वगैर विभीषण के लंका नही ढहता । जबकि यहां तो कई कई विभीषण थे । बल्कि यूं कहें नागेंद्र को छोड़कर परिवार के सभी सदस्य विभीषण थे ।
हर रावण के यहाँ विभीषण होता है या होते हैं l भैरव सिंह यहाँ कैसे अलग हो सकता है
लेकिन मै फिलहाल चर्चा परिवार के विभीषण की नही बल्कि परिवार के एक नौकर की करना चाहता हूं । मै बात सतू की करना चाहता हूं । उस सतू की जो प्रेम का पुजारी था । उस सतू की जिसने अपनी माशूका के तलाश की एवज मे क्षेत्रपालों की गुलामी स्वीकार कर ली ।
वह माशूका जो अपने मां-बाप का श्रवण कुमार थी । वह माशूका जिसे क्षेत्रपालों ने परम्परा के नाम पर उसकी इज्ज़त तार तार कर दी थी । उस माशूका की जिसे विक्रम के बिस्तर की शोभा बनने के लिए मजबूर किया गया । वह माशूका जो बेसहारा हो गई थी । वह माशूका जिसने आत्महत्या कर ली थी ।
जैसी मातृ भक्ति और पितृ भक्ति दिलीप कर की छोटी बेटी ने दिखाया वह कल्पना से परे था । उस दिवंगत देवी को मेरा सत सत नमन ।
ज़रूरी नहीं कि पिता बुरा हो तो संतान भी बुरे हों l दिलीप कर भैरव सिंह की संगत और छत्र छाया में अनगिनत कुकर्म किए l अंत काल में उसे अपना कर्म फल मिला भी बेटा बहु और बड़ी बेटी उसे छोड़ कर चले गए l एक छोटी बेटी थी जो अपने पिता के लिए क्षेत्रपाल की बलि चढ़ गई l पर अपनी बलिदान से दिलीप कर से वकील जयंत बाबु की हत्या का राज फास कर वैदेही से माफी मांगी थी l बलात्कार के बाद भी लड़ने की हिम्मत और हौसला वैदेही की रही l पर वही हिम्मत दिलीप कर की बेटी ना कर सकी l
और मै नमन करता हूं सतू के अथाह प्रेम की जिसने इस प्रेम के कारण क्या क्या नही सहा होगा , क्या क्या नही भोगा होगा !
काश उस देवी ने अपनी जान नही दी हुई होती । उसका शरीर मैला हुआ था पर आत्मा तो गंगा की तरह पवित्र ही थी ।
गंगा अपने अंदर न जाने कितनी गंदगी समा लेती है लेकिन फिर भी वह धरती की सबसे पवित्र नदी मानी जाती है ।
यही सोच हम औरतों के मामले मे क्यों नही रखते हैं ? अगर उनके इच्छा के विपरीत उनका यौन शोषण किया गया हो तब इसमे उनकी क्या गलती ! उनका क्या दोष ! उनका क्या अपराध ! उनकी चादर मात्र ही तो मैली हुई है पर उनका दिल तो मैला नही हुआ है न !
सत्तू का चरित्र निःसंदेह उच्च स्तर का है l जो पहले अपनी प्रेमिका की खोज में बड़ा जतन कर भीमा के गिरोह में शामिल हुआ पर अपनी प्रेमिका को प्राप्त ना कर सका l ऐसे चाहने वाले भी हर प्रेमिका के भाग्य में नहीं होते l अपना प्यार ना हासिल कर पाया पर अपनी शत्रु की बेटी की प्यार को हारने नहीं दिया l इस में प्रतिशोध नहीं है l अपितु उसके व्यक्तित्व का एक अलग पहचान है l निसंदेह बहुत बड़ा त्याग भी है l
उस लड़की के लिए सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि सारे क्षेत्रपालों से माफी मंगवाई जाए । और साथ मे इस देवी की एक भव्य मंदिर भी बनवाई जाए ।
हाँ आपकी बातों में दम तो है l पर इतिहास में गर्भ में ऐसे चरित्र समाने नहीं आ पाते l वैदेही जैसी चरित्र जिस तरह से अपनी छाप छोड़तीं हैं l
इस अपडेट का दूसरा प्रमुख पात्र इंस्पेक्टर दास साहब थे । जिस तरह से हाॅल के कुछ सालों मे पुलिस की छबि बनी हुई है उसमे इंस्पेक्टर दास एक आशा की किरण बन कर उभरे है । अगर पुलिस रिश्वत से मुंह मोड़ ले , ड्युटी ज्वाइन करते हुए समय के शपथ को अपने गांठ मे बांध ले , फर्ज और कानून का पालन करे तब दुनिया से अपराध का नामोनिशान तक मिट जाए ।
दो चरित्र एक तरफ अनिकेत रोणा दूसरी तरफ़ दाशरथी दास l दोनों की सौबत और संगत अलग अलग थे l जहां अनिकेत रोणा भैरव सिंह के छत्र छाया में निरंकुश हो गया l भाग्य ने उसे उसी भैरव सिंह के हाथों मरवा दिया l वहीँ दाशरथी दास जैल में नौकरी के दौरान तापस सेनापति के दिग्दर्शन में रहा l दिल से अच्छा था इसलिए जैल में ही विश्व से दोस्ती भी हो गया था l यहाँ तक आपातकाल में विश्व से मदत लिया करता था l यह दोस्ती भी है और सम्मान भी l
पुलिस आफिसर के पावर और उसकी क्षमता पर आधारित एक उपन्यास आप पढ़ सकते हैं - वेद प्रकाश शर्मा साहब का उपन्यास " वर्दी वाला गुंडा " । इसी विषय पर आधारित एक फिल्म भी आप देख सकते हैं - अजय देवगन की फिल्म " सिंघम " ।
इंस्पेक्टर दास का कैरेक्टर बहुत ही बेहतरीन था ।
पुलिस ऑफिसर भी अच्छे और ईमानदार होते हैं l इसमें कोई संदेह नहीं है l मेरे लिए पुलिस ऑफिसर हमेशा उनकी वर्दी में सुपर हीरो ही लगते हैं l जिस समाज में पुलिस अत्यधिक भ्रष्ट या लाचार हो l वही समाज को सुपर हीरो की प्रतीक्षा रहती है l भारत में पुलिस ऑफिसरों पर अनगिनत फ़िल्में बनी हुई है l रही अजय देवगन की सिंघम फिल्म तो मैंने देखा नहीं है कारण मैंने तेलुगु डब्ड तमिल फिल्म सूर्या की सिंघम देखा था l उसके तीनों सीरीज मैंने देखा है l उससे बहुत पूर्व शायद 1996 में मैंने तेलुगु में साई कुमार की पोलिस स्टोरी देखा था l वह फ़िल्में बहुत जबरदस्त थीं l
इस अपडेट का प्रमुख रहस्योद्घाटन रूप नंदिनी और विश्व का विवाह था । वास्तव मे हमने यह कल्पना नही किया था । मै उनके विवाह के सीन्स की कल्पना कर रहा हूं और खुब रोमांचित भी हो रहा हूं । क्या ही बेवकूफ बनाया इन्होने तथाकथित होशियार भैरव सिंह को !
भैरव सिंह के सामने ही रूप और विश्व की विधिवत शादी । वाह क्या ही कहने !
हाँ मैं कहानी में इसे और भी रोमांचक बना कर प्रस्तुत कर सकता था l पर इससे कहानी की लंबाई और भी खिंच जाती l यह शादी जब भैरव सिंह के सामने खुलेगा तब भैरव सिंह एक दम से पागल हो जाएगा l यह राज भैरव सिंह के सामने खुद रुप ही खोलेगी l
लेकिन मेरा विचार है कि रूप और विश्व की शादी एक बार फिर से हो जब सबकुछ वाह वाह हो जाए । बैंड के साथ , बाजा के साथ , बारात के साथ ।
इनकी शादी से बहुत लोगों की अपेक्षाएं जुड़ी हुई हैं , आशाएं जुड़ी हुई हैं , सपने जुड़े हुए हैं । खासकर तापस साहब और प्रतिभा मैडम की । इनके आशिर्वाद के वगैर यह शादी कभी भी मुकम्मल नही हो सकती ।
मेरी भी इच्छा यही है
क्यूँकी सबसे अहं इस शादी में सेनापति दंपति का ना होना l तो कुछ करते हैं l
एक बार फिर आपने हमारा दिल मोह लिया बुज्जी भाई । हमेशा की तरह जगमग जगमग अपडेट ।
धन्यवाद
SANJU ( V. R. ) भाई सच कहूँ तो मुझे कहानी में हमेशा से आपकी,
avsji भाई की और लियोन भाई और उन सभी मित्रों की समीक्षा और विश्लेषण का प्रतीक्षा रहती है ताकि कहानी को अगला मोड़ व अंत प्रदान कर सकूं l
मैंने कहानी को अंतिम मोड़ पर पहुँचा दिया है और आशा है बहुत जल्द एक बेहतरीन अंत प्रदान कर पाऊँगा l
तह दिल से शुक्रिया आभार