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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

Mr. X
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*Index *
 
Last edited:

RJ02YOGENDRA

Jaaaaaanam.......
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👉एक सौ अड़तालीसवाँ अपडेट
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आज की सबसे बड़ी खबर, अविश्वसनीय, पर सच, राजगड़ में राजा भैरव सिंह क्षेत्रपाल अपने ही महल में गृह बंदी बनाए गए हैं, और वज़ह बड़े चौकाने वाले हैं l राजगड़ मल्टीपल कोआपरेटिव सोसाइटी के लोन फोर्जरी में राजगड़ पंचायत के लगभग सभी गाँव वालों ने राजा साहब के विरुद्ध थाने में शिकायत दर्ज कराए थे l चूँकि राजा साहब कोई मामूली अथवा आम व्यक्तित्व नहीं हैं और पुरे राज्य में और सरकार व सरकारी तंत्र में राजा साहब बहुत प्रभाव रखते हैं, इसलिये इस मामले में गृह मंत्रालय को तुरंत हस्ताक्षेप करना पड़ा l किसी गलत फ़हमी के चलते कहीं राजा साहब गाँव वालों के आक्रोश का शिकार ना हो जाएं इसलिए गृह मंत्रालय लोगों के गुस्से को ध्यान रखते हुए राजा साहब को गृह बंदी बनाए रखने के लिए पुलिस को आदेश जारी कर दिया है l हमारी सूत्रों के द्वारा उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर हमें यह मालुम पड़ा कि तकरीबन तीन बैटेलीयन ओएसएपी बल के जवानों के द्वारा क्षेत्रपाल महल की सुरक्षा प्रदान किया जा रहा है l यह वाक़ई बेहद चौंकाने वाली खबर है कि राजा साहब जैसे व्यक्तित्व पर उन्हीं के गाँव वालों ने धोखाधड़ी का आरोप लगाया है l इस बात को गम्भीरता से लेते हुए गाँव वालों के आरोपों की जाँच के लिए राजगड़ के ही पूर्व तहसीलदार श्री नरोत्तम पत्री के अधीनस्थ एक कमेटी बनाया गया है और उन्हीं के तत्वावधान में इस केस की जांच किया जा रहा है l श्री पत्री जी के द्वारा जाँच के तथ्य गृह मंत्रालय में दे दिए जाने के बाद ही मामले को अदालती कार्यवाही की अनुमति दी जाएगी

नभ वाणी में यह समाचार प्रसारण हो रही थी l सोफ़े पर बैठ कर वीर टीवी देख रहा था l रिमोट लेकर टीवी को बंद कर देता है l वह अपने मोबाइल से सबसे पहले राजगड़ को फोन मिलाता है पर फोन लगता नहीं l थक हार कर अपने भाई विक्रम को फोन मिलाता है l उसे हैरानी होती है, विक्रम के फोन भी नहीं लगती है l बार बार कोशिश करने के बाद भी जब फोन नहीं लगता, तो चिढ़ कर फोन को सोफ़े पर पटक देता है l उसके फोन पटकते ही उसे महसूस होता है कि अनु जो उसके पास आ रही थी वह दो कदम पीछे हट जाती है l वीर मुड़ कर देखता है l अनु उसे हैरान हो कर देख रही थी l

वीर - क्या बात है अनु... डर क्यूँ गई... तुम मेरे पास आ रही थी ना... (अनु सिर हिला कर हाँ कहती है) तो.. आओ ना...

वीर अपनी बाहें खोल देता है l अनु का चेहरा खिल जाता है l अनु भागते हुए वीर के सीने से लग जाती है l वीर उसके चेहरे को उठा कर पूछता है

वीर - क्या बात है... मेरी जान को मुझसे डर लगा... (अपना सिर ना में हिलाती है) फिर... जब मेरे पास आ रही थी... तो मुझे चिढ़ा हुआ देख कर पीछे क्यूँ हट गई...
अनु - वह... मुझे लगा...
वीर - हाँ हाँ... बोल.. क्या लगा तुझे...
अनु - यही के शायद... यह वक़्त... मेरा मतलब है कि... इस वक़्त आप अकेले रहेंगे तो शांत रहेंगे...
वीर - अरे पगली... तु अगर मेरे आँखों के सामने है.. तो हर पल मेरे लिए गुलजार है... (अनु की नाक को खिंचते हुए) समझी...
अनु - (बड़ी मासूमियत के साथ सिर हिला कर हाँ कहती है) हूँ...
वीर -(उसके कमर पर बाहों का घेरा बना कर उठा लेता है, अनु का चेहरा वीर के चेहरे के सामने थी) तो अब कभी मुझसे ऐसी दूरी बनाएगी...
अनु - (सिर हिला कर ना कहती है)

वीर की एक हाथ कमर से हट कर उपर आती है और अनु के सिर के पीछे ठहर जाती है l

वीर - तो हो गई ना तुमसे गलती...
अनु - (शर्मा कर सिर हिला कर हाँ कहती है)
वीर - तो जुर्माने के तौर पर... एक मीठी चुम्मी ले लेने दे...
अनु - नहीं नहीं...

आगे कुछ और कह नहीं पाती l अनु के होठों के अपने होठों की गिरफ्त में ले चुका था l एक छोटी और गहरी चुंबन के बाद वीर अनु को हैरान हो कर देखता है l

वीर - मुझे तो मीठी चुम्मी लेनी थी... यह चुम्मी इतनी खट्टी क्यूँ लग रही है...
अनु - (शर्मा के नजरे नीचे कर लेती है) वह... मैं ना... अभी अभी इमली खाया था...
वीर - क्यूँ... अरे खाना होता तो कुछ मीठा खा लेती... इमली खा कर मेरा मुहँ भी खट्टा कर दिया... (बड़ी मासूमियत के साथ अपना चेहरा नीचे कर लेती है) अच्छा बोल... क्या कहने आई थी...
अनु - वह... मुझे खट्टा खाने को मन कर रहा है... तो थोड़े कच्चे कैरी ले आइए ना...
वीर - क्या... तुझे खट्टा खाने को मन कर रहा है...
अनु - जी...
वीर - क्यूँ...

अनु का चेहरा शर्म से लाल हो जाता है l अनु जोर से वीर के गले से लग जाती है l अनु अपना चेहरा वीर के कंधे पर पीछे की ओर ले जाती है l वीर के कानों में फुसफुसा कर कहती है l

अनु - हम बहुत जल्द... दो से... तीन होने वाले हैं... (कह कर अनु वीर को और जोर से कस लेती है)
वीर - क्या... (अनु को अपने से अलग करने की कोशिश करता है पर अनु शर्म के मारे पुरी ताकत से वीर को पकड़े रखी थी) अनु... ऐ..
अनु - (शर्म से) अभी अभी तुमने क्या कहा...
अनु - (अपनी आँखे बंद कर) बहुत जल्द हमारे आँगन में आपका अपना मेहमान आने वाला है...
वीर - (खुशी और शॉक के मारे) क्या... अनु... (अनु को अपनी बाहों में लेकर घूमने लगता है, फिर अचानक रुक कर) सॉरी सॉरी...

कह कर अनु को उतार कर सोफ़े पर बिठा देता है, अनु की बाहों को अलग करता है, अनु सोफ़े पर एक कुशन उठा कर अपना चेहरा ढक लेती है l वीर उसके सामने घुटनों पर बैठ कर चेहरे से कुशन हटाता है तो अनु अपना चेहरा अपने दोनों हाथों से ढक लेती है l वीर अनु की हाथों को अलग करता है l अनु के चेहरे को खुशी और उत्साह के साथ देखने लगता है l अनु का चेहरा शर्म के मारे भले ही लाल हो गया था पर खुशी के मारे चेहरा दमक भी रहा था l

वीर - वाव अनु... क्या यह सच है...
अनु - (अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
वीर - कितना महीना चल रहा है...
अनु - दू... दूसरा... ख़तम होकर आज से तीसरा...
वीर - ह्वाट... और मुझे तु अभी बता रही है... वाव अनु अब तो तुझे सच मुच चूमने को मन कर रहा है... (कह कर वीर अनु की एक लंबी चुंबन लेता है) आह... कितना मीठा चुम्मा है...
अनु - (वीर के सीने पर हल्का सा मुक्का मारती है) झुठे... अभी तो कह रहे थे... चुम्मी खट्टी थी...
वीर - मैं बेवक़ूफ़ था... गधा था... तेरे मुहँ से कुछ भी खट्टा हो सकता है भला... (गाल खिंचते हुए) तु जानती है... तु रोज रोज कितनी मीठी हो गई है... इन गालों को चूमने से ज्यादा चबाने मन कर रहा है... (कह कर अनु के गालों को हल्के से चबाते हुए गिला कर देता है, अनु कोई विरोध नहीं करती, वीर अनु से अलग हो कर उसके सामने झुकते हुए कहता है) तो मेरे इस पैराडाईज की रानी... आज से आपका काम करना बंद... आज से आप सिर्फ इस सोफ़े पर बैठेंगी... और कभी बेड पर... आप नीचे चलने की जहमत भी ना उठाएँ... आज से आपका हर काम आपका यह गुलाम करेगा... आप बस हुकुम करेंगी... समझी...
अनु - (अपनी भौंहे उठा कर) सारे काम...
वीर - जी रानी साहिबा... लगभग सारे काम... मतलब सारे काम... यहाँ तक कि... (शरारतपूर्ण लहजे में) आपको नहलाने का काम भी...
अनु - (कुशन उठा कर वीर की ओर फेंकती है, वीर कुशन को कैच कर लेता है)
वीर - सच... एक बार हुकुम करके तो देखो...
अनु - छी..
वीर - (घुटनों के बल रेंगते हुए अनु के करीब आता है, अनु के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले कर) अनु... थैंक्यू... मुझे जिंदगी का मतलब ही नहीं पता था... सच कहूँ तो मैं एक पत्थर था... जिसे तूने अपने प्यार से आकार दिया... के मुझे मेरा अक्स और शख्सियत हासिल हुआ... (अनु के हाथों को चूम कर) आई लव यु अनु...
अनु - (आँखें छलक पड़ती हैं, वह वीर के गले लग जाती है)
वीर - (अनु को अलग करते हुए) ना.. हमने ग़म की उस दुनिया को छोड़... अपनी अलग दुनिया बसाया है... यहाँ चाहे खुशी की सही... पर आंसुओं के लिए कोई जगह नहीं... (वीर अनु के दोनों हाथों को अपने गालों पर लेकर) अनु... आज मेरा मन कर रहा है कि आज की शाम सिर्फ हम दोनों के नाम हो...
अनु - जी...
वीर - फ़िर हम यह खुश खबर सबको बतायेंगे...
अनु - (झिझकते हुए) सब... खुश तो होंगे ना...
वीर - जिनका जुड़ाव हम से है... लगाव हमसे है... वे लोग जरुर खुश होंगे... तुम फिक्र ना करो... देखना भैया... भाभी... रुप... मेरा दोस्त प्रताप... और सबसे ज्यादा खुश मेरी माँ होगी... तु तो जानती है... उन्होंने तुझे आशीर्वाद भी दिया है...
अनु - जी...
वीर - तो एक काम करता हूँ... (चहकते हुए, एक बच्चे की तरह ) अभी ऑफिस जाता हूँ... एक लंबी छुट्टी ले लूँगा... बहुत सारी मिठाइयाँ खरीदुंगा... पहले ऑफिस में... फिर यहाँ आस पड़ोस में... जम कर मिठाई बाँटुंगा.... (अनु वीर की यह हालत देख कर बहुत खुश होती है) और हाँ... तुम आज शाम को तैयार रहना... आज की शाम... हम दोनों के नाम... तुम वह वाला ड्रेस पहनना...
अनु - (हैरान हो कर पूछती है) कौनसी...
वीर - अरे वही... जब हम दोनों पहली बार... मॉल को गए थे... जो ड्रेस मैंने पहली बार तुम्हें दिया था...
अनु - अच्छा... वह ड्रेस...
वीर - हाँ वह वाला ड्रेस... जिसे पहने के बाद... तुमने मुझ पर अपने हुस्न की बिजलियाँ गिराई थी...
अनु - धत... झुठे...
वीर - अरे सच कह रहा हूँ... तुम उस ड्रेस में कयामत लगती थी यार... बिल्कुल एक हंसीनी की तरह.. उड़ते हुए आई मेरे दिल में.. मेरे जीवन में बस गई...
अनु - (शर्माते हुए) ठीक है... मैं पहन लुंगी पर आप भी मेरी दी हुई वह ड्रेस पहनियेगा...
वीर - कौन सा ड्रेस... (अनु मुहँ बनाती है) अच्छा वह ड्रेस... उसके लिए मुझे... भैया भाभी के यहाँ जाना पड़ेगा... वह ड्रेस वहीँ रह गया है...
अनु - तो जाइए ना... आप मुझे उसी ड्रेस में बाहर ले जाइए... प्लीज....
वीर - अरे मेरी जान को प्लीज नहीं कहना चाहिए... हुकुम करो मेरी रानी...
अनु - (मुस्करा देती है) ठीक है.. तो यह हमारा हुकुम है... आप आज मुझे उसी ड्रेस में बाहर ले जाएंगे...
वीर - जैसी आपकी हुकुम मेरी रानी साहिबा...

अनु खिलखिला कर हँस देती है l वीर भी उसके साथ हँसने लगता है l थोड़ी देर हँस लेने के बाद अनु वीर से कहती है l

अनु - अगर आप भैया और भाभी के यहाँ जायेंगे... तो उन्हें सच तो बताना पड़ेगा...
वीर - हाँ तो बता दूँगा ना... वैसे भी... मैं सुबह से भैया से बात करना चाह रहा था... फोन पर मिल नहीं रहे हैं.... पता नहीं घर पर हैं भी या नहीं...

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राजगड़
अंतर्महल में सुषमा के कमरे में रुप सुषमा के साथ बैठी हुई है l सुषमा और रुप दोनों के चेहरे उतरे हुए हैं l क्यूंकि बीते कल से ना रुप किसी को कॉन्टैक्ट कर पा रही है ना ही सुषमा l

रुप - माँ.. क्या भैया भाभी सबको खबर होगी...
सुषमा - हाँ मुझे लगता है उन्हें खबर होगी... मैं वीर की बात तो नहीं कह सकती पर मुझे यकीन है... विक्रम जरुर राजगड़ के लिए निकल गया होगा...
रुप - पता नहीं क्यूँ... मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है... हमारे परिवार के साथ कुछ अच्छे होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं...
सुषमा - जो बोया है... उसे काटना तो पड़ेगा ही... समय बड़ा बलवान होता है बेटी... इसलिए सबको समय के साथ चलना चाहिए... जो समय का सम्मान करता है... समय भी उसकी सम्मान रक्षा करता है... जो समय की कदर नहीं करता... समय भी उसे उसके हाल में छोड़ देता है... आज समय हमें छोड़ रहा है...
रुप - कभी सोचा नहीं था... अपनी ही महल में... राजा साहब और हम कैद हो जाएंगे... इतने बेबस हो जाएंगे...
सुषमा - हम इस महल में आज़ाद थे ही कब... और हमारे बस में था ही क्या... हालात तो सिर्फ राजा साहब का बदला है...
रुप - इसका नतीज़ा क्या होगा माँ...
सुषमा - घातक... बहुत ही घातक... पहले अहंकार से क्षेत्रपाल के मर्द अंधे थे... अब अहंकार टूटा है... अपमान और गुस्सा... आँख और विवेक पर पर्दा डाल देता है... वही हुआ भी... अपनी अहंकार के टूटने से... राजा साहब ने रात को खुद पर कोड़े बरसाए... और अभी उनका गुस्सा शांत नहीं हुआ है... पता नहीं... किस पर उतरेगा....

दोनों चौंकते हैं, क्यूंकि उनकी कानों में दुर कोई दरवाजा टूटने की आवाज़ सुनाई देती है l दोनों घबरा कर खड़े हो जाते हैं और कमरे से बाहर निकलने वाले होते हैं कि बाहर से सेबती भागते हुए आती है l

सेबती - राजकुमारी जी... राजा साहब बड़े गुस्से में लग रहे हैं... वह बाहर से आए और आपके कमरे के दरवाजे पर जोर से लात मारे...

यह सुन कर दोनों को हैरत होती है, पर एक अनजानी डर से रुप की हलक सूखने लगती है l कुछ ही देर बाद सुषमा के कमरे में भैरव सिंह आता है l रुप देखती है उसके आँखें अंगारों की तरह दहक रहे थे l भैरव सिंह रुप को देखते ही तेजी से उसके पास आता है और एक झन्नाटेदार थप्पड़ मार देता है l रुप दो घेरा घूमती हुई जाकर फर्श पर गिरती है l

सुषमा - (खौफ से) राजा साहब... यह क्या कर रहे हैं...
भैरव सिंह - श्श्श्श्श्....

रुप की सिर चकरा रही थी, संभलने की कोशिश कर ही रही थी के भैरव सिंह उसके बालों को पकड़ कर खिंचते हुए अंतर्महल की सत्कार प्रकोष्ठ में लाता है l रुप चिल्ला नहीं रही थी पर पीछे पीछे दिल में दहशत लिए सुषमा भागी जा रही थी l प्रकोष्ठ में रुप खुद को संभाल कर खड़ी होती है l सुषमा देखती है रुप की गाल पर थप्पड़ का निशान बैठ गया था और होठों से खून बह रही थी l

सुषमा - (गिड़गिड़ाते हुए) क्यूँ.. क्यूँ राजा साहब क्यूँ... इसकी क्या कसूर है...
भैरव सिंह - (गुस्सा और घृणा के लहजे में) हमें... खानदान में लड़की मंजुर नहीं थी... पर यह बदजात पैदा हुई... हमने पढ़ने के लिए इसे भुवनेश्वर भेजा था... पर यह वहाँ गुलछर्रे उड़ा कर... रंग रलियाँ मना कर आई है...
सुषमा - यह आप कैसी बात कर रहे हैं...
भैरव सिंह - हाँ हम सही कह रहे हैं... अब यह बदजात व्याह कर... दसपल्ला राज घराने में नहीं जा रही है.... इसलिए अब हमें इसकी कोई जरुरत नहीं है...
रुप - हमारा व्याह नहीं होगा... इसलिए आप ख़फ़ा हैं... या दसपल्ला घराने में व्याह नहीं होगा... इसलिए ख़फ़ा हैं...
भैरव सिंह - (चिल्ला कर) बदजात...
रुप - हमें आपकी करनी के वज़ह से दसपल्ला घराना किनारा कर दिया... या हमारी करनी के वज़ह से...
भैरव सिंह - बड़े राजा जी ने सही कहा था... तुम पर भुवनेश्वर की आवो हवा सिर चढ़कर बोल रही है... अपने बड़ों से जुबान लड़ा रही है...
रुप - आप सच तो बोलिए... आपकी करनी... आपकी बदनामी... यह रिश्ता नहीं होने दिया... तो उसका खीज आप मुझ पर उतार रहे हैं...
भैरव सिंह - तु मेरी ही औलाद है... या मेरी गैर हाजिरी में... तेरी माँ ने कहीं गुल खिलाए थे... या कहीं मुहँ मारे थे... जिसका परिणाम बनकर मेरे सामने... मुझसे जुबान लड़ा रही है...
रुप - खबरदार... (गुर्राते हुए) ख़बरदार मेरी माँ के खिलाफ कुछ भी कहा तो... गुल खिलाने... मुहँ मारने के लिए... आपके पुरखों ने राजगड़ में... रंग महल बनाए रखे थे... जहां औरतों का जाना वर्जित था...
भैरव सिंह - (एक थप्पड़ मारता है, पर इसबार रुप नहीं गिरती) मुझे... खबरदार कह रही है...


कह कर दीवार पर लगे एक चाबुक को खिंच कर निकालता है l चाबुक रुप के सामने लहरा रही थी पर रुप के आँखों में खौफ नहीं था l जैसे ही भैरव सिंह मारने के लिए चाबुक उठाता है रुप अपनी जबड़े भिंच लेती है और आँखे मूँद लेती है l चाबुक हवा को चीरती हुई रुप की और आती है l सुषमा खौफ से चिल्लाती है l अचानक उसकी चीख आधे में ही रुक जाती है l रुप आपनी आँखे खोलती है तो देखती है चाबुक की सिरा जो रुप से टकराने वाला था उसे बीच में ही विक्रम ने पकड़ लिया है l

भैरव सिंह - युवराज... आप...
विक्रम - जी...
भैरव सिंह - पहली बार ऐसा हो रहा है... आप हमारे रास्ते पर आड़े आ रहे हैं...
विक्रम - अपने ही घर की दिये कि रौशनी पर चाबुक चलाना... क्षेत्रपाल के रास्ता कब और कैसे बन गया...
भैरव सिंह - यह दिये कि रौशनी नहीं है... यह वह चिंगारी है... जो घरो में आग लगा देती है...
विक्रम - ऐसी कौनसी आग लग गई... जिसकी जिम्मेदार रुप नंदिनी है....
भैरव सिंह - (गुर्राते हुए) युवराज.... आप अपनी लकीर लांघ रहे हैं... छोड़ दीजिए हमारा चाबुक....
विक्रम - नहीं... तब तक नहीं... जब तक हमें एक सवाल का ज़वाब नहीं मिल जाता...
भैरव सिंह - कौन सा सवाल...
विक्रम - अभी अभी चाबुक चलाने से पहले... आपने जिस औरत पर कीचड़ उछाला था... इत्तेफाक से वह मेरी भी माँ थीं... रुप के बारे में आपने अपना खयाल जाहिर कर दी... तो फिर आपका मेरे बारे में क्या खयाल है...

भैरव सिंह कुछ कहता नहीं है l चाबुक नीचे फेंक कर कमरे से बाहर निकल जाता है l उसके जाने के बाद विक्रम रुप की ओर देखता है l रुप आकर विक्रम के गले लग जाती है l

रुप - थैंक्यू भईया...
विक्रम - (दिलासा देते हुए) मैं आ गया हूँ... अब तुम्हें कुछ नहीं होगा...
सुषमा - सही समय पर आ गए तुम विक्रम... वर्ना कुछ ना कुछ तो अनर्थ होने ही वाला था...
विक्रम - कोई बात नहीं छोटी माँ... मैं अपने साथ रुप को ले जाऊँगा...
सुषमा - हाँ विक्रम... इसे अपने साथ जरुर ले जाओ...
रुप - (विक्रम से अलग हो कर) नहीं भैया... मैं अब यहाँ से नहीं जा रही...
विक्रम - क्यूँ...
रुप - बस.. मैं नहीं जा रही...
विक्रम - राजा साहब से नाराज हो... या... गुस्सा...
रुप - दोनों नहीं...
विक्रम - मतलब..
रुप - भैया... मुझे इस बात का दुख नहीं है... की राजा साहब ने मुझ पर हाथ उठाया... हाँ बहुत खुश होती अगर वह एक बाप बन कर हाथ उठाते... मैं चुप चाप हर इल्ज़ाम और जुल्म सह लेती... खुशी से मर भी जाती... पर वह राजा साहब ही रहे... भैया... हम में और गाँव वालों में आज भी कोई फर्क़ ही नहीं है... अगर फर्क़ है तो बस इतना... के वह लोग खुले जैल में रहते हैं... और हम अंतर्महल में... बाकी औकात हम सबकी एक ही है...
सुषमा - यह क्या कह रही है रुप...
रुप - छोटी माँ प्लीज... भैया... ऐसी कोई जीत नहीं है... जिस पर क्षेत्रपाल फक्र कर सके... पर अब कि बार.. हार ऐसी हुई है... जिस पर मातम मना रहे हैं... बात वहाँ तक ठीक भी थी... पर हार की खीज उतारने के लिए... अपने ही घर की औरतों पर चाबुक चला रहे हैं...
विक्रम - मैं समझ सकता हूँ रुप... पर यह कोई बात नहीं हुई... के तुम मेरे साथ भुवनेश्वर ना जाओ...
रुप - नहीं बात यह भी नहीं है... (मुस्कराते हुए) बात दरअसल यह है कि... होली पूर्णिमा की रात को मैंने राजा साहब से वादा किया है... इस बार जब घर से जाऊँगी तो सिर उठा कर... सीना तान कर... उनके आँखों के सामने जाऊँगी... और वह समय अभी आया नहीं है...
सुषमा - यह लड़की पागल हो गई है... विक्रम तुम जानते हो... यह ऐसा क्यूँ कह रही है...
विक्रम - छोटी माँ... आप इसे अपने कमरे में ले जाइए...
सुषमा - विक्रम...
विक्रम - हाँ माँ... आप रुप को अपने कमरे में ले जाइए... मैं राजा साहब के पास जा कर आता हूँ...
सुषमा - मैं यह कहना चाहती थी..
विक्रम - मैं जानता हूँ... समझता हूँ... आप फिलहाल रुप को यहाँ से ले जाइए...

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शुभ्रा - अरे वीर... तुम... ह्वट अ प्लिजंट सरप्राइज़...

द हैल के ड्रॉइंग रुम में वीर बैठा हुआ था l नौकरों से खबर मिलने के बाद शुभ्रा वीर से मिलने आती है l

वीर - (खड़े हो कर) नमस्ते भाभी...
शुभ्रा - ओ हो.. नमस्ते... यह मैनर्स... लगता है सोहबत का असर है... अनु ने अच्छा सीखा दिया है तुमको....
वीर - नहीं ऐसी बात नहीं है... पर हाँ... ऐसा कहने में कोई बुराई नहीं है... आख़िर आप रिश्ते में और ओहदे में बड़ी तो हैं...
शुभ्रा - (बैठते हुए) बाप रे... क्या बात करने लगे हो... ओके ओके... पहले बैठ तो जाओ... अखिर यह तुम्हारा ही तो घर है...
वीर - (बैठ जाता है)
शुभ्रा - बोलो वीर... तुम्हें इतने दिनों बाद हमारी याद कैसे आई... आई तो आई... पर अकेले... अनु को साथ नहीं लाए...
वीर - मैं भुला ही कब था भाभी... आपने हर कदम पर मेरा साथ दिया... नई राह दिखाई... नई जिंदगी दी...
शुभ्रा - बस बस... तुम यहाँ ताना मत मारो...
वीर - मेरी इज़्ज़त अफजाई को... आप ताना मत कहिये भाभी...
शुभ्रा - तुम हमारे अपने हो... तुम इज़्ज़त अफजाई नहीं कर रहे थे... बल्कि मेरा एहसान गिना रहे थे... अपनों के एहसान गिनाओगे... जो कि तुम्हारा हक भले ही हो... तो वह ताना ही होता है...
वीर - सॉरी भाभी... मैं आपका मन दुखाना नहीं चाहता था...
शुभ्रा - ओह मैं भी तुमको... गिल्टी फिल नहीं कराना चाहती... डोंट माइंड...
वीर - नहीं भाभी... इतना हक तो बनता है आपका...
शुभ्रा - ठीक है... यह बताओ आना कैसे हुआ...
वीर - वह भाभी... सुबह से राजगड़ को फोन लगा रहा हूँ... भैया को भी फोन... लगा रहा हूँ... किसी का भी नहीं लग रहा है...
शुभ्रा - ओह... तुम ने शायद न्यूज देखी होगी...
वीर - हाँ...
शुभ्रा - कल शाम से यह प्रॉब्लम है... विक्की ने कल रात को कोशिश की थी... जब फोन नहीं लगा तो देर रात को ही राजगड़ के लिए निकल गए थे...
वीर - वहाँ पहुँच कर वापस फोन नहीं की...
शुभ्रा - नहीं... नहीं की उन्होंने...
वीर - ओह... (चुप हो जाता है)
शुभ्रा - उन्होंने कहा था... शायद फोन लाइन काट दी गई होगी... या जाम कर दिया गया होगा... जो भी हो आज शाम तक मुझे सारी जानकारी दे देंगे...
वीर - (दबी आवाज में) वह... भाभी... आप साथ नहीं गई...
शुभ्रा - वीर... तुम जानते हो... मैं तभी राजगड़ जाती हूँ.. जब राजा साहब से बुलावा आता है... मेरी हैसियत क्या है उस घर में... तुम जानते हो...

कुछ देर के लिए दोनों के बीच एक चुप्पी सी छा जाती है l इस बात का एहसास होते ही शुभ्रा वीर से कहती है l

शुभ्रा - ओह ओ.. मैं भी ना कैसी बातेँ लेकर बैठ गई यहाँ... खाने के लिए तो दुर... पानी तक नहीं पुछा...
वीर - नहीं भाभी... आप परेशान ना होइए... मैं घर से खाकर ही आया हूँ...
शुभ्रा - क्यूँ... अनु की हाथों का खाना बहुत अच्छा लग रहा है... अपनी भाभी हाथ से बना खाना नहीं खाओगे...
वीर - नहीं भाभी ऐसी बात नहीं है...
शुभ्रा - हाँ हाँ तुम तो ऐसे ही कहोगे... आखिर तुम पैराडाइज में रह रहे हो... यह तो हैल है न...
वीर - (शिकायत भरे लहजे में) भाभी... आप तो मेरी टांग खिंचने लगी हो...
शुभ्रा - (खिलखिला कर हँसते हुए) अभी तो तुमने कहा... इतना तो हक बनता है तुम पर मेरा...
वीर - जी भाभी... (चुप हो जाता है)
शुभ्रा - वीर...
वीर - जी... जी भाभी..
शुभ्रा - तुम किसी खास काम के लिए आए हो... हिचकिचा रहे हो.. साफ साफ कहो... क्या बात है...
वीर - वह भाभी... मैं दरअसल... अपने कमरे से एक ड्रेस लेने आया हूँ...
शुभ्रा - हाँ तो इसके लिए इतना हिचकिचा क्यूँ रहे हो... यह अभी भी तुम्हारा ही घर है... तुम्हें निकाला ही कौन था... तुम्हीं अपनी जिद से दुर चले गए...
वीर - जी भाभी...
शुभ्रा - वैसे एक ही ड्रेस लेने आए हो या सारा का सारा सामान...
वीर - नहीं नहीं भाभी... सिर्फ वह खास ड्रेस ही... जिसे अनु ने मुझे गिफ्ट किया था...
शुभ्रा - ओ... अच्छा... ऊँ हुँ... अनु ने गिफ्ट किया था... (वीर शर्मा जाता है) (शुभ्रा फिर से खिलखिला कर हँस देती है) ठीक है ठीक... जाओ अपने कमरे से लेलो... तुम्हारा कमरा बिल्कुल वैसे ही है... जैसे तुम छोडकर गए थे...

वीर उठता है तो शुभ्रा भी उठती है l वीर अपने कमरे की ओर बढ़ने लगता है साथ में शुभ्रा भी जाने लगती है l वीर कमरे में पहुँच कर अपना वार्डरोब खोलता है l वही ड्रेस निकालता है l शुभ्रा देखती है वीर के आँखों में एक बच्चे के जितनी मासूमियत से भरा खुशी झलक रही थी l

शुभ्रा - आज क्या कुछ खास दिन है...
वीर - जी भाभी...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... मैं गैस कर बताऊँ... (वीर उसे सवालिया नजर से देखता है) लगता है... आज शाम तुम दोनों की कोई रोमांटिक डेट वाला प्रोग्राम है....
वीर - (शर्माता है) है तो...
शुभ्रा - वैसे किस बात की... (वीर हैरान हो कर देखता है) हाँ ना बताना चाहो तो मत बताना...
वीर - आप ऐसे ना कहिये भाभी... मेरी जिंदगी पर आप और भैया का जितना हक बनता है... उतना हक तो मेरे जन्म देने वाले माता-पिता का भी नहीं बनता...
शुभ्रा - (इमोशनल हो जाती है) बस वीर... इतना कह दिया... काफी है...
वीर - सच कह रहा हूँ भाभी...
शुभ्रा - अच्छा ठीक है जाओ... आज का शाम तुम... अनु के नाम कर दो...
वीर - आप पूछोगे नहीं...
शुभ्रा - ठीक है बताओ फिर...
वीर - वह भाभी... आप... आप ना बड़ी माँ बनने वालीं हैं...
शुभ्रा - क्या... ओह माय गॉड... इतनी बड़ी बात... अब कह रहे हो...
वीर - सॉरी भाभी... एक्चुयली मैं यह बात सबको कल कहना चाहता था... आज बस अनु के साथ यह खुशी बाँटना चाहता था...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... ठीक है... मैं समझ गई... यह पल... कितना अनमोल है.. तुम दोनों के लिए मैं समझ गई... जाओ आज की शाम सिर्फ और सिर्फ तुम दोनों के नाम हो...
वीर - थैंक्यू भाभी... मैं अब थोड़ा ऑफिस जाऊँगा... पुरे एक साल की छुट्टी लूँगा...
शुभ्रा - क्या... एक साल...
वीर - मतलब... मेरा ही कॉन्ट्रैक्ट है... अपनी जगह किसी को हायर कर लूँगा... पुरे एक साल तक... अनु के कदम जमीन पर ना पड़े.. बिल्कुल ऐसा ख्याल रखूँगा...

यह बात वीर जिस मासूमियत से कही थी शुभ्रा के मन को बहुत प्रभावित करता है l

शुभ्रा - हाँ वीर मैं जानती हूँ... तुम अनु का बहुत खयाल रखोगे... देखो कल तुम्हें हर हालत में अनु को यहाँ लाना है... नहीं नहीं... मैं जाऊँगी... कल अनु से मिलने... ठीक है...
वीर - जी भाभी...

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बारंग रिसॉर्ट
अपने कमरे में एक आर्म चेयर पर पिनाक अधलेटा पड़ा हुआ है l पास के टेबल पर शराब की कुछ खाली बोतलें और ग्लास लुढ़की पडी थी l कमरे में अंधेरा पसर रहा था l अचानक कोई पर्दे हटा देता है l जिसके वज़ह से तेज रौशनी पिनाक के आँखों पर पड़ती है l तिलमिला कर वह उठ जाता है l

पिनाक - आह... यह पर्दे क्यूँ हटाए...
#@# - छोटे राजा जी... सुबह कब की हो गई है...
पिनाक - तो... तो मैं क्या करूँ... (अपना हाथ में सूखे ज़ख़्म को देख कर) जब अपनी ही चिराग से घर में रौशनी ना हो तो... दिन क्या रात क्या... बंद कर दो यह पर्दे...
#@# - नहीं... आज नहीं... आई मिन अभी नहीं...
पिनाक - क्यूँ... क्यूँ नहीं...
#@# - आप अपने ग़म में डूबे रहते हैं... ना ऑफिस जा रहे हैं... ना कहीं और... जब कि दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है... हो रहा है क्या... बल्कि हो गया है...
पिनाक - क्यूँ... क्या हो गया... किसकी अम्मा चुद गई... जिसका खयाल मुझे करना चाहिए...

वह शख्स चुप रहता है l पिनाक टेबल पर नजर दौड़ाता है l एक बोतल में कुछ शराब बची थी उसे ग्लास में उड़ेल देता है l शराब की ग्लास को होठों से लगाने वाला ही था कि वह शख्स पिनाक के ग्लास वाला हाथ पकड़ लेता है l

पिनाक - (गुस्से में) हाऊ डैर यु... तुमने मेरा हाथ पकड़ा...
#@# - पहले आप जान लीजिए क्या हुआ है अब तक... फिर यह कमरा और यह शराब आपके ही हैं... चाहे तो ग़म में पी सकते हैं... या फिर खुशी में झूम कर...
पिनाक - (एक आशा भरी चमक चेहरे पर उभर जाती है) क्या खबर है...
#@# - एक नहीं दो खबरें हैं... एक अच्छी... और एक बुरी... कौनसा पहले सुनना चाहेंगे आप...
पिनाक - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) तो फिर बुरी वाली ही पहले सुनाओ... क्यूँकी पहले खुशी मनाने के बाद... मातम मनाना नहीं चाहते...
#@# - ठीक है...

इतना कह कर वह शख्स टीवी के पास जाता है और टीवी ऑन कर देता है l टीवी पर राजगड़ में हुए घटनाक्रम को मिर्च मसाला लगा कर सभी न्यूज चैनल वाले प्रस्तुत कर रहे थे l न्यूज में भैरव सिंह के साथ हुए सरकारी करतूत को सुनते ही पिनाक के होश उड़ जाते हैं l वह अपनी कुर्सी से हैरानी के मारे उठ खड़ा होता है l आँखे फाड़ कर न्यूज को सुनते हुए टीवी के पास जाता है फिर पिनाक उस शख्स की ओर मुड़ कर पूछता है l

पिनाक - यह... यह क्या है... यह सब कैसे हो गया... ऐसा करने की हिम्मत... सर्कार में या कानून में आई कहाँ से... कैसे...
#@# - यह तो मैं भी नहीं जानता... पर जो भी हुआ है... कल शाम को ही यह सब हुआ है... यह खबर आपको रात को बताई जा सकती थी... पर आप तो.. (चुप हो जाता है)
पिनाक - (अपनी बालों को नोचने लगता है) आह... यह मुझसे क्या हो गया... जिस वक़्त मुझे राजा साहब के बगल में खड़ा होना चाहिए... मैं उस वक़्त यहाँ...
#@# - आप ही ने तो कसम खाई थी... जब तक जीत ना जाएं... तब तक राजगड़ ना जाने की...
पिनाक - (थोड़ी ऊंची आवाज़ में) हाँ.. हाँ... जानता हूँ... पर... यह सब छोड़ो... पहले यह बताओ... इन सबके पीछे... किसकी साजिश है... क्षेत्रपालों के खिलाफ किसकी साजिश है...
#@# - मैंने खबर लेने की कोशिश की है... और मुझे जो पता चला है... इन सबके पीछे वही है... जिसने सुंढी साही में घुस कर अनु को बचाया था...
पिनाक - विश्व...
#@# - जी...
पिनाक - वह हराम का पिल्ला... उसकी इतनी पहुँच कैसे हो गई... (एक पॉज) मुझे राजगड़ जाना पड़ेगा...
#@# - जैसी आपकी मर्जी... आप ही ने कसम खाई थी... जब तक राजकुमार और अनु को अलग ना कर दें... तब तक राजगड़ नहीं जाएंगे...
पिनाक - सुबह सुबह महसूस खबर के साथ मेरा पूरा दिन खराब कर... मुझे मेरी ही कसम याद दिला रहे हो..
#@# - हाँ वह इसलिए... के आप जब राजा साहब के सामने खड़े हों... तब एक जीते हुए बाजीगर की तरह उनके सामने पेश हों... ना कि एक हारे हुए क्षेत्रपाल की तरह...
पिनाक - इस मनहूस खबर के बाद... कोई अच्छी ख़बर की बात भी कह रहे थे...
#@# - जी...
पिनाक - वह अच्छी ख़बर क्या है...
#@# - अच्छी खबर यह है कि... आज पूरा मौका है... राजकुमार से अनु को हमेशा हमेशा के लिए अलग करने का...
पिनाक - (आँखों में एक जबरदस्त चमक आ जाती है) कैसा मौका...
#@# - जैसे कि आपने ख़बर देखा... राजगड़ में क्या हुआ... उसे देख कर... कल रात से ही... युवराज राजगड़ के लिए निकल चुके हैं...
पिनाक - तो क्या हुआ... उसकी सेक्यूरिटी तो वैसे का वैसे होगा...
#@# - (एक कुटील मुस्कान के साथ) छोटे राजा जी... आप लोग रजवाड़े हैं... युद्ध कला आपसे बेहतर कौन जानता होगा...
पिनाक - पहेलियाँ ना बुझाओ... बात को समझाओ...
#@# - जंग तभी हारी जाती है जब जंग के मैदान में... सेना नायक दिखे ही ना... तब सेना तितर-बितर हो जाती है... अब चूँकि युवराज भुवनेश्वर में नहीं हैं... हम उस जगह की सेक्यूरिटी को बिखर सकते हैं...
पिनाक - वीर भी तो हो सकता है...
#@# - मैं इतना बेवक़ूफ़ थोड़े हूँ... आज राजकुमार सुबह सुबह हैल गए थे... उसके बाद अपनी ऑफिस में गए हैं... आते आते शाम हो जाएगी...
पिनाक - हाँ फिर भी... उस अपार्टमेंट में... चौदह फॅमिली रहते हैं...
#@# - सब काम काजी लोग हैं... आधे से ज्यादा वाइफ और हज्बंड नौकरी पेशा हैं... बाकी जितने हैं... उन्हें हम बाहर से ही लॉक कर देंगे... ताकि कोई चश्मदीद गवाह नहीं होगा... हम आसानी से अपना काम कर निकल जाएंगे...
पिनाक - (बहुत खुश हो कर अपने सूखे हुए ज़ख़्म की देख कर) जब खून कोई ज़ख़्म देता है... तो बड़ा दर्द देता है... पर वह भूल गया है... के मैं उसका बाप हूँ... मेरे दिए ज़ख़्म का मरहम भी मुझ ही से होगा... (शख्स की देखते हुए) जाओ... तैयारी करो... बेटे ने दर्द दिखाया है... अब बाप बतायेगा.... दर्द क्या होता है...

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अपने कमरे में फर्ग्यूसन की तलवार के सामने खड़े हो कर उस तलवार को देखते हुए भैरव सिंह शराब की चुस्की ले रहा था l पीछे विक्रम आकर खड़ा होता है l सामने लगी काँच की शो केस में विक्रम का अक्स देख कर भैरव सिंह पूछता है

भैरव सिंह - क्या हुआ... राजकुमार...
विक्रम - आप इस वक़्त... इस टुटे हुए तलवार के सामने...
भैरव सिंह - इस तलवार की अपनी एक गाथा है... इतिहास है... जानते हो... यशपुर रियासत को... फर्ग्यूसन की मध्यस्थता से... ब्रिटिशों से... पावर ट्रांसफ़र हुआ था... यह तलवार उसकी गवाह है... निशानी है...
विक्रम - अभी आप इस तलवार को इतनी गौर से क्यूँ देख रहे हैं... जैसे कोई शिकायत कर रहे हैं...
भैरव सिंह - (विक्रम की ओर मुड़ता है) इसी तलवार ने... हम क्षेत्रपाल को... इस इलाके में भगवान बना दिया था...
विक्रम - तो अब...
भैरव सिंह - अभी भी हम यशपुर और इसके आसपास इलाक़ों के भगवान हैं... (अपनी शराब ख़तम कर सोफ़े पर बैठता है) हम बस इतना देखने आये थे... कहीं इस तलवार पर... जंग तो नहीं लग गया...
विक्रम - तो क्या देखा आपने...
भैरव सिंह - यही के अब जो हालात हैं... मुश्किल भरा ज़रूर है... पर थोड़ी देर के लिए है... वैसे.... आप यहाँ क्यूँ आए... कैसे आए...
विक्रम - खबर देखी टीवी पर... फोन करने की कोशिश की... जब फोन नहीं लगा तो अंदाजा हो गया था.... आगे आपका क्या हुकुम होगा... यह जानने के लिए आया हूँ...
भैरव सिंह - हूँ...
विक्रम - तो हुकुम क्या है...
भैरव सिंह - अभी... कुछ बातेँ अंधेरे में है... वकील को भेजा है... उसे आने दीजिए... (कुछ देर की चुप्पी)
विक्रम - कुछ पूछना था...
भैरव सिंह - क्या...
विक्रम - आपने... रुप पर चाबुक क्यूँ चलाई...
भैरव सिंह - (विक्रम को घूर कर देखता है) आप... हम से... फिर से सवाल कर रहे हैं...
विक्रम - हाँ... यह मेरा हक बनता है....
भैरव सिंह - हक... हक तब बनता है... जिस पर हमारी स्वीकृति है...
विक्रम - रुप बहन है मेरी...
भैरव सिंह - आप.. हम से... मैं पर आ गए हैं...
विक्रम - आप हम कह सकते हैं... क्यूँकी आप अपना ही नहीं... अपनों का दूसरों का... फैसला कर सकते हैं... जब मैं खुद का भी फैसला नहीं कर सकता... तो यह हम की रौब क्यूँ और किसलिए...
भैरव सिंह - खुद को हम कहना कोई बकलॉली नहीं है... यह राजसी पहचान है...
विक्रम - क्या यह पहचान कल काम आया...
भैरव सिंह - आप चाहते क्या हैं युवराज...
विक्रम - आप ने रुप पर चाबुक क्यूँ चलाई...
भैरव सिंह - (गुस्से में खड़े होकर) युवराज.... आप हमसे सवाल कर रहे हैं... मत भूलिए... आप राजा क्षेत्रपाल से मुखातिब हैं...
विक्रम - कल को आपकी जगह मैं भी आ सकता हूँ... जैसे बड़े राजा जी के जगह पर आप आए थे...
भैरव सिंह - हाँ हम तब आए थे... जब हमने खानदान को वारिस दी थी... आपके विवाह को तीन साल हो गये हैं... और आपसे वारिस... अभी तक इस खानदान को मिला नहीं है...
विक्रम - आपने कभी शुभ्रा जी स्वीकारा भी तो नहीं...
भैरव सिंह - ओ... तो इस बात का बदला लिया जा रहा है...
विक्रम - नहीं... अपनों से कैसा बदला... खैर हमारी बात... मुद्दे से भटक रहा है... आपने रुप पर चाबुक क्यूँ चलाई...
भैरव सिंह - (तिलमिला कर) क्यूँकी... अब उसकी शादी... दसपल्ला के सिंह देव परिवार में नहीं होगी... तो अब वह हमारी किसी काम की नहीं रही...
विक्रम - काम की नहीं तो गोली मार देते... यूँ चाबुक क्यूँ चलाई...
भैरव सिंह - अभी तो नजर बंद हैं... अगर नहीं होते तो ज़रूर कुछ ना कुछ कर देते...
विक्रम - शादी वहाँ नहीं होगी... यह आपको कब पता चली...
भैरव सिंह - (गुस्से में तिलमिला कर) पुरे स्टेट में जो धाक थी... वह मिट्टी पलित हो गई... जो कानून इस चौखट पर एड़ियाँ रगड़ती थी... इस महल की ओर जो आँखे नहीं उठती थी... पीठ कर उल्टे पाँव नहीं जाती थी... एक ही झटके में... सब कुछ तबाह हो गया....
विक्रम - इन सबका जिम्मेदार कौन है राजा साहब...
भैरव सिंह - (चुप रहता है)
विक्रम - इन सब में... रुप कहाँ से आ गई...
भैरव सिंह - कैसे नहीं... वह हमसे दुश्मनी करने वाले के साथ... रंग रलियाँ मना रही थी... पता नहीं शायद मुहँ भी काला कर लिया हो...
विक्रम - यानी आपको मालुम नहीं है... फ़िर भी गुस्सा रुप पर उतारा...
भैरव सिंह - मत भूलो... हमने खुद को भी सजा दी है...
विक्रम - हाँ सुना मैंने... कल ही शाम को... आपने खुद पर कोड़े बरसाये...
भैरव सिंह - वह इसलिए के गलती जिससे भी हो... उसे सजा मिलनी ही चाहए... इसलिए हमने रुप नंदिनी पर चाबुक से सजा देना चाहा... पर आप बीच में आ गए... वह हमारे दुश्मन से... आह... हम अपने मुहँ से कह भी नहीं सकते...
विक्रम - दुश्मन...
भैरव सिंह - हाँ दुश्मन... कभी हमारे टुकड़ों में पलने वाला कुत्ता... हमें काटने पर तूल गया है... और यह बदजात... उसी से... छी...
विक्रम - जहां तक मुझे याद है.. आप ही कहा करते थे... रिश्तेदारी... दोस्ती या दुश्मनी... हमेशा बराबर वालों से रखी जाती है... या निभाई जाती है...
भैरव सिंह - (गुर्राते हुए) विश्वा हमारे बराबर कभी नहीं हो सकता...
विक्रम - मगर आपने उसे अभी दुश्मन कहा... इसका मतलब यह हुआ कि... उसने आपनी लकीर आपसे बड़ी कर दिया है... यूँ कहूँ तो... उसने अपना कद शायद ऊँचा कर लिया है...
भैरव सिंह - वह... एक वकालत की डिग्री क्या हासिल कर ली... हमारी बराबरी करेगा... युवराज... अपना जेहन दुरुस्त करो... वह हमारे बराबर कभी नहीं हो सकता...
विक्रम - तो फिर उसे दुश्मन मानने की वज़ह...
भैरव सिंह - वह... वह तो हमारे मुहँ से यूहीं बर्बस निकल गया... (एक गहरी साँस छोडकर) रोणा सही कह रहा था... मरवा देना चाहिए था उस हरामजादे को... लगा.. क्या कर पाएगा... ज्यादा से ज्यादा... एक छोटा सा घाव ही दे पाएगा... पर... पर हमारा अंदाजा गलत हो गया... वह घाव पर घाव देता गया... अब वह सारे घाव नासूर बन गया है...
विक्रम - ह्म्म्म्म... जो सदियों से कभी नहीं हुआ... वह आपके हिस्से आया... क्या इस बात की खीज को आपने रुप पर दिखाया...
भैरव सिंह - (एक पॉज) विश्वा ने हमसे दुश्मनी के चलते... उसके और हमारे बीच में... रुप को ले आया... कायर...
विक्रम - गलत... गलत कह रहे हैं... विश्वा और रुप के सबंध पर आप की कहा मान भी लिया जाए... तो भी... विश्वा अपनी लड़ाई में कभी रुप की आड़ नहीं लिया... वह सीधे मुहँ टकराया है आपसे... पर आज उसकी दुश्मनी आप पर इतनी भारी पड़ी.. के रुप को आप बीच में घसीट लाए...
भैरव सिंह - (अपना दांत पीसने लगता है)
विक्रम - इसका मतलब यह हुआ कि... उसने आपकी नीचे की जमीन खिंच ली है... जिसके वज़ह से आप को अर्श से फर्श पर ले आया... वह हमारे बराबर नहीं आया... उसने आपको खिंच कर अपने बराबर ला खड़ा कर दिया... (भैरव सिंह के जबड़े भिंच जाते हैं, मुट्ठीयाँ कस जाते हैं) यकीन नहीं होता... एक सजायाफ्ता... मामुली सी वकालत डिग्री लेकर कर... एक अकेला... ऐसा प्लॉट बनाया के क्षेत्रपाल... अभी चारो खानों चित हैं...
भैरव सिंह - (गुर्राते हुए) वह अकेला नहीं है... इस लड़ाई में चेहरा सिर्फ विश्वा का है... पर नैपथ में... खिलाड़ी और भी हैं...
विक्रम - (हैरानी से) क्या...

भैरव सिंह कुछ नहीं कहता l विक्रम देखता है भैरव सिंह गुस्से में दांत पीस रहा था l उसके कान के नीचे वाली पेशियाँ फुल रहे थे l इतने में कमरे के बाहर भीमा अंदर आने की इजाजत माँगता है l

भीमा - हुकुम... (भैरव सिंह अंदर आने के लिए इशारा करता है) वह वकील बाबु आए हैं... (भैरव सिंह इशारे से अंदर लाने के लिए कहता है)

थोड़ी देर बाद बल्लभ प्रधान कमरे में आता है और अपना सिर झुका कर खड़ा रहता है l भैरव सिंह अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l

भैरव सिंह - बैठो...
बल्लभ - नहीं राजा साहब मैं ऐसे ही ठीक हुँ....
भैरव सिंह - तो... क्या पता किया तुमने वकील...
बल्लभ - (अपनी गले का खरास ठीक करता है) राजा साहब... आप हमेशा... एक तकिया कलाम कहा करते थे... आपने किसी से दोस्ती की नहीं और दुश्मनी किसीसे छोड़ी नहीं...
भैरव सिंह - हूँ...
बल्लभ - आपसे दुश्मनी की दायरा भी... आप तय करते थे... जो दायरा लांघ जाता था... उसे आप ख़तम करदिया करते थे...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तुम कहना क्या चाहते हो प्रधान...
बल्लभ - यही के बहुत से दुश्मन जो खुद को आपके बनाए दायरे में कैद रखा... आज वह धीरे धीरे लामबंद हो रहे हैं... विश्वा के वज़ह से... विश्वा के लिए...
विक्रम - तुम यहाँ कब से पहेलियाँ बुझा रहे हो... बात को घुमाने के बजाय सीधे सीधे कहो... और पूरा करो...
बल्लभ - यह कहानी पाँच साल पहले शुरु होती है... आपको याद होगा... भुवनेश्वर सेंट्रल जैल में एक हमला हुआ था...
विक्रम - हाँ... याद है...
बल्लभ - उस हमले में... यश अपने ड्रग्स पैडलर्स को बचाने के लिए.... हमारी लॉजिस्टिक्स की मदत ली थी... पर वह हमला नाकामयाब रहा था...
भैरव सिंह - यह सब जानते हैं... आगे बढ़ो...
बल्लभ - उस हमले में सभी हमलावर मारे गए थे... पुलिस की ओर से कोई कैजुअलटी नहीं हुई थी... पर उस रात एक कैदी घायल हुआ था... विश्वा...
भैरव सिंह - (चौंक कर) उस रात.. विश्वा घायल हुआ था...
बल्लभ - हाँ... इस बात को विश्वा के अनुरोध पर पुलिस की तरफ से छुपाया गया था... बदले में कुछ पुलिस वालों को गैलेंट्री अवॉर्ड मिला था... (कुछ पल की चुप्पी के बाद) उनमें से दो... विश्वा के मदत के लिए सीधे मैदान में उतरे हैं... पहला एएसपी सुभाष सतपती... जिसे विश्वा के पीआईएल दाखिल के बाद... एसआईटी का चीफ बनाया गया है... (भैरव सिंह की आँखे फैल जाती हैं) और दूसरा है दासरथी दास... जो अभी राजगड़ थाने का प्रभारी है...
विक्रम - ह्वाट... यह कैसे हो सकता है... विश्वा इन्हें अपनी मदत के लिए सामिल नहीं कर सकता... इसके पीछे कोई स्ट्रॉन्ग पोलिटिकल बैकअप होगा... पर उस हमले से... इन लोगों का विश्वा से क्या संबंध...
बल्लभ - है... क्यूँकी सच्चाई यही है कि... जैल पर हुए उस हमले को... विश्वा ने अकेले ही नाकाम किया था... और तत्कालीन जैल सुपरिटेंडेंट तापस सेनापति जी को बचाते हुए... घायल हुआ था...
विक्रम - तो इससे क्या साबित होता है...
बल्लभ - विश्वा ने जो किया... उससे बहुतों को प्रमोशन मिला... उनमे... सुभाष बाबु और दास बाबु... विश्वा के एहसानमंद हो गए... और सबसे खास बात... प्रतिभा सेनापति जो अपने मरहुम बेटे प्रत्युष की मौत से पागल सी हो गयी थीं... विश्वा को अपना बेटा मान लिया... यानी उस दिन के बाद... विश्वा सेनापति दंपति के मुहँ बोला बेटा हो गया... (भैरव सिंह से) राजा साहब... यह बात आप ही ने हमें कहा था... याद है...
भैरव सिंह - तो इस तरह से... विश्वा को माँ बाप मिल गए..
बल्लभ - जी राजा साहब...
विक्रम - पर विश्वा के हर मामले से... यह सतपती और दास जुड़े कैसे...
बल्लभ - जैल पर उस हमले की न्यायिक जाँच को... राजा साहब ने अपने कॉन्टैक्ट के जरिए रुकवा दिया था... पर तापस सेनापति अंदर ही अंदर उस हमले की तहकीकात कर रहा था... उसे कुछ लीड मिले जो ESS और क्षेत्रपाल की इंवॉल्वमेंट का शक हुआ... उसे यह भी समझ आ गया... के क्यूँ इनवेस्टिगेशन रोक दी गई थी... अब विश्वा उनकी जिंदगी का हिस्सा बन चुका था... और वह यह भी समझने लगे थे... की विश्वा हर हाल में... राजा साहब के खिलाफ कुछ ना कुछ करेगा... इसलिए उन्होंने अपनी नौकरी से विआरएस ले ली... ताकि आगे चलकर विश्वा पर कोई खतरा ना आए... पहले ही अपने बेटे को खो चुके थे... अब दूसरी बार खो नहीं सकते थे...
भैरव सिंह - एक रिटायर्ड सरकारी नौकर की इतनी हैसियत... के वह यह सब प्लॉट बना सके...
बल्लभ - नहीं... पर हाँ...
विक्रम - यह कैसा ज़वाब हुआ...
बल्लभ - सिस्टम के हर कोने में... हर हिस्से में... करप्ट लोग होते हैं... पर कुछ ना कुछ ईमानदार लोग भी होते हैं... और कुछ सिस्टम के सताये हुए लोग भी होते हैं... (बल्लभ रुक कर दोनों की प्रतिक्रिया देखने लगता है, दोनों अपनी अपनी भौंहे सिकुड़ कर बल्लभ की ओर देख रहे थे) तापस सेनापति.. उन्हीं ईमानदार और सिस्टम के सताये हुए लोगों से... अपना कॉन्टैक्ट बढ़ाया... वह हर उस आदमी से कॉन्टैक्ट किया.. जो किसी ना किसी तरह से राजा साहब से खार खाए हुए था... एक दिन उसे खबर मिली के... राजगड़ में होम मिनिस्टर का अपमान हुआ है... वह उनसे भी कॉन्टैक्ट किया... होम मिनिस्टर से मिलकर... तापस सेनापति अपना नेट वर्क बिछाया... जिसका परिणाम आज यह है...
भैरव सिंह - (गुस्से से गुर्राते हुए) होम मिनिस्टर... नहीं बचेगा अब... युवराज...
विक्रम - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - आप बाहर जाते ही... होम मिनिस्टर से बात करो और उसे चेताओ... उसकी पाप की गठरी हमारे पास बड़ी हिफाज़त में है... मीडिया को देने में हम जरा भी गुरेज नहीं करेंगे...
विक्रम - जी... जरुर... मैं होम मिनिस्टर से बात करूँगा...
बल्लभ - अब शायद... कोई फायदा ना हो...
भैरव सिंह - क्या मतलब है तुम्हारा...
बल्लभ - राजा साहब... जब सैलाब पर बस ना चले... तो बुद्धिमानी यही है कि... बहाव के साथ बहा जाए... जब तक किनारा ना मिल जाए...
भैरव सिंह - क्या बक रहे हो...
बल्लभ - मेरी पूरी बात सुनिए राजा साहब... आपने भुवनेश्वर में और राजगड़ और यशपुर जिन्हें भी जासूसी करने के लिए भेज रखा था... तापस सेनापति उन्हें पहचान कर अपने ट्रैप में ले लिया था... और आपके पास वही ख़बरें पहुँच रही थी... जो तापस सेनापति चाहता था... (भैरव सिंह की आँखे और मुहँ हैरानी के मारे बड़े हो जाते हैं) जी राजा साहब... उदय... जिसे हम रोणा का आदमी समझ रहे थे... वह असल में... तापस सेनापति का आदमी था... हाँ... राजा साहब वह सेनापति का आदमी था... जो रोणा को बेवक़ूफ़ बना कर रोणा के साथ रहा... फ़िर रोणा को फंसा कर आपके पास लाया.. और आपसे वह करवाया... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - चुप क्यूँ हो गए... अपनी बात को पुरी करो...
बल्लभ - उसने उस रात अपनी शर्ट पर... पेन कैमरा लगा रखा था.. जिसमें आप रोणा के खिलाफ अपने आदमियों को हुकुम दे रहे थे और मरवाने का प्लान कह रहे थे... उदय ने सब शूट कर दास को दे दिया था...
भैरव सिंह - ओह... तो इसलिए... रोणा की होली दहन की वीडियो देने पर भी... दास ने गाँव वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की...
बल्लभ - हाँ... बल्कि आपकी दी हुई वीडियो को उसने हथियार बना कर... गाँव वालों को ब्लैक मैल किया... आपके खिलाफ धोखाधड़ी का केश करने के लिए कहा... जो विश्वा चाहता था... बदले में... उनके खिलाफ सारे केस माफ करने का वादा किया... इसीलिए तो आसानी से... लोगों ने आपके खिलाफ केस दर्ज कर दिया...

बल्लभ के दिए यह इन्फॉर्मेशन किसी बम की तरह भैरव सिंह के जेहन पर विस्फोट कर रहा था l उसकी मनोदशा देख कर विक्रम बल्लभ से सवाल करता है l

विक्रम - वह तो ठीक है... केस सुबह दो पहर तक हो गया था... पर शाम तक... इतनी बड़ी फोर्स... इतनी तगड़ी एक्शन...
बल्लभ - तहसीलदार नरोत्तम पत्री... असल में इस केस की प्लानिंग... महीनों पहले हो चुकी थी... तापस के कहने पर... होम मिनिस्टर ने... लोगों की केस दर्ज करते ही... पत्री को जुडिशरी इंक्वायरी के लिए एपइंट किया गया... सालों से पत्री मौका ढूँढ रहा था... जैसे ही केस हाथ में आई... उसने तुरंत ही फोर्स भेज कर कारवाई कर दी... (विक्रम और भैरव सिंह दोनों चुप हो जाते हैं, पर बल्लभ कहना चालू रखता है) हम अगर... होम मिनिस्टर के पुराने पाप खोलेंगे... तो राजा साहब का वह वीडियो जिसे उदय ने रेकार्ड किया था... मीडिया तक पहुँच जाएंगी... और अब तक तो... होम मिनिस्टर ने... उस विडिओ की फॉरेंसिक रिपोर्ट भी हासिल कर ली होगी... हम अगर उसके केस को बाहर लाएंगे... तो हमारा वह विडियो वायरल होगा... हम अगर झुठलाने की कोशिश करेंगे तो जाहिर है... उसका भी वीडियो झूठा होगा...
भैरव सिंह - क्या चाल चली है... उस रिटायर्ड सेनापति ने...
बल्लभ - हाँ... हमारा सबका ध्यान... सिर्फ विश्वा पर था... जबकि कोई और भी था... जो पर्दे के पीछे... हमारे खिलाफ मुकम्मल तैयारी कर रहा था...
विक्रम - पर क्यूँ... हमारी सीधी दुश्मनी तो नहीं थी उससे...
बल्लभ - अपने बेटे को बचाने के लिए... मुहँ बोला बेटा ही सही... पर लगाव तो बहुत गहरा है... बाप है आखिर...
विक्रम - क्या विश्वा... जानता है...
बल्लभ - नहीं... विश्वा को भनक तक नहीं है... विश्वा को यह भी नहीं मालुम की... उसके बार काउंसिल लाइसेंस के पीछे तापस सेनापति की कोशिश है... तापस सेनापति ने ही उन्हीं तीन जजों को कंविंस किया... तब जाकर उन्होंने... विश्वा के लिए सिफारिश की थी...

एक सन्नाटा था कमरे में l भैरव सिंह अपनी सोच में खोया हुआ था l विक्रम अपनी सोच में l चुप्पी तोड़ते हुए l

भैरव सिंह - वह मेरे नेट वर्क को कैसे ट्रेस किया प्रधान... कैसे मैनीपुलेट कर पाया...
बल्लभ - वह... शुरुआती दिनों में... मालकान गिरी में नक्सलियों से भीड़ा है... उनकी नेटवर्क की धज्जियाँ उड़ा कर... कई नक्सली मिशन को नाकाम किया था... इसीलिए तो उसे सुपरिटेंडेंट का प्रमोशन मिला था...
विक्रम - कमाल की बात है... विश्वा सोच रहा है वह अपनी लड़ाई लड़ रहा है... जब कि उसे भनक तक नहीं... क्या यह यकीन करने लायक है...
बल्लभ - हाँ... है... क्यूंकि इस क्विक एक्शन पर विश्वा खुद हैरान है... राजा साहब के खिलाफ कई शतरंजें बिछ चुकी हैं... विश्वा अपनी चाल तो चल रहा है... पर उसीके शतरंज के बिसात पर... तापस सेनापति भी दोहरी चाल चल रहा है... इसलिए हम सभी मात खा गए... तापस ना सिर्फ हम पर नजर रखे हुए था... बल्कि... विश्वा पर भी नजर जमाये हुए था... बिल्कुल एक जागृत पिता की तरह...
भैरव सिंह - ठीक है... अभी पूरी बात समझ में आ गई... पर एक ही दिन में... इतनी बारीक बातेँ... तुम्हें पता कैसे चली...
बल्लभ - इंस्पेक्टर दास ने बताया... कल जिस तरह से उसने हँसते हुए बात कही थी.. इसलिए मैंने सीधे उससे बात करना सही समझा...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... अब बात पुरी तरह से समझ में आ गई... ह्म्म्म्म.. (अपनी कुर्सी से खड़ा होता है) जानते हो प्रधान... जहाज़ में जब पानी घुसता है... तब सबसे पहले... जहाज छोडकर चूहे भागते हैं... यह और बात है... जहाज अभी डुबा भी नहीं है... और किनारा दुर भी नहीं है... इसपर तुम क्या कहना चाहोगे इस पर...
बल्लभ - (एक गहरी साँस लेकर छोड़ता है) राजा साहब... मैं आपका लीगल एडवाइजर हूँ... और मैं जहाज के कॅप्टन को छोड़ कर भागूंगा नहीं...

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पुरे मस्ती के मुड़ में वीर गाड़ी अपनी गाड़ी चला रहा था l ऑफिस में ही अपने कपड़े बदल लिए थे l यह वही ड्रेस था जिसे खरीदने के लिए अनु रुप से लड़ गई थी l यह बात तब रुप ने ही खुद वीर को बताई थी जब रुप की अनु से पहली बार वीर ने परिचय कारवाई थी l वह बात याद कर वीर मुस्करा रहा था और बड़े प्यार से अपने पहने ड्रेस पर हाथ फ़ेर रहा था l उसे वह पल भी याद आ रहा था जब पहली बार अनु को डेट पर ले गया था l ब्यूटी पार्लर की सीढियों से उतरते हुए अनु उसे उस वक़्त किसी परी से कम नहीं लग रही थी एक हंसीनी की तरह नीचे उतर नहीं रही थी बल्कि उस दिन वह वीर के दिल में उतर गई थी l पहली बार उसने महसुस किया था कि एक लड़की ने उसके दिल के तारों को छेड़ दिया था l इस खूबसूरत एहसास से उसे उसके दोस्त प्रताप ने पहचान कराया था l मन ही मन वीर को धन्यवाद देने लगता है l ऐसे ही ख़यालों में खोया हुआ वीर अपने पैराडाइज की ओर बढ़े जा रहा था l फोन की रिंग बजने से वीर अपनी ख़यालों की दुनिया से बाहर आता है l गाड़ी की ब्लू टूथ ऑन करता है l


वीर - हैलो...
@ - कैसे हो राजकुमार...
वीर - कौन...
@ - क्यूँ राजकुमार... उस दो कौड़ी की लड़की ने... ऐसा कौनसा रंग चढ़ा दिया के अपने बाप की आवाज को... पहचान नहीं पा रहे हो...
वीर - ओह... आप...
पिनाक - हाँ हम... हम पिनाक सिंह क्षेत्रपाल बोल रहे हैं...
वीर - कहिये... किस लिए फोन किया आपने...
पिनाक - हमें रह रह कर वह रात याद आ रही थी... जिस रात को आपने... काँच के टुकड़े से... हमारा खुन बहाया था... आपको याद है...
वीर - (चुप रहता है)
पिनाक - वह ज़ख़्म सुख चुका है... पर टीस अभी भी... मेरे दिल में चुभ रही है...
वीर - आपने मुझे फोन क्यूँ किया...
पिनाक - आपको खबर मिल चुकी होगी... राजगड़ में क्या हुआ है...
वीर - हाँ... जानता हूँ... वैसे भी... मेरा अब राजगड़ से कोई लेना-देना नहीं है...
पिनाक - हाँ... तुम्हारा अब तो तुम्हारा सब लेना-देना... तुम्हारा उस रखैल के साथ है...
वीर - खबरदार... जुबान संभालकर बात कीजिए... वह मेरी व्याहता है... मेरी माँ की वह बहु है...
पिनाक - तुम्हारी माँ क्षेत्रपाल की बहू है... पर वह लड़की... क्षेत्रपाल घर की कुछ भी नहीं है... उसकी जिदंगी की अचिवमेंट क्या है... सिवाय तेरी रखैल बनने की...
वीर - (चिल्लाते हुए) पिनाक सिंह अपनी जुबान पर लगाम दो..
पिनाक - अरे वाह... हा हा हा हा हा.... आ गया ना अपनी औकात पर...
वीर - (फोन काट देता है)

वीर गाड़ी में ब्रेक लगाता है l अपने गुस्से को काबु करता है l मोबाइल निकाल कर अनु को डायल करता है l

अनु - हैलो...
वीर - (थोड़े घबराहट में) हाँ अनु... तु ठीक है ना...
अनु - जी मैं ठीक हुँ... आप कब तक आ जायेंगे...
वीर - (एक इत्मिनान की साँस लेकर) बस मेरी जान... मैं आ रहा हूँ...
अनु - राज कुमार....(अचानक कॉल ऑफ हो जाता है)
वीर - अनु... अनु... हैलो...

वीर अनु के नंबर पर डायल करता है l उसे ऑपरेटर वॉयस से फोन स्विच ऑफ की खबर मिलती है l वीर हैरान हो जाता है l अभी अभी तो अनु को फोन किया था फिर स्विच ऑफ l वीर अब गाड़ी को दौड़ाने लगता है l कुछ ही देर में गाड़ी पैराडाइज की पार्किंग एरिया में पहुँच जाती है l तभी उसका फोन फिर से बजने लगता है l वीर देखता है, डिस्प्ले में छोटे राजाजी दिख रहा था l घबराते हुए कांपते हुए हाथ से फोन उठाता है l

पिनाक - तुम बहुत बत्तमीज हो गए हो... बाप की बात काटा नहीं करते... और तमीज से पेश आना चाहिए...
वीर - आप कहाँ हैं...
पिनाक - अरे... अभी अभी तो हम ने तुम्हें बताया... हम राजगड़ जा रहे हैं... पर...
वीर - पर...
पिनाक - पर... तुमने हाथ भले ही ज़ख्मी कर दिया... उसकी मरहम कर जा रहे हैं...
वीर - (चुप रह कर सुन रहा था)
पिनाक - हम ने सारी व्यवस्था कर दी है... तुझसे तेरी रखैल को हमेशा के लिए अलग करने के लिए... (वीर की आँखे दहशत के मारे फैल जाती है)
वीर - नहीं...

वीर फोन काट देता है और भागते हुए लिफ्ट तक जाता है l देखता है लिफ्ट पर कोई लिफ्ट मैन नहीं बैठा हुआ है, और लिफ्ट पर ऑउट ऑफ ऑर्डर का बोर्ड टंगा हुआ है l वह सीढ़ियों से भागते हुए ऊपर जाने लगता है l जैसे ही अपने पेंट हाऊस में पहुँचता है तो देखता है कमरे के अंदर सामान बिखरा पड़ा हुआ है l उसे अनु की मोबाइल फर्श पर पड़ा दिखता है l मोबाइल उठा कर देखता है l डिस्प्ले टूटा हुआ था l वह चिल्लाने लगता है

वीर - अनु... अनु...

कोई जवाब नहीं मिलता उसे l वीर भागते हुए हर कमरा तलाशने लगता है l पर अनु उसे कहीं नहीं दिखती l उसके माथे पर पसीना उभरने लगते हैं l वीर का फोन फिर से बजने लगता है l वीर फोन की स्क्रीन पर देखता है छोटे राजाजी का नाम डिस्प्ले हो रहा था l

वीर - आपने अनु के साथ क्या किया...
पिनाक - गलत... हम उस दो कौड़ी की लड़की को छू कर अपना ओहदा छोटा नहीं कर सकते... हमने यह काम... अपने एक आदमी के सुपुर्द कर दिया है...
वीर - (चिल्लाते हुए) मेरी अनु कहाँ है...
पिनाक - उफ़... चिल्लाओ मत... अपना गला खराब करने से अच्छा है... अनु को बचाने के लिए हाथ पैर चलाओ...
वीर - कहाँ है मेरी अनु... बोलो मुझे...
पिनाक - अरे... जब पहले किडनैप किया था... तुमने ढूंढ लिया था... इसलिए अब चैलेंज के साथ... तुम्हारे आँख के नीचे से उठा कर ले गए... तुमको पता भी नहीं चला...
वीर - क्या...
पिनाक - हाँ... लिफ्ट में ऑउट ऑफ़ ऑर्डर की बोर्ड देख कर समझ बैठे की लिफ्ट खराब हो गई है... चेक करना था...

वीर यह सुन कर भागता है l तो देखता है लिफ्ट नीचे जा चुकी थी l वह सीढियों से नीचे भागता है l जब तक वह पार्किंग एरिया में पहुँचता है तब तक एक गाड़ी अपार्टमेंट से निकल जाता है l वीर अपनी गाड़ी के पास भाग कर आता है तो देखता है गाड़ी की सभी टायरों में हवा नहीं है l वीर बाहर की ओर भागता है l उस गाड़ी के पीछे भागने लगता है l उसे पीछे की काँच से अनु के मुहँ पर पट्टी लगी हुई दिखता है l वह गुस्से से और भी तेजी से भागने लगता है, पर वह थकने लगता है l उसकी दौड़ धीमी होने लगता है l धीरे धीरे उसके आँखों के सामने गाड़ी ओझल होने को होता है कि उसे विपरीत दिशा से आते हुए एक बाइक वाला दिखता है l वीर उस बाइक वाले के ऊपर छलांग लगा देता है, जिसके कारण वह बाइक वाले के साथ गिर जाता है l फिर वह बाइक को उठा कर कार के पीछे फॉलो करने लगता है l कुछ देर के बाद उसे वह कार एक नई बन रही बिल्डिंग के पास दिखता है l वीर बाइक रोक कर हर तरफ नजर दौड़ाने लगता है l वह बदहवास इधर उधर दौड़ने लगता है l उसे अनु या कोई और कहीं भी नहीं दिखते l वीर की रुलाई फुट पड़ती है l रोते रोते घुटनों पर आ जाता है l उसकी मोबाइल फिर से बजने लगता है l वह इस बार मोबाइल बिना देखे उठाता है l क्यूँकी उसे पता था कि वह फोन उसके बाप ने किया है

वीर - (भर्राई आवाज़ में) मेरी अनु को छोड़ दीजिए प्लीज...
@ - छोड़ नहीं.. बचाने का मौका दीजिए बोल...
वीर - (एक अंजानी आवाज सुन कर चौंकता है) कौन कौन हो तुम...
@ - तुम्हारा शुभ चिंतक...
वीर - मेरी अनु कहाँ है..
@ - मेरे पास ही है... और इसी बिल्डिंग में ही है...
वीर - (गिड़गिड़ाते हुए) देखो... तुम्हें जो चाहिए... मैं सब दूँगा... तुम अनु को छोड़ दो प्लीज..
@ - छोड़ दूँगा... इसे अपने साथ लेकर कहाँ जाऊँगा... क्या करूँगा... पर मैंने काम उठाया है... तेरे बाप से मुझे मोटा सुपारी दी है... अब तेरे बाप के सामने मै तेरी तरह नाकारा तो नहीं बन सकता ना...
वीर - (गुस्से में) मेरे बाप ने तुम्हें कितना दिया है... बोलो... मैं उसका दुगुना दूँगा.. तीन गुना दूँगा... बोलो... मेरी अनु को छोड़ दो...
@ - ह्म्म्म्म... वैसे सौदा बुरा नहीं है... बाप मारने के लिए पैसा दे चुका है... बेटा छोड़ने के एवज में पैसा देगा...
वीर - (एक आश भरी उम्मीद से) हाँ हाँ... मैं दूँगा तुम्हें पैसा.. मुहँ मांगी पैसा... बोलो कितना चाहिए...
@ - चलो फिर... मैं पैसे ले लूँगा... तुम एक काम करो... अपनी दाहिनी तरफ घूमों.. (वीर घूमता है) वहाँ पर.. एक फायर एस्टींग्वीशर रखा होगा... उसके पास जाओ.... (वीर वैसा ही करता है, फायर एस्टींग्वीशर के पास पहुँचता है) उसके पीछे गन रखी है... लेलो... (वीर एस्टींग्वीशर के पीछे टटोलकर गन ले लेता है) अब तुम्हारे पास एक गन है... गन यानी रीवॉल्वर... उसके अंदर बुलेट चेक कर लो... (वीर चेक करता है उसमें छह बुलेट थे) गुड... अब इस बिल्डिंग के तीसरे माले पर जाओ... दो लोग... तुम्हारे अनु को दबोच रखे हैं... जाओ.. तुम्हें बचाने का मौका दे दिया... जब बचा लो... तो मैं तुमसे पैसे लेने खुद आ जाऊँगा...
वीर - (गन को कस कर पकड़ लेता है) तुम जो भी हो... थैंक्यू...

फोन कट चुका था l वीर रीवॉल्वर हाथ में लेकर धीरे धीरे तीसरे माले की ओर बढ़ता है l तीसरे माले पर पहुँच कर छुप कर चारों ओर अपनी नजर घुमाता है l हर तरफ़ सन्नाटा ही सन्नाटा था l अपनी कान लगा कर सुनने की कोशिश करता है l उसके कानों में रूंधे हुए गले से दबी हुई आवाज़ सुनाई देता है l वह उस ओर नजर डालता है l उसे लगता है एक पिलर के पीछे कुछ है l वह उस ओर धीरे धीरे बढ़ने लगता है कि तभी एक आदमी एक रॉड से वीर पर हमला कर देता है l वीर उससे बचते हुए उस पर गोली चला देता है l गोली उस आदमी के सीने में लगती है l गोली की आवाज से पिलर के पीछे एक और आदमी अनु की मुहँ को दबाये बाहर निकलता है l अपने साथी को छटपटाते देख वह आदमी अनु को छोड़ कर उस ओर भागने लगता है कहाँ कोई दीवार बना ही नहीं था l वीर भी उसके पीछे भागने लगता है

वीर - रुक हरामजादे रुक... नहीं तो गोली मार दूँगा...

वीर एक गोली चलाता है वह आदमी फर्श पर छलांग लगाते हुए बचता है l फिर से खड़े हो कर भागने लगता है l वीर फिर एक गोली चलाता है l वह आदमी इस बार नीचे कुद जाता है l वीर जब तक उस सिरे पर पहुँचता है l वह आदमी नीचे रेत पर से उठ कर भाग जाता है l वीर उस पर निशाना लगाने की कोशिश करता है कि उसके कानों में अनु की आवाज सुनाई देती है l

अनु - राजकुमार जी...

वीर रुक जाता है, और उस पिलर की तरफ मुड़ता है l अनु उसे दिखाई नहीं दे रही थी l वीर घबरा जाता है l वह चिल्लाता है

वीर - अनु...

एक जनाना हाथ पिलर की ओट से पिलर को पकड़ते हुए दिखता है l फिर अनु का चेहरा सामने पिलर की ओट से निकालता है l अनु को देखते ही वीर खुश हो जाता है l अनु की आँखे नम थीं और लाल भी दिख रही थी l वीर रीवॉल्वर को किनारे फेंक कर अपनी बाहें फैला देता है l वीर को बाहें फैलाता देख अनु के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान खिल जाती है l वह पुरी तरह से पिलर की ओट से बाहर आती है, वीर देखता है अनु उन्हीं कपड़ों में थी जो उसने पहली बार अनु के लिए खरीदा था l अनु वीर की ओर भागने की कोशिश करती है l पर दो कदम पर मुहँ के बल गिरती है l अनु के गिरते ही वीर देखता है अनु की पीठ पर एक खंजर घुसा हुआ था, पीठ खून से सना हुआ था l यह मंज़र देख वीर के दिलोदिमाग पर जैसे बिजली सी गिरती है l उसके मनोभाव को प्रकृति भी समझ चुकी थी, इसलिए आसमान में भी बिजलियाँ कड़क रही थीं l वीर के मुहँ से चीख निकल जाती है l

वीर - अनु... (भागते हुए अनु के पास पहुँचता है l नीचे बैठ कर अनु को पलट कर गोद में लेता है, रोते हुए) अनु... ऐ अनु... (अनु की आँखे बंद थीं, अनु को झंझोड़ कर) ऐ अनु... अपनी आँखे खोल... (अनु अपनी आँखे खोलती है) हाँ... हाँ अनु.. देख कुछ नहीं हुआ है तुझे... छोटा सा चोट है... तु घबरा मत... मैं हूँ ना... तुझे अभी डॉक्टर के पास ले जाऊँगा... बस छोटी सी मरहम पट्टी होगी... बस
अनु - (कराहते हुए दर्द भरी आवाज में) झूठे...

वीर और कोई दिलासा नहीं दे पाता, वह फुट फुट कर रोने लगता है और अपने माथे पर हाथ मारने लगता है l अनु की आँखे बंद हो रही थी l

वीर - अनु... प्लीज मुझे छोड़ कर मत जा.. देख... मुझे देख... मैंने तेरे लिए सबको छोड़ दिया... तु मुझे छोड़ कर कैसे जा सकती है... प्लीज अनु प्लीज... तेरे सिवा दुनिया में कोई नहीं है मेरा... प्लीज मेरे खातिर हिम्मत कर... मैं तुझे डॉक्टर के पास ले जाऊँगा... तु बच जायेगी...

अनु अपनी मुट्ठी में वीर के ड्रेस की कलर को पकड़ कर वीर के करीब जाने लगती है l वीर भी अनु को अपनी बाहों में ले लेता है l वीर का हाथ फिसल कर अनु की पीठ में घुसे खंजर पर जैसे ही लगता है, वीर और भी टुट जाता है अनु को अपने बाहों में जोर से कस लेता है और रोने लगता है l अनु की गाल अब वीर के कंधे पर थी और हाथ वीर के बालों पर l अनु वीर के बालों को झटका देते हैं झंझोड़ती है l वीर का रोना अचानक थम जाता है l

अनु - (धीमी आवाज में) आई लव यु...

यह सुनते ही वीर की आँखे फैल जाती हैं l वीर महसूस करता है, अनु की पकड़ ढीली पड़ चुकी थी l वीर अनु को अपने से अलग कर अनु को देखता है l अनु की साँसे थम चुकी थी और आँखे भी बंद हो चुकी थी पर अनु का चेहरा दमक रही थी एक संतुष्टि और संतृप्ती के साथ l वीर फिर से सुबकने लगता है कि उसका फोन बजने लगता है l वीर फोन निकाल कर देखता है l स्क्रीन पर छोटे राजाजी दिख रहा था l वीर के चेहरे का भाव बदल जाता है l एकदम से कठोर हो जाता है l फोन उठाता है

वीर - हैलो...
पिनाक - तो तुम्हारी छमीया परलोक सिधार गई... तुमने मुझे छोटा घाव पर जबरदस्त दर्द दिया था... उसी दर्द का इलाज था... तेरी रखैल की मौत... तुम बेटे हो... और हम तुम्हारे बाप हैं... समझे... और उससे भी अधिक... हम क्षेत्रपाल हैं... अब बात को समझो... हम राजगड़ जा रहे हैं... महल में आ जाओ... और फिर से क्षेत्रपाल बन जाओ... तुम्हारा इंतजार रहेगा...

फोन कट जाता है l वीर का चेहरा और भी सख्त ही गया था l अनु की लाश को गले से लगा लेता है और कहता है l

वीर - अनु... मुझे तेरी कसम है.. आज जिन लोगों ने हमारी खुशियाँ और दुनिया उजाड़ी है... वे सारे लोग खुन के आँसू रोयेंगे... कुत्ते की मौत मरेंगे... मेरा वादा है तुझसे...
एक ऐसी बुरी घटना जिसके बारे में कोई सोचता भी नहीं हैं, अगर वो हो जाए तो लोग अपना आपा खोकर किसी को भी, इंसान तो क्या भगवान को भी अपना दुश्मन बना लेते है, ऐसी ही एक-एक घटना यहां पर राजा साहब और वीर के संग हुई हैं ये घटनाएं ही बहुत भारी तूफान लेकर आती है।

जहां एक तरफ राजा साहब ने सोचा भी नहीं था की कोई उनके पूरे साम्राज्य पर एकसाथ हमला कर उन्हे अपने हो राजमहल में बंदी बना सकता है।

वहीं दूसरी तरफ वीर ने भी अपने प्रेम, अपनी प्रियतमा को को दिया है, जो की सबसे घातक सिद्ध होगा क्षेत्रपालो के लिए।
अब वीर को पिनाक सिंह के खून के अतिरिक्त किसी से कोई मतलब नहीं होगा।

तापस सेनापति का विश्व पर नजर रखना और उसे इतना बड़ा बैक-सपोर्ट देना ये लाजमी है क्योंकि उन्होंने भी तो वीआरएस किसी कारण वश ही लिया होगा ना और वो कारण अब पता भी लग गया की उन्हे पहले से ही ये अंदेशा था की राजा साहब को अकेले सिर्फ विश्व नहीं घेर पाएगा। इसलिए एक पिता होने के नाते उन्होंने अपने पुत्र को रक्षा के लिए शतरंज की ही तरह सेना का निर्माण कर दिया है। अब समझ आया की क्यों शतरंज खेला जा रहा हैं।

एक दम मस्त अपडेट भाई साहब
 
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