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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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*Index *
 
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Kala Nag

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क्या शुभ्रा रूप को अपने और विक्रम का सच बताएगी? लगता है रॉकी हवा में उड़ने की सोच रहा है वो भी बिना पंखों के, गिरेगा और बहुत बुरी तरह चोट भी खायेगा, राजू का अंदेशा कही सही ना हो जाए। अनु और वीर लगता है नई पीढ़ी के शुभ्रा और विक्रम तो नही बनने वाले। वीर का शक चेट्टी ग्रुप पर तो नही है? बेहतरीन अपडेट।
शुभ्रा रुप को अपना वह कड़वी अतीत बताएगी जरूर पर एक उसके लिए एक ट्विस्ट का आना बाकी है
रॉकी के पर कुतर जाएंगे वह एक सरप्राइज होगा
अनु और वीर का लव एंगल इस कहानी में सबसे बेहतरीन होगा
बस आप साथ जुड़े रहें
और इस तरह की समीक्षा प्रदान करते रहें
 

Kala Nag

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Shandar update Bhai, Vir ab apna dimag sahi direction me chala raha he, Anu aur Vir ki chemistry majedar he, Rocky of character abhi bhi saaf nahi hua he

Waiting for the next update
धन्यबाद भाई बहुत बहुत धन्यबाद
वीर की हीरोइजम अभी बाकी है
वीर और अनु की केमिस्ट्री इस कहानी की सबसे बढ़िया कोण होगा
रॉकी का चरित्र इस कहानी में भी महत्वपूर्ण है
इसलिए प्रतीक्षा किजिये और साथ बने रहें
 

Kala Nag

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To baki ka update kab tak do ge bhai
भाई मेरे बाकी का अपडेट अगले अपडेट में मिल जाएगा बस अगली अपडेट की प्रतीक्षा किजिये
 
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parkas

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👉चौसठवां अपडेट
--------------------
डिनर के टेबल पर खाना खाते हुए चोर निगाहों से रुप शुभ्रा को देख रही है l शुभ्रा के एक हाथ में किताब है और वह पढ़ने के साथ साथ खाना भी खा रही है l रुप अपनी उंगली थाली में घुमा कर कैसे बात शुरू करे सोच रही है l शुभ्रा अपनी किताब को टेबल पर रख कर रुप की ओर देखती है l रुप अपनी नजर फ़ेर कर खाना खाने लगती है l

शुभ्रा - क्या बात है रुप... कुछ कहना है मुझसे...
रुप - हाँ भाभी... ना नहीं भाभी...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... अब बोलो भी... अगर नहीं बोल पाई तो रात भर नींद नहीं आएगी सो अलग... अभी यह खाना भी तुमसे हज़म नहीं होगी....

रुप अपना सिर उठा कर देखती है शुभ्रा उसीके तरफ देख कर मुस्करा रही है l रुप मुस्कराने की कोशिश करते हुए

रुप - भाभी... क्या आज भी भैया नहीं.... आ.. आएंगे...
शुभ्रा - (चेहरा भाव हीन हो जाता है) शायद नहीं...
रुप - आपको उनकी इंतजार है ना...
शुभ्रा - यह तुमने कैसे समझ लिया...
रुप - भाभी... आप कितना भी छुपाओ... पर सच्चाई यही है कि... आप उनसे बहुत प्यार करती हैं...
शुभ्रा - रुप... तुम भूल रही हो... हमने लव मैरेज की थी...
रुप - पर लव कहाँ है... एक तरफ वह घुट रहे हैं... और एक तरफ आप... ऐसा क्यूँ... जबकि मैंने देखा है... आप जब तक भैया को देख नहीं लेती... आप सोती तक नहीं हैं...
शुभ्रा - (चुप रहती है)
रुप - अगर दिल दुखाया है... तो सॉरी भाभी... आज भी भैया अभी तक नहीं दिखे तो... पुछ लिया...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... ठीक है... तो बताओ... यहाँ आए हुए तुमको ढाई महीने हो गए... तुमने कब उन्हें डिनर के वक़्त यहाँ देखा है...
रुप - (चुप रहती है)
शुभ्रा - कुछ बातेँ हैं ऐसी के... बताई नहीं जा सकती...
रुप - वह कल से नहीं आए हैं...
शुभ्रा - बताया तो था... के वह... हफ्ते दस दिन के लिए बाहर जा रहे हैं...
रुप - क्या इसलिए आपको चिंता नहीं है...
शुभ्रा - इनॉफ रुप... इनॉफ... वह भले ही कह कर गए हैं कि वह बाहर गए हुए हैं... पर सच्चाई यही है कि... वह भुवनेश्वर में ही हैं...
रुप - व्हाट....
शुभ्रा - हाँ... और कहाँ हैं.. क्या कर रहे हैं... मुझे खबर है... या यूँ कहो... की वह अपनी हर खबर मुझ तक पहुँचा रहे हैं...
रुप - (हैरानी से मुहँ खुला रह जाता है)
शुभ्रा - इतना हैरान होने की बात नहीं है... वह मुझे कभी परेशान नहीं देख सकते हैं... इसलिए मुझे अकेला छोड़ कर.... आजतक सिवाय राजगड़ के और कहीं गए ही नहीं... और ना ही जायेंगे....
रुप - वाव... भाभी... आप दोनों के बीच क्या है... या हुआ है... मैं नहीं जानती... पर प्यार बहुत है...

शुभ्रा कुछ नहीं कहती है, अपना चेहरा नीचे कर निवाला लेने की कोशिश करती है l रुप उठ कर शुभ्रा के पास बैठ जाती है और शुभ्रा के कंधे पर हाथ रख कर

रुप - सॉरी भाभी... आप मुझे माफ़ कर दो... प्लीज... अगर गुस्सा आ रहा है... तो मुझे मार लो... पर खाना आधा मत छोड़ना... प्लीज...
शुभ्रा - पता नहीं रुप... मैं तुम्हारा क्या करूँ... कभी कभी लगता है कि.... तुम जान बुझ कर मुझे टॉर्चर कर रही हो...
रुप - सॉरी तो कहा है... अगर वह भी कम लगे तो... उट्ठक बैठक करूँ... कान पकड़ कर..

शुभ्रा टेंश नजरों से रुप को देखती है और फिर हँस देती है l उसके साथ साथ रुप भी हँस देती है l

शुभ्रा - कोई खास बात है क्या...
रुप - न..हीं ...उं..हूं.. नहीं...
शुभ्रा - चलो बता भी दो...
रुप - सच में भाभी... कुछ नहीं है...
शुभ्रा - (रुप की हाथ को अपने कंधे से हटा कर अपने हाथ में लेती है) ठीक है नंदिनी जी.... अब बताइए... क्या बात है...
रुप - हाँ... नंदिनी का काम है...
शुभ्रा - समझ गई... तुम बहुत ही शृट हो... तो अब तक मुझे घुमा घुमा कर टॉर्चर क्यूँ कर रही थी...
रुप - क्यूँकी... शनिवार से लेकर अब तक... आप मुझे रुप कह रही हैं... मैं यहाँ रुप को भुलाने आई हूँ... और आप...
शुभ्रा - ओ हो... तो इसलिए मुझसे बदला लिया जा रहा है... क्यूँ...
रुप - ऐसी बात नहीं है भाभी... भले ही हम भाई बहन साथ में कभी वक़्त ना बिताया हो... पर यहाँ जब उन्हें नहीं देखती हूँ... तो फिक्र तो होती ही है... और उनके बारे में सिवाय आपके... मैं किसी और से पुछ सकती हूँ क्या....

शुभ्रा बड़ी प्यार से रुप के गालों पर हाथ फेरती है l और उसके गाल को प्यार से खींचती है l

रुप - आह... भाभी...
शुभ्रा - चलो बता भी दो... तुम्हारे दिल में... है क्या....
रुप - मैंने सच कहा था... अपने प्रेजेंटेशन में... आप सच में... माँ हो मेरी... मेरी दिल की बात पकड़ ही ली...
शुभ्रा - बस... मस्का बहुत हो गया हाँ... अब बताने में देरी करोगे तो बहुत पचताओगे...
रुप - पहली बात भाभी... माँ बन कर ही सुनना प्लीज...
शुभ्रा - देखो रुप... (रुप मुहँ बना कर अपना हाथ छुड़ा लेती है) ओके.. ओके... नंदिनी... (रुप अपना हाथ शुभ्रा के हाथ में रख देती है) अब बताओ... तुम्हें क्या चाहिए...
रुप - वह... मेरे सारे दोस्तों ने.... पार्टी माँगा है... (शुभ्रा उसे हैरानी से देखती है) पर मैंने उन्हें कहा है कि... पार्टी हमारे घर में होगी... मैं कहीं बाहर नहीं जाऊँगी...
शुभ्रा - (हैरानी से आँखे बड़ी हो जाती है) जानती हो... इस घर में... आखिरी पार्टी... हमारी शादी की रिसेप्शन पार्टी थी... उसके बाद यहाँ पर ना कभी गैदरिंग हुई है... ना ही पार्टी...
रुप - (चेहरा उतर जाता है) ओह... सॉरी... (अपना चेहरा झुका लेती है)
शुभ्रा - अररे मैंने कहा हुई नहीं है... हो नहीं सकती... ऐसा तो नहीं कहा ना मैंने...

रुप का चेहरा खिल उठता है l वह खुशी के मारे शुभ्रा के गले लग जाती है l

रुप - तो भाभी... कब बुलाउं उन्हें...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म (सोचते हुए) अगले रविवार को... ठीक रहेगा... क्यूँ...
रुप - (चहकते हुए) ठीक है भाभी... ठीक है...
शुभ्रा - अच्छा अब चलो... डिनर खतम हो गया है... सोने से पहले हाथ मुहँ अच्छी तरह से धो कर सोना है... समझी...
रुप - जी भाभी... (कह कर रुप उठ जाती है) (फिर रुक कर पलटती है) भाभी पता नहीं क्यूँ... मुझे लगता है.... आपके मन में कुछ है... जो आप मुझसे कहना चाहती हैं... पर कह नहीं पाई....
शुभ्रा - (मुस्कराते हुए खड़ी हो जाती है, फिर अपने दोनों हाथों को कुहनियों के साथ बांध कर) अब मुझे समझ में आ रहा है...
रुप - (थोड़ी कंफ्युज्ड हो कर) क्या...
शुभ्रा - यही की बचपन में.... तुमने अनाम के लिए कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा होगा... सिवाय तुम्हारे बात मानने के...

रुप रूठ जाती है और अपनी पांव पटक कर वहाँ से अपनी कमरे की चली जाती है l पीछे इसे शुभ्रा की हँसी सुनाई देती है l

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अपने बिस्तर पर लेटी अनु सोच में खोई हुई है l अपनी चुन्नी को बार बार अपनी उंगलियों में लपेट कर निकाल रही है l अनजाने में ही उसके होठों पर एक हल्की सी मुस्कान खिल रही है l आज उसे रह रह कर वीर की कही बातेँ याद आ रही है l अनु करवट बदलती है और मोबाइल उठाती है l जैसे ही ऑन करती है मोबाइल की स्क्रीन पर वीर की आज की तस्वीर दिखती है l जब वीर अपनी चेयर पर बैठ कर अपनी सोच में खोया हुआ था तभी उत्सुकता वश चुपके से अनु ने एक फोटो ले ली थी l अनु अपनी उंगली से उस फोटो को स्क्रीन पर ऐनलार्ज करती है वीर की फोटो को देखती है और पहली बार वीर से मिलकर अपनी नौकरी हासिल करने के बाद जब घर लौट रहे थे उस वक्त उसकी दादी के कहे बातेँ याद आने लगती है l

दादी - कम्बख्त जब उसने नौकरी दे ही दी... फिर उसके ऑफिस में क्या करने के लिए घुसी...
अनु - उनके पैर पर गिर कर उनको धन्यबाद देने गई थी... आख़िर राजकुमार हैं वह...
दादी - देख अनु... अब नौकरी जब मिल गई है.. तो तुझे उस वीर से सावधान रहना है...
अनु - क्यूँ दादी... उन्होंने तो फौरन नौकरी दे दी...
दादी - इसीलिए तो.. मैंने उस वीर के बारे में कुछ ठीक नहीं सुना है... बड़े लोग हैं... पर छोटी और ओछी सोच के लगते हैं... पता नहीं क्यूँ... मुझे उसकी नजर ठीक नहीं लगा...
अनु - उनकी नजर तो ठीक ही है ना दादी... नजर सीधी और चश्मा भी नहीं लगाते...
दादी - हे भगवान... क्या करूँ इस लड़की का...
अनु - क्या दादी... तुम्हें तो सब खराब लगते हैं... मोहल्ले से लेकर दुनिया के सभी....
दादी - चुप कर... अगर तेरी माँ या बाप जिंदा होते... तो मुझे यह सब सोचने की जरूरत ना होती.... मैंने दुनिया को बत्तर से बत्तर होते देखा है... देख मेरी बच्ची... उसने नौकरी जरूर दी है... पर तुझे उससे बचके रहना है... उससे जितना दूर रहने की कोशिश करेगी... तु उतनी ही सुरक्षित रहेगी... वह लोग आग के जैसे होते हैं... जिनकी लौ की रौशनी से रास्ता ढूंढना चाहिए... पर उस लौ से दूर रह कर... अगर पास रहे... साथ रहे तो... तो जला देंगे...
अनु - मुझे तुम्हारी बात बिल्कुल भी समझ में नहीं आती दादी... तुम्हीं उनके पास नौकरी के लिए ले कर गई... अब कह रही हो उनसे दूर दूर रहने के लिए...
दादी - तुझे ऐसे समझाने से कुछ नहीं होगा... चल मुझसे एक वादा कर...
अनु - वादा...
दादी - हाँ... वादा...
अनु - कैसा वादा...
दादी - सिवाय ऑफिस के... और कहीं नहीं मिलेगी उनसे... वादा कर...
अनु - ठीक है... किया...

अनु वीर की फोटो देखते हुए अपने अतीत से बाहर आती है l जिस दिन मोबाइल लेकर घर आई थी

दादी - यह क्या लेकर आई है...
अनु - यह मोबाइल है दादी...
दादी - मुझे मालुम है कम्बख्त... इतनी गँवार नहीं हूँ मैं... यह लाई कहाँ से....
अनु - यह ऑफिस की मोबाइल है... ऑफिस से मिला है...
दादी - अगर ऑफिस से मिला है... तो ऑफिस के वक़्त ही इस्तेमाल किया कर... बे वजह इससे चिपकी रही... तो देख लेना...

और उस दिन मॉल से लौटने के बाद उसके हाथ में क़ीमती ड्रेस देख कर

दादी - यह क्या है... कहाँ से लाई है...
अनु - वह दादी... मैंने खरीद ली...
दादी - क्या.. (चिल्लाते हुए) नाशपिटी... कितना पैसा उड़ाया है... तुझे शर्म नहीं आई... ऐसे पैसे उड़ा रही है...
अनु - क्या दादी... आज मुझे एक जिम्मेदारी दी गई थी... के मैं चेक करूँ... ओरायन मॉल में हमारे जो ESS के गार्ड्स हैं... वह ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं... इसलिए उस मॉल में यह ड्रेस दिखी तो ले ली...
दादी - तो पैसों क्यूँ बरबाद की....
अनु - ठीक है... अगली बार अगर कभी ऐसी... जिम्मेदारी मिली तो नहीं लुंगी... ठीक है...
दादी - हाय.. हाय... तो क्या जितनी दफा जाती... ले कर आती... अरे.. बाहर कहीं हम जा नहीं रहे हैं... और हफ्ते के छह दिन... तु आठ से दस घंटे ऑफिस में रहती है... तो यह ड्रेस पहनेगी कब... और किसके साथ घुमने जाएगी... तेरे दोस्त भी तो नहीं हैं..
अनु - थे... पर तुम्हें ही... मेरे वह दोस्त पसंद नहीं थे...
दादी - वह सब तेरे दोस्त नहीं... दुश्मन थे तेरे... और खबरदार कभी ऐसी लड़कियों से दोस्ती की तो...
अनु - अपनी मर्जी की खरीद नहीं सकती... दोस्ती कर नहीं सकती... तो करूँ क्या...
दादी - शादी करा दूँगी... कोई अच्छा घर... अच्छा वर देख कर...
अनु - हूँ... ह्... मैं शादी नहीं करुँगी...
दादी - क्यूँ नहीं करेगी...
अनु - अगर शादी करूंगी... तो तुम भी मेरे साथ दहेज में जाओगी...
दादी - हे... भगवान... मुझ बुढ़िया को लेकर कहाँ जाएगी... और कितने दिन मैं जी भी सकती हूँ...
अनु - ठीक है... तो तुम्हारे मरने के बाद शादी कर लुंगी...
दादी - और तब तक क्या... मेरे छाती में चढ़ कर मुंग दलेगी...
अनु - कुछ भी हो... मैं शादी वहीँ करुँगी... जहां दहेज में तुम जाओगी...
दादी - हाँ हाँ... तेरे इस शर्त पर यहाँ स्वयंवर होगा... और तेरे लिए राजकुमार आयेंगे... लाइन लगाएंगे...

यह याद आते ही अनु हँस देती है l वह अपनी बेड पर आलती पालती मार कर बैठ जाती है l मोबाइल की चाट बॉक्स खोलती है और वीर को मैसेज करती है

अनु - आप... सो गए क्या...

फिर मुस्कराते हुए मोबाइल को बेड पर रख देती है कि तभी इनकॉमींग मैसेज ट्यून बजती है तो देखती है वीर ने जवाब दी है l उसकी आँखे बड़ी हो जाती है क्यूँकी उसे उम्मीद ही नहीं थी कि इतना जल्दी वीर उसे मैसेज करेगा I वह मोबाइल की चाट बॉक्स खोलती है


नहीं सोया नहीं हूँ... सच पूछो तो तुम्हारे कॉल का इंतजार कर रहा था... - वीर

अनु के समझ में नहीं आता कि वह क्या रीप्लाय करे I

अनु - पर रात तो बहुत हो गया है... आपको सो जाना चाहिए था...

मैं भी यही सोच रहा था... कि शायद तुम सो गई होगी और मुझे सो जाना चाहिए था...- वीर
अनु - वह तो मैं ऐसे ही परख रही थी...
अच्छा... तो क्या परखा तुमने... - वीर
अनु - यही के आप अभी तक सोए नहीं है...
बस इतना ही... - वीर
अनु - नहीं और एक बात भी पूछूं...
जी बिल्कुल.... पूछो.. - वीर
अनु - आपने खाना खा लिया...
अररे... इतना जरूरी सवाल अब पूछ रही हो... - वीर
अनु - हाँ... अभी याद आया ना इसलिए....
ओ... और कुछ जरूरी सवाल नहीं है क्या... - वीर
अनु - और.... और आप की सेहत कैसी है...
यह हुई ना सवाल... अच्छी है... - वीर
अनु - और आपको नींद आ रही है ना...
अनु... प्लीज... क्या हम फोन पर बात करें... - वीर
अनु - नहीं... दादी मेरी जान ले लेंगी....
क्यूँ.... ऐसा क्यूँ... - वीर
अनु - इतनी रात को... इसलिए... ह्म्म्म्म... अच्छा अनु... मुझे अब लग रहा है कि यह सब बात करने के लिए तुमने मेसेज नहीं किया है... बात कुछ और है... कहो... - वीर
अनु - आप मेरे साथ एक दिन के लिए... बचपन को जीना चाहते हैं ना...

हाँ... कोई शक... तुम्हारे ही साथ.... जगह, वक्त सब तुम तय करोगी... - वीर
अनु - ठीक है... अगले इतवार को मैं आपको जहां जहां ले कर चलूँगी.... आपको मेरे साथ चलना होगा...
वाव... ठीक है... तुम्हारा कोई प्लान है... - वीर
अनु - है तो...
अच्छा... तो बताओ... हम बिलकुल वैसे ही करेंगे... - वीर
अनु - यह मैं आपको उसी दिन बताऊंगी... और आपको मेरे कहने के हिसाब से चलना होगा...
जैसा आप हुकुम करें... - वीर

वीर के इस जवाब से अनु फौरन ऑफ लाइन हो जाती है और सोने की कोशिश करती है l वीर उसके ऑफ लाइन होते ही अपनी फोन देख कर मुस्करा देता है और वह भी फोन रख कर सो जाता है l

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उसी रात
होटल ब्लू इन की टेरस पर आज मॉकटेल पार्टी के साथ साथ खाना भी जमकर हो रहा है l

रॉकी बहुत खुस है और उसके खुशी में सभी शरीक हुए हैं, सभी उछल उछल कर किसी गाने धुन में थिरक रहे हैं l पर एक कोने में राजू अपनी मॉकटेल ग्लास हाथ में लिए चुपचाप बैठा हुआ है, वह पार्टी में देर से आया था पर शायद खुश नहीं था l रॉकी की नजर उसपर पड़ता है l रॉकी को इस खुशी मौके पर राजु का यूँ खामोश हो कर किसी गहरी सोच में डुबा रहना बहुत अखरता है l इसलिए वह जा कर म्युजिक सिस्टम पर बज रही धुन को बंद कर देता है l धुन बंद होते ही सभी का थिरकना बंद हो जाता है और सब सवालिया नजरों से रॉकी को देखने लगते हैं l

रॉकी - यार हम सभी एंजॉयमेंट कर रहे हैं... पता नहीं यह राजु कौनसी दुनिया में खोया हुआ है...

अपना नाम सुन कर राजु थोड़ा संभल कर बैठ जाता है l सबकी नजर अपनी तरफ देख कर

राजु - वह... दोस्तों... मैं...
सुशील - हाँ हाँ बोल भाई... जब तक तु उगलेगा नहीं... तब तक ना तुझे कुछ हज़म होगा... ना हमे....
रॉकी - हाँ राजु... मैं समझ सकता हूँ... तु... जरूर नंदिनी को लेकर किसी सोच में है...
राजु - हाँ... तुमने सच कहा... मैं यह सोच रहा हूँ... आज जो हुआ... उसका क्या मतलब निकाला जाए....
सब - मतलब...
राजु - यही की नंदिनी ने घड़ी देकर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है... क्या नंदिनी ने इस बहाने रॉकी को हिदायत दी है... के इस दोस्ती को दोस्ती तक ही सीमित रखो... आगे मत बढ़ो...
रॉकी - (गुस्से से) अबे... तु... पार्टी में भंग डालने आया है क्या... साले घोंचु...
आशीष - हाँ यार... क्या कर रहा है... कितना मजा आ रहा था... साले सारा मजा किरकिरा कर दिया...
रवि - हाँ... देख भूतनी के देख... कोई पहली दोस्ती में भी इतना महंगा घड़ी देता है...
सुशील - हाँ यार क्या घड़ी है.. वेयर हेल्थ की... बड़ी डायल की डिस्प्ले वाली... कम से कम तीस चालीस हजार की तो होगी...
रवि - अबे नहीं... मैंने इस मॉडल की डिटेल्स... नेट पर सर्च की है... पचास हजार की है... और यह घड़ी पहन लेने के बाद तुझे सब्जी मार्केट जा कर देखकर आना चाहिए था...
राजु - क्यूँ... उससे क्या होता...
आशीष, सुशील और रवि एक साथ - अबे टमाटर के भाव गिर जो गए हैं...

सभी हँस देते हैं l पर राजु नहीं हँसता है l यह देखकर रॉकी फिर से राजु से कहता है

रॉकी - क्या यार... अभी भी तु उस सोच से बाहर नहीं आया है...
आशीष - अच्छा यार.... (राजु से) जो तेरे मन में है... वह सब बोल दे... जो तेरे मन में वहम बन कर कुलबुला रहे हैं...
राजु - (खड़ा होता है) देखो दोस्तों... नंदिनी... कोई आम लड़की नहीं है... वह किसी आम लड़की की तरह बड़ी नहीं हुई है... इसलिए पहले रॉकी ने जान पहचान की कोशिश की वहाँ तक भी ठीक था... दोस्ती की कोशिश किया गया... रॉकी उसमें कामयाब भी हुआ... फिर आया इम्प्रेशन ज़माने के लिए... तो अग्नि कांड में फंसे उसकी दोस्त को बचाने के लिए रॉकी ने जिस तरह से बनानी को बचाया... उसे वह इम्प्रेस हुई थी.... यह हम सब जानते हैं...
रवि - हाँ फिर... उसके बाद हमने बहुत पापड बेले... तब उसका नाम आया रेडियो एफएम में प्रेजेंटेशन देने के लिए... उसके बाद तो वह इस कदर खुश हुई है कि अपने हीरो को वाच गिफ्ट की है....
आशीष - और क्या... इसलिए तो अब अपने हीरो को बधाई देने यहाँ जमा हुए हैं....
रॉकी - (अब तक जो चुप था) अच्छा राजु... तुझे क्यूँ लगा कि नंदिनी ने मुझे घड़ी देने के बहाने... दोस्ती की हिदायत दी है.... तुझे क्या लगता है कि उसे शक हो गया है....
राजु - देख... मैं इतना कहना चाहता हूँ.... वह क्षेत्रपाल है....
रवि - यह हम सभी जानते हैं...
राजु - (चुप रहता है)
रॉकी - उसे बोलने दो...(राजु से) राजु... तेरे मन में जो भी है बोल दे...
राजु - मेरा कहने का मतलब यह है कि... दोस्ती पक्की कर... इतनी पक्की... की वह तुम्हारे बाइक के पीछे बैठ सके.... क्यूंकि कल अगर उसके भाई तुम्हारे सामने काल बनकर खड़े हो गए... तब वह हिम्मत तो करे.... तुम्हारे लिए अपने ही भाइयों से टकरा जाए... सिर्फ घड़ी देने से.... दोस्ती की अगला कदम ही तय हुआ है... कितनी पक्की हुई है... कितनी गाढ़ी हुई है... यह भी मायने रखते हैं....

सभी राजु को सुन रहे थे और राजु के बात है सहमत भी दिखने लगे, पर रॉकी को यह ठीक नहीं लगा

रॉकी - दोस्ती पक्की ही है... वरना पचास हजार की घड़ी किसीको यूँ ही नहीं दे देती.... रही बाइक पर बिठाने की... तो चलो इस हफ्ते का यही टास्क होगा.... हफ्ता खतम होने तक रॉकी नंदिनी को अपनी बाइक के पीछे बिठाएगा... कॉमन फ्रेंड्स... अब चक्कर चलाओ... आइडिया दो... कैसे दोस्ती पक्की और गाढ़ी है पता करेंगे... और कैसे मेरे बाइक के पीछे बैठेगी... उसके लिए तैयार करेंगे...
राजु - मेरे समझ में नहीं आ रहा है... तुझे जल्दी किस बात की है... सब्र क्यूँ नहीं हो रहा है तुझसे... हर एक हफ्ते में एक टास्क... यह बहुत बड़ा रिस्क है... इस हफ्ते को गुजर तो जाने देते... अगले हफ्ते हम कुछ सोचते जरूर....
रॉकी - रिस्क... इश्क़ में तो रिस्क होता ही है... वैसे भी... किसी एक महान कमीने ने कहा कि... नो रिस्क... नो गैंन...
सुशील - वाह क्या अद्भुत और दिव्य ज्ञान... वैसे कौन है वह कमीना...
रॉकी - तुझे नहीं पता...
सुशील - नहीं...
रॉकी - वह महान कमीना कोई और नहीं... बल्कि मैं हूँ...
आशीष - वाह... वाह वाह.. क्या बात है...(हाथ जोड़ कर) जय हो महान कमीने की...
सभी - जय हो... जय हो...
रॉकी - तो इस कमीने के टुच्चे दोस्तों... बताओ... गीव मी सॅम आइडियाज...
रवि - वैसे नंदिनी को... कब तक अपने बाइक के पीछे बिठाने का प्लान है...
रॉकी - इसी हफ्ते के आखिर तक... चाहे शुक्रवार हो... या शनिवार...
आशीष - तो फिर एक काम कर... कल से अपनी दोस्ती की पींगे बढ़ा...
रॉकी - मतलब....
रवि - नंदिनी के दिल में तेरे लिए फिलिंग्स कितना है... यह परखना जरूरी है... अगर है... तो बैठ सकती है...
रॉकी - फिलिंग्स का पता कैसे किया जाए....
सुशील - फिल्मी पैंतरा आजमाते हैं...
रॉकी - अबे... सीधे सीधे बोलना...
सुशील - सिंपल... तेरी टार्गेट नंदिनी है... उसके ग्रुप में... उसने ही तुझसे दोस्ती की है... मतलब उसके दिल में तेरे लिए कुछ तो है... बस उस फिलिंग्स की इंक्लीनेशन कितना है... यह जानने के लिए तुझे.... उसके दोस्त बनानी से दोस्ती करना होगा... उसको थोड़ा ज्यादा अटेंशन देना होगा... मतलब नंदिनी से ज्यादा... इस दोस्ती से अगर नंदिनी के मन में जलन पैदा हुई... तो...
रॉकी - समझ गया... मैं समझ गया... (राजु की ओर देख कर) ऑए राजु.. तु देखते रहीयो... मैं कैसे अपनी बाइक के पीछे नंदिनी को बिठाता हूँ

राजु रॉकी की बात सुनकर सिर्फ हल्का सा मुस्करा देता है l

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अगले दिन
ESS ऑफिस
वीर और महांती दोनों कांफ्रेंस हॉल में बैठे हुए हैं l

महांती - क्या करें राज कुमार...
वीर - हमने इंफॉर्म कर दिया है... थोड़ी देर और... उम्मीद कर सकते हैं... युवराज शायद आ जाएं...
महांती - युवराज जी को मैंने भी फोन मिलाया था... पर उन्होंने कहा कि... सिर्फ आपको ही सारी इंफॉर्मेशन दे दूँ... और आपसे ऑर्डर लूँ...
वीर - जानते हैं... युवराज जी ने भी हमसे यही कहा है... पर हम उनके वगैर.. इस तरह की जिम्मेदारी कैसे उठा सकते हैं...
महांती - आपने उठाया है राजकुमार... आपने उठा चुके हैं...
वीर - (हैरान हो कर महांती को देखने लगता है) हमने उठा लिया है... कब...
महांती - आप भुल रहे हैं... पिछली बार... आपने ही तो मुझे सारे हुकुम दिया था... और आपके वजह से ही तो... मेरे हाथ जितने भी लगे सबको उठा कर राजगड़ ले कर गया... आप ही के कहे मुताबिक... मैंने उनसे कुछ इंफॉर्मेशन निकाले हैं...
वीर - वह तो हमने... छोटे राजा जी का ध्यान भटकाने के लिए वैसे कह दिया था... और युवराज जी को बहलाने के लिए भी....
महांती - इस बार कम से कम... हम अपर हैंड में हैं... उनकी नेटवर्क... फ़िलहाल तबाह है... कुछ अब अंडरग्राउंड हो गए हैं....
वीर - इसका मतलब यह नहीं कि... वह हम पर फिर हमला नहीं करेंगे...
महांती - मैंने ऐसा तो नहीं कहा... वह कर सकते हैं... वह उसके लिए तैयारी भी करेंगे और वक़्त भी लेंगे... हम भी अपनी तैयारी करेंगे.... और जरूर करेंगे....
वीर - हूँ... तो क्या इंफॉर्मेशन निकाला है तुमने....
महांती - राजकुमार जी... (कह कर कांफ्रेंस हॉल के प्रेजेंटेशन बोर्ड के पास जाता है) हमने अभी तक... जिन लोगों को पकड़ कर... अपने तरीके से हैंडल किए... उससे मास्टर माइंड के बारे में तो कुछ पता नहीं चला... पर हमने जो भी पता लगया है... बहुत जल्द उस तक पहुंच सकते हैं....
वीर - यार यह थ्योरी वाली टॉपिक से बाहर निकलो... और बताओ क्या पता चला है...
महांती - हमने पहले उन चारों को धर दबोचा... फिर उनके कुछ मददगारों को... सबको जब आखेट घर में एक एक करके मगरमच्छों के पुल में फेंका... बहुत कुछ हाथ लगा....
इसमें.... केके को धमकी देने वाला... सुरा... जिसे... युवराज ने अपनी माशुका के साथ रंग महल भेज दिया था... उसका भाई केशव... और एक चिल्लर गुंडा रंगा... बहुत बार जैल जा कर आ चुका है... फ़िलहाल बहुत दिनों से गायब था... और अब फिर से गायब है... रॉय ग्रुप सर्विस वाला... शुभेंदु रॉय... वह भी अभी गायब है... आइकॉन ग्रुप कलकता के भी इस साजिश में शामिल हैं... पर...
वीर - पर... क्या पर...
महांती - इनमें से भी कोई मास्टर माइंड नहीं है...
वीर - तो कौन है...
महांती - वह बहुत चालाक है... उसने क्षेत्रपाल के दुश्मनों को इकट्ठा किया है... उन्हें ऑपरेट भी किया है... पर खुद को पर्दे के पीछे रख कर.... यानी सबसे सावधान वही है... उसने आइकॉन ग्रुप से फ़ाइनांस करवाया... रॉय ग्रुप के लोकल इंफ्लूयंस का इस्तमाल करवाया... रंगा और केशव के लोकल कॉन्टेक्ट का... नेटवर्क का भी उसने इस्तमाल करवाया... पर खुद को इन सबके आँखों से बचा कर... बहुत ही शातिर निकला...
वीर - तुम जिनके नाम लिए हो... वह हमारी पहुँच से फिल्हाल बाहर हैं... फिर तुमने कैसे पता लगा लिया के इन सबके पीछे भी कोई इनका बॉस है...
महांती - आखेट घर में... जब वह लोग अपनी मौत को देख रहे थे... उन्होंने जितना भी इंफॉर्मेशन दी है... उसके बेस पर...
वीर - क्या आखेट घर में... उनमें से कोई जिंदा हैं...
महांती - नहीं... हमे उनकी अब कोई जरूरत नहीं रही... पर उन मगरमच्छों को ओर लकड़बग्घों को उनकी ज्यादा ज़रूरत थी...
वीर - गुड... इसका मतलब... जो हिडन बॉस है... वह इन सब को क्षेत्रपाल के खिलाफ इकट्ठा कर... सीधे जंग के वजाए.. प्रोक्सी वॉर कर रहा है.... वह हिडन बॉस... एक बिजनस ज्यांट को... भुवनेश्वर में बिजनैस ज़माने के लिए बुलाता है... हमारे छत्रछाया में पल रहे बिजनेसमैन के बिजनस हड़प ने के लिए... वह इस मामले में... रॉय ग्रुप को इस्तमाल करता है... इसलिए वह हाईटेक टेलीफोनीक कंवरसेशन कर पाता है... लोकल लॉजिस्टिक सपोर्ट के लिए... दो टके के गुंडों को हायर करता है... ह्म्म्म्म... मतलब उसे हमारे बारे में सब पता है... और अब तक की उनकी एक्टिविटी देख कर... मैं आँखे मूँद कर कह सकता हूँ... हमारे सिक्युरिटी सर्विस से कोई तो मिला हुआ है...
महांती - (कुछ सोच में पड़ जाता है)
वीर - क्या सोचने लगे महांती...
महांती - युवराज ने भी यही शक़ जाहिर किया था.... पर...
वीर - पर.. वर... कुछ नहीं... उनके परफेक्शन में हमारे घर का छेद काम आया होगा...
महांती - अगर आपकी बात सच निकली तो... उन्होंने बड़ी तगड़ी सेंध लगाई है...
वीर - इसलिए... जब जब इस कांफ्रेंस हॉल में उस हरामजादे की फोन आयी है... उस दिन जो भी ड्यूटी पर तैनात थे... मुझे सबकी हिस्ट्री और ज्योग्राफी के पेपर चाहिए... यहाँ तक कि... सबके रिस्तेदारों की भी... बैंक ट्रांजैक्शन से लेकर फोन कम्युनिकेशन तक... सबकी जानकारी चाहिए...
महांती - जी मिल जाएगा... पर उस हिडन बिग बॉस का क्या...
वीर - मुझे कुछ कुछ अंदाजा हो रहा है... उसे मैं पर्सनली कन्फर्म करूंगा...
Bahut hi shaandar update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and beautiful update....
 

Lib am

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शुभ्रा रुप को अपना वह कड़वी अतीत बताएगी जरूर पर एक उसके लिए एक ट्विस्ट का आना बाकी है
रॉकी के पर कुतर जाएंगे वह एक सरप्राइज होगा
अनु और वीर का लव एंगल इस कहानी में सबसे बेहतरीन होगा
बस आप साथ जुड़े रहें
और इस तरह की समीक्षा प्रदान करते रहें
बहुत कम ऐसी कहानियां इस फोरम में है जो बिना सेक्स के भी रोचक और मनोरंजक है। ये उन्ही कहानियों में उपर की श्रेणियों में आती है तो जब तक आप अपडेट देते रहेंगे हम जुड़े रहेंगे। धन्यवाद।
 

Kala Nag

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बहुत कम ऐसी कहानियां इस फोरम में है जो बिना सेक्स के भी रोचक और मनोरंजक है। ये उन्ही कहानियों में उपर की श्रेणियों में आती है तो जब तक आप अपडेट देते रहेंगे हम जुड़े रहेंगे। धन्यवाद।
धन्यबाद धन्यबाद धन्यबाद
❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
 

ANUJ KUMAR

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👉चौसठवां अपडेट
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डिनर के टेबल पर खाना खाते हुए चोर निगाहों से रुप शुभ्रा को देख रही है l शुभ्रा के एक हाथ में किताब है और वह पढ़ने के साथ साथ खाना भी खा रही है l रुप अपनी उंगली थाली में घुमा कर कैसे बात शुरू करे सोच रही है l शुभ्रा अपनी किताब को टेबल पर रख कर रुप की ओर देखती है l रुप अपनी नजर फ़ेर कर खाना खाने लगती है l

शुभ्रा - क्या बात है रुप... कुछ कहना है मुझसे...
रुप - हाँ भाभी... ना नहीं भाभी...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... अब बोलो भी... अगर नहीं बोल पाई तो रात भर नींद नहीं आएगी सो अलग... अभी यह खाना भी तुमसे हज़म नहीं होगी....

रुप अपना सिर उठा कर देखती है शुभ्रा उसीके तरफ देख कर मुस्करा रही है l रुप मुस्कराने की कोशिश करते हुए

रुप - भाभी... क्या आज भी भैया नहीं.... आ.. आएंगे...
शुभ्रा - (चेहरा भाव हीन हो जाता है) शायद नहीं...
रुप - आपको उनकी इंतजार है ना...
शुभ्रा - यह तुमने कैसे समझ लिया...
रुप - भाभी... आप कितना भी छुपाओ... पर सच्चाई यही है कि... आप उनसे बहुत प्यार करती हैं...
शुभ्रा - रुप... तुम भूल रही हो... हमने लव मैरेज की थी...
रुप - पर लव कहाँ है... एक तरफ वह घुट रहे हैं... और एक तरफ आप... ऐसा क्यूँ... जबकि मैंने देखा है... आप जब तक भैया को देख नहीं लेती... आप सोती तक नहीं हैं...
शुभ्रा - (चुप रहती है)
रुप - अगर दिल दुखाया है... तो सॉरी भाभी... आज भी भैया अभी तक नहीं दिखे तो... पुछ लिया...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... ठीक है... तो बताओ... यहाँ आए हुए तुमको ढाई महीने हो गए... तुमने कब उन्हें डिनर के वक़्त यहाँ देखा है...
रुप - (चुप रहती है)
शुभ्रा - कुछ बातेँ हैं ऐसी के... बताई नहीं जा सकती...
रुप - वह कल से नहीं आए हैं...
शुभ्रा - बताया तो था... के वह... हफ्ते दस दिन के लिए बाहर जा रहे हैं...
रुप - क्या इसलिए आपको चिंता नहीं है...
शुभ्रा - इनॉफ रुप... इनॉफ... वह भले ही कह कर गए हैं कि वह बाहर गए हुए हैं... पर सच्चाई यही है कि... वह भुवनेश्वर में ही हैं...
रुप - व्हाट....
शुभ्रा - हाँ... और कहाँ हैं.. क्या कर रहे हैं... मुझे खबर है... या यूँ कहो... की वह अपनी हर खबर मुझ तक पहुँचा रहे हैं...
रुप - (हैरानी से मुहँ खुला रह जाता है)
शुभ्रा - इतना हैरान होने की बात नहीं है... वह मुझे कभी परेशान नहीं देख सकते हैं... इसलिए मुझे अकेला छोड़ कर.... आजतक सिवाय राजगड़ के और कहीं गए ही नहीं... और ना ही जायेंगे....
रुप - वाव... भाभी... आप दोनों के बीच क्या है... या हुआ है... मैं नहीं जानती... पर प्यार बहुत है...

शुभ्रा कुछ नहीं कहती है, अपना चेहरा नीचे कर निवाला लेने की कोशिश करती है l रुप उठ कर शुभ्रा के पास बैठ जाती है और शुभ्रा के कंधे पर हाथ रख कर

रुप - सॉरी भाभी... आप मुझे माफ़ कर दो... प्लीज... अगर गुस्सा आ रहा है... तो मुझे मार लो... पर खाना आधा मत छोड़ना... प्लीज...
शुभ्रा - पता नहीं रुप... मैं तुम्हारा क्या करूँ... कभी कभी लगता है कि.... तुम जान बुझ कर मुझे टॉर्चर कर रही हो...
रुप - सॉरी तो कहा है... अगर वह भी कम लगे तो... उट्ठक बैठक करूँ... कान पकड़ कर..

शुभ्रा टेंश नजरों से रुप को देखती है और फिर हँस देती है l उसके साथ साथ रुप भी हँस देती है l

शुभ्रा - कोई खास बात है क्या...
रुप - न..हीं ...उं..हूं.. नहीं...
शुभ्रा - चलो बता भी दो...
रुप - सच में भाभी... कुछ नहीं है...
शुभ्रा - (रुप की हाथ को अपने कंधे से हटा कर अपने हाथ में लेती है) ठीक है नंदिनी जी.... अब बताइए... क्या बात है...
रुप - हाँ... नंदिनी का काम है...
शुभ्रा - समझ गई... तुम बहुत ही शृट हो... तो अब तक मुझे घुमा घुमा कर टॉर्चर क्यूँ कर रही थी...
रुप - क्यूँकी... शनिवार से लेकर अब तक... आप मुझे रुप कह रही हैं... मैं यहाँ रुप को भुलाने आई हूँ... और आप...
शुभ्रा - ओ हो... तो इसलिए मुझसे बदला लिया जा रहा है... क्यूँ...
रुप - ऐसी बात नहीं है भाभी... भले ही हम भाई बहन साथ में कभी वक़्त ना बिताया हो... पर यहाँ जब उन्हें नहीं देखती हूँ... तो फिक्र तो होती ही है... और उनके बारे में सिवाय आपके... मैं किसी और से पुछ सकती हूँ क्या....

शुभ्रा बड़ी प्यार से रुप के गालों पर हाथ फेरती है l और उसके गाल को प्यार से खींचती है l

रुप - आह... भाभी...
शुभ्रा - चलो बता भी दो... तुम्हारे दिल में... है क्या....
रुप - मैंने सच कहा था... अपने प्रेजेंटेशन में... आप सच में... माँ हो मेरी... मेरी दिल की बात पकड़ ही ली...
शुभ्रा - बस... मस्का बहुत हो गया हाँ... अब बताने में देरी करोगे तो बहुत पचताओगे...
रुप - पहली बात भाभी... माँ बन कर ही सुनना प्लीज...
शुभ्रा - देखो रुप... (रुप मुहँ बना कर अपना हाथ छुड़ा लेती है) ओके.. ओके... नंदिनी... (रुप अपना हाथ शुभ्रा के हाथ में रख देती है) अब बताओ... तुम्हें क्या चाहिए...
रुप - वह... मेरे सारे दोस्तों ने.... पार्टी माँगा है... (शुभ्रा उसे हैरानी से देखती है) पर मैंने उन्हें कहा है कि... पार्टी हमारे घर में होगी... मैं कहीं बाहर नहीं जाऊँगी...
शुभ्रा - (हैरानी से आँखे बड़ी हो जाती है) जानती हो... इस घर में... आखिरी पार्टी... हमारी शादी की रिसेप्शन पार्टी थी... उसके बाद यहाँ पर ना कभी गैदरिंग हुई है... ना ही पार्टी...
रुप - (चेहरा उतर जाता है) ओह... सॉरी... (अपना चेहरा झुका लेती है)
शुभ्रा - अररे मैंने कहा हुई नहीं है... हो नहीं सकती... ऐसा तो नहीं कहा ना मैंने...

रुप का चेहरा खिल उठता है l वह खुशी के मारे शुभ्रा के गले लग जाती है l

रुप - तो भाभी... कब बुलाउं उन्हें...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म (सोचते हुए) अगले रविवार को... ठीक रहेगा... क्यूँ...
रुप - (चहकते हुए) ठीक है भाभी... ठीक है...
शुभ्रा - अच्छा अब चलो... डिनर खतम हो गया है... सोने से पहले हाथ मुहँ अच्छी तरह से धो कर सोना है... समझी...
रुप - जी भाभी... (कह कर रुप उठ जाती है) (फिर रुक कर पलटती है) भाभी पता नहीं क्यूँ... मुझे लगता है.... आपके मन में कुछ है... जो आप मुझसे कहना चाहती हैं... पर कह नहीं पाई....
शुभ्रा - (मुस्कराते हुए खड़ी हो जाती है, फिर अपने दोनों हाथों को कुहनियों के साथ बांध कर) अब मुझे समझ में आ रहा है...
रुप - (थोड़ी कंफ्युज्ड हो कर) क्या...
शुभ्रा - यही की बचपन में.... तुमने अनाम के लिए कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा होगा... सिवाय तुम्हारे बात मानने के...

रुप रूठ जाती है और अपनी पांव पटक कर वहाँ से अपनी कमरे की चली जाती है l पीछे इसे शुभ्रा की हँसी सुनाई देती है l

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अपने बिस्तर पर लेटी अनु सोच में खोई हुई है l अपनी चुन्नी को बार बार अपनी उंगलियों में लपेट कर निकाल रही है l अनजाने में ही उसके होठों पर एक हल्की सी मुस्कान खिल रही है l आज उसे रह रह कर वीर की कही बातेँ याद आ रही है l अनु करवट बदलती है और मोबाइल उठाती है l जैसे ही ऑन करती है मोबाइल की स्क्रीन पर वीर की आज की तस्वीर दिखती है l जब वीर अपनी चेयर पर बैठ कर अपनी सोच में खोया हुआ था तभी उत्सुकता वश चुपके से अनु ने एक फोटो ले ली थी l अनु अपनी उंगली से उस फोटो को स्क्रीन पर ऐनलार्ज करती है वीर की फोटो को देखती है और पहली बार वीर से मिलकर अपनी नौकरी हासिल करने के बाद जब घर लौट रहे थे उस वक्त उसकी दादी के कहे बातेँ याद आने लगती है l

दादी - कम्बख्त जब उसने नौकरी दे ही दी... फिर उसके ऑफिस में क्या करने के लिए घुसी...
अनु - उनके पैर पर गिर कर उनको धन्यबाद देने गई थी... आख़िर राजकुमार हैं वह...
दादी - देख अनु... अब नौकरी जब मिल गई है.. तो तुझे उस वीर से सावधान रहना है...
अनु - क्यूँ दादी... उन्होंने तो फौरन नौकरी दे दी...
दादी - इसीलिए तो.. मैंने उस वीर के बारे में कुछ ठीक नहीं सुना है... बड़े लोग हैं... पर छोटी और ओछी सोच के लगते हैं... पता नहीं क्यूँ... मुझे उसकी नजर ठीक नहीं लगा...
अनु - उनकी नजर तो ठीक ही है ना दादी... नजर सीधी और चश्मा भी नहीं लगाते...
दादी - हे भगवान... क्या करूँ इस लड़की का...
अनु - क्या दादी... तुम्हें तो सब खराब लगते हैं... मोहल्ले से लेकर दुनिया के सभी....
दादी - चुप कर... अगर तेरी माँ या बाप जिंदा होते... तो मुझे यह सब सोचने की जरूरत ना होती.... मैंने दुनिया को बत्तर से बत्तर होते देखा है... देख मेरी बच्ची... उसने नौकरी जरूर दी है... पर तुझे उससे बचके रहना है... उससे जितना दूर रहने की कोशिश करेगी... तु उतनी ही सुरक्षित रहेगी... वह लोग आग के जैसे होते हैं... जिनकी लौ की रौशनी से रास्ता ढूंढना चाहिए... पर उस लौ से दूर रह कर... अगर पास रहे... साथ रहे तो... तो जला देंगे...
अनु - मुझे तुम्हारी बात बिल्कुल भी समझ में नहीं आती दादी... तुम्हीं उनके पास नौकरी के लिए ले कर गई... अब कह रही हो उनसे दूर दूर रहने के लिए...
दादी - तुझे ऐसे समझाने से कुछ नहीं होगा... चल मुझसे एक वादा कर...
अनु - वादा...
दादी - हाँ... वादा...
अनु - कैसा वादा...
दादी - सिवाय ऑफिस के... और कहीं नहीं मिलेगी उनसे... वादा कर...
अनु - ठीक है... किया...

अनु वीर की फोटो देखते हुए अपने अतीत से बाहर आती है l जिस दिन मोबाइल लेकर घर आई थी

दादी - यह क्या लेकर आई है...
अनु - यह मोबाइल है दादी...
दादी - मुझे मालुम है कम्बख्त... इतनी गँवार नहीं हूँ मैं... यह लाई कहाँ से....
अनु - यह ऑफिस की मोबाइल है... ऑफिस से मिला है...
दादी - अगर ऑफिस से मिला है... तो ऑफिस के वक़्त ही इस्तेमाल किया कर... बे वजह इससे चिपकी रही... तो देख लेना...

और उस दिन मॉल से लौटने के बाद उसके हाथ में क़ीमती ड्रेस देख कर

दादी - यह क्या है... कहाँ से लाई है...
अनु - वह दादी... मैंने खरीद ली...
दादी - क्या.. (चिल्लाते हुए) नाशपिटी... कितना पैसा उड़ाया है... तुझे शर्म नहीं आई... ऐसे पैसे उड़ा रही है...
अनु - क्या दादी... आज मुझे एक जिम्मेदारी दी गई थी... के मैं चेक करूँ... ओरायन मॉल में हमारे जो ESS के गार्ड्स हैं... वह ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं... इसलिए उस मॉल में यह ड्रेस दिखी तो ले ली...
दादी - तो पैसों क्यूँ बरबाद की....
अनु - ठीक है... अगली बार अगर कभी ऐसी... जिम्मेदारी मिली तो नहीं लुंगी... ठीक है...
दादी - हाय.. हाय... तो क्या जितनी दफा जाती... ले कर आती... अरे.. बाहर कहीं हम जा नहीं रहे हैं... और हफ्ते के छह दिन... तु आठ से दस घंटे ऑफिस में रहती है... तो यह ड्रेस पहनेगी कब... और किसके साथ घुमने जाएगी... तेरे दोस्त भी तो नहीं हैं..
अनु - थे... पर तुम्हें ही... मेरे वह दोस्त पसंद नहीं थे...
दादी - वह सब तेरे दोस्त नहीं... दुश्मन थे तेरे... और खबरदार कभी ऐसी लड़कियों से दोस्ती की तो...
अनु - अपनी मर्जी की खरीद नहीं सकती... दोस्ती कर नहीं सकती... तो करूँ क्या...
दादी - शादी करा दूँगी... कोई अच्छा घर... अच्छा वर देख कर...
अनु - हूँ... ह्... मैं शादी नहीं करुँगी...
दादी - क्यूँ नहीं करेगी...
अनु - अगर शादी करूंगी... तो तुम भी मेरे साथ दहेज में जाओगी...
दादी - हे... भगवान... मुझ बुढ़िया को लेकर कहाँ जाएगी... और कितने दिन मैं जी भी सकती हूँ...
अनु - ठीक है... तो तुम्हारे मरने के बाद शादी कर लुंगी...
दादी - और तब तक क्या... मेरे छाती में चढ़ कर मुंग दलेगी...
अनु - कुछ भी हो... मैं शादी वहीँ करुँगी... जहां दहेज में तुम जाओगी...
दादी - हाँ हाँ... तेरे इस शर्त पर यहाँ स्वयंवर होगा... और तेरे लिए राजकुमार आयेंगे... लाइन लगाएंगे...

यह याद आते ही अनु हँस देती है l वह अपनी बेड पर आलती पालती मार कर बैठ जाती है l मोबाइल की चाट बॉक्स खोलती है और वीर को मैसेज करती है

अनु - आप... सो गए क्या...

फिर मुस्कराते हुए मोबाइल को बेड पर रख देती है कि तभी इनकॉमींग मैसेज ट्यून बजती है तो देखती है वीर ने जवाब दी है l उसकी आँखे बड़ी हो जाती है क्यूँकी उसे उम्मीद ही नहीं थी कि इतना जल्दी वीर उसे मैसेज करेगा I वह मोबाइल की चाट बॉक्स खोलती है


नहीं सोया नहीं हूँ... सच पूछो तो तुम्हारे कॉल का इंतजार कर रहा था... - वीर

अनु के समझ में नहीं आता कि वह क्या रीप्लाय करे I

अनु - पर रात तो बहुत हो गया है... आपको सो जाना चाहिए था...

मैं भी यही सोच रहा था... कि शायद तुम सो गई होगी और मुझे सो जाना चाहिए था...- वीर
अनु - वह तो मैं ऐसे ही परख रही थी...
अच्छा... तो क्या परखा तुमने... - वीर
अनु - यही के आप अभी तक सोए नहीं है...
बस इतना ही... - वीर
अनु - नहीं और एक बात भी पूछूं...
जी बिल्कुल.... पूछो.. - वीर
अनु - आपने खाना खा लिया...
अररे... इतना जरूरी सवाल अब पूछ रही हो... - वीर
अनु - हाँ... अभी याद आया ना इसलिए....
ओ... और कुछ जरूरी सवाल नहीं है क्या... - वीर
अनु - और.... और आप की सेहत कैसी है...
यह हुई ना सवाल... अच्छी है... - वीर
अनु - और आपको नींद आ रही है ना...
अनु... प्लीज... क्या हम फोन पर बात करें... - वीर
अनु - नहीं... दादी मेरी जान ले लेंगी....
क्यूँ.... ऐसा क्यूँ... - वीर
अनु - इतनी रात को... इसलिए... ह्म्म्म्म... अच्छा अनु... मुझे अब लग रहा है कि यह सब बात करने के लिए तुमने मेसेज नहीं किया है... बात कुछ और है... कहो... - वीर
अनु - आप मेरे साथ एक दिन के लिए... बचपन को जीना चाहते हैं ना...

हाँ... कोई शक... तुम्हारे ही साथ.... जगह, वक्त सब तुम तय करोगी... - वीर
अनु - ठीक है... अगले इतवार को मैं आपको जहां जहां ले कर चलूँगी.... आपको मेरे साथ चलना होगा...
वाव... ठीक है... तुम्हारा कोई प्लान है... - वीर
अनु - है तो...
अच्छा... तो बताओ... हम बिलकुल वैसे ही करेंगे... - वीर
अनु - यह मैं आपको उसी दिन बताऊंगी... और आपको मेरे कहने के हिसाब से चलना होगा...
जैसा आप हुकुम करें... - वीर

वीर के इस जवाब से अनु फौरन ऑफ लाइन हो जाती है और सोने की कोशिश करती है l वीर उसके ऑफ लाइन होते ही अपनी फोन देख कर मुस्करा देता है और वह भी फोन रख कर सो जाता है l

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उसी रात
होटल ब्लू इन की टेरस पर आज मॉकटेल पार्टी के साथ साथ खाना भी जमकर हो रहा है l

रॉकी बहुत खुस है और उसके खुशी में सभी शरीक हुए हैं, सभी उछल उछल कर किसी गाने धुन में थिरक रहे हैं l पर एक कोने में राजू अपनी मॉकटेल ग्लास हाथ में लिए चुपचाप बैठा हुआ है, वह पार्टी में देर से आया था पर शायद खुश नहीं था l रॉकी की नजर उसपर पड़ता है l रॉकी को इस खुशी मौके पर राजु का यूँ खामोश हो कर किसी गहरी सोच में डुबा रहना बहुत अखरता है l इसलिए वह जा कर म्युजिक सिस्टम पर बज रही धुन को बंद कर देता है l धुन बंद होते ही सभी का थिरकना बंद हो जाता है और सब सवालिया नजरों से रॉकी को देखने लगते हैं l

रॉकी - यार हम सभी एंजॉयमेंट कर रहे हैं... पता नहीं यह राजु कौनसी दुनिया में खोया हुआ है...

अपना नाम सुन कर राजु थोड़ा संभल कर बैठ जाता है l सबकी नजर अपनी तरफ देख कर

राजु - वह... दोस्तों... मैं...
सुशील - हाँ हाँ बोल भाई... जब तक तु उगलेगा नहीं... तब तक ना तुझे कुछ हज़म होगा... ना हमे....
रॉकी - हाँ राजु... मैं समझ सकता हूँ... तु... जरूर नंदिनी को लेकर किसी सोच में है...
राजु - हाँ... तुमने सच कहा... मैं यह सोच रहा हूँ... आज जो हुआ... उसका क्या मतलब निकाला जाए....
सब - मतलब...
राजु - यही की नंदिनी ने घड़ी देकर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है... क्या नंदिनी ने इस बहाने रॉकी को हिदायत दी है... के इस दोस्ती को दोस्ती तक ही सीमित रखो... आगे मत बढ़ो...
रॉकी - (गुस्से से) अबे... तु... पार्टी में भंग डालने आया है क्या... साले घोंचु...
आशीष - हाँ यार... क्या कर रहा है... कितना मजा आ रहा था... साले सारा मजा किरकिरा कर दिया...
रवि - हाँ... देख भूतनी के देख... कोई पहली दोस्ती में भी इतना महंगा घड़ी देता है...
सुशील - हाँ यार क्या घड़ी है.. वेयर हेल्थ की... बड़ी डायल की डिस्प्ले वाली... कम से कम तीस चालीस हजार की तो होगी...
रवि - अबे नहीं... मैंने इस मॉडल की डिटेल्स... नेट पर सर्च की है... पचास हजार की है... और यह घड़ी पहन लेने के बाद तुझे सब्जी मार्केट जा कर देखकर आना चाहिए था...
राजु - क्यूँ... उससे क्या होता...
आशीष, सुशील और रवि एक साथ - अबे टमाटर के भाव गिर जो गए हैं...

सभी हँस देते हैं l पर राजु नहीं हँसता है l यह देखकर रॉकी फिर से राजु से कहता है

रॉकी - क्या यार... अभी भी तु उस सोच से बाहर नहीं आया है...
आशीष - अच्छा यार.... (राजु से) जो तेरे मन में है... वह सब बोल दे... जो तेरे मन में वहम बन कर कुलबुला रहे हैं...
राजु - (खड़ा होता है) देखो दोस्तों... नंदिनी... कोई आम लड़की नहीं है... वह किसी आम लड़की की तरह बड़ी नहीं हुई है... इसलिए पहले रॉकी ने जान पहचान की कोशिश की वहाँ तक भी ठीक था... दोस्ती की कोशिश किया गया... रॉकी उसमें कामयाब भी हुआ... फिर आया इम्प्रेशन ज़माने के लिए... तो अग्नि कांड में फंसे उसकी दोस्त को बचाने के लिए रॉकी ने जिस तरह से बनानी को बचाया... उसे वह इम्प्रेस हुई थी.... यह हम सब जानते हैं...
रवि - हाँ फिर... उसके बाद हमने बहुत पापड बेले... तब उसका नाम आया रेडियो एफएम में प्रेजेंटेशन देने के लिए... उसके बाद तो वह इस कदर खुश हुई है कि अपने हीरो को वाच गिफ्ट की है....
आशीष - और क्या... इसलिए तो अब अपने हीरो को बधाई देने यहाँ जमा हुए हैं....
रॉकी - (अब तक जो चुप था) अच्छा राजु... तुझे क्यूँ लगा कि नंदिनी ने मुझे घड़ी देने के बहाने... दोस्ती की हिदायत दी है.... तुझे क्या लगता है कि उसे शक हो गया है....
राजु - देख... मैं इतना कहना चाहता हूँ.... वह क्षेत्रपाल है....
रवि - यह हम सभी जानते हैं...
राजु - (चुप रहता है)
रॉकी - उसे बोलने दो...(राजु से) राजु... तेरे मन में जो भी है बोल दे...
राजु - मेरा कहने का मतलब यह है कि... दोस्ती पक्की कर... इतनी पक्की... की वह तुम्हारे बाइक के पीछे बैठ सके.... क्यूंकि कल अगर उसके भाई तुम्हारे सामने काल बनकर खड़े हो गए... तब वह हिम्मत तो करे.... तुम्हारे लिए अपने ही भाइयों से टकरा जाए... सिर्फ घड़ी देने से.... दोस्ती की अगला कदम ही तय हुआ है... कितनी पक्की हुई है... कितनी गाढ़ी हुई है... यह भी मायने रखते हैं....

सभी राजु को सुन रहे थे और राजु के बात है सहमत भी दिखने लगे, पर रॉकी को यह ठीक नहीं लगा

रॉकी - दोस्ती पक्की ही है... वरना पचास हजार की घड़ी किसीको यूँ ही नहीं दे देती.... रही बाइक पर बिठाने की... तो चलो इस हफ्ते का यही टास्क होगा.... हफ्ता खतम होने तक रॉकी नंदिनी को अपनी बाइक के पीछे बिठाएगा... कॉमन फ्रेंड्स... अब चक्कर चलाओ... आइडिया दो... कैसे दोस्ती पक्की और गाढ़ी है पता करेंगे... और कैसे मेरे बाइक के पीछे बैठेगी... उसके लिए तैयार करेंगे...
राजु - मेरे समझ में नहीं आ रहा है... तुझे जल्दी किस बात की है... सब्र क्यूँ नहीं हो रहा है तुझसे... हर एक हफ्ते में एक टास्क... यह बहुत बड़ा रिस्क है... इस हफ्ते को गुजर तो जाने देते... अगले हफ्ते हम कुछ सोचते जरूर....
रॉकी - रिस्क... इश्क़ में तो रिस्क होता ही है... वैसे भी... किसी एक महान कमीने ने कहा कि... नो रिस्क... नो गैंन...
सुशील - वाह क्या अद्भुत और दिव्य ज्ञान... वैसे कौन है वह कमीना...
रॉकी - तुझे नहीं पता...
सुशील - नहीं...
रॉकी - वह महान कमीना कोई और नहीं... बल्कि मैं हूँ...
आशीष - वाह... वाह वाह.. क्या बात है...(हाथ जोड़ कर) जय हो महान कमीने की...
सभी - जय हो... जय हो...
रॉकी - तो इस कमीने के टुच्चे दोस्तों... बताओ... गीव मी सॅम आइडियाज...
रवि - वैसे नंदिनी को... कब तक अपने बाइक के पीछे बिठाने का प्लान है...
रॉकी - इसी हफ्ते के आखिर तक... चाहे शुक्रवार हो... या शनिवार...
आशीष - तो फिर एक काम कर... कल से अपनी दोस्ती की पींगे बढ़ा...
रॉकी - मतलब....
रवि - नंदिनी के दिल में तेरे लिए फिलिंग्स कितना है... यह परखना जरूरी है... अगर है... तो बैठ सकती है...
रॉकी - फिलिंग्स का पता कैसे किया जाए....
सुशील - फिल्मी पैंतरा आजमाते हैं...
रॉकी - अबे... सीधे सीधे बोलना...
सुशील - सिंपल... तेरी टार्गेट नंदिनी है... उसके ग्रुप में... उसने ही तुझसे दोस्ती की है... मतलब उसके दिल में तेरे लिए कुछ तो है... बस उस फिलिंग्स की इंक्लीनेशन कितना है... यह जानने के लिए तुझे.... उसके दोस्त बनानी से दोस्ती करना होगा... उसको थोड़ा ज्यादा अटेंशन देना होगा... मतलब नंदिनी से ज्यादा... इस दोस्ती से अगर नंदिनी के मन में जलन पैदा हुई... तो...
रॉकी - समझ गया... मैं समझ गया... (राजु की ओर देख कर) ऑए राजु.. तु देखते रहीयो... मैं कैसे अपनी बाइक के पीछे नंदिनी को बिठाता हूँ

राजु रॉकी की बात सुनकर सिर्फ हल्का सा मुस्करा देता है l

_____×_____×_____×_____×_____×_____×

अगले दिन
ESS ऑफिस
वीर और महांती दोनों कांफ्रेंस हॉल में बैठे हुए हैं l

महांती - क्या करें राज कुमार...
वीर - हमने इंफॉर्म कर दिया है... थोड़ी देर और... उम्मीद कर सकते हैं... युवराज शायद आ जाएं...
महांती - युवराज जी को मैंने भी फोन मिलाया था... पर उन्होंने कहा कि... सिर्फ आपको ही सारी इंफॉर्मेशन दे दूँ... और आपसे ऑर्डर लूँ...
वीर - जानते हैं... युवराज जी ने भी हमसे यही कहा है... पर हम उनके वगैर.. इस तरह की जिम्मेदारी कैसे उठा सकते हैं...
महांती - आपने उठाया है राजकुमार... आपने उठा चुके हैं...
वीर - (हैरान हो कर महांती को देखने लगता है) हमने उठा लिया है... कब...
महांती - आप भुल रहे हैं... पिछली बार... आपने ही तो मुझे सारे हुकुम दिया था... और आपके वजह से ही तो... मेरे हाथ जितने भी लगे सबको उठा कर राजगड़ ले कर गया... आप ही के कहे मुताबिक... मैंने उनसे कुछ इंफॉर्मेशन निकाले हैं...
वीर - वह तो हमने... छोटे राजा जी का ध्यान भटकाने के लिए वैसे कह दिया था... और युवराज जी को बहलाने के लिए भी....
महांती - इस बार कम से कम... हम अपर हैंड में हैं... उनकी नेटवर्क... फ़िलहाल तबाह है... कुछ अब अंडरग्राउंड हो गए हैं....
वीर - इसका मतलब यह नहीं कि... वह हम पर फिर हमला नहीं करेंगे...
महांती - मैंने ऐसा तो नहीं कहा... वह कर सकते हैं... वह उसके लिए तैयारी भी करेंगे और वक़्त भी लेंगे... हम भी अपनी तैयारी करेंगे.... और जरूर करेंगे....
वीर - हूँ... तो क्या इंफॉर्मेशन निकाला है तुमने....
महांती - राजकुमार जी... (कह कर कांफ्रेंस हॉल के प्रेजेंटेशन बोर्ड के पास जाता है) हमने अभी तक... जिन लोगों को पकड़ कर... अपने तरीके से हैंडल किए... उससे मास्टर माइंड के बारे में तो कुछ पता नहीं चला... पर हमने जो भी पता लगया है... बहुत जल्द उस तक पहुंच सकते हैं....
वीर - यार यह थ्योरी वाली टॉपिक से बाहर निकलो... और बताओ क्या पता चला है...
महांती - हमने पहले उन चारों को धर दबोचा... फिर उनके कुछ मददगारों को... सबको जब आखेट घर में एक एक करके मगरमच्छों के पुल में फेंका... बहुत कुछ हाथ लगा....
इसमें.... केके को धमकी देने वाला... सुरा... जिसे... युवराज ने अपनी माशुका के साथ रंग महल भेज दिया था... उसका भाई केशव... और एक चिल्लर गुंडा रंगा... बहुत बार जैल जा कर आ चुका है... फ़िलहाल बहुत दिनों से गायब था... और अब फिर से गायब है... रॉय ग्रुप सर्विस वाला... शुभेंदु रॉय... वह भी अभी गायब है... आइकॉन ग्रुप कलकता के भी इस साजिश में शामिल हैं... पर...
वीर - पर... क्या पर...
महांती - इनमें से भी कोई मास्टर माइंड नहीं है...
वीर - तो कौन है...
महांती - वह बहुत चालाक है... उसने क्षेत्रपाल के दुश्मनों को इकट्ठा किया है... उन्हें ऑपरेट भी किया है... पर खुद को पर्दे के पीछे रख कर.... यानी सबसे सावधान वही है... उसने आइकॉन ग्रुप से फ़ाइनांस करवाया... रॉय ग्रुप के लोकल इंफ्लूयंस का इस्तमाल करवाया... रंगा और केशव के लोकल कॉन्टेक्ट का... नेटवर्क का भी उसने इस्तमाल करवाया... पर खुद को इन सबके आँखों से बचा कर... बहुत ही शातिर निकला...
वीर - तुम जिनके नाम लिए हो... वह हमारी पहुँच से फिल्हाल बाहर हैं... फिर तुमने कैसे पता लगा लिया के इन सबके पीछे भी कोई इनका बॉस है...
महांती - आखेट घर में... जब वह लोग अपनी मौत को देख रहे थे... उन्होंने जितना भी इंफॉर्मेशन दी है... उसके बेस पर...
वीर - क्या आखेट घर में... उनमें से कोई जिंदा हैं...
महांती - नहीं... हमे उनकी अब कोई जरूरत नहीं रही... पर उन मगरमच्छों को ओर लकड़बग्घों को उनकी ज्यादा ज़रूरत थी...
वीर - गुड... इसका मतलब... जो हिडन बॉस है... वह इन सब को क्षेत्रपाल के खिलाफ इकट्ठा कर... सीधे जंग के वजाए.. प्रोक्सी वॉर कर रहा है.... वह हिडन बॉस... एक बिजनस ज्यांट को... भुवनेश्वर में बिजनैस ज़माने के लिए बुलाता है... हमारे छत्रछाया में पल रहे बिजनेसमैन के बिजनस हड़प ने के लिए... वह इस मामले में... रॉय ग्रुप को इस्तमाल करता है... इसलिए वह हाईटेक टेलीफोनीक कंवरसेशन कर पाता है... लोकल लॉजिस्टिक सपोर्ट के लिए... दो टके के गुंडों को हायर करता है... ह्म्म्म्म... मतलब उसे हमारे बारे में सब पता है... और अब तक की उनकी एक्टिविटी देख कर... मैं आँखे मूँद कर कह सकता हूँ... हमारे सिक्युरिटी सर्विस से कोई तो मिला हुआ है...
महांती - (कुछ सोच में पड़ जाता है)
वीर - क्या सोचने लगे महांती...
महांती - युवराज ने भी यही शक़ जाहिर किया था.... पर...
वीर - पर.. वर... कुछ नहीं... उनके परफेक्शन में हमारे घर का छेद काम आया होगा...
महांती - अगर आपकी बात सच निकली तो... उन्होंने बड़ी तगड़ी सेंध लगाई है...
वीर - इसलिए... जब जब इस कांफ्रेंस हॉल में उस हरामजादे की फोन आयी है... उस दिन जो भी ड्यूटी पर तैनात थे... मुझे सबकी हिस्ट्री और ज्योग्राफी के पेपर चाहिए... यहाँ तक कि... सबके रिस्तेदारों की भी... बैंक ट्रांजैक्शन से लेकर फोन कम्युनिकेशन तक... सबकी जानकारी चाहिए...
महांती - जी मिल जाएगा... पर उस हिडन बिग बॉस का क्या...
वीर - मुझे कुछ कुछ अंदाजा हो रहा है... उसे मैं पर्सनली कन्फर्म करूंगा...
Excellent update
 

Jaguaar

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डिनर के टेबल पर खाना खाते हुए चोर निगाहों से रुप शुभ्रा को देख रही है l शुभ्रा के एक हाथ में किताब है और वह पढ़ने के साथ साथ खाना भी खा रही है l रुप अपनी उंगली थाली में घुमा कर कैसे बात शुरू करे सोच रही है l शुभ्रा अपनी किताब को टेबल पर रख कर रुप की ओर देखती है l रुप अपनी नजर फ़ेर कर खाना खाने लगती है l

शुभ्रा - क्या बात है रुप... कुछ कहना है मुझसे...
रुप - हाँ भाभी... ना नहीं भाभी...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... अब बोलो भी... अगर नहीं बोल पाई तो रात भर नींद नहीं आएगी सो अलग... अभी यह खाना भी तुमसे हज़म नहीं होगी....

रुप अपना सिर उठा कर देखती है शुभ्रा उसीके तरफ देख कर मुस्करा रही है l रुप मुस्कराने की कोशिश करते हुए

रुप - भाभी... क्या आज भी भैया नहीं.... आ.. आएंगे...
शुभ्रा - (चेहरा भाव हीन हो जाता है) शायद नहीं...
रुप - आपको उनकी इंतजार है ना...
शुभ्रा - यह तुमने कैसे समझ लिया...
रुप - भाभी... आप कितना भी छुपाओ... पर सच्चाई यही है कि... आप उनसे बहुत प्यार करती हैं...
शुभ्रा - रुप... तुम भूल रही हो... हमने लव मैरेज की थी...
रुप - पर लव कहाँ है... एक तरफ वह घुट रहे हैं... और एक तरफ आप... ऐसा क्यूँ... जबकि मैंने देखा है... आप जब तक भैया को देख नहीं लेती... आप सोती तक नहीं हैं...
शुभ्रा - (चुप रहती है)
रुप - अगर दिल दुखाया है... तो सॉरी भाभी... आज भी भैया अभी तक नहीं दिखे तो... पुछ लिया...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... ठीक है... तो बताओ... यहाँ आए हुए तुमको ढाई महीने हो गए... तुमने कब उन्हें डिनर के वक़्त यहाँ देखा है...
रुप - (चुप रहती है)
शुभ्रा - कुछ बातेँ हैं ऐसी के... बताई नहीं जा सकती...
रुप - वह कल से नहीं आए हैं...
शुभ्रा - बताया तो था... के वह... हफ्ते दस दिन के लिए बाहर जा रहे हैं...
रुप - क्या इसलिए आपको चिंता नहीं है...
शुभ्रा - इनॉफ रुप... इनॉफ... वह भले ही कह कर गए हैं कि वह बाहर गए हुए हैं... पर सच्चाई यही है कि... वह भुवनेश्वर में ही हैं...
रुप - व्हाट....
शुभ्रा - हाँ... और कहाँ हैं.. क्या कर रहे हैं... मुझे खबर है... या यूँ कहो... की वह अपनी हर खबर मुझ तक पहुँचा रहे हैं...
रुप - (हैरानी से मुहँ खुला रह जाता है)
शुभ्रा - इतना हैरान होने की बात नहीं है... वह मुझे कभी परेशान नहीं देख सकते हैं... इसलिए मुझे अकेला छोड़ कर.... आजतक सिवाय राजगड़ के और कहीं गए ही नहीं... और ना ही जायेंगे....
रुप - वाव... भाभी... आप दोनों के बीच क्या है... या हुआ है... मैं नहीं जानती... पर प्यार बहुत है...

शुभ्रा कुछ नहीं कहती है, अपना चेहरा नीचे कर निवाला लेने की कोशिश करती है l रुप उठ कर शुभ्रा के पास बैठ जाती है और शुभ्रा के कंधे पर हाथ रख कर

रुप - सॉरी भाभी... आप मुझे माफ़ कर दो... प्लीज... अगर गुस्सा आ रहा है... तो मुझे मार लो... पर खाना आधा मत छोड़ना... प्लीज...
शुभ्रा - पता नहीं रुप... मैं तुम्हारा क्या करूँ... कभी कभी लगता है कि.... तुम जान बुझ कर मुझे टॉर्चर कर रही हो...
रुप - सॉरी तो कहा है... अगर वह भी कम लगे तो... उट्ठक बैठक करूँ... कान पकड़ कर..

शुभ्रा टेंश नजरों से रुप को देखती है और फिर हँस देती है l उसके साथ साथ रुप भी हँस देती है l

शुभ्रा - कोई खास बात है क्या...
रुप - न..हीं ...उं..हूं.. नहीं...
शुभ्रा - चलो बता भी दो...
रुप - सच में भाभी... कुछ नहीं है...
शुभ्रा - (रुप की हाथ को अपने कंधे से हटा कर अपने हाथ में लेती है) ठीक है नंदिनी जी.... अब बताइए... क्या बात है...
रुप - हाँ... नंदिनी का काम है...
शुभ्रा - समझ गई... तुम बहुत ही शृट हो... तो अब तक मुझे घुमा घुमा कर टॉर्चर क्यूँ कर रही थी...
रुप - क्यूँकी... शनिवार से लेकर अब तक... आप मुझे रुप कह रही हैं... मैं यहाँ रुप को भुलाने आई हूँ... और आप...
शुभ्रा - ओ हो... तो इसलिए मुझसे बदला लिया जा रहा है... क्यूँ...
रुप - ऐसी बात नहीं है भाभी... भले ही हम भाई बहन साथ में कभी वक़्त ना बिताया हो... पर यहाँ जब उन्हें नहीं देखती हूँ... तो फिक्र तो होती ही है... और उनके बारे में सिवाय आपके... मैं किसी और से पुछ सकती हूँ क्या....

शुभ्रा बड़ी प्यार से रुप के गालों पर हाथ फेरती है l और उसके गाल को प्यार से खींचती है l

रुप - आह... भाभी...
शुभ्रा - चलो बता भी दो... तुम्हारे दिल में... है क्या....
रुप - मैंने सच कहा था... अपने प्रेजेंटेशन में... आप सच में... माँ हो मेरी... मेरी दिल की बात पकड़ ही ली...
शुभ्रा - बस... मस्का बहुत हो गया हाँ... अब बताने में देरी करोगे तो बहुत पचताओगे...
रुप - पहली बात भाभी... माँ बन कर ही सुनना प्लीज...
शुभ्रा - देखो रुप... (रुप मुहँ बना कर अपना हाथ छुड़ा लेती है) ओके.. ओके... नंदिनी... (रुप अपना हाथ शुभ्रा के हाथ में रख देती है) अब बताओ... तुम्हें क्या चाहिए...
रुप - वह... मेरे सारे दोस्तों ने.... पार्टी माँगा है... (शुभ्रा उसे हैरानी से देखती है) पर मैंने उन्हें कहा है कि... पार्टी हमारे घर में होगी... मैं कहीं बाहर नहीं जाऊँगी...
शुभ्रा - (हैरानी से आँखे बड़ी हो जाती है) जानती हो... इस घर में... आखिरी पार्टी... हमारी शादी की रिसेप्शन पार्टी थी... उसके बाद यहाँ पर ना कभी गैदरिंग हुई है... ना ही पार्टी...
रुप - (चेहरा उतर जाता है) ओह... सॉरी... (अपना चेहरा झुका लेती है)
शुभ्रा - अररे मैंने कहा हुई नहीं है... हो नहीं सकती... ऐसा तो नहीं कहा ना मैंने...

रुप का चेहरा खिल उठता है l वह खुशी के मारे शुभ्रा के गले लग जाती है l

रुप - तो भाभी... कब बुलाउं उन्हें...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म (सोचते हुए) अगले रविवार को... ठीक रहेगा... क्यूँ...
रुप - (चहकते हुए) ठीक है भाभी... ठीक है...
शुभ्रा - अच्छा अब चलो... डिनर खतम हो गया है... सोने से पहले हाथ मुहँ अच्छी तरह से धो कर सोना है... समझी...
रुप - जी भाभी... (कह कर रुप उठ जाती है) (फिर रुक कर पलटती है) भाभी पता नहीं क्यूँ... मुझे लगता है.... आपके मन में कुछ है... जो आप मुझसे कहना चाहती हैं... पर कह नहीं पाई....
शुभ्रा - (मुस्कराते हुए खड़ी हो जाती है, फिर अपने दोनों हाथों को कुहनियों के साथ बांध कर) अब मुझे समझ में आ रहा है...
रुप - (थोड़ी कंफ्युज्ड हो कर) क्या...
शुभ्रा - यही की बचपन में.... तुमने अनाम के लिए कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा होगा... सिवाय तुम्हारे बात मानने के...

रुप रूठ जाती है और अपनी पांव पटक कर वहाँ से अपनी कमरे की चली जाती है l पीछे इसे शुभ्रा की हँसी सुनाई देती है l

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अपने बिस्तर पर लेटी अनु सोच में खोई हुई है l अपनी चुन्नी को बार बार अपनी उंगलियों में लपेट कर निकाल रही है l अनजाने में ही उसके होठों पर एक हल्की सी मुस्कान खिल रही है l आज उसे रह रह कर वीर की कही बातेँ याद आ रही है l अनु करवट बदलती है और मोबाइल उठाती है l जैसे ही ऑन करती है मोबाइल की स्क्रीन पर वीर की आज की तस्वीर दिखती है l जब वीर अपनी चेयर पर बैठ कर अपनी सोच में खोया हुआ था तभी उत्सुकता वश चुपके से अनु ने एक फोटो ले ली थी l अनु अपनी उंगली से उस फोटो को स्क्रीन पर ऐनलार्ज करती है वीर की फोटो को देखती है और पहली बार वीर से मिलकर अपनी नौकरी हासिल करने के बाद जब घर लौट रहे थे उस वक्त उसकी दादी के कहे बातेँ याद आने लगती है l

दादी - कम्बख्त जब उसने नौकरी दे ही दी... फिर उसके ऑफिस में क्या करने के लिए घुसी...
अनु - उनके पैर पर गिर कर उनको धन्यबाद देने गई थी... आख़िर राजकुमार हैं वह...
दादी - देख अनु... अब नौकरी जब मिल गई है.. तो तुझे उस वीर से सावधान रहना है...
अनु - क्यूँ दादी... उन्होंने तो फौरन नौकरी दे दी...
दादी - इसीलिए तो.. मैंने उस वीर के बारे में कुछ ठीक नहीं सुना है... बड़े लोग हैं... पर छोटी और ओछी सोच के लगते हैं... पता नहीं क्यूँ... मुझे उसकी नजर ठीक नहीं लगा...
अनु - उनकी नजर तो ठीक ही है ना दादी... नजर सीधी और चश्मा भी नहीं लगाते...
दादी - हे भगवान... क्या करूँ इस लड़की का...
अनु - क्या दादी... तुम्हें तो सब खराब लगते हैं... मोहल्ले से लेकर दुनिया के सभी....
दादी - चुप कर... अगर तेरी माँ या बाप जिंदा होते... तो मुझे यह सब सोचने की जरूरत ना होती.... मैंने दुनिया को बत्तर से बत्तर होते देखा है... देख मेरी बच्ची... उसने नौकरी जरूर दी है... पर तुझे उससे बचके रहना है... उससे जितना दूर रहने की कोशिश करेगी... तु उतनी ही सुरक्षित रहेगी... वह लोग आग के जैसे होते हैं... जिनकी लौ की रौशनी से रास्ता ढूंढना चाहिए... पर उस लौ से दूर रह कर... अगर पास रहे... साथ रहे तो... तो जला देंगे...
अनु - मुझे तुम्हारी बात बिल्कुल भी समझ में नहीं आती दादी... तुम्हीं उनके पास नौकरी के लिए ले कर गई... अब कह रही हो उनसे दूर दूर रहने के लिए...
दादी - तुझे ऐसे समझाने से कुछ नहीं होगा... चल मुझसे एक वादा कर...
अनु - वादा...
दादी - हाँ... वादा...
अनु - कैसा वादा...
दादी - सिवाय ऑफिस के... और कहीं नहीं मिलेगी उनसे... वादा कर...
अनु - ठीक है... किया...

अनु वीर की फोटो देखते हुए अपने अतीत से बाहर आती है l जिस दिन मोबाइल लेकर घर आई थी

दादी - यह क्या लेकर आई है...
अनु - यह मोबाइल है दादी...
दादी - मुझे मालुम है कम्बख्त... इतनी गँवार नहीं हूँ मैं... यह लाई कहाँ से....
अनु - यह ऑफिस की मोबाइल है... ऑफिस से मिला है...
दादी - अगर ऑफिस से मिला है... तो ऑफिस के वक़्त ही इस्तेमाल किया कर... बे वजह इससे चिपकी रही... तो देख लेना...

और उस दिन मॉल से लौटने के बाद उसके हाथ में क़ीमती ड्रेस देख कर

दादी - यह क्या है... कहाँ से लाई है...
अनु - वह दादी... मैंने खरीद ली...
दादी - क्या.. (चिल्लाते हुए) नाशपिटी... कितना पैसा उड़ाया है... तुझे शर्म नहीं आई... ऐसे पैसे उड़ा रही है...
अनु - क्या दादी... आज मुझे एक जिम्मेदारी दी गई थी... के मैं चेक करूँ... ओरायन मॉल में हमारे जो ESS के गार्ड्स हैं... वह ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं... इसलिए उस मॉल में यह ड्रेस दिखी तो ले ली...
दादी - तो पैसों क्यूँ बरबाद की....
अनु - ठीक है... अगली बार अगर कभी ऐसी... जिम्मेदारी मिली तो नहीं लुंगी... ठीक है...
दादी - हाय.. हाय... तो क्या जितनी दफा जाती... ले कर आती... अरे.. बाहर कहीं हम जा नहीं रहे हैं... और हफ्ते के छह दिन... तु आठ से दस घंटे ऑफिस में रहती है... तो यह ड्रेस पहनेगी कब... और किसके साथ घुमने जाएगी... तेरे दोस्त भी तो नहीं हैं..
अनु - थे... पर तुम्हें ही... मेरे वह दोस्त पसंद नहीं थे...
दादी - वह सब तेरे दोस्त नहीं... दुश्मन थे तेरे... और खबरदार कभी ऐसी लड़कियों से दोस्ती की तो...
अनु - अपनी मर्जी की खरीद नहीं सकती... दोस्ती कर नहीं सकती... तो करूँ क्या...
दादी - शादी करा दूँगी... कोई अच्छा घर... अच्छा वर देख कर...
अनु - हूँ... ह्... मैं शादी नहीं करुँगी...
दादी - क्यूँ नहीं करेगी...
अनु - अगर शादी करूंगी... तो तुम भी मेरे साथ दहेज में जाओगी...
दादी - हे... भगवान... मुझ बुढ़िया को लेकर कहाँ जाएगी... और कितने दिन मैं जी भी सकती हूँ...
अनु - ठीक है... तो तुम्हारे मरने के बाद शादी कर लुंगी...
दादी - और तब तक क्या... मेरे छाती में चढ़ कर मुंग दलेगी...
अनु - कुछ भी हो... मैं शादी वहीँ करुँगी... जहां दहेज में तुम जाओगी...
दादी - हाँ हाँ... तेरे इस शर्त पर यहाँ स्वयंवर होगा... और तेरे लिए राजकुमार आयेंगे... लाइन लगाएंगे...

यह याद आते ही अनु हँस देती है l वह अपनी बेड पर आलती पालती मार कर बैठ जाती है l मोबाइल की चाट बॉक्स खोलती है और वीर को मैसेज करती है

अनु - आप... सो गए क्या...

फिर मुस्कराते हुए मोबाइल को बेड पर रख देती है कि तभी इनकॉमींग मैसेज ट्यून बजती है तो देखती है वीर ने जवाब दी है l उसकी आँखे बड़ी हो जाती है क्यूँकी उसे उम्मीद ही नहीं थी कि इतना जल्दी वीर उसे मैसेज करेगा I वह मोबाइल की चाट बॉक्स खोलती है


नहीं सोया नहीं हूँ... सच पूछो तो तुम्हारे कॉल का इंतजार कर रहा था... - वीर

अनु के समझ में नहीं आता कि वह क्या रीप्लाय करे I

अनु - पर रात तो बहुत हो गया है... आपको सो जाना चाहिए था...

मैं भी यही सोच रहा था... कि शायद तुम सो गई होगी और मुझे सो जाना चाहिए था...- वीर
अनु - वह तो मैं ऐसे ही परख रही थी...
अच्छा... तो क्या परखा तुमने... - वीर
अनु - यही के आप अभी तक सोए नहीं है...
बस इतना ही... - वीर
अनु - नहीं और एक बात भी पूछूं...
जी बिल्कुल.... पूछो.. - वीर
अनु - आपने खाना खा लिया...
अररे... इतना जरूरी सवाल अब पूछ रही हो... - वीर
अनु - हाँ... अभी याद आया ना इसलिए....
ओ... और कुछ जरूरी सवाल नहीं है क्या... - वीर
अनु - और.... और आप की सेहत कैसी है...
यह हुई ना सवाल... अच्छी है... - वीर
अनु - और आपको नींद आ रही है ना...
अनु... प्लीज... क्या हम फोन पर बात करें... - वीर
अनु - नहीं... दादी मेरी जान ले लेंगी....
क्यूँ.... ऐसा क्यूँ... - वीर
अनु - इतनी रात को... इसलिए... ह्म्म्म्म... अच्छा अनु... मुझे अब लग रहा है कि यह सब बात करने के लिए तुमने मेसेज नहीं किया है... बात कुछ और है... कहो... - वीर
अनु - आप मेरे साथ एक दिन के लिए... बचपन को जीना चाहते हैं ना...

हाँ... कोई शक... तुम्हारे ही साथ.... जगह, वक्त सब तुम तय करोगी... - वीर
अनु - ठीक है... अगले इतवार को मैं आपको जहां जहां ले कर चलूँगी.... आपको मेरे साथ चलना होगा...
वाव... ठीक है... तुम्हारा कोई प्लान है... - वीर
अनु - है तो...
अच्छा... तो बताओ... हम बिलकुल वैसे ही करेंगे... - वीर
अनु - यह मैं आपको उसी दिन बताऊंगी... और आपको मेरे कहने के हिसाब से चलना होगा...
जैसा आप हुकुम करें... - वीर

वीर के इस जवाब से अनु फौरन ऑफ लाइन हो जाती है और सोने की कोशिश करती है l वीर उसके ऑफ लाइन होते ही अपनी फोन देख कर मुस्करा देता है और वह भी फोन रख कर सो जाता है l

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उसी रात
होटल ब्लू इन की टेरस पर आज मॉकटेल पार्टी के साथ साथ खाना भी जमकर हो रहा है l

रॉकी बहुत खुस है और उसके खुशी में सभी शरीक हुए हैं, सभी उछल उछल कर किसी गाने धुन में थिरक रहे हैं l पर एक कोने में राजू अपनी मॉकटेल ग्लास हाथ में लिए चुपचाप बैठा हुआ है, वह पार्टी में देर से आया था पर शायद खुश नहीं था l रॉकी की नजर उसपर पड़ता है l रॉकी को इस खुशी मौके पर राजु का यूँ खामोश हो कर किसी गहरी सोच में डुबा रहना बहुत अखरता है l इसलिए वह जा कर म्युजिक सिस्टम पर बज रही धुन को बंद कर देता है l धुन बंद होते ही सभी का थिरकना बंद हो जाता है और सब सवालिया नजरों से रॉकी को देखने लगते हैं l

रॉकी - यार हम सभी एंजॉयमेंट कर रहे हैं... पता नहीं यह राजु कौनसी दुनिया में खोया हुआ है...

अपना नाम सुन कर राजु थोड़ा संभल कर बैठ जाता है l सबकी नजर अपनी तरफ देख कर

राजु - वह... दोस्तों... मैं...
सुशील - हाँ हाँ बोल भाई... जब तक तु उगलेगा नहीं... तब तक ना तुझे कुछ हज़म होगा... ना हमे....
रॉकी - हाँ राजु... मैं समझ सकता हूँ... तु... जरूर नंदिनी को लेकर किसी सोच में है...
राजु - हाँ... तुमने सच कहा... मैं यह सोच रहा हूँ... आज जो हुआ... उसका क्या मतलब निकाला जाए....
सब - मतलब...
राजु - यही की नंदिनी ने घड़ी देकर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है... क्या नंदिनी ने इस बहाने रॉकी को हिदायत दी है... के इस दोस्ती को दोस्ती तक ही सीमित रखो... आगे मत बढ़ो...
रॉकी - (गुस्से से) अबे... तु... पार्टी में भंग डालने आया है क्या... साले घोंचु...
आशीष - हाँ यार... क्या कर रहा है... कितना मजा आ रहा था... साले सारा मजा किरकिरा कर दिया...
रवि - हाँ... देख भूतनी के देख... कोई पहली दोस्ती में भी इतना महंगा घड़ी देता है...
सुशील - हाँ यार क्या घड़ी है.. वेयर हेल्थ की... बड़ी डायल की डिस्प्ले वाली... कम से कम तीस चालीस हजार की तो होगी...
रवि - अबे नहीं... मैंने इस मॉडल की डिटेल्स... नेट पर सर्च की है... पचास हजार की है... और यह घड़ी पहन लेने के बाद तुझे सब्जी मार्केट जा कर देखकर आना चाहिए था...
राजु - क्यूँ... उससे क्या होता...
आशीष, सुशील और रवि एक साथ - अबे टमाटर के भाव गिर जो गए हैं...

सभी हँस देते हैं l पर राजु नहीं हँसता है l यह देखकर रॉकी फिर से राजु से कहता है

रॉकी - क्या यार... अभी भी तु उस सोच से बाहर नहीं आया है...
आशीष - अच्छा यार.... (राजु से) जो तेरे मन में है... वह सब बोल दे... जो तेरे मन में वहम बन कर कुलबुला रहे हैं...
राजु - (खड़ा होता है) देखो दोस्तों... नंदिनी... कोई आम लड़की नहीं है... वह किसी आम लड़की की तरह बड़ी नहीं हुई है... इसलिए पहले रॉकी ने जान पहचान की कोशिश की वहाँ तक भी ठीक था... दोस्ती की कोशिश किया गया... रॉकी उसमें कामयाब भी हुआ... फिर आया इम्प्रेशन ज़माने के लिए... तो अग्नि कांड में फंसे उसकी दोस्त को बचाने के लिए रॉकी ने जिस तरह से बनानी को बचाया... उसे वह इम्प्रेस हुई थी.... यह हम सब जानते हैं...
रवि - हाँ फिर... उसके बाद हमने बहुत पापड बेले... तब उसका नाम आया रेडियो एफएम में प्रेजेंटेशन देने के लिए... उसके बाद तो वह इस कदर खुश हुई है कि अपने हीरो को वाच गिफ्ट की है....
आशीष - और क्या... इसलिए तो अब अपने हीरो को बधाई देने यहाँ जमा हुए हैं....
रॉकी - (अब तक जो चुप था) अच्छा राजु... तुझे क्यूँ लगा कि नंदिनी ने मुझे घड़ी देने के बहाने... दोस्ती की हिदायत दी है.... तुझे क्या लगता है कि उसे शक हो गया है....
राजु - देख... मैं इतना कहना चाहता हूँ.... वह क्षेत्रपाल है....
रवि - यह हम सभी जानते हैं...
राजु - (चुप रहता है)
रॉकी - उसे बोलने दो...(राजु से) राजु... तेरे मन में जो भी है बोल दे...
राजु - मेरा कहने का मतलब यह है कि... दोस्ती पक्की कर... इतनी पक्की... की वह तुम्हारे बाइक के पीछे बैठ सके.... क्यूंकि कल अगर उसके भाई तुम्हारे सामने काल बनकर खड़े हो गए... तब वह हिम्मत तो करे.... तुम्हारे लिए अपने ही भाइयों से टकरा जाए... सिर्फ घड़ी देने से.... दोस्ती की अगला कदम ही तय हुआ है... कितनी पक्की हुई है... कितनी गाढ़ी हुई है... यह भी मायने रखते हैं....

सभी राजु को सुन रहे थे और राजु के बात है सहमत भी दिखने लगे, पर रॉकी को यह ठीक नहीं लगा

रॉकी - दोस्ती पक्की ही है... वरना पचास हजार की घड़ी किसीको यूँ ही नहीं दे देती.... रही बाइक पर बिठाने की... तो चलो इस हफ्ते का यही टास्क होगा.... हफ्ता खतम होने तक रॉकी नंदिनी को अपनी बाइक के पीछे बिठाएगा... कॉमन फ्रेंड्स... अब चक्कर चलाओ... आइडिया दो... कैसे दोस्ती पक्की और गाढ़ी है पता करेंगे... और कैसे मेरे बाइक के पीछे बैठेगी... उसके लिए तैयार करेंगे...
राजु - मेरे समझ में नहीं आ रहा है... तुझे जल्दी किस बात की है... सब्र क्यूँ नहीं हो रहा है तुझसे... हर एक हफ्ते में एक टास्क... यह बहुत बड़ा रिस्क है... इस हफ्ते को गुजर तो जाने देते... अगले हफ्ते हम कुछ सोचते जरूर....
रॉकी - रिस्क... इश्क़ में तो रिस्क होता ही है... वैसे भी... किसी एक महान कमीने ने कहा कि... नो रिस्क... नो गैंन...
सुशील - वाह क्या अद्भुत और दिव्य ज्ञान... वैसे कौन है वह कमीना...
रॉकी - तुझे नहीं पता...
सुशील - नहीं...
रॉकी - वह महान कमीना कोई और नहीं... बल्कि मैं हूँ...
आशीष - वाह... वाह वाह.. क्या बात है...(हाथ जोड़ कर) जय हो महान कमीने की...
सभी - जय हो... जय हो...
रॉकी - तो इस कमीने के टुच्चे दोस्तों... बताओ... गीव मी सॅम आइडियाज...
रवि - वैसे नंदिनी को... कब तक अपने बाइक के पीछे बिठाने का प्लान है...
रॉकी - इसी हफ्ते के आखिर तक... चाहे शुक्रवार हो... या शनिवार...
आशीष - तो फिर एक काम कर... कल से अपनी दोस्ती की पींगे बढ़ा...
रॉकी - मतलब....
रवि - नंदिनी के दिल में तेरे लिए फिलिंग्स कितना है... यह परखना जरूरी है... अगर है... तो बैठ सकती है...
रॉकी - फिलिंग्स का पता कैसे किया जाए....
सुशील - फिल्मी पैंतरा आजमाते हैं...
रॉकी - अबे... सीधे सीधे बोलना...
सुशील - सिंपल... तेरी टार्गेट नंदिनी है... उसके ग्रुप में... उसने ही तुझसे दोस्ती की है... मतलब उसके दिल में तेरे लिए कुछ तो है... बस उस फिलिंग्स की इंक्लीनेशन कितना है... यह जानने के लिए तुझे.... उसके दोस्त बनानी से दोस्ती करना होगा... उसको थोड़ा ज्यादा अटेंशन देना होगा... मतलब नंदिनी से ज्यादा... इस दोस्ती से अगर नंदिनी के मन में जलन पैदा हुई... तो...
रॉकी - समझ गया... मैं समझ गया... (राजु की ओर देख कर) ऑए राजु.. तु देखते रहीयो... मैं कैसे अपनी बाइक के पीछे नंदिनी को बिठाता हूँ

राजु रॉकी की बात सुनकर सिर्फ हल्का सा मुस्करा देता है l

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अगले दिन
ESS ऑफिस
वीर और महांती दोनों कांफ्रेंस हॉल में बैठे हुए हैं l

महांती - क्या करें राज कुमार...
वीर - हमने इंफॉर्म कर दिया है... थोड़ी देर और... उम्मीद कर सकते हैं... युवराज शायद आ जाएं...
महांती - युवराज जी को मैंने भी फोन मिलाया था... पर उन्होंने कहा कि... सिर्फ आपको ही सारी इंफॉर्मेशन दे दूँ... और आपसे ऑर्डर लूँ...
वीर - जानते हैं... युवराज जी ने भी हमसे यही कहा है... पर हम उनके वगैर.. इस तरह की जिम्मेदारी कैसे उठा सकते हैं...
महांती - आपने उठाया है राजकुमार... आपने उठा चुके हैं...
वीर - (हैरान हो कर महांती को देखने लगता है) हमने उठा लिया है... कब...
महांती - आप भुल रहे हैं... पिछली बार... आपने ही तो मुझे सारे हुकुम दिया था... और आपके वजह से ही तो... मेरे हाथ जितने भी लगे सबको उठा कर राजगड़ ले कर गया... आप ही के कहे मुताबिक... मैंने उनसे कुछ इंफॉर्मेशन निकाले हैं...
वीर - वह तो हमने... छोटे राजा जी का ध्यान भटकाने के लिए वैसे कह दिया था... और युवराज जी को बहलाने के लिए भी....
महांती - इस बार कम से कम... हम अपर हैंड में हैं... उनकी नेटवर्क... फ़िलहाल तबाह है... कुछ अब अंडरग्राउंड हो गए हैं....
वीर - इसका मतलब यह नहीं कि... वह हम पर फिर हमला नहीं करेंगे...
महांती - मैंने ऐसा तो नहीं कहा... वह कर सकते हैं... वह उसके लिए तैयारी भी करेंगे और वक़्त भी लेंगे... हम भी अपनी तैयारी करेंगे.... और जरूर करेंगे....
वीर - हूँ... तो क्या इंफॉर्मेशन निकाला है तुमने....
महांती - राजकुमार जी... (कह कर कांफ्रेंस हॉल के प्रेजेंटेशन बोर्ड के पास जाता है) हमने अभी तक... जिन लोगों को पकड़ कर... अपने तरीके से हैंडल किए... उससे मास्टर माइंड के बारे में तो कुछ पता नहीं चला... पर हमने जो भी पता लगया है... बहुत जल्द उस तक पहुंच सकते हैं....
वीर - यार यह थ्योरी वाली टॉपिक से बाहर निकलो... और बताओ क्या पता चला है...
महांती - हमने पहले उन चारों को धर दबोचा... फिर उनके कुछ मददगारों को... सबको जब आखेट घर में एक एक करके मगरमच्छों के पुल में फेंका... बहुत कुछ हाथ लगा....
इसमें.... केके को धमकी देने वाला... सुरा... जिसे... युवराज ने अपनी माशुका के साथ रंग महल भेज दिया था... उसका भाई केशव... और एक चिल्लर गुंडा रंगा... बहुत बार जैल जा कर आ चुका है... फ़िलहाल बहुत दिनों से गायब था... और अब फिर से गायब है... रॉय ग्रुप सर्विस वाला... शुभेंदु रॉय... वह भी अभी गायब है... आइकॉन ग्रुप कलकता के भी इस साजिश में शामिल हैं... पर...
वीर - पर... क्या पर...
महांती - इनमें से भी कोई मास्टर माइंड नहीं है...
वीर - तो कौन है...
महांती - वह बहुत चालाक है... उसने क्षेत्रपाल के दुश्मनों को इकट्ठा किया है... उन्हें ऑपरेट भी किया है... पर खुद को पर्दे के पीछे रख कर.... यानी सबसे सावधान वही है... उसने आइकॉन ग्रुप से फ़ाइनांस करवाया... रॉय ग्रुप के लोकल इंफ्लूयंस का इस्तमाल करवाया... रंगा और केशव के लोकल कॉन्टेक्ट का... नेटवर्क का भी उसने इस्तमाल करवाया... पर खुद को इन सबके आँखों से बचा कर... बहुत ही शातिर निकला...
वीर - तुम जिनके नाम लिए हो... वह हमारी पहुँच से फिल्हाल बाहर हैं... फिर तुमने कैसे पता लगा लिया के इन सबके पीछे भी कोई इनका बॉस है...
महांती - आखेट घर में... जब वह लोग अपनी मौत को देख रहे थे... उन्होंने जितना भी इंफॉर्मेशन दी है... उसके बेस पर...
वीर - क्या आखेट घर में... उनमें से कोई जिंदा हैं...
महांती - नहीं... हमे उनकी अब कोई जरूरत नहीं रही... पर उन मगरमच्छों को ओर लकड़बग्घों को उनकी ज्यादा ज़रूरत थी...
वीर - गुड... इसका मतलब... जो हिडन बॉस है... वह इन सब को क्षेत्रपाल के खिलाफ इकट्ठा कर... सीधे जंग के वजाए.. प्रोक्सी वॉर कर रहा है.... वह हिडन बॉस... एक बिजनस ज्यांट को... भुवनेश्वर में बिजनैस ज़माने के लिए बुलाता है... हमारे छत्रछाया में पल रहे बिजनेसमैन के बिजनस हड़प ने के लिए... वह इस मामले में... रॉय ग्रुप को इस्तमाल करता है... इसलिए वह हाईटेक टेलीफोनीक कंवरसेशन कर पाता है... लोकल लॉजिस्टिक सपोर्ट के लिए... दो टके के गुंडों को हायर करता है... ह्म्म्म्म... मतलब उसे हमारे बारे में सब पता है... और अब तक की उनकी एक्टिविटी देख कर... मैं आँखे मूँद कर कह सकता हूँ... हमारे सिक्युरिटी सर्विस से कोई तो मिला हुआ है...
महांती - (कुछ सोच में पड़ जाता है)
वीर - क्या सोचने लगे महांती...
महांती - युवराज ने भी यही शक़ जाहिर किया था.... पर...
वीर - पर.. वर... कुछ नहीं... उनके परफेक्शन में हमारे घर का छेद काम आया होगा...
महांती - अगर आपकी बात सच निकली तो... उन्होंने बड़ी तगड़ी सेंध लगाई है...
वीर - इसलिए... जब जब इस कांफ्रेंस हॉल में उस हरामजादे की फोन आयी है... उस दिन जो भी ड्यूटी पर तैनात थे... मुझे सबकी हिस्ट्री और ज्योग्राफी के पेपर चाहिए... यहाँ तक कि... सबके रिस्तेदारों की भी... बैंक ट्रांजैक्शन से लेकर फोन कम्युनिकेशन तक... सबकी जानकारी चाहिए...
महांती - जी मिल जाएगा... पर उस हिडन बिग बॉस का क्या...
वीर - मुझे कुछ कुछ अंदाजा हो रहा है... उसे मैं पर्सनली कन्फर्म करूंगा...
Jabardastt Updatee
 
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