कारण चाहे कुछ भी हो, इतना तो स्पष्ट है कि भैरव सिंह की समस्या का निस्तारण अदालत में होता हुआ नहीं दिख रहा है। इतने जूते घिसने के बाद भी विश्व एंड पार्टी को केवल तारीख़ें ही हाथ लग रही हैं। न्याय मिलना तो बहुत दूर की बात है। सुप्रिया का कहना सही है - लगता तो नहीं कि जज ने डोसियर का पहला पन्ना भी देखा हो इतने दिनों में।
नागेंद्र की मौत के बाद जिस तरह से गाँव वालों ने उसकी अंत्येष्टि में शामिल होने से मना कर दिया, उससे यह भी जाहिर है कि वो सभी भैरव के कोप का भाजन बनने वाले हैं। इंस्पेक्टर दास को उस बात की एक झलक मिल भी गई है।
अब तो यह लग रहा है कि जैसे सुनवाई होते होते, किसी रोज़ गाँव के लोग ही उसको अदालत से खींच निकालेंगे और उसको पीट पीट कर अपने हिस्से का (बदला) न्याय कर लेंगे। जब कानून और न्याय व्यवस्था पग पग पर आम आदमी का साथ छोड़ देती है, तो बदला ही न्याय का रूप ले लेता है।
देखते हैं क्या होता है!
बहुत ही बढ़िया अपडेट भाई मेरे। आशा है घर में सभी सकुशल हैं? बिटिया कैसी है अब?