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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Rajesh

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👉एक सौ चौवालीसवां अपडेट
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राजगड़
भीमा का अखाड़ा
अखाड़े में पहलवानों का जमावड़ा लगा हुआ है l कुछ कुस्ती में मसरूफ थे तो कुछ कसरत में l भीमा पुरा मैदान घूम कर निरीक्षण कर रहा था l इतने में वह देखता है सत्तू के साथ कुछ पहलवान हाथों में कसरती गदा लिए प्रवेश करते हैं l सबके मुहँ पर एक परेशानी सा भाव को देखता है l

भीमा - क्या बात है सत्तू... कहाँ गए थे... और यूँ मुहँ लटकाये क्यूँ आ रहे हो...
सत्तू - कुछ नहीं गुरु... बस हम नदी किनारे गए थे...
शनिया - बे बहन के लौड़े... तब हाथ में लोटा होना चाहिए था... यह गदा क्या करने ले गए थे...
सत्तू - वह... (एक बंदे की ओर इशारा करते हुए) यह नीलकंठ कह रहा था... वह... (रुक जाता है)
भीमा - रुक क्यूँ गया... बोल...
सत्तू - ऐ नील... तु बोल... (नील इशारे से मना करता है)
भीमा - (गुस्से में) अबे कोई तो बोलो... ऐसे जता रहे हो... जैसे तुम्हारी माँ चोद दी किसीने...
सत्तू - ठीक है... मैं बताता हूँ... वह गुरु... इस नील को खबर मिली... के विश्वा... अकेले कसरत करने शाम को नदी किनारे जाता है... जहां से कनाल खुलता है...
भीमा - हाँ तो...
सत्तू - तो इसने कुछ पट्ठों को साथ लिया... मैं भी उसके साथ हो लिया... मिलकर विश्वा की ऐसी की तैसी करने के लिए...
शनिया - ओ... तो यह बोलो ना... विश्वा से फिर से पीट कर आए हो... तुम लोग...
भीमा - तु चुप रह... तु कौनसा... विश्वा से मार खाए वगैर आया है...
सत्तू - नहीं गुरु... बात हमारे मार खाने तक कि गई नहीं...
भीमा - तो...
सत्तू - हम जब पहुँचे... तो देखा... विश्वा एक पेड़ के नीचे कसरत कर रहा था... हम लोग छुप कर... योजना बनाने लगे... किस वक़्त और कैसे उस पर धाबा बोलना है... पर...
भीमा - अबे... यह बार बार अटक क्यूँ रहा है... सीधे बोल... विश्वा ने तुम लोगों की गांड मारी तो कैसे मारी...
सत्तू - हमने देखा... जब विश्वा पसीना पसीना हो गया... तब वह अपने बदन से कपड़े निकाल दिया... उसका बदन... शाम की ढलती सूरज की चमक से चमक रही थी... उसका बदन ऐसा लाग रहा था... जैसे पत्थरों को काट कर किसी शिल्पी ने... पेशियों वाली मुरत बनाया हो...
भीमा - बस वही देख कर... तुम लोगों की फट गई...
सत्तू - सिर्फ वही नहीं गुरु... हमने देखा... वह... ईंटों को... हाथ के वार से तोड़ रहा था... काठ के पाटों को... हाथ के वार से तोड़ रहा था... पेड़ से टंगे पानी से भरे बड़े बड़े मटकों को कभी लात से.. कभी कुहनियों से फोड़ रहा था...

सत्तू रुक जाता है, उसे महसुस होता है जैसे पुरे अखाड़े को कोई सांप सूँघ गया हो, यह देख कर रुक जाता है l उसे चुप देख कर भीमा पूछता है

भीमा - बस इतना ही...
सत्तू - नहीं... विश्वा फिर एक बाँस की लाठी उठाया... ऐसे चलाया... की हमको दिखी ही नहीं... हवाओं को चीरती हुई उस बाँस की आवाज... ऐसा लग रहा था जैसे... कोई आँधी हो... या बवंडर...

सत्तू फिर चुप हो जाता है l वह देखता है कुछ पहलवान उसे मुहँ फाड़े देखे जा रहे हैं और भीमा की नजरें सत्तू से हट गया था और भवें सिकुड़ कर कुछ सोच में पड़ गया था l

सत्तू - क्या हुआ गुरु...
भीम - क्या बस इतना ही...
सत्तू - हाँ... बस इतना ही... उसकी लाठी जब चलती है... तो गायब ही लगती है... तब समझ में आया... कैसे तलवार घुमा कर... सरपंच की गमछे को तीन टुकड़ों में काटा था...

तभी अखाड़े में बल्लभ अंदर आता है l इन सबके सामने आकर खड़ा हो जाता है l सभी उसके सामने सीधा हो कर खड़े हो जाते हैं l

भीमा - क्या हुआ वकील साहब...
बल्लभ - यह सत्तू जो तुम लोगों से कह रहा था... मैं थोड़ी दुर से सब सुन रहा था... (सबकी चेहरे पर गौर करता है, जैसे सब शर्मिंदा हो रहे हैं) देखो... तुम लोग वह क्या है... क्या किया है... यह सोचने की जहमत मत उठाओ... बस इतना याद रखो... तुम लोग... जब तक राजा साहब के काम के हो... तब तक जिंदा हो... जिस दिन राजा साहब को यह एहसास हो गया... तुम लोग उनके किसी काम के नहीं रहे... उस दिन... तुम्हें कोई बचा नहीं पाएगा... दो बार... उसने तुम्हें मात दी है... पर जरूरी नहीं... के यह हर बार... दोहराया जाए... इसलिए तुम लोग... अपनी तैयारी मत छोड़ो...
शनिया - वही तो कर रहे हैं... वकील साहब...
बल्लभ - हाँ मुझे दिख भी रहा है... बस एक बात अच्छे से याद कर लो... क्षेत्रपाल महल के वज़ह से... सिर्फ राजगड़ में ही नहीं... आसपास के पचीस तीस गाँव में भी तुम लोगों का बहुत भाव है... इसलिए अब तक जो हुआ... सो हुआ... अब कि बार... अगर क्षेत्रपाल की साख पर... तुम लोगों के वज़ह से कोई बट्टा लगा... तो भीमा... आखेट महल में... जो मगरमच्छ और लकड़बग्घे भूखे हैं... उनके निवाला तुम लोग भी हो सकते हो...

सब के सब डर के मारे अपनी हलक से थूक निगलने लगते हैं l उनकी हालत देख कर बल्लभ उनसे कहता है

बल्लभ - डर बहुत ही अच्छी चीज़ है... डर को इज़्ज़त देना चाहिए... पर डर वाला इज़्ज़त तुम किसे दोगे... राजा साहब को... या विश्वा को... उस डर को अच्छी तरह से तोल लो... (सबकी चेहरे पर नजर घुमा कर) तो क्या फैसला किया...
भीमा - हम... हम राजा साहब के नमक ख्वार हैं वकील बाबु... हम उनके लिए... ऐसे कई विश्वा से भीड़ जाएंगे... (सब से) क्यूँ साथियों...
सत्तू - राजा सहाब की...
सभी - जय हो...
बल्लभ - शाबाश...
भीमा - वैसे वकील साहब... हफ़्तों हो गए... दरोगा जी... दिख नहीं रहे हैं...
बल्लभ - हाँ... अब पता नहीं... दरोगा कहाँ चला गया... पर तुम्हें दरोगा की क्या जरूरत है...
भीमा - जैसे आप हमारे साथ हैं... उसी तरह दरोगा जी की भी साथ मिल जाए... तो हिम्मत सौ गुना बढ़ जाती है...
बल्लभ - इतनी जल्दी पंचायत भवन की कांड भूल गए लगता है...
शनिया - नहीं वकील बाबु... अगर उस दिन टाईम पर दरोगा जी पहुँच गए होते... तो बात अलग होती...
बल्लभ - खयाली पुलाव पकाना छोड़ दो... अनिकेत... फ़िलहाल छुट्टी पर है... अपनी निजी वज़ह से... पर इतना पक्का बता सकता हूँ... वह जहां भी होगा... विश्वा को ख़तम करने की ही सोच रहा होगा...
भीमा - वह... वकील बाबु... उस दिन... राजा साहब ने... एसपी को फोन पर नए दरोगा के लिए... सिफारिश किये थे....
बल्लभ - हाँ... नया दरोगा... एक या दो दिन में... थाने का चार्ज ले लेगा... फ़िलहाल जब तक राजा साहब ना कहें... तुम लोग कोई बेवकूफ़ी मत करना... विश्वा पर तुम लोग सिर्फ नजर रखो... हर बाजी... हमेशा कोई जीत नहीं सकता... उसकी हार भी... उसकी प्रतीक्षा में होगी... हमें उस वक़्त का इंतज़ार करना होगा... समझे...
भीमा - जी...
बल्लभ - वह कसरत करे या सर्कस... फ़िलहाल उससे दूरी बनाए रखो... उसका अंजाम जिसके हाथों होना है... वह तय है... तुम लोग बीच में मत घुसो...

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पसीने को पोंछ कर अपने कपड़े समेटते हुए विश्व को महसूस होता है कि कोई आसपास है जो उससे शायद छुपा हुआ है l थोड़ा ध्यान देने पर विश्व को मालुम हो जाता है छुप कर देखने वाला कौन है l विश्व मुस्करा देता है

विश्व - छुप कर क्यूँ देख रहा है... बाहर आजा... (पत्थर के ओट से अरुण बाहर आता है, विश्व उसके गाल को पकड़ कर) क्यूँ रे... अपने मामा के कसरत को छुप कर देख रहा है...
अरुण - आह... मामा... लग रहा है...

विश्व उसके गाल छोड़ देता है l अरुण अपने गाल पर हाथ रखकर मलने लगता है l विश्व अपने कपड़े और सामान समेट कर चलने लगता है l उसके साथ साथ अरुण भी चलने लगता है l

अरुण - मामा... आप क्या कसरत करने के लिए... जगह बदल दी...
विश्व - क्यूँ...
अरुण - नहीं... आप तो हमेशा घर पर... कसरत किया करते थे ना...
विश्व - आज मन किया तो यहाँ चला आया...
अरुण - ओ...
विश्व - तु यहाँ क्यों आया था...
अरुण - मैं... मैं हमेशा की तरह... दो टाईम लंडन जाता हूँ ना... (लोटा दिखाते हुए) इसलिये...
विश्व - (मुस्करा देता है) बहुत बदमाश हो गया है तु...
अरुण - हाँ... माँ भी यही कहती है...
विश्व - स्कुल में पढ़ाई कैसी चल रही है...
अरुण - वह तो बढ़िया चल रही है... पर अब छुट्टियाँ चल रही है...
विश्व - ओ हाँ... होली की छुट्टियाँ...
अरुण - हाँ... पर होली हम खेलते कहाँ हैं... सिर्फ किताबों में ही पढ़ा है... होली में रंग खेला जाता है...

इस बात पर विश्व खामोश रहता है l विश्व से जवाब ना पाकर अरुण विश्व की ओर देख कर पूछता है l

अरुण - मामा...
विश्व - हूँ...
अरुण - तुमने कभी होली खेली है...
विश्व - (अरुण के चेहरे की ओर देखता है आशा भरी मासूमियत सवाल था) हाँ... खेली तो है... पर राजगड़ में नहीं...
अरुण - फिर कहाँ खेला तुमने...
विश्व - राजगड़ से बहुत दुर... पिछले साल तक... भुवनेश्वर में...

फिर एक शांति छा जाती है दोनों के बीच l दोनों चलते चलते विश्व के बनाए श्रीनिवास लाइब्रेरी में पहुँचते हैं l विश्व अपना सामान बरामदे में रख कर अरुण से पूछता है l

विश्व - घर नहीं जाओगे...
अरुण - मामा... हम राजगड़ में होली क्यूँ नहीं खेल सकते...
विश्व - अपनी माँ या बाप से पुछा है कभी...
अरुण - हाँ...
विश्व - क्या कहा उन्होंने... बापू ने तो कुछ कहा नहीं पर... माँ ने कहा...
विश्व - क्या कहा...
अरुण - यहाँ त्योहार मनाने से... राक्षस राजा जाग जाएगा... हमें उठा लेगा... और कच्चा चबा जाएगा...
विश्व - ह्म्म्म्म... ठीक कहती है तुम्हारी माँ...
अरुण - पर मामा... हम होली खेलना चाहते हैं...
विश्व - अपनी माँ की कही बात भुला रहे हो...
अरुण - प्लीज मामा... तुम भी हमारे साथ खेलो ना... मैं जानता हूँ... तुम खेलोगे... तो कोई राक्षस नहीं आएगा...
विश्व - यह तुम कैसे कह सकते हो... क्या यह बात तुम्हारी माँ ने कही...
अरुण - नहीं... यह तो मैं कह रहा हूँ... क्यों कि मुझे पता है... तुमसे राक्षस सारे डरते हैं...
विश्व - (मुस्कराता है) तुझे होली के बारे में कुछ पता भी है...
अरुण - हाँ पता है ना... होली में लोग एक दुसरे को रंग लगाते हैं...
विश्व - और...
अरुण - और क्या... म्म्म्म्म्म्म्... हाँ आम खाते हैं...
विश्व - होली... रंगों का त्योहार है... पर अलग अलग प्रांतों में... अलग अलग मान्यताओं के अनुसार मनाया जाता है... जैसे कहीं... होली दहन के अगले दिन... राख और रंग खेलते हैं... और कहीं लठ होली खेला जाता है... पर हमारे प्रांत में... इसे होली नहीं फगु कहते हैं... जो फाल्गुन पूर्णिमा के अगले दिन खेला जाता है... जगन्नाथ संस्कृति में फाल्गुन दशमी के दिन से... श्री कृष्ण जी की मूर्ति को... विमान में नगर परिक्रमा कराया जाता है... इसी विमान को... दोल कहते हैं... आम के फलों का भोग लगाया जाता है... उसके पश्चात ही लोग आम कहते हैं... उससे पहले नहीं खाया जाता... लोग जो रंग खेलते हैं... उसे अबीर कहते हैं...
अरुण - ओ... तो अबीर खेलने के लिए... हमें श्री कृष्ण जी की मूर्ति को... विमान में... घुमाना पड़ेगा...
विश्व - हाँ पर तु इतना बेताब क्यूँ है... तेरे माँ बाप... थोड़े ना राजी होंगे...
अरुण - मामा... अगर तुम साथ दोगे... तो माँ और बापू थोड़े ना कुछ कहेंगे...
विश्व - (चौंकते हुए) क्या... पाँच दिनों तक विमान परिक्रमा करवाओगे...
अरुण - हाँ... (विश्व एक टफली मारता है अरुण के सिर पर) आह... ठीक है... मामा... कम से कम... एक दिन के लिए... तो कर सकते हैं ना...
विश्व - तु जानता भी है... पुरे राजगड़ में ही नहीं... आसपास के इलाकों में भी... कभी त्योहार नहीं मनाया जाता...
अरुण - मालूम है... पर मामा... इसबार तुम रहोगे ना हमारे साथ...
विश्व - क्या... क्यूँ...
अरुण - तुम रहोगे तो कोई हिम्मत नहीं करेगा... यहाँ तक राक्षस राजा भी नहीं... हमारे मौहल्ले से शुरु करेंगे... वैदेही मासी की दुकान से होकर... यहाँ श्रीनिवास लाइब्रेरी में... परिक्रमा ख़तम करेंगे...

विश्व कोई जवाब नहीं देता, अरुण बड़ी आस भरी नजर से विश्व की ओर देखता है l विश्व का चेहरा थोड़ा गंभीर दिख रहा था l वह जैसे किसी सोच में खो गया था l

अरुण - मामा... बोलो ना... तुम हमारे साथ रहोगे ना...
विश्व - (पॉज)
अरुण - हम होली खेलना चाहते हैं... बोलो ना...
विश्व - (पॉज)

विश्व से कोई जवाब ना पाता देख कर अरुण मायूस सा चेहरा लेकर वापस जाने लगता है l विश्व अपनी सोच से बाहर आता है और आवाज देता है

विश्व - अरुण... (अरुण मूड कर देखता है) मैं साथ हूँ... पर एक दिन के लिए बस...

अरुण भागते हुए आता है और विश्व के उपर खुद कर गोद में चढ़ जाता है l विश्व भी उसे गोद में उठा लेता है l अरुण विश्व के गाल पर एक लंबा चुंबन देता है l फिर विश्व की गोद से उतर कर हाथ हिला कर विश्व से विदा लेता है और उछलते कुदते अपने घर की जाने लगता है l उसे यूँ जाता देख विश्व के होठों पर एक मुस्कान उभर जाती है l तभी उसके कानों में एक आवाज पड़ती है l

- भाई... बच्चे को यूँ झूठ बोल कर बहलाना ठीक बात नहीं... (यह टीलु था)
विश्व - (टीलु की ओर मुड़ कर) तुम कब आए...
टीलु - आया तो थोड़ी देर पहले था... पर मामा भांजे का प्यार गुफ़्तगू देख कर... ठिठक गया...
विश्व - काम का क्या हुआ...
टीलु - (कुछ कागज निकाल कर विश्व की ओर बढ़ाता है) देख लो... पुरे के पुरे दस लोग... जेरॉक्स हैं...
विश्व - (सारे कागजात देखते हुए) ह्म्म्म्म... बहुत बढ़िया...
टीलु - ओरिजिनल सारे सीलु के पास है... और आज ही वह... भुवनेश्वर जा रहा है... जोडार सर के हवाले कर आयेगा...
विश्व - बहुत अच्छे...
टीलु - पर भाई... तुमने जवाब नहीं दिया...
विश्व - (टीलु की ओर देखते हुए) तुम्हें लगता है... मैं अरुण से झूठ बोल रहा था...
टीलु - तो क्या सच में... गाँव में होली खेला जाएगा...
विश्व - हाँ... बच्चे और मैं... और जो हमारे साथ आयेंगे... वे लोग...

तभी विश्व के मोबाइल पर मैसेज ट्यून बजने लगती है l विश्व मोबाइल निकाल कर मैसेज देखता है l मैसेज रुप ने भेजा था l
“आई एम कमींग"


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xxxx गोदाम यशपुर
गोदाम के अंदर सारे ऐसों आराम की सहूलियतें हैं l बड़ा सा बिस्तर है जिस पर फूलों के पंखुड़ियां बिखरे पड़े हैं l एक आईने के सामने कुर्ते पाजामे में गुनगुनाता रोणा अपने ऊपर फ्रेगनेंस छिड़क रहा था l तभी उसके कानों में गाड़ी की हॉर्न सुनाई देता है l रोणा अपने लैपटॉप पर देखता है बाहर एक मर्सिडीज गाड़ी खड़ी है l कुछ देर बाद गाड़ी की खिड़की डाउन होती है टोनी उर्फ लेनिन खिड़की से झाँकता है और हाथ हिलाता है l रोणा के आँखों में चमक उभर आती है और होठों पर मुस्कान आ जाती है l वह लैपटॉप पर कुछ टाइप करता है l तो एक दरवाजा खुल जाता है l मर्सिडीज अंदर आती है l गाड़ी अंदर आकर सीधे उसके बिस्तर के पास रुकती है l रोणा देखता है पिछली सीट पर रुप हैरानी से भवें सिकुड़ कर गोदाम को और रोणा को देख रही है l

लेनिन - हाँ तो रोणा बाबु.... मेरे कागजात कहाँ हैं...
रोणा - इतनी जल्दी भी क्या है...

कहकर गाड़ी की तरफ जाने लगता है, लेनिन अपनी जेब से पिस्टल निकाल कर रोणा पर तान देता है l रोणा यह देख कर रुक जाता है l

रोणा - यह क्या है टोनी...
लेनिन - बहुत बड़ा कांड कर आया हूँ... और मुझे अभी के अभी राजगड़ से निकल जाना है... इसलिए मेरे कागजात मेरे हवाले कर दो... वर्ना... मैं अभी के अभी इस लड़की को लेकर चला जाऊँगा...
रोणा - ओके ओके... (कह कर एक टेबल के ड्रॉयर को खोलता है)
लेनिन - अगर गन निकालने की कोशिश की... तो तुम्हारा भेजा उड़ा दूँगा रोणा...
रोणा - बहुत जल्द औकात में आ गया तु... साहब से... तु..
लेनिन - हाँ... क्यूँ की तु कोई महात्मा है नहीं... हरामी पन में... मुझ से दो कदम आगे है बस...

रोणा एक पैकेट निकाल कर लेनिन के हाथ में देता है l लेनिन पैकेट खोल कर देखता है संतुष्टि होने पर पैकेट को जेब में रखते हुए रोणा से कहता है l

लेनिन - ठीक है रोणा बाबु... इस लड़की की गाड़ी खराब होने के बाद इसे झूठ बोल कर... लिफ्ट देने के बहाने यहाँ तक ले आया... अब यह लड़की तुम्हारे हवाले... (कह कर लेनिन दरवाजा खोलता है l रुप नीचे उतरती है, रुप से) मेम साहब... यही आपकी मंजिल थी... जहां मैंने आपको पहुँचा दिया है...

कह कर लेनिन अपनी गाड़ी में बैठता है और बैक करते हुए गोदाम से निकल जाता है l उसके जाते ही रोणा दरवाजे को बंद करने का कमांड देता है और दरवाजा बंद हो जाता है l गुस्से से दांत पिसते हुए रुप रोणा की देखती है l

रोणा - हैरान हो.. जानेमन... हा हा हा हा... परेशान हो... ओ हो हो हो... कोई ना... आज मेरा दिन है... वह कहते हैं ना... अँग्रेजी में... "एवरी डॉग हेज हीज डे" (चेहरा बहुत गंभीर हो जाता है, अपने गाल पर हाथ फेरते हुए) आज मेरा दिन है... कमीनी कुतिया...
रुप - (चुप रहती है, पर उसे घूरती रहती है)
रोणा - (अपनी दोनों बाहें फैला कर) मैं जब राजगड़ आया था... तब इस गोदाम पर मेरी नजर पडी थी... तब से इसे धीरे धीरे अपने कब्जे में लेकर... सवांर रहा था... आज ही के दिन के लिए... बहुत बड़ा गोदाम है... जितना चाहे भाग सकती है... तु जब भागते भागते थक जाएगी... तब मैं तेरी फाडुंगा... तु रोती रहेगी... चीखती चिल्लाएगी... तब मैं तुझे रौंदुंगा... चल भाग... (चिल्लाते हुए) भाग....

रोणा इतनी जोर से चिल्लाया था कि भाग शब्द कुछ देर तक गुंजती रही l जैसे ही भाग शब्द की गुंजन थम जाती है l रुप हँसने लगती है l हँसते हँसते वह टेबल के पास रखे चेयर पर बैठ जाती है और अपनी दाहिनी पैर को बाएँ पैर बड़े अदब से रखती है और राजसी ठाठ पर बैठती है l रोणा भैवें सिकुड़ कर रुप की ओर देखने लगता है l

रुप - एक लड़की... दो अंजान मर्दों के बीच आकर भी... ना चीखती है... ना चिल्लाती है... तुझे हैरानी नहीं हुई... इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा...

रूप अपनी चूडी से एक सेफ्टी पिन निकाल कर अपनी मोबाइल फोन को चुभो देती है l एक स्लॉट खुल जाती है l एक चिप को निकाल कर रोणा को दिखाते हुए कहती है

रुप - इस बग वाली चिप ट्रिक से तुझे और तेरे इस छछूंदर को लगा... मुझे ट्रैप कर लोगे... हा हा हा हा... (रुप हँसने लगती है, फिर अचानक अपनी हँसी रोक कर) स्मार्ट तु है नहीं... चालाक तु बन नहीं पाया... और बेवक़ूफ़ इतना के तेरी बेवक़ूफ़ों में भर्ती होगी नहीं... (रोणा की आँखे हैरानी से फैल जाती हैं, वह रुप की ओर आगे बढ़ने की कोशिश करता है तो उसे रुप की हाथों में एक गन दिखता है, रुप एक हवाई फायर करती है) कोई हरकत मत करना... मिस्टर रोणा... मौत और तुझमे दूरी उतनी ही है... जितनी मेरी ट्रिगर पर उंगली...
रोणा - मतलब... तुझे सब पता था...
रुप - हाँ रोणा हाँ... कैसे कब... यह तुझे बताने वाले और हैं... तुझे उनसे मालुम पड़ेगा... पर तुझे इस वक़्त जो जानना जरूरी है... वह जान ले...

रोणा हैरानी से रुप की ओर देख रहा था, सोच रहा था कुछ ही सेकेंड में सबकुछ कैसे बदल गया l क्या सोचा था और क्या हो गया l

रुप - मेरा पीछा करता रहा... स्टॉक करता रहा... पर ताज्जुब है... मेरे बारे में जानने की कोशिश भी नहीं की... अगर जान गया होता... तो आज तु ना जान से जाता... ना जहान से जाता...
रोणा - (हकलाते) क्क्क्क्क् कौन हो तुम....
रुप - मेरा नाम... रुप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल है... राजा भैरव सिंह क्षेत्रपाल की बेटी... दादा राजा नागेंद्र सिंह क्षेत्रपाल की पोती... छोटे राजा पिनाक सिंह क्षेत्रपाल की भतीजी... युवराज विक्रम सिंह क्षेत्रपाल और राजकुमार वीर सिंह क्षेत्रपाल की लाडली बहन...

यह सुनते ही रोणा के पैरों तले जमीन हिलने लगती है l उसका शरीर पुरा का पुरा पसीने से सरोवर हो जाता है l उसका जिस्म कांपने लगती है l


रोणा - ज्ज्ज्ज्झुठ... झूठ कह रही हो.... त्त्त्त्त्त्तुम...
रुप - तुझ जैसे कमिने मुझे कौनसा सत्यवादी होने की सर्टिफिकेट लेना है... तु बस इतना जान ले... मेरी पेंडेंट... मेरी बैंगल... मेरी पायल और मेरी मोबाइल फोन में... मेरे भैया... ट्रैकर लगा रखे हैं... मैं कहीं भी जाती हूँ... उनकी नज़र में रहती हूँ... अभी भी... रास्ते में तेरे छछूंदर ने मेरी गाड़ी खराब कर लिफ्ट ऑफर की... उसे लगा कि प्लान उसका है... जब कि यह प्लान... मेरे भैया विक्रम सिंह क्षेत्रपाल का है... वह बराबर दूरी बनाए... मेरे पीछे पीछे आ रहे थे... बस कुछ सेकेंड रुक जा... तेरे इस गोदाम को धज्जियाँ उड़ाते हुए... आ धमकेंगे... फिर... फिर तेरा क्या होगा... रोणा
रोणा - साली... हराम जादी... विश्व की रंडी कमीनी... अपनी झूठ में मुझे फंसा रही है... मैं तेरे झांसे में नहीं आने वाला...
रुप - अच्छा यह बात है... (इतना कह कर रुप अपनी गन को रोणा की ओर फेंकती है जिसे रोणा कैच कर लेता) यह ले... अब मैं निहत्थी हूँ... बस पाँच सेकेंड
रोणा - (हाथ में गन आते ही थोड़ा हिम्मत दिखाते हुए रुप की ओर बढ़ता है)
रुप - पाँच.... चार... तीन... दो... एक... बूम...

धड़ाम से गोदाम का दरवाज़ा तोड़ते हुए विक्रम की गाड़ी अंदर आती है l अंदर गाड़ी, गाड़ी में विक्रम को देख कर रोणा के चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने लगती है l विक्रम गाड़ी से उतरता है l रोणा को नजर अंदाज करके आगे बढ़ता है और रुप के पास पहुँचता है l

विक्रम - नंदिनी... मुझे देर तो नहीं हुई...
नंदिनी - नहीं भैया... हाँ पर इस कमीने को... यकीन नहीं दिला पाई...
विक्रम - (रोणा की ओर घूम कर दहाड़ती आवाज में) रोणा... हमारे टुकड़ों में पलने वाले कुत्ते... तेरी इस गुस्ताखी की क्या सजा दी जाए...

रोणा रुप की उस गन को अब दोनों पर तान देता है l विक्रम के बाएँ आख का भौवां तन जाता है l जबड़े इस तरह से भिंच जाते हैं कि कड़ कड़ की आवाज रोणा के कानों में सुनाई देने लगती है, पर रोणा को लगता है यह आवाज उसके हड्डियों के जोड़ से आ रही है l रोणा ट्रिगर दबा देता है पर गोली निशाने पर नहीं लगती, वज़ह साफ थी उसके हाथ डर के मारे कांप रहे थे l पर गोली चलने के बाद रुप जरुर चीखती है और अपने भैया को देखने लगती है l विक्रम को गोली लगी नहीं थी l विक्रम अब गुस्से में रोणा की ओर बढ़ने लगता है l रोणा फिर से फायर करता है पर इसबार गोली नहीं चलती, रोणा इस बार गन को विक्रम की ओर फेंक मारता है l विक्रम साइड हो जाता है l फिर रोणा बिना पीछे देखे भागने लगता है l वह पीछे बिल्कुल नहीं देखता विक्रम उसका पीछा कर रहा है या नहीं l वह बस बदहवास भगा जा रहा था l डर उसके उपर इस कदर हावी था कि उसके आँखे बड़ी और इस कदर फैली हुई थी कि जो देखे उसे लगता था जैसे आँखे अभी के अभी बाहर आ जायेंगी l यशपुर के सड़क पर लोगों से टकराते हुए भाग रहा था l सभी लोग उसे देख कर हैरान हो रहे थे l रोणा भागते भागते राजमार्ग पर आता है l यशपुर अब पीछे छूट चुका था l फिर भी वह बदहवास भागे जा रहा था l तभी एक ट्रक उसे ओवर टेक करते हुए उसके आगे चलने लगती है l वह देखता है ट्रक तिरपाल से ढका हुआ था और पीछे से उसका पर्दा हिल रहा था l रोणा चिल्ला कर ट्रक को रोकने के लिए कहता है के तभी पीछे वाला पर्दा हटा कर लेनिन उसकी ओर हाथ बढ़ाता है l रोणा की आँखों में चमक आ जाता है और मन में जीने की आश दिखने लगता है l वह अपना हाथ बढ़ाता है लेनिन उसका हाथ पकड़ कर ट्रक के अंदर खिंच लेता है l ट्रक में पहुँच कर देखता है l ट्रक खाली था बस वह और टोनी ही थे l जोर जोर से हांफते हुए पीठ को टेक लगा कर बैठ जाता है l टोनी को इशारे से सिगरेट माँगता है l टोनी उसे सिगरेट और लाइटर देता है l अपनी साँसे दुरुस्त करते हुए होठों पर सिगरेट लेकर लाइटर से सुलगता है l फिर जली हुई सिगरेट को लेकर अपने हाथ में लगाता है कहीं सपना तो नहीं देख रहा l चमड़ी पर जलन की छाल पड़ने तक सिगरेट को रगड़ता है, नहीं यह कोई सपना नहीं था l अभी अभी जो भी हुआ था सब सच ही था l उसे जब एहसास होता है कि वह सपना नहीं देख रहा था कुछ देर पहले उसके साथ वाकई वही हुआ है जिससे वह भाग रहा है l यह जान कर रोने लगता है l धीरे धीरे उसका रोना दहाड़े मार कर रोने में बदल जाता है l

लेनिन - (रोणा को झंझोड़ते हुए) रोणा... क्या हो गया है तुझे... ऐसे क्यों रो रहा है...
रोणा - (लेनिन की गर्दन पकड़ कर उसे नीचे डाल कर) साले जानता भी है... वह लड़की कौन है... वह क्षेत्रपाल की बेटी है... (लेनिन का गर्दन छोड़ कर) प्रधान ठीक कह रहा था... उस लड़की के पीछे मत पड़... साला दिमाग खिसक कर... मेरा लौड़े से सोच रहा था...
लेनिन - (अपनी गर्दन पर हाथ मलते हुए) मैं भी तो तुझे मना कर रहा था... मामला विश्वा से जुड़ा है... दुर रह उसके मैटर से... पर तुने ही नहीं माना...

अचानक रोणा का रोना बंद हो जाता है l उसके आँखों में जीने का आखिरी आश नजर आता है l

रोणा - एक मिनट... एक मिनट... हम किसी तरह से... राजा साहब तक यह खबर पहुँचा दें... के उनकी बेटी... विश्वा के साथ रंग रलीयाँ मना रही है... वह भी सबूतों के साथ... तो मुझे जीने का और एक मौका मिल सकता है....
लेनिन - पता नहीं... कोशिश करके देख ले...
रोणा - हाँ... चल निकाल वह सबूत....
लेनिन - कहाँ... मेरी गाड़ी के साथ साथ मोबाइल भी छूट गया है... तेरे मोबाइल फोन में तो होगा ना....
रोणा-( कुर्ते के जेब से मोबाइल निकालता है) (विश्व और रुप की फोटोस देखते ही उसके आँखों में चमक आ जाती है) यह देख... यह रहा... (सारे फोटो देख कर)
लेनिन - ना... इससे कोई फायदा नहीं होगा....
रोणा - (गुस्से में तमतमाते हुए) क्यूँ नहीं होगा...
लेनिन - पता नहीं... तुझे अगर वापस जाना है तो बोल... यहीँ छोड़ जाता हूँ... फिर तु जाने... तेरी किस्मत....
रोणा - एक मिनट... एक मिनट... (गुर्राते हुए) यह तु मुझे आप से तु क्यूँ कहने लगा है बे...
लेनिन - मरने से पहले... तुझे आप कहूँ तो... क्या तुझे मौत नहीं आएगी भड़वे... साले... मैं कहते कहते थक गया... मामला विश्वा से जुड़ा है... ना उलझे तो जिंदगी लंबी होगी... पर तेरी एहसान का बदला चुकाने के चक्कर में... अब मेरी भी यह गत बन गई...
रोणा - (कोई जवाबी प्रतिक्रिया नहीं देता, बस इतना ही कहता है) एक आखिरी कोशिश करते हैं... दाव सही लगा... तो हमारी तरफ आ रही मौत को... विश्वा की तरफ मोड़ सकते हैं...
लेनिन - विश्व के पास पहले से ही इन सबके तोड़ होगा... हम अगर जाएंगे... तो सिर्फ फंसेंगे...
रोणा - वह बाद में देखा जाएगा...

कह कर रोणा सारे फोटों सिलेक्ट कर राजा साहब के नंबर पर भेजने की सोचता है पर उसे नंबर लिस्ट में राजा साहब का नंबर नहीं दिखता l वह चिढ़ जाता है तो बल्लभ को फोन लगाता है l पर फोन लगता नहीं, चेक करता है तो पाता है कि मोबाइल में सिग्नल ही नहीं है, रोणा खीज कर अपना मोबाइल को कस के पकड़ कर चीखने लगता है l

रोणा - क्या मुसीबत है... यह मोबाइल टावर क्यूँ लग नहीं रहा है... (इतना कह कर गहरी गहरी साँस लेने लगता है) यकीन नहीं हो रहा है... राजकुमारी नंदिनी को... मालुम था... मोबाइल में तुने बग लगाया था... उसके वज़ह से... मेरे लिए... युवराज ने जाल बिछाया था... उसे मालुम कैसे हुआ... और तेरी गाड़ी का क्या हुआ... यह ट्रक... और भोषड़ी के तुझे मालुम कैसे नहीं हुआ... वह... लड़की क्षेत्रपाल है... हराम के ढक्कन...
लेनिन - (थोड़े देर के लिए चुप रहता है फिर एक गहरी साँस छोड़ते हुए कहना शुरु करता है) गाड़ी की कहानी बाद में बताऊँगा... पहले यह जान लो... हम डाल डाल जा रहे थे... विश्वा पात पात...
रोणा - अब इसमें विश्वा कहाँ से आ गया बे... मादरचोद...
लेनिन - जिस तरह... तुमने मुझे नंदिनी पर नजर रखने के लिए छोड़ रखा था... उसी तरह.. नंदिनी के आसपास नजर रखने के लिए... विश्वा... लल्लन को छोड़ रखा था...
रोणा - अब यह लल्लन कौन है... और... तुझे कब मालुम हुआ...
लेनिन - अभी... थोड़ी देर पहले...जब लगा कि जाल बिछ गया है... मैं गाड़ी छोड़ भागा... तो मैंने अपने झींगुरों से पता लगाने को बोला... तो सालों ने बताया के... आज से कुछ दिन पहले... जब विश्वा की मुहँ बोले माँ बाप... गायब हो कर मिले थे... उसके अगले दिन... हाई वे ट्वेंटी फॉर सेवन रेस्टोरेंट में विश्वा ने... लल्लन को विक्रम सिंह से... इसी सिलसिले में... मिलवाया था... उसने विक्रम को तेरे फिलिंग के बारे में... बताया था... विक्रम को पहले यकीन नहीं हुआ... रंगे हाथ पकड़ने के लिए... उसीने अपनी बहन के साथ मिलकर... जाल बिछाया था...
रोणा - बे मादरचोद... किसने कैसे गांड हमारी मारी पुछ नहीं रहा हूँ... लल्लन कौन है... विश्वा के साथ उसका क्या लेनादेना है... तुझे उसके बारे में कोई जानकारी थी या नहीं... पुछ रहा हूँ...
लेनिन - उसके बारे में जानकारी रखता हूँ ना... बिल्कुल उतना ही... जितना अपने बारे में...
रोणा - (गुस्से से फट पड़ता है) तो हरामी कुत्ते... वह तेरी और मेरी दोनों की मिला कर मार रहा था... तुझे पता कैसे नहीं लगी... (लेनिन चुप रहता है) बोल कुत्ते... उसके बारे में कुछ जानकारी दे... शायद मैं कुछ तिकड़म लगा सकूँ...
लेनिन - उसका असली नाम... ललीतेंदु लक्ष्मण नायक... शॉर्ट कर्ट में लल्लन... तुझे... यश वर्धन चेट्टी... याद है... एक लड़की की कत्ल के इल्ज़ाम में जैल गया था... जिसे विश्वा ने मार दिया... पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट में... ड्रग्स का ओवर डोज आया था...
रोणा - हाँ... पर लल्लन का यश के केस के साथ क्या सम्बंध...
लेनिन - है... वही बता रहा हूँ... यश जिस लड़की को... निहारिका को.. गाड़ी से कुचला था... लल्लन निहारिका का... प्रमोटर था... और आशिक भी... जब निहारिका... यश से मिली... तो यश ने उसे फ़िल्में और एल्बम में बहुत काम दिलवाया... यश ने उसे ड्रग्स का आदि बना कर अपना गुलाम बना कर रखा... जब इस बात को लेकर लल्लन ने यश के खिलाफ कुछ करने की कोशिश की... तब यश ने... अपने कॉन्टेक्ट के जरिए... उसी ड्रग्स के केस में फंसा कर... जैल भिजवा दिया... जैल में उसकी दोस्ती विश्वा से हुआ... पर जैल में वह दोनों एक-दूसरे से दुश्मन की तरह पेश आते थे... इसलिए के कोई भी... अगर विश्व के खिलाफ साजिश को अंजाम दे... तो विश्वा उस साजिश को नाकाम कर... सजा देता था...
रोणा - ओ... तो इसलिए... तेरी पहचान लल्लन से हुई... जो आगे चलकर... विश्वा के खातिर जैल में तेरी गांड मारी...
लेनिन - नहीं...
रोणा - मतलब...
लेनिन - यश को मारने के लिए... जो कबड्डी का मैच हुआ था... दो टीम बनी थी... एक विश्वा की... और दूसरी...
रोणा - हाँ मालुम है दुसरी तेरी...
लेनिन - हाँ... जब विश्वा पर यश ने चोक का दाव आजमाया... तो विश्वा प्लान के मुताबिक... अपनी कुहनी को यश के सीने पर रख कर पलट जाता है.... तभी यश के कहने पर... लल्लन छलांग लगा देता है... जिसके वज़ह से... यश की पसलियाँ टुट कर साँसे रुक गई थी... (कह कर लल्लन चुप हो जाता है)
रोणा - ठीक है... विश्वा और लल्लन का रिश्ता समझ में आ गया... पर तुझे कैसे मालुम नहीं हुआ... के तेरे पीछे वह लगा हुआ है...
लेनिन - विश्वा हमेशा एक बात कहता था... कहो कुछ... करो कुछ... दिखाओ कुछ हो जाए कुछ... उसके सभी दोस्त.. इस मामले में... माहिर और शातिर हैं... विश्वा ने अपनी माँ बाप से बात कर... लल्लन को माफी दिलवा दिया... और विश्वा के जैल से छूटने के डेढ़ साल पहले... उसे तेरे पीछे लगा दिया... और तेरे सारे हरकतों पर नजर रख रहा था...
रोणा - (झटका खाता है) क्या... इसका मतलब... लल्लन मेरे पीछे दो सालों से लगा हुआ था... (फिर अचानक उसकी आँखे बड़ी हो जातीं हैं) एक मिनट एक मिनट... दो साल पहले... तु भी तो मेरे पास आया था... लल्लन... लेनिन... (झट से खड़ा हो जाता है) मादरचोद...
लेनिन - (मुस्करा कर, खड़ा हो जाता है) देखा... जब लड़की सिर पर चढ़ गई थी... तो दिमाग लंड के मुहँ से सोच रही थी... जैसे ही लड़की दिमाग से उतरी... दिमाग पुलिसिये की तरह सोचने लगी...
रोणा - साले हरामी कुत्ते... मतलब तुने विश्वा के साथ मिलकर... विक्रम को मेरे बारे में...
लेनिन - हाँ... मैंने वह सारी बातें भी बताई... मिर्च मसाला लगा कर... जो तुने कभी करना तो दूर सोचा भी नहीं होगा...
रोणा - (चिल्ला कर) ग़द्दार...
लेनिन - ना ना ना... मैं विश्वा का यार.. सिर्फ यार ही नहीं... अयार हूँ...

रोणा गुस्से से कांपते हुए लेनिन पर झपटा मार देता है l पर उसके लिए लेनिन तैयार था किनारे हट कर एक और लुढ़क जाता है l पर दुसरी बार जब रोणा झपटा मारने के लिए तैयार होता है तो लेनिन के हाथ में एक बड़ी सी खुखरी देखता है l खुखरी देख कर रुक जाता है l तभी चलती ट्रक भी रुक जाती है l

रोणा - यह ट्रक यहाँ क्यूँ रुक गया...
लेनिन - ताकि तेरी मुलाकात तेरे बाप से हो... पर्दा उठा कर देख नीचे तेरा बाप खड़ा मिलेगा...

रोणा तिरपाल पर्दा उठाता है l ट्रक राजगड़ के नदी किनारे पर रुका हुआ था l थोड़ी ही दुर विश्व अपनी बाहों में हाथ फंसाये खड़ा था l विश्व को सामने देख कर रोणा गुस्से से दांत पिसते लगता है l रोणा ट्रक से उतरने की सोच ही रहा था कि एक जोरदार लात उसके पीठ पर पड़ती है l वह उड़ते हुए विश्व के कदमों से कुछ ही दुर मुहँ के बल आ कर गिरता है l

विश्व - चु चु चु चु... क्या से क्या हो गया... रोणा... क्या से क्या हो गया... बढ़े ठाठ थे... अब देखो... मेरे पैरों पर पड़ा है...

रोणा अपना चेहरा उठा कर देखता है विश्वा के पीछे और पाँच बंदे खड़े थे l उन में से एक बंदा को देख कर रोणा चौंकता है l वह कोई और नहीं राजगड़ का ग्राम रखी उदय था l रोणा उठ कर भागने की कोशिश करता है पर दो कदम भी भाग नहीं पाता, उसके पैरों को अपने पैरों से बाँध दिया था लेनिन ने l

लेनिन - देखा विश्वा भाई... आज भी मैं तुमसे बेहतर कबड्डी खेल सकता हूँ...
विश्वा - सब कुछ खत्म हो जाने दो... फिर अपनी अपनी टीम बना कर खेलते हैं...
लेनिन - ठीक है...

सीलु मीलु जिलु और टीलु आकर रोणा को पकड़ लेते हैं l रोणा छटपटाने लगता है और पुरी ताकत लगा कर छूटने की कोशिश करता है l

रोणा - छोड़ो... छोड़ दो मुझे...
विश्व - छोड़ दिया तो क्या करेगा...
रोणा - तेरा और इस उदय का खुन पी जाऊँगा...
विश्व - (अपने दोस्तों से) छोड़ दो इसे...

जैसे ही सब रोणा को छोड़ देते हैं रोणा विश्व के ऊपर हमला कर देता है पर उसके सारे वार खाली जातें हैं l फिर विश्व एक जोरदार पंच रोणा के पेट में जड़ देता है l पंच इतना जोरदार था कि रोणा तीन फुट ऊपर उछल कर घुटनों पर गिर कर बैठ जाता है l उसके आँखों के चारो तरफ़ जुगनू दिखाई देने लगते हैं l

विश्व - कुछ याद आया... ऐसे ही तेरी ठुकाई की थी मैंने... कटक में... हफ्तों तक हास्पिटल के बेड में पड़ा था..
रोणा - (दर्द से कराहते हुए बड़ी मुश्किल से) विश्वा.... मुझे छोड़ दे... वादा करता हूँ... रुप फाउंडेशन केस में... तेरा सरकारी गवाह बनूँगा...
विश्व - ऊँ हूँ... अब कोई फायदा नहीं... तेरी गवाही अब मेरे किसी काम नहीं आएगा...
रोणा - देख तुने कसम खाई थी... एक ही खुन करने के लिए... दुसरा मुझ जैसे लीचड़ के खुन से अपने हाथ गंदे मत कर...
विश्व - ठीक कहा तुने... तुझे जैसे गंदे आदमी के खुन से अपना हाथ कभी नहीं रंगना चाहिए... पर मैं जब भी तुझे देखता हूँ... मुझे श्रीनु याद आता है... बोल मैं क्या करूँ...
रोणा - मरे हुए को क्या मारेगा रे विश्वा... वैसे भी... अब तक राजा साहब को मेरे बारे में पता चल चुका होगा... अब हर जगह मेरी तलाशी हो रही होगी... इसलिए प्लीज मुझे जाने दो... कसम से... मैं किसी के हाथ नहीं लगूंगा... मैं... मैं यह देश छोड़ कर चला जाऊँगा...
विश्वा - ह्म्म्म्म... बात तो तुने फतेह की कि है... पर श्रीनु का बदला उतारूँ कैसे... अपनी कसम के वज़ह से मार नहीं सकता... श्रीनु के लिए तुझे छोड़ नहीं सकता... एक काम करता हूँ... तुझे सीधे भैरव सिंह के हवाले कर देता हूँ...
रोणा - (लड़खड़ाते हुए खड़ा हो जाता है) साले हरामी... कितनी देर से... गिड़गिड़ा रहा हूँ... मज़ाक लग रहा है क्या... अगर मैं राजा साहब के हत्थे लग गया... तो तेरी और राजकुमारी की रंगरलियां बता दूँगा... समझा... अब मुझे सीधी तरह जाने दे... वर्ना तु भी बहुत पछताएगा...
सीलु - लो विश्वा भाई... यह तुमको गाली के साथ साथ... धमकी भी दे रहा है...
विश्व - ठीक कह रहे हो सीलु... मैं सच में इसे छोड़ देता... अगर यह मुझसे खौफ रखता तो... पर क्या करूँ... मैं खतरनाक जो नहीं हूँ... (रोणा से) चल मुझे... मार... तेरा एक भी पंच मुझे हिट कर गया... तो वादा है मैं तुझे छोड़ दूँगा...

रोणा खुशी के मारे रो पड़ता है और रोते हुए फिर से घुटने पर बैठ कर झुक जाता है l हाथ में नदी किनारे की रेत उठा कर विश्वा के उपर फेंक देता है, पर वहाँ विश्वा था ही नहीं इधर उधर देख कर खड़ा होता है तब उसे महसूस होता है कि कोई उसके पीछे खड़ा है l जैसे ही घूम कर वार करने के लिए हाथ उठाता है विश्वा का सिंगल फीस्ट पंच रोणा की कलाई पर पड़ती है l रोणा का पूरा का पूरा दाहिना हाथ शुन पड़ जाता है l दर्द से बिल बिलाते हुए बायाँ हाथ चलाता है l विश्व वैसे ही सिंगल फीस्ट पंच लगाता है नतीज़ा वही बायाँ हाथ भी शुन पड़ जाता है l

रोणा - (दर्द से बिल बिलाते हुए) यह क्या कर दिया...
विश्व - वर्म कलई... कल्लडी मार्शल आर्ट की एक अद्भुत कला...
रोणा - देख आखिरी बार कह रहा हूँ... मुझे जाने दे... वर्ना... राजा साहब को तेरे और राजकुमारी के बारे कह दूँगा...
विश्व - इतना कुछ होने के बाद भी... मेरे लिए तेरे आँखों में डर जितना नहीं दिख रहा है... हेकड़ी उससे भी ज्यादा दिख रहा है... इसलिए तुझे राजा के हवाले ही करूँगा... तेरी मौत का फैसला वही करेगा...
रोणा - देख मैं बता दूँगा... सब बता दूँगा...
विश्वा - ऊँ हूँ... नहीं... नहीं बता पाएगा...

फिर विश्व एक पंच रोणा के गले में वॉकल कॉर्ड के पास एक धमनी पर मारता है, जिसे रोणा के मुहँ से थोड़ा खून निकल आता है, उसके बाद विश्व रोणा के कंधों पर, कमर के जॉइंट्स पर, घुटनों पर और पसलियों के किनारों पर पंचेस की बरसात कर देता है l रोणा किसी कटे हुए पेड़ की तरह नदी के रेत पर गिर जाता है l

विश्व - (उदय की ओर देख कर) उदय... इसके साथ क्या करना है... तुम जानते हो...
उदय - हाँ विश्वा... तुम बेफ़िक्र रहो... मैं इसे इसके अंजाम तक पहुँचाऊंगा....

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क्षेत्रपाल महल के सामने भैरव सिंह की ऑडी गाड़ी रुकती है l सीडियां चढ़ कर अंतर्महल में आता है l देखता है रुप को सुषमा अपने सीने से लगा कर दुलार रही है और बगल में विक्रम चहल कदम कर रहा है l भैरव सिंह को देख कर सभी खड़े हो जाते हैं l सुषमा कुछ कहने को होती है कि हाथ के इशारे से भैरव सिंह चुप करवा देता है l

भैरव सिंह - युवराज...
विक्रम - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - आप अपनी बात एक साथ रखेंगे... ना हम दोबारा आपसे पूछेंगे... ना ही दोबारा सुनेंगे... अब जो सवाल जवाब होगा... सिर्फ राजकुमारी जी के साथ होगा...
विक्रम - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - कहिए...
विक्रम - दो दिन पहले... एक आदमी मेरे पास आया था... नाम था लेनिन... सुंदरगड पोस्टिंग के दौरान... उसके ऊपर इंस्पेक्टर रोणा ने उस पर बहुत मेहरबान रहा... उसके लिए... फेंक आधार कार्ड का जुगाड़ कर नयी पहचान भी दिया था... टोनी के रुप में... एक दिन रोणा भुवनेश्वर में टोनी को बुला कर राजकुमारी जी की डिटेल्स निकाल कर देने के लिए कहा था... टोनी जब छानबीन की... तब उसे राजकुमारी जी के बारे में मालुम हुआ... वह डर गया... डर के मारे... रोणा को भी सारी बातेँ बताई... पर रोणा इसे हल्के में लिया... वह जब जब भुवनेश्वर गया है... सिर्फ और सिर्फ राजकुमारी को स्टॉक करने ही गया है... एक दिन उसे मालुम हुआ... राजकुमारी होली की छुट्टी में राजगड़ लौट रही हैं... तो उसने टोनी को जिम्मा दिया राजकुमारी जी को बीच रास्ते में किडनैप करने के लिए... टोनी डर के मारे मना ना कर सका... इसलिए सीधे मेरे पास आकर सब कुछ बता दिया... प्रूफ के लिए... मैंने उसे विडिओ कॉल करने के लिए कहा... उसने अपनी साइड कैमरा पर उंगली रख कर वीडियो कॉल किया... वीडियो में रोणा ही था... मेरे गुस्से का ठिकाना नहीं था... भीमा से पता चला कि... कुछ दिनों से रोणा गायब है... तो मैंने गुरु को रोक कर टोनी को अपनी गाड़ी दी... राजकुमारी जी को रोणा तक ले जाने के लिए... और बराबर दूरी बनाए पीछे पीछे उस गोदाम में पहुँचा... जहां मैंने रोणा की करतूत और इरादों को रंगे हाथ पकड़ा.... पर वह भागने में कामयाब रहा... मैंने आदमी दौडायें हैं.... जरुर हाथ लगेगा... (कह कर चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - बस...
विक्रम - जी बस...
भैरव सिंह - राजकुमारी...
रुप - जी...
भैरव सिंह - हमारे सारे सवालों का ज़वाब... आप हमारी आँखों में आँख मिला कर दीजिए...
सुषमा - आज तक... इस घर की बेटियां कभी आँख मिला कर ज़वाब दिए हैं भला...
भैरव सिंह - (हाथ दिखा कर) आप चुप रहें तो बेहतर होगा... (सुषमा चुप हो जाती है) राजकुमारी जी...
रुप - (हिम्मत जुटा कर) जी...
भैरव सिंह - क्या आप... विश्वा को जानती हैं...
रुप - कौन विश्वा...
भैरव सिंह - एडवोकेट प्रतिभा सेनापति के बेटे को जानती हैं...
रुप - जी... जानती हूँ... पर उसका नाम तो प्रताप है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... कैसे जानती हैं....
रुप - एक बार... राजकुमार वीर जी ने कहा... के मुझे ड्राइविंग सीखनी चाहिए... इसलिए ड्राइविंग स्कुल में मेरी क्लासमेट भाश्वती के साथ एडमीशन ली थी... वहीँ पर एक दिन बस में कुछ गुंडे भाश्वती को छेड़ दिया था... जिस पर प्रताप ने उन सबकी पिटाई कर दी थी... उसके बाद भाश्वती प्रताप को भाई मानने लगी... आखिरी दिन प्रताप ने हम सभी को... पार्टी के लिए बुलाया था... तो हम उसके घर गए थे... बस उतना ही...
भैरव सिंह - क्या उसी पार्टी के दिन... आपने इंस्पेक्टर रोणा को थप्पड़ मारा था...
रुप - जी... पर मुझे मालूम ही नहीं था कि वह इंस्पेक्टर है...
भैरव सिंह - ठीक है... उसे थप्पड़ मारा क्यूँ...
रुप - क्योंकि की उसकी नजर मुझे बहुत चुभ रही थी... बड़ी गंदी नजर से देख रहा था...
भैरव सिंह - क्या आपको पता था... के वह आपको स्टॉक कर रहा है...
रुप - नहीं... पर मुझे कोई स्टॉक करेगा... यह मैं सोच भी नहीं सकती थी... क्यूँकी मुझे अपने खानदान और भैया की रेपुटेशन पर पूरा भरोसा था...
भैरव सिंह - (जबड़े भिंच जाते हैं) एक आखिरी सवाल... आपको याद है... एक दिन किसी ने बड़े राजा जी के कमरे में कोई घुस आया था...
रुप - उस दिन मैं रात भर पढ़ते पढ़ते सो गई थी... छोटी माँ के जगाने पर मैं उठी थी...

भैरव सिंह रुप की आँखों में झाँक कर देखता है l बड़ी सफाई से रुप ने हर बातों का जवाब दिया था l भैरव सिंह थोड़ी देर रुप को घूरने के बाद रुप से

भैरव सिंह - हमें आपका मोबाइल दीजिये...

रुप मोबाइल दे देती है l भैरव सिंह कॉल लिस्ट देखता है सिर्फ दस से पंद्रह कॉन्टैक्ट ही थे l फाइल मैनेजर में कोई फोटो उसे दिखती नहीं l फिर वह मोबाइल को अपनी जेब में रख देता है l

रुप - जी... वह मोबाइल...
भैरव सिंह - आज से आपको किसी को भी फोन करना हो तो... घर की कॉर्डलेस से कीजिए... आपका अब भुवनेश्वर जाना बंद... आप घर में ही पढ़ेंगी... सिर्फ इम्तिहान देने... भुवनेश्वर जायेंगी... (रुप का चेहरा उतर जाता है और उदास मन से चेहरा झुका लेती है) हम ने आप से कुछ कहा...
रुप - जैसी आपकी इच्छा...
भैरव सिंह - युवराज...
विक्रम - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - आप प्रिन्सिपल से बात कर लीजिए...
विक्रम - जी...
भैरव सिंह - अब आप हमारे साथ आइए...

विक्रम और भैरव सिंह अंतर्महल से निकलने लगते हैं l वह देखते हैं भीमा सीडियों पर भागते हुए आ रहा है l

विक्रम - क्या खबर लाए हो भीमा...
भीमा - वह... वह मिल गया... पर...
भैरव सिंह - पर क्या...
भीमा - वह हस्पताल में था... कनाल के पास ज़ख्मी हालत में पड़ा हुआ था... उदय ने उसे यशपुर हस्पताल में भर्ती करवाया था... जब होश आकर डर के मारे बड़बड़ाने लगा... मुझे राजा से बचाओ... मुझे विक्रम से बचाओ... तब उदय ने हमें खबर दी...
भैरव सिंह - वह हराम का पिल्ला जैसी भी हाल में है... उसे उठा कर रंग महल लेकर आओ... जाओ...
भीमा - जी... हुकुम... हम उसे रंग महल ले आए हैं...
Bahut hi shandaar lajawaab update hai bhai maza aa gaya
 
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RAAZ

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👉एक सौ चौवालीसवां अपडेट
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राजगड़
भीमा का अखाड़ा
अखाड़े में पहलवानों का जमावड़ा लगा हुआ है l कुछ कुस्ती में मसरूफ थे तो कुछ कसरत में l भीमा पुरा मैदान घूम कर निरीक्षण कर रहा था l इतने में वह देखता है सत्तू के साथ कुछ पहलवान हाथों में कसरती गदा लिए प्रवेश करते हैं l सबके मुहँ पर एक परेशानी सा भाव को देखता है l

भीमा - क्या बात है सत्तू... कहाँ गए थे... और यूँ मुहँ लटकाये क्यूँ आ रहे हो...
सत्तू - कुछ नहीं गुरु... बस हम नदी किनारे गए थे...
शनिया - बे बहन के लौड़े... तब हाथ में लोटा होना चाहिए था... यह गदा क्या करने ले गए थे...
सत्तू - वह... (एक बंदे की ओर इशारा करते हुए) यह नीलकंठ कह रहा था... वह... (रुक जाता है)
भीमा - रुक क्यूँ गया... बोल...
सत्तू - ऐ नील... तु बोल... (नील इशारे से मना करता है)
भीमा - (गुस्से में) अबे कोई तो बोलो... ऐसे जता रहे हो... जैसे तुम्हारी माँ चोद दी किसीने...
सत्तू - ठीक है... मैं बताता हूँ... वह गुरु... इस नील को खबर मिली... के विश्वा... अकेले कसरत करने शाम को नदी किनारे जाता है... जहां से कनाल खुलता है...
भीमा - हाँ तो...
सत्तू - तो इसने कुछ पट्ठों को साथ लिया... मैं भी उसके साथ हो लिया... मिलकर विश्वा की ऐसी की तैसी करने के लिए...
शनिया - ओ... तो यह बोलो ना... विश्वा से फिर से पीट कर आए हो... तुम लोग...
भीमा - तु चुप रह... तु कौनसा... विश्वा से मार खाए वगैर आया है...
सत्तू - नहीं गुरु... बात हमारे मार खाने तक कि गई नहीं...
भीमा - तो...
सत्तू - हम जब पहुँचे... तो देखा... विश्वा एक पेड़ के नीचे कसरत कर रहा था... हम लोग छुप कर... योजना बनाने लगे... किस वक़्त और कैसे उस पर धाबा बोलना है... पर...
भीमा - अबे... यह बार बार अटक क्यूँ रहा है... सीधे बोल... विश्वा ने तुम लोगों की गांड मारी तो कैसे मारी...
सत्तू - हमने देखा... जब विश्वा पसीना पसीना हो गया... तब वह अपने बदन से कपड़े निकाल दिया... उसका बदन... शाम की ढलती सूरज की चमक से चमक रही थी... उसका बदन ऐसा लाग रहा था... जैसे पत्थरों को काट कर किसी शिल्पी ने... पेशियों वाली मुरत बनाया हो...
भीमा - बस वही देख कर... तुम लोगों की फट गई...
सत्तू - सिर्फ वही नहीं गुरु... हमने देखा... वह... ईंटों को... हाथ के वार से तोड़ रहा था... काठ के पाटों को... हाथ के वार से तोड़ रहा था... पेड़ से टंगे पानी से भरे बड़े बड़े मटकों को कभी लात से.. कभी कुहनियों से फोड़ रहा था...

सत्तू रुक जाता है, उसे महसुस होता है जैसे पुरे अखाड़े को कोई सांप सूँघ गया हो, यह देख कर रुक जाता है l उसे चुप देख कर भीमा पूछता है

भीमा - बस इतना ही...
सत्तू - नहीं... विश्वा फिर एक बाँस की लाठी उठाया... ऐसे चलाया... की हमको दिखी ही नहीं... हवाओं को चीरती हुई उस बाँस की आवाज... ऐसा लग रहा था जैसे... कोई आँधी हो... या बवंडर...

सत्तू फिर चुप हो जाता है l वह देखता है कुछ पहलवान उसे मुहँ फाड़े देखे जा रहे हैं और भीमा की नजरें सत्तू से हट गया था और भवें सिकुड़ कर कुछ सोच में पड़ गया था l

सत्तू - क्या हुआ गुरु...
भीम - क्या बस इतना ही...
सत्तू - हाँ... बस इतना ही... उसकी लाठी जब चलती है... तो गायब ही लगती है... तब समझ में आया... कैसे तलवार घुमा कर... सरपंच की गमछे को तीन टुकड़ों में काटा था...

तभी अखाड़े में बल्लभ अंदर आता है l इन सबके सामने आकर खड़ा हो जाता है l सभी उसके सामने सीधा हो कर खड़े हो जाते हैं l

भीमा - क्या हुआ वकील साहब...
बल्लभ - यह सत्तू जो तुम लोगों से कह रहा था... मैं थोड़ी दुर से सब सुन रहा था... (सबकी चेहरे पर गौर करता है, जैसे सब शर्मिंदा हो रहे हैं) देखो... तुम लोग वह क्या है... क्या किया है... यह सोचने की जहमत मत उठाओ... बस इतना याद रखो... तुम लोग... जब तक राजा साहब के काम के हो... तब तक जिंदा हो... जिस दिन राजा साहब को यह एहसास हो गया... तुम लोग उनके किसी काम के नहीं रहे... उस दिन... तुम्हें कोई बचा नहीं पाएगा... दो बार... उसने तुम्हें मात दी है... पर जरूरी नहीं... के यह हर बार... दोहराया जाए... इसलिए तुम लोग... अपनी तैयारी मत छोड़ो...
शनिया - वही तो कर रहे हैं... वकील साहब...
बल्लभ - हाँ मुझे दिख भी रहा है... बस एक बात अच्छे से याद कर लो... क्षेत्रपाल महल के वज़ह से... सिर्फ राजगड़ में ही नहीं... आसपास के पचीस तीस गाँव में भी तुम लोगों का बहुत भाव है... इसलिए अब तक जो हुआ... सो हुआ... अब कि बार... अगर क्षेत्रपाल की साख पर... तुम लोगों के वज़ह से कोई बट्टा लगा... तो भीमा... आखेट महल में... जो मगरमच्छ और लकड़बग्घे भूखे हैं... उनके निवाला तुम लोग भी हो सकते हो...

सब के सब डर के मारे अपनी हलक से थूक निगलने लगते हैं l उनकी हालत देख कर बल्लभ उनसे कहता है

बल्लभ - डर बहुत ही अच्छी चीज़ है... डर को इज़्ज़त देना चाहिए... पर डर वाला इज़्ज़त तुम किसे दोगे... राजा साहब को... या विश्वा को... उस डर को अच्छी तरह से तोल लो... (सबकी चेहरे पर नजर घुमा कर) तो क्या फैसला किया...
भीमा - हम... हम राजा साहब के नमक ख्वार हैं वकील बाबु... हम उनके लिए... ऐसे कई विश्वा से भीड़ जाएंगे... (सब से) क्यूँ साथियों...
सत्तू - राजा सहाब की...
सभी - जय हो...
बल्लभ - शाबाश...
भीमा - वैसे वकील साहब... हफ़्तों हो गए... दरोगा जी... दिख नहीं रहे हैं...
बल्लभ - हाँ... अब पता नहीं... दरोगा कहाँ चला गया... पर तुम्हें दरोगा की क्या जरूरत है...
भीमा - जैसे आप हमारे साथ हैं... उसी तरह दरोगा जी की भी साथ मिल जाए... तो हिम्मत सौ गुना बढ़ जाती है...
बल्लभ - इतनी जल्दी पंचायत भवन की कांड भूल गए लगता है...
शनिया - नहीं वकील बाबु... अगर उस दिन टाईम पर दरोगा जी पहुँच गए होते... तो बात अलग होती...
बल्लभ - खयाली पुलाव पकाना छोड़ दो... अनिकेत... फ़िलहाल छुट्टी पर है... अपनी निजी वज़ह से... पर इतना पक्का बता सकता हूँ... वह जहां भी होगा... विश्वा को ख़तम करने की ही सोच रहा होगा...
भीमा - वह... वकील बाबु... उस दिन... राजा साहब ने... एसपी को फोन पर नए दरोगा के लिए... सिफारिश किये थे....
बल्लभ - हाँ... नया दरोगा... एक या दो दिन में... थाने का चार्ज ले लेगा... फ़िलहाल जब तक राजा साहब ना कहें... तुम लोग कोई बेवकूफ़ी मत करना... विश्वा पर तुम लोग सिर्फ नजर रखो... हर बाजी... हमेशा कोई जीत नहीं सकता... उसकी हार भी... उसकी प्रतीक्षा में होगी... हमें उस वक़्त का इंतज़ार करना होगा... समझे...
भीमा - जी...
बल्लभ - वह कसरत करे या सर्कस... फ़िलहाल उससे दूरी बनाए रखो... उसका अंजाम जिसके हाथों होना है... वह तय है... तुम लोग बीच में मत घुसो...

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पसीने को पोंछ कर अपने कपड़े समेटते हुए विश्व को महसूस होता है कि कोई आसपास है जो उससे शायद छुपा हुआ है l थोड़ा ध्यान देने पर विश्व को मालुम हो जाता है छुप कर देखने वाला कौन है l विश्व मुस्करा देता है

विश्व - छुप कर क्यूँ देख रहा है... बाहर आजा... (पत्थर के ओट से अरुण बाहर आता है, विश्व उसके गाल को पकड़ कर) क्यूँ रे... अपने मामा के कसरत को छुप कर देख रहा है...
अरुण - आह... मामा... लग रहा है...

विश्व उसके गाल छोड़ देता है l अरुण अपने गाल पर हाथ रखकर मलने लगता है l विश्व अपने कपड़े और सामान समेट कर चलने लगता है l उसके साथ साथ अरुण भी चलने लगता है l

अरुण - मामा... आप क्या कसरत करने के लिए... जगह बदल दी...
विश्व - क्यूँ...
अरुण - नहीं... आप तो हमेशा घर पर... कसरत किया करते थे ना...
विश्व - आज मन किया तो यहाँ चला आया...
अरुण - ओ...
विश्व - तु यहाँ क्यों आया था...
अरुण - मैं... मैं हमेशा की तरह... दो टाईम लंडन जाता हूँ ना... (लोटा दिखाते हुए) इसलिये...
विश्व - (मुस्करा देता है) बहुत बदमाश हो गया है तु...
अरुण - हाँ... माँ भी यही कहती है...
विश्व - स्कुल में पढ़ाई कैसी चल रही है...
अरुण - वह तो बढ़िया चल रही है... पर अब छुट्टियाँ चल रही है...
विश्व - ओ हाँ... होली की छुट्टियाँ...
अरुण - हाँ... पर होली हम खेलते कहाँ हैं... सिर्फ किताबों में ही पढ़ा है... होली में रंग खेला जाता है...

इस बात पर विश्व खामोश रहता है l विश्व से जवाब ना पाकर अरुण विश्व की ओर देख कर पूछता है l

अरुण - मामा...
विश्व - हूँ...
अरुण - तुमने कभी होली खेली है...
विश्व - (अरुण के चेहरे की ओर देखता है आशा भरी मासूमियत सवाल था) हाँ... खेली तो है... पर राजगड़ में नहीं...
अरुण - फिर कहाँ खेला तुमने...
विश्व - राजगड़ से बहुत दुर... पिछले साल तक... भुवनेश्वर में...

फिर एक शांति छा जाती है दोनों के बीच l दोनों चलते चलते विश्व के बनाए श्रीनिवास लाइब्रेरी में पहुँचते हैं l विश्व अपना सामान बरामदे में रख कर अरुण से पूछता है l

विश्व - घर नहीं जाओगे...
अरुण - मामा... हम राजगड़ में होली क्यूँ नहीं खेल सकते...
विश्व - अपनी माँ या बाप से पुछा है कभी...
अरुण - हाँ...
विश्व - क्या कहा उन्होंने... बापू ने तो कुछ कहा नहीं पर... माँ ने कहा...
विश्व - क्या कहा...
अरुण - यहाँ त्योहार मनाने से... राक्षस राजा जाग जाएगा... हमें उठा लेगा... और कच्चा चबा जाएगा...
विश्व - ह्म्म्म्म... ठीक कहती है तुम्हारी माँ...
अरुण - पर मामा... हम होली खेलना चाहते हैं...
विश्व - अपनी माँ की कही बात भुला रहे हो...
अरुण - प्लीज मामा... तुम भी हमारे साथ खेलो ना... मैं जानता हूँ... तुम खेलोगे... तो कोई राक्षस नहीं आएगा...
विश्व - यह तुम कैसे कह सकते हो... क्या यह बात तुम्हारी माँ ने कही...
अरुण - नहीं... यह तो मैं कह रहा हूँ... क्यों कि मुझे पता है... तुमसे राक्षस सारे डरते हैं...
विश्व - (मुस्कराता है) तुझे होली के बारे में कुछ पता भी है...
अरुण - हाँ पता है ना... होली में लोग एक दुसरे को रंग लगाते हैं...
विश्व - और...
अरुण - और क्या... म्म्म्म्म्म्म्... हाँ आम खाते हैं...
विश्व - होली... रंगों का त्योहार है... पर अलग अलग प्रांतों में... अलग अलग मान्यताओं के अनुसार मनाया जाता है... जैसे कहीं... होली दहन के अगले दिन... राख और रंग खेलते हैं... और कहीं लठ होली खेला जाता है... पर हमारे प्रांत में... इसे होली नहीं फगु कहते हैं... जो फाल्गुन पूर्णिमा के अगले दिन खेला जाता है... जगन्नाथ संस्कृति में फाल्गुन दशमी के दिन से... श्री कृष्ण जी की मूर्ति को... विमान में नगर परिक्रमा कराया जाता है... इसी विमान को... दोल कहते हैं... आम के फलों का भोग लगाया जाता है... उसके पश्चात ही लोग आम कहते हैं... उससे पहले नहीं खाया जाता... लोग जो रंग खेलते हैं... उसे अबीर कहते हैं...
अरुण - ओ... तो अबीर खेलने के लिए... हमें श्री कृष्ण जी की मूर्ति को... विमान में... घुमाना पड़ेगा...
विश्व - हाँ पर तु इतना बेताब क्यूँ है... तेरे माँ बाप... थोड़े ना राजी होंगे...
अरुण - मामा... अगर तुम साथ दोगे... तो माँ और बापू थोड़े ना कुछ कहेंगे...
विश्व - (चौंकते हुए) क्या... पाँच दिनों तक विमान परिक्रमा करवाओगे...
अरुण - हाँ... (विश्व एक टफली मारता है अरुण के सिर पर) आह... ठीक है... मामा... कम से कम... एक दिन के लिए... तो कर सकते हैं ना...
विश्व - तु जानता भी है... पुरे राजगड़ में ही नहीं... आसपास के इलाकों में भी... कभी त्योहार नहीं मनाया जाता...
अरुण - मालूम है... पर मामा... इसबार तुम रहोगे ना हमारे साथ...
विश्व - क्या... क्यूँ...
अरुण - तुम रहोगे तो कोई हिम्मत नहीं करेगा... यहाँ तक राक्षस राजा भी नहीं... हमारे मौहल्ले से शुरु करेंगे... वैदेही मासी की दुकान से होकर... यहाँ श्रीनिवास लाइब्रेरी में... परिक्रमा ख़तम करेंगे...

विश्व कोई जवाब नहीं देता, अरुण बड़ी आस भरी नजर से विश्व की ओर देखता है l विश्व का चेहरा थोड़ा गंभीर दिख रहा था l वह जैसे किसी सोच में खो गया था l

अरुण - मामा... बोलो ना... तुम हमारे साथ रहोगे ना...
विश्व - (पॉज)
अरुण - हम होली खेलना चाहते हैं... बोलो ना...
विश्व - (पॉज)

विश्व से कोई जवाब ना पाता देख कर अरुण मायूस सा चेहरा लेकर वापस जाने लगता है l विश्व अपनी सोच से बाहर आता है और आवाज देता है

विश्व - अरुण... (अरुण मूड कर देखता है) मैं साथ हूँ... पर एक दिन के लिए बस...

अरुण भागते हुए आता है और विश्व के उपर खुद कर गोद में चढ़ जाता है l विश्व भी उसे गोद में उठा लेता है l अरुण विश्व के गाल पर एक लंबा चुंबन देता है l फिर विश्व की गोद से उतर कर हाथ हिला कर विश्व से विदा लेता है और उछलते कुदते अपने घर की जाने लगता है l उसे यूँ जाता देख विश्व के होठों पर एक मुस्कान उभर जाती है l तभी उसके कानों में एक आवाज पड़ती है l

- भाई... बच्चे को यूँ झूठ बोल कर बहलाना ठीक बात नहीं... (यह टीलु था)
विश्व - (टीलु की ओर मुड़ कर) तुम कब आए...
टीलु - आया तो थोड़ी देर पहले था... पर मामा भांजे का प्यार गुफ़्तगू देख कर... ठिठक गया...
विश्व - काम का क्या हुआ...
टीलु - (कुछ कागज निकाल कर विश्व की ओर बढ़ाता है) देख लो... पुरे के पुरे दस लोग... जेरॉक्स हैं...
विश्व - (सारे कागजात देखते हुए) ह्म्म्म्म... बहुत बढ़िया...
टीलु - ओरिजिनल सारे सीलु के पास है... और आज ही वह... भुवनेश्वर जा रहा है... जोडार सर के हवाले कर आयेगा...
विश्व - बहुत अच्छे...
टीलु - पर भाई... तुमने जवाब नहीं दिया...
विश्व - (टीलु की ओर देखते हुए) तुम्हें लगता है... मैं अरुण से झूठ बोल रहा था...
टीलु - तो क्या सच में... गाँव में होली खेला जाएगा...
विश्व - हाँ... बच्चे और मैं... और जो हमारे साथ आयेंगे... वे लोग...

तभी विश्व के मोबाइल पर मैसेज ट्यून बजने लगती है l विश्व मोबाइल निकाल कर मैसेज देखता है l मैसेज रुप ने भेजा था l
“आई एम कमींग"


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xxxx गोदाम यशपुर
गोदाम के अंदर सारे ऐसों आराम की सहूलियतें हैं l बड़ा सा बिस्तर है जिस पर फूलों के पंखुड़ियां बिखरे पड़े हैं l एक आईने के सामने कुर्ते पाजामे में गुनगुनाता रोणा अपने ऊपर फ्रेगनेंस छिड़क रहा था l तभी उसके कानों में गाड़ी की हॉर्न सुनाई देता है l रोणा अपने लैपटॉप पर देखता है बाहर एक मर्सिडीज गाड़ी खड़ी है l कुछ देर बाद गाड़ी की खिड़की डाउन होती है टोनी उर्फ लेनिन खिड़की से झाँकता है और हाथ हिलाता है l रोणा के आँखों में चमक उभर आती है और होठों पर मुस्कान आ जाती है l वह लैपटॉप पर कुछ टाइप करता है l तो एक दरवाजा खुल जाता है l मर्सिडीज अंदर आती है l गाड़ी अंदर आकर सीधे उसके बिस्तर के पास रुकती है l रोणा देखता है पिछली सीट पर रुप हैरानी से भवें सिकुड़ कर गोदाम को और रोणा को देख रही है l

लेनिन - हाँ तो रोणा बाबु.... मेरे कागजात कहाँ हैं...
रोणा - इतनी जल्दी भी क्या है...

कहकर गाड़ी की तरफ जाने लगता है, लेनिन अपनी जेब से पिस्टल निकाल कर रोणा पर तान देता है l रोणा यह देख कर रुक जाता है l

रोणा - यह क्या है टोनी...
लेनिन - बहुत बड़ा कांड कर आया हूँ... और मुझे अभी के अभी राजगड़ से निकल जाना है... इसलिए मेरे कागजात मेरे हवाले कर दो... वर्ना... मैं अभी के अभी इस लड़की को लेकर चला जाऊँगा...
रोणा - ओके ओके... (कह कर एक टेबल के ड्रॉयर को खोलता है)
लेनिन - अगर गन निकालने की कोशिश की... तो तुम्हारा भेजा उड़ा दूँगा रोणा...
रोणा - बहुत जल्द औकात में आ गया तु... साहब से... तु..
लेनिन - हाँ... क्यूँ की तु कोई महात्मा है नहीं... हरामी पन में... मुझ से दो कदम आगे है बस...

रोणा एक पैकेट निकाल कर लेनिन के हाथ में देता है l लेनिन पैकेट खोल कर देखता है संतुष्टि होने पर पैकेट को जेब में रखते हुए रोणा से कहता है l

लेनिन - ठीक है रोणा बाबु... इस लड़की की गाड़ी खराब होने के बाद इसे झूठ बोल कर... लिफ्ट देने के बहाने यहाँ तक ले आया... अब यह लड़की तुम्हारे हवाले... (कह कर लेनिन दरवाजा खोलता है l रुप नीचे उतरती है, रुप से) मेम साहब... यही आपकी मंजिल थी... जहां मैंने आपको पहुँचा दिया है...

कह कर लेनिन अपनी गाड़ी में बैठता है और बैक करते हुए गोदाम से निकल जाता है l उसके जाते ही रोणा दरवाजे को बंद करने का कमांड देता है और दरवाजा बंद हो जाता है l गुस्से से दांत पिसते हुए रुप रोणा की देखती है l

रोणा - हैरान हो.. जानेमन... हा हा हा हा... परेशान हो... ओ हो हो हो... कोई ना... आज मेरा दिन है... वह कहते हैं ना... अँग्रेजी में... "एवरी डॉग हेज हीज डे" (चेहरा बहुत गंभीर हो जाता है, अपने गाल पर हाथ फेरते हुए) आज मेरा दिन है... कमीनी कुतिया...
रुप - (चुप रहती है, पर उसे घूरती रहती है)
रोणा - (अपनी दोनों बाहें फैला कर) मैं जब राजगड़ आया था... तब इस गोदाम पर मेरी नजर पडी थी... तब से इसे धीरे धीरे अपने कब्जे में लेकर... सवांर रहा था... आज ही के दिन के लिए... बहुत बड़ा गोदाम है... जितना चाहे भाग सकती है... तु जब भागते भागते थक जाएगी... तब मैं तेरी फाडुंगा... तु रोती रहेगी... चीखती चिल्लाएगी... तब मैं तुझे रौंदुंगा... चल भाग... (चिल्लाते हुए) भाग....

रोणा इतनी जोर से चिल्लाया था कि भाग शब्द कुछ देर तक गुंजती रही l जैसे ही भाग शब्द की गुंजन थम जाती है l रुप हँसने लगती है l हँसते हँसते वह टेबल के पास रखे चेयर पर बैठ जाती है और अपनी दाहिनी पैर को बाएँ पैर बड़े अदब से रखती है और राजसी ठाठ पर बैठती है l रोणा भैवें सिकुड़ कर रुप की ओर देखने लगता है l

रुप - एक लड़की... दो अंजान मर्दों के बीच आकर भी... ना चीखती है... ना चिल्लाती है... तुझे हैरानी नहीं हुई... इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा...

रूप अपनी चूडी से एक सेफ्टी पिन निकाल कर अपनी मोबाइल फोन को चुभो देती है l एक स्लॉट खुल जाती है l एक चिप को निकाल कर रोणा को दिखाते हुए कहती है

रुप - इस बग वाली चिप ट्रिक से तुझे और तेरे इस छछूंदर को लगा... मुझे ट्रैप कर लोगे... हा हा हा हा... (रुप हँसने लगती है, फिर अचानक अपनी हँसी रोक कर) स्मार्ट तु है नहीं... चालाक तु बन नहीं पाया... और बेवक़ूफ़ इतना के तेरी बेवक़ूफ़ों में भर्ती होगी नहीं... (रोणा की आँखे हैरानी से फैल जाती हैं, वह रुप की ओर आगे बढ़ने की कोशिश करता है तो उसे रुप की हाथों में एक गन दिखता है, रुप एक हवाई फायर करती है) कोई हरकत मत करना... मिस्टर रोणा... मौत और तुझमे दूरी उतनी ही है... जितनी मेरी ट्रिगर पर उंगली...
रोणा - मतलब... तुझे सब पता था...
रुप - हाँ रोणा हाँ... कैसे कब... यह तुझे बताने वाले और हैं... तुझे उनसे मालुम पड़ेगा... पर तुझे इस वक़्त जो जानना जरूरी है... वह जान ले...

रोणा हैरानी से रुप की ओर देख रहा था, सोच रहा था कुछ ही सेकेंड में सबकुछ कैसे बदल गया l क्या सोचा था और क्या हो गया l

रुप - मेरा पीछा करता रहा... स्टॉक करता रहा... पर ताज्जुब है... मेरे बारे में जानने की कोशिश भी नहीं की... अगर जान गया होता... तो आज तु ना जान से जाता... ना जहान से जाता...
रोणा - (हकलाते) क्क्क्क्क् कौन हो तुम....
रुप - मेरा नाम... रुप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल है... राजा भैरव सिंह क्षेत्रपाल की बेटी... दादा राजा नागेंद्र सिंह क्षेत्रपाल की पोती... छोटे राजा पिनाक सिंह क्षेत्रपाल की भतीजी... युवराज विक्रम सिंह क्षेत्रपाल और राजकुमार वीर सिंह क्षेत्रपाल की लाडली बहन...

यह सुनते ही रोणा के पैरों तले जमीन हिलने लगती है l उसका शरीर पुरा का पुरा पसीने से सरोवर हो जाता है l उसका जिस्म कांपने लगती है l


रोणा - ज्ज्ज्ज्झुठ... झूठ कह रही हो.... त्त्त्त्त्त्तुम...
रुप - तुझ जैसे कमिने मुझे कौनसा सत्यवादी होने की सर्टिफिकेट लेना है... तु बस इतना जान ले... मेरी पेंडेंट... मेरी बैंगल... मेरी पायल और मेरी मोबाइल फोन में... मेरे भैया... ट्रैकर लगा रखे हैं... मैं कहीं भी जाती हूँ... उनकी नज़र में रहती हूँ... अभी भी... रास्ते में तेरे छछूंदर ने मेरी गाड़ी खराब कर लिफ्ट ऑफर की... उसे लगा कि प्लान उसका है... जब कि यह प्लान... मेरे भैया विक्रम सिंह क्षेत्रपाल का है... वह बराबर दूरी बनाए... मेरे पीछे पीछे आ रहे थे... बस कुछ सेकेंड रुक जा... तेरे इस गोदाम को धज्जियाँ उड़ाते हुए... आ धमकेंगे... फिर... फिर तेरा क्या होगा... रोणा
रोणा - साली... हराम जादी... विश्व की रंडी कमीनी... अपनी झूठ में मुझे फंसा रही है... मैं तेरे झांसे में नहीं आने वाला...
रुप - अच्छा यह बात है... (इतना कह कर रुप अपनी गन को रोणा की ओर फेंकती है जिसे रोणा कैच कर लेता) यह ले... अब मैं निहत्थी हूँ... बस पाँच सेकेंड
रोणा - (हाथ में गन आते ही थोड़ा हिम्मत दिखाते हुए रुप की ओर बढ़ता है)
रुप - पाँच.... चार... तीन... दो... एक... बूम...

धड़ाम से गोदाम का दरवाज़ा तोड़ते हुए विक्रम की गाड़ी अंदर आती है l अंदर गाड़ी, गाड़ी में विक्रम को देख कर रोणा के चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने लगती है l विक्रम गाड़ी से उतरता है l रोणा को नजर अंदाज करके आगे बढ़ता है और रुप के पास पहुँचता है l

विक्रम - नंदिनी... मुझे देर तो नहीं हुई...
नंदिनी - नहीं भैया... हाँ पर इस कमीने को... यकीन नहीं दिला पाई...
विक्रम - (रोणा की ओर घूम कर दहाड़ती आवाज में) रोणा... हमारे टुकड़ों में पलने वाले कुत्ते... तेरी इस गुस्ताखी की क्या सजा दी जाए...

रोणा रुप की उस गन को अब दोनों पर तान देता है l विक्रम के बाएँ आख का भौवां तन जाता है l जबड़े इस तरह से भिंच जाते हैं कि कड़ कड़ की आवाज रोणा के कानों में सुनाई देने लगती है, पर रोणा को लगता है यह आवाज उसके हड्डियों के जोड़ से आ रही है l रोणा ट्रिगर दबा देता है पर गोली निशाने पर नहीं लगती, वज़ह साफ थी उसके हाथ डर के मारे कांप रहे थे l पर गोली चलने के बाद रुप जरुर चीखती है और अपने भैया को देखने लगती है l विक्रम को गोली लगी नहीं थी l विक्रम अब गुस्से में रोणा की ओर बढ़ने लगता है l रोणा फिर से फायर करता है पर इसबार गोली नहीं चलती, रोणा इस बार गन को विक्रम की ओर फेंक मारता है l विक्रम साइड हो जाता है l फिर रोणा बिना पीछे देखे भागने लगता है l वह पीछे बिल्कुल नहीं देखता विक्रम उसका पीछा कर रहा है या नहीं l वह बस बदहवास भगा जा रहा था l डर उसके उपर इस कदर हावी था कि उसके आँखे बड़ी और इस कदर फैली हुई थी कि जो देखे उसे लगता था जैसे आँखे अभी के अभी बाहर आ जायेंगी l यशपुर के सड़क पर लोगों से टकराते हुए भाग रहा था l सभी लोग उसे देख कर हैरान हो रहे थे l रोणा भागते भागते राजमार्ग पर आता है l यशपुर अब पीछे छूट चुका था l फिर भी वह बदहवास भागे जा रहा था l तभी एक ट्रक उसे ओवर टेक करते हुए उसके आगे चलने लगती है l वह देखता है ट्रक तिरपाल से ढका हुआ था और पीछे से उसका पर्दा हिल रहा था l रोणा चिल्ला कर ट्रक को रोकने के लिए कहता है के तभी पीछे वाला पर्दा हटा कर लेनिन उसकी ओर हाथ बढ़ाता है l रोणा की आँखों में चमक आ जाता है और मन में जीने की आश दिखने लगता है l वह अपना हाथ बढ़ाता है लेनिन उसका हाथ पकड़ कर ट्रक के अंदर खिंच लेता है l ट्रक में पहुँच कर देखता है l ट्रक खाली था बस वह और टोनी ही थे l जोर जोर से हांफते हुए पीठ को टेक लगा कर बैठ जाता है l टोनी को इशारे से सिगरेट माँगता है l टोनी उसे सिगरेट और लाइटर देता है l अपनी साँसे दुरुस्त करते हुए होठों पर सिगरेट लेकर लाइटर से सुलगता है l फिर जली हुई सिगरेट को लेकर अपने हाथ में लगाता है कहीं सपना तो नहीं देख रहा l चमड़ी पर जलन की छाल पड़ने तक सिगरेट को रगड़ता है, नहीं यह कोई सपना नहीं था l अभी अभी जो भी हुआ था सब सच ही था l उसे जब एहसास होता है कि वह सपना नहीं देख रहा था कुछ देर पहले उसके साथ वाकई वही हुआ है जिससे वह भाग रहा है l यह जान कर रोने लगता है l धीरे धीरे उसका रोना दहाड़े मार कर रोने में बदल जाता है l

लेनिन - (रोणा को झंझोड़ते हुए) रोणा... क्या हो गया है तुझे... ऐसे क्यों रो रहा है...
रोणा - (लेनिन की गर्दन पकड़ कर उसे नीचे डाल कर) साले जानता भी है... वह लड़की कौन है... वह क्षेत्रपाल की बेटी है... (लेनिन का गर्दन छोड़ कर) प्रधान ठीक कह रहा था... उस लड़की के पीछे मत पड़... साला दिमाग खिसक कर... मेरा लौड़े से सोच रहा था...
लेनिन - (अपनी गर्दन पर हाथ मलते हुए) मैं भी तो तुझे मना कर रहा था... मामला विश्वा से जुड़ा है... दुर रह उसके मैटर से... पर तुने ही नहीं माना...

अचानक रोणा का रोना बंद हो जाता है l उसके आँखों में जीने का आखिरी आश नजर आता है l

रोणा - एक मिनट... एक मिनट... हम किसी तरह से... राजा साहब तक यह खबर पहुँचा दें... के उनकी बेटी... विश्वा के साथ रंग रलीयाँ मना रही है... वह भी सबूतों के साथ... तो मुझे जीने का और एक मौका मिल सकता है....
लेनिन - पता नहीं... कोशिश करके देख ले...
रोणा - हाँ... चल निकाल वह सबूत....
लेनिन - कहाँ... मेरी गाड़ी के साथ साथ मोबाइल भी छूट गया है... तेरे मोबाइल फोन में तो होगा ना....
रोणा-( कुर्ते के जेब से मोबाइल निकालता है) (विश्व और रुप की फोटोस देखते ही उसके आँखों में चमक आ जाती है) यह देख... यह रहा... (सारे फोटो देख कर)
लेनिन - ना... इससे कोई फायदा नहीं होगा....
रोणा - (गुस्से में तमतमाते हुए) क्यूँ नहीं होगा...
लेनिन - पता नहीं... तुझे अगर वापस जाना है तो बोल... यहीँ छोड़ जाता हूँ... फिर तु जाने... तेरी किस्मत....
रोणा - एक मिनट... एक मिनट... (गुर्राते हुए) यह तु मुझे आप से तु क्यूँ कहने लगा है बे...
लेनिन - मरने से पहले... तुझे आप कहूँ तो... क्या तुझे मौत नहीं आएगी भड़वे... साले... मैं कहते कहते थक गया... मामला विश्वा से जुड़ा है... ना उलझे तो जिंदगी लंबी होगी... पर तेरी एहसान का बदला चुकाने के चक्कर में... अब मेरी भी यह गत बन गई...
रोणा - (कोई जवाबी प्रतिक्रिया नहीं देता, बस इतना ही कहता है) एक आखिरी कोशिश करते हैं... दाव सही लगा... तो हमारी तरफ आ रही मौत को... विश्वा की तरफ मोड़ सकते हैं...
लेनिन - विश्व के पास पहले से ही इन सबके तोड़ होगा... हम अगर जाएंगे... तो सिर्फ फंसेंगे...
रोणा - वह बाद में देखा जाएगा...

कह कर रोणा सारे फोटों सिलेक्ट कर राजा साहब के नंबर पर भेजने की सोचता है पर उसे नंबर लिस्ट में राजा साहब का नंबर नहीं दिखता l वह चिढ़ जाता है तो बल्लभ को फोन लगाता है l पर फोन लगता नहीं, चेक करता है तो पाता है कि मोबाइल में सिग्नल ही नहीं है, रोणा खीज कर अपना मोबाइल को कस के पकड़ कर चीखने लगता है l

रोणा - क्या मुसीबत है... यह मोबाइल टावर क्यूँ लग नहीं रहा है... (इतना कह कर गहरी गहरी साँस लेने लगता है) यकीन नहीं हो रहा है... राजकुमारी नंदिनी को... मालुम था... मोबाइल में तुने बग लगाया था... उसके वज़ह से... मेरे लिए... युवराज ने जाल बिछाया था... उसे मालुम कैसे हुआ... और तेरी गाड़ी का क्या हुआ... यह ट्रक... और भोषड़ी के तुझे मालुम कैसे नहीं हुआ... वह... लड़की क्षेत्रपाल है... हराम के ढक्कन...
लेनिन - (थोड़े देर के लिए चुप रहता है फिर एक गहरी साँस छोड़ते हुए कहना शुरु करता है) गाड़ी की कहानी बाद में बताऊँगा... पहले यह जान लो... हम डाल डाल जा रहे थे... विश्वा पात पात...
रोणा - अब इसमें विश्वा कहाँ से आ गया बे... मादरचोद...
लेनिन - जिस तरह... तुमने मुझे नंदिनी पर नजर रखने के लिए छोड़ रखा था... उसी तरह.. नंदिनी के आसपास नजर रखने के लिए... विश्वा... लल्लन को छोड़ रखा था...
रोणा - अब यह लल्लन कौन है... और... तुझे कब मालुम हुआ...
लेनिन - अभी... थोड़ी देर पहले...जब लगा कि जाल बिछ गया है... मैं गाड़ी छोड़ भागा... तो मैंने अपने झींगुरों से पता लगाने को बोला... तो सालों ने बताया के... आज से कुछ दिन पहले... जब विश्वा की मुहँ बोले माँ बाप... गायब हो कर मिले थे... उसके अगले दिन... हाई वे ट्वेंटी फॉर सेवन रेस्टोरेंट में विश्वा ने... लल्लन को विक्रम सिंह से... इसी सिलसिले में... मिलवाया था... उसने विक्रम को तेरे फिलिंग के बारे में... बताया था... विक्रम को पहले यकीन नहीं हुआ... रंगे हाथ पकड़ने के लिए... उसीने अपनी बहन के साथ मिलकर... जाल बिछाया था...
रोणा - बे मादरचोद... किसने कैसे गांड हमारी मारी पुछ नहीं रहा हूँ... लल्लन कौन है... विश्वा के साथ उसका क्या लेनादेना है... तुझे उसके बारे में कोई जानकारी थी या नहीं... पुछ रहा हूँ...
लेनिन - उसके बारे में जानकारी रखता हूँ ना... बिल्कुल उतना ही... जितना अपने बारे में...
रोणा - (गुस्से से फट पड़ता है) तो हरामी कुत्ते... वह तेरी और मेरी दोनों की मिला कर मार रहा था... तुझे पता कैसे नहीं लगी... (लेनिन चुप रहता है) बोल कुत्ते... उसके बारे में कुछ जानकारी दे... शायद मैं कुछ तिकड़म लगा सकूँ...
लेनिन - उसका असली नाम... ललीतेंदु लक्ष्मण नायक... शॉर्ट कर्ट में लल्लन... तुझे... यश वर्धन चेट्टी... याद है... एक लड़की की कत्ल के इल्ज़ाम में जैल गया था... जिसे विश्वा ने मार दिया... पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट में... ड्रग्स का ओवर डोज आया था...
रोणा - हाँ... पर लल्लन का यश के केस के साथ क्या सम्बंध...
लेनिन - है... वही बता रहा हूँ... यश जिस लड़की को... निहारिका को.. गाड़ी से कुचला था... लल्लन निहारिका का... प्रमोटर था... और आशिक भी... जब निहारिका... यश से मिली... तो यश ने उसे फ़िल्में और एल्बम में बहुत काम दिलवाया... यश ने उसे ड्रग्स का आदि बना कर अपना गुलाम बना कर रखा... जब इस बात को लेकर लल्लन ने यश के खिलाफ कुछ करने की कोशिश की... तब यश ने... अपने कॉन्टेक्ट के जरिए... उसी ड्रग्स के केस में फंसा कर... जैल भिजवा दिया... जैल में उसकी दोस्ती विश्वा से हुआ... पर जैल में वह दोनों एक-दूसरे से दुश्मन की तरह पेश आते थे... इसलिए के कोई भी... अगर विश्व के खिलाफ साजिश को अंजाम दे... तो विश्वा उस साजिश को नाकाम कर... सजा देता था...
रोणा - ओ... तो इसलिए... तेरी पहचान लल्लन से हुई... जो आगे चलकर... विश्वा के खातिर जैल में तेरी गांड मारी...
लेनिन - नहीं...
रोणा - मतलब...
लेनिन - यश को मारने के लिए... जो कबड्डी का मैच हुआ था... दो टीम बनी थी... एक विश्वा की... और दूसरी...
रोणा - हाँ मालुम है दुसरी तेरी...
लेनिन - हाँ... जब विश्वा पर यश ने चोक का दाव आजमाया... तो विश्वा प्लान के मुताबिक... अपनी कुहनी को यश के सीने पर रख कर पलट जाता है.... तभी यश के कहने पर... लल्लन छलांग लगा देता है... जिसके वज़ह से... यश की पसलियाँ टुट कर साँसे रुक गई थी... (कह कर लल्लन चुप हो जाता है)
रोणा - ठीक है... विश्वा और लल्लन का रिश्ता समझ में आ गया... पर तुझे कैसे मालुम नहीं हुआ... के तेरे पीछे वह लगा हुआ है...
लेनिन - विश्वा हमेशा एक बात कहता था... कहो कुछ... करो कुछ... दिखाओ कुछ हो जाए कुछ... उसके सभी दोस्त.. इस मामले में... माहिर और शातिर हैं... विश्वा ने अपनी माँ बाप से बात कर... लल्लन को माफी दिलवा दिया... और विश्वा के जैल से छूटने के डेढ़ साल पहले... उसे तेरे पीछे लगा दिया... और तेरे सारे हरकतों पर नजर रख रहा था...
रोणा - (झटका खाता है) क्या... इसका मतलब... लल्लन मेरे पीछे दो सालों से लगा हुआ था... (फिर अचानक उसकी आँखे बड़ी हो जातीं हैं) एक मिनट एक मिनट... दो साल पहले... तु भी तो मेरे पास आया था... लल्लन... लेनिन... (झट से खड़ा हो जाता है) मादरचोद...
लेनिन - (मुस्करा कर, खड़ा हो जाता है) देखा... जब लड़की सिर पर चढ़ गई थी... तो दिमाग लंड के मुहँ से सोच रही थी... जैसे ही लड़की दिमाग से उतरी... दिमाग पुलिसिये की तरह सोचने लगी...
रोणा - साले हरामी कुत्ते... मतलब तुने विश्वा के साथ मिलकर... विक्रम को मेरे बारे में...
लेनिन - हाँ... मैंने वह सारी बातें भी बताई... मिर्च मसाला लगा कर... जो तुने कभी करना तो दूर सोचा भी नहीं होगा...
रोणा - (चिल्ला कर) ग़द्दार...
लेनिन - ना ना ना... मैं विश्वा का यार.. सिर्फ यार ही नहीं... अयार हूँ...

रोणा गुस्से से कांपते हुए लेनिन पर झपटा मार देता है l पर उसके लिए लेनिन तैयार था किनारे हट कर एक और लुढ़क जाता है l पर दुसरी बार जब रोणा झपटा मारने के लिए तैयार होता है तो लेनिन के हाथ में एक बड़ी सी खुखरी देखता है l खुखरी देख कर रुक जाता है l तभी चलती ट्रक भी रुक जाती है l

रोणा - यह ट्रक यहाँ क्यूँ रुक गया...
लेनिन - ताकि तेरी मुलाकात तेरे बाप से हो... पर्दा उठा कर देख नीचे तेरा बाप खड़ा मिलेगा...

रोणा तिरपाल पर्दा उठाता है l ट्रक राजगड़ के नदी किनारे पर रुका हुआ था l थोड़ी ही दुर विश्व अपनी बाहों में हाथ फंसाये खड़ा था l विश्व को सामने देख कर रोणा गुस्से से दांत पिसते लगता है l रोणा ट्रक से उतरने की सोच ही रहा था कि एक जोरदार लात उसके पीठ पर पड़ती है l वह उड़ते हुए विश्व के कदमों से कुछ ही दुर मुहँ के बल आ कर गिरता है l

विश्व - चु चु चु चु... क्या से क्या हो गया... रोणा... क्या से क्या हो गया... बढ़े ठाठ थे... अब देखो... मेरे पैरों पर पड़ा है...

रोणा अपना चेहरा उठा कर देखता है विश्वा के पीछे और पाँच बंदे खड़े थे l उन में से एक बंदा को देख कर रोणा चौंकता है l वह कोई और नहीं राजगड़ का ग्राम रखी उदय था l रोणा उठ कर भागने की कोशिश करता है पर दो कदम भी भाग नहीं पाता, उसके पैरों को अपने पैरों से बाँध दिया था लेनिन ने l

लेनिन - देखा विश्वा भाई... आज भी मैं तुमसे बेहतर कबड्डी खेल सकता हूँ...
विश्वा - सब कुछ खत्म हो जाने दो... फिर अपनी अपनी टीम बना कर खेलते हैं...
लेनिन - ठीक है...

सीलु मीलु जिलु और टीलु आकर रोणा को पकड़ लेते हैं l रोणा छटपटाने लगता है और पुरी ताकत लगा कर छूटने की कोशिश करता है l

रोणा - छोड़ो... छोड़ दो मुझे...
विश्व - छोड़ दिया तो क्या करेगा...
रोणा - तेरा और इस उदय का खुन पी जाऊँगा...
विश्व - (अपने दोस्तों से) छोड़ दो इसे...

जैसे ही सब रोणा को छोड़ देते हैं रोणा विश्व के ऊपर हमला कर देता है पर उसके सारे वार खाली जातें हैं l फिर विश्व एक जोरदार पंच रोणा के पेट में जड़ देता है l पंच इतना जोरदार था कि रोणा तीन फुट ऊपर उछल कर घुटनों पर गिर कर बैठ जाता है l उसके आँखों के चारो तरफ़ जुगनू दिखाई देने लगते हैं l

विश्व - कुछ याद आया... ऐसे ही तेरी ठुकाई की थी मैंने... कटक में... हफ्तों तक हास्पिटल के बेड में पड़ा था..
रोणा - (दर्द से कराहते हुए बड़ी मुश्किल से) विश्वा.... मुझे छोड़ दे... वादा करता हूँ... रुप फाउंडेशन केस में... तेरा सरकारी गवाह बनूँगा...
विश्व - ऊँ हूँ... अब कोई फायदा नहीं... तेरी गवाही अब मेरे किसी काम नहीं आएगा...
रोणा - देख तुने कसम खाई थी... एक ही खुन करने के लिए... दुसरा मुझ जैसे लीचड़ के खुन से अपने हाथ गंदे मत कर...
विश्व - ठीक कहा तुने... तुझे जैसे गंदे आदमी के खुन से अपना हाथ कभी नहीं रंगना चाहिए... पर मैं जब भी तुझे देखता हूँ... मुझे श्रीनु याद आता है... बोल मैं क्या करूँ...
रोणा - मरे हुए को क्या मारेगा रे विश्वा... वैसे भी... अब तक राजा साहब को मेरे बारे में पता चल चुका होगा... अब हर जगह मेरी तलाशी हो रही होगी... इसलिए प्लीज मुझे जाने दो... कसम से... मैं किसी के हाथ नहीं लगूंगा... मैं... मैं यह देश छोड़ कर चला जाऊँगा...
विश्वा - ह्म्म्म्म... बात तो तुने फतेह की कि है... पर श्रीनु का बदला उतारूँ कैसे... अपनी कसम के वज़ह से मार नहीं सकता... श्रीनु के लिए तुझे छोड़ नहीं सकता... एक काम करता हूँ... तुझे सीधे भैरव सिंह के हवाले कर देता हूँ...
रोणा - (लड़खड़ाते हुए खड़ा हो जाता है) साले हरामी... कितनी देर से... गिड़गिड़ा रहा हूँ... मज़ाक लग रहा है क्या... अगर मैं राजा साहब के हत्थे लग गया... तो तेरी और राजकुमारी की रंगरलियां बता दूँगा... समझा... अब मुझे सीधी तरह जाने दे... वर्ना तु भी बहुत पछताएगा...
सीलु - लो विश्वा भाई... यह तुमको गाली के साथ साथ... धमकी भी दे रहा है...
विश्व - ठीक कह रहे हो सीलु... मैं सच में इसे छोड़ देता... अगर यह मुझसे खौफ रखता तो... पर क्या करूँ... मैं खतरनाक जो नहीं हूँ... (रोणा से) चल मुझे... मार... तेरा एक भी पंच मुझे हिट कर गया... तो वादा है मैं तुझे छोड़ दूँगा...

रोणा खुशी के मारे रो पड़ता है और रोते हुए फिर से घुटने पर बैठ कर झुक जाता है l हाथ में नदी किनारे की रेत उठा कर विश्वा के उपर फेंक देता है, पर वहाँ विश्वा था ही नहीं इधर उधर देख कर खड़ा होता है तब उसे महसूस होता है कि कोई उसके पीछे खड़ा है l जैसे ही घूम कर वार करने के लिए हाथ उठाता है विश्वा का सिंगल फीस्ट पंच रोणा की कलाई पर पड़ती है l रोणा का पूरा का पूरा दाहिना हाथ शुन पड़ जाता है l दर्द से बिल बिलाते हुए बायाँ हाथ चलाता है l विश्व वैसे ही सिंगल फीस्ट पंच लगाता है नतीज़ा वही बायाँ हाथ भी शुन पड़ जाता है l

रोणा - (दर्द से बिल बिलाते हुए) यह क्या कर दिया...
विश्व - वर्म कलई... कल्लडी मार्शल आर्ट की एक अद्भुत कला...
रोणा - देख आखिरी बार कह रहा हूँ... मुझे जाने दे... वर्ना... राजा साहब को तेरे और राजकुमारी के बारे कह दूँगा...
विश्व - इतना कुछ होने के बाद भी... मेरे लिए तेरे आँखों में डर जितना नहीं दिख रहा है... हेकड़ी उससे भी ज्यादा दिख रहा है... इसलिए तुझे राजा के हवाले ही करूँगा... तेरी मौत का फैसला वही करेगा...
रोणा - देख मैं बता दूँगा... सब बता दूँगा...
विश्वा - ऊँ हूँ... नहीं... नहीं बता पाएगा...

फिर विश्व एक पंच रोणा के गले में वॉकल कॉर्ड के पास एक धमनी पर मारता है, जिसे रोणा के मुहँ से थोड़ा खून निकल आता है, उसके बाद विश्व रोणा के कंधों पर, कमर के जॉइंट्स पर, घुटनों पर और पसलियों के किनारों पर पंचेस की बरसात कर देता है l रोणा किसी कटे हुए पेड़ की तरह नदी के रेत पर गिर जाता है l

विश्व - (उदय की ओर देख कर) उदय... इसके साथ क्या करना है... तुम जानते हो...
उदय - हाँ विश्वा... तुम बेफ़िक्र रहो... मैं इसे इसके अंजाम तक पहुँचाऊंगा....

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

क्षेत्रपाल महल के सामने भैरव सिंह की ऑडी गाड़ी रुकती है l सीडियां चढ़ कर अंतर्महल में आता है l देखता है रुप को सुषमा अपने सीने से लगा कर दुलार रही है और बगल में विक्रम चहल कदम कर रहा है l भैरव सिंह को देख कर सभी खड़े हो जाते हैं l सुषमा कुछ कहने को होती है कि हाथ के इशारे से भैरव सिंह चुप करवा देता है l

भैरव सिंह - युवराज...
विक्रम - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - आप अपनी बात एक साथ रखेंगे... ना हम दोबारा आपसे पूछेंगे... ना ही दोबारा सुनेंगे... अब जो सवाल जवाब होगा... सिर्फ राजकुमारी जी के साथ होगा...
विक्रम - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - कहिए...
विक्रम - दो दिन पहले... एक आदमी मेरे पास आया था... नाम था लेनिन... सुंदरगड पोस्टिंग के दौरान... उसके ऊपर इंस्पेक्टर रोणा ने उस पर बहुत मेहरबान रहा... उसके लिए... फेंक आधार कार्ड का जुगाड़ कर नयी पहचान भी दिया था... टोनी के रुप में... एक दिन रोणा भुवनेश्वर में टोनी को बुला कर राजकुमारी जी की डिटेल्स निकाल कर देने के लिए कहा था... टोनी जब छानबीन की... तब उसे राजकुमारी जी के बारे में मालुम हुआ... वह डर गया... डर के मारे... रोणा को भी सारी बातेँ बताई... पर रोणा इसे हल्के में लिया... वह जब जब भुवनेश्वर गया है... सिर्फ और सिर्फ राजकुमारी को स्टॉक करने ही गया है... एक दिन उसे मालुम हुआ... राजकुमारी होली की छुट्टी में राजगड़ लौट रही हैं... तो उसने टोनी को जिम्मा दिया राजकुमारी जी को बीच रास्ते में किडनैप करने के लिए... टोनी डर के मारे मना ना कर सका... इसलिए सीधे मेरे पास आकर सब कुछ बता दिया... प्रूफ के लिए... मैंने उसे विडिओ कॉल करने के लिए कहा... उसने अपनी साइड कैमरा पर उंगली रख कर वीडियो कॉल किया... वीडियो में रोणा ही था... मेरे गुस्से का ठिकाना नहीं था... भीमा से पता चला कि... कुछ दिनों से रोणा गायब है... तो मैंने गुरु को रोक कर टोनी को अपनी गाड़ी दी... राजकुमारी जी को रोणा तक ले जाने के लिए... और बराबर दूरी बनाए पीछे पीछे उस गोदाम में पहुँचा... जहां मैंने रोणा की करतूत और इरादों को रंगे हाथ पकड़ा.... पर वह भागने में कामयाब रहा... मैंने आदमी दौडायें हैं.... जरुर हाथ लगेगा... (कह कर चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - बस...
विक्रम - जी बस...
भैरव सिंह - राजकुमारी...
रुप - जी...
भैरव सिंह - हमारे सारे सवालों का ज़वाब... आप हमारी आँखों में आँख मिला कर दीजिए...
सुषमा - आज तक... इस घर की बेटियां कभी आँख मिला कर ज़वाब दिए हैं भला...
भैरव सिंह - (हाथ दिखा कर) आप चुप रहें तो बेहतर होगा... (सुषमा चुप हो जाती है) राजकुमारी जी...
रुप - (हिम्मत जुटा कर) जी...
भैरव सिंह - क्या आप... विश्वा को जानती हैं...
रुप - कौन विश्वा...
भैरव सिंह - एडवोकेट प्रतिभा सेनापति के बेटे को जानती हैं...
रुप - जी... जानती हूँ... पर उसका नाम तो प्रताप है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... कैसे जानती हैं....
रुप - एक बार... राजकुमार वीर जी ने कहा... के मुझे ड्राइविंग सीखनी चाहिए... इसलिए ड्राइविंग स्कुल में मेरी क्लासमेट भाश्वती के साथ एडमीशन ली थी... वहीँ पर एक दिन बस में कुछ गुंडे भाश्वती को छेड़ दिया था... जिस पर प्रताप ने उन सबकी पिटाई कर दी थी... उसके बाद भाश्वती प्रताप को भाई मानने लगी... आखिरी दिन प्रताप ने हम सभी को... पार्टी के लिए बुलाया था... तो हम उसके घर गए थे... बस उतना ही...
भैरव सिंह - क्या उसी पार्टी के दिन... आपने इंस्पेक्टर रोणा को थप्पड़ मारा था...
रुप - जी... पर मुझे मालूम ही नहीं था कि वह इंस्पेक्टर है...
भैरव सिंह - ठीक है... उसे थप्पड़ मारा क्यूँ...
रुप - क्योंकि की उसकी नजर मुझे बहुत चुभ रही थी... बड़ी गंदी नजर से देख रहा था...
भैरव सिंह - क्या आपको पता था... के वह आपको स्टॉक कर रहा है...
रुप - नहीं... पर मुझे कोई स्टॉक करेगा... यह मैं सोच भी नहीं सकती थी... क्यूँकी मुझे अपने खानदान और भैया की रेपुटेशन पर पूरा भरोसा था...
भैरव सिंह - (जबड़े भिंच जाते हैं) एक आखिरी सवाल... आपको याद है... एक दिन किसी ने बड़े राजा जी के कमरे में कोई घुस आया था...
रुप - उस दिन मैं रात भर पढ़ते पढ़ते सो गई थी... छोटी माँ के जगाने पर मैं उठी थी...

भैरव सिंह रुप की आँखों में झाँक कर देखता है l बड़ी सफाई से रुप ने हर बातों का जवाब दिया था l भैरव सिंह थोड़ी देर रुप को घूरने के बाद रुप से

भैरव सिंह - हमें आपका मोबाइल दीजिये...

रुप मोबाइल दे देती है l भैरव सिंह कॉल लिस्ट देखता है सिर्फ दस से पंद्रह कॉन्टैक्ट ही थे l फाइल मैनेजर में कोई फोटो उसे दिखती नहीं l फिर वह मोबाइल को अपनी जेब में रख देता है l

रुप - जी... वह मोबाइल...
भैरव सिंह - आज से आपको किसी को भी फोन करना हो तो... घर की कॉर्डलेस से कीजिए... आपका अब भुवनेश्वर जाना बंद... आप घर में ही पढ़ेंगी... सिर्फ इम्तिहान देने... भुवनेश्वर जायेंगी... (रुप का चेहरा उतर जाता है और उदास मन से चेहरा झुका लेती है) हम ने आप से कुछ कहा...
रुप - जैसी आपकी इच्छा...
भैरव सिंह - युवराज...
विक्रम - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - आप प्रिन्सिपल से बात कर लीजिए...
विक्रम - जी...
भैरव सिंह - अब आप हमारे साथ आइए...

विक्रम और भैरव सिंह अंतर्महल से निकलने लगते हैं l वह देखते हैं भीमा सीडियों पर भागते हुए आ रहा है l

विक्रम - क्या खबर लाए हो भीमा...
भीमा - वह... वह मिल गया... पर...
भैरव सिंह - पर क्या...
भीमा - वह हस्पताल में था... कनाल के पास ज़ख्मी हालत में पड़ा हुआ था... उदय ने उसे यशपुर हस्पताल में भर्ती करवाया था... जब होश आकर डर के मारे बड़बड़ाने लगा... मुझे राजा से बचाओ... मुझे विक्रम से बचाओ... तब उदय ने हमें खबर दी...
भैरव सिंह - वह हराम का पिल्ला जैसी भी हाल में है... उसे उठा कर रंग महल लेकर आओ... जाओ...
भीमा - जी... हुकुम... हम उसे रंग महल ले आए हैं...
Wow kia ho shandar update thaa Rona ko uski chalaki hi nigal gayi kaha Raja ne plan banaya thaa ki vishwa ya Rona me se koi marega to doosra is qabil bhi nahi rahega ki kuch kar sakey usko woh khatam kar dega. Lekin vishwa ne game hi itna badiya khela hai ki ab Raja khud usko uske kiye ki saza dega aur woh bhi RangMehal me

lekin ek baat jo gadbad ho gayi hai Rona ne vishwa ki GF ke barey me bataya thaa aur un sabhi thatyo ko joda jaye to sab vishwa n Rup ke pyaar ki dastaan ko bayan karte hai. Yani ke Bhairav jaisa ghag aadmi 2 min me pehchaan jayega ki samjh jayega aur yah Roop ke liye bilkul bhi accha nahi hoga ab dekhna hai ki aagey kia hota hai. Intezar rahega bohat jaldi wali agli update ka.
 

RAAZ

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थैंक्स भाई बहुत बहुत शुक्रिया
अगला अपडेट अगले साल आएगा
क्यूंकि अभी क्रिसमस की छुट्टियों में सपरिवार घूमने जा रहे हैं
Koi nahi bhai family always come first. Enjoy holidays. Aur bus family ke sath happy times ke baad apni forum family ka bhi dhayan rakhiyega
 

Luckyloda

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Rona ka kya haal bana Diya .....




Bhut shandaar update Bhai
 

parkas

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Kala Nag bhai next update kab tak aayega?
 

Sidd19

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थैंक्स भाई बहुत बहुत शुक्रिया
अगला अपडेट अगले साल आएगा
क्यूंकि अभी क्रिसमस की छुट्टियों में सपरिवार घूमने जा रहे हैं
Happy journey bhai
 
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big king

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👉एक सौ चौवालीसवां अपडेट
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राजगड़
भीमा का अखाड़ा
अखाड़े में पहलवानों का जमावड़ा लगा हुआ है l कुछ कुस्ती में मसरूफ थे तो कुछ कसरत में l भीमा पुरा मैदान घूम कर निरीक्षण कर रहा था l इतने में वह देखता है सत्तू के साथ कुछ पहलवान हाथों में कसरती गदा लिए प्रवेश करते हैं l सबके मुहँ पर एक परेशानी सा भाव को देखता है l

भीमा - क्या बात है सत्तू... कहाँ गए थे... और यूँ मुहँ लटकाये क्यूँ आ रहे हो...
सत्तू - कुछ नहीं गुरु... बस हम नदी किनारे गए थे...
शनिया - बे बहन के लौड़े... तब हाथ में लोटा होना चाहिए था... यह गदा क्या करने ले गए थे...
सत्तू - वह... (एक बंदे की ओर इशारा करते हुए) यह नीलकंठ कह रहा था... वह... (रुक जाता है)
भीमा - रुक क्यूँ गया... बोल...
सत्तू - ऐ नील... तु बोल... (नील इशारे से मना करता है)
भीमा - (गुस्से में) अबे कोई तो बोलो... ऐसे जता रहे हो... जैसे तुम्हारी माँ चोद दी किसीने...
सत्तू - ठीक है... मैं बताता हूँ... वह गुरु... इस नील को खबर मिली... के विश्वा... अकेले कसरत करने शाम को नदी किनारे जाता है... जहां से कनाल खुलता है...
भीमा - हाँ तो...
सत्तू - तो इसने कुछ पट्ठों को साथ लिया... मैं भी उसके साथ हो लिया... मिलकर विश्वा की ऐसी की तैसी करने के लिए...
शनिया - ओ... तो यह बोलो ना... विश्वा से फिर से पीट कर आए हो... तुम लोग...
भीमा - तु चुप रह... तु कौनसा... विश्वा से मार खाए वगैर आया है...
सत्तू - नहीं गुरु... बात हमारे मार खाने तक कि गई नहीं...
भीमा - तो...
सत्तू - हम जब पहुँचे... तो देखा... विश्वा एक पेड़ के नीचे कसरत कर रहा था... हम लोग छुप कर... योजना बनाने लगे... किस वक़्त और कैसे उस पर धाबा बोलना है... पर...
भीमा - अबे... यह बार बार अटक क्यूँ रहा है... सीधे बोल... विश्वा ने तुम लोगों की गांड मारी तो कैसे मारी...
सत्तू - हमने देखा... जब विश्वा पसीना पसीना हो गया... तब वह अपने बदन से कपड़े निकाल दिया... उसका बदन... शाम की ढलती सूरज की चमक से चमक रही थी... उसका बदन ऐसा लाग रहा था... जैसे पत्थरों को काट कर किसी शिल्पी ने... पेशियों वाली मुरत बनाया हो...
भीमा - बस वही देख कर... तुम लोगों की फट गई...
सत्तू - सिर्फ वही नहीं गुरु... हमने देखा... वह... ईंटों को... हाथ के वार से तोड़ रहा था... काठ के पाटों को... हाथ के वार से तोड़ रहा था... पेड़ से टंगे पानी से भरे बड़े बड़े मटकों को कभी लात से.. कभी कुहनियों से फोड़ रहा था...

सत्तू रुक जाता है, उसे महसुस होता है जैसे पुरे अखाड़े को कोई सांप सूँघ गया हो, यह देख कर रुक जाता है l उसे चुप देख कर भीमा पूछता है

भीमा - बस इतना ही...
सत्तू - नहीं... विश्वा फिर एक बाँस की लाठी उठाया... ऐसे चलाया... की हमको दिखी ही नहीं... हवाओं को चीरती हुई उस बाँस की आवाज... ऐसा लग रहा था जैसे... कोई आँधी हो... या बवंडर...

सत्तू फिर चुप हो जाता है l वह देखता है कुछ पहलवान उसे मुहँ फाड़े देखे जा रहे हैं और भीमा की नजरें सत्तू से हट गया था और भवें सिकुड़ कर कुछ सोच में पड़ गया था l

सत्तू - क्या हुआ गुरु...
भीम - क्या बस इतना ही...
सत्तू - हाँ... बस इतना ही... उसकी लाठी जब चलती है... तो गायब ही लगती है... तब समझ में आया... कैसे तलवार घुमा कर... सरपंच की गमछे को तीन टुकड़ों में काटा था...

तभी अखाड़े में बल्लभ अंदर आता है l इन सबके सामने आकर खड़ा हो जाता है l सभी उसके सामने सीधा हो कर खड़े हो जाते हैं l

भीमा - क्या हुआ वकील साहब...
बल्लभ - यह सत्तू जो तुम लोगों से कह रहा था... मैं थोड़ी दुर से सब सुन रहा था... (सबकी चेहरे पर गौर करता है, जैसे सब शर्मिंदा हो रहे हैं) देखो... तुम लोग वह क्या है... क्या किया है... यह सोचने की जहमत मत उठाओ... बस इतना याद रखो... तुम लोग... जब तक राजा साहब के काम के हो... तब तक जिंदा हो... जिस दिन राजा साहब को यह एहसास हो गया... तुम लोग उनके किसी काम के नहीं रहे... उस दिन... तुम्हें कोई बचा नहीं पाएगा... दो बार... उसने तुम्हें मात दी है... पर जरूरी नहीं... के यह हर बार... दोहराया जाए... इसलिए तुम लोग... अपनी तैयारी मत छोड़ो...
शनिया - वही तो कर रहे हैं... वकील साहब...
बल्लभ - हाँ मुझे दिख भी रहा है... बस एक बात अच्छे से याद कर लो... क्षेत्रपाल महल के वज़ह से... सिर्फ राजगड़ में ही नहीं... आसपास के पचीस तीस गाँव में भी तुम लोगों का बहुत भाव है... इसलिए अब तक जो हुआ... सो हुआ... अब कि बार... अगर क्षेत्रपाल की साख पर... तुम लोगों के वज़ह से कोई बट्टा लगा... तो भीमा... आखेट महल में... जो मगरमच्छ और लकड़बग्घे भूखे हैं... उनके निवाला तुम लोग भी हो सकते हो...

सब के सब डर के मारे अपनी हलक से थूक निगलने लगते हैं l उनकी हालत देख कर बल्लभ उनसे कहता है

बल्लभ - डर बहुत ही अच्छी चीज़ है... डर को इज़्ज़त देना चाहिए... पर डर वाला इज़्ज़त तुम किसे दोगे... राजा साहब को... या विश्वा को... उस डर को अच्छी तरह से तोल लो... (सबकी चेहरे पर नजर घुमा कर) तो क्या फैसला किया...
भीमा - हम... हम राजा साहब के नमक ख्वार हैं वकील बाबु... हम उनके लिए... ऐसे कई विश्वा से भीड़ जाएंगे... (सब से) क्यूँ साथियों...
सत्तू - राजा सहाब की...
सभी - जय हो...
बल्लभ - शाबाश...
भीमा - वैसे वकील साहब... हफ़्तों हो गए... दरोगा जी... दिख नहीं रहे हैं...
बल्लभ - हाँ... अब पता नहीं... दरोगा कहाँ चला गया... पर तुम्हें दरोगा की क्या जरूरत है...
भीमा - जैसे आप हमारे साथ हैं... उसी तरह दरोगा जी की भी साथ मिल जाए... तो हिम्मत सौ गुना बढ़ जाती है...
बल्लभ - इतनी जल्दी पंचायत भवन की कांड भूल गए लगता है...
शनिया - नहीं वकील बाबु... अगर उस दिन टाईम पर दरोगा जी पहुँच गए होते... तो बात अलग होती...
बल्लभ - खयाली पुलाव पकाना छोड़ दो... अनिकेत... फ़िलहाल छुट्टी पर है... अपनी निजी वज़ह से... पर इतना पक्का बता सकता हूँ... वह जहां भी होगा... विश्वा को ख़तम करने की ही सोच रहा होगा...
भीमा - वह... वकील बाबु... उस दिन... राजा साहब ने... एसपी को फोन पर नए दरोगा के लिए... सिफारिश किये थे....
बल्लभ - हाँ... नया दरोगा... एक या दो दिन में... थाने का चार्ज ले लेगा... फ़िलहाल जब तक राजा साहब ना कहें... तुम लोग कोई बेवकूफ़ी मत करना... विश्वा पर तुम लोग सिर्फ नजर रखो... हर बाजी... हमेशा कोई जीत नहीं सकता... उसकी हार भी... उसकी प्रतीक्षा में होगी... हमें उस वक़्त का इंतज़ार करना होगा... समझे...
भीमा - जी...
बल्लभ - वह कसरत करे या सर्कस... फ़िलहाल उससे दूरी बनाए रखो... उसका अंजाम जिसके हाथों होना है... वह तय है... तुम लोग बीच में मत घुसो...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

पसीने को पोंछ कर अपने कपड़े समेटते हुए विश्व को महसूस होता है कि कोई आसपास है जो उससे शायद छुपा हुआ है l थोड़ा ध्यान देने पर विश्व को मालुम हो जाता है छुप कर देखने वाला कौन है l विश्व मुस्करा देता है

विश्व - छुप कर क्यूँ देख रहा है... बाहर आजा... (पत्थर के ओट से अरुण बाहर आता है, विश्व उसके गाल को पकड़ कर) क्यूँ रे... अपने मामा के कसरत को छुप कर देख रहा है...
अरुण - आह... मामा... लग रहा है...

विश्व उसके गाल छोड़ देता है l अरुण अपने गाल पर हाथ रखकर मलने लगता है l विश्व अपने कपड़े और सामान समेट कर चलने लगता है l उसके साथ साथ अरुण भी चलने लगता है l

अरुण - मामा... आप क्या कसरत करने के लिए... जगह बदल दी...
विश्व - क्यूँ...
अरुण - नहीं... आप तो हमेशा घर पर... कसरत किया करते थे ना...
विश्व - आज मन किया तो यहाँ चला आया...
अरुण - ओ...
विश्व - तु यहाँ क्यों आया था...
अरुण - मैं... मैं हमेशा की तरह... दो टाईम लंडन जाता हूँ ना... (लोटा दिखाते हुए) इसलिये...
विश्व - (मुस्करा देता है) बहुत बदमाश हो गया है तु...
अरुण - हाँ... माँ भी यही कहती है...
विश्व - स्कुल में पढ़ाई कैसी चल रही है...
अरुण - वह तो बढ़िया चल रही है... पर अब छुट्टियाँ चल रही है...
विश्व - ओ हाँ... होली की छुट्टियाँ...
अरुण - हाँ... पर होली हम खेलते कहाँ हैं... सिर्फ किताबों में ही पढ़ा है... होली में रंग खेला जाता है...

इस बात पर विश्व खामोश रहता है l विश्व से जवाब ना पाकर अरुण विश्व की ओर देख कर पूछता है l

अरुण - मामा...
विश्व - हूँ...
अरुण - तुमने कभी होली खेली है...
विश्व - (अरुण के चेहरे की ओर देखता है आशा भरी मासूमियत सवाल था) हाँ... खेली तो है... पर राजगड़ में नहीं...
अरुण - फिर कहाँ खेला तुमने...
विश्व - राजगड़ से बहुत दुर... पिछले साल तक... भुवनेश्वर में...

फिर एक शांति छा जाती है दोनों के बीच l दोनों चलते चलते विश्व के बनाए श्रीनिवास लाइब्रेरी में पहुँचते हैं l विश्व अपना सामान बरामदे में रख कर अरुण से पूछता है l

विश्व - घर नहीं जाओगे...
अरुण - मामा... हम राजगड़ में होली क्यूँ नहीं खेल सकते...
विश्व - अपनी माँ या बाप से पुछा है कभी...
अरुण - हाँ...
विश्व - क्या कहा उन्होंने... बापू ने तो कुछ कहा नहीं पर... माँ ने कहा...
विश्व - क्या कहा...
अरुण - यहाँ त्योहार मनाने से... राक्षस राजा जाग जाएगा... हमें उठा लेगा... और कच्चा चबा जाएगा...
विश्व - ह्म्म्म्म... ठीक कहती है तुम्हारी माँ...
अरुण - पर मामा... हम होली खेलना चाहते हैं...
विश्व - अपनी माँ की कही बात भुला रहे हो...
अरुण - प्लीज मामा... तुम भी हमारे साथ खेलो ना... मैं जानता हूँ... तुम खेलोगे... तो कोई राक्षस नहीं आएगा...
विश्व - यह तुम कैसे कह सकते हो... क्या यह बात तुम्हारी माँ ने कही...
अरुण - नहीं... यह तो मैं कह रहा हूँ... क्यों कि मुझे पता है... तुमसे राक्षस सारे डरते हैं...
विश्व - (मुस्कराता है) तुझे होली के बारे में कुछ पता भी है...
अरुण - हाँ पता है ना... होली में लोग एक दुसरे को रंग लगाते हैं...
विश्व - और...
अरुण - और क्या... म्म्म्म्म्म्म्... हाँ आम खाते हैं...
विश्व - होली... रंगों का त्योहार है... पर अलग अलग प्रांतों में... अलग अलग मान्यताओं के अनुसार मनाया जाता है... जैसे कहीं... होली दहन के अगले दिन... राख और रंग खेलते हैं... और कहीं लठ होली खेला जाता है... पर हमारे प्रांत में... इसे होली नहीं फगु कहते हैं... जो फाल्गुन पूर्णिमा के अगले दिन खेला जाता है... जगन्नाथ संस्कृति में फाल्गुन दशमी के दिन से... श्री कृष्ण जी की मूर्ति को... विमान में नगर परिक्रमा कराया जाता है... इसी विमान को... दोल कहते हैं... आम के फलों का भोग लगाया जाता है... उसके पश्चात ही लोग आम कहते हैं... उससे पहले नहीं खाया जाता... लोग जो रंग खेलते हैं... उसे अबीर कहते हैं...
अरुण - ओ... तो अबीर खेलने के लिए... हमें श्री कृष्ण जी की मूर्ति को... विमान में... घुमाना पड़ेगा...
विश्व - हाँ पर तु इतना बेताब क्यूँ है... तेरे माँ बाप... थोड़े ना राजी होंगे...
अरुण - मामा... अगर तुम साथ दोगे... तो माँ और बापू थोड़े ना कुछ कहेंगे...
विश्व - (चौंकते हुए) क्या... पाँच दिनों तक विमान परिक्रमा करवाओगे...
अरुण - हाँ... (विश्व एक टफली मारता है अरुण के सिर पर) आह... ठीक है... मामा... कम से कम... एक दिन के लिए... तो कर सकते हैं ना...
विश्व - तु जानता भी है... पुरे राजगड़ में ही नहीं... आसपास के इलाकों में भी... कभी त्योहार नहीं मनाया जाता...
अरुण - मालूम है... पर मामा... इसबार तुम रहोगे ना हमारे साथ...
विश्व - क्या... क्यूँ...
अरुण - तुम रहोगे तो कोई हिम्मत नहीं करेगा... यहाँ तक राक्षस राजा भी नहीं... हमारे मौहल्ले से शुरु करेंगे... वैदेही मासी की दुकान से होकर... यहाँ श्रीनिवास लाइब्रेरी में... परिक्रमा ख़तम करेंगे...

विश्व कोई जवाब नहीं देता, अरुण बड़ी आस भरी नजर से विश्व की ओर देखता है l विश्व का चेहरा थोड़ा गंभीर दिख रहा था l वह जैसे किसी सोच में खो गया था l

अरुण - मामा... बोलो ना... तुम हमारे साथ रहोगे ना...
विश्व - (पॉज)
अरुण - हम होली खेलना चाहते हैं... बोलो ना...
विश्व - (पॉज)

विश्व से कोई जवाब ना पाता देख कर अरुण मायूस सा चेहरा लेकर वापस जाने लगता है l विश्व अपनी सोच से बाहर आता है और आवाज देता है

विश्व - अरुण... (अरुण मूड कर देखता है) मैं साथ हूँ... पर एक दिन के लिए बस...

अरुण भागते हुए आता है और विश्व के उपर खुद कर गोद में चढ़ जाता है l विश्व भी उसे गोद में उठा लेता है l अरुण विश्व के गाल पर एक लंबा चुंबन देता है l फिर विश्व की गोद से उतर कर हाथ हिला कर विश्व से विदा लेता है और उछलते कुदते अपने घर की जाने लगता है l उसे यूँ जाता देख विश्व के होठों पर एक मुस्कान उभर जाती है l तभी उसके कानों में एक आवाज पड़ती है l

- भाई... बच्चे को यूँ झूठ बोल कर बहलाना ठीक बात नहीं... (यह टीलु था)
विश्व - (टीलु की ओर मुड़ कर) तुम कब आए...
टीलु - आया तो थोड़ी देर पहले था... पर मामा भांजे का प्यार गुफ़्तगू देख कर... ठिठक गया...
विश्व - काम का क्या हुआ...
टीलु - (कुछ कागज निकाल कर विश्व की ओर बढ़ाता है) देख लो... पुरे के पुरे दस लोग... जेरॉक्स हैं...
विश्व - (सारे कागजात देखते हुए) ह्म्म्म्म... बहुत बढ़िया...
टीलु - ओरिजिनल सारे सीलु के पास है... और आज ही वह... भुवनेश्वर जा रहा है... जोडार सर के हवाले कर आयेगा...
विश्व - बहुत अच्छे...
टीलु - पर भाई... तुमने जवाब नहीं दिया...
विश्व - (टीलु की ओर देखते हुए) तुम्हें लगता है... मैं अरुण से झूठ बोल रहा था...
टीलु - तो क्या सच में... गाँव में होली खेला जाएगा...
विश्व - हाँ... बच्चे और मैं... और जो हमारे साथ आयेंगे... वे लोग...

तभी विश्व के मोबाइल पर मैसेज ट्यून बजने लगती है l विश्व मोबाइल निकाल कर मैसेज देखता है l मैसेज रुप ने भेजा था l
“आई एम कमींग"


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xxxx गोदाम यशपुर
गोदाम के अंदर सारे ऐसों आराम की सहूलियतें हैं l बड़ा सा बिस्तर है जिस पर फूलों के पंखुड़ियां बिखरे पड़े हैं l एक आईने के सामने कुर्ते पाजामे में गुनगुनाता रोणा अपने ऊपर फ्रेगनेंस छिड़क रहा था l तभी उसके कानों में गाड़ी की हॉर्न सुनाई देता है l रोणा अपने लैपटॉप पर देखता है बाहर एक मर्सिडीज गाड़ी खड़ी है l कुछ देर बाद गाड़ी की खिड़की डाउन होती है टोनी उर्फ लेनिन खिड़की से झाँकता है और हाथ हिलाता है l रोणा के आँखों में चमक उभर आती है और होठों पर मुस्कान आ जाती है l वह लैपटॉप पर कुछ टाइप करता है l तो एक दरवाजा खुल जाता है l मर्सिडीज अंदर आती है l गाड़ी अंदर आकर सीधे उसके बिस्तर के पास रुकती है l रोणा देखता है पिछली सीट पर रुप हैरानी से भवें सिकुड़ कर गोदाम को और रोणा को देख रही है l

लेनिन - हाँ तो रोणा बाबु.... मेरे कागजात कहाँ हैं...
रोणा - इतनी जल्दी भी क्या है...

कहकर गाड़ी की तरफ जाने लगता है, लेनिन अपनी जेब से पिस्टल निकाल कर रोणा पर तान देता है l रोणा यह देख कर रुक जाता है l

रोणा - यह क्या है टोनी...
लेनिन - बहुत बड़ा कांड कर आया हूँ... और मुझे अभी के अभी राजगड़ से निकल जाना है... इसलिए मेरे कागजात मेरे हवाले कर दो... वर्ना... मैं अभी के अभी इस लड़की को लेकर चला जाऊँगा...
रोणा - ओके ओके... (कह कर एक टेबल के ड्रॉयर को खोलता है)
लेनिन - अगर गन निकालने की कोशिश की... तो तुम्हारा भेजा उड़ा दूँगा रोणा...
रोणा - बहुत जल्द औकात में आ गया तु... साहब से... तु..
लेनिन - हाँ... क्यूँ की तु कोई महात्मा है नहीं... हरामी पन में... मुझ से दो कदम आगे है बस...

रोणा एक पैकेट निकाल कर लेनिन के हाथ में देता है l लेनिन पैकेट खोल कर देखता है संतुष्टि होने पर पैकेट को जेब में रखते हुए रोणा से कहता है l

लेनिन - ठीक है रोणा बाबु... इस लड़की की गाड़ी खराब होने के बाद इसे झूठ बोल कर... लिफ्ट देने के बहाने यहाँ तक ले आया... अब यह लड़की तुम्हारे हवाले... (कह कर लेनिन दरवाजा खोलता है l रुप नीचे उतरती है, रुप से) मेम साहब... यही आपकी मंजिल थी... जहां मैंने आपको पहुँचा दिया है...

कह कर लेनिन अपनी गाड़ी में बैठता है और बैक करते हुए गोदाम से निकल जाता है l उसके जाते ही रोणा दरवाजे को बंद करने का कमांड देता है और दरवाजा बंद हो जाता है l गुस्से से दांत पिसते हुए रुप रोणा की देखती है l

रोणा - हैरान हो.. जानेमन... हा हा हा हा... परेशान हो... ओ हो हो हो... कोई ना... आज मेरा दिन है... वह कहते हैं ना... अँग्रेजी में... "एवरी डॉग हेज हीज डे" (चेहरा बहुत गंभीर हो जाता है, अपने गाल पर हाथ फेरते हुए) आज मेरा दिन है... कमीनी कुतिया...
रुप - (चुप रहती है, पर उसे घूरती रहती है)
रोणा - (अपनी दोनों बाहें फैला कर) मैं जब राजगड़ आया था... तब इस गोदाम पर मेरी नजर पडी थी... तब से इसे धीरे धीरे अपने कब्जे में लेकर... सवांर रहा था... आज ही के दिन के लिए... बहुत बड़ा गोदाम है... जितना चाहे भाग सकती है... तु जब भागते भागते थक जाएगी... तब मैं तेरी फाडुंगा... तु रोती रहेगी... चीखती चिल्लाएगी... तब मैं तुझे रौंदुंगा... चल भाग... (चिल्लाते हुए) भाग....

रोणा इतनी जोर से चिल्लाया था कि भाग शब्द कुछ देर तक गुंजती रही l जैसे ही भाग शब्द की गुंजन थम जाती है l रुप हँसने लगती है l हँसते हँसते वह टेबल के पास रखे चेयर पर बैठ जाती है और अपनी दाहिनी पैर को बाएँ पैर बड़े अदब से रखती है और राजसी ठाठ पर बैठती है l रोणा भैवें सिकुड़ कर रुप की ओर देखने लगता है l

रुप - एक लड़की... दो अंजान मर्दों के बीच आकर भी... ना चीखती है... ना चिल्लाती है... तुझे हैरानी नहीं हुई... इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा...

रूप अपनी चूडी से एक सेफ्टी पिन निकाल कर अपनी मोबाइल फोन को चुभो देती है l एक स्लॉट खुल जाती है l एक चिप को निकाल कर रोणा को दिखाते हुए कहती है

रुप - इस बग वाली चिप ट्रिक से तुझे और तेरे इस छछूंदर को लगा... मुझे ट्रैप कर लोगे... हा हा हा हा... (रुप हँसने लगती है, फिर अचानक अपनी हँसी रोक कर) स्मार्ट तु है नहीं... चालाक तु बन नहीं पाया... और बेवक़ूफ़ इतना के तेरी बेवक़ूफ़ों में भर्ती होगी नहीं... (रोणा की आँखे हैरानी से फैल जाती हैं, वह रुप की ओर आगे बढ़ने की कोशिश करता है तो उसे रुप की हाथों में एक गन दिखता है, रुप एक हवाई फायर करती है) कोई हरकत मत करना... मिस्टर रोणा... मौत और तुझमे दूरी उतनी ही है... जितनी मेरी ट्रिगर पर उंगली...
रोणा - मतलब... तुझे सब पता था...
रुप - हाँ रोणा हाँ... कैसे कब... यह तुझे बताने वाले और हैं... तुझे उनसे मालुम पड़ेगा... पर तुझे इस वक़्त जो जानना जरूरी है... वह जान ले...

रोणा हैरानी से रुप की ओर देख रहा था, सोच रहा था कुछ ही सेकेंड में सबकुछ कैसे बदल गया l क्या सोचा था और क्या हो गया l

रुप - मेरा पीछा करता रहा... स्टॉक करता रहा... पर ताज्जुब है... मेरे बारे में जानने की कोशिश भी नहीं की... अगर जान गया होता... तो आज तु ना जान से जाता... ना जहान से जाता...
रोणा - (हकलाते) क्क्क्क्क् कौन हो तुम....
रुप - मेरा नाम... रुप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल है... राजा भैरव सिंह क्षेत्रपाल की बेटी... दादा राजा नागेंद्र सिंह क्षेत्रपाल की पोती... छोटे राजा पिनाक सिंह क्षेत्रपाल की भतीजी... युवराज विक्रम सिंह क्षेत्रपाल और राजकुमार वीर सिंह क्षेत्रपाल की लाडली बहन...

यह सुनते ही रोणा के पैरों तले जमीन हिलने लगती है l उसका शरीर पुरा का पुरा पसीने से सरोवर हो जाता है l उसका जिस्म कांपने लगती है l


रोणा - ज्ज्ज्ज्झुठ... झूठ कह रही हो.... त्त्त्त्त्त्तुम...
रुप - तुझ जैसे कमिने मुझे कौनसा सत्यवादी होने की सर्टिफिकेट लेना है... तु बस इतना जान ले... मेरी पेंडेंट... मेरी बैंगल... मेरी पायल और मेरी मोबाइल फोन में... मेरे भैया... ट्रैकर लगा रखे हैं... मैं कहीं भी जाती हूँ... उनकी नज़र में रहती हूँ... अभी भी... रास्ते में तेरे छछूंदर ने मेरी गाड़ी खराब कर लिफ्ट ऑफर की... उसे लगा कि प्लान उसका है... जब कि यह प्लान... मेरे भैया विक्रम सिंह क्षेत्रपाल का है... वह बराबर दूरी बनाए... मेरे पीछे पीछे आ रहे थे... बस कुछ सेकेंड रुक जा... तेरे इस गोदाम को धज्जियाँ उड़ाते हुए... आ धमकेंगे... फिर... फिर तेरा क्या होगा... रोणा
रोणा - साली... हराम जादी... विश्व की रंडी कमीनी... अपनी झूठ में मुझे फंसा रही है... मैं तेरे झांसे में नहीं आने वाला...
रुप - अच्छा यह बात है... (इतना कह कर रुप अपनी गन को रोणा की ओर फेंकती है जिसे रोणा कैच कर लेता) यह ले... अब मैं निहत्थी हूँ... बस पाँच सेकेंड
रोणा - (हाथ में गन आते ही थोड़ा हिम्मत दिखाते हुए रुप की ओर बढ़ता है)
रुप - पाँच.... चार... तीन... दो... एक... बूम...

धड़ाम से गोदाम का दरवाज़ा तोड़ते हुए विक्रम की गाड़ी अंदर आती है l अंदर गाड़ी, गाड़ी में विक्रम को देख कर रोणा के चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने लगती है l विक्रम गाड़ी से उतरता है l रोणा को नजर अंदाज करके आगे बढ़ता है और रुप के पास पहुँचता है l

विक्रम - नंदिनी... मुझे देर तो नहीं हुई...
नंदिनी - नहीं भैया... हाँ पर इस कमीने को... यकीन नहीं दिला पाई...
विक्रम - (रोणा की ओर घूम कर दहाड़ती आवाज में) रोणा... हमारे टुकड़ों में पलने वाले कुत्ते... तेरी इस गुस्ताखी की क्या सजा दी जाए...

रोणा रुप की उस गन को अब दोनों पर तान देता है l विक्रम के बाएँ आख का भौवां तन जाता है l जबड़े इस तरह से भिंच जाते हैं कि कड़ कड़ की आवाज रोणा के कानों में सुनाई देने लगती है, पर रोणा को लगता है यह आवाज उसके हड्डियों के जोड़ से आ रही है l रोणा ट्रिगर दबा देता है पर गोली निशाने पर नहीं लगती, वज़ह साफ थी उसके हाथ डर के मारे कांप रहे थे l पर गोली चलने के बाद रुप जरुर चीखती है और अपने भैया को देखने लगती है l विक्रम को गोली लगी नहीं थी l विक्रम अब गुस्से में रोणा की ओर बढ़ने लगता है l रोणा फिर से फायर करता है पर इसबार गोली नहीं चलती, रोणा इस बार गन को विक्रम की ओर फेंक मारता है l विक्रम साइड हो जाता है l फिर रोणा बिना पीछे देखे भागने लगता है l वह पीछे बिल्कुल नहीं देखता विक्रम उसका पीछा कर रहा है या नहीं l वह बस बदहवास भगा जा रहा था l डर उसके उपर इस कदर हावी था कि उसके आँखे बड़ी और इस कदर फैली हुई थी कि जो देखे उसे लगता था जैसे आँखे अभी के अभी बाहर आ जायेंगी l यशपुर के सड़क पर लोगों से टकराते हुए भाग रहा था l सभी लोग उसे देख कर हैरान हो रहे थे l रोणा भागते भागते राजमार्ग पर आता है l यशपुर अब पीछे छूट चुका था l फिर भी वह बदहवास भागे जा रहा था l तभी एक ट्रक उसे ओवर टेक करते हुए उसके आगे चलने लगती है l वह देखता है ट्रक तिरपाल से ढका हुआ था और पीछे से उसका पर्दा हिल रहा था l रोणा चिल्ला कर ट्रक को रोकने के लिए कहता है के तभी पीछे वाला पर्दा हटा कर लेनिन उसकी ओर हाथ बढ़ाता है l रोणा की आँखों में चमक आ जाता है और मन में जीने की आश दिखने लगता है l वह अपना हाथ बढ़ाता है लेनिन उसका हाथ पकड़ कर ट्रक के अंदर खिंच लेता है l ट्रक में पहुँच कर देखता है l ट्रक खाली था बस वह और टोनी ही थे l जोर जोर से हांफते हुए पीठ को टेक लगा कर बैठ जाता है l टोनी को इशारे से सिगरेट माँगता है l टोनी उसे सिगरेट और लाइटर देता है l अपनी साँसे दुरुस्त करते हुए होठों पर सिगरेट लेकर लाइटर से सुलगता है l फिर जली हुई सिगरेट को लेकर अपने हाथ में लगाता है कहीं सपना तो नहीं देख रहा l चमड़ी पर जलन की छाल पड़ने तक सिगरेट को रगड़ता है, नहीं यह कोई सपना नहीं था l अभी अभी जो भी हुआ था सब सच ही था l उसे जब एहसास होता है कि वह सपना नहीं देख रहा था कुछ देर पहले उसके साथ वाकई वही हुआ है जिससे वह भाग रहा है l यह जान कर रोने लगता है l धीरे धीरे उसका रोना दहाड़े मार कर रोने में बदल जाता है l

लेनिन - (रोणा को झंझोड़ते हुए) रोणा... क्या हो गया है तुझे... ऐसे क्यों रो रहा है...
रोणा - (लेनिन की गर्दन पकड़ कर उसे नीचे डाल कर) साले जानता भी है... वह लड़की कौन है... वह क्षेत्रपाल की बेटी है... (लेनिन का गर्दन छोड़ कर) प्रधान ठीक कह रहा था... उस लड़की के पीछे मत पड़... साला दिमाग खिसक कर... मेरा लौड़े से सोच रहा था...
लेनिन - (अपनी गर्दन पर हाथ मलते हुए) मैं भी तो तुझे मना कर रहा था... मामला विश्वा से जुड़ा है... दुर रह उसके मैटर से... पर तुने ही नहीं माना...

अचानक रोणा का रोना बंद हो जाता है l उसके आँखों में जीने का आखिरी आश नजर आता है l

रोणा - एक मिनट... एक मिनट... हम किसी तरह से... राजा साहब तक यह खबर पहुँचा दें... के उनकी बेटी... विश्वा के साथ रंग रलीयाँ मना रही है... वह भी सबूतों के साथ... तो मुझे जीने का और एक मौका मिल सकता है....
लेनिन - पता नहीं... कोशिश करके देख ले...
रोणा - हाँ... चल निकाल वह सबूत....
लेनिन - कहाँ... मेरी गाड़ी के साथ साथ मोबाइल भी छूट गया है... तेरे मोबाइल फोन में तो होगा ना....
रोणा-( कुर्ते के जेब से मोबाइल निकालता है) (विश्व और रुप की फोटोस देखते ही उसके आँखों में चमक आ जाती है) यह देख... यह रहा... (सारे फोटो देख कर)
लेनिन - ना... इससे कोई फायदा नहीं होगा....
रोणा - (गुस्से में तमतमाते हुए) क्यूँ नहीं होगा...
लेनिन - पता नहीं... तुझे अगर वापस जाना है तो बोल... यहीँ छोड़ जाता हूँ... फिर तु जाने... तेरी किस्मत....
रोणा - एक मिनट... एक मिनट... (गुर्राते हुए) यह तु मुझे आप से तु क्यूँ कहने लगा है बे...
लेनिन - मरने से पहले... तुझे आप कहूँ तो... क्या तुझे मौत नहीं आएगी भड़वे... साले... मैं कहते कहते थक गया... मामला विश्वा से जुड़ा है... ना उलझे तो जिंदगी लंबी होगी... पर तेरी एहसान का बदला चुकाने के चक्कर में... अब मेरी भी यह गत बन गई...
रोणा - (कोई जवाबी प्रतिक्रिया नहीं देता, बस इतना ही कहता है) एक आखिरी कोशिश करते हैं... दाव सही लगा... तो हमारी तरफ आ रही मौत को... विश्वा की तरफ मोड़ सकते हैं...
लेनिन - विश्व के पास पहले से ही इन सबके तोड़ होगा... हम अगर जाएंगे... तो सिर्फ फंसेंगे...
रोणा - वह बाद में देखा जाएगा...

कह कर रोणा सारे फोटों सिलेक्ट कर राजा साहब के नंबर पर भेजने की सोचता है पर उसे नंबर लिस्ट में राजा साहब का नंबर नहीं दिखता l वह चिढ़ जाता है तो बल्लभ को फोन लगाता है l पर फोन लगता नहीं, चेक करता है तो पाता है कि मोबाइल में सिग्नल ही नहीं है, रोणा खीज कर अपना मोबाइल को कस के पकड़ कर चीखने लगता है l

रोणा - क्या मुसीबत है... यह मोबाइल टावर क्यूँ लग नहीं रहा है... (इतना कह कर गहरी गहरी साँस लेने लगता है) यकीन नहीं हो रहा है... राजकुमारी नंदिनी को... मालुम था... मोबाइल में तुने बग लगाया था... उसके वज़ह से... मेरे लिए... युवराज ने जाल बिछाया था... उसे मालुम कैसे हुआ... और तेरी गाड़ी का क्या हुआ... यह ट्रक... और भोषड़ी के तुझे मालुम कैसे नहीं हुआ... वह... लड़की क्षेत्रपाल है... हराम के ढक्कन...
लेनिन - (थोड़े देर के लिए चुप रहता है फिर एक गहरी साँस छोड़ते हुए कहना शुरु करता है) गाड़ी की कहानी बाद में बताऊँगा... पहले यह जान लो... हम डाल डाल जा रहे थे... विश्वा पात पात...
रोणा - अब इसमें विश्वा कहाँ से आ गया बे... मादरचोद...
लेनिन - जिस तरह... तुमने मुझे नंदिनी पर नजर रखने के लिए छोड़ रखा था... उसी तरह.. नंदिनी के आसपास नजर रखने के लिए... विश्वा... लल्लन को छोड़ रखा था...
रोणा - अब यह लल्लन कौन है... और... तुझे कब मालुम हुआ...
लेनिन - अभी... थोड़ी देर पहले...जब लगा कि जाल बिछ गया है... मैं गाड़ी छोड़ भागा... तो मैंने अपने झींगुरों से पता लगाने को बोला... तो सालों ने बताया के... आज से कुछ दिन पहले... जब विश्वा की मुहँ बोले माँ बाप... गायब हो कर मिले थे... उसके अगले दिन... हाई वे ट्वेंटी फॉर सेवन रेस्टोरेंट में विश्वा ने... लल्लन को विक्रम सिंह से... इसी सिलसिले में... मिलवाया था... उसने विक्रम को तेरे फिलिंग के बारे में... बताया था... विक्रम को पहले यकीन नहीं हुआ... रंगे हाथ पकड़ने के लिए... उसीने अपनी बहन के साथ मिलकर... जाल बिछाया था...
रोणा - बे मादरचोद... किसने कैसे गांड हमारी मारी पुछ नहीं रहा हूँ... लल्लन कौन है... विश्वा के साथ उसका क्या लेनादेना है... तुझे उसके बारे में कोई जानकारी थी या नहीं... पुछ रहा हूँ...
लेनिन - उसके बारे में जानकारी रखता हूँ ना... बिल्कुल उतना ही... जितना अपने बारे में...
रोणा - (गुस्से से फट पड़ता है) तो हरामी कुत्ते... वह तेरी और मेरी दोनों की मिला कर मार रहा था... तुझे पता कैसे नहीं लगी... (लेनिन चुप रहता है) बोल कुत्ते... उसके बारे में कुछ जानकारी दे... शायद मैं कुछ तिकड़म लगा सकूँ...
लेनिन - उसका असली नाम... ललीतेंदु लक्ष्मण नायक... शॉर्ट कर्ट में लल्लन... तुझे... यश वर्धन चेट्टी... याद है... एक लड़की की कत्ल के इल्ज़ाम में जैल गया था... जिसे विश्वा ने मार दिया... पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट में... ड्रग्स का ओवर डोज आया था...
रोणा - हाँ... पर लल्लन का यश के केस के साथ क्या सम्बंध...
लेनिन - है... वही बता रहा हूँ... यश जिस लड़की को... निहारिका को.. गाड़ी से कुचला था... लल्लन निहारिका का... प्रमोटर था... और आशिक भी... जब निहारिका... यश से मिली... तो यश ने उसे फ़िल्में और एल्बम में बहुत काम दिलवाया... यश ने उसे ड्रग्स का आदि बना कर अपना गुलाम बना कर रखा... जब इस बात को लेकर लल्लन ने यश के खिलाफ कुछ करने की कोशिश की... तब यश ने... अपने कॉन्टेक्ट के जरिए... उसी ड्रग्स के केस में फंसा कर... जैल भिजवा दिया... जैल में उसकी दोस्ती विश्वा से हुआ... पर जैल में वह दोनों एक-दूसरे से दुश्मन की तरह पेश आते थे... इसलिए के कोई भी... अगर विश्व के खिलाफ साजिश को अंजाम दे... तो विश्वा उस साजिश को नाकाम कर... सजा देता था...
रोणा - ओ... तो इसलिए... तेरी पहचान लल्लन से हुई... जो आगे चलकर... विश्वा के खातिर जैल में तेरी गांड मारी...
लेनिन - नहीं...
रोणा - मतलब...
लेनिन - यश को मारने के लिए... जो कबड्डी का मैच हुआ था... दो टीम बनी थी... एक विश्वा की... और दूसरी...
रोणा - हाँ मालुम है दुसरी तेरी...
लेनिन - हाँ... जब विश्वा पर यश ने चोक का दाव आजमाया... तो विश्वा प्लान के मुताबिक... अपनी कुहनी को यश के सीने पर रख कर पलट जाता है.... तभी यश के कहने पर... लल्लन छलांग लगा देता है... जिसके वज़ह से... यश की पसलियाँ टुट कर साँसे रुक गई थी... (कह कर लल्लन चुप हो जाता है)
रोणा - ठीक है... विश्वा और लल्लन का रिश्ता समझ में आ गया... पर तुझे कैसे मालुम नहीं हुआ... के तेरे पीछे वह लगा हुआ है...
लेनिन - विश्वा हमेशा एक बात कहता था... कहो कुछ... करो कुछ... दिखाओ कुछ हो जाए कुछ... उसके सभी दोस्त.. इस मामले में... माहिर और शातिर हैं... विश्वा ने अपनी माँ बाप से बात कर... लल्लन को माफी दिलवा दिया... और विश्वा के जैल से छूटने के डेढ़ साल पहले... उसे तेरे पीछे लगा दिया... और तेरे सारे हरकतों पर नजर रख रहा था...
रोणा - (झटका खाता है) क्या... इसका मतलब... लल्लन मेरे पीछे दो सालों से लगा हुआ था... (फिर अचानक उसकी आँखे बड़ी हो जातीं हैं) एक मिनट एक मिनट... दो साल पहले... तु भी तो मेरे पास आया था... लल्लन... लेनिन... (झट से खड़ा हो जाता है) मादरचोद...
लेनिन - (मुस्करा कर, खड़ा हो जाता है) देखा... जब लड़की सिर पर चढ़ गई थी... तो दिमाग लंड के मुहँ से सोच रही थी... जैसे ही लड़की दिमाग से उतरी... दिमाग पुलिसिये की तरह सोचने लगी...
रोणा - साले हरामी कुत्ते... मतलब तुने विश्वा के साथ मिलकर... विक्रम को मेरे बारे में...
लेनिन - हाँ... मैंने वह सारी बातें भी बताई... मिर्च मसाला लगा कर... जो तुने कभी करना तो दूर सोचा भी नहीं होगा...
रोणा - (चिल्ला कर) ग़द्दार...
लेनिन - ना ना ना... मैं विश्वा का यार.. सिर्फ यार ही नहीं... अयार हूँ...

रोणा गुस्से से कांपते हुए लेनिन पर झपटा मार देता है l पर उसके लिए लेनिन तैयार था किनारे हट कर एक और लुढ़क जाता है l पर दुसरी बार जब रोणा झपटा मारने के लिए तैयार होता है तो लेनिन के हाथ में एक बड़ी सी खुखरी देखता है l खुखरी देख कर रुक जाता है l तभी चलती ट्रक भी रुक जाती है l

रोणा - यह ट्रक यहाँ क्यूँ रुक गया...
लेनिन - ताकि तेरी मुलाकात तेरे बाप से हो... पर्दा उठा कर देख नीचे तेरा बाप खड़ा मिलेगा...

रोणा तिरपाल पर्दा उठाता है l ट्रक राजगड़ के नदी किनारे पर रुका हुआ था l थोड़ी ही दुर विश्व अपनी बाहों में हाथ फंसाये खड़ा था l विश्व को सामने देख कर रोणा गुस्से से दांत पिसते लगता है l रोणा ट्रक से उतरने की सोच ही रहा था कि एक जोरदार लात उसके पीठ पर पड़ती है l वह उड़ते हुए विश्व के कदमों से कुछ ही दुर मुहँ के बल आ कर गिरता है l

विश्व - चु चु चु चु... क्या से क्या हो गया... रोणा... क्या से क्या हो गया... बढ़े ठाठ थे... अब देखो... मेरे पैरों पर पड़ा है...

रोणा अपना चेहरा उठा कर देखता है विश्वा के पीछे और पाँच बंदे खड़े थे l उन में से एक बंदा को देख कर रोणा चौंकता है l वह कोई और नहीं राजगड़ का ग्राम रखी उदय था l रोणा उठ कर भागने की कोशिश करता है पर दो कदम भी भाग नहीं पाता, उसके पैरों को अपने पैरों से बाँध दिया था लेनिन ने l

लेनिन - देखा विश्वा भाई... आज भी मैं तुमसे बेहतर कबड्डी खेल सकता हूँ...
विश्वा - सब कुछ खत्म हो जाने दो... फिर अपनी अपनी टीम बना कर खेलते हैं...
लेनिन - ठीक है...

सीलु मीलु जिलु और टीलु आकर रोणा को पकड़ लेते हैं l रोणा छटपटाने लगता है और पुरी ताकत लगा कर छूटने की कोशिश करता है l

रोणा - छोड़ो... छोड़ दो मुझे...
विश्व - छोड़ दिया तो क्या करेगा...
रोणा - तेरा और इस उदय का खुन पी जाऊँगा...
विश्व - (अपने दोस्तों से) छोड़ दो इसे...

जैसे ही सब रोणा को छोड़ देते हैं रोणा विश्व के ऊपर हमला कर देता है पर उसके सारे वार खाली जातें हैं l फिर विश्व एक जोरदार पंच रोणा के पेट में जड़ देता है l पंच इतना जोरदार था कि रोणा तीन फुट ऊपर उछल कर घुटनों पर गिर कर बैठ जाता है l उसके आँखों के चारो तरफ़ जुगनू दिखाई देने लगते हैं l

विश्व - कुछ याद आया... ऐसे ही तेरी ठुकाई की थी मैंने... कटक में... हफ्तों तक हास्पिटल के बेड में पड़ा था..
रोणा - (दर्द से कराहते हुए बड़ी मुश्किल से) विश्वा.... मुझे छोड़ दे... वादा करता हूँ... रुप फाउंडेशन केस में... तेरा सरकारी गवाह बनूँगा...
विश्व - ऊँ हूँ... अब कोई फायदा नहीं... तेरी गवाही अब मेरे किसी काम नहीं आएगा...
रोणा - देख तुने कसम खाई थी... एक ही खुन करने के लिए... दुसरा मुझ जैसे लीचड़ के खुन से अपने हाथ गंदे मत कर...
विश्व - ठीक कहा तुने... तुझे जैसे गंदे आदमी के खुन से अपना हाथ कभी नहीं रंगना चाहिए... पर मैं जब भी तुझे देखता हूँ... मुझे श्रीनु याद आता है... बोल मैं क्या करूँ...
रोणा - मरे हुए को क्या मारेगा रे विश्वा... वैसे भी... अब तक राजा साहब को मेरे बारे में पता चल चुका होगा... अब हर जगह मेरी तलाशी हो रही होगी... इसलिए प्लीज मुझे जाने दो... कसम से... मैं किसी के हाथ नहीं लगूंगा... मैं... मैं यह देश छोड़ कर चला जाऊँगा...
विश्वा - ह्म्म्म्म... बात तो तुने फतेह की कि है... पर श्रीनु का बदला उतारूँ कैसे... अपनी कसम के वज़ह से मार नहीं सकता... श्रीनु के लिए तुझे छोड़ नहीं सकता... एक काम करता हूँ... तुझे सीधे भैरव सिंह के हवाले कर देता हूँ...
रोणा - (लड़खड़ाते हुए खड़ा हो जाता है) साले हरामी... कितनी देर से... गिड़गिड़ा रहा हूँ... मज़ाक लग रहा है क्या... अगर मैं राजा साहब के हत्थे लग गया... तो तेरी और राजकुमारी की रंगरलियां बता दूँगा... समझा... अब मुझे सीधी तरह जाने दे... वर्ना तु भी बहुत पछताएगा...
सीलु - लो विश्वा भाई... यह तुमको गाली के साथ साथ... धमकी भी दे रहा है...
विश्व - ठीक कह रहे हो सीलु... मैं सच में इसे छोड़ देता... अगर यह मुझसे खौफ रखता तो... पर क्या करूँ... मैं खतरनाक जो नहीं हूँ... (रोणा से) चल मुझे... मार... तेरा एक भी पंच मुझे हिट कर गया... तो वादा है मैं तुझे छोड़ दूँगा...

रोणा खुशी के मारे रो पड़ता है और रोते हुए फिर से घुटने पर बैठ कर झुक जाता है l हाथ में नदी किनारे की रेत उठा कर विश्वा के उपर फेंक देता है, पर वहाँ विश्वा था ही नहीं इधर उधर देख कर खड़ा होता है तब उसे महसूस होता है कि कोई उसके पीछे खड़ा है l जैसे ही घूम कर वार करने के लिए हाथ उठाता है विश्वा का सिंगल फीस्ट पंच रोणा की कलाई पर पड़ती है l रोणा का पूरा का पूरा दाहिना हाथ शुन पड़ जाता है l दर्द से बिल बिलाते हुए बायाँ हाथ चलाता है l विश्व वैसे ही सिंगल फीस्ट पंच लगाता है नतीज़ा वही बायाँ हाथ भी शुन पड़ जाता है l

रोणा - (दर्द से बिल बिलाते हुए) यह क्या कर दिया...
विश्व - वर्म कलई... कल्लडी मार्शल आर्ट की एक अद्भुत कला...
रोणा - देख आखिरी बार कह रहा हूँ... मुझे जाने दे... वर्ना... राजा साहब को तेरे और राजकुमारी के बारे कह दूँगा...
विश्व - इतना कुछ होने के बाद भी... मेरे लिए तेरे आँखों में डर जितना नहीं दिख रहा है... हेकड़ी उससे भी ज्यादा दिख रहा है... इसलिए तुझे राजा के हवाले ही करूँगा... तेरी मौत का फैसला वही करेगा...
रोणा - देख मैं बता दूँगा... सब बता दूँगा...
विश्वा - ऊँ हूँ... नहीं... नहीं बता पाएगा...

फिर विश्व एक पंच रोणा के गले में वॉकल कॉर्ड के पास एक धमनी पर मारता है, जिसे रोणा के मुहँ से थोड़ा खून निकल आता है, उसके बाद विश्व रोणा के कंधों पर, कमर के जॉइंट्स पर, घुटनों पर और पसलियों के किनारों पर पंचेस की बरसात कर देता है l रोणा किसी कटे हुए पेड़ की तरह नदी के रेत पर गिर जाता है l

विश्व - (उदय की ओर देख कर) उदय... इसके साथ क्या करना है... तुम जानते हो...
उदय - हाँ विश्वा... तुम बेफ़िक्र रहो... मैं इसे इसके अंजाम तक पहुँचाऊंगा....

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क्षेत्रपाल महल के सामने भैरव सिंह की ऑडी गाड़ी रुकती है l सीडियां चढ़ कर अंतर्महल में आता है l देखता है रुप को सुषमा अपने सीने से लगा कर दुलार रही है और बगल में विक्रम चहल कदम कर रहा है l भैरव सिंह को देख कर सभी खड़े हो जाते हैं l सुषमा कुछ कहने को होती है कि हाथ के इशारे से भैरव सिंह चुप करवा देता है l

भैरव सिंह - युवराज...
विक्रम - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - आप अपनी बात एक साथ रखेंगे... ना हम दोबारा आपसे पूछेंगे... ना ही दोबारा सुनेंगे... अब जो सवाल जवाब होगा... सिर्फ राजकुमारी जी के साथ होगा...
विक्रम - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - कहिए...
विक्रम - दो दिन पहले... एक आदमी मेरे पास आया था... नाम था लेनिन... सुंदरगड पोस्टिंग के दौरान... उसके ऊपर इंस्पेक्टर रोणा ने उस पर बहुत मेहरबान रहा... उसके लिए... फेंक आधार कार्ड का जुगाड़ कर नयी पहचान भी दिया था... टोनी के रुप में... एक दिन रोणा भुवनेश्वर में टोनी को बुला कर राजकुमारी जी की डिटेल्स निकाल कर देने के लिए कहा था... टोनी जब छानबीन की... तब उसे राजकुमारी जी के बारे में मालुम हुआ... वह डर गया... डर के मारे... रोणा को भी सारी बातेँ बताई... पर रोणा इसे हल्के में लिया... वह जब जब भुवनेश्वर गया है... सिर्फ और सिर्फ राजकुमारी को स्टॉक करने ही गया है... एक दिन उसे मालुम हुआ... राजकुमारी होली की छुट्टी में राजगड़ लौट रही हैं... तो उसने टोनी को जिम्मा दिया राजकुमारी जी को बीच रास्ते में किडनैप करने के लिए... टोनी डर के मारे मना ना कर सका... इसलिए सीधे मेरे पास आकर सब कुछ बता दिया... प्रूफ के लिए... मैंने उसे विडिओ कॉल करने के लिए कहा... उसने अपनी साइड कैमरा पर उंगली रख कर वीडियो कॉल किया... वीडियो में रोणा ही था... मेरे गुस्से का ठिकाना नहीं था... भीमा से पता चला कि... कुछ दिनों से रोणा गायब है... तो मैंने गुरु को रोक कर टोनी को अपनी गाड़ी दी... राजकुमारी जी को रोणा तक ले जाने के लिए... और बराबर दूरी बनाए पीछे पीछे उस गोदाम में पहुँचा... जहां मैंने रोणा की करतूत और इरादों को रंगे हाथ पकड़ा.... पर वह भागने में कामयाब रहा... मैंने आदमी दौडायें हैं.... जरुर हाथ लगेगा... (कह कर चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - बस...
विक्रम - जी बस...
भैरव सिंह - राजकुमारी...
रुप - जी...
भैरव सिंह - हमारे सारे सवालों का ज़वाब... आप हमारी आँखों में आँख मिला कर दीजिए...
सुषमा - आज तक... इस घर की बेटियां कभी आँख मिला कर ज़वाब दिए हैं भला...
भैरव सिंह - (हाथ दिखा कर) आप चुप रहें तो बेहतर होगा... (सुषमा चुप हो जाती है) राजकुमारी जी...
रुप - (हिम्मत जुटा कर) जी...
भैरव सिंह - क्या आप... विश्वा को जानती हैं...
रुप - कौन विश्वा...
भैरव सिंह - एडवोकेट प्रतिभा सेनापति के बेटे को जानती हैं...
रुप - जी... जानती हूँ... पर उसका नाम तो प्रताप है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... कैसे जानती हैं....
रुप - एक बार... राजकुमार वीर जी ने कहा... के मुझे ड्राइविंग सीखनी चाहिए... इसलिए ड्राइविंग स्कुल में मेरी क्लासमेट भाश्वती के साथ एडमीशन ली थी... वहीँ पर एक दिन बस में कुछ गुंडे भाश्वती को छेड़ दिया था... जिस पर प्रताप ने उन सबकी पिटाई कर दी थी... उसके बाद भाश्वती प्रताप को भाई मानने लगी... आखिरी दिन प्रताप ने हम सभी को... पार्टी के लिए बुलाया था... तो हम उसके घर गए थे... बस उतना ही...
भैरव सिंह - क्या उसी पार्टी के दिन... आपने इंस्पेक्टर रोणा को थप्पड़ मारा था...
रुप - जी... पर मुझे मालूम ही नहीं था कि वह इंस्पेक्टर है...
भैरव सिंह - ठीक है... उसे थप्पड़ मारा क्यूँ...
रुप - क्योंकि की उसकी नजर मुझे बहुत चुभ रही थी... बड़ी गंदी नजर से देख रहा था...
भैरव सिंह - क्या आपको पता था... के वह आपको स्टॉक कर रहा है...
रुप - नहीं... पर मुझे कोई स्टॉक करेगा... यह मैं सोच भी नहीं सकती थी... क्यूँकी मुझे अपने खानदान और भैया की रेपुटेशन पर पूरा भरोसा था...
भैरव सिंह - (जबड़े भिंच जाते हैं) एक आखिरी सवाल... आपको याद है... एक दिन किसी ने बड़े राजा जी के कमरे में कोई घुस आया था...
रुप - उस दिन मैं रात भर पढ़ते पढ़ते सो गई थी... छोटी माँ के जगाने पर मैं उठी थी...

भैरव सिंह रुप की आँखों में झाँक कर देखता है l बड़ी सफाई से रुप ने हर बातों का जवाब दिया था l भैरव सिंह थोड़ी देर रुप को घूरने के बाद रुप से

भैरव सिंह - हमें आपका मोबाइल दीजिये...

रुप मोबाइल दे देती है l भैरव सिंह कॉल लिस्ट देखता है सिर्फ दस से पंद्रह कॉन्टैक्ट ही थे l फाइल मैनेजर में कोई फोटो उसे दिखती नहीं l फिर वह मोबाइल को अपनी जेब में रख देता है l

रुप - जी... वह मोबाइल...
भैरव सिंह - आज से आपको किसी को भी फोन करना हो तो... घर की कॉर्डलेस से कीजिए... आपका अब भुवनेश्वर जाना बंद... आप घर में ही पढ़ेंगी... सिर्फ इम्तिहान देने... भुवनेश्वर जायेंगी... (रुप का चेहरा उतर जाता है और उदास मन से चेहरा झुका लेती है) हम ने आप से कुछ कहा...
रुप - जैसी आपकी इच्छा...
भैरव सिंह - युवराज...
विक्रम - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - आप प्रिन्सिपल से बात कर लीजिए...
विक्रम - जी...
भैरव सिंह - अब आप हमारे साथ आइए...

विक्रम और भैरव सिंह अंतर्महल से निकलने लगते हैं l वह देखते हैं भीमा सीडियों पर भागते हुए आ रहा है l

विक्रम - क्या खबर लाए हो भीमा...
भीमा - वह... वह मिल गया... पर...
भैरव सिंह - पर क्या...
भीमा - वह हस्पताल में था... कनाल के पास ज़ख्मी हालत में पड़ा हुआ था... उदय ने उसे यशपुर हस्पताल में भर्ती करवाया था... जब होश आकर डर के मारे बड़बड़ाने लगा... मुझे राजा से बचाओ... मुझे विक्रम से बचाओ... तब उदय ने हमें खबर दी...
भैरव सिंह - वह हराम का पिल्ला जैसी भी हाल में है... उसे उठा कर रंग महल लेकर आओ... जाओ...
भीमा - जी... हुकुम... हम उसे रंग महल ले आए हैं...
Bhai update ka intajaar rahegaa. Bahot jada romaanchak story hain bhai. Ghumke aake jaldi update denaa bhai 👍👍👍👍👍👍👍👌👌👌👌👌👌👌
 
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Kala Nag

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jis tarah ye update rona ke upar tha waise hi hum puri detail se rona ki maut ko dekhna chahenge agle ya shayad kuch baad wale update me ..
rona abhi tak utna gidgidaya nahi par shayad magarmachh aur bhediyo ke bich gidgidaye tab bahut maja aayega ..
भाई बदला और अंजाम की बात तो डिटेल्स में आएगी ही l बस कल तक अपडेट आ जाएगा
 
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Reactions: Ajju Landwalia
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