एक सौ छप्पनवाँ अपडेट
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कटक शहर
महानदी के किनारे
नराज के बैराज के पास जॉगर्स पार्क में लोग जॉगिंग और वॉकींग कर रहे हैं l बैराज के कुछ सुइस गेट खुले हुए हैं l पानी की तेज बहाव नीचे की पथरीली चट्टानों से टकरा कर आसपास पानी की धुन्ध जैसा माहौल बना रही थी l सुबह की ताजी किरणों से उस धुएँ वालीं वातावरण में इंद्रधनुष की बन रहा था l जॉगिंग करने आए कुछ बच्चे उन इंद्रधनुषों को देख कर लुफ्त उठा रहे थे l वहीँ उस पार्क के रिवर व्यू पॉइंट के एक बेंच पर विश्व किन्ही ख़यालों में खोया हुआ था l पार्क में बच्चों का शोरगुल या भीड़ कुछ भी विश्व का ध्यान खिंचने में नाकाम था l पर तभी उसके कानों को एक आवाज सुनाई देती है l
"किन ख़यालों में खोए हुए हो हीरो"
यह आवाज कानों में पड़ते ही विश्व का ध्यान उस आवाज की तरफ जाती है l एक शख्स ट्रैक शूट में था, जिसके हाथ में एक स्टिक, आँखों पर एक काली गॉगल और सिर पर एक गोल्फ कैप था l उस शख्स को देखते ही विश्व के चेहरे पर रौनक के साथ साथ मुस्कराहट उभर आती है l विश्व अपनी जगह से खड़ा हो जाता है
विश्व - ड... डैनी भाई... आ... आप...
डैनी - हाँ मैं... और कैसे हो हीरो... क्या हाल चाल है...
विश्व जाता है और डैनी के गले लग जाता है l डैनी भी उसे गले लगा लेता है l कुछ देर बाद दोनों अलग होते हैं और बेंच के पास आकर बैठ जाते हैं l
विश्व - ह्वाट अ सरप्राइज... डैनी भाई आप... यहाँ... इस वक़्त... कैसे... आई मीन.. कब आए...
डैनी - कुछ ही दिन हुए हैं... न्यूज से... पता कर रहा था... अदालत में... तुम्हें लड़ते हुए देखना चाहता था... इसलिए रहा नहीं गया... बस आ गया...
विश्व - ओ... मतलब... आप कितने दिनों से यहाँ हैं...
डैनी - सच कहूँ तो मुझे... बहुत पहले आ जाना चाहिए था... मुझे जब यह जानकारी हाथ लगी के... राजा का भतीजा तुम्हारा दोस्त था... तब वाकई मुझे जल्द आ जाना चाहिए था... शायद मैं तुम्हारे काम आ सकता था... पर अफसोस... मैं जब खबर लेकर आया... तब तक तुम यहाँ से जा चुके थे... इसबार तुम्हें कोई तकलीफ ना हो... इसलिए तभी से... सब पर नजर जमाए रखा था...
विश्व - उसके लिए शुक्रिया डैनी भाई... पर... केस अब...
डैनी - हाँ... कल मैं कोर्ट में ही था... सब कुछ देखा सुना भी... अब शायद केस... राजगड़ या फिर... उसके आसपास के इलाके में... ट्रांसफर कर दिया जाएगा...
विश्व - हाँ... मुझे अंदाजा नहीं था... भैरव सिंह... इतना बड़ा दाव खेल लेगा... और सॉलिसिटर जनरल ने जिस तरह से... दलील दी... उससे लगता है... केस राजगड़ या फिर यशपुर ट्रांसफ़र हो जाएगा...
डैनी - राजगड़ या यशपुर केस शिफ्ट हो जाने से... क्या केस पर कोई असर पड़ेगा...
विश्व - हाँ... बहुत ही गहरा असर पड़ेगा... इससे राजा का हस्ती आम नहीं रह जाएगा... वह खास बन जाएगा... लोगों के मन में यह बस जाएगा... राजा भैरव सिंह अदालत नहीं गया... बल्कि वह अदालत को... अपने इलाके में खिंच लाया...
डैनी - ह्म्म्म्म... मतलब... जो लोग अबतक... उसके खिलाफ गवाही दे चुके हैं... वे अब शायद मुकर भी जाएं...
विश्व - हाँ...
डैनी - और तुम इतनी सी बात को लेकर... परेशान हो...
विश्व - बात सिर्फ इतनी सी नहीं है... जब मेरी दोस्ती नभ वाणी की जर्नलिस्ट सुप्रिया से हुई... तब मुझे इशारे से बताया था... के सरकार में बहुत से लोग ऐसे हैं... जो भैरव सिंह से छुटकारा पाना चाहते हैं... मुझे उसकी बातों की गहराई का पता तब चला... जब राजा के खिलाफ केस दर्ज होते ही... भैरव सिंह... होम अरेस्ट हुआ... इतनी तेजी से ताबड़तोड़ कारवाई देख कर लगा था... के सरकार वाकई में... भैरव सिंह से छुटकारा पाना चाहती है... पर कल जिस तरह से... कोर्ट में... प्रोसिडींग हुआ... (विश्व खामोश हो जाता है)
डैनी - वैसे... तुम गलत नहीं हो... भैरव सिंह... अपने इलाके में.. बहुत बड़ा रुतबा रखता है... जिसके दम पर... स्टेट में... सरकारें बनतीं और गिरती भी रही है...
विश्व - अगर इतना ही खौफ पालते थे... तो हमारी कंधों का सहारा लेकर... राजा से क्यूँ टकराने की कोशिश की...
डैनी - कोई किसीसे टकराया नहीं है... होम मिनिस्टर... तुम्हारे आड़ में... राजा को... अपनी पावर का एहसास कराया...
विश्व - और अब...
डैनी - दोनों मिल गए हैं...
विश्व - यह आप किस वीना पर कह सकते हैं...
डैनी अपनी आस्तीन से एक लिफाफा निकालता है l उनमें से कुछ फोटोग्राफ्स निकाल कर विश्व के हाथों में देता है l विश्व उन फोटो में देखता है, बल्लभ होम मिनिस्टर के साथ बैठ कर बात कर रहा है l
विश्व - यह फोटोस... आप के पास...
डैनी - मैंने कहा ना... मैंने अपनी नजरें ज़माए रखा था... और बात अगत कटक भुवनेश्वर की है... तो मैं कहीं पर भी पहुँच सकता हूँ...
विश्व - होम मिनिस्टर को बल्लभ ने आसानी से मना भी लिया...
डैनी - मानने के सिवा... होम मिनिस्टर के पास कोई चारा भी तो नहीं था...
विश्व - क्यूँ...
डैनी - राजा के पास... ज्यादातर पोलिटिशीयन... ब्यूरोक्रेटस... नौकरशाह के... काली कुंडलियाँ है... इसलिए... और मान लो होम मिनिस्टर राजी भी ना होता... तब भी... तुम्हारा राह आसान नहीं होने वाला था...
विश्व - क्यूँ...
डैनी - भैरव सिंह जितने भी आड़े टेढ़े रास्ते अपना कर पैसे कमाए हैं... उनको बराबर ना सही... पर सिस्टम में... रहने वाले... और सिस्टम को चलाने वाले भेड़ियों में बांटा जरूर है... उन भेड़ियों के मुहँ में... खून लग चुका है... तुम उसे बंद करने पर आ गए हो.. इसलिये वे लामबंद हो गए हैं... ताकि उन्हें खून बराबर मिलते रहे...
विश्व - यह लोग ऐसा कैसे कर सकते हैं... इनका ईमान धर्म कुछ नहीं है... समाज के लिए... कोई जिम्मेवारी नहीं बनती इनकी...
डैनी - नहीं... नहीं बनती कोई जिम्मेवारी... यह एक करप्ट नेक्सस है... इसका कोई इलाज नहीं है... यह सिस्टम को रन करने वाले... इसका शील्ड बन कर हिफाजत कर रहे हैं... तुम इस पर डेंट लगाने की कोशिश कर रहे हो...
विश्व - (मुस्कराते हुए) जब पहली बार... मैं राजा को मारने के लिए... महल में घुसा था.. तब.. मुझे उसके पाले हुए कुत्तों ने दबोच कर... जमीन पर मुहँ के गिरा रखा था... तब एक ऊँचाई पर खड़े होकर... भैरव सिंह ने कहा था... के वह जिस ऊँचाई पर खड़ा है... उसे देखने की कोशिश करूँगा... तो मेरी रीढ़ की हड्डी टुट जायेगी... वह उसका विश्वरूप था... (फोटोग्राफ देखते हुए) अब समझ में आ रहा है... मैं उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता...
डैनी - मैं जिस विश्व को जानता हूँ... वह कभी हार नहीं मानता था... तुम तो अभी से मायूस हो गए...
विश्व - अगर लड़ाई मेरी अपनी होती... तो अंगद की तरह डट जाता... पर यह लड़ाई मेरी नहीं... गाँव वालों की है... क्या न्याय हो पाएगा...
डैनी - विश्व... दशकों नहीं सदियों से... दबे कुचले लुटे पीटे लोगों का आक्रोश हो तुम... उनके भीतर दहकते प्रतिशोध का बारूद हो तुम... तुम अपने पर विश्वास मत खो देना... मैं जानता हूँ... मानता भी हूँ... इस लड़ाई को तुम ही जीतोगे...
विश्व - (बेंच से उठ कर सामने रेलिंग पर हाथ रखकर खड़ा हो जाता है) कैसे... कैसे... (डैनी की तरफ मुड़ कर) मैंने रुप फाउंडेशन पर... पीआईएल फाइल की थी... जिस पर नई एसआईटी भी बनी... पर कोई प्रोग्रेस नहीं...
डैनी - तो तुम इसबार... रिट पिटीशन दायर करो... और दोनों केस को क्लब करने की कोशिश करो...
विश्व - उससे क्या होगा... एक प्रमुख गवाह... पता नहीं गायब है... या फिर अंडरग्राउंड है...
डैनी - कौन...
विश्व - पूर्व एसआईटी के प्रमुख... श्रीधर परीड़ा...
डैनी - तुम तैयारी तो करो... हो सकता है... परीड़ा... इसी मौके का इंतजार में हो...
विश्व - मौका... (हँसने लगता है) मैंने भैरव सिंह की प्लान का काउंटर बनाया... तो पता नहीं केके... जो भैरव सिंह से कुछ ही महीने पहले दुश्मनी कर रहा था... कल अदालत में... भैरव सिंह के लिए... अपनी दौलत को ज़मानत देने के लिए पहले से ही तैयार था....
डैनी - ऐसा इसलिए हुआ.... क्यूँकी... कल अदालत में जो भी हुआ... उसके लिए... बल्लभ पहले से ही प्लॉट तैयार कर रखा था...
विश्व - क्या... यहाँ भी बल्लभ...
डैनी इसबार फिर अपनी आस्तीन से लिफाफा निकाल कर कुछ और फोटोस निकाल कर विश्व के हाथ में दे देता है l विश्व देखता है उन फोटोस में बल्लभ, भैरव सिंह और केके दिख रहे थे l भैरव सिंह एक जुडिशल स्टाम्प पेपर में दस्तखत कर केके को दे रहा था l और अंतिम फोटो में केके और भैरव सिंह हाथ मिला रहे थे l
विश्व - यह... यह कब हुआ...
डैनी - परसों... भैरव सिंह जिस जुडिशल कस्टडी में लाया गया था... उसी रात को... बल्लभ केके को लेकर भैरव सिंह से मिलवाने ले गया था... और इसकी अरेंजमेंट... ऑन ऑफिशियली होम मिनिस्टर ने कराया था...
विश्व - (खीज जाता है) अगर सिस्टम और क्रिमिनल के बीच गठजोड़ हो गया है... तो हम क्या कर सकते हैं... और इन फोटोस में साफ दिख रहा है... इनके बीच कोई... डील हुई है...
डैनी - हाँ... कोई डील तो हुई है... पर क्या हुई है... आई एम सॉरी... मैं नहीं जानता....
विश्व वापस आकर बेंच पर बैठ जाता है l डैनी उसके कंधे पर हाथ रख सकता है l थोड़ी देर के बाद
विश्व - मुझसे यह एक गलती कैसे हो गई... मुझे बल्लभ पर नजर बनाए रखना था..
डैनी - तब भी तुम कुछ नहीं कर पाते... हाँ तुम्हारे पास इंफॉर्मेशन तो होता... पर उससे तुम्हें या तुम्हारे केस को कोई फायदा नहीं होता...
विश्व - कुछ समझ में नहीं आ रहा... मैं कैसे इस केस की पैरवी करूँ...
डैनी - वैसे ही... जैसे एक ईमानदार और समर्पित वकील अपनी केस के लिए पैरवी करता है...
विश्व - डैनी भाई... क्या आप मुझे... इस केस में कोई मदत कर सकते हैं...
डैनी - मैं कटक आया ही इसलिए था... पर सच कहूँ तो... राजगड़ या यशपुर में... मैं लाचार हो जाऊँगा... मैं भैरव सिंह के इलाके में... कोई मदत नहीं कर सकता... पर विश्व... यह मत भूलो... वह इलाक़ा तुम्हारा भी है... तुमने... राजा के ही इलाके में... इंस्पेक्टर रोणा को ठिकाने लगाया था...
विश्व - यह आप कैसे जानते हैं...
डैनी - मुझे इस सवाल की उम्मीद नहीं थी...
विश्व - ओह... सॉरी...
डैनी - कोई बात नहीं... हाँ मैं फिजीकली तो कोई मदत कर नहीं पाऊँगा... पर किसी भी तरह की लॉजिस्टिक मदत जब भी चाहोगे... तुम्हारे लिए अवेलेवल करवा दूँगा...
विश्व - थैंक्स...
डैनी - (उठते हुए) अब मुझे जाना होगा...
विश्व - थोड़ी देर रुक जाते.. डैड आते ही होंगे...
डैनी - (मुस्कराते हुए) हाँ आते ही होंगे... पर चिढ़े हुए... गुस्से में...
विश्व - वह क्यूँ...
डैनी - मेरे बंदे उन्हें रोके रखा था... इसलिए... (इतना कह कर वह फोटो वाली लिफाफा विश्व को दे देता है) इसके अंदर मेरा कार्ड भी है... तुम जब चाहे मुझसे कॉन्टैक्ट कर सकते हो...
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दुकान में ग्राहक कम हैं l टीलु एक पेपर हाथ में लेकर गौरी के सामने पढ़ रहा था l गौरी उसकी हरकत से चिढ़ रही थी और मन ही मन टीलु को गरिया रही थी l टीलु भी कुछ ना कुछ ऐसा करता था जिससे गौरी खीज कर दो चार गालियाँ बक देती है l
गौरी - बेशरम... निखाट्टु... नालायक... जब देखो... मुहँ उठा कर चला आता है... पेट भर ठूंसता रहता है... और (टीलु डकार लेता है) अजगर की तरह डकार लेता रहता है...
टीलु - देखा... बिना खाए भी मैं डकार ले सकता हूँ... (फिर डकार लेता है)
गौरी - नाशपीटे... कीड़े पड़े तेरे ऊपर... मुझे चिढ़ाता है...
टीलु - क्यूँ तेरे पास कौनसा काम रहता है... जब देखो मुहँ फुलाए बैठी रहती है... अरे शूकर मना.. मेरी वज़ह से तेरे मकड़ी जाली वाली चेहरे पर... रौनक तो आती है...
गौरी - नामुराद... मेरा चेहरा तुझे मकड़ी की जाली जैसी लगती है...
टीलु - और नहीं तो... जरा गौर से देख... झुर्रियाँ इतनी है कि... मकड़ी भी सोच रहा होगा... कौन जाला बनाए... वह तो मुझे गली देते ही... तेरे चेहरे के पेशियों की कसरत होती है... जिसके वज़ह से... तु बुढ़ीआ से... कभी कभी गुड़िया लगती है...
गौरी - मेरा मज़ाक उड़ा रहा है... देखना तुझे... खुजली वाले कुत्ते गालियों में दौड़ा दौड़ा कर काटेंगे...
टीलु - कुत्ते काटे या ना काटे... इस बात की तुझे बड़ी खुजली है बुढ़ीया...
गौरी - बस बहुत हो गया... अगर फिर कुछ मुहँ से निकाला... तो ऐसी जगह मारूंगी.. के ना तुझसे बैठा जाएगा... ना खड़ा हो पाएगा...
टीलु - अच्छा यह बात है... चल फिर एक एक राउंड हो जाए...
टीलु पेपर रख कर अपनी जगह से उठता है और अपना पिछवाड़ा गौरी को दिखा कर हिलाने लगता है l गौरी अपनी डंडा उठा कर टीलु के पिछवाड़े पर बरसाने लगती है l
टीलु - आह.. हाय हाय... वाह... क्या बात है... और जोर से... आह... (गौरी चिढ़ कर और जोर से मारने लगती है थोड़ी देर के बाद) बस बस... रुक जा बुढ़ीया... थक गई होगी... जम के साँस ले.. तब तक मैं खाना खा लेता हूँ...
गौरी - (अपनी डंडा फेंक कर) जा मुए.. जा मर... अगर फिर भी तेरा भूख ना मिटे... तो सीधे चूल्हे पर जा बैठ...
टीलु - ठीक है... बैठ जाऊँगा... पर भूना हुआ टीलु को तु खाएगी क्या...
इनकी यह नोक झोंक जब से वैदेही देख रही थी वह तब से वह पेट पकड़ कर हँसे जा रही थी l जब हँसते हँसते उसके आँखों में पानी आ गई तब टीलु उसके पास पहुँचता है l वैदेही अपनी हँसी को दबाने की कोशिश करते हुए टीलु पूरी सब्जी थाली में परोस कर दे देती है l टीलु थाली लेकर गौरी के पास बैठ कर मुहँ से चपड़ चपड़ की आवाज़ निकाल कर खाने लगता है l गौरी उसे खा जाने वाली नजर से घूरती है l यह देख कर वैदेही और जोर से हँसने लगती है l तभी एक शख्स दुकान पर आता है l
शख्स - दीदी...
वैदेही - (मुड़कर उसे देखती है) हाँ...
शख्स - आपने शायद पहचाना नहीं... मैं बिल्लू... विशु का दोस्त...
वैदेही - हाँ हाँ... हाँ... पहचाना... बिल्लू... बिल्वधर... कहो क्या हुआ... बड़े सालों बाद आए...
बिल्लू - वह... मेरी बेटी मल्लि...
वैदेही - क्या मल्लिका... तुम्हारी बेटी है...
बिल्लू - हाँ... अपने दोस्तों के साथ.. अक्सर... विशु के वहाँ... या आपके यहाँ आती थी...
वैदेही - हाँ... क्या हुआ उसे... कहाँ है वह...
बिल्लू - वह... बात दरअसल यह है कि... (रुक जाता है)
वैदेही - क्या हुआ उसे...
बिल्लू - पता नहीं...
वैदेही - मतलब...
बिल्लू - (झिझकते हुए) वह... आपको बुला रही है... सिर्फ आपसे बात करना चाहती है...
वैदेही - (कुछ सोचने लगती है, फिर) हाँ चलो... (गौरी से) काकी... मैं मल्लिका के घर जा रही हूँ... दुकान का खयाल रखना...
इतना कह कर वैदेही बिल्लू के साथ चली जाती है l गौरी अपनी जगह से उठती है और दुकान के दरवाजे के पास जाती है l वैदेही और बिल्लू को जाते हुए देखती है l जब दोनों उसकी आँखों से ओझल हो जाते हैं तब वह मुड़ कर टीलु की ओर देखती है l टीलु अपना खाना ख़तम कर हाथ मुहँ धो आता है और गौरी के सामने खड़े होकर बड़े जोर से डकार मारता है l
गौरी - पेट भर गया...
टीलु - क्यूँ नजर नहीं मार पाई क्या...
गौरी - (अपने दोनों हाथों से टीलु को मारने लगती है) कमबख्त... तेरी दीदी को कोई बुला कर कहीं ले गया है... तेरी हलक से खाना कैसे उतरा... नामुराद...
टीलु - (नाखुन से दांत के बीच खाना साफ करते हुए बड़ी ढीठ के साथ मार खा रहा था, जब चिढ़ कर गौरी रुक जाती है) थक गई...
गौरी - मुझसे बात मत कर...
टीलु - ठीक है... मैं सो रहा हूँ... दीदी आए तो जगा देना...
टीलु यह कह कर बेंच पर लंबा हो जाता है l गौरी मन ही मन टीलु को गरियाते हुए अपनी जगह पर बैठ जाती है और बार बार वैदेही के आने की राह देख रही होती है l जब कुछ समय बीत जाता है तब गौरी जाकर बेंच पर सोए टीलु को धक्का देती है l टीलु हड़बड़ा कर उठ जाता है l अपनी चारों और नजर घुमाता है l
टीलु - दीदी कहाँ है..
गौरी - वही तुझसे पूछ रही हूँ... कहाँ है तेरी दीदी... खा खा कर... अजगर की तरह लेटा हुआ है... तेरी दीदी अभी तक नहीं आई... क्यूँ नहीं आई... कोई खबर है तुझे...
टीलु - (घड़ी देखता है) क्या बुढ़ीया... पंद्रह मिनट ही तो हुए हैं...
गौरी - मुझे कुछ नहीं पता... मुझे ले चल... उस मल्लिका के घर...
टीलु - (मुहँ बना कर) ठीक है बुढ़ीया.. चल...
गौरी झट से दुकान बंद कर ताला डालती है l फिर दोनों मल्लिका के घर की ओर जाने लगते है l टीलु के कदम जहां मुश्किल से उठ पाता वहीँ गौरी भागते हुए जाती है l कुछ देर बाद दो गली के बाद एक घर के पास पहुँचते हैं l एक घर के बाहर वैदेही कुछ औरतों के साथ खड़ी कुछ बातेँ कर रही थी और बिल्लू को कुछ हिदायत दे रही थी l यह सब देख कर टीलु अपनी आँखे बड़ी कर मुहँ बना कर गौरी को देखता है l गौरी भी सकपका कर नजरें चुरा लेती है l इन्हें देखने के बाद वैदेही इनके साथ लौटने लगती है l बीच रास्ते में गौरी पूछती है
गौरी - यह बिल्लू को.. तु पहले से ही जानती थी क्या... कभी देखा नहीं उसको...
वैदेही - हाँ... वह विशु के बचपन का दोस्त है... वह... आठ साल के बाद... हमें ढूंढते हुए आया था...
टीलु - क्या... आठ साल बाद... यही तीसरी गली में रहते हुए...
गौरी - वैसे... मल्लिका को हुआ क्या था...
वैदेही - कुछ नहीं काकी... मल्लिका अब बच्ची नहीं रही... सुबह बाथरूम गई थी... जहां वह रजस्वला हो गई... इसलिए उसने अपने बाप के हाथ... मुझे बुलवाया था...
गौरी - क्यूँ... उसकी माँ नहीं थी क्या...
वैदेही - नहीं... आज से आठ साल पहले... उसकी माँ ललिता... उसने आत्महत्या कर ली थी...
गौरी - आत्महत्या... पर क्यूँ...
वैदेही - उसीकी आत्महत्या ने तो विशु को बदल कर रख दिया... आज विशु भैरव सिंह के खिलाफ.. लाली के आत्महत्या के कारण ही तो हो गया था...
टीलु - लाली की आत्महत्या से विश्वा भाई का क्या नाता...
वैदेही बताने लगती है विश्व के सरपंच बनने के बाद कैसे एक दिन बाहर फिल्म चलाया गया था l उसी रात लाली को राजा ने उठा लिया था और उसका बलात्कार किया था l लोक लाज के चलते शर्म के मारे लाली ने आत्महत्या कर दी थी l राजा खुद खड़े हो कर इंस्पेक्टर रोणा से रिपोर्ट लिखवाया था कि बिल्लू ना मर्द था l अपनी शरीर की दाह ना बुझा पाने की वजह से लाली ने आत्महत्या की थी l विडंबना यह थी के वैदेही की लाश के पास बैठ कर चार साल की छोटी बच्ची मल्लिका रो रही थी l रिपोर्ट पर दस्तखत दो लोगों ने किया था l पहला बिल्लू और दूसरा विश्व l यही वह घटना थी जिसने विश्व के भीतर विद्रोह को जन्म दे दिया था और उसका परिणाम में आज उनकी हालत ऐसी है l
टीलु - राजा भैरव सिंह ने.. सच ही तो कहा था... बिल्लू ने अपनी नपुंसकता पर खुद ही दस्तखत कर मोहर लगाई थी... पर जो भी हुआ अच्छा हुआ... उस घटना ने... राजगड़ की धरती पर... एक मर्द को जन्म दिया...
ऐसे बात करते हुए तीनों दुकान पर पहुँच जाते हैं l गौरी से चाबी लेकर टीलु दुकान खोलता है तीनों अंदर आते हैं l वैदेही देखती है गौरी अंदर से डरी हुई लग रही थी l किसी सोच में खोई हुई थी l
वैदेही - क्या हुआ काकी... तुम ऐसे सहम क्यूँ गई... मैंने ऐसा क्या कह दिया...
गौरी - यह ठीक नहीं हुआ बेटी... यह ठीक नहीं हुआ...
वैदेही - क्या ठीक नहीं हुआ...
गौरी - मल्लिका का रजस्वला इस समय होना... ठीक नहीं हुआ...
वैदेही - बारह साल की हो गई है... मैं भी इसी उम्र में रजस्वला हुई थी...
गौरी - तु समझ नहीं रही है... राजा को इसी जैसी लड़की की तलाश है... क्षेत्रपाल जो राक्षसी रश्म करते हैं... यही तो है... अपनी ही बलात्कार की हुई औरत की बेटी के साथ भी बलात्कार करते हैं... तु देखना... जैसे ही राजा को खबर लगेगी... मल्लिका को उठवा लेगा...
यह सुन कर वैदेही भी शुन पड़ जाती है उसका मुहँ खुला रह जाती है l एक अनजानी सी भय उसके चेहरे पर उभरने लगती है l
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गुनगुनाते हुए अपने बाथरुम से केके निकल कर बेडरुम में आता है l उसके बदन पर बाथरोब था l टावल से सिर के बाल पोछते हुए वार्डरोब खोलता है l एक शूट निकाल कर बेसुरे आवाज में गाना गाने लगता है
"आएगी वह आएगी दौड़ी चली आएगी...
सुनके वह मेरी आवाज़ आएगी"
शूट पहनने के बाद जब अपने शूट पर फैगनेंस डाल रहा होता है l उसके कानों में ताली सुनाई देती है l केके उस आवाज के तरफ मुड़ता है l कमरे में ताली बजाते हुए रॉय अंदर आता है l रॉय को अपने कमरे में देख कर केके हैरान हो जाता है l
केके - तुम... यहाँ
रॉय - हाँ मैं... यहाँ..
केके - क्यूँ आए हो यहाँ पर... (चिल्ला कर) तुम्हें अंदर आने किसने दिया...
रॉय - रिलैक्स... मैं यहाँ आया नहीं हूँ... भेजा गया हूँ...
केके - किसने भेजा है तुम्हें... तुम तो सब कुछ छोड़ छाड़ कर जाने वाले थे ना..
रॉय - बताता हूँ... बताता हूँ... इतनी जल्दी भी क्या है...
केके - जल्दी क्या है... एक तो बिना इजाजत के घर में घुस आये हो... बल्कि बेडरुम में घुस आये हो... तुम्हें किसी ने रोका नहीं...
रॉय - नहीं रोका किसीने... क्यूँकी इससे पहले भी... यहाँ आना जाना रहा है मेरा... और तुमने भी तो... मुझे रोकने के लिए किसी से कहा भी नहीं है...
केके - हाँ यह गलती मेरे तरफ से हुई है... अभी सुधार देता हूँ... नाउ गेट ऑउट...
रॉय - ना.. मैं यहाँ गेट ऑउट होने नहीं आया हूँ.. कहा ना... मैं यहाँ आया ही नहीं हूँ.. बल्कि भेजा गया हूँ...
केके - (थोड़ा नरम पड़ते हुए) किसने भेजा है...
रॉय - बताता हूँ... बताता हूँ... पहले मुझे कुछ सवालों का जवाब... तुमसे लेने दो...
केके - हाऊ डैर यु... यह आप से तुम पर कब आ गए...
रॉय - जब तक तुम्हारा खाता था... तुम्हारा ही बजाता था... और तब तुम्हें... आप कहता था... अब जब तुम्हारा नहीं खा रहा... तो तुझे आप क्यों कहूँ बे...
केके - ओ... आ गया अपनी कुतियापा पर... भोषड़ी के चल निकल...
रॉय - अबे सुन बे... साले... तुझे पहले भी बता चुका हूँ... मैं अब जिसका खा रहा हूँ.. उसीका बजा रहा हूँ... उसीने मुझे भेजा है...
केके - किसने भेजा है...
रॉय - बताता हूँ... तुझे तेरी दौलत के गागर से... दो छींटे माँगा था... तुने दी नहीं... पर ऐसा क्या हो गया... अपनी पूरी की पूरी गागर... राजा भैरव सिंह के लिए... अदालत में जमा दे दिया...
केके - तुझसे मतलब... मैं तुझे क्यूँ बताऊँ...
रॉय - हाँ... तेरी दौलत है... तेरी मर्जी है... जब खाने वाला कोई है ही नहीं... तो राजा ही खा जाए... क्या फर्क़ पड़ता है... मैं बस यही सोच रहा था... जिस दौलत के लिए... तु शादी बनाने वाला था... वायग्रा खा कर.. अपना वारिस पैदा करने वाला था... उसी दौलत को... राजा भैरव सिंह के कहने पर... अदालत में जमा कर दिया...
केके - जब तु कह ही रहा है... दौलत मेरी.. मर्जी मेरी... तो भोषड़ी के तेरी सुलग क्यूँ रही है... अब सीधी तरह से बता... तु यहाँ आया किसलिए है... तुझे भेजा किसने है...
रॉय - हाँ बताना तो पड़ेगा... तो सुन... जिस ESS के आने के बाद... मेरी रॉय ग्रुप सिक्युरिटी सर्विस... कुछ ही सेक्टर में लिमिट हो गई थी... आज वही ESS का मैं सीईओ हूँ... (कह कर सोफ़े पर बैठ जाता है)
केके - क्या... तु अब... ESS का सीईओ है...
रॉय - हाँ...
केके - ओ... अब समझा...
रॉय - कुछ नहीं समझे... इसे कहते हैं किस्मत... समझा... किस्मत...
केके - अच्छा... (उसके सामने वाली सोफ़े पर बैठते हुए) यह हुआ कैसे...
रॉय - तुने दुत्कार कर जो टीप.. दारु और चखना खाने के लिए... दिए थे... उसे लेकर मैं.. सिल्वर सिटी बार में उड़ा रहा था... तभी मेरे पास... राजा भैरव सिंह के वकील... बल्लभ प्रधान आया था... मेरे... और तेरे बारे में पूछने लगा... फिर उसने मुझे... ESS के सीईओ बनने का ऑफर दिया... मैंने एक्सेप्ट भी कर लिया...
रॉय - मतलब... जिस ESS ऑफिस में... मक्खी भी नहीं उड़ रहे हैं... उसका जिम्मा तुझे दे दिया गया...
रॉय - क्यूँ तुझे जलन हो रहा है... कोई नहीं... तुझे नौकरी चाहिए तो बोल... पियोन की नौकरी दे सकता हूँ...
केके - औकात में रह कुत्ते... तुझे ESS की हड्डी फेंक कर और क्या काम ले रहे हैं...
रॉय - ESS की हड्डी नहीं... सीईओ की गद्दी... और एक लिस्ट... जिन्हें मुझे ESS के लिए रिक्रूट करना है...
केके - और
रॉय - मैंने प्रधान को बताया... कैसे तुने अपनी मतलब निकाल कर... मुझे दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया... फिर जब उसने फिर से तेरे बारे में पूछा तो मैंने बताया... के तु एकदम से सठीया गया है... तुझे बेटे को खोने का कोई ग़म नहीं है... पर अब कैसे.. फिर से शादी करने के लिए मरा जा रहा है... एक बार दिल को झटका लग चुका है... फिर भी बुढ़ापे में दिल लगाने के लिए मरा जा रहा है...
केके - ह्म्म्म्म फिर...
रॉय - फिर क्या... तुने मुझे किनारा किया... मैं तुझसे बदला लेना चाहता था... और किस्मत ने भी क्या खूब साथ दिया... तेरी दौलत पर... राजा साहब ने अपने लिए जमा ले ली...
केके - ओ... मतलब तु ही वह सुअर है... जिसने मेरे नाम पर गंध फैलाने की कोशिश की... ह्म्म्म्म...
रॉय - हाँ की... तो... और मजे की बात देख... कहीं तु भाग ना जाए... शायद इसलिए... पर कोई ना... जब राजा साहब.. बाहर आ जाएंगे... मैं तुझे अपना ऑफर दोहरा दूँगा... आकर मेरे चैंबर के बाहर पियोन की नौकरी कर लेना..
केके - हा हा हा हा हा...
केके ऐसे हँसने लगता है जैसे रॉय ने कोई जोक मारा हो l हँसते हँसते हुए अपनी जगह से उठता है और वार्डरोब के पास जाता है l वार्डरोब खोल कर कुछ जुडिशल पेपर निकालता है और फिर आकर सोफ़े पर बैठ जाता है l
रॉय - जानता था... जब सच्चाइ मालुम पड़ेगी... तुझ पर पागलपन का दौरा पड़ेगा... पता था..
केके - (हँसते हुए) अब मेरी बारी... हाँ मेरी बारी... यह ले... (कह कर यह नोट की बंडल रॉय की ओर फेंकता है, रॉय नोट की बंडल पकड़ लेता है)
रॉय - यह किसलिए...
केके - क्या कहा था तुने... पिछली बार... दारु के साथ... सिर्फ चखना खाया था... जा... आज किसी मखना के साथ... रात गुलजार कर जा...
रॉय - क्या तु सच में पागल हो गया है...
केके - मेरे बारे में तुने जो भी जानकारी दी... उसे लेकर... प्रधान... मेरे पास आया... और मुझे लेकर राजा साहब के पास लेकर गया... जहां राजा साहब ने... मुझे यह ऑफर की...
इतना कह कर केके रॉय को हाथ में वह जुडिशल पेपर दे देता है l रॉय थोड़ी हैरानगी के साथ पेपर हाथ में लेता है और पढ़ने लगता है l थोड़ी देर बाद उसके माथे पर पसीना उभरने लगता है l वह जो बड़ी ठाठ से सोफ़े पर बैठा हुआ था स्प्रिंग की तरह उछल कर खड़ा हो जाता है l
रॉय - (हकलाते हुए) क... क के के... साहब... माफ़ कर दीजिए...
केके - कुछ देर पहले क्या कह रहा था... मुझे तु पियोन बनाएगा...
रॉय - चमड़े का जुबान है... फिसल गया... दिल पर मत लो साहब...
केके - अब समझा... तु अब मेरे पास... क्या करने आया है...
रॉय - जी जी... अच्छी तरह से... मैं तो आपका गुलाम हूँ... बस हुकुम कीजिए...
केके - बैठो...
रॉय - जी...
केके - बैठ...
रॉय - जी जी.. (बैठ जाता है)
केके - औकात के हिसाब से टीप दिया जाता है... समझा...
रॉय - जी... जी केके साहब...
केके - और क्या बातेँ हुईं... प्रधान के साथ...
रॉय - वह... मुझसे... रंगा का पता पूछ रहे थे... मैंने उन्हें बता भी दिया...
केके - ह्म्म्म्म... गुड... मतलब बहुत जल्द रंगा भी हमारे खेमे में होगा...
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सेनापति का घर
ड्रॉइंग रुम में सेनापति दंपति, सुभाष सतपती, इंस्पेक्टर दास, जोडार, विश्व और उसके तीन दोस्त बैठे हुए हैं l विश्व अपनी कुहनियों के भार घुटनों पर डाल कर दोनों हाथों में अपना चेहरा लेकर आँखे मूँदे बैठा हुआ था l
प्रतिभा - क्या बात है प्रताप... सभी आ गए हैं... या कोई और भी आने वाला है...
विश्व - (अपनी आँखे खोलता है) हाँ माँ... इस वक़्त हमारे महफिल में... एक शख्स की कि कमी है... उसे आ जाने दीजिए...
जोडार - तुम बहुत टेंशन में लग रहे हो... क्या कोई खतरे की बात है...
सतपती - हाँ विश्व... क्या बात है... हमें यहाँ आए पंद्रह मिनट हो चुके हैं...
प्रतिभा - वही तो... इतने लोग हैं यहाँ पर... पर कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ है... और तुम किन्ही विचारों में खोए हुए हो...
विश्व - ठीक है... जब तक मेरा वह आदमी नहीं आ जाता... जिसके मन में... जो भी शंका है... पूछ लीजिए...
मीलु - भाई... जाना कब है... (सभी उसे घूर कर देखने लगते हैं, वह अपना चेहरा सीलु के पीछे छिपाने लगता है)
विश्व - चलिए छोड़िए... बातों का सिलसिला मैं ही शुरु करता हूँ... (सतपती से) सतपती जी... अब आप ही बताइए... रुप फाउंडेशन की तहकीकात की कोई डेवलपमेंट...
सतपती - नहीं... अब तक कुछ भी नहीं...
विश्व - क्यूँ...
सतपती - क्यूँ... क्या मतलब क्यूँ... अदालत की ऑर्डर मिलने के बाद... एक नई एसआईटी बनाई गई...
विश्व - जिसका इनचार्ज आपको बनाया गया... वह भी एसीपी की प्रोमोशन दे कर...
सतपती - तुम कहना क्या चाहते हो...
विश्व - यही की आपने जो बताया है... वह सब पुरानी बासी खबर है... नया कुछ भी नहीं... सरकार ने... एसआईटी बना कर पल्ला झाड़ लिया है... आपकी टीम को... कोई एसओपी नहीं दी गई है... राइट... (सतपती अपना सिर सहमती से हिलाता है)
दास - विश्वा इस बात से तुम क्या समझाना चाहते हो... क्या तुम्हें होम मिनिस्ट्री की कारवाई पर शक़ कर रहे हो...
विश्व - हाँ... शक नहीं... बल्कि मैं यह कह रहा हूँ... के सरकार अब... मेरे हर ऐक्ट पर रोड़े डालने वाली है...
सतपती - तुम इतनी जल्दी निष्कर्ष पर कैसे पहुँच गए... अभी तक तुम्हें जितनी भी... प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से सहायता मिली है... ईफ आई एम नॉट रॉंग... वह सब सरकार ने... तुम्हारे लिए एक्सटेंड किया था...
दास - हाँ इस पर मैं अग्रि करता हूँ... तुमने देखा नहीं... सिर्फ चौबीस घंटे में ही कैसे राजा को होम अरेस्ट किया गया...
प्रतिभा - एक मिनट... अगर प्रताप ने बात छेड़ी है... तो पक्का... बिना सोर्स या सबूत के तो नहीं कह रहा होगा...
प्रतिभा के इस बात का बहुत प्रभाव पड़ता है l सब के सब चुप हो जाते हैं और विश्व की ओर देखने लगते हैं l विश्व अपनी जगह से उठता है, ड्रॉइंग रुम के एक टेबल के पास जाता है और ड्रॉयर खोल कर एक लिफाफा निकलता है l लिफाफे से कुछ फोटोग्राफ्स निकाल कर सबके सामने टी पोय पर रख देता है l सभी एक दो फोटो हाथ में लेकर देखने लगते हैं l
सतपती - इन फोटोस का मतलब...
दास - यह... भैरव सिंह का लीगल एडवाइजर बल्लभ प्रधान है ना...
सतपती - (फोटोस को गौर से देखता है) यह.... होम मिनिस्टर जी का ऑफिस है... (एक पॉज लेने के बाद) फिर भी... इन फोटोस का मतलब...
विश्व - इन फोटोस में ही... छुपा है... क्यूँ अदालत में... भैरव सिंह ने वह चाल चला था... स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट की फॉर्मेशन और ट्रांसफर होने वाली है... जिसकी क्लियरेंस... होम मिनिस्ट्री से अगली सुनवाई में मिलने वाली है...
तापस - एक मिनट... तुम्हें यह फोटोग्राफ्स कैसे मिले...
विश्व - इसे... एक मेरे शुभचिंतक ने उपलब्ध करवाये हैं...
तापस - ऐसा कौनसा शुभचिंतक है तुम्हारा...
विश्व - वही... जिसके बंदों ने... कल... जॉगिंग में आपको रोके रखा था...
तापस - (बिदक कर) वह लोग... कमबख्त जाहिल लोग...
फिर अचानक चौंकता है विश्व की और देख कर भौंहे सिकुड़ कर इशारे से सवाल पूछता है “क्या वही है " विश्व भी जबड़े भिंच कर सिर हल्का सा हिला कर कहता है " हाँ वही है "
सतपती - इससे... रुप फाउंडेशन की केस का क्या संबंध है...
प्रतिभा - ओ कॉम ऑन सतपती... तुम अपनी पोस्ट और पोजिशन की डिग्निटी मेंटन करो... प्रताप के इतना खुलासे के बाद... यह पूछना.. के रुप फाउंडेशन से क्या संबंध है... (सतपती अपना सिर झुका लेता है)
दास - (तापस से) आपने सही कहा था सर... भैरव सिंह ने... शतरंज की सोलह घर की चाल चल दी...
प्रतिभा - क्या... (तापस से) इस बात का आपको पहले से अंदेशा था... और यह सोलह घर की चाल का मतलब...
विश्व - माँ... जब ओपोनेंट मजबूत हो... और अपनी पोजीशन खराब हो... तो शतरंज में एक देशी चाल है... जिससे मैच ड्रॉ कराया जाता है...
दास - इसका मतलब यह हुआ... की हम दोनों तरफ़ से पिसेंगे...
सीलु - यह तो बहुत बुरा हुआ... पीसने की लिस्ट में... अब दास बाबु और पत्री बाबु भी आ गए...
सतपती - इतनी जल्दी कुछ नहीं होता... कानून अंधा जरूर होता है... पर कमजोर नहीं... विश्वा... तुम्हें अगर इतना आभास हो गया था... तो काउंटर में... तुमने तो कुछ किया होगा...
विश्वा - हाँ... मैंने एक रिट पिटीशन फाइल की है... इमर्जेंसी के बेसिस पर... उम्मीद है... सातवें दिन... उसकी भी हियरिंग होगी...
तभी कलिंग बेल बजती है l सीलु जाकर दरवाजा खोलता है l दरवाजे पर लेनिन खड़ा था l सीलु के साथ लेनिन अंदर आता है l
प्रतिभा - यह... यह यहाँ क्यूँ आया है... (विश्व से) क्या यही तुम्हारा वह आदमी है...
विश्व - हाँ माँ यही है... (लेनिन से) कोई खबर लाए हो...
लेनिन - हाँ... दो दिन पहले... राजा का वकील.. बड़बिल आया था... रंगा का खोज खबर ले रहा था... फिर रंगा को लेकर... यहाँ आ गया है... मैं उन्हीं लोगों के पीछे पीछे आया हूँ...
विश्व - क्या उन्हें तुम पर किसी तरह का कोई शक हुआ है...
लेनिन - नहीं... सब क्लीन है...
प्रतिभा - तुमने बताया नहीं.. यह यहाँ किस लिए आया है...
विश्व - माँ तुम और डैड... जब तक यह केस ख़तम नहीं हो जाता... तब तक... लेनिन के साथ... लेनिन के पास रुकोगे... दुनिया जहां से बेख़बर...
जोडार - यह क्या कह रहे हो विश्वा... क्या तुम्हें मुझ पर... या मेरे सेक्यूरिटी पर भरोसा नहीं है...
विश्व - ऐसी बात नहीं है जोडार साहब... मैंने कहीं पर भी... आप पर भरोसा खोया नहीं है... पर भैरव सिंह... अब जो भी करने जा रहा है... उसका हर एक कदम... हर एक प्रयास... मेरे खिलाफ होगा...
सतपती - तुम बेकार में... उसे ओवर हाइफ कर रहे हो... ऐसा कुछ नहीं होगा...
विश्व - नहीं सतपती जी... भैरव सिंह को अपनी गलती का एहसास हो गया है... मुझे अंडर एस्टीमेट कर के... मैंने ही उसके मूँछों पर... बेइज्जती का पंजा मारा है... अब वह अपनी हार गलती को सुधारना चाहता है... इसीलिए तो... जो भी मेरे खिलाफ है... उसे अपनी खेमें में सामिल कर रहा है...
जोडार - फिर भी... वह यहाँ क्या कर पाएगा... अब तो उसका बेटा उसके साथ नहीं हैं...
विश्व - इसीलिए तो... वह अब सबकुछ कर पाएगा...
प्रतिभा - मैं कहीं नहीं जाऊँगी...
विश्व - माँ प्लीज... तुम और डैड अगर लेनिन के पास रहोगे... मैं निश्चिंत हो कर... भैरव सिंह का मुकाबला कर सकता हूँ...
प्रतिभा - नहीं नहीं... हरगिज नहीं...
तापस - भाग्यवान... प्रताप ठीक कह रहा है... यह लड़ाई उसकी है.. और हमें उसका साथ देना चाहिए...
प्रतिभा - आप भी... आप इस तरह बुजदिली क्यूँ दिखा रहे हैं... हम मुकाबला करेंगे... अगर आपको कहीं जाना है... तो जाइए... मैं कहीं भी नहीं जाने वाली...
तापस - (चिल्ला कर) भाग्यवान... हमें... इस लड़ाई में... प्रताप की ताकत बनना है... उसकी कमजोरी नहीं.. तुम भी जानती हो... हम राजगड़ नहीं जा सकते... प्रताप का ध्यान और लड़ाई दोनों... राजगड़ रहेगा... तो वह कुछ कर पाएगा... अगर हम यहाँ रहे... तो लड़ाई का दूसरा छोर यहीं पर खुल जाएगा... जरा समझो...
प्रतिभा गुस्से से तमतमाते हुए अंदर चली जाती है l विश्व बड़ी बेबसी के साथ तापस की ओर देखता है और इशारे से प्रतिभा को समझाने को कहता है l तापस भी इशारे से दिलासा देते हुए अंदर चला जाता है l
दास - एक बात समझ में नहीं आई... केके कल तक चेट्टी के खेमे में रह कर भैरव सिंह से दुश्मनी कर रहा था... फिर अचानक उसके खेमें में पहुँचा कब... क्या भैरव सिंह ने उसे माफ़ कर दिया...
विश्व - यह रही आपका जवाब... (कह कर जुडिशल कस्टडी में हुई मुलाकात की फोटोस टेबल पर रखता है)
विश्व - (सतपती से) क्या अब भी आपको शक है... इस पोलिटिकल और क्रिमिनल एलायंस पर... गौर से देख लीजिए... जुडिशल कस्टडी में... इनका भरत मिलाप... यह किसकी सहयता से संभव हो सकता है... आप खुद ही तय कर लीजिए...
सतपती - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म... इसका मतलब... कुछ बड़ा होने वाला है...
विश्व - हाँ... वह अब हर उस शख्स से बदला लेगा... जो उसके बैड बुक में लिस्टेड हैं... अपनी खोई हुई रुतबा और प्रतिष्ठा को दोबारा हासिल करने के लिए... अपने पुरखों की वही दहशत को दोहराएगा... और इसके लिए... वह सरकार और सरकारी मदत लेगा...
थोड़ी देर बाद प्रतिभा और तापस दोनों बाहर आते हैं l सबकी नजरें उन दोनों की तरफ चली जाती है l प्रतिभा के आँखे भीगी हुई थीं और वह आगे थी पीछे तापस था वह विश्व को अंगूठा दिखा कर इशारे से कहता है "काम हो गया" l विश्व खुश हो कर प्रतिभा के गले लग जाता है l
प्रतिभा - बस बस... मक्खन मारने की जरूरत नहीं है... मैंने तेरी बात मान कर... तेरे इस लेनिन के साथ जा रही हूँ... पर तु भी मुझसे वादा कर... जितना जल्दी हो सके... इस झंझट को ख़त्म कर... मेरी बहु के साथ आएगा...
विश्व - वादा... पहले भी जो वादा किया था... उसे बरकरार रखता हूँ... मैं किसी कानून का उलंघन नहीं करूंगा... और बहुत जल्द तुम्हारी बहु के साथ... लौटुंगा... हमेशा के लिए...
प्रतिभा - (अलग हो कर आँसू पोछते हुए) ठीक है... मैं और तेरे डैड... चले जाएंगे...
विश्व - चले जाएंगे नहीं... जितनी जल्दी हो सके... उतनी ही जल्दी... जाओ अपना सामान बाँध लो...
तापस - अरे बर्खुर्दार... तुम्हारी माँ सामान ही तो बँधने अंदर गई थी... और सामान कब की बँध भी चुकी है...
विश्व - क्या.. सच...
प्रतिभा - (तापस से) हो गया...
तापस मुहँ बना कर चुप हो जाता है l सभी तापस की हालत देख कर हँस देते हैं l
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सातवें दिन
अदालत के बाहर न्यूज लाइव प्रसारण में सुप्रिया अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर रही थी l
ओड़िशा में जिस केस ने तहलका मचा रखा है उस पर कारवाई की अगली पड़ाव जानने के लिए हर कोई बेचैन थे l पहला सेशन खत्म हो चुका है l पहली सेशन में सबसे पहले जानेमाने कंस्ट्रक्शन किंग कमल कांत ने छह सौ करोड़ रुपए की जमा रसीद अदालत में पेश की l इसका अर्थ यह हुआ प्रतिवादी वकील विश्व प्रताप महापात्र ने स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट के एवज में जो मांग रखी थी वह पूरा हो गया था l उसके बाद ज़ज साहब ने सालिसिटर जेनरल के द्वारा दी हुई दलील पर गृह मंत्रालय को तलब किया, और सूत्र बताते हैं गृह मंत्रालय अपनी रिपोर्ट दूसरे सेशन में देने के लिए समय माँगा था l अब चूँकि दूसरा सेशन में कोर्ट की कारवाई बस थोड़ी देर में शुरु होने वाली है तब तक हम आपसे विराम लेते हैं
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अदालत के अंदर तीनों ज़ज अपनी जगह पर आकर खड़े होते हैं l सारे लोग दीर्घा में खड़े थे, जजों के बैठने के बाद लोग भी अपनी अपनी जगह पर बैठ जाते हैं l आज अदालत खचाखच भरी हुई है l ज़ज गैवेल उठा कर तीन बार टेबल पर पटक कर "ऑर्डर ऑर्डर" कहते हैं l
ज़ज - आज की कारवाई शुरु की जाए...
तब रीडर उठ कर एक बंद लिफाफा ज़ज के हाथ में देता है l ज़ज लिफाफे में काग़ज़ निकाल कर पढ़ते हैं और फिर
ज़ज - विश्व प्रताप... जैसे कि आपने मांग रखी थी... राजा साहब के तरफ से... छह सौ करोड़ जमा कर दी गयी है... सॉलिसिटर जेनरल ने जो प्रस्ताव दिया था स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट के लिए.... उसे गृह मंत्रालय ने स्वीकर कर लिया है... आप चाहें तो उसकी कॉपी देख सकते हैं...
ज़ज रीडर को रिपोर्ट विश्व को देखने के लिए बढ़ा देता है l विश्व रिपोर्ट देख कर रीडर को लौटा देता है l तभी एक जुडिशल डेसपैच से एक हरे रंग की लिफाफा आता है l रीडर उसे लेकर ज़ज को दे देता है l ज़ज उसके भीतर से काग़ज़ निकाल कर पढ़ने के बाद
ज़ज - मिस्टर विश्व प्रताप...
विश्व - आपने क्या कोई रिट पिटीशन फाइल की थी...
विश्व - जी माय लॉर्ड...
ज़ज - ठीक है... (भैरव सिंह से) राजा भैरव सिंह... आपके जानकारी के लिए... अदालत आप को संज्ञान देती है... रुप फाउंडेशन केस की... समानांतर तहकीकात और अदालती सुनवाई के लिए... विश्व प्रताप ने... जो रिट पिटीशन दायर किया था... अदालत के साथ साथ... गृह मंत्रालय ने उसकी इजाजत दे दी है... इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है...
भैरव सिंह - ज़ज साहब... हमें इस रिट पिटीशन के बारे में संज्ञान है... अच्छा है... सभी केस का निपटारा एक साथ हो जाएगा... उस सुनवाई के लिए... कोर्ट जो भी उचित समझे... हमें स्वीकार होगा...
ज़ज - ठीक है... तो अदालत... राजगड़ मल्टिपर्पोज कोऑपरेटिव सोसायटी के लिए... राजा भैरव सिंह के द्वारा प्रस्तावित स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट को मंजूरी देती है... चूंकि इस पर एक्जिक्युटीव मजिस्ट्रेट श्री नरोत्तम पत्री... लगभग सभी की बयान दर्ज कर रिपोर्ट दाखिल कर चुके हैं... इसलिए इस केस की सुनवाई के लिए... अदालत तीस दिन की सीमा तय करती है... और रुप फाउंडेशन पर बनी एसआईटी को आदेश देती है... कोऑपरेटिव सोसाईटी की केस की छानबीन इसी दौरान की जाए... और जैसे ही कोऑपरेटिव सोसाईटी की सुनवाई ख़तम हो जाए... उसी फास्ट ट्रैक कोर्ट में... रुप फाउंडेशन की केस पर भी सुनवाई पूरी की जाए... उसके लिए... अदालत अतिरिक्त दस दिन की सीमा निर्धारित कर रही है... (कह कर ज़ज अपनी रेकार्ड पर आदेश लिख रहा था, अदालत की दीर्घा में बैठे लोग आपस में खुसुर-पुसुर करने लगते हैं l रिपोर्ट लिखने के बाद) ऑर्डर ऑर्डर.... (लोग चुप हो जाते हैं, ज़ज विश्व से पूछता है) विश्व प्रताप... आप अगर स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट को लेकर कुछ और प्रस्ताव देना चाहें तो दे सकते हैं...
विश्व - थैंक्यू माय लॉर्ड... अब तक अदालत ने... न्याय के लिए जो भी मार्ग दर्शन दिया है... मैं उसके लिए आभारी हूँ... पर मेरी बिनती है कि... पहले दस दिन... यशपुर में सुनवाई की जाए... फिर अगले दस दिन की सुनवाई... सोनपुर में की जाए... और अंतिम दस दिन देवगड़ में की जाए...
ज़ज - और... रुप फाउंडेशन की सुनवाई... उसके बारे में आपकी कोई प्रस्ताव...
विश्व - जी... उस केस की सुनवाई... राजगड़ में ही की जाए
ज़ज - (भैरव सिंह से) राजा साहब... क्या आपको को... मंजूर है...
भैरव सिंह - जी ज़ज साहब... हमें मंजूर है...
कुछ देर तीनों ज़ज आपस में बात करते हैं l उसके बाद प्रमुख ज़ज अपनी रेकार्ड में कुछ लिखते हैं फिर गैवेल को टेबल पर पटक कर ऑर्डर ऑर्डर कहते हैं l
ज़ज - तो दोनों पक्षों की मंजूरी के बाद... यह अदालत स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट की गठन की मंजूरी देती है.... अदालत एक तीन जजों की बेंच का गठन कर रही है... यह स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट... आज से ठीक दस दिनों बार कार्यकारी होगा.. जैसे कि प्रतिवादी वकील ने प्रस्ताव दिया है... उसको अदालत मंजुर करते हुए... पहले दस दिन... यशपुर में... दूसरे दस दिन... सोनपुर में... और तीसरे दस दिन देवगड़ में... सुनवाई की जाएगी... और अंतिम दस दिन... राजगड़ में... रुप फाउंडेशन केस पर सुनवाई के लिए... बशर्ते एसआईटी द्वारा... तहकीकात पूरा की गया हो...
Ab sare Bure log wapas ek sath aa rahe h
Vishwa ki Ladai muskil ho rahi h
Par ab guru daini wapas aa gaye h
Inko bhi apna badla pura karna h
Ab bharav Singh bujhte diye ki tarah aakhari lo antim bar thda tez hogi
Bahut hi accha update diya nag bhai
Ab hame Sunday ka intzar h
Nag bhai jaldi jaldi update dekar 7-8 update m story khatam karo
Is kahai ko ek Jagah likhkar isko book ke Roop me publish karwao