देखता है, दोनों की हालत पतली हो जाती है l दोनों बड़ी मुश्किल से अपने हलक से थूक निगलते हैं उनकी हालत देख कर भैरव चिल्ला कर एक नौकर को बुलाता है l
भैरव - सत्तू.... इनके लिए ठंडा कुछ लाओ...(फ़िर इन दोनों को) हाँ तो मैं क्या कह रहा था... मेरे दो अनमोल रतन.... अपनी दुश्मनी में मैंने किसीको जिंदा नहीं छोड़ा है... जब विश्व को जिंदा छोड़ा था... तो उसकी जिंदगी मौत से भी बदत्तर होगी कहा था मैंने उसे... मेरे बातों को सच बनाने का जिम्मा मेरे दरबार के रत्नों का काम है.... है.. ना...
इतने में भीमा एक चाल चलते हुए - हुकुम... चेक...
भैरव सिंह का भोवें जाती है l इतने में सत्तू उनके पास एक रोलिंग ट्रै में कुछ ड्रिंक्स लेकर आता है और ग्लास में ड्रिंक्स बनाने के लिए बोतल उठाता है l भैरव सिंग गुस्से से अपने हाथ का डंडा नीचे फेंक देता है l डंडा उछल कर सत्तू के पास गिरता है l भैरव सिंह का गुस्सा देख कर डर के मारे सत्तू चौंक जाता है और उसके हाथ से बर्फ का टुकड़ा छूट जाता है और लुढकते हुए भैरव सिंह के जुते पर गिरता है l भैरव सिंह को और भी गुस्सा आता है और गुस्से में सत्तू को एक थप्पड़ मार देता है l सत्तू छिटक कर दुर जा कर गिरता है l इतने में भीमा अपनी चाल को वापस ले लेता है और कहता है - हुकुम... वह मेरे घोड़े की चाल ही गलत थी... मैंने सुधार लिया है...
इतने में सत्तू भी अपनी पगड़ी निकाल कर भैरव सिंह के जुते को साफ करने लगता है l
इतना सब कुछ इंस्पेक्टर और बल्लभ के सामने हो जाता है, तो इंस्पेक्टर कहता है - वह जैल सुपरिटेंडेंट थोड़ा शाणा निकला.... वरना मैंने तो डॉक्टर से बात कर ली थी....
भैरव उसे घूरते हुए देखता है तो इंस्पेक्टर आगे आकर नीचे पड़े उस चेस के डंडे को उठा कर भैरव सिंह को बढ़ाता है l भैरव सिंह फिर अपना चाल चलता है l
बल्लभ - राजा साहब.... चाहे किसी भी कमरे में सुनवाई हो... आपके पास हर सेकेंड की खबर पहुंचेगी.... और उस विश्व को एक महीने के भीतर कड़ी से कड़ी सजा भी मिलेगी... और जल्दी ही मिलेगी.... अब मैं खुद रोणा के साथ भुवनेश्वर जाऊँगा... और मैं आपको तभी अपना शक्ल दिखाऊंगा... जब उसे सजा हो जाएगी.....
भैरव सिंग भीमा को कहता है
भैरव - यह देख भीमा.... यह रहा चेक और यह मेट....
Nice update bro
 
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Rajesh

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👉पच्चीसवां अपडेट
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नाश्ते के टेबल से बर्तन समेट रही है प्रतिभा, तापस अपने यूनीफॉर्म पहन रहा है और प्रत्युष घर से अपने कॉलेज के लिए निकलने की तैयारी कर रहा है l
प्रत्युष - बाइ माँ, बाइ डैड...
कह कर दरवाज़े तक पहुंचता है तभी कॉलिंग बेल बजती है, प्रत्युष झट से दरवाजा खोल देता है तो बाहर दो अजनबियों को देखता है l
एक - क्या... प्रतिभा सेनापति जी घर में हैं...
प्रत्युष - हाँ जी हैं... माँ कोई आए हैं... आपसे मिलने...
प्रतिभा किचन से दरवाजे के पास आती है तो वह दो अजनबियों को देख कर हैरान हो जाती है l
प्रतिभा - (प्रत्युष से) अब तुझे टाइम नहीं हो रहा है क्या.... जा जल्दी अपने कॉलेज... (प्रत्युष चला जाता है, तो उनको देख कर) जी कहिए... मुझसे आपको क्या काम है....
एक - क्या हम अंदर आ कर बात करें.....
प्रतिभा - ठीक है... आइए...
प्रतिभा बैठक के अंदर आती है और उसके पीछे पीछे वह दोनों भी आते हैं l
प्रतिभा - बैठिए... (वह दोनों बैठ जाते हैं) हाँ तो अब बताइए.... आप लोग कौन हैं और... मुझसे आप लोगों का क्या काम है...
एक - जी मेरा नाम बल्लभ प्रधान है... मैं पेशे से आपके ही बिरादरी से हूँ... आई मिन मैं एडवोकेट हूँ यशपुर से.... और यह हैं अनिकेत रोणा आई.आई.सी मेरा मतलब इंस्पेक्टर इन चार्ज राजगड़....
इतने में तापस अपने यूनीफॉर्म पहने बैठक में आता है l आते ही उसकी नजर रोणा पर पड़ता है l तो उसकी भोवैं सिकुड़ जाती हैं l रोणा भी तापस को देख कर थोड़ा नर्वस हो जाता है l
प्रतिभा - कमाल है... आप इतने बड़े लोगों का... मेरे पास क्या काम आन पड़ा....
बल्लभ - जी कोर्ट में आपके केस के प्रेजेंटेशन के बाद गवाहों की क्रॉस एक्जामीन होगी.... चूंकि सारे गवाह या तो राजगड़ या यश पुर से ही हैं.... तो उन गवाहों से कम्युनिकेशन सहित सभी प्रकार के सहायता के लिए.... हमे राजा साहब जी ने आपकी मदत के लिए भेजा है...
और जब तक केस की सुनवाई व कारवाई पूरी नहीं हो जाती हम इसी सहर में हैं... और आप हमसे जो भी मदत चाहें ले सकते हैं....
प्रतिभा - ठीक है... इस केस में... आपके राजा साहब जी की.... कोई निजी दिलचस्पी है क्या....
बल्लभ - जी पूरी... ओड़िशा को हिला देने वाली.... हो कांड हुआ है... इससे हमारा प्रांत की छबी खराब हुई है.... इसलिए राजा साहब ने हमे कहा है कि आपकी पूरी तरह से मदद करने के लिए....
प्रतिभा - जी बेहतर... मुझे जरूरत हुई तो... मैं आपसे कंटैक्ट करूंगी... आप अपना फोन नंबर दे कर जाइए...

बल्लभ - जी जरूर... (कह कर एक काग़ज़ निकाल कर उसमें दोनों का नंबर लिख कर प्रतिभा को देता है) अच्छा प्रतिभा जी धन्यबाद.... अब हमारी मुलाकात कोर्ट में होती ही रहेंगी....
प्रतिभा - जरूर...
फिर दोनों उठ कर बाहर चले जाते हैं l तापस कुछ सोच में डूबा हुआ है l
प्रतिभा - सेनापति जी क्या हुआ.... आप किस गहरी सोच में पड़ गए...
तापस - हाँ... ह्म्म.. यह दोनों.. मुझे ठीक नहीं लग रहे हैं... उस इंस्पेक्टर से पहले भी मिल चुका हूँ... बहुत ही कमीना किस्म का है.... चुकी यह वकील उसके साथ है... इसलिए दोनों के गठजोड़ साफ नहीं लग रहा है....
प्रतिभा - कर दी ना पुलिस वाली बात... उस पुलिस वाले का नाम मैंने रिपोर्ट में पढ़ा है... इसको वैसे भी समन जाने वाला था... तो आ गया... अगर कोर्ट में मुझे मदद कर सकते हैं... इससे बढ़िया बात और क्या हो सकती है...

तापस चुप रहता है, फिर कुछ सोच कर अपना सर हिलाता है और जैल के लिए निकल जाता है l प्रतिभा दरवाज़ा बंद कर अपनी फाइलें खोल कर बैठ जाती है l

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त्रिशूलीया ब्रिज के पास लेकर अपनी गाड़ी को रोक देता है इंस्पेक्टर रोणा l बल्लभ देखता है रोणा कुछ चिढ़ा हुआ है l
बल्लभ - क्या हुआ... इतने चिढ़े हुए क्यूँ हो...
रोणा - जल्दबाजी में... एक गलती हो गई....
बल्लभ - क्या... कौनसी गलती....
रोणा - कहते हैं... फर्स्ट इंप्रेशन इस अल्वेज लास्ट इंप्रेशन....
इससे पहले... उस वकील की पति से मुलाकात हो चुकी है.... और अच्छी नहीं गई थी... वह मुलाकात....
बल्लभ - मतलब...
रोणा गाड़ी से उतर कर ब्रिज के फुटपाथ पर बनें सिमेंट की कुर्सी पर बैठ जाता है, बल्लभ भी आकर उसके पास बैठ जाता है l
बल्लभ - क्या हुआ
रोणा अपनी जेब से सिगरेट निकालता है, एक खुद लेता है और एक बल्लभ को देता है और लाइटर निकाल कर दोनों के सिगरेट सुलगा देता है l
बल्लभ - क्या हुआ...
रोणा - अररे.. यार... तुम वकील हो... इतना भी अनुमान लगा नहीं पा रहे हो.... वह जैल सुपरिटेंडेंट है... और विश्व को मैंने उसके हवाले किया था....
बल्लभ - ह्म्म्म्म... तो यह बात है....
रोणा - हाँ...
बल्लभ - कोई नहीं... हमे उस सुपरिटेंडेंट से कोई मतलब नहीं है... उसे उतने सिरीयसली मत लो.... अब सारा ध्यान केस पर समेटो.... राजा साहब गुस्से में है... हमे यहाँ रह कर कुछ एक्स्ट्रा एफर्ट लगाना होगा... कोर्ट के हर कम्युनिकेशन को अपने कंट्रोल में लेना होगा....
रोणा - बड़े बड़े बांध टूटते हैं... छोटे छोटे कमजोर ईंटों के वजह से...
बल्लभ - मतलब...
रोणा - हम.. छोटे छोटे कर्मचारियों को हाथ में लेंगे... तो सारे कम्युनिकेशन को हम ही हैंडल कर पाएंगे... हमारे जानकारी के बगैर... कोई मूवमेंट ना हो...
बल्लभ - ठीक बिल्कुल ठीक....
रोणा - क्या हम... छोटे राजा जी से मदद ले सकते हैं....
बल्लभ - नहीं... फ़िलहाल तो नहीं...
रोणा - यार एक बात समझ में नहीं आ रहा.... यह राजा साहब कभी कभी हम कहते हैं... और कभी कभी मैं....
बल्लभ - जब अहं में होते हैं... हम कहते हैं... जब अंदर का जानवर बाहर निकलने को होता है... तब मैं कहते हैं... जब वह हम कहते हैं... कोई खतरा नहीं होता है... पर जब वह मैं में होते हैं... तब खतरा बहुत होता है...
रोणा - ओ....
बल्लभ - फ़िर क्या हुआ...
रोणा - उस हराम खोर विश्व को... किसी मर्डर केस में फंसा कर ठोक दिए होते... तो साला यह झंझट ही नहीं रहता... कहीं उसे फंसान के चक्कर में... हम ही फंस तो नहीं रहे...
बल्लभ - देख.... विश्व... जिन गड़े मुर्दों को उखाड़ रहा था.... राजा साहब ने... उन्हीं मुर्दों के साथ उसे लपेट दिया.... अब चाहे कुछ भी हो.... विश्व को सज़ा दिलाना ही होगा....
रोणा - यह बुढ़ा जयंत... आदमी कैसा है... क्यूँ ना हम उसे... अपने पाले में ले लेते...

बल्लभ - नहीं... यह पूरी तरह से.. आत्मघाती होगा... बुढ़ा बहुत ही ईमानदार है.... मैंने उसकी रिपोर्ट ली है... देखा नहीं पहले ही दिन क्या तमाशा बना दिया...
रोणा - राजा साहब का स्टेट पालिटिक्स में इतना दखल है.... तो सरकारी वकील के लिए उन्हों ने कुछ किया क्यूँ नहीं....
बल्लभ - वह... इसलिए के उन्हें अपने जुबान पर नियंत्रण भले ही न हो.... पर उनके बनाए टीम पर उन्हें भरोसा है.... वह अपनी हुकूमत में हुकुम देते हैं.... और उनके वफादार राजा साहब के हुकुम की तामील करते हैं....


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तापस जैल पहुंच कर देखता है जयंत दो लोगों को साथ लिए ऑफिस में उसीका इंतजार कर रहे हैं l
तापस - अरे सर आप... इतनी सुबह...
जयंत - आज एक वकील नहीं.... एक विजिटर की तरह आया हूँ... अपने क्लाइंट से मिलने...
तापस - अच्छा.. तो विजिटिंग हॉल में मिलेंगे.. या और कहीं व्यवस्था करूँ...
जयंत - इस बात पर मैं आपसे छोटा सा फेवर लेना चाहता हूँ....
तापस - जी कहिए...
जयंत - मैं विश्व से आपके जैल के लाइब्रेरी में मिलना चाहता हूँ... जहां पहली बार उससे मिला था... पर्सनल तो है पर.... अगर आप चाहें तो साथ रह सकते हैं....
तापस - अगर बात पर्सनल है तो मैं क्यूँ.... वैसे आप तीनों मिलना चाहेंगे क्या...
जयंत - अरे... नहीं.. नहीं... यह मेरे बॉडीगार्ड्स हैं... जो सरकार ने मुझे मुहैया किया है.... यह लोग यहीं मेरी प्रतीक्षा करेंगे...
तापस - ठीक है सर.... आप लाइब्रेरी में प्रतीक्षा कीजिए... मैं विश्व तक खबर पहुंचाता हूँ...
जयंत अपनी जगह से उठ कर लाइब्रेरी में पहुंचता है l जयंत को विश्व के आने तक कुछ देर इंतजार करना होगा, इसलिए इधर उधर नजर दौड़ा रहा है l कभी घड़ी देख रहा है तो कभी दीवारों पर टंगे महापुरुषों की तस्वीरों को देख रहा है l
नमस्ते सर...
आवाज़ आती है l जयंत उस तरफ मूड कर देखता है l विश्व दरवाजे पर खड़ा है l
जयंत - आओ विश्व आओ... मैं तुमसे ही मिलने आया हूँ...
विश्व - जी कहिए....
जयंत - विश्व... कल से आधिकारिक तौर पर तुम्हारे केस की सुनवाई शुरू होगी....
विश्व - जी...
जयंत - देखो विश्व... तुम अब बाइस के होने वाले हो... सिर्फ़ तीन दिन बाद.... तुम्हारे भीतर अब परीपक्वता आनी चाहिए... तुमको कोर्ट रूम में... प्रोवोक किया जा सकता है.... पर तुम उन पर ध्यान मत देना... उत्तेजित मत हो जाना.... और अपनी जवाब कभी भी... बीच में बात काट कर कभी मत देना..... जब तुमसे पूछा जाए.... तभी तुम अपना जबाव देना.....
विश्व - जी...
जयंत - अच्छा विश्व... अगर मैं अपनी इच्छा से कुछ दूँ... क्या तुम लोगे....
विश्व कुछ समझ नहीं पाता और कहता है
विश्व - ठीक है... पर आप देना क्या चाहते हैं...
जयंत - कुछ निजी है... पर अभी नहीं... पर जब दूँ तो ले लेना....
विश्व - जी... ठीक है...
जयंत - देखो विश्व तुम्हारा यह केस... मेरी नौकरी पेशा जीवन की अंतिम केस है...
विश्व यह सुन कर उसे मुहँ फाड़े देखे जाता है l
जयंत - अरे भाई... मैं कुछ महीनों बाद... रिटायर होने जा रहा हूँ.... इसलिए यह आखिरी केस लेने को तैयार हुआ....
विश्व - ओ...तो क्या इसलिए आप कुछ देना चाहते हैं....
जयंत - अरे नहीं... तुम चूंकि मेरे अंतिम क्लाइंट हो... इसलिए जो भी दूँ उसे रख लेना....
विश्व - आप दिलसे दे रहे हैं... तो जरूर रख लूँगा...
जयंत - हाँ.. अब यह तो वक्त ही बतायेगा... इस केस में क्या होगा...
विश्व - आप शायद कुछ और कहना चाहते हैं.... पर कह नहीं पा रहे हैं...
जयंत - हाँ... यही लक्षण होते हैं... परिपक्व होने के... जानते हो... अगर मैंने शादी कर ली होती... तो मेरा पोता तुम्हारे उम्र का होता ....
विश्व - क्या...
जयंत - इसमें चौंकने की क्या बात है... हाँ मतलब... तुमसे बहुत छोटा होता.... आठ दस साल.... खैर वह सब छोड़ो.... क्या तुम मुझे छोड़ने गेट तक आओगे....
विश्व - जी जरूर...
जयंत और विश्व लाइब्रेरी से उतर कर नीचे आते हैं l
जयंत - थैंक्यू... सुपरिटेंडेंट साहब... थैंक्यू... बस और एक छोटा सा फेवर कर दीजिए....
तापस - जी जरूर....
जयंत - मुझे गेट तक छोड़ने तक विश्व को इजाज़त दें...
जयंत की यह हरकत ना विश्व के ना तापस के, किसीके समझ में कुछ भी नहीं आया l जयंत अपने बॉडीगार्ड्स के साथ बाहर की ओर जाता है और उनके पीछे तापस और विश्व गेट तक पहुंचते हैं l जयंत गेट के पास रुक जाता है और पीछे मुड़ कर देखता है l विश्व को देख कर मुस्कराता है l विश्व को महसूस होता है जयंत के मुस्कराहट में एक अद्भुत तेज है l विश्व उसकी मुस्कराहट के जबाव में विश्व भी मुस्करा देता है l
फिर जयंत मूड कर वापस बाहर चला जाता है l
विश्व और तापस कन्फ्यूज हो कर थोड़ी देर वहीँ खड़े रहते हैं l फिर वापस अपने अपने रास्ते लौट जाते हैं l

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विक्रम अपने कार से **** कॉलेज जा रहा है l बगल में वीर भी बैठा हुआ है l वीर अपने मोबाइल फोन पर टेंपल रन गेम खेल रहा है और विक्रम कार ड्राइविंग कर रहा है l तभी विक्रम की फोन बजने लगती है l
विक्रम - हैलो छोटे राजा जी.... कहिए क्यूँ याद कर रहे हैं....
पिनाक - हमने ब्रोकर से बात कर ली है.... दो दिन बाद प्रॉपर्टी का ओनर शिप ट्रांसफर हो जाएगा... आपको परसों रजिस्ट्रार ऑफिस में ठीक दस बजे पहुंचना है...
विक्रम - जी और कुछ...
पिनाक - हाँ युवराज... वह आपके डेविल आर्मी के लिए ऑफिस और ट्रेनिंग सेंटर कहाँ तक पहुंचा....
विक्रम - मेरा आदमी लगा हुआ है... बहुत जल्द खबर करेगा...
पिनाक - और आपके कॉलेज इलेक्शन....
विक्रम - कुछ ही दिनों में... नॉमिनेशन फाइल शुरू हो जाएगी...
पिनाक - अच्छी बात है... इलेक्शन कैंपेनिंग के लिए कुछ चमचे बनाए हैं... या नहीं....
विक्रम - नहीं... उसके लिए मैंने कुत्ते पाले हैं... और उन्हीं कुत्तों को छोड़ा है... इस काम के लिए....
पिनाक - अच्छा ठीक है... हम अब पार्टी ऑफिस को जा रहे हैं... कुछ ज़रूरत पड़े तो कॉल कीजिएगा....
विक्रम - जी बेहतर...
यह कह कर विक्रम फोन काट देता है l इतने में कॉलेज भी आ जाती है l कॉलेज में पहुंचते ही वीर अपने क्लास के तरफ निकल जाता है l विक्रम अपना गाड़ी पार्किंग में लगा कर महांती को फोन लगाता है l
विक्रम - हैलो...
महांती - बोलिए युवराज...
विक्रम - महांती... हमारे नए ऑफिस के लिए... जगह का क्या हुआ....
महांती - युवराज जी... जगह सिलेक्शन हो चुका है... एक छोटा सा लिटिगेशन है... मैं आज एक आखिरी कोशिश करता हूँ.... वरना... एक... नया जगह फाइनल करेंगे... वह सहर के बाहर है... इसलिए उसे होल्ड पर रखा है....
विक्रम - ठीक है... जो भी डेवेलपमेंट हो... मुझे खबर करना...
महांती - जी युवराज जी...
विक्रम अपना फोन काट कर जेब में रखता है l विक्रम अपने चारो तरफ नजर घुमाता है, तो पाता है कि बहुत सी आँखे उसकी ओर नजरें गड़ाए उसे ही देख रही हैं l वह अपना गॉगल निकाल कर पहनता है, तो बहुतों की आह निकल जाता है l विक्रम एक ओर चला जा रहा है, तो उसके कदमों को एक आवाज़ रोक देता है l वह पलट कर देखता है, आवाज देने वाला प्रिन्सिपल ऑफिस का पियोन है l
विक्रम उसके पास जाता है,
पीयोन - विक्रम सर.. आपको प्रिन्सिपल सर ने बुलाया है...
विक्रम कुछ नहीं कहता पियोन को आगे चलने का इशारा करता है और उसके पीछे प्रिन्सिपल ऑफिस की ओर जाता है l विक्रम सीधे प्रिन्सिपल ऑफिस के अंदर घुस जाता है l विक्रम को यूँ अंदर घुस आने पर प्रिन्सिपल,
प्रिन्सिपल - देखिए विक्रम, यह आपकी महल नहीं है... कॉलेज है.. और प्रिन्सिपल के कैबिन में आने से पहले परमिशन मांगी जाती है... इतना मैनर्स तो आप में होनी चाहिए..
विक्रम - सुनिए.. प्रिन्सिपल जी... आपको अभी 'जी' कहा... मतलब इसको मैनर्स कहते हैं...
हमे युवराज कहा जाता है... यह आप भी ध्यान रखिए.... और रही मांगने की बात.... तो मांगना हमारी फ़ितरत नहीं है..... छीनना या दे देना हमारी आदत है...
जैसे अभी मैं तुम्हारी इज़्ज़त तुमको दे रहा हूँ... कोशिश करो छीनने की नौबत ना आए.. क्यूंकि जिस दिन फाड़ुंगा... उस दिन ओड़िशा के सारे टेक्सटाइल उद्योग भी तुम्हारी इज़्ज़त नहीं बचा पाएगी....
प्रिन्सिपल इतना सुनने के बाद क्या कहे कुछ समझ नहीं पाता क्यूंकि जिस रौब के साथ विक्रम ने इतना सुनाया, वह डर के मारे पसीने से लथपथ हो जाता है l
विक्रम - कहिये.. किस लिए याद किया...
प्रिन्सिपल - वह... आप इलेक्शन में कांटेस्ट कर रहे हैं....
विक्रम - यह अब तक किसीको नहीं पता... आपको कैसे मालुम हुआ....
प्रिन्सिपल अगल बगल झांकने लगता है
विक्रम - सुनो प्रिन्सिपल... तुमको जिसके साथ अपना कंफर्ट जोन मैंटैंन करना है करो.... पर हमेशा कोशिश में रहना मेरे कंफर्ट जोन की लाइन तुमसे गलती से भी क्रॉस ना हो....
इतना कह कर विक्रम विनय को फोन लगाता है l
विक्रम - कहाँ है...
विनय - वह.. युवराज जी... मैं कैन्टीन में हूँ... यहाँ कुछ लड़के और लड़की... इलेक्शन में खड़े होने की बात कर रहे हैं.... उन्हें समझा रहा हूँ...
विक्रम - ह्म्म्म्म उनको मेरे बारे में कुछ बताया तो नहीं...
विनय - जी नहीं युवराज...
विक्रम - ठीक है... हम अभी कैन्टीन में आ रहे हैं... और खबरदार किसीको अभी मालूम नहीं होनी चाहिए... हमारे बारे में...
विनय - जी जैसा आप कहें....
विक्रम फोन कट कर सीधे कैन्टीन की ओर चल देता है l उसे कॉलेज के बहुत सी आंखें फॉलो कर रही हैं l उसकी चाल और व्यक्तित्व सब पर छाप छोड़ रही है l
विक्रम कैन्टीन में पहुंचता तो उसे महसूस होता है जैसे उसके जिस्म को एक मीठी सी, मखमली सी, सुगंध भरी हवा छू गई l वह देखता है सलवार कुरती पहने विक्रम की तरफ पीठ कर एक लड़की और विनय बहस कर रहे हैं l
विनय - देखिए... मैं आप सब स्टूडेंट्स की भलाई के लिए कह रहा हूँ.... आप सब यहाँ पढ़ने आए हो तो पढ़ो.... यह इलेक्शन के चक्कर में क्यों पढ़ रहे हो...
वह लड़की - क्यूँ... हम तो पढ़ने आते हैं.... पर तुम यहाँ क्या करने आते हो.... गुंडागर्दी....
विनय - ऐ लड़की... नई लगती हो.... कॉलेज के बारे में कुछ नहीं जानती हो.... यूँ बीच में मत घूसो....
लड़की - डिग्री में अभी आई हूँ... पर यहाँ के स्टूडेंट्स से पता किया है.... तुम कितने कमीने हो...
विनय - मैं तुझसे... इज़्ज़त देके बात कर रहा हूँ... तु गाली देने पर उतर आयी.... कमीनी...
लड़की - ऑए... अपना जुबान सम्भाल... वरना तेरी वह पिटाई होगी... के तुझे तेरी नानी याद आ जाएगी....
विनय - यहाँ... इतने स्टूडेंट्स हैं.... किसी के मुहँ में जु नहीं रेंग रही.... तुझे बड़ी चूल मची है...
यह कह कर विनय उस लड़की की तरफ बढ़ता है l
लड़की - देखो... मैं कह देती हूँ... मेरे पास आओगे... तो बहुत पचताओगे....
तभी विक्रम उन दोनों के बीच पहुंचता है और विनय से
विक्रम - क्यूँ भई.... क्या परेशानी है इस लड़की से...
विनय - यह मुझे कमीना बोल रही है....
तभी वह लड़की विक्रम को खिंच कर अपने पीछे लाती है और,
लड़की - कमीने को कमीना बोल रही हूँ... समझा...
विक्रम उस लड़की के बगल में आता है और उसे देखता है, उस देखते ही हैरानी से उसकी आँखे चौड़ी हो जाती हैं l विक्रम को अंदर ही अंदर खुशी महसूस होती l
विक्रम - (अपने मन में) अरे... यह लड़की... इस कॉलेज में है... मेरी लकी चार्म.... (लड़की से) जी आपने इसे कमीना क्यूँ कहा....
लड़की - कमीने को कमीना ना कहूँ तो और क्या कहूँ....
विक्रम - क्या मैं... वजह... जान सकता हूँ...
लड़की - यह कह रहा था... इस बार इस कॉलेज में इलेक्शन ऑनकंटेस्ट होगा.... जैसे इसीने जीवन भर कॉलेज की प्रेसिडेंट बनने की ठान रखी है....
विक्रम - अच्छा... तो यह बात है... (विनय से) क्यूँ भई.. यह लड़की तो बात सही कह रही हैं..... भाई देश में डेमोक्रेसी है... किसीको भी चुनाव कहीं भी लड़ने का अधिकार है.... तुम ऐसे कैसे किसीकी डेमोक्रेटिक राइट्स छिन सकते हो... नहीं नहीं यह गलत बात है... मैं तो इनका साथ दूँगा...
विनय को कुछ समझ में नहीं आता, वह बेवकुफों की तरह सर खुजाता है, वह तो यहाँ किसीको भी नॉमिनेशन ना डालने के लिए मनाने की कोशिश में आया था, ताकि आगे चलकर विक्रम से किसीकी टकराव ना हो l फिर उसके दिमाग की ट्यूब लाइट जलती है l वह बिना कुछ कहे वहाँ से अपने चमचों के साथ कैन्टीन से निकल लेता है l
विक्रम - लीजिए आप की परेशानी वह चला जा रहा है....
लड़की - थैंक्यू... वैसे क्या आप इस कॉलेज में पढ़ते हैं...
विक्रम - हाँ... अभी कुछ ही दिन हुए हैं... कॉमर्स फाइनल ईयर....
लड़की - वाव.... वैसे आपका नाम क्या है...
विक्रम - विक्रम... विक्रम सिंह क...
लड़की - (बड़ी आवाज़ से) तो डियर स्टूडेंट्स... यह रहे आपके नए प्रेसिडेंट कैंडिडेट श्री विक्रम सिंह.....
सभी स्टूडेंट्स ताली मारने लग जाते हैं l विक्रम हक्का-बक्का सा रह जाता है पर कुछ प्रतिक्रिया नहीं देता l
तभी कैन्टीन में बैठी और एक दूसरी लड़की इस लड़की को अपने पास खिंच कर एक कोने में ले जाती है l विक्रम देखता है दुसरी लड़की इस पहली लड़की से कुछ कहती है पर पहली वाली लड़की विक्रम की ओर देख कर कुछ ऐसी प्रतिक्रिया देती है जैसे उसे कुछ फर्क़ नहीं पड़ा l विक्रम उससे अपनी नजर फ़ेर कर एक खाली टेबल की ओर बढ़ता है l तभी ब्रेक खतम होने की बेल बजती है l पांच मिनिट में पूरी कैन्टीन खाली हो जाती है l विक्रम देखता है पूरी कैन्टीन खाली हो गई है और वह लड़की भी जाने की तैयारी कर रही है l विक्रम उठ कर उसके पास जाने की सोचता है l पर जा नहीं पाता है और वापस अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l लड़की बाहर जाने को होती है कि उसकी नजर विक्रम पर पड़ती है l वह विक्रम के पास आती है,
लड़की - अरे.... आप गए नहीं अपने क्लास में...(मजाकिया अंदाज में) डर लग रहा है क्या....
विक्रम हंस देता है l
विक्रम - आप भी तो नहीं गई... अपनी क्लास में....
लड़की - (खिल खिला कर हंसते हुए) मैं इस कॉलेज की स्टूडेंट नहीं हूँ... (विक्रम के टेबल के पास एक कुर्सी पर बैठ जाती है)
विक्रम - क्या.. (हैरानी से अपनी कुर्सी से उछल पड़ता है) क्या... आ.. आप इस.... कॉलेज की स्टूडेंट नहीं हो...
लड़की - (उसी अंदाज में हंसते हुए) जी नहीं...
विक्रम - फिर.. यह... मतलब इलेक्शन...
लड़की - अच्छा वह... वह तो मैं अपनी सहेली से मिलने आयी थी यहाँ..... तो उसने ही मुझे कैन्टीन ले आयी.... और यहां का हॉट टॉपिक था... इस बार की कॉलेज इलेक्शन..... सब विनय से नाराज़ थे... क्यूंकि वह एक गुंडा टाइप का है... कॉलेज में सिवाय गुंडागर्दी के कुछ नहीं करता..... और यह मैं नहीं... इस कैन्टीन में बैठा हर शख्स कह रहा था.... सब चेंज चाह रहे थे.... चेंज की बात भी कर रहे थे... पर हिम्मत कोई नहीं कर रहा था... तभी वह कमीना आया और... इलेक्शन अब इस बार ऑनकंटेस्ट होगा... ऐसा बोला... इसलिए मैं उससे झगड़ा कर रही थी........
विक्रम उसे हैरानी से देखे जा रहा है और मुहँ फाड़े सुन रहा है l
लड़की - (विक्रम के आँखों के सामने चुटकी बजाते हुए) हैलो.... क्या सोचने लगे...
विक्रम - हाँ...(होश में आते हुए) हाँ.... आप इस कॉलेज की नहीं हो... इस कॉलेज इलेक्शन की कैंडिडेट से... झगड़ा मोल ले लिए हो... और तो और.... इलेक्शन के शूली पर... मुझे चढ़ा भी दिया.... मेरी आपसे ऐसी क्या दुश्मनी है...
वह लड़की फिर से हंसने लगती है और कैन्टीन के एक लड़के को इशारे से दो कॉफी के लिए कहती है l
लड़की - सॉरी... हाँ... सॉरी... लेकिन इसका मतलब यह नहीं.... की आप इलेक्शन नहीं लड़ोगे...
विक्रम - क्यूँ... क्यूँ...
लड़की - अगर आप इलेक्शन नहीं लड़ोगे.... अभी आपने जितनी तालियां बटोरे हैं .... उससे कई गुना गालियाँ बटोरेंगे... मर्जी आपकी.... चॉएस आपकी....
इतने में कॉफी आ जाती है, लड़की विक्रम को कॉफी पीने के लिए इशारा करती है l कॉफी का एक सीप लेते ही विक्रम का मुहँ बिगड जाता है l लड़की फिर से हंसती है l
लड़की - लगता है.... इलेक्शन ने दिमाग को ठिकाने लगा दी है....

कह कर हंसती है, विक्रम से उसकी कॉफी का कप लेती है और शुगर पाउच फाड़ कर कॉफी में डाल कर कॉफी स्टिक से घोलने के बाद विक्रम को कॉफी का कप बढ़ाती है l विक्रम किसी रोबोट की तरह उससे कॉफी लेकर पीने लगता है l
लड़की - अब ठीक है...
विक्रम सर हिला कर हाँ कहता है l
लड़की - (अपनी कॉफी पीते हुए) अब और कुछ पूछना है...
विक्रम - हाँ... यह कॉलेज आपका नहीं है... आप यहां अपनी दोस्त से मिलने आते हो... किसी और के मामले में घुस जाते हो... और लड़ाई झगड़ा भी करते हो.... फिर इस कॉलेज में आपको कोई नहीं दिखता.... आप मुझे बकरा बना देती हो... यह मेरे साथ क्या हुआ....
लड़की कॉफी पी कर टेबल पर कप रख देती है, कॉफी पी लेने के बाद वह लड़की के होठों पर एक सफेद रंग की लाइन दिखती है, उस सफेद लाइन को देख कर विक्रम का दिल मचलने लगती है, क्यूँ पर उसे समझमें नहीं आता l वह लड़की विक्रम की आँखों में देखते हुए, टीसु पेपर से अपने होठों को पोंछती है, विक्रम उसकी चेहरे को देख कर खोया हुआ है l
लड़की - अच्छा मैं चलती हूँ...
विक्रम - जी... सुनिए... आपकी यह दोस्त वही हैं ना... जिसके घर के लिए मुझसे उस रात को लिफ्ट मांगी थी....
लड़की - हाँ....
विक्रम - इसका मतलब... मैं आपको याद हूँ....
लड़की - हाँ... न... नहीं तो तो...
विक्रम - क्या.. अभी तो कहा आपने लिफ्ट ली थी...
लड़की - हाँ आप से ली थी... यह कब कहा....
विक्रम - ओह... ह्म्म्म्म... इत्तेफाकन यह हमारी... तीसरी मुलाकात है...
लड़की - तीसरी.... ओ हैलो... हम आज पहली बार मिल रहे हैं.......
विक्रम - आपके जनम दिन में.. होटल ऐरा के लॉबी में... टकराए थे... और आपने हमे गिरा भी दिया था...
लड़की - क्या... हाथ बढ़ा कर उठाया भी था...
विक्रम - अच्छा...
लड़की अपनी दांतों तले जीभ दबा देती है और होठों पर हंसी को लाते हुए अपनी आँखे बंद कर देती है l उसकी यह एक्सप्रेशन देख कर
विक्रम - मतलब मैं याद हूँ....
लड़की अपने होठों को सिकुड़ कर अपनी मुस्कान को छिपाते हुए
लड़की - ह्म्म्म्म...
विक्रम - आपने कहा था... फिर संयोग से मुलाकात हुई... तो आप अपना नाम बतायेंगे...
लड़की - इतनी जल्दी क्या है..... क्यूँ ना और एक इत्तेफाक का इंतजार किया जाए.... तब तक एक और बार अजनबी बन कर देखते हैं....

कह कर लड़की वहाँ से उठ कर जाने लगती है और फ़िर पीछे मुड़ कर विक्रम से कहती है
- कॉफी का बिल पे कर दीजिएगा....
कह कर वह लड़की वहाँ से चली जाती है l
विक्रम उसको जाते हुए देखता है l फिर काउंटर पर जा कर बिल पे कर देता है l उसके फोन पर रिंग सुनाई देती है, विक्रम फोन पर देखता है महांती का कॉल है l
विक्रम - हाँ... खुश खबरी है.. है ना... जल्दी से बोलो महांती...
महांती - युवराज जी...आपको कैसे मालूम हुआ... खुश खबरी है...
विक्रम - वह... इंट्युशन...
महांती - ओह... गुड न्यूज... है युवराज जी... वह जो जगह... हमारी सिक्युरिटी सर्विस के ऑफिस और ट्रेनिंग सेंटर के लिए देखी थी... उसकी लिटिगेशन भी आज दूर हो गई.... अब जब चाहे हम उस जगह की रजिस्ट्रेशन अपने नाम कर कर सकते हैं...
विक्रम के चेहरे पर मुस्कान छा जाती है l
विक्रम - ठीक है... महांती.... शुभस्य शीघ्रम... परसों ही रजिस्ट्रेशन रखते हैं... रजिस्ट्रार ऑफिस में दस बजे...
महांती - जी बहुत अच्छा... मैं सारी बंदोबस्त करता हूँ....
विक्रम फोन काट कर अपने चाचा पिनाक को फोन लगाता है l
पिनाक - हाँ.. युवराज.. कहिए क्या खबर है....
विक्रम - परसों हम डेविल हाउस और डेविल आर्मी ऑफिस..... दोनों जगहों का रजिस्ट्रेशन करेंगे....
पिनाक - वाह.. वाह... क्या बात है... युवराज... और आपके कॉलेज इलेक्शन का क्या हुआ...
विक्रम - आज सारे काम ऑनएक्सपेक्टेडली सारे काम हो गए.....
पिनाक - गुड वेरी गुड.... भुवनेश्वर में अपनी हुकूमत की नींव की ईंट रख दिया आपने... मैं यह राजा साहब को बताना चाहूँगा.... ओके.. मैं फ़ोन रख रहा हूँ...
पिनाक के फोन रखते ही विक्रम अपनी अंगुठी को देख कर कहने लगता है
मेरे ख्वाबों के रंग में रंगी एक तस्वीर हो तुम..
तुम चाहे मानों या ना मानों मेरी तकदीर हो तुम...
Awesome update bro
 
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पहली ही मुलाकात में नायक ने अपने साले साहब को बुरी तरह से रौद दिया । क्षेत्रपाल फेमिली से पुरानी दुश्मनी तो थी ही पर उस वक्त वह विश्व था । लेकिन इस बार वो उन लोगों के सामने प्रताप बन कर सामने आया था । वैसे भी भैरव सिंह से जब उसका सामना होगा या उसकी तस्वीर भैरव सिंह के सामने रखी जायेगी तो उन्हें पता चल ही जाना है कि प्रताप और विश्व दोनों एक ही शख्स हैं ।
पर लगता है अभी उसमें कुछ वक्त लगने वाला है । क्योंकि इसी दरमियान नायक और नायिका की लवस्टोरी भी शुरू होनी है । और भाई साहब दोनों प्रेमियों के बीच विलेन बनने का काम करेंगे । शायद विक्रम को अभी वक्त लगे यह समझने में कि प्रताप उनके फेमिली का बहुत पुराना जानी दुश्मन है ।

वैसे बहुत ही बेहतरीन दृश्य पेश किया आप ने जब विश्व की फाइट विक्रम और उसके शातिर कमांडो से हुई ।
इसके पहले विश्व का बुढ़ी औरत को अपने गले लगाना भी काफी इमोशनल सीन था ।
जगूआर भाई का कहना कि नंदिनी अब विश्व से बहुत ज्यादा प्रभावित होगी क्योंकि वो एकलौता शख्स था जिसने क्षेत्रपाल की सरेआम इज्जत निलाम कर दी ।

बहुत ही खूबसूरत अपडेट ब्लैक नाग भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग ।
धन्यबाद बहुत बहुत धन्यबाद
हाँ आगे चलकर यानी पांच छह अपडेट के बाद विश्व की मुलाकात होगी भैरव सिंह से क्या होगा यह...... 😉
विश्व और रुप की प्रेम कहानी पर परवान चढ़ेगा जरूर चढ़ेगा
हाँ इस वक़्त विलेन विक्रम बनने वाला है वह भी समझेगा इसके लिए अलग टर्न व ट्विस्ट होगा...
फिर से धन्यबाद
 

Kala Nag

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Very nice update bro

Superb update bro

Bahut hi shandaar update hai bhai

Nice update bro

Superb update bro

Awesome update bro

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Nice update bro

Awesome update bro
Rajesh भाई बहुत बहुत धन्यबाद
आप मेरे कहानी से जुड़े और पसंद व्यक्त कर मेरा हौसला बढ़ाया उसके लिए फिर से धन्यबाद
बस इसी तरह मेरे पेज से जुड़े रहें और अपना बहुमुल्य विश्लेषण प्रदान करते रहें
 

Kala Nag

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👉इकसठवां अपडेट
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वीर अपने कमरे में गहरी नींद में सोया हुआ है l फोन की लगातार बजने से उसकी नींद टूट जाती है l वीर अपनी कमरे में देखता है बहुत अंधेरा है I नाइट बल्ब भी नहीं जल रही है पर एसी चल रही है और उस कमरे में जितनी भी रौशनी दिख रही है मोबाइल फोन के डिस्प्ले से आ रही है l वह उठ कर मोबाइल हाथ में लेता है और कॉल लेकर

वीर - हैलो... (उबासी लेते हुए) कौन है... इतनी रात को क्या प्रॉब्लम है...
- हैलो... राजकुमार जी.. मैं... महांती बोल रहा हूँ...
वीर - महांती... इतनी रात को... अरे यार... क्या हो गया...
महांती - राजकुमार जी... अभी तो शाम के सिर्फ़ सात ही बजे हैं...
वीर - (झट से उठ बैठता है) क्या... सिर्फ शाम के सात बजे हैं... आज शनिवार ही है ना...
महांती - जी राजकुमार जी...
वीर - (अपने कमरे की लाइट जलाता है) ओ... अरे हाँ... अच्छा महांती... कुछ जरूरी काम था क्या...
महांती - जी.. राजकुमार जी... आज का दिन बहुत ही खराब गया है... क्षेत्रपाल परिवार के लिए... आप जल्दी ESS ऑफिस में आ जाइए... प्लीज...यहाँ आपकी सख्त जरूरत है...
वीर - (हैरान होते हुए) क्या... क्या हुआ...
महांती - युवराज जी ने खुद को... अपने कैबिन के रेस्ट रूम में बंद कर रखा है...
वीर - क्यूँ... किसलिए...
महांती - और छोटे राजा जी ने खुद को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करा लिया है और यहीं पर आ रहे हैं...
वीर - छोटे राजा जी हॉस्पिटल से आ रहे हैं... क्या मतलब हुआ इसका... हुआ क्या है आज....
महांती - राजकुमार जी प्लीज... आप यहाँ आ जाइए... मैं... मैं आपको सब बताता हूँ...
वीर - ठीक है... मैं थोड़ा रिफ्रेश हो लेता हूँ... फिर गाड़ी से निकाल कर... बस पाँच मिनट...हाँ... मैं.. मैं निकल रहा हूँ...

वीर तैयार होने के लिए बाथरूम में घुस जाता है l उधर ESS ऑफिस में अपने कैबिन के रेस्ट रूम के अंदर विक्रम एक आदम कद आईने के सामने खड़ा है और खुद को चाबुक से मार रहा है l क्यूँकी उसके कानों में, मॉल के पार्किंग एरिया में टकराए उस आदमी के कहे हर लफ्ज़ तीर के तरह उसके जेहन में चुभ रहे हैं l उसके आँखों में दर्द और नफरत के मिलीजुली भाव दिख रहे हैं l

"अगर यह तेरे दम पर मेरी माँ से बत्तमीजी की है... तो माफी माँगना अब तेरा बनता है"

विक्रम अपने हाथ का चाबुक जोर से चलाता है l च..ट्टा.....क्क्क्क्क्... विक्रम के पीठ पर एक लाल रंग का धारी वाला निशान बन जाता है l

"क्यूँ... तु नहीं जानता... तेरा बाप कौन है... तो जा... जाकर अपनी माँ से पुछ... वह बताएगी तेरा बाप कौन है..."

विक्रम फिर से चाबुक चलाता है l और एक लाल रंग का धार उसके पीठ पर नजर आता है l इस बार उस धार से खुन निकलने लगता है l पर विक्रम के चेहरे पर भाव ऐसे आ रहे हैं जैसे उसे जिस्मानी दर्द का कोई एहसास ही नहीं हो रहा है l उसके कानों में उस आदमी के कहे हर बात नश्तर की तरह उसके आत्मा में घुसे जा रहे हैं l

"सुन बे क्षेत्रपाल के चुजे... तेरा हर काम.. वह क्षेत्रपाल ही करेगा क्या... फ़िर तु क्या करेगा... या फिर तुझसे कुछ होता नहीं... इसलिए कुछ करने के लिए... तुझे क्षेत्रपाल टैग चाहिए... हाँ..."

फिर से विक्रम अपनी चाबुक चलाता है l फिर से उसके जिस्म पर और एक धार नजर आती है और उस धार के किनारे से खुन बहने लगती है l विक्रम अंदर खुद पर चाबुक चला रहा है यह बाहर किसीको भी पता नहीं चल पा रहा है l चूँकि वहाँ पर किसीमें इतनी हिम्मत है ही नहीं, विक्रम के कैबिन में जाए और रेस्ट रूम को जा कर उससे कुछ पूछे या खबर ले l इसलिए कुछ गार्ड्स और महांती ESS के कांफ्रेंस हॉल के बैठक में खड़े हुए हैं l इतने में महांती की फोन बजने लगता है l महांती देखता है कॉल वीर का है तो झटके से फोन उठाता है l

महांती - हैलो...
वीर - हाँ महांती... मैं गाड़ी में... ड्राइविंग कर रहा हूँ... अब मुझे डिटेल्स में बताओ... क्या हुआ है...
महांती - राजकुमार जी आप यहाँ आ जाइए... मैं डिटेल्स में बताता हूँ...
वीर - देखो जो भी है... फोन पर बताओ... पिक्चर तो दिखाओगे नहीं वहाँ... जब बताना ही है... अभी बताओ... क्या हो सकता है वहाँ पहुँचते ही डिसाइड करेंगे...
महांती - ओके...

महांती सभी गार्ड्स को इशारा करता है l सभी गार्ड्स वहाँ से चले जाते हैं l अब कांफ्रेंस हॉल में सिर्फ अकेला महांती बैठा हुआ है, सब चले गए यह निश्चिंत कर लेने के बाद

महांती - आज... छोटे राजा जी पर हमला हुआ है... वह प्राइमरी ट्रीटमेंट करा कर हॉस्पिटल से आ रहे हैं l...
वीर - क्या... क्या कह रहे हो... महांती... इस बार... हमारी इंटेलिजंस फैल कैसे हो गई...
महांती - हम... उसके स्नाइपर्स पर नजरे रखे हुए थे... इसलिए वह दुसरा रास्ता निकाल कर... छोटे राजाजी को सिर्फ घायल कर दिया...
वीर - सिर्फ़ घायल कर दिया... इसका क्या मतलब है महांती...
महांती - इस बार भी जान से मारना उसका लक्ष नहीं था... इस बार....(रुक जाता है)
वीर - हूँ... इसबार...
महांती - इसबार उन्होंने म्युनिसिपलटी ऑफिस में घुसपैठ किया...
वीर - व्हाट... हमारे सिक्युरिटी गार्ड्स के होते हुए...
वीर - राजकुमार... आप भूल रहे हैं... हमारी प्राइवेट सिक्युरिटी सर्विस है... सरकारी संस्थानों को उनकी अपनी सिक्युरिटी संस्थान मतलब... होम गार्ड्स सिक्युरिटी सर्विस होती है... हम सिर्फ पर्सन को सिक्युरिटी दे सकते हैं... पर सरकारी ऑफिस के अंदर हम एलावुड नहीं हैं... इसलिए अगर ऑफिस के अंदर कोई कुछ करता है... सिवाय सीसीटीवी के और कुछ हम हासिल नहीं कर सकते....
वीर - अच्छा... तो... उनपर हमला कैसे हुआ...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - क्या बात है महांती....
महांती - राजकुमार जी... उसने किसी कारीगर के जरिए... छोटे राजा जी के कुर्सी को छेड़छाड़ किया है...
वीर - अरे यार महांती... कब से तुम सस्पेंस बना रखे हो... साफ साफ कहो... और झिझक छोड़ कर कहो...
महांती - ओके देन... जिसने भी वह किया है... उसका इरादा छोटे राजा जी को... सबके सामने जलील करना था... इसलिए उसने छोटे राजा जी के चेयर पर एक वंशी कांटे जैसी कील को सेट कर दिया था.... और उसकी सेटिंग कुछ ऐसी थी के कोई भी बैठे... तो उस कील के पुट्ठ में घुसने के बाद घूम जाती है... और उसे निकालने के लिए... एक सर्जन की जरूरत पड़ती है....
वीर - मतलब एक कील इंप्लांट किया गया... छोटे राजाजी को जलील करने के लिए...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - क्या इसी बात के लिए... युवराज खुद को रेस्ट रूम में बंद कर रखा है....
महांती - (अपना सिर झुका कर) नहीं... उनके साथ... कुछ और हुआ है... और बहुत बुरा हुआ है...
वीर - क्या... (हैरान हो कर) उनके साथ कुछ और हुआ है का मतलब...

महांती सुबह से जो जो इंफॉर्मेशन हाथ लगी थी वह विक्रम के साथ कैसे शेयर किया और क्यूँ विक्रम ओरायन मॉल गया और पार्किंग एरिया में कैसे एक शख्स ने विक्रम और ESS के कमांडोज को कुछ ही समय में धुल चटा दी, सब वीर को बताता है l वीर यह सब सुन कर हैरान हो जाता है l

वीर - क्या... एक आदमी ने... युवराज और उनके गार्ड्स को अकेले...
महांती - जी... अकेले...
वीर - उस आदमी के बारे में कुछ पता चला....
महांती - नहीं...
वीर - कैसे... क्यूँ... क्यूँ नहीं पता चला... मॉल में सीसीटीवी होंगे... उसकी मदत से... आख़िर हमारी ही सिक्युरिटी सर्विलांस है वहाँ पर...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - महांती.... क्या बात है...
महांती - राज कुमार जी... यह कांड होने के तुरंत बाद... एक आदमी पुलिस की वर्दी में... फेक डॉक्यूमेंट्स के साथ... मॉल में हमारे कंट्रोल रूम में घुस गया... और आज की सारे सीसीटीवी फुटेज और पार्किंग एरिया के रिकॉर्ड्स सब अपने साथ ले गया....
वीर - व्हाट.... (गाड़ी के भीतर ही ऐसे उछलता है जैसे महांती ने कोई बम फोड़ दिया) व.. व्हाट... क... क्या मतलब हुआ इसका... क्या यह अटैक कोई प्लांड था...
महांती - आई डोंट थिंक सो... पार्किंग एरिया में जो हुआ... वह इत्तेफ़ाक था...
वीर - कैसे... तुमने ही कहा कि... रॉय ग्रुप के पुराने मुलाजिम मॉल के बाहर असेंबल हो रहे थे... तो यह पार्किंग एरिया वाला आदमी... यह उनका आदमी भी हो सकता है...
महांती - नहीं... वह लोग हफ्ते भर से हमारे सर्विलांस में हैं... उनके किसी भी कॉन्टैक्ट में... कोई बाहरी आदमी या उसकी माँ नहीं है...
वीर - बाहरी आदमी और माँ... यह क्या पहेलियाँ बुझा रहे हो...
महांती - राज कुमार जी... हमारे जी गार्ड्स अभी हस्पताल में इलाज करवा रहे हैं... उन्होंने जो बताया... (कह कर पार्किंग एरिया में जो हुआ बताता है)
वीर - एक आदमी और उसकी माँ... (कुछ याद करने की कोशिश करते हुए) एक... आदमी.... और... उसकी माँ...
महांती - क्या हुआ राजकुमार जी...
वीर - वैसे... क्या हुलिया था उसका...
महांती - पता नहीं...
वीर - व्हाट डु यु मिन... पता नहीं...
महांती - हमारे जो कमांडोज थे... वह नहीं बता रहे हैं...
वीर - क्यूँ...
महांती - उनको.... युवराज ने मना किया हुआ है.... मतलब हुकुम दिया है...
वीर - क्या.... क्यूँ... किसलिए....
महांती - यह बात... युवराज जी से मैं भी जानना चाहता हूँ... आप यहाँ आकर पहले उन्हें रेस्ट रूम से बाहर लाएं... प्लीज...
वीर - ओके... पहुँच रहा हूँ....

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तापस के क्वार्टर में
एक कोने में विश्व अपनी कान पकड़े खड़ा है l उसके सामने प्रतिभा गुस्से से गहरी सांसे लेती हुई मतलब हांफती हुई एक कुर्सी पर बैठी हुई है l प्रतिभा के हाथ में एक झाड़ू है l

विश्व - माँ (प्रतिभा उसके तरफ देखती है) जब से घर आए हैं... मुझे तुमने ऐसे ही दौड़ा रही हो... और झाड़ू से मार भी रही हो... अब मैं तुम्हारे पास आऊँ...

प्रतिभा अपनी जगह से उठती है और झाड़ू से विश्व के पैरों को मारने लगती है l विश्व उछलते कुदते मार खाने लगता है और चिल्लाने लगता है l

विश्व - आ.. ह्.... ओ... ह्...
प्रतिभा - (गुस्से से) बंद कर यह ओवर ऐक्टिंग... मुझे पता है... तुझे कोई दर्द वर्द नहीं हो रहा है... गुदगुदी हो रही है... असल में तू मुझे चिढ़ा रहा है... आने दे सेनापति जी को... उनके स्टिक से आज तुझे मन भरने तक मारूंगी...
विश्व - तब तक मैं थोड़ा बैठ जाऊँ... (सोफ़े पर बैठते हुए)
प्रतिभा - खबरदार जो बैठा तो... (विश्व फिर भाग कर सोफ़े के पीछे खड़ा हो जाता है)
विश्व - माँ... मैं थोड़ा बाथरूम हो कर आता हूँ... जोर की लगी है... और तुम भी थोड़ा आराम कर लो... देखो कितनी थक गई हो... मुझे मारते मारते तुम्हारे हाथ भी दर्द करने लगे होंगे... देखो सर पर पट्टी बंधी है और हाथ में भी...
प्रतिभा - (फिर झाड़ू उठा कर विश्व के पीछे भागती है) आ.. ह्... मुझे परेशान कर रहा है... (हांफते हुए) बात... बात नहीं मान रहा है... और... और...
विश्व - तभी तो कह रहा हूँ... थोड़ा सा आराम कर लो... कहो तो हाथ पैर दबा देता हूँ... जब थोड़ा अच्छा लगे... तब दोबारा से मारना चालू कर देना...
प्रतिभा - बदमाश... ऐसा कह कर तीन बार मेरे पैर दबाये... फिर दौड़ा रहा है.. हाथ भी नहीं आ रहा है...
विश्व - माँ... यह गलत बात है... मैं बराबर मार तो खा ही रहा हूँ...
प्रतिभा - ठीक है... इधर आ... आज तेरा पेट (झाड़ू उठा कर) इसीसे भर देती हूँ...
विश्व - माँ इससे मेरा पेट कैसे भरेगा... फिर तुम... अगर मैं तुम्हारे हाथ का बना नहीं खाया... तुम भी तो भूखी रह जाओगी...
प्रतिभा - नहीं... (झाड़ू को नीचे फेंकते हुए) तुझे जो करना है... कर... (सोफ़े पर बैठते हुए) सेनापति जी को आने दे... आज तेरा फैसला... सेनापति जी करेंगे...
विश्व - (भाग कर प्रतिभा के गोद में अपना सिर रख देता है और अपने दोनों हाथों से प्रतिभा को जोर से पकड़ लेता है) माँ... अब हम दोनों के बीच... सेनापति सर को क्यूँ ला रही है...
प्रतिभा - (विश्व को अपने से अलग करने की कोशिश करते हुए) ऊंह्... छोड़.... छोड़ मुझे...
विश्व - नहीं छोडूंगा....
प्रतिभा - तो बैठा रह यहीं पर... सेनापति जी को आने दो... वही फैसला करेंगे...
तापस - (अंदर आते हुए) अरे क्या फैसला करेंगे हम... (प्रतिभा को देख कर) अरे भाग्यवान यह तुम्हारे माथे पर पट्टी और कुहनियों भी पट्टी... क्या हुआ...
प्रतिभा - (रोनी सूरत बनाकर) जानते हैं आज क्या हुआ है....

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बड़ी हिम्मत जुटा कर रुप शुभ्रा की कमरे में आती है lशुभ्रा अपने बेड के हेड बोर्ड पर तकिये के सहारे टेक लगा कर आँखे मूँद कर बैठी हुई है l शुभ्रा के पास जाने के लिए रुप हिम्मत नहीं जुटा पा रही है l थोड़ी देर दरवाज़े के पास खड़े हो कर फिर मुड़ने लगती है l

शुभ्रा - क्या बात है रुप...
रुप - (मुड़ कर देखती है, शुभ्रा की आँखे लाल दिख रही हैं )(शायद बहुत रोई है) (रुप तेजी से भाग कर शुभ्रा के पैर पकड़ लेती है) मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी... ना मैं जानती थी... ना ही मैं चाहती थी... ऐसा कुछ हो... आई एम सॉरी... भाभी...
शुभ्रा - (चुप रहती है और रुप को देखती रहती है)
रुप - मैं... मैं... सच में करमजली हूँ... (रोने लगती है) मैं अगर कॉलेज से घर आ गई होती... तो... तो यह सब नहीं हुआ होता...भाभी.... प्लीज.... भाभी... प्लीज... मुझे माफ़ कर दीजिए...
शुभ्रा - रुप... (भर्राई हुई आवाज में) सच सच बताओ... क्या तुम प्रताप को पहले से जानती हो...

यह सवाल सुनते ही रुप स्तब्ध हो जाती है l वह शुभ्रा के आँखों में देखती है l रुप महसुस करती है शुभ्रा उसे शक की नजरों से देख रही है l

रुप - भाभी... मैं कसम खाकर कहती हूँ... मैं उस प्रताप को नहीं जानती...
शुभ्रा - (चुप रहती है पर रुप को गौर से देख रही है)
रुप - भाभी... मैंने खुले आम... सबके सामने.... आपको माँ का दर्जा दिया है.... आपसे हरगिज़ झूठ नहीं बोल सकती हूँ... मैं (शुभ्रा के पैर पकड़ कर) आपकी चरणों की कसम खाकर कह रही हूँ... मैं उसे नहीं जानती... नहीं जानती... नहीं जानती... (रो देती है)
शुभ्रा - मैं मानतीं हूँ... तुम उसे नहीं जानती हो... फिर भी मुझे कुछ क्लैरिफीकेशन चाहिए...
रुप - पूछिए भाभी...(सुबकते हुए)
शुभ्रा - हम जब लिफ्ट में थे.... तब तुमने... प्रताप से कुछ ऐसा कहा... जो मेरे हिसाब से गैर जरूरी था... और उसके जवाब सुन कर तुम शर्मा गई... और जब वह गार्ड्स से लड़ रहा था... तुमने अपने फिंगर क्रॉस कर लिए थे... और तुम्हारे भाई से जब लड़ रहा था तब... तुमने दोनों हाथों की मुट्ठी बना लिया था और... अपने दोनों अंगूठे को... एक दुसरे के ऊपर रगड़ रही थी... ऐसा कोई तब करता है.... जब सामने युद्ध में दोनों उसके अपने हों... इसलिए अब मुझे सच जानना है... सब सच सच बताओ....
रुप - (स्तब्ध हो जाती है) भाभी मैं फिर से अपनी बात दोहराती हूँ... मैं प्रताप को नहीं जानती... मगर... (चुप हो जाती है)
शुभ्रा - (उसे घूर कर देखती है) मगर...
रुप - पता नहीं भाभी... कैसे कहूँ... वह... वह मुझे... वह मुझे जाना पहचाना लगा...
शुभ्रा - क्या... वह प्रताप तुमको जाना पहचाना लगा... कैसे रुप...
रूप - भाभी... आप धीरज धरें और मेरी पुरी बात सुनें... याद है मैंने एक दिन आपसे अपनी बचपन की यादें शेयर करते हुए कहा था... के मुझे कोई पढ़ा रहा था...
शुभ्रा - अनाम...
रुप - हाँ... जब माँ की हत्या हुई थी...
शुभ्रा - क्या... सासु माँ की हत्या हुई थी...
रुप - भाभी... आत्महत्या भी एक तरह से हत्या ही होती है... किसीको जान देने के लिए विवश करना... उकसाना... क्या हत्या नहीं है...
शुभ्रा - चुप रहती है...
रुप - खैर चलो.. मैं ऐसे कहती हूँ... माँ के चले जाने के बाद... उस बड़े से महल में... मैं अकेली थी... ऐसे... जैसे एक सांप के पिटारे में... कोई चिड़िया का चूजा पलता हो... मैं चाची माँ के पास रहा करती थी.... वह जब मेरे पास नहीं होती थी... वह पुरा महल मुझे भुतहा लगता था... काटने को आता था...

बहुत ही दर्द भरी आवाज में कही थी रुप ने शुभ्रा को l रुप के हर एक लफ्ज़ में रुप की दर्द को महसुस कर रही थी शुभ्रा

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वीर ESS ऑफिस के कांफ्रेंस हॉल में घुस जाता है तो वहाँ सिर्फ महांती को बैठा पाता है l

महांती - राजकुमार... आप... युवराज जी के कैबिन में जा कर... उन्हें पहले यहाँ पर लाएं....

विश्व कांफ्रेंस हॉल से निकल कर विक्रम के कैबिन में घुसता है l वहाँ उसे टेबल पर आधी खाली शराब की बोतल दिखता है, और कुर्सी पर विक्रम के कपड़े दिखाई देते हैं l वह उधर उधर देखने लगता है l तभी उसको बाथरुम से पानी बहने की आवाज़ सुनाई देता है l वह बाथरूम के दरवाजे पर दस्तक देने लगता है

वीर - युवराज जी... दरवाज़ा खोलिए... प्लीज...

अंदर से कोई जवाब नहीं आता l वीर जोर जोर से दरवाज़े पर दस्तक देने लगता है और बार बार दरवाजा खोलने के लिए कहता है l

वीर - युवराज जी... आप दरवाजा खोलीए... नहीं तो हम दरवाजा तोड़ देंगे....

बाथरूम का दरवाज़े के नॉब पर हरकत होती है फिर धीरे से दरवाजा खुल जाता है l वीर के सामने विक्रम खड़ा था l विक्रम की आंखें लाल दिख रही थी और उसका बदन कमर से ऊपर नंगा था l उसके बदन पर कोड़ों के ताजा निशान साफ साफ दिख रहे थे l कुछ कुछ जगहों पर से खुन बह रहे थे l पर वीर के लिए सबसे ज्यादा चौकाने वाला जो था वह था विक्रम ने अपनी मूंछें मुंडवा लिया था l वीर के सामने वाला विक्रम एक दम अलग था l चेहरा कठोर और गम्भीर हो चुका था l वीर को कुछ सूझता नहीं वह विक्रम के हाथ पकड़ कर चेयर पर बिठा देता है l

वीर - यह... यह क्या है युवराज... आपने... अपनी मूंछें क्यूँ मुंडवा ली... क्यूँ... और... और खुदको इस कदर क्यूँ सजा दी है आपने...
विक्रम - उसे मूंछें रखने का कोई हक़ नहीं... जिसकी जिंदगी... उसके औरत ने हाथ जोड़ कर भीख में माँगी हो...
वीर - बस इतनी सी बात पर आपने... अपनी मूंछें मुंडवा ली...
विक्रम - इतनी सी बात... (गुर्राते हुए) यह आपको इतनी सी बात लग रही है... मेरी पुरूषार्थ तार तार हो गई है...(कहते हुए ऐसा लग रहा था जैसे उसके आँखों से अंगारे बरस रहे हैं) आपको इतनी सी बात लग रही है....
वीर - सॉरी युवराज...(हैरान हो कर) आप... हम से... मैं पर आ गए....
विक्रम - मैंने कहा ना... मेरी पुरूषार्थ अब लहू लुहान है...
वीर - (क्या कहे उसे समझ में नहीं आता) आपने अपनी मूंछें मुंडवा ली... समझ में आ गया... पर खुदको कोड़े से क्युं सजा दी...
विक्रम - मैं यह देख रहा था... कोड़े से कितना दर्द होता है... पर उसके कहे बातों के आगे... कोड़े से बने घाव में कुछ भी दर्द हो नहीं है... जरा सा भी नहीं...
वीर - क्या...
विक्रम - यकीन नहीं आ रहा है ना... जाओ... वह शराब की बोतल ला कर मेरे ज़ख्मों में डालो... (वीर उसे हैरानी भरे नजरों से देखता है, तो विक्रम उसे कहता है) जाओ... वह शराब की बोतल लाओ... (कड़क आवाज़ में)

वीर पहली बार आज विक्रम की हालत और आवाज़ से डर जाता है l वीर कांपते हुए शराब की बोतल लाकर विक्रम के ज़ख्मों पर शराब डालने लगता है l शराब डालते हुए वीर उन घावों की टीस को महसुस कर पाता है पर विक्रम के चेहरे पर कोई भाव उसे नजर नहीं आता है l विक्रम के चेहरे पर कोई भाव ना देख कर वीर के हाथों से बोतल छूट जाता है l

वीर - युव... युवराज जी... ऐसा क्या कह दिया है उसने जिसके दर्द के आगे.... कोड़ों का दर्द भी महसुस नहीं हो रहा है आपको...

विक्रम चुप रहता है, विक्रम की यह ख़ामोशी वीर को बहुत खलता है, उसी वक़्त वीर के मोबाइल फोन पर महांती का कॉल आता है l


वीर - हाँ बोलो... महांती...
महांती - युवराज और आप... कांफ्रेंस हॉल में जल्दी पहुँच जाइए... छोटे राजाजी आ गए हैं...

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तापस को बैठक में देख कर विश्व प्रतिभा को छोड़ कर एक कोने पर खड़ा हो जाता है l और प्रतिभा तापस देख कर मुहँ बना कर सिसकने लगती है l

तापस - अरे भाग्यवान क्या हुआ...
प्रतिभा - जानते हैं... आज क्या हुआ है...
तापस - नहीं जानता... इसलिए तो पूछा क्या हुआ है...
प्रतिभा - यह (विश्व को दिखाते हुए) आज ही पेरोल पर बाहर निकला है... और आज ही इसने मार पीट की है... और जानते हैं किससे...
तापस - (जिज्ञासा और हैरानी से) किससे....
प्रतिभा - विक्रम सिंह क्षेत्रपाल से...
तापस - क्या... वाकई... पर क्यूँ
विश्व - हाँ हाँ... अब बताओ...
प्रतिभा - तु तो मुझसे बात ही मत कर...
तापस - ठीक है... बताओ तो सही... तुम्हारा प्रताप... उनसे मार क्यूँ खा कर आया...
प्रतिभा - यह क्यूँ मार खाएगा... उल्टा इसने उन सबको धोया है...

फिर प्रतिभा तापस को पार्किंग एरिया में घटे सभी वाक्या, सब कुछ विस्तार से बताती है l सब कुछ सुनने के बाद तापस प्रतिभा से

तापस - हम्म... इसमे तो कहीं भी प्रताप का दोष नजर नहीं आ रहा है... और जो भी हुआ है ऑन द स्पॉट... वह सब सीसीटीवी में रिकॉर्ड हुआ होगा... और तुम अब जानीमानी वकील हो... इतने से ही डर गई...
प्रतिभा - हो गया... आप भी इस के साथ हो लिए... ठीक है... मैं... मैं किसी से भी बात नहीं करूंगी...

इतना कह कर प्रतिभा किचन की ओर चली जाती है l वहाँ पर सिर्फ़ तापस और विश्व रह जाते हैं l प्रतिभा को कैसे मनाया जाए, उसके लिए विश्व, तापस को इशारे से मूक भाषा में पूछता है l
तापस भी हैरान हो कर इशारे से मूक भाषा में पूछता है - क्या कहा...
विश्व - (इशारे से) किचन की ओर दिखा कर... आप जाओ ना... (अनुरोध करने की स्टाइल में) माँ को मनाओ ना...
तापस - (अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर इशारे में ही) ना... तुमने गुस्सा दिलाया है... तुम ही जा कर मनाओ...
विश्व - (इशारे से) मैं... मैं कैसे मनाऊँ... (अपने होठों को अपनी हाथों से स्माइल जैसा बना कर) उनके चेहरे पर मुस्कान कैसे लाऊँ....
तापस - (कुछ सोचने के अंदाज में) (फिर इशारे से) तुम किचन के अंदर जाओ... और उसे पीछे से पकड़ लो... और गालों पर एक चुम्मी ले लो... और तब तक मत छोड़ना... जब तक ना मान ले...
विश्व - (इशारे से) मान तो जायेंगी ना..
तापस - (इशारे में ही) अररे... पहले कोशिश तो कर...
विश्व - (मन ही मन में) ठीक है... हे भगवान... मदत करना... (ऊपर छत को देख हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता है, फिर किचन की ओर जाता है)

विश्व की हालत देख कर तापस अपनी हँसी को दबा कर बाहर बालकनी में चला जाता है l विश्व किचन में पहुँच कर प्रतिभा के कमर के इर्द-गिर्द अपनी बांह कस लेता है और प्रतिभा के गाल पर एक चुम्मी लेता है l

विश्व - माँ... गुस्सा थूक दो ना...

प्रतिभा जिस चिमटे से गैस पर रोटी सेंक रही थी उसे विश्व के हाथ में लगा देती है l

विश्व - (अपना हाथ निकाल देता है) आ... ह्.. माँ.. देखो... क्या किया तुमने... हाथ जल गया... आ... ह्
प्रतिभा - हो गया तेरा ड्रामा... या और एक बार फिर से लगाऊँ...
विश्व - नहीं... हो गया माँ... हो गया... ए माँ... प्लीज मान जाओ ना... प्लीज गुस्सा थूक दो ना...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) वह बाद में देखेंगे...(विश्व की ओर देखते हुए) पहले यह बता... सेनापति जी ने तुझे यहाँ भेजा है ना...
विश्व - (मुस्करा देता है, और अपना सिर हाँ में हिलाता है)
प्रतिभा - और तुम दोनों ने जरूर मूक भाषा में बात की होगी... इशारों इशारों में... है ना...
विश्व - (हैरान हो कर) माँ यह आपने कैसे जान लिया...
प्रतिभा - तु भले ही मेरे कोख से नहीं आया... पर तु मेरे आत्मा से जुड़ा हुआ है... तेरी यह हरकत भी मैं समझ गई थी...
विश्व - माँ... (थोड़ा सीरियस हो कर) अगर तुम्हारी आत्मा से जुड़ा हुआ हूँ... तो मेरी दर्द को भी समझी होगी ना... उस पार्किंग में जो तुम्हारे साथ हुआ... वह मंज़र मेरे लिए कितना दर्दनाक था....(विश्व के आँखों में आंसू के बूंदे दिखने लगते हैं)
प्रतिभा - (उसकी आँखों को पोछते हुए) जानती हूँ... पर तु भी समझ पा रहा होगा ना... मुझे किस बात का दर्द हो रहा था...
विश्व - (अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) हूँ...
प्रतिभा - खैर... अब जो होगा देखा जाएगा... पहले यह बता... तेरे और सेनापति जी के बीच वह कौनसी मौन दीवार है... जिसके वजह से... ना तो वह तुझे बेटा कह पा रहे हैं... और ना ही तु उन्हें डैड...
विश्व - (अपना सिर झुका लेता है, और कुछ कह नहीं पाता)
प्रतिभा - अगर कोई दीवार था भी... तो आज गिर चुकी है...
विश्व - (हैरानी से सवालिया नजरों से प्रतिभा की ओर देखता है)
प्रतिभा - वह जरूर अब बालकनी में होंगे...
विश्व - आपको कैसे पता...
प्रतिभा - (विश्व की चेहरे को अपने दोनों हथेली में लेकर) क्यूंकि यह इशारों वाली मूक भाषा में... प्रत्युष बातेँ किया करता था... आज तुने इशारों में बात करके... उन्हें प्रत्युष की याद दिला दी...
विश्व - (हैरान हो जाता है)
प्रतिभा - अब तेरा फ़र्ज़ बनता है... तु उन्हें... उस दुख में देखेगा या... उस दुख से उबारेगा....जा

विश्व हिचकिचाते हुए प्रतिभा को देखता है l प्रतिभा उसे इशारे से बालकनी जाने को कहती है l विश्व एक झिझक के साथ बालकनी की ओर जाने लगता है l प्रतिभा भगवान को याद करते हुए हाथ जोड़ कर आँखे मूँद लेती है l

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रुप अपनी पुराने दिनों की याद में खो गई थी l शुभ्रा उसे झिंझोडती है I रुप होश में आती है l

रुप - हाँ.... हाँ... भाभी... आज से... पंद्रह साल पहले मैं पुरी तरह से अनाथ हो गई थी... माँ की जगह चाची माँ ने ले तो ली थी... हाँ बहुत प्यार भी दिया है उन्होंने... पर मैं बाहर कहीं नहीं जा सकती थी... (एक फीकी हँसी हँसते हुए) आखिर क्षेत्रपाल परिवार की बेटी थी... राज कुमारी थी... मैं सिर्फ़ घर पर रह सकती थी... किसीसे दोस्ती... हूँह्.. सोच भी नहीं सकती थी... मेरे भाई भी मेरे पास नहीं थे... शुरु से ही बोर्डिंग में पढ़ रहे थे... मुझे पढ़ाने के लिए कोई सोच भी नहीं रहे थे... वह तो चाची ने बहुत कहा... के रुप कभी ना कभी किसी राज घराने में जाएगी... अगर क्षेत्रपाल घर की बेटी अनपढ़ होगी तो... क्षेत्रपाल परिवार की इज़्ज़त क्या रह जाएगी... तब छोटे राजा जी ने एक रास्ता निकाला... गांव के स्कुल के प्रधानाचार्य श्री उमाकांत आचार्य जी से मदत के लिए कहा गया... तब एक दिन आचार्य जी.. एक लड़के को साथ लेकर छोटे राजाजी और चाची माँ के साथ आए...

फ्लैश बैक...

पंद्रह साल पहले
क्षेत्रपाल महल

पांच साल की रुप अपनी कमरे की बालकनी में खड़ी बाहर आसमान में उड़ रहे चिडियों को देख रही थी l तभी कमरे में पिनाक सिंह, सुषमा, आचार्य जी एक तेरह साल के लड़के के साथ आते हैं l

पिनाक - राजकुमारी जी... (रुप पीछे मुड़ती है और अपने कमरे में आती है) यह हैं आपके स्कुल के हेड मास्टर... उमाकांत आचार्य... (रुप हैरान हो कर सुषमा को देखती है)
सुषमा - हाँ राजकुमारी... आपका एडमिशन करा दिया गया है... स्कुल में... अब आप पढ़ेंगी... (पढ़ने की बात सुन कर रुप के चेहरे पर एक खुशी दिखती है) यह आपके (उमाकांत आचार्य को दिखाते हुए) प्रधान आचार्य जी हैं...
पिनाक - नहीं.. आप स्कुल नहीं जा रही हैं... (रुप को झटका लगता है) (आचार्य जी से) ए मास्टर... बताओ... हमारी राजकुमारी को... उनकी पढ़ाई कैसे होने वाली है...
आचार्य - राजकुमारी जी... यह लड़का (अपने साथ लाए लड़के को दिखा कर) आपको पढ़ाएगा... आप घर में रह कर पढ़ाई करेंगी... आपको स्कुल सिर्फ परीक्षा के दिन आना होगा... बाकी साल भर आपको यह लड़का पढ़ाएगा....
पिनाक - (उस लड़के से) ऐ लड़के... जैसा समझाया गया है... बिल्कुल वैसे ही... वरना तेरी खाल उधेड ली जाएगी...
सुषमा - (रुप के पास आकर) बेटी... आप इस लड़के के बात कीजिए... अगर आपको अच्छा लगे... तभी आपकी पढ़ाई आगे जाएगी... (रुप अपना सिर हिला कर हाँ कहती है) (पिनाक से) तो हम कुछ देर के लिए बाहर चलें... अगर राजकुमारी जी को अच्छा लगेगा... तो हम आगे की सोचेंगे...
आचार्य - जी जैसा आप ठीक समझे...
पिनाक - तो फिर चलते हैं... आधे घंटे के बाद आकर देखते हैं...

तीनों कमरे से बाहर चले जाते हैं l रुप उस लड़के को घुर के देखती है l वह लड़का अपना सिर झुका कर खड़ा है l

रुप - ह्म्म्म्म... ऐ लड़के.... तुम्हारा नाम क्या है..
लड़का - जी राजकुमारी...
रुप - वह तुम मुझे कहोगे... मैंने क्या पुछा सुनाई नहीं दिया... बहरे हो क्या... क्या नाम है तुम्हारा...
लड़का - जी.... मेरा नाम... वह... मेरा नाम... अनाम है...
रुप - यह क्या बकवास है... अनाम भी कोई नाम होता है... सच सच बताओ... वरना अभी बुलाती हूँ सबको...
अनाम - (वैसे ही अपना सिर झुका कर) जी सच कह रहा हूँ... मेरा नाम अनाम है... और मैं इसका मतलब भी समझा सकता हूँ...
रुप - (अपनी छोटी सी चेयर पर बैठ जाती है) बताओ हमे...
अनाम - जी जिसे हम नाम समझते हैं... असल में उस नाम में... रुप, चरित्र और गुण... उस नाम की सीमा में बंध जाते हैं... जबकि ईश्वर के वास्तविक स्वरुप... निर्गुण व निराकार... ऐसा स्वरुप... जो नाम ना बांध पाए... उसे अनाम कहते हैं...
रुप - ह्म्म्म्म समझ में तो कुछ नहीं आया... पर अच्छा लगा...
अनाम - जी धन्यबाद..
रुप - और सुनो... अपने कान खोल कर सुनो... तुम मुझसे बड़े हो... और लड़के भी हो... पढ़ाने आए हो... इसका मतलब यह नहीं... के मुझ पर रौब झाड़ोगे... यह तो सोचने की गलती... कभी ना करना... की यह लड़की है... नाजुक है... ऐसा.... समझे... ऐसा समझने की भूल मत करना... मैं बहुत खतरनाक हूँ....
अनाम - जी राजकुमारी जी... समझ गया... मैं भले ही लड़का हूँ... पर जो भी हूँ... जैसा भी हूँ... खतरनाक बिल्कुल नहीं हूँ....

फ्लैशबैक से बाहर आकर

रुप - मेरे बचपन का सात साल... उसके साथ गुज़रा है भाभी... मेरा एक अकेला दोस्त... जब वह मेरे साथ होता था... मुझे लगता था कि मैं राजकुमारी हूँ... वरना... शेर के पिंजरे में दुबकी हुई भेड़ से ज्यादा औकात नहीं थी मेरी... जब वह मेरे पास होता था... मैं आसमान में उड़ने वाली कोई पंछी होती थी... एक वही था... जिससे मैं रूठ सकती थी... और वह मनाता था... मेरी हर खुशियों का खयाल रखता था... मैं अपनी सारी खीज.... अपना सारा डर को गुस्से में ढाल कर उस पर उतार देती थी... वह हँसते हँसते सब सह लेता था... पर जब मैं बारह वर्ष की हुई... मेरा पहला मासिक धर्म अनुभव हुआ... तब सब खतम हो गया... उसका आना बंद कर दिया गया... आठ साल हो गये हैं मुझे उससे अलग हुए... जब प्रताप को देखा तो मन में एक सवाल उठा... कहीं यह अनाम तो नहीं... इसलिए जिज्ञासा वश मैंने लिफ्ट में वह सवाल किया... और भाभी ताज्जुब की बात यह थी... ज़वाब बिल्कुल वही था... इसलिए एक अनजानी खुशी के मारे मैं शर्मा गई थी... पर भाभी (आवाज़ भर्रा जाती है) यह... यह अनाम हो नहीं सकता....
शुभ्रा - क्यूँ... क्यूँ नहीं हो सकता...
रुप - क्यूँकी... अनाम अनाथ था भाभी.... अनाथ था... बचपन में ही उसकी माँ का देहांत हो गया था... उसकी एक बड़ी बहन थी... जिसे डाकुओं ने उसके पिता की हत्या कर उठा लिया था... और यह मॉल वाला प्रताप... अपने माँ के साथ आया था... और उस औरत को देख कर लगता है... प्रताप का बाप जिंदा है.... भाभी.... यही सच है....

कह कर रुप सुबकने लगती है l शुभ्रा रुप को अपने गले से लगा लेती है और दिलासा देते हुए रुप की पीठ पर हाथ सहलाते हू फेरती है l

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कांफ्रेंस हॉल में वीर और विक्रम आते हैं l विक्रम की बिना मूँछ वाली चेहरा देखकर पिनाक और महांती हैरान हो जाते हैं l वीर के चेहरे पर जहां थोड़ी बहुत परेशानी दिख रही है वहीँ विक्रम के चेहरे पर कठोरता झलक रही है l

पिनाक - यह... यह क्या है युवराज....
वीर - वह... वह... आपको जलील होने से नहीं रोक पाए ना... इसलिए... इसलिए युवराज अपनी मूंछें मुंडवा ली...
पिनाक - ओह... शाबाश युवराज... शाबाश... अब हमारे दुश्मन की खैर नहीं... उस बात की कीमत बहुत होती है... जिसके लिए दाव पर जान, जुबान और इज़्ज़त लगी हो... आई एम डैम श्योर... अब हमारा दुश्मन पाताल में भी छुप जाए... बच नहीं सकता...
वीर - जी जरूर... मेरा मतलब है कोई शक़...
पिनाक - यह... आप क्यूँ बार बार ज़वाब दे रहे हैं राजकुमार...
वीर - वह... वह... एक्चुयली... आपके घायल होने पर युवराज ने... दुख भरा मौन धर लिया है...
पिनाक - ओह.. युवराज... आपने तो... इसे दिल पे ले लिया है... अब दिलसे कैसे उतरेगी यह भी सोच लीजिए....

तभी पिनाक का फोन बजने लगती है l पिनाक देखता है अननोन प्राइवेट नंबर डिस्प्ले हो रहा है l पिनाक समझ जाता है के ज़रूर उसके दुश्मन ने फोन किया है l फोन के लगातार बजने से सबका ध्यान पिनाक के तरफ चला जाता है l पिनाक सब पर एक नजर डालता है और फिर फोन उठाता है

पिनाक - हाँ बोल हराम जादे...
xxx- अरे वाह.... आपने नाजायज बाप को पहचान लिया... ऑए शाबाश... हा हा हा हा...
पिनाक - हरामी के औलाद... जितना चाहे हँस ले... यह तेरी आखिरी हँसी है... क्यूंकि अगली बार से... तु सिर्फ़ रोएगा....
xxx - अच्छा यह तो ब्रेकिंग न्यूज है... कौनसे चैनल में आ रहा है...
पिनाक - भोषड़ी के... मादरचोद... जितना तेरे हिस्से में था... उतना उछल लिया है... अब अपनी मैयत की तैयारी कर ले...
xxx - अरे यार... मैंने तो सिर्फ़ तेरी गांड मारने की कही और मार भी ली... पर तु तो धुआँ धुआँ हो गया है... हा हा हा हा... मजा आ गया... लोगों से काम ले कर बीच राह में गांड मारने की आदत थी... अब कैसा लग रहा है... भाई मुझे तो मजा आ रहा है.... हा हा हा...

पिनाक फोन काट देता है और वह उन तीनों को देखता है l फिर तीनों से

पिनाक - यह फोन आखिरी होनी चाहिए... कैसे होगा... यह तुम लोग सोच लो....

कह कर पिनाक वहाँ से चला जाता है l महांती विक्रम की ओर देखता है और पूछता है

महांती - युवराज जी... क्या करें... ऑर्डर दीजिए...
वीर - मैं ऑर्डर करता हूँ... महांती... उनके तरफ के कितने लोग हमारे सर्विलांस में हैं...
महांती - वह चार शूटर और... कुछ और लोग...
वीर - ठीक है... सबको एक साथ उठा लो..
महांती - क्या... (उछल पड़ता है) सबको...
वीर - क्यूँ... कोई प्रॉब्लम...
महांती - नहीं... बिल्कुल नहीं... उठाकर करना क्या है...
वीर - सबको... राजगड़ ले जाओ... आखेट के लिए... एक एक को... लकड़बग्घों के सामने डालो... और वह सब उन्हें लाइव दिखाओ... वह भी पास से... उसे देख कर और झेल कर... वहाँ पर जो जितना टूटेगा... वह उतना लिंक देगा... फिर उस लिंक को फॉलो करो... आई थींक वी कैन क्रैक ईट....
महांती - ओके...
वीर - यह तुम पर्सनली हैंडल करो... जाओ अब...
महांती - ठीक है...

कह कर महांती वहाँ से चला जाता है l अब कांफ्रेंस हॉल में सिर्फ़ वीर और विक्रम रह जाते हैं l वीर विक्रम की ओर देखता है

वीर - सब चले गए... आप क्या सोच रहे हैं... युवराज...
विक्रम - यही... मेरी प्रैक्टिस में कहाँ कमी रह गई....
वीर - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) युवराज... आप जिनके साथ प्रैक्टिस कर रहे थे... वह हमारे ही मुलाजिम थे... वह कभी भी आप पर हावी होने की कोशिश नहीं की... इसलिए...
विक्रम - ह्म्म्म्म... आप सही कह रहे हैं... अपने ही मुलाजिमों से लड़ते हुए.. उनसे जीत कर... खुद को अनबीटन समझने लगा था... यही गलती हो गई थी मुझसे...
वीर - (चुप रहता है)
विक्रम - उसकी तेजी... उसकी फुर्ती... उसके ताकत के सामने... मैं ठहर नहीं पाया... मैं जहां उन्नीस था वह बीस नहीं इक्कीस था... उससे लड़ते वक़्त लग रहा था जैसे कोई कंक्रीट के स्ट्रक्चर से लड़ रहा हूँ...
वीर - सिर्फ़ इतनी सी बात पर खुदको सजा दी आपने...
विक्रम - बात अगर मार पीट तक होती तो... सिर्फ़ इतनी सी बात होती... उसके दिए वह तानें... मेरी वज़ूद को नेस्तनाबूद कर दिया है...(विक्रम उठ खड़ा होता है) अब हमारी फिरसे मुलाकात होगी... उस मुलाकात में या तो उसकी हार होगी या फिर मेरी मौत...

वीर के जिस्म में एक सिहरन दौड़ जाती है l वह भी खड़ा हो जाता है

वीर - ठीक है... युवराज जी... हम सब मिलकर उसे ढूंढेंगे...
विक्रम - नहीं... ही इज़ ऑनली माइन... अब उसके और मेरे बीच तीसरा कोई नहीं आएगा... आप भी नहीं... और तब तक इस ESS को आप संभालीये...
वीर - पर युवराज... मैं कैसे... मतलब...
विक्रम - अब मेरा लक्ष... बदल चुका है... अब मुझे ना चैन होगा ना सुकून होगा... जब तक इन हाथों को उसके खुन ना होगा....

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बाल्कनी में तापस सहर की तरफ देख रहा है l विश्व उसके पास आकर खड़ा होता है l तापस की ओर देखे वगैर

विश्व - सॉरी...
तापस - (विश्व की ओर देखे वगैर) किस लिए...
विश्व - वह... मेरे वजह से... आपकी आँखे नम हो गई...
तापस - ईट्स ओके... पर थैंक्स...
विश्व - किस लिए...
तापस - पल भर के लिए सही... उस बहुत ही खूबसूरत पल का... उसे याद दिलाने के लिए... कभी जिसका हिस्सा हुआ करता था...
विश्व - आप भले ही याद किए... पर सच यह भी है... आज उस पल का आप हिस्सा थे और आज इस पल के भी हैं.... और मैं चाहता हूँ... आने वाले दिनों में ऐसे अनगिनत पल आते रहें...
तापस - (विश्व की ओर हैरान हो कर देख कर) क्या...
विश्व - जो बीत गया वह अतीत था... जो बीत रहा है वह वर्तमान है... और जो बितेगा... बितेगा तो जरूर... वह आने वाला कल है...
तापस - (कुछ समझ नहीं पाता) मतलब...
विश्व - (तापस की ओर मुड़ता है) क्या... मैं आपको... डैड कहूँ...

कुछ देर के लिए बालकनी में सन्नाटा छा जाता है l तापस विश्व को हैरान हो कर आँखे फाड़ कर देखने लगता है l

विश्व - ठीक है... अगर आपको बुरा लगा तो... (आगे कुछ नहीं कह पाता है मुड़ कर अंदर जाने लगता है)
तापस - रुको... (विश्व रुक जाता है)
विश्व - क्या बात है डैड...
तापस - मैंने कहा भी नहीं है और तुम...
विश्व - हाँ... आपने मुझे पीछे से बुलाया है तो... मतलब यही है... के आपको मंजूर है.. है ना डैड...
तापस - ऑए... डैड के बच्चे... बातेँ बड़ी बड़ी करता है... गले से लग कर भी तो पुछ सकता था...
विश्व - हाँ कर तो सकता था... खैर आप भी क्या याद रखेंगे... यह शिकायत भी दूर किए देता हूँ... (कह कर तापस के गले लग जाता है)

विश्व के गले लगते ही तापस की रुलाई फुट पड़ती है और वह देखता है प्रतिभा खुसी के मारे उन दोनों के तरफ एक टक देखे जा रही है l

प्रतिभा - क्या मैं भी तुम लोगों के साथ जॉइन हो जाऊँ....

तापस अपनी बांह खोल देता है प्रतिभा भी आकर दोनों के गले लग जाती है l कुछ देर बाद प्रतिभा कहती है

- चलो चलो मैंने खाना लगा दिया है... वहीँ टेबल पर खाते हुए बातेँ करेंगे...

सब डायनिंग टेबल पर आकर बैठ जाते हैं l प्रतिभा सबके प्लेट लगा देती है और खाना परोस देती है l खाना खाते वक़्त

तापस - विश्व...
प्रतिभा - क्या... (गुस्से से घूरती है)
तापस - ओके ओके... प्रताप...
विश्व - जी....
तापस - इन सात सालों में... तुमको शरारत करते हुए... आज पहली बार देख रहा हूँ... तुम्हारे चरित्र का ऐसा भी एक एंगल हो सकता है... यह मैं नहीं जानता था...
विश्व - क्यूँकी... आज से पहले... (उन दोनों के हाथ पकड़ लेता है) आप दोनों मेरे जिंदगी में नहीं थे...

तापस और प्रतिभा को अंदरुनी बहुत खुशी महसूस होती है l दोनों एक दूसरे को देखते हैं फिर विश्व के हाथ पर अपना हाथ रख कर थपथपाते है l उसके बाद तीनों खाना खाने लग जाते हैं l तापस को महसूस होता है कि प्रतिभा खाना खाते वक़्त थोड़ी खोई खोई लग रही है l

तापस - क्या बात है भाग्यवान... आज फॅमिली रीयुनीअन हो जाने के बाद भी... तुम खोई खोई सी हो...
प्रतिभा - हाँ... वह.. प्रताप आज पेरोल पर बाहर है... और आज ही... (चुप हो जाती है)
तापस - कुछ नहीं होगा...
प्रतिभा - यह आप कैसे कह सकते हैं... मॉल की सिक्युरिटी और सर्विलांस उनके हाथ में है... अगर कुछ मैनीपुलेट हुआ... तो गड़बड़ हो जाएगी... यही चिंता सताये जा रही है...
विश्व - माँ (प्रतिभा के हाथ पर हाथ रख कर) कुछ नहीं होगा...
तापस - हाँ... प्रताप ठीक कह रहा है... कुछ नहीं होगा...
प्रतिभा - (तापस से) इसकी बात छोड़िए... यह तो कुछ भी बोल देगा... पर मुझे हैरानी इस बात पर है... की इतने बड़े कांड हो जाने पर भी... आपके चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं....
तापस - सबुत होगा तो मैनीपुलेट होगा ना...
प्रतिभा - मतलब...
विश्व - यही की... सारे सीसीटीवी की फुटेज को डैड ने गायब कर दिया है...
प्रतिभा - क्या... यह कब हुआ... और तु... तु कैसे जानता है... कहीं तुम दोनों की कोई खिचड़ी तो नहीं...
विश्व - माँ... क्या लगता है... मैं तुमको झूठ बोल रहा हूँ...

प्रतिभा पहले तापस को देखती है तापस भी हैरान है और फिर विश्व को देखती है और अपना सिर ना में हिलाती है l

विश्व - पहले तुम... जब मेरा पेरोल करा कर मुझे बाहर ले जाया करती थी... तब डैड एक दिन की छुट्टी लेकर हमारा पीछा किया करते थे... अब चूँकि वीआरएस पर हैं... तो छुट्टी ही छुट्टी है...
प्रतिभा - क्या...(तापस से) मतलब... आप घर देखने नहीं गए थे... (विश्व से) और तुझे पता था कि यह हमारे पीछे हैं...
विश्व - मालुम तो नहीं था... पर अंदाजा था... और जब डैड ने कहा कि सबुत होगा तो मैनीपुलेट होगा... बस तब पुरी बात समझ में आ गई...
प्रतिभा - क्या समझ में आ गई...
विश्व - यही के... डैड पुलिस की वर्दी में जाकर... झूठे वारंट के कागजात दिखा कर...शुरु से सर्विलांस रुम में होंगे... जब कांड होते देखा होगा... मास्टर रिकॉर्डिंग गायब कर दिए होंगे....
तापस - ह्म्म्म्म... चलो एक बात तो पता चला... स्मार्ट हो गए हो... आँख और कान हमेशा खुले रखते हो...

विश्व कुछ नहीं कहता है सिर्फ़ मुस्करा देता है l

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शुभ्रा - रुप... मैं तुम्हारी कही हर बात पर विश्वास करती हूँ... पर यह तुम भी जानती हो... आज जो हुआ... ठीक नहीं हुआ...
रुप - हाँ भाभी... अब सच में... मुझे डर लगने लगा है...
शुभ्रा - अच्छा रुप... अनाम और प्रताप का चेहरा मिलता-जुलता है क्या...
रुप - पता नहीं भाभी... अनाम का चेहरा धुँधला सा याद है... शायद प्रताप उसके जैसा दिखता हो...
शुभ्रा - हाँ... हो सकता है... और लिफ्ट में जो हुआ... वह इत्तेफ़ाक भी हो...
रुप - शायद... पर भाभी अब यह सब सोचने से क्या फायदा... बनने से पहले सब बिगड़ गया ना...
शुभ्रा - (थोड़ा हँसते हुए) मतलब... तुम सच में प्रताप से इम्प्रेस हुई थी...
रुप - पता नहीं (अपना सिर झुका लेती है)
शुभ्रा - (रुप के गाल पर हाथ फेरते हुए) तुमको क्या लगता है... राज परिवार या राजनीति में रसूखदार परिवार को छोड़... तुम्हारे रिश्ते को... और कहीं मंजुरी मिल सकती है... यह कुछ दिन बाद भी होता... तो यह सब होता जरूर... हाँ वजह कुछ और होता... मगर यह होता जरूर...
शुभ्रा - भाभी... आपको... भैया के लिए बुरा लग रहा है ना....
शुभ्रा - हाँ लग रहा है... पर प्रॉब्लम यह है कि... प्रताप कहीं पर भी गलत नहीं है... और तेरे भैया उस वक्त गलत थे....
रुप - (अपने होठों को दबा कर अंदर कर लेती है दुसरी ओर देखने लगती है) अब भैया क्या करेंगे....
शुभ्रा - रूप... पहली बार किसीने... तेरे भाई को हार दिखाया है... और चोट... उनके भीतर को पहुँचाया है... अब या तो वह टुट कर बिखर जाएंगे... या फिर उभर कर निखर जाएंगे....
 

Rajesh

Well-Known Member
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👉छब्बीसवां अपडेट
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" कैबिनेट की सिफारिश के बाद जल्दी जल्दी सुनवाई के लिए अदालत तैयार हो गई थी..... और पिछली सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष के वकील श्री जयंत कुमार राउत जी के दलीलों को स्वीकार कर....... अदालत ने अपने परिसर के बाहर पांच सौ मीटर की दूरी तक मीडिया कवरेज के लिए रोक लगा दी है.... पर मीडिया को सुनवाई के तुरंत बाद मीडिया को कोर्ट रूम की पूरी जानकारी मुहैया की जाएगी..... अभी कुछ ही समय पहले पुलिस अभियुक्त को कोर्ट रूम में लेकर गई है.... मनरेगा घोटाले की जांच पर सुनवाई के लिए.... आज का दिन बहुत ही खास है.... क्यूंकि आज प्रोसिक्युशन के तरफ से अभियुक्त के विरुद्ध पुलिस की जांच की पक्ष रखी जाएगी.... क्यूँकी दोनों वकील भी अनुबंधित हैं इसीलिए... मीडिया से कोई किसी भी प्रकार से बातचीत नहीं कर रहे हैं.... परंतु हमारे सूत्र हमे बता रहे हैं... की आज अभियोग पक्ष अपनी तगड़ी तैयारी की हुई है... इसलिए आज की दिन की कारवाई की अधिक जानकारी के लिए हम समय समय पर पुष्टि करते रहेंगे.... कैमरा मैन सतबीर के साथ मैं प्रज्ञा खबर ओड़िशा के लिए "
ख़बर सुन कर पिनाक कमरे में इधर उधर हो रहा है l वीर अपने मस्ती में धुन मोबाइल पर गेम खेलने में व्यस्त है l
पिनाक - क्यूँ राजकुमार... आज नहीं गए कॉलेज के लिए..
वीर - जाना चाहिए था क्या...
पिनाक - तो होटल में क्या करेंगे आप....
वीर मोबाइल रख देता है,
वीर - छोटे राजा जी... आपका ध्यान कहाँ है.... किसके ऊपर का गुस्सा निकाल रहे हैं....
पिनाक - नहीं तो... आपको ऐसा क्यूँ लगा...
वीर - क्यूँ की सवाल तो ठीक पूछ रहे हैं.... पर आपका मुड़... सवालों के साथ... मैच नहीं हो रहा है....
पिनाक - ठीक है.. ठीक है... आप अपने मोबाइल पर... बिजी हो जाइए.... और हमे... ह्म्म्म्म कुछ सोचने दीजिए....
पिनाक मन में - पता नहीं कोर्ट में क्या हो रहा होगा अब.... राजा साहब कह रहे थे... प्रधान और रोणा दोनों केस के दौरान उपस्थित रहेंगे... पर उन दोनों ने... मुझसे कॉन्टैक्ट अभी तक नहीं किया.... क्यूँ.. ह्म्म्म्म... कोई नहीं... जब पता चलेगा... आज की सुनवाई खतम हुई... तब उन दोनों से फोन पर सारी जानकारी लेनी होगी.... ह्म्म्म्म...


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कोर्ट रूम में
अभियोजन पक्ष, अभियुक्त पक्ष के वकील, तापस अपने कुछ साथी कर्माचारियों के साथ विश्व को लेकर बैठे हुए हैं l वैदेही जयंत के कुर्सी के पीछे वाली बेंच पर बैठी हुई है l
हॉकर जजों के आने का संकेत देता है l सभी अपने स्थान पर खड़े हो जाते हैं l पैनल के तीनों जज रूम के अंदर आते हैं और अपना स्थान ग्रहण करते हैं l उनके बैठते ही सब अपने अपने जगह पर बैठ जाते हैं l
हमेशा की तरह जज - ऑर्डर.... ऑर्डर.... आज की कारवाई शरू की जाए... जैसे कि तय हुआ था.... आज अभियोजन पक्ष अपना पक्ष रखेंगे... और साथ साथ गवाहों के बयानों की कॉपी और सबूतों की कॉपी के साथ गवाहों की लिस्ट भी अदालत में जमा करने के साथ.... अभियुक्त पक्ष को भी देना होगा.... जिसे परखने के बाद.... अभियुक्त अपना पक्ष रखेंगे....
क्या किसीको कोई आपत्ति है...
दोनों वकील अपने अपने जगह पर खड़े होकर - नो योर ऑनर...
जज - ठीक है... अभियोजन पक्ष के वकील को अनुमती दी जाती है... वह अपना पक्ष... अदालत के सामने प्रस्तुत करें....
प्रतिभा - (अपने सीट से उठ कर) थैंक्यू... माय लॉर्ड.... आज अदालत में एक ऐसा केस आया है.... जिसकी कल्पना शायद किसीने नहीं की थी.... जिस पर पूरे राज्य के जनता की आंखे लगी हुई है.... जो भी हुआ है... निश्चित रूप से शर्म सार कर देने वाली घटना है.... (विश्व की ओर देख कर) यह जो मुल्जिम के कटघरे में खड़ा है.... दिखने में कितना मासूम... भोला दिख रहा है.... सबसे आश्चर्य चकित करने वाली बात यह है कि... यह सिर्फ़ इक्कीस वर्ष की आयु का है... तो मन में स्वतः प्रश्न उठते हैं... क्या इतनी छोटी उम्र में... इतना बड़ा अपराध कोई कर सकता है.... शायद हाँ... और उदाहरण स्वयं विश्व है... जुर्म की दुनिया में... क्या विश्व एक मात्र उदाहरण है.... नहीं माय लॉर्ड नहीं.... आप इन्टरनेट पर खोजने पर ऐसे अपराधियों को लंबी लिस्ट दिख जाएगी... इसलिए जब इनके द्वारा किए गए जुर्म की समीक्षा होगी.... तब इनके उम्र को देखा ना जाए....
इतना कह कर प्रतिभा चुप हो जाती है, और जयंत के तरफ देखती है, पर जयंत प्रतिभा के तरफ बिल्कुल नहीं देखता है l प्रतिभा अपनी टेबल पर आकर अपनी फाइल उठाती है और जज की ओर देखती है l
प्रतिभा - योर ऑनर.... मुल्जिम के बारे में पुलिस अपनी छानबीन में जो पता लगाया है... वह अब मैं विस्तार से अदालत को बताना चाहती हूँ.....
इस शख्स का नाम विश्व प्रताप महापात्र है, पिता रघुनाथ महापात्र और माता सरला महापात्र....
इनके पिता जल संसाधन मंत्रालय के एक साधारण कर्मचारी थे जो देवगड़ से ट्रांसफर हो कर राजगड़ आए थे.... विवाह के दस वर्ष बाद इनका जन्म होता है.... बचपन से माँ के ममता से बंचित रहे... और तेरह वर्ष के आयु में सर से पिता की अकस्मात मृत्य से... यह अनाथ हो गए.... क्यूँ विश्व प्रताप यहाँ तक मैं सही कह रही हूँ ना....
विश्व अपना हाँ में सर हिलाया l
जज - श्री विश्व प्रताप जी... आपको हिदायत दी जाती है.... आप अपना उत्तर जुबानी दें... विश्व - जी... वकील साहिबा अब तक सही कहा है....
प्रतिभा - धन्यबाद माय लॉर्ड.... और विश्व जी आपको भी.... हाँ तो मैं कहाँ थी....
विश्व - जी मैं तेरह वर्ष की आयु में अनाथ हो गया....
प्रतिभा - जी... येस माय लॉर्ड... उस समय देव पुरुष के समान राजा साहब उर्फ़ भैरव सिंह विश्व के जीवन में आए.... और अपने संरक्षण में श्री विश्व को रखा.... जिस वजह से.... श्री विश्व अपना इंटर तक पढ़ाई पूरी कर सके.... क्या मैं अब भी सही हूँ विश्व प्रताप....
विश्व - जी... आप अभी तक सही हैं...
जयंत - एक्सक्युज मी... माय लॉर्ड....
जज - जी कहिए डिफेंस लॉयर....
जयंत - मैं अदालत से अनुरोध कर रहा हूँ... प्रोसिक्यूशन अपना पक्ष रखे... सिर्फ अपना पक्ष... पर देख रहा हूँ... प्रोसिक्यूशन अपना पक्ष रखते हुए... मुल्जिम की काउंसिलिंग भी कर रही हैं.... यह गलत है... मैं इस प्रक्रिया का विरोध दर्ज कर रहा हूँ...
जज - अदालत... डिफेंस लॉयर से इत्तेफाक रखती है.... प्रोसिक्यूशन को हिदायत देती है... आप आज केवल अपना पक्ष रखें...
प्रतिभा - जी माय लॉर्ड... एंड... मैं बचाव पक्ष की भावनाओं का सम्मान करते हुए क्षमा चाहती हूँ...
जज - ठीक है... आप आगे बढ़ें.....
प्रतिभा - तो जज साहब... मैं यह कह रही थी.... विश्व... राजा साहब उर्फ़ श्री भैरव सिंह जी के सरपरस्ती में रह कर अपनी इंटर की पढ़ाई पूरी की.... जब इंटर पूरी हुई.... विश्व के पिता जी की कुछ जमीनें थी... जिनकी देखभाल... उनके पारिवारिक मित्र श्री उमाकांत आचार्य जी के देख रेख में थी.... उनसे अपनी जमीन और आचार्य जी की जमीन पर... खेती कर स्वरोजगार भी हुए....
प्रतिभा थोड़ी रुक जाती है और अपने टेबल पर आकर ग्लास में से पानी की एक घूंट पी कर
प्रतिभा - अपनी स्वरोजगार के दम पर... श्री विश्व ने अच्छा नाम भी कमाया फिर इसे इत्तेफाक कहें या... विश्व के किस्मत.... भारत सरकार के द्वारा... जन संख्या के आधार पर राजगड़ पंचायत का नक्शा बदला गया... जिसे डेमोग्राफिकल चेंजस कहते हैं.... पीढ़ी दर पीढ़ी उन्नति को तरस रही राजगड़ पंचायत की बदहाली को दूर करने के लिए.... श्री राजा साहब जी ने... श्री विश्व प्रताप से आने वाले पंचायत चुनाव में भाग लेने के लिए अनुरोध किया...
बस योर ऑनर... यहीं से.. श्री विश्व के मन में.. पल रही उच्च आकांक्षाओं ने करवट लेना शुरू किया.... बचपन के कष्टों से जुझते विश्व... जब महल में अपना बचपन बिताया... तब महल की आरामदायक जीवन को देख कर कभी आहें भरने वाला विश्व... श्री विश्व को अब मौका दिखने लगा था.... विश्व अब इक्कीस वर्ष के हो चुके थे.... मतलब कानूनन वह पंचायत चुनाव लड़ने के लिए योग्य भी थे... बड़े धूमधाम से अपना नामांकन दाखिल किया.... और लोगों की उम्मीद बन चुके विश्व को जबरदस्त जन समर्थन मिला.....
प्रत्येक वार्ड मेंबर और पंचायत समिति के सारे सभ्य... एक नए... जोश भरे जवान लहू को मौका दिया... ताकि विश्व... आजादी के बाद पिछड़े पन से जुझ रहे राजगड़ को एक स्वर्णिम भविष्य दे.... किन्तु यही...यही माय लॉर्ड... राजगड़ वासियों की सबसे बड़ी भूल साबित हुई... माय लॉर्ड... सबसे बड़ी भूल...
अदालत में सिर्फ प्रतिभा की आवाज ही गूंज रही है, और जैसे ही प्रतिभा चुप हो जाती है तो छत पर घूमते पंखे की हवा की आवाज़ सुनाई दे रही है l प्रतिभा को भी मन में शंका होने लगी, कहीं कमरे में वह अकेली तो नहीं l इसलिए फिर से सब पर अपनी नजर घुमाने के बाद,
प्रतिभा - माय लॉर्ड... गांव में खुशियां मनाई जा रही थी... मिठाई बांटी जा रही थी... जब पंचायत कार्यालय में आधिकारिक तौर पर विश्व का सरपंच के रूप में प्रवेश हुआ.... पर असल में वह खुशियां वह उत्सव को विश्व एंड ग्रुप की नजर लगने वाली थी.....
ठीक एक महीने के भीतर विश्व ने एक पचहत्तर लाख रुपये का चेक साइन किया... वह भी पंचायत समिति के पुराने सदस्य के अनुरोध पर.... उन्हें बक़ाया राशि की भुगतान के लिए सिर्फ पचपन लाख रुपये की बात कही थी.... पर श्री विश्व.... पचहत्तर लाख रुपये चेक पर साइन किया.... जब चेक पास हो कर रकम... पंचायत कार्यालय के अकाउंट में आ गया.... श्री विश्व की आंखे चुंधीया गई.... योर ऑनर... कहावत है... बगैर रौशनी के दिखाई नहीं देती.... मगर यह भी सच है.... ज्यादा रौशनी आँखों को चुंधीया कर अंधा कर देता है.... और श्री विश्व के साथ यही हुआ.... उन्हें सिर्फ अब दौलत... दौलत और दौलत ही नजर आने लगा....
उस पंचायत समिति के सदस्य का नाम दिलीप कुमार कर था.... योर ऑनर... उसे अपने इलाके में कैनाल पर बनें कॉलभर्ट के बकाया लौटाने के लिए विश्व को राजी कर पेमेंट करवा दिया.... पहली ही महीने में एक बड़ा रकम सिर्फ़ एक दस्तखत में.... वह रकम में से विश्व अपना हिस्सा लेने के बाद... दिलीप कुमार कर को भी दिया.... पैसा देख कर... दिलीप कर का मन भी मचल गया..... और श्री विश्व की आंखे बड़ी होती चली गई.... उसके बाद दिलीप कर के माध्यम से यशपुर के एक बैंक अधिकारी, तहसील ऑफिस के एक क्लार्क और ADM, BDO, और पंचायत ऑफिस के कुछ और सदस्यों से अपनी पहचान बढ़ाई.... और उन सबको लेकर बहुत बड़ा प्लान बनाया गया.... क्यूंकि विश्व को मालूम हुआ... के पिछले सरपंच के कार्यकाल में पैसा ज्यों का त्यों पड़ा हुआ है....क्यूँ की उन्नयन के लिए आवंटित राशि लौट भी सकती है.... जब तक कि उन पैसों की युटीलाइजेशन सर्टिफिकेट नहीं हो जाती तब तक... पंचायत उन्नयन के लिए कोई भी नया रकम सरकार की तरफ से नहीं दी जाएगी.....

बस योर ऑनर... यहीं से विश्व के विश्वरूप की नींव पड़ी....
जी हाँ योर ऑनर.... इन सभी बंदों ने मिलकर एक एनजीओ का गठन किया.... "राजगड़ उन्नयन परिषद" यानी रूप.... विश्व की रूप विश्वरूप..... इस रूप के ज़रिए... श्री विश्व ने घोटाले का ऐसा विश्वरूप दिखाया है.... के बड़े से बड़े घोटाले बाज भी हैरान रह गए.... मशहूर ठग... नटवर लाल भी हैरान रह गया होगा.... सिर्फ़ सात महीने में साढ़े सात सौ करोड़ रुपए की घोटाला देख कर....
पिछले सरपंच के कार्यकाल के बकाया राशि को हथियाने का एक जबर्दस्त प्लान.... रूप योर ऑनर रूप....
दूसरे ही महीने में... श्री विश्व.. एनजीओ रजिस्ट्रेशन की तैयारी करते हुए एप्लीकेशन देते हैं.... चूंकि अब ADM उनके पार्टनर बन चुके थे.... इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की विलंब नहीं हुई... फिर उसी महीने में सौ से भी अधिक शेल कंपनियां रजिस्टर हुईं.... वह भी मरे हुए लोगों के नाम पर.....
जज - शेल कंपनीयां... वह भी मरे हुए लोगों के नाम पर...

प्रतिभा - जी... योर ऑनर... मैं विस्तार से जानकारी दे रही हूँ... सभी के सभी... वह मरे हुए लोग यशपुर के बाशिंदे थे.... उनके आधर कार्ड को किसी तरह से हासिल कर लिया गया.... और उनके बैंक अकाउंट को डेड़ होने नहीं दिया गया.... उन लोगों के नाम शेल कंपनीयां रजिस्टर हुई... उन सभी के सेविंग अकाउंट्स को करंट अकाउंट में बदल दी गई.... और जितने भी पेंडिंग कंट्राक्ट के काम पांच सालों में बाकी था... उन सभी के पैसों की रिलीज़ की तैयारी की गई... और सभी पैसों को उन मुर्दे लोगों के अकाउंट्स में पहुंचा दी गई.... यह बहुत ही आसान था... चूंकि बैंक अधिकारी भी इनसे मिला हुआ था.... अब मुर्दों के अकाउंट में पैसे निकले कैसे जाए.... इसका भी लॉंग-टाइम फूल प्रूफ प्लान तैयार था योर ऑनर... उन सभी शेल कंपनीयों से ECS के जरिए रूप को डोनेशन के रूप में पैसा वापस आ गया.... और जैसे ही रूप के अकाउंट में पैसा आ गया.... उन शेल कंपनियों के मुर्दे मालिकों के मृत्यु प्रमाण पत्र दाख़िल कर पहले बैंक अकाउंट्स को डेड़ किया गया.... और उसके बाद उन शेल कंपनीयों की डी-रेजिस्ट्रेशन कर दिया गया... और तो और.... योर ऑनर... उन सभी पैसों को सिर्फ़ छह महीने के भीतर ही आत्मसात कर लिया गया..... योर ऑनर....सिर्फ़ छह महीने के भीतर....
जज - कितना बड़ा रकम था.... और किन किन कामों के लिए वह पैसा रिलीज़ किया गया.... और सबसे अहम सवाल.... मनरेगा से इसका क्या संबंध....
प्रतिभा - यही तो असली खेल है योर ऑनर.... भारत सरकार मनरेगा के जरिए हर उन लोगों को एक साल में कम से कम सौ दिन की रोजगार गारंटी देती है.... जो गाँव में खेतीबाड़ी करने के बाद बिना काम के खाली रहते हैं.... पर विश्व के रूप के स्कीम में... सिर्फ़ राजगड़ ही नहीं... बल्कि यशपुर के लोग भी शामिल किए गए... योर ऑनर.... पिछले पांच सालों में... जितने भी... पीएम आवास योजना, पीएम ग्राम सड़क योजना, जितने भी कैनाल सफाई योजना, और राजगड़ उन्नयन परियोजना के पैसे लटके हुए थे.... सभी को... मनरेगा के माध्यम से... लोगों से श्रम दान दिखा कर... प्रोजेक्ट कम्प्लीशन सर्टिफिकेट देकर.... पेंडिंग पैसे सब रिलीज किया गया.... और सबसे मजेदार बात... मनरेगा में जिन लोगों से श्रमदान लिया गया.... जिनके आधार कार्ड के जरिए काम पूर्ण दिखा कर पैसे निकले गए... सब के सब मरे हुए लोग थे... योर ऑनर....
यह घोटाला कभी भी सामने नहीं आता योर ऑनर....अगर विश्व के आचार्य... श्री उमाकांत आचार्य राजा साहब से गुहार ना लगाई होती.... विश्व के सरपंच बनने के ठीक छह महीने बाद.... मौखिक अभियोग लेकर राजा साहब के पास.... श्री आचार्य जी पहुंचे..... राजा साहब ने इसे गंभीरता से लिया.... और उन्होंने मुख्यमंत्री जी से छानबीन की अनुरोध किया.... तब मुख्यमंत्री जी ने एसआईटी का गठन किया तथा ऑडिट करवाया.... एसआईटी ने सबसे कमजोर कड़ी... श्री दिलीप कुमार कर को धर दबोचा.... उसे सरकारी गवाह बनाया..... पर इस दौरान श्री आचार्य जी का सांप काटने से देहांत हो गया.... खबर यह भी है... की जैसे ही बड़े अधिकारियों को भनक लगी.... वे फरार हो गए.... और पंचायत ऑफिस में, पैसों पर ऑडिट को लेकर विश्व की दिलीप से झगड़ा हुआ.... जब इस बाबत विश्व तहसील ऑफिस में विश्व ADM जी से मिलने पहुंचे... तब तक ADM महाशय फरार हो चुके थे.... और यहाँ भी तहसील ऑफिस में क्लार्क से झगड़ा हो गया.... इस झगडे के हफ्ते के भीतर ही... बैंक अधिकारी और क्लार्क दोनों की मृत्यु हो गई.... यह सब हाथ से निकालता देख... एसआईटी ने विश्व की गिरफ्तारी की आदेश जारी की.... एंड रेस्ट इज़ ऑल बीफॉर यु... योर ऑनर....
जज - ठीक है.... आपकी उपस्थापना रिकार्ड कर ली गई.... आपके द्वारा जमा किए गए सारे रिकार्ड्स के कॉपी.... डिफेंस को हस्तांतर किया जाता है.... अब अदालत डिफेंस से प्रश्न पूछती क्या अगले सुनवाई में अपना पक्ष रख पाएंगे... या कुछ दिन की मोहलत लेंगे....
जयंत - जी नहीं योर ऑनर... हम शुक्रवार को ही अपना पक्ष रखेंगे.... और अदालत से अनुरोध करते हैं.... प्रोसिक्यूशन के तरफ से जिन जिन गवाहों के नाम व बयानात रिकार्ड किए गए हैं.... उन्हें अगले हफ्ते से एक एक कर समन किया जाए... ताकि जिरह किया जा सके और शीघ्र ही इस केस में निर्णय तक पहुंचा जा सके.... दैट्स ऑल माय लॉर्ड...
तीनों जज आपस में बात करते हैं और मुख्य जज अपनी राय व्यक्त करते हुए,
जज - आज की कार्यवाही में.... तय अनुसार... प्रोसिक्यूशन अपना पक्ष रख चुकी है.... और परसों... डिफेंस अपना पक्ष रखेगी.... अगले हफ्ते से... गवाहों से अदालत में बयान दर्ज किए जाएंगे... और डिफेंस के द्वारा क्रॉस एग्जामिन किए जाएंगे... इसके साथ ही आज की यह अदालत बर्खास्त किया जाता है.... (कह कर जज अपना हथोड़ा टेबल पर मार देता है)

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नराज बैराज के पास सूरज डूबने की बहुत ही खूबसूरत नज़ारा दिख रहा है l बहुत से प्रेमी जोड़े और कुछ लोग वहाँ पर संध्या समय के दृश्य को इंजॉय कर रहे हैं l उनके कोलाहल और मस्ती से दूर महानदी की एक रेतीली पठार पर एक जीप खड़ी है l उस जीप के बॉनेट पर बल्लभ बैठा हुआ है और रेत पर रोणा मस्ती में चिल्ला रहा है
रोणा- ओ... हो... हो.. हो... वाह.. प्रधान वाह... हमारी टीम वर्क... बहुत जबरदस्त था.... यह साला विश्व गया.... कोई नहीं बचा सकता है उसको.... हा हा हा हा.... क्या बात है.... तु खुश नहीं है...
बल्लभ - मैं... रिजल्ट से पहले... खुशी मनाना नहीं चाहता हूँ... मुझे.... लगता है.... हम कुछ ओवर कॉन्फीडेंट हो गए....
रोणा - (हंसी गायब हो गई) मतलब....
बल्लभ - जयंत....
रोणा - वह... साला बुढ़ा... जिसका एक टांग... कब्र में और... केले के छिलके पर... अरे... छोड़ ना यार... हमारे पैदा किए गए सबूतों के आगे... उसकी दलीलें.... काम नहीं आयेंगी...
बल्लभ - (एक गहरी सांस लेते हुए अपना सर ना में हिलाता है) मुझे ऐसा नहीं लग रहा है... अब... सच कहूँ तो... मैं अब डरने लगा हूँ....
रोणा - अबे... तुझे... बिन पीए... चढ़ गई है... हमने पूरी टीम बना कर... सबूत बनाए... उस सबूतों के चक्रव्यूह में से... विश्व को... कोई निकाल नहीं सकता.... आरे... आज राजा साहब भी होते.... उस प्रतिभा की... प्रेजेंटेशन देख कर खुश जो जाते.... राजा साहब को देव पुरुष कर दिया...... हा हा हा हा...
बल्लभ को फिर भी शांत व चिंतित देख कर रोणा की हंसी रुक जाती है
रोणा - देख.... जो दिल में है... वह निकाल दे.... फिर हम दोनों कुछ करते हैं....
बल्लभ - तू जानता है.... जयंत... पिछले तीन सालों से... कोई भी केस अपने हांथों में... नहीं ले रहा था... अब वह अपनी रिटायर्मेंट की तैयारी कर रहा था..... मैं भी वकील हूँ... यह मानसिकता समझने में... मुझसे कोई गलती नहीं हो सकती.... यह उसकी सरकारी वकील के रूप में आखिरी केस है.... और कोई भी वकील अपना आखिरी केस कभी हारना नहीं चाहेगा.... और जो बंदा... तीन सालों से कभी हेल्थ इशू के बहाने या... पर्सनल रीजन के बहाने... एक भी केस नहीं लिया.... इस केस को क्यूँ लिया..... और पिछली दोनों बार बहस में.... उसने अपने हिसाब से ही.... कारवाई को मोड़ा है.... यही बात अब मुझे डरा रही है.....
इतना कह कर बल्लभ चुप हो जाता है और रोणा को गौर से देखने लगता है l
बल्लभ - हमने सबूत बहुत सालिड बनाए हैं... गवाहों को हमने तैयार किया है.... पर अगर अदालत में गवाह टूट जाएंगे... तो सबूत भी टिक नहीं पाएंगे....
रोणा तु पुलिस वाला है... जरा इस ओर ध्यान दे....
रोणा - तो चलो ना... बुढ़े को अभी ठोक देते हैं...
बल्लभ - (फीकी हंसी हंसते हुए) बुढ़ा बहुत ही चालाक निकला.... उसने पहले से ही.. अपनी जान को खतरा बता कर... सरकारी सुरक्षा अपने लिए.. ले लिया है...
रोणा - साला.... आज तूने.. मेरा सारा मुड़ खराब करदिया.... प्रतिभा की प्रेजेंटेशन देख कर... बहुत खुश हो गया था.... तूने सब पर पानी फ़ेर दिया....
बल्लभ - इसलिए तो कह रहा हूँ.... समय से पहले... कोई भी सेलिब्रेशन ठीक नहीं है...
रोणा - (अपने बालों को नोचते हुए) आ... ह् आह्... अब क्या करें...
बल्लभ - वही जो तुने कहा था... हम इस बांध के... छोटे छोटे ईंटों को सरकाएंगे.... ताकि सैलाब लाया जा सके
Behtareen update hai bhai
 

Rajesh

Well-Known Member
3,656
8,062
158
👉छब्बीसवां अपडेट
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" कैबिनेट की सिफारिश के बाद जल्दी जल्दी सुनवाई के लिए अदालत तैयार हो गई थी..... और पिछली सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष के वकील श्री जयंत कुमार राउत जी के दलीलों को स्वीकार कर....... अदालत ने अपने परिसर के बाहर पांच सौ मीटर की दूरी तक मीडिया कवरेज के लिए रोक लगा दी है.... पर मीडिया को सुनवाई के तुरंत बाद मीडिया को कोर्ट रूम की पूरी जानकारी मुहैया की जाएगी..... अभी कुछ ही समय पहले पुलिस अभियुक्त को कोर्ट रूम में लेकर गई है.... मनरेगा घोटाले की जांच पर सुनवाई के लिए.... आज का दिन बहुत ही खास है.... क्यूंकि आज प्रोसिक्युशन के तरफ से अभियुक्त के विरुद्ध पुलिस की जांच की पक्ष रखी जाएगी.... क्यूँकी दोनों वकील भी अनुबंधित हैं इसीलिए... मीडिया से कोई किसी भी प्रकार से बातचीत नहीं कर रहे हैं.... परंतु हमारे सूत्र हमे बता रहे हैं... की आज अभियोग पक्ष अपनी तगड़ी तैयारी की हुई है... इसलिए आज की दिन की कारवाई की अधिक जानकारी के लिए हम समय समय पर पुष्टि करते रहेंगे.... कैमरा मैन सतबीर के साथ मैं प्रज्ञा खबर ओड़िशा के लिए "
ख़बर सुन कर पिनाक कमरे में इधर उधर हो रहा है l वीर अपने मस्ती में धुन मोबाइल पर गेम खेलने में व्यस्त है l
पिनाक - क्यूँ राजकुमार... आज नहीं गए कॉलेज के लिए..
वीर - जाना चाहिए था क्या...
पिनाक - तो होटल में क्या करेंगे आप....
वीर मोबाइल रख देता है,
वीर - छोटे राजा जी... आपका ध्यान कहाँ है.... किसके ऊपर का गुस्सा निकाल रहे हैं....
पिनाक - नहीं तो... आपको ऐसा क्यूँ लगा...
वीर - क्यूँ की सवाल तो ठीक पूछ रहे हैं.... पर आपका मुड़... सवालों के साथ... मैच नहीं हो रहा है....
पिनाक - ठीक है.. ठीक है... आप अपने मोबाइल पर... बिजी हो जाइए.... और हमे... ह्म्म्म्म कुछ सोचने दीजिए....
पिनाक मन में - पता नहीं कोर्ट में क्या हो रहा होगा अब.... राजा साहब कह रहे थे... प्रधान और रोणा दोनों केस के दौरान उपस्थित रहेंगे... पर उन दोनों ने... मुझसे कॉन्टैक्ट अभी तक नहीं किया.... क्यूँ.. ह्म्म्म्म... कोई नहीं... जब पता चलेगा... आज की सुनवाई खतम हुई... तब उन दोनों से फोन पर सारी जानकारी लेनी होगी.... ह्म्म्म्म...


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कोर्ट रूम में
अभियोजन पक्ष, अभियुक्त पक्ष के वकील, तापस अपने कुछ साथी कर्माचारियों के साथ विश्व को लेकर बैठे हुए हैं l वैदेही जयंत के कुर्सी के पीछे वाली बेंच पर बैठी हुई है l
हॉकर जजों के आने का संकेत देता है l सभी अपने स्थान पर खड़े हो जाते हैं l पैनल के तीनों जज रूम के अंदर आते हैं और अपना स्थान ग्रहण करते हैं l उनके बैठते ही सब अपने अपने जगह पर बैठ जाते हैं l
हमेशा की तरह जज - ऑर्डर.... ऑर्डर.... आज की कारवाई शरू की जाए... जैसे कि तय हुआ था.... आज अभियोजन पक्ष अपना पक्ष रखेंगे... और साथ साथ गवाहों के बयानों की कॉपी और सबूतों की कॉपी के साथ गवाहों की लिस्ट भी अदालत में जमा करने के साथ.... अभियुक्त पक्ष को भी देना होगा.... जिसे परखने के बाद.... अभियुक्त अपना पक्ष रखेंगे....
क्या किसीको कोई आपत्ति है...
दोनों वकील अपने अपने जगह पर खड़े होकर - नो योर ऑनर...
जज - ठीक है... अभियोजन पक्ष के वकील को अनुमती दी जाती है... वह अपना पक्ष... अदालत के सामने प्रस्तुत करें....
प्रतिभा - (अपने सीट से उठ कर) थैंक्यू... माय लॉर्ड.... आज अदालत में एक ऐसा केस आया है.... जिसकी कल्पना शायद किसीने नहीं की थी.... जिस पर पूरे राज्य के जनता की आंखे लगी हुई है.... जो भी हुआ है... निश्चित रूप से शर्म सार कर देने वाली घटना है.... (विश्व की ओर देख कर) यह जो मुल्जिम के कटघरे में खड़ा है.... दिखने में कितना मासूम... भोला दिख रहा है.... सबसे आश्चर्य चकित करने वाली बात यह है कि... यह सिर्फ़ इक्कीस वर्ष की आयु का है... तो मन में स्वतः प्रश्न उठते हैं... क्या इतनी छोटी उम्र में... इतना बड़ा अपराध कोई कर सकता है.... शायद हाँ... और उदाहरण स्वयं विश्व है... जुर्म की दुनिया में... क्या विश्व एक मात्र उदाहरण है.... नहीं माय लॉर्ड नहीं.... आप इन्टरनेट पर खोजने पर ऐसे अपराधियों को लंबी लिस्ट दिख जाएगी... इसलिए जब इनके द्वारा किए गए जुर्म की समीक्षा होगी.... तब इनके उम्र को देखा ना जाए....
इतना कह कर प्रतिभा चुप हो जाती है, और जयंत के तरफ देखती है, पर जयंत प्रतिभा के तरफ बिल्कुल नहीं देखता है l प्रतिभा अपनी टेबल पर आकर अपनी फाइल उठाती है और जज की ओर देखती है l
प्रतिभा - योर ऑनर.... मुल्जिम के बारे में पुलिस अपनी छानबीन में जो पता लगाया है... वह अब मैं विस्तार से अदालत को बताना चाहती हूँ.....
इस शख्स का नाम विश्व प्रताप महापात्र है, पिता रघुनाथ महापात्र और माता सरला महापात्र....
इनके पिता जल संसाधन मंत्रालय के एक साधारण कर्मचारी थे जो देवगड़ से ट्रांसफर हो कर राजगड़ आए थे.... विवाह के दस वर्ष बाद इनका जन्म होता है.... बचपन से माँ के ममता से बंचित रहे... और तेरह वर्ष के आयु में सर से पिता की अकस्मात मृत्य से... यह अनाथ हो गए.... क्यूँ विश्व प्रताप यहाँ तक मैं सही कह रही हूँ ना....
विश्व अपना हाँ में सर हिलाया l
जज - श्री विश्व प्रताप जी... आपको हिदायत दी जाती है.... आप अपना उत्तर जुबानी दें... विश्व - जी... वकील साहिबा अब तक सही कहा है....
प्रतिभा - धन्यबाद माय लॉर्ड.... और विश्व जी आपको भी.... हाँ तो मैं कहाँ थी....
विश्व - जी मैं तेरह वर्ष की आयु में अनाथ हो गया....
प्रतिभा - जी... येस माय लॉर्ड... उस समय देव पुरुष के समान राजा साहब उर्फ़ भैरव सिंह विश्व के जीवन में आए.... और अपने संरक्षण में श्री विश्व को रखा.... जिस वजह से.... श्री विश्व अपना इंटर तक पढ़ाई पूरी कर सके.... क्या मैं अब भी सही हूँ विश्व प्रताप....
विश्व - जी... आप अभी तक सही हैं...
जयंत - एक्सक्युज मी... माय लॉर्ड....
जज - जी कहिए डिफेंस लॉयर....
जयंत - मैं अदालत से अनुरोध कर रहा हूँ... प्रोसिक्यूशन अपना पक्ष रखे... सिर्फ अपना पक्ष... पर देख रहा हूँ... प्रोसिक्यूशन अपना पक्ष रखते हुए... मुल्जिम की काउंसिलिंग भी कर रही हैं.... यह गलत है... मैं इस प्रक्रिया का विरोध दर्ज कर रहा हूँ...
जज - अदालत... डिफेंस लॉयर से इत्तेफाक रखती है.... प्रोसिक्यूशन को हिदायत देती है... आप आज केवल अपना पक्ष रखें...
प्रतिभा - जी माय लॉर्ड... एंड... मैं बचाव पक्ष की भावनाओं का सम्मान करते हुए क्षमा चाहती हूँ...
जज - ठीक है... आप आगे बढ़ें.....
प्रतिभा - तो जज साहब... मैं यह कह रही थी.... विश्व... राजा साहब उर्फ़ श्री भैरव सिंह जी के सरपरस्ती में रह कर अपनी इंटर की पढ़ाई पूरी की.... जब इंटर पूरी हुई.... विश्व के पिता जी की कुछ जमीनें थी... जिनकी देखभाल... उनके पारिवारिक मित्र श्री उमाकांत आचार्य जी के देख रेख में थी.... उनसे अपनी जमीन और आचार्य जी की जमीन पर... खेती कर स्वरोजगार भी हुए....
प्रतिभा थोड़ी रुक जाती है और अपने टेबल पर आकर ग्लास में से पानी की एक घूंट पी कर
प्रतिभा - अपनी स्वरोजगार के दम पर... श्री विश्व ने अच्छा नाम भी कमाया फिर इसे इत्तेफाक कहें या... विश्व के किस्मत.... भारत सरकार के द्वारा... जन संख्या के आधार पर राजगड़ पंचायत का नक्शा बदला गया... जिसे डेमोग्राफिकल चेंजस कहते हैं.... पीढ़ी दर पीढ़ी उन्नति को तरस रही राजगड़ पंचायत की बदहाली को दूर करने के लिए.... श्री राजा साहब जी ने... श्री विश्व प्रताप से आने वाले पंचायत चुनाव में भाग लेने के लिए अनुरोध किया...
बस योर ऑनर... यहीं से.. श्री विश्व के मन में.. पल रही उच्च आकांक्षाओं ने करवट लेना शुरू किया.... बचपन के कष्टों से जुझते विश्व... जब महल में अपना बचपन बिताया... तब महल की आरामदायक जीवन को देख कर कभी आहें भरने वाला विश्व... श्री विश्व को अब मौका दिखने लगा था.... विश्व अब इक्कीस वर्ष के हो चुके थे.... मतलब कानूनन वह पंचायत चुनाव लड़ने के लिए योग्य भी थे... बड़े धूमधाम से अपना नामांकन दाखिल किया.... और लोगों की उम्मीद बन चुके विश्व को जबरदस्त जन समर्थन मिला.....
प्रत्येक वार्ड मेंबर और पंचायत समिति के सारे सभ्य... एक नए... जोश भरे जवान लहू को मौका दिया... ताकि विश्व... आजादी के बाद पिछड़े पन से जुझ रहे राजगड़ को एक स्वर्णिम भविष्य दे.... किन्तु यही...यही माय लॉर्ड... राजगड़ वासियों की सबसे बड़ी भूल साबित हुई... माय लॉर्ड... सबसे बड़ी भूल...
अदालत में सिर्फ प्रतिभा की आवाज ही गूंज रही है, और जैसे ही प्रतिभा चुप हो जाती है तो छत पर घूमते पंखे की हवा की आवाज़ सुनाई दे रही है l प्रतिभा को भी मन में शंका होने लगी, कहीं कमरे में वह अकेली तो नहीं l इसलिए फिर से सब पर अपनी नजर घुमाने के बाद,
प्रतिभा - माय लॉर्ड... गांव में खुशियां मनाई जा रही थी... मिठाई बांटी जा रही थी... जब पंचायत कार्यालय में आधिकारिक तौर पर विश्व का सरपंच के रूप में प्रवेश हुआ.... पर असल में वह खुशियां वह उत्सव को विश्व एंड ग्रुप की नजर लगने वाली थी.....
ठीक एक महीने के भीतर विश्व ने एक पचहत्तर लाख रुपये का चेक साइन किया... वह भी पंचायत समिति के पुराने सदस्य के अनुरोध पर.... उन्हें बक़ाया राशि की भुगतान के लिए सिर्फ पचपन लाख रुपये की बात कही थी.... पर श्री विश्व.... पचहत्तर लाख रुपये चेक पर साइन किया.... जब चेक पास हो कर रकम... पंचायत कार्यालय के अकाउंट में आ गया.... श्री विश्व की आंखे चुंधीया गई.... योर ऑनर... कहावत है... बगैर रौशनी के दिखाई नहीं देती.... मगर यह भी सच है.... ज्यादा रौशनी आँखों को चुंधीया कर अंधा कर देता है.... और श्री विश्व के साथ यही हुआ.... उन्हें सिर्फ अब दौलत... दौलत और दौलत ही नजर आने लगा....
उस पंचायत समिति के सदस्य का नाम दिलीप कुमार कर था.... योर ऑनर... उसे अपने इलाके में कैनाल पर बनें कॉलभर्ट के बकाया लौटाने के लिए विश्व को राजी कर पेमेंट करवा दिया.... पहली ही महीने में एक बड़ा रकम सिर्फ़ एक दस्तखत में.... वह रकम में से विश्व अपना हिस्सा लेने के बाद... दिलीप कुमार कर को भी दिया.... पैसा देख कर... दिलीप कर का मन भी मचल गया..... और श्री विश्व की आंखे बड़ी होती चली गई.... उसके बाद दिलीप कर के माध्यम से यशपुर के एक बैंक अधिकारी, तहसील ऑफिस के एक क्लार्क और ADM, BDO, और पंचायत ऑफिस के कुछ और सदस्यों से अपनी पहचान बढ़ाई.... और उन सबको लेकर बहुत बड़ा प्लान बनाया गया.... क्यूंकि विश्व को मालूम हुआ... के पिछले सरपंच के कार्यकाल में पैसा ज्यों का त्यों पड़ा हुआ है....क्यूँ की उन्नयन के लिए आवंटित राशि लौट भी सकती है.... जब तक कि उन पैसों की युटीलाइजेशन सर्टिफिकेट नहीं हो जाती तब तक... पंचायत उन्नयन के लिए कोई भी नया रकम सरकार की तरफ से नहीं दी जाएगी.....

बस योर ऑनर... यहीं से विश्व के विश्वरूप की नींव पड़ी....
जी हाँ योर ऑनर.... इन सभी बंदों ने मिलकर एक एनजीओ का गठन किया.... "राजगड़ उन्नयन परिषद" यानी रूप.... विश्व की रूप विश्वरूप..... इस रूप के ज़रिए... श्री विश्व ने घोटाले का ऐसा विश्वरूप दिखाया है.... के बड़े से बड़े घोटाले बाज भी हैरान रह गए.... मशहूर ठग... नटवर लाल भी हैरान रह गया होगा.... सिर्फ़ सात महीने में साढ़े सात सौ करोड़ रुपए की घोटाला देख कर....
पिछले सरपंच के कार्यकाल के बकाया राशि को हथियाने का एक जबर्दस्त प्लान.... रूप योर ऑनर रूप....
दूसरे ही महीने में... श्री विश्व.. एनजीओ रजिस्ट्रेशन की तैयारी करते हुए एप्लीकेशन देते हैं.... चूंकि अब ADM उनके पार्टनर बन चुके थे.... इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की विलंब नहीं हुई... फिर उसी महीने में सौ से भी अधिक शेल कंपनियां रजिस्टर हुईं.... वह भी मरे हुए लोगों के नाम पर.....
जज - शेल कंपनीयां... वह भी मरे हुए लोगों के नाम पर...

प्रतिभा - जी... योर ऑनर... मैं विस्तार से जानकारी दे रही हूँ... सभी के सभी... वह मरे हुए लोग यशपुर के बाशिंदे थे.... उनके आधर कार्ड को किसी तरह से हासिल कर लिया गया.... और उनके बैंक अकाउंट को डेड़ होने नहीं दिया गया.... उन लोगों के नाम शेल कंपनीयां रजिस्टर हुई... उन सभी के सेविंग अकाउंट्स को करंट अकाउंट में बदल दी गई.... और जितने भी पेंडिंग कंट्राक्ट के काम पांच सालों में बाकी था... उन सभी के पैसों की रिलीज़ की तैयारी की गई... और सभी पैसों को उन मुर्दे लोगों के अकाउंट्स में पहुंचा दी गई.... यह बहुत ही आसान था... चूंकि बैंक अधिकारी भी इनसे मिला हुआ था.... अब मुर्दों के अकाउंट में पैसे निकले कैसे जाए.... इसका भी लॉंग-टाइम फूल प्रूफ प्लान तैयार था योर ऑनर... उन सभी शेल कंपनीयों से ECS के जरिए रूप को डोनेशन के रूप में पैसा वापस आ गया.... और जैसे ही रूप के अकाउंट में पैसा आ गया.... उन शेल कंपनियों के मुर्दे मालिकों के मृत्यु प्रमाण पत्र दाख़िल कर पहले बैंक अकाउंट्स को डेड़ किया गया.... और उसके बाद उन शेल कंपनीयों की डी-रेजिस्ट्रेशन कर दिया गया... और तो और.... योर ऑनर... उन सभी पैसों को सिर्फ़ छह महीने के भीतर ही आत्मसात कर लिया गया..... योर ऑनर....सिर्फ़ छह महीने के भीतर....
जज - कितना बड़ा रकम था.... और किन किन कामों के लिए वह पैसा रिलीज़ किया गया.... और सबसे अहम सवाल.... मनरेगा से इसका क्या संबंध....
प्रतिभा - यही तो असली खेल है योर ऑनर.... भारत सरकार मनरेगा के जरिए हर उन लोगों को एक साल में कम से कम सौ दिन की रोजगार गारंटी देती है.... जो गाँव में खेतीबाड़ी करने के बाद बिना काम के खाली रहते हैं.... पर विश्व के रूप के स्कीम में... सिर्फ़ राजगड़ ही नहीं... बल्कि यशपुर के लोग भी शामिल किए गए... योर ऑनर.... पिछले पांच सालों में... जितने भी... पीएम आवास योजना, पीएम ग्राम सड़क योजना, जितने भी कैनाल सफाई योजना, और राजगड़ उन्नयन परियोजना के पैसे लटके हुए थे.... सभी को... मनरेगा के माध्यम से... लोगों से श्रम दान दिखा कर... प्रोजेक्ट कम्प्लीशन सर्टिफिकेट देकर.... पेंडिंग पैसे सब रिलीज किया गया.... और सबसे मजेदार बात... मनरेगा में जिन लोगों से श्रमदान लिया गया.... जिनके आधार कार्ड के जरिए काम पूर्ण दिखा कर पैसे निकले गए... सब के सब मरे हुए लोग थे... योर ऑनर....
यह घोटाला कभी भी सामने नहीं आता योर ऑनर....अगर विश्व के आचार्य... श्री उमाकांत आचार्य राजा साहब से गुहार ना लगाई होती.... विश्व के सरपंच बनने के ठीक छह महीने बाद.... मौखिक अभियोग लेकर राजा साहब के पास.... श्री आचार्य जी पहुंचे..... राजा साहब ने इसे गंभीरता से लिया.... और उन्होंने मुख्यमंत्री जी से छानबीन की अनुरोध किया.... तब मुख्यमंत्री जी ने एसआईटी का गठन किया तथा ऑडिट करवाया.... एसआईटी ने सबसे कमजोर कड़ी... श्री दिलीप कुमार कर को धर दबोचा.... उसे सरकारी गवाह बनाया..... पर इस दौरान श्री आचार्य जी का सांप काटने से देहांत हो गया.... खबर यह भी है... की जैसे ही बड़े अधिकारियों को भनक लगी.... वे फरार हो गए.... और पंचायत ऑफिस में, पैसों पर ऑडिट को लेकर विश्व की दिलीप से झगड़ा हुआ.... जब इस बाबत विश्व तहसील ऑफिस में विश्व ADM जी से मिलने पहुंचे... तब तक ADM महाशय फरार हो चुके थे.... और यहाँ भी तहसील ऑफिस में क्लार्क से झगड़ा हो गया.... इस झगडे के हफ्ते के भीतर ही... बैंक अधिकारी और क्लार्क दोनों की मृत्यु हो गई.... यह सब हाथ से निकालता देख... एसआईटी ने विश्व की गिरफ्तारी की आदेश जारी की.... एंड रेस्ट इज़ ऑल बीफॉर यु... योर ऑनर....
जज - ठीक है.... आपकी उपस्थापना रिकार्ड कर ली गई.... आपके द्वारा जमा किए गए सारे रिकार्ड्स के कॉपी.... डिफेंस को हस्तांतर किया जाता है.... अब अदालत डिफेंस से प्रश्न पूछती क्या अगले सुनवाई में अपना पक्ष रख पाएंगे... या कुछ दिन की मोहलत लेंगे....
जयंत - जी नहीं योर ऑनर... हम शुक्रवार को ही अपना पक्ष रखेंगे.... और अदालत से अनुरोध करते हैं.... प्रोसिक्यूशन के तरफ से जिन जिन गवाहों के नाम व बयानात रिकार्ड किए गए हैं.... उन्हें अगले हफ्ते से एक एक कर समन किया जाए... ताकि जिरह किया जा सके और शीघ्र ही इस केस में निर्णय तक पहुंचा जा सके.... दैट्स ऑल माय लॉर्ड...
तीनों जज आपस में बात करते हैं और मुख्य जज अपनी राय व्यक्त करते हुए,
जज - आज की कार्यवाही में.... तय अनुसार... प्रोसिक्यूशन अपना पक्ष रख चुकी है.... और परसों... डिफेंस अपना पक्ष रखेगी.... अगले हफ्ते से... गवाहों से अदालत में बयान दर्ज किए जाएंगे... और डिफेंस के द्वारा क्रॉस एग्जामिन किए जाएंगे... इसके साथ ही आज की यह अदालत बर्खास्त किया जाता है.... (कह कर जज अपना हथोड़ा टेबल पर मार देता है)

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नराज बैराज के पास सूरज डूबने की बहुत ही खूबसूरत नज़ारा दिख रहा है l बहुत से प्रेमी जोड़े और कुछ लोग वहाँ पर संध्या समय के दृश्य को इंजॉय कर रहे हैं l उनके कोलाहल और मस्ती से दूर महानदी की एक रेतीली पठार पर एक जीप खड़ी है l उस जीप के बॉनेट पर बल्लभ बैठा हुआ है और रेत पर रोणा मस्ती में चिल्ला रहा है
रोणा- ओ... हो... हो.. हो... वाह.. प्रधान वाह... हमारी टीम वर्क... बहुत जबरदस्त था.... यह साला विश्व गया.... कोई नहीं बचा सकता है उसको.... हा हा हा हा.... क्या बात है.... तु खुश नहीं है...
बल्लभ - मैं... रिजल्ट से पहले... खुशी मनाना नहीं चाहता हूँ... मुझे.... लगता है.... हम कुछ ओवर कॉन्फीडेंट हो गए....
रोणा - (हंसी गायब हो गई) मतलब....
बल्लभ - जयंत....
रोणा - वह... साला बुढ़ा... जिसका एक टांग... कब्र में और... केले के छिलके पर... अरे... छोड़ ना यार... हमारे पैदा किए गए सबूतों के आगे... उसकी दलीलें.... काम नहीं आयेंगी...
बल्लभ - (एक गहरी सांस लेते हुए अपना सर ना में हिलाता है) मुझे ऐसा नहीं लग रहा है... अब... सच कहूँ तो... मैं अब डरने लगा हूँ....
रोणा - अबे... तुझे... बिन पीए... चढ़ गई है... हमने पूरी टीम बना कर... सबूत बनाए... उस सबूतों के चक्रव्यूह में से... विश्व को... कोई निकाल नहीं सकता.... आरे... आज राजा साहब भी होते.... उस प्रतिभा की... प्रेजेंटेशन देख कर खुश जो जाते.... राजा साहब को देव पुरुष कर दिया...... हा हा हा हा...
बल्लभ को फिर भी शांत व चिंतित देख कर रोणा की हंसी रुक जाती है
रोणा - देख.... जो दिल में है... वह निकाल दे.... फिर हम दोनों कुछ करते हैं....
बल्लभ - तू जानता है.... जयंत... पिछले तीन सालों से... कोई भी केस अपने हांथों में... नहीं ले रहा था... अब वह अपनी रिटायर्मेंट की तैयारी कर रहा था..... मैं भी वकील हूँ... यह मानसिकता समझने में... मुझसे कोई गलती नहीं हो सकती.... यह उसकी सरकारी वकील के रूप में आखिरी केस है.... और कोई भी वकील अपना आखिरी केस कभी हारना नहीं चाहेगा.... और जो बंदा... तीन सालों से कभी हेल्थ इशू के बहाने या... पर्सनल रीजन के बहाने... एक भी केस नहीं लिया.... इस केस को क्यूँ लिया..... और पिछली दोनों बार बहस में.... उसने अपने हिसाब से ही.... कारवाई को मोड़ा है.... यही बात अब मुझे डरा रही है.....
इतना कह कर बल्लभ चुप हो जाता है और रोणा को गौर से देखने लगता है l
बल्लभ - हमने सबूत बहुत सालिड बनाए हैं... गवाहों को हमने तैयार किया है.... पर अगर अदालत में गवाह टूट जाएंगे... तो सबूत भी टिक नहीं पाएंगे....
रोणा तु पुलिस वाला है... जरा इस ओर ध्यान दे....
रोणा - तो चलो ना... बुढ़े को अभी ठोक देते हैं...
बल्लभ - (फीकी हंसी हंसते हुए) बुढ़ा बहुत ही चालाक निकला.... उसने पहले से ही.. अपनी जान को खतरा बता कर... सरकारी सुरक्षा अपने लिए.. ले लिया है...
रोणा - साला.... आज तूने.. मेरा सारा मुड़ खराब करदिया.... प्रतिभा की प्रेजेंटेशन देख कर... बहुत खुश हो गया था.... तूने सब पर पानी फ़ेर दिया....
बल्लभ - इसलिए तो कह रहा हूँ.... समय से पहले... कोई भी सेलिब्रेशन ठीक नहीं है...
रोणा - (अपने बालों को नोचते हुए) आ... ह् आह्... अब क्या करें...
बल्लभ - वही जो तुने कहा था... हम इस बांध के... छोटे छोटे ईंटों को सरकाएंगे.... ताकि सैलाब लाया जा सके
Behtareen update hai bhai
 
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Jaguaar

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वीर अपने कमरे में गहरी नींद में सोया हुआ है l फोन की लगातार बजने से उसकी नींद टूट जाती है l वीर अपनी कमरे में देखता है बहुत अंधेरा है I नाइट बल्ब भी नहीं जल रही है पर एसी चल रही है और उस कमरे में जितनी भी रौशनी दिख रही है मोबाइल फोन के डिस्प्ले से आ रही है l वह उठ कर मोबाइल हाथ में लेता है और कॉल लेकर

वीर - हैलो... (उबासी लेते हुए) कौन है... इतनी रात को क्या प्रॉब्लम है...
- हैलो... राजकुमार जी.. मैं... महांती बोल रहा हूँ...
वीर - महांती... इतनी रात को... अरे यार... क्या हो गया...
महांती - राजकुमार जी... अभी तो शाम के सिर्फ़ सात ही बजे हैं...
वीर - (झट से उठ बैठता है) क्या... सिर्फ शाम के सात बजे हैं... आज शनिवार ही है ना...
महांती - जी राजकुमार जी...
वीर - (अपने कमरे की लाइट जलाता है) ओ... अरे हाँ... अच्छा महांती... कुछ जरूरी काम था क्या...
महांती - जी.. राजकुमार जी... आज का दिन बहुत ही खराब गया है... क्षेत्रपाल परिवार के लिए... आप जल्दी ESS ऑफिस में आ जाइए... प्लीज...यहाँ आपकी सख्त जरूरत है...
वीर - (हैरान होते हुए) क्या... क्या हुआ...
महांती - युवराज जी ने खुद को... अपने कैबिन के रेस्ट रूम में बंद कर रखा है...
वीर - क्यूँ... किसलिए...
महांती - और छोटे राजा जी ने खुद को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करा लिया है और यहीं पर आ रहे हैं...
वीर - छोटे राजा जी हॉस्पिटल से आ रहे हैं... क्या मतलब हुआ इसका... हुआ क्या है आज....
महांती - राजकुमार जी प्लीज... आप यहाँ आ जाइए... मैं... मैं आपको सब बताता हूँ...
वीर - ठीक है... मैं थोड़ा रिफ्रेश हो लेता हूँ... फिर गाड़ी से निकाल कर... बस पाँच मिनट...हाँ... मैं.. मैं निकल रहा हूँ...

वीर तैयार होने के लिए बाथरूम में घुस जाता है l उधर ESS ऑफिस में अपने कैबिन के रेस्ट रूम के अंदर विक्रम एक आदम कद आईने के सामने खड़ा है और खुद को चाबुक से मार रहा है l क्यूँकी उसके कानों में, मॉल के पार्किंग एरिया में टकराए उस आदमी के कहे हर लफ्ज़ तीर के तरह उसके जेहन में चुभ रहे हैं l उसके आँखों में दर्द और नफरत के मिलीजुली भाव दिख रहे हैं l


"अगर यह तेरे दम पर मेरी माँ से बत्तमीजी की है... तो माफी माँगना अब तेरा बनता है"

विक्रम अपने हाथ का चाबुक जोर से चलाता है l च..ट्टा.....क्क्क्क्क्... विक्रम के पीठ पर एक लाल रंग का धारी वाला निशान बन जाता है l

"क्यूँ... तु नहीं जानता... तेरा बाप कौन है... तो जा... जाकर अपनी माँ से पुछ... वह बताएगी तेरा बाप कौन है..."

विक्रम फिर से चाबुक चलाता है l और एक लाल रंग का धार उसके पीठ पर नजर आता है l इस बार उस धार से खुन निकलने लगता है l पर विक्रम के चेहरे पर भाव ऐसे आ रहे हैं जैसे उसे जिस्मानी दर्द का कोई एहसास ही नहीं हो रहा है l उसके कानों में उस आदमी के कहे हर बात नश्तर की तरह उसके आत्मा में घुसे जा रहे हैं l

"सुन बे क्षेत्रपाल के चुजे... तेरा हर काम.. वह क्षेत्रपाल ही करेगा क्या... फ़िर तु क्या करेगा... या फिर तुझसे कुछ होता नहीं... इसलिए कुछ करने के लिए... तुझे क्षेत्रपाल टैग चाहिए... हाँ..."

फिर से विक्रम अपनी चाबुक चलाता है l फिर से उसके जिस्म पर और एक धार नजर आती है और उस धार के किनारे से खुन बहने लगती है l विक्रम अंदर खुद पर चाबुक चला रहा है यह बाहर किसीको भी पता नहीं चल पा रहा है l चूँकि वहाँ पर किसीमें इतनी हिम्मत है ही नहीं, विक्रम के कैबिन में जाए और रेस्ट रूम को जा कर उससे कुछ पूछे या खबर ले l इसलिए कुछ गार्ड्स और महांती ESS के कांफ्रेंस हॉल के बैठक में खड़े हुए हैं l इतने में महांती की फोन बजने लगता है l महांती देखता है कॉल वीर का है तो झटके से फोन उठाता है l

महांती - हैलो...
वीर - हाँ महांती... मैं गाड़ी में... ड्राइविंग कर रहा हूँ... अब मुझे डिटेल्स में बताओ... क्या हुआ है...
महांती - राजकुमार जी आप यहाँ आ जाइए... मैं डिटेल्स में बताता हूँ...
वीर - देखो जो भी है... फोन पर बताओ... पिक्चर तो दिखाओगे नहीं वहाँ... जब बताना ही है... अभी बताओ... क्या हो सकता है वहाँ पहुँचते ही डिसाइड करेंगे...
महांती - ओके...

महांती सभी गार्ड्स को इशारा करता है l सभी गार्ड्स वहाँ से चले जाते हैं l अब कांफ्रेंस हॉल में सिर्फ अकेला महांती बैठा हुआ है, सब चले गए यह निश्चिंत कर लेने के बाद

महांती - आज... छोटे राजा जी पर हमला हुआ है... वह प्राइमरी ट्रीटमेंट करा कर हॉस्पिटल से आ रहे हैं l...
वीर - क्या... क्या कह रहे हो... महांती... इस बार... हमारी इंटेलिजंस फैल कैसे हो गई...
महांती - हम... उसके स्नाइपर्स पर नजरे रखे हुए थे... इसलिए वह दुसरा रास्ता निकाल कर... छोटे राजाजी को सिर्फ घायल कर दिया...
वीर - सिर्फ़ घायल कर दिया... इसका क्या मतलब है महांती...
महांती - इस बार भी जान से मारना उसका लक्ष नहीं था... इस बार....(रुक जाता है)
वीर - हूँ... इसबार...
महांती - इसबार उन्होंने म्युनिसिपलटी ऑफिस में घुसपैठ किया...
वीर - व्हाट... हमारे सिक्युरिटी गार्ड्स के होते हुए...
वीर - राजकुमार... आप भूल रहे हैं... हमारी प्राइवेट सिक्युरिटी सर्विस है... सरकारी संस्थानों को उनकी अपनी सिक्युरिटी संस्थान मतलब... होम गार्ड्स सिक्युरिटी सर्विस होती है... हम सिर्फ पर्सन को सिक्युरिटी दे सकते हैं... पर सरकारी ऑफिस के अंदर हम एलावुड नहीं हैं... इसलिए अगर ऑफिस के अंदर कोई कुछ करता है... सिवाय सीसीटीवी के और कुछ हम हासिल नहीं कर सकते....
वीर - अच्छा... तो... उनपर हमला कैसे हुआ...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - क्या बात है महांती....
महांती - राजकुमार जी... उसने किसी कारीगर के जरिए... छोटे राजा जी के कुर्सी को छेड़छाड़ किया है...
वीर - अरे यार महांती... कब से तुम सस्पेंस बना रखे हो... साफ साफ कहो... और झिझक छोड़ कर कहो...
महांती - ओके देन... जिसने भी वह किया है... उसका इरादा छोटे राजा जी को... सबके सामने जलील करना था... इसलिए उसने छोटे राजा जी के चेयर पर एक वंशी कांटे जैसी कील को सेट कर दिया था.... और उसकी सेटिंग कुछ ऐसी थी के कोई भी बैठे... तो उस कील के पुट्ठ में घुसने के बाद घूम जाती है... और उसे निकालने के लिए... एक सर्जन की जरूरत पड़ती है....
वीर - मतलब एक कील इंप्लांट किया गया... छोटे राजाजी को जलील करने के लिए...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - क्या इसी बात के लिए... युवराज खुद को रेस्ट रूम में बंद कर रखा है....
महांती - (अपना सिर झुका कर) नहीं... उनके साथ... कुछ और हुआ है... और बहुत बुरा हुआ है...
वीर - क्या... (हैरान हो कर) उनके साथ कुछ और हुआ है का मतलब...

महांती सुबह से जो जो इंफॉर्मेशन हाथ लगी थी वह विक्रम के साथ कैसे शेयर किया और क्यूँ विक्रम ओरायन मॉल गया और पार्किंग एरिया में कैसे एक शख्स ने विक्रम और ESS के कमांडोज को कुछ ही समय में धुल चटा दी, सब वीर को बताता है l वीर यह सब सुन कर हैरान हो जाता है l

वीर - क्या... एक आदमी ने... युवराज और उनके गार्ड्स को अकेले...
महांती - जी... अकेले...
वीर - उस आदमी के बारे में कुछ पता चला....
महांती - नहीं...
वीर - कैसे... क्यूँ... क्यूँ नहीं पता चला... मॉल में सीसीटीवी होंगे... उसकी मदत से... आख़िर हमारी ही सिक्युरिटी सर्विलांस है वहाँ पर...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - महांती.... क्या बात है...
महांती - राज कुमार जी... यह कांड होने के तुरंत बाद... एक आदमी पुलिस की वर्दी में... फेक डॉक्यूमेंट्स के साथ... मॉल में हमारे कंट्रोल रूम में घुस गया... और आज की सारे सीसीटीवी फुटेज और पार्किंग एरिया के रिकॉर्ड्स सब अपने साथ ले गया....
वीर - व्हाट.... (गाड़ी के भीतर ही ऐसे उछलता है जैसे महांती ने कोई बम फोड़ दिया) व.. व्हाट... क... क्या मतलब हुआ इसका... क्या यह अटैक कोई प्लांड था...
महांती - आई डोंट थिंक सो... पार्किंग एरिया में जो हुआ... वह इत्तेफ़ाक था...
वीर - कैसे... तुमने ही कहा कि... रॉय ग्रुप के पुराने मुलाजिम मॉल के बाहर असेंबल हो रहे थे... तो यह पार्किंग एरिया वाला आदमी... यह उनका आदमी भी हो सकता है...
महांती - नहीं... वह लोग हफ्ते भर से हमारे सर्विलांस में हैं... उनके किसी भी कॉन्टैक्ट में... कोई बाहरी आदमी या उसकी माँ नहीं है...
वीर - बाहरी आदमी और माँ... यह क्या पहेलियाँ बुझा रहे हो...
महांती - राज कुमार जी... हमारे जी गार्ड्स अभी हस्पताल में इलाज करवा रहे हैं... उन्होंने जो बताया... (कह कर पार्किंग एरिया में जो हुआ बताता है)
वीर - एक आदमी और उसकी माँ... (कुछ याद करने की कोशिश करते हुए) एक... आदमी.... और... उसकी माँ...
महांती - क्या हुआ राजकुमार जी...
वीर - वैसे... क्या हुलिया था उसका...
महांती - पता नहीं...
वीर - व्हाट डु यु मिन... पता नहीं...
महांती - हमारे जो कमांडोज थे... वह नहीं बता रहे हैं...
वीर - क्यूँ...
महांती - उनको.... युवराज ने मना किया हुआ है.... मतलब हुकुम दिया है...
वीर - क्या.... क्यूँ... किसलिए....
महांती - यह बात... युवराज जी से मैं भी जानना चाहता हूँ... आप यहाँ आकर पहले उन्हें रेस्ट रूम से बाहर लाएं... प्लीज...
वीर - ओके... पहुँच रहा हूँ....

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तापस के क्वार्टर में
एक कोने में विश्व अपनी कान पकड़े खड़ा है l उसके सामने प्रतिभा गुस्से से गहरी सांसे लेती हुई मतलब हांफती हुई एक कुर्सी पर बैठी हुई है l प्रतिभा के हाथ में एक झाड़ू है l

विश्व - माँ (प्रतिभा उसके तरफ देखती है) जब से घर आए हैं... मुझे तुमने ऐसे ही दौड़ा रही हो... और झाड़ू से मार भी रही हो... अब मैं तुम्हारे पास आऊँ...

प्रतिभा अपनी जगह से उठती है और झाड़ू से विश्व के पैरों को मारने लगती है l विश्व उछलते कुदते मार खाने लगता है और चिल्लाने लगता है l

विश्व - आ.. ह्.... ओ... ह्...
प्रतिभा - (गुस्से से) बंद कर यह ओवर ऐक्टिंग... मुझे पता है... तुझे कोई दर्द वर्द नहीं हो रहा है... गुदगुदी हो रही है... असल में तू मुझे चिढ़ा रहा है... आने दे सेनापति जी को... उनके स्टिक से आज तुझे मन भरने तक मारूंगी...
विश्व - तब तक मैं थोड़ा बैठ जाऊँ... (सोफ़े पर बैठते हुए)
प्रतिभा - खबरदार जो बैठा तो... (विश्व फिर भाग कर सोफ़े के पीछे खड़ा हो जाता है)
विश्व - माँ... मैं थोड़ा बाथरूम हो कर आता हूँ... जोर की लगी है... और तुम भी थोड़ा आराम कर लो... देखो कितनी थक गई हो... मुझे मारते मारते तुम्हारे हाथ भी दर्द करने लगे होंगे... देखो सर पर पट्टी बंधी है और हाथ में भी...
प्रतिभा - (फिर झाड़ू उठा कर विश्व के पीछे भागती है) आ.. ह्... मुझे परेशान कर रहा है... (हांफते हुए) बात... बात नहीं मान रहा है... और... और...
विश्व - तभी तो कह रहा हूँ... थोड़ा सा आराम कर लो... कहो तो हाथ पैर दबा देता हूँ... जब थोड़ा अच्छा लगे... तब दोबारा से मारना चालू कर देना...
प्रतिभा - बदमाश... ऐसा कह कर तीन बार मेरे पैर दबाये... फिर दौड़ा रहा है.. हाथ भी नहीं आ रहा है...
विश्व - माँ... यह गलत बात है... मैं बराबर मार तो खा ही रहा हूँ...
प्रतिभा - ठीक है... इधर आ... आज तेरा पेट (झाड़ू उठा कर) इसीसे भर देती हूँ...
विश्व - माँ इससे मेरा पेट कैसे भरेगा... फिर तुम... अगर मैं तुम्हारे हाथ का बना नहीं खाया... तुम भी तो भूखी रह जाओगी...
प्रतिभा - नहीं... (झाड़ू को नीचे फेंकते हुए) तुझे जो करना है... कर... (सोफ़े पर बैठते हुए) सेनापति जी को आने दे... आज तेरा फैसला... सेनापति जी करेंगे...
विश्व - (भाग कर प्रतिभा के गोद में अपना सिर रख देता है और अपने दोनों हाथों से प्रतिभा को जोर से पकड़ लेता है) माँ... अब हम दोनों के बीच... सेनापति सर को क्यूँ ला रही है...
प्रतिभा - (विश्व को अपने से अलग करने की कोशिश करते हुए) ऊंह्... छोड़.... छोड़ मुझे...
विश्व - नहीं छोडूंगा....
प्रतिभा - तो बैठा रह यहीं पर... सेनापति जी को आने दो... वही फैसला करेंगे...
तापस - (अंदर आते हुए) अरे क्या फैसला करेंगे हम... (प्रतिभा को देख कर) अरे भाग्यवान यह तुम्हारे माथे पर पट्टी और कुहनियों भी पट्टी... क्या हुआ...
प्रतिभा - (रोनी सूरत बनाकर) जानते हैं आज क्या हुआ है....

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बड़ी हिम्मत जुटा कर रुप शुभ्रा की कमरे में आती है lशुभ्रा अपने बेड के हेड बोर्ड पर तकिये के सहारे टेक लगा कर आँखे मूँद कर बैठी हुई है l शुभ्रा के पास जाने के लिए रुप हिम्मत नहीं जुटा पा रही है l थोड़ी देर दरवाज़े के पास खड़े हो कर फिर मुड़ने लगती है l

शुभ्रा - क्या बात है रुप...
रुप - (मुड़ कर देखती है, शुभ्रा की आँखे लाल दिख रही हैं )(शायद बहुत रोई है) (रुप तेजी से भाग कर शुभ्रा के पैर पकड़ लेती है) मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी... ना मैं जानती थी... ना ही मैं चाहती थी... ऐसा कुछ हो... आई एम सॉरी... भाभी...
शुभ्रा - (चुप रहती है और रुप को देखती रहती है)
रुप - मैं... मैं... सच में करमजली हूँ... (रोने लगती है) मैं अगर कॉलेज से घर आ गई होती... तो... तो यह सब नहीं हुआ होता...भाभी.... प्लीज.... भाभी... प्लीज... मुझे माफ़ कर दीजिए...
शुभ्रा - रुप... (भर्राई हुई आवाज में) सच सच बताओ... क्या तुम प्रताप को पहले से जानती हो...

यह सवाल सुनते ही रुप स्तब्ध हो जाती है l वह शुभ्रा के आँखों में देखती है l रुप महसुस करती है शुभ्रा उसे शक की नजरों से देख रही है l

रुप - भाभी... मैं कसम खाकर कहती हूँ... मैं उस प्रताप को नहीं जानती...
शुभ्रा - (चुप रहती है पर रुप को गौर से देख रही है)
रुप - भाभी... मैंने खुले आम... सबके सामने.... आपको माँ का दर्जा दिया है.... आपसे हरगिज़ झूठ नहीं बोल सकती हूँ... मैं (शुभ्रा के पैर पकड़ कर) आपकी चरणों की कसम खाकर कह रही हूँ... मैं उसे नहीं जानती... नहीं जानती... नहीं जानती... (रो देती है)
शुभ्रा - मैं मानतीं हूँ... तुम उसे नहीं जानती हो... फिर भी मुझे कुछ क्लैरिफीकेशन चाहिए...
रुप - पूछिए भाभी...(सुबकते हुए)
शुभ्रा - हम जब लिफ्ट में थे.... तब तुमने... प्रताप से कुछ ऐसा कहा... जो मेरे हिसाब से गैर जरूरी था... और उसके जवाब सुन कर तुम शर्मा गई... और जब वह गार्ड्स से लड़ रहा था... तुमने अपने फिंगर क्रॉस कर लिए थे... और तुम्हारे भाई से जब लड़ रहा था तब... तुमने दोनों हाथों की मुट्ठी बना लिया था और... अपने दोनों अंगूठे को... एक दुसरे के ऊपर रगड़ रही थी... ऐसा कोई तब करता है.... जब सामने युद्ध में दोनों उसके अपने हों... इसलिए अब मुझे सच जानना है... सब सच सच बताओ....
रुप - (स्तब्ध हो जाती है) भाभी मैं फिर से अपनी बात दोहराती हूँ... मैं प्रताप को नहीं जानती... मगर... (चुप हो जाती है)
शुभ्रा - (उसे घूर कर देखती है) मगर...
रुप - पता नहीं भाभी... कैसे कहूँ... वह... वह मुझे... वह मुझे जाना पहचाना लगा...
शुभ्रा - क्या... वह प्रताप तुमको जाना पहचाना लगा... कैसे रुप...
रूप - भाभी... आप धीरज धरें और मेरी पुरी बात सुनें... याद है मैंने एक दिन आपसे अपनी बचपन की यादें शेयर करते हुए कहा था... के मुझे कोई पढ़ा रहा था...
शुभ्रा - अनाम...
रुप - हाँ... जब माँ की हत्या हुई थी...
शुभ्रा - क्या... सासु माँ की हत्या हुई थी...
रुप - भाभी... आत्महत्या भी एक तरह से हत्या ही होती है... किसीको जान देने के लिए विवश करना... उकसाना... क्या हत्या नहीं है...
शुभ्रा - चुप रहती है...
रुप - खैर चलो.. मैं ऐसे कहती हूँ... माँ के चले जाने के बाद... उस बड़े से महल में... मैं अकेली थी... ऐसे... जैसे एक सांप के पिटारे में... कोई चिड़िया का चूजा पलता हो... मैं चाची माँ के पास रहा करती थी.... वह जब मेरे पास नहीं होती थी... वह पुरा महल मुझे भुतहा लगता था... काटने को आता था...

बहुत ही दर्द भरी आवाज में कही थी रुप ने शुभ्रा को l रुप के हर एक लफ्ज़ में रुप की दर्द को महसुस कर रही थी शुभ्रा

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वीर ESS ऑफिस के कांफ्रेंस हॉल में घुस जाता है तो वहाँ सिर्फ महांती को बैठा पाता है l

महांती - राजकुमार... आप... युवराज जी के कैबिन में जा कर... उन्हें पहले यहाँ पर लाएं....

विश्व कांफ्रेंस हॉल से निकल कर विक्रम के कैबिन में घुसता है l वहाँ उसे टेबल पर आधी खाली शराब की बोतल दिखता है, और कुर्सी पर विक्रम के कपड़े दिखाई देते हैं l वह उधर उधर देखने लगता है l तभी उसको बाथरुम से पानी बहने की आवाज़ सुनाई देता है l वह बाथरूम के दरवाजे पर दस्तक देने लगता है

वीर - युवराज जी... दरवाज़ा खोलिए... प्लीज...

अंदर से कोई जवाब नहीं आता l वीर जोर जोर से दरवाज़े पर दस्तक देने लगता है और बार बार दरवाजा खोलने के लिए कहता है l

वीर - युवराज जी... आप दरवाजा खोलीए... नहीं तो हम दरवाजा तोड़ देंगे....

बाथरूम का दरवाज़े के नॉब पर हरकत होती है फिर धीरे से दरवाजा खुल जाता है l वीर के सामने विक्रम खड़ा था l विक्रम की आंखें लाल दिख रही थी और उसका बदन कमर से ऊपर नंगा था l उसके बदन पर कोड़ों के ताजा निशान साफ साफ दिख रहे थे l कुछ कुछ जगहों पर से खुन बह रहे थे l पर वीर के लिए सबसे ज्यादा चौकाने वाला जो था वह था विक्रम ने अपनी मूंछें मुंडवा लिया था l वीर के सामने वाला विक्रम एक दम अलग था l चेहरा कठोर और गम्भीर हो चुका था l वीर को कुछ सूझता नहीं वह विक्रम के हाथ पकड़ कर चेयर पर बिठा देता है l

वीर - यह... यह क्या है युवराज... आपने... अपनी मूंछें क्यूँ मुंडवा ली... क्यूँ... और... और खुदको इस कदर क्यूँ सजा दी है आपने...
विक्रम - उसे मूंछें रखने का कोई हक़ नहीं... जिसकी जिंदगी... उसके औरत ने हाथ जोड़ कर भीख में माँगी हो...
वीर - बस इतनी सी बात पर आपने... अपनी मूंछें मुंडवा ली...
विक्रम - इतनी सी बात... (गुर्राते हुए) यह आपको इतनी सी बात लग रही है... मेरी पुरूषार्थ तार तार हो गई है...(कहते हुए ऐसा लग रहा था जैसे उसके आँखों से अंगारे बरस रहे हैं) आपको इतनी सी बात लग रही है....
वीर - सॉरी युवराज...(हैरान हो कर) आप... हम से... मैं पर आ गए....
विक्रम - मैंने कहा ना... मेरी पुरूषार्थ अब लहू लुहान है...
वीर - (क्या कहे उसे समझ में नहीं आता) आपने अपनी मूंछें मुंडवा ली... समझ में आ गया... पर खुदको कोड़े से क्युं सजा दी...
विक्रम - मैं यह देख रहा था... कोड़े से कितना दर्द होता है... पर उसके कहे बातों के आगे... कोड़े से बने घाव में कुछ भी दर्द हो नहीं है... जरा सा भी नहीं...
वीर - क्या...
विक्रम - यकीन नहीं आ रहा है ना... जाओ... वह शराब की बोतल ला कर मेरे ज़ख्मों में डालो... (वीर उसे हैरानी भरे नजरों से देखता है, तो विक्रम उसे कहता है) जाओ... वह शराब की बोतल लाओ... (कड़क आवाज़ में)

वीर पहली बार आज विक्रम की हालत और आवाज़ से डर जाता है l वीर कांपते हुए शराब की बोतल लाकर विक्रम के ज़ख्मों पर शराब डालने लगता है l शराब डालते हुए वीर उन घावों की टीस को महसुस कर पाता है पर विक्रम के चेहरे पर कोई भाव उसे नजर नहीं आता है l विक्रम के चेहरे पर कोई भाव ना देख कर वीर के हाथों से बोतल छूट जाता है l

वीर - युव... युवराज जी... ऐसा क्या कह दिया है उसने जिसके दर्द के आगे.... कोड़ों का दर्द भी महसुस नहीं हो रहा है आपको...

विक्रम चुप रहता है, विक्रम की यह ख़ामोशी वीर को बहुत खलता है, उसी वक़्त वीर के मोबाइल फोन पर महांती का कॉल आता है l


वीर - हाँ बोलो... महांती...
महांती - युवराज और आप... कांफ्रेंस हॉल में जल्दी पहुँच जाइए... छोटे राजाजी आ गए हैं...

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तापस को बैठक में देख कर विश्व प्रतिभा को छोड़ कर एक कोने पर खड़ा हो जाता है l और प्रतिभा तापस देख कर मुहँ बना कर सिसकने लगती है l

तापस - अरे भाग्यवान क्या हुआ...
प्रतिभा - जानते हैं... आज क्या हुआ है...
तापस - नहीं जानता... इसलिए तो पूछा क्या हुआ है...
प्रतिभा - यह (विश्व को दिखाते हुए) आज ही पेरोल पर बाहर निकला है... और आज ही इसने मार पीट की है... और जानते हैं किससे...
तापस - (जिज्ञासा और हैरानी से) किससे....
प्रतिभा - विक्रम सिंह क्षेत्रपाल से...
तापस - क्या... वाकई... पर क्यूँ
विश्व - हाँ हाँ... अब बताओ...
प्रतिभा - तु तो मुझसे बात ही मत कर...
तापस - ठीक है... बताओ तो सही... तुम्हारा प्रताप... उनसे मार क्यूँ खा कर आया...
प्रतिभा - यह क्यूँ मार खाएगा... उल्टा इसने उन सबको धोया है...

फिर प्रतिभा तापस को पार्किंग एरिया में घटे सभी वाक्या, सब कुछ विस्तार से बताती है l सब कुछ सुनने के बाद तापस प्रतिभा से

तापस - हम्म... इसमे तो कहीं भी प्रताप का दोष नजर नहीं आ रहा है... और जो भी हुआ है ऑन द स्पॉट... वह सब सीसीटीवी में रिकॉर्ड हुआ होगा... और तुम अब जानीमानी वकील हो... इतने से ही डर गई...
प्रतिभा - हो गया... आप भी इस के साथ हो लिए... ठीक है... मैं... मैं किसी से भी बात नहीं करूंगी...

इतना कह कर प्रतिभा किचन की ओर चली जाती है l वहाँ पर सिर्फ़ तापस और विश्व रह जाते हैं l प्रतिभा को कैसे मनाया जाए, उसके लिए विश्व, तापस को इशारे से मूक भाषा में पूछता है l
तापस भी हैरान हो कर इशारे से मूक भाषा में पूछता है - क्या कहा...
विश्व - (इशारे से) किचन की ओर दिखा कर... आप जाओ ना... (अनुरोध करने की स्टाइल में) माँ को मनाओ ना...
तापस - (अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर इशारे में ही) ना... तुमने गुस्सा दिलाया है... तुम ही जा कर मनाओ...
विश्व - (इशारे से) मैं... मैं कैसे मनाऊँ... (अपने होठों को अपनी हाथों से स्माइल जैसा बना कर) उनके चेहरे पर मुस्कान कैसे लाऊँ....
तापस - (कुछ सोचने के अंदाज में) (फिर इशारे से) तुम किचन के अंदर जाओ... और उसे पीछे से पकड़ लो... और गालों पर एक चुम्मी ले लो... और तब तक मत छोड़ना... जब तक ना मान ले...
विश्व - (इशारे से) मान तो जायेंगी ना..
तापस - (इशारे में ही) अररे... पहले कोशिश तो कर...
विश्व - (मन ही मन में) ठीक है... हे भगवान... मदत करना... (ऊपर छत को देख हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता है, फिर किचन की ओर जाता है)

विश्व की हालत देख कर तापस अपनी हँसी को दबा कर बाहर बालकनी में चला जाता है l विश्व किचन में पहुँच कर प्रतिभा के कमर के इर्द-गिर्द अपनी बांह कस लेता है और प्रतिभा के गाल पर एक चुम्मी लेता है l

विश्व - माँ... गुस्सा थूक दो ना...

प्रतिभा जिस चिमटे से गैस पर रोटी सेंक रही थी उसे विश्व के हाथ में लगा देती है l

विश्व - (अपना हाथ निकाल देता है) आ... ह्.. माँ.. देखो... क्या किया तुमने... हाथ जल गया... आ... ह्
प्रतिभा - हो गया तेरा ड्रामा... या और एक बार फिर से लगाऊँ...
विश्व - नहीं... हो गया माँ... हो गया... ए माँ... प्लीज मान जाओ ना... प्लीज गुस्सा थूक दो ना...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) वह बाद में देखेंगे...(विश्व की ओर देखते हुए) पहले यह बता... सेनापति जी ने तुझे यहाँ भेजा है ना...
विश्व - (मुस्करा देता है, और अपना सिर हाँ में हिलाता है)
प्रतिभा - और तुम दोनों ने जरूर मूक भाषा में बात की होगी... इशारों इशारों में... है ना...
विश्व - (हैरान हो कर) माँ यह आपने कैसे जान लिया...
प्रतिभा - तु भले ही मेरे कोख से नहीं आया... पर तु मेरे आत्मा से जुड़ा हुआ है... तेरी यह हरकत भी मैं समझ गई थी...
विश्व - माँ... (थोड़ा सीरियस हो कर) अगर तुम्हारी आत्मा से जुड़ा हुआ हूँ... तो मेरी दर्द को भी समझी होगी ना... उस पार्किंग में जो तुम्हारे साथ हुआ... वह मंज़र मेरे लिए कितना दर्दनाक था....(विश्व के आँखों में आंसू के बूंदे दिखने लगते हैं)
प्रतिभा - (उसकी आँखों को पोछते हुए) जानती हूँ... पर तु भी समझ पा रहा होगा ना... मुझे किस बात का दर्द हो रहा था...
विश्व - (अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) हूँ...
प्रतिभा - खैर... अब जो होगा देखा जाएगा... पहले यह बता... तेरे और सेनापति जी के बीच वह कौनसी मौन दीवार है... जिसके वजह से... ना तो वह तुझे बेटा कह पा रहे हैं... और ना ही तु उन्हें डैड...
विश्व - (अपना सिर झुका लेता है, और कुछ कह नहीं पाता)
प्रतिभा - अगर कोई दीवार था भी... तो आज गिर चुकी है...
विश्व - (हैरानी से सवालिया नजरों से प्रतिभा की ओर देखता है)
प्रतिभा - वह जरूर अब बालकनी में होंगे...
विश्व - आपको कैसे पता...
प्रतिभा - (विश्व की चेहरे को अपने दोनों हथेली में लेकर) क्यूंकि यह इशारों वाली मूक भाषा में... प्रत्युष बातेँ किया करता था... आज तुने इशारों में बात करके... उन्हें प्रत्युष की याद दिला दी...
विश्व - (हैरान हो जाता है)
प्रतिभा - अब तेरा फ़र्ज़ बनता है... तु उन्हें... उस दुख में देखेगा या... उस दुख से उबारेगा....जा

विश्व हिचकिचाते हुए प्रतिभा को देखता है l प्रतिभा उसे इशारे से बालकनी जाने को कहती है l विश्व एक झिझक के साथ बालकनी की ओर जाने लगता है l प्रतिभा भगवान को याद करते हुए हाथ जोड़ कर आँखे मूँद लेती है l

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रुप अपनी पुराने दिनों की याद में खो गई थी l शुभ्रा उसे झिंझोडती है I रुप होश में आती है l

रुप - हाँ.... हाँ... भाभी... आज से... पंद्रह साल पहले मैं पुरी तरह से अनाथ हो गई थी... माँ की जगह चाची माँ ने ले तो ली थी... हाँ बहुत प्यार भी दिया है उन्होंने... पर मैं बाहर कहीं नहीं जा सकती थी... (एक फीकी हँसी हँसते हुए) आखिर क्षेत्रपाल परिवार की बेटी थी... राज कुमारी थी... मैं सिर्फ़ घर पर रह सकती थी... किसीसे दोस्ती... हूँह्.. सोच भी नहीं सकती थी... मेरे भाई भी मेरे पास नहीं थे... शुरु से ही बोर्डिंग में पढ़ रहे थे... मुझे पढ़ाने के लिए कोई सोच भी नहीं रहे थे... वह तो चाची ने बहुत कहा... के रुप कभी ना कभी किसी राज घराने में जाएगी... अगर क्षेत्रपाल घर की बेटी अनपढ़ होगी तो... क्षेत्रपाल परिवार की इज़्ज़त क्या रह जाएगी... तब छोटे राजा जी ने एक रास्ता निकाला... गांव के स्कुल के प्रधानाचार्य श्री उमाकांत आचार्य जी से मदत के लिए कहा गया... तब एक दिन आचार्य जी.. एक लड़के को साथ लेकर छोटे राजाजी और चाची माँ के साथ आए...

फ्लैश बैक...

पंद्रह साल पहले
क्षेत्रपाल महल

पांच साल की रुप अपनी कमरे की बालकनी में खड़ी बाहर आसमान में उड़ रहे चिडियों को देख रही थी l तभी कमरे में पिनाक सिंह, सुषमा, आचार्य जी एक तेरह साल के लड़के के साथ आते हैं l

पिनाक - राजकुमारी जी... (रुप पीछे मुड़ती है और अपने कमरे में आती है) यह हैं आपके स्कुल के हेड मास्टर... उमाकांत आचार्य... (रुप हैरान हो कर सुषमा को देखती है)
सुषमा - हाँ राजकुमारी... आपका एडमिशन करा दिया गया है... स्कुल में... अब आप पढ़ेंगी... (पढ़ने की बात सुन कर रुप के चेहरे पर एक खुशी दिखती है) यह आपके (उमाकांत आचार्य को दिखाते हुए) प्रधान आचार्य जी हैं...
पिनाक - नहीं.. आप स्कुल नहीं जा रही हैं... (रुप को झटका लगता है) (आचार्य जी से) ए मास्टर... बताओ... हमारी राजकुमारी को... उनकी पढ़ाई कैसे होने वाली है...
आचार्य - राजकुमारी जी... यह लड़का (अपने साथ लाए लड़के को दिखा कर) आपको पढ़ाएगा... आप घर में रह कर पढ़ाई करेंगी... आपको स्कुल सिर्फ परीक्षा के दिन आना होगा... बाकी साल भर आपको यह लड़का पढ़ाएगा....
पिनाक - (उस लड़के से) ऐ लड़के... जैसा समझाया गया है... बिल्कुल वैसे ही... वरना तेरी खाल उधेड ली जाएगी...
सुषमा - (रुप के पास आकर) बेटी... आप इस लड़के के बात कीजिए... अगर आपको अच्छा लगे... तभी आपकी पढ़ाई आगे जाएगी... (रुप अपना सिर हिला कर हाँ कहती है) (पिनाक से) तो हम कुछ देर के लिए बाहर चलें... अगर राजकुमारी जी को अच्छा लगेगा... तो हम आगे की सोचेंगे...
आचार्य - जी जैसा आप ठीक समझे...
पिनाक - तो फिर चलते हैं... आधे घंटे के बाद आकर देखते हैं...

तीनों कमरे से बाहर चले जाते हैं l रुप उस लड़के को घुर के देखती है l वह लड़का अपना सिर झुका कर खड़ा है l

रुप - ह्म्म्म्म... ऐ लड़के.... तुम्हारा नाम क्या है..
लड़का - जी राजकुमारी...
रुप - वह तुम मुझे कहोगे... मैंने क्या पुछा सुनाई नहीं दिया... बहरे हो क्या... क्या नाम है तुम्हारा...
लड़का - जी.... मेरा नाम... वह... मेरा नाम... अनाम है...
रुप - यह क्या बकवास है... अनाम भी कोई नाम होता है... सच सच बताओ... वरना अभी बुलाती हूँ सबको...
अनाम - (वैसे ही अपना सिर झुका कर) जी सच कह रहा हूँ... मेरा नाम अनाम है... और मैं इसका मतलब भी समझा सकता हूँ...
रुप - (अपनी छोटी सी चेयर पर बैठ जाती है) बताओ हमे...
अनाम - जी जिसे हम नाम समझते हैं... असल में उस नाम में... रुप, चरित्र और गुण... उस नाम की सीमा में बंध जाते हैं... जबकि ईश्वर के वास्तविक स्वरुप... निर्गुण व निराकार... ऐसा स्वरुप... जो नाम ना बांध पाए... उसे अनाम कहते हैं...
रुप - ह्म्म्म्म समझ में तो कुछ नहीं आया... पर अच्छा लगा...
अनाम - जी धन्यबाद..
रुप - और सुनो... अपने कान खोल कर सुनो... तुम मुझसे बड़े हो... और लड़के भी हो... पढ़ाने आए हो... इसका मतलब यह नहीं... के मुझ पर रौब झाड़ोगे... यह तो सोचने की गलती... कभी ना करना... की यह लड़की है... नाजुक है... ऐसा.... समझे... ऐसा समझने की भूल मत करना... मैं बहुत खतरनाक हूँ....
अनाम - जी राजकुमारी जी... समझ गया... मैं भले ही लड़का हूँ... पर जो भी हूँ... जैसा भी हूँ... खतरनाक बिल्कुल नहीं हूँ....

फ्लैशबैक से बाहर आकर

रुप - मेरे बचपन का सात साल... उसके साथ गुज़रा है भाभी... मेरा एक अकेला दोस्त... जब वह मेरे साथ होता था... मुझे लगता था कि मैं राजकुमारी हूँ... वरना... शेर के पिंजरे में दुबकी हुई भेड़ से ज्यादा औकात नहीं थी मेरी... जब वह मेरे पास होता था... मैं आसमान में उड़ने वाली कोई पंछी होती थी... एक वही था... जिससे मैं रूठ सकती थी... और वह मनाता था... मेरी हर खुशियों का खयाल रखता था... मैं अपनी सारी खीज.... अपना सारा डर को गुस्से में ढाल कर उस पर उतार देती थी... वह हँसते हँसते सब सह लेता था... पर जब मैं बारह वर्ष की हुई... मेरा पहला मासिक धर्म अनुभव हुआ... तब सब खतम हो गया... उसका आना बंद कर दिया गया... आठ साल हो गये हैं मुझे उससे अलग हुए... जब प्रताप को देखा तो मन में एक सवाल उठा... कहीं यह अनाम तो नहीं... इसलिए जिज्ञासा वश मैंने लिफ्ट में वह सवाल किया... और भाभी ताज्जुब की बात यह थी... ज़वाब बिल्कुल वही था... इसलिए एक अनजानी खुशी के मारे मैं शर्मा गई थी... पर भाभी (आवाज़ भर्रा जाती है) यह... यह अनाम हो नहीं सकता....
शुभ्रा - क्यूँ... क्यूँ नहीं हो सकता...
रुप - क्यूँकी... अनाम अनाथ था भाभी.... अनाथ था... बचपन में ही उसकी माँ का देहांत हो गया था... उसकी एक बड़ी बहन थी... जिसे डाकुओं ने उसके पिता की हत्या कर उठा लिया था... और यह मॉल वाला प्रताप... अपने माँ के साथ आया था... और उस औरत को देख कर लगता है... प्रताप का बाप जिंदा है.... भाभी.... यही सच है....

कह कर रुप सुबकने लगती है l शुभ्रा रुप को अपने गले से लगा लेती है और दिलासा देते हुए रुप की पीठ पर हाथ सहलाते हू फेरती है l

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कांफ्रेंस हॉल में वीर और विक्रम आते हैं l विक्रम की बिना मूँछ वाली चेहरा देखकर पिनाक और महांती हैरान हो जाते हैं l वीर के चेहरे पर जहां थोड़ी बहुत परेशानी दिख रही है वहीँ विक्रम के चेहरे पर कठोरता झलक रही है l

पिनाक - यह... यह क्या है युवराज....
वीर - वह... वह... आपको जलील होने से नहीं रोक पाए ना... इसलिए... इसलिए युवराज अपनी मूंछें मुंडवा ली...
पिनाक - ओह... शाबाश युवराज... शाबाश... अब हमारे दुश्मन की खैर नहीं... उस बात की कीमत बहुत होती है... जिसके लिए दाव पर जान, जुबान और इज़्ज़त लगी हो... आई एम डैम श्योर... अब हमारा दुश्मन पाताल में भी छुप जाए... बच नहीं सकता...
वीर - जी जरूर... मेरा मतलब है कोई शक़...
पिनाक - यह... आप क्यूँ बार बार ज़वाब दे रहे हैं राजकुमार...
वीर - वह... वह... एक्चुयली... आपके घायल होने पर युवराज ने... दुख भरा मौन धर लिया है...
पिनाक - ओह.. युवराज... आपने तो... इसे दिल पे ले लिया है... अब दिलसे कैसे उतरेगी यह भी सोच लीजिए....

तभी पिनाक का फोन बजने लगती है l पिनाक देखता है अननोन प्राइवेट नंबर डिस्प्ले हो रहा है l पिनाक समझ जाता है के ज़रूर उसके दुश्मन ने फोन किया है l फोन के लगातार बजने से सबका ध्यान पिनाक के तरफ चला जाता है l पिनाक सब पर एक नजर डालता है और फिर फोन उठाता है

पिनाक - हाँ बोल हराम जादे...
xxx- अरे वाह.... आपने नाजायज बाप को पहचान लिया... ऑए शाबाश... हा हा हा हा...
पिनाक - हरामी के औलाद... जितना चाहे हँस ले... यह तेरी आखिरी हँसी है... क्यूंकि अगली बार से... तु सिर्फ़ रोएगा....
xxx - अच्छा यह तो ब्रेकिंग न्यूज है... कौनसे चैनल में आ रहा है...
पिनाक - भोषड़ी के... मादरचोद... जितना तेरे हिस्से में था... उतना उछल लिया है... अब अपनी मैयत की तैयारी कर ले...
xxx - अरे यार... मैंने तो सिर्फ़ तेरी गांड मारने की कही और मार भी ली... पर तु तो धुआँ धुआँ हो गया है... हा हा हा हा... मजा आ गया... लोगों से काम ले कर बीच राह में गांड मारने की आदत थी... अब कैसा लग रहा है... भाई मुझे तो मजा आ रहा है.... हा हा हा...

पिनाक फोन काट देता है और वह उन तीनों को देखता है l फिर तीनों से

पिनाक - यह फोन आखिरी होनी चाहिए... कैसे होगा... यह तुम लोग सोच लो....

कह कर पिनाक वहाँ से चला जाता है l महांती विक्रम की ओर देखता है और पूछता है

महांती - युवराज जी... क्या करें... ऑर्डर दीजिए...
वीर - मैं ऑर्डर करता हूँ... महांती... उनके तरफ के कितने लोग हमारे सर्विलांस में हैं...
महांती - वह चार शूटर और... कुछ और लोग...
वीर - ठीक है... सबको एक साथ उठा लो..
महांती - क्या... (उछल पड़ता है) सबको...
वीर - क्यूँ... कोई प्रॉब्लम...
महांती - नहीं... बिल्कुल नहीं... उठाकर करना क्या है...
वीर - सबको... राजगड़ ले जाओ... आखेट के लिए... एक एक को... लकड़बग्घों के सामने डालो... और वह सब उन्हें लाइव दिखाओ... वह भी पास से... उसे देख कर और झेल कर... वहाँ पर जो जितना टूटेगा... वह उतना लिंक देगा... फिर उस लिंक को फॉलो करो... आई थींक वी कैन क्रैक ईट....
महांती - ओके...
वीर - यह तुम पर्सनली हैंडल करो... जाओ अब...
महांती - ठीक है...

कह कर महांती वहाँ से चला जाता है l अब कांफ्रेंस हॉल में सिर्फ़ वीर और विक्रम रह जाते हैं l वीर विक्रम की ओर देखता है

वीर - सब चले गए... आप क्या सोच रहे हैं... युवराज...
विक्रम - यही... मेरी प्रैक्टिस में कहाँ कमी रह गई....
वीर - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) युवराज... आप जिनके साथ प्रैक्टिस कर रहे थे... वह हमारे ही मुलाजिम थे... वह कभी भी आप पर हावी होने की कोशिश नहीं की... इसलिए...
विक्रम - ह्म्म्म्म... आप सही कह रहे हैं... अपने ही मुलाजिमों से लड़ते हुए.. उनसे जीत कर... खुद को अनबीटन समझने लगा था... यही गलती हो गई थी मुझसे...
वीर - (चुप रहता है)
विक्रम - उसकी तेजी... उसकी फुर्ती... उसके ताकत के सामने... मैं ठहर नहीं पाया... मैं जहां उन्नीस था वह बीस नहीं इक्कीस था... उससे लड़ते वक़्त लग रहा था जैसे कोई कंक्रीट के स्ट्रक्चर से लड़ रहा हूँ...
वीर - सिर्फ़ इतनी सी बात पर खुदको सजा दी आपने...
विक्रम - बात अगर मार पीट तक होती तो... सिर्फ़ इतनी सी बात होती... उसके दिए वह तानें... मेरी वज़ूद को नेस्तनाबूद कर दिया है...(विक्रम उठ खड़ा होता है) अब हमारी फिरसे मुलाकात होगी... उस मुलाकात में या तो उसकी हार होगी या फिर मेरी मौत...

वीर के जिस्म में एक सिहरन दौड़ जाती है l वह भी खड़ा हो जाता है

वीर - ठीक है... युवराज जी... हम सब मिलकर उसे ढूंढेंगे...
विक्रम - नहीं... ही इज़ ऑनली माइन... अब उसके और मेरे बीच तीसरा कोई नहीं आएगा... आप भी नहीं... और तब तक इस ESS को आप संभालीये...
वीर - पर युवराज... मैं कैसे... मतलब...
विक्रम - अब मेरा लक्ष... बदल चुका है... अब मुझे ना चैन होगा ना सुकून होगा... जब तक इन हाथों को उसके खुन ना होगा....

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बाल्कनी में तापस सहर की तरफ देख रहा है l विश्व उसके पास आकर खड़ा होता है l तापस की ओर देखे वगैर

विश्व - सॉरी...
तापस - (विश्व की ओर देखे वगैर) किस लिए...
विश्व - वह... मेरे वजह से... आपकी आँखे नम हो गई...
तापस - ईट्स ओके... पर थैंक्स...
विश्व - किस लिए...
तापस - पल भर के लिए सही... उस बहुत ही खूबसूरत पल का... उसे याद दिलाने के लिए... कभी जिसका हिस्सा हुआ करता था...
विश्व - आप भले ही याद किए... पर सच यह भी है... आज उस पल का आप हिस्सा थे और आज इस पल के भी हैं.... और मैं चाहता हूँ... आने वाले दिनों में ऐसे अनगिनत पल आते रहें...
तापस - (विश्व की ओर हैरान हो कर देख कर) क्या...
विश्व - जो बीत गया वह अतीत था... जो बीत रहा है वह वर्तमान है... और जो बितेगा... बितेगा तो जरूर... वह आने वाला कल है...
तापस - (कुछ समझ नहीं पाता) मतलब...
विश्व - (तापस की ओर मुड़ता है) क्या... मैं आपको... डैड कहूँ...

कुछ देर के लिए बालकनी में सन्नाटा छा जाता है l तापस विश्व को हैरान हो कर आँखे फाड़ कर देखने लगता है l

विश्व - ठीक है... अगर आपको बुरा लगा तो... (आगे कुछ नहीं कह पाता है मुड़ कर अंदर जाने लगता है)
तापस - रुको... (विश्व रुक जाता है)
विश्व - क्या बात है डैड...
तापस - मैंने कहा भी नहीं है और तुम...
विश्व - हाँ... आपने मुझे पीछे से बुलाया है तो... मतलब यही है... के आपको मंजूर है.. है ना डैड...
तापस - ऑए... डैड के बच्चे... बातेँ बड़ी बड़ी करता है... गले से लग कर भी तो पुछ सकता था...
विश्व - हाँ कर तो सकता था... खैर आप भी क्या याद रखेंगे... यह शिकायत भी दूर किए देता हूँ... (कह कर तापस के गले लग जाता है)

विश्व के गले लगते ही तापस की रुलाई फुट पड़ती है और वह देखता है प्रतिभा खुसी के मारे उन दोनों के तरफ एक टक देखे जा रही है l

प्रतिभा - क्या मैं भी तुम लोगों के साथ जॉइन हो जाऊँ....

तापस अपनी बांह खोल देता है प्रतिभा भी आकर दोनों के गले लग जाती है l कुछ देर बाद प्रतिभा कहती है

- चलो चलो मैंने खाना लगा दिया है... वहीँ टेबल पर खाते हुए बातेँ करेंगे...

सब डायनिंग टेबल पर आकर बैठ जाते हैं l प्रतिभा सबके प्लेट लगा देती है और खाना परोस देती है l खाना खाते वक़्त

तापस - विश्व...
प्रतिभा - क्या... (गुस्से से घूरती है)
तापस - ओके ओके... प्रताप...
विश्व - जी....
तापस - इन सात सालों में... तुमको शरारत करते हुए... आज पहली बार देख रहा हूँ... तुम्हारे चरित्र का ऐसा भी एक एंगल हो सकता है... यह मैं नहीं जानता था...
विश्व - क्यूँकी... आज से पहले... (उन दोनों के हाथ पकड़ लेता है) आप दोनों मेरे जिंदगी में नहीं थे...

तापस और प्रतिभा को अंदरुनी बहुत खुशी महसूस होती है l दोनों एक दूसरे को देखते हैं फिर विश्व के हाथ पर अपना हाथ रख कर थपथपाते है l उसके बाद तीनों खाना खाने लग जाते हैं l तापस को महसूस होता है कि प्रतिभा खाना खाते वक़्त थोड़ी खोई खोई लग रही है l

तापस - क्या बात है भाग्यवान... आज फॅमिली रीयुनीअन हो जाने के बाद भी... तुम खोई खोई सी हो...
प्रतिभा - हाँ... वह.. प्रताप आज पेरोल पर बाहर है... और आज ही... (चुप हो जाती है)
तापस - कुछ नहीं होगा...
प्रतिभा - यह आप कैसे कह सकते हैं... मॉल की सिक्युरिटी और सर्विलांस उनके हाथ में है... अगर कुछ मैनीपुलेट हुआ... तो गड़बड़ हो जाएगी... यही चिंता सताये जा रही है...
विश्व - माँ (प्रतिभा के हाथ पर हाथ रख कर) कुछ नहीं होगा...
तापस - हाँ... प्रताप ठीक कह रहा है... कुछ नहीं होगा...
प्रतिभा - (तापस से) इसकी बात छोड़िए... यह तो कुछ भी बोल देगा... पर मुझे हैरानी इस बात पर है... की इतने बड़े कांड हो जाने पर भी... आपके चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं....
तापस - सबुत होगा तो मैनीपुलेट होगा ना...
प्रतिभा - मतलब...
विश्व - यही की... सारे सीसीटीवी की फुटेज को डैड ने गायब कर दिया है...
प्रतिभा - क्या... यह कब हुआ... और तु... तु कैसे जानता है... कहीं तुम दोनों की कोई खिचड़ी तो नहीं...
विश्व - माँ... क्या लगता है... मैं तुमको झूठ बोल रहा हूँ...

प्रतिभा पहले तापस को देखती है तापस भी हैरान है और फिर विश्व को देखती है और अपना सिर ना में हिलाती है l

विश्व - पहले तुम... जब मेरा पेरोल करा कर मुझे बाहर ले जाया करती थी... तब डैड एक दिन की छुट्टी लेकर हमारा पीछा किया करते थे... अब चूँकि वीआरएस पर हैं... तो छुट्टी ही छुट्टी है...
प्रतिभा - क्या...(तापस से) मतलब... आप घर देखने नहीं गए थे... (विश्व से) और तुझे पता था कि यह हमारे पीछे हैं...
विश्व - मालुम तो नहीं था... पर अंदाजा था... और जब डैड ने कहा कि सबुत होगा तो मैनीपुलेट होगा... बस तब पुरी बात समझ में आ गई...
प्रतिभा - क्या समझ में आ गई...
विश्व - यही के... डैड पुलिस की वर्दी में जाकर... झूठे वारंट के कागजात दिखा कर...शुरु से सर्विलांस रुम में होंगे... जब कांड होते देखा होगा... मास्टर रिकॉर्डिंग गायब कर दिए होंगे....
तापस - ह्म्म्म्म... चलो एक बात तो पता चला... स्मार्ट हो गए हो... आँख और कान हमेशा खुले रखते हो...

विश्व कुछ नहीं कहता है सिर्फ़ मुस्करा देता है l

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शुभ्रा - रुप... मैं तुम्हारी कही हर बात पर विश्वास करती हूँ... पर यह तुम भी जानती हो... आज जो हुआ... ठीक नहीं हुआ...
रुप - हाँ भाभी... अब सच में... मुझे डर लगने लगा है...
शुभ्रा - अच्छा रुप... अनाम और प्रताप का चेहरा मिलता-जुलता है क्या...
रुप - पता नहीं भाभी... अनाम का चेहरा धुँधला सा याद है... शायद प्रताप उसके जैसा दिखता हो...
शुभ्रा - हाँ... हो सकता है... और लिफ्ट में जो हुआ... वह इत्तेफ़ाक भी हो...
रुप - शायद... पर भाभी अब यह सब सोचने से क्या फायदा... बनने से पहले सब बिगड़ गया ना...
शुभ्रा - (थोड़ा हँसते हुए) मतलब... तुम सच में प्रताप से इम्प्रेस हुई थी...
रुप - पता नहीं (अपना सिर झुका लेती है)
शुभ्रा - (रुप के गाल पर हाथ फेरते हुए) तुमको क्या लगता है... राज परिवार या राजनीति में रसूखदार परिवार को छोड़... तुम्हारे रिश्ते को... और कहीं मंजुरी मिल सकती है... यह कुछ दिन बाद भी होता... तो यह सब होता जरूर... हाँ वजह कुछ और होता... मगर यह होता जरूर...
शुभ्रा - भाभी... आपको... भैया के लिए बुरा लग रहा है ना....
शुभ्रा - हाँ लग रहा है... पर प्रॉब्लम यह है कि... प्रताप कहीं पर भी गलत नहीं है... और तेरे भैया उस वक्त गलत थे....
रुप - (अपने होठों को दबा कर अंदर कर लेती है दुसरी ओर देखने लगती है) अब भैया क्या करेंगे....
शुभ्रा - रूप... पहली बार किसीने... तेरे भाई को हार दिखाया है... और चोट... उनके भीतर को पहुँचाया है... अब या तो वह टुट कर बिखर जाएंगे... या फिर उभर कर निखर जाएंगे....
Jabardastt Updateee. Maza aagaya padhke
 
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