अनु और वीर की असमय मृत्यु अभी भी हजम नही हो रही है । मैने कभी भी इस स्टोरी मे वीर को एक बुरे इंसान के रूप मे काम करते हुए नही देखा । सिर्फ दो बार उसके गलत कर्मों का जिक्र हुआ जिसमे एक मृत्युंजय के फैमिली के साथ किया हुआ गलत कार्य था और एक उसका विक्रम एवं शुभ्रा के दरम्यान दरार डालने की कोशिश ।
पहला काम उसका निस्संदेह गलत कर्म था लेकिन इस घटना का उल्लेख विस्तारपूर्वक न होकर मृत्युंजय या फिर स्वयं वीर की चंद जुबानी खर्चा - पानी मात्र ही जिक्र था । इस लिए वीर की यह बुराई हमे ढंग से बुराई का एहसास ही नही करा पाई ।
दूसरे काम मे कोई दम ही नही था क्योंकि विक्रम और शुभ्रा न सिर्फ मैच्योर थे बल्कि एक दूसरे के प्रेमी भी थे ।
यही कारण है कि वीर के चरित्र का यह नेगेटिव पक्ष मात्र खानापूर्ति बन कर रह गया ।
उसका अनु के प्रति निश्छल प्रेम की भावना , विश्व के साथ निस्वार्थ की दोस्ती और रूप को विक्रम से भी बढ़कर बहन मानना उसकी इन दो बुराई पर कहीं अधिक हाॅवी हो गया ।
खैर वीर ने इस दुनिया से रुखसत होते होते भी क्षेत्रपाल का , अपने परिवार के ऊपर एक और एहसान कर गया ।
अनु के जाने के बाद वीर के लिए शायद यही बेहतर विकल्प था ।
वीर हमेशा के लिए चला गया लेकिन जाते जाते विक्रम के आंख पर से पट्टी हटाने का काम भी करता गया । भैरव सिंह ने अपने अहंकार , अपने ताकत के मद मे पड़कर विक्रम के लिए आखिरकार वह रास्ता चुनने का अवसर प्रदान कर दिया जिसका इंतजार विक्रम ही नही हम सभी रीडर्स भी बहुत दिनों से कर रहे थे ।
भैरव सिंह से बड़ा निर्धन , कमजोर , लाचार , विवश इंसान कौन होगा जिसके पास उसके परिवार का एक सदस्य तक न हो !
विक्रम का ग्रामीण वासियों के बारे मे चिंतन करना मेरी नजर मे बिल्कुल बेबुनियाद और तथ्य से परे है । इस गांव के लोगों के शरीर मे रीढ की हड्डी है ही नही । रीढ विहीन लोगों के बारे मे क्या चिंतन करना !
इस पुरे गाँव मे एक ही मर्द है , एक ही औरत है और वह दोनो सिर्फ और सिर्फ वैदेही है ।
विश्व को भी अपने चार दोस्तों के लिए फिक्र करना मेरी नजर मे औचित्यपूर्ण नही है । जंग मे कभी पलड़ा आप का भारी होता है तो कभी दुश्मनों का । और जंग मे लोग शहीद होते ही हैं ।
बहुत खुबसूरत अपडेट बुज्जी भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड जगमग जगमग ।