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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

Mr. X
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Kala Nag

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👉बीसवां अपडेट
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एक बड़ा सा गल्फ कोर्ट है, बहुत बड़ा तो नहीं है, पर छोटा भी नहीं है l हरे रंग के मैदान को हरे रंग के नेट से चारो ओर से घेर रखा गया है l वहीँ मैदान के एक कोने में एक बड़ा सा छाता गड़ा हुआ है l उस छाते के साये के नीचे भैरव सिंह एक सिंहासन नुमा कुर्सी पर दोनों हाथों को फैला कर और बाएं पैर पर पैर रख कर बैठा हुआ है l उसके पास भीमा और भीमा के सारे साथी भैरव सिंह के आसपास खड़े हुए हैं l
तब एक लक्जरी कार आकर मैदान के बाहर रुकती है l एक आदमी उस कार में से उतरता है और सीधे भैरव सिंह के पास जा कर पहुंचता है l
उसे देखते ही भैरव सिंह अपना घड़ी देखता है और मुस्करा देता है l
भैरव - आओ ... तहसीलदार ... आओ... वक्त के बड़े पाबंद हो... बिल्कुल घड़ी के सुई की साथ चलते हो....
तहसीलदार - जी राजा साहब.... मैं हमेशा वक्त के साथ चलता हूँ.... और मैं यह भी जनता हूँ... वक्त को आप अपने साथ लिए चलते हैं.... या यूँ कहूँ... वक्त आपके साथ चलता है....
भैरव - बहुत अच्छे... तुम पूरी खबर रखे हुए हो....
तहसीलदार - हाँ... यह हमारे प्रोफेशनल रिक्वेर्मेंट है.... वाकई... यशपुर में तो जैसे व्यक्त रुक गया है.... कछुए ली रफ्तार से रेंग रहा है...
भैरव - ह्म्म्म्म....
तहसीलदार - जबकि... वक्त के साथ दुनिया.... कहाँ से कहाँ पहुंच गया है....
भैरव - तुम्हारा वक्त क्या कह रहा है.... मिस्टर. तहसीलदार...

तहसीलदार - आप तो सबकी खबर रखते हैं.... बिना आपकी मर्जी के... यशपुर और राजगड़ में किसी भी सरकारी अधिकारी की पोस्टिंग हो ही नहीं सकती.... और राजा साहब मेरा वक्त कह रहा है..... मुझे बहुत पैसा कमा लेना चाहिए....
भैरव - हा हा हा हा... तुम बहुत ही शार्प हो... चलो एक एक स्ट्रोक हो जाए.... अपना क्लब चुन लो.... (कह कर भैरव एक बैग के तरफ इशारा करता है) भीमा...
भीमा - हुकुम....
भैरव - देखो तहसीलदार को क्या जरूरत पड़ेगी...
भीमा - जी हुकुम....
भीमा बॉल को सेट कर देता है, तहसीलदार अपना स्टैंड सही करता है और ऐम बना कर स्ट्रोक मारता है l भैरव सिंह ताली मारते हुए
- वाह... बहुत खूब.... बहुत अच्छे...
फिर भैरव एक क्लब लेता है और वह भी अपना स्ट्रोक खेलता है l
कलेक्टर - वाव... राजा साहब... माइंड ब्लोइंग....
भैरव - तुम भी कुछ कम नहीं हो....
तहसीलदार - नॉट गुड एज यु.... राजा साहब...

ज़वाब में भैरव सिंह मुस्करा देता है l
भैरव - (अपना हाथ मिलाने को बढ़ाते हुए) माय... कंप्लीमेंट...

तहसीलदार - ना राजा साहब... ना... मुझे अपनी हद व औकात की पहचान है.... मुझे आपके छत्रछाया में रह कर काम करना है... आपके हाथ के नीचे.... और आपसे हाथ मिलाने के लिए... या तो मुझे आपका दोस्त होना चाहिए.... या फिर आपके बराबर.... और यह दोनों.... इस जनम में तो होने से रहे.....
भैरव सिंह, के चेहरे पर मुस्कान गहरी हो गई l उसने अपना गोल्फ क्लब बैग में रख दिया और कलेक्टर के तरफ मुड़ कर कहा,
-वेलकम मिस्टर. नरोत्तम पत्रि एज मजिस्ट्रेट ऑफ यशपुर...
पत्रि- थैंक्यू... राजा साहब....
तभी एक नौकर हाथ में एक चांदी की थाली में वायर लेस फ़ोन लेकर दौड़ते हुए आता है और भैरव की ओर बढ़ाता है l
नौकर - राजा साहब... छोटी रानी जी.... महल से...
भैरव - (फोन उठा कर अपने कान मेँ लगाता है) हाँ बोलिए.... छोटी रानी...
सुषमा - प्रणाम.... राजा साहब... वह... बड़े राजा जी को सांस लेने मेँ... तकलीफ हो रही है.... कृपया.... डॉक्टर को खबर भिजवा दीजिए....
भैरव - ह्म्म्म्म (फोन काट कर नौकर को देते हुए) डॉक्टर को फोन लगाओ....
नौकर फोन लेकर डॉक्टर को लगाता है और फोन पर डॉक्टर के मिलते ही भैरव सिंह को बढ़ा देता है l
भैरव - हैलो... डॉक्टर... बड़े राजा जी की हालत थोड़ी नासाज़ है.... उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही..... जल्दी महल पहुंच कर उनके लिए कुछ बंदोबस्त करो....
इतना कह कर भैरव सिंह फोन काट देता है और नौकर को दे देता है l
पत्रि - गुस्ताखी माफ राजा साहब... आपने डॉक्टर के ज़वाब का इंतजार नहीं किया....
भैरव - हम किसीके सुनने की आदि नहीं हैं.... तकलीफ उसे है जो हमें ना सुने...
पत्रि - जी समझ गया... और गांठ भी बांध ली...
भैरव - बहुत अच्छे पत्रि..... एंड वन्स ऐगेन वेलकम... टू... राजगड़....

पत्रि - थैंक्यू राजा साहब... थैंक्यू... अ... लॉट....
भैरव - ह्म्म्म्म... अब तुम... जा सकते हो... पत्रि....
पत्रि - जी बेहतर.... थैंक्यू...
पत्रि अपनी गाड़ी के तरफ जाता है और गाड़ी में बैठ कर निकल जाता है l उसके जाने के बाद भीमा भैरव सिंह के पास आता है,
भीमा - हुकुम.... इसे यहाँ बुलाकर.... यह सब करने की क्या जरूरत थी....
भैरव - भीमा.... आज से तकरीबन आठ या नौ साल पहले.... याद है.... हमने... एक तहसीलदार को उसी के ऑफिस में... सबके सामने... उसीके पियोन के जुतोंसे पिटाई कारवाई थी....
भीमा - हाँ... याद है... हुकुम....
भैरव - तुझे याद है उस कलेक्टर का नाम....
भीमा - नहीं.... हुकुम...
भैरव - उसका नाम राधे श्याम पत्रि था..... यह उसका बेटा है....
भीमा - पर हुकुम.... उसे.. फिर आपने राजगड़ में उसे आने क्यूँ दिया....
भैरव - हम उसे टटोल रहे थे..... हम पहले ही उसका फाइल चेक कर चुके हैं.... यह अपने बाप के उलट... करप्ट और रंडीबाज है.... पर कहीं यह बाप के इगो के लिए यहाँ आया तो नहीं.... बस यही सोच कर उसे यहाँ बुलाया था....
वैसे भी जिंदगी में चैलेंजस होने चाहिए.... वरना कुछ मजा नहीं आयेगा.... इस पर नजर रखो...
भीमा - जी हुकुम....

तभी वह नौकर फ़िर से भागते हुए आता है और थाली को बढ़ाते हुए कहता है - छोटे राजा जी.... हुकुम...
भैरव सिंह थाली से फोन उठाता है - हैलो....
पिनाक - वह... राजा साहब... एक... गड़बड़ हो गई है....
भैरव की भौंहे तन जाती है और पूछता - किसके तरफ से....
पिनाक - हमारे तरफ से नहीं.... वह.... रंगा के तरफ से....
भैरव - कौन रंगा....
पिनाक - रंगा... वह जिसे... हमने... विश्व को तोड़ने के लिए जैल में डाला था....
भैरव - तो....
पिनाक - विश्व ने... रंगा पर हमला कर दिया.... और रंगा अभी हस्पताल में है...
भैरव - क्यूँ...... कैसे... विश्व ने रंगा को... आपने रंगा को आगाह नहीं किया था....... रंगा को विश्व से सावधान रहने को...... रंगा ने ऐसा क्या किया .......
पिनाक - विश्व को देख कर.... रंगा को जोश आ गया... इसलिए वह उसे... बार बार छेड़ने लगा था शायद.... जिससे विश्व ने...... प्रतिक्रिया में उस पर हमला कर दिया.....
भैरव - ह्म्म्म्म... तो फिर कुछ दिनों के लिए विश्व को भूल जाओ...
पिनाक - और रंगा....
भैरव - जो चूक जाए.... उसे थूक दो... अब वह हमारे किसी काम का नहीं है.... उसे भाड़ में भेजो...
पिनाक - मतलब...
भैरव - उसे... किसी सब-जैल में शिफ्ट करा दो... और उसे भी भूल जाओ.....
पिनाक - जी बेहतर....
इतना कहकर पिनाक फोन रख देता है l
पिनाक इस वक्त भुवनेश्वर में एक होटल के कमरे में है l उसके सामने एक वकील बैठा हुआ है l वकील को देख कर,
पिनाक - सुन बे काले कोट वाले.... उस रंगा को किसी दूसरे जैल में शिफ्ट कर दे....
वकील - जी... पर वह अब... हस्पताल में है....
पिनाक - तो हम क्या करें.... ज्यादा चूल मची थी.... हरामी के गांड में... सुलेमानी कीड़ा कुलबुला रहा था उसके गांड में... उसे... बोला गया था.... विश्व से सावधान रहे और धीरे धीरे अपने काम को अंजाम दे...... अगर इतना ही चूल मची थी तो बिना देरी किए.... अपना खुजली उतार लेना चाहिए था.... पर नहीं.... खुजली इतनी मची थी कि... इलाज कराने सीधे.... विश्व के पास गया.... अब विश्व ने उसका इलाज कर दी है.... साला हरामी.... अब ना सीधा ना टेढ़ा कैसे भी नहीं सो पा रहा है... बैठ भी नहीं सकता.... चला था विश्व के गांड मारने.... विश्व ने ऐसी मारी है... के साला उसे अब वह गांडु कहलाएगा.... इसलिए उसे किसी और जैल में शिफ्ट करा दो... बादमें देखते हैं.... विश्व का क्या करना है... जाओ...
वकील पिनाक का फ्रस्ट्रेशन भरा भाषण सुनने के बाद रुकना भी मुनासिब नहीं समझा l बिना देरी किए वहाँ से निकल गया l
उसके जाते ही इंटरकॉम में डायल करता है l दुसरे तरफ से हैलो की आवाज़ सुनते ही.,
पिनाक - आप दोनों जल्दी से फ्रेश हो जाएं फ़िर मेरे... मतलब हमारे कमरे में आयें.... (इतना कह कर इंटरकॉम रख देता है I

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जैल में विश्व नाश्ते के लिए डायनिंग हॉल में पहुंचता है l विश्व के वहाँ पहुँचते ही कुछ कैदी विश्वा भाई कहकर बुलाते हैं और सलाम करते हैं l

विश्व उनके सलाम का जवाब तो देता है पर उसे बड़ा अजीब लगता है l वह अपना थाली में नाश्ता ले कर जैसे ही मुड़ता है l कुछ कैदी उसे अपने टेबल पर बुलाते हैं l पर विश्व देखता है डैनी एक कोने में बैठा अपना नाश्ता कर रहा है, तो सीधे डैनी के टेबल पर पहुंच कर डैनी के सामने बैठ जाता है l
डैनी - ह्म्म्म्म... बड़ा नाम हो गया है तेरा.... सब इज़्ज़त दे रहे हैं तुझे....
विश्व - मुझे इनकी हरकत समझ में नहीं आ रहा है..... जब पहले दिन मैं टेबल ढूंढ रहा था... किसी ने अपने टेबल पर नहीं बुलाया था.... किसी किसी टेबल पर तो इशारे से ना आने को बोला था.... पर आज... सब मुझे अपने टेबल पर बुला रहे हैं....
डैनी - यही तो खेल है... प्यारे.... यह जो इज़्ज़त दे रहे हैं... असल में इनके अंदर का खौफ है... इस खौफ और इज़्ज़त के बीच एक बहुत पतली सी लाइन है.... इसे मेंटेन कर बनाए रखना.... वरना इनके आँखों से इज़्ज़त और खौफ उतरते देर नहीं लगेगी.....
विश्व - मुझे... इनसे इज़्ज़त नहीं लेनी...
डैनी - कल तक तु इस जंगल में एक सुवर था.... तुने एक शेर को ढेर कर दिया.... और अब तेरा इवोल्यूशन हो चुका है.... अब इस जंगल का तु एक शेर है.... और शेर शेर बना रहे यह शेर का धर्म है...
विश्व - (विश्व एक हंसी हंसकर) क्या वक्त आ गया.... इंसानों को अब इंसानी पहचान के वजाए..... जानवरों की पहचान से पहचाना जा रहा है....
डैनी - यही सच है.... कहने को सब इंसान हैं..... मगर सब के सब इंसानी खोल में छुपे जानवर हैं.... और हर कोई इस इंसानी समाज रूपी जंगल में अपना राज कायम करना चाहता है.... कोई धर्म के नाम पर, कोई मजहब के नाम पर, कोई जाति वाद पर कोई समाज वाद के नाम पर, कोई साम्यवाद के नाम पर, कोई एकछत्र वाद पर और कोई गणतंत्र के नाम पर .... बस किसी तरह से इंसानी रूपी जानवर पर शेर बन कर राज करना चाहता है.....
विश्व - मुझे ऐसे समाज का हिस्सा नहीं बनना...
डैनी - यह तुम्हारा भ्रम... है... पूरे संसार में ऐसा कोई समाज नहीं है... जहां इंसानी रूपी जानवर ना रहाता हो.... प्रकृति का नियम है.... मरे हुए को चींटी खाती है... चींटी को टिड्डी, टिड्डी को मेढ़क, मेढ़क को सांप, सांप को नेवला, नेवले को भेड़िया, भेड़िया को बाघ.... यह समाज जहां हम रह रहे हैं.... यह भी इस नियम से अछूता नहीं है...... यहां अपने से कमजोर पर राज करने के लिए हर कोई तैयार रहता है....
हर तरफ सिर्फ़ प्यार विश्वास बसता हो....
हाँ ऐसा समाज मुमकिम हो सकता है.... बशर्ते वहां सिर्फ़ इंसान ही बसते हों.....


विश्व खामोश हो जाता है, पर डैनी का नाश्ता खतम हो चुका था, वह अपनी थाली लेकर वहाँ से चला जाता है, पर विश्व वहीँ बैठा डैनी के बातों के गहराई को अनुभव कर रहा है l

अपने चैम्बर में तापस बैठा कुछ फाइलों पर काम कर रहा है l तभी जगन वहाँ आता है और एक काग़ज़ की पर्ची देता है l काग़ज़ की पर्ची पर वैदेही महापात्र लिखा हुआ है l कुछ सोचने के बाद तापस जगन को कहता है -
- जाओ उसे ले आओ यहाँ....
जगन बाहर चला जाता है और थोड़ी देर बाद तापस के चैम्बर में वैदेही आती है l
तापस - आओ वैदेही... आओ बैठो....
वैदेही - नहीं सर... मैं ठीक हुँ...
तापस - अरे.. तुम... तुम कोई मुज़रिम नहीं हो... तुम आम नागरिक हो... बैठो तो सही.... वरना मुझे खड़ा होना पड़ेगा....
वैदेही - ठीक है... सर... मैं... बैठ जाती हूँ.... (कह कर बैठ जाती है)
तापस - तो... तुम अपने भाई से मिलने आई हो....
वैदेही - नहीं सर नहीं... मैं बस उसे एक नजर देख कर चली जाना चाहती हूँ....
तापस - क्यूँ.... क्यूँ नहीं मिलना चाहती.....
वैदेही के आँखों में आँसू आ जाते हैं l
वैदेही - उसे मैं.. डॉक्टर बनते देखना चाहती थी... पर भाग्य को मंजूर ना था... तो उसे सरपंच बनते देखा तो सोचा.... डॉक्टर बनकर लोगों का इलाज ना कर पाया तो क्या हुआ.... सरपंच बन कर अपने लोगों के दुखों का कष्टों का इलाज तो कर पाएगा.... पर भाग्य को यह भी मंजूर नहीं हुआ... आज एक अपराधी के रूप में इस जैल में है....
तापस - तो तुम इसलिए उससे नहीं मिलना चाहती..... सिर्फ़ दूर से एक नजर देख कर चली जाना चाहती हो...
वैदेही - हाँ सर.... माँ ने इसे पैदा कर मेरे ही हाथों में सौंप कर चल बसी थी... मैं इसे माँ, दीदी और गुरु बन कर पाल पोष कर बड़ा किया.... पर यह दिन देखने के लिए तो नहीं.... उसकी ऐसी हालत देखने के लिए तो नहीं....

तापस को उसके दर्द का एहसास होता है, वह एक गहरी सांस छोड़ कर वैदेही को पूछता है,
- ह्म्म्म्म क्या तुम... अपने भाई को देखना चाहोगी....
वैदेही अपना सर हिला कर अपना सम्मति देती है l तापस उसे इशारे से अपने पीछे आने को कहता है l वैदेही उसके पीछे चल देती है और दोनों ऑफिस के दूसरे माले पर पहुंचते हैं l
वैदेही देखती है एक लंबा सा टेबल बीच कमरे में पड़ी है, कम से कम पच्चीस तीस कुर्सियां पड़ी हुई हैं, बीच दीवार पर एक टीवी लगी है, और कमरे अलमारियां भरी हुई हैं और हर आलमारी किताबों से भरी हुई है l
तापस-(वैदेही को कमरे को ऐसे घूरते हुए देख) यह इस जैल की लाइब्रेरी है.... पढ़ कर समय व्यतीत करने के लिए यह लाइब्रेरी बनाई गई.... ह्यूमन राइट्स वालों की डिमांड पर... पर अफ़सोस.... कोई भी यहां नहीं आता....
तापस एक खिड़की के पास खड़े हो कर कॉटन को हल्का सा खिंचता है, फ़िर वैदेही को पास बुलाता है और दूर विश्व को कोई काम करते हुए दिखाता है l विश्व को देखते ही वैदेही के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है पर अगले ही क्षण उसके चेहरे पर मायूसी छा जाती है l
वैदेही - कितना... भोला... कितना मासूम लग रहा है... मेरा भाई.... भगवान करे वह ऐसे ही हमेशा रहे.....
तापस - नहीं वैदेही.... विश्व जब जैल से निकलेगा.... मुझे अफ़सोस हो रहा है... यह कहते हुए.... वह ना मासूम रहेगा ना भोला....
वैदेही - यह आप.... क्या कह रहे हैं सर....
तापस - मैं सच कह रहा हूँ वैदेही.... हाल के दिनों में क्या हुआ है उसके साथ.... और मैं कहना भी नहीं चाहता... तुम नहीं जानती.... इस जैल में हर कदम पर... हर मोड़ पर उसे तरह तरह के लोग मिलते रहेंगे..... और हर मिलने वाला उससे उसकी मासूमियत और भोला पन को निचोड़ता रहेगा... और जिस दिन वह अपनी सजा काट कर बाहर निकलेगा.... तब वह तुम्हारा मासूम और भोला विश्व नहीं रहेगा.... पता नहीं क्या हो गया होगा.....
वैदेही तापस को एक टक देखे जा रही है, तापस जब वापस वैदेही को देखता है तो वैदेही के आँखों में कुछ पढ़ने की कोशिश करता है l
वैदेही अपनी नजर हटा लेती है और खिड़की से विश्व को देखते हुए तापस से कहती है
- अगर नियति को यही मंजूर है..... तो यही सही.... वह भोला और मासूम बना रहा... इसलिए आज उसकी यह हालत है.... अगर वह भोला और मासूम ना होता तो कहानी कुछ और ही होती ना सर....
तापस वैदेही के आक्रोश को अंदर तक महसूस करता है l

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कुछ देर बाद पिनाक के कमरे के दरवाजे पर धक्का लगता है और उस कमरे में एक नौजवान और एक किशोर प्रवेश करते हैं l
पिनाक - आओ आओ युवराज... आओ राजकुमार....
(यह दोनों सात साल पहले वाले विक्रम और वीर हैं)
विक्रम - छोटे राजा जी... हमे यूँ.. अचानक कलकत्ते से क्यूँ बुलाया गया.... हमे कुछ समझ में नहीं आया....
पिनाक - वही समझाने तो आप लोगों को यहां पर बुलाया गया है.... बैठिए आप दोनों....
विक्रम और वीर दोनों पास के सोफ़े पर बैठ जाते हैं l
पिनाक - युवराज आप अभी बीस वर्ष के हैं...
और वीर आप सत्रह वर्ष के....
सो युवराज आपकी कॉमर्स की ग्रैजुएशन ख़त्म होने को है.... और राजकुमार आपका इंटर का भी यह आखरी साल है.... पर आप दोनों आपका अपना पढ़ाई अब यहीं पर खतम करेंगे....
दोनों भाई एक दूसरे को देखते हुए - क्या.... पर क्यूँ....
पिनाक - बड़े राजा जी ने... हम तीनों को मिशन दिया है... जिसे हम तीनों मिलकर पुरा करना है.....
विक्रम - कैसा मिशन...
पिनाक - अब आप न्यूज चैनल्स के ज़रिए समझ चुके होंगे.... हम अभी रूलिंग पार्टी की सदस्यता ली है....
विक्रम - जी....
पिनाक - वह इसलिए.... के आने वाले दो साल बाद.... हमे भुवनेश्वर सहर का मेयर बनना है....
विक्रम - क्या.... राजगड़ से बाहर.... राजनीतिक पदवी.... पर क्यूँ...
पिनाक - कुछ हालात ऐसे बन गए हैं... की हमे खुदको राजगढ़ में सीमित रखना असंभव हो गया है.... यह राजधानी है... समूचे राज्य के राजनीतिक गड़.... यहाँ पर नजर भी रखना है... और पीछे रहकर परिचालन भी करना है...
विक्रम - ठीक है.... आपका तो समझ में आ गया.... हमे क्या करना होगा....
पिनाक - आप दोनों को ******* कॉलेज में एडमिशन लेनी होगी.. आगे की पढ़ाई के लिए....
विक्रम - और... कॉलेज में... हमे क्या करना होगा.....
पिनाक - आपको कॉलेज में इलेक्शन लड़ना होगा.... स्टूडेंट्स यूनियन का प्रेसिडेंट बनना होगा....
विक्रम - उससे... होगा क्या...
पिनाक - युवराज.... हमे लक्ष दिया गया है.... दो साल बाद मेयर बनने के लिए.... और आपको सारे स्टूडेंट्स को लीड करना है.... फिर पार्टी में.... युवा मंच का चेहरा बनना है.... उसका अध्यक्ष बनना है....
वीर - और मेरा क्या काम है.....
पिनाक - आप युवराज जी को फॉलो करेंगे... उनके बाद कॉलेज के यूनियन के प्रेसिडेंट बनेंगे... और हाँ आइंदा ध्यान रहे... बड़े राजा जी या राजा साहब जी के सामने मैं, या तुम हरगिज़ मत कहिएगा... सिर्फ हम या आप...
वीर - ठीक है....
विक्रम - इस साल हम कॉलेज में जॉइन करेंगे... और इसी साल हमे स्टूडेंट्स इलेक्शन जितना भी होगा....
पिनाक - हाँ... युवराज... क्यूंकि कॉलेज से ही नई पीढ़ी वोट देने निकलती है... उसी नई पीढ़ी के हीरो बनना है आपको.... बाई हूक ओर क्रुक.... आप अपने कॉलेज के बॉक्सिंग चैंपियन रहे हैं... इसलिए उस जरिए भी आपको काम लेना होगा....
विक्रम - क्या यह आपको इतना आसान लगता है....
पिनाक - नहीं बिल्कुल भी नहीं.... पर जो आसानी से हो जाए... उसे करने में मजा ही क्या....
विक्रम - किसीकी बने बनाए खेल में घुस कर अपने नाम करना है... किसीका जमाया हुआ सिक्का अपने नाम करना है... वह भी एक साल में...
पिनाक - हाँ.... युवराज... आप क्षेत्रपाल हैं.... यह ना भूलें.... आज हमारे वंश का एक महा मंत्र आप दोनों को प्रदान करता हूं.... क्षेत्रपाल परिवार के पुरुषों के हाथ कभी आकाश की ओर नहीं होती..... सिर्फ ज़मीन की ओर होती है.... हम कुछ दे सकते हैं या फिर छीन सकते हैं.... पर हाथ ऊपर कर मांग नहीं सकते.... इसलिए चाहे कोई भी हो..... जिसका बना बनाया या जमाया हुआ सिक्का... आपको छिनना है.... कैसे यह आप तय करें....
विक्रम यह सब सुनने के बाद एक गहरी सांस लेता है और चल कर खिड़की के पास खड़ा होता है l नीचे जाते हुए गाड़ियों को देखता है l
पिनाक उसके पास आकर खड़ा होता है l
पिनाक - क्या सोचने लगे युवराज....
विक्रम - इस सहर पर राज करना है.... पर कैसे और कहाँ से शुरू करें....
पिनाक - राजगढ़ में जैसा है वैसे तो बिल्कुल नहीं..... सबके मन में खौफ को इज़्ज़त के साथ बिठाना है.... खौफ और इज़्ज़त के बीच एक पतली सी लाइन होनी चाहिए.....
विक्रम पिनाक की ओर देखता है और फिर कमरे में चहल कदम करने लगता है l पिनाक आकर वीर के पास बैठ जाता है और इंटरकॉम में तीन चाय के लिए ऑर्डर करता है l

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वैदेही जा चुकी है, तापस वैदेही को बाहर छोड़ कर अपने चैम्बर की ओर जा रहा है l तभी उसकी मोबाइल बजने लगता है l मोबाइल निकाल कर देखता है तो उसे स्क्रीन पर प्रतिभा का नाम दिखता है तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है l फोन उठा कर - हैलो जान....
प्रतिभा - एक खबर है.... शायद आपको खुश करदे....
तापस को शरारत सूझती है - मुझे खुश करदे.... वाव... अररे.... जान घर पर नया मेहमान आने वाला है... वाव... मुझे तो तुम्हारे फोन से ही मालुम हो गया है.... के मुझे यह खुश खबरी सिर्फ़ अपने स्टाफ वालों से ही नहीं..... बल्कि पूरे मोहल्ले में मिठाई बंटवा देता हूं.... प्रत्युष को भी खबर कर देता हूँ.... आख़िर इतने सालों बाद खुशी का मौका हाथ लगा है....
प्रतिभा - (गुस्से से) हो गया...
तापस - अररे अभी कहाँ.... मैंने जगन के हाथों से मिठाई.. अभी तक मंगवाया नहीं है....
प्रतिभा - (अपनी दांत पिसते हुए) अगर अभी आप चुप नहीं हुए.... तो आज ड्रॉइंग रूम में सोईयेगा....
तापस - इतनी छोटी गुस्ताखी के लिए.... इतना बड़ा सजा.....
प्रतिभा - मैं... अब... अपना फोन काटती हूँ...
तापस - अरे.... गुस्सा... थूक दो.... यार थोड़ा मज़ाक कर रहा था..... सुबह से इधर उधर की सोच सोच कर टेंशन में था.... तुमसे बात की.... तो सारा टेंशन दूर हो गया....
प्रतिभा - ठीक है... ठीक है.....
तापस - अरे यार... थोड़ा मुस्कराते हुए.... कहो ना...

प्रतिभा - हाँ तो सुनो..... तुम्हारे जैल में जो कांड हुआ है ना.... विश्व और रंगा वाला.....
तापस - हाँ क्या हुआ....
प्रतिभा - अरे कुछ नहीं.... उस रंगा का वकील.... रंगा के झारपडा सब जैल को शिफ्ट कराने के लिए पीटीशन फाइल किया है....
तापस - ओह.... उसने वजह क्या डाला है....
प्रतिभा - यही तो खुशी की बात है......... उसने वजह हेल्थ लिखा है..... कोई सेक्यूरिटी की बात लिखी नहीं है.... और यह भी लिखा है.... डॉक्टर के फिटनेस सर्टिफिकेट देने के तुरंत बाद सेंट्रल जैल के बजाय सीधे... झारपडा सब जैल को शिफ्ट कराया जाए.....
तापस - यह वाकई.... बहुत अच्छी खबर दी है तुमने....
प्रतिभा - अच्छा ठीक है.... फोन रखती हूँ.... अब.... और हाँ शाम को मिठाई तैयार रखना....
तापस - क्यूँ... मौहल्ले में बंटवाना है क्या....
प्रतिभा - आ..... ह..... आज तो तुम्हें... मैं बेड रूम में घुसने नहीं दूंगी....
इतना कह कर प्रतिभा फोन काट देती है l तापस के चेहरे पर एक शरारत भरा मुस्कान नाच रही है l फोन रख कर मुड़ा तो देखा उसके पास दास खड़ा है l
तापस - अरे दास... आओ... एक अच्छी खबर है...
फिर तापस दास को रंगा के शिफ्ट होने की बात बताता है l
दास - यह अच्छी खबर तो है..... पर....
तापस - पर क्या दास...
दास - सर... सॉरी फॉर अब्युसिव लैंग्वेज... बट.... विथ योर परमिशन... सर....
तापस दास को घूर के देखता है फ़िर अपना सर हिलाते हुए - ओके दास... कंटिन्यु....
दास - सर थ्योरी के हिसाब से बात दिल की होती है.... पर लोग प्रैक्टिकल में लोग गांड की बात करते हैं....
तापस - (आवाज़ को कड़क करते हुए) दास.....
दास - सर इसीलिए तो आपसे..
परमिशन ली थी....
तापस - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म.... ठीक है..... आगे बोलो......
दास - सर अगर दिल कमजोर हो तो.... किसी किसी परिस्थिति में डर लगना स्वाभाविक है.... यह थ्योरी है.... पर लोग प्रैक्टिकल में गांड फटना कहते हैं....
दास ने जिस तरह से कहा तापस की हंसी छूट जाती है l पर दास नहीं हंस रहा है, तो तापस इशारे में आगे बोलने को कहता है l
दास - और सर अगर कोई डर को जीत जाता है.... आई मिन हरा देता है... तो थ्योरी के हिसाब से दिल मजबुत होना कहते हैं.... पर प्रैक्टिकली लोग गांड में दम होना कहते हैं....
तापस - (अपनी हंसी को रोकते हुए) ह्म्म्म्म तो....
दास - सर अब आते हैं असली मुद्दे पर.... रंगा अपने इलाके में मशहूर था.... आख़िर अपने इलाके का नामचीन पहलवान था.... फिर गुंडागर्दी में नाम और रुतबा कमाया....
तापस अब दास को सिरीयस हो कर सुनने लगा l
दास - रंगा का सब कुछ सही जा रहा था... के उसके गांड के दम में विश्व ने आधा इंच गहरा और चार साढ़े चार इंच चीरा मार दिया...
एक ऐसी जगह.... जहां का तकलीफ ना रंगा खुद देख पा रहा है.... ना आगे चलकर किसीको दिखा पाएगा....
तापस - तुम कहना क्या चाहते हो दास.....
दास - यही.... के विश्व ने रंगा की गांड फाड़ दी है प्रैक्टिकली...
तापस - दास... आखिर कहाना क्या चाहते हो......
दास - रंगा.... वापस आएगा सर.... विश्व से बदला लेने.... अभी तो नहीं.... पर आएगा जरूर.... अपना रौब और रुतबा फिरसे कायम करने..... और तब शायद जैल में एक खूनी मंज़र देखने को मिले.....
तापस के माथे पर अब चिंता दिखने लगता है

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होटल के कमरे में वीर बेड पर लेटा हुआ है, विक्रम एक कोने से दूसरे कोने तक चहल कदम कर रहा है और पिनाक एक सोफ़े पर बैठा हुआ है l
पिनाक - युवराज जी... चाय नाश्ता खतम हो चुका है.... कुछ सोच लिए हों... तो प्रकाश करें...
विक्रम - छोटे राजा जी आप हमसे क्या चाहते हैं....
पिनाक - यहाँ के पुराने खिलाड़ियों के बसे बसाये को उजाड़ना और जमे जमाये को हथियाना है....
विक्रम - और यह सब तब होगा... जब इस सहर में हमारा सिक्का चलेगा.... राइट्
पिनाक - राइट्....
विक्रम - और उसके लिए... हमे डेयर एंड डेविल होना पड़ेगा...
पिनाक - राइट्...
विक्रम - इसका मतलब यह हुआ कि.... हमे इस सहर में.... एक पैरालाल सरकार चलानी है...
पिनाक - राइट्....
विक्रम - तो फिर उसके लिए हमे एक डेविल हाउस चाहिए.... ठीक राज भवन के विपरीत दिशा में.... पर सहर के बीचों-बीच.... जहां दो मीटिंग हॉल होने चाहिए.... एक प्राइवेट मीटिंग हॉल... जो नॉर्मली हर घर में होती है.... और एक पब्लिक मीटिंग हॉल जो घर के साथ अटैच हो.... और उस घर के बगल में एक जीम भी हो.....
पिनाक - ह्म्म्म्म पहली बॉल पर छक्का... गुड...
पिनाक - डेविल हाउस का नाम होगा "द हेल"...
वीर - वाव... क्या बात है...
पिनाक - आप शांत रहेंगे.... राजकुमार जी....
विक्रम - डेयर एंड डेविल के लिए एक डेविल आर्मी चाहिए.... वह भी ऑफिसीयल रजिस्टर्ड....

पिनाक - मतलब.....
विक्रम - हम एक प्राइवेट सेक्योरिटी संस्था बनाएंगे.... आज कल बड़े बड़े कॉर्पोरेट ऑफिस, बड़े बड़े बैंक, बड़े बड़े हस्पताल, बड़े बड़े होटल सब प्राइवेट सेक्यूरिटी एडोप्ट करते हैं....
तो हम भी प्राइवेट सेक्यूरिटी संस्था बनाएंगे और सबको सुरक्षा प्रदान करेंगे.... पर असल में वह हमारी आर्मी होगी....
पिनाक - वाह क्या बात है.... अब तो आपने सेंचुरी मार दी.....
विक्रम - हम जो प्राइवेट आर्मी बनाएंगे.... उसकी ऑफिस और ट्रेनिंग सेंटर भी होगी.... जिसके जरिए हम अपनी आर्मी को सबसे सक्षम बनाएंगे.... जिसकी अपनी इंटेलिजंस विंग भी होगी.... आज की डेट में किसी भी सरकारी एजेंसी को मात दे दे... हम अपनी आर्मी को उतना कॉम्पिटेटीव बनाएंगे....
पिनाक - (ताली मारते हुए) बहुत दूर की सोची है.... शाबाश....
वीर - पर यह इतना आसान नहीं है....
पिनाक - आपको क्यूँ तकलीफ़ हो रही है....
वीर - मुझे नहीं अब आपको होगी.... सेक्योरिटी संस्था का रजिस्ट्रेशन आसान नहीं होता.... उसके लिए एक्स आर्मी पर्सन या किसी बड़े ओहदे वाले एक्स पुलिस पर्सन की जरूरत पड़ेगी....
विक्रम - हाँ यह तो सच है....
पिनाक - तो उसका जुगाड़....
विक्रम - आप पहले घर की तलाश कीजिए.... बाकी मैं तलाशता हूँ....
वीर - और हम... हम क्या करें....
पिनाक - जस्ट फॉलो योर युवराज....
 
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Kala Nag

Mr. X
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So , dany ka ek khas role najar aa rha h vishva ki life change krke use ek yodha bnane me .. ranga ne galat insan se pnga lia .. bhai sahi me bhot mjedar update the as always .
Bas ab agla update milne ka intzar karte hai 🤣. Or hme pta hai intezar ka fal mjedar hi hoga 🔥🔥

" सरवाइवल आफ द फिटेस्ट " डार्विन का सिद्धांत आज के युग में सही तरह से फिट होता है । वही लोग सर्वाइव कर सकते हैं जो अपनी विपरीत हालातों से मुकाबला कर सकने में सक्षम होते हैं ।
एक जिराफ के एग्जाम्पल से डार्विन ने इस थियूरी को समझाया था । डैनी ने बहुत ही बढ़िया सलाह दिया विश्व को । और विश्वा ने इसे न ध्यान में ही रखा बल्कि अच्छी तरह से अमल भी किया । रंगा को बहुत ही बढ़िया तरीके से सबक सिखा दिया ।

इसके पहले बाप बेटे का कन्वर्सेशन बहुत ही बेहतरीन लगा । प्रत्यूष अब जिंदा नहीं है , यह सोचकर ही मन दुखी हो जाता है । उससे भी ज्यादा मुझे तापस सर और उसकी पत्नी पर दया आती है कि कैसे अपने दिल को उन्होंने समझाया होगा ! बाप मां के सामने ही जवान बेटे को खोना , इससे बड़ा गम कुछ नहीं है । उनकी हंसी भी खोखली ही लगता है मुझे ।

हमेशा की तरह इस बार भी गजब का अपडेट लिखा है आपने । पिछली कहानी में , जैसा आपने कहा मैं भावनाओं में बह गया था , सही कहा था । वैदेही क्षेत्रपाल फेमिली की खून थी ।

जगमग जगमग अपडेट भाई ।

मित्र कल दुपहर तक अगली अपडेट आ जाएगा
मित्रों आपका स्वागत है बीसवां अपडेट पोस्ट कर दी है
आपके कमेंट्स व रिव्यू के आशा है
 

parkas

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👉बीसवां अपडेट
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एक बड़ा सा गल्फ कोर्ट है, बहुत बड़ा तो नहीं है, पर छोटा भी नहीं है l हरे रंग के मैदान को हरे रंग के नेट से चारो ओर से घेर रखा गया है l वहीँ मैदान के एक कोने में एक बड़ा सा छाता गड़ा हुआ है l उस छाते के साये के नीचे भैरव सिंह एक सिंहासन नुमा कुर्सी पर दोनों हाथों को फैला कर और बाएं पैर पर पैर रख कर बैठा हुआ है l उसके पास भीमा और भीमा के सारे साथी भैरव सिंह के आसपास खड़े हुए हैं l
तब एक लक्जरी कार आकर मैदान के बाहर रुकती है l एक आदमी उस कार में से उतरता है और सीधे भैरव सिंह के पास जा कर पहुंचता है l
उसे देखते ही भैरव सिंह अपना घड़ी देखता है और मुस्करा देता है l
भैरव - आओ ... तहसीलदार ... आओ... वक्त के बड़े पाबंद हो... बिल्कुल घड़ी के सुई की साथ चलते हो....
तहसीलदार - जी राजा साहब.... मैं हमेशा वक्त के साथ चलता हूँ.... और मैं यह भी जनता हूँ... वक्त को आप अपने साथ लिए चलते हैं.... या यूँ कहूँ... वक्त आपके साथ चलता है....
भैरव - बहुत अच्छे... तुम पूरी खबर रखे हुए हो....
तहसीलदार - हाँ... यह हमारे प्रोफेशनल रिक्वेर्मेंट है.... वाकई... यशपुर में तो जैसे व्यक्त रुक गया है.... कछुए ली रफ्तार से रेंग रहा है...
भैरव - ह्म्म्म्म....
तहसीलदार - जबकि... वक्त के साथ दुनिया.... कहाँ से कहाँ पहुंच गया है....
भैरव - तुम्हारा वक्त क्या कह रहा है.... मिस्टर. तहसीलदार...

तहसीलदार - आप तो सबकी खबर रखते हैं.... बिना आपकी मर्जी के... यशपुर और राजगड़ में किसी भी सरकारी अधिकारी की पोस्टिंग हो ही नहीं सकती.... और राजा साहब मेरा वक्त कह रहा है..... मुझे बहुत पैसा कमा लेना चाहिए....
भैरव - हा हा हा हा... तुम बहुत ही शार्प हो... चलो एक एक स्ट्रोक हो जाए.... अपना क्लब चुन लो.... (कह कर भैरव एक बैग के तरफ इशारा करता है) भीमा...
भीमा - हुकुम....
भैरव - देखो तहसीलदार को क्या जरूरत पड़ेगी...
भीमा - जी हुकुम....
भीमा बॉल को सेट कर देता है, तहसीलदार अपना स्टैंड सही करता है और ऐम बना कर स्ट्रोक मारता है l भैरव सिंह ताली मारते हुए
- वाह... बहुत खूब.... बहुत अच्छे...
फिर भैरव एक क्लब लेता है और वह भी अपना स्ट्रोक खेलता है l
कलेक्टर - वाव... राजा साहब... माइंड ब्लोइंग....
भैरव - तुम भी कुछ कम नहीं हो....
तहसीलदार - नॉट गुड एज यु.... राजा साहब...

ज़वाब में भैरव सिंह मुस्करा देता है l
भैरव - (अपना हाथ मिलाने को बढ़ाते हुए) माय... कंप्लीमेंट...

तहसीलदार - ना राजा साहब... ना... मुझे अपनी हद व औकात की पहचान है.... मुझे आपके छत्रछाया में रह कर काम करना है... आपके हाथ के नीचे.... और आपसे हाथ मिलाने के लिए... या तो मुझे आपका दोस्त होना चाहिए.... या फिर आपके बराबर.... और यह दोनों.... इस जनम में तो होने से रहे.....
भैरव सिंह, के चेहरे पर मुस्कान गहरी हो गई l उसने अपना गोल्फ क्लब बैग में रख दिया और कलेक्टर के तरफ मुड़ कर कहा,
-वेलकम मिस्टर. नरोत्तम पत्रि एज मजिस्ट्रेट ऑफ यशपुर...
पत्रि- थैंक्यू... राजा साहब....
तभी एक नौकर हाथ में एक चांदी की थाली में वायर लेस फ़ोन लेकर दौड़ते हुए आता है और भैरव की ओर बढ़ाता है l
नौकर - राजा साहब... छोटी रानी जी.... महल से...
भैरव - (फोन उठा कर अपने कान मेँ लगाता है) हाँ बोलिए.... छोटी रानी...
सुषमा - प्रणाम.... राजा साहब... वह... बड़े राजा जी को सांस लेने मेँ... तकलीफ हो रही है.... कृपया.... डॉक्टर को खबर भिजवा दीजिए....
भैरव - ह्म्म्म्म (फोन काट कर नौकर को देते हुए) डॉक्टर को फोन लगाओ....
नौकर फोन लेकर डॉक्टर को लगाता है और फोन पर डॉक्टर के मिलते ही भैरव सिंह को बढ़ा देता है l
भैरव - हैलो... डॉक्टर... बड़े राजा जी की हालत थोड़ी नासाज़ है.... उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही..... जल्दी महल पहुंच कर उनके लिए कुछ बंदोबस्त करो....
इतना कह कर भैरव सिंह फोन काट देता है और नौकर को दे देता है l
पत्रि - गुस्ताखी माफ राजा साहब... आपने डॉक्टर के ज़वाब का इंतजार नहीं किया....
भैरव - हम किसीके सुनने की आदि नहीं हैं.... तकलीफ उसे है जो हमें ना सुने...
पत्रि - जी समझ गया... और गांठ भी बांध ली...
भैरव - बहुत अच्छे पत्रि..... एंड वन्स ऐगेन वेलकम... टू... राजगड़....

पत्रि - थैंक्यू राजा साहब... थैंक्यू... अ... लॉट....
भैरव - ह्म्म्म्म... अब तुम... जा सकते हो... पत्रि....
पत्रि - जी बेहतर.... थैंक्यू...
पत्रि अपनी गाड़ी के तरफ जाता है और गाड़ी में बैठ कर निकल जाता है l उसके जाने के बाद भीमा भैरव सिंह के पास आता है,
भीमा - हुकुम.... इसे यहाँ बुलाकर.... यह सब करने की क्या जरूरत थी....
भैरव - भीमा.... आज से तकरीबन आठ या नौ साल पहले.... याद है.... हमने... एक तहसीलदार को उसी के ऑफिस में... सबके सामने... उसीके पियोन के जुतोंसे पिटाई कारवाई थी....
भीमा - हाँ... याद है... हुकुम....
भैरव - तुझे याद है उस कलेक्टर का नाम....
भीमा - नहीं.... हुकुम...
भैरव - उसका नाम राधे श्याम पत्रि था..... यह उसका बेटा है....
भीमा - पर हुकुम.... उसे.. फिर आपने राजगड़ में उसे आने क्यूँ दिया....
भैरव - हम उसे टटोल रहे थे..... हम पहले ही उसका फाइल चेक कर चुके हैं.... यह अपने बाप के उलट... करप्ट और रंडीबाज है.... पर कहीं यह बाप के इगो के लिए यहाँ आया तो नहीं.... बस यही सोच कर उसे यहाँ बुलाया था....
वैसे भी जिंदगी में चैलेंजस होने चाहिए.... वरना कुछ मजा नहीं आयेगा.... इस पर नजर रखो...
भीमा - जी हुकुम....

तभी वह नौकर फ़िर से भागते हुए आता है और थाली को बढ़ाते हुए कहता है - छोटे राजा जी.... हुकुम...
भैरव सिंह थाली से फोन उठाता है - हैलो....
पिनाक - वह... राजा साहब... एक... गड़बड़ हो गई है....
भैरव की भौंहे तन जाती है और पूछता - किसके तरफ से....
पिनाक - हमारे तरफ से नहीं.... वह.... रंगा के तरफ से....
भैरव - कौन रंगा....
पिनाक - रंगा... वह जिसे... हमने... विश्व को तोड़ने के लिए जैल में डाला था....
भैरव - तो....
पिनाक - विश्व ने... रंगा पर हमला कर दिया.... और रंगा अभी हस्पताल में है...
भैरव - क्यूँ...... कैसे... विश्व ने रंगा को... आपने रंगा को आगाह नहीं किया था....... रंगा को विश्व से सावधान रहने को...... रंगा ने ऐसा क्या किया .......
पिनाक - विश्व को देख कर.... रंगा को जोश आ गया... इसलिए वह उसे... बार बार छेड़ने लगा था शायद.... जिससे विश्व ने...... प्रतिक्रिया में उस पर हमला कर दिया.....
भैरव - ह्म्म्म्म... तो फिर कुछ दिनों के लिए विश्व को भूल जाओ...
पिनाक - और रंगा....
भैरव - जो चूक जाए.... उसे थूक दो... अब वह हमारे किसी काम का नहीं है.... उसे भाड़ में भेजो...
पिनाक - मतलब...
भैरव - उसे... किसी सब-जैल में शिफ्ट करा दो... और उसे भी भूल जाओ.....
पिनाक - जी बेहतर....
इतना कहकर पिनाक फोन रख देता है l
पिनाक इस वक्त भुवनेश्वर में एक होटल के कमरे में है l उसके सामने एक वकील बैठा हुआ है l वकील को देख कर,
पिनाक - सुन बे काले कोट वाले.... उस रंगा को किसी दूसरे जैल में शिफ्ट कर दे....
वकील - जी... पर वह अब... हस्पताल में है....
पिनाक - तो हम क्या करें.... ज्यादा चूल मची थी.... हरामी के गांड में... सुलेमानी कीड़ा कुलबुला रहा था उसके गांड में... उसे... बोला गया था.... विश्व से सावधान रहे और धीरे धीरे अपने काम को अंजाम दे...... अगर इतना ही चूल मची थी तो बिना देरी किए.... अपना खुजली उतार लेना चाहिए था.... पर नहीं.... खुजली इतनी मची थी कि... इलाज कराने सीधे.... विश्व के पास गया.... अब विश्व ने उसका इलाज कर दी है.... साला हरामी.... अब ना सीधा ना टेढ़ा कैसे भी नहीं सो पा रहा है... बैठ भी नहीं सकता.... चला था विश्व के गांड मारने.... विश्व ने ऐसी मारी है... के साला उसे अब वह गांडु कहलाएगा.... इसलिए उसे किसी और जैल में शिफ्ट करा दो... बादमें देखते हैं.... विश्व का क्या करना है... जाओ...
वकील पिनाक का फ्रस्ट्रेशन भरा भाषण सुनने के बाद रुकना भी मुनासिब नहीं समझा l बिना देरी किए वहाँ से निकल गया l
उसके जाते ही इंटरकॉम में डायल करता है l दुसरे तरफ से हैलो की आवाज़ सुनते ही.,
पिनाक - आप दोनों जल्दी से फ्रेश हो जाएं फ़िर मेरे... मतलब हमारे कमरे में आयें.... (इतना कह कर इंटरकॉम रख देता है I

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जैल में विश्व नाश्ते के लिए डायनिंग हॉल में पहुंचता है l विश्व के वहाँ पहुँचते ही कुछ कैदी विश्वा भाई कहकर बुलाते हैं और सलाम करते हैं l

विश्व उनके सलाम का जवाब तो देता है पर उसे बड़ा अजीब लगता है l वह अपना थाली में नाश्ता ले कर जैसे ही मुड़ता है l कुछ कैदी उसे अपने टेबल पर बुलाते हैं l पर विश्व देखता है डैनी एक कोने में बैठा अपना नाश्ता कर रहा है, तो सीधे डैनी के टेबल पर पहुंच कर डैनी के सामने बैठ जाता है l
डैनी - ह्म्म्म्म... बड़ा नाम हो गया है तेरा.... सब इज़्ज़त दे रहे हैं तुझे....
विश्व - मुझे इनकी हरकत समझ में नहीं आ रहा है..... जब पहले दिन मैं टेबल ढूंढ रहा था... किसी ने अपने टेबल पर नहीं बुलाया था.... किसी किसी टेबल पर तो इशारे से ना आने को बोला था.... पर आज... सब मुझे अपने टेबल पर बुला रहे हैं....
डैनी - यही तो खेल है... प्यारे.... यह जो इज़्ज़त दे रहे हैं... असल में इनके अंदर का खौफ है... इस खौफ और इज़्ज़त के बीच एक बहुत पतली सी लाइन है.... इसे मेंटेन कर बनाए रखना.... वरना इनके आँखों से इज़्ज़त और खौफ उतरते देर नहीं लगेगी.....
विश्व - मुझे... इनसे इज़्ज़त नहीं लेनी...
डैनी - कल तक तु इस जंगल में एक सुवर था.... तुने एक शेर को ढेर कर दिया.... और अब तेरा इवोल्यूशन हो चुका है.... अब इस जंगल का तु एक शेर है.... और शेर शेर बना रहे यह शेर का धर्म है...
विश्व - (विश्व एक हंसी हंसकर) क्या वक्त आ गया.... इंसानों को अब इंसानी पहचान के वजाए..... जानवरों की पहचान से पहचाना जा रहा है....
डैनी - यही सच है.... कहने को सब इंसान हैं..... मगर सब के सब इंसानी खोल में छुपे जानवर हैं.... और हर कोई इस इंसानी समाज रूपी जंगल में अपना राज कायम करना चाहता है.... कोई धर्म के नाम पर, कोई मजहब के नाम पर, कोई जाति वाद पर कोई समाज वाद के नाम पर, कोई साम्यवाद के नाम पर, कोई एकछत्र वाद पर और कोई गणतंत्र के नाम पर .... बस किसी तरह से इंसानी रूपी जानवर पर शेर बन कर राज करना चाहता है.....
विश्व - मुझे ऐसे समाज का हिस्सा नहीं बनना...
डैनी - यह तुम्हारा भ्रम... है... पूरे संसार में ऐसा कोई समाज नहीं है... जहां इंसानी रूपी जानवर ना रहाता हो.... प्रकृति का नियम है.... मरे हुए को चींटी खाती है... चींटी को टिड्डी, टिड्डी को मेढ़क, मेढ़क को सांप, सांप को नेवला, नेवले को भेड़िया, भेड़िया को बाघ.... यह समाज जहां हम रह रहे हैं.... यह भी इस नियम से अछूता नहीं है...... यहां अपने से कमजोर पर राज करने के लिए हर कोई तैयार रहता है....
हर तरफ सिर्फ़ प्यार विश्वास बसता हो....
हाँ ऐसा समाज मुमकिम हो सकता है.... बशर्ते वहां सिर्फ़ इंसान ही बसते हों.....


विश्व खामोश हो जाता है, पर डैनी का नाश्ता खतम हो चुका था, वह अपनी थाली लेकर वहाँ से चला जाता है, पर विश्व वहीँ बैठा डैनी के बातों के गहराई को अनुभव कर रहा है l

अपने चैम्बर में तापस बैठा कुछ फाइलों पर काम कर रहा है l तभी जगन वहाँ आता है और एक काग़ज़ की पर्ची देता है l काग़ज़ की पर्ची पर वैदेही महापात्र लिखा हुआ है l कुछ सोचने के बाद तापस जगन को कहता है -
- जाओ उसे ले आओ यहाँ....
जगन बाहर चला जाता है और थोड़ी देर बाद तापस के चैम्बर में वैदेही आती है l
तापस - आओ वैदेही... आओ बैठो....
वैदेही - नहीं सर... मैं ठीक हुँ...
तापस - अरे.. तुम... तुम कोई मुज़रिम नहीं हो... तुम आम नागरिक हो... बैठो तो सही.... वरना मुझे खड़ा होना पड़ेगा....
वैदेही - ठीक है... सर... मैं... बैठ जाती हूँ.... (कह कर बैठ जाती है)
तापस - तो... तुम अपने भाई से मिलने आई हो....
वैदेही - नहीं सर नहीं... मैं बस उसे एक नजर देख कर चली जाना चाहती हूँ....
तापस - क्यूँ.... क्यूँ नहीं मिलना चाहती.....
वैदेही के आँखों में आँसू आ जाते हैं l
वैदेही - उसे मैं.. डॉक्टर बनते देखना चाहती थी... पर भाग्य को मंजूर ना था... तो उसे सरपंच बनते देखा तो सोचा.... डॉक्टर बनकर लोगों का इलाज ना कर पाया तो क्या हुआ.... सरपंच बन कर अपने लोगों के दुखों का कष्टों का इलाज तो कर पाएगा.... पर भाग्य को यह भी मंजूर नहीं हुआ... आज एक अपराधी के रूप में इस जैल में है....
तापस - तो तुम इसलिए उससे नहीं मिलना चाहती..... सिर्फ़ दूर से एक नजर देख कर चली जाना चाहती हो...
वैदेही - हाँ सर.... माँ ने इसे पैदा कर मेरे ही हाथों में सौंप कर चल बसी थी... मैं इसे माँ, दीदी और गुरु बन कर पाल पोष कर बड़ा किया.... पर यह दिन देखने के लिए तो नहीं.... उसकी ऐसी हालत देखने के लिए तो नहीं....

तापस को उसके दर्द का एहसास होता है, वह एक गहरी सांस छोड़ कर वैदेही को पूछता है,
- ह्म्म्म्म क्या तुम... अपने भाई को देखना चाहोगी....
वैदेही अपना सर हिला कर अपना सम्मति देती है l तापस उसे इशारे से अपने पीछे आने को कहता है l वैदेही उसके पीछे चल देती है और दोनों ऑफिस के दूसरे माले पर पहुंचते हैं l
वैदेही देखती है एक लंबा सा टेबल बीच कमरे में पड़ी है, कम से कम पच्चीस तीस कुर्सियां पड़ी हुई हैं, बीच दीवार पर एक टीवी लगी है, और कमरे अलमारियां भरी हुई हैं और हर आलमारी किताबों से भरी हुई है l
तापस-(वैदेही को कमरे को ऐसे घूरते हुए देख) यह इस जैल की लाइब्रेरी है.... पढ़ कर समय व्यतीत करने के लिए यह लाइब्रेरी बनाई गई.... ह्यूमन राइट्स वालों की डिमांड पर... पर अफ़सोस.... कोई भी यहां नहीं आता....
तापस एक खिड़की के पास खड़े हो कर कॉटन को हल्का सा खिंचता है, फ़िर वैदेही को पास बुलाता है और दूर विश्व को कोई काम करते हुए दिखाता है l विश्व को देखते ही वैदेही के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है पर अगले ही क्षण उसके चेहरे पर मायूसी छा जाती है l
वैदेही - कितना... भोला... कितना मासूम लग रहा है... मेरा भाई.... भगवान करे वह ऐसे ही हमेशा रहे.....
तापस - नहीं वैदेही.... विश्व जब जैल से निकलेगा.... मुझे अफ़सोस हो रहा है... यह कहते हुए.... वह ना मासूम रहेगा ना भोला....
वैदेही - यह आप.... क्या कह रहे हैं सर....
तापस - मैं सच कह रहा हूँ वैदेही.... हाल के दिनों में क्या हुआ है उसके साथ.... और मैं कहना भी नहीं चाहता... तुम नहीं जानती.... इस जैल में हर कदम पर... हर मोड़ पर उसे तरह तरह के लोग मिलते रहेंगे..... और हर मिलने वाला उससे उसकी मासूमियत और भोला पन को निचोड़ता रहेगा... और जिस दिन वह अपनी सजा काट कर बाहर निकलेगा.... तब वह तुम्हारा मासूम और भोला विश्व नहीं रहेगा.... पता नहीं क्या हो गया होगा.....
वैदेही तापस को एक टक देखे जा रही है, तापस जब वापस वैदेही को देखता है तो वैदेही के आँखों में कुछ पढ़ने की कोशिश करता है l
वैदेही अपनी नजर हटा लेती है और खिड़की से विश्व को देखते हुए तापस से कहती है
- अगर नियति को यही मंजूर है..... तो यही सही.... वह भोला और मासूम बना रहा... इसलिए आज उसकी यह हालत है.... अगर वह भोला और मासूम ना होता तो कहानी कुछ और ही होती ना सर....
तापस वैदेही के आक्रोश को अंदर तक महसूस करता है l

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कुछ देर बाद पिनाक के कमरे के दरवाजे पर धक्का लगता है और उस कमरे में एक नौजवान और एक किशोर प्रवेश करते हैं l
पिनाक - आओ आओ युवराज... आओ राजकुमार....
(यह दोनों सात साल पहले वाले विक्रम और वीर हैं)
विक्रम - छोटे राजा जी... हमे यूँ.. अचानक कलकत्ते से क्यूँ बुलाया गया.... हमे कुछ समझ में नहीं आया....
पिनाक - वही समझाने तो आप लोगों को यहां पर बुलाया गया है.... बैठिए आप दोनों....
विक्रम और वीर दोनों पास के सोफ़े पर बैठ जाते हैं l
पिनाक - युवराज आप अभी बीस वर्ष के हैं...
और वीर आप सत्रह वर्ष के....
सो युवराज आपकी कॉमर्स की ग्रैजुएशन ख़त्म होने को है.... और राजकुमार आपका इंटर का भी यह आखरी साल है.... पर आप दोनों आपका अपना पढ़ाई अब यहीं पर खतम करेंगे....
दोनों भाई एक दूसरे को देखते हुए - क्या.... पर क्यूँ....
पिनाक - बड़े राजा जी ने... हम तीनों को मिशन दिया है... जिसे हम तीनों मिलकर पुरा करना है.....
विक्रम - कैसा मिशन...
पिनाक - अब आप न्यूज चैनल्स के ज़रिए समझ चुके होंगे.... हम अभी रूलिंग पार्टी की सदस्यता ली है....
विक्रम - जी....
पिनाक - वह इसलिए.... के आने वाले दो साल बाद.... हमे भुवनेश्वर सहर का मेयर बनना है....
विक्रम - क्या.... राजगड़ से बाहर.... राजनीतिक पदवी.... पर क्यूँ...
पिनाक - कुछ हालात ऐसे बन गए हैं... की हमे खुदको राजगढ़ में सीमित रखना असंभव हो गया है.... यह राजधानी है... समूचे राज्य के राजनीतिक गड़.... यहाँ पर नजर भी रखना है... और पीछे रहकर परिचालन भी करना है...
विक्रम - ठीक है.... आपका तो समझ में आ गया.... हमे क्या करना होगा....
पिनाक - आप दोनों को ******* कॉलेज में एडमिशन लेनी होगी.. आगे की पढ़ाई के लिए....
विक्रम - और... कॉलेज में... हमे क्या करना होगा.....
पिनाक - आपको कॉलेज में इलेक्शन लड़ना होगा.... स्टूडेंट्स यूनियन का प्रेसिडेंट बनना होगा....
विक्रम - उससे... होगा क्या...
पिनाक - युवराज.... हमे लक्ष दिया गया है.... दो साल बाद मेयर बनने के लिए.... और आपको सारे स्टूडेंट्स को लीड करना है.... फिर पार्टी में.... युवा मंच का चेहरा बनना है.... उसका अध्यक्ष बनना है....
वीर - और मेरा क्या काम है.....
पिनाक - आप युवराज जी को फॉलो करेंगे... उनके बाद कॉलेज के यूनियन के प्रेसिडेंट बनेंगे... और हाँ आइंदा ध्यान रहे... बड़े राजा जी या राजा साहब जी के सामने मैं, या तुम हरगिज़ मत कहिएगा... सिर्फ हम या आप...
वीर - ठीक है....
विक्रम - इस साल हम कॉलेज में जॉइन करेंगे... और इसी साल हमे स्टूडेंट्स इलेक्शन जितना भी होगा....
पिनाक - हाँ... युवराज... क्यूंकि कॉलेज से ही नई पीढ़ी वोट देने निकलती है... उसी नई पीढ़ी के हीरो बनना है आपको.... बाई हूक ओर क्रुक.... आप अपने कॉलेज के बॉक्सिंग चैंपियन रहे हैं... इसलिए उस जरिए भी आपको काम लेना होगा....
विक्रम - क्या यह आपको इतना आसान लगता है....
पिनाक - नहीं बिल्कुल भी नहीं.... पर जो आसानी से हो जाए... उसे करने में मजा ही क्या....
विक्रम - किसीकी बने बनाए खेल में घुस कर अपने नाम करना है... किसीका जमाया हुआ सिक्का अपने नाम करना है... वह भी एक साल में...
पिनाक - हाँ.... युवराज... आप क्षेत्रपाल हैं.... यह ना भूलें.... आज हमारे वंश का एक महा मंत्र आप दोनों को प्रदान करता हूं.... क्षेत्रपाल परिवार के पुरुषों के हाथ कभी आकाश की ओर नहीं होती..... सिर्फ ज़मीन की ओर होती है.... हम कुछ दे सकते हैं या फिर छीन सकते हैं.... पर हाथ ऊपर कर मांग नहीं सकते.... इसलिए चाहे कोई भी हो..... जिसका बना बनाया या जमाया हुआ सिक्का... आपको छिनना है.... कैसे यह आप तय करें....
विक्रम यह सब सुनने के बाद एक गहरी सांस लेता है और चल कर खिड़की के पास खड़ा होता है l नीचे जाते हुए गाड़ियों को देखता है l
पिनाक उसके पास आकर खड़ा होता है l
पिनाक - क्या सोचने लगे युवराज....
विक्रम - इस सहर पर राज करना है.... पर कैसे और कहाँ से शुरू करें....
पिनाक - राजगढ़ में जैसा है वैसे तो बिल्कुल नहीं..... सबके मन में खौफ को इज़्ज़त के साथ बिठाना है.... खौफ और इज़्ज़त के बीच एक पतली सी लाइन होनी चाहिए.....
विक्रम पिनाक की ओर देखता है और फिर कमरे में चहल कदम करने लगता है l पिनाक आकर वीर के पास बैठ जाता है और इंटरकॉम में तीन चाय के लिए ऑर्डर करता है l

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वैदेही जा चुकी है, तापस वैदेही को बाहर छोड़ कर अपने चैम्बर की ओर जा रहा है l तभी उसकी मोबाइल बजने लगता है l मोबाइल निकाल कर देखता है तो उसे स्क्रीन पर प्रतिभा का नाम दिखता है तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है l फोन उठा कर - हैलो जान....
प्रतिभा - एक खबर है.... शायद आपको खुश करदे....
तापस को शरारत सूझती है - मुझे खुश करदे.... वाव... अररे.... जान घर पर नया मेहमान आने वाला है... वाव... मुझे तो तुम्हारे फोन से ही मालुम हो गया है.... के मुझे यह खुश खबरी सिर्फ़ अपने स्टाफ वालों से ही नहीं..... बल्कि पूरे मोहल्ले में मिठाई बंटवा देता हूं.... प्रत्युष को भी खबर कर देता हूँ.... आख़िर इतने सालों बाद खुशी का मौका हाथ लगा है....
प्रतिभा - (गुस्से से) हो गया...
तापस - अररे अभी कहाँ.... मैंने जगन के हाथों से मिठाई.. अभी तक मंगवाया नहीं है....
प्रतिभा - (अपनी दांत पिसते हुए) अगर अभी आप चुप नहीं हुए.... तो आज ड्रॉइंग रूम में सोईयेगा....
तापस - इतनी छोटी गुस्ताखी के लिए.... इतना बड़ा सजा.....
प्रतिभा - मैं... अब... अपना फोन काटती हूँ...
तापस - अरे.... गुस्सा... थूक दो.... यार थोड़ा मज़ाक कर रहा था..... सुबह से इधर उधर की सोच सोच कर टेंशन में था.... तुमसे बात की.... तो सारा टेंशन दूर हो गया....
प्रतिभा - ठीक है... ठीक है.....
तापस - अरे यार... थोड़ा मुस्कराते हुए.... कहो ना...

प्रतिभा - हाँ तो सुनो..... तुम्हारे जैल में जो कांड हुआ है ना.... विश्व और रंगा वाला.....
तापस - हाँ क्या हुआ....
प्रतिभा - अरे कुछ नहीं.... उस रंगा का वकील.... रंगा के झारपडा सब जैल को शिफ्ट कराने के लिए पीटीशन फाइल किया है....
तापस - ओह.... उसने वजह क्या डाला है....
प्रतिभा - यही तो खुशी की बात है......... उसने वजह हेल्थ लिखा है..... कोई सेक्यूरिटी की बात लिखी नहीं है.... और यह भी लिखा है.... डॉक्टर के फिटनेस सर्टिफिकेट देने के तुरंत बाद सेंट्रल जैल के बजाय सीधे... झारपडा सब जैल को शिफ्ट कराया जाए.....
तापस - यह वाकई.... बहुत अच्छी खबर दी है तुमने....
प्रतिभा - अच्छा ठीक है.... फोन रखती हूँ.... अब.... और हाँ शाम को मिठाई तैयार रखना....
तापस - क्यूँ... मौहल्ले में बंटवाना है क्या....
प्रतिभा - आ..... ह..... आज तो तुम्हें... मैं बेड रूम में घुसने नहीं दूंगी....
इतना कह कर प्रतिभा फोन काट देती है l तापस के चेहरे पर एक शरारत भरा मुस्कान नाच रही है l फोन रख कर मुड़ा तो देखा उसके पास दास खड़ा है l
तापस - अरे दास... आओ... एक अच्छी खबर है...
फिर तापस दास को रंगा के शिफ्ट होने की बात बताता है l
दास - यह अच्छी खबर तो है..... पर....
तापस - पर क्या दास...
दास - सर... सॉरी फॉर अब्युसिव लैंग्वेज... बट.... विथ योर परमिशन... सर....
तापस दास को घूर के देखता है फ़िर अपना सर हिलाते हुए - ओके दास... कंटिन्यु....
दास - सर थ्योरी के हिसाब से बात दिल की होती है.... पर लोग प्रैक्टिकल में लोग गांड की बात करते हैं....
तापस - (आवाज़ को कड़क करते हुए) दास.....
दास - सर इसीलिए तो आपसे..
परमिशन ली थी....
तापस - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म.... ठीक है..... आगे बोलो......
दास - सर अगर दिल कमजोर हो तो.... किसी किसी परिस्थिति में डर लगना स्वाभाविक है.... यह थ्योरी है.... पर लोग प्रैक्टिकल में गांड फटना कहते हैं....
दास ने जिस तरह से कहा तापस की हंसी छूट जाती है l पर दास नहीं हंस रहा है, तो तापस इशारे में आगे बोलने को कहता है l
दास - और सर अगर कोई डर को जीत जाता है.... आई मिन हरा देता है... तो थ्योरी के हिसाब से दिल मजबुत होना कहते हैं.... पर प्रैक्टिकली लोग गांड में दम होना कहते हैं....
तापस - (अपनी हंसी को रोकते हुए) ह्म्म्म्म तो....
दास - सर अब आते हैं असली मुद्दे पर.... रंगा अपने इलाके में मशहूर था.... आख़िर अपने इलाके का नामचीन पहलवान था.... फिर गुंडागर्दी में नाम और रुतबा कमाया....
तापस अब दास को सिरीयस हो कर सुनने लगा l
दास - रंगा का सब कुछ सही जा रहा था... के उसके गांड के दम में विश्व ने आधा इंच गहरा और चार साढ़े चार इंच चीरा मार दिया...
एक ऐसी जगह.... जहां का तकलीफ ना रंगा खुद देख पा रहा है.... ना आगे चलकर किसीको दिखा पाएगा....
तापस - तुम कहना क्या चाहते हो दास.....
दास - यही.... के विश्व ने रंगा की गांड फाड़ दी है प्रैक्टिकली...
तापस - दास... आखिर कहाना क्या चाहते हो......
दास - रंगा.... वापस आएगा सर.... विश्व से बदला लेने.... अभी तो नहीं.... पर आएगा जरूर.... अपना रौब और रुतबा फिरसे कायम करने..... और तब शायद जैल में एक खूनी मंज़र देखने को मिले.....
तापस के माथे पर अब चिंता दिखने लगता है

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होटल के कमरे में वीर बेड पर लेटा हुआ है, विक्रम एक कोने से दूसरे कोने तक चहल कदम कर रहा है और पिनाक एक सोफ़े पर बैठा हुआ है l
पिनाक - युवराज जी... चाय नाश्ता खतम हो चुका है.... कुछ सोच लिए हों... तो प्रकाश करें...
विक्रम - छोटे राजा जी आप हमसे क्या चाहते हैं....
पिनाक - यहाँ के पुराने खिलाड़ियों के बसे बसाये को उजाड़ना और जमे जमाये को हथियाना है....
विक्रम - और यह सब तब होगा... जब इस सहर में हमारा सिक्का चलेगा.... राइट्
पिनाक - राइट्....
विक्रम - और उसके लिए... हमे डेयर एंड डेविल होना पड़ेगा...
पिनाक - राइट्...
विक्रम - इसका मतलब यह हुआ कि.... हमे इस सहर में.... एक पैरालाल सरकार चलानी है...
पिनाक - राइट्....
विक्रम - तो फिर उसके लिए हमे एक डेविल हाउस चाहिए.... ठीक राज भवन के विपरीत दिशा में.... पर सहर के बीचों-बीच.... जहां दो मीटिंग हॉल होने चाहिए.... एक प्राइवेट मीटिंग हॉल... जो नॉर्मली हर घर में होती है.... और एक पब्लिक मीटिंग हॉल जो घर के साथ अटैच हो.... और उस घर के बगल में एक जीम भी हो.....
पिनाक - ह्म्म्म्म पहली बॉल पर छक्का... गुड...
पिनाक - डेविल हाउस का नाम होगा "द हेल"...
वीर - वाव... क्या बात है...
पिनाक - आप शांत रहेंगे.... राजकुमार जी....
विक्रम - डेयर एंड डेविल के लिए एक डेविल आर्मी चाहिए.... वह भी ऑफिसीयल रजिस्टर्ड....

पिनाक - मतलब.....
विक्रम - हम एक प्राइवेट सेक्योरिटी संस्था बनाएंगे.... आज कल बड़े बड़े कॉर्पोरेट ऑफिस, बड़े बड़े बैंक, बड़े बड़े हस्पताल, बड़े बड़े होटल सब प्राइवेट सेक्यूरिटी एडोप्ट करते हैं....
तो हम भी प्राइवेट सेक्यूरिटी संस्था बनाएंगे और सबको सुरक्षा प्रदान करेंगे.... पर असल में वह हमारी आर्मी होगी....
पिनाक - वाह क्या बात है.... अब तो आपने सेंचुरी मार दी.....
विक्रम - हम जो प्राइवेट आर्मी बनाएंगे.... उसकी ऑफिस और ट्रेनिंग सेंटर भी होगी.... जिसके जरिए हम अपनी आर्मी को सबसे सक्षम बनाएंगे.... जिसकी अपनी इंटेलिजंस विंग भी होगी.... आज की डेट में किसी भी सरकारी एजेंसी को मात दे दे... हम अपनी आर्मी को उतना कॉम्पिटेटीव बनाएंगे....
पिनाक - (ताली मारते हुए) बहुत दूर की सोची है.... शाबाश....
वीर - पर यह इतना आसान नहीं है....
पिनाक - आपको क्यूँ तकलीफ़ हो रही है....
वीर - मुझे नहीं अब आपको होगी.... सेक्योरिटी संस्था का रजिस्ट्रेशन आसान नहीं होता.... उसके लिए एक्स आर्मी पर्सन या किसी बड़े ओहदे वाले एक्स पुलिस पर्सन की जरूरत पड़ेगी....
विक्रम - हाँ यह तो सच है....
पिनाक - तो उसका जुगाड़....
विक्रम - आप पहले घर की तलाश कीजिए.... बाकी मैं तलाशता हूँ....
वीर - और हम... हम क्या करें....
पिनाक - जस्ट फॉलो योर युवराज....
Nice and excellent update...
 

Kala Nag

Mr. X
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Wow simply superb
बहुत बहुत धन्यबाद मित्र
आप इस तरह जुड़े रहें
और अपना कमेंट्स देते रहें
 

ANUJ KUMAR

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SYNOPSIS

अहंकार के संरक्षण में अत्याचार, अनाचार, दुराचार, व्याभिचार पलता है.....

अहंकार के परछाई में अच्छाई छुप जाती है l अहंकार जो अपने वर्चस्व के लिए न्याय, सत्य धर्म को कुचल के रखने की कोशिश करता रहता है,
उसी अहंकार को अगर रूप व स्वरुप दें तो वह भैरव सिंह क्षेत्रपाल कहलाएगा जिसे पुरा राज्य राजा साहब के नाम से संबोधन करता है l भैरव सिंह क्षेत्रपाल का रौब रुतबा व दखल राज्य के शासन व प्रशासन तंत्र में भीतर तक है l
वह इतनी हैसियत रखता है कि जब चाहे राज्य की सरकार की स्थिति को डांवाडोल कर सकता है l
ऐसे ही व्यक्तित्व से भीड़ जाता है एक आम आदमी विश्व प्रताप महापात्र जिसे लोग विश्वा कहते हैं l उसी धर्म युद्ध में विश्वा भारी कीमत भी चुकाता है l

युद्ध में हथियार ही स्थिर व स्थाई रहता है जब कि हथियार चलाने वाले व हथियार से मरने वाले यानी कि हथियार के पीछे वाला व हथियार के सामने वालों की स्थान व पात्र काल के अनुसार बदलते रहते हैं, जिसके कारण युद्ध के परिणाम प्रभावित होता है l

जो कल हथियार को ले कर शिकार कर रहा था आज उसी हथियार से वह खुद शिकार हो रहा है l

इसी धर्म युद्ध के यही दो मुख्य किरदार हैं l बाकी सभी इनके सह किरदार हैं l इन्हीं के युद्ध का प्रतिफल ही "विश्वरूप" है l
यह कहानी सम्पूर्ण रूप से काल्पनिक है l इसके स्थान, पात्र व घटनायें सभी मेरी कल्पना ही है जो किसी जिवित या मृत व्यक्ति अथवा स्थान से किसी भी प्रकार से संबंधित नहीं है l

चूंकि मैं ओड़िशा से हूँ इसलिए इस कहानी का भौगोलिक विवरण एवं चरित्र चित्रण व संचालन ओड़िशा के पहचान से करूंगा l

मित्रों साथ जुड़े रहें
मैं अगले रवि वार को पहला अंक प्रस्तुत करूंगा l


🙏 🙏 🙏 धन्यवाद🙏🙏🙏
Nice update
 

ANUJ KUMAR

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👉पहला अपडेट
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मित्रों चूंकि रवि वार को मैं बहुत व्यस्त रहने वाला हूँ इसलिए मैं आज ही पहला अपडेट प्रस्तुत कर रहा हूं l


सेंट्रल जेल भुवनेश्वर
आधी रात का समय है l बैरक नंबर 3 कोठरी नंबर 11 में फर्श पर पड़े बिस्तर पर एक कैदी छटपटा रहा है बदहवास सा हो रहा है जैसे कोई बुरा सपना देख रहा है....


सपने में......

एक नौजवान को दस हट्टे कट्टे पहलवान जैसे लोग एक महल के अंदर दबोच रखे हुए हैं
इतने में एक आदमी महल के सीढियों से नीचे उतर कर आता है l शायद वह उस महल का मालिक है, जिसके पहनावे, चाल व चेहरे से कठोरता व रौब झलक रहा है l

वह आदमी उस नौजवान को देख कर कहता है
आदमी - तेरी इतनी खातिरदारी हुई फिर भी तेरी हैकड़ी नहीं गई तेरी गर्मी भी नहीं उतरी l अबे हराम के जने पुरे यशपुर में लोग जिस चौखट के बाहर ही अपना घुटने व नाक रगड़ कर बिना पीठ दिखाए वापस लौट जाते हैं l तुने हिम्मत कैसे की इसे लांघ कर भीतर आने की l

वह नौजवान उन आदमियों के चंगुल से छूटने की फ़िर कोशिश करता है l इतने में एक आदमी जो शायद उन पहलवानों का लीडर था एक घूंसा मारता है जिसके वजह से वह नौजवान का शरीर कुछ देर के लिए शांत हो जाता है l

जिसे देखकर उस घर का मालिक के चेहरे का भाव और कठोर हो जाता है, फिर उस नौ जवान को कहता है - बहुत छटपटा रहा है मुझ तक पहुंचने के लिए l बे हरामी सुवर की औलाद तू मेरा क्या कर लेगा या कर पाएगा l

इतना कह कर वह पास पड़ी एक कुर्सी पर बैठता है और उन आदमियों से इशारे से उस नौजवान को छोड़ने के लिए कहता है l

वह नौजवान छूटते ही नीचे गिर जाता है बड़ी मुश्किल से अपना सर उठा कर उस घर के मालिक की तरफ देखता है l
जैसे तैसे खड़ा होता है और पूरी ताकत से कुर्सी पर बैठे आदमी पर छलांग लगा देता है l पर यह क्या उसका शरीर हवा में ही अटक जाता है l वह देखता है कि उसे हवा में ही वह दस लोग फिरसे दबोच लिया है l वह नौजवान हवा में हाथ मारने लगता है पर उसके हाथ उस कुर्सी पर बैठे आदमी तक नहीं पहुंच पाते l यह देखकर कुर्सी पर बैठा उस आदमी के चेहरे पर एक हल्की सी सर्द मुस्कराहट नाच उठता है l जिससे वह नौजवान भड़क कर चिल्लाता है - भैरव सिंह......


भैरव सिंह उन पहलवानों के लीडर को पूछता है - भीमा,
भीमा-ज - जी मालिक l
भैरव सिंह - हम कौन हैं l


भीमा- मालिक, मालिक आप हमारे माईबाप हैं, अन्न दाता हैं हमारे, आप तो हमारे पालन हार हैं l

भैरव सिंह - देख हराम के जने देख यह है हमारी शख्सियत, हम पूरे यशपुर के भगवान हैं और हमारा नाम लेकर हमे सिर्फ वही बुला सकता है जिसकी हमसे या तो दोस्ती हो या दुश्मनी l वरना पूरे स्टेट में हमे राजा साहब कह कर बुलाया जाता है l तू यह कैसे भूल गया बे कुत्ते, गंदी नाली के कीड़े l

वह नौजवान चिल्लाता है - आ - आ हा......... हा.. आ

भैरव सिंह - चर्बी उतर गई मगर अभी भी तेरी गर्मी उतरी नहीं है l जब चीटियों के पर निकल आने से उन्हें बचने के लिए उड़ना चाहिए ना कि बाज से पंजे लड़ाने चाहिए l
छिपकली अगर पानी में गिर जाए तो पानी से निकलने की कोशिश करनी चाहिए ना कि मगरमच्छ को ललकारे l तेरी औकात क्या है बे....
ना हमसे दोस्ती की हैसियत है और ना ही दुश्मनी के लिए औकात है तेरी
तु किस बिनाह पर हम से दुश्मनी करने की सोच लिया l हाँ आज अगर हमे छू भी लेता तो हमारे बराबर हो जाता कम-से-कम दुश्मनी के लिए l

इतना कह कर भैरव सिंह खड़ा होता है और सीढियों के तरफ मुड़ कर जाने लगता है l सीढ़ियां चढ़ते हुए कहता है

भैरव सिंह - अब तू जिन के चंगुल में फंसा हुआ है वह हमारे पालतू हैं जो हमारी सुरक्षा के पहली पंक्ति हैं l हमारे वंश का वैभव, हमरे नाम का गौरव पूरे राज्य में हमे वह रौब वह रुतबा व सम्मान प्रदान करते हैं कि समूचा राज्य का शासन व प्रशासन का सम्पूर्ण तंत्र न केवल हमे राजा साहब कहता है बल्कि हमारी सुरक्षा के लिए जी जान लगा देते हैं l तू जानता है हमारा वंश के परिचय ही हमे पूरे राज्य के समूचा तंत्र वह ऊचाई दे रखा है.....

इतना कह कर भैरव सिंह सीढ़ियों पर रुक जाता है और मुड़ कर फिर से नौजवान के तरफ देख कर बोलता है

भैरव सिंह - जिस ऊचाई में हमे तू तो क्या तेरे आने वाली सात पुश्तें भी मिलकर सर उठा कर देखने की कोशिश करेंगे तो तुम सब के रीढ़ की हड्डीयां टुट जाएंगी l
देख हम कहाँ खड़ा हैं देख, सर उठा कर देख सकता है तो देख l

नौजवान सर उठाकर देखने की कोशिश करता है ठीक उसी समय उसके जबड़े पर भीमा घूंसा जड़ देता है l
वह नौजवान के मुहँ से खून की धार निकलने लगता है l


भैरव सिंह - हम तक पहुंचते पहुंचते हमारी पहली ही पंक्ति पर तेरी यह दशा है l तो सोच हम तक पहुंचने के लिए तुझे कितने सारे पंक्तियाँ भेदने होंगे और उन्हें तोड़ कर हम तक कैसे पहुँचेगा l चल आज हम तुझे हमारी सारी पंक्तियों के बारे जानकारी मिलेगी l तुझे मालूम था तू किससे टकराने की ज़ुर्रत कर रहा है पर मालूम नहीं था कि वह हस्ती वह शख्सियत क्या है l आज तु भैरव सिंह क्षेत्रपाल का विश्वरूप देखेगा l तुझे मालूम होगा जिससे टकराने की तूने ग़लती से सोच लीआ था उसके विश्वरूप के सैलाब के सामने तेरी हस्ती तेरा वज़ूद तिनके की तरह कैसे बह जाएगा l

नहीं...


कह कर वह कैदी चिल्ला कर उठ जाता है l उसके उठते ही हाथ लग कर बिस्तर के पास कुछ किताबें छिटक कर दूर पड़ती है और इतने में एक संत्री भाग कर आता है और कोठरी के दरवाजे पर खड़े हो कर नौजवान से पूछता है - क्या हुआ विश्वा l

विश्वा उस संत्री को बदहवास हो कर देखता है फ़िर चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान ले कर कहता है - क.. कुछ नहीं काका एक डरावना सपना आया था इसलिए थोड़ा नर्वस फिल हुआ तो चिल्ला बैठा l

संत्री - हा हा हा, सपना देख कर डर गए l चलो कोई नहीं यह सुबह थोड़े ही है जो सच हो जाएगा l हा हा हा हा

विश्वा धीरे से बुदबुदाया - वह सच ही था काका जो सपने में आया था l एक नासूर सच l

संत्री - कुछ कहा तुमने

विश्वा - नहीं काका कुछ नहीं l

इतने में दरवाजे के पास पड़ी एक किताब को वह संत्री उठा लेता है और एक दो पन्ने पलटता है फिर कहता है

संत्री - वाह विश्वा यह चौपाया तुमने लिखा है l बहुत बढ़िया है..

काल के द्वार पर इतिहास खड़ा है
प्राण निरास जीवन कर रहा हाहाकार है
अंधकार चहुंओर घनघोर है
प्रातः की प्रतीक्षा है चंद घड़ी दूर भोर है

वाह क्या बात है बहुत अच्छे पर विश्वा यह कानून की किताब है इसे ऐसे तो ना फेंको l


विश्वा - सॉरी काका अगली बार ध्यान रखूँगा क्यूंकि वह सिर्फ कानून की किताब नहीं है मेरे लिए भगवत गीता है l

संत्री - अच्छा अच्छा अब सो जाओ l कल रात ड्यूटी पर भेंट होगी l शुभरात्रि l

विश्वा - शुभरात्रि

इतना कहकर विश्वा संत्री से किताब लेकर अपने बिस्तर पर आके लेट जाता है l

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सुबह सुबह का समय एक सरकारी क्वार्टर में प्रातः काल का जगन्नाथ भजन बज रहा है l एक पचास वर्षीय व्यक्ति दीवार पर लगे एक नौजवान के तस्वीर के आगे खड़ा है l इतने में एक अड़तालीस वर्षीय औरत आरती की थाली लिए उस कमरे में प्रवेश करती है और उस आदमी को कहती है - लीजिए आरती ले लीजिए l

आदमी का ध्यान टूटता है और वह आरती ले लेता है l फ़िर वह औरत थाली लेकर भीतर चली जाती है l
वह आदमी जा कर सीधे डायनिंग टेबल पर बैठ जाता है l थोड़ी देर बाद वह औरत भी आकर उसके पास बैठ जाती है और कहती है - क्या हुआ सुपरिटेंडेंट साब अभी से भूक लग गई क्या आपको l अभी तो हमे पूरी जाना है फ़िर जगन्नाथ दर्शन के बाद आपको खाना मिलेगा l
आदमी - जानता हूँ भाग्यवान तुम तो जनती हो l आज का दिन मुझे मेरे नाकामयाबी याद दिलाता रहता है l

औरत - देखिए वक्त ने हमसे एक बेटा छीना तो एक को बेटा बना कर लौटाया भी तो है l और आज का दिन हम कैसे भूल सकते हैं l उसीके याद में ही तो हम आज बच्चों के, बूढ़ों के आश्रम को जा रहे हैं l

आदमी - हाँ ठीक कह रहे हो भाग्यवान l अच्छा तुम तो तैयार लग रही हो l थोड़ा चाय बना दो मैं जा कर ढंग के कपड़े पहन कर आता हूँ l फिर पीकर निकालते हैं l

इतना कह कर वह आदमी वहाँ से अपने कमरे को निकाल जाता है l
इतने में वह औरत उठ कर किचन की जा रही थी कि कॉलिंग बेल बजती है l तो अब वह औरत बाहर के दरवाजे के तरफ मुड़ जाती है l दरवाजा खोलती है तो कोई नहीं था नीचे देखा तो आज का न्यूज पेपर मिला उसे उठा कर मुड़ती है तो उसे दरवाजे के पास लगे लेटते बॉक्स पर कुछ दिखता है l वह लेटर बॉक्स खोलते ही उसे एक खाकी रंग की सरकारी लिफाफा मिलता है l जिस पर पता तापस सेनापति जेल सुपरिटेंडेंट लिखा था, और वह पत्र डायरेक्टर जनरल पुलिस के ऑफिस से आया था l

वह औरत चिट्ठी खोल कर देखती है l चिट्ठी को देखते ही उसकी आँखे आश्चर्य से बड़ी हो जाती है l वह गुस्से से घर में घुसती है और अपने पति चिठ्ठी दिखा कर पूछती है यह क्या है...?
Aee
 
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