भाई - यह बहुत ही उम्दा अपडेट था।
औरों का नहीं पता, लेकिन मुझे इस कहानी के हालिया अपडेट्स में यह अपडेट सबसे बढ़िया और बेहतरीन लगा।
अब वाक़ई सच्चाईयाँ बदल गईं हैं - पहले जब रूप भैरव सिंह की लड़की थी, तब तक उसका एक अलग स्टेटस था... लेकिन अब जब वो विश्व की पत्नी बन गई है, तब वो भी एक तरह से भैरव की शत्रु बन गई है। लिहाज़ा, उस पर भी ख़तरा मंडरा रहा है। जिस तरह से रूप ने नागेंद्र को अपनी शादी की कहानी सुनाई, वो पढ़ कर अच्छा भी लगा, हँसी भी आई, और तरस भी आया ऐसे लोगों पर जो अपने परिवार वालों की ख़ुशी के ऊपर अपनी ख़ुशी रखते हैं (मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूँ)!
वैदेही के लिए बाकी लोगों की चिंता वाज़िब है। इस कहानी की महिला पात्र ख़तरे को सही नहीं आँक पातीं। सभी का यही हाल है - प्रतिभा जी, वैदेही, रूप, और उनके पहले अनु (उसको डर दूसरी बात का था - अपनी हानि का नहीं)! दास की बात सही है - ईमानदार शत्रु का सामना करना अलग बात है, लेकिन एक काईयाँ मक्कार शत्रु से दो - चार होना अलग!
सत्तू के बाद एक सेबती ही बची हुई है, मेरे संज्ञान में, जो राजमहल के अंदर रह कर विश्व की मित्र है। मतलब अब भैरव सिंह क्या करेगा, विश्व इसका केवल अनुमान ही लगा सकता है। जो एक बहुत अच्छी स्थिति नहीं है। हाँ, लेकिन अदालती कार्यवाही के चलते उसको कुछ न्यायिक सुरक्षा तो रहेगी। उधर दास बाबू भैरव सिंह के सामने बहुत ही खुल कर आ गए हैं - कहीं अगला वार उन पर ही न हो!
कुछ बातों का अफ़सोस रहा -
(१) सेनापति दंपत्ति अपने पुत्र के ब्याह के अवसर पर उसके साथ न रह पाए।
(२) विश्व रूप का ब्याह वैसा नहीं हुआ, जैसा हमको उम्मीद थी।
(३) इतना कुछ हो जाने पर भी गाँव वालों की तरफ़ से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है कि उनके अंदर से भैरव सिंह का डर कुछ भी कम हुआ है।
बहुत ही बढ़िया लिखा है भाई! कहानी जब अंत की तरफ़ बढ़ती है, तब ऊब होना अवश्यम्भावी है।
लेकिन आप अपना समय ले कर लिखें। बहुत ही अच्छी कहानी है। अगर आप इसका उपन्यास रूपांतर करेंगे, तो बड़ा मज़ा आएगा।
इस मामले में मैं आपकी मदद अवश्य करूँगा (अगर आप चाहेंगे)!
मिलते हैं जल्दी ही!