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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

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*Index *
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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वीर - तु जानती है ना... मैं.. तुझसे बहुत प्यार करता हूँ...
अनु - (आँखे बंद किए हुए अपना सिर हाँ में हिलाती है)
वीर - तु भी मुझसे... बहुत प्यार करती है... है ना...
अनु - (फिर से अपना सिर हाँ में हिलाती है)

सुबह सुबह अंजलि को यही दो लाईनें बोल दीं, और वही गोदी में उठा कर -- और लगभग समान रिएक्शन!! उसके बाद जो हुआ, अब उसके बारे में क्या ही लिखूँ 😍🤩
 

Kala Nag

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Bahut Khubsurat Nag bhai
धन्यबाद मित्र
Lekin bhai update Kuchh Chhota tha is bar thoda jaldi karna
अच्छा 😯
ठीक है अगली बार कोशिश करूंगा थोड़ा बड़ा अपडेट देने की
 

RAAZ

Well-Known Member
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👉छियासीवां अपडेट
----------------------
शाम को द हैल के डायनिंग हॉल में घर के चारों सदस्य डिनर कर रहे हैं l एक तरफ वीर और विक्रम बैठे हुए हैं और दुसरी तरफ शुभ्रा और रुप दोनों बैठे हुए हैं l वीर अपनी धुन में मस्त अपनी प्लेट से खाना खाए जा रहा है l विक्रम हर निवाला मुहँ में लेते हुए शुभ्रा को निहारे जा रहा है l शुभ्रा को विक्रम का यूँ उसे निहारते रहना अंदर ही अंदर अच्छा लग रहा है पर वह अपने चेहरे पर खुशी को आने नहीं दे रही है l बीच बीच में शुभ्रा नजर उठा कर विक्रम को देखती l जब दोनों की नजरें मिलती है विक्रम के होठों पर मुस्कराहट नाच उठती है l शुभ्रा अपनी नजरें फ़ेर रुप की ओर देखती है l रुप खोई खोई सी अपना निवाला तोड़ कर मुहँ में डाल रही है l शुभ्रा उसे कोहनी मारती है l रुप हड़बड़ा कर शुभ्रा को देखती है l

शुभ्रा (इशारे से पूछती है) - क्या हुआ..
रुप - (अपना सिर ना में हिलाते हुए) नहीं... कुछ नहीं..

डिनर खतम होते ही सभी अपने अपने कमरे की ओर जाते हैं l शुभ्रा जब अपने कमरे की दरवाजे पर पहुँचती है तो देखती है एक गुलाब का फुल और एक छोटा सा खत रखा हुआ है l शुभ्रा अपनी नजरें घुमा कर देखती है I जब वह समझ जाती है कोई नहीं देख रहा तो वह गुलाब का फुल और चिट्ठी लेकर अंदर चली जाती है l अंदर बेड पर रख कर वार्डरोब से अपनी नाइट गाउन निकाल कर कपड़े बदलती है l अचानक उसे रुप की याद आती है तो वह अपने कमरे से निकल कर रुप की कमरे के बाहर खड़ी हो जाती है l कुछ सोचने के बाद दरवाजा खटखटाती है l दरवाजा खुला ही था दरवाजा धीरे से खुल जाता है l शुभ्रा देखती है बेड के हेड बोर्ड पर रुप अपना पीठ टिकाए बैठ कर छत को घुर रही है l शुभ्रा धीरे से आकर रुप के सामने बैठ जाती है

शुभ्रा - नंदिनी.
रुप - (चौंक कर) हँ.. हाँ.. हाँ भाभी...
शुभ्रा - क्या बात है... आज तुम इतना खोई खोई क्यूँ हो..
रुप - कु.. कुछ नहीं भाभी..
शुभ्रा - ठीक है... अगर बताना नहीं चाहती हो तो...(उठते हुए) मेरा यहाँ क्या काम..
रुप - (शुभ्रा की हाथ पकड़ लेती है) भाभी प्लीज... आप ऐसे मत जाओ.. प्लीज..
शुभ्रा - (बैठते हुए) अब तुम मुझे बता नहीं रही हो... तो मेरा यहाँ क्या काम..
रुप - रुको भाभी..

कह कर रुप अपनी बेड से उठती है और अपने कमरे की दरवाजे को बंद कर देती है और लौट कर शुभ्रा के सामने बैठ जाती फिर अपना सिर शुभ्रा के गोद में रख देती है

शुभ्रा - (रुप के सिर को सहलाते हुए) क्या हुआ नंदिनी.
रुप - पता नहीं भाभी... मैं अंदर ही अंदर अपने आपसे लड़ रही हूँ... मैं रोज आईने के सामने खड़े होकर... खुद से एक वादा करती हूँ... पर शाम ढलते ढलते... मैं खुद को कोसने लगती हूँ... कभी कभी लगता है... की मैं खुश हूँ... पर वजह से अनजान हूँ... कुछ बातेँ हैं... जो मैं स्वीकार नहीं कर पा रही हूँ...(चुप हो जाती है)
शुभ्रा - (रुप के सिर पर हाथ फेरते हुए) कहीं यह सब... प्रताप से तो जुड़ा नहीं है....
रुप - (शुभ्रा के गोद में ही अपना मुहँ नीचे की ओर दबा देती है)
शुभ्रा - नंदिनी... क्या तुम अपसेट हो..
रुप - (उठ कर बैठ जाती है) (दुसरी और मुहँ कर देती है
शुभ्रा - अब कुछ बोलोगी भी..
रुप - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) ठीक है भाभी... (थोड़ी देर चुप रहकर) मैं क्या करूँ... कुछ समझ में नहीं आ रहा... मैं... हर रोज सुबह अपने आप से वादा करती हूँ... के.. प्रताप से नहीं मिलूंगी... अगर मिलूंगी... तो बात नहीं करूंगी... पर शाम आते आते खुद को कोसने लगती हूँ... क्यूँ.. क्यूँ... मैं खुद को रोक नहीं पा रही हूँ... जैसे वह एक चुंबक है... मैं उसके तरफ खिंची चली जा रही हूँ...वह पहल नहीं करता... पहल मुझसे ही हो जाती है... (असमंजस सी नजर से शुभ्रा को देखने लगती है)
शुभ्रा - हूँम्म्म्म... फिर से पूछती हूँ... क्यूँ...
रुप - वह... जब भी सामने आता है... बातेँ करता है... तो मुझे लगता है कि... वह अनाम है... पर जब यह बात याद आता है... की उसके माँ बाप हैं... तब आपने आप से जद्दोजहद करने लगती हूँ... कभी कभी... एक पल के लिए लगता है कि हां... मैं उसे जान गई हूँ... तभी उसकी शख्सियत का और एक चेहरा... सामने आ जाता है... तब दिल और दिमाग में जंग छिड़ जाती है... क्या यह अनाम हो सकता है... इसी कशमकश के भंवर में घिरी रहती हूँ...
शुभ्रा - हूँम्म्म्म्म्... तो तुम्हें प्रताप बुरी तरह से डिस्टर्ब करने लगा है...
रुप - (चुप रहती है)
शुभ्रा - तो ड्राइविंग स्कुल में छह दिन हो गए... इस हफ्ते का कोटा खतम हो गया... अगले हफ्ते के छह दिन बाद तुम्हें लाइसेंस भी मिल जाएगा...
रुप - (चुप रहती है)
शुभ्रा - हूँ... बातेँ घुमाने से भी फायदा नहीं हो रहा है...
रुप - कभी कभी लगता है कि... प्रताप का गला दबा दूँ.... इतना मारूं... इतना मारूं... के
शुभ्रा - के...
रुप - पता नहीं क्या करूँ....

शुभ्रा हँसने लगती है l रुप खीज जाती है l शुभ्रा अपनी हँसी रोक कर रुप से

शुभ्रा - अच्छा यह बताओ... जिस दिन तुम्हारे बड़े भैया आए... उस दिन तुम बड़ी खुश भी थी और खोई खोई भी थी... मैंने जब पूछा... तब तुमने कहा कि कोई चैलेंज जीता था...
रुप - अच्छा वह... (एक मुस्कान आ जाती है) उस दिन... मैं विक्रम भैया से मिलकर आने के बाद... (शुभ्रा को उस दिन की बस में हुई सारी बातें बताती है)
शुभ्रा - ओ... तो तुमने शरारत भी की थी उस दिन...
रुप - ही ही ही...(हँसती है)
शुभ्रा - खैर यह बताओ चैलेंज क्या था...
रुप - हम दोनों एक घंटे पहले पहुंच गए थे...

फ्लैशबैक

विश्व और रुप अपने क्लास में बैठे हुए थे l रोहित उन्हें क्लास में देख कर

रोहित - क्या मैं सपना देख रहा हूँ.. या जाग रहा हूँ... यु टू... इतने जल्दी कैसे...
विश्व - जी वह... मेरा काम जल्दी खतम हो गया था इसलिए...
रुप - जी मेरा भी...
रोहित - ओ.. तो यहाँ क्या कर रहे हो... तो आओ फील्ड में गाड़ी कैसे मूव हो रहे हैं... देखते हैं आओ...
विश्व - हमारी तो वर्चुअल लर्निंग चल रही है ना...
रोहित - तो क्या हुआ... गाड़ी मैं चलाउंगा... तुम दोनों बैठ कर... गियर और स्टियरिंग के साथ एबीसी कैसे ऑपरेट किया जाता है... मेरे साथ देखोगे आओ...
विश्व - एबीसी... मतलब...
रोहित - एक्सीलेटर, ब्रेक एंड क्लॉच... समझ में आ गया...
विश्व - जी...
रोहित - देन कॉम ऑन...

विश्व और रुप दोनों उठ कर रोहित के साथ ग्राउंड में पहुँचते हैं l रोहित एक मारुति 800 में ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है उसके बगल वाले सीट में विश्व बैठ जाता है और पीछे वाली सीट के बीच में रुप बैठ जाती है l रोहित गाड़ी स्टार्ट करने के बाद एक राउंड लगा कर गाड़ी रोक देता है l तभी उसके फोन पर एक कॉल आता है l रोहित गाड़ी से उतर कर फोन पर बात करते हुए ऑफिस के तरफ भागता है l वहीँ पर विश्व और रुप रह जाते हैं l

विश्व - आगे बैठने का फायदा हुआ है मुझे... कम से कम... आज आपसे ज्यादा सीख गया...
रुप - (तुनक कर) अच्छा... ऐसा क्या सीख लिया आपने...
विश्व - रोहित... स्टीयरिंग से लेकर गियर तक... जो भी कर रहा था... मैंने सब देख लिया...
रुप - ओ... तो इसका मतलब... आपने गाड़ी चलाना सीख लिया.. क्यूँ..
विश्व - नहीं ऐसी बात नहीं है... शायद मुझे ऐसा कहना नहीं चाहिए था...
रुप - हाँ.. आपको यह कहना चाहिए था... की हम दोनों ने आज मिलकर जो भी सीख... बढ़िया रहा...
विश्व - पिछली सीट पर... आपको सब दिख रहा था क्या...
रुप - दिख भले ही ना रहा हो... रोहित जोर जोर से बोल कर जितना भी बताया... बहुत बताया...
विश्व - (हँसकर छेड़ने के अंदाज में) ना.. नहीं... सिर्फ़ बता देने से... आप जान गई... सीख गई...
रुप - (जबड़े भींच कर जोर जोर से सांस लेने लगी, और दांत पिसते हुए ) हाँ सीख गई...
विश्व - अच्छा... (कार को दिखाते हुए) यह रही गाड़ी... चाबी भी लगी हुई है... जाइए... एक राउंड फिल्ड के लगा कर तो आइये...
रुप - क्यूँ...
विश्व - देखा...
रुप - क्या...
विश्व - यही.. के आप पीछे हट रही हैं...
रुप - अगर मैंने गाड़ी घुमा कर यहीँ पर पार्क करा दिया तो...
विश्व - तो... (हकलाने लगता है) तो.. तो.. तो.. मैं आज बैठ कर क्लास नहीं अटेंड करूँगा...
रुप - ठीक है...

रुप अपना वैनिटी विश्व को थमा देती है और गाड़ी के भीतर बैठ कर गाड़ी को स्टार्ट करने के लिए चाबी घुमाती है l गाड़ी स्टार्ट हो जाती है l गियर रियर पर लेकर गाड़ी पार्क से निकालती है और गाड़ी को लेकर ग्राउंड का एक चक्कर लगा कर वापस पार्क कर देती है l गाड़ी से उतर कर विश्व के पास आती है l विश्व की आँखे हैरानी से बड़ी हो गई थीं और मुहँ खुला हुआ था l रुप उसके सामने खड़ी होती है और अपनी उंगली विश्व के ठुड्डी पर रखते हुए
"प्रताप बाबु अपना मुहँ तो बंद करो"

फिर अपना वैनिटी बैग लेकर
'हूँह्'
कहते हुए क्लास की ओर जाते जाते रुक जाती है और बिना पीछे देखे
"तुम अपनी जुबान पर टिके रहना, हुँह्ह्.."
कह कर चली जाती है l

फ्लैशबैक में विराम

शुभ्रा - तुमने...(हैरान हो कर) दुसरे दिन ही गाड़ी चाला लिया...
रुप - भाभी... चैलेंज के लिए हाँ तो कर दिया... पर गाड़ी के अंदर अगर प्रताप बैठा होता ना... वह हँस हँस कर लोट पोट हो गया होता...
शुभ्रा - क्या...
रुप - हाँ भाभी... मैं गाड़ी के अंदर.. रोते रोते डरते डरते... भगवान नाम लेकर ड्राइव कर रही थी... गाड़ी पार्क करने के बाद... प्रताप से अपना वैनिटी बैग लेकर... बिना पीछे मुड़े वहाँ से चल दी... कहीं और थोड़ी देर रुकती... तो उसे मेरी हालत का अंदाजा हो गया होता....
शुभ्रा - ओ... हा हा हा हा हा हा... (शुभ्रा हँसने लगती है)

रुप भी शुभ्रा के साथ मुस्करा देती है और फिर शुभ्रा के साथ हँसने लगती है l

शुभ्रा - (अपनी हँसी रोक कर) और... उस दिन प्रताप खडे हो कर क्लास किया क्या...

फ्लैशबैक

क्लास में सभी अपनी अपनी कुर्सी में बैठे हुए हैं l पर विश्व अपनी जगह पर खड़ा है l

सुकुमार - क्या बात है प्रताप बेटा... खड़े क्यूँ हो बैठ जाओ...
विश्व - नहीं अंकल... आज मेरा व्रत है... आज मुझे खड़े हो रहना होगा...
सुकुमार - व्रत... कैसा व्रत...
विश्व - हनुमान जी का व्रत...
सुकुमार - पता नहीं आज कल के बच्चे... क्या क्या व्रत करते रहते हैं... अरे इस उम्र में... अच्छी पत्नी के लिए व्रत रखो... वह भी शिव मंदिर में जा कर... हनुमान जी का व्रत किस लिए...
विश्व - अच्छी सेहत और ताकत के लिए...

तभी क्लास के अंदर रोहित आता है l सभी क्लास के भीतर बैठे हुए हैं पर विश्व वैसे ही खड़ा रहता है l

रहित - अरे प्रताप... खड़े क्यूँ हो बैठ जाओ...
विश्व - नहीं रोहित... मैं आज बैठ नहीं सकता...
रोहित - क्यूँ...
रुप - वह असल में...
रोहित - तुम क्यूँ बोल रही हो... आई आस्क्ड हिम ना..
रुप - बट आई नो हिज प्रॉब्लम... ही वोंट टेल यु...
रोहित - रियल्ली... क्यूँ प्रताप... क्या बात है...
विश्व - (मुस्कराते हुए) क.. कुछ नहीं रोहित... सी इज़ जस्ट कीड्डींग...
रुप - नो रहित... आई एम क्वाइट सीरियस...
रोहित - देन यु टेल मि....
रुप - (प्रताप की ओर देखती है, प्रताप उसे अपना सिर हिला कर ना बोलने को कहता है) रोहित... प्रताप को... पाइल्स है...
विश्व और रोहित - व्हाट...
विश्व - रोहित... यह झूठ बोल रहीं हैं...
रुप - व्हाट... मैं झूठ बोलूंगी... सी रोहित... खाली बस में भी खड़े खड़े आए हैं...
रोहित - वन मिनट... प्रताप... तुम तो क्लास में बैठे हुए थे ना... और ड्राइविंग के टाइम... मेरे पास... मेरे साथ बैठे थे...
रुप - ऑफकोर्स रोहित... पर तुम्हारी ड्राइविंग टेक्नीक देख कर... उनकी पाइल्स फट कर निकल गई...

फ्लैशबैक विराम

शुभ्रा अपनी पेट पकड़ कर हँसती है l रुप भी उसे हँसते देख कर उसके साथ हँसने लगती है l

शुभ्रा - ओह... गॉड... (हैरानी भरी लहजे में) नंदिनी... आम तौर पर... लड़के ल़डकियों को छेड़ते हैं... तुम तो... ओह माय गॉड... तुममें यह एंगेल भी है...
रुप - (हौले से मुस्करा देती है)
शुभ्रा - बेचारा प्रताप... तुमने उसका क्या हाल बना दिया था उस दिन... वह तुमसे नाराज नहीं हुआ...
रुप - (शर्मा कर सिर झुकाते हुए) नहीं भाभी...
शुभ्रा - अच्छा... मतलब तुममें दोस्ती बरकार रहा...
रुप - दोस्ती... वह तो कल हुई... वह भी पहल करते हुए मैंने की...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... मतलब... ड्राइविंग स्कुल में चार दिनों के बाद.... तुम्हारे और प्रताप के बीच दोस्ती हुई.... (एक गहरी सांस लेते हुए थोड़ी देर चुप हो कर) खैर... दोस्ती के बाद तुमनें प्रताप का ऐसा कौनसा पहलु देख लिया... की तुम उसे समझ नहीं पाई....

रुप शुभ्रा की ओर देखती है और

फ्लैशबैक

भाश्वती और रुप एक जगह बैठे हुए हैं l भाश्वती सुबक रही है l

रुप - (चिढ़ कर, उठ खड़ी होती है) अरे यार... पंद्रह मिनट हो गए हैं... तुझे रोते हुए... अब तो मुझे बता दे क्या हुआ है... मुझसे कैसी मदत चाहिए तुझे....
भाश्वती - वही... जो पहले दिन स्कुल आते हुए... मैंने बस स्टॉप में किया था... तेरी आइडेंटिटी का इस्तमाल...
रुप - व्हाट... पर क्यूँ... तुने ही तो बताया... वह ऑटो वाला और उसका साथी तुझे स्टॉल्क नहीं कर रहे हैं... फिर...
भाश्वती - उसी हरामी के वजह से तो... अब मैं बड़ी मुसीबत में फंस गई हूँ...
रुप - क्या... क्या किया इस बार उसने...

भाश्वती कुछ कहने के वजाए सुबकने लगती है l रुप उसके बगल में बैठ जाती है और भाश्वती को रोते हुए देखती है l फिर अपनी हथेली में अपनी चेहरे को लेकर कोहनी को घुटने पर रख कर भाश्वती की चुप होने की इंतजार करने लगती है l कुछ देर बाद भाश्वती का सुबकना थम जाता है l

भाश्वती - कितनी डफर है तु... रो रही हूँ... कम से कम पीठ को मेरी थपथपा सकती थी...
रुप - बस कर... रो लेने से ग़म हो या दर्द... दुर तो नहीं होती पर हल्का जरूर हो जाती है... इसलिए तुझे मैंने रोने दिया... अब बता क्या हुआ...
भाश्वती - उस दिन प्रताप के वजह से वह ऑटो वाला और उसका साथी... अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाए... तो रोज स्टॉल्क करने लगे... मैं इग्नोर करती रही... उनका हिम्मत दो दिन पहले बहुत बढ़ गया था... परसों की बात है... मैं ड्राइविंग स्कुल से लौट कर घर जा रही थी... ठीक हमारे घर के गली की मोड़ पर मेरे सामने खड़े हो गए... फब्तीयाँ कसने लगे... मैं फिर भी इग्नोर करते हुए आगे बढ़ रही थी कि अचानक एक ने मेरा हाथ पकड़ लिया... मैं छुड़ाने की कोशिश करने लगी... जब छुड़ा नहीं पाई तो चिल्लाने लगी... अंकल... आंटी... काका... काकी... बबलु... दिनेश भैया... मेरी चीख सुन कर... हमारे कालोनी के सारे लोग इकट्टा हो गए... फिर भी.. वह हरामी कुत्ते अपनी हेकड़ी दिखाने से बाज ना आए... फिर तो लोगों ने आव देखा ना ताव... ऐसी मरम्मत की... के मुझे लगा वह कमबख्त फिर कभी मुझे क्या और किसी लड़की को नहीं छोड़ेंगे... (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) मैं गलत थी... उन लोगों ने एक बेवकूफी भरा कदम उठाया... जो मेरी गर्दन पर आ गई...
रुप - क्या किया उन्होंने...
भाश्वती - उन्होंने मुझे डराकर राजी कराने के चक्कर में... उस इलाके की गुंडे को मुझे डराने के लिए सुपारी दी...
रुप - (चौंक कर) व्हाट...
भाश्वती - हूँ...
रुप - तो क्या वह गुंडा... तुझे डराने आया...
भाश्वती - डराने आता तो ठीक था... पर कुछ और हो गया...
रुप - ओ हो... तु सस्पेंस क्यूँ बढ़ा रही है...

भाश्वती रुप की ओर देखती है
एक छोटा सा फ्लैशबैक

भाश्वती कॉलेज जाने के लिए बस स्टॉप पर खड़ी है l एक आदमी उसके पास चल कर आता है l वह आदमी सफेद कपड़ों में था, गले में उसके सोने का चेन था वह भी बहुत मोटा I उसके शर्ट के कलर उठा हुआ था I तेल से सने बालों को कंघी किया हुआ था और आँखों में काला चश्मा चढ़ाए हुए था l

आदमी - वाव.. यह चिरकुट लोग बोले थे मेरे को... तु एक झकास आईटॉम है... साले झूठ बोले थे मेरे को... तु आईटॉम नहीं बल्कि अटॉम बॉम्ब है...
भाश्वती - ऐ मिस्टर... माइंड योर टंग... क्या बकवास किए जा रहे हो...
आदमी - आह... क्या मस्त आवाज है तेरी... वह इंग्लिश में क्या बोलते हैं... हाँ.. हनी... बिल्कुल वही...
भाश्वती - बकवास बंद करोगे... या चिल्ला कर इकट्ठा करूँ लोगों को...
आदमी - ऐ छप्पन छुरी... मैं इधर तेरी मदत को आया है... यह देख...

अपनी उंगलियों को मोड़ कर जीभ के नीचे रख कर सिटी बजाता है, दूर खड़े एक वैन से कुछ मवाली टाइप के लोग उतरते हैं, उन्हें देख कर वह आदमी चिल्ला कर

आदमी - उन दो चिरकुट को यहाँ लेकर आओ...

उसके आदमी ऑटो वाले को और उसके साथी को इन दोनों के पास लेकर आते हैं l

आदमी - (ऑटो वाले से) क्या रे.. यही लड़की है क्या...
ऑटो वाला - हाँ... शंकर भाई.. यही वह नकचढ़ी लड़की है...
शंकर - (एक झन्नाटे दार थप्पड़ रसीद कर देता है) भाभी बोल बे कुत्ते...
ऑटो वाला - (अपना गाल सहलाते हुए) यह क्या शंकर भाई... मैंने तो आपसे सब कुछ बोला था... सिर्फ इसे डराने के लिए... पैसे भी दिए थे...
शंकर - (दोनों हाथों से उसके कलर पकड़ कर अपने तरफ खींच कर) सुन बे... यह आज से मेरी आईटॉम है... और फिर कभी इसके आस पास दिखा भी ना... तो तेरे इतने टुकड़े करूंगा... के चील कौवे बटोरते बटोरते थक जाएंगे... (फिर उसे धक्का देता है) चल जा इधर से... तेरे वजह से यह मेरे को मिली.. इसी खुशी में... तेरे को जिंदा छोड़ रहा हूँ... (अपने जेब से रिवॉल्वर निकाल ऑटो वाले को दिखाते हुए) अगली बार तु मेरे को... इस गली में छोड़... शहर में भी दिखना नहीं चाहिए क्या... वरना दौड़ा दौड़ा कर तुझे ठोक दूँगा... चल भाग यहाँ से...

ऑटो वाला और उसका साथी दोनों वहाँ से बिना पीछे मुड़े दुम दबा कर भाग जाते हैं l यह सब जो हो रहा था, अब तक भाश्वती के सिर के ऊपर से जा रहा था पर जब उसने शंकर के हाथ रिवॉल्वर देखी तब बात को कुछ कुछ समझने लगी I

शंकर - ऐ... क्या नाम है तेरा...
भाश्वती - (कहलाते हुए) ज..ज. जी.. भ.. भ.. भाश्वती...
शंकर - तेरा नाम मेरे जुबान पे चढ़ नहीं रहा... कई नहीं... मैं तेरे को बाती बुलाएगा... हाँ तो बाती... कौनसे कॉलेज में पढ़ती है...
भाश्वती - XXXX कॉलेज...
शंकर - ठीक है... कल से मैं तेरे को अपनी गाड़ी में बिठा कर कॉलेज में छोड़ेगा... और लाएगा...
भाश्वती - क.. क.. क्यूँ...
शंकर - क्यूंकि आज से तु मेरी है... इस शहर में कोई नहीं है... जो मेरे पर हाथ डाले या पंगा ले... क्यूं के पुरा शहर मेरे को... सेक्शन शंकर के नाम से जानता है...
भाश्वती - (रुलाई फुट जाती है)
शंकर - ठीक है... रो मत... मैं तेरे को इतवार तक टाइम देता है... सोम वार से मैं ही तेरे को कालेज में छोड़ेगा और लाएगा... गाड़ी बोले तो... बाइक... समझी क्या...

भाश्वती की फ्लैशबैक खतम

रुप - वह तो तुझे सोमवार से छोड़ेगा बोला था ना... फिर तु आज क्यों कॉलेज नहीं आई..
भाश्वती - समझने की कोशिश कर... मैं... कल से शॉक में थी... मम्मी को भी अभी तक नहीं बताया है... अगर बताया तो... (रोते हुए) पता नहीं उन पर क्या गुज़रेगी...
रुप - ओ... इसके लिए... तु मेरी आइडेंटिटी का फ़ायदा उठाना चाहती है...
भाश्वती - (सुबकते हुए) हूँ...
रुप - आइडेंटिटी से बढ़िया है कि... यह मैटर मैं वीर भैया को कह दूँ...
भाश्वती - तु कुछ भी कर यार... मुझे बस उस सेक्शन शंकर से छुटकारा दिला दे... तुझे यकीन है... तेरे वीर भैया... उससे भिड़ने को तैयार हो जाएंगे...
रुप - पता नहीं... पर बताना तो पड़ेगा ही... उसके बाद कैसे रिएक्ट करेंगे... यह भी देखना पड़ेगा...

कुछ देर के लिए दोनों चुप हो जाते हैं l इन दोनों की हरकतें दुर से विश्व देख रहा था I उसे याद आता है बस में भाश्वती का चेहरा डर और दुख के वजह से उतरा हुआ था, और उसे दो लड़कों ने छेड़ने की कोशिश भी किया था l एक गहरी सांस छोड़ते हुए उन दोनों की तरफ उसका कदम बढ़ जाता है l

विश्व - मैं आई डिस्टर्ब यु.. (रुप और भाश्वती दोनों उसके ओर देखते हैं)
रुप - जी कहिए...
विश्व - (भाश्वती के सामने एड़ियों पर बैठ कर) आज जब से देख रहा हूँ... तब से इस ख़तरनाक शेरनी का चेहरा उतरा हुआ है... मैं समझ सकता हूँ... समस्या के पीछे वह लड़के जरूर थे... अगर हाँ... तो बताओ मुझे...
भाश्वती - (बिदक जाती है) तुम्हें बताने से क्या होगा... जिस तरह वह लोग तुम्हें मारे... वह सेक्शन शंकर भी मारेगा... या मार देगा...
विश्व - (नाम सुनते ही कुछ सोचने लगता है) सेक्शन शंकर... इसका पुरा नाम शंकर गौड़ है ना...
भाश्वती - हाँ...
विश्व - अच्छा... बताओगी क्या हुआ...

भाश्वती वही सब बातेँ दोहराती है जो उसने रुप को कहा था l सब सुनने के बाद

विश्व - ह्म्म्म्म... तब तो वह मेरी ही बात समझेगा... समझ जाएगा...
भाश्वती - पागल हो गए हो तुम... तुम जानते भी हो... वह क्या है...
विश्व - अच्छी तरह से... मैंने तुम्हें जुबानी बहन नहीं कहा है... माना भी है... (खड़े हो कर) अगर भरोसा कर सको तो अपने इस भाई पर भरोसा करो...
रुप - (खड़ी हो जाती है) हो... यह हम दो दोस्तों की प्रॉब्लम है... तुम कहाँ से बीच में घुस गए...
विश्व - (एक गहरी सांस लेकर छोड़ते हुए) कुछ मैटर... बॉयज कैन हैंडल बेटर देन गर्ल...
रुप - (गुस्से से विश्व की कलर पकड़ लेती है) हाउ डैर यु... (धकेलते हुए) हम लड़कियों को कमजोर कहने की...
विश्व - (पीछे हटते हुए) मैंने ऐसा कब कहा.. मैंने बस इतना कहा कि कुछ मैटर हम लड़के... अच्छे से डील कर सकते हैं...
रुप - (धकेलते हुए)ऐ... मैं तुमको इस मैटर में घुसने नहीं दूंगी...
विश्व - (पीछे हटते हुए) पर क्यूँ...
रुप - (आगे बढ़ते हुए) क्यूंकि... वह मेरी दोस्त है... उसने सारी प्रॉब्लम... मुझे पहले बताया है... तुम क्यूँ बीच में टपक पड़े... और.... और तुम मेरे दोस्त भी तो नहीं हो...
विश्व - (रुक जाता है) तो ठीक है... बना लीजिए... मुझे अपना दोस्त...
रुप - (हैरान हो कर) क.. क्क्या...
विश्व - मैंने कहा... फिर बना लीजिये मुझे अपना दोस्त...

कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है l रुप लंबी लंबी सांसे लेने लगती है l दोनों की नजरें आपस में मिलती है और ठहर जाती है l इसका आभास होते ही दोनों अपनी अपनी नजरें हटा लेते हैं l फिर रुप अपना दाहिना हाथ कलर से हटा कर विश्व की ओर बढ़ा कर

रुप - ट्..ठीक है... दोस्त...
विश्व - (मुस्कराते हुए) वाह... क्या दोस्ती बनाई जा रही है... एक हाथ में मेरा गिरेबान पकड़े हुए हैं... और दुसरा हाथ दोस्ती के लिये बढ़ा रहे हैं...

रुप को जैसे ही एहसास होता है वह झट से अपना हाथ विश्व के कलर से हटा देती है l थोड़ी असमंजस सी हो जाती है, फिर खुद को संभालते हुए

रुप - ओ ह्... ओके... ठीक है... यह लो... (अपना हाथ बढ़ाती है) दोस्त...
विश्व - (कुछ सोचता है फिर मुस्कराते हुए) दोस्त... (हाथ मिला देता है)

फ्लैशबैक में विराम

शुभ्रा - रुको रुको... (हँसते हुए हैरानी भरे आवाज में) तुमने पहली बार किसी लड़के से दोस्ती की... वह भी उसके शर्ट की कलर पकड़ कर... हा हा हा हा हा हा... वाह क्या अनोखा स्टाइल है दोस्ती करने की... हा हा हा हा...
रुप - (बिदक कर) हुँह्हँह्... आपको हँसी आ रही है... मुझे उस वक़्त कितना एंबार्समेंट फिल हो रहा था... जानती हैं...
शुभ्रा - ओह.. नंदिनी... दिस इज़ अल्टीमेट... एक नायाब दोस्ती की आगाज़...
रुप - भाभी... आपने अगर मुझे ऐसे ही छेड़ा... तो.. तो मैं नहीं बताऊंगी...
शुभ्रा - (अपनी हँसी रोकते हुए) ओके ओके... ह्म्म्म्म... आगे क्या हुआ...

फ्लैशबैक

दोस्ती के लिये हाथ मिलाने के बाद दोनों फिर भाश्वती के पास आते हैं l

विश्व - तो... आज शाम मैं और तुम... शंकर गौड़ के पास जाएंगे.... तुम्हारे आँखों के सामने उसे समझाउंगा... देखना... वह फिर कभी तुम्हें क्या... किसी और लड़की को परेशान नहीं करेगा...
भाश्वती - (हैरानी से आँखे फैला कर) क्या... मैं उससे छुटकारा पाने की सोच रही हूँ... तुम मुझे उसके पास लेकर जाना चाहते हो...
रुप - हाँ... हम उसके पास क्यों जाएं...
विश्व - उसकी हरकतों को बंद करवाने के लिए... उसके पास तो जाना ही पड़ेगा ना...
रुप - ओ...(भाश्वती कुछ कहने को होती है) चुप... तु चुप... (विश्व से) एक मिनट... (कह कर भाश्वती को विश्व से थोड़ी दुर लेकर जाती है) तु ऐसे क्यूँ रिएक्ट कर रही है...
भाश्वती - यह मार खाने वाला... शंकर को कैसे समझायेगा...
रुप - तुझे... मुझ पर भरोसा है ना...
भाश्वती - हाँ..
रुप - तो सुन... आई कैन बेट ऑन हिम...
भाश्वती - (हैरान हो कर) क्या... (फिर वह विश्व की तरफ देखती है)

विश्व उन दोनों को जिज्ञासा भरे नजरों से देख रहा था l भाश्वती को लेकर रुप विश्व के पास आती है l

रुप - तो हम स्कुल के बाद जाएंगे...
विश्व - आप क्यूँ जाएंगी...
रुप - ओ हैलो... यह मेरी दोस्त है... अगर मैं नहीं गई... तो यह भी नहीं जाएगी...

विश्व भाश्वती की ओर सवालिया नजरों से देखता है l

भाश्वती - हाँ... मेरी भी यही शर्त है...
विश्व - ठीक है...

ड्राइविंग सेशन खतम होते ही विश्व रुप और भाश्वती स्कुल के बाहर आते हैं l विश्व एक ऑटो को रुकवाता है l ऑटो के रुकते ही दोनों को बुलाता है l

भाश्वती - नंदिनी... फिर से सोच लेते हैं यार... यह हमें मरवाएगा...
रुप - तु फिक्र क्यूँ कर रही है... मैं तेरे साथ हूँ ना... इस पर नहीं तो मुझ पर तो भरोसा रख...
भाश्वती - ठीक है...

दोनों ऑटो में आकर बैठते हैं l विश्व आगे ड्राइवर के पास बैठ जाता है और उसे एक अड्रेस देकर चलने के लिए कहता है l

भाश्वती - (धीरे से रुप से) लगता है... यह सेक्शन शंकर के बारे में... अच्छी तरह से जानता है...देख ना... उसका अड्रेस तक जानता है..
रुप - तु थोड़ी देर... अपना बक बक बंद कर... मैंने तुझसे पहले ही कहा था... आई कैन बेट ऑन हिम...
भाश्वती - कैसे... मैंने देखा है... उनके हाथों इसे पीट्ते हुए...
रुप - हाँ... और वह मार खाने के खुशी में... सिटी मारते हुए आया था... है ना...

भाश्वती चुप हो जाती है l रुप भी भाश्वती से और बातचीत ना करने के लिए ऑटो से बाहर देखने लगती है l करीब बीस मिनट के बाद ऑटो एक ऑफिस के आगे रुकती है l ऑफिस के गेट पर लगे एक बड़े से आर्क में कला निकेतन प्रोडक्शन ऑफिस लिखा हुआ है l बाहर गेट पर दरवान उन्हें रोकता है विश्व देखता है दरवान के सीने पर RGSS लिखा हुआ है l विश्व दरवान को दोनों लड़कियाँ दिखा कर कुछ कहता है, तो वह दरवान फौरन अंदर जाता है l फिर थोड़ी देर बाद भागते हुए गेट खोल देता है l तीनों अब अंदर आ जाते हैं l एक दो तीन मवाली टाइप के मुस्टंडे इन लोगों के पास भाग कर आते हैं l उनमें से एक भाश्वती से

एक - आइए.. भाभी आइए... भाई आपके राह में... पलकें बिछाये बैठे हैं...

इतना सुन कर भाश्वती गुस्से से अपनी जबड़े भींच कर पहले विश्व की तरफ और फिर रुप को देखती है l विश्व अपनी आँखे बंद करके अपना सिर हिलाता है जैसे इशारे में कहा हो कि
"फिक्र ना करो.. मैं हूँ ना"
रुप भी विश्व की तरह अपनी आँखे बंद कर सिर हिला कर दिलासा देती है
"घबरा मत.. मैं हूँ ना"

तीनों कमर के ऊँचाई के बराबर एजबेस्टस के दीवार पर कांच से बने एक ऑफिस के चैम्बर में आते हैं l तीनों एक नजर घुमाते हैं l दीवार पर एक वेल्वेट बोर्ड लगा हुआ जिस पर कुछ टीवी सीरियल और म्युजिक एल्बम के पोस्टर लगे हुए हैं l एक तरफ सोफा सेट है और उसके सामने एक टेबल पर पैर फैलाए शंकर बैठा हुआ है वही सफेद कपड़े, गले में मोटा सा सोने की चेन और आँखों पर काला चश्मा l

शंकर - देख लिया... बढ़िया है ना... मेरा यह ऑफिस... पुरे भुवनेश्वर में.. मेरे इस ऑफिस चर्चे हैं... पूछो क्यूँ...(अपने चेयर से उठता है और सबके सामने आकर टेबल पर पिछवाड़ा टीका कर खड़ा रहता है) क्यूँ के वह दुसरे लोग होते हैं... जो ऑफिस के बंद कमरे में... छुप के काम करते हैं... मैं इधर सबकुछ खुल्लमखुला करता है... इसलिए कमर के हाइट तक एजबेस्टस है... बाकी पुरा का पुरा काँच है... (तीनों चुप रहते हैं, शंकर भाश्वती से) डार्लिंग... तेरे को मेरा ऑफिस ही देखना था... तो बोल देती... मैं गाड़ी भिजवाता... पर तेरे साथ यह नमूना और यह पटाखा कौन हैं...

भाश्वती को बहुत डर लग रहा था l वह खुद को कोस रही थी क्यों उसने विश्व और रुप की बात मान कर यहाँ आई l वह सिर झुकाए खड़ी रहती है l

विश्व - जी... मैं इनका भाई हूँ... और इस बारे में... आपसे बात करने आया हूँ...
शंकर - ओ... हे हे.. हे हे हे हे... मैं तो सोचा था लौंडीया नमकीन निकलेगी... मेरे ही ऑफिस में... मेरे से मांडवली करने अपने भाई को साथ लाई है... अरे वाह... तु तो तीखी भी है... अब तो मजा ही आ जाएगा... (विश्व से) मैं जानता है इसको... इसके पुरे खानदान को... इसका भाई फॉरेन गया है... (अपनी आवाज कड़क कर के) ऐ... इस शहर में... मैं ही सबका भाई है... पर इस छम्मकछल्लो के लिए सैंया है... इसलिए मेरे सामने कोई भाई गिरी नहीं क्या...
विश्व - देखिए... मैं आपको समझाने आया हूँ...
शंकर - पर मैं समझेगा कायकु... अब समझना तेरे को है... मैं क्या चीज़ है...

इतना कह कर शंकर टेबल पर रखे एक बेल को बजाता है l कुछ ही सेकंड में दस से बारह लोग अंदर आकर इन सबको घेर कर खड़े हो जाते हैं l शंकर उन लोगों इशारा करता है तो वह लोग एक साथ विश्व को पकड़ लेते हैं l

विश्व - (गिड़गिड़ाते हुए) शंकर भाई.. मुझे सिर्फ दो मिनट का टाइम दीजिए... मैं आपसे अकेले में बात करना चाहता हूँ.. सिर्फ दो मिनट... उसके बाद आपके जो मन में आये वह कीजिए...

शंकर इशारा करता है l वह सारे लोग विश्व को छोड़ देते हैं और बाहर चले जाते हैं l यह सब देख कर रुप के माथे पर शिकन पड़ जाती है l

विश्व - (रुप और भाश्वती की ओर देख कर) प्लीज... आप लोग भी बाहर जाएं... मैं शंकर भाई से बात करूंगा... प्लीज...

रुप और भाश्वती का हैरानी से मुहँ खुला का खुला रह जाती है l वह भारी कदमों में चेंबर के बाहर चले जाते हैं l अब कमरे में सिर्फ दो लोग हैं शंकर और विश्व l बाहर आकर भाश्वती और रुप खड़ी हो कर कांच दीवार पार जो हो रहा है उसे देखते हैं l

भाश्वती - बड़ी बड़ी फेंक रही थी... आई कैन बेट ऑन हिम... देखा हमारे ही सामने कैसे गिड़गिड़ाया... वह मुझे क्या बचाएगा...
रुप - (काँच के पार विश्व और शंकर को देखते हुए) मैं भी हैरान हूँ... यह सुरज पश्चिम से कैसे निकल रहा है...
भाश्वती - क्या मतलब... तुम पहले कभी प्रताप से मिली हो...
रुप - (संभल कर) नहीं... बिल्कुल नहीं... खैर अगर यह फैल होता भी है... तो भी घबरा मत... वीर भैया या विक्रम भैया किसी को भी बुला लुंगी...
भाश्वती - तेरे वजह से हिम्मत कर आई हूँ... वह देख... प्रताप हाथ जोड़ रहा है..


उधर चेंबर के अंदर विश्व हाथ जोड़ कर शंकर के सामने खड़ा हो जाता है l उसे हाथ जोड़ कर खड़ा देख कर शंकर हँसता है और

शंकर - हाँ बे... मेरी लैला का भाई... साले कुत्ते भोंक... क्या भोंकना है तुझे... तु घबरा मत... यह चेंबर साउंड प्रूफ भी है...
विश्व - अहेम... अहेम... (खरासते हुए गला ठीक करता है) शंकर भाई... उर्फ़ सेक्शन शंकर... उर्फ़... संकर्षण मुदुली...
शंकर - (चौंक कर) क्या... क्या बोला तुमने...
विश्व - सोलह साल का संकर्षण मुदुली... गंजाम जिले के सोरडा गांव का निवासी... एक दिन ट्रेन के लूटपाट के केस में दोषी पाया जाता है... उसे अदालत ब्रह्मपुर जुवेनाइल जैल भेज देती है... उसी जैल में बालिग़ होने तक रुकना था पर.... डॉक्यूमेंट्स के गलती के चलते छह महीना ज्यादा सजा काट गया... एक दिन खाने को लेकर वार्डेन के साथ कहा सुनी हो जाती है... संकर्षण उस वार्डेन के सिर पर डंडा मार कर भाग जाता है... क्यूंकि उस वार से वार्डेन की मौत हो जाती है.... भागते भागते आ पहुँचता है... भुवनेश्वर में... किस्मत से उसकी रंगा नाम के आदमी से मुलाकात होती है... इसबार वह अपना नाम... शंकर गौड़ बताता है... और अपने बाप ओंकार चेट्टी से मिलवाता है... और चेट्टी केके से... केके उसे अपने लेबर सप्लाई का सुपरवाइजर बना देता है... धीरे धीरे कंस्ट्रक्शन लेबर यूनियन बना कर उनका लीडर बन जाता है... शंकर गौड़ से सेक्शन शंकर.... उसके बाद शंकर की दोस्ती केके के लड़के विनय से होती है... विनय फ़िल्मों का दिवाना था... तुम उसके साथ मिलकर यह कला निकेतन प्रॉडक्शन हाउस बनाया है... नए टैलेंट को बढावा देने के नाम पर... नए नए लड़कियों को फंसा कर अपने नीचे लाते हो....
शंकर - (विश्व को मुहँ फाड़े सुन रहा था) यह... यह सब... तुम कैसे जानते हो...
विश्व - (वैसे ही हाथ जोड़े) एक दिन ब्रह्मपुर पुलिस संकर्षण को ढूंढ़ते हुए भुवनेश्वर आई... उसी वक़्त शंकर गौड़... एक पुराने केस में... भुवनेश्वर पुलिस के आगे सरेंडर करते हैं... और ट्रायल के लिए रिमांड खतम होने तक सेंट्रल जैल में ठहराया जाता है... हाँ यह बात और है... वह केस भी नकली था और उस केस में नाम दर्ज इंसान भी नकली था... ब्रह्मपुर पुलिस के हाथों कुछ नहीं लगा... और तुम शंकर गौड़ हो... यह स्थापित हो गया... तुम्हारा काम बन चुका था... फिर भी डर तो था... के कहीं तुम्हारे उंगलियों के निशान पुलिस के सामने ना आ जाए... इसलिए हमेशा इसी कोशिश में रहते हो... हर वक़्त ग्लॉव्स पहने रहते हो... जैसे अभी पहने हुए हो... (शंकर अपने हाथों को देखता है) जैल में था... अपना नाजायज़ बाप रंगा का काम अधूरा था... इसलिए सेंट्रल जैल के एक कैदी को शंकर ने ललकारा... वह इग्नोर करता रहा... फिर शंकर और उसके साथियों ने हर मौके पर... उस कैदी को माँ बहन की गाली बकने लगे... वह मजबूर होकर शंकर का चैलेंज एक्सेप्ट किया... जैल की मशहूर फाइट... साटर डे स्कैरी नाइट साल्यूशन... फाइट में शंकर तेजी से हाथ चलाए पर यह क्या... उसे लगना तो दूर छु भी नहीं पाए... फिर शंकर के साथी भी मैदान में उतर कर उस कैदी से भीड़ गए... बिल्कुल रंगा की साथ हुई घटना का... एक्शन रिप्ले करने... वह कैदी शंकर को लात मारा... शंकर उड़ते हुए गिरा... उसके बाद एक घुसा पेट पर मारा... शंकर.... मुहं से खून की उल्टी करते हुए कटे हुए पेड़ की तरह गिर गया... वह कैदी एक जग पानी लाकर शंकर को होश में आने तक छींट मारता रहा... शंकर होश में आया... जब शंकर आँखे खोला... उसके सिर के उपर उस कैदी बैठा देख कर... डर के मारे मूत दिया... याद है...
शंकर - (अपनी हलक से थूक बड़ी मुश्किल से निगलता है)
विश्व - वह कैदी तुम पर झुका... तुम्हारे सिर के बालों को पकड़ कर तुम्हारे चेहरे को उठाया... और तुम्हारे कानों में... तुम्हारी कुंडली की राशी नक्षत्र कहने के बाद... चेतावनी दी... दोबारा कभी मत दिखना... वरना जिस नाम का आधार कार्ड बना कर सरकार के जनगणना लिस्ट में से झाँक रहा है... उसी लिस्ट से हमेशा के लिए गायब हो जाएगा.... याद है...

शंकर के चेहरे पर पसीने की धारें बहने लग गई l वह रुमाल निकाल कर अपना चेहरा पोंछता है फिर विश्व के आगे घुटने पर आ जाता है l

शंकर - व... वी.. विश्वा भाई... म... म.. मुझे माफ़ कर दो... मैं... मैं... आपको पहचान नहीं पाया... आपके बाल छोटे हो गए हैं... और चेहरे पर दाढ़ी नहीं है... पहचान नहीं पाया...
विश्व - (अपनी जबड़े भींच कर, और आवाज़ कड़क कर) मैंने यह भी कहा था... मेरा नाम... कभी अपने जुबान पर मत लाना...
शंकर - ग.ग.गलती हो गई भाई... अभी जुबान पर आपका नाम... कभी नहीं आएगा...

काँच के दीवार के पर शंकर को हाथ जोड़ कर खड़े हुए विश्व के सामने घुटने टेक कर बैठे हुए देख कर रुप और भाश्वती दोनों की आँखे बड़ी हो जाती हैं l वह देखते हैं विश्व अपनी जगह से आगे बढ़ता है और दरवाजा खोल कर उन्हें अंदर बुलाता है l रुप और भाश्वती अंदर जाते हैं l

विश्व - शंकर भाई... यह रही (भाश्वती को दिखाते हुए) यह मेरी बहन...

इतना कह कर विश्व टेबल के पास जाता है और टेबल पर रखे उस बेल को बजाता है l बेल बजते ही शंकर खड़ा हो जाता है l तभी दरवाजा खोल कर दस बारह आदमी चेंबर में घुस जाते हैं और विश्व को कस के पकड़ लेते हैं l

शंकर - (चिल्ला कर) छोड़.. इन्हें.. छोड़ो... (सबकी पकड़ ढीली हो जाती है) अबे... हराम खोरों... मैं कहता हूँ छोड़ो...

सब के सब विश्व को छोड़ देते हैं l शंकर अपना हाथ जोड़ कर भाश्वती के सामने खड़ा हो जाता है l

शंकर - बहन... माफ कर दो बहन... प्लीज...

भाश्वती रुप की ओर देखती है और दोनों एक दुसरे को मुहँ फाड़े देखते हैं और विश्व के पास सट कर खड़े होते हैं l

शंकर - (भाश्वती से) देखिए बहन... आज से आप मेरी बहन हुईं... अगर आपको कभी कोई तकलीफ हुई... तो (विश्व से) इन भाई साहब को तकलीफ मत दीजिए... मुझे... मुझे बोलिए... मैं... मैं सब ठीक कर दूँगा... बस आप इतना कह दीजिए की मुझे माफ कर दिया....

कमरे में मौजूद सभी लोगों को शंकर को भाश्वती के सामने ऐसे गिड़गिड़ाते हुए देख कर शॉक लगता है l रुप और भाश्वती भी एक दुसरे को देखने लगते हैं l

शंकर - प्लीज बहन प्लीज...
भाश्वती - (होश में आ कर) हाँ... हाँ.. माफ किया...
विश्व - (हाथ जोड़ कर) अच्छा शंकर भाई... अपना खयाल रखना... और कहा सुना माफ करना...

इतना कह कर विश्व रुप और भाश्वती को लेकर बाहर चला जाता है l उन लोगों के आँखों से ओझल होते ही पास पड़े सोफ़े पर शंकर बैठ जाता है l उसके गुर्गों में एक आदमी पूछता है


एक - क्या भाई... यह कौन था...
शंकर - वह... वह उस लड़की का भाई था... मतलब मेरा भाई... मेरा मतलब तुम सबका भाई...

बाहर पहुँचने के बाद रुप विश्व के सामने खड़ी हो जाती है l विश्व देखता है रुप की आँखों में बहुत से सवाल हैं l विश्व अपनी नजरें फ़ेर लेता है l

रुप - तुमने ऐसा क्या कहा... कि वह घुटनों पर आ गया...
विश्व - मैंने उसे... सब सच कहा...
रुप - कैसा सच...
विश्व - मैंने कहा कि... मेरी माँ एक वकील है... और कामकाजी महिलाओं के संस्थान की अध्यक्षा हैं... और दो चार कानून के सेक्शन बताया... तो वह घुटनों पर आ गया...
रुप - (चिल्ला कर) क्या मैं तुम्हें बेवकुफ दिखती हूँ...
विश्व - अरे (भाश्वती से) अच्छा बहन तुम ही बताओ... मैं शंकर दादा के समाने हाथ जोड़ कर बात कर रहा था... या नहीं...
भाश्वती - हाँ... आप जोड़ कर खड़े थे... (रुप से) सही कह रहे हैं यार...

रुप विश्व के सामने हट जाती है l तीनों थोड़ी दुर चलने के बाद एक ऑटो करते हैं और भाश्वती के गली का पता बताते हैं l ऑटो भाश्वती के घर के सामने रुकती है l भाश्वती उतर कर विश्व को देखती है l विश्व ऑटो वाले को पैसे देकर विदा कर देता है l ऑटो वाले के जाते ही भाश्वती भाग कर विश्व के गले लग जाती है l

भाश्वती - थैंक्स भैया... (सुबकने लगती है)
विश्व - अरे प्रॉब्लम तो सॉल्व हो गया ना... फिर रो क्यूँ रही हो...
भाश्वती - (सुबकती रहती है)
विश्व - सच कहूँ तो मैं... उस शंकर दादा को थैंक्स कह रहा था...
भाश्वती - (हैरान हो कर विश्व को देखती है)
विश्व - अगर वह यह सब नहीं करता... तो मुझे यह नकचढ़ी बहन कैसे मिलती...
भाश्वती - आँह्.. ह्.. ह्

विश्व को अपने बैग से मारने लगती है, विश्व भी मार लगने से दर्द होने की ऐक्टिंग करता है l

भाश्वती - बस भैया... उस दिन मैंने चाय के लिए पुछा... तुम आए नहीं... पर आज नहीं जाने दूंगी....

फ्लैशबैक खतम

शुभ्रा - ह्म्म्म्म तो प्रताप बाबु... उस शंकर को घुटने पर ला दिए...
रुप - यही तो... उसने ऐसा क्या कहा.... की एक पोलिटिकल गुंडा... जिसके पीछे पुलिस भी खड़ी है और पॉलिटिशियन भी... वह विश्व के सामने क्यूँ डर गया... और इतना डरा की.... भाश्वती को बहन कह दिया....
शुभ्रा - हम्म... फिर... फिर क्या हुआ...
रुप - फिर होना क्या था भाभी... मैंने प्लान करके प्रताप को बाहर पहले भेज दिया... बाद में गुरू काका को बुला कर घर आ गई...
शुभ्रा - क्यूँ...
रुप - (झिझकते हुए) वह इसलिए... की मैं अपनी आइडेंटिटी छुपाना चाहती थी... प्रताप से...
शुभ्रा - ओ... अच्छा... यह तो हुई कल की बात.... आज क्या हुआ...
रुप - आज... आज तो वह कमीनी भाश्वती... पुरे कॉलेज में... उछल उछल कर... फुदक फुदक कर... अपने नए भाई.... प्रताप के बारे में सबको बता रही थी...
शुभ्रा - तो...
रुप - तो क्या.. तो कुछ नहीं... सबने प्लान बनाया है... सोमवार को प्रताप से मिलने जाएंगे... हमारे साथ... ड्राइविंग स्कुल में...
शुभ्रा - वह तो ठीक है... ड्राइविंग स्कुल में... आज क्या हुआ...
रुप - मैं पुरी की पुरी सेशन... उससे आज दुर रही... ना उसके पास गई... ना उससे बात की...
शुभ्रा - क्यूँ...
रुप - क्यूँ... क्या मतलब क्यूँ...
शुभ्रा - तुमने पहल करी... उससे दोस्ती की.. अब उससे बात भी नहीं करना चाहती... क्यूँ...
रुप - भाभी... मैं जब भी उसे देखती हूँ... मेरे अंदर... अजीब सी कशमकश शुरु हो जाती है.... जैसे उसके अंदर से अनाम झांक रहा है... ऐसा मुझे लगता है... उसकी नजर... उसकी बातेँ... ऐसा लगता है... जैसे... अनाम ही मुझसे बातेँ कर रहा है... उसे देखते ही... मैं बिल्कुल अपने बचपन वाली हरकतें करने लगती हूँ... फिर अपने अंदर एक जंग लड़ती रहती हूँ... नहीं नहीं... यह अनाम नहीं हो सकता...
शुभ्रा - फर्ज करो... अगर यह अनाम हुआ तो...
रुप - कैसे... अनाम में इतनी हिम्मत कभी था ही नहीं... थोड़ा डरपोक सा था...
शुभ्रा - नंदिनी... उससे बिछड़े आठ बरस हो चुके हैं... यहाँ दुनिया एक पल में बदल जाती है... एक काम करो... वह अनाम है या नहीं... कंफर्म करो...
रुप - कैसे...
शुभ्रा - उसके गर्दन के पीछे तुम्हारा नाम गुदा है या नहीं... देख लो...
रुप - भाभी... आप मज़ाक कर रही हैं...
शुभ्रा - नहीं तो... तुम युँ तड़पने के वजाए... खुद को एस्क्युज करने के वजाए... आने वाले हफ्ते में कंफर्म करने की कोशिश करो... प्यार तुम्हारा है... दिल तुम्हारा है... और जिंदगी भी तुम्हारी है...
रुप - (चुप रहती है)
शुभ्रा - (उसे चुप देख कर) अच्छा... अब तुम सो जाओ... रात बहुत हो चुकी है...

इतना कह कर शुभ्रा वहाँ से चली जाती है l रुप कमरे की लाइट बुझा देती है l तभी खिड़की से चांद की रौशनी को आते देख कर बालकनी को जाति है और चौदहवीं के चांद को देखने लगती है l रुप के मुहँ से अपने आप निकल जाता है l

"अनाम"

वहीँ एक और शहर कटक में विश्व छत पर बैठा विश्व चांद की ओर देख रहा है l उसे महसूस होता है कि कोई इसके पीछे है l

विश्व - (बिना पीछे मुड़े) माँ.. तुम सोई नहीँ...
प्रतिभा - (उसके पास आकर बैठते हुए) क्यूँ उस चांद को घूर रहा है... उसमें वह नहीँ दिखेगी तुझे... अगर वह चंद्रमुखी होती तो जरूर दिखती... पर वह तो सुरज मुखी है... चांद में कैसे दिखेगी...
विश्व - माँ... प्लीज... तुम नंदिनी जी का नाम लेकर छेड़ो मत...
प्रतिभा - अरे... मैंने तो नाम लिया ही नहीं... मैं तो बस... राजकुमारी रुप की बात कर रही थी...
विश्व - ओह... सॉरी माँ...
प्रतिभा - अरे... इसमें सॉरी की क्या बात है... वैसे.. मैं सच में... नंदिनी के नामसे ही छेड़ रही थी...
विश्व - (मुस्करा देता है) माँ... (प्रतिभा के गोद में सिर रख देता है)
प्रतिभा - अच्छा यह बता... इतनी रात को... क्यूँ याद कर रहा है उसे... अपनी दिल की हालत अपनी माँ से कहने के वजाए... उस मुए चांद को कह रहा है...
विश्व - (झट से प्रतिभा के गोद से अपना सिर उठा कर) माँ... तुम मुझे फिर से छेड़ रही हो...
प्रतिभा - छेड़ नहीं रही हूँ... अपने बेटे की दिल का हाल जानना चाहती हूँ...
विश्व - क्या कहूँ माँ... जब भी नंदिनी जी को देखता हूँ.. मन में अंतर्द्वंद शुरु हो जाता है... उनकी बातेँ... बोलने का अंदाज... उनका गुस्सा... हुकुम देने का तरीका सब... सब ऐसा लगता है जैसे.. राजकुमारी जी हों... (चुप हो जाता है)
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... फर्ज कर... अगर वह सच में... राजकुमारी रुप सिंह हुई तो...
विश्व - (प्रतिभा की ओर देखता है) नहीं माँ... यह वह हो नहीं सकती...
प्रतिभा - यह हो सकती हैं... ऐसा तु मान नहीं पा रहा है... या मानना नहीं चाहता...
विश्व - (चुप रहता है)
प्रतिभा - अच्छा... तु ऐसे तड़पने के वजाए... कंफर्म क्यूँ नहीं कर लेता...
विश्व - (एक असमंजस सी चुप्पी साध लेता है)
प्रतिभा - सच तो यह है कि... तु खुद रुप के सामने जाना नहीं चाहता... क्यूंकि तेरी लड़ाई भैरव सिंह से है... क्षेत्रपाल के वज़ूद से है... और रुप उस वज़ूद से जुड़ी हुई है... तु लड़ाई छोड़ नहीं सकता... और छोड़ेगा भी नहीं... बस इस लड़ाई के बीच... तु रुप को देखना नहीं चाहता... क्यूंकि इस लड़ाई के लिए तु खुद को रुप के सामने जस्टीफाई करना नहीं चाहता... है ना...
विश्व - (कुछ देर की खामोशी के बाद) माँ... (प्रतिभा की ओर देखते हुए) तुम सच कह रही हो... सच्चाई यही है कि... मैं इस लड़ाई खतम होने तक... राजकुमारी जी के सामने नहीं जाना चाहता था... पर मेरी जिंदगी में नंदिनी जी... एक आँधी की तरह आ गई हैं... मैं उनसे बचना चाहता हूँ... पर उनकी कशिश ऐसी है... की चुंबक की तरह खिंचा चला जा रहा हूँ... मैं हर सुबह अपने आप से वादा करता हूँ... फिर शाम ढलते ढलते खुद से खीज ने लगता हूँ...
प्रतिभा - (विश्व के कंधे पर हाथ रखकर) सुन... अपनी दिल की आवाज़ सुन... कोई तो रास्ता होगा... तु ढूँढ... पता लगा... के वह नंदिनी ही है... या रुप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल है... पता कर...

कह कर प्रतिभा विश्व के पास से उठ जाती है और वहाँ से जाने लगती है l विश्व वहीँ बैठा रहता है और चांद की ओर देखने लगता है, उसके मुहं से अपने आप निकल जाता है
"राजकुमारी"
Wow yani aag dono taraf barabar lagi hui hain. Aur ab dono chal padey hai ek doosre ki asliyat ujagar karne magar kahi aisa na ho aur paane ke chakkar me sab hi na kho jaye. Coz kahte hai ishq chupaye na chupega aur jab shaitrpal ko sab pata chalega to kohram nach jayega. Bohat top ki story likhi hain bhai aapne maza aa gaya.
 

Kala Nag

Mr. X
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15,934
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वीर - तु जानती है ना... मैं.. तुझसे बहुत प्यार करता हूँ...
अनु - (आँखे बंद किए हुए अपना सिर हाँ में हिलाती है)
वीर - तु भी मुझसे... बहुत प्यार करती है... है ना...
अनु - (फिर से अपना सिर हाँ में हिलाती है)

सुबह सुबह अंजलि को यही दो लाईनें बोल दीं, और वही गोदी में उठा कर -- और लगभग समान रिएक्शन!! उसके बाद जो हुआ, अब उसके बारे में क्या ही लिखूँ 😍🤩
भाई ऐसी सुबह मुबारक
भगवान से प्रार्थना है कि यह सुबह रोज आए

भाई मैं रहता ओड़िशा में हूँ पर मेरी मातृभाषा तेलुगु है
मेरा संक्षिप्त नाम जो मेरे माता पिता बुलाते हैं वह है बुज्जी (బుజ్జి) और मेरी अर्धांगिनी का नाम है वाणी (వాణి)

एक बार छोटा सा मन मुटाव हो गया था I जिससे चलते हमारे बीच कुछ दिनों तक बातचीत बंद था

एक दिन यही वाक्या हुआ जो ऊपर लिखा हुआ है l यह मेरी पर्सनल अभीज्ञता है l जिसे मैंने वीर और अनु से संबंधित कर दिया है l

आगे और क्या कहूँ
 

Kala Nag

Mr. X
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Wow yani aag dono taraf barabar lagi hui hain. Aur ab dono chal padey hai ek doosre ki asliyat ujagar karne magar kahi aisa na ho aur paane ke chakkar me sab hi na kho jaye. Coz kahte hai ishq chupaye na chupega aur jab shaitrpal ko sab pata chalega to kohram nach jayega. Bohat top ki story likhi hain bhai aapne maza aa gaya.
धन्यबाद बंधु बहुत बहुत धन्यबाद
क्षेत्रपाल को पता चलेगा
हाँ तब कोहराम मचेगा
और वीर पुरे क्षेत्रपाल सल्तनत के खिलाफ बगावत कर देगा
यह होने वाला है और होगा भी
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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22,104
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भाई ऐसी सुबह मुबारक
भगवान से प्रार्थना है कि यह सुबह रोज आए

भाई मैं रहता ओड़िशा में हूँ पर मेरी मातृभाषा तेलुगु है
मेरा संक्षिप्त नाम जो मेरे माता पिता बुलाते हैं वह है बुज्जी (బుజ్జి) और मेरी अर्धांगिनी का नाम है वाणी (వాణి)

एक बार छोटा सा मन मुटाव हो गया था I जिससे चलते हमारे बीच कुछ दिनों तक बातचीत बंद था

एक दिन यही वाक्या हुआ जो ऊपर लिखा हुआ है l यह मेरी पर्सनल अभीज्ञता है l जिसे मैंने वीर और अनु से संबंधित कर दिया है l

आगे और क्या कहूँ

बहुत बहुत बढ़िया 👌👌👌
प्यार की भाषा का एक ही प्रभाव होता है मित्र 😍
 

ANUJ KUMAR

Well-Known Member
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13,377
158
👉निन्यानवेवां अपडेट
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बारंग रिसॉर्ट

टीवी पर नैशनल जोग्राफी चैनल पर सी वर्ल्ड प्रोग्राम चल रहा था l पर आवाज़ म्यूट था l

पिनाक सिंह एक कुर्सी पर बैठा हुआ है, उसके सामने रोणा और बल्लभ अपना सिर झुकाए खड़े हुए हैं l पिनाक सिंह अपनी कुर्सी के एल्बो रेस्ट पर कोहनी रख कर एक उंगली से अपना ठुड्डी रगड़ते हुए कुछ गहरी सोच में खोया हुआ है l

पिनाक - लगभग महीना होने को आया... तुम दोनों बस इतना ही पता लगाया....
रोणा - (हैरान हो कर) छोटे राजा जी... आपको इतना लग रहा है... विश्व ने केस को दुबारा खोलने के लिए... अपना दाव लगा दिया है...
पिनाक - तो क्या हुआ... छुप कर ही तो बैठा हुआ है...
बल्लभ - पर... आप समझने की कोशिश कीजिए... वह केस अदालत में ले कर जाएगा... आप भूल रहे हैं... अदालत ने एसआईटी को बहाल रखा था...
पिनाक - तो...
बल्लभ - केस जहां पर रुका हुआ था... वहीँ से आगे बढ़ेगी... मतलब... (हकलाते हुए) र.. र.. र्रराजा साहब.. फफफफ... फिर से... (चुप हो जाता है)
पिनाक - हाँ तो क्या हुआ... हम नौबत वहाँ तक आने ही क्यूँ देंगे... जयंत की तरह उसे भी रास्ते से हटा देंगे...
रोणा - बस छोटे राजा जी... यही मैं पहले से ही करना चाहता था... पर तब...
पिनाक - (घूरते हुए) हाँ तब...
रोणा - (चुप हो जाता है)
पिनाक - तब उसे एक कुत्ते की जिंदगी बख़्श दी गई थी... वह कुत्ता ही है... और वह अब एक कुत्ते की मौत मारा जाएगा... (रोणा और बल्लभ दोनों चुप रहते हैं) (उन्हें यूँ चुप देख कर) क्या हुआ...
बल्लभ - (झिझकते हुए) छोटे राजा जी... अब हम क्या कहें... विश्व अभी भी पर्दे के पीछे है... सामने नहीं आया है... उसके बावजूद उसने अपनी चाल चल दी है... और फ़िलहाल... वह हमसे... दस कदम आगे है...
पिनाक - कैसे...
बल्लभ - उसने आरटीआई दाख़िल कर के... गृह मंत्रालय और न्याय तंत्र को ऐक्टिव कर दिया है... इस तरह से... उसने खुद को एक तरह से सुरक्षित कर लिया है....

तभी टीवी पर एक दृश्य आता है कि एक लोबस्टर एक खाली पड़े शंख के खोल के भीतर छुपता है पर एक औक्टोपस खोल के अंदर अपना आर्म घुसेड़ कर उस लोबस्टर को बाहर निकाल कर अपने मुहँ में भर लेता है l यह दृश्य देख कर पिनाक सिंह हँसने लगता है l

पिनाक - हा हा हा हा.... (पिनाक टीवी को अनम्युट करता है)

रोणा और बल्लभ दोनों टीवी की ओर देखते हैं l टीवी पर वह दृश्य फिर से व्याख्यान के साथ चलने लगता है l वह दृश्य खतम होने के बाद l

पिनाक - वह रहा विश्व का सुरक्षा कवच.... हा हा हा हा हा... (रोणा और बल्लभ फिर भी चुप रहते हैं) क्यूँ... मजा नहीं आया... या यकीन नहीं आया...
रोणा - छोटे राजा जी... आप बात की गहराई तक नहीं जा रहे हैं...
पिनाक - तो गहराई को समझाओ...
बल्लभ - देखिए... छोटे राजा जी... बात हम आपके साथ रह कर.... मिलकर संभालना चाहते हैं...
रोणा - जब राजगड़ से निकले थे... तब तक विश्व हमारे लिए... एक मामूली बंदा था... इन्हीं बाइस पच्चीस दिनों में मालुम हुआ... वह हमारे बूते से बाहर है...
बल्लभ - हाँ छोटे राजा जी... वह अब आम नहीं रहा... उसने खुद को खास बना दिया है...
रोणा - और हम नहीं चाहते... की उसके वजह से... राजा साहब के माथे पर... शिकन पड़े...
बल्लभ - हम राजा साहब से... नहीं कह पाए... और ना ही कह पाएंगे... इसलिए हम सीधे आपसे संपर्क किए... और उसके बारे में... हमने जितनी भी जानकारी हासिल की... सब कुछ आपको बता दिया...
पिनाक - हूँ... तुम्हारे इरादे नेक हैं... राजा साहब को तो जानकारी होनी ही चाहिए ना...
रोणा - हाँ... हम उन्हें सब बतायेंगे... पर बात जब संभालने की होगी... तो आपको हमारा साथ देना होगा...
पिनाक - हूँ...
बल्लभ - हाँ छोटे राजा जी... कुछ मामलों में... विश्व का कद हमसे बढ़ गया है... पर रोणा... मैं और आप मिल कर... हम विश्व के मंसूबों पर पानी फ़ेर सकते हैं....

पिनाक सिंह चुप रहता है, उसे चुप देख कर रोणा और बल्लभ एक दुसरे को देखने लगते हैं l पिनाक टीवी पर चल रहे प्रोग्राम देख रहा था l अब सी वर्ल्ड का प्रोग्राम खतम हो चुका था और लायन प्राइड का प्रोग्राम चल रहा था l उसमें अफ्रीका के सवाना जंगल में शेर और लकड़बग्घों की झड़प दिखा रही थी l जिसमें यह दिखा रहा था एक शेर की अनुपात तीन तीन लकड़बग्घों के बराबर है l अगर चार लकड़बग्घें हो जाएं तो शेर पर भारी पड़ सकते हैं l

यह दृश्य देखते ही पिनाक सिंह का जबड़ा भींच जाता है l अपने दांत पिसते हुए रोणा और बल्लभ को देखने लगता है l रोणा और बल्लभ भले ही टीवी ना देख पा रहे हों पर उन्हें टीवी पर आती व्याख्यान से बात समझते देर ना लगी l पिनाक सिंह इस बार टीवी बंद कर देता है l

पिनाक - हमारे नाम के साथ सिंह लगा हुआ है... तुम दोनों हमें साथ ले कर एक कुत्ते का शिकार करने के लिए कह रहे हो...
रोणा - नहीं... वह... मेरा मतलब है... नहीं हमारा मतलब है...

पिनाक को अपनी तरफ गुस्से में देखते हुए पाता है, इसलिए वह चुप हो जाता है l

पिनाक - तुम दोनों ने... उस कुत्ते को शेर बना कर हमारे सामने पेश किया... और तुम दो लकड़बग्घे... हमें अपने साथ मिलाकर... उसका मान बढ़ा रहे हो... या हमें अपनी ओहदे से नीचे ला रहे हो...
रोणा - छोटे राजा जी... ऐसा तो हम सपनों में भी नहीं सोच सकते...
पिनाक - तो तुम्हें जो करना है करो... जिसे साथ लेना है लो... पर इस केस में... तुम दोनों अपनी अपनी दिमाग चलाओ...
बल्लभ - छोटे राजा जी... पिछली बार... हमारी टीम बहुत बड़ी थी...
रोणा - और इस बार हालत जुदा नहीं है... पर हमारी टीम अधूरी है...
पिनाक - तो बनाओ... तुम लोग अपनी टीम... मीडिया मैनेजमेंट से लेकर... सिस्टम मैनेजमेंट तक... सब कुछ हैंडल करो...
रोणा - और राजा साहब ने... विश्व के बारे में पूछताछ करने के लिए जो बोले थे वह...
पिनाक - तो उन्हें बताओ... (रोणा और बल्लभ चुप हो कर एक दुसरे को देखने लगते हैं)
बल्लभ - कितना... मेरा मतलब है... हम उन्हें कितना बतायेंगे....
पिनाक - उतना... जितना कम ना लगे... और ज्यादा भी ना लगे....

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विश्व छत पर इधर उधर हो रहा था l बीच बीच में मोबाइल को देखता था फ़िर चहल कदम करते हुए कभी कभी आसमान की ओर देखने लगता था l फिर अचानक रुक जाता है और आसमान की ओर सिर उठा कर देखने लगता है l एक टूटता तारा उसे दिखता है, तभी उसके फोन पर मैसेज अलर्ट टोन बजने लगता है l विश्व अपनी मोबाइल की डिस्प्ले देखता है..

"डियर कस्टमर, +91@#$&$#@&
इज़ नाउ अवेलेवल टु टेक काल्स"

यह मैसेज देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है l

उधर उसी वक़्त रुप के हाथो में शुभ्रा ने एक नया मोबाइल थमा दिया था l रुप ने भी बिना देरी किए अपनी पुरानी सिम को मोबाइल में डाल कर रजिस्टर कर चेक कर ही रही थी के उसके मोबाइल अनगिनत मैसेज लोड होने लगी l आधे से ज्यादा मैसेज में यही अलर्ट थी..

"डियर कस्टमर, यू हैव अ मिस्ड कॉल फ्रोम +91@#$#@&$#


द लास्ट मिस्ड कॉल वॉज एट & $#@ थैंक्यू टीम @@@

यह मैसेज पढ़ते ही रुप के गालों पर लाली उतर आती है और एक हल्की सी मुस्कराहट उसके होठों पर नाच उठती है l वह अपनी फोन से पहले बनानी को कॉल करती है

बनानी - राम... राम... हे राम... तुझे अब टाइम मिला...
रुप - क्या करुँ... मेरा फोन ऐक्चुयली खराब हो गया था... अच्छा रुक... हम सभी कंफेरेंन्स में बात करते हैं...
बनानी - हाँ चल... वीडियो... कंफेरेंसिंग करते हैं...
रुप - नहीं नहीं... वीसी के लिए पहले ऑउट होना पड़ेगा... फिर इन होना पड़ेगा... तो यही बेहतर है... है ना...
बनानी - अच्छा बाबा... जो तुझे ठीक लगे वही कर...
रुप - ठीक है... एक मिनट...

कह कर फोन पर बनानी को होल्ड करती है और फिर दीप्ति को फोन लगाने वाली होती है कि स्क्रीन पर बेवकूफ़ डिस्प्ले होने लगती है l रुप मुस्कराते हुए देखती है l स्क्रीन से बेवकूफ़ गायब होते ही दीप्ति को फोन लगाती है

दीप्ति - वाव क्या बात है यार... कहाँ गायब हो गई... तीन दिन हो गए हैं... और तो और तेरा फोन स्विच ऑफ आ रहा था...
रुप - रुक... मैं सबको कंफेरेंसिंग में लेती हूँ... फिर बात करते हैं...
दीप्ति - ठीक है...

इस तरह से रूप एक एक करके अपने सारे दोस्तों को कंफेरेंसिंग में लेती है l

उधर विश्व दो तीन बार फोन लगाने पर भी रुप की फोन अंगेज दिखती है l विश्व फिर फोन को जेब में रख कर आसमान की ओर देखने लगता है l कुछ देर बाद उसका फोन बजने लगता है l विश्व झट से फोन उठाता है पर उसे डिस्प्ले में वीर दीखता है l विश्व फोन उठाता है

विश्व - हाँ... वीर कहो... कैसे याद किया...
वीर - (टूटे हुए आवाज़ में) यार... क्या कहूँ... समझ में नहीं आ रहा है...
विश्व - (उसकी आवाज़ से गहरा दर्द महसुस कर लेता है) वीर... कहो क्या हुआ आज...
वीर - (रोते हुए) क्या कहूँ यार... रोने को दिल कर रहा है...
विश्व - क्या हुआ बोल ना...
वीर - (अपनी सिसक को बुरी तरह से कंट्रोल करते हुए) वह... अपने घर में नहीं है यार...
विश्व - क्या... नहीं है मतलब...
वीर - यार... उसकी दादी और वह... अपना घर छोड़ कर कहीं चले गए हैं...
विश्व - क्या...
वीर - हाँ यार...
विश्व - ओह... पर क्यूँ...
वीर - नहीं जानता यार... पर इतना समझ में आ रहा है... मेरी करनी... मेरा हिसाब ले रहा है....
विश्व - यह क्या कह रहे हो...
वीर - (खुद को थोड़ा संभालते हुए) जब प्यार से मतलब नहीं था... जिंदगी में कोई दर्द नहीं था... जब प्यार से पहचान हुआ... जिंदगी.. दर्द से पहचान हो गई...
विश्व - बस यार बस... धीरज धर...
वीर - यह प्यार होता क्यूँ है... होता है.. तो इतना दर्द क्यूँ देता है...
विश्व - हर दर्द की दवा होती है....
वीर - हाँ... पर मेरी नहीं...
विश्व - ऐसा नहीं है... यार... ऐसा नहीं है... तुम्हारे दर्द की दवा अनु ही है...
वीर - पर वह नहीं है... मैं कहाँ ढूँढु..
विश्व - वहीँ... जहाँ वह तुम्हें मिली थी...
वीर - मतलब....
विश्व - वही मंदिर... जहाँ तुम्हें... तुम्हारे बचपन से मिलाया था...
वीर - (उम्मीद भरे आवाज में) म.. मंदिर में...
विश्व - देख यार... मैं नहीं जानता कि मैं... सही कह रहा हूँ... या गलत... मगर... जब हर दरवाज़ा बंद मिले... तो भगवान का दरवाजा खटखटा कर देख लेनी चाहिए...
वीर - (जोश भरी आवाज में) हाँ... तुमने ठीक कहा... तुम वाकई दोस्त के रुप में... फरिश्ते हो... जब जब मुझे लगा कि मैं अंधेरे में भटक गया... तब तब तुमने मुझे रौशनी दिखाई... थैंक्स यार...
विश्व - अनु मिल जाए... तो भगवान को थैंक्स कह देना....
वीर - हाँ... जरूर...

कह कर वीर फोन काट देता है l फोन कटते ही विश्व फोन देखता है तो स्क्रीन पर मिस कॉल दिखा रहा था, कॉल लिस्ट में नकचढ़ी दिख रही थी l

विश्व - (मन ही मन) मर गया...

विश्व वापस नकचढ़ी को फोन लगाता है l उधर फोन के डिस्प्ले पर बेवकूफ़ देख कर रुप रिजेक्ट कर देती है, तो विश्व उसे फिर से फोन नहीं लगाता है l उधर रुप इंतजार करती है कि शायद बेवकूफ़ का फोन आएगा, थोड़ी इंतजार के बाद जब फोन नहीं आती तो खीज कर वह फोन लगाती है l फोन आते ही विश्व फोन नहीं उठाता है, थोड़ी देर रिंग होने के बाद वह फोन उठाता है l

विश्व - जी कहिए...
रुप - व्हाट... मैं कहूँ... या तुम कहोगे...
विश्व - मैं... मैं क्यूँ कहूँ...
रुप - क्यूंकि... मेरे फोन पर तुम्हारे पचपन के करीब मिस कॉल थे...
विश्व - (बड़ी मासूमियत के साथ) अच्छा...
रुप - (गुस्से में नाक सिकुड़ कर) ऐ....
विश्व - ओके ओके...
रुप - ह्म्म्म्म... अब बोलो... किसके साथ बात कर रहे थे... मेरा फोन क्यूँ नहीं उठाया...
विश्व - मेरे दोस्त से...
रुप - ह्म्म्म्म... ठीक है... बोलो... इतने कॉल... क्यूँ और किस लिए...
विश्व - उस रात को जो हुआ... मैं कुछ समझ नहीं पाया...
रुप - (एक एटीट्यूड के साथ सांस लेते हुए) मतलब...
विश्व - यही... के बिछड़ने का दुख आपने जाहिर की... पर...
रुप - (अपनी हँसी को काबु करते हुए) पर...
विश्व - वह थप्पड़... इंटरमिशन के लिए था... या... फूल स्टॉप... द एंड के लिए था...
रुप - क्या... क्या मतलब हुआ...
विश्व - यही की... हमारी मुलाकात की उम्र क्या इतनी थी... थप्पड़ से शुरु... थप्पड़ पर खतम...

रुप विश्व की यह सुन कर पहले फोन को नीचे कर देती है फिर अपनी हाथ मुहँ पर रख कर हँसी को दबाती है l विश्व उधर से हैलो हैलो कहता रहता है l फिर रुप खुद को नॉर्मल करते हुए

रुप - यह आशिकों वाली अप्रोच... मुझ से...
विश्व - ना... दोस्ती... मेरा दोस्त मुझसे रूठा हुआ है... मनाने की जद्दोजहद चल रही है....
रुप - क्या यह दोस्त इतना जरूरी है...
विश्व - हर एक दोस्त जरूरी होता है... और मुश्किल से... मेरे सिर्फ दो ही दोस्त हैं...
रुप - तो...
विश्व - एक दोस्त रूठा हुआ है... वजह तो जानना पड़ेगा...
रुप - अगर वजह वाजिब हुआ तो...
विश्व - तो जो सजा आप तय करो... सिर झुका कर मान लेंगे....
रुप - हूँ... इम्प्रेसीव... तो हमें क्या करना होगा....
विश्व - हमें शायद एक आखिरी बार के लिए... मिलना होगा...
रुप - (हैरान हो कर) आखिरी बार... क्यूँ...
विश्व - क्यूँ की मैं पिछली मुलाकात को... आखिरी करना नहीं चाहता...
रुप - तो अगली मुलाकात आखिरी करना चाहते हो...
विश्व - यह फैसला भी आपको करना होगा... पर थप्पड़ से नहीं...
रुप - तो उस फैसले के लिए हमें मिलना होगा...
विश्व - जी...
रुप - कहाँ...
विश्व - यह भी... आप ही तय कीजिए...
रुप - ओ हो... इतनी इज़्ज़त...
विश्व - और नहीं तो... मैं अपने दोस्तों को... बहुत इज़्ज़त देता हूँ...
रुप - अच्छा... और इज़्ज़त के लिए मैं और क्या कर सकती हूँ....
विश्व - हाँ कर सकती हैं ना... बहुत कुछ कर सकती हैं... आप मुझे लेकर एक डिनर प्रोग्राम फिक्स कर सकती हैं... वह भी एक फाइव स्टार होटल में... अपनी खाते से... गॉड प्रॉमिस... मैं बिल्कुल भी बुरा नहीं मानूँगा....
रुप - (चिल्लाते हुए) यु... यु स्कौंड्रल... एक लड़की से डिनर डेट मांगते हुए.... तुम्हें शर्म नहीं आती...
विश्व - आती है ना... बहुत आती... अगर कोई अंजान होती... मैं अपने दोस्त से मांग रहा हूँ... शर्म कैसी...
रुप - (चिल्लाते हुए) शट अप... यु... यु... डफर... यु बेवक़ूफ़... मिलो.. हाँ हाँ मिलो तुम फिर मुझसे... अब मुलाकात नहीं होगी... मुक्का लात होगी... समझे... मुक्का लात होगी... अअअह्ह्ह्ह...

कह कर फोन काट देती है और अपनी फोन को बेड पर पटक देती है l उधर फोन कटते ही विश्व की हँसी छूट जाती है और वह जैसे ही मुड़ता है प्रतिभा को देखता है l

विश्व - माँ... ततत.. तुम यहाँ... ककक.. कब आई...
प्रतिभा - (अपनी भवें सिकुड़ कर) हकला क्यूँ रहा है...
विश्व - वह... माँ... मैं... वह...
प्रतिभा - (हँसते हुए) प्रताप... तेरे अंदर... यह एंगेल भी है...
विश्व - (कुछ नहीं कहता है, शर्मा कर अपनी कान के पास सिर के बालों को खुजाने लगता है)
प्रतिभा - (अपना सिर हिलाते हुए) ह्म्म्म्म... आखिर... उसे चिढ़ा दिया.... हूँ... क्यूँ...
विश्व - वह माँ...
प्रतिभा - हाँ हाँ...
विश्व - वह माँ... मुझे... नंदिनी जी को गुस्से में देखना... अच्छा लगता है... गुस्से में तेज तेज सांस लेते हुए... नथुनों को सिकुड़ते हुए... बहुत अच्छी लगती हैं...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... सब... ल़डकियों को हँसाने की कोशिश करते हैं... और तुम.... क्यूँ...
विश्व - (थोड़ा सीरियस हो जाता है) माँ... पता नहीं... पर... मैं जब भी उनसे मिलता हूँ... ऐसा लगता है कि... उनके अंदर से राजकुमारी जी झाँक रही हैं.... या फिर...
प्रतिभा - हाँ... या फिर...
विश्व - या फिर... मैं... मैं शायद... उनमें... राजकुमारी को तलाश रहा हूँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... यानी तु अपने दिल को बहला रहा है... फुसला रहा है... या फिर समझा रहा है... दिलासा दे रहा है... तसल्ली दे रहा है...
विश्व - सभी एक ही बात है ना माँ...
प्रतिभा - ना... एक बात तो हरगिज नहीं है...
विश्व - (चुप रहता है)
प्रतिभा - फर्ज करो... राजकुमारी और नंदिनी दोनों... तुम्हारे सामने आ गए... तब किसे चुनोगे...
विश्व - माँ... तुम मुझे कंफ्यूज कर रही हो...
प्रतिभा - नहीं...
विश्व - (चुप रहता है)
प्रतिभा - क्या हुआ...
विश्व - माँ... आगाज़ चाहे कैसी भी हुई हो... अंजाम एक खूबसूरत मोड़ पर होनी चाहिए... मैं नंदिनी जी के साथ अपनी दोस्ती और जुदाई को... एक हसीन मोड़ पर खतम करना चाहता हूँ...
प्रतिभा - क्यूँ... किसलिए... खतम क्यूँ करना चाहता है...
विश्व - क्यूंकि... बाद में... फिर कभी अपनी... दिल को ना बहलाउँ... ना फुसलाउँ... या फिर ना समझाउँ ... ना दिलासा दूँ... ना तसल्ली दूँ...

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अगले दिन सुबह सुबह अंधेरा भी नहीं छटा था, वीर नहा धो कर बाथरुम से निकल कर वार्डरोब खोलता है, इतने कपड़ों के सेट को देख कर वह कंफ्यूज हो जाता है l वह सोचने लगता है

"अरे यार कौन सा ड्रेस पहन कर जाऊँ"

कुछ सोचने के बाद वह वार्डरोब से सफेद रंग का ड्रेस निकालता है और पहन कर खुद को आईने में देखता है l उसके बाद कमरे से निकल कर बाहर जाने जाने को होता है कि अचानक रुक जाता है और पीछे मुड़ कर जाता है और अपने भैया और भाभी के कमरे के सामने खड़ा हो जाता है l कुछ देर खड़े होने के बाद दरवाजे पर दस्तक देने लगता है l

शुभ्रा - (अंदर से, उबासी भरे आवाज में) कौन है...
वीर - जी भाभी... मैं... वीर...
शुभ्रा - (हैरानी भरे आवाज में) वीर... तुम... इस वक़्त... इतनी सुबह...
वीर - (हिचकिचाते हुए) वह भाभी... आपसे एक काम था...
शुभ्रा - एक मिनट... आई...

पांच मिनट के बाद वह दरवाजा खोलती है l शायद चेहरा मोहरा साफ कर अपने कपड़े ठीक करने के बाद वीर के सामने खड़ी थी l शुभ्रा वीर को देख कर और भी ज्यादा हैरान हो जाती है l क्यूँकी वीर उसके सामने सजा संवरा खड़ा था l

शुभ्रा - वीर... यह... क्या... तुम इतनी सुबह सुबह... तैयार हो कर... कहाँ जा रहे हो...

वीर कुछ नहीं कहता है सीधे शुभ्रा के पैरों पर घुटने में आता है और अपने दोनों हाथों से पैर पकड़ लेता है l शुभ्रा पीछे हटना चाहती है मगर हट नहीं पाती क्यूंकि वीर ने पैरों को पकड़ लिया था l

शुभ्रा - क्या... क्या कर रहे हो वीर... क्यूँ...
वीर - भाभी... आप माँ समान हो... मैंने कुछ गुनाह किए हैं... वह मैं कहने के बाद... आपसे नज़रें भी ना मिला पाऊँगा... बस इतना जान लीजिए... आप एक माँ का दिल लेकर... मुझे माफ कर दीजिए....
शुभ्रा - वीर... छोड़ो मुझे... मुझे एंबार्समेंट फिल हो रहा है... प्लीज...
वीर - भाभी प्लीज... आप मुझे माफ कर दो...
शुभ्रा - पता नहीं तुम क्या बात कर रहे हो.... ठीक है... उठो... मैंने माफ किया...
वीर - (वैसे ही पैरों को पकड़े हुए था) भाभी... आज आपकी आशीर्वाद की भी जरूरत है... प्लीज मुझे आशीर्वाद दो... आज मुझे हर हाल में कामयाब होना है... प्लीज...
शुभ्रा - अच्छा ठीक है... जाओ कामयाब हो कर लौटो...

इतना सुनने के बाद वीर बिना अपना सिर उठाए वहाँ से तेजी से निकल जाता है l शुभ्रा उसे ऐसे निकल कर जाते हुए देख हक्की बक्की सी खड़ी रह जाती है l इस शॉक से उबर कर जब तक वह नार्मल होती है तब तक यह शोर शराबा सुन कर विक्रम और रुप भी उठ चुके थे I वे दोनों भी वीर की हरकत देख कर हैरान हो गए थे l तीनों के कान में गाड़ी की घर के परिसर से निकलने की आवाज पड़ती है l शुभ्रा खुद को नॉर्मल करके जब पीछे मुड़ती है तो विक्रम को भी मुहं फाड़े देखते हुए पाती है l

उधर वीर की गाड़ी सड़क पर दौड़ क्या उड़ रही थी l उसके चेहरे पर आज परेशानी से ज्यादा सुकून झलक रही थी l वह गाड़ी चलाते हुए पटिया के उसी मंदिर में पहुँचता है जहां अनु और वह एक दुसरे के जन्मदिन पर अपनी अपनी जिंदगी की सबसे हसीन और यादगार पल बनाए थे l मंदिर तो खुल चुका था आसपास पुजा के सामान बेचने वाली सभी दुकानें भी खुल चुकीं थी l वीर अपने पर्स निकाल कर पुजा के सामान लेता है और फिर मंदिर के अंदर जाता है l पुजारी उससे सामान लेकर पुजा करने लगता है l

वीर - (अपने मन ही मन में, आँखे बंद कर) हे भगवान... मैं अपनी किसी भी गुनाह का माफी मांगने नहीं आया हूँ... बस तेरे दर पर अपने लिए एक मौका मांग रहा हूँ... बदले में तेरे न्याय में... मेरे लिए जो भी सजा मुकर्रर होगी... मैं सिर झुका कर मान लूँगा... शिकायत भी नहीं करूंगा... वादा है मेरा... बस आज मैं वह सबब देखना चाहता हूँ... जिसके वजह से लोगों का विश्वास तुझ पर से... कभी नहीं डगमगाता....

पुजारी पुजा के बाद वीर को उसका थाल लौटा देता है l वीर थाल लेकर दुकान दार को लौटाने के बाद वहाँ पर बैठे भिखारियों में कुछ पैसे बांट देता है और मंदिर सीढियों पर बैठ जाता है l

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उधर नाश्ते के लिए टेबल पर तीनों बैठे हुए हैं l तीनों के सामने नाश्ता लगा भी हुआ है, पर तीनों अपने अपने सोच में खोए हुए थे l

रुप - (अपनी सोच में) कल अनाम ने ऐसे क्यूँ मुझे छेड़ा... कमबख्त मुझे मनाने के वजाए... मुझे गुस्सा दिलाए जा रहा था... सोच रही थी... मिन्नतें करेगा... मुझे मनाएगा.... पर... इडियट... मुझे गुस्से पे गुस्सा दिलाए जा रहा था... बेवकूफ़... हूँह्ह्ह्ग्ह्... ल़डकियों को कैसे मनाए... बिल्कुल भी उसे अक्ल नहीं है... बेवक़ूफ़... (यह सोचते सोचते वह जितनी गुस्सा हो रही थी, उतनी ही प्रताप की रात में छेड़ने को याद करते हुए अपने अंदर उसे गुदगुदी सी महसुस हो रही थी)

उधर शुभ्रा अपनी सोच से बाहर आकर देखती है सबकी नाश्ते का प्लेट ज्यों का त्यों है l

शुभ्रा - अहेम अहेम... (खरासती है)

विक्रम और रुप दोनों अपने खयालों से बाहर निकलते हैं l दोनों अपना अपना नाश्ता खाने लगते हैं l

शुभ्रा - क्या बात है... क्या सोच रहे थे... आप दोनों...
दोनों - कुछ नहीं...
शुभ्रा - झूठ मत बोलो... मैं... कब से देख रही थी... (रुप से) तुम क्या सोच रही थी....
रुप - (हड़बड़ा जाती है जैसे कोई चोरी पकड़ी गई हो) क्या... कु.. कु.. कुछ भी तो नहीं...
शुभ्रा - ठीक है... तो फिर... ऐसे घबरा क्यूँ रही हो.... वैसे भी... कल रात... तुम्हारे कमरे से चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी...
रुप - क्या...
विक्रम - हाँ नंदिनी... तुम किस पर चिल्ला रही थी...
रुप - (खुद को संभालते हुए) अच्छा वह... वह मैं तीन दिन से कॉलेज नहीं गई ना... इसलिए... सब मुझ पर रौब झाड़ रहे थे...
विक्रम - अच्छा... ठीक है फिर... आज तुम कॉलेज चली जाओ... अपने दोस्तों के साथ मिल कर... तुम्हें अच्छा लगेगा...
शुभ्रा - हाँ हाँ.. तुम्हारे भैया ने सही कहा...
रुप - ठीक है भाभी... चली जाऊँगी... पर... खोई हुई आप भी थीं...
शुभ्रा - अररे कुछ नहीं... आज वीर जिस तरह से... मेरे पैर पड़े और आशीर्वाद मांगा... मैं अभी भी... उसी शॉक में हूँ... (विक्रम की ओर देखते हुए) क्या आप बता सकते हैं... वीर किस बात पर माफी मांग रहे थे....
विक्रम - (कुछ देर के लिए सोचने लगता है, फिर) नहीं...
शुभ्रा - फिर भी... आज वीर के आवाज में... पुरी सच्चाई और ईमानदारी साफ झलक रही थी... जैसे वह दिल से नहीं... अपनी आत्मा की गहराई से माफी मांग रहे थे.... पर क्यूँ... (कह कर विक्रम की ओर देखती है)
विक्रम - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) दिन व दिन वीर में... बहुत तेजी से... बदलाव आ रहा है... सच कहूँ... तो मुझे... उसका यह बदलाव... डरा रहा है.... वह पहले से ही... बगावती तेवर का.. मुहँ फट रहा है... जो मर्जी में आता था... वही किया करता था... सही गलत देखता नहीं था.... पर अब.... अब ऐसा लग रहा है... जैसे... जैसे वह एक तूफान बनता जा रहा है... अपने सामने आने वाले हर चट्टान से टकराने से भी... पीछे नहीं हटेगा...

इतना कह कर विक्रम थोड़ी देर के लिए ख़ामोश हो जाता है l रुप और शुभ्रा उसे एक टक सुने जा रहे थे l विक्रम उन दोनों के तरफ देखता है

विक्रम - उसके अंदर की जिद... उसके अंदर का तूफान... दायरे में रहे तो ठीक है... वरना मुझे डर इस बात का है... जब राजा साहब और छोटे राजा जी के सामने... उसके दिली ज़ज्बात आयेगा... तब क्या होगा...

फिर एक खामोशी छा जाती है l तीनों ही अब वीर के बारे में सोचने लगते हैं l कुछ देर बाद रुप खरासते हुए भैया भाभी का ध्यान अपने तरफ खींचती है l

रुप - अहेम... अहेम... (दोनों रुप की तरफ देखते हैं) (रुप विक्रम से) भैया.... राजा साहब ने आपकी और भाभी जी के प्यार को मंजुरी दी थी... तो क्या...
विक्रम - हाँ... क्यूंकि इसमें राजा साहब ने... कुछ दुर की देखा था...
रुप - मतलब...

शुभ्रा वहाँ से उठ कर चली जाती है l दोनों उसे जाते हुए देखते हैं l

विक्रम - जरा सोचो नंदिनी... राजा साहब कल से भुवनेश्वर में हैं... पर यहाँ पर ना कभी आते हैं... ना कभी ठहरते हैं...
रुप - वह तो मैं देख चुकी हूँ... पर इसमें... दुरंदेशी कहाँ है...
विक्रम - अभी... छोटे राजा जी मेयर हैं... अब आने वाले इलेक्शन में... बड़े बड़े ओहदे हासिल करनी है... ताकि हमारी रुतबे का फैलाव बरकरार रहे...
रुप - पर यह तब तक था ना... जब तक भाभी के पिताजी... पार्टी अध्यक्ष थे...
विक्रम - हाँ... पर अब उसकी भरपाई हो चुकी है...
रुप - कैसे...
विक्रम - ESS के जरिए...
रुप - ESS के जरिए... कैसे... मैं समझी नहीं...
विक्रम - बस... कुछ बातेँ हैं... उसकी दायरा मैं भी नहीं तोड़ सकता...

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सीढियों पर बैठा वीर किसी पत्थर की बुत की तरह सड़क की ओर देखे जा रहा था l उसकी नजरें सिर्फ और सिर्फ अनु को ढूंढ रही थी l तभी उसके पास एक आदमी हांफते हुए पहुँचता है

आदमी - एसक्युज मी सर...
वीर - (उसके तरफ देखता है)
आदमी - क्या आपने एक छोटी सी बच्ची को देखा है...
वीर - (अपना सिर ना में हिलाता है)

फिर वह आदमी इधर उधर भागने लगता है l वीर देखता है वह आदमी परेशान हो कर वहाँ पर आने जाने वाले लोगों से पुछ ताछ करता है l वह आदमी कुछ देर बाद वहाँ पर नहीं दिखता I वीर उसी तरह अपनी सीढ़ी पर बैठ कर सड़क पर नजर गड़ाए बैठा हुआ होता है l तभी एक छोटी लड़की उसके पास बैठती है l

लड़की - भैया... आप यहाँ किसी की राह देख रहे हो....
वीर - (उस लड़की की ओर देखता है) (फिर अपना सिर हाँ में हिलाता है)
लड़की - हूँउँउँउँ... कहीं आप उन दीदी को तो नहीं ढूढ़ रहे...
वीर - (हैरानी से उसकी आँखे फैल जाती है) क... कौन.. दीदी...
लड़की - ओह ओ... वही दीदी... जिन्हें आप एक दिन... ओरायन मॉल पर ले गए थे....
वीर -(हैरान हो कर) यह तो बहुत दिन पहले की बात है...
लड़की - हाँ...
वीर - तुम्हें कैसे याद है... और तुम यह सब कैसे जानती हो...
लड़की - भुल गए... ह्म्म्म्म... बॉयज... पास गर्ल फ्रेंड हो... तो दूसरी लड़की याद नहीं रहती क्यूँ...
वीर - (सकपका जाता है) क्या...
लड़की - और नहीं तो... (एटीट्यूड के साथ) मैं उस दिन मॉल में रेड क्रॉस के लिए चंदा इकट्टा कर रही थी... अपनी स्कुल के लिए... तभी आपने अपना पर्स दीदी के हाथ में दिया... और उन दीदी ने... हमारे बक्से में पैसा भर दिया... और मैंने... जाते जाते पीछे मुड़ कर... अपने दोनों उंगली से ओ बना कर इशारा किया था....
वीर - हाँ... हाँ हाँ... (फिर वह चुप हो जाता है) (और दुखी मन से सड़क की ओर आस भरी नजर से देखने लगता है)
लड़की - आह... क्या जोड़ी थी आप दोनों की... (हुकुम देते हुए) अब चलो... उठो अब...
वीर - (हैरान हो कर) क्यों... कहाँ...
लड़की - (अपनी कमर पर हाथ रखते हुए) अरे... मैं खो गई हूँ... अब आप मुझे मेरे बाबा के पास ले चलो...
वीर - व्हाट... मतलब अभी कुछ देर पहले... जो अपनी बेटी को ढूंढ रहे थे... वह तुम्हारे बाबा हैं...
लड़की - (बड़ी शान से अपनी लटें पीछे झटकते हुए कहती है) हाँ... और वह खोई हुई लड़की... मैं हूँ....
वीर - ऐ... सच सच बताओ... तुम खो गई थी... या छुप गई थी...
लड़की - दोनों...
वीर - बहुत बुरी बात...
लड़की - ओ हैलो... (चुटकी बजाते हुए) मैं अगर नहीं छुपती... तो आपको अनु दीदी की खबर कैसे देती...

अनु की नाम सुनते ही वीर की हैरानी और बढ़ जाती है l वह उस लड़की को घूरते हुए देखता है l

लड़की - (बड़ी मासूमियत के साथ) ना जी ना... ऐसे मत देखो... (शर्माने की ऐक्टिंग करते हुए) मुझे शर्म आ रही है...

वीर अभीतक जो परेशान था उसके चेहरे पर हँसी उभर आती है l

वीर - तुम... तुम जानती हो... अनु कहाँ है...
लड़की - हाँ... अच्छी तरह से... इन फैक्ट उन्होंने ही कहा था... शायद आप मुझे यहीं मिल जाओगे...
वीर - (भावुक हो कर, आवाज थर्रा जाती है) क्या... क... कहाँ है अनु...
लड़की - हमारे घर में...
वीर - (हैरानी के साथ) तु... तुम्हारे... घर में...

वीर सिसक पड़ता है l वह जोर से उस लड़की को गले से लगा लेता है फिर उसे अलग कर उसकी माथे की चूम लेता है l वीर उसे अपनी गोद में उठा कर खड़ा हो जाता है और गरुड़ स्थंभ के पीछे से जगन्नाथ जी को आँसू भरे कृतज्ञता भरी नजरों से देखने लगता है l वह लड़की उसके चेहरे को अपनी ओर करती है

लड़की - अब चलें... कहीं देर ना हो जाए...
वीर - देर... किस बात की देरी... वह ठीक तो है ना...
लड़की - हाँ... पर आज लड़के वाले अनु दीदी को देखने आने वाले हैं... इसलिए जल्दी चलिए... कहीं देर ना हो जाए....
वीर - ल..ल... लड़के... वाले...
लड़की - हाँ... वह जो दादी अम्मा है ना... अनु दीदी की शादी करा देना चाहती हैं...
वीर - क्या...
लड़की - घबराने का नहीं... पहले मेरे बाबा को फोन करके बताओ... की मैं तुम्हें मिल गई हूँ... और मुझे लेकर घर आ रहे हो....
वीर - (हड़बड़ा कर) हाँ... हाँ...


फिर लड़की अपने बाप का नंबर देती है, वीर बिना देरी किए उसके बाप को उनकी बेटी मिलने और घर पर लाने की बात करता है l यह सब करते हुए वीर के आँखों में आंसू आ जाते हैं और फिर से उस लड़की को अपने गले से लगा लेता है और भागते हुए अपनी गाड़ी में बैठ जाता है l गाड़ी को स्टार्ट कर उड़ाने लगता है l गाड़ी के अंदर

वीर - तुम्हारा नाम क्या है एंजेल...
लड़की - एंजेल... बहुत बढ़िया नाम है... पर मैं एंजेल नहीं... मेरा नाम गुड्डु है...
वीर - (गाड़ी चलाते हुए) तुम्हारा नाम चाहे कुछ भी हो... पर तुम सच में एंजेल ही हो.... पर यह बताओ... लगभग दो महीने हो गए हैं... तुमने मुझे पहचाना कैसे...
गुड्डू - उस दिन ओरायन मॉल में... एक ही तो जोड़ी थी... जो हंस और हंसीनी लग रहे थे... वैसे भी भुल गई होती... तब आप पहचान में आ जाते...
वीर - कैसे...
गुड्डु - वेरी सिम्पल... मैंने दीदी से पुछा की आप कहाँ मिल सकते हो... तब दीदी ने इसी मंदिर की बात की... पर उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं बताया...
वीर - फिर...
गुड्डू - पुरे मंदिर में... एक ही तो बंदा था... जो मुहँ लटकाये... राह तकते बैठा हुआ था...

वीर यह सुन कर हँस देता है और गुड्डु भी उसके साथ हँस देती है ऐसे बातेँ करते करते वीर की गाड़ी गुड्डु के मोहल्ले के बाहर रुकती है l वीर गुड्डु को गोद में लेकर एक तरह से भागने लगता है l

उधर एक लाल रंग की साड़ी में अनु कमरे में बैठी हुई अपने में खोई हुई थी l उसके चेहरे पर ना शर्म ना खौफ ना खुशी कुछ भी नहीं था l वह बस अपने में खोई हुई सिमटी हुई बैठी थी l तभी कमरे में दादी हाथ में एक ट्रे लेकर आती है जिसमें छह सर्वत के ग्लास रखे हुए थे l

दादी - चल... लड़का और उसके माँ बाप बैठे हुए हैं... मैंने बात कर देख ली है.... मुझे बहुत अच्छे लगे...

अनु अपनी दादी की ओर बिना देखे एक बेज़ान कठपुतली की तरह उठती है और बाहर की और चलने लगती है l

दादी - हे भगवान... यह ट्रे तो ले...

अनु ट्रे दादी की हाथ से लेकर दादी के साथ कमरे से बाहर निकल कर उसे देखने आये लोगों के सामने आती है और सबके सामने बारी बारी से ट्रे लेकर जाती है और वह लोग एक एक कर सर्वत की ग्लास ले जाती हैं l

लड़के की माँ - आह.. कितनी खूबसूरत है आपकी पोती माँ जी... (अपने पति से) क्यूँ जी... कैसी लगी आपको...
लड़के का पिता - साक्षात लक्ष्मी लग रही है... (अपने बेटे से) क्यूँ हीरो... आपको पसंद आई...

लड़का कुछ नहीं कहता शर्मा जाता है l उसे शर्माता देख दादी खुश हो जाती है l कमरे में गुड्डु के माँ बाप भी थे l

गुड्डू के पिता - आज वाकई अच्छा दिन है... मेरी बेटी खो गई थी... किसी भले मानस को मिल गई... वह उसे लेकर आ रही है... और देखो इस शुभ घड़ी में... (दादी से) आपकी पोती भी इन्हें पसंद आ गई... वाह...

तभी वीर गुड्डु को लेकर उसी कमरे में पहुँचता है l वीर को वहाँ देख कर दादी और मृत्युंजय की सिट्टी पीट्टी गुल हो जाती है l आए हुए लड़के वाले कुछ देर के लिए हैरान हो जाते हैं l गुड्डु वीर के गोद से उतर कर भाग कर अपने पिता के पास जा कर गले लग जाती है l उसके पिता गुड्डु को अपनी गोद में उठा लेते हैं l

गुड्डू - (रोनी सूरत बना कर)(बड़ी मासूमियत के साथ) बाबा... यह भैया न होते... तो आज मैं आपको नहीं मिलती...
गुड्डू के पिता - क्या... क्या हुआ था मेरी बच्ची...
गुड्डू - मैं तो खो गई थी... फिर यह भैया मेरे पास पहुँचे और पूछे... की कहीं मैं खो तो नहीं गई हूँ... एक आदमी मुझे ढूंढते हुए गए हैं... कहीं वह मेरे बाबा तो नहीं... कह कर मुझे यहाँ लाए हैं...
गुड्डू के पिता - (वीर के सामने आकर हाथ जोड़ते हुए) आपका बहुत बहुत शुक्रिया... भाई...
वीर - यह... यह क्या कर रहे हैं...
गुड्डू - यह भैया ना... (छेड़ते हुए) बहुत शर्माते हैं...

अब माहौल थोड़ा अलग हो गया था l अब अनु को देखने आये लड़के वाले भी वीर की प्रशंसा कर रहे थे l वीर बार बार अनु की ओर देख रहा था पर अनु अपना सिर झुकाए वैसे ही खड़ी थी l दादी से यह सब बर्दास्त नहीं हो रहा था l वह बात बदलने के लिए

दादी - अच्छा हुआ राजकुमार जी... आप शुभ मुहूर्त पर पधारे हैं.... यह अनु को देखने आये हैं... और इन्हें अनु पसंद भी आ गई है... आप अनु के उज्वल भविष्य के लिए... अनु को दो शब्द कह दें...

दादी की बातेँ सुन कर अनु अपनी आँखे मूँद लेती है और जबड़े भींच लेती है l दादी से यह सब सुनने के बाद वीर को भी झटका लगता है l

दादी - राज कुमार जी...
वीर - हाँ...
दादी - कहिए ना कुछ... अनु को...

वीर बड़ी मुश्किल से अपना सिर हाँ में हिलाता है l उसके बोल फुट नहीं रहे थे उसे ऐसा लग रहा था किसीने उसके हलक को मुट्ठी में जकड़ रखा है l बड़ी मुश्किल से कुछ कहने के लिए खुद को तैयार करता है l

वीर - अनु...
अनु - (अपनी आँखे जोर से बंद कर लेती है और जबड़े भींच कर अपनी मुट्ठी में साड़ी कस कर भींच लेती है)
वीर - अ.. अनु... (हँसने की कोशिश करते हुए, अटक अटक कर) आ.. आज... तो... बहुत खुशी का दिन है... तु... तुम.. तुम्हारी जिंदगी की... नई शुरुआत हो रही है... (आवाज धीरे धीरे भर्राने लगती है) कितने खुश हैं...(दादी की ओर देखते हुए) तुम्हारी दादी... (मृत्युंजय की तरफ देख कर) तु... तुम्हारे... मट्टू भाई... (फिर अनु को देखने आये लड़का और उसके परिवार को देख कर) तु.. तुम्हें... देखने आए... यह लोग.... बहुत खुश हैं.... (फिर अनु को देख कर) अ...अ..अनु... (अनु वीर की ओर देखती है) पर मुझे... ऐसा क्यूँ लग रहा है कि... मेरा दिल... कोई... निचोड़ रहा है... ऐसा क्यूँ लग रहा है... जैसे... मेरे जिस्म में से... कोई... मेरी जान को खिंच ले जा रहा है... मैं क्यूँ टुट रहा हूँ... टुकड़ों में बिखर रहा हूँ... अनु....

अनु और कुछ सुन नहीं पाती फुट फुट कर रोने लगती है और फिर भाग कर वीर के गले लग जाती है l वीर भी उसे अपने गले से लगा कर उठा लेता है l अनु के पांव फर्श से छह सात इंच ऊपर झूलने लगती है l यह वाक्या देख कर वहाँ पर मौजूद सभी आँख और मुहँ फाड़ कर देखने लगते हैं l दादी माँ फटी आँख और खुले मुहँ से धप कर बैठ जाती है और लड़के वाले खड़े हो जाते हैं l मृत्युंजय पीछे हट कर दीवार से सट जाता है l गुड्डू के पिता अपनी गोद से गुड्डू को उतार देते हैं l गुड्डू अपने पिता के गोद से उतर कर ताली बजाने लगती है, उधर दो प्रेमी अपनी आंसुओं से एक दूसरे के कंधे भिगो रहे थे l दोनों थोड़ी देर बाद नॉर्मल होते हैं और एक दुसरे के माथे जोड़ लेते हैं l दोनों की आँखे बंद हैं l

वीर - तु जानती है ना... मैं.. तुझसे बहुत प्यार करता हूँ...
अनु - (आँखे बंद किए हुए अपना सिर हाँ में हिलाती है)
वीर - तु भी मुझसे... बहुत प्यार करती है... है ना...
अनु - (फिर से अपना सिर हाँ में हिलाती है)
वीर - (अपना माथा अलग कर आँखे खोल कर, सवाल करता है) फिर....

अनु कुछ नहीं कहती फिर से पुरी जोर से वीर के गले लग कर रोती है l

लड़के का पिता - यह... यह क्या है... क्या हो रहा है... छि.. छि.. छि...

वीर अपनी आँखे खोल कर जलती हुई निगाह से देखता है l उसकी आँखों में जैसे अंगारे उतर आई हो l लड़के वालों की हालत खस्ता हो जाता है l

लड़के की माँ - (गुस्से भरी आवाज में, दादी से) माँ जी...

दादी की आँखों में आंसू थी वह लड़के वालों के तरफ बिना देखे अपना हाथ जोड़ देती है l

लड़के की माँ - चलो जी चलो... हम क्यूँ इनके जैसे बेगैरत हों... चलिए...

लड़के वाले जाने को होते हैं कि तभी वीर उन्हें आवाज देता है l

वीर - सुनिए... (अपने से अनु को अलग करता है पर अनु को छोड़ता नहीं है) इस घर की चौखट लांघने से पहले.... एक बात जान लीजिए... अनु के खिलाफ... कुछ भी बदजुबानी.... या बदखयाली की... तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा...(अपने सीने से लगा कर) यह मेरी है... वीर सिंह क्षेत्रपाल की होने वाली धर्मपत्नी.... और क्षेत्रपाल परिवार की होने वाली बहु....
fabulous update
 

ANUJ KUMAR

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👉निन्यानवेवां अपडेट
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बारंग रिसॉर्ट

टीवी पर नैशनल जोग्राफी चैनल पर सी वर्ल्ड प्रोग्राम चल रहा था l पर आवाज़ म्यूट था l

पिनाक सिंह एक कुर्सी पर बैठा हुआ है, उसके सामने रोणा और बल्लभ अपना सिर झुकाए खड़े हुए हैं l पिनाक सिंह अपनी कुर्सी के एल्बो रेस्ट पर कोहनी रख कर एक उंगली से अपना ठुड्डी रगड़ते हुए कुछ गहरी सोच में खोया हुआ है l

पिनाक - लगभग महीना होने को आया... तुम दोनों बस इतना ही पता लगाया....
रोणा - (हैरान हो कर) छोटे राजा जी... आपको इतना लग रहा है... विश्व ने केस को दुबारा खोलने के लिए... अपना दाव लगा दिया है...
पिनाक - तो क्या हुआ... छुप कर ही तो बैठा हुआ है...
बल्लभ - पर... आप समझने की कोशिश कीजिए... वह केस अदालत में ले कर जाएगा... आप भूल रहे हैं... अदालत ने एसआईटी को बहाल रखा था...
पिनाक - तो...
बल्लभ - केस जहां पर रुका हुआ था... वहीँ से आगे बढ़ेगी... मतलब... (हकलाते हुए) र.. र.. र्रराजा साहब.. फफफफ... फिर से... (चुप हो जाता है)
पिनाक - हाँ तो क्या हुआ... हम नौबत वहाँ तक आने ही क्यूँ देंगे... जयंत की तरह उसे भी रास्ते से हटा देंगे...
रोणा - बस छोटे राजा जी... यही मैं पहले से ही करना चाहता था... पर तब...
पिनाक - (घूरते हुए) हाँ तब...
रोणा - (चुप हो जाता है)
पिनाक - तब उसे एक कुत्ते की जिंदगी बख़्श दी गई थी... वह कुत्ता ही है... और वह अब एक कुत्ते की मौत मारा जाएगा... (रोणा और बल्लभ दोनों चुप रहते हैं) (उन्हें यूँ चुप देख कर) क्या हुआ...
बल्लभ - (झिझकते हुए) छोटे राजा जी... अब हम क्या कहें... विश्व अभी भी पर्दे के पीछे है... सामने नहीं आया है... उसके बावजूद उसने अपनी चाल चल दी है... और फ़िलहाल... वह हमसे... दस कदम आगे है...
पिनाक - कैसे...
बल्लभ - उसने आरटीआई दाख़िल कर के... गृह मंत्रालय और न्याय तंत्र को ऐक्टिव कर दिया है... इस तरह से... उसने खुद को एक तरह से सुरक्षित कर लिया है....

तभी टीवी पर एक दृश्य आता है कि एक लोबस्टर एक खाली पड़े शंख के खोल के भीतर छुपता है पर एक औक्टोपस खोल के अंदर अपना आर्म घुसेड़ कर उस लोबस्टर को बाहर निकाल कर अपने मुहँ में भर लेता है l यह दृश्य देख कर पिनाक सिंह हँसने लगता है l

पिनाक - हा हा हा हा.... (पिनाक टीवी को अनम्युट करता है)

रोणा और बल्लभ दोनों टीवी की ओर देखते हैं l टीवी पर वह दृश्य फिर से व्याख्यान के साथ चलने लगता है l वह दृश्य खतम होने के बाद l

पिनाक - वह रहा विश्व का सुरक्षा कवच.... हा हा हा हा हा... (रोणा और बल्लभ फिर भी चुप रहते हैं) क्यूँ... मजा नहीं आया... या यकीन नहीं आया...
रोणा - छोटे राजा जी... आप बात की गहराई तक नहीं जा रहे हैं...
पिनाक - तो गहराई को समझाओ...
बल्लभ - देखिए... छोटे राजा जी... बात हम आपके साथ रह कर.... मिलकर संभालना चाहते हैं...
रोणा - जब राजगड़ से निकले थे... तब तक विश्व हमारे लिए... एक मामूली बंदा था... इन्हीं बाइस पच्चीस दिनों में मालुम हुआ... वह हमारे बूते से बाहर है...
बल्लभ - हाँ छोटे राजा जी... वह अब आम नहीं रहा... उसने खुद को खास बना दिया है...
रोणा - और हम नहीं चाहते... की उसके वजह से... राजा साहब के माथे पर... शिकन पड़े...
बल्लभ - हम राजा साहब से... नहीं कह पाए... और ना ही कह पाएंगे... इसलिए हम सीधे आपसे संपर्क किए... और उसके बारे में... हमने जितनी भी जानकारी हासिल की... सब कुछ आपको बता दिया...
पिनाक - हूँ... तुम्हारे इरादे नेक हैं... राजा साहब को तो जानकारी होनी ही चाहिए ना...
रोणा - हाँ... हम उन्हें सब बतायेंगे... पर बात जब संभालने की होगी... तो आपको हमारा साथ देना होगा...
पिनाक - हूँ...
बल्लभ - हाँ छोटे राजा जी... कुछ मामलों में... विश्व का कद हमसे बढ़ गया है... पर रोणा... मैं और आप मिल कर... हम विश्व के मंसूबों पर पानी फ़ेर सकते हैं....

पिनाक सिंह चुप रहता है, उसे चुप देख कर रोणा और बल्लभ एक दुसरे को देखने लगते हैं l पिनाक टीवी पर चल रहे प्रोग्राम देख रहा था l अब सी वर्ल्ड का प्रोग्राम खतम हो चुका था और लायन प्राइड का प्रोग्राम चल रहा था l उसमें अफ्रीका के सवाना जंगल में शेर और लकड़बग्घों की झड़प दिखा रही थी l जिसमें यह दिखा रहा था एक शेर की अनुपात तीन तीन लकड़बग्घों के बराबर है l अगर चार लकड़बग्घें हो जाएं तो शेर पर भारी पड़ सकते हैं l

यह दृश्य देखते ही पिनाक सिंह का जबड़ा भींच जाता है l अपने दांत पिसते हुए रोणा और बल्लभ को देखने लगता है l रोणा और बल्लभ भले ही टीवी ना देख पा रहे हों पर उन्हें टीवी पर आती व्याख्यान से बात समझते देर ना लगी l पिनाक सिंह इस बार टीवी बंद कर देता है l

पिनाक - हमारे नाम के साथ सिंह लगा हुआ है... तुम दोनों हमें साथ ले कर एक कुत्ते का शिकार करने के लिए कह रहे हो...
रोणा - नहीं... वह... मेरा मतलब है... नहीं हमारा मतलब है...

पिनाक को अपनी तरफ गुस्से में देखते हुए पाता है, इसलिए वह चुप हो जाता है l

पिनाक - तुम दोनों ने... उस कुत्ते को शेर बना कर हमारे सामने पेश किया... और तुम दो लकड़बग्घे... हमें अपने साथ मिलाकर... उसका मान बढ़ा रहे हो... या हमें अपनी ओहदे से नीचे ला रहे हो...
रोणा - छोटे राजा जी... ऐसा तो हम सपनों में भी नहीं सोच सकते...
पिनाक - तो तुम्हें जो करना है करो... जिसे साथ लेना है लो... पर इस केस में... तुम दोनों अपनी अपनी दिमाग चलाओ...
बल्लभ - छोटे राजा जी... पिछली बार... हमारी टीम बहुत बड़ी थी...
रोणा - और इस बार हालत जुदा नहीं है... पर हमारी टीम अधूरी है...
पिनाक - तो बनाओ... तुम लोग अपनी टीम... मीडिया मैनेजमेंट से लेकर... सिस्टम मैनेजमेंट तक... सब कुछ हैंडल करो...
रोणा - और राजा साहब ने... विश्व के बारे में पूछताछ करने के लिए जो बोले थे वह...
पिनाक - तो उन्हें बताओ... (रोणा और बल्लभ चुप हो कर एक दुसरे को देखने लगते हैं)
बल्लभ - कितना... मेरा मतलब है... हम उन्हें कितना बतायेंगे....
पिनाक - उतना... जितना कम ना लगे... और ज्यादा भी ना लगे....

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विश्व छत पर इधर उधर हो रहा था l बीच बीच में मोबाइल को देखता था फ़िर चहल कदम करते हुए कभी कभी आसमान की ओर देखने लगता था l फिर अचानक रुक जाता है और आसमान की ओर सिर उठा कर देखने लगता है l एक टूटता तारा उसे दिखता है, तभी उसके फोन पर मैसेज अलर्ट टोन बजने लगता है l विश्व अपनी मोबाइल की डिस्प्ले देखता है..

"डियर कस्टमर, +91@#$&$#@&
इज़ नाउ अवेलेवल टु टेक काल्स"

यह मैसेज देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है l

उधर उसी वक़्त रुप के हाथो में शुभ्रा ने एक नया मोबाइल थमा दिया था l रुप ने भी बिना देरी किए अपनी पुरानी सिम को मोबाइल में डाल कर रजिस्टर कर चेक कर ही रही थी के उसके मोबाइल अनगिनत मैसेज लोड होने लगी l आधे से ज्यादा मैसेज में यही अलर्ट थी..

"डियर कस्टमर, यू हैव अ मिस्ड कॉल फ्रोम +91@#$#@&$#


द लास्ट मिस्ड कॉल वॉज एट & $#@ थैंक्यू टीम @@@

यह मैसेज पढ़ते ही रुप के गालों पर लाली उतर आती है और एक हल्की सी मुस्कराहट उसके होठों पर नाच उठती है l वह अपनी फोन से पहले बनानी को कॉल करती है

बनानी - राम... राम... हे राम... तुझे अब टाइम मिला...
रुप - क्या करुँ... मेरा फोन ऐक्चुयली खराब हो गया था... अच्छा रुक... हम सभी कंफेरेंन्स में बात करते हैं...
बनानी - हाँ चल... वीडियो... कंफेरेंसिंग करते हैं...
रुप - नहीं नहीं... वीसी के लिए पहले ऑउट होना पड़ेगा... फिर इन होना पड़ेगा... तो यही बेहतर है... है ना...
बनानी - अच्छा बाबा... जो तुझे ठीक लगे वही कर...
रुप - ठीक है... एक मिनट...

कह कर फोन पर बनानी को होल्ड करती है और फिर दीप्ति को फोन लगाने वाली होती है कि स्क्रीन पर बेवकूफ़ डिस्प्ले होने लगती है l रुप मुस्कराते हुए देखती है l स्क्रीन से बेवकूफ़ गायब होते ही दीप्ति को फोन लगाती है

दीप्ति - वाव क्या बात है यार... कहाँ गायब हो गई... तीन दिन हो गए हैं... और तो और तेरा फोन स्विच ऑफ आ रहा था...
रुप - रुक... मैं सबको कंफेरेंसिंग में लेती हूँ... फिर बात करते हैं...
दीप्ति - ठीक है...

इस तरह से रूप एक एक करके अपने सारे दोस्तों को कंफेरेंसिंग में लेती है l

उधर विश्व दो तीन बार फोन लगाने पर भी रुप की फोन अंगेज दिखती है l विश्व फिर फोन को जेब में रख कर आसमान की ओर देखने लगता है l कुछ देर बाद उसका फोन बजने लगता है l विश्व झट से फोन उठाता है पर उसे डिस्प्ले में वीर दीखता है l विश्व फोन उठाता है

विश्व - हाँ... वीर कहो... कैसे याद किया...
वीर - (टूटे हुए आवाज़ में) यार... क्या कहूँ... समझ में नहीं आ रहा है...
विश्व - (उसकी आवाज़ से गहरा दर्द महसुस कर लेता है) वीर... कहो क्या हुआ आज...
वीर - (रोते हुए) क्या कहूँ यार... रोने को दिल कर रहा है...
विश्व - क्या हुआ बोल ना...
वीर - (अपनी सिसक को बुरी तरह से कंट्रोल करते हुए) वह... अपने घर में नहीं है यार...
विश्व - क्या... नहीं है मतलब...
वीर - यार... उसकी दादी और वह... अपना घर छोड़ कर कहीं चले गए हैं...
विश्व - क्या...
वीर - हाँ यार...
विश्व - ओह... पर क्यूँ...
वीर - नहीं जानता यार... पर इतना समझ में आ रहा है... मेरी करनी... मेरा हिसाब ले रहा है....
विश्व - यह क्या कह रहे हो...
वीर - (खुद को थोड़ा संभालते हुए) जब प्यार से मतलब नहीं था... जिंदगी में कोई दर्द नहीं था... जब प्यार से पहचान हुआ... जिंदगी.. दर्द से पहचान हो गई...
विश्व - बस यार बस... धीरज धर...
वीर - यह प्यार होता क्यूँ है... होता है.. तो इतना दर्द क्यूँ देता है...
विश्व - हर दर्द की दवा होती है....
वीर - हाँ... पर मेरी नहीं...
विश्व - ऐसा नहीं है... यार... ऐसा नहीं है... तुम्हारे दर्द की दवा अनु ही है...
वीर - पर वह नहीं है... मैं कहाँ ढूँढु..
विश्व - वहीँ... जहाँ वह तुम्हें मिली थी...
वीर - मतलब....
विश्व - वही मंदिर... जहाँ तुम्हें... तुम्हारे बचपन से मिलाया था...
वीर - (उम्मीद भरे आवाज में) म.. मंदिर में...
विश्व - देख यार... मैं नहीं जानता कि मैं... सही कह रहा हूँ... या गलत... मगर... जब हर दरवाज़ा बंद मिले... तो भगवान का दरवाजा खटखटा कर देख लेनी चाहिए...
वीर - (जोश भरी आवाज में) हाँ... तुमने ठीक कहा... तुम वाकई दोस्त के रुप में... फरिश्ते हो... जब जब मुझे लगा कि मैं अंधेरे में भटक गया... तब तब तुमने मुझे रौशनी दिखाई... थैंक्स यार...
विश्व - अनु मिल जाए... तो भगवान को थैंक्स कह देना....
वीर - हाँ... जरूर...

कह कर वीर फोन काट देता है l फोन कटते ही विश्व फोन देखता है तो स्क्रीन पर मिस कॉल दिखा रहा था, कॉल लिस्ट में नकचढ़ी दिख रही थी l

विश्व - (मन ही मन) मर गया...

विश्व वापस नकचढ़ी को फोन लगाता है l उधर फोन के डिस्प्ले पर बेवकूफ़ देख कर रुप रिजेक्ट कर देती है, तो विश्व उसे फिर से फोन नहीं लगाता है l उधर रुप इंतजार करती है कि शायद बेवकूफ़ का फोन आएगा, थोड़ी इंतजार के बाद जब फोन नहीं आती तो खीज कर वह फोन लगाती है l फोन आते ही विश्व फोन नहीं उठाता है, थोड़ी देर रिंग होने के बाद वह फोन उठाता है l

विश्व - जी कहिए...
रुप - व्हाट... मैं कहूँ... या तुम कहोगे...
विश्व - मैं... मैं क्यूँ कहूँ...
रुप - क्यूंकि... मेरे फोन पर तुम्हारे पचपन के करीब मिस कॉल थे...
विश्व - (बड़ी मासूमियत के साथ) अच्छा...
रुप - (गुस्से में नाक सिकुड़ कर) ऐ....
विश्व - ओके ओके...
रुप - ह्म्म्म्म... अब बोलो... किसके साथ बात कर रहे थे... मेरा फोन क्यूँ नहीं उठाया...
विश्व - मेरे दोस्त से...
रुप - ह्म्म्म्म... ठीक है... बोलो... इतने कॉल... क्यूँ और किस लिए...
विश्व - उस रात को जो हुआ... मैं कुछ समझ नहीं पाया...
रुप - (एक एटीट्यूड के साथ सांस लेते हुए) मतलब...
विश्व - यही... के बिछड़ने का दुख आपने जाहिर की... पर...
रुप - (अपनी हँसी को काबु करते हुए) पर...
विश्व - वह थप्पड़... इंटरमिशन के लिए था... या... फूल स्टॉप... द एंड के लिए था...
रुप - क्या... क्या मतलब हुआ...
विश्व - यही की... हमारी मुलाकात की उम्र क्या इतनी थी... थप्पड़ से शुरु... थप्पड़ पर खतम...

रुप विश्व की यह सुन कर पहले फोन को नीचे कर देती है फिर अपनी हाथ मुहँ पर रख कर हँसी को दबाती है l विश्व उधर से हैलो हैलो कहता रहता है l फिर रुप खुद को नॉर्मल करते हुए

रुप - यह आशिकों वाली अप्रोच... मुझ से...
विश्व - ना... दोस्ती... मेरा दोस्त मुझसे रूठा हुआ है... मनाने की जद्दोजहद चल रही है....
रुप - क्या यह दोस्त इतना जरूरी है...
विश्व - हर एक दोस्त जरूरी होता है... और मुश्किल से... मेरे सिर्फ दो ही दोस्त हैं...
रुप - तो...
विश्व - एक दोस्त रूठा हुआ है... वजह तो जानना पड़ेगा...
रुप - अगर वजह वाजिब हुआ तो...
विश्व - तो जो सजा आप तय करो... सिर झुका कर मान लेंगे....
रुप - हूँ... इम्प्रेसीव... तो हमें क्या करना होगा....
विश्व - हमें शायद एक आखिरी बार के लिए... मिलना होगा...
रुप - (हैरान हो कर) आखिरी बार... क्यूँ...
विश्व - क्यूँ की मैं पिछली मुलाकात को... आखिरी करना नहीं चाहता...
रुप - तो अगली मुलाकात आखिरी करना चाहते हो...
विश्व - यह फैसला भी आपको करना होगा... पर थप्पड़ से नहीं...
रुप - तो उस फैसले के लिए हमें मिलना होगा...
विश्व - जी...
रुप - कहाँ...
विश्व - यह भी... आप ही तय कीजिए...
रुप - ओ हो... इतनी इज़्ज़त...
विश्व - और नहीं तो... मैं अपने दोस्तों को... बहुत इज़्ज़त देता हूँ...
रुप - अच्छा... और इज़्ज़त के लिए मैं और क्या कर सकती हूँ....
विश्व - हाँ कर सकती हैं ना... बहुत कुछ कर सकती हैं... आप मुझे लेकर एक डिनर प्रोग्राम फिक्स कर सकती हैं... वह भी एक फाइव स्टार होटल में... अपनी खाते से... गॉड प्रॉमिस... मैं बिल्कुल भी बुरा नहीं मानूँगा....
रुप - (चिल्लाते हुए) यु... यु स्कौंड्रल... एक लड़की से डिनर डेट मांगते हुए.... तुम्हें शर्म नहीं आती...
विश्व - आती है ना... बहुत आती... अगर कोई अंजान होती... मैं अपने दोस्त से मांग रहा हूँ... शर्म कैसी...
रुप - (चिल्लाते हुए) शट अप... यु... यु... डफर... यु बेवक़ूफ़... मिलो.. हाँ हाँ मिलो तुम फिर मुझसे... अब मुलाकात नहीं होगी... मुक्का लात होगी... समझे... मुक्का लात होगी... अअअह्ह्ह्ह...

कह कर फोन काट देती है और अपनी फोन को बेड पर पटक देती है l उधर फोन कटते ही विश्व की हँसी छूट जाती है और वह जैसे ही मुड़ता है प्रतिभा को देखता है l

विश्व - माँ... ततत.. तुम यहाँ... ककक.. कब आई...
प्रतिभा - (अपनी भवें सिकुड़ कर) हकला क्यूँ रहा है...
विश्व - वह... माँ... मैं... वह...
प्रतिभा - (हँसते हुए) प्रताप... तेरे अंदर... यह एंगेल भी है...
विश्व - (कुछ नहीं कहता है, शर्मा कर अपनी कान के पास सिर के बालों को खुजाने लगता है)
प्रतिभा - (अपना सिर हिलाते हुए) ह्म्म्म्म... आखिर... उसे चिढ़ा दिया.... हूँ... क्यूँ...
विश्व - वह माँ...
प्रतिभा - हाँ हाँ...
विश्व - वह माँ... मुझे... नंदिनी जी को गुस्से में देखना... अच्छा लगता है... गुस्से में तेज तेज सांस लेते हुए... नथुनों को सिकुड़ते हुए... बहुत अच्छी लगती हैं...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... सब... ल़डकियों को हँसाने की कोशिश करते हैं... और तुम.... क्यूँ...
विश्व - (थोड़ा सीरियस हो जाता है) माँ... पता नहीं... पर... मैं जब भी उनसे मिलता हूँ... ऐसा लगता है कि... उनके अंदर से राजकुमारी जी झाँक रही हैं.... या फिर...
प्रतिभा - हाँ... या फिर...
विश्व - या फिर... मैं... मैं शायद... उनमें... राजकुमारी को तलाश रहा हूँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... यानी तु अपने दिल को बहला रहा है... फुसला रहा है... या फिर समझा रहा है... दिलासा दे रहा है... तसल्ली दे रहा है...
विश्व - सभी एक ही बात है ना माँ...
प्रतिभा - ना... एक बात तो हरगिज नहीं है...
विश्व - (चुप रहता है)
प्रतिभा - फर्ज करो... राजकुमारी और नंदिनी दोनों... तुम्हारे सामने आ गए... तब किसे चुनोगे...
विश्व - माँ... तुम मुझे कंफ्यूज कर रही हो...
प्रतिभा - नहीं...
विश्व - (चुप रहता है)
प्रतिभा - क्या हुआ...
विश्व - माँ... आगाज़ चाहे कैसी भी हुई हो... अंजाम एक खूबसूरत मोड़ पर होनी चाहिए... मैं नंदिनी जी के साथ अपनी दोस्ती और जुदाई को... एक हसीन मोड़ पर खतम करना चाहता हूँ...
प्रतिभा - क्यूँ... किसलिए... खतम क्यूँ करना चाहता है...
विश्व - क्यूंकि... बाद में... फिर कभी अपनी... दिल को ना बहलाउँ... ना फुसलाउँ... या फिर ना समझाउँ ... ना दिलासा दूँ... ना तसल्ली दूँ...

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अगले दिन सुबह सुबह अंधेरा भी नहीं छटा था, वीर नहा धो कर बाथरुम से निकल कर वार्डरोब खोलता है, इतने कपड़ों के सेट को देख कर वह कंफ्यूज हो जाता है l वह सोचने लगता है

"अरे यार कौन सा ड्रेस पहन कर जाऊँ"

कुछ सोचने के बाद वह वार्डरोब से सफेद रंग का ड्रेस निकालता है और पहन कर खुद को आईने में देखता है l उसके बाद कमरे से निकल कर बाहर जाने जाने को होता है कि अचानक रुक जाता है और पीछे मुड़ कर जाता है और अपने भैया और भाभी के कमरे के सामने खड़ा हो जाता है l कुछ देर खड़े होने के बाद दरवाजे पर दस्तक देने लगता है l

शुभ्रा - (अंदर से, उबासी भरे आवाज में) कौन है...
वीर - जी भाभी... मैं... वीर...
शुभ्रा - (हैरानी भरे आवाज में) वीर... तुम... इस वक़्त... इतनी सुबह...
वीर - (हिचकिचाते हुए) वह भाभी... आपसे एक काम था...
शुभ्रा - एक मिनट... आई...

पांच मिनट के बाद वह दरवाजा खोलती है l शायद चेहरा मोहरा साफ कर अपने कपड़े ठीक करने के बाद वीर के सामने खड़ी थी l शुभ्रा वीर को देख कर और भी ज्यादा हैरान हो जाती है l क्यूँकी वीर उसके सामने सजा संवरा खड़ा था l

शुभ्रा - वीर... यह... क्या... तुम इतनी सुबह सुबह... तैयार हो कर... कहाँ जा रहे हो...

वीर कुछ नहीं कहता है सीधे शुभ्रा के पैरों पर घुटने में आता है और अपने दोनों हाथों से पैर पकड़ लेता है l शुभ्रा पीछे हटना चाहती है मगर हट नहीं पाती क्यूंकि वीर ने पैरों को पकड़ लिया था l

शुभ्रा - क्या... क्या कर रहे हो वीर... क्यूँ...
वीर - भाभी... आप माँ समान हो... मैंने कुछ गुनाह किए हैं... वह मैं कहने के बाद... आपसे नज़रें भी ना मिला पाऊँगा... बस इतना जान लीजिए... आप एक माँ का दिल लेकर... मुझे माफ कर दीजिए....
शुभ्रा - वीर... छोड़ो मुझे... मुझे एंबार्समेंट फिल हो रहा है... प्लीज...
वीर - भाभी प्लीज... आप मुझे माफ कर दो...
शुभ्रा - पता नहीं तुम क्या बात कर रहे हो.... ठीक है... उठो... मैंने माफ किया...
वीर - (वैसे ही पैरों को पकड़े हुए था) भाभी... आज आपकी आशीर्वाद की भी जरूरत है... प्लीज मुझे आशीर्वाद दो... आज मुझे हर हाल में कामयाब होना है... प्लीज...
शुभ्रा - अच्छा ठीक है... जाओ कामयाब हो कर लौटो...

इतना सुनने के बाद वीर बिना अपना सिर उठाए वहाँ से तेजी से निकल जाता है l शुभ्रा उसे ऐसे निकल कर जाते हुए देख हक्की बक्की सी खड़ी रह जाती है l इस शॉक से उबर कर जब तक वह नार्मल होती है तब तक यह शोर शराबा सुन कर विक्रम और रुप भी उठ चुके थे I वे दोनों भी वीर की हरकत देख कर हैरान हो गए थे l तीनों के कान में गाड़ी की घर के परिसर से निकलने की आवाज पड़ती है l शुभ्रा खुद को नॉर्मल करके जब पीछे मुड़ती है तो विक्रम को भी मुहं फाड़े देखते हुए पाती है l

उधर वीर की गाड़ी सड़क पर दौड़ क्या उड़ रही थी l उसके चेहरे पर आज परेशानी से ज्यादा सुकून झलक रही थी l वह गाड़ी चलाते हुए पटिया के उसी मंदिर में पहुँचता है जहां अनु और वह एक दुसरे के जन्मदिन पर अपनी अपनी जिंदगी की सबसे हसीन और यादगार पल बनाए थे l मंदिर तो खुल चुका था आसपास पुजा के सामान बेचने वाली सभी दुकानें भी खुल चुकीं थी l वीर अपने पर्स निकाल कर पुजा के सामान लेता है और फिर मंदिर के अंदर जाता है l पुजारी उससे सामान लेकर पुजा करने लगता है l

वीर - (अपने मन ही मन में, आँखे बंद कर) हे भगवान... मैं अपनी किसी भी गुनाह का माफी मांगने नहीं आया हूँ... बस तेरे दर पर अपने लिए एक मौका मांग रहा हूँ... बदले में तेरे न्याय में... मेरे लिए जो भी सजा मुकर्रर होगी... मैं सिर झुका कर मान लूँगा... शिकायत भी नहीं करूंगा... वादा है मेरा... बस आज मैं वह सबब देखना चाहता हूँ... जिसके वजह से लोगों का विश्वास तुझ पर से... कभी नहीं डगमगाता....

पुजारी पुजा के बाद वीर को उसका थाल लौटा देता है l वीर थाल लेकर दुकान दार को लौटाने के बाद वहाँ पर बैठे भिखारियों में कुछ पैसे बांट देता है और मंदिर सीढियों पर बैठ जाता है l

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उधर नाश्ते के लिए टेबल पर तीनों बैठे हुए हैं l तीनों के सामने नाश्ता लगा भी हुआ है, पर तीनों अपने अपने सोच में खोए हुए थे l

रुप - (अपनी सोच में) कल अनाम ने ऐसे क्यूँ मुझे छेड़ा... कमबख्त मुझे मनाने के वजाए... मुझे गुस्सा दिलाए जा रहा था... सोच रही थी... मिन्नतें करेगा... मुझे मनाएगा.... पर... इडियट... मुझे गुस्से पे गुस्सा दिलाए जा रहा था... बेवकूफ़... हूँह्ह्ह्ग्ह्... ल़डकियों को कैसे मनाए... बिल्कुल भी उसे अक्ल नहीं है... बेवक़ूफ़... (यह सोचते सोचते वह जितनी गुस्सा हो रही थी, उतनी ही प्रताप की रात में छेड़ने को याद करते हुए अपने अंदर उसे गुदगुदी सी महसुस हो रही थी)

उधर शुभ्रा अपनी सोच से बाहर आकर देखती है सबकी नाश्ते का प्लेट ज्यों का त्यों है l

शुभ्रा - अहेम अहेम... (खरासती है)

विक्रम और रुप दोनों अपने खयालों से बाहर निकलते हैं l दोनों अपना अपना नाश्ता खाने लगते हैं l

शुभ्रा - क्या बात है... क्या सोच रहे थे... आप दोनों...
दोनों - कुछ नहीं...
शुभ्रा - झूठ मत बोलो... मैं... कब से देख रही थी... (रुप से) तुम क्या सोच रही थी....
रुप - (हड़बड़ा जाती है जैसे कोई चोरी पकड़ी गई हो) क्या... कु.. कु.. कुछ भी तो नहीं...
शुभ्रा - ठीक है... तो फिर... ऐसे घबरा क्यूँ रही हो.... वैसे भी... कल रात... तुम्हारे कमरे से चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी...
रुप - क्या...
विक्रम - हाँ नंदिनी... तुम किस पर चिल्ला रही थी...
रुप - (खुद को संभालते हुए) अच्छा वह... वह मैं तीन दिन से कॉलेज नहीं गई ना... इसलिए... सब मुझ पर रौब झाड़ रहे थे...
विक्रम - अच्छा... ठीक है फिर... आज तुम कॉलेज चली जाओ... अपने दोस्तों के साथ मिल कर... तुम्हें अच्छा लगेगा...
शुभ्रा - हाँ हाँ.. तुम्हारे भैया ने सही कहा...
रुप - ठीक है भाभी... चली जाऊँगी... पर... खोई हुई आप भी थीं...
शुभ्रा - अररे कुछ नहीं... आज वीर जिस तरह से... मेरे पैर पड़े और आशीर्वाद मांगा... मैं अभी भी... उसी शॉक में हूँ... (विक्रम की ओर देखते हुए) क्या आप बता सकते हैं... वीर किस बात पर माफी मांग रहे थे....
विक्रम - (कुछ देर के लिए सोचने लगता है, फिर) नहीं...
शुभ्रा - फिर भी... आज वीर के आवाज में... पुरी सच्चाई और ईमानदारी साफ झलक रही थी... जैसे वह दिल से नहीं... अपनी आत्मा की गहराई से माफी मांग रहे थे.... पर क्यूँ... (कह कर विक्रम की ओर देखती है)
विक्रम - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) दिन व दिन वीर में... बहुत तेजी से... बदलाव आ रहा है... सच कहूँ... तो मुझे... उसका यह बदलाव... डरा रहा है.... वह पहले से ही... बगावती तेवर का.. मुहँ फट रहा है... जो मर्जी में आता था... वही किया करता था... सही गलत देखता नहीं था.... पर अब.... अब ऐसा लग रहा है... जैसे... जैसे वह एक तूफान बनता जा रहा है... अपने सामने आने वाले हर चट्टान से टकराने से भी... पीछे नहीं हटेगा...

इतना कह कर विक्रम थोड़ी देर के लिए ख़ामोश हो जाता है l रुप और शुभ्रा उसे एक टक सुने जा रहे थे l विक्रम उन दोनों के तरफ देखता है

विक्रम - उसके अंदर की जिद... उसके अंदर का तूफान... दायरे में रहे तो ठीक है... वरना मुझे डर इस बात का है... जब राजा साहब और छोटे राजा जी के सामने... उसके दिली ज़ज्बात आयेगा... तब क्या होगा...

फिर एक खामोशी छा जाती है l तीनों ही अब वीर के बारे में सोचने लगते हैं l कुछ देर बाद रुप खरासते हुए भैया भाभी का ध्यान अपने तरफ खींचती है l

रुप - अहेम... अहेम... (दोनों रुप की तरफ देखते हैं) (रुप विक्रम से) भैया.... राजा साहब ने आपकी और भाभी जी के प्यार को मंजुरी दी थी... तो क्या...
विक्रम - हाँ... क्यूंकि इसमें राजा साहब ने... कुछ दुर की देखा था...
रुप - मतलब...

शुभ्रा वहाँ से उठ कर चली जाती है l दोनों उसे जाते हुए देखते हैं l

विक्रम - जरा सोचो नंदिनी... राजा साहब कल से भुवनेश्वर में हैं... पर यहाँ पर ना कभी आते हैं... ना कभी ठहरते हैं...
रुप - वह तो मैं देख चुकी हूँ... पर इसमें... दुरंदेशी कहाँ है...
विक्रम - अभी... छोटे राजा जी मेयर हैं... अब आने वाले इलेक्शन में... बड़े बड़े ओहदे हासिल करनी है... ताकि हमारी रुतबे का फैलाव बरकरार रहे...
रुप - पर यह तब तक था ना... जब तक भाभी के पिताजी... पार्टी अध्यक्ष थे...
विक्रम - हाँ... पर अब उसकी भरपाई हो चुकी है...
रुप - कैसे...
विक्रम - ESS के जरिए...
रुप - ESS के जरिए... कैसे... मैं समझी नहीं...
विक्रम - बस... कुछ बातेँ हैं... उसकी दायरा मैं भी नहीं तोड़ सकता...

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सीढियों पर बैठा वीर किसी पत्थर की बुत की तरह सड़क की ओर देखे जा रहा था l उसकी नजरें सिर्फ और सिर्फ अनु को ढूंढ रही थी l तभी उसके पास एक आदमी हांफते हुए पहुँचता है

आदमी - एसक्युज मी सर...
वीर - (उसके तरफ देखता है)
आदमी - क्या आपने एक छोटी सी बच्ची को देखा है...
वीर - (अपना सिर ना में हिलाता है)

फिर वह आदमी इधर उधर भागने लगता है l वीर देखता है वह आदमी परेशान हो कर वहाँ पर आने जाने वाले लोगों से पुछ ताछ करता है l वह आदमी कुछ देर बाद वहाँ पर नहीं दिखता I वीर उसी तरह अपनी सीढ़ी पर बैठ कर सड़क पर नजर गड़ाए बैठा हुआ होता है l तभी एक छोटी लड़की उसके पास बैठती है l

लड़की - भैया... आप यहाँ किसी की राह देख रहे हो....
वीर - (उस लड़की की ओर देखता है) (फिर अपना सिर हाँ में हिलाता है)
लड़की - हूँउँउँउँ... कहीं आप उन दीदी को तो नहीं ढूढ़ रहे...
वीर - (हैरानी से उसकी आँखे फैल जाती है) क... कौन.. दीदी...
लड़की - ओह ओ... वही दीदी... जिन्हें आप एक दिन... ओरायन मॉल पर ले गए थे....
वीर -(हैरान हो कर) यह तो बहुत दिन पहले की बात है...
लड़की - हाँ...
वीर - तुम्हें कैसे याद है... और तुम यह सब कैसे जानती हो...
लड़की - भुल गए... ह्म्म्म्म... बॉयज... पास गर्ल फ्रेंड हो... तो दूसरी लड़की याद नहीं रहती क्यूँ...
वीर - (सकपका जाता है) क्या...
लड़की - और नहीं तो... (एटीट्यूड के साथ) मैं उस दिन मॉल में रेड क्रॉस के लिए चंदा इकट्टा कर रही थी... अपनी स्कुल के लिए... तभी आपने अपना पर्स दीदी के हाथ में दिया... और उन दीदी ने... हमारे बक्से में पैसा भर दिया... और मैंने... जाते जाते पीछे मुड़ कर... अपने दोनों उंगली से ओ बना कर इशारा किया था....
वीर - हाँ... हाँ हाँ... (फिर वह चुप हो जाता है) (और दुखी मन से सड़क की ओर आस भरी नजर से देखने लगता है)
लड़की - आह... क्या जोड़ी थी आप दोनों की... (हुकुम देते हुए) अब चलो... उठो अब...
वीर - (हैरान हो कर) क्यों... कहाँ...
लड़की - (अपनी कमर पर हाथ रखते हुए) अरे... मैं खो गई हूँ... अब आप मुझे मेरे बाबा के पास ले चलो...
वीर - व्हाट... मतलब अभी कुछ देर पहले... जो अपनी बेटी को ढूंढ रहे थे... वह तुम्हारे बाबा हैं...
लड़की - (बड़ी शान से अपनी लटें पीछे झटकते हुए कहती है) हाँ... और वह खोई हुई लड़की... मैं हूँ....
वीर - ऐ... सच सच बताओ... तुम खो गई थी... या छुप गई थी...
लड़की - दोनों...
वीर - बहुत बुरी बात...
लड़की - ओ हैलो... (चुटकी बजाते हुए) मैं अगर नहीं छुपती... तो आपको अनु दीदी की खबर कैसे देती...

अनु की नाम सुनते ही वीर की हैरानी और बढ़ जाती है l वह उस लड़की को घूरते हुए देखता है l

लड़की - (बड़ी मासूमियत के साथ) ना जी ना... ऐसे मत देखो... (शर्माने की ऐक्टिंग करते हुए) मुझे शर्म आ रही है...

वीर अभीतक जो परेशान था उसके चेहरे पर हँसी उभर आती है l

वीर - तुम... तुम जानती हो... अनु कहाँ है...
लड़की - हाँ... अच्छी तरह से... इन फैक्ट उन्होंने ही कहा था... शायद आप मुझे यहीं मिल जाओगे...
वीर - (भावुक हो कर, आवाज थर्रा जाती है) क्या... क... कहाँ है अनु...
लड़की - हमारे घर में...
वीर - (हैरानी के साथ) तु... तुम्हारे... घर में...

वीर सिसक पड़ता है l वह जोर से उस लड़की को गले से लगा लेता है फिर उसे अलग कर उसकी माथे की चूम लेता है l वीर उसे अपनी गोद में उठा कर खड़ा हो जाता है और गरुड़ स्थंभ के पीछे से जगन्नाथ जी को आँसू भरे कृतज्ञता भरी नजरों से देखने लगता है l वह लड़की उसके चेहरे को अपनी ओर करती है

लड़की - अब चलें... कहीं देर ना हो जाए...
वीर - देर... किस बात की देरी... वह ठीक तो है ना...
लड़की - हाँ... पर आज लड़के वाले अनु दीदी को देखने आने वाले हैं... इसलिए जल्दी चलिए... कहीं देर ना हो जाए....
वीर - ल..ल... लड़के... वाले...
लड़की - हाँ... वह जो दादी अम्मा है ना... अनु दीदी की शादी करा देना चाहती हैं...
वीर - क्या...
लड़की - घबराने का नहीं... पहले मेरे बाबा को फोन करके बताओ... की मैं तुम्हें मिल गई हूँ... और मुझे लेकर घर आ रहे हो....
वीर - (हड़बड़ा कर) हाँ... हाँ...


फिर लड़की अपने बाप का नंबर देती है, वीर बिना देरी किए उसके बाप को उनकी बेटी मिलने और घर पर लाने की बात करता है l यह सब करते हुए वीर के आँखों में आंसू आ जाते हैं और फिर से उस लड़की को अपने गले से लगा लेता है और भागते हुए अपनी गाड़ी में बैठ जाता है l गाड़ी को स्टार्ट कर उड़ाने लगता है l गाड़ी के अंदर

वीर - तुम्हारा नाम क्या है एंजेल...
लड़की - एंजेल... बहुत बढ़िया नाम है... पर मैं एंजेल नहीं... मेरा नाम गुड्डु है...
वीर - (गाड़ी चलाते हुए) तुम्हारा नाम चाहे कुछ भी हो... पर तुम सच में एंजेल ही हो.... पर यह बताओ... लगभग दो महीने हो गए हैं... तुमने मुझे पहचाना कैसे...
गुड्डू - उस दिन ओरायन मॉल में... एक ही तो जोड़ी थी... जो हंस और हंसीनी लग रहे थे... वैसे भी भुल गई होती... तब आप पहचान में आ जाते...
वीर - कैसे...
गुड्डु - वेरी सिम्पल... मैंने दीदी से पुछा की आप कहाँ मिल सकते हो... तब दीदी ने इसी मंदिर की बात की... पर उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं बताया...
वीर - फिर...
गुड्डू - पुरे मंदिर में... एक ही तो बंदा था... जो मुहँ लटकाये... राह तकते बैठा हुआ था...

वीर यह सुन कर हँस देता है और गुड्डु भी उसके साथ हँस देती है ऐसे बातेँ करते करते वीर की गाड़ी गुड्डु के मोहल्ले के बाहर रुकती है l वीर गुड्डु को गोद में लेकर एक तरह से भागने लगता है l

उधर एक लाल रंग की साड़ी में अनु कमरे में बैठी हुई अपने में खोई हुई थी l उसके चेहरे पर ना शर्म ना खौफ ना खुशी कुछ भी नहीं था l वह बस अपने में खोई हुई सिमटी हुई बैठी थी l तभी कमरे में दादी हाथ में एक ट्रे लेकर आती है जिसमें छह सर्वत के ग्लास रखे हुए थे l

दादी - चल... लड़का और उसके माँ बाप बैठे हुए हैं... मैंने बात कर देख ली है.... मुझे बहुत अच्छे लगे...

अनु अपनी दादी की ओर बिना देखे एक बेज़ान कठपुतली की तरह उठती है और बाहर की और चलने लगती है l

दादी - हे भगवान... यह ट्रे तो ले...

अनु ट्रे दादी की हाथ से लेकर दादी के साथ कमरे से बाहर निकल कर उसे देखने आये लोगों के सामने आती है और सबके सामने बारी बारी से ट्रे लेकर जाती है और वह लोग एक एक कर सर्वत की ग्लास ले जाती हैं l

लड़के की माँ - आह.. कितनी खूबसूरत है आपकी पोती माँ जी... (अपने पति से) क्यूँ जी... कैसी लगी आपको...
लड़के का पिता - साक्षात लक्ष्मी लग रही है... (अपने बेटे से) क्यूँ हीरो... आपको पसंद आई...

लड़का कुछ नहीं कहता शर्मा जाता है l उसे शर्माता देख दादी खुश हो जाती है l कमरे में गुड्डु के माँ बाप भी थे l

गुड्डू के पिता - आज वाकई अच्छा दिन है... मेरी बेटी खो गई थी... किसी भले मानस को मिल गई... वह उसे लेकर आ रही है... और देखो इस शुभ घड़ी में... (दादी से) आपकी पोती भी इन्हें पसंद आ गई... वाह...

तभी वीर गुड्डु को लेकर उसी कमरे में पहुँचता है l वीर को वहाँ देख कर दादी और मृत्युंजय की सिट्टी पीट्टी गुल हो जाती है l आए हुए लड़के वाले कुछ देर के लिए हैरान हो जाते हैं l गुड्डु वीर के गोद से उतर कर भाग कर अपने पिता के पास जा कर गले लग जाती है l उसके पिता गुड्डु को अपनी गोद में उठा लेते हैं l

गुड्डू - (रोनी सूरत बना कर)(बड़ी मासूमियत के साथ) बाबा... यह भैया न होते... तो आज मैं आपको नहीं मिलती...
गुड्डू के पिता - क्या... क्या हुआ था मेरी बच्ची...
गुड्डू - मैं तो खो गई थी... फिर यह भैया मेरे पास पहुँचे और पूछे... की कहीं मैं खो तो नहीं गई हूँ... एक आदमी मुझे ढूंढते हुए गए हैं... कहीं वह मेरे बाबा तो नहीं... कह कर मुझे यहाँ लाए हैं...
गुड्डू के पिता - (वीर के सामने आकर हाथ जोड़ते हुए) आपका बहुत बहुत शुक्रिया... भाई...
वीर - यह... यह क्या कर रहे हैं...
गुड्डू - यह भैया ना... (छेड़ते हुए) बहुत शर्माते हैं...

अब माहौल थोड़ा अलग हो गया था l अब अनु को देखने आये लड़के वाले भी वीर की प्रशंसा कर रहे थे l वीर बार बार अनु की ओर देख रहा था पर अनु अपना सिर झुकाए वैसे ही खड़ी थी l दादी से यह सब बर्दास्त नहीं हो रहा था l वह बात बदलने के लिए

दादी - अच्छा हुआ राजकुमार जी... आप शुभ मुहूर्त पर पधारे हैं.... यह अनु को देखने आये हैं... और इन्हें अनु पसंद भी आ गई है... आप अनु के उज्वल भविष्य के लिए... अनु को दो शब्द कह दें...

दादी की बातेँ सुन कर अनु अपनी आँखे मूँद लेती है और जबड़े भींच लेती है l दादी से यह सब सुनने के बाद वीर को भी झटका लगता है l

दादी - राज कुमार जी...
वीर - हाँ...
दादी - कहिए ना कुछ... अनु को...

वीर बड़ी मुश्किल से अपना सिर हाँ में हिलाता है l उसके बोल फुट नहीं रहे थे उसे ऐसा लग रहा था किसीने उसके हलक को मुट्ठी में जकड़ रखा है l बड़ी मुश्किल से कुछ कहने के लिए खुद को तैयार करता है l

वीर - अनु...
अनु - (अपनी आँखे जोर से बंद कर लेती है और जबड़े भींच कर अपनी मुट्ठी में साड़ी कस कर भींच लेती है)
वीर - अ.. अनु... (हँसने की कोशिश करते हुए, अटक अटक कर) आ.. आज... तो... बहुत खुशी का दिन है... तु... तुम.. तुम्हारी जिंदगी की... नई शुरुआत हो रही है... (आवाज धीरे धीरे भर्राने लगती है) कितने खुश हैं...(दादी की ओर देखते हुए) तुम्हारी दादी... (मृत्युंजय की तरफ देख कर) तु... तुम्हारे... मट्टू भाई... (फिर अनु को देखने आये लड़का और उसके परिवार को देख कर) तु.. तुम्हें... देखने आए... यह लोग.... बहुत खुश हैं.... (फिर अनु को देख कर) अ...अ..अनु... (अनु वीर की ओर देखती है) पर मुझे... ऐसा क्यूँ लग रहा है कि... मेरा दिल... कोई... निचोड़ रहा है... ऐसा क्यूँ लग रहा है... जैसे... मेरे जिस्म में से... कोई... मेरी जान को खिंच ले जा रहा है... मैं क्यूँ टुट रहा हूँ... टुकड़ों में बिखर रहा हूँ... अनु....

अनु और कुछ सुन नहीं पाती फुट फुट कर रोने लगती है और फिर भाग कर वीर के गले लग जाती है l वीर भी उसे अपने गले से लगा कर उठा लेता है l अनु के पांव फर्श से छह सात इंच ऊपर झूलने लगती है l यह वाक्या देख कर वहाँ पर मौजूद सभी आँख और मुहँ फाड़ कर देखने लगते हैं l दादी माँ फटी आँख और खुले मुहँ से धप कर बैठ जाती है और लड़के वाले खड़े हो जाते हैं l मृत्युंजय पीछे हट कर दीवार से सट जाता है l गुड्डू के पिता अपनी गोद से गुड्डू को उतार देते हैं l गुड्डू अपने पिता के गोद से उतर कर ताली बजाने लगती है, उधर दो प्रेमी अपनी आंसुओं से एक दूसरे के कंधे भिगो रहे थे l दोनों थोड़ी देर बाद नॉर्मल होते हैं और एक दुसरे के माथे जोड़ लेते हैं l दोनों की आँखे बंद हैं l

वीर - तु जानती है ना... मैं.. तुझसे बहुत प्यार करता हूँ...
अनु - (आँखे बंद किए हुए अपना सिर हाँ में हिलाती है)
वीर - तु भी मुझसे... बहुत प्यार करती है... है ना...
अनु - (फिर से अपना सिर हाँ में हिलाती है)
वीर - (अपना माथा अलग कर आँखे खोल कर, सवाल करता है) फिर....

अनु कुछ नहीं कहती फिर से पुरी जोर से वीर के गले लग कर रोती है l

लड़के का पिता - यह... यह क्या है... क्या हो रहा है... छि.. छि.. छि...

वीर अपनी आँखे खोल कर जलती हुई निगाह से देखता है l उसकी आँखों में जैसे अंगारे उतर आई हो l लड़के वालों की हालत खस्ता हो जाता है l

लड़के की माँ - (गुस्से भरी आवाज में, दादी से) माँ जी...

दादी की आँखों में आंसू थी वह लड़के वालों के तरफ बिना देखे अपना हाथ जोड़ देती है l

लड़के की माँ - चलो जी चलो... हम क्यूँ इनके जैसे बेगैरत हों... चलिए...

लड़के वाले जाने को होते हैं कि तभी वीर उन्हें आवाज देता है l

वीर - सुनिए... (अपने से अनु को अलग करता है पर अनु को छोड़ता नहीं है) इस घर की चौखट लांघने से पहले.... एक बात जान लीजिए... अनु के खिलाफ... कुछ भी बदजुबानी.... या बदखयाली की... तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा...(अपने सीने से लगा कर) यह मेरी है... वीर सिंह क्षेत्रपाल की होने वाली धर्मपत्नी.... और क्षेत्रपाल परिवार की होने वाली बहु....
fabulous update
 
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