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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

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Luckyloda

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Bhut shandaar
👉एक सौ छियालीसवां अपडेट
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राजगड़
शाम होने को है
सूरज की रौशनी और ताप दोनों मद्धिम पड़ रहे हैं l रोज की रुटीन के अनुसार दोपहर का खाना खाने के बाद भैरव सिंह क्षेत्रपाल महल में भीतर नागेंद्र सिंह के कमरे में, उसके बेड के करीब बैठा हुआ था l कमरे में आज वह अकेला था l सुषमा या कोई नर्स नहीं थीं l नागेंद्र सिंह टेढ़े मुहँ से भैरव सिंह की ओर ताक रहा था l

भैरव सिंह - आपकी हालत मुझसे देखी नहीं जा रही है बड़े राजा... मज़बूरी है... आपको जिंदा रहना है... और मुझे जिंदा रहना है... हमें समझ में आ गया है... उस दिन आपने क्यूँ कहा था... राजकुमारी जी पर नजर रखने के लिए... हमने जिसे भेजा था... वह कमबख्त... नाकारा निकला... छोटे राजकुमार जी की बात आकर कही पर... राजकुमारी के बारे में... टोह तक ना ले पाया... (नागेंद्र सिंह की आँखे चौड़ी हो जाती हैं) हाँ... बड़े राजा... आप सही थे... राजकुमारी घर से निकली... बाहर.... (अपनी आँखे बंद कर जबड़े भिंच कर कुछ देर के लिए चुप हो जाता है) हमें संदेह है... शायद यकीन भी है... पर नाम नहीं बता सकते... क्यूँकी... हम साबित नहीं कर सकते... अगर झूठे साबित हो गए... तो अपने बच्चों के आगे इज़्ज़त गवा बैठेंगे... राजकुमारी को सजा देने का मन कर रहा है... पर राजनीतिक मज़बूरी के चलते... हम उस सच से फिलहाल किनारा किए हुए हैं... (अपनी जगह से उठता है,नागेंद्र की ओर पीठ कर खड़ा होता है) क्यूंकि... अगर यह राज खुला... तो जिन लोगों के भगवान बने फिर रहे हैं... उनके गप्पी में उपहास के किरदार बन जाएंगे... इसलिए अब राजकुमारी घर में रहकर पढ़ाई करेंगी... जैसे बचपन में किया करतीं थीं... सिर्फ इम्तिहान देने के लिए बाहर जाएंगी... (नागेंद्र के हलक से हुम्म्म्म... ह्म्म्म्म की आवाज आती है, भैरव सिंह मुड़ कर देखता है, नागेंद्र इशारों से कुछ कहने की कोशिश कर रहा है) हाँ... समझ रहे हैं... अगर हम पहले की तरह... अपनी राज पाठ सिर्फ राजगड़ और इसके आसपास सीमित रखते... तो बात इतनी मुश्किल नहीं होती... पर जब दायरा जितना फैलता गया... तो बीच में खाली पन उतना ही बनता गया... अब अपने रुतबे और गुरूर के दम पर... उस खाली पन को ढकने की... छुपाने की कोशिश किए जा रहे हैं... जाहिर है... दायरा बढ़ा... तो महल की खिड़की को भी ऊँचा करना पड़ रहा है... क्यूँकी दुनिया की आदत है... हर ऊंचे घरों की खिड़की से अंदर झाँकना... पर बड़े राजा जी... निश्चिंत रहिए... हम सब ठीक कर देंगे... जिसकी भी जुर्रत सामने खुल रहा है... उसे हम अंजाम तक पहुँचा रहे हैं... आज रोणा का होली जलेगी.. वह भी गाँव के लोगों के हाथों... क्यूँकी उसने अपनी औकात भूल कर... क्षेत्रपाल महल की खिड़की खोलने की कोशिश की... सजा तो मिलेगी... यह सजा... हमें अंदर से... आश्वासन दे रहा है... के एक दिन हम उस हरामजादे विश्व प्रताप को... इससे भी भयंकर सजा देंगे... इसीलिए तो... हम मगरमच्छ और लकड़बग्घे की भूख को... मिटने नहीं दे रहे हैं... आप निश्चित रहें... हम आपको आखेट गृह में... वह दृश्य ज़रूर दिखाएंगे...

तभी भैरव सिंह को बाहर से आहत सुनाई देती है l वह दरवाजे की ओर मुड़ता है l दरवाजे पर दस्तक सुनाई देती है l

भैरव सिंह - कौन है...
भीमा - हुकुम... मैं...
भैरव सिंह - क्या हुआ...
भीमा - वह सारे गाँव वाले आपसे पूछने... महल के परिसर में आए हैं...
भैरव सिंह - पूछने... हमसे...
भीमा - जी हुकुम...

भैरव सिंह कमरे से निकालता है और दिवाने आम कमरे में पहुँचता है, जहाँ पर बल्लभ खड़ा हुआ था l कमरे के दरवाजे पर उदय खड़ा हुआ था l

भैरव सिंह - यह गाँव वाले... बेवजह यहाँ क्यूँ आए हैं प्रधान...
बल्लभ - मैं नहीं जानता हूँ... राजा साहब... मैं तो यहाँ आपकी इंतजार में हूँ...
भैरव सिंह - भीमा क्या वज़ह है... तुम्हें कुछ पता है...
उदय - गुस्ताखी माफ़ राजा साहब...
भैरव सिंह - क्या बात है...
उदय - सत्तू या भूरा... जानते होंगे... क्यूँकी यही दोनों... होलिका दहन की मचान सजाने गए थे...
भैरव सिंह - हूँ... कहाँ है वह दोनों...
उदय - जी बाहर हैं... बुला लाऊँ...
भैरव सिंह - हाँ... बुला लाओ...

उदय तुरंत पलट कर बाहर जाता है और थोड़ी देर के बाद अपने साथ सत्तू और भूरा को साथ लेकर आता है l वे दोनों अपने हाथ जोड़ कर भैरव सिंह के सामने खड़े हो जाते हैं l

भैरव सिंह - यह बाहर कैसा शोर है...
सत्तू - र्र्राजा सा.. सहाब... (जुबान लड़खड़ा जाता है)
भैरव सिंह - क्या बात है... क्या हो गया है...
भूरा - राजा साहब... जैसा आपने कहा... हमने बिलकुल वैसा ही किया... हमने एक स्टूल पर... दरोगा को... आलथी पालथी की तरह बिठा कर... मुखौटा लगा कर... साड़ी पहना कर... होलिका की तरह सजा कर... बांस का दस फुट ऊँचा भाड़ा बना कर बिठा दिया...
सत्तू - यह देख कर लोगों ने... हमसे वज़ह पूछी... तो हमने कहा कि... बच्चों का उत्साह देख कर... राजा साहब ने... गाँव वालों को... होलिका दहन के साथ साथ.. फगु खेलने के लिए भी कहा है... इसलिए गाँव वालों के सहूलियत के लिए... हमने होलिका का पुतला बना कर गाँव के बाहर भाड़े पर सजा दिया है...
भूरा - अब होलिका दहन के लिए... गाँव वाले.. अपने अपने हिस्से के लकड़ी... गोबर के कंडे... उपले आदि लाकर जमा करें... और होलिका दहन करें...

बस इतना कह कर चुप हो जाते हैं दोनों l उनको चुप देख कर भैरव सिंह पूछता है l

- आधी बात बता कर... आधा गटक क्यों गए...
सत्तू - हमारे कहे पर... गाँव वालों को विश्वास नहीं हुआ...
भूरा - इसलिए... इसलिए... (फिर से दोनों चुप हो जाते हैं...
उदय - ओ.. इसका मतलब यह हुआ... गाँव वाले... इनकी कहीं बातों पर... यकीन करने आए हैं...

भैरव सिंह पैनी दृष्टि से उदय की ओर देखने लगता है l उदय अपना सिर झुका लेता है l फिर भैरव सिंह बल्लभ की ओर देखता है l

बल्लभ - यह स्वाभाविक है राजा साहब... सात दशकों से... सिर्फ यही गाँव नहीं... आसपास के तकरीबन तीस गाँव में... त्योहार या मातम नहीं मनाया गया है... कई पीढ़ियां गुजर गई... आज जब कोई आपके नाम पर कहे... त्योहार मनाने के लिए... तब... इस बात की पुष्टि करने... जाहिर है... महल ही आयेंगे...
भैरव सिंह - (जबड़े भिंच जाती है, शब्दों को चबाते हुए कहता है) इनकी इतनी हिम्मत... राजा भैरव सिंह से पुष्टि करने आए हैं...(गुर्राते हुए) भीमा बंदूक ला.. (भीमा पलट कर जाने को होता है कि बल्लभ उसे रोक देता है)
बल्लभ - एक मिनट भीमा... (भैरव सिंह से) गुस्ताख़ी माफ राजा साहब... गाँव वालों में कभी इतनी हिम्मत हो ही नहीं सकती के... आपसे बात की पुष्टि करें... जैसा कि मैंने कहा... सात दशकों से... जो नहीं हुआ... आज अचानक मनाएंगे... तो उन्हें... यह सत्तू या भूरा की साजिश ही लगेगी... बेहतर होगा... उनके मन में... कोई संशय पैदा होने ना दिया जाए... दरोगा रोणा को... आखेट गृह ले चलते हैं... कोई भी जान नहीं पाएगा...
उदय - गुस्ताखी माफ राजा साहब... (भैरव सिंह उदय की ओर देखता है) राजा साहब... एक बार तीर कमान से निकल जाए... तो उसे उसका लक्ष भेदने की प्रतीक्षा करनी चाहिए...
भैरव सिंह - ऐसी... तगड़ी और भारी भरकम बातेँ... वकील के मुहँ से अच्छे लगते हैं... तुम अपनी बात साफ करो...
उदय - आपका गुस्सा जायज है राजा साहब... पर आपने ही खबर भिजवाई... लोगों को होली मनाने के लिए... जैसा कि वकील ने कहा.... कि सत्तर सालों में जो नहीं हुआ... उसे करने के लिए.. लोग डरेंगे जरूर... पर आपसे गद्दारी करने वाले की सजा आपने मुकर्रर की है... सजायाफ्ता को मिलनी ही चाहिए... यह बात आपके लोगों को भी तो पता चलनी चाहिए... गाँव वाले... आपसे पुष्टि चाहते हैं... इससे यह होगा... उनके हाथों एक क्राइम होने जा रहा है... धीरे धीरे... उनके संज्ञान में आएगा... तब यह लोग फिर कभी हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे... आगे त्योहार मनाने की...
भैरव सिंह - तुम्हें क्या बनाना चाहता था... रोणा...
उदय - जी हेल्पर कांस्टेबल...
भैरव सिंह - बैल बुद्धि था वह... तुम अगर हमारे वफादार रहे... तो हम उन्हें दरोगा बना देंगे...
उदय - (खुशी के आँसू आँखों में लिए, भैरव सिंह के आगे घुटनों पर आ जाता है) आपकी बड़ी कृपा होगी राजा साहब...

यह सब बल्लभ देख रहा था l वह गुस्से में अपना चेहरा फ़ेर लेता है l उसकी यह प्रतिक्रिया भैरव सिंह देख लेता है l

भैरव सिंह - प्रधान...
बल्लभ - जी.. जी राजा साहब...
भैरव सिंह - हम ना सिर्फ... ग़द्दार दरोगा को सजा देना चाहते थे... बल्कि... इन गांवों वालों को भी सजा देना चाहते थे... तुम अपने दोस्त के लिए बाज नहीं आए... खैर... तुम्हारी इस बेवकूफ़ी को हम नजर अंदाज करते हैं... गाँव वालों को हमसे... त्योहार मनाने की छूट चाहिए... हम देंगे...
उदय - राजा साहब... एक और बात... इजाजत हो तो कहूँ...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...
उदय - राजा साहब... आपके हामी के बाद... हो सकता है... लोग आपको... होलिका दहन पर... उपस्थित रहने के लिए कहें... तो आप उन्हें मना कर दीजिए... (भैरव सिंह अपना भौहों को सिकुड़ कर देखता है) क्राइम गाँव वाले करेंगे... वे लोग आगे चलकर क्रिमिनल होंगे... पर अगर आप वहाँ उपस्थित हुए... तो आप गवाह बन जाएंगे... और उनके लिए सबूत भी... आप बस आज रात... राजगड़ से दूर हो जाइए.... आगे... वकील बाबु हैं... वह गाँव वालों के साथ रह कर... उनसे होने वाली गुनाह की सबूत बनाएंगे...
भैरव सिंह - बहुत खूब... आज फिर से तुमने मुझे इंप्रेस किया है... भीमा..
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - चलो.. हमारी प्रजा हमसे मिलने आयी है...


इतना सुनते ही भीमा सत्तू और भूरा के साथ बाहर की ओर चलने लगता है l सभी पहलवान रास्ते के दोनों तरफ खड़े हो जाते हैं l भैरव सिंह उनके बीच में से जाते हुए महल के बरामदे में सटी हुई मचान पर पहुँचता है l जैसे ही मचान पर गाँव वाले भैरव सिंह को देखते हैं सब के सब अपना सिर झुका कर चुप हो जाते हैं l भैरव सिंह अपने कमर पर हाथ रखकर गाँव वालों पर एक नजर डालता है l सभी के झुके हुए सिर देख कर उसके होठों पर एक संतुष्टि की मुस्कान उभर कर गायब हो जाती है l बल्लभ भी पीछे पीछे आया हुआ था l वह कुछ कहने को होता है कि भैरव सिंह उसे रोक कर भीमा की ओर देख कर इशारा कर लोगों से पूछने के लिए कहता है l तो भीमा गाँव वालों से कहता है

भीमा - गाँव वालों... तुम लोग अब राजा साहब के दरबार में हो... राजा साहब अब यह जानना चाहते हैं... उनके दरबार में क्यूँ आए हो...

लोगों में चुप्पी छाई हुई थी l किसीको भी हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि राजा भैरव सिंह से कुछ भी पूछे l क्यूंकि ऐसा पहली बार हुआ था कि सारे गाँव वाले मिलकर राजा के महल में राजा के सामने खड़े हो कर कुछ पूछे l भीमा भैरव सिंह की ओर देखता है, भैरव सिंह अपना सिर हिला कर फिर से पूछने के लिए इशारा करता है l

भीमा - हरिया... क्या हुआ... क्यों आए हो... रविन्द्र... क्या काम पड़ गया है तुम लोगों को... राजा साहब से...
हरिया - हम... व.. व... वह...

अचानक से चुप हो जाता है l सभी लोग महल के बाहर खड़े हैं पर फिर भी सन्नाटा इस कदर पसरा हुआ था मानों दूर दूर तक कोई नहीं हो l मजबूर होकर भैरव सिंह पूछता है l

भैरव सिंह - क्या हुआ है... क्या जरुरत आ गई... तुम लोग यहाँ आ गए... (जब कोई जवाब नहीं देता तब सत्तू लोगों के पास चला जाता है)
सत्तू - राजा साहब माफी... गाँव वालों के तरफ से... मैं कुछ कहूँ...
भैरव सिंह - तुम...
सत्तू - क्यूँ गाँव वालों... मैं पूछुं...
सारे गाँव वाले - हाँ हाँ...
सत्तू - राजा साहब... मैं पूछूं...
भैरव सिंह - ठीक है पूछो...
सत्तू - राजा साहब... कई पीढ़ियां चली गई... किसीने भी ना त्योहार मनाया... ना किसीको मनाते देखा... ऐसे में... आज जब इन्हें खबर लगी के होली मनाने के लिए... इस बार क्षेत्रपाल महल से इजाजत मिली है... तो इन्हें विश्वास नहीं हुआ... सच और झूठ जानने यह लोग आए हैं... (गाँव वालों से) क्यूँ गाँव वालों... सही कहा ना...

सभी गाँव वाले हाँ कहते हैं l इसके बाद सत्तू चुप हो जाता है l भैरव सिंह भीमा की ओर इशारे में चुप रहने के लिए कहता है और भीमा के बगल में खड़े बल्लभ को इशारा कर लोगों से होली के बारे में कहने के लिए कहता है l

बल्लभ - गाँव वालों... तुम लोग जानते हो... राजा तुम लोगों के लिए कितना कुछ सोच रहे हैं.. कितना कुछ कर रहे हैं... आज सुबह जब मालुम हुआ... तुम्हारे बच्चों ने... कृष्न विमान नगर परिक्रमा कराए हैं... तो राजा साहब कहा... त्योहार अधूरा ना रह जाए... इसीलिये अपने लोगों के जरिए... तुम लोगों तक खबर पहुंचाई है... ताकि तुम लोग होली... परंपरा के अनुसार मनाओ... (बल्लभ रुक जाता है)
सत्तू - बोलो... राजा भैरव सिंह की...
सारे गाँव वाले - जय...
हरिया - राजा साहब... यह हमारा परम भाग्य है... के आपके शासन में हम... यह दिन देख रहे हैं... राजा साहब... हमारी एक छोटी सी प्रार्थना है... (भैरव सिंह समझ चुका था हरिया क्या प्रार्थना करने वाला है इसलिये उसे कहने के लिए इशारा करता है) राजा साहब... ऐसा पहली बार हो रहा है... वह भी आपके आशीर्वाद से... अगर इस मौके पर... आप हमारे साथ.. हमारे पास रहते... तो बड़ी कृपा होगी...
भीमा - ऐ हरिया... अपनी औकात में रह... थामने के लिए हाथ दिया तो कंधे पर चढ़ कर कान में मूतने की बात कर रहा है...
हरिया - (डर के मारे) ना ना.. महाराज ना... ऐसी गुस्ताखी... सपने में भी नहीं कर सकते हम... वह तो... (आगे कुछ कह नहीं पाता, अपना सिर झुका लेता है l भैरव सिंह बल्लभ को आगे की बात कहने के लिए इशारा करता है)
बल्लभ - देखो... तुम लोग आज... त्योहार मनाने जा रहे हो... यह तुम लोगों के लिए बहुत बड़ी बात है... राजा साहब... तुम लोगों की इच्छा का मान रखते... पर... आज तहसीलदार के साथ राजा साहब की... ज़रूरी मीटिंग है... इसलिए... राजा साहब आज राजगड़ में नहीं रहेंगे...
- पर आप लोग मन खराब ना करें... (उदय आकर पहुँच कर कहने लगता है) राजा साहब ने... वकील बाबु को कह दिया है... आप लोगों के बीच खुद वक़ील बाबु रहेंगे... आपके साथ त्योहार मनाएंगे...

लोग यह सुन कर खुशी के मारे ताली बजाने लगते हैं l बल्लभ का चेहरा उतर जाता है l बड़े दुखी मन से भैरव सिंह की ओर देखता है l भैरव सिंह इशारे से उसे अपनी सहमती जताता है l बल्लभ अपनी दांत पिसते हुए उदय की ओर देखने लगता है l उदय भी हँसते हुए लोगों के साथ ताली बजाते हुए बल्लभ की ओर देखने लगता है l बल्लभ को उदय के चेहरे पर छाई हुई भाव समझ में नहीं आता l दुसरे तरफ गाँव के सारे लोग भैरव सिंह के नाम की जयकारा लगाते हुए उल्टे पाँव महल की परिसर से निकलने लगते हैं l लोगों को उल्टे पाँव पीछे लौटते हुए देख भैरव सिंह के चेहरे पर गुरुर से भरी मुस्कान छा जाती है l

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कटक चेट्टी मैशन
एक बड़ा सा कमरा जहां चार लोग हैं l एक ओर ओंकार बैठा हुआ है और दुसरी तरफ केके और रॉय बैठे हुए हैं l उनके बीच एक बड़ी सी टी पोए है जिस पर तीन खाली ग्लास तीन चार प्लेट में चखना रखा हुआ है l चौथा बंदा उन खाली ग्लास में शराब डाल कर पैग बना रहा है l पैग बन जाने के बाद वह पहले ओंकार को देता है फिर केके को देता है और तीसरा उठा कर बगल में बैठे रॉय को देता है और तीनों से अलग सोफ़े पर बैठ जाता है l वे तीनों चियर्स करते हैं और सीप लेने लगते हैं l

केके - चेट्टी साहब... आपको नहीं लगता... हम थोड़े लेट हो रहे हैं...
चेट्टी - नहीं केके... कोई देरी नहीं हो रही है... इलेक्शन को और भी टाइम है... उससे पहले... क्षेत्रपाल वर्तमान के भूगोल से इतिहास हो जाएगा... तुम बस धैर्य रखो...
केके - (चेट्टी से ) चेट्टी बाबु... आपका वह बंदा कहां तक पहुँचा...

चेट्टी - जहां उसे पहुँचना चाहिए था...
रॉय - केके साहब... आप उतावले बहुत हो रहे हो...
चेट्टी - कोई बात नहीं... इनकी तसल्ली के लिए कह देता हूँ... जब से वीर उस लड़की से शादी कर अलग रहने लगा है... तब से मेयर क्षेत्रपाल पुरी तरह से टुट गया है... दिन रात शराब के नशे में डूबा रहता है... उसके घाव में नमक मिर्च उस दिन रगड़ गया... जिस दिन... एडवोकेट सेनापति की किडनैपिंग फैल हुआ...
केके - हाँ... पर हमें क्या फायदा हुआ... कोई तीसरा आकर उन्हें बचा ले गया...
चेट्टी - देखो केके... बड़े ऐहतियात से.... मैंने उस बंदे को... पिनाक के पास रखवाया है... पिनाक ना तो उसके बारे में जानता है... ना हमारे बारे में... हमारा आदमी... धीरे धीरे... पिनाक की दिमाग को अपने कब्जे में कर चुका है... तुम बस मजे देखते जाओ...
केके - (एक ही साँस में ग्लास खत्म कर देता है) एक बार... शॉक के चलते... दिल का दौरा पड़ चुका है... दुसरा दौरा पड़ने से पहले... मैं क्षेत्रपाल परिवार की बर्बादी देखना चाहता हूँ...
रॉय - आप खामख्वाह छटपटा रहे हैं... अब तो छटपटाने की बारी क्षेत्रपालों की है...
केके - दुनिया चाहे कुछ भी कहे रॉय... मगर मैं मानता हूँ... मेरे बेटे का कातिल वही... वीर सिंह है... जो जिंदगी मेरे बेटे ने जी नहीं... उसे वीर सिंह को जीता देख कर... मेरे सीने में सांप लौट रहे हैं...
चेट्टी - शांत केके शांत... मेरा बंदा पिनाक के पास रह कर वही प्लानिंग कर रहा है... तुम मुझे देखो... मैं कितनी शिद्दत से... क्षेत्रपाल के बर्बादी की इंतजार में दिन गिने जा रहा हूँ... और मुझे मालुम है... क्षेत्रपाल बर्बाद होने वाले हैं...
केके - आपने आपके बेटे के हत्यारे को छोड़ दिया... मुझसे वह नहीं हो सकता...
चेट्टी - (चेहरा अचानक कठोर हो जाता है) तुमने यह कैसे सोच लिया... सरकारी रिपोर्ट चाहे कुछ भी कहे... मुझे बस इतना मालुम है... मेरे बेटे का कातिल विश्व प्रताप है...

इतना कह कर चेट्टी चुप हो जाता है l अपना पैग खाली करने के बाद चौथे बंदे से पैग बनाने के लिए इशारा करता है l चेट्टी के चेहरे पर आए बदलाव को देख कर केके और रॉय थोड़ा दब जाते हैं l पैग बन जाने के बाद चेट्टी पैग उठा कर कहता है l

चेट्टी - फ़िलहाल विश्व और मेरा दुश्मन एक ही है... विश्व अपने काम में तेजी से आगे बढ़ रहा है... तुम जानते हो... और मानते भी होगे... क्षेत्रपाल का खात्मा विश्व ही कर सकता है... उसके पीछे उनकी निजी वज़ह है... पर विश्व जो नहीं जानता... वह यह कि... उसका काम खत्म होने के बाद... मैं उसे मरवा दूँगा...
केके - किससे... रंगा से... विश्व का नाम सुनते ही... जिसका पिछवाड़े में से झाग निकलने लगती है...
चेट्टी - हा हा... हा हा हा हा... अरे यार चेट्टी... शेर को मारने के लिए... शिकारी चाहिए... कुत्तों की बस की बात होती... तो विश्व कब का अपने भगवान का प्यारा हो चुका होता... यह वह शतरंज की बिसात है... जहां के तीसरे खिलाड़ी हम हैं...
रॉय - और हमारी चालों से... दोनों खिलाड़ी मारे जाएंगे... चियर्स...

केके खुश होता है और इस बार अपना पैग उठा कर खत्म कर देता है l चखने की प्लेट से चिकन टंगड़ी उठा कर खाते हुए रॉय से पूछता है l

केके - अच्छा रॉय... अब वीर की क्या खबर है...
रॉय - केके साहब... वीर बस अपनी जिंदगी एंजॉय कर रहा है... हम फ़िलहाल गैलरी में बैठ कर देख रहे हैं...
केके - क्या प्लान बनाया था... विश्व और क्षेत्रपाल के बीच की दुश्मनी में... पेट्रोल डालने के लिए... पर..
चेट्टी - इसलिए तो कह रहा हूँ... थोड़ा धीरज धरो... अब जोडार के सिक्योरिटी... सेनापति दंपति की रखवाली चुस्ती के साथ कर रही है... और वीर की रखवाली... विक्रम की ESS के... स्पेशल कमांडोज कर रहे हैं... कुछ भी किया... तो यह हरकत हमें पर्दे के पीछे से खिंच कर बाहर ले आएगी... मौका आयेंगी... हमें बस भुनाना है...
केके - ठीक कहा आपने...

अपना ग्लास रख कर, चौथे बंदे से पैग बनाने के लिए कहता है, जैसे ही वह बंदा पैग बनाने के लिए बोतल उठाता है तो रॉय उसे रोक लेता है l

रॉय - अब बस भी कीजिए केके सर... कितना और जिगर जलायेंगे... एक बार दौरा पड़ चुका है... कम से कम... क्षेत्रपाल की बर्बादी तक तो जिगर संभालीए...
चेट्टी - हाँ केके... रॉय ठीक कह रहा है...
केके - जिसका जिगर का टुकड़ा ही नहीं हो... उसका जिगर क्या जलायेगा... यह दो कौड़ी का शराब...
केके - प्लीज...
चेट्टी - रॉय... एक काम करो... केके को... ले जाओ और उसके घर पहुँचा दो...
रॉय - ठीक है...

रॉय केके को अपने कंधे से सहारा देकर उसे बाहर ले जाता है l वह चौथा बंदा भी रॉय का साथ देता है l दोनों केके को गाड़ी में बिठा कर विदा करते हैं l केके की गाड़ी जाने के बाद रॉय भी अपना गाड़ी लेकर केके के गाड़ी के पीछे पीछे उस मैंशन से बाहर निकल जाता है l सबके चले जाने के बाद वह चौथा बंदा कमरे में आता है जहां चेट्टी टी पोए के ऊपर दोनों पैर फैला कर शराब की चुस्की ले रहा था, उस बंदे को कमरे में देख कर

चेट्टी - चले गए सब...
बंदा - हाँ...
चेट्टी - ह्म्म्म्म आओ बैठो... (शराब की ग्लास को दिखाते हुए) इसे मिलकर खत्म करते हैं...
बंदा - नहीं... मुझे नहीं करना...
चेट्टी - क्यूँ... नाराज हो... अरे नाराजगी छोड़... बहुत जल्द अपना राज वापस लौटने वाले हैं...
बंदा - कब तक... मैं तो जैसे फुटबॉल हो गया हूँ... इधर से लतीया जाता हूँ... और उधर से...
चेट्टी - ऐ... क्या कहना चाहता है तु... मैं तुझे लतीया रहा हूँ...
बंदा - वह... मुहँ से बरबस निकल गया... मेरे कहने का वह मतलब नहीं था... मेरा मतलब है... मुझे कब दुनिया के सामने आप लाओगे... कब मैं अपनी असली पहचान के साथ... सबके सामने आऊँगा...
चेट्टी - तु भी ना... केके की तरह बड़ा बेसब्रा है... मैंने अपना सब कुछ तेरे नाम कर तो दिया है... फिर... ऐस तो कर रहा है ना... ठंड रख ठंड... तु बस अपने काम में लगा रह... इस बार चोट कुछ ऐसा हो... के क्षेत्रपाल पूरा का पूरा... तितर-बितर हो जाएगा... उसके बाद मैं तुझे डंके की चोट पर... दुनिया के सामने लाऊँगा...
बंदा - मैं तो कब से लगा हुआ हूँ... अब तक... सारे वार खाली गए हैं...
चेट्टी - कहाँ खाली गए हैं... देखा नहीं... क्षेत्रपाल टुट रहे हैं... बिखर रहे हैं... हमें मालूम है... कहाँ कब चोट मारना है... उन्हें मालुम नहीं है... चोट कौन मार रहा है... (चेहरा बहुत सख्त हो जाता है) क्षेत्रपाल... मुझे वैशाखी बना कर... भुवनेश्वर आए... राजनीति में पाँव जमाए... जब मतलब निकल गया... हरामियो ने... मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया... मेरा बेटा यश को बचा सकते थे... साले हरामी... उसे मरने के लिए छोड़ दिया...

कहते कहते चेट्टी चुप हो जाता है, उसके गाल फडफडाने लगते हैं l दांत पीसने लगता है l उसकी यह हालत देख कर वह बंदा उसके पास बैठता है और उसके हाथ पकड़ कर कहता है l

बंदा - मैं हूँ ना... आपका बदला लेने के लिए...
चेट्टी - (उसके कंधे पर हाथ रखकर) तु मुझे मिला... इसलिए तो क्षेत्रपाल से बदला लेने की सोचा... वर्ना मैं तो खुद को लावारिस समझ कर... मरने की सोच रहा था... (चेट्टी अपने पैर नीचे कर सोफ़े से उठ खड़ा होता है) आज मैं खुश हूँ... यश की मौत लावारिस नहीं है... ना ही वह विरासत जो मैंने कमाई है... वह लावारिस है... तु उसका वारिस है... लावारिस तो अब क्षेत्रपाल होगा... हाँ लावारिस तो क्षेत्रपाल होगा...

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अनु कमरे में चहल कदम कर रही है, दीवार पर लगी घड़ी की ओर देख रही थी l थोड़ी देर बाद कॉलिंग बेल की आवाज़ आती है l कॉलिंग बेल की आवाज़ सुनते ही अनु के चेहरे पर पर रौनक आ जाती है l भाग कर जाती है दरवाजा खोलती है l सामने वीर काले, नीले, पीले, लाल आदि रंगों में पुता हुआ खड़ा था l उसे इस हालत में देख कर पहले अनु चौंकती है फिर जोर जोर से हँसने लगती है l

अनु - (हँसते हुए) यह... क्या हाल बना रखा है आपने... होली तो कल है... आज खेल कर आ गए क्या...
वीर - हाँ हाँ हँस लो... कल होली की छुट्टी है... इसलिए सारे स्टाफ ने... मुझे आज रंगों में पुत दिया...
अनु - ठीक है... जाइए आप नहा धो लीजिए...
वीर - (अंदर आ कर) अरे सिर्फ रंग ही तो है... वह भी होली वाली... थोड़ा रहने तो दो... (सोफ़े पर बैठ जाता है)
अनु - अरे... सोफ़े पर रंग लग जाएगा...
वीर - तो क्या हुआ... नए कवर ला देंगे...

अपना सिर हाँ में हिला कर अनु मुस्करा कर वीर के पास खड़ी होती है l वीर अपना हाथ अनु की ओर बढ़ाता है l अनु अपना हाथ देती है l वीर उसे अपने ऊपर खिंच लेता है l अनु घुमती हुई वीर के गोद में बैठ जाती है l वीर अनु के कंधे पर अपना चेहरा रख कर कहता है

वीर - आह... क्या जिंदगी है अनु... सुबह मुझे टिफिन कैरेज के साथ जब विदा करती है... तेरे आँखों में... बिछड़ने का दर्द को मुझे महसूस होता है... और जब वापस आता हूँ... तेरे चेहरे पर ग़ज़ब की खुशी देखता हूँ... कितना सुकून मिलता है... क्या कहूँ... (फिर अनु के कंधे पर अपने सिर को अनु के साथ झूमते हुए हिलने लगता है) अनु...
अनु - हूँ...
वीर - कुछ बोल ना...
अनु - क्या कहूँ...
वीर - कुछ भी... मुझसे बातेँ कर... पुछा कर... दुनिया भर की... कचर कचर सुन सुन कर... खीज जाता हूँ... पर जब तेरी आवाज सुनता हूँ... आह.. ऐसा लगता है... कानों में शहद घुल रही है...
अनु - हूँ...
वीर - क्या हूँ...
अनु - मतलब हाँ... मतलब हूँ...
वीर - ना... आज मेरी अनु को कुछ हो गया है...
अनु - सच मुझे कुछ नहीं हुआ है...
वीर - झूठ...
अनु - सच्ची...
वीर - ऊँ हूँ... यह मेरी अनु का स्टाइल नहीं है...
अनु - अच्छा... फिर आपके अनु का स्टाइल क्या है...
वीर - मेरी हर बात पर मुझे झूठा कहना... यह मेरी अनु का स्टाइल है...
अनु - (हँस देती है) धत...
वीर - क्या धत... (अनु के कान के पास चूम कर) बोल ना...
अनु - क्या...
वीर - झूठे...
अनु - पहले मुझे छोड़िए...
वीर - (किसी बच्चे की तरह मासूमियत के साथ पूछता है) क्यूँ... तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा...
अनु - सोफा गंदा हो गया... साथ साथ... मेरे कपड़े भी गंदे हो गए हैं... (हाथ छुड़ा कर उठ खड़ी होती है) चलिए... जाइए... आप नहा धो कर पहले साफ हो जाइए...
वीर - तुम कहना क्या चाहती हो... मैं गंदा हूँ... अरे मेरी जान... इसे गंदा होना नहीं.. रंगना कहते हैं... और यह आज से नहीं... तब से... जब से तुझे देखा था...
अनु - (समझ नहीं पाती) म.. मतलब...
वीर - अरे मेरी प्यारी अनु... मैं तो तेरे प्यार में कब से रंगा हुआ हूँ... आज तो बस रंग उभरा है... इसलिए दिख रहा है...
अनु - अच्छा... (अपने बदन पर लगे रंग दिखाते हुए) तो यह... अब क्यूँ उभरा है...
वीर - अब तक मैं तेरे रंग में रंगा हुआ था... आज मैंने तुझे रंग दिया है...
अनु - (मुहँ पर पाउट बना कर) झूठे...
वीर - ओ.. हो.. जान... अब बहुत अच्छा लगा... चलो... मिलकर साफ होते हैं...
अनु - क्या... छी...
वीर - इसमे छी वाली बात कहाँ से आ गई...
अनु - (सिर नीचे की ओर कर आँखे मूँद कर बाथरूम की ओर हाथ दिखा कर ) जाइए... पहले आप नहा धो लीजिए...

वीर किसी मासूम बच्चे की तरह मुहँ बना कर भारी पाँव से बाथरूम की ओर जाने लगता है l धीरे धीरे अनु अपना सिर उठा कर आँखे धीरे धीरे खोलती है वीर को भारी कदमों के साथ जाते देख अपनी हँसी दबा देती है l वीर बाथरूम के पास पहुँच कर पीछे मुड़ता है और आवाज देता है l

वीर - अनु...
अनु -.....
वीर - ए अनु... (मासूम सा मुहँ बना कर)
अनु - (अपनी हँसी दबा कर) क्या है...

वीर अपनी बाहें खोल देता है और मुस्कराते हुए अनु की ओर देखता है l अनु भी मुस्कुराते हुए भाग कर वीर के गले लग जाती है l वीर उसे बाहों में उठा लेता है के अनु के पैर फर्श से कुछ इंच उपर रह जाती हैं l


वीर - आख़िर मेरी बाहों में आ गई...
अनु - वादा जो लिया था आपने... जब भी बाहें खोलेंगे... मैं आपकी बाहों में समा जाऊँगी...
वीर - जानता हूँ... तु मुझसे बहुत प्यार जो करती है...

ऐसे ही बाहों में उठाए वीर अनु को बाथरूम में ले जाता है और शावर के नीचे खड़ा हो जाता है l अंदर पहुँचने के बाद

अनु - आपने... अपनी कर ली..
वीर - कहाँ... अब शुरु करना है...
अनु - अच्छा... और मुझे क्या करना होगा...
वीर - आज मैंने तुम्हें रंग दिया है... तो तुम गाना गा लेना...
अनु - क्या...
वीर - हाँ... तुम गाना..
रंगीला रे... तेरे रंग में... यूँ रंगा है... मेरा मन...
छलीआ रे... ना बुझे है... किसी जल से.. यह जलन...

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रुप आज खुद को संवार रही थी l माथे पर चमकता हुआ सफेद बिंदी लगा कर आईने में खुद को निहार रही थी l ड्रायर से लिपस्टिक निकाल कर अपनी होठों को रंगने लगती है l कभी मुहँ पर पाउट बना कर तो कभी मुस्करा कर बार बार खुद को देखने लगती है l फिर आईने के सामने से उठ कर खिड़की के पास आती है l रौशनी मद्धिम पड़ रही थी l वह अपनी वैनिटी पर्स से एक एक अठ्ठन्नी की कॉइन निकाल कर खिड़की पर लगे ग्रिल की स्क्रू एक एक कर खोलने लगती है l सारे स्क्रु खुल जाने तक अंधेरा छा चुकी थी l अब अपने बेड पर आकर चेहरे को बेड के हेड रेस्ट पर रख कर विश्व की राह देखने लगती है l कभी बाहर तो कभी घड़ी देख की ओर देखने लगती है l जैसे जैसे वक़्त गुज़रता जा रहा था वैसे वैसे रुप खीज ने लगी थी l चिढ़ कर अपना मोबाइल निकाल कर विश्व को कॉल लगाती है, पर विश्व की फोन पर उसे कॉल बिजी की ट्यून सुनाई देती है l ऐसे कुछ देर बाद जब विश्व के फोन पर रुप की कॉल लगती नहीं तो चिढ़ कर फोन को बेड पर पटक देती है l खिड़की की तरफ़ देखते हुए अपना सिर हेड रेस्ट पर रख कर विश्व की राह तकने लगती है l

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सारे गाँव वाले उस मैदान में जमा हो गये हैं l अपने हाथों में अपने अपने हिस्से के लकड़ी, गोबर के उपले आदि लेकर l जिस भाड़े पर होलिका का पुतला बैठी हुई थी l उसी पुतले के नीचे जलन की लकड़ियां जमा कर उस के ऊपर उपलों को भी सजाने लगे l कुछ लोग अपने कंधे और गले में ढोल,चांगु थाली लटकाये हुए थे, और किन्ही किन्ही के हाथों में शंख भी था l यह सारे दृश्य को उदय, बल्लभ के हाई रीजोल्युशन मोबाइल के जरिए शूट कर रहा था और मोबाइल नेटवर्क के जरिए ट्रांसमिशन कर रहा था l यशपुर में अपने क्षेत्रपाल पंथ निवास में बल्लभ के ही लैपटॉप पर भैरव सिंह लाईव देख रहा था उसके बगल में बल्लभ एक अलग कुर्सी पर बैठा हुआ था l थोड़ी दुर पर भीमा खड़ा हुआ था l भैरव सिंह देखता है कि हाथ में एक बड़ा से थैला भर कर सत्तू कुछ दारु की बोतलें निकालता है और लोगों के बीच पहुँच कर उन सबमें बाँटना शुरु करता है l उसे यूँ लोगों में दारु बांटता देख कर भैरव सिंह लैपटॉप का वॉयस ऑफ कर सवालिया नजरों से भीमा की ओर देखता है l

भीमा - वह... हुकुम... उदय ने बोला था...
बल्लभ - पर क्यूँ...
भीमा - उदय ने कहा... की लोग अगर नशे में रहेंगे... तो आगे बात को संभाला जा सकता है... और गलती से दरोगा से कोई हरकत हो भी गई तो... नशे में धुत लोगों का ध्यान उस तरफ़ नहीं जाएगा...
भैरव सिंह - (एक शातिर मुस्कान खिल उठता है) ह्म्म्म्म... बहुत ही खतरनाक दिमाग पाया है... यह उदय...
बल्लभ - राजा साहब... बुरा ना माने तो एक बात कहूँ...
भैरव सिंह - हूँ... कहो...
बल्लभ - मुझे लग रहा है... जैसे... उदय हमारे जरिए... मेरा मतलब है... हमारी आड़ लेकर... अपना खुन्नस उतार रहा है...

भैरव सिंह चुप रहता है और बल्लभ की ओर अपना भौह चढ़ा कर देखता है l बल्लभ के जिस्म में एक सुर सूरी सी सिहरन दौड़ जाती है l

भैरव सिंह - हमें लगता है... तुम अपनी दोस्त के होने वाले अंजाम को देखने से पहले... बहक रहे हो... (बल्लभ अपना सिर झुका लेता है) बात को पुरी करो...
बल्लभ - र राज आ.. साहब... मुझे माफ करें... जिस तरह से... वह बढ़ चढ़ कर... दरोगा के खिलाफ यह सब किए जा रहा है... मेरे मन में.. शंका पैदा कर रहा है...
भैरव सिंह - क्यूँ... तुम इस उदय से पहले से परिचित नहीं हो...
बल्लभ - कभी कभी उसे... रोणा के क्वार्टर में देखा था... रोणा के क्वार्टर में... रोणा के सारे काम किया करता था... यहाँ तक कि... विश्व पर निगरानी का जिम्मा भी... रोणा ने... उदय पर सौंप रखा था... इतना मालुम था कि... यह कंपेंशेशन ग्राउंड में... ग्रेड फॉर कटेगरी में... ग्राम रखी कि नौकरी कर रहा था... रोणा ने इसे... कांस्टेबल बनाने का वादा किया था...
भैरव सिंह - तो अब तक... पूरी वफ़ादारी के साथ... इस उदय ने... रोणा का काम किया है... अब हमसे वफादारी कर रहा है...
बल्लभ - मैं इसी बात पर हैरान हूँ... रोणा से उसकी वफ़ादारी... अब अचानक से... (एक पॉज लेकर) अब रोणा की जान पर आ गई...

भैरव सिंह कुछ सोच में पड़ जाता है,

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रुप की आँखे बंद थीं l उसे हल्का सा ठंडक महसूस हो रही थी l वह सिकुड़ कर अपनी बाहों को अपने गले और कंधों के पास कस लेती है l तभी उसे महसूस होता है कि कोई फूंकते हुए उसके चेहरे पर लटों को हटा रहा है l रुप के चेहरे पर पर एक खुशी भरी मुस्कान छा जाती है l हल्का सा आँख खोलती है l उसके आँखों के विश्व का चेहरा दिखता है, बहुत ही करीब था विश्व का चेहरा l विश्व को देखते ही

रुप - मुझे मालुम था... यह तुम ही होगे... (कह कर रुप फिर से अपनी आँखे बंद कर लेती है) आह... अनाम... कितना प्यारा सपना है... कास के इस सपने से कभी बाहर ही ना निकलुं... हकीकत में तो तुम आए नहीं... पर सपने में आए हो... प्यार जता रहे हो... कितना अच्छा लग रहा है.. उम्म्म्म्...

अचानक रुप अपनी आँखे खोलती है l विश्व का चेहरा रुप के चेहरे के पास ही था l वह अब सीधे हो कर बैठती है l अपने चारों तरफ देख कर चौंकती है और बड़ी बड़ी आँखों से हैरानी भरे नजरों से देखने लगती है l रुप एक नाव पर थी l एक चौपाई के सिरहाने सिर टिका कर सोई हुई थी l नाव बीच नदी में था l यह देख कर रुप चिल्लाने को होती है कि विश्व उसके मुहँ पर हाथ रख देता है l रुप अपने मुहँ से विश्व की हाथ हटाने के लिए छटपटाती है l जब थक जाती है

विश्व - हाथ निकालूँ...

अपना सिर हिला कर हाँ कहती है, विश्व रुप की मुहँ से हाथ हटाता है, रुप विश्व की हाथ पकड़ कर अपने दांतों से काटती है l विश्व चिल्लाते चिल्लाते रह जाता है और अपने बाएं हाथ से अपना मुहँ दबा लेता है l

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कुछ शोर शराबा सुनाई देने लगता है तो अपना ध्यान लैपटॉप पर चल रहे दृश्य पर गाड़ देता है l देखता है सत्तू सबको शराब पीने के लिए उकसा रहा है l

सत्तू - यह लो... ऐस करो... आज का यह दारु मेरे तरफ से.. जी भर के पियो...
एक गाँव वाला - अरे सत्तू पहलवान... तुझे कौनसा ख़ज़ाना मिल गया है... जो आज तु ऐसे लूटा रहा है...
सत्तू - अरे ताऊ... आज पहली बार... होली जलाई जाएगी... कल होली खेली जाएगी... क्या यह कम बड़ी बात है... इसलिए पिलो... आज फोकट में दे रहा हूँ... कल से तुमको अपना जेब ढीला करना पड़ेगा...

सब खुशी के मारे हल्ला मचाते हुए दारु के बोतल उठा कर घुट गटकने लगते हैं l इसी तरह सत्तू सभी गाँव वालों में बोतल बांटने लगता है और लोग अपने हिस्से आई बोतल को खाली करने लगते हैं l

भैरव सिंह - यह सत्तू... कह रहा था... बच्चों ने आज... विमान परिक्रमा कारवाई... पर यहाँ पर बच्चे बिल्कुल दिख नहीं रहे हैं... (इस पर बल्लभ चुप रहता है, तो इसबार भैरव सिंह भीमा की ओर देखता है)
भीमा - हुकुम... औरतें भी तो नहीं दिख रहे हैं... हो सकता है... डर के मारे नहीं आए हों... मतलब.. उन्हें अभी भी यकीन नहीं हो रहा हो...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... (लैपटॉप का वॉयस ऑन कर) उदय...
उदय - जी हुकुम...
भैरव सिंह - गाँव से सिर्फ मर्द ही आए हैं क्या... औरतें और बच्चे...
उदय - (ट्रांसमीशन करते हुए) हुकुम... औरतें और बच्चे... कुछ दूरी पर खड़े हैं...


कह कर मोबाइल घुमाता है, भैरव सिंह देखता है कि एक जगह पर गाँव की औरतें और बच्चे सभी खड़े हो कर तमाशा देख रहे हैं l बच्चे पास जाने के लिए उतावले हो रहे हैं l पर उनकी माँएँ उन्हें जाने से टोक रहे हैं l उन लोगों के भीड़ में भैरव सिंह को वैदेही खड़ी नजर आती है l जिसका चेहरा भाव शून्य सा लग रहा था l

भैरव सिंह - ठीक उदय... मोबाइल दहन की जगह दिखाओ...

उदय वैसा ही करता है l कुछ देर बाद कुछ अचानक ढोल, चांगु बजने लगते हैं l महरी तुरी भेरी बजने लगते हैं l कुछ लोगों के हाथों में जलते हुए मशाल दिखते हैं l एक गाँव वाला मशाल फेंकने को होता है कि उसे सत्तू रोक देता है l

सत्तू - नहीं नहीं... ऐसे नहीं...
गाँव वाला - फिर कैसे...

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रुप विश्व की हाथ छोड़ देती है l विश्व हाथ को फूंकने लगता है l रुप की और देखता है l रुप अपनी आँखे सिकुड़ कर विश्व को देख रही थी l

रुप - मैं समझ रही थी... के मैं सपना देख रही हूँ... पर... मैं सच में... नाव पर हुँ... कब आई... कैसे आई...
विश्व - क्यूँ... आप खुद को यहाँ देख कर थ्रिल नहीं हुईं..
रुप - थ्रिल... पहले मैं डर गई... बात समझने के लिए... कुछ वक़्त लगा मुझे... तुम... मुझे यहाँ तक कैसे लाए... और... मैं सो कैसे गई थी...
विश्व - (चुप रहता है)
रुप - देखो मुझे सब सच सच बताओ... वर्ना...
विश्व - वर्ना...
रुप - वर्ना... आज पूरा गाँव... विश्व प्रताप को चीख मारते हुए सब देखेंगे... इतनी जोर से ऐसे काटुंगी के...

कहते कहते रुक जाती है और जोर जोर से साँस लेने लगती है, विश्व उसे इस हालत में देख कर पहले हैरान हो जाता है l फिर हँस डेट है l उसे यूँ हँसते देख कर रुप और भी ज्यादा चिढ़ जाती है l

रुप - (मुहँ बना कर, मुहँ फ़ेर कर बैठ जाती है) जाओ मैं तुमसे बात नहीं करती...
विश्व - (रुप के पास आकर बैठ जाता है) मैं छुप कर देख रहा था,.. कैसे एक परियों की रानी... मेरे लिए सज रही थी... सँवर रही थी... फिर देखा उसकी आँखे लग गई थी... तो मैंने... एक रुमाल में थोड़ा सा क्लोरोफॉर्म डाल कर... उसकी नींद को थोड़ा गहरा कर दिया... बस... फिर उसे अपने पुराने तरीके से... खिड़की से नीचे उतारा... और उसी नींद के हालात में... यहाँ... नाव पर चौपाई के सहारे बिठा दिया...
रुप - (अपना मुहँ बना कर, फिर से मुहँ फ़ेर लेती है) हूँ ह...
विश्व - क्या आप... थ्रिल नहीं हुईं...
रुप - थ्रिल... थ्रिल तो तुम्हें महसुस हुआ होगा... अगर मैं होश में होती... तो वह थ्रिल मैं भी महसुस करती ना...
विश्व - मैं आपको... यह सारा एहसास... सपने की तरह महसुस कराना चाहता था... (एक पॉज लेकर) बुरा लगा...
रुप - (विश्व की ओर बिना देखे अपना सिर ना में हिलाती है)
विश्व - सॉरी... वेरी सॉरी... आप जो भी सजा देंगे.. (अपने घुटनों पर बैठ कर) मुझे कुबूल होगी...
रुप - (मुड़ती है) खड़े हो जाओ... (विश्व खड़ा हो जाता है, रुप उसके सीने पर मुक्के मारने लगती है, पर विश्व वैसे ही खड़ा रहता है) मैं तुम पर मुक्के बरसा रही हूँ... और तुम हो कि...
विश्व - आह... ओह... उह... (करने लगता है)

रुप को और भी ज्यादा गुस्सा आता है l विश्व को धक्का देती है विश्व थोड़ा पीछे हटता है l फिर रुप उस पर कुदी मारती है l विश्व अब पीठ के बल गिरता है और रुप उसके ऊपर गिरती है l विश्व के पेट पर बैठ कर विश्व की कलर पकड़ लेती है l

रुप - होगे तुम बड़े तुर्रम खान... पर मैं भी तुम्हें हरा सकती हूँ... समझे...
विश्व - जी.. आपसे जितने कि... सोच भी नहीं सकता कभी...

रुप शर्मा जाती है, पर विश्व की कलर नहीं छोड़ती l विश्व रुप की दोनों हाथों को पकड़ लेता है और अपना चेहरा थोड़ा किनारा कर आसमान की ओर देखता है फिर रुप की ओर देखता है l ऐसा दो तीन बार करता है l

रुप - ऐसे क्या देख रहे हो...
विश्व - आज पूनम की रात है... मैं आपके चेहरे को और चांद को देख रहा था... और इतरा रहा था
रुप - क्यूँ...
विश्व - उस चांद का कहाँ मुकाबला होगा... (रुप के चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर) मेरे इस चांद के आगे...

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सत्तू - जैसे बचपन में... घो घो राणी खेलते थे ना...
गाँव वाले - हाँ...
सत्तू - वैसे ही... इस होलिका भाड़े के चारो ओर... घूमो... फ़िर आग लगा ओ...

सत्तू की बात मान कर, हाथों में मशाल लिए सारे मर्द दहन मंच के घेर कर घूमने लगते हैं l शराब धीरे धीरे उन पर असर कर रहा था l लोग मशालों को घुमा घुमा कर एक तरह से उद्दंड नृत्य कर रहे थे l तभी एक गाँव वाले की नजर होलिका की पुतले पर पड़ती है l उसे लगाकि वह पुतला हिल रही थी l वह रुक जाता है और डर के मारे कांपने लगता है l उसे रुकता देख कर उसके साथी भी रुक जाते हैं और उससे पूछने लगते हैं

- अबे क्या हुआ... रुक क्यूँ गया
वह - होलिका हिल रही है...
गाँव वाले - क्या...

सभी रुक कर पुतले को देखने लगते हैं l उधर यशपुर पर सीधा प्रसारण देख रहे भैरव सिंह की भौहें सिकुड़ जाती हैं l तभी सत्तू उन गाँव वालों के पास पहुँचता है l

सत्तू - ओये... क्या हो गया... रुक क्यूँ गए तुम लोग...
वह - होलिका... हिल रही थी...
सत्तू - सालों... कमीनों... होलिका नहीं हिल रही है... दारू बाज कहीं के... तुम सारे हिल रहे हो...
गाँव वाले - हाँ... हाँ... हमें भी यही लग रहा है...
वह - नहीं नहीं... होलिका हिल रही है...
सत्तू - अबे मरदूत... जब नशा संभाल नहीं पाता... तो इतना पिता क्यूँ है... (सारे गाँव वालों से) एक काम करो...
गाँव वाले - क्या...
सत्तू - तुम सब को... दरोगा रोणा याद है... (सब गाँव वाले हैरानी के मारे एक दुसरे को देखने लगते हैं) अबे बोलो... याद है...
एक गाँव वाला - ह... हाँ.. हाँ.. याद है..
सत्तू - जानते हो... वह अभी लापता है... हमारे राजा सहाब के सर्कार उसे ढूँढ रही है...
गाँव वाले - क्यूँ...
सत्तू - उसने लोगों के साथ बहुत बुरा किया है... उसे सजा देने के लिए...
गाँव वाले - (उल्लासित होकर) अच्छा...
सत्तू - हाँ... इसलिए... अब इस पुतले को... कुछ देर के लिए ही सही... दरोगा रोणा समझो... और अपने दिल की भड़ास निकालते हुए... इन लकडिय़ों में आग लगा दो...

गाँव वाले पहले एक दुसरे को देखते हैं l उनके बीच से हरिया आगे आता है और पुतले को देखते हुए चिल्ला कर गला फाड़ कर कहने लगता है

हरिया - अबे हरामी कुत्ते रोणा... बहुत दिनों से खुन्नस था... आज हाथ लगा है तु मेरे... साले कमीने हरामी... यह ले...

कह कर मशाल को पुतले की ओर फेंकता है l मशाल पुतले से लग कर भाड़े से लगे लकडिय़ों पर गिरती है l उसके देखा देखी और एक गाँव वाला सामने आता है और वह भी रोणा को गालियाँ बकते हुए मशाल दे मारता है l इस तरह से लोग एक के बाद एक रोणा को गाली अभिशाप देते हुए अपनी अपनी मशालें फेंक मारते हैं l लकड़ियों में धीरे धीरे आग जलने लगती है l जैसे जैसे आग भड़कने लगती है l लोग जो बाहर ढोल, चांगु, मादल बजाने लगते हैं l ऐसा प्रतीत होता है जैसे ढोल आदि के ताल से ताल बिठा कर लपटें आकाश की ओर उठने लगती हैं l यह सब देख कर जहां भैरव सिंह के दिल में एक सुकून महसूस होती है वहीँ बल्लभ की अंतरात्मा छटपटाने लगती है l
धीरे धीरे आग की लपटें जोर पकड़ने लगती है l उसके साथ साथ लोगों में हल्ला व उल्लास के साथ शोर भी बढ़ने लगती है l ढोल मादल चांगु की ताल से ताल बिठा कर शंख फूंकने लगते हैं l बल्लभ एक नजर भैरव सिंह पर डालता है l भैरव सिंह के आँख उसे जलती हुई दिखाई दे रही थी l लैपटॉप से आ रही हल्ला उल्लास की आवाजें उसके भीतर उसे दहला रही थी l बल्लभ छटपटा रहा था पर अपने अंदर की भावनाओं को बाहर उजागर नहीं कर पा रहा था l

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रुप शर्मा कर विश्व के ऊपर से हट जाती है और नाव के एक छोर पर आ कर नाव पर नजर घुमाने लगती है l वह देखती है दो बड़े नावों को बांध कर उस पर दो लकड़ी के खाट बंधे हुए हैं l सबसे अहम बात ना सिर्फ नाव में वे दोनों ही थे बल्कि बीच नदी में नाव एक दम स्थिर थी l रुप को महसुस होती है विश्व उसके पीछे खड़ा है l

रुप - एक बात पूछूं...
विश्व - पूछिये...
रुप - तुम मुझे यहाँ पर क्यूँ लाए... तुम्हें डर नहीं लगा... हम पकड़े भी जा सकते थे...
विश्व - नहीं... आज हम पकड़े नहीं जाएंगे... क्योंकि... आज महल पुरी तरह से... मर्दों से रहित है... और राजा साहब और उनके खास... कोई भी... महल या उसके आस-पास भी नहीं है... वैसे भी... आपको सरप्राइज पसंद है ना...
रुप - (हैरान हो कर पीछे मुड़ती है) सरप्राइज... तुमने सरप्राइज़ नहीं मुझे शॉक दे दिया था... एक पल के लिए... मुझे तो जोर का झटका लगा था...
विश्व - (मुस्करा देता है)
रुप - वैसे... क्यूँ... (पॉज लेकर) इसका मतलब... तुमने ऐसा क्या किया है.... की वे सारे लोग... (चुप हो जाती है)
विश्व - मैंने कहा था... आप मुझसे जो भी ख्वाहिश करेंगी... उस पल को मैं खास बना दूँगा...
रुप - है... भगवान... मतलब... तुम... इस खेल में कर्ता हो... कारक हो... बाकी सब... क्रिया हैं...
विश्व - (चुप रहता है)
रुप - वाव... तुम कितने परफेक्ट हो...
विश्व - नहीं... कोई कभी भी... परफेक्ट नहीं हो सकता... बस चालें सही बैठ रही हैं... इसलिए... रिजल्ट मन माफिक मिल रहा है... अगर कभी चल गलत बैठ गया... तो लेने के देने पड़ जाएंगे...

दोनों के बीच चुप्पी छा जाती है l रुप फिर से विश्व की ओर पीठ कर खड़ी हो जाती है और चांद की ओर देखने लगती है l विश्व को अब समझ में नहीं आता आगे करे तो क्या करे और कैसे आगे बढ़े l ठंडी हवाएं चलने लगती है l रुप की चूनर उड़ कर विश्व के चेहरे पर लहराने लगती है l विश्व रुप की चूनर को पकड़ लेता है l रुप की धड़कने तेजी से ऊपर नीचे होने लगती है l वह अपनी चुनरी को पकड़ लेती है l विश्व अपने चेहरे पर लहराते हुए चुनरी को झटका देकर खिंचता है l रुप उस झटके के साथ विश्व के सीने पर आ गिरती है l विश्व की हाथ रुप की कमर पर कस जाती है l रुप अपना चेहरा विश्व के सीने में छुपा लेती है l

विश्व - (थर्राती आवाज में) राजकुमारी जी...
रुप - ह्म्म्म्म...
विश्व - आसमान में चाँद मुझसे जल रहा है...
रुप - (सिर नहीं उठाती) ह्म्म्म्म..
विश्व - देखिए ना... कितना खूबसूरत नज़ारा है... चांद की चांदनी में नहाया हुआ इन फ़िज़ाओं में... कल कल आवाज करती बहती नदी पर... दो नाव... उस पर दो प्रेमी... अपनी पहली चुंबन के लिए...

रुप की मुट्ठी विश्व के शर्ट पर कस जाती हैं l चेहरा और भी जोर से सीने में गड़ जाती है l विश्व की हाथ कमर से उठ कर पीठ पर लहराते हुए उठती है l रुप की बदन उसी लहर के नागिन की तरह बलखाने लगती है l विश्व की हाथ रुप के सिर पर आकर रुक जाती है फिर दोनों हाथों से रुप की चेहरे को अपने सामने लाता है l रुप की आँखे बंद थीं l

विश्व - (हलक से बड़ी मुश्किल से आवाज़ निकाल कर) रा.. ज.. राज.. कु.. मारी...
रुप - हूँ...

रुप की चेहरे को अपने चेहरे के पास लाता है और अपना चेहरा धीरे धीरे रुप की चेहरे पर झुकाता है l दोनों की साँसे टकरा रही थी l दोनों की धड़कने बड़ी तेजी से उपर नीचे हो रहीं थीं l वे दोनों एक दूसरे की धड़कनों को साफ सुन पा रहे थे कि नदी की कल कल की आवाज दब गई थी l विश्व और झुकता है रुप की हॉट पर अपना होंठ रख देता है l जैसे ही रुप के होठों पर विश्व की होंठ का स्पर्श अनुभव होती है उसका सारा जिस्म कांप जाती है l उसका बदन हल्का हो जाती है और पैरों के उँगलियों पर खड़ी हो जाती है l उसका हाथ अब फिसल कर विश्व के कमर पर आ जाती है l विश्व अपना हॉट खोल कर रुप की निचली होंठ को चूसने लगता है l रुप की भी प्रतिरोध ढीली पड़ जाती है और उसके होंठ खुल जाती है l धीरे धीरे चुंबन प्रगाढ़ से प्रगाढ़ तक होने लगती है l रुप के हाथ अब विश्व के बालों से खेल रहीं थीं l वहीँ विश्व के हाथ भी अनुरुप रुप के केशुओं में उलझ गए थे l

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होलिका दहन अपने चरम पर पहुँच गया था l लपटों में इतनी तेज थी के अब लोग उसके आसपास भी मंडरा नहीं पा रहे थे l दुर से खड़े हो कर गाँव वाले यह दृश्य देख रहे थे l धीरे धीरे उन लोगों के पास उनके परिवार जमा होने लगते हैं l उनके लिए यह एक अद्भुत दृश्य था l क्यूंकि दशकों से ना तो उनके पुरखों ने कभी त्योहार मनाया था ना ही उन्होंने l पर आज उनके बच्चों के वज़ह से और राजा भैरव सिंह के अनुग्रह से ना सिर्फ होलिका दहन मनाया गया बल्कि इसी राख से कल रंग भी खेला जाएगा l यह दृश्य यशपुर में बैठा भैरव सिंह भी देख रहा था l मन ही मन वह उदय से प्रभावित भी हो गया था l क्यूंकि उसके घर की इज़्ज़त पर किसी ने आँख उठाया है यह बात कोई जान लेता तो ज़रूर कानाफूसी होती l जिस पर उसके साख पर बट्टा लग जाता l वह गाँव वालों को भी सजा देना चाहता था l इस तरह से गाँव वालों का जुर्म भले ही अनजाने में किया गया था पर सबुत बन गया था उसके पास l हो सकता है भविष्य में यह उसके काम आए l जितना संतुष्ट भैरव सिंह था, उतना ही दुखी बल्लभ था l जो भी था जैसा भी था रोणा उसका दोस्त था l हर मामले में वह भैरव सिंह का वफादार था l बल्लभ यह समझ चुका था रोणा से गलती हुई थी पर अपराध नहीं हुआ था l पर भैरव सिंह के डायरि में क्षमा शब्द ही नहीं था l उसकी भी नजर लैपटॉप में घट रहे मंज़र देखे जा रहा था l तभी अचानक वह देखता है कि वह भाड़ा जिस पर रोणा को होलिका बना कर बिठा दिया गया था l वह भाड़ा टुट जाता है और आग की लपटें एका एक और ऊपर उठ जाते हैं l जिसे देख कर लोग उद्दंडता से चिल्लाने लगते हैं l इससे आगे बल्लभ और देख नहीं पाता l क्यूंकि उसे कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था l उसे समझते देर नहीं लगी कि उसकी आँखे बह रही थी l आखेट गृह में नजाने कितने मौत देखे हैं पर आज वह अपना परम मित्र को जिंदा जलते देख रहा था l अपनी आँखे पोंछता है, उसका मन कर रहा था कि वह गला फाड़ कर रोये, पर वह लाचार था l अपनी लाचारी को छुपा कर आपनी आँखे बंद कर लेता है l पर बल्लभ का यह दुख और लाचारी भैरव सिंह के आँखों से छुप नहीं पाती l भैरव सिंह उसकी दुर्दशा को नजर अंदाज कर लैपटॉप में चल रहे दृश्य को गौर से देखे जा रहा था l

भैरव सिंह - अच्छा हुआ... तुम यह सब देखने के लिए... वहाँ नहीं थे... वर्ना... तुम अपनी कमजोरी को जाहिर कर देते... यह उदय ने अच्छा आइडिया दिया था... हमें यशपुर चले आने के लिए... अब तुम्हें इस रेकॉर्डिंग को... एडिट वगैरह कर... एक कंस्पैरी क्रिमिनल ऐक्ट प्रूफ़ बनाना है... क्यूँकी... रोणा ऑफिसियली गायब है... जिसे डेपुटेशन पर आए नया ऑफिसर दास ढूँढ रहा है... पहले कहानी बताओगे... लोग कैसे... रोणा को हस्पताल से गायब किए... उसके बाद... यह विडिओ... सबुत बना कर... दास तक पहुँचाने की जिम्मेदारी तुम्हारी... समझे...
बल्लभ - (जैसे नींद से जागता है) जी... जी.. राजा साहब...

आग की लपटें धीरे धीरे शांत हो रही थी l चूंकि विडिओ कॉल पर था, भैरव सिंह अपना माइक ऑन कर उदय से कैमरा घुमा कर गाँव वालों की तरफ मोड़ ने के लिए कहता है l उदय कैमरा घुमाता है l कैमरा सभी गाँव वालो पर घूमने लगता है l अचानक भैरव सिंह लैपटॉप को उठा कर घूरने लगता है l लैपटॉप को चिपका कर ऐसे देखने लगता है कि मानो वह किसीको कैमरे के जरिए ढूँढ रहा था l धीरे धीरे उसके जबड़े भिंच जाते हैं और चेहरा सख्त हो जाता है l उधर ट्रांसमिशन करते हुए उदय देखता है कि उसका कॉल कट चुका था l

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रुप और विश्व का चुंबन टूटता है l दोनों ऐसे हांफने लगते हैं जैसे मानों कोई मैराथन दौड़ कर आए थे l दोनों अपने अपने सिर एक दुसरे पर टिका कर गहरे गहरे साँस लेने लगते हैं l जब साँसे दुरुस्त होने लगती है तब विश्व अचानक रुप को छोड़ कर थोड़ी दुर जाकर रुप की ओर देखने लगता है l रुप उसे सवालिया नजर से देखती है l

विश्व - (साँसों को संभालते हुए) आपसे वादा किया था... बेशरम हो सकता था... पर बेकाबू... बे लगाम नहीं हो सकता... (रूप कि और पीठ घुमा लेता है)
रुप - (पीछे से आकर पकड़ लेती है और विश्व के सीने पर हाथ फेरने लगती है)
विश्व - राज कुमारी जी...
रुप - (मस्ती के मुड़ में आ चुकी थी) जी कहिये मेरे भोले अनाम जी...
विश्व - वह आपको... मतलब कैसा... (चुप हो जाता है)
रुप - क्या हुआ... चुप क्यों हो गए...
विश्व - वह... मुझसे... कोई गलती तो नहीं हो गई...
रुप - (विश्व को अपने तरफ झटके के साथ मोड़ कर) ओये.. मौसमी बेशरम... चूमा लेने और देने के बाद... शर्म नहीं आई... अब शर्म नहीं आ रही... ऐसे शर्माते हुए...
विश्व - जी आ रही है... मतलब नहीं... आह.. (खीज जाता है)

रुप उसकी हालत देख कर खिलखिला कर हँसने लगती है l फिर विश्व के पैरों पर अपने पैर रख कर पैरों की उंगली पर खुदको उठा कर विश्व के बराबर आ जाती है l विश्व के हाथों को अपने कमर पर रख कर विश्व के चेहरे को अपने हाथों में लेती है और वह विश्व के होठों पर टुट पड़ती है l विश्व उसके चुंबन से खुद को छुड़ाने की कोशिश करता है पर फिर वह भी रुप के चुंबन की प्रतिक्रिया में रुप की गहरी चुंबन लेने लगता है l फिर कुछ समय बाद इस बार रुप विश्व को अलग कर देती है l चुंबन टूटते ही विश्व रुप की ओर हैरानी भरे निगाह से देखने लगता है l

रुप - तो मिस्टर बेशरम... बेकाबू क्यूँ होने लगे... ह्म्म्म्म.. बेकाबू होने लगे...
विश्व - कहाँ... कैसे...
रुप - (विश्व की पेंट पर बने उभार की ओर इशारा करती है) यह... यह रहा... तुम्हारा बे - लगाम...
विश्व - मैं कहाँ बे लगाम हुआ था... वह तो आपने मुझे...
रुप - हाँ हाँ... अब तो दोष मुझे ही दोगे... क्यों... छी.. कितने अश्लील हो तुम...
विश्व - कमाल है... आप जिस तरह मुझ पर टुट पड़ी... मुझे लगा आप कहोगे... वाव.. अनाम तुम कितने नैचुरल हो...
रुप - यु...

कह कर रुप विश्व की ओर कुद कर उछल जाती है l विश्व उसे पकड़ लेता है l रुप अपने दोनों पैरों को विश्व के कमर के इर्द-गिर्द कस कर बाँध लेती है और विश्व के चेहरे को अपने हाथों में लेकर विश्व के होंठ पर टुट पड़ती है l विश्व भी इस बार रुप का बड़े जोशीले अंदाज में साथ देता है कि तभी विश्व की मोबाइल बज उठता है l

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भीमा गाड़ी को भगा रहा था l रात गहरी भले ही हो गई थी पर आसमान में चाँद आज चमक नहीं दहक रहा था l भैरव सिंह पंथ निवास में बल्लभ को छोड़ कर भीमा को साथ लेकर महल की तरफ ले जाने के लिए कह कर निकला था l भीमा को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था l अचानक भैरव सिंह को क्या हो गया l वैसे भी भैरव सिंह, क्षेत्रपाल - महल में कम, रंग महल में ज्यादातर रात बिताता था l कभी भी रात को इस तरह क्षेत्रपाल महल गया नहीं था l जब उससे रहा नहीं गया तो भैरव सिंह से पूछता है

भीमा - हुकुम... आप राजमहल ही जा रहे हैं ना..
भैरव सिंह - हाँ...

भीमा और सवाल नहीं करता l चुप चाप गाड़ी चलाता है l भैरव सिंह इस बार भीमा से पूछता है l

भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी.. जी... हुकुम...
भैरव सिंह - एक बात याद रखना... हम हार या जीत को बाद में तरजीह देते हैं... सब से पहले... हम अपनी अहं को तरजीह देते हैं... क्यूंकि... अगर अहं रह गया... तो जीत भी आएगी...
भीमा - जी... हुकुम...
भैरव सिंह - रोणा बेशक वफादार था... पर अनजाने ही सही... हमारे अहं की रास्ता काटने की गलती कर बैठा... इसलिए... उसका अंजाम देखा तुने...
भीमा - जी... जी हुकुम..
भैरव सिंह - अब मुझे तु बता... उस हराम के पिल्लै... विश्वा को... कौन मार सकता है...
भीमा - (इस बार चुप रहता है)
भैरव सिंह - जिसे हमने एक बार अपने पैरों के धुल के बराबर रखा हो... उसे हम अपने हाथों से सजा नहीं दे सकते... इसलिए... रोणा को जिम्मेदारी सौंपी थी... पर उससे ना हो पाया... अब तु बता... तुझसे या तेरे पट्ठों से होगा या नहीं... अगर नहीं होगा... तो हमें... बाहर से आदमी लाकर रखने होंगे... और तुम लोगों के बारे में सोचना होगा...

भीमा गाड़ी में ब्रेक लगाता है l क्षेत्रपाल महल के सीढियों के सामने गाड़ी रुक जाती है l भीमा गाड़ी से उतर कर भागते हुए आता है और गाड़ी का दरवाजा खोलता है l भैरव सिंह चारों तरफ नजरें घुमा कर देखता है l महल के आसपास उसे इक्का-दुक्का पहरेदार नजर आते हैं l वह समझ जाता है कि होलिका दहन में लोगों के बीच रह कर होलिका को जलाने के लिए गाँव के लोगों को उकसाने के लिए सब चले गए हैं l दो पहरेदार भागते हुए उसके पास आकर सलामी ठोक कर खड़े हो जाते हैं l

भैरव सिंह - कोई खबर...
पहरेदार - सब ठीक है राजा साहब...

भैरव सिंह कोई और सवाल नहीं करता l सीधे सीढ़ियां चढ़ने लगता है l भीमा उसके पीछे पीछे जाने लगता है तो भैरव सिंह हाथ से इशारा कर उसे वही ठहरने के लिए कह कर आगे बढ़ जाता है l अंदर सारे दासियां दीवारों से सट कर सोये हुए थे l पर जैसे ही गाड़ी रुकी थी l सभी जाग कर दीवारों के ओट में सिर झुका कर खड़े हो गए थे l उन सभी को नजर अंदाज कर भैरव सिंह अंतर्महल में आता है और सीधे रुप के कमरे के दरवाजे के सामने खड़ा होता है l अपने कमर पर हाथ रखकर चारों ओर नजर घुमाने लगता है l देखता है कुछ दासी दीवार से लग कर सिर झुकाए खड़ी हुई हैं l

भैरव सिंह - एकांत...

सभी दासियां वहाँ से निकल जाती हैं l भैरव सिंह दरवाजे पर दस्तक देता है l अंदर से कोई आवाज नहीं आती है l और एक बार दस्तक देता है l जब कोई शोर सुनाई नहीं देती है इस बार थोड़ी ताकत लगा कर दस्तक देता है l दरवाजे के नीचे वाली फांक से उजाला आता है l थोड़ी देर बाद दरवाज़ा खुलता है l भैरव सिंह देखता है सादी लिबास में रुप अपनी भारी आँखे मलते हुए भैरव सिंह की ओर देख रही है l अचानक चौंकती है जैसे सामने अभी भैरव सिंह को पहचान लिया l

रुप - राजा साहब... आप... इतनी रात गए...

भैरव सिंह उसे अनसुना कर कमरे में जो दो खिड़कियाँ थी उनकी रेलिंग खिंच कर देखता है फिर रुप को बिना देखे कमरे से जाने लगता है l पर जाते जाते दरवाजे पर रुक जाता है, फिर रुप की ओर मुड़ता है l

भैरव सिंह - राज कुमारी... हम जानते हैं... आप इस समय हैरान हैं... पर हम आप बस इतना जान जाइए... हमें शक नहीं यकीन है... पर हमारी यकीन को हम फ़िलहाल के लिए साबित नहीं कर सकते... पर इतना तय मान लीजिए... आप इस घर से जाएंगी... दसपल्ला राज घराने में ही जायेंगी... बाकी अगर और कोई ख्वाहिश है भी... तो भूल जाइए...

कह कर भैरव सिंह मूड कर जाने लगता है l पर उसके कदम ठिठक जाते हैं l क्यूंकि रुप ने पीछे से आवाज दी थी

रुप - राजा साहब... (भैरव सिंह मुड़ता है) हम आपकी यकीन की इज़्ज़त करते हैं... और वादा करते हैं... हम जब भी इस घर से जाएंगे... आपकी आँखों के सामने से जाएंगे... सिर उठा कर जाएंगे...

भैरव सिंह का पारा चढ़ जाता है l वह तेजी से रुप के पास आता है और जोर से अपना हाथ घुमाता है पर अपना हाथ ठीक रुप के गाल के पास रोक देता है l देखता है रुप के आँखों में जरा सा भी डर नहीं था l भैरव सिंह गुस्से में थर्राते हुए मुट्ठी कसने लगता है l रुप को भैरव सिंह की मुट्ठी कसते हुए कड़ कड़ की आवाज़ सुनाई देने लगती है l

भैरव सिंह - एक राजनीतिक मजबूरी है... वर्ना...

इतना कह कर भैरव सिंह कमरे से निकल जाता है l उसके जाते ही रुप एक गहरी साँस छोड़ती है और भागते हुए दरवाज़ा बंद कर देती है l दरवाजा बंद करने के बाद वह घुमती है पीछे विश्व खड़ा था l उसके पास भाग कर विश्व के गले लग जाती है l
update Bhai




Bas 1 gujaarish hai ki ye Jo bhi Aaj hua roop aur viswa k biche hua aur raja Q wapis aaya

Roop kaise Nadi m pahuchi aur wapis aayi iski thodi details daal Dena .....



Qki ye suspense jaan lega
 

dhparikh

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👉एक सौ छियालीसवां अपडेट
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राजगड़
शाम होने को है
सूरज की रौशनी और ताप दोनों मद्धिम पड़ रहे हैं l रोज की रुटीन के अनुसार दोपहर का खाना खाने के बाद भैरव सिंह क्षेत्रपाल महल में भीतर नागेंद्र सिंह के कमरे में, उसके बेड के करीब बैठा हुआ था l कमरे में आज वह अकेला था l सुषमा या कोई नर्स नहीं थीं l नागेंद्र सिंह टेढ़े मुहँ से भैरव सिंह की ओर ताक रहा था l

भैरव सिंह - आपकी हालत मुझसे देखी नहीं जा रही है बड़े राजा... मज़बूरी है... आपको जिंदा रहना है... और मुझे जिंदा रहना है... हमें समझ में आ गया है... उस दिन आपने क्यूँ कहा था... राजकुमारी जी पर नजर रखने के लिए... हमने जिसे भेजा था... वह कमबख्त... नाकारा निकला... छोटे राजकुमार जी की बात आकर कही पर... राजकुमारी के बारे में... टोह तक ना ले पाया... (नागेंद्र सिंह की आँखे चौड़ी हो जाती हैं) हाँ... बड़े राजा... आप सही थे... राजकुमारी घर से निकली... बाहर.... (अपनी आँखे बंद कर जबड़े भिंच कर कुछ देर के लिए चुप हो जाता है) हमें संदेह है... शायद यकीन भी है... पर नाम नहीं बता सकते... क्यूँकी... हम साबित नहीं कर सकते... अगर झूठे साबित हो गए... तो अपने बच्चों के आगे इज़्ज़त गवा बैठेंगे... राजकुमारी को सजा देने का मन कर रहा है... पर राजनीतिक मज़बूरी के चलते... हम उस सच से फिलहाल किनारा किए हुए हैं... (अपनी जगह से उठता है,नागेंद्र की ओर पीठ कर खड़ा होता है) क्यूंकि... अगर यह राज खुला... तो जिन लोगों के भगवान बने फिर रहे हैं... उनके गप्पी में उपहास के किरदार बन जाएंगे... इसलिए अब राजकुमारी घर में रहकर पढ़ाई करेंगी... जैसे बचपन में किया करतीं थीं... सिर्फ इम्तिहान देने के लिए बाहर जाएंगी... (नागेंद्र के हलक से हुम्म्म्म... ह्म्म्म्म की आवाज आती है, भैरव सिंह मुड़ कर देखता है, नागेंद्र इशारों से कुछ कहने की कोशिश कर रहा है) हाँ... समझ रहे हैं... अगर हम पहले की तरह... अपनी राज पाठ सिर्फ राजगड़ और इसके आसपास सीमित रखते... तो बात इतनी मुश्किल नहीं होती... पर जब दायरा जितना फैलता गया... तो बीच में खाली पन उतना ही बनता गया... अब अपने रुतबे और गुरूर के दम पर... उस खाली पन को ढकने की... छुपाने की कोशिश किए जा रहे हैं... जाहिर है... दायरा बढ़ा... तो महल की खिड़की को भी ऊँचा करना पड़ रहा है... क्यूँकी दुनिया की आदत है... हर ऊंचे घरों की खिड़की से अंदर झाँकना... पर बड़े राजा जी... निश्चिंत रहिए... हम सब ठीक कर देंगे... जिसकी भी जुर्रत सामने खुल रहा है... उसे हम अंजाम तक पहुँचा रहे हैं... आज रोणा का होली जलेगी.. वह भी गाँव के लोगों के हाथों... क्यूँकी उसने अपनी औकात भूल कर... क्षेत्रपाल महल की खिड़की खोलने की कोशिश की... सजा तो मिलेगी... यह सजा... हमें अंदर से... आश्वासन दे रहा है... के एक दिन हम उस हरामजादे विश्व प्रताप को... इससे भी भयंकर सजा देंगे... इसीलिए तो... हम मगरमच्छ और लकड़बग्घे की भूख को... मिटने नहीं दे रहे हैं... आप निश्चित रहें... हम आपको आखेट गृह में... वह दृश्य ज़रूर दिखाएंगे...

तभी भैरव सिंह को बाहर से आहत सुनाई देती है l वह दरवाजे की ओर मुड़ता है l दरवाजे पर दस्तक सुनाई देती है l

भैरव सिंह - कौन है...
भीमा - हुकुम... मैं...
भैरव सिंह - क्या हुआ...
भीमा - वह सारे गाँव वाले आपसे पूछने... महल के परिसर में आए हैं...
भैरव सिंह - पूछने... हमसे...
भीमा - जी हुकुम...

भैरव सिंह कमरे से निकालता है और दिवाने आम कमरे में पहुँचता है, जहाँ पर बल्लभ खड़ा हुआ था l कमरे के दरवाजे पर उदय खड़ा हुआ था l

भैरव सिंह - यह गाँव वाले... बेवजह यहाँ क्यूँ आए हैं प्रधान...
बल्लभ - मैं नहीं जानता हूँ... राजा साहब... मैं तो यहाँ आपकी इंतजार में हूँ...
भैरव सिंह - भीमा क्या वज़ह है... तुम्हें कुछ पता है...
उदय - गुस्ताखी माफ़ राजा साहब...
भैरव सिंह - क्या बात है...
उदय - सत्तू या भूरा... जानते होंगे... क्यूँकी यही दोनों... होलिका दहन की मचान सजाने गए थे...
भैरव सिंह - हूँ... कहाँ है वह दोनों...
उदय - जी बाहर हैं... बुला लाऊँ...
भैरव सिंह - हाँ... बुला लाओ...

उदय तुरंत पलट कर बाहर जाता है और थोड़ी देर के बाद अपने साथ सत्तू और भूरा को साथ लेकर आता है l वे दोनों अपने हाथ जोड़ कर भैरव सिंह के सामने खड़े हो जाते हैं l

भैरव सिंह - यह बाहर कैसा शोर है...
सत्तू - र्र्राजा सा.. सहाब... (जुबान लड़खड़ा जाता है)
भैरव सिंह - क्या बात है... क्या हो गया है...
भूरा - राजा साहब... जैसा आपने कहा... हमने बिलकुल वैसा ही किया... हमने एक स्टूल पर... दरोगा को... आलथी पालथी की तरह बिठा कर... मुखौटा लगा कर... साड़ी पहना कर... होलिका की तरह सजा कर... बांस का दस फुट ऊँचा भाड़ा बना कर बिठा दिया...
सत्तू - यह देख कर लोगों ने... हमसे वज़ह पूछी... तो हमने कहा कि... बच्चों का उत्साह देख कर... राजा साहब ने... गाँव वालों को... होलिका दहन के साथ साथ.. फगु खेलने के लिए भी कहा है... इसलिए गाँव वालों के सहूलियत के लिए... हमने होलिका का पुतला बना कर गाँव के बाहर भाड़े पर सजा दिया है...
भूरा - अब होलिका दहन के लिए... गाँव वाले.. अपने अपने हिस्से के लकड़ी... गोबर के कंडे... उपले आदि लाकर जमा करें... और होलिका दहन करें...

बस इतना कह कर चुप हो जाते हैं दोनों l उनको चुप देख कर भैरव सिंह पूछता है l

- आधी बात बता कर... आधा गटक क्यों गए...
सत्तू - हमारे कहे पर... गाँव वालों को विश्वास नहीं हुआ...
भूरा - इसलिए... इसलिए... (फिर से दोनों चुप हो जाते हैं...
उदय - ओ.. इसका मतलब यह हुआ... गाँव वाले... इनकी कहीं बातों पर... यकीन करने आए हैं...

भैरव सिंह पैनी दृष्टि से उदय की ओर देखने लगता है l उदय अपना सिर झुका लेता है l फिर भैरव सिंह बल्लभ की ओर देखता है l

बल्लभ - यह स्वाभाविक है राजा साहब... सात दशकों से... सिर्फ यही गाँव नहीं... आसपास के तकरीबन तीस गाँव में... त्योहार या मातम नहीं मनाया गया है... कई पीढ़ियां गुजर गई... आज जब कोई आपके नाम पर कहे... त्योहार मनाने के लिए... तब... इस बात की पुष्टि करने... जाहिर है... महल ही आयेंगे...
भैरव सिंह - (जबड़े भिंच जाती है, शब्दों को चबाते हुए कहता है) इनकी इतनी हिम्मत... राजा भैरव सिंह से पुष्टि करने आए हैं...(गुर्राते हुए) भीमा बंदूक ला.. (भीमा पलट कर जाने को होता है कि बल्लभ उसे रोक देता है)
बल्लभ - एक मिनट भीमा... (भैरव सिंह से) गुस्ताख़ी माफ राजा साहब... गाँव वालों में कभी इतनी हिम्मत हो ही नहीं सकती के... आपसे बात की पुष्टि करें... जैसा कि मैंने कहा... सात दशकों से... जो नहीं हुआ... आज अचानक मनाएंगे... तो उन्हें... यह सत्तू या भूरा की साजिश ही लगेगी... बेहतर होगा... उनके मन में... कोई संशय पैदा होने ना दिया जाए... दरोगा रोणा को... आखेट गृह ले चलते हैं... कोई भी जान नहीं पाएगा...
उदय - गुस्ताखी माफ राजा साहब... (भैरव सिंह उदय की ओर देखता है) राजा साहब... एक बार तीर कमान से निकल जाए... तो उसे उसका लक्ष भेदने की प्रतीक्षा करनी चाहिए...
भैरव सिंह - ऐसी... तगड़ी और भारी भरकम बातेँ... वकील के मुहँ से अच्छे लगते हैं... तुम अपनी बात साफ करो...
उदय - आपका गुस्सा जायज है राजा साहब... पर आपने ही खबर भिजवाई... लोगों को होली मनाने के लिए... जैसा कि वकील ने कहा.... कि सत्तर सालों में जो नहीं हुआ... उसे करने के लिए.. लोग डरेंगे जरूर... पर आपसे गद्दारी करने वाले की सजा आपने मुकर्रर की है... सजायाफ्ता को मिलनी ही चाहिए... यह बात आपके लोगों को भी तो पता चलनी चाहिए... गाँव वाले... आपसे पुष्टि चाहते हैं... इससे यह होगा... उनके हाथों एक क्राइम होने जा रहा है... धीरे धीरे... उनके संज्ञान में आएगा... तब यह लोग फिर कभी हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे... आगे त्योहार मनाने की...
भैरव सिंह - तुम्हें क्या बनाना चाहता था... रोणा...
उदय - जी हेल्पर कांस्टेबल...
भैरव सिंह - बैल बुद्धि था वह... तुम अगर हमारे वफादार रहे... तो हम उन्हें दरोगा बना देंगे...
उदय - (खुशी के आँसू आँखों में लिए, भैरव सिंह के आगे घुटनों पर आ जाता है) आपकी बड़ी कृपा होगी राजा साहब...

यह सब बल्लभ देख रहा था l वह गुस्से में अपना चेहरा फ़ेर लेता है l उसकी यह प्रतिक्रिया भैरव सिंह देख लेता है l

भैरव सिंह - प्रधान...
बल्लभ - जी.. जी राजा साहब...
भैरव सिंह - हम ना सिर्फ... ग़द्दार दरोगा को सजा देना चाहते थे... बल्कि... इन गांवों वालों को भी सजा देना चाहते थे... तुम अपने दोस्त के लिए बाज नहीं आए... खैर... तुम्हारी इस बेवकूफ़ी को हम नजर अंदाज करते हैं... गाँव वालों को हमसे... त्योहार मनाने की छूट चाहिए... हम देंगे...
उदय - राजा साहब... एक और बात... इजाजत हो तो कहूँ...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...
उदय - राजा साहब... आपके हामी के बाद... हो सकता है... लोग आपको... होलिका दहन पर... उपस्थित रहने के लिए कहें... तो आप उन्हें मना कर दीजिए... (भैरव सिंह अपना भौहों को सिकुड़ कर देखता है) क्राइम गाँव वाले करेंगे... वे लोग आगे चलकर क्रिमिनल होंगे... पर अगर आप वहाँ उपस्थित हुए... तो आप गवाह बन जाएंगे... और उनके लिए सबूत भी... आप बस आज रात... राजगड़ से दूर हो जाइए.... आगे... वकील बाबु हैं... वह गाँव वालों के साथ रह कर... उनसे होने वाली गुनाह की सबूत बनाएंगे...
भैरव सिंह - बहुत खूब... आज फिर से तुमने मुझे इंप्रेस किया है... भीमा..
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - चलो.. हमारी प्रजा हमसे मिलने आयी है...


इतना सुनते ही भीमा सत्तू और भूरा के साथ बाहर की ओर चलने लगता है l सभी पहलवान रास्ते के दोनों तरफ खड़े हो जाते हैं l भैरव सिंह उनके बीच में से जाते हुए महल के बरामदे में सटी हुई मचान पर पहुँचता है l जैसे ही मचान पर गाँव वाले भैरव सिंह को देखते हैं सब के सब अपना सिर झुका कर चुप हो जाते हैं l भैरव सिंह अपने कमर पर हाथ रखकर गाँव वालों पर एक नजर डालता है l सभी के झुके हुए सिर देख कर उसके होठों पर एक संतुष्टि की मुस्कान उभर कर गायब हो जाती है l बल्लभ भी पीछे पीछे आया हुआ था l वह कुछ कहने को होता है कि भैरव सिंह उसे रोक कर भीमा की ओर देख कर इशारा कर लोगों से पूछने के लिए कहता है l तो भीमा गाँव वालों से कहता है

भीमा - गाँव वालों... तुम लोग अब राजा साहब के दरबार में हो... राजा साहब अब यह जानना चाहते हैं... उनके दरबार में क्यूँ आए हो...

लोगों में चुप्पी छाई हुई थी l किसीको भी हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि राजा भैरव सिंह से कुछ भी पूछे l क्यूंकि ऐसा पहली बार हुआ था कि सारे गाँव वाले मिलकर राजा के महल में राजा के सामने खड़े हो कर कुछ पूछे l भीमा भैरव सिंह की ओर देखता है, भैरव सिंह अपना सिर हिला कर फिर से पूछने के लिए इशारा करता है l

भीमा - हरिया... क्या हुआ... क्यों आए हो... रविन्द्र... क्या काम पड़ गया है तुम लोगों को... राजा साहब से...
हरिया - हम... व.. व... वह...

अचानक से चुप हो जाता है l सभी लोग महल के बाहर खड़े हैं पर फिर भी सन्नाटा इस कदर पसरा हुआ था मानों दूर दूर तक कोई नहीं हो l मजबूर होकर भैरव सिंह पूछता है l

भैरव सिंह - क्या हुआ है... क्या जरुरत आ गई... तुम लोग यहाँ आ गए... (जब कोई जवाब नहीं देता तब सत्तू लोगों के पास चला जाता है)
सत्तू - राजा साहब माफी... गाँव वालों के तरफ से... मैं कुछ कहूँ...
भैरव सिंह - तुम...
सत्तू - क्यूँ गाँव वालों... मैं पूछुं...
सारे गाँव वाले - हाँ हाँ...
सत्तू - राजा साहब... मैं पूछूं...
भैरव सिंह - ठीक है पूछो...
सत्तू - राजा साहब... कई पीढ़ियां चली गई... किसीने भी ना त्योहार मनाया... ना किसीको मनाते देखा... ऐसे में... आज जब इन्हें खबर लगी के होली मनाने के लिए... इस बार क्षेत्रपाल महल से इजाजत मिली है... तो इन्हें विश्वास नहीं हुआ... सच और झूठ जानने यह लोग आए हैं... (गाँव वालों से) क्यूँ गाँव वालों... सही कहा ना...

सभी गाँव वाले हाँ कहते हैं l इसके बाद सत्तू चुप हो जाता है l भैरव सिंह भीमा की ओर इशारे में चुप रहने के लिए कहता है और भीमा के बगल में खड़े बल्लभ को इशारा कर लोगों से होली के बारे में कहने के लिए कहता है l

बल्लभ - गाँव वालों... तुम लोग जानते हो... राजा तुम लोगों के लिए कितना कुछ सोच रहे हैं.. कितना कुछ कर रहे हैं... आज सुबह जब मालुम हुआ... तुम्हारे बच्चों ने... कृष्न विमान नगर परिक्रमा कराए हैं... तो राजा साहब कहा... त्योहार अधूरा ना रह जाए... इसीलिये अपने लोगों के जरिए... तुम लोगों तक खबर पहुंचाई है... ताकि तुम लोग होली... परंपरा के अनुसार मनाओ... (बल्लभ रुक जाता है)
सत्तू - बोलो... राजा भैरव सिंह की...
सारे गाँव वाले - जय...
हरिया - राजा साहब... यह हमारा परम भाग्य है... के आपके शासन में हम... यह दिन देख रहे हैं... राजा साहब... हमारी एक छोटी सी प्रार्थना है... (भैरव सिंह समझ चुका था हरिया क्या प्रार्थना करने वाला है इसलिये उसे कहने के लिए इशारा करता है) राजा साहब... ऐसा पहली बार हो रहा है... वह भी आपके आशीर्वाद से... अगर इस मौके पर... आप हमारे साथ.. हमारे पास रहते... तो बड़ी कृपा होगी...
भीमा - ऐ हरिया... अपनी औकात में रह... थामने के लिए हाथ दिया तो कंधे पर चढ़ कर कान में मूतने की बात कर रहा है...
हरिया - (डर के मारे) ना ना.. महाराज ना... ऐसी गुस्ताखी... सपने में भी नहीं कर सकते हम... वह तो... (आगे कुछ कह नहीं पाता, अपना सिर झुका लेता है l भैरव सिंह बल्लभ को आगे की बात कहने के लिए इशारा करता है)
बल्लभ - देखो... तुम लोग आज... त्योहार मनाने जा रहे हो... यह तुम लोगों के लिए बहुत बड़ी बात है... राजा साहब... तुम लोगों की इच्छा का मान रखते... पर... आज तहसीलदार के साथ राजा साहब की... ज़रूरी मीटिंग है... इसलिए... राजा साहब आज राजगड़ में नहीं रहेंगे...
- पर आप लोग मन खराब ना करें... (उदय आकर पहुँच कर कहने लगता है) राजा साहब ने... वकील बाबु को कह दिया है... आप लोगों के बीच खुद वक़ील बाबु रहेंगे... आपके साथ त्योहार मनाएंगे...

लोग यह सुन कर खुशी के मारे ताली बजाने लगते हैं l बल्लभ का चेहरा उतर जाता है l बड़े दुखी मन से भैरव सिंह की ओर देखता है l भैरव सिंह इशारे से उसे अपनी सहमती जताता है l बल्लभ अपनी दांत पिसते हुए उदय की ओर देखने लगता है l उदय भी हँसते हुए लोगों के साथ ताली बजाते हुए बल्लभ की ओर देखने लगता है l बल्लभ को उदय के चेहरे पर छाई हुई भाव समझ में नहीं आता l दुसरे तरफ गाँव के सारे लोग भैरव सिंह के नाम की जयकारा लगाते हुए उल्टे पाँव महल की परिसर से निकलने लगते हैं l लोगों को उल्टे पाँव पीछे लौटते हुए देख भैरव सिंह के चेहरे पर गुरुर से भरी मुस्कान छा जाती है l

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कटक चेट्टी मैशन
एक बड़ा सा कमरा जहां चार लोग हैं l एक ओर ओंकार बैठा हुआ है और दुसरी तरफ केके और रॉय बैठे हुए हैं l उनके बीच एक बड़ी सी टी पोए है जिस पर तीन खाली ग्लास तीन चार प्लेट में चखना रखा हुआ है l चौथा बंदा उन खाली ग्लास में शराब डाल कर पैग बना रहा है l पैग बन जाने के बाद वह पहले ओंकार को देता है फिर केके को देता है और तीसरा उठा कर बगल में बैठे रॉय को देता है और तीनों से अलग सोफ़े पर बैठ जाता है l वे तीनों चियर्स करते हैं और सीप लेने लगते हैं l

केके - चेट्टी साहब... आपको नहीं लगता... हम थोड़े लेट हो रहे हैं...
चेट्टी - नहीं केके... कोई देरी नहीं हो रही है... इलेक्शन को और भी टाइम है... उससे पहले... क्षेत्रपाल वर्तमान के भूगोल से इतिहास हो जाएगा... तुम बस धैर्य रखो...
केके - (चेट्टी से ) चेट्टी बाबु... आपका वह बंदा कहां तक पहुँचा...

चेट्टी - जहां उसे पहुँचना चाहिए था...
रॉय - केके साहब... आप उतावले बहुत हो रहे हो...
चेट्टी - कोई बात नहीं... इनकी तसल्ली के लिए कह देता हूँ... जब से वीर उस लड़की से शादी कर अलग रहने लगा है... तब से मेयर क्षेत्रपाल पुरी तरह से टुट गया है... दिन रात शराब के नशे में डूबा रहता है... उसके घाव में नमक मिर्च उस दिन रगड़ गया... जिस दिन... एडवोकेट सेनापति की किडनैपिंग फैल हुआ...
केके - हाँ... पर हमें क्या फायदा हुआ... कोई तीसरा आकर उन्हें बचा ले गया...
चेट्टी - देखो केके... बड़े ऐहतियात से.... मैंने उस बंदे को... पिनाक के पास रखवाया है... पिनाक ना तो उसके बारे में जानता है... ना हमारे बारे में... हमारा आदमी... धीरे धीरे... पिनाक की दिमाग को अपने कब्जे में कर चुका है... तुम बस मजे देखते जाओ...
केके - (एक ही साँस में ग्लास खत्म कर देता है) एक बार... शॉक के चलते... दिल का दौरा पड़ चुका है... दुसरा दौरा पड़ने से पहले... मैं क्षेत्रपाल परिवार की बर्बादी देखना चाहता हूँ...
रॉय - आप खामख्वाह छटपटा रहे हैं... अब तो छटपटाने की बारी क्षेत्रपालों की है...
केके - दुनिया चाहे कुछ भी कहे रॉय... मगर मैं मानता हूँ... मेरे बेटे का कातिल वही... वीर सिंह है... जो जिंदगी मेरे बेटे ने जी नहीं... उसे वीर सिंह को जीता देख कर... मेरे सीने में सांप लौट रहे हैं...
चेट्टी - शांत केके शांत... मेरा बंदा पिनाक के पास रह कर वही प्लानिंग कर रहा है... तुम मुझे देखो... मैं कितनी शिद्दत से... क्षेत्रपाल के बर्बादी की इंतजार में दिन गिने जा रहा हूँ... और मुझे मालुम है... क्षेत्रपाल बर्बाद होने वाले हैं...
केके - आपने आपके बेटे के हत्यारे को छोड़ दिया... मुझसे वह नहीं हो सकता...
चेट्टी - (चेहरा अचानक कठोर हो जाता है) तुमने यह कैसे सोच लिया... सरकारी रिपोर्ट चाहे कुछ भी कहे... मुझे बस इतना मालुम है... मेरे बेटे का कातिल विश्व प्रताप है...

इतना कह कर चेट्टी चुप हो जाता है l अपना पैग खाली करने के बाद चौथे बंदे से पैग बनाने के लिए इशारा करता है l चेट्टी के चेहरे पर आए बदलाव को देख कर केके और रॉय थोड़ा दब जाते हैं l पैग बन जाने के बाद चेट्टी पैग उठा कर कहता है l

चेट्टी - फ़िलहाल विश्व और मेरा दुश्मन एक ही है... विश्व अपने काम में तेजी से आगे बढ़ रहा है... तुम जानते हो... और मानते भी होगे... क्षेत्रपाल का खात्मा विश्व ही कर सकता है... उसके पीछे उनकी निजी वज़ह है... पर विश्व जो नहीं जानता... वह यह कि... उसका काम खत्म होने के बाद... मैं उसे मरवा दूँगा...
केके - किससे... रंगा से... विश्व का नाम सुनते ही... जिसका पिछवाड़े में से झाग निकलने लगती है...
चेट्टी - हा हा... हा हा हा हा... अरे यार चेट्टी... शेर को मारने के लिए... शिकारी चाहिए... कुत्तों की बस की बात होती... तो विश्व कब का अपने भगवान का प्यारा हो चुका होता... यह वह शतरंज की बिसात है... जहां के तीसरे खिलाड़ी हम हैं...
रॉय - और हमारी चालों से... दोनों खिलाड़ी मारे जाएंगे... चियर्स...

केके खुश होता है और इस बार अपना पैग उठा कर खत्म कर देता है l चखने की प्लेट से चिकन टंगड़ी उठा कर खाते हुए रॉय से पूछता है l

केके - अच्छा रॉय... अब वीर की क्या खबर है...
रॉय - केके साहब... वीर बस अपनी जिंदगी एंजॉय कर रहा है... हम फ़िलहाल गैलरी में बैठ कर देख रहे हैं...
केके - क्या प्लान बनाया था... विश्व और क्षेत्रपाल के बीच की दुश्मनी में... पेट्रोल डालने के लिए... पर..
चेट्टी - इसलिए तो कह रहा हूँ... थोड़ा धीरज धरो... अब जोडार के सिक्योरिटी... सेनापति दंपति की रखवाली चुस्ती के साथ कर रही है... और वीर की रखवाली... विक्रम की ESS के... स्पेशल कमांडोज कर रहे हैं... कुछ भी किया... तो यह हरकत हमें पर्दे के पीछे से खिंच कर बाहर ले आएगी... मौका आयेंगी... हमें बस भुनाना है...
केके - ठीक कहा आपने...

अपना ग्लास रख कर, चौथे बंदे से पैग बनाने के लिए कहता है, जैसे ही वह बंदा पैग बनाने के लिए बोतल उठाता है तो रॉय उसे रोक लेता है l

रॉय - अब बस भी कीजिए केके सर... कितना और जिगर जलायेंगे... एक बार दौरा पड़ चुका है... कम से कम... क्षेत्रपाल की बर्बादी तक तो जिगर संभालीए...
चेट्टी - हाँ केके... रॉय ठीक कह रहा है...
केके - जिसका जिगर का टुकड़ा ही नहीं हो... उसका जिगर क्या जलायेगा... यह दो कौड़ी का शराब...
केके - प्लीज...
चेट्टी - रॉय... एक काम करो... केके को... ले जाओ और उसके घर पहुँचा दो...
रॉय - ठीक है...

रॉय केके को अपने कंधे से सहारा देकर उसे बाहर ले जाता है l वह चौथा बंदा भी रॉय का साथ देता है l दोनों केके को गाड़ी में बिठा कर विदा करते हैं l केके की गाड़ी जाने के बाद रॉय भी अपना गाड़ी लेकर केके के गाड़ी के पीछे पीछे उस मैंशन से बाहर निकल जाता है l सबके चले जाने के बाद वह चौथा बंदा कमरे में आता है जहां चेट्टी टी पोए के ऊपर दोनों पैर फैला कर शराब की चुस्की ले रहा था, उस बंदे को कमरे में देख कर

चेट्टी - चले गए सब...
बंदा - हाँ...
चेट्टी - ह्म्म्म्म आओ बैठो... (शराब की ग्लास को दिखाते हुए) इसे मिलकर खत्म करते हैं...
बंदा - नहीं... मुझे नहीं करना...
चेट्टी - क्यूँ... नाराज हो... अरे नाराजगी छोड़... बहुत जल्द अपना राज वापस लौटने वाले हैं...
बंदा - कब तक... मैं तो जैसे फुटबॉल हो गया हूँ... इधर से लतीया जाता हूँ... और उधर से...
चेट्टी - ऐ... क्या कहना चाहता है तु... मैं तुझे लतीया रहा हूँ...
बंदा - वह... मुहँ से बरबस निकल गया... मेरे कहने का वह मतलब नहीं था... मेरा मतलब है... मुझे कब दुनिया के सामने आप लाओगे... कब मैं अपनी असली पहचान के साथ... सबके सामने आऊँगा...
चेट्टी - तु भी ना... केके की तरह बड़ा बेसब्रा है... मैंने अपना सब कुछ तेरे नाम कर तो दिया है... फिर... ऐस तो कर रहा है ना... ठंड रख ठंड... तु बस अपने काम में लगा रह... इस बार चोट कुछ ऐसा हो... के क्षेत्रपाल पूरा का पूरा... तितर-बितर हो जाएगा... उसके बाद मैं तुझे डंके की चोट पर... दुनिया के सामने लाऊँगा...
बंदा - मैं तो कब से लगा हुआ हूँ... अब तक... सारे वार खाली गए हैं...
चेट्टी - कहाँ खाली गए हैं... देखा नहीं... क्षेत्रपाल टुट रहे हैं... बिखर रहे हैं... हमें मालूम है... कहाँ कब चोट मारना है... उन्हें मालुम नहीं है... चोट कौन मार रहा है... (चेहरा बहुत सख्त हो जाता है) क्षेत्रपाल... मुझे वैशाखी बना कर... भुवनेश्वर आए... राजनीति में पाँव जमाए... जब मतलब निकल गया... हरामियो ने... मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया... मेरा बेटा यश को बचा सकते थे... साले हरामी... उसे मरने के लिए छोड़ दिया...

कहते कहते चेट्टी चुप हो जाता है, उसके गाल फडफडाने लगते हैं l दांत पीसने लगता है l उसकी यह हालत देख कर वह बंदा उसके पास बैठता है और उसके हाथ पकड़ कर कहता है l

बंदा - मैं हूँ ना... आपका बदला लेने के लिए...
चेट्टी - (उसके कंधे पर हाथ रखकर) तु मुझे मिला... इसलिए तो क्षेत्रपाल से बदला लेने की सोचा... वर्ना मैं तो खुद को लावारिस समझ कर... मरने की सोच रहा था... (चेट्टी अपने पैर नीचे कर सोफ़े से उठ खड़ा होता है) आज मैं खुश हूँ... यश की मौत लावारिस नहीं है... ना ही वह विरासत जो मैंने कमाई है... वह लावारिस है... तु उसका वारिस है... लावारिस तो अब क्षेत्रपाल होगा... हाँ लावारिस तो क्षेत्रपाल होगा...

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अनु कमरे में चहल कदम कर रही है, दीवार पर लगी घड़ी की ओर देख रही थी l थोड़ी देर बाद कॉलिंग बेल की आवाज़ आती है l कॉलिंग बेल की आवाज़ सुनते ही अनु के चेहरे पर पर रौनक आ जाती है l भाग कर जाती है दरवाजा खोलती है l सामने वीर काले, नीले, पीले, लाल आदि रंगों में पुता हुआ खड़ा था l उसे इस हालत में देख कर पहले अनु चौंकती है फिर जोर जोर से हँसने लगती है l

अनु - (हँसते हुए) यह... क्या हाल बना रखा है आपने... होली तो कल है... आज खेल कर आ गए क्या...
वीर - हाँ हाँ हँस लो... कल होली की छुट्टी है... इसलिए सारे स्टाफ ने... मुझे आज रंगों में पुत दिया...
अनु - ठीक है... जाइए आप नहा धो लीजिए...
वीर - (अंदर आ कर) अरे सिर्फ रंग ही तो है... वह भी होली वाली... थोड़ा रहने तो दो... (सोफ़े पर बैठ जाता है)
अनु - अरे... सोफ़े पर रंग लग जाएगा...
वीर - तो क्या हुआ... नए कवर ला देंगे...

अपना सिर हाँ में हिला कर अनु मुस्करा कर वीर के पास खड़ी होती है l वीर अपना हाथ अनु की ओर बढ़ाता है l अनु अपना हाथ देती है l वीर उसे अपने ऊपर खिंच लेता है l अनु घुमती हुई वीर के गोद में बैठ जाती है l वीर अनु के कंधे पर अपना चेहरा रख कर कहता है

वीर - आह... क्या जिंदगी है अनु... सुबह मुझे टिफिन कैरेज के साथ जब विदा करती है... तेरे आँखों में... बिछड़ने का दर्द को मुझे महसूस होता है... और जब वापस आता हूँ... तेरे चेहरे पर ग़ज़ब की खुशी देखता हूँ... कितना सुकून मिलता है... क्या कहूँ... (फिर अनु के कंधे पर अपने सिर को अनु के साथ झूमते हुए हिलने लगता है) अनु...
अनु - हूँ...
वीर - कुछ बोल ना...
अनु - क्या कहूँ...
वीर - कुछ भी... मुझसे बातेँ कर... पुछा कर... दुनिया भर की... कचर कचर सुन सुन कर... खीज जाता हूँ... पर जब तेरी आवाज सुनता हूँ... आह.. ऐसा लगता है... कानों में शहद घुल रही है...
अनु - हूँ...
वीर - क्या हूँ...
अनु - मतलब हाँ... मतलब हूँ...
वीर - ना... आज मेरी अनु को कुछ हो गया है...
अनु - सच मुझे कुछ नहीं हुआ है...
वीर - झूठ...
अनु - सच्ची...
वीर - ऊँ हूँ... यह मेरी अनु का स्टाइल नहीं है...
अनु - अच्छा... फिर आपके अनु का स्टाइल क्या है...
वीर - मेरी हर बात पर मुझे झूठा कहना... यह मेरी अनु का स्टाइल है...
अनु - (हँस देती है) धत...
वीर - क्या धत... (अनु के कान के पास चूम कर) बोल ना...
अनु - क्या...
वीर - झूठे...
अनु - पहले मुझे छोड़िए...
वीर - (किसी बच्चे की तरह मासूमियत के साथ पूछता है) क्यूँ... तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा...
अनु - सोफा गंदा हो गया... साथ साथ... मेरे कपड़े भी गंदे हो गए हैं... (हाथ छुड़ा कर उठ खड़ी होती है) चलिए... जाइए... आप नहा धो कर पहले साफ हो जाइए...
वीर - तुम कहना क्या चाहती हो... मैं गंदा हूँ... अरे मेरी जान... इसे गंदा होना नहीं.. रंगना कहते हैं... और यह आज से नहीं... तब से... जब से तुझे देखा था...
अनु - (समझ नहीं पाती) म.. मतलब...
वीर - अरे मेरी प्यारी अनु... मैं तो तेरे प्यार में कब से रंगा हुआ हूँ... आज तो बस रंग उभरा है... इसलिए दिख रहा है...
अनु - अच्छा... (अपने बदन पर लगे रंग दिखाते हुए) तो यह... अब क्यूँ उभरा है...
वीर - अब तक मैं तेरे रंग में रंगा हुआ था... आज मैंने तुझे रंग दिया है...
अनु - (मुहँ पर पाउट बना कर) झूठे...
वीर - ओ.. हो.. जान... अब बहुत अच्छा लगा... चलो... मिलकर साफ होते हैं...
अनु - क्या... छी...
वीर - इसमे छी वाली बात कहाँ से आ गई...
अनु - (सिर नीचे की ओर कर आँखे मूँद कर बाथरूम की ओर हाथ दिखा कर ) जाइए... पहले आप नहा धो लीजिए...

वीर किसी मासूम बच्चे की तरह मुहँ बना कर भारी पाँव से बाथरूम की ओर जाने लगता है l धीरे धीरे अनु अपना सिर उठा कर आँखे धीरे धीरे खोलती है वीर को भारी कदमों के साथ जाते देख अपनी हँसी दबा देती है l वीर बाथरूम के पास पहुँच कर पीछे मुड़ता है और आवाज देता है l

वीर - अनु...
अनु -.....
वीर - ए अनु... (मासूम सा मुहँ बना कर)
अनु - (अपनी हँसी दबा कर) क्या है...

वीर अपनी बाहें खोल देता है और मुस्कराते हुए अनु की ओर देखता है l अनु भी मुस्कुराते हुए भाग कर वीर के गले लग जाती है l वीर उसे बाहों में उठा लेता है के अनु के पैर फर्श से कुछ इंच उपर रह जाती हैं l


वीर - आख़िर मेरी बाहों में आ गई...
अनु - वादा जो लिया था आपने... जब भी बाहें खोलेंगे... मैं आपकी बाहों में समा जाऊँगी...
वीर - जानता हूँ... तु मुझसे बहुत प्यार जो करती है...

ऐसे ही बाहों में उठाए वीर अनु को बाथरूम में ले जाता है और शावर के नीचे खड़ा हो जाता है l अंदर पहुँचने के बाद

अनु - आपने... अपनी कर ली..
वीर - कहाँ... अब शुरु करना है...
अनु - अच्छा... और मुझे क्या करना होगा...
वीर - आज मैंने तुम्हें रंग दिया है... तो तुम गाना गा लेना...
अनु - क्या...
वीर - हाँ... तुम गाना..
रंगीला रे... तेरे रंग में... यूँ रंगा है... मेरा मन...
छलीआ रे... ना बुझे है... किसी जल से.. यह जलन...

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रुप आज खुद को संवार रही थी l माथे पर चमकता हुआ सफेद बिंदी लगा कर आईने में खुद को निहार रही थी l ड्रायर से लिपस्टिक निकाल कर अपनी होठों को रंगने लगती है l कभी मुहँ पर पाउट बना कर तो कभी मुस्करा कर बार बार खुद को देखने लगती है l फिर आईने के सामने से उठ कर खिड़की के पास आती है l रौशनी मद्धिम पड़ रही थी l वह अपनी वैनिटी पर्स से एक एक अठ्ठन्नी की कॉइन निकाल कर खिड़की पर लगे ग्रिल की स्क्रू एक एक कर खोलने लगती है l सारे स्क्रु खुल जाने तक अंधेरा छा चुकी थी l अब अपने बेड पर आकर चेहरे को बेड के हेड रेस्ट पर रख कर विश्व की राह देखने लगती है l कभी बाहर तो कभी घड़ी देख की ओर देखने लगती है l जैसे जैसे वक़्त गुज़रता जा रहा था वैसे वैसे रुप खीज ने लगी थी l चिढ़ कर अपना मोबाइल निकाल कर विश्व को कॉल लगाती है, पर विश्व की फोन पर उसे कॉल बिजी की ट्यून सुनाई देती है l ऐसे कुछ देर बाद जब विश्व के फोन पर रुप की कॉल लगती नहीं तो चिढ़ कर फोन को बेड पर पटक देती है l खिड़की की तरफ़ देखते हुए अपना सिर हेड रेस्ट पर रख कर विश्व की राह तकने लगती है l

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सारे गाँव वाले उस मैदान में जमा हो गये हैं l अपने हाथों में अपने अपने हिस्से के लकड़ी, गोबर के उपले आदि लेकर l जिस भाड़े पर होलिका का पुतला बैठी हुई थी l उसी पुतले के नीचे जलन की लकड़ियां जमा कर उस के ऊपर उपलों को भी सजाने लगे l कुछ लोग अपने कंधे और गले में ढोल,चांगु थाली लटकाये हुए थे, और किन्ही किन्ही के हाथों में शंख भी था l यह सारे दृश्य को उदय, बल्लभ के हाई रीजोल्युशन मोबाइल के जरिए शूट कर रहा था और मोबाइल नेटवर्क के जरिए ट्रांसमिशन कर रहा था l यशपुर में अपने क्षेत्रपाल पंथ निवास में बल्लभ के ही लैपटॉप पर भैरव सिंह लाईव देख रहा था उसके बगल में बल्लभ एक अलग कुर्सी पर बैठा हुआ था l थोड़ी दुर पर भीमा खड़ा हुआ था l भैरव सिंह देखता है कि हाथ में एक बड़ा से थैला भर कर सत्तू कुछ दारु की बोतलें निकालता है और लोगों के बीच पहुँच कर उन सबमें बाँटना शुरु करता है l उसे यूँ लोगों में दारु बांटता देख कर भैरव सिंह लैपटॉप का वॉयस ऑफ कर सवालिया नजरों से भीमा की ओर देखता है l

भीमा - वह... हुकुम... उदय ने बोला था...
बल्लभ - पर क्यूँ...
भीमा - उदय ने कहा... की लोग अगर नशे में रहेंगे... तो आगे बात को संभाला जा सकता है... और गलती से दरोगा से कोई हरकत हो भी गई तो... नशे में धुत लोगों का ध्यान उस तरफ़ नहीं जाएगा...
भैरव सिंह - (एक शातिर मुस्कान खिल उठता है) ह्म्म्म्म... बहुत ही खतरनाक दिमाग पाया है... यह उदय...
बल्लभ - राजा साहब... बुरा ना माने तो एक बात कहूँ...
भैरव सिंह - हूँ... कहो...
बल्लभ - मुझे लग रहा है... जैसे... उदय हमारे जरिए... मेरा मतलब है... हमारी आड़ लेकर... अपना खुन्नस उतार रहा है...

भैरव सिंह चुप रहता है और बल्लभ की ओर अपना भौह चढ़ा कर देखता है l बल्लभ के जिस्म में एक सुर सूरी सी सिहरन दौड़ जाती है l

भैरव सिंह - हमें लगता है... तुम अपनी दोस्त के होने वाले अंजाम को देखने से पहले... बहक रहे हो... (बल्लभ अपना सिर झुका लेता है) बात को पुरी करो...
बल्लभ - र राज आ.. साहब... मुझे माफ करें... जिस तरह से... वह बढ़ चढ़ कर... दरोगा के खिलाफ यह सब किए जा रहा है... मेरे मन में.. शंका पैदा कर रहा है...
भैरव सिंह - क्यूँ... तुम इस उदय से पहले से परिचित नहीं हो...
बल्लभ - कभी कभी उसे... रोणा के क्वार्टर में देखा था... रोणा के क्वार्टर में... रोणा के सारे काम किया करता था... यहाँ तक कि... विश्व पर निगरानी का जिम्मा भी... रोणा ने... उदय पर सौंप रखा था... इतना मालुम था कि... यह कंपेंशेशन ग्राउंड में... ग्रेड फॉर कटेगरी में... ग्राम रखी कि नौकरी कर रहा था... रोणा ने इसे... कांस्टेबल बनाने का वादा किया था...
भैरव सिंह - तो अब तक... पूरी वफ़ादारी के साथ... इस उदय ने... रोणा का काम किया है... अब हमसे वफादारी कर रहा है...
बल्लभ - मैं इसी बात पर हैरान हूँ... रोणा से उसकी वफ़ादारी... अब अचानक से... (एक पॉज लेकर) अब रोणा की जान पर आ गई...

भैरव सिंह कुछ सोच में पड़ जाता है,

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रुप की आँखे बंद थीं l उसे हल्का सा ठंडक महसूस हो रही थी l वह सिकुड़ कर अपनी बाहों को अपने गले और कंधों के पास कस लेती है l तभी उसे महसूस होता है कि कोई फूंकते हुए उसके चेहरे पर लटों को हटा रहा है l रुप के चेहरे पर पर एक खुशी भरी मुस्कान छा जाती है l हल्का सा आँख खोलती है l उसके आँखों के विश्व का चेहरा दिखता है, बहुत ही करीब था विश्व का चेहरा l विश्व को देखते ही

रुप - मुझे मालुम था... यह तुम ही होगे... (कह कर रुप फिर से अपनी आँखे बंद कर लेती है) आह... अनाम... कितना प्यारा सपना है... कास के इस सपने से कभी बाहर ही ना निकलुं... हकीकत में तो तुम आए नहीं... पर सपने में आए हो... प्यार जता रहे हो... कितना अच्छा लग रहा है.. उम्म्म्म्...

अचानक रुप अपनी आँखे खोलती है l विश्व का चेहरा रुप के चेहरे के पास ही था l वह अब सीधे हो कर बैठती है l अपने चारों तरफ देख कर चौंकती है और बड़ी बड़ी आँखों से हैरानी भरे नजरों से देखने लगती है l रुप एक नाव पर थी l एक चौपाई के सिरहाने सिर टिका कर सोई हुई थी l नाव बीच नदी में था l यह देख कर रुप चिल्लाने को होती है कि विश्व उसके मुहँ पर हाथ रख देता है l रुप अपने मुहँ से विश्व की हाथ हटाने के लिए छटपटाती है l जब थक जाती है

विश्व - हाथ निकालूँ...

अपना सिर हिला कर हाँ कहती है, विश्व रुप की मुहँ से हाथ हटाता है, रुप विश्व की हाथ पकड़ कर अपने दांतों से काटती है l विश्व चिल्लाते चिल्लाते रह जाता है और अपने बाएं हाथ से अपना मुहँ दबा लेता है l

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कुछ शोर शराबा सुनाई देने लगता है तो अपना ध्यान लैपटॉप पर चल रहे दृश्य पर गाड़ देता है l देखता है सत्तू सबको शराब पीने के लिए उकसा रहा है l

सत्तू - यह लो... ऐस करो... आज का यह दारु मेरे तरफ से.. जी भर के पियो...
एक गाँव वाला - अरे सत्तू पहलवान... तुझे कौनसा ख़ज़ाना मिल गया है... जो आज तु ऐसे लूटा रहा है...
सत्तू - अरे ताऊ... आज पहली बार... होली जलाई जाएगी... कल होली खेली जाएगी... क्या यह कम बड़ी बात है... इसलिए पिलो... आज फोकट में दे रहा हूँ... कल से तुमको अपना जेब ढीला करना पड़ेगा...

सब खुशी के मारे हल्ला मचाते हुए दारु के बोतल उठा कर घुट गटकने लगते हैं l इसी तरह सत्तू सभी गाँव वालों में बोतल बांटने लगता है और लोग अपने हिस्से आई बोतल को खाली करने लगते हैं l

भैरव सिंह - यह सत्तू... कह रहा था... बच्चों ने आज... विमान परिक्रमा कारवाई... पर यहाँ पर बच्चे बिल्कुल दिख नहीं रहे हैं... (इस पर बल्लभ चुप रहता है, तो इसबार भैरव सिंह भीमा की ओर देखता है)
भीमा - हुकुम... औरतें भी तो नहीं दिख रहे हैं... हो सकता है... डर के मारे नहीं आए हों... मतलब.. उन्हें अभी भी यकीन नहीं हो रहा हो...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... (लैपटॉप का वॉयस ऑन कर) उदय...
उदय - जी हुकुम...
भैरव सिंह - गाँव से सिर्फ मर्द ही आए हैं क्या... औरतें और बच्चे...
उदय - (ट्रांसमीशन करते हुए) हुकुम... औरतें और बच्चे... कुछ दूरी पर खड़े हैं...


कह कर मोबाइल घुमाता है, भैरव सिंह देखता है कि एक जगह पर गाँव की औरतें और बच्चे सभी खड़े हो कर तमाशा देख रहे हैं l बच्चे पास जाने के लिए उतावले हो रहे हैं l पर उनकी माँएँ उन्हें जाने से टोक रहे हैं l उन लोगों के भीड़ में भैरव सिंह को वैदेही खड़ी नजर आती है l जिसका चेहरा भाव शून्य सा लग रहा था l

भैरव सिंह - ठीक उदय... मोबाइल दहन की जगह दिखाओ...

उदय वैसा ही करता है l कुछ देर बाद कुछ अचानक ढोल, चांगु बजने लगते हैं l महरी तुरी भेरी बजने लगते हैं l कुछ लोगों के हाथों में जलते हुए मशाल दिखते हैं l एक गाँव वाला मशाल फेंकने को होता है कि उसे सत्तू रोक देता है l

सत्तू - नहीं नहीं... ऐसे नहीं...
गाँव वाला - फिर कैसे...

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रुप विश्व की हाथ छोड़ देती है l विश्व हाथ को फूंकने लगता है l रुप की और देखता है l रुप अपनी आँखे सिकुड़ कर विश्व को देख रही थी l

रुप - मैं समझ रही थी... के मैं सपना देख रही हूँ... पर... मैं सच में... नाव पर हुँ... कब आई... कैसे आई...
विश्व - क्यूँ... आप खुद को यहाँ देख कर थ्रिल नहीं हुईं..
रुप - थ्रिल... पहले मैं डर गई... बात समझने के लिए... कुछ वक़्त लगा मुझे... तुम... मुझे यहाँ तक कैसे लाए... और... मैं सो कैसे गई थी...
विश्व - (चुप रहता है)
रुप - देखो मुझे सब सच सच बताओ... वर्ना...
विश्व - वर्ना...
रुप - वर्ना... आज पूरा गाँव... विश्व प्रताप को चीख मारते हुए सब देखेंगे... इतनी जोर से ऐसे काटुंगी के...

कहते कहते रुक जाती है और जोर जोर से साँस लेने लगती है, विश्व उसे इस हालत में देख कर पहले हैरान हो जाता है l फिर हँस डेट है l उसे यूँ हँसते देख कर रुप और भी ज्यादा चिढ़ जाती है l

रुप - (मुहँ बना कर, मुहँ फ़ेर कर बैठ जाती है) जाओ मैं तुमसे बात नहीं करती...
विश्व - (रुप के पास आकर बैठ जाता है) मैं छुप कर देख रहा था,.. कैसे एक परियों की रानी... मेरे लिए सज रही थी... सँवर रही थी... फिर देखा उसकी आँखे लग गई थी... तो मैंने... एक रुमाल में थोड़ा सा क्लोरोफॉर्म डाल कर... उसकी नींद को थोड़ा गहरा कर दिया... बस... फिर उसे अपने पुराने तरीके से... खिड़की से नीचे उतारा... और उसी नींद के हालात में... यहाँ... नाव पर चौपाई के सहारे बिठा दिया...
रुप - (अपना मुहँ बना कर, फिर से मुहँ फ़ेर लेती है) हूँ ह...
विश्व - क्या आप... थ्रिल नहीं हुईं...
रुप - थ्रिल... थ्रिल तो तुम्हें महसुस हुआ होगा... अगर मैं होश में होती... तो वह थ्रिल मैं भी महसुस करती ना...
विश्व - मैं आपको... यह सारा एहसास... सपने की तरह महसुस कराना चाहता था... (एक पॉज लेकर) बुरा लगा...
रुप - (विश्व की ओर बिना देखे अपना सिर ना में हिलाती है)
विश्व - सॉरी... वेरी सॉरी... आप जो भी सजा देंगे.. (अपने घुटनों पर बैठ कर) मुझे कुबूल होगी...
रुप - (मुड़ती है) खड़े हो जाओ... (विश्व खड़ा हो जाता है, रुप उसके सीने पर मुक्के मारने लगती है, पर विश्व वैसे ही खड़ा रहता है) मैं तुम पर मुक्के बरसा रही हूँ... और तुम हो कि...
विश्व - आह... ओह... उह... (करने लगता है)

रुप को और भी ज्यादा गुस्सा आता है l विश्व को धक्का देती है विश्व थोड़ा पीछे हटता है l फिर रुप उस पर कुदी मारती है l विश्व अब पीठ के बल गिरता है और रुप उसके ऊपर गिरती है l विश्व के पेट पर बैठ कर विश्व की कलर पकड़ लेती है l

रुप - होगे तुम बड़े तुर्रम खान... पर मैं भी तुम्हें हरा सकती हूँ... समझे...
विश्व - जी.. आपसे जितने कि... सोच भी नहीं सकता कभी...

रुप शर्मा जाती है, पर विश्व की कलर नहीं छोड़ती l विश्व रुप की दोनों हाथों को पकड़ लेता है और अपना चेहरा थोड़ा किनारा कर आसमान की ओर देखता है फिर रुप की ओर देखता है l ऐसा दो तीन बार करता है l

रुप - ऐसे क्या देख रहे हो...
विश्व - आज पूनम की रात है... मैं आपके चेहरे को और चांद को देख रहा था... और इतरा रहा था
रुप - क्यूँ...
विश्व - उस चांद का कहाँ मुकाबला होगा... (रुप के चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर) मेरे इस चांद के आगे...

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सत्तू - जैसे बचपन में... घो घो राणी खेलते थे ना...
गाँव वाले - हाँ...
सत्तू - वैसे ही... इस होलिका भाड़े के चारो ओर... घूमो... फ़िर आग लगा ओ...

सत्तू की बात मान कर, हाथों में मशाल लिए सारे मर्द दहन मंच के घेर कर घूमने लगते हैं l शराब धीरे धीरे उन पर असर कर रहा था l लोग मशालों को घुमा घुमा कर एक तरह से उद्दंड नृत्य कर रहे थे l तभी एक गाँव वाले की नजर होलिका की पुतले पर पड़ती है l उसे लगाकि वह पुतला हिल रही थी l वह रुक जाता है और डर के मारे कांपने लगता है l उसे रुकता देख कर उसके साथी भी रुक जाते हैं और उससे पूछने लगते हैं

- अबे क्या हुआ... रुक क्यूँ गया
वह - होलिका हिल रही है...
गाँव वाले - क्या...

सभी रुक कर पुतले को देखने लगते हैं l उधर यशपुर पर सीधा प्रसारण देख रहे भैरव सिंह की भौहें सिकुड़ जाती हैं l तभी सत्तू उन गाँव वालों के पास पहुँचता है l

सत्तू - ओये... क्या हो गया... रुक क्यूँ गए तुम लोग...
वह - होलिका... हिल रही थी...
सत्तू - सालों... कमीनों... होलिका नहीं हिल रही है... दारू बाज कहीं के... तुम सारे हिल रहे हो...
गाँव वाले - हाँ... हाँ... हमें भी यही लग रहा है...
वह - नहीं नहीं... होलिका हिल रही है...
सत्तू - अबे मरदूत... जब नशा संभाल नहीं पाता... तो इतना पिता क्यूँ है... (सारे गाँव वालों से) एक काम करो...
गाँव वाले - क्या...
सत्तू - तुम सब को... दरोगा रोणा याद है... (सब गाँव वाले हैरानी के मारे एक दुसरे को देखने लगते हैं) अबे बोलो... याद है...
एक गाँव वाला - ह... हाँ.. हाँ.. याद है..
सत्तू - जानते हो... वह अभी लापता है... हमारे राजा सहाब के सर्कार उसे ढूँढ रही है...
गाँव वाले - क्यूँ...
सत्तू - उसने लोगों के साथ बहुत बुरा किया है... उसे सजा देने के लिए...
गाँव वाले - (उल्लासित होकर) अच्छा...
सत्तू - हाँ... इसलिए... अब इस पुतले को... कुछ देर के लिए ही सही... दरोगा रोणा समझो... और अपने दिल की भड़ास निकालते हुए... इन लकडिय़ों में आग लगा दो...

गाँव वाले पहले एक दुसरे को देखते हैं l उनके बीच से हरिया आगे आता है और पुतले को देखते हुए चिल्ला कर गला फाड़ कर कहने लगता है

हरिया - अबे हरामी कुत्ते रोणा... बहुत दिनों से खुन्नस था... आज हाथ लगा है तु मेरे... साले कमीने हरामी... यह ले...

कह कर मशाल को पुतले की ओर फेंकता है l मशाल पुतले से लग कर भाड़े से लगे लकडिय़ों पर गिरती है l उसके देखा देखी और एक गाँव वाला सामने आता है और वह भी रोणा को गालियाँ बकते हुए मशाल दे मारता है l इस तरह से लोग एक के बाद एक रोणा को गाली अभिशाप देते हुए अपनी अपनी मशालें फेंक मारते हैं l लकड़ियों में धीरे धीरे आग जलने लगती है l जैसे जैसे आग भड़कने लगती है l लोग जो बाहर ढोल, चांगु, मादल बजाने लगते हैं l ऐसा प्रतीत होता है जैसे ढोल आदि के ताल से ताल बिठा कर लपटें आकाश की ओर उठने लगती हैं l यह सब देख कर जहां भैरव सिंह के दिल में एक सुकून महसूस होती है वहीँ बल्लभ की अंतरात्मा छटपटाने लगती है l
धीरे धीरे आग की लपटें जोर पकड़ने लगती है l उसके साथ साथ लोगों में हल्ला व उल्लास के साथ शोर भी बढ़ने लगती है l ढोल मादल चांगु की ताल से ताल बिठा कर शंख फूंकने लगते हैं l बल्लभ एक नजर भैरव सिंह पर डालता है l भैरव सिंह के आँख उसे जलती हुई दिखाई दे रही थी l लैपटॉप से आ रही हल्ला उल्लास की आवाजें उसके भीतर उसे दहला रही थी l बल्लभ छटपटा रहा था पर अपने अंदर की भावनाओं को बाहर उजागर नहीं कर पा रहा था l

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रुप शर्मा कर विश्व के ऊपर से हट जाती है और नाव के एक छोर पर आ कर नाव पर नजर घुमाने लगती है l वह देखती है दो बड़े नावों को बांध कर उस पर दो लकड़ी के खाट बंधे हुए हैं l सबसे अहम बात ना सिर्फ नाव में वे दोनों ही थे बल्कि बीच नदी में नाव एक दम स्थिर थी l रुप को महसुस होती है विश्व उसके पीछे खड़ा है l

रुप - एक बात पूछूं...
विश्व - पूछिये...
रुप - तुम मुझे यहाँ पर क्यूँ लाए... तुम्हें डर नहीं लगा... हम पकड़े भी जा सकते थे...
विश्व - नहीं... आज हम पकड़े नहीं जाएंगे... क्योंकि... आज महल पुरी तरह से... मर्दों से रहित है... और राजा साहब और उनके खास... कोई भी... महल या उसके आस-पास भी नहीं है... वैसे भी... आपको सरप्राइज पसंद है ना...
रुप - (हैरान हो कर पीछे मुड़ती है) सरप्राइज... तुमने सरप्राइज़ नहीं मुझे शॉक दे दिया था... एक पल के लिए... मुझे तो जोर का झटका लगा था...
विश्व - (मुस्करा देता है)
रुप - वैसे... क्यूँ... (पॉज लेकर) इसका मतलब... तुमने ऐसा क्या किया है.... की वे सारे लोग... (चुप हो जाती है)
विश्व - मैंने कहा था... आप मुझसे जो भी ख्वाहिश करेंगी... उस पल को मैं खास बना दूँगा...
रुप - है... भगवान... मतलब... तुम... इस खेल में कर्ता हो... कारक हो... बाकी सब... क्रिया हैं...
विश्व - (चुप रहता है)
रुप - वाव... तुम कितने परफेक्ट हो...
विश्व - नहीं... कोई कभी भी... परफेक्ट नहीं हो सकता... बस चालें सही बैठ रही हैं... इसलिए... रिजल्ट मन माफिक मिल रहा है... अगर कभी चल गलत बैठ गया... तो लेने के देने पड़ जाएंगे...

दोनों के बीच चुप्पी छा जाती है l रुप फिर से विश्व की ओर पीठ कर खड़ी हो जाती है और चांद की ओर देखने लगती है l विश्व को अब समझ में नहीं आता आगे करे तो क्या करे और कैसे आगे बढ़े l ठंडी हवाएं चलने लगती है l रुप की चूनर उड़ कर विश्व के चेहरे पर लहराने लगती है l विश्व रुप की चूनर को पकड़ लेता है l रुप की धड़कने तेजी से ऊपर नीचे होने लगती है l वह अपनी चुनरी को पकड़ लेती है l विश्व अपने चेहरे पर लहराते हुए चुनरी को झटका देकर खिंचता है l रुप उस झटके के साथ विश्व के सीने पर आ गिरती है l विश्व की हाथ रुप की कमर पर कस जाती है l रुप अपना चेहरा विश्व के सीने में छुपा लेती है l

विश्व - (थर्राती आवाज में) राजकुमारी जी...
रुप - ह्म्म्म्म...
विश्व - आसमान में चाँद मुझसे जल रहा है...
रुप - (सिर नहीं उठाती) ह्म्म्म्म..
विश्व - देखिए ना... कितना खूबसूरत नज़ारा है... चांद की चांदनी में नहाया हुआ इन फ़िज़ाओं में... कल कल आवाज करती बहती नदी पर... दो नाव... उस पर दो प्रेमी... अपनी पहली चुंबन के लिए...

रुप की मुट्ठी विश्व के शर्ट पर कस जाती हैं l चेहरा और भी जोर से सीने में गड़ जाती है l विश्व की हाथ कमर से उठ कर पीठ पर लहराते हुए उठती है l रुप की बदन उसी लहर के नागिन की तरह बलखाने लगती है l विश्व की हाथ रुप के सिर पर आकर रुक जाती है फिर दोनों हाथों से रुप की चेहरे को अपने सामने लाता है l रुप की आँखे बंद थीं l

विश्व - (हलक से बड़ी मुश्किल से आवाज़ निकाल कर) रा.. ज.. राज.. कु.. मारी...
रुप - हूँ...

रुप की चेहरे को अपने चेहरे के पास लाता है और अपना चेहरा धीरे धीरे रुप की चेहरे पर झुकाता है l दोनों की साँसे टकरा रही थी l दोनों की धड़कने बड़ी तेजी से उपर नीचे हो रहीं थीं l वे दोनों एक दूसरे की धड़कनों को साफ सुन पा रहे थे कि नदी की कल कल की आवाज दब गई थी l विश्व और झुकता है रुप की हॉट पर अपना होंठ रख देता है l जैसे ही रुप के होठों पर विश्व की होंठ का स्पर्श अनुभव होती है उसका सारा जिस्म कांप जाती है l उसका बदन हल्का हो जाती है और पैरों के उँगलियों पर खड़ी हो जाती है l उसका हाथ अब फिसल कर विश्व के कमर पर आ जाती है l विश्व अपना हॉट खोल कर रुप की निचली होंठ को चूसने लगता है l रुप की भी प्रतिरोध ढीली पड़ जाती है और उसके होंठ खुल जाती है l धीरे धीरे चुंबन प्रगाढ़ से प्रगाढ़ तक होने लगती है l रुप के हाथ अब विश्व के बालों से खेल रहीं थीं l वहीँ विश्व के हाथ भी अनुरुप रुप के केशुओं में उलझ गए थे l

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होलिका दहन अपने चरम पर पहुँच गया था l लपटों में इतनी तेज थी के अब लोग उसके आसपास भी मंडरा नहीं पा रहे थे l दुर से खड़े हो कर गाँव वाले यह दृश्य देख रहे थे l धीरे धीरे उन लोगों के पास उनके परिवार जमा होने लगते हैं l उनके लिए यह एक अद्भुत दृश्य था l क्यूंकि दशकों से ना तो उनके पुरखों ने कभी त्योहार मनाया था ना ही उन्होंने l पर आज उनके बच्चों के वज़ह से और राजा भैरव सिंह के अनुग्रह से ना सिर्फ होलिका दहन मनाया गया बल्कि इसी राख से कल रंग भी खेला जाएगा l यह दृश्य यशपुर में बैठा भैरव सिंह भी देख रहा था l मन ही मन वह उदय से प्रभावित भी हो गया था l क्यूंकि उसके घर की इज़्ज़त पर किसी ने आँख उठाया है यह बात कोई जान लेता तो ज़रूर कानाफूसी होती l जिस पर उसके साख पर बट्टा लग जाता l वह गाँव वालों को भी सजा देना चाहता था l इस तरह से गाँव वालों का जुर्म भले ही अनजाने में किया गया था पर सबुत बन गया था उसके पास l हो सकता है भविष्य में यह उसके काम आए l जितना संतुष्ट भैरव सिंह था, उतना ही दुखी बल्लभ था l जो भी था जैसा भी था रोणा उसका दोस्त था l हर मामले में वह भैरव सिंह का वफादार था l बल्लभ यह समझ चुका था रोणा से गलती हुई थी पर अपराध नहीं हुआ था l पर भैरव सिंह के डायरि में क्षमा शब्द ही नहीं था l उसकी भी नजर लैपटॉप में घट रहे मंज़र देखे जा रहा था l तभी अचानक वह देखता है कि वह भाड़ा जिस पर रोणा को होलिका बना कर बिठा दिया गया था l वह भाड़ा टुट जाता है और आग की लपटें एका एक और ऊपर उठ जाते हैं l जिसे देख कर लोग उद्दंडता से चिल्लाने लगते हैं l इससे आगे बल्लभ और देख नहीं पाता l क्यूंकि उसे कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था l उसे समझते देर नहीं लगी कि उसकी आँखे बह रही थी l आखेट गृह में नजाने कितने मौत देखे हैं पर आज वह अपना परम मित्र को जिंदा जलते देख रहा था l अपनी आँखे पोंछता है, उसका मन कर रहा था कि वह गला फाड़ कर रोये, पर वह लाचार था l अपनी लाचारी को छुपा कर आपनी आँखे बंद कर लेता है l पर बल्लभ का यह दुख और लाचारी भैरव सिंह के आँखों से छुप नहीं पाती l भैरव सिंह उसकी दुर्दशा को नजर अंदाज कर लैपटॉप में चल रहे दृश्य को गौर से देखे जा रहा था l

भैरव सिंह - अच्छा हुआ... तुम यह सब देखने के लिए... वहाँ नहीं थे... वर्ना... तुम अपनी कमजोरी को जाहिर कर देते... यह उदय ने अच्छा आइडिया दिया था... हमें यशपुर चले आने के लिए... अब तुम्हें इस रेकॉर्डिंग को... एडिट वगैरह कर... एक कंस्पैरी क्रिमिनल ऐक्ट प्रूफ़ बनाना है... क्यूँकी... रोणा ऑफिसियली गायब है... जिसे डेपुटेशन पर आए नया ऑफिसर दास ढूँढ रहा है... पहले कहानी बताओगे... लोग कैसे... रोणा को हस्पताल से गायब किए... उसके बाद... यह विडिओ... सबुत बना कर... दास तक पहुँचाने की जिम्मेदारी तुम्हारी... समझे...
बल्लभ - (जैसे नींद से जागता है) जी... जी.. राजा साहब...

आग की लपटें धीरे धीरे शांत हो रही थी l चूंकि विडिओ कॉल पर था, भैरव सिंह अपना माइक ऑन कर उदय से कैमरा घुमा कर गाँव वालों की तरफ मोड़ ने के लिए कहता है l उदय कैमरा घुमाता है l कैमरा सभी गाँव वालो पर घूमने लगता है l अचानक भैरव सिंह लैपटॉप को उठा कर घूरने लगता है l लैपटॉप को चिपका कर ऐसे देखने लगता है कि मानो वह किसीको कैमरे के जरिए ढूँढ रहा था l धीरे धीरे उसके जबड़े भिंच जाते हैं और चेहरा सख्त हो जाता है l उधर ट्रांसमिशन करते हुए उदय देखता है कि उसका कॉल कट चुका था l

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रुप और विश्व का चुंबन टूटता है l दोनों ऐसे हांफने लगते हैं जैसे मानों कोई मैराथन दौड़ कर आए थे l दोनों अपने अपने सिर एक दुसरे पर टिका कर गहरे गहरे साँस लेने लगते हैं l जब साँसे दुरुस्त होने लगती है तब विश्व अचानक रुप को छोड़ कर थोड़ी दुर जाकर रुप की ओर देखने लगता है l रुप उसे सवालिया नजर से देखती है l

विश्व - (साँसों को संभालते हुए) आपसे वादा किया था... बेशरम हो सकता था... पर बेकाबू... बे लगाम नहीं हो सकता... (रूप कि और पीठ घुमा लेता है)
रुप - (पीछे से आकर पकड़ लेती है और विश्व के सीने पर हाथ फेरने लगती है)
विश्व - राज कुमारी जी...
रुप - (मस्ती के मुड़ में आ चुकी थी) जी कहिये मेरे भोले अनाम जी...
विश्व - वह आपको... मतलब कैसा... (चुप हो जाता है)
रुप - क्या हुआ... चुप क्यों हो गए...
विश्व - वह... मुझसे... कोई गलती तो नहीं हो गई...
रुप - (विश्व को अपने तरफ झटके के साथ मोड़ कर) ओये.. मौसमी बेशरम... चूमा लेने और देने के बाद... शर्म नहीं आई... अब शर्म नहीं आ रही... ऐसे शर्माते हुए...
विश्व - जी आ रही है... मतलब नहीं... आह.. (खीज जाता है)

रुप उसकी हालत देख कर खिलखिला कर हँसने लगती है l फिर विश्व के पैरों पर अपने पैर रख कर पैरों की उंगली पर खुदको उठा कर विश्व के बराबर आ जाती है l विश्व के हाथों को अपने कमर पर रख कर विश्व के चेहरे को अपने हाथों में लेती है और वह विश्व के होठों पर टुट पड़ती है l विश्व उसके चुंबन से खुद को छुड़ाने की कोशिश करता है पर फिर वह भी रुप के चुंबन की प्रतिक्रिया में रुप की गहरी चुंबन लेने लगता है l फिर कुछ समय बाद इस बार रुप विश्व को अलग कर देती है l चुंबन टूटते ही विश्व रुप की ओर हैरानी भरे निगाह से देखने लगता है l

रुप - तो मिस्टर बेशरम... बेकाबू क्यूँ होने लगे... ह्म्म्म्म.. बेकाबू होने लगे...
विश्व - कहाँ... कैसे...
रुप - (विश्व की पेंट पर बने उभार की ओर इशारा करती है) यह... यह रहा... तुम्हारा बे - लगाम...
विश्व - मैं कहाँ बे लगाम हुआ था... वह तो आपने मुझे...
रुप - हाँ हाँ... अब तो दोष मुझे ही दोगे... क्यों... छी.. कितने अश्लील हो तुम...
विश्व - कमाल है... आप जिस तरह मुझ पर टुट पड़ी... मुझे लगा आप कहोगे... वाव.. अनाम तुम कितने नैचुरल हो...
रुप - यु...

कह कर रुप विश्व की ओर कुद कर उछल जाती है l विश्व उसे पकड़ लेता है l रुप अपने दोनों पैरों को विश्व के कमर के इर्द-गिर्द कस कर बाँध लेती है और विश्व के चेहरे को अपने हाथों में लेकर विश्व के होंठ पर टुट पड़ती है l विश्व भी इस बार रुप का बड़े जोशीले अंदाज में साथ देता है कि तभी विश्व की मोबाइल बज उठता है l

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भीमा गाड़ी को भगा रहा था l रात गहरी भले ही हो गई थी पर आसमान में चाँद आज चमक नहीं दहक रहा था l भैरव सिंह पंथ निवास में बल्लभ को छोड़ कर भीमा को साथ लेकर महल की तरफ ले जाने के लिए कह कर निकला था l भीमा को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था l अचानक भैरव सिंह को क्या हो गया l वैसे भी भैरव सिंह, क्षेत्रपाल - महल में कम, रंग महल में ज्यादातर रात बिताता था l कभी भी रात को इस तरह क्षेत्रपाल महल गया नहीं था l जब उससे रहा नहीं गया तो भैरव सिंह से पूछता है

भीमा - हुकुम... आप राजमहल ही जा रहे हैं ना..
भैरव सिंह - हाँ...

भीमा और सवाल नहीं करता l चुप चाप गाड़ी चलाता है l भैरव सिंह इस बार भीमा से पूछता है l

भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी.. जी... हुकुम...
भैरव सिंह - एक बात याद रखना... हम हार या जीत को बाद में तरजीह देते हैं... सब से पहले... हम अपनी अहं को तरजीह देते हैं... क्यूंकि... अगर अहं रह गया... तो जीत भी आएगी...
भीमा - जी... हुकुम...
भैरव सिंह - रोणा बेशक वफादार था... पर अनजाने ही सही... हमारे अहं की रास्ता काटने की गलती कर बैठा... इसलिए... उसका अंजाम देखा तुने...
भीमा - जी... जी हुकुम..
भैरव सिंह - अब मुझे तु बता... उस हराम के पिल्लै... विश्वा को... कौन मार सकता है...
भीमा - (इस बार चुप रहता है)
भैरव सिंह - जिसे हमने एक बार अपने पैरों के धुल के बराबर रखा हो... उसे हम अपने हाथों से सजा नहीं दे सकते... इसलिए... रोणा को जिम्मेदारी सौंपी थी... पर उससे ना हो पाया... अब तु बता... तुझसे या तेरे पट्ठों से होगा या नहीं... अगर नहीं होगा... तो हमें... बाहर से आदमी लाकर रखने होंगे... और तुम लोगों के बारे में सोचना होगा...

भीमा गाड़ी में ब्रेक लगाता है l क्षेत्रपाल महल के सीढियों के सामने गाड़ी रुक जाती है l भीमा गाड़ी से उतर कर भागते हुए आता है और गाड़ी का दरवाजा खोलता है l भैरव सिंह चारों तरफ नजरें घुमा कर देखता है l महल के आसपास उसे इक्का-दुक्का पहरेदार नजर आते हैं l वह समझ जाता है कि होलिका दहन में लोगों के बीच रह कर होलिका को जलाने के लिए गाँव के लोगों को उकसाने के लिए सब चले गए हैं l दो पहरेदार भागते हुए उसके पास आकर सलामी ठोक कर खड़े हो जाते हैं l

भैरव सिंह - कोई खबर...
पहरेदार - सब ठीक है राजा साहब...

भैरव सिंह कोई और सवाल नहीं करता l सीधे सीढ़ियां चढ़ने लगता है l भीमा उसके पीछे पीछे जाने लगता है तो भैरव सिंह हाथ से इशारा कर उसे वही ठहरने के लिए कह कर आगे बढ़ जाता है l अंदर सारे दासियां दीवारों से सट कर सोये हुए थे l पर जैसे ही गाड़ी रुकी थी l सभी जाग कर दीवारों के ओट में सिर झुका कर खड़े हो गए थे l उन सभी को नजर अंदाज कर भैरव सिंह अंतर्महल में आता है और सीधे रुप के कमरे के दरवाजे के सामने खड़ा होता है l अपने कमर पर हाथ रखकर चारों ओर नजर घुमाने लगता है l देखता है कुछ दासी दीवार से लग कर सिर झुकाए खड़ी हुई हैं l

भैरव सिंह - एकांत...

सभी दासियां वहाँ से निकल जाती हैं l भैरव सिंह दरवाजे पर दस्तक देता है l अंदर से कोई आवाज नहीं आती है l और एक बार दस्तक देता है l जब कोई शोर सुनाई नहीं देती है इस बार थोड़ी ताकत लगा कर दस्तक देता है l दरवाजे के नीचे वाली फांक से उजाला आता है l थोड़ी देर बाद दरवाज़ा खुलता है l भैरव सिंह देखता है सादी लिबास में रुप अपनी भारी आँखे मलते हुए भैरव सिंह की ओर देख रही है l अचानक चौंकती है जैसे सामने अभी भैरव सिंह को पहचान लिया l

रुप - राजा साहब... आप... इतनी रात गए...

भैरव सिंह उसे अनसुना कर कमरे में जो दो खिड़कियाँ थी उनकी रेलिंग खिंच कर देखता है फिर रुप को बिना देखे कमरे से जाने लगता है l पर जाते जाते दरवाजे पर रुक जाता है, फिर रुप की ओर मुड़ता है l

भैरव सिंह - राज कुमारी... हम जानते हैं... आप इस समय हैरान हैं... पर हम आप बस इतना जान जाइए... हमें शक नहीं यकीन है... पर हमारी यकीन को हम फ़िलहाल के लिए साबित नहीं कर सकते... पर इतना तय मान लीजिए... आप इस घर से जाएंगी... दसपल्ला राज घराने में ही जायेंगी... बाकी अगर और कोई ख्वाहिश है भी... तो भूल जाइए...

कह कर भैरव सिंह मूड कर जाने लगता है l पर उसके कदम ठिठक जाते हैं l क्यूंकि रुप ने पीछे से आवाज दी थी

रुप - राजा साहब... (भैरव सिंह मुड़ता है) हम आपकी यकीन की इज़्ज़त करते हैं... और वादा करते हैं... हम जब भी इस घर से जाएंगे... आपकी आँखों के सामने से जाएंगे... सिर उठा कर जाएंगे...

भैरव सिंह का पारा चढ़ जाता है l वह तेजी से रुप के पास आता है और जोर से अपना हाथ घुमाता है पर अपना हाथ ठीक रुप के गाल के पास रोक देता है l देखता है रुप के आँखों में जरा सा भी डर नहीं था l भैरव सिंह गुस्से में थर्राते हुए मुट्ठी कसने लगता है l रुप को भैरव सिंह की मुट्ठी कसते हुए कड़ कड़ की आवाज़ सुनाई देने लगती है l

भैरव सिंह - एक राजनीतिक मजबूरी है... वर्ना...

इतना कह कर भैरव सिंह कमरे से निकल जाता है l उसके जाते ही रुप एक गहरी साँस छोड़ती है और भागते हुए दरवाज़ा बंद कर देती है l दरवाजा बंद करने के बाद वह घुमती है पीछे विश्व खड़ा था l उसके पास भाग कर विश्व के गले लग जाती है l
Nice update....
 
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Reactions: Kala Nag

DARK WOLFKING

Supreme
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romanchak update ..uday jo bhi baate keh raha tha aisa lag raha tha ki vishw bol raha hai ek dum perfect plan jisse rona ka ant ho jaaye aur gaonwale doshi.
bhairav ko bahar rehne ki salah bhi de di uday ne .
valabh ko shak ho raha hai uday pe par bhairav ke aage wo jyada bo nahi paa raha tha aur majburi me apne khas dost ko jalte huye dekhna pad gaya ..

ye chetty ko aisa kaunsa banda mil gaya hai jisko wo yash ki jagah rakhna chahta hai 🤔🤔🤔🤔..uska naam bhi saamne nahi aaya .

veer aaj pehli baar holi khela hai aur anu ke saath maje kar raha hai 🥰..

vishw ka surprise ek dam best tha jo usne roop ko diya ,dono ke bich pyar ki nayi shuruwat ho chuki hai .

par ye bhairav ne aisa kya dekha camera me jo usko roop par shak hua ??
 

RAAZ

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👉एक सौ छियालीसवां अपडेट
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राजगड़
शाम होने को है
सूरज की रौशनी और ताप दोनों मद्धिम पड़ रहे हैं l रोज की रुटीन के अनुसार दोपहर का खाना खाने के बाद भैरव सिंह क्षेत्रपाल महल में भीतर नागेंद्र सिंह के कमरे में, उसके बेड के करीब बैठा हुआ था l कमरे में आज वह अकेला था l सुषमा या कोई नर्स नहीं थीं l नागेंद्र सिंह टेढ़े मुहँ से भैरव सिंह की ओर ताक रहा था l

भैरव सिंह - आपकी हालत मुझसे देखी नहीं जा रही है बड़े राजा... मज़बूरी है... आपको जिंदा रहना है... और मुझे जिंदा रहना है... हमें समझ में आ गया है... उस दिन आपने क्यूँ कहा था... राजकुमारी जी पर नजर रखने के लिए... हमने जिसे भेजा था... वह कमबख्त... नाकारा निकला... छोटे राजकुमार जी की बात आकर कही पर... राजकुमारी के बारे में... टोह तक ना ले पाया... (नागेंद्र सिंह की आँखे चौड़ी हो जाती हैं) हाँ... बड़े राजा... आप सही थे... राजकुमारी घर से निकली... बाहर.... (अपनी आँखे बंद कर जबड़े भिंच कर कुछ देर के लिए चुप हो जाता है) हमें संदेह है... शायद यकीन भी है... पर नाम नहीं बता सकते... क्यूँकी... हम साबित नहीं कर सकते... अगर झूठे साबित हो गए... तो अपने बच्चों के आगे इज़्ज़त गवा बैठेंगे... राजकुमारी को सजा देने का मन कर रहा है... पर राजनीतिक मज़बूरी के चलते... हम उस सच से फिलहाल किनारा किए हुए हैं... (अपनी जगह से उठता है,नागेंद्र की ओर पीठ कर खड़ा होता है) क्यूंकि... अगर यह राज खुला... तो जिन लोगों के भगवान बने फिर रहे हैं... उनके गप्पी में उपहास के किरदार बन जाएंगे... इसलिए अब राजकुमारी घर में रहकर पढ़ाई करेंगी... जैसे बचपन में किया करतीं थीं... सिर्फ इम्तिहान देने के लिए बाहर जाएंगी... (नागेंद्र के हलक से हुम्म्म्म... ह्म्म्म्म की आवाज आती है, भैरव सिंह मुड़ कर देखता है, नागेंद्र इशारों से कुछ कहने की कोशिश कर रहा है) हाँ... समझ रहे हैं... अगर हम पहले की तरह... अपनी राज पाठ सिर्फ राजगड़ और इसके आसपास सीमित रखते... तो बात इतनी मुश्किल नहीं होती... पर जब दायरा जितना फैलता गया... तो बीच में खाली पन उतना ही बनता गया... अब अपने रुतबे और गुरूर के दम पर... उस खाली पन को ढकने की... छुपाने की कोशिश किए जा रहे हैं... जाहिर है... दायरा बढ़ा... तो महल की खिड़की को भी ऊँचा करना पड़ रहा है... क्यूँकी दुनिया की आदत है... हर ऊंचे घरों की खिड़की से अंदर झाँकना... पर बड़े राजा जी... निश्चिंत रहिए... हम सब ठीक कर देंगे... जिसकी भी जुर्रत सामने खुल रहा है... उसे हम अंजाम तक पहुँचा रहे हैं... आज रोणा का होली जलेगी.. वह भी गाँव के लोगों के हाथों... क्यूँकी उसने अपनी औकात भूल कर... क्षेत्रपाल महल की खिड़की खोलने की कोशिश की... सजा तो मिलेगी... यह सजा... हमें अंदर से... आश्वासन दे रहा है... के एक दिन हम उस हरामजादे विश्व प्रताप को... इससे भी भयंकर सजा देंगे... इसीलिए तो... हम मगरमच्छ और लकड़बग्घे की भूख को... मिटने नहीं दे रहे हैं... आप निश्चित रहें... हम आपको आखेट गृह में... वह दृश्य ज़रूर दिखाएंगे...

तभी भैरव सिंह को बाहर से आहत सुनाई देती है l वह दरवाजे की ओर मुड़ता है l दरवाजे पर दस्तक सुनाई देती है l

भैरव सिंह - कौन है...
भीमा - हुकुम... मैं...
भैरव सिंह - क्या हुआ...
भीमा - वह सारे गाँव वाले आपसे पूछने... महल के परिसर में आए हैं...
भैरव सिंह - पूछने... हमसे...
भीमा - जी हुकुम...

भैरव सिंह कमरे से निकालता है और दिवाने आम कमरे में पहुँचता है, जहाँ पर बल्लभ खड़ा हुआ था l कमरे के दरवाजे पर उदय खड़ा हुआ था l

भैरव सिंह - यह गाँव वाले... बेवजह यहाँ क्यूँ आए हैं प्रधान...
बल्लभ - मैं नहीं जानता हूँ... राजा साहब... मैं तो यहाँ आपकी इंतजार में हूँ...
भैरव सिंह - भीमा क्या वज़ह है... तुम्हें कुछ पता है...
उदय - गुस्ताखी माफ़ राजा साहब...
भैरव सिंह - क्या बात है...
उदय - सत्तू या भूरा... जानते होंगे... क्यूँकी यही दोनों... होलिका दहन की मचान सजाने गए थे...
भैरव सिंह - हूँ... कहाँ है वह दोनों...
उदय - जी बाहर हैं... बुला लाऊँ...
भैरव सिंह - हाँ... बुला लाओ...

उदय तुरंत पलट कर बाहर जाता है और थोड़ी देर के बाद अपने साथ सत्तू और भूरा को साथ लेकर आता है l वे दोनों अपने हाथ जोड़ कर भैरव सिंह के सामने खड़े हो जाते हैं l

भैरव सिंह - यह बाहर कैसा शोर है...
सत्तू - र्र्राजा सा.. सहाब... (जुबान लड़खड़ा जाता है)
भैरव सिंह - क्या बात है... क्या हो गया है...
भूरा - राजा साहब... जैसा आपने कहा... हमने बिलकुल वैसा ही किया... हमने एक स्टूल पर... दरोगा को... आलथी पालथी की तरह बिठा कर... मुखौटा लगा कर... साड़ी पहना कर... होलिका की तरह सजा कर... बांस का दस फुट ऊँचा भाड़ा बना कर बिठा दिया...
सत्तू - यह देख कर लोगों ने... हमसे वज़ह पूछी... तो हमने कहा कि... बच्चों का उत्साह देख कर... राजा साहब ने... गाँव वालों को... होलिका दहन के साथ साथ.. फगु खेलने के लिए भी कहा है... इसलिए गाँव वालों के सहूलियत के लिए... हमने होलिका का पुतला बना कर गाँव के बाहर भाड़े पर सजा दिया है...
भूरा - अब होलिका दहन के लिए... गाँव वाले.. अपने अपने हिस्से के लकड़ी... गोबर के कंडे... उपले आदि लाकर जमा करें... और होलिका दहन करें...

बस इतना कह कर चुप हो जाते हैं दोनों l उनको चुप देख कर भैरव सिंह पूछता है l

- आधी बात बता कर... आधा गटक क्यों गए...
सत्तू - हमारे कहे पर... गाँव वालों को विश्वास नहीं हुआ...
भूरा - इसलिए... इसलिए... (फिर से दोनों चुप हो जाते हैं...
उदय - ओ.. इसका मतलब यह हुआ... गाँव वाले... इनकी कहीं बातों पर... यकीन करने आए हैं...

भैरव सिंह पैनी दृष्टि से उदय की ओर देखने लगता है l उदय अपना सिर झुका लेता है l फिर भैरव सिंह बल्लभ की ओर देखता है l

बल्लभ - यह स्वाभाविक है राजा साहब... सात दशकों से... सिर्फ यही गाँव नहीं... आसपास के तकरीबन तीस गाँव में... त्योहार या मातम नहीं मनाया गया है... कई पीढ़ियां गुजर गई... आज जब कोई आपके नाम पर कहे... त्योहार मनाने के लिए... तब... इस बात की पुष्टि करने... जाहिर है... महल ही आयेंगे...
भैरव सिंह - (जबड़े भिंच जाती है, शब्दों को चबाते हुए कहता है) इनकी इतनी हिम्मत... राजा भैरव सिंह से पुष्टि करने आए हैं...(गुर्राते हुए) भीमा बंदूक ला.. (भीमा पलट कर जाने को होता है कि बल्लभ उसे रोक देता है)
बल्लभ - एक मिनट भीमा... (भैरव सिंह से) गुस्ताख़ी माफ राजा साहब... गाँव वालों में कभी इतनी हिम्मत हो ही नहीं सकती के... आपसे बात की पुष्टि करें... जैसा कि मैंने कहा... सात दशकों से... जो नहीं हुआ... आज अचानक मनाएंगे... तो उन्हें... यह सत्तू या भूरा की साजिश ही लगेगी... बेहतर होगा... उनके मन में... कोई संशय पैदा होने ना दिया जाए... दरोगा रोणा को... आखेट गृह ले चलते हैं... कोई भी जान नहीं पाएगा...
उदय - गुस्ताखी माफ राजा साहब... (भैरव सिंह उदय की ओर देखता है) राजा साहब... एक बार तीर कमान से निकल जाए... तो उसे उसका लक्ष भेदने की प्रतीक्षा करनी चाहिए...
भैरव सिंह - ऐसी... तगड़ी और भारी भरकम बातेँ... वकील के मुहँ से अच्छे लगते हैं... तुम अपनी बात साफ करो...
उदय - आपका गुस्सा जायज है राजा साहब... पर आपने ही खबर भिजवाई... लोगों को होली मनाने के लिए... जैसा कि वकील ने कहा.... कि सत्तर सालों में जो नहीं हुआ... उसे करने के लिए.. लोग डरेंगे जरूर... पर आपसे गद्दारी करने वाले की सजा आपने मुकर्रर की है... सजायाफ्ता को मिलनी ही चाहिए... यह बात आपके लोगों को भी तो पता चलनी चाहिए... गाँव वाले... आपसे पुष्टि चाहते हैं... इससे यह होगा... उनके हाथों एक क्राइम होने जा रहा है... धीरे धीरे... उनके संज्ञान में आएगा... तब यह लोग फिर कभी हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे... आगे त्योहार मनाने की...
भैरव सिंह - तुम्हें क्या बनाना चाहता था... रोणा...
उदय - जी हेल्पर कांस्टेबल...
भैरव सिंह - बैल बुद्धि था वह... तुम अगर हमारे वफादार रहे... तो हम उन्हें दरोगा बना देंगे...
उदय - (खुशी के आँसू आँखों में लिए, भैरव सिंह के आगे घुटनों पर आ जाता है) आपकी बड़ी कृपा होगी राजा साहब...

यह सब बल्लभ देख रहा था l वह गुस्से में अपना चेहरा फ़ेर लेता है l उसकी यह प्रतिक्रिया भैरव सिंह देख लेता है l

भैरव सिंह - प्रधान...
बल्लभ - जी.. जी राजा साहब...
भैरव सिंह - हम ना सिर्फ... ग़द्दार दरोगा को सजा देना चाहते थे... बल्कि... इन गांवों वालों को भी सजा देना चाहते थे... तुम अपने दोस्त के लिए बाज नहीं आए... खैर... तुम्हारी इस बेवकूफ़ी को हम नजर अंदाज करते हैं... गाँव वालों को हमसे... त्योहार मनाने की छूट चाहिए... हम देंगे...
उदय - राजा साहब... एक और बात... इजाजत हो तो कहूँ...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...
उदय - राजा साहब... आपके हामी के बाद... हो सकता है... लोग आपको... होलिका दहन पर... उपस्थित रहने के लिए कहें... तो आप उन्हें मना कर दीजिए... (भैरव सिंह अपना भौहों को सिकुड़ कर देखता है) क्राइम गाँव वाले करेंगे... वे लोग आगे चलकर क्रिमिनल होंगे... पर अगर आप वहाँ उपस्थित हुए... तो आप गवाह बन जाएंगे... और उनके लिए सबूत भी... आप बस आज रात... राजगड़ से दूर हो जाइए.... आगे... वकील बाबु हैं... वह गाँव वालों के साथ रह कर... उनसे होने वाली गुनाह की सबूत बनाएंगे...
भैरव सिंह - बहुत खूब... आज फिर से तुमने मुझे इंप्रेस किया है... भीमा..
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - चलो.. हमारी प्रजा हमसे मिलने आयी है...


इतना सुनते ही भीमा सत्तू और भूरा के साथ बाहर की ओर चलने लगता है l सभी पहलवान रास्ते के दोनों तरफ खड़े हो जाते हैं l भैरव सिंह उनके बीच में से जाते हुए महल के बरामदे में सटी हुई मचान पर पहुँचता है l जैसे ही मचान पर गाँव वाले भैरव सिंह को देखते हैं सब के सब अपना सिर झुका कर चुप हो जाते हैं l भैरव सिंह अपने कमर पर हाथ रखकर गाँव वालों पर एक नजर डालता है l सभी के झुके हुए सिर देख कर उसके होठों पर एक संतुष्टि की मुस्कान उभर कर गायब हो जाती है l बल्लभ भी पीछे पीछे आया हुआ था l वह कुछ कहने को होता है कि भैरव सिंह उसे रोक कर भीमा की ओर देख कर इशारा कर लोगों से पूछने के लिए कहता है l तो भीमा गाँव वालों से कहता है

भीमा - गाँव वालों... तुम लोग अब राजा साहब के दरबार में हो... राजा साहब अब यह जानना चाहते हैं... उनके दरबार में क्यूँ आए हो...

लोगों में चुप्पी छाई हुई थी l किसीको भी हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि राजा भैरव सिंह से कुछ भी पूछे l क्यूंकि ऐसा पहली बार हुआ था कि सारे गाँव वाले मिलकर राजा के महल में राजा के सामने खड़े हो कर कुछ पूछे l भीमा भैरव सिंह की ओर देखता है, भैरव सिंह अपना सिर हिला कर फिर से पूछने के लिए इशारा करता है l

भीमा - हरिया... क्या हुआ... क्यों आए हो... रविन्द्र... क्या काम पड़ गया है तुम लोगों को... राजा साहब से...
हरिया - हम... व.. व... वह...

अचानक से चुप हो जाता है l सभी लोग महल के बाहर खड़े हैं पर फिर भी सन्नाटा इस कदर पसरा हुआ था मानों दूर दूर तक कोई नहीं हो l मजबूर होकर भैरव सिंह पूछता है l

भैरव सिंह - क्या हुआ है... क्या जरुरत आ गई... तुम लोग यहाँ आ गए... (जब कोई जवाब नहीं देता तब सत्तू लोगों के पास चला जाता है)
सत्तू - राजा साहब माफी... गाँव वालों के तरफ से... मैं कुछ कहूँ...
भैरव सिंह - तुम...
सत्तू - क्यूँ गाँव वालों... मैं पूछुं...
सारे गाँव वाले - हाँ हाँ...
सत्तू - राजा साहब... मैं पूछूं...
भैरव सिंह - ठीक है पूछो...
सत्तू - राजा साहब... कई पीढ़ियां चली गई... किसीने भी ना त्योहार मनाया... ना किसीको मनाते देखा... ऐसे में... आज जब इन्हें खबर लगी के होली मनाने के लिए... इस बार क्षेत्रपाल महल से इजाजत मिली है... तो इन्हें विश्वास नहीं हुआ... सच और झूठ जानने यह लोग आए हैं... (गाँव वालों से) क्यूँ गाँव वालों... सही कहा ना...

सभी गाँव वाले हाँ कहते हैं l इसके बाद सत्तू चुप हो जाता है l भैरव सिंह भीमा की ओर इशारे में चुप रहने के लिए कहता है और भीमा के बगल में खड़े बल्लभ को इशारा कर लोगों से होली के बारे में कहने के लिए कहता है l

बल्लभ - गाँव वालों... तुम लोग जानते हो... राजा तुम लोगों के लिए कितना कुछ सोच रहे हैं.. कितना कुछ कर रहे हैं... आज सुबह जब मालुम हुआ... तुम्हारे बच्चों ने... कृष्न विमान नगर परिक्रमा कराए हैं... तो राजा साहब कहा... त्योहार अधूरा ना रह जाए... इसीलिये अपने लोगों के जरिए... तुम लोगों तक खबर पहुंचाई है... ताकि तुम लोग होली... परंपरा के अनुसार मनाओ... (बल्लभ रुक जाता है)
सत्तू - बोलो... राजा भैरव सिंह की...
सारे गाँव वाले - जय...
हरिया - राजा साहब... यह हमारा परम भाग्य है... के आपके शासन में हम... यह दिन देख रहे हैं... राजा साहब... हमारी एक छोटी सी प्रार्थना है... (भैरव सिंह समझ चुका था हरिया क्या प्रार्थना करने वाला है इसलिये उसे कहने के लिए इशारा करता है) राजा साहब... ऐसा पहली बार हो रहा है... वह भी आपके आशीर्वाद से... अगर इस मौके पर... आप हमारे साथ.. हमारे पास रहते... तो बड़ी कृपा होगी...
भीमा - ऐ हरिया... अपनी औकात में रह... थामने के लिए हाथ दिया तो कंधे पर चढ़ कर कान में मूतने की बात कर रहा है...
हरिया - (डर के मारे) ना ना.. महाराज ना... ऐसी गुस्ताखी... सपने में भी नहीं कर सकते हम... वह तो... (आगे कुछ कह नहीं पाता, अपना सिर झुका लेता है l भैरव सिंह बल्लभ को आगे की बात कहने के लिए इशारा करता है)
बल्लभ - देखो... तुम लोग आज... त्योहार मनाने जा रहे हो... यह तुम लोगों के लिए बहुत बड़ी बात है... राजा साहब... तुम लोगों की इच्छा का मान रखते... पर... आज तहसीलदार के साथ राजा साहब की... ज़रूरी मीटिंग है... इसलिए... राजा साहब आज राजगड़ में नहीं रहेंगे...
- पर आप लोग मन खराब ना करें... (उदय आकर पहुँच कर कहने लगता है) राजा साहब ने... वकील बाबु को कह दिया है... आप लोगों के बीच खुद वक़ील बाबु रहेंगे... आपके साथ त्योहार मनाएंगे...

लोग यह सुन कर खुशी के मारे ताली बजाने लगते हैं l बल्लभ का चेहरा उतर जाता है l बड़े दुखी मन से भैरव सिंह की ओर देखता है l भैरव सिंह इशारे से उसे अपनी सहमती जताता है l बल्लभ अपनी दांत पिसते हुए उदय की ओर देखने लगता है l उदय भी हँसते हुए लोगों के साथ ताली बजाते हुए बल्लभ की ओर देखने लगता है l बल्लभ को उदय के चेहरे पर छाई हुई भाव समझ में नहीं आता l दुसरे तरफ गाँव के सारे लोग भैरव सिंह के नाम की जयकारा लगाते हुए उल्टे पाँव महल की परिसर से निकलने लगते हैं l लोगों को उल्टे पाँव पीछे लौटते हुए देख भैरव सिंह के चेहरे पर गुरुर से भरी मुस्कान छा जाती है l

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कटक चेट्टी मैशन
एक बड़ा सा कमरा जहां चार लोग हैं l एक ओर ओंकार बैठा हुआ है और दुसरी तरफ केके और रॉय बैठे हुए हैं l उनके बीच एक बड़ी सी टी पोए है जिस पर तीन खाली ग्लास तीन चार प्लेट में चखना रखा हुआ है l चौथा बंदा उन खाली ग्लास में शराब डाल कर पैग बना रहा है l पैग बन जाने के बाद वह पहले ओंकार को देता है फिर केके को देता है और तीसरा उठा कर बगल में बैठे रॉय को देता है और तीनों से अलग सोफ़े पर बैठ जाता है l वे तीनों चियर्स करते हैं और सीप लेने लगते हैं l

केके - चेट्टी साहब... आपको नहीं लगता... हम थोड़े लेट हो रहे हैं...
चेट्टी - नहीं केके... कोई देरी नहीं हो रही है... इलेक्शन को और भी टाइम है... उससे पहले... क्षेत्रपाल वर्तमान के भूगोल से इतिहास हो जाएगा... तुम बस धैर्य रखो...
केके - (चेट्टी से ) चेट्टी बाबु... आपका वह बंदा कहां तक पहुँचा...

चेट्टी - जहां उसे पहुँचना चाहिए था...
रॉय - केके साहब... आप उतावले बहुत हो रहे हो...
चेट्टी - कोई बात नहीं... इनकी तसल्ली के लिए कह देता हूँ... जब से वीर उस लड़की से शादी कर अलग रहने लगा है... तब से मेयर क्षेत्रपाल पुरी तरह से टुट गया है... दिन रात शराब के नशे में डूबा रहता है... उसके घाव में नमक मिर्च उस दिन रगड़ गया... जिस दिन... एडवोकेट सेनापति की किडनैपिंग फैल हुआ...
केके - हाँ... पर हमें क्या फायदा हुआ... कोई तीसरा आकर उन्हें बचा ले गया...
चेट्टी - देखो केके... बड़े ऐहतियात से.... मैंने उस बंदे को... पिनाक के पास रखवाया है... पिनाक ना तो उसके बारे में जानता है... ना हमारे बारे में... हमारा आदमी... धीरे धीरे... पिनाक की दिमाग को अपने कब्जे में कर चुका है... तुम बस मजे देखते जाओ...
केके - (एक ही साँस में ग्लास खत्म कर देता है) एक बार... शॉक के चलते... दिल का दौरा पड़ चुका है... दुसरा दौरा पड़ने से पहले... मैं क्षेत्रपाल परिवार की बर्बादी देखना चाहता हूँ...
रॉय - आप खामख्वाह छटपटा रहे हैं... अब तो छटपटाने की बारी क्षेत्रपालों की है...
केके - दुनिया चाहे कुछ भी कहे रॉय... मगर मैं मानता हूँ... मेरे बेटे का कातिल वही... वीर सिंह है... जो जिंदगी मेरे बेटे ने जी नहीं... उसे वीर सिंह को जीता देख कर... मेरे सीने में सांप लौट रहे हैं...
चेट्टी - शांत केके शांत... मेरा बंदा पिनाक के पास रह कर वही प्लानिंग कर रहा है... तुम मुझे देखो... मैं कितनी शिद्दत से... क्षेत्रपाल के बर्बादी की इंतजार में दिन गिने जा रहा हूँ... और मुझे मालुम है... क्षेत्रपाल बर्बाद होने वाले हैं...
केके - आपने आपके बेटे के हत्यारे को छोड़ दिया... मुझसे वह नहीं हो सकता...
चेट्टी - (चेहरा अचानक कठोर हो जाता है) तुमने यह कैसे सोच लिया... सरकारी रिपोर्ट चाहे कुछ भी कहे... मुझे बस इतना मालुम है... मेरे बेटे का कातिल विश्व प्रताप है...

इतना कह कर चेट्टी चुप हो जाता है l अपना पैग खाली करने के बाद चौथे बंदे से पैग बनाने के लिए इशारा करता है l चेट्टी के चेहरे पर आए बदलाव को देख कर केके और रॉय थोड़ा दब जाते हैं l पैग बन जाने के बाद चेट्टी पैग उठा कर कहता है l

चेट्टी - फ़िलहाल विश्व और मेरा दुश्मन एक ही है... विश्व अपने काम में तेजी से आगे बढ़ रहा है... तुम जानते हो... और मानते भी होगे... क्षेत्रपाल का खात्मा विश्व ही कर सकता है... उसके पीछे उनकी निजी वज़ह है... पर विश्व जो नहीं जानता... वह यह कि... उसका काम खत्म होने के बाद... मैं उसे मरवा दूँगा...
केके - किससे... रंगा से... विश्व का नाम सुनते ही... जिसका पिछवाड़े में से झाग निकलने लगती है...
चेट्टी - हा हा... हा हा हा हा... अरे यार चेट्टी... शेर को मारने के लिए... शिकारी चाहिए... कुत्तों की बस की बात होती... तो विश्व कब का अपने भगवान का प्यारा हो चुका होता... यह वह शतरंज की बिसात है... जहां के तीसरे खिलाड़ी हम हैं...
रॉय - और हमारी चालों से... दोनों खिलाड़ी मारे जाएंगे... चियर्स...

केके खुश होता है और इस बार अपना पैग उठा कर खत्म कर देता है l चखने की प्लेट से चिकन टंगड़ी उठा कर खाते हुए रॉय से पूछता है l

केके - अच्छा रॉय... अब वीर की क्या खबर है...
रॉय - केके साहब... वीर बस अपनी जिंदगी एंजॉय कर रहा है... हम फ़िलहाल गैलरी में बैठ कर देख रहे हैं...
केके - क्या प्लान बनाया था... विश्व और क्षेत्रपाल के बीच की दुश्मनी में... पेट्रोल डालने के लिए... पर..
चेट्टी - इसलिए तो कह रहा हूँ... थोड़ा धीरज धरो... अब जोडार के सिक्योरिटी... सेनापति दंपति की रखवाली चुस्ती के साथ कर रही है... और वीर की रखवाली... विक्रम की ESS के... स्पेशल कमांडोज कर रहे हैं... कुछ भी किया... तो यह हरकत हमें पर्दे के पीछे से खिंच कर बाहर ले आएगी... मौका आयेंगी... हमें बस भुनाना है...
केके - ठीक कहा आपने...

अपना ग्लास रख कर, चौथे बंदे से पैग बनाने के लिए कहता है, जैसे ही वह बंदा पैग बनाने के लिए बोतल उठाता है तो रॉय उसे रोक लेता है l

रॉय - अब बस भी कीजिए केके सर... कितना और जिगर जलायेंगे... एक बार दौरा पड़ चुका है... कम से कम... क्षेत्रपाल की बर्बादी तक तो जिगर संभालीए...
चेट्टी - हाँ केके... रॉय ठीक कह रहा है...
केके - जिसका जिगर का टुकड़ा ही नहीं हो... उसका जिगर क्या जलायेगा... यह दो कौड़ी का शराब...
केके - प्लीज...
चेट्टी - रॉय... एक काम करो... केके को... ले जाओ और उसके घर पहुँचा दो...
रॉय - ठीक है...

रॉय केके को अपने कंधे से सहारा देकर उसे बाहर ले जाता है l वह चौथा बंदा भी रॉय का साथ देता है l दोनों केके को गाड़ी में बिठा कर विदा करते हैं l केके की गाड़ी जाने के बाद रॉय भी अपना गाड़ी लेकर केके के गाड़ी के पीछे पीछे उस मैंशन से बाहर निकल जाता है l सबके चले जाने के बाद वह चौथा बंदा कमरे में आता है जहां चेट्टी टी पोए के ऊपर दोनों पैर फैला कर शराब की चुस्की ले रहा था, उस बंदे को कमरे में देख कर

चेट्टी - चले गए सब...
बंदा - हाँ...
चेट्टी - ह्म्म्म्म आओ बैठो... (शराब की ग्लास को दिखाते हुए) इसे मिलकर खत्म करते हैं...
बंदा - नहीं... मुझे नहीं करना...
चेट्टी - क्यूँ... नाराज हो... अरे नाराजगी छोड़... बहुत जल्द अपना राज वापस लौटने वाले हैं...
बंदा - कब तक... मैं तो जैसे फुटबॉल हो गया हूँ... इधर से लतीया जाता हूँ... और उधर से...
चेट्टी - ऐ... क्या कहना चाहता है तु... मैं तुझे लतीया रहा हूँ...
बंदा - वह... मुहँ से बरबस निकल गया... मेरे कहने का वह मतलब नहीं था... मेरा मतलब है... मुझे कब दुनिया के सामने आप लाओगे... कब मैं अपनी असली पहचान के साथ... सबके सामने आऊँगा...
चेट्टी - तु भी ना... केके की तरह बड़ा बेसब्रा है... मैंने अपना सब कुछ तेरे नाम कर तो दिया है... फिर... ऐस तो कर रहा है ना... ठंड रख ठंड... तु बस अपने काम में लगा रह... इस बार चोट कुछ ऐसा हो... के क्षेत्रपाल पूरा का पूरा... तितर-बितर हो जाएगा... उसके बाद मैं तुझे डंके की चोट पर... दुनिया के सामने लाऊँगा...
बंदा - मैं तो कब से लगा हुआ हूँ... अब तक... सारे वार खाली गए हैं...
चेट्टी - कहाँ खाली गए हैं... देखा नहीं... क्षेत्रपाल टुट रहे हैं... बिखर रहे हैं... हमें मालूम है... कहाँ कब चोट मारना है... उन्हें मालुम नहीं है... चोट कौन मार रहा है... (चेहरा बहुत सख्त हो जाता है) क्षेत्रपाल... मुझे वैशाखी बना कर... भुवनेश्वर आए... राजनीति में पाँव जमाए... जब मतलब निकल गया... हरामियो ने... मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया... मेरा बेटा यश को बचा सकते थे... साले हरामी... उसे मरने के लिए छोड़ दिया...

कहते कहते चेट्टी चुप हो जाता है, उसके गाल फडफडाने लगते हैं l दांत पीसने लगता है l उसकी यह हालत देख कर वह बंदा उसके पास बैठता है और उसके हाथ पकड़ कर कहता है l

बंदा - मैं हूँ ना... आपका बदला लेने के लिए...
चेट्टी - (उसके कंधे पर हाथ रखकर) तु मुझे मिला... इसलिए तो क्षेत्रपाल से बदला लेने की सोचा... वर्ना मैं तो खुद को लावारिस समझ कर... मरने की सोच रहा था... (चेट्टी अपने पैर नीचे कर सोफ़े से उठ खड़ा होता है) आज मैं खुश हूँ... यश की मौत लावारिस नहीं है... ना ही वह विरासत जो मैंने कमाई है... वह लावारिस है... तु उसका वारिस है... लावारिस तो अब क्षेत्रपाल होगा... हाँ लावारिस तो क्षेत्रपाल होगा...

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अनु कमरे में चहल कदम कर रही है, दीवार पर लगी घड़ी की ओर देख रही थी l थोड़ी देर बाद कॉलिंग बेल की आवाज़ आती है l कॉलिंग बेल की आवाज़ सुनते ही अनु के चेहरे पर पर रौनक आ जाती है l भाग कर जाती है दरवाजा खोलती है l सामने वीर काले, नीले, पीले, लाल आदि रंगों में पुता हुआ खड़ा था l उसे इस हालत में देख कर पहले अनु चौंकती है फिर जोर जोर से हँसने लगती है l

अनु - (हँसते हुए) यह... क्या हाल बना रखा है आपने... होली तो कल है... आज खेल कर आ गए क्या...
वीर - हाँ हाँ हँस लो... कल होली की छुट्टी है... इसलिए सारे स्टाफ ने... मुझे आज रंगों में पुत दिया...
अनु - ठीक है... जाइए आप नहा धो लीजिए...
वीर - (अंदर आ कर) अरे सिर्फ रंग ही तो है... वह भी होली वाली... थोड़ा रहने तो दो... (सोफ़े पर बैठ जाता है)
अनु - अरे... सोफ़े पर रंग लग जाएगा...
वीर - तो क्या हुआ... नए कवर ला देंगे...

अपना सिर हाँ में हिला कर अनु मुस्करा कर वीर के पास खड़ी होती है l वीर अपना हाथ अनु की ओर बढ़ाता है l अनु अपना हाथ देती है l वीर उसे अपने ऊपर खिंच लेता है l अनु घुमती हुई वीर के गोद में बैठ जाती है l वीर अनु के कंधे पर अपना चेहरा रख कर कहता है

वीर - आह... क्या जिंदगी है अनु... सुबह मुझे टिफिन कैरेज के साथ जब विदा करती है... तेरे आँखों में... बिछड़ने का दर्द को मुझे महसूस होता है... और जब वापस आता हूँ... तेरे चेहरे पर ग़ज़ब की खुशी देखता हूँ... कितना सुकून मिलता है... क्या कहूँ... (फिर अनु के कंधे पर अपने सिर को अनु के साथ झूमते हुए हिलने लगता है) अनु...
अनु - हूँ...
वीर - कुछ बोल ना...
अनु - क्या कहूँ...
वीर - कुछ भी... मुझसे बातेँ कर... पुछा कर... दुनिया भर की... कचर कचर सुन सुन कर... खीज जाता हूँ... पर जब तेरी आवाज सुनता हूँ... आह.. ऐसा लगता है... कानों में शहद घुल रही है...
अनु - हूँ...
वीर - क्या हूँ...
अनु - मतलब हाँ... मतलब हूँ...
वीर - ना... आज मेरी अनु को कुछ हो गया है...
अनु - सच मुझे कुछ नहीं हुआ है...
वीर - झूठ...
अनु - सच्ची...
वीर - ऊँ हूँ... यह मेरी अनु का स्टाइल नहीं है...
अनु - अच्छा... फिर आपके अनु का स्टाइल क्या है...
वीर - मेरी हर बात पर मुझे झूठा कहना... यह मेरी अनु का स्टाइल है...
अनु - (हँस देती है) धत...
वीर - क्या धत... (अनु के कान के पास चूम कर) बोल ना...
अनु - क्या...
वीर - झूठे...
अनु - पहले मुझे छोड़िए...
वीर - (किसी बच्चे की तरह मासूमियत के साथ पूछता है) क्यूँ... तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा...
अनु - सोफा गंदा हो गया... साथ साथ... मेरे कपड़े भी गंदे हो गए हैं... (हाथ छुड़ा कर उठ खड़ी होती है) चलिए... जाइए... आप नहा धो कर पहले साफ हो जाइए...
वीर - तुम कहना क्या चाहती हो... मैं गंदा हूँ... अरे मेरी जान... इसे गंदा होना नहीं.. रंगना कहते हैं... और यह आज से नहीं... तब से... जब से तुझे देखा था...
अनु - (समझ नहीं पाती) म.. मतलब...
वीर - अरे मेरी प्यारी अनु... मैं तो तेरे प्यार में कब से रंगा हुआ हूँ... आज तो बस रंग उभरा है... इसलिए दिख रहा है...
अनु - अच्छा... (अपने बदन पर लगे रंग दिखाते हुए) तो यह... अब क्यूँ उभरा है...
वीर - अब तक मैं तेरे रंग में रंगा हुआ था... आज मैंने तुझे रंग दिया है...
अनु - (मुहँ पर पाउट बना कर) झूठे...
वीर - ओ.. हो.. जान... अब बहुत अच्छा लगा... चलो... मिलकर साफ होते हैं...
अनु - क्या... छी...
वीर - इसमे छी वाली बात कहाँ से आ गई...
अनु - (सिर नीचे की ओर कर आँखे मूँद कर बाथरूम की ओर हाथ दिखा कर ) जाइए... पहले आप नहा धो लीजिए...

वीर किसी मासूम बच्चे की तरह मुहँ बना कर भारी पाँव से बाथरूम की ओर जाने लगता है l धीरे धीरे अनु अपना सिर उठा कर आँखे धीरे धीरे खोलती है वीर को भारी कदमों के साथ जाते देख अपनी हँसी दबा देती है l वीर बाथरूम के पास पहुँच कर पीछे मुड़ता है और आवाज देता है l

वीर - अनु...
अनु -.....
वीर - ए अनु... (मासूम सा मुहँ बना कर)
अनु - (अपनी हँसी दबा कर) क्या है...

वीर अपनी बाहें खोल देता है और मुस्कराते हुए अनु की ओर देखता है l अनु भी मुस्कुराते हुए भाग कर वीर के गले लग जाती है l वीर उसे बाहों में उठा लेता है के अनु के पैर फर्श से कुछ इंच उपर रह जाती हैं l


वीर - आख़िर मेरी बाहों में आ गई...
अनु - वादा जो लिया था आपने... जब भी बाहें खोलेंगे... मैं आपकी बाहों में समा जाऊँगी...
वीर - जानता हूँ... तु मुझसे बहुत प्यार जो करती है...

ऐसे ही बाहों में उठाए वीर अनु को बाथरूम में ले जाता है और शावर के नीचे खड़ा हो जाता है l अंदर पहुँचने के बाद

अनु - आपने... अपनी कर ली..
वीर - कहाँ... अब शुरु करना है...
अनु - अच्छा... और मुझे क्या करना होगा...
वीर - आज मैंने तुम्हें रंग दिया है... तो तुम गाना गा लेना...
अनु - क्या...
वीर - हाँ... तुम गाना..
रंगीला रे... तेरे रंग में... यूँ रंगा है... मेरा मन...
छलीआ रे... ना बुझे है... किसी जल से.. यह जलन...

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रुप आज खुद को संवार रही थी l माथे पर चमकता हुआ सफेद बिंदी लगा कर आईने में खुद को निहार रही थी l ड्रायर से लिपस्टिक निकाल कर अपनी होठों को रंगने लगती है l कभी मुहँ पर पाउट बना कर तो कभी मुस्करा कर बार बार खुद को देखने लगती है l फिर आईने के सामने से उठ कर खिड़की के पास आती है l रौशनी मद्धिम पड़ रही थी l वह अपनी वैनिटी पर्स से एक एक अठ्ठन्नी की कॉइन निकाल कर खिड़की पर लगे ग्रिल की स्क्रू एक एक कर खोलने लगती है l सारे स्क्रु खुल जाने तक अंधेरा छा चुकी थी l अब अपने बेड पर आकर चेहरे को बेड के हेड रेस्ट पर रख कर विश्व की राह देखने लगती है l कभी बाहर तो कभी घड़ी देख की ओर देखने लगती है l जैसे जैसे वक़्त गुज़रता जा रहा था वैसे वैसे रुप खीज ने लगी थी l चिढ़ कर अपना मोबाइल निकाल कर विश्व को कॉल लगाती है, पर विश्व की फोन पर उसे कॉल बिजी की ट्यून सुनाई देती है l ऐसे कुछ देर बाद जब विश्व के फोन पर रुप की कॉल लगती नहीं तो चिढ़ कर फोन को बेड पर पटक देती है l खिड़की की तरफ़ देखते हुए अपना सिर हेड रेस्ट पर रख कर विश्व की राह तकने लगती है l

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सारे गाँव वाले उस मैदान में जमा हो गये हैं l अपने हाथों में अपने अपने हिस्से के लकड़ी, गोबर के उपले आदि लेकर l जिस भाड़े पर होलिका का पुतला बैठी हुई थी l उसी पुतले के नीचे जलन की लकड़ियां जमा कर उस के ऊपर उपलों को भी सजाने लगे l कुछ लोग अपने कंधे और गले में ढोल,चांगु थाली लटकाये हुए थे, और किन्ही किन्ही के हाथों में शंख भी था l यह सारे दृश्य को उदय, बल्लभ के हाई रीजोल्युशन मोबाइल के जरिए शूट कर रहा था और मोबाइल नेटवर्क के जरिए ट्रांसमिशन कर रहा था l यशपुर में अपने क्षेत्रपाल पंथ निवास में बल्लभ के ही लैपटॉप पर भैरव सिंह लाईव देख रहा था उसके बगल में बल्लभ एक अलग कुर्सी पर बैठा हुआ था l थोड़ी दुर पर भीमा खड़ा हुआ था l भैरव सिंह देखता है कि हाथ में एक बड़ा से थैला भर कर सत्तू कुछ दारु की बोतलें निकालता है और लोगों के बीच पहुँच कर उन सबमें बाँटना शुरु करता है l उसे यूँ लोगों में दारु बांटता देख कर भैरव सिंह लैपटॉप का वॉयस ऑफ कर सवालिया नजरों से भीमा की ओर देखता है l

भीमा - वह... हुकुम... उदय ने बोला था...
बल्लभ - पर क्यूँ...
भीमा - उदय ने कहा... की लोग अगर नशे में रहेंगे... तो आगे बात को संभाला जा सकता है... और गलती से दरोगा से कोई हरकत हो भी गई तो... नशे में धुत लोगों का ध्यान उस तरफ़ नहीं जाएगा...
भैरव सिंह - (एक शातिर मुस्कान खिल उठता है) ह्म्म्म्म... बहुत ही खतरनाक दिमाग पाया है... यह उदय...
बल्लभ - राजा साहब... बुरा ना माने तो एक बात कहूँ...
भैरव सिंह - हूँ... कहो...
बल्लभ - मुझे लग रहा है... जैसे... उदय हमारे जरिए... मेरा मतलब है... हमारी आड़ लेकर... अपना खुन्नस उतार रहा है...

भैरव सिंह चुप रहता है और बल्लभ की ओर अपना भौह चढ़ा कर देखता है l बल्लभ के जिस्म में एक सुर सूरी सी सिहरन दौड़ जाती है l

भैरव सिंह - हमें लगता है... तुम अपनी दोस्त के होने वाले अंजाम को देखने से पहले... बहक रहे हो... (बल्लभ अपना सिर झुका लेता है) बात को पुरी करो...
बल्लभ - र राज आ.. साहब... मुझे माफ करें... जिस तरह से... वह बढ़ चढ़ कर... दरोगा के खिलाफ यह सब किए जा रहा है... मेरे मन में.. शंका पैदा कर रहा है...
भैरव सिंह - क्यूँ... तुम इस उदय से पहले से परिचित नहीं हो...
बल्लभ - कभी कभी उसे... रोणा के क्वार्टर में देखा था... रोणा के क्वार्टर में... रोणा के सारे काम किया करता था... यहाँ तक कि... विश्व पर निगरानी का जिम्मा भी... रोणा ने... उदय पर सौंप रखा था... इतना मालुम था कि... यह कंपेंशेशन ग्राउंड में... ग्रेड फॉर कटेगरी में... ग्राम रखी कि नौकरी कर रहा था... रोणा ने इसे... कांस्टेबल बनाने का वादा किया था...
भैरव सिंह - तो अब तक... पूरी वफ़ादारी के साथ... इस उदय ने... रोणा का काम किया है... अब हमसे वफादारी कर रहा है...
बल्लभ - मैं इसी बात पर हैरान हूँ... रोणा से उसकी वफ़ादारी... अब अचानक से... (एक पॉज लेकर) अब रोणा की जान पर आ गई...

भैरव सिंह कुछ सोच में पड़ जाता है,

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रुप की आँखे बंद थीं l उसे हल्का सा ठंडक महसूस हो रही थी l वह सिकुड़ कर अपनी बाहों को अपने गले और कंधों के पास कस लेती है l तभी उसे महसूस होता है कि कोई फूंकते हुए उसके चेहरे पर लटों को हटा रहा है l रुप के चेहरे पर पर एक खुशी भरी मुस्कान छा जाती है l हल्का सा आँख खोलती है l उसके आँखों के विश्व का चेहरा दिखता है, बहुत ही करीब था विश्व का चेहरा l विश्व को देखते ही

रुप - मुझे मालुम था... यह तुम ही होगे... (कह कर रुप फिर से अपनी आँखे बंद कर लेती है) आह... अनाम... कितना प्यारा सपना है... कास के इस सपने से कभी बाहर ही ना निकलुं... हकीकत में तो तुम आए नहीं... पर सपने में आए हो... प्यार जता रहे हो... कितना अच्छा लग रहा है.. उम्म्म्म्...

अचानक रुप अपनी आँखे खोलती है l विश्व का चेहरा रुप के चेहरे के पास ही था l वह अब सीधे हो कर बैठती है l अपने चारों तरफ देख कर चौंकती है और बड़ी बड़ी आँखों से हैरानी भरे नजरों से देखने लगती है l रुप एक नाव पर थी l एक चौपाई के सिरहाने सिर टिका कर सोई हुई थी l नाव बीच नदी में था l यह देख कर रुप चिल्लाने को होती है कि विश्व उसके मुहँ पर हाथ रख देता है l रुप अपने मुहँ से विश्व की हाथ हटाने के लिए छटपटाती है l जब थक जाती है

विश्व - हाथ निकालूँ...

अपना सिर हिला कर हाँ कहती है, विश्व रुप की मुहँ से हाथ हटाता है, रुप विश्व की हाथ पकड़ कर अपने दांतों से काटती है l विश्व चिल्लाते चिल्लाते रह जाता है और अपने बाएं हाथ से अपना मुहँ दबा लेता है l

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कुछ शोर शराबा सुनाई देने लगता है तो अपना ध्यान लैपटॉप पर चल रहे दृश्य पर गाड़ देता है l देखता है सत्तू सबको शराब पीने के लिए उकसा रहा है l

सत्तू - यह लो... ऐस करो... आज का यह दारु मेरे तरफ से.. जी भर के पियो...
एक गाँव वाला - अरे सत्तू पहलवान... तुझे कौनसा ख़ज़ाना मिल गया है... जो आज तु ऐसे लूटा रहा है...
सत्तू - अरे ताऊ... आज पहली बार... होली जलाई जाएगी... कल होली खेली जाएगी... क्या यह कम बड़ी बात है... इसलिए पिलो... आज फोकट में दे रहा हूँ... कल से तुमको अपना जेब ढीला करना पड़ेगा...

सब खुशी के मारे हल्ला मचाते हुए दारु के बोतल उठा कर घुट गटकने लगते हैं l इसी तरह सत्तू सभी गाँव वालों में बोतल बांटने लगता है और लोग अपने हिस्से आई बोतल को खाली करने लगते हैं l

भैरव सिंह - यह सत्तू... कह रहा था... बच्चों ने आज... विमान परिक्रमा कारवाई... पर यहाँ पर बच्चे बिल्कुल दिख नहीं रहे हैं... (इस पर बल्लभ चुप रहता है, तो इसबार भैरव सिंह भीमा की ओर देखता है)
भीमा - हुकुम... औरतें भी तो नहीं दिख रहे हैं... हो सकता है... डर के मारे नहीं आए हों... मतलब.. उन्हें अभी भी यकीन नहीं हो रहा हो...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... (लैपटॉप का वॉयस ऑन कर) उदय...
उदय - जी हुकुम...
भैरव सिंह - गाँव से सिर्फ मर्द ही आए हैं क्या... औरतें और बच्चे...
उदय - (ट्रांसमीशन करते हुए) हुकुम... औरतें और बच्चे... कुछ दूरी पर खड़े हैं...


कह कर मोबाइल घुमाता है, भैरव सिंह देखता है कि एक जगह पर गाँव की औरतें और बच्चे सभी खड़े हो कर तमाशा देख रहे हैं l बच्चे पास जाने के लिए उतावले हो रहे हैं l पर उनकी माँएँ उन्हें जाने से टोक रहे हैं l उन लोगों के भीड़ में भैरव सिंह को वैदेही खड़ी नजर आती है l जिसका चेहरा भाव शून्य सा लग रहा था l

भैरव सिंह - ठीक उदय... मोबाइल दहन की जगह दिखाओ...

उदय वैसा ही करता है l कुछ देर बाद कुछ अचानक ढोल, चांगु बजने लगते हैं l महरी तुरी भेरी बजने लगते हैं l कुछ लोगों के हाथों में जलते हुए मशाल दिखते हैं l एक गाँव वाला मशाल फेंकने को होता है कि उसे सत्तू रोक देता है l

सत्तू - नहीं नहीं... ऐसे नहीं...
गाँव वाला - फिर कैसे...

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रुप विश्व की हाथ छोड़ देती है l विश्व हाथ को फूंकने लगता है l रुप की और देखता है l रुप अपनी आँखे सिकुड़ कर विश्व को देख रही थी l

रुप - मैं समझ रही थी... के मैं सपना देख रही हूँ... पर... मैं सच में... नाव पर हुँ... कब आई... कैसे आई...
विश्व - क्यूँ... आप खुद को यहाँ देख कर थ्रिल नहीं हुईं..
रुप - थ्रिल... पहले मैं डर गई... बात समझने के लिए... कुछ वक़्त लगा मुझे... तुम... मुझे यहाँ तक कैसे लाए... और... मैं सो कैसे गई थी...
विश्व - (चुप रहता है)
रुप - देखो मुझे सब सच सच बताओ... वर्ना...
विश्व - वर्ना...
रुप - वर्ना... आज पूरा गाँव... विश्व प्रताप को चीख मारते हुए सब देखेंगे... इतनी जोर से ऐसे काटुंगी के...

कहते कहते रुक जाती है और जोर जोर से साँस लेने लगती है, विश्व उसे इस हालत में देख कर पहले हैरान हो जाता है l फिर हँस डेट है l उसे यूँ हँसते देख कर रुप और भी ज्यादा चिढ़ जाती है l

रुप - (मुहँ बना कर, मुहँ फ़ेर कर बैठ जाती है) जाओ मैं तुमसे बात नहीं करती...
विश्व - (रुप के पास आकर बैठ जाता है) मैं छुप कर देख रहा था,.. कैसे एक परियों की रानी... मेरे लिए सज रही थी... सँवर रही थी... फिर देखा उसकी आँखे लग गई थी... तो मैंने... एक रुमाल में थोड़ा सा क्लोरोफॉर्म डाल कर... उसकी नींद को थोड़ा गहरा कर दिया... बस... फिर उसे अपने पुराने तरीके से... खिड़की से नीचे उतारा... और उसी नींद के हालात में... यहाँ... नाव पर चौपाई के सहारे बिठा दिया...
रुप - (अपना मुहँ बना कर, फिर से मुहँ फ़ेर लेती है) हूँ ह...
विश्व - क्या आप... थ्रिल नहीं हुईं...
रुप - थ्रिल... थ्रिल तो तुम्हें महसुस हुआ होगा... अगर मैं होश में होती... तो वह थ्रिल मैं भी महसुस करती ना...
विश्व - मैं आपको... यह सारा एहसास... सपने की तरह महसुस कराना चाहता था... (एक पॉज लेकर) बुरा लगा...
रुप - (विश्व की ओर बिना देखे अपना सिर ना में हिलाती है)
विश्व - सॉरी... वेरी सॉरी... आप जो भी सजा देंगे.. (अपने घुटनों पर बैठ कर) मुझे कुबूल होगी...
रुप - (मुड़ती है) खड़े हो जाओ... (विश्व खड़ा हो जाता है, रुप उसके सीने पर मुक्के मारने लगती है, पर विश्व वैसे ही खड़ा रहता है) मैं तुम पर मुक्के बरसा रही हूँ... और तुम हो कि...
विश्व - आह... ओह... उह... (करने लगता है)

रुप को और भी ज्यादा गुस्सा आता है l विश्व को धक्का देती है विश्व थोड़ा पीछे हटता है l फिर रुप उस पर कुदी मारती है l विश्व अब पीठ के बल गिरता है और रुप उसके ऊपर गिरती है l विश्व के पेट पर बैठ कर विश्व की कलर पकड़ लेती है l

रुप - होगे तुम बड़े तुर्रम खान... पर मैं भी तुम्हें हरा सकती हूँ... समझे...
विश्व - जी.. आपसे जितने कि... सोच भी नहीं सकता कभी...

रुप शर्मा जाती है, पर विश्व की कलर नहीं छोड़ती l विश्व रुप की दोनों हाथों को पकड़ लेता है और अपना चेहरा थोड़ा किनारा कर आसमान की ओर देखता है फिर रुप की ओर देखता है l ऐसा दो तीन बार करता है l

रुप - ऐसे क्या देख रहे हो...
विश्व - आज पूनम की रात है... मैं आपके चेहरे को और चांद को देख रहा था... और इतरा रहा था
रुप - क्यूँ...
विश्व - उस चांद का कहाँ मुकाबला होगा... (रुप के चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर) मेरे इस चांद के आगे...

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सत्तू - जैसे बचपन में... घो घो राणी खेलते थे ना...
गाँव वाले - हाँ...
सत्तू - वैसे ही... इस होलिका भाड़े के चारो ओर... घूमो... फ़िर आग लगा ओ...

सत्तू की बात मान कर, हाथों में मशाल लिए सारे मर्द दहन मंच के घेर कर घूमने लगते हैं l शराब धीरे धीरे उन पर असर कर रहा था l लोग मशालों को घुमा घुमा कर एक तरह से उद्दंड नृत्य कर रहे थे l तभी एक गाँव वाले की नजर होलिका की पुतले पर पड़ती है l उसे लगाकि वह पुतला हिल रही थी l वह रुक जाता है और डर के मारे कांपने लगता है l उसे रुकता देख कर उसके साथी भी रुक जाते हैं और उससे पूछने लगते हैं

- अबे क्या हुआ... रुक क्यूँ गया
वह - होलिका हिल रही है...
गाँव वाले - क्या...

सभी रुक कर पुतले को देखने लगते हैं l उधर यशपुर पर सीधा प्रसारण देख रहे भैरव सिंह की भौहें सिकुड़ जाती हैं l तभी सत्तू उन गाँव वालों के पास पहुँचता है l

सत्तू - ओये... क्या हो गया... रुक क्यूँ गए तुम लोग...
वह - होलिका... हिल रही थी...
सत्तू - सालों... कमीनों... होलिका नहीं हिल रही है... दारू बाज कहीं के... तुम सारे हिल रहे हो...
गाँव वाले - हाँ... हाँ... हमें भी यही लग रहा है...
वह - नहीं नहीं... होलिका हिल रही है...
सत्तू - अबे मरदूत... जब नशा संभाल नहीं पाता... तो इतना पिता क्यूँ है... (सारे गाँव वालों से) एक काम करो...
गाँव वाले - क्या...
सत्तू - तुम सब को... दरोगा रोणा याद है... (सब गाँव वाले हैरानी के मारे एक दुसरे को देखने लगते हैं) अबे बोलो... याद है...
एक गाँव वाला - ह... हाँ.. हाँ.. याद है..
सत्तू - जानते हो... वह अभी लापता है... हमारे राजा सहाब के सर्कार उसे ढूँढ रही है...
गाँव वाले - क्यूँ...
सत्तू - उसने लोगों के साथ बहुत बुरा किया है... उसे सजा देने के लिए...
गाँव वाले - (उल्लासित होकर) अच्छा...
सत्तू - हाँ... इसलिए... अब इस पुतले को... कुछ देर के लिए ही सही... दरोगा रोणा समझो... और अपने दिल की भड़ास निकालते हुए... इन लकडिय़ों में आग लगा दो...

गाँव वाले पहले एक दुसरे को देखते हैं l उनके बीच से हरिया आगे आता है और पुतले को देखते हुए चिल्ला कर गला फाड़ कर कहने लगता है

हरिया - अबे हरामी कुत्ते रोणा... बहुत दिनों से खुन्नस था... आज हाथ लगा है तु मेरे... साले कमीने हरामी... यह ले...

कह कर मशाल को पुतले की ओर फेंकता है l मशाल पुतले से लग कर भाड़े से लगे लकडिय़ों पर गिरती है l उसके देखा देखी और एक गाँव वाला सामने आता है और वह भी रोणा को गालियाँ बकते हुए मशाल दे मारता है l इस तरह से लोग एक के बाद एक रोणा को गाली अभिशाप देते हुए अपनी अपनी मशालें फेंक मारते हैं l लकड़ियों में धीरे धीरे आग जलने लगती है l जैसे जैसे आग भड़कने लगती है l लोग जो बाहर ढोल, चांगु, मादल बजाने लगते हैं l ऐसा प्रतीत होता है जैसे ढोल आदि के ताल से ताल बिठा कर लपटें आकाश की ओर उठने लगती हैं l यह सब देख कर जहां भैरव सिंह के दिल में एक सुकून महसूस होती है वहीँ बल्लभ की अंतरात्मा छटपटाने लगती है l
धीरे धीरे आग की लपटें जोर पकड़ने लगती है l उसके साथ साथ लोगों में हल्ला व उल्लास के साथ शोर भी बढ़ने लगती है l ढोल मादल चांगु की ताल से ताल बिठा कर शंख फूंकने लगते हैं l बल्लभ एक नजर भैरव सिंह पर डालता है l भैरव सिंह के आँख उसे जलती हुई दिखाई दे रही थी l लैपटॉप से आ रही हल्ला उल्लास की आवाजें उसके भीतर उसे दहला रही थी l बल्लभ छटपटा रहा था पर अपने अंदर की भावनाओं को बाहर उजागर नहीं कर पा रहा था l

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रुप शर्मा कर विश्व के ऊपर से हट जाती है और नाव के एक छोर पर आ कर नाव पर नजर घुमाने लगती है l वह देखती है दो बड़े नावों को बांध कर उस पर दो लकड़ी के खाट बंधे हुए हैं l सबसे अहम बात ना सिर्फ नाव में वे दोनों ही थे बल्कि बीच नदी में नाव एक दम स्थिर थी l रुप को महसुस होती है विश्व उसके पीछे खड़ा है l

रुप - एक बात पूछूं...
विश्व - पूछिये...
रुप - तुम मुझे यहाँ पर क्यूँ लाए... तुम्हें डर नहीं लगा... हम पकड़े भी जा सकते थे...
विश्व - नहीं... आज हम पकड़े नहीं जाएंगे... क्योंकि... आज महल पुरी तरह से... मर्दों से रहित है... और राजा साहब और उनके खास... कोई भी... महल या उसके आस-पास भी नहीं है... वैसे भी... आपको सरप्राइज पसंद है ना...
रुप - (हैरान हो कर पीछे मुड़ती है) सरप्राइज... तुमने सरप्राइज़ नहीं मुझे शॉक दे दिया था... एक पल के लिए... मुझे तो जोर का झटका लगा था...
विश्व - (मुस्करा देता है)
रुप - वैसे... क्यूँ... (पॉज लेकर) इसका मतलब... तुमने ऐसा क्या किया है.... की वे सारे लोग... (चुप हो जाती है)
विश्व - मैंने कहा था... आप मुझसे जो भी ख्वाहिश करेंगी... उस पल को मैं खास बना दूँगा...
रुप - है... भगवान... मतलब... तुम... इस खेल में कर्ता हो... कारक हो... बाकी सब... क्रिया हैं...
विश्व - (चुप रहता है)
रुप - वाव... तुम कितने परफेक्ट हो...
विश्व - नहीं... कोई कभी भी... परफेक्ट नहीं हो सकता... बस चालें सही बैठ रही हैं... इसलिए... रिजल्ट मन माफिक मिल रहा है... अगर कभी चल गलत बैठ गया... तो लेने के देने पड़ जाएंगे...

दोनों के बीच चुप्पी छा जाती है l रुप फिर से विश्व की ओर पीठ कर खड़ी हो जाती है और चांद की ओर देखने लगती है l विश्व को अब समझ में नहीं आता आगे करे तो क्या करे और कैसे आगे बढ़े l ठंडी हवाएं चलने लगती है l रुप की चूनर उड़ कर विश्व के चेहरे पर लहराने लगती है l विश्व रुप की चूनर को पकड़ लेता है l रुप की धड़कने तेजी से ऊपर नीचे होने लगती है l वह अपनी चुनरी को पकड़ लेती है l विश्व अपने चेहरे पर लहराते हुए चुनरी को झटका देकर खिंचता है l रुप उस झटके के साथ विश्व के सीने पर आ गिरती है l विश्व की हाथ रुप की कमर पर कस जाती है l रुप अपना चेहरा विश्व के सीने में छुपा लेती है l

विश्व - (थर्राती आवाज में) राजकुमारी जी...
रुप - ह्म्म्म्म...
विश्व - आसमान में चाँद मुझसे जल रहा है...
रुप - (सिर नहीं उठाती) ह्म्म्म्म..
विश्व - देखिए ना... कितना खूबसूरत नज़ारा है... चांद की चांदनी में नहाया हुआ इन फ़िज़ाओं में... कल कल आवाज करती बहती नदी पर... दो नाव... उस पर दो प्रेमी... अपनी पहली चुंबन के लिए...

रुप की मुट्ठी विश्व के शर्ट पर कस जाती हैं l चेहरा और भी जोर से सीने में गड़ जाती है l विश्व की हाथ कमर से उठ कर पीठ पर लहराते हुए उठती है l रुप की बदन उसी लहर के नागिन की तरह बलखाने लगती है l विश्व की हाथ रुप के सिर पर आकर रुक जाती है फिर दोनों हाथों से रुप की चेहरे को अपने सामने लाता है l रुप की आँखे बंद थीं l

विश्व - (हलक से बड़ी मुश्किल से आवाज़ निकाल कर) रा.. ज.. राज.. कु.. मारी...
रुप - हूँ...

रुप की चेहरे को अपने चेहरे के पास लाता है और अपना चेहरा धीरे धीरे रुप की चेहरे पर झुकाता है l दोनों की साँसे टकरा रही थी l दोनों की धड़कने बड़ी तेजी से उपर नीचे हो रहीं थीं l वे दोनों एक दूसरे की धड़कनों को साफ सुन पा रहे थे कि नदी की कल कल की आवाज दब गई थी l विश्व और झुकता है रुप की हॉट पर अपना होंठ रख देता है l जैसे ही रुप के होठों पर विश्व की होंठ का स्पर्श अनुभव होती है उसका सारा जिस्म कांप जाती है l उसका बदन हल्का हो जाती है और पैरों के उँगलियों पर खड़ी हो जाती है l उसका हाथ अब फिसल कर विश्व के कमर पर आ जाती है l विश्व अपना हॉट खोल कर रुप की निचली होंठ को चूसने लगता है l रुप की भी प्रतिरोध ढीली पड़ जाती है और उसके होंठ खुल जाती है l धीरे धीरे चुंबन प्रगाढ़ से प्रगाढ़ तक होने लगती है l रुप के हाथ अब विश्व के बालों से खेल रहीं थीं l वहीँ विश्व के हाथ भी अनुरुप रुप के केशुओं में उलझ गए थे l

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होलिका दहन अपने चरम पर पहुँच गया था l लपटों में इतनी तेज थी के अब लोग उसके आसपास भी मंडरा नहीं पा रहे थे l दुर से खड़े हो कर गाँव वाले यह दृश्य देख रहे थे l धीरे धीरे उन लोगों के पास उनके परिवार जमा होने लगते हैं l उनके लिए यह एक अद्भुत दृश्य था l क्यूंकि दशकों से ना तो उनके पुरखों ने कभी त्योहार मनाया था ना ही उन्होंने l पर आज उनके बच्चों के वज़ह से और राजा भैरव सिंह के अनुग्रह से ना सिर्फ होलिका दहन मनाया गया बल्कि इसी राख से कल रंग भी खेला जाएगा l यह दृश्य यशपुर में बैठा भैरव सिंह भी देख रहा था l मन ही मन वह उदय से प्रभावित भी हो गया था l क्यूंकि उसके घर की इज़्ज़त पर किसी ने आँख उठाया है यह बात कोई जान लेता तो ज़रूर कानाफूसी होती l जिस पर उसके साख पर बट्टा लग जाता l वह गाँव वालों को भी सजा देना चाहता था l इस तरह से गाँव वालों का जुर्म भले ही अनजाने में किया गया था पर सबुत बन गया था उसके पास l हो सकता है भविष्य में यह उसके काम आए l जितना संतुष्ट भैरव सिंह था, उतना ही दुखी बल्लभ था l जो भी था जैसा भी था रोणा उसका दोस्त था l हर मामले में वह भैरव सिंह का वफादार था l बल्लभ यह समझ चुका था रोणा से गलती हुई थी पर अपराध नहीं हुआ था l पर भैरव सिंह के डायरि में क्षमा शब्द ही नहीं था l उसकी भी नजर लैपटॉप में घट रहे मंज़र देखे जा रहा था l तभी अचानक वह देखता है कि वह भाड़ा जिस पर रोणा को होलिका बना कर बिठा दिया गया था l वह भाड़ा टुट जाता है और आग की लपटें एका एक और ऊपर उठ जाते हैं l जिसे देख कर लोग उद्दंडता से चिल्लाने लगते हैं l इससे आगे बल्लभ और देख नहीं पाता l क्यूंकि उसे कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था l उसे समझते देर नहीं लगी कि उसकी आँखे बह रही थी l आखेट गृह में नजाने कितने मौत देखे हैं पर आज वह अपना परम मित्र को जिंदा जलते देख रहा था l अपनी आँखे पोंछता है, उसका मन कर रहा था कि वह गला फाड़ कर रोये, पर वह लाचार था l अपनी लाचारी को छुपा कर आपनी आँखे बंद कर लेता है l पर बल्लभ का यह दुख और लाचारी भैरव सिंह के आँखों से छुप नहीं पाती l भैरव सिंह उसकी दुर्दशा को नजर अंदाज कर लैपटॉप में चल रहे दृश्य को गौर से देखे जा रहा था l

भैरव सिंह - अच्छा हुआ... तुम यह सब देखने के लिए... वहाँ नहीं थे... वर्ना... तुम अपनी कमजोरी को जाहिर कर देते... यह उदय ने अच्छा आइडिया दिया था... हमें यशपुर चले आने के लिए... अब तुम्हें इस रेकॉर्डिंग को... एडिट वगैरह कर... एक कंस्पैरी क्रिमिनल ऐक्ट प्रूफ़ बनाना है... क्यूँकी... रोणा ऑफिसियली गायब है... जिसे डेपुटेशन पर आए नया ऑफिसर दास ढूँढ रहा है... पहले कहानी बताओगे... लोग कैसे... रोणा को हस्पताल से गायब किए... उसके बाद... यह विडिओ... सबुत बना कर... दास तक पहुँचाने की जिम्मेदारी तुम्हारी... समझे...
बल्लभ - (जैसे नींद से जागता है) जी... जी.. राजा साहब...

आग की लपटें धीरे धीरे शांत हो रही थी l चूंकि विडिओ कॉल पर था, भैरव सिंह अपना माइक ऑन कर उदय से कैमरा घुमा कर गाँव वालों की तरफ मोड़ ने के लिए कहता है l उदय कैमरा घुमाता है l कैमरा सभी गाँव वालो पर घूमने लगता है l अचानक भैरव सिंह लैपटॉप को उठा कर घूरने लगता है l लैपटॉप को चिपका कर ऐसे देखने लगता है कि मानो वह किसीको कैमरे के जरिए ढूँढ रहा था l धीरे धीरे उसके जबड़े भिंच जाते हैं और चेहरा सख्त हो जाता है l उधर ट्रांसमिशन करते हुए उदय देखता है कि उसका कॉल कट चुका था l

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रुप और विश्व का चुंबन टूटता है l दोनों ऐसे हांफने लगते हैं जैसे मानों कोई मैराथन दौड़ कर आए थे l दोनों अपने अपने सिर एक दुसरे पर टिका कर गहरे गहरे साँस लेने लगते हैं l जब साँसे दुरुस्त होने लगती है तब विश्व अचानक रुप को छोड़ कर थोड़ी दुर जाकर रुप की ओर देखने लगता है l रुप उसे सवालिया नजर से देखती है l

विश्व - (साँसों को संभालते हुए) आपसे वादा किया था... बेशरम हो सकता था... पर बेकाबू... बे लगाम नहीं हो सकता... (रूप कि और पीठ घुमा लेता है)
रुप - (पीछे से आकर पकड़ लेती है और विश्व के सीने पर हाथ फेरने लगती है)
विश्व - राज कुमारी जी...
रुप - (मस्ती के मुड़ में आ चुकी थी) जी कहिये मेरे भोले अनाम जी...
विश्व - वह आपको... मतलब कैसा... (चुप हो जाता है)
रुप - क्या हुआ... चुप क्यों हो गए...
विश्व - वह... मुझसे... कोई गलती तो नहीं हो गई...
रुप - (विश्व को अपने तरफ झटके के साथ मोड़ कर) ओये.. मौसमी बेशरम... चूमा लेने और देने के बाद... शर्म नहीं आई... अब शर्म नहीं आ रही... ऐसे शर्माते हुए...
विश्व - जी आ रही है... मतलब नहीं... आह.. (खीज जाता है)

रुप उसकी हालत देख कर खिलखिला कर हँसने लगती है l फिर विश्व के पैरों पर अपने पैर रख कर पैरों की उंगली पर खुदको उठा कर विश्व के बराबर आ जाती है l विश्व के हाथों को अपने कमर पर रख कर विश्व के चेहरे को अपने हाथों में लेती है और वह विश्व के होठों पर टुट पड़ती है l विश्व उसके चुंबन से खुद को छुड़ाने की कोशिश करता है पर फिर वह भी रुप के चुंबन की प्रतिक्रिया में रुप की गहरी चुंबन लेने लगता है l फिर कुछ समय बाद इस बार रुप विश्व को अलग कर देती है l चुंबन टूटते ही विश्व रुप की ओर हैरानी भरे निगाह से देखने लगता है l

रुप - तो मिस्टर बेशरम... बेकाबू क्यूँ होने लगे... ह्म्म्म्म.. बेकाबू होने लगे...
विश्व - कहाँ... कैसे...
रुप - (विश्व की पेंट पर बने उभार की ओर इशारा करती है) यह... यह रहा... तुम्हारा बे - लगाम...
विश्व - मैं कहाँ बे लगाम हुआ था... वह तो आपने मुझे...
रुप - हाँ हाँ... अब तो दोष मुझे ही दोगे... क्यों... छी.. कितने अश्लील हो तुम...
विश्व - कमाल है... आप जिस तरह मुझ पर टुट पड़ी... मुझे लगा आप कहोगे... वाव.. अनाम तुम कितने नैचुरल हो...
रुप - यु...

कह कर रुप विश्व की ओर कुद कर उछल जाती है l विश्व उसे पकड़ लेता है l रुप अपने दोनों पैरों को विश्व के कमर के इर्द-गिर्द कस कर बाँध लेती है और विश्व के चेहरे को अपने हाथों में लेकर विश्व के होंठ पर टुट पड़ती है l विश्व भी इस बार रुप का बड़े जोशीले अंदाज में साथ देता है कि तभी विश्व की मोबाइल बज उठता है l

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भीमा गाड़ी को भगा रहा था l रात गहरी भले ही हो गई थी पर आसमान में चाँद आज चमक नहीं दहक रहा था l भैरव सिंह पंथ निवास में बल्लभ को छोड़ कर भीमा को साथ लेकर महल की तरफ ले जाने के लिए कह कर निकला था l भीमा को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था l अचानक भैरव सिंह को क्या हो गया l वैसे भी भैरव सिंह, क्षेत्रपाल - महल में कम, रंग महल में ज्यादातर रात बिताता था l कभी भी रात को इस तरह क्षेत्रपाल महल गया नहीं था l जब उससे रहा नहीं गया तो भैरव सिंह से पूछता है

भीमा - हुकुम... आप राजमहल ही जा रहे हैं ना..
भैरव सिंह - हाँ...

भीमा और सवाल नहीं करता l चुप चाप गाड़ी चलाता है l भैरव सिंह इस बार भीमा से पूछता है l

भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी.. जी... हुकुम...
भैरव सिंह - एक बात याद रखना... हम हार या जीत को बाद में तरजीह देते हैं... सब से पहले... हम अपनी अहं को तरजीह देते हैं... क्यूंकि... अगर अहं रह गया... तो जीत भी आएगी...
भीमा - जी... हुकुम...
भैरव सिंह - रोणा बेशक वफादार था... पर अनजाने ही सही... हमारे अहं की रास्ता काटने की गलती कर बैठा... इसलिए... उसका अंजाम देखा तुने...
भीमा - जी... जी हुकुम..
भैरव सिंह - अब मुझे तु बता... उस हराम के पिल्लै... विश्वा को... कौन मार सकता है...
भीमा - (इस बार चुप रहता है)
भैरव सिंह - जिसे हमने एक बार अपने पैरों के धुल के बराबर रखा हो... उसे हम अपने हाथों से सजा नहीं दे सकते... इसलिए... रोणा को जिम्मेदारी सौंपी थी... पर उससे ना हो पाया... अब तु बता... तुझसे या तेरे पट्ठों से होगा या नहीं... अगर नहीं होगा... तो हमें... बाहर से आदमी लाकर रखने होंगे... और तुम लोगों के बारे में सोचना होगा...

भीमा गाड़ी में ब्रेक लगाता है l क्षेत्रपाल महल के सीढियों के सामने गाड़ी रुक जाती है l भीमा गाड़ी से उतर कर भागते हुए आता है और गाड़ी का दरवाजा खोलता है l भैरव सिंह चारों तरफ नजरें घुमा कर देखता है l महल के आसपास उसे इक्का-दुक्का पहरेदार नजर आते हैं l वह समझ जाता है कि होलिका दहन में लोगों के बीच रह कर होलिका को जलाने के लिए गाँव के लोगों को उकसाने के लिए सब चले गए हैं l दो पहरेदार भागते हुए उसके पास आकर सलामी ठोक कर खड़े हो जाते हैं l

भैरव सिंह - कोई खबर...
पहरेदार - सब ठीक है राजा साहब...

भैरव सिंह कोई और सवाल नहीं करता l सीधे सीढ़ियां चढ़ने लगता है l भीमा उसके पीछे पीछे जाने लगता है तो भैरव सिंह हाथ से इशारा कर उसे वही ठहरने के लिए कह कर आगे बढ़ जाता है l अंदर सारे दासियां दीवारों से सट कर सोये हुए थे l पर जैसे ही गाड़ी रुकी थी l सभी जाग कर दीवारों के ओट में सिर झुका कर खड़े हो गए थे l उन सभी को नजर अंदाज कर भैरव सिंह अंतर्महल में आता है और सीधे रुप के कमरे के दरवाजे के सामने खड़ा होता है l अपने कमर पर हाथ रखकर चारों ओर नजर घुमाने लगता है l देखता है कुछ दासी दीवार से लग कर सिर झुकाए खड़ी हुई हैं l

भैरव सिंह - एकांत...

सभी दासियां वहाँ से निकल जाती हैं l भैरव सिंह दरवाजे पर दस्तक देता है l अंदर से कोई आवाज नहीं आती है l और एक बार दस्तक देता है l जब कोई शोर सुनाई नहीं देती है इस बार थोड़ी ताकत लगा कर दस्तक देता है l दरवाजे के नीचे वाली फांक से उजाला आता है l थोड़ी देर बाद दरवाज़ा खुलता है l भैरव सिंह देखता है सादी लिबास में रुप अपनी भारी आँखे मलते हुए भैरव सिंह की ओर देख रही है l अचानक चौंकती है जैसे सामने अभी भैरव सिंह को पहचान लिया l

रुप - राजा साहब... आप... इतनी रात गए...

भैरव सिंह उसे अनसुना कर कमरे में जो दो खिड़कियाँ थी उनकी रेलिंग खिंच कर देखता है फिर रुप को बिना देखे कमरे से जाने लगता है l पर जाते जाते दरवाजे पर रुक जाता है, फिर रुप की ओर मुड़ता है l

भैरव सिंह - राज कुमारी... हम जानते हैं... आप इस समय हैरान हैं... पर हम आप बस इतना जान जाइए... हमें शक नहीं यकीन है... पर हमारी यकीन को हम फ़िलहाल के लिए साबित नहीं कर सकते... पर इतना तय मान लीजिए... आप इस घर से जाएंगी... दसपल्ला राज घराने में ही जायेंगी... बाकी अगर और कोई ख्वाहिश है भी... तो भूल जाइए...

कह कर भैरव सिंह मूड कर जाने लगता है l पर उसके कदम ठिठक जाते हैं l क्यूंकि रुप ने पीछे से आवाज दी थी

रुप - राजा साहब... (भैरव सिंह मुड़ता है) हम आपकी यकीन की इज़्ज़त करते हैं... और वादा करते हैं... हम जब भी इस घर से जाएंगे... आपकी आँखों के सामने से जाएंगे... सिर उठा कर जाएंगे...

भैरव सिंह का पारा चढ़ जाता है l वह तेजी से रुप के पास आता है और जोर से अपना हाथ घुमाता है पर अपना हाथ ठीक रुप के गाल के पास रोक देता है l देखता है रुप के आँखों में जरा सा भी डर नहीं था l भैरव सिंह गुस्से में थर्राते हुए मुट्ठी कसने लगता है l रुप को भैरव सिंह की मुट्ठी कसते हुए कड़ कड़ की आवाज़ सुनाई देने लगती है l

भैरव सिंह - एक राजनीतिक मजबूरी है... वर्ना...

इतना कह कर भैरव सिंह कमरे से निकल जाता है l उसके जाते ही रुप एक गहरी साँस छोड़ती है और भागते हुए दरवाज़ा बंद कर देती है l दरवाजा बंद करने के बाद वह घुमती है पीछे विश्व खड़ा था l उसके पास भाग कर विश्व के गले लग जाती है l
Shandaar update kai patte khul Gaye ha isme. To aakhir Rona apne anjaam ko lag gaya sab karmo ka khel hai sab ki majboorio ka faida uthaya aur aakhirkar ek majboor maut mili usko aur udhar chette ne Shetrapal and Vishwa ko apas me lada kar rakha hai coz jo bhi khatam hoga tab tak doosra toot jayega aur usay khatam karna uske liye easy hoga lekin woh bhool Gaya ki saanp ke bill me hath dalne se pehlay uska mantar aana zaroori hai aur vishwa jaisay aqal ke Khiladi ko woh mantar zaroor aata hoga is taraf usne zaroor socha hoga ki kal yah log uske khilaf bhi aayege aur tab ki tayyari usne abhi se kar rakhi hogi.
Shayad Bhairav Singh ko khatam karne se pehlay woh Inka game Baja dega thik last me warna baad me woh log bhari pad jaayege. To aakhir kar Raha ke nav ratno me se ek kam hua hai abhi list bohat lambi hai ab sab se pehlay ballabh ko khatam karna hoga taki iska qanooni haat and think tank khatam ho jaye.

Lekin in sab me sab se zada hairan kar raha hai to woh hai 4th person kaun hai woh kia Anu ka munh bola bhai jo veer ne apni behan ka badla lena chahta hain.

Khoobsurat update diya hai aapne thanks jo apne busy schedule se apni forum family ko yaad Kiya hai aapne. Intezar rahega agli update ka.
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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👉एक सौ छियालीसवां अपडेट
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राजगड़
शाम होने को है
सूरज की रौशनी और ताप दोनों मद्धिम पड़ रहे हैं l रोज की रुटीन के अनुसार दोपहर का खाना खाने के बाद भैरव सिंह क्षेत्रपाल महल में भीतर नागेंद्र सिंह के कमरे में, उसके बेड के करीब बैठा हुआ था l कमरे में आज वह अकेला था l सुषमा या कोई नर्स नहीं थीं l नागेंद्र सिंह टेढ़े मुहँ से भैरव सिंह की ओर ताक रहा था l

भैरव सिंह - आपकी हालत मुझसे देखी नहीं जा रही है बड़े राजा... मज़बूरी है... आपको जिंदा रहना है... और मुझे जिंदा रहना है... हमें समझ में आ गया है... उस दिन आपने क्यूँ कहा था... राजकुमारी जी पर नजर रखने के लिए... हमने जिसे भेजा था... वह कमबख्त... नाकारा निकला... छोटे राजकुमार जी की बात आकर कही पर... राजकुमारी के बारे में... टोह तक ना ले पाया... (नागेंद्र सिंह की आँखे चौड़ी हो जाती हैं) हाँ... बड़े राजा... आप सही थे... राजकुमारी घर से निकली... बाहर.... (अपनी आँखे बंद कर जबड़े भिंच कर कुछ देर के लिए चुप हो जाता है) हमें संदेह है... शायद यकीन भी है... पर नाम नहीं बता सकते... क्यूँकी... हम साबित नहीं कर सकते... अगर झूठे साबित हो गए... तो अपने बच्चों के आगे इज़्ज़त गवा बैठेंगे... राजकुमारी को सजा देने का मन कर रहा है... पर राजनीतिक मज़बूरी के चलते... हम उस सच से फिलहाल किनारा किए हुए हैं... (अपनी जगह से उठता है,नागेंद्र की ओर पीठ कर खड़ा होता है) क्यूंकि... अगर यह राज खुला... तो जिन लोगों के भगवान बने फिर रहे हैं... उनके गप्पी में उपहास के किरदार बन जाएंगे... इसलिए अब राजकुमारी घर में रहकर पढ़ाई करेंगी... जैसे बचपन में किया करतीं थीं... सिर्फ इम्तिहान देने के लिए बाहर जाएंगी... (नागेंद्र के हलक से हुम्म्म्म... ह्म्म्म्म की आवाज आती है, भैरव सिंह मुड़ कर देखता है, नागेंद्र इशारों से कुछ कहने की कोशिश कर रहा है) हाँ... समझ रहे हैं... अगर हम पहले की तरह... अपनी राज पाठ सिर्फ राजगड़ और इसके आसपास सीमित रखते... तो बात इतनी मुश्किल नहीं होती... पर जब दायरा जितना फैलता गया... तो बीच में खाली पन उतना ही बनता गया... अब अपने रुतबे और गुरूर के दम पर... उस खाली पन को ढकने की... छुपाने की कोशिश किए जा रहे हैं... जाहिर है... दायरा बढ़ा... तो महल की खिड़की को भी ऊँचा करना पड़ रहा है... क्यूँकी दुनिया की आदत है... हर ऊंचे घरों की खिड़की से अंदर झाँकना... पर बड़े राजा जी... निश्चिंत रहिए... हम सब ठीक कर देंगे... जिसकी भी जुर्रत सामने खुल रहा है... उसे हम अंजाम तक पहुँचा रहे हैं... आज रोणा का होली जलेगी.. वह भी गाँव के लोगों के हाथों... क्यूँकी उसने अपनी औकात भूल कर... क्षेत्रपाल महल की खिड़की खोलने की कोशिश की... सजा तो मिलेगी... यह सजा... हमें अंदर से... आश्वासन दे रहा है... के एक दिन हम उस हरामजादे विश्व प्रताप को... इससे भी भयंकर सजा देंगे... इसीलिए तो... हम मगरमच्छ और लकड़बग्घे की भूख को... मिटने नहीं दे रहे हैं... आप निश्चित रहें... हम आपको आखेट गृह में... वह दृश्य ज़रूर दिखाएंगे...

तभी भैरव सिंह को बाहर से आहत सुनाई देती है l वह दरवाजे की ओर मुड़ता है l दरवाजे पर दस्तक सुनाई देती है l

भैरव सिंह - कौन है...
भीमा - हुकुम... मैं...
भैरव सिंह - क्या हुआ...
भीमा - वह सारे गाँव वाले आपसे पूछने... महल के परिसर में आए हैं...
भैरव सिंह - पूछने... हमसे...
भीमा - जी हुकुम...

भैरव सिंह कमरे से निकालता है और दिवाने आम कमरे में पहुँचता है, जहाँ पर बल्लभ खड़ा हुआ था l कमरे के दरवाजे पर उदय खड़ा हुआ था l

भैरव सिंह - यह गाँव वाले... बेवजह यहाँ क्यूँ आए हैं प्रधान...
बल्लभ - मैं नहीं जानता हूँ... राजा साहब... मैं तो यहाँ आपकी इंतजार में हूँ...
भैरव सिंह - भीमा क्या वज़ह है... तुम्हें कुछ पता है...
उदय - गुस्ताखी माफ़ राजा साहब...
भैरव सिंह - क्या बात है...
उदय - सत्तू या भूरा... जानते होंगे... क्यूँकी यही दोनों... होलिका दहन की मचान सजाने गए थे...
भैरव सिंह - हूँ... कहाँ है वह दोनों...
उदय - जी बाहर हैं... बुला लाऊँ...
भैरव सिंह - हाँ... बुला लाओ...

उदय तुरंत पलट कर बाहर जाता है और थोड़ी देर के बाद अपने साथ सत्तू और भूरा को साथ लेकर आता है l वे दोनों अपने हाथ जोड़ कर भैरव सिंह के सामने खड़े हो जाते हैं l

भैरव सिंह - यह बाहर कैसा शोर है...
सत्तू - र्र्राजा सा.. सहाब... (जुबान लड़खड़ा जाता है)
भैरव सिंह - क्या बात है... क्या हो गया है...
भूरा - राजा साहब... जैसा आपने कहा... हमने बिलकुल वैसा ही किया... हमने एक स्टूल पर... दरोगा को... आलथी पालथी की तरह बिठा कर... मुखौटा लगा कर... साड़ी पहना कर... होलिका की तरह सजा कर... बांस का दस फुट ऊँचा भाड़ा बना कर बिठा दिया...
सत्तू - यह देख कर लोगों ने... हमसे वज़ह पूछी... तो हमने कहा कि... बच्चों का उत्साह देख कर... राजा साहब ने... गाँव वालों को... होलिका दहन के साथ साथ.. फगु खेलने के लिए भी कहा है... इसलिए गाँव वालों के सहूलियत के लिए... हमने होलिका का पुतला बना कर गाँव के बाहर भाड़े पर सजा दिया है...
भूरा - अब होलिका दहन के लिए... गाँव वाले.. अपने अपने हिस्से के लकड़ी... गोबर के कंडे... उपले आदि लाकर जमा करें... और होलिका दहन करें...

बस इतना कह कर चुप हो जाते हैं दोनों l उनको चुप देख कर भैरव सिंह पूछता है l

- आधी बात बता कर... आधा गटक क्यों गए...
सत्तू - हमारे कहे पर... गाँव वालों को विश्वास नहीं हुआ...
भूरा - इसलिए... इसलिए... (फिर से दोनों चुप हो जाते हैं...
उदय - ओ.. इसका मतलब यह हुआ... गाँव वाले... इनकी कहीं बातों पर... यकीन करने आए हैं...

भैरव सिंह पैनी दृष्टि से उदय की ओर देखने लगता है l उदय अपना सिर झुका लेता है l फिर भैरव सिंह बल्लभ की ओर देखता है l

बल्लभ - यह स्वाभाविक है राजा साहब... सात दशकों से... सिर्फ यही गाँव नहीं... आसपास के तकरीबन तीस गाँव में... त्योहार या मातम नहीं मनाया गया है... कई पीढ़ियां गुजर गई... आज जब कोई आपके नाम पर कहे... त्योहार मनाने के लिए... तब... इस बात की पुष्टि करने... जाहिर है... महल ही आयेंगे...
भैरव सिंह - (जबड़े भिंच जाती है, शब्दों को चबाते हुए कहता है) इनकी इतनी हिम्मत... राजा भैरव सिंह से पुष्टि करने आए हैं...(गुर्राते हुए) भीमा बंदूक ला.. (भीमा पलट कर जाने को होता है कि बल्लभ उसे रोक देता है)
बल्लभ - एक मिनट भीमा... (भैरव सिंह से) गुस्ताख़ी माफ राजा साहब... गाँव वालों में कभी इतनी हिम्मत हो ही नहीं सकती के... आपसे बात की पुष्टि करें... जैसा कि मैंने कहा... सात दशकों से... जो नहीं हुआ... आज अचानक मनाएंगे... तो उन्हें... यह सत्तू या भूरा की साजिश ही लगेगी... बेहतर होगा... उनके मन में... कोई संशय पैदा होने ना दिया जाए... दरोगा रोणा को... आखेट गृह ले चलते हैं... कोई भी जान नहीं पाएगा...
उदय - गुस्ताखी माफ राजा साहब... (भैरव सिंह उदय की ओर देखता है) राजा साहब... एक बार तीर कमान से निकल जाए... तो उसे उसका लक्ष भेदने की प्रतीक्षा करनी चाहिए...
भैरव सिंह - ऐसी... तगड़ी और भारी भरकम बातेँ... वकील के मुहँ से अच्छे लगते हैं... तुम अपनी बात साफ करो...
उदय - आपका गुस्सा जायज है राजा साहब... पर आपने ही खबर भिजवाई... लोगों को होली मनाने के लिए... जैसा कि वकील ने कहा.... कि सत्तर सालों में जो नहीं हुआ... उसे करने के लिए.. लोग डरेंगे जरूर... पर आपसे गद्दारी करने वाले की सजा आपने मुकर्रर की है... सजायाफ्ता को मिलनी ही चाहिए... यह बात आपके लोगों को भी तो पता चलनी चाहिए... गाँव वाले... आपसे पुष्टि चाहते हैं... इससे यह होगा... उनके हाथों एक क्राइम होने जा रहा है... धीरे धीरे... उनके संज्ञान में आएगा... तब यह लोग फिर कभी हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे... आगे त्योहार मनाने की...
भैरव सिंह - तुम्हें क्या बनाना चाहता था... रोणा...
उदय - जी हेल्पर कांस्टेबल...
भैरव सिंह - बैल बुद्धि था वह... तुम अगर हमारे वफादार रहे... तो हम उन्हें दरोगा बना देंगे...
उदय - (खुशी के आँसू आँखों में लिए, भैरव सिंह के आगे घुटनों पर आ जाता है) आपकी बड़ी कृपा होगी राजा साहब...

यह सब बल्लभ देख रहा था l वह गुस्से में अपना चेहरा फ़ेर लेता है l उसकी यह प्रतिक्रिया भैरव सिंह देख लेता है l

भैरव सिंह - प्रधान...
बल्लभ - जी.. जी राजा साहब...
भैरव सिंह - हम ना सिर्फ... ग़द्दार दरोगा को सजा देना चाहते थे... बल्कि... इन गांवों वालों को भी सजा देना चाहते थे... तुम अपने दोस्त के लिए बाज नहीं आए... खैर... तुम्हारी इस बेवकूफ़ी को हम नजर अंदाज करते हैं... गाँव वालों को हमसे... त्योहार मनाने की छूट चाहिए... हम देंगे...
उदय - राजा साहब... एक और बात... इजाजत हो तो कहूँ...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...
उदय - राजा साहब... आपके हामी के बाद... हो सकता है... लोग आपको... होलिका दहन पर... उपस्थित रहने के लिए कहें... तो आप उन्हें मना कर दीजिए... (भैरव सिंह अपना भौहों को सिकुड़ कर देखता है) क्राइम गाँव वाले करेंगे... वे लोग आगे चलकर क्रिमिनल होंगे... पर अगर आप वहाँ उपस्थित हुए... तो आप गवाह बन जाएंगे... और उनके लिए सबूत भी... आप बस आज रात... राजगड़ से दूर हो जाइए.... आगे... वकील बाबु हैं... वह गाँव वालों के साथ रह कर... उनसे होने वाली गुनाह की सबूत बनाएंगे...
भैरव सिंह - बहुत खूब... आज फिर से तुमने मुझे इंप्रेस किया है... भीमा..
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - चलो.. हमारी प्रजा हमसे मिलने आयी है...


इतना सुनते ही भीमा सत्तू और भूरा के साथ बाहर की ओर चलने लगता है l सभी पहलवान रास्ते के दोनों तरफ खड़े हो जाते हैं l भैरव सिंह उनके बीच में से जाते हुए महल के बरामदे में सटी हुई मचान पर पहुँचता है l जैसे ही मचान पर गाँव वाले भैरव सिंह को देखते हैं सब के सब अपना सिर झुका कर चुप हो जाते हैं l भैरव सिंह अपने कमर पर हाथ रखकर गाँव वालों पर एक नजर डालता है l सभी के झुके हुए सिर देख कर उसके होठों पर एक संतुष्टि की मुस्कान उभर कर गायब हो जाती है l बल्लभ भी पीछे पीछे आया हुआ था l वह कुछ कहने को होता है कि भैरव सिंह उसे रोक कर भीमा की ओर देख कर इशारा कर लोगों से पूछने के लिए कहता है l तो भीमा गाँव वालों से कहता है

भीमा - गाँव वालों... तुम लोग अब राजा साहब के दरबार में हो... राजा साहब अब यह जानना चाहते हैं... उनके दरबार में क्यूँ आए हो...

लोगों में चुप्पी छाई हुई थी l किसीको भी हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि राजा भैरव सिंह से कुछ भी पूछे l क्यूंकि ऐसा पहली बार हुआ था कि सारे गाँव वाले मिलकर राजा के महल में राजा के सामने खड़े हो कर कुछ पूछे l भीमा भैरव सिंह की ओर देखता है, भैरव सिंह अपना सिर हिला कर फिर से पूछने के लिए इशारा करता है l

भीमा - हरिया... क्या हुआ... क्यों आए हो... रविन्द्र... क्या काम पड़ गया है तुम लोगों को... राजा साहब से...
हरिया - हम... व.. व... वह...

अचानक से चुप हो जाता है l सभी लोग महल के बाहर खड़े हैं पर फिर भी सन्नाटा इस कदर पसरा हुआ था मानों दूर दूर तक कोई नहीं हो l मजबूर होकर भैरव सिंह पूछता है l

भैरव सिंह - क्या हुआ है... क्या जरुरत आ गई... तुम लोग यहाँ आ गए... (जब कोई जवाब नहीं देता तब सत्तू लोगों के पास चला जाता है)
सत्तू - राजा साहब माफी... गाँव वालों के तरफ से... मैं कुछ कहूँ...
भैरव सिंह - तुम...
सत्तू - क्यूँ गाँव वालों... मैं पूछुं...
सारे गाँव वाले - हाँ हाँ...
सत्तू - राजा साहब... मैं पूछूं...
भैरव सिंह - ठीक है पूछो...
सत्तू - राजा साहब... कई पीढ़ियां चली गई... किसीने भी ना त्योहार मनाया... ना किसीको मनाते देखा... ऐसे में... आज जब इन्हें खबर लगी के होली मनाने के लिए... इस बार क्षेत्रपाल महल से इजाजत मिली है... तो इन्हें विश्वास नहीं हुआ... सच और झूठ जानने यह लोग आए हैं... (गाँव वालों से) क्यूँ गाँव वालों... सही कहा ना...

सभी गाँव वाले हाँ कहते हैं l इसके बाद सत्तू चुप हो जाता है l भैरव सिंह भीमा की ओर इशारे में चुप रहने के लिए कहता है और भीमा के बगल में खड़े बल्लभ को इशारा कर लोगों से होली के बारे में कहने के लिए कहता है l

बल्लभ - गाँव वालों... तुम लोग जानते हो... राजा तुम लोगों के लिए कितना कुछ सोच रहे हैं.. कितना कुछ कर रहे हैं... आज सुबह जब मालुम हुआ... तुम्हारे बच्चों ने... कृष्न विमान नगर परिक्रमा कराए हैं... तो राजा साहब कहा... त्योहार अधूरा ना रह जाए... इसीलिये अपने लोगों के जरिए... तुम लोगों तक खबर पहुंचाई है... ताकि तुम लोग होली... परंपरा के अनुसार मनाओ... (बल्लभ रुक जाता है)
सत्तू - बोलो... राजा भैरव सिंह की...
सारे गाँव वाले - जय...
हरिया - राजा साहब... यह हमारा परम भाग्य है... के आपके शासन में हम... यह दिन देख रहे हैं... राजा साहब... हमारी एक छोटी सी प्रार्थना है... (भैरव सिंह समझ चुका था हरिया क्या प्रार्थना करने वाला है इसलिये उसे कहने के लिए इशारा करता है) राजा साहब... ऐसा पहली बार हो रहा है... वह भी आपके आशीर्वाद से... अगर इस मौके पर... आप हमारे साथ.. हमारे पास रहते... तो बड़ी कृपा होगी...
भीमा - ऐ हरिया... अपनी औकात में रह... थामने के लिए हाथ दिया तो कंधे पर चढ़ कर कान में मूतने की बात कर रहा है...
हरिया - (डर के मारे) ना ना.. महाराज ना... ऐसी गुस्ताखी... सपने में भी नहीं कर सकते हम... वह तो... (आगे कुछ कह नहीं पाता, अपना सिर झुका लेता है l भैरव सिंह बल्लभ को आगे की बात कहने के लिए इशारा करता है)
बल्लभ - देखो... तुम लोग आज... त्योहार मनाने जा रहे हो... यह तुम लोगों के लिए बहुत बड़ी बात है... राजा साहब... तुम लोगों की इच्छा का मान रखते... पर... आज तहसीलदार के साथ राजा साहब की... ज़रूरी मीटिंग है... इसलिए... राजा साहब आज राजगड़ में नहीं रहेंगे...
- पर आप लोग मन खराब ना करें... (उदय आकर पहुँच कर कहने लगता है) राजा साहब ने... वकील बाबु को कह दिया है... आप लोगों के बीच खुद वक़ील बाबु रहेंगे... आपके साथ त्योहार मनाएंगे...

लोग यह सुन कर खुशी के मारे ताली बजाने लगते हैं l बल्लभ का चेहरा उतर जाता है l बड़े दुखी मन से भैरव सिंह की ओर देखता है l भैरव सिंह इशारे से उसे अपनी सहमती जताता है l बल्लभ अपनी दांत पिसते हुए उदय की ओर देखने लगता है l उदय भी हँसते हुए लोगों के साथ ताली बजाते हुए बल्लभ की ओर देखने लगता है l बल्लभ को उदय के चेहरे पर छाई हुई भाव समझ में नहीं आता l दुसरे तरफ गाँव के सारे लोग भैरव सिंह के नाम की जयकारा लगाते हुए उल्टे पाँव महल की परिसर से निकलने लगते हैं l लोगों को उल्टे पाँव पीछे लौटते हुए देख भैरव सिंह के चेहरे पर गुरुर से भरी मुस्कान छा जाती है l

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कटक चेट्टी मैशन
एक बड़ा सा कमरा जहां चार लोग हैं l एक ओर ओंकार बैठा हुआ है और दुसरी तरफ केके और रॉय बैठे हुए हैं l उनके बीच एक बड़ी सी टी पोए है जिस पर तीन खाली ग्लास तीन चार प्लेट में चखना रखा हुआ है l चौथा बंदा उन खाली ग्लास में शराब डाल कर पैग बना रहा है l पैग बन जाने के बाद वह पहले ओंकार को देता है फिर केके को देता है और तीसरा उठा कर बगल में बैठे रॉय को देता है और तीनों से अलग सोफ़े पर बैठ जाता है l वे तीनों चियर्स करते हैं और सीप लेने लगते हैं l

केके - चेट्टी साहब... आपको नहीं लगता... हम थोड़े लेट हो रहे हैं...
चेट्टी - नहीं केके... कोई देरी नहीं हो रही है... इलेक्शन को और भी टाइम है... उससे पहले... क्षेत्रपाल वर्तमान के भूगोल से इतिहास हो जाएगा... तुम बस धैर्य रखो...
केके - (चेट्टी से ) चेट्टी बाबु... आपका वह बंदा कहां तक पहुँचा...

चेट्टी - जहां उसे पहुँचना चाहिए था...
रॉय - केके साहब... आप उतावले बहुत हो रहे हो...
चेट्टी - कोई बात नहीं... इनकी तसल्ली के लिए कह देता हूँ... जब से वीर उस लड़की से शादी कर अलग रहने लगा है... तब से मेयर क्षेत्रपाल पुरी तरह से टुट गया है... दिन रात शराब के नशे में डूबा रहता है... उसके घाव में नमक मिर्च उस दिन रगड़ गया... जिस दिन... एडवोकेट सेनापति की किडनैपिंग फैल हुआ...
केके - हाँ... पर हमें क्या फायदा हुआ... कोई तीसरा आकर उन्हें बचा ले गया...
चेट्टी - देखो केके... बड़े ऐहतियात से.... मैंने उस बंदे को... पिनाक के पास रखवाया है... पिनाक ना तो उसके बारे में जानता है... ना हमारे बारे में... हमारा आदमी... धीरे धीरे... पिनाक की दिमाग को अपने कब्जे में कर चुका है... तुम बस मजे देखते जाओ...
केके - (एक ही साँस में ग्लास खत्म कर देता है) एक बार... शॉक के चलते... दिल का दौरा पड़ चुका है... दुसरा दौरा पड़ने से पहले... मैं क्षेत्रपाल परिवार की बर्बादी देखना चाहता हूँ...
रॉय - आप खामख्वाह छटपटा रहे हैं... अब तो छटपटाने की बारी क्षेत्रपालों की है...
केके - दुनिया चाहे कुछ भी कहे रॉय... मगर मैं मानता हूँ... मेरे बेटे का कातिल वही... वीर सिंह है... जो जिंदगी मेरे बेटे ने जी नहीं... उसे वीर सिंह को जीता देख कर... मेरे सीने में सांप लौट रहे हैं...
चेट्टी - शांत केके शांत... मेरा बंदा पिनाक के पास रह कर वही प्लानिंग कर रहा है... तुम मुझे देखो... मैं कितनी शिद्दत से... क्षेत्रपाल के बर्बादी की इंतजार में दिन गिने जा रहा हूँ... और मुझे मालुम है... क्षेत्रपाल बर्बाद होने वाले हैं...
केके - आपने आपके बेटे के हत्यारे को छोड़ दिया... मुझसे वह नहीं हो सकता...
चेट्टी - (चेहरा अचानक कठोर हो जाता है) तुमने यह कैसे सोच लिया... सरकारी रिपोर्ट चाहे कुछ भी कहे... मुझे बस इतना मालुम है... मेरे बेटे का कातिल विश्व प्रताप है...

इतना कह कर चेट्टी चुप हो जाता है l अपना पैग खाली करने के बाद चौथे बंदे से पैग बनाने के लिए इशारा करता है l चेट्टी के चेहरे पर आए बदलाव को देख कर केके और रॉय थोड़ा दब जाते हैं l पैग बन जाने के बाद चेट्टी पैग उठा कर कहता है l

चेट्टी - फ़िलहाल विश्व और मेरा दुश्मन एक ही है... विश्व अपने काम में तेजी से आगे बढ़ रहा है... तुम जानते हो... और मानते भी होगे... क्षेत्रपाल का खात्मा विश्व ही कर सकता है... उसके पीछे उनकी निजी वज़ह है... पर विश्व जो नहीं जानता... वह यह कि... उसका काम खत्म होने के बाद... मैं उसे मरवा दूँगा...
केके - किससे... रंगा से... विश्व का नाम सुनते ही... जिसका पिछवाड़े में से झाग निकलने लगती है...
चेट्टी - हा हा... हा हा हा हा... अरे यार चेट्टी... शेर को मारने के लिए... शिकारी चाहिए... कुत्तों की बस की बात होती... तो विश्व कब का अपने भगवान का प्यारा हो चुका होता... यह वह शतरंज की बिसात है... जहां के तीसरे खिलाड़ी हम हैं...
रॉय - और हमारी चालों से... दोनों खिलाड़ी मारे जाएंगे... चियर्स...

केके खुश होता है और इस बार अपना पैग उठा कर खत्म कर देता है l चखने की प्लेट से चिकन टंगड़ी उठा कर खाते हुए रॉय से पूछता है l

केके - अच्छा रॉय... अब वीर की क्या खबर है...
रॉय - केके साहब... वीर बस अपनी जिंदगी एंजॉय कर रहा है... हम फ़िलहाल गैलरी में बैठ कर देख रहे हैं...
केके - क्या प्लान बनाया था... विश्व और क्षेत्रपाल के बीच की दुश्मनी में... पेट्रोल डालने के लिए... पर..
चेट्टी - इसलिए तो कह रहा हूँ... थोड़ा धीरज धरो... अब जोडार के सिक्योरिटी... सेनापति दंपति की रखवाली चुस्ती के साथ कर रही है... और वीर की रखवाली... विक्रम की ESS के... स्पेशल कमांडोज कर रहे हैं... कुछ भी किया... तो यह हरकत हमें पर्दे के पीछे से खिंच कर बाहर ले आएगी... मौका आयेंगी... हमें बस भुनाना है...
केके - ठीक कहा आपने...

अपना ग्लास रख कर, चौथे बंदे से पैग बनाने के लिए कहता है, जैसे ही वह बंदा पैग बनाने के लिए बोतल उठाता है तो रॉय उसे रोक लेता है l

रॉय - अब बस भी कीजिए केके सर... कितना और जिगर जलायेंगे... एक बार दौरा पड़ चुका है... कम से कम... क्षेत्रपाल की बर्बादी तक तो जिगर संभालीए...
चेट्टी - हाँ केके... रॉय ठीक कह रहा है...
केके - जिसका जिगर का टुकड़ा ही नहीं हो... उसका जिगर क्या जलायेगा... यह दो कौड़ी का शराब...
केके - प्लीज...
चेट्टी - रॉय... एक काम करो... केके को... ले जाओ और उसके घर पहुँचा दो...
रॉय - ठीक है...

रॉय केके को अपने कंधे से सहारा देकर उसे बाहर ले जाता है l वह चौथा बंदा भी रॉय का साथ देता है l दोनों केके को गाड़ी में बिठा कर विदा करते हैं l केके की गाड़ी जाने के बाद रॉय भी अपना गाड़ी लेकर केके के गाड़ी के पीछे पीछे उस मैंशन से बाहर निकल जाता है l सबके चले जाने के बाद वह चौथा बंदा कमरे में आता है जहां चेट्टी टी पोए के ऊपर दोनों पैर फैला कर शराब की चुस्की ले रहा था, उस बंदे को कमरे में देख कर

चेट्टी - चले गए सब...
बंदा - हाँ...
चेट्टी - ह्म्म्म्म आओ बैठो... (शराब की ग्लास को दिखाते हुए) इसे मिलकर खत्म करते हैं...
बंदा - नहीं... मुझे नहीं करना...
चेट्टी - क्यूँ... नाराज हो... अरे नाराजगी छोड़... बहुत जल्द अपना राज वापस लौटने वाले हैं...
बंदा - कब तक... मैं तो जैसे फुटबॉल हो गया हूँ... इधर से लतीया जाता हूँ... और उधर से...
चेट्टी - ऐ... क्या कहना चाहता है तु... मैं तुझे लतीया रहा हूँ...
बंदा - वह... मुहँ से बरबस निकल गया... मेरे कहने का वह मतलब नहीं था... मेरा मतलब है... मुझे कब दुनिया के सामने आप लाओगे... कब मैं अपनी असली पहचान के साथ... सबके सामने आऊँगा...
चेट्टी - तु भी ना... केके की तरह बड़ा बेसब्रा है... मैंने अपना सब कुछ तेरे नाम कर तो दिया है... फिर... ऐस तो कर रहा है ना... ठंड रख ठंड... तु बस अपने काम में लगा रह... इस बार चोट कुछ ऐसा हो... के क्षेत्रपाल पूरा का पूरा... तितर-बितर हो जाएगा... उसके बाद मैं तुझे डंके की चोट पर... दुनिया के सामने लाऊँगा...
बंदा - मैं तो कब से लगा हुआ हूँ... अब तक... सारे वार खाली गए हैं...
चेट्टी - कहाँ खाली गए हैं... देखा नहीं... क्षेत्रपाल टुट रहे हैं... बिखर रहे हैं... हमें मालूम है... कहाँ कब चोट मारना है... उन्हें मालुम नहीं है... चोट कौन मार रहा है... (चेहरा बहुत सख्त हो जाता है) क्षेत्रपाल... मुझे वैशाखी बना कर... भुवनेश्वर आए... राजनीति में पाँव जमाए... जब मतलब निकल गया... हरामियो ने... मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया... मेरा बेटा यश को बचा सकते थे... साले हरामी... उसे मरने के लिए छोड़ दिया...

कहते कहते चेट्टी चुप हो जाता है, उसके गाल फडफडाने लगते हैं l दांत पीसने लगता है l उसकी यह हालत देख कर वह बंदा उसके पास बैठता है और उसके हाथ पकड़ कर कहता है l

बंदा - मैं हूँ ना... आपका बदला लेने के लिए...
चेट्टी - (उसके कंधे पर हाथ रखकर) तु मुझे मिला... इसलिए तो क्षेत्रपाल से बदला लेने की सोचा... वर्ना मैं तो खुद को लावारिस समझ कर... मरने की सोच रहा था... (चेट्टी अपने पैर नीचे कर सोफ़े से उठ खड़ा होता है) आज मैं खुश हूँ... यश की मौत लावारिस नहीं है... ना ही वह विरासत जो मैंने कमाई है... वह लावारिस है... तु उसका वारिस है... लावारिस तो अब क्षेत्रपाल होगा... हाँ लावारिस तो क्षेत्रपाल होगा...

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अनु कमरे में चहल कदम कर रही है, दीवार पर लगी घड़ी की ओर देख रही थी l थोड़ी देर बाद कॉलिंग बेल की आवाज़ आती है l कॉलिंग बेल की आवाज़ सुनते ही अनु के चेहरे पर पर रौनक आ जाती है l भाग कर जाती है दरवाजा खोलती है l सामने वीर काले, नीले, पीले, लाल आदि रंगों में पुता हुआ खड़ा था l उसे इस हालत में देख कर पहले अनु चौंकती है फिर जोर जोर से हँसने लगती है l

अनु - (हँसते हुए) यह... क्या हाल बना रखा है आपने... होली तो कल है... आज खेल कर आ गए क्या...
वीर - हाँ हाँ हँस लो... कल होली की छुट्टी है... इसलिए सारे स्टाफ ने... मुझे आज रंगों में पुत दिया...
अनु - ठीक है... जाइए आप नहा धो लीजिए...
वीर - (अंदर आ कर) अरे सिर्फ रंग ही तो है... वह भी होली वाली... थोड़ा रहने तो दो... (सोफ़े पर बैठ जाता है)
अनु - अरे... सोफ़े पर रंग लग जाएगा...
वीर - तो क्या हुआ... नए कवर ला देंगे...

अपना सिर हाँ में हिला कर अनु मुस्करा कर वीर के पास खड़ी होती है l वीर अपना हाथ अनु की ओर बढ़ाता है l अनु अपना हाथ देती है l वीर उसे अपने ऊपर खिंच लेता है l अनु घुमती हुई वीर के गोद में बैठ जाती है l वीर अनु के कंधे पर अपना चेहरा रख कर कहता है

वीर - आह... क्या जिंदगी है अनु... सुबह मुझे टिफिन कैरेज के साथ जब विदा करती है... तेरे आँखों में... बिछड़ने का दर्द को मुझे महसूस होता है... और जब वापस आता हूँ... तेरे चेहरे पर ग़ज़ब की खुशी देखता हूँ... कितना सुकून मिलता है... क्या कहूँ... (फिर अनु के कंधे पर अपने सिर को अनु के साथ झूमते हुए हिलने लगता है) अनु...
अनु - हूँ...
वीर - कुछ बोल ना...
अनु - क्या कहूँ...
वीर - कुछ भी... मुझसे बातेँ कर... पुछा कर... दुनिया भर की... कचर कचर सुन सुन कर... खीज जाता हूँ... पर जब तेरी आवाज सुनता हूँ... आह.. ऐसा लगता है... कानों में शहद घुल रही है...
अनु - हूँ...
वीर - क्या हूँ...
अनु - मतलब हाँ... मतलब हूँ...
वीर - ना... आज मेरी अनु को कुछ हो गया है...
अनु - सच मुझे कुछ नहीं हुआ है...
वीर - झूठ...
अनु - सच्ची...
वीर - ऊँ हूँ... यह मेरी अनु का स्टाइल नहीं है...
अनु - अच्छा... फिर आपके अनु का स्टाइल क्या है...
वीर - मेरी हर बात पर मुझे झूठा कहना... यह मेरी अनु का स्टाइल है...
अनु - (हँस देती है) धत...
वीर - क्या धत... (अनु के कान के पास चूम कर) बोल ना...
अनु - क्या...
वीर - झूठे...
अनु - पहले मुझे छोड़िए...
वीर - (किसी बच्चे की तरह मासूमियत के साथ पूछता है) क्यूँ... तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा...
अनु - सोफा गंदा हो गया... साथ साथ... मेरे कपड़े भी गंदे हो गए हैं... (हाथ छुड़ा कर उठ खड़ी होती है) चलिए... जाइए... आप नहा धो कर पहले साफ हो जाइए...
वीर - तुम कहना क्या चाहती हो... मैं गंदा हूँ... अरे मेरी जान... इसे गंदा होना नहीं.. रंगना कहते हैं... और यह आज से नहीं... तब से... जब से तुझे देखा था...
अनु - (समझ नहीं पाती) म.. मतलब...
वीर - अरे मेरी प्यारी अनु... मैं तो तेरे प्यार में कब से रंगा हुआ हूँ... आज तो बस रंग उभरा है... इसलिए दिख रहा है...
अनु - अच्छा... (अपने बदन पर लगे रंग दिखाते हुए) तो यह... अब क्यूँ उभरा है...
वीर - अब तक मैं तेरे रंग में रंगा हुआ था... आज मैंने तुझे रंग दिया है...
अनु - (मुहँ पर पाउट बना कर) झूठे...
वीर - ओ.. हो.. जान... अब बहुत अच्छा लगा... चलो... मिलकर साफ होते हैं...
अनु - क्या... छी...
वीर - इसमे छी वाली बात कहाँ से आ गई...
अनु - (सिर नीचे की ओर कर आँखे मूँद कर बाथरूम की ओर हाथ दिखा कर ) जाइए... पहले आप नहा धो लीजिए...

वीर किसी मासूम बच्चे की तरह मुहँ बना कर भारी पाँव से बाथरूम की ओर जाने लगता है l धीरे धीरे अनु अपना सिर उठा कर आँखे धीरे धीरे खोलती है वीर को भारी कदमों के साथ जाते देख अपनी हँसी दबा देती है l वीर बाथरूम के पास पहुँच कर पीछे मुड़ता है और आवाज देता है l

वीर - अनु...
अनु -.....
वीर - ए अनु... (मासूम सा मुहँ बना कर)
अनु - (अपनी हँसी दबा कर) क्या है...

वीर अपनी बाहें खोल देता है और मुस्कराते हुए अनु की ओर देखता है l अनु भी मुस्कुराते हुए भाग कर वीर के गले लग जाती है l वीर उसे बाहों में उठा लेता है के अनु के पैर फर्श से कुछ इंच उपर रह जाती हैं l


वीर - आख़िर मेरी बाहों में आ गई...
अनु - वादा जो लिया था आपने... जब भी बाहें खोलेंगे... मैं आपकी बाहों में समा जाऊँगी...
वीर - जानता हूँ... तु मुझसे बहुत प्यार जो करती है...

ऐसे ही बाहों में उठाए वीर अनु को बाथरूम में ले जाता है और शावर के नीचे खड़ा हो जाता है l अंदर पहुँचने के बाद

अनु - आपने... अपनी कर ली..
वीर - कहाँ... अब शुरु करना है...
अनु - अच्छा... और मुझे क्या करना होगा...
वीर - आज मैंने तुम्हें रंग दिया है... तो तुम गाना गा लेना...
अनु - क्या...
वीर - हाँ... तुम गाना..
रंगीला रे... तेरे रंग में... यूँ रंगा है... मेरा मन...
छलीआ रे... ना बुझे है... किसी जल से.. यह जलन...

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रुप आज खुद को संवार रही थी l माथे पर चमकता हुआ सफेद बिंदी लगा कर आईने में खुद को निहार रही थी l ड्रायर से लिपस्टिक निकाल कर अपनी होठों को रंगने लगती है l कभी मुहँ पर पाउट बना कर तो कभी मुस्करा कर बार बार खुद को देखने लगती है l फिर आईने के सामने से उठ कर खिड़की के पास आती है l रौशनी मद्धिम पड़ रही थी l वह अपनी वैनिटी पर्स से एक एक अठ्ठन्नी की कॉइन निकाल कर खिड़की पर लगे ग्रिल की स्क्रू एक एक कर खोलने लगती है l सारे स्क्रु खुल जाने तक अंधेरा छा चुकी थी l अब अपने बेड पर आकर चेहरे को बेड के हेड रेस्ट पर रख कर विश्व की राह देखने लगती है l कभी बाहर तो कभी घड़ी देख की ओर देखने लगती है l जैसे जैसे वक़्त गुज़रता जा रहा था वैसे वैसे रुप खीज ने लगी थी l चिढ़ कर अपना मोबाइल निकाल कर विश्व को कॉल लगाती है, पर विश्व की फोन पर उसे कॉल बिजी की ट्यून सुनाई देती है l ऐसे कुछ देर बाद जब विश्व के फोन पर रुप की कॉल लगती नहीं तो चिढ़ कर फोन को बेड पर पटक देती है l खिड़की की तरफ़ देखते हुए अपना सिर हेड रेस्ट पर रख कर विश्व की राह तकने लगती है l

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सारे गाँव वाले उस मैदान में जमा हो गये हैं l अपने हाथों में अपने अपने हिस्से के लकड़ी, गोबर के उपले आदि लेकर l जिस भाड़े पर होलिका का पुतला बैठी हुई थी l उसी पुतले के नीचे जलन की लकड़ियां जमा कर उस के ऊपर उपलों को भी सजाने लगे l कुछ लोग अपने कंधे और गले में ढोल,चांगु थाली लटकाये हुए थे, और किन्ही किन्ही के हाथों में शंख भी था l यह सारे दृश्य को उदय, बल्लभ के हाई रीजोल्युशन मोबाइल के जरिए शूट कर रहा था और मोबाइल नेटवर्क के जरिए ट्रांसमिशन कर रहा था l यशपुर में अपने क्षेत्रपाल पंथ निवास में बल्लभ के ही लैपटॉप पर भैरव सिंह लाईव देख रहा था उसके बगल में बल्लभ एक अलग कुर्सी पर बैठा हुआ था l थोड़ी दुर पर भीमा खड़ा हुआ था l भैरव सिंह देखता है कि हाथ में एक बड़ा से थैला भर कर सत्तू कुछ दारु की बोतलें निकालता है और लोगों के बीच पहुँच कर उन सबमें बाँटना शुरु करता है l उसे यूँ लोगों में दारु बांटता देख कर भैरव सिंह लैपटॉप का वॉयस ऑफ कर सवालिया नजरों से भीमा की ओर देखता है l

भीमा - वह... हुकुम... उदय ने बोला था...
बल्लभ - पर क्यूँ...
भीमा - उदय ने कहा... की लोग अगर नशे में रहेंगे... तो आगे बात को संभाला जा सकता है... और गलती से दरोगा से कोई हरकत हो भी गई तो... नशे में धुत लोगों का ध्यान उस तरफ़ नहीं जाएगा...
भैरव सिंह - (एक शातिर मुस्कान खिल उठता है) ह्म्म्म्म... बहुत ही खतरनाक दिमाग पाया है... यह उदय...
बल्लभ - राजा साहब... बुरा ना माने तो एक बात कहूँ...
भैरव सिंह - हूँ... कहो...
बल्लभ - मुझे लग रहा है... जैसे... उदय हमारे जरिए... मेरा मतलब है... हमारी आड़ लेकर... अपना खुन्नस उतार रहा है...

भैरव सिंह चुप रहता है और बल्लभ की ओर अपना भौह चढ़ा कर देखता है l बल्लभ के जिस्म में एक सुर सूरी सी सिहरन दौड़ जाती है l

भैरव सिंह - हमें लगता है... तुम अपनी दोस्त के होने वाले अंजाम को देखने से पहले... बहक रहे हो... (बल्लभ अपना सिर झुका लेता है) बात को पुरी करो...
बल्लभ - र राज आ.. साहब... मुझे माफ करें... जिस तरह से... वह बढ़ चढ़ कर... दरोगा के खिलाफ यह सब किए जा रहा है... मेरे मन में.. शंका पैदा कर रहा है...
भैरव सिंह - क्यूँ... तुम इस उदय से पहले से परिचित नहीं हो...
बल्लभ - कभी कभी उसे... रोणा के क्वार्टर में देखा था... रोणा के क्वार्टर में... रोणा के सारे काम किया करता था... यहाँ तक कि... विश्व पर निगरानी का जिम्मा भी... रोणा ने... उदय पर सौंप रखा था... इतना मालुम था कि... यह कंपेंशेशन ग्राउंड में... ग्रेड फॉर कटेगरी में... ग्राम रखी कि नौकरी कर रहा था... रोणा ने इसे... कांस्टेबल बनाने का वादा किया था...
भैरव सिंह - तो अब तक... पूरी वफ़ादारी के साथ... इस उदय ने... रोणा का काम किया है... अब हमसे वफादारी कर रहा है...
बल्लभ - मैं इसी बात पर हैरान हूँ... रोणा से उसकी वफ़ादारी... अब अचानक से... (एक पॉज लेकर) अब रोणा की जान पर आ गई...

भैरव सिंह कुछ सोच में पड़ जाता है,

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रुप की आँखे बंद थीं l उसे हल्का सा ठंडक महसूस हो रही थी l वह सिकुड़ कर अपनी बाहों को अपने गले और कंधों के पास कस लेती है l तभी उसे महसूस होता है कि कोई फूंकते हुए उसके चेहरे पर लटों को हटा रहा है l रुप के चेहरे पर पर एक खुशी भरी मुस्कान छा जाती है l हल्का सा आँख खोलती है l उसके आँखों के विश्व का चेहरा दिखता है, बहुत ही करीब था विश्व का चेहरा l विश्व को देखते ही

रुप - मुझे मालुम था... यह तुम ही होगे... (कह कर रुप फिर से अपनी आँखे बंद कर लेती है) आह... अनाम... कितना प्यारा सपना है... कास के इस सपने से कभी बाहर ही ना निकलुं... हकीकत में तो तुम आए नहीं... पर सपने में आए हो... प्यार जता रहे हो... कितना अच्छा लग रहा है.. उम्म्म्म्...

अचानक रुप अपनी आँखे खोलती है l विश्व का चेहरा रुप के चेहरे के पास ही था l वह अब सीधे हो कर बैठती है l अपने चारों तरफ देख कर चौंकती है और बड़ी बड़ी आँखों से हैरानी भरे नजरों से देखने लगती है l रुप एक नाव पर थी l एक चौपाई के सिरहाने सिर टिका कर सोई हुई थी l नाव बीच नदी में था l यह देख कर रुप चिल्लाने को होती है कि विश्व उसके मुहँ पर हाथ रख देता है l रुप अपने मुहँ से विश्व की हाथ हटाने के लिए छटपटाती है l जब थक जाती है

विश्व - हाथ निकालूँ...

अपना सिर हिला कर हाँ कहती है, विश्व रुप की मुहँ से हाथ हटाता है, रुप विश्व की हाथ पकड़ कर अपने दांतों से काटती है l विश्व चिल्लाते चिल्लाते रह जाता है और अपने बाएं हाथ से अपना मुहँ दबा लेता है l

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कुछ शोर शराबा सुनाई देने लगता है तो अपना ध्यान लैपटॉप पर चल रहे दृश्य पर गाड़ देता है l देखता है सत्तू सबको शराब पीने के लिए उकसा रहा है l

सत्तू - यह लो... ऐस करो... आज का यह दारु मेरे तरफ से.. जी भर के पियो...
एक गाँव वाला - अरे सत्तू पहलवान... तुझे कौनसा ख़ज़ाना मिल गया है... जो आज तु ऐसे लूटा रहा है...
सत्तू - अरे ताऊ... आज पहली बार... होली जलाई जाएगी... कल होली खेली जाएगी... क्या यह कम बड़ी बात है... इसलिए पिलो... आज फोकट में दे रहा हूँ... कल से तुमको अपना जेब ढीला करना पड़ेगा...

सब खुशी के मारे हल्ला मचाते हुए दारु के बोतल उठा कर घुट गटकने लगते हैं l इसी तरह सत्तू सभी गाँव वालों में बोतल बांटने लगता है और लोग अपने हिस्से आई बोतल को खाली करने लगते हैं l

भैरव सिंह - यह सत्तू... कह रहा था... बच्चों ने आज... विमान परिक्रमा कारवाई... पर यहाँ पर बच्चे बिल्कुल दिख नहीं रहे हैं... (इस पर बल्लभ चुप रहता है, तो इसबार भैरव सिंह भीमा की ओर देखता है)
भीमा - हुकुम... औरतें भी तो नहीं दिख रहे हैं... हो सकता है... डर के मारे नहीं आए हों... मतलब.. उन्हें अभी भी यकीन नहीं हो रहा हो...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... (लैपटॉप का वॉयस ऑन कर) उदय...
उदय - जी हुकुम...
भैरव सिंह - गाँव से सिर्फ मर्द ही आए हैं क्या... औरतें और बच्चे...
उदय - (ट्रांसमीशन करते हुए) हुकुम... औरतें और बच्चे... कुछ दूरी पर खड़े हैं...


कह कर मोबाइल घुमाता है, भैरव सिंह देखता है कि एक जगह पर गाँव की औरतें और बच्चे सभी खड़े हो कर तमाशा देख रहे हैं l बच्चे पास जाने के लिए उतावले हो रहे हैं l पर उनकी माँएँ उन्हें जाने से टोक रहे हैं l उन लोगों के भीड़ में भैरव सिंह को वैदेही खड़ी नजर आती है l जिसका चेहरा भाव शून्य सा लग रहा था l

भैरव सिंह - ठीक उदय... मोबाइल दहन की जगह दिखाओ...

उदय वैसा ही करता है l कुछ देर बाद कुछ अचानक ढोल, चांगु बजने लगते हैं l महरी तुरी भेरी बजने लगते हैं l कुछ लोगों के हाथों में जलते हुए मशाल दिखते हैं l एक गाँव वाला मशाल फेंकने को होता है कि उसे सत्तू रोक देता है l

सत्तू - नहीं नहीं... ऐसे नहीं...
गाँव वाला - फिर कैसे...

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रुप विश्व की हाथ छोड़ देती है l विश्व हाथ को फूंकने लगता है l रुप की और देखता है l रुप अपनी आँखे सिकुड़ कर विश्व को देख रही थी l

रुप - मैं समझ रही थी... के मैं सपना देख रही हूँ... पर... मैं सच में... नाव पर हुँ... कब आई... कैसे आई...
विश्व - क्यूँ... आप खुद को यहाँ देख कर थ्रिल नहीं हुईं..
रुप - थ्रिल... पहले मैं डर गई... बात समझने के लिए... कुछ वक़्त लगा मुझे... तुम... मुझे यहाँ तक कैसे लाए... और... मैं सो कैसे गई थी...
विश्व - (चुप रहता है)
रुप - देखो मुझे सब सच सच बताओ... वर्ना...
विश्व - वर्ना...
रुप - वर्ना... आज पूरा गाँव... विश्व प्रताप को चीख मारते हुए सब देखेंगे... इतनी जोर से ऐसे काटुंगी के...

कहते कहते रुक जाती है और जोर जोर से साँस लेने लगती है, विश्व उसे इस हालत में देख कर पहले हैरान हो जाता है l फिर हँस डेट है l उसे यूँ हँसते देख कर रुप और भी ज्यादा चिढ़ जाती है l

रुप - (मुहँ बना कर, मुहँ फ़ेर कर बैठ जाती है) जाओ मैं तुमसे बात नहीं करती...
विश्व - (रुप के पास आकर बैठ जाता है) मैं छुप कर देख रहा था,.. कैसे एक परियों की रानी... मेरे लिए सज रही थी... सँवर रही थी... फिर देखा उसकी आँखे लग गई थी... तो मैंने... एक रुमाल में थोड़ा सा क्लोरोफॉर्म डाल कर... उसकी नींद को थोड़ा गहरा कर दिया... बस... फिर उसे अपने पुराने तरीके से... खिड़की से नीचे उतारा... और उसी नींद के हालात में... यहाँ... नाव पर चौपाई के सहारे बिठा दिया...
रुप - (अपना मुहँ बना कर, फिर से मुहँ फ़ेर लेती है) हूँ ह...
विश्व - क्या आप... थ्रिल नहीं हुईं...
रुप - थ्रिल... थ्रिल तो तुम्हें महसुस हुआ होगा... अगर मैं होश में होती... तो वह थ्रिल मैं भी महसुस करती ना...
विश्व - मैं आपको... यह सारा एहसास... सपने की तरह महसुस कराना चाहता था... (एक पॉज लेकर) बुरा लगा...
रुप - (विश्व की ओर बिना देखे अपना सिर ना में हिलाती है)
विश्व - सॉरी... वेरी सॉरी... आप जो भी सजा देंगे.. (अपने घुटनों पर बैठ कर) मुझे कुबूल होगी...
रुप - (मुड़ती है) खड़े हो जाओ... (विश्व खड़ा हो जाता है, रुप उसके सीने पर मुक्के मारने लगती है, पर विश्व वैसे ही खड़ा रहता है) मैं तुम पर मुक्के बरसा रही हूँ... और तुम हो कि...
विश्व - आह... ओह... उह... (करने लगता है)

रुप को और भी ज्यादा गुस्सा आता है l विश्व को धक्का देती है विश्व थोड़ा पीछे हटता है l फिर रुप उस पर कुदी मारती है l विश्व अब पीठ के बल गिरता है और रुप उसके ऊपर गिरती है l विश्व के पेट पर बैठ कर विश्व की कलर पकड़ लेती है l

रुप - होगे तुम बड़े तुर्रम खान... पर मैं भी तुम्हें हरा सकती हूँ... समझे...
विश्व - जी.. आपसे जितने कि... सोच भी नहीं सकता कभी...

रुप शर्मा जाती है, पर विश्व की कलर नहीं छोड़ती l विश्व रुप की दोनों हाथों को पकड़ लेता है और अपना चेहरा थोड़ा किनारा कर आसमान की ओर देखता है फिर रुप की ओर देखता है l ऐसा दो तीन बार करता है l

रुप - ऐसे क्या देख रहे हो...
विश्व - आज पूनम की रात है... मैं आपके चेहरे को और चांद को देख रहा था... और इतरा रहा था
रुप - क्यूँ...
विश्व - उस चांद का कहाँ मुकाबला होगा... (रुप के चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर) मेरे इस चांद के आगे...

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सत्तू - जैसे बचपन में... घो घो राणी खेलते थे ना...
गाँव वाले - हाँ...
सत्तू - वैसे ही... इस होलिका भाड़े के चारो ओर... घूमो... फ़िर आग लगा ओ...

सत्तू की बात मान कर, हाथों में मशाल लिए सारे मर्द दहन मंच के घेर कर घूमने लगते हैं l शराब धीरे धीरे उन पर असर कर रहा था l लोग मशालों को घुमा घुमा कर एक तरह से उद्दंड नृत्य कर रहे थे l तभी एक गाँव वाले की नजर होलिका की पुतले पर पड़ती है l उसे लगाकि वह पुतला हिल रही थी l वह रुक जाता है और डर के मारे कांपने लगता है l उसे रुकता देख कर उसके साथी भी रुक जाते हैं और उससे पूछने लगते हैं

- अबे क्या हुआ... रुक क्यूँ गया
वह - होलिका हिल रही है...
गाँव वाले - क्या...

सभी रुक कर पुतले को देखने लगते हैं l उधर यशपुर पर सीधा प्रसारण देख रहे भैरव सिंह की भौहें सिकुड़ जाती हैं l तभी सत्तू उन गाँव वालों के पास पहुँचता है l

सत्तू - ओये... क्या हो गया... रुक क्यूँ गए तुम लोग...
वह - होलिका... हिल रही थी...
सत्तू - सालों... कमीनों... होलिका नहीं हिल रही है... दारू बाज कहीं के... तुम सारे हिल रहे हो...
गाँव वाले - हाँ... हाँ... हमें भी यही लग रहा है...
वह - नहीं नहीं... होलिका हिल रही है...
सत्तू - अबे मरदूत... जब नशा संभाल नहीं पाता... तो इतना पिता क्यूँ है... (सारे गाँव वालों से) एक काम करो...
गाँव वाले - क्या...
सत्तू - तुम सब को... दरोगा रोणा याद है... (सब गाँव वाले हैरानी के मारे एक दुसरे को देखने लगते हैं) अबे बोलो... याद है...
एक गाँव वाला - ह... हाँ.. हाँ.. याद है..
सत्तू - जानते हो... वह अभी लापता है... हमारे राजा सहाब के सर्कार उसे ढूँढ रही है...
गाँव वाले - क्यूँ...
सत्तू - उसने लोगों के साथ बहुत बुरा किया है... उसे सजा देने के लिए...
गाँव वाले - (उल्लासित होकर) अच्छा...
सत्तू - हाँ... इसलिए... अब इस पुतले को... कुछ देर के लिए ही सही... दरोगा रोणा समझो... और अपने दिल की भड़ास निकालते हुए... इन लकडिय़ों में आग लगा दो...

गाँव वाले पहले एक दुसरे को देखते हैं l उनके बीच से हरिया आगे आता है और पुतले को देखते हुए चिल्ला कर गला फाड़ कर कहने लगता है

हरिया - अबे हरामी कुत्ते रोणा... बहुत दिनों से खुन्नस था... आज हाथ लगा है तु मेरे... साले कमीने हरामी... यह ले...

कह कर मशाल को पुतले की ओर फेंकता है l मशाल पुतले से लग कर भाड़े से लगे लकडिय़ों पर गिरती है l उसके देखा देखी और एक गाँव वाला सामने आता है और वह भी रोणा को गालियाँ बकते हुए मशाल दे मारता है l इस तरह से लोग एक के बाद एक रोणा को गाली अभिशाप देते हुए अपनी अपनी मशालें फेंक मारते हैं l लकड़ियों में धीरे धीरे आग जलने लगती है l जैसे जैसे आग भड़कने लगती है l लोग जो बाहर ढोल, चांगु, मादल बजाने लगते हैं l ऐसा प्रतीत होता है जैसे ढोल आदि के ताल से ताल बिठा कर लपटें आकाश की ओर उठने लगती हैं l यह सब देख कर जहां भैरव सिंह के दिल में एक सुकून महसूस होती है वहीँ बल्लभ की अंतरात्मा छटपटाने लगती है l
धीरे धीरे आग की लपटें जोर पकड़ने लगती है l उसके साथ साथ लोगों में हल्ला व उल्लास के साथ शोर भी बढ़ने लगती है l ढोल मादल चांगु की ताल से ताल बिठा कर शंख फूंकने लगते हैं l बल्लभ एक नजर भैरव सिंह पर डालता है l भैरव सिंह के आँख उसे जलती हुई दिखाई दे रही थी l लैपटॉप से आ रही हल्ला उल्लास की आवाजें उसके भीतर उसे दहला रही थी l बल्लभ छटपटा रहा था पर अपने अंदर की भावनाओं को बाहर उजागर नहीं कर पा रहा था l

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रुप शर्मा कर विश्व के ऊपर से हट जाती है और नाव के एक छोर पर आ कर नाव पर नजर घुमाने लगती है l वह देखती है दो बड़े नावों को बांध कर उस पर दो लकड़ी के खाट बंधे हुए हैं l सबसे अहम बात ना सिर्फ नाव में वे दोनों ही थे बल्कि बीच नदी में नाव एक दम स्थिर थी l रुप को महसुस होती है विश्व उसके पीछे खड़ा है l

रुप - एक बात पूछूं...
विश्व - पूछिये...
रुप - तुम मुझे यहाँ पर क्यूँ लाए... तुम्हें डर नहीं लगा... हम पकड़े भी जा सकते थे...
विश्व - नहीं... आज हम पकड़े नहीं जाएंगे... क्योंकि... आज महल पुरी तरह से... मर्दों से रहित है... और राजा साहब और उनके खास... कोई भी... महल या उसके आस-पास भी नहीं है... वैसे भी... आपको सरप्राइज पसंद है ना...
रुप - (हैरान हो कर पीछे मुड़ती है) सरप्राइज... तुमने सरप्राइज़ नहीं मुझे शॉक दे दिया था... एक पल के लिए... मुझे तो जोर का झटका लगा था...
विश्व - (मुस्करा देता है)
रुप - वैसे... क्यूँ... (पॉज लेकर) इसका मतलब... तुमने ऐसा क्या किया है.... की वे सारे लोग... (चुप हो जाती है)
विश्व - मैंने कहा था... आप मुझसे जो भी ख्वाहिश करेंगी... उस पल को मैं खास बना दूँगा...
रुप - है... भगवान... मतलब... तुम... इस खेल में कर्ता हो... कारक हो... बाकी सब... क्रिया हैं...
विश्व - (चुप रहता है)
रुप - वाव... तुम कितने परफेक्ट हो...
विश्व - नहीं... कोई कभी भी... परफेक्ट नहीं हो सकता... बस चालें सही बैठ रही हैं... इसलिए... रिजल्ट मन माफिक मिल रहा है... अगर कभी चल गलत बैठ गया... तो लेने के देने पड़ जाएंगे...

दोनों के बीच चुप्पी छा जाती है l रुप फिर से विश्व की ओर पीठ कर खड़ी हो जाती है और चांद की ओर देखने लगती है l विश्व को अब समझ में नहीं आता आगे करे तो क्या करे और कैसे आगे बढ़े l ठंडी हवाएं चलने लगती है l रुप की चूनर उड़ कर विश्व के चेहरे पर लहराने लगती है l विश्व रुप की चूनर को पकड़ लेता है l रुप की धड़कने तेजी से ऊपर नीचे होने लगती है l वह अपनी चुनरी को पकड़ लेती है l विश्व अपने चेहरे पर लहराते हुए चुनरी को झटका देकर खिंचता है l रुप उस झटके के साथ विश्व के सीने पर आ गिरती है l विश्व की हाथ रुप की कमर पर कस जाती है l रुप अपना चेहरा विश्व के सीने में छुपा लेती है l

विश्व - (थर्राती आवाज में) राजकुमारी जी...
रुप - ह्म्म्म्म...
विश्व - आसमान में चाँद मुझसे जल रहा है...
रुप - (सिर नहीं उठाती) ह्म्म्म्म..
विश्व - देखिए ना... कितना खूबसूरत नज़ारा है... चांद की चांदनी में नहाया हुआ इन फ़िज़ाओं में... कल कल आवाज करती बहती नदी पर... दो नाव... उस पर दो प्रेमी... अपनी पहली चुंबन के लिए...

रुप की मुट्ठी विश्व के शर्ट पर कस जाती हैं l चेहरा और भी जोर से सीने में गड़ जाती है l विश्व की हाथ कमर से उठ कर पीठ पर लहराते हुए उठती है l रुप की बदन उसी लहर के नागिन की तरह बलखाने लगती है l विश्व की हाथ रुप के सिर पर आकर रुक जाती है फिर दोनों हाथों से रुप की चेहरे को अपने सामने लाता है l रुप की आँखे बंद थीं l

विश्व - (हलक से बड़ी मुश्किल से आवाज़ निकाल कर) रा.. ज.. राज.. कु.. मारी...
रुप - हूँ...

रुप की चेहरे को अपने चेहरे के पास लाता है और अपना चेहरा धीरे धीरे रुप की चेहरे पर झुकाता है l दोनों की साँसे टकरा रही थी l दोनों की धड़कने बड़ी तेजी से उपर नीचे हो रहीं थीं l वे दोनों एक दूसरे की धड़कनों को साफ सुन पा रहे थे कि नदी की कल कल की आवाज दब गई थी l विश्व और झुकता है रुप की हॉट पर अपना होंठ रख देता है l जैसे ही रुप के होठों पर विश्व की होंठ का स्पर्श अनुभव होती है उसका सारा जिस्म कांप जाती है l उसका बदन हल्का हो जाती है और पैरों के उँगलियों पर खड़ी हो जाती है l उसका हाथ अब फिसल कर विश्व के कमर पर आ जाती है l विश्व अपना हॉट खोल कर रुप की निचली होंठ को चूसने लगता है l रुप की भी प्रतिरोध ढीली पड़ जाती है और उसके होंठ खुल जाती है l धीरे धीरे चुंबन प्रगाढ़ से प्रगाढ़ तक होने लगती है l रुप के हाथ अब विश्व के बालों से खेल रहीं थीं l वहीँ विश्व के हाथ भी अनुरुप रुप के केशुओं में उलझ गए थे l

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होलिका दहन अपने चरम पर पहुँच गया था l लपटों में इतनी तेज थी के अब लोग उसके आसपास भी मंडरा नहीं पा रहे थे l दुर से खड़े हो कर गाँव वाले यह दृश्य देख रहे थे l धीरे धीरे उन लोगों के पास उनके परिवार जमा होने लगते हैं l उनके लिए यह एक अद्भुत दृश्य था l क्यूंकि दशकों से ना तो उनके पुरखों ने कभी त्योहार मनाया था ना ही उन्होंने l पर आज उनके बच्चों के वज़ह से और राजा भैरव सिंह के अनुग्रह से ना सिर्फ होलिका दहन मनाया गया बल्कि इसी राख से कल रंग भी खेला जाएगा l यह दृश्य यशपुर में बैठा भैरव सिंह भी देख रहा था l मन ही मन वह उदय से प्रभावित भी हो गया था l क्यूंकि उसके घर की इज़्ज़त पर किसी ने आँख उठाया है यह बात कोई जान लेता तो ज़रूर कानाफूसी होती l जिस पर उसके साख पर बट्टा लग जाता l वह गाँव वालों को भी सजा देना चाहता था l इस तरह से गाँव वालों का जुर्म भले ही अनजाने में किया गया था पर सबुत बन गया था उसके पास l हो सकता है भविष्य में यह उसके काम आए l जितना संतुष्ट भैरव सिंह था, उतना ही दुखी बल्लभ था l जो भी था जैसा भी था रोणा उसका दोस्त था l हर मामले में वह भैरव सिंह का वफादार था l बल्लभ यह समझ चुका था रोणा से गलती हुई थी पर अपराध नहीं हुआ था l पर भैरव सिंह के डायरि में क्षमा शब्द ही नहीं था l उसकी भी नजर लैपटॉप में घट रहे मंज़र देखे जा रहा था l तभी अचानक वह देखता है कि वह भाड़ा जिस पर रोणा को होलिका बना कर बिठा दिया गया था l वह भाड़ा टुट जाता है और आग की लपटें एका एक और ऊपर उठ जाते हैं l जिसे देख कर लोग उद्दंडता से चिल्लाने लगते हैं l इससे आगे बल्लभ और देख नहीं पाता l क्यूंकि उसे कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था l उसे समझते देर नहीं लगी कि उसकी आँखे बह रही थी l आखेट गृह में नजाने कितने मौत देखे हैं पर आज वह अपना परम मित्र को जिंदा जलते देख रहा था l अपनी आँखे पोंछता है, उसका मन कर रहा था कि वह गला फाड़ कर रोये, पर वह लाचार था l अपनी लाचारी को छुपा कर आपनी आँखे बंद कर लेता है l पर बल्लभ का यह दुख और लाचारी भैरव सिंह के आँखों से छुप नहीं पाती l भैरव सिंह उसकी दुर्दशा को नजर अंदाज कर लैपटॉप में चल रहे दृश्य को गौर से देखे जा रहा था l

भैरव सिंह - अच्छा हुआ... तुम यह सब देखने के लिए... वहाँ नहीं थे... वर्ना... तुम अपनी कमजोरी को जाहिर कर देते... यह उदय ने अच्छा आइडिया दिया था... हमें यशपुर चले आने के लिए... अब तुम्हें इस रेकॉर्डिंग को... एडिट वगैरह कर... एक कंस्पैरी क्रिमिनल ऐक्ट प्रूफ़ बनाना है... क्यूँकी... रोणा ऑफिसियली गायब है... जिसे डेपुटेशन पर आए नया ऑफिसर दास ढूँढ रहा है... पहले कहानी बताओगे... लोग कैसे... रोणा को हस्पताल से गायब किए... उसके बाद... यह विडिओ... सबुत बना कर... दास तक पहुँचाने की जिम्मेदारी तुम्हारी... समझे...
बल्लभ - (जैसे नींद से जागता है) जी... जी.. राजा साहब...

आग की लपटें धीरे धीरे शांत हो रही थी l चूंकि विडिओ कॉल पर था, भैरव सिंह अपना माइक ऑन कर उदय से कैमरा घुमा कर गाँव वालों की तरफ मोड़ ने के लिए कहता है l उदय कैमरा घुमाता है l कैमरा सभी गाँव वालो पर घूमने लगता है l अचानक भैरव सिंह लैपटॉप को उठा कर घूरने लगता है l लैपटॉप को चिपका कर ऐसे देखने लगता है कि मानो वह किसीको कैमरे के जरिए ढूँढ रहा था l धीरे धीरे उसके जबड़े भिंच जाते हैं और चेहरा सख्त हो जाता है l उधर ट्रांसमिशन करते हुए उदय देखता है कि उसका कॉल कट चुका था l

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रुप और विश्व का चुंबन टूटता है l दोनों ऐसे हांफने लगते हैं जैसे मानों कोई मैराथन दौड़ कर आए थे l दोनों अपने अपने सिर एक दुसरे पर टिका कर गहरे गहरे साँस लेने लगते हैं l जब साँसे दुरुस्त होने लगती है तब विश्व अचानक रुप को छोड़ कर थोड़ी दुर जाकर रुप की ओर देखने लगता है l रुप उसे सवालिया नजर से देखती है l

विश्व - (साँसों को संभालते हुए) आपसे वादा किया था... बेशरम हो सकता था... पर बेकाबू... बे लगाम नहीं हो सकता... (रूप कि और पीठ घुमा लेता है)
रुप - (पीछे से आकर पकड़ लेती है और विश्व के सीने पर हाथ फेरने लगती है)
विश्व - राज कुमारी जी...
रुप - (मस्ती के मुड़ में आ चुकी थी) जी कहिये मेरे भोले अनाम जी...
विश्व - वह आपको... मतलब कैसा... (चुप हो जाता है)
रुप - क्या हुआ... चुप क्यों हो गए...
विश्व - वह... मुझसे... कोई गलती तो नहीं हो गई...
रुप - (विश्व को अपने तरफ झटके के साथ मोड़ कर) ओये.. मौसमी बेशरम... चूमा लेने और देने के बाद... शर्म नहीं आई... अब शर्म नहीं आ रही... ऐसे शर्माते हुए...
विश्व - जी आ रही है... मतलब नहीं... आह.. (खीज जाता है)

रुप उसकी हालत देख कर खिलखिला कर हँसने लगती है l फिर विश्व के पैरों पर अपने पैर रख कर पैरों की उंगली पर खुदको उठा कर विश्व के बराबर आ जाती है l विश्व के हाथों को अपने कमर पर रख कर विश्व के चेहरे को अपने हाथों में लेती है और वह विश्व के होठों पर टुट पड़ती है l विश्व उसके चुंबन से खुद को छुड़ाने की कोशिश करता है पर फिर वह भी रुप के चुंबन की प्रतिक्रिया में रुप की गहरी चुंबन लेने लगता है l फिर कुछ समय बाद इस बार रुप विश्व को अलग कर देती है l चुंबन टूटते ही विश्व रुप की ओर हैरानी भरे निगाह से देखने लगता है l

रुप - तो मिस्टर बेशरम... बेकाबू क्यूँ होने लगे... ह्म्म्म्म.. बेकाबू होने लगे...
विश्व - कहाँ... कैसे...
रुप - (विश्व की पेंट पर बने उभार की ओर इशारा करती है) यह... यह रहा... तुम्हारा बे - लगाम...
विश्व - मैं कहाँ बे लगाम हुआ था... वह तो आपने मुझे...
रुप - हाँ हाँ... अब तो दोष मुझे ही दोगे... क्यों... छी.. कितने अश्लील हो तुम...
विश्व - कमाल है... आप जिस तरह मुझ पर टुट पड़ी... मुझे लगा आप कहोगे... वाव.. अनाम तुम कितने नैचुरल हो...
रुप - यु...

कह कर रुप विश्व की ओर कुद कर उछल जाती है l विश्व उसे पकड़ लेता है l रुप अपने दोनों पैरों को विश्व के कमर के इर्द-गिर्द कस कर बाँध लेती है और विश्व के चेहरे को अपने हाथों में लेकर विश्व के होंठ पर टुट पड़ती है l विश्व भी इस बार रुप का बड़े जोशीले अंदाज में साथ देता है कि तभी विश्व की मोबाइल बज उठता है l

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भीमा गाड़ी को भगा रहा था l रात गहरी भले ही हो गई थी पर आसमान में चाँद आज चमक नहीं दहक रहा था l भैरव सिंह पंथ निवास में बल्लभ को छोड़ कर भीमा को साथ लेकर महल की तरफ ले जाने के लिए कह कर निकला था l भीमा को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था l अचानक भैरव सिंह को क्या हो गया l वैसे भी भैरव सिंह, क्षेत्रपाल - महल में कम, रंग महल में ज्यादातर रात बिताता था l कभी भी रात को इस तरह क्षेत्रपाल महल गया नहीं था l जब उससे रहा नहीं गया तो भैरव सिंह से पूछता है

भीमा - हुकुम... आप राजमहल ही जा रहे हैं ना..
भैरव सिंह - हाँ...

भीमा और सवाल नहीं करता l चुप चाप गाड़ी चलाता है l भैरव सिंह इस बार भीमा से पूछता है l

भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी.. जी... हुकुम...
भैरव सिंह - एक बात याद रखना... हम हार या जीत को बाद में तरजीह देते हैं... सब से पहले... हम अपनी अहं को तरजीह देते हैं... क्यूंकि... अगर अहं रह गया... तो जीत भी आएगी...
भीमा - जी... हुकुम...
भैरव सिंह - रोणा बेशक वफादार था... पर अनजाने ही सही... हमारे अहं की रास्ता काटने की गलती कर बैठा... इसलिए... उसका अंजाम देखा तुने...
भीमा - जी... जी हुकुम..
भैरव सिंह - अब मुझे तु बता... उस हराम के पिल्लै... विश्वा को... कौन मार सकता है...
भीमा - (इस बार चुप रहता है)
भैरव सिंह - जिसे हमने एक बार अपने पैरों के धुल के बराबर रखा हो... उसे हम अपने हाथों से सजा नहीं दे सकते... इसलिए... रोणा को जिम्मेदारी सौंपी थी... पर उससे ना हो पाया... अब तु बता... तुझसे या तेरे पट्ठों से होगा या नहीं... अगर नहीं होगा... तो हमें... बाहर से आदमी लाकर रखने होंगे... और तुम लोगों के बारे में सोचना होगा...

भीमा गाड़ी में ब्रेक लगाता है l क्षेत्रपाल महल के सीढियों के सामने गाड़ी रुक जाती है l भीमा गाड़ी से उतर कर भागते हुए आता है और गाड़ी का दरवाजा खोलता है l भैरव सिंह चारों तरफ नजरें घुमा कर देखता है l महल के आसपास उसे इक्का-दुक्का पहरेदार नजर आते हैं l वह समझ जाता है कि होलिका दहन में लोगों के बीच रह कर होलिका को जलाने के लिए गाँव के लोगों को उकसाने के लिए सब चले गए हैं l दो पहरेदार भागते हुए उसके पास आकर सलामी ठोक कर खड़े हो जाते हैं l

भैरव सिंह - कोई खबर...
पहरेदार - सब ठीक है राजा साहब...

भैरव सिंह कोई और सवाल नहीं करता l सीधे सीढ़ियां चढ़ने लगता है l भीमा उसके पीछे पीछे जाने लगता है तो भैरव सिंह हाथ से इशारा कर उसे वही ठहरने के लिए कह कर आगे बढ़ जाता है l अंदर सारे दासियां दीवारों से सट कर सोये हुए थे l पर जैसे ही गाड़ी रुकी थी l सभी जाग कर दीवारों के ओट में सिर झुका कर खड़े हो गए थे l उन सभी को नजर अंदाज कर भैरव सिंह अंतर्महल में आता है और सीधे रुप के कमरे के दरवाजे के सामने खड़ा होता है l अपने कमर पर हाथ रखकर चारों ओर नजर घुमाने लगता है l देखता है कुछ दासी दीवार से लग कर सिर झुकाए खड़ी हुई हैं l

भैरव सिंह - एकांत...

सभी दासियां वहाँ से निकल जाती हैं l भैरव सिंह दरवाजे पर दस्तक देता है l अंदर से कोई आवाज नहीं आती है l और एक बार दस्तक देता है l जब कोई शोर सुनाई नहीं देती है इस बार थोड़ी ताकत लगा कर दस्तक देता है l दरवाजे के नीचे वाली फांक से उजाला आता है l थोड़ी देर बाद दरवाज़ा खुलता है l भैरव सिंह देखता है सादी लिबास में रुप अपनी भारी आँखे मलते हुए भैरव सिंह की ओर देख रही है l अचानक चौंकती है जैसे सामने अभी भैरव सिंह को पहचान लिया l

रुप - राजा साहब... आप... इतनी रात गए...

भैरव सिंह उसे अनसुना कर कमरे में जो दो खिड़कियाँ थी उनकी रेलिंग खिंच कर देखता है फिर रुप को बिना देखे कमरे से जाने लगता है l पर जाते जाते दरवाजे पर रुक जाता है, फिर रुप की ओर मुड़ता है l

भैरव सिंह - राज कुमारी... हम जानते हैं... आप इस समय हैरान हैं... पर हम आप बस इतना जान जाइए... हमें शक नहीं यकीन है... पर हमारी यकीन को हम फ़िलहाल के लिए साबित नहीं कर सकते... पर इतना तय मान लीजिए... आप इस घर से जाएंगी... दसपल्ला राज घराने में ही जायेंगी... बाकी अगर और कोई ख्वाहिश है भी... तो भूल जाइए...

कह कर भैरव सिंह मूड कर जाने लगता है l पर उसके कदम ठिठक जाते हैं l क्यूंकि रुप ने पीछे से आवाज दी थी

रुप - राजा साहब... (भैरव सिंह मुड़ता है) हम आपकी यकीन की इज़्ज़त करते हैं... और वादा करते हैं... हम जब भी इस घर से जाएंगे... आपकी आँखों के सामने से जाएंगे... सिर उठा कर जाएंगे...

भैरव सिंह का पारा चढ़ जाता है l वह तेजी से रुप के पास आता है और जोर से अपना हाथ घुमाता है पर अपना हाथ ठीक रुप के गाल के पास रोक देता है l देखता है रुप के आँखों में जरा सा भी डर नहीं था l भैरव सिंह गुस्से में थर्राते हुए मुट्ठी कसने लगता है l रुप को भैरव सिंह की मुट्ठी कसते हुए कड़ कड़ की आवाज़ सुनाई देने लगती है l

भैरव सिंह - एक राजनीतिक मजबूरी है... वर्ना...

इतना कह कर भैरव सिंह कमरे से निकल जाता है l उसके जाते ही रुप एक गहरी साँस छोड़ती है और भागते हुए दरवाज़ा बंद कर देती है l दरवाजा बंद करने के बाद वह घुमती है पीछे विश्व खड़ा था l उसके पास भाग कर विश्व के गले लग जाती है l


मार-काट, षड्यंत्र, वार-प्रतिवार इत्यादि के बारे में बाद में बात करेंगे।

इस कहानी के मुख्य नायक नायिका के साथ, इस कहानी में यह पहला अवसर आया है, कि दोनों को ऐसी अंतरंग अवस्था में दिखाया गया है। एक बढ़िया रोमांटिक दृश्य दिखाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद! अच्छा लिखा है। 🙂

संजू भाई ने सही कहा - पहला चुम्बन हमेशा यादगार रहता है। और अगर अपने ही प्रियतम के साथ किया गया हो, तो बात ही क्या! बहुत खूब लिखा है भाई।
लेकिन फिर भी कुछ प्रश्न अनुत्तरित रह गए (या शायद मेरे ही पढ़ने में कोई त्रुटि रह गई हो - क्योंकि आप हमेशा ही सारे लूपहोल्स कवर कर के लिखते हैं) - जैसे कि, रूप और विश्व दोनों नाव में क्योंकर पहुँच गए? और फिर वापस राजमहल में, (भैरव सिंह और रूप का संवाद) विश्व की मौजूदगी! थोड़ा अटपटा सा लगा। शायद मैंने ही कोई लाइन नहीं पढ़ी होगी।
इंस्पेक्टर रोणा की इतिश्री हो गई। मृत्यु के बाद किसी का नाम घृणा से नहीं लिया जाता (बहुत कम ही लोग हुए हैं इतिहास में इस लायक), और वो इसलिए है क्योंकि जीव का अंश, परमात्मा के अंश में मिल जाता है। ऐसे में, जीव स्वयं परमात्मा हो जाता है। और परमात्मा की बुराई कोई कैसे कर सकता है? लेकिन फिर भी, रोणा एक खराब मानुष था, और उसका जाना शायद केवल उसके परम मित्र को ही दुःखी कर सकता है, और किसी को नहीं।

चेट्टी, के के और राॅय की तिकड़ी नीचता पर उतारू है। वो भी भैरव के स्तर के ही धूर्त हैं। लिहाज़ा, उनके लिए भी ढंग की सजा मुक़र्रर होनी चाहिए। यह सत्य है कि चेट्टी के पुत्र की हत्या विश्व ने ही करी थी, लेकिन उसका पुत्र कोई धर्मराज नहीं था, बल्कि भैरव जैसे की स्तर का धूर्त था, और मौत का धंधा करता था। ऐसे जीव के प्रस्थान से मानवता को कोई कमी नहीं होती।

बहुत ही आनंददायक अपडेट! बड़ी मेहनत की गई है इसमें - जो साफ़ दिखाई देती है।
कैसे हैं आप अब?
 

Sidd19

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👉एक सौ छियालीसवां अपडेट
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राजगड़
शाम होने को है
सूरज की रौशनी और ताप दोनों मद्धिम पड़ रहे हैं l रोज की रुटीन के अनुसार दोपहर का खाना खाने के बाद भैरव सिंह क्षेत्रपाल महल में भीतर नागेंद्र सिंह के कमरे में, उसके बेड के करीब बैठा हुआ था l कमरे में आज वह अकेला था l सुषमा या कोई नर्स नहीं थीं l नागेंद्र सिंह टेढ़े मुहँ से भैरव सिंह की ओर ताक रहा था l

भैरव सिंह - आपकी हालत मुझसे देखी नहीं जा रही है बड़े राजा... मज़बूरी है... आपको जिंदा रहना है... और मुझे जिंदा रहना है... हमें समझ में आ गया है... उस दिन आपने क्यूँ कहा था... राजकुमारी जी पर नजर रखने के लिए... हमने जिसे भेजा था... वह कमबख्त... नाकारा निकला... छोटे राजकुमार जी की बात आकर कही पर... राजकुमारी के बारे में... टोह तक ना ले पाया... (नागेंद्र सिंह की आँखे चौड़ी हो जाती हैं) हाँ... बड़े राजा... आप सही थे... राजकुमारी घर से निकली... बाहर.... (अपनी आँखे बंद कर जबड़े भिंच कर कुछ देर के लिए चुप हो जाता है) हमें संदेह है... शायद यकीन भी है... पर नाम नहीं बता सकते... क्यूँकी... हम साबित नहीं कर सकते... अगर झूठे साबित हो गए... तो अपने बच्चों के आगे इज़्ज़त गवा बैठेंगे... राजकुमारी को सजा देने का मन कर रहा है... पर राजनीतिक मज़बूरी के चलते... हम उस सच से फिलहाल किनारा किए हुए हैं... (अपनी जगह से उठता है,नागेंद्र की ओर पीठ कर खड़ा होता है) क्यूंकि... अगर यह राज खुला... तो जिन लोगों के भगवान बने फिर रहे हैं... उनके गप्पी में उपहास के किरदार बन जाएंगे... इसलिए अब राजकुमारी घर में रहकर पढ़ाई करेंगी... जैसे बचपन में किया करतीं थीं... सिर्फ इम्तिहान देने के लिए बाहर जाएंगी... (नागेंद्र के हलक से हुम्म्म्म... ह्म्म्म्म की आवाज आती है, भैरव सिंह मुड़ कर देखता है, नागेंद्र इशारों से कुछ कहने की कोशिश कर रहा है) हाँ... समझ रहे हैं... अगर हम पहले की तरह... अपनी राज पाठ सिर्फ राजगड़ और इसके आसपास सीमित रखते... तो बात इतनी मुश्किल नहीं होती... पर जब दायरा जितना फैलता गया... तो बीच में खाली पन उतना ही बनता गया... अब अपने रुतबे और गुरूर के दम पर... उस खाली पन को ढकने की... छुपाने की कोशिश किए जा रहे हैं... जाहिर है... दायरा बढ़ा... तो महल की खिड़की को भी ऊँचा करना पड़ रहा है... क्यूँकी दुनिया की आदत है... हर ऊंचे घरों की खिड़की से अंदर झाँकना... पर बड़े राजा जी... निश्चिंत रहिए... हम सब ठीक कर देंगे... जिसकी भी जुर्रत सामने खुल रहा है... उसे हम अंजाम तक पहुँचा रहे हैं... आज रोणा का होली जलेगी.. वह भी गाँव के लोगों के हाथों... क्यूँकी उसने अपनी औकात भूल कर... क्षेत्रपाल महल की खिड़की खोलने की कोशिश की... सजा तो मिलेगी... यह सजा... हमें अंदर से... आश्वासन दे रहा है... के एक दिन हम उस हरामजादे विश्व प्रताप को... इससे भी भयंकर सजा देंगे... इसीलिए तो... हम मगरमच्छ और लकड़बग्घे की भूख को... मिटने नहीं दे रहे हैं... आप निश्चित रहें... हम आपको आखेट गृह में... वह दृश्य ज़रूर दिखाएंगे...

तभी भैरव सिंह को बाहर से आहत सुनाई देती है l वह दरवाजे की ओर मुड़ता है l दरवाजे पर दस्तक सुनाई देती है l

भैरव सिंह - कौन है...
भीमा - हुकुम... मैं...
भैरव सिंह - क्या हुआ...
भीमा - वह सारे गाँव वाले आपसे पूछने... महल के परिसर में आए हैं...
भैरव सिंह - पूछने... हमसे...
भीमा - जी हुकुम...

भैरव सिंह कमरे से निकालता है और दिवाने आम कमरे में पहुँचता है, जहाँ पर बल्लभ खड़ा हुआ था l कमरे के दरवाजे पर उदय खड़ा हुआ था l

भैरव सिंह - यह गाँव वाले... बेवजह यहाँ क्यूँ आए हैं प्रधान...
बल्लभ - मैं नहीं जानता हूँ... राजा साहब... मैं तो यहाँ आपकी इंतजार में हूँ...
भैरव सिंह - भीमा क्या वज़ह है... तुम्हें कुछ पता है...
उदय - गुस्ताखी माफ़ राजा साहब...
भैरव सिंह - क्या बात है...
उदय - सत्तू या भूरा... जानते होंगे... क्यूँकी यही दोनों... होलिका दहन की मचान सजाने गए थे...
भैरव सिंह - हूँ... कहाँ है वह दोनों...
उदय - जी बाहर हैं... बुला लाऊँ...
भैरव सिंह - हाँ... बुला लाओ...

उदय तुरंत पलट कर बाहर जाता है और थोड़ी देर के बाद अपने साथ सत्तू और भूरा को साथ लेकर आता है l वे दोनों अपने हाथ जोड़ कर भैरव सिंह के सामने खड़े हो जाते हैं l

भैरव सिंह - यह बाहर कैसा शोर है...
सत्तू - र्र्राजा सा.. सहाब... (जुबान लड़खड़ा जाता है)
भैरव सिंह - क्या बात है... क्या हो गया है...
भूरा - राजा साहब... जैसा आपने कहा... हमने बिलकुल वैसा ही किया... हमने एक स्टूल पर... दरोगा को... आलथी पालथी की तरह बिठा कर... मुखौटा लगा कर... साड़ी पहना कर... होलिका की तरह सजा कर... बांस का दस फुट ऊँचा भाड़ा बना कर बिठा दिया...
सत्तू - यह देख कर लोगों ने... हमसे वज़ह पूछी... तो हमने कहा कि... बच्चों का उत्साह देख कर... राजा साहब ने... गाँव वालों को... होलिका दहन के साथ साथ.. फगु खेलने के लिए भी कहा है... इसलिए गाँव वालों के सहूलियत के लिए... हमने होलिका का पुतला बना कर गाँव के बाहर भाड़े पर सजा दिया है...
भूरा - अब होलिका दहन के लिए... गाँव वाले.. अपने अपने हिस्से के लकड़ी... गोबर के कंडे... उपले आदि लाकर जमा करें... और होलिका दहन करें...

बस इतना कह कर चुप हो जाते हैं दोनों l उनको चुप देख कर भैरव सिंह पूछता है l

- आधी बात बता कर... आधा गटक क्यों गए...
सत्तू - हमारे कहे पर... गाँव वालों को विश्वास नहीं हुआ...
भूरा - इसलिए... इसलिए... (फिर से दोनों चुप हो जाते हैं...
उदय - ओ.. इसका मतलब यह हुआ... गाँव वाले... इनकी कहीं बातों पर... यकीन करने आए हैं...

भैरव सिंह पैनी दृष्टि से उदय की ओर देखने लगता है l उदय अपना सिर झुका लेता है l फिर भैरव सिंह बल्लभ की ओर देखता है l

बल्लभ - यह स्वाभाविक है राजा साहब... सात दशकों से... सिर्फ यही गाँव नहीं... आसपास के तकरीबन तीस गाँव में... त्योहार या मातम नहीं मनाया गया है... कई पीढ़ियां गुजर गई... आज जब कोई आपके नाम पर कहे... त्योहार मनाने के लिए... तब... इस बात की पुष्टि करने... जाहिर है... महल ही आयेंगे...
भैरव सिंह - (जबड़े भिंच जाती है, शब्दों को चबाते हुए कहता है) इनकी इतनी हिम्मत... राजा भैरव सिंह से पुष्टि करने आए हैं...(गुर्राते हुए) भीमा बंदूक ला.. (भीमा पलट कर जाने को होता है कि बल्लभ उसे रोक देता है)
बल्लभ - एक मिनट भीमा... (भैरव सिंह से) गुस्ताख़ी माफ राजा साहब... गाँव वालों में कभी इतनी हिम्मत हो ही नहीं सकती के... आपसे बात की पुष्टि करें... जैसा कि मैंने कहा... सात दशकों से... जो नहीं हुआ... आज अचानक मनाएंगे... तो उन्हें... यह सत्तू या भूरा की साजिश ही लगेगी... बेहतर होगा... उनके मन में... कोई संशय पैदा होने ना दिया जाए... दरोगा रोणा को... आखेट गृह ले चलते हैं... कोई भी जान नहीं पाएगा...
उदय - गुस्ताखी माफ राजा साहब... (भैरव सिंह उदय की ओर देखता है) राजा साहब... एक बार तीर कमान से निकल जाए... तो उसे उसका लक्ष भेदने की प्रतीक्षा करनी चाहिए...
भैरव सिंह - ऐसी... तगड़ी और भारी भरकम बातेँ... वकील के मुहँ से अच्छे लगते हैं... तुम अपनी बात साफ करो...
उदय - आपका गुस्सा जायज है राजा साहब... पर आपने ही खबर भिजवाई... लोगों को होली मनाने के लिए... जैसा कि वकील ने कहा.... कि सत्तर सालों में जो नहीं हुआ... उसे करने के लिए.. लोग डरेंगे जरूर... पर आपसे गद्दारी करने वाले की सजा आपने मुकर्रर की है... सजायाफ्ता को मिलनी ही चाहिए... यह बात आपके लोगों को भी तो पता चलनी चाहिए... गाँव वाले... आपसे पुष्टि चाहते हैं... इससे यह होगा... उनके हाथों एक क्राइम होने जा रहा है... धीरे धीरे... उनके संज्ञान में आएगा... तब यह लोग फिर कभी हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे... आगे त्योहार मनाने की...
भैरव सिंह - तुम्हें क्या बनाना चाहता था... रोणा...
उदय - जी हेल्पर कांस्टेबल...
भैरव सिंह - बैल बुद्धि था वह... तुम अगर हमारे वफादार रहे... तो हम उन्हें दरोगा बना देंगे...
उदय - (खुशी के आँसू आँखों में लिए, भैरव सिंह के आगे घुटनों पर आ जाता है) आपकी बड़ी कृपा होगी राजा साहब...

यह सब बल्लभ देख रहा था l वह गुस्से में अपना चेहरा फ़ेर लेता है l उसकी यह प्रतिक्रिया भैरव सिंह देख लेता है l

भैरव सिंह - प्रधान...
बल्लभ - जी.. जी राजा साहब...
भैरव सिंह - हम ना सिर्फ... ग़द्दार दरोगा को सजा देना चाहते थे... बल्कि... इन गांवों वालों को भी सजा देना चाहते थे... तुम अपने दोस्त के लिए बाज नहीं आए... खैर... तुम्हारी इस बेवकूफ़ी को हम नजर अंदाज करते हैं... गाँव वालों को हमसे... त्योहार मनाने की छूट चाहिए... हम देंगे...
उदय - राजा साहब... एक और बात... इजाजत हो तो कहूँ...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...
उदय - राजा साहब... आपके हामी के बाद... हो सकता है... लोग आपको... होलिका दहन पर... उपस्थित रहने के लिए कहें... तो आप उन्हें मना कर दीजिए... (भैरव सिंह अपना भौहों को सिकुड़ कर देखता है) क्राइम गाँव वाले करेंगे... वे लोग आगे चलकर क्रिमिनल होंगे... पर अगर आप वहाँ उपस्थित हुए... तो आप गवाह बन जाएंगे... और उनके लिए सबूत भी... आप बस आज रात... राजगड़ से दूर हो जाइए.... आगे... वकील बाबु हैं... वह गाँव वालों के साथ रह कर... उनसे होने वाली गुनाह की सबूत बनाएंगे...
भैरव सिंह - बहुत खूब... आज फिर से तुमने मुझे इंप्रेस किया है... भीमा..
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - चलो.. हमारी प्रजा हमसे मिलने आयी है...


इतना सुनते ही भीमा सत्तू और भूरा के साथ बाहर की ओर चलने लगता है l सभी पहलवान रास्ते के दोनों तरफ खड़े हो जाते हैं l भैरव सिंह उनके बीच में से जाते हुए महल के बरामदे में सटी हुई मचान पर पहुँचता है l जैसे ही मचान पर गाँव वाले भैरव सिंह को देखते हैं सब के सब अपना सिर झुका कर चुप हो जाते हैं l भैरव सिंह अपने कमर पर हाथ रखकर गाँव वालों पर एक नजर डालता है l सभी के झुके हुए सिर देख कर उसके होठों पर एक संतुष्टि की मुस्कान उभर कर गायब हो जाती है l बल्लभ भी पीछे पीछे आया हुआ था l वह कुछ कहने को होता है कि भैरव सिंह उसे रोक कर भीमा की ओर देख कर इशारा कर लोगों से पूछने के लिए कहता है l तो भीमा गाँव वालों से कहता है

भीमा - गाँव वालों... तुम लोग अब राजा साहब के दरबार में हो... राजा साहब अब यह जानना चाहते हैं... उनके दरबार में क्यूँ आए हो...

लोगों में चुप्पी छाई हुई थी l किसीको भी हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि राजा भैरव सिंह से कुछ भी पूछे l क्यूंकि ऐसा पहली बार हुआ था कि सारे गाँव वाले मिलकर राजा के महल में राजा के सामने खड़े हो कर कुछ पूछे l भीमा भैरव सिंह की ओर देखता है, भैरव सिंह अपना सिर हिला कर फिर से पूछने के लिए इशारा करता है l

भीमा - हरिया... क्या हुआ... क्यों आए हो... रविन्द्र... क्या काम पड़ गया है तुम लोगों को... राजा साहब से...
हरिया - हम... व.. व... वह...

अचानक से चुप हो जाता है l सभी लोग महल के बाहर खड़े हैं पर फिर भी सन्नाटा इस कदर पसरा हुआ था मानों दूर दूर तक कोई नहीं हो l मजबूर होकर भैरव सिंह पूछता है l

भैरव सिंह - क्या हुआ है... क्या जरुरत आ गई... तुम लोग यहाँ आ गए... (जब कोई जवाब नहीं देता तब सत्तू लोगों के पास चला जाता है)
सत्तू - राजा साहब माफी... गाँव वालों के तरफ से... मैं कुछ कहूँ...
भैरव सिंह - तुम...
सत्तू - क्यूँ गाँव वालों... मैं पूछुं...
सारे गाँव वाले - हाँ हाँ...
सत्तू - राजा साहब... मैं पूछूं...
भैरव सिंह - ठीक है पूछो...
सत्तू - राजा साहब... कई पीढ़ियां चली गई... किसीने भी ना त्योहार मनाया... ना किसीको मनाते देखा... ऐसे में... आज जब इन्हें खबर लगी के होली मनाने के लिए... इस बार क्षेत्रपाल महल से इजाजत मिली है... तो इन्हें विश्वास नहीं हुआ... सच और झूठ जानने यह लोग आए हैं... (गाँव वालों से) क्यूँ गाँव वालों... सही कहा ना...

सभी गाँव वाले हाँ कहते हैं l इसके बाद सत्तू चुप हो जाता है l भैरव सिंह भीमा की ओर इशारे में चुप रहने के लिए कहता है और भीमा के बगल में खड़े बल्लभ को इशारा कर लोगों से होली के बारे में कहने के लिए कहता है l

बल्लभ - गाँव वालों... तुम लोग जानते हो... राजा तुम लोगों के लिए कितना कुछ सोच रहे हैं.. कितना कुछ कर रहे हैं... आज सुबह जब मालुम हुआ... तुम्हारे बच्चों ने... कृष्न विमान नगर परिक्रमा कराए हैं... तो राजा साहब कहा... त्योहार अधूरा ना रह जाए... इसीलिये अपने लोगों के जरिए... तुम लोगों तक खबर पहुंचाई है... ताकि तुम लोग होली... परंपरा के अनुसार मनाओ... (बल्लभ रुक जाता है)
सत्तू - बोलो... राजा भैरव सिंह की...
सारे गाँव वाले - जय...
हरिया - राजा साहब... यह हमारा परम भाग्य है... के आपके शासन में हम... यह दिन देख रहे हैं... राजा साहब... हमारी एक छोटी सी प्रार्थना है... (भैरव सिंह समझ चुका था हरिया क्या प्रार्थना करने वाला है इसलिये उसे कहने के लिए इशारा करता है) राजा साहब... ऐसा पहली बार हो रहा है... वह भी आपके आशीर्वाद से... अगर इस मौके पर... आप हमारे साथ.. हमारे पास रहते... तो बड़ी कृपा होगी...
भीमा - ऐ हरिया... अपनी औकात में रह... थामने के लिए हाथ दिया तो कंधे पर चढ़ कर कान में मूतने की बात कर रहा है...
हरिया - (डर के मारे) ना ना.. महाराज ना... ऐसी गुस्ताखी... सपने में भी नहीं कर सकते हम... वह तो... (आगे कुछ कह नहीं पाता, अपना सिर झुका लेता है l भैरव सिंह बल्लभ को आगे की बात कहने के लिए इशारा करता है)
बल्लभ - देखो... तुम लोग आज... त्योहार मनाने जा रहे हो... यह तुम लोगों के लिए बहुत बड़ी बात है... राजा साहब... तुम लोगों की इच्छा का मान रखते... पर... आज तहसीलदार के साथ राजा साहब की... ज़रूरी मीटिंग है... इसलिए... राजा साहब आज राजगड़ में नहीं रहेंगे...
- पर आप लोग मन खराब ना करें... (उदय आकर पहुँच कर कहने लगता है) राजा साहब ने... वकील बाबु को कह दिया है... आप लोगों के बीच खुद वक़ील बाबु रहेंगे... आपके साथ त्योहार मनाएंगे...

लोग यह सुन कर खुशी के मारे ताली बजाने लगते हैं l बल्लभ का चेहरा उतर जाता है l बड़े दुखी मन से भैरव सिंह की ओर देखता है l भैरव सिंह इशारे से उसे अपनी सहमती जताता है l बल्लभ अपनी दांत पिसते हुए उदय की ओर देखने लगता है l उदय भी हँसते हुए लोगों के साथ ताली बजाते हुए बल्लभ की ओर देखने लगता है l बल्लभ को उदय के चेहरे पर छाई हुई भाव समझ में नहीं आता l दुसरे तरफ गाँव के सारे लोग भैरव सिंह के नाम की जयकारा लगाते हुए उल्टे पाँव महल की परिसर से निकलने लगते हैं l लोगों को उल्टे पाँव पीछे लौटते हुए देख भैरव सिंह के चेहरे पर गुरुर से भरी मुस्कान छा जाती है l

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कटक चेट्टी मैशन
एक बड़ा सा कमरा जहां चार लोग हैं l एक ओर ओंकार बैठा हुआ है और दुसरी तरफ केके और रॉय बैठे हुए हैं l उनके बीच एक बड़ी सी टी पोए है जिस पर तीन खाली ग्लास तीन चार प्लेट में चखना रखा हुआ है l चौथा बंदा उन खाली ग्लास में शराब डाल कर पैग बना रहा है l पैग बन जाने के बाद वह पहले ओंकार को देता है फिर केके को देता है और तीसरा उठा कर बगल में बैठे रॉय को देता है और तीनों से अलग सोफ़े पर बैठ जाता है l वे तीनों चियर्स करते हैं और सीप लेने लगते हैं l

केके - चेट्टी साहब... आपको नहीं लगता... हम थोड़े लेट हो रहे हैं...
चेट्टी - नहीं केके... कोई देरी नहीं हो रही है... इलेक्शन को और भी टाइम है... उससे पहले... क्षेत्रपाल वर्तमान के भूगोल से इतिहास हो जाएगा... तुम बस धैर्य रखो...
केके - (चेट्टी से ) चेट्टी बाबु... आपका वह बंदा कहां तक पहुँचा...

चेट्टी - जहां उसे पहुँचना चाहिए था...
रॉय - केके साहब... आप उतावले बहुत हो रहे हो...
चेट्टी - कोई बात नहीं... इनकी तसल्ली के लिए कह देता हूँ... जब से वीर उस लड़की से शादी कर अलग रहने लगा है... तब से मेयर क्षेत्रपाल पुरी तरह से टुट गया है... दिन रात शराब के नशे में डूबा रहता है... उसके घाव में नमक मिर्च उस दिन रगड़ गया... जिस दिन... एडवोकेट सेनापति की किडनैपिंग फैल हुआ...
केके - हाँ... पर हमें क्या फायदा हुआ... कोई तीसरा आकर उन्हें बचा ले गया...
चेट्टी - देखो केके... बड़े ऐहतियात से.... मैंने उस बंदे को... पिनाक के पास रखवाया है... पिनाक ना तो उसके बारे में जानता है... ना हमारे बारे में... हमारा आदमी... धीरे धीरे... पिनाक की दिमाग को अपने कब्जे में कर चुका है... तुम बस मजे देखते जाओ...
केके - (एक ही साँस में ग्लास खत्म कर देता है) एक बार... शॉक के चलते... दिल का दौरा पड़ चुका है... दुसरा दौरा पड़ने से पहले... मैं क्षेत्रपाल परिवार की बर्बादी देखना चाहता हूँ...
रॉय - आप खामख्वाह छटपटा रहे हैं... अब तो छटपटाने की बारी क्षेत्रपालों की है...
केके - दुनिया चाहे कुछ भी कहे रॉय... मगर मैं मानता हूँ... मेरे बेटे का कातिल वही... वीर सिंह है... जो जिंदगी मेरे बेटे ने जी नहीं... उसे वीर सिंह को जीता देख कर... मेरे सीने में सांप लौट रहे हैं...
चेट्टी - शांत केके शांत... मेरा बंदा पिनाक के पास रह कर वही प्लानिंग कर रहा है... तुम मुझे देखो... मैं कितनी शिद्दत से... क्षेत्रपाल के बर्बादी की इंतजार में दिन गिने जा रहा हूँ... और मुझे मालुम है... क्षेत्रपाल बर्बाद होने वाले हैं...
केके - आपने आपके बेटे के हत्यारे को छोड़ दिया... मुझसे वह नहीं हो सकता...
चेट्टी - (चेहरा अचानक कठोर हो जाता है) तुमने यह कैसे सोच लिया... सरकारी रिपोर्ट चाहे कुछ भी कहे... मुझे बस इतना मालुम है... मेरे बेटे का कातिल विश्व प्रताप है...

इतना कह कर चेट्टी चुप हो जाता है l अपना पैग खाली करने के बाद चौथे बंदे से पैग बनाने के लिए इशारा करता है l चेट्टी के चेहरे पर आए बदलाव को देख कर केके और रॉय थोड़ा दब जाते हैं l पैग बन जाने के बाद चेट्टी पैग उठा कर कहता है l

चेट्टी - फ़िलहाल विश्व और मेरा दुश्मन एक ही है... विश्व अपने काम में तेजी से आगे बढ़ रहा है... तुम जानते हो... और मानते भी होगे... क्षेत्रपाल का खात्मा विश्व ही कर सकता है... उसके पीछे उनकी निजी वज़ह है... पर विश्व जो नहीं जानता... वह यह कि... उसका काम खत्म होने के बाद... मैं उसे मरवा दूँगा...
केके - किससे... रंगा से... विश्व का नाम सुनते ही... जिसका पिछवाड़े में से झाग निकलने लगती है...
चेट्टी - हा हा... हा हा हा हा... अरे यार चेट्टी... शेर को मारने के लिए... शिकारी चाहिए... कुत्तों की बस की बात होती... तो विश्व कब का अपने भगवान का प्यारा हो चुका होता... यह वह शतरंज की बिसात है... जहां के तीसरे खिलाड़ी हम हैं...
रॉय - और हमारी चालों से... दोनों खिलाड़ी मारे जाएंगे... चियर्स...

केके खुश होता है और इस बार अपना पैग उठा कर खत्म कर देता है l चखने की प्लेट से चिकन टंगड़ी उठा कर खाते हुए रॉय से पूछता है l

केके - अच्छा रॉय... अब वीर की क्या खबर है...
रॉय - केके साहब... वीर बस अपनी जिंदगी एंजॉय कर रहा है... हम फ़िलहाल गैलरी में बैठ कर देख रहे हैं...
केके - क्या प्लान बनाया था... विश्व और क्षेत्रपाल के बीच की दुश्मनी में... पेट्रोल डालने के लिए... पर..
चेट्टी - इसलिए तो कह रहा हूँ... थोड़ा धीरज धरो... अब जोडार के सिक्योरिटी... सेनापति दंपति की रखवाली चुस्ती के साथ कर रही है... और वीर की रखवाली... विक्रम की ESS के... स्पेशल कमांडोज कर रहे हैं... कुछ भी किया... तो यह हरकत हमें पर्दे के पीछे से खिंच कर बाहर ले आएगी... मौका आयेंगी... हमें बस भुनाना है...
केके - ठीक कहा आपने...

अपना ग्लास रख कर, चौथे बंदे से पैग बनाने के लिए कहता है, जैसे ही वह बंदा पैग बनाने के लिए बोतल उठाता है तो रॉय उसे रोक लेता है l

रॉय - अब बस भी कीजिए केके सर... कितना और जिगर जलायेंगे... एक बार दौरा पड़ चुका है... कम से कम... क्षेत्रपाल की बर्बादी तक तो जिगर संभालीए...
चेट्टी - हाँ केके... रॉय ठीक कह रहा है...
केके - जिसका जिगर का टुकड़ा ही नहीं हो... उसका जिगर क्या जलायेगा... यह दो कौड़ी का शराब...
केके - प्लीज...
चेट्टी - रॉय... एक काम करो... केके को... ले जाओ और उसके घर पहुँचा दो...
रॉय - ठीक है...

रॉय केके को अपने कंधे से सहारा देकर उसे बाहर ले जाता है l वह चौथा बंदा भी रॉय का साथ देता है l दोनों केके को गाड़ी में बिठा कर विदा करते हैं l केके की गाड़ी जाने के बाद रॉय भी अपना गाड़ी लेकर केके के गाड़ी के पीछे पीछे उस मैंशन से बाहर निकल जाता है l सबके चले जाने के बाद वह चौथा बंदा कमरे में आता है जहां चेट्टी टी पोए के ऊपर दोनों पैर फैला कर शराब की चुस्की ले रहा था, उस बंदे को कमरे में देख कर

चेट्टी - चले गए सब...
बंदा - हाँ...
चेट्टी - ह्म्म्म्म आओ बैठो... (शराब की ग्लास को दिखाते हुए) इसे मिलकर खत्म करते हैं...
बंदा - नहीं... मुझे नहीं करना...
चेट्टी - क्यूँ... नाराज हो... अरे नाराजगी छोड़... बहुत जल्द अपना राज वापस लौटने वाले हैं...
बंदा - कब तक... मैं तो जैसे फुटबॉल हो गया हूँ... इधर से लतीया जाता हूँ... और उधर से...
चेट्टी - ऐ... क्या कहना चाहता है तु... मैं तुझे लतीया रहा हूँ...
बंदा - वह... मुहँ से बरबस निकल गया... मेरे कहने का वह मतलब नहीं था... मेरा मतलब है... मुझे कब दुनिया के सामने आप लाओगे... कब मैं अपनी असली पहचान के साथ... सबके सामने आऊँगा...
चेट्टी - तु भी ना... केके की तरह बड़ा बेसब्रा है... मैंने अपना सब कुछ तेरे नाम कर तो दिया है... फिर... ऐस तो कर रहा है ना... ठंड रख ठंड... तु बस अपने काम में लगा रह... इस बार चोट कुछ ऐसा हो... के क्षेत्रपाल पूरा का पूरा... तितर-बितर हो जाएगा... उसके बाद मैं तुझे डंके की चोट पर... दुनिया के सामने लाऊँगा...
बंदा - मैं तो कब से लगा हुआ हूँ... अब तक... सारे वार खाली गए हैं...
चेट्टी - कहाँ खाली गए हैं... देखा नहीं... क्षेत्रपाल टुट रहे हैं... बिखर रहे हैं... हमें मालूम है... कहाँ कब चोट मारना है... उन्हें मालुम नहीं है... चोट कौन मार रहा है... (चेहरा बहुत सख्त हो जाता है) क्षेत्रपाल... मुझे वैशाखी बना कर... भुवनेश्वर आए... राजनीति में पाँव जमाए... जब मतलब निकल गया... हरामियो ने... मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया... मेरा बेटा यश को बचा सकते थे... साले हरामी... उसे मरने के लिए छोड़ दिया...

कहते कहते चेट्टी चुप हो जाता है, उसके गाल फडफडाने लगते हैं l दांत पीसने लगता है l उसकी यह हालत देख कर वह बंदा उसके पास बैठता है और उसके हाथ पकड़ कर कहता है l

बंदा - मैं हूँ ना... आपका बदला लेने के लिए...
चेट्टी - (उसके कंधे पर हाथ रखकर) तु मुझे मिला... इसलिए तो क्षेत्रपाल से बदला लेने की सोचा... वर्ना मैं तो खुद को लावारिस समझ कर... मरने की सोच रहा था... (चेट्टी अपने पैर नीचे कर सोफ़े से उठ खड़ा होता है) आज मैं खुश हूँ... यश की मौत लावारिस नहीं है... ना ही वह विरासत जो मैंने कमाई है... वह लावारिस है... तु उसका वारिस है... लावारिस तो अब क्षेत्रपाल होगा... हाँ लावारिस तो क्षेत्रपाल होगा...

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अनु कमरे में चहल कदम कर रही है, दीवार पर लगी घड़ी की ओर देख रही थी l थोड़ी देर बाद कॉलिंग बेल की आवाज़ आती है l कॉलिंग बेल की आवाज़ सुनते ही अनु के चेहरे पर पर रौनक आ जाती है l भाग कर जाती है दरवाजा खोलती है l सामने वीर काले, नीले, पीले, लाल आदि रंगों में पुता हुआ खड़ा था l उसे इस हालत में देख कर पहले अनु चौंकती है फिर जोर जोर से हँसने लगती है l

अनु - (हँसते हुए) यह... क्या हाल बना रखा है आपने... होली तो कल है... आज खेल कर आ गए क्या...
वीर - हाँ हाँ हँस लो... कल होली की छुट्टी है... इसलिए सारे स्टाफ ने... मुझे आज रंगों में पुत दिया...
अनु - ठीक है... जाइए आप नहा धो लीजिए...
वीर - (अंदर आ कर) अरे सिर्फ रंग ही तो है... वह भी होली वाली... थोड़ा रहने तो दो... (सोफ़े पर बैठ जाता है)
अनु - अरे... सोफ़े पर रंग लग जाएगा...
वीर - तो क्या हुआ... नए कवर ला देंगे...

अपना सिर हाँ में हिला कर अनु मुस्करा कर वीर के पास खड़ी होती है l वीर अपना हाथ अनु की ओर बढ़ाता है l अनु अपना हाथ देती है l वीर उसे अपने ऊपर खिंच लेता है l अनु घुमती हुई वीर के गोद में बैठ जाती है l वीर अनु के कंधे पर अपना चेहरा रख कर कहता है

वीर - आह... क्या जिंदगी है अनु... सुबह मुझे टिफिन कैरेज के साथ जब विदा करती है... तेरे आँखों में... बिछड़ने का दर्द को मुझे महसूस होता है... और जब वापस आता हूँ... तेरे चेहरे पर ग़ज़ब की खुशी देखता हूँ... कितना सुकून मिलता है... क्या कहूँ... (फिर अनु के कंधे पर अपने सिर को अनु के साथ झूमते हुए हिलने लगता है) अनु...
अनु - हूँ...
वीर - कुछ बोल ना...
अनु - क्या कहूँ...
वीर - कुछ भी... मुझसे बातेँ कर... पुछा कर... दुनिया भर की... कचर कचर सुन सुन कर... खीज जाता हूँ... पर जब तेरी आवाज सुनता हूँ... आह.. ऐसा लगता है... कानों में शहद घुल रही है...
अनु - हूँ...
वीर - क्या हूँ...
अनु - मतलब हाँ... मतलब हूँ...
वीर - ना... आज मेरी अनु को कुछ हो गया है...
अनु - सच मुझे कुछ नहीं हुआ है...
वीर - झूठ...
अनु - सच्ची...
वीर - ऊँ हूँ... यह मेरी अनु का स्टाइल नहीं है...
अनु - अच्छा... फिर आपके अनु का स्टाइल क्या है...
वीर - मेरी हर बात पर मुझे झूठा कहना... यह मेरी अनु का स्टाइल है...
अनु - (हँस देती है) धत...
वीर - क्या धत... (अनु के कान के पास चूम कर) बोल ना...
अनु - क्या...
वीर - झूठे...
अनु - पहले मुझे छोड़िए...
वीर - (किसी बच्चे की तरह मासूमियत के साथ पूछता है) क्यूँ... तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा...
अनु - सोफा गंदा हो गया... साथ साथ... मेरे कपड़े भी गंदे हो गए हैं... (हाथ छुड़ा कर उठ खड़ी होती है) चलिए... जाइए... आप नहा धो कर पहले साफ हो जाइए...
वीर - तुम कहना क्या चाहती हो... मैं गंदा हूँ... अरे मेरी जान... इसे गंदा होना नहीं.. रंगना कहते हैं... और यह आज से नहीं... तब से... जब से तुझे देखा था...
अनु - (समझ नहीं पाती) म.. मतलब...
वीर - अरे मेरी प्यारी अनु... मैं तो तेरे प्यार में कब से रंगा हुआ हूँ... आज तो बस रंग उभरा है... इसलिए दिख रहा है...
अनु - अच्छा... (अपने बदन पर लगे रंग दिखाते हुए) तो यह... अब क्यूँ उभरा है...
वीर - अब तक मैं तेरे रंग में रंगा हुआ था... आज मैंने तुझे रंग दिया है...
अनु - (मुहँ पर पाउट बना कर) झूठे...
वीर - ओ.. हो.. जान... अब बहुत अच्छा लगा... चलो... मिलकर साफ होते हैं...
अनु - क्या... छी...
वीर - इसमे छी वाली बात कहाँ से आ गई...
अनु - (सिर नीचे की ओर कर आँखे मूँद कर बाथरूम की ओर हाथ दिखा कर ) जाइए... पहले आप नहा धो लीजिए...

वीर किसी मासूम बच्चे की तरह मुहँ बना कर भारी पाँव से बाथरूम की ओर जाने लगता है l धीरे धीरे अनु अपना सिर उठा कर आँखे धीरे धीरे खोलती है वीर को भारी कदमों के साथ जाते देख अपनी हँसी दबा देती है l वीर बाथरूम के पास पहुँच कर पीछे मुड़ता है और आवाज देता है l

वीर - अनु...
अनु -.....
वीर - ए अनु... (मासूम सा मुहँ बना कर)
अनु - (अपनी हँसी दबा कर) क्या है...

वीर अपनी बाहें खोल देता है और मुस्कराते हुए अनु की ओर देखता है l अनु भी मुस्कुराते हुए भाग कर वीर के गले लग जाती है l वीर उसे बाहों में उठा लेता है के अनु के पैर फर्श से कुछ इंच उपर रह जाती हैं l


वीर - आख़िर मेरी बाहों में आ गई...
अनु - वादा जो लिया था आपने... जब भी बाहें खोलेंगे... मैं आपकी बाहों में समा जाऊँगी...
वीर - जानता हूँ... तु मुझसे बहुत प्यार जो करती है...

ऐसे ही बाहों में उठाए वीर अनु को बाथरूम में ले जाता है और शावर के नीचे खड़ा हो जाता है l अंदर पहुँचने के बाद

अनु - आपने... अपनी कर ली..
वीर - कहाँ... अब शुरु करना है...
अनु - अच्छा... और मुझे क्या करना होगा...
वीर - आज मैंने तुम्हें रंग दिया है... तो तुम गाना गा लेना...
अनु - क्या...
वीर - हाँ... तुम गाना..
रंगीला रे... तेरे रंग में... यूँ रंगा है... मेरा मन...
छलीआ रे... ना बुझे है... किसी जल से.. यह जलन...

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रुप आज खुद को संवार रही थी l माथे पर चमकता हुआ सफेद बिंदी लगा कर आईने में खुद को निहार रही थी l ड्रायर से लिपस्टिक निकाल कर अपनी होठों को रंगने लगती है l कभी मुहँ पर पाउट बना कर तो कभी मुस्करा कर बार बार खुद को देखने लगती है l फिर आईने के सामने से उठ कर खिड़की के पास आती है l रौशनी मद्धिम पड़ रही थी l वह अपनी वैनिटी पर्स से एक एक अठ्ठन्नी की कॉइन निकाल कर खिड़की पर लगे ग्रिल की स्क्रू एक एक कर खोलने लगती है l सारे स्क्रु खुल जाने तक अंधेरा छा चुकी थी l अब अपने बेड पर आकर चेहरे को बेड के हेड रेस्ट पर रख कर विश्व की राह देखने लगती है l कभी बाहर तो कभी घड़ी देख की ओर देखने लगती है l जैसे जैसे वक़्त गुज़रता जा रहा था वैसे वैसे रुप खीज ने लगी थी l चिढ़ कर अपना मोबाइल निकाल कर विश्व को कॉल लगाती है, पर विश्व की फोन पर उसे कॉल बिजी की ट्यून सुनाई देती है l ऐसे कुछ देर बाद जब विश्व के फोन पर रुप की कॉल लगती नहीं तो चिढ़ कर फोन को बेड पर पटक देती है l खिड़की की तरफ़ देखते हुए अपना सिर हेड रेस्ट पर रख कर विश्व की राह तकने लगती है l

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सारे गाँव वाले उस मैदान में जमा हो गये हैं l अपने हाथों में अपने अपने हिस्से के लकड़ी, गोबर के उपले आदि लेकर l जिस भाड़े पर होलिका का पुतला बैठी हुई थी l उसी पुतले के नीचे जलन की लकड़ियां जमा कर उस के ऊपर उपलों को भी सजाने लगे l कुछ लोग अपने कंधे और गले में ढोल,चांगु थाली लटकाये हुए थे, और किन्ही किन्ही के हाथों में शंख भी था l यह सारे दृश्य को उदय, बल्लभ के हाई रीजोल्युशन मोबाइल के जरिए शूट कर रहा था और मोबाइल नेटवर्क के जरिए ट्रांसमिशन कर रहा था l यशपुर में अपने क्षेत्रपाल पंथ निवास में बल्लभ के ही लैपटॉप पर भैरव सिंह लाईव देख रहा था उसके बगल में बल्लभ एक अलग कुर्सी पर बैठा हुआ था l थोड़ी दुर पर भीमा खड़ा हुआ था l भैरव सिंह देखता है कि हाथ में एक बड़ा से थैला भर कर सत्तू कुछ दारु की बोतलें निकालता है और लोगों के बीच पहुँच कर उन सबमें बाँटना शुरु करता है l उसे यूँ लोगों में दारु बांटता देख कर भैरव सिंह लैपटॉप का वॉयस ऑफ कर सवालिया नजरों से भीमा की ओर देखता है l

भीमा - वह... हुकुम... उदय ने बोला था...
बल्लभ - पर क्यूँ...
भीमा - उदय ने कहा... की लोग अगर नशे में रहेंगे... तो आगे बात को संभाला जा सकता है... और गलती से दरोगा से कोई हरकत हो भी गई तो... नशे में धुत लोगों का ध्यान उस तरफ़ नहीं जाएगा...
भैरव सिंह - (एक शातिर मुस्कान खिल उठता है) ह्म्म्म्म... बहुत ही खतरनाक दिमाग पाया है... यह उदय...
बल्लभ - राजा साहब... बुरा ना माने तो एक बात कहूँ...
भैरव सिंह - हूँ... कहो...
बल्लभ - मुझे लग रहा है... जैसे... उदय हमारे जरिए... मेरा मतलब है... हमारी आड़ लेकर... अपना खुन्नस उतार रहा है...

भैरव सिंह चुप रहता है और बल्लभ की ओर अपना भौह चढ़ा कर देखता है l बल्लभ के जिस्म में एक सुर सूरी सी सिहरन दौड़ जाती है l

भैरव सिंह - हमें लगता है... तुम अपनी दोस्त के होने वाले अंजाम को देखने से पहले... बहक रहे हो... (बल्लभ अपना सिर झुका लेता है) बात को पुरी करो...
बल्लभ - र राज आ.. साहब... मुझे माफ करें... जिस तरह से... वह बढ़ चढ़ कर... दरोगा के खिलाफ यह सब किए जा रहा है... मेरे मन में.. शंका पैदा कर रहा है...
भैरव सिंह - क्यूँ... तुम इस उदय से पहले से परिचित नहीं हो...
बल्लभ - कभी कभी उसे... रोणा के क्वार्टर में देखा था... रोणा के क्वार्टर में... रोणा के सारे काम किया करता था... यहाँ तक कि... विश्व पर निगरानी का जिम्मा भी... रोणा ने... उदय पर सौंप रखा था... इतना मालुम था कि... यह कंपेंशेशन ग्राउंड में... ग्रेड फॉर कटेगरी में... ग्राम रखी कि नौकरी कर रहा था... रोणा ने इसे... कांस्टेबल बनाने का वादा किया था...
भैरव सिंह - तो अब तक... पूरी वफ़ादारी के साथ... इस उदय ने... रोणा का काम किया है... अब हमसे वफादारी कर रहा है...
बल्लभ - मैं इसी बात पर हैरान हूँ... रोणा से उसकी वफ़ादारी... अब अचानक से... (एक पॉज लेकर) अब रोणा की जान पर आ गई...

भैरव सिंह कुछ सोच में पड़ जाता है,

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रुप की आँखे बंद थीं l उसे हल्का सा ठंडक महसूस हो रही थी l वह सिकुड़ कर अपनी बाहों को अपने गले और कंधों के पास कस लेती है l तभी उसे महसूस होता है कि कोई फूंकते हुए उसके चेहरे पर लटों को हटा रहा है l रुप के चेहरे पर पर एक खुशी भरी मुस्कान छा जाती है l हल्का सा आँख खोलती है l उसके आँखों के विश्व का चेहरा दिखता है, बहुत ही करीब था विश्व का चेहरा l विश्व को देखते ही

रुप - मुझे मालुम था... यह तुम ही होगे... (कह कर रुप फिर से अपनी आँखे बंद कर लेती है) आह... अनाम... कितना प्यारा सपना है... कास के इस सपने से कभी बाहर ही ना निकलुं... हकीकत में तो तुम आए नहीं... पर सपने में आए हो... प्यार जता रहे हो... कितना अच्छा लग रहा है.. उम्म्म्म्...

अचानक रुप अपनी आँखे खोलती है l विश्व का चेहरा रुप के चेहरे के पास ही था l वह अब सीधे हो कर बैठती है l अपने चारों तरफ देख कर चौंकती है और बड़ी बड़ी आँखों से हैरानी भरे नजरों से देखने लगती है l रुप एक नाव पर थी l एक चौपाई के सिरहाने सिर टिका कर सोई हुई थी l नाव बीच नदी में था l यह देख कर रुप चिल्लाने को होती है कि विश्व उसके मुहँ पर हाथ रख देता है l रुप अपने मुहँ से विश्व की हाथ हटाने के लिए छटपटाती है l जब थक जाती है

विश्व - हाथ निकालूँ...

अपना सिर हिला कर हाँ कहती है, विश्व रुप की मुहँ से हाथ हटाता है, रुप विश्व की हाथ पकड़ कर अपने दांतों से काटती है l विश्व चिल्लाते चिल्लाते रह जाता है और अपने बाएं हाथ से अपना मुहँ दबा लेता है l

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कुछ शोर शराबा सुनाई देने लगता है तो अपना ध्यान लैपटॉप पर चल रहे दृश्य पर गाड़ देता है l देखता है सत्तू सबको शराब पीने के लिए उकसा रहा है l

सत्तू - यह लो... ऐस करो... आज का यह दारु मेरे तरफ से.. जी भर के पियो...
एक गाँव वाला - अरे सत्तू पहलवान... तुझे कौनसा ख़ज़ाना मिल गया है... जो आज तु ऐसे लूटा रहा है...
सत्तू - अरे ताऊ... आज पहली बार... होली जलाई जाएगी... कल होली खेली जाएगी... क्या यह कम बड़ी बात है... इसलिए पिलो... आज फोकट में दे रहा हूँ... कल से तुमको अपना जेब ढीला करना पड़ेगा...

सब खुशी के मारे हल्ला मचाते हुए दारु के बोतल उठा कर घुट गटकने लगते हैं l इसी तरह सत्तू सभी गाँव वालों में बोतल बांटने लगता है और लोग अपने हिस्से आई बोतल को खाली करने लगते हैं l

भैरव सिंह - यह सत्तू... कह रहा था... बच्चों ने आज... विमान परिक्रमा कारवाई... पर यहाँ पर बच्चे बिल्कुल दिख नहीं रहे हैं... (इस पर बल्लभ चुप रहता है, तो इसबार भैरव सिंह भीमा की ओर देखता है)
भीमा - हुकुम... औरतें भी तो नहीं दिख रहे हैं... हो सकता है... डर के मारे नहीं आए हों... मतलब.. उन्हें अभी भी यकीन नहीं हो रहा हो...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... (लैपटॉप का वॉयस ऑन कर) उदय...
उदय - जी हुकुम...
भैरव सिंह - गाँव से सिर्फ मर्द ही आए हैं क्या... औरतें और बच्चे...
उदय - (ट्रांसमीशन करते हुए) हुकुम... औरतें और बच्चे... कुछ दूरी पर खड़े हैं...


कह कर मोबाइल घुमाता है, भैरव सिंह देखता है कि एक जगह पर गाँव की औरतें और बच्चे सभी खड़े हो कर तमाशा देख रहे हैं l बच्चे पास जाने के लिए उतावले हो रहे हैं l पर उनकी माँएँ उन्हें जाने से टोक रहे हैं l उन लोगों के भीड़ में भैरव सिंह को वैदेही खड़ी नजर आती है l जिसका चेहरा भाव शून्य सा लग रहा था l

भैरव सिंह - ठीक उदय... मोबाइल दहन की जगह दिखाओ...

उदय वैसा ही करता है l कुछ देर बाद कुछ अचानक ढोल, चांगु बजने लगते हैं l महरी तुरी भेरी बजने लगते हैं l कुछ लोगों के हाथों में जलते हुए मशाल दिखते हैं l एक गाँव वाला मशाल फेंकने को होता है कि उसे सत्तू रोक देता है l

सत्तू - नहीं नहीं... ऐसे नहीं...
गाँव वाला - फिर कैसे...

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रुप विश्व की हाथ छोड़ देती है l विश्व हाथ को फूंकने लगता है l रुप की और देखता है l रुप अपनी आँखे सिकुड़ कर विश्व को देख रही थी l

रुप - मैं समझ रही थी... के मैं सपना देख रही हूँ... पर... मैं सच में... नाव पर हुँ... कब आई... कैसे आई...
विश्व - क्यूँ... आप खुद को यहाँ देख कर थ्रिल नहीं हुईं..
रुप - थ्रिल... पहले मैं डर गई... बात समझने के लिए... कुछ वक़्त लगा मुझे... तुम... मुझे यहाँ तक कैसे लाए... और... मैं सो कैसे गई थी...
विश्व - (चुप रहता है)
रुप - देखो मुझे सब सच सच बताओ... वर्ना...
विश्व - वर्ना...
रुप - वर्ना... आज पूरा गाँव... विश्व प्रताप को चीख मारते हुए सब देखेंगे... इतनी जोर से ऐसे काटुंगी के...

कहते कहते रुक जाती है और जोर जोर से साँस लेने लगती है, विश्व उसे इस हालत में देख कर पहले हैरान हो जाता है l फिर हँस डेट है l उसे यूँ हँसते देख कर रुप और भी ज्यादा चिढ़ जाती है l

रुप - (मुहँ बना कर, मुहँ फ़ेर कर बैठ जाती है) जाओ मैं तुमसे बात नहीं करती...
विश्व - (रुप के पास आकर बैठ जाता है) मैं छुप कर देख रहा था,.. कैसे एक परियों की रानी... मेरे लिए सज रही थी... सँवर रही थी... फिर देखा उसकी आँखे लग गई थी... तो मैंने... एक रुमाल में थोड़ा सा क्लोरोफॉर्म डाल कर... उसकी नींद को थोड़ा गहरा कर दिया... बस... फिर उसे अपने पुराने तरीके से... खिड़की से नीचे उतारा... और उसी नींद के हालात में... यहाँ... नाव पर चौपाई के सहारे बिठा दिया...
रुप - (अपना मुहँ बना कर, फिर से मुहँ फ़ेर लेती है) हूँ ह...
विश्व - क्या आप... थ्रिल नहीं हुईं...
रुप - थ्रिल... थ्रिल तो तुम्हें महसुस हुआ होगा... अगर मैं होश में होती... तो वह थ्रिल मैं भी महसुस करती ना...
विश्व - मैं आपको... यह सारा एहसास... सपने की तरह महसुस कराना चाहता था... (एक पॉज लेकर) बुरा लगा...
रुप - (विश्व की ओर बिना देखे अपना सिर ना में हिलाती है)
विश्व - सॉरी... वेरी सॉरी... आप जो भी सजा देंगे.. (अपने घुटनों पर बैठ कर) मुझे कुबूल होगी...
रुप - (मुड़ती है) खड़े हो जाओ... (विश्व खड़ा हो जाता है, रुप उसके सीने पर मुक्के मारने लगती है, पर विश्व वैसे ही खड़ा रहता है) मैं तुम पर मुक्के बरसा रही हूँ... और तुम हो कि...
विश्व - आह... ओह... उह... (करने लगता है)

रुप को और भी ज्यादा गुस्सा आता है l विश्व को धक्का देती है विश्व थोड़ा पीछे हटता है l फिर रुप उस पर कुदी मारती है l विश्व अब पीठ के बल गिरता है और रुप उसके ऊपर गिरती है l विश्व के पेट पर बैठ कर विश्व की कलर पकड़ लेती है l

रुप - होगे तुम बड़े तुर्रम खान... पर मैं भी तुम्हें हरा सकती हूँ... समझे...
विश्व - जी.. आपसे जितने कि... सोच भी नहीं सकता कभी...

रुप शर्मा जाती है, पर विश्व की कलर नहीं छोड़ती l विश्व रुप की दोनों हाथों को पकड़ लेता है और अपना चेहरा थोड़ा किनारा कर आसमान की ओर देखता है फिर रुप की ओर देखता है l ऐसा दो तीन बार करता है l

रुप - ऐसे क्या देख रहे हो...
विश्व - आज पूनम की रात है... मैं आपके चेहरे को और चांद को देख रहा था... और इतरा रहा था
रुप - क्यूँ...
विश्व - उस चांद का कहाँ मुकाबला होगा... (रुप के चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर) मेरे इस चांद के आगे...

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सत्तू - जैसे बचपन में... घो घो राणी खेलते थे ना...
गाँव वाले - हाँ...
सत्तू - वैसे ही... इस होलिका भाड़े के चारो ओर... घूमो... फ़िर आग लगा ओ...

सत्तू की बात मान कर, हाथों में मशाल लिए सारे मर्द दहन मंच के घेर कर घूमने लगते हैं l शराब धीरे धीरे उन पर असर कर रहा था l लोग मशालों को घुमा घुमा कर एक तरह से उद्दंड नृत्य कर रहे थे l तभी एक गाँव वाले की नजर होलिका की पुतले पर पड़ती है l उसे लगाकि वह पुतला हिल रही थी l वह रुक जाता है और डर के मारे कांपने लगता है l उसे रुकता देख कर उसके साथी भी रुक जाते हैं और उससे पूछने लगते हैं

- अबे क्या हुआ... रुक क्यूँ गया
वह - होलिका हिल रही है...
गाँव वाले - क्या...

सभी रुक कर पुतले को देखने लगते हैं l उधर यशपुर पर सीधा प्रसारण देख रहे भैरव सिंह की भौहें सिकुड़ जाती हैं l तभी सत्तू उन गाँव वालों के पास पहुँचता है l

सत्तू - ओये... क्या हो गया... रुक क्यूँ गए तुम लोग...
वह - होलिका... हिल रही थी...
सत्तू - सालों... कमीनों... होलिका नहीं हिल रही है... दारू बाज कहीं के... तुम सारे हिल रहे हो...
गाँव वाले - हाँ... हाँ... हमें भी यही लग रहा है...
वह - नहीं नहीं... होलिका हिल रही है...
सत्तू - अबे मरदूत... जब नशा संभाल नहीं पाता... तो इतना पिता क्यूँ है... (सारे गाँव वालों से) एक काम करो...
गाँव वाले - क्या...
सत्तू - तुम सब को... दरोगा रोणा याद है... (सब गाँव वाले हैरानी के मारे एक दुसरे को देखने लगते हैं) अबे बोलो... याद है...
एक गाँव वाला - ह... हाँ.. हाँ.. याद है..
सत्तू - जानते हो... वह अभी लापता है... हमारे राजा सहाब के सर्कार उसे ढूँढ रही है...
गाँव वाले - क्यूँ...
सत्तू - उसने लोगों के साथ बहुत बुरा किया है... उसे सजा देने के लिए...
गाँव वाले - (उल्लासित होकर) अच्छा...
सत्तू - हाँ... इसलिए... अब इस पुतले को... कुछ देर के लिए ही सही... दरोगा रोणा समझो... और अपने दिल की भड़ास निकालते हुए... इन लकडिय़ों में आग लगा दो...

गाँव वाले पहले एक दुसरे को देखते हैं l उनके बीच से हरिया आगे आता है और पुतले को देखते हुए चिल्ला कर गला फाड़ कर कहने लगता है

हरिया - अबे हरामी कुत्ते रोणा... बहुत दिनों से खुन्नस था... आज हाथ लगा है तु मेरे... साले कमीने हरामी... यह ले...

कह कर मशाल को पुतले की ओर फेंकता है l मशाल पुतले से लग कर भाड़े से लगे लकडिय़ों पर गिरती है l उसके देखा देखी और एक गाँव वाला सामने आता है और वह भी रोणा को गालियाँ बकते हुए मशाल दे मारता है l इस तरह से लोग एक के बाद एक रोणा को गाली अभिशाप देते हुए अपनी अपनी मशालें फेंक मारते हैं l लकड़ियों में धीरे धीरे आग जलने लगती है l जैसे जैसे आग भड़कने लगती है l लोग जो बाहर ढोल, चांगु, मादल बजाने लगते हैं l ऐसा प्रतीत होता है जैसे ढोल आदि के ताल से ताल बिठा कर लपटें आकाश की ओर उठने लगती हैं l यह सब देख कर जहां भैरव सिंह के दिल में एक सुकून महसूस होती है वहीँ बल्लभ की अंतरात्मा छटपटाने लगती है l
धीरे धीरे आग की लपटें जोर पकड़ने लगती है l उसके साथ साथ लोगों में हल्ला व उल्लास के साथ शोर भी बढ़ने लगती है l ढोल मादल चांगु की ताल से ताल बिठा कर शंख फूंकने लगते हैं l बल्लभ एक नजर भैरव सिंह पर डालता है l भैरव सिंह के आँख उसे जलती हुई दिखाई दे रही थी l लैपटॉप से आ रही हल्ला उल्लास की आवाजें उसके भीतर उसे दहला रही थी l बल्लभ छटपटा रहा था पर अपने अंदर की भावनाओं को बाहर उजागर नहीं कर पा रहा था l

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रुप शर्मा कर विश्व के ऊपर से हट जाती है और नाव के एक छोर पर आ कर नाव पर नजर घुमाने लगती है l वह देखती है दो बड़े नावों को बांध कर उस पर दो लकड़ी के खाट बंधे हुए हैं l सबसे अहम बात ना सिर्फ नाव में वे दोनों ही थे बल्कि बीच नदी में नाव एक दम स्थिर थी l रुप को महसुस होती है विश्व उसके पीछे खड़ा है l

रुप - एक बात पूछूं...
विश्व - पूछिये...
रुप - तुम मुझे यहाँ पर क्यूँ लाए... तुम्हें डर नहीं लगा... हम पकड़े भी जा सकते थे...
विश्व - नहीं... आज हम पकड़े नहीं जाएंगे... क्योंकि... आज महल पुरी तरह से... मर्दों से रहित है... और राजा साहब और उनके खास... कोई भी... महल या उसके आस-पास भी नहीं है... वैसे भी... आपको सरप्राइज पसंद है ना...
रुप - (हैरान हो कर पीछे मुड़ती है) सरप्राइज... तुमने सरप्राइज़ नहीं मुझे शॉक दे दिया था... एक पल के लिए... मुझे तो जोर का झटका लगा था...
विश्व - (मुस्करा देता है)
रुप - वैसे... क्यूँ... (पॉज लेकर) इसका मतलब... तुमने ऐसा क्या किया है.... की वे सारे लोग... (चुप हो जाती है)
विश्व - मैंने कहा था... आप मुझसे जो भी ख्वाहिश करेंगी... उस पल को मैं खास बना दूँगा...
रुप - है... भगवान... मतलब... तुम... इस खेल में कर्ता हो... कारक हो... बाकी सब... क्रिया हैं...
विश्व - (चुप रहता है)
रुप - वाव... तुम कितने परफेक्ट हो...
विश्व - नहीं... कोई कभी भी... परफेक्ट नहीं हो सकता... बस चालें सही बैठ रही हैं... इसलिए... रिजल्ट मन माफिक मिल रहा है... अगर कभी चल गलत बैठ गया... तो लेने के देने पड़ जाएंगे...

दोनों के बीच चुप्पी छा जाती है l रुप फिर से विश्व की ओर पीठ कर खड़ी हो जाती है और चांद की ओर देखने लगती है l विश्व को अब समझ में नहीं आता आगे करे तो क्या करे और कैसे आगे बढ़े l ठंडी हवाएं चलने लगती है l रुप की चूनर उड़ कर विश्व के चेहरे पर लहराने लगती है l विश्व रुप की चूनर को पकड़ लेता है l रुप की धड़कने तेजी से ऊपर नीचे होने लगती है l वह अपनी चुनरी को पकड़ लेती है l विश्व अपने चेहरे पर लहराते हुए चुनरी को झटका देकर खिंचता है l रुप उस झटके के साथ विश्व के सीने पर आ गिरती है l विश्व की हाथ रुप की कमर पर कस जाती है l रुप अपना चेहरा विश्व के सीने में छुपा लेती है l

विश्व - (थर्राती आवाज में) राजकुमारी जी...
रुप - ह्म्म्म्म...
विश्व - आसमान में चाँद मुझसे जल रहा है...
रुप - (सिर नहीं उठाती) ह्म्म्म्म..
विश्व - देखिए ना... कितना खूबसूरत नज़ारा है... चांद की चांदनी में नहाया हुआ इन फ़िज़ाओं में... कल कल आवाज करती बहती नदी पर... दो नाव... उस पर दो प्रेमी... अपनी पहली चुंबन के लिए...

रुप की मुट्ठी विश्व के शर्ट पर कस जाती हैं l चेहरा और भी जोर से सीने में गड़ जाती है l विश्व की हाथ कमर से उठ कर पीठ पर लहराते हुए उठती है l रुप की बदन उसी लहर के नागिन की तरह बलखाने लगती है l विश्व की हाथ रुप के सिर पर आकर रुक जाती है फिर दोनों हाथों से रुप की चेहरे को अपने सामने लाता है l रुप की आँखे बंद थीं l

विश्व - (हलक से बड़ी मुश्किल से आवाज़ निकाल कर) रा.. ज.. राज.. कु.. मारी...
रुप - हूँ...

रुप की चेहरे को अपने चेहरे के पास लाता है और अपना चेहरा धीरे धीरे रुप की चेहरे पर झुकाता है l दोनों की साँसे टकरा रही थी l दोनों की धड़कने बड़ी तेजी से उपर नीचे हो रहीं थीं l वे दोनों एक दूसरे की धड़कनों को साफ सुन पा रहे थे कि नदी की कल कल की आवाज दब गई थी l विश्व और झुकता है रुप की हॉट पर अपना होंठ रख देता है l जैसे ही रुप के होठों पर विश्व की होंठ का स्पर्श अनुभव होती है उसका सारा जिस्म कांप जाती है l उसका बदन हल्का हो जाती है और पैरों के उँगलियों पर खड़ी हो जाती है l उसका हाथ अब फिसल कर विश्व के कमर पर आ जाती है l विश्व अपना हॉट खोल कर रुप की निचली होंठ को चूसने लगता है l रुप की भी प्रतिरोध ढीली पड़ जाती है और उसके होंठ खुल जाती है l धीरे धीरे चुंबन प्रगाढ़ से प्रगाढ़ तक होने लगती है l रुप के हाथ अब विश्व के बालों से खेल रहीं थीं l वहीँ विश्व के हाथ भी अनुरुप रुप के केशुओं में उलझ गए थे l

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होलिका दहन अपने चरम पर पहुँच गया था l लपटों में इतनी तेज थी के अब लोग उसके आसपास भी मंडरा नहीं पा रहे थे l दुर से खड़े हो कर गाँव वाले यह दृश्य देख रहे थे l धीरे धीरे उन लोगों के पास उनके परिवार जमा होने लगते हैं l उनके लिए यह एक अद्भुत दृश्य था l क्यूंकि दशकों से ना तो उनके पुरखों ने कभी त्योहार मनाया था ना ही उन्होंने l पर आज उनके बच्चों के वज़ह से और राजा भैरव सिंह के अनुग्रह से ना सिर्फ होलिका दहन मनाया गया बल्कि इसी राख से कल रंग भी खेला जाएगा l यह दृश्य यशपुर में बैठा भैरव सिंह भी देख रहा था l मन ही मन वह उदय से प्रभावित भी हो गया था l क्यूंकि उसके घर की इज़्ज़त पर किसी ने आँख उठाया है यह बात कोई जान लेता तो ज़रूर कानाफूसी होती l जिस पर उसके साख पर बट्टा लग जाता l वह गाँव वालों को भी सजा देना चाहता था l इस तरह से गाँव वालों का जुर्म भले ही अनजाने में किया गया था पर सबुत बन गया था उसके पास l हो सकता है भविष्य में यह उसके काम आए l जितना संतुष्ट भैरव सिंह था, उतना ही दुखी बल्लभ था l जो भी था जैसा भी था रोणा उसका दोस्त था l हर मामले में वह भैरव सिंह का वफादार था l बल्लभ यह समझ चुका था रोणा से गलती हुई थी पर अपराध नहीं हुआ था l पर भैरव सिंह के डायरि में क्षमा शब्द ही नहीं था l उसकी भी नजर लैपटॉप में घट रहे मंज़र देखे जा रहा था l तभी अचानक वह देखता है कि वह भाड़ा जिस पर रोणा को होलिका बना कर बिठा दिया गया था l वह भाड़ा टुट जाता है और आग की लपटें एका एक और ऊपर उठ जाते हैं l जिसे देख कर लोग उद्दंडता से चिल्लाने लगते हैं l इससे आगे बल्लभ और देख नहीं पाता l क्यूंकि उसे कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था l उसे समझते देर नहीं लगी कि उसकी आँखे बह रही थी l आखेट गृह में नजाने कितने मौत देखे हैं पर आज वह अपना परम मित्र को जिंदा जलते देख रहा था l अपनी आँखे पोंछता है, उसका मन कर रहा था कि वह गला फाड़ कर रोये, पर वह लाचार था l अपनी लाचारी को छुपा कर आपनी आँखे बंद कर लेता है l पर बल्लभ का यह दुख और लाचारी भैरव सिंह के आँखों से छुप नहीं पाती l भैरव सिंह उसकी दुर्दशा को नजर अंदाज कर लैपटॉप में चल रहे दृश्य को गौर से देखे जा रहा था l

भैरव सिंह - अच्छा हुआ... तुम यह सब देखने के लिए... वहाँ नहीं थे... वर्ना... तुम अपनी कमजोरी को जाहिर कर देते... यह उदय ने अच्छा आइडिया दिया था... हमें यशपुर चले आने के लिए... अब तुम्हें इस रेकॉर्डिंग को... एडिट वगैरह कर... एक कंस्पैरी क्रिमिनल ऐक्ट प्रूफ़ बनाना है... क्यूँकी... रोणा ऑफिसियली गायब है... जिसे डेपुटेशन पर आए नया ऑफिसर दास ढूँढ रहा है... पहले कहानी बताओगे... लोग कैसे... रोणा को हस्पताल से गायब किए... उसके बाद... यह विडिओ... सबुत बना कर... दास तक पहुँचाने की जिम्मेदारी तुम्हारी... समझे...
बल्लभ - (जैसे नींद से जागता है) जी... जी.. राजा साहब...

आग की लपटें धीरे धीरे शांत हो रही थी l चूंकि विडिओ कॉल पर था, भैरव सिंह अपना माइक ऑन कर उदय से कैमरा घुमा कर गाँव वालों की तरफ मोड़ ने के लिए कहता है l उदय कैमरा घुमाता है l कैमरा सभी गाँव वालो पर घूमने लगता है l अचानक भैरव सिंह लैपटॉप को उठा कर घूरने लगता है l लैपटॉप को चिपका कर ऐसे देखने लगता है कि मानो वह किसीको कैमरे के जरिए ढूँढ रहा था l धीरे धीरे उसके जबड़े भिंच जाते हैं और चेहरा सख्त हो जाता है l उधर ट्रांसमिशन करते हुए उदय देखता है कि उसका कॉल कट चुका था l

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रुप और विश्व का चुंबन टूटता है l दोनों ऐसे हांफने लगते हैं जैसे मानों कोई मैराथन दौड़ कर आए थे l दोनों अपने अपने सिर एक दुसरे पर टिका कर गहरे गहरे साँस लेने लगते हैं l जब साँसे दुरुस्त होने लगती है तब विश्व अचानक रुप को छोड़ कर थोड़ी दुर जाकर रुप की ओर देखने लगता है l रुप उसे सवालिया नजर से देखती है l

विश्व - (साँसों को संभालते हुए) आपसे वादा किया था... बेशरम हो सकता था... पर बेकाबू... बे लगाम नहीं हो सकता... (रूप कि और पीठ घुमा लेता है)
रुप - (पीछे से आकर पकड़ लेती है और विश्व के सीने पर हाथ फेरने लगती है)
विश्व - राज कुमारी जी...
रुप - (मस्ती के मुड़ में आ चुकी थी) जी कहिये मेरे भोले अनाम जी...
विश्व - वह आपको... मतलब कैसा... (चुप हो जाता है)
रुप - क्या हुआ... चुप क्यों हो गए...
विश्व - वह... मुझसे... कोई गलती तो नहीं हो गई...
रुप - (विश्व को अपने तरफ झटके के साथ मोड़ कर) ओये.. मौसमी बेशरम... चूमा लेने और देने के बाद... शर्म नहीं आई... अब शर्म नहीं आ रही... ऐसे शर्माते हुए...
विश्व - जी आ रही है... मतलब नहीं... आह.. (खीज जाता है)

रुप उसकी हालत देख कर खिलखिला कर हँसने लगती है l फिर विश्व के पैरों पर अपने पैर रख कर पैरों की उंगली पर खुदको उठा कर विश्व के बराबर आ जाती है l विश्व के हाथों को अपने कमर पर रख कर विश्व के चेहरे को अपने हाथों में लेती है और वह विश्व के होठों पर टुट पड़ती है l विश्व उसके चुंबन से खुद को छुड़ाने की कोशिश करता है पर फिर वह भी रुप के चुंबन की प्रतिक्रिया में रुप की गहरी चुंबन लेने लगता है l फिर कुछ समय बाद इस बार रुप विश्व को अलग कर देती है l चुंबन टूटते ही विश्व रुप की ओर हैरानी भरे निगाह से देखने लगता है l

रुप - तो मिस्टर बेशरम... बेकाबू क्यूँ होने लगे... ह्म्म्म्म.. बेकाबू होने लगे...
विश्व - कहाँ... कैसे...
रुप - (विश्व की पेंट पर बने उभार की ओर इशारा करती है) यह... यह रहा... तुम्हारा बे - लगाम...
विश्व - मैं कहाँ बे लगाम हुआ था... वह तो आपने मुझे...
रुप - हाँ हाँ... अब तो दोष मुझे ही दोगे... क्यों... छी.. कितने अश्लील हो तुम...
विश्व - कमाल है... आप जिस तरह मुझ पर टुट पड़ी... मुझे लगा आप कहोगे... वाव.. अनाम तुम कितने नैचुरल हो...
रुप - यु...

कह कर रुप विश्व की ओर कुद कर उछल जाती है l विश्व उसे पकड़ लेता है l रुप अपने दोनों पैरों को विश्व के कमर के इर्द-गिर्द कस कर बाँध लेती है और विश्व के चेहरे को अपने हाथों में लेकर विश्व के होंठ पर टुट पड़ती है l विश्व भी इस बार रुप का बड़े जोशीले अंदाज में साथ देता है कि तभी विश्व की मोबाइल बज उठता है l

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भीमा गाड़ी को भगा रहा था l रात गहरी भले ही हो गई थी पर आसमान में चाँद आज चमक नहीं दहक रहा था l भैरव सिंह पंथ निवास में बल्लभ को छोड़ कर भीमा को साथ लेकर महल की तरफ ले जाने के लिए कह कर निकला था l भीमा को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था l अचानक भैरव सिंह को क्या हो गया l वैसे भी भैरव सिंह, क्षेत्रपाल - महल में कम, रंग महल में ज्यादातर रात बिताता था l कभी भी रात को इस तरह क्षेत्रपाल महल गया नहीं था l जब उससे रहा नहीं गया तो भैरव सिंह से पूछता है

भीमा - हुकुम... आप राजमहल ही जा रहे हैं ना..
भैरव सिंह - हाँ...

भीमा और सवाल नहीं करता l चुप चाप गाड़ी चलाता है l भैरव सिंह इस बार भीमा से पूछता है l

भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी.. जी... हुकुम...
भैरव सिंह - एक बात याद रखना... हम हार या जीत को बाद में तरजीह देते हैं... सब से पहले... हम अपनी अहं को तरजीह देते हैं... क्यूंकि... अगर अहं रह गया... तो जीत भी आएगी...
भीमा - जी... हुकुम...
भैरव सिंह - रोणा बेशक वफादार था... पर अनजाने ही सही... हमारे अहं की रास्ता काटने की गलती कर बैठा... इसलिए... उसका अंजाम देखा तुने...
भीमा - जी... जी हुकुम..
भैरव सिंह - अब मुझे तु बता... उस हराम के पिल्लै... विश्वा को... कौन मार सकता है...
भीमा - (इस बार चुप रहता है)
भैरव सिंह - जिसे हमने एक बार अपने पैरों के धुल के बराबर रखा हो... उसे हम अपने हाथों से सजा नहीं दे सकते... इसलिए... रोणा को जिम्मेदारी सौंपी थी... पर उससे ना हो पाया... अब तु बता... तुझसे या तेरे पट्ठों से होगा या नहीं... अगर नहीं होगा... तो हमें... बाहर से आदमी लाकर रखने होंगे... और तुम लोगों के बारे में सोचना होगा...

भीमा गाड़ी में ब्रेक लगाता है l क्षेत्रपाल महल के सीढियों के सामने गाड़ी रुक जाती है l भीमा गाड़ी से उतर कर भागते हुए आता है और गाड़ी का दरवाजा खोलता है l भैरव सिंह चारों तरफ नजरें घुमा कर देखता है l महल के आसपास उसे इक्का-दुक्का पहरेदार नजर आते हैं l वह समझ जाता है कि होलिका दहन में लोगों के बीच रह कर होलिका को जलाने के लिए गाँव के लोगों को उकसाने के लिए सब चले गए हैं l दो पहरेदार भागते हुए उसके पास आकर सलामी ठोक कर खड़े हो जाते हैं l

भैरव सिंह - कोई खबर...
पहरेदार - सब ठीक है राजा साहब...

भैरव सिंह कोई और सवाल नहीं करता l सीधे सीढ़ियां चढ़ने लगता है l भीमा उसके पीछे पीछे जाने लगता है तो भैरव सिंह हाथ से इशारा कर उसे वही ठहरने के लिए कह कर आगे बढ़ जाता है l अंदर सारे दासियां दीवारों से सट कर सोये हुए थे l पर जैसे ही गाड़ी रुकी थी l सभी जाग कर दीवारों के ओट में सिर झुका कर खड़े हो गए थे l उन सभी को नजर अंदाज कर भैरव सिंह अंतर्महल में आता है और सीधे रुप के कमरे के दरवाजे के सामने खड़ा होता है l अपने कमर पर हाथ रखकर चारों ओर नजर घुमाने लगता है l देखता है कुछ दासी दीवार से लग कर सिर झुकाए खड़ी हुई हैं l

भैरव सिंह - एकांत...

सभी दासियां वहाँ से निकल जाती हैं l भैरव सिंह दरवाजे पर दस्तक देता है l अंदर से कोई आवाज नहीं आती है l और एक बार दस्तक देता है l जब कोई शोर सुनाई नहीं देती है इस बार थोड़ी ताकत लगा कर दस्तक देता है l दरवाजे के नीचे वाली फांक से उजाला आता है l थोड़ी देर बाद दरवाज़ा खुलता है l भैरव सिंह देखता है सादी लिबास में रुप अपनी भारी आँखे मलते हुए भैरव सिंह की ओर देख रही है l अचानक चौंकती है जैसे सामने अभी भैरव सिंह को पहचान लिया l

रुप - राजा साहब... आप... इतनी रात गए...

भैरव सिंह उसे अनसुना कर कमरे में जो दो खिड़कियाँ थी उनकी रेलिंग खिंच कर देखता है फिर रुप को बिना देखे कमरे से जाने लगता है l पर जाते जाते दरवाजे पर रुक जाता है, फिर रुप की ओर मुड़ता है l

भैरव सिंह - राज कुमारी... हम जानते हैं... आप इस समय हैरान हैं... पर हम आप बस इतना जान जाइए... हमें शक नहीं यकीन है... पर हमारी यकीन को हम फ़िलहाल के लिए साबित नहीं कर सकते... पर इतना तय मान लीजिए... आप इस घर से जाएंगी... दसपल्ला राज घराने में ही जायेंगी... बाकी अगर और कोई ख्वाहिश है भी... तो भूल जाइए...

कह कर भैरव सिंह मूड कर जाने लगता है l पर उसके कदम ठिठक जाते हैं l क्यूंकि रुप ने पीछे से आवाज दी थी

रुप - राजा साहब... (भैरव सिंह मुड़ता है) हम आपकी यकीन की इज़्ज़त करते हैं... और वादा करते हैं... हम जब भी इस घर से जाएंगे... आपकी आँखों के सामने से जाएंगे... सिर उठा कर जाएंगे...

भैरव सिंह का पारा चढ़ जाता है l वह तेजी से रुप के पास आता है और जोर से अपना हाथ घुमाता है पर अपना हाथ ठीक रुप के गाल के पास रोक देता है l देखता है रुप के आँखों में जरा सा भी डर नहीं था l भैरव सिंह गुस्से में थर्राते हुए मुट्ठी कसने लगता है l रुप को भैरव सिंह की मुट्ठी कसते हुए कड़ कड़ की आवाज़ सुनाई देने लगती है l

भैरव सिंह - एक राजनीतिक मजबूरी है... वर्ना...

इतना कह कर भैरव सिंह कमरे से निकल जाता है l उसके जाते ही रुप एक गहरी साँस छोड़ती है और भागते हुए दरवाज़ा बंद कर देती है l दरवाजा बंद करने के बाद वह घुमती है पीछे विश्व खड़ा था l उसके पास भाग कर विश्व के गले लग जाती है l
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राजगड़
शाम होने को है
सूरज की रौशनी और ताप दोनों मद्धिम पड़ रहे हैं l रोज की रुटीन के अनुसार दोपहर का खाना खाने के बाद भैरव सिंह क्षेत्रपाल महल में भीतर नागेंद्र सिंह के कमरे में, उसके बेड के करीब बैठा हुआ था l कमरे में आज वह अकेला था l सुषमा या कोई नर्स नहीं थीं l नागेंद्र सिंह टेढ़े मुहँ से भैरव सिंह की ओर ताक रहा था l

भैरव सिंह - आपकी हालत मुझसे देखी नहीं जा रही है बड़े राजा... मज़बूरी है... आपको जिंदा रहना है... और मुझे जिंदा रहना है... हमें समझ में आ गया है... उस दिन आपने क्यूँ कहा था... राजकुमारी जी पर नजर रखने के लिए... हमने जिसे भेजा था... वह कमबख्त... नाकारा निकला... छोटे राजकुमार जी की बात आकर कही पर... राजकुमारी के बारे में... टोह तक ना ले पाया... (नागेंद्र सिंह की आँखे चौड़ी हो जाती हैं) हाँ... बड़े राजा... आप सही थे... राजकुमारी घर से निकली... बाहर.... (अपनी आँखे बंद कर जबड़े भिंच कर कुछ देर के लिए चुप हो जाता है) हमें संदेह है... शायद यकीन भी है... पर नाम नहीं बता सकते... क्यूँकी... हम साबित नहीं कर सकते... अगर झूठे साबित हो गए... तो अपने बच्चों के आगे इज़्ज़त गवा बैठेंगे... राजकुमारी को सजा देने का मन कर रहा है... पर राजनीतिक मज़बूरी के चलते... हम उस सच से फिलहाल किनारा किए हुए हैं... (अपनी जगह से उठता है,नागेंद्र की ओर पीठ कर खड़ा होता है) क्यूंकि... अगर यह राज खुला... तो जिन लोगों के भगवान बने फिर रहे हैं... उनके गप्पी में उपहास के किरदार बन जाएंगे... इसलिए अब राजकुमारी घर में रहकर पढ़ाई करेंगी... जैसे बचपन में किया करतीं थीं... सिर्फ इम्तिहान देने के लिए बाहर जाएंगी... (नागेंद्र के हलक से हुम्म्म्म... ह्म्म्म्म की आवाज आती है, भैरव सिंह मुड़ कर देखता है, नागेंद्र इशारों से कुछ कहने की कोशिश कर रहा है) हाँ... समझ रहे हैं... अगर हम पहले की तरह... अपनी राज पाठ सिर्फ राजगड़ और इसके आसपास सीमित रखते... तो बात इतनी मुश्किल नहीं होती... पर जब दायरा जितना फैलता गया... तो बीच में खाली पन उतना ही बनता गया... अब अपने रुतबे और गुरूर के दम पर... उस खाली पन को ढकने की... छुपाने की कोशिश किए जा रहे हैं... जाहिर है... दायरा बढ़ा... तो महल की खिड़की को भी ऊँचा करना पड़ रहा है... क्यूँकी दुनिया की आदत है... हर ऊंचे घरों की खिड़की से अंदर झाँकना... पर बड़े राजा जी... निश्चिंत रहिए... हम सब ठीक कर देंगे... जिसकी भी जुर्रत सामने खुल रहा है... उसे हम अंजाम तक पहुँचा रहे हैं... आज रोणा का होली जलेगी.. वह भी गाँव के लोगों के हाथों... क्यूँकी उसने अपनी औकात भूल कर... क्षेत्रपाल महल की खिड़की खोलने की कोशिश की... सजा तो मिलेगी... यह सजा... हमें अंदर से... आश्वासन दे रहा है... के एक दिन हम उस हरामजादे विश्व प्रताप को... इससे भी भयंकर सजा देंगे... इसीलिए तो... हम मगरमच्छ और लकड़बग्घे की भूख को... मिटने नहीं दे रहे हैं... आप निश्चित रहें... हम आपको आखेट गृह में... वह दृश्य ज़रूर दिखाएंगे...

तभी भैरव सिंह को बाहर से आहत सुनाई देती है l वह दरवाजे की ओर मुड़ता है l दरवाजे पर दस्तक सुनाई देती है l

भैरव सिंह - कौन है...
भीमा - हुकुम... मैं...
भैरव सिंह - क्या हुआ...
भीमा - वह सारे गाँव वाले आपसे पूछने... महल के परिसर में आए हैं...
भैरव सिंह - पूछने... हमसे...
भीमा - जी हुकुम...

भैरव सिंह कमरे से निकालता है और दिवाने आम कमरे में पहुँचता है, जहाँ पर बल्लभ खड़ा हुआ था l कमरे के दरवाजे पर उदय खड़ा हुआ था l

भैरव सिंह - यह गाँव वाले... बेवजह यहाँ क्यूँ आए हैं प्रधान...
बल्लभ - मैं नहीं जानता हूँ... राजा साहब... मैं तो यहाँ आपकी इंतजार में हूँ...
भैरव सिंह - भीमा क्या वज़ह है... तुम्हें कुछ पता है...
उदय - गुस्ताखी माफ़ राजा साहब...
भैरव सिंह - क्या बात है...
उदय - सत्तू या भूरा... जानते होंगे... क्यूँकी यही दोनों... होलिका दहन की मचान सजाने गए थे...
भैरव सिंह - हूँ... कहाँ है वह दोनों...
उदय - जी बाहर हैं... बुला लाऊँ...
भैरव सिंह - हाँ... बुला लाओ...

उदय तुरंत पलट कर बाहर जाता है और थोड़ी देर के बाद अपने साथ सत्तू और भूरा को साथ लेकर आता है l वे दोनों अपने हाथ जोड़ कर भैरव सिंह के सामने खड़े हो जाते हैं l

भैरव सिंह - यह बाहर कैसा शोर है...
सत्तू - र्र्राजा सा.. सहाब... (जुबान लड़खड़ा जाता है)
भैरव सिंह - क्या बात है... क्या हो गया है...
भूरा - राजा साहब... जैसा आपने कहा... हमने बिलकुल वैसा ही किया... हमने एक स्टूल पर... दरोगा को... आलथी पालथी की तरह बिठा कर... मुखौटा लगा कर... साड़ी पहना कर... होलिका की तरह सजा कर... बांस का दस फुट ऊँचा भाड़ा बना कर बिठा दिया...
सत्तू - यह देख कर लोगों ने... हमसे वज़ह पूछी... तो हमने कहा कि... बच्चों का उत्साह देख कर... राजा साहब ने... गाँव वालों को... होलिका दहन के साथ साथ.. फगु खेलने के लिए भी कहा है... इसलिए गाँव वालों के सहूलियत के लिए... हमने होलिका का पुतला बना कर गाँव के बाहर भाड़े पर सजा दिया है...
भूरा - अब होलिका दहन के लिए... गाँव वाले.. अपने अपने हिस्से के लकड़ी... गोबर के कंडे... उपले आदि लाकर जमा करें... और होलिका दहन करें...

बस इतना कह कर चुप हो जाते हैं दोनों l उनको चुप देख कर भैरव सिंह पूछता है l

- आधी बात बता कर... आधा गटक क्यों गए...
सत्तू - हमारे कहे पर... गाँव वालों को विश्वास नहीं हुआ...
भूरा - इसलिए... इसलिए... (फिर से दोनों चुप हो जाते हैं...
उदय - ओ.. इसका मतलब यह हुआ... गाँव वाले... इनकी कहीं बातों पर... यकीन करने आए हैं...

भैरव सिंह पैनी दृष्टि से उदय की ओर देखने लगता है l उदय अपना सिर झुका लेता है l फिर भैरव सिंह बल्लभ की ओर देखता है l

बल्लभ - यह स्वाभाविक है राजा साहब... सात दशकों से... सिर्फ यही गाँव नहीं... आसपास के तकरीबन तीस गाँव में... त्योहार या मातम नहीं मनाया गया है... कई पीढ़ियां गुजर गई... आज जब कोई आपके नाम पर कहे... त्योहार मनाने के लिए... तब... इस बात की पुष्टि करने... जाहिर है... महल ही आयेंगे...
भैरव सिंह - (जबड़े भिंच जाती है, शब्दों को चबाते हुए कहता है) इनकी इतनी हिम्मत... राजा भैरव सिंह से पुष्टि करने आए हैं...(गुर्राते हुए) भीमा बंदूक ला.. (भीमा पलट कर जाने को होता है कि बल्लभ उसे रोक देता है)
बल्लभ - एक मिनट भीमा... (भैरव सिंह से) गुस्ताख़ी माफ राजा साहब... गाँव वालों में कभी इतनी हिम्मत हो ही नहीं सकती के... आपसे बात की पुष्टि करें... जैसा कि मैंने कहा... सात दशकों से... जो नहीं हुआ... आज अचानक मनाएंगे... तो उन्हें... यह सत्तू या भूरा की साजिश ही लगेगी... बेहतर होगा... उनके मन में... कोई संशय पैदा होने ना दिया जाए... दरोगा रोणा को... आखेट गृह ले चलते हैं... कोई भी जान नहीं पाएगा...
उदय - गुस्ताखी माफ राजा साहब... (भैरव सिंह उदय की ओर देखता है) राजा साहब... एक बार तीर कमान से निकल जाए... तो उसे उसका लक्ष भेदने की प्रतीक्षा करनी चाहिए...
भैरव सिंह - ऐसी... तगड़ी और भारी भरकम बातेँ... वकील के मुहँ से अच्छे लगते हैं... तुम अपनी बात साफ करो...
उदय - आपका गुस्सा जायज है राजा साहब... पर आपने ही खबर भिजवाई... लोगों को होली मनाने के लिए... जैसा कि वकील ने कहा.... कि सत्तर सालों में जो नहीं हुआ... उसे करने के लिए.. लोग डरेंगे जरूर... पर आपसे गद्दारी करने वाले की सजा आपने मुकर्रर की है... सजायाफ्ता को मिलनी ही चाहिए... यह बात आपके लोगों को भी तो पता चलनी चाहिए... गाँव वाले... आपसे पुष्टि चाहते हैं... इससे यह होगा... उनके हाथों एक क्राइम होने जा रहा है... धीरे धीरे... उनके संज्ञान में आएगा... तब यह लोग फिर कभी हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे... आगे त्योहार मनाने की...
भैरव सिंह - तुम्हें क्या बनाना चाहता था... रोणा...
उदय - जी हेल्पर कांस्टेबल...
भैरव सिंह - बैल बुद्धि था वह... तुम अगर हमारे वफादार रहे... तो हम उन्हें दरोगा बना देंगे...
उदय - (खुशी के आँसू आँखों में लिए, भैरव सिंह के आगे घुटनों पर आ जाता है) आपकी बड़ी कृपा होगी राजा साहब...

यह सब बल्लभ देख रहा था l वह गुस्से में अपना चेहरा फ़ेर लेता है l उसकी यह प्रतिक्रिया भैरव सिंह देख लेता है l

भैरव सिंह - प्रधान...
बल्लभ - जी.. जी राजा साहब...
भैरव सिंह - हम ना सिर्फ... ग़द्दार दरोगा को सजा देना चाहते थे... बल्कि... इन गांवों वालों को भी सजा देना चाहते थे... तुम अपने दोस्त के लिए बाज नहीं आए... खैर... तुम्हारी इस बेवकूफ़ी को हम नजर अंदाज करते हैं... गाँव वालों को हमसे... त्योहार मनाने की छूट चाहिए... हम देंगे...
उदय - राजा साहब... एक और बात... इजाजत हो तो कहूँ...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...
उदय - राजा साहब... आपके हामी के बाद... हो सकता है... लोग आपको... होलिका दहन पर... उपस्थित रहने के लिए कहें... तो आप उन्हें मना कर दीजिए... (भैरव सिंह अपना भौहों को सिकुड़ कर देखता है) क्राइम गाँव वाले करेंगे... वे लोग आगे चलकर क्रिमिनल होंगे... पर अगर आप वहाँ उपस्थित हुए... तो आप गवाह बन जाएंगे... और उनके लिए सबूत भी... आप बस आज रात... राजगड़ से दूर हो जाइए.... आगे... वकील बाबु हैं... वह गाँव वालों के साथ रह कर... उनसे होने वाली गुनाह की सबूत बनाएंगे...
भैरव सिंह - बहुत खूब... आज फिर से तुमने मुझे इंप्रेस किया है... भीमा..
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - चलो.. हमारी प्रजा हमसे मिलने आयी है...


इतना सुनते ही भीमा सत्तू और भूरा के साथ बाहर की ओर चलने लगता है l सभी पहलवान रास्ते के दोनों तरफ खड़े हो जाते हैं l भैरव सिंह उनके बीच में से जाते हुए महल के बरामदे में सटी हुई मचान पर पहुँचता है l जैसे ही मचान पर गाँव वाले भैरव सिंह को देखते हैं सब के सब अपना सिर झुका कर चुप हो जाते हैं l भैरव सिंह अपने कमर पर हाथ रखकर गाँव वालों पर एक नजर डालता है l सभी के झुके हुए सिर देख कर उसके होठों पर एक संतुष्टि की मुस्कान उभर कर गायब हो जाती है l बल्लभ भी पीछे पीछे आया हुआ था l वह कुछ कहने को होता है कि भैरव सिंह उसे रोक कर भीमा की ओर देख कर इशारा कर लोगों से पूछने के लिए कहता है l तो भीमा गाँव वालों से कहता है

भीमा - गाँव वालों... तुम लोग अब राजा साहब के दरबार में हो... राजा साहब अब यह जानना चाहते हैं... उनके दरबार में क्यूँ आए हो...

लोगों में चुप्पी छाई हुई थी l किसीको भी हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि राजा भैरव सिंह से कुछ भी पूछे l क्यूंकि ऐसा पहली बार हुआ था कि सारे गाँव वाले मिलकर राजा के महल में राजा के सामने खड़े हो कर कुछ पूछे l भीमा भैरव सिंह की ओर देखता है, भैरव सिंह अपना सिर हिला कर फिर से पूछने के लिए इशारा करता है l

भीमा - हरिया... क्या हुआ... क्यों आए हो... रविन्द्र... क्या काम पड़ गया है तुम लोगों को... राजा साहब से...
हरिया - हम... व.. व... वह...

अचानक से चुप हो जाता है l सभी लोग महल के बाहर खड़े हैं पर फिर भी सन्नाटा इस कदर पसरा हुआ था मानों दूर दूर तक कोई नहीं हो l मजबूर होकर भैरव सिंह पूछता है l

भैरव सिंह - क्या हुआ है... क्या जरुरत आ गई... तुम लोग यहाँ आ गए... (जब कोई जवाब नहीं देता तब सत्तू लोगों के पास चला जाता है)
सत्तू - राजा साहब माफी... गाँव वालों के तरफ से... मैं कुछ कहूँ...
भैरव सिंह - तुम...
सत्तू - क्यूँ गाँव वालों... मैं पूछुं...
सारे गाँव वाले - हाँ हाँ...
सत्तू - राजा साहब... मैं पूछूं...
भैरव सिंह - ठीक है पूछो...
सत्तू - राजा साहब... कई पीढ़ियां चली गई... किसीने भी ना त्योहार मनाया... ना किसीको मनाते देखा... ऐसे में... आज जब इन्हें खबर लगी के होली मनाने के लिए... इस बार क्षेत्रपाल महल से इजाजत मिली है... तो इन्हें विश्वास नहीं हुआ... सच और झूठ जानने यह लोग आए हैं... (गाँव वालों से) क्यूँ गाँव वालों... सही कहा ना...

सभी गाँव वाले हाँ कहते हैं l इसके बाद सत्तू चुप हो जाता है l भैरव सिंह भीमा की ओर इशारे में चुप रहने के लिए कहता है और भीमा के बगल में खड़े बल्लभ को इशारा कर लोगों से होली के बारे में कहने के लिए कहता है l

बल्लभ - गाँव वालों... तुम लोग जानते हो... राजा तुम लोगों के लिए कितना कुछ सोच रहे हैं.. कितना कुछ कर रहे हैं... आज सुबह जब मालुम हुआ... तुम्हारे बच्चों ने... कृष्न विमान नगर परिक्रमा कराए हैं... तो राजा साहब कहा... त्योहार अधूरा ना रह जाए... इसीलिये अपने लोगों के जरिए... तुम लोगों तक खबर पहुंचाई है... ताकि तुम लोग होली... परंपरा के अनुसार मनाओ... (बल्लभ रुक जाता है)
सत्तू - बोलो... राजा भैरव सिंह की...
सारे गाँव वाले - जय...
हरिया - राजा साहब... यह हमारा परम भाग्य है... के आपके शासन में हम... यह दिन देख रहे हैं... राजा साहब... हमारी एक छोटी सी प्रार्थना है... (भैरव सिंह समझ चुका था हरिया क्या प्रार्थना करने वाला है इसलिये उसे कहने के लिए इशारा करता है) राजा साहब... ऐसा पहली बार हो रहा है... वह भी आपके आशीर्वाद से... अगर इस मौके पर... आप हमारे साथ.. हमारे पास रहते... तो बड़ी कृपा होगी...
भीमा - ऐ हरिया... अपनी औकात में रह... थामने के लिए हाथ दिया तो कंधे पर चढ़ कर कान में मूतने की बात कर रहा है...
हरिया - (डर के मारे) ना ना.. महाराज ना... ऐसी गुस्ताखी... सपने में भी नहीं कर सकते हम... वह तो... (आगे कुछ कह नहीं पाता, अपना सिर झुका लेता है l भैरव सिंह बल्लभ को आगे की बात कहने के लिए इशारा करता है)
बल्लभ - देखो... तुम लोग आज... त्योहार मनाने जा रहे हो... यह तुम लोगों के लिए बहुत बड़ी बात है... राजा साहब... तुम लोगों की इच्छा का मान रखते... पर... आज तहसीलदार के साथ राजा साहब की... ज़रूरी मीटिंग है... इसलिए... राजा साहब आज राजगड़ में नहीं रहेंगे...
- पर आप लोग मन खराब ना करें... (उदय आकर पहुँच कर कहने लगता है) राजा साहब ने... वकील बाबु को कह दिया है... आप लोगों के बीच खुद वक़ील बाबु रहेंगे... आपके साथ त्योहार मनाएंगे...

लोग यह सुन कर खुशी के मारे ताली बजाने लगते हैं l बल्लभ का चेहरा उतर जाता है l बड़े दुखी मन से भैरव सिंह की ओर देखता है l भैरव सिंह इशारे से उसे अपनी सहमती जताता है l बल्लभ अपनी दांत पिसते हुए उदय की ओर देखने लगता है l उदय भी हँसते हुए लोगों के साथ ताली बजाते हुए बल्लभ की ओर देखने लगता है l बल्लभ को उदय के चेहरे पर छाई हुई भाव समझ में नहीं आता l दुसरे तरफ गाँव के सारे लोग भैरव सिंह के नाम की जयकारा लगाते हुए उल्टे पाँव महल की परिसर से निकलने लगते हैं l लोगों को उल्टे पाँव पीछे लौटते हुए देख भैरव सिंह के चेहरे पर गुरुर से भरी मुस्कान छा जाती है l

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कटक चेट्टी मैशन
एक बड़ा सा कमरा जहां चार लोग हैं l एक ओर ओंकार बैठा हुआ है और दुसरी तरफ केके और रॉय बैठे हुए हैं l उनके बीच एक बड़ी सी टी पोए है जिस पर तीन खाली ग्लास तीन चार प्लेट में चखना रखा हुआ है l चौथा बंदा उन खाली ग्लास में शराब डाल कर पैग बना रहा है l पैग बन जाने के बाद वह पहले ओंकार को देता है फिर केके को देता है और तीसरा उठा कर बगल में बैठे रॉय को देता है और तीनों से अलग सोफ़े पर बैठ जाता है l वे तीनों चियर्स करते हैं और सीप लेने लगते हैं l

केके - चेट्टी साहब... आपको नहीं लगता... हम थोड़े लेट हो रहे हैं...
चेट्टी - नहीं केके... कोई देरी नहीं हो रही है... इलेक्शन को और भी टाइम है... उससे पहले... क्षेत्रपाल वर्तमान के भूगोल से इतिहास हो जाएगा... तुम बस धैर्य रखो...
केके - (चेट्टी से ) चेट्टी बाबु... आपका वह बंदा कहां तक पहुँचा...
चेट्टी - जहां उसे पहुँचना चाहिए था...
रॉय - केके साहब... आप उतावले बहुत हो रहे हो...
चेट्टी - कोई बात नहीं... इनकी तसल्ली के लिए कह देता हूँ... जब से वीर उस लड़की से शादी कर अलग रहने लगा है... तब से मेयर क्षेत्रपाल पुरी तरह से टुट गया है... दिन रात शराब के नशे में डूबा रहता है... उसके घाव में नमक मिर्च उस दिन रगड़ गया... जिस दिन... एडवोकेट सेनापति की किडनैपिंग फैल हुआ...
केके - हाँ... पर हमें क्या फायदा हुआ... कोई तीसरा आकर उन्हें बचा ले गया...
चेट्टी - देखो केके... बड़े ऐहतियात से.... मैंने उस बंदे को... पिनाक के पास रखवाया है... पिनाक ना तो उसके बारे में जानता है... ना हमारे बारे में... हमारा आदमी... धीरे धीरे... पिनाक की दिमाग को अपने कब्जे में कर चुका है... तुम बस मजे देखते जाओ...
केके - (एक ही साँस में ग्लास खत्म कर देता है) एक बार... शॉक के चलते... दिल का दौरा पड़ चुका है... दुसरा दौरा पड़ने से पहले... मैं क्षेत्रपाल परिवार की बर्बादी देखना चाहता हूँ...
रॉय - आप खामख्वाह छटपटा रहे हैं... अब तो छटपटाने की बारी क्षेत्रपालों की है...
केके - दुनिया चाहे कुछ भी कहे रॉय... मगर मैं मानता हूँ... मेरे बेटे का कातिल वही... वीर सिंह है... जो जिंदगी मेरे बेटे ने जी नहीं... उसे वीर सिंह को जीता देख कर... मेरे सीने में सांप लौट रहे हैं...
चेट्टी - शांत केके शांत... मेरा बंदा पिनाक के पास रह कर वही प्लानिंग कर रहा है... तुम मुझे देखो... मैं कितनी शिद्दत से... क्षेत्रपाल के बर्बादी की इंतजार में दिन गिने जा रहा हूँ... और मुझे मालुम है... क्षेत्रपाल बर्बाद होने वाले हैं...
केके - आपने आपके बेटे के हत्यारे को छोड़ दिया... मुझसे वह नहीं हो सकता...
चेट्टी - (चेहरा अचानक कठोर हो जाता है) तुमने यह कैसे सोच लिया... सरकारी रिपोर्ट चाहे कुछ भी कहे... मुझे बस इतना मालुम है... मेरे बेटे का कातिल विश्व प्रताप है...

इतना कह कर चेट्टी चुप हो जाता है l अपना पैग खाली करने के बाद चौथे बंदे से पैग बनाने के लिए इशारा करता है l चेट्टी के चेहरे पर आए बदलाव को देख कर केके और रॉय थोड़ा दब जाते हैं l पैग बन जाने के बाद चेट्टी पैग उठा कर कहता है l

चेट्टी - फ़िलहाल विश्व और मेरा दुश्मन एक ही है... विश्व अपने काम में तेजी से आगे बढ़ रहा है... तुम जानते हो... और मानते भी होगे... क्षेत्रपाल का खात्मा विश्व ही कर सकता है... उसके पीछे उनकी निजी वज़ह है... पर विश्व जो नहीं जानता... वह यह कि... उसका काम खत्म होने के बाद... मैं उसे मरवा दूँगा...
केके - किससे... रंगा से... विश्व का नाम सुनते ही... जिसका पिछवाड़े में से झाग निकलने लगती है...
चेट्टी - हा हा... हा हा हा हा... अरे यार चेट्टी... शेर को मारने के लिए... शिकारी चाहिए... कुत्तों की बस की बात होती... तो विश्व कब का अपने भगवान का प्यारा हो चुका होता... यह वह शतरंज की बिसात है... जहां के तीसरे खिलाड़ी हम हैं...
रॉय - और हमारी चालों से... दोनों खिलाड़ी मारे जाएंगे... चियर्स...

केके खुश होता है और इस बार अपना पैग उठा कर खत्म कर देता है l चखने की प्लेट से चिकन टंगड़ी उठा कर खाते हुए रॉय से पूछता है l

केके - अच्छा रॉय... अब वीर की क्या खबर है...
रॉय - केके साहब... वीर बस अपनी जिंदगी एंजॉय कर रहा है... हम फ़िलहाल गैलरी में बैठ कर देख रहे हैं...
केके - क्या प्लान बनाया था... विश्व और क्षेत्रपाल के बीच की दुश्मनी में... पेट्रोल डालने के लिए... पर..
चेट्टी - इसलिए तो कह रहा हूँ... थोड़ा धीरज धरो... अब जोडार के सिक्योरिटी... सेनापति दंपति की रखवाली चुस्ती के साथ कर रही है... और वीर की रखवाली... विक्रम की ESS के... स्पेशल कमांडोज कर रहे हैं... कुछ भी किया... तो यह हरकत हमें पर्दे के पीछे से खिंच कर बाहर ले आएगी... मौका आयेंगी... हमें बस भुनाना है...
केके - ठीक कहा आपने...

अपना ग्लास रख कर, चौथे बंदे से पैग बनाने के लिए कहता है, जैसे ही वह बंदा पैग बनाने के लिए बोतल उठाता है तो रॉय उसे रोक लेता है l

रॉय - अब बस भी कीजिए केके सर... कितना और जिगर जलायेंगे... एक बार दौरा पड़ चुका है... कम से कम... क्षेत्रपाल की बर्बादी तक तो जिगर संभालीए...
चेट्टी - हाँ केके... रॉय ठीक कह रहा है...
केके - जिसका जिगर का टुकड़ा ही नहीं हो... उसका जिगर क्या जलायेगा... यह दो कौड़ी का शराब...
केके - प्लीज...
चेट्टी - रॉय... एक काम करो... केके को... ले जाओ और उसके घर पहुँचा दो...
रॉय - ठीक है...

रॉय केके को अपने कंधे से सहारा देकर उसे बाहर ले जाता है l वह चौथा बंदा भी रॉय का साथ देता है l दोनों केके को गाड़ी में बिठा कर विदा करते हैं l केके की गाड़ी जाने के बाद रॉय भी अपना गाड़ी लेकर केके के गाड़ी के पीछे पीछे उस मैंशन से बाहर निकल जाता है l सबके चले जाने के बाद वह चौथा बंदा कमरे में आता है जहां चेट्टी टी पोए के ऊपर दोनों पैर फैला कर शराब की चुस्की ले रहा था, उस बंदे को कमरे में देख कर

चेट्टी - चले गए सब...
बंदा - हाँ...
चेट्टी - ह्म्म्म्म आओ बैठो... (शराब की ग्लास को दिखाते हुए) इसे मिलकर खत्म करते हैं...
बंदा - नहीं... मुझे नहीं करना...
चेट्टी - क्यूँ... नाराज हो... अरे नाराजगी छोड़... बहुत जल्द अपना राज वापस लौटने वाले हैं...
बंदा - कब तक... मैं तो जैसे फुटबॉल हो गया हूँ... इधर से लतीया जाता हूँ... और उधर से...
चेट्टी - ऐ... क्या कहना चाहता है तु... मैं तुझे लतीया रहा हूँ...
बंदा - वह... मुहँ से बरबस निकल गया... मेरे कहने का वह मतलब नहीं था... मेरा मतलब है... मुझे कब दुनिया के सामने आप लाओगे... कब मैं अपनी असली पहचान के साथ... सबके सामने आऊँगा...
चेट्टी - तु भी ना... केके की तरह बड़ा बेसब्रा है... मैंने अपना सब कुछ तेरे नाम कर तो दिया है... फिर... ऐस तो कर रहा है ना... ठंड रख ठंड... तु बस अपने काम में लगा रह... इस बार चोट कुछ ऐसा हो... के क्षेत्रपाल पूरा का पूरा... तितर-बितर हो जाएगा... उसके बाद मैं तुझे डंके की चोट पर... दुनिया के सामने लाऊँगा...
बंदा - मैं तो कब से लगा हुआ हूँ... अब तक... सारे वार खाली गए हैं...
चेट्टी - कहाँ खाली गए हैं... देखा नहीं... क्षेत्रपाल टुट रहे हैं... बिखर रहे हैं... हमें मालूम है... कहाँ कब चोट मारना है... उन्हें मालुम नहीं है... चोट कौन मार रहा है... (चेहरा बहुत सख्त हो जाता है) क्षेत्रपाल... मुझे वैशाखी बना कर... भुवनेश्वर आए... राजनीति में पाँव जमाए... जब मतलब निकल गया... हरामियो ने... मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया... मेरा बेटा यश को बचा सकते थे... साले हरामी... उसे मरने के लिए छोड़ दिया...

कहते कहते चेट्टी चुप हो जाता है, उसके गाल फडफडाने लगते हैं l दांत पीसने लगता है l उसकी यह हालत देख कर वह बंदा उसके पास बैठता है और उसके हाथ पकड़ कर कहता है l

बंदा - मैं हूँ ना... आपका बदला लेने के लिए...
चेट्टी - (उसके कंधे पर हाथ रखकर) तु मुझे मिला... इसलिए तो क्षेत्रपाल से बदला लेने की सोचा... वर्ना मैं तो खुद को लावारिस समझ कर... मरने की सोच रहा था... (चेट्टी अपने पैर नीचे कर सोफ़े से उठ खड़ा होता है) आज मैं खुश हूँ... यश की मौत लावारिस नहीं है... ना ही वह विरासत जो मैंने कमाई है... वह लावारिस है... तु उसका वारिस है... लावारिस तो अब क्षेत्रपाल होगा... हाँ लावारिस तो क्षेत्रपाल होगा...

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अनु कमरे में चहल कदम कर रही है, दीवार पर लगी घड़ी की ओर देख रही थी l थोड़ी देर बाद कॉलिंग बेल की आवाज़ आती है l कॉलिंग बेल की आवाज़ सुनते ही अनु के चेहरे पर पर रौनक आ जाती है l भाग कर जाती है दरवाजा खोलती है l सामने वीर काले, नीले, पीले, लाल आदि रंगों में पुता हुआ खड़ा था l उसे इस हालत में देख कर पहले अनु चौंकती है फिर जोर जोर से हँसने लगती है l

अनु - (हँसते हुए) यह... क्या हाल बना रखा है आपने... होली तो कल है... आज खेल कर आ गए क्या...
वीर - हाँ हाँ हँस लो... कल होली की छुट्टी है... इसलिए सारे स्टाफ ने... मुझे आज रंगों में पुत दिया...
अनु - ठीक है... जाइए आप नहा धो लीजिए...
वीर - (अंदर आ कर) अरे सिर्फ रंग ही तो है... वह भी होली वाली... थोड़ा रहने तो दो... (सोफ़े पर बैठ जाता है)
अनु - अरे... सोफ़े पर रंग लग जाएगा...
वीर - तो क्या हुआ... नए कवर ला देंगे...

अपना सिर हाँ में हिला कर अनु मुस्करा कर वीर के पास खड़ी होती है l वीर अपना हाथ अनु की ओर बढ़ाता है l अनु अपना हाथ देती है l वीर उसे अपने ऊपर खिंच लेता है l अनु घुमती हुई वीर के गोद में बैठ जाती है l वीर अनु के कंधे पर अपना चेहरा रख कर कहता है

वीर - आह... क्या जिंदगी है अनु... सुबह मुझे टिफिन कैरेज के साथ जब विदा करती है... तेरे आँखों में... बिछड़ने का दर्द को मुझे महसूस होता है... और जब वापस आता हूँ... तेरे चेहरे पर ग़ज़ब की खुशी देखता हूँ... कितना सुकून मिलता है... क्या कहूँ... (फिर अनु के कंधे पर अपने सिर को अनु के साथ झूमते हुए हिलने लगता है) अनु...
अनु - हूँ...
वीर - कुछ बोल ना...
अनु - क्या कहूँ...
वीर - कुछ भी... मुझसे बातेँ कर... पुछा कर... दुनिया भर की... कचर कचर सुन सुन कर... खीज जाता हूँ... पर जब तेरी आवाज सुनता हूँ... आह.. ऐसा लगता है... कानों में शहद घुल रही है...
अनु - हूँ...
वीर - क्या हूँ...
अनु - मतलब हाँ... मतलब हूँ...
वीर - ना... आज मेरी अनु को कुछ हो गया है...
अनु - सच मुझे कुछ नहीं हुआ है...
वीर - झूठ...
अनु - सच्ची...
वीर - ऊँ हूँ... यह मेरी अनु का स्टाइल नहीं है...
अनु - अच्छा... फिर आपके अनु का स्टाइल क्या है...
वीर - मेरी हर बात पर मुझे झूठा कहना... यह मेरी अनु का स्टाइल है...
अनु - (हँस देती है) धत...
वीर - क्या धत... (अनु के कान के पास चूम कर) बोल ना...
अनु - क्या...
वीर - झूठे...
अनु - पहले मुझे छोड़िए...
वीर - (किसी बच्चे की तरह मासूमियत के साथ पूछता है) क्यूँ... तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा...
अनु - सोफा गंदा हो गया... साथ साथ... मेरे कपड़े भी गंदे हो गए हैं... (हाथ छुड़ा कर उठ खड़ी होती है) चलिए... जाइए... आप नहा धो कर पहले साफ हो जाइए...
वीर - तुम कहना क्या चाहती हो... मैं गंदा हूँ... अरे मेरी जान... इसे गंदा होना नहीं.. रंगना कहते हैं... और यह आज से नहीं... तब से... जब से तुझे देखा था...
अनु - (समझ नहीं पाती) म.. मतलब...
वीर - अरे मेरी प्यारी अनु... मैं तो तेरे प्यार में कब से रंगा हुआ हूँ... आज तो बस रंग उभरा है... इसलिए दिख रहा है...
अनु - अच्छा... (अपने बदन पर लगे रंग दिखाते हुए) तो यह... अब क्यूँ उभरा है...
वीर - अब तक मैं तेरे रंग में रंगा हुआ था... आज मैंने तुझे रंग दिया है...
अनु - (मुहँ पर पाउट बना कर) झूठे...
वीर - ओ.. हो.. जान... अब बहुत अच्छा लगा... चलो... मिलकर साफ होते हैं...
अनु - क्या... छी...
वीर - इसमे छी वाली बात कहाँ से आ गई...
अनु - (सिर नीचे की ओर कर आँखे मूँद कर बाथरूम की ओर हाथ दिखा कर ) जाइए... पहले आप नहा धो लीजिए...

वीर किसी मासूम बच्चे की तरह मुहँ बना कर भारी पाँव से बाथरूम की ओर जाने लगता है l धीरे धीरे अनु अपना सिर उठा कर आँखे धीरे धीरे खोलती है वीर को भारी कदमों के साथ जाते देख अपनी हँसी दबा देती है l वीर बाथरूम के पास पहुँच कर पीछे मुड़ता है और आवाज देता है l

वीर - अनु...
अनु -.....
वीर - ए अनु... (मासूम सा मुहँ बना कर)
अनु - (अपनी हँसी दबा कर) क्या है...

वीर अपनी बाहें खोल देता है और मुस्कराते हुए अनु की ओर देखता है l अनु भी मुस्कुराते हुए भाग कर वीर के गले लग जाती है l वीर उसे बाहों में उठा लेता है के अनु के पैर फर्श से कुछ इंच उपर रह जाती हैं l


वीर - आख़िर मेरी बाहों में आ गई...
अनु - वादा जो लिया था आपने... जब भी बाहें खोलेंगे... मैं आपकी बाहों में समा जाऊँगी...
वीर - जानता हूँ... तु मुझसे बहुत प्यार जो करती है...

ऐसे ही बाहों में उठाए वीर अनु को बाथरूम में ले जाता है और शावर के नीचे खड़ा हो जाता है l अंदर पहुँचने के बाद

अनु - आपने... अपनी कर ली..
वीर - कहाँ... अब शुरु करना है...
अनु - अच्छा... और मुझे क्या करना होगा...
वीर - आज मैंने तुम्हें रंग दिया है... तो तुम गाना गा लेना...
अनु - क्या...
वीर - हाँ... तुम गाना..
रंगीला रे... तेरे रंग में... यूँ रंगा है... मेरा मन...
छलीआ रे... ना बुझे है... किसी जल से.. यह जलन...

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रुप आज खुद को संवार रही थी l माथे पर चमकता हुआ सफेद बिंदी लगा कर आईने में खुद को निहार रही थी l ड्रायर से लिपस्टिक निकाल कर अपनी होठों को रंगने लगती है l कभी मुहँ पर पाउट बना कर तो कभी मुस्करा कर बार बार खुद को देखने लगती है l फिर आईने के सामने से उठ कर खिड़की के पास आती है l रौशनी मद्धिम पड़ रही थी l वह अपनी वैनिटी पर्स से एक एक अठ्ठन्नी की कॉइन निकाल कर खिड़की पर लगे ग्रिल की स्क्रू एक एक कर खोलने लगती है l सारे स्क्रु खुल जाने तक अंधेरा छा चुकी थी l अब अपने बेड पर आकर चेहरे को बेड के हेड रेस्ट पर रख कर विश्व की राह देखने लगती है l कभी बाहर तो कभी घड़ी देख की ओर देखने लगती है l जैसे जैसे वक़्त गुज़रता जा रहा था वैसे वैसे रुप खीज ने लगी थी l चिढ़ कर अपना मोबाइल निकाल कर विश्व को कॉल लगाती है, पर विश्व की फोन पर उसे कॉल बिजी की ट्यून सुनाई देती है l ऐसे कुछ देर बाद जब विश्व के फोन पर रुप की कॉल लगती नहीं तो चिढ़ कर फोन को बेड पर पटक देती है l खिड़की की तरफ़ देखते हुए अपना सिर हेड रेस्ट पर रख कर विश्व की राह तकने लगती है l

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सारे गाँव वाले उस मैदान में जमा हो गये हैं l अपने हाथों में अपने अपने हिस्से के लकड़ी, गोबर के उपले आदि लेकर l जिस भाड़े पर होलिका का पुतला बैठी हुई थी l उसी पुतले के नीचे जलन की लकड़ियां जमा कर उस के ऊपर उपलों को भी सजाने लगे l कुछ लोग अपने कंधे और गले में ढोल,चांगु थाली लटकाये हुए थे, और किन्ही किन्ही के हाथों में शंख भी था l यह सारे दृश्य को उदय, बल्लभ के हाई रीजोल्युशन मोबाइल के जरिए शूट कर रहा था और मोबाइल नेटवर्क के जरिए ट्रांसमिशन कर रहा था l यशपुर में अपने क्षेत्रपाल पंथ निवास में बल्लभ के ही लैपटॉप पर भैरव सिंह लाईव देख रहा था उसके बगल में बल्लभ एक अलग कुर्सी पर बैठा हुआ था l थोड़ी दुर पर भीमा खड़ा हुआ था l भैरव सिंह देखता है कि हाथ में एक बड़ा से थैला भर कर सत्तू कुछ दारु की बोतलें निकालता है और लोगों के बीच पहुँच कर उन सबमें बाँटना शुरु करता है l उसे यूँ लोगों में दारु बांटता देख कर भैरव सिंह लैपटॉप का वॉयस ऑफ कर सवालिया नजरों से भीमा की ओर देखता है l

भीमा - वह... हुकुम... उदय ने बोला था...
बल्लभ - पर क्यूँ...
भीमा - उदय ने कहा... की लोग अगर नशे में रहेंगे... तो आगे बात को संभाला जा सकता है... और गलती से दरोगा से कोई हरकत हो भी गई तो... नशे में धुत लोगों का ध्यान उस तरफ़ नहीं जाएगा...
भैरव सिंह - (एक शातिर मुस्कान खिल उठता है) ह्म्म्म्म... बहुत ही खतरनाक दिमाग पाया है... यह उदय...
बल्लभ - राजा साहब... बुरा ना माने तो एक बात कहूँ...
भैरव सिंह - हूँ... कहो...
बल्लभ - मुझे लग रहा है... जैसे... उदय हमारे जरिए... मेरा मतलब है... हमारी आड़ लेकर... अपना खुन्नस उतार रहा है...

भैरव सिंह चुप रहता है और बल्लभ की ओर अपना भौह चढ़ा कर देखता है l बल्लभ के जिस्म में एक सुर सूरी सी सिहरन दौड़ जाती है l

भैरव सिंह - हमें लगता है... तुम अपनी दोस्त के होने वाले अंजाम को देखने से पहले... बहक रहे हो... (बल्लभ अपना सिर झुका लेता है) बात को पुरी करो...
बल्लभ - र राज आ.. साहब... मुझे माफ करें... जिस तरह से... वह बढ़ चढ़ कर... दरोगा के खिलाफ यह सब किए जा रहा है... मेरे मन में.. शंका पैदा कर रहा है...
भैरव सिंह - क्यूँ... तुम इस उदय से पहले से परिचित नहीं हो...
बल्लभ - कभी कभी उसे... रोणा के क्वार्टर में देखा था... रोणा के क्वार्टर में... रोणा के सारे काम किया करता था... यहाँ तक कि... विश्व पर निगरानी का जिम्मा भी... रोणा ने... उदय पर सौंप रखा था... इतना मालुम था कि... यह कंपेंशेशन ग्राउंड में... ग्रेड फॉर कटेगरी में... ग्राम रखी कि नौकरी कर रहा था... रोणा ने इसे... कांस्टेबल बनाने का वादा किया था...
भैरव सिंह - तो अब तक... पूरी वफ़ादारी के साथ... इस उदय ने... रोणा का काम किया है... अब हमसे वफादारी कर रहा है...
बल्लभ - मैं इसी बात पर हैरान हूँ... रोणा से उसकी वफ़ादारी... अब अचानक से... (एक पॉज लेकर) अब रोणा की जान पर आ गई...

भैरव सिंह कुछ सोच में पड़ जाता है,

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रुप की आँखे बंद थीं l उसे हल्का सा ठंडक महसूस हो रही थी l वह सिकुड़ कर अपनी बाहों को अपने गले और कंधों के पास कस लेती है l तभी उसे महसूस होता है कि कोई फूंकते हुए उसके चेहरे पर लटों को हटा रहा है l रुप के चेहरे पर पर एक खुशी भरी मुस्कान छा जाती है l हल्का सा आँख खोलती है l उसके आँखों के विश्व का चेहरा दिखता है, बहुत ही करीब था विश्व का चेहरा l विश्व को देखते ही

रुप - मुझे मालुम था... यह तुम ही होगे... (कह कर रुप फिर से अपनी आँखे बंद कर लेती है) आह... अनाम... कितना प्यारा सपना है... कास के इस सपने से कभी बाहर ही ना निकलुं... हकीकत में तो तुम आए नहीं... पर सपने में आए हो... प्यार जता रहे हो... कितना अच्छा लग रहा है.. उम्म्म्म्...

अचानक रुप अपनी आँखे खोलती है l विश्व का चेहरा रुप के चेहरे के पास ही था l वह अब सीधे हो कर बैठती है l अपने चारों तरफ देख कर चौंकती है और बड़ी बड़ी आँखों से हैरानी भरे नजरों से देखने लगती है l रुप एक नाव पर थी l एक चौपाई के सिरहाने सिर टिका कर सोई हुई थी l नाव बीच नदी में था l यह देख कर रुप चिल्लाने को होती है कि विश्व उसके मुहँ पर हाथ रख देता है l रुप अपने मुहँ से विश्व की हाथ हटाने के लिए छटपटाती है l जब थक जाती है

विश्व - हाथ निकालूँ...

अपना सिर हिला कर हाँ कहती है, विश्व रुप की मुहँ से हाथ हटाता है, रुप विश्व की हाथ पकड़ कर अपने दांतों से काटती है l विश्व चिल्लाते चिल्लाते रह जाता है और अपने बाएं हाथ से अपना मुहँ दबा लेता है l

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कुछ शोर शराबा सुनाई देने लगता है तो अपना ध्यान लैपटॉप पर चल रहे दृश्य पर गाड़ देता है l देखता है सत्तू सबको शराब पीने के लिए उकसा रहा है l

सत्तू - यह लो... ऐस करो... आज का यह दारु मेरे तरफ से.. जी भर के पियो...
एक गाँव वाला - अरे सत्तू पहलवान... तुझे कौनसा ख़ज़ाना मिल गया है... जो आज तु ऐसे लूटा रहा है...
सत्तू - अरे ताऊ... आज पहली बार... होली जलाई जाएगी... कल होली खेली जाएगी... क्या यह कम बड़ी बात है... इसलिए पिलो... आज फोकट में दे रहा हूँ... कल से तुमको अपना जेब ढीला करना पड़ेगा...

सब खुशी के मारे हल्ला मचाते हुए दारु के बोतल उठा कर घुट गटकने लगते हैं l इसी तरह सत्तू सभी गाँव वालों में बोतल बांटने लगता है और लोग अपने हिस्से आई बोतल को खाली करने लगते हैं l

भैरव सिंह - यह सत्तू... कह रहा था... बच्चों ने आज... विमान परिक्रमा कारवाई... पर यहाँ पर बच्चे बिल्कुल दिख नहीं रहे हैं... (इस पर बल्लभ चुप रहता है, तो इसबार भैरव सिंह भीमा की ओर देखता है)
भीमा - हुकुम... औरतें भी तो नहीं दिख रहे हैं... हो सकता है... डर के मारे नहीं आए हों... मतलब.. उन्हें अभी भी यकीन नहीं हो रहा हो...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... (लैपटॉप का वॉयस ऑन कर) उदय...
उदय - जी हुकुम...
भैरव सिंह - गाँव से सिर्फ मर्द ही आए हैं क्या... औरतें और बच्चे...
उदय - (ट्रांसमीशन करते हुए) हुकुम... औरतें और बच्चे... कुछ दूरी पर खड़े हैं...


कह कर मोबाइल घुमाता है, भैरव सिंह देखता है कि एक जगह पर गाँव की औरतें और बच्चे सभी खड़े हो कर तमाशा देख रहे हैं l बच्चे पास जाने के लिए उतावले हो रहे हैं l पर उनकी माँएँ उन्हें जाने से टोक रहे हैं l उन लोगों के भीड़ में भैरव सिंह को वैदेही खड़ी नजर आती है l जिसका चेहरा भाव शून्य सा लग रहा था l

भैरव सिंह - ठीक उदय... मोबाइल दहन की जगह दिखाओ...

उदय वैसा ही करता है l कुछ देर बाद कुछ अचानक ढोल, चांगु बजने लगते हैं l महरी तुरी भेरी बजने लगते हैं l कुछ लोगों के हाथों में जलते हुए मशाल दिखते हैं l एक गाँव वाला मशाल फेंकने को होता है कि उसे सत्तू रोक देता है l

सत्तू - नहीं नहीं... ऐसे नहीं...
गाँव वाला - फिर कैसे...

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रुप विश्व की हाथ छोड़ देती है l विश्व हाथ को फूंकने लगता है l रुप की और देखता है l रुप अपनी आँखे सिकुड़ कर विश्व को देख रही थी l

रुप - मैं समझ रही थी... के मैं सपना देख रही हूँ... पर... मैं सच में... नाव पर हुँ... कब आई... कैसे आई...
विश्व - क्यूँ... आप खुद को यहाँ देख कर थ्रिल नहीं हुईं..
रुप - थ्रिल... पहले मैं डर गई... बात समझने के लिए... कुछ वक़्त लगा मुझे... तुम... मुझे यहाँ तक कैसे लाए... और... मैं सो कैसे गई थी...
विश्व - (चुप रहता है)
रुप - देखो मुझे सब सच सच बताओ... वर्ना...
विश्व - वर्ना...
रुप - वर्ना... आज पूरा गाँव... विश्व प्रताप को चीख मारते हुए सब देखेंगे... इतनी जोर से ऐसे काटुंगी के...

कहते कहते रुक जाती है और जोर जोर से साँस लेने लगती है, विश्व उसे इस हालत में देख कर पहले हैरान हो जाता है l फिर हँस डेट है l उसे यूँ हँसते देख कर रुप और भी ज्यादा चिढ़ जाती है l

रुप - (मुहँ बना कर, मुहँ फ़ेर कर बैठ जाती है) जाओ मैं तुमसे बात नहीं करती...
विश्व - (रुप के पास आकर बैठ जाता है) मैं छुप कर देख रहा था,.. कैसे एक परियों की रानी... मेरे लिए सज रही थी... सँवर रही थी... फिर देखा उसकी आँखे लग गई थी... तो मैंने... एक रुमाल में थोड़ा सा क्लोरोफॉर्म डाल कर... उसकी नींद को थोड़ा गहरा कर दिया... बस... फिर उसे अपने पुराने तरीके से... खिड़की से नीचे उतारा... और उसी नींद के हालात में... यहाँ... नाव पर चौपाई के सहारे बिठा दिया...
रुप - (अपना मुहँ बना कर, फिर से मुहँ फ़ेर लेती है) हूँ ह...
विश्व - क्या आप... थ्रिल नहीं हुईं...
रुप - थ्रिल... थ्रिल तो तुम्हें महसुस हुआ होगा... अगर मैं होश में होती... तो वह थ्रिल मैं भी महसुस करती ना...
विश्व - मैं आपको... यह सारा एहसास... सपने की तरह महसुस कराना चाहता था... (एक पॉज लेकर) बुरा लगा...
रुप - (विश्व की ओर बिना देखे अपना सिर ना में हिलाती है)
विश्व - सॉरी... वेरी सॉरी... आप जो भी सजा देंगे.. (अपने घुटनों पर बैठ कर) मुझे कुबूल होगी...
रुप - (मुड़ती है) खड़े हो जाओ... (विश्व खड़ा हो जाता है, रुप उसके सीने पर मुक्के मारने लगती है, पर विश्व वैसे ही खड़ा रहता है) मैं तुम पर मुक्के बरसा रही हूँ... और तुम हो कि...
विश्व - आह... ओह... उह... (करने लगता है)

रुप को और भी ज्यादा गुस्सा आता है l विश्व को धक्का देती है विश्व थोड़ा पीछे हटता है l फिर रुप उस पर कुदी मारती है l विश्व अब पीठ के बल गिरता है और रुप उसके ऊपर गिरती है l विश्व के पेट पर बैठ कर विश्व की कलर पकड़ लेती है l

रुप - होगे तुम बड़े तुर्रम खान... पर मैं भी तुम्हें हरा सकती हूँ... समझे...
विश्व - जी.. आपसे जितने कि... सोच भी नहीं सकता कभी...

रुप शर्मा जाती है, पर विश्व की कलर नहीं छोड़ती l विश्व रुप की दोनों हाथों को पकड़ लेता है और अपना चेहरा थोड़ा किनारा कर आसमान की ओर देखता है फिर रुप की ओर देखता है l ऐसा दो तीन बार करता है l

रुप - ऐसे क्या देख रहे हो...
विश्व - आज पूनम की रात है... मैं आपके चेहरे को और चांद को देख रहा था... और इतरा रहा था
रुप - क्यूँ...
विश्व - उस चांद का कहाँ मुकाबला होगा... (रुप के चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर) मेरे इस चांद के आगे...

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सत्तू - जैसे बचपन में... घो घो राणी खेलते थे ना...
गाँव वाले - हाँ...
सत्तू - वैसे ही... इस होलिका भाड़े के चारो ओर... घूमो... फ़िर आग लगा ओ...

सत्तू की बात मान कर, हाथों में मशाल लिए सारे मर्द दहन मंच के घेर कर घूमने लगते हैं l शराब धीरे धीरे उन पर असर कर रहा था l लोग मशालों को घुमा घुमा कर एक तरह से उद्दंड नृत्य कर रहे थे l तभी एक गाँव वाले की नजर होलिका की पुतले पर पड़ती है l उसे लगाकि वह पुतला हिल रही थी l वह रुक जाता है और डर के मारे कांपने लगता है l उसे रुकता देख कर उसके साथी भी रुक जाते हैं और उससे पूछने लगते हैं

- अबे क्या हुआ... रुक क्यूँ गया
वह - होलिका हिल रही है...
गाँव वाले - क्या...

सभी रुक कर पुतले को देखने लगते हैं l उधर यशपुर पर सीधा प्रसारण देख रहे भैरव सिंह की भौहें सिकुड़ जाती हैं l तभी सत्तू उन गाँव वालों के पास पहुँचता है l

सत्तू - ओये... क्या हो गया... रुक क्यूँ गए तुम लोग...
वह - होलिका... हिल रही थी...
सत्तू - सालों... कमीनों... होलिका नहीं हिल रही है... दारू बाज कहीं के... तुम सारे हिल रहे हो...
गाँव वाले - हाँ... हाँ... हमें भी यही लग रहा है...
वह - नहीं नहीं... होलिका हिल रही है...
सत्तू - अबे मरदूत... जब नशा संभाल नहीं पाता... तो इतना पिता क्यूँ है... (सारे गाँव वालों से) एक काम करो...
गाँव वाले - क्या...
सत्तू - तुम सब को... दरोगा रोणा याद है... (सब गाँव वाले हैरानी के मारे एक दुसरे को देखने लगते हैं) अबे बोलो... याद है...
एक गाँव वाला - ह... हाँ.. हाँ.. याद है..
सत्तू - जानते हो... वह अभी लापता है... हमारे राजा सहाब के सर्कार उसे ढूँढ रही है...
गाँव वाले - क्यूँ...
सत्तू - उसने लोगों के साथ बहुत बुरा किया है... उसे सजा देने के लिए...
गाँव वाले - (उल्लासित होकर) अच्छा...
सत्तू - हाँ... इसलिए... अब इस पुतले को... कुछ देर के लिए ही सही... दरोगा रोणा समझो... और अपने दिल की भड़ास निकालते हुए... इन लकडिय़ों में आग लगा दो...

गाँव वाले पहले एक दुसरे को देखते हैं l उनके बीच से हरिया आगे आता है और पुतले को देखते हुए चिल्ला कर गला फाड़ कर कहने लगता है

हरिया - अबे हरामी कुत्ते रोणा... बहुत दिनों से खुन्नस था... आज हाथ लगा है तु मेरे... साले कमीने हरामी... यह ले...

कह कर मशाल को पुतले की ओर फेंकता है l मशाल पुतले से लग कर भाड़े से लगे लकडिय़ों पर गिरती है l उसके देखा देखी और एक गाँव वाला सामने आता है और वह भी रोणा को गालियाँ बकते हुए मशाल दे मारता है l इस तरह से लोग एक के बाद एक रोणा को गाली अभिशाप देते हुए अपनी अपनी मशालें फेंक मारते हैं l लकड़ियों में धीरे धीरे आग जलने लगती है l जैसे जैसे आग भड़कने लगती है l लोग जो बाहर ढोल, चांगु, मादल बजाने लगते हैं l ऐसा प्रतीत होता है जैसे ढोल आदि के ताल से ताल बिठा कर लपटें आकाश की ओर उठने लगती हैं l यह सब देख कर जहां भैरव सिंह के दिल में एक सुकून महसूस होती है वहीँ बल्लभ की अंतरात्मा छटपटाने लगती है l
धीरे धीरे आग की लपटें जोर पकड़ने लगती है l उसके साथ साथ लोगों में हल्ला व उल्लास के साथ शोर भी बढ़ने लगती है l ढोल मादल चांगु की ताल से ताल बिठा कर शंख फूंकने लगते हैं l बल्लभ एक नजर भैरव सिंह पर डालता है l भैरव सिंह के आँख उसे जलती हुई दिखाई दे रही थी l लैपटॉप से आ रही हल्ला उल्लास की आवाजें उसके भीतर उसे दहला रही थी l बल्लभ छटपटा रहा था पर अपने अंदर की भावनाओं को बाहर उजागर नहीं कर पा रहा था l

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रुप शर्मा कर विश्व के ऊपर से हट जाती है और नाव के एक छोर पर आ कर नाव पर नजर घुमाने लगती है l वह देखती है दो बड़े नावों को बांध कर उस पर दो लकड़ी के खाट बंधे हुए हैं l सबसे अहम बात ना सिर्फ नाव में वे दोनों ही थे बल्कि बीच नदी में नाव एक दम स्थिर थी l रुप को महसुस होती है विश्व उसके पीछे खड़ा है l

रुप - एक बात पूछूं...
विश्व - पूछिये...
रुप - तुम मुझे यहाँ पर क्यूँ लाए... तुम्हें डर नहीं लगा... हम पकड़े भी जा सकते थे...
विश्व - नहीं... आज हम पकड़े नहीं जाएंगे... क्योंकि... आज महल पुरी तरह से... मर्दों से रहित है... और राजा साहब और उनके खास... कोई भी... महल या उसके आस-पास भी नहीं है... वैसे भी... आपको सरप्राइज पसंद है ना...
रुप - (हैरान हो कर पीछे मुड़ती है) सरप्राइज... तुमने सरप्राइज़ नहीं मुझे शॉक दे दिया था... एक पल के लिए... मुझे तो जोर का झटका लगा था...
विश्व - (मुस्करा देता है)
रुप - वैसे... क्यूँ... (पॉज लेकर) इसका मतलब... तुमने ऐसा क्या किया है.... की वे सारे लोग... (चुप हो जाती है)
विश्व - मैंने कहा था... आप मुझसे जो भी ख्वाहिश करेंगी... उस पल को मैं खास बना दूँगा...
रुप - है... भगवान... मतलब... तुम... इस खेल में कर्ता हो... कारक हो... बाकी सब... क्रिया हैं...
विश्व - (चुप रहता है)
रुप - वाव... तुम कितने परफेक्ट हो...
विश्व - नहीं... कोई कभी भी... परफेक्ट नहीं हो सकता... बस चालें सही बैठ रही हैं... इसलिए... रिजल्ट मन माफिक मिल रहा है... अगर कभी चल गलत बैठ गया... तो लेने के देने पड़ जाएंगे...

दोनों के बीच चुप्पी छा जाती है l रुप फिर से विश्व की ओर पीठ कर खड़ी हो जाती है और चांद की ओर देखने लगती है l विश्व को अब समझ में नहीं आता आगे करे तो क्या करे और कैसे आगे बढ़े l ठंडी हवाएं चलने लगती है l रुप की चूनर उड़ कर विश्व के चेहरे पर लहराने लगती है l विश्व रुप की चूनर को पकड़ लेता है l रुप की धड़कने तेजी से ऊपर नीचे होने लगती है l वह अपनी चुनरी को पकड़ लेती है l विश्व अपने चेहरे पर लहराते हुए चुनरी को झटका देकर खिंचता है l रुप उस झटके के साथ विश्व के सीने पर आ गिरती है l विश्व की हाथ रुप की कमर पर कस जाती है l रुप अपना चेहरा विश्व के सीने में छुपा लेती है l

विश्व - (थर्राती आवाज में) राजकुमारी जी...
रुप - ह्म्म्म्म...
विश्व - आसमान में चाँद मुझसे जल रहा है...
रुप - (सिर नहीं उठाती) ह्म्म्म्म..
विश्व - देखिए ना... कितना खूबसूरत नज़ारा है... चांद की चांदनी में नहाया हुआ इन फ़िज़ाओं में... कल कल आवाज करती बहती नदी पर... दो नाव... उस पर दो प्रेमी... अपनी पहली चुंबन के लिए...

रुप की मुट्ठी विश्व के शर्ट पर कस जाती हैं l चेहरा और भी जोर से सीने में गड़ जाती है l विश्व की हाथ कमर से उठ कर पीठ पर लहराते हुए उठती है l रुप की बदन उसी लहर के नागिन की तरह बलखाने लगती है l विश्व की हाथ रुप के सिर पर आकर रुक जाती है फिर दोनों हाथों से रुप की चेहरे को अपने सामने लाता है l रुप की आँखे बंद थीं l

विश्व - (हलक से बड़ी मुश्किल से आवाज़ निकाल कर) रा.. ज.. राज.. कु.. मारी...
रुप - हूँ...

रुप की चेहरे को अपने चेहरे के पास लाता है और अपना चेहरा धीरे धीरे रुप की चेहरे पर झुकाता है l दोनों की साँसे टकरा रही थी l दोनों की धड़कने बड़ी तेजी से उपर नीचे हो रहीं थीं l वे दोनों एक दूसरे की धड़कनों को साफ सुन पा रहे थे कि नदी की कल कल की आवाज दब गई थी l विश्व और झुकता है रुप की हॉट पर अपना होंठ रख देता है l जैसे ही रुप के होठों पर विश्व की होंठ का स्पर्श अनुभव होती है उसका सारा जिस्म कांप जाती है l उसका बदन हल्का हो जाती है और पैरों के उँगलियों पर खड़ी हो जाती है l उसका हाथ अब फिसल कर विश्व के कमर पर आ जाती है l विश्व अपना हॉट खोल कर रुप की निचली होंठ को चूसने लगता है l रुप की भी प्रतिरोध ढीली पड़ जाती है और उसके होंठ खुल जाती है l धीरे धीरे चुंबन प्रगाढ़ से प्रगाढ़ तक होने लगती है l रुप के हाथ अब विश्व के बालों से खेल रहीं थीं l वहीँ विश्व के हाथ भी अनुरुप रुप के केशुओं में उलझ गए थे l

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होलिका दहन अपने चरम पर पहुँच गया था l लपटों में इतनी तेज थी के अब लोग उसके आसपास भी मंडरा नहीं पा रहे थे l दुर से खड़े हो कर गाँव वाले यह दृश्य देख रहे थे l धीरे धीरे उन लोगों के पास उनके परिवार जमा होने लगते हैं l उनके लिए यह एक अद्भुत दृश्य था l क्यूंकि दशकों से ना तो उनके पुरखों ने कभी त्योहार मनाया था ना ही उन्होंने l पर आज उनके बच्चों के वज़ह से और राजा भैरव सिंह के अनुग्रह से ना सिर्फ होलिका दहन मनाया गया बल्कि इसी राख से कल रंग भी खेला जाएगा l यह दृश्य यशपुर में बैठा भैरव सिंह भी देख रहा था l मन ही मन वह उदय से प्रभावित भी हो गया था l क्यूंकि उसके घर की इज़्ज़त पर किसी ने आँख उठाया है यह बात कोई जान लेता तो ज़रूर कानाफूसी होती l जिस पर उसके साख पर बट्टा लग जाता l वह गाँव वालों को भी सजा देना चाहता था l इस तरह से गाँव वालों का जुर्म भले ही अनजाने में किया गया था पर सबुत बन गया था उसके पास l हो सकता है भविष्य में यह उसके काम आए l जितना संतुष्ट भैरव सिंह था, उतना ही दुखी बल्लभ था l जो भी था जैसा भी था रोणा उसका दोस्त था l हर मामले में वह भैरव सिंह का वफादार था l बल्लभ यह समझ चुका था रोणा से गलती हुई थी पर अपराध नहीं हुआ था l पर भैरव सिंह के डायरि में क्षमा शब्द ही नहीं था l उसकी भी नजर लैपटॉप में घट रहे मंज़र देखे जा रहा था l तभी अचानक वह देखता है कि वह भाड़ा जिस पर रोणा को होलिका बना कर बिठा दिया गया था l वह भाड़ा टुट जाता है और आग की लपटें एका एक और ऊपर उठ जाते हैं l जिसे देख कर लोग उद्दंडता से चिल्लाने लगते हैं l इससे आगे बल्लभ और देख नहीं पाता l क्यूंकि उसे कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था l उसे समझते देर नहीं लगी कि उसकी आँखे बह रही थी l आखेट गृह में नजाने कितने मौत देखे हैं पर आज वह अपना परम मित्र को जिंदा जलते देख रहा था l अपनी आँखे पोंछता है, उसका मन कर रहा था कि वह गला फाड़ कर रोये, पर वह लाचार था l अपनी लाचारी को छुपा कर आपनी आँखे बंद कर लेता है l पर बल्लभ का यह दुख और लाचारी भैरव सिंह के आँखों से छुप नहीं पाती l भैरव सिंह उसकी दुर्दशा को नजर अंदाज कर लैपटॉप में चल रहे दृश्य को गौर से देखे जा रहा था l

भैरव सिंह - अच्छा हुआ... तुम यह सब देखने के लिए... वहाँ नहीं थे... वर्ना... तुम अपनी कमजोरी को जाहिर कर देते... यह उदय ने अच्छा आइडिया दिया था... हमें यशपुर चले आने के लिए... अब तुम्हें इस रेकॉर्डिंग को... एडिट वगैरह कर... एक कंस्पैरी क्रिमिनल ऐक्ट प्रूफ़ बनाना है... क्यूँकी... रोणा ऑफिसियली गायब है... जिसे डेपुटेशन पर आए नया ऑफिसर दास ढूँढ रहा है... पहले कहानी बताओगे... लोग कैसे... रोणा को हस्पताल से गायब किए... उसके बाद... यह विडिओ... सबुत बना कर... दास तक पहुँचाने की जिम्मेदारी तुम्हारी... समझे...
बल्लभ - (जैसे नींद से जागता है) जी... जी.. राजा साहब...

आग की लपटें धीरे धीरे शांत हो रही थी l चूंकि विडिओ कॉल पर था, भैरव सिंह अपना माइक ऑन कर उदय से कैमरा घुमा कर गाँव वालों की तरफ मोड़ ने के लिए कहता है l उदय कैमरा घुमाता है l कैमरा सभी गाँव वालो पर घूमने लगता है l अचानक भैरव सिंह लैपटॉप को उठा कर घूरने लगता है l लैपटॉप को चिपका कर ऐसे देखने लगता है कि मानो वह किसीको कैमरे के जरिए ढूँढ रहा था l धीरे धीरे उसके जबड़े भिंच जाते हैं और चेहरा सख्त हो जाता है l उधर ट्रांसमिशन करते हुए उदय देखता है कि उसका कॉल कट चुका था l

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रुप और विश्व का चुंबन टूटता है l दोनों ऐसे हांफने लगते हैं जैसे मानों कोई मैराथन दौड़ कर आए थे l दोनों अपने अपने सिर एक दुसरे पर टिका कर गहरे गहरे साँस लेने लगते हैं l जब साँसे दुरुस्त होने लगती है तब विश्व अचानक रुप को छोड़ कर थोड़ी दुर जाकर रुप की ओर देखने लगता है l रुप उसे सवालिया नजर से देखती है l

विश्व - (साँसों को संभालते हुए) आपसे वादा किया था... बेशरम हो सकता था... पर बेकाबू... बे लगाम नहीं हो सकता... (रूप कि और पीठ घुमा लेता है)
रुप - (पीछे से आकर पकड़ लेती है और विश्व के सीने पर हाथ फेरने लगती है)
विश्व - राज कुमारी जी...
रुप - (मस्ती के मुड़ में आ चुकी थी) जी कहिये मेरे भोले अनाम जी...
विश्व - वह आपको... मतलब कैसा... (चुप हो जाता है)
रुप - क्या हुआ... चुप क्यों हो गए...
विश्व - वह... मुझसे... कोई गलती तो नहीं हो गई...
रुप - (विश्व को अपने तरफ झटके के साथ मोड़ कर) ओये.. मौसमी बेशरम... चूमा लेने और देने के बाद... शर्म नहीं आई... अब शर्म नहीं आ रही... ऐसे शर्माते हुए...
विश्व - जी आ रही है... मतलब नहीं... आह.. (खीज जाता है)

रुप उसकी हालत देख कर खिलखिला कर हँसने लगती है l फिर विश्व के पैरों पर अपने पैर रख कर पैरों की उंगली पर खुदको उठा कर विश्व के बराबर आ जाती है l विश्व के हाथों को अपने कमर पर रख कर विश्व के चेहरे को अपने हाथों में लेती है और वह विश्व के होठों पर टुट पड़ती है l विश्व उसके चुंबन से खुद को छुड़ाने की कोशिश करता है पर फिर वह भी रुप के चुंबन की प्रतिक्रिया में रुप की गहरी चुंबन लेने लगता है l फिर कुछ समय बाद इस बार रुप विश्व को अलग कर देती है l चुंबन टूटते ही विश्व रुप की ओर हैरानी भरे निगाह से देखने लगता है l

रुप - तो मिस्टर बेशरम... बेकाबू क्यूँ होने लगे... ह्म्म्म्म.. बेकाबू होने लगे...
विश्व - कहाँ... कैसे...
रुप - (विश्व की पेंट पर बने उभार की ओर इशारा करती है) यह... यह रहा... तुम्हारा बे - लगाम...
विश्व - मैं कहाँ बे लगाम हुआ था... वह तो आपने मुझे...
रुप - हाँ हाँ... अब तो दोष मुझे ही दोगे... क्यों... छी.. कितने अश्लील हो तुम...
विश्व - कमाल है... आप जिस तरह मुझ पर टुट पड़ी... मुझे लगा आप कहोगे... वाव.. अनाम तुम कितने नैचुरल हो...
रुप - यु...

कह कर रुप विश्व की ओर कुद कर उछल जाती है l विश्व उसे पकड़ लेता है l रुप अपने दोनों पैरों को विश्व के कमर के इर्द-गिर्द कस कर बाँध लेती है और विश्व के चेहरे को अपने हाथों में लेकर विश्व के होंठ पर टुट पड़ती है l विश्व भी इस बार रुप का बड़े जोशीले अंदाज में साथ देता है कि तभी विश्व की मोबाइल बज उठता है l

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भीमा गाड़ी को भगा रहा था l रात गहरी भले ही हो गई थी पर आसमान में चाँद आज चमक नहीं दहक रहा था l भैरव सिंह पंथ निवास में बल्लभ को छोड़ कर भीमा को साथ लेकर महल की तरफ ले जाने के लिए कह कर निकला था l भीमा को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था l अचानक भैरव सिंह को क्या हो गया l वैसे भी भैरव सिंह, क्षेत्रपाल - महल में कम, रंग महल में ज्यादातर रात बिताता था l कभी भी रात को इस तरह क्षेत्रपाल महल गया नहीं था l जब उससे रहा नहीं गया तो भैरव सिंह से पूछता है

भीमा - हुकुम... आप राजमहल ही जा रहे हैं ना..
भैरव सिंह - हाँ...

भीमा और सवाल नहीं करता l चुप चाप गाड़ी चलाता है l भैरव सिंह इस बार भीमा से पूछता है l

भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी.. जी... हुकुम...
भैरव सिंह - एक बात याद रखना... हम हार या जीत को बाद में तरजीह देते हैं... सब से पहले... हम अपनी अहं को तरजीह देते हैं... क्यूंकि... अगर अहं रह गया... तो जीत भी आएगी...
भीमा - जी... हुकुम...
भैरव सिंह - रोणा बेशक वफादार था... पर अनजाने ही सही... हमारे अहं की रास्ता काटने की गलती कर बैठा... इसलिए... उसका अंजाम देखा तुने...
भीमा - जी... जी हुकुम..
भैरव सिंह - अब मुझे तु बता... उस हराम के पिल्लै... विश्वा को... कौन मार सकता है...
भीमा - (इस बार चुप रहता है)
भैरव सिंह - जिसे हमने एक बार अपने पैरों के धुल के बराबर रखा हो... उसे हम अपने हाथों से सजा नहीं दे सकते... इसलिए... रोणा को जिम्मेदारी सौंपी थी... पर उससे ना हो पाया... अब तु बता... तुझसे या तेरे पट्ठों से होगा या नहीं... अगर नहीं होगा... तो हमें... बाहर से आदमी लाकर रखने होंगे... और तुम लोगों के बारे में सोचना होगा...

भीमा गाड़ी में ब्रेक लगाता है l क्षेत्रपाल महल के सीढियों के सामने गाड़ी रुक जाती है l भीमा गाड़ी से उतर कर भागते हुए आता है और गाड़ी का दरवाजा खोलता है l भैरव सिंह चारों तरफ नजरें घुमा कर देखता है l महल के आसपास उसे इक्का-दुक्का पहरेदार नजर आते हैं l वह समझ जाता है कि होलिका दहन में लोगों के बीच रह कर होलिका को जलाने के लिए गाँव के लोगों को उकसाने के लिए सब चले गए हैं l दो पहरेदार भागते हुए उसके पास आकर सलामी ठोक कर खड़े हो जाते हैं l

भैरव सिंह - कोई खबर...
पहरेदार - सब ठीक है राजा साहब...

भैरव सिंह कोई और सवाल नहीं करता l सीधे सीढ़ियां चढ़ने लगता है l भीमा उसके पीछे पीछे जाने लगता है तो भैरव सिंह हाथ से इशारा कर उसे वही ठहरने के लिए कह कर आगे बढ़ जाता है l अंदर सारे दासियां दीवारों से सट कर सोये हुए थे l पर जैसे ही गाड़ी रुकी थी l सभी जाग कर दीवारों के ओट में सिर झुका कर खड़े हो गए थे l उन सभी को नजर अंदाज कर भैरव सिंह अंतर्महल में आता है और सीधे रुप के कमरे के दरवाजे के सामने खड़ा होता है l अपने कमर पर हाथ रखकर चारों ओर नजर घुमाने लगता है l देखता है कुछ दासी दीवार से लग कर सिर झुकाए खड़ी हुई हैं l

भैरव सिंह - एकांत...

सभी दासियां वहाँ से निकल जाती हैं l भैरव सिंह दरवाजे पर दस्तक देता है l अंदर से कोई आवाज नहीं आती है l और एक बार दस्तक देता है l जब कोई शोर सुनाई नहीं देती है इस बार थोड़ी ताकत लगा कर दस्तक देता है l दरवाजे के नीचे वाली फांक से उजाला आता है l थोड़ी देर बाद दरवाज़ा खुलता है l भैरव सिंह देखता है सादी लिबास में रुप अपनी भारी आँखे मलते हुए भैरव सिंह की ओर देख रही है l अचानक चौंकती है जैसे सामने अभी भैरव सिंह को पहचान लिया l

रुप - राजा साहब... आप... इतनी रात गए...

भैरव सिंह उसे अनसुना कर कमरे में जो दो खिड़कियाँ थी उनकी रेलिंग खिंच कर देखता है फिर रुप को बिना देखे कमरे से जाने लगता है l पर जाते जाते दरवाजे पर रुक जाता है, फिर रुप की ओर मुड़ता है l

भैरव सिंह - राज कुमारी... हम जानते हैं... आप इस समय हैरान हैं... पर हम आप बस इतना जान जाइए... हमें शक नहीं यकीन है... पर हमारी यकीन को हम फ़िलहाल के लिए साबित नहीं कर सकते... पर इतना तय मान लीजिए... आप इस घर से जाएंगी... दसपल्ला राज घराने में ही जायेंगी... बाकी अगर और कोई ख्वाहिश है भी... तो भूल जाइए...

कह कर भैरव सिंह मूड कर जाने लगता है l पर उसके कदम ठिठक जाते हैं l क्यूंकि रुप ने पीछे से आवाज दी थी

रुप - राजा साहब... (भैरव सिंह मुड़ता है) हम आपकी यकीन की इज़्ज़त करते हैं... और वादा करते हैं... हम जब भी इस घर से जाएंगे... आपकी आँखों के सामने से जाएंगे... सिर उठा कर जाएंगे...

भैरव सिंह का पारा चढ़ जाता है l वह तेजी से रुप के पास आता है और जोर से अपना हाथ घुमाता है पर अपना हाथ ठीक रुप के गाल के पास रोक देता है l देखता है रुप के आँखों में जरा सा भी डर नहीं था l भैरव सिंह गुस्से में थर्राते हुए मुट्ठी कसने लगता है l रुप को भैरव सिंह की मुट्ठी कसते हुए कड़ कड़ की आवाज़ सुनाई देने लगती है l

भैरव सिंह - एक राजनीतिक मजबूरी है... वर्ना...

इतना कह कर भैरव सिंह कमरे से निकल जाता है l उसके जाते ही रुप एक गहरी साँस छोड़ती है और भागते हुए दरवाज़ा बंद कर देती है l दरवाजा बंद करने के बाद वह घुमती है पीछे विश्व खड़ा था l उसके पास भाग कर विश्व के गले लग जाती है l
Awesome update tha bhai maja aa gaya 👌👌👌👌👍👍👍👍👍👌👌👌
 
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Kala Nag

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Awesome Fantastic Update 😍😍
शुक्रिया मेरे दोस्त आपका बहुत बहुत शुक्रिया
 
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