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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

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Kala Nag

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Nag bhai
Jab bhi aate ho cha Jane ho

Kahani ke pure kirdar ekdam sahi or trike se apna apna role kar rahe h.

Raja ke antim Anzam ke samay ek bar guru daini ki koi shandar andaz me entry jarur karwana

Update thoda jaldi Dene ki kosis karo
भाई क्या करूँ
नौकरी पेशा आदमी हूँ
कभी कभी टूर भी जाना पड़ता है
ऐसे में इस पेज पर वापस आना बहुत मुश्किल हो जाता है
फिर भी मैंने अगला भाग लिख लिया है बस थोड़ी देर के बाद प्रस्तुत कर देता हूँ
 
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Kala Nag

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आखिरकार शेर पिंजरे मे आया । लेकिन यह पिंजरा कब तक शेर को कैद मे रख सकता है इसका अनुमान हम सब को है ।
जी बिल्कुल आखिर कभी उंगलियों में सर्कार और सरकारी तंत्र को नचाया है l किसी भी बहाने से बाहर आना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं है l
इसके पहले विश्व और विक्रम के दरम्यान जो बातें हुई वह स्पष्ट दर्शा रही है कि विक्रम को अपनी गलती का एहसास हो गया है । लेकिन वह यह नही समझ पाया कि उसकी बहन ' रूप ' उसे छोड़कर अपने बाप के साथ रहना पसंद क्यों करी ! और इस हकीकत का ज्ञान विश्वा को भलीभाँति है ।
दोनो का संवाद एक बार फिर से आउटस्टैंडिंग रहा ।
शुक्रिया मेरे भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया
लेकिन यह तांत्रिक का मतलब कुछ समझ नही आया । भैरव सिंह एक तांत्रिक का हेल्प लेता है इस पर विश्वास करना बहुत कठिन लग रहा है ।
खैर तांत्रिक की मदद ली उसने लेकिन तांत्रिक करना क्या चाहता है यह भी ठीक से स्पष्ट नही हुआ । एक लड़की के साथ जबरन जोर जबरदस्ती करके उसका यौन शोषण और फिर उसे प्रेगनेंट करना । फिर उस नवजात बच्चे के भाग्य से भैरव सिंह के बुरे समय का अच्छे समय मे परिवर्तन होना ।
यह सब कोई दो चार दिन मे होने वाला कार्य थोड़ी न है । बहुत समय लगने वाला है यह सब करने मे । तब तक भैरव सिंह का तो कल्याण ही हो जाना है ।
इसका कारण अगले अपडेट में विश्व रिवील करेगा
इधर विश्वा को पत्री साहब और सुभांशु मिश्रा के रूप मे दो तुरूप के इक्के हाथ मे आए हैं । ये लोग निस्संदेह अदालत मे भैरव सिंह के खिलाफ कुछ न कुछ तो करेंगे ही ।


बहुत ही खूबसूरत अपडेट बुज्जी भाई । हमेशा की तरह ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।
फिर से तह दिल से शुक्रिया आभार प्रकट कर रहा हूँ
 

Kala Nag

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Bhut shandaar update
शुक्रिया मेरे दोस्त आपका बहुत बहुत शुक्रिया
 
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Kala Nag

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भाई साहब - क्या वर्ल्ड कप जितवाने वेस्ट इंडीज़ गए हुए थे?? 🤣
भाई कुछ भी कहो
फाइनल आखिर फाइनल जैसा ही था
एक तरफा तो बिल्कुल नहीं
कल तो Sky ने जिस तरह से कैच को पकड़ा था मेरी साँस ऊपर नीचे हो गई थी
वह तो शुक्र है जिंदगी लंबी लिखवा कर लाया हूँ वर्ना सच में कल रात को मैं टपक जाने वाला था l

😜😜😜😜😜😜😜😜😜
 

Kala Nag

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Waiting for the next update

Kala Nag bhai next update kab tak aayega?

Waiting for the next update

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Kala Nag bhai next update kab tak aayega?

Kala Nag Bhai,

Agli update ki pratiksha he

Waiting for the next update

प्रतीक्षा

Where are you naga bhai

Kala Nag bhai next update kab tak aayega?

waiting for the next update....
भाई यों मित्रों सखाओं बंधु जनों बस थोड़ी देर और फिर आपके लिए प्रस्तुत करता हूँ अगला भाग
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,020
22,382
159
भाई कुछ भी कहो
फाइनल आखिर फाइनल जैसा ही था
एक तरफा तो बिल्कुल नहीं
कल तो Sky ने जिस तरह से कैच को पकड़ा था मेरी साँस ऊपर नीचे हो गई थी
वह तो शुक्र है जिंदगी लंबी लिखवा कर लाया हूँ वर्ना सच में कल रात को मैं टपक जाने वाला था l

😜😜😜😜😜😜😜😜😜
सबसे अच्छा फाइनल मैच था कल। सबसे अच्छा।
अद्भुत प्लेयर्स हैं बुमराह, अर्शदीप, पंड्या। काश sky batting ठीक से कर सके। केवल चम्पू टीम्स के साथ नहीं। पंत भी बढ़िया खेला ओवरऑल।
दो महारथी तो स्वयं छोड़ गए। अच्छा किया। इसके ऊपर नहीं जा सकते थे।
जडेजा को निकाला जा सकता है।

और भगवान आपको लंबी स्वस्थ आयु दें 🙏🙂
 

Kala Nag

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👉एक सौ पचपनवाँ अपडेट
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नागेंद्र का मन बहुत दुखी था, वैसे गिरफ्तारी से पहले उसे भैरव सिंह ने अपनी जाने की बात कह दी थी, पर महल के अंदर पुलिस का पहली बार आना और किसी क्षेत्रपाल को गिरफ्तार कर ले जाना नागेंद्र को अंदर से तोड़ रहा था l रुप बड़ी मशक्कत के साथ नागेंद्र को खाना खिलाने के बाद नागेंद्र को सुला देती है l फोन पर डॉक्टर और उनकी टीम को सारी बातेँ बता कर सुबह आने के लिए कहती है l उसके बाद सेबती को अपने घर जाने के लिए कहती है और सुबह जल्दी आने के लिए हिदायत देती है l सेबती के जाने के बाद रुप फिर से नागेंद्र को देखने के लिए वापस मुड़ती है l देखती है नागेंद्र की आँखें पत्थरा गई है l रुप डर जाती है अपना हाथ नागेंद्र के हाथ पर रख देती है l हाथों की गर्मी महसूस होते ही राहत की साँस लेती है l नागेंद्र के हाथ को हिला कर

रुप - दादाजी... दादाजी.. (नागेंद्र मुर्झाई चेहरे से हैरानगी भरे नजरों से रुप की ओर देखता है, रुप उसके बगल में बैठ जाती है) मैं जानती हूँ... आप अंदर से बिखरा हुआ महसूस कर रहे हैं... पर सच यह भी है... की... आपकी दिल में कोई पछतावा नहीं है... (चेहरे को सख्त करने की नाकाम कोशिश करता है) हाँ दादाजी... आज पहली बार... आपको दादाजी बुला रही हूँ... जानती हूँ... आपकी लाचारी... मेरा कोई विरोध नहीं कर सकती... हाँ अगर राजा साहब होते... तो मैं कभी भी... आपको दादाजी नहीं कह पाती... पर शायद... ऊपर वाले ने मुझे यह मौका दिया है... मेरी तरफ से... इस रिश्ते को आखिरी बार निभाने के लिए.... (नागेंद्र के जबड़े भिंच जाती हैं) इस उम्र तक आते आते... जिस्म... जुबान और दिमाग साथ छोड़ने लगता है... लोग पहचान भी नहीं पाते... पर आपके मामले में... आपका जिस्म और जुबान साथ छोड़ चुका है... बस आपका दिमाग आपके लाचार जिस्म और जुबान को खिंचे जा रहा है... आपको प्रतीक्षा है... जिसने आपको ज़ख़्म दिया है... उसे घुटने पर देखने की... पर वह है कि... आपको दिए ज़ख्मों पर... मिर्च पर मिर्च रगड़ता जा रहा है... (नागेंद्र भड़क जाता है और गुँगुँ की आवाज निकलने लगता है, रुप नागेंद्र के हाथ पर अपना हाथ रख देती है ) हाँ दादाजी... मैं आपकी तकलीफ को समझ पा रही हूँ... (नागेंद्र अपना हाथ हिला कर , रुप की हाथ को हटाने की कोशिश करता है, रुप समझ कर अपना हाथ हटा देती है) आपके भीतर नफ़रत अभी भी कितना भरा हुआ है... (नागेंद्र अपना सिर हिला कर रुप को चले जाने के लिए इशारा करता है) हाँ चली जाऊँगी... पर क्या है कि... आपकी हलक में अटकी जान मुझे इस घर में रोक रखा है... और जानते हैं... वह जिसे आप इस कदर नफरत कर रहे हैं... उसे भी आपकी फिक्र है... वर्ना वह मुझे कब का आप सबकी नजरों के सामने... इस घर से ले जाता... (रुप उठ खड़ी होती है) आप वाकई बहुत तकलीफ में हैं दादाजी... इस उम्र में... इन हालात में... लोग भगवान से मुक्ति माँगते हैं... पर आप... खैर... हो सके तो कभी भगवान को याद कर अपने लिए मुक्ति माँग लीजिए... क्यूँ के आप जीते-जी नर्क ही देख रहे हैं... भोग रहे हैं... मैं आपके लिए ईश्वर से दया माँगुंगी...

इतना कह कर रुप नागेंद्र के कमरे से निकल कर अंतर्महल में अपनी कमरे में आती है l कमरे में आते ही दरवाजे को बंद कर खिड़की की ओर देखते हुए पीठ टिकाए खड़ी रहती है l अचानक उसे एहसास होता है कि कमरे में कोई और भी है l उसकी धड़कने बढ़ने लगती हैं फिर अपनी आँखे मूँद कर गहरी साँस लेती है, उसके होंठों पर एक मुस्कान उभर आती है l

रुप - अनाम...

वार्डरोब के पीछे से निकल कर विश्व उसके सामने खड़ा हो जाता है l रुप भागती हुई विश्व के गले लग जाती है l विश्व भी उसे अपनी बाहों में भर लेता है l कुछ देर यूँ ही एक दूसरे से लिपटे रहने के बाद दोनों एक दूसरे से अलग होते हैं l

रुप - तुम... इस वक़्त...
विश्व - क्यूँ... मेरा यहाँ आना... आपको अच्छा नहीं लगा...
रुप - (विश्व के सीने पर मुक्का मारते हुए) बहुत अच्छा लगा... पर.. मैंने सोचा था कि तुम... इस वक़्त कटक गए होगे..
विश्व - हाँ... जाना तो है... पर... जाने से पहले... एक बार आपसे मिलना चाहता था... बात करना चाहता था...
रुप - तो चलो... आज छत पर जाते हैं... टीम टीमाते आसमान के नीचे... थोड़ा बैठते हैं...
विश्व - छत पर... किसीने देख लिया तो...
रुप - देख लिया तो... हा हा हा... तुम भी ना... (एक गहरी साँस छोड़ कर) कितना बड़ा महल है... पर आज सिर्फ दो जन हैं... एक मैं...
विश्व - और एक बड़े राजा जी... पर जो लोग पहरेदारी में हैं... वे अगर हमें देख लिया तो...
रुप - ओ हो... डर लग रहा है... ह्म्म्म्म... अनाम वे लोग जो पहरेदारी कर रहे हैं... वह क्षेत्रपाल नहीं हैं... नौकर हैं... बुरे भले ही हैं... पर फिर भी... अपनी मर्यादा नहीं लाँघते... यहाँ राजगड़ में सिर्फ क्षेत्रपाल ही मर्यादा में नहीं रहते... राजा साहब ने उन्हें हिदायत दी है... अंतर्महल की ओर वे लोग कभी नहीं आयेंगे...

रुप उसके बाद विश्व की हाथ पकड़ कर खिंचते हुए छत की ओर ले जाती है l छत पर बैठने के लिए एक छोटा सा चबूतरा बना हुआ था जिस पर रुप विश्व को लेकर बैठ जाती है और आसमान की ओर देखने लगती है l विश्व रुप की चेहरे की ओर निहारे जा रहा था l

रुप - अब इतना भी मत देखो... मुझे शर्म आने लगेगी तो अपना चेहरा छुपा लूँगी...
विश्व - (झेंप जाता है और दूसरी ओर देखने लगता है) सॉरी...
रुप - (खिलखिला कर हँस देती है, विश्व के दोनों हाथों को लेकर अपने चेहरे पर रख देती है) बेवक़ूफ़... मैं तो मज़ाक कर रही थी... तुम्हारा निहारना मुझे बहुत अच्छा लगता है... एक तुम ही तो हो... जब मुझे देखते हो... तो मुझे अपने खूबसूरत होने का एहसास होता है... और जानते हो... यह एहसास मुझे अंदर ही अंदर कितना प्यारा लगता है... उफ... मैं शब्दों में बयान ही नहीं कर सकती... तुम जब मुझे प्यार से देखते हो... मुझे एहसास होता है... के तुम्हारी हूँ... तुम्हारी ही हूँ... (विश्व भावुक हो कर रुप को अपनी ओर खिंच कर सीने से लगा लेता है) ऐ... क्या हुआ... ऐसा लगता है... तुम्हारे मन में कोई गिल्ट है... (अलग हो कर) कहो... क्या बात है...
विश्व - दो बातों का गिल्ट है... एक आप पर पहली बार किसीने हाथ छोड़ा... दुसरी... मैं वीर और अनु के प्यार को बचा नहीं पाया...
रुप - (विश्व की हाथ को लेकर अपने गाल पर रख कर गाल को रगड़ने लगती है) किसीने नहीं... राजा साहब ने... मैं चाहूँ या ना चाहूँ... वे मेरे बायोलॉजिकल पिता हैं... पहली और आखिरी बार... उन्होंने मुझ पर हाथ उठा कर... अपना हक निभाया... और रही वीर भैया और अनु भाभी की... तो वे दोनों सच्चे प्रेमी हैं... वे फिर से आयेंगे.. देख लेना... अपने अधूरे प्यार की परवान चढ़ाने... फिर से आयेंगे...
विश्व - इतना यकीन है...
रुप - हाँ... है... उन पर भी और प्यार पर भी है... प्यार की ताकत क्या होती है... मैं जानती हूँ... समझती हूँ...

विश्व इसबार अपने दोनों हाथों से रुप का चेहरा थाम लेता है और आगे बढ़ कर उसकी माथे पर चुम्मी लेता है l रुप विश्व की दोनों हाथों पर अपना हाथ रख लेती है और विश्व की हाथों को हटाने नहीं देती l

रुप - क्या ...यही दो बातेँ करने के लिए तुम यहाँ आए थे...
विश्व - नहीं... बातेँ तो बहुत है... पर आपको देख कर भूल गया हूँ...
रुप - झूठे कहीं के...
विश्व - सच...
रुप - चलो मान लेती हूँ...
विश्व - एक बात कहूँ...
रुप - हूँ हूँ...
विश्व - आप बहुत खूबसूरत हो..
रुप - हम्म्म... अच्छा... पर यह तो मैं जानती हूँ...
विश्व - (इस बार रुप को अपने पास खिंचता है और अपनी आँखों से रुप की आँखों में झाँकता है) आई लव यू...
रुप - आई लव यू ठु... अनाम... आज तुम इतने इमोशनल क्यूँ हो...
विश्व - पता नहीं... या फिर... शायद इसलिए कि मैं... कल राजा साहब के खिलाफ... कोर्ट में पैरवी करूँगा...
रुप - यही तो तुम्हारा लक्ष था ना...
विश्व - हाँ था... पर पता नहीं क्यूँ... मुझे लगा... एक बार आपसे बात कर ली जाए...
रुप - अनाम... (विश्व के सीने से लग कर) मैं हर हाल में... हर मोड़ पर... तुम्हारे साथ थी... हूँ... और रहूँगी...
विश्व - आपको बुरा नहीं लगेगा...
रुप - हरगिज नहीं... वह मेरा क्या... किसीका भी पिता बनने लायक नहीं है... पता नहीं मेरे पुरखों ने कौन-से पाप किए... पर यह जो राजा साहब है.. यह मेरी माँ का कातिल है... मेरे भाई वीर और अनु भाभी का कातिल है... जब यह आदमी अपनी ही खून को नहीं बक्सा हो.... वह किसी और को क्या बक्सा होगा... तुम जब भी उसके आँखों में देखो... तो वैदेही दीदी को याद करना... फिर उस पर तोहमत लगाना... उसे सजा दिलाने की कोशिश करना...
विश्व - पर मुझे लगता है... राजा साहब... ज्यादा दिन तक सलाखों के पीछे रहेंगे नहीं...
रुप - तब भी तुम वही करना... जो माँ से वादा किया है... राजा सहाब की हर राह में... कानून की कीलें बिछा देना...

कुछ देर के लिए दोनों के बीच चुप्पी छा जाती है l दोनों एक दूसरे के बाहों में ऐसे ही खोए हुए थे l फिर विश्व रुप को अलग करता है l

विश्व - अब मुझे चलना होगा...
रुप - हूँ...

रुप उठती है और विश्व की हाथ पकड़ कर छत से उतरती है और अपने कमरे में आती है l विश्व खिड़की की ओर जाता है और पीछे मुड़ कर देखता है l रुप फिर से उसके गले लग जाती है l

विश्व - मैं जाऊँ...
रुप - (अलग हो कर) जानते हो.. मैं तुम्हें छत पर क्यूँ लेकर गई थी... (विश्व सिर हिला कर ना कहता है) एक तमन्ना थी... तुम्हारे साथ इसी महल के छत पर... बैठ कर आसमान को निहारूं... आज वह तमन्ना भी पूरी हो गई... क्यूँ की मैं जानती हूँ.. इस महल में... ऐसी रात... ऐसी साथ... दुबारा फिर कभी नहीं नहीं आएगी...
विश्व - हम बहुत जल्द अपनी दुनिया बरसाएंगे... जहां ऐसी रात और ऐसी साथ... हरदम अपना ही होगा... वैसे एक बात पूछूं...
रुप - हूँ हूँ... पूछो...
विश्व - आप जब भी मेरे सीने से लगती हो... बड़ी जोर से लगती हो...
रुप - वह इसलिए के तुम्हारा जो धड़कन है... इसमें मुझे सिर्फ और सिर्फ मेरा नाम सुनाई देता है... और मत भूलो... तुम्हारे जिस्म के खुशबु में... एक नशा सा है... जो सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए है...
विश्व - आज आपको हो क्या गया है...
रुप - अब मुझसे... इस महल में रहा नहीं जाता...
विश्व - तो ठीक है... अगली बार जब आऊंगा... अपने साथ आपको ले जाऊँगा...
रुप - जाना तो है... पर...
विश्व - पर क्या...
रुप - आई विश... बड़े राजा जी चले जाएं... तब इस महल के ... मेरा हर रिश्ते से आजादी मिल जाएगी...
विश्व - यानी... जब तक... वह... बड़ा राजा मरेगा नहीं.. तब तक...
रुप - मैंने कहा ना... आई विश... भगवान से मै राज प्रार्थना करती हूँ... उन्हें ले जाने के लिए...
विश्व - आप सच्चे मन से प्रार्थना कर रही हैं... तो बड़े राजा को... इस नर्क से बहुत जल्द मुक्ति मिल जाएगी...
रुप - ह्म्म्म्म...
विश्व - अच्छा... अब मैं चलूँ...
रुप - ह्म्म्म्म...
विश्व - चलूँ...
रुप - बाय..

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

अगले दिन सुबह, विश्व का अपना पुराना घर जिसमें अब विक्रम, शुभ्रा, पिनाक और सुषमा रह रहे हैं l इन कुछ दिनों में पिनाक बीमार रहने लगा है l वह एक कमरे में बिस्तर पकड़ लिया है l सुषमा भी मुर्झा सी गई है वह बिस्तर के पास बैठ कर पिनाक की सेवा में लगी हुई है l विक्रम घर के अंदर इधर उधर हो रहा था, उसको कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्यूँकी वैदेही किसी ना किसी के हाथ में बराबर खाना भिजवा रही थी l पर चूँकि करने के लिए कोई काम नहीं था, ऊपर से उसे दुनिया जहां की खबर हो नहीं रही थी, भैरव सिंह को गिरफतार कर शायद कटक भेज दिया गया था, पर उसे सब ख़बरें या तो टीलु से या फिर वैदेही से पता चल रहा था, इसलिए विक्रम अपने आप पर खीज रहा था l शुभ्रा यह सब देख रही थी पर वह भी लाचार थी l विक्रम चिढ़ते हुए कमरे से निकल कर बाहर बरामदे पर बैठ जाता है l पीछे पीछे शुभ्रा भी आती है और बगल में बैठ जाती है l

शुभ्रा - (विक्रम के कंधे पर हाथ रखकर) मैं समझ सकती हूँ... आप खाली बैठना नहीं चाहते... कुछ करना चाह रहे हैं... पर क्या करें... समझ नहीं पा रहे हैं... हैं ना...
विक्रम - हाँ शुब्बु... मैंने कहा था... तुमको रानी की तरह रखूँगा... पर... (जबड़े सख्त हो जाते हैं और मुट्ठीयाँ भींच लेता है) तुम लोगों की हालत... देखी नहीं जा रही है...
शुभ्रा - मैं ठीक हुँ... आपके साथ हूँ... आप मेरे पास हो... मुझे कुछ नहीं चाहिए...
विक्रम - तुम बहुत अच्छी हो... तुम कैसे मेरी किस्मत में आ गई... सिवाय दुख के... क्या हासिल हुआ तुम्हें...
शुभ्रा - मुझे आप हासिल हुए... क्या यह कम है...
विक्रम - जानती हो... मैं कुछ समझ नहीं पा रहा... कुछ करना चाह रहा हूँ... मगर क्या करूँ... यह मेरी लाचारी है... या बेबसी है... जिंदगी के कौनसी मोड़ पर आ खड़ा हूँ... सामने कोई राह... दिख ही नहीं रही है...
शुभ्रा - एक बात पूछूं...
विक्रम - हाँ पूछो...
शुभ्रा - आप... प्रताप से मिलने गए थे...
विक्रम - हाँ... गया था... सोचा था... उसे कह कर राजगड़ से निकल कर... कहीं दूर चला जाऊँगा... पर.. कह नहीं पाया... उल्टा... उसने मुझे और भी कंफ्यूज कर दिया...
शुभ्रा - कंफ्यूज मतलब...
विक्रम - उसने कहा... मेरा वर्तमान और भविष्य शायद... राजगड़ से ही जुड़ा हुआ है...

इतने में एक छोटा लड़का भागते हुए आता है और इन दोनों के पास आकर खड़ा होता है l वह झुक कर अपने हाथों को घुटनों पर रख कर हांफ रहा था l

शुभ्रा - क्या हुआ... तुम कहाँ से भागते हुए आए... कोई पीछा कर रहा है तुम्हारा...
लड़का - (अपनी साँसों को दुरुस्त करते हुए) नहीं.. नहीं... एक... बड़ी सी गाड़ी आई है... उसमें... एक बुढ़ा और एक बुढ़ी बैठे हुए हैं... आपके बारे में पूछ रहे थे...

विक्रम और शुभ्रा हैरान होते हैं l दोनों याद करने लगते हैं के कौन हो सकता है जो राजगड़ में उन्हें ढूंढते हुए आए हैं l

शुभ्रा - (लड़के से) तो उन्हें यहाँ ले आना चाहिए था ना...
लड़का - मेरे सारे दोस्त... उन्हें रास्ता बताते हुए... यहाँ ला रहे हैं... मैं तो बस आपको खबर करने आ गया...

इतना कह कर लड़का वापस भाग गया l कुछ दूर गली के मोड़ पर एक गाड़ी दिखती है l जिसके आगे और पीछे कुछ बच्चे भाग रहे हैं l थोड़ी देर बाद वह गाड़ी इनके सामने आकर रुकती है l ड्राइवर उतर कर पहले विक्रम और शुभ्रा को सैल्यूट करता है l उसके देखा देखी वह सारे बच्चे भी विक्रम और शुभ्रा को सैल्यूट करते हैं l ड्राइवर गाड़ी का दरवाजा जैसे खोलता है, एक अधेड़ आदमी उतरता है l शुभ्रा और विक्रम उसे देख कर हैरान हो जाते हैं l वह शख्स और कोई नहीं था, वह शुभ्रा के पिता बिरजा किंकर सामंतराय थे l उनके पीछे पीछे शुभ्रा की माँ भी उतरती है l शुभ्रा उन्हें देख कर दोनों के गले लग जाती है l तीनों के आँखे बहने लगती हैं l जब शुभ्रा दोनों से अलग होती है विक्रम जाकर दोनों के पैर बारी बारी से छू कर वापस अपनी जगह पर खड़ा हो जाता है l अब चारों के बीच चुप्पी थी, बात शुरु करने के लिए शायद चारों को हिचक हो रही थी l अंत में बिरजा किंकर बात शुरु करता है l

बिरजा - तो कैसे हो...
शुभ्रा - अच्छी हूँ...
माँ - दिख रहा है... क्या हालत बना रखी है तूने... और अकेली जान भी तो नहीं है तु...
शुभ्रा - माँ.. पेट भर खाना और इनके साथ... और क्या चाहिए...
विक्रम - वैसे... आप लोग इस समय...
माँ - वह एक रिवाज है... हमारे यहाँ... बेटी की पहली संतान का जन्म मैके में होती है... इसलिये हम शुभ्रा को लेने आए हैं....
शुभ्रा - पर वह सब तो... गोद भराई के बाद होती है ना...
माँ - हाँ होती है... पर अगर तु किसी महल में होती तो... पर तु यहाँ...
शुभ्रा - सच बताना माँ... अगर मैं महल में होती... तो क्या आप लोग आते... (बिरजा और शुभ्रा की माँ चुप रहते हैं) आप इस वक़्त इसलिए आए हैं... क्यूँकी महल से रिश्ता इन्होंने तोड़ दिया... जब तक महल से रिश्ता था... आप लोग पारादीप छोड़ कर भुवनेश्वर तक नहीं आए... यहाँ तक... जब भुवनेश्वर में... हम पर जान लेवा हमला हुआ... तब भी... आप नहीं आए... आप भुवनेश्वर लांघ कर राजगड़ आए हैं... क्यूँकी यह सब जानते हैं... हमें महल से निकाल दिया गया है...
माँ - नहीं... ऐसी बात नहीं है... (बिरजा से) क्यूँ जी... (बिरजा कोई जवाब नहीं दे पाता)
शुभ्रा - देखा माँ... जवाब सूझ नहीं रहा है ना... आपको मुझसे हमदर्दी है... क्यूँकी मैं आपकी कोखजायी हूँ... पर यह भी सच है... आपने इन्हें स्वीकार नहीं किया... अब भी... आप रस्म अदायगी के बहाने मुझे ले जाने आए हैं...
माँ - नहीं नहीं.. तुम... हमें... गलत समझ रही हो बेटी...
शुभ्रा - नहीं माँ... जो भी हूँ... जैसी भी हूँ... तुम्हारी ही बेटी हूँ...

बिरजा का चेहरा सख्त हो जाती है, नजरें मिला नहीं पाता अपनों बेटी और दामाद से l और शुभ्रा की माँ लाजवाब हो गई थी l

शुभ्रा - आप लोग सुबह सुबह आए हैं... मतलब रात को जरुर यशपुर में रुके होंगे... अगर इतनी ही चिंता थी... तो कल शाम को... आप लोग यहाँ होते...
बिरजा - तुम हमारे प्यार को गाली मत दो बेटी... हम तुम लोगों के सामने आने से कतरा रहे थे... अपराध कहो या पाप... हाँ हुआ है हमसे... हम...सब कुछ सुनने... जानने के बावजूद... भुवनेश्वर नहीं गए... यही अपराध बोध हमें... तुम्हारे सामने लाने में देरी कर दी...
शुभ्रा - हाँ पापा... मैं मानतीं हूँ... पर मैं भी माफी चाहती हूँ... मैं आप लोगों के साथ... इन्हें इस हालत में छोड़ कर नहीं जा सकती...
माँ - यह तुमने कैसे सोच लिया... हम सिर्फ तुम्हें लेने आए हैं... हम दामाद जी, छोटे राजा और रानी जी को भी ले जाने आए हैं...
विक्रम - आपका बहुत बहुत शुक्रिया सासु माँ... पर मैं यहाँ से अभी जा नहीं सकता...
माँ - क्यूँ दामाद जी...
विक्रम - राजगड़ को शायद... मुझसे कुछ चाहिए... कुछ तो बाकी है... जो मुझे रोक रखा है... वर्ना... कब का छोड़ कर चला गया होता...
बिरजा - कुछ पाने की आश में हो लगता है...
विक्रम - नहीं ससुर जी... नहीं... मैंने कहा... राजगड़ का मुझ पर कुछ कर्ज है शायद... जब तक चुकता नहीं हो जाता... मैं यहाँ से जा नहीं सकता....
बिरजा - (शुभ्रा से) तुम्हारा क्या कहना है....
शुभ्रा - पापा... अभी तो इम्तिहान शुरु हुआ है... मैं बीच रास्ते में कैसे साथ छोड़ दूँ... यह चाहे कहीं भी रहें... जिस हाल में रहें... मैं हर कदम पर इनके साथ खड़ी मिलूंगी...

बिरजा किंकर अंदर से छटपटा जाता है l बड़ी मुश्किल से अपनी अहं को छोड़ कर विक्रम के आगे हाथ जोड़ कर कहने लगता है

बिरजा - मुझसे भूल हो गई... माफ कर दीजिए... दामाद जी... आपकी और मेरी बेटी की तकलीफ देखा नहीं जा रहा है मुझसे...
विक्रम - आप हाथ जोड़ कर मुझे पाप का भागी ना बनायें... मैं शुभ्रा जी को ना तो जाने से रोकुंगा... ना ही रुकने के लिए मिन्नत... मैं उनकी हर इच्छा का सम्मान करूँगा... (बिरजा हाथ जोड़े शुभ्रा की ओर देखता है)
शुभ्रा - पापा... इन कुछ महीनों में... अगर हालात कुछ सुधरे... तो सातवें महीने में... मेरी गोद भराई रस्म के लिए आप ज़रूर आइए... तब अगर जाना मुमकिन हुआ... तो मैं जरुर जाऊँगी... पर अब नहीं... हरगिज नहीं...


बिरजा और शुभ्रा की माँ के आँखों में आंसुओं की धारा छूटने लगी थी l क्यूँकी जो जवाब शुभ्रा ने दी थी वह उन्हें कहीं ना कहीं ग्लानि का बोध करा रहा था l इससे आगे वह कुछ ना कह सके l आँखों में आँसू लिए गाड़ी में बैठने के लिए मुड़ते हैं l

विक्रम - यह क्या... आप तो जाने लगें... घर के अंदर आइए... कम से कम पानी तो पी कर जाइए...
बिरजा - नहीं युवराज... नहीं... हमारे यहाँ एक रस्म यह भी है... जब तक नाती या नातिन का चेहरा ना देख लें... तब तक... हम बेटी के घर का पानी पीना तो दूर... चौखट के भीतर भी नहीं जाते... ईश्वर ने चाहा तो हम फिर आयेंगे.. अपनी बेटी को साथ लेकर जाएंगे...

फिर सामंत राय दंपति गाड़ी में बैठ कर वापस चले जाते हैं l उन्हें आपनी आँखों से गायब होने तक शुभ्रा और विक्रम वहीँ पर खड़े रहे फिर जब अंदर जाने लगते हैं सामने सुषमा खड़ी थी l दोनों सुषमा को देख कर ठिठक जाते हैं l

सुषमा - मुझे तुम पर फक्र बचों... (शुभ्रा से) और मेरी आशीर्वाद है... दूधो नहाओ पुतों फलो

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"दीदी... बड़ी भूख लगी है... खाने के लिए कुछ दे दो..." कहते हुए टीलु वैदेही की दुकान में आता है और एक जगह बैठ जाता है l

गौरी - आ गया नासपीटा... चूल्हा गरम हो ना हो... पेट इसका ठंडा रहना चाहिए... तेरे सारे दोस्त कटक चले गए... तु क्यूँ पीछे सड़ने के लिए रह गया...
टीलु - क्यूँ बुढ़िया... तुझे जलन हो रही है... (गौरी के पास एक बेंत की लकड़ी थी उसे उठा कर टीलु पर फेंक मारती है, टीलु उसे पकड़ लेता है) ना ना... मैंने पूरी भाजी खाने को माँगा है... यह नहीं...
गौरी - तुझे इससे खिलाना चाहिए...
टीलु - दीदी के हाथ से... कुछ भी खा लूँगा... ही.. (दांत दिखा कर हँसने लगता है)
गौरी - बस बस... वैदेही देदे इसे... दांत दिखाते इस बंदर का चेहरा देखा नहीं जा रहा है...
टीलु - मेरे तो फिर भी दांत है... तेरे तो वह भी नहीं है... ही ही ही...
गौरी - (अपनी जगह से उठती हुए) रुक आज तुझे... अपनी हाथ से खिलाती हूँ... (पर उठती नहीं)

इतने में वैदेही थाली में पूरी तरकारी लेकर टीलु के सामने परोस देती है l टीलु देखता है आज वैदेही बड़ी गुमसुम सी और खोई खोई सी है l वैदेही थाली परोस कर जब जाने लगती है टीलु टोक देता है

टीलु - दीदी...
वैदेही - (मुड़ कर) क्या कुछ और चाहिए...
टीलु - नहीं दीदी... पर आज तुम्हें हो क्या गया है... क्या विशु भाई पास नहीं है... इसलिए...
वैदेही - नहीं ऐसी बात नहीं है...
टीलु - मैं समझ गया... कल राजा भैरव सिंह... जरुर तुमको धमका कर गया होगा...
वैदेही - नहीं... वह बात भी नहीं है... तुम खाना खा लो...

टीलु, गौरी की तरफ सवालिया नजर से देखता है, गौरी अपनी नजर फ़ेर लेती है और दूसरी तरफ देखने लगती है l टीलु पूरी तोड़ कर पहला निवाला खाता है और वैदेही से कहता है


टीलु - ओ... यह क्या दीदी... आज खाने में नमक ज्यादा हो गया है...
वैदेही - क्या... (चौंकती है) (टीलु की थाली से एक निवाला खा कर) कहाँ... ठीक ही तो है... झूठ क्यूँ बोला..
टीलु - तुम भी तो सच नहीं बोल रही... क्या राजा साहब ने तुमको धमकाया... तुम्हें किस बात की परेशानी है...
गौरी - हाँ बेटी... कहीं सच में तु... राजा की धमकी से डर तो नहीं गई...
वैदेही - नहीं... डर उन्हें लगता है... जिन्हें कुछ खोने का हो... अब राजा... क्या छिन लेगा जो मैं डरुंगी....
टीलु - फिर... कहीं तुम यह तो नहीं सोच लिया... विशु भाई केस हार सकता है...
वैदेही - नहीं... विशु हारेगा ही नहीं...
टीलु - (खाने की थाली को किनारे करते हुए) तो फिर...
वैदेही - खाने का अनादर नहीं करते... खा ले...
टीलु - जब अन्नपूर्णा ही उदास हो... तो खाना पचेगा ही नहीं...
गौरी - हाँ वैदेही... दिल पर बोझ मत बढ़ा... बोल दे...
वैदेही - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) ठीक है... यह बात मैंने विशु से भी साझा नहीं की है... पर तुमको बता रही हूँ... जब लोगों के अंदर की ज़ज्बात को मैंने भड़काया था... तो पहली बार ऐसा हुआ था... के लोग महल में घुसे... अपनी हक की आवाज उठाई... और राजा को पीठ कर वापस लौटे...
टीलु - हाँ... हम सभी उस घटना के गवाह हैं...
वैदेही - मुझे लगा था... पीढ़ी दर पीढ़ी... कुचले हुए आक्रोश को मैंने भड़का कर आंदोलन के रुप में ढाल दिया... पर कल राजा ने उसे गलत साबित कर दिया...
टीलु - कैसे....
वैदेही - कल बेशक राजा के हाथों में हथकड़ी थी... वह पैदल गाँव के रास्तों से गुजरा... पर मैंने वह देखा... जो राजा वास्तव में मुझे दिखाना चाह रहा था... (टीलु और गौरी ध्यान से सुन रहे थे) कल अगर गाँव वाले... उसकी गिरफ्तारी को तमाशा की तरह देखे होते... तो राजा कल ही मर गया होता... पर ऐसा नहीं हुआ... लोग डर के मारे घरों में दुबक गए... किसी में भी हिम्मत नहीं थी... राजा के आँखों में देखे... सच कहती हूँ... अगर एक छोटा बच्चा भी कल राजा के आँखों में आँखे डाल कर देख लिया होता... राजा वहीँ मर चुका होता... लेकिन कल राजा को... लोगों की कायरता ने... फिर से जिंदा कर दिया... काकी... याद है... परसों किसी तांत्रिक की बात कर रही थी...
गौरी - हाँ... हाँ...
वैदेही - वह तांत्रिक क्या करेगा... मैं नहीं जानती... पर राजा उस तांत्रिक को बुला कर लोगों के मन में... एक खौफ जगा दिया... लोगों को लग रहा है... कहीं उनकी घर की बेटी को... राजा उठा ना ले...
गौरी - मुझे तो पहले से ही यही लग रहा था... पर तुम्हीं ने कहा था... के गाँव वाले पलट वार करेंगे....
टीलु - दीदी... तुम ना खामख्वाह परेशान हो रही हो... अब उस पर केस चलेगा... मजिस्ट्रेट इंक्वायरी हुई है... विशु भाई केस लड़ रहा है... ऐसे कैसे राजा अपना कारनामा दोहरा देगा...
वैदेही - तुम... राजा को हल्के में मत लो... और मैं भी यह यकीन के साथ कह सकती हूँ... विशु के मन में भी यही संशय होगा... राजा ने जरुर कुछ बड़ा प्लान किया है... वह लौटेगा... जरुर लौटेगा...
टीलु - नहीं दीदी... चांस ही नहीं है... वह तभी आ सकता है... जब उसे ज़मानत मिलेगा... मजिस्ट्रेट इंक्वायरी में... जो दोषी करार दिए जाते हैं... उन्हें आसानी से... ज़मानत नहीं मिलती...
वैदेही - मैं इतना कानून नहीं जानती... पर... वह राजा है... दशकों से... वह और उसके पुरखे... इस इलाके में ही नहीं... पूरे स्टेट में राज किया है... जरुर कोई ना कोई तिकड़म भिड़ायेगा...
टीलु - तो आने दो बाहर... हम देख लेंगे उसको...
वैदेही - वह जब आएगा... एक अलग ताकत के साथ लौटेगा... वह इस राजगड़ के नाम की नदी का इकलौता मगरमछ है... हाती में चाहे कितना भी ताकत क्यूँ ना हो... पानी के अंदर... मगरमच्छ के जबड़े में... लाचार हो जाता है...
टीलु - दीदी तुम डरी हुई हो... या परेशान हो...
वैदेही - दोनों... डर मुझे गाँव वालों के लिए है... परेशानी इसलिए... की विशु की सारी मेहनत बेकार चली जाएगी...
टीलु - तो तुमने विशु भाई को पूरी बात बताई क्यूँ नहीं.... उसे बताना पड़ेगा...
वैदेही - नहीं... उसे पूरी तरह से... केस पर ध्यान देने दो... बाकी राजा अगर गाँव अंदर कुछ करने की कोशिश करी... तो मैं रोकुंगी...
गैरी - पर हमें पता कैसे चलेगा... वह किसको उठाएगा...
टीलु - क्या आपको लगता है... राजा वाकई यह सब करेगा...
वैदेही - पता नहीं... पर डर तो बना रहेगा ना...
गौरी - मान लो... अगर तुम्हारा डर... सही निकला तब...

इस सवाल पर वैदेही का चेहरा सख्त हो जाता है, दांत भींच जाती हैं l टीलु का मुहँ खुला रह जाता है l

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कोर्ट के अंदर नरोत्तम पत्री के साथ विश्व बैठा हुआ है l दर्शकों के दीर्घा में सेनापति दंपति और जोडार बैठे हुए हैं l कुछ देर बाद हॉकर ऊँची आवाज़ में जजों की आने की सूचना देता है l लोग सारे खड़े हो जाते हैं l एक के बाद एक तीन ज़ज आकर अपना आसान पर बैठ जाते हैं l मुख्य ज़ज गैवल उठा कर टेबल पर पटकते हुए

ज़ज - ऑर्डर ऑर्डर... आज की कारवाई शुरु की जाती है... (कोर्ट रुम में खामोशी पसर जाती है, ज़ज एक फाइल पलट कर कुछ देखता है और पत्री से) हाँ तो... नरोत्तम जी... आपकी छानबीन और रिपोर्ट के बारे में जानकारी दीजिए...
पत्री - (अपनी जगह से उठ खड़े होकर) येस माय लॉर्ड... (कुछ फाइलें हाथों में लेकर) माय लॉर्ड... यह केस... मनरेगा की आड़ में... बैंक फ्रॉड... लैंड स्कैम से जुड़ा हुआ है... जैसे ही होम मिनिस्ट्री से हमें ऑर्डर मिला... हमने अपनी टीम बना कर इस पर तहकीकात शुरु कर दिया... और महीने भर से उपर लग गया हमें... अंत में यह रिपोर्ट बना कर एक कॉपी होम मिनिस्ट्री में सबमिट कर दिया है... और एक पर सुनवाई और कारवाई के लिए... यह रहा... (कह कर एक फाइल को रीडर को सौंपता है, रीडर वह फाइल लेकर ज़ज् को देता है, ज़ज् वह फाइल लेकर कुछ पन्ने देखता है)
ज़ज - ह्म्म्म्म... मुल्जिम को पेश किया जाये...

हॉकर हाजिरी के लिए आवाज़ देता है - मुल्जिम... राजा साहब... भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी... हाजिर हो...

पुलिस के कुछ सिपाही और दास भैरव सिंह को लेकर अंदर आते हैं l भैरव सिंह मुल्जिम वाली कठघरे में आकर खड़ा होता है l भैरव सिंह के कठघरे में आते ही कोर्ट रुम के अंदर मरघट जैसी खामोशी पसर जाती है l एक शांत और ठंडक भरी निगाह दौड़ता है, अंदर बैठे सभी लोगों के बदन में सरसरी सी दौड़ जाती है l

ज़ज - मुल्जिम राजा भैरव सिंह... आप पर कुछ आरोप लगे हैं... क्या आप उन आरोपों से अवगत हैं...
भैरव सिंह - जी...
ज़ज - क्या आप मानते हैं... इस मजिस्ट्रेट इंक्वायरी में... आप पर आरोप सिद्ध हुए हैं...
भैरव सिंह - जी नहीं...
ज़ज - क्या आप मजिस्ट्रेट इंक्वायरी को एकतरफ़ा बता रहे हैं...
भैरव सिंह - जी... क्यूँकी इस इंक्वायरी में... माननीय एक्जीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट जी... उर्फ तहसीलदार जी ने... सिर्फ गाँव वालों की रिपोर्ट पर अपना विचार को रिपोर्ट बना कर पेश किया है... उन्होंने मुझसे कोई पूछताछ नहीं की है....
ज़ज - पत्री महोदय... इस पर आप क्या कहेंगे...
पत्री - मुझे रिपोर्ट की सच्चाई परखने के लिए जिम्मेदारी दी गई थी... जिसकी रिपोर्ट बना कर मैंने आपके सामने प्रस्तुत कर दी... माय लॉर्ड... आगे का काम अदालत करेगी...
ज़ज - आपके छानबीन में... आपने किन्हें वादी बनाया... किन्हें गवाह बनाया और किन्हें... प्रतिवादी बनाया...
पत्री - (एक और फाइल निकाल कर पन्ने देखते हुए) माय लॉर्ड... इस फ्रॉड केस में... वादी यशपुर, राजगड़, चारांगुल, माणीआ आदि पच्चीस गाँव के सभी लोग हैं... जैसे कि मुल्जिम के कठघरे में मौजूद राजा भैरव सिंह प्रतिवादी हैं... और गवाह हैं... (भैरव सिंह की ओर देखते हुए) रेवन्यू इंस्पेक्टर सुधांशु मिश्रा, बैंक मैनेजर अजय महाराणा, यशपुर सब रजिस्ट्रार ऑफिस के रजिस्ट्रार बिरंची सेठी... प्रमुख हैं... और इन्हें सरकारी गवाह बनाया गया है...
ज़ज - पर यहाँ वादी की तरफ से... कोई सरकारी वकील नहीं हैं...
पत्री - जी माय लॉर्ड... सभी गाँव वालों ने... उन्हीं के गाँव के... विश्व प्रताप महापात्र पर विश्वास किया है... और उन्होंने अपनी वकालत नामा में... विश्व प्रताप महापात्र को चुना है....
ज़ज - ह्म्म्म्म ठीक है... तो प्रतिवादी राजा भैरव सिंह जी... आपने लिए क्या कोई वकील नियुक्त किया है आपने...
भैरव सिंह - जी नहीं योर ऑनर... हम अपनी पैरवी खुद करेंगे....
ज़ज - क्या... आप अपनी पैरवी खुद करेंगे....
भैरव सिंह - जी योर ऑनर...
ज़ज - विश्व प्रताप... इस पर आपकी राय क्या है...
विश्व - (अपनी जगह से उठ कर, भैरव सिंह की ओर देखते हुए) मुझे... कोई ऐतराज नहीं है योर ऑनर....
ज़ज - ठीक है... आपकी यह प्रस्ताव स्वीकारी जाती है....
भैरव सिंह - ज़ज साहब... यह केस हमारे खिलाफ चल रहा है... जैसे कि... एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट ने कहा... इसमें वादी हज़ारों के तादात में हैं... तो जाहिर है कि हमें... खुदको निर्दोष प्रमाण करने के लिए... उन्हें और... जिन्हें सरकारी गवाह बनाए गए हैं... उन्हें क्रॉस एक्जामीन करना पड़ेगा...
ज़ज - हाँ ऐसा होगा.... पर आप कहना क्या चाहते हैं...
भैरव सिंह - ज़ज साहब... क्षेत्रपाल परिवार बिखर चुका है... टूट चुका है... अब महल में... हम तीन लोग ही रह रहे हैं... हमारा बेटा.. बहु... छोटे राजा... छोटी रानी... कोई नहीं हैं... बड़े राजा बिस्तर पर अपनी आखिरी साँस गिन रहे हैं... यहाँ तक कोई डॉक्टर या मेडिकल स्टाफ तक... मिन्नतों के बाद भी... महल नहीं आ रहे हैं... हम चाहते हैं कि... नहीं नहीं सॉरी... दरख्वास्त करते हैं... हमारी केस को... विशेष केस की मान्यता दी जाए... उसे यशपुर या फिर... उसके आसपास किसी कोर्ट में स्थानांतरित किया जाए... इससे गाँव की लोगों को परेशानी नहीं होगी... और हमें अपने पिता के अंतिम समय पर सेवा करने का अवसर मिल जाएगा...
ज़ज - आप इस वक़्त... एक मुल्जिम हैं...
भैरव सिंह - जानते हैं... हम जब से यह केस दर्ज हुआ... तब से कल तक अपने महल में... गृह बंदी थे... हमें वैसे ही बंदी बना कर केस पर सुनवाई और कारवाई की जा सकती है... सिर्फ तब तक... जब तक हमारे पिताजी जिवित हैं... अगर इस बीच उनको मृत्यु आती है... तब कोर्ट चाहे तो केस को यहाँ... कटक में स्थानांतरित किया जा सकता है... हम कोई विरोध नहीं करेंगे...

तीनों ज़ज आपस में बातेँ करने लगते हैं l भैरव सिंह की दलीलें सुन कर विश्व के माथे पर बल पड़ गया था l कोर्ट रुम में मौजूद सभी लोग भी आपस में खुसुर-पुसुर करने लगते हैं l जज़ आपस में बातेँ करने के बाद

ज़ज - ऑर्डर ऑर्डर... (कोर्ट रुम से शांति छा जाती है) अभी अदालत में प्रस्तावित कारवाई को... एक घंटे के लिए स्थगित किया जाता है... एक घंटे बाद... अदालत वादी के वकील से... उनके विचार जानने की इच्छा रखती है... तब तक के लिए... स्थगन...

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हाइकोर्ट के बार असोसिएशन के प्रतिभा के चैम्बर में सभी बैठे हुए हैं l सब के सब गहरे चिंतन में खोए हुए हैं l

प्रतिभा - राजा... यह क्या कर रहा है...
तापस - अपने दिमाग के घोड़े दौड़ा रहा है...
प्रतिभा - ज़ज साहब को तुरंत मना कर देना चाहिए...
सुभाष सतपती - हाँ मना तो करना ही चाहिए...
दास - लगता है... राजगड़ में और भी कुछ कांड बाकी रह गए हैं... जिन्हें बड़ी तसल्ली से करना चाहता है...
प्रतिभा - अरे हाँ... इसने अभी दो दिन पहले... किसी तांत्रिक वांत्रिक को बुलाया था ना... (विश्व से) प्रताप... (विश्व आँखे मूँद कर गहरी सोच में खोया हुआ था, प्रतिभा की बुलाने पर चौंकते हुए अपनी सोच से बाहर आता है)
विश्व - हाँ... हाँ माँ...
प्रतिभा - किस सोच में खोया हुआ था...
तापस - पक्का वही सोच रहा होगा... जिस पर हम वाद विवाद कर रहे हैं...
प्रतिभा - एसक्युज मी... हम वाद विवाद नहीं कर रहे हैं... हम डिस्कशन कर रहे हैं...
तापस - अरे भाग्यवान शुद्ध भाषा में इसे... वाद विवाद ही कहते हैं...
प्रतिभा - हो गया... (तापस चुप हो जाता है) प्रताप... तुम क्या सोच रहे थे... और जब कारवाई शुरु होगी... तुम.. क्या प्रेजेंट करोगे...
विश्व - पता नहीं माँ...
प्रतिभा - ह्वाट...

प्रतिभा विश्व को कुछ देर तक गौर से देखती है l फिर अपनी जगह से उठ कर विश्व के पास आती है उसके कंधे पर हाथ रखकर कहती है

प्रतिभा - तुम्हें इसी दिन की तो प्रतीक्षा थी... अब जब आमने सामने फैसला होना है... तुम कहाँ खो जा रहे हो...
विश्व - (प्रतिभा के हाथ पर अपना हाथ रखकर) माँ... इतने दिनों गाँव में रहा... लोगों के बीच रहा... ताकि भैरव सिंह के खिलाफ... लोगों के दिल से डर मिटा सकूँ... और लोगों को... उसके खिलाफ एकजुट कर सकूँ... पत्री सर हो या दास सर... हर किसी ने... मेरा साथ दिया है... पर अब लोगों के मन में... डर दुबारा से घर करने लगा है...
दास - वही तो... इसी डर को कायम रखने के लिए... भैरव सिंह केस की सुनवाई को राजगड़ ले जाना चाहता है... विश्वा... मैं तो कहता हूँ... तुम इस बात का पुरजोर विरोध करो...
विश्व - अदालत के ऊपर में नहीं हूँ... और यह केस कोई लोवर कोर्ट में नहीं चल रहा... हाइकोर्ट में है...
प्रतिभा - कहीं लोगों का डर की वज़ह... वह तांत्रिक वाला कांड तो नहीं...
विश्व - बदकिस्मती से हाँ...
सब - ह्वाट...
पत्री - यह तो ननसेंस है... भला वह तांत्रिक राजा का क्या उद्धार कर लेगा... मेरा राजा से कई बार आमना सामना हुआ है... अच्छी तरह से जानता हूँ.. वह नास्तिक है...
प्रतिभा - तो फिर... वह यह ड्रामा क्यूँ कर रहा है..
विश्व - (अपनी जगह से उठ खड़ा होता है) यह एक साईकोलॉजिकल वॉर फैर है...
सब - मतलब...
विश्व - यह सब प्राचीन काल से चला आ रहा है... जिसे आज की ज़माने में... इंफॉर्मेशन वॉर फैर कहा जाता है... पहले अगर किसी रियासत पर हमला करना हो... तो अपने जासूसों के जरिए... दुश्मन रियासत के... छावनी और लोगों में... एक डर का मैसेज फैला देते थे... जैसे फलाना राजा के पास शैतानी ताकत है... इंसानी मांस खाता है... औरतों को उठा लेता है... वगैरह वगैरह... (सब चुप चाप सुन रहे थे) क्षेत्रपाल परिवार... शुरु से ही.. इसी दिमागी खेल को खेलता रहा है... इसके लिए... ऐसे रस्म या परंपराओं का सहारा लेते रहे... और यह कई दशकों तक कारगर भी रहे... कुछ राजा होते हैं... जो खुद को ईश्वर की प्रतिनिधि कहते हैं... जैसे पूरी राजा... जगन्नाथ के प्रतिनिधि कहलाते हैं... इसलिए लोग उनकी इज़्ज़त करते हैं... लोग उन पर किंवदंतियां गढ़ते हैं... उनके लिए... लोग आज भी मरने मारने के लिए तैयार रहते हैं... और कुछ राजा होते हैं... इन्हीं क्षेत्रपाल की तरह... जो खुद को... शैतान के प्रतीक बना कर लोगों में मन में बस जाते हैं... ऐसे राजाओं के लिए... लोग दंतकथायें बनाते हैं... जिसे लोग पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाते हैं... (सब अभी भी खामोशी से विश्व को सुने जा रहे थे) भैरव सिंह क्षेत्रपाल... एक जिवंत दंतकथा है... उसने तांत्रिक को क्या बुलाया... लोगों के मन में... फिर से दहशत बस गया है... उसने इस बात को कंफर्म भी कर लिया... गिरफ्तारी के बाद... राजगड़ के गली चौराहों से पैदल चल कर...

सब के सब चुप्पी साधे विश्व को सुने जा रहे थे l विश्व इतना कह कर खामोश हो गया, पर उसकी बातेँ इस कदर असर कर गई थी के कमरे में मरघट की चुप्पी पसर कर गई थी l

प्रतिभा - ठीक है.. लोग डर गए... पर इससे... सिस्टम को क्या... अदालत को क्या...
विश्व - माँ... मैंने अभी कहा ना... वह एक जिवंत दंतकथा है... और यह बात... राजगड़ के लोगों पर नहीं... सिस्टम पर भी लागू होती है... यही तो वज़ह है... के इसी डर की आड़ में... दशकों तक... स्टेट पालिटिक्स में दखल और प्रभाव रख पाए हैं...
प्रतिभा - मतलब... वह हर हाल में... रस्म को दोहराएगा...
विश्व - हाँ...
पत्री - पर होम मिनिस्ट्री... क्या इसकी इजाजत देगा... मुझे नहीं लगता...
दास - तब तो तुम्हें... हर हाल में... उसे रोकना होगा...
विश्व - जैसे जैसे... मुझे जीत मिलती गई... मेरा हौसला बढ़ता ही गया... मुझे लगा... राजा हार ही जाएगा... पर अब मुझे एहसास हो रहा है... यह लड़ाई... सिर्फ भैरव सिंह के खिलाफ ही नहीं... बल्कि पूरे के पूरे सिस्टम के खिलाफ है... और हम सब इसी सिस्टम के छोटे हिस्से मात्र हैं...
प्रतिभा - तो तुम क्या करोगे...
विश्व - हर कोशिश करूंगा... उसे यहीं रोकने के लिए...
दास - अगर उसे कानून से इजाजत मिल गई तो...
विश्व - तो उसे जो करना है... वह करेगा... मुझे जो करना है... मैं करूंगा

तभी सीलु अंदर आता है और सबसे कहता है - अब थोड़ी ही देर में... सुनवाई शुरु होगी... जज साहब आ गए हैं...

सभी उठ कर जाने लगते हैं l सुभाष बाहर तापस को ना पा कर अंदर आता है l अंदर तापस गहरी सोच में खोया हुआ था l

सुभाष - सर... आप अभी भी यहाँ... क्या सोच रहे हैं...
तापस - याद है सतपती मैंने कहा था... शतरंज की सोलह घर वाली चाल...
सुभाष - हाँ...
तापस - वह अब शायद शुरू हो चुका है... और प्रताप को... इसका आभास हो गया है...

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"ऑर्डर ऑर्डर" गैवल को टेबल पर मारते हुए ज़ज सबको चुप कराता है l

ज़ज - अदालत की कारवाई फिर से शुरु की जाती है... जैसे कि... प्रतिवादी राजा भैरव सिंह ने... केस के ताल्लुक जो अदालती कार्यवाही की माँग रखी है... उस पर विस्तृत चर्चा के लिए... हमने सॉलिसिटर जनरल मिस्टर & ₹#& को आव्हान किया है... (एक व्यक्ति कोर्ट के रुम में आता है और वकीलों के लिए निर्धारित स्थान पर आकर खड़ा होता है, जज के इशारा होते ही बैठ जाता है) तो.. वादी पक्ष के वकील... मिस्टर विश्व प्रताप... पहले दौर में... राजा भैरव सिंह ने जो प्रस्ताव दिया है... उस पर आप क्या विचार रखते हैं...
विश्व - माय लॉर्ड... क्या एक मुल्जिम... जिसके विरुद्ध... एक्जिक्युटीव मजिस्ट्रेट इंक्वायरी के बाद... लगभग दोषी करार दिया गया हो... अदालती क्रॉस एक्जामिन के लिए... बाहर अदालत बैठाई जा सकती है....
जज - इसका उत्तर हम... सॉलिसिटर जनरल जी से चाहेंगे...
SG - (अपनी जगह से उठकर) जी माय लॉर्ड... ऐसे केसेस में... फर्स्ट ट्रैक स्पेशल बेंच का गठन करने के लिए... कानून में प्रावधान है...
जज - ठीक है... तो विश्व प्रताप... अब आपका क्या प्रस्ताव है...
विश्व - माय लॉर्ड... यह केस... बहुत बड़ी आर्थिक घोटाले का है... जिसमें ना केवल बैंक का पैसा.. बल्कि लोगों की जमीन... उनके अधिकार का मनरेगा राशि... और सबसे अहम... सरकारी राशि का... ना केवल दुरुपयोग हुआ है... बल्कि लूट भी लिया गया है... इंक्वायरी रिपोर्ट के मुताबिक... यह घोटाला... तकरीबन तीन हजार करोड़ रुपये का है... ऐसे में... अगर मुल्जिम... बीस प्रतिशत की राशि जमा दें... वह भी अपने स्तावर और अस्तावर संपति से नहीं... बल्कि किसी आत्मीय या स्वजन की संपति से... तब यह अदालत... ऐसी किसी फर्स्ट ट्रैक बेंच का गठन करें...

इतना कहने के बाद विश्व एक नजर भैरव सिंह पर डालता है l पर भैरव सिंह के चेहरे पर उसे जरा सा भी शिकन तक नजर नहीं आता है l

जज - तो राजा साहब... आपने वादी पक्ष के वकील को सुना... आपकी उनके प्रस्ताव पर अपना विचार रख सकते हैं...
भैरव सिंह - हमें... एडवोकेट विश्व प्रताप जी का प्रस्ताव स्वीकर है...

यह एक धमाका था, जो ना सिर्फ सारे जजों को बल्कि विश्व के साथ कोर्ट रुम में हर किसी को हैरान कर जाता है l

जज - क्या सच में कोई है... जो आपके लिए... छह सौ करोड़ रुपए की राशि... कोर्ट में जमा कर सकता है...
भैरव सिंह - जी जज साहब...
जज - पर आपने पिछले सेशन में कहा था कि... आपका पूरा परिवार बिखर चुका है... कोई नहीं है आपके साथ... और हाँ यह याद रहे... जो दौलत आपके पास है... जब तक केस कोर्ट में चल रहा है... तब तक... उसे आप खर्च नहीं कर सकते...
भैरव सिंह - हम... वादी पक्ष के वकील और अदालत के मन में जो चल रहा है... हम समझ चुके हैं... आप इत्मीनान रखिए... वह राशि जमा कर दी जाएगी...
जज - कौन हैं... जो इतनी बड़ी राशि जमा करेंगे...
"मैं योर ऑनर मैं" कहते हुए एक शख्स दर्शकों के दीर्घा में से उठ खड़ा होता है l उसे देखते ही विश्व और बाकी सारे लोग हैरानी से उसे देखने लगते हैं l

जज - आप जो भी कोई हैं... कृपया इस कठघरे में आकर अपना बयान दर्ज कराएं...

वह शख्स खाली वाली कठघरे में में आता है और जज को कहने लगता है

आदमी - माय लॉर्ड... मेरा नाम कमल कांत महानायक है... मुझे लोग केके के नाम से भी जानते हैं...
जज - आपका... राजा साहब से क्या रिश्ता है...
केके - जैसा किसी खास व्यक्तित्व वाले के प्रति... उसके चाहने वाले का होता है... मैं राजा साहब बहुत प्रभावित हूँ... उनके प्रति अनुराग का भाव रखता हूँ... इसलिए मैं... वह तय राशि कोर्ट में जमा दे सकता हूँ...

केके के कह लेने के उपरांत, कोर्ट रुम में कुछ देर के लिए सन्नाटा छा जाती है l तीनों जज आपस में कुछ बात करने लगते हैं फिर जज अपना फैसला सुनाते हैं l

जज - ठीक है... कमल कांत महानायक जी को... एक हफ्ता का समय दिया जाता है... पूरे छह सौ करोड़ रुपये अदालत में जमा करने के लिए... और जैसे कि सॉलिसिटर जनरल ने सुझाव दिया है... हम सर्कार को... तीन जजों की पैनल बना कर... एक स्पेशल फर्स्ट ट्रैक... हाई कोर्ट बेंच बना कर... इस केस में... आगे की सुनवाई और उस पर कारवाई करने के लिए... आदेश पारित करते हैं... नाउ दी कोर्ट इज एडजॉर्न...
 

dhparikh

Well-Known Member
9,585
11,194
173
👉एक सौ पचपनवाँ अपडेट
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नागेंद्र का मन बहुत दुखी था, वैसे गिरफ्तारी से पहले उसे भैरव सिंह ने अपनी जाने की बात कह दी थी, पर महल के अंदर पुलिस का पहली बार आना और किसी क्षेत्रपाल को गिरफ्तार कर ले जाना नागेंद्र को अंदर से तोड़ रहा था l रुप बड़ी मशक्कत के साथ नागेंद्र को खाना खिलाने के बाद नागेंद्र को सुला देती है l फोन पर डॉक्टर और उनकी टीम को सारी बातेँ बता कर सुबह आने के लिए कहती है l उसके बाद सेबती को अपने घर जाने के लिए कहती है और सुबह जल्दी आने के लिए हिदायत देती है l सेबती के जाने के बाद रुप फिर से नागेंद्र को देखने के लिए वापस मुड़ती है l देखती है नागेंद्र की आँखें पत्थरा गई है l रुप डर जाती है अपना हाथ नागेंद्र के हाथ पर रख देती है l हाथों की गर्मी महसूस होते ही राहत की साँस लेती है l नागेंद्र के हाथ को हिला कर

रुप - दादाजी... दादाजी.. (नागेंद्र मुर्झाई चेहरे से हैरानगी भरे नजरों से रुप की ओर देखता है, रुप उसके बगल में बैठ जाती है) मैं जानती हूँ... आप अंदर से बिखरा हुआ महसूस कर रहे हैं... पर सच यह भी है... की... आपकी दिल में कोई पछतावा नहीं है... (चेहरे को सख्त करने की नाकाम कोशिश करता है) हाँ दादाजी... आज पहली बार... आपको दादाजी बुला रही हूँ... जानती हूँ... आपकी लाचारी... मेरा कोई विरोध नहीं कर सकती... हाँ अगर राजा साहब होते... तो मैं कभी भी... आपको दादाजी नहीं कह पाती... पर शायद... ऊपर वाले ने मुझे यह मौका दिया है... मेरी तरफ से... इस रिश्ते को आखिरी बार निभाने के लिए.... (नागेंद्र के जबड़े भिंच जाती हैं) इस उम्र तक आते आते... जिस्म... जुबान और दिमाग साथ छोड़ने लगता है... लोग पहचान भी नहीं पाते... पर आपके मामले में... आपका जिस्म और जुबान साथ छोड़ चुका है... बस आपका दिमाग आपके लाचार जिस्म और जुबान को खिंचे जा रहा है... आपको प्रतीक्षा है... जिसने आपको ज़ख़्म दिया है... उसे घुटने पर देखने की... पर वह है कि... आपको दिए ज़ख्मों पर... मिर्च पर मिर्च रगड़ता जा रहा है... (नागेंद्र भड़क जाता है और गुँगुँ की आवाज निकलने लगता है, रुप नागेंद्र के हाथ पर अपना हाथ रख देती है ) हाँ दादाजी... मैं आपकी तकलीफ को समझ पा रही हूँ... (नागेंद्र अपना हाथ हिला कर , रुप की हाथ को हटाने की कोशिश करता है, रुप समझ कर अपना हाथ हटा देती है) आपके भीतर नफ़रत अभी भी कितना भरा हुआ है... (नागेंद्र अपना सिर हिला कर रुप को चले जाने के लिए इशारा करता है) हाँ चली जाऊँगी... पर क्या है कि... आपकी हलक में अटकी जान मुझे इस घर में रोक रखा है... और जानते हैं... वह जिसे आप इस कदर नफरत कर रहे हैं... उसे भी आपकी फिक्र है... वर्ना वह मुझे कब का आप सबकी नजरों के सामने... इस घर से ले जाता... (रुप उठ खड़ी होती है) आप वाकई बहुत तकलीफ में हैं दादाजी... इस उम्र में... इन हालात में... लोग भगवान से मुक्ति माँगते हैं... पर आप... खैर... हो सके तो कभी भगवान को याद कर अपने लिए मुक्ति माँग लीजिए... क्यूँ के आप जीते-जी नर्क ही देख रहे हैं... भोग रहे हैं... मैं आपके लिए ईश्वर से दया माँगुंगी...

इतना कह कर रुप नागेंद्र के कमरे से निकल कर अंतर्महल में अपनी कमरे में आती है l कमरे में आते ही दरवाजे को बंद कर खिड़की की ओर देखते हुए पीठ टिकाए खड़ी रहती है l अचानक उसे एहसास होता है कि कमरे में कोई और भी है l उसकी धड़कने बढ़ने लगती हैं फिर अपनी आँखे मूँद कर गहरी साँस लेती है, उसके होंठों पर एक मुस्कान उभर आती है l

रुप - अनाम...

वार्डरोब के पीछे से निकल कर विश्व उसके सामने खड़ा हो जाता है l रुप भागती हुई विश्व के गले लग जाती है l विश्व भी उसे अपनी बाहों में भर लेता है l कुछ देर यूँ ही एक दूसरे से लिपटे रहने के बाद दोनों एक दूसरे से अलग होते हैं l

रुप - तुम... इस वक़्त...
विश्व - क्यूँ... मेरा यहाँ आना... आपको अच्छा नहीं लगा...
रुप - (विश्व के सीने पर मुक्का मारते हुए) बहुत अच्छा लगा... पर.. मैंने सोचा था कि तुम... इस वक़्त कटक गए होगे..
विश्व - हाँ... जाना तो है... पर... जाने से पहले... एक बार आपसे मिलना चाहता था... बात करना चाहता था...
रुप - तो चलो... आज छत पर जाते हैं... टीम टीमाते आसमान के नीचे... थोड़ा बैठते हैं...
विश्व - छत पर... किसीने देख लिया तो...
रुप - देख लिया तो... हा हा हा... तुम भी ना... (एक गहरी साँस छोड़ कर) कितना बड़ा महल है... पर आज सिर्फ दो जन हैं... एक मैं...
विश्व - और एक बड़े राजा जी... पर जो लोग पहरेदारी में हैं... वे अगर हमें देख लिया तो...
रुप - ओ हो... डर लग रहा है... ह्म्म्म्म... अनाम वे लोग जो पहरेदारी कर रहे हैं... वह क्षेत्रपाल नहीं हैं... नौकर हैं... बुरे भले ही हैं... पर फिर भी... अपनी मर्यादा नहीं लाँघते... यहाँ राजगड़ में सिर्फ क्षेत्रपाल ही मर्यादा में नहीं रहते... राजा साहब ने उन्हें हिदायत दी है... अंतर्महल की ओर वे लोग कभी नहीं आयेंगे...

रुप उसके बाद विश्व की हाथ पकड़ कर खिंचते हुए छत की ओर ले जाती है l छत पर बैठने के लिए एक छोटा सा चबूतरा बना हुआ था जिस पर रुप विश्व को लेकर बैठ जाती है और आसमान की ओर देखने लगती है l विश्व रुप की चेहरे की ओर निहारे जा रहा था l

रुप - अब इतना भी मत देखो... मुझे शर्म आने लगेगी तो अपना चेहरा छुपा लूँगी...
विश्व - (झेंप जाता है और दूसरी ओर देखने लगता है) सॉरी...
रुप - (खिलखिला कर हँस देती है, विश्व के दोनों हाथों को लेकर अपने चेहरे पर रख देती है) बेवक़ूफ़... मैं तो मज़ाक कर रही थी... तुम्हारा निहारना मुझे बहुत अच्छा लगता है... एक तुम ही तो हो... जब मुझे देखते हो... तो मुझे अपने खूबसूरत होने का एहसास होता है... और जानते हो... यह एहसास मुझे अंदर ही अंदर कितना प्यारा लगता है... उफ... मैं शब्दों में बयान ही नहीं कर सकती... तुम जब मुझे प्यार से देखते हो... मुझे एहसास होता है... के तुम्हारी हूँ... तुम्हारी ही हूँ... (विश्व भावुक हो कर रुप को अपनी ओर खिंच कर सीने से लगा लेता है) ऐ... क्या हुआ... ऐसा लगता है... तुम्हारे मन में कोई गिल्ट है... (अलग हो कर) कहो... क्या बात है...
विश्व - दो बातों का गिल्ट है... एक आप पर पहली बार किसीने हाथ छोड़ा... दुसरी... मैं वीर और अनु के प्यार को बचा नहीं पाया...
रुप - (विश्व की हाथ को लेकर अपने गाल पर रख कर गाल को रगड़ने लगती है) किसीने नहीं... राजा साहब ने... मैं चाहूँ या ना चाहूँ... वे मेरे बायोलॉजिकल पिता हैं... पहली और आखिरी बार... उन्होंने मुझ पर हाथ उठा कर... अपना हक निभाया... और रही वीर भैया और अनु भाभी की... तो वे दोनों सच्चे प्रेमी हैं... वे फिर से आयेंगे.. देख लेना... अपने अधूरे प्यार की परवान चढ़ाने... फिर से आयेंगे...
विश्व - इतना यकीन है...
रुप - हाँ... है... उन पर भी और प्यार पर भी है... प्यार की ताकत क्या होती है... मैं जानती हूँ... समझती हूँ...

विश्व इसबार अपने दोनों हाथों से रुप का चेहरा थाम लेता है और आगे बढ़ कर उसकी माथे पर चुम्मी लेता है l रुप विश्व की दोनों हाथों पर अपना हाथ रख लेती है और विश्व की हाथों को हटाने नहीं देती l

रुप - क्या ...यही दो बातेँ करने के लिए तुम यहाँ आए थे...
विश्व - नहीं... बातेँ तो बहुत है... पर आपको देख कर भूल गया हूँ...
रुप - झूठे कहीं के...
विश्व - सच...
रुप - चलो मान लेती हूँ...
विश्व - एक बात कहूँ...
रुप - हूँ हूँ...
विश्व - आप बहुत खूबसूरत हो..
रुप - हम्म्म... अच्छा... पर यह तो मैं जानती हूँ...
विश्व - (इस बार रुप को अपने पास खिंचता है और अपनी आँखों से रुप की आँखों में झाँकता है) आई लव यू...
रुप - आई लव यू ठु... अनाम... आज तुम इतने इमोशनल क्यूँ हो...
विश्व - पता नहीं... या फिर... शायद इसलिए कि मैं... कल राजा साहब के खिलाफ... कोर्ट में पैरवी करूँगा...
रुप - यही तो तुम्हारा लक्ष था ना...
विश्व - हाँ था... पर पता नहीं क्यूँ... मुझे लगा... एक बार आपसे बात कर ली जाए...
रुप - अनाम... (विश्व के सीने से लग कर) मैं हर हाल में... हर मोड़ पर... तुम्हारे साथ थी... हूँ... और रहूँगी...
विश्व - आपको बुरा नहीं लगेगा...
रुप - हरगिज नहीं... वह मेरा क्या... किसीका भी पिता बनने लायक नहीं है... पता नहीं मेरे पुरखों ने कौन-से पाप किए... पर यह जो राजा साहब है.. यह मेरी माँ का कातिल है... मेरे भाई वीर और अनु भाभी का कातिल है... जब यह आदमी अपनी ही खून को नहीं बक्सा हो.... वह किसी और को क्या बक्सा होगा... तुम जब भी उसके आँखों में देखो... तो वैदेही दीदी को याद करना... फिर उस पर तोहमत लगाना... उसे सजा दिलाने की कोशिश करना...
विश्व - पर मुझे लगता है... राजा साहब... ज्यादा दिन तक सलाखों के पीछे रहेंगे नहीं...
रुप - तब भी तुम वही करना... जो माँ से वादा किया है... राजा सहाब की हर राह में... कानून की कीलें बिछा देना...

कुछ देर के लिए दोनों के बीच चुप्पी छा जाती है l दोनों एक दूसरे के बाहों में ऐसे ही खोए हुए थे l फिर विश्व रुप को अलग करता है l

विश्व - अब मुझे चलना होगा...
रुप - हूँ...

रुप उठती है और विश्व की हाथ पकड़ कर छत से उतरती है और अपने कमरे में आती है l विश्व खिड़की की ओर जाता है और पीछे मुड़ कर देखता है l रुप फिर से उसके गले लग जाती है l

विश्व - मैं जाऊँ...
रुप - (अलग हो कर) जानते हो.. मैं तुम्हें छत पर क्यूँ लेकर गई थी... (विश्व सिर हिला कर ना कहता है) एक तमन्ना थी... तुम्हारे साथ इसी महल के छत पर... बैठ कर आसमान को निहारूं... आज वह तमन्ना भी पूरी हो गई... क्यूँ की मैं जानती हूँ.. इस महल में... ऐसी रात... ऐसी साथ... दुबारा फिर कभी नहीं नहीं आएगी...
विश्व - हम बहुत जल्द अपनी दुनिया बरसाएंगे... जहां ऐसी रात और ऐसी साथ... हरदम अपना ही होगा... वैसे एक बात पूछूं...
रुप - हूँ हूँ... पूछो...
विश्व - आप जब भी मेरे सीने से लगती हो... बड़ी जोर से लगती हो...
रुप - वह इसलिए के तुम्हारा जो धड़कन है... इसमें मुझे सिर्फ और सिर्फ मेरा नाम सुनाई देता है... और मत भूलो... तुम्हारे जिस्म के खुशबु में... एक नशा सा है... जो सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए है...
विश्व - आज आपको हो क्या गया है...
रुप - अब मुझसे... इस महल में रहा नहीं जाता...
विश्व - तो ठीक है... अगली बार जब आऊंगा... अपने साथ आपको ले जाऊँगा...
रुप - जाना तो है... पर...
विश्व - पर क्या...
रुप - आई विश... बड़े राजा जी चले जाएं... तब इस महल के ... मेरा हर रिश्ते से आजादी मिल जाएगी...
विश्व - यानी... जब तक... वह... बड़ा राजा मरेगा नहीं.. तब तक...
रुप - मैंने कहा ना... आई विश... भगवान से मै राज प्रार्थना करती हूँ... उन्हें ले जाने के लिए...
विश्व - आप सच्चे मन से प्रार्थना कर रही हैं... तो बड़े राजा को... इस नर्क से बहुत जल्द मुक्ति मिल जाएगी...
रुप - ह्म्म्म्म...
विश्व - अच्छा... अब मैं चलूँ...
रुप - ह्म्म्म्म...
विश्व - चलूँ...
रुप - बाय..

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अगले दिन सुबह, विश्व का अपना पुराना घर जिसमें अब विक्रम, शुभ्रा, पिनाक और सुषमा रह रहे हैं l इन कुछ दिनों में पिनाक बीमार रहने लगा है l वह एक कमरे में बिस्तर पकड़ लिया है l सुषमा भी मुर्झा सी गई है वह बिस्तर के पास बैठ कर पिनाक की सेवा में लगी हुई है l विक्रम घर के अंदर इधर उधर हो रहा था, उसको कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्यूँकी वैदेही किसी ना किसी के हाथ में बराबर खाना भिजवा रही थी l पर चूँकि करने के लिए कोई काम नहीं था, ऊपर से उसे दुनिया जहां की खबर हो नहीं रही थी, भैरव सिंह को गिरफतार कर शायद कटक भेज दिया गया था, पर उसे सब ख़बरें या तो टीलु से या फिर वैदेही से पता चल रहा था, इसलिए विक्रम अपने आप पर खीज रहा था l शुभ्रा यह सब देख रही थी पर वह भी लाचार थी l विक्रम चिढ़ते हुए कमरे से निकल कर बाहर बरामदे पर बैठ जाता है l पीछे पीछे शुभ्रा भी आती है और बगल में बैठ जाती है l

शुभ्रा - (विक्रम के कंधे पर हाथ रखकर) मैं समझ सकती हूँ... आप खाली बैठना नहीं चाहते... कुछ करना चाह रहे हैं... पर क्या करें... समझ नहीं पा रहे हैं... हैं ना...
विक्रम - हाँ शुब्बु... मैंने कहा था... तुमको रानी की तरह रखूँगा... पर... (जबड़े सख्त हो जाते हैं और मुट्ठीयाँ भींच लेता है) तुम लोगों की हालत... देखी नहीं जा रही है...
शुभ्रा - मैं ठीक हुँ... आपके साथ हूँ... आप मेरे पास हो... मुझे कुछ नहीं चाहिए...
विक्रम - तुम बहुत अच्छी हो... तुम कैसे मेरी किस्मत में आ गई... सिवाय दुख के... क्या हासिल हुआ तुम्हें...
शुभ्रा - मुझे आप हासिल हुए... क्या यह कम है...
विक्रम - जानती हो... मैं कुछ समझ नहीं पा रहा... कुछ करना चाह रहा हूँ... मगर क्या करूँ... यह मेरी लाचारी है... या बेबसी है... जिंदगी के कौनसी मोड़ पर आ खड़ा हूँ... सामने कोई राह... दिख ही नहीं रही है...
शुभ्रा - एक बात पूछूं...
विक्रम - हाँ पूछो...
शुभ्रा - आप... प्रताप से मिलने गए थे...
विक्रम - हाँ... गया था... सोचा था... उसे कह कर राजगड़ से निकल कर... कहीं दूर चला जाऊँगा... पर.. कह नहीं पाया... उल्टा... उसने मुझे और भी कंफ्यूज कर दिया...
शुभ्रा - कंफ्यूज मतलब...
विक्रम - उसने कहा... मेरा वर्तमान और भविष्य शायद... राजगड़ से ही जुड़ा हुआ है...

इतने में एक छोटा लड़का भागते हुए आता है और इन दोनों के पास आकर खड़ा होता है l वह झुक कर अपने हाथों को घुटनों पर रख कर हांफ रहा था l

शुभ्रा - क्या हुआ... तुम कहाँ से भागते हुए आए... कोई पीछा कर रहा है तुम्हारा...
लड़का - (अपनी साँसों को दुरुस्त करते हुए) नहीं.. नहीं... एक... बड़ी सी गाड़ी आई है... उसमें... एक बुढ़ा और एक बुढ़ी बैठे हुए हैं... आपके बारे में पूछ रहे थे...

विक्रम और शुभ्रा हैरान होते हैं l दोनों याद करने लगते हैं के कौन हो सकता है जो राजगड़ में उन्हें ढूंढते हुए आए हैं l

शुभ्रा - (लड़के से) तो उन्हें यहाँ ले आना चाहिए था ना...
लड़का - मेरे सारे दोस्त... उन्हें रास्ता बताते हुए... यहाँ ला रहे हैं... मैं तो बस आपको खबर करने आ गया...

इतना कह कर लड़का वापस भाग गया l कुछ दूर गली के मोड़ पर एक गाड़ी दिखती है l जिसके आगे और पीछे कुछ बच्चे भाग रहे हैं l थोड़ी देर बाद वह गाड़ी इनके सामने आकर रुकती है l ड्राइवर उतर कर पहले विक्रम और शुभ्रा को सैल्यूट करता है l उसके देखा देखी वह सारे बच्चे भी विक्रम और शुभ्रा को सैल्यूट करते हैं l ड्राइवर गाड़ी का दरवाजा जैसे खोलता है, एक अधेड़ आदमी उतरता है l शुभ्रा और विक्रम उसे देख कर हैरान हो जाते हैं l वह शख्स और कोई नहीं था, वह शुभ्रा के पिता बिरजा किंकर सामंतराय थे l उनके पीछे पीछे शुभ्रा की माँ भी उतरती है l शुभ्रा उन्हें देख कर दोनों के गले लग जाती है l तीनों के आँखे बहने लगती हैं l जब शुभ्रा दोनों से अलग होती है विक्रम जाकर दोनों के पैर बारी बारी से छू कर वापस अपनी जगह पर खड़ा हो जाता है l अब चारों के बीच चुप्पी थी, बात शुरु करने के लिए शायद चारों को हिचक हो रही थी l अंत में बिरजा किंकर बात शुरु करता है l

बिरजा - तो कैसे हो...
शुभ्रा - अच्छी हूँ...
माँ - दिख रहा है... क्या हालत बना रखी है तूने... और अकेली जान भी तो नहीं है तु...
शुभ्रा - माँ.. पेट भर खाना और इनके साथ... और क्या चाहिए...
विक्रम - वैसे... आप लोग इस समय...
माँ - वह एक रिवाज है... हमारे यहाँ... बेटी की पहली संतान का जन्म मैके में होती है... इसलिये हम शुभ्रा को लेने आए हैं....
शुभ्रा - पर वह सब तो... गोद भराई के बाद होती है ना...
माँ - हाँ होती है... पर अगर तु किसी महल में होती तो... पर तु यहाँ...
शुभ्रा - सच बताना माँ... अगर मैं महल में होती... तो क्या आप लोग आते... (बिरजा और शुभ्रा की माँ चुप रहते हैं) आप इस वक़्त इसलिए आए हैं... क्यूँकी महल से रिश्ता इन्होंने तोड़ दिया... जब तक महल से रिश्ता था... आप लोग पारादीप छोड़ कर भुवनेश्वर तक नहीं आए... यहाँ तक... जब भुवनेश्वर में... हम पर जान लेवा हमला हुआ... तब भी... आप नहीं आए... आप भुवनेश्वर लांघ कर राजगड़ आए हैं... क्यूँकी यह सब जानते हैं... हमें महल से निकाल दिया गया है...
माँ - नहीं... ऐसी बात नहीं है... (बिरजा से) क्यूँ जी... (बिरजा कोई जवाब नहीं दे पाता)
शुभ्रा - देखा माँ... जवाब सूझ नहीं रहा है ना... आपको मुझसे हमदर्दी है... क्यूँकी मैं आपकी कोखजायी हूँ... पर यह भी सच है... आपने इन्हें स्वीकार नहीं किया... अब भी... आप रस्म अदायगी के बहाने मुझे ले जाने आए हैं...
माँ - नहीं नहीं.. तुम... हमें... गलत समझ रही हो बेटी...
शुभ्रा - नहीं माँ... जो भी हूँ... जैसी भी हूँ... तुम्हारी ही बेटी हूँ...

बिरजा का चेहरा सख्त हो जाती है, नजरें मिला नहीं पाता अपनों बेटी और दामाद से l और शुभ्रा की माँ लाजवाब हो गई थी l

शुभ्रा - आप लोग सुबह सुबह आए हैं... मतलब रात को जरुर यशपुर में रुके होंगे... अगर इतनी ही चिंता थी... तो कल शाम को... आप लोग यहाँ होते...
बिरजा - तुम हमारे प्यार को गाली मत दो बेटी... हम तुम लोगों के सामने आने से कतरा रहे थे... अपराध कहो या पाप... हाँ हुआ है हमसे... हम...सब कुछ सुनने... जानने के बावजूद... भुवनेश्वर नहीं गए... यही अपराध बोध हमें... तुम्हारे सामने लाने में देरी कर दी...
शुभ्रा - हाँ पापा... मैं मानतीं हूँ... पर मैं भी माफी चाहती हूँ... मैं आप लोगों के साथ... इन्हें इस हालत में छोड़ कर नहीं जा सकती...
माँ - यह तुमने कैसे सोच लिया... हम सिर्फ तुम्हें लेने आए हैं... हम दामाद जी, छोटे राजा और रानी जी को भी ले जाने आए हैं...
विक्रम - आपका बहुत बहुत शुक्रिया सासु माँ... पर मैं यहाँ से अभी जा नहीं सकता...
माँ - क्यूँ दामाद जी...
विक्रम - राजगड़ को शायद... मुझसे कुछ चाहिए... कुछ तो बाकी है... जो मुझे रोक रखा है... वर्ना... कब का छोड़ कर चला गया होता...
बिरजा - कुछ पाने की आश में हो लगता है...
विक्रम - नहीं ससुर जी... नहीं... मैंने कहा... राजगड़ का मुझ पर कुछ कर्ज है शायद... जब तक चुकता नहीं हो जाता... मैं यहाँ से जा नहीं सकता....
बिरजा - (शुभ्रा से) तुम्हारा क्या कहना है....
शुभ्रा - पापा... अभी तो इम्तिहान शुरु हुआ है... मैं बीच रास्ते में कैसे साथ छोड़ दूँ... यह चाहे कहीं भी रहें... जिस हाल में रहें... मैं हर कदम पर इनके साथ खड़ी मिलूंगी...

बिरजा किंकर अंदर से छटपटा जाता है l बड़ी मुश्किल से अपनी अहं को छोड़ कर विक्रम के आगे हाथ जोड़ कर कहने लगता है

बिरजा - मुझसे भूल हो गई... माफ कर दीजिए... दामाद जी... आपकी और मेरी बेटी की तकलीफ देखा नहीं जा रहा है मुझसे...
विक्रम - आप हाथ जोड़ कर मुझे पाप का भागी ना बनायें... मैं शुभ्रा जी को ना तो जाने से रोकुंगा... ना ही रुकने के लिए मिन्नत... मैं उनकी हर इच्छा का सम्मान करूँगा... (बिरजा हाथ जोड़े शुभ्रा की ओर देखता है)
शुभ्रा - पापा... इन कुछ महीनों में... अगर हालात कुछ सुधरे... तो सातवें महीने में... मेरी गोद भराई रस्म के लिए आप ज़रूर आइए... तब अगर जाना मुमकिन हुआ... तो मैं जरुर जाऊँगी... पर अब नहीं... हरगिज नहीं...


बिरजा और शुभ्रा की माँ के आँखों में आंसुओं की धारा छूटने लगी थी l क्यूँकी जो जवाब शुभ्रा ने दी थी वह उन्हें कहीं ना कहीं ग्लानि का बोध करा रहा था l इससे आगे वह कुछ ना कह सके l आँखों में आँसू लिए गाड़ी में बैठने के लिए मुड़ते हैं l

विक्रम - यह क्या... आप तो जाने लगें... घर के अंदर आइए... कम से कम पानी तो पी कर जाइए...
बिरजा - नहीं युवराज... नहीं... हमारे यहाँ एक रस्म यह भी है... जब तक नाती या नातिन का चेहरा ना देख लें... तब तक... हम बेटी के घर का पानी पीना तो दूर... चौखट के भीतर भी नहीं जाते... ईश्वर ने चाहा तो हम फिर आयेंगे.. अपनी बेटी को साथ लेकर जाएंगे...

फिर सामंत राय दंपति गाड़ी में बैठ कर वापस चले जाते हैं l उन्हें आपनी आँखों से गायब होने तक शुभ्रा और विक्रम वहीँ पर खड़े रहे फिर जब अंदर जाने लगते हैं सामने सुषमा खड़ी थी l दोनों सुषमा को देख कर ठिठक जाते हैं l

सुषमा - मुझे तुम पर फक्र बचों... (शुभ्रा से) और मेरी आशीर्वाद है... दूधो नहाओ पुतों फलो

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"दीदी... बड़ी भूख लगी है... खाने के लिए कुछ दे दो..." कहते हुए टीलु वैदेही की दुकान में आता है और एक जगह बैठ जाता है l

गौरी - आ गया नासपीटा... चूल्हा गरम हो ना हो... पेट इसका ठंडा रहना चाहिए... तेरे सारे दोस्त कटक चले गए... तु क्यूँ पीछे सड़ने के लिए रह गया...
टीलु - क्यूँ बुढ़िया... तुझे जलन हो रही है... (गौरी के पास एक बेंत की लकड़ी थी उसे उठा कर टीलु पर फेंक मारती है, टीलु उसे पकड़ लेता है) ना ना... मैंने पूरी भाजी खाने को माँगा है... यह नहीं...
गौरी - तुझे इससे खिलाना चाहिए...
टीलु - दीदी के हाथ से... कुछ भी खा लूँगा... ही.. (दांत दिखा कर हँसने लगता है)
गौरी - बस बस... वैदेही देदे इसे... दांत दिखाते इस बंदर का चेहरा देखा नहीं जा रहा है...
टीलु - मेरे तो फिर भी दांत है... तेरे तो वह भी नहीं है... ही ही ही...
गौरी - (अपनी जगह से उठती हुए) रुक आज तुझे... अपनी हाथ से खिलाती हूँ... (पर उठती नहीं)

इतने में वैदेही थाली में पूरी तरकारी लेकर टीलु के सामने परोस देती है l टीलु देखता है आज वैदेही बड़ी गुमसुम सी और खोई खोई सी है l वैदेही थाली परोस कर जब जाने लगती है टीलु टोक देता है

टीलु - दीदी...
वैदेही - (मुड़ कर) क्या कुछ और चाहिए...
टीलु - नहीं दीदी... पर आज तुम्हें हो क्या गया है... क्या विशु भाई पास नहीं है... इसलिए...
वैदेही - नहीं ऐसी बात नहीं है...
टीलु - मैं समझ गया... कल राजा भैरव सिंह... जरुर तुमको धमका कर गया होगा...
वैदेही - नहीं... वह बात भी नहीं है... तुम खाना खा लो...

टीलु, गौरी की तरफ सवालिया नजर से देखता है, गौरी अपनी नजर फ़ेर लेती है और दूसरी तरफ देखने लगती है l टीलु पूरी तोड़ कर पहला निवाला खाता है और वैदेही से कहता है


टीलु - ओ... यह क्या दीदी... आज खाने में नमक ज्यादा हो गया है...
वैदेही - क्या... (चौंकती है) (टीलु की थाली से एक निवाला खा कर) कहाँ... ठीक ही तो है... झूठ क्यूँ बोला..
टीलु - तुम भी तो सच नहीं बोल रही... क्या राजा साहब ने तुमको धमकाया... तुम्हें किस बात की परेशानी है...
गौरी - हाँ बेटी... कहीं सच में तु... राजा की धमकी से डर तो नहीं गई...
वैदेही - नहीं... डर उन्हें लगता है... जिन्हें कुछ खोने का हो... अब राजा... क्या छिन लेगा जो मैं डरुंगी....
टीलु - फिर... कहीं तुम यह तो नहीं सोच लिया... विशु भाई केस हार सकता है...
वैदेही - नहीं... विशु हारेगा ही नहीं...
टीलु - (खाने की थाली को किनारे करते हुए) तो फिर...
वैदेही - खाने का अनादर नहीं करते... खा ले...
टीलु - जब अन्नपूर्णा ही उदास हो... तो खाना पचेगा ही नहीं...
गौरी - हाँ वैदेही... दिल पर बोझ मत बढ़ा... बोल दे...
वैदेही - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) ठीक है... यह बात मैंने विशु से भी साझा नहीं की है... पर तुमको बता रही हूँ... जब लोगों के अंदर की ज़ज्बात को मैंने भड़काया था... तो पहली बार ऐसा हुआ था... के लोग महल में घुसे... अपनी हक की आवाज उठाई... और राजा को पीठ कर वापस लौटे...
टीलु - हाँ... हम सभी उस घटना के गवाह हैं...
वैदेही - मुझे लगा था... पीढ़ी दर पीढ़ी... कुचले हुए आक्रोश को मैंने भड़का कर आंदोलन के रुप में ढाल दिया... पर कल राजा ने उसे गलत साबित कर दिया...
टीलु - कैसे....
वैदेही - कल बेशक राजा के हाथों में हथकड़ी थी... वह पैदल गाँव के रास्तों से गुजरा... पर मैंने वह देखा... जो राजा वास्तव में मुझे दिखाना चाह रहा था... (टीलु और गौरी ध्यान से सुन रहे थे) कल अगर गाँव वाले... उसकी गिरफ्तारी को तमाशा की तरह देखे होते... तो राजा कल ही मर गया होता... पर ऐसा नहीं हुआ... लोग डर के मारे घरों में दुबक गए... किसी में भी हिम्मत नहीं थी... राजा के आँखों में देखे... सच कहती हूँ... अगर एक छोटा बच्चा भी कल राजा के आँखों में आँखे डाल कर देख लिया होता... राजा वहीँ मर चुका होता... लेकिन कल राजा को... लोगों की कायरता ने... फिर से जिंदा कर दिया... काकी... याद है... परसों किसी तांत्रिक की बात कर रही थी...
गौरी - हाँ... हाँ...
वैदेही - वह तांत्रिक क्या करेगा... मैं नहीं जानती... पर राजा उस तांत्रिक को बुला कर लोगों के मन में... एक खौफ जगा दिया... लोगों को लग रहा है... कहीं उनकी घर की बेटी को... राजा उठा ना ले...
गौरी - मुझे तो पहले से ही यही लग रहा था... पर तुम्हीं ने कहा था... के गाँव वाले पलट वार करेंगे....
टीलु - दीदी... तुम ना खामख्वाह परेशान हो रही हो... अब उस पर केस चलेगा... मजिस्ट्रेट इंक्वायरी हुई है... विशु भाई केस लड़ रहा है... ऐसे कैसे राजा अपना कारनामा दोहरा देगा...
वैदेही - तुम... राजा को हल्के में मत लो... और मैं भी यह यकीन के साथ कह सकती हूँ... विशु के मन में भी यही संशय होगा... राजा ने जरुर कुछ बड़ा प्लान किया है... वह लौटेगा... जरुर लौटेगा...
टीलु - नहीं दीदी... चांस ही नहीं है... वह तभी आ सकता है... जब उसे ज़मानत मिलेगा... मजिस्ट्रेट इंक्वायरी में... जो दोषी करार दिए जाते हैं... उन्हें आसानी से... ज़मानत नहीं मिलती...
वैदेही - मैं इतना कानून नहीं जानती... पर... वह राजा है... दशकों से... वह और उसके पुरखे... इस इलाके में ही नहीं... पूरे स्टेट में राज किया है... जरुर कोई ना कोई तिकड़म भिड़ायेगा...
टीलु - तो आने दो बाहर... हम देख लेंगे उसको...
वैदेही - वह जब आएगा... एक अलग ताकत के साथ लौटेगा... वह इस राजगड़ के नाम की नदी का इकलौता मगरमछ है... हाती में चाहे कितना भी ताकत क्यूँ ना हो... पानी के अंदर... मगरमच्छ के जबड़े में... लाचार हो जाता है...
टीलु - दीदी तुम डरी हुई हो... या परेशान हो...
वैदेही - दोनों... डर मुझे गाँव वालों के लिए है... परेशानी इसलिए... की विशु की सारी मेहनत बेकार चली जाएगी...
टीलु - तो तुमने विशु भाई को पूरी बात बताई क्यूँ नहीं.... उसे बताना पड़ेगा...
वैदेही - नहीं... उसे पूरी तरह से... केस पर ध्यान देने दो... बाकी राजा अगर गाँव अंदर कुछ करने की कोशिश करी... तो मैं रोकुंगी...
गैरी - पर हमें पता कैसे चलेगा... वह किसको उठाएगा...
टीलु - क्या आपको लगता है... राजा वाकई यह सब करेगा...
वैदेही - पता नहीं... पर डर तो बना रहेगा ना...
गौरी - मान लो... अगर तुम्हारा डर... सही निकला तब...

इस सवाल पर वैदेही का चेहरा सख्त हो जाता है, दांत भींच जाती हैं l टीलु का मुहँ खुला रह जाता है l

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कोर्ट के अंदर नरोत्तम पत्री के साथ विश्व बैठा हुआ है l दर्शकों के दीर्घा में सेनापति दंपति और जोडार बैठे हुए हैं l कुछ देर बाद हॉकर ऊँची आवाज़ में जजों की आने की सूचना देता है l लोग सारे खड़े हो जाते हैं l एक के बाद एक तीन ज़ज आकर अपना आसान पर बैठ जाते हैं l मुख्य ज़ज गैवल उठा कर टेबल पर पटकते हुए

ज़ज - ऑर्डर ऑर्डर... आज की कारवाई शुरु की जाती है... (कोर्ट रुम में खामोशी पसर जाती है, ज़ज एक फाइल पलट कर कुछ देखता है और पत्री से) हाँ तो... नरोत्तम जी... आपकी छानबीन और रिपोर्ट के बारे में जानकारी दीजिए...
पत्री - (अपनी जगह से उठ खड़े होकर) येस माय लॉर्ड... (कुछ फाइलें हाथों में लेकर) माय लॉर्ड... यह केस... मनरेगा की आड़ में... बैंक फ्रॉड... लैंड स्कैम से जुड़ा हुआ है... जैसे ही होम मिनिस्ट्री से हमें ऑर्डर मिला... हमने अपनी टीम बना कर इस पर तहकीकात शुरु कर दिया... और महीने भर से उपर लग गया हमें... अंत में यह रिपोर्ट बना कर एक कॉपी होम मिनिस्ट्री में सबमिट कर दिया है... और एक पर सुनवाई और कारवाई के लिए... यह रहा... (कह कर एक फाइल को रीडर को सौंपता है, रीडर वह फाइल लेकर ज़ज् को देता है, ज़ज् वह फाइल लेकर कुछ पन्ने देखता है)
ज़ज - ह्म्म्म्म... मुल्जिम को पेश किया जाये...

हॉकर हाजिरी के लिए आवाज़ देता है - मुल्जिम... राजा साहब... भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी... हाजिर हो...

पुलिस के कुछ सिपाही और दास भैरव सिंह को लेकर अंदर आते हैं l भैरव सिंह मुल्जिम वाली कठघरे में आकर खड़ा होता है l भैरव सिंह के कठघरे में आते ही कोर्ट रुम के अंदर मरघट जैसी खामोशी पसर जाती है l एक शांत और ठंडक भरी निगाह दौड़ता है, अंदर बैठे सभी लोगों के बदन में सरसरी सी दौड़ जाती है l

ज़ज - मुल्जिम राजा भैरव सिंह... आप पर कुछ आरोप लगे हैं... क्या आप उन आरोपों से अवगत हैं...
भैरव सिंह - जी...
ज़ज - क्या आप मानते हैं... इस मजिस्ट्रेट इंक्वायरी में... आप पर आरोप सिद्ध हुए हैं...
भैरव सिंह - जी नहीं...
ज़ज - क्या आप मजिस्ट्रेट इंक्वायरी को एकतरफ़ा बता रहे हैं...
भैरव सिंह - जी... क्यूँकी इस इंक्वायरी में... माननीय एक्जीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट जी... उर्फ तहसीलदार जी ने... सिर्फ गाँव वालों की रिपोर्ट पर अपना विचार को रिपोर्ट बना कर पेश किया है... उन्होंने मुझसे कोई पूछताछ नहीं की है....
ज़ज - पत्री महोदय... इस पर आप क्या कहेंगे...
पत्री - मुझे रिपोर्ट की सच्चाई परखने के लिए जिम्मेदारी दी गई थी... जिसकी रिपोर्ट बना कर मैंने आपके सामने प्रस्तुत कर दी... माय लॉर्ड... आगे का काम अदालत करेगी...
ज़ज - आपके छानबीन में... आपने किन्हें वादी बनाया... किन्हें गवाह बनाया और किन्हें... प्रतिवादी बनाया...
पत्री - (एक और फाइल निकाल कर पन्ने देखते हुए) माय लॉर्ड... इस फ्रॉड केस में... वादी यशपुर, राजगड़, चारांगुल, माणीआ आदि पच्चीस गाँव के सभी लोग हैं... जैसे कि मुल्जिम के कठघरे में मौजूद राजा भैरव सिंह प्रतिवादी हैं... और गवाह हैं... (भैरव सिंह की ओर देखते हुए) रेवन्यू इंस्पेक्टर सुधांशु मिश्रा, बैंक मैनेजर अजय महाराणा, यशपुर सब रजिस्ट्रार ऑफिस के रजिस्ट्रार बिरंची सेठी... प्रमुख हैं... और इन्हें सरकारी गवाह बनाया गया है...
ज़ज - पर यहाँ वादी की तरफ से... कोई सरकारी वकील नहीं हैं...
पत्री - जी माय लॉर्ड... सभी गाँव वालों ने... उन्हीं के गाँव के... विश्व प्रताप महापात्र पर विश्वास किया है... और उन्होंने अपनी वकालत नामा में... विश्व प्रताप महापात्र को चुना है....
ज़ज - ह्म्म्म्म ठीक है... तो प्रतिवादी राजा भैरव सिंह जी... आपने लिए क्या कोई वकील नियुक्त किया है आपने...
भैरव सिंह - जी नहीं योर ऑनर... हम अपनी पैरवी खुद करेंगे....
ज़ज - क्या... आप अपनी पैरवी खुद करेंगे....
भैरव सिंह - जी योर ऑनर...
ज़ज - विश्व प्रताप... इस पर आपकी राय क्या है...
विश्व - (अपनी जगह से उठ कर, भैरव सिंह की ओर देखते हुए) मुझे... कोई ऐतराज नहीं है योर ऑनर....
ज़ज - ठीक है... आपकी यह प्रस्ताव स्वीकारी जाती है....
भैरव सिंह - ज़ज साहब... यह केस हमारे खिलाफ चल रहा है... जैसे कि... एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट ने कहा... इसमें वादी हज़ारों के तादात में हैं... तो जाहिर है कि हमें... खुदको निर्दोष प्रमाण करने के लिए... उन्हें और... जिन्हें सरकारी गवाह बनाए गए हैं... उन्हें क्रॉस एक्जामीन करना पड़ेगा...
ज़ज - हाँ ऐसा होगा.... पर आप कहना क्या चाहते हैं...
भैरव सिंह - ज़ज साहब... क्षेत्रपाल परिवार बिखर चुका है... टूट चुका है... अब महल में... हम तीन लोग ही रह रहे हैं... हमारा बेटा.. बहु... छोटे राजा... छोटी रानी... कोई नहीं हैं... बड़े राजा बिस्तर पर अपनी आखिरी साँस गिन रहे हैं... यहाँ तक कोई डॉक्टर या मेडिकल स्टाफ तक... मिन्नतों के बाद भी... महल नहीं आ रहे हैं... हम चाहते हैं कि... नहीं नहीं सॉरी... दरख्वास्त करते हैं... हमारी केस को... विशेष केस की मान्यता दी जाए... उसे यशपुर या फिर... उसके आसपास किसी कोर्ट में स्थानांतरित किया जाए... इससे गाँव की लोगों को परेशानी नहीं होगी... और हमें अपने पिता के अंतिम समय पर सेवा करने का अवसर मिल जाएगा...
ज़ज - आप इस वक़्त... एक मुल्जिम हैं...
भैरव सिंह - जानते हैं... हम जब से यह केस दर्ज हुआ... तब से कल तक अपने महल में... गृह बंदी थे... हमें वैसे ही बंदी बना कर केस पर सुनवाई और कारवाई की जा सकती है... सिर्फ तब तक... जब तक हमारे पिताजी जिवित हैं... अगर इस बीच उनको मृत्यु आती है... तब कोर्ट चाहे तो केस को यहाँ... कटक में स्थानांतरित किया जा सकता है... हम कोई विरोध नहीं करेंगे...

तीनों ज़ज आपस में बातेँ करने लगते हैं l भैरव सिंह की दलीलें सुन कर विश्व के माथे पर बल पड़ गया था l कोर्ट रुम में मौजूद सभी लोग भी आपस में खुसुर-पुसुर करने लगते हैं l जज़ आपस में बातेँ करने के बाद

ज़ज - ऑर्डर ऑर्डर... (कोर्ट रुम से शांति छा जाती है) अभी अदालत में प्रस्तावित कारवाई को... एक घंटे के लिए स्थगित किया जाता है... एक घंटे बाद... अदालत वादी के वकील से... उनके विचार जानने की इच्छा रखती है... तब तक के लिए... स्थगन...

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हाइकोर्ट के बार असोसिएशन के प्रतिभा के चैम्बर में सभी बैठे हुए हैं l सब के सब गहरे चिंतन में खोए हुए हैं l

प्रतिभा - राजा... यह क्या कर रहा है...
तापस - अपने दिमाग के घोड़े दौड़ा रहा है...
प्रतिभा - ज़ज साहब को तुरंत मना कर देना चाहिए...
सुभाष सतपती - हाँ मना तो करना ही चाहिए...
दास - लगता है... राजगड़ में और भी कुछ कांड बाकी रह गए हैं... जिन्हें बड़ी तसल्ली से करना चाहता है...
प्रतिभा - अरे हाँ... इसने अभी दो दिन पहले... किसी तांत्रिक वांत्रिक को बुलाया था ना... (विश्व से) प्रताप... (विश्व आँखे मूँद कर गहरी सोच में खोया हुआ था, प्रतिभा की बुलाने पर चौंकते हुए अपनी सोच से बाहर आता है)
विश्व - हाँ... हाँ माँ...
प्रतिभा - किस सोच में खोया हुआ था...
तापस - पक्का वही सोच रहा होगा... जिस पर हम वाद विवाद कर रहे हैं...
प्रतिभा - एसक्युज मी... हम वाद विवाद नहीं कर रहे हैं... हम डिस्कशन कर रहे हैं...
तापस - अरे भाग्यवान शुद्ध भाषा में इसे... वाद विवाद ही कहते हैं...
प्रतिभा - हो गया... (तापस चुप हो जाता है) प्रताप... तुम क्या सोच रहे थे... और जब कारवाई शुरु होगी... तुम.. क्या प्रेजेंट करोगे...
विश्व - पता नहीं माँ...
प्रतिभा - ह्वाट...

प्रतिभा विश्व को कुछ देर तक गौर से देखती है l फिर अपनी जगह से उठ कर विश्व के पास आती है उसके कंधे पर हाथ रखकर कहती है

प्रतिभा - तुम्हें इसी दिन की तो प्रतीक्षा थी... अब जब आमने सामने फैसला होना है... तुम कहाँ खो जा रहे हो...
विश्व - (प्रतिभा के हाथ पर अपना हाथ रखकर) माँ... इतने दिनों गाँव में रहा... लोगों के बीच रहा... ताकि भैरव सिंह के खिलाफ... लोगों के दिल से डर मिटा सकूँ... और लोगों को... उसके खिलाफ एकजुट कर सकूँ... पत्री सर हो या दास सर... हर किसी ने... मेरा साथ दिया है... पर अब लोगों के मन में... डर दुबारा से घर करने लगा है...
दास - वही तो... इसी डर को कायम रखने के लिए... भैरव सिंह केस की सुनवाई को राजगड़ ले जाना चाहता है... विश्वा... मैं तो कहता हूँ... तुम इस बात का पुरजोर विरोध करो...
विश्व - अदालत के ऊपर में नहीं हूँ... और यह केस कोई लोवर कोर्ट में नहीं चल रहा... हाइकोर्ट में है...
प्रतिभा - कहीं लोगों का डर की वज़ह... वह तांत्रिक वाला कांड तो नहीं...
विश्व - बदकिस्मती से हाँ...
सब - ह्वाट...
पत्री - यह तो ननसेंस है... भला वह तांत्रिक राजा का क्या उद्धार कर लेगा... मेरा राजा से कई बार आमना सामना हुआ है... अच्छी तरह से जानता हूँ.. वह नास्तिक है...
प्रतिभा - तो फिर... वह यह ड्रामा क्यूँ कर रहा है..
विश्व - (अपनी जगह से उठ खड़ा होता है) यह एक साईकोलॉजिकल वॉर फैर है...
सब - मतलब...
विश्व - यह सब प्राचीन काल से चला आ रहा है... जिसे आज की ज़माने में... इंफॉर्मेशन वॉर फैर कहा जाता है... पहले अगर किसी रियासत पर हमला करना हो... तो अपने जासूसों के जरिए... दुश्मन रियासत के... छावनी और लोगों में... एक डर का मैसेज फैला देते थे... जैसे फलाना राजा के पास शैतानी ताकत है... इंसानी मांस खाता है... औरतों को उठा लेता है... वगैरह वगैरह... (सब चुप चाप सुन रहे थे) क्षेत्रपाल परिवार... शुरु से ही.. इसी दिमागी खेल को खेलता रहा है... इसके लिए... ऐसे रस्म या परंपराओं का सहारा लेते रहे... और यह कई दशकों तक कारगर भी रहे... कुछ राजा होते हैं... जो खुद को ईश्वर की प्रतिनिधि कहते हैं... जैसे पूरी राजा... जगन्नाथ के प्रतिनिधि कहलाते हैं... इसलिए लोग उनकी इज़्ज़त करते हैं... लोग उन पर किंवदंतियां गढ़ते हैं... उनके लिए... लोग आज भी मरने मारने के लिए तैयार रहते हैं... और कुछ राजा होते हैं... इन्हीं क्षेत्रपाल की तरह... जो खुद को... शैतान के प्रतीक बना कर लोगों में मन में बस जाते हैं... ऐसे राजाओं के लिए... लोग दंतकथायें बनाते हैं... जिसे लोग पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाते हैं... (सब अभी भी खामोशी से विश्व को सुने जा रहे थे) भैरव सिंह क्षेत्रपाल... एक जिवंत दंतकथा है... उसने तांत्रिक को क्या बुलाया... लोगों के मन में... फिर से दहशत बस गया है... उसने इस बात को कंफर्म भी कर लिया... गिरफ्तारी के बाद... राजगड़ के गली चौराहों से पैदल चल कर...

सब के सब चुप्पी साधे विश्व को सुने जा रहे थे l विश्व इतना कह कर खामोश हो गया, पर उसकी बातेँ इस कदर असर कर गई थी के कमरे में मरघट की चुप्पी पसर कर गई थी l

प्रतिभा - ठीक है.. लोग डर गए... पर इससे... सिस्टम को क्या... अदालत को क्या...
विश्व - माँ... मैंने अभी कहा ना... वह एक जिवंत दंतकथा है... और यह बात... राजगड़ के लोगों पर नहीं... सिस्टम पर भी लागू होती है... यही तो वज़ह है... के इसी डर की आड़ में... दशकों तक... स्टेट पालिटिक्स में दखल और प्रभाव रख पाए हैं...
प्रतिभा - मतलब... वह हर हाल में... रस्म को दोहराएगा...
विश्व - हाँ...
पत्री - पर होम मिनिस्ट्री... क्या इसकी इजाजत देगा... मुझे नहीं लगता...
दास - तब तो तुम्हें... हर हाल में... उसे रोकना होगा...
विश्व - जैसे जैसे... मुझे जीत मिलती गई... मेरा हौसला बढ़ता ही गया... मुझे लगा... राजा हार ही जाएगा... पर अब मुझे एहसास हो रहा है... यह लड़ाई... सिर्फ भैरव सिंह के खिलाफ ही नहीं... बल्कि पूरे के पूरे सिस्टम के खिलाफ है... और हम सब इसी सिस्टम के छोटे हिस्से मात्र हैं...
प्रतिभा - तो तुम क्या करोगे...
विश्व - हर कोशिश करूंगा... उसे यहीं रोकने के लिए...
दास - अगर उसे कानून से इजाजत मिल गई तो...
विश्व - तो उसे जो करना है... वह करेगा... मुझे जो करना है... मैं करूंगा

तभी सीलु अंदर आता है और सबसे कहता है - अब थोड़ी ही देर में... सुनवाई शुरु होगी... जज साहब आ गए हैं...

सभी उठ कर जाने लगते हैं l सुभाष बाहर तापस को ना पा कर अंदर आता है l अंदर तापस गहरी सोच में खोया हुआ था l

सुभाष - सर... आप अभी भी यहाँ... क्या सोच रहे हैं...
तापस - याद है सतपती मैंने कहा था... शतरंज की सोलह घर वाली चाल...
सुभाष - हाँ...
तापस - वह अब शायद शुरू हो चुका है... और प्रताप को... इसका आभास हो गया है...

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"ऑर्डर ऑर्डर" गैवल को टेबल पर मारते हुए ज़ज सबको चुप कराता है l

ज़ज - अदालत की कारवाई फिर से शुरु की जाती है... जैसे कि... प्रतिवादी राजा भैरव सिंह ने... केस के ताल्लुक जो अदालती कार्यवाही की माँग रखी है... उस पर विस्तृत चर्चा के लिए... हमने सॉलिसिटर जनरल मिस्टर & ₹#& को आव्हान किया है... (एक व्यक्ति कोर्ट के रुम में आता है और वकीलों के लिए निर्धारित स्थान पर आकर खड़ा होता है, जज के इशारा होते ही बैठ जाता है) तो.. वादी पक्ष के वकील... मिस्टर विश्व प्रताप... पहले दौर में... राजा भैरव सिंह ने जो प्रस्ताव दिया है... उस पर आप क्या विचार रखते हैं...
विश्व - माय लॉर्ड... क्या एक मुल्जिम... जिसके विरुद्ध... एक्जिक्युटीव मजिस्ट्रेट इंक्वायरी के बाद... लगभग दोषी करार दिया गया हो... अदालती क्रॉस एक्जामिन के लिए... बाहर अदालत बैठाई जा सकती है....
जज - इसका उत्तर हम... सॉलिसिटर जनरल जी से चाहेंगे...
SG - (अपनी जगह से उठकर) जी माय लॉर्ड... ऐसे केसेस में... फर्स्ट ट्रैक स्पेशल बेंच का गठन करने के लिए... कानून में प्रावधान है...
जज - ठीक है... तो विश्व प्रताप... अब आपका क्या प्रस्ताव है...
विश्व - माय लॉर्ड... यह केस... बहुत बड़ी आर्थिक घोटाले का है... जिसमें ना केवल बैंक का पैसा.. बल्कि लोगों की जमीन... उनके अधिकार का मनरेगा राशि... और सबसे अहम... सरकारी राशि का... ना केवल दुरुपयोग हुआ है... बल्कि लूट भी लिया गया है... इंक्वायरी रिपोर्ट के मुताबिक... यह घोटाला... तकरीबन तीन हजार करोड़ रुपये का है... ऐसे में... अगर मुल्जिम... बीस प्रतिशत की राशि जमा दें... वह भी अपने स्तावर और अस्तावर संपति से नहीं... बल्कि किसी आत्मीय या स्वजन की संपति से... तब यह अदालत... ऐसी किसी फर्स्ट ट्रैक बेंच का गठन करें...

इतना कहने के बाद विश्व एक नजर भैरव सिंह पर डालता है l पर भैरव सिंह के चेहरे पर उसे जरा सा भी शिकन तक नजर नहीं आता है l

जज - तो राजा साहब... आपने वादी पक्ष के वकील को सुना... आपकी उनके प्रस्ताव पर अपना विचार रख सकते हैं...
भैरव सिंह - हमें... एडवोकेट विश्व प्रताप जी का प्रस्ताव स्वीकर है...

यह एक धमाका था, जो ना सिर्फ सारे जजों को बल्कि विश्व के साथ कोर्ट रुम में हर किसी को हैरान कर जाता है l

जज - क्या सच में कोई है... जो आपके लिए... छह सौ करोड़ रुपए की राशि... कोर्ट में जमा कर सकता है...
भैरव सिंह - जी जज साहब...
जज - पर आपने पिछले सेशन में कहा था कि... आपका पूरा परिवार बिखर चुका है... कोई नहीं है आपके साथ... और हाँ यह याद रहे... जो दौलत आपके पास है... जब तक केस कोर्ट में चल रहा है... तब तक... उसे आप खर्च नहीं कर सकते...
भैरव सिंह - हम... वादी पक्ष के वकील और अदालत के मन में जो चल रहा है... हम समझ चुके हैं... आप इत्मीनान रखिए... वह राशि जमा कर दी जाएगी...
जज - कौन हैं... जो इतनी बड़ी राशि जमा करेंगे...
"मैं योर ऑनर मैं" कहते हुए एक शख्स दर्शकों के दीर्घा में से उठ खड़ा होता है l उसे देखते ही विश्व और बाकी सारे लोग हैरानी से उसे देखने लगते हैं l

जज - आप जो भी कोई हैं... कृपया इस कठघरे में आकर अपना बयान दर्ज कराएं...

वह शख्स खाली वाली कठघरे में में आता है और जज को कहने लगता है

आदमी - माय लॉर्ड... मेरा नाम कमल कांत महानायक है... मुझे लोग केके के नाम से भी जानते हैं...
जज - आपका... राजा साहब से क्या रिश्ता है...
केके - जैसा किसी खास व्यक्तित्व वाले के प्रति... उसके चाहने वाले का होता है... मैं राजा साहब बहुत प्रभावित हूँ... उनके प्रति अनुराग का भाव रखता हूँ... इसलिए मैं... वह तय राशि कोर्ट में जमा दे सकता हूँ...

केके के कह लेने के उपरांत, कोर्ट रुम में कुछ देर के लिए सन्नाटा छा जाती है l तीनों जज आपस में कुछ बात करने लगते हैं फिर जज अपना फैसला सुनाते हैं l

जज - ठीक है... कमल कांत महानायक जी को... एक हफ्ता का समय दिया जाता है... पूरे छह सौ करोड़ रुपये अदालत में जमा करने के लिए... और जैसे कि सॉलिसिटर जनरल ने सुझाव दिया है... हम सर्कार को... तीन जजों की पैनल बना कर... एक स्पेशल फर्स्ट ट्रैक... हाई कोर्ट बेंच बना कर... इस केस में... आगे की सुनवाई और उस पर कारवाई करने के लिए... आदेश पारित करते हैं... नाउ दी कोर्ट इज एडजॉर्न...
Nice update...
 
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park

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👉एक सौ पचपनवाँ अपडेट
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नागेंद्र का मन बहुत दुखी था, वैसे गिरफ्तारी से पहले उसे भैरव सिंह ने अपनी जाने की बात कह दी थी, पर महल के अंदर पुलिस का पहली बार आना और किसी क्षेत्रपाल को गिरफ्तार कर ले जाना नागेंद्र को अंदर से तोड़ रहा था l रुप बड़ी मशक्कत के साथ नागेंद्र को खाना खिलाने के बाद नागेंद्र को सुला देती है l फोन पर डॉक्टर और उनकी टीम को सारी बातेँ बता कर सुबह आने के लिए कहती है l उसके बाद सेबती को अपने घर जाने के लिए कहती है और सुबह जल्दी आने के लिए हिदायत देती है l सेबती के जाने के बाद रुप फिर से नागेंद्र को देखने के लिए वापस मुड़ती है l देखती है नागेंद्र की आँखें पत्थरा गई है l रुप डर जाती है अपना हाथ नागेंद्र के हाथ पर रख देती है l हाथों की गर्मी महसूस होते ही राहत की साँस लेती है l नागेंद्र के हाथ को हिला कर

रुप - दादाजी... दादाजी.. (नागेंद्र मुर्झाई चेहरे से हैरानगी भरे नजरों से रुप की ओर देखता है, रुप उसके बगल में बैठ जाती है) मैं जानती हूँ... आप अंदर से बिखरा हुआ महसूस कर रहे हैं... पर सच यह भी है... की... आपकी दिल में कोई पछतावा नहीं है... (चेहरे को सख्त करने की नाकाम कोशिश करता है) हाँ दादाजी... आज पहली बार... आपको दादाजी बुला रही हूँ... जानती हूँ... आपकी लाचारी... मेरा कोई विरोध नहीं कर सकती... हाँ अगर राजा साहब होते... तो मैं कभी भी... आपको दादाजी नहीं कह पाती... पर शायद... ऊपर वाले ने मुझे यह मौका दिया है... मेरी तरफ से... इस रिश्ते को आखिरी बार निभाने के लिए.... (नागेंद्र के जबड़े भिंच जाती हैं) इस उम्र तक आते आते... जिस्म... जुबान और दिमाग साथ छोड़ने लगता है... लोग पहचान भी नहीं पाते... पर आपके मामले में... आपका जिस्म और जुबान साथ छोड़ चुका है... बस आपका दिमाग आपके लाचार जिस्म और जुबान को खिंचे जा रहा है... आपको प्रतीक्षा है... जिसने आपको ज़ख़्म दिया है... उसे घुटने पर देखने की... पर वह है कि... आपको दिए ज़ख्मों पर... मिर्च पर मिर्च रगड़ता जा रहा है... (नागेंद्र भड़क जाता है और गुँगुँ की आवाज निकलने लगता है, रुप नागेंद्र के हाथ पर अपना हाथ रख देती है ) हाँ दादाजी... मैं आपकी तकलीफ को समझ पा रही हूँ... (नागेंद्र अपना हाथ हिला कर , रुप की हाथ को हटाने की कोशिश करता है, रुप समझ कर अपना हाथ हटा देती है) आपके भीतर नफ़रत अभी भी कितना भरा हुआ है... (नागेंद्र अपना सिर हिला कर रुप को चले जाने के लिए इशारा करता है) हाँ चली जाऊँगी... पर क्या है कि... आपकी हलक में अटकी जान मुझे इस घर में रोक रखा है... और जानते हैं... वह जिसे आप इस कदर नफरत कर रहे हैं... उसे भी आपकी फिक्र है... वर्ना वह मुझे कब का आप सबकी नजरों के सामने... इस घर से ले जाता... (रुप उठ खड़ी होती है) आप वाकई बहुत तकलीफ में हैं दादाजी... इस उम्र में... इन हालात में... लोग भगवान से मुक्ति माँगते हैं... पर आप... खैर... हो सके तो कभी भगवान को याद कर अपने लिए मुक्ति माँग लीजिए... क्यूँ के आप जीते-जी नर्क ही देख रहे हैं... भोग रहे हैं... मैं आपके लिए ईश्वर से दया माँगुंगी...

इतना कह कर रुप नागेंद्र के कमरे से निकल कर अंतर्महल में अपनी कमरे में आती है l कमरे में आते ही दरवाजे को बंद कर खिड़की की ओर देखते हुए पीठ टिकाए खड़ी रहती है l अचानक उसे एहसास होता है कि कमरे में कोई और भी है l उसकी धड़कने बढ़ने लगती हैं फिर अपनी आँखे मूँद कर गहरी साँस लेती है, उसके होंठों पर एक मुस्कान उभर आती है l

रुप - अनाम...

वार्डरोब के पीछे से निकल कर विश्व उसके सामने खड़ा हो जाता है l रुप भागती हुई विश्व के गले लग जाती है l विश्व भी उसे अपनी बाहों में भर लेता है l कुछ देर यूँ ही एक दूसरे से लिपटे रहने के बाद दोनों एक दूसरे से अलग होते हैं l

रुप - तुम... इस वक़्त...
विश्व - क्यूँ... मेरा यहाँ आना... आपको अच्छा नहीं लगा...
रुप - (विश्व के सीने पर मुक्का मारते हुए) बहुत अच्छा लगा... पर.. मैंने सोचा था कि तुम... इस वक़्त कटक गए होगे..
विश्व - हाँ... जाना तो है... पर... जाने से पहले... एक बार आपसे मिलना चाहता था... बात करना चाहता था...
रुप - तो चलो... आज छत पर जाते हैं... टीम टीमाते आसमान के नीचे... थोड़ा बैठते हैं...
विश्व - छत पर... किसीने देख लिया तो...
रुप - देख लिया तो... हा हा हा... तुम भी ना... (एक गहरी साँस छोड़ कर) कितना बड़ा महल है... पर आज सिर्फ दो जन हैं... एक मैं...
विश्व - और एक बड़े राजा जी... पर जो लोग पहरेदारी में हैं... वे अगर हमें देख लिया तो...
रुप - ओ हो... डर लग रहा है... ह्म्म्म्म... अनाम वे लोग जो पहरेदारी कर रहे हैं... वह क्षेत्रपाल नहीं हैं... नौकर हैं... बुरे भले ही हैं... पर फिर भी... अपनी मर्यादा नहीं लाँघते... यहाँ राजगड़ में सिर्फ क्षेत्रपाल ही मर्यादा में नहीं रहते... राजा साहब ने उन्हें हिदायत दी है... अंतर्महल की ओर वे लोग कभी नहीं आयेंगे...

रुप उसके बाद विश्व की हाथ पकड़ कर खिंचते हुए छत की ओर ले जाती है l छत पर बैठने के लिए एक छोटा सा चबूतरा बना हुआ था जिस पर रुप विश्व को लेकर बैठ जाती है और आसमान की ओर देखने लगती है l विश्व रुप की चेहरे की ओर निहारे जा रहा था l

रुप - अब इतना भी मत देखो... मुझे शर्म आने लगेगी तो अपना चेहरा छुपा लूँगी...
विश्व - (झेंप जाता है और दूसरी ओर देखने लगता है) सॉरी...
रुप - (खिलखिला कर हँस देती है, विश्व के दोनों हाथों को लेकर अपने चेहरे पर रख देती है) बेवक़ूफ़... मैं तो मज़ाक कर रही थी... तुम्हारा निहारना मुझे बहुत अच्छा लगता है... एक तुम ही तो हो... जब मुझे देखते हो... तो मुझे अपने खूबसूरत होने का एहसास होता है... और जानते हो... यह एहसास मुझे अंदर ही अंदर कितना प्यारा लगता है... उफ... मैं शब्दों में बयान ही नहीं कर सकती... तुम जब मुझे प्यार से देखते हो... मुझे एहसास होता है... के तुम्हारी हूँ... तुम्हारी ही हूँ... (विश्व भावुक हो कर रुप को अपनी ओर खिंच कर सीने से लगा लेता है) ऐ... क्या हुआ... ऐसा लगता है... तुम्हारे मन में कोई गिल्ट है... (अलग हो कर) कहो... क्या बात है...
विश्व - दो बातों का गिल्ट है... एक आप पर पहली बार किसीने हाथ छोड़ा... दुसरी... मैं वीर और अनु के प्यार को बचा नहीं पाया...
रुप - (विश्व की हाथ को लेकर अपने गाल पर रख कर गाल को रगड़ने लगती है) किसीने नहीं... राजा साहब ने... मैं चाहूँ या ना चाहूँ... वे मेरे बायोलॉजिकल पिता हैं... पहली और आखिरी बार... उन्होंने मुझ पर हाथ उठा कर... अपना हक निभाया... और रही वीर भैया और अनु भाभी की... तो वे दोनों सच्चे प्रेमी हैं... वे फिर से आयेंगे.. देख लेना... अपने अधूरे प्यार की परवान चढ़ाने... फिर से आयेंगे...
विश्व - इतना यकीन है...
रुप - हाँ... है... उन पर भी और प्यार पर भी है... प्यार की ताकत क्या होती है... मैं जानती हूँ... समझती हूँ...

विश्व इसबार अपने दोनों हाथों से रुप का चेहरा थाम लेता है और आगे बढ़ कर उसकी माथे पर चुम्मी लेता है l रुप विश्व की दोनों हाथों पर अपना हाथ रख लेती है और विश्व की हाथों को हटाने नहीं देती l

रुप - क्या ...यही दो बातेँ करने के लिए तुम यहाँ आए थे...
विश्व - नहीं... बातेँ तो बहुत है... पर आपको देख कर भूल गया हूँ...
रुप - झूठे कहीं के...
विश्व - सच...
रुप - चलो मान लेती हूँ...
विश्व - एक बात कहूँ...
रुप - हूँ हूँ...
विश्व - आप बहुत खूबसूरत हो..
रुप - हम्म्म... अच्छा... पर यह तो मैं जानती हूँ...
विश्व - (इस बार रुप को अपने पास खिंचता है और अपनी आँखों से रुप की आँखों में झाँकता है) आई लव यू...
रुप - आई लव यू ठु... अनाम... आज तुम इतने इमोशनल क्यूँ हो...
विश्व - पता नहीं... या फिर... शायद इसलिए कि मैं... कल राजा साहब के खिलाफ... कोर्ट में पैरवी करूँगा...
रुप - यही तो तुम्हारा लक्ष था ना...
विश्व - हाँ था... पर पता नहीं क्यूँ... मुझे लगा... एक बार आपसे बात कर ली जाए...
रुप - अनाम... (विश्व के सीने से लग कर) मैं हर हाल में... हर मोड़ पर... तुम्हारे साथ थी... हूँ... और रहूँगी...
विश्व - आपको बुरा नहीं लगेगा...
रुप - हरगिज नहीं... वह मेरा क्या... किसीका भी पिता बनने लायक नहीं है... पता नहीं मेरे पुरखों ने कौन-से पाप किए... पर यह जो राजा साहब है.. यह मेरी माँ का कातिल है... मेरे भाई वीर और अनु भाभी का कातिल है... जब यह आदमी अपनी ही खून को नहीं बक्सा हो.... वह किसी और को क्या बक्सा होगा... तुम जब भी उसके आँखों में देखो... तो वैदेही दीदी को याद करना... फिर उस पर तोहमत लगाना... उसे सजा दिलाने की कोशिश करना...
विश्व - पर मुझे लगता है... राजा साहब... ज्यादा दिन तक सलाखों के पीछे रहेंगे नहीं...
रुप - तब भी तुम वही करना... जो माँ से वादा किया है... राजा सहाब की हर राह में... कानून की कीलें बिछा देना...

कुछ देर के लिए दोनों के बीच चुप्पी छा जाती है l दोनों एक दूसरे के बाहों में ऐसे ही खोए हुए थे l फिर विश्व रुप को अलग करता है l

विश्व - अब मुझे चलना होगा...
रुप - हूँ...

रुप उठती है और विश्व की हाथ पकड़ कर छत से उतरती है और अपने कमरे में आती है l विश्व खिड़की की ओर जाता है और पीछे मुड़ कर देखता है l रुप फिर से उसके गले लग जाती है l

विश्व - मैं जाऊँ...
रुप - (अलग हो कर) जानते हो.. मैं तुम्हें छत पर क्यूँ लेकर गई थी... (विश्व सिर हिला कर ना कहता है) एक तमन्ना थी... तुम्हारे साथ इसी महल के छत पर... बैठ कर आसमान को निहारूं... आज वह तमन्ना भी पूरी हो गई... क्यूँ की मैं जानती हूँ.. इस महल में... ऐसी रात... ऐसी साथ... दुबारा फिर कभी नहीं नहीं आएगी...
विश्व - हम बहुत जल्द अपनी दुनिया बरसाएंगे... जहां ऐसी रात और ऐसी साथ... हरदम अपना ही होगा... वैसे एक बात पूछूं...
रुप - हूँ हूँ... पूछो...
विश्व - आप जब भी मेरे सीने से लगती हो... बड़ी जोर से लगती हो...
रुप - वह इसलिए के तुम्हारा जो धड़कन है... इसमें मुझे सिर्फ और सिर्फ मेरा नाम सुनाई देता है... और मत भूलो... तुम्हारे जिस्म के खुशबु में... एक नशा सा है... जो सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए है...
विश्व - आज आपको हो क्या गया है...
रुप - अब मुझसे... इस महल में रहा नहीं जाता...
विश्व - तो ठीक है... अगली बार जब आऊंगा... अपने साथ आपको ले जाऊँगा...
रुप - जाना तो है... पर...
विश्व - पर क्या...
रुप - आई विश... बड़े राजा जी चले जाएं... तब इस महल के ... मेरा हर रिश्ते से आजादी मिल जाएगी...
विश्व - यानी... जब तक... वह... बड़ा राजा मरेगा नहीं.. तब तक...
रुप - मैंने कहा ना... आई विश... भगवान से मै राज प्रार्थना करती हूँ... उन्हें ले जाने के लिए...
विश्व - आप सच्चे मन से प्रार्थना कर रही हैं... तो बड़े राजा को... इस नर्क से बहुत जल्द मुक्ति मिल जाएगी...
रुप - ह्म्म्म्म...
विश्व - अच्छा... अब मैं चलूँ...
रुप - ह्म्म्म्म...
विश्व - चलूँ...
रुप - बाय..

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अगले दिन सुबह, विश्व का अपना पुराना घर जिसमें अब विक्रम, शुभ्रा, पिनाक और सुषमा रह रहे हैं l इन कुछ दिनों में पिनाक बीमार रहने लगा है l वह एक कमरे में बिस्तर पकड़ लिया है l सुषमा भी मुर्झा सी गई है वह बिस्तर के पास बैठ कर पिनाक की सेवा में लगी हुई है l विक्रम घर के अंदर इधर उधर हो रहा था, उसको कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्यूँकी वैदेही किसी ना किसी के हाथ में बराबर खाना भिजवा रही थी l पर चूँकि करने के लिए कोई काम नहीं था, ऊपर से उसे दुनिया जहां की खबर हो नहीं रही थी, भैरव सिंह को गिरफतार कर शायद कटक भेज दिया गया था, पर उसे सब ख़बरें या तो टीलु से या फिर वैदेही से पता चल रहा था, इसलिए विक्रम अपने आप पर खीज रहा था l शुभ्रा यह सब देख रही थी पर वह भी लाचार थी l विक्रम चिढ़ते हुए कमरे से निकल कर बाहर बरामदे पर बैठ जाता है l पीछे पीछे शुभ्रा भी आती है और बगल में बैठ जाती है l

शुभ्रा - (विक्रम के कंधे पर हाथ रखकर) मैं समझ सकती हूँ... आप खाली बैठना नहीं चाहते... कुछ करना चाह रहे हैं... पर क्या करें... समझ नहीं पा रहे हैं... हैं ना...
विक्रम - हाँ शुब्बु... मैंने कहा था... तुमको रानी की तरह रखूँगा... पर... (जबड़े सख्त हो जाते हैं और मुट्ठीयाँ भींच लेता है) तुम लोगों की हालत... देखी नहीं जा रही है...
शुभ्रा - मैं ठीक हुँ... आपके साथ हूँ... आप मेरे पास हो... मुझे कुछ नहीं चाहिए...
विक्रम - तुम बहुत अच्छी हो... तुम कैसे मेरी किस्मत में आ गई... सिवाय दुख के... क्या हासिल हुआ तुम्हें...
शुभ्रा - मुझे आप हासिल हुए... क्या यह कम है...
विक्रम - जानती हो... मैं कुछ समझ नहीं पा रहा... कुछ करना चाह रहा हूँ... मगर क्या करूँ... यह मेरी लाचारी है... या बेबसी है... जिंदगी के कौनसी मोड़ पर आ खड़ा हूँ... सामने कोई राह... दिख ही नहीं रही है...
शुभ्रा - एक बात पूछूं...
विक्रम - हाँ पूछो...
शुभ्रा - आप... प्रताप से मिलने गए थे...
विक्रम - हाँ... गया था... सोचा था... उसे कह कर राजगड़ से निकल कर... कहीं दूर चला जाऊँगा... पर.. कह नहीं पाया... उल्टा... उसने मुझे और भी कंफ्यूज कर दिया...
शुभ्रा - कंफ्यूज मतलब...
विक्रम - उसने कहा... मेरा वर्तमान और भविष्य शायद... राजगड़ से ही जुड़ा हुआ है...

इतने में एक छोटा लड़का भागते हुए आता है और इन दोनों के पास आकर खड़ा होता है l वह झुक कर अपने हाथों को घुटनों पर रख कर हांफ रहा था l

शुभ्रा - क्या हुआ... तुम कहाँ से भागते हुए आए... कोई पीछा कर रहा है तुम्हारा...
लड़का - (अपनी साँसों को दुरुस्त करते हुए) नहीं.. नहीं... एक... बड़ी सी गाड़ी आई है... उसमें... एक बुढ़ा और एक बुढ़ी बैठे हुए हैं... आपके बारे में पूछ रहे थे...

विक्रम और शुभ्रा हैरान होते हैं l दोनों याद करने लगते हैं के कौन हो सकता है जो राजगड़ में उन्हें ढूंढते हुए आए हैं l

शुभ्रा - (लड़के से) तो उन्हें यहाँ ले आना चाहिए था ना...
लड़का - मेरे सारे दोस्त... उन्हें रास्ता बताते हुए... यहाँ ला रहे हैं... मैं तो बस आपको खबर करने आ गया...

इतना कह कर लड़का वापस भाग गया l कुछ दूर गली के मोड़ पर एक गाड़ी दिखती है l जिसके आगे और पीछे कुछ बच्चे भाग रहे हैं l थोड़ी देर बाद वह गाड़ी इनके सामने आकर रुकती है l ड्राइवर उतर कर पहले विक्रम और शुभ्रा को सैल्यूट करता है l उसके देखा देखी वह सारे बच्चे भी विक्रम और शुभ्रा को सैल्यूट करते हैं l ड्राइवर गाड़ी का दरवाजा जैसे खोलता है, एक अधेड़ आदमी उतरता है l शुभ्रा और विक्रम उसे देख कर हैरान हो जाते हैं l वह शख्स और कोई नहीं था, वह शुभ्रा के पिता बिरजा किंकर सामंतराय थे l उनके पीछे पीछे शुभ्रा की माँ भी उतरती है l शुभ्रा उन्हें देख कर दोनों के गले लग जाती है l तीनों के आँखे बहने लगती हैं l जब शुभ्रा दोनों से अलग होती है विक्रम जाकर दोनों के पैर बारी बारी से छू कर वापस अपनी जगह पर खड़ा हो जाता है l अब चारों के बीच चुप्पी थी, बात शुरु करने के लिए शायद चारों को हिचक हो रही थी l अंत में बिरजा किंकर बात शुरु करता है l

बिरजा - तो कैसे हो...
शुभ्रा - अच्छी हूँ...
माँ - दिख रहा है... क्या हालत बना रखी है तूने... और अकेली जान भी तो नहीं है तु...
शुभ्रा - माँ.. पेट भर खाना और इनके साथ... और क्या चाहिए...
विक्रम - वैसे... आप लोग इस समय...
माँ - वह एक रिवाज है... हमारे यहाँ... बेटी की पहली संतान का जन्म मैके में होती है... इसलिये हम शुभ्रा को लेने आए हैं....
शुभ्रा - पर वह सब तो... गोद भराई के बाद होती है ना...
माँ - हाँ होती है... पर अगर तु किसी महल में होती तो... पर तु यहाँ...
शुभ्रा - सच बताना माँ... अगर मैं महल में होती... तो क्या आप लोग आते... (बिरजा और शुभ्रा की माँ चुप रहते हैं) आप इस वक़्त इसलिए आए हैं... क्यूँकी महल से रिश्ता इन्होंने तोड़ दिया... जब तक महल से रिश्ता था... आप लोग पारादीप छोड़ कर भुवनेश्वर तक नहीं आए... यहाँ तक... जब भुवनेश्वर में... हम पर जान लेवा हमला हुआ... तब भी... आप नहीं आए... आप भुवनेश्वर लांघ कर राजगड़ आए हैं... क्यूँकी यह सब जानते हैं... हमें महल से निकाल दिया गया है...
माँ - नहीं... ऐसी बात नहीं है... (बिरजा से) क्यूँ जी... (बिरजा कोई जवाब नहीं दे पाता)
शुभ्रा - देखा माँ... जवाब सूझ नहीं रहा है ना... आपको मुझसे हमदर्दी है... क्यूँकी मैं आपकी कोखजायी हूँ... पर यह भी सच है... आपने इन्हें स्वीकार नहीं किया... अब भी... आप रस्म अदायगी के बहाने मुझे ले जाने आए हैं...
माँ - नहीं नहीं.. तुम... हमें... गलत समझ रही हो बेटी...
शुभ्रा - नहीं माँ... जो भी हूँ... जैसी भी हूँ... तुम्हारी ही बेटी हूँ...

बिरजा का चेहरा सख्त हो जाती है, नजरें मिला नहीं पाता अपनों बेटी और दामाद से l और शुभ्रा की माँ लाजवाब हो गई थी l

शुभ्रा - आप लोग सुबह सुबह आए हैं... मतलब रात को जरुर यशपुर में रुके होंगे... अगर इतनी ही चिंता थी... तो कल शाम को... आप लोग यहाँ होते...
बिरजा - तुम हमारे प्यार को गाली मत दो बेटी... हम तुम लोगों के सामने आने से कतरा रहे थे... अपराध कहो या पाप... हाँ हुआ है हमसे... हम...सब कुछ सुनने... जानने के बावजूद... भुवनेश्वर नहीं गए... यही अपराध बोध हमें... तुम्हारे सामने लाने में देरी कर दी...
शुभ्रा - हाँ पापा... मैं मानतीं हूँ... पर मैं भी माफी चाहती हूँ... मैं आप लोगों के साथ... इन्हें इस हालत में छोड़ कर नहीं जा सकती...
माँ - यह तुमने कैसे सोच लिया... हम सिर्फ तुम्हें लेने आए हैं... हम दामाद जी, छोटे राजा और रानी जी को भी ले जाने आए हैं...
विक्रम - आपका बहुत बहुत शुक्रिया सासु माँ... पर मैं यहाँ से अभी जा नहीं सकता...
माँ - क्यूँ दामाद जी...
विक्रम - राजगड़ को शायद... मुझसे कुछ चाहिए... कुछ तो बाकी है... जो मुझे रोक रखा है... वर्ना... कब का छोड़ कर चला गया होता...
बिरजा - कुछ पाने की आश में हो लगता है...
विक्रम - नहीं ससुर जी... नहीं... मैंने कहा... राजगड़ का मुझ पर कुछ कर्ज है शायद... जब तक चुकता नहीं हो जाता... मैं यहाँ से जा नहीं सकता....
बिरजा - (शुभ्रा से) तुम्हारा क्या कहना है....
शुभ्रा - पापा... अभी तो इम्तिहान शुरु हुआ है... मैं बीच रास्ते में कैसे साथ छोड़ दूँ... यह चाहे कहीं भी रहें... जिस हाल में रहें... मैं हर कदम पर इनके साथ खड़ी मिलूंगी...

बिरजा किंकर अंदर से छटपटा जाता है l बड़ी मुश्किल से अपनी अहं को छोड़ कर विक्रम के आगे हाथ जोड़ कर कहने लगता है

बिरजा - मुझसे भूल हो गई... माफ कर दीजिए... दामाद जी... आपकी और मेरी बेटी की तकलीफ देखा नहीं जा रहा है मुझसे...
विक्रम - आप हाथ जोड़ कर मुझे पाप का भागी ना बनायें... मैं शुभ्रा जी को ना तो जाने से रोकुंगा... ना ही रुकने के लिए मिन्नत... मैं उनकी हर इच्छा का सम्मान करूँगा... (बिरजा हाथ जोड़े शुभ्रा की ओर देखता है)
शुभ्रा - पापा... इन कुछ महीनों में... अगर हालात कुछ सुधरे... तो सातवें महीने में... मेरी गोद भराई रस्म के लिए आप ज़रूर आइए... तब अगर जाना मुमकिन हुआ... तो मैं जरुर जाऊँगी... पर अब नहीं... हरगिज नहीं...


बिरजा और शुभ्रा की माँ के आँखों में आंसुओं की धारा छूटने लगी थी l क्यूँकी जो जवाब शुभ्रा ने दी थी वह उन्हें कहीं ना कहीं ग्लानि का बोध करा रहा था l इससे आगे वह कुछ ना कह सके l आँखों में आँसू लिए गाड़ी में बैठने के लिए मुड़ते हैं l

विक्रम - यह क्या... आप तो जाने लगें... घर के अंदर आइए... कम से कम पानी तो पी कर जाइए...
बिरजा - नहीं युवराज... नहीं... हमारे यहाँ एक रस्म यह भी है... जब तक नाती या नातिन का चेहरा ना देख लें... तब तक... हम बेटी के घर का पानी पीना तो दूर... चौखट के भीतर भी नहीं जाते... ईश्वर ने चाहा तो हम फिर आयेंगे.. अपनी बेटी को साथ लेकर जाएंगे...

फिर सामंत राय दंपति गाड़ी में बैठ कर वापस चले जाते हैं l उन्हें आपनी आँखों से गायब होने तक शुभ्रा और विक्रम वहीँ पर खड़े रहे फिर जब अंदर जाने लगते हैं सामने सुषमा खड़ी थी l दोनों सुषमा को देख कर ठिठक जाते हैं l

सुषमा - मुझे तुम पर फक्र बचों... (शुभ्रा से) और मेरी आशीर्वाद है... दूधो नहाओ पुतों फलो

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"दीदी... बड़ी भूख लगी है... खाने के लिए कुछ दे दो..." कहते हुए टीलु वैदेही की दुकान में आता है और एक जगह बैठ जाता है l

गौरी - आ गया नासपीटा... चूल्हा गरम हो ना हो... पेट इसका ठंडा रहना चाहिए... तेरे सारे दोस्त कटक चले गए... तु क्यूँ पीछे सड़ने के लिए रह गया...
टीलु - क्यूँ बुढ़िया... तुझे जलन हो रही है... (गौरी के पास एक बेंत की लकड़ी थी उसे उठा कर टीलु पर फेंक मारती है, टीलु उसे पकड़ लेता है) ना ना... मैंने पूरी भाजी खाने को माँगा है... यह नहीं...
गौरी - तुझे इससे खिलाना चाहिए...
टीलु - दीदी के हाथ से... कुछ भी खा लूँगा... ही.. (दांत दिखा कर हँसने लगता है)
गौरी - बस बस... वैदेही देदे इसे... दांत दिखाते इस बंदर का चेहरा देखा नहीं जा रहा है...
टीलु - मेरे तो फिर भी दांत है... तेरे तो वह भी नहीं है... ही ही ही...
गौरी - (अपनी जगह से उठती हुए) रुक आज तुझे... अपनी हाथ से खिलाती हूँ... (पर उठती नहीं)

इतने में वैदेही थाली में पूरी तरकारी लेकर टीलु के सामने परोस देती है l टीलु देखता है आज वैदेही बड़ी गुमसुम सी और खोई खोई सी है l वैदेही थाली परोस कर जब जाने लगती है टीलु टोक देता है

टीलु - दीदी...
वैदेही - (मुड़ कर) क्या कुछ और चाहिए...
टीलु - नहीं दीदी... पर आज तुम्हें हो क्या गया है... क्या विशु भाई पास नहीं है... इसलिए...
वैदेही - नहीं ऐसी बात नहीं है...
टीलु - मैं समझ गया... कल राजा भैरव सिंह... जरुर तुमको धमका कर गया होगा...
वैदेही - नहीं... वह बात भी नहीं है... तुम खाना खा लो...

टीलु, गौरी की तरफ सवालिया नजर से देखता है, गौरी अपनी नजर फ़ेर लेती है और दूसरी तरफ देखने लगती है l टीलु पूरी तोड़ कर पहला निवाला खाता है और वैदेही से कहता है


टीलु - ओ... यह क्या दीदी... आज खाने में नमक ज्यादा हो गया है...
वैदेही - क्या... (चौंकती है) (टीलु की थाली से एक निवाला खा कर) कहाँ... ठीक ही तो है... झूठ क्यूँ बोला..
टीलु - तुम भी तो सच नहीं बोल रही... क्या राजा साहब ने तुमको धमकाया... तुम्हें किस बात की परेशानी है...
गौरी - हाँ बेटी... कहीं सच में तु... राजा की धमकी से डर तो नहीं गई...
वैदेही - नहीं... डर उन्हें लगता है... जिन्हें कुछ खोने का हो... अब राजा... क्या छिन लेगा जो मैं डरुंगी....
टीलु - फिर... कहीं तुम यह तो नहीं सोच लिया... विशु भाई केस हार सकता है...
वैदेही - नहीं... विशु हारेगा ही नहीं...
टीलु - (खाने की थाली को किनारे करते हुए) तो फिर...
वैदेही - खाने का अनादर नहीं करते... खा ले...
टीलु - जब अन्नपूर्णा ही उदास हो... तो खाना पचेगा ही नहीं...
गौरी - हाँ वैदेही... दिल पर बोझ मत बढ़ा... बोल दे...
वैदेही - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) ठीक है... यह बात मैंने विशु से भी साझा नहीं की है... पर तुमको बता रही हूँ... जब लोगों के अंदर की ज़ज्बात को मैंने भड़काया था... तो पहली बार ऐसा हुआ था... के लोग महल में घुसे... अपनी हक की आवाज उठाई... और राजा को पीठ कर वापस लौटे...
टीलु - हाँ... हम सभी उस घटना के गवाह हैं...
वैदेही - मुझे लगा था... पीढ़ी दर पीढ़ी... कुचले हुए आक्रोश को मैंने भड़का कर आंदोलन के रुप में ढाल दिया... पर कल राजा ने उसे गलत साबित कर दिया...
टीलु - कैसे....
वैदेही - कल बेशक राजा के हाथों में हथकड़ी थी... वह पैदल गाँव के रास्तों से गुजरा... पर मैंने वह देखा... जो राजा वास्तव में मुझे दिखाना चाह रहा था... (टीलु और गौरी ध्यान से सुन रहे थे) कल अगर गाँव वाले... उसकी गिरफ्तारी को तमाशा की तरह देखे होते... तो राजा कल ही मर गया होता... पर ऐसा नहीं हुआ... लोग डर के मारे घरों में दुबक गए... किसी में भी हिम्मत नहीं थी... राजा के आँखों में देखे... सच कहती हूँ... अगर एक छोटा बच्चा भी कल राजा के आँखों में आँखे डाल कर देख लिया होता... राजा वहीँ मर चुका होता... लेकिन कल राजा को... लोगों की कायरता ने... फिर से जिंदा कर दिया... काकी... याद है... परसों किसी तांत्रिक की बात कर रही थी...
गौरी - हाँ... हाँ...
वैदेही - वह तांत्रिक क्या करेगा... मैं नहीं जानती... पर राजा उस तांत्रिक को बुला कर लोगों के मन में... एक खौफ जगा दिया... लोगों को लग रहा है... कहीं उनकी घर की बेटी को... राजा उठा ना ले...
गौरी - मुझे तो पहले से ही यही लग रहा था... पर तुम्हीं ने कहा था... के गाँव वाले पलट वार करेंगे....
टीलु - दीदी... तुम ना खामख्वाह परेशान हो रही हो... अब उस पर केस चलेगा... मजिस्ट्रेट इंक्वायरी हुई है... विशु भाई केस लड़ रहा है... ऐसे कैसे राजा अपना कारनामा दोहरा देगा...
वैदेही - तुम... राजा को हल्के में मत लो... और मैं भी यह यकीन के साथ कह सकती हूँ... विशु के मन में भी यही संशय होगा... राजा ने जरुर कुछ बड़ा प्लान किया है... वह लौटेगा... जरुर लौटेगा...
टीलु - नहीं दीदी... चांस ही नहीं है... वह तभी आ सकता है... जब उसे ज़मानत मिलेगा... मजिस्ट्रेट इंक्वायरी में... जो दोषी करार दिए जाते हैं... उन्हें आसानी से... ज़मानत नहीं मिलती...
वैदेही - मैं इतना कानून नहीं जानती... पर... वह राजा है... दशकों से... वह और उसके पुरखे... इस इलाके में ही नहीं... पूरे स्टेट में राज किया है... जरुर कोई ना कोई तिकड़म भिड़ायेगा...
टीलु - तो आने दो बाहर... हम देख लेंगे उसको...
वैदेही - वह जब आएगा... एक अलग ताकत के साथ लौटेगा... वह इस राजगड़ के नाम की नदी का इकलौता मगरमछ है... हाती में चाहे कितना भी ताकत क्यूँ ना हो... पानी के अंदर... मगरमच्छ के जबड़े में... लाचार हो जाता है...
टीलु - दीदी तुम डरी हुई हो... या परेशान हो...
वैदेही - दोनों... डर मुझे गाँव वालों के लिए है... परेशानी इसलिए... की विशु की सारी मेहनत बेकार चली जाएगी...
टीलु - तो तुमने विशु भाई को पूरी बात बताई क्यूँ नहीं.... उसे बताना पड़ेगा...
वैदेही - नहीं... उसे पूरी तरह से... केस पर ध्यान देने दो... बाकी राजा अगर गाँव अंदर कुछ करने की कोशिश करी... तो मैं रोकुंगी...
गैरी - पर हमें पता कैसे चलेगा... वह किसको उठाएगा...
टीलु - क्या आपको लगता है... राजा वाकई यह सब करेगा...
वैदेही - पता नहीं... पर डर तो बना रहेगा ना...
गौरी - मान लो... अगर तुम्हारा डर... सही निकला तब...

इस सवाल पर वैदेही का चेहरा सख्त हो जाता है, दांत भींच जाती हैं l टीलु का मुहँ खुला रह जाता है l

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कोर्ट के अंदर नरोत्तम पत्री के साथ विश्व बैठा हुआ है l दर्शकों के दीर्घा में सेनापति दंपति और जोडार बैठे हुए हैं l कुछ देर बाद हॉकर ऊँची आवाज़ में जजों की आने की सूचना देता है l लोग सारे खड़े हो जाते हैं l एक के बाद एक तीन ज़ज आकर अपना आसान पर बैठ जाते हैं l मुख्य ज़ज गैवल उठा कर टेबल पर पटकते हुए

ज़ज - ऑर्डर ऑर्डर... आज की कारवाई शुरु की जाती है... (कोर्ट रुम में खामोशी पसर जाती है, ज़ज एक फाइल पलट कर कुछ देखता है और पत्री से) हाँ तो... नरोत्तम जी... आपकी छानबीन और रिपोर्ट के बारे में जानकारी दीजिए...
पत्री - (अपनी जगह से उठ खड़े होकर) येस माय लॉर्ड... (कुछ फाइलें हाथों में लेकर) माय लॉर्ड... यह केस... मनरेगा की आड़ में... बैंक फ्रॉड... लैंड स्कैम से जुड़ा हुआ है... जैसे ही होम मिनिस्ट्री से हमें ऑर्डर मिला... हमने अपनी टीम बना कर इस पर तहकीकात शुरु कर दिया... और महीने भर से उपर लग गया हमें... अंत में यह रिपोर्ट बना कर एक कॉपी होम मिनिस्ट्री में सबमिट कर दिया है... और एक पर सुनवाई और कारवाई के लिए... यह रहा... (कह कर एक फाइल को रीडर को सौंपता है, रीडर वह फाइल लेकर ज़ज् को देता है, ज़ज् वह फाइल लेकर कुछ पन्ने देखता है)
ज़ज - ह्म्म्म्म... मुल्जिम को पेश किया जाये...

हॉकर हाजिरी के लिए आवाज़ देता है - मुल्जिम... राजा साहब... भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी... हाजिर हो...

पुलिस के कुछ सिपाही और दास भैरव सिंह को लेकर अंदर आते हैं l भैरव सिंह मुल्जिम वाली कठघरे में आकर खड़ा होता है l भैरव सिंह के कठघरे में आते ही कोर्ट रुम के अंदर मरघट जैसी खामोशी पसर जाती है l एक शांत और ठंडक भरी निगाह दौड़ता है, अंदर बैठे सभी लोगों के बदन में सरसरी सी दौड़ जाती है l

ज़ज - मुल्जिम राजा भैरव सिंह... आप पर कुछ आरोप लगे हैं... क्या आप उन आरोपों से अवगत हैं...
भैरव सिंह - जी...
ज़ज - क्या आप मानते हैं... इस मजिस्ट्रेट इंक्वायरी में... आप पर आरोप सिद्ध हुए हैं...
भैरव सिंह - जी नहीं...
ज़ज - क्या आप मजिस्ट्रेट इंक्वायरी को एकतरफ़ा बता रहे हैं...
भैरव सिंह - जी... क्यूँकी इस इंक्वायरी में... माननीय एक्जीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट जी... उर्फ तहसीलदार जी ने... सिर्फ गाँव वालों की रिपोर्ट पर अपना विचार को रिपोर्ट बना कर पेश किया है... उन्होंने मुझसे कोई पूछताछ नहीं की है....
ज़ज - पत्री महोदय... इस पर आप क्या कहेंगे...
पत्री - मुझे रिपोर्ट की सच्चाई परखने के लिए जिम्मेदारी दी गई थी... जिसकी रिपोर्ट बना कर मैंने आपके सामने प्रस्तुत कर दी... माय लॉर्ड... आगे का काम अदालत करेगी...
ज़ज - आपके छानबीन में... आपने किन्हें वादी बनाया... किन्हें गवाह बनाया और किन्हें... प्रतिवादी बनाया...
पत्री - (एक और फाइल निकाल कर पन्ने देखते हुए) माय लॉर्ड... इस फ्रॉड केस में... वादी यशपुर, राजगड़, चारांगुल, माणीआ आदि पच्चीस गाँव के सभी लोग हैं... जैसे कि मुल्जिम के कठघरे में मौजूद राजा भैरव सिंह प्रतिवादी हैं... और गवाह हैं... (भैरव सिंह की ओर देखते हुए) रेवन्यू इंस्पेक्टर सुधांशु मिश्रा, बैंक मैनेजर अजय महाराणा, यशपुर सब रजिस्ट्रार ऑफिस के रजिस्ट्रार बिरंची सेठी... प्रमुख हैं... और इन्हें सरकारी गवाह बनाया गया है...
ज़ज - पर यहाँ वादी की तरफ से... कोई सरकारी वकील नहीं हैं...
पत्री - जी माय लॉर्ड... सभी गाँव वालों ने... उन्हीं के गाँव के... विश्व प्रताप महापात्र पर विश्वास किया है... और उन्होंने अपनी वकालत नामा में... विश्व प्रताप महापात्र को चुना है....
ज़ज - ह्म्म्म्म ठीक है... तो प्रतिवादी राजा भैरव सिंह जी... आपने लिए क्या कोई वकील नियुक्त किया है आपने...
भैरव सिंह - जी नहीं योर ऑनर... हम अपनी पैरवी खुद करेंगे....
ज़ज - क्या... आप अपनी पैरवी खुद करेंगे....
भैरव सिंह - जी योर ऑनर...
ज़ज - विश्व प्रताप... इस पर आपकी राय क्या है...
विश्व - (अपनी जगह से उठ कर, भैरव सिंह की ओर देखते हुए) मुझे... कोई ऐतराज नहीं है योर ऑनर....
ज़ज - ठीक है... आपकी यह प्रस्ताव स्वीकारी जाती है....
भैरव सिंह - ज़ज साहब... यह केस हमारे खिलाफ चल रहा है... जैसे कि... एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट ने कहा... इसमें वादी हज़ारों के तादात में हैं... तो जाहिर है कि हमें... खुदको निर्दोष प्रमाण करने के लिए... उन्हें और... जिन्हें सरकारी गवाह बनाए गए हैं... उन्हें क्रॉस एक्जामीन करना पड़ेगा...
ज़ज - हाँ ऐसा होगा.... पर आप कहना क्या चाहते हैं...
भैरव सिंह - ज़ज साहब... क्षेत्रपाल परिवार बिखर चुका है... टूट चुका है... अब महल में... हम तीन लोग ही रह रहे हैं... हमारा बेटा.. बहु... छोटे राजा... छोटी रानी... कोई नहीं हैं... बड़े राजा बिस्तर पर अपनी आखिरी साँस गिन रहे हैं... यहाँ तक कोई डॉक्टर या मेडिकल स्टाफ तक... मिन्नतों के बाद भी... महल नहीं आ रहे हैं... हम चाहते हैं कि... नहीं नहीं सॉरी... दरख्वास्त करते हैं... हमारी केस को... विशेष केस की मान्यता दी जाए... उसे यशपुर या फिर... उसके आसपास किसी कोर्ट में स्थानांतरित किया जाए... इससे गाँव की लोगों को परेशानी नहीं होगी... और हमें अपने पिता के अंतिम समय पर सेवा करने का अवसर मिल जाएगा...
ज़ज - आप इस वक़्त... एक मुल्जिम हैं...
भैरव सिंह - जानते हैं... हम जब से यह केस दर्ज हुआ... तब से कल तक अपने महल में... गृह बंदी थे... हमें वैसे ही बंदी बना कर केस पर सुनवाई और कारवाई की जा सकती है... सिर्फ तब तक... जब तक हमारे पिताजी जिवित हैं... अगर इस बीच उनको मृत्यु आती है... तब कोर्ट चाहे तो केस को यहाँ... कटक में स्थानांतरित किया जा सकता है... हम कोई विरोध नहीं करेंगे...

तीनों ज़ज आपस में बातेँ करने लगते हैं l भैरव सिंह की दलीलें सुन कर विश्व के माथे पर बल पड़ गया था l कोर्ट रुम में मौजूद सभी लोग भी आपस में खुसुर-पुसुर करने लगते हैं l जज़ आपस में बातेँ करने के बाद

ज़ज - ऑर्डर ऑर्डर... (कोर्ट रुम से शांति छा जाती है) अभी अदालत में प्रस्तावित कारवाई को... एक घंटे के लिए स्थगित किया जाता है... एक घंटे बाद... अदालत वादी के वकील से... उनके विचार जानने की इच्छा रखती है... तब तक के लिए... स्थगन...

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हाइकोर्ट के बार असोसिएशन के प्रतिभा के चैम्बर में सभी बैठे हुए हैं l सब के सब गहरे चिंतन में खोए हुए हैं l

प्रतिभा - राजा... यह क्या कर रहा है...
तापस - अपने दिमाग के घोड़े दौड़ा रहा है...
प्रतिभा - ज़ज साहब को तुरंत मना कर देना चाहिए...
सुभाष सतपती - हाँ मना तो करना ही चाहिए...
दास - लगता है... राजगड़ में और भी कुछ कांड बाकी रह गए हैं... जिन्हें बड़ी तसल्ली से करना चाहता है...
प्रतिभा - अरे हाँ... इसने अभी दो दिन पहले... किसी तांत्रिक वांत्रिक को बुलाया था ना... (विश्व से) प्रताप... (विश्व आँखे मूँद कर गहरी सोच में खोया हुआ था, प्रतिभा की बुलाने पर चौंकते हुए अपनी सोच से बाहर आता है)
विश्व - हाँ... हाँ माँ...
प्रतिभा - किस सोच में खोया हुआ था...
तापस - पक्का वही सोच रहा होगा... जिस पर हम वाद विवाद कर रहे हैं...
प्रतिभा - एसक्युज मी... हम वाद विवाद नहीं कर रहे हैं... हम डिस्कशन कर रहे हैं...
तापस - अरे भाग्यवान शुद्ध भाषा में इसे... वाद विवाद ही कहते हैं...
प्रतिभा - हो गया... (तापस चुप हो जाता है) प्रताप... तुम क्या सोच रहे थे... और जब कारवाई शुरु होगी... तुम.. क्या प्रेजेंट करोगे...
विश्व - पता नहीं माँ...
प्रतिभा - ह्वाट...

प्रतिभा विश्व को कुछ देर तक गौर से देखती है l फिर अपनी जगह से उठ कर विश्व के पास आती है उसके कंधे पर हाथ रखकर कहती है

प्रतिभा - तुम्हें इसी दिन की तो प्रतीक्षा थी... अब जब आमने सामने फैसला होना है... तुम कहाँ खो जा रहे हो...
विश्व - (प्रतिभा के हाथ पर अपना हाथ रखकर) माँ... इतने दिनों गाँव में रहा... लोगों के बीच रहा... ताकि भैरव सिंह के खिलाफ... लोगों के दिल से डर मिटा सकूँ... और लोगों को... उसके खिलाफ एकजुट कर सकूँ... पत्री सर हो या दास सर... हर किसी ने... मेरा साथ दिया है... पर अब लोगों के मन में... डर दुबारा से घर करने लगा है...
दास - वही तो... इसी डर को कायम रखने के लिए... भैरव सिंह केस की सुनवाई को राजगड़ ले जाना चाहता है... विश्वा... मैं तो कहता हूँ... तुम इस बात का पुरजोर विरोध करो...
विश्व - अदालत के ऊपर में नहीं हूँ... और यह केस कोई लोवर कोर्ट में नहीं चल रहा... हाइकोर्ट में है...
प्रतिभा - कहीं लोगों का डर की वज़ह... वह तांत्रिक वाला कांड तो नहीं...
विश्व - बदकिस्मती से हाँ...
सब - ह्वाट...
पत्री - यह तो ननसेंस है... भला वह तांत्रिक राजा का क्या उद्धार कर लेगा... मेरा राजा से कई बार आमना सामना हुआ है... अच्छी तरह से जानता हूँ.. वह नास्तिक है...
प्रतिभा - तो फिर... वह यह ड्रामा क्यूँ कर रहा है..
विश्व - (अपनी जगह से उठ खड़ा होता है) यह एक साईकोलॉजिकल वॉर फैर है...
सब - मतलब...
विश्व - यह सब प्राचीन काल से चला आ रहा है... जिसे आज की ज़माने में... इंफॉर्मेशन वॉर फैर कहा जाता है... पहले अगर किसी रियासत पर हमला करना हो... तो अपने जासूसों के जरिए... दुश्मन रियासत के... छावनी और लोगों में... एक डर का मैसेज फैला देते थे... जैसे फलाना राजा के पास शैतानी ताकत है... इंसानी मांस खाता है... औरतों को उठा लेता है... वगैरह वगैरह... (सब चुप चाप सुन रहे थे) क्षेत्रपाल परिवार... शुरु से ही.. इसी दिमागी खेल को खेलता रहा है... इसके लिए... ऐसे रस्म या परंपराओं का सहारा लेते रहे... और यह कई दशकों तक कारगर भी रहे... कुछ राजा होते हैं... जो खुद को ईश्वर की प्रतिनिधि कहते हैं... जैसे पूरी राजा... जगन्नाथ के प्रतिनिधि कहलाते हैं... इसलिए लोग उनकी इज़्ज़त करते हैं... लोग उन पर किंवदंतियां गढ़ते हैं... उनके लिए... लोग आज भी मरने मारने के लिए तैयार रहते हैं... और कुछ राजा होते हैं... इन्हीं क्षेत्रपाल की तरह... जो खुद को... शैतान के प्रतीक बना कर लोगों में मन में बस जाते हैं... ऐसे राजाओं के लिए... लोग दंतकथायें बनाते हैं... जिसे लोग पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाते हैं... (सब अभी भी खामोशी से विश्व को सुने जा रहे थे) भैरव सिंह क्षेत्रपाल... एक जिवंत दंतकथा है... उसने तांत्रिक को क्या बुलाया... लोगों के मन में... फिर से दहशत बस गया है... उसने इस बात को कंफर्म भी कर लिया... गिरफ्तारी के बाद... राजगड़ के गली चौराहों से पैदल चल कर...

सब के सब चुप्पी साधे विश्व को सुने जा रहे थे l विश्व इतना कह कर खामोश हो गया, पर उसकी बातेँ इस कदर असर कर गई थी के कमरे में मरघट की चुप्पी पसर कर गई थी l

प्रतिभा - ठीक है.. लोग डर गए... पर इससे... सिस्टम को क्या... अदालत को क्या...
विश्व - माँ... मैंने अभी कहा ना... वह एक जिवंत दंतकथा है... और यह बात... राजगड़ के लोगों पर नहीं... सिस्टम पर भी लागू होती है... यही तो वज़ह है... के इसी डर की आड़ में... दशकों तक... स्टेट पालिटिक्स में दखल और प्रभाव रख पाए हैं...
प्रतिभा - मतलब... वह हर हाल में... रस्म को दोहराएगा...
विश्व - हाँ...
पत्री - पर होम मिनिस्ट्री... क्या इसकी इजाजत देगा... मुझे नहीं लगता...
दास - तब तो तुम्हें... हर हाल में... उसे रोकना होगा...
विश्व - जैसे जैसे... मुझे जीत मिलती गई... मेरा हौसला बढ़ता ही गया... मुझे लगा... राजा हार ही जाएगा... पर अब मुझे एहसास हो रहा है... यह लड़ाई... सिर्फ भैरव सिंह के खिलाफ ही नहीं... बल्कि पूरे के पूरे सिस्टम के खिलाफ है... और हम सब इसी सिस्टम के छोटे हिस्से मात्र हैं...
प्रतिभा - तो तुम क्या करोगे...
विश्व - हर कोशिश करूंगा... उसे यहीं रोकने के लिए...
दास - अगर उसे कानून से इजाजत मिल गई तो...
विश्व - तो उसे जो करना है... वह करेगा... मुझे जो करना है... मैं करूंगा

तभी सीलु अंदर आता है और सबसे कहता है - अब थोड़ी ही देर में... सुनवाई शुरु होगी... जज साहब आ गए हैं...

सभी उठ कर जाने लगते हैं l सुभाष बाहर तापस को ना पा कर अंदर आता है l अंदर तापस गहरी सोच में खोया हुआ था l

सुभाष - सर... आप अभी भी यहाँ... क्या सोच रहे हैं...
तापस - याद है सतपती मैंने कहा था... शतरंज की सोलह घर वाली चाल...
सुभाष - हाँ...
तापस - वह अब शायद शुरू हो चुका है... और प्रताप को... इसका आभास हो गया है...

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"ऑर्डर ऑर्डर" गैवल को टेबल पर मारते हुए ज़ज सबको चुप कराता है l

ज़ज - अदालत की कारवाई फिर से शुरु की जाती है... जैसे कि... प्रतिवादी राजा भैरव सिंह ने... केस के ताल्लुक जो अदालती कार्यवाही की माँग रखी है... उस पर विस्तृत चर्चा के लिए... हमने सॉलिसिटर जनरल मिस्टर & ₹#& को आव्हान किया है... (एक व्यक्ति कोर्ट के रुम में आता है और वकीलों के लिए निर्धारित स्थान पर आकर खड़ा होता है, जज के इशारा होते ही बैठ जाता है) तो.. वादी पक्ष के वकील... मिस्टर विश्व प्रताप... पहले दौर में... राजा भैरव सिंह ने जो प्रस्ताव दिया है... उस पर आप क्या विचार रखते हैं...
विश्व - माय लॉर्ड... क्या एक मुल्जिम... जिसके विरुद्ध... एक्जिक्युटीव मजिस्ट्रेट इंक्वायरी के बाद... लगभग दोषी करार दिया गया हो... अदालती क्रॉस एक्जामिन के लिए... बाहर अदालत बैठाई जा सकती है....
जज - इसका उत्तर हम... सॉलिसिटर जनरल जी से चाहेंगे...
SG - (अपनी जगह से उठकर) जी माय लॉर्ड... ऐसे केसेस में... फर्स्ट ट्रैक स्पेशल बेंच का गठन करने के लिए... कानून में प्रावधान है...
जज - ठीक है... तो विश्व प्रताप... अब आपका क्या प्रस्ताव है...
विश्व - माय लॉर्ड... यह केस... बहुत बड़ी आर्थिक घोटाले का है... जिसमें ना केवल बैंक का पैसा.. बल्कि लोगों की जमीन... उनके अधिकार का मनरेगा राशि... और सबसे अहम... सरकारी राशि का... ना केवल दुरुपयोग हुआ है... बल्कि लूट भी लिया गया है... इंक्वायरी रिपोर्ट के मुताबिक... यह घोटाला... तकरीबन तीन हजार करोड़ रुपये का है... ऐसे में... अगर मुल्जिम... बीस प्रतिशत की राशि जमा दें... वह भी अपने स्तावर और अस्तावर संपति से नहीं... बल्कि किसी आत्मीय या स्वजन की संपति से... तब यह अदालत... ऐसी किसी फर्स्ट ट्रैक बेंच का गठन करें...

इतना कहने के बाद विश्व एक नजर भैरव सिंह पर डालता है l पर भैरव सिंह के चेहरे पर उसे जरा सा भी शिकन तक नजर नहीं आता है l

जज - तो राजा साहब... आपने वादी पक्ष के वकील को सुना... आपकी उनके प्रस्ताव पर अपना विचार रख सकते हैं...
भैरव सिंह - हमें... एडवोकेट विश्व प्रताप जी का प्रस्ताव स्वीकर है...

यह एक धमाका था, जो ना सिर्फ सारे जजों को बल्कि विश्व के साथ कोर्ट रुम में हर किसी को हैरान कर जाता है l

जज - क्या सच में कोई है... जो आपके लिए... छह सौ करोड़ रुपए की राशि... कोर्ट में जमा कर सकता है...
भैरव सिंह - जी जज साहब...
जज - पर आपने पिछले सेशन में कहा था कि... आपका पूरा परिवार बिखर चुका है... कोई नहीं है आपके साथ... और हाँ यह याद रहे... जो दौलत आपके पास है... जब तक केस कोर्ट में चल रहा है... तब तक... उसे आप खर्च नहीं कर सकते...
भैरव सिंह - हम... वादी पक्ष के वकील और अदालत के मन में जो चल रहा है... हम समझ चुके हैं... आप इत्मीनान रखिए... वह राशि जमा कर दी जाएगी...
जज - कौन हैं... जो इतनी बड़ी राशि जमा करेंगे...
"मैं योर ऑनर मैं" कहते हुए एक शख्स दर्शकों के दीर्घा में से उठ खड़ा होता है l उसे देखते ही विश्व और बाकी सारे लोग हैरानी से उसे देखने लगते हैं l

जज - आप जो भी कोई हैं... कृपया इस कठघरे में आकर अपना बयान दर्ज कराएं...

वह शख्स खाली वाली कठघरे में में आता है और जज को कहने लगता है

आदमी - माय लॉर्ड... मेरा नाम कमल कांत महानायक है... मुझे लोग केके के नाम से भी जानते हैं...
जज - आपका... राजा साहब से क्या रिश्ता है...
केके - जैसा किसी खास व्यक्तित्व वाले के प्रति... उसके चाहने वाले का होता है... मैं राजा साहब बहुत प्रभावित हूँ... उनके प्रति अनुराग का भाव रखता हूँ... इसलिए मैं... वह तय राशि कोर्ट में जमा दे सकता हूँ...

केके के कह लेने के उपरांत, कोर्ट रुम में कुछ देर के लिए सन्नाटा छा जाती है l तीनों जज आपस में कुछ बात करने लगते हैं फिर जज अपना फैसला सुनाते हैं l

जज - ठीक है... कमल कांत महानायक जी को... एक हफ्ता का समय दिया जाता है... पूरे छह सौ करोड़ रुपये अदालत में जमा करने के लिए... और जैसे कि सॉलिसिटर जनरल ने सुझाव दिया है... हम सर्कार को... तीन जजों की पैनल बना कर... एक स्पेशल फर्स्ट ट्रैक... हाई कोर्ट बेंच बना कर... इस केस में... आगे की सुनवाई और उस पर कारवाई करने के लिए... आदेश पारित करते हैं... नाउ दी कोर्ट इज एडजॉर्न...
Nice and superb update....
 
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