एक सौ पैंतालीसवां अपडेट
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राजगड़
सुबह सुबह सूरज पुर्व आकाश में निकल रहा था l जैसे जैसे उजाला फैल रहा था उसके साथ साथ एक गाड़ी तेज रफ्तार से धूल उड़ाते हुए राजगड़ की सड़कों पर भागे जा रही थी l लक्ष था रंग महल l चर्र्र्र्र्र्र्र्र् की आवाज के साथ गाड़ी रंग महल के सामने रुकती है l बाहर पहरा दे रहे पहरेदारों में से एक भागते हुए आता है और गाड़ी का दरवाज़ा खोलता है l गाड़ी से बल्लभ उतर कर सीढियों से होकर महल के अंदर जाता है l दिवाने आम कमरे में भीमा और कुछ पहलवान नजर आते हैं l
बल्लभ - भीमा... राजा साहब...
भीमा - वह... उपरी मंजिल में, अति विशेष कक्ष में आपका इंतजार कर रहे हैं...
बल्लभ आगे और कुछ नहीं पूछता, सीधे भागते हुए पहली मंजिल पर अति विशेष कक्ष में आता है देखता है भैरव सिंह बालकनी से बाहर झाँक रहा था l उसके अंदर आने का एहसास भैरव सिंह को होता है पर भैरव सिंह बाल्कनी से अभी भी बाहर ही झाँक रहा था l कुछ वक़्त भयानक शांति से गुजर जाते हैं l भैरव सिंह पलट कर अंदर आता है और अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l
भैरव सिंह - आओ... (अपने सामने बैठने के लिए इशारा करते हुए) बैठो...
बल्लभ - नहीं राजा साहब... मैं ठीक हुँ...
भैरव सिंह - कहाँ थे...
बल्लभ - जी मैं... ऑडिट रिपोर्ट सबमिट करने गया हुआ था...
भैरव सिंह - हूँ... और... दरोगा का कोई खबर...
बल्लभ - जी अब तक तो नहीं...
भैरव सिंह - हूँ... वह तुम्हारा अच्छा दोस्त है ना...
बल्लभ - जी...
भैरव सिंह - फिर तुम अब तक उससे... कैसे इतने बेख़बर हो...
बल्लभ - वह एक दीवड सांप है... जा जा कर कहाँ जाएगा.... लौट कर आएगा... अपने ही बिल में...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... हमें तो मालुम ही नहीं था... के वह दीवड सांप है...
भैरव सिंह के इस बात पर बल्लभ थोड़ा असहज हो जाता है l उसे कुछ समझ नहीं आता l उसे लगता है जरूर रोणा से हो ना हो कोई बड़ी गलती हो गई है l वह अपनी शंका दुर करने के लिए भैरव सिंह से पूछता है
बल्लभ - राजा साहब.. आपने अचानक बुलाया... रोणा ने कुछ कर दिया क्या...
भैरव सिंह - उसने क्या किया... क्यूँ किया... पर जो भी हुआ... हमें एक असमंजस सा बना दिया है... ऐसा लग रहा है... जैसे हमारे सामने हर कोई एक मुखौटा पहने... कोई अलग सा चरित्र जिए जा रहा है...
बल्लभ - मैं कुछ समझा नहीं...
भैरव सिंह - समझना पहले हमें है... प्रधान... हमें पहले समझने दो... इसलिए जो जो सवाल हम तुमसे करते जाएं... सबका सही सही जवाब देते जाओ...
बल्लभ - जी...
भैरव सिंह - तुम दोनों... राजगड़ से जब विश्व के बारे में पता लगाने के लिए गए हुए थे... तब पहले रोणा हॉस्पिटलाईज किस वज़ह से हुआ था...
बल्लभ - जी वह जोगर पार्क में... एक लड़की से बदतमीजी के चलते... वहाँ पर मौजूद लोगों ने उसे पीट डाला था...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... और दूसरी बार...
बल्लभ - (याद करने की कोशिश करते हुए) हूँ... शायद... हाँ... हम जब एडवोकेट प्रतिभा जी से मुलाकात कर आए थे... उसके अगले दिन...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... हमें याद है... तुमने कहा था... वहाँ पर एक लड़की ने... रोणा को थप्पड़ मारकर जलील किया था...
बल्लभ - जी...
भैरव सिंह - और शायद रोणा ने यह भी कहा था कि... हो ना हो... वह विश्व की प्रेमिका होगी...
बल्लभ - हाँ कहा तो था... पर बाद में... उसीने कंफर्म कर मना किया था...
भैरव सिंह - हाँ... हमें याद है... अच्छा क्या तुम जानते हो... भुवनेश्वर में... रोणा ने किसे हायर किया था... उस लड़की के बारे में... पुरा डिटेल्स निकालने के लिए...
बल्लभ - हाँ... जहां तक मुझे याद है... उसका नाम शायद... लेनिन है...
भैरव सिंह - ओ...
बल्लभ - क्या हुआ राजा साहब...
भैरव सिंह - तो क्या उस लेनिन ने कोई डिटेल्स निकाली...
बल्लभ - पता नहीं... शायद निकाला भी हो...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तुमने दोबारा कभी उस लड़की से मिले... या देखा...
बल्लभ - (सोच में पड़ जाता है और फिर कहता है) शायद मैंने उस लड़की को... निर्मल सामल की बेटी की होने वाली मंगनी के दिन देखा था... ठीक से याद नहीं...
भैरव सिंह अपनी भौंहे सिकुड़ कर पैनी नजर से बल्लभ की ओर देखने लगता है l बल्लभ फिर से असहज हो जाता है
बल्लभ - क्या हुआ राजा साहब... आज अचानक...
भैरव सिंह - तुम क्षेत्रपाल परिवार के... बहुत बड़े राज़दार हो... बहुत सी ऐसी बातेँ जानते हो... जिसे हम दुनिया से छुपा कर रखना चाहते हैं... पर... (रुक जाता है)
बल्लभ - पर क्या है राजा साहब...
भैरव सिंह - फ़र्ज़ करो... कोई तुम्हारे घर की औरत को... उठा ले जाए... तो तुम क्या करोगे...
बल्लभ - मेरे परिवार पर ऐसी मुसीबत अलबत्ता आएगी नहीं... क्यूँकी मैं और मेरा परिवार आपकी छत्रछाया में हैं... अगर ऐसा कभी हुआ भी... तो आपके पास... हाथ फैलाने आऊँगा...
भैरव सिंह - और हमसे तुम क्या उम्मीद रखोगे...
बल्लभ - कड़ी से कड़ी सजा देने के लिए कहूँगा...
भैरव सिंह - हूँ... मतलब...
बल्लभ - मौत की सजा...
भैरव सिंह - हूँ... आओ हमारे साथ
बस इतना कह कर अपनी जगह से उठता है और आगे आगे चलने लगता है l बल्लभ उसे फॉलो करता है l कुछ ही क्षण के बाद दोनों एक कमरे में पहुँचते हैं l बल्लभ देखता है उस कमरे में एक मेडिकल बेड लगा हुआ है l उस बेड पर रोणा पट्टियों के साथ आँखे मूँद कर लेटा हुआ है l एक डॉक्टर उसे चेक कर रहा है l बेड के दुसरे तरफ ग्राम रखी उदय खड़ा हुआ है l भैरव सिंह, बल्लभ की ओर देखता है l बल्लभ की आँखे हैरानी से बाहर आने को थे l
बल्लभ - र्र्र्र्र्र्र्र्राजा साहब... यह...
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बाथ रोब पहन कर बाथ रुम से शुभ्रा जैसे ही निकलती है सामने वह विक्रम को देखती है l वह चौंकते हुए विक्रम से पूछती है
शुभ्रा - आप...
विक्रम - क्यूँ नहीं आना था क्या...
शुभ्रा - मुझे लगा आप शायद शाम को आयेंगे... (कह कर आईने के सामने जाती है और अपने बालों को खोल कर साफ करने लगती है) खैर नंदिनी सही सलामत पहुँच तो गई ना... फोन लगा रही थी... स्विच ऑफ आ रहा है...
विक्रम - ह्म्म्म्म.. अब शायद ही नंदिनी का फोन ऑन हो...
शुभ्रा - (शॉक होते हुए) क्यूँ... क्या हुआ...
विक्रम - अरे कुछ नहीं... (कमरे में एक सोफ़े पर बैठते हुए) बस... राजा साहब ने उसे... कैद कर लिया.... और उसका मोबाइल अपने पास रख लिया...
शुभ्रा - ओ... (एक थकी हुई ज़वाब के साथ बेड पर बैठ जाती है)
विक्रम - क्या हुआ शुब्बु...
शुभ्रा - विक्की... अब यह घर काटने को लगता है... पहले वीर थे... पर अब ना तो वीर हैं... ना ही नंदिनी... इतना बड़ा घर... और हम.. सिर्फ दो जान...
विक्रम - हाँ बात तो आप सही कह रही हो... एक काम क्यूँ नहीं करतीं... अपना प्रैक्टिस शुरु कर दीजिए...
शुभ्रा - (मुहँ बना लेती है) नहीं... अब यह इतना आसान नहीं है...
विक्रम - क्यूँ नहीं... आपने हाऊस सर्जन के तौर पर... इंट्रेंशिप किया हुआ है ना...
शुभ्रा - आप बात समझ नहीं रहे हैं... मैंने डिग्री के बाद... प्रैक्टिस बिल्कुल किया नहीं है... और आप भी जानते हैं... अगर मैं प्रैक्टिस करना शुरु करूँ तो... इस बात का विरोध सबसे पहले... अपने घर से ही आएगा...
विक्रम - वह मैं देख लूँगा... उसकी जवाब देही मेरी... आप बस तैयारी कीजिए...
शुभ्रा - (खीज जाती है) ओह गॉड... ट्राई टु अंडरस्टैंड विक्की... यह डॉक्टरी है... बहुत रेस्पांसिबल ड्यूटी होती है... समाज के लिए... और स्पेशियली पेशेंट के लिए... जिम्मेदारी बढ़ जाती है...
विक्रम - हाँ तो... आप जिम्मेदारी उठाओ... आप ने जो हासिल किया... अगर वह समाज के लिए किसी काम ना आया तो... उस उपलब्धी की क्या मायने रह जाएंगे...
शुभ्रा - यह इतना आसान नहीं है विक्की... ऐक्चुयली मैं मेंटली तैयार नहीं हूँ... यह मेडिकल साइंस... बड़ी रेस्पांसिबल जॉब होता है...
विक्रम - ह्म्म्म्म... तो फिर आपके अकेले पन का कोई इलाज नहीं है... हाँ अगर आप कहें तो... मैं अपना काम छोड़ कर कुछ दिनों लिए... आपको कम्पनी दे सकता हूँ...
शुभ्रा - जानती हूँ... पर आप रोज रोज तो घर पर नहीं रह सकते ना... काम भी तो इम्पोर्टेंट है...
विक्रम - इसी लिए तो कह रहा हूँ... आप इस हैल से बाहर निकलिये... अपनी जिम्मेदारी उठाईए... खुद को आप बिजी रखोगी... तो यह घर और यह अकेलापन काटने को नहीं दौड़ेगा...
शुभ्रा - काश... (थोड़ा siriyas हो कर) मैं और कोई स्टडी की होती...
विक्रम - हाँ तब शायद... हम मिले भी ना होते... और आपकी जिंदगी... शायद... बहुत खूब सूरत होती...
शुभ्रा - आप को बुरा लगा... आई एम सॉरी... मैं यह कहना चाहती थी के... मैं अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं रही हूँ... असल में... इस जॉब के तहत... हर एक को स्पेशल केयर और अटेंशन देना पड़ता है... और मुझे लगता है... मैं अभी इसके लिए तैयार नहीं हूँ...
विक्रम कोई जवाब नहीं देता l शुभ्रा देखती है विक्रम कुछ सोच में खोया हुआ है l वह अपनी जगह से उठती है और विक्रम के पास बैठती है l
शुभ्रा - प्लीज विक्की... आप मन खराब मत कीजिए... वर्ना... मुझे भी बहुत बुरा लगेगा...
विक्रम - नहीं... मैं मन खराब नहीं कर रहा... (शुभ्रा भौंहे सिकुड़ कर देखने लगती है) नहीं सच्ची... कसम से...
शुभ्रा - तो किस गहरी सोच में खोए हुए हैं आप...
विक्रम - आपकी प्रॉब्लम की सोल्यूशन के बारे में सोच रहा था...
शुभ्रा - अच्छा... (मुस्कराते हुए हुए) तो जनाब... क्या साल्यूशंस निकाला आपने...
विक्रम - देखिए... वीर की दुनिया बस गई है... वह और अनु उनकी अपनी दुनिया को संवारने में लगे हुए हैं... आज नहीं तो कल... नंदिनी को भी अपने घर जाना ही है...
शुभ्रा - हाँ... सो तो है... पर जनाब आपका सोल्यूशन क्या है...
विक्रम - हूँ... एक मिनट... (कह कर उठ जाता है) म्म्म्म्म्म... आप भी खड़े हो जाइए... (शुभ्रा उठ खड़ी होती है, तो विक्रम उसे अपनी बाहों में उठा लेता है)
शुभ्रा - आह... विक्की... यह क्या कर रहे हैं...
विक्रम कुछ नहीं सुनता है, शुभ्रा को लेकर बेड पर डाल देता है और शुभ्रा के ऊपर आ जाता है l
विक्रम - आपको.. केयर और अटेंशन की प्रैक्टिस जरूरत है... और ऊपर से आपको अकेलापन भी खाए जा रहा है... इसलिए अब टाइम आ गया है... या तो जूनियर विक्की को लाया जाए... या फिर जूनियर शुब्बु को लाया जाए... बस यही साल्यूशं है...
शुभ्रा - (शर्म से गाल लाल हो जाती है) ओ तो जनाब... राजगड़ से ठान कर आए हैं... जाइए मुझे छोड़िए...इसके लिए रात होने दीजिए... और ऑफिस जाने के लिए रेडी हो जाइए...
विक्रम - (बाथ रोब की गांठ खोल कर अलग कर) ना... अब जब तक... किसी जूनियर की आने की कंफर्मेशन नहीं मिलती... दिन रात आपकी अकेले पन की यही इलाज है... और मुझे मेरे डॉक्टर साहिबा का इलाज करने दीजिए...
इससे पहले शुभ्रा कुछ और कह पाती उसके होंठों को विक्रम गिरफ्त में ले चुका था l शुभ्रा भी हल्का सा विरोध के बाद खुद को समर्पित कर देती है l
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बहुत कुछ पूछना चाहता था पर कुछ और नहीं पुछ पाता बल्लभ, फिर से बेड की ओर देखता है और बेड के करीब जाता है l रोणा की आँखे बंद थीं और डॉक्टर एक सालाइन में इंजेक्शन चुभो देता है फिर भैरव सिंह के पास आता है l
डॉक्टर - राजा साहब... इतना तो समझ में आ रहा है... इंस्पेक्टर साहब के जिस्म कुछ पर्टिकुलर जगहों पर लकवा का अटैक हुआ है... समझ में नहीं आ रहा... यह न्यूरो अटैक है या कुछ और... इससे आगे की चेक अप के लिए... हमारे पास.. मशीने नहीं हैं...
भैरव सिंह - फिर भी... डॉक्टर तुम क्या गैस कर रहे हो...
डॉक्टर - शायद हाई ब्लड प्रेशर के कारण... ब्रेन हैमरेज हुआ है... जिसके वज़ह से... जुबान के साथ साथ हाथ पैर भी शुन्य हो गए हैं....
भैरव सिंह - ठीक है डॉक्टर... तुम जा सकते हो... (डॉक्टर मुड़ने को होता ही है कि) सुनो डॉक्टर... यह बात अपनी जेहन से मिटा देना... किसीको भी मालुम नहीं हो पाए कि इंस्पेक्टर यहाँ इस हालत में है...
डॉक्टर - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - बेहतर... वर्ना... इसके जगह तुम खुद को... ऐसी ही हालत में पाओगे...
डॉक्टर की हलक सुख जाती है l वह बिना कुछ कहे अपना ब्रीफकेस उठा कर बाहर चल देता है l उसके जाने के बाद बल्लभ भैरव सिंह के पास आता है l
बल्लभ - मैं कुछ समझा नहीं राजा साहब...
भैरव सिंह बल्लभ कुछ कहने की सोच ही रहा था कि उसके कानों में एक घंटी की आवाज सुनाई देता है l बदले में भैरव सिंह कमरे में लगे एक घंटे को बजा देता है l बल्लभ इसका मतलब समझ जाता है l अब तक जो बातचीत भैरव सिंह और बल्लभ के बीच हो रहा था उसे तीसरा कोई नहीं सुन रहा था l अब शायद भीमा अंदर आने के लिए पुरानी तरीके से घंटी बाजा कर परमिशन माँगा और उसी तरह से भैरव सिंह ने आने की परमीशन दी l थोड़ी ही देर बाद भीमा अंदर आता है
भीमा - हुकुम...
भैरव सिंह - क्या बात है भीमा... क्या हो गया...
भीमा - हुकुम... एक आदमी आया है... खुद को नया दरोगा कह रहा है... और आपसे मिलना चाहता है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... ठीक है... बिठाओ उसको... हम आ रहे हैं... (भीमा अपना सिर झुका कर उल्टे पाँव लौट जाता है l उसके जाते ही) प्रधान... इस नए दरोगा को... कब जॉइन करना था...
बल्लभ - शायद दो या तीन दिन पहले...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... चलो मिल लेते हैं... (जाते जाते पीछे मुड़ कर उदय से) उदय...
उदय - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - अगर इसे होश आए... तो...
उदय - समझ गया राजा साहब... मैं इन्हें... आपके सामने पेश कर दूँगा...
भैरव सिंह - हाँ पर तब... जब कोई बाहर वाला ना हो... समझ गए...
उदय - जी अच्छी तरह से...
आगे आगे बल्लभ कमरे से निकल जाता है और रास्ता बना कर चलने लगता है और भैरव सिंह उसके पीछे चलते हुए सीढियों से उतर कर दिवाने खास में आता है l देखता है पुलिस की वर्दी में एक नौजवान पुलिस ऑफिसर बैठा हुआ था l जैसे ही वह भैरव सिंह को देखता है अपनी जगह से उठ खड़ा होता है और भैरव सिंह को एक सैल्यूट ठोकता है l
भैरव सिंह - अपना परिचय दो ऑफिसर...
दरोगा - जी मेरा नाम... दाशरथी दास है... आप मुझे सिर्फ दास कह सकते हैं... अब तक ट्रेनिंग के बाद मैं पुलिस हेड क्वार्टर में... इंटेलिजंस विंग में था... यह मेरा पहला फिल्ड जॉब है... वह भी डेपुटेशन पर...
भैरव सिंह - दास... (बैठते हुए) जहां तक... हमें मालूम था... तुम्हें दो या तीन दिन पहले ही जॉब टेक ओवर कर लेना था...
दास - जी ऐक्चुयली... मैं यहाँ राजगड़ आना ही नहीं चाहता था...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... क्यूँ...
दास - (झिझकते हुए इधर उधर देखने लगा)
भैरव सिंह - कोई बात नहीं... रिलेक्स... बैठ कर बात बताओ...
दास - नहीं राजा साहब... आपके सामने बैठने की जुर्रत नहीं कर सकता....
भैरव सिंह - क्यूँ... क्यूँ नहीं बैठ सकते... पुलिस वाले हो... इतना हक् तो कानून या सरकार ने तुम्हें दी ही है...
दास - हाँ... पर कानूनी या सरकारी ओहदे से भी जो बड़ा हो... उनके आगे कैसे बैठ सकते हैं...
भैरव सिंह - ठीक है... पहले यह बताओ क्यूँ नहीं आना चाहते थे... राजगड़ में...
दास - खौफ... या डर भी कह सकते हैं... यह मेरी पहली फिल्ड जॉब है... और इसमें मैं ना अपने रिपोर्टिंग ऑफिसरों को... ना आपको... किसीको भी नाराज नहीं करना चाहता था...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तो किसके कहने पर अपना इरादा बदला...
दास - जी वह... यहाँ के पूर्व तहसीलदार... नरोत्तम पत्री... उनके कहने पर ही आया हूँ... उन्होंने कहा कि... यह मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी पोस्टीं है... बहुत बड़ी ऑपर्चुनिटी है... राजा साहब के छत्रछाया में ही... मैं फल फूल सकता हूँ...
भैरव सिंह - तो पत्री के कहने पर तुमने यहाँ... जॉइन किया...
दास - जी... और आते ही काम शुरु भी कर दिया है...
भैरव सिंह - कैसा काम...
दास - जी... वह... रोणा के बारे में इंक्वायरी...
भैरव सिंह - (भौहें सिकुड़ कर) रोणा के बारे में... कैसी इंक्वायरी...
दास - जी वह अभी तक लापता हैं ना... और आते ही मुझे कुछ सुराग भी मिल गए हैं...
भैरव सिंह इस बार चुप रहता है और अपनी पैनी नजर से दास को परखने की कोशिश करने लगता है l भैरव सिंह को खामोश देख कर बल्लभ, दास से सवाल पूछता है l
बल्लभ - कौन से और क्या क्या सुराग मिले हैं तुम्हें...
दास - जी आपकी तारीफ़...
बल्लभ - मैं... राजा सहाब के इस्टेट का वकील हूँ...
दास - ओ... सॉरी... कभी देखा नहीं ना... इसलिए पहचान नहीं पाया...
बल्लभ - ठीक है... पर बताया नहीं इंस्पेक्टर तुमने... क्या क्या और कौन कौन-से सुराग हाथ लगे हैं...
दास - जी ज्यादा कुछ नहीं... पर अनिकेत रोणा बाहर कहीं नहीं गए हैं... या तो यशपुर या फिर.. राजगड़ में हैं...
बल्लभ - यह तुम किस बिनाह पर कह सकते हो...
दास - कल तकरीबन दोपहर को... अनिकेत बाबु... बदहवास यशपुर के सड़कों पर भाग रहे थे... इस बात को... कुछ चश्मदीद गवाहों ने तस्लीम किया है... जिसके बिनाह पर तहकीकात को आगे बढ़ाया तो पता चला... कल उन्हें ज़ख्मी हालत में... हस्पताल में भर्ती कराया गया था... पर शाम आते आते... उन्हें किसीने हस्पताल से अगवा कर लिया है... या किसी अपने ने उन्हें अपने साथ ले गया है... और अभी फिलहाल अनिकेत बाबु... फिर से लापता हैं...
भैरव सिंह - बहुत अच्छे... बढ़िया खबर सुनाया तुमने...
दास - थैंक्यू राजा साहब... पर मुझे लगता है... आपको भी यह खबर मालुम है... और शायद आप भी इस बात को लेकर परेशान हैं...
भैरव सिंह - बहुत बढ़िया... दास बहुत बढ़िया... तुम वाकई बहुत काबिल ऑफिसर हो... पर तुम्हें कैसे पता चला... के हम रोणा को लेकर परेशान हैं...
दास - आपका चेहरा देख कर... क्यूंकि हर किसी को मालुम है... इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा... सरकारी अधिकारी कम... आपके सिपाह सालार ज्यादा थे... तो जाहिर है... राजा को अपने सालार की चिंता होना स्वाभाविक है...
भैरव सिंह - (मुस्कराता है) बहुत अच्छे दास... बहुत अच्छे... तुमने पहली बार में ही हमें इम्प्रेस कर गए... तो क्या तुमने कुछ रिपोर्ट भी बनाई है इस पर...
दास - जी वही... बनाई है... इसे जमा करने से पहले आपको इन्फॉर्म करना चाहता था... और वैसे भी... किसी तीर्थ पर आए हों तो भगवान के दरबार में हाजिरी भी लगानी पड़ती है... और साथ साथ आपसे यह कहना भी चाहता हूँ... मैं अनिकेत जी को ढूँढ कर सबसे पहले आपके सामने प्रस्तुत करूँगा...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... ठीक है... दास... तुमसे मिलकर वाकई बहुत खुशी हुई... जाओ... अपने अथॉरिटी को इन्फॉर्म कर दो... भीमा इन्हें इनके गाड़ी तक बाइज्जत छोड़ दो... और थोड़ी देर के लिए हमें एकांत में रहने दो...
भीमा - जी हुकुम...
दास - थैंक्यू राजा साहब... थैंक्यू वेरी मच...
इतना कह कर दास भैरव सिंह को सैल्यूट ठोकता है और बाहर जाने लगता है, भीमा उसके साथ बाहर चला जाता है l बल्लभ देखता है भैरव सिंह का जबड़ा सख्त हो गया है l
बल्लभ - राजा साहब... रोणा कल यशपुर के सड़कों पर बदहवास भाग रहा था... और ज़ख्मी हालत में हस्पताल में था... और अब सरकारी रिकार्ड पर गायब है... मैं कुछ... (रुक जाता है)
भैरव सिंह - अभी थोड़ी देर पहले... हमने तुमसे पुछा था... के अगर कोई तुम्हारे घर की.. किसी औरत को उठा ले तो तुम क्या करोगे...
बल्लभ की आँखे हैरानी के मारे बड़ी हो जाती हैं, उसे माजरा कुछ कुछ समझ में आ जाता है l रोणा के बारे में सोचते ही उसके माथे पर पसीना उभर आती है l उसे अपना थूक तक गटकने में मुश्किल होने लगी l भैरव सिंह अपनी कुर्सी से उठता है और बल्लभ की ओर देखते हुए
भैरव सिंह - हाँ प्रधान हाँ... जो तुम सोच रहे हो... बिल्कुल सही सोच रहे हो... अनजाने ही सही...
रोणा ने... क्षेत्रपाल की मूंछ पर... अपना हवस का पंजा मारा है...
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वैदेही के दुकान में अरुण और उसके कुछ दोस्त आकर घुस आते हैं और कोई टेबल के नीचे कोई गौरी के पीछे छिप जाते हैं l अरुण सीधे जाकर वैदेही के पीछे से पकड़ कर छुप जाता है l
वैदेही - ऐ... यह सब क्या हो रहा है... तुम सब छुप क्यों रहे हो...
अरुण - श्श्श्श... मासी चुप रहो... माँ और बापु... ढूंढ रहे हैं... पकड़े गए तो मारेंगे...
तभी दुकान के सामने हरीआ लक्ष्मी आदि आकर खड़े होते हैं l सब की आँखों में गुस्सा और डर साफ दिख रहा था l वैदेही उनकी ओर देख कर पूछती है
वैदेही - लक्ष्मी... क्या हुआ... इन बच्चों ने क्या किया...
हरीआ - देखो वैदेही... हम सब तुम भाई बहन से दूरी बनाए रखे हैं... पर तुम्हारा भाई... हमारे घर में जबरदस्ती घुसने की कोशिश कर रहा है...
वैदेही - ऐ हरीआ... खबर दार... मुहँ सम्भाल कर... वर्ना मुहँ तोड़के दूँगी... मेरे भाई ने किया क्या है...
हरीआ - क्या किया है... हमारे बच्चों को उल्टी सीधी पट्टी पढ़ा रहा है... क्या वह नहीं जानता... आखिर यहीं पर तो पला बढ़ा है... कभी गाँव में.. कोई त्योहार मनाया भी गया है... नहीं ना... क्यूँ... क्यूँकी क्षेत्रपाल महल से हुकुम है... ना त्योहार ना मातम... कुछ भी कोई भी नहीं मना सकता यहां... हमारे बाप दादा ओं से यह परंपरा निभाया जा रहा है... इसलिए... कोई नहीं मनाता... पर यह... टींडे... बोल रहे हैं... होली मनाएंगे... कृष्ण विमान... नगर परिक्रमा कराएंगे... इसलिए इन बच्चों को हमारे हवाले करो... हम इनके सिर पर चढ़े भूत उतारेंगे...
वैदेही - रुको थोड़ा... (बच्चों से) ऐ तुम सब सामने आओ मेरे... (बच्चे जहां जहां छुपे हुए थे, सब बाहर आकर वैदेही के सामने खड़े हो जाते हैं) यह तुम लोगों के माँ बापु क्या कह रहे हैं...
अरुण - वह मासी... (अरुण विश्व के साथ हुए अपनी सारी बातें बताता है)
वैदेही - (सारी बातें सुनने के बाद, लोगों की ओर देखते हुए) यह तो कह रहे हैं... त्योहार यह लोग मनाएंगे... और त्योहार मनाने के लिए... इन्होंने विशु से मदद माँगी है बस...
हरीआ - हाँ हाँ... पर यह सब इनके दिमाग में आया कहाँ से... यह लोग जो रोज रोज लाइब्रेरी में जाकर झक्क मारते रहते हैं... वहीँ से तो इन्हें यह फितूर मिला है बस...
वैदेही - बस हरीआ बस... बच्चों की इच्छा की... इसलिए उनको विशु मना नहीं कर सका... तो अपनी हामी भरी है... पर तुम लोग क्यूँ अपने बच्चों के इच्छा के बीच आ रहे हो...
लक्ष्मी - बच्चे हमारे हैं... हमने जने हैं... हमें उनकी फिक्र क्यूँ नहीं हो... माँ बाप हैं हम उनके... मत भूलो... माँ बाप से ज्यादा जो बच्चों पर प्यार लुटाये... उसे क्या कहते हैं जानती हो ना तुम... (चुप हो जाती है)
वैदेही - (अपनी जबड़े भिंच लेती है और फिर गुस्से से फट पड़ती है) हाँ हाँ... चुप क्यों हो गई... उसे डायन कहते हैं... यही कहना चाहते थे ना तुम... यही वह गाँव है... और यही वह गाँव वाले हैं... जिन्होंने मुझ पर... डायन कह कर पत्थर बरसाये थे... बच्चे तुम्हारे ही हैं... पर तुमसे सम्भले भी हैं... भूल गई... तुम्हारी ही बेटी को... उठा लेने की बात करता था... शनिया... तब मैंने ही बचाया था... हाँ गाँव में त्यौहार मनाया नहीं जाता... पर वह सब मुहँ पर मूँछ उगाने वालों के लिए... ताकि उनकी मर्दानगी क्षेत्रपाल के आगे... दबी रहे... जो आज तक दबी हुई है... बच्चों के लिए ऐसा कोई हुकुम नहीं है... तो उन्हें क्यूँ रोक रहे हो...
सभी चिल्लाने लगते हैं गौरी और वैदेही के ऊपर, पर कोई हिम्मत नहीं करता अंदर आकर बच्चों को ले जाने के लिए l तभी अचानक वैदेही चिल्लाती है l
वैदेही - चुप... चुप... चुप.. (सब चुप हो जाते हैं) तुम लोगों के पीछे मेरा भाई खड़ा है... बात कर लो उससे...
सभी घूम कर पीछे देखते हैं l विश्व अपने बांह में बांह फंसा कर खड़ा हुआ था l विश्व को देखते ही सबके मुहँ बंद हो जाते हैं l विश्व उनके बीच से हो कर दुकान के अंदर आता है l अरुण उसे मामा कह कर कस कर पकड़ लेता है l
विश्व - हूँ... क्या हुआ... इतना हल्ला क्यूँ मचा रहे हो...
लक्ष्मी - वह... हमारे बच्चे... (चुप हो जाती है)
विश्व - इन्होंने अपने मामा से कुछ मांगा है... तो मामा ने इन्हें वह देने का वादा किया है... इसलिए आज अरुण और उसकी टोली कृष्ण विमान... नगर परिक्रमा करवाएंगे...
हरीआ - देखो विश्वा हमारे बच्चों को कुछ हुआ तो... (विश्व के देखते ही चुप हो जाता है)
विश्व - अलबत्ता कुछ होगा नहीं... बच्चों के साथ जब तक मेरा रिश्ता रहेगा... तब तक... उनकी हर वह ख्वाहिश जो मुझसे पूरी हो सके... मैं पूरी करूँगा...
हरीआ - हमारे बच्चों पर... तुम जोर आजमा रहे हो... ज़बरदस्ती कर रहे हो...
विश्व - ज़बरदस्ती... इनके साथ... नहीं... मैं तुम लोगों के साथ जबरदस्ती कर सकता हूँ... जिस दिन अपने बच्चों के लिए... मेरे साथ लड़ने की जिगर बना लो... उस दिन तुम लोग अपने बच्चों पर अपनी मर्जी चलाना... (सभी एक पल के लिए चुप हो जाते हैं, सब एक दुसरे को देखने लगते हैं l विश्व से लड़ने की हिम्मत कौन करे) फिर भी... मैं तुम लोगों को एक मौका देता हूँ... अगर उस मौके को तुम लोगों ने भुना दिया... तो बच्चे... आज विमान परिक्रमा नहीं करेंगे...
अरुण - मामा...
विश्व - श्श्श...
सभी - (एक साथ) हाँ हाँ हम तैयार हैं...
विश्व - ठीक है फिर... (आवाज़ देता है) टीलु...
टीलु - जी भाई...
टीलु उस चौक के बीचों-बीच एक बेंत के डंडे से बड़ी सी गोल बनाता है l और डंडा विश्व की ओर फेंक देता है l विश्व डंडा पकड़ कर उस गोल के बीच खड़ा हो जाता है l
विश्व - (सारे लोगों से) अपने हाथ में कुछ पत्थर लेलो... (लोग नासमझों की तरह एक दुसरे की ओर देखने लगते हैं) हाँ हाँ अपने हाथ में पत्थर लेलो... और मुझे मारो... मुझे अगर एक भी पत्थर लगी... तो बच्चों का कृष्ण विमान परिक्रमा बंद... अगर मुझे कोई भी पत्थर नहीं लगी... तो... तो परिक्रमा होगी...
विश्व की इस घोषणा के बाद बच्चे खुशी से उछल पड़ते हैं और ताली बजाने लगते हैं l सारे मर्द एक दुसरे को इशारा करते हुए हाथों में छोटे छोटे पत्थर लेकर गोलाई के बाहर फैल जाते हैं l हरीआ मारने को होता है कि टीलु चिल्ला कर रोक देता है l
टीलु - ऐ... ऐ रुक... मारना तब चालू करोगे जब मैं तीन तक कि गिनती गिन लूँ... सब तैयार हो.. (सब अपने हाथ में पत्थर को गोली की तरह उछाल कर विश्व पर निशाना बनाने लगते हैं)
एक...
दो...
तीन...
सारे मर्द पूरी ताकत के साथ पत्थरों को विश्व के उपर बरसाने लगते हैं पर विश्व को पत्थर लगना तो दूर, विश्व जितनी तेजी से बेंत घुमा रहा था उससे वह पत्थर टकरा छिटक कर लोगों की तरफ जा कर उनको लग रही थी l जिसके कारण कुछ ही देर बाद सारे लोग गोलाई से तितर-बितर हो जाते हैं l लोगों के पत्थर बाजी बंद होते ही विश्व का डंडा घुमाना भी बंद हो जाती है l बच्चे ताली बजाते हुए विश्व के पास उछलते कुदते झूमते गाते आते हैं और चिल्ला चिल्ला कर कहने लगते हैं
हाती घोड़ा पालकी
जय कन्हैया लाल की
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बल्लभ एकदम से लाजवाब हो जाता है l उसे अपना पैर कांपते हुए महसूस होता है l उसकी हालत भैरव सिंह से छुपती नहीं है l भैरव सिंह उससे कहता है
भैरव सिंह - हम जानते हैं प्रधान... रोणा तुम्हारा दोस्त है... इसलिए तुमसे बातों की गहराई तक पहुँचने की कोशिश कर रहे थे...
बल्लभ कुछ कहने की कोशिश करता है पर उसकी आवाज़ हलक में ही घुट कर रह जाती है l सीढियों पर भागते हुए उदय भागते हुए आता है और भैरव सिंह के पास पहुँच कर सिर झुका कर खड़ा हो जाता है l भैरव सिंह समझ जाता है कि रोणा होश में आ रहा है l वह अपना सिर हिला कर रोणा को लाने के लिए इशारा करता है l उधर धीरे धीरे रोणा अपनी आँखे खोलता है और खुद को रंग महल में देख कर हैरान हो जाता है l इतने में उदय रोणा के पास पहुँचता है l
उदय - अरे... इंस्पेक्टर साहब... आप जाग गए... इसे अपना ही रंग महल समझिए... बस थोड़ी देर के लिए... चलिए... राजा साहब ने आपको याद किया...
उदय को रंग महल में देख कर गुस्से में कांपने लगता है, और गली देने की कोशिश करता है पर ना तो उसके हाथ पैर हिलते हैं, ना ही मुहँ से कोई आवाज निकलता है l उदय उसकी भावनाओं को दरकिनार कर एक व्हीलचेयर पर बिठा देता है और एक बेल्ट को चेयर के साथ उसके कमर पर कस कर बाँध देता है और रोणा को दिवाने खास में लेकर आता है l रोणा को होश में देख कर भैरव सिंह उससे कहता है
भैरव सिंह - बड़े मौके पर जागा है रोणा... तु अपनी ख्वाब की दुनिया में बेहोश था... अपनी करनी के कारण... स्वागत है तेरा... क्षेत्रपाल के दुनिया की वास्तविकता में...
रोणा के हाथ और पैर, लकवा के कारण हिल नहीं पा रहे थे और जुबान खुल नहीं रही थी l फिर भी अपना जिस्म और सिर हिला कर भैरव सिंह को कुछ कहने की कोशिश करता है l पर उसकी कोशिश बेकार जाती है तो बल्लभ को इशारा कर समझाने के लिए कहता है l पर बल्लभ उसकी इशारों को समझ नहीं पाता और उसे लगता है रोणा से गलती हो गई है और वह बहुत पीड़ा में है यही बताना चाह रहा है l यह सोचते सोचते बल्लभ की आँखे छलक पड़ती हैं l
भैरव सिंह - हम क्षेत्रपाल हैं... हमारी ही घर की नुर पर... तुने, बदनीयती रखी... नजर खराब की... देख... नियति ने तुझे कैसी सजा दी... लकवे से जिस्म ही नहीं... जुबान भी अकड़ गई है... हम चाहते तो बेहोशी में ही तुझे... मौत के घाट उतार सकते थे... पर नहीं... तुझे तेरी करनी की याद दिलाना जरूरी था... इसलिए तेरे होश में आने का इंतजार कर रहे थे...
इतना सुनते ही रोणा की चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने लगती हैं l वह अपनी पुरी ताकत लगा कर चीखना चाहता था l पर चीख नहीं पाता l उधर बल्लभ की आँखे बहने लगी थी l बल्लभ की ओर देखते हुए भैरव सिंह कहता है
भैरव सिंह - वकील... हमें इसे ख़तम करना है... वह भी अपने आदमियों से... पर जो ज़ख़्म इसने दी है... वह अपने आदमियों को दिखा भी नहीं सकते... इसलिए इल्ज़ाम तु बतायेगा... और सारे लोग इसकी मौत हमसे मांगेंगे...
यह सुनते ही बल्लभ हैरानी भरे नजरों से भैरव सिंह की ओर देखता है l इसका मतलब यह हुआ कि जो कांड रोणा ने किया है वह सिर्फ क्षेत्रपाल परिवार वालों को मालुम है l बाहर वालों में सिर्फ उसको पता है l अब रोणा पर इल्ज़ाम लगा कर उसे भैरव सिंह के लोगों के सामने दोषी बनाना है ताकि ना सिर्फ भैरव सिंह उसे मौत दे सके, बल्कि भैरव सिंह का खौफ उसके आदमियों में बनी भी रहे और आगे चलकर किसीसे भी किसी प्रकार की गलती ना हो पाए l
बल्लभ - र्र्र्र्र्राजा साहब... क्या इस मामले में मुझे आप दुर रख सकते हैं...
भैरव सिंह - नहीं... तुम्हें इसकी मौत की वज़ह बनानी पड़ेगी... और हम इसे सबसे भयानक मौत देंगे.... (रोणा की ओर देख कर) हम तुझे यह महल देने की सोचे थे... पर तु इतना बड़ा कमजर्फ निकला... के इसी महल में तेरी मौत देने की सोच रहे हैं...
बल्लभ - राजा साहब... सरकार की नजर में यह अभी भी लापता है... सरकारी तंत्र इसे ढूंढ रही है... इसकी यशपुर में बदहवास हो कर रास्ते पर दौड़ने की रिपोर्ट बन चुकी है... हस्पताल की रिकार्ड में... ट्रीटमेंट के लिए दाखिल होना और... किसी के द्वारा अगवा होने की भी रिपोर्ट बन चुकी है... ऊपर से यह दाशरथी... मुझे ठीक नहीं लग रहा है... ऐसे में... अगर यह सचमुच गायब हो गया... और किसी भी तरह से इस बात की भनक दाशरथी को लगी... तो मैं सौ फीसदी गैरेंटी के साथ कह सकता हूँ... वह इस बात की भी रिपोर्ट बना कर ऊपर भेज सकता है...
भैरव सिंह - (हँसते हुए) आखिर तुने अपना वकील दिमाग चला ही दिया... इस हरामजादे को बचाने के लिए... बहुत वाज़िब बातेँ पेश की... पर इसकी मौत आज अटल है वकील... अटल है... तु बस इसकी गुनाह बयां कर... और मेरे लोगों के बीच साबित कर...
इतने में भैरव सिंह कमरे में मौजूद एक घंटा बजाता है l कुछ देर बाद भीमा कमरे में प्रवेश करता है और भैरव सिंह के सामने सिर झुका कर खड़े हो जाता है l
भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी हुकुम..
भैरव सिंह - हमारे सारे कारिंदों को बुलाओ....
भीमा - जी हुकुम... (भीमा कमरे से बाहर निकल जाता है)
भैरव सिंह - (बल्लभ से) मेरे सारे आदमियों को... इस हरामजादे के बारे में क्या कहोगे... तय कर लो...
बल्लभ - (लड़खड़ाती जुबान पर) र्र्र्र्राजा स्स्स्स्साहब...
इतने में भीमा बाहर खड़े सारे पहलवानों को अपने साथ लेकर अंदर आता है l सभी के सभी भैरव सिंह के सामने सिर झुकाए खड़े हो जाते हैं l भैरव सिंह बिना कोई प्रतिक्रिया दिए अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l अब बल्लभ बड़े असमंजस में पड़ जाता है l वह कहे तो क्या कहे l भैरव सिंह अपना गला खरासता है l
बल्लभ - (लड़खड़ाती जुबान से) हाँ तो... मैं... मेरा मतलब यह है कि... मैं दरअसल राजा सहाब से कह रहा था कि... यह इंस्पेक्टर... यह दरोगा... राजा साहब से गद्दारी कर छुपा हुआ था...
सभी हैरान हो कर बल्लभ की ओर देखने लगते हैं और फिर व्हीलचेयर पर बैठा रोणा की ओर देखने लगते हैं, रोणा तेज तेज सांसे ले रहा था l छटपटा रहा था l
शनिया - क्या... राजा साहब से गद्दारी... यह कैसे हो सकता है... इन्होंने तो राजगड़ वापस आने के लिए... राजा साहब के पाँव धो धो कर पी रहे थे...
बल्लभ - हाँ...
भूरा - क्या किया था... इस दरोगा ने...
बल्लभ - वह... तुम लोग जो विश्वा के हाथों पीटे थे ना... वह सब द द द्द्द्दरोगा ने... जान बुझ कर तुम सबको विश्वा के हाथों पिटवाया था...
सभी - क्या...
बल्लभ - हाँ... इसीलिए तो... उस दिन पंचायत भवन में... यह जानबूझकर काम का बहाना बनाकर नहीं आया... और तुम लोगों की सारी जानकारी... विश्व को दे दिया.... यह जैसे ही राजा साहब को मालुम हुआ... डर के मारे... यशपुर के xxx गोदाम में छुपा बैठा था...
तभी सबके कानों में कुछ गिरने की आवाज़ आती है l सबकी नजर उस तरफ जाती है तो पाते हैं रोणा की व्हीलचेयर पलट गई थी, रोणा नीचे गिर कर छटपटा रहा था l उसके मुहँ से गॅँ गॅँ की आवाज़ निकल रही थी l उदय उसे फिर से उठा कर बिठाता है l
बल्लभ - (अपना सिर झुका कर नीचे फर्श की ओर देखते हुए कहना चालू रखता है) अब चूँकि विश्वा से मिलकर... राजा साहब के खिलाफ काम कर रहा था... इसलिए... इस ग़द्दार को क्या सजा मिलनी चाहिए... यह तुम लोग तय करो...
सभी खुसुर-पुसुर करते हुए एक साथ चिल्ला कर कहने लगते हैं l इसे आखेट गृह की सजा दी जाए l तभी सत्तू दौड़ते हुए कमरे में दाखिल होता है और हुकुम कह कर भैरव सिंह के सामने झुक कर घुटनों में बैठ जाता है l
भैरव सिंह - कौन हो तुम...
सत्तू - जी मैं सत्तू..
भैरव सिंह - कौन सत्तू
भीमा - माफी हुकुम... यह हमारा ही पट्ठा है... इसे गाँव में नजर रखने के लिए भेजा था...
भैरव सिंह - हूँ...
सत्तू - जी... जी हुकुम...
भैरव सिंह - तो क्या खबर है...
सत्तू - (एक साँस में जल्दी जल्दी में) गाँव में बगावत होगई है हुकुम... युगों से जो कभी नहीं हुआ... आज हो गया है हुकुम... कुछ बच्चे उस विश्वा के साथ मिलकर आज... गाँव में आम के पत्तों से सजा कर... आम के फलों को टांग कर.. कृष्ण विमान परिक्रमा कराए हैं...
सत्तू ने जैसे एक बम फोड़ दिया था, उसके इस खुलासे से कमरे में ऐसी ख़ामोशी छा जाती है जैसे मसान में बसती है l सभी मुहँ फाड़े भैरव सिंह की ओर देखते हैं l भैरव सिंह का चेहरा सख्त हो चुका था l तमतमाते हुए अपनी पूछता है l
भैरव सिंह - पूरी बात बताओ...
सत्तू वैदेही के दुकान और मुख्य चौक पर जी भी हुआ वह और उसके साथ बच्चों के द्वारा विमान परिक्रमा का पूरा विवरण देता है l
भैरव सिंह - लगता है... अब इस नामुराद रोणा के साथ साथ... सभी गाँव वालों को भी सजा देनी पड़ेगी.... ( कुर्सी से उठता है) प्रधान... क्या करना चाहिए...
बल्लभ - राजा साहब... सत्तू की माने... तो गुस्ताखी विश्व और बच्चों ने को है... गाँव वालों ने तो टोका था...
भैरव सिंह - प्रधान... (इस बार गरजते हुए) सत्तर वर्षों की परंपरा टूटी है...
बल्लभ - सजा दी जाए तो किसे और कैसी राजा साहब... अगर कुछ उजागर हो गया... तो सारे सरकारी तंत्र यहाँ के लिए कूच कर आयेंगे... तब हम कितनों से लड़ पाएंगे... राजा का ताकत उसका सैन्य बल ही नहीं... प्रजा भी होती है...
भैरव सिंह - सत्तर सालों में... यह पहली ना फर्मानी है... इसे यहीं पर रोका नहीं गया... तो आदत बन जाएगी... अगर कुछ नहीं किया... तो हमें आत्मदाह कर... खुद को ख़तम कर लेना चाहिए...
उदय - आत्मदाह करे आपके दुश्मन राजा साहब...(सबका ध्यान उदय की तरफ़ जाता है) माफी चाहता हूँ... बहुत ही छोटा आदमी हूँ... बीच में यूँ बोलता ठीक नहीं है... पर राजा साहब... अगर आप इजाज़त दें... तो मैं कुछ कहूँ... (भैरव सिंह अपना सिर हिला कर हामी भरता है) मेरे पिता एक हवलदार थे... जिनके अकाल मृत्यु के पश्चात... मुझे अनुदान नौकरी के तहत ग्राम रखी कि नौकरी दी गई... मैं रोणा बाबु के पास अर्दली के रूप में भी काम किया करता रहा ताकि आगे चलकर यह मुझे कम-से-कम कांस्टेबल पद तक पदोन्नति दें..
भैरव सिंह - हम तुम्हारा इतिहास जानने के लिए बैठे नहीं हैं... बीच में जुबान क्यूँ घुसाई वह बोलो... नहीं तो तुम भी इसके (रोणा को दिखा कर) साथ मारे जाओगे...
उदय - जी हुकुम... गाँव वालों को सजा देने के लिए मेरे पास एक प्लान है...
भैरव सिंह - बको....
उदय - आज बच्चों ने विश्व के साथ मिल कर होली के पूर्व कृष्ण विमान परिक्रमा का त्योहार मनाया है... आप आज पूरे गाँव को होली जलाने के लिए प्रेरित करें...
भैरव सिंह - (भौहें-चढ़ा कर उदय के पास आकर खड़ा होता है, बहुत शांत मगर हड्डियां कंपकंपा देने वाली सर्द लहजे में) क्या कहा... हम होली मनाने के लिए कहें...
उदय - (डर के मारे) जी हुकुम.. मैं वह.. पूरा प्लान...
भैरव सिंह - ठीक है.. अपना प्लान पुरा करो...
उदय - (लड़खड़ाती लहजे में) जैसा कि वकील बाबु ने कहा... सरकारी रिपोर्ट के अनुसार... रोणा बाबु कल यशपुर के रास्ते में भागते दिखे... और हस्पताल के... रजिस्टर में भी उनका नाम मिला है... पर उसके बाद गायब हैं...
बल्लभ - हाँ तो...
उदय - तो... रोणा बाबु की गद्दारी की सजा तो उन्हें मिलनी ही चाहिए... पर इस बात का रिकार्ड सरकारी अधिकारियों के लिए... क्यूँ न बनाया जाए... के गाँव वालों ने... रोणा को हस्पताल से अगवा किया... और उन्होंने इसे होली में... होलिका की जगह बिठा कर... जिंदा जला दिया...
कमरे में मौजूद सभी लोग मुहँ फाड़े उदय की ओर देखने लगते हैं l फिर सभी भैरव सिंह की ओर देखते हैं l रोणा को महसूस होता है कि भैरव सिंह को यह आइडिया बहुत पसंद आया है l
भैरव सिंह - हम अगर... होली के लिए कहेंगे... तो रिकार्ड यह भी बन सकता है... के हमने अगुवा कर लोगों के हवाले किया था...
उदय - नहीं... ऐसा नहीं होगा... हम इसे... (रोणा की ओर दिखा कर) होलिका की तरह सजा देंगे... आपके आग्रह अनुसार लोग आज होलीका दहन करेंगे... जिसकी विडिओ रिकार्डिंग बना देंगे... इसे एक ठेले पर बिठा कर... हाथ पैर बाँध कर मुहँ में पट्टी चिपका कर... एक औरत की पुतले की तरह बना देंगे... लकड़ियों से घेर देंगे... लोगों से भी कहा जाएगा... अपने अपने हिस्से की लकड़ियां और गोबर के उपले जमा कर ढक देने के लिए... फिर लोगों को ही कहा जाएगा... आग जला देने के लिए... इससे एक क्राइम लोग करेंगे... और आपका मान भी रह जाएगा... दाशरथी दास इंक्वायरी कर रहा है... हममे से ही बारी बारी से... उसके कानों में खबर देंगे... की गाँव के लोगों ने... एक सरकारी अधिकारी को जिंदा जला दिया...
इतना सुनने के बाद भैरव सिंह के चेहरे पर एक प्रसन्नता का भाव दिखने लगता है l भैरव सिंह रोणा की ओर देखता है जैसे वह मना कर रहा है और बख्शने की दरख्वास्त कर रहा है l भैरव सिंह बल्लभ की ओर देखता है जिसके चेहरे पर दुख अनुकंपा डर के साथ साथ दर्द भी दिख रहा था l
भैरव सिंह - (अपने लोगों से) तो... कुछ जाओ गाँव में ऐलान कर दो... बच्चों की खुशी देख कर... राजा ने होली मनाने की हुकुम दिया है... आज रात सब अपने अपने हिस्से के लकड़ी और उपले लेकर होलिका की पुतले को जलायेंगे... और तब तक तुमसे से कुछ लोग इसे... होलिका की तरह सजाओ... और होलिका दहन के लिए मंच बना कर बिठाओ... जाओ...
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अपने कमरे में गुमसुम बेड के हेड रेस्ट पर अपना चेहरा टिकाए खिड़की से बाहर की नजारों को रुप देख रही थी l तभी उसके दरवाजे पर दस्तक होती है l रुप खुद को सम्भाल कर दरवाजे के तरफ देख कर कहती है
रुप - आ जाओ...
दरवाजा खुलता है, फूड ट्रॉली पर ढके हुए खाने के साथ सेबती कमरे के अंदर आती है l कमरे के कोने में जो टी पोए था उस पर खाना लगाने लगती है l
सेबती - खाना लगा दिया है राजकुमारी जी...
रुप - (सेबती की ओर बिना देखे) हाँ ठीक है... जाओ यहाँ से...
सेबती - नहीं जा सकती... हुकुम है मुझे... आप खाना खा लीजिए...
रुप - मुझे अभी भूख नहीं है... जाओ जब भूख लगेगी खा लूँगी...
सेबती - जी आपको अभी भूख नहीं होगा... यह जान कर आपके एक मित्र ने आपके लिए... भूख की एक दवा भेजा है...
रुप - देख सेबती... कल से मेरा दिमाग खराब है... उसे और मत खराब कर... अभी जा यहाँ से... (झल्ला कर) नहीं तो... मैं... पता नहीं क्या कर बैठूंगी...
सेबती - ठीक है... मैं आपको... आपकी मर्ज की दवा दिए जाती हूँ... ईस्तेमाल करना या ना करना... आप पर छोड़ जाती हूँ...
यह कह कर अपनी कमर से कपड़ों में लिपटी एक चीज़ निकालती है l रुप देखती है कपड़ा हटा कर सेबती उसमें से एक मोबाइल निकालती है और रुप की तरफ बढ़ा देती है l मोबाइल देखते ही रुप की आँखों में चमक आ जाती है l मोबाइल लेने के लिए अपना हाथ आगे करती है पर अचानक रुक जाती है l कहीं यह राजा साहब की चाल हुई तो l शायद सेबती रुप की मनोदशा समझ जाती है l वह मोबाइल बेड पर रख कर बाहर चली जाती है l सेबती के बाहर जाते ही रुप भाग कर दरवाज़ा पर कुण्डा लगा देती है l और धीरे से मोबाइल के पास आती है l मोबाइल उल्टा रखा हुआ था और मोबाइल एक पारदर्शी कवर के अंदर था l पारदर्शी कवर के अंदर एक चिट्ठी मुड़ी हुई दिखती है l कवर हटा कर चिट्टी निकालती है, हाँ चिट्ठी उसीके नाम की थी
"आज ऐसा पहली बार हुआ,
नकचढ़ी ने अपना वादा नहीं निभाया l
मैं बेवक़ूफ़ तकते तकते तरसता ही रह गया
पर महबूब की कोई पैगाम भी नहीं आया
आज का सुबह कितना बेवफ़ा निकला
मेरे महबूब के पैगाम लिए वगैर सूरज पुरब से निकला
अभी भी मैं सोया हुआ हूँ
नकचढ़ी के ख़यालों में खोया हुआ हूँ
और सितम ना करो ऐ मेरे जान ओ जहान के शहजादी
जान निकलने को है आवाज़ दो ताकि जाग जाए जिंदगी
इश्क जागे तो हुस्न की गालियों में आए
आगोश में उनके दोनों जहां भुला कर समा जाएं "
चिट्ठी पढ़ते ही शर्म और खुशी के मारे रुप के गाल लाल हो जाते हैं l मोबाइल की स्वीट ऑन करती है, टावर लगते ही विश्व की नंबर डायल कर फोन लगाती है l एक ही रिंग के बाद फोन पीक हो जाती है l
विश्व - (उबासी लेते हुए) हैलो..
रुप - दोपहर ढलने को है.. मेरा खाना लग गया है...
विश्व - अच्छा... मेरे लिए तो सुबह अभी हुआ है...
रुप - मसखरी करते शर्म नहीं आती...
विश्व - अगर मैं शर्माने लगुँ... तो प्यार में आगे कैसे बढ़ुंगा...
रुप - ओ हो.. तो आशिक महाराज बेशरम होने की तैयारी में हैं...
विश्व - क्या करें... किसी ने मुझे पढ़ाया है...
मुहब्बत की यही दस्तूर होता है...
हुस्न शर्म की पट ओढ़ लेती है...
इश्क बेशरम हो जाता है...
तभी तो प्यार मुकम्मल होता है...
रुप - ओ हो... क्या बात है... आज बड़े शायराना मुड़ में हो... क्या इरादा है आज जनाब का...
विश्व - याद है.. वादा किया था आपको... आज पूनम की रात में... तो सोच रहा हूँ.. थोड़ा और बेशरम हो लूँ...
रुप - (शर्म से अपनी आँखे बंद कर लेती है, थोड़ी देर की चुप्पी के बाद धीमी आवाज में) बेशरम होने तक तो ठीक है... पर कहीं अगर बेलगाम हो गए तो... मैं अकेली लड़की...
विश्व - आपकी इजाजत के वगैर तो मुझसे बेशरम भी ना हुआ जाएगा... बेलगाम तो दूर की बात है...
रुप - रहने दो रहने दो... बातें ना बनाओ...
विश्व - क्या मुझ पर भरोसा नहीं है...
रुप - मौत आ जाए मुझे... जिस दिन तुम पर भरोसा उठ जाए...
विश्व - तो फिर आज रात तैयार रहिएगा... लेने आ रहा हूँ...
रुप - ठीक है... आ जाना... तैयार मिलूंगी तुम्हें...
विश्व - अच्छा... इतना भरोसा है.. राजा साहब को खौफ तो कीजिए..
रुप - बात मेरे अकेले की होती तो खौफ खा लेती... पर बात मेरे हमदम... हम कदम.. हम राज.. हम साया ने कही है... तो डर किस बात का... मुझे यकीन है... तुमने कोई ना कोई जुगत लगाया ही होगा...
विश्व - ठीक है फिर... मिलते हैं आज रात को... वैसे आज का दिन बनाने के लिए शुक्रिया..
रुप - तुम्हारा भी....
विश्व फोन काट देता है, रुप खुशी के मारे फोन चूम लेती है l तभी दरवाजे पर दस्तक होती है, रुप जाती है कुंडा खोल देती है l सामने सेबती खड़ी थी, उसे रुप बड़े एटीट्यूड के साथ देखती है l सेबती अपना सिर झुका कर अंदर आती है l रुप दरवाजा फिर से बंद कर देती है l
तो आख़िरकार रोणा के अंत की शुरुवात हो ही गई!
सच में - यह इतना गिरा हुआ पात्र है कि भैरव सिंह से भी अधिक घिन आती है इसके बारे में पढ़ कर। अपने चरित्र के मुताबिक ही उसका अंजाम होने वाला है।
लेकिन ये उदय का क्या सीन है? रावण की लंका में विभीषण का रोल अदा करने वाला है क्या ये? खेत्रपालों का हितैषी तो ये कत्तई नहीं है।
होली को ले कर जो दाँव इसने चला है, वो बड़ा ही शातिर है। रोणा का अंत भी हो जाएगा, और भैरव का रसूख़ भी सलामत रह जाएगा।
विश्व की पैठ राजमहल में इतनी गहरी है - यह पता नहीं था। राजकुमारी की मुख्य परिचारिका सेबती उसके हाथों में है, देख कर अच्छा लगा।
उधर शुभ्रा और विक्रम - वो दोनों उस काम में लिप्त हो गए हैं, जो उनको अवश्य ही करना चाहिए। उन दोनों के सूने जीवन में खुशियों के आने की आवश्यकता है।
कम से कम इसी बहाने दोनों को ही कोई सकारात्मक दिशा तो मिलेगी! इसलिए बढ़िया!
अब आप बताइए भाई - आप कैसे हैं? कैसी रही छुट्टियाँ?