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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

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👉निन्यानवेवां अपडेट
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बारंग रिसॉर्ट

टीवी पर नैशनल जोग्राफी चैनल पर सी वर्ल्ड प्रोग्राम चल रहा था l पर आवाज़ म्यूट था l

पिनाक सिंह एक कुर्सी पर बैठा हुआ है, उसके सामने रोणा और बल्लभ अपना सिर झुकाए खड़े हुए हैं l पिनाक सिंह अपनी कुर्सी के एल्बो रेस्ट पर कोहनी रख कर एक उंगली से अपना ठुड्डी रगड़ते हुए कुछ गहरी सोच में खोया हुआ है l

पिनाक - लगभग महीना होने को आया... तुम दोनों बस इतना ही पता लगाया....
रोणा - (हैरान हो कर) छोटे राजा जी... आपको इतना लग रहा है... विश्व ने केस को दुबारा खोलने के लिए... अपना दाव लगा दिया है...
पिनाक - तो क्या हुआ... छुप कर ही तो बैठा हुआ है...
बल्लभ - पर... आप समझने की कोशिश कीजिए... वह केस अदालत में ले कर जाएगा... आप भूल रहे हैं... अदालत ने एसआईटी को बहाल रखा था...
पिनाक - तो...
बल्लभ - केस जहां पर रुका हुआ था... वहीँ से आगे बढ़ेगी... मतलब... (हकलाते हुए) र.. र.. र्रराजा साहब.. फफफफ... फिर से... (चुप हो जाता है)
पिनाक - हाँ तो क्या हुआ... हम नौबत वहाँ तक आने ही क्यूँ देंगे... जयंत की तरह उसे भी रास्ते से हटा देंगे...
रोणा - बस छोटे राजा जी... यही मैं पहले से ही करना चाहता था... पर तब...
पिनाक - (घूरते हुए) हाँ तब...
रोणा - (चुप हो जाता है)
पिनाक - तब उसे एक कुत्ते की जिंदगी बख़्श दी गई थी... वह कुत्ता ही है... और वह अब एक कुत्ते की मौत मारा जाएगा... (रोणा और बल्लभ दोनों चुप रहते हैं) (उन्हें यूँ चुप देख कर) क्या हुआ...
बल्लभ - (झिझकते हुए) छोटे राजा जी... अब हम क्या कहें... विश्व अभी भी पर्दे के पीछे है... सामने नहीं आया है... उसके बावजूद उसने अपनी चाल चल दी है... और फ़िलहाल... वह हमसे... दस कदम आगे है...
पिनाक - कैसे...
बल्लभ - उसने आरटीआई दाख़िल कर के... गृह मंत्रालय और न्याय तंत्र को ऐक्टिव कर दिया है... इस तरह से... उसने खुद को एक तरह से सुरक्षित कर लिया है....

तभी टीवी पर एक दृश्य आता है कि एक लोबस्टर एक खाली पड़े शंख के खोल के भीतर छुपता है पर एक औक्टोपस खोल के अंदर अपना आर्म घुसेड़ कर उस लोबस्टर को बाहर निकाल कर अपने मुहँ में भर लेता है l यह दृश्य देख कर पिनाक सिंह हँसने लगता है l

पिनाक - हा हा हा हा.... (पिनाक टीवी को अनम्युट करता है)

रोणा और बल्लभ दोनों टीवी की ओर देखते हैं l टीवी पर वह दृश्य फिर से व्याख्यान के साथ चलने लगता है l वह दृश्य खतम होने के बाद l

पिनाक - वह रहा विश्व का सुरक्षा कवच.... हा हा हा हा हा... (रोणा और बल्लभ फिर भी चुप रहते हैं) क्यूँ... मजा नहीं आया... या यकीन नहीं आया...
रोणा - छोटे राजा जी... आप बात की गहराई तक नहीं जा रहे हैं...
पिनाक - तो गहराई को समझाओ...
बल्लभ - देखिए... छोटे राजा जी... बात हम आपके साथ रह कर.... मिलकर संभालना चाहते हैं...
रोणा - जब राजगड़ से निकले थे... तब तक विश्व हमारे लिए... एक मामूली बंदा था... इन्हीं बाइस पच्चीस दिनों में मालुम हुआ... वह हमारे बूते से बाहर है...
बल्लभ - हाँ छोटे राजा जी... वह अब आम नहीं रहा... उसने खुद को खास बना दिया है...
रोणा - और हम नहीं चाहते... की उसके वजह से... राजा साहब के माथे पर... शिकन पड़े...
बल्लभ - हम राजा साहब से... नहीं कह पाए... और ना ही कह पाएंगे... इसलिए हम सीधे आपसे संपर्क किए... और उसके बारे में... हमने जितनी भी जानकारी हासिल की... सब कुछ आपको बता दिया...
पिनाक - हूँ... तुम्हारे इरादे नेक हैं... राजा साहब को तो जानकारी होनी ही चाहिए ना...
रोणा - हाँ... हम उन्हें सब बतायेंगे... पर बात जब संभालने की होगी... तो आपको हमारा साथ देना होगा...
पिनाक - हूँ...
बल्लभ - हाँ छोटे राजा जी... कुछ मामलों में... विश्व का कद हमसे बढ़ गया है... पर रोणा... मैं और आप मिल कर... हम विश्व के मंसूबों पर पानी फ़ेर सकते हैं....

पिनाक सिंह चुप रहता है, उसे चुप देख कर रोणा और बल्लभ एक दुसरे को देखने लगते हैं l पिनाक टीवी पर चल रहे प्रोग्राम देख रहा था l अब सी वर्ल्ड का प्रोग्राम खतम हो चुका था और लायन प्राइड का प्रोग्राम चल रहा था l उसमें अफ्रीका के सवाना जंगल में शेर और लकड़बग्घों की झड़प दिखा रही थी l जिसमें यह दिखा रहा था एक शेर की अनुपात तीन तीन लकड़बग्घों के बराबर है l अगर चार लकड़बग्घें हो जाएं तो शेर पर भारी पड़ सकते हैं l

यह दृश्य देखते ही पिनाक सिंह का जबड़ा भींच जाता है l अपने दांत पिसते हुए रोणा और बल्लभ को देखने लगता है l रोणा और बल्लभ भले ही टीवी ना देख पा रहे हों पर उन्हें टीवी पर आती व्याख्यान से बात समझते देर ना लगी l पिनाक सिंह इस बार टीवी बंद कर देता है l

पिनाक - हमारे नाम के साथ सिंह लगा हुआ है... तुम दोनों हमें साथ ले कर एक कुत्ते का शिकार करने के लिए कह रहे हो...
रोणा - नहीं... वह... मेरा मतलब है... नहीं हमारा मतलब है...

पिनाक को अपनी तरफ गुस्से में देखते हुए पाता है, इसलिए वह चुप हो जाता है l

पिनाक - तुम दोनों ने... उस कुत्ते को शेर बना कर हमारे सामने पेश किया... और तुम दो लकड़बग्घे... हमें अपने साथ मिलाकर... उसका मान बढ़ा रहे हो... या हमें अपनी ओहदे से नीचे ला रहे हो...
रोणा - छोटे राजा जी... ऐसा तो हम सपनों में भी नहीं सोच सकते...
पिनाक - तो तुम्हें जो करना है करो... जिसे साथ लेना है लो... पर इस केस में... तुम दोनों अपनी अपनी दिमाग चलाओ...
बल्लभ - छोटे राजा जी... पिछली बार... हमारी टीम बहुत बड़ी थी...
रोणा - और इस बार हालत जुदा नहीं है... पर हमारी टीम अधूरी है...
पिनाक - तो बनाओ... तुम लोग अपनी टीम... मीडिया मैनेजमेंट से लेकर... सिस्टम मैनेजमेंट तक... सब कुछ हैंडल करो...
रोणा - और राजा साहब ने... विश्व के बारे में पूछताछ करने के लिए जो बोले थे वह...
पिनाक - तो उन्हें बताओ... (रोणा और बल्लभ चुप हो कर एक दुसरे को देखने लगते हैं)
बल्लभ - कितना... मेरा मतलब है... हम उन्हें कितना बतायेंगे....
पिनाक - उतना... जितना कम ना लगे... और ज्यादा भी ना लगे....

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


विश्व छत पर इधर उधर हो रहा था l बीच बीच में मोबाइल को देखता था फ़िर चहल कदम करते हुए कभी कभी आसमान की ओर देखने लगता था l फिर अचानक रुक जाता है और आसमान की ओर सिर उठा कर देखने लगता है l एक टूटता तारा उसे दिखता है, तभी उसके फोन पर मैसेज अलर्ट टोन बजने लगता है l विश्व अपनी मोबाइल की डिस्प्ले देखता है..

"डियर कस्टमर, +91@#$&$#@&
इज़ नाउ अवेलेवल टु टेक काल्स"

यह मैसेज देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है l

उधर उसी वक़्त रुप के हाथो में शुभ्रा ने एक नया मोबाइल थमा दिया था l रुप ने भी बिना देरी किए अपनी पुरानी सिम को मोबाइल में डाल कर रजिस्टर कर चेक कर ही रही थी के उसके मोबाइल अनगिनत मैसेज लोड होने लगी l आधे से ज्यादा मैसेज में यही अलर्ट थी..

"डियर कस्टमर, यू हैव अ मिस्ड कॉल फ्रोम +91@#$#@&$#


द लास्ट मिस्ड कॉल वॉज एट & $#@ थैंक्यू टीम @@@

यह मैसेज पढ़ते ही रुप के गालों पर लाली उतर आती है और एक हल्की सी मुस्कराहट उसके होठों पर नाच उठती है l वह अपनी फोन से पहले बनानी को कॉल करती है

बनानी - राम... राम... हे राम... तुझे अब टाइम मिला...
रुप - क्या करुँ... मेरा फोन ऐक्चुयली खराब हो गया था... अच्छा रुक... हम सभी कंफेरेंन्स में बात करते हैं...
बनानी - हाँ चल... वीडियो... कंफेरेंसिंग करते हैं...
रुप - नहीं नहीं... वीसी के लिए पहले ऑउट होना पड़ेगा... फिर इन होना पड़ेगा... तो यही बेहतर है... है ना...
बनानी - अच्छा बाबा... जो तुझे ठीक लगे वही कर...
रुप - ठीक है... एक मिनट...

कह कर फोन पर बनानी को होल्ड करती है और फिर दीप्ति को फोन लगाने वाली होती है कि स्क्रीन पर बेवकूफ़ डिस्प्ले होने लगती है l रुप मुस्कराते हुए देखती है l स्क्रीन से बेवकूफ़ गायब होते ही दीप्ति को फोन लगाती है

दीप्ति - वाव क्या बात है यार... कहाँ गायब हो गई... तीन दिन हो गए हैं... और तो और तेरा फोन स्विच ऑफ आ रहा था...
रुप - रुक... मैं सबको कंफेरेंसिंग में लेती हूँ... फिर बात करते हैं...
दीप्ति - ठीक है...

इस तरह से रूप एक एक करके अपने सारे दोस्तों को कंफेरेंसिंग में लेती है l

उधर विश्व दो तीन बार फोन लगाने पर भी रुप की फोन अंगेज दिखती है l विश्व फिर फोन को जेब में रख कर आसमान की ओर देखने लगता है l कुछ देर बाद उसका फोन बजने लगता है l विश्व झट से फोन उठाता है पर उसे डिस्प्ले में वीर दीखता है l विश्व फोन उठाता है

विश्व - हाँ... वीर कहो... कैसे याद किया...
वीर - (टूटे हुए आवाज़ में) यार... क्या कहूँ... समझ में नहीं आ रहा है...
विश्व - (उसकी आवाज़ से गहरा दर्द महसुस कर लेता है) वीर... कहो क्या हुआ आज...
वीर - (रोते हुए) क्या कहूँ यार... रोने को दिल कर रहा है...
विश्व - क्या हुआ बोल ना...
वीर - (अपनी सिसक को बुरी तरह से कंट्रोल करते हुए) वह... अपने घर में नहीं है यार...
विश्व - क्या... नहीं है मतलब...
वीर - यार... उसकी दादी और वह... अपना घर छोड़ कर कहीं चले गए हैं...
विश्व - क्या...
वीर - हाँ यार...
विश्व - ओह... पर क्यूँ...
वीर - नहीं जानता यार... पर इतना समझ में आ रहा है... मेरी करनी... मेरा हिसाब ले रहा है....
विश्व - यह क्या कह रहे हो...
वीर - (खुद को थोड़ा संभालते हुए) जब प्यार से मतलब नहीं था... जिंदगी में कोई दर्द नहीं था... जब प्यार से पहचान हुआ... जिंदगी.. दर्द से पहचान हो गई...
विश्व - बस यार बस... धीरज धर...
वीर - यह प्यार होता क्यूँ है... होता है.. तो इतना दर्द क्यूँ देता है...
विश्व - हर दर्द की दवा होती है....
वीर - हाँ... पर मेरी नहीं...
विश्व - ऐसा नहीं है... यार... ऐसा नहीं है... तुम्हारे दर्द की दवा अनु ही है...
वीर - पर वह नहीं है... मैं कहाँ ढूँढु..
विश्व - वहीँ... जहाँ वह तुम्हें मिली थी...
वीर - मतलब....
विश्व - वही मंदिर... जहाँ तुम्हें... तुम्हारे बचपन से मिलाया था...
वीर - (उम्मीद भरे आवाज में) म.. मंदिर में...
विश्व - देख यार... मैं नहीं जानता कि मैं... सही कह रहा हूँ... या गलत... मगर... जब हर दरवाज़ा बंद मिले... तो भगवान का दरवाजा खटखटा कर देख लेनी चाहिए...
वीर - (जोश भरी आवाज में) हाँ... तुमने ठीक कहा... तुम वाकई दोस्त के रुप में... फरिश्ते हो... जब जब मुझे लगा कि मैं अंधेरे में भटक गया... तब तब तुमने मुझे रौशनी दिखाई... थैंक्स यार...
विश्व - अनु मिल जाए... तो भगवान को थैंक्स कह देना....
वीर - हाँ... जरूर...

कह कर वीर फोन काट देता है l फोन कटते ही विश्व फोन देखता है तो स्क्रीन पर मिस कॉल दिखा रहा था, कॉल लिस्ट में नकचढ़ी दिख रही थी l

विश्व - (मन ही मन) मर गया...

विश्व वापस नकचढ़ी को फोन लगाता है l उधर फोन के डिस्प्ले पर बेवकूफ़ देख कर रुप रिजेक्ट कर देती है, तो विश्व उसे फिर से फोन नहीं लगाता है l उधर रुप इंतजार करती है कि शायद बेवकूफ़ का फोन आएगा, थोड़ी इंतजार के बाद जब फोन नहीं आती तो खीज कर वह फोन लगाती है l फोन आते ही विश्व फोन नहीं उठाता है, थोड़ी देर रिंग होने के बाद वह फोन उठाता है l

विश्व - जी कहिए...
रुप - व्हाट... मैं कहूँ... या तुम कहोगे...
विश्व - मैं... मैं क्यूँ कहूँ...
रुप - क्यूंकि... मेरे फोन पर तुम्हारे पचपन के करीब मिस कॉल थे...
विश्व - (बड़ी मासूमियत के साथ) अच्छा...
रुप - (गुस्से में नाक सिकुड़ कर) ऐ....
विश्व - ओके ओके...
रुप - ह्म्म्म्म... अब बोलो... किसके साथ बात कर रहे थे... मेरा फोन क्यूँ नहीं उठाया...
विश्व - मेरे दोस्त से...
रुप - ह्म्म्म्म... ठीक है... बोलो... इतने कॉल... क्यूँ और किस लिए...
विश्व - उस रात को जो हुआ... मैं कुछ समझ नहीं पाया...
रुप - (एक एटीट्यूड के साथ सांस लेते हुए) मतलब...
विश्व - यही... के बिछड़ने का दुख आपने जाहिर की... पर...
रुप - (अपनी हँसी को काबु करते हुए) पर...
विश्व - वह थप्पड़... इंटरमिशन के लिए था... या... फूल स्टॉप... द एंड के लिए था...
रुप - क्या... क्या मतलब हुआ...
विश्व - यही की... हमारी मुलाकात की उम्र क्या इतनी थी... थप्पड़ से शुरु... थप्पड़ पर खतम...

रुप विश्व की यह सुन कर पहले फोन को नीचे कर देती है फिर अपनी हाथ मुहँ पर रख कर हँसी को दबाती है l विश्व उधर से हैलो हैलो कहता रहता है l फिर रुप खुद को नॉर्मल करते हुए

रुप - यह आशिकों वाली अप्रोच... मुझ से...
विश्व - ना... दोस्ती... मेरा दोस्त मुझसे रूठा हुआ है... मनाने की जद्दोजहद चल रही है....
रुप - क्या यह दोस्त इतना जरूरी है...
विश्व - हर एक दोस्त जरूरी होता है... और मुश्किल से... मेरे सिर्फ दो ही दोस्त हैं...
रुप - तो...
विश्व - एक दोस्त रूठा हुआ है... वजह तो जानना पड़ेगा...
रुप - अगर वजह वाजिब हुआ तो...
विश्व - तो जो सजा आप तय करो... सिर झुका कर मान लेंगे....
रुप - हूँ... इम्प्रेसीव... तो हमें क्या करना होगा....
विश्व - हमें शायद एक आखिरी बार के लिए... मिलना होगा...
रुप - (हैरान हो कर) आखिरी बार... क्यूँ...
विश्व - क्यूँ की मैं पिछली मुलाकात को... आखिरी करना नहीं चाहता...
रुप - तो अगली मुलाकात आखिरी करना चाहते हो...
विश्व - यह फैसला भी आपको करना होगा... पर थप्पड़ से नहीं...
रुप - तो उस फैसले के लिए हमें मिलना होगा...
विश्व - जी...
रुप - कहाँ...
विश्व - यह भी... आप ही तय कीजिए...
रुप - ओ हो... इतनी इज़्ज़त...
विश्व - और नहीं तो... मैं अपने दोस्तों को... बहुत इज़्ज़त देता हूँ...
रुप - अच्छा... और इज़्ज़त के लिए मैं और क्या कर सकती हूँ....
विश्व - हाँ कर सकती हैं ना... बहुत कुछ कर सकती हैं... आप मुझे लेकर एक डिनर प्रोग्राम फिक्स कर सकती हैं... वह भी एक फाइव स्टार होटल में... अपनी खाते से... गॉड प्रॉमिस... मैं बिल्कुल भी बुरा नहीं मानूँगा....
रुप - (चिल्लाते हुए) यु... यु स्कौंड्रल... एक लड़की से डिनर डेट मांगते हुए.... तुम्हें शर्म नहीं आती...
विश्व - आती है ना... बहुत आती... अगर कोई अंजान होती... मैं अपने दोस्त से मांग रहा हूँ... शर्म कैसी...
रुप - (चिल्लाते हुए) शट अप... यु... यु... डफर... यु बेवक़ूफ़... मिलो.. हाँ हाँ मिलो तुम फिर मुझसे... अब मुलाकात नहीं होगी... मुक्का लात होगी... समझे... मुक्का लात होगी... अअअह्ह्ह्ह...

कह कर फोन काट देती है और अपनी फोन को बेड पर पटक देती है l उधर फोन कटते ही विश्व की हँसी छूट जाती है और वह जैसे ही मुड़ता है प्रतिभा को देखता है l

विश्व - माँ... ततत.. तुम यहाँ... ककक.. कब आई...
प्रतिभा - (अपनी भवें सिकुड़ कर) हकला क्यूँ रहा है...
विश्व - वह... माँ... मैं... वह...
प्रतिभा - (हँसते हुए) प्रताप... तेरे अंदर... यह एंगेल भी है...
विश्व - (कुछ नहीं कहता है, शर्मा कर अपनी कान के पास सिर के बालों को खुजाने लगता है)
प्रतिभा - (अपना सिर हिलाते हुए) ह्म्म्म्म... आखिर... उसे चिढ़ा दिया.... हूँ... क्यूँ...
विश्व - वह माँ...
प्रतिभा - हाँ हाँ...
विश्व - वह माँ... मुझे... नंदिनी जी को गुस्से में देखना... अच्छा लगता है... गुस्से में तेज तेज सांस लेते हुए... नथुनों को सिकुड़ते हुए... बहुत अच्छी लगती हैं...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... सब... ल़डकियों को हँसाने की कोशिश करते हैं... और तुम.... क्यूँ...
विश्व - (थोड़ा सीरियस हो जाता है) माँ... पता नहीं... पर... मैं जब भी उनसे मिलता हूँ... ऐसा लगता है कि... उनके अंदर से राजकुमारी जी झाँक रही हैं.... या फिर...
प्रतिभा - हाँ... या फिर...
विश्व - या फिर... मैं... मैं शायद... उनमें... राजकुमारी को तलाश रहा हूँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... यानी तु अपने दिल को बहला रहा है... फुसला रहा है... या फिर समझा रहा है... दिलासा दे रहा है... तसल्ली दे रहा है...
विश्व - सभी एक ही बात है ना माँ...
प्रतिभा - ना... एक बात तो हरगिज नहीं है...
विश्व - (चुप रहता है)
प्रतिभा - फर्ज करो... राजकुमारी और नंदिनी दोनों... तुम्हारे सामने आ गए... तब किसे चुनोगे...
विश्व - माँ... तुम मुझे कंफ्यूज कर रही हो...
प्रतिभा - नहीं...
विश्व - (चुप रहता है)
प्रतिभा - क्या हुआ...
विश्व - माँ... आगाज़ चाहे कैसी भी हुई हो... अंजाम एक खूबसूरत मोड़ पर होनी चाहिए... मैं नंदिनी जी के साथ अपनी दोस्ती और जुदाई को... एक हसीन मोड़ पर खतम करना चाहता हूँ...
प्रतिभा - क्यूँ... किसलिए... खतम क्यूँ करना चाहता है...
विश्व - क्यूंकि... बाद में... फिर कभी अपनी... दिल को ना बहलाउँ... ना फुसलाउँ... या फिर ना समझाउँ ... ना दिलासा दूँ... ना तसल्ली दूँ...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


अगले दिन सुबह सुबह अंधेरा भी नहीं छटा था, वीर नहा धो कर बाथरुम से निकल कर वार्डरोब खोलता है, इतने कपड़ों के सेट को देख कर वह कंफ्यूज हो जाता है l वह सोचने लगता है

"अरे यार कौन सा ड्रेस पहन कर जाऊँ"

कुछ सोचने के बाद वह वार्डरोब से सफेद रंग का ड्रेस निकालता है और पहन कर खुद को आईने में देखता है l उसके बाद कमरे से निकल कर बाहर जाने जाने को होता है कि अचानक रुक जाता है और पीछे मुड़ कर जाता है और अपने भैया और भाभी के कमरे के सामने खड़ा हो जाता है l कुछ देर खड़े होने के बाद दरवाजे पर दस्तक देने लगता है l

शुभ्रा - (अंदर से, उबासी भरे आवाज में) कौन है...
वीर - जी भाभी... मैं... वीर...
शुभ्रा - (हैरानी भरे आवाज में) वीर... तुम... इस वक़्त... इतनी सुबह...
वीर - (हिचकिचाते हुए) वह भाभी... आपसे एक काम था...
शुभ्रा - एक मिनट... आई...

पांच मिनट के बाद वह दरवाजा खोलती है l शायद चेहरा मोहरा साफ कर अपने कपड़े ठीक करने के बाद वीर के सामने खड़ी थी l शुभ्रा वीर को देख कर और भी ज्यादा हैरान हो जाती है l क्यूँकी वीर उसके सामने सजा संवरा खड़ा था l

शुभ्रा - वीर... यह... क्या... तुम इतनी सुबह सुबह... तैयार हो कर... कहाँ जा रहे हो...

वीर कुछ नहीं कहता है सीधे शुभ्रा के पैरों पर घुटने में आता है और अपने दोनों हाथों से पैर पकड़ लेता है l शुभ्रा पीछे हटना चाहती है मगर हट नहीं पाती क्यूंकि वीर ने पैरों को पकड़ लिया था l

शुभ्रा - क्या... क्या कर रहे हो वीर... क्यूँ...
वीर - भाभी... आप माँ समान हो... मैंने कुछ गुनाह किए हैं... वह मैं कहने के बाद... आपसे नज़रें भी ना मिला पाऊँगा... बस इतना जान लीजिए... आप एक माँ का दिल लेकर... मुझे माफ कर दीजिए....
शुभ्रा - वीर... छोड़ो मुझे... मुझे एंबार्समेंट फिल हो रहा है... प्लीज...
वीर - भाभी प्लीज... आप मुझे माफ कर दो...
शुभ्रा - पता नहीं तुम क्या बात कर रहे हो.... ठीक है... उठो... मैंने माफ किया...
वीर - (वैसे ही पैरों को पकड़े हुए था) भाभी... आज आपकी आशीर्वाद की भी जरूरत है... प्लीज मुझे आशीर्वाद दो... आज मुझे हर हाल में कामयाब होना है... प्लीज...
शुभ्रा - अच्छा ठीक है... जाओ कामयाब हो कर लौटो...

इतना सुनने के बाद वीर बिना अपना सिर उठाए वहाँ से तेजी से निकल जाता है l शुभ्रा उसे ऐसे निकल कर जाते हुए देख हक्की बक्की सी खड़ी रह जाती है l इस शॉक से उबर कर जब तक वह नार्मल होती है तब तक यह शोर शराबा सुन कर विक्रम और रुप भी उठ चुके थे I वे दोनों भी वीर की हरकत देख कर हैरान हो गए थे l तीनों के कान में गाड़ी की घर के परिसर से निकलने की आवाज पड़ती है l शुभ्रा खुद को नॉर्मल करके जब पीछे मुड़ती है तो विक्रम को भी मुहं फाड़े देखते हुए पाती है l

उधर वीर की गाड़ी सड़क पर दौड़ क्या उड़ रही थी l उसके चेहरे पर आज परेशानी से ज्यादा सुकून झलक रही थी l वह गाड़ी चलाते हुए पटिया के उसी मंदिर में पहुँचता है जहां अनु और वह एक दुसरे के जन्मदिन पर अपनी अपनी जिंदगी की सबसे हसीन और यादगार पल बनाए थे l मंदिर तो खुल चुका था आसपास पुजा के सामान बेचने वाली सभी दुकानें भी खुल चुकीं थी l वीर अपने पर्स निकाल कर पुजा के सामान लेता है और फिर मंदिर के अंदर जाता है l पुजारी उससे सामान लेकर पुजा करने लगता है l

वीर - (अपने मन ही मन में, आँखे बंद कर) हे भगवान... मैं अपनी किसी भी गुनाह का माफी मांगने नहीं आया हूँ... बस तेरे दर पर अपने लिए एक मौका मांग रहा हूँ... बदले में तेरे न्याय में... मेरे लिए जो भी सजा मुकर्रर होगी... मैं सिर झुका कर मान लूँगा... शिकायत भी नहीं करूंगा... वादा है मेरा... बस आज मैं वह सबब देखना चाहता हूँ... जिसके वजह से लोगों का विश्वास तुझ पर से... कभी नहीं डगमगाता....

पुजारी पुजा के बाद वीर को उसका थाल लौटा देता है l वीर थाल लेकर दुकान दार को लौटाने के बाद वहाँ पर बैठे भिखारियों में कुछ पैसे बांट देता है और मंदिर सीढियों पर बैठ जाता है l

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उधर नाश्ते के लिए टेबल पर तीनों बैठे हुए हैं l तीनों के सामने नाश्ता लगा भी हुआ है, पर तीनों अपने अपने सोच में खोए हुए थे l

रुप - (अपनी सोच में) कल अनाम ने ऐसे क्यूँ मुझे छेड़ा... कमबख्त मुझे मनाने के वजाए... मुझे गुस्सा दिलाए जा रहा था... सोच रही थी... मिन्नतें करेगा... मुझे मनाएगा.... पर... इडियट... मुझे गुस्से पे गुस्सा दिलाए जा रहा था... बेवकूफ़... हूँह्ह्ह्ग्ह्... ल़डकियों को कैसे मनाए... बिल्कुल भी उसे अक्ल नहीं है... बेवक़ूफ़... (यह सोचते सोचते वह जितनी गुस्सा हो रही थी, उतनी ही प्रताप की रात में छेड़ने को याद करते हुए अपने अंदर उसे गुदगुदी सी महसुस हो रही थी)

उधर शुभ्रा अपनी सोच से बाहर आकर देखती है सबकी नाश्ते का प्लेट ज्यों का त्यों है l

शुभ्रा - अहेम अहेम... (खरासती है)

विक्रम और रुप दोनों अपने खयालों से बाहर निकलते हैं l दोनों अपना अपना नाश्ता खाने लगते हैं l

शुभ्रा - क्या बात है... क्या सोच रहे थे... आप दोनों...
दोनों - कुछ नहीं...
शुभ्रा - झूठ मत बोलो... मैं... कब से देख रही थी... (रुप से) तुम क्या सोच रही थी....
रुप - (हड़बड़ा जाती है जैसे कोई चोरी पकड़ी गई हो) क्या... कु.. कु.. कुछ भी तो नहीं...
शुभ्रा - ठीक है... तो फिर... ऐसे घबरा क्यूँ रही हो.... वैसे भी... कल रात... तुम्हारे कमरे से चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी...
रुप - क्या...
विक्रम - हाँ नंदिनी... तुम किस पर चिल्ला रही थी...
रुप - (खुद को संभालते हुए) अच्छा वह... वह मैं तीन दिन से कॉलेज नहीं गई ना... इसलिए... सब मुझ पर रौब झाड़ रहे थे...
विक्रम - अच्छा... ठीक है फिर... आज तुम कॉलेज चली जाओ... अपने दोस्तों के साथ मिल कर... तुम्हें अच्छा लगेगा...
शुभ्रा - हाँ हाँ.. तुम्हारे भैया ने सही कहा...
रुप - ठीक है भाभी... चली जाऊँगी... पर... खोई हुई आप भी थीं...
शुभ्रा - अररे कुछ नहीं... आज वीर जिस तरह से... मेरे पैर पड़े और आशीर्वाद मांगा... मैं अभी भी... उसी शॉक में हूँ... (विक्रम की ओर देखते हुए) क्या आप बता सकते हैं... वीर किस बात पर माफी मांग रहे थे....
विक्रम - (कुछ देर के लिए सोचने लगता है, फिर) नहीं...
शुभ्रा - फिर भी... आज वीर के आवाज में... पुरी सच्चाई और ईमानदारी साफ झलक रही थी... जैसे वह दिल से नहीं... अपनी आत्मा की गहराई से माफी मांग रहे थे.... पर क्यूँ... (कह कर विक्रम की ओर देखती है)
विक्रम - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) दिन व दिन वीर में... बहुत तेजी से... बदलाव आ रहा है... सच कहूँ... तो मुझे... उसका यह बदलाव... डरा रहा है.... वह पहले से ही... बगावती तेवर का.. मुहँ फट रहा है... जो मर्जी में आता था... वही किया करता था... सही गलत देखता नहीं था.... पर अब.... अब ऐसा लग रहा है... जैसे... जैसे वह एक तूफान बनता जा रहा है... अपने सामने आने वाले हर चट्टान से टकराने से भी... पीछे नहीं हटेगा...

इतना कह कर विक्रम थोड़ी देर के लिए ख़ामोश हो जाता है l रुप और शुभ्रा उसे एक टक सुने जा रहे थे l विक्रम उन दोनों के तरफ देखता है

विक्रम - उसके अंदर की जिद... उसके अंदर का तूफान... दायरे में रहे तो ठीक है... वरना मुझे डर इस बात का है... जब राजा साहब और छोटे राजा जी के सामने... उसके दिली ज़ज्बात आयेगा... तब क्या होगा...

फिर एक खामोशी छा जाती है l तीनों ही अब वीर के बारे में सोचने लगते हैं l कुछ देर बाद रुप खरासते हुए भैया भाभी का ध्यान अपने तरफ खींचती है l

रुप - अहेम... अहेम... (दोनों रुप की तरफ देखते हैं) (रुप विक्रम से) भैया.... राजा साहब ने आपकी और भाभी जी के प्यार को मंजुरी दी थी... तो क्या...
विक्रम - हाँ... क्यूंकि इसमें राजा साहब ने... कुछ दुर की देखा था...
रुप - मतलब...

शुभ्रा वहाँ से उठ कर चली जाती है l दोनों उसे जाते हुए देखते हैं l

विक्रम - जरा सोचो नंदिनी... राजा साहब कल से भुवनेश्वर में हैं... पर यहाँ पर ना कभी आते हैं... ना कभी ठहरते हैं...
रुप - वह तो मैं देख चुकी हूँ... पर इसमें... दुरंदेशी कहाँ है...
विक्रम - अभी... छोटे राजा जी मेयर हैं... अब आने वाले इलेक्शन में... बड़े बड़े ओहदे हासिल करनी है... ताकि हमारी रुतबे का फैलाव बरकरार रहे...
रुप - पर यह तब तक था ना... जब तक भाभी के पिताजी... पार्टी अध्यक्ष थे...
विक्रम - हाँ... पर अब उसकी भरपाई हो चुकी है...
रुप - कैसे...
विक्रम - ESS के जरिए...
रुप - ESS के जरिए... कैसे... मैं समझी नहीं...
विक्रम - बस... कुछ बातेँ हैं... उसकी दायरा मैं भी नहीं तोड़ सकता...

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सीढियों पर बैठा वीर किसी पत्थर की बुत की तरह सड़क की ओर देखे जा रहा था l उसकी नजरें सिर्फ और सिर्फ अनु को ढूंढ रही थी l तभी उसके पास एक आदमी हांफते हुए पहुँचता है

आदमी - एसक्युज मी सर...
वीर - (उसके तरफ देखता है)
आदमी - क्या आपने एक छोटी सी बच्ची को देखा है...
वीर - (अपना सिर ना में हिलाता है)

फिर वह आदमी इधर उधर भागने लगता है l वीर देखता है वह आदमी परेशान हो कर वहाँ पर आने जाने वाले लोगों से पुछ ताछ करता है l वह आदमी कुछ देर बाद वहाँ पर नहीं दिखता I वीर उसी तरह अपनी सीढ़ी पर बैठ कर सड़क पर नजर गड़ाए बैठा हुआ होता है l तभी एक छोटी लड़की उसके पास बैठती है l

लड़की - भैया... आप यहाँ किसी की राह देख रहे हो....
वीर - (उस लड़की की ओर देखता है) (फिर अपना सिर हाँ में हिलाता है)
लड़की - हूँउँउँउँ... कहीं आप उन दीदी को तो नहीं ढूढ़ रहे...
वीर - (हैरानी से उसकी आँखे फैल जाती है) क... कौन.. दीदी...
लड़की - ओह ओ... वही दीदी... जिन्हें आप एक दिन... ओरायन मॉल पर ले गए थे....
वीर -(हैरान हो कर) यह तो बहुत दिन पहले की बात है...
लड़की - हाँ...
वीर - तुम्हें कैसे याद है... और तुम यह सब कैसे जानती हो...
लड़की - भुल गए... ह्म्म्म्म... बॉयज... पास गर्ल फ्रेंड हो... तो दूसरी लड़की याद नहीं रहती क्यूँ...
वीर - (सकपका जाता है) क्या...
लड़की - और नहीं तो... (एटीट्यूड के साथ) मैं उस दिन मॉल में रेड क्रॉस के लिए चंदा इकट्टा कर रही थी... अपनी स्कुल के लिए... तभी आपने अपना पर्स दीदी के हाथ में दिया... और उन दीदी ने... हमारे बक्से में पैसा भर दिया... और मैंने... जाते जाते पीछे मुड़ कर... अपने दोनों उंगली से ओ बना कर इशारा किया था....
वीर - हाँ... हाँ हाँ... (फिर वह चुप हो जाता है) (और दुखी मन से सड़क की ओर आस भरी नजर से देखने लगता है)
लड़की - आह... क्या जोड़ी थी आप दोनों की... (हुकुम देते हुए) अब चलो... उठो अब...
वीर - (हैरान हो कर) क्यों... कहाँ...
लड़की - (अपनी कमर पर हाथ रखते हुए) अरे... मैं खो गई हूँ... अब आप मुझे मेरे बाबा के पास ले चलो...
वीर - व्हाट... मतलब अभी कुछ देर पहले... जो अपनी बेटी को ढूंढ रहे थे... वह तुम्हारे बाबा हैं...
लड़की - (बड़ी शान से अपनी लटें पीछे झटकते हुए कहती है) हाँ... और वह खोई हुई लड़की... मैं हूँ....
वीर - ऐ... सच सच बताओ... तुम खो गई थी... या छुप गई थी...
लड़की - दोनों...
वीर - बहुत बुरी बात...
लड़की - ओ हैलो... (चुटकी बजाते हुए) मैं अगर नहीं छुपती... तो आपको अनु दीदी की खबर कैसे देती...

अनु की नाम सुनते ही वीर की हैरानी और बढ़ जाती है l वह उस लड़की को घूरते हुए देखता है l

लड़की - (बड़ी मासूमियत के साथ) ना जी ना... ऐसे मत देखो... (शर्माने की ऐक्टिंग करते हुए) मुझे शर्म आ रही है...

वीर अभीतक जो परेशान था उसके चेहरे पर हँसी उभर आती है l

वीर - तुम... तुम जानती हो... अनु कहाँ है...
लड़की - हाँ... अच्छी तरह से... इन फैक्ट उन्होंने ही कहा था... शायद आप मुझे यहीं मिल जाओगे...
वीर - (भावुक हो कर, आवाज थर्रा जाती है) क्या... क... कहाँ है अनु...
लड़की - हमारे घर में...
वीर - (हैरानी के साथ) तु... तुम्हारे... घर में...

वीर सिसक पड़ता है l वह जोर से उस लड़की को गले से लगा लेता है फिर उसे अलग कर उसकी माथे की चूम लेता है l वीर उसे अपनी गोद में उठा कर खड़ा हो जाता है और गरुड़ स्थंभ के पीछे से जगन्नाथ जी को आँसू भरे कृतज्ञता भरी नजरों से देखने लगता है l वह लड़की उसके चेहरे को अपनी ओर करती है

लड़की - अब चलें... कहीं देर ना हो जाए...
वीर - देर... किस बात की देरी... वह ठीक तो है ना...
लड़की - हाँ... पर आज लड़के वाले अनु दीदी को देखने आने वाले हैं... इसलिए जल्दी चलिए... कहीं देर ना हो जाए....
वीर - ल..ल... लड़के... वाले...
लड़की - हाँ... वह जो दादी अम्मा है ना... अनु दीदी की शादी करा देना चाहती हैं...
वीर - क्या...
लड़की - घबराने का नहीं... पहले मेरे बाबा को फोन करके बताओ... की मैं तुम्हें मिल गई हूँ... और मुझे लेकर घर आ रहे हो....
वीर - (हड़बड़ा कर) हाँ... हाँ...


फिर लड़की अपने बाप का नंबर देती है, वीर बिना देरी किए उसके बाप को उनकी बेटी मिलने और घर पर लाने की बात करता है l यह सब करते हुए वीर के आँखों में आंसू आ जाते हैं और फिर से उस लड़की को अपने गले से लगा लेता है और भागते हुए अपनी गाड़ी में बैठ जाता है l गाड़ी को स्टार्ट कर उड़ाने लगता है l गाड़ी के अंदर

वीर - तुम्हारा नाम क्या है एंजेल...
लड़की - एंजेल... बहुत बढ़िया नाम है... पर मैं एंजेल नहीं... मेरा नाम गुड्डु है...
वीर - (गाड़ी चलाते हुए) तुम्हारा नाम चाहे कुछ भी हो... पर तुम सच में एंजेल ही हो.... पर यह बताओ... लगभग दो महीने हो गए हैं... तुमने मुझे पहचाना कैसे...
गुड्डू - उस दिन ओरायन मॉल में... एक ही तो जोड़ी थी... जो हंस और हंसीनी लग रहे थे... वैसे भी भुल गई होती... तब आप पहचान में आ जाते...
वीर - कैसे...
गुड्डु - वेरी सिम्पल... मैंने दीदी से पुछा की आप कहाँ मिल सकते हो... तब दीदी ने इसी मंदिर की बात की... पर उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं बताया...
वीर - फिर...
गुड्डू - पुरे मंदिर में... एक ही तो बंदा था... जो मुहँ लटकाये... राह तकते बैठा हुआ था...

वीर यह सुन कर हँस देता है और गुड्डु भी उसके साथ हँस देती है ऐसे बातेँ करते करते वीर की गाड़ी गुड्डु के मोहल्ले के बाहर रुकती है l वीर गुड्डु को गोद में लेकर एक तरह से भागने लगता है l

उधर एक लाल रंग की साड़ी में अनु कमरे में बैठी हुई अपने में खोई हुई थी l उसके चेहरे पर ना शर्म ना खौफ ना खुशी कुछ भी नहीं था l वह बस अपने में खोई हुई सिमटी हुई बैठी थी l तभी कमरे में दादी हाथ में एक ट्रे लेकर आती है जिसमें छह सर्वत के ग्लास रखे हुए थे l

दादी - चल... लड़का और उसके माँ बाप बैठे हुए हैं... मैंने बात कर देख ली है.... मुझे बहुत अच्छे लगे...

अनु अपनी दादी की ओर बिना देखे एक बेज़ान कठपुतली की तरह उठती है और बाहर की और चलने लगती है l

दादी - हे भगवान... यह ट्रे तो ले...

अनु ट्रे दादी की हाथ से लेकर दादी के साथ कमरे से बाहर निकल कर उसे देखने आये लोगों के सामने आती है और सबके सामने बारी बारी से ट्रे लेकर जाती है और वह लोग एक एक कर सर्वत की ग्लास ले जाती हैं l

लड़के की माँ - आह.. कितनी खूबसूरत है आपकी पोती माँ जी... (अपने पति से) क्यूँ जी... कैसी लगी आपको...
लड़के का पिता - साक्षात लक्ष्मी लग रही है... (अपने बेटे से) क्यूँ हीरो... आपको पसंद आई...

लड़का कुछ नहीं कहता शर्मा जाता है l उसे शर्माता देख दादी खुश हो जाती है l कमरे में गुड्डु के माँ बाप भी थे l

गुड्डू के पिता - आज वाकई अच्छा दिन है... मेरी बेटी खो गई थी... किसी भले मानस को मिल गई... वह उसे लेकर आ रही है... और देखो इस शुभ घड़ी में... (दादी से) आपकी पोती भी इन्हें पसंद आ गई... वाह...

तभी वीर गुड्डु को लेकर उसी कमरे में पहुँचता है l वीर को वहाँ देख कर दादी और मृत्युंजय की सिट्टी पीट्टी गुल हो जाती है l आए हुए लड़के वाले कुछ देर के लिए हैरान हो जाते हैं l गुड्डु वीर के गोद से उतर कर भाग कर अपने पिता के पास जा कर गले लग जाती है l उसके पिता गुड्डु को अपनी गोद में उठा लेते हैं l

गुड्डू - (रोनी सूरत बना कर)(बड़ी मासूमियत के साथ) बाबा... यह भैया न होते... तो आज मैं आपको नहीं मिलती...
गुड्डू के पिता - क्या... क्या हुआ था मेरी बच्ची...
गुड्डू - मैं तो खो गई थी... फिर यह भैया मेरे पास पहुँचे और पूछे... की कहीं मैं खो तो नहीं गई हूँ... एक आदमी मुझे ढूंढते हुए गए हैं... कहीं वह मेरे बाबा तो नहीं... कह कर मुझे यहाँ लाए हैं...
गुड्डू के पिता - (वीर के सामने आकर हाथ जोड़ते हुए) आपका बहुत बहुत शुक्रिया... भाई...
वीर - यह... यह क्या कर रहे हैं...
गुड्डू - यह भैया ना... (छेड़ते हुए) बहुत शर्माते हैं...

अब माहौल थोड़ा अलग हो गया था l अब अनु को देखने आये लड़के वाले भी वीर की प्रशंसा कर रहे थे l वीर बार बार अनु की ओर देख रहा था पर अनु अपना सिर झुकाए वैसे ही खड़ी थी l दादी से यह सब बर्दास्त नहीं हो रहा था l वह बात बदलने के लिए

दादी - अच्छा हुआ राजकुमार जी... आप शुभ मुहूर्त पर पधारे हैं.... यह अनु को देखने आये हैं... और इन्हें अनु पसंद भी आ गई है... आप अनु के उज्वल भविष्य के लिए... अनु को दो शब्द कह दें...

दादी की बातेँ सुन कर अनु अपनी आँखे मूँद लेती है और जबड़े भींच लेती है l दादी से यह सब सुनने के बाद वीर को भी झटका लगता है l

दादी - राज कुमार जी...
वीर - हाँ...
दादी - कहिए ना कुछ... अनु को...

वीर बड़ी मुश्किल से अपना सिर हाँ में हिलाता है l उसके बोल फुट नहीं रहे थे उसे ऐसा लग रहा था किसीने उसके हलक को मुट्ठी में जकड़ रखा है l बड़ी मुश्किल से कुछ कहने के लिए खुद को तैयार करता है l

वीर - अनु...
अनु - (अपनी आँखे जोर से बंद कर लेती है और जबड़े भींच कर अपनी मुट्ठी में साड़ी कस कर भींच लेती है)
वीर - अ.. अनु... (हँसने की कोशिश करते हुए, अटक अटक कर) आ.. आज... तो... बहुत खुशी का दिन है... तु... तुम.. तुम्हारी जिंदगी की... नई शुरुआत हो रही है... (आवाज धीरे धीरे भर्राने लगती है) कितने खुश हैं...(दादी की ओर देखते हुए) तुम्हारी दादी... (मृत्युंजय की तरफ देख कर) तु... तुम्हारे... मट्टू भाई... (फिर अनु को देखने आये लड़का और उसके परिवार को देख कर) तु.. तुम्हें... देखने आए... यह लोग.... बहुत खुश हैं.... (फिर अनु को देख कर) अ...अ..अनु... (अनु वीर की ओर देखती है) पर मुझे... ऐसा क्यूँ लग रहा है कि... मेरा दिल... कोई... निचोड़ रहा है... ऐसा क्यूँ लग रहा है... जैसे... मेरे जिस्म में से... कोई... मेरी जान को खिंच ले जा रहा है... मैं क्यूँ टुट रहा हूँ... टुकड़ों में बिखर रहा हूँ... अनु....

अनु और कुछ सुन नहीं पाती फुट फुट कर रोने लगती है और फिर भाग कर वीर के गले लग जाती है l वीर भी उसे अपने गले से लगा कर उठा लेता है l अनु के पांव फर्श से छह सात इंच ऊपर झूलने लगती है l यह वाक्या देख कर वहाँ पर मौजूद सभी आँख और मुहँ फाड़ कर देखने लगते हैं l दादी माँ फटी आँख और खुले मुहँ से धप कर बैठ जाती है और लड़के वाले खड़े हो जाते हैं l मृत्युंजय पीछे हट कर दीवार से सट जाता है l गुड्डू के पिता अपनी गोद से गुड्डू को उतार देते हैं l गुड्डू अपने पिता के गोद से उतर कर ताली बजाने लगती है, उधर दो प्रेमी अपनी आंसुओं से एक दूसरे के कंधे भिगो रहे थे l दोनों थोड़ी देर बाद नॉर्मल होते हैं और एक दुसरे के माथे जोड़ लेते हैं l दोनों की आँखे बंद हैं l

वीर - तु जानती है ना... मैं.. तुझसे बहुत प्यार करता हूँ...
अनु - (आँखे बंद किए हुए अपना सिर हाँ में हिलाती है)
वीर - तु भी मुझसे... बहुत प्यार करती है... है ना...
अनु - (फिर से अपना सिर हाँ में हिलाती है)
वीर - (अपना माथा अलग कर आँखे खोल कर, सवाल करता है) फिर....

अनु कुछ नहीं कहती फिर से पुरी जोर से वीर के गले लग कर रोती है l

लड़के का पिता - यह... यह क्या है... क्या हो रहा है... छि.. छि.. छि...

वीर अपनी आँखे खोल कर जलती हुई निगाह से देखता है l उसकी आँखों में जैसे अंगारे उतर आई हो l लड़के वालों की हालत खस्ता हो जाता है l

लड़के की माँ - (गुस्से भरी आवाज में, दादी से) माँ जी...

दादी की आँखों में आंसू थी वह लड़के वालों के तरफ बिना देखे अपना हाथ जोड़ देती है l

लड़के की माँ - चलो जी चलो... हम क्यूँ इनके जैसे बेगैरत हों... चलिए...

लड़के वाले जाने को होते हैं कि तभी वीर उन्हें आवाज देता है l

वीर - सुनिए... (अपने से अनु को अलग करता है पर अनु को छोड़ता नहीं है) इस घर की चौखट लांघने से पहले.... एक बात जान लीजिए... अनु के खिलाफ... कुछ भी बदजुबानी.... या बदखयाली की... तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा...(अपने सीने से लगा कर) यह मेरी है... वीर सिंह क्षेत्रपाल की होने वाली धर्मपत्नी.... और क्षेत्रपाल परिवार की होने वाली बहु....
Bahut hi badhiya update diya hai Kala Nag bhai...
Nice and beautiful update....
 

Anky@123

Well-Known Member
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वीर - तु जानती है ना... मैं.. तुझसे बहुत प्यार करता हूँ...
अनु - (आँखे बंद किए हुए अपना सिर हाँ में हिलाती है)
वीर - तु भी मुझसे... बहुत प्यार करती है... है ना...
अनु - (फिर से अपना सिर हाँ में हिलाती है)

सुबह सुबह अंजलि को यही दो लाईनें बोल दीं, और वही गोदी में उठा कर -- और लगभग समान रिएक्शन!! उसके बाद जो हुआ, अब उसके बारे में क्या ही लिखूँ 😍🤩
Mene bhi try kiya, to boli bacche ke dyper le aao pehle kal se khatam huye pade hai, fir kerte rehna pyar vyar 😂😂
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Mene bhi try kiya, to boli bacche ke dyper le aao pehle kal se khatam huye pade hai, fir kerte rehna pyar vyar 😂😂
हा हा हा ... भाई, मेरी बेटियाँ वो डायपर वाली ऐज से आगे हो गई हैं। इसलिए वो समस्या मुझको नहीं है अब!🤣
 

DARK WOLFKING

Supreme
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32,004
259
kya gajab ka update hai 😍😍..dil ko chhu gaya .pareshan veer ko apne dost pratap ki salaah mili aur sahi waqt pe guddi ne bhi apna kaam bakhubi nibhaya .
veer aur anu ka milan ho hi gaya 😍😍..
veer me bahut se badlaw aaye hai jabse wo anu se mila hai .
apne bhabhi ke pair chhukar aashirwad liya aur safal hone ka aashirwad bhi liya 😍.
bhagwan se prathana ki aur aaj sab veer ke prem ko mukam tak pahuchane me lage huye the .
 

Kala Nag

Mr. X
4,136
16,103
144

Kala Nag

Mr. X
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Mene bhi try kiya, to boli bacche ke dyper le aao pehle kal se khatam huye pade hai, fir kerte rehna pyar vyar 😂😂
कोई नहीं
ट्राय करन छोड़ना नहीं चाहिए कभी
 

Kala Nag

Mr. X
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हा हा हा ... भाई, मेरी बेटियाँ वो डायपर वाली ऐज से आगे हो गई हैं। इसलिए वो समस्या मुझको नहीं है अब!🤣
हा हा हा हा हा
भाई मेरे भी बच्चे डायपर के दौर से आगे बढ़ चुके हैं
🤣🤣🤣
 

Kala Nag

Mr. X
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16,103
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kya gajab ka update hai 😍😍..dil ko chhu gaya .
धन्यबाद DARK WOLFKING भाई
pareshan veer ko apne dost pratap ki salaah mili aur sahi waqt pe guddi ne bhi apna kaam bakhubi nibhaya .
प्यार अगर सच्चा हो उसे मिलान के लिए सारी कायनात साजिश करती है
veer aur anu ka milan ho hi gaya 😍😍..
veer me bahut se badlaw aaye hai jabse wo anu se mila hai .
हाँ उसके भीतर के बदलाव के भाव अनु के वजह से ही है
हाँ यह बात और है कि अनु ने ऐसा करने के लिए कभी कहा भी नहीं
apne bhabhi ke pair chhukar aashirwad liya aur safal hone ka aashirwad bhi liya 😍.
bhagwan se prathana ki aur aaj sab veer ke prem ko mukam tak pahuchane me lage huye the .
हाँ अब तक वीर का सफर ठीक ठाक गया है
अब प्यार के साथ प्यार के खातिर असली जद्दोजहद शुरु होगा
क्यूंकि उसके परिवार के मुखिया को जब मालुम पड़ेगा
तब
 
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