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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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शाम भी आकर चली गयी पर तेरी खबर ना मिली।
 

Kala Nag

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रवीवार
राजगड़

वैदेही अपनी चाय नाश्ते की दुकान के आगे एक तख्ती टांग देती है l उसने लिखा है

"आज का दिन खास है,

नाश्ते में जितना खाना है ख़ालो,
पैसा नहीं लिया जाएगा, बिल्कुल मुफ़्त"

गौरी - (पढ़ती है) यह क्या है... वैदेही... आज इस गांव के मुफ्त खोरों को मुफ्त में खिलाओगी...
वैदेही - (हँसकर) काकी... घर में जब कोई खुशियाँ मनाई जाए... तब पहले के ज़माने में अन्न छत्र लगाया जाता था... अब राजगड़ में तो मंदिर है नहीं... इसलिए... मैं अपनी दुकान में आज अन्न छत्र खोलने का विचार किया...
गौरी - अररे... किन नामाकुल, नाशुक्रे, नासपीटों को अन्न देगी.. अन्न छत्र में अन्न खाने वाले... अन्न का मान भी रखते हैं... यह लोग क्या रखेंगे... सिर्फ़ भेड़ बकरियों की तरह चरने आयेंगे... चरके चले जाएंगे....
वैदेही - तो जाने दो ना काकी... आज बहुत ही खास दिन है... बहुत ही खुशी का दिन है मेरे लिए... अपनी खुशी बांट रही हूँ... और फिर दो महीने बाद... फिरसे जब विशु यहाँ आएगा... तब...
गौरी - पर तु तो कह रही थी... विशु अगले महीने छूटने वाला है... फिर दो महीने क्यूँ...
वैदेही - काकी... उसका कुछ काम है... उसे निपटाने के बाद ही यहाँ आयेगा....
गौरी - इसलिए तुझसे खुशी संभल नहीं रही है...

वैदेही कुछ नहीं कहती है सिर्फ़ मुस्करा देती है l अपने हाथ में कर्पूर लेकर जलाती है और घंटी बजाते हुए चूल्हे में डाल देती है l चुल्हे में आग लग जाती है l गौरी बड़ी सी डेकची रख देती है l फ़िर गौरी के तरफ देखती है l गौरी उसे एक टक देखे जा रही है l

वैदेही - क्या बात है काकी... ऐसे क्या देख रही हो...
गौरी - तुम भाई बहन के बारे में सोच रही हूँ... एक बात तो है... तुम दोनों एक दुसरे के ताकत हो... ना कि कमजोरी...
वैदेही - वह तो है... वह मेरा ताकत है...
गौरी - जिस बदलाव के लिए तुम यह सब कर रही हो... भगवान करे... मेरे जीते जी हो जाए बस...
वैदेही - क्यूँ... तुम्हें इतनी जल्दी क्यूँ है... अगर मरना चाहोगी तो भी यमराज के सामने मैं खड़ी हो जाऊँगी... यह बदलाव सिर्फ़ तुम नहीं... यहाँ के हर बच्चा बच्चा देखेगा.... क्रांति की निंव डल चुकी है...(वैदेही के चेहरे की भाव बदल जाती है) उसे करवट लेते... उसे आकार लेते सब देखेंगे... सब गवाह होंगे...
गौरी - कभी कभी तेरी बातेँ मेरी पल्ले नहीं पड़ती...

तभी हरिया लक्ष्मी के साथ पहुँचता है l वह तख्ती में लिखा पढ़ता है l

हरिया - तो आज सबको मुफ्त खिलाने वाली हो... वैदेही...
गौरी - हाँ... तु आगया ना... अब धीरे धीरे कौवे... मंडराने लगेंगे...
हरिया - ऐ बुढ़िया... गल्ले पर बैठी है तो क्या खुदको मालकिन समझने लगी है... मुफ्त लिखा है... तभी तो खाने आए हैं...
वैदेही - ऐ हरिया... तमीज से... यह मालकिन ही हैं... और मेरी काकी भी... जिसके लिए आया है... वह मिल जाएगा... मुँह मार लेना... अगर फिरसे तमीज छोड़ा तो औकात दिखा दूंगी तुझे...
हरिया - जी.. जी वैदेही... गलती हो गई... माफी काकी जी
गौरी - ठीक है.. ठीक है... जा जाकर बैठ और हाँ... मुफ्त का मिल रहा है... रौब मत झाड़ना...

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विक्रम अपने कमरे के बाथरुम में आईने के सामने खड़ा है l वह कल रात विक्रम शराब के नशे में धुत था, उसे कल वीर ने लाकर उसके कमरे में छोड़ कर गया था l विक्रम यह अच्छी तरह से जानता था कि जब वह नींद सो जाता है शुभ्रा उसे देखने आती है l इसलिए कल वीर के जाते ही अपने कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया था l शुभ्रा बीते रात को आई भी थी विक्रम को देखने और कमरे का दरवाज़ा खोलने की कोशिश की थी l पर विक्रम नशे में था और जिस हालत में था वह नहीं चाहता था कि शुभ्रा उसे देखे, इसलिए दरवाजा नहीं खोला था l पिछली रात को आक्रोश के वजह से चाबुक की मार से हुई ज़ख्मों का दर्द महसुस नहीं कर पाया था l पर आज सुबह से ही उसका बदन बहुत दर्द कर रहा था l बाथरुम के आईने में अपना चेहरा देख रहा था l आज उसके चेहरे पर एक भारी बदलाव था, आज खुद को आईने में बिन मूंछों के देख रहा था l शुभ्रा को उसके चेहरे पर मूँछे अच्छी लगती थी, कभी कभी प्यार में कह देती थी,
"पुरी दुनिया में मूँछ मुण्डों के झुंड में... आपकी मूँछें आपको खास बनाती है... मूछों में तो आप मर्द लगते हैं"
यह बात याद आते ही विक्रम के जबड़े भींच जाते हैं और आँखें बंद कर लेता है l उसके जेहन में वह वाक्या गुजरने लगता है जब वह आदमी ऐसकॉट गाड़ी के ऊपर विक्रम के गिरेबान को हाथ में लिए पंच मारने ही वाला था कि शुभ्रा का उसके आगे गिड़गिड़ाना
" भैया.... प्रताप भैया... (अपनी मंगलसूत्र को दिखाते हुए) प्लीज भैया... (गिड़गिड़ाते हुए) प्लीज..."

अचानक विक्रम की आँखे खुल जाती हैं l वह बड़बड़ाने लगता है प्रताप... उसका नाम प्रताप है l शुब्बु ने उसे प्रताप भैया कहा था... क्या शुब्बु उसे पहले से ही जानती है....

विक्रम फ़िर से अपनी आँखे भींच लेता है और याद करने लगता है प्रताप ने शुभ्रा के लिए क्या कहा था
"तुम लोगों ने मेरी माँ के साथ जो बत्तमीजी की... उसके लिए... कायदे से जान से मार देना चाहिए था... पर (शुभ्रा को दिखाते हुए) इन्हें अनजाने में सही बहन कहा है... इनके साथ उस रिश्ते का लिहाज करते हुए तुम लोगों को छोड़ रहा हूँ..."

विक्रम फिर अपनी आँखे मूँद लेता है और मन ही मन बड़बड़ाने लगता है - अनजाने में सही... मतलब... मॉल में ही परिचय हुआ होगा... ह्म्म्म्म यही हुआ होगा... तो फ़िर मुझसे क्या छूट रहा है....

अचानक विक्रम आपनी आँखे खोल देता है l उसे याद आता है जब उसने अपने बाप भैरव सिंह क्षेत्रपाल का नाम लिया तब वह प्रताप पलटा और, विक्रम की आँखे फैल जाती हैं फिर बड़बड़ाने लगता है मतलब प्रताप और राजा साहब के बीच कुछ हुआ है... पर वह तो मेरे हम उम्र लग रहा था... उसका और राजा साहब का क्या हो सकता है... क्या वह राजगड़ से है... पर कैसे... वह इतना अच्छा ट्रेन्ड फाइटर है... क्या आर्मी से हो सकता है.... नहीं... नहीं... उसकी एपीयरेंस बिल्कुल आर्मी जैसी नहीं थी... आर्मी वालों के जैसी एटीट्यूड भी नहीं थी... फिर वह है कौन.... मुझे ढूंढना होगा... हर हाल में ढूंढना होगा... (उसके चेहरा कठोर होने लगता है) उससे अपनी बेइज्जती का बदला लेना होगा... उसके लिए मुझे खुद को... अपने लेवल से भी उपर एलीवेट करना होगा...

फिर एक गहरी सांस छोड़ कर अपने ज़ख्मों को डेटॉल से साफ करता है I फिर बाथरुम से निकल कर वार्डरोब से अपने लिए एक ढीला सा शर्ट निकालता है और उसे पहन लेता है l फिर वह पुरी तरह तैयार हो कर कमरे से निकालता है I जैसे ही कमरे से बाहर आता है उसे सामने हाथ में नाश्ते की थाली लिए शुभ्रा खड़ी मिलती है I

शुभ्रा - वह... मैं आपके लिए नाश्ता लाई थी...

विक्रम शुभ्रा को देखता है l शुभ्रा के चेहरे पर हैरानी के साथ साथ दुख, दर्द और घबराहट भी दिखता है l

विक्रम - छोटा सी ख्वाहिश थी...
बड़े सिद्दत से पाला था...
दो पल के साथ में...
पुरी जिंदगी जी लेना था...
मेरी तसब्बुर मेरे सामने है....
पर यह वक़्त और है...
वक़्त का तकाज़ा कुछ और है...
फिर कभी...

इतना कह कर विक्रम शुभ्रा को वहीँ छोड़ कर बाहर की ओर जाने लगता है l

शुभ्रा - रु.. रुकिए... (विक्रम रुक जाता है पर शुभ्रा की ओर मुड़ कर नहीं देखता) आप... कहाँ जा रहे हैं...
विक्रम - मैं.. हफ्ते दस दिन के लिए बाहर जा रहा हूँ... आ जाऊँगा...

यह कह कर विक्रम वगैर रुके चला जाता है l शुभ्रा पीछे आँखों में आंसू लिए खड़ी रह जाती है l रुप यह सब अपने कमरे से देख रही थी l शुभ्रा वह नाश्ते की थाली लेकर वहाँ से चली जाती है l उसके वहाँ जाते ही रुप भी खुद को अपने कमरे में बंद कर लेती है l


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विश्व एक बढ़िया सा ड्रेस पहन कर ड्रॉइंग रूम में बैठा हुआ है l तापस भी तैयार हो कर ड्रॉइंग रूम में आता है

तापस - (विश्व से) क्या मैं लेट हो गया...
विश्व - नहीं बिल्कुल नहीं... हमारे पास टाइम काफी है....
प्रतिभा - (ड्रॉइंग रूम में आकर हाथ में एक छोटी सी कटोरे में दही चीनी की घोल लिए) ले यह खा ले... (विश्व को चम्मच से दही चीनी की घोल खिला देती है) लो अब मैं भी रेडी हूँ...
तापस - (हैरान हो कर) तुम.... तुम क्यूँ भाग्यवान...
प्रतिभा - क्या कहा... मैं क्यूँ... आज इतना बड़ा दिन है... और मैं ना जाऊँ....
विश्व - हाँ माँ... तुम क्यूँ...
प्रतिभा - ऑए... जुम्मा जुम्मा कुछ ही घंटे हुए हैं... तुम बाप बेटे के मिलन को... अभी से मेरे खिलाफ षडयंत्र शुरु...
तापस - जान यह क्या कह रही हो... षडयंत्र हम करेंगे... वह भी तुम्हारे खिलाफ...
प्रतिभा - तो मुझे जाने से क्यूँ रोक रहे हो....
तापस - कल मॉल में जो हुआ... उसके बाद प्रताप को... ESS के गार्ड्स पागल कुत्ते की तरह ढूंढ रहे होंगे... और अगर प्रताप ना मिला तो उस औरत को भी ढूंढ रहे होंगे... जो उस मॉल में प्रताप के साथ थी... यानी के तुम...
प्रतिभा - ना उन्होंने मुझे ठीक से देखा है... और ना ही मैंने उनमें से किसी को... क्यूंकि प्रताप ने मेरे चेहरे पर रुमाल बांध दिआ था...
तापस - पर यह (माथे की मरहम पट्टी को दिखा कर) देख कर उन्हें शक भी तो हो सकता है...
प्रतिभा - लो अभी निकाल देती हूँ... (कह कर पट्टी निकाल देती है)
विश्व - आरे माँ... पट्टी निकालने से ज़ख़्म हरा हो जाएगा...
प्रतिभा - तु मेरी ज़ख्मों का फ़िक्र ना कर... वैसे तुम लोग किससे जाने वाले थे...
तापस - बाइक पर... और दोनों हेल्मेट लगा कर जाने वाले हैं...
प्रतिभा - ओ हो... मतलब कार को बेकार कर... बाइक से रफु चक्कर होने वाले हो... अब साफ साफ बताओ... मुझे ले कर जा रहे हो या नहीं... नहीं तो...
तापस - हाँ... नहीं तो..
प्रतिभा - अभी ESS वालों को फोन कर कहूँगी... के जिस लड़के ने तुम्हारे बाप को ओरायन मॉल में धोया था... वह अब एक सिरफिरे अड़ियल बुड्ढे खुसट सांढ के साथ XXXX कॉलेज में परिक्षा देनें गया हुआ है....
तापस - (अपनी हाथ जोड़ कर) हे प्रताप की जननी जगदंबे... त्राहि... त्राहि... आप अपनी निर्दयी वाणी से.. हमें... यूँ ना भयभीत कीजिए... पहले यह बताएं... यह ज़ख्म कैसे छुपायेंगे...
प्रतिभा - हे मूर्ख मानव... मैं फूल लेंथ ब्लाउज पहन कर हांथों के ज़ख़्म छुपा लुंगी... और साधना कट हेयर स्टाइल में अपने माथे की ज़ख्म छुपा लुंगी... इसमे जरा भी विलंब नहीं होगी...
विश्व - हे माँ... जैसी आपकी इच्छा... कृपा करें और शीघ्र पधारें...
प्रतिभा - बस पाँच मिनट में गई... और आधे घंटे में आई....

कह कर प्रतिभा अंदर चली जाती है l विश्व तापस को देखता है और तापस भी विश्व को देखता है l

विश्व - डैड... मेरी बात तो समझ में आता है... बेटा हूँ... माँ के जिद के आगे लाचार हूँ... पर वह तो आपकी अर्धांगिनी है...
तापस - बेटा... वह क्या है ना... शास्त्रों में लिखा गया है... अर्धांगिनी... इसलिए तो ले जाना चाहिए...
विश्व - जब इतना शास्त्रों का ज्ञान था... तो सुबह सुबह किस खुशी में यह मास्टर प्लान बनाया था... की माँ को छोड़ कर जाते हैं...
तापस - गलती बेटा गलती.... वैसे गलती किससे नहीं होती...
विश्व - अब नया कोई गुरु ज्ञान मत दीजिए...
तापस - अरे वत्स फ्री में दे रहा हूँ ले लीजिए...
विश्व - कहिए...
तापस - विवाह समाज में एक ऐसा आयोजन है... जहां एक पुरुष अपना बैचलर डिग्री हारता है और स्त्री अपनी मास्टर डिग्री को प्राप्त करती है...
विश्व - अच्छा....
तापस - हाँ... जानता हूँ... तेरे सिर के ऊपर निकल गया है... यह वह ब्रह्म ज्ञान है... जिससे हर पुरुष... शादी तक वंचित रहता है...

तभी प्रतिभा तैयार होकर आती है l दोनों देखते हैं, प्रतिभा आज साड़ी के साथ साथ एक फूल लेंथ ब्लाउज पहनी हुई है बिल्कुल एक बंगालन की परिधान में और बालों को भौहों तक साइज से बनाया है कि उसके सिर के ज़ख़्म नहीं दिख रहे हैं l

प्रतिभा - क्यूँ सेनापति जी... आज से पहले आपने हमे ऐसे कभी नहीं देखा जी...
तापस - नहीं जी... आज से पहले आपको यूँ... टिपीकल बंगाली परिधान में भी तो कभी नहीं देखा....
प्रतिभा - वह पिछली बार... वर्किंग वुमन एसोसिएशन की फंक्शन में... मुझे कुछ औरतों ने गिफ्ट किया था...
तापस - वाव... क्या बात है... एक शेर अर्ज़ है..
विश्व - इरशाद इरशाद...
तापस - आप यूँ... बन संवर के आये... कभी हम आपको... कभी हम इस फटीचर कार को देखते हैं...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... कितना घटिया शेर... हो गया.... अब चलें...
दोनों - हाँ हाँ चलो चलो

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वीर अपनी आँखे खोलता है और घड़ी की ओर देखता है सुबह के दस बज रहे हैं l

वीर - ओ तेरी... धत.. कल देर शाम तक सोया था... इसलिए... अभी लेट हो गया...

वीर मोबाइल पर देखता है और बोलने लगता है - अरे... आज तो सन डे है... जल्दी उठकर भी क्या करना है... एक मिनट... कोई मैसेज या कॉल.... ह्म्म्म्म... नहीं.... (हैरान हो कर) नहीं... पर क्यूँ नहीं... अभी कॉल करता हूँ...

वीर कॉल लगाता है तो दुसरे तरफ से अनु उबासी आवाज़ में जवाब देती है

अनु - हे... लो...
वीर - हम्म... हम राजकुमार बोल रहे हैं...
अनु - (जैसे झटका खाती है) क... क्या र.. राज.. कु... कुमार...
वीर - अरे... अरे... रिलेक्स... हकला क्यूँ रही हो...
अनु - म.. म.. मैं.. अभी तैयार होती हूँ... और ऑफिस पहुँचती हूँ...
वीर - अच्छा...
अनु - वह... मुझे माफ़ कर दीजिए... राज कुमार जी... लगता है... दो दिन से सो रही हूँ...
वीर - (हैरान हो कर) दो दिन से... हैइ... तुम क्या कह रही हो...
अनु - आप ऑफिस पहुँच गए...
वीर - क्यूँ...
अनु - आज सोमवार है ना...
वीर - अनु.. अनु... अनु... आज इतवार है...
अनु - ओह अच्छा... (अपने सिर पर टफली मारते हुए) मैं समझी आज सोमवार है... इसलिए हड़बड़ा गई थी... अगर छुट्टी है तो आपने फोन क्यूँ किया...
वीर - (थोड़ी कड़क आवाज में) क्या कहा....
अनु - सॉरी सॉरी... (रोनी आवाज़ में) मुझसे गलती हो गई...
वीर - है... तुम रो क्यूँ रही हो...
अनु - आप गुस्सा हो गए इसलिए...
वीर - अच्छा... मेरे गुस्सा होने से तुमको डर लगता है....
अनु - जी...
वीर - तो तुम्हारा फर्ज यह बनता है कि मुझे... कभी गुस्सा ना आए... ऐसे काम तुम्हें करने चाहिए... है ना...
अनु - हाँ...
वीर - तो फिर कल तुमने... मेरी खैरियत क्यूँ नहीं पूछी...
अनु - इसीलिये आप गुस्सा हैं...
वीर - नहीं... बस थोड़ा दुखी हूँ...
अनु - क्यूँ...
वीर - मेरी पर्सनल सेक्रेटरी कम मेरी पर्सनल अस्सिटेंट हो तुम... तुमको फोन भी इसीलिए दिया गया है... बॉस की खैरियत पूछने के लिए... पर तुम तो भूल ही गई...
अनु - ओ... पर राजकुमार जी... मैं भूली नहीं थी... वह फोन को चार्ज मे लगा कर... थोड़ा सो गई थी...
वीर - अच्छा... दोपहर को खाना खा कर सो गई थी...
अनु - हाँ...
वीर - तो फिर रात को कर सकती थी ना...
अनु - हाँ... सोचा... आप सो गए होंगे... इसलिए नहीं किया...
वीर - वैसे... कितने बजे तक सोई तुम...
अनु - पूरे सात बजे तक...
वीर - क्या.... सच कह रही हो...
अनु - हाँ सच्ची...
वीर - ह्म्म्म्म... तो फिर किसीने जगाया या खुद जाग गई...
अनु - कहाँ... खाट पर उल्टी लेटी हुई थी... दादी ने पीछे झाड़ु से मार लगाई... तब जा कर नींद टूटी...
वीर - (मन ही मन बहुत हँसता है) अच्छा... फिर रात को नींद नहीं आई होगी...
अनु - हाँ... आपको कैसे पता...
वीर - खैर... आज तुम्हें दादी ने जगाया नहीं...
अनु - कैसे जगाती... मैंने दरवाजा बंद कर रखा है... बाहर ही दरवाजे पर दस्तक दे कर चिढ़ कर चली गई होगी... मैं भी ढीठ हूँ... बोला था... रविवार छुट्टी है... इसलिए दस बजे तक सोउंगी...
वीर - और देखो कितना उल्टा हुआ... आज मैं तुमसे तुम्हारी खैरियत पूछ रहा हूँ...
अनु - (शर्माते हुए) सॉरी राज कुमार जी... कल से पक्का...
वीर - कल से पक्का... मतलब...
अनु - मैं कल से फोन कर आपसे आपकी खैरियत पुछुंगी...
वीर - ह्म्म्म्म... पर आज से क्यूँ नहीं... मेरा मतलब है... अभी से क्यूँ नहीं...
अनु - अभी से...
वीर - हाँ... अभी से...
अनु - ह्म्म्म्म... क्या पूछूं...
वीर - अच्छा एक बात बताओ...
अनु - जी
वीर - तुम अभी हो कहाँ पर....
अनु - जी मैं अपने कमरे में... अपनी खाट पर बैठी हुई हूँ...
वीर - तो एक काम करो...
अनु - जी...
वीर - अपनी आँखे बंद करो...
अनु - जी कर लिया...
वीर - अपनी बंद आँखों से मुझे देखो...
अनु - क्या राजकुमार जी... आँखे बंद कर लेने से... मुझे मेरा कमरा ही नहीं दिख रहा... मैं आपको कैसे देखूँ...
वीर - यु स्टुपीड गर्ल... मैं जो कह रहा हूँ... वह कर..
अनु - (डर के मारे) जी.. जी... जी...
वीर - अपनी आँखे बंद कर ली...
अनु - जी कर ली...
वीर - अब सोचो... मैं और तुम... तुम और मैं... ऑफिस में... मेरे कैबिन में हैं...
अनु - जी...
वीर - मैं चेयर पर बैठा हुआ हूँ... और तुम मेरे सामने बैठी हुई हो...
अनु - जी...
वीर - मैं.. तुम्हें दिख रहा हूँ ना...
अनु - जी...
वीर - अब पूछो...
अनु - क्या...
वीर - मेरी खैरियत...
अनु - ठीक है...
वीर - तो पूछो....
अनु - आपने खाना खाया... क्या खाया...
वीर - (चुप रहता है)
अनु - (धीरे से) राजकुमार जी... आप वहीँ पर हैं ना...
वीर - अनु... तुम अपनी मन की आँखों से मुझको देख रही हो ना...
अनु - हाँ...
वीर - तो क्यूँ पूछ रही हो.. मैं हूँ या नहीं...
अनु - वह आपने जवाब नहीं दिया...
वीर - यह खाने को छोड़ो.. कुछ और पूछो...
अनु - ह्म्म्म्म... (अनु खामोश हो जाती है)
वीर - अनु... ऐ अनु...
अनु - कुछ सूझ नहीं रहा है...
वीर - क्यूँ...
अनु - क्यूंकि ऑफिस में तो मैंने कभी कुछ पूछा ही नहीं है....
वीर - हूँ.... यह तो है...
अच्छा.... आज रात को सोने से पहले मुझे पूछ लेना...
अनु - क्या... क्या पूछूं मैं...
वीर - यही... के दिन भर क्या किया... क्या खाया... क्या पढ़ा... ऐसा ही कुछ...
अनु - जी...
वीर - और एक खास बात...
अनु - जी कहिए...
वीर - अपने घर से मुझसे जब भी बात करना... अपनी आँखे बंद कर मुझे अपने सामने इमेजिन करते हुए बात करना...
अनु - जी...
वीर - मुझे तुम्हें याद दिलाना ना पड़े...
अनु - जी...
वीर - तो आज रात सोने से पहले... मुझे तुम्हारा फोन का इंतजार रहेगा...
अनु - जी...
वीर - यार एक काम करो... फोन बंद करो... शुरु से ही तुम्हारा जी पुराण चल रहा है...
अनु - जी...
वीर - फिर जी...

अनु अपनी जीभ बाहर निकाल कर फोन काट देती है l उधर फोन कटते ही वीर मोबाइल को देखता है और मुस्कराते हुए अपने सिर पर चपत लगाता है l


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राजगड़ के चौराहे से भैरव सिंह का काफिला गुज़रती है l चौराहे पर भीड़ देख कर ड्राइवर हॉर्न बजाता है l गाड़ी के अंदर बैठा भैरव सिंह भी हैरान हो जाता है l क्यूँकी उत्सव हो या मातम क्षेत्रपाल महल में ही मनाई जाती है l यहाँ किस बात को लेकर भीड़ इकट्ठा है यह जानने के लिए भैरव सिंह गाड़ी रुकवाता है l गाड़ी के रुकते ही भीमा गाड़ी के पास पहुँचता है

भैरव - भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव - यहाँ भीड़ किस लिए है... जाओ... पता कर आओ...

भीमा जाकर लोगों से पूछताछ कर वापस आता है और भैरव सिंह से कहता है

भीमा - हुकुम...
भैरव - क्या है...
भीमा - जी... वह वैदेही... अपनी चाय नाश्ते की दुकान में... आज सब को मुफ्त खिला रही है... इसलिए यहाँ पर भीड़ है... क्यूंकि... सब अपनी अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं...

यह सुनने के बाद भैरव सिंह अपनी गाड़ी से उतरता है l अपने बीच भैरव सिंह को देख कर कुछ ही पलों में भीड़ गायब हो जाती है l लोगों का यूँ चले जाना वैदेही को अखरता है उसे समझ में नहीं आता, वह दुकान के बाहर आकर देखती है तो कुछ दूर पर भैरव सिंह खड़ा दिखता है l भैरव सिंह को देखते ही वैदेही की जबड़े भींच जाती हैं और आँखों में गुस्सा और नफ़रत उतरने लगती है l भैरव सिंह तीन बार चुटकी बजाता है, भीमा और उसके आदमी सब समझ जाते हैं l भीमा सभी आदमियों को इशारा करता है तो सारे आदमी पीछे जाकर अपनी अपनी गाड़ियों के पास खड़े हो जाते हैं l भैरव सिंह आगे दुकान की ओर जाता है, तो वैदेही भी आगे जा कर उसके सामने खड़ी हो जाती है l

भैरव - (एक कुटील मुस्कान अपने चेहरे पर ला कर) कौन मर गया... जो इन भीकारीयों को मुफत खिला रही है... कहीं तेरा भाई... भैरव सिंह के खौफ में तो नहीं मर गया....
वैदेही - नहीं... भैरव... वह तो तेरा काल है... उसे क्या होगा... हाँ... तेरे मरने के बाद... कोई श्राद्ध में भोज तो देगा नहीं... इसलिए तेरे मरने से पहले... तेरी श्राद्ध की भोज... मैं दे रही हूँ...
भैरव - वाह.... क्या बात है... (चिढ़ाते हुए) इतना प्यार करती है हमे...
वैदेही - हाँ... (गुर्राते हुए) कुत्ते... इतना की तेरे जीते जी तेरा श्राद्ध... गांव वालों को खिला रही हूँ...
भैरव - आ ह्... तु... जब जब मुझसे गुस्सा होती है... मुझे गाली देती है... तेरी कसम... मेरी रंडी.... साली... बड़ा मजा आता है... दे चल दे... आज कुछ गालीयां मुझे दे दे... कितना सुकून मिलता है... तेरे मुहँ से गाली सुन कर...
वैदेही - बस... कुछ दिन और कुत्ते...कुछ दिन और...
भैरव - कुछ दिन और..क्यूँ... क्या हो जाएगा... क्या सुरज पश्चिम में निकलेगा... अरे हाँ... सात साल पुरे होने को है... तेरा वह भाई... छूटने वाला होगा... है ना... वह मेरे झांट के बाल बराबर भी नहीं है... क्या उखाड़ लेगा मेरा....
वैदेही - जी तो चाहता है... तेरा मुहँ नोच लूँ... यहीं पर...
भैरव - पर तु... कुछ नहीं कर सकती... जानती है क्यूँ... मेरे वह सात थप्पड़ याद है ना... बेहोश हो गई थी...
वैदेही - हाँ... कुत्ते हाँ... मेरे वह सात बद्दुआयें याद रखना.... अगर भूल भी गया हो... तो कोई बात नहीं... मेरा विशु आकर तुझे याद दिला देगा.... तु जैसे ही उसे देखेगा... तुझे सब याद आ जाएगा...
भैरव - ज्यादा मत उच्छल... रंग महल की रंडी... ज्यादा मत उछल... जिनकी नजरें आसमान के बुलंदियों पर होता है... वह कभी नीचे फुदकने वाले टिड्डों के तरफ नहीं देखते...
वैदेही - (चुप रहती है)
भैरव - तेरे उस भाई का चेहरा याद रखने लायक था ही नहीं... तो मैं क्यूँ याद करूँ... क्यूँ... जो मेरी निगाह के बराबर या उपर ना हो... मैं उसे देखता भी नहीं... और तेरा भाई तो पैरों की जुते के बराबर भी नहीं... गौर से देख मुझे... मैं भैरव सिंह क्षेत्रपाल... फूलों का हार या नोटों का हार तक नहीं पहनता... क्यूंकि उसके लिए भी सर झुकाना पड़ता है... जुतें चाहे लाखों की भी हो... मैं उसके तरफ नहीं देखता... क्यूंकि उसके लिए भी झुकना पड़ता है... फिर दो टके का तेरा भाई... वह क्या... उसका औकात क्या...
वैदेही - इतनी अकड़... किस बात के लिए... कोई बात नहीं... इसे बनाए रखना... भैरव सिंह... यह गर्दन भी झुकेगा और तु हार भी पहनेगा... वह भी जुतों की....
भैरव सिंह - चु चु चु चु... तरस आता है तुझ पर... और कसम से मजा भी बहुत आ रहा है... ले... तुने जो श्राद्ध भोज मेरे प्यार मे लगाया था... उसके सारे कौवे उड़ गए... बेकार गया ना तेरी श्राद्ध भोज....
वैदेही - फिक्र मत कर कुत्ते.... ऐसा दिन फिर आएगा...
भैरव सिंह - तेरी कसम है... उस दिन भी कौवे उड़ाने... मैं आ जाऊँगा... हा हा हा.... (पलट कर अपनी गाड़ी के तरफ चला जाता है)
वैदेही - (जबड़े और मुट्ठी भींच लेती है)

भैरव सिंह के अपने काफिले के साथ चले जाने के बाद गौरी वैदेही के पास पहुँचती है l

गौरी - तेरे और भैरव सिंह में... क्या गुफ़्तगू हो रही थी.... ना उसके आदमीयों को सुनाई दिया ना हमे...
वैदेही - यह उसके और मेरे बीच का रिश्ता है... नफ़रत का... ना वह किसीको बांट सकता है... ना मैं...

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प्रतिभा और तापस की गाड़ी रास्ते पर खड़ी है l दोनों गाड़ी के बाहर खड़े हैं l उस रास्ते पर गुजरने वाले हर गाड़ी से तापस लिफ्ट मांग रहा था l पर कोई गाड़ी रोक कर उन्हें लिफ्ट नहीं दे रहा था I

प्रतिभा - ओ हो.. क्या ज़माना आ गया है... कोई लिफ्ट देने की सोच भी नहीं रहा है... आखिर आपको क्या पड़ी थी... एक्जाम हॉल को छोड़ इतने दुर आने की...
तापस - लो उल्टा चोर कोतुआल को डांटे... प्रताप के एक्जाम हॉल के अंदर जाते ही तुम्हींने कहा कि... ढाई घंटे हम बाहर क्या करेंगे... चलिए लिंगराज मंदिर में प्रताप के नाम पर पूजा कर आते हैं... अब तुम उल्टा दोष मुझ पर मढ रही हो...
प्रतिभा - हाँ हाँ... सारा दोष तो मेरा ही है... आपका तो कुछ भी नहीं है... आपको चाहिए था... की गाड़ी को भला चंगा रखना... वह तो नहीं किया आपने...
तापस - हे भाग्यवान... भगवान से तो डरो... हम जिस रास्ते से वापस आए... वह रास्ता खराब था... मैंने मना भी किया था... पर तुमने माना नहीं... हम्प्स से टकरा ऑइल सील टुट गया... इंजिन ऑइल ड्रेन हो गया... अब इसमें मैं क्या कर सकता हूँ...
प्रतिभा - वह मैं कुछ नहीं जानती.... अभी आधा घंटा और है... एक्जाम के खतम होने में... मुझे XXXX कॉलेज पहुँचना है.... (प्रतिभा अपनी मुहँ फ़ेर लेती है)
तापस - (खीज कर) आरे... लिफ्ट तो मांग रहा हूँ... अब कोई दे नहीं रहा है... तो मैं क्या करूं... इस रास्ते पर... कोई ऑटो या टैक्सी भी नहीं दिख रहा है....

इतने में एक मर्सिडिज आता दिखता है l तापस उस गाड़ी को देख कर लिफ्ट मांगता है l गाड़ी रुक जाती है l पासेंजर साइड खिड़की नीचे सरक जाती है l गाड़ी में बैठा शख्स को देख कर

तापस - सर, हमारी गाड़ी खराब हो गई है... हमे आगे XXXX कॉलेज जाना है... अगर हमें आप अगले जंक्शन तक लिफ्ट दे देंगे तो... बड़ी मेहरबानी होगी...

गाड़ी में बैठा शख्स इशारे से बैठने को कहता है l तापस प्रतिभा से कहता है

तापस - आरे भाग्यवान... हमे यह महाशय लिफ्ट देनें के लिए तैयार हो गए हैं... आओ बैठ जाओ...

प्रतिभा खुश होकर गाड़ी के पिछले सीट पर बैठ जाती है और तापस उस शख्स के साथ आगे बैठ जाता है l

प्रतिभा - (गाड़ी में बैठ कर) थैंक्यू... थैंक्यू बेटा... बहुत बहुत थैंक्यू...
शख्स - (जवाब में कुछ नहीं कहता)
प्रतिभा - क्या हुआ बेटा... आपने जवाब नहीं दिया...
शख्स - जी... जी थैंक्यू की कोई जरूरत नहीं...
प्रतिभा - हाँ... आपको जरूरत नहीं होगी... पर हमे थैंक्यू कहने में कोई कंजूसी नहीं है... हम लोग एक्चुयली लिंगराज मंदिर गए थे....
शख्स - ओह...

फिर गाड़ी में ख़ामोशी छा जाती है l कुछ देर बाद प्रतिभा उस शख्स से पूछती है

प्रतिभा - अच्छा बेटा.. आपका नाम क्या है...
शख्स - (ज़वाब दिए वगैर गाड़ी चलाने में ध्यान लगाता है)
प्रतिभा - सॉरी बेटा... आपको शायद मेरा ऐसे बातेँ करना अच्छा नहीं लग रहा है... सॉरी..
शख्स - देखिए... आप मुझे... यह बार बार बेटा ना कहें... मुझे ऐसे रिश्ता बनाना और उसे निभाना अच्छा नहीं लगता...
प्रतिभा - ओह... सॉरी... लगता है... तुम किसीसे बहुत नाराज हो...
शख्स - (चुप रहता है)
तापस - (पीछे मुड़ कर) भाग्यवान... यह हमारी मदत कर रहे हैं... और तुम हो कि.... इन्हें क्यूँ अपनी बातों से बोर कर रहे हो...

तापस के कहने पर प्रतिभा चुप हो जाती है l वह शख्स अपने में खोया हुआ है और इधर उधर देखते हुए ख़ामोशी से गाड़ी चला रहा है l प्रतिभा से रहा नहीं जाता वह उस शख्स से पूछती है

प्रतिभा - किसीको ढूंढ रहे हो क्या बेटा...
शख्स - (कुछ नहीं कहता)
प्रतिभा - खुद से नाराज़ लग रहे हो... कोई दिल के करीब था.. तुमसे खो गया...
शख्स - हाँ... कोई दिल में उतर गया है... उसीको ढूंढ रहा हूँ...
प्रतिभा - हाँ... लगा ही था... दिल का मामला है... ह्म्म्म्म
शख्स - हाँ ऐसा ही कुछ... वह जब तक नहीं मिल जाता... ना मेरे दिल को चैन मिलेगा... ना मेरे रूह को सुकून मिलेगा...
प्रतिभा - आरे वाह... यह हुई ना बात... सच्चे आशिकों वाली बात... कितना लकी है वह... जिसे बड़ी शिद्दत से चाह रहे हो... ढूंढ रहे हो... बेटा... तुम्हारी तड़प देख कर इतना जरूर कहूँगी... तुम्हें तुम्हारी मंजिल तुमको जरूर मिल जाएगी...
शख्स - थैंक्यू...
प्रतिभा - आरे... इसमें थैंक्यू कैसी... तुमने हमारी इतनी मदत जो की है... मैं ज़रूर भगवान से प्रार्थना करुँगी... तुम्हारे लिए...
शख्स - जी....

फिर गाड़ी में ख़ामोशी छा जाती है l थोड़ी देर बाद XXXX कॉलेज आ जाती है l

तापस - बस बस... यहीं... हाँ... यहीं.. पर...

शख्स अपनी गाड़ी रोक देता है l दोनों सेनापति दंपती गाड़ी से उतर जाते हैं l गाड़ी से उतर कर प्रतिभा उस शख्स से

प्रतिभा - शुक्रिया बेटा... अच्छा... तुमने अपना नाम नहीं बताया...
शख्स - आपने भी भी तो नहीं बताया...
प्रतिभा - मैं एडवोकेट प्रतिभा सेनापति.... और यह मेरे पति... तापस सेनापति.... और तुम....
शख्स - जी... फ़िलहाल मेरा नाम... मेरी पहचान गुम हो गया है... जिस दिन आपकी दुआओं के असर से... मेरी मंजिल मुझे मिल जाएगी... उस दिन मुझे मेरा नाम और पहचान वापस मील जाएगा...
प्रतिभा - अच्छा बेटा... मुझे आज का दिन याद रहेगा... मैं तुम्हारे लिए... भगवान से ज़रूर प्रार्थना करुँगी...

वह शख्स कुछ नहीं कहता गाड़ी की शीशे को ऊपर उठाकर आगे निकल जाता है l उसके जाते ही प्रतिभा तापस से कहती है

प्रतिभा - कितना अच्छा लड़का है ना...
तापस - हाँ... जिस रास्ते पर किसीने हमारी मदत नहीं किया... यह एक देवदूत की तरह आ कर हमें यहां तक लिफ्ट दी... यही तो फर्क़ है... अच्छा चलो... प्रताप आता ही होगा... हमारे पास और चार पांच घंटे हैं... उसे खान के हवाले करने के लिए....
प्रतिभा - हाँ... ठीक है... चलिए...

गेट से बाहर निकल कर प्रताप चिल्लाता है "माँ" l दोनों सेनापति दंपती प्रताप की ओर देखते हैं और उस तरफ जाने लगते हैं l

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गाड़ी के अंदर बैठते हुए भैरव सिंह कुछ सोचे जा रहा है l उसने कुछ सोचने के बाद एक फोन लगाता है l

भैरव सिंह - हाँ महांती... कहाँ तक पहुँचे...
महांती - राजा साहब... हम रंग महल पहुँच गए हैं.... आपकी प्रतीक्षा हो रही है....
भैरव सिंह - कितने आदमी उठाये हैं...
महांती - पुरे दस बंदे हैं...
भैरव सिंह - कोई छूट गया....
महांती - हाँ सर... पूरे बारह लोग हमारे सर्विलांस में थे.... पर दो लोग ऐन मैके पर ही गायब हो गए....
भैरव - अच्छा... कुछ और भी हुआ है क्या...
महांती - जी कुछ और मतलब...
भैरव - सिर्फ़ छोटे राजा जी का कांड ही ना... कुछ और तो नहीं हुआ है...
महांती - जी... जी नहीं... (भैरव सिंह चुप रहता है) राजा साहब.... क्या हुआ...
भैरव - महांती... तुमको मेरा एक काम करना है... और किसीको कानों कान खबर नहीं होना है...
महांती - जी कहिए...
भैरव - देखो... जिनको तुम लाए ही... तुम्हें उनसे क्या उगलवाना है... यह तुम्हारा काम है... हम तुम्हें इस काम के लिए... पुरा रंग महल तुम्हारे हवाले करते हैं...
महांती - जी... समझ गया... आप काम बताइए....
भैरव - एक आदमी के बारे में... वह भुवनेश्वर में है...
महांती - जी...
भैरव - वह क्या कर है.... या कहाँ है... वगैरह वगैरह... यह सब पता कर के मुझे बताना है....
महांती - जी... जरूर... यह काम तो... हमारे ESS में से कोई भी आदमी कर देगा...
भैरव - ठीक है... हम... एक जरूरी काम के लिए... यशपुर तहसील जा रहे हैं... हमें शाम तक खबर कर दो... उसके बारे में....
महांती - जी... पर उसका नाम...
भैरव - (चुप रहता है)
महांती - राजा साहब... राजा साहब...

भैरव सिंह को वैदेही से बातचित करने के बाद उसे अपना किया हुआ वादा याद आता है

"वैदेही - विश्व से डरता है तु.... इसलिए... उसे लंगड़ा करने की कोशिश की थी तुने.... उसका हुक्का पानी बंद करवा रखा है तुने....
भैरव - वह इसलिए... के वह जब जब गली गली भीख मांगता... तब तेरे तड़प देख कर मैं... खुश होता....
वैदेही - पर भाग्य ने यह होने नहीं दिया....
भैरव - भाग्य... जब जब भाग्य मुझसे... पंजा लड़ाया है... मैंने तब तब किसी और का भाग्य लिखा है.....
वैदेही - इतना अहं.... पचा नहीं पाओगे... यह तब तक... है जब तक... विश्व अंदर है... वह जब आएगा... तु बहुत रोएगा... उसके इरादों के आँधी के आगे... तेरा साम्राज्य तिनका तिनका उड़ जाएगा.... उसके नफ़रत के सैलाब से.... तेरा जर्रा जर्रा बह जाएगा.... देखना.... आखिर उस पर... मेरे तीन थप्पड़ों का.... कर्ज है...
भैरव - आई शाबाश... मुझे अब तुझ पर प्यार आ रहा है... मेरी रंडी कुत्तीआ.... चल आज तेरी खुशी के लिए... मैं सात साल तक विश्व को भूल जाता हूँ... तो बता विश्व आकर मेरा क्या उखाड़ेगा...."

महांती - राजा साहब... क्या आप... लाइन में हैं...
भैरव - हाँ.... हाँ.. महांती.. जाने दो... जाने दो...
महांती - राजा साहब क्या हुआ...
भैरव - कुछ नहीं... हमे हमारी हैसियत याद आ गया....
महांती - जी मैं समझा नहीं....
भैरव - हमने जो कहा... उसे भूल जाओ... और हाँ ख़बरदार... भूलकर भी हमारी नाफरमानी हो ना पाए...
महांती - जी... जैसा आपका हुकुम...

भैरव सिंह अपना फोन काट देता है l उधर महांती सब सुन कर कुछ सोचने लगता है l

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रात हो चुकी है
सुबह से रुप खुद को कमरे में बंद कर रखा था l कल हुई हादसे के वजह से वह अपने भाभी के सामने जाने से कतरा रही थी l ऊपर से विक्रम को एक नए अवतार में देख कर हैरान रह गई थी, और जिस तरह से विक्रम घर से निकल गया शुभ्रा के हाथ में नाश्ते की थाली वैसी की वैसी रह गई थी l रुप अपनी कमरे से बाहर निकलती है और शुभ्रा के कमरे की ओर जाती है l शुभ्रा के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ मिलता है l वह दरवाजे को हल्के से धक्का दे कर खोलती है l अंदर शुभ्रा बेड पर हेड रेस्ट से टेक लगा कर कोई किताब पढ़ रही थी l दरवाज़ा खुलते ही शुभ्रा रुप की तरफ देखती है l रुप अपना सिर झुकाए दरवाजे के पास खड़ी हुई है l

शुभ्रा - क्या हुआ रुप... वहाँ क्यूँ रुक गई... आओ...

रुप की रुलाई फुट पड़ती है, वह रोते रोते हुए शुभ्रा के पास जाती है और उसके गोद में अपना सिर छुपा कर रोने लगती है l

शुभ्रा - क्या हुआ रुप... क्यूँ रो रही हो...
रुप - आ.. आ.. प... मुझसे न... नाराज हैं ना...
शुभ्रा - यह तुम क्या कह रही हो... भला मैं तुमसे क्यूँ नाराज़ होने लगी...
रुप - व... वह... आ.. आप...
शुभ्रा - एक मिनट... यह रोना धोना बंद करो... (पानी की ग्लास रुप को देते हुए) पहले यह पानी पी लो... फिर मुझसे बात करो....

रुप आधी ग्लास पानी पी लेती है तो उसका सुबकना बहुत कम हो जाती है l अपनी रोने पर कंट्रोल करते हुए l

रुप - आज भैया के बिना खाए जाने से.... आपको बहुत दुख पहुँचा... उसके बाद... आप दिन भर ना मेरे पास आए ना अपने पास बुलाया... मैं.. मैं समझ सकती हूँ... आपको कितना ठेस पहुँची है.... पर भाभी मैं सच कहती हूँ... मैंने जान बुझ कर कुछ नहीं किया... जो भी हुआ... वह एक्सीडेंट था...
शुभ्रा - (रुप के सिर पर हाथ फेरती है और पूछती है) रुप... क्या दोपहर को... तुमने खाना खाया है....
रुप - (अपना सिर हिला कर ना कहती है) आपने भी तो नहीं खाया है...
शुभ्रा - एक मिनट...

फिर शुभ्रा फिर से नीचे किचन को फोन करती है और रात का खाना अपने कमरे में लाने के लिए नौकरों से कह देती है l

रुप - भाभी...
शुभ्रा - हूँ...
रुप - भैया सुबह से गए हैं... अभी तक नहीं लौटे हैं... आपको चिंता नहीं हो रही...
शुभ्रा - नहीं... क्यूंकि वह मुझसे कह कर गए हैं... हफ्ते दस दिन के लिए वह कहीं बाहर जा रहे हैं... और इतने बड़े घर में... तुम्हारे दोनों भाई कब आते हैं... कब जाते हैं... कोई नहीं जानता...
रुप - उनका... इस वक़्त ऐसे बाहर जाना... अपने आपको... इतना बदल देना... आपको अखर नहीं रहा...
शुभ्रा - रुप... तुम भले ही उनकी बहन हो... पर मैं उन्हें तुमसे ज्यादा जानती हूँ.... वह इस वक़्त अपने अंदर के ज़ख्मों से उठ रहे टीस को शांत करने के लिए.... प्रताप को ढूंढने निकले हैं.... पर उन्हें प्रताप नहीं मिलेगा... कम से कम एक महीने के लिए... बाद में क्या होगा.... यह वक़्त आने पर देखेंगे...
रुप - आज आपको उनकी हुलिया देख कर... कुछ अजीब नहीं लगा...
शुभ्रा - हाँ लगा... पर इसमे उनका क्या दोष... अगर तुम यह सोच रही हो... की क्षेत्रपाल नाम की अहं को चोट के कारण उन्होंने अपनी मूंछें मुंडवाया है... तो तुम सोला आने गलत हो... हाँ... उन्होंने अपनी मूँछों पर हमेशा क्षेत्रपाल बन कर ताव दिया है.... पर... उनके अंदर की मर्द होने के अहं को चोट पहुँची है.... वह भी मेरी वजह से... इसलिए उन्होंने अपनी मूंछें मुंडवा लिया है...
रुप - आपके वजह से... पर आपने कुछ गलत तो नहीं कि थी...
शुभ्रा - ऐसा तुम सोच रही हो... पर तुम यह नहीं जानती कि इन सात साल सालों में... उन्होंने इस सहर में क्या कमाया था... मैंने देखा है उन्हें... गोलियों के बौछारों के बीच अकेले किसी शेर की तरह गुजर जाते थे... ऐसा आदमी जिसने अपने दम पर... ना सिर्फ़ भुवनेश्वर में हर गुंडे मवालियों बीच.... बल्कि पुलिस वालो के बीच भी खौफ बनाए रखा था... ऐसे आदमी के लिए... उसकी व्याहता किसी के आगे घुटने टेक दे... हाथ जोड़ दे तो...
रुप - मैं अभी भी कह रही हूँ... आपने वक़्त की नजाकत को भांपकर... वैसा किया था....
शुभ्रा - तुम फिर भी नहीं समझ रही हो... सदियों से एक विचार धारा है... औरत को मर्द अपनी ताकत के बूते सुरक्षा देता है... ज़माने की बुरी नजर व नीयत से बचाता है.... और उनके रगों में तो... राजसी खुन बह रहा है... प्रतिकार करना और प्रतिघात करना उनके खुन में है... ऐसे में उनकी अर्धांगिनी के घुटने टेक कर... उनके लिए जान की भीख माँगना... उनके मर्द होने के अहं को नेस्तनाबूद कर दिया है... इसी ग़म से हल्का होने गए हैं...
रुप - कहीं कुछ उल्टा सीधा....
शुभ्रा - (टोकते हुए) नहीं... वह ना तो कायर हैं ना ही बुजदिल...
रुप - हाँ... पर...
शुभ्रा - बस रुप बस... अब इस टॉपिक पर... और नहीं... लेट चेंज द टॉपिक...
रुप - क्या...
शुभ्रा - तुम... अनाम से बहुत अटैच थी ना...
रुप - हाँ...
शुभ्रा - क्या तुम्हें... अभी भी उसका इंतजार है...
रुप - (अपना मुहँ फ़ेर लेती है और चुप रहती है)
शुभ्रा - ओके... मुझे मेरा जवाब मिल गया... (रुप के फिरभी खामोश रहने पर) वेल... मैं कभी आजाद परिंदे की तरह थी... पर आज.... खैर छोड़ो... अच्छा बताओ... अनाम ने कभी तुम्हें आजादी की फिल कराया है...
रुप - भाभी... (थोड़ा हंसते हुए) आपने टॉपिक भी क्या बदला है... खैर आप मेरे लिए... मेरी माँ... गुरु.. सखी... सब कुछ तो हो... आप से क्या और क्यूँ छुपाना... भाभी... जानती हैं... घर पर कभी भी... मेरा जनम दिन नहीं मनाया जाता था... और ना ही मनाया जाता है.... वजह.. तीन पीढ़ियों बाद... मैं लड़की जो पैदा हुई थी.... ऐसे में... मेरी छटी से लेकर ग्यारहवीं साल गिरह तक... अनाम ने ही मेरे साथ... मेरा जन्मदिन मनाया था....
शुभ्रा - ओ... तभी... अनाम का तुम्हारे जीवन पर प्रभाव छोड़ना बनता है...
रुप - हाँ... भाभी... मेरी छटी साल गिरह के पहले दिन जब मुझे मेरे कमरे में.... अनाम पढ़ा रहा था...

फ्लैशबैक में--

रुप की बचपन
अपने कमरे में रुप पढ़ रही है और उसे अनाम पढ़ा रहा है I रुप की कमरे की सजावट ऐसी है जैसे एक स्कुल की क्लासरूम I अनाम पढ़ाते पढ़ाते रुक जाता है l क्यूँकी वहाँ पर छोटी रानी सुषमा पहुँचती है l

सुषमा - अनाम... और कितना समय...
अनाम - जी बस खतम हो समझीये... (ब्लैक बोर्ड को साफ करते हुए) बाकी की पढ़ाई हम कल कर लेंगे...
सुषमा - ठीक है... (रुप से) अच्छा राजकुमारी... आप कल सुबह तैयार रहिएगा... हम जल्दी जल्दी मंदिर जा कर आ जाएंगे....
अनाम - क्षमा... छोटी रानी जी... क्या कल कोई खास दिन है...
सुषमा - हाँ... अनाम... कल राजकुमारी जी का जन्मदिन है....
अनाम - आरे वाह... तो फ़िर कल दावत होगी...

सुषमा और रुप के चेहरे पर दुख और निराशा दिखता है l

रुप - तुमको मेरे जन्मदिन से ज्यादा दावत से मतलब है... भुक्कड कहीं के....
अनाम - अरे... आपका जन्मदिन है... मतलब राजगड़ की राजकुमारी का जन्मदिन... हम दावत की उम्मीद भी ना करें...
सुषमा - अनाम... इस घर में... लड़की या औरतों के लिए कोई खुशियाँ नहीं मनाया जाता.... हाँ अगर तुमको दावत चाहिए तो... मैं तुम्हें कुछ खास बना कर खिला दूंगी... पर कोशिश करना... किसीको को खबर ना हो...

इतने में एक नौकरानी भागते हुए आती है और सुषमा से कहती है

नौकरानी - छोटी रानी.... छोटे राजा जी ने आपको याद किया है...
सुषमा - ओ अच्छा... (अनाम से) अगर कुछ बाकी रह गया है... तो अभी खतम कर दो... और हाँ कल रात का खाना खा कर ही जाना... (इतना कह कर सुषमा वहाँ से चली जाती है)

अनाम रुप की ओर देखता है l रुप अपनी कुर्सी से उतर कर दीवार पर लगी अपनी माँ के फोटो के सामने खड़ी हो जाती है और उसके आँखों से आँसू बहने लगती हैं l अनाम उसके पास आ कर

अनाम - अच्छा राजकुमारी जी... एक बात पूछूं... (आंसू भरे आँख से अनाम को देखती है) किसीको भी मालुम नहीं होगा... क्या हम ऐसे आपके जन्मदिन मनाएं...
रुप - अगर किसीको पता चल गया तो...
अनाम - किसीको पता नहीं चलेगा... सिर्फ़ आप और मैं....
रुप - (मुस्कान से चेहरा खिल जाता है) सच...
अनाम - मुच...

फ्लैशबैक खतम

शुभ्रा - वाव... मतलब तुम्हारा हर जन्मदिन... तुम अनाम के साथ मनाती थी...
रुप - हाँ...
शुभ्रा - तभी... तभी मैं सोचूँ... अनाम तुम्हारे जीवन में इतना स्पेशल क्यूँ है... अच्छा... उससे तुमने कुछ वादा भी लिया था क्या...
रुप - (मुस्कराते हुए) जब मैं अपनी दसवीं साल गिरह उसके साथ मनाया था... तब मैंने उससे एक वादा लिया था...
शुभ्रा - क्या... (हैरान हो कर) व्हाट... ओह माय गॉड.... वादा... सच में... मैंने तो ऐसे ही तुक्का लगाया था.... कैसा वादा...
रुप - (थोड़ा हँसते हुए) यही की... जब मैं शादी के लायक हो जाऊँ... तब वह मुझे व्याह लेगा...
शुभ्रा - क्या... (हैरान हो कर) यु आर इंपसीबल... रीयली... एक मिनट... एक मिनट.... तुम... सिर्फ़ दस साल की थी... तब... तब शायद वह अट्ठारह साल को होगा... आज तुम्हें उसका चेहरा तक ठीक से याद नहीं है... और तुमने उससे वादा लिया था... वह भी शादी का...
रुप - दस साल की थी... पर प्यार... एफेक्शन... अच्छी तरह से समझती थी... एडोलसेंस को भी समझ पा रही थी.... हाँ हम जब जुदा हुए... तब मैं बचपन को छोड़ किशोर पन में जा रही थी.... और अनाम किशोर पन छोड़ कर जवानी में जा रहा था...
शुभ्रा - रुप... क्या अभी भी... तुम्हें अनाम का इंतजार है...
रुप - (चुप रहती है)
शुभ्रा - शायद हाँ.... इसलिए ना... तुमने प्रताप में अनाम को ढूंढने की कोशिश की...
रुप - (कुछ नहीं कहती है अपना चेहरा झुका लेती है)
शुभ्रा - पर रुप... वह अब अट्ठाइस साल का होगा शायद... क्या तुम्हें लगता है... वह वाकई तुम्हारे लिए... कुँवारा बैठा होगा... क्यूंकि था तो वह एक मुलाजिम ही... और उसे क्षेत्रपाल परिवार के बारे में भी जानकारी होगी... ऐसे में... अगर उसकी शादी... यु नो व्हाट आई मीन...
रुप - मैं समझती हूँ... भाभी... मैंने कुछ वादों में से एक वादा ऐसा भी लिया था... के वह कभी किसी और लड़की को मुहँ उठा कर नहीं देखेगा...
शुभ्रा - व्हाट... ओह माय गॉड... रुप... तुम बचपन में ही इतनी शातिर थी...
रुप - (हँसते हुए शर्मा जाती है और अपना सिर झुका लेती है)
शुभ्रा - अब समझ में आ रहा है... तुमको प्रताप में अनाम की झलक क्यूँ दिखी... हम्म...
रुप - (चुप्पी के साथ अपना सिर झुका लेती है)
शुभ्रा - अररे हाँ... बिंगो... रुप अगले महीने तुम्हारा जन्मदिन है... है ना...
रुप - (चेहरा उतर जाता है) हाँ भाभी...
शुभ्रा - ठीक है... भले ही... राजगड़ वाले तुम्हारा जन्मदिन ना मनाया हो... पर तुम्हारी भाभी जरूर मनाएगी...
रुप - मुझे कोई इंट्रेस्ट नहीं है... भाभी...
शुभ्रा - अरे... घबराओ नहीं... भगवान ने चाहा तो सब ठीक हो जाएगा... तुमने सुना नहीं था... अगले महीने प्रताप भी आने वाला होगा... मैं तो कहती हूँ... कुछ ना कुछ कनेक्शन जरूर है...
रुप - कैसा कनेक्शन...
शुभ्रा - जैसे तुम्हें लगा शायद... प्रताप अनाम हो सकता है... वैसे अब मुझे भी लग रहा है...
रुप - (हैरान हो कर) क्या....
शुभ्रा - हाँ... क्यूंकि... मॉल में कितनी लड़कियाँ उसे तक रही थीं... पर उसने किसीकी ओर देखने की जरा भी कोशिश नहीं की...
रुप - (कुछ नहीं कहती, चुप हो जाती है)
शुभ्रा - अच्छा छोड़ो... यह सब हम अगले महीने डिस्कस करेंगे.... यह बताओ... कल से तुम अपने कॉलेज जाओगी... अब तो तुम एफएम 97 की सेलिब्रिटी हो... क्या करोगी....
रुप - (अपनी भाभी के गोद में सिर रख कर) कुछ नहीं भाभी... बस यह रॉकी के टेढ़े मेढ़े येड़े ग्रुप को अच्छे से समझना है

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खाना खा लेने के बाद अनु अपने बेड के पास इधर उधर हो रही है l उसके बेड पर रखे मोबाइल को बार बार देख रही है l आखिर अपने बेड पर बैठ जाती है और एक झिझक के साथ फोन उठाती है l फिर वह वीर की नंबर निकालती है l वीर के नंबर उसके मोबाइल पर राजकुमार नाम से सेव है, उस नंबर को देखते ही अनजाने में ही उसके चेहरे पर एक मुस्कान खिल उठती है l वह फोन डायल करती है, उधर वीर की मोबाइल भी वीर के बेड पर पड़ा हुआ है और वीर भी अपने बेड के पास इधर उधर हो रहा है I जैसे ही उसका फोन बजता है वह धप कर कुद कर फोन के पास पहुँचता है और उसे डिस्पले में स्टुपीड लड़की नाम दिखता है l यह नाम देख कर वह खुश हो जाता है l

वीर - (फोन उठा कर उबासी लेने के स्टाइल में) हैलो...
अनु - रा.. राजकुमार जी... आप सो गए...
वीर - अरे अनु... तुम...
अनु - जी... क्या आप सो गए थे...
वीर - हाँ... तुम्हारे फोन के इंतजार में... मेरी आँख लग गई थी...
अनु - क्या.... सॉरी... सॉरी...... मैंने आपकी नींद खराब कर दी...
वीर - अरे बेवक़ूफ़ लड़की... मैंने कहा कि तुम्हारे फोन के इंतजार में... तो तुम्हें किस बात के लिए फोन पर माफी मांगनी चाहिए थी...
अनु - मुझे क्या पता... आपने ही कहा था कि... रात को सोने से पहले फोन करने के लिए...
वीर - (समझ नहीं पाता क्या कहे) अच्छा अनु जी... आप ने इस वक्त फोन क्यूँ किया...
अनु - जी आपने ही कहा था... सोने से पहले आपकी खैरियत पूछने के लिए...
वीर - अच्छा... तो पूछिये...
अनु - आप ने खाना खा लिया....
वीर - (फोन को बेड पर पटक कर अपना सिर तकिए पर फोड़ ने लगता है)
अनु - राजकुमार जी... राजकुमार जी...
वीर - (फोन को स्पीकर पर डालते हुए) हाँ अनु जी... बोलिए...
अनु - आपने बताया नहीं... क्या खाया...
वीर - वही... वही जो रोज रात को खाता हूँ...
अनु - ओ... पानी भी पी लिया...
वीर - नहीं अब पीने वाला हूँ...
अनु - ओ... तब तो आपको सो जाना चाहिए...
वीर - हाँ... वही तो किया था...
अनु - आपकी नींद टुट गई... इसके लिए मैंने आपसे सॉरी तो कह दिया है ना....
वीर - हाँ... अनु... इस खाने पीने के सिवा... क्या खैरियत पूछने के लिए कुछ भी नहीं है...
अनु - जी... मुझे कुछ सूझ नहीं रहा... आप ही बताइए ना....
वीर - अच्छा मैंने कहा था... जब भी बात करो... अपनी आँखे बंद कर इमेजिन करो... के तुम मेरे सामने हो...
अनु - जी... ओह... मैं तो भूल ही गई थी...
वीर - तो अब...
अनु - तो अब...
वीर - अपनी आँखे बंद करो...
अनु - जी...
वीर - क्या मैं दिख रहा हूँ...
अनु - जी...
वीर - अब पूछो...
अनु - क... क्या...
वीर - कुछ भी...
अनु - आ.. आप..
वीर - हाँ मैं...
अनु - अ.. आप.. क्या कर रहे हैं...
वीर - मैं तुम्हारे पास ही हूँ... तुम्हें देख रहा हूँ... इतना पास... के तुम्हारी सांसों को महसुस कर पा रहा हूँ...
अनु - क.... क्या... (अनु अपनी आँखे खोल देती है) (वह महसुस करती है कि उसकी सांसे भारी होने लगी हैं) वह अपनी फोन बंद कर देती है l

वीर - अनु... अनु... (वीर देखता है फोन कट चुका है)
 
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राजगड़

वैदेही अपनी चाय नाश्ते की दुकान के आगे एक तख्ती टांग देती है l उसने लिखा है

"आज का दिन खास है,

नाश्ते में जितना खाना है ख़ालो,
पैसा नहीं लिया जाएगा, बिल्कुल मुफ़्त"

गौरी - (पढ़ती है) यह क्या है... वैदेही... आज इस गांव के मुफ्त खोरों को मुफ्त में खिलाओगी...
वैदेही - (हँसकर) काकी... घर में जब कोई खुशियाँ मनाई जाए... तब पहले के ज़माने में अन्न छत्र लगाया जाता था... अब राजगड़ में तो मंदिर है नहीं... इसलिए... मैं अपनी दुकान में आज अन्न छत्र खोलने का विचार किया...
गौरी - अररे... किन नामाकुल, नाशुक्रे, नासपीटों को अन्न देगी.. अन्न छत्र में अन्न खाने वाले... अन्न का मान भी रखते हैं... यह लोग क्या रखेंगे... सिर्फ़ भेड़ बकरियों की तरह चरने आयेंगे... चरके चले जाएंगे....
वैदेही - तो जाने दो ना काकी... आज बहुत ही खास दिन है... बहुत ही खुशी का दिन है मेरे लिए... अपनी खुशी बांट रही हूँ... और फिर दो महीने बाद... फिरसे जब विशु यहाँ आएगा... तब...
गौरी - पर तु तो कह रही थी... विशु अगले महीने छूटने वाला है... फिर दो महीने क्यूँ...
वैदेही - काकी... उसका कुछ काम है... उसे निपटाने के बाद ही यहाँ आयेगा....
गौरी - इसलिए तुझसे खुशी संभल नहीं रही है...

वैदेही कुछ नहीं कहती है सिर्फ़ मुस्करा देती है l अपने हाथ में कर्पूर लेकर जलाती है और घंटी बजाते हुए चूल्हे में डाल देती है l चुल्हे में आग लग जाती है l गौरी बड़ी सी डेकची रख देती है l फ़िर गौरी के तरफ देखती है l गौरी उसे एक टक देखे जा रही है l

वैदेही - क्या बात है काकी... ऐसे क्या देख रही हो...
गौरी - तुम भाई बहन के बारे में सोच रही हूँ... एक बात तो है... तुम दोनों एक दुसरे के ताकत हो... ना कि कमजोरी...
वैदेही - वह तो है... वह मेरा ताकत है...
गौरी - जिस बदलाव के लिए तुम यह सब कर रही हो... भगवान करे... मेरे जीते जी हो जाए बस...
वैदेही - क्यूँ... तुम्हें इतनी जल्दी क्यूँ है... अगर मरना चाहोगी तो भी यमराज के सामने मैं खड़ी हो जाऊँगी... यह बदलाव सिर्फ़ तुम नहीं... यहाँ के हर बच्चा बच्चा देखेगा.... क्रांति की निंव डल चुकी है...(वैदेही के चेहरे की भाव बदल जाती है) उसे करवट लेते... उसे आकार लेते सब देखेंगे... सब गवाह होंगे...
गौरी - कभी कभी तेरी बातेँ मेरी पल्ले नहीं पड़ती...

तभी हरिया लक्ष्मी के साथ पहुँचता है l वह तख्ती में लिखा पढ़ता है l

हरिया - तो आज सबको मुफ्त खिलाने वाली हो... वैदेही...
गौरी - हाँ... तु आगया ना... अब धीरे धीरे कौवे... मंडराने लगेंगे...
हरिया - ऐ बुढ़िया... गल्ले पर बैठी है तो क्या खुदको मालकिन समझने लगी है... मुफ्त लिखा है... तभी तो खाने आए हैं...
वैदेही - ऐ हरिया... तमीज से... यह मालकिन ही हैं... और मेरी काकी भी... जिसके लिए आया है... वह मिल जाएगा... मुँह मार लेना... अगर फिरसे तमीज छोड़ा तो औकात दिखा दूंगी तुझे...
हरिया - जी.. जी वैदेही... गलती हो गई... माफी काकी जी
गौरी - ठीक है.. ठीक है... जा जाकर बैठ और हाँ... मुफ्त का मिल रहा है... रौब मत झाड़ना...

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विक्रम अपने कमरे के बाथरुम में आईने के सामने खड़ा है l वह कल रात विक्रम शराब के नशे में धुत था, उसे कल वीर ने लाकर उसके कमरे में छोड़ कर गया था l विक्रम यह अच्छी तरह से जानता था कि जब वह नींद सो जाता है शुभ्रा उसे देखने आती है l इसलिए कल वीर के जाते ही अपने कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया था l शुभ्रा बीते रात को आई भी थी विक्रम को देखने और कमरे का दरवाज़ा खोलने की कोशिश की थी l पर विक्रम नशे में था और जिस हालत में था वह नहीं चाहता था कि शुभ्रा उसे देखे, इसलिए दरवाजा नहीं खोला था l पिछली रात को आक्रोश के वजह से चाबुक की मार से हुई ज़ख्मों का दर्द महसुस नहीं कर पाया था l पर आज सुबह से ही उसका बदन बहुत दर्द कर रहा था l बाथरुम के आईने में अपना चेहरा देख रहा था l आज उसके चेहरे पर एक भारी बदलाव था, आज खुद को आईने में बिन मूंछों के देख रहा था l शुभ्रा को उसके चेहरे पर मूँछे अच्छी लगती थी, कभी कभी प्यार में कह देती थी,
"पुरी दुनिया में मूँछ मुण्डों के झुंड में... आपकी मूँछें आपको खास बनाती है... मूछों में तो आप मर्द लगते हैं"
यह बात याद आते ही विक्रम के जबड़े भींच जाते हैं और आँखें बंद कर लेता है l उसके जेहन में वह वाक्या गुजरने लगता है जब वह आदमी ऐसकॉट गाड़ी के ऊपर विक्रम के गिरेबान को हाथ में लिए पंच मारने ही वाला था कि शुभ्रा का उसके आगे गिड़गिड़ाना
" भैया.... प्रताप भैया... (अपनी मंगलसूत्र को दिखाते हुए) प्लीज भैया... (गिड़गिड़ाते हुए) प्लीज..."

अचानक विक्रम की आँखे खुल जाती हैं l वह बड़बड़ाने लगता है प्रताप... उसका नाम प्रताप है l शुब्बु ने उसे प्रताप भैया कहा था... क्या शुब्बु उसे पहले से ही जानती है....

विक्रम फ़िर से अपनी आँखे भींच लेता है और याद करने लगता है प्रताप ने शुभ्रा के लिए क्या कहा था
"तुम लोगों ने मेरी माँ के साथ जो बत्तमीजी की... उसके लिए... कायदे से जान से मार देना चाहिए था... पर (शुभ्रा को दिखाते हुए) इन्हें अनजाने में सही बहन कहा है... इनके साथ उस रिश्ते का लिहाज करते हुए तुम लोगों को छोड़ रहा हूँ..."

विक्रम फिर अपनी आँखे मूँद लेता है और मन ही मन बड़बड़ाने लगता है - अनजाने में सही... मतलब... मॉल में ही परिचय हुआ होगा... ह्म्म्म्म यही हुआ होगा... तो फ़िर मुझसे क्या छूट रहा है....

अचानक विक्रम आपनी आँखे खोल देता है l उसे याद आता है जब उसने अपने बाप भैरव सिंह क्षेत्रपाल का नाम लिया तब वह प्रताप पलटा और, विक्रम की आँखे फैल जाती हैं फिर बड़बड़ाने लगता है मतलब प्रताप और राजा साहब के बीच कुछ हुआ है... पर वह तो मेरे हम उम्र लग रहा था... उसका और राजा साहब का क्या हो सकता है... क्या वह राजगड़ से है... पर कैसे... वह इतना अच्छा ट्रेन्ड फाइटर है... क्या आर्मी से हो सकता है.... नहीं... नहीं... उसकी एपीयरेंस बिल्कुल आर्मी जैसी नहीं थी... आर्मी वालों के जैसी एटीट्यूड भी नहीं थी... फिर वह है कौन.... मुझे ढूंढना होगा... हर हाल में ढूंढना होगा... (उसके चेहरा कठोर होने लगता है) उससे अपनी बेइज्जती का बदला लेना होगा... उसके लिए मुझे खुद को... अपने लेवल से भी उपर एलीवेट करना होगा...

फिर एक गहरी सांस छोड़ कर अपने ज़ख्मों को डेटॉल से साफ करता है I फिर बाथरुम से निकल कर वार्डरोब से अपने लिए एक ढीला सा शर्ट निकालता है और उसे पहन लेता है l फिर वह पुरी तरह तैयार हो कर कमरे से निकालता है I जैसे ही कमरे से बाहर आता है उसे सामने हाथ में नाश्ते की थाली लिए शुभ्रा खड़ी मिलती है I

शुभ्रा - वह... मैं आपके लिए नाश्ता लाई थी...

विक्रम शुभ्रा को देखता है l शुभ्रा के चेहरे पर हैरानी के साथ साथ दुख, दर्द और घबराहट भी दिखता है l

विक्रम - छोटा सी ख्वाहिश थी...
बड़े सिद्दत से पाला था...
दो पल के साथ में...
पुरी जिंदगी जी लेना था...
मेरी तसब्बुर मेरे सामने है....
पर यह वक़्त और है...
वक़्त का तकाज़ा कुछ और है...
फिर कभी...

इतना कह कर विक्रम शुभ्रा को वहीँ छोड़ कर बाहर की ओर जाने लगता है l

शुभ्रा - रु.. रुकिए... (विक्रम रुक जाता है पर शुभ्रा की ओर मुड़ कर नहीं देखता) आप... कहाँ जा रहे हैं...
विक्रम - मैं.. हफ्ते दस दिन के लिए बाहर जा रहा हूँ... आ जाऊँगा...

यह कह कर विक्रम वगैर रुके चला जाता है l शुभ्रा पीछे आँखों में आंसू लिए खड़ी रह जाती है l रुप यह सब अपने कमरे से देख रही थी l शुभ्रा वह नाश्ते की थाली लेकर वहाँ से चली जाती है l उसके वहाँ जाते ही रुप भी खुद को अपने कमरे में बंद कर लेती है l


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विश्व एक बढ़िया सा ड्रेस पहन कर ड्रॉइंग रूम में बैठा हुआ है l तापस भी तैयार हो कर ड्रॉइंग रूम में आता है

तापस - (विश्व से) क्या मैं लेट हो गया...
विश्व - नहीं बिल्कुल नहीं... हमारे पास टाइम काफी है....
प्रतिभा - (ड्रॉइंग रूम में आकर हाथ में एक छोटी सी कटोरे में दही चीनी की घोल लिए) ले यह खा ले... (विश्व को चम्मच से दही चीनी की घोल खिला देती है) लो अब मैं भी रेडी हूँ...
तापस - (हैरान हो कर) तुम.... तुम क्यूँ भाग्यवान...
प्रतिभा - क्या कहा... मैं क्यूँ... आज इतना बड़ा दिन है... और मैं ना जाऊँ....
विश्व - हाँ माँ... तुम क्यूँ...
प्रतिभा - ऑए... जुम्मा जुम्मा कुछ ही घंटे हुए हैं... तुम बाप बेटे के मिलन को... अभी से मेरे खिलाफ षडयंत्र शुरु...
तापस - जान यह क्या कह रही हो... षडयंत्र हम करेंगे... वह भी तुम्हारे खिलाफ...
प्रतिभा - तो मुझे जाने से क्यूँ रोक रहे हो....
तापस - कल मॉल में जो हुआ... उसके बाद प्रताप को... ESS के गार्ड्स पागल कुत्ते की तरह ढूंढ रहे होंगे... और अगर प्रताप ना मिला तो उस औरत को भी ढूंढ रहे होंगे... जो उस मॉल में प्रताप के साथ थी... यानी के तुम...
प्रतिभा - ना उन्होंने मुझे ठीक से देखा है... और ना ही मैंने उनमें से किसी को... क्यूंकि प्रताप ने मेरे चेहरे पर रुमाल बांध दिआ था...
तापस - पर यह (माथे की मरहम पट्टी को दिखा कर) देख कर उन्हें शक भी तो हो सकता है...
प्रतिभा - लो अभी निकाल देती हूँ... (कह कर पट्टी निकाल देती है)
विश्व - आरे माँ... पट्टी निकालने से ज़ख़्म हरा हो जाएगा...
प्रतिभा - तु मेरी ज़ख्मों का फ़िक्र ना कर... वैसे तुम लोग किससे जाने वाले थे...
तापस - बाइक पर... और दोनों हेल्मेट लगा कर जाने वाले हैं...
प्रतिभा - ओ हो... मतलब कार को बेकार कर... बाइक से रफु चक्कर होने वाले हो... अब साफ साफ बताओ... मुझे ले कर जा रहे हो या नहीं... नहीं तो...
तापस - हाँ... नहीं तो..
प्रतिभा - अभी ESS वालों को फोन कर कहूँगी... के जिस लड़के ने तुम्हारे बाप को ओरायन मॉल में धोया था... वह अब एक सिरफिरे अड़ियल बुड्ढे खुसट सांढ के साथ XXXX कॉलेज में परिक्षा देनें गया हुआ है....
तापस - (अपनी हाथ जोड़ कर) हे प्रताप की जननी जगदंबे... त्राहि... त्राहि... आप अपनी निर्दयी वाणी से.. हमें... यूँ ना भयभीत कीजिए... पहले यह बताएं... यह ज़ख्म कैसे छुपायेंगे...
प्रतिभा - हे मूर्ख मानव... मैं फूल लेंथ ब्लाउज पहन कर हांथों के ज़ख़्म छुपा लुंगी... और साधना कट हेयर स्टाइल में अपने माथे की ज़ख्म छुपा लुंगी... इसमे जरा भी विलंब नहीं होगी...
विश्व - हे माँ... जैसी आपकी इच्छा... कृपा करें और शीघ्र पधारें...
प्रतिभा - बस पाँच मिनट में गई... और आधे घंटे में आई....

कह कर प्रतिभा अंदर चली जाती है l विश्व तापस को देखता है और तापस भी विश्व को देखता है l

विश्व - डैड... मेरी बात तो समझ में आता है... बेटा हूँ... माँ के जिद के आगे लाचार हूँ... पर वह तो आपकी अर्धांगिनी है...
तापस - बेटा... वह क्या है ना... शास्त्रों में लिखा गया है... अर्धांगिनी... इसलिए तो ले जाना चाहिए...
विश्व - जब इतना शास्त्रों का ज्ञान था... तो सुबह सुबह किस खुशी में यह मास्टर प्लान बनाया था... की माँ को छोड़ कर जाते हैं...
तापस - गलती बेटा गलती.... वैसे गलती किससे नहीं होती...
विश्व - अब नया कोई गुरु ज्ञान मत दीजिए...
तापस - अरे वत्स फ्री में दे रहा हूँ ले लीजिए...
विश्व - कहिए...
तापस - विवाह समाज में एक ऐसा आयोजन है... जहां एक पुरुष अपना बैचलर डिग्री हारता है और स्त्री अपनी मास्टर डिग्री को प्राप्त करती है...
विश्व - अच्छा....
तापस - हाँ... जानता हूँ... तेरे सिर के ऊपर निकल गया है... यह वह ब्रह्म ज्ञान है... जिससे हर पुरुष... शादी तक वंचित रहता है...

तभी प्रतिभा तैयार होकर आती है l दोनों देखते हैं, प्रतिभा आज साड़ी के साथ साथ एक फूल लेंथ ब्लाउज पहनी हुई है बिल्कुल एक बंगालन की परिधान में और बालों को भौहों तक साइज से बनाया है कि उसके सिर के ज़ख़्म नहीं दिख रहे हैं l

प्रतिभा - क्यूँ सेनापति जी... आज से पहले आपने हमे ऐसे कभी नहीं देखा जी...
तापस - नहीं जी... आज से पहले आपको यूँ... टिपीकल बंगाली परिधान में भी तो कभी नहीं देखा....
प्रतिभा - वह पिछली बार... वर्किंग वुमन एसोसिएशन की फंक्शन में... मुझे कुछ औरतों ने गिफ्ट किया था...
तापस - वाव... क्या बात है... एक शेर अर्ज़ है..
विश्व - इरशाद इरशाद...
तापस - आप यूँ... बन संवर के आये... कभी हम आपको... कभी हम इस फटीचर कार को देखते हैं...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... कितना घटिया शेर... हो गया.... अब चलें...
दोनों - हाँ हाँ चलो चलो

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वीर अपनी आँखे खोलता है और घड़ी की ओर देखता है सुबह के दस बज रहे हैं l

वीर - ओ तेरी... धत.. कल देर शाम तक सोया था... इसलिए... अभी लेट हो गया...

वीर मोबाइल पर देखता है और बोलने लगता है - अरे... आज तो सन डे है... जल्दी उठकर भी क्या करना है... एक मिनट... कोई मैसेज या कॉल.... ह्म्म्म्म... नहीं.... (हैरान हो कर) नहीं... पर क्यूँ नहीं... अभी कॉल करता हूँ...

वीर कॉल लगाता है तो दुसरे तरफ से अनु उबासी आवाज़ में जवाब देती है

अनु - हे... लो...
वीर - हम्म... हम राजकुमार बोल रहे हैं...
अनु - (जैसे झटका खाती है) क... क्या र.. राज.. कु... कुमार...
वीर - अरे... अरे... रिलेक्स... हकला क्यूँ रही हो...
अनु - म.. म.. मैं.. अभी तैयार होती हूँ... और ऑफिस पहुँचती हूँ...
वीर - अच्छा...
अनु - वह... मुझे माफ़ कर दीजिए... राज कुमार जी... लगता है... दो दिन से सो रही हूँ...
वीर - (हैरान हो कर) दो दिन से... हैइ... तुम क्या कह रही हो...
अनु - आप ऑफिस पहुँच गए...
वीर - क्यूँ...
अनु - आज सोमवार है ना...
वीर - अनु.. अनु... अनु... आज इतवार है...
अनु - ओह अच्छा... (अपने सिर पर टफली मारते हुए) मैं समझी आज सोमवार है... इसलिए हड़बड़ा गई थी... अगर छुट्टी है तो आपने फोन क्यूँ किया...
वीर - (थोड़ी कड़क आवाज में) क्या कहा....
अनु - सॉरी सॉरी... (रोनी आवाज़ में) मुझसे गलती हो गई...
वीर - है... तुम रो क्यूँ रही हो...
अनु - आप गुस्सा हो गए इसलिए...
वीर - अच्छा... मेरे गुस्सा होने से तुमको डर लगता है....
अनु - जी...
वीर - तो तुम्हारा फर्ज यह बनता है कि मुझे... कभी गुस्सा ना आए... ऐसे काम तुम्हें करने चाहिए... है ना...
अनु - हाँ...
वीर - तो फिर कल तुमने... मेरी खैरियत क्यूँ नहीं पूछी...
अनु - इसीलिये आप गुस्सा हैं...
वीर - नहीं... बस थोड़ा दुखी हूँ...
अनु - क्यूँ...
वीर - मेरी पर्सनल सेक्रेटरी कम मेरी पर्सनल अस्सिटेंट हो तुम... तुमको फोन भी इसीलिए दिया गया है... बॉस की खैरियत पूछने के लिए... पर तुम तो भूल ही गई...
अनु - ओ... पर राजकुमार जी... मैं भूली नहीं थी... वह फोन को चार्ज मे लगा कर... थोड़ा सो गई थी...
वीर - अच्छा... दोपहर को खाना खा कर सो गई थी...
अनु - हाँ...
वीर - तो फिर रात को कर सकती थी ना...
अनु - हाँ... सोचा... आप सो गए होंगे... इसलिए नहीं किया...
वीर - वैसे... कितने बजे तक सोई तुम...
अनु - पूरे सात बजे तक...
वीर - क्या.... सच कह रही हो...
अनु - हाँ सच्ची...
वीर - ह्म्म्म्म... तो फिर किसीने जगाया या खुद जाग गई...
अनु - कहाँ... खाट पर उल्टी लेटी हुई थी... दादी ने पीछे झाड़ु से मार लगाई... तब जा कर नींद टूटी...
वीर - (मन ही मन बहुत हँसता है) अच्छा... फिर रात को नींद नहीं आई होगी...
अनु - हाँ... आपको कैसे पता...
वीर - खैर... आज तुम्हें दादी ने जगाया नहीं...
अनु - कैसे जगाती... मैंने दरवाजा बंद कर रखा है... बाहर ही दरवाजे पर दस्तक दे कर चिढ़ कर चली गई होगी... मैं भी ढीठ हूँ... बोला था... रविवार छुट्टी है... इसलिए दस बजे तक सोउंगी...
वीर - और देखो कितना उल्टा हुआ... आज मैं तुमसे तुम्हारी खैरियत पूछ रहा हूँ...
अनु - (शर्माते हुए) सॉरी राज कुमार जी... कल से पक्का...
वीर - कल से पक्का... मतलब...
अनु - मैं कल से फोन कर आपसे आपकी खैरियत पुछुंगी...
वीर - ह्म्म्म्म... पर आज से क्यूँ नहीं... मेरा मतलब है... अभी से क्यूँ नहीं...
अनु - अभी से...
वीर - हाँ... अभी से...
अनु - ह्म्म्म्म... क्या पूछूं...
वीर - अच्छा एक बात बताओ...
अनु - जी
वीर - तुम अभी हो कहाँ पर....
अनु - जी मैं अपने कमरे में... अपनी खाट पर बैठी हुई हूँ...
वीर - तो एक काम करो...
अनु - जी...
वीर - अपनी आँखे बंद करो...
अनु - जी कर लिया...
वीर - अपनी बंद आँखों से मुझे देखो...
अनु - क्या राजकुमार जी... आँखे बंद कर लेने से... मुझे मेरा कमरा ही नहीं दिख रहा... मैं आपको कैसे देखूँ...
वीर - यु स्टुपीड गर्ल... मैं जो कह रहा हूँ... वह कर..
अनु - (डर के मारे) जी.. जी... जी...
वीर - अपनी आँखे बंद कर ली...
अनु - जी कर ली...
वीर - अब सोचो... मैं और तुम... तुम और मैं... ऑफिस में... मेरे कैबिन में हैं...
अनु - जी...
वीर - मैं चेयर पर बैठा हुआ हूँ... और तुम मेरे सामने बैठी हुई हो...
अनु - जी...
वीर - मैं.. तुम्हें दिख रहा हूँ ना...
अनु - जी...
वीर - अब पूछो...
अनु - क्या...
वीर - मेरी खैरियत...
अनु - ठीक है...
वीर - तो पूछो....
अनु - आपने खाना खाया... क्या खाया...
वीर - (चुप रहता है)
अनु - (धीरे से) राजकुमार जी... आप वहीँ पर हैं ना...
वीर - अनु... तुम अपनी मन की आँखों से मुझको देख रही हो ना...
अनु - हाँ...
वीर - तो क्यूँ पूछ रही हो.. मैं हूँ या नहीं...
अनु - वह आपने जवाब नहीं दिया...
वीर - यह खाने को छोड़ो.. कुछ और पूछो...
अनु - ह्म्म्म्म... (अनु खामोश हो जाती है)
वीर - अनु... ऐ अनु...
अनु - कुछ सूझ नहीं रहा है...
वीर - क्यूँ...
अनु - क्यूंकि ऑफिस में तो मैंने कभी कुछ पूछा ही नहीं है....
वीर - हूँ.... यह तो है...
अच्छा.... आज रात को सोने से पहले मुझे पूछ लेना...
अनु - क्या... क्या पूछूं मैं...
वीर - यही... के दिन भर क्या किया... क्या खाया... क्या पढ़ा... ऐसा ही कुछ...
अनु - जी...
वीर - और एक खास बात...
अनु - जी कहिए...
वीर - अपने घर से मुझसे जब भी बात करना... अपनी आँखे बंद कर मुझे अपने सामने इमेजिन करते हुए बात करना...
अनु - जी...
वीर - मुझे तुम्हें याद दिलाना ना पड़े...
अनु - जी...
वीर - तो आज रात सोने से पहले... मुझे तुम्हारा फोन का इंतजार रहेगा...
अनु - जी...
वीर - यार एक काम करो... फोन बंद करो... शुरु से ही तुम्हारा जी पुराण चल रहा है...
अनु - जी...
वीर - फिर जी...

अनु अपनी जीभ बाहर निकाल कर फोन काट देती है l उधर फोन कटते ही वीर मोबाइल को देखता है और मुस्कराते हुए अपने सिर पर चपत लगाता है l


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राजगड़ के चौराहे से भैरव सिंह का काफिला गुज़रती है l चौराहे पर भीड़ देख कर ड्राइवर हॉर्न बजाता है l गाड़ी के अंदर बैठा भैरव सिंह भी हैरान हो जाता है l क्यूँकी उत्सव हो या मातम क्षेत्रपाल महल में ही मनाई जाती है l यहाँ किस बात को लेकर भीड़ इकट्ठा है यह जानने के लिए भैरव सिंह गाड़ी रुकवाता है l गाड़ी के रुकते ही भीमा गाड़ी के पास पहुँचता है

भैरव - भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव - यहाँ भीड़ किस लिए है... जाओ... पता कर आओ...

भीमा जाकर लोगों से पूछताछ कर वापस आता है और भैरव सिंह से कहता है

भीमा - हुकुम...
भैरव - क्या है...
भीमा - जी... वह वैदेही... अपनी चाय नाश्ते की दुकान में... आज सब को मुफ्त खिला रही है... इसलिए यहाँ पर भीड़ है... क्यूंकि... सब अपनी अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं...

यह सुनने के बाद भैरव सिंह अपनी गाड़ी से उतरता है l अपने बीच भैरव सिंह को देख कर कुछ ही पलों में भीड़ गायब हो जाती है l लोगों का यूँ चले जाना वैदेही को अखरता है उसे समझ में नहीं आता, वह दुकान के बाहर आकर देखती है तो कुछ दूर पर भैरव सिंह खड़ा दिखता है l भैरव सिंह को देखते ही वैदेही की जबड़े भींच जाती हैं और आँखों में गुस्सा और नफ़रत उतरने लगती है l भैरव सिंह तीन बार चुटकी बजाता है, भीमा और उसके आदमी सब समझ जाते हैं l भीमा सभी आदमियों को इशारा करता है तो सारे आदमी पीछे जाकर अपनी अपनी गाड़ियों के पास खड़े हो जाते हैं l भैरव सिंह आगे दुकान की ओर जाता है, तो वैदेही भी आगे जा कर उसके सामने खड़ी हो जाती है l

भैरव - (एक कुटील मुस्कान अपने चेहरे पर ला कर) कौन मर गया... जो इन भीकारीयों को मुफत खिला रही है... कहीं तेरा भाई... भैरव सिंह के खौफ में तो नहीं मर गया....
वैदेही - नहीं... भैरव... वह तो तेरा काल है... उसे क्या होगा... हाँ... तेरे मरने के बाद... कोई श्राद्ध में भोज तो देगा नहीं... इसलिए तेरे मरने से पहले... तेरी श्राद्ध की भोज... मैं दे रही हूँ...
भैरव - वाह.... क्या बात है... (चिढ़ाते हुए) इतना प्यार करती है हमे...
वैदेही - हाँ... (गुर्राते हुए) कुत्ते... इतना की तेरे जीते जी तेरा श्राद्ध... गांव वालों को खिला रही हूँ...
भैरव - आ ह्... तु... जब जब मुझसे गुस्सा होती है... मुझे गाली देती है... तेरी कसम... मेरी रंडी.... साली... बड़ा मजा आता है... दे चल दे... आज कुछ गालीयां मुझे दे दे... कितना सुकून मिलता है... तेरे मुहँ से गाली सुन कर...
वैदेही - बस... कुछ दिन और कुत्ते...कुछ दिन और...
भैरव - कुछ दिन और..क्यूँ... क्या हो जाएगा... क्या सुरज पश्चिम में निकलेगा... अरे हाँ... सात साल पुरे होने को है... तेरा वह भाई... छूटने वाला होगा... है ना... वह मेरे झांट के बाल बराबर भी नहीं है... क्या उखाड़ लेगा मेरा....
वैदेही - जी तो चाहता है... तेरा मुहँ नोच लूँ... यहीं पर...
भैरव - पर तु... कुछ नहीं कर सकती... जानती है क्यूँ... मेरे वह सात थप्पड़ याद है ना... बेहोश हो गई थी...
वैदेही - हाँ... कुत्ते हाँ... मेरे वह सात बद्दुआयें याद रखना.... अगर भूल भी गया हो... तो कोई बात नहीं... मेरा विशु आकर तुझे याद दिला देगा.... तु जैसे ही उसे देखेगा... तुझे सब याद आ जाएगा...
भैरव - ज्यादा मत उच्छल... रंग महल की रंडी... ज्यादा मत उछल... जिनकी नजरें आसमान के बुलंदियों पर होता है... वह कभी नीचे फुदकने वाले टिड्डों के तरफ नहीं देखते...
वैदेही - (चुप रहती है)
भैरव - तेरे उस भाई का चेहरा याद रखने लायक था ही नहीं... तो मैं क्यूँ याद करूँ... क्यूँ... जो मेरी निगाह के बराबर या उपर ना हो... मैं उसे देखता भी नहीं... और तेरा भाई तो पैरों की जुते के बराबर भी नहीं... गौर से देख मुझे... मैं भैरव सिंह क्षेत्रपाल... फूलों का हार या नोटों का हार तक नहीं पहनता... क्यूंकि उसके लिए भी सर झुकाना पड़ता है... जुतें चाहे लाखों की भी हो... मैं उसके तरफ नहीं देखता... क्यूंकि उसके लिए भी झुकना पड़ता है... फिर दो टके का तेरा भाई... वह क्या... उसका औकात क्या...
वैदेही - इतनी अकड़... किस बात के लिए... कोई बात नहीं... इसे बनाए रखना... भैरव सिंह... यह गर्दन भी झुकेगा और तु हार भी पहनेगा... वह भी जुतों की....
भैरव सिंह - चु चु चु चु... तरस आता है तुझ पर... और कसम से मजा भी बहुत आ रहा है... ले... तुने जो श्राद्ध भोज मेरे प्यार मे लगाया था... उसके सारे कौवे उड़ गए... बेकार गया ना तेरी श्राद्ध भोज....
वैदेही - फिक्र मत कर कुत्ते.... ऐसा दिन फिर आएगा...
भैरव सिंह - तेरी कसम है... उस दिन भी कौवे उड़ाने... मैं आ जाऊँगा... हा हा हा.... (पलट कर अपनी गाड़ी के तरफ चला जाता है)
वैदेही - (जबड़े और मुट्ठी भींच लेती है)

भैरव सिंह के अपने काफिले के साथ चले जाने के बाद गौरी वैदेही के पास पहुँचती है l

गौरी - तेरे और भैरव सिंह में... क्या गुफ़्तगू हो रही थी.... ना उसके आदमीयों को सुनाई दिया ना हमे...
वैदेही - यह उसके और मेरे बीच का रिश्ता है... नफ़रत का... ना वह किसीको बांट सकता है... ना मैं...

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प्रतिभा और तापस की गाड़ी रास्ते पर खड़ी है l दोनों गाड़ी के बाहर खड़े हैं l उस रास्ते पर गुजरने वाले हर गाड़ी से तापस लिफ्ट मांग रहा था l पर कोई गाड़ी रोक कर उन्हें लिफ्ट नहीं दे रहा था I

प्रतिभा - ओ हो.. क्या ज़माना आ गया है... कोई लिफ्ट देने की सोच भी नहीं रहा है... आखिर आपको क्या पड़ी थी... एक्जाम हॉल को छोड़ इतने दुर आने की...
तापस - लो उल्टा चोर कोतुआल को डांटे... प्रताप के एक्जाम हॉल के अंदर जाते ही तुम्हींने कहा कि... ढाई घंटे हम बाहर क्या करेंगे... चलिए लिंगराज मंदिर में प्रताप के नाम पर पूजा कर आते हैं... अब तुम उल्टा दोष मुझ पर मढ रही हो...
प्रतिभा - हाँ हाँ... सारा दोष तो मेरा ही है... आपका तो कुछ भी नहीं है... आपको चाहिए था... की गाड़ी को भला चंगा रखना... वह तो नहीं किया आपने...
तापस - हे भाग्यवान... भगवान से तो डरो... हम जिस रास्ते से वापस आए... वह रास्ता खराब था... मैंने मना भी किया था... पर तुमने माना नहीं... हम्प्स से टकरा ऑइल सील टुट गया... इंजिन ऑइल ड्रेन हो गया... अब इसमें मैं क्या कर सकता हूँ...
प्रतिभा - वह मैं कुछ नहीं जानती.... अभी आधा घंटा और है... एक्जाम के खतम होने में... मुझे XXXX कॉलेज पहुँचना है.... (प्रतिभा अपनी मुहँ फ़ेर लेती है)
तापस - (खीज कर) आरे... लिफ्ट तो मांग रहा हूँ... अब कोई दे नहीं रहा है... तो मैं क्या करूं... इस रास्ते पर... कोई ऑटो या टैक्सी भी नहीं दिख रहा है....

इतने में एक मर्सिडिज आता दिखता है l तापस उस गाड़ी को देख कर लिफ्ट मांगता है l गाड़ी रुक जाती है l पासेंजर साइड खिड़की नीचे सरक जाती है l गाड़ी में बैठा शख्स को देख कर

तापस - सर, हमारी गाड़ी खराब हो गई है... हमे आगे XXXX कॉलेज जाना है... अगर हमें आप अगले जंक्शन तक लिफ्ट दे देंगे तो... बड़ी मेहरबानी होगी...

गाड़ी में बैठा शख्स इशारे से बैठने को कहता है l तापस प्रतिभा से कहता है

तापस - आरे भाग्यवान... हमे यह महाशय लिफ्ट देनें के लिए तैयार हो गए हैं... आओ बैठ जाओ...

प्रतिभा खुश होकर गाड़ी के पिछले सीट पर बैठ जाती है और तापस उस शख्स के साथ आगे बैठ जाता है l

प्रतिभा - (गाड़ी में बैठ कर) थैंक्यू... थैंक्यू बेटा... बहुत बहुत थैंक्यू...
शख्स - (जवाब में कुछ नहीं कहता)
प्रतिभा - क्या हुआ बेटा... आपने जवाब नहीं दिया...
शख्स - जी... जी थैंक्यू की कोई जरूरत नहीं...
प्रतिभा - हाँ... आपको जरूरत नहीं होगी... पर हमे थैंक्यू कहने में कोई कंजूसी नहीं है... हम लोग एक्चुयली लिंगराज मंदिर गए थे....
शख्स - ओह...

फिर गाड़ी में ख़ामोशी छा जाती है l कुछ देर बाद प्रतिभा उस शख्स से पूछती है

प्रतिभा - अच्छा बेटा.. आपका नाम क्या है...
शख्स - (ज़वाब दिए वगैर गाड़ी चलाने में ध्यान लगाता है)
प्रतिभा - सॉरी बेटा... आपको शायद मेरा ऐसे बातेँ करना अच्छा नहीं लग रहा है... सॉरी..
शख्स - देखिए... आप मुझे... यह बार बार बेटा ना कहें... मुझे ऐसे रिश्ता बनाना और उसे निभाना अच्छा नहीं लगता...
प्रतिभा - ओह... सॉरी... लगता है... तुम किसीसे बहुत नाराज हो...
शख्स - (चुप रहता है)
तापस - (पीछे मुड़ कर) भाग्यवान... यह हमारी मदत कर रहे हैं... और तुम हो कि.... इन्हें क्यूँ अपनी बातों से बोर कर रहे हो...

तापस के कहने पर प्रतिभा चुप हो जाती है l वह शख्स अपने में खोया हुआ है और इधर उधर देखते हुए ख़ामोशी से गाड़ी चला रहा है l प्रतिभा से रहा नहीं जाता वह उस शख्स से पूछती है

प्रतिभा - किसीको ढूंढ रहे हो क्या बेटा...
शख्स - (कुछ नहीं कहता)
प्रतिभा - खुद से नाराज़ लग रहे हो... कोई दिल के करीब था.. तुमसे खो गया...
शख्स - हाँ... कोई दिल में उतर गया है... उसीको ढूंढ रहा हूँ...
प्रतिभा - हाँ... लगा ही था... दिल का मामला है... ह्म्म्म्म
शख्स - हाँ ऐसा ही कुछ... वह जब तक नहीं मिल जाता... ना मेरे दिल को चैन मिलेगा... ना मेरे रूह को सुकून मिलेगा...
प्रतिभा - आरे वाह... यह हुई ना बात... सच्चे आशिकों वाली बात... कितना लकी है वह... जिसे बड़ी शिद्दत से चाह रहे हो... ढूंढ रहे हो... बेटा... तुम्हारी तड़प देख कर इतना जरूर कहूँगी... तुम्हें तुम्हारी मंजिल तुमको जरूर मिल जाएगी...
शख्स - थैंक्यू...
प्रतिभा - आरे... इसमें थैंक्यू कैसी... तुमने हमारी इतनी मदत जो की है... मैं ज़रूर भगवान से प्रार्थना करुँगी... तुम्हारे लिए...
शख्स - जी....

फिर गाड़ी में ख़ामोशी छा जाती है l थोड़ी देर बाद XXXX कॉलेज आ जाती है l

तापस - बस बस... यहीं... हाँ... यहीं.. पर...

शख्स अपनी गाड़ी रोक देता है l दोनों सेनापति दंपती गाड़ी से उतर जाते हैं l गाड़ी से उतर कर प्रतिभा उस शख्स से

प्रतिभा - शुक्रिया बेटा... अच्छा... तुमने अपना नाम नहीं बताया...
शख्स - आपने भी भी तो नहीं बताया...
प्रतिभा - मैं एडवोकेट प्रतिभा सेनापति.... और यह मेरे पति... तापस सेनापति.... और तुम....
शख्स - जी... फ़िलहाल मेरा नाम... मेरी पहचान गुम हो गया है... जिस दिन आपकी दुआओं के असर से... मेरी मंजिल मुझे मिल जाएगी... उस दिन मुझे मेरा नाम और पहचान वापस मील जाएगा...
प्रतिभा - अच्छा बेटा... मुझे आज का दिन याद रहेगा... मैं तुम्हारे लिए... भगवान से ज़रूर प्रार्थना करुँगी...

वह शख्स कुछ नहीं कहता गाड़ी की शीशे को ऊपर उठाकर आगे निकल जाता है l उसके जाते ही प्रतिभा तापस से कहती है

प्रतिभा - कितना अच्छा लड़का है ना...
तापस - हाँ... जिस रास्ते पर किसीने हमारी मदत नहीं किया... यह एक देवदूत की तरह आ कर हमें यहां तक लिफ्ट दी... यही तो फर्क़ है... अच्छा चलो... प्रताप आता ही होगा... हमारे पास और चार पांच घंटे हैं... उसे खान के हवाले करने के लिए....
प्रतिभा - हाँ... ठीक है... चलिए...

गेट से बाहर निकल कर प्रताप चिल्लाता है "माँ" l दोनों सेनापति दंपती प्रताप की ओर देखते हैं और उस तरफ जाने लगते हैं l

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गाड़ी के अंदर बैठते हुए भैरव सिंह कुछ सोचे जा रहा है l उसने कुछ सोचने के बाद एक फोन लगाता है l

भैरव सिंह - हाँ महांती... कहाँ तक पहुँचे...
महांती - राजा साहब... हम रंग महल पहुँच गए हैं.... आपकी प्रतीक्षा हो रही है....
भैरव सिंह - कितने आदमी उठाये हैं...
महांती - पुरे दस बंदे हैं...
भैरव सिंह - कोई छूट गया....
महांती - हाँ सर... पूरे बारह लोग हमारे सर्विलांस में थे.... पर दो लोग ऐन मैके पर ही गायब हो गए....
भैरव - अच्छा... कुछ और भी हुआ है क्या...
महांती - जी कुछ और मतलब...
भैरव - सिर्फ़ छोटे राजा जी का कांड ही ना... कुछ और तो नहीं हुआ है...
महांती - जी... जी नहीं... (भैरव सिंह चुप रहता है) राजा साहब.... क्या हुआ...
भैरव - महांती... तुमको मेरा एक काम करना है... और किसीको कानों कान खबर नहीं होना है...
महांती - जी कहिए...
भैरव - देखो... जिनको तुम लाए ही... तुम्हें उनसे क्या उगलवाना है... यह तुम्हारा काम है... हम तुम्हें इस काम के लिए... पुरा रंग महल तुम्हारे हवाले करते हैं...
महांती - जी... समझ गया... आप काम बताइए....
भैरव - एक आदमी के बारे में... वह भुवनेश्वर में है...
महांती - जी...
भैरव - वह क्या कर है.... या कहाँ है... वगैरह वगैरह... यह सब पता कर के मुझे बताना है....
महांती - जी... जरूर... यह काम तो... हमारे ESS में से कोई भी आदमी कर देगा...
भैरव - ठीक है... हम... एक जरूरी काम के लिए... यशपुर तहसील जा रहे हैं... हमें शाम तक खबर कर दो... उसके बारे में....
महांती - जी... पर उसका नाम...
भैरव - (चुप रहता है)
महांती - राजा साहब... राजा साहब...

भैरव सिंह को वैदेही से बातचित करने के बाद उसे अपना किया हुआ वादा याद आता है

"वैदेही - विश्व से डरता है तु.... इसलिए... उसे लंगड़ा करने की कोशिश की थी तुने.... उसका हुक्का पानी बंद करवा रखा है तुने....
भैरव - वह इसलिए... के वह जब जब गली गली भीख मांगता... तब तेरे तड़प देख कर मैं... खुश होता....
वैदेही - पर भाग्य ने यह होने नहीं दिया....
भैरव - भाग्य... जब जब भाग्य मुझसे... पंजा लड़ाया है... मैंने तब तब किसी और का भाग्य लिखा है.....
वैदेही - इतना अहं.... पचा नहीं पाओगे... यह तब तक... है जब तक... विश्व अंदर है... वह जब आएगा... तु बहुत रोएगा... उसके इरादों के आँधी के आगे... तेरा साम्राज्य तिनका तिनका उड़ जाएगा.... उसके नफ़रत के सैलाब से.... तेरा जर्रा जर्रा बह जाएगा.... देखना.... आखिर उस पर... मेरे तीन थप्पड़ों का.... कर्ज है...
भैरव - आई शाबाश... मुझे अब तुझ पर प्यार आ रहा है... मेरी रंडी कुत्तीआ.... चल आज तेरी खुशी के लिए... मैं सात साल तक विश्व को भूल जाता हूँ... तो बता विश्व आकर मेरा क्या उखाड़ेगा...."

महांती - राजा साहब... क्या आप... लाइन में हैं...
भैरव - हाँ.... हाँ.. महांती.. जाने दो... जाने दो...
महांती - राजा साहब क्या हुआ...
भैरव - कुछ नहीं... हमे हमारी हैसियत याद आ गया....
महांती - जी मैं समझा नहीं....
भैरव - हमने जो कहा... उसे भूल जाओ... और हाँ ख़बरदार... भूलकर भी हमारी नाफरमानी हो ना पाए...
महांती - जी... जैसा आपका हुकुम...

भैरव सिंह अपना फोन काट देता है l उधर महांती सब सुन कर कुछ सोचने लगता है l

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रात हो चुकी है
सुबह से रुप खुद को कमरे में बंद कर रखा था l कल हुई हादसे के वजह से वह अपने भाभी के सामने जाने से कतरा रही थी l ऊपर से विक्रम को एक नए अवतार में देख कर हैरान रह गई थी, और जिस तरह से विक्रम घर से निकल गया शुभ्रा के हाथ में नाश्ते की थाली वैसी की वैसी रह गई थी l रुप अपनी कमरे से बाहर निकलती है और शुभ्रा के कमरे की ओर जाती है l शुभ्रा के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ मिलता है l वह दरवाजे को हल्के से धक्का दे कर खोलती है l अंदर शुभ्रा बेड पर हेड रेस्ट से टेक लगा कर कोई किताब पढ़ रही थी l दरवाज़ा खुलते ही शुभ्रा रुप की तरफ देखती है l रुप अपना सिर झुकाए दरवाजे के पास खड़ी हुई है l

शुभ्रा - क्या हुआ रुप... वहाँ क्यूँ रुक गई... आओ...

रुप की रुलाई फुट पड़ती है, वह रोते रोते हुए शुभ्रा के पास जाती है और उसके गोद में अपना सिर छुपा कर रोने लगती है l

शुभ्रा - क्या हुआ रुप... क्यूँ रो रही हो...
रुप - आ.. आ.. प... मुझसे न... नाराज हैं ना...
शुभ्रा - यह तुम क्या कह रही हो... भला मैं तुमसे क्यूँ नाराज़ होने लगी...
रुप - व... वह... आ.. आप...
शुभ्रा - एक मिनट... यह रोना धोना बंद करो... (पानी की ग्लास रुप को देते हुए) पहले यह पानी पी लो... फिर मुझसे बात करो....

रुप आधी ग्लास पानी पी लेती है तो उसका सुबकना बहुत कम हो जाती है l अपनी रोने पर कंट्रोल करते हुए l

रुप - आज भैया के बिना खाए जाने से.... आपको बहुत दुख पहुँचा... उसके बाद... आप दिन भर ना मेरे पास आए ना अपने पास बुलाया... मैं.. मैं समझ सकती हूँ... आपको कितना ठेस पहुँची है.... पर भाभी मैं सच कहती हूँ... मैंने जान बुझ कर कुछ नहीं किया... जो भी हुआ... वह एक्सीडेंट था...
शुभ्रा - (रुप के सिर पर हाथ फेरती है और पूछती है) रुप... क्या दोपहर को... तुमने खाना खाया है....
रुप - (अपना सिर हिला कर ना कहती है) आपने भी तो नहीं खाया है...
शुभ्रा - एक मिनट...

फिर शुभ्रा फिर से नीचे किचन को फोन करती है और रात का खाना अपने कमरे में लाने के लिए नौकरों से कह देती है l

रुप - भाभी...
शुभ्रा - हूँ...
रुप - भैया सुबह से गए हैं... अभी तक नहीं लौटे हैं... आपको चिंता नहीं हो रही...
शुभ्रा - नहीं... क्यूंकि वह मुझसे कह कर गए हैं... हफ्ते दस दिन के लिए वह कहीं बाहर जा रहे हैं... और इतने बड़े घर में... तुम्हारे दोनों भाई कब आते हैं... कब जाते हैं... कोई नहीं जानता...
रुप - उनका... इस वक़्त ऐसे बाहर जाना... अपने आपको... इतना बदल देना... आपको अखर नहीं रहा...
शुभ्रा - रुप... तुम भले ही उनकी बहन हो... पर मैं उन्हें तुमसे ज्यादा जानती हूँ.... वह इस वक़्त अपने अंदर के ज़ख्मों से उठ रहे टीस को शांत करने के लिए.... प्रताप को ढूंढने निकले हैं.... पर उन्हें प्रताप नहीं मिलेगा... कम से कम एक महीने के लिए... बाद में क्या होगा.... यह वक़्त आने पर देखेंगे...
रुप - आज आपको उनकी हुलिया देख कर... कुछ अजीब नहीं लगा...
शुभ्रा - हाँ लगा... पर इसमे उनका क्या दोष... अगर तुम यह सोच रही हो... की क्षेत्रपाल नाम की अहं को चोट के कारण उन्होंने अपनी मूंछें मुंडवाया है... तो तुम सोला आने गलत हो... हाँ... उन्होंने अपनी मूँछों पर हमेशा क्षेत्रपाल बन कर ताव दिया है.... पर... उनके अंदर की मर्द होने के अहं को चोट पहुँची है.... वह भी मेरी वजह से... इसलिए उन्होंने अपनी मूंछें मुंडवा लिया है...
रुप - आपके वजह से... पर आपने कुछ गलत तो नहीं कि थी...
शुभ्रा - ऐसा तुम सोच रही हो... पर तुम यह नहीं जानती कि इन सात साल सालों में... उन्होंने इस सहर में क्या कमाया था... मैंने देखा है उन्हें... गोलियों के बौछारों के बीच अकेले किसी शेर की तरह गुजर जाते थे... ऐसा आदमी जिसने अपने दम पर... ना सिर्फ़ भुवनेश्वर में हर गुंडे मवालियों बीच.... बल्कि पुलिस वालो के बीच भी खौफ बनाए रखा था... ऐसे आदमी के लिए... उसकी व्याहता किसी के आगे घुटने टेक दे... हाथ जोड़ दे तो...
रुप - मैं अभी भी कह रही हूँ... आपने वक़्त की नजाकत को भांपकर... वैसा किया था....
शुभ्रा - तुम फिर भी नहीं समझ रही हो... सदियों से एक विचार धारा है... औरत को मर्द अपनी ताकत के बूते सुरक्षा देता है... ज़माने की बुरी नजर व नीयत से बचाता है.... और उनके रगों में तो... राजसी खुन बह रहा है... प्रतिकार करना और प्रतिघात करना उनके खुन में है... ऐसे में उनकी अर्धांगिनी के घुटने टेक कर... उनके लिए जान की भीख माँगना... उनके मर्द होने के अहं को नेस्तनाबूद कर दिया है... इसी ग़म से हल्का होने गए हैं...
रुप - कहीं कुछ उल्टा सीधा....
शुभ्रा - (टोकते हुए) नहीं... वह ना तो कायर हैं ना ही बुजदिल...
रुप - हाँ... पर...
शुभ्रा - बस रुप बस... अब इस टॉपिक पर... और नहीं... लेट चेंज द टॉपिक...
रुप - क्या...
शुभ्रा - तुम... अनाम से बहुत अटैच थी ना...
रुप - हाँ...
शुभ्रा - क्या तुम्हें... अभी भी उसका इंतजार है...
रुप - (अपना मुहँ फ़ेर लेती है और चुप रहती है)
शुभ्रा - ओके... मुझे मेरा जवाब मिल गया... (रुप के फिरभी खामोश रहने पर) वेल... मैं कभी आजाद परिंदे की तरह थी... पर आज.... खैर छोड़ो... अच्छा बताओ... अनाम ने कभी तुम्हें आजादी की फिल कराया है...
रुप - भाभी... (थोड़ा हंसते हुए) आपने टॉपिक भी क्या बदला है... खैर आप मेरे लिए... मेरी माँ... गुरु.. सखी... सब कुछ तो हो... आप से क्या और क्यूँ छुपाना... भाभी... जानती हैं... घर पर कभी भी... मेरा जनम दिन नहीं मनाया जाता था... और ना ही मनाया जाता है.... वजह.. तीन पीढ़ियों बाद... मैं लड़की जो पैदा हुई थी.... ऐसे में... मेरी छटी से लेकर ग्यारहवीं साल गिरह तक... अनाम ने ही मेरे साथ... मेरा जन्मदिन मनाया था....
शुभ्रा - ओ... तभी... अनाम का तुम्हारे जीवन पर प्रभाव छोड़ना बनता है...
रुप - हाँ... भाभी... मेरी छटी साल गिरह के पहले दिन जब मुझे मेरे कमरे में.... अनाम पढ़ा रहा था...

फ्लैशबैक में--

रुप की बचपन
अपने कमरे में रुप पढ़ रही है और उसे अनाम पढ़ा रहा है I रुप की कमरे की सजावट ऐसी है जैसे एक स्कुल की क्लासरूम I अनाम पढ़ाते पढ़ाते रुक जाता है l क्यूँकी वहाँ पर छोटी रानी सुषमा पहुँचती है l

सुषमा - अनाम... और कितना समय...
अनाम - जी बस खतम हो समझीये... (ब्लैक बोर्ड को साफ करते हुए) बाकी की पढ़ाई हम कल कर लेंगे...
सुषमा - ठीक है... (रुप से) अच्छा राजकुमारी... आप कल सुबह तैयार रहिएगा... हम जल्दी जल्दी मंदिर जा कर आ जाएंगे....
अनाम - क्षमा... छोटी रानी जी... क्या कल कोई खास दिन है...
सुषमा - हाँ... अनाम... कल राजकुमारी जी का जन्मदिन है....
अनाम - आरे वाह... तो फ़िर कल दावत होगी...

सुषमा और रुप के चेहरे पर दुख और निराशा दिखता है l

रुप - तुमको मेरे जन्मदिन से ज्यादा दावत से मतलब है... भुक्कड कहीं के....
अनाम - अरे... आपका जन्मदिन है... मतलब राजगड़ की राजकुमारी का जन्मदिन... हम दावत की उम्मीद भी ना करें...
सुषमा - अनाम... इस घर में... लड़की या औरतों के लिए कोई खुशियाँ नहीं मनाया जाता.... हाँ अगर तुमको दावत चाहिए तो... मैं तुम्हें कुछ खास बना कर खिला दूंगी... पर कोशिश करना... किसीको को खबर ना हो...

इतने में एक नौकरानी भागते हुए आती है और सुषमा से कहती है

नौकरानी - छोटी रानी.... छोटे राजा जी ने आपको याद किया है...
सुषमा - ओ अच्छा... (अनाम से) अगर कुछ बाकी रह गया है... तो अभी खतम कर दो... और हाँ कल रात का खाना खा कर ही जाना... (इतना कह कर सुषमा वहाँ से चली जाती है)

अनाम रुप की ओर देखता है l रुप अपनी कुर्सी से उतर कर दीवार पर लगी अपनी माँ के फोटो के सामने खड़ी हो जाती है और उसके आँखों से आँसू बहने लगती हैं l अनाम उसके पास आ कर

अनाम - अच्छा राजकुमारी जी... एक बात पूछूं... (आंसू भरे आँख से अनाम को देखती है) किसीको भी मालुम नहीं होगा... क्या हम ऐसे आपके जन्मदिन मनाएं...
रुप - अगर किसीको पता चल गया तो...
अनाम - किसीको पता नहीं चलेगा... सिर्फ़ आप और मैं....
रुप - (मुस्कान से चेहरा खिल जाता है) सच...
अनाम - मुच...

फ्लैशबैक खतम

शुभ्रा - वाव... मतलब तुम्हारा हर जन्मदिन... तुम अनाम के साथ मनाती थी...
रुप - हाँ...
शुभ्रा - तभी... तभी मैं सोचूँ... अनाम तुम्हारे जीवन में इतना स्पेशल क्यूँ है... अच्छा... उससे तुमने कुछ वादा भी लिया था क्या...
रुप - (मुस्कराते हुए) जब मैं अपनी दसवीं साल गिरह उसके साथ मनाया था... तब मैंने उससे एक वादा लिया था...
शुभ्रा - क्या... (हैरान हो कर) व्हाट... ओह माय गॉड.... वादा... सच में... मैंने तो ऐसे ही तुक्का लगाया था.... कैसा वादा...
रुप - (थोड़ा हँसते हुए) यही की... जब मैं शादी के लायक हो जाऊँ... तब वह मुझे व्याह लेगा...
शुभ्रा - क्या... (हैरान हो कर) यु आर इंपसीबल... रीयली... एक मिनट... एक मिनट.... तुम... सिर्फ़ दस साल की थी... तब... तब शायद वह अट्ठारह साल को होगा... आज तुम्हें उसका चेहरा तक ठीक से याद नहीं है... और तुमने उससे वादा लिया था... वह भी शादी का...
रुप - दस साल की थी... पर प्यार... एफेक्शन... अच्छी तरह से समझती थी... एडोलसेंस को भी समझ पा रही थी.... हाँ हम जब जुदा हुए... तब मैं बचपन को छोड़ किशोर पन में जा रही थी.... और अनाम किशोर पन छोड़ कर जवानी में जा रहा था...
शुभ्रा - रुप... क्या अभी भी... तुम्हें अनाम का इंतजार है...
रुप - (चुप रहती है)
शुभ्रा - शायद हाँ.... इसलिए ना... तुमने प्रताप में अनाम को ढूंढने की कोशिश की...
रुप - (कुछ नहीं कहती है अपना चेहरा झुका लेती है)
शुभ्रा - पर रुप... वह अब अट्ठाइस साल का होगा शायद... क्या तुम्हें लगता है... वह वाकई तुम्हारे लिए... कुँवारा बैठा होगा... क्यूंकि था तो वह एक मुलाजिम ही... और उसे क्षेत्रपाल परिवार के बारे में भी जानकारी होगी... ऐसे में... अगर उसकी शादी... यु नो व्हाट आई मीन...
रुप - मैं समझती हूँ... भाभी... मैंने कुछ वादों में से एक वादा ऐसा भी लिया था... के वह कभी किसी और लड़की को मुहँ उठा कर नहीं देखेगा...
शुभ्रा - व्हाट... ओह माय गॉड... रुप... तुम बचपन में ही इतनी शातिर थी...
रुप - (हँसते हुए शर्मा जाती है और अपना सिर झुका लेती है)
शुभ्रा - अब समझ में आ रहा है... तुमको प्रताप में अनाम की झलक क्यूँ दिखी... हम्म...
रुप - (चुप्पी के साथ अपना सिर झुका लेती है)
शुभ्रा - अररे हाँ... बिंगो... रुप अगले महीने तुम्हारा जन्मदिन है... है ना...
रुप - (चेहरा उतर जाता है) हाँ भाभी...
शुभ्रा - ठीक है... भले ही... राजगड़ वाले तुम्हारा जन्मदिन ना मनाया हो... पर तुम्हारी भाभी जरूर मनाएगी...
रुप - मुझे कोई इंट्रेस्ट नहीं है... भाभी...
शुभ्रा - अरे... घबराओ नहीं... भगवान ने चाहा तो सब ठीक हो जाएगा... तुमने सुना नहीं था... अगले महीने प्रताप भी आने वाला होगा... मैं तो कहती हूँ... कुछ ना कुछ कनेक्शन जरूर है...
रुप - कैसा कनेक्शन...
शुभ्रा - जैसे तुम्हें लगा शायद... प्रताप अनाम हो सकता है... वैसे अब मुझे भी लग रहा है...
रुप - (हैरान हो कर) क्या....
शुभ्रा - हाँ... क्यूंकि... मॉल में कितनी लड़कियाँ उसे तक रही थीं... पर उसने किसीकी ओर देखने की जरा भी कोशिश नहीं की...
रुप - (कुछ नहीं कहती, चुप हो जाती है)
शुभ्रा - अच्छा छोड़ो... यह सब हम अगले महीने डिस्कस करेंगे.... यह बताओ... कल से तुम अपने कॉलेज जाओगी... अब तो तुम एफएम 97 की सेलिब्रिटी हो... क्या करोगी....
रुप - (अपनी भाभी के गोद में सिर रख कर) कुछ नहीं भाभी... बस यह रॉकी के टेढ़े मेढ़े येड़े ग्रुप को अच्छे से समझना है

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खाना खा लेने के बाद अनु अपने बेड के पास इधर उधर हो रही है l उसके बेड पर रखे मोबाइल को बार बार देख रही है l आखिर अपने बेड पर बैठ जाती है और एक झिझक के साथ फोन उठाती है l फिर वह वीर की नंबर निकालती है l वीर के नंबर उसके मोबाइल पर राजकुमार नाम से सेव है, उस नंबर को देखते ही अनजाने में ही उसके चेहरे पर एक मुस्कान खिल उठती है l वह फोन डायल करती है, उधर वीर की मोबाइल भी वीर के बेड पर पड़ा हुआ है और वीर भी अपने बेड के पास इधर उधर हो रहा है I जैसे ही उसका फोन बजता है वह धप कर कुद कर फोन के पास पहुँचता है और उसे डिस्पले में स्टुपीड लड़की नाम दिखता है l यह नाम देख कर वह खुश हो जाता है l

वीर - (फोन उठा कर उबासी लेने के स्टाइल में) हैलो...
अनु - रा.. राजकुमार जी... आप सो गए...
वीर - अरे अनु... तुम...
अनु - जी... क्या आप सो गए थे...
वीर - हाँ... तुम्हारे फोन के इंतजार में... मेरी आँख लग गई थी...
अनु - क्या.... सॉरी... सॉरी...... मैंने आपकी नींद खराब कर दी...
वीर - अरे बेवक़ूफ़ लड़की... मैंने कहा कि तुम्हारे फोन के इंतजार में... तो तुम्हें किस बात के लिए फोन पर माफी मांगनी चाहिए थी...
अनु - मुझे क्या पता... आपने ही कहा था कि... रात को सोने से पहले फोन करने के लिए...
वीर - (समझ नहीं पाता क्या कहे) अच्छा अनु जी... आप ने इस वक्त फोन क्यूँ किया...
अनु - जी आपने ही कहा था... सोने से पहले आपकी खैरियत पूछने के लिए...
वीर - अच्छा... तो पूछिये...
अनु - आप ने खाना खा लिया....
वीर - (फोन को बेड पर पटक कर अपना सिर तकिए पर फोड़ ने लगता है)
अनु - राजकुमार जी... राजकुमार जी...
वीर - (फोन को स्पीकर पर डालते हुए) हाँ अनु जी... बोलिए...
अनु - आपने बताया नहीं... क्या खाया...
वीर - वही... वही जो रोज रात को खाता हूँ...
अनु - ओ... पानी भी पी लिया...
वीर - नहीं अब पीने वाला हूँ...
अनु - ओ... तब तो आपको सो जाना चाहिए...
वीर - हाँ... वही तो किया था...
अनु - आपकी नींद टुट गई... इसके लिए मैंने आपसे सॉरी तो कह दिया है ना....
वीर - हाँ... अनु... इस खाने पीने के सिवा... क्या खैरियत पूछने के लिए कुछ भी नहीं है...
अनु - जी... मुझे कुछ सूझ नहीं रहा... आप ही बताइए ना....
वीर - अच्छा मैंने कहा था... जब भी बात करो... अपनी आँखे बंद कर इमेजिन करो... के तुम मेरे सामने हो...
अनु - जी... ओह... मैं तो भूल ही गई थी...
वीर - तो अब...
अनु - तो अब...
वीर - अपनी आँखे बंद करो...
अनु - जी...
वीर - क्या मैं दिख रहा हूँ...
अनु - जी...
वीर - अब पूछो...
अनु - क... क्या...
वीर - कुछ भी...
अनु - आ.. आप..
वीर - हाँ मैं...
अनु - अ.. आप.. क्या कर रहे हैं...
वीर - मैं तुम्हारे पास ही हूँ... तुम्हें देख रहा हूँ... इतना पास... के तुम्हारी सांसों को महसुस कर पा रहा हूँ...
अनु - क.... क्या... (अनु अपनी आँखे खोल देती है) (वह महसुस करती है कि उसकी सांसे भारी होने लगी हैं) वह अपनी फोन बंद कर देती है l

वीर - अनु... अनु... (वीर देखता है फोन कट चुका है)
Jabardastt Updatee

Lagta hai Vishwa aur Roop ki agli mulakat Roop ke birthday mein hi hogi. Dekhna yeh hai woh mulakat kaisi hoti hai.

Idher Senapati couple kisne lift diyaa. Lag toh raha tha woh character pehle bhi kahani mein aachuka hai. Dekhte hai kaun nikalta hai woh anjaan shaksh

Veer aur Anu ke beech bhi closeness badh rahi hai. Lagta hai Jaisa Subhra Vikram ke badalne ka kaaran banegi thik waise hi Anu veer ke badalne ka kaaran banegi.

Par yeh Veervaar kyaa hai.
 

Lib am

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रवीवार
राजगड़

वैदेही अपनी चाय नाश्ते की दुकान के आगे एक तख्ती टांग देती है l उसने लिखा है

"आज का दिन खास है,

नाश्ते में जितना खाना है ख़ालो,
पैसा नहीं लिया जाएगा, बिल्कुल मुफ़्त"

गौरी - (पढ़ती है) यह क्या है... वैदेही... आज इस गांव के मुफ्त खोरों को मुफ्त में खिलाओगी...
वैदेही - (हँसकर) काकी... घर में जब कोई खुशियाँ मनाई जाए... तब पहले के ज़माने में अन्न छत्र लगाया जाता था... अब राजगड़ में तो मंदिर है नहीं... इसलिए... मैं अपनी दुकान में आज अन्न छत्र खोलने का विचार किया...
गौरी - अररे... किन नामाकुल, नाशुक्रे, नासपीटों को अन्न देगी.. अन्न छत्र में अन्न खाने वाले... अन्न का मान भी रखते हैं... यह लोग क्या रखेंगे... सिर्फ़ भेड़ बकरियों की तरह चरने आयेंगे... चरके चले जाएंगे....
वैदेही - तो जाने दो ना काकी... आज बहुत ही खास दिन है... बहुत ही खुशी का दिन है मेरे लिए... अपनी खुशी बांट रही हूँ... और फिर दो महीने बाद... फिरसे जब विशु यहाँ आएगा... तब...
गौरी - पर तु तो कह रही थी... विशु अगले महीने छूटने वाला है... फिर दो महीने क्यूँ...
वैदेही - काकी... उसका कुछ काम है... उसे निपटाने के बाद ही यहाँ आयेगा....
गौरी - इसलिए तुझसे खुशी संभल नहीं रही है...

वैदेही कुछ नहीं कहती है सिर्फ़ मुस्करा देती है l अपने हाथ में कर्पूर लेकर जलाती है और घंटी बजाते हुए चूल्हे में डाल देती है l चुल्हे में आग लग जाती है l गौरी बड़ी सी डेकची रख देती है l फ़िर गौरी के तरफ देखती है l गौरी उसे एक टक देखे जा रही है l

वैदेही - क्या बात है काकी... ऐसे क्या देख रही हो...
गौरी - तुम भाई बहन के बारे में सोच रही हूँ... एक बात तो है... तुम दोनों एक दुसरे के ताकत हो... ना कि कमजोरी...
वैदेही - वह तो है... वह मेरा ताकत है...
गौरी - जिस बदलाव के लिए तुम यह सब कर रही हो... भगवान करे... मेरे जीते जी हो जाए बस...
वैदेही - क्यूँ... तुम्हें इतनी जल्दी क्यूँ है... अगर मरना चाहोगी तो भी यमराज के सामने मैं खड़ी हो जाऊँगी... यह बदलाव सिर्फ़ तुम नहीं... यहाँ के हर बच्चा बच्चा देखेगा.... क्रांति की निंव डल चुकी है...(वैदेही के चेहरे की भाव बदल जाती है) उसे करवट लेते... उसे आकार लेते सब देखेंगे... सब गवाह होंगे...
गौरी - कभी कभी तेरी बातेँ मेरी पल्ले नहीं पड़ती...

तभी हरिया लक्ष्मी के साथ पहुँचता है l वह तख्ती में लिखा पढ़ता है l

हरिया - तो आज सबको मुफ्त खिलाने वाली हो... वैदेही...
गौरी - हाँ... तु आगया ना... अब धीरे धीरे कौवे... मंडराने लगेंगे...
हरिया - ऐ बुढ़िया... गल्ले पर बैठी है तो क्या खुदको मालकिन समझने लगी है... मुफ्त लिखा है... तभी तो खाने आए हैं...
वैदेही - ऐ हरिया... तमीज से... यह मालकिन ही हैं... और मेरी काकी भी... जिसके लिए आया है... वह मिल जाएगा... मुँह मार लेना... अगर फिरसे तमीज छोड़ा तो औकात दिखा दूंगी तुझे...
हरिया - जी.. जी वैदेही... गलती हो गई... माफी काकी जी
गौरी - ठीक है.. ठीक है... जा जाकर बैठ और हाँ... मुफ्त का मिल रहा है... रौब मत झाड़ना...

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विक्रम अपने कमरे के बाथरुम में आईने के सामने खड़ा है l वह कल रात विक्रम शराब के नशे में धुत था, उसे कल वीर ने लाकर उसके कमरे में छोड़ कर गया था l विक्रम यह अच्छी तरह से जानता था कि जब वह नींद सो जाता है शुभ्रा उसे देखने आती है l इसलिए कल वीर के जाते ही अपने कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया था l शुभ्रा बीते रात को आई भी थी विक्रम को देखने और कमरे का दरवाज़ा खोलने की कोशिश की थी l पर विक्रम नशे में था और जिस हालत में था वह नहीं चाहता था कि शुभ्रा उसे देखे, इसलिए दरवाजा नहीं खोला था l पिछली रात को आक्रोश के वजह से चाबुक की मार से हुई ज़ख्मों का दर्द महसुस नहीं कर पाया था l पर आज सुबह से ही उसका बदन बहुत दर्द कर रहा था l बाथरुम के आईने में अपना चेहरा देख रहा था l आज उसके चेहरे पर एक भारी बदलाव था, आज खुद को आईने में बिन मूंछों के देख रहा था l शुभ्रा को उसके चेहरे पर मूँछे अच्छी लगती थी, कभी कभी प्यार में कह देती थी,
"पुरी दुनिया में मूँछ मुण्डों के झुंड में... आपकी मूँछें आपको खास बनाती है... मूछों में तो आप मर्द लगते हैं"
यह बात याद आते ही विक्रम के जबड़े भींच जाते हैं और आँखें बंद कर लेता है l उसके जेहन में वह वाक्या गुजरने लगता है जब वह आदमी ऐसकॉट गाड़ी के ऊपर विक्रम के गिरेबान को हाथ में लिए पंच मारने ही वाला था कि शुभ्रा का उसके आगे गिड़गिड़ाना
" भैया.... प्रताप भैया... (अपनी मंगलसूत्र को दिखाते हुए) प्लीज भैया... (गिड़गिड़ाते हुए) प्लीज..."

अचानक विक्रम की आँखे खुल जाती हैं l वह बड़बड़ाने लगता है प्रताप... उसका नाम प्रताप है l शुब्बु ने उसे प्रताप भैया कहा था... क्या शुब्बु उसे पहले से ही जानती है....

विक्रम फ़िर से अपनी आँखे भींच लेता है और याद करने लगता है प्रताप ने शुभ्रा के लिए क्या कहा था
"तुम लोगों ने मेरी माँ के साथ जो बत्तमीजी की... उसके लिए... कायदे से जान से मार देना चाहिए था... पर (शुभ्रा को दिखाते हुए) इन्हें अनजाने में सही बहन कहा है... इनके साथ उस रिश्ते का लिहाज करते हुए तुम लोगों को छोड़ रहा हूँ..."

विक्रम फिर अपनी आँखे मूँद लेता है और मन ही मन बड़बड़ाने लगता है - अनजाने में सही... मतलब... मॉल में ही परिचय हुआ होगा... ह्म्म्म्म यही हुआ होगा... तो फ़िर मुझसे क्या छूट रहा है....

अचानक विक्रम आपनी आँखे खोल देता है l उसे याद आता है जब उसने अपने बाप भैरव सिंह क्षेत्रपाल का नाम लिया तब वह प्रताप पलटा और, विक्रम की आँखे फैल जाती हैं फिर बड़बड़ाने लगता है मतलब प्रताप और राजा साहब के बीच कुछ हुआ है... पर वह तो मेरे हम उम्र लग रहा था... उसका और राजा साहब का क्या हो सकता है... क्या वह राजगड़ से है... पर कैसे... वह इतना अच्छा ट्रेन्ड फाइटर है... क्या आर्मी से हो सकता है.... नहीं... नहीं... उसकी एपीयरेंस बिल्कुल आर्मी जैसी नहीं थी... आर्मी वालों के जैसी एटीट्यूड भी नहीं थी... फिर वह है कौन.... मुझे ढूंढना होगा... हर हाल में ढूंढना होगा... (उसके चेहरा कठोर होने लगता है) उससे अपनी बेइज्जती का बदला लेना होगा... उसके लिए मुझे खुद को... अपने लेवल से भी उपर एलीवेट करना होगा...

फिर एक गहरी सांस छोड़ कर अपने ज़ख्मों को डेटॉल से साफ करता है I फिर बाथरुम से निकल कर वार्डरोब से अपने लिए एक ढीला सा शर्ट निकालता है और उसे पहन लेता है l फिर वह पुरी तरह तैयार हो कर कमरे से निकालता है I जैसे ही कमरे से बाहर आता है उसे सामने हाथ में नाश्ते की थाली लिए शुभ्रा खड़ी मिलती है I

शुभ्रा - वह... मैं आपके लिए नाश्ता लाई थी...

विक्रम शुभ्रा को देखता है l शुभ्रा के चेहरे पर हैरानी के साथ साथ दुख, दर्द और घबराहट भी दिखता है l

विक्रम - छोटा सी ख्वाहिश थी...
बड़े सिद्दत से पाला था...
दो पल के साथ में...
पुरी जिंदगी जी लेना था...
मेरी तसब्बुर मेरे सामने है....
पर यह वक़्त और है...
वक़्त का तकाज़ा कुछ और है...
फिर कभी...

इतना कह कर विक्रम शुभ्रा को वहीँ छोड़ कर बाहर की ओर जाने लगता है l

शुभ्रा - रु.. रुकिए... (विक्रम रुक जाता है पर शुभ्रा की ओर मुड़ कर नहीं देखता) आप... कहाँ जा रहे हैं...
विक्रम - मैं.. हफ्ते दस दिन के लिए बाहर जा रहा हूँ... आ जाऊँगा...

यह कह कर विक्रम वगैर रुके चला जाता है l शुभ्रा पीछे आँखों में आंसू लिए खड़ी रह जाती है l रुप यह सब अपने कमरे से देख रही थी l शुभ्रा वह नाश्ते की थाली लेकर वहाँ से चली जाती है l उसके वहाँ जाते ही रुप भी खुद को अपने कमरे में बंद कर लेती है l


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विश्व एक बढ़िया सा ड्रेस पहन कर ड्रॉइंग रूम में बैठा हुआ है l तापस भी तैयार हो कर ड्रॉइंग रूम में आता है

तापस - (विश्व से) क्या मैं लेट हो गया...
विश्व - नहीं बिल्कुल नहीं... हमारे पास टाइम काफी है....
प्रतिभा - (ड्रॉइंग रूम में आकर हाथ में एक छोटी सी कटोरे में दही चीनी की घोल लिए) ले यह खा ले... (विश्व को चम्मच से दही चीनी की घोल खिला देती है) लो अब मैं भी रेडी हूँ...
तापस - (हैरान हो कर) तुम.... तुम क्यूँ भाग्यवान...
प्रतिभा - क्या कहा... मैं क्यूँ... आज इतना बड़ा दिन है... और मैं ना जाऊँ....
विश्व - हाँ माँ... तुम क्यूँ...
प्रतिभा - ऑए... जुम्मा जुम्मा कुछ ही घंटे हुए हैं... तुम बाप बेटे के मिलन को... अभी से मेरे खिलाफ षडयंत्र शुरु...
तापस - जान यह क्या कह रही हो... षडयंत्र हम करेंगे... वह भी तुम्हारे खिलाफ...
प्रतिभा - तो मुझे जाने से क्यूँ रोक रहे हो....
तापस - कल मॉल में जो हुआ... उसके बाद प्रताप को... ESS के गार्ड्स पागल कुत्ते की तरह ढूंढ रहे होंगे... और अगर प्रताप ना मिला तो उस औरत को भी ढूंढ रहे होंगे... जो उस मॉल में प्रताप के साथ थी... यानी के तुम...
प्रतिभा - ना उन्होंने मुझे ठीक से देखा है... और ना ही मैंने उनमें से किसी को... क्यूंकि प्रताप ने मेरे चेहरे पर रुमाल बांध दिआ था...
तापस - पर यह (माथे की मरहम पट्टी को दिखा कर) देख कर उन्हें शक भी तो हो सकता है...
प्रतिभा - लो अभी निकाल देती हूँ... (कह कर पट्टी निकाल देती है)
विश्व - आरे माँ... पट्टी निकालने से ज़ख़्म हरा हो जाएगा...
प्रतिभा - तु मेरी ज़ख्मों का फ़िक्र ना कर... वैसे तुम लोग किससे जाने वाले थे...
तापस - बाइक पर... और दोनों हेल्मेट लगा कर जाने वाले हैं...
प्रतिभा - ओ हो... मतलब कार को बेकार कर... बाइक से रफु चक्कर होने वाले हो... अब साफ साफ बताओ... मुझे ले कर जा रहे हो या नहीं... नहीं तो...
तापस - हाँ... नहीं तो..
प्रतिभा - अभी ESS वालों को फोन कर कहूँगी... के जिस लड़के ने तुम्हारे बाप को ओरायन मॉल में धोया था... वह अब एक सिरफिरे अड़ियल बुड्ढे खुसट सांढ के साथ XXXX कॉलेज में परिक्षा देनें गया हुआ है....
तापस - (अपनी हाथ जोड़ कर) हे प्रताप की जननी जगदंबे... त्राहि... त्राहि... आप अपनी निर्दयी वाणी से.. हमें... यूँ ना भयभीत कीजिए... पहले यह बताएं... यह ज़ख्म कैसे छुपायेंगे...
प्रतिभा - हे मूर्ख मानव... मैं फूल लेंथ ब्लाउज पहन कर हांथों के ज़ख़्म छुपा लुंगी... और साधना कट हेयर स्टाइल में अपने माथे की ज़ख्म छुपा लुंगी... इसमे जरा भी विलंब नहीं होगी...
विश्व - हे माँ... जैसी आपकी इच्छा... कृपा करें और शीघ्र पधारें...
प्रतिभा - बस पाँच मिनट में गई... और आधे घंटे में आई....

कह कर प्रतिभा अंदर चली जाती है l विश्व तापस को देखता है और तापस भी विश्व को देखता है l

विश्व - डैड... मेरी बात तो समझ में आता है... बेटा हूँ... माँ के जिद के आगे लाचार हूँ... पर वह तो आपकी अर्धांगिनी है...
तापस - बेटा... वह क्या है ना... शास्त्रों में लिखा गया है... अर्धांगिनी... इसलिए तो ले जाना चाहिए...
विश्व - जब इतना शास्त्रों का ज्ञान था... तो सुबह सुबह किस खुशी में यह मास्टर प्लान बनाया था... की माँ को छोड़ कर जाते हैं...
तापस - गलती बेटा गलती.... वैसे गलती किससे नहीं होती...
विश्व - अब नया कोई गुरु ज्ञान मत दीजिए...
तापस - अरे वत्स फ्री में दे रहा हूँ ले लीजिए...
विश्व - कहिए...
तापस - विवाह समाज में एक ऐसा आयोजन है... जहां एक पुरुष अपना बैचलर डिग्री हारता है और स्त्री अपनी मास्टर डिग्री को प्राप्त करती है...
विश्व - अच्छा....
तापस - हाँ... जानता हूँ... तेरे सिर के ऊपर निकल गया है... यह वह ब्रह्म ज्ञान है... जिससे हर पुरुष... शादी तक वंचित रहता है...

तभी प्रतिभा तैयार होकर आती है l दोनों देखते हैं, प्रतिभा आज साड़ी के साथ साथ एक फूल लेंथ ब्लाउज पहनी हुई है बिल्कुल एक बंगालन की परिधान में और बालों को भौहों तक साइज से बनाया है कि उसके सिर के ज़ख़्म नहीं दिख रहे हैं l

प्रतिभा - क्यूँ सेनापति जी... आज से पहले आपने हमे ऐसे कभी नहीं देखा जी...
तापस - नहीं जी... आज से पहले आपको यूँ... टिपीकल बंगाली परिधान में भी तो कभी नहीं देखा....
प्रतिभा - वह पिछली बार... वर्किंग वुमन एसोसिएशन की फंक्शन में... मुझे कुछ औरतों ने गिफ्ट किया था...
तापस - वाव... क्या बात है... एक शेर अर्ज़ है..
विश्व - इरशाद इरशाद...
तापस - आप यूँ... बन संवर के आये... कभी हम आपको... कभी हम इस फटीचर कार को देखते हैं...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... कितना घटिया शेर... हो गया.... अब चलें...
दोनों - हाँ हाँ चलो चलो

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वीर अपनी आँखे खोलता है और घड़ी की ओर देखता है सुबह के दस बज रहे हैं l

वीर - ओ तेरी... धत.. कल देर शाम तक सोया था... इसलिए... अभी लेट हो गया...

वीर मोबाइल पर देखता है और बोलने लगता है - अरे... आज तो सन डे है... जल्दी उठकर भी क्या करना है... एक मिनट... कोई मैसेज या कॉल.... ह्म्म्म्म... नहीं.... (हैरान हो कर) नहीं... पर क्यूँ नहीं... अभी कॉल करता हूँ...

वीर कॉल लगाता है तो दुसरे तरफ से अनु उबासी आवाज़ में जवाब देती है

अनु - हे... लो...
वीर - हम्म... हम राजकुमार बोल रहे हैं...
अनु - (जैसे झटका खाती है) क... क्या र.. राज.. कु... कुमार...
वीर - अरे... अरे... रिलेक्स... हकला क्यूँ रही हो...
अनु - म.. म.. मैं.. अभी तैयार होती हूँ... और ऑफिस पहुँचती हूँ...
वीर - अच्छा...
अनु - वह... मुझे माफ़ कर दीजिए... राज कुमार जी... लगता है... दो दिन से सो रही हूँ...
वीर - (हैरान हो कर) दो दिन से... हैइ... तुम क्या कह रही हो...
अनु - आप ऑफिस पहुँच गए...
वीर - क्यूँ...
अनु - आज सोमवार है ना...
वीर - अनु.. अनु... अनु... आज इतवार है...
अनु - ओह अच्छा... (अपने सिर पर टफली मारते हुए) मैं समझी आज सोमवार है... इसलिए हड़बड़ा गई थी... अगर छुट्टी है तो आपने फोन क्यूँ किया...
वीर - (थोड़ी कड़क आवाज में) क्या कहा....
अनु - सॉरी सॉरी... (रोनी आवाज़ में) मुझसे गलती हो गई...
वीर - है... तुम रो क्यूँ रही हो...
अनु - आप गुस्सा हो गए इसलिए...
वीर - अच्छा... मेरे गुस्सा होने से तुमको डर लगता है....
अनु - जी...
वीर - तो तुम्हारा फर्ज यह बनता है कि मुझे... कभी गुस्सा ना आए... ऐसे काम तुम्हें करने चाहिए... है ना...
अनु - हाँ...
वीर - तो फिर कल तुमने... मेरी खैरियत क्यूँ नहीं पूछी...
अनु - इसीलिये आप गुस्सा हैं...
वीर - नहीं... बस थोड़ा दुखी हूँ...
अनु - क्यूँ...
वीर - मेरी पर्सनल सेक्रेटरी कम मेरी पर्सनल अस्सिटेंट हो तुम... तुमको फोन भी इसीलिए दिया गया है... बॉस की खैरियत पूछने के लिए... पर तुम तो भूल ही गई...
अनु - ओ... पर राजकुमार जी... मैं भूली नहीं थी... वह फोन को चार्ज मे लगा कर... थोड़ा सो गई थी...
वीर - अच्छा... दोपहर को खाना खा कर सो गई थी...
अनु - हाँ...
वीर - तो फिर रात को कर सकती थी ना...
अनु - हाँ... सोचा... आप सो गए होंगे... इसलिए नहीं किया...
वीर - वैसे... कितने बजे तक सोई तुम...
अनु - पूरे सात बजे तक...
वीर - क्या.... सच कह रही हो...
अनु - हाँ सच्ची...
वीर - ह्म्म्म्म... तो फिर किसीने जगाया या खुद जाग गई...
अनु - कहाँ... खाट पर उल्टी लेटी हुई थी... दादी ने पीछे झाड़ु से मार लगाई... तब जा कर नींद टूटी...
वीर - (मन ही मन बहुत हँसता है) अच्छा... फिर रात को नींद नहीं आई होगी...
अनु - हाँ... आपको कैसे पता...
वीर - खैर... आज तुम्हें दादी ने जगाया नहीं...
अनु - कैसे जगाती... मैंने दरवाजा बंद कर रखा है... बाहर ही दरवाजे पर दस्तक दे कर चिढ़ कर चली गई होगी... मैं भी ढीठ हूँ... बोला था... रविवार छुट्टी है... इसलिए दस बजे तक सोउंगी...
वीर - और देखो कितना उल्टा हुआ... आज मैं तुमसे तुम्हारी खैरियत पूछ रहा हूँ...
अनु - (शर्माते हुए) सॉरी राज कुमार जी... कल से पक्का...
वीर - कल से पक्का... मतलब...
अनु - मैं कल से फोन कर आपसे आपकी खैरियत पुछुंगी...
वीर - ह्म्म्म्म... पर आज से क्यूँ नहीं... मेरा मतलब है... अभी से क्यूँ नहीं...
अनु - अभी से...
वीर - हाँ... अभी से...
अनु - ह्म्म्म्म... क्या पूछूं...
वीर - अच्छा एक बात बताओ...
अनु - जी
वीर - तुम अभी हो कहाँ पर....
अनु - जी मैं अपने कमरे में... अपनी खाट पर बैठी हुई हूँ...
वीर - तो एक काम करो...
अनु - जी...
वीर - अपनी आँखे बंद करो...
अनु - जी कर लिया...
वीर - अपनी बंद आँखों से मुझे देखो...
अनु - क्या राजकुमार जी... आँखे बंद कर लेने से... मुझे मेरा कमरा ही नहीं दिख रहा... मैं आपको कैसे देखूँ...
वीर - यु स्टुपीड गर्ल... मैं जो कह रहा हूँ... वह कर..
अनु - (डर के मारे) जी.. जी... जी...
वीर - अपनी आँखे बंद कर ली...
अनु - जी कर ली...
वीर - अब सोचो... मैं और तुम... तुम और मैं... ऑफिस में... मेरे कैबिन में हैं...
अनु - जी...
वीर - मैं चेयर पर बैठा हुआ हूँ... और तुम मेरे सामने बैठी हुई हो...
अनु - जी...
वीर - मैं.. तुम्हें दिख रहा हूँ ना...
अनु - जी...
वीर - अब पूछो...
अनु - क्या...
वीर - मेरी खैरियत...
अनु - ठीक है...
वीर - तो पूछो....
अनु - आपने खाना खाया... क्या खाया...
वीर - (चुप रहता है)
अनु - (धीरे से) राजकुमार जी... आप वहीँ पर हैं ना...
वीर - अनु... तुम अपनी मन की आँखों से मुझको देख रही हो ना...
अनु - हाँ...
वीर - तो क्यूँ पूछ रही हो.. मैं हूँ या नहीं...
अनु - वह आपने जवाब नहीं दिया...
वीर - यह खाने को छोड़ो.. कुछ और पूछो...
अनु - ह्म्म्म्म... (अनु खामोश हो जाती है)
वीर - अनु... ऐ अनु...
अनु - कुछ सूझ नहीं रहा है...
वीर - क्यूँ...
अनु - क्यूंकि ऑफिस में तो मैंने कभी कुछ पूछा ही नहीं है....
वीर - हूँ.... यह तो है...
अच्छा.... आज रात को सोने से पहले मुझे पूछ लेना...
अनु - क्या... क्या पूछूं मैं...
वीर - यही... के दिन भर क्या किया... क्या खाया... क्या पढ़ा... ऐसा ही कुछ...
अनु - जी...
वीर - और एक खास बात...
अनु - जी कहिए...
वीर - अपने घर से मुझसे जब भी बात करना... अपनी आँखे बंद कर मुझे अपने सामने इमेजिन करते हुए बात करना...
अनु - जी...
वीर - मुझे तुम्हें याद दिलाना ना पड़े...
अनु - जी...
वीर - तो आज रात सोने से पहले... मुझे तुम्हारा फोन का इंतजार रहेगा...
अनु - जी...
वीर - यार एक काम करो... फोन बंद करो... शुरु से ही तुम्हारा जी पुराण चल रहा है...
अनु - जी...
वीर - फिर जी...

अनु अपनी जीभ बाहर निकाल कर फोन काट देती है l उधर फोन कटते ही वीर मोबाइल को देखता है और मुस्कराते हुए अपने सिर पर चपत लगाता है l


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राजगड़ के चौराहे से भैरव सिंह का काफिला गुज़रती है l चौराहे पर भीड़ देख कर ड्राइवर हॉर्न बजाता है l गाड़ी के अंदर बैठा भैरव सिंह भी हैरान हो जाता है l क्यूँकी उत्सव हो या मातम क्षेत्रपाल महल में ही मनाई जाती है l यहाँ किस बात को लेकर भीड़ इकट्ठा है यह जानने के लिए भैरव सिंह गाड़ी रुकवाता है l गाड़ी के रुकते ही भीमा गाड़ी के पास पहुँचता है

भैरव - भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव - यहाँ भीड़ किस लिए है... जाओ... पता कर आओ...

भीमा जाकर लोगों से पूछताछ कर वापस आता है और भैरव सिंह से कहता है

भीमा - हुकुम...
भैरव - क्या है...
भीमा - जी... वह वैदेही... अपनी चाय नाश्ते की दुकान में... आज सब को मुफ्त खिला रही है... इसलिए यहाँ पर भीड़ है... क्यूंकि... सब अपनी अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं...

यह सुनने के बाद भैरव सिंह अपनी गाड़ी से उतरता है l अपने बीच भैरव सिंह को देख कर कुछ ही पलों में भीड़ गायब हो जाती है l लोगों का यूँ चले जाना वैदेही को अखरता है उसे समझ में नहीं आता, वह दुकान के बाहर आकर देखती है तो कुछ दूर पर भैरव सिंह खड़ा दिखता है l भैरव सिंह को देखते ही वैदेही की जबड़े भींच जाती हैं और आँखों में गुस्सा और नफ़रत उतरने लगती है l भैरव सिंह तीन बार चुटकी बजाता है, भीमा और उसके आदमी सब समझ जाते हैं l भीमा सभी आदमियों को इशारा करता है तो सारे आदमी पीछे जाकर अपनी अपनी गाड़ियों के पास खड़े हो जाते हैं l भैरव सिंह आगे दुकान की ओर जाता है, तो वैदेही भी आगे जा कर उसके सामने खड़ी हो जाती है l

भैरव - (एक कुटील मुस्कान अपने चेहरे पर ला कर) कौन मर गया... जो इन भीकारीयों को मुफत खिला रही है... कहीं तेरा भाई... भैरव सिंह के खौफ में तो नहीं मर गया....
वैदेही - नहीं... भैरव... वह तो तेरा काल है... उसे क्या होगा... हाँ... तेरे मरने के बाद... कोई श्राद्ध में भोज तो देगा नहीं... इसलिए तेरे मरने से पहले... तेरी श्राद्ध की भोज... मैं दे रही हूँ...
भैरव - वाह.... क्या बात है... (चिढ़ाते हुए) इतना प्यार करती है हमे...
वैदेही - हाँ... (गुर्राते हुए) कुत्ते... इतना की तेरे जीते जी तेरा श्राद्ध... गांव वालों को खिला रही हूँ...
भैरव - आ ह्... तु... जब जब मुझसे गुस्सा होती है... मुझे गाली देती है... तेरी कसम... मेरी रंडी.... साली... बड़ा मजा आता है... दे चल दे... आज कुछ गालीयां मुझे दे दे... कितना सुकून मिलता है... तेरे मुहँ से गाली सुन कर...
वैदेही - बस... कुछ दिन और कुत्ते...कुछ दिन और...
भैरव - कुछ दिन और..क्यूँ... क्या हो जाएगा... क्या सुरज पश्चिम में निकलेगा... अरे हाँ... सात साल पुरे होने को है... तेरा वह भाई... छूटने वाला होगा... है ना... वह मेरे झांट के बाल बराबर भी नहीं है... क्या उखाड़ लेगा मेरा....
वैदेही - जी तो चाहता है... तेरा मुहँ नोच लूँ... यहीं पर...
भैरव - पर तु... कुछ नहीं कर सकती... जानती है क्यूँ... मेरे वह सात थप्पड़ याद है ना... बेहोश हो गई थी...
वैदेही - हाँ... कुत्ते हाँ... मेरे वह सात बद्दुआयें याद रखना.... अगर भूल भी गया हो... तो कोई बात नहीं... मेरा विशु आकर तुझे याद दिला देगा.... तु जैसे ही उसे देखेगा... तुझे सब याद आ जाएगा...
भैरव - ज्यादा मत उच्छल... रंग महल की रंडी... ज्यादा मत उछल... जिनकी नजरें आसमान के बुलंदियों पर होता है... वह कभी नीचे फुदकने वाले टिड्डों के तरफ नहीं देखते...
वैदेही - (चुप रहती है)
भैरव - तेरे उस भाई का चेहरा याद रखने लायक था ही नहीं... तो मैं क्यूँ याद करूँ... क्यूँ... जो मेरी निगाह के बराबर या उपर ना हो... मैं उसे देखता भी नहीं... और तेरा भाई तो पैरों की जुते के बराबर भी नहीं... गौर से देख मुझे... मैं भैरव सिंह क्षेत्रपाल... फूलों का हार या नोटों का हार तक नहीं पहनता... क्यूंकि उसके लिए भी सर झुकाना पड़ता है... जुतें चाहे लाखों की भी हो... मैं उसके तरफ नहीं देखता... क्यूंकि उसके लिए भी झुकना पड़ता है... फिर दो टके का तेरा भाई... वह क्या... उसका औकात क्या...
वैदेही - इतनी अकड़... किस बात के लिए... कोई बात नहीं... इसे बनाए रखना... भैरव सिंह... यह गर्दन भी झुकेगा और तु हार भी पहनेगा... वह भी जुतों की....
भैरव सिंह - चु चु चु चु... तरस आता है तुझ पर... और कसम से मजा भी बहुत आ रहा है... ले... तुने जो श्राद्ध भोज मेरे प्यार मे लगाया था... उसके सारे कौवे उड़ गए... बेकार गया ना तेरी श्राद्ध भोज....
वैदेही - फिक्र मत कर कुत्ते.... ऐसा दिन फिर आएगा...
भैरव सिंह - तेरी कसम है... उस दिन भी कौवे उड़ाने... मैं आ जाऊँगा... हा हा हा.... (पलट कर अपनी गाड़ी के तरफ चला जाता है)
वैदेही - (जबड़े और मुट्ठी भींच लेती है)

भैरव सिंह के अपने काफिले के साथ चले जाने के बाद गौरी वैदेही के पास पहुँचती है l

गौरी - तेरे और भैरव सिंह में... क्या गुफ़्तगू हो रही थी.... ना उसके आदमीयों को सुनाई दिया ना हमे...
वैदेही - यह उसके और मेरे बीच का रिश्ता है... नफ़रत का... ना वह किसीको बांट सकता है... ना मैं...

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प्रतिभा और तापस की गाड़ी रास्ते पर खड़ी है l दोनों गाड़ी के बाहर खड़े हैं l उस रास्ते पर गुजरने वाले हर गाड़ी से तापस लिफ्ट मांग रहा था l पर कोई गाड़ी रोक कर उन्हें लिफ्ट नहीं दे रहा था I

प्रतिभा - ओ हो.. क्या ज़माना आ गया है... कोई लिफ्ट देने की सोच भी नहीं रहा है... आखिर आपको क्या पड़ी थी... एक्जाम हॉल को छोड़ इतने दुर आने की...
तापस - लो उल्टा चोर कोतुआल को डांटे... प्रताप के एक्जाम हॉल के अंदर जाते ही तुम्हींने कहा कि... ढाई घंटे हम बाहर क्या करेंगे... चलिए लिंगराज मंदिर में प्रताप के नाम पर पूजा कर आते हैं... अब तुम उल्टा दोष मुझ पर मढ रही हो...
प्रतिभा - हाँ हाँ... सारा दोष तो मेरा ही है... आपका तो कुछ भी नहीं है... आपको चाहिए था... की गाड़ी को भला चंगा रखना... वह तो नहीं किया आपने...
तापस - हे भाग्यवान... भगवान से तो डरो... हम जिस रास्ते से वापस आए... वह रास्ता खराब था... मैंने मना भी किया था... पर तुमने माना नहीं... हम्प्स से टकरा ऑइल सील टुट गया... इंजिन ऑइल ड्रेन हो गया... अब इसमें मैं क्या कर सकता हूँ...
प्रतिभा - वह मैं कुछ नहीं जानती.... अभी आधा घंटा और है... एक्जाम के खतम होने में... मुझे XXXX कॉलेज पहुँचना है.... (प्रतिभा अपनी मुहँ फ़ेर लेती है)
तापस - (खीज कर) आरे... लिफ्ट तो मांग रहा हूँ... अब कोई दे नहीं रहा है... तो मैं क्या करूं... इस रास्ते पर... कोई ऑटो या टैक्सी भी नहीं दिख रहा है....

इतने में एक मर्सिडिज आता दिखता है l तापस उस गाड़ी को देख कर लिफ्ट मांगता है l गाड़ी रुक जाती है l पासेंजर साइड खिड़की नीचे सरक जाती है l गाड़ी में बैठा शख्स को देख कर

तापस - सर, हमारी गाड़ी खराब हो गई है... हमे आगे XXXX कॉलेज जाना है... अगर हमें आप अगले जंक्शन तक लिफ्ट दे देंगे तो... बड़ी मेहरबानी होगी...

गाड़ी में बैठा शख्स इशारे से बैठने को कहता है l तापस प्रतिभा से कहता है

तापस - आरे भाग्यवान... हमे यह महाशय लिफ्ट देनें के लिए तैयार हो गए हैं... आओ बैठ जाओ...

प्रतिभा खुश होकर गाड़ी के पिछले सीट पर बैठ जाती है और तापस उस शख्स के साथ आगे बैठ जाता है l

प्रतिभा - (गाड़ी में बैठ कर) थैंक्यू... थैंक्यू बेटा... बहुत बहुत थैंक्यू...
शख्स - (जवाब में कुछ नहीं कहता)
प्रतिभा - क्या हुआ बेटा... आपने जवाब नहीं दिया...
शख्स - जी... जी थैंक्यू की कोई जरूरत नहीं...
प्रतिभा - हाँ... आपको जरूरत नहीं होगी... पर हमे थैंक्यू कहने में कोई कंजूसी नहीं है... हम लोग एक्चुयली लिंगराज मंदिर गए थे....
शख्स - ओह...

फिर गाड़ी में ख़ामोशी छा जाती है l कुछ देर बाद प्रतिभा उस शख्स से पूछती है

प्रतिभा - अच्छा बेटा.. आपका नाम क्या है...
शख्स - (ज़वाब दिए वगैर गाड़ी चलाने में ध्यान लगाता है)
प्रतिभा - सॉरी बेटा... आपको शायद मेरा ऐसे बातेँ करना अच्छा नहीं लग रहा है... सॉरी..
शख्स - देखिए... आप मुझे... यह बार बार बेटा ना कहें... मुझे ऐसे रिश्ता बनाना और उसे निभाना अच्छा नहीं लगता...
प्रतिभा - ओह... सॉरी... लगता है... तुम किसीसे बहुत नाराज हो...
शख्स - (चुप रहता है)
तापस - (पीछे मुड़ कर) भाग्यवान... यह हमारी मदत कर रहे हैं... और तुम हो कि.... इन्हें क्यूँ अपनी बातों से बोर कर रहे हो...

तापस के कहने पर प्रतिभा चुप हो जाती है l वह शख्स अपने में खोया हुआ है और इधर उधर देखते हुए ख़ामोशी से गाड़ी चला रहा है l प्रतिभा से रहा नहीं जाता वह उस शख्स से पूछती है

प्रतिभा - किसीको ढूंढ रहे हो क्या बेटा...
शख्स - (कुछ नहीं कहता)
प्रतिभा - खुद से नाराज़ लग रहे हो... कोई दिल के करीब था.. तुमसे खो गया...
शख्स - हाँ... कोई दिल में उतर गया है... उसीको ढूंढ रहा हूँ...
प्रतिभा - हाँ... लगा ही था... दिल का मामला है... ह्म्म्म्म
शख्स - हाँ ऐसा ही कुछ... वह जब तक नहीं मिल जाता... ना मेरे दिल को चैन मिलेगा... ना मेरे रूह को सुकून मिलेगा...
प्रतिभा - आरे वाह... यह हुई ना बात... सच्चे आशिकों वाली बात... कितना लकी है वह... जिसे बड़ी शिद्दत से चाह रहे हो... ढूंढ रहे हो... बेटा... तुम्हारी तड़प देख कर इतना जरूर कहूँगी... तुम्हें तुम्हारी मंजिल तुमको जरूर मिल जाएगी...
शख्स - थैंक्यू...
प्रतिभा - आरे... इसमें थैंक्यू कैसी... तुमने हमारी इतनी मदत जो की है... मैं ज़रूर भगवान से प्रार्थना करुँगी... तुम्हारे लिए...
शख्स - जी....

फिर गाड़ी में ख़ामोशी छा जाती है l थोड़ी देर बाद XXXX कॉलेज आ जाती है l

तापस - बस बस... यहीं... हाँ... यहीं.. पर...

शख्स अपनी गाड़ी रोक देता है l दोनों सेनापति दंपती गाड़ी से उतर जाते हैं l गाड़ी से उतर कर प्रतिभा उस शख्स से

प्रतिभा - शुक्रिया बेटा... अच्छा... तुमने अपना नाम नहीं बताया...
शख्स - आपने भी भी तो नहीं बताया...
प्रतिभा - मैं एडवोकेट प्रतिभा सेनापति.... और यह मेरे पति... तापस सेनापति.... और तुम....
शख्स - जी... फ़िलहाल मेरा नाम... मेरी पहचान गुम हो गया है... जिस दिन आपकी दुआओं के असर से... मेरी मंजिल मुझे मिल जाएगी... उस दिन मुझे मेरा नाम और पहचान वापस मील जाएगा...
प्रतिभा - अच्छा बेटा... मुझे आज का दिन याद रहेगा... मैं तुम्हारे लिए... भगवान से ज़रूर प्रार्थना करुँगी...

वह शख्स कुछ नहीं कहता गाड़ी की शीशे को ऊपर उठाकर आगे निकल जाता है l उसके जाते ही प्रतिभा तापस से कहती है

प्रतिभा - कितना अच्छा लड़का है ना...
तापस - हाँ... जिस रास्ते पर किसीने हमारी मदत नहीं किया... यह एक देवदूत की तरह आ कर हमें यहां तक लिफ्ट दी... यही तो फर्क़ है... अच्छा चलो... प्रताप आता ही होगा... हमारे पास और चार पांच घंटे हैं... उसे खान के हवाले करने के लिए....
प्रतिभा - हाँ... ठीक है... चलिए...

गेट से बाहर निकल कर प्रताप चिल्लाता है "माँ" l दोनों सेनापति दंपती प्रताप की ओर देखते हैं और उस तरफ जाने लगते हैं l

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गाड़ी के अंदर बैठते हुए भैरव सिंह कुछ सोचे जा रहा है l उसने कुछ सोचने के बाद एक फोन लगाता है l

भैरव सिंह - हाँ महांती... कहाँ तक पहुँचे...
महांती - राजा साहब... हम रंग महल पहुँच गए हैं.... आपकी प्रतीक्षा हो रही है....
भैरव सिंह - कितने आदमी उठाये हैं...
महांती - पुरे दस बंदे हैं...
भैरव सिंह - कोई छूट गया....
महांती - हाँ सर... पूरे बारह लोग हमारे सर्विलांस में थे.... पर दो लोग ऐन मैके पर ही गायब हो गए....
भैरव - अच्छा... कुछ और भी हुआ है क्या...
महांती - जी कुछ और मतलब...
भैरव - सिर्फ़ छोटे राजा जी का कांड ही ना... कुछ और तो नहीं हुआ है...
महांती - जी... जी नहीं... (भैरव सिंह चुप रहता है) राजा साहब.... क्या हुआ...
भैरव - महांती... तुमको मेरा एक काम करना है... और किसीको कानों कान खबर नहीं होना है...
महांती - जी कहिए...
भैरव - देखो... जिनको तुम लाए ही... तुम्हें उनसे क्या उगलवाना है... यह तुम्हारा काम है... हम तुम्हें इस काम के लिए... पुरा रंग महल तुम्हारे हवाले करते हैं...
महांती - जी... समझ गया... आप काम बताइए....
भैरव - एक आदमी के बारे में... वह भुवनेश्वर में है...
महांती - जी...
भैरव - वह क्या कर है.... या कहाँ है... वगैरह वगैरह... यह सब पता कर के मुझे बताना है....
महांती - जी... जरूर... यह काम तो... हमारे ESS में से कोई भी आदमी कर देगा...
भैरव - ठीक है... हम... एक जरूरी काम के लिए... यशपुर तहसील जा रहे हैं... हमें शाम तक खबर कर दो... उसके बारे में....
महांती - जी... पर उसका नाम...
भैरव - (चुप रहता है)
महांती - राजा साहब... राजा साहब...

भैरव सिंह को वैदेही से बातचित करने के बाद उसे अपना किया हुआ वादा याद आता है

"वैदेही - विश्व से डरता है तु.... इसलिए... उसे लंगड़ा करने की कोशिश की थी तुने.... उसका हुक्का पानी बंद करवा रखा है तुने....
भैरव - वह इसलिए... के वह जब जब गली गली भीख मांगता... तब तेरे तड़प देख कर मैं... खुश होता....
वैदेही - पर भाग्य ने यह होने नहीं दिया....
भैरव - भाग्य... जब जब भाग्य मुझसे... पंजा लड़ाया है... मैंने तब तब किसी और का भाग्य लिखा है.....
वैदेही - इतना अहं.... पचा नहीं पाओगे... यह तब तक... है जब तक... विश्व अंदर है... वह जब आएगा... तु बहुत रोएगा... उसके इरादों के आँधी के आगे... तेरा साम्राज्य तिनका तिनका उड़ जाएगा.... उसके नफ़रत के सैलाब से.... तेरा जर्रा जर्रा बह जाएगा.... देखना.... आखिर उस पर... मेरे तीन थप्पड़ों का.... कर्ज है...
भैरव - आई शाबाश... मुझे अब तुझ पर प्यार आ रहा है... मेरी रंडी कुत्तीआ.... चल आज तेरी खुशी के लिए... मैं सात साल तक विश्व को भूल जाता हूँ... तो बता विश्व आकर मेरा क्या उखाड़ेगा...."

महांती - राजा साहब... क्या आप... लाइन में हैं...
भैरव - हाँ.... हाँ.. महांती.. जाने दो... जाने दो...
महांती - राजा साहब क्या हुआ...
भैरव - कुछ नहीं... हमे हमारी हैसियत याद आ गया....
महांती - जी मैं समझा नहीं....
भैरव - हमने जो कहा... उसे भूल जाओ... और हाँ ख़बरदार... भूलकर भी हमारी नाफरमानी हो ना पाए...
महांती - जी... जैसा आपका हुकुम...

भैरव सिंह अपना फोन काट देता है l उधर महांती सब सुन कर कुछ सोचने लगता है l

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रात हो चुकी है
सुबह से रुप खुद को कमरे में बंद कर रखा था l कल हुई हादसे के वजह से वह अपने भाभी के सामने जाने से कतरा रही थी l ऊपर से विक्रम को एक नए अवतार में देख कर हैरान रह गई थी, और जिस तरह से विक्रम घर से निकल गया शुभ्रा के हाथ में नाश्ते की थाली वैसी की वैसी रह गई थी l रुप अपनी कमरे से बाहर निकलती है और शुभ्रा के कमरे की ओर जाती है l शुभ्रा के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ मिलता है l वह दरवाजे को हल्के से धक्का दे कर खोलती है l अंदर शुभ्रा बेड पर हेड रेस्ट से टेक लगा कर कोई किताब पढ़ रही थी l दरवाज़ा खुलते ही शुभ्रा रुप की तरफ देखती है l रुप अपना सिर झुकाए दरवाजे के पास खड़ी हुई है l

शुभ्रा - क्या हुआ रुप... वहाँ क्यूँ रुक गई... आओ...

रुप की रुलाई फुट पड़ती है, वह रोते रोते हुए शुभ्रा के पास जाती है और उसके गोद में अपना सिर छुपा कर रोने लगती है l

शुभ्रा - क्या हुआ रुप... क्यूँ रो रही हो...
रुप - आ.. आ.. प... मुझसे न... नाराज हैं ना...
शुभ्रा - यह तुम क्या कह रही हो... भला मैं तुमसे क्यूँ नाराज़ होने लगी...
रुप - व... वह... आ.. आप...
शुभ्रा - एक मिनट... यह रोना धोना बंद करो... (पानी की ग्लास रुप को देते हुए) पहले यह पानी पी लो... फिर मुझसे बात करो....

रुप आधी ग्लास पानी पी लेती है तो उसका सुबकना बहुत कम हो जाती है l अपनी रोने पर कंट्रोल करते हुए l

रुप - आज भैया के बिना खाए जाने से.... आपको बहुत दुख पहुँचा... उसके बाद... आप दिन भर ना मेरे पास आए ना अपने पास बुलाया... मैं.. मैं समझ सकती हूँ... आपको कितना ठेस पहुँची है.... पर भाभी मैं सच कहती हूँ... मैंने जान बुझ कर कुछ नहीं किया... जो भी हुआ... वह एक्सीडेंट था...
शुभ्रा - (रुप के सिर पर हाथ फेरती है और पूछती है) रुप... क्या दोपहर को... तुमने खाना खाया है....
रुप - (अपना सिर हिला कर ना कहती है) आपने भी तो नहीं खाया है...
शुभ्रा - एक मिनट...

फिर शुभ्रा फिर से नीचे किचन को फोन करती है और रात का खाना अपने कमरे में लाने के लिए नौकरों से कह देती है l

रुप - भाभी...
शुभ्रा - हूँ...
रुप - भैया सुबह से गए हैं... अभी तक नहीं लौटे हैं... आपको चिंता नहीं हो रही...
शुभ्रा - नहीं... क्यूंकि वह मुझसे कह कर गए हैं... हफ्ते दस दिन के लिए वह कहीं बाहर जा रहे हैं... और इतने बड़े घर में... तुम्हारे दोनों भाई कब आते हैं... कब जाते हैं... कोई नहीं जानता...
रुप - उनका... इस वक़्त ऐसे बाहर जाना... अपने आपको... इतना बदल देना... आपको अखर नहीं रहा...
शुभ्रा - रुप... तुम भले ही उनकी बहन हो... पर मैं उन्हें तुमसे ज्यादा जानती हूँ.... वह इस वक़्त अपने अंदर के ज़ख्मों से उठ रहे टीस को शांत करने के लिए.... प्रताप को ढूंढने निकले हैं.... पर उन्हें प्रताप नहीं मिलेगा... कम से कम एक महीने के लिए... बाद में क्या होगा.... यह वक़्त आने पर देखेंगे...
रुप - आज आपको उनकी हुलिया देख कर... कुछ अजीब नहीं लगा...
शुभ्रा - हाँ लगा... पर इसमे उनका क्या दोष... अगर तुम यह सोच रही हो... की क्षेत्रपाल नाम की अहं को चोट के कारण उन्होंने अपनी मूंछें मुंडवाया है... तो तुम सोला आने गलत हो... हाँ... उन्होंने अपनी मूँछों पर हमेशा क्षेत्रपाल बन कर ताव दिया है.... पर... उनके अंदर की मर्द होने के अहं को चोट पहुँची है.... वह भी मेरी वजह से... इसलिए उन्होंने अपनी मूंछें मुंडवा लिया है...
रुप - आपके वजह से... पर आपने कुछ गलत तो नहीं कि थी...
शुभ्रा - ऐसा तुम सोच रही हो... पर तुम यह नहीं जानती कि इन सात साल सालों में... उन्होंने इस सहर में क्या कमाया था... मैंने देखा है उन्हें... गोलियों के बौछारों के बीच अकेले किसी शेर की तरह गुजर जाते थे... ऐसा आदमी जिसने अपने दम पर... ना सिर्फ़ भुवनेश्वर में हर गुंडे मवालियों बीच.... बल्कि पुलिस वालो के बीच भी खौफ बनाए रखा था... ऐसे आदमी के लिए... उसकी व्याहता किसी के आगे घुटने टेक दे... हाथ जोड़ दे तो...
रुप - मैं अभी भी कह रही हूँ... आपने वक़्त की नजाकत को भांपकर... वैसा किया था....
शुभ्रा - तुम फिर भी नहीं समझ रही हो... सदियों से एक विचार धारा है... औरत को मर्द अपनी ताकत के बूते सुरक्षा देता है... ज़माने की बुरी नजर व नीयत से बचाता है.... और उनके रगों में तो... राजसी खुन बह रहा है... प्रतिकार करना और प्रतिघात करना उनके खुन में है... ऐसे में उनकी अर्धांगिनी के घुटने टेक कर... उनके लिए जान की भीख माँगना... उनके मर्द होने के अहं को नेस्तनाबूद कर दिया है... इसी ग़म से हल्का होने गए हैं...
रुप - कहीं कुछ उल्टा सीधा....
शुभ्रा - (टोकते हुए) नहीं... वह ना तो कायर हैं ना ही बुजदिल...
रुप - हाँ... पर...
शुभ्रा - बस रुप बस... अब इस टॉपिक पर... और नहीं... लेट चेंज द टॉपिक...
रुप - क्या...
शुभ्रा - तुम... अनाम से बहुत अटैच थी ना...
रुप - हाँ...
शुभ्रा - क्या तुम्हें... अभी भी उसका इंतजार है...
रुप - (अपना मुहँ फ़ेर लेती है और चुप रहती है)
शुभ्रा - ओके... मुझे मेरा जवाब मिल गया... (रुप के फिरभी खामोश रहने पर) वेल... मैं कभी आजाद परिंदे की तरह थी... पर आज.... खैर छोड़ो... अच्छा बताओ... अनाम ने कभी तुम्हें आजादी की फिल कराया है...
रुप - भाभी... (थोड़ा हंसते हुए) आपने टॉपिक भी क्या बदला है... खैर आप मेरे लिए... मेरी माँ... गुरु.. सखी... सब कुछ तो हो... आप से क्या और क्यूँ छुपाना... भाभी... जानती हैं... घर पर कभी भी... मेरा जनम दिन नहीं मनाया जाता था... और ना ही मनाया जाता है.... वजह.. तीन पीढ़ियों बाद... मैं लड़की जो पैदा हुई थी.... ऐसे में... मेरी छटी से लेकर ग्यारहवीं साल गिरह तक... अनाम ने ही मेरे साथ... मेरा जन्मदिन मनाया था....
शुभ्रा - ओ... तभी... अनाम का तुम्हारे जीवन पर प्रभाव छोड़ना बनता है...
रुप - हाँ... भाभी... मेरी छटी साल गिरह के पहले दिन जब मुझे मेरे कमरे में.... अनाम पढ़ा रहा था...

फ्लैशबैक में--

रुप की बचपन
अपने कमरे में रुप पढ़ रही है और उसे अनाम पढ़ा रहा है I रुप की कमरे की सजावट ऐसी है जैसे एक स्कुल की क्लासरूम I अनाम पढ़ाते पढ़ाते रुक जाता है l क्यूँकी वहाँ पर छोटी रानी सुषमा पहुँचती है l

सुषमा - अनाम... और कितना समय...
अनाम - जी बस खतम हो समझीये... (ब्लैक बोर्ड को साफ करते हुए) बाकी की पढ़ाई हम कल कर लेंगे...
सुषमा - ठीक है... (रुप से) अच्छा राजकुमारी... आप कल सुबह तैयार रहिएगा... हम जल्दी जल्दी मंदिर जा कर आ जाएंगे....
अनाम - क्षमा... छोटी रानी जी... क्या कल कोई खास दिन है...
सुषमा - हाँ... अनाम... कल राजकुमारी जी का जन्मदिन है....
अनाम - आरे वाह... तो फ़िर कल दावत होगी...

सुषमा और रुप के चेहरे पर दुख और निराशा दिखता है l

रुप - तुमको मेरे जन्मदिन से ज्यादा दावत से मतलब है... भुक्कड कहीं के....
अनाम - अरे... आपका जन्मदिन है... मतलब राजगड़ की राजकुमारी का जन्मदिन... हम दावत की उम्मीद भी ना करें...
सुषमा - अनाम... इस घर में... लड़की या औरतों के लिए कोई खुशियाँ नहीं मनाया जाता.... हाँ अगर तुमको दावत चाहिए तो... मैं तुम्हें कुछ खास बना कर खिला दूंगी... पर कोशिश करना... किसीको को खबर ना हो...

इतने में एक नौकरानी भागते हुए आती है और सुषमा से कहती है

नौकरानी - छोटी रानी.... छोटे राजा जी ने आपको याद किया है...
सुषमा - ओ अच्छा... (अनाम से) अगर कुछ बाकी रह गया है... तो अभी खतम कर दो... और हाँ कल रात का खाना खा कर ही जाना... (इतना कह कर सुषमा वहाँ से चली जाती है)

अनाम रुप की ओर देखता है l रुप अपनी कुर्सी से उतर कर दीवार पर लगी अपनी माँ के फोटो के सामने खड़ी हो जाती है और उसके आँखों से आँसू बहने लगती हैं l अनाम उसके पास आ कर

अनाम - अच्छा राजकुमारी जी... एक बात पूछूं... (आंसू भरे आँख से अनाम को देखती है) किसीको भी मालुम नहीं होगा... क्या हम ऐसे आपके जन्मदिन मनाएं...
रुप - अगर किसीको पता चल गया तो...
अनाम - किसीको पता नहीं चलेगा... सिर्फ़ आप और मैं....
रुप - (मुस्कान से चेहरा खिल जाता है) सच...
अनाम - मुच...

फ्लैशबैक खतम

शुभ्रा - वाव... मतलब तुम्हारा हर जन्मदिन... तुम अनाम के साथ मनाती थी...
रुप - हाँ...
शुभ्रा - तभी... तभी मैं सोचूँ... अनाम तुम्हारे जीवन में इतना स्पेशल क्यूँ है... अच्छा... उससे तुमने कुछ वादा भी लिया था क्या...
रुप - (मुस्कराते हुए) जब मैं अपनी दसवीं साल गिरह उसके साथ मनाया था... तब मैंने उससे एक वादा लिया था...
शुभ्रा - क्या... (हैरान हो कर) व्हाट... ओह माय गॉड.... वादा... सच में... मैंने तो ऐसे ही तुक्का लगाया था.... कैसा वादा...
रुप - (थोड़ा हँसते हुए) यही की... जब मैं शादी के लायक हो जाऊँ... तब वह मुझे व्याह लेगा...
शुभ्रा - क्या... (हैरान हो कर) यु आर इंपसीबल... रीयली... एक मिनट... एक मिनट.... तुम... सिर्फ़ दस साल की थी... तब... तब शायद वह अट्ठारह साल को होगा... आज तुम्हें उसका चेहरा तक ठीक से याद नहीं है... और तुमने उससे वादा लिया था... वह भी शादी का...
रुप - दस साल की थी... पर प्यार... एफेक्शन... अच्छी तरह से समझती थी... एडोलसेंस को भी समझ पा रही थी.... हाँ हम जब जुदा हुए... तब मैं बचपन को छोड़ किशोर पन में जा रही थी.... और अनाम किशोर पन छोड़ कर जवानी में जा रहा था...
शुभ्रा - रुप... क्या अभी भी... तुम्हें अनाम का इंतजार है...
रुप - (चुप रहती है)
शुभ्रा - शायद हाँ.... इसलिए ना... तुमने प्रताप में अनाम को ढूंढने की कोशिश की...
रुप - (कुछ नहीं कहती है अपना चेहरा झुका लेती है)
शुभ्रा - पर रुप... वह अब अट्ठाइस साल का होगा शायद... क्या तुम्हें लगता है... वह वाकई तुम्हारे लिए... कुँवारा बैठा होगा... क्यूंकि था तो वह एक मुलाजिम ही... और उसे क्षेत्रपाल परिवार के बारे में भी जानकारी होगी... ऐसे में... अगर उसकी शादी... यु नो व्हाट आई मीन...
रुप - मैं समझती हूँ... भाभी... मैंने कुछ वादों में से एक वादा ऐसा भी लिया था... के वह कभी किसी और लड़की को मुहँ उठा कर नहीं देखेगा...
शुभ्रा - व्हाट... ओह माय गॉड... रुप... तुम बचपन में ही इतनी शातिर थी...
रुप - (हँसते हुए शर्मा जाती है और अपना सिर झुका लेती है)
शुभ्रा - अब समझ में आ रहा है... तुमको प्रताप में अनाम की झलक क्यूँ दिखी... हम्म...
रुप - (चुप्पी के साथ अपना सिर झुका लेती है)
शुभ्रा - अररे हाँ... बिंगो... रुप अगले महीने तुम्हारा जन्मदिन है... है ना...
रुप - (चेहरा उतर जाता है) हाँ भाभी...
शुभ्रा - ठीक है... भले ही... राजगड़ वाले तुम्हारा जन्मदिन ना मनाया हो... पर तुम्हारी भाभी जरूर मनाएगी...
रुप - मुझे कोई इंट्रेस्ट नहीं है... भाभी...
शुभ्रा - अरे... घबराओ नहीं... भगवान ने चाहा तो सब ठीक हो जाएगा... तुमने सुना नहीं था... अगले महीने प्रताप भी आने वाला होगा... मैं तो कहती हूँ... कुछ ना कुछ कनेक्शन जरूर है...
रुप - कैसा कनेक्शन...
शुभ्रा - जैसे तुम्हें लगा शायद... प्रताप अनाम हो सकता है... वैसे अब मुझे भी लग रहा है...
रुप - (हैरान हो कर) क्या....
शुभ्रा - हाँ... क्यूंकि... मॉल में कितनी लड़कियाँ उसे तक रही थीं... पर उसने किसीकी ओर देखने की जरा भी कोशिश नहीं की...
रुप - (कुछ नहीं कहती, चुप हो जाती है)
शुभ्रा - अच्छा छोड़ो... यह सब हम अगले महीने डिस्कस करेंगे.... यह बताओ... कल से तुम अपने कॉलेज जाओगी... अब तो तुम एफएम 97 की सेलिब्रिटी हो... क्या करोगी....
रुप - (अपनी भाभी के गोद में सिर रख कर) कुछ नहीं भाभी... बस यह रॉकी के टेढ़े मेढ़े येड़े ग्रुप को अच्छे से समझना है

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खाना खा लेने के बाद अनु अपने बेड के पास इधर उधर हो रही है l उसके बेड पर रखे मोबाइल को बार बार देख रही है l आखिर अपने बेड पर बैठ जाती है और एक झिझक के साथ फोन उठाती है l फिर वह वीर की नंबर निकालती है l वीर के नंबर उसके मोबाइल पर राजकुमार नाम से सेव है, उस नंबर को देखते ही अनजाने में ही उसके चेहरे पर एक मुस्कान खिल उठती है l वह फोन डायल करती है, उधर वीर की मोबाइल भी वीर के बेड पर पड़ा हुआ है और वीर भी अपने बेड के पास इधर उधर हो रहा है I जैसे ही उसका फोन बजता है वह धप कर कुद कर फोन के पास पहुँचता है और उसे डिस्पले में स्टुपीड लड़की नाम दिखता है l यह नाम देख कर वह खुश हो जाता है l

वीर - (फोन उठा कर उबासी लेने के स्टाइल में) हैलो...
अनु - रा.. राजकुमार जी... आप सो गए...
वीर - अरे अनु... तुम...
अनु - जी... क्या आप सो गए थे...
वीर - हाँ... तुम्हारे फोन के इंतजार में... मेरी आँख लग गई थी...
अनु - क्या.... सॉरी... सॉरी...... मैंने आपकी नींद खराब कर दी...
वीर - अरे बेवक़ूफ़ लड़की... मैंने कहा कि तुम्हारे फोन के इंतजार में... तो तुम्हें किस बात के लिए फोन पर माफी मांगनी चाहिए थी...
अनु - मुझे क्या पता... आपने ही कहा था कि... रात को सोने से पहले फोन करने के लिए...
वीर - (समझ नहीं पाता क्या कहे) अच्छा अनु जी... आप ने इस वक्त फोन क्यूँ किया...
अनु - जी आपने ही कहा था... सोने से पहले आपकी खैरियत पूछने के लिए...
वीर - अच्छा... तो पूछिये...
अनु - आप ने खाना खा लिया....
वीर - (फोन को बेड पर पटक कर अपना सिर तकिए पर फोड़ ने लगता है)
अनु - राजकुमार जी... राजकुमार जी...
वीर - (फोन को स्पीकर पर डालते हुए) हाँ अनु जी... बोलिए...
अनु - आपने बताया नहीं... क्या खाया...
वीर - वही... वही जो रोज रात को खाता हूँ...
अनु - ओ... पानी भी पी लिया...
वीर - नहीं अब पीने वाला हूँ...
अनु - ओ... तब तो आपको सो जाना चाहिए...
वीर - हाँ... वही तो किया था...
अनु - आपकी नींद टुट गई... इसके लिए मैंने आपसे सॉरी तो कह दिया है ना....
वीर - हाँ... अनु... इस खाने पीने के सिवा... क्या खैरियत पूछने के लिए कुछ भी नहीं है...
अनु - जी... मुझे कुछ सूझ नहीं रहा... आप ही बताइए ना....
वीर - अच्छा मैंने कहा था... जब भी बात करो... अपनी आँखे बंद कर इमेजिन करो... के तुम मेरे सामने हो...
अनु - जी... ओह... मैं तो भूल ही गई थी...
वीर - तो अब...
अनु - तो अब...
वीर - अपनी आँखे बंद करो...
अनु - जी...
वीर - क्या मैं दिख रहा हूँ...
अनु - जी...
वीर - अब पूछो...
अनु - क... क्या...
वीर - कुछ भी...
अनु - आ.. आप..
वीर - हाँ मैं...
अनु - अ.. आप.. क्या कर रहे हैं...
वीर - मैं तुम्हारे पास ही हूँ... तुम्हें देख रहा हूँ... इतना पास... के तुम्हारी सांसों को महसुस कर पा रहा हूँ...
अनु - क.... क्या... (अनु अपनी आँखे खोल देती है) (वह महसुस करती है कि उसकी सांसे भारी होने लगी हैं) वह अपनी फोन बंद कर देती है l

वीर - अनु... अनु... (वीर देखता है फोन कट चुका है)
शुभ्रा ने भी रूप के दिल राज को बाहर निकाल ही लिया। अब देखते है अगले महीने वो और रूप अनाम उर्फ विश्व को मिल पाते है या नही। विक्रम ने ही सेनापति दंपत्ति को लिफ्ट दी थी मगर दोनो में से कोई भी एक दूसरे को नही पहचान पाया। शुभ्रा और विक्रम आज भी एक दूसरे को चाहते तो बहुत है मगर ये क्षेत्रपाल नाम की दीवार ने दोनो को जुदा कर दिया। क्या रूप रॉकी के इरादों को भाप पाएगी या फिर उसके जाल में फांस जाएगी। विश्व और सेनापति दंपत्ति के बीच के संवाद बहुत ही मस्त थे। शानदार अपडेट।
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
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17,114
144
Jabardastt Updatee

Lagta hai Vishwa aur Roop ki agli mulakat Roop ke birthday mein hi hogi. Dekhna yeh hai woh mulakat kaisi hoti hai.

Idher Senapati couple kisne lift diyaa. Lag toh raha tha woh character pehle bhi kahani mein aachuka hai. Dekhte hai kaun nikalta hai woh anjaan shaksh

Veer aur Anu ke beech bhi closeness badh rahi hai. Lagta hai Jaisa Subhra Vikram ke badalne ka kaaran banegi thik waise hi Anu veer ke badalne ka kaaran banegi.

Par yeh Veervaar kyaa hai.
बहुत खूब Jaguaar भाई बहुत खूब
अच्छा विश्लेषण किया है आपने
अनु कारण बनेगी वीर क्षेत्रपाल परिवार से बगावत करेगा l विक्रम में बदलाव आयेगा ज़रूर कारण शुभ्रा और रुप ही होंगे l
जैसा कि आपको अंदाजा हो ही गया है अनाम ही विश्व है तो उनकी मुलाकात होगी जरूर होगी

रही वीरवार यह एक स्पेलिंग मिस्टेक थी मैंने करेक्ट कर दिया है
 

Kala Nag

Mr. X
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शुभ्रा ने भी रूप के दिल राज को बाहर निकाल ही लिया। अब देखते है अगले महीने वो और रूप अनाम उर्फ विश्व को मिल पाते है या नही। विक्रम ने ही सेनापति दंपत्ति को लिफ्ट दी थी मगर दोनो में से कोई भी एक दूसरे को नही पहचान पाया। शुभ्रा और विक्रम आज भी एक दूसरे को चाहते तो बहुत है मगर ये क्षेत्रपाल नाम की दीवार ने दोनो को जुदा कर दिया। क्या रूप रॉकी के इरादों को भाप पाएगी या फिर उसके जाल में फांस जाएगी। विश्व और सेनापति दंपत्ति के बीच के संवाद बहुत ही मस्त थे। शानदार अपडेट।
वाव क्या बात है Lib am भाई
बहुत ही बढ़िया विश्लेषण किया है आपने I सभी चरित्रों व घटनाओं को अच्छे से बारीकी से ऑब्जर्वेशन करते हैं आप
अब रॉकी बेशक शातिर है और उसका इलाज भी होगा वैसे ही शातिराना तरीके से l पर उसके लिए वक़्त है अभी
 

Lib am

Well-Known Member
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वाव क्या बात है Lib am भाई
बहुत ही बढ़िया विश्लेषण किया है आपने I सभी चरित्रों व घटनाओं को अच्छे से बारीकी से ऑब्जर्वेशन करते हैं आप
अब रॉकी बेशक शातिर है और उसका इलाज भी होगा वैसे ही शातिराना तरीके से l पर उसके लिए वक़्त है अभी
विश्लेषण पसंद आने के लिए आभार
 
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