सत्रहवां अपडेट
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तापस की नजर उस बेड पर स्थिर हो गई, जिस तरफ इंस्पेक्टर ने इशारा कर दिखाया l तापस उसके पास जाकर देखा, वह मुज़रिम आधी बेहोशी की हालत में पड़ा हुआ है, उसके चेहरे की हालत बहुत बुरी लग रही है l दाहिना जबड़ा सूजा हुआ है l बायीं आँख इतनी सूजी हुई है कि शायद उसकी आँखे खुल ही नहीं पा रहा हो, दायीं आँख की हालत भी ठीक नहीं लग रही है l बदन के हर हिस्से पर थर्ड डिग्री टॉर्चर साफ दिख रहा है l और दायीं जांघ पर पट्टी की गई है, शायद वहीँ गोली लगी है l
अपनी नौकरी जीवन में हमेशा अपराधियों से असंवेदनशील रहने वाला तापस भी उसकी हालत देख कर हिल गया l
तापस - यह उसकी ऐसी हालत किसने की....
इंस्पेक्टर - किसने की मतलब.... साढ़े सात सौ करोड़ रुपये का लुटेरा है... गोदी में रख कर पुचकारते हुए पूछ तो नहीं सकते थे... बोल वह पैसे कहाँ है.....
तापस को उसका इस लहजे में बात करना और ऐसे ज़वाब देना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा l पास खड़े डॉक्टर से पूछा,
तापस - डॉक्टर साहब कैसी हालत है इसकी...
डॉक्टर - थोड़ी खराब है...
तापस - ह्म्म्म्म... कब तक ठीक होने के चांसेस है...
डॉक्टर - यह तो जांच करने के बाद ही कुछ कह सकते हैं....
इंस्पेक्टर - अरे डॉक्टर साहब... इसमें जांच करने वाली बात क्या है... लौंडा ( अपना हाथ उस मुजरिम के जांघ के ज़ख़्म पर रख कर जोर से मसलते हुए) बहुत मजबूत है....
मुजरिम की आंखे खुल जाती है l वह दर्द के मारे कराहने लगता है l
इंस्पेक्टर - देखा... साला बहुत ऐक्टिंग कर रहा है.... बहुत खेला खाया हुआ जो है....
तापस इंस्पेक्टर को डॉक्टर और उसके सामने मुज़रिम के साथ ऐसा करते हुए देख कर रह नहीं पाता, पर हैरानी उसे और भी होती है, जब डॉक्टर कुछ प्रतिक्रिया दिए बगैर ऐसे खड़ा है, जैसे मुज़रिम की तकलीफ से कोई मतलब ही ना हो l
तापस उस मुजरिम की तकलीफ नहीं देख पाता है,
तापस- (इंस्पेक्टर को रोकते हुए) यह तुम कर क्या रहे हो...
इंस्पेक्टर - इलाज .... इस लाइलाज नासूर का इलाज...
तापस - स्टॉप इट.... (इंस्पेक्टर रुक जाता है) तुमने इसे मेरे हवाले कर दिया है... अब यह मेरी जिम्मेदारी में है.... और तुम यह मत भूलो... तुम सामने किस रैंक वाले ऑफिसर के सामने खड़े हो...
इंस्पेक्टर - ओह सॉरी सर.... वो काग़ज़ी कारवाई बाकी है...
तापस - दास... इनकी हैंड ओवर कागजात चेक कर लो...
दास उस इंस्पेक्टर से काग़ज़ात लेकर देखता है, और तापस को साइन करने के लिए कहता है l तापस साइन कर कागजात दे देता है l
तापस - अब तुम जा सकते हो इंस्पेक्टर...
इंस्पेक्टर अपना सर हिलाते हुए सैल्यूट कर वहाँ से अपनी सिपाहियों को लेकर निकलने होता है, कि वह डॉक्टर को भी इशारे से बाहर बुलाता है l डॉक्टर उस इंस्पेक्टर के साथ बाहर चला जाता है l यह सब देख कर तापस कुछ सोच कर दास को सारे काग़ज़ात मांगता है और एक काग़ज़ पर कुछ लिख कर दास के कानों में कुछ कहता है l दास अपना सर हिलाता है जैसे सब कुछ समझ गया हो, फिर दास भी सारे कागजात ले कर बाहर निकल जाता है l
दास के जाते ही तापस उस मुज़रिम पर नजर डालता है, वह ज़ख़्म जहां गोली लगी थी और जिस ज़ख़्म को इंस्पेक्टर ने बेरहमी से मसला था वहाँ पर खुन की ताज़ा दाग नजर आ रहा था l
कुछ देर बाद वह डॉक्टर अंदर आता है,
तापस - डॉक्टर... क्या मैं आपसे कुछ पुछ सकता हूँ...
डॉक्टर - जी सर... पूछिये...
तापस - यह कानून का मुज़रिम बेशक है... पर जब तक यह इस हस्पताल के बेड पर है तब तक आपका मरीज़ आपकी जिम्मेदारी है... जब इंस्पेक्टर ने इसकी ज़ख्मों को मसल रहा था... आप इतने शांत कैसे और क्यूँ खड़े थे....
डॉक्टर - (पहले तो सकपका गया, फ़िर खुदको सम्भाल कर) सर एक मुज़रिम के लिए कौन अपने दिल में कोई भावना रखेगा....
उसकी सकपकाहट तापस की पारखी नजर से बच ना पाया
तापस - यह मुजरिम अभीतक एकयुसड है... कंविक्टेड नहीं है... अदालत अभी तक नतीजे पर नहीं पहुची है.... आप कैसे नतीजे पर पहुंच गए....
तापस की इस सवाल पर डॉक्टर अपना अगल बगल झांकने लगा l उससे कुछ जवाब ना मिलने पर
तापस - ह्म्म्म्म... कोई बात नहीं.... मैं इस मुज़रिम को अपनी कस्टडी में भुवनेश्वर कैपिटल हॉस्पिटल ले जाना चाहता हूँ... आप कागजात तैयार कीजिए...
डॉक्टर - य.. यह... यह कैसे हो सकता है.... मैं इसकी इजाजत नहीं दे सकता....
तापस - डॉक्टर साहब क्यूँ.... यह सरकारी मेहमान है... और सेंट्रल जैल भुवनेश्वर में है.... और मुझे इसकी हिफाज़त भी करनी है...
डॉक्टर - नहीं... आप इसे नहीं ले जा सकते...
तभी एक लड़की पच्चीस छब्बीस साल की आती है और डाक्टर से कहती है - हाँ ताकि उसके पैर को काट कर उसे तू अपाहिज कर सके....
तापस - ऐ लड़की... कौन हो तुम... और ऐसे अंदर आ कर किसी पर इल्ज़ाम कैसे लगा सकती हो...
लड़की - साहब... नमस्ते (अपनी दोनों हाथ जोड़ कर) यह मेरा भाई है... (मुज़रिम को दिखा कर)
अभी अभी यह डॉक्टर उस इंस्पेक्टर से बात करते हुए मैंने सुना है.... यह लोग मेरे भाई की पैर काट कर हमेशा के लिए अपाहिज कर देना चाहते हैं.... इसके लिए इस डॉक्टर को पैसे मिलने वाले हैं....
डॉक्टर - व्हाट... स.. सर... यह सरासर झूट बोल रही है... शी इज़ एब्युसिंग माय प्रोफेशन...
इतना कह कर डॉक्टर उस लड़की की तरफ बढ़ने लगा, तापस उसे रोक देता है l
तापस - मुझे इस लड़की से कोई मतलब नहीं है.... डॉक्टर... मैंने बस आप से कहा कि मैं अपने मुज़रिम को यहां से ले जाऊँगा...
डॉक्टर - न.... नहीं... आप ऐसे नहीं ले जा सकते.... मैं आपको ऐसे इसे ले जाने नहीं दूँगा....
तभी दास अंदर आता है, तापस इशारे से पूछता है, दास भी इशारे से अपना सर हिला कर हाँ में इशारा करता है
तापस - डॉक्टर... अब मेरे पास सरकारी फरमान है... (दास की तरफ हाथ बढ़ाता है, तो दास उसके हाथ में एक काग़ज़ रख देता है) यह अदालत से लाई गई फरमान और आपके सीडीएमएओ जी की दस्तखत....
डॉक्टर की आंखें हैरानी से आँखे फैल जाती है, वह एक हारे हुए आदमी की तरह तापस को देखता है, तापस भी उसके सारे भावों को समझ जाता है
तापस - अब आप एंबुलेंस से मेरे मुजरिम को कैपिटल हॉस्पिटल भेजने की कागजात तैयार कीजिए...वह भी सिर्फ आधे घंटे में....
डॉक्टर अपना सर झुकाए बाहर निकल जाता है, वह लड़की बहुत ही कृतज्ञ दृष्टि से तापस देख रही थी, जैसे ही तापस की नजर उस पड़ी तो वह लड़की हाथ जोड़ कर अपनी कृतज्ञता व्यक्त करती है l
तापस - (उस लड़की से नजर हटा कर) गुड जॉब दास...
दास - थैंक्यू... सर...
तापस - (उस लड़की को देखते हुए) हम्म तो तुम इसकी बहन हो... (लड़की अपना सर हाँ में हिलती है) क्या नाम है तुम्हारा...
लड़की - जी वैदेही...
तापस - हाँ तो वैदेही... यह तुम्हारा भाई है...
लड़की - जी विश्वा मेरा भाई है, स.. सगा नहीं है... पर सगे से भी बढ़ कर है....
तापस - देखो वैदेही... हम तुम्हारे भाई विश्वा को अपने साथ भुवनेश्वर ले जाएंगे.... जब इसके हालत में सुधार होगी.... तब हम अदालत में पेश करेंगे... चूंकि यह हमारी निगरानी में रहेगा.... इसलिए तुम अपने घर चले जाओ....
वैदेही - मैं अपने भाई को छोड़ कर.... कहीं नहीं जाऊँगी....
तापस - देखो तुम्हारा भाई है... ज़ख्मी है... तुम्हारी भावनायें समझ सकता हूँ... पर चूंकि यह अब कानून की निगरानी में रहेगा.... इसलिए जिद मत करो....
वैदेही - (अपनी हाथ जोड़ कर) साहब मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है... सिवाय इसके.... इसपर झूठे इल्ज़ाम लगाया गया है.... अपराध के पीछे बहुत बड़े बड़े लोग हैं.... अपनी करनी को इस बेगुनाह के माथे मढ दिया है.... और अब इसकी जान लेने पर तूल गए हैं.... नहीं साहब मैं इसे छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगी....
तापस - देखो वैदेही... हो सकता है जो तुम कह रही हो... वह सब सच हो... और अदालत में इसे साबित भी तो करना है.... देखो अब यह मेरे जिम्मे है... मुझे अदालत में इसे सही सलामत खड़ा करना है.... इस बीच तुम किसी अच्छे वकील से बात करो.... ताकि अपने भाई को बेगुनाह साबित कर सको.....इसकी इलाज की फ़िक्र ना करो... सरकार इसकी इलाज करवायेगी... इसलिए अभी तुम वापस जाओ...
वैदेही - ठीक है साहब.... मैं आप पर भरोसा करती हूँ... पर अगली बार मिलना चाहूँ तो... मेरा मतलब है... मैं उससे मिलकर खैर ख़बर लेना चाहूँ तो....
तापस - अच्छा एक काम करो.... तुम मेरा मोबाइल नंबर रख लो आज से ठीक सात दिन बाद मुझसे जानकारी ले लो.... अगर मुझ पर भरोसा है तो...
वैदेही - कैसी बातेँ कर रहे हैं साहब.... आपने अभी अभी मेरे भाई को अपाहिज होने से बचाया है.... मैंने आपकी और उस डॉक्टर की सारी बातेँ भी सुनी है....
तापस - तो मुझ पर भरोसा रखो.... और मेरी बात मानो... जाओ यहां से... अगली बार जब आओ एक अच्छे वकील से बात कर अपने भाई को बचाने की कोशिश करना....
वैदेही कुछ नहीं कहती, अपनी दोनों हाथों को जोड़ कर कृतज्ञता से अपना सर हाँ में हिलाती है l
कुछ देर मैं वह डॉक्टर अपने हाथों में विश्वा के ट्रांसफ़र कागजात ले कर आता है और स्ट्रेचर के साथ दो लोग आते हैं l जब वे लोग विश्वा को स्ट्रेचर पर सुलाते हैं, विश्वा के मुहँ से दर्द भरे कराह निकलता है l उसकी कराह सुन कर वैदेही की रुलाई फुट पड़ती है l वह विश्वा के माथे पर एक चुंबन देती है, और तापस को आँखों में आंसू लिए याचना भरे दृष्टि से देखती है l
तापस - वैदेही... तुम्हारा भाई अब मेरे जिम्मे है.... मैं सिर्फ इतना वादा कर सकता हूँ... तुम्हारा भाई स्वस्थ हो कर अदालत में खड़ा होगा.... इसलिए मैंने अभी जो तुमसे कहा है... तुम जा कर उस पर अमल करो...
फिर सब स्ट्रेचर के साथ बाहर एम्बुलेंस में विश्वा को चढ़ा देते हैं l एम्बुलेंस भुवनेश्वर की ओर चली जाती है l तापस भी अपनी सरकारी गाड़ी से हस्पताल के बाहर निकल जाता है, ड्राइवर को हाई कोर्ट ले जाने को कहता है l हाई कोर्ट के बाहर बार काउंसिल के बाहर पहुंच कर फोन लगाता है l थोड़ी देर बाद प्रतिभा हाथों में कुछ फाइलें व गाउन ले कर आती है और तापस के बगल में बैठ जाती है l
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तो सेनापति जी... अपने दास को भेज कर मेरे जरिए उस मुजरिम को कैपिटल हॉस्पिटल क्यूँ शिफ्ट करा दिया....
तापस - यहां मुजरिम की जान को खतरा था... मैंने मेहसूस कर लिया... इसलिए उसे शिफ्ट करवा दिया....
प्रतिभा - तुम ने एक मुजरिम के लिए ऐसा किया...
तापस - देखो... जान... वह जब मेरे कस्टडी में आ गया... तो उसे सही सलामत अदालत में पेश करना मेरा काम है.... तुम जानती हो... डिपार्टमेंट की राय मेरे बारे क्या है या रही है... जब वह मेरे कस्टडी में आ गया तो जब तक अदालत में उसे सही सलामत खड़ा नहीं कर देता... तब तक तो मैं...
प्रतिभा - अच्छा अच्छा ठीक है....
तापस - वैसे थैंक्स...
प्रतिभा - वह किसलिए...
तापस - वह इसलिए के तुमने... बहुत ही जल्दी विश्वा की शिफ्ट करने की ऑर्डर निकलवाने के लिए...
प्रतिभा - वह इसलिए हो पाया.... क्यूंकि विश्वा के खिलाफ सरकारी वकील मैं हूँ...
तापस - ओ....
ऐसे बात चित करते हुए दोनों भुवनेश्वर पहुंच जाते हैं l प्रतिभा को क्वार्टर में उतार देता है और जा कर कैपिटल हॉस्पिटल पहुंच जाता है l रिसेप्शन में पहुंच कर पूछ ताछ के बाद एक कमरे में पहुंचता है जहां एक डॉक्टर विश्वा को चेक कर रहा था l
तापस - हाँ तो डॉक्टर विजय जी... कैसा हाल है इस मरीज़ का...
डॉ. विजय - आओ तापस... बिल्कुल सही टाइम पर आए हो.... तुम्हारे इस मुजरिम की हालत बहुत ही खराब है.... गोली अभी भी पांव में है अगर जल्दी निकाला ना गया तो इन्फेक्शन हो जाएगा.... तब शायद पैर काटना पड़े.. इसको प्राइमरी फर्स्ट ऐड भी प्रॉवाइड नहीं किया गया है....
तापस - ह्म्म्म्म मुझे भी देख कर यही शक हुआ.... ठीक है... तुम इसका ऑपरेशन कर दो... जो फॉर्मालिटी है मैं पूरा कर देता हूँ...
डॉ. विजय - ह्म्म्म्म चलो...
तापस हस्पताल में सारी फॉर्मालिटी पूरा कर लॉबी में बैठ जाता है l लॉबी में बहुत सारे लोग बैठे हुए हैं और दीवार पर लगी टीवी पर न्यूज चल रहा है
"पुरे राज्य को हिला कर रख देने वाले मनरेगा के पैसों की हेर-फेर पर सरकार की तरफ से बैठक पर बैठक हो रही है l कभी अंग्रेजों से लोहा लेने वाले राजगड़ के प्रतिष्ठित परिवार के पिनाक सिंह क्षेत्रपाल जी ने हमारे संवाददाता के साथ इस बारे में बात की
सम्वाददाता - आज हमारे साथ पूरे राज्य की सम्मानित परिवार के एक महत्त्वपूर्ण सदस्य श्री पिनाक सिंह क्षेत्रपाल जी उपस्थित हैं...
हाँ तो श्री क्षेत्रपाल जी... यह जो अभी कांड हुआ है... जो पूरे राज्य को हिला कर रख दिया है... हमारे राज्य की भाव मूर्ति मैली हुई है... और विडंबना यह है कि यह क्षेत्रपाल जी क्षेत्र में हुआ है...
पिनाक - यह वाकई बहुत क्षोभ का विषय है... इतिहास कहता है... हमारा परिवार कैसे अंग्रेजों से लोहा लिया था... इसलिए आज जो हमारा हमारे क्षेत्र का मान सम्मान इस राज्य में है हमारे उन पुरखों की देन है.... पर आज हम बहुत दुखी हैं... पूरे ओड़िशा में जो अनैतिक अर्थ का हेर-फेर हुआ हमारे प्रांत में हुआ... इसलिए हम पुरे राज्य की जनता को और राज्य सरकार को आस्वस्त करना चाहते हैं.... वह पाखंडी विश्व प्रताप जो जनता की पाई पाई को लुटा है... उससे कानून तो हिसाब करेगा... हम भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे कि उसे सजा पर्याप्त मिले और जनता को न्याय मिले...
सम्वाददाता - तो यह थे श्री पिनाक सिंह क्षेत्रपाल जी... कैमरा मैन अभिजीत के साथ....
न्यूज सुनने के बाद तापस वहाँ से उठता है और ऑपरेशन थिएटर के सामने खड़ा हो जाता है l पुरे तीन घंटे के बाद डॉ. विजय बाहर निकालता है तापस की और देखता है और कहता है
डॉ. विजय - यार तापस, एक बात बोलूँ... तुमने सही समय पर उसे यहां ले आए... उसके पैर में इंफेक्शन शुरू हो गया था.... हमने सही टाइम में ऑपरेशन किया.... वरना इसका पैर काटने की नौबत आ जाती...
तापस - थैंक्स यार.... सच कहूँ तो मुझे भी ऐसा ही कुछ लगा था... इसलिए मैं इसे यहाँ शिफ्ट कर दिया....
डॉ. विजय - बहुत अच्छा किया....
तापस - ह्म्म्म्म वैसे कब तक यह ठीक हो जाएगा...
डॉ. विजय - यह मेडिसन पर रेस्पांस कैसे करता है उसपर डिपेंड करता है... पर एक महीने के अंदर ठीक हो जाएगा पर दो तीन महीने तक लंगड़ा कर चलेगा क्यूंकि मांस पेशियां सूखने से और सिकुड़ ने में टाइम लगेगा
तापस - ओह... ह्म्म्म्म
डॉ. विजय - अच्छा इन बातों को साइड में लगा और बोल मेरा होने वाला जमाई कैसा है....
तापस - हाँ मालूम है...उसे भड़का कर मेडिकल पढ़ने का आइडिया तेरा ही था...
डॉ. विजय - अररे बंधु... एक सिंपल सा लॉजिक है.... एमबीबीएस सर्टिफिकेट हाथ में हो तो एक कैबिन में भी बैठ कर स्वरोजगार हो सकता है....
तापस - बस बस यह क्यूँ नहीं बता रहे... की ढलती उम्र में जो नर्सिंग होम बनाने वाले हो उसे चलाने के लिए एक डॉक्टर दामाद की जरूरत है....
डॉ. विजय - तो गलत क्या कर रहा हूँ.... जब बेटी और दामाद दोनों डॉक्टर होंगे तो दहेज में नर्सिंग होम दे ही सकता हूँ...
तापस - पुलिस वाले को दहेज का लालच दे रहे हो....
दोनों कुछ देर के लिए ख़ामोश हो जाते हैं फिर दोनों हंस देते हैं l
तापस - अच्छा और एक सवाल का जवाब दो.... उसे गोली कब मारी गई होगी... टॉर्चर से पहले या बाद....
डॉ. विजय - बंधु मैं कोई फॉरेंसिक डॉक्टर नहीं हूँ..... पर अपने अनुभव के दम पर कह सकता हूँ... पहले बुरी तरह से टॉर्चर किया गया फिर उसे गोली मारी गई...
तापस - ओह.... ओके... (हाथ मिलाने के लिए बढ़ाते हुए) मैं चलता हूँ...
डॉ. विजय से विदा ले कर घर तापस पहुंचता है l प्रत्युष कहीं बाहर जाने की तैयार हो रहा है l प्रत्युष को इशारे से पूछता है कहाँ जा रहा है, प्रत्युष भी इशारे से तापस से चुप रहने को कहता है और इशारे से बताता है हॉकी देखने को जा रहा है l तापस इशारे से प्रतिभा के बारे में पूछता है, प्रत्युष भी इशारे से बताता है कि प्रतिभा फाइल पलट कर देख रही है और कुछ लिख रही है l तापस ऐसे अपना सर हिलाता है जैसे उसे सब मालूम हो गया फिर इशारे से प्रत्युष को बाहर जाने को कहता है, जिसे देख कर प्रत्युष इशारे से अपनी खुशी जाहिर करता है और प्रतिभा को सम्भालने के लिए तापस से इशारे से अनुरोध करता है, तापस उसे इशारे अपनी सहमती देता है तो प्रत्युष तापस को फ्लाइंग किस देता है और चुपके से बाहर निकल जाता है l प्रत्युष के जाने के बाद तापस अपने कपड़े बदल कर फ्रेश होता है और बैठक में आता है l इतने में प्रतिभा एक चाय की प्याली लाकर तापस को देती है l तापस चाय पीते हुए प्रतिभा को देखता है l प्रतिभा उसे देख कर मुस्करा रही है l
तापस - ऐसे क्यूँ देख रही हो.... और ऐसे हंस रहे हो जैसे मेरी कोई चोरी पकड़ ली है तुमने...
प्रतिभा - कोई शक़...
तापस - क्या मतलब....
प्रतिभा - तुम जब घर आए.. तब मैं अपना काम रोक कर तुम्हारे पास आ रही थी.... तब तुम बाप बेटे की मूक गुफ़्तगू देख ली थी...
तापस - ओह... तो ऐसा हो गया.... मतलब स्टेडियम में फ्लॉड लाइट लगा कर लुका छुपी खेल रहे थे....
प्रतिभा - हा हा हा हा हा.. जी जनाब...
तापस - तो तुमने रोका क्यूँ नहीं.... तुम्हें तो उसका बाहर जाना पसंद नहीं है ना...
प्रतिभा - ऐसी बात नहीं है... हाँ उसके बाहर जाने पर थोड़ा प्रतिबंध लगाती हूँ... क्यूंकि वह मेडिकल पढ़ रहा है... मस्तियाँ ठीक है पर ज्यादा बाहर घूमने पर पढ़ाई पर असर हो सकता है... इसलिए उसके बाहर जाने पर रोकती हूँ.... वैसे तो बिल्ली आँख मूँद कर दूध पीती है पर इधर बाप बेटे बिल्ला बन कर आँखे मूँद कर दूध पी कर खुश हो रहे थे... की माँ को कुछ पता नहीं चल पा रहा है... तो तुम बेवकुफ हो.... मैं आपको यह बताने आई थी सेनापति जी....
तापस - अच्छा ठीक है... पर उसे फोन कर के बता दो... के रात को जल्दी आ जाए... वरना कल उसके टांगे तोड़ दूँगा...
प्रतिभा - वैसे सेनापति जी... यह आपने लगता है एक सौ इक्कीस बार कह चुके हैं...
तापस - पर यह आखिरी बार है...
प्रतिभा - तो फिर ठीक है... मैं अभी उसको फोन कर बताती हूँ..
तापस - हाँ... अच्छी बात है... और आज तुम्हारा क्या हुआ...
प्रतिभा - आज जैसे ही कोर्ट पहुंची.. मुझे विश्व प्रताप महापात्र की केस फाइल थमा दी गई... मैं सोच रही थी... बहुत बड़ी केस है.... कोई और देख ले तो अच्छा होगा... पर इतने में तुम्हारा दास आया तुम्हारा रिक्वेस्ट लेटर ले कर... तो मैंने अपनी चैनल लगा कर तुम्हारा काम कर दिआ... तो बदले में मुझे यह केस लेने के इमोशनल बाध्य किया गया...
तापस प्रतिभा का हाथ पकड़ कर - सॉरी...
प्रतिभा - अरे कोई नहीं..... आखिर मैं भी तो पब्लिक प्रोसिक्यूटर हूँ...
तभी बैठक में लैंड लाइन फोन रिंग होती है l प्रतिभा फोन उठाती है फिर तापस को देती है l फोन पर बात कर लेने के बाद तापस प्रतिभा से कहता है - अच्छा मैं ऑफिस जा रहा हूँ... ऑडिट चल रहा है... आते आते देर हो सकती है...
प्रतिभा - कोई बात नहीं... ड्यूटी आफ्टर ऑल ड्यूटी.... आप जाइए... आपके आने का इंतजार करूंगी... और आने के बाद मिलकर ही डिनर करेंगे...
तापस - ठीक है जान...
इतना कह कर तैयार हो कर तापस निकल जाता है
तापस के जाने के बाद प्रतिभा वह केस की फाइल निकाल कर अपनी तैयारी करने लगती है l इस तरह वक्त कुछ बीत जाती है l फिर फाइल रख कर खाना बनाने के लिए किचन में आती है l
तभी घर की लैंड लाइन बजने लगती है, प्रतिभा जाकर फोन उठाती है तो दूसरे तरफ से तापस था
तापस - हाँ जान मुझे आते आते साढ़े दस बज जाएंगे तो तुम माँ बेटे खा लो... और मेरे लिए टेबल पर खाना लगा कर सो जाना l
इतना सुनते ही प्रतिभा अपनी दांतों तले जीभ दबा लेती है और कहती है - हाँ ठीक है....
और फोन रख देती है l
फिर प्रत्युष को तुरंत फोन लगाती है, और फोन लगते ही
प्रतिभा - तू कहाँ है...
प्रत्युष - माँ हॉकी की प्रिमीयर लीग चल रही है... अभी हम स्टेडियम के बाहर आये हैं... दूसरा मैच खत्म होते ही आ जाऊँगा और हाँ मैं आज बाहर ही खा लूँगा....
प्रतिभा - क्या.... तेरे डैडी तुझे बाहर क्या भेजे... तेरे पंख निकल आये हैं.... तु अपने डैडी से इजाज़त लेले....
प्रत्युष - माँ... मेरी प्यारी माँ... तु... कितनी अच्छी है... तु कितनी प्यारी है.... ओ माँ प्यारी माँ...
प्रतिभा - अच्छा तु मस्का मार रहा है... या उल्लू बना रहा है...
प्लीज माँ प्लीज... सिचुएशन थोड़ी है टाइट ... क्या मिलेगा तुम्हें देख कर बाप बेटे की फाइट... मैं जानता हूँ.. मेरा बाहर आना आप अच्छी तरह से जानते हो... पर यह देर से आने वाली सिचुएशन सम्भाल लो ना प्लीज....
प्रतिभा - अच्छा ठीक है... मैं कुछ करती हूँ... और सुन... घर आकर कॉलिंग बेल मत बजाना... मैं फोन को वाइब्रेशन मोड़ में रखूंगी... घर पहुंचते ही कॉल करना...
प्रत्युष - ओह.. थैंक्यू मोम.. थैंक्यू... एंड आई लव यू.. उम्म्म्म्म् आ...
प्रतिभा - लव यू ठु... पर यह लास्ट टाइम है....
प्रत्युष - ओह यीएह...
प्रतिभा हंसते हुए फोन रख देती है l और सीधे जा कर प्रत्युष के कमरे में आती है l दो तकिये और चादरों को बिस्तर पर कुछ ऐसे सजाती है कि कोई देखेगा तो उसे लगेगा कोई सोया हुआ है l फिर आकर किचन में बिजी हो जाती है l
ठीक साढ़े दस बजे तापस घर आता है तो पाता है प्रतिभा उसकी इंतजार कर रही है l
तापस - अरे जान तुम सोई नहीं... प्रत्युष अभी तक आया नहीं है क्या....
प्रतिभा - वह कब का आकार.. खाना खा कर सो गया है....
तापस - अच्छा... इतना फर्माबर्दार हो गया है... जरा देखूँ तो...
तापस, प्रत्युष के कमरे की और बढ़ता है और दरवाजा खोल कर अंदर झांकता है तो उसे तापस अपने बिस्तर पर चादर ढक कर सोया हुआ मिलता है, तापस आगे बढ़ने ही वाला होता है कि प्रतिभा पीछे से उसका हाथ पकड़ लेती है,
प्रतिभा -(धीमी आवाज़ में) खबरदार जो मेरे बच्चे को जगाया तो....
तापस अपना सर हिला कर कमरे से बाहर निकालता है और अपने हाथ पैर और मुहँ धो लेता है l फ़िर पति पत्नी अपना डिनर खतम कर अपने कमरे में सोने जाते हैं l बिस्तर पर गिरते ही तापस को नींद आ जाती है, पर प्रतिभा सो नहीं पाती l ठीक साढ़े बारह बजे उसकी फोन वाइब्रेट होने लगती है l प्रतिभा फोन निकालती है और कॉल काट देती है l फिर तापस की ओर देखती है l उसे यक़ीन हो जाता है कि तापस घोड़े बेच कर सोया हुआ है
प्रतिभा बहुत धीरे से अपने बिस्तर से उठती है l और बाहर बैठक में आकर दरवाजे के पास खड़ी होती है l फिर वह पीछे मुड़ कर देखती है कि कोई नहीं है l एक गहरी चैन की साँस लेती है फिर धीरे धीरे दरवाजे की हूक खोलती है l हूक भी बिना आवाज किए खुल जाती है l प्रतिभा कोशिश करती है कि दरवाजा खुलते वक्त कोई आवाज़ ना करे पर किसी हॉरर फ़िल्म की सीन की तरह कर्र्र्र्र्र्र्र् की आवाज़ से खुलती है l बाहर प्रत्युष खड़ा हुआ है, वह प्रतिभा को इशारे से तापस के बारे में पूछता है तो उसे प्रतिभा इशारे से तापस सोया हुआ है बताती है और प्रत्युष को पहले जुते खोलने को बोलती है l प्रत्युष अपना जुते उतार देता है l अब प्रतिभा उसे चुप चाप अंदर आने को इशारा करती है l प्रत्युष कोई आवाज़ किए बिना अंदर आता है और अपने कमरे में पहुंच जाता है, उसके कमरे में जाते ही प्रतिभा धीरे से बाहर का दरवाजा बंद कर देती है l दरवाजा बंद होते ही प्रतिभा एक गहरी सांस छोड़ती है और प्रत्युष के कमरे में आती है, अंदर आते ही प्रत्युष के पीठ पर एक थप्पड़ मारती जिससे थोड़ी धप की आवाज़ आती है, मार लगते ही प्रत्युष मुड़ता है तो प्रतिभा उसे इशारे से चुप रहने की इशारा करती है, प्रत्युष भी अपने मुहँ पर उंगली रख कर चुप रहता है और फ़िर प्रतिभा धीरे से कमरे का दरवाजा बंद कर के प्रत्युष की कान खींचती है... प्रत्युष हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगता है, प्रतिभा उसका कान छोड़ देती है और चुप चाप बिस्तर पर जाने को कहती है, बिस्तर पर पहले से ही अरेंजमेंट देख कर अपनी माँ को फ्लाइंग किस देता है l प्रतिभा मुस्कराते हुए फ़िर मारने की इशारा करते हुए बाहर निकल जाती है और अपने कमरे में वापस आती है l वह तापस को जैसा छोड़ गई थी तापस वैसा ही लेता हुआ है l प्रतिभा अपने सीने में हाथ रख कर एक चैन सांस लेती है और चादर ओढ़ कर तापस के बगल में लेट जाती है l
"हाँ तो बिल्ला की माँ बिल्ली आँखे मूँद कर दुध पी आई" कमरे में तापस की आवाज़ आती है l
प्रतिभा - (धीरे से) क्यूँ जी आप अभी तक सोये नहीं...
तापस - (प्रतिभा की ओर मुड़कर, धीरे से ) भई बेटा बाहर है... मुझे नींद कैसे आएगी....
प्रतिभा - (धीमी आवाज़ में) तो आप मुझे बेवकुफ बनाया...
तापस - जान... शाम को तुमने मुझे बिल्ला बनाया... मैंने रात को तुम्हें बिल्ली बनाया...
प्रतिभा - अजी.. एक बात कहूँ आज ना... आपका शरारत देख कर ना मुझे आप पर बड़ा प्यार आ रहा है.....
तापस-अरे जान.... आज मुझे भी तुम पर बड़ा प्यार आ रहा है..
प्रतिभा - अच्छा जी.... आज बुढ़ापे में हम पर फिर प्यार आया है....
तापस - वह कहते हैं हमसे
अभी उमर नहीं है प्यार की
नादां है वह क्या जाने
कब खिली कली बाहर की
प्रतिभा - यह कौनसी फिल्म का गाना है...
तापस - पता नहीं आज जैल में सुना था इसलिए तुम्हें चेप दिआ..
प्रतिभा उसके गाल पर प्यार से हाथ फ़ेरती है और अपना होंठ बढ़ाती है,तापस भी अपना होंठ उसके होंठो पर रख देता है और अपनी बाहों में जोर से भिंच लेता है l
इस तरह से कुछ दिन बीत जाते हैं l इन कुछ दिन में हर रोज तापस हस्पताल जा कर विश्वा की खैर खबर लेता रहा l आज सुबह अपना ऑफिस जाने से पहले हस्पताल पहुंच कर डॉ. विजय से मिल कर विश्वा की हालत जानना चाहा
डॉ. विजय - आओ जैलर आओ... क्या खबर लेने आए हो.... जो भी खबर सुनोगे... बहुत खुश होगे.... शाबासी भी दोगे...
तापस - क्यूँ.. भाई... मैं तो सिर्फ विश्वा की खैरियत जानने आया हूँ....
डॉ. विजय - अररे बंधु.... यह जो तुम्हारा मुजरिम है.... बड़ा ही जबर्दस्त प्राणी है.... मेडिसन और ट्रीटमेंट पर उसकी बॉडी बढ़िया रेस्पांस कर रही है.... तुम फिटनेस का हवाला देते हुए केस की तारीख़ निकाल सकते हो...
तापस - चलो... अच्छी खबर दी है तुमने... तुम्हारा हस्पताल का बिल सरकारी खाते से जल्दी मिल जाए मैं कोशिश करूंगा...
डॉ. विजय - आ.. ह... लिव ईट... अब बताओ अपना हीरो कैसा है...
तापस - हाँ... यह हॉकी ला लीग खत्म हो जाए तो वह पढ़ाई में ध्यान देगा....
डॉ. विजय - ओह.. कॉम ऑन... यार पढ़ाई के प्रेसर से इस तरह की लीग रिलैक्स करते हैं... अब इस उम्र में यह नहीं करेगा तो कब करेगा... जिस दिन जिम्मेदारी सम्भाल लेगा... यह सब भी छुट जाएगा....
तापस - हाँ शायद तुम ठीक कह रहे हो....
फिर डॉ. विजय से हाथ मिला कर अपने क्वार्टर की तरफ निकल जाता है l क्वार्टर पहुंचते ही उसे अपने क्वार्टर के गेट के गेट बाहर वैदेही को खड़ी हुई दिखती है l
तापस - तुम.... विश्व की बहन.. हो... वैदेही.. है नाम तुम्हारा... हैं ना..
वैदेही - जी... सुप्रीनटेंडेंट साहब...
तापस - पर तुम यहाँ...
वैदेही - जी वो... अपने कहा था... विश्वा की खबर लेने के लिए... आपसे...
तापस - पर तुम्हें... मैंने अपना फोन नंबर दिया था... ना... तुम फोन पर उसकी खबर ले सकती थी... यहाँ तक आने की क्या जरूरत थी...
वैदेही - वो... आपने विशु के लिए एक अच्छा वकील देखने के लिए कहा था ना... इसलिए..
तापस - विशु.... ओ.. अच्छा... तुम विश्वा की बात कर रही हो...
वैदेही - जी....
तापस - देखो हम कब तक यहाँ गेट पर खड़े होकर बात करते रहेंगे... एक काम करो अंदर आओ... वहीँ बात चित करते हैं और मुझे ड्यूटी भी जाना है...
वैदेही अपने हाथ में लाई बोतल की पानी से अपने पैर धोती है और फिर तापस के साथ बैठक में आती है l प्रतिभा बैठक में आकर तापस से कुछ कहने को होती है कि वैदेही को देख कर चुप हो जाती है और तापस को आँखों के इशारे से वैदेही के बारे में पूछती है l
तापस - यह वैदेही है... तुम्हारे उस मुज़रिम की बहन लगती है... मुझसे उसका हाल चाल पूछने आई है...
वैदेही प्रतिभा को नमस्कार करती है l प्रतिभा भी उसका ज़वाब नमस्कार से देती है l
तापस - हाँ तो वैदेही....बैठो (वैदेही और कहो.... तुमने अपने विशु के लिए वकील मुकर्रर कर ली...
वैदेही - जी अभी तक कोई नहीं है.... मैंने जितने वकीलों से बात की... सारे इतने पैसे मांग रहे हैं कि... अब हम इतने पैसे कहाँ से लाएँ.... अगर आपकी पहचान की कोई वकील हो तो....
तापस - देखो वैदेही... नाउ दिस इस लिमिट.... ना तो तुम पहचान की हो और ना ही कोई रिश्तेदार.... अगर होती भी... तब भी मैं तुम्हारी कोई मदत नहीं करता.... यह मेरी वसूल और जॉब प्रोफेशन के विरुद्ध है....
वैदेही - (अपनी दोनों हाथ जोड़ कर) साहब मेरा भाई निर्दोष है.... उसे सब सफ़ेद पोश लोगों ने मिलकर फंसाया है.... इसलिए मैं.... मेरा मतलब है.... आप ने देखा ना... कैसे वह लोग मेरे भाई के जान के पीछे पड़े हुए हैं.... चूंकि आप अच्छे हैं और आपने मेरे भाई को बचाया है..... इसलिए आपसे मदत मांग रही हूँ....
तापस - जितनी मेरी ड्यूटी थी... मैंने उसे पूरी ईमानदारी से निभाया है... और वह एक्वुशड है... उसके लिए वकील तुम्हें ढूंढना है.... मैं कैसे बता सकता हूँ....
वैदेही कुछ कह नहीं पाती अपने आंखों में आंसू लिए हाथ जोड़कर तापस की ओर उम्मीद भरी नजरों से ताक रही होती है l प्रतिभा जो इतनी देर से देख व सुन रही थी, उससे रहा ना गया,
प्रतिभा - वैदेही.... तुम अपनी भाई को निर्दोष मान सकती हो... पर पुलिस तहकीकात व रिपोर्ट कुछ और ही बयान कर रही है... तुम्हारा भाई एक चालाक और शातिर मुज़रिम है जो कुछ सरकारी अधिकारियों के मिली भगत से साढ़े सात सौ करोड़ रुपयों का गवन किया है...
वैदेही - मेम साहब.... जब तक अदालत में अपराध साबित ना हो जाए... उसे कोई भी दोषी नहीं ठहरा सकता है....
प्रतिभा - ठीक.... बिल्कुल... ठीक कहा तुमने.... पर तुम तुम जिस घर में आई हो वह एक पब्लिक प्रोसिक्यूटर का घर है.... जिसका काम है पुलिस की छानबीन को सही साबित करना.... शूकर करो उसके ऊपर हत्या का संदेह है... अगर छानबीन में आगे पता चले या सबूत मिले तो मैं उसके लिए फांसी की सजा तक कि मांग कर सकती हूँ....
वैदेही - (थोड़े गुस्से में) वह बेगुनाह है.... आप जानती हैं... जिस रकम की बात कर रही हैं... उसमें कितने शुन्य है... हमे नहीं पता....... और मैं यहां इसलिए आई थी... के उस दिन सुपरिटेंडेंट साहब को शायद एहसास हो गया कि... विशु निर्दोष है और उसे कुछ लोग क्यूँ मारना चाहते हैं..... पर आप लोग तो उसे दोषी मान कर चल रहे हैं.....
प्रतिभा - (थोड़ी ऊंची आवाज में) आवाज़ नीचे... सुपरिटेंडेंट साहब अगर तुम्हारे विशु को बचाए हैं.... तो यह उनका फ़र्ज़ था.... और तुम्हारे विशु को दोषी अदालत में ठहराउं... यह मेरा फ़र्ज़ है.... और हम दोनों अपने अपने जॉब प्रोफेशन के प्रति समर्पित व ईमानदार हैं.... कानून कभी जज्बातों को नहीं देखती... सिर्फ़ सबूत देखती है और सुनती है.... और मेरे पास जितने सबूत हैं... उसके बिना पर कह सकती हूँ... तुम्हारा भाई अपने कुकर्म से किसी भी पेशेवर मुज़रिम को मात दी है....
वैदेही - वाह... वकील साहिबा वाह.... एक इक्कीस साल का नौजवान... इतना बड़ा रकम लूट ले आप इसपर यक़ीन कर सकती हैं....
प्रतिभा - इक्कीस साल.... तुमने दिल्ली के डीटीसी बस में हुई बलात्कार कांड सुनी है ना.... कितने उम्र के थे वह अपराधी.... एक तो नाबालिग था... इसलिए यह बहस बेकार है...
वैदेही - (अपने हाथ जोड़ कर) मुझे माफ कर दीजिए.... मैं बस इतना कहना चाहती हूं.... आप अपने जॉब के प्रति समर्पित हैं... ईमानदार हैं... आज जिस ओहदे पर हैं, समाज के प्रति कुछ जिम्मेदारियां भी है.... हर सिक्के का दूसरा पहलू भी होता है.... आज आप वही एक पहलू देख रहे हैं... जो आपको दिखाया गया है... जिसके आधार पर आप विशु को दोषी मान रहे हैं.... पर एक सवाल है.... जब विशु को सजा हो जाए.... और आपको मालूम पड़े के आपने जिसे सजा दिलवाई है... वह निर्दोष था... और असली अपराधी तो कोई और था... तब क्या आप अपने आपको क्षमा कर पाएँगी.....
प्रतिभा - लुक... आई नो व्हाट आई एम डुइंग.... सिक्के का दूसरा पहलु देखना या दिखाना डिफेंस लॉयर का काम है... एंड आई कैन नॉट एडवाइस यु... हू कैन बी गुड फॉर योर केस... आई एम अ पब्लिक प्रोसिक्यूटर एंड आई एम प्रोफेशनल...
तापस - बस.... बहुत हुआ.... वैदेही.... तुम्हें अपनी भावनाओं पर काबु रखना चाहिए.... और प्रतिभा तुम्हें भी....
वैदेही तुम्हें हमारी पेशावर मजबूरी को समझना चाहिए.... इसलिए प्लीज.... हमसे तुम ऐसा कुछ उम्मीद मत करो... यह लड़ाई तुम्हारी और तुम्हारे भाई की है.... सो प्लीज....
वैदेही - मैं फिर से माफ़ी चाहूँगी..... मैं वाकई भूल गई... जब अपने गांव में किसीने हमारा साथ ना दिया... तो मैं कैसे आपसे उम्मीद लगा बैठी.... पर भगवान से यह दुआ जरूर मांगूंगी... न्याय की बिजली कभी भी आपके इस घर पर ना गिरे..... के आपकी ईमानदारी जो आज आपकी ताकत भले ही है... पर आज इसे आपने अपना अहम बना दिया है.... वह कभी आपकी बेबसी ना बन जाएं.... अब मैं चलती हूँ सुपरिटेंडेंट साहब... अब जो भाग्य में लिखा होगा वह होगा.... आपने मेरी इतनी मदत की इसलिए तह दिल से धन्यबाद....