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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

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👉पैंतीसवां अपडेट
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खान - क्या... जयंत सर चल बसे....
तापस - हाँ....

कुछ देर के लिए बैठक में शांति छा जाती है l (मैराथन फ्लैशबैक से स्वल्प विराम, अब कुछ अपडेट वर्तमान और फ्लैशबैक के मिश्रण में आगे बढ़ेगी)

खान - वाकई... विश्व के साथ.... बहुत ही... बुरा हुआ.... बदनसीब निकला वह... किनारे पर पहुंच कर ही.... कश्ती डूब गई....
तापस - हाँ... वह तो है.... अखिर जयंत सर ने कहा था.... इसी दिन के लिए तैयारी किया था.... भैरव सिंह क्षेत्रपाल का अहंकार दाव पर लगी थी... अपने घमंड के चलते.... वह कटघरे में आना नहीं चाहता था..... पर जयंत सर के जिद.... राजा साहब को ज़द पहुंचा ही दिया.... उस कटघरे में क्षेत्रपाल को आना ही पड़ा... जो वह सिर्फ़.... आम लोगों के लिए ही सोचता था..... अगर उस दिन.... जयंत सर की साँसों ने... उनसे बेवफ़ाई ना कि होती.... तो शायद कहानी कुछ और होती..... (कहते कहते तापस का चेहरा गम्भीर हो गया) उस वक्त... कोर्ट रूम में.... एक ऐसी शांति छाई हुई थी.... के डर लग रहा था... वहाँ मौजूद लोगों में.... भाव भी अलग ही था.... कुछ लोग ऐसे थे..... जो जयंत सर के मौत पर... अंदर ही अंदर बहुत खुश हो रहे थे.... उनकी खुशी... लाख कोशिशों के बावजूद... छुपाये नहीं छुप रही थी..... भैरव सिंह एंड कंपनी... कुछ लोग थे.... यानी के मैं... मेरा स्टाफ... मेरी पत्नी और जजों के साथ साथ कोर्ट के सारे स्टाफ.... हम गहरे सदमे में थे... हमे अंदर से बहुत पीड़ा और दुख का अनुभव हो रहा था.... और एक तरफ... वह दो भाई और बहन थे.... जो अपनी आँखे फाड़े उस इंसान को देख रहे थे.... जिसने उनके भीतर उम्मीद नहीं... विश्वास को जगाया था.... वह अंदर ही अंदर खुन के आंसू... रो रहे थे.... पर कोशिश उनकी यह थी.... कोई जान ना ले....
खान - ह्म्म्म्म.... मतलब सब के सब शॉक में थे... पर सबकी अपनी अपनी अलग वजह थी....
तापस - हाँ...
खान - उसके बाद क्या हुआ....
तापस - कुछ नहीं... जो स्टैंडर्ड ऑफ प्रोसिजर था... वही हुआ उस दिन... मेडिकल टीम पहुंची.... जयंत सर की बॉडी को... मेडिकल ले जाया गया..... शाम तक उनकी पोस्ट मोर्टम रिपोर्ट भी आ गया था....
खान - क्या था.... उस रिपोर्ट में...
तापस - सिंपल.... कार्डीयाक अरेस्ट... पहले भी दो बार आ चुका था.... उस दिन वह आखिरी बार आया.....
खान - ह्म्म्म्म.... मतलब... उन ताक़तों ने... न्याय तंत्र का गला घोंटने के लिए.... भीड़ तंत्र का उपयोग किया....
तापस - हाँ उपयोग किया था...... लोगों का... क्यूँ के उन्हें... इसके सिवा कुछ आता ही नहीं था.... अखिर पीढ़ियों का... एक्सपेरियंस था.... उनके पास.... जनता को... लूटो... जनता के जरिए... और जनता को मरवाओ... जनता के जरिए....
खान - फ़िर क्या हुआ.... मेरे हिसाब से.... विश्व के केस में.... नाइंटी पर्सेन्ट केस सॉल्व हो चुका था.... फ़िर भी उसे सजा हो गई....
तापस - हमारे कानून की जिस तरह की व्यवस्था या प्रणाली है.... उसमें जितनी बारीकियां है.... उतनी ही पेचीदगी भी है.... विश्व इसी पेचीदगियों में फंस गया...

फ्लैशबैक में
मंगल वार
जगन्नाथ मंदिर में बाइस पावच्छ के पास के दीवार के पास बैठी वैदेही भगवान जगन्नाथ को घूरे जा रही है l आंखों में आंसू नहीं है पर चेहरे पर नाराजगी और गुस्सा झलक रही है l उसके पास मंदिर का मुख्य पुजारी पंडा आता है l

पंडा - अच्छा हुआ... तुम यहीँ मिल गई.... (वैदेही पंडा को देखती है, पंडा उसके पास बैठ जाता है) बेटी.... वह पिछले तीन सालों से... खुद को हर केस से दूर रख रहा था.... पर विश्व का केस उसने लिया.... कुछ तो वजह होगी.... (वैदेही पंडा को देख रही पर उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं है) मानता हूँ.... तुम्हें.... (जगन्नाथ को दिखा कर) उससे शिकायत है... पर इतना याद रखो.... वह राह दिखाते हैं... बताते हैं... ताकि उसे मानने वाला.... उस राह पर चले... वरना.... कुरुक्षेत्र का युद्ध अट्ठारह दिन तक ना चलता.... (वैदेही फ़िर भी,चेहरे पर बिना कोई भाव लाए पंडा को सुन रही है) अब मैं... क्या कहूँ.... जिस दिन तुमने मुझसे.... निर्माल्य लिया था.... उसी दिन जयंत मेरे पास आया था.... तुम्हारे लिए एक चिट्ठी छोड़ गया था.... और मुझसे कहा था... अगर केस खतम होने तक अगर उसे कुछ हो जाए... तो तुम्हें यह देने के लिए कहा था.... (कह कर एक कवर देता है, वैदेही उससे वह कवर ले लेती है और फाड़ कर चिट्ठी निकलने वाली होती है, पंडा उसे रोक देता है) तुम्हारा शुभ चिंतक था वह... उसके दिए भावनात्मक चिट्ठी को.... जाओ कमरे में पढ़ो.... उसके भावनाओं का सम्मान करो....

वैदेही अपना सर हिलती है और धर्मशाला में अपने कमरे की ओर चली जाती है l

उधर जैल की कोठरी में दीवार पर टेक् लगाए विश्व बैठा हुआ है l दोनों घुटने के ऊपर अपनी कोहनी का भार रख कर चेहरा झुकाए ग़मगीन बैठा हुआ है l सेल की दरवाजा खुलने की आवाज़ सुनाई देता है l वह उस तरफ ध्यान नहीं देता है l पर उसे महसूस होता है कोई आकार उसके पास खड़ा हुआ है l विश्व अपनी नजरें उठाता है l उसके सामने तापस खड़ा था l विश्व फ़िर अपना चेहरा झुका लेता है l तापस भी विश्व के पास बैठ जाता है l

तापस - विश्व.... रविवार को तुमसे मिलने से पहले.... जयंत सर मुझसे मिले... और कुछ देर मेरे साथ बात भी की थी.... (विश्व कुछ नहीं कहता, वैसे ही अपना चेहरा झुकाए बैठा रहता है) उनको शायद आभास हो गया था.... इसलिए वह तुम्हारे लिए... (एक कवर निकाल कर) यह... शायद कोई चिट्ठी... तुम्हारे लिए परसों.... मेरे पास छोड़ गए थे....

विश्व तापस को हैरान हो कर देखता है l तापस भी विश्व को वह कवर दे देता है और वहाँ से उठ कर बाहर चला जाता है l

इधर विश्व कवर फाड़ कर एक चिट्ठी निकालता है और उधर धर्मशाला के अपने कमरे में वैदेही चिट्ठी निकाल कर पढ़ने लगती है,

मेरे प्यारे वैदेही और विश्व
अगर यह चिट्ठी तुम लोग पढ़ रहे हो, तो मैं अब इस दुनिया में नहीं हूँ l मतलब केस की सुनवाई पूरी नहीं हो पाई है l मुझे तुम लोगों को यूँ आधे रास्ते पर छोड़ कर जाने के लिए माफ कर देना l इतना तो हक़ रखता हूँ, है ना l

खैर विश्व यह केस मेरी पेशा का आखिरी केस था l जिसके लिए मैंने अपनी जान लगा दी पर मंज़िल तक सफ़र पूरा ना हो पाया l
सच कहता हूँ l यह केस लेने की मेरी कोई ख्वाहिश नहीं थी l वैसे मज़बूरी भी नहीं थी l पर मैंने यह केस ली l क्यूँ, यही तुम लोगों से बात करना चाहता था l पहले लगता था कि केस खतम हो जाए तो फ़िर इत्मीनान से कहूँगा l पर मुझे महसूस हो रहा है कि शायद मेरी सांसे मेरे साथ बेवफ़ाई करने वाली हैं l इसलिए आज सब कुछ जो दिल में था, तुम तक पहुंचा रहा हूँ l हाँ यह मैं तुम लोगों पर छोड़ रहा हूँ यह चिट्ठी पढ़ने के बाद तुम दोनों कैसे रिएक्ट करोगे l
चलो मैं आज तुम दोनों को अपने बारे में कुछ बताता हूँ l मैं इस साल रिटायर होने वाला था यानी अपनी जीवन के उनसठ वसंत देखने के बाद साठ पर रन आउट हो गया l अब इन उनसठ वसंत में जब से होश सम्भाला तब से इस सहर और सहर के लोगों को बढ़ते, फूलते और बदलते देखा है l यह जो घर पर मैं रहता था, वह हमारी पुस्तैनी घर था l करीब ढाई पीढ़ियों की साक्षी थी l मेरे पिता दादाजी के इकलौते लड़के थे इसलिए विरासत में वह घर मिला था l पर हम तीन भाई थे l और तीनों में, मैं बड़ा था l मेरे पिता तब सूबेदार हुआ करते थे l उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं किया l मेरी माँ से शादी की और हम सबको दुनिया में लाकर खुद दुनिया से चले गए l खैर मेरी माँ भी तब थोड़ी पड़ी लिखी थी इसलिए इसलिए उन्हें म्युनिसिपाल्टी ऑफिस में क्लर्क की नौकरी करने लगी और हम तीनों पको पाल पोश कर बड़ा करने लगी l ऐसे में मैंने कॉलेज खतम की l उसके बाद जिंदगी से जुझना शुरू हो गया l क्यूंकि घर की आमदनी कम तो थी उस पर माँ को बीमारी ने घेर लिया l तब मैंने भी किसी किसी वकीलों के पास काम करने लगा ताकि घर में आमदनी रुके ना l दिन भर जी तोड़ कर मेहनत करता था और नाइट कॉलेज में लॉ की पढ़ाई करता था l ऐसे में मेरी शादी भी तय हो गई l डिग्री होते होते माँ भी इस दुनिया से चल बसी l इससे पहले मैं अपनी दुनिया बसा पाता एक सामाजिक समस्या सामने आ खड़ी हो गई l मुझसे मेरे होने वाले ससुर ने एक प्रस्ताव रखा के शादी के बाद मुझे अपनी भाईयों को उसी घर में छोड़ कर उनके साथ रहना होगा l मुझे तब गुस्सा आया और मैंने गुस्से में काठजोडी नदी के किनारे शाम तक बैठा रहा l फ़िर शाम ढलते ही घर लौट आया l मैंने देखा घर के बरामदे में मेरे दो भाई मेरा इंतजार कर रहे थे l माँ के बाद उस घर की आँगन में माँ की गोद की तरह मेहसूस होती थी l दुनिया से जुझने के बाद जब आँगन में थोड़ी देर सुस्ता लेने से माँ की गोद में सर रखने जैसा आराम मिल जाता था l मैंने उस दिन एक फैसला किया और हमेशा के लिए अपने भाईयों के लिए उनसे सारे संबंध तोड़ दिया l मैंने शादी कर घर बसाने के वजाए अपने भाईयों को चुना l उनके लिए मैंने अपने आपको जीवन की आग में झोंक दिया l मुझे आगे चलकर पब्लिक प्रोसिक्यूटर की जॉब भी मिल गई l
मुझे और मेरे भाईयों के आगे की पढ़ाई और जीवन के लिए इस जॉब ने बहुत सपोर्ट किया l धीरे धीरे मेरे भाई भी नौकरी पर लग गए l एक एक करके उनकी घर भी बसा दिआ l सब अपने अपने जिंदगी में खुश रहने लगे l भाइयों की जब ट्रांसफर हुई वे कटक छोड़ कर अपनी अपनी कर्मक्षेत्र में व्यस्त रहने लगे l हर वर्ष दशहरा को हमारा परिवार कटक में इकट्ठा होता था l ऐसा मैंने ही नियम बनाया था और वह भी इस नियम को सम्मान देते हुए, वे सब कहीं भी रहे, पर दशहरा मैं कटक आते ही थे, और मैं अपनी साल भर की कमाई को साल के इसी महीने के खर्च करने लिए बचाके रखता था l जब मेरे परिवार मेरे पास होता था तो जम कर खर्च किया करता था l फ़िर एक दशहरा ऐसा आया के वह लोग नहीं आए l दशहरा के छुट्टियों में उनके इंतजार में उस घर आँगन में ही बीत गई l जब वह लोग नहीं आए तो मैं कुछ दिनों की छुट्टी लेकर उनके पास जाने के लिए निकला l पर जब वहाँ पहुंचा तो मुझे खबर मिली के वह लोग कटक गए हुए हैं l मैं खुशी के मारे मेरे पहुंचने तक उन्हें कटक में रुके रहने के लिए उन तक ख़बर भिजवाई l मैं
खुशी के मारे जब घर पहुंचा तो देखा वहाँ मेरा इंतजार हो रहा है l दोनों के दोनों वहीँ बैठे मेरा इंतजार कर रहे थे, जैसे बचपन में किया था l मेरी खुशी दुगनी हो गई पर ज़्यादा देर तक नहीं टिकी l मेरे दोनों भाई उस दिन अपने हिस्से का बटवारा मांग रहे थे l उस घर को बेचने की बात कर रहे थे l वह घर जो हमारी अपनी थी l जो हमे आपस में जोड़ती थी l जिसकी आँगन में अपनी माँ के गोद को मेहसूस किया करता था l अब वह लोग उसी घर को बेच कर अलग हो जाना चाहते थे l वह दोनों जिनको मैंने अपना घर बसाने के वजाए अपना दुनिया बनाया था आज वह लोग अपनी दुनिया के लिए वह इकलौती चीज़ को बेच देना चाहते थे जिसने हमे अबतक बांधे रखा था l चलो बेच भी देता तो, मैं उनके दुनिया के लिए एक गैर जरूरी बन चुका था l मैं कहाँ रहूँगा किसके पास जाऊँगा इसकी उन्हें कोई आवश्यकता ही नहीं थी l मुझे यह बात बहुत चुभ गई l दिल यह दर्द झेल नहीं पाया l मेरी दर्द के मारे आँखे बंद हो गई l जब आँखे खुली तो खुदको हस्पताल में पाया l डॉक्टर ने कहा कि मेरे दोनों भाई मुझे यहाँ दाखिल कर गए हैं l मैं इंतजार करता रहा के कोई तो आएगा l पर नहीं, कोई नहीं आया l क्यूंकि वह लोग मुझे हस्पताल में छोड़ कर चले गए थे, या फिर यूँ कहो कि हस्पताल में छोड़ कर भाग गए थे l अपने भाई को बचाने के लिए कहीं उनकी जेब हल्का ना हो जाए l जितने भी दिन रहा, मुझसे मिलने मेरे कॉलीग्स और दोस्त ही आए l पर वह लोग नहीं आए जिनको मैंने अपनी दुनिया मान कर घर नहीं बसाया था l उसके बाद कई दशहरा आई पर कोई नहीं आया l फिर तीन साल पहले वे लोग आए थे पर वह दशहरा नहीं था l वह फ़िर से घर बेचने की बात करने लगे l मैंने इसबार सीधे कह दिया मेरे जीते जी नहीं l मेरे मरने के बाद ही हो सकता है l उस दिन वह लोग मुझे जल्दी मर जाने की दुआ दे कर चले गए l इस बार भी दिल का दौरा पड़ा l पर सम्भाल लिया था मैंने खुदको l उसके बाद काम करना कम करदिया और धीरे धीरे बंद भी कर दिया l
एक दिन घर में यूहीं बैठे बैठे सोचने लगा अगर इस घर को बेच दिया होता तो क्या बुरा होता l मैं घर से बाहर जाता हूँ और घर लौट आता हूँ l पर घर काटने को दौड़ता था जब दशहरा आता था l जिनके लिए घर को लौट कर आता था l उन लोगों को अब मेरी कोई जरूरत ही नहीं थी l ऐसे में एक दिन निश्चय किया l सब कुछ छोड़ कर कहीं चला जाऊं l क्यूँ के मेरे भाइयों ने मुझे लावारिश कर दिया था l अगर मेरी मौत भी हो जाए तो वह लोग शायद नहीं आयेंगे l मेरी लाश एक लावारिश लाश बन कर रह जाएगी l इसलिए सब छोड़ कर मैं कहीं ऐसी जगह चला जाऊँ जहां एक लावारिश लाश को पहचानने वाला भी कोई ना हो l यही सोच कर एक दिन घर में ताला लगा कर कटक छोड़ने के लिए निकल पड़ा l जब गेट के पास पहुंचा तो एक बार उस घर के तरफ मुड़ कर देखा जिसे मैं छोड़ कर जा रहा था l आखिर मेरी माँ के बाद यही तो आँगन था जब दुनिया से जुझ कर यहाँ थक कर लौट आता था l अब इस घर को किसीके लिए लौट आऊँ, मेरा ऐसा कोई था ही नहीं l एक आखिरी बार अपने घर को देख कर जा रहा था कि अचानक मेरी नजर मेरे मैल बॉक्स पर पड़ी l एक चिट्ठी थी l मन मचल गया बहुत दिनों बाद कोई चिट्ठी दिखी थी शायद मेरे किसी अपने कि l नहीं मैं गुस्सा था उनसे, इसीलिये बिना मुड़े बादामबाड़ी बस स्टैंड चला गया l पर बस चढ़ नहीं पाया l कौन है, जिसको मेरी जरूरत पड़ गई यही सोच कर मैं घर के आँगन में वापस आया l मैल बॉक्स में देखा तो पाया एक सरकारी चिट्ठी थी l विश्व तुम्हारे ही पैरवी के लिए सरकारी सिफारिश पत्र था l मन उचट गया, धत मैंने तो किसी अपने के लिए सोच कर वापस आया था, पर यह तो एक सरकारी सिफारिशी चिट्ठी निकली l जो भी हो मुझे जिस के वजह से घर लौटना पड़ा l उसके बारे में मेरे लिए जानना जरूरी था l यह सोच कर तुम्हारे केस से जुड़े सारे दस्तावेज मैंने कोर्ट से हासिल किया, पढ़ा, पढ़ने के बाद मुझे कुछ गडबड लगा l इसलिए मैं अपनी भेष बदल कर दस दिन के लिए राजगड़ गया, वहाँ पर मैं अपने तरीके से खोज खबर ली l तुम दोनों से मैं प्रभावित हुआ l गांव में सब डरे डरे हुए थे सहमे सहमे हुए थे, फ़िर भी दबे स्वर में तुम दोनों के लिए अच्छा ही कहते थे l मैं कटक वापस आया और सोचने लगा यह केस लेना चाहिए या नहीं l फ़िर सोचा मैं घर से निकल चुका था, पर जिसके लिए अपने घर की आँगन के तरफ मुड़कर देखा था, जिसने मुझे घर दुबारा लौटने पर मजबूर कर दिया उससे जरूर मेरा कोई ना कोई रिश्ता है l इस जनम का नहीं तो शायद किसी और जनम का हो l बस उसी क्षण मैंने फैसला किया और वैदेही को रजिस्ट्री लेटर से यहाँ बुलवाया l बाकी आगे की सब तुम जानते हो l
तो अब आते हैं जिस विषय के लिए मैंने तुम लोगों को यह चिट्ठी लिखी है l विश्व, इंसान पीछे मुड़ कर उसे खोजता है, जिसके लिए उसे घर लौटना होता है, क्यूंकि वह उसका अपना होता है l जिसके लिए उसे दुनिया से टकराना पड़ता है, क्यूंकि वह उसका अपना होता है l मैं जब भी पीछे मुड़ कर देखता था तो मुझे सिर्फ़ तुम ही दिखाई देते थे l मैं जब जब तुम्हें देखता था तो पुरे जोश के साथ दुनिया से टकराने की हिम्मत जुटा लेता था l इसलिए मैंने जो वसीयत बनाई है, वैदेही और विश्व तुम दोनों को मैंने अपना लीगल हायर घोषणा किया है l मैंने अपनी जिंदगी की सारी जमा पूंजी जो मैंने कमाया है अपनी खून पसीने से वह सब तुम दोनों में बांट दिया है l बस वह घर तुम लोगों को नहीं दे सकता था क्यूंकि वह हमारे पुस्तैनी घर है और उस पर मेरे बाद उन दो नामुराद भाइयों का ही हक़ बनता है l सो मैंने उनको वह हक़ दे दिया है l वह अब घर को बेच कर अपने हिस्से का पैसा ले कर जा सकते हैं l पर जो मैंने कमाया है उसे बांटने का पुरा हक़ मेरा ही है l इसलिए मेरी सारे बैंक डिपॉजिट वैदेही तुमको मिलेगी और मेरे मरने के बाद अगर विश्व जैल से ना छूटे तो उस परिस्थिति में मेरी इपीएफ ओर जीपीएफ को फिक्स करदिया जाएगा वह विश्व के रिहा होने के बाद मिलेगा l तुम लोग डराना बिल्कुल भी नहीं l अरे भई मैं वकील हूँ, मैंने सब सेट करदिया है l मेरी कमाई पर मेरे भाई कोई दावा नहीं ठोक सकते l
विश्व और वैदेही तुम दोनों बहुत अच्छे हो l तुम दोनों अपने अंदर की अच्छाई को मरने मत देना l और हाँ कभी रोना भी मत l क्यूंकि रोना कमजोरों की निशानी है l और तुम दोनों को कमज़ोर नहीं बनना है l एक बात याद रखो, तुम खुद अपनी उम्मीद हो और विश्वास हो l तुम्हारा विश्वास ही तुम्हें मंज़िल तक पहुंचाएगी l

और अंत में मेरी फीस, तो विश्व पूरी के स्वर्ग धाम में मेरी अंत्येष्टि तुम ही करना l इतना हक़ तो तुम पर मैं रखता हूँ, अगर नहीं भी तो इसे मेरी फ़ीस ही समझ लेना l चिंता मत करो मैंने अपने वसीयत नामे में यह साफ़ लिख भी दिया है कि मेरी चिता को आग विश्व प्रताप महापात्र ही देगा, कोई और नहीं l मेरी बात याद रखना, आगे तुमको मंजिल मिलेगी और जरूर मिलेगी क्यूंकि मैं वहाँ ऊपर भगवान से तुम दोनों के लिए लड़ता रहूँगा l अब इस बुढ़े का सफ़र यहीँ खतम हुआ l
बस एक आखिरी इच्छा शेष है चिंता मत करो वह मैं भगवान से मांग लूंगा l चलो बता ही देता हूँ l इस जनम का कोटा तो खतम हो गया अगले जनम में हे भगवान वैदेही को मेरी माँ बनाना और विश्व को मेरा बेटा l बस इतना ही क्यूँकी यह पाने के लिए और जनम भी तो लेना है l
अलविदा मेरे बच्चों अलविदा

दोनों अपनी अपनी चिट्ठी पढ़ कर स्तब्ध हो जाते हैं l

फ्लैशबैक में स्वल्प विराम

खान - व्हाट... जयंत सर ने... विश्व और वैदेही को अपना लीगल हायर बनाया...
तापस - हाँ...
खान - जयंत सर के भाइयों ने तो.... हंगामा खड़ा कर दिया होगा...
तापस - हाँ कर तो दिया था... पर जैसा कि जयंत सर एक मंझे हुए वकील थे.... और उन्होंने जिस तरह से अपना वसीयत नामा बनाया था.... वह दोनों भाई सिर्फ़ घर पाकर भी बहुत खुस थे...
खान - वह कैसे...
तापस - अरे भाई... जयंत सर की पूरी जमा पूंजी सिर्फ़ तीस लाख के करीब ही निकली... जब कि वह जगह समेत घर... पूरे करोड़ों की थी... उनके लिए सौदा बुरा नहीं था...
खान - ओ.... हम्म... फ़िर...
तापस - कुछ नहीं.... अगली सुनवाई के लिए तारीख दो हफ्ते बाद की मिली थी.... इसी बीच जयंत सर जी वसीयत सामने आया.... उनकी अंत्येष्टि उनकी इच्छा को सम्मान करते हुए.... पूरी के स्वर्गद्वार में किया गया... और विश्व ने ही किया.... और उनका पिंड तेरहवे दिन... पूरी के सागर तट पर दे दिया गया....
खान - ह्म्म्म्म... आगे की केस में सुनवाई कैसे हो पाया.... जनता के आक्रोश के चलते शायद वकील कोई तैयार ही नहीं... हुआ होगा...
तापस - पता नहीं... पर उसकी नौबत ही नहीं आई....
खान - मतलब....
तापस - दो हफ्ते बाद.... जब सुनवाई शुरू हुआ... तब....

फ्लैशबैक में

जज - ऑर्डर ऑर्डर ऑर्डर.... आज पूरे दो हफ्ते बाद.... इस केस पर सुनवाई के लिए हम एकत्र हुए हैं.... जो हुआ बहुत दुखद था... चूंकि इसी जगह.... अपने काम के वक्त.... डिफेंस लॉयर श्री जयंत राउत जी का स्वर्गवास हुआ... इसलिए उनके स्मरण में आइये पहले.... हम सब खड़े हो कर... दो मिनट का मौन श्रद्धांजली दें.... (जज के आग्रह पर सब अपने अपने जगह पर खड़े होकर दो मिनिट का मौन श्रद्धांजलि दिए, उसके बाद) आइए अब बैठ जाते हैं और आज केस पर आगे की सुनवाई के लिए..... प्रोसिक्यूशन अपना तथ्य रखें.....
प्रतिभा - थैंक्यू मायलर्ड... आज मैं इतना कह सकती हूँ.... के डिफेंस ने जिन चारों गवाहों से जिरह के लिए अदालत से.... इजाज़त ली थी.... उनमें से तीनों की गवाही पुरी हो चुकी है.... अब केवल अंतिम गवाह के रूप में.... सिर्फ़ भैरव सिंह क्षेत्रपाल ही बचे हुए हैं.... और इस वक्त अदालत में.... डिफेंस की कुर्सी खाली है... योर ऑनर... और जब तक यह कुर्सी खाली रहेगी.... तब तक अंतिम फैसला नहीं लिया जा सकता है....
जज - हाँ... यह अदालत आपसे इत्तेफाक रखती है.... हाँ तो मक्तुल श्री विश्व प्रताप महापात्र... पिछली बार अदालत ने, आपकी बहन.... सुश्री वैदेही जी के आग्रह पर.... आपके लिए सरकार से सिफारिश की थी.... क्या इस बार भी अदालत फ़िर से.... सरकार से सिफारिश करेगी.....

जज के इस बात पर जहां भैरव सिंह और बल्लभ के चेहरे पर कुटिल मुस्कान उभर जाती है, वहीँ अदालत में दूसरे लोग विश्व की हाँ सुनने की प्रतीक्षा में थे l

विश्व - (अपने दोनों हाथ जोड़ कर) नहीं जज साहब नहीं... मुझे नहीं लगता... की अदालत में और खुलासे की कोई जरूरत है.... जयंत सर ने अदालत में मेरे लिए... जितनी भी जिरह कर... सच्चाई को सामने लाये.... वह बहुत है.... अब मैं... उनके जगह किसी और को नहीं दे सकता हूँ.... जितनी भी जिरह हो चुकी है.... वह आपके फैसले लेने के लिए..... पर्याप्त है... इसलिए.... मेरे लिए कोई और वकील मुकर्रर ना किया जाए...

यह एक धमाका था जो विश्व ने अदालत में उस वक्त किया l जजों के साथ साथ भैरव सिंह भी हैरान था l

जज - विश्व प्रताप.... यह अदालत बगैर डिफेंस के.... अपना निर्णय नहीं सुना सकती l इसलिए आपको.... या तो अपना वकील लाना होगा.... या फिर हमे सरकार को सिफारिश भेजनी होगी.....
विश्वा- (हाथ जोड़ कर) नहीं योर ऑनर.... मैं अब अपने लिए कोई वकील नहीं चाहता हूँ.... जयंत सर ने मुझे जो मान व अधिकार दिया है..... वह कभी मुझे मेरे पिता भी नहीं दे पाए..... इसलिए मैं यह नहीं जानता.... अदालत और क्या जानना चाहती है..... पर मेरे तरफ से.... सारी जिरह को खतम.... समझा जाए....

जज से लेकर वहाँ उपस्थित सब लोग भौंचके हो गए l अब जजों के सामने यह विकट स्थिति थी l

जज - विश्व प्रताप.... अपने इस समय अदालत को.... धर्म संकट में डाल दिया है.... इसलिए यह अदालत एक बार फिर.... आज के लिए अगली सुनवाई तक स्थगित किया जाता है....... नाउ द कोर्ट इज़ एडजॉर्न......
भगवान भी अच्छे लोगो की ही परीक्षा लेता है। मगर इस बात से अब विश्व और मजबूत हो जाएगा। बेहतरीन अपडेट।
 

Kala Nag

Mr. X
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Jabardast Updateee

Par Vishwa ne wapas se vakeel appoint karne se mana kyo kardiyaa. Kyaa woh darr gaya hai ke phir se uss wakeel ki jaan jaa sakti hai yaa woh wakeel Bhairav Singh se mila hua hogaa.
हाँ यह कहा जा सकता है विश्व डर गया पर और एक वजह भी है जो अगले अपडेट में विश्व खुलासा करेगा
 

Kala Nag

Mr. X
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Jayant Saahab ki aaksmik mrityu, joki ek cardiac arrest ke kaaran huyi, shayad yahi wo haadsa tha jiske kaaran aaj Vishwa jail mein hai... Kahaan to Jayant Raut ne har ek mohra jo Bhairav ne khada kiya usse hara diya tha aur laghbhag Vishwa ko begunaah saabit kar diya tha aur kahaan unhe apni saanson ka saath chhodna pada... Pehle bhi do baar unhe dil ka daura padd chuka hai, kaaran bhi saamne aaya un chithhiyon mein jo unhone Vishwa aur Vaidaihi ke liye chhodi thi...

Jayant ki zindagi bhi aasan nahi rahi... Jin bhaiyon ke liye usne apna sansaar nahi basaya unhi bhaiyon ne uski duniya ujaad di... Sach kehte hain log paisa aur jaaydad Rishton ko kha jaate hain... Par Vishwa mein wo jeene ki nayi wajah dikhi thi Jayant ko aur issi kaaran unhone wo case apne haathon mein liya...

Yash Chetty, iske dimaag ke jauhar bhi dekhne ko mile hume... Agar ye naa hota to shayad Bhairav Singh kabhi apne mansoobon mein kaamyab na ho pata... Par wo media waali tarkeeb ho ya Gobar waali harkat ya for mandir ki seedhiyon waala kaand... Apni kutil buddhi ka loha manwaaya hai Yash ne...

Iss beech Shubhra aur Vikram ki pehli proper mulaakar huyi... Pehli isiliye kyonki iss se pehle bechara Vikram uska naam tak nahi jaanta tha... Khair, lagta hai Shubhra ko paheliyon mein baat karna kuchh zyada hi pasand hai... In dono ke beech hone waali ye gupchup masti sachmein update mein ek nayi taazgi bhar deti hai...

Khair, ab Vishwa ne naya vakeel lene se mana kar diya hai aur aakhir kaise wo Jayant ki jagah kisi aur ko de sakta hai... Aakhir ek bhaavnatamak connection jo ban gaya hai Jayant se un dono ka...


Kitni badi baat keh gaye Jayant Babu... Sachmein kuchh hi updates tak unka kirdaar aaya par he has became one of my favourite story characters...

Chalo ab iss dharmyudhh mein Vishwa ki aur se bahut se balidaan diye jaa chuke hain ab baari hai insaaf ki... Insaaf jo hoga Vishwa ke jail se nikalte hi... Aur Bhairav Singh ki barbaadi bhi...

Ek baar firse adbhut Update bhai... Thriller to gajab likhte hi ho aap par I'm surprised ke aap Romance bhi bahut badhiya likh rahe ho... Agar Vikram aur Shubhra joki iss kahani mein sahayak kirdaar hain unki prem kahani itni shaaleenta se likhi hai aapne, to Vishwa joki kahani ka naayak hai uski kaise likhenge!!

Outstanding Updates Bhai & Waiting For Next...
धन्यबाद भाई बहुत बहुत धन्यबाद
आपका विश्लेषण बहुत ही लाज़वाब है
 

Kala Nag

Mr. X
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भगवान भी अच्छे लोगो की ही परीक्षा लेता है। मगर इस बात से अब विश्व और मजबूत हो जाएगा। बेहतरीन अपडेट।
षडयंत्र जितनी गहरी है प्रतिशोध भी उतना ही भयंकर होगा
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,115
22,820
159
बढ़िया भाई बहुत बढ़िया 👌👌👏
मेरे प्रश्नों के उत्तर मिल रहे हैं 😊
 

Dhaval4

Member
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Xforum के नियमित पाठकों को मेरा सादर प्रणाम हार्दिक अभिनंदन व शुभकामनाएं l
प्रतीक्षा करना वाकई बहुत पीड़ा दायक होता है l
मित्रों मैं इस फोरम में एक मूक पाठक था कुछ कहानियां मुझे इतना प्रभावित किए के उन कहानियों के रचनाकारों को अभिवादन करने हेतु मैंने इस फोरम में सदस्यता ली l
परंतु अपडेट की प्रतीक्षा ने मुझे बाध्य किया के कुछ और लेखकों के लेखन को पढ़ा और यह देखकर मैं अचंभित हो गया के बहुत से लेखक के लेखन, पात्र व घटना संचालन न केवल अकल्पनीय है बल्कि अद्भुत भी है l पर निरंतर अंतराल में उनसे अपडेट न आना प्रतीक्षा को पीड़ा दायक बना देता है l अपनी उस प्रतीक्षा का सम्मान करते हुए सोचा क्यूँ ना मैं अपनी कल्पना को लेखन के माध्यम से अंको के जरिए Xforum के पेज उकेर कर आपके समक्ष प्रस्तुत करूँ l
इसलिए मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं "विश्वरूप".....


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और मैं अपना सौ फीसद देकर निरंतर अंतराल में मतलब तीन या चार दिन के अंतराल में अपडेट प्रस्तुत करता रहूँगा l
Koi 5,6 achchi story bata sakte ho jo complete ho chuki ho padne ke liye?
 
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