विक्रम साहब ने रंगमहल मे सतू की प्रेमिका के साथ जो कुछ किया था उसमे उनकी सहमति नही थी । वह सब परम्परा के नाम पर एक कुरीति थी जिसे भैरव सिंह ने जबरन विक्रम पर थोपा था ।
लेकिन इस बात से इंकार नही किया जा सकता कि भैरव सिंह के बहुत सारे कुकर्मों के वह भी साझेदार थे , हिस्सेदार थे ।
विक्रम ही नही , उनके दिवंगत भाई वीर साहब और गांव वालों के साथ साथ सतू ने भी एक तरह से अत्याचार , बर्बरता , जुल्म पर तटस्थ रूख अपनाया था ।
ऐसे ही लोगों के लिए राष्ट्र कवि दिनकर जी ने लिखा है - " जो तटस्थ है , समय लिखेगा उनके भी अपराध । "
विक्रम साहब के साथ जो कुछ हुआ , वीर साहब के साथ जो हुआ और सतू के साथ जो कुछ हुआ , वह उनके कर्म का फल ही था ।