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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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ANUJ KUMAR

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वीर अपने कमरे में गहरी नींद में सोया हुआ है l फोन की लगातार बजने से उसकी नींद टूट जाती है l वीर अपनी कमरे में देखता है बहुत अंधेरा है I नाइट बल्ब भी नहीं जल रही है पर एसी चल रही है और उस कमरे में जितनी भी रौशनी दिख रही है मोबाइल फोन के डिस्प्ले से आ रही है l वह उठ कर मोबाइल हाथ में लेता है और कॉल लेकर

वीर - हैलो... (उबासी लेते हुए) कौन है... इतनी रात को क्या प्रॉब्लम है...
- हैलो... राजकुमार जी.. मैं... महांती बोल रहा हूँ...
वीर - महांती... इतनी रात को... अरे यार... क्या हो गया...
महांती - राजकुमार जी... अभी तो शाम के सिर्फ़ सात ही बजे हैं...
वीर - (झट से उठ बैठता है) क्या... सिर्फ शाम के सात बजे हैं... आज शनिवार ही है ना...
महांती - जी राजकुमार जी...
वीर - (अपने कमरे की लाइट जलाता है) ओ... अरे हाँ... अच्छा महांती... कुछ जरूरी काम था क्या...
महांती - जी.. राजकुमार जी... आज का दिन बहुत ही खराब गया है... क्षेत्रपाल परिवार के लिए... आप जल्दी ESS ऑफिस में आ जाइए... प्लीज...यहाँ आपकी सख्त जरूरत है...
वीर - (हैरान होते हुए) क्या... क्या हुआ...
महांती - युवराज जी ने खुद को... अपने कैबिन के रेस्ट रूम में बंद कर रखा है...
वीर - क्यूँ... किसलिए...
महांती - और छोटे राजा जी ने खुद को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करा लिया है और यहीं पर आ रहे हैं...
वीर - छोटे राजा जी हॉस्पिटल से आ रहे हैं... क्या मतलब हुआ इसका... हुआ क्या है आज....
महांती - राजकुमार जी प्लीज... आप यहाँ आ जाइए... मैं... मैं आपको सब बताता हूँ...
वीर - ठीक है... मैं थोड़ा रिफ्रेश हो लेता हूँ... फिर गाड़ी से निकाल कर... बस पाँच मिनट...हाँ... मैं.. मैं निकल रहा हूँ...

वीर तैयार होने के लिए बाथरूम में घुस जाता है l उधर ESS ऑफिस में अपने कैबिन के रेस्ट रूम के अंदर विक्रम एक आदम कद आईने के सामने खड़ा है और खुद को चाबुक से मार रहा है l क्यूँकी उसके कानों में, मॉल के पार्किंग एरिया में टकराए उस आदमी के कहे हर लफ्ज़ तीर के तरह उसके जेहन में चुभ रहे हैं l उसके आँखों में दर्द और नफरत के मिलीजुली भाव दिख रहे हैं l


"अगर यह तेरे दम पर मेरी माँ से बत्तमीजी की है... तो माफी माँगना अब तेरा बनता है"

विक्रम अपने हाथ का चाबुक जोर से चलाता है l च..ट्टा.....क्क्क्क्क्... विक्रम के पीठ पर एक लाल रंग का धारी वाला निशान बन जाता है l

"क्यूँ... तु नहीं जानता... तेरा बाप कौन है... तो जा... जाकर अपनी माँ से पुछ... वह बताएगी तेरा बाप कौन है..."

विक्रम फिर से चाबुक चलाता है l और एक लाल रंग का धार उसके पीठ पर नजर आता है l इस बार उस धार से खुन निकलने लगता है l पर विक्रम के चेहरे पर भाव ऐसे आ रहे हैं जैसे उसे जिस्मानी दर्द का कोई एहसास ही नहीं हो रहा है l उसके कानों में उस आदमी के कहे हर बात नश्तर की तरह उसके आत्मा में घुसे जा रहे हैं l

"सुन बे क्षेत्रपाल के चुजे... तेरा हर काम.. वह क्षेत्रपाल ही करेगा क्या... फ़िर तु क्या करेगा... या फिर तुझसे कुछ होता नहीं... इसलिए कुछ करने के लिए... तुझे क्षेत्रपाल टैग चाहिए... हाँ..."

फिर से विक्रम अपनी चाबुक चलाता है l फिर से उसके जिस्म पर और एक धार नजर आती है और उस धार के किनारे से खुन बहने लगती है l विक्रम अंदर खुद पर चाबुक चला रहा है यह बाहर किसीको भी पता नहीं चल पा रहा है l चूँकि वहाँ पर किसीमें इतनी हिम्मत है ही नहीं, विक्रम के कैबिन में जाए और रेस्ट रूम को जा कर उससे कुछ पूछे या खबर ले l इसलिए कुछ गार्ड्स और महांती ESS के कांफ्रेंस हॉल के बैठक में खड़े हुए हैं l इतने में महांती की फोन बजने लगता है l महांती देखता है कॉल वीर का है तो झटके से फोन उठाता है l

महांती - हैलो...
वीर - हाँ महांती... मैं गाड़ी में... ड्राइविंग कर रहा हूँ... अब मुझे डिटेल्स में बताओ... क्या हुआ है...
महांती - राजकुमार जी आप यहाँ आ जाइए... मैं डिटेल्स में बताता हूँ...
वीर - देखो जो भी है... फोन पर बताओ... पिक्चर तो दिखाओगे नहीं वहाँ... जब बताना ही है... अभी बताओ... क्या हो सकता है वहाँ पहुँचते ही डिसाइड करेंगे...
महांती - ओके...

महांती सभी गार्ड्स को इशारा करता है l सभी गार्ड्स वहाँ से चले जाते हैं l अब कांफ्रेंस हॉल में सिर्फ अकेला महांती बैठा हुआ है, सब चले गए यह निश्चिंत कर लेने के बाद

महांती - आज... छोटे राजा जी पर हमला हुआ है... वह प्राइमरी ट्रीटमेंट करा कर हॉस्पिटल से आ रहे हैं l...
वीर - क्या... क्या कह रहे हो... महांती... इस बार... हमारी इंटेलिजंस फैल कैसे हो गई...
महांती - हम... उसके स्नाइपर्स पर नजरे रखे हुए थे... इसलिए वह दुसरा रास्ता निकाल कर... छोटे राजाजी को सिर्फ घायल कर दिया...
वीर - सिर्फ़ घायल कर दिया... इसका क्या मतलब है महांती...
महांती - इस बार भी जान से मारना उसका लक्ष नहीं था... इस बार....(रुक जाता है)
वीर - हूँ... इसबार...
महांती - इसबार उन्होंने म्युनिसिपलटी ऑफिस में घुसपैठ किया...
वीर - व्हाट... हमारे सिक्युरिटी गार्ड्स के होते हुए...
वीर - राजकुमार... आप भूल रहे हैं... हमारी प्राइवेट सिक्युरिटी सर्विस है... सरकारी संस्थानों को उनकी अपनी सिक्युरिटी संस्थान मतलब... होम गार्ड्स सिक्युरिटी सर्विस होती है... हम सिर्फ पर्सन को सिक्युरिटी दे सकते हैं... पर सरकारी ऑफिस के अंदर हम एलावुड नहीं हैं... इसलिए अगर ऑफिस के अंदर कोई कुछ करता है... सिवाय सीसीटीवी के और कुछ हम हासिल नहीं कर सकते....
वीर - अच्छा... तो... उनपर हमला कैसे हुआ...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - क्या बात है महांती....
महांती - राजकुमार जी... उसने किसी कारीगर के जरिए... छोटे राजा जी के कुर्सी को छेड़छाड़ किया है...
वीर - अरे यार महांती... कब से तुम सस्पेंस बना रखे हो... साफ साफ कहो... और झिझक छोड़ कर कहो...
महांती - ओके देन... जिसने भी वह किया है... उसका इरादा छोटे राजा जी को... सबके सामने जलील करना था... इसलिए उसने छोटे राजा जी के चेयर पर एक वंशी कांटे जैसी कील को सेट कर दिया था.... और उसकी सेटिंग कुछ ऐसी थी के कोई भी बैठे... तो उस कील के पुट्ठ में घुसने के बाद घूम जाती है... और उसे निकालने के लिए... एक सर्जन की जरूरत पड़ती है....
वीर - मतलब एक कील इंप्लांट किया गया... छोटे राजाजी को जलील करने के लिए...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - क्या इसी बात के लिए... युवराज खुद को रेस्ट रूम में बंद कर रखा है....
महांती - (अपना सिर झुका कर) नहीं... उनके साथ... कुछ और हुआ है... और बहुत बुरा हुआ है...
वीर - क्या... (हैरान हो कर) उनके साथ कुछ और हुआ है का मतलब...

महांती सुबह से जो जो इंफॉर्मेशन हाथ लगी थी वह विक्रम के साथ कैसे शेयर किया और क्यूँ विक्रम ओरायन मॉल गया और पार्किंग एरिया में कैसे एक शख्स ने विक्रम और ESS के कमांडोज को कुछ ही समय में धुल चटा दी, सब वीर को बताता है l वीर यह सब सुन कर हैरान हो जाता है l

वीर - क्या... एक आदमी ने... युवराज और उनके गार्ड्स को अकेले...
महांती - जी... अकेले...
वीर - उस आदमी के बारे में कुछ पता चला....
महांती - नहीं...
वीर - कैसे... क्यूँ... क्यूँ नहीं पता चला... मॉल में सीसीटीवी होंगे... उसकी मदत से... आख़िर हमारी ही सिक्युरिटी सर्विलांस है वहाँ पर...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - महांती.... क्या बात है...
महांती - राज कुमार जी... यह कांड होने के तुरंत बाद... एक आदमी पुलिस की वर्दी में... फेक डॉक्यूमेंट्स के साथ... मॉल में हमारे कंट्रोल रूम में घुस गया... और आज की सारे सीसीटीवी फुटेज और पार्किंग एरिया के रिकॉर्ड्स सब अपने साथ ले गया....
वीर - व्हाट.... (गाड़ी के भीतर ही ऐसे उछलता है जैसे महांती ने कोई बम फोड़ दिया) व.. व्हाट... क... क्या मतलब हुआ इसका... क्या यह अटैक कोई प्लांड था...
महांती - आई डोंट थिंक सो... पार्किंग एरिया में जो हुआ... वह इत्तेफ़ाक था...
वीर - कैसे... तुमने ही कहा कि... रॉय ग्रुप के पुराने मुलाजिम मॉल के बाहर असेंबल हो रहे थे... तो यह पार्किंग एरिया वाला आदमी... यह उनका आदमी भी हो सकता है...
महांती - नहीं... वह लोग हफ्ते भर से हमारे सर्विलांस में हैं... उनके किसी भी कॉन्टैक्ट में... कोई बाहरी आदमी या उसकी माँ नहीं है...
वीर - बाहरी आदमी और माँ... यह क्या पहेलियाँ बुझा रहे हो...
महांती - राज कुमार जी... हमारे जी गार्ड्स अभी हस्पताल में इलाज करवा रहे हैं... उन्होंने जो बताया... (कह कर पार्किंग एरिया में जो हुआ बताता है)
वीर - एक आदमी और उसकी माँ... (कुछ याद करने की कोशिश करते हुए) एक... आदमी.... और... उसकी माँ...
महांती - क्या हुआ राजकुमार जी...
वीर - वैसे... क्या हुलिया था उसका...
महांती - पता नहीं...
वीर - व्हाट डु यु मिन... पता नहीं...
महांती - हमारे जो कमांडोज थे... वह नहीं बता रहे हैं...
वीर - क्यूँ...
महांती - उनको.... युवराज ने मना किया हुआ है.... मतलब हुकुम दिया है...
वीर - क्या.... क्यूँ... किसलिए....
महांती - यह बात... युवराज जी से मैं भी जानना चाहता हूँ... आप यहाँ आकर पहले उन्हें रेस्ट रूम से बाहर लाएं... प्लीज...
वीर - ओके... पहुँच रहा हूँ....

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तापस के क्वार्टर में
एक कोने में विश्व अपनी कान पकड़े खड़ा है l उसके सामने प्रतिभा गुस्से से गहरी सांसे लेती हुई मतलब हांफती हुई एक कुर्सी पर बैठी हुई है l प्रतिभा के हाथ में एक झाड़ू है l

विश्व - माँ (प्रतिभा उसके तरफ देखती है) जब से घर आए हैं... मुझे तुमने ऐसे ही दौड़ा रही हो... और झाड़ू से मार भी रही हो... अब मैं तुम्हारे पास आऊँ...

प्रतिभा अपनी जगह से उठती है और झाड़ू से विश्व के पैरों को मारने लगती है l विश्व उछलते कुदते मार खाने लगता है और चिल्लाने लगता है l

विश्व - आ.. ह्.... ओ... ह्...
प्रतिभा - (गुस्से से) बंद कर यह ओवर ऐक्टिंग... मुझे पता है... तुझे कोई दर्द वर्द नहीं हो रहा है... गुदगुदी हो रही है... असल में तू मुझे चिढ़ा रहा है... आने दे सेनापति जी को... उनके स्टिक से आज तुझे मन भरने तक मारूंगी...
विश्व - तब तक मैं थोड़ा बैठ जाऊँ... (सोफ़े पर बैठते हुए)
प्रतिभा - खबरदार जो बैठा तो... (विश्व फिर भाग कर सोफ़े के पीछे खड़ा हो जाता है)
विश्व - माँ... मैं थोड़ा बाथरूम हो कर आता हूँ... जोर की लगी है... और तुम भी थोड़ा आराम कर लो... देखो कितनी थक गई हो... मुझे मारते मारते तुम्हारे हाथ भी दर्द करने लगे होंगे... देखो सर पर पट्टी बंधी है और हाथ में भी...
प्रतिभा - (फिर झाड़ू उठा कर विश्व के पीछे भागती है) आ.. ह्... मुझे परेशान कर रहा है... (हांफते हुए) बात... बात नहीं मान रहा है... और... और...
विश्व - तभी तो कह रहा हूँ... थोड़ा सा आराम कर लो... कहो तो हाथ पैर दबा देता हूँ... जब थोड़ा अच्छा लगे... तब दोबारा से मारना चालू कर देना...
प्रतिभा - बदमाश... ऐसा कह कर तीन बार मेरे पैर दबाये... फिर दौड़ा रहा है.. हाथ भी नहीं आ रहा है...
विश्व - माँ... यह गलत बात है... मैं बराबर मार तो खा ही रहा हूँ...
प्रतिभा - ठीक है... इधर आ... आज तेरा पेट (झाड़ू उठा कर) इसीसे भर देती हूँ...
विश्व - माँ इससे मेरा पेट कैसे भरेगा... फिर तुम... अगर मैं तुम्हारे हाथ का बना नहीं खाया... तुम भी तो भूखी रह जाओगी...
प्रतिभा - नहीं... (झाड़ू को नीचे फेंकते हुए) तुझे जो करना है... कर... (सोफ़े पर बैठते हुए) सेनापति जी को आने दे... आज तेरा फैसला... सेनापति जी करेंगे...
विश्व - (भाग कर प्रतिभा के गोद में अपना सिर रख देता है और अपने दोनों हाथों से प्रतिभा को जोर से पकड़ लेता है) माँ... अब हम दोनों के बीच... सेनापति सर को क्यूँ ला रही है...
प्रतिभा - (विश्व को अपने से अलग करने की कोशिश करते हुए) ऊंह्... छोड़.... छोड़ मुझे...
विश्व - नहीं छोडूंगा....
प्रतिभा - तो बैठा रह यहीं पर... सेनापति जी को आने दो... वही फैसला करेंगे...
तापस - (अंदर आते हुए) अरे क्या फैसला करेंगे हम... (प्रतिभा को देख कर) अरे भाग्यवान यह तुम्हारे माथे पर पट्टी और कुहनियों भी पट्टी... क्या हुआ...
प्रतिभा - (रोनी सूरत बनाकर) जानते हैं आज क्या हुआ है....

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बड़ी हिम्मत जुटा कर रुप शुभ्रा की कमरे में आती है lशुभ्रा अपने बेड के हेड बोर्ड पर तकिये के सहारे टेक लगा कर आँखे मूँद कर बैठी हुई है l शुभ्रा के पास जाने के लिए रुप हिम्मत नहीं जुटा पा रही है l थोड़ी देर दरवाज़े के पास खड़े हो कर फिर मुड़ने लगती है l

शुभ्रा - क्या बात है रुप...
रुप - (मुड़ कर देखती है, शुभ्रा की आँखे लाल दिख रही हैं )(शायद बहुत रोई है) (रुप तेजी से भाग कर शुभ्रा के पैर पकड़ लेती है) मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी... ना मैं जानती थी... ना ही मैं चाहती थी... ऐसा कुछ हो... आई एम सॉरी... भाभी...
शुभ्रा - (चुप रहती है और रुप को देखती रहती है)
रुप - मैं... मैं... सच में करमजली हूँ... (रोने लगती है) मैं अगर कॉलेज से घर आ गई होती... तो... तो यह सब नहीं हुआ होता...भाभी.... प्लीज.... भाभी... प्लीज... मुझे माफ़ कर दीजिए...
शुभ्रा - रुप... (भर्राई हुई आवाज में) सच सच बताओ... क्या तुम प्रताप को पहले से जानती हो...

यह सवाल सुनते ही रुप स्तब्ध हो जाती है l वह शुभ्रा के आँखों में देखती है l रुप महसुस करती है शुभ्रा उसे शक की नजरों से देख रही है l

रुप - भाभी... मैं कसम खाकर कहती हूँ... मैं उस प्रताप को नहीं जानती...
शुभ्रा - (चुप रहती है पर रुप को गौर से देख रही है)
रुप - भाभी... मैंने खुले आम... सबके सामने.... आपको माँ का दर्जा दिया है.... आपसे हरगिज़ झूठ नहीं बोल सकती हूँ... मैं (शुभ्रा के पैर पकड़ कर) आपकी चरणों की कसम खाकर कह रही हूँ... मैं उसे नहीं जानती... नहीं जानती... नहीं जानती... (रो देती है)
शुभ्रा - मैं मानतीं हूँ... तुम उसे नहीं जानती हो... फिर भी मुझे कुछ क्लैरिफीकेशन चाहिए...
रुप - पूछिए भाभी...(सुबकते हुए)
शुभ्रा - हम जब लिफ्ट में थे.... तब तुमने... प्रताप से कुछ ऐसा कहा... जो मेरे हिसाब से गैर जरूरी था... और उसके जवाब सुन कर तुम शर्मा गई... और जब वह गार्ड्स से लड़ रहा था... तुमने अपने फिंगर क्रॉस कर लिए थे... और तुम्हारे भाई से जब लड़ रहा था तब... तुमने दोनों हाथों की मुट्ठी बना लिया था और... अपने दोनों अंगूठे को... एक दुसरे के ऊपर रगड़ रही थी... ऐसा कोई तब करता है.... जब सामने युद्ध में दोनों उसके अपने हों... इसलिए अब मुझे सच जानना है... सब सच सच बताओ....
रुप - (स्तब्ध हो जाती है) भाभी मैं फिर से अपनी बात दोहराती हूँ... मैं प्रताप को नहीं जानती... मगर... (चुप हो जाती है)
शुभ्रा - (उसे घूर कर देखती है) मगर...
रुप - पता नहीं भाभी... कैसे कहूँ... वह... वह मुझे... वह मुझे जाना पहचाना लगा...
शुभ्रा - क्या... वह प्रताप तुमको जाना पहचाना लगा... कैसे रुप...
रूप - भाभी... आप धीरज धरें और मेरी पुरी बात सुनें... याद है मैंने एक दिन आपसे अपनी बचपन की यादें शेयर करते हुए कहा था... के मुझे कोई पढ़ा रहा था...
शुभ्रा - अनाम...
रुप - हाँ... जब माँ की हत्या हुई थी...
शुभ्रा - क्या... सासु माँ की हत्या हुई थी...
रुप - भाभी... आत्महत्या भी एक तरह से हत्या ही होती है... किसीको जान देने के लिए विवश करना... उकसाना... क्या हत्या नहीं है...
शुभ्रा - चुप रहती है...
रुप - खैर चलो.. मैं ऐसे कहती हूँ... माँ के चले जाने के बाद... उस बड़े से महल में... मैं अकेली थी... ऐसे... जैसे एक सांप के पिटारे में... कोई चिड़िया का चूजा पलता हो... मैं चाची माँ के पास रहा करती थी.... वह जब मेरे पास नहीं होती थी... वह पुरा महल मुझे भुतहा लगता था... काटने को आता था...

बहुत ही दर्द भरी आवाज में कही थी रुप ने शुभ्रा को l रुप के हर एक लफ्ज़ में रुप की दर्द को महसुस कर रही थी शुभ्रा

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वीर ESS ऑफिस के कांफ्रेंस हॉल में घुस जाता है तो वहाँ सिर्फ महांती को बैठा पाता है l

महांती - राजकुमार... आप... युवराज जी के कैबिन में जा कर... उन्हें पहले यहाँ पर लाएं....

विश्व कांफ्रेंस हॉल से निकल कर विक्रम के कैबिन में घुसता है l वहाँ उसे टेबल पर आधी खाली शराब की बोतल दिखता है, और कुर्सी पर विक्रम के कपड़े दिखाई देते हैं l वह उधर उधर देखने लगता है l तभी उसको बाथरुम से पानी बहने की आवाज़ सुनाई देता है l वह बाथरूम के दरवाजे पर दस्तक देने लगता है

वीर - युवराज जी... दरवाज़ा खोलिए... प्लीज...

अंदर से कोई जवाब नहीं आता l वीर जोर जोर से दरवाज़े पर दस्तक देने लगता है और बार बार दरवाजा खोलने के लिए कहता है l

वीर - युवराज जी... आप दरवाजा खोलीए... नहीं तो हम दरवाजा तोड़ देंगे....

बाथरूम का दरवाज़े के नॉब पर हरकत होती है फिर धीरे से दरवाजा खुल जाता है l वीर के सामने विक्रम खड़ा था l विक्रम की आंखें लाल दिख रही थी और उसका बदन कमर से ऊपर नंगा था l उसके बदन पर कोड़ों के ताजा निशान साफ साफ दिख रहे थे l कुछ कुछ जगहों पर से खुन बह रहे थे l पर वीर के लिए सबसे ज्यादा चौकाने वाला जो था वह था विक्रम ने अपनी मूंछें मुंडवा लिया था l वीर के सामने वाला विक्रम एक दम अलग था l चेहरा कठोर और गम्भीर हो चुका था l वीर को कुछ सूझता नहीं वह विक्रम के हाथ पकड़ कर चेयर पर बिठा देता है l

वीर - यह... यह क्या है युवराज... आपने... अपनी मूंछें क्यूँ मुंडवा ली... क्यूँ... और... और खुदको इस कदर क्यूँ सजा दी है आपने...
विक्रम - उसे मूंछें रखने का कोई हक़ नहीं... जिसकी जिंदगी... उसके औरत ने हाथ जोड़ कर भीख में माँगी हो...
वीर - बस इतनी सी बात पर आपने... अपनी मूंछें मुंडवा ली...
विक्रम - इतनी सी बात... (गुर्राते हुए) यह आपको इतनी सी बात लग रही है... मेरी पुरूषार्थ तार तार हो गई है...(कहते हुए ऐसा लग रहा था जैसे उसके आँखों से अंगारे बरस रहे हैं) आपको इतनी सी बात लग रही है....
वीर - सॉरी युवराज...(हैरान हो कर) आप... हम से... मैं पर आ गए....
विक्रम - मैंने कहा ना... मेरी पुरूषार्थ अब लहू लुहान है...
वीर - (क्या कहे उसे समझ में नहीं आता) आपने अपनी मूंछें मुंडवा ली... समझ में आ गया... पर खुदको कोड़े से क्युं सजा दी...
विक्रम - मैं यह देख रहा था... कोड़े से कितना दर्द होता है... पर उसके कहे बातों के आगे... कोड़े से बने घाव में कुछ भी दर्द हो नहीं है... जरा सा भी नहीं...
वीर - क्या...
विक्रम - यकीन नहीं आ रहा है ना... जाओ... वह शराब की बोतल ला कर मेरे ज़ख्मों में डालो... (वीर उसे हैरानी भरे नजरों से देखता है, तो विक्रम उसे कहता है) जाओ... वह शराब की बोतल लाओ... (कड़क आवाज़ में)

वीर पहली बार आज विक्रम की हालत और आवाज़ से डर जाता है l वीर कांपते हुए शराब की बोतल लाकर विक्रम के ज़ख्मों पर शराब डालने लगता है l शराब डालते हुए वीर उन घावों की टीस को महसुस कर पाता है पर विक्रम के चेहरे पर कोई भाव उसे नजर नहीं आता है l विक्रम के चेहरे पर कोई भाव ना देख कर वीर के हाथों से बोतल छूट जाता है l

वीर - युव... युवराज जी... ऐसा क्या कह दिया है उसने जिसके दर्द के आगे.... कोड़ों का दर्द भी महसुस नहीं हो रहा है आपको...

विक्रम चुप रहता है, विक्रम की यह ख़ामोशी वीर को बहुत खलता है, उसी वक़्त वीर के मोबाइल फोन पर महांती का कॉल आता है l


वीर - हाँ बोलो... महांती...
महांती - युवराज और आप... कांफ्रेंस हॉल में जल्दी पहुँच जाइए... छोटे राजाजी आ गए हैं...

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तापस को बैठक में देख कर विश्व प्रतिभा को छोड़ कर एक कोने पर खड़ा हो जाता है l और प्रतिभा तापस देख कर मुहँ बना कर सिसकने लगती है l

तापस - अरे भाग्यवान क्या हुआ...
प्रतिभा - जानते हैं... आज क्या हुआ है...
तापस - नहीं जानता... इसलिए तो पूछा क्या हुआ है...
प्रतिभा - यह (विश्व को दिखाते हुए) आज ही पेरोल पर बाहर निकला है... और आज ही इसने मार पीट की है... और जानते हैं किससे...
तापस - (जिज्ञासा और हैरानी से) किससे....
प्रतिभा - विक्रम सिंह क्षेत्रपाल से...
तापस - क्या... वाकई... पर क्यूँ
विश्व - हाँ हाँ... अब बताओ...
प्रतिभा - तु तो मुझसे बात ही मत कर...
तापस - ठीक है... बताओ तो सही... तुम्हारा प्रताप... उनसे मार क्यूँ खा कर आया...
प्रतिभा - यह क्यूँ मार खाएगा... उल्टा इसने उन सबको धोया है...

फिर प्रतिभा तापस को पार्किंग एरिया में घटे सभी वाक्या, सब कुछ विस्तार से बताती है l सब कुछ सुनने के बाद तापस प्रतिभा से

तापस - हम्म... इसमे तो कहीं भी प्रताप का दोष नजर नहीं आ रहा है... और जो भी हुआ है ऑन द स्पॉट... वह सब सीसीटीवी में रिकॉर्ड हुआ होगा... और तुम अब जानीमानी वकील हो... इतने से ही डर गई...
प्रतिभा - हो गया... आप भी इस के साथ हो लिए... ठीक है... मैं... मैं किसी से भी बात नहीं करूंगी...

इतना कह कर प्रतिभा किचन की ओर चली जाती है l वहाँ पर सिर्फ़ तापस और विश्व रह जाते हैं l प्रतिभा को कैसे मनाया जाए, उसके लिए विश्व, तापस को इशारे से मूक भाषा में पूछता है l
तापस भी हैरान हो कर इशारे से मूक भाषा में पूछता है - क्या कहा...
विश्व - (इशारे से) किचन की ओर दिखा कर... आप जाओ ना... (अनुरोध करने की स्टाइल में) माँ को मनाओ ना...
तापस - (अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर इशारे में ही) ना... तुमने गुस्सा दिलाया है... तुम ही जा कर मनाओ...
विश्व - (इशारे से) मैं... मैं कैसे मनाऊँ... (अपने होठों को अपनी हाथों से स्माइल जैसा बना कर) उनके चेहरे पर मुस्कान कैसे लाऊँ....
तापस - (कुछ सोचने के अंदाज में) (फिर इशारे से) तुम किचन के अंदर जाओ... और उसे पीछे से पकड़ लो... और गालों पर एक चुम्मी ले लो... और तब तक मत छोड़ना... जब तक ना मान ले...
विश्व - (इशारे से) मान तो जायेंगी ना..
तापस - (इशारे में ही) अररे... पहले कोशिश तो कर...
विश्व - (मन ही मन में) ठीक है... हे भगवान... मदत करना... (ऊपर छत को देख हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता है, फिर किचन की ओर जाता है)

विश्व की हालत देख कर तापस अपनी हँसी को दबा कर बाहर बालकनी में चला जाता है l विश्व किचन में पहुँच कर प्रतिभा के कमर के इर्द-गिर्द अपनी बांह कस लेता है और प्रतिभा के गाल पर एक चुम्मी लेता है l

विश्व - माँ... गुस्सा थूक दो ना...

प्रतिभा जिस चिमटे से गैस पर रोटी सेंक रही थी उसे विश्व के हाथ में लगा देती है l

विश्व - (अपना हाथ निकाल देता है) आ... ह्.. माँ.. देखो... क्या किया तुमने... हाथ जल गया... आ... ह्
प्रतिभा - हो गया तेरा ड्रामा... या और एक बार फिर से लगाऊँ...
विश्व - नहीं... हो गया माँ... हो गया... ए माँ... प्लीज मान जाओ ना... प्लीज गुस्सा थूक दो ना...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) वह बाद में देखेंगे...(विश्व की ओर देखते हुए) पहले यह बता... सेनापति जी ने तुझे यहाँ भेजा है ना...
विश्व - (मुस्करा देता है, और अपना सिर हाँ में हिलाता है)
प्रतिभा - और तुम दोनों ने जरूर मूक भाषा में बात की होगी... इशारों इशारों में... है ना...
विश्व - (हैरान हो कर) माँ यह आपने कैसे जान लिया...
प्रतिभा - तु भले ही मेरे कोख से नहीं आया... पर तु मेरे आत्मा से जुड़ा हुआ है... तेरी यह हरकत भी मैं समझ गई थी...
विश्व - माँ... (थोड़ा सीरियस हो कर) अगर तुम्हारी आत्मा से जुड़ा हुआ हूँ... तो मेरी दर्द को भी समझी होगी ना... उस पार्किंग में जो तुम्हारे साथ हुआ... वह मंज़र मेरे लिए कितना दर्दनाक था....(विश्व के आँखों में आंसू के बूंदे दिखने लगते हैं)
प्रतिभा - (उसकी आँखों को पोछते हुए) जानती हूँ... पर तु भी समझ पा रहा होगा ना... मुझे किस बात का दर्द हो रहा था...
विश्व - (अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) हूँ...
प्रतिभा - खैर... अब जो होगा देखा जाएगा... पहले यह बता... तेरे और सेनापति जी के बीच वह कौनसी मौन दीवार है... जिसके वजह से... ना तो वह तुझे बेटा कह पा रहे हैं... और ना ही तु उन्हें डैड...
विश्व - (अपना सिर झुका लेता है, और कुछ कह नहीं पाता)
प्रतिभा - अगर कोई दीवार था भी... तो आज गिर चुकी है...
विश्व - (हैरानी से सवालिया नजरों से प्रतिभा की ओर देखता है)
प्रतिभा - वह जरूर अब बालकनी में होंगे...
विश्व - आपको कैसे पता...
प्रतिभा - (विश्व की चेहरे को अपने दोनों हथेली में लेकर) क्यूंकि यह इशारों वाली मूक भाषा में... प्रत्युष बातेँ किया करता था... आज तुने इशारों में बात करके... उन्हें प्रत्युष की याद दिला दी...
विश्व - (हैरान हो जाता है)
प्रतिभा - अब तेरा फ़र्ज़ बनता है... तु उन्हें... उस दुख में देखेगा या... उस दुख से उबारेगा....जा

विश्व हिचकिचाते हुए प्रतिभा को देखता है l प्रतिभा उसे इशारे से बालकनी जाने को कहती है l विश्व एक झिझक के साथ बालकनी की ओर जाने लगता है l प्रतिभा भगवान को याद करते हुए हाथ जोड़ कर आँखे मूँद लेती है l

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रुप अपनी पुराने दिनों की याद में खो गई थी l शुभ्रा उसे झिंझोडती है I रुप होश में आती है l

रुप - हाँ.... हाँ... भाभी... आज से... पंद्रह साल पहले मैं पुरी तरह से अनाथ हो गई थी... माँ की जगह चाची माँ ने ले तो ली थी... हाँ बहुत प्यार भी दिया है उन्होंने... पर मैं बाहर कहीं नहीं जा सकती थी... (एक फीकी हँसी हँसते हुए) आखिर क्षेत्रपाल परिवार की बेटी थी... राज कुमारी थी... मैं सिर्फ़ घर पर रह सकती थी... किसीसे दोस्ती... हूँह्.. सोच भी नहीं सकती थी... मेरे भाई भी मेरे पास नहीं थे... शुरु से ही बोर्डिंग में पढ़ रहे थे... मुझे पढ़ाने के लिए कोई सोच भी नहीं रहे थे... वह तो चाची ने बहुत कहा... के रुप कभी ना कभी किसी राज घराने में जाएगी... अगर क्षेत्रपाल घर की बेटी अनपढ़ होगी तो... क्षेत्रपाल परिवार की इज़्ज़त क्या रह जाएगी... तब छोटे राजा जी ने एक रास्ता निकाला... गांव के स्कुल के प्रधानाचार्य श्री उमाकांत आचार्य जी से मदत के लिए कहा गया... तब एक दिन आचार्य जी.. एक लड़के को साथ लेकर छोटे राजाजी और चाची माँ के साथ आए...

फ्लैश बैक...

पंद्रह साल पहले
क्षेत्रपाल महल

पांच साल की रुप अपनी कमरे की बालकनी में खड़ी बाहर आसमान में उड़ रहे चिडियों को देख रही थी l तभी कमरे में पिनाक सिंह, सुषमा, आचार्य जी एक तेरह साल के लड़के के साथ आते हैं l

पिनाक - राजकुमारी जी... (रुप पीछे मुड़ती है और अपने कमरे में आती है) यह हैं आपके स्कुल के हेड मास्टर... उमाकांत आचार्य... (रुप हैरान हो कर सुषमा को देखती है)
सुषमा - हाँ राजकुमारी... आपका एडमिशन करा दिया गया है... स्कुल में... अब आप पढ़ेंगी... (पढ़ने की बात सुन कर रुप के चेहरे पर एक खुशी दिखती है) यह आपके (उमाकांत आचार्य को दिखाते हुए) प्रधान आचार्य जी हैं...
पिनाक - नहीं.. आप स्कुल नहीं जा रही हैं... (रुप को झटका लगता है) (आचार्य जी से) ए मास्टर... बताओ... हमारी राजकुमारी को... उनकी पढ़ाई कैसे होने वाली है...
आचार्य - राजकुमारी जी... यह लड़का (अपने साथ लाए लड़के को दिखा कर) आपको पढ़ाएगा... आप घर में रह कर पढ़ाई करेंगी... आपको स्कुल सिर्फ परीक्षा के दिन आना होगा... बाकी साल भर आपको यह लड़का पढ़ाएगा....
पिनाक - (उस लड़के से) ऐ लड़के... जैसा समझाया गया है... बिल्कुल वैसे ही... वरना तेरी खाल उधेड ली जाएगी...
सुषमा - (रुप के पास आकर) बेटी... आप इस लड़के के बात कीजिए... अगर आपको अच्छा लगे... तभी आपकी पढ़ाई आगे जाएगी... (रुप अपना सिर हिला कर हाँ कहती है) (पिनाक से) तो हम कुछ देर के लिए बाहर चलें... अगर राजकुमारी जी को अच्छा लगेगा... तो हम आगे की सोचेंगे...
आचार्य - जी जैसा आप ठीक समझे...
पिनाक - तो फिर चलते हैं... आधे घंटे के बाद आकर देखते हैं...

तीनों कमरे से बाहर चले जाते हैं l रुप उस लड़के को घुर के देखती है l वह लड़का अपना सिर झुका कर खड़ा है l

रुप - ह्म्म्म्म... ऐ लड़के.... तुम्हारा नाम क्या है..
लड़का - जी राजकुमारी...
रुप - वह तुम मुझे कहोगे... मैंने क्या पुछा सुनाई नहीं दिया... बहरे हो क्या... क्या नाम है तुम्हारा...
लड़का - जी.... मेरा नाम... वह... मेरा नाम... अनाम है...
रुप - यह क्या बकवास है... अनाम भी कोई नाम होता है... सच सच बताओ... वरना अभी बुलाती हूँ सबको...
अनाम - (वैसे ही अपना सिर झुका कर) जी सच कह रहा हूँ... मेरा नाम अनाम है... और मैं इसका मतलब भी समझा सकता हूँ...
रुप - (अपनी छोटी सी चेयर पर बैठ जाती है) बताओ हमे...
अनाम - जी जिसे हम नाम समझते हैं... असल में उस नाम में... रुप, चरित्र और गुण... उस नाम की सीमा में बंध जाते हैं... जबकि ईश्वर के वास्तविक स्वरुप... निर्गुण व निराकार... ऐसा स्वरुप... जो नाम ना बांध पाए... उसे अनाम कहते हैं...
रुप - ह्म्म्म्म समझ में तो कुछ नहीं आया... पर अच्छा लगा...
अनाम - जी धन्यबाद..
रुप - और सुनो... अपने कान खोल कर सुनो... तुम मुझसे बड़े हो... और लड़के भी हो... पढ़ाने आए हो... इसका मतलब यह नहीं... के मुझ पर रौब झाड़ोगे... यह तो सोचने की गलती... कभी ना करना... की यह लड़की है... नाजुक है... ऐसा.... समझे... ऐसा समझने की भूल मत करना... मैं बहुत खतरनाक हूँ....
अनाम - जी राजकुमारी जी... समझ गया... मैं भले ही लड़का हूँ... पर जो भी हूँ... जैसा भी हूँ... खतरनाक बिल्कुल नहीं हूँ....

फ्लैशबैक से बाहर आकर

रुप - मेरे बचपन का सात साल... उसके साथ गुज़रा है भाभी... मेरा एक अकेला दोस्त... जब वह मेरे साथ होता था... मुझे लगता था कि मैं राजकुमारी हूँ... वरना... शेर के पिंजरे में दुबकी हुई भेड़ से ज्यादा औकात नहीं थी मेरी... जब वह मेरे पास होता था... मैं आसमान में उड़ने वाली कोई पंछी होती थी... एक वही था... जिससे मैं रूठ सकती थी... और वह मनाता था... मेरी हर खुशियों का खयाल रखता था... मैं अपनी सारी खीज.... अपना सारा डर को गुस्से में ढाल कर उस पर उतार देती थी... वह हँसते हँसते सब सह लेता था... पर जब मैं बारह वर्ष की हुई... मेरा पहला मासिक धर्म अनुभव हुआ... तब सब खतम हो गया... उसका आना बंद कर दिया गया... आठ साल हो गये हैं मुझे उससे अलग हुए... जब प्रताप को देखा तो मन में एक सवाल उठा... कहीं यह अनाम तो नहीं... इसलिए जिज्ञासा वश मैंने लिफ्ट में वह सवाल किया... और भाभी ताज्जुब की बात यह थी... ज़वाब बिल्कुल वही था... इसलिए एक अनजानी खुशी के मारे मैं शर्मा गई थी... पर भाभी (आवाज़ भर्रा जाती है) यह... यह अनाम हो नहीं सकता....
शुभ्रा - क्यूँ... क्यूँ नहीं हो सकता...
रुप - क्यूँकी... अनाम अनाथ था भाभी.... अनाथ था... बचपन में ही उसकी माँ का देहांत हो गया था... उसकी एक बड़ी बहन थी... जिसे डाकुओं ने उसके पिता की हत्या कर उठा लिया था... और यह मॉल वाला प्रताप... अपने माँ के साथ आया था... और उस औरत को देख कर लगता है... प्रताप का बाप जिंदा है.... भाभी.... यही सच है....

कह कर रुप सुबकने लगती है l शुभ्रा रुप को अपने गले से लगा लेती है और दिलासा देते हुए रुप की पीठ पर हाथ सहलाते हू फेरती है l

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कांफ्रेंस हॉल में वीर और विक्रम आते हैं l विक्रम की बिना मूँछ वाली चेहरा देखकर पिनाक और महांती हैरान हो जाते हैं l वीर के चेहरे पर जहां थोड़ी बहुत परेशानी दिख रही है वहीँ विक्रम के चेहरे पर कठोरता झलक रही है l

पिनाक - यह... यह क्या है युवराज....
वीर - वह... वह... आपको जलील होने से नहीं रोक पाए ना... इसलिए... इसलिए युवराज अपनी मूंछें मुंडवा ली...
पिनाक - ओह... शाबाश युवराज... शाबाश... अब हमारे दुश्मन की खैर नहीं... उस बात की कीमत बहुत होती है... जिसके लिए दाव पर जान, जुबान और इज़्ज़त लगी हो... आई एम डैम श्योर... अब हमारा दुश्मन पाताल में भी छुप जाए... बच नहीं सकता...
वीर - जी जरूर... मेरा मतलब है कोई शक़...
पिनाक - यह... आप क्यूँ बार बार ज़वाब दे रहे हैं राजकुमार...
वीर - वह... वह... एक्चुयली... आपके घायल होने पर युवराज ने... दुख भरा मौन धर लिया है...
पिनाक - ओह.. युवराज... आपने तो... इसे दिल पे ले लिया है... अब दिलसे कैसे उतरेगी यह भी सोच लीजिए....

तभी पिनाक का फोन बजने लगती है l पिनाक देखता है अननोन प्राइवेट नंबर डिस्प्ले हो रहा है l पिनाक समझ जाता है के ज़रूर उसके दुश्मन ने फोन किया है l फोन के लगातार बजने से सबका ध्यान पिनाक के तरफ चला जाता है l पिनाक सब पर एक नजर डालता है और फिर फोन उठाता है

पिनाक - हाँ बोल हराम जादे...
xxx- अरे वाह.... आपने नाजायज बाप को पहचान लिया... ऑए शाबाश... हा हा हा हा...
पिनाक - हरामी के औलाद... जितना चाहे हँस ले... यह तेरी आखिरी हँसी है... क्यूंकि अगली बार से... तु सिर्फ़ रोएगा....
xxx - अच्छा यह तो ब्रेकिंग न्यूज है... कौनसे चैनल में आ रहा है...
पिनाक - भोषड़ी के... मादरचोद... जितना तेरे हिस्से में था... उतना उछल लिया है... अब अपनी मैयत की तैयारी कर ले...
xxx - अरे यार... मैंने तो सिर्फ़ तेरी गांड मारने की कही और मार भी ली... पर तु तो धुआँ धुआँ हो गया है... हा हा हा हा... मजा आ गया... लोगों से काम ले कर बीच राह में गांड मारने की आदत थी... अब कैसा लग रहा है... भाई मुझे तो मजा आ रहा है.... हा हा हा...

पिनाक फोन काट देता है और वह उन तीनों को देखता है l फिर तीनों से

पिनाक - यह फोन आखिरी होनी चाहिए... कैसे होगा... यह तुम लोग सोच लो....

कह कर पिनाक वहाँ से चला जाता है l महांती विक्रम की ओर देखता है और पूछता है

महांती - युवराज जी... क्या करें... ऑर्डर दीजिए...
वीर - मैं ऑर्डर करता हूँ... महांती... उनके तरफ के कितने लोग हमारे सर्विलांस में हैं...
महांती - वह चार शूटर और... कुछ और लोग...
वीर - ठीक है... सबको एक साथ उठा लो..
महांती - क्या... (उछल पड़ता है) सबको...
वीर - क्यूँ... कोई प्रॉब्लम...
महांती - नहीं... बिल्कुल नहीं... उठाकर करना क्या है...
वीर - सबको... राजगड़ ले जाओ... आखेट के लिए... एक एक को... लकड़बग्घों के सामने डालो... और वह सब उन्हें लाइव दिखाओ... वह भी पास से... उसे देख कर और झेल कर... वहाँ पर जो जितना टूटेगा... वह उतना लिंक देगा... फिर उस लिंक को फॉलो करो... आई थींक वी कैन क्रैक ईट....
महांती - ओके...
वीर - यह तुम पर्सनली हैंडल करो... जाओ अब...
महांती - ठीक है...

कह कर महांती वहाँ से चला जाता है l अब कांफ्रेंस हॉल में सिर्फ़ वीर और विक्रम रह जाते हैं l वीर विक्रम की ओर देखता है

वीर - सब चले गए... आप क्या सोच रहे हैं... युवराज...
विक्रम - यही... मेरी प्रैक्टिस में कहाँ कमी रह गई....
वीर - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) युवराज... आप जिनके साथ प्रैक्टिस कर रहे थे... वह हमारे ही मुलाजिम थे... वह कभी भी आप पर हावी होने की कोशिश नहीं की... इसलिए...
विक्रम - ह्म्म्म्म... आप सही कह रहे हैं... अपने ही मुलाजिमों से लड़ते हुए.. उनसे जीत कर... खुद को अनबीटन समझने लगा था... यही गलती हो गई थी मुझसे...
वीर - (चुप रहता है)
विक्रम - उसकी तेजी... उसकी फुर्ती... उसके ताकत के सामने... मैं ठहर नहीं पाया... मैं जहां उन्नीस था वह बीस नहीं इक्कीस था... उससे लड़ते वक़्त लग रहा था जैसे कोई कंक्रीट के स्ट्रक्चर से लड़ रहा हूँ...
वीर - सिर्फ़ इतनी सी बात पर खुदको सजा दी आपने...
विक्रम - बात अगर मार पीट तक होती तो... सिर्फ़ इतनी सी बात होती... उसके दिए वह तानें... मेरी वज़ूद को नेस्तनाबूद कर दिया है...(विक्रम उठ खड़ा होता है) अब हमारी फिरसे मुलाकात होगी... उस मुलाकात में या तो उसकी हार होगी या फिर मेरी मौत...

वीर के जिस्म में एक सिहरन दौड़ जाती है l वह भी खड़ा हो जाता है

वीर - ठीक है... युवराज जी... हम सब मिलकर उसे ढूंढेंगे...
विक्रम - नहीं... ही इज़ ऑनली माइन... अब उसके और मेरे बीच तीसरा कोई नहीं आएगा... आप भी नहीं... और तब तक इस ESS को आप संभालीये...
वीर - पर युवराज... मैं कैसे... मतलब...
विक्रम - अब मेरा लक्ष... बदल चुका है... अब मुझे ना चैन होगा ना सुकून होगा... जब तक इन हाथों को उसके खुन ना होगा....

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बाल्कनी में तापस सहर की तरफ देख रहा है l विश्व उसके पास आकर खड़ा होता है l तापस की ओर देखे वगैर

विश्व - सॉरी...
तापस - (विश्व की ओर देखे वगैर) किस लिए...
विश्व - वह... मेरे वजह से... आपकी आँखे नम हो गई...
तापस - ईट्स ओके... पर थैंक्स...
विश्व - किस लिए...
तापस - पल भर के लिए सही... उस बहुत ही खूबसूरत पल का... उसे याद दिलाने के लिए... कभी जिसका हिस्सा हुआ करता था...
विश्व - आप भले ही याद किए... पर सच यह भी है... आज उस पल का आप हिस्सा थे और आज इस पल के भी हैं.... और मैं चाहता हूँ... आने वाले दिनों में ऐसे अनगिनत पल आते रहें...
तापस - (विश्व की ओर हैरान हो कर देख कर) क्या...
विश्व - जो बीत गया वह अतीत था... जो बीत रहा है वह वर्तमान है... और जो बितेगा... बितेगा तो जरूर... वह आने वाला कल है...
तापस - (कुछ समझ नहीं पाता) मतलब...
विश्व - (तापस की ओर मुड़ता है) क्या... मैं आपको... डैड कहूँ...

कुछ देर के लिए बालकनी में सन्नाटा छा जाता है l तापस विश्व को हैरान हो कर आँखे फाड़ कर देखने लगता है l

विश्व - ठीक है... अगर आपको बुरा लगा तो... (आगे कुछ नहीं कह पाता है मुड़ कर अंदर जाने लगता है)
तापस - रुको... (विश्व रुक जाता है)
विश्व - क्या बात है डैड...
तापस - मैंने कहा भी नहीं है और तुम...
विश्व - हाँ... आपने मुझे पीछे से बुलाया है तो... मतलब यही है... के आपको मंजूर है.. है ना डैड...
तापस - ऑए... डैड के बच्चे... बातेँ बड़ी बड़ी करता है... गले से लग कर भी तो पुछ सकता था...
विश्व - हाँ कर तो सकता था... खैर आप भी क्या याद रखेंगे... यह शिकायत भी दूर किए देता हूँ... (कह कर तापस के गले लग जाता है)

विश्व के गले लगते ही तापस की रुलाई फुट पड़ती है और वह देखता है प्रतिभा खुसी के मारे उन दोनों के तरफ एक टक देखे जा रही है l

प्रतिभा - क्या मैं भी तुम लोगों के साथ जॉइन हो जाऊँ....

तापस अपनी बांह खोल देता है प्रतिभा भी आकर दोनों के गले लग जाती है l कुछ देर बाद प्रतिभा कहती है

- चलो चलो मैंने खाना लगा दिया है... वहीँ टेबल पर खाते हुए बातेँ करेंगे...

सब डायनिंग टेबल पर आकर बैठ जाते हैं l प्रतिभा सबके प्लेट लगा देती है और खाना परोस देती है l खाना खाते वक़्त

तापस - विश्व...
प्रतिभा - क्या... (गुस्से से घूरती है)
तापस - ओके ओके... प्रताप...
विश्व - जी....
तापस - इन सात सालों में... तुमको शरारत करते हुए... आज पहली बार देख रहा हूँ... तुम्हारे चरित्र का ऐसा भी एक एंगल हो सकता है... यह मैं नहीं जानता था...
विश्व - क्यूँकी... आज से पहले... (उन दोनों के हाथ पकड़ लेता है) आप दोनों मेरे जिंदगी में नहीं थे...

तापस और प्रतिभा को अंदरुनी बहुत खुशी महसूस होती है l दोनों एक दूसरे को देखते हैं फिर विश्व के हाथ पर अपना हाथ रख कर थपथपाते है l उसके बाद तीनों खाना खाने लग जाते हैं l तापस को महसूस होता है कि प्रतिभा खाना खाते वक़्त थोड़ी खोई खोई लग रही है l

तापस - क्या बात है भाग्यवान... आज फॅमिली रीयुनीअन हो जाने के बाद भी... तुम खोई खोई सी हो...
प्रतिभा - हाँ... वह.. प्रताप आज पेरोल पर बाहर है... और आज ही... (चुप हो जाती है)
तापस - कुछ नहीं होगा...
प्रतिभा - यह आप कैसे कह सकते हैं... मॉल की सिक्युरिटी और सर्विलांस उनके हाथ में है... अगर कुछ मैनीपुलेट हुआ... तो गड़बड़ हो जाएगी... यही चिंता सताये जा रही है...
विश्व - माँ (प्रतिभा के हाथ पर हाथ रख कर) कुछ नहीं होगा...
तापस - हाँ... प्रताप ठीक कह रहा है... कुछ नहीं होगा...
प्रतिभा - (तापस से) इसकी बात छोड़िए... यह तो कुछ भी बोल देगा... पर मुझे हैरानी इस बात पर है... की इतने बड़े कांड हो जाने पर भी... आपके चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं....
तापस - सबुत होगा तो मैनीपुलेट होगा ना...
प्रतिभा - मतलब...
विश्व - यही की... सारे सीसीटीवी की फुटेज को डैड ने गायब कर दिया है...
प्रतिभा - क्या... यह कब हुआ... और तु... तु कैसे जानता है... कहीं तुम दोनों की कोई खिचड़ी तो नहीं...
विश्व - माँ... क्या लगता है... मैं तुमको झूठ बोल रहा हूँ...

प्रतिभा पहले तापस को देखती है तापस भी हैरान है और फिर विश्व को देखती है और अपना सिर ना में हिलाती है l

विश्व - पहले तुम... जब मेरा पेरोल करा कर मुझे बाहर ले जाया करती थी... तब डैड एक दिन की छुट्टी लेकर हमारा पीछा किया करते थे... अब चूँकि वीआरएस पर हैं... तो छुट्टी ही छुट्टी है...
प्रतिभा - क्या...(तापस से) मतलब... आप घर देखने नहीं गए थे... (विश्व से) और तुझे पता था कि यह हमारे पीछे हैं...
विश्व - मालुम तो नहीं था... पर अंदाजा था... और जब डैड ने कहा कि सबुत होगा तो मैनीपुलेट होगा... बस तब पुरी बात समझ में आ गई...
प्रतिभा - क्या समझ में आ गई...
विश्व - यही के... डैड पुलिस की वर्दी में जाकर... झूठे वारंट के कागजात दिखा कर...शुरु से सर्विलांस रुम में होंगे... जब कांड होते देखा होगा... मास्टर रिकॉर्डिंग गायब कर दिए होंगे....
तापस - ह्म्म्म्म... चलो एक बात तो पता चला... स्मार्ट हो गए हो... आँख और कान हमेशा खुले रखते हो...

विश्व कुछ नहीं कहता है सिर्फ़ मुस्करा देता है l

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शुभ्रा - रुप... मैं तुम्हारी कही हर बात पर विश्वास करती हूँ... पर यह तुम भी जानती हो... आज जो हुआ... ठीक नहीं हुआ...
रुप - हाँ भाभी... अब सच में... मुझे डर लगने लगा है...
शुभ्रा - अच्छा रुप... अनाम और प्रताप का चेहरा मिलता-जुलता है क्या...
रुप - पता नहीं भाभी... अनाम का चेहरा धुँधला सा याद है... शायद प्रताप उसके जैसा दिखता हो...
शुभ्रा - हाँ... हो सकता है... और लिफ्ट में जो हुआ... वह इत्तेफ़ाक भी हो...
रुप - शायद... पर भाभी अब यह सब सोचने से क्या फायदा... बनने से पहले सब बिगड़ गया ना...
शुभ्रा - (थोड़ा हँसते हुए) मतलब... तुम सच में प्रताप से इम्प्रेस हुई थी...
रुप - पता नहीं (अपना सिर झुका लेती है)
शुभ्रा - (रुप के गाल पर हाथ फेरते हुए) तुमको क्या लगता है... राज परिवार या राजनीति में रसूखदार परिवार को छोड़... तुम्हारे रिश्ते को... और कहीं मंजुरी मिल सकती है... यह कुछ दिन बाद भी होता... तो यह सब होता जरूर... हाँ वजह कुछ और होता... मगर यह होता जरूर...
शुभ्रा - भाभी... आपको... भैया के लिए बुरा लग रहा है ना....
शुभ्रा - हाँ लग रहा है... पर प्रॉब्लम यह है कि... प्रताप कहीं पर भी गलत नहीं है... और तेरे भैया उस वक्त गलत थे....
रुप - (अपने होठों को दबा कर अंदर कर लेती है दुसरी ओर देखने लगती है) अब भैया क्या करेंगे....
शुभ्रा - रूप... पहली बार किसीने... तेरे भाई को हार दिखाया है... और चोट... उनके भीतर को पहुँचाया है... अब या तो वह टुट कर बिखर जाएंगे... या फिर उभर कर निखर जाएंगे....
Fabulous update
 

Rajesh

Well-Known Member
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👉बत्तीसवां अपडेट
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जज - मिस्टर डिफेंस.... आप जिन लोगों का जिक्र कर रहे हैं.... उनमे से एक की हत्या हो चुकी है.... दो फरार हैं.... और एक गायब है....
जयंत - हाँ... पांचवां अदालत में... मुल्जिम के कटघरे में खड़ा है....
जज - मिस्टर डिफेंस... आप जिन चारों पर... षडयंत्र रचने का आरोप लगा रहे हैं.... वह चार फिलहाल कानून के गिरफ्त से दूर हैं...
जयंत - जी... मायलर्ड... इस षडयंत्र में... एक प्यादा फंस गया है... जबकि वज़ीर, घोड़ा हाथी सब फरार हैं... इस मनरेगा के शतरंज में.... खेल ऐसा खेला गया है... की सबका ध्यान... उन पांचो के इर्द-गिर्द ठहर रही है.... जबकि पर्दे के पीछे खिलाड़ी कोई और है....

जयंत के इतना कहते ही कोर्ट रूम में ख़ामोशी पसर जाती है l
तभी वैदेही को कट कट की आवाज़ सुनाई देती है l वह मुड़ कर देखती है भैरव सिंह की बांया भौंवा तन गया है, जबड़ा भींच गई है और दांत पीस रहा है जिससे कट कट की आवाज़ सुनाई दे रही है l वैदेही को अपने भीतर एक ठंडी सिहरन अनुभव होती है l वैदेही भैरव सिंह के नजरों का पीछा करती है तो पाती है, भैरव सिंह गुस्से से सिर्फ़ जयंत को देखे जा रहा है l

जज - मिस्टर डिफेंस... क्या आप कहना चाहते हैं... की इस घोटाले का मास्टर माइंड कोई और है....
जयंत - शायद....
जज - यह कैसा ज़वाब है....

जयंत - मायलर्ड.... रूप के अकाउंट में पैसा आया.... और रूप के पांच प्रमुख सभ्य में से सिर्फ़ एक आदमी यहाँ मौजूद है.... और चारों गायब हैं.... मतलब... आई एम सॉरी टू से... बट आई एम अफ्रैड... शायद उनमें से कोई जिवित ना हो....
जज - व्हाट... क्या एसआईटी रिपोर्ट गलत है...
जयंत - मे बी... मायलर्ड.... जैसे एसआईटी की फॉरेंसिक तथ्य अधुरी थी... उसी तरह उनकी यह भाग जाने रिपोर्ट की तथ्य अधुरी हो....
जज - क्या इस विषय पर आप.... परीडा जी को... फिरसे जिरह करना चाहेंगे....
जयंत - जी... योर ऑनर... बस थोड़ी देर के लिए...
जज - क्या... प्रोसिक्यूशन को कोई एतराज है...
प्रतिभा - नो... मायलर्ड...
जयंत - थैंक्यू मायलर्ड.... थैंक्यू प्रोसिक्यूशन...

फिर हॉकर के बुलाने पर परीडा विटनेश बॉक्स में आता है l

जयंत - हाँ तो परीडा जी... आपके पहले सरकारी गवाह.. तो बड़े.. झूठे निकले... इस पर आप क्या कहना चाहेंगे...
परीडा - जी वो... मैं... (कुछ कह नहीं पाता)
जयंत - परीडा जी... अगर आपका सर्व प्रथम सरकारी गवाह... जिसके गवाही पर यह केस टिकी हुई है... वह झूठा निकले तो.... इसका मतलब आपकी इन्वेस्टीगेशन झूठ की दिशा में मुड़ गई थी... क्यूँ परीडा जी... क्या मैंने सही कहा...


परीडा के मुहँ से कुछ नहीं निकल पाता और वह अपना अगल बगल झांकने लगता है l

जयंत - मायलर्ड... एसआईटी के प्रमुख परीडा जी अभी द्वंद में हैं... कहें तो क्या कहें... खैर परीडा जी आप यह बताएं.. आपने अदालत में यह बयान दिया कि... भुवनेश्वर में आपने अपनी इन्वेस्टीगेशन की रिपोर्ट सबमिट करते वक्त जब मालुम हुआ... शक के दायरे में शामिल लोगों की हत्याएँ होने लगी.... इसलिए आपने देवगड़ के मजिस्ट्रेट से विश्व की गिरफ्तारी का आदेश निकलवाया....
परीडा - जी..
जयंत - क्यूँ... परीडा जी... वारंट सिर्फ़ विश्व के नाम पर निकली... उन पर नहीं.... जिन्हें आपने अपने रिपोर्ट में अभियुक्त ठहराया है....
परीडा - जी वो... हमारे इन्वेस्टीगेशन के दौरान ही... वह तहसीलदार और बीडीओ फरार हो गए.... और आरआई ग़ायब थे...
जयंत - वह फरार हो गए... और आरआई ग़ायब... कैसे मालूम हुआ और इसका मतलब...
परीडा - चश्मदीद गवाह थे... जिनके जरिए मालुम हुआ... के बीडीओ और तहसीलदार अपने परिवार समेत फरार हो गए हैं.... पर आरआई के परिवार अभी भी राजगड़ में हैं... और उनके फरार होने की... कोई चश्मदीद गवाह हमे मिला ही नहीं...
जयंत - क्या उन्हें ढूंढने के लिए.... पुलिस को कोई आदेश दिया गया था....


परीडा कुछ नहीं कह पाता है l अपना सर झुका कर वहीँ खड़ा रहता है l

जयंत - आप जा सकते हैं.... परीडा जी.....

परीडा गर्दन झुकाए अपनी जगह पर जाकर बैठ जाता है l

जयंत - योर ऑनर... रिपोर्ट के मद्देनजर... वारंट पांचो..... अभियुक्तों के विरुद्ध लानी चाहिए थी.... एसआईटी को... पर... उसके बाद... मृतक की घोषणा और फरार होने की पुष्टी होनी चाहिए थी.... योर ऑनर... जो कि इस केस में नहीं हुआ.... क्यूंकि पहले से ही... यह निर्धारित किया जा चुका था.... या हो चुका था... के विश्व ही... प्रमुख व एकमात्र अभियुक्त होगा.... और ऐसा अब तक हुआ है... योर ऑनर.... अब मैं... विटनेश बॉक्स में... राजगड़ थाना के प्रभारी... श्री अनिकेत रोणा से जिरह करना चाहूँगा.... विथ योर परमीशन... मायलर्ड....
जज - आज... रूटीन के अनुसार... श्री रोणा जी की क्रॉस एक्जामिनेशन होना है.... प्रोसिक्यूशन क्या आप डिफेंस के जिरह से पहले... श्री रोणा जी का गावही लेने चाहेंगी....
प्रतिभा - नो... मायलर्ड...(अपनी हाथों में कुछ कागजात लेकर पढ़ते हुए) प्रोसिक्यूशन के लिए... श्री रोणा जी की गवाही... वही अंतिम है.... जो उन्होंने.... एसआईटी को दिया है.... जिरह दौरान अगर मुझे कुछ अखरता है... तब प्रोसिक्यूशन इंटरप्ट करेगी....
जज - वेल... देन... मिस्टर डिफेंस... परमीशन.... ग्रांटेड...

हॉकर रोणा को विटनेश बॉक्स में आने को कहता है l रोणा आकर विटनेश बॉक्स में खड़ा हो जाता है, और गीता पर हाथ रखकर सच बोलने की कसम खाता है l

जयंत - आपका स्वागत है... रोणा बाबु...

पर रोणा कुछ ज़वाब नहीं देता है और घूरते हुए जयंत को देखता है l

जयंत - ह्म्म्म्म... लगता है.... आपको यहाँ आकर... अच्छा नहीं लग रहा है....

रोणा इस पर भी कुछ नहीं कहता है l सर झुका कर दांत पिसते हुए कटघरे के रेलिंग को अपने हाथों से कस कर पकड़ कर इधर उधर देखने लगता है l जयंत अपना सर ऐसे हिलाता है जैसे उसे सब समझ में आ रहा है l

जयंत - ह्म्म्म्म... अच्छा यह बात है... ह्म्म्म्म...

जयंत के ऐसे बोलने पर रोणा हैरान हो कर जयंत को देखता है,

रोणा - पर वकील साहब... मैंने तो अभीतक कुछ कहा भी नहीं....
जयंत - तो मैंने कब कहा कि आपने कुछ जवाब दिया.... मैं तो बस आपकी हरकत पर जवाब दिया...
रोणा - जी.... जी... वह... मैंने ऐसा क्या किया...
जयंत - मैंने आपसे कुछ पूछा था.... रोणा बाबु...
रोणा - वह.... व.. नहीं.. मेरा मतलब है... हाँ... वह... आपने क्या पूछा था....
जयंत - अगली बार सवाल ध्यान से सुनें... रोणा बाबु.... आप यहाँ... विशेष अदालत में हैं... यहाँ आपका हर ज़वाब मायने रखता है....
रोणा - ज... जी.... मैं आगे से ध्यान रखूँगा...
जयंत - हाँ तो... रोणा बाबु.... कैसा लग रहा है...
रोणा - जी... अच्छा तो नहीं लग रहा है.... पर हम कानून के नुमाइंदे हैं... कानून की सेवा के लिए हरदम तैयार रहते हैं.....
जयंत - वाह... क्या बात कही.... वाकई... आपका रेकार्ड भी कुछ ऐसा ही कह रहा है.... आप की उम्र क्या होगी...
रोणा - जी... जी... पैंतीस साल....
जयंत - वाह... वाकई... इस उम्र में... आपने जो मुक़ाम हासिल किया है.... बहुत लोग वह कभी हासिल नहीं कर पाते.... आपकी थाने ने... दो बार ओड़िशा सरकार से जीरो क्राइम मॉडल पोलिस स्टेशन का... राज्यपाल से अवार्ड जीता है... वाह क्या कहने... वैसे आप कितने सालों से... राजगड़ थाना क्षेत्र में प्रभारी हैं...
रोणा - जी तकरीबन छह सालों से...
जयंत - ह्म्म्म्म और आपकी नौकरी.... कितनी साल की उम्र में लगी...
रोणा - जी अपनी चौबीसवें साल में.... मेरी पहली पोस्टिंग.... रेढाखोल में हुई थी...
जयंत - वाह चौबीसवें साल में पहली पोस्टिंग.... और उनतीसवें साल में.... राजगड़ में... पोस्टिंग... वैसे... रोणा बाबु... बीच के इन पांच सालों में... आपकी कितनी बार बदली हुई....
रोणा - जी.... जी वह... त.. ती.. तीन बार...
जयंत - ह्म्म्म्म.... पहले के पांच सालों में... आपकी तीन बार बदली हुई.... पर बाद के छह सालों में.... एक ही थाने में जमे हुए हैं.... क्या बात है.... लगता है आपको पोस्टिंग देने के बाद.... डिपार्टमेंट आपको भूल गई है....
रोणा - ऐसी बात नहीं है.... आखिर डिपार्टमेंट की सिफारिश पर ही... हमारे थाने को... राज्यपाल पुरस्कार मिला है....
जयंत - तो फिर आप इतने दिन.... कैसे एक ही थाने का इंचार्ज बन कर रहे.... कोई ट्रांसफ़र क्यूँ नहीं हुई....
रोणा - यह... मैं... कैसे कह सकता हूँ...
जयंत - मिस्टर रोणा बाबु.... आपके कंधे पर कितने स्टार्स हैं...
रोणा - जी.... तीन...
जयंत - योर.. ऑनर... किसी भी पुलिस ऑफिसर का... एक ही थाने में तीन साल से ज्यादा कार्यकाल नहीं हो सकता.... यह एक आम सरकारी प्रक्रिया है... यदि ऐसा हो तो उस ऑफिसर की पोस्ट और पोस्टिंग दोनों... भीजिलांस इंक्वायरी में आता है... पर यहाँ चूंकि दो बार बेस्ट मॉडल पुलिस स्टेशन का पुरस्कार जीते हैं... शायद इसीलिए... उनकी पोस्टिंग उसी थाने में... बहाल रखी गई है.... (जयंत इतना जज से कह कर रोणा के पास आता है) रोणा जी... आपने विश्व कैसे, क्यूँ और किसलिए गिरफ्तार किया... क्या विस्तार से बताएंगे...
रोणा - जी... उस दिन... मैं अपने थाने में था... तभी थाने पर एक फैक्स आया... देवगड़ मजिस्ट्रेट ऑफिस से.... विश्व प्रताप को गिरफ्तार करने के लिए.... फ़िर हमने फोन पर कंफर्म किया... हमे फोन पर कंफर्मेशन मिलने पर... विश्व को गिरफ्तार करने के लिए निकल पड़े... और मायलर्ड वह फैक्स की कॉपी.... हमने एसआईटी को सौंप दी थी....
जयंत - ह्म्म्म्म... तो विश्व को गिरफ्तार करने के लिए... आपको बहुत मेहनत करनी पड़ी होगी...
रोणा - जी... बहुत....
जयंत - अच्छा... विश्व... छुपा हुआ था... क्या...
रोणा - जी हाँ...
जयंत - कमाल है... विश्व की गिरफ्तारी की समन देवगड़ से आया.... क्या विश्व को खबर हो गई थी...

रोणा चुप रहता है, कुछ नहीं कहता है तो जयंत उसे पूछता है

जयंत - हैलो रोणा बाबु... मैंने आपसे कुछ पुछा है...
रोणा - जी वह मुझे लगता है.... उसके सारे साथियों के अंडरग्राउंड होने से... शायद खुदको अंडरग्राउंड करने की तैयारी में था....
जयंत - ओ..... वाह क्या थ्योरी है... यह बात आपने एसआईटी तो नहीं बताई.... क्यूँ...
रोणा - क्यूँकी... एसआईटी ने यह सवाल पूछा ही नहीं..
जयंत - ह्म्म्म्म... तो यह बात है... फ़िर आपने उसे कहाँ और कब गिरफ्तार किया....
रोणा - जी उस दिन दोपहर को हमें.... फैक्स मिला... हमने विश्व को उस दिन बहुत खोजा... वह हमे रात के साढ़े दस बजे.... खेतों के बीचों-बीच... बस स्टैंड की ओर भागते हुए गिरफ्तार किया....
जयंत - फ़िर अपने उसे... उसी दिन गोली मारी क्यूँ....
रोणा - नहीं वकील साहब.... विश्व को... गोली अगले दिन देर रात को लगी... जब वह पुलिस को छका कर... थाने से भाग रहा था... और यह मैंने.... एसआईटी को भी बताया है... योर ऑनर....
जयंत - अरे हाँ... लगता है... मैंने ठीक से... रिपोर्ट नहीं पढ़ी... कोई बात नहीं.... अगर मैं कहीं गलत हो जाऊँ.... आप उसे सही कर दीजिएगा....

रोणा जयंत से कुछ नहीं कहता है बस अपने जबड़े भींच कर जयंत को घूरता है और ज़वाब में जयंत उसे मुस्करा कर देखता है l

जयंत - तो रोणा बाबु.... आपने जिस दिन विश्व को गिरफ्तार किया.... और जिस दिन गोली मारी.... उतने समय उसे कहाँ रखा.....
रोणा - अपनी कस्टडी मैं...
जयंत - क्यूँ...
रोणा - क्यूँ मतलब... हमे अरेस्ट करने के लिए के कहा गया था... इसलिए...
जयंत - वाह रोणा बाबु वाह.... किसी भी मुल्जिम को गिरफ्तार करने के बाद.... उसे चौबीस घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाता है... आपने वैसा कुछ भी नहीं किया.... उल्टा चौबीस घंटे बाद गोली ही मार दी...
रोणा - (हड़बड़ा जाता है और हकलाके) जी.. जी... व... वह... श... शायद अगले दिन छुट्टी था....
जयंत - कमाल करते हैं.... आप भी रोणा बाबु... एकदम कमाल करते हैं.... धोती बची नहीं आपकी... उसे फाड़ के रुमाल करते हैं...
रोणा - क... क्य... क्या मतलब है आ.. आपका..

जयंत अपने टेबल पर जा कर कुछ कागजात उठाता है और वापस रोणा के पास आता है,

जयंत - हाँ तो रोणा साहब... आपने विश्व की गिरफ्तारी साल **** महीना **** तारीख **** मंगल वार को दिखाया है.... और आपकी बदकिस्मती से उस हफ्ते कोई छुट्टी का दिन नहीं था.....

रोणा का चेहरा सफ़ेद पड़ जाता है l वह अपनी जेब से रुमाल निकाल कर चेहरा पोछने लगता है l और पीछे बल्लभ एंड ग्रुप के चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने लगती है l पर भैरव सिंह के चेहरे पर कोई भी भाव नजर नहीं आती है l

जयंत - हाँ तो रोणा साहब... मॉडल पुलिस थाने के... मॉडल इंचार्ज... आपने किस अधिकार से..... विश्व को जुडिशल कस्टडी में भेजने के वजाए..... अपनी यानी पुलिस कस्टडी में रखा.... जब कि आपके थाने में... विश्व के खिलाफ.... कोई आधिकारिक एफआईआर भी दर्ज नहीं हुआ था.... फिर भी अपने विश्व को अपनी कस्टडी में रखा... क्यूँ..
रोणा - जी वो... वह बस पूछताछ करने के लिए...
जयंत - बस... पूछताछ करने के लिए.... कैसे पूछताछ की आपने... की विश्व पर अगले दिन गोली चलानी पड़ी....
रोणा - जी सर... वह... असल में... हमने.....
जयंत - (बीच में रोणा को टोकते हुए) आपने विश्व पर किस अधिकार से... थर्ड डिग्री टॉर्चर की...
रोणा - जी हमने...
जयंत - (फिर बीच में टोकते हुए) क्या आपको... देवगड़ मजिस्ट्रेट ऑफिस से... या एसआईटी से कोई आदेश प्राप्त हुआ था....
रोणा - जी नहीं...
जयंत - फिर आपने... विश्व पर.... टॉर्चर क्यूँ किया....
रोणा - (झल्लाहट से) मायलर्ड ... डिफेंस लॉयर मुझे बरगला रहे हैं... हमने कोई टॉर्चर नहीं किया योर ऑनर...
जयंत - मायलर्ड.... रोणा साहब सफेद झूठ बोल रहे हैं....
जज - मिस्टर डिफेंस... तो आप साबित कीजिए....
जयंत - जरूर.... योर ऑनर... जरूर....

इतना कह कर जयंत अपने टेबल के पास आता है और कुछ कागजात उठा कर जज को दिखा कर

जयंत - मायलर्ड.... यह है... कैपिटल हॉस्पिटल के डॉक्टर. विजय.... के रिपोर्ट.... जब भुवनेश्वर सेंट्रल जैल के सुपरिटेंडेंट... श्री तापस सेनापति जी ने कटक हॉस्पिटल से विश्व को स्थानांतरित किया... तब विश्व की हालत बहुत ही खराब था योर ऑनर... उसका का चेहरा सूजा हुआ था.... और आँखे भी सूजी हुई थी....

इतना कह कर जयंत वह मेडिकल रिपोर्ट राइटर को देता है और राइटर वह रिपोर्ट जज को बढ़ा देता है, जज मेडिकल रिपोर्ट को गौर से देखता है और फिर रोणा को देखता है l

रोणा - योर ऑनर... मैं कुछ... कंफेश करना चाहता हूँ....

रोणा के मुहँ से यह सुनते ही बल्लभ के चेहरे पर पसीना छूटने लगता है l

जज - कहिए....
रोणा - मायलर्ड.... जब हम विश्व को गिरफ्तार करने गए थे.... तब विश्व हमसे पहले लोगों के हत्थे चढ़ गया था..... गांव के लोग.... उसे भगा भगा कर मार रहे थे... हमने किसी तरह उसे वहाँ से बचा कर थाने लाए थे..... यह केस मनरेगा से संबंधित था.... इसलिए गांव को लोगों का नाम... ना उछले.... इसलिए मैंने ऐसा रिपोर्ट बनाया था.... चूंकि विश्व की हालत खराब थी... इसलिए हमने उसे जुडिशल कस्टडी में कुछ दिन... अपनी तरफ से देर करके भेजने का फैसला किया.... पर इतने में विश्व थाने से भागने की कोशिश की.... मजबूरन मुझे गोली चलानी पड़ी.... पर मैंने गोली घुटने के नीचे.... टांग पर निशाना लगाया था.... पर बदकिस्मती से उसके जांघ पर लगी... यही सच है.... योर ऑनर.... यही सच है.... (पूरे एक ही सांस में रोणा कह देता है)
जज - आपका क्या कहना है... मिस्टर डिफेंस....
जयंत - (मुस्कराते हुए) मायलर्ड.... रोणा बाबु अभी भी... झूठ कह रहे हैं.....
रोणा - (चिल्लाते हुए) नहीं नहीं योर ऑनर.... मैंने अभी जो भी कहा..... वह सब सौ फीसद सच ही कहा है....
जज- मिस्टर डिफेंस....
जयंत - जी मायलर्ड.... रोणा बाबु अभी भी झूट ही बोल रहे हैं....
रोणा - क्या झूट बोला है मैंने.... मैंने अभी अभी तो कंफेश किया है.... और सब सच कहा है योर ऑनर...
जयंत - अगर आपका कंफेश को सच मान लिया जाए.... तो आप सच में... निहायत ही नाकारा और नालायक पुलिस ऑफिसर हैं....

ज़वाब में रोणा कुछ नहीं कहता, बस गुस्से से जयंत को घूरे जा रहा है l

जयंत - मायलर्ड.... अगर रोणा बाबु की बात सही है... की भीड़ ने विश्व पर हमला किया.... तो भीड़ के हाथों में पुलिस की लाठी और बेल्ट जरूर पुलिस ने ही दी होगी.....
रोणा - यह सरासर इल्ज़ाम है मुझपर योर ऑनर... बिना सबूत के बचाव पक्ष के वकील... मुझ जैसे रेस्पांसिबल ऑफिसर पर.... ऐसे घटिया इल्ज़ाम नहीं लगा सकते...
जयंत - रेस्पांसिबल ऑफिसर.... आपने विश्व को गिरफ्तार करने के बाद... मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया.... उल्टा भीड़ के हवाले कर दिया.... और भीड़ को अपनी लाठियां और बेल्ट दे दी.... और आप कह रहे हैं रेस्पांसिबल ऑफिसर हैं आप....
रोणा - आप किस बिनाह पर.... मुझ पर यह तोहमत लगा रहे हैं....
जयंत - मायलर्ड... जब रोणा बाबु.... विश्व के हस्तांतरण श्री तापस सेनापति जी को किया... तब विश्व की हालत बहुत ही खराब थी... इसलिए सेनापति जी... कैपिटल हॉस्पिटल के डाक्टर विजय को... विश्व पर रिपोर्ट बनाने के लिए कहा था.... उस रिपोर्ट में... डॉ. विजय ने... वीडियो बनाया था और फोटो भी लिया था.... (इतना कह कर कुछ फोटोस जज को बढ़ाता है) इन फोटो को गौर से देखिए योर ऑनर.... विश्व के पुट्ठ पर अशोक स्तम्भ के निसान दिख रहे हैं.... अशोक स्तम्भ का चिन्ह... या तो पुलिस या फिर आर्मी वालों के कैप और बेल्ट पर होता है.... अब सवाल यह है... की भीड़ के पास वह बेल्ट कहाँ से आया.... या फिर कोई भीड़ था ही नहीं.... विश्व को पुलिस लॉकअप के भीतर टॉर्चर किया गया... क्यूँ रोणा बाबु.... इस पर आप क्या कहेंगे...

रोणा क्या कहे उसे समझ में नहीं आता, वह इधर उधर देखता रहता है l वह सबसे अपना नजर चुराने लगता है l तभी घड़ी में टन टन की आवाज़ आती है l जज लंच ब्रेक की घोषणा करता है l सभी अपने निर्धारित चैम्बर में चले जाते हैं l गवाहों के चैम्बर में भैरव सिंह बैठा हुआ है l उसके सामने सिर झुकाए, हाथ पर हाथ बांधे रोणा खड़ा है l बल्लभ भी एक कोने में खड़ा है और परीडा दरवाजे के पास खड़ा है l कमरे में सबके चेहरे पर टेंशन झलक रहा है पर भैरव सिंह के चेहरे पर कोई भाव नहीं दिख रहा है l शायद यही वजह है कि रोणा और भी ज्यादा डरा हुआ है l कमरे की ख़ामोशी को तोड़ते हुए

भैरव - जानते हो... वह युद्ध राजा हमेशा हार जाता है... जब वह इस बात से बेफिक्र हो जाए... के फौज उसकी हिम्मत है... उसके पास.... उसके एक बात पर जान देने व जान लेने वालों की फौज है... वह राजा कभी भी युद्ध हार सकता है... युद्ध जितने के लिए फौज तो चाहिए.... पर फौज की हिम्मत अगर राजा हो... तो वह फौज कभी जंग नहीं हारती.... अब तक मैं पीछे था.... इसलिए परिणाम ऐसा आया है... अब मैं तुम लोगों के आगे हूँ.... फिक्र मत करो.... तुम लोगों को कुछ होने नहीं दूँगा.....

भैरव सिंह के इतने कह देने से रोणा को कुछ अच्छा महसूस होता है l बल्लभ आकर रोणा के कंधे पर हाथ रखकर उसका हिम्मत बढ़ाता है l
उधर दुसरे तरफ अलग कमरे में जयंत, विश्व और वैदेही बैठे हुए हैं l जयंत देखता है दोनों के चेहरे पर तनाव साफ दिख रहा है l

जयंत - क्या बात है.... सब कुछ तो सही जा रहा है.... फिर तुम दोनों अपना मुहँ क्यूँ लटकाए बैठे हुए हो....
विश्व - जब तक भैरव सिंह दिख नहीं रहा था.... तब तक चिंता की कोई बात नहीं थी.... पर अब उसका आना.... मुझे किसी खतरे का आभास हो रहा है.... हमारे लिए नहीं..... आपके लिए....
जयंत - देखो.... मैं जानता हूँ.... वह इस केस में... तुम्हें फंसा कर इतना दूर लाया है.... तो आखिरी मौके पर हाथ से कैसे जाने देगा.... पर मैं हर सिचुएशन के लिए तैयार हूँ....
वैदेही - मैं जानती हूँ.... सर.... पर जब तक वह इस पटल में नहीं था.... तब तक ठीक था.... पर जैसे ही भैरव सिंह आया है.... मुझे आपकी चिंता हो रही है.... मैं जानती हूँ... वह अपनी अहंकार के लिए.... किसी भी हद तक गुजर सकता है....
जयंत - मैंने जब इस केस को हाथ में लिया था... तभी मुझे अंदाजा हो गया था... याद है... मैंने कहा था.... बहुत से वकीलों की इस केस को ना लेने की वजह.... पैसा नहीं है.... कुछ और है.... वह वजह यही है.... इसी को ध्यान में रख कर... मैंने अदालत से अपनी सुरक्षा की मांग की थी.....
विश्व - आप ने जो भी किया ठीक किया.... पर अब तक.... वार पे वार.... आप की तरफ से हुआ है... वह किस तरह का पलट वार करेगा.... इसका अंदाजा हमे नहीं है.....
जयंत - (मुस्कराते हुए) मेरे लिए तुम्हारा फिक्रमंद होना अच्छा लग रहा है.... यही तो मेरी फीस है.... हा हा हा....

वैदेही और विश्व उसे ऐसे बेफ़िकर हो कर हसते हुए हैरान हो कर देखे जा रहे हैं l और एक कमरे में तापस और प्रतिभा दोनों बैठे हुए हैं l

तापस - क्या आज जानबूझकर तुमने.... उस रोणा की स्टेटमेंट नहीं लिया ना....
प्रतिभा - हाँ... अपने सही कहा.... मुझे उन झूठों की स्टेटमेंट ले कर.... उस मासूम के खिलाफ... (प्रतिभा और कुछ नहीं कह पति)
तापस -( प्रतिभा की हाथ पर अपना हाथ रख कर) रिलैक्स....
प्रतिभा - थैंक्स (मुस्कराते हुए)


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कोर्ट रूम
विश्व मुल्जिम के कटघरे में और रोणा वीटनेस बॉक्स में खड़े हैं l
जज - मिस्टर डिफेंस आप आगे की कार्रवाई को आगे बढ़ाएं...
जयंत - जी मायलर्ड... वीटनेस बॉक्स में खड़े यह शख्स.... अनिकेत रोणा.... एक नाकारा व नाकाबिल ऑफिसर हैं... पहली बात इन्हें... विश्व को सिर्फ़ गिरफ्तार करने के लिए आदेश मिला था... और इन्होंने मंगलवार को रात दस बजे गिरफ्तार भी किया... पर उसके बाद... एक कानून के जिम्मेदार मुलाजिम होने के बावजूद..... उन्होंने कानून की अवहेलना की... विश्व को अपने कस्टडी में रख कर.... बिना रिमांड में लेकर.... पूछताछ करने के नाम पर... बेइंतहा टॉर्चर भी की.... और फाइनली गोली भी मारी....इस बात की पुष्टि खुद डॉक्टर ने की है.... अदालत चाहे तो उन्हें गवाही के लिए बुला सकती है... उनकी रिपोर्ट साफ कह रही है.... टॉर्चर के बाद गोली मारी गई है.... और इस तरह के टॉर्चर के बाद कोई भी आम इंसान भागना तो दूर चल भी नहीं सकता.... और अपनी इस करनी को.... लोगों के मत्थे मढ कर खुदको बचाने की कोशिश करने लगे.... उससे भी इनकी अंतरात्मा को शांति नहीं मिली..... के शुक्रवार तक सेंट्रल जैल के अधिकारी श्री तापस सेनापति जी के.... हवाले करने तक... विश्व के टांग में गोली धंसी रही.... पता नहीं इनके आधीन जो थाना आता है... कैसे उसे मॉडल पुलिस स्टेशन का पुरस्कार मिला.... जब कि मैं दावे के साथ कह सकता हूँ.... अगर थाने में कोई... रिपोर्ट दर्ज कराने आता भी हो... तो यह महाशय रिपोर्ट स्वीकार ही नहीं करते होंगे....
जज - यह अदालत डिफेंस लॉयर के दलील पर इत्तेफाक रखती है.... श्री अनिकेत रोणा.... डिफेंस के द्वारा रखी दलील पर आप क्या कहना चाहेंगे....
रोणा - (जज को हाथ जोड़कर) मायलर्ड... इस न्यायपालिका में... झूठ अगर टिक पाता.... तो उस दीवार पर "सत्य मेव जयते" कभी लिखा ना होता.... इस केस में मेरी भूमिका अब तक संदेह के घेरे में है.... इसलिए मैं अब सब सच कह कर... कानून व सत्य की जीत का आश्वासन देता हूँ....

रोणा की इस तरह रंग बदल कर कहना जहां विश्व, वैदेही को अचरज में डाल दिया, वहीँ बल्लभ और भैरव के चेहरे पर शैतानी मुस्कराहट नाचने लगती है l

रोणा - मायलर्ड.... मेरा नाम श्री अनिकेत रोणा है... मैं पिछले छह वर्ष से राजगड़ थाना का प्रभारी हूँ.... मुझे इस बात का गर्व है... की मेरी कुशलता के चलते... राजगड़ थाना को दो बार मॉडल थाना के लिए राज्यपाल पुरस्कार मिला है.... इसलिए राजगड़ से खास लगाव है.... राजगड़ बेशक मेरी जन्म भूमि नहीं है.... पर मेरी कर्म भूमि है... यहाँ के हर आम जनता से ही नहीं.... हर कंकर कंकर से मुझे लगाव है.... इतना लगाव है कि राजगड़ के सम्मान के लिए कुछ भी कर जाऊँ....

इतना कह कर रोणा जयंत को देखता है और फिर जज को देख कर

रोणा - मेरे इतने वर्ष के सेवा में... राजगड़ में कोई चोरी डकैती या लूटपाट की घटना नहीं हुई थी.... पर अचानक बैंक अधिकारी और तहसील ऑफिस के एक कर्मचारी को ट्रक कुचल देती है.... तहकीकात में हत्या का अंदेशा होता है... फ़िर अचानक से तहसीलदार और बीडीओ ग़ायब हो जाते हैं.... और हमे आदेश मिलता है... देवगड़ तहसील ऑफिस से... एक मामूली आदमी विश्व की गिरफ्तारी के लिए.... वह भी भुवनेश्वर राज भवन से आई आदेश के आधार पर.... तब मुझे यह समझ में आया.... जरूर बहुत बड़ा खेल हुआ है... यह बात मेरी अंतरात्मा को झिंझोड कर रख दिया योर ऑनर.... मुझे वाकई बर्दास्त नहीं हुआ.... मुझे लगा.... जो दो बार राज्यपाल पुरस्कार मिला है.... वह दो शूल बन कर मेरे दिल को चुभो रहा है.... बस इसी आवेश में... मैंने विश्व के गिरफ्तारी के बाद टॉर्चर की.... पर सिर्फ़ मंगलवार की रात को.... पर चूंकि मार थोड़ी ज्यादा हो गयी थी.... इसलिए मैंने यह निर्णय लिया कि विश्व को गुरुवार को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करूंगा.... पर होनी को कुछ और ही मंजूर था.... विश्व भले ही थाने में था.... पर उसे बांध कर नहीं रखा गया था.... योर ऑनर.... डॉक्टर भी इंसान होते हैं योर ऑनर.... जरूरी नहीं कि उनकी रिपोर्ट पूरी तरह सही हो.... चूंकि विश्व बंधा हुआ नहीं था.... इसलिए मौका देख कर वह वहाँ से भाग निकला.... तब जाकर मैंने उसपर गोली चलाई.... अगर इरादतन गोली चलाई होती.... तो शायद आज यहाँ केस की सुनवाई नहीं हो रही होती.... हाँ मुझसे जो भी हुआ वह आवेश में हुआ... इसके लिए अदालत मुझे जो भी सजा देगी... मुझे स्वीकार होगी.... बस मायलर्ड बस.... यही सच है....

रोणा का बयान ख़त्म होते ही अदालत में ख़ामोशी छा जाती है, विश्व और वैदेही का मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है l जयंत भी कुछ सोच में पड़ जाता है l पर बल्लभ एंड कंपनी और भैरव सिंह के चेहरे पर शैतानी मुस्कराहट नाच उठती है l

जज - मिस्टर डिफेंस... क्या आप और कुछ पूछना चाहेंगे....
जयंत - (हैरानी के साथ रोणा को देखते हुए) नो... योर ऑनर... नो...
जज - प्रोसिक्यूशन... रोणा जी की बयान पूरी तरह से बदल गई है... क्या आप इस पर जिरह करना चाहेंगे...
प्रतिभा - जी नहीं... योर ऑनर.... मैं इस बदले हुए बयान को.... अगली सुनवाई तक पढ़ कर समझना चाहूँगी.....
जज - ठीक है.... इस हफ्ते की सारी कारवाई पूरी की जा चुकी है... अगले हफ्ते.... श्री भैरव सिंह जी की गवाही शेष है.... उसके बाद.... प्रोसिक्यूशन और डिफेंस अपना अपना मत रखेंगे.... फिर अदालत अपना निर्णय सुनाएगी.... तब तक के लिए आज की यह अदालत स्थगित किया जाता है... नाउ द कोर्ट इज़ एडजर्न...

सब खड़े हो जाते हैं l तीनों जज चले जाते हैं l फिर धीरे धीरे कोर्ट का वह रूम खाली हो जाती है, सिर्फ़ दो लोग वहीँ बैठे रह जाते हैं l जयंत और वैदेही l वैदेही देखती है जयंत को गहरी सोच में डूबे हुए l फिर कुछ देर बाद जयंत अपना सर हिलाते हुए अपनी जगह से उठता है l वैदेही भी उसके पीछे उठ कर जयंत के पीछे पीछे बाहर निकल जाती है l

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नमस्कार, प्रणाम, और शुभ संध्या..... आज शाम की प्राइम टाइम खबर के लिए ख़बर ओड़िशा में आप सबका स्वागत है..... मैं अरुंधति..... आज सप्ताहांत विशेष में भारत की न्यायपालिका और न्याय व्यवस्था.... इस विषय पर हमारे साथ चर्चा करने के लिए हाई कोर्ट के पूर्व न्यायधीश श्री निरंजन पटनायक जी हमारे साथ हैं.... हाँ तो पटनायक जी... आज का पहला सवाल.... क्या हमारी न्याय व्यवस्था सुदृढ़ है...
पटनायक - अरुंधति जी... यह बहुत ही पेचीदा सवाल है... जिसका ज़वाब बहुत ही मुश्किल है....
अरुंधति - ऐसा क्यूँ... मैंने तो सीधा सा सवाल पूछा है कि... क्या भारत में न्याय व्यवस्था या न्याय तंत्र सुदृढ़ है...
पटनायक - मैं इसका जवाब अवश्य दूँगा.... पर पहले यह प्रश्न आपने किस सन्दर्भ में उठाया है... यह पहले साफ करें...
अरुंधति - आज हमारे राज्य के.... हर जागरूक नागरिक का ध्यान.... अदालत में.. हाल ही में चल रहे मनरेगा आर्थिक घोटाले पर.... रोज हो कारवाई पर लगी हुई है... तो कुछ प्रक्रिया पर लोग नाराज दिख भी रहे हैं... इसलिए मैंने यह प्रश्न उठाया है...
पटनायक - देखिए... न्याय व्यवस्था.... एक प्रक्रिया है... जो कि बलिष्ठ प्रमाण व गवाहों पर निर्भर रहता है... यह केवल हमारी न्याय व्यवस्था ही नहीं... बल्कि दुनिया के हर मुल्क में यही मुख्य न्याय प्रक्रिया है.... यह वकीलों की प्रस्तुत की जाने वाली दलीलों पर निर्भर करता है....
अरुंधति - जी पटनायक सर.... पर हाल ही में... जब मनरेगा घोटाला सामने आया... तब लोगों के आक्रोश को देख कर... सरकार ने जल्दी सुनवाई के लिए ना सिर्फ़ नियमित सुनवाई की व्यवस्था की.... बल्कि तीन जजों की पैनल भी बनाया...
पटनायक - हाँ... कभी कभी... जन आक्रोश का सम्मान भी करना चाहिए... क्यूंकि सरकार अखिर जनता की है...
अरुंधति - पर अब जनता में.. एक दुसरा आक्रोश फैल रहा है...
पटनायक - कैसा... आक्रोश...
अरुंधति - इसके लिए चलिए हम सीधे अपने सम्वाददाता प्रज्ञा के पास चलते हैं.... हाँ तो प्रज्ञा.... लोगों में... इस केस को लेकर और अब तक हुई कारवाई पर... क्या प्रतिक्रिया है....
प्रज्ञा - जी अरुंधति... अब तक केस की जिस तरह से सुनवाई चल रही है... लोगों ने अलग अलग राय दी है... किसीको इस केस में हुए... प्रगति पर कोई संतुष्टि नहीं है... और कुछ कुछ लोग तो इस बात से नाराज हैं.... की सरकार ने अभियुक्त की बचाव के लिए वकील नियुक्त किया है...
अरुंधति - आइए इस बारे में.... हम पटनायक सर जी से पूछते हैं... तो पटनायक सर... आप इस बारे में क्या कहेंगे...
पटनायक - देखिए.... न्याय प्रक्रिया में अगर नियमित सुनवाई हो रही है.... यही मुख्य है... वरना किसी कसी केस में... फैसला आते आते बीस से पच्चीस साल तक लग जाते हैं.... और रही सरकार का किसी अभियुक्त के लिए वकील नियुक्त करना.... तो एक बात याद रखें... न्याय पर सबका समान अधिकार होता है.... आर्टिकल 22 के अंतर्गत राइट टू काउन्सल के तहत.... न्याय व्यवस्था में.... अदालत ऐसे किसी अभियुक्त को सजा नहीं दे सकती है... जब तक उसकी पैरवी कोई वकील नहीं करता हो... यह संविधान में दिया गया... एक अधिकार है... और हम सब संविधान से जुड़े हुए हैं.... तो संविधान के विरूद्ध कोई जागरूक नागरिक कैसे जा सकता है....
अरुंधति - कह तो आप सही रहे हैं... पर लोगों का आक्रोश का क्या...
पटनायक - देखिए... जन आक्रोश के आड़ में... संविधान की बेदी पर... बगैर सुनवाई के किसीकी बलि चढ़ाना... यह कौनसे सभ्य समाज को शोभा देगा...
अरुंधति - प्रज्ञा... इस बारे में.. लोग क्या प्रतिक्रिया दे रहे हैं...
प्रज्ञा - जी अरुंधति... मेरे साथ कुछ लोग हैं... जो अपनी राय... हमारे चैनल के जरिए... लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं... हाँ तो आपने जस्टिस पटनायक जी को सुना... इस पर आप क्या कहना चाहेंगे...
लोग 1- कहना क्या है... ठीक है संविधान कहता है.. तो इसलिए सरकार ने वकील नियुक्त किया... पर वकील उस केस में अपना जान क्यूँ लगा रहे हैं... जिसे एसआईटी ने बड़ी मेहनत से पकड़ा है...
अरुंधति - हाँ तो पटनायक जी... इनके इस सवाल के जवाब में... आप क्या कहाना चाहेंगे...
पटनायक - सिर्फ़ इतना... के कानून भावनात्मक रूप से कभी नहीं सोचता है... बलिष्ठ दलील और प्रमाण के चलते न्याय किया जाता है....
प्रज्ञा - (किसी दुसरे आदमी से) अब आप... क्या कहना चाहेंगे...
लोग 2 - अब सरकार के वकील नियुक्त से... उन सरकारी संस्थानों के विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लग रहा है... जिन्होंने दिन रात एक कर.... तहकीकात की... और अंत में अपराधी को धर दबोचा....
अरुंधति - यह तो जायज प्रश्न है.... पटनायक सर... एक सरकारी अनुसंधान संस्थान के अनुसंधान को.... एक सरकारी वकील आ कर जूठा साबित करे... क्या यह उचित है....
पटनायक - देखिए... आज भी लोग... अनुसंधान मूल उपन्यास के नाम पर.... शेरलॉक होम्स, व्योमकेश बक्शी या करमचंद की कहानियाँ या उपन्यास पढ़ते हैं.... क्यूँ... क्यूंकि कहीं ना कहीं... अनुसंधान में कुछ कमी रह जाती है... उसी कमी को... तर्क व वितर्क के द्वारा अदालत में.... पूरी की जाती है...
प्रज्ञा - (एक तीसरे आदमी से) आप का क्या विचार है.... इस बात पर..
लोग 3 - चाहे कुछ भी हो.... पर हमे वह वकील... जरा भी पसंद नहीं आया.... हमे बस इतना मालूम है.... अपनी जीत के लिए... किसी भी हद तक जा रहा है... अपनी जिरह से सरकारी गवाह को बेहोश तक कर दिया उसने.... इससे हम कैसे न्याय की उम्मीद कर सकते हैं....
अरुंधति - तो पटनायक सर.... यह जनाब बहुत ही आक्रोश में लग रहे हैं.... आप इनके लिए क्या कहेंगे....
पटनायक - देखिए... आपको न्याय व्यवस्था में विश्वास रखना होगा.... न्याय की अपनी एक प्रक्रिया है... प्रणाली है.... और सब अपने अपने कर्तव्य से अवगत हैं... अगर कोई निजी वकील होते तो... यह लांछन लगा सकते थे... यह ना भूलें... इस केस में डिफेंस लॉयर भी सरकारी हैं... केस जितने से... सरकार उन्हें कोई एक्स्ट्रा इंसेंटिव नहीं देगी.... मैं इतना कहूँगा आप ऐसे आरोप लगाने से बचें....
टीवी बंद कर देता है तापस l उसके टीवी बंद कर देने से प्रतिभा और प्रत्युष दोनों तापस की ओर देखते हैं l तापस रिमोट को सोफ़े के ऊपर फ़ेंक देता है l
प्रतिभा - क्या हुआ...
तापस - कुछ नहीं...
प्रतिभा - तो फिर आपने टीवी बंद क्यूँ कर दिया...
तापस - पता नहीं भाग्यवान तुमको भान हुआ या नहीं.... पर मुझे एक अलग सा षड़यंत्र की बु आ रही है....
प्रतिभा - मतलब....
तापस - असली खिलाड़ी जो... इस घोटाले के पीछे है.... वह पहले भीड़ और मीडिया को विश्व के खिलाफ इस्तेमाल किया.... अब भीड़ वही है... मीडिया भी वही है... पर निशाना अब विश्व नहीं.... जयंत सर हैं.....
Superb update bro
 
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Rajesh

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👉तेतीसवां अपडेट
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कटक चांदनी चौक के मैदान के पास
जगन्नाथ मंदिर से कुछ दुर
कुछ मीडिया वाले एक जगह इकट्ठे हुए हैं l ऐसा लग रहा है जैसे कोई नाम चीन हस्ती आनेवाला है l कुछ देर के बाद एक बड़ी सी बेंटली कार और दो फॉर्ड एसयूवी के साथ वहीँ चांदनी चौक मैदान में आकर रुकती है l सारे मीडिया वाले अपनी माइक व कैमरा के साथ सब उस गाड़ी के पास भागते हैं l
उस बड़ी गाड़ी से यश अपने हाथ में एल्बो क्रॉच स्टिक लिए उतरता है l सारे मीडिया वाले उसे घेर जाते हैं l
रिपोर्टर 1- यश वर्धन जी... आपका यहाँ आना कैसे हुआ....
यश - क्यूँ भई... इसका क्या मतलब है..... भगवान के पास आने के लिए कोई मुहूर्त देखा जाता है क्या...
रिपोर्टर 2 - जगन्नाथ दर्शन के लिए.... आप पूरी भी तो जा सकते थे...
यश - जी हाँ... जा सकता था.... पर पहले यह बताइए.... मेरे यहाँ आने की खबर आप लोगों को मिली कैसे....
रिपोर्टर 3 - जी यह हमारे निजी सूत्र हैं.... जिनके हवाले से हमको खबर मिली...

यश अपने गार्ड्स को देखता है l सभी गार्ड्स मीडिया वालों को हटाते हैं l यश लंगड़ाते हुए मंदिर की ओर चलता है l पर मीडिया वाले यश का पीछा नहीं छोड़ते l यश के पीछे पीछे चल देते हैं l

रिपोर्टर 1- यश जी आप लंगड़ा क्यूँ रहे हैं... क्या कोई एक्सीडेंट हो गया आपका...
यश - हाँ... एक एक्सीडेंट हो गया... घर में ही... मेरे पैर पर... कुछ भारी सामान गिर गया... इसलिए इस एल्बो क्रॉच स्टिक के सहारे चल रहा हूँ...
रिपोर्टर 2 - क्या इसे जगन्नाथ मंदिर को आने से जोड़ा जा सकता है...
यश - हाँ क्यूँ नहीं.... आप मीडिया वाले... किसीको भी किसीसे जोड़ सकते हैं....
रिपोर्टर 3- क्या यश जी... आप तो हमारा मज़ाक उड़ा रहे हैं....

यश वहीँ रुक जाता है l अब सारे मीडिया वाले यश के सामने आकर माइक लेकर खड़े हो जाते हैं l

यश - देखिए.... आप लोगों को... किसी पेज थ्री वाले का इंटरव्यू लेनी चाहिए.... ना कि मुझ जैसे बिजनेसमैन की.... मेरी एक मन्नत थी.... जो बिजी जिंदगी के चलते भूल गया था.... आज वह उतारने आया हूँ....
रिपोर्टर 1- आप भले ही... अपने आप को सेलिब्रिटी ना मानते हों.... पर आप बहुत से नौजवानों के इंस्पिरेशन हो.... इसलिए हम आपसे उन नौजवान पीढ़ी के लिए.... कुछ पूछना... कुछ जानना चाहते हैं....
यश - ठीक है.... मुझे पहले मंदिर में जाने दीजिए.... मंदिर से आने के बाद.... दस मिनिट में.. जो चाहे पुछ लीजिए.... मैं ईमानदारी से जवाब दे दूँगा....
सारे रिपोर्टर - ओके... यश जी.... हम यहीं आपकी इंतजार करेंगे....
यश - धन्यबाद...

इतना कह कर यश मंदिर की ओर बढ़ जाता है, और सारे रिपोर्टर वहीँ खड़े होकर कैमरा को मंदिर की ओर कर अपना रिपोर्टिंग चालू रखते हैं जिससे सबको यश की जाते हुए साफ दिखाई दे रहा है l

रिपोर्टर - आप देख सकते हैं.... यश वर्धन... हमारे राज्य ही नहीं बल्कि देश के कम उम्र में.. बिजनस की दुनिया में शिखर को छू कर... इस देश की युवा पीढ़ी के आदर्श बने हुए हैं... जैसा कि उन्हों ने कहा... वह यहां अपनी मन्नत उतारने आए हैं... अभी आप देख सकते हैं... वह लंगड़ाते हुए... मंदिर की भीतर जा रहे हैं... और अब वह सीढ़ी चढ़ रहे हैं.... और.... ओ ह... नो... देखो... वहाँ पर... लगता है... कोई हाथापाई हो रही है वहाँ पर... चलो चलो चल कर देखते हैं...

सारे रिपोर्टर वहाँ पहुँचते हैं तो पाते हैं एक आदमी को यश ने कलर से पकड़ कर खड़ा है l पास जयंत और वैदेही खड़े हैं l यश उस आदमी को मारने को होता है कि जयंत उसे रोक देता है l पर यश उस आदमी को नहीं छोड़ता है l उस आदमी को अपने गार्ड्स के हवाले कर देता है l गार्ड्स उस आदमी को पकड़ लेते हैं l
रिपोर्टर - क्या हुआ यश जी... यह... हाथापाई कैसा और क्यूँ...
यश - (उस पकड़े गए आदमी को दिखा कर) यह नामुराद.. (जयंत को दिखा कर) इस बुजुर्ग और भले आदमी पर हाथ उठाया और धक्का भी दिया.... वह तो मैं ऐन मौके पर पहुंच गया... वरना... इन बुजुर्ग महाशय को चोट भी लग सकती थी....
वह आदमी चिल्लाते हुए कहता है - मैंने जो किया... ठीक किया.... इस आदमी का... मुहँ काला कर... गधे पे बिठा कर सहर सहर घुमाना चाहिए....
वैदेही - क्यूँ... आखिर क्या किया है... इन्होंने...
आदमी - यह बुढ़ा... मनरेगा... के लूट के पैसे में... अपने हिस्से के लिए... केस को कमजोर कर रहा है.... अपराधी को बचा रहा है...

वैदेही को यह सुन कर बहुत बड़ा झटका लगता है l उसे लगा नहीं था जयंत पर ऐसा गुजरेगा, उसे बहुत दुख होता है, जवाब में कुछ कह नहीं पाती, चुप हो जाती है l

यश - अरे... तो सरकार को मारो ना.... सरकार ने इन्हें नियुक्त किया है.... इन बेचारे बुजुर्ग आदमी पर हमला करने का क्या मतलब है....
आदमी - हमें कुछ नहीं पता.... यह ग़द्दार है... समाज का दुश्मन है....
यश - (पास खड़े लोगों से) अरे भई... कोई पुलिस को बुलाओ.... और इस पागल को.... पुलिस के हवाले... करो...
जयंत - नहीं नहीं.... जाने दो... इन्हें....
यश - आप इन्हें ऐसे ना छोडें.... यह अगर गया... और और एक आएगा... हमला करेगा... इन जैसों को सजा मिलेगी... तो दुसरों को सबक मिलेगा...
पंडा - हाँ हाँ... यह महाशय सही कह रहे हैं.... इस आदमी को.. पुलिस के हवाले कर देना चाहिए....
जयंत - नहीं पंडा... उसे छोड़ दो... प्लीज...
मंदिर के आस पास के लोग चिल्लाते हैं - नहीं नहीं... उसे पुलिस के हवाले किया जाए...
यश - ठीक है... ठीक है... आप पुलिस को बुलाएं....
मंदिर प्रशासन पुलिस को बुलाती है l थोड़ी देर में पुलिस पहुंच जाती है l पुलिस उस आदमी को अपने जीप पर बिठा कर ले जाती है l

पंडा - (यश से) आप कौन हैं... महाशय...
यश - जी मैं... यश वर्धन हूँ... भगवान से मन्नत मांगा था... वह उतारने आया था...
पंडा - ओ... आओ... बेटा... आओ...
यश - (अपना हाथ जोड़ कर जयंत से) अच्छा... अगर कोई भूल चूक हो गया हो... तो मुझे माफ कर दीजिएगा.....
वैदेही - जी आपसे कुछ भी भूल नहीं हुआ है.... आपने तो उल्टा मदत की है.... इसलिए आपका धन्यबाद....
यश - जी बहुत अच्छा.... धन्यबाद...

कह कर पुजारी के साथ मंदिर के भीतर चला जाता है l वैदेही जयंत का हाथ थाम कर बाहर एक ऑटो वाले को रोकती है और जयंत को साथ लेकर जयंत के घर की ओर चली जाती है l
इधर पूजा खतम कर यश लौट कर अपनी गाड़ी के पास पहुंचता है l पहले से तैयार मीडिया वाले उससे सवाल पर सवाल पूछते हैं l तो यश उन्हें हाथ जोड़ कर कहता है,

यश - देखिए... मैं यहाँ... अपनी मन्नत उतारने आया था.... और मंदिर में जो हुआ... वह बहुत ही पीड़ा दायक था... हमारे देश के लोगों को क्या हो गया है.... महिला या बुजुर्ग... कुछ भी नहीं देख रहे हैं.... यह घटना... मुझे बहुत दुख पहुंचाया है.... लोगों को अपनी भावनाओं पर काबु पाना चाहिए... हम सभ्य समाज में रहते हैं.... और यह आचरण किसी... सभ्य समाज को शोभा नहीं देता.... बस इससे ज्यादा... मुझे कुछ नहीं कहना.... धन्यबाद....

इतना कह कर यश अपनी गाड़ी में बैठ जाता है l सारे मीडिया वाले खुदको ठगा सा महसूस करते हैं l उनमें आपस में जुबानी खिंच तानी शुरू हो जाती है l

रिपोर्टर 1 - यार हमे यहाँ... यश वर्धन का इंटरव्यू लेने के लिए भेजा गया था... पर सब पोपट हो गया...
रिपोर्टर 2 - पर हमे यश का इंटरव्यू मिलेगा ऐसा... मेसेज दिया किसने....
रिपोर्टर 3 - अरे यार... किसे मालुम.... वैसे भी... यश कभी कैमरे के सामने आता नहीं है... आज मिला था.... पर यह कांड हो गया....
रिपोर्टर 1 - पर जो भी हो... कांड मगर जबर्दस्त हुआ है.... आँ... बढ़िया ब्रेकिंग न्यूज मिला है... यश को हम फिर कभी लपेट लेंगे... फिलहाल मनरेगा घोटाला का तवा गरम है.... और आज यह कांड हुआ है.... आज तो टीआरपी जमके बरसेगी...
बाकी रिपोर्टर - हाँ यह बात तो सोला आने सही कही....
रिपोर्टर 1 - तो चलें फ़िर...
बाकी रिपोर्टर - हाँ... चलो चलते हैं...

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जयंत जा घर

जयंत अपने आराम कुर्सी पर बैठा कुछ सोच रहा है l वैदेही पास खड़ी हाथ में पानी की ग्लास और आँखों में आंसू लिए खड़ी है l जयंत अपना चेहरा घुमा कर वैदेही को देखता है l
जयंत - अरे पानी मेरे लिए ही लाई हो ना...

वैदेही अपनी आँखों से आँसू पोंछ कर सर हिला कर हाँ कहती है l

जयंत - तो दो...

वैदेही ग्लास बढ़ा कर देती है l जयंत ग्लास लेता है और पानी पीने लगता है l

वैदेही - (भारी गले से) आज आपने... अपने साथ उन गार्ड्स को क्यूँ लेकर नहीं गए....
जयंत - अरे... रोज रोज... उन्हें लेकर... घूमते... घूमते... मैं... उब गया था....
वैदेही - और उसका खामियाजा....आपको आज भरना पड़ा....
जयंत - नहीं... नहीं वैदेही.... वह दोनों.... अगर साथ होते भी... तो मंदिर के भीतर नहीं आते... और यह रोज की प्रैक्टिस थी... इसलिए मैंने उन्हें.... आज मेरे साथ न आने के लिए कहा था.... और जिसने भी यह किया है... वह जरूर..... मेरी हर रोज की हरकत को.... नोटिस किया होगा... इसलिए आज क़ामयाब हो गया....
वैदेही - मैं ना कहती थी.... भैरव सिंह आया है... कुछ बवाल करेगा... यह उसी की घिनौनी हरकत है....
जयंत - ह्म्म्म्म.... जानता हूँ... मैंने पहले से ही अंदाजा लगा लिया था....
वैदेही - तो आप... सावधान क्यूँ नहीं हुए... वह आपको... डराना चाहता है... धमकी नहीं दे सकता था... इसलिए लोगों के भावनाओं को आपके खिलाफ भड़का कर... आपको अंदर से तोड़ना चाहता है....
जयंत - वाह... मेरे साथ रह कर.... तुम भी... वकील की तरह... सोचने लगी हो....
वैदेही - यह मज़ाक की बात नहीं है....
जयंत - मैं भी कहाँ मज़ाक कर रहा हूँ....

वैदेही के आँखों में आंसू आ जाती हैं l

वैदेही - सर... अगर विश्व की केस लड़ने की कीमत यही है.... तो फिर आप यह केस छोड़ दीजिए....
जयंत - पागल हो तुम... यह केस लेते वक़्त.... मैंने खुद नहीं सोचा था कि..... हम यहाँ तक पहुंच सकते हैं.... अब जब जीत दिखने लगा है.... तुम कहती हो... मैं यह केस छोड़ दूँ....
वैदेही - (सुबकते हुए) हमारी केस आपसे ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है.... क्या होगा... ज्यादा से ज्यादा.... कुछ साल के लिए... जैल हो जाएगी.... उसे फांसी तो नहीं होगी... पर.... विश्व की रिहाइ आपके मान सम्मान की कीमत पर नहीं.... बिल्कुल भी नहीं....
जयंत - वैदेही... कहीं... तुम... यह तो नहीं सोच रही हो.... की मुझे.... दो बार हार्ट अटैक... पहले आ चुकी है.... कहीं तीसरा ना आ जाए....

वैदेही आँसू भरे आँखों से जयंत को देखती है l जयंत उसे दिलासा देते हुए कहता है l

जयंत - देखो... वैदेही... अपने मन में... कोई वहम... मत पाल लेना.... मुझे पहले जो दो बार अटैक आया था... उसकी वजह अलग थी.... ऐसी छोटी छोटी बातों से... मेरे सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा..... मैंने इससे भी बड़ी बड़ी... लानत झेला है... यह तो बहुत ही... मामूली बात है....

वैदेही चुप रहती है l जयंत को वैदेही के आंखों में परेशानी साफ दिख रहा है l

जयंत - वैदेही.... परेशान मत हो.... यह मेरा वादा है.... भैरव सिंह क्षेत्रपाल की जिरह के बाद.... तुम्हारा भाई विश्व आजाद होगा.....
वैदेही - मेरी एक बात मानेंगे.....
जयंत - इस केस को छोड़ने की बात को छोड़ कर.... कुछ भी मांग लो....
वैदेही - ठीक है.... जब तक... इस इस केस की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती... मैं आपके साथ... आपके पास... आपके साये की तरह रहूंगी.....

जयंत उसे घूरता है l पर वैदेही के आँखों में उसे एक दृढ़ निश्चय दिखता है l जयंत उसकी हालत देख कर चुप रहता है l

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तापस का क्वाटर
दोपहर का वक्त

प्रत्युष - माँ... (डायनिंग टेबल पर बैठा चिल्लाता है ) माँ... यहाँ न्यूज देखिए....
प्रतिभा -(किचन से बाहर आते हुए) ओ हो... क्या है... क्यूँ चिल्ला रहा है..
प्रत्युष - यह देखिए.... (टीवी की ओर दिखाते हुए)

प्रतिभा टीवी पर देखती है, स्क्रीन पर ब्रेकिंग न्यूज स्क्रोल हो रही है l बचाव पक्ष के वकील जन आक्रोश का शिकार, और एक वीडियो बार बार रिपीट हो रहा है जिसमें साफ दिख रहा है जगन्नाथ मंदिर के सीढियों के नीचे ठीक गरुड़ स्तम्भ के पास एक आदमी जयंत का कॉलर पकड़ कर थप्पड़ मारने की कोशिश करते हुए l पर मार नहीं पता तो जयंत को धक्का मारता है, जिसके वजह से जयंत एक आदमी के ऊपर गिर जाता है l यह सब देख कर प्रतिभा को बहुत दुख होता है,

प्रतिभा - हे... भगवान.... यह क्या हो गया....
प्रत्युष - वही तो.... बुरा हो गया... पर एक बात अच्छा भी हुआ है....
प्रतिभा - (गुस्से से) क्या अच्छा हुआ है.... एक बुजुर्ग आदमी को... बेवजह कहीं से कोई आ कर.. मारने चला आता है.... और... तु कह रहा है.... अच्छा भी हुआ है....
प्रत्युष - अरे माँ... तुम पूरा न्यूज देखो... तब समझ में आएगा....

प्रतिभा कुछ देर टीवी देखती है पर न्यूज में उसे केवल जयंत पर हमले की खबर को दिखा रहा है और उस गिरफ्तार आदमी को बेचारा कह रही है l यह देख कर उसे और भी गुस्सा आती है और कहती है

प्रतिभा - क्या.... अच्छा है... मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा...
तापस - (बाहर से अंदर आते हुए) यह उल्टी गंगा कबसे बहने लगी.... माँ बेटे से ज्ञान ले रही है....
प्रत्युष - यह क्या डैड.... मैं इतना भी भोंदु नहीं हूँ.... हाँ...
प्रतिभा - सुनिए... आपने जैसा... अंदाजा लगाया था.... वह अब हो रहा है.... जयंत सर पर हमला शुरू हो गया है....
तापस - क्या..
प्रतिभा - हाँ... और यह नालायक.... कह रहा है... अच्छा हुआ है..
प्रत्युष - आ.... ह... (खीज कर) मैं जो कह रहा हूँ... उसे आप पहले सुन तो लीजिए...
प्रतिभा - ठीक है.... क्या अच्छी खबर है... बोल..
प्रत्युष - जयंत सर पर हमला करने वाले को.... हमारे एमडी ने गिरफ्तार करवाया...
तापस - तुम्हारे एमडी..
प्रत्युष - हाँ... निरोग ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल कम वाइआइसी फार्मास्यूटिकल्स के एमडी.... यश वर्धन चेट्टी...
तापस - वह मुझे मालुम है.... मेरे कहने का मतलब है... मिस्टर चेट्टी... इतने बड़े आदमी... यहाँ... चांदनी चौक के जगन्नाथ मंदिर में क्या कर रहे थे....
प्रत्युष - आप भी कमाल करते हैं... डैड... वह कटक के रहने वाले हैं... कटक के जगतपुर में... उनकी फार्मास्युटिकल कंपनी है.... और वह कह भी रहे हैं... उनकी मन्नत थी.... वही उतारने आए थे... तो यह दुर्घटना हो गई....
तापस और प्रतिभा - ओ...
प्रत्युष - इसीलिए मैंने कहा कि... कुछ अच्छा हुआ है.... वैसे भी... चेट्टी सर... किसीको भी... इंटरव्यू नहीं देते... हमेशा लाइम लाइट से दूर ही रहते हैं.... इन पापाराजीओं को पता नहीं... कहाँ से खबर मिल गई... इनका पीछा करते करते... जगन्नाथ मंदिर में पहुंच गए..
तापस और प्रतिभा दोनों थोड़ी देर के लिए चुप हो जाते हैं, तापस अपनी यूनीफॉर्म की बटन खोलते हुए कुछ सोचने लगता है, फिर

तापस - यह वही... हैं ना... जो अब राजगड़ में... भी निरोग हस्पताल बनाने वाले हैं..
प्रत्युष - हाँ डैड... यह वही हैं.... जिनके पास... क्षेत्रपाल जी आए थे... अपने यहाँ हस्पताल बनवाने के लिए.... और ओंकार चेट्टी जी ने... इन्हें राजनीति में... ले आए...

तापस सोफ़े पर बैठ जाता है और कुछ सोचने लगता है l प्रतिभा उसे सोच में देख कर प्रत्युष से कहती है

प्रतिभा - तु... जा... अपने कमरे में... और हाँ टीवी बंद कर.... जब देखो टीवी पर घुसा रहता है... पढ़ाई कब करेगा... एग्जाम भी आने वाले हैं.... कोई पेपर बैक लगनी नहीं चाहिए.... समझा... चल जा यहाँ से.
प्रत्युष प्रतिभा को हैरानी से मुहँ फाड़े देखता है

प्रत्युष - क्या बात है माँ... इतनी लंबी... आप मुझ पर क्यूँ झाड़ दिए..
प्रतिभा - अब जाता है... या मार खाएगा मुझसे...
प्रत्युष - (अपना पिछवाड़ा दिखाते हुए) माँ.. माँ.. प्लीज प्लीज... कम से कम एक बार... मारो ना.... प्लीज..
प्रतिभा - प्रत्युष.... (गुस्से भरे लहजे में) तुझे मैंने क्या कहा...

प्रत्युष मुहँ लटका कर ऐसे वहाँ से निकलता है जैसे उसे बहुत दुख पहुंचा हो l वह अपने कमरे में के दरवाजे तक पहुंच कर पीछे मुड़ कर प्रतिभा को देखता है l

प्रत्युष - माँ... अभी मैं खाने के टाइम तक... तुमसे कट्टी हूँ.. हूं ह..
प्रतिभा - ऑए आज तु... सच में मार खाएगा...
प्रत्युष - हूं ह(कह कर दरवाजा बंद कर देता है)

प्रत्युष के जाने के बाद प्रतिभा तापस की ओर मुड़ती है, तापस बिल्कुल वैसे ही सोफ़े पर गहरी सोच में डूबा हुआ है l प्रतिभा उसके पास जा कर बैठ जाती है और

प्रतिभा - सेनापति जी... मैं जो सोच रही हूँ... क्या आप भी वही सोच रहे हैं...
तापस - तुम क्या सोच रही हो....
प्रतिभा - यही की... चेट्टी जूनियर का वहाँ जाना... और जयंत सर पर हमला... कोई कोइंसिडेंस नहीं है... बल्कि प्री प्लान्ड है....
तापस - अरे वाह... अब तुम बिल्कुल.... एक क्रिमिनल लॉयर की तरह सोच रही हो....
प्रतिभा - हाँ... आपका ही सोबत का असर है....
तापस - मुझे दुख इस बात का भी हो रहा है... बेचारे जयंत सर को इस उम्र में... यह सब झेलना पड़ रहा है....
प्रतिभा - भगवान करे... अगली सुनवाई तक उनके साथ... और बुरा ना हो....
तापस - ह्म्म्म्म... लेट्स होप सो.....

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शाम का वक़्त
ओराइअन मॉल
बर्गर किंग स्टॉल के सामने एक टेबल पर विक्रम बैठा हुआ है l मन ही मन में एक गाना गुनगुना रहा है



तभी काउन्टर से एक लड़का विक्रम की ओर आता है
लड़का - सर... डु यु वांट समथिंग...
विक्रम - आई एम वैटींग फॉर सम वन....
लड़का - ओके देन... (कह कह चला जाता है)

विक्रम इधर उधर नजर दौड़ा रहा है कभी लिफ्ट तो कभी किसी कॉफी की स्टॉल पर l उसे वह नहीं दिख रही है, जिसकी उम्मीद में आज वह मॉल आया है l विक्रम अपने जेब से फोन निकालता है फ़िर महांती को फोन लगाता है l

विक्रम - महांती.... यार कहाँ हो... कुछ सुनाओ यार.... कान तरस रहे हैं... कुछ अच्छा सुनने के लिए....
महांती - सर.... बस हो गया... समझिए.... अगले महीने में अपनी ऑफिस का.... ग्रांड ओपनिंग रखते हैं...
विक्रम - क्यूँ... अपना रजिस्ट्रेशन हो गया क्या...
महांती - सर.... हो गया समझिए.... फाइनल अप्रूवल के लिए गया है... एक दो दिन में हो जाएगा....
विक्रम - ह्म्म्म्म... एक्चुएली.... बिना काम के.... जिंदगी नर्क सा लगने लग रहा है....
महांती - हाँ सर यह बात तो है.... पर अगर कल को... लाइसेंस मिल जाता है... तो आप फुर्सत के लिए.. तरसेंगे...
विक्रम - यार... वह वक्त तो आने दो....
महांती - वैसे एक बात पूछूं...
विक्रम - हाँ पूछो....
महांती - आप आज कुछ अलग लग रहे हैं.... लहजा युवराज वाली... नहीं है....
विक्रम -(सकपका जाता है) अच्छा ठीक है... मैं फोन रख रहा हूँ...

इतना कह कर विक्रम फोन रख देता है l फिर सोचने लगता है, शायद महांती सच कह रहा है कुछ दिनों से वह युवराज जैसे शैली में किसी से भी बात नहीं कर पा रहा है l वह कभी किसीसे फ्रेंडली नहीं हो पाता था पर आज कल हो रहा है l यह सोच कर वह मुस्कराने लगता है l तभी उसे लगता है कोई महकती हवा उसके कानों को छूती हुई गुजर गई l वह फिर से चारो तरफ अपनी नजरें दौड़ाता है, तभी वह देखता है वह लड़की जिसका इंतजार था उसको, वह अपनी कुछ सहेलियों के साथ उसी फ्लोर पर आती है जिस फ्लोर पर वह बैठा हुआ है l असल में वह फ्लोर फूड कोर्ट की है l अब विक्रम अपना चश्मा निकाल कर पहन लेता है और मेन्यू कार्ड को लेकर अपने चेहरे के आगे रख देता है l ल़डकियों की टोली कुछ दूर पर बैठ जाते हैं l विक्रम सोचने लगता है,
- यार कैसे उस लड़की का ध्यान अपने तरफ खिंचु... कहीं उसे बुरा ना लग जाए... फिर वह अपने सहेलियों के साथ आई है.... उसने अगर कुछ उल्टा सीधा बोल दिया... तो अपना इज़्ज़त तो कचरा हो जाएगा.... पिछली बार तो अकेली आई थी... पर आज यह झुंड लेकर क्यूँ आ गई... एक काम करता हूँ.... चुपके से निकल लेता हूँ.... फिर कभी.... इत्तेफ़ाक से मिलना हो अकेले में....

ऐसा सोच कर मेन्यू कार्ड अपने आगे हटा कर देखता है l पर इस बार वह लड़की उसे नहीं दिखती है l वह हैरान हो कर फ़िर से इधर उधर नजर दौड़ाता है l फिर भी वह लड़की उसे कहीं नजर नहीं आती है l बड़े बेमन से अपनी जगह से उठता है और एक लिफ्ट की ओर जाता है l वह लिफ्ट का बटन दबाता है l लिफ्ट का दरवाजा खुल जाता है l अंदर जाए या ना जाए ऐसा सोचता है कि अचानक उसे अपने पीछे से महकती खुशबु आती हुई महसुस होती है l वह झटपट पीछे मुड़ता है, तो देखता है वह लड़की, उसकी लकी चार्म उसे घूर रही है l विक्रम जब उसे अपनी ओर घूर कर देखता है तो थोड़ा हड़ाबड़ा जाता है l वह खुद को सम्भालने की कोशिश करता है l इतने में लिफ्ट बंद हो जाती है l विक्रम जब फ़िर से उस लड़की के तरफ देखता है तो वह लड़की उसे अपनी आँखों से इशारे से पूछती है कि
- कहाँ जा रहे हो l

विक्रम हड़बड़ा कर अपना सर हिला कर ना कहता है l

लड़की - तो प्रेसिडेंट साहब.... भाग रहे हैं....
विक्रम - अरे नहीं... वह एक्चुयली मैं... जिस काम के लिए आया था... वह... मेरा मतलब है कि... मुझे किसी और फ्लोर को जाना था.... पर गलती से... इस फ्लोर पर आ गया.... इसलिए यहाँ से दुसरे फ्लोर जाने की सोच रहा था....
लड़की - ओ अच्छा... पर मुझे लगा कि.... आप उसे कैफे पर किसीका इंतजार कर रहे थे.....
विक्रम - हाँ... नहीं.... मेरा मतलब है... कर रहा था.... पर वह आए नहीं.... तो...
लड़की - आर यु श्योर.... वह आए नहीं....
विक्रम - नहीं.... पर... शायद आए हों.... मुझे ही ना दिखे हों....
लड़की - तो आप हमे... जॉइन कर सकते हैं.... प्रेसिडेंट साहब....
विक्रम - एक मिनिट..... आपको कैसे पता... मैं प्रेसिडेंट बन गया हूँ....
लड़की - अजी मैंने ही आपको.... चने के झाड़ पर चढ़ाया है... तो उतना ख़बर तो... रखना ही पड़ेगा ना....
विक्रम - अच्छा तो यह बात है....
लड़की - क्यूँ ना.... आपके प्रेसिडेंट बनने की खुशी में.... आप हमें ट्रीट दें....
विक्रम - आइडिया बुरा तो नहीं है.... पर ट्रीट हम उन्हें देना चाहते हैं... जिन्होंने हमे चने के झाड़ पर चढ़ाया था....
लड़की - अच्छा.... ह्म्म्म्म.... वह आपके साथ चली जाती.... पर आप तो उसके टास्क हार गए...
विक्रम - अरे ऐसे कैसे.... शुभ्रा जी... हम टास्क हारे नहीं है....
शुभ्रा का मुहँ खुला रह जाता है और एक खुशी की झलक कुछ देर के लिए चेहरे पर आ कर चली जाती है l
शुभ्रा - अगर मैं यह कहूँ.... के मेरा नाम शुभ्रा नहीं है तो....
विक्रम - तब तो हम जरूर आपके दिए टास्क हार गए.... अब एक लुजर... क्या पार्टी देगा.... सॉरी...
शुभ्रा - अरे ऐसे कैसे सॉरी... आप जीत गए हैं...
विक्रम - (मुस्कराते हुए) कीसे...
शुभ्रा - टास्क को....
विक्रम - तो शुभ्रा जी.... हमारी दोस्ती पक्की ना....

शुभ्रा विक्रम को कुछ नहीं कहती बस अपनी शर्माहट को छुपाते हुए अपना सर हिला कर हाँ कहती है l

विक्रम - वैसे.... आप यहां कितनी देर तक खड़ी रहेंगी.... आपके दोस्त इंतजार कर रहे हैं....
शुभ्रा - एक मिनिट (अपनी फोन निकालती है और किसीको डायल करती है) हैलो हाँ... यार तुम लोग.... मैं थोड़ी देर बाद तुम लोगों को जॉइन करती हूँ...(उसके बाद वह अपना फोन रख देती है) जी लीजिए आपकी प्रॉब्लम शल्व....
विक्रम - तो चलें... हम ऊपर के फ्लोर पर भी कॉफी डे है... वहाँ पर कर एक कप कॉफी और दो बातेँ....
शुभ्रा - ओ हैलो... मैंने उन्हें... थोड़ी देर बाद जॉइन करती हूँ बोला है....
विक्रम - (अपना चेहरा लटका कर) ठीक है... आप अपने दोस्तों के पास जाइए... मैं फिर कभी मिलता हूँ....
शुभ्रा - अच्छा... तो कब मिलेंगे....
विक्रम - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) जब फिर से ऐसी इत्तेफाक होगा....
शुभ्रा - ऐसी इत्तेफाक... सोच लीजिए....

विक्रम उसे पहले अचरज से देखता है फ़िर कहता है l

विक्रम - नहीं नहीँ.... इत्तेफाक... पिछली बार की तरह... इस बार की तरह नहीं...

य़ह सुन कर शुभ्रा खिल खिला कर हंस देती है l उसकी हंसी विक्रम के दिल में हलचल मचा देती है l उसे हंसते हुए देख अंदर से विक्रम को बहुत अच्छा लगता है l

शुभ्रा - चलिए... आखिर आप भी हमारे दोस्त हैं.... और शुभ्रा कभी अपनी दोस्तों को.... मायूस नहीं होने देती....

विक्रम अंदर ही अंदर बहुत खुश होता है l उसका मन करता है वह नाचे गाए उछले कुदे पर बड़ी मुश्किल से खुद को कंट्रोल करता है l विक्रम फ़िर लिफ्ट का बटन दबाता है l दोनों लिफ्ट के अंदर जाते हैं और उपर के फ्लोर पर कॉफी डे स्टॉल पर पहुंचते हैं l दोनों एक टेबल पर बैठ जाते हैं l

शुभ्रा - जाइए पहले टोकन ले लीजिए....

विक्रम खुशी खुशी भागते हुए जा कर टोकन ले आता है l शुभ्रा उसकी इस हरकत पर मन ही मन हंस देती है और बाहर जाहिर नहीं होने देती l

शुभ्रा - दीजिए... जब नंबर आएगा... मैं जाऊँगी लाने...
विक्रम - अरे मैं... ले.. आऊंगा ना....
शुभ्रा - जी नहीं... दीजिए...

विक्रम भी बिना किसी लपेट के शुभ्रा को टोकन दे देता है l

शुभ्रा - (टोकन लेने के बाद) हाँ... तो विक्रम साहब.... आपको मेरा नाम कैसे मालुम हुआ.... बतायेंगे....
विक्रम - जी आपने कहा... मालुम करने के लिए.... और हमने कर दिया.... बस...
शुभ्रा - मतलब आप बताना नहीं चाहते हैं....
विक्रम - नहीं ऐसी बात नहीं है.... एक बार ट्रैफिक पर मेरी गाड़ी रुकी हुई थी.... वहाँ पर मुझे एक वाशिंग पाउडर की..... बड़ी सी एडवर्टाइजमेंट पोस्टर दिखी... जिसमें लिखा था.... शुभ्रता की नई पहचान.....***** वाशिंग पाउडर.... बस आगे सब क्लीयर हो गया....
शुभ्रा - ओ... तो आपने ऐसे पता किया मेरा नाम...
विक्रम - जी...
तभी काउंटर पर इनकी नंबर डिस्प्ले होती है l शुभ्रा जा कर एक प्लेट में दो कॉफी और दो स्ट्रॉ लेकर आती है l विक्रम स्ट्रॉ देख कर हैरान हो जाता है l शुभ्रा अपनी कप में शुगर की पाउच फाड़ कर अपनी कॉफी में मिलाती है और स्ट्रॉ डाल कर कॉफी पीने लगती है l विक्रम अब उसे ऐसे कॉफी पिता देख हैरानी से देखता है l शुभ्रा उसे यूँ अपने तरफ देख कर

शुभ्रा - विक्रम जी... आप ऐसे अपना मुहँ मत खेलिए... मच्छर नहीं तो मक्खी जरूर घुस जाएंगी....

विक्रम सकपका जाता है और वह अपनी कप में शुगर डाल कर कॉफी की सीप लेता है l शुभ्रा अपने में मस्त हो कर कॉफी पी रही है l विक्रम उसे देख कर अपना कॉफी पी रहा है l शुभ्रा फिर विक्रम की ओर देखती है तो विक्रम अपनी नजरें निची कर लेता है l शुभ्रा के चेहरे पर मुस्कान खिल उठती है l

शुभ्रा - क्या बात है... प्रेसिडेंट साहब... आप मेरे कॉफी पीने को इतना घूर के क्यूँ देख रहे हैं... जी...
विक्रम - (सकपका जाता है और हकलाते हुए) क.. कुछ नहीं... क... क.. कुछ भी नहीं...
शुभ्रा - जानती हूँ... आप मुझे क्यूँ घूर रहे हैं...
विक्रम - ज.. जी.. जी.. क्या..
शुभ्रा - हाँ... मैं जब कॉफी पीती हूँ... तो मेरे मुहँ पर कॉफी से बनी मूंछें उभर जाती है... सब हंसते हैं... और आप घूरते हैं....

विक्रम क्या कहे उसे समझ में नहीं आता l वह अपनी नजरें चुराने लगता है l शुभ्रा उसकी हालत देख कर मन ही मन मुस्कराती है l

शुभ्रा - वैसे... जानते हैं... इस स्ट्रॉ में पीने से... कॉफी का मजा नहीं आता....
विक्रम - (बड़ी मुस्किल से अपनी हलक से आवाज़ निकाल कर) हाँ... आ... आपने ठी... ठीक कहा.... आ.. आप... कॉफी... ऐसे मेरे जैसे पी... पीजीए.. न ना...

शुभ्रा उसकी हकलाना देख कर खिल खिला कर हंस देती है l शुभ्रा का ऐसे हंसने से विक्रम के दिल में कई सितार बज उठते हैं l वह उसकी हंसी में खो जाता है l शुभ्रा स्ट्रॉ को किनारे कर कॉफी पीने लगती है l विक्रम अपना कॉफी छोड़ उसे कॉफी पिता देखता है l
आखिर में वह पल आता है l जब शुभ्रा के होठों के उपर एक काली और सफेद रंग की मिली जुली धारी दिखती है l शुभ्रा इस बार अपनी आँखे बंद कर अपनी जीभ को फेरती है l उसकी यह अदा देख कर विक्रम एक ठंडी आह भरता है l शुभ्रा अपनी आँखे खोल कर विक्रम को देखती है तो पति है विक्रम उसे टकटकी लगाए देखे जा रहा है l

शुभ्रा - देखा इसी लिए... मैं ऐसे कॉफी नहीं पीती....
विक्रम - स... सो.. सो.. सॉरी... (कह कर अपनी नजरें झुका लेता है)
शुभ्रा - अरे... कोई नहीं... आप मेरे दोस्त हो... इसलिए चलेगा...

विक्रम यह सुनकर शुभ्रा को देखता है, शुभ्रा के चेहरे पर एक शरारत भरी मुस्कान दिखती है l विक्रम शरमा कर अपना सर झुका कर मुस्कराने लगता है l

शुभ्रा - अच्छा तो प्रेसिडेंट साहब... हमने आपको ट्रीट ले ली.... एक कप कॉफी पर दो नहीं बहुत सारी बातें हो गई..... अब मुझे आप इजाज़त दें... ताकि मैं अपनी दोस्तों के पास जा सकूं...

कह कर शुभ्रा उठ कर जाने लगती है l विक्रम को समझ में नहीं आ रहा क्या करे और क्या कहे l

विक्रम - शु... शुभ्रा.. जी...
शुभ्रा पीछे मुड़ कर विक्रम को देखती है और अपनी आखों से इशारे से वजह पूछती है l

विक्रम - (अपनी नजरें चुराते हुए) वह... जब हम... दोस्त बन गए हैं... तो क्या अगली मुलाकात के लिए... हम इत्तेफाक का इंतजार करें...

शुभ्रा अपने ठुड्डी के नीचे हाथ को मुट्ठी बना कर रखती है और तर्जनी उंगली से गालों पर फेरते हुए कुछ सोचने का नाटक करती है और विक्रम की ओर देखती है फिर

शुभ्रा - तो आप ही कहिए... क्या किया जाए... मैं रोज रोज तो यहाँ नहीं आ सकती ना...
विक्रम - वह.... अगर बुरा ना माने तो.... क्या आप... (विक्रम रुक जाता है)
शुभ्रा - हाँ.... हाँ... मैं...
विक्रम - अगर आपका नंबर... मिल जाता तो...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म तो आपको... मेरा नंबर चाहिए... क्यूँ...
विक्रम - जी अगर आपकी मर्जी हो तो...
शुभ्रा - मिल सकती है... अगर आप और एक टास्क पुरा कर सकें तो...
विक्रम - (खुशी से) जी... जी... बिल्कुल... बिल्कुल... क्या है आपका टास्क...
शुभ्रा - टास्क है... और इसी टास्क में.... मेरा नंबर है....
विक्रम - अच्छा... क्या इतनी स्पेशल है यह नंबर....
शुभ्रा - और नहीं तो.... आखिर... मैं सबसे स्पेशल जो हूँ... अपनी माँ बाप के लिए.... अपने दोस्तों के लिए...
विक्रम - हाँ.... यह आपने सही कही.... आप सबसे स्पेशल हो..... ठीक है फिर... टास्क इज एक्सेप्टेड...
शुभ्रा - एक पायदानी सफर .... ऊपर से नीचे की ओर.... थमती है सफर जब लगती है पंजे के जोड़े की जोर.... आगे नहीं सफ़र मूड जाती है पीछे की ओर.... ना एक है ... ना दो ... ना तीन है ... ना चार... बस कुछ ऐसी है यह सफर.... इसी में है मेरा नंबर....

शुभ्रा यह कह कर चली जाती है l शुभ्रा कही सारी बातेँ विक्रम के सर के ऊपर निकल जाती है l वह हर शब्द को याद करते हुए वहाँ से उठता है l

_____×_____×_____×_____×_____×_____×

शाम का वक्त
चेट्टीस् गेस्ट हाउस

ड्रॉइंग रूम में सभी बैठे हुए हैं l बड़े से डबल सीटेड सोफ़े में भैरव सिंह बैठा हुआ है l उसके एक तरफ पिनाक और दुसरे तरफ ओंकार बैठे हैं l उनके सामने आम कुर्सी पर बल्लभ और रोणा बैठे हुए हैं l ड्रॉइंग रूम के एक तरफ बार बना हुआ है वहीँ एक रीवल्बींग चेयर पर अपने हाथ में पेग लिए यश चेयर के साथ इधर उधर घूम रहा है l

ओंकार - तुम्हें मालुम कैसे हुआ... के मंदिर में वह बिना सेक्यूरिटी के मिलेगा....
यश - पिताजी... जिस दिन आपने मुझे बुला कर.... केस की जानकारी दी... उसी दिन मैंने उस जयंत के पीछे जासूस छिड़े थे... इसलिए मुझे मालुम हो गया था.... सेक्यूरिटी को अपने साथ घुमा घुमा कर वह बोर हो गया था.... इसलिए... उसे सेक्यूरिटी का महत्व समझा दिया....
पिनाक - वह सब तो ठीक है.... पर तुम उस आदमी को जुगाड़ कहाँ से किया...
यश - छोटे राजा जी... भले ही... आप... आपके लीगल एडवाइजर.... को नकारा कहें.... पर है वह बहुत काम का....
पिनाक - क्या.... इसमें... इस प्रधान का क्या... योगदान रहा....
यश - छोटे राजा जी.... कोर्ट ने.... मीडिया को अंदर आने से रोक दिया.... फिर जब जब केस कमजोर हुआ... मीडिया तक डिटेल्स नहीं पहुंचने दिया.... आपके प्रधान ने.... इसके लिए शुक्रिया कहिए.... यहाँ तक दिलीप कर का बेहोशी को... जयंत के खिलाफ इस्तेमाल किया.... यह कम खिलाड़ी नहीं है.... अब तक मीडिया मैनेजमेंट... बहुत ही सही ढंग से किया है... इस प्रधान ने....
पिनाक - ठीक है... अब प्रधान पुराण छोड़ कर असल पर आते हैं....
यश - यही तो आपकी गलती है.... छोटे राजा जी.... कभी कभी अपने लोगों को शाबासी देते रहें.... काम और भी बढ़िया से होता रहेगा....
भैरव - यह तुमने बढ़िया बात कही है.... यश.... हम ज़रूर इस बात को याद रखेंगे.....
यश - थैंक्यू राजा साहब....
ओंकार - बहुत बढ़िया.... अच्छा... अब मुद्दे पर आते हैं... तुमने यह सब कैसे किया....
यश - मैंने आपके प्रधान को.... राजगड़ से ही एक आदमी को बुलाने को कहा.... प्रधान ने बिल्कुल वैसा ही किया... अब चूँकि शुरू से.... प्रधान मीडिया को सम्भाल रहा है.... मानना पड़ेगा प्रधान तुमको.... राजगड़ से हो.... फिर भी राजधानी में आकर... मीडिया को नचा रहे हो.... हाँ तो मैं कहाँ था....
बल्लभ - आपने मुझे... राजगड़ से एक आदमी बुलाने को कहा....
यश - हाँ... उसे हमने पचास हजार रुपए दिए.... और समझा भी दिया.... क्या करना है.... बस वह वही किया... जिसके लिए उसे पैसे मिले थे....
ओंकार - पर बेटा.... तुम्हें... जगन्नाथ मंदिर जाने की क्या जरुरत थी...
यश - बहुत.... जरूरत थी... पिताजी.... बहुत जरूरत थी... यह जो मीडिया वाले होते हैं... असल में कैपिटलीस्ट छतरी के नीचे.... कम्युनिस्ट खंबे पर अपना पिछवाड़ा टीका कर.... अपना दुकान चलाते हैं..... इन लोगों को एक ही मंत्र मालूम है... जो दिखता है... वही बिकता है.... और जो दिखा कर बेच पाता है..... मार्केट में वही टिकता है....
रोणा - यश साहब.... लगता है... नशा सर पर चढ़ गया है....
यश - ना... मैं.... जब कुछ कहता हूँ.... उसके लिए.... थोड़ा फिलासफी पर ज्ञान देता हूँ.... इसलिए बिना रुकावट डाले.... बात को सुनो.... यह मीडिया वाले मरे जा रहे थे.... मेरी इंटरव्यू लेने के लिए.... मैंने प्रधान के जरिए.... मीडिया हाउस को खबर भिजवा दी... के मैं अपनी मन्नत उतारने के लिए... जगन्नाथ दर्शन के लिए आया हूँ... इसलिए मैंने उन्हें अपने पीछे पीछे... मंदिर के प्रवेश द्वार तक ले आया.... बस क्या.... उसके बाद वह कांड हुआ.... जो रिकॉर्डिंग हो गया.... और मेरा काम खतम हो गया
....
पिनाक - फिर उस आदमी को.... तुमने ही पकड़वाया और तुम्हीं ने उसे गिरफ्तार भी करवा दिया....
यश - यह डील थी... उसके साथ.... इसलिए गिरफ्तार करवाया....
रोणा - इससे फायदा....
यश - अब वह आदमी जैल में है..... उसकी बीवी अब मीडिया के सामने आएगी.... अपनी छाती पीटेगी.... सरकार को गाली भी देगी....
परीडा - वाह... क्या प्लान है... अगर एक बेसहारा औरत रोएगी.... तो मीडिया उसे और भी हाईलाइट करेगी.... इससे तो लोगों की सेंटिमेंट उस औरत को मिलेगी.... सरकार भी डरेगी.....
यश - बिल्कुल.... टीआरपी के भूखे... यह न्यूज चैनल वाले.... मिर्च मसाला जोड़ कर.... एक तरफ जयंत का थप्पड़ खाना और दूसरी तरफ उस औरत का बिलखना.... लोगों की भावनायें.... उस औरत के लिए उमड़ेगी....
पिनाक - कुछ भी हो.... आज तो शनिवार था.... कल रविवार है और परसों.... राजा साहब कटघरे में....
यश - कल और परसों.... अदालत शुरू होने से पहले.... बहुत कुछ हो जाएगा.... राजा साहब आप एक वकील को रिजर्व कर लीजिए.... अगर विश्व अपने लिए कोई वकील मांगेगा.... तो हम उसे प्लॉट कर पाएंगे.....
ओंकार - क्या ऐसा हो सकता है....
यश - हो सकता है... नहीं ऐसा ही होगा.... वह जयंत.... सोमवार को केस से किनारा कर लेगा.... विश्व कटघरे में ठगा सा रह जाएगा....
दिलीप कर - वाह वाह वाह.... यश साहब वाह.... मैं आऊँ... वहां आके कुछ कउं....
पिनाक - आ कुत्ते आ.... अब महफिल में तेरी ही भोंकने की कमी थी....
दिलीप कर यश के पैरों पर गिर जाता है और कहता है
कर - यश बाबु.... आप तो देव पुरुष निकले....
यश - (दिलीप कर की गिरेबां को पकड़ कर) भोषड़ी के.... गाली देता है मुझे.....
कर - नहीं... नहीं... यश बाबु....
यश - सुन बे.... मैं दुनिया का... सबसे निच, गलीच इंसान हूँ.... मुझे देव पुरुष कह कर गाली मत दे....
कर - म.. म.... माफ कर दीजिए.... यश बाबु... माफी....

यश दिलीप कर को छोड़ देता है l यश का यह रूप देख कर सभी के सभी हैरान रह जाते हैं l

कर - म... मैं... मैं तो मज़ाक क... कर... रहा था....
यश - (कर के गाल पर चपत लगा कर) मैं भी तेरे से मज़ाक कर रहा था.... बे....
सब वहाँ पर हँस देते हैं दिलीप कर का मुहँ पर ठगा सा महसूस करने वाला एक्सप्रेसन आ जाता है l
पिनाक - अच्छा यश बाबु.... क्या अब और हमले भी होंगे... जयंत पर....
यश - हाँ... पहले हुए हमला उसे हज़म भी नहीं हुआ होगा.... के दुसरा.... फिर तीसरा भी हो जाएगा.....
परीडा - और उन हमले की रिकॉर्डिंग भी होगा क्या....
यश - अरे यार.... परीडा... तु... इंटेलिजंस में... कैसे था बे.... और रिकॉर्डिंग का मतलब.... साजिश.... पहली रिकॉर्डिंग... एक्सीडेंटली हुआ.... अगर और रिकॉर्डिंग हुए.... तो वह... इंटेंश्नाली.... कह लाएगा....
रोणा - पर आप उस औरत की बात भी कर रहे थे.... उसका क्या....
यश - वह... अब... धरना देगी... उसके साथ... हमारे प्रायोजित भीड़ होगी.... सरकार के साथ साथ जयंत भी वह न्यूज देखेगा....
पिनाक - क्या न्यूज वाले कवर करेंगे... क्या लोगों पर इसका प्रभाव पड़ेगा....
यश - छोटे राजा जी.... यह जो न्यूज वाले होते हैं ना... टीआरपी रेस में खुद को आगे रखना चाहते हैं.... क्यूंकि टीआरपी उन्हें... स्पोंशर्स देते हैं.... यह मीडीया वाले... इन्हें बेचने के लिए मसाला चाहिए... और यह लोग उसकी बिरियानी बना कर तड़के के साथ बेचते हैं.... हम उन्हें भरपूर स्वादिष्ट बिरियानी पेश करेंगे.... यह लोग बेचेंगे.... जो जयंत को... डिप्रेशन में ले जाएगी....
तभी कमरे में ताली बजती है l सब का ध्यान उस तरफ जाता है l भैरव ताली बजा रहा है l
भैरव - वह चेट्टी साहब वाह... आपका बेटा... वाकई... एक नगीना है...
ओंकार - वह... कहते हैं ना.... बाप से बढ़ कर.... यश.... उसका सार्थक उदाहरण है.... मेरे राजनीतिक कैरियर में... कभी सोचा भी नहीं था... के मुझे... हस्पताल का चैन खड़ा करना है... पर इसके... बी फार्मा खतम होते ही.... निरोग हॉस्पिटल की चैन और वाइआईसी फार्मास्यूटिकल्स को हमने पैरालली शुरू कर.... अब कहाँ से कहाँ हम पहुंच गए.....
Bahut badhiya update hai bhai
 
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Rajesh

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👉चौतीसवां अपडेट
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सेंट्रल जैल
रविवार
बालु और उसके पास खड़े उसके दो सहयोगी हैरानी भरे दृष्टि से देखे जा रहे हैं l दो सहयोगी में से एक बालु के पास आकर इशारे से पूछता है क्या हुआ है इसे l बालु अपने कंधे उचक कर और अपने चेहरे पर ना जानने की बात बताता है l सब उस तरफ देखे जा रहे हैं l विश्व एक मोटे ब्लैंकेट को गिले फर्श से उठा कर पत्थर पर पटक रहा है पिछले एक घंटे से l ऐसे पटक रहा है जैसे किसी आदमी को गुस्से से पटक रहा हो l रंगा के कांड के बाद कैदियों में विश्व की एक अलग पहचान बन गया है l इसलिए बालु भी विश्व को कुछ कहने से हिचकिचा रहा है l तभी एक संत्री भाग कर आता है,

संत्री - विश्व.... आरे.... विश्व....

विश्व नहीं सुनता है, वैसे ही अपने धुन में ब्लैंकेट को पत्थर पर पटक रहा है l

संत्री - (इस बार चिल्लाते हुए) वी.... श्व... अरे भाई रुको.... विश्व....

विश्व रुक जाता है, और संत्री को सवालिया नजर से देखता है l

संत्री - (थोड़ा हांफते हुए) सुपरिटेंडेंट सर ने.... अपने ऑफिस में तुमको.... बुलाया है....

विश्व कुछ नहीं कहता है l उस ब्लैंकेट को वहीँ छोड़ कर दीवार पर टंगे अपनी कुर्ता निकाल कर पहन लेता है l

विश्व - बालु भाई.... मैं सेनापति सर जी से मिल कर आता हूँ....
बालु - ठीक है विश्व.... वैसे अगर काम बड़ा हो तो... रुक जाना.... हम यहाँ का देख लेंगे....
विश्व - धन्यबाद.... बालु भाई.... धन्यबाद....

बालु अपने चेहरे पर एक हंसी लाने की कोशिश करता है l पर विश्व उसे देखे बगैर बिना कुछ प्रतिक्रिया के वहाँ से चला जाता है l विश्व के पीछे पीछे संत्री भी चला जाता है l

सहयोगी 1 - क्या बात है गुरु.... आज विश्व.... बहुत गुस्से में क्यूँ लग रहा है....
सहयोगी 2 - हाँ... साला... जैसे पत्थर पर ब्लैंकेट नहीं... किसी दुश्मन को उठा कर पटक रहा है....
बालु - हाँ क्यूँ नहीं.... जिसने भी... विश्व के वकील को थप्पड़ मारने की कोशिश की है.... विश्व उसी को इमेजिन कर.... ब्लैंकेट पटक रहा था....
सहयोगी 1 - क्यूँ... विश्व के वकील को.... मारने की नौबत क्यूँ आई....
बालु - सिंपल है बे.... लोग नाराज हैं.... इसलिए....
सहयोगी 2 - अच्छा.... पहले विश्व से नाराज थे.... अब इस वकील से नाराज हैं.... पर ऐसा क्यूँ...
बालु - लोग पहले विश्व से नाराज थे.... क्यूंकि उनको लगा... विश्व अकेला इतना बड़ा रकम गटक गया.... वह भी बिना डकार लिए.... और किसीको फूटी कौड़ी भी नहीं दिआ.... इसलिए लोग नाराज थे... विश्व से...
सहयोगी 1 - ह्म्म्म्म... अच्छा... पर वकील से क्यूँ नाराज हैं....
बालु - अबे.... वे लोग अब वकील से इसलिए नाराज हैं.... क्यूंकि... उन्हें लगता है... विश्व के पास अब जितना निकलेगा.... उसमें वकील.... जरूर अपना हिस्सा बटोर लेगा.... लोगों के हिस्से में तब भी ठेंगा था.... अब भी ठेंगा ही है....
दोनों - ओ..... तो यह बात है....
बालु - बस बस.... बहुत हो गई... बकचोदी.... अब लग जाओ अपने काम पर.... वरना विश्व आएगा.... ब्लैंकेट छोड़ कर... हम सबको धोएगा....

उधर विश्व तापस के चैम्बर में आता है l तापस जैसे विश्व का ही इंतजार कर रहा हो ऐसे विश्व को देख कर विश्व के पास आता है l

तापस - आओ विश्व आओ... अरे.. यह क्या... तुम्हारा पजामा घुटने के नीचे से भिगा हुआ है...
विश्व - जी वह... मैं.. ब्लैंकेट और चादर धो रहा था....
तापस - ओह... अच्छा... ठीक है... जाओ... लाइब्रेरी जाओ.... वहाँ... तुम्हारा कोई... इंतजार कर रहे हैं.... जाओ..
विश्व - कौन हैं सर....
तापस - जाओ मिल लो.... तुम्हारे... अपने ही हैं....

विश्व कुछ सोचने लगता है, फिर लाइब्रेरी की ओर बढ़ जाता है l जैसे जैसे लाइब्रेरी की ओर जा रहा है, उसके दिल में ना जाने कैसी उथलपुथल हो रही है l वह लाइब्रेरी की दरवाजा जो आधा बंद दिखा उसे धक्का दे कर पूरा खोलता है l उसे भीतर एक बुजुर्ग आदमी दिखता है l चेहरा मुर्झा हुआ, रौनक गायब बीमार सा एक आदमी एक चेयर पर बैठा हुआ है l विश्व पहचान जाता है l विश्व की आंखे नम हो जाती है होंठ थरथराने लगते हैं l

विश्व - सर.... आ... आप... यह आपकी ऐसी हालत...

जयंत अपना सर उठा कर विश्व को देखता है l जयंत के चेहरे पर मुस्कान तो दिखती है पर जयंत के चेहरे पर विश्व को वह रौनक, वह तेज नहीं दिखती, अपने उम्र से भी कहीं बड़ा और बुढ़ा दिख रहा है l

जयंत - आओ विश्व आओ.... (थके हुए आवाज़ में, एक कुर्सी की ओर इशारा करते हुए) आओ यहाँ बैठो....
विश्व - आ.. आपका यह हालत (कुर्सी पर बैठते हुए भारी गले से) म.. मेरी वजह से... है ना..
जयंत - (थोड़ा खीज जाता है) ओ... विश्व... तुम भी अपने दीदी की तरह.... शुरू मत हो जाना.... (विश्व खामोश हो जाता है l उसे खामोश देख कर) अरे भाई... मैं तुम से कुछ बात करने आया हूँ... और तुम हो कि... खामोश हो कर बैठ गए हो....
विश्व - अब... अब मैं क्या कहूँ.... सर.... पैदाइश बदनसीब हूँ... पैदा होते ही... माँ को खा गया.... सातवीं में एनआरटीएस की स्कॉलरशिप जीती तो... पिता को हमेशा के लिए खो बैठा और बहन मुझसे दूर हो गई... जब लोगों का भला करने के लिए, दुनिया बदलने के लिए..... आगे आया.... तो यह सब हो गया... कुछ लोगों की जाने चली गई.... और मैं इस जैल में पहुंच गया.... और अब आप के साथ....
जयंत - बस... बहुत हुआ.... मैं यहाँ... तुम्हारे केस के बाबत... कुछ जानने आया था.... और तुम अपना दुखड़ा पुराण लेके बैठ गए....
विश्व - सॉरी... मुझे माफ कर दीजिए....
जयंत - देखो विश्व.... मैं फ़िर से और आखिरी बार... कह रहा हूँ.... क्यूंकि मुझे अपनी बात दोहराना... अच्छा नहीं लगता.... (विश्व अपना सर उठा कर जयंत की ओर देखता है) कभी भी... तुम कितने दुखी हो... टूटे हुए हो... दुनिया को ना दिखाना... ना ही जताना.... यह कमजोरों की निशानी है... यह दुनिया वाले सोचेंगे... तुम कमजोर हो... तुम उनसे सहानुभूति पाने की कोशिश कर रहे हो.... यह दुनिया बड़ी क्रूर है.... हम भले ही चांद पर पहुंच जाएं.... पर जंगल के नियम कोई छोड़ नहीं सकता... यहाँ हर ताकतवर अपने से कमजोर पर... हावी होने की कोशिश करते हैं... इसलिए किसी से सहानुभूति पाने की कोशिश भी मत करो.... आज जो लोग तुम्हारे नाम पर रोटियाँ... सेंक रहे हैं.... कल को तुमको भूलने में... जरा भी व्यक्त नहीं लगाएंगे.... इसलिए दुनिया की मत सोचो.... परवाह मत करो... बस कमजोर मत बनो.... बड़े बड़े आए और चल दिए.... दुनिया को कोई नहीं बदल पाया.... हमे दुनिया की परवाह नहीं करना चाहिए.... पर अपनी समाज की जरूर करनी चाहिए.... दुनिया और समाज दोनों अलग हैं.... तुम समाज बदलने की सोचना.... दुनिया अपने आप बदल जाएगी...

विश्व जयंत को देखता है l जयंत भले ही कमजोर दिख रहा है, उसके चेहरे पर भले ही वह तेज वह रौनक नजर ना आता हो पर आवाज़ में और लहजे में वही पुराना जयंत लग रहा है l विश्व को यह एहसास होते ही अंदर से अच्छा महसूस करता है l

जयंत - विश्व... एक पारिवारिक अहंकार की वेदी पर..... एक समाज पीढ़ी दर पीढ़ी... बलि चढ़ रही है.... उस भीड़ में तुम भी शामिल हो... तुमने भीड़ हट कर अलग पहचान बनाने की कोशिश की.... परिणाम तुम्हें यहाँ पहुंचा दिया....

विश्व का चेहरा एक दम गंभीर हो जाता है l उसे महसूस होता है जयंत की आवाज़ उसके भीतर एक सिहरन दौड़ा दे रही है l

जयंत - अच्छा विश्व एक बात बताओ....
विश्व - जी पूछिए...
जयंत - भैरव सिंह को... कब मालुम हुआ.... के तुम... ग्रैजुएशन करने जा रहे हो.... या कर रहे हो....
विश्व - जब मैं... नोमिनेशन फॉर्म में... अपना एजुकेशन के बारे में.... मेनशन किया था... तब शायद...
जयंत - ह्म्म्म्म ( कुछ सोचते हुए) अच्छा विश्व... तुम्हें कभी अचरज नहीं हुई.... के राज परिवार को छोड़ कर.... पूरे राजगड़ में कोई दुसरा ग्रैजुएट नहीं है....
विश्व - जी कभी गौर ही नहीं किया था.... एक बार दीदी ने मुझे कहा कि.... मुझे ग्रैजुएशन करनी चाहिए... मैंने पहले मना कर दिया.... पर दीदी ने मुझ से वादा लिया.... इसलिए मैंने इग्नौ से... करेस्पंडीग कोर्स में करने की कोशिश की.... पर...
जयंत - ह्म्म्म्म... तो अब जो चाहे हो.... तुम पहले अपना ग्रैजुएशन पुरा करोगे.....
विश्व - अगर (हिचकिचाते हुए) मेरा मतलब है...
जयंत - अगर.. खुदा ना खास्ता.... जैल भी हो जाए... तब भी तुम अपना ग्रैजुएशन पुरी करोगे.... समझे....
विश्व - पर कैसे...
जयंत - हमारा संविधान की धारा इक्कीस कहता है..... इंसान कैद में भी क्यों न हो.... वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकता है.... यह उसको दी हुई... संवैधानिक अधिकार है.... इसलिए तुम रुकना मत....
विश्व - ठीक है....
जयंत - विश्व.... एक बात याद रखना.... लक्ष्मी साथ छोड़ सकती है..... पर सरस्वती कभी साथ नहीं छोड़ती....
विश्व - जी....
जयंत - वैसे शुक्रवार को.. (हंसने की कोशिश करते हुए) रोणा ने मुझे... चौंका दिया.... अपना इकबालिया बयान के ज़रिए.... मेरी जिरह को भटका दिया....
विश्व - वह है ही बहुत शातिर.... साथ में वह वकील प्रधान.... और सर पर साया... क्षेत्रपाल का... रंग तो दिखना ही था.....
जयंत - ह्म्म्म्म (अपने में सर को हिला कर) अच्छा विश्व.... तुम पर गोली चली... तब कितने दूरी पर थे तुम....
विश्व - जी..... आधे फिट दूरी पर.....
जयंत - व्हाट.... इंपॉसिबल.... आधे फिट की दूरी से.... गोली चली होती... तो... तुम्हारे जांघ की पेशियां... छलनी... हो गई होती... और... गोली भी जांघ चिर कर.... निकल गई होती....
विश्व - हाँ आप जो कह रहे हैं.... वह सब होता.... मगर गोली मारने से पहले... इसकी बाकायदा तरबूज पर टेस्ट की गई थी.....
जयंत - क्या....
विश्व - हाँ... मुझे उल्टा सुलाया गया.... मेरे जांघ पर दो... कुशन रखे गये.... फ़िर गोली चलाई गई.... ताकि मेरे जांघ में गोली धंसी रहे...
जयंत - हे भगवान..... अच्छा विश्व.... तुम्हें... जब मालुम हुआ.... सरकार को... खबर करने की... तुमने कोशिश... क्यूँ नहीं की...
विश्व - मैंने किया था.... पर क़ामयाब नहीं हो पाया... (जयंत हैरानी से विश्व को देखता है) मैंने सात चिठ्ठीयाँ लिखी थी... पहला... राष्ट्रपति जी को... दुसरा... प्रधान मंत्री जी को... तीसरा... राज्यपाल जी को... चौथा.... मुख्यमंत्री जी को.... पांचवां... राज्य पुलिस अधीक्षक को.... छटा.... मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय को.... और सातवां.... राज्य के बैंक अधिकारी को....
जयंत - क्या.... (हैरान हो कर) तो फिर... मेरा मतलब है कि.... यह बात तो मुझे मालुम होता... तो केस अब तक शॉल्व हो चुका होता...
विश्व - हाँ शायद.... अगर उनको वह.... चिट्ठियां अगर मिल गई होती तो.....
जयंत - (ऐसे उठ खड़ा होता है जैसे बिजली का शॉक लगा) अब इसका क्या मतलब हुआ....
विश्व - वह चिट्ठियां... पोस्ट ऑफिस से ही... ग़ायब कर लिए गए....

जयंत धप् कर फ़िर से बैठ जाता है फ़िर अपने में सर हिलाता है जैसे उसे कुछ मालुम हो गया हो l वह विश्व के तरफ देखता है और मुस्करा कर

जयंत - अच्छा विश्व.... (फ़िर हंसते हुए) तुम्हें याद तो है ना....
विश्व - क्या.... (हैरान हो कर)
जयंत - यही... के.... मैं तुम्हें... जो भी दूँगा.... वह तुम रख लोगे....
विश्व - जी मुझे याद है....

जयंत के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान उभर आती है l जैसे कुछ हासिल करने की खुशी उस मुस्कराहट में झलक रही है l

जयंत - अच्छा.... मैं अब चलता हूँ....

कहकर जयंत खड़ा होता है l उसके साथ साथ विश्व भी खड़ा होता है l जयंत की चाल में विश्व को कमजोरी दिखती है l तो विश्व जयंत के हाथ को थाम लेता है l जयंत उसे देख कर मुस्करा देता है l

जयंत - अगर हाथ थाम लिए हो.... तो बाहर तक भी छोड़ दो....

विश्व मुस्करा कर अपना हामी देता है l विश्व और जयंत दोनों लाइब्रेरी से उतरते हैं और तापस के कमरे में आते हैं l तापस उनको देख कर अपनी जगह से उठ खड़ा होता है l

जयंत - बैठ जाइए... सेनापति जी... बैठ जाइए.... यह आपका ही ऑफिस है.... (तापस हँस देता है) वैसे सेनापति बाबु... अगर बुरा ना मानें... तो आज ऑटो तक मुझे विश्व छोड़ दे....तो....
तापस - हाँ... हाँ... चलिए मैं भी आपको छोड़ देता हूँ.... वैसे आज आपके वह.... वह बॉडी गार्ड दिख नहीं रहे हैं...
जयंत - मैंने... अपनी सिक्युरिटी.... सरेंडर कर दिया.... कल ही....
विश्व - क्या... पर क्यूँ....
जयंत - यार सेनापति... यह दोनों बहन भाई... सवाल बहुत करते हैं...
तापस - वैसे... सवाल तो... जायज ही है... ना सर....
जयंत - (विश्व को और तापस दोनों को देख कर) सर कटाने की तमन्ना अब मेरे दिल में है.... देखना है जोर कितना बाजू ए क़ातिल में है....

विश्व जयंत का हाथ छोड़ देता है l जयंत यह देख कर हँस देता है l

जयंत - देखो सेनापति... अब गार्ड्स नहीं है... इसलिए इसकी बहन... मुझे छोड़ ही नहीं रही थी....मुझे मेरे ही घर में कैद कर... रखा है... मैंने भी चालाकी से... वैदेही को मुझे अंदर से बंद कर मंदिर जाने को कहा.... वैदेही ने ऐसा ही किया.... पर उसे मालुम नहीं था.... मेरे घर में एक खिड़की को चोर दरवाजा बना कर रखा था.... (हँसते हुए) वैदेही के मंदिर जाते ही मैं इधर आ गया.... (तापस भी उसके साथ हँस देता है) मुझे विश्व को कैद से निकालना है... इसलिए इसकी बहन मुझे कैद कर दे रही है...

फिर तापस और जयंत ठहाका लगा कर हँसते हैं l विश्व भी उनके साथ शर्माते हुए मुस्करा देता है l फ़िर तीनों जैल के बाहर आते हैं l बाहर गेट से कुछ दूर ऑटो खड़ी मिलती है l ऑटो के पास जयंत दोनों को रोक देता है और चलते हुए ऑटो तक पहुंच जाता है l ऑटो के पास पहुंच कर जयंत पीछे मुड़ कर विश्व को देखता है l दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्करा देते हैं l शायद कुछ मौन सम्वाद था उन दोनों की मुस्कराहट में उन दोनों के बीच l ऑटो के भीतर जयंत बैठ जाता है l ऑटो धुआँ छोड़ते हुए निकल जाता है l विश्व वहीँ खड़ा ऑटो को अपनी आँखों से ओझल होते देखता है l फ़िर वह और तापस दोनों वापस जैल के अंदर लौट जाते हैं l तापस अपने ऑफिस कि ओर जाते जाते,

तापस - विश्व (आवाज़ देता है)
विश्व - (रुक जाता है और तापस की ओर मुड़ कर) जी...
तापस - बेस्ट ऑफ लक..... कल के लिए.... मैं दिल से प्रार्थना करूंगा...
विश्व - (चेहरे पर कोई भाव नहीं आता) जी धन्यबाद...

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जगन्नाथ मंदिर में सीढियों पर वैदेही बैठी हुई है l तभी पंडा आकर वहीं वैदेही के पास बैठ जाता है l उसे वैदेही के आँखों में चिंता और आंसू दोनों दिखते हैं l

पंडा - क्या बात है... वैदेही.... तुम दुखी भी हो.... और चिंतित भी...
वैदेही - आप तो सब जानते हैं... बाबा... फ़िर भी पुछ रहे हैं....
पंडा - फ़िर भी... तुम्हारे मुहँ से सुनना चाहता हूँ....
वैदेही - आज सुबह से.... जयंत सर जी को... घर से बाहर जाने नहीं दिया.... इसलिए मुझे बहाना बना कर खुद को घर में बंद कर दिया.... और मुझे मंदिर भेज दिया.... कहा... जाओ मेरे लिए.... निर्माल्य ले कर आओ.... मैं भागी भागी आई... आपसे निर्माल्य लेकर जब घर पहुंची... वह घर पर नहीं थे.... मुझे डर लग रहा है... कहीं कोई अनर्थ ना हो जाए....
पंडा - ओ... तो यह बात है.... देखो बेटी.... कल जो हुआ.... तुम उसकी चिंता ना करो.... वह इस तरह के हादसों से गुजर चुका है.... बस इतना जान लो... पिछले तीन सालों में... वह खुद को... सबसे दूर कर रखा था.... तुम और तुम्हारा भाई जब से... उसके जीवन में आए हो.... वह फ़िर से जी रहा है.... घर से निकल रहा है... सबसे घुल रहा है.... बातेँ कर रहा है.... तुम दोनों नहीं जानते.... तुम लोग उसके लिए... क्या मायने रखते हो....
वैदेही - क्या....
पंडा - अरे... बचपन का दोस्त है मेरा.... बाल मित्र.... उसे अच्छी तरह से जानता हूँ.... वह दिल से तुम लोगों से जुड़ गया है.... इसलिए.... वह जब तक विश्व को छुड़ा नहीं लेता.... तब तक वह खामोश नहीं बैठेगा.... दुश्मन चाहे कितना भी चाल... चल ले.... वह हर चाल का तोड़ रखता है....

तभी वैदेही उठने को होती है तो पंडा उसे रोक देता है

पंडा - रुको थोड़ी देर बाद... भगवान का संध्या पूजन के लिए... द्वार खुलेगा.... दर्शन कर चले जाना....

मंदिर में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी पंडा जी के पास आती है और
महिला - नमस्ते बाबा....
पंडा - हाँ... क्या हुआ बेटी....
महिला - वह आप थोड़ा नीम का तेल दे देते...
पंडा - अच्छा.... वह जाओ गोविंद से मांग लो... वह दे देगा...
महिला - जी धन्यबाद.... (कह कर महिला चली जाती है)
वैदेही - (उसके जाते ही पंडा से पूछती है) बाबा... यह नीम का तेल...
पंडा - वह... अपने घर में रात को.... दिए में डाल कर जलाती है... ताकि मच्छर ना हों....
वैदेही - क्या नीम के तेल जलाने से... मच्छर नहीं आते....
पंडा - अरे बेटी..... नीम में साक्षात... जगन्नाथ जी का वास है.... उनकी मूर्ति... नीम के काठ से ही तो बनतीं है....
वैदेही - हाँ यह तो मैं जानती हूं.... पर नीम के तेल में यह गुण भी है... मुझे नहीं पता था....
पंडा - बेटी और एक रहस्य बताता हूँ.... पुराने ज़माने में.... लोग अपने घर की बहू बेटियों की.... शील रक्षा के लिए.... उनके सारे शरीर पर... नीम के तेल मल देते थे.... जिससे शरीर से.... बदबू आता था.... और यही बदबू.... उनके घरों की इज़्ज़त की रक्षा करती थी..... अब चलो दर्शन कर चले जाना.... अब असल में यह औरत मंदिर से... तेल इसी लिए... ले जाती है.... ताकि अपनी बेटियों के शरीर में मल सके और.... रह रही बस्ती में.... सड़क छाप गुंडों से अपनी बच्चियों को बचा सके....

वैदेही शाम के समय द्वार खुलने के बाद प्रथम दर्शन कर जयंत की घर के ओर चली जाती है l मंदिर में हुए पुजारी के बातों को लेकर सोच रही है l इतने में घर आ जाता है, वैदेही ताला खोल कर अंदर आती है तो जयंत को बैठे देखती है l

वैदेही - आ गए आप...
जयंत - अरे... मैं गया ही कहाँ था.... वह तो तुम अब जाकर आई हो....
वैदेही - मैं मंदिर से घर.... घर से मंदिर... चार चक्कर लगा कर आई हूँ.....
जयंत - अच्छा ठीक है.... मेरी माँ.... ठीक है.... अरे... कैद से उब गया था.... इसलिए.... बाहर थोड़ा घूमने चला गया.....

वैदेही उसे घूरती है, जयंत उसे यूँ घूरता देख कर

जयंत - देखो.... तुम मुझे मेरे ही घर में कैद कर दिया.... अरे... इंसान को थोड़ी बाहर की हवा भी खानी चाहिए....

वैदेही उसे घूर ना नहीं छोड़ती है तो

जयंत - देखो.... कभी बेटी कहा था.... अब माँ कह रहा हूँ.... अब अपने इस बुढ़े बेटे को माफ़ भी करो.....

वैदेही के चेहरे पर एक शरम भरी मुस्कान आ जाती है l

वैदेही - ठीक है.... अपनी माँ से कहो.... कहाँ गए थे....
जयंत - वह... अपनी मामा से मिलने गया था...

वैदेही की हंसी छूट जाती है l जयंत भी उसके साथ हँस देता है l वैदेही इतनी हंसती है कि वह हंसते हंसते लॉट पोट हो जाती है l

जयंत - ठीक है.... माँ... अब आगे कोई शैतानी नहीं करूंगा (वैदेही और जोर से हंसने लगती है) कहिए आपका क्या आदेश है....
वैदेही - (बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी को रोक कर) ठीक है.... बेटा.... कल तुम... अपनी माँ के साथ ही कोर्ट.... जाओगे..... और तब तक के लिए..... अब घरसे बाहर निकालना बंद....
जयंत - जैसी.... आपकी इच्छा माँ... जैसी आपकी इच्छा....

अब वैदेही से हंसी और बर्दाश्त नहीं हो पाती हा हा हा करके हंसने लगती है l खिड़की की कांच टूटने की आवाज़ आती है l वैदेही जी हंसी रुक जाती है l जयंत भी हैरान हो कर खिड़की की ओर देखता है l

वैदेही - यह... यह... क्या थी... सर....
जयंत - पता नहीं....

बस तभी जैसे पत्थरों की बरसात होने लगी खिड़की और दरवाजे पर l दोनों छिप जाते हैं अंदर आ रहे पत्थरों से बचने के लिए l करीब आधे घंटे के बाद पत्थरबाजी रुक जाती है l वैदेही निकल ने को होती है l जयंत उसे रोक देता है l कुछ देर बाद पुलिस की सायरन सुनाई देती है l कुछ देर बाद दरवाजे पर दस्तक होती है l

वैदेही - (थोड़ा डरते हुए) क....कौन है...
आवाज़ - पुलिस.... पूरी घाट थाने से....
वैदेही - ठीक है.... अपना आइडेंटी कार्ड... दरवाजे के नीचे से... अंदर सरकाइए...

वैदेही देखती है, एक कार्ड सरक कर अंदर आती है l वैदेही कार्ड को देखने के बाद दरवाज़ा खोल देती है l वर्दी में एक अफसर अंदर आता है l
अफसर - (जयंत से) सर आप ठीक तो हैं... ना सर....
जयंत - हाँ... आपका शुक्रिया सर.... पर आप यहाँ कैसे....
अफसर - सर यह पेट्रोलिंग जीप है.... अचानक हमारे आँखों के सामने दिखा.... सो... हम....
जयंत - ओके... अफसर... थैंक्यू... वेरी मच....

अफसर चला जाता है l जयंत एक गहरी सांस छोड़ता है और वैदेही को देखता है l वैदेही के आँखों में अब आँसू दिखाई दे रहा है l

जयंत - देखो माँ .... मुझे इस केस से हटने की बात ही मत करना....

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अगले दिन
सोमवार
अदालत के अंदर एक ओर भैरव सिंह एक कुर्सी पर पैर पर पैर डाले बैठा हुआ है, परीडा और रोणा उस कमरे में दरवाज़े की और देख रहे हैं l रोणा बीच में बार बार अपनी घड़ी देख रहा है l तभी बल्लभ उस कमरे में आता है l
बल्लभ - काम हो गया है.... यश ने जैसा कहा था.... उस आदमी ने... वैसा ही किया है.... पर कितना कारगर होगा.... मालुम नहीं है....

भैरव सिंह उसे सवालिया नजर से देखता है l

बल्लभ - राजा साहब.... फिरभी.... मैंने अपनी ओर से कोई कसर.... नहीं छोड़ा है....

रोणा - चलो देखते हैं... आगे क्या होता है.... हमने अपनी चाल चल दी है.... यश भी अपना चाल चल चुका है.... अब बस इंतजार ही कर सकते हैं....

दुसरी तरफ अदालत के अंदर वश रूम के बाहर वैदेही हाथ में कुछ फाइलें और गाउन लिए खड़ी है) I उसका चेहरे पर मोटी मोटी आँसूओं धार दिख रहे हैं l कुछ देर बाद खुद को साफ कर जयंत वश रूम से बाहर आता है l

जयंत - तुम रो क्यूँ रही हो....
वैदेही - आज कुछ... ज्यादा ही हो गया है....
जयंत - तुम इतनी सी बात पर.... रोने लग गई....
वैदेही - यह लोग तो आप के पीछे.... हाथ धो कर पीछे पड़े हैं....
जयंत - फिल्हाल धो तो मैं रहा हूँ.... वह लोग सिर्फ़ गंदा कर रहे हैं....
वैदेही - वह लोग.... आपके साथ ऐसा क्यूँ....
जयंत - देखो वैदेही.... मुझे रोने वाले चेहरे पसंद नहीं है..... इसलिए प्लीज.....
वैदेही - (अपनी आंखों से आँसू पोछते हुए) मैं अब नहीं रोउंगी.....
जयंत - अब लग रही हो.... मेरी अच्छी भली माँ....

वैदेही हँसने की कोशिश करती है l जयंत उसके हाथों से फाइल और गाउन ले लेता है l और कोर्ट रूम की ओर चल देता है, उसके पीछे पीछे वैदेही भी चल देती है l

उधर कोर्ट के परिसर के बाहर
पुलिस के लगाए बैरीकेट के बाहर भीड़ बहुत है l कुछ लोगों के हाथों में प्लाकार्ड्स दिख रहे हैं l सभी प्लाकार्ड्स में जयंत के खिलाफ़ स्लोगन लिखे हुए हैं l
एक कार्ड में लिखा है...
बताओ जयंत कुमार वकील
विश्व को छुड़ाने की कितनी हुई डील

दुसरे कार्ड में लिखा है....
जयंत तुम संविधान के रक्षक नहीं भक्षक हो

तीसरे में लिखा है....
जनता के पैसों के लुटेरा विश्व को
जयंत तुम स्वार्थ के चलते बचा रहे हो
ज़वाब दो

ऐसे ना जाने कितने कार्ड लोगों के हाथों में दिख रहे हैं l किन्ही किन्ही जगहों पर लोगों के हाथों में पुआल और घास से बनीं पुतलों पर जयंत के फोटो लगा है l और लोग उन पुतलों पर चप्पल मार रहे हैं और कहीं पर पुतलों को नीचे फेंक कर कुचल रहे हैं l ऐसे कुछ दृश्यों को अपने कैमरे में कैद कर लेने के बाद प्रज्ञा अपने ब्रॉडकास्ट वैन के पास आकर न्यूज रिपोर्टिंग करने लगती है

प्रज्ञा - सुप्रभात व शुभ प्रभात..... मैं प्रज्ञा.... आज कटक हाई कोर्ट से सीधे दर्शकों तक.....
जब पहले यह केस जनसाधारण के ज्ञात में आया.... तब लोगों का आक्रोश केवल विश्व तक सीमित था..... पर अब जन आक्रोश विश्व से लांघ कर.... सरकार और बचाव पक्ष के वकील के खिलाफ.... बहुत ही उग्र हो चुका है..... इतना उग्र के शनिवार को उन पर मंदिर के भीतर हमला हुआ..... कल शाम को उनके घर पर पत्थराव हुआ.... और आज किसीने कोर्ट के परिसर के भीतर..... जयंत राउत पर गोबर डाल दिया है..... गौर करने वाली बात यह है कि.... जब शनिवार को उन पर हमला शुरू हुआ.... तब उन्होंने अपने सुरक्षा के लिए तैनात दो गार्डों को.... सरकार को लौटा दिया.... चूंकि अदालत के अंदर उन पर गोबर फेंका गया है.... इसलिए अदालत एक घंटे के लिए स्थगित किया गया है...... और आसपास की सुरक्षा को..... और भी मजबूत किया गया है.... अब सबकी नजरें अदालत में.... राजा साहब की.... होने वाली गवाही पर गड़ी हुई है.... अब जब अदालत में फ़िर से सुनवाई प्रक्रिया शुरू होगी.... तब मैं फ़िर आप दर्शकों के मध्य लौटुंगी.... तब तक के लिए मैं प्रज्ञा... खबर ओड़िशा से.....


कोर्ट रूम में
सब अपने अपने जगह पर बैठे हुए हैं सिवाय भैरव सिंह के l विश्व अपनी कटघरे में खड़ा है l हॉकर सावधान करता है l सब अपने जगह पर खड़े हो जाते हैं l तीनों जज अपनी अपनी जगह पर काबिज हो जाते हैं l

मुख्य जज - ऑर्डर.. ऑर्डर.. ऑर्डर.... आज की कारवाई शुरू होने से पहले... जो बाधा उत्पन्न हुई.... अदालत उस घटना का घोर निंदा.. एवं.... खेद व्यक्त करती है..... फ़िर भी अदालत बचाव पक्ष से.... जानना चाहती है.... क्या आज की कारवाई आगे बढ़ाया जाए... या स्थगित किया जाए....

सबकी नजरें जयंत के तरफ घूम जाती है l जयंत अपनी कुर्सी से उठ खड़ा होता है l एक थकावट उसके चेहरे पर साफ दिख रहा है l चेहरा जो कभी दमक रहा था, आज उसका चेहरा तेज़ हीन निष्प्रभ दिख रहा है l बल्लभ एंड ग्रुप के चेहरे पर एक शैतानी खुशी आस लिए उच्छलती है l पर उनकी खुशी को काफूर कर

जयंत - नहीं योर ऑनर.... नहीं... आज की कारवाई रुकनी नहीं चाहिए.... चाहे कुछ भी हो जाए.... मुझे कुछ नहीं हुआ है योर ऑनर.... मैं शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत हूँ... स्वस्थ्य भी हूँ...
जज - आर... यु... श्योर... डिफेंस लॉयर...
जयंत - ऑफ कोर्स.... मायलर्ड.... मैं.... आज के ही कारवाई के लिए.... खुद को तैयार किया हुआ हूँ....
जज - ठीक है.... आज की कारवाई को आगे बढ़ाते हुए.... प्रोसिक्यूशन आप.... इंस्पेक्टर रोणा की बदले हुए बयान पर.... कोई मंतव्य देना चाहेंगी....

प्रतिभा - (अपनी जगह से उठ कर) मायलर्ड.... बेशक.... इंस्पेक्टर रोणा जी ने.... अपना बयान बदला ज़रूर है... पर इससे केस के रुख में... कोई बदलाव नहीं हुआ है..... इसलिए प्रोसिक्यूशन कोई जिरह नहीं करेगी.....
जज - ठीक है.... तो मिस्टर डिफेंस.... क्या आप जिरह को आगे बढ़ाना चाहेंगे....
जयंत - (थोड़ा खांसते हुए) मायलर्ड इस तथाकथित मनरेगा घोटाले की जांच अधिकारी की जांच ही गलत दिशा में थी... यह मैं साबित कर चुका हूँ.... जिनको एसआईटी ने.... मुख्य एवं... प्रमुख गवाह बनाया था.... वह (थोड़ा खांसते हुए) कितना बड़ा झूठा, ठग था जिसने इस... केस को ना सिर्फ भटकाया.... बल्कि... उस घोटाले की रकम में.... अपना हिस्सा भी कमाया.... खैर (सांस फूलने लगती है) एस्क्युज मी.... (कह कर थोड़ा पानी पीता है) मायलर्ड... मैं कह रहा था... खैर... एसआईटी के सपोर्ट इंवेस्टीगेटर... श्री श्री अनिकेत रोणा जी.... कितने नाकाबिल हैं... यह भी... मैं साबित कर चुका हूँ.... अब केवल.... वह व्यक्ति शेष हैं.... जिनके शिकायत के बाद.... इस घोटाले पर जांच बिठाया गया..... और (खांसने लगता है, फ़िर सम्भल ने के बाद) और... वह एसआईटी... के प्रथम गवाह जो ठहरे.... और मुझे विश्वास है योर ऑनर.... उनके गवाही के बाद.... दूध का दूध... पानी का पानी.... हो जाएगा.... इसलिए श्री भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी की जिरह की इजाज़त दी जाए.... मायलर्ड....
जज - ठीक है.... तो.... प्रोसिक्यूशन.... आज यहाँ पर.... श्री क्षेत्रपाल जी दिखाई नहीं दे रहे हैं... क्या आपके पास कोई जानकारी है....
प्रतिभा - (अपनी जगह से खड़ी हो कर) जी मायलर्ड.... मुझे थोड़ी देर पहले..... श्री क्षेत्रपाल जी के लीगल एडवाइजर..... श्री बल्लभ प्रधान जी ने... इस बाबत जानकारी दी.... है.... पर योर ऑनर... मैं चाहती हूँ.... यह बात स्वयं.... प्रधान बाबु..... अदालत को बताएं.....

यह सुनते ही, बल्लभ हैरान हो कर प्रतिभा को देखता है l जब अदालत एक घंटे के लिए स्थगित हुआ था, तब बल्लभ जा कर प्रतिभा को भैरव सिंह के बारे में जानकारी दी थी l पर प्रतिभा ने उसे बेवजह वीटनेस बॉक्स में खड़ा कर दिया l वह गुस्से से प्रतिभा को देख रहा है कि उसे वीटनेस में आने के लिए बुलाया जाता है l बल्लभ बेमन से वीटनेस बॉक्स में खड़ा होता है l
जज - हाँ तो... प्रधान बाबु.... पिछली कारवाई में.... आपके क्षेत्रपाल जी थे... यह अदालत जानती है.... पर आज नहीं हैं... क्या कोई खास वजह....
बल्लभ - मायलर्ड.... यह इस कमरे में नहीं है.... उसके पीछे.... जनता की भावना जुड़ी हुई हैं... आज भी यशपुर की आम जनता.... उन्हें अपना राजा मानतीं हैं... और पूरे यशपुर की जनता उन्हें गवाह के कटघरे में.... देखना पसंद नहीं करेगी.... इसलिए उन्हीं की इच्छा का सम्मान करते हुए.... मैंने एक... एफिडेविट... प्रोसिक्यूशन को दी... के यहीं.... पास के कमरे से वह.... वीडियो कंफेरेंश के जरिए अपनी गवाही देंगे....
जयंत - (अपनी कुर्सी से उठ कर) आई ऑब्जेक्ट योर ऑनर.... आई स्ट्रॉन्गली दिस न्यूसेंस... मायलर्ड..... मैं हैरान हूँ.... मिस्टर प्रधान.... एक कानून के जानकार हैं... वह... ऐसा कैसे.... (खांसते).... कर... सकते हैं....
जज - आर यू ओके... मिस्टर डिफेंस....
जयंत - ऑफकोर्स मायलर्ड.... आई एम वेरी वेरी ओके नाउ.... मैं अर्ज़ कर रहा था... योर ऑनर.... आप, मैं, प्रतिभा जी, सेनापति जी, यह विश्व, यह वैदेही... हम सब भारत के नागरिक हैं.... हम सब संविधान से बंधे हुए हैं.... संविधान यानी... सम - विधान.... ना कोई राजा... ना कोई रंक.... सबके लिए... समान और यह... न्याय का मंदिर है... इस मंदिर में संविधान ने.... इस समय.... आपको निर्णय का और मुझे जिरह का अधिकार दिया है..... यह प्रधान बाबु... ना भूलें.... इस कटघरे में.... पूर्वतन प्रधान मंत्री भी खड़े हो चुके हैं..... और आप जिन राजा साहब की बात कर रहे हैं.... उनकी राज शाही की सीमा.... राजगड़ तक ही है.... यह ना भूलें.... और यहाँ.... जिस घोटाले की जांच पर बहस हो रही है.... वह भारत सरकार की पैसे हैं.... इसलिए चूंकि वह यहाँ उपस्थित हैं.... उन्हें कहिए.... के वह.... कानून का सम्मान करते हुए.... अपनी वीटनेस बॉक्स पर आयें... और अपना बयान दर्ज कराएं....

इतना कह कर जयंत भले ही अदालत में चुप हो जाता है पर जयंत की बुलंद आवाज़ उस अदालत में गूंजती रहती है l सब के सब शुन हो जाते हैं l सिर्फ़ कमरे में पंखे की आवाज़ और कुछ पेपर फड़फड़ा ने की आवाज सुनाई दे रही है l जयंत हांफते हुए अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है और पास रखे पानी की ग्लास से पानी पीता है l
जज - यह अदालत.... डिफेंस के द्वारा दिए गए दलील से.... इत्तेफाक रखती है.... ऑब्जेक्शन सस्टेंन... मिस्टर प्रधान.... आप अपने राजा जी से कहें.... यहाँ वह कानून का सम्मान करें......

यह सुनते ही प्रधान बड़ी मुश्किल से कोर्ट रूम से बाहर जाता है और कुछ मिनटों बाद भैरव सिंह के साथ कोर्ट रूम में आता है l

जज - मनानीय... क्षेत्रपाल जी... आप बहुत प्रतिष्ठित, सम्मानित तथा लोकप्रिय व्यक्तित्व हैं.... पर यह भी सत्य है.... आप बहुत शिक्षित भी हैं... इसलिए आज आप वीटनेस बॉक्स में अपनी जिरह के जरिए.... इस अदालत व भारतीय न्याय व्यवस्था का सम्मान करें.....
बल्लभ - जी.... मायलर्ड.... राजा साहब कानून व न्याय प्रणाली को सम्मान करते हैं.... तभी तो आज इस कमरे में.... उपस्थित हैं....

भैरव सिंह ख़ामोशी से वीटनेस बॉक्स में आकर खड़ा होता है l राइटर गीता लेकर भैरव सिंह के सामने आता है l

राइटर - ग्... ग्.. ग्... गीता प.. प्... पे.. हाथ रख कर....
भैरव सिंह - जज साहब.... हम कभी झूठ नहीं बोला है.... आज भी हम सच ही बोलेंगे....
जज - प्रोसिक्यूशन.... आप अपनी जिरह आरंभ कर सकते हैं....
प्रतिभा - (अपनी कुर्सी से उठ कर) मायलर्ड.... मुझे नहीं लगता है.... की मुझे कुछ पूछना चाहिए..... क्यूंकि इस केस की जांच.... राजा साहब के मौखिक शिकायत पर.... शुरू हुई थी.... जिसके वजह से.... एसआईटी का गठन हुआ.... और इतने बड़े घोटाले पर.... पर्दा हटा..... इसलिए... बचाव पक्ष क्या... अधिक जानना चाहता है.... अपनी जिरह से.... यह जानने के बाद ही.... मैं कोई मत व्यक्त कर सकती हूँ....
जज - ठीक है.... अब अदालत... मिस्टर डिफेंस को जिरह की इजाज़त देती है....

यह सुनते ही प्रतिभा अपनी जगह बैठ जाती है और जयंत को देखती है l जयंत का बायाँ हाथ टेबल पर है, वह भैरव सिंह को देख रहा है l

जज - मिस्टर डिफेंस...(जयंत वैसे ही बैठा रहता है) मिस्टर डिफेंस....

जयंत वैसे ही बैठा हुआ है, कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है, जज दो बार अपना हथोड़ा टेबल पर मारता है l फ़िर भी जयंत से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलता l जज अपने कुर्सी से खड़ा हो जाता है l सभी अपनी अपनी कुर्सी से खड़े हो जाते हैं l सबकी नजर जयंत पर टिक जाती है l कोर्ट रूम के भीतर मरघट की सन्नाटा सबको महसूस होती है l

जज - मिस्टर डिफेंस....

कोई प्रतिक्रिया ना मिलने से वैदेही अपनी जगह से उठ कर जयंत के पास पहुंचती है l डरते डरते वह जयंत के कंधे पर हाथ रख कर जयंत को जरा सा हिलाती है l जयंत अपनी कुर्सी से नीचे गिर जाता है l वैदेही चिल्ला कर पीछे हटती है पर विश्व अपने कटघरे से बाहर निकल कर जयंत के पास आता है और जयंत को अपने दोनों बाहों से उठा कर वकीलों के टेबल पर सुला देता है l तापस जयंत के गले की नस पर हाथ रखकर देखता है, फ़िर अपना कैप उतार कर जज की ओर देखता है l जज तापस की बात समझ जाता है और इमर्जेंसी बटन दबाता है l
Ek naya mod aa gaya ab to
Nice update bro
 
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Rajesh

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👉पैंतीसवां अपडेट
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खान - क्या... जयंत सर चल बसे....
तापस - हाँ....

कुछ देर के लिए बैठक में शांति छा जाती है l (मैराथन फ्लैशबैक से स्वल्प विराम, अब कुछ अपडेट वर्तमान और फ्लैशबैक के मिश्रण में आगे बढ़ेगी)

खान - वाकई... विश्व के साथ.... बहुत ही... बुरा हुआ.... बदनसीब निकला वह... किनारे पर पहुंच कर ही.... कश्ती डूब गई....
तापस - हाँ... वह तो है.... अखिर जयंत सर ने कहा था.... इसी दिन के लिए तैयारी किया था.... भैरव सिंह क्षेत्रपाल का अहंकार दाव पर लगी थी... अपने घमंड के चलते.... वह कटघरे में आना नहीं चाहता था..... पर जयंत सर के जिद.... राजा साहब को ज़द पहुंचा ही दिया.... उस कटघरे में क्षेत्रपाल को आना ही पड़ा... जो वह सिर्फ़.... आम लोगों के लिए ही सोचता था..... अगर उस दिन.... जयंत सर की साँसों ने... उनसे बेवफ़ाई ना कि होती.... तो शायद कहानी कुछ और होती..... (कहते कहते तापस का चेहरा गम्भीर हो गया) उस वक्त... कोर्ट रूम में.... एक ऐसी शांति छाई हुई थी.... के डर लग रहा था... वहाँ मौजूद लोगों में.... भाव भी अलग ही था.... कुछ लोग ऐसे थे..... जो जयंत सर के मौत पर... अंदर ही अंदर बहुत खुश हो रहे थे.... उनकी खुशी... लाख कोशिशों के बावजूद... छुपाये नहीं छुप रही थी..... भैरव सिंह एंड कंपनी... कुछ लोग थे.... यानी के मैं... मेरा स्टाफ... मेरी पत्नी और जजों के साथ साथ कोर्ट के सारे स्टाफ.... हम गहरे सदमे में थे... हमे अंदर से बहुत पीड़ा और दुख का अनुभव हो रहा था.... और एक तरफ... वह दो भाई और बहन थे.... जो अपनी आँखे फाड़े उस इंसान को देख रहे थे.... जिसने उनके भीतर उम्मीद नहीं... विश्वास को जगाया था.... वह अंदर ही अंदर खुन के आंसू... रो रहे थे.... पर कोशिश उनकी यह थी.... कोई जान ना ले....
खान - ह्म्म्म्म.... मतलब सब के सब शॉक में थे... पर सबकी अपनी अपनी अलग वजह थी....
तापस - हाँ...
खान - उसके बाद क्या हुआ....
तापस - कुछ नहीं... जो स्टैंडर्ड ऑफ प्रोसिजर था... वही हुआ उस दिन... मेडिकल टीम पहुंची.... जयंत सर की बॉडी को... मेडिकल ले जाया गया..... शाम तक उनकी पोस्ट मोर्टम रिपोर्ट भी आ गया था....
खान - क्या था.... उस रिपोर्ट में...
तापस - सिंपल.... कार्डीयाक अरेस्ट... पहले भी दो बार आ चुका था.... उस दिन वह आखिरी बार आया.....
खान - ह्म्म्म्म.... मतलब... उन ताक़तों ने... न्याय तंत्र का गला घोंटने के लिए.... भीड़ तंत्र का उपयोग किया....
तापस - हाँ उपयोग किया था...... लोगों का... क्यूँ के उन्हें... इसके सिवा कुछ आता ही नहीं था.... अखिर पीढ़ियों का... एक्सपेरियंस था.... उनके पास.... जनता को... लूटो... जनता के जरिए... और जनता को मरवाओ... जनता के जरिए....
खान - फ़िर क्या हुआ.... मेरे हिसाब से.... विश्व के केस में.... नाइंटी पर्सेन्ट केस सॉल्व हो चुका था.... फ़िर भी उसे सजा हो गई....
तापस - हमारे कानून की जिस तरह की व्यवस्था या प्रणाली है.... उसमें जितनी बारीकियां है.... उतनी ही पेचीदगी भी है.... विश्व इसी पेचीदगियों में फंस गया...

फ्लैशबैक में
मंगल वार
जगन्नाथ मंदिर में बाइस पावच्छ के पास के दीवार के पास बैठी वैदेही भगवान जगन्नाथ को घूरे जा रही है l आंखों में आंसू नहीं है पर चेहरे पर नाराजगी और गुस्सा झलक रही है l उसके पास मंदिर का मुख्य पुजारी पंडा आता है l

पंडा - अच्छा हुआ... तुम यहीँ मिल गई.... (वैदेही पंडा को देखती है, पंडा उसके पास बैठ जाता है) बेटी.... वह पिछले तीन सालों से... खुद को हर केस से दूर रख रहा था.... पर विश्व का केस उसने लिया.... कुछ तो वजह होगी.... (वैदेही पंडा को देख रही पर उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं है) मानता हूँ.... तुम्हें.... (जगन्नाथ को दिखा कर) उससे शिकायत है... पर इतना याद रखो.... वह राह दिखाते हैं... बताते हैं... ताकि उसे मानने वाला.... उस राह पर चले... वरना.... कुरुक्षेत्र का युद्ध अट्ठारह दिन तक ना चलता.... (वैदेही फ़िर भी,चेहरे पर बिना कोई भाव लाए पंडा को सुन रही है) अब मैं... क्या कहूँ.... जिस दिन तुमने मुझसे.... निर्माल्य लिया था.... उसी दिन जयंत मेरे पास आया था.... तुम्हारे लिए एक चिट्ठी छोड़ गया था.... और मुझसे कहा था... अगर केस खतम होने तक अगर उसे कुछ हो जाए... तो तुम्हें यह देने के लिए कहा था.... (कह कर एक कवर देता है, वैदेही उससे वह कवर ले लेती है और फाड़ कर चिट्ठी निकलने वाली होती है, पंडा उसे रोक देता है) तुम्हारा शुभ चिंतक था वह... उसके दिए भावनात्मक चिट्ठी को.... जाओ कमरे में पढ़ो.... उसके भावनाओं का सम्मान करो....

वैदेही अपना सर हिलती है और धर्मशाला में अपने कमरे की ओर चली जाती है l

उधर जैल की कोठरी में दीवार पर टेक् लगाए विश्व बैठा हुआ है l दोनों घुटने के ऊपर अपनी कोहनी का भार रख कर चेहरा झुकाए ग़मगीन बैठा हुआ है l सेल की दरवाजा खुलने की आवाज़ सुनाई देता है l वह उस तरफ ध्यान नहीं देता है l पर उसे महसूस होता है कोई आकार उसके पास खड़ा हुआ है l विश्व अपनी नजरें उठाता है l उसके सामने तापस खड़ा था l विश्व फ़िर अपना चेहरा झुका लेता है l तापस भी विश्व के पास बैठ जाता है l

तापस - विश्व.... रविवार को तुमसे मिलने से पहले.... जयंत सर मुझसे मिले... और कुछ देर मेरे साथ बात भी की थी.... (विश्व कुछ नहीं कहता, वैसे ही अपना चेहरा झुकाए बैठा रहता है) उनको शायद आभास हो गया था.... इसलिए वह तुम्हारे लिए... (एक कवर निकाल कर) यह... शायद कोई चिट्ठी... तुम्हारे लिए परसों.... मेरे पास छोड़ गए थे....

विश्व तापस को हैरान हो कर देखता है l तापस भी विश्व को वह कवर दे देता है और वहाँ से उठ कर बाहर चला जाता है l

इधर विश्व कवर फाड़ कर एक चिट्ठी निकालता है और उधर धर्मशाला के अपने कमरे में वैदेही चिट्ठी निकाल कर पढ़ने लगती है,

मेरे प्यारे वैदेही और विश्व
अगर यह चिट्ठी तुम लोग पढ़ रहे हो, तो मैं अब इस दुनिया में नहीं हूँ l मतलब केस की सुनवाई पूरी नहीं हो पाई है l मुझे तुम लोगों को यूँ आधे रास्ते पर छोड़ कर जाने के लिए माफ कर देना l इतना तो हक़ रखता हूँ, है ना l

खैर विश्व यह केस मेरी पेशा का आखिरी केस था l जिसके लिए मैंने अपनी जान लगा दी पर मंज़िल तक सफ़र पूरा ना हो पाया l
सच कहता हूँ l यह केस लेने की मेरी कोई ख्वाहिश नहीं थी l वैसे मज़बूरी भी नहीं थी l पर मैंने यह केस ली l क्यूँ, यही तुम लोगों से बात करना चाहता था l पहले लगता था कि केस खतम हो जाए तो फ़िर इत्मीनान से कहूँगा l पर मुझे महसूस हो रहा है कि शायद मेरी सांसे मेरे साथ बेवफ़ाई करने वाली हैं l इसलिए आज सब कुछ जो दिल में था, तुम तक पहुंचा रहा हूँ l हाँ यह मैं तुम लोगों पर छोड़ रहा हूँ यह चिट्ठी पढ़ने के बाद तुम दोनों कैसे रिएक्ट करोगे l
चलो मैं आज तुम दोनों को अपने बारे में कुछ बताता हूँ l मैं इस साल रिटायर होने वाला था यानी अपनी जीवन के उनसठ वसंत देखने के बाद साठ पर रन आउट हो गया l अब इन उनसठ वसंत में जब से होश सम्भाला तब से इस सहर और सहर के लोगों को बढ़ते, फूलते और बदलते देखा है l यह जो घर पर मैं रहता था, वह हमारी पुस्तैनी घर था l करीब ढाई पीढ़ियों की साक्षी थी l मेरे पिता दादाजी के इकलौते लड़के थे इसलिए विरासत में वह घर मिला था l पर हम तीन भाई थे l और तीनों में, मैं बड़ा था l मेरे पिता तब सूबेदार हुआ करते थे l उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं किया l मेरी माँ से शादी की और हम सबको दुनिया में लाकर खुद दुनिया से चले गए l खैर मेरी माँ भी तब थोड़ी पड़ी लिखी थी इसलिए इसलिए उन्हें म्युनिसिपाल्टी ऑफिस में क्लर्क की नौकरी करने लगी और हम तीनों पको पाल पोश कर बड़ा करने लगी l ऐसे में मैंने कॉलेज खतम की l उसके बाद जिंदगी से जुझना शुरू हो गया l क्यूंकि घर की आमदनी कम तो थी उस पर माँ को बीमारी ने घेर लिया l तब मैंने भी किसी किसी वकीलों के पास काम करने लगा ताकि घर में आमदनी रुके ना l दिन भर जी तोड़ कर मेहनत करता था और नाइट कॉलेज में लॉ की पढ़ाई करता था l ऐसे में मेरी शादी भी तय हो गई l डिग्री होते होते माँ भी इस दुनिया से चल बसी l इससे पहले मैं अपनी दुनिया बसा पाता एक सामाजिक समस्या सामने आ खड़ी हो गई l मुझसे मेरे होने वाले ससुर ने एक प्रस्ताव रखा के शादी के बाद मुझे अपनी भाईयों को उसी घर में छोड़ कर उनके साथ रहना होगा l मुझे तब गुस्सा आया और मैंने गुस्से में काठजोडी नदी के किनारे शाम तक बैठा रहा l फ़िर शाम ढलते ही घर लौट आया l मैंने देखा घर के बरामदे में मेरे दो भाई मेरा इंतजार कर रहे थे l माँ के बाद उस घर की आँगन में माँ की गोद की तरह मेहसूस होती थी l दुनिया से जुझने के बाद जब आँगन में थोड़ी देर सुस्ता लेने से माँ की गोद में सर रखने जैसा आराम मिल जाता था l मैंने उस दिन एक फैसला किया और हमेशा के लिए अपने भाईयों के लिए उनसे सारे संबंध तोड़ दिया l मैंने शादी कर घर बसाने के वजाए अपने भाईयों को चुना l उनके लिए मैंने अपने आपको जीवन की आग में झोंक दिया l मुझे आगे चलकर पब्लिक प्रोसिक्यूटर की जॉब भी मिल गई l
मुझे और मेरे भाईयों के आगे की पढ़ाई और जीवन के लिए इस जॉब ने बहुत सपोर्ट किया l धीरे धीरे मेरे भाई भी नौकरी पर लग गए l एक एक करके उनकी घर भी बसा दिआ l सब अपने अपने जिंदगी में खुश रहने लगे l भाइयों की जब ट्रांसफर हुई वे कटक छोड़ कर अपनी अपनी कर्मक्षेत्र में व्यस्त रहने लगे l हर वर्ष दशहरा को हमारा परिवार कटक में इकट्ठा होता था l ऐसा मैंने ही नियम बनाया था और वह भी इस नियम को सम्मान देते हुए, वे सब कहीं भी रहे, पर दशहरा मैं कटक आते ही थे, और मैं अपनी साल भर की कमाई को साल के इसी महीने के खर्च करने लिए बचाके रखता था l जब मेरे परिवार मेरे पास होता था तो जम कर खर्च किया करता था l फ़िर एक दशहरा ऐसा आया के वह लोग नहीं आए l दशहरा के छुट्टियों में उनके इंतजार में उस घर आँगन में ही बीत गई l जब वह लोग नहीं आए तो मैं कुछ दिनों की छुट्टी लेकर उनके पास जाने के लिए निकला l पर जब वहाँ पहुंचा तो मुझे खबर मिली के वह लोग कटक गए हुए हैं l मैं खुशी के मारे मेरे पहुंचने तक उन्हें कटक में रुके रहने के लिए उन तक ख़बर भिजवाई l मैं
खुशी के मारे जब घर पहुंचा तो देखा वहाँ मेरा इंतजार हो रहा है l दोनों के दोनों वहीँ बैठे मेरा इंतजार कर रहे थे, जैसे बचपन में किया था l मेरी खुशी दुगनी हो गई पर ज़्यादा देर तक नहीं टिकी l मेरे दोनों भाई उस दिन अपने हिस्से का बटवारा मांग रहे थे l उस घर को बेचने की बात कर रहे थे l वह घर जो हमारी अपनी थी l जो हमे आपस में जोड़ती थी l जिसकी आँगन में अपनी माँ के गोद को मेहसूस किया करता था l अब वह लोग उसी घर को बेच कर अलग हो जाना चाहते थे l वह दोनों जिनको मैंने अपना घर बसाने के वजाए अपना दुनिया बनाया था आज वह लोग अपनी दुनिया के लिए वह इकलौती चीज़ को बेच देना चाहते थे जिसने हमे अबतक बांधे रखा था l चलो बेच भी देता तो, मैं उनके दुनिया के लिए एक गैर जरूरी बन चुका था l मैं कहाँ रहूँगा किसके पास जाऊँगा इसकी उन्हें कोई आवश्यकता ही नहीं थी l मुझे यह बात बहुत चुभ गई l दिल यह दर्द झेल नहीं पाया l मेरी दर्द के मारे आँखे बंद हो गई l जब आँखे खुली तो खुदको हस्पताल में पाया l डॉक्टर ने कहा कि मेरे दोनों भाई मुझे यहाँ दाखिल कर गए हैं l मैं इंतजार करता रहा के कोई तो आएगा l पर नहीं, कोई नहीं आया l क्यूंकि वह लोग मुझे हस्पताल में छोड़ कर चले गए थे, या फिर यूँ कहो कि हस्पताल में छोड़ कर भाग गए थे l अपने भाई को बचाने के लिए कहीं उनकी जेब हल्का ना हो जाए l जितने भी दिन रहा, मुझसे मिलने मेरे कॉलीग्स और दोस्त ही आए l पर वह लोग नहीं आए जिनको मैंने अपनी दुनिया मान कर घर नहीं बसाया था l उसके बाद कई दशहरा आई पर कोई नहीं आया l फिर तीन साल पहले वे लोग आए थे पर वह दशहरा नहीं था l वह फ़िर से घर बेचने की बात करने लगे l मैंने इसबार सीधे कह दिया मेरे जीते जी नहीं l मेरे मरने के बाद ही हो सकता है l उस दिन वह लोग मुझे जल्दी मर जाने की दुआ दे कर चले गए l इस बार भी दिल का दौरा पड़ा l पर सम्भाल लिया था मैंने खुदको l उसके बाद काम करना कम करदिया और धीरे धीरे बंद भी कर दिया l
एक दिन घर में यूहीं बैठे बैठे सोचने लगा अगर इस घर को बेच दिया होता तो क्या बुरा होता l मैं घर से बाहर जाता हूँ और घर लौट आता हूँ l पर घर काटने को दौड़ता था जब दशहरा आता था l जिनके लिए घर को लौट कर आता था l उन लोगों को अब मेरी कोई जरूरत ही नहीं थी l ऐसे में एक दिन निश्चय किया l सब कुछ छोड़ कर कहीं चला जाऊं l क्यूँ के मेरे भाइयों ने मुझे लावारिश कर दिया था l अगर मेरी मौत भी हो जाए तो वह लोग शायद नहीं आयेंगे l मेरी लाश एक लावारिश लाश बन कर रह जाएगी l इसलिए सब छोड़ कर मैं कहीं ऐसी जगह चला जाऊँ जहां एक लावारिश लाश को पहचानने वाला भी कोई ना हो l यही सोच कर एक दिन घर में ताला लगा कर कटक छोड़ने के लिए निकल पड़ा l जब गेट के पास पहुंचा तो एक बार उस घर के तरफ मुड़ कर देखा जिसे मैं छोड़ कर जा रहा था l आखिर मेरी माँ के बाद यही तो आँगन था जब दुनिया से जुझ कर यहाँ थक कर लौट आता था l अब इस घर को किसीके लिए लौट आऊँ, मेरा ऐसा कोई था ही नहीं l एक आखिरी बार अपने घर को देख कर जा रहा था कि अचानक मेरी नजर मेरे मैल बॉक्स पर पड़ी l एक चिट्ठी थी l मन मचल गया बहुत दिनों बाद कोई चिट्ठी दिखी थी शायद मेरे किसी अपने कि l नहीं मैं गुस्सा था उनसे, इसीलिये बिना मुड़े बादामबाड़ी बस स्टैंड चला गया l पर बस चढ़ नहीं पाया l कौन है, जिसको मेरी जरूरत पड़ गई यही सोच कर मैं घर के आँगन में वापस आया l मैल बॉक्स में देखा तो पाया एक सरकारी चिट्ठी थी l विश्व तुम्हारे ही पैरवी के लिए सरकारी सिफारिश पत्र था l मन उचट गया, धत मैंने तो किसी अपने के लिए सोच कर वापस आया था, पर यह तो एक सरकारी सिफारिशी चिट्ठी निकली l जो भी हो मुझे जिस के वजह से घर लौटना पड़ा l उसके बारे में मेरे लिए जानना जरूरी था l यह सोच कर तुम्हारे केस से जुड़े सारे दस्तावेज मैंने कोर्ट से हासिल किया, पढ़ा, पढ़ने के बाद मुझे कुछ गडबड लगा l इसलिए मैं अपनी भेष बदल कर दस दिन के लिए राजगड़ गया, वहाँ पर मैं अपने तरीके से खोज खबर ली l तुम दोनों से मैं प्रभावित हुआ l गांव में सब डरे डरे हुए थे सहमे सहमे हुए थे, फ़िर भी दबे स्वर में तुम दोनों के लिए अच्छा ही कहते थे l मैं कटक वापस आया और सोचने लगा यह केस लेना चाहिए या नहीं l फ़िर सोचा मैं घर से निकल चुका था, पर जिसके लिए अपने घर की आँगन के तरफ मुड़कर देखा था, जिसने मुझे घर दुबारा लौटने पर मजबूर कर दिया उससे जरूर मेरा कोई ना कोई रिश्ता है l इस जनम का नहीं तो शायद किसी और जनम का हो l बस उसी क्षण मैंने फैसला किया और वैदेही को रजिस्ट्री लेटर से यहाँ बुलवाया l बाकी आगे की सब तुम जानते हो l
तो अब आते हैं जिस विषय के लिए मैंने तुम लोगों को यह चिट्ठी लिखी है l विश्व, इंसान पीछे मुड़ कर उसे खोजता है, जिसके लिए उसे घर लौटना होता है, क्यूंकि वह उसका अपना होता है l जिसके लिए उसे दुनिया से टकराना पड़ता है, क्यूंकि वह उसका अपना होता है l मैं जब भी पीछे मुड़ कर देखता था तो मुझे सिर्फ़ तुम ही दिखाई देते थे l मैं जब जब तुम्हें देखता था तो पुरे जोश के साथ दुनिया से टकराने की हिम्मत जुटा लेता था l इसलिए मैंने जो वसीयत बनाई है, वैदेही और विश्व तुम दोनों को मैंने अपना लीगल हायर घोषणा किया है l मैंने अपनी जिंदगी की सारी जमा पूंजी जो मैंने कमाया है अपनी खून पसीने से वह सब तुम दोनों में बांट दिया है l बस वह घर तुम लोगों को नहीं दे सकता था क्यूंकि वह हमारे पुस्तैनी घर है और उस पर मेरे बाद उन दो नामुराद भाइयों का ही हक़ बनता है l सो मैंने उनको वह हक़ दे दिया है l वह अब घर को बेच कर अपने हिस्से का पैसा ले कर जा सकते हैं l पर जो मैंने कमाया है उसे बांटने का पुरा हक़ मेरा ही है l इसलिए मेरी सारे बैंक डिपॉजिट वैदेही तुमको मिलेगी और मेरे मरने के बाद अगर विश्व जैल से ना छूटे तो उस परिस्थिति में मेरी इपीएफ ओर जीपीएफ को फिक्स करदिया जाएगा वह विश्व के रिहा होने के बाद मिलेगा l तुम लोग डराना बिल्कुल भी नहीं l अरे भई मैं वकील हूँ, मैंने सब सेट करदिया है l मेरी कमाई पर मेरे भाई कोई दावा नहीं ठोक सकते l
विश्व और वैदेही तुम दोनों बहुत अच्छे हो l तुम दोनों अपने अंदर की अच्छाई को मरने मत देना l और हाँ कभी रोना भी मत l क्यूंकि रोना कमजोरों की निशानी है l और तुम दोनों को कमज़ोर नहीं बनना है l एक बात याद रखो, तुम खुद अपनी उम्मीद हो और विश्वास हो l तुम्हारा विश्वास ही तुम्हें मंज़िल तक पहुंचाएगी l

और अंत में मेरी फीस, तो विश्व पूरी के स्वर्ग धाम में मेरी अंत्येष्टि तुम ही करना l इतना हक़ तो तुम पर मैं रखता हूँ, अगर नहीं भी तो इसे मेरी फ़ीस ही समझ लेना l चिंता मत करो मैंने अपने वसीयत नामे में यह साफ़ लिख भी दिया है कि मेरी चिता को आग विश्व प्रताप महापात्र ही देगा, कोई और नहीं l मेरी बात याद रखना, आगे तुमको मंजिल मिलेगी और जरूर मिलेगी क्यूंकि मैं वहाँ ऊपर भगवान से तुम दोनों के लिए लड़ता रहूँगा l अब इस बुढ़े का सफ़र यहीँ खतम हुआ l
बस एक आखिरी इच्छा शेष है चिंता मत करो वह मैं भगवान से मांग लूंगा l चलो बता ही देता हूँ l इस जनम का कोटा तो खतम हो गया अगले जनम में हे भगवान वैदेही को मेरी माँ बनाना और विश्व को मेरा बेटा l बस इतना ही क्यूँकी यह पाने के लिए और जनम भी तो लेना है l
अलविदा मेरे बच्चों अलविदा

दोनों अपनी अपनी चिट्ठी पढ़ कर स्तब्ध हो जाते हैं l

फ्लैशबैक में स्वल्प विराम

खान - व्हाट... जयंत सर ने... विश्व और वैदेही को अपना लीगल हायर बनाया...
तापस - हाँ...
खान - जयंत सर के भाइयों ने तो.... हंगामा खड़ा कर दिया होगा...
तापस - हाँ कर तो दिया था... पर जैसा कि जयंत सर एक मंझे हुए वकील थे.... और उन्होंने जिस तरह से अपना वसीयत नामा बनाया था.... वह दोनों भाई सिर्फ़ घर पाकर भी बहुत खुस थे...
खान - वह कैसे...
तापस - अरे भाई... जयंत सर की पूरी जमा पूंजी सिर्फ़ तीस लाख के करीब ही निकली... जब कि वह जगह समेत घर... पूरे करोड़ों की थी... उनके लिए सौदा बुरा नहीं था...
खान - ओ.... हम्म... फ़िर...
तापस - कुछ नहीं.... अगली सुनवाई के लिए तारीख दो हफ्ते बाद की मिली थी.... इसी बीच जयंत सर जी वसीयत सामने आया.... उनकी अंत्येष्टि उनकी इच्छा को सम्मान करते हुए.... पूरी के स्वर्गद्वार में किया गया... और विश्व ने ही किया.... और उनका पिंड तेरहवे दिन... पूरी के सागर तट पर दे दिया गया....
खान - ह्म्म्म्म... आगे की केस में सुनवाई कैसे हो पाया.... जनता के आक्रोश के चलते शायद वकील कोई तैयार ही नहीं... हुआ होगा...
तापस - पता नहीं... पर उसकी नौबत ही नहीं आई....
खान - मतलब....
तापस - दो हफ्ते बाद.... जब सुनवाई शुरू हुआ... तब....

फ्लैशबैक में

जज - ऑर्डर ऑर्डर ऑर्डर.... आज पूरे दो हफ्ते बाद.... इस केस पर सुनवाई के लिए हम एकत्र हुए हैं.... जो हुआ बहुत दुखद था... चूंकि इसी जगह.... अपने काम के वक्त.... डिफेंस लॉयर श्री जयंत राउत जी का स्वर्गवास हुआ... इसलिए उनके स्मरण में आइये पहले.... हम सब खड़े हो कर... दो मिनट का मौन श्रद्धांजली दें.... (जज के आग्रह पर सब अपने अपने जगह पर खड़े होकर दो मिनिट का मौन श्रद्धांजलि दिए, उसके बाद) आइए अब बैठ जाते हैं और आज केस पर आगे की सुनवाई के लिए..... प्रोसिक्यूशन अपना तथ्य रखें.....
प्रतिभा - थैंक्यू मायलर्ड... आज मैं इतना कह सकती हूँ.... के डिफेंस ने जिन चारों गवाहों से जिरह के लिए अदालत से.... इजाज़त ली थी.... उनमें से तीनों की गवाही पुरी हो चुकी है.... अब केवल अंतिम गवाह के रूप में.... सिर्फ़ भैरव सिंह क्षेत्रपाल ही बचे हुए हैं.... और इस वक्त अदालत में.... डिफेंस की कुर्सी खाली है... योर ऑनर... और जब तक यह कुर्सी खाली रहेगी.... तब तक अंतिम फैसला नहीं लिया जा सकता है....
जज - हाँ... यह अदालत आपसे इत्तेफाक रखती है.... हाँ तो मक्तुल श्री विश्व प्रताप महापात्र... पिछली बार अदालत ने, आपकी बहन.... सुश्री वैदेही जी के आग्रह पर.... आपके लिए सरकार से सिफारिश की थी.... क्या इस बार भी अदालत फ़िर से.... सरकार से सिफारिश करेगी.....

जज के इस बात पर जहां भैरव सिंह और बल्लभ के चेहरे पर कुटिल मुस्कान उभर जाती है, वहीँ अदालत में दूसरे लोग विश्व की हाँ सुनने की प्रतीक्षा में थे l

विश्व - (अपने दोनों हाथ जोड़ कर) नहीं जज साहब नहीं... मुझे नहीं लगता... की अदालत में और खुलासे की कोई जरूरत है.... जयंत सर ने अदालत में मेरे लिए... जितनी भी जिरह कर... सच्चाई को सामने लाये.... वह बहुत है.... अब मैं... उनके जगह किसी और को नहीं दे सकता हूँ.... जितनी भी जिरह हो चुकी है.... वह आपके फैसले लेने के लिए..... पर्याप्त है... इसलिए.... मेरे लिए कोई और वकील मुकर्रर ना किया जाए...

यह एक धमाका था जो विश्व ने अदालत में उस वक्त किया l जजों के साथ साथ भैरव सिंह भी हैरान था l

जज - विश्व प्रताप.... यह अदालत बगैर डिफेंस के.... अपना निर्णय नहीं सुना सकती l इसलिए आपको.... या तो अपना वकील लाना होगा.... या फिर हमे सरकार को सिफारिश भेजनी होगी.....
विश्वा- (हाथ जोड़ कर) नहीं योर ऑनर.... मैं अब अपने लिए कोई वकील नहीं चाहता हूँ.... जयंत सर ने मुझे जो मान व अधिकार दिया है..... वह कभी मुझे मेरे पिता भी नहीं दे पाए..... इसलिए मैं यह नहीं जानता.... अदालत और क्या जानना चाहती है..... पर मेरे तरफ से.... सारी जिरह को खतम.... समझा जाए....

जज से लेकर वहाँ उपस्थित सब लोग भौंचके हो गए l अब जजों के सामने यह विकट स्थिति थी l

जज - विश्व प्रताप.... अपने इस समय अदालत को.... धर्म संकट में डाल दिया है.... इसलिए यह अदालत एक बार फिर.... आज के लिए अगली सुनवाई तक स्थगित किया जाता है....... नाउ द कोर्ट इज़ एडजॉर्न......
Nice update bro
 
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Rajesh

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👉छत्तीसवां अपडेट
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खान - यह वाकई... कानून के इतिहास में अनोखी केस हो गई...
तापस - हाँ (फ्लैशबैक से बाहर आ कर) कानून के बड़े से बड़े जानकारों का सर घुम गया.... था...
खान - अच्छा... जयंत.... क्या सिर्फ़ पैसे छोड़ गए थे.... या कुछ और भी छोड़ा था.... क्या जयंत सर के भाइयों ने... आपत्ति नहीं जताई...
तापस - हाँ छोड़ा तो था.... पर सब विश्व के ही काम आया.... उनके भाइयों के कुछ भी काम का ना था.....
खान - मतलब...
तापस - उन्होंने दो अलमारी भर कर कानून के किताबें.... विश्व के लिए जायदाद के रूप में छोड़ी थी.... कटक चांदनीचौक जगन्नाथ मंदिर के पुजारी के पास.... यही उन्होंने कमाया था.... जिसका वारिस जयंत सर ने विश्व को बनाया था.....
खान - ओ.... तो क्या इसलिए विश्व कानून पढ़ रहा है....
तापस - हाँ....
खान - पर क्यूँ....
तापस - पता नहीं... पर शायद.... जयंत सर ने... ऐसा विश्व के लिए सोचा था.....
खान - वैदेही के हिस्से में जो पैसे आए.... क्या उस पर बवाल नहीं मचा....
तापस - जयंत सर के... वसीयत में इसकी जिक्र था.... और चैलेंज करने की हिम्मत... उनके भाइयों में नहीं थी.... वैसे वैदेही के हिस्से सिर्फ बारह लाख रुपये आए.... और करीब करीब अट्ठारह लाख रुपये.... फिक्स डिपॉजिट किया गया.... विश्व को छूटने के बाद... विश्व को मिलेगा......
खान - ओह.... मतलब विश्व.... जैल से निकलने के बाद.... अच्छी खासी पैसों का मालिक होगा..
तापस - हाँ... तुम कह सकते हो....
खान - अच्छा... उस दिन.... अदालत की... कारवाई बंद होने के बाद क्या हुआ....
तापस - इस बात का चर्चा.... मीडिया में बड़े बड़े एक्सपर्ट.... करने लगे थे.... अगली सुनवाई को क्या हो सकता है.....

फ्लैशबैक

टीवी पर
अरुंधति - (अपने मेहमान से) तो पटनायक सर.... शायद कानून के इतिहास में पहली बार.... कुछ ऐसा होने वाला है.... जो पहले कभी किसी ने सोचा भी नहीं था....
पटनायक - जी अरुंधति जी..... ऐसा पहले कभी कोई वाक़या सामने नहीं आया...
अरुंधति - क्या कानून में... ऐसा कोई प्रावधान है.... के अभियुक्त खुद के लिए जिरह कर सके...
पटनायक - हाँ है भी और हुआ भी है..... आप मीडिया वालों को... इसकी जानकारी होनी चाहिए.... कई दशकों पहले.... बिकीनी कीलर के नाम से... मशहूर... चार्ल्स शोभराज ने खुद अपने लिए... जिरह किया था.... उसने भी कभी अपने लिए.... वकील नहीं लिया था.... पर ओड़िशा में.... अब तक ऐसा कभी हुआ नहीं है..... मैं भी अचंभित हूँ.... और मुझे भी प्रतीक्षा रहेगी.... अगली सुनवाई में क्या होता है....

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परीडा - अरे यार.... यह पटनायक एक.... रिटायर्ड जज है.... जब यह नहीं बोल पा रहा है.... तब हम कहाँ से दिमाग़ लगाएं.....
रोणा - विश्व ने दिमाग़.... लगाया है.... या... ऐसे ही कुछ तुक्का भिड़ाया है...
पिनाक - कुछ भी भिड़ाए.... फ़िकर मत करो.... इस बार वकील का बंदोबस्त हो गया है.... अगर वह मांगेगा.... तो इसबार की सरकारी वकील... हमारे लिए लड़ेगा....
बल्लभ - पर विश्व पहले.... वकील की मांग करे तो सही..... वह तो मना कर दिया.... क्या चल रहा है... उसके दिमाग में....
पिनाक - उसके पास कोई दिमाग़ नहीं है.... अपने नाजायज़ बाप की चिता में आग देने के बाद.... सेंटीमेंट के लिए... वकील मना कर दिया है..... अगली बार वह गलती नहीं दोहराएगा....
रोणा - हाँ.... जल्दी ही यह कीचकीच खतम हो.... साला कटक में... रह रह कर सड़ने लगा हूँ....
बल्लभ - हाँ अगली सुनवाई तक तो.... हर हाल में रुकना पड़ेगा....

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सेंट्रल जैल
लाइब्रेरी में टेबल के पास दो चेयर पर आमने सामने बैठे हुए हैं वैदेही और विश्व l

वैदेही - तुने वकील लेने से.... मना क्यूँ कर दिया...
विश्व - वजह... आप अच्छे से जानते हो.... दीदी...
वैदेही - किसी की भी.... जयंत सर के जैसे अंजाम ना हो... इसलिए ना...
विश्व - किसी का भी.... मेरे वजह से... किसी भी तरह का बुरा हो... यह मैं नहीं चाहता....
वैदेही - ह्म्म्म्म... यही अच्छाई.... कभी ना छोड़ने के लिए जयंत सर ने कहा है....
विश्व - लेकिन फ़िर भी... यह आधा सच है....
वैदेही - तो पूरा सच क्या है....
विश्व - जयंत सर ने मेरे लिए जितना भी किया है.... उसका श्रेय मैं किसी और के साथ बांट नहीं सकता.... (वैदेही चुप रहती है) अब अंजाम चाहे जो भी हो... मैंने नीयत बना लीआ है.... नियती चाहे कैसी भी हो.... मुझे स्वीकार होगा....
वैदेही - ह्म्म्म्म.... वैसे... उन्होंने जो किताबें दी है... वह तेरे क्या काम आयेंगे....
विश्व - (वैदेही की ओर देखते हुए) दीदी... उन्होंने मेरे लक्ष को पहचान लिया था..... उस लक्ष को धार देने के लिए ही..... वह किताबें मुझे दी है... मुझे अब यहाँ रह कर क्या करना है.... वह राह दिखा दिया है.....
वैदेही - क्या मतलब..... है... इसका..
विश्व - दीदी.... चूंकि तुमने कहा तो.... इसलिए मैंने करेस्पंडिंग... डिस्टेंस... एजूकेशन में.... पहले बीए सोसिओलॉजी में ग्रेजुएशन पुरी करूंगा.... और उसके बाद.... जैल में ही रह कर.... वकालत की डिग्री हासिल करूंगा.....
वैदेही - क्या.... वकालत की डिग्री.... इससे... तेरा... क्या फायदा....
विश्व - (एक फीकी मुस्कान मुस्कराते हुए) इंसान को लक्ष्मी... छोड़ सकती है.... पर सरस्वती कभी नहीं छोड़ती....
वैदेही - यह... कैसी... बहकी बहकी बातेँ कर रहा है....
विश्व - यह बात मुझसे.... जयंत सर ने कही थी.... उस दिन की उस बात का आशय.... आज समझ में आ रहा है...
वैदेही - अगर उन्होंने कहा था.... तो गूढ़ रहस्य होगा.... तू कह रहा है... तुने नियत बना लिया है.... हर नियती को स्वीकार करने की.... कुछ बुरा हुआ तो.... (विश्व उसे हैरान हो कर देखता है) उस क्षेत्रपाल के अहं पर.... चोट देने के लिए ही... मैंने तुझे... ग्रेजुएशन करने के लिए कहा.... और.... अंजाम...
विश्व - दीदी.... हमारे सुरक्षा की चिंता.... छोड़ दो.... (विश्व के मुस्कान में जान दिखती है) जयंत सर की बातों को मत भूलो.... अब वह भगवान के पास हैं.... और हमारे लिए.... भगवान से प्रार्थना भी करेंगे और... लड़ भी जाएंगे.... इसलिए फ़िकर मत करो....

वैदेही एक फीकी हँसी हँसती है और विश्व को देखती है l पर विश्व के चेहरे से मुस्कान धीरे धीरे गायब हो जाती है और आँखें भाव हीन हो जाती है l

वैदेही - विश्व.... पता नहीं क्यूँ.... पर अब तुझे देख कर थोड़ा डर लगने लगा है....
विश्व - (वैदेही की ओर देख कर) दीदी.... मैंने फैसला कर लिया है.... अब कभी... किसीके भी सामने.... कमजोर नहीं पड़ना है.... और उसके लिए.... मैं कुछ भी कर गुजर जाऊँगा....

वैदेही की आंखे हैरानी से बड़ी हो जाती, विश्व का तेजी से बदलते रूप और व्यवहार को देख कर l


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विश्व दस्तखत कर राइटर को एफिडेविट की कॉपी दे देता है l राइटर वह जज को बढ़ा देता है l

जज - ठीक है... विश्व आपके वकील ने चार गवाहों की... जिरह की परमिशन ली थी.... सिर्फ़ एक गवाह की जिरह बाकी है.... क्या आप... उनकी जिरह करना चाहेंगे....

विश्व एक नजर भैरव सिंह को देखता है फ़िर जज से कहता है

विश्व - नहीं जज साहब... मुझे किसीसे अब कुछ नहीं पूछना... अभियोजन पक्ष को कुछ कमी महसूस हो रही है... तो वह चाहें तो.... जिरह कर सकते हैं.....
जज - प्रोसिक्यूशन....
प्रतिभा - नहीं योर ऑनर...
जज - विश्व आप चाहें तो.... आपके खिलाफ दर्ज़ हुई.... रिपोर्ट और सबूत के तौर पर जमा किए हुए... सारे कागजात... अदालत से ले सकते हैं.... और आप चाहें तो... जिरह फिर से आरंभ किया जा सकता है.....
विश्व - नहीं मायलर्ड..... अब तक कारवाई से.... मैं संतुष्ट हूँ.... इसलिए जिरह को फिर से.... शुरू करने का.... कोई औचित्य नहीं दिख रहा है.....
जज - ठीक है.... तो फिर पहले अभियोजन पक्ष अपना पक्ष रखें....
प्रतिभा - जी योर ऑनर.... (एक फाइल निकाल कर) तो... मायलर्ड... यह केस राजा साहब के... मौखिक शिकायत पर.... गृह मंत्रालय ने एसआइटी बनाया और मनरेगा घोटाले की जांच शुरू हुई.... जांच में पाया गया.... की सारे लेन देन में... मृतकों के आधार कार्ड के जरिए किया गया.... एसआइटी ने पांच मुख्य अभियुक्तों की पहचान की.... पर एसआइटी की जांच का हर सिरा घुम कर... श्री विश्व प्रताप पर रुकी.... ऐसे में उनको मानिया गांव शासन के पंचायत समिति सभ्य... श्री दिलीप कुमार कर... जांच में दिशा प्रदान किया.... भले ही वह गवाह ईमानदार ना साबित हो पाया... पर जब एक अभियुक्त... बैंक अधिकारी की मौत की खबर एसआईटी को मिली.... तब जाकर विश्व को गिरफ्तार करने के लिए... देवगड़ तहसीलदार के द्वारा.... श्री अनिकेत रोणा जी को समन भिजवाया.... और विश्व को गिरफ्तार करवाया... भले ही अमानवीय तरीके से और व्यक्तिगत भावनाओं के चलते ही क्यूँ नहीं... पर विश्व गिरफ्तार हुए और आज यह केस सुनवाई के अंत तक पहुंच गई.... फ़िलहाल... अब तक जिरह में... सारे गवाह भले ही... ईमानदार ना साबित हुए हों.... पर यह कहीं पर भी साबित नहीं हुआ... श्री विश्व बेगुनाह हैं... और विश्व इसमे शामिल नहीं थे..... यह कहीं पर भी.... साबित नहीं हो पाया है.... इसलिए मैं अभियोजन पक्ष की तरफ से.... विश्व के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करती हूँ....

प्रतिभा के उपस्थापन के बाद भैरव के खेमा हैरान जितनी हुई उतनी खुश भी हुई l पर वैदेही के चेहरे पर पर उदासी और दुख साफ दिखने लगती है l

जज - अब बचाव पक्ष... अपना पक्ष रखें....

विश्व - मायलर्ड.... हाँ यह सच है.... मेरे खिलाफ़... चाहे मौखिक ही क्यूँ ना हो... शिकायत दर्ज हुई.... जिस पर एसआइटी बना.... यानी पहले से ही... मैं दोषी करार दिया जा चुका था.... और इसको आधार बना कर.... जांच की गई.... मायलर्ड.... जांच इसलिए शुरू नहीं की गई.... की विश्व कहीं कहीं... बेगुनाह लगे... बल्कि हर सिरा घूमते घूमते.... विश्व तक पहुंचे... जांच इसलिए कि गई.... वह सरकारी गवाह... जो अभी लकवा ग्रस्त है.... हस्पताल में है.... वह कितना बड़ा सच्चा है... यह अदालत के सामने प्रमाणित हो चुका है..... और रही.... राजगड़ के मॉडल पुलिस थाने के... अधिकारी... किस तरह कानून को अपने हाथ में लेकर.... अपनी थाने को मॉडल थाना बनाया... यह भी प्रमाणित हो चुका है.... अंत में... अदालत के समक्ष... इस केस के बाबत... कुछ परते खुल चुकी है.... अगर इंसाफ़ के लिए पर्याप्त हों... तो उनपर गौर किया जाए.... बस मायलर्ड बस....

विश्व की बात खतम होते ही, सारे जो उस कमरे में उपस्थित थे, सब के सब असमंजस में पड़ जाते हैं l मुख्य जज विश्व को देखता है, फ़िर कुछ कहने को होता है मगर कुछ सोच कर रुक जाता है l

जज - आज इतने दिनों बाद... आख़िर इस केस की सुनवाई की प्रक्रिया में... अंतिम दौर पर पहुंच गए हैं.... अभियोजन पक्ष ने अपना पक्ष रख चुके हैं... और अभियुक्त पक्ष ने... भी अपना पक्ष रख दिया है..... अब सभी की नजर..... इस केस में होने वाली निर्णय पर... ठहर गया है.... अब अदालत ने इस केस पर... फैसला सुरक्षित कर लिया है.... अगले हफ्ते.... सोमवार को.... इस केस पर फैसला सुना दिया जाएगा..... आज के लिए... यह अदालत की कारवाई को स्थगित किया जाता है.... नाउ द कोर्ट इज एडजॉर्न....

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नमस्कार,.... मैं अरुंधती.... आप सबको ख़बर ओड़िशा के प्राइम टाइम खबर में स्वागत करती हूँ.... आज कोर्ट में आधिकारिक तौर पर.... राजगड़ मनरेगा घोटाले कांड पर फैसला ले लिया गया है..... पर जजों के पैनल ने सुरक्षित रख लिया है.... अगली सोमवार को जनसाधारण.... कोर्ट के लिए गए... निर्णय से अवगत हो जाएंगे.... पर आज कोर्ट में जो हुआ... उस पर हम.... अवसर प्राप्त पूर्व न्यायधीश... निरंजन पटनायक... जी से बात करेंगे.... मैं आपको नमस्कार करती हूँ.... और आपको स्टुडियो में स्वागत करती हूँ....
पटनायक - नमस्कार...
अरुंधति - पटनायक सर, क्या ऐसा कोई प्रावधान होता है... कानून के किताब में....
पटनायक - हाँ... होता है... मान लीजिए.... एक अभियुक्त.... अपने पैरवी करने वाले वकील से संतुष्ट.... ना हो पाए... उस परिस्थिति में.... अभियुक्त अपने लिए स्वयं.... जिरह कर सकता है.... अगर कोई वकील ना मिले ऐसे परिस्थिति में भी... अभियुक्त अपने लिए... जिरह कर सकता है...
अरुंधति - अगर ऐसा प्रावधान है.... तो सवाल यह है कि.... अभियुक्त विश्व.... को.... इससे पहले अवगत क्यूँ नहीं कराया गया....
पटनायक - देखिए.... यह.... प्रश्न.... मानवीय दृष्टि से... सही नहीं है... एक अभियुक्त के लिए... वकील जितना लड़ सकता है.... वह खुद अपने लिए.... उतना लड़ नहीं सकता.... क्यूंकि सबूत जुटाना... एक ऐसी बात है.... जो जैल अंदर से जुटाना.... संभव नहीं होता.... पर संविधान में... यह प्रावधान है....
अरुंधति - अगर... इस बात को... पहले से जानते होते.... तो क्या विश्व.... वकील की मांग किए होते....
पटनायक - उन्होंने जो उस वक्त.... मांग रखी थी.... वह सौ फीसद जायज था.... अब वह जो कर रहे हैं.... वह उनकी आवश्यकता है....
अरुंधति - सर... अगर वह अब भी.... अदालत से मांग करते... तो क्या अदालत... उनकी मांग को.... खारिज कर देती....
पटनायक - कभी नहीं... अरुंधति... यह आप भी जानते हैं... अदालत ने... उन्हें इस बाबत... पुछा भी था.... पर यह उनका अपना व्यक्तिगत निर्णय था....
अरुंधती - तो इसका मतलब यह हुआ.... शायद विश्व.... अपने वकील दिवंगत जयंत कुमार से... संतुष्ट नहीं थे....
पटनायक - नहीं मुझे.... ऐसा नहीं लगता.... उन्होंने.... किसी और वकील को... जन आक्रोश का शिकार... नहीं होना देना चाहते थे....
अरुंधती - हाँ... यह भी हो सकता है.... पर जन आक्रोश तब भी था... जब विश्व.... हिरासत में लिए गए थे....
पटनायक - हाँ... था... पर तब जन आक्रोश.... सिर्फ़ विश्व के विरुद्ध था.... पर अब जन आक्रोश... उसके लिए खड़े होने वालों के विरुद्ध मुड़ गया है...

पिनाक टीवी बंद कर देता है l और बल्लभ की और देखते हुए l

पिनाक - प्रधान तुमने वाकई.... मीडिया मैनेजमेंट बहुत बढ़िया किया है.... बहुत अच्छे...
यश - यह.... हुई ना बात... आपको कभी कभी अपने लोगों... एप्रीसिएट करना चाहिए...
पिनाक - इसलिए तो मैं कर रहा हूँ... लेकिन तुम्हारा भी... एप्रीसिएट करना चाहूँगा...
यश - वह क्यूँ भला....
पिनाक - तुमने माहौल ही ऐसा बनाया है... के कोई भी वकील... विश्व के केस में हाथ डालने से पहले.... सौ बार सोच रहा है....
यश - इसके लिए भी.... आप अपने प्रधान को... एप्रीसिएट कीजिए... मैंने उससे जो जो भी मांगा... वह... जुगाड़ कर दे दिया.... इसलिए काम आसान बन गया....
पिनाक - अरे प्रधान... बहुत अच्छे... बहुत अच्छे.... बहुत अच्छे...
बल्लभ - थैंक्यू... छोटे राजाजी.... वैसे छोटा मुहँ और बड़ी बात.... आज विश्व ने.... राजा साहब से कुछ पुछा क्यूँ नहीं..... और आज राजा साहब ने भी.... कहा था.... वह उनसे कुछ पूछेगा नहीं.... ऐसा क्यूँ....
पिनाक - अच्छा हुआ... यह तुमने मुझे पुछा... राजा साहब से पूछा होता.... तो....
बल्लभ - इसलिए तो... आपसे पुछा है मैंने....
पिनाक - सच कहूँ... तो मैं भी नहीं जानता.... शायद विश्व..... राजा साहब से... डर गया हो..... यह राजा साहब ही बता सकते हैं.... क्यूँकी सिर्फ उन्हें ही मालुम था.... विश्व उनसे.... कुछ नहीं पूछेगा... पता नहीं वह अब कहाँ है...

यश - वह पिताजी के साथ हैं.... सच कहूँ तो... शायद मैं समझ सकता हूँ.... या यूँ कहूँ... के मैं जान गया हूँ.... आखिर विश्व ने... हथियार डाल क्यूँ दिया....
पिनाक - क्या तुम्हें मालुम हो गया.... कैसे....
यश - जब मैंने आपसे विश्व की पूरी राम कहानी पूछा था.... तब सिर्फ़ एक घटना मुझे याद रहा.... विश्व ने छलांग लगा कर.... राजा साहब के गिरेबान तक पहुंचने की कोशिश की थी....
रोणा - हाँ ऐसा हुआ था.... पर हवा में ही रुक गया था.... राजा साहब के गार्ड्स ने उसे बीच हवा में ही.... रोक लिया था....
परीडा - हाँ... इस बात का... मैं गवाह हूँ...
यश - तो फ़िर वह डरा नहीं है... बात कुछ और है... पर यह पक्का है...... वह डरा बिल्कुल नहीं है....
पिनाक - क्या तुम उससे मिले हो कभी.... या जानते हो.... हमारे ही टुकड़ों पर पलता था.... उसमें हिम्मत ज़वाब दे गई होगी.... जैल की रोटियाँ तोड़ते तोड़ते.....

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सेंट्रल जैल
डायनिंग हॉल, लंच का समय
विश्व एक टेबल पर अकेला बैठा हुआ है, अपनी थाली के सामने l खाना वैसा ही थाली में रखा हुआ है l डैनी उसे दूर से देखता है और अपने थाली के साथ वह विश्व के बैठे टेबल पर पहुंचता है l

डैनी - क्या हुआ हीरो... बड़े गहरे सोच में है.... वैसे खाने ने क्या बिगाड़ा है तेरा.... खाने से इतनी बेरुखी क्यूँ....
विश्व - (अपना सर ना में हिलाते हुए) नहीं कुछ नहीं.... भूख ही नहीं लग रही है....
डैनी - हाँ... तुने जो किया.... उससे तेरा भूख मर चुकी होगी.... आख़िर तुने मौका जो गवां दिया...
विश्व - (डैनी को गौर से देखता है, और पुछता है) एक बात पूछूं... आपसे...
डैनी - हाँ पुछले...
विश्व - मैंने बहुत दिनों से गौर किया है.... जहां मीडिया चूक जाती है.... वह खबर भी आप तक पहुंच जाती है.... कैसे...
डैनी - वह क्या है कि... मैं स्पेशल सेल में... रहता हूँ... मैं कोई आम कैदी नहीं हूँ... मैं यहाँ का खास कैदी हूँ...
विश्व - हाँ जानता हूँ... यह आपने मुझे... पहले भी बताया है.... पर कोर्ट में चल रही कारवाई... की डिटेल्स... मीडिया तक भी नहीं पहुंच पाती है..... वह आप तक... बिल्कुल सही तरीके से.... पहुंच जाती है....
डैनी - मेरी... अपनी... इंफॉर्मेशन नेटवर्क है... इसलिए....
विश्व - ओ....
डैनी - पर तुने बताया नहीं.... अपने दुश्मन के गिरेबान पर हाथ रखने का मौका मिला था तुझे.... पर तुने उसे छोड़ क्यूँ दिया... उससे सवाल पूछ कर... उसकी बेइज्जती भी कर सकता था.....
विश्व - मेरे पास उस आदमी के लिए.... सिर्फ़ जवाब हैं.... सवाल है ही नहीं.... इसलिए उससे पुछा नहीं....

यह कहते कहते विश्व का चेहरा कठोर हो जाता है l डैनी भी विश्व में यह बदलाव देख कर हैरान हो जाता है l
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Rajesh

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👉छत्तीसवां अपडेट
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खान - यह वाकई... कानून के इतिहास में अनोखी केस हो गई...
तापस - हाँ (फ्लैशबैक से बाहर आ कर) कानून के बड़े से बड़े जानकारों का सर घुम गया.... था...
खान - अच्छा... जयंत.... क्या सिर्फ़ पैसे छोड़ गए थे.... या कुछ और भी छोड़ा था.... क्या जयंत सर के भाइयों ने... आपत्ति नहीं जताई...
तापस - हाँ छोड़ा तो था.... पर सब विश्व के ही काम आया.... उनके भाइयों के कुछ भी काम का ना था.....
खान - मतलब...
तापस - उन्होंने दो अलमारी भर कर कानून के किताबें.... विश्व के लिए जायदाद के रूप में छोड़ी थी.... कटक चांदनीचौक जगन्नाथ मंदिर के पुजारी के पास.... यही उन्होंने कमाया था.... जिसका वारिस जयंत सर ने विश्व को बनाया था.....
खान - ओ.... तो क्या इसलिए विश्व कानून पढ़ रहा है....
तापस - हाँ....
खान - पर क्यूँ....
तापस - पता नहीं... पर शायद.... जयंत सर ने... ऐसा विश्व के लिए सोचा था.....
खान - वैदेही के हिस्से में जो पैसे आए.... क्या उस पर बवाल नहीं मचा....
तापस - जयंत सर के... वसीयत में इसकी जिक्र था.... और चैलेंज करने की हिम्मत... उनके भाइयों में नहीं थी.... वैसे वैदेही के हिस्से सिर्फ बारह लाख रुपये आए.... और करीब करीब अट्ठारह लाख रुपये.... फिक्स डिपॉजिट किया गया.... विश्व को छूटने के बाद... विश्व को मिलेगा......
खान - ओह.... मतलब विश्व.... जैल से निकलने के बाद.... अच्छी खासी पैसों का मालिक होगा..
तापस - हाँ... तुम कह सकते हो....
खान - अच्छा... उस दिन.... अदालत की... कारवाई बंद होने के बाद क्या हुआ....
तापस - इस बात का चर्चा.... मीडिया में बड़े बड़े एक्सपर्ट.... करने लगे थे.... अगली सुनवाई को क्या हो सकता है.....

फ्लैशबैक

टीवी पर
अरुंधति - (अपने मेहमान से) तो पटनायक सर.... शायद कानून के इतिहास में पहली बार.... कुछ ऐसा होने वाला है.... जो पहले कभी किसी ने सोचा भी नहीं था....
पटनायक - जी अरुंधति जी..... ऐसा पहले कभी कोई वाक़या सामने नहीं आया...
अरुंधति - क्या कानून में... ऐसा कोई प्रावधान है.... के अभियुक्त खुद के लिए जिरह कर सके...
पटनायक - हाँ है भी और हुआ भी है..... आप मीडिया वालों को... इसकी जानकारी होनी चाहिए.... कई दशकों पहले.... बिकीनी कीलर के नाम से... मशहूर... चार्ल्स शोभराज ने खुद अपने लिए... जिरह किया था.... उसने भी कभी अपने लिए.... वकील नहीं लिया था.... पर ओड़िशा में.... अब तक ऐसा कभी हुआ नहीं है..... मैं भी अचंभित हूँ.... और मुझे भी प्रतीक्षा रहेगी.... अगली सुनवाई में क्या होता है....

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परीडा - अरे यार.... यह पटनायक एक.... रिटायर्ड जज है.... जब यह नहीं बोल पा रहा है.... तब हम कहाँ से दिमाग़ लगाएं.....
रोणा - विश्व ने दिमाग़.... लगाया है.... या... ऐसे ही कुछ तुक्का भिड़ाया है...
पिनाक - कुछ भी भिड़ाए.... फ़िकर मत करो.... इस बार वकील का बंदोबस्त हो गया है.... अगर वह मांगेगा.... तो इसबार की सरकारी वकील... हमारे लिए लड़ेगा....
बल्लभ - पर विश्व पहले.... वकील की मांग करे तो सही..... वह तो मना कर दिया.... क्या चल रहा है... उसके दिमाग में....
पिनाक - उसके पास कोई दिमाग़ नहीं है.... अपने नाजायज़ बाप की चिता में आग देने के बाद.... सेंटीमेंट के लिए... वकील मना कर दिया है..... अगली बार वह गलती नहीं दोहराएगा....
रोणा - हाँ.... जल्दी ही यह कीचकीच खतम हो.... साला कटक में... रह रह कर सड़ने लगा हूँ....
बल्लभ - हाँ अगली सुनवाई तक तो.... हर हाल में रुकना पड़ेगा....

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सेंट्रल जैल
लाइब्रेरी में टेबल के पास दो चेयर पर आमने सामने बैठे हुए हैं वैदेही और विश्व l

वैदेही - तुने वकील लेने से.... मना क्यूँ कर दिया...
विश्व - वजह... आप अच्छे से जानते हो.... दीदी...
वैदेही - किसी की भी.... जयंत सर के जैसे अंजाम ना हो... इसलिए ना...
विश्व - किसी का भी.... मेरे वजह से... किसी भी तरह का बुरा हो... यह मैं नहीं चाहता....
वैदेही - ह्म्म्म्म... यही अच्छाई.... कभी ना छोड़ने के लिए जयंत सर ने कहा है....
विश्व - लेकिन फ़िर भी... यह आधा सच है....
वैदेही - तो पूरा सच क्या है....
विश्व - जयंत सर ने मेरे लिए जितना भी किया है.... उसका श्रेय मैं किसी और के साथ बांट नहीं सकता.... (वैदेही चुप रहती है) अब अंजाम चाहे जो भी हो... मैंने नीयत बना लीआ है.... नियती चाहे कैसी भी हो.... मुझे स्वीकार होगा....
वैदेही - ह्म्म्म्म.... वैसे... उन्होंने जो किताबें दी है... वह तेरे क्या काम आयेंगे....
विश्व - (वैदेही की ओर देखते हुए) दीदी... उन्होंने मेरे लक्ष को पहचान लिया था..... उस लक्ष को धार देने के लिए ही..... वह किताबें मुझे दी है... मुझे अब यहाँ रह कर क्या करना है.... वह राह दिखा दिया है.....
वैदेही - क्या मतलब..... है... इसका..
विश्व - दीदी.... चूंकि तुमने कहा तो.... इसलिए मैंने करेस्पंडिंग... डिस्टेंस... एजूकेशन में.... पहले बीए सोसिओलॉजी में ग्रेजुएशन पुरी करूंगा.... और उसके बाद.... जैल में ही रह कर.... वकालत की डिग्री हासिल करूंगा.....
वैदेही - क्या.... वकालत की डिग्री.... इससे... तेरा... क्या फायदा....
विश्व - (एक फीकी मुस्कान मुस्कराते हुए) इंसान को लक्ष्मी... छोड़ सकती है.... पर सरस्वती कभी नहीं छोड़ती....
वैदेही - यह... कैसी... बहकी बहकी बातेँ कर रहा है....
विश्व - यह बात मुझसे.... जयंत सर ने कही थी.... उस दिन की उस बात का आशय.... आज समझ में आ रहा है...
वैदेही - अगर उन्होंने कहा था.... तो गूढ़ रहस्य होगा.... तू कह रहा है... तुने नियत बना लिया है.... हर नियती को स्वीकार करने की.... कुछ बुरा हुआ तो.... (विश्व उसे हैरान हो कर देखता है) उस क्षेत्रपाल के अहं पर.... चोट देने के लिए ही... मैंने तुझे... ग्रेजुएशन करने के लिए कहा.... और.... अंजाम...
विश्व - दीदी.... हमारे सुरक्षा की चिंता.... छोड़ दो.... (विश्व के मुस्कान में जान दिखती है) जयंत सर की बातों को मत भूलो.... अब वह भगवान के पास हैं.... और हमारे लिए.... भगवान से प्रार्थना भी करेंगे और... लड़ भी जाएंगे.... इसलिए फ़िकर मत करो....

वैदेही एक फीकी हँसी हँसती है और विश्व को देखती है l पर विश्व के चेहरे से मुस्कान धीरे धीरे गायब हो जाती है और आँखें भाव हीन हो जाती है l

वैदेही - विश्व.... पता नहीं क्यूँ.... पर अब तुझे देख कर थोड़ा डर लगने लगा है....
विश्व - (वैदेही की ओर देख कर) दीदी.... मैंने फैसला कर लिया है.... अब कभी... किसीके भी सामने.... कमजोर नहीं पड़ना है.... और उसके लिए.... मैं कुछ भी कर गुजर जाऊँगा....

वैदेही की आंखे हैरानी से बड़ी हो जाती, विश्व का तेजी से बदलते रूप और व्यवहार को देख कर l


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विश्व दस्तखत कर राइटर को एफिडेविट की कॉपी दे देता है l राइटर वह जज को बढ़ा देता है l

जज - ठीक है... विश्व आपके वकील ने चार गवाहों की... जिरह की परमिशन ली थी.... सिर्फ़ एक गवाह की जिरह बाकी है.... क्या आप... उनकी जिरह करना चाहेंगे....

विश्व एक नजर भैरव सिंह को देखता है फ़िर जज से कहता है

विश्व - नहीं जज साहब... मुझे किसीसे अब कुछ नहीं पूछना... अभियोजन पक्ष को कुछ कमी महसूस हो रही है... तो वह चाहें तो.... जिरह कर सकते हैं.....
जज - प्रोसिक्यूशन....
प्रतिभा - नहीं योर ऑनर...
जज - विश्व आप चाहें तो.... आपके खिलाफ दर्ज़ हुई.... रिपोर्ट और सबूत के तौर पर जमा किए हुए... सारे कागजात... अदालत से ले सकते हैं.... और आप चाहें तो... जिरह फिर से आरंभ किया जा सकता है.....
विश्व - नहीं मायलर्ड..... अब तक कारवाई से.... मैं संतुष्ट हूँ.... इसलिए जिरह को फिर से.... शुरू करने का.... कोई औचित्य नहीं दिख रहा है.....
जज - ठीक है.... तो फिर पहले अभियोजन पक्ष अपना पक्ष रखें....
प्रतिभा - जी योर ऑनर.... (एक फाइल निकाल कर) तो... मायलर्ड... यह केस राजा साहब के... मौखिक शिकायत पर.... गृह मंत्रालय ने एसआइटी बनाया और मनरेगा घोटाले की जांच शुरू हुई.... जांच में पाया गया.... की सारे लेन देन में... मृतकों के आधार कार्ड के जरिए किया गया.... एसआइटी ने पांच मुख्य अभियुक्तों की पहचान की.... पर एसआइटी की जांच का हर सिरा घुम कर... श्री विश्व प्रताप पर रुकी.... ऐसे में उनको मानिया गांव शासन के पंचायत समिति सभ्य... श्री दिलीप कुमार कर... जांच में दिशा प्रदान किया.... भले ही वह गवाह ईमानदार ना साबित हो पाया... पर जब एक अभियुक्त... बैंक अधिकारी की मौत की खबर एसआईटी को मिली.... तब जाकर विश्व को गिरफ्तार करने के लिए... देवगड़ तहसीलदार के द्वारा.... श्री अनिकेत रोणा जी को समन भिजवाया.... और विश्व को गिरफ्तार करवाया... भले ही अमानवीय तरीके से और व्यक्तिगत भावनाओं के चलते ही क्यूँ नहीं... पर विश्व गिरफ्तार हुए और आज यह केस सुनवाई के अंत तक पहुंच गई.... फ़िलहाल... अब तक जिरह में... सारे गवाह भले ही... ईमानदार ना साबित हुए हों.... पर यह कहीं पर भी साबित नहीं हुआ... श्री विश्व बेगुनाह हैं... और विश्व इसमे शामिल नहीं थे..... यह कहीं पर भी.... साबित नहीं हो पाया है.... इसलिए मैं अभियोजन पक्ष की तरफ से.... विश्व के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करती हूँ....

प्रतिभा के उपस्थापन के बाद भैरव के खेमा हैरान जितनी हुई उतनी खुश भी हुई l पर वैदेही के चेहरे पर पर उदासी और दुख साफ दिखने लगती है l

जज - अब बचाव पक्ष... अपना पक्ष रखें....

विश्व - मायलर्ड.... हाँ यह सच है.... मेरे खिलाफ़... चाहे मौखिक ही क्यूँ ना हो... शिकायत दर्ज हुई.... जिस पर एसआइटी बना.... यानी पहले से ही... मैं दोषी करार दिया जा चुका था.... और इसको आधार बना कर.... जांच की गई.... मायलर्ड.... जांच इसलिए शुरू नहीं की गई.... की विश्व कहीं कहीं... बेगुनाह लगे... बल्कि हर सिरा घूमते घूमते.... विश्व तक पहुंचे... जांच इसलिए कि गई.... वह सरकारी गवाह... जो अभी लकवा ग्रस्त है.... हस्पताल में है.... वह कितना बड़ा सच्चा है... यह अदालत के सामने प्रमाणित हो चुका है..... और रही.... राजगड़ के मॉडल पुलिस थाने के... अधिकारी... किस तरह कानून को अपने हाथ में लेकर.... अपनी थाने को मॉडल थाना बनाया... यह भी प्रमाणित हो चुका है.... अंत में... अदालत के समक्ष... इस केस के बाबत... कुछ परते खुल चुकी है.... अगर इंसाफ़ के लिए पर्याप्त हों... तो उनपर गौर किया जाए.... बस मायलर्ड बस....

विश्व की बात खतम होते ही, सारे जो उस कमरे में उपस्थित थे, सब के सब असमंजस में पड़ जाते हैं l मुख्य जज विश्व को देखता है, फ़िर कुछ कहने को होता है मगर कुछ सोच कर रुक जाता है l

जज - आज इतने दिनों बाद... आख़िर इस केस की सुनवाई की प्रक्रिया में... अंतिम दौर पर पहुंच गए हैं.... अभियोजन पक्ष ने अपना पक्ष रख चुके हैं... और अभियुक्त पक्ष ने... भी अपना पक्ष रख दिया है..... अब सभी की नजर..... इस केस में होने वाली निर्णय पर... ठहर गया है.... अब अदालत ने इस केस पर... फैसला सुरक्षित कर लिया है.... अगले हफ्ते.... सोमवार को.... इस केस पर फैसला सुना दिया जाएगा..... आज के लिए... यह अदालत की कारवाई को स्थगित किया जाता है.... नाउ द कोर्ट इज एडजॉर्न....

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नमस्कार,.... मैं अरुंधती.... आप सबको ख़बर ओड़िशा के प्राइम टाइम खबर में स्वागत करती हूँ.... आज कोर्ट में आधिकारिक तौर पर.... राजगड़ मनरेगा घोटाले कांड पर फैसला ले लिया गया है..... पर जजों के पैनल ने सुरक्षित रख लिया है.... अगली सोमवार को जनसाधारण.... कोर्ट के लिए गए... निर्णय से अवगत हो जाएंगे.... पर आज कोर्ट में जो हुआ... उस पर हम.... अवसर प्राप्त पूर्व न्यायधीश... निरंजन पटनायक... जी से बात करेंगे.... मैं आपको नमस्कार करती हूँ.... और आपको स्टुडियो में स्वागत करती हूँ....
पटनायक - नमस्कार...
अरुंधति - पटनायक सर, क्या ऐसा कोई प्रावधान होता है... कानून के किताब में....
पटनायक - हाँ... होता है... मान लीजिए.... एक अभियुक्त.... अपने पैरवी करने वाले वकील से संतुष्ट.... ना हो पाए... उस परिस्थिति में.... अभियुक्त अपने लिए स्वयं.... जिरह कर सकता है.... अगर कोई वकील ना मिले ऐसे परिस्थिति में भी... अभियुक्त अपने लिए... जिरह कर सकता है...
अरुंधति - अगर ऐसा प्रावधान है.... तो सवाल यह है कि.... अभियुक्त विश्व.... को.... इससे पहले अवगत क्यूँ नहीं कराया गया....
पटनायक - देखिए.... यह.... प्रश्न.... मानवीय दृष्टि से... सही नहीं है... एक अभियुक्त के लिए... वकील जितना लड़ सकता है.... वह खुद अपने लिए.... उतना लड़ नहीं सकता.... क्यूंकि सबूत जुटाना... एक ऐसी बात है.... जो जैल अंदर से जुटाना.... संभव नहीं होता.... पर संविधान में... यह प्रावधान है....
अरुंधति - अगर... इस बात को... पहले से जानते होते.... तो क्या विश्व.... वकील की मांग किए होते....
पटनायक - उन्होंने जो उस वक्त.... मांग रखी थी.... वह सौ फीसद जायज था.... अब वह जो कर रहे हैं.... वह उनकी आवश्यकता है....
अरुंधति - सर... अगर वह अब भी.... अदालत से मांग करते... तो क्या अदालत... उनकी मांग को.... खारिज कर देती....
पटनायक - कभी नहीं... अरुंधति... यह आप भी जानते हैं... अदालत ने... उन्हें इस बाबत... पुछा भी था.... पर यह उनका अपना व्यक्तिगत निर्णय था....
अरुंधती - तो इसका मतलब यह हुआ.... शायद विश्व.... अपने वकील दिवंगत जयंत कुमार से... संतुष्ट नहीं थे....
पटनायक - नहीं मुझे.... ऐसा नहीं लगता.... उन्होंने.... किसी और वकील को... जन आक्रोश का शिकार... नहीं होना देना चाहते थे....
अरुंधती - हाँ... यह भी हो सकता है.... पर जन आक्रोश तब भी था... जब विश्व.... हिरासत में लिए गए थे....
पटनायक - हाँ... था... पर तब जन आक्रोश.... सिर्फ़ विश्व के विरुद्ध था.... पर अब जन आक्रोश... उसके लिए खड़े होने वालों के विरुद्ध मुड़ गया है...

पिनाक टीवी बंद कर देता है l और बल्लभ की और देखते हुए l

पिनाक - प्रधान तुमने वाकई.... मीडिया मैनेजमेंट बहुत बढ़िया किया है.... बहुत अच्छे...
यश - यह.... हुई ना बात... आपको कभी कभी अपने लोगों... एप्रीसिएट करना चाहिए...
पिनाक - इसलिए तो मैं कर रहा हूँ... लेकिन तुम्हारा भी... एप्रीसिएट करना चाहूँगा...
यश - वह क्यूँ भला....
पिनाक - तुमने माहौल ही ऐसा बनाया है... के कोई भी वकील... विश्व के केस में हाथ डालने से पहले.... सौ बार सोच रहा है....
यश - इसके लिए भी.... आप अपने प्रधान को... एप्रीसिएट कीजिए... मैंने उससे जो जो भी मांगा... वह... जुगाड़ कर दे दिया.... इसलिए काम आसान बन गया....
पिनाक - अरे प्रधान... बहुत अच्छे... बहुत अच्छे.... बहुत अच्छे...
बल्लभ - थैंक्यू... छोटे राजाजी.... वैसे छोटा मुहँ और बड़ी बात.... आज विश्व ने.... राजा साहब से कुछ पुछा क्यूँ नहीं..... और आज राजा साहब ने भी.... कहा था.... वह उनसे कुछ पूछेगा नहीं.... ऐसा क्यूँ....
पिनाक - अच्छा हुआ... यह तुमने मुझे पुछा... राजा साहब से पूछा होता.... तो....
बल्लभ - इसलिए तो... आपसे पुछा है मैंने....
पिनाक - सच कहूँ... तो मैं भी नहीं जानता.... शायद विश्व..... राजा साहब से... डर गया हो..... यह राजा साहब ही बता सकते हैं.... क्यूँकी सिर्फ उन्हें ही मालुम था.... विश्व उनसे.... कुछ नहीं पूछेगा... पता नहीं वह अब कहाँ है...

यश - वह पिताजी के साथ हैं.... सच कहूँ तो... शायद मैं समझ सकता हूँ.... या यूँ कहूँ... के मैं जान गया हूँ.... आखिर विश्व ने... हथियार डाल क्यूँ दिया....
पिनाक - क्या तुम्हें मालुम हो गया.... कैसे....
यश - जब मैंने आपसे विश्व की पूरी राम कहानी पूछा था.... तब सिर्फ़ एक घटना मुझे याद रहा.... विश्व ने छलांग लगा कर.... राजा साहब के गिरेबान तक पहुंचने की कोशिश की थी....
रोणा - हाँ ऐसा हुआ था.... पर हवा में ही रुक गया था.... राजा साहब के गार्ड्स ने उसे बीच हवा में ही.... रोक लिया था....
परीडा - हाँ... इस बात का... मैं गवाह हूँ...
यश - तो फ़िर वह डरा नहीं है... बात कुछ और है... पर यह पक्का है...... वह डरा बिल्कुल नहीं है....
पिनाक - क्या तुम उससे मिले हो कभी.... या जानते हो.... हमारे ही टुकड़ों पर पलता था.... उसमें हिम्मत ज़वाब दे गई होगी.... जैल की रोटियाँ तोड़ते तोड़ते.....

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सेंट्रल जैल
डायनिंग हॉल, लंच का समय
विश्व एक टेबल पर अकेला बैठा हुआ है, अपनी थाली के सामने l खाना वैसा ही थाली में रखा हुआ है l डैनी उसे दूर से देखता है और अपने थाली के साथ वह विश्व के बैठे टेबल पर पहुंचता है l

डैनी - क्या हुआ हीरो... बड़े गहरे सोच में है.... वैसे खाने ने क्या बिगाड़ा है तेरा.... खाने से इतनी बेरुखी क्यूँ....
विश्व - (अपना सर ना में हिलाते हुए) नहीं कुछ नहीं.... भूख ही नहीं लग रही है....
डैनी - हाँ... तुने जो किया.... उससे तेरा भूख मर चुकी होगी.... आख़िर तुने मौका जो गवां दिया...
विश्व - (डैनी को गौर से देखता है, और पुछता है) एक बात पूछूं... आपसे...
डैनी - हाँ पुछले...
विश्व - मैंने बहुत दिनों से गौर किया है.... जहां मीडिया चूक जाती है.... वह खबर भी आप तक पहुंच जाती है.... कैसे...
डैनी - वह क्या है कि... मैं स्पेशल सेल में... रहता हूँ... मैं कोई आम कैदी नहीं हूँ... मैं यहाँ का खास कैदी हूँ...
विश्व - हाँ जानता हूँ... यह आपने मुझे... पहले भी बताया है.... पर कोर्ट में चल रही कारवाई... की डिटेल्स... मीडिया तक भी नहीं पहुंच पाती है..... वह आप तक... बिल्कुल सही तरीके से.... पहुंच जाती है....
डैनी - मेरी... अपनी... इंफॉर्मेशन नेटवर्क है... इसलिए....
विश्व - ओ....
डैनी - पर तुने बताया नहीं.... अपने दुश्मन के गिरेबान पर हाथ रखने का मौका मिला था तुझे.... पर तुने उसे छोड़ क्यूँ दिया... उससे सवाल पूछ कर... उसकी बेइज्जती भी कर सकता था.....
विश्व - मेरे पास उस आदमी के लिए.... सिर्फ़ जवाब हैं.... सवाल है ही नहीं.... इसलिए उससे पुछा नहीं....

यह कहते कहते विश्व का चेहरा कठोर हो जाता है l डैनी भी विश्व में यह बदलाव देख कर हैरान हो जाता है l
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आखिर कर वह दिन आ ही गया.... आज जजों ने जो फैसला सुरक्षित कर लिया था..... आज उसकी तारीख आ गई है... राज्य के सभी छोटे बड़े से लेकर... बड़े बड़े विद्वानों और सरकार को भी प्रतीक्षा है.... आज की आने वाली निर्णय पर.... इस घोटाले पर सुनवाई के दौरान... बेहद ही दुखद घटना भी हुई.... बचाव पक्ष के वकील... श्री जयंत कुमार राउत जी की अकस्मात देहांत हो गया.... इसके बाद बचाव पक्ष ने... कोई वकील नहीं लीआ... अपनी पैरवी खुद की.... इसलिए.... सब बेसब्र हो कर इंतजार में हैं.... की इस सुनवाई का अंत क्या होगा.... अभी अभी राजगड़ मनरेगा आर्थिक घोटाले की मुख्य अभियुक्त को..... पुलिस वैन में ले जाया गया है... अभियोजन पक्ष के सभी गवाह.... पहले से ही कोर्ट में मौजूद हैं... बस थोड़ी देर और.... फिर आएगा.... सबसे ज्यादा चर्चित घोटाले पर... मनानीय उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय... तब तक के लिए.... मैं प्रज्ञा... खबर ओड़िशा से....

इतना कह कर अपनी माइक ऑफ कर देती है और कोर्ट से लगे पुलिस बैरीकैट तक जाती है l उधर कोर्ट के भीतर सभी मौजूद हैं, सिवाय दिलीप कर के l कोर्ट में शांति छाई हुई है l इतनी शांति के फैन के आवाज के बावज़ूद सबको घड़ी की टिक टिक आवाज़ तक सुनाई दे रही है l जज अपना चश्मा निकाल कर रूम में बैठे सभी पर नजर दौड़ाता है l भैरव सिंह और विश्व दोनों के चेहरे भाव शुन्य दिख रहे हैं l बल्लभ एंड कंपनी धड़कते हुए दिल के साथ फैसले का इंतजार कर रहे हैं l वैदेही का मन बहुत भारी और उदास लग रहा है l प्रतिभा के आँखों में भी इंतजार दिख रही है l

जज अपना चश्मा दुरुस्त करता है l और

जज - तो आज हम... उस मुक़ाम पर पहुंच गए हैं... जहां इस केस का सफ़र इस अदालत में खतम हो रहा है....
अब यह अदालत अपना फैसला सुनाने से पहले... कुछ तथ्यों पर रौशनी डालना चाहती है...
एसआईटी के रिपोर्ट के अनुसार.... स्वर्गीय श्री उमाकांत आचार्य जी के... विश्व के विरुद्ध शिकायत ले कर राजा साहब जी के पास गए.... राजा साहब ने आश्वासन दिया... के उस पर वह इस बात की तहकीकात... कराएंगे....
फिर राजा साहब... मनानीय मुख्यमंत्री जी से मुलाकात करते हैं... मनरेगा आर्थिक घोटाले पर बात करते हैं... जिस पर आगे चलकर... गृहमंत्रालय एक एसआईटी का गठन कर... राजगड़ में हुए मनरेगा आर्थिक घोटाले की जांच की आदेश देते हैं....
जैसा कि बचाव पक्ष ने कहा.... आरंभ से ही... विश्व को.... अपराधी मान कर.... जांच को आगे बढ़ाया गया.... इसलिए जांच केवल विश्व तक ही सीमित रह गई.... यह जानने के बावजूद... के इस आर्थिक घोटाले में पांच मुख्य अभियुक्त हैं.... पर गिरफ्तारी के लिए सिर्फ़ विश्व के नाम पर समन जारी किया गया.... यह सबसे बड़ी चूक या गलती रही.... एसआईटी की... जो अभियुक्तों के फरार होने में सहायक हुआ.... अगर पांचो के नाम.... समन जारी हुआ होता.... तो शायद वह तीन अभियुक्त.... कानून के गिरफ्त में होते... यह एसआईटी की बहुत बड़ी.... चूक है....
अब आते हैं.... प्रथम एवं प्रमुख सरकारी गवाह.... जिसने अपनी पद... मर्यादा को न केवल नष्ट किया.... बल्कि छल से.... कॉन्ट्रैक्ट के जरिए... मनरेगा से पैसे भी ऐंठे... उनकी जिरह से यह साफ हो गया... के जांच को प्रभावित करने की पुरी कोशिश की है.... इससे एसआईटी की... लापरवाही... उजागर हुआ है.... जो बहुत ही शर्म की बात है... फ़िर विश्व की गिरफ्तारी और उसके बाद... विश्व पर हुए.... अत्याचार.... बहुत ही अमानवीय एवं शर्मनाक है....
पर इतने घटनाओं में.... विश्व लूट का एक जरिया है... ऐसा दिख रहा है.... पर यह कहीं पर भी विश्व शामिल नहीं है.... यह प्रमाणित नहीं हो पाया है...
इसलिए अब विश्व से यह अदालत जानना चाहती है... श्री उमाकांत आचार्य कौन हैं... और आपका उनसे क्या सम्बंध है....
विश्व - वह हमारे पारिवारिक मित्र व शुभचिंतक थे... वह मेरे पढ़े हुए प्राथमिक स्कुल के.... प्रधान आचार्य थे...
जज - अब एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न.... क्या आचार्य जी ने आपको.... सरपंच चुनाव में खड़े होने के लिए कहा था.... मतलब.... आपने राजा साहब को तो नकार दिया.... पर आचार्य जी को ना नहीं कहा... आपके लिए... आचार्य जी इतना महत्व रखते थे....
विश्व - जी...
जज - तो एक अंतिम प्रश्न.... क्या आचार्य जी ने.... राजा साहब को आपके विरुद्ध... शिकायत की थी...
विश्व - पता नहीं.... आचार्य जी ने... शिकायत की.... इस बात का कोई गवाह भी तो नहीं है.....
जज- ठीक है.... तो आप इस पर.... भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी से.... जिरह क्यूँ नहीं की....
विश्व - आचार्य जैसे महात्मा का नाम.... अदालत में.... सच और झूठ के बीच लाना नहीं चाहता था....
जज - तो क्या आचार्य जी ने झूठ कहा था...
विश्व - आचार्य जी कभी झूठ नहीं बोलते थे....
जज - मतलब अगर आचार्य जी ने कहा होगा... तो वह सच ही होगा....(विश्व चुप रहता है) विश्व जवाब दीजिए.... (विश्व फ़िर भी चुप रहता है) विश्व... (विश्व का जवड़ा भींच जाता है)
विश्व - आचार्य सर... कभी झूठे नहीं थे... कभी हो ही नहीं सकते थे....
जज - बस यही बात.... क्या आप सोच समझ के... बोल रहे हैं...
विश्व - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) जी...
जज - यह स्टेटमेंट आपके विरुद्ध भी जा सकती है....
विश्व - जी...
जज - ठीक है... श्री विश्व.... अब यह अदालत फैसला सुनाएगी....

एक बार फिर अदालत में ख़ामोशी छा जाती है l सबकी धड़कने बढ़ जाती है l सिवाय दो शख्स के l भैरव सिंह और विश्व के l

जज - अभियुक्त विश्व से... एक कंफर्मेशन मिल जाने के बाद... अब अदालत अपना निर्णय..... तीन शुन्य मत से सुनाने जा रही है... पहले इस केस में एसआईटी की जांच.... इस केस पर कम... विश्व पर फोकस था... इसलिए... यह अदालत जांच को अधुरी मानती है... अदालत बचाव पक्ष की यह दलील मानती है.... की यह षडयंत्र... केवल विश्व या उन भगोड़े के बलबूते संभव नहीं हो सकता था.... इसके पीछे जरूर कुछ और शक्ति शाली लोग हो सकते हैं.... इसलिए यह अदालत सरकार को आदेश देती है.... एसआईटी को बंद ना करे.... जब तक एसआईटी के द्वारा... अभियुक्तों की पूरी जानकारी हासिल नहीं हो जाती.... जरूरत पड़ने पर फरार व गायब हुए अभियुक्तों के खिलाफ़.... इंटरपोल के जरिए... रेड कॉर्नर नोटिस इशू करें.... और एसआईटी के टीम को बदल कर... नॉन बायस्ड ऑफिसरों के हवाले करे.... और पूरी जांच फॉरेंसिक सहित अदालत को सौंपे.....
पहला एवं प्रमुख सरकारी गवाह.... अपनी करतूतों से.... न्याय व्यवस्था को ना सिर्फ भटकाया बल्कि... अनीति के साथ... मनरेगा से... पैसा भी कमाया.... इसलिए... यह अदालत... उनकी अभी की पंचायत समिति सभ्य की पद को खारिज करती है.... और उन पर आजीवन चुनाव लड़ने से.... प्रतिबंध लगाती है....
श्री अनिकेत रोणा जी... बचाव पक्ष की आप पर दी हुई दलील..... और आपके इकबालिया बयान.... सुनने के बाद.... अदालत आपको छह माह तक अपने पदवी से निलंबन का आदेश देती है.... और आपके विभाग को आदेश देती है.... निलंबन के बाद.... आपकी पोस्टिंग... तुरंत राजगड़ से दूर... कहीं और किया जाए.... कम से कम अगले तीन पोस्टिंग तक.... राजगड़ या उसके आसपास इलाकों से भी दूर.... रखा जाए.....
और अंत में विश्व प्रताप महापात्र जी..... जिन हत्याओं पर.... आपको एसआईटी ने संदेह का लाभ दिया है... उसे यह अदालत बरकरार रखते हुए.... संदेह का लाभ आपको दे रही है...... दिलीप कुमार कर के जिरह से साबित हुआ है के जितने चेकों पर दस्तखत किए हैं उसमें साजिशन आप से कराई गई थी..... पर आपकी उस साजिश में सहमति और सहभागिता नहीं थी.... यह कहीं पर भी प्रमाणित नहीं हुआ है..... और राजा साहब श्री भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी जिनके शिकायत पर..... सरकार तक जिनकी आवाज़ पहुंचाई..... वह जिवित नहीं हैं.... और आपने उनकी श्री क्षेत्रपाल जी हुई मुलाकात..... और वार्तालाप का खंडन नहीं किया है.... श्री विश्व.... आप एक पढ़े लिखे नवयुवक हैं.... आपने.... जन मत के द्वारा जो जिम्मेदारी प्राप्त की.... वह जिम्मेदारी आप ठीक से निभा नहीं पाए हैं.... यह आपको स्वीकार करना होगा....
विश्व - (अपना सर हाँ में हिलाते हुए) जी... योर ऑनर....
जज - इसलिए आपको यह अदालत.... अपनी जिम्मेदारी ठीक से ना निभा पाने की दोषी पाती है.... आप बहुत ही आसानी से.... इस महा लूट का ज़रिया बन गए.... अपनी पद व कर्तव्य के प्रति असचेतनता ही... इस महा लूट का कारण बना.... यही कारण है कि यह अदालत आपको आईपीसी धारा 420 /आईपीसी धारा 378 व 379 / और आईपीसी धारा 392 के तहत इस महा घोटाले की केस में.... आंशिक दोषी पा रही है....
इसलिए यह अदालत मक्तुल श्री विश्व प्रताप महापात्र को चार वर्ष की सश्रम कारावास की सजा सुनाती है.... चूंकि लूट की रकम.... एसआईटी के द्वारा बरामदगी नहीं हो पाया.... इसलिए तीन वर्ष की अतिरिक्त कारावास की सजा होगी.... चूंकि आप गिरफ्तार होने के बाद से सुनवाई खतम होने तक.... जैल में पांच महीना रहे हैं.... इसलिए यह पांच महीना आपके सजा से काट दिया जाता है.... आपको सिर्फ छह वर्ष सात महीने की ही जैल होगी... और अगर आप इस निर्णय के विरुद्ध... ऊपर की अदालत पर जाना चाहें तो.... जा सकते हैं... और नहीं तो.... यदि आप चाहें... फिर से सुनवाई के लिए.... पिटीशन डाल सकते हैं....
अब यह अदालत की कारवाई समाप्त होती है...

इतना कह कर जज अपना लकड़ी का हथोड़ा टेबल पर मार कर सुनवाई खतम कर दी और उसके बाद अदालत के फैसले नामे में तीनों जज दस्तखत किए और अदालत की कारवाई खतम हो गई l
विश्व को हथकड़ी लगा कर दास अपने साथ कोर्ट के बाहर ले गया l पीछे पीछे वैदेही वैन तक पहुंचती है l

वैदेही - विश्व.... (विश्व और दास रुक जाते हैं, विश्व के रुकते ही वैदेही सिसकते हुए उसके गले लग जाती है )
विश्व - दीदी... (वैदेही को खुद से अलग करते हुए) आप रो क्यूँ रहे हो....
वैदेही - (हैरान हो कर विश्व को देखते हुए) तुझे जरा भी दुख नहीं हुआ....
विश्व - दुख कैसा.... दीदी... दुख कैसा... इस नियति को मैंने चुना है.... दुख तब होता... अगर मुझ पर थोपा गया होता....
वैदेही - तू सच में... इतना बदल गया...
विश्व - (थोड़ा मुस्कराकर) मेरा बदलना तुमने बहुत पहले ही देख लिया था.... पर बोल अब रही हो...
वैदेही - यह... यह... क्या कह रहा है... मुझे कब मालुम हुआ..?
विश्व - तुम मुझे विशु नहीं.... विश्व बुला रही हो.... (कह कर मुस्करा देता है)

वैदेही अपनी दोनों हाथ हैरानी से अपने मुहँ पर रख कर बड़ी बड़ी फटी आखों से विश्व को देखने लगती है l

विश्व - इतना हैरान ना हो दीदी.... यही नियति है...
वैदेही - (अपना सर हाँ में हिलाते हुए) हाँ.... यही नियति है...
विश्व - दीदी... बस एक इच्छा है....
वैदेही - बोल...
विश्व - अब मेरी सजा खतम होने तक.... आप मुझसे मिलने की कोशिश मत करना...
वैदेही - (एक खिंच कर थप्पड़ मारती है) क्या तेरा दिमाग फिर गया है... मुझे मिलने से मना कर रहा है...
विश्व - दीदी... आप मुझे जैल में मिलने ना आया करो.... आप अगर आओगी.... तो मुझे मेरी बेबसी की एहसास होता रहेगा.... मैं अपने लक्ष से भटकना नहीं चाहता....
वैदेही - (सुबकते हुए) मैं तुझे देखे बगैर कैसे रह पाऊँगी...
विश्व - आप मेरी खैर खबर.... सुपरिटेंडेंट साहब से लेती रहना....
वैदेही - अगर... कुछ जरूरी हुआ तो...
विश्व - तो चिट्ठी लिख कर.... सुपरिटेंडेंट साहब को दे देना.... पर मुझसे इन सात सालों में.... मिलने की कोशिश भी मत करना....

इतना कह कर विश्व तेजी से मुड़कर वैन में बैठ जाता है l गाड़ी अपनी धुआँ उड़ाकर चला जाता है l वैदेही वहीँ खड़ी रह जाती है और वैन को अपनी आंखों से ओझल होते देखती रह जाती है l

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तापस अपनी गाड़ी को भगा रहा है l उसके पास बगल में प्रतिभा बैठी है l तापस को लगता है l प्रतिभा कुछ अपसेट है l

तापस - क्या बात है जान... क्या सोच रही हो...
प्रतिभा - (अपना सर ना में हिलाते हुए) नहीं कुछ भी नहीं.....
तापस - विश्व को सजा हो गई... इसके लिए कहीं तुम खुद को जिम्मेदार तो नहीं मान रही....
प्रतिभा - नहीं... एज अ पब्लिक प्रोसिक्यूटर मुझे जो करना था किया... पर इस बार... जिम्मेदार खुद विश्व है...
तापस - हाँ... यह तुमने सही कहा.... वाकई... कोर्ट से मिले मौके को गंवा दिया....
प्रतिभा - नहीं सेनापति जी.... नहीं... जब विश्व को मैंने.... पहली बार कटघरे में देखा था..... आज जो विश्व को मैंने देखा.... दोनों में फर्श से अर्श तक का फर्क़ है...
तापस - (हैरानी भरे एक नजर प्रतिभा पर डालते हुए) अच्छा... वह कैसे...
प्रतिभा - पहली दफा जब विश्व को कटघरे में देखा था.... तब मुझे... वह एक डरा हुआ, कंफ्युज्ड लग रहा था.... पर आज मैंने जिस विश्व को देखा.... वह निडर, डीटरमीन और मैच्योर्ड लग रहा है....
तापस - अच्छा... यह तुमने कब गौर किया...
प्रतिभा - जज साहब जब...... अपना फैसला सुना रहे थे.... तब मैं उसे गौर से देख रही थी....
तापस - चलो मान लेता हूँ.... पर आज जो हुआ... इसमे तुमको... विश्व की.... मैच्योर्डनेस कहाँ दिखी....
प्रतिभा - (तापस की ओर देखते हुए) सेनापति जी... आप तो इतने... बेवक़ूफ़ ना थे....
तापस - इंसान हूँ... कहीं कहीं... चुक जाता हूँ... पर चूक सुधारने के लिए... मेरी वकील साहिबा है ना....
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अभी कहाँ... तुम डिटेल्स में.... बताओगी तो समझ में आएगा....
प्रतिभा - देखिए सेनापति जी.... इन पांच महीनों में... विश्व को... राजा साहब का... रुतबा समझ में आ चुका होगा... मेरे हिसाब से... विश्व ने... एनालीसीस किया होगा.... राजा साहब के एक इशारे पर... जब एक मंत्रालय.... विश्व के खिलाफ.... एसआईटी बना सकती है... उस आदमी को... कटघरे में खड़ा कर.... विश्व जो भी जिरह करता.... वह कोर्ट में... साबित भी नहीं कर पाता.... तब उसकी जिरह बेकार ही जाता....
तापस - हाँ... यह तो है... पर आज कोर्ट ने जो स्टैंड लिया है.... क्या तुम्हें जायज लगता है....
प्रतिभा - हाँ... चाहे कानून के नजरिए से... या फिर मानवीय दृष्टि कोण से.... जायज ही है...
तापस - अच्छा... वह कैसे....
प्रतिभा - देखिए.... सेनापति जी... कानूनन... इसलिए... भले ही... विश्व एक्युस्ड था... पर कहीं पर यह साबित नहीं हो सका... उसे जानकारी नहीं थी... या उसकी सहमती नहीं थी... या वह सामिल नहीं था.... हाँ जयंत सर होते तो बात कुछ और ही होती.... क्यूँ के... केस को अच्छी तरह से... स्टडी करने के बाद ही... उन्होंने सौ गवाहों के बीच से.... जिरह के लिए.... सिर्फ़... चार लोगों को चुना था.... और अगर वह राजा साहब की जिरह कर पाए होते.... तो बात अलग होती... पर विश्व की बदकिस्मती... जयंत सर चल बसे.... और विश्व जैसे.... आम इंसान के लिए.... राजा साहब जैसी शख्सियत का जिरह के जरिए.... कुछ भी तथ्य.... अदालत में प्रस्तुत कर पाना संभव ही नहीं था.... इसलिए.... अब तक जितनी भी.... प्रोसिडींग हुई है.... उस हिसाब से... कानूनन सजा ठीक ही है....
तापस - हाँ तुम... वकील हो... इस मामले में... मुझसे बेहतर समझ रखती हो.... पर इस में.... तुम्हें मानवीय पक्ष कहाँ नजर आया....
प्रतिभा - सेनापति जी... एसआईटी ने जिन पांच लोगों को.... मुख्य अभियुक्त बनाया है... सिर्फ़ एक ही कानून के सामने उपलब्ध हो पाया.... या फ़िर यूँ कहें... सिर्फ़ एक को... उपलब्ध कराया गया....
तापस यह सुन कर गाड़ी रोक कर एक किनारे लगा देता है, और हैरान हो कर प्रतिभा को देखने लगता है

प्रतिभा - यह वह सच है.... जिसे मैंने महसूस किया.... अदालत ने... केस को बंद नहीं किया है.... जिनको एसआईटी फरार बता रहा है.... उनके खिलाफ़ वारंट... अदालत से जारी की गई है.... जरूरत पड़ने पर.... रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने के लिए कहा गया है....
तापस - हाँ तो...
प्रतिभा - सेनापति जी... अगर आपने जयंत सर को ध्यान से सुना हो... तो याद होगा.... उन्होंने कहा था.... के उन्हें डर है... एसआईटी जिन्हें फरार बता रही है.... वास्तव में वह शायद.... जिवित ना हों.....
तापस - हाँ याद है....
प्रतिभा - तो समझ लीजिए l.... विश्व को सजा दे कर.... अदालत ने... उसकी जान बचाई है....
तापस - तुम यह यकीन के साथ... कैसे कह सकती हो....
प्रतिभा - जरा सोचिए... सेनापति जी.... यह जितना छोटा और संक्षिप्त दिख रहा है.... असल में.... हमारे कल्पना से भी बड़ी है.... यह केस... टोटली फैब्रिकेटेड है.... फ्रेम्ड है.... विश्व सिर्फ़ एक.... डाइवर्जन है.... इसलिए तो अदालत ने इस केस को खतम नहीं किया.... सरकार को... एसआईटी की ऑफिसर बदलने को कहा है....
तापस - (गाड़ी शुरू करता है) लेकिन क्या तुम्हें लगता है.... सरकार इसे सिरीयसली लेगी...
प्रतिभा - नहीं.... सरकार... एक और टीम बना कर सात साल तक... केस को खिंचेगी.... सात साल बाद.... उन अभियुक्तों को.... मरा हुआ घोषित कर.... केस क्लोज कर देगी....
तापस - क्या बात है... मैडम... आज तो आपका दिमाग.... दिमाग नहीं.... कंप्युटर की अम्मा लग रही है....

प्रतिभा तापस को घूर कर देखती है l तापस उससे अपना नजरें चुरा कर गाड़ी चलाता है l

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उधर शाम हो चुकी है l चिलका के बीचों-बीच एक हाउस बोट में भैरव सिंह अपने चेयर पर बैठा है, उसके पास एक तरफ पिनाक सिंह और दूसरी तरफ ओंकार चेट्टी बैठे हुए हैं l कुछ दूर डायनिंग टेबल के पास परीडा, बल्लभ, यश और रोणा भैरव सिंह के तरफ मुहँ कर बैठे हुए हैं l एक कोने में दिलीप कर हाथ जोड़े खड़ा है l उन सबके बीच कोई बात चित नहीं हो रही है l आखिर कर ख़ामोशी को तोड़ते हुए

ओंकार - राजा साहब... अब तो कोर्ट का काम खतम हो गया है.... और केस भी लगभग खतम हो गया है.... बाकी जो भी है.... सब हमारे हाथ में है.....
पिनाक - कहाँ.... ओंकार जी.... अदालत ने केस को क्लॉज नहीं की है..... उल्टा... एसआईटी की टीम बदलने के लिए.... कहा है....
ओंकार - तो इसमें.... परेशान होने की... क्या बात है.... यह जज फिर अपने अपने रास्ते.... और केस का भविष्य.... गृह मंत्रालय के डस्ट बिन में.....
रोणा - पर मेरा तो... पोपट हो गया ना.... मुझे छह महीने के लिए.... सस्पेंड कर दिया गया है....
बल्लभ - शूकर करो... तुम्हारे इकबालिया बयान के चलते.... सिर्फ़.... सस्पेंड हुए हो... और नौकरी तुम्हारी सलामत है.... उस कर को देखो.... आजीवन चुनाव नहीं लड़ सकता है.....
रोणा - उसकी प्रॉब्लम भी कोई प्रॉब्लम है.... अरे वह नहीं लड़ सकता है..... तो अपनी बीवी को... तो चुनाव में.... खड़ा कर सकता है....
भैरव - बस.... (उसकी आवाज़ सुन कर, सब फिरसे खामोश हो जाते हैं) बस.. यह एक ऐसा केस है... जिसमें सब ने कुछ न कुछ खोया है.... पर जितना पाया है... उसके आगे.... यह खोना कुछ भी नहीं है.... (पिनाक की ओर देख कर) छोटे राजा जी.... पहले इस बेवक़ूफ़... कर को कुछ पैसे दो.... इसकी रोनी सुरत.... देखी नहीं जा रही है... (पिनाक अपनी ब्रीफकेस से पैसों कुछ गड्डी निकाल कर कर के तरफ फेंकता है, कर भी झपट कर वह पैसे उठा लेता है) अदालत ने अगर सामने का दरवाज़ा बंद किया है.... तो पीछे का दरवाज़ा इस्तमाल करने के लिए.... जो हमारा साथ देता है..... हम उसे कभी नहीं छोड़ते.... रोणा तुम्हारा तीन पोस्टिंग का कोटा.... सिर्फ़ पांच साल में पूरा हो जाएगा.... और उसके बाद राजगड़ में तुम रिटायर होगे....
रोणा - (खुशी के मारे) थैंक्यू.... थैंक्यू.. वेरी मच... राजा साहब... थैंक्यू... वेरी मच...
भैरव - दिलीप कर.... तु... फ़िकर मत कर.... तु.... मेरा बफादार था है और रहेगा.... और तुझे तेरे हिस्से की हड्डी मिलती रहेगी....
कर - आप मेरे भगवान... मैं आपका थूक चटा भक्त हूँ... अब मैं और क्या कउं... आप मालिक हो.... मैं कुत्ता हूँ...
पिनाक - कोई शक़...
भैरव - परीडा.... तुम वाकई बहुत काम आए.... तुम कहो.... तुम्हें क्या ईनाम... चाहिए....
परीडा - बस राजा साहब.... अदालत ने... मेरी कैरियर पर दाग लगा दी है.... आप मेरी प्रमोशन करवा दीजिए.... और यशपुर की एसएसपी बना कर पोस्टिंग करवा दीजिए...
भैरव - तथास्तु... ऐसा ही होगा.... प्रधान... हमने कभी... इंसान को पहचानने में... कोई गलती नहीं की है... चेट्टी एंड सन्स ने... मेरे इस खास रत्न पर मोहर भी लगा दी है.... इसलिए तुम आज मांगो क्या मांगते हो...
बल्लभ - बस राजा साहब.... आपकी छत्र छाया... मेरे सर पर यूँही बनी रहे.... आप दिन दुगनी और रात चौगुनी दौलत की गंगा बहाएं..... और हमारे ऊपर कुछ छिटें यूँ ही फेंक मारते रहें....
भैरव - तथास्तु.... अंत में... चेट्टीस् फादर एंड सन.... कहिए आप लोगों को क्या चाहिए....


ओंकार कुछ कहने को होता है पर यश उसे इशारे से रोक देता है

यस - राजा साहब... हम जानते हैं... आप ना तो किसीसे दोस्ती करते हैं.... और ना ही किसीसे दुश्मनी छोड़ते हैं.... बस हमे दोस्ती का दर्जा दीजिए.... यही ख्वाहिश है हमारी....

भैरव सिंह कुछ देर के लिए चुप हो जाता है l उसकी चुप्पी, वहाँ सबको डराने लगती है l पर यश के आंखों में कोई डर नहीं दिखता है l

भैरव सिंह - (मुस्कराते हुए) ठीक है.... यश.... हमे... चेट्टीस् के दोस्ती कुबूल है....
यश - ठीक है.... राजा साहब.... यही हमारे लिए... बेस्ट कंप्लीमेंट है... थैंक्यू....
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अगले दिन जगन्नाथ मंदिर में, वैदेही अपना सामान बांध कर कमरे से बाहर निकलती है l बाहर उसे पंडा और कुछ सेवायत उसके इंतजार में थे l वैदेही बाहर निकलती है और सबको हाथ जोड़ कर नमस्कार करती है l सब ज़वाब में वैदेही को नमस्कार करते हैं l

वैदेही - अच्छा बाबा... चलती हूँ... आपने जो किया... उसके की धन्यबाद बहुत ही छोटा है.... बस भगवान से प्रार्थना करूंगी... की मैं आपके चरणों की सेवा कर सकूँ... ऐसा अवसर मुझे दे....
पंडा - मैं कौन हूँ... मैं क्या हूँ... सब उसकी मर्जी.... अगर मंजिल के राह में... ठोकरें लगते रहे... तो समझ लो.... उसने कुछ तो जरूर सोच रखा होगा....... और वह बहुत ही खास होगा....

वैदेही कुछ नहीं कहती बस हल्की सी मुस्करा देती है और मंदिर से बाहर निकल कर रास्ते पर ऑटो के लिए खड़ी होती है l उसके साथ साथ पंडा भी आकर खड़ा होता है l

वैदेही - बाबा आप क्यूँ यहाँ आए... मैं बस स्टैंड चली जाऊँगी....
पंडा - बेटी अब तो तेरा यहाँ.... आना नहीं होगा... तेरे भाई से मिलने अब तुझे भुवनेश्वर जाना होगा....
वैदेही - हाँ बाबा.... मैं कुछ कर लुंगी... बाबा आप फ़िकर ना करो...
पंडा - अरे कैसे ना करूँ... कल को अगर बुलावा आ गया... तो उस कम्बख्त को क्या मुहँ दिखाऊंगा....
वैदेही - पर बाबा....
पंडा - चुप रह और सुन.... अगली बार जब विश्व से मिलने जाएगी.... तब मुझसे एक बार मिलकर चले जाना....
वैदेही - पर... क्यूँ बाबा...
पंडा - देख... भुवनेश्वर राम मंदिर में कोई धर्मशाला नहीं है.... सेवायतों के लिए तीन चार कमरे हैं.... और उस मंदिर का पुजारी मेरा ही भाई है.... वह तुम्हारे ठहरने का प्रबंध कर देगा....
वैदेही - (मुस्कराते हुए) ठीक है बाबा... (इतने में ऑटो आजाती है, वैदेही उसमें बैठ जाती है) अच्छा बाबा मैं... चलती हूँ...
पंडा - (उसे टोक कर) चलती हूँ नहीं बेटा.... कहो फिर मिलते हैं... इससे जीने की आस बनी रहती है....
वैदेही - ठीक है बाबा... फिर मिलते हैं...
पंडा - हाँ... फ़िर मिलते हैं....

ऑटो निकल जाती है चांदनी चौक से निकल कर रिंग रोड पर आ जाती है और बादाम बाड़ी बस स्टैंड की बढ़ने लगती है, तभी एक फॉर्च्यूनर उसके सामने रुक जाती है l एक आदमी उतरता है, जेब से रिवाल्वर निकाल कर ऑटो ड्राइवर को ऑटो छोड़ कर भागने के लिए कहता है l ऑटो ड्राइवर बिना पीछे देखे भाग जाता है l

आदमी - सुनो वैदेही.... तुम्हारे लिए... एक अलग गाड़ी की व्यवस्था की गयी है....

वैदेही अपना ऑटो से उतरती है और पीछे मुड़ कर देखती है l एक चमचमाती दुध सी सफेद रंग की गाड़ी, रोल्स रॉयस l गाड़ी देखते ही वैदेही समझ जाती है, यह भैरव सिंह की गाड़ी है l तब तक उसका समान वह आदमी ऑटो से निकाल कर रोल्स रॉयस की ओर बढ़ जाता है l वैदेही भी उसके पीछे पीछे गाड़ी तक जाती है l ड्राइवर डिकी में सामान रखने के बाद कार का दरवाजा खोल देता है और वैदेही को अंदर जाने के लिए कहता है l वैदेही भी बिना कुछ कहे गाड़ी के अंदर जा कर बैठ जाती है l उसके सामने वाली सीट पर भैरव सिंह बैठा हुआ है l गाड़ी में पिछली सीट की अरेंजमेंट आमने सामने किया गया है l गाड़ी के इंटरकम से ड्राइवर को गाड़ी चलाने को बोलता है भैरव सिंह l गाड़ी चलने लगती है l वैदेही गुस्से से भैरव को देखती है l भैरव सिंह उसके गुस्से को देख कर एक कुटील मुस्कान से वैदेही को देखता है l

भैरव - कोई बात नहीं मेरी रंडी... तु जितना चाहे मुझे गाली दे सकती है.... कोई नहीं सुन पाएगा.... गाड़ी का यह हिस्सा साउंड प्रूफ़ है... इसलिए मेरे लिए... जितनी गालियाँ सोच रही है.... जल्दी जल्दी उगल दे.... फिर मौका मिले ना मिले....
वैदेही - कमीने.... कुत्ते.... हरामी... मादरचोद.... सुवर... गंदी नाली के कीड़े... वहशी... दरिंदे.... (वैदेही चुप हो जाती है)
भैरव - बस.... इतनी ही गाली आती है.... तुझे.... तेरे पेट में... मेरे लिए... गाली भी नहीं बन रही है.... हाँ.... कैसे बनेगी... बाँझ जो ठहरी... जब इतनी चुत फाड़ चुदाई के बाद... बच्चा नहीं जन पाई... तो गाली कहाँ से लाएगी... कुत्तीआ...

वैदेही गुस्से से थर्रा जाती है, चेहरा लाल हो जाती है पर कुछ कह नहीं पाती l

भैरव - अरे कुछ नहीं सूझ रहा है तुझे... कोई बात नहीं.... मैं ही बता देता हूँ तुझे.... यही सोच रही है ना.... यह गाड़ी कितने की है.... पुरे चालीस करोड़ की है... इसे रोल्स रॉयस कहते हैं... मेड ऑन ऑर्डर गाड़ी इसे कहते हैं.... समझी... अब तु सोचेगी... इतनी महंगी गाड़ी में.... तुझे क्यूँ बिठाया.... तो सुन मेरी रंडी कुत्तीआ.... तेरी गांड इतनी बार फाड़ी है... तो तुझ पर तरस खा कर... सोचा एक बार... चालीस करोड़ की कार में.... एक तेरा पिछवाड़ा ही टिका दूँ....
वैदेही - क्या यही बकवास सुनाने के लिए.... मुझे अपने साथ ले जा रहा है.... कहाँ..... फिर रंग महल को.... या किसी थर्ड ग्रेड लॉज को....
भैरव - तु.... इस खुश फहमी मत पाल ले... के तुझमे निचोड़ने के लिए... कुछ रस बचा भी है....
तुझे.... अपने साथ राजगड़ लिए जा रहा हूँ... अपने भाई के लिए... उस जयंत के साथ सो सो कर थक गई होगी.... इसलिए तुझे अपने तरफ से... चालीस करोड़ की सवारी पर लिफ्ट दे रहा हूँ... शर्त लगा ले... इतनी महंगी लिफ्ट... पुरे राज्य में.... किसीने नहीं ली होगी....

वैदेही गुस्से से भैरव पर झपट पड़ती है l भैरव उसे पकड़ लेता है और वैदेही के हाथ को मरोड़ कर सीट पर उल्टा लिटा देता है l

भैरव - अरे वाह कुत्तीआ... काटने को आ गई.... (वैदेही को दर्द हो रहा है, भैरव के कब्जे में वह छटपटा रही है, उसके गालों पर उंगली फेरते हुए) बस..... बस यही दर्द.... यही छटपटाहट देखना चाहता था.... तेरी.... (भैरव उसके ऊपर झुक कर उसके कान के पास) तुझे आज बिन पानी के मछली के जैसे फड़फड़ाते देख.... मुझे कितना सुकून मिल रहा है.... क्या बताऊँ.... (कह कर वैदेही को छोड़ देता है, वैदेही अपनी हाथ को पकड़ कर भैरव सिंह को गुस्से से देखने लगती है) तेरे खानदान की औरतों को चोद कर.... अगली नस्ल की फसल तैयार किया जाता था..... पर तु.... कमीनी रांड साली... बाँझ निकली.... यह मेरी पहली हार थी.... मेरे दादा, मेरे पिता सबने अपनी बीज का फल चखा.... पर तु बाँझ साली कुत्तीआ... मुझे वह संतुष्टि नहीं दे सकी.... (वैदेही उसे घूरे जा रही है) सात साल... कितनी चुदाई की.... पर तुने मेरे बीज का फल नहीं दिया.... एक बार बड़े राजा ने.... मेरे मर्दानगी पर सवाल उठा दिया.... मैंने इसलिए गांव में ढूंढ ढूंढ कर बीज डालता गया... और फसल बनाता गया... इसके बाद डॉक्टर को बुला कर जब चेक कराया.... तु कम्बख्त बाँझ निकली.... वह पल मेरे लिए बहुत ही दर्दनाक था.... वह क्या है कि.... मेरे सुख और तेरे दर्द के बीच जो आएगा.... वह तबाह और बर्बाद हो जाएगा....
वह चाहे... तेरी माँ हो, रघुनाथ हो, या उमाकांत आचार्य, या विश्व हो... या फ़िर जयंत... हा हा हा हा....

वैदेही - जयंत सर... उनको बेइज्जत कर, गोबर फीकवा कर...
भैरव - ऐ... चुप... तूने देखा नहीं..... जैसे ही गवाह के कटघरे में उसके आँखों में देखा.... खौफ से उसका दिल धड़कना बंद कर दिया.... समझ गई... यह है मेरा खौफ, रौब और रुतबा...
वैदेही - मुझसे इतनी ही नाराजगी है... तो मुझे रंग महल के जानवरों के हवाले क्यूँ नहीं कर दिया....
भैरव सिंह - सोचा तो मैंने भी यही था.... पर मैंने फिर सोचा.... अगर तु मर गई... तो मजा वहीँ खतम हो जाएगा.... मैं तो तुझे तड़पते हुए, चीखते हुए, रोते बिलखते हुए देखना चाहता था..... इतनी बेरहमी से चुदाई के बाद... जब तु... चिल्लाई नहीं... तब दूसरों से भी तुझे चुदवाया.... पर फिरभी.... तेरे चेहरे पर... दर्द उभरा ना जिल्लत.... इसलिए तुझे चुड़ैल बता कर लोगों से पथराव करवाया.... लोग पत्थर बरसा रहे थे... मुझे असीम खुशी मिल रही थी.... पर तुझे.... विश्व ने आकर बचा लिया.... उसी दिन से विश्व.... मेरा टार्गेट बन गया.... हूं ह... मुझे नीचा दिखाने के लिए... उससे ग्रैजुएशन करवा रही थी.... मैंने उसे फंसा कर... जैल की रोटी तोड़ने के लिए छोड़ दिया.... क्यूंकि मुझे तेरी दुखती रग मिल चुका था..... हा हा हा.... विश्व... तु भले ही बेज़ान हो गई है.... पर तुझे दर्द तब होती है... जब विश्व को दर्द होता है.... हा हा हा हा.... यही... हाँ यही तो तेरे चेहरे पर देखना चाहता था.... हा हा हा हा
वैदेही - यह तुने.... ठीक नहीं किया भैरव सिंह क्षेत्रपाल.... यह तुने ठीक नहीं किया....
भैरव - अच्छा... कौन मेरा... क्या उखाड़ लेगा... तेरा भाई विश्व... हा हा हा हा...
वैदेही - हँस मत कुत्ते हँस मत.... कोई देखेगा तो सोचेगा.... राजा साहब पागल हो गया है.... इसलिए हँस मत...
भैरव - आले आले आले... मेरे हँसने से... मेरी कुत्तीआ का... पिछवाड़ा सुलग रही है...
वैदेही - भैरव सिंह तुने मुझे... जिंदा रख कर बहुत बड़ी.... गलती कर दी है.... अब विश्व को भी... जिंदा नहीं छोड़ना था....
भैरव - (वैदेही के गालों को अपने पंजे से पकड़ कर) तु जिंदा है... मेरी झांट के बाल तक उखाड़ नहीं पाई.... सिर्फ़ विश्व को मेरे खिलाफ भड़काने के सिवा.... और वह तेरा विश्व क्या कर लेगा मेरा.... मेरे एक भीमा के बांह बराबर नहीं है... फूँक मारूं... उड़कर पता नहीं कहाँ गिरेगा... कुत्तीआ... साली कहती है... मैंने गलती की है....
वैदेही - विश्व से डरता है तु.... इसलिए... उसे लंगड़ा करने की कोशिश की थी तुने.... उसका हुक्का पानी बंद करवा रखा है तुने....
भैरव - वह इसलिए... के वह जब जब गली गली भीख मांगता... तब तेरे तड़प देख कर मैं... खुश होता....
वैदेही - पर भाग्य ने यह होने नहीं दिया....
भैरव - भाग्य... जब जब भाग्य मुझसे... पंजा लड़ाया है... मैंने तब तब किसी और का भाग्य लिखा है.....
वैदेही - इतना अहं.... पचा नहीं पाओगे... यह तब तक... है जब तक... विश्व अंदर है... वह जब आएगा... तु बहुत रोएगा... उसके इरादों के आँधी के आगे... तेरा साम्राज्य तिनका तिनका उड़ जाएगा.... उसके नफ़रत के सैलाब से.... तेरा जर्रा जर्रा बह जाएगा.... देखना.... आखिर उस पर... मेरे तीन थप्पड़ों का.... कर्ज है...
भैरव - आई शाबाश... मुझे अब तुझ पर प्यार आ रहा है... मेरी रंडी कुत्तीआ.... चल आज तेरी खुशी के लिए... मैं सात साल तक विश्व को भूल जाता हूँ... तो बता विश्व आकर मेरा क्या उखाड़ेगा....

वैदेही चुप रहती है और गुस्से से भैरव सिंह को देखती है l भैरव सिंह उसे देख कर हँसने लगता है l ऐसे में वे लोग राजगड़ के मुख्य चौराहे पर पहुंच जाते हैं l

भैरव - चल उतर हरामजादी... तुने विश्व को अपने तीन थप्पड़ों के कर्ज तले दबा रखा है.... ना... अब मैं तुझे... उसके सात साल के लिए... सात थप्पड़ों का कर्ज दूँगा... इसी बीच चौराहे पर....

यह कह कर भैरव सिंह, वैदेही को बालों को पकड़ कर बाहर खिंच निकालता है, वैदेही देखती है, वहाँ पर लोगों का जमावड़ा है

भैरव - यह सब तेरे लिए ही इकट्ठे हुए हैं... मैंने इनसे वादा किया था... आज इस चौराहे पर... तेरा तमाशा करूंगा.... देख लोग कितनी बेताबी से... तेरी तमाशा देखने के लिये खड़े हैं... हा हा हा हा... देख....

वैदेही लोगों के चेहरे को देखती है l सबकी आँखों में भय और विवशता दिखती है l

भैरव - (चिल्लाते हुए) गांव वालो... हमने जो इसकी हुक्का-पानी बंद किया था.... वह आज हटा रहे हैं... पर इसके भाई की हुक्का-पानी बंद रहेगी..... (वैदेही को देख कर) क्यूँ कुत्तीआ... कैसी रही.... चल बता... विश्व आएगा.... तो यहाँ क्या बदलेगा....

यह कह कर भैरव सिंह वैदेही को पहला थप्पड़ मारता है l थप्पड़ लगते ही वैदेही का बायाँ गाल लाल हो जाती है l

भैरव - चल बता... क्या कर लेगा.... यहां क्या बदलेगा....
वैदेही - तेरे पाले हुए कुत्ते... जो... तेरे नाम की खौफ... फैला कर गली गली शेर बन फ़िर रहे हैं.... उन्हें विश्व कुत्तों की तरह इन्हीं गालियों में... दौड़ा दौड़ा कर मारेगा....
भैरव - वाह मजा आ गया... वाह...

यह कह कर दुसरा थप्पड़ उल्टे हाथ से मारता है, वैदेही गिर जाती है और उसका दायाँ गाल की हालत वही होती है l

भैरव - हाँ अब बता... अब क्या बदलेगा...
वैदेही - तेरे खानदान को... छोड़ किसीने.... यहाँ पर... कभी उत्सव नहीं मनाई... वह आकर पहला उत्सव मनाएगा.....
भैरव - वाह क्या बात है... वाह... (कह कर बलों से खिंच कर उठाता है) यह ले यह तीसरा थप्पड़....

तीसरे थप्पड़ से वैदेही के गालों पर भैरव सिंह के हाथों के निशान दिखते हैं l

भैरव - चल बता.... लोग मजे ले रहे हैं.... चल बता...
वैदेही - आज तक किसीने... क्षेत्रपाल नाम के खिलाफ... पुलिस थाने में... केस दर्ज नहीं कराई.... वह करेगा....
भैरव - बढ़िया... बहुत बढ़िया.... वाह. हम बहुत खुश हुए, यह ले यह चौथा (कह कर फ़िर उल्टे हाथ थप्पड़ मारता है)
वैदेही - जो लोग यहाँ पर... क्षेत्रपाल यह क्षेत्रपाल महल के तरफ पीठ नहीं करते, उल्टे पांव लौटते हैं.... उसके आने के बाद... सब एक दिन तुझे और तेरी महल को पीठ करेंगे और वापस भी लौटेंगे.... बिना उल्टे पांव के.....
भैरव - आ हा... हाहा... हा मजा आ गया... यह ले पांचवां (कह कर थप्पड़ मारता है, इस बार वैदेही के होंठ फट जाते हैं)
वैदेही - (एक घूंट खून की थूकती है) जिस अहंकार के दम पर.... हमारे परिवार को तितर बितर किया है.... उसी अहंकार के चलते.... तुझसे तेरा परिवार भी तितर बितर हो जाएगा.... इसका वजह... विश्व नहीं तु होगा....
भैरव - आह... इतनी खुशी.... बर्दाश्त नहीं हो रही.... यह ले छटा....

इसबार वैदेही नीचे गिर जाती है पर उठ नहीं पाती l भैरव एक आदमी को इशारा करता है तो वह आदमी बोतल से पानी निकाल कर वैदेही के मुहँ पर उड़ेल देता है l वैदेही उठती है l

भैरव - चल बता... छटा लगाया है.... चल बता....
वैदेही - इस गांव में मातम में सिर्फ़ क्षेत्रपाल महल में ही भीड़ होती थी.... पर विश्व आने के बाद मातम गांव में तो मनेगा..... पर कोई क्षेत्रपाल महल के मातम में शामिल नहीं होगा....
भैरव - वाह वाह वाह.... बस आखिरी थप्पड़... कह कर जोर से हाथ घुमा देता है l थप्पड़ लगते ही, वैदेही छिटक कर दूर गिरती है l बड़ी मुश्किल से उठ खड़ी होती है l

वैदेही - तू... अपने गरूर के सिंहासन पर होगा.... यही लोग तेरे... महल की ईंट से ईंट बजा देंगे... तेरी महल ढह जाएगी.... क्षेत्रपाल.... यह नाम सिर्फ इतिहास हो जाएगा.... और तेरे लोगों की अंजाम की कहानी.... आने वाले कल में... बुजुर्गों से सुनी भी जाएगी... सुनाई भी जाएगी....

इतना कह कर वैदेही गिर जाती है l एक आदमी भैरव सिंह के गाड़ी से वैदेही की सामान निकाल कर फेंक देता है l फिर भैरव सिंह वहाँ से गाड़ी में बैठ कर चला जाता है l लोग धीरे धीरे वहाँ से चले जाते हैं l पश्चिम आकाश में सुरज डूब रहा है l पर उस चौराहे पर वैदेही अभी भी बेहोश पड़ी हुई है l
Nice update bro
 

Rajesh

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👉अड़तीसवां अपडेट
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अगले दिन
राजगड़
सुबह की धूप खिल रही है क्षेत्रपाल महल में एक गाड़ी आकर रुकती है l पिनाक सिंह उस गाड़ी से उतरता है और एक जोरदार अंगड़ाई लेता है l क्षेत्रपाल महल में वह सीधे नागेंद्र के कमरे की ओर जाता है l वहाँ नागेंद्र के सेवा में कुछ नौकर और नौकरानियां लगे हुए हैं l पिनाक के वहाँ पहुँचते ही नागेंद्र को छोड़ कर एक किनारे हो जाते हैं l

नागेंद्र - आइए... छोटे राजा जी... आइए... विराजे... (पास पड़े एक कुर्सी पर पिनाक बैठ जाता है) क्या आप विजयी हो कर लौटे हैं...
पिनाक - जी... आपका आशीर्वाद है... पार्टी में हमारी बात रख दी गई है...... पार्टी हाई कमांड तैयार हो गए हैं... इस बार बीएमसी चुनाव में... हम अप्रतिद्वंदी होंगे...
नागेंद्र - शाबाश... और युवराज.... वह क्यूँ नहीं आए...
पिनाक - जी उन्हीं की खबर देने ही आए हैं.... वह कॉलेज में... छात्र संगठन में.... अध्यक्ष चुन लिए गए हैं.... और अगले महीने *** तारीख को.... उनकी संस्था का... उद्घाटन समारोह है.... उस समारोह के उपरांत... वह और राजकुमार दोनों... राजगड़ पधारेंगे....
नागेंद्र - बहुत अच्छे... आपके साथ... राजा जी क्यूँ नहीं आए....
पिनाक - पर वह तो... कल सुबह ही.... राजगड़ के लिए... निकल गए थे...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म.... कोर्ट में... जीत की खुशी... मनाने के लिए.... हो सकता है... रंगमहल गए होंगे....
पिनाक - हाँ... शायद...
नागेंद्र - वह सुवर की औलाद... विश्व.... अपने औकात से आगे... निकल गया.... आख़िर हमे.. अपनी ही खेमे से निकल कर... बाहर जाने को... मज़बूर कर दिया...
पिनाक - हाँ... लोक शाही की... जरूरत जो है...
नागेंद्र - लोक शाही... कैसी लोक शाही.... हमने... लोक शाही को... हमारे ठोकर पर अब तक रखे हुए हैं... आज इस राज्य में... लोक शाही रेंग भी रही है.... तो हमारी राज शाही के वैशाखी पर...
पिनाक - जी... पर वह.... लोक शाही के अंजाम तक... पहुंच गया है...
नागेंद्र - एक तरह से.... अच्छा ही हुआ.... अब जब तक... इनकी नस्लें... रहेंगी... तब तक... क्षेत्रपाल महल की और... आँखे उठाने की हिम्मत... कोई नहीं करेगा....
पिनाक - जी... दुरुस्त... फ़रमाया... आपने...
नागेंद्र - अब आप जा सकते हैं... जाईए... छोटी रानी जी... हमारी खुब सेवा किए हैं.... उनसे मिल लीजिए...
पिनाक - जी.... जरूर... नागेंद्र - और हाँ.... समय निकाल कर.... रंगमहल जा कर.... राजा जी की.. खैर खबर.... आप स्वयं लें....
पिनाक - जी... जरूर नागेंद्र - देखिए... रंग महल की चमक... फीकी ना पड़े... यह अब पूरी तरह से... आपके लोगों के जिम्मे.... क्षेत्रपाल महल हमारा रौब.... और रंगमहल हमारा रुतबा है.... हमारी उम्र अब इजाजत नहीं दे रहा है.... और शरीर भी धीरे धीरे ज़वाब दे रहा है....
पिनाक - जी... अब आज्ञा.. चाहूँगा... (कह कर पिनाक उठ कर जाने लगता है)
नागेंद्र - छोटे राजा जी... (पिनाक रुक कर मुड़ कर देखता है) उस लड़की का क्या हुआ...
पिनाक - नहीं जानते.... पर इतना जरूर जानते हैं... कल राजा जी ने... उसे उसके हक़ की... दे दी गई है....

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वैदेही धीरे-धीरे अपनी आँखे खोलती है l तो खुद को एक कमरे में नीचे बिछे बिस्तर पर पाती है l उठ कर बैठ जाती है l उसके गालों पर अभी भी सूजन है, थोड़ा दर्द भी है l वह अपने गालों को छूती है तो उसे बीती शाम की बातेँ याद आती हैं l वह सोचती है वह चाटों के मार खाने के बाद बेहोश हो गई थी l तो उसे कौन लाया और यह किसी का घर है l पर किस का l कौन लाया उसे l यह सब सोचते हुए वह बाहर आती है l उसे लक्ष्मी दिखती है l


वैदेही - ओ... लक्ष्मी...(उसकी आवाज़ ऐसी सुनाई दी, जैसे उसके मुहँ में कुछ रख कर बात कर रही है) तो... यह तुम्हारा घर है....
लक्ष्मी - हाँ वैदेही... अब कैसा लग रहा है...
वैदेही - मैं यहाँ पहुंची कैसे.....
लक्ष्मी - मेरा मरद रात में... फैक्ट्री... नाइट् शिफ्ट काम के लिए निकल गया.... तो हम माँ बेटी.... चौराहे पर जा कर ले आए तुझे....
वैदेही - तुझे डर नहीं लगा....
लक्ष्मी - लगा था.... पर फिर याद आया... कल राजा साहब ने.... तेरे हुक्के पानी पर रोक हटा दी ना...
वैदेही - अच्छा.... तेरा यह उपकार... मुझ पर उधार रहा.... मैं अपने घर चलती हूँ....
लक्ष्मी - थोड़ी देर रुक जाती..... अपनी चेहरा तो देख...
वैदेही - नहीं... अब रुकना नहीं है.... मैं फिर बाद में मिलती हूँ... तुझसे....

कह कर वैदेही अपना सामान ले कर,लक्ष्मी के घर से निकल कर अपने घर की ओर चली जाती है l रास्ते में कुछ लोग उसे देख कर डर के मारे रास्ता छोड़ देते हैं और कुछ लोग उसके पीछे पीछे चलते हुए फब्तीयाँ कसते हैं l सबको अनसुना करके वैदेही अपने घर पर पहुंच जाती है l अपनी बैग से चाबी निकाल कर ताला खोल कर घर के अंदर आती है, फ़िर दरवाज़ा बंद कर अंदर की कुए में बाल्टी डाल कर पानी निकालती है और अपने ऊपर उड़ेल देती है l पानी ऊपर गिरते ही वह हांफने लगती है l धीरे धीरे उसका चेहरा कठोर हो जाती है

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टीवी की रिमोट हाथ में लेकर सारे न्यूज चैनल छान मारने के बाद रिमोट सोफ़े पर फेंक देती है, प्रतिभा l

तापस - क्या बात है.... आज किसका गुस्सा टीवी के रिमोट पर... उतारा जा रहा है....

प्रतिभा - कितने प्रदर्शन हुए,... कितने धरने पर बैठे.... ना जाने क्या क्या... नाटक किया गया.... पर देखो भुला देने के लिए.... एक दिन भी नहीं लगा.....
तापस - कमाल करती हो.... भाग्यवान.... कल ही तो तुमने मुझसे कहा था.... विश्व एक डाईवर्जन है... उसे सजा हुई.... काम खतम... अब लोग अपनी रोजी रोटी के लिए भाग दौड़ कर सकेंगे.... मीडिया वाले... नई मसालेदार ख़बरों की खोज में... लगेंगे.... राजनीतिक गिरगिट अपना रंग बदलेंगे.... ऐसे में विश्व... या मनरेगा से... क्या मतलब है...
प्रतिभा - हाँ... सेनापति जी.... आप ठीक कह रहे हैं....
तापस - वही तो... अब हमे भी... आगे बढ़ना चाहिए.....
प्रतिभा - हाँ आप ठीक कह रहे हैं.....
तापस - सच... (खुशी से चहकते हुए) तुम तैयार हो....
प्रतिभा - (आपनी आँखे सिकुड़ कर) यह आप.. किस बात की... तैयारी कर रहे हैं...
तापस - कमाल करती हो.... भाग्यवान.... अब... लड़का डॉक्टर... बन जाएगा.... बाहर... बिजी रहेगा.... तो हम क्यूँ ना... चौथे... सदस्य को... लाने की तैयारी करें...
प्रतिभा - (अपनी कमर पर दोनों हाथ रखकर) क्या कहा आपने...
तापस - अरे क्या... कहा मैंने... मैं.. तो बस यह कह रहा था... हम तीन हैं... चलो... चार बनने की... तैयारी करते हैं...
प्रतिभा - (सोफा पर से एक कुशन उठा कर तापस की फेंकती है) आपको शर्म नहीं आती.... बुढ़ापे में ऐसी बातेँ... करते हुए...
तापस - इस में... शर्माने की... क्या बात है... मैं कह रहा था... डॉक्टर विजय से बात करूँ.... ताकि हमारे.. लाट साहब के हाथ पीले कर दिया जाए...
प्रत्युष - मैं भी यही कह रहा था....
प्रतिभा - तु.... कब आया.... और.... बड़ों के बीच में.... तु क्यूँ... घुसा जा रहा है....
प्रत्युष - बड़ों... या बूढ़ों... पहले यह कंफर्म करो...
तापस - बुड्ढा किसको बोला....
प्रत्युष - अभी बोला कहाँ है... बस पुछा ही तो है...
प्रतिभा - मैंने सिर्फ़ इतना कहा.... बड़ों के बीच में नहीं आते....
प्रत्युष - आप दोनों वहाँ हो... मैं यहाँ हूँ... बीच में कहाँ हूँ.... बाकी बड़ों के... मतलब क्या हो सकता है.... आपको यह कहना चाहिए... बूढ़ों के बीच में नहीं आना चाहिए.... क्यूंकि जवान लड़का... बूढ़ों के बीच क्या करेगा...
तापस - तुने फ़िर बुढ़ा किसको कहा....
प्रत्युष - अब इस कमरे में... जवान कहो या बच्चा... वह सिर्फ़ मैं ही हूँ....
तापस - तु.... बुढ़ा होगा तु... तेरा बाप...
प्रत्युष - फ़िर से करेक्शन... सिर्फ़ बुढ़ा होगा तेरा बाप... यही कहावत है....
तापस - रुक अभी बताता हूँ...
प्रत्युष वहाँ से भाग जाता है l उसके भागते ही प्रतिभा हँस देती है l

तापस - वैसे जान... तुमने कुछ और भी सोचा था ना... (अपनी भौंवै नचा कर पूछता है)

प्रतिभा एक प्यार भरा गुस्से से तापस को देखती है, तापस पीछे मुड़ कर हँसते हुए भाग जाता है l

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एक कमरे में वीर डायनिंग टेबल पर नाश्ता कर रहा है l और बीच बीच में अटक कर कुछ सोच रहा है l विक्रम उसे कुछ देर से देखे जा रहा है l

विक्रम - क्या बात है... राजकुमार.... बड़ी गहरी सोच में हो....
वीर - हाँ हैं हम....
विक्रम - पढ़ाई को ले कर.....
वीर - ना... पढ़ाई जब कि ही नहीं.... तो उसकी सोचें ही क्यूँ....
विक्रम - तो खाते खाते बीच में.... आप अटक क्यूँ रहे हैं....
वीर - अब खाली दिमाग़... शैतान का घर... इसलिए.... बहुत बड़ी बात दिमाग़ में.... डाल कर सोच रहे हैं.... ताकि दिमाग़ खाली ना रहे....
विक्रम - अच्छा तो हमें भी... वाकिफ़ कराएं... आपके दिमाग में... क्या चल रहा है....
वीर - यही... के अगर आप... राजा साहब के जगह लेते हैं... तो तब जाहिर है... छोटे राजा तो हम ही होंगे.... तब... अब वाले छोटे राजा जी का.... डेजिग्नेशन क्या होगा... बस... यही सोच रहे हैं...

विक्रम की खांसी निकल जाती है l थोड़ा पानी पी लेने के बाद वीर को घूर कर देखता है l

विक्रम - आपको और कुछ नहीं सूझा..... सोचने के लिए....
वीर - देखिए... युवराज जी... कभी ना कभी... बड़े राजा... सिधार जाएंगे... तब सब अपने अपने... डेजिग्नेशन से... प्रमोट होंगे.... तो मैं छोटे राजा जी के लिए... परेशान हूँ....
विक्रम - कास... आप अपने.... स्टडीज के लिए इतने परेशान होते...
वीर - परेशान होने से क्या होगा... ज्यादा से ज्यादा... आईएएस तो नहीं बनना है..... पर ऐसा पोजीशन हासिल करना है..... बड़े बड़े गोल्ड मेडलिस्ट आईएएस आगे पीछे घुमते हुए नजर आयेंगे....
विक्रम - बहुत दिमाग़ चल रहा है आपका...
वीर - कोई शक़...
विक्रम - चलो एक पहेली है... सुलझाके दिखाओ...
वीर - क्यूँ... किसी आईएएस से मेरा प्लेट साफ करवायेंगे क्या...
विक्रम - आप... यह आईएएस वालों के पीछे क्यूँ लगे हुए हैं...
वीर - क्यूंकि आपने... पढ़ाई की बात छेड़ दी...
विक्रम - अच्छा चलिए हमे माफ़ करें....
वीर - ठीक है... आप अपना पहेली पूछिए...
विक्रम - इस पहेली में... एक फोन नंबर है... जो आपको पता करना है...
वीर - अगर हमने पता कर दिया तो....
विक्रम - वादा रहा... किसी आईएएस से आपका प्लेट उठवाएंगे....
वीर - ठीक है... पहेली क्या है...
विक्रम - एक पायदानी सफर .... ऊपर से नीचे की ओर.... थमती है सफर... जब लगती है पंजे के जोड़े की जोर.... आगे नहीं सफ़र... मूड जाती है पीछे की ओर.... ना एक है ... ना दो ... ना तीन है ... ना चार... बस कुछ ऐसी है यह सफर.... इसी में है मेरा नंबर....
वीर - ह्म्म्म्म लगता है... किसी लड़की का नंबर है...
विक्रम -(झेप जाता है, हकलाने लगता है) हाँ.. हा.. व... न... ना.. नहीं... यह एक... द...द.. दोस्त का नंबर है...
वीर - तो इतना हकला क्यूँ... रहे हैं...
विक्रम - अरे भाई.... आप को... बताना है तो बताओ....
वीर - (टिशू पेपर से अपना होंठ साफ करते हुए) ठीक है... बहुत आसान है.... पर यह बताइए.... पहली... कितने दिन पहले की है...
विक्रम - (थोड़ा उदास होते हुए) क्या बताएं.... बीस दिन हो गए हैं...
वीर - क्या... आप... बीस दिन से... नहीं मिले हैं... आपस में...
विक्रम - हाँ.. क.. कौन... किससे...
वीर - वेरी सिंपल... आपकी गर्लफ्रेंड से...
विक्रम - य.. यह आ.. आ.. आप क.. क.. क्या कह रहे हैं...
वीर - तो ठीक है ना... आप हकला क्यूँ रहे हैं..
विक्रम - नहीं तो...
वीर - ठीक है... फिरसे... पहेली क्या है... बताइए...
विक्रम - एक पायदानी सफर .... ऊपर से नीचे की ओर.... थमती है सफर... जब लगती है पंजे के जोड़े की जोर.... आगे नहीं सफ़र... मूड जाती है पीछे की ओर.... ना एक है ... ना दो ... ना तीन है ... ना चार... बस कुछ ऐसी है यह सफर.... इसी में है मेरा नंबर....
वीर - ह्म्म्म्म एक पायदानी सफर... नीचे की ओर... पंजे की जोड़े ह्म्म्म्म...
मतलब पहले डिसेंडींग ऑर्डर.... फिर एसेंडींग ऑर्डर....
लो मिल गया... आपका नंबर...
विक्रम - क्या... मिल गया... क क्या है नंबर...
वीर - पायदानी सफ़र... ऊपर से नीचे की ओर मतलब 9876 पंजे की जोड़े ने रोका मतलब 55 फिर वापस भेज दिया ऊपर की ओर... 6789
उसमें... ना एक है ना दो है ना तीन है ना ही चार है.....
9876556789 बस यही नंबर है....
विक्रम - क्या... (हैरानी से चिल्लाते हुए) वाकई... वाव.. यह तो.. बहुत ही आसान था... हम तो बीस दिनों से... इसी भंवर में भटक रहे हैं...
वीर - आपको भी मालुम हो जाता... पर....
विक्रम - पर क्या....
वीर - पर अगर... अपने दिल के जगह... दिमाग़ का इस्तमाल किया होता...

विक्रम फिर से खांसने लगता है l वीर उसे अपनी आँखे सिकुड़ कर देखने लगता है l विक्रम कुछ नहीं कहता, अपना सर झुका कर कमरे से बाहर चला जाता है l

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वैदेही अपने कमरे में बैठ कर किन्ही ख़यालों में खोई हुई है अचानक वह उठती है और बाहर निकल कर उसी चौराहे पर पहुंचती है l जहां भैरव सिंह ने उस पर थप्पड़ बरसाये थे l वैदेही वहीँ खड़ी हो कर उसी जगह को देखती रहती है l कुछ मर्द वहाँ से गुज़रते हैं, पर जैसे ही वैदेही को देखते हैं वह लोग अपना रास्ता बदल कर चले जाते हैं l वैदेही वहीँ खड़ी हो कर उसी जगह को देख रही है और कुछ सोच रही है l उसके पास कुछ औरतें आती हैं l

एक औरत - क्या बात है.. वैदेही... तुम यहाँ पर क्यूँ खड़ी हो....
वैदेही - कुछ नहीं कुसुम भाभी... मैं यह सोच रही थी.... कितनी आसानी से... एक चौराहे से... किसी के घर की इज़्ज़त, किसी के घर की जन्नत, किसी के बाग की फूल... कोई आकर उठा ले जाता है... रौंदने के लिए... किसी... भाई का खुन नहीं खौलता.... किसी बाप का दिल नहीं... चीखता.... क्यूँ...
दूसरी औरत - सब का खुन... ठंडा हो चुका है... क्षेत्रपाल परिवार के दहशत से... नामर्द बन चुके हैं... सारे के सारे...
वैदेही - क्यूँ सावित्री मौसी...
सावित्री - शायद दुसरे के आंच से... खुद को इसलिए दूर रख रहे हैं... कहीं अपने दामन में... आग ना लग जाए...
वैदेही - पड़ोसी के घर की आग को ना बुझाया जाए... तो वह आग... खुद के मौहल्ले में भी... फैल सकता है...
कुसुम - यह समझते समझते... घर राख हो चुका होता है...
वैदेही - अब और वैसा... नहीं होगा... नहीं होना चाहिए... मैं.. होने ही नहीं दूंगी...

वह सारी औरतें वैदेही को देखते रह जाते हैं l उन्हें वैदेही के बातों से उसकी अंदर की निश्चितता का एहसास होने लगता है l

वैदेही - मुझे इसी जगह पर अपने लिए... कुछ चाहिए.... पर क्या... यही सोच रही हूँ.....
कुसुम - क्या... कोई जगह या घर ख़रीदना है क्या...
वैदेही -अरे हाँ... अगर मिल जाए तो... मिल सकता है... क्या...
कुसुम - पता नहीं... वह जो घर और थोड़ी सी जगह देख रही है ना... वह चगुली साबत.... बेचना चाहता था.... पर उसे... कीमत नहीं मिल रहा था....
वैदेही - क्या... क्यूँ बेचना चाहता था....
सावित्री - अरे... उसके माँ बाप चल बसे.... वह पहले से राजगड़ छोड़ कर चले जाना चाहता था.... पर उसे सरकारी कीमत भी कोई नहीं दे रहा था.... सब राजा साहब से डर कर....
वैदेही - कोई नहीं... उसे बोलो... मुझसे मिले... उसे उसकी कीमत मिल जाएगी....
सावित्री - क्या... तुम... पागल तो नहीं हो गई हो... राजा साहब से तुम नहीं डरती... पर चगुली...
वैदेही - तुम... फ़िकर मत करो... वह मैं सम्भाल लुंगी.... उसे कहो... वह मुझसे आकर मिले....

सारी औरतें उसे हैरान हो कर देखती है l वैदेही को वहाँ सोच में छोड़ कर अपनी अपनी घर की ओर चले जाते हैं l

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तापस अपने कैबिन में आकर अपने चेयर पर बैठ जाता है l अपनी टेबल पर फाइल निकाल कर देखने लगता है l तभी जगन आकर उसे सैल्यूट करता है l

तापस - क्या बात है... जगन...
जगन - वह सुबह से... विश्व... आपको.. कई बार... पुछ चुका है...
तापस - मुझे... पर क्यूँ...
जगन - यह तो वही जाने....
तापस - अच्छा जाओ... उसे बुलाओ...

जगन सैल्यूट कर बाहर चला जाता है l उसके जाते ही तापस एक गहरी सोच में पड़ जाता है l थोड़ी देर बाद विश्व दरवाजे पर खड़ा मिलता है l

तापस - अरे विश्व... आओ... तुम मुझे ढूंढ रहे थे....
विश्व - जी....
तापस - क्यूँ कोई काम था...
विश्व - जी.... मुझे आपसे कुछ मदत चाहिए था...
तापस - मदत... कैसी मदत....
विश्व - जी.. सर.. आपको शायद मालूम नहीं होगा.... मैं.. कॉरस्पांडींग में... इग्नू से... ग्रैजुएशन कर रहा हूँ... अभी सेकंड ईयर चल रहा है.... पांच महीने... वैसे ही... बरबाद हो चुके हैं... मैं इसे... कंप्लीट करना चाहता हूँ....
तापस - बहुत अच्छे... यह तो... बहुत बढ़िया बात है... तुम डीस्टेंस एजुकेशन में... कौन से फॉर्मेट और कौन से डिसीप्लीन में कर रहे हो...

विश्व उसे सब बताता है l विश्व से सब सुनने के बाद l

तापस - विश्व... तुम जिस फॉर्मेट में... कर रहे हो... वह रेगुलर स्टुडेंट्स के लिए है... जो प्राइवेट में पढ़ाई करते हैं... हर साल एक्जाम में... एपीयर करते हैं... और इस फॉर्मेट में.... तुमको पैरोल में बाहर जा कर... एक्जाम देना होगा.... और पैरोल में... बाहर निकलने के लिए... तुम्हें वकील की... जरूरत पड़ेगी....

तापस की बातें सुनकर विश्व सोच में पड़ जाता है l वह अपनी नजरें झुका कर इधर उधर देखने लगता है l उसकी हरकत से परेशानी साफ़ झलक रहा है l तापस उसकी हालत देख कर

तापस - विश्व... (विश्व तापस की ओर देखता है) देखो तुम्हारी परेशानी मैं समझ सकता हूँ... पर इसमे प्रॉब्लम... क्या है... तुम भी जानते हो... और मैं भी जानता हूँ... जयंत सर जी के... हादसे के बाद... शायद ही कोई... वकील... तुम्हारे लिए आगे आए...
विश्व - सर... कोई और रास्ता नहीं है...
तापस - मैं... एक्सप्लोर करने की... कोशिश करता हूँ... चाहे रेगुलर हो या इरेगुलर... एक्जाम के लिए तो तुम्हें बाहर जाना पड़ेगा.... अगर एनुएली... एक बार में देना चाहो... तो... मैं कुछ बंदोबस्त कर सकता हूँ... पर इरेगुलर फॉर्मेट में... रेगुलर फॉर्मेट में.... मैं ज्यादा कुछ कर नहीं... पाऊँगा...

विश्व उदास हो जाता है l और दुखी मन से वह तापस को हाथ जोड़कर नमस्कार कर बाहर की ओर मुड़ता है l

तापस - विश्व... (विश्व रुक कर पीछे मुड़ कर देखता है) तुम दस पंद्रह दिन... सोचलो.... अगर फॉर्मेट बदलना चाहो... तो... बताना... मैं... मदत करने की.. कोशिश करूंगा....

विश्व कुछ नहीं कहता है l एक फीकी हँसी के साथ हाथ जोड़कर नमस्कार कर वापस चला जाता है l

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विक्रम गाड़ी भगा रहा है l सहर कब का पीछे छूट गया है पर गाड़ी सड़क पर भाग रहा है l आज विक्रम को एक अलग सी खुशी महसुस हो रही है l उसे समझ में नहीं आ रहा क्या करे क्या ना करे l बस गाड़ी भगाए जा रहा है l उसे लग रहा है जैसे वह उड़ रहा है, उड़ते उड़ते वह कहीं जा रहा है l यह एहसास उसे गुदगुदा रहा है l तभी उसका ध्यान टूटता है l वह गाड़ी की मीडिया स्क्रीन पर देखता है, महांती का नाम डिस्प्ले हो रहा है l फोन ऑन करने के बाद

विक्रम - गुड मार्निंग महांती.... वाव... क्या बात है.... क्या टाइमिंग है... ज़रूर आज कोई ज़बरदस्त ख़बर देने वाले हो....
महांती - क्या बात है... युवराज जी.... आपको तो जैसे.... पहले से ही आभास हो जाता है...
विक्रम - बस.... हो जाता है.... अब बोलो... क्या ख़बर है....
महांती - सर सबकुछ फाइनल हो गया है... हमारा ट्रेनिंग सेंटर... ऑफिस... और इनागुरेशन का दिन.... सब फाइनल हो गया है... बहुत ही ग्रांड ओपनिंग होगी.... मज़े की बात यह है कि... मुख्य मंत्री भी राजी हो गए हैं.... हमारे मुख्य अतिथि बनने के लिए....
विक्रम - वाव... वाव.... क्या बात है.... महांती... अब तारीख़ भी... बता दो....
महांती - सर आज से ठीक.... पंद्रह दिन के बाद.... ****** तारीख़ को... हमारे सिक्युरिटी सर्विस की इनागुराल सेरेमनी होगी.... बस... एक बात की... कंफर्मेशन लेनी थी आपसे....
विक्रम - हाँ कहो....
महांती - हम... हर... प्रिंट मीडिया और... इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अपनी... सिक्युरिटी सर्विस की... ऐड चलाएं....
विक्रम - बेशक.... करनी चाहिए.... भाई... तुम... पार्टनर हो... तुम्हारा हक़.... बनता है....
महांती - थैंक्यू... युवराज जी...
विक्रम - ओके पार्टनर.... प्रोसिड देन.... (कह कर विक्रम फोन काट देता है)

आज गाड़ी के भीतर गुनगुना रहा है l

कितनी हसरत है हमे...
तुमसे दिल लगाने की...
पास आने की तुम्हें...
जिंदगी में लाने की....

अचानक वह गाड़ी के ब्रेक लगाता है l वह बाहर निकालता है तो सामने रास्ता खतम मिलता है l सामने सिर्फ़ पानी और रेत दिखता है उसे l वह अपने सर के पीछे खुद ही चपत लगाता है और हँसने लगता है l वह फोन उठाता है फ़िर अपनी जेब में रख लेता है l ऐसा कई बार वह दोहराता है और उसे अपनी इसी हरकत पर हँसी भी आ रहा है और मजा भी आ रहा है l वहाँ पर तभी एक मछुआ जा रहा था l विक्रम उसे रोकता है

विक्रम - ऐ... भाई... जरा सुनो... यह कौनसी जगह है... मेरा मतलब... इस जगह का नाम क्या है....
मछुआ - इस जगह को... मुण्डुली कहते हैं... साहब....
विक्रम - अच्छा और इस नदी का नाम....
मछुआ - महानदी...
विक्रम - यह जगह बहुत अच्छी है.... यहाँ का नज़ारा भी बहुत बढ़िया है..... (कह कर विक्रम उस महुआ को पांच सौ रुपए निकाल कर देता है)
मछुआ - (वह मछुआ खुश होते हुए) साहब यहाँ का... सूर्यास्त भी बहुत खूबसूरत होता है....
विक्रम - अच्छा....
मछुआ - हाँ साहब...

इतना कह कर सलाम ठोक कर वहाँ से चला जाता है l विक्रम अपना फोन निकालता है और फोन अपनी लकी चार्म को फोन मिलाता है, पर उस तरफ फोन स्विच ऑफ मिलता है l उसका चेहरा उतर जाता है l कुछ सोच कर एक मैसेज टाइप करता है - हाई... आपका प्रेसिडेंट...
और पोस्ट कर देता है l फ़िर अपने कार के बॉनेट पर बैठ जाता है l

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पिनाक सिंह नागेंद्र से मिलने के बाद अपने कमरे की ओर जाने के वजाए क्षेत्रपाल महल से निकल कर अपने गाड़ी में बैठ बाहर निकल चुका है l सुषमा अपने कमरे में इंतजार करते रह गई l पिनाक नहीं आया, सुषमा को नौकरियों से खबर मिली l पिनाक जा चुका है l सुषमा अपने कमरे की दरवाजा बंद कर देती है l पिनाक की गाड़ी को ड्राइवर रंग महल की ओर लिए जा रहा है l
रंग महल में पहुंच कर पिनाक सिंह गाड़ी से उतर कर, सीधे एक गार्ड्स वालों के कमरे की ओर जाता है l वहाँ पहुँच कर भीमा के सामने अपने कमर पर हाथ रख कर खड़ा हो जाता है l भीमा उसे देख कर खड़ा हो जाता है l पिनाक इशारे से बाहर बुलाता है l भीमा बाहर आते ही पिनाक भीमा को साथ लेकर रंग महल के अंदर एक कमरे की ओर चलते हैं l

पिनाक - बड़े राजा जी को... कल राजा साहब जी का यहाँ... राजगड़ आने का खबर ही नहीं थी.... भीमा... क्या हुआ था कल....

भीमा राजगड़ में कल हुए घटना की जानकारी देता है l दोनों एक कमरे के सामने पहुंचते हैं l कमरा अंदर से बंद था l पिनाक इशारे से भीमा को दरवाजा खोलने को कहता है l भीमा डरते हुए हाथ जोड़ कर मना करता है,
भीमा- नहीं छोटे राजा जी... इस कमरे के भीतर..... जाने की हिम्मत... हम में... किसी में भी नहीं है... हमे माफ़ करें.....
भीमा के मना कर देने के बाद, पिनाक दरवाज़े पर हल्का सा धक्का देता है l दरवाज़ा खुल जाता है l पिनाक कमरे के अंदर झांकता है और कमरे में लाइट का स्विच ऑन करता है l कमरे में सिर्फ़ एक बिस्तर और उसके विपरीत दिशा के तरफ दीवार के शेल्फ शराब के बोतलों से भरी हुई है l उस कमरे में और कुछ भी नहीं है l सफ़ेद दीवार पर एक स्लाइडींग डोर दिखती है जो आधा खुला l वह कपड़ों का कबोड है l भैरव सिंह एक लुंगी पहन कर शराब के शेल्फ के पास लगे एल शेप्ड टेबल पर बैठा हुआ है l पिनाक कमरे के बाहर निकल जाता है और वह एक नौकर को भैरव सिंह के पास भेजता है, वह नौकर डरते हुए भैरव सिंह के पैरों पर झुक कर

नौकर - माफ़ी... हुकुम... माफी....
भैरव- (उसे देखता है) क्या है....
नौकर - वह... छोटे राजा जी आए हैं.... आपसे... मिलना चाहते हैं....
भैरव - ह्म्म्म्म.. भेज दो... उन्हें...

नौकर वैसे ही झुके हुए उल्टे पांव कमरे से बाहर निकल जाता है l उसको जाते हुए भैरव सिंह गौर से देख रहा है l नौकर के बाहर जाते ही भैरव सिंह हँसने लगता है l वह हँसते हुए शराब का और एक घूंट पीता है, फ़िर हँसता है l पिनाक कमरे में आकर भैरव को हँसते हुए देख कर

पिनाक - क्या बात है... राजा जी.... अपने आप क्यों... हँस रहे हैं...
भैरव - आपके आने से पहले... जो नौकर आया था... उसे... उल्टे पांव लौटते देख हँसी आ गई....
पिनाक - क्यूँ... कुछ गड़बड़ हो गया... क्या... यह तो उन लोगोंका.... हमारे प्रति सम्मान है....
भैरव - हाँ... आप बताओ.... यहाँ हमसे मिलने... क्यूँ आए.... और आप राजगड़ कब आए....
पिनाक - हम कल रात को... प्रधान और रोणा के साथ मिल कर.. यशपुर गए... वहाँ सर्किट हाउस में रात को रुके.... फिर सुबह ही निकले... राजगड़ पहुंचे..... बहुत दिनों से.... राजगड़ दूर रहे.... इसलिए दुरूस्त होने आ गए.....
भैरव - तो आपको... छोटी रानी जी के पास... होना चाहिए था.... अगर रंग महल के किसी कमरे में...आए हो... तो.. हमारे पास क्यूँ...
पिनाक - आप... कल रात आपके आने की खबर.... बड़े राजा जी को नहीं थी... वह जान कर परेशान हो रहे थे.....
भैरव - इसमे परेशानी की क्या बात है.... यह तो सब जानते हैं... हम या तो... क्षेत्रपाल महल में होंगे.... या फिर रंग महल में.... पर यह छोड़िए... बात कुछ और है.... पूछिए...
पिनाक - वह एक बात हमे ठीक नहीं लगा.... तो उस पर आपसे बात करने आए हैं....
भैरव - कौनसी बात....
पिनाक - आज आप ने... जिस तरह... वैदेही पर ... बीच चौराहे में... हाथ छोड़ा.... वह हमे ठीक नहीं लगा...
भैरव - जब बीच चौराहे से... लड़कियाँ... उठाए हैं... तब आपको बुरा नहीं लगा.... एक को चांटा क्या मारा... बुरा लग गया....
पिनाक - बीच चौराहे से... लड़की को एक मर्द ही उठा सकता है.... पर बीच चौराहे पर... हाथ उठाना.....
भैरव - बस... जुबान पर लगाम दो... (शराब का घूंट पी कर) छोटे राजा जी.... आज हम बहुत ही.. अच्छे मुड़ में हैं... और अच्छा हुआ.... यह प्रश्न आपने पुछा है....

भैरव की यह बात सुन कर पिनाक सकपका जाता है l उसे लगता है शायद बात बात में वह कुछ ज्यादा ही बोल गया l पिनाक इधर उधर देखने लगता है l जब भैरव सिंह कुछ नहीं बोलता है तो अपनी कुर्सी से उठ कर जाने लगता है l

भैरव - अगर सवाल किया है... तो ज़वाब भी लेते जाइए... छोटे राजा जी.....


पिनाक रुक जाता है l भैरव उसे बैठने के लिए इशारा करता है l पिनाक बैठ जाता है l भैरव एक ग्लास निकालता है और उसमें शराब डाल कर पिनाक की ओर बढ़ाता है l पिनाक वह ग्लास ले कर घूंट भरता है l भैरव एक और ग्लास निकालता है और आवाज़ देता है

भैरव - भीमा....
भीमा - हुकुम...
भैरव - यह लो.... (ग्लास को भीमा के तरफ उछालता है, भीमा उस ग्लास को कैच कर लेता है) अब इसे... घोट कर... तोड़ो...

भीमा अपने दोनों हाथों से दबाने लगता है l पर ग्लास बहुत ही मजबूत था, नहीं टूटता है l

भैरव - ठीक है... रहने दो... लाओ... ग्लास हमे दे दो... (भीमा से ग्लास को अपने हाथों में लेकर) छोटे राजा जी... आपने कभी किसीसे प्यार किया है....
पिनाक - (थोड़ा हँसते हुए) पता नहीं... राजा साहब... पता नहीं....
भैरव - और... (पिनाक के आँखों में देखते हुए) और... किसीसे नफरत की है....
पिनाक - नहीं जानते... शायद नहीं...
भैरव - करना चाहिए.... इंसान को... करना चाहिए...
पिनाक - क्या.... क्या करना चाहिए... प्यार या नफरत..
भैरव - कुछ भी...
पिनाक - तो क्या... आपने किसीसे... प्यार....
भैरव - प्यार....हा हा हा... माय फुट... हमने तो.... नफ़रत की है.... वह भी बड़ी... शिद्दत से.... (थोड़ा मुस्कराते हुए) और... वह भी हमसे.... उतनी ही नफ़रत करती है.... उतनी ही शिद्दत से....

भैरव सिंह इतना कह कर बोतल में जितना शराब बचा था, उसे एक ही सांस में पी लेता है l पिनाक उसे हैरानी से देख रहा है l

पिनाक - हम कुछ... समझे नहीं... राजा साहब...
भैरव - हम इंसान हैं... छोटे राजा जी... इंसान बहुत जज्बाती होता है... हर इंसान का वज़ूद के लिए.... एक एहसास... एक खास ज़ज्बात... जरूरी होता है.... जो उस इंसान को... उसके होने का... एहसास दिलाता है.... मुझे मेरे होने का एहसास... तब होता है... जब जब वैदेही के चेहरे पर... दर्द उभरता है.... पता नहीं क्यूँ... पर जब जब उसकी तकलीफ की वजह मैं होता हूँ... उसकी वह तकलीफ़ मुझे... जुनून के हद तक.... सुकून देता है....
(भैरव सिंह एक गहरी सांस छोड़ता है) उसके आँखों में अपने लिए... बेइंतहा नफरत जब देखता हूँ.... तब मुझे हिमालय जितने जैसा लगता है..... हा हा हा हा... जीने का मजा ही कुछ अलग हो जाता है.... (भैरव सिंह का चेहरा अचानक से कठोर हो जाता है, जबड़े भींच जाते हैं, आँखे अंगारों सा दहकने लगता है) जानते हैं... हम उस कमीनी से... क्यूँ इतना नफ़रत करते हैं.... क्यूंकि एक वही है.... जो मेरे अंदर के... पुरूषार्थ को... अहं को चोट पहुंचाई है.... एक वही है... जिसे देखता हूँ... तो खुद को हारा हुआ महसुस करता हूँ... उसके साथ यह रिश्ता... उसके होश सम्भालने से पहले से ही है.... जानते हैं... जब हमारे सामने... वह चेट्टी... अपने बेटे के लिए बोला.... बाप से बढ़कर बेटा.... वह लफ्ज़... मेरे लिए एक गाली था... थप्पड़ था... जानते हैं.... जब पहली बार..... हमे बड़े राजा जी.... रंग महल के भीतर लाए... हमने ऐयाशी की दुनिया में कदम रखा... तब... एक दिन वैदेही की माँ को जबरदस्ती.... अपने नीचे ला रहा था... तब वैदेही ने... अपने नन्हें नन्हें दांतों से मेरे हाथ पर काट लिया था.... नवा... नवा जवानी चढ़ रही थी... पहली बार... मैं अपनी अंदर की आग को शांत किए वगैर.... रंग महल से लौटे थे..... वह पहली हार था... हमारा.... हाँ यह बात और है.... तवज्जो नहीं दी थी हमने..... फ़िर एक दिन वह.... भाग गई रंग महल से... वह दुसरी हार थी... क्यूँकी हमे सिर्फ एक बात... मालुम था... उसे हमारा बीज ढोना था.... पर वह भाग निकली.... यह हार था.... फिर एक दिन मिली.... उसे लाते वक्त... रघुनाथ बीच में आया.... मार डाला हमने उसे....
पिनाक - क्या... रघुनाथ को आपने मारा.... वहाँ तो सब... हमारे आदमी गए हुए थे... ना...

भैरव - हाँ (उसके आँखों में एक शैतानी चमक दिखती है) मैंने उस दिन... भेष बदलकर... अपने ही आदमियों के साथ गया था... सबको... अपना मुहँ... ढंकने का हुकुम दिया था.... इसलिए... राजगड़ के लोगों को छोड़ो... वैदेही भी आज तक यही समझती है... उसे हमारे ही आदमियों ने उठाया था....
पिनाक - ओ....
भैरव - मेरे अंदर... मेरे हार को बदलने का अवसर जो था.... इसलिए... बीच में आने वाले हर एक को... मारने की... ठान लिया था हमने... पर उस दिन विश्व... बेहोश हो गया था.... जो बाद में... सुवर बनकर.... हमारे सामने आया... खैर छोड़ो... वह... (एक तरफ हाथ उठा कर इशारा करते हुए) उस बैठक में (भैरव सिंह हाथ के इशारे से दिखाता है) बड़े राजा जी ने.... उसकी नथ उतारी.... वह बेहोश हो गई थी.... बड़े राजा जी उसकी माँ को लेकर आखेट घर ले गए.... मेरे लिए बेहोश वैदेही को छोड़ कर... मैंने उसे इसी कमरे में ला कर... मार मार कर पहले होश में लाया... उसके होश में आते ही... ही ही ही... टुट पड़ा.... वह मेरे सीने के इस हिस्से को (अपने दाएं हाथ से बाएं सीने पर एक जगह फेरते हुए) फिरसे काट लिया था.... पर इस बार... मैं नहीं रुका... अपनी अंदर की को शांत किया... तब उठा... पर तब तक... उसकी हालत बहुत खराब हो चुकी थी.... पर मेरे अंदर का पुरुष को.... असीम तृप्ति मिल चुका था.... पहली बार... मुझे जीत का एहसास हुआ.... हस्पताल से वापस आने के बाद.... मैंने उसे अपने.. नीचे लाकर हर तरह से रौंदा... उसकी चीख, उसके दर्द... मुझे बहुत खुशी देती थी... पर धीरे धीरे... वह बेज़ान हो गई....किसी पुतले की तरह... उसे कोई एहसास नहीं हो रहा था... वह ना चीखती थी... ना चिल्लाती थी... बस बेज़ान सी नीचे पड़ी रहती थी... मुझे उससे कोई मतलब नहीं था.... पर वह.... पेट से नहीं हो रही थी... यह मेरी बहुत बड़ी हार थी.... मुझे मेरे मर्दानगी पर... शक़ करने पर... मज़बूर करदिया.... यह और एक हार थी मेरे लिए... जब डॉक्टर ने बताया... की वह बाँझ है.... तो यह मेरे लिए... बहुत ही तकलीफ देह थी.... मैं अपने... बाप दादा के वंशानुगत रिवाज को... हार गया था... मैं.. मैं अगर उसे मार देता... तो यह उसकी जीत होती... इसलिए... उसे चुड़ैल बता कर नंगी... राजगड़ के गालियों में दौड़ाया... उस पर पत्थर फीकवाया.... इस बार उसके चेहरे पर दर्द दिखा.... मुझे खुशी महसुस हुई.... पर ज्यादा देर के लिए नहीं.... विश्व जिसे मैंने भुला दिया था... वह बीच में आ गया.... मैं इस बार फ़िर हार गया था.... रंग महल से... कभी कोई औरत निकली ही नहीं थी... अगर निकली भी थी... तो लाश बनकर... पर इसबार वैदेही.... जिंदा थी... फ़िर उसने मुझे मेरे हारने का... एहसास दिलाया.... पर एक बात तो मालुम हुआ... विश्व उसकी दुखती रग है.... बस आगे की कहानी आप जानते हैं... (भैरव वही ग्लास उठाता है) छोटे राजा जी.... अगर हमने वैदेही पर ताकत... आजमाया होता... तो (ग्लास पर पकड़ मजबूत करते हुए) एक ही थप्पड़ से ही... मर गई होती...(कड़ की आवाज़ आती है) हम उसे तकलीफ में देखना... चाहते थे... उसके जज्बातों को कुरेदा.... एहसासों को.. नोचा...(कड़च) उसे तकलीफ़ पहुंचाई.... जो मुझे असीम खुशी दे गई..... (कड़चटाक की आवाज़ सुनाई देती है और ग्लास टुट कर भैरव सिंह के हाथ से गिरती है)
Superb update bro
 
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