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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

Mr. X
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*Index *
 
Last edited:

Kala Nag

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Zabardast update bro maza aa gaya kia khoob kamal ka update diya hai. Lekin kia Vikram sahi rahega coz aaj usne veer ka adhura kaam pura kia hai means uske dost ko uski manzil ki taraf bada diya hai.
धन्यवाद बंधु आपका बहुत बहुत धन्यावाद और आभार
 

Kala Nag

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रघुपति राघव राजा राम
मित्र ये भी तो एक दिन होना ही था, बहुत धमाकेदार कहानी है इसे पढ़ने का एक अलग ही आनन्द है, लगे रहिए, चुकी अन्तिम अपडेट आने वाला है, उसके लिए ढेरो शुभकामनाएं 😍 💓
मिलते हैं आखिरी अपडेट के इन्तेजार मे
ASR

इंतजार

Waiting bro

Waiting for valuable update

Kala Nag Bhai,

Update ka intezar he

सुबह सुबह की राम राम

इन्तेहा हो गई इन्तेज़ार की...

माना कि अंतिम अध्याय का आखिरी अंक है मित्र Kala Nag

इंतजार में

Kala Nag bhai next update kab tak aayega?

फाइनल अपडेट का इंतजार है नाग भाई

Kala Nag
Boooom Boooommmm

So you targeted to close this year the great Saga of विश्व रूप

Waiting waiting n waiting.........

🚨🚘🚔🚗🚙🚓🎠💸🪁🪰🕊️🪽✈️✈️✈️✈️✈️✈️

nice update

Kala Nag bhai next update kab tak aayega?

Inteha ho gayi Intezar ki................

Aayi na kuch khabar mere Kala Nag Yaar Ki............

Update de do Prabhu

Waiting for next update bro
मित्रों मैं अभी भी कहानी को अंतिम रूप देने के लिए उलझा हुआ हूँ
बहुत कोशिश करने के बावजूद मैं अंत प्रदान करने में नाकाम रहा l
क्यूंकि बड़ी कोशिशों के बाद भी अपडेट छोटा नहीं कर पाया l खैर अगला भाग अवश्य अंतिम भाग होगा चाहे कितना भी बड़ा अपडेट क्यूँ ना हो
बस मित्रों थोड़ी देर और प्रतीक्षा करें एक आध घंटे में प्रस्तुत कर देता हूँ
 

Kala Nag

Mr. X
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👉एक सौ पैंसठवाँ मेगा अपडेट (A)
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"आज जिस तरह से यशपुर क्षेत्र से लेकर बीन्का रोड तक एक पुलिस वैन जिसके भीतर रुप फाउंडेशन और राजगड़ मल्टिपर्पोज कोऑपरेटिव सोसाईटी के गवाहों के साथ साथ पुलिस व उनके वकील पर हमला हुआ, यह घटता राज्य के आम जन जीवन को हिला कर रख दिया है l यह घटना टीवी पर प्रसारित होने पर आम लोगों से लेकर बुद्धिजीबी तक शासन और प्रशासन पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं l यह घटना केवल राज्य भर ही नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र में अब चर्चा का विषय बन गया है l जिससे राज्य की चावी खराब हुई है l अब सुनने में आ रहा है कि मुख्यमंत्री ने इस विषय को गंभीरता से लिया है और मंत्रियों और अधिकारियों को एक आपातकालीन बैठक के लिए तुरंत तलब किया है l"

शाम धीरे धीरे ढल रहा था, सारे टीवी चैनल और दूसरे गण माध्यम इस खबर को अपने अपने हिसाब से लोगों तक पहुँचा रहे थे l दूसरी ओर सोनपुर की सरकारी आईवी के बाहर बहुत सारे न्यूज एजेंसीयों की ट्रांसमिशन वैन खड़ी हुई है l सारे न्यूज एंकर अपनी अपनी चैनल पर लाइव न्यूज प्रसारण कर रहे हैं l थोड़ी देर बाद तीनों बाइक पर सवार होकर विश्व और गवाहों के साथ साथ सुभाष और दास पहुँचते हैं l आईवी के कॉमन रुम में तीनों जजों के साथ बैठ कर नरोत्तम पत्री सुधांशु मिश्रा बात कर रहे हैं l तभी कॉमन रुम में छह लोगों की प्रवेश होता है l विश्व पत्री को देखता है पत्री निराशा के साथ अपना सिर ना में हिलाता है l

सुभाष - (जजों से) सर... आई एम... सुभाष सतपती... डेपुटी कमिश्नर एंड... द इनचार्ज ऑफ एसआईटी रुप फाउंडेशन... इट्स एन इमर्जेंसी...
जज - मुझे... पत्री बाबु यही समझा रहे थे... डीसीपी सतपती... पर आई एम सॉरी... मुझे लगता है... यह इमर्जेंसी आर्टिफिशल है... इसलिए सुनवाई... तय किए गए दिन पर होगी...
विश्व - आई एम सॉरी सर... यह तीन गवाह.. रजिस्टर्ड गवाह नहीं हैं... यह केस में पूरी तरह नए हैं... आपकी तय किए गए दिन... इन गवाहों की... जिरह हो सकती है... पर उससे पहले इनका बयान तो रजिस्टर्ड किया जा सकता है...
जज - मिस्टर डीसीपी... मजिस्ट्रेट या जज किसी आपातकालीन परिस्थिति में ही गवाही ले सकते हैं...
सुभाष - जी सर... यह आपातकालीन परिस्थिति ही है... हम अपनी और इनकी जान बचा कर आपके पास आए हैं...
जज - ओ... तो अब हमें... आपसे कानून सीखनी पड़ेगी...
विश्व - नहीं जज साहब... हम किसी कोर्ट में नहीं आए हैं... इमर्जेंसी के बयान... हमेशा पुलिस के द्वारा मैजिस्ट्रेट या जज के सामने ही दिलवाया जाता है... हम यहाँ कोई पेशगी कराने नहीं आए हैं... बल्कि... आपके सामने... पुलिस इन गवाहों से बयान दर्ज कराएगी...
जज - मिस्टर विश्व प्रताप... तुम अपनी हद पार् कर रहे हो... यह बात डीसीपी भी कह सकते हैं...
विश्व - सर... रुप फाउंडेशन केस को पुनर्जीवित मैंने किया है... और राजगड़ मल्टिपर्पोज कोऑपरेटिव सोसाईटी के केस में... मैं राजगड़ के गाँव वालों की तरफ से वकील हूँ... इस केस में कोई गवाह या सबूत जुड़ते हैं... यह जानना और उनकी सुरक्षा की माँग करना... मेरा कर्तव्य भी है...
जज - (सुभाष से) ह्म्म्म्म... तुम कुछ कहना चाहोगे डीसीपी...
सुभाष - सर... मैंने ना सिर्फ इन गवाहों को... अपनी तहकीकात के दौरान खोजा है... बल्कि.. होम मिनिस्ट्री में डिक्लेरेशन के साथ साथ... इन्हें वीटनेस प्रोटेक्शन में मैंने अपने अंडर शामिल भी कर लिया है... पर फैक्ट आप देख सकते हैं... इनकी खबर बाहर लीक हो गई... इसलिए... कुछ भी अनहोनी होने से पहले... हमने इन सबको आपके सामने लाने और गवाही दिलाने के लिए फैसला किया... बाकी आप और पूरा स्टेट जानता है...
जज - हाँ... हम सब जानते हैं... इंफैक्ट... हमने भी वह लाइव देखा है... पर हमें... यह सब फिल्मी लगा... आई मीन आर्टिफिशल लगा...
सुभाष - माय एक्सट्रीम एपोलोजी सर... क्या मैं जान सकता हूँ आपने ऐसा क्यूँ सोचा...
जज - इसलिए सोच पाए... क्यूँकी तुमने इसे मीडिया में ले आए... प्री प्लान्ड... इसके बारे में तुम हमें इंफॉर्म भी कर सकते थे...
डीसीपी - हाँ कर सकते थे... अगर यह राज लीक ना हुई होती तो... हम मजबूर थे... इसलिए... मीडिया वालों से कॉन्टैक्ट किए... अपनी और गवाहों की सेफ्टी के लिए...
जज - सरकार से क्यूँ नहीं सेफ्टी और सेक्यूरिटी माँगी...
सुभाष - मैं और इंस्पेक्टर दास... दोनों ही सरकारी मुलाजिम हैं... दोनों ही सरकारी आदेश पालन कर रहे थे...
जज - तो यह मीडिया...
सुभाष - सर... हम सब एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के एक एक कड़ी हैं... उसी लोकतांत्रिक व्यवस्था का चौथा स्तंभ यह मीडिया भी है.. इसलिए मैंने उनसे भी मदत माँगी...
जज - तो मीडिया को तुम्हें... आईवी के बाउंड्री के बाहर ही रखना था... वह देखो... (चारो तरफ खिड़कियों से,बाहर से सभी मीडिया वाले अपनी अपनी कैमरा से झाँक रहे थे) तुम इसे... इनकी सहायता से... मैटर को पब्लिक कर रहे हो... इसलिए... मैं यह गवाही नहीं ले सकता...
सुभाष - सर... यह जो मीडिया वाले... अपनी अपनी कैमरा से झाँक रहे हैं... यह पूरे स्टेट को... नहीं... पूरे देश को बता रहे हैं... दिखा रहे हैं... हमारा जुडिशल सिस्टम बायस्ड नहीं है... इंडिपेंडेंट है... जस्टिस के लिए... यहाँ कुछ भी किया जा सकता है...
जज - बहुत अच्छा बोल रहे हो... तुम्हें यह पुलिस का जॉब छोड़ कर... राजनीति करनी चाहिए... तुम यह सब बता कर... दिखा कर... मुझ पर प्रेसर कर रहे हो... और कह रहे हो... जस्टिस इंडिपेंडेंट है...
पत्री - (अपनी जगह से उठता है) आई एम सॉरी सर... यह केस जब से शुरु हुई है... तब से.. इसकी डेवलपमेंट देख कर हमें लगता है... आप किसी और के प्रेसर में हैं...
जज - माइंड योर टॉंग मिस्टर पत्री... यु आर एक्युजिंग मी...
पत्री - नहीं सर... आपसे पहले... मैं भी राजगड़ के लोगों की गवाही ले चुका हूँ... हम यहाँ आप से अनुरोध कर रहे हैं... यह जो मीडिया देख रहे हैं... यह इन गवाहों के सुरक्षा के लिए है... केस की तहकीकात में... जब नए सबूत और कंक्रीट गवाह जुड़ते हैं... चाहे वह सस्पेक्ट हो या एक्युज्ड... उसे मिटाने की कोशिश करते हैं... आपको मीडिया से प्रॉब्लम है... पर यह सब जो भी हुआ... यह मेरा ही आइडिया था... मैं नहीं चाहता था... न्याय की बेदी में कोई बलि चढ़ जाए... (सबसे) चलो... (बाहर जाने के लिए तैयार होता है)
जज - अब आप पत्री बाबु... फिर से एक्युज कर रहे हैं... और अपने साथ इन्हें बाहर कहाँ ले जा रहे हैं...
पत्री - मैं इन्हें लेकर... कल... भुवनेश्वर से लेकर अब तक... और जो इस कमरे में हुआ... वह सब मीडिया में कह दूँगा... क्यूँकी व्यवस्था में रह कर... अगर व्यवस्था से ही पीड़ित हों... तो न्याय की उम्मीद व्यवस्था के बजाय... हम... आम लोगों से ही कर सकते हैं... पता नहीं... हम कल जिंदा रहे... या ना रहे...
जज - (खड़ा हो जाता है) ह्वाट... ह्वाट डु यु मीन...
पत्री - आई मीन... ह्वाट यु मीन्ड... (कह कर बाहर जाने लगता है)
जज - होल्ड... (पत्री रुक जाता है) तुम.....तुम... (कुछ कह नहीं पाता, एक पॉज लेकर) ओके... आई एम रेडी... मैं... आई मीन... हम सब... इनकी गवाही लेने के लिए तैयार हैं... बट इट विल बेटर... तुम इन मीडिया वालों को कहो... यह लोग... यह जगह खाली करेंगे...
पत्री - नहीं सर... हम सब यहाँ लाइव हैं... आज पूरा स्टेट हमें जज कर रहा है... इनकी गवाही के बाद आपका क्या एक्शन होगा... यह भी लोग देखेंगे... अगर आप तैयार हैं तो...
जज - (हथियार डालते हुए) ओके... डीसीपी... गवाही की प्रोसीजर शुरु करो... और हाँ... गवाही के दौरान... सबका मोबाइल ऐरोप्लेंन मोड पर होना चाहिए...
सुभाष - जी सर... (दास को इशारा करता है l दास एक फाइल लेकर एक जगह बैठ जाता है, फिर सुभाष सुबुद्धी का परिचय कराता है,) सर... रुप फाउंडेशन के मिसींग वीटनेस.. मिस्टर अनिल कुमार सुबुद्धी... (इस दौरान सभी अपने अपने मोबाइल को ऐरोप्लेंन मोड पर रख देते हैं)

फिर सुबुद्धी अपना गवाही देने लगता है l उसकी गवाही ख़तम होने के बाद दास उससे फाइल पर दस्तखत लेता है और उसके नीचे तीनों जज दस्तखत करते हैं l उसके बाद श्रीधर परीड़ा अपना गवाही देता है और फाइल पर दस्तखत करता है l अंत में बल्लभ अपनी गवाही देता है जिसे रजिस्टर करने के बाद दास बल्लभ से दस्तखत लेने के लिए फाइल आगे कर देता है l

बल्लभ - (जज से) सर.. यह मैंने अब तक जो भी कहा... सब सच हैं... आगे चल कर हर एक बात पर... मैं डॉक्यूमेंट्री सबूत भी पेश करूँगा... पर अभी आपको... राजा भैरव सिंह की गिरफ्तारी के लिए... एक आदेश पारित करना होगा...
जज - वह किसलिए...
बल्लभ - सर.. वह शख्स... अगर बंद रहेगा... तब इस केस का कोई भविष्य है... वर्ना अंधकार ही अंधकार है... सर जब से विश्व राजगड़ आया है... तब से... राजा के सिपाही... हर कदम पर विश्वा से मात खाए हुए हैं... सर इसीलिये... राजा ने... ESS के सभी... हालिया रिक्रूट्स को.. राजगड़ बुलाया था... और हमें ख़तम करने के लिए... उन्हीं ESS वालों में से... कुछ लोगों को भेजा था... पर अब बात अलग है...
जज - अलग है... मतलब..
बल्लभ - राजा ने एक प्राइवेट आर्मी हायर किया है... यह एक फ्री लैंस मर्सिनरिज ग्रुप है... और जहां तक मेरा अंदाजा है... अब तक वह आर्मी... राजगड़ में अपना चार्ज ले चुके होंगे...
जज - तो...
बल्लभ - सर... कल... बड़े राजा जी की मौत का चौथ है... कल से राजगड़ पर सितम का पहाड़ टूटने वाला है... इसलिए किसी भी तरह... कुछ भी कर के... उन्हें रोक लीजिए...
जज - (सुभाष से) यह एक आर्मी की बात कह रहा है... क्या ऐसा पॉसिबल है... इतने बड़े ग्रुप का मूवमेंट हो... इंफ्रिटेंशन हो... और हमारी इंटेलिजेंस को कोई खबर ना हो.... (सुभाष चुप रहता है)
बल्लभ - मुमकिन है सर... वे लोग प्रोफेशनल हैं... वह ग्रुप टुकड़ियों में बंट कर आया था... आधे से ज्यादा... ESS के रिक्रूट बन कर आए हैं... और कोई फेरी वाला बन कर... कोई मदारी बन कर... ऐसे आम आदमियों की तरह आए होंगे... तभी तो उन्हें जमा होने में इतना वक़्त लगा... वर्ना... कब के आ चुके होते...
जज - दास... तुम्हारे थाने में इंफॉर्म करो... भैरव सिंह और उसके आदमियों पर कड़ी नजर रखी जाए...
दास - सर... अब भैरव सिंह और उसके लोग... हमारे बस की बात नहीं हैं...
जज - क्या मतलब...

दास - (महल में उसके साथ और कांस्टेबलों के साथ जो कुछ हुआ सब बताता है) और सर हम अपने साथियों को कंधे पर लाद कर... हस्पताल लेकर गए... गाँव में भैरव सिंह के जितने आदमी हैं... प्लस ESS के लोग... प्लस अगर प्राइवेट आर्मी आ गई है तो... आई एम सॉरी सर... भैरव सिंह को पकड़ने के लिए... एक नहीं पाँच से छह बटालियन की जरूरत पड़ेगी...
जज - ह्वाट...
दास - हाँ सर... उन्हें सिर्फ होम अरेस्ट करने के लिए... तीन प्लेटुन की जरूरत पड़ी थी... पर अब की बार...
जज - पर प्राइवेट आर्मी... हमें हवा हवाई बात लग रही है... फिर भी दास... अभी मैं एक वारंट इशू किए देता हूँ... राजगड़ थाने में इंफॉर्म करो... और जितने भी बंदे हो सकते हैं... उन सबको कहो... राजा भैरव सिंह को चौबीस घंटे तक होम अरेस्ट पर रखें... और इस बात की राजगड़ से पुष्टि करो... तब हम सीएमओ से बात कर... उन्हें रिपोर्ट कर कोई ऑर्डर निकाल सकें..
दास - आई एम सॉरी... पर ठीक है... मेरे थाने के लोग... जितना सम्भव हो उतना अवश्य करेंगे....

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"आज एसआईटी के प्रमुख श्री सुभाष सतपती जी के द्वारा स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट के तीनों जजों के समक्ष तीन अहम गवाहों को प्रस्तुत किया जिनकी गवाही पुलिस के द्वारा जजों के उपस्थिति में लिया गया l उसके तुरंत बाद जज xxxx जी ने राजा भैरव सिंह जी को तुरंत हिरासत में लेने के लिए यशपुर एसपी को आदेश दे दिया है और इस बात की जानकारी उन्होंने सीएमओ को दे दिया है l अब तक की प्राप्त सूचना के अनुसार यशपुर से रिजर्व बटालियन निकल चुकी है l हो सकता है राजा भैरव सिंह जी की गिरफ्तारी की खबर आज देर रात तक प्राप्त हो जाए l इसीके साथ मैं सुप्रिया रथ आपसे इजाजत चाहती हूँ l"

टीवी पर चल रही न्यूज को भैरव सिंह रिमोट से बंद कर देता है l बगल में खड़ा भीमा भैरव सिंह से सवाल करता है l

भीमा - अब क्या हुकुम है...
भैरव सिंह - (एक गहरी साँस लेकर) भीमा... सरकारी मेहमान आ रहे हैं... स्वागत में कोई कमी नहीं होनी चाहिए...
भीमा - जी हुकुम... (भीमा उल्टे पाँव जाने लगता है)
भैरव सिंह - और हाँ ध्यान रहे... जब तक हम इजाजत ना दें... कोई हरकत या होशियारी मत करना...
भीमा - जी हुकुम...

भीमा चला जाता है, उसके जाने के तुरंत बाद हाथ में गन लिए आर्मी के लिबास में एक व्यक्ति अंदर आता है और भैरव सिंह को सैल्यूट ठोकता है l

-डेविड.... रिपोर्टिंग टू प्राईवेट जनरल.. सर..
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... प्राईवेट जनरल... सुन कर अच्छा लगा... (अपनी कुर्सी से उठ कर) क्या ख़बर है डेविड...
डेविड - सर... मेरे साथ... वॉर रूम में चलिए सर...

किसी आर्मी पर्सनल की तरह डेविड पीछे मुड़ता है और बाहर जाने लगता है l भैरव सिंह उसके पीछे चल देता है l बाहर और चार लोग खड़े थे जो भैरव सिंह को सैल्यूट करते हैं और एक सुरक्षा घेरा बना कर भैरव सिंह के साथ चलने लगते हैं l डेविड और भैरव सिंह एक कमरे में पहुँचते हैं l बड़ी सी हॉल दीवान ए खास को वॉर रुम बनाया गया है l एक तरफ के दीवार पर पच्चीस से तीस के करीब टीवी स्क्रीन लगे थे l टीवी के सामने कुछ ऑपरेटर बैठे हुए थे l

डेविड - (एक रिमोट भैरव सिंह के हाथ में दे कर) इसे ऑन कीजिए सर...

भैरव सिंह रिमोट को ऑन करता है l सारे टीवी एक साथ ऑन हो जाते हैं l हर एक स्क्रीन पर लोगों के कुछ ना कुछ हरकतें दिख रही थी l

डेविड - सर... हमने... कुछ दिनों से अपने अपने काम में लगे हुए थे... आज पूरा हो गया... गाँव के एंट्रेंस से लेकर एक्जिट तक.. हर गली... हर चौराहे पर... हमने सर्विलांस कैमरा इंस्टाल कर दिया है... कोई पत्ता भी कहीं हिलेगा... तो भी हमें मालूम हो जाएगा...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... बढ़िया... बहुत बढ़िया... तो... अब तैयार हो जाओ... मेहमान आ रहे हैं... उनका स्वागत कुछ इस तरह से करेंगे... के पूरी दुनिया में त्राहि त्राहि मच जाएगा.... राजा... भैरव सिंह... क्षेत्रपाल...

कमरे में मौजूद सभी एक सुर में - यस सर...

उधर बाहर एक पुलिस की वैन आ रही थी जिसके आगे दो पुलिस की जीप और पीछे दो पुलिस की जीप आ रही थी l पाँचों गाड़ी एक के बाद एक बगल में महल के सामने रुक जाते हैं l क्यूँकी महल के गेट के सामने चार सफेद गाड़ियाँ रास्ते को बंद कर खड़ी थीं l सभी पुलिस वाले उतरते हैं और एक दूसरे की ओर देखते हैं l एक पुलिस ऑफिसर जगन को बुलाता है l

ऑफिसर - इधर आओ... (जगन उसके पास जाता है) यह... यह सब क्या है...
जगन - साहब... मैंने तो बताया ही था.. जब दिन दहाड़े हमारे पुलिस के दो सिपाहियों को अधमरा कर... हमें चल कर वापस जाने के लिए मजबूर कर सकता है... आप उस राजा भैरव सिंह को गिरफ्तार करने रात में आए हैं...
ऑफिसर - आ... ह्ह्ह्... (अपने ट्रूप्स को) आगे बढ़ने के लिए तैयार हो जाओ...

ऑफिसर का इतना कहना ही था कि एक के बाद एक चार जोरदार धमाके होते हैं l हर एक धमाके के साथ एक एक गाड़ी बीस फिट ऊँचाई तक उड़ जाती है और फिर परखच्चे उड़ने के साथ जलती हुई नीचे गिरतीं हैं l जो पुलिस वाले महल की ओर जाने की सोच रहे थे वह चुप चाप अपनी जगह पर चिपके खड़े हो जाते हैं l सबकी नजर उन जलती हुई गाडियों पर टिक जाती है l उन गाडियों के बीच से भीमा बाहर आता है और इनके सामने आकर खड़ा हो जाता है l

ऑफिसर - क... क.. कौन हो तुम... (भीमा जगन की तरफ़ देखता है)
जगन - यह... यह भीमा जी हैं... राजा साहब के... सबसे खास...
भीमा - समझा ऑफिसर...
ऑफिसर - ओके... देखो... हम... हम यहाँ... सरकारी आदेश पर आए हैं...
भीमा - शुक्र करो... राजा साहब तुम्हें जिंदा वापस जाने दे रहे हैं...
ऑफिसर - क्या... क्या मतलब है तुम्हारा...
भीमा - ऐसा हो नहीं सकता... के तुम्हें इतिहास मालूम ना हो... ऑफिसर... आज जो सरकारी काग़ज़ लेकर यहाँ आए हो... वह सरकार... राजा साहब के हुकुम के तलवे चाटती है... राजा साहब... जितना सह सकते थे... सह लिए... अब कोई भी सरकारी खाकी वर्दी वाला कुत्ता... महल की सरहद लाँघ कर महल के अंदर जा नहीं सकता... अगर वर्दी में गर्मी है... तो कोशिश कर देख लो... (ऑफिसर बहुत असहाय हो जाता है वह कभी अपने साथियों को तो कभी भीमा को देखने लगता है)
जगन - (ऑफिसर से) साहब... भलाई इसी में है कि... आप... अपने ऊपर तक खबर पहुँचाये... वर्ना इनकी तैयारी इतनी है कि हम लोग वापस ही ना जा पाएँ...
ऑफिसर - (जगन की बात मानते हुए) ओके... हम... उपर तक खबर पहुँचाएंगे... (अपने सिपाहियों से) मूव... बैक...

सभी सिपाही गाड़ी के अंदर जाने लगते हैं ऑफिसर भी जब जाने लगता है तभी भीमा उसे आवाज देता है

भीमा - रुको ऑफिसर... आए हो... तो खाली हाथ मत जाओ... (ऑफिसर मुड़ कर हैरत भरी नजर से देखता है, भीमा के साथी कुछ लोगों को सहारा देते हुए बाहर लाते हैं और ऑफिसर के सामने फेंक देते हैं) इन्हें ले जाओ...
ऑफिसर - (घबराई हुई आवाज़ में) यह... यह लोग कौन है...
भीमा - इन्हीं से पूछ लेना.. जब इन्हें होश आए... फ़िलहाल इनकी हालत बहुत नाजुक है... हस्पताल ले जाओ... जाओ...

कहकर भीमा मुड़ कर अंदर चला जाता है l ऑफिसर अपनी जेब से रुमाल निकाल कर पहले अपना मुहँ साफ करता है और बेहद लाचारी भरी नजर से जगन की ओर देखता है l जगन कुछ पुलिस वालों को लेकर आता है और नीचे पड़े अधमरे लोगों को उठाने लगता है l

उधर यह सब भैरव सिंह सीसीटीवी पर देख रहा था l उसके चेहरे पर एक मुस्कान बिखर जाती है l तभी कमरे में भीमा का प्रवेश होता है l

भीमा - हुकुम...
भैरव सिंह - शाबाश भीमा शाबाश... तुम वाकई हमारे सच्चे वफादार और नमकख्वार हो... हम बहुत खुश हुए...
भीमा - शुक्रिया हुकुम...
भैरव सिंह - भीमा... क्या तुम्हें याद है... हमने इंस्पेक्टर दास से एक वादा किया था... बड़े राजा जी की चौथ की मातम पूरा राजगड़ मनाएगा...
भीमा - जी हुकुम... कल चौथ है...
भैरव सिंह - तो आज की रात कहर टूटना चाहिए...
भीमा - हुकुम...
भैरव सिंह - तो जाओ... अपने सभी पहलवान कारिंदों को साथ लेकर जाओ... आज कोई भीमा, भूरा या शुकुरा नहीं... बल्कि रंगमहल के दुशासन बन कर जाओ... अर्सा हो गया है... रंगमहल में कोई रौनक नहीं है... रंगमहल की रंगीनी के लिए... जितने भी कमसिन द्रौपदी हैं सबको... उठा कर लाओ... जो भी बीच में आए... मौत के घाट उतार दो...
भीम - जी.. हुकुम... पर अगर... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - आज तुम लोग तांडव मचाने जा रहे हो... पुलिस भी नहीं आनी चाहिए... अब पुलिस सिर्फ डरी हुई है... आज रात की तांडव में... उन्हें उनकी लाचारी भी जताओ... दिखाओ... समझे...
भीमा - जी हुकुम... सब समझ गया...

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डॉक्टर बाहर आता है l बाहर विश्व, उसके दोस्त, सुभाष, और दास बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे l डॉक्टर को देखते ही सभी भाग कर उसके पास जाते हैं l

डॉक्टर - उदय जी... ऑउट ऑफ डेंजर हैं...
विश्व - यह बहुत अच्छी बात है... और विक्रम...
डॉक्टर - विक्रम जी को होश आ रहा है... पर.... कमजोरी बहुत है... खून बहुत बह गया था... ज़ख़्म भी गहरा था... उनका कंधे का कलर बोन फैक्चर है... इसलिये टेंपोररी पैरालाइज है... मेरी इल्तिजा है... आप बस थोड़ी देर के लिए ही... बात चित करें... उन्हें नींद आ जाएगी... उनको आराम की सख्त जरूरत है...
विश्व - ठीक है डॉक्टर... आपका बहुत बहुत शुक्रिया...

इतना कह कर सभी विक्रम के बेड के पास आते हैं l विश्व देखता है l जिस्म लगभग सभी जगहों पर पट्टी बंधी हुई है l सैलाइन और खून दिया जा रहा है l विक्रम आँखे मूँदे लेटा हुआ था l विश्व धीरे से आवाज देता है

विश्व - विक्रम...
विक्रम - हम्म... (अपनी आँखे खोलता है) आह... (थोड़ा कराहता है) प्रताप... गवाही हो गई...
विश्व - हाँ... सॉरी यार... मैंने तुमसे... बहुत जोखिम भरा काम लिया...
विक्रम - (हल्का सा मुस्कान चेहरे पर लाते हुए) कोई ना... शायद आज के बाद... सत्तू मुझे.. गाँव वालों में से एक समझे... और राजकुमार ना बुलाए...
विश्व - (आकर विक्रम का हाथ पकड़ लेता है) एक शिकायत भी है यार... तुमने... उनका पीछा क्यूँ किया... हम तब तक... सोनपुर में दाखिल हो चुके थे... सतपती जी ने... अपना पुलिस बटालियन को तैयार का रखा था.. हमने तो बस उन्हें डायवर्जन देने के लिए... तुम्हें कहा था...
विक्रम - (विक्रम भी विश्व के हाथ को कस कर पकड़ लेता है) अगर वे लोग... तुम्हारे पीछे पीछे... सोनपुर पहुँच जाते... तो वीर की आत्मा मुझे कभी माफ नहीं करती... मैंने जो भी किया... वीर के खातिर...
विश्व - अगर तुम्हें कुछ हो जाता... तो मैं... ना तो राजकुमारी जी को अपना चेहरा दिखा पाता... ना ही... शुभ्रा जी का सामना कर पाता...
विक्रम - हाँ... तुम्हारी बात की गहराई को समझ रहा हूँ... वह कहते हैं ना... सारी जहाँ की खुदाई एक तरफ... और जोरु का भाई एक तरफ... (यह सुन कर कमरे में सभी मुस्कुराने लगते हैं) तुम्हें अपनी बीवी से जुते पड़ते... है ना...
विश्व - (मुस्कुरा देता है) मत भूलो... शुभ्रा जी ने भी मुझे भाई कहा था... अगर कुछ.... (फफक पड़ता है) तो मैं... उनके अनजाने में ही... तुम्हें अपने मिशन में शामिल कर लिया...
विक्रम - श्श्श्श्.... तुम भी तो मेरे जोरु के भाई निकले... तो यह खतरा उठाना बनता था...
विश्व - आज वाकई तुमने मुझे हरा दिया... तुमने आज ऐसा कर्ज मुझ पर लाद दिया... के मैं जिंदगी भर तुम्हारे सामने... अपना सिर नहीं उठा पाऊँगा...
विक्रम - अरे यार... मरा नहीं हूँ... जिंदा हूँ... हाँ... राजा साहब की गिरफ्तारी नहीं देख पाऊँगा तो क्या हुआ... जब राजा साहब अपने अंजाम भुगतेंगे... उस जश्न में गाँव वालों के साथ तो होऊंगा ना...

डॉक्टर - (कमरे में आता है) आई थिंक... आपकी सारी बातचीत हो गई होगी... अब प्लीज... पेशेंट को आराम करने दीजिए...
विश्व - इट्स ओके डॉक्टर...
सुभाष - आपका बहुत बहुत शुक्रिया डॉक्टर...

सभी विक्रम को अलविदा कह कर कमरे के बाहर आते हैं l विश्व अपने सभी दोस्तों को गले लगा लेता है l सबकी आँखों में पानी बह रहा था l तभी सुभाष की मोबाइल बजने लगती है l सुभाष फोन निकाल कर देखता है जगन का कॉल था l वह इन सबसे थोड़ी दूर जाकर जगन से बातेँ करने लगता है l तभी विश्व की भी मोबाइल बजती है l विश्व सबसे अलग हो कर मोबाइल निकालता है l डिस्प्ले पर डैनी नाम देख कर कॉल उठाता है

विश्व - हैलो..
डैनी - विश्वा... मैंने वही आर्मर्ड वीइकल जो तुमने बिन्का बाईपास पर छोड़ा था... हास्पिटल तक पहुँचा दिया है... जितनी जल्दी हो सके... उस गाड़ी में राजगड़ पहूँचो...
विश्व - क्या... क्या हुआ है डैनी भाई...
डैनी - मुझे खबर मिली है... आज रात गाँव में कुछ गड़बड़ होने वाली है... पुलिस को अलर्ट न्यूज भेज दिया गया है... पर... खबर मिली है कि... भीमा और उसके लोग... इस बार गाँव में.. धार धार हथियार लेकर निकले हैं... इसलिए तुम भी पहुँचने की कोशिश करो... और हाँ... इसबार तुम अकेले नहीं होगे... मैं भी आ रहा हूँ...

फोन कट जाता है l विश्व परेशान हो कर अपने दोस्तों को देखने लगता है कि तभी सुभाष दास को साथ लेकर विश्व के पास पहुँचता है l

सुभाष - विश्व... एक इमर्जेंसी आ गई है...
विश्व - हाँ मुझे अभी अभी पता चला...
दास - क्या पता चला...
विश्व - भीमा और उसके गुर्गे... गाँव में हथियारों के साथ निकले हैं...
सुभाष - हाँ... जानते हो... अभी जब हम... विक्रम के ऑपरेशन के लिए यहाँ परेशान थे... तब राजगड़ में... (पुलिस वालों के साथ जो भी कुछ हुआ सब बताने लगता है) मेरे स्क्वाड के जितने भी बंदे थे... सबको... हमारे पहुँचने तक थाना टेक ओवर करने के लिए कहा था... उनको कॉर्डिनेट जगन कर रहा था... आज जिन लोगों को... अधमरा कर पुलिस के हवाले किया गया है... वे सब... होम मिनिस्टर के... सेक्यूरिटी के आदमी थे...
विश्व - ह्वाट...
दास - हाँ... इसका मतलब हुआ... अब होम मिनिस्टर... भैरव सिंह के कब्जे में है...
टीलु - (विश्व से) भाई... भाई... जरा दीदी को फोन करो...

विश्व वैदेही को फोन करता है l पर फोन लग नहीं रहा था l विश्व फिर सत्तू को फोन लगाता है पर उसका भी फोन नहीं लगता है l थक हार गए कर विश्व सुभाष की ओर देखता है l सुभाष जगन को फोन करता है पर इस बार सुभाष का कॉल भी नहीं जाती l

सुभाष - यह क्या... अभी अभी तो मैंने बात किया था...
टीलु - हो सकता है... उन्होंने मोबाइल टावर उड़ाया हो...
दास - हाँ... य़ह हो सकता है...
विश्व - तो फिर चलिए... जितनी जल्दी हो सके निकलते हैं...
दास - हम चाहे जितनी भी तेजी से जाएं... सुबह से पहले नहीं पहुँच सकते...
टीलु - यहाँ बातों से वक़्त जाया करने से अच्छा है कि... हम राजगड़ के लिए निकल जाएं...
सुभाष - यस.. ही इज राईट... लेट्स गो...

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भीमा और उसके साथी वैदेही की नाश्ते की दुकान वाली चौराहे पर लक्ष्मी और उसके पति हरिया, बिल्लू आदि कुछ गाँव वालों को लेकर आते हैं l

भीमा - (चिल्ला कर) ओ रंग महल की रंडी... बाहर निकल हराम जादी... सभी लड़कियों को अपने यहाँ छुपा कर रखी है... कुत्तीआ साली... बाहर निकल... (कोई हरकत नहीं होती) साली दरवाजा खोल कर बाहर निकल.... और उन ल़डकियों को हमारे हवाले कर... बर्षों बाद.. रंग महल में रौनक लौटेगी... बाहर निकल... (फिर भी कुछ जवाब नहीं मिलता है) भूरा... शनिया
भूरा और शनिया - जी... सरदार...
भीमा - जाओ... दरवाजा तोड़ डालो...

भूरा और शनिया कुछ लोगों को साथ लेकर भागते हुए दुकान की दरवाजे तक पहुँचते हैं कि तभी दरवाजा खुल जाता है l अंदर से गौरी निकलती है l सामने भूरा और शनिया को आकर थमते देखती है l अपनी नजरें घुमा कर देखती है, भीमा और उसके लोग बिल्लू, लक्ष्मी हरिया जैसे आठ दस लोगों को बालों से गर्दन से पकड़ रखे हुए हैं l

गौरी - क्या हुआ भीमा...
भीमा - अरे यह तो रंग महल की थूकी हुई बुढ़िया है... (सभी हा हा हा हा करके ठहाका लगाते हैं)
गौरी - यहाँ क्यूँ और किस बात के लिए हल्ला कर रहे हो...
भूरा - ओ हो... नखरे देखो तो बुढ़िया के... रौब ऐसे झाड़ रही है... जैसे दुकान की मालकिन हो...
गौरी - हाँ हूँ... इस दुकान की मालकिन मैं ही हूँ... गल्ले पर मालकिन ही बैठती है... इतना भी अक्ल नहीं है क्या तुझे...
शनिया - ओ तेरी... दो गज दूर श्मशान से... जुबान आठ गज की... ऐ चल बता... वह वैदेही कहाँ है...
गौरी - वह नहीं है यहाँ पर...
भूरा - (आगे बढ़ कर गौरी को बालों से पकड़ कर) क्या बोली बुढ़िया... (गौरी दर्द के मारे कराहती है) चिल्ला... और जोर से चिल्ला... बुला... उस कुत्तीया को...
गौरी - मैं सच कह रही हूँ... वैदेही घर में नहीं है... शाम को यह कह कर गई थी... आज नहीं लौटेगी...
भीमा - ऐ... (अपने कुछ लोगों से) जाओ... अंदर जाकर छान मारो...

कुछ लोग वैदेही के घर और दुकान में घुस जाते हैं l अंदर सामान तितर-बितर तोड़फोड़ कर देते हैं और बाहर आकर कहते हैं l

आदमी - बुढ़िया सच कह रही है... अंदर वह रंडी नहीं है...

भीमा हरिया को उल्टे हाथ का एक थप्पड़ मार देता है, जिससे हरिया कुछ दूर घूम कर गिरता है l लक्ष्मी रोते हुए हरिया के पास जाने लगती है तो भीमा उसे पकड़ लेता है l

भीमा - ऐ हरिया... राजा का हुकुम है... जितने भी ल़डकियों की माँ को अपने नीचे लाए थे... उन सभी ल़डकियों को रंग महल की रौनक बनायेंगे... चल बता तेरी बेटी कहाँ है...
बिल्लू - भीमा भाई... शाम को वैदेही दीदी आई थी... ल़डकियों को अपने साथ ले गई... कहाँ ले गई हम नहीं जानते... विश्वास करो... हम नहीं जानते...
भीमा - पुछा मैंने हरिया से था... तेरी चूल क्यूँ मची बे बिल्लू...
लक्ष्मी - सच ही तो कह रहे हैं बिल्लू भैया.. शाम को वैदेही दीदी आई थीं... हमारी बच्चियों को अपने साथ ले गईं... हम नहीं जानते... अब दीदी और बच्चे कहाँ हैं...
भीमा - (अपने आदमियों से) ऐ... जानते हो... आज राजा साहब ने हम सबको क्या कहा...
सभी - दुशासन...
भीमा - हाउउउ... तो... (लक्ष्मी को खिंच कर) यह रही द्रौपदी... लो इसकी चिर हरण शुरु करो...

भीमा की बात सुन कर सब ऐसे हँसते हैं जैसे पिशाचों की टोली हँसती है l लक्ष्मी भागने लगती है तो उसे भूरा और शनिया दबोच लेते हैं l लक्ष्मी को सब ऊपर उठा लेते हैं और सब उसे अपनी अपनी तरफ़ खिंचने लगते हैं l यह सब देख कर हरिया भीमा के पैर पकड़ कर लक्ष्मी को छोड़ने के लिए गिड़गिड़ाने लगता है l तब तक लक्ष्मी की साड़ी फट कर अलग हो चुकी थी l बिल्लू भी भीमा के पैर पर गिर कर लक्ष्मी को छोड़ने के लिए कहता है l पर उन सब शैतानों की हँसी कह कहा मंजर को और भी वीभत्स कर रहा था l उनकी शैतानी हँसी के आगे लक्ष्मी की चीखें सुनाई नहीं दे रही थी l तब तक लक्ष्मी की ब्लाउज फट कर अलग हो चुकी थी l गौरी से और बर्दास्त नहीं होती वह अपनी पूरी ताकत से चीखती है l

गौरी - रुक जाओ... मैं कहती हूँ रुक जाओ... (कॉफ.. ऑफ.. कॉफ) (गला फाड़ कर चिल्लाने के वज़ह से वह खांसने लगती है)
भीमा - ऐ... रुक जाओ...

सब लक्ष्मी को छोड़ देते हैं l लक्ष्मी की पेटीकोट फट चुकी थी बस कमर में लटक रही थी l दुबक कर नीचे खुद को छुपाकर बैठ जाती है l हरिया रेंगते हुए रोते हुए आता है और लक्ष्मी को गले लगा कर रोता है l

भीमा - हाँ तो बुढ़िया... बोल अभी... वैदेही कहाँ है...
गौरी - क्यूँ अपनी मौत को ढूंढ रहा है भीमा...
शनिया - उम्र देख... कमिनी... वर्ना साली की गाली देता तुझे... रंग महल की... थूकी हुए गुठली... चल बोल... वैदेही लड़कियों को लेकर कहाँ छुपी है...
भूरा - वर्ना... चिर हरण फिर से शुरू करें...
गौरी - तुम लोगों को विश्वा का डर नहीं है... अरे उससे तो तुम्हारा राजा भी डरता है...
भीमा - ऐ तुम लोग फिर से शुरू हो जाओ... यह डायन बकचोदी करने लगी है...
गौरी - नहीं रुक जाओ... मैं बताती हूँ...
भीमा - हाँ बोल...
गौरी - वह... वैदेही... बच्चों को लेकर... ग्राम देवी माँ की मंदिर में छुपी हुई है...
शनिया - ले... बुढ़िया ने मुह खोली... तो झूठ ही पेली... अबे बुढ़िया... ग्राम देवी की मंदिर सदियों से बंद है...
भीमा - बुढ़िया सच कह रही है... हम सब जगह ढूंढते... ढूंढते ही रह जाते... पर मंदिर कभी नहीं जाते.... क्यूँकी मंदिर... पाइकराय परिवार के खात्मे के साथ ही बंद हुई थी... हा हा हा हा हा हा... समय भी कहाँ घूम कर पहुँची... जिस परिवार को खत्म कर दसियों पहले मंदिर बंद किया गया था... उसी खानदान की अंतिम चिराग... मंदिर खोल कर छुपी हुई है... अपनी मौत से... हा हा हा हा हा हा... (भीमा के साथ सभी हँसने लगते हैं)

भीमा सभी गाँव वालों को वहीँ छोड़ कर अपने लोगों के साथ आगे बढ़ जाता है l उनके जाते ही बिल्लू गौरी से सवाल करता है

बिल्लू - यह... यह आपने क्या कर दिया काकी... हमारे बच्चों की खबर दे कर उनकी जान खतरे में डाल दी...
हरिया - हाँ... काकी... आपने ऐसा क्यूँ किया...
गौरी - चुप रह... कितने लोग आए थे... बीस आदमी... और तुम लोग... पूरा का पूरा मुहल्ला... अपनी दुम दबा कर छुपे हुए हैं... तुम लोगों को खिंच कर बाहर निकल कर... तुम्हीं लोगों से... तुम्हारे ही बच्चों का पता पूछ रहे हैं... और तुम्हारे ही घर की लक्ष्मी को बेइज्जत कर रहे हैं... फिर भी... तुम लोग पलटवार करने से कतरा रहे हो... अरे जितनी हिम्मत अपनी जमीन जायदाद की पूछने की की थी... अपनी बच्चियों के बारे में पूछने पर भूरा और शनिया को पीटने में दिखाई थी... और जिस नफरत को ढाल बना कर बड़े राजा के मातम पर नहीं गए थे... वह हिम्मत... वह नफरत कहाँ सो गई... क्या तुममे मर्दानगी तभी करवट लेती है... जब जब वैदेही और विश्व होते हैं... डूब मरो... लानत है तुम सब पर... अरे वह दो बहन भाई... अपनी जिंदगी तबाह और बर्बाद कर दिए... सिर्फ तुम लोगों के लिए... पर तुम लोग... वही गटर की जिंदगी छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं हो... तुम्हारे आने वाले कल के लिए... तुम्हारे बच्चों के लिए... अपनी जिंदगी दाव पर लगा दिया है... पर तुम लोग... थू है तुम पर... उनके पैरों पर गिड़गिड़ा रहे हो...
हरिया - हम... हम और कर ही क्या सकते हैं काकी... देखा नहीं... उन्होंने पुलिस को भी कितना लाचार कर दिया है...
गौरी - अरे बच्चों पर आ जाए तो हिरण भी सिंग लड़ा कर बाघ को फाड़ देती है... तुम लोग तो इंसान हो... किसका इंतजार कर रहे हो... याद रखो भगवान भी उसी के लिए धरती पर आते हैं... जो अपनी मान मर्यादा और पुरूषार्थ के लिए लड़ मर सकते हैं... वर्ना... तुम जैसों को बचाने के लिए भगवान का धरती पर उतरना भी... भगवान के लिए अपमान की बात होगी...

इतना सुनने के बाद भी बिल्लू, हरिया और वहाँ पर मौजूद लोगों में कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखती l पर लक्ष्मी अपनी जगह से उठती है और नीचे पड़ी एक लाठी को उठाती है l

हरिया - ऐ... तु क्या कर रही है... कहाँ जा रही है...
लक्ष्मी - अपनी बेटी को बचाने...
हरिया - पागल हो गई है तु... अभी अभी तेरे साथ क्या हो सकता था...
लक्ष्मी - हो सकता था... बर्षों पहले राजा ने कर दिया था... तब भी तु रोया था... गिड़गिड़ाया था... पर किया कुछ नहीं था... मेरी बेटी के लिए... वैदेही दीदी... लड़ेगी... तु और मैं... किसी कोने में छुप कर... रोयेंगे... नहीं अब ऐसा हरगिज नहीं होगा... मेरी बच्ची को... मेरे जीते जी... कुछ भी होने नहीं दूँगी...
हरिया - ऐ... ऐ... हम लड़ मर लेंगे उसके बाद क्या... हमारा बबलू... उसका क्या होगा...
लक्ष्मी - अभी भी... होने को क्या बचा है... कम से कम उसे इतना याद रहेगा... उसकी माँ... उसकी दीदी को बचाने के लिए... मर्दानी लड़ी थी...

कह कर लक्ष्मी आगे बढ़ जाती है l उसकी देखा देखी जितनी भी औरतें थीं वहाँ पर सभी अपने अपने घर भाग कर हाथों में कुछ ना कुछ ले लेते हैं और लक्ष्मी की गई दिशा में चल देते हैं l यह सब देख कर बिल्लू भी जाने लगता है l

हरिया - बिल्लू... कहाँ जा रहा है...
बिल्लू - लक्ष्मी भाभी जी के साथ... आज तक वैदेही दीदी अकेली लड़ती आई हैं... पर अब नहीं... आज से उनकी हर लड़ाई में मैं रहूँगा... हाँ तेरी बात और है... तेरा झुका हुआ सिर.. लक्ष्मी भाभी देख लेगी शायद... पर अगर मर मरा गया... तो गर्व के साथ... तेरी भाभी को ऊपर अपना शकल दिखाऊँगा... जो उसकी मौत पर भी ना कर सका... वह उसकी और मेरी बेटी के साथ नहीं होगा...

बिल्लू भी निकल जाता है l जिसे देख कर वहाँ पर मौजूद सभी मर्द एक के बाद एक बिल्लू के पीछे जाने लगते हैं l हरिया अपनी नजर घुमा कर देखता है गौरी उसे देख रही थी l हरिया अपनी नजर झुका लेता है l

गौरी - क्या तुझमें अब भी गैरत नहीं जाग रही... तेरी ना मर्दानगी में तेरी बीवी... तेरे दोस्त सब छोड़ गए हैं.. इससे पहले कि तेरा साया तुझे छोड़ दे... जा कुछ कर जा... मत भूल कल को तेरे बच्चे... तुझसे सवाल करेंगे... तब तु क्या जवाब देगा...

हरिया अपना गमछा कमर पर कस कर बाँध देता है और उसी ओर भागता है जिस और सभी गए थे l

उधर भीमा और उसके आदमी लठ और हथियारों के साथ मंदिर के पास पहुँचते हैं l सभी देखते हैं मंदिर के गेट पर ताला टूटा हुआ है और मंदिर के अंदर घना अंधेरा भी है l टूटा हुआ ताला देख कर भीमा मुस्कराता है l

भीमा - वाह... कमीनी ने क्या दिमाग चलाई है... हम सभी जगह ढूंढते रह जाते... पर मंदिर कभी नहीं आते... (चिल्ला कर) ऐ वैदेही... उन ल़डकियों को लेकर बाहर आ... हमें मालूम है... तु उन ल़डकियों को लेकर मंदिर के अंदर छुपी हुई है... ( कोई जवाब नहीं आता)
शनिया - कहीं बुढ़िया ने हमें झूठ तो नहीं बोला... हम सब जोश जोश में यहाँ तक आ गए...
भूरा - हाँ मुझे भी यही लग रहा है...
भीमा - चुप रहो सब... (फिर से चिल्लाता है) ऐ... हरामजादी वैदेही... कमीनी साली कुत्तीआ... बाहर आ रही है... या हम सब अंदर आयें...
शनिया - (चिल्लाते हुए) हाँ वैदेही... मैं याद हूँ ना तुझे... वादा किया था... तेरी एक दिन लूँगा... ले मैं आ गया...


मंदिर के गर्भ गृह में देवी के मूर्ति के पास वैदेही और सत्तू बच्चियों के साथ दरवाज़ा बंद कर सभी नींद में सोए हुए थे l भीमा और शनिया की आवाज़ सुन कर वैदेही और सत्तू की नींद टूटती है l

सत्तू - है भगवान... यह लोग यहाँ तक कैसे आ गए... हम यहाँ हैं... यह तो बस काकी को पता था...
वैदेही - काकी कभी अपनी परवाह नहीं करेगी... ज़रूर कुछ ऐसा हुआ होगा... जिसने काकी को मुहँ खोलने पर मजबूर कर दिया होगा...
सत्तू - अब हम क्या करें...
वैदेही - तुम बच्चियों के साथ गर्भ गृह में रहोगे... जब तक खोलने के लिए मैं या विश्व ना कहें...
सत्तू - मैं यहाँ रहूँ... और आप...
वैदेही - मैं बाहर जाकर इन्हें रोकुंगी...
सत्तू - नहीं दीदी... आप नहीं... मैं जाऊँगा...
वैदेही - (गुर्राती हुई) हूँह्हम्म्म... बच्चियों को मैं लेकर आई हूँ... इन्हें मैं कुछ भी होने नहीं दूँगी... (वैदेही उठती है)
सत्तू - दीदी...
बच्चे - मासी...
वैदेही - घबराओ मत... सत्तू... यह बच्चियाँ अब तेरी अमानत हैं... अंदर से कील लगाके रखना... सुबह होने को ज्यादा वक़्त भी नहीं है... सुबह तक मेरा विशु आ जाएगा... मैं उन्हें तब तक उलझाए रखूँगी... ठीक है.... (मल्लि आकर वैदेही को पकड़ लेती है) घबरा मत... कल इन सबका काल आ रहा है... मैं इन सबको तब तक रोक लूँगी... सत्तू... बच्चियां अब तुम्हारे हवाले...

वैदेही मल्लि को छुड़ाती है और गर्भ गृह से निकल कर बाहर आती है l अंदर से सत्तू दरवाजा बंद कर कुंडी लगा कर कील लगा देता है l वैदेही जैसे ही प्रांगण में आती है आसमान में बिजली कौंधती है l धीरे धीरे आगे बढ़ कर सीडियां उतर कर भीमा और उसके लोगों के सामने खड़ी होती है l

भीमा - लड़कियाँ... लड़कियाँ कहाँ हैं...
वैदेही - यह देवी माँ का मंदिर है... और लड़कियाँ उनकी शरण में हैं...
भीमा - हा हा हा हा हा हा... यह वही मंदिर है... जहाँ से तेरे परिवार को उठा लिया गया था... और मर्दों को काट दिया गया था... हा हा हा हा.. तब.. तब कहाँ गई थी देवी माँ... (भीमा के साथ सभी हँसने लगते हैं)
वैदेही - हँस ले कुत्ते हँस ले... जितना हो सके उतना हँस ले... क्यूँकी यह हँसी... आज के बाद कभी नहीं गूंजेगी...
शनिया - (भीमा से) भीमा भाई... तुम लोग आज इसे मेरे लिए छोड़ दो... तुम अंदर जाओ.. ल़डकियों को उठा लो...
भूरा - ल़डकियों के लिए... सबको जाने की क्या जरूरत है... मैं अकेला जाता हूँ... शनिया... आज तु बस ऐश कर...

सभी भद्दी हँसी हँसने लगते हैं l भूरा हँसते हुए आगे बढ़ता है और और वैदेही के सामने कमर पर हाथ रख कर खड़ा हो जाता है l वैदेही के सामने वैदेही को घूरते हुए पेट पकड़ कर हँसने लगता है l फिर वैदेही को किनारे छोडकर आगे बढ़ने को होता कि अचानक उसकी हँसी रुक जाती है l वह डरते और कांपते हुए अपनी कमर को देखता है वैदेही ने उसके कमर पर दरांती पूरी की पूरी घुसेड दी थी l इस बात का एहसास होते ही चिल्लाता है पर इससे पहले कि वह पूरा चिल्ला पाता वैदेही की दूसरी हाथ में कुल्हाड़ी निकल आती है और घुम कर चला देती है जो भूरा के सीने में धँस जाती है l तभी बिजली फिर से कौंधती है l सीडियों के नीचे भीमा और उसके साथ आए सभी गुर्गों की हँसी रुक जाती है l सभी की आँखे हैरत के मारे फैल चुकी थी l भूरा का शरीर धीरे धीरे प्राण छोड़ते घुटनों पर आ रहा था l अब आसमान में बिजलियाँ लगातार कौंधने लगती हैं l ठंडी ठंडी हवा बहने लगती है जो भीमा और उसके लोगों के हड्डियों में सर्द पैदा कर रही थी l वैदेही का चेहर सख्त दिख रहा था l जबड़े भिंचे हुए थे, हवाओं में लहराता हुआ उसके जुल्फें ऐसा लग रहा था जैसे खुद देवी उसके शरीर में आ गई हों l
अब तक कहकहे लगाने वाले के भीमा और शनिया का मुहँ खुला हुआ था l वैदेही भूरा की लाश को अपने पैर से धक्का देकर दरांती और कुल्हाड़ी निकाल लेती है l लाश सीडियों से लुढ़कती हुई भीमा के पैर के पास रुकती है l

वैदेही - शनिया... आजा... तेरी ख्वाहिश आज पूरा कर ले...

सब ऐसे खड़े थे जैसे सबको सांप सूँघ गया था l कोई अपने जगह से हिल भी नहीं पा रहा था क्यूँकी आज तक कोई राजा के आदमी को उन्हीं के आँखों के सामने मार दे ऐसा हुआ नहीं था l धीरे धीरे भीमा का चेहरा कठोर हो जाता है l

भीमा - (चिल्ला कर) आ आ आ... मारो इस कमीनी को... आज इसकी लाश को घसीटते हुए रंग महल ले जाएंगे... और मगरमच्छ को खिलाएँगे... टूट पड़ो इस पर...

भीमा अपनी जगह पर खड़ा रहता है और उसके सभी साथी, कोई ख़ंजर, कोई कटना, कोई खुख़री जैसे धार धार हथियार हाथों में लेकर वैदेही की भागते हुए जाते हैं l वैदेही भी तैयार थी दाएँ हाथ में कुल्हाड़ी और बाएं हाथ में दरांती लेकर इन सब पर टूट पड़ती है l वैदेही के आँखों में लेश मात्र डर नहीं था पर एक औरत से मात खा जाएं उस अपमान से कहीं ज्यादा मरजाना बेहतर समझ कर वैदेही के पास पहुँचे थे l पर उनकी तेजी से कहीं ज्यादा आज वैदेही तेज थी l किसी का पेट फट चुका था, किसी का हाथ कट चुका था और किसी का पैर कट गया था l एक के बाद एक सभी वैदेही के हाथों से बुरी तरह से ज़ख्मी हो रहे थे l वैदेही सबसे लड़ी जा रही थी, जब तीन तीन लोगों की वार रोक रखी थी तभी शनिया अपनी गुप्ति निकाल कर पीछे से वैदेही के पीठ में आरपार घुसेड़ देता है l इस वार ने पता नहीं कैसे वैदेही के अंदर अचानक ताकत भर देती है वह एक झटका देती है जिससे वह तीन जो वैदेही पर वार कर उलझाए रखे थे l गुलाटी खाते हुए नीचे गिरते हैं l वैदेही लड़खड़ाते हुए पीछे मुड़ कर देखती है l शनिया भद्दी हँसी हँस रहा था

भीमा - शाबाश... शनिया... शाबाश...
शनिया - साली कमीनी... तुझे अपने नीचे लाने की सोचा था... पर तु तो सबको ऊपर पहुँचाने में तूल गई है... अब उन ल़डकियों को हम पूरे गाँव में घसीटते हुए ले जायेंगे... तु उन्हें जाते हुए देखना फिर मर जाना... हा हा हा... (सभी शनिया के साथ हँसने लगते हैं)


वैदेही खुद को संभालती है और वह भी हँसने लगती - हा हा हा हा हा हा हा हा... I फिर
याआ आ आ... चिल्लाते हुए शनिया की ओर भाग कर उसके गले लग जाती है l जो गुप्ति शनिया ने वैदेही के पीठ पर आरपार घुसेड़ा था वही गुप्ति शनिया के पेट में घुस जाती है l वैदेही के इस हमले ने ना सिर्फ शनिया को बल्कि सभी को शॉक में डाल देती है l सबकी हँसी फिर से रुक जाती है l वैदेही शनिया के सिर को पकड़ कर अपनी दरांती को चला देती है l शनिया का सिर धड़ से अलग हो जाती है l वैदेही शनिया के सिर को हाथ में लेकर चिल्लाती है

या आ आ आ आ....

जो लोग वैदेही को घेरे खड़े थे वह सब डर के मारे नीचे भीमा के पास भाग जाते हैं l वहीँ से वैदेही की ओर देखने लगते हैं वैदेही, एक हाथ में दरांती और एक हाथ में शनिया कटा हुआ सिर था l चेहरा पूरा खून से सना हुआ था और हवा में उसके बाल लहरा रहे थे l बिजली की रौशनी में वैदेही देवी काली की प्रतिरूप दिख रही थी l वैदेही के इर्द गिर्द कुछ लोग मरे और ज़ख्मी हो कर गिरे पड़े थे और कुछ लोग भीमा के पास खड़े हो कर डर से कांप रहे थे l

वैदेही सीडियों पर बैठ जाती है अपनी कुल्हाड़ी को उठा कर उसे सीधा खड़ा करती है और उसे टेक लगा कर ऊपर अपना हाथ रखती है l दूसरी हाथ में दरांती लेकर भीमा की ओर देखती है l

वैदेही - (दहाड़ते हुए) है कोई माई का लाल... तो मुझे हटा कर ले जाओ उन बच्चियों को... आ...

भीमा और उसके साथी थर थर कांप रहे थे l वैदेही की इतना वीभत्स रूप को देख कर l एक आदमी भीमा से कहता है

आदमी - भीमा भाई... चलो चलते हैं...
भीमा - अबे चुप... खाली हाथ गए... तो मौत मिलेगी...
और एक आदमी - और आगे गए तो... साक्षात मौत बैठी है...
भीमा - घबराओ मत... कितनी देर जियेगी... थोड़ा ठहरते हैं... जब यह लुढ़क जाएगी... तब हम... ल़डकियों को ले जायेंगे...

वैदेही वैसे ही बैठी रहती है l उसकी आँखे एक टक भीमा की ओर देख रही थी l भीम की साँसे उपर नीचे हुए जा रही थी l तभी उसके कान में चीखने चिल्लाने की आवाज़ पीछे से सुनाई देती है l जब वह अपनी साथियों के साथ पीछे मुड़ कर देखता है तो उसके होश उड़ जाती है l गाँव के लोग हाथों में लाठी से लेकर हथियार तक लेकर भागते हुए मंदिर की ओर आ रहे थे l

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राजा जी... हुकुम...

यह भीमा की आवाज़ थी, भैरव सिंह के कानों में पड़ती है l रंग महल में भैरव सिंह उस तांत्रिक को लेकर अनुष्ठान प्रकोष्ठ में भीमा और उसके साथियों का इंतजार कर रहा था l उसे यकीन था आज सुबह होने से पहले जिन ल़डकियों की लिस्ट बनाई गई थी उन ल़डकियों को उठा कर ला रहे होंगे l भीमा की आवाज़ कानों में पड़ते ही भैरव सिंह के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है l क्यूँकी जैसा उसने तय किया था पिनाक के मौत के चौथे दिन पूरे राजगड़ में मातम मनेगी l

तांत्रिक - देखा यजमान... अनुष्ठान के लिए, हमने जो मुहूर्त मुकर्रर की थी... वह कितना शुभ है... हमने कहा था... कोई बाधा नहीं आएगी... कोई विघ्न नहीं आएगी... आपका प्रमुख शत्रु राजगड़ में नहीं है... आपने अपने द्वार से पुलिस वालों को धमका कर... चमका कर विदा करवा दिया... इसलिये संदेह नहीं... रखा गया मुहूर्त पर आपका रस्म... जरूर प्रारम्भ होने जा रही है... आप निश्चिंत हो कर रस्म अदायगी कीजिए... मैं आपको अस्वास्थ्य कर रहा हूँ... जब जब आपके परिवार ने इस अनुष्ठान का आयोजन किया है... आपका परिवार अविजित हो गया है... कोई भी सांसारिक शक्ति आपको परास्त कर नहीं सकता... इसलिये आप जाइए... आपके सारे कार्य अनुकूल होते जा रहे हैं... मैं अपनी तंत्र विद्या से अनुष्ठान को उत्कर्ष प्रदान करूँगा... आप अपनी राक्षसी विवाह पर ध्यान केंद्रित करें... चलिए कन्याओं का अवलोकन करते हैं...

तांत्रिक के साथ कमरे से बाहर निकल कर भैरव सिंह भीमा से मिलने बाहर जाता है l बाहर पहुँच कर देखता है भीमा लहुलुहान हो कर अकेला खड़ा है l भैरव सिंह को देखते ही जमीन पर गिर पड़ता है l पास खड़े एक गार्ड उसे उठाता है l भीमा हांफ रहा था l

भैरव सिंह - यह... क्या हुआ भीमा... तुम इस तरह...
भीमा - हम सब ना कामयाब रहे...
भैरव सिंह - (गुर्राते हुए) क्या... क्या कहा...
भीमा - हमने पुलिस वालों को डरा कर लोगों के मन में डर बिठा दिया था... लड़कियों को उठा लाने में कामयाब भी हो गये होते.... पर... वह.. वह वैदेही बीच में आ गई... उसने अकेले ही... हमारे आधे आदमियों को... भूरा और शनिया के साथ काट डाला...
भैरव सिंह - क्या...
भीमा - हाँ... हाँ हुकुम... वह एक हाथ में दरांती... और दूसरे हाथ में कुल्हाड़ी लेकर... हमारे सारे लोगों के साथ अकेली भीड़ गई... हमारे लोगों को ऐसे काट रही थी... जैसे रण चंडी... राक्षसों को काटती है.... फिर भी... हम उसे घायल करने में कामयाब हो गए थे.... पर उसी वक़्त हम पर... गाँव वाले... अपनी अपनी हथियारों के साथ टूट पड़े... सारे मारे गए... मैं... मैं किसी तरह खुद को बचा पाया... और आप तक खबर पहुँचाने आ गया...
भैरव सिंह - (चेहरा सख्त हो जाता है) तो तुम... उन कीड़े मकोड़ों से हार कर... डर कर... पीठ दिखा कर... भाग आए... (भीमा हांफ रहा था) (गार्ड से) ले जाओ इसे... आखेट गृह में... मगरमच्छ के हवाले कर दो...
भीमा - नहीं.. नहीं राजा सहाब... मेरे साथ ऐसा मत कीजिए... मैं आपका वफादार हूँ... सबसे भरोसेमंद हूँ... मेरी सेवा को याद कीजिए... राजा सहाब...
भैरव सिंह - तुम एक औरत से हारे... उसे पीठ दिखा कर आए... अपनी जान बचा कर आए... ऐसी जिंदगी से क्या फायदा... (गार्ड से) ले जाओ उसे...

भीमा चिल्लाता रहता है, पर कोई फायदा नहीं होता l गार्ड अपने साथियों के साथ साथ मिलकर भीमा को घसीटते हुए वहाँ से ले जाता है l यह सब देख कर तांत्रिक बड़ा ही शॉक में था l भैरव सिंह उसके तरफ मुड़ कर देखता है l तांत्रिक के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगती है l

भैरव सिंह - तांत्रिक.. तुने तो कहा था... बहुत ज़बर्दस्त मुहूर्त है... कोई बाधा कोई विघ्न नहीं आने वाली...
तांत्रिक - जी... कहा तो था...
भैरव सिंह - एक बात बताओ तांत्रिक... तुम्हें अपनी गणना पर विश्वास था... या हम पर...
तांत्रिक - जी... राजा साहब... आपकी शौर्य... अपकी पराक्रम पर... मेरी विद्या... मेरी गणना टिकी हुई थी...
भैरव सिंह - और तु हमें चूरन बेचता रहा... की तेरी गणना ऐसी है... की रस्म के साथ साथ भविष्य गढ़ने मे... कोई बाधा.. कोई विघ्न नहीं आएगी...

तभी सबकी कानों में भीमा की चीखें सुनाई देने लगती है l धीरे धीरे भीमा की चीखें सुनाई देना बंद हो जाती हैं l भैरव सिंह तांत्रिक से फिर से कहता है l

भैरव सिंह - हाँ तो तांत्रिक... हमने तेरी विद्या पर भरोसा किया... जबकि तु और तेरी विद्या... हमारे शौर्य और पराक्रम के दम पर टिकी थी... (तांत्रिक कोई जवाब नहीं देता) (जब वह गार्ड वापस आता है तो उसे कहता है) अब इस तांत्रिक को ले जाओ... लकड़बग्घे के सामने डाल दो...
तांत्रिक - यह क्या अनर्थ कर रहे हैं राजा साहब...
भैरव सिंह - कमीने... अब तक यजमान था... मौत दिखी तो... राजा साहब...
तांत्रिक - हम कुछ और हल निकाल सकते हैं...
भैरव सिंह - अब हल हो या हलाहल... जो भी निकालना होगा... राजा भैरव सिंह निकलेंगे... (गार्ड से) ले जाओ इसे... हमारी कानों में... इसकी चीखें सुनाई देनी चाहिए...

दो गार्ड्स तांत्रिक को पकड़ कर घसीटते हुए ले जाते हैं l तांत्रिक चिल्ला चिल्ला कर भैरव सिंह से माफी मांग रहा था l पर भैरव सिंह के कान में जु तक नहीं रेंग रहा था l भैरव सिंह रंग महल से बाहर आता है और अपनी गाड़ी में बैठ कर क्षेत्रपाल महल और जाता है l क्षेत्रपाल महल में पहुँच कर सीधे दीवान ए खास कमरे में जाता है l वहीँ पर लगे टीवी स्क्रीन को ऑन करने के लिए जॉन से कहता है l जॉन कोई सवाल किए वगैर सीसीटीवी के सारे स्क्रीन ऑन कर देता है l

उधर अंधेरा छट रहा था सूरज निकलने में अभी भी थोड़ा वक़्त था l विश्व उसके सारे दोस्त इंस्पेक्टर दास और सुभाष सतपती उसी बख्तर बंद गाड़ी में जो बिन्का बाईपास ओवर ब्रिज के नीचे रख छोड़े थे, डैनी के सतर्क करने और गाड़ी को हस्पताल के पास पहुँचाने के बाद उसी गाड़ी में सवार हो कर राजगड़ लौट रहे थे l गाड़ी सबसे पहले थाने के पास रुकती है, थाने की हालत देख कर सभी हैरान होते हैं l एक जला हुआ खंडर जैसा दिख रहा था जिसके कुछ जगहों से धुआं उठ रहा था l सभी गाड़ी से उतर कर तुरंत अंदर जाते हैं l सभी पुलिस वाले एक सेल में बंद बेहोश पड़े थे l सेल के बाहर ताला लगा हुआ था l धुएँ के प्रभाव में आकर सभी बेहोश थे l सारे संचार के साधन तितर बितर हुए पड़े थे l

दास - यह राजा पागल हो गया है क्या...
सुभाष - तुम अपना दिमाग ठंडा रखो... जिसने भी किया है... किसी को मारने के लिए नहीं किया है...
विश्व - पर बेबस और लाचार बना कर खौफ पैदा करने के लिए यह सब किया है... बेहतर होगा... पहले इन्हें यहाँ से रेस्क्यू किया जाए... (सभी सेल की ताला तोड़कर भीतर बेहोश पड़े पुलिस वालों को निकालने के लिए लग जाते हैं)
दास - राजा ने कहा था... आज का दिन पूरे राजगड़ में मातम होगा... अपनी बात को साबित करने के लिए... उसके लोगों ने... हर कम्युनिकेशन को डेश्ट्रॉय कर डाला होगा... फिर यह सब तांडव किया होगा...
टीलु - कहीं उसके लोगों ने यह सब... पुलिस को रोके रखने के लिए तो नहीं किया... (सभी उसके तरफ देखते हैं) कहीं इसी बीच गाँव में कोई आतंक तो नहीं मचाया...

विश्व इतना सुन कर बाहर की ओर भागता है, उसके पीछे पीछे उसके दोस्त सभी भाग जाते हैं l विश्व बाहर आकर गाड़ी में बैठता है सीलु ड्राइव कर गाड़ी को गाँव के भीतर ले जाता है l एक मोड़ पर टीलु सबको इशारा कर दिखाता है l सीलु उसी तरफ गाड़ी मोड़ देता है क्यूँकी उन्हें मंदिर के पास सभी गाँव वालों का जमावड़ा दिखता है l गाड़ी गाँव वालों के पास रुकती है l सभी गाड़ी से उतरते हैं l गाँव वाले मुड़ कर इन्हीं के तरफ़ देखते हैं, विश्व देखता है सबके आँखों में आँसू बह रहा था l टीलु विश्व के बाजू को जोर से पकड़ लेता है l सभी आगे बढ़ते हैं और गाँव वाले उन्हें रास्ता देते हैं l मंदिर के सीडियों के पास आकर रुक जाते हैं l गौरी विश्व को देखती है और रोते बिलखते आकर विश्व के गले लग जाती है l

गौरी - अनर्थ हो गया विशु... तेरी दीदी को... (कह नहीं पाती रोने लगती है, सत्तू और बच्चे भी विश्व के पास आते हैं )
सत्तू - विशु भैया... दीदी ने हम सबको मंदिर के अंदर बंद कर दिया और अकेली इन जानवरों से भीड़ गई...

विश्व गौरी को अपने से अलग करता है l आगे बढ़ता है लाश के पास लक्ष्मी और कुछ औरतें बैठ कर रो रहीं थीं l विश्व एक बुत की तरह वैदेही की लाश को घूर रहा था l विश्व के सभी दोस्त रो रहे थे पर विश्व नहीं रो रहा था या फिर रो नहीं पा रहा था l उसके आँखों से आँसू बह नहीं रहे थे l उसकी यह हालत देख कर हरिया पास आता है

हरिया - विशु... ऐ विशु भाई... दीदी... हमारे घर की लाज लक्ष्मी को बचाने के लिए.. हमारी ना मर्दानगी की बेदी पर... खुद की बली चढ़ा दी... (विश्व फिर भी एक मूक की तरह देखे जा रहा था)
टीलु - भाई यह सब मेरी गलती है... दीदी को मालूम था... यह सब होगा... पर उसने मुझे कसम दी थी... तुम्हें ना कहने के लिए... मुझे भी अपने पास नहीं रहने दिया... (विश्व टीलु के कंधे पर हाथ रखता है फिर भी नहीं रोता)
गौरी - (पास आ कर) विशु... तु रोता क्यूँ नहीं है... तेरी दीदी तुझे छोड़ कर चली गई है...

विश्व अपने दीदी के लाश के पास आता है और घुटने पर बैठ जाता है l अपनी बाहें बढ़ा कर वैदेही के शव को उठा लेता है और वैदेही के दुकान की ओर ले जाने लगता है l सारे गाँव वाले विश्व के पीछे पीछे चलने लगते हैं l विश्व दुकान के सामने पहुँच कर

विश्व - टीलु... जाओ एक कुर्सी लेकर आओ...

टीलु कोई सवाल जवाब किए वगैर अंदर जाता है उसी कुर्सी को उठा कर लाता है जिस पर वैदेही अक्सर बैठा करती थी l विश्व वैदेही की लाश को उस कुर्सी पर बिठा देता है l फिर गाँव के औरतों को हाथ जोड़ कर कहता है

विश्व - आप लोग दीदी को नहलाके... हल्दी लगा के.. अर्थी की तैयारी कीजिए... मैं अभी आया...

इतना कह कर विश्व दुकान के अंदर घुस जाता है l सभी गाँव वाले पहले एक दूसरे को देखते हैं फिर औरतें सभी वैदेही की अंतिम विदाई की तैयारी करने की तैयारी करते हैं l सारे मर्द विश्व की हरकत से हैरत में थे l थोड़ी देर बाद विश्व एक बैग लेकर आता है

विश्व - सत्तू... (बैग उसके हाथ में दे कर) इस बैग में... गाँव वालों की जमीनों की कागजात हैं... जिसे दीदी ने... भैरव सिंह के महल से हासिल किया था... बांट दो इन्हें...

सत्तू विश्व के हाथ से वह बैग ले लेता है l सत्तू के बैग ले जाने के बाद विश्व गाँव वालों के बीच से होते हुए मंदिर की ओर जाता है l विश्व को अकेले ऐसे जाते देख सीलु जिलु और मीलु भी विश्व के साथ जाने लगते हैं l गाँव के कुछ और मर्द भी पीछे पीछे जाने लगते हैं l मंदिर के पास विश्व आर्मर्ड गाड़ी के अंदर चला जाता है l बाहर लोग खड़े होकर विश्व की हरकत देखने लगते हैं l थोड़ी देर बाद विश्व गाड़ी से उतर कर इन सबको देख सीलु से कहता है

विश्व - सीलु... तुम लोग जाओ... दीदी की अर्थी तैयार करो... मैं कुछ देर में आता हूँ...
हरिया - अर्थी... हम सब मिलकर तैयार करेंगे... विशु... इससे पहले गाँव में किसी आम लोगों को कभी भी कंधा नहीं मिला है... पर आज हम गाँव वाले... दीदी को कंधा देंगे...
विश्व - नहीं... गाँव में कभी ऐसा हुआ नहीं... लोग... आज तक ना तो किसीकी खुशी में शामिल हुए थे... ना ही किसीकी मातम में..
बिल्लू - तो क्या हुआ... गाँव का यह मिथक टूटा भी तो है... कोई राजा को तो क्या... महल तक को पीठ कर लौटा नहीं था.. दीदी के साथ हमने किया था... राजा के घर खुशियों में शामिल हो ना हो... मातम में शामिल जरूर होते थे... दीदी साक्षी थी... हममे से किसी ने भी... बड़े राजा के मातम में शामिल नहीं हुए हैं... सिवाय राजा के खानदान के... किसी और परिवार की अर्थी गाँव में नहीं घूमी है... पर आज दीदी की अर्थी गाँव के हर गली से... हर चौराहे से... हर दरवाजे के सामने गुजरेगी... हम... हम अपने कंधो पर लेकर जायेंगे..
सभी - गाँव वाले चिल्लाते हैं... हाँ हाँ... हमने बड़े राजा का अर्थी गाँव में घूमने नहीं दिया... पर आज दीदी की अर्थी गाँव के हर गली से... हर घर के आँगन के आगे से गुजरेगी...

कुछ देर के लिए विश्व स्तब्ध हो जाता है l वह एक गहरी साँस लेता है फिर गाँव वालों से कहता है

विश्व - ठीक है... आप सब... दीदी की अर्थी की तैयारी कीजिए... मैं महल जा रहा हूँ... थोड़ी देर के बाद आकर शामिल हो जाऊँगा...
जिलु - महल... महल किसलिए जाओगे... क्यूँ...
मीलु - भाई... पहले दीदी की अंतिम संस्कार कर देते हैं ना... उसके बाद... हम महल की ईंट से ईंट बजा देंगे...
विश्व - मैं महल दीदी की आखरी ख्वाहिश पूरा करने जा रहा हूँ...
सीलु - आखरी ख्वाहिश...
विश्व - दीदी ने कहा था... उसे उसकी बहु के हाथ से विदा होना है... इसलिए... मैं महल... उसकी बहु को लाने जा रहा हूँ...
मीलु - भाई तुम अकेले... नहीं... भाभी को लाने हम सब जाएंगे...

गाँव वाले जो सुन रहे थे सब हैरत में थे, महल में विश्व की पत्नी कौन है l वे यह सब सुन कर एक दूसरे के मुहँ ताकने लगते हैं l

विश्व - नहीं... मुझे कुछ नहीं होगा... वैसे भी राजकुमारी जी से मैंने वादा किया था... उन्हें.. भैरव सिंह के आँखों के सामने लेकर जाऊँगा... अभी वह वक़्त आ गया है...

इतना कह कर विश्व महल की ओर जाने लगता है l गाँव के कुछ लोग विश्व के दोस्तों के साथ विश्व के पीछे पीछे चलने लगते हैं और कुछ लोग अर्थी का सामान जुटा कर अर्थी बनाने लगते हैं l विश्व महल के कुछ दूरी पर पहुँच कर सबको रुकने के लिए कहता है l विश्व की बात मान कर सभी रुक जाते हैं l विश्व अकेले महल की ओर बढ़ता है l उसे आता देख एक सिक्यूरिटी गार्ड वायर लेस से भैरव सिंह को इंफॉर्म करता है l

गार्ड - जनरल... सम वन इज कमिंग...
भैरव सिंह - आई नो... डोंट स्टॉप हिम... लेट हिम कम...
गार्ड - ओके जनरल...

भैरव सिंह अपनी सर्विलांस रूम में बैठ कर विश्व को महल की परिसर में दाखिल होते हुए देख रहा था l वायरलेस को रख कमरे से भैरव सिंह निकल कर बाहर बरामदे तक आता है l विश्व सीढ़ीयों तक पहुँच चुका था l भैरव सिंह को देख कर विश्व रुक जाता है l दोनों की नजरें मिलती है l विश्व भैरव सिंह के आँखों में देखते हुए सीढ़ी चढ़ कर भैरव सिंह के सामने खड़ा होता है l भैरव सिंह विश्व के आँखों में उठ रहे तूफान को साफ महसुस कर पा रहा था l

भैरव सिंह - आ विश्वा आ... तु वह पहला इंसान है... जिससे मिलने और बात करने बाहर तक आए हैं... (भैरव सिंह आगे बढ़ने लगता है, विश्व भी उसके साथ चलने लगता है) जो हुआ... हम वैसा नहीं चाहते थे... पर हो गया... अगर हुआ... तो ऐसा क्यूँ हुआ... जब कि उसे होना नहीं चाहिए था... (विश्व खामोश रहता है) यह एक बहुत बड़ा सच है... जो कोई नहीं सोचता... प्रकृति का अपना नियम है... पहाड़ से.. कोई कंकर टकराता नहीं है... पर तुने... और तेरी बहन ने वह सब किया... जो प्रकृति के विरुद्ध है... परिणाम ऐसे ही सामने आता है... हम जानते हैं... तेरे अंदर बहुत गुस्सा... बहुत आग है... तेरे अंदर की ज़ज्बात... जोश मार रहा होगा... तेरे अंदर की आग में.. यह महल... इस सल्तनत को जला देने के लिए... पर तु पढा़ लिखा है... इस सच को तु अच्छी तरह से समझता होगा... हर क्रिया का प्रतिक्रिया होता है... यह बात तुझे ही नहीं... बल्कि इस स्टेट में सबको पता होना चाहिए... की यहाँ क्रिया करना हमारा हक है... हर हमारे खिलाफ क्रिया का प्रतिक्रिया देना भी हमारा ही हक है... (विश्व फिर भी शांत था) अपनी दीदी की चिता को आग देने के बजाय तुम यहाँ आए हो... हम समझ सकते हैं... बदला चीज़ ही ऐसी है... पर हर किसी को... प्रकृति का नियम याद रखना चाहिए... कंकर की औकात ठोकर पर होती है... पहाड़ से टकराने की नहीं... (अब तक दोनों सर्विलांस कमरे में आ चुके थे) विश्वा.. यह देख... सारा गाँव हमारी नजरों में है... क्यूँकी हम हज़ारों आँखों से सब देख रहे हैं... हमने यह भी देखा... कैसे तेरे बंदे ने... हमारे जमीनों की कागजात... गाँव के लोगों में बांट दिया... (इतना कह कर भैरव सिंह एक कुर्सी पर बैठ जाता है) तुने जितना करना था... कर लिया... जमीनों की कागजात हम हासिल कर ही लेंगे.... (गम्भीर हो कर) तेरे वज़ह से हमसे हमारा परिवार बिखर गया... पर बदले में तेरा बहुत कम ही नुकसान हुआ है... अब बोल... आगे क्या करना चाहता है... अपनी दीदी की लाश की चिता में आग देना चाहता है... या तेरी भी लाश को लावारिस करना चाहता है...
विश्व - सुना है... तेरे खानदान को... ताकत और हुकूमत.. एक टूटी हुई नंगी तलवार से मिला था...
भैरव सिंह - हाँ... सही सुना है...
विश्व - और क्या यह भी सच है... की तलवार जिस दिन सलामती पर आ जाएगा... उस दिन तेरी हुकूमत... तेरी सल्तनत... सब खत्म हो जाएगा...
भैरव सिंह - (भौहें सिकुड़ जाते हैं) तुझे उस तलवार में इतनी दिलचस्पी क्यूँ है... कोई हरकत करने की सोचना भी मत... वर्ना... यहाँ से जिंदा वापस नहीं जा पाएगा...
विश्व - मैं तब भी जिंदा वापस गया था... जब कुछ नहीं था... आज भी जाऊँगा... मेरी अमानत है तेरे महल में... उसे लेकर जाऊँगा... और इस बार... तु... बाहर तक मुझे मेरे अमानत के साथ... छोड़ने जाएगा... (यह कह कर विश्व सीसीटीवी की ओर देख कर मुस्कराता है)


भैरव सिंह हैरान हो कर पीछे मुड़ कर सीसीटीवी की ओर देखता है, उसे सीसीटीवी पर कोई हलचल नजर नहीं आता, वह सतर्क हो जाता है और पीछे मुड़ कर देखता है, विश्व वहाँ पर नहीं था l अपनी चेयर से उठ खड़ा होता है, मुट्ठियाँ भिंच कर कमरे से बाहर निकल कर अंतर्महल की ओर जाता है l रुप की कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था l गुस्से में भैरव सिंह का चेहरा थर्राने लगता है l एक लात मारता है, दरवाजा धड़ाम से खुल जाता है l अंदर का दृश्य देख कर वह स्तब्ध हो जाता है l
 
Last edited:

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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👉एक सौ पैंसठवाँ मेगा अपडेट (A)
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"आज जिस तरह से यशपुर क्षेत्र से लेकर बीन्का रोड तक एक पुलिस वैन जिसके भीतर रुप फाउंडेशन और राजगड़ मल्टिपर्पोज कोऑपरेटिव सोसाईटी के गवाहों के साथ साथ पुलिस व उनके वकील पर हमला हुआ, यह घटता राज्य के आम जन जीवन को हिला कर रख दिया है l यह घटना टीवी पर प्रसारित होने पर आम लोगों से लेकर बुद्धिजीबी तक शासन और प्रशासन पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं l यह घटना केवल राज्य भर ही नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र में अब चर्चा का विषय बन गया है l जिससे राज्य की चावी खराब हुई है l अब सुनने में आ रहा है कि मुख्यमंत्री ने इस विषय को गंभीरता से लिया है और मंत्रियों और अधिकारियों को एक आपातकालीन बैठक के लिए तुरंत तलब किया है l"

शाम धीरे धीरे ढल रहा था, सारे टीवी चैनल और दूसरे गण माध्यम इस खबर को अपने अपने हिसाब से लोगों तक पहुँचा रहे थे l दूसरी ओर सोनपुर की सरकारी आईवी के बाहर बहुत सारे न्यूज एजेंसीयों की ट्रांसमिशन वैन खड़ी हुई है l सारे न्यूज एंकर अपनी अपनी चैनल पर लाइव न्यूज प्रसारण कर रहे हैं l थोड़ी देर बाद तीनों बाइक पर सवार होकर विश्व और गवाहों के साथ साथ सुभाष और दास पहुँचते हैं l आईवी के कॉमन रुम में तीनों जजों के साथ बैठ कर नरोत्तम पत्री सुधांशु मिश्रा बात कर रहे हैं l तभी कॉमन रुम में छह लोगों की प्रवेश होता है l विश्व पत्री को देखता है पत्री निराशा के साथ अपना सिर ना में हिलाता है l

सुभाष - (जजों से) सर... आई एम... सुभाष सतपती... डेपुटी कमिश्नर एंड... द इनचार्ज ऑफ एसआईटी रुप फाउंडेशन... इट्स एन इमर्जेंसी...
जज - मुझे... पत्री बाबु यही समझा रहे थे... डीसीपी सतपती... पर आई एम सॉरी... मुझे लगता है... यह इमर्जेंसी आर्टिफिशल है... इसलिए सुनवाई... तय किए गए दिन पर होगी...
विश्व - आई एम सॉरी सर... यह तीन गवाह.. रजिस्टर्ड गवाह नहीं हैं... यह केस में पूरी तरह नए हैं... आपकी तय किए गए दिन... इन गवाहों की... जिरह हो सकती है... पर उससे पहले इनका बयान तो रजिस्टर्ड किया जा सकता है...
जज - मिस्टर डीसीपी... मजिस्ट्रेट या जज किसी आपातकालीन परिस्थिति में ही गवाही ले सकते हैं...
सुभाष - जी सर... यह आपातकालीन परिस्थिति ही है... हम अपनी और इनकी जान बचा कर आपके पास आए हैं...
जज - ओ... तो अब हमें... आपसे कानून सीखनी पड़ेगी...
विश्व - नहीं जज साहब... हम किसी कोर्ट में नहीं आए हैं... इमर्जेंसी के बयान... हमेशा पुलिस के द्वारा मैजिस्ट्रेट या जज के सामने ही दिलवाया जाता है... हम यहाँ कोई पेशगी कराने नहीं आए हैं... बल्कि... आपके सामने... पुलिस इन गवाहों से बयान दर्ज कराएगी...
जज - मिस्टर विश्व प्रताप... तुम अपनी हद पार् कर रहे हो... यह बात डीसीपी भी कह सकते हैं...
विश्व - सर... रुप फाउंडेशन केस को पुनर्जीवित मैंने किया है... और राजगड़ मल्टिपर्पोज कोऑपरेटिव सोसाईटी के केस में... मैं राजगड़ के गाँव वालों की तरफ से वकील हूँ... इस केस में कोई गवाह या सबूत जुड़ते हैं... यह जानना और उनकी सुरक्षा की माँग करना... मेरा कर्तव्य भी है...
जज - (सुभाष से) ह्म्म्म्म... तुम कुछ कहना चाहोगे डीसीपी...
सुभाष - सर... मैंने ना सिर्फ इन गवाहों को... अपनी तहकीकात के दौरान खोजा है... बल्कि.. होम मिनिस्ट्री में डिक्लेरेशन के साथ साथ... इन्हें वीटनेस प्रोटेक्शन में मैंने अपने अंडर शामिल भी कर लिया है... पर फैक्ट आप देख सकते हैं... इनकी खबर बाहर लीक हो गई... इसलिए... कुछ भी अनहोनी होने से पहले... हमने इन सबको आपके सामने लाने और गवाही दिलाने के लिए फैसला किया... बाकी आप और पूरा स्टेट जानता है...
जज - हाँ... हम सब जानते हैं... इंफैक्ट... हमने भी वह लाइव देखा है... पर हमें... यह सब फिल्मी लगा... आई मीन आर्टिफिशल लगा...
सुभाष - माय एक्सट्रीम एपोलोजी सर... क्या मैं जान सकता हूँ आपने ऐसा क्यूँ सोचा...
जज - इसलिए सोच पाए... क्यूँकी तुमने इसे मीडिया में ले आए... प्री प्लान्ड... इसके बारे में तुम हमें इंफॉर्म भी कर सकते थे...
डीसीपी - हाँ कर सकते थे... अगर यह राज लीक ना हुई होती तो... हम मजबूर थे... इसलिए... मीडिया वालों से कॉन्टैक्ट किए... अपनी और गवाहों की सेफ्टी के लिए...
जज - सरकार से क्यूँ नहीं सेफ्टी और सेक्यूरिटी माँगी...
सुभाष - मैं और इंस्पेक्टर दास... दोनों ही सरकारी मुलाजिम हैं... दोनों ही सरकारी आदेश पालन कर रहे थे...
जज - तो यह मीडिया...
सुभाष - सर... हम सब एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के एक एक कड़ी हैं... उसी लोकतांत्रिक व्यवस्था का चौथा स्तंभ यह मीडिया भी है.. इसलिए मैंने उनसे भी मदत माँगी...
जज - तो मीडिया को तुम्हें... आईवी के बाउंड्री के बाहर ही रखना था... वह देखो... (चारो तरफ खिड़कियों से,बाहर से सभी मीडिया वाले अपनी अपनी कैमरा से झाँक रहे थे) तुम इसे... इनकी सहायता से... मैटर को पब्लिक कर रहे हो... इसलिए... मैं यह गवाही नहीं ले सकता...
सुभाष - सर... यह जो मीडिया वाले... अपनी अपनी कैमरा से झाँक रहे हैं... यह पूरे स्टेट को... नहीं... पूरे देश को बता रहे हैं... दिखा रहे हैं... हमारा जुडिशल सिस्टम बायस्ड नहीं है... इंडिपेंडेंट है... जस्टिस के लिए... यहाँ कुछ भी किया जा सकता है...
जज - बहुत अच्छा बोल रहे हो... तुम्हें यह पुलिस का जॉब छोड़ कर... राजनीति करनी चाहिए... तुम यह सब बता कर... दिखा कर... मुझ पर प्रेसर कर रहे हो... और कह रहे हो... जस्टिस इंडिपेंडेंट है...
पत्री - (अपनी जगह से उठता है) आई एम सॉरी सर... यह केस जब से शुरु हुई है... तब से.. इसकी डेवलपमेंट देख कर हमें लगता है... आप किसी और के प्रेसर में हैं...
जज - माइंड योर टॉंग मिस्टर पत्री... यु आर एक्युजिंग मी...
पत्री - नहीं सर... आपसे पहले... मैं भी राजगड़ के लोगों की गवाही ले चुका हूँ... हम यहाँ आप से अनुरोध कर रहे हैं... यह जो मीडिया देख रहे हैं... यह इन गवाहों के सुरक्षा के लिए है... केस की तहकीकात में... जब नए सबूत और कंक्रीट गवाह जुड़ते हैं... चाहे वह सस्पेक्ट हो या एक्युज्ड... उसे मिटाने की कोशिश करते हैं... आपको मीडिया से प्रॉब्लम है... पर यह सब जो भी हुआ... यह मेरा ही आइडिया था... मैं नहीं चाहता था... न्याय की बेदी में कोई बलि चढ़ जाए... (सबसे) चलो... (बाहर जाने के लिए तैयार होता है)
जज - अब आप पत्री बाबु... फिर से एक्युज कर रहे हैं... और अपने साथ इन्हें बाहर कहाँ ले जा रहे हैं...
पत्री - मैं इन्हें लेकर... कल... भुवनेश्वर से लेकर अब तक... और जो इस कमरे में हुआ... वह सब मीडिया में कह दूँगा... क्यूँकी व्यवस्था में रह कर... अगर व्यवस्था से ही पीड़ित हों... तो न्याय की उम्मीद व्यवस्था के बजाय... हम... आम लोगों से ही कर सकते हैं... पता नहीं... हम कल जिंदा रहे... या ना रहे...
जज - (खड़ा हो जाता है) ह्वाट... ह्वाट डु यु मीन...
पत्री - आई मीन... ह्वाट यु मीन्ड... (कह कर बाहर जाने लगता है)
जज - होल्ड... (पत्री रुक जाता है) तुम.....तुम... (कुछ कह नहीं पाता, एक पॉज लेकर) ओके... आई एम रेडी... मैं... आई मीन... हम सब... इनकी गवाही लेने के लिए तैयार हैं... बट इट विल बेटर... तुम इन मीडिया वालों को कहो... यह लोग... यह जगह खाली करेंगे...
पत्री - नहीं सर... हम सब यहाँ लाइव हैं... आज पूरा स्टेट हमें जज कर रहा है... इनकी गवाही के बाद आपका क्या एक्शन होगा... यह भी लोग देखेंगे... अगर आप तैयार हैं तो...
जज - (हथियार डालते हुए) ओके... डीसीपी... गवाही की प्रोसीजर शुरु करो... और हाँ... गवाही के दौरान... सबका मोबाइल ऐरोप्लेंन मोड पर होना चाहिए...
सुभाष - जी सर... (दास को इशारा करता है l दास एक फाइल लेकर एक जगह बैठ जाता है, फिर सुभाष सुबुद्धी का परिचय कराता है,) सर... रुप फाउंडेशन के मिसींग वीटनेस.. मिस्टर अनिल कुमार सुबुद्धी... (इस दौरान सभी अपने अपने मोबाइल को ऐरोप्लेंन मोड पर रख देते हैं)

फिर सुबुद्धी अपना गवाही देने लगता है l उसकी गवाही ख़तम होने के बाद दास उससे फाइल पर दस्तखत लेता है और उसके नीचे तीनों जज दस्तखत करते हैं l उसके बाद श्रीधर परीड़ा अपना गवाही देता है और फाइल पर दस्तखत करता है l अंत में बल्लभ अपनी गवाही देता है जिसे रजिस्टर करने के बाद दास बल्लभ से दस्तखत लेने के लिए फाइल आगे कर देता है l

बल्लभ - (जज से) सर.. यह मैंने अब तक जो भी कहा... सब सच हैं... आगे चल कर हर एक बात पर... मैं डॉक्यूमेंट्री सबूत भी पेश करूँगा... पर अभी आपको... राजा भैरव सिंह की गिरफ्तारी के लिए... एक आदेश पारित करना होगा...
जज - वह किसलिए...
बल्लभ - सर.. वह शख्स... अगर बंद रहेगा... तब इस केस का कोई भविष्य है... वर्ना अंधकार ही अंधकार है... सर जब से विश्व राजगड़ आया है... तब से... राजा के सिपाही... हर कदम पर विश्वा से मात खाए हुए हैं... सर इसीलिये... राजा ने... ESS के सभी... हालिया रिक्रूट्स को.. राजगड़ बुलाया था... और हमें ख़तम करने के लिए... उन्हीं ESS वालों में से... कुछ लोगों को भेजा था... पर अब बात अलग है...
जज - अलग है... मतलब..
बल्लभ - राजा ने एक प्राइवेट आर्मी हायर किया है... यह एक फ्री लैंस मर्सिनरिज ग्रुप है... और जहां तक मेरा अंदाजा है... अब तक वह आर्मी... राजगड़ में अपना चार्ज ले चुके होंगे...
जज - तो...
बल्लभ - सर... कल... बड़े राजा जी की मौत का चौथ है... कल से राजगड़ पर सितम का पहाड़ टूटने वाला है... इसलिए किसी भी तरह... कुछ भी कर के... उन्हें रोक लीजिए...
जज - (सुभाष से) यह एक आर्मी की बात कह रहा है... क्या ऐसा पॉसिबल है... इतने बड़े ग्रुप का मूवमेंट हो... इंफ्रिटेंशन हो... और हमारी इंटेलिजेंस को कोई खबर ना हो.... (सुभाष चुप रहता है)
बल्लभ - मुमकिन है सर... वे लोग प्रोफेशनल हैं... वह ग्रुप टुकड़ियों में बंट कर आया था... आधे से ज्यादा... ESS के रिक्रूट बन कर आए हैं... और कोई फेरी वाला बन कर... कोई मदारी बन कर... ऐसे आम आदमियों की तरह आए होंगे... तभी तो उन्हें जमा होने में इतना वक़्त लगा... वर्ना... कब के आ चुके होते...
जज - दास... तुम्हारे थाने में इंफॉर्म करो... भैरव सिंह और उसके आदमियों पर कड़ी नजर रखी जाए...
दास - सर... अब भैरव सिंह और उसके लोग... हमारे बस की बात नहीं हैं...
जज - क्या मतलब...

दास - (महल में उसके साथ और कांस्टेबलों के साथ जो कुछ हुआ सब बताता है) और सर हम अपने साथियों को कंधे पर लाद कर... हस्पताल लेकर गए... गाँव में भैरव सिंह के जितने आदमी हैं... प्लस ESS के लोग... प्लस अगर प्राइवेट आर्मी आ गई है तो... आई एम सॉरी सर... भैरव सिंह को पकड़ने के लिए... एक नहीं पाँच से छह बटालियन की जरूरत पड़ेगी...
जज - ह्वाट...
दास - हाँ सर... उन्हें सिर्फ होम अरेस्ट करने के लिए... तीन प्लेटुन की जरूरत पड़ी थी... पर अब की बार...
जज - पर प्राइवेट आर्मी... हमें हवा हवाई बात लग रही है... फिर भी दास... अभी मैं एक वारंट इशू किए देता हूँ... राजगड़ थाने में इंफॉर्म करो... और जितने भी बंदे हो सकते हैं... उन सबको कहो... राजा भैरव सिंह को चौबीस घंटे तक होम अरेस्ट पर रखें... और इस बात की राजगड़ से पुष्टि करो... तब हम सीएमओ से बात कर... उन्हें रिपोर्ट कर कोई ऑर्डर निकाल सकें..
दास - आई एम सॉरी... पर ठीक है... मेरे थाने के लोग... जितना सम्भव हो उतना अवश्य करेंगे....

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"आज एसआईटी के प्रमुख श्री सुभाष सतपती जी के द्वारा स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट के तीनों जजों के समक्ष तीन अहम गवाहों को प्रस्तुत किया जिनकी गवाही पुलिस के द्वारा जजों के उपस्थिति में लिया गया l उसके तुरंत बाद जज xxxx जी ने राजा भैरव सिंह जी को तुरंत हिरासत में लेने के लिए यशपुर एसपी को आदेश दे दिया है और इस बात की जानकारी उन्होंने सीएमओ को दे दिया है l अब तक की प्राप्त सूचना के अनुसार यशपुर से रिजर्व बटालियन निकल चुकी है l हो सकता है राजा भैरव सिंह जी की गिरफ्तारी की खबर आज देर रात तक प्राप्त हो जाए l इसीके साथ मैं सुप्रिया रथ आपसे इजाजत चाहती हूँ l"

टीवी पर चल रही न्यूज को भैरव सिंह रिमोट से बंद कर देता है l बगल में खड़ा भीमा भैरव सिंह से सवाल करता है l

भीमा - अब क्या हुकुम है...
भैरव सिंह - (एक गहरी साँस लेकर) भीमा... सरकारी मेहमान आ रहे हैं... स्वागत में कोई कमी नहीं होनी चाहिए...
भीमा - जी हुकुम... (भीमा उल्टे पाँव जाने लगता है)
भैरव सिंह - और हाँ ध्यान रहे... जब तक हम इजाजत ना दें... कोई हरकत या होशियारी मत करना...
भीमा - जी हुकुम...

भीमा चला जाता है, उसके जाने के तुरंत बाद हाथ में गन लिए आर्मी के लिबास में एक व्यक्ति अंदर आता है और भैरव सिंह को सैल्यूट ठोकता है l

-डेविड.... रिपोर्टिंग टू प्राईवेट जनरल.. सर..
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... प्राईवेट जनरल... सुन कर अच्छा लगा... (अपनी कुर्सी से उठ कर) क्या ख़बर है डेविड...
डेविड - सर... मेरे साथ... वॉर रूम में चलिए सर...

किसी आर्मी पर्सनल की तरह डेविड पीछे मुड़ता है और बाहर जाने लगता है l भैरव सिंह उसके पीछे चल देता है l बाहर और चार लोग खड़े थे जो भैरव सिंह को सैल्यूट करते हैं और एक सुरक्षा घेरा बना कर भैरव सिंह के साथ चलने लगते हैं l डेविड और भैरव सिंह एक कमरे में पहुँचते हैं l बड़ी सी हॉल दीवान ए खास को वॉर रुम बनाया गया है l एक तरफ के दीवार पर पच्चीस से तीस के करीब टीवी स्क्रीन लगे थे l टीवी के सामने कुछ ऑपरेटर बैठे हुए थे l

डेविड - (एक रिमोट भैरव सिंह के हाथ में दे कर) इसे ऑन कीजिए सर...

भैरव सिंह रिमोट को ऑन करता है l सारे टीवी एक साथ ऑन हो जाते हैं l हर एक स्क्रीन पर लोगों के कुछ ना कुछ हरकतें दिख रही थी l

डेविड - सर... हमने... कुछ दिनों से अपने अपने काम में लगे हुए थे... आज पूरा हो गया... गाँव के एंट्रेंस से लेकर एक्जिट तक.. हर गली... हर चौराहे पर... हमने सर्विलांस कैमरा इंस्टाल कर दिया है... कोई पत्ता भी कहीं हिलेगा... तो भी हमें मालूम हो जाएगा...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... बढ़िया... बहुत बढ़िया... तो... अब तैयार हो जाओ... मेहमान आ रहे हैं... उनका स्वागत कुछ इस तरह से करेंगे... के पूरी दुनिया में त्राहि त्राहि मच जाएगा.... राजा... भैरव सिंह... क्षेत्रपाल...

कमरे में मौजूद सभी एक सुर में - यस सर...

उधर बाहर एक पुलिस की वैन आ रही थी जिसके आगे दो पुलिस की जीप और पीछे दो पुलिस की जीप आ रही थी l पाँचों गाड़ी एक के बाद एक बगल में महल के सामने रुक जाते हैं l क्यूँकी महल के गेट के सामने चार सफेद गाड़ियाँ रास्ते को बंद कर खड़ी थीं l सभी पुलिस वाले उतरते हैं और एक दूसरे की ओर देखते हैं l एक पुलिस ऑफिसर जगन को बुलाता है l

ऑफिसर - इधर आओ... (जगन उसके पास जाता है) यह... यह सब क्या है...
जगन - साहब... मैंने तो बताया ही था.. जब दिन दहाड़े हमारे पुलिस के दो सिपाहियों को अधमरा कर... हमें चल कर वापस जाने के लिए मजबूर कर सकता है... आप उस राजा भैरव सिंह को गिरफ्तार करने रात में आए हैं...
ऑफिसर - आ... ह्ह्ह्... (अपने ट्रूप्स को) आगे बढ़ने के लिए तैयार हो जाओ...

ऑफिसर का इतना कहना ही था कि एक के बाद एक चार जोरदार धमाके होते हैं l हर एक धमाके के साथ एक एक गाड़ी बीस फिट ऊँचाई तक उड़ जाती है और फिर परखच्चे उड़ने के साथ जलती हुई नीचे गिरतीं हैं l जो पुलिस वाले महल की ओर जाने की सोच रहे थे वह चुप चाप अपनी जगह पर चिपके खड़े हो जाते हैं l सबकी नजर उन जलती हुई गाडियों पर टिक जाती है l उन गाडियों के बीच से भीमा बाहर आता है और इनके सामने आकर खड़ा हो जाता है l

ऑफिसर - क... क.. कौन हो तुम... (भीमा जगन की तरफ़ देखता है)
जगन - यह... यह भीमा जी हैं... राजा साहब के... सबसे खास...
भीमा - समझा ऑफिसर...
ऑफिसर - ओके... देखो... हम... हम यहाँ... सरकारी आदेश पर आए हैं...
भीमा - शुक्र करो... राजा साहब तुम्हें जिंदा वापस जाने दे रहे हैं...
ऑफिसर - क्या... क्या मतलब है तुम्हारा...
भीमा - ऐसा हो नहीं सकता... के तुम्हें इतिहास मालूम ना हो... ऑफिसर... आज जो सरकारी काग़ज़ लेकर यहाँ आए हो... वह सरकार... राजा साहब के हुकुम के तलवे चाटती है... राजा साहब... जितना सह सकते थे... सह लिए... अब कोई भी सरकारी खाकी वर्दी वाला कुत्ता... महल की सरहद लाँघ कर महल के अंदर जा नहीं सकता... अगर वर्दी में गर्मी है... तो कोशिश कर देख लो... (ऑफिसर बहुत असहाय हो जाता है वह कभी अपने साथियों को तो कभी भीमा को देखने लगता है)
जगन - (ऑफिसर से) साहब... भलाई इसी में है कि... आप... अपने ऊपर तक खबर पहुँचाये... वर्ना इनकी तैयारी इतनी है कि हम लोग वापस ही ना जा पाएँ...
ऑफिसर - (जगन की बात मानते हुए) ओके... हम... उपर तक खबर पहुँचाएंगे... (अपने सिपाहियों से) मूव... बैक...

सभी सिपाही गाड़ी के अंदर जाने लगते हैं ऑफिसर भी जब जाने लगता है तभी भीमा उसे आवाज देता है

भीमा - रुको ऑफिसर... आए हो... तो खाली हाथ मत जाओ... (ऑफिसर मुड़ कर हैरत भरी नजर से देखता है, भीमा के साथी कुछ लोगों को सहारा देते हुए बाहर लाते हैं और ऑफिसर के सामने फेंक देते हैं) इन्हें ले जाओ...
ऑफिसर - (घबराई हुई आवाज़ में) यह... यह लोग कौन है...
भीमा - इन्हीं से पूछ लेना.. जब इन्हें होश आए... फ़िलहाल इनकी हालत बहुत नाजुक है... हस्पताल ले जाओ... जाओ...

कहकर भीमा मुड़ कर अंदर चला जाता है l ऑफिसर अपनी जेब से रुमाल निकाल कर पहले अपना मुहँ साफ करता है और बेहद लाचारी भरी नजर से जगन की ओर देखता है l जगन कुछ पुलिस वालों को लेकर आता है और नीचे पड़े अधमरे लोगों को उठाने लगता है l

उधर यह सब भैरव सिंह सीसीटीवी पर देख रहा था l उसके चेहरे पर एक मुस्कान बिखर जाती है l तभी कमरे में भीमा का प्रवेश होता है l

भीमा - हुकुम...
भैरव सिंह - शाबाश भीमा शाबाश... तुम वाकई हमारे सच्चे वफादार और नमकख्वार हो... हम बहुत खुश हुए...
भीमा - शुक्रिया हुकुम...
भैरव सिंह - भीमा... क्या तुम्हें याद है... हमने इंस्पेक्टर दास से एक वादा किया था... बड़े राजा जी की चौथ की मातम पूरा राजगड़ मनाएगा...
भीमा - जी हुकुम... कल चौथ है...
भैरव सिंह - तो आज की रात कहर टूटना चाहिए...
भीमा - हुकुम...
भैरव सिंह - तो जाओ... अपने सभी पहलवान कारिंदों को साथ लेकर जाओ... आज कोई भीमा, भूरा या शुकुरा नहीं... बल्कि रंगमहल के दुशासन बन कर जाओ... अर्सा हो गया है... रंगमहल में कोई रौनक नहीं है... रंगमहल की रंगीनी के लिए... जितने भी कमसिन द्रौपदी हैं सबको... उठा कर लाओ... जो भी बीच में आए... मौत के घाट उतार दो...
भीम - जी.. हुकुम... पर अगर... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - आज तुम लोग तांडव मचाने जा रहे हो... पुलिस भी नहीं आनी चाहिए... अब पुलिस सिर्फ डरी हुई है... आज रात की तांडव में... उन्हें उनकी लाचारी भी जताओ... दिखाओ... समझे...
भीमा - जी हुकुम... सब समझ गया...

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डॉक्टर बाहर आता है l बाहर विश्व, उसके दोस्त, सुभाष, और दास बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे l डॉक्टर को देखते ही सभी भाग कर उसके पास जाते हैं l

डॉक्टर - उदय जी... ऑउट ऑफ डेंजर हैं...
विश्व - यह बहुत अच्छी बात है... और विक्रम...
डॉक्टर - विक्रम जी को होश आ रहा है... पर.... कमजोरी बहुत है... खून बहुत बह गया था... ज़ख़्म भी गहरा था... उनका कंधे का कलर बोन फैक्चर है... इसलिये टेंपोररी पैरालाइज है... मेरी इल्तिजा है... आप बस थोड़ी देर के लिए ही... बात चित करें... उन्हें नींद आ जाएगी... उनको आराम की सख्त जरूरत है...
विश्व - ठीक है डॉक्टर... आपका बहुत बहुत शुक्रिया...

इतना कह कर सभी विक्रम के बेड के पास आते हैं l विश्व देखता है l जिस्म लगभग सभी जगहों पर पट्टी बंधी हुई है l सैलाइन और खून दिया जा रहा है l विक्रम आँखे मूँदे लेटा हुआ था l विश्व धीरे से आवाज देता है

विश्व - विक्रम...
विक्रम - हम्म... (अपनी आँखे खोलता है) आह... (थोड़ा कराहता है) प्रताप... गवाही हो गई...
विश्व - हाँ... सॉरी यार... मैंने तुमसे... बहुत जोखिम भरा काम लिया...
विक्रम - (हल्का सा मुस्कान चेहरे पर लाते हुए) कोई ना... शायद आज के बाद... सत्तू मुझे.. गाँव वालों में से एक समझे... और राजकुमार ना बुलाए...
विश्व - (आकर विक्रम का हाथ पकड़ लेता है) एक शिकायत भी है यार... तुमने... उनका पीछा क्यूँ किया... हम तब तक... सोनपुर में दाखिल हो चुके थे... सतपती जी ने... अपना पुलिस बटालियन को तैयार का रखा था.. हमने तो बस उन्हें डायवर्जन देने के लिए... तुम्हें कहा था...
विक्रम - (विक्रम भी विश्व के हाथ को कस कर पकड़ लेता है) अगर वे लोग... तुम्हारे पीछे पीछे... सोनपुर पहुँच जाते... तो वीर की आत्मा मुझे कभी माफ नहीं करती... मैंने जो भी किया... वीर के खातिर...
विश्व - अगर तुम्हें कुछ हो जाता... तो मैं... ना तो राजकुमारी जी को अपना चेहरा दिखा पाता... ना ही... शुभ्रा जी का सामना कर पाता...
विक्रम - हाँ... तुम्हारी बात की गहराई को समझ रहा हूँ... वह कहते हैं ना... सारी जहाँ की खुदाई एक तरफ... और जोरु का भाई एक तरफ... (यह सुन कर कमरे में सभी मुस्कुराने लगते हैं) तुम्हें अपनी बीवी से जुते पड़ते... है ना...
विश्व - (मुस्कुरा देता है) मत भूलो... शुभ्रा जी ने भी मुझे भाई कहा था... अगर कुछ.... (फफक पड़ता है) तो मैं... उनके अनजाने में ही... तुम्हें अपने मिशन में शामिल कर लिया...
विक्रम - श्श्श्श्.... तुम भी तो मेरे जोरु के भाई निकले... तो यह खतरा उठाना बनता था...
विश्व - आज वाकई तुमने मुझे हरा दिया... तुमने आज ऐसा कर्ज मुझ पर लाद दिया... के मैं जिंदगी भर तुम्हारे सामने... अपना सिर नहीं उठा पाऊँगा...
विक्रम - अरे यार... मरा नहीं हूँ... जिंदा हूँ... हाँ... राजा साहब की गिरफ्तारी नहीं देख पाऊँगा तो क्या हुआ... जब राजा साहब अपने अंजाम भुगतेंगे... उस जश्न में गाँव वालों के साथ तो होऊंगा ना...

डॉक्टर - (कमरे में आता है) आई थिंक... आपकी सारी बातचीत हो गई होगी... अब प्लीज... पेशेंट को आराम करने दीजिए...
विश्व - इट्स ओके डॉक्टर...
सुभाष - आपका बहुत बहुत शुक्रिया डॉक्टर...

सभी विक्रम को अलविदा कह कर कमरे के बाहर आते हैं l विश्व अपने सभी दोस्तों को गले लगा लेता है l सबकी आँखों में पानी बह रहा था l तभी सुभाष की मोबाइल बजने लगती है l सुभाष फोन निकाल कर देखता है जगन का कॉल था l वह इन सबसे थोड़ी दूर जाकर जगन से बातेँ करने लगता है l तभी विश्व की भी मोबाइल बजती है l विश्व सबसे अलग हो कर मोबाइल निकालता है l डिस्प्ले पर डैनी नाम देख कर कॉल उठाता है

विश्व - हैलो..
डैनी - विश्वा... मैंने वही आर्मर्ड वीइकल जो तुमने बिन्का बाईपास पर छोड़ा था... हास्पिटल तक पहुँचा दिया है... जितनी जल्दी हो सके... उस गाड़ी में राजगड़ पहूँचो...
विश्व - क्या... क्या हुआ है डैनी भाई...
डैनी - मुझे खबर मिली है... आज रात गाँव में कुछ गड़बड़ होने वाली है... पुलिस को अलर्ट न्यूज भेज दिया गया है... पर... खबर मिली है कि... भीमा और उसके लोग... इस बार गाँव में.. धार धार हथियार लेकर निकले हैं... इसलिए तुम भी पहुँचने की कोशिश करो... और हाँ... इसबार तुम अकेले नहीं होगे... मैं भी आ रहा हूँ...

फोन कट जाता है l विश्व परेशान हो कर अपने दोस्तों को देखने लगता है कि तभी सुभाष दास को साथ लेकर विश्व के पास पहुँचता है l

सुभाष - विश्व... एक इमर्जेंसी आ गई है...
विश्व - हाँ मुझे अभी अभी पता चला...
दास - क्या पता चला...
विश्व - भीमा और उसके गुर्गे... गाँव में हथियारों के साथ निकले हैं...
सुभाष - हाँ... जानते हो... अभी जब हम... विक्रम के ऑपरेशन के लिए यहाँ परेशान थे... तब राजगड़ में... (पुलिस वालों के साथ जो भी कुछ हुआ सब बताने लगता है) मेरे स्क्वाड के जितने भी बंदे थे... सबको... हमारे पहुँचने तक थाना टेक ओवर करने के लिए कहा था... उनको कॉर्डिनेट जगन कर रहा था... आज जिन लोगों को... अधमरा कर पुलिस के हवाले किया गया है... वे सब... होम मिनिस्टर के... सेक्यूरिटी के आदमी थे...
विश्व - ह्वाट...
दास - हाँ... इसका मतलब हुआ... अब होम मिनिस्टर... भैरव सिंह के कब्जे में है...
टीलु - (विश्व से) भाई... भाई... जरा दीदी को फोन करो...

विश्व वैदेही को फोन करता है l पर फोन लग नहीं रहा था l विश्व फिर सत्तू को फोन लगाता है पर उसका भी फोन नहीं लगता है l थक हार गए कर विश्व सुभाष की ओर देखता है l सुभाष जगन को फोन करता है पर इस बार सुभाष का कॉल भी नहीं जाती l

सुभाष - यह क्या... अभी अभी तो मैंने बात किया था...
टीलु - हो सकता है... उन्होंने मोबाइल टावर उड़ाया हो...
दास - हाँ... य़ह हो सकता है...
विश्व - तो फिर चलिए... जितनी जल्दी हो सके निकलते हैं...
दास - हम चाहे जितनी भी तेजी से जाएं... सुबह से पहले नहीं पहुँच सकते...
टीलु - यहाँ बातों से वक़्त जाया करने से अच्छा है कि... हम राजगड़ के लिए निकल जाएं...
सुभाष - यस.. ही इज राईट... लेट्स गो...

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भीमा और उसके साथी वैदेही की नाश्ते की दुकान वाली चौराहे पर लक्ष्मी और उसके पति हरिया, बिल्लू आदि कुछ गाँव वालों को लेकर आते हैं l

भीमा - (चिल्ला कर) ओ रंग महल की रंडी... बाहर निकल हराम जादी... सभी लड़कियों को अपने यहाँ छुपा कर रखी है... कुत्तीआ साली... बाहर निकल... (कोई हरकत नहीं होती) साली दरवाजा खोल कर बाहर निकल.... और उन ल़डकियों को हमारे हवाले कर... बर्षों बाद.. रंग महल में रौनक लौटेगी... बाहर निकल... (फिर भी कुछ जवाब नहीं मिलता है) भूरा... शनिया
भूरा और शनिया - जी... सरदार...
भीमा - जाओ... दरवाजा तोड़ डालो...

भूरा और शनिया कुछ लोगों को साथ लेकर भागते हुए दुकान की दरवाजे तक पहुँचते हैं कि तभी दरवाजा खुल जाता है l अंदर से गौरी निकलती है l सामने भूरा और शनिया को आकर थमते देखती है l अपनी नजरें घुमा कर देखती है, भीमा और उसके लोग बिल्लू, लक्ष्मी हरिया जैसे आठ दस लोगों को बालों से गर्दन से पकड़ रखे हुए हैं l

गौरी - क्या हुआ भीमा...
भीमा - अरे यह तो रंग महल की थूकी हुई बुढ़िया है... (सभी हा हा हा हा करके ठहाका लगाते हैं)
गौरी - यहाँ क्यूँ और किस बात के लिए हल्ला कर रहे हो...
भूरा - ओ हो... नखरे देखो तो बुढ़िया के... रौब ऐसे झाड़ रही है... जैसे दुकान की मालकिन हो...
गौरी - हाँ हूँ... इस दुकान की मालकिन मैं ही हूँ... गल्ले पर मालकिन ही बैठती है... इतना भी अक्ल नहीं है क्या तुझे...
शनिया - ओ तेरी... दो गज दूर श्मशान से... जुबान आठ गज की... ऐ चल बता... वह वैदेही कहाँ है...
गौरी - वह नहीं है यहाँ पर...
भूरा - (आगे बढ़ कर गौरी को बालों से पकड़ कर) क्या बोली बुढ़िया... (गौरी दर्द के मारे कराहती है) चिल्ला... और जोर से चिल्ला... बुला... उस कुत्तीया को...
गौरी - मैं सच कह रही हूँ... वैदेही घर में नहीं है... शाम को यह कह कर गई थी... आज नहीं लौटेगी...
भीमा - ऐ... (अपने कुछ लोगों से) जाओ... अंदर जाकर छान मारो...

कुछ लोग वैदेही के घर और दुकान में घुस जाते हैं l अंदर सामान तितर-बितर तोड़फोड़ कर देते हैं और बाहर आकर कहते हैं l

आदमी - बुढ़िया सच कह रही है... अंदर वह रंडी नहीं है...

भीमा हरिया को उल्टे हाथ का एक थप्पड़ मार देता है, जिससे हरिया कुछ दूर घूम कर गिरता है l लक्ष्मी रोते हुए हरिया के पास जाने लगती है तो भीमा उसे पकड़ लेता है l

भीमा - ऐ हरिया... राजा का हुकुम है... जितने भी ल़डकियों की माँ को अपने नीचे लाए थे... उन सभी ल़डकियों को रंग महल की रौनक बनायेंगे... चल बता तेरी बेटी कहाँ है...
बिल्लू - भीमा भाई... शाम को वैदेही दीदी आई थी... ल़डकियों को अपने साथ ले गई... कहाँ ले गई हम नहीं जानते... विश्वास करो... हम नहीं जानते...
भीमा - पुछा मैंने हरिया से था... तेरी चूल क्यूँ मची बे बिल्लू...
लक्ष्मी - सच ही तो कह रहे हैं बिल्लू भैया.. शाम को वैदेही दीदी आई थीं... हमारी बच्चियों को अपने साथ ले गईं... हम नहीं जानते... अब दीदी और बच्चे कहाँ हैं...
भीमा - (अपने आदमियों से) ऐ... जानते हो... आज राजा साहब ने हम सबको क्या कहा...
सभी - दुशासन...
भीमा - हाउउउ... तो... (लक्ष्मी को खिंच कर) यह रही द्रौपदी... लो इसकी चिर हरण शुरु करो...

भीमा की बात सुन कर सब ऐसे हँसते हैं जैसे पिशाचों की टोली हँसती है l लक्ष्मी भागने लगती है तो उसे भूरा और शनिया दबोच लेते हैं l लक्ष्मी को सब ऊपर उठा लेते हैं और सब उसे अपनी अपनी तरफ़ खिंचने लगते हैं l यह सब देख कर हरिया भीमा के पैर पकड़ कर लक्ष्मी को छोड़ने के लिए गिड़गिड़ाने लगता है l तब तक लक्ष्मी की साड़ी फट कर अलग हो चुकी थी l बिल्लू भी भीमा के पैर पर गिर कर लक्ष्मी को छोड़ने के लिए कहता है l पर उन सब शैतानों की हँसी कह कहा मंजर को और भी वीभत्स कर रहा था l उनकी शैतानी हँसी के आगे लक्ष्मी की चीखें सुनाई नहीं दे रही थी l तब तक लक्ष्मी की ब्लाउज फट कर अलग हो चुकी थी l गौरी से और बर्दास्त नहीं होती वह अपनी पूरी ताकत से चीखती है l

गौरी - रुक जाओ... मैं कहती हूँ रुक जाओ... (कॉफ.. ऑफ.. कॉफ) (गला फाड़ कर चिल्लाने के वज़ह से वह खांसने लगती है)
भीमा - ऐ... रुक जाओ...

सब लक्ष्मी को छोड़ देते हैं l लक्ष्मी की पेटीकोट फट चुकी थी बस कमर में लटक रही थी l दुबक कर नीचे खुद को छुपाकर बैठ जाती है l हरिया रेंगते हुए रोते हुए आता है और लक्ष्मी को गले लगा कर रोता है l

भीमा - हाँ तो बुढ़िया... बोल अभी... वैदेही कहाँ है...
गौरी - क्यूँ अपनी मौत को ढूंढ रहा है भीमा...
शनिया - उम्र देख... कमिनी... वर्ना साली की गाली देता तुझे... रंग महल की... थूकी हुए गुठली... चल बोल... वैदेही लड़कियों को लेकर कहाँ छुपी है...
भूरा - वर्ना... चिर हरण फिर से शुरू करें...
गौरी - तुम लोगों को विश्वा का डर नहीं है... अरे उससे तो तुम्हारा राजा भी डरता है...
भीमा - ऐ तुम लोग फिर से शुरू हो जाओ... यह डायन बकचोदी करने लगी है...
गौरी - नहीं रुक जाओ... मैं बताती हूँ...
भीमा - हाँ बोल...
गौरी - वह... वैदेही... बच्चों को लेकर... ग्राम देवी माँ की मंदिर में छुपी हुई है...
शनिया - ले... बुढ़िया ने मुह खोली... तो झूठ ही पेली... अबे बुढ़िया... ग्राम देवी की मंदिर सदियों से बंद है...
भीमा - बुढ़िया सच कह रही है... हम सब जगह ढूंढते... ढूंढते ही रह जाते... पर मंदिर कभी नहीं जाते.... क्यूँकी मंदिर... पाइकराय परिवार के खात्मे के साथ ही बंद हुई थी... हा हा हा हा हा हा... समय भी कहाँ घूम कर पहुँची... जिस परिवार को खत्म कर दसियों पहले मंदिर बंद किया गया था... उसी खानदान की अंतिम चिराग... मंदिर खोल कर छुपी हुई है... अपनी मौत से... हा हा हा हा हा हा... (भीमा के साथ सभी हँसने लगते हैं)

भीमा सभी गाँव वालों को वहीँ छोड़ कर अपने लोगों के साथ आगे बढ़ जाता है l उनके जाते ही बिल्लू गौरी से सवाल करता है

बिल्लू - यह... यह आपने क्या कर दिया काकी... हमारे बच्चों की खबर दे कर उनकी जान खतरे में डाल दी...
हरिया - हाँ... काकी... आपने ऐसा क्यूँ किया...
गौरी - चुप रह... कितने लोग आए थे... बीस आदमी... और तुम लोग... पूरा का पूरा मुहल्ला... अपनी दुम दबा कर छुपे हुए हैं... तुम लोगों को खिंच कर बाहर निकल कर... तुम्हीं लोगों से... तुम्हारे ही बच्चों का पता पूछ रहे हैं... और तुम्हारे ही घर की लक्ष्मी को बेइज्जत कर रहे हैं... फिर भी... तुम लोग पलटवार करने से कतरा रहे हो... अरे जितनी हिम्मत अपनी जमीन जायदाद की पूछने की की थी... अपनी बच्चियों के बारे में पूछने पर भूरा और शनिया को पीटने में दिखाई थी... और जिस नफरत को ढाल बना कर बड़े राजा के मातम पर नहीं गए थे... वह हिम्मत... वह नफरत कहाँ सो गई... क्या तुममे मर्दानगी तभी करवट लेती है... जब जब वैदेही और विश्व होते हैं... डूब मरो... लानत है तुम सब पर... अरे वह दो बहन भाई... अपनी जिंदगी तबाह और बर्बाद कर दिए... सिर्फ तुम लोगों के लिए... पर तुम लोग... वही गटर की जिंदगी छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं हो... तुम्हारे आने वाले कल के लिए... तुम्हारे बच्चों के लिए... अपनी जिंदगी दाव पर लगा दिया है... पर तुम लोग... थू है तुम पर... उनके पैरों पर गिड़गिड़ा रहे हो...
हरिया - हम... हम और कर ही क्या सकते हैं काकी... देखा नहीं... उन्होंने पुलिस को भी कितना लाचार कर दिया है...
गौरी - अरे बच्चों पर आ जाए तो हिरण भी सिंग लड़ा कर बाघ को फाड़ देती है... तुम लोग तो इंसान हो... किसका इंतजार कर रहे हो... याद रखो भगवान भी उसी के लिए धरती पर आते हैं... जो अपनी मान मर्यादा और पुरूषार्थ के लिए लड़ मर सकते हैं... वर्ना... तुम जैसों को बचाने के लिए भगवान का धरती पर उतरना भी... भगवान के लिए अपमान की बात होगी...

इतना सुनने के बाद भी बिल्लू, हरिया और वहाँ पर मौजूद लोगों में कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखती l पर लक्ष्मी अपनी जगह से उठती है और नीचे पड़ी एक लाठी को उठाती है l

हरिया - ऐ... तु क्या कर रही है... कहाँ जा रही है...
लक्ष्मी - अपनी बेटी को बचाने...
हरिया - पागल हो गई है तु... अभी अभी तेरे साथ क्या हो सकता था...
लक्ष्मी - हो सकता था... बर्षों पहले राजा ने कर दिया था... तब भी तु रोया था... गिड़गिड़ाया था... पर किया कुछ नहीं था... मेरी बेटी के लिए... वैदेही दीदी... लड़ेगी... तु और मैं... किसी कोने में छुप कर... रोयेंगे... नहीं अब ऐसा हरगिज नहीं होगा... मेरी बच्ची को... मेरे जीते जी... कुछ भी होने नहीं दूँगी...
हरिया - ऐ... ऐ... हम लड़ मर लेंगे उसके बाद क्या... हमारा बबलू... उसका क्या होगा...
लक्ष्मी - अभी भी... होने को क्या बचा है... कम से कम उसे इतना याद रहेगा... उसकी माँ... उसकी दीदी को बचाने के लिए... मर्दानी लड़ी थी...

कह कर लक्ष्मी आगे बढ़ जाती है l उसकी देखा देखी जितनी भी औरतें थीं वहाँ पर सभी अपने अपने घर भाग कर हाथों में कुछ ना कुछ ले लेते हैं और लक्ष्मी की गई दिशा में चल देते हैं l यह सब देख कर बिल्लू भी जाने लगता है l

हरिया - बिल्लू... कहाँ जा रहा है...
बिल्लू - लक्ष्मी भाभी जी के साथ... आज तक वैदेही दीदी अकेली लड़ती आई हैं... पर अब नहीं... आज से उनकी हर लड़ाई में मैं रहूँगा... हाँ तेरी बात और है... तेरा झुका हुआ सिर.. लक्ष्मी भाभी देख लेगी शायद... पर अगर मर मरा गया... तो गर्व के साथ... तेरी भाभी को ऊपर अपना शकल दिखाऊँगा... जो उसकी मौत पर भी ना कर सका... वह उसकी और मेरी बेटी के साथ नहीं होगा...

बिल्लू भी निकल जाता है l जिसे देख कर वहाँ पर मौजूद सभी मर्द एक के बाद एक बिल्लू के पीछे जाने लगते हैं l हरिया अपनी नजर घुमा कर देखता है गौरी उसे देख रही थी l हरिया अपनी नजर झुका लेता है l

गौरी - क्या तुझमें अब भी गैरत नहीं जाग रही... तेरी ना मर्दानगी में तेरी बीवी... तेरे दोस्त सब छोड़ गए हैं.. इससे पहले कि तेरा साया तुझे छोड़ दे... जा कुछ कर जा... मत भूल कल को तेरे बच्चे... तुझसे सवाल करेंगे... तब तु क्या जवाब देगा...

हरिया अपना गमछा कमर पर कस कर बाँध देता है और उसी ओर भागता है जिस और सभी गए थे l

उधर भीमा और उसके आदमी लठ और हथियारों के साथ मंदिर के पास पहुँचते हैं l सभी देखते हैं मंदिर के गेट पर ताला टूटा हुआ है और मंदिर के अंदर घना अंधेरा भी है l टूटा हुआ ताला देख कर भीमा मुस्कराता है l

भीमा - वाह... कमीनी ने क्या दिमाग चलाई है... हम सभी जगह ढूंढते रह जाते... पर मंदिर कभी नहीं आते... (चिल्ला कर) ऐ वैदेही... उन ल़डकियों को लेकर बाहर आ... हमें मालूम है... तु उन ल़डकियों को लेकर मंदिर के अंदर छुपी हुई है... ( कोई जवाब नहीं आता)
शनिया - कहीं बुढ़िया ने हमें झूठ तो नहीं बोला... हम सब जोश जोश में यहाँ तक आ गए...
भूरा - हाँ मुझे भी यही लग रहा है...
भीमा - चुप रहो सब... (फिर से चिल्लाता है) ऐ... हरामजादी वैदेही... कमीनी साली कुत्तीआ... बाहर आ रही है... या हम सब अंदर आयें...
शनिया - (चिल्लाते हुए) हाँ वैदेही... मैं याद हूँ ना तुझे... वादा किया था... तेरी एक दिन लूँगा... ले मैं आ गया...


मंदिर के गर्भ गृह में देवी के मूर्ति के पास वैदेही और सत्तू बच्चियों के साथ दरवाज़ा बंद कर सभी नींद में सोए हुए थे l भीमा और शनिया की आवाज़ सुन कर वैदेही और सत्तू की नींद टूटती है l

सत्तू - है भगवान... यह लोग यहाँ तक कैसे आ गए... हम यहाँ हैं... यह तो बस काकी को पता था...
वैदेही - काकी कभी अपनी परवाह नहीं करेगी... ज़रूर कुछ ऐसा हुआ होगा... जिसने काकी को मुहँ खोलने पर मजबूर कर दिया होगा...
सत्तू - अब हम क्या करें...
वैदेही - तुम बच्चियों के साथ गर्भ गृह में रहोगे... जब तक खोलने के लिए मैं या विश्व ना कहें...
सत्तू - मैं यहाँ रहूँ... और आप...
वैदेही - मैं बाहर जाकर इन्हें रोकुंगी...
सत्तू - नहीं दीदी... आप नहीं... मैं जाऊँगा...
वैदेही - (गुर्राती हुई) हूँह्हम्म्म... बच्चियों को मैं लेकर आई हूँ... इन्हें मैं कुछ भी होने नहीं दूँगी... (वैदेही उठती है)
सत्तू - दीदी...
बच्चे - मासी...
वैदेही - घबराओ मत... सत्तू... यह बच्चियाँ अब तेरी अमानत हैं... अंदर से कील लगाके रखना... सुबह होने को ज्यादा वक़्त भी नहीं है... सुबह तक मेरा विशु आ जाएगा... मैं उन्हें तब तक उलझाए रखूँगी... ठीक है.... (मल्लि आकर वैदेही को पकड़ लेती है) घबरा मत... कल इन सबका काल आ रहा है... मैं इन सबको तब तक रोक लूँगी... सत्तू... बच्चियां अब तुम्हारे हवाले...

वैदेही मल्लि को छुड़ाती है और गर्भ गृह से निकल कर बाहर आती है l अंदर से सत्तू दरवाजा बंद कर कुंडी लगा कर कील लगा देता है l वैदेही जैसे ही प्रांगण में आती है आसमान में बिजली कौंधती है l धीरे धीरे आगे बढ़ कर सीडियां उतर कर भीमा और उसके लोगों के सामने खड़ी होती है l

भीमा - लड़कियाँ... लड़कियाँ कहाँ हैं...
वैदेही - यह देवी माँ का मंदिर है... और लड़कियाँ उनकी शरण में हैं...
भीमा - हा हा हा हा हा हा... यह वही मंदिर है... जहाँ से तेरे परिवार को उठा लिया गया था... और मर्दों को काट दिया गया था... हा हा हा हा.. तब.. तब कहाँ गई थी देवी माँ... (भीमा के साथ सभी हँसने लगते हैं)
वैदेही - हँस ले कुत्ते हँस ले... जितना हो सके उतना हँस ले... क्यूँकी यह हँसी... आज के बाद कभी नहीं गूंजेगी...
शनिया - (भीमा से) भीमा भाई... तुम लोग आज इसे मेरे लिए छोड़ दो... तुम अंदर जाओ.. ल़डकियों को उठा लो...
भूरा - ल़डकियों के लिए... सबको जाने की क्या जरूरत है... मैं अकेला जाता हूँ... शनिया... आज तु बस ऐश कर...

सभी भद्दी हँसी हँसने लगते हैं l भूरा हँसते हुए आगे बढ़ता है और और वैदेही के सामने कमर पर हाथ रख कर खड़ा हो जाता है l वैदेही के सामने वैदेही को घूरते हुए पेट पकड़ कर हँसने लगता है l फिर वैदेही को किनारे छोडकर आगे बढ़ने को होता कि अचानक उसकी हँसी रुक जाती है l वह डरते और कांपते हुए अपनी कमर को देखता है वैदेही ने उसके कमर पर दरांती पूरी की पूरी घुसेड दी थी l इस बात का एहसास होते ही चिल्लाता है पर इससे पहले कि वह पूरा चिल्ला पाता वैदेही की दूसरी हाथ में कुल्हाड़ी निकल आती है और घुम कर चला देती है जो भूरा के सीने में धँस जाती है l तभी बिजली फिर से कौंधती है l सीडियों के नीचे भीमा और उसके साथ आए सभी गुर्गों की हँसी रुक जाती है l सभी की आँखे हैरत के मारे फैल चुकी थी l भूरा का शरीर धीरे धीरे प्राण छोड़ते घुटनों पर आ रहा था l अब आसमान में बिजलियाँ लगातार कौंधने लगती हैं l ठंडी ठंडी हवा बहने लगती है जो भीमा और उसके लोगों के हड्डियों में सर्द पैदा कर रही थी l वैदेही का चेहर सख्त दिख रहा था l जबड़े भिंचे हुए थे, हवाओं में लहराता हुआ उसके जुल्फें ऐसा लग रहा था जैसे खुद देवी उसके शरीर में आ गई हों l
अब तक कहकहे लगाने वाले के भीमा और शनिया का मुहँ खुला हुआ था l वैदेही भूरा की लाश को अपने पैर से धक्का देकर दरांती और कुल्हाड़ी निकाल लेती है l लाश सीडियों से लुढ़कती हुई भीमा के पैर के पास रुकती है l

वैदेही - शनिया... आजा... तेरी ख्वाहिश आज पूरा कर ले...

सब ऐसे खड़े थे जैसे सबको सांप सूँघ गया था l कोई अपने जगह से हिल भी नहीं पा रहा था क्यूँकी आज तक कोई राजा के आदमी को उन्हीं के आँखों के सामने मार दे ऐसा हुआ नहीं था l धीरे धीरे भीमा का चेहरा कठोर हो जाता है l

भीमा - (चिल्ला कर) आ आ आ... मारो इस कमीनी को... आज इसकी लाश को घसीटते हुए रंग महल ले जाएंगे... और मगरमच्छ को खिलाएँगे... टूट पड़ो इस पर...

भीमा अपनी जगह पर खड़ा रहता है और उसके सभी साथी, कोई ख़ंजर, कोई कटना, कोई खुख़री जैसे धार धार हथियार हाथों में लेकर वैदेही की भागते हुए जाते हैं l वैदेही भी तैयार थी दाएँ हाथ में कुल्हाड़ी और बाएं हाथ में दरांती लेकर इन सब पर टूट पड़ती है l वैदेही के आँखों में लेश मात्र डर नहीं था पर एक औरत से मात खा जाएं उस अपमान से कहीं ज्यादा मरजाना बेहतर समझ कर वैदेही के पास पहुँचे थे l पर उनकी तेजी से कहीं ज्यादा आज वैदेही तेज थी l किसी का पेट फट चुका था, किसी का हाथ कट चुका था और किसी का पैर कट गया था l एक के बाद एक सभी वैदेही के हाथों से बुरी तरह से ज़ख्मी हो रहे थे l वैदेही सबसे लड़ी जा रही थी, जब तीन तीन लोगों की वार रोक रखी थी तभी शनिया अपनी गुप्ति निकाल कर पीछे से वैदेही के पीठ में आरपार घुसेड़ देता है l इस वार ने पता नहीं कैसे वैदेही के अंदर अचानक ताकत भर देती है वह एक झटका देती है जिससे वह तीन जो वैदेही पर वार कर उलझाए रखे थे l गुलाटी खाते हुए नीचे गिरते हैं l वैदेही लड़खड़ाते हुए पीछे मुड़ कर देखती है l शनिया भद्दी हँसी हँस रहा था

भीमा - शाबाश... शनिया... शाबाश...
शनिया - साली कमीनी... तुझे अपने नीचे लाने की सोचा था... पर तु तो सबको ऊपर पहुँचाने में तूल गई है... अब उन ल़डकियों को हम पूरे गाँव में घसीटते हुए ले जायेंगे... तु उन्हें जाते हुए देखना फिर मर जाना... हा हा हा... (सभी शनिया के साथ हँसने लगते हैं)


वैदेही खुद को संभालती है और वह भी हँसने लगती - हा हा हा हा हा हा हा हा... I फिर
याआ आ आ... चिल्लाते हुए शनिया की ओर भाग कर उसके गले लग जाती है l जो गुप्ति शनिया ने वैदेही के पीठ पर आरपार घुसेड़ा था वही गुप्ति शनिया के पेट में घुस जाती है l वैदेही के इस हमले ने ना सिर्फ शनिया को बल्कि सभी को शॉक में डाल देती है l सबकी हँसी फिर से रुक जाती है l वैदेही शनिया के सिर को पकड़ कर अपनी दरांती को चला देती है l शनिया का सिर धड़ से अलग हो जाती है l वैदेही शनिया के सिर को हाथ में लेकर चिल्लाती है

या आ आ आ आ....

जो लोग वैदेही को घेरे खड़े थे वह सब डर के मारे नीचे भीमा के पास भाग जाते हैं l वहीँ से वैदेही की ओर देखने लगते हैं वैदेही, एक हाथ में दरांती और एक हाथ में शनिया कटा हुआ सिर था l चेहरा पूरा खून से सना हुआ था और हवा में उसके बाल लहरा रहे थे l बिजली की रौशनी में वैदेही देवी काली की प्रतिरूप दिख रही थी l वैदेही के इर्द गिर्द कुछ लोग मरे और ज़ख्मी हो कर गिरे पड़े थे और कुछ लोग भीमा के पास खड़े हो कर डर से कांप रहे थे l

वैदेही सीडियों पर बैठ जाती है अपनी कुल्हाड़ी को उठा कर उसे सीधा खड़ा करती है और उसे टेक लगा कर ऊपर अपना हाथ रखती है l दूसरी हाथ में दरांती लेकर भीमा की ओर देखती है l

वैदेही - (दहाड़ते हुए) है कोई माई का लाल... तो मुझे हटा कर ले जाओ उन बच्चियों को... आ...

भीमा और उसके साथी थर थर कांप रहे थे l वैदेही की इतना वीभत्स रूप को देख कर l एक आदमी भीमा से कहता है

आदमी - भीमा भाई... चलो चलते हैं...
भीमा - अबे चुप... खाली हाथ गए... तो मौत मिलेगी...
और एक आदमी - और आगे गए तो... साक्षात मौत बैठी है...
भीमा - घबराओ मत... कितनी देर जियेगी... थोड़ा ठहरते हैं... जब यह लुढ़क जाएगी... तब हम... ल़डकियों को ले जायेंगे...

वैदेही वैसे ही बैठी रहती है l उसकी आँखे एक टक भीमा की ओर देख रही थी l भीम की साँसे उपर नीचे हुए जा रही थी l तभी उसके कान में चीखने चिल्लाने की आवाज़ पीछे से सुनाई देती है l जब वह अपनी साथियों के साथ पीछे मुड़ कर देखता है तो उसके होश उड़ जाती है l गाँव के लोग हाथों में लाठी से लेकर हथियार तक लेकर भागते हुए मंदिर की ओर आ रहे थे l

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राजा जी... हुकुम...

यह भीमा की आवाज़ थी, भैरव सिंह के कानों में पड़ती है l रंग महल में भैरव सिंह उस तांत्रिक को लेकर अनुष्ठान प्रकोष्ठ में भीमा और उसके साथियों का इंतजार कर रहा था l उसे यकीन था आज सुबह होने से पहले जिन ल़डकियों की लिस्ट बनाई गई थी उन ल़डकियों को उठा कर ला रहे होंगे l भीमा की आवाज़ कानों में पड़ते ही भैरव सिंह के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है l क्यूँकी जैसा उसने तय किया था पिनाक के मौत के चौथे दिन पूरे राजगड़ में मातम मनेगी l

तांत्रिक - देखा यजमान... अनुष्ठान के लिए, हमने जो मुहूर्त मुकर्रर की थी... वह कितना शुभ है... हमने कहा था... कोई बाधा नहीं आएगी... कोई विघ्न नहीं आएगी... आपका प्रमुख शत्रु राजगड़ में नहीं है... आपने अपने द्वार से पुलिस वालों को धमका कर... चमका कर विदा करवा दिया... इसलिये संदेह नहीं... रखा गया मुहूर्त पर आपका रस्म... जरूर प्रारम्भ होने जा रही है... आप निश्चिंत हो कर रस्म अदायगी कीजिए... मैं आपको अस्वास्थ्य कर रहा हूँ... जब जब आपके परिवार ने इस अनुष्ठान का आयोजन किया है... आपका परिवार अविजित हो गया है... कोई भी सांसारिक शक्ति आपको परास्त कर नहीं सकता... इसलिये आप जाइए... आपके सारे कार्य अनुकूल होते जा रहे हैं... मैं अपनी तंत्र विद्या से अनुष्ठान को उत्कर्ष प्रदान करूँगा... आप अपनी राक्षसी विवाह पर ध्यान केंद्रित करें... चलिए कन्याओं का अवलोकन करते हैं...

तांत्रिक के साथ कमरे से बाहर निकल कर भैरव सिंह भीमा से मिलने बाहर जाता है l बाहर पहुँच कर देखता है भीमा लहुलुहान हो कर अकेला खड़ा है l भैरव सिंह को देखते ही जमीन पर गिर पड़ता है l पास खड़े एक गार्ड उसे उठाता है l भीमा हांफ रहा था l

भैरव सिंह - यह... क्या हुआ भीमा... तुम इस तरह...
भीमा - हम सब ना कामयाब रहे...
भैरव सिंह - (गुर्राते हुए) क्या... क्या कहा...
भीमा - हमने पुलिस वालों को डरा कर लोगों के मन में डर बिठा दिया था... लड़कियों को उठा लाने में कामयाब भी हो गये होते.... पर... वह.. वह वैदेही बीच में आ गई... उसने अकेले ही... हमारे आधे आदमियों को... भूरा और शनिया के साथ काट डाला...
भैरव सिंह - क्या...
भीमा - हाँ... हाँ हुकुम... वह एक हाथ में दरांती... और दूसरे हाथ में कुल्हाड़ी लेकर... हमारे सारे लोगों के साथ अकेली भीड़ गई... हमारे लोगों को ऐसे काट रही थी... जैसे रण चंडी... राक्षसों को काटती है.... फिर भी... हम उसे घायल करने में कामयाब हो गए थे.... पर उसी वक़्त हम पर... गाँव वाले... अपनी अपनी हथियारों के साथ टूट पड़े... सारे मारे गए... मैं... मैं किसी तरह खुद को बचा पाया... और आप तक खबर पहुँचाने आ गया...
भैरव सिंह - (चेहरा सख्त हो जाता है) तो तुम... उन कीड़े मकोड़ों से हार कर... डर कर... पीठ दिखा कर... भाग आए... (भीमा हांफ रहा था) (गार्ड से) ले जाओ इसे... आखेट गृह में... मगरमच्छ के हवाले कर दो...
भीमा - नहीं.. नहीं राजा सहाब... मेरे साथ ऐसा मत कीजिए... मैं आपका वफादार हूँ... सबसे भरोसेमंद हूँ... मेरी सेवा को याद कीजिए... राजा सहाब...
भैरव सिंह - तुम एक औरत से हारे... उसे पीठ दिखा कर आए... अपनी जान बचा कर आए... ऐसी जिंदगी से क्या फायदा... (गार्ड से) ले जाओ उसे...

भीमा चिल्लाता रहता है, पर कोई फायदा नहीं होता l गार्ड अपने साथियों के साथ साथ मिलकर भीमा को घसीटते हुए वहाँ से ले जाता है l यह सब देख कर तांत्रिक बड़ा ही शॉक में था l भैरव सिंह उसके तरफ मुड़ कर देखता है l तांत्रिक के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगती है l

भैरव सिंह - तांत्रिक.. तुने तो कहा था... बहुत ज़बर्दस्त मुहूर्त है... कोई बाधा कोई विघ्न नहीं आने वाली...
तांत्रिक - जी... कहा तो था...
भैरव सिंह - एक बात बताओ तांत्रिक... तुम्हें अपनी गणना पर विश्वास था... या हम पर...
तांत्रिक - जी... राजा साहब... आपकी शौर्य... अपकी पराक्रम पर... मेरी विद्या... मेरी गणना टिकी हुई थी...
भैरव सिंह - और तु हमें चूरन बेचता रहा... की तेरी गणना ऐसी है... की रस्म के साथ साथ भविष्य गढ़ने मे... कोई बाधा.. कोई विघ्न नहीं आएगी...

तभी सबकी कानों में भीमा की चीखें सुनाई देने लगती है l धीरे धीरे भीमा की चीखें सुनाई देना बंद हो जाती हैं l भैरव सिंह तांत्रिक से फिर से कहता है l

भैरव सिंह - हाँ तो तांत्रिक... हमने तेरी विद्या पर भरोसा किया... जबकि तु और तेरी विद्या... हमारे शौर्य और पराक्रम के दम पर टिकी थी... (तांत्रिक कोई जवाब नहीं देता) (जब वह गार्ड वापस आता है तो उसे कहता है) अब इस तांत्रिक को ले जाओ... लकड़बग्घे के सामने डाल दो...
तांत्रिक - यह क्या अनर्थ कर रहे हैं राजा साहब...
भैरव सिंह - कमीने... अब तक यजमान था... मौत दिखी तो... राजा साहब...
तांत्रिक - हम कुछ और हल निकाल सकते हैं...
भैरव सिंह - अब हल हो या हलाहल... जो भी निकालना होगा... राजा भैरव सिंह निकलेंगे... (गार्ड से) ले जाओ इसे... हमारी कानों में... इसकी चीखें सुनाई देनी चाहिए...

दो गार्ड्स तांत्रिक को पकड़ कर घसीटते हुए ले जाते हैं l तांत्रिक चिल्ला चिल्ला कर भैरव सिंह से माफी मांग रहा था l पर भैरव सिंह के कान में जु तक नहीं रेंग रहा था l भैरव सिंह रंग महल से बाहर आता है और अपनी गाड़ी में बैठ कर क्षेत्रपाल महल और जाता है l क्षेत्रपाल महल में पहुँच कर सीधे दीवान ए खास कमरे में जाता है l वहीँ पर लगे टीवी स्क्रीन को ऑन करने के लिए जॉन से कहता है l जॉन कोई सवाल किए वगैर सीसीटीवी के सारे स्क्रीन ऑन कर देता है l

उधर अंधेरा छट रहा था सूरज निकलने में अभी भी थोड़ा वक़्त था l विश्व उसके सारे दोस्त इंस्पेक्टर दास और सुभाष सतपती उसी बख्तर बंद गाड़ी में जो बिन्का बाईपास ओवर ब्रिज के नीचे रख छोड़े थे, डैनी के सतर्क करने और गाड़ी को हस्पताल के पास पहुँचाने के बाद उसी गाड़ी में सवार हो कर राजगड़ लौट रहे थे l गाड़ी सबसे पहले थाने के पास रुकती है, थाने की हालत देख कर सभी हैरान होते हैं l एक जला हुआ खंडर जैसा दिख रहा था जिसके कुछ जगहों से धुआं उठ रहा था l सभी गाड़ी से उतर कर तुरंत अंदर जाते हैं l सभी पुलिस वाले एक सेल में बंद बेहोश पड़े थे l सेल के बाहर ताला लगा हुआ था l धुएँ के प्रभाव में आकर सभी बेहोश थे l सारे संचार के साधन तितर बितर हुए पड़े थे l

दास - यह राजा पागल हो गया है क्या...
सुभाष - तुम अपना दिमाग ठंडा रखो... जिसने भी किया है... किसी को मारने के लिए नहीं किया है...
विश्व - पर बेबस और लाचार बना कर खौफ पैदा करने के लिए यह सब किया है... बेहतर होगा... पहले इन्हें यहाँ से रेस्क्यू किया जाए... (सभी सेल की ताला तोड़कर भीतर बेहोश पड़े पुलिस वालों को निकालने के लिए लग जाते हैं)
दास - राजा ने कहा था... आज का दिन पूरे राजगड़ में मातम होगा... अपनी बात को साबित करने के लिए... उसके लोगों ने... हर कम्युनिकेशन को डेश्ट्रॉय कर डाला होगा... फिर यह सब तांडव किया होगा...
टीलु - कहीं उसके लोगों ने यह सब... पुलिस को रोके रखने के लिए तो नहीं किया... (सभी उसके तरफ देखते हैं) कहीं इसी बीच गाँव में कोई आतंक तो नहीं मचाया...

विश्व इतना सुन कर बाहर की ओर भागता है, उसके पीछे पीछे उसके दोस्त सभी भाग जाते हैं l विश्व बाहर आकर गाड़ी में बैठता है सीलु ड्राइव कर गाड़ी को गाँव के भीतर ले जाता है l एक मोड़ पर टीलु सबको इशारा कर दिखाता है l सीलु उसी तरफ गाड़ी मोड़ देता है क्यूँकी उन्हें मंदिर के पास सभी गाँव वालों का जमावड़ा दिखता है l गाड़ी गाँव वालों के पास रुकती है l सभी गाड़ी से उतरते हैं l गाँव वाले मुड़ कर इन्हीं के तरफ़ देखते हैं, विश्व देखता है सबके आँखों में आँसू बह रहा था l टीलु विश्व के बाजू को जोर से पकड़ लेता है l सभी आगे बढ़ते हैं और गाँव वाले उन्हें रास्ता देते हैं l मंदिर के सीडियों के पास आकर रुक जाते हैं l गौरी विश्व को देखती है और रोते बिलखते आकर विश्व के गले लग जाती है l

गौरी - अनर्थ हो गया विशु... तेरी दीदी को... (कह नहीं पाती रोने लगती है, सत्तू और बच्चे भी विश्व के पास आते हैं )
सत्तू - विशु भैया... दीदी ने हम सबको मंदिर के अंदर बंद कर दिया और अकेली इन जानवरों से भीड़ गई...

विश्व गौरी को अपने से अलग करता है l आगे बढ़ता है लाश के पास लक्ष्मी और कुछ औरतें बैठ कर रो रहीं थीं l विश्व एक बुत की तरह वैदेही की लाश को घूर रहा था l विश्व के सभी दोस्त रो रहे थे पर विश्व नहीं रो रहा था या फिर रो नहीं पा रहा था l उसके आँखों से आँसू बह नहीं रहे थे l उसकी यह हालत देख कर हरिया पास आता है

हरिया - विशु... ऐ विशु भाई... दीदी... हमारे घर की लाज लक्ष्मी को बचाने के लिए.. हमारी ना मर्दानगी की बेदी पर... खुद की बली चढ़ा दी... (विश्व फिर भी एक मूक की तरह देखे जा रहा था)
टीलु - भाई यह सब मेरी गलती है... दीदी को मालूम था... यह सब होगा... पर उसने मुझे कसम दी थी... तुम्हें ना कहने के लिए... मुझे भी अपने पास नहीं रहने दिया... (विश्व टीलु के कंधे पर हाथ रखता है फिर भी नहीं रोता)
गौरी - (पास आ कर) विशु... तु रोता क्यूँ नहीं है... तेरी दीदी तुझे छोड़ कर चली गई है...

विश्व अपने दीदी के लाश के पास आता है और घुटने पर बैठ जाता है l अपनी बाहें बढ़ा कर वैदेही के शव को उठा लेता है और वैदेही के दुकान की ओर ले जाने लगता है l सारे गाँव वाले विश्व के पीछे पीछे चलने लगते हैं l विश्व दुकान के सामने पहुँच कर

विश्व - टीलु... जाओ एक कुर्सी लेकर आओ...

टीलु कोई सवाल जवाब किए वगैर अंदर जाता है उसी कुर्सी को उठा कर लाता है जिस पर वैदेही अक्सर बैठा करती थी l विश्व वैदेही की लाश को उस कुर्सी पर बिठा देता है l फिर गाँव के औरतों को हाथ जोड़ कर कहता है

विश्व - आप लोग दीदी को नहलाके... हल्दी लगा के.. अर्थी की तैयारी कीजिए... मैं अभी आया...

इतना कह कर विश्व दुकान के अंदर घुस जाता है l सभी गाँव वाले पहले एक दूसरे को देखते हैं फिर औरतें सभी वैदेही की अंतिम विदाई की तैयारी करने की तैयारी करते हैं l सारे मर्द विश्व की हरकत से हैरत में थे l थोड़ी देर बाद विश्व एक बैग लेकर आता है

विश्व - सत्तू... (बैग उसके हाथ में दे कर) इस बैग में... गाँव वालों की जमीनों की कागजात हैं... जिसे दीदी ने... भैरव सिंह के महल से हासिल किया था... बांट दो इन्हें...

सत्तू विश्व के हाथ से वह बैग ले लेता है l सत्तू के बैग ले जाने के बाद विश्व गाँव वालों के बीच से होते हुए मंदिर की ओर जाता है l विश्व को अकेले ऐसे जाते देख सीलु जिलु और मीलु भी विश्व के साथ जाने लगते हैं l गाँव के कुछ और मर्द भी पीछे पीछे जाने लगते हैं l मंदिर के पास विश्व आर्मर्ड गाड़ी के अंदर चला जाता है l बाहर लोग खड़े होकर विश्व की हरकत देखने लगते हैं l थोड़ी देर बाद विश्व गाड़ी से उतर कर इन सबको देख सीलु से कहता है

विश्व - सीलु... तुम लोग जाओ... दीदी की अर्थी तैयार करो... मैं कुछ देर में आता हूँ...
हरिया - अर्थी... हम सब मिलकर तैयार करेंगे... विशु... इससे पहले गाँव में किसी आम लोगों को कभी भी कंधा नहीं मिला है... पर आज हम गाँव वाले... दीदी को कंधा देंगे...
विश्व - नहीं... गाँव में कभी ऐसा हुआ नहीं... लोग... आज तक ना तो किसीकी खुशी में शामिल हुए थे... ना ही किसीकी मातम में..
बिल्लू - तो क्या हुआ... गाँव का यह मिथक टूटा भी तो है... कोई राजा को तो क्या... महल तक को पीठ कर लौटा नहीं था.. दीदी के साथ हमने किया था... राजा के घर खुशियों में शामिल हो ना हो... मातम में शामिल जरूर होते थे... दीदी साक्षी थी... हममे से किसी ने भी... बड़े राजा के मातम में शामिल नहीं हुए हैं... सिवाय राजा के खानदान के... किसी और परिवार की अर्थी गाँव में नहीं घूमी है... पर आज दीदी की अर्थी गाँव के हर गली से... हर चौराहे से... हर दरवाजे के सामने गुजरेगी... हम... हम अपने कंधो पर लेकर जायेंगे..
सभी - गाँव वाले चिल्लाते हैं... हाँ हाँ... हमने बड़े राजा का अर्थी गाँव में घूमने नहीं दिया... पर आज दीदी की अर्थी गाँव के हर गली से... हर घर के आँगन के आगे से गुजरेगी...

कुछ देर के लिए विश्व स्तब्ध हो जाता है l वह एक गहरी साँस लेता है फिर गाँव वालों से कहता है

विश्व - ठीक है... आप सब... दीदी की अर्थी की तैयारी कीजिए... मैं महल जा रहा हूँ... थोड़ी देर के बाद आकर शामिल हो जाऊँगा...
जिलु - महल... महल किसलिए जाओगे... क्यूँ...
मीलु - भाई... पहले दीदी की अंतिम संस्कार कर देते हैं ना... उसके बाद... हम महल की ईंट से ईंट बजा देंगे...
विश्व - मैं महल दीदी की आखरी ख्वाहिश पूरा करने जा रहा हूँ...
सीलु - आखरी ख्वाहिश...
विश्व - दीदी ने कहा था... उसे उसकी बहु के हाथ से विदा होना है... इसलिए... मैं महल... उसकी बहु को लाने जा रहा हूँ...
मीलु - भाई तुम अकेले... नहीं... भाभी को लाने हम सब जाएंगे...

गाँव वाले जो सुन रहे थे सब हैरत में थे, महल में विश्व की पत्नी कौन है l वे यह सब सुन कर एक दूसरे के मुहँ ताकने लगते हैं l

विश्व - नहीं... मुझे कुछ नहीं होगा... वैसे भी राजकुमारी जी से मैंने वादा किया था... उन्हें.. भैरव सिंह के आँखों के सामने लेकर जाऊँगा... अभी वह वक़्त आ गया है...

इतना कह कर विश्व महल की ओर जाने लगता है l गाँव के कुछ लोग विश्व के दोस्तों के साथ विश्व के पीछे पीछे चलने लगते हैं और कुछ लोग अर्थी का सामान जुटा कर अर्थी बनाने लगते हैं l विश्व महल के कुछ दूरी पर पहुँच कर सबको रुकने के लिए कहता है l विश्व की बात मान कर सभी रुक जाते हैं l विश्व अकेले महल की ओर बढ़ता है l उसे आता देख एक सिक्यूरिटी गार्ड वायर लेस से भैरव सिंह को इंफॉर्म करता है l

गार्ड - जनरल... सम वन इज कमिंग...
भैरव सिंह - आई नो... डोंट स्टॉप हिम... लेट हिम कम...
गार्ड - ओके जनरल...

भैरव सिंह अपनी सर्विलांस रूम में बैठ कर विश्व को महल की परिसर में दाखिल होते हुए देख रहा था l वायरलेस को रख कमरे से भैरव सिंह निकल कर बाहर बरामदे तक आता है l विश्व सीढ़ीयों तक पहुँच चुका था l भैरव सिंह को देख कर विश्व रुक जाता है l दोनों की नजरें मिलती है l विश्व भैरव सिंह के आँखों में देखते हुए सीढ़ी चढ़ कर भैरव सिंह के सामने खड़ा होता है l भैरव सिंह विश्व के आँखों में उठ रहे तूफान को साफ महसुस कर पा रहा था l

भैरव सिंह - आ विश्वा आ... तु वह पहला इंसान है... जिससे मिलने और बात करने बाहर तक आए हैं... (भैरव सिंह आगे बढ़ने लगता है, विश्व भी उसके साथ चलने लगता है) जो हुआ... हम वैसा नहीं चाहते थे... पर हो गया... अगर हुआ... तो ऐसा क्यूँ हुआ... जब कि उसे होना नहीं चाहिए था... (विश्व खामोश रहता है) यह एक बहुत बड़ा सच है... जो कोई नहीं सोचता... प्रकृति का अपना नियम है... पहाड़ से.. कोई कंकर टकराता नहीं है... पर तुने... और तेरी बहन ने वह सब किया... जो प्रकृति के विरुद्ध है... परिणाम ऐसे ही सामने आता है... हम जानते हैं... तेरे अंदर बहुत गुस्सा... बहुत आग है... तेरे अंदर की ज़ज्बात... जोश मार रहा होगा... तेरे अंदर की आग में.. यह महल... इस सल्तनत को जला देने के लिए... पर तु पढा़ लिखा है... इस सच को तु अच्छी तरह से समझता होगा... हर क्रिया का प्रतिक्रिया होता है... यह बात तुझे ही नहीं... बल्कि इस स्टेट में सबको पता होना चाहिए... की यहाँ क्रिया करना हमारा हक है... हर हमारे खिलाफ क्रिया का प्रतिक्रिया देना भी हमारा ही हक है... (विश्व फिर भी शांत था) अपनी दीदी की चिता को आग देने के बजाय तुम यहाँ आए हो... हम समझ सकते हैं... बदला चीज़ ही ऐसी है... पर हर किसी को... प्रकृति का नियम याद रखना चाहिए... कंकर की औकात ठोकर पर होती है... पहाड़ से टकराने की नहीं... (अब तक दोनों सर्विलांस कमरे में आ चुके थे) विश्वा.. यह देख... सारा गाँव हमारी नजरों में है... क्यूँकी हम हज़ारों आँखों से सब देख रहे हैं... हमने यह भी देखा... कैसे तेरे बंदे ने... हमारे जमीनों की कागजात... गाँव के लोगों में बांट दिया... (इतना कह कर भैरव सिंह एक कुर्सी पर बैठ जाता है) तुने जितना करना था... कर लिया... जमीनों की कागजात हम हासिल कर ही लेंगे.... (गम्भीर हो कर) तेरे वज़ह से हमसे हमारा परिवार बिखर गया... पर बदले में तेरा बहुत कम ही नुकसान हुआ है... अब बोल... आगे क्या करना चाहता है... अपनी दीदी की लाश की चिता में आग देना चाहता है... या तेरी भी लाश को लावारिस करना चाहता है...
विश्व - सुना है... तेरे खानदान को... ताकत और हुकूमत.. एक टूटी हुई नंगी तलवार से मिला था...
भैरव सिंह - हाँ... सही सुना है...
विश्व - और क्या यह भी सच है... की तलवार जिस दिन सलामती पर आ जाएगा... उस दिन तेरी हुकूमत... तेरी सल्तनत... सब खत्म हो जाएगा...
भैरव सिंह - (भौहें सिकुड़ जाते हैं) तुझे उस तलवार में इतनी दिलचस्पी क्यूँ है... कोई हरकत करने की सोचना भी मत... वर्ना... यहाँ से जिंदा वापस नहीं जा पाएगा...
विश्व - मैं तब भी जिंदा वापस गया था... जब कुछ नहीं था... आज भी जाऊँगा... मेरी अमानत है तेरे महल में... उसे लेकर जाऊँगा... और इस बार... तु... बाहर तक मुझे मेरे अमानत के साथ... छोड़ने जाएगा... (यह कह कर विश्व सीसीटीवी की ओर देख कर मुस्कराता है)


भैरव सिंह हैरान हो कर पीछे मुड़ कर सीसीटीवी की ओर देखता है, उसे सीसीटीवी पर कोई हलचल नजर नहीं आता, वह सतर्क हो जाता है और पीछे मुड़ कर देखता है, विश्व वहाँ पर नहीं था l अपनी चेयर से उठ खड़ा होता है, मुट्ठियाँ भिंच कर कमरे से बाहर निकल कर अंतर्महल की ओर जाता है l रुप की कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था l गुस्से में भैरव सिंह का चेहरा थर्राने लगता है l एक लात मारता है, दरवाजा धड़ाम से खुल जाता है l अंदर का दृश्य देख कर वह स्तब्ध हो जाता है l

मेरे भाई -- बड़े दिनों बाद आए आप!
और साथ ही साथ ये "मेगा" सौगात भी लेते आए हैं!!
पढ़ने में थोड़ा समय लगेगा -- ज़ाहिर सी बात है कि आपको लिखने में भी बहुत समय लगा होगा।
धन्यवाद! एक आध दिन में ठीक से पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया देता हूँ :)
मिलते हैं!!
 

kas1709

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👉एक सौ पैंसठवाँ मेगा अपडेट (A)
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"आज जिस तरह से यशपुर क्षेत्र से लेकर बीन्का रोड तक एक पुलिस वैन जिसके भीतर रुप फाउंडेशन और राजगड़ मल्टिपर्पोज कोऑपरेटिव सोसाईटी के गवाहों के साथ साथ पुलिस व उनके वकील पर हमला हुआ, यह घटता राज्य के आम जन जीवन को हिला कर रख दिया है l यह घटना टीवी पर प्रसारित होने पर आम लोगों से लेकर बुद्धिजीबी तक शासन और प्रशासन पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं l यह घटना केवल राज्य भर ही नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र में अब चर्चा का विषय बन गया है l जिससे राज्य की चावी खराब हुई है l अब सुनने में आ रहा है कि मुख्यमंत्री ने इस विषय को गंभीरता से लिया है और मंत्रियों और अधिकारियों को एक आपातकालीन बैठक के लिए तुरंत तलब किया है l"

शाम धीरे धीरे ढल रहा था, सारे टीवी चैनल और दूसरे गण माध्यम इस खबर को अपने अपने हिसाब से लोगों तक पहुँचा रहे थे l दूसरी ओर सोनपुर की सरकारी आईवी के बाहर बहुत सारे न्यूज एजेंसीयों की ट्रांसमिशन वैन खड़ी हुई है l सारे न्यूज एंकर अपनी अपनी चैनल पर लाइव न्यूज प्रसारण कर रहे हैं l थोड़ी देर बाद तीनों बाइक पर सवार होकर विश्व और गवाहों के साथ साथ सुभाष और दास पहुँचते हैं l आईवी के कॉमन रुम में तीनों जजों के साथ बैठ कर नरोत्तम पत्री सुधांशु मिश्रा बात कर रहे हैं l तभी कॉमन रुम में छह लोगों की प्रवेश होता है l विश्व पत्री को देखता है पत्री निराशा के साथ अपना सिर ना में हिलाता है l

सुभाष - (जजों से) सर... आई एम... सुभाष सतपती... डेपुटी कमिश्नर एंड... द इनचार्ज ऑफ एसआईटी रुप फाउंडेशन... इट्स एन इमर्जेंसी...
जज - मुझे... पत्री बाबु यही समझा रहे थे... डीसीपी सतपती... पर आई एम सॉरी... मुझे लगता है... यह इमर्जेंसी आर्टिफिशल है... इसलिए सुनवाई... तय किए गए दिन पर होगी...
विश्व - आई एम सॉरी सर... यह तीन गवाह.. रजिस्टर्ड गवाह नहीं हैं... यह केस में पूरी तरह नए हैं... आपकी तय किए गए दिन... इन गवाहों की... जिरह हो सकती है... पर उससे पहले इनका बयान तो रजिस्टर्ड किया जा सकता है...
जज - मिस्टर डीसीपी... मजिस्ट्रेट या जज किसी आपातकालीन परिस्थिति में ही गवाही ले सकते हैं...
सुभाष - जी सर... यह आपातकालीन परिस्थिति ही है... हम अपनी और इनकी जान बचा कर आपके पास आए हैं...
जज - ओ... तो अब हमें... आपसे कानून सीखनी पड़ेगी...
विश्व - नहीं जज साहब... हम किसी कोर्ट में नहीं आए हैं... इमर्जेंसी के बयान... हमेशा पुलिस के द्वारा मैजिस्ट्रेट या जज के सामने ही दिलवाया जाता है... हम यहाँ कोई पेशगी कराने नहीं आए हैं... बल्कि... आपके सामने... पुलिस इन गवाहों से बयान दर्ज कराएगी...
जज - मिस्टर विश्व प्रताप... तुम अपनी हद पार् कर रहे हो... यह बात डीसीपी भी कह सकते हैं...
विश्व - सर... रुप फाउंडेशन केस को पुनर्जीवित मैंने किया है... और राजगड़ मल्टिपर्पोज कोऑपरेटिव सोसाईटी के केस में... मैं राजगड़ के गाँव वालों की तरफ से वकील हूँ... इस केस में कोई गवाह या सबूत जुड़ते हैं... यह जानना और उनकी सुरक्षा की माँग करना... मेरा कर्तव्य भी है...
जज - (सुभाष से) ह्म्म्म्म... तुम कुछ कहना चाहोगे डीसीपी...
सुभाष - सर... मैंने ना सिर्फ इन गवाहों को... अपनी तहकीकात के दौरान खोजा है... बल्कि.. होम मिनिस्ट्री में डिक्लेरेशन के साथ साथ... इन्हें वीटनेस प्रोटेक्शन में मैंने अपने अंडर शामिल भी कर लिया है... पर फैक्ट आप देख सकते हैं... इनकी खबर बाहर लीक हो गई... इसलिए... कुछ भी अनहोनी होने से पहले... हमने इन सबको आपके सामने लाने और गवाही दिलाने के लिए फैसला किया... बाकी आप और पूरा स्टेट जानता है...
जज - हाँ... हम सब जानते हैं... इंफैक्ट... हमने भी वह लाइव देखा है... पर हमें... यह सब फिल्मी लगा... आई मीन आर्टिफिशल लगा...
सुभाष - माय एक्सट्रीम एपोलोजी सर... क्या मैं जान सकता हूँ आपने ऐसा क्यूँ सोचा...
जज - इसलिए सोच पाए... क्यूँकी तुमने इसे मीडिया में ले आए... प्री प्लान्ड... इसके बारे में तुम हमें इंफॉर्म भी कर सकते थे...
डीसीपी - हाँ कर सकते थे... अगर यह राज लीक ना हुई होती तो... हम मजबूर थे... इसलिए... मीडिया वालों से कॉन्टैक्ट किए... अपनी और गवाहों की सेफ्टी के लिए...
जज - सरकार से क्यूँ नहीं सेफ्टी और सेक्यूरिटी माँगी...
सुभाष - मैं और इंस्पेक्टर दास... दोनों ही सरकारी मुलाजिम हैं... दोनों ही सरकारी आदेश पालन कर रहे थे...
जज - तो यह मीडिया...
सुभाष - सर... हम सब एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के एक एक कड़ी हैं... उसी लोकतांत्रिक व्यवस्था का चौथा स्तंभ यह मीडिया भी है.. इसलिए मैंने उनसे भी मदत माँगी...
जज - तो मीडिया को तुम्हें... आईवी के बाउंड्री के बाहर ही रखना था... वह देखो... (चारो तरफ खिड़कियों से,बाहर से सभी मीडिया वाले अपनी अपनी कैमरा से झाँक रहे थे) तुम इसे... इनकी सहायता से... मैटर को पब्लिक कर रहे हो... इसलिए... मैं यह गवाही नहीं ले सकता...
सुभाष - सर... यह जो मीडिया वाले... अपनी अपनी कैमरा से झाँक रहे हैं... यह पूरे स्टेट को... नहीं... पूरे देश को बता रहे हैं... दिखा रहे हैं... हमारा जुडिशल सिस्टम बायस्ड नहीं है... इंडिपेंडेंट है... जस्टिस के लिए... यहाँ कुछ भी किया जा सकता है...
जज - बहुत अच्छा बोल रहे हो... तुम्हें यह पुलिस का जॉब छोड़ कर... राजनीति करनी चाहिए... तुम यह सब बता कर... दिखा कर... मुझ पर प्रेसर कर रहे हो... और कह रहे हो... जस्टिस इंडिपेंडेंट है...
पत्री - (अपनी जगह से उठता है) आई एम सॉरी सर... यह केस जब से शुरु हुई है... तब से.. इसकी डेवलपमेंट देख कर हमें लगता है... आप किसी और के प्रेसर में हैं...
जज - माइंड योर टॉंग मिस्टर पत्री... यु आर एक्युजिंग मी...
पत्री - नहीं सर... आपसे पहले... मैं भी राजगड़ के लोगों की गवाही ले चुका हूँ... हम यहाँ आप से अनुरोध कर रहे हैं... यह जो मीडिया देख रहे हैं... यह इन गवाहों के सुरक्षा के लिए है... केस की तहकीकात में... जब नए सबूत और कंक्रीट गवाह जुड़ते हैं... चाहे वह सस्पेक्ट हो या एक्युज्ड... उसे मिटाने की कोशिश करते हैं... आपको मीडिया से प्रॉब्लम है... पर यह सब जो भी हुआ... यह मेरा ही आइडिया था... मैं नहीं चाहता था... न्याय की बेदी में कोई बलि चढ़ जाए... (सबसे) चलो... (बाहर जाने के लिए तैयार होता है)
जज - अब आप पत्री बाबु... फिर से एक्युज कर रहे हैं... और अपने साथ इन्हें बाहर कहाँ ले जा रहे हैं...
पत्री - मैं इन्हें लेकर... कल... भुवनेश्वर से लेकर अब तक... और जो इस कमरे में हुआ... वह सब मीडिया में कह दूँगा... क्यूँकी व्यवस्था में रह कर... अगर व्यवस्था से ही पीड़ित हों... तो न्याय की उम्मीद व्यवस्था के बजाय... हम... आम लोगों से ही कर सकते हैं... पता नहीं... हम कल जिंदा रहे... या ना रहे...
जज - (खड़ा हो जाता है) ह्वाट... ह्वाट डु यु मीन...
पत्री - आई मीन... ह्वाट यु मीन्ड... (कह कर बाहर जाने लगता है)
जज - होल्ड... (पत्री रुक जाता है) तुम.....तुम... (कुछ कह नहीं पाता, एक पॉज लेकर) ओके... आई एम रेडी... मैं... आई मीन... हम सब... इनकी गवाही लेने के लिए तैयार हैं... बट इट विल बेटर... तुम इन मीडिया वालों को कहो... यह लोग... यह जगह खाली करेंगे...
पत्री - नहीं सर... हम सब यहाँ लाइव हैं... आज पूरा स्टेट हमें जज कर रहा है... इनकी गवाही के बाद आपका क्या एक्शन होगा... यह भी लोग देखेंगे... अगर आप तैयार हैं तो...
जज - (हथियार डालते हुए) ओके... डीसीपी... गवाही की प्रोसीजर शुरु करो... और हाँ... गवाही के दौरान... सबका मोबाइल ऐरोप्लेंन मोड पर होना चाहिए...
सुभाष - जी सर... (दास को इशारा करता है l दास एक फाइल लेकर एक जगह बैठ जाता है, फिर सुभाष सुबुद्धी का परिचय कराता है,) सर... रुप फाउंडेशन के मिसींग वीटनेस.. मिस्टर अनिल कुमार सुबुद्धी... (इस दौरान सभी अपने अपने मोबाइल को ऐरोप्लेंन मोड पर रख देते हैं)

फिर सुबुद्धी अपना गवाही देने लगता है l उसकी गवाही ख़तम होने के बाद दास उससे फाइल पर दस्तखत लेता है और उसके नीचे तीनों जज दस्तखत करते हैं l उसके बाद श्रीधर परीड़ा अपना गवाही देता है और फाइल पर दस्तखत करता है l अंत में बल्लभ अपनी गवाही देता है जिसे रजिस्टर करने के बाद दास बल्लभ से दस्तखत लेने के लिए फाइल आगे कर देता है l

बल्लभ - (जज से) सर.. यह मैंने अब तक जो भी कहा... सब सच हैं... आगे चल कर हर एक बात पर... मैं डॉक्यूमेंट्री सबूत भी पेश करूँगा... पर अभी आपको... राजा भैरव सिंह की गिरफ्तारी के लिए... एक आदेश पारित करना होगा...
जज - वह किसलिए...
बल्लभ - सर.. वह शख्स... अगर बंद रहेगा... तब इस केस का कोई भविष्य है... वर्ना अंधकार ही अंधकार है... सर जब से विश्व राजगड़ आया है... तब से... राजा के सिपाही... हर कदम पर विश्वा से मात खाए हुए हैं... सर इसीलिये... राजा ने... ESS के सभी... हालिया रिक्रूट्स को.. राजगड़ बुलाया था... और हमें ख़तम करने के लिए... उन्हीं ESS वालों में से... कुछ लोगों को भेजा था... पर अब बात अलग है...
जज - अलग है... मतलब..
बल्लभ - राजा ने एक प्राइवेट आर्मी हायर किया है... यह एक फ्री लैंस मर्सिनरिज ग्रुप है... और जहां तक मेरा अंदाजा है... अब तक वह आर्मी... राजगड़ में अपना चार्ज ले चुके होंगे...
जज - तो...
बल्लभ - सर... कल... बड़े राजा जी की मौत का चौथ है... कल से राजगड़ पर सितम का पहाड़ टूटने वाला है... इसलिए किसी भी तरह... कुछ भी कर के... उन्हें रोक लीजिए...
जज - (सुभाष से) यह एक आर्मी की बात कह रहा है... क्या ऐसा पॉसिबल है... इतने बड़े ग्रुप का मूवमेंट हो... इंफ्रिटेंशन हो... और हमारी इंटेलिजेंस को कोई खबर ना हो.... (सुभाष चुप रहता है)
बल्लभ - मुमकिन है सर... वे लोग प्रोफेशनल हैं... वह ग्रुप टुकड़ियों में बंट कर आया था... आधे से ज्यादा... ESS के रिक्रूट बन कर आए हैं... और कोई फेरी वाला बन कर... कोई मदारी बन कर... ऐसे आम आदमियों की तरह आए होंगे... तभी तो उन्हें जमा होने में इतना वक़्त लगा... वर्ना... कब के आ चुके होते...
जज - दास... तुम्हारे थाने में इंफॉर्म करो... भैरव सिंह और उसके आदमियों पर कड़ी नजर रखी जाए...
दास - सर... अब भैरव सिंह और उसके लोग... हमारे बस की बात नहीं हैं...
जज - क्या मतलब...

दास - (महल में उसके साथ और कांस्टेबलों के साथ जो कुछ हुआ सब बताता है) और सर हम अपने साथियों को कंधे पर लाद कर... हस्पताल लेकर गए... गाँव में भैरव सिंह के जितने आदमी हैं... प्लस ESS के लोग... प्लस अगर प्राइवेट आर्मी आ गई है तो... आई एम सॉरी सर... भैरव सिंह को पकड़ने के लिए... एक नहीं पाँच से छह बटालियन की जरूरत पड़ेगी...
जज - ह्वाट...
दास - हाँ सर... उन्हें सिर्फ होम अरेस्ट करने के लिए... तीन प्लेटुन की जरूरत पड़ी थी... पर अब की बार...
जज - पर प्राइवेट आर्मी... हमें हवा हवाई बात लग रही है... फिर भी दास... अभी मैं एक वारंट इशू किए देता हूँ... राजगड़ थाने में इंफॉर्म करो... और जितने भी बंदे हो सकते हैं... उन सबको कहो... राजा भैरव सिंह को चौबीस घंटे तक होम अरेस्ट पर रखें... और इस बात की राजगड़ से पुष्टि करो... तब हम सीएमओ से बात कर... उन्हें रिपोर्ट कर कोई ऑर्डर निकाल सकें..
दास - आई एम सॉरी... पर ठीक है... मेरे थाने के लोग... जितना सम्भव हो उतना अवश्य करेंगे....

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"आज एसआईटी के प्रमुख श्री सुभाष सतपती जी के द्वारा स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट के तीनों जजों के समक्ष तीन अहम गवाहों को प्रस्तुत किया जिनकी गवाही पुलिस के द्वारा जजों के उपस्थिति में लिया गया l उसके तुरंत बाद जज xxxx जी ने राजा भैरव सिंह जी को तुरंत हिरासत में लेने के लिए यशपुर एसपी को आदेश दे दिया है और इस बात की जानकारी उन्होंने सीएमओ को दे दिया है l अब तक की प्राप्त सूचना के अनुसार यशपुर से रिजर्व बटालियन निकल चुकी है l हो सकता है राजा भैरव सिंह जी की गिरफ्तारी की खबर आज देर रात तक प्राप्त हो जाए l इसीके साथ मैं सुप्रिया रथ आपसे इजाजत चाहती हूँ l"

टीवी पर चल रही न्यूज को भैरव सिंह रिमोट से बंद कर देता है l बगल में खड़ा भीमा भैरव सिंह से सवाल करता है l

भीमा - अब क्या हुकुम है...
भैरव सिंह - (एक गहरी साँस लेकर) भीमा... सरकारी मेहमान आ रहे हैं... स्वागत में कोई कमी नहीं होनी चाहिए...
भीमा - जी हुकुम... (भीमा उल्टे पाँव जाने लगता है)
भैरव सिंह - और हाँ ध्यान रहे... जब तक हम इजाजत ना दें... कोई हरकत या होशियारी मत करना...
भीमा - जी हुकुम...

भीमा चला जाता है, उसके जाने के तुरंत बाद हाथ में गन लिए आर्मी के लिबास में एक व्यक्ति अंदर आता है और भैरव सिंह को सैल्यूट ठोकता है l

-डेविड.... रिपोर्टिंग टू प्राईवेट जनरल.. सर..
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... प्राईवेट जनरल... सुन कर अच्छा लगा... (अपनी कुर्सी से उठ कर) क्या ख़बर है डेविड...
डेविड - सर... मेरे साथ... वॉर रूम में चलिए सर...

किसी आर्मी पर्सनल की तरह डेविड पीछे मुड़ता है और बाहर जाने लगता है l भैरव सिंह उसके पीछे चल देता है l बाहर और चार लोग खड़े थे जो भैरव सिंह को सैल्यूट करते हैं और एक सुरक्षा घेरा बना कर भैरव सिंह के साथ चलने लगते हैं l डेविड और भैरव सिंह एक कमरे में पहुँचते हैं l बड़ी सी हॉल दीवान ए खास को वॉर रुम बनाया गया है l एक तरफ के दीवार पर पच्चीस से तीस के करीब टीवी स्क्रीन लगे थे l टीवी के सामने कुछ ऑपरेटर बैठे हुए थे l

डेविड - (एक रिमोट भैरव सिंह के हाथ में दे कर) इसे ऑन कीजिए सर...

भैरव सिंह रिमोट को ऑन करता है l सारे टीवी एक साथ ऑन हो जाते हैं l हर एक स्क्रीन पर लोगों के कुछ ना कुछ हरकतें दिख रही थी l

डेविड - सर... हमने... कुछ दिनों से अपने अपने काम में लगे हुए थे... आज पूरा हो गया... गाँव के एंट्रेंस से लेकर एक्जिट तक.. हर गली... हर चौराहे पर... हमने सर्विलांस कैमरा इंस्टाल कर दिया है... कोई पत्ता भी कहीं हिलेगा... तो भी हमें मालूम हो जाएगा...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... बढ़िया... बहुत बढ़िया... तो... अब तैयार हो जाओ... मेहमान आ रहे हैं... उनका स्वागत कुछ इस तरह से करेंगे... के पूरी दुनिया में त्राहि त्राहि मच जाएगा.... राजा... भैरव सिंह... क्षेत्रपाल...

कमरे में मौजूद सभी एक सुर में - यस सर...

उधर बाहर एक पुलिस की वैन आ रही थी जिसके आगे दो पुलिस की जीप और पीछे दो पुलिस की जीप आ रही थी l पाँचों गाड़ी एक के बाद एक बगल में महल के सामने रुक जाते हैं l क्यूँकी महल के गेट के सामने चार सफेद गाड़ियाँ रास्ते को बंद कर खड़ी थीं l सभी पुलिस वाले उतरते हैं और एक दूसरे की ओर देखते हैं l एक पुलिस ऑफिसर जगन को बुलाता है l

ऑफिसर - इधर आओ... (जगन उसके पास जाता है) यह... यह सब क्या है...
जगन - साहब... मैंने तो बताया ही था.. जब दिन दहाड़े हमारे पुलिस के दो सिपाहियों को अधमरा कर... हमें चल कर वापस जाने के लिए मजबूर कर सकता है... आप उस राजा भैरव सिंह को गिरफ्तार करने रात में आए हैं...
ऑफिसर - आ... ह्ह्ह्... (अपने ट्रूप्स को) आगे बढ़ने के लिए तैयार हो जाओ...

ऑफिसर का इतना कहना ही था कि एक के बाद एक चार जोरदार धमाके होते हैं l हर एक धमाके के साथ एक एक गाड़ी बीस फिट ऊँचाई तक उड़ जाती है और फिर परखच्चे उड़ने के साथ जलती हुई नीचे गिरतीं हैं l जो पुलिस वाले महल की ओर जाने की सोच रहे थे वह चुप चाप अपनी जगह पर चिपके खड़े हो जाते हैं l सबकी नजर उन जलती हुई गाडियों पर टिक जाती है l उन गाडियों के बीच से भीमा बाहर आता है और इनके सामने आकर खड़ा हो जाता है l

ऑफिसर - क... क.. कौन हो तुम... (भीमा जगन की तरफ़ देखता है)
जगन - यह... यह भीमा जी हैं... राजा साहब के... सबसे खास...
भीमा - समझा ऑफिसर...
ऑफिसर - ओके... देखो... हम... हम यहाँ... सरकारी आदेश पर आए हैं...
भीमा - शुक्र करो... राजा साहब तुम्हें जिंदा वापस जाने दे रहे हैं...
ऑफिसर - क्या... क्या मतलब है तुम्हारा...
भीमा - ऐसा हो नहीं सकता... के तुम्हें इतिहास मालूम ना हो... ऑफिसर... आज जो सरकारी काग़ज़ लेकर यहाँ आए हो... वह सरकार... राजा साहब के हुकुम के तलवे चाटती है... राजा साहब... जितना सह सकते थे... सह लिए... अब कोई भी सरकारी खाकी वर्दी वाला कुत्ता... महल की सरहद लाँघ कर महल के अंदर जा नहीं सकता... अगर वर्दी में गर्मी है... तो कोशिश कर देख लो... (ऑफिसर बहुत असहाय हो जाता है वह कभी अपने साथियों को तो कभी भीमा को देखने लगता है)
जगन - (ऑफिसर से) साहब... भलाई इसी में है कि... आप... अपने ऊपर तक खबर पहुँचाये... वर्ना इनकी तैयारी इतनी है कि हम लोग वापस ही ना जा पाएँ...
ऑफिसर - (जगन की बात मानते हुए) ओके... हम... उपर तक खबर पहुँचाएंगे... (अपने सिपाहियों से) मूव... बैक...

सभी सिपाही गाड़ी के अंदर जाने लगते हैं ऑफिसर भी जब जाने लगता है तभी भीमा उसे आवाज देता है

भीमा - रुको ऑफिसर... आए हो... तो खाली हाथ मत जाओ... (ऑफिसर मुड़ कर हैरत भरी नजर से देखता है, भीमा के साथी कुछ लोगों को सहारा देते हुए बाहर लाते हैं और ऑफिसर के सामने फेंक देते हैं) इन्हें ले जाओ...
ऑफिसर - (घबराई हुई आवाज़ में) यह... यह लोग कौन है...
भीमा - इन्हीं से पूछ लेना.. जब इन्हें होश आए... फ़िलहाल इनकी हालत बहुत नाजुक है... हस्पताल ले जाओ... जाओ...

कहकर भीमा मुड़ कर अंदर चला जाता है l ऑफिसर अपनी जेब से रुमाल निकाल कर पहले अपना मुहँ साफ करता है और बेहद लाचारी भरी नजर से जगन की ओर देखता है l जगन कुछ पुलिस वालों को लेकर आता है और नीचे पड़े अधमरे लोगों को उठाने लगता है l

उधर यह सब भैरव सिंह सीसीटीवी पर देख रहा था l उसके चेहरे पर एक मुस्कान बिखर जाती है l तभी कमरे में भीमा का प्रवेश होता है l

भीमा - हुकुम...
भैरव सिंह - शाबाश भीमा शाबाश... तुम वाकई हमारे सच्चे वफादार और नमकख्वार हो... हम बहुत खुश हुए...
भीमा - शुक्रिया हुकुम...
भैरव सिंह - भीमा... क्या तुम्हें याद है... हमने इंस्पेक्टर दास से एक वादा किया था... बड़े राजा जी की चौथ की मातम पूरा राजगड़ मनाएगा...
भीमा - जी हुकुम... कल चौथ है...
भैरव सिंह - तो आज की रात कहर टूटना चाहिए...
भीमा - हुकुम...
भैरव सिंह - तो जाओ... अपने सभी पहलवान कारिंदों को साथ लेकर जाओ... आज कोई भीमा, भूरा या शुकुरा नहीं... बल्कि रंगमहल के दुशासन बन कर जाओ... अर्सा हो गया है... रंगमहल में कोई रौनक नहीं है... रंगमहल की रंगीनी के लिए... जितने भी कमसिन द्रौपदी हैं सबको... उठा कर लाओ... जो भी बीच में आए... मौत के घाट उतार दो...
भीम - जी.. हुकुम... पर अगर... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - आज तुम लोग तांडव मचाने जा रहे हो... पुलिस भी नहीं आनी चाहिए... अब पुलिस सिर्फ डरी हुई है... आज रात की तांडव में... उन्हें उनकी लाचारी भी जताओ... दिखाओ... समझे...
भीमा - जी हुकुम... सब समझ गया...

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डॉक्टर बाहर आता है l बाहर विश्व, उसके दोस्त, सुभाष, और दास बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे l डॉक्टर को देखते ही सभी भाग कर उसके पास जाते हैं l

डॉक्टर - उदय जी... ऑउट ऑफ डेंजर हैं...
विश्व - यह बहुत अच्छी बात है... और विक्रम...
डॉक्टर - विक्रम जी को होश आ रहा है... पर.... कमजोरी बहुत है... खून बहुत बह गया था... ज़ख़्म भी गहरा था... उनका कंधे का कलर बोन फैक्चर है... इसलिये टेंपोररी पैरालाइज है... मेरी इल्तिजा है... आप बस थोड़ी देर के लिए ही... बात चित करें... उन्हें नींद आ जाएगी... उनको आराम की सख्त जरूरत है...
विश्व - ठीक है डॉक्टर... आपका बहुत बहुत शुक्रिया...

इतना कह कर सभी विक्रम के बेड के पास आते हैं l विश्व देखता है l जिस्म लगभग सभी जगहों पर पट्टी बंधी हुई है l सैलाइन और खून दिया जा रहा है l विक्रम आँखे मूँदे लेटा हुआ था l विश्व धीरे से आवाज देता है

विश्व - विक्रम...
विक्रम - हम्म... (अपनी आँखे खोलता है) आह... (थोड़ा कराहता है) प्रताप... गवाही हो गई...
विश्व - हाँ... सॉरी यार... मैंने तुमसे... बहुत जोखिम भरा काम लिया...
विक्रम - (हल्का सा मुस्कान चेहरे पर लाते हुए) कोई ना... शायद आज के बाद... सत्तू मुझे.. गाँव वालों में से एक समझे... और राजकुमार ना बुलाए...
विश्व - (आकर विक्रम का हाथ पकड़ लेता है) एक शिकायत भी है यार... तुमने... उनका पीछा क्यूँ किया... हम तब तक... सोनपुर में दाखिल हो चुके थे... सतपती जी ने... अपना पुलिस बटालियन को तैयार का रखा था.. हमने तो बस उन्हें डायवर्जन देने के लिए... तुम्हें कहा था...
विक्रम - (विक्रम भी विश्व के हाथ को कस कर पकड़ लेता है) अगर वे लोग... तुम्हारे पीछे पीछे... सोनपुर पहुँच जाते... तो वीर की आत्मा मुझे कभी माफ नहीं करती... मैंने जो भी किया... वीर के खातिर...
विश्व - अगर तुम्हें कुछ हो जाता... तो मैं... ना तो राजकुमारी जी को अपना चेहरा दिखा पाता... ना ही... शुभ्रा जी का सामना कर पाता...
विक्रम - हाँ... तुम्हारी बात की गहराई को समझ रहा हूँ... वह कहते हैं ना... सारी जहाँ की खुदाई एक तरफ... और जोरु का भाई एक तरफ... (यह सुन कर कमरे में सभी मुस्कुराने लगते हैं) तुम्हें अपनी बीवी से जुते पड़ते... है ना...
विश्व - (मुस्कुरा देता है) मत भूलो... शुभ्रा जी ने भी मुझे भाई कहा था... अगर कुछ.... (फफक पड़ता है) तो मैं... उनके अनजाने में ही... तुम्हें अपने मिशन में शामिल कर लिया...
विक्रम - श्श्श्श्.... तुम भी तो मेरे जोरु के भाई निकले... तो यह खतरा उठाना बनता था...
विश्व - आज वाकई तुमने मुझे हरा दिया... तुमने आज ऐसा कर्ज मुझ पर लाद दिया... के मैं जिंदगी भर तुम्हारे सामने... अपना सिर नहीं उठा पाऊँगा...
विक्रम - अरे यार... मरा नहीं हूँ... जिंदा हूँ... हाँ... राजा साहब की गिरफ्तारी नहीं देख पाऊँगा तो क्या हुआ... जब राजा साहब अपने अंजाम भुगतेंगे... उस जश्न में गाँव वालों के साथ तो होऊंगा ना...

डॉक्टर - (कमरे में आता है) आई थिंक... आपकी सारी बातचीत हो गई होगी... अब प्लीज... पेशेंट को आराम करने दीजिए...
विश्व - इट्स ओके डॉक्टर...
सुभाष - आपका बहुत बहुत शुक्रिया डॉक्टर...

सभी विक्रम को अलविदा कह कर कमरे के बाहर आते हैं l विश्व अपने सभी दोस्तों को गले लगा लेता है l सबकी आँखों में पानी बह रहा था l तभी सुभाष की मोबाइल बजने लगती है l सुभाष फोन निकाल कर देखता है जगन का कॉल था l वह इन सबसे थोड़ी दूर जाकर जगन से बातेँ करने लगता है l तभी विश्व की भी मोबाइल बजती है l विश्व सबसे अलग हो कर मोबाइल निकालता है l डिस्प्ले पर डैनी नाम देख कर कॉल उठाता है

विश्व - हैलो..
डैनी - विश्वा... मैंने वही आर्मर्ड वीइकल जो तुमने बिन्का बाईपास पर छोड़ा था... हास्पिटल तक पहुँचा दिया है... जितनी जल्दी हो सके... उस गाड़ी में राजगड़ पहूँचो...
विश्व - क्या... क्या हुआ है डैनी भाई...
डैनी - मुझे खबर मिली है... आज रात गाँव में कुछ गड़बड़ होने वाली है... पुलिस को अलर्ट न्यूज भेज दिया गया है... पर... खबर मिली है कि... भीमा और उसके लोग... इस बार गाँव में.. धार धार हथियार लेकर निकले हैं... इसलिए तुम भी पहुँचने की कोशिश करो... और हाँ... इसबार तुम अकेले नहीं होगे... मैं भी आ रहा हूँ...

फोन कट जाता है l विश्व परेशान हो कर अपने दोस्तों को देखने लगता है कि तभी सुभाष दास को साथ लेकर विश्व के पास पहुँचता है l

सुभाष - विश्व... एक इमर्जेंसी आ गई है...
विश्व - हाँ मुझे अभी अभी पता चला...
दास - क्या पता चला...
विश्व - भीमा और उसके गुर्गे... गाँव में हथियारों के साथ निकले हैं...
सुभाष - हाँ... जानते हो... अभी जब हम... विक्रम के ऑपरेशन के लिए यहाँ परेशान थे... तब राजगड़ में... (पुलिस वालों के साथ जो भी कुछ हुआ सब बताने लगता है) मेरे स्क्वाड के जितने भी बंदे थे... सबको... हमारे पहुँचने तक थाना टेक ओवर करने के लिए कहा था... उनको कॉर्डिनेट जगन कर रहा था... आज जिन लोगों को... अधमरा कर पुलिस के हवाले किया गया है... वे सब... होम मिनिस्टर के... सेक्यूरिटी के आदमी थे...
विश्व - ह्वाट...
दास - हाँ... इसका मतलब हुआ... अब होम मिनिस्टर... भैरव सिंह के कब्जे में है...
टीलु - (विश्व से) भाई... भाई... जरा दीदी को फोन करो...

विश्व वैदेही को फोन करता है l पर फोन लग नहीं रहा था l विश्व फिर सत्तू को फोन लगाता है पर उसका भी फोन नहीं लगता है l थक हार गए कर विश्व सुभाष की ओर देखता है l सुभाष जगन को फोन करता है पर इस बार सुभाष का कॉल भी नहीं जाती l

सुभाष - यह क्या... अभी अभी तो मैंने बात किया था...
टीलु - हो सकता है... उन्होंने मोबाइल टावर उड़ाया हो...
दास - हाँ... य़ह हो सकता है...
विश्व - तो फिर चलिए... जितनी जल्दी हो सके निकलते हैं...
दास - हम चाहे जितनी भी तेजी से जाएं... सुबह से पहले नहीं पहुँच सकते...
टीलु - यहाँ बातों से वक़्त जाया करने से अच्छा है कि... हम राजगड़ के लिए निकल जाएं...
सुभाष - यस.. ही इज राईट... लेट्स गो...

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भीमा और उसके साथी वैदेही की नाश्ते की दुकान वाली चौराहे पर लक्ष्मी और उसके पति हरिया, बिल्लू आदि कुछ गाँव वालों को लेकर आते हैं l

भीमा - (चिल्ला कर) ओ रंग महल की रंडी... बाहर निकल हराम जादी... सभी लड़कियों को अपने यहाँ छुपा कर रखी है... कुत्तीआ साली... बाहर निकल... (कोई हरकत नहीं होती) साली दरवाजा खोल कर बाहर निकल.... और उन ल़डकियों को हमारे हवाले कर... बर्षों बाद.. रंग महल में रौनक लौटेगी... बाहर निकल... (फिर भी कुछ जवाब नहीं मिलता है) भूरा... शनिया
भूरा और शनिया - जी... सरदार...
भीमा - जाओ... दरवाजा तोड़ डालो...

भूरा और शनिया कुछ लोगों को साथ लेकर भागते हुए दुकान की दरवाजे तक पहुँचते हैं कि तभी दरवाजा खुल जाता है l अंदर से गौरी निकलती है l सामने भूरा और शनिया को आकर थमते देखती है l अपनी नजरें घुमा कर देखती है, भीमा और उसके लोग बिल्लू, लक्ष्मी हरिया जैसे आठ दस लोगों को बालों से गर्दन से पकड़ रखे हुए हैं l

गौरी - क्या हुआ भीमा...
भीमा - अरे यह तो रंग महल की थूकी हुई बुढ़िया है... (सभी हा हा हा हा करके ठहाका लगाते हैं)
गौरी - यहाँ क्यूँ और किस बात के लिए हल्ला कर रहे हो...
भूरा - ओ हो... नखरे देखो तो बुढ़िया के... रौब ऐसे झाड़ रही है... जैसे दुकान की मालकिन हो...
गौरी - हाँ हूँ... इस दुकान की मालकिन मैं ही हूँ... गल्ले पर मालकिन ही बैठती है... इतना भी अक्ल नहीं है क्या तुझे...
शनिया - ओ तेरी... दो गज दूर श्मशान से... जुबान आठ गज की... ऐ चल बता... वह वैदेही कहाँ है...
गौरी - वह नहीं है यहाँ पर...
भूरा - (आगे बढ़ कर गौरी को बालों से पकड़ कर) क्या बोली बुढ़िया... (गौरी दर्द के मारे कराहती है) चिल्ला... और जोर से चिल्ला... बुला... उस कुत्तीया को...
गौरी - मैं सच कह रही हूँ... वैदेही घर में नहीं है... शाम को यह कह कर गई थी... आज नहीं लौटेगी...
भीमा - ऐ... (अपने कुछ लोगों से) जाओ... अंदर जाकर छान मारो...

कुछ लोग वैदेही के घर और दुकान में घुस जाते हैं l अंदर सामान तितर-बितर तोड़फोड़ कर देते हैं और बाहर आकर कहते हैं l

आदमी - बुढ़िया सच कह रही है... अंदर वह रंडी नहीं है...

भीमा हरिया को उल्टे हाथ का एक थप्पड़ मार देता है, जिससे हरिया कुछ दूर घूम कर गिरता है l लक्ष्मी रोते हुए हरिया के पास जाने लगती है तो भीमा उसे पकड़ लेता है l

भीमा - ऐ हरिया... राजा का हुकुम है... जितने भी ल़डकियों की माँ को अपने नीचे लाए थे... उन सभी ल़डकियों को रंग महल की रौनक बनायेंगे... चल बता तेरी बेटी कहाँ है...
बिल्लू - भीमा भाई... शाम को वैदेही दीदी आई थी... ल़डकियों को अपने साथ ले गई... कहाँ ले गई हम नहीं जानते... विश्वास करो... हम नहीं जानते...
भीमा - पुछा मैंने हरिया से था... तेरी चूल क्यूँ मची बे बिल्लू...
लक्ष्मी - सच ही तो कह रहे हैं बिल्लू भैया.. शाम को वैदेही दीदी आई थीं... हमारी बच्चियों को अपने साथ ले गईं... हम नहीं जानते... अब दीदी और बच्चे कहाँ हैं...
भीमा - (अपने आदमियों से) ऐ... जानते हो... आज राजा साहब ने हम सबको क्या कहा...
सभी - दुशासन...
भीमा - हाउउउ... तो... (लक्ष्मी को खिंच कर) यह रही द्रौपदी... लो इसकी चिर हरण शुरु करो...

भीमा की बात सुन कर सब ऐसे हँसते हैं जैसे पिशाचों की टोली हँसती है l लक्ष्मी भागने लगती है तो उसे भूरा और शनिया दबोच लेते हैं l लक्ष्मी को सब ऊपर उठा लेते हैं और सब उसे अपनी अपनी तरफ़ खिंचने लगते हैं l यह सब देख कर हरिया भीमा के पैर पकड़ कर लक्ष्मी को छोड़ने के लिए गिड़गिड़ाने लगता है l तब तक लक्ष्मी की साड़ी फट कर अलग हो चुकी थी l बिल्लू भी भीमा के पैर पर गिर कर लक्ष्मी को छोड़ने के लिए कहता है l पर उन सब शैतानों की हँसी कह कहा मंजर को और भी वीभत्स कर रहा था l उनकी शैतानी हँसी के आगे लक्ष्मी की चीखें सुनाई नहीं दे रही थी l तब तक लक्ष्मी की ब्लाउज फट कर अलग हो चुकी थी l गौरी से और बर्दास्त नहीं होती वह अपनी पूरी ताकत से चीखती है l

गौरी - रुक जाओ... मैं कहती हूँ रुक जाओ... (कॉफ.. ऑफ.. कॉफ) (गला फाड़ कर चिल्लाने के वज़ह से वह खांसने लगती है)
भीमा - ऐ... रुक जाओ...

सब लक्ष्मी को छोड़ देते हैं l लक्ष्मी की पेटीकोट फट चुकी थी बस कमर में लटक रही थी l दुबक कर नीचे खुद को छुपाकर बैठ जाती है l हरिया रेंगते हुए रोते हुए आता है और लक्ष्मी को गले लगा कर रोता है l

भीमा - हाँ तो बुढ़िया... बोल अभी... वैदेही कहाँ है...
गौरी - क्यूँ अपनी मौत को ढूंढ रहा है भीमा...
शनिया - उम्र देख... कमिनी... वर्ना साली की गाली देता तुझे... रंग महल की... थूकी हुए गुठली... चल बोल... वैदेही लड़कियों को लेकर कहाँ छुपी है...
भूरा - वर्ना... चिर हरण फिर से शुरू करें...
गौरी - तुम लोगों को विश्वा का डर नहीं है... अरे उससे तो तुम्हारा राजा भी डरता है...
भीमा - ऐ तुम लोग फिर से शुरू हो जाओ... यह डायन बकचोदी करने लगी है...
गौरी - नहीं रुक जाओ... मैं बताती हूँ...
भीमा - हाँ बोल...
गौरी - वह... वैदेही... बच्चों को लेकर... ग्राम देवी माँ की मंदिर में छुपी हुई है...
शनिया - ले... बुढ़िया ने मुह खोली... तो झूठ ही पेली... अबे बुढ़िया... ग्राम देवी की मंदिर सदियों से बंद है...
भीमा - बुढ़िया सच कह रही है... हम सब जगह ढूंढते... ढूंढते ही रह जाते... पर मंदिर कभी नहीं जाते.... क्यूँकी मंदिर... पाइकराय परिवार के खात्मे के साथ ही बंद हुई थी... हा हा हा हा हा हा... समय भी कहाँ घूम कर पहुँची... जिस परिवार को खत्म कर दसियों पहले मंदिर बंद किया गया था... उसी खानदान की अंतिम चिराग... मंदिर खोल कर छुपी हुई है... अपनी मौत से... हा हा हा हा हा हा... (भीमा के साथ सभी हँसने लगते हैं)

भीमा सभी गाँव वालों को वहीँ छोड़ कर अपने लोगों के साथ आगे बढ़ जाता है l उनके जाते ही बिल्लू गौरी से सवाल करता है

बिल्लू - यह... यह आपने क्या कर दिया काकी... हमारे बच्चों की खबर दे कर उनकी जान खतरे में डाल दी...
हरिया - हाँ... काकी... आपने ऐसा क्यूँ किया...
गौरी - चुप रह... कितने लोग आए थे... बीस आदमी... और तुम लोग... पूरा का पूरा मुहल्ला... अपनी दुम दबा कर छुपे हुए हैं... तुम लोगों को खिंच कर बाहर निकल कर... तुम्हीं लोगों से... तुम्हारे ही बच्चों का पता पूछ रहे हैं... और तुम्हारे ही घर की लक्ष्मी को बेइज्जत कर रहे हैं... फिर भी... तुम लोग पलटवार करने से कतरा रहे हो... अरे जितनी हिम्मत अपनी जमीन जायदाद की पूछने की की थी... अपनी बच्चियों के बारे में पूछने पर भूरा और शनिया को पीटने में दिखाई थी... और जिस नफरत को ढाल बना कर बड़े राजा के मातम पर नहीं गए थे... वह हिम्मत... वह नफरत कहाँ सो गई... क्या तुममे मर्दानगी तभी करवट लेती है... जब जब वैदेही और विश्व होते हैं... डूब मरो... लानत है तुम सब पर... अरे वह दो बहन भाई... अपनी जिंदगी तबाह और बर्बाद कर दिए... सिर्फ तुम लोगों के लिए... पर तुम लोग... वही गटर की जिंदगी छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं हो... तुम्हारे आने वाले कल के लिए... तुम्हारे बच्चों के लिए... अपनी जिंदगी दाव पर लगा दिया है... पर तुम लोग... थू है तुम पर... उनके पैरों पर गिड़गिड़ा रहे हो...
हरिया - हम... हम और कर ही क्या सकते हैं काकी... देखा नहीं... उन्होंने पुलिस को भी कितना लाचार कर दिया है...
गौरी - अरे बच्चों पर आ जाए तो हिरण भी सिंग लड़ा कर बाघ को फाड़ देती है... तुम लोग तो इंसान हो... किसका इंतजार कर रहे हो... याद रखो भगवान भी उसी के लिए धरती पर आते हैं... जो अपनी मान मर्यादा और पुरूषार्थ के लिए लड़ मर सकते हैं... वर्ना... तुम जैसों को बचाने के लिए भगवान का धरती पर उतरना भी... भगवान के लिए अपमान की बात होगी...

इतना सुनने के बाद भी बिल्लू, हरिया और वहाँ पर मौजूद लोगों में कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखती l पर लक्ष्मी अपनी जगह से उठती है और नीचे पड़ी एक लाठी को उठाती है l

हरिया - ऐ... तु क्या कर रही है... कहाँ जा रही है...
लक्ष्मी - अपनी बेटी को बचाने...
हरिया - पागल हो गई है तु... अभी अभी तेरे साथ क्या हो सकता था...
लक्ष्मी - हो सकता था... बर्षों पहले राजा ने कर दिया था... तब भी तु रोया था... गिड़गिड़ाया था... पर किया कुछ नहीं था... मेरी बेटी के लिए... वैदेही दीदी... लड़ेगी... तु और मैं... किसी कोने में छुप कर... रोयेंगे... नहीं अब ऐसा हरगिज नहीं होगा... मेरी बच्ची को... मेरे जीते जी... कुछ भी होने नहीं दूँगी...
हरिया - ऐ... ऐ... हम लड़ मर लेंगे उसके बाद क्या... हमारा बबलू... उसका क्या होगा...
लक्ष्मी - अभी भी... होने को क्या बचा है... कम से कम उसे इतना याद रहेगा... उसकी माँ... उसकी दीदी को बचाने के लिए... मर्दानी लड़ी थी...

कह कर लक्ष्मी आगे बढ़ जाती है l उसकी देखा देखी जितनी भी औरतें थीं वहाँ पर सभी अपने अपने घर भाग कर हाथों में कुछ ना कुछ ले लेते हैं और लक्ष्मी की गई दिशा में चल देते हैं l यह सब देख कर बिल्लू भी जाने लगता है l

हरिया - बिल्लू... कहाँ जा रहा है...
बिल्लू - लक्ष्मी भाभी जी के साथ... आज तक वैदेही दीदी अकेली लड़ती आई हैं... पर अब नहीं... आज से उनकी हर लड़ाई में मैं रहूँगा... हाँ तेरी बात और है... तेरा झुका हुआ सिर.. लक्ष्मी भाभी देख लेगी शायद... पर अगर मर मरा गया... तो गर्व के साथ... तेरी भाभी को ऊपर अपना शकल दिखाऊँगा... जो उसकी मौत पर भी ना कर सका... वह उसकी और मेरी बेटी के साथ नहीं होगा...

बिल्लू भी निकल जाता है l जिसे देख कर वहाँ पर मौजूद सभी मर्द एक के बाद एक बिल्लू के पीछे जाने लगते हैं l हरिया अपनी नजर घुमा कर देखता है गौरी उसे देख रही थी l हरिया अपनी नजर झुका लेता है l

गौरी - क्या तुझमें अब भी गैरत नहीं जाग रही... तेरी ना मर्दानगी में तेरी बीवी... तेरे दोस्त सब छोड़ गए हैं.. इससे पहले कि तेरा साया तुझे छोड़ दे... जा कुछ कर जा... मत भूल कल को तेरे बच्चे... तुझसे सवाल करेंगे... तब तु क्या जवाब देगा...

हरिया अपना गमछा कमर पर कस कर बाँध देता है और उसी ओर भागता है जिस और सभी गए थे l

उधर भीमा और उसके आदमी लठ और हथियारों के साथ मंदिर के पास पहुँचते हैं l सभी देखते हैं मंदिर के गेट पर ताला टूटा हुआ है और मंदिर के अंदर घना अंधेरा भी है l टूटा हुआ ताला देख कर भीमा मुस्कराता है l

भीमा - वाह... कमीनी ने क्या दिमाग चलाई है... हम सभी जगह ढूंढते रह जाते... पर मंदिर कभी नहीं आते... (चिल्ला कर) ऐ वैदेही... उन ल़डकियों को लेकर बाहर आ... हमें मालूम है... तु उन ल़डकियों को लेकर मंदिर के अंदर छुपी हुई है... ( कोई जवाब नहीं आता)
शनिया - कहीं बुढ़िया ने हमें झूठ तो नहीं बोला... हम सब जोश जोश में यहाँ तक आ गए...
भूरा - हाँ मुझे भी यही लग रहा है...
भीमा - चुप रहो सब... (फिर से चिल्लाता है) ऐ... हरामजादी वैदेही... कमीनी साली कुत्तीआ... बाहर आ रही है... या हम सब अंदर आयें...
शनिया - (चिल्लाते हुए) हाँ वैदेही... मैं याद हूँ ना तुझे... वादा किया था... तेरी एक दिन लूँगा... ले मैं आ गया...


मंदिर के गर्भ गृह में देवी के मूर्ति के पास वैदेही और सत्तू बच्चियों के साथ दरवाज़ा बंद कर सभी नींद में सोए हुए थे l भीमा और शनिया की आवाज़ सुन कर वैदेही और सत्तू की नींद टूटती है l

सत्तू - है भगवान... यह लोग यहाँ तक कैसे आ गए... हम यहाँ हैं... यह तो बस काकी को पता था...
वैदेही - काकी कभी अपनी परवाह नहीं करेगी... ज़रूर कुछ ऐसा हुआ होगा... जिसने काकी को मुहँ खोलने पर मजबूर कर दिया होगा...
सत्तू - अब हम क्या करें...
वैदेही - तुम बच्चियों के साथ गर्भ गृह में रहोगे... जब तक खोलने के लिए मैं या विश्व ना कहें...
सत्तू - मैं यहाँ रहूँ... और आप...
वैदेही - मैं बाहर जाकर इन्हें रोकुंगी...
सत्तू - नहीं दीदी... आप नहीं... मैं जाऊँगा...
वैदेही - (गुर्राती हुई) हूँह्हम्म्म... बच्चियों को मैं लेकर आई हूँ... इन्हें मैं कुछ भी होने नहीं दूँगी... (वैदेही उठती है)
सत्तू - दीदी...
बच्चे - मासी...
वैदेही - घबराओ मत... सत्तू... यह बच्चियाँ अब तेरी अमानत हैं... अंदर से कील लगाके रखना... सुबह होने को ज्यादा वक़्त भी नहीं है... सुबह तक मेरा विशु आ जाएगा... मैं उन्हें तब तक उलझाए रखूँगी... ठीक है.... (मल्लि आकर वैदेही को पकड़ लेती है) घबरा मत... कल इन सबका काल आ रहा है... मैं इन सबको तब तक रोक लूँगी... सत्तू... बच्चियां अब तुम्हारे हवाले...

वैदेही मल्लि को छुड़ाती है और गर्भ गृह से निकल कर बाहर आती है l अंदर से सत्तू दरवाजा बंद कर कुंडी लगा कर कील लगा देता है l वैदेही जैसे ही प्रांगण में आती है आसमान में बिजली कौंधती है l धीरे धीरे आगे बढ़ कर सीडियां उतर कर भीमा और उसके लोगों के सामने खड़ी होती है l

भीमा - लड़कियाँ... लड़कियाँ कहाँ हैं...
वैदेही - यह देवी माँ का मंदिर है... और लड़कियाँ उनकी शरण में हैं...
भीमा - हा हा हा हा हा हा... यह वही मंदिर है... जहाँ से तेरे परिवार को उठा लिया गया था... और मर्दों को काट दिया गया था... हा हा हा हा.. तब.. तब कहाँ गई थी देवी माँ... (भीमा के साथ सभी हँसने लगते हैं)
वैदेही - हँस ले कुत्ते हँस ले... जितना हो सके उतना हँस ले... क्यूँकी यह हँसी... आज के बाद कभी नहीं गूंजेगी...
शनिया - (भीमा से) भीमा भाई... तुम लोग आज इसे मेरे लिए छोड़ दो... तुम अंदर जाओ.. ल़डकियों को उठा लो...
भूरा - ल़डकियों के लिए... सबको जाने की क्या जरूरत है... मैं अकेला जाता हूँ... शनिया... आज तु बस ऐश कर...

सभी भद्दी हँसी हँसने लगते हैं l भूरा हँसते हुए आगे बढ़ता है और और वैदेही के सामने कमर पर हाथ रख कर खड़ा हो जाता है l वैदेही के सामने वैदेही को घूरते हुए पेट पकड़ कर हँसने लगता है l फिर वैदेही को किनारे छोडकर आगे बढ़ने को होता कि अचानक उसकी हँसी रुक जाती है l वह डरते और कांपते हुए अपनी कमर को देखता है वैदेही ने उसके कमर पर दरांती पूरी की पूरी घुसेड दी थी l इस बात का एहसास होते ही चिल्लाता है पर इससे पहले कि वह पूरा चिल्ला पाता वैदेही की दूसरी हाथ में कुल्हाड़ी निकल आती है और घुम कर चला देती है जो भूरा के सीने में धँस जाती है l तभी बिजली फिर से कौंधती है l सीडियों के नीचे भीमा और उसके साथ आए सभी गुर्गों की हँसी रुक जाती है l सभी की आँखे हैरत के मारे फैल चुकी थी l भूरा का शरीर धीरे धीरे प्राण छोड़ते घुटनों पर आ रहा था l अब आसमान में बिजलियाँ लगातार कौंधने लगती हैं l ठंडी ठंडी हवा बहने लगती है जो भीमा और उसके लोगों के हड्डियों में सर्द पैदा कर रही थी l वैदेही का चेहर सख्त दिख रहा था l जबड़े भिंचे हुए थे, हवाओं में लहराता हुआ उसके जुल्फें ऐसा लग रहा था जैसे खुद देवी उसके शरीर में आ गई हों l
अब तक कहकहे लगाने वाले के भीमा और शनिया का मुहँ खुला हुआ था l वैदेही भूरा की लाश को अपने पैर से धक्का देकर दरांती और कुल्हाड़ी निकाल लेती है l लाश सीडियों से लुढ़कती हुई भीमा के पैर के पास रुकती है l

वैदेही - शनिया... आजा... तेरी ख्वाहिश आज पूरा कर ले...

सब ऐसे खड़े थे जैसे सबको सांप सूँघ गया था l कोई अपने जगह से हिल भी नहीं पा रहा था क्यूँकी आज तक कोई राजा के आदमी को उन्हीं के आँखों के सामने मार दे ऐसा हुआ नहीं था l धीरे धीरे भीमा का चेहरा कठोर हो जाता है l

भीमा - (चिल्ला कर) आ आ आ... मारो इस कमीनी को... आज इसकी लाश को घसीटते हुए रंग महल ले जाएंगे... और मगरमच्छ को खिलाएँगे... टूट पड़ो इस पर...

भीमा अपनी जगह पर खड़ा रहता है और उसके सभी साथी, कोई ख़ंजर, कोई कटना, कोई खुख़री जैसे धार धार हथियार हाथों में लेकर वैदेही की भागते हुए जाते हैं l वैदेही भी तैयार थी दाएँ हाथ में कुल्हाड़ी और बाएं हाथ में दरांती लेकर इन सब पर टूट पड़ती है l वैदेही के आँखों में लेश मात्र डर नहीं था पर एक औरत से मात खा जाएं उस अपमान से कहीं ज्यादा मरजाना बेहतर समझ कर वैदेही के पास पहुँचे थे l पर उनकी तेजी से कहीं ज्यादा आज वैदेही तेज थी l किसी का पेट फट चुका था, किसी का हाथ कट चुका था और किसी का पैर कट गया था l एक के बाद एक सभी वैदेही के हाथों से बुरी तरह से ज़ख्मी हो रहे थे l वैदेही सबसे लड़ी जा रही थी, जब तीन तीन लोगों की वार रोक रखी थी तभी शनिया अपनी गुप्ति निकाल कर पीछे से वैदेही के पीठ में आरपार घुसेड़ देता है l इस वार ने पता नहीं कैसे वैदेही के अंदर अचानक ताकत भर देती है वह एक झटका देती है जिससे वह तीन जो वैदेही पर वार कर उलझाए रखे थे l गुलाटी खाते हुए नीचे गिरते हैं l वैदेही लड़खड़ाते हुए पीछे मुड़ कर देखती है l शनिया भद्दी हँसी हँस रहा था

भीमा - शाबाश... शनिया... शाबाश...
शनिया - साली कमीनी... तुझे अपने नीचे लाने की सोचा था... पर तु तो सबको ऊपर पहुँचाने में तूल गई है... अब उन ल़डकियों को हम पूरे गाँव में घसीटते हुए ले जायेंगे... तु उन्हें जाते हुए देखना फिर मर जाना... हा हा हा... (सभी शनिया के साथ हँसने लगते हैं)


वैदेही खुद को संभालती है और वह भी हँसने लगती - हा हा हा हा हा हा हा हा... I फिर
याआ आ आ... चिल्लाते हुए शनिया की ओर भाग कर उसके गले लग जाती है l जो गुप्ति शनिया ने वैदेही के पीठ पर आरपार घुसेड़ा था वही गुप्ति शनिया के पेट में घुस जाती है l वैदेही के इस हमले ने ना सिर्फ शनिया को बल्कि सभी को शॉक में डाल देती है l सबकी हँसी फिर से रुक जाती है l वैदेही शनिया के सिर को पकड़ कर अपनी दरांती को चला देती है l शनिया का सिर धड़ से अलग हो जाती है l वैदेही शनिया के सिर को हाथ में लेकर चिल्लाती है

या आ आ आ आ....

जो लोग वैदेही को घेरे खड़े थे वह सब डर के मारे नीचे भीमा के पास भाग जाते हैं l वहीँ से वैदेही की ओर देखने लगते हैं वैदेही, एक हाथ में दरांती और एक हाथ में शनिया कटा हुआ सिर था l चेहरा पूरा खून से सना हुआ था और हवा में उसके बाल लहरा रहे थे l बिजली की रौशनी में वैदेही देवी काली की प्रतिरूप दिख रही थी l वैदेही के इर्द गिर्द कुछ लोग मरे और ज़ख्मी हो कर गिरे पड़े थे और कुछ लोग भीमा के पास खड़े हो कर डर से कांप रहे थे l

वैदेही सीडियों पर बैठ जाती है अपनी कुल्हाड़ी को उठा कर उसे सीधा खड़ा करती है और उसे टेक लगा कर ऊपर अपना हाथ रखती है l दूसरी हाथ में दरांती लेकर भीमा की ओर देखती है l

वैदेही - (दहाड़ते हुए) है कोई माई का लाल... तो मुझे हटा कर ले जाओ उन बच्चियों को... आ...

भीमा और उसके साथी थर थर कांप रहे थे l वैदेही की इतना वीभत्स रूप को देख कर l एक आदमी भीमा से कहता है

आदमी - भीमा भाई... चलो चलते हैं...
भीमा - अबे चुप... खाली हाथ गए... तो मौत मिलेगी...
और एक आदमी - और आगे गए तो... साक्षात मौत बैठी है...
भीमा - घबराओ मत... कितनी देर जियेगी... थोड़ा ठहरते हैं... जब यह लुढ़क जाएगी... तब हम... ल़डकियों को ले जायेंगे...

वैदेही वैसे ही बैठी रहती है l उसकी आँखे एक टक भीमा की ओर देख रही थी l भीम की साँसे उपर नीचे हुए जा रही थी l तभी उसके कान में चीखने चिल्लाने की आवाज़ पीछे से सुनाई देती है l जब वह अपनी साथियों के साथ पीछे मुड़ कर देखता है तो उसके होश उड़ जाती है l गाँव के लोग हाथों में लाठी से लेकर हथियार तक लेकर भागते हुए मंदिर की ओर आ रहे थे l

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राजा जी... हुकुम...

यह भीमा की आवाज़ थी, भैरव सिंह के कानों में पड़ती है l रंग महल में भैरव सिंह उस तांत्रिक को लेकर अनुष्ठान प्रकोष्ठ में भीमा और उसके साथियों का इंतजार कर रहा था l उसे यकीन था आज सुबह होने से पहले जिन ल़डकियों की लिस्ट बनाई गई थी उन ल़डकियों को उठा कर ला रहे होंगे l भीमा की आवाज़ कानों में पड़ते ही भैरव सिंह के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है l क्यूँकी जैसा उसने तय किया था पिनाक के मौत के चौथे दिन पूरे राजगड़ में मातम मनेगी l

तांत्रिक - देखा यजमान... अनुष्ठान के लिए, हमने जो मुहूर्त मुकर्रर की थी... वह कितना शुभ है... हमने कहा था... कोई बाधा नहीं आएगी... कोई विघ्न नहीं आएगी... आपका प्रमुख शत्रु राजगड़ में नहीं है... आपने अपने द्वार से पुलिस वालों को धमका कर... चमका कर विदा करवा दिया... इसलिये संदेह नहीं... रखा गया मुहूर्त पर आपका रस्म... जरूर प्रारम्भ होने जा रही है... आप निश्चिंत हो कर रस्म अदायगी कीजिए... मैं आपको अस्वास्थ्य कर रहा हूँ... जब जब आपके परिवार ने इस अनुष्ठान का आयोजन किया है... आपका परिवार अविजित हो गया है... कोई भी सांसारिक शक्ति आपको परास्त कर नहीं सकता... इसलिये आप जाइए... आपके सारे कार्य अनुकूल होते जा रहे हैं... मैं अपनी तंत्र विद्या से अनुष्ठान को उत्कर्ष प्रदान करूँगा... आप अपनी राक्षसी विवाह पर ध्यान केंद्रित करें... चलिए कन्याओं का अवलोकन करते हैं...

तांत्रिक के साथ कमरे से बाहर निकल कर भैरव सिंह भीमा से मिलने बाहर जाता है l बाहर पहुँच कर देखता है भीमा लहुलुहान हो कर अकेला खड़ा है l भैरव सिंह को देखते ही जमीन पर गिर पड़ता है l पास खड़े एक गार्ड उसे उठाता है l भीमा हांफ रहा था l

भैरव सिंह - यह... क्या हुआ भीमा... तुम इस तरह...
भीमा - हम सब ना कामयाब रहे...
भैरव सिंह - (गुर्राते हुए) क्या... क्या कहा...
भीमा - हमने पुलिस वालों को डरा कर लोगों के मन में डर बिठा दिया था... लड़कियों को उठा लाने में कामयाब भी हो गये होते.... पर... वह.. वह वैदेही बीच में आ गई... उसने अकेले ही... हमारे आधे आदमियों को... भूरा और शनिया के साथ काट डाला...
भैरव सिंह - क्या...
भीमा - हाँ... हाँ हुकुम... वह एक हाथ में दरांती... और दूसरे हाथ में कुल्हाड़ी लेकर... हमारे सारे लोगों के साथ अकेली भीड़ गई... हमारे लोगों को ऐसे काट रही थी... जैसे रण चंडी... राक्षसों को काटती है.... फिर भी... हम उसे घायल करने में कामयाब हो गए थे.... पर उसी वक़्त हम पर... गाँव वाले... अपनी अपनी हथियारों के साथ टूट पड़े... सारे मारे गए... मैं... मैं किसी तरह खुद को बचा पाया... और आप तक खबर पहुँचाने आ गया...
भैरव सिंह - (चेहरा सख्त हो जाता है) तो तुम... उन कीड़े मकोड़ों से हार कर... डर कर... पीठ दिखा कर... भाग आए... (भीमा हांफ रहा था) (गार्ड से) ले जाओ इसे... आखेट गृह में... मगरमच्छ के हवाले कर दो...
भीमा - नहीं.. नहीं राजा सहाब... मेरे साथ ऐसा मत कीजिए... मैं आपका वफादार हूँ... सबसे भरोसेमंद हूँ... मेरी सेवा को याद कीजिए... राजा सहाब...
भैरव सिंह - तुम एक औरत से हारे... उसे पीठ दिखा कर आए... अपनी जान बचा कर आए... ऐसी जिंदगी से क्या फायदा... (गार्ड से) ले जाओ उसे...

भीमा चिल्लाता रहता है, पर कोई फायदा नहीं होता l गार्ड अपने साथियों के साथ साथ मिलकर भीमा को घसीटते हुए वहाँ से ले जाता है l यह सब देख कर तांत्रिक बड़ा ही शॉक में था l भैरव सिंह उसके तरफ मुड़ कर देखता है l तांत्रिक के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगती है l

भैरव सिंह - तांत्रिक.. तुने तो कहा था... बहुत ज़बर्दस्त मुहूर्त है... कोई बाधा कोई विघ्न नहीं आने वाली...
तांत्रिक - जी... कहा तो था...
भैरव सिंह - एक बात बताओ तांत्रिक... तुम्हें अपनी गणना पर विश्वास था... या हम पर...
तांत्रिक - जी... राजा साहब... आपकी शौर्य... अपकी पराक्रम पर... मेरी विद्या... मेरी गणना टिकी हुई थी...
भैरव सिंह - और तु हमें चूरन बेचता रहा... की तेरी गणना ऐसी है... की रस्म के साथ साथ भविष्य गढ़ने मे... कोई बाधा.. कोई विघ्न नहीं आएगी...

तभी सबकी कानों में भीमा की चीखें सुनाई देने लगती है l धीरे धीरे भीमा की चीखें सुनाई देना बंद हो जाती हैं l भैरव सिंह तांत्रिक से फिर से कहता है l

भैरव सिंह - हाँ तो तांत्रिक... हमने तेरी विद्या पर भरोसा किया... जबकि तु और तेरी विद्या... हमारे शौर्य और पराक्रम के दम पर टिकी थी... (तांत्रिक कोई जवाब नहीं देता) (जब वह गार्ड वापस आता है तो उसे कहता है) अब इस तांत्रिक को ले जाओ... लकड़बग्घे के सामने डाल दो...
तांत्रिक - यह क्या अनर्थ कर रहे हैं राजा साहब...
भैरव सिंह - कमीने... अब तक यजमान था... मौत दिखी तो... राजा साहब...
तांत्रिक - हम कुछ और हल निकाल सकते हैं...
भैरव सिंह - अब हल हो या हलाहल... जो भी निकालना होगा... राजा भैरव सिंह निकलेंगे... (गार्ड से) ले जाओ इसे... हमारी कानों में... इसकी चीखें सुनाई देनी चाहिए...

दो गार्ड्स तांत्रिक को पकड़ कर घसीटते हुए ले जाते हैं l तांत्रिक चिल्ला चिल्ला कर भैरव सिंह से माफी मांग रहा था l पर भैरव सिंह के कान में जु तक नहीं रेंग रहा था l भैरव सिंह रंग महल से बाहर आता है और अपनी गाड़ी में बैठ कर क्षेत्रपाल महल और जाता है l क्षेत्रपाल महल में पहुँच कर सीधे दीवान ए खास कमरे में जाता है l वहीँ पर लगे टीवी स्क्रीन को ऑन करने के लिए जॉन से कहता है l जॉन कोई सवाल किए वगैर सीसीटीवी के सारे स्क्रीन ऑन कर देता है l

उधर अंधेरा छट रहा था सूरज निकलने में अभी भी थोड़ा वक़्त था l विश्व उसके सारे दोस्त इंस्पेक्टर दास और सुभाष सतपती उसी बख्तर बंद गाड़ी में जो बिन्का बाईपास ओवर ब्रिज के नीचे रख छोड़े थे, डैनी के सतर्क करने और गाड़ी को हस्पताल के पास पहुँचाने के बाद उसी गाड़ी में सवार हो कर राजगड़ लौट रहे थे l गाड़ी सबसे पहले थाने के पास रुकती है, थाने की हालत देख कर सभी हैरान होते हैं l एक जला हुआ खंडर जैसा दिख रहा था जिसके कुछ जगहों से धुआं उठ रहा था l सभी गाड़ी से उतर कर तुरंत अंदर जाते हैं l सभी पुलिस वाले एक सेल में बंद बेहोश पड़े थे l सेल के बाहर ताला लगा हुआ था l धुएँ के प्रभाव में आकर सभी बेहोश थे l सारे संचार के साधन तितर बितर हुए पड़े थे l

दास - यह राजा पागल हो गया है क्या...
सुभाष - तुम अपना दिमाग ठंडा रखो... जिसने भी किया है... किसी को मारने के लिए नहीं किया है...
विश्व - पर बेबस और लाचार बना कर खौफ पैदा करने के लिए यह सब किया है... बेहतर होगा... पहले इन्हें यहाँ से रेस्क्यू किया जाए... (सभी सेल की ताला तोड़कर भीतर बेहोश पड़े पुलिस वालों को निकालने के लिए लग जाते हैं)
दास - राजा ने कहा था... आज का दिन पूरे राजगड़ में मातम होगा... अपनी बात को साबित करने के लिए... उसके लोगों ने... हर कम्युनिकेशन को डेश्ट्रॉय कर डाला होगा... फिर यह सब तांडव किया होगा...
टीलु - कहीं उसके लोगों ने यह सब... पुलिस को रोके रखने के लिए तो नहीं किया... (सभी उसके तरफ देखते हैं) कहीं इसी बीच गाँव में कोई आतंक तो नहीं मचाया...

विश्व इतना सुन कर बाहर की ओर भागता है, उसके पीछे पीछे उसके दोस्त सभी भाग जाते हैं l विश्व बाहर आकर गाड़ी में बैठता है सीलु ड्राइव कर गाड़ी को गाँव के भीतर ले जाता है l एक मोड़ पर टीलु सबको इशारा कर दिखाता है l सीलु उसी तरफ गाड़ी मोड़ देता है क्यूँकी उन्हें मंदिर के पास सभी गाँव वालों का जमावड़ा दिखता है l गाड़ी गाँव वालों के पास रुकती है l सभी गाड़ी से उतरते हैं l गाँव वाले मुड़ कर इन्हीं के तरफ़ देखते हैं, विश्व देखता है सबके आँखों में आँसू बह रहा था l टीलु विश्व के बाजू को जोर से पकड़ लेता है l सभी आगे बढ़ते हैं और गाँव वाले उन्हें रास्ता देते हैं l मंदिर के सीडियों के पास आकर रुक जाते हैं l गौरी विश्व को देखती है और रोते बिलखते आकर विश्व के गले लग जाती है l

गौरी - अनर्थ हो गया विशु... तेरी दीदी को... (कह नहीं पाती रोने लगती है, सत्तू और बच्चे भी विश्व के पास आते हैं )
सत्तू - विशु भैया... दीदी ने हम सबको मंदिर के अंदर बंद कर दिया और अकेली इन जानवरों से भीड़ गई...

विश्व गौरी को अपने से अलग करता है l आगे बढ़ता है लाश के पास लक्ष्मी और कुछ औरतें बैठ कर रो रहीं थीं l विश्व एक बुत की तरह वैदेही की लाश को घूर रहा था l विश्व के सभी दोस्त रो रहे थे पर विश्व नहीं रो रहा था या फिर रो नहीं पा रहा था l उसके आँखों से आँसू बह नहीं रहे थे l उसकी यह हालत देख कर हरिया पास आता है

हरिया - विशु... ऐ विशु भाई... दीदी... हमारे घर की लाज लक्ष्मी को बचाने के लिए.. हमारी ना मर्दानगी की बेदी पर... खुद की बली चढ़ा दी... (विश्व फिर भी एक मूक की तरह देखे जा रहा था)
टीलु - भाई यह सब मेरी गलती है... दीदी को मालूम था... यह सब होगा... पर उसने मुझे कसम दी थी... तुम्हें ना कहने के लिए... मुझे भी अपने पास नहीं रहने दिया... (विश्व टीलु के कंधे पर हाथ रखता है फिर भी नहीं रोता)
गौरी - (पास आ कर) विशु... तु रोता क्यूँ नहीं है... तेरी दीदी तुझे छोड़ कर चली गई है...

विश्व अपने दीदी के लाश के पास आता है और घुटने पर बैठ जाता है l अपनी बाहें बढ़ा कर वैदेही के शव को उठा लेता है और वैदेही के दुकान की ओर ले जाने लगता है l सारे गाँव वाले विश्व के पीछे पीछे चलने लगते हैं l विश्व दुकान के सामने पहुँच कर

विश्व - टीलु... जाओ एक कुर्सी लेकर आओ...

टीलु कोई सवाल जवाब किए वगैर अंदर जाता है उसी कुर्सी को उठा कर लाता है जिस पर वैदेही अक्सर बैठा करती थी l विश्व वैदेही की लाश को उस कुर्सी पर बिठा देता है l फिर गाँव के औरतों को हाथ जोड़ कर कहता है

विश्व - आप लोग दीदी को नहलाके... हल्दी लगा के.. अर्थी की तैयारी कीजिए... मैं अभी आया...

इतना कह कर विश्व दुकान के अंदर घुस जाता है l सभी गाँव वाले पहले एक दूसरे को देखते हैं फिर औरतें सभी वैदेही की अंतिम विदाई की तैयारी करने की तैयारी करते हैं l सारे मर्द विश्व की हरकत से हैरत में थे l थोड़ी देर बाद विश्व एक बैग लेकर आता है

विश्व - सत्तू... (बैग उसके हाथ में दे कर) इस बैग में... गाँव वालों की जमीनों की कागजात हैं... जिसे दीदी ने... भैरव सिंह के महल से हासिल किया था... बांट दो इन्हें...

सत्तू विश्व के हाथ से वह बैग ले लेता है l सत्तू के बैग ले जाने के बाद विश्व गाँव वालों के बीच से होते हुए मंदिर की ओर जाता है l विश्व को अकेले ऐसे जाते देख सीलु जिलु और मीलु भी विश्व के साथ जाने लगते हैं l गाँव के कुछ और मर्द भी पीछे पीछे जाने लगते हैं l मंदिर के पास विश्व आर्मर्ड गाड़ी के अंदर चला जाता है l बाहर लोग खड़े होकर विश्व की हरकत देखने लगते हैं l थोड़ी देर बाद विश्व गाड़ी से उतर कर इन सबको देख सीलु से कहता है

विश्व - सीलु... तुम लोग जाओ... दीदी की अर्थी तैयार करो... मैं कुछ देर में आता हूँ...
हरिया - अर्थी... हम सब मिलकर तैयार करेंगे... विशु... इससे पहले गाँव में किसी आम लोगों को कभी भी कंधा नहीं मिला है... पर आज हम गाँव वाले... दीदी को कंधा देंगे...
विश्व - नहीं... गाँव में कभी ऐसा हुआ नहीं... लोग... आज तक ना तो किसीकी खुशी में शामिल हुए थे... ना ही किसीकी मातम में..
बिल्लू - तो क्या हुआ... गाँव का यह मिथक टूटा भी तो है... कोई राजा को तो क्या... महल तक को पीठ कर लौटा नहीं था.. दीदी के साथ हमने किया था... राजा के घर खुशियों में शामिल हो ना हो... मातम में शामिल जरूर होते थे... दीदी साक्षी थी... हममे से किसी ने भी... बड़े राजा के मातम में शामिल नहीं हुए हैं... सिवाय राजा के खानदान के... किसी और परिवार की अर्थी गाँव में नहीं घूमी है... पर आज दीदी की अर्थी गाँव के हर गली से... हर चौराहे से... हर दरवाजे के सामने गुजरेगी... हम... हम अपने कंधो पर लेकर जायेंगे..
सभी - गाँव वाले चिल्लाते हैं... हाँ हाँ... हमने बड़े राजा का अर्थी गाँव में घूमने नहीं दिया... पर आज दीदी की अर्थी गाँव के हर गली से... हर घर के आँगन के आगे से गुजरेगी...

कुछ देर के लिए विश्व स्तब्ध हो जाता है l वह एक गहरी साँस लेता है फिर गाँव वालों से कहता है

विश्व - ठीक है... आप सब... दीदी की अर्थी की तैयारी कीजिए... मैं महल जा रहा हूँ... थोड़ी देर के बाद आकर शामिल हो जाऊँगा...
जिलु - महल... महल किसलिए जाओगे... क्यूँ...
मीलु - भाई... पहले दीदी की अंतिम संस्कार कर देते हैं ना... उसके बाद... हम महल की ईंट से ईंट बजा देंगे...
विश्व - मैं महल दीदी की आखरी ख्वाहिश पूरा करने जा रहा हूँ...
सीलु - आखरी ख्वाहिश...
विश्व - दीदी ने कहा था... उसे उसकी बहु के हाथ से विदा होना है... इसलिए... मैं महल... उसकी बहु को लाने जा रहा हूँ...
मीलु - भाई तुम अकेले... नहीं... भाभी को लाने हम सब जाएंगे...

गाँव वाले जो सुन रहे थे सब हैरत में थे, महल में विश्व की पत्नी कौन है l वे यह सब सुन कर एक दूसरे के मुहँ ताकने लगते हैं l

विश्व - नहीं... मुझे कुछ नहीं होगा... वैसे भी राजकुमारी जी से मैंने वादा किया था... उन्हें.. भैरव सिंह के आँखों के सामने लेकर जाऊँगा... अभी वह वक़्त आ गया है...

इतना कह कर विश्व महल की ओर जाने लगता है l गाँव के कुछ लोग विश्व के दोस्तों के साथ विश्व के पीछे पीछे चलने लगते हैं और कुछ लोग अर्थी का सामान जुटा कर अर्थी बनाने लगते हैं l विश्व महल के कुछ दूरी पर पहुँच कर सबको रुकने के लिए कहता है l विश्व की बात मान कर सभी रुक जाते हैं l विश्व अकेले महल की ओर बढ़ता है l उसे आता देख एक सिक्यूरिटी गार्ड वायर लेस से भैरव सिंह को इंफॉर्म करता है l

गार्ड - जनरल... सम वन इज कमिंग...
भैरव सिंह - आई नो... डोंट स्टॉप हिम... लेट हिम कम...
गार्ड - ओके जनरल...

भैरव सिंह अपनी सर्विलांस रूम में बैठ कर विश्व को महल की परिसर में दाखिल होते हुए देख रहा था l वायरलेस को रख कमरे से भैरव सिंह निकल कर बाहर बरामदे तक आता है l विश्व सीढ़ीयों तक पहुँच चुका था l भैरव सिंह को देख कर विश्व रुक जाता है l दोनों की नजरें मिलती है l विश्व भैरव सिंह के आँखों में देखते हुए सीढ़ी चढ़ कर भैरव सिंह के सामने खड़ा होता है l भैरव सिंह विश्व के आँखों में उठ रहे तूफान को साफ महसुस कर पा रहा था l

भैरव सिंह - आ विश्वा आ... तु वह पहला इंसान है... जिससे मिलने और बात करने बाहर तक आए हैं... (भैरव सिंह आगे बढ़ने लगता है, विश्व भी उसके साथ चलने लगता है) जो हुआ... हम वैसा नहीं चाहते थे... पर हो गया... अगर हुआ... तो ऐसा क्यूँ हुआ... जब कि उसे होना नहीं चाहिए था... (विश्व खामोश रहता है) यह एक बहुत बड़ा सच है... जो कोई नहीं सोचता... प्रकृति का अपना नियम है... पहाड़ से.. कोई कंकर टकराता नहीं है... पर तुने... और तेरी बहन ने वह सब किया... जो प्रकृति के विरुद्ध है... परिणाम ऐसे ही सामने आता है... हम जानते हैं... तेरे अंदर बहुत गुस्सा... बहुत आग है... तेरे अंदर की ज़ज्बात... जोश मार रहा होगा... तेरे अंदर की आग में.. यह महल... इस सल्तनत को जला देने के लिए... पर तु पढा़ लिखा है... इस सच को तु अच्छी तरह से समझता होगा... हर क्रिया का प्रतिक्रिया होता है... यह बात तुझे ही नहीं... बल्कि इस स्टेट में सबको पता होना चाहिए... की यहाँ क्रिया करना हमारा हक है... हर हमारे खिलाफ क्रिया का प्रतिक्रिया देना भी हमारा ही हक है... (विश्व फिर भी शांत था) अपनी दीदी की चिता को आग देने के बजाय तुम यहाँ आए हो... हम समझ सकते हैं... बदला चीज़ ही ऐसी है... पर हर किसी को... प्रकृति का नियम याद रखना चाहिए... कंकर की औकात ठोकर पर होती है... पहाड़ से टकराने की नहीं... (अब तक दोनों सर्विलांस कमरे में आ चुके थे) विश्वा.. यह देख... सारा गाँव हमारी नजरों में है... क्यूँकी हम हज़ारों आँखों से सब देख रहे हैं... हमने यह भी देखा... कैसे तेरे बंदे ने... हमारे जमीनों की कागजात... गाँव के लोगों में बांट दिया... (इतना कह कर भैरव सिंह एक कुर्सी पर बैठ जाता है) तुने जितना करना था... कर लिया... जमीनों की कागजात हम हासिल कर ही लेंगे.... (गम्भीर हो कर) तेरे वज़ह से हमसे हमारा परिवार बिखर गया... पर बदले में तेरा बहुत कम ही नुकसान हुआ है... अब बोल... आगे क्या करना चाहता है... अपनी दीदी की लाश की चिता में आग देना चाहता है... या तेरी भी लाश को लावारिस करना चाहता है...
विश्व - सुना है... तेरे खानदान को... ताकत और हुकूमत.. एक टूटी हुई नंगी तलवार से मिला था...
भैरव सिंह - हाँ... सही सुना है...
विश्व - और क्या यह भी सच है... की तलवार जिस दिन सलामती पर आ जाएगा... उस दिन तेरी हुकूमत... तेरी सल्तनत... सब खत्म हो जाएगा...
भैरव सिंह - (भौहें सिकुड़ जाते हैं) तुझे उस तलवार में इतनी दिलचस्पी क्यूँ है... कोई हरकत करने की सोचना भी मत... वर्ना... यहाँ से जिंदा वापस नहीं जा पाएगा...
विश्व - मैं तब भी जिंदा वापस गया था... जब कुछ नहीं था... आज भी जाऊँगा... मेरी अमानत है तेरे महल में... उसे लेकर जाऊँगा... और इस बार... तु... बाहर तक मुझे मेरे अमानत के साथ... छोड़ने जाएगा... (यह कह कर विश्व सीसीटीवी की ओर देख कर मुस्कराता है)


भैरव सिंह हैरान हो कर पीछे मुड़ कर सीसीटीवी की ओर देखता है, उसे सीसीटीवी पर कोई हलचल नजर नहीं आता, वह सतर्क हो जाता है और पीछे मुड़ कर देखता है, विश्व वहाँ पर नहीं था l अपनी चेयर से उठ खड़ा होता है, मुट्ठियाँ भिंच कर कमरे से बाहर निकल कर अंतर्महल की ओर जाता है l रुप की कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था l गुस्से में भैरव सिंह का चेहरा थर्राने लगता है l एक लात मारता है, दरवाजा धड़ाम से खुल जाता है l अंदर का दृश्य देख कर वह स्तब्ध हो जाता है l
Nice update....
 

RAAZ

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👉एक सौ पैंसठवाँ मेगा अपडेट (A)
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"आज जिस तरह से यशपुर क्षेत्र से लेकर बीन्का रोड तक एक पुलिस वैन जिसके भीतर रुप फाउंडेशन और राजगड़ मल्टिपर्पोज कोऑपरेटिव सोसाईटी के गवाहों के साथ साथ पुलिस व उनके वकील पर हमला हुआ, यह घटता राज्य के आम जन जीवन को हिला कर रख दिया है l यह घटना टीवी पर प्रसारित होने पर आम लोगों से लेकर बुद्धिजीबी तक शासन और प्रशासन पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं l यह घटना केवल राज्य भर ही नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र में अब चर्चा का विषय बन गया है l जिससे राज्य की चावी खराब हुई है l अब सुनने में आ रहा है कि मुख्यमंत्री ने इस विषय को गंभीरता से लिया है और मंत्रियों और अधिकारियों को एक आपातकालीन बैठक के लिए तुरंत तलब किया है l"

शाम धीरे धीरे ढल रहा था, सारे टीवी चैनल और दूसरे गण माध्यम इस खबर को अपने अपने हिसाब से लोगों तक पहुँचा रहे थे l दूसरी ओर सोनपुर की सरकारी आईवी के बाहर बहुत सारे न्यूज एजेंसीयों की ट्रांसमिशन वैन खड़ी हुई है l सारे न्यूज एंकर अपनी अपनी चैनल पर लाइव न्यूज प्रसारण कर रहे हैं l थोड़ी देर बाद तीनों बाइक पर सवार होकर विश्व और गवाहों के साथ साथ सुभाष और दास पहुँचते हैं l आईवी के कॉमन रुम में तीनों जजों के साथ बैठ कर नरोत्तम पत्री सुधांशु मिश्रा बात कर रहे हैं l तभी कॉमन रुम में छह लोगों की प्रवेश होता है l विश्व पत्री को देखता है पत्री निराशा के साथ अपना सिर ना में हिलाता है l

सुभाष - (जजों से) सर... आई एम... सुभाष सतपती... डेपुटी कमिश्नर एंड... द इनचार्ज ऑफ एसआईटी रुप फाउंडेशन... इट्स एन इमर्जेंसी...
जज - मुझे... पत्री बाबु यही समझा रहे थे... डीसीपी सतपती... पर आई एम सॉरी... मुझे लगता है... यह इमर्जेंसी आर्टिफिशल है... इसलिए सुनवाई... तय किए गए दिन पर होगी...
विश्व - आई एम सॉरी सर... यह तीन गवाह.. रजिस्टर्ड गवाह नहीं हैं... यह केस में पूरी तरह नए हैं... आपकी तय किए गए दिन... इन गवाहों की... जिरह हो सकती है... पर उससे पहले इनका बयान तो रजिस्टर्ड किया जा सकता है...
जज - मिस्टर डीसीपी... मजिस्ट्रेट या जज किसी आपातकालीन परिस्थिति में ही गवाही ले सकते हैं...
सुभाष - जी सर... यह आपातकालीन परिस्थिति ही है... हम अपनी और इनकी जान बचा कर आपके पास आए हैं...
जज - ओ... तो अब हमें... आपसे कानून सीखनी पड़ेगी...
विश्व - नहीं जज साहब... हम किसी कोर्ट में नहीं आए हैं... इमर्जेंसी के बयान... हमेशा पुलिस के द्वारा मैजिस्ट्रेट या जज के सामने ही दिलवाया जाता है... हम यहाँ कोई पेशगी कराने नहीं आए हैं... बल्कि... आपके सामने... पुलिस इन गवाहों से बयान दर्ज कराएगी...
जज - मिस्टर विश्व प्रताप... तुम अपनी हद पार् कर रहे हो... यह बात डीसीपी भी कह सकते हैं...
विश्व - सर... रुप फाउंडेशन केस को पुनर्जीवित मैंने किया है... और राजगड़ मल्टिपर्पोज कोऑपरेटिव सोसाईटी के केस में... मैं राजगड़ के गाँव वालों की तरफ से वकील हूँ... इस केस में कोई गवाह या सबूत जुड़ते हैं... यह जानना और उनकी सुरक्षा की माँग करना... मेरा कर्तव्य भी है...
जज - (सुभाष से) ह्म्म्म्म... तुम कुछ कहना चाहोगे डीसीपी...
सुभाष - सर... मैंने ना सिर्फ इन गवाहों को... अपनी तहकीकात के दौरान खोजा है... बल्कि.. होम मिनिस्ट्री में डिक्लेरेशन के साथ साथ... इन्हें वीटनेस प्रोटेक्शन में मैंने अपने अंडर शामिल भी कर लिया है... पर फैक्ट आप देख सकते हैं... इनकी खबर बाहर लीक हो गई... इसलिए... कुछ भी अनहोनी होने से पहले... हमने इन सबको आपके सामने लाने और गवाही दिलाने के लिए फैसला किया... बाकी आप और पूरा स्टेट जानता है...
जज - हाँ... हम सब जानते हैं... इंफैक्ट... हमने भी वह लाइव देखा है... पर हमें... यह सब फिल्मी लगा... आई मीन आर्टिफिशल लगा...
सुभाष - माय एक्सट्रीम एपोलोजी सर... क्या मैं जान सकता हूँ आपने ऐसा क्यूँ सोचा...
जज - इसलिए सोच पाए... क्यूँकी तुमने इसे मीडिया में ले आए... प्री प्लान्ड... इसके बारे में तुम हमें इंफॉर्म भी कर सकते थे...
डीसीपी - हाँ कर सकते थे... अगर यह राज लीक ना हुई होती तो... हम मजबूर थे... इसलिए... मीडिया वालों से कॉन्टैक्ट किए... अपनी और गवाहों की सेफ्टी के लिए...
जज - सरकार से क्यूँ नहीं सेफ्टी और सेक्यूरिटी माँगी...
सुभाष - मैं और इंस्पेक्टर दास... दोनों ही सरकारी मुलाजिम हैं... दोनों ही सरकारी आदेश पालन कर रहे थे...
जज - तो यह मीडिया...
सुभाष - सर... हम सब एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के एक एक कड़ी हैं... उसी लोकतांत्रिक व्यवस्था का चौथा स्तंभ यह मीडिया भी है.. इसलिए मैंने उनसे भी मदत माँगी...
जज - तो मीडिया को तुम्हें... आईवी के बाउंड्री के बाहर ही रखना था... वह देखो... (चारो तरफ खिड़कियों से,बाहर से सभी मीडिया वाले अपनी अपनी कैमरा से झाँक रहे थे) तुम इसे... इनकी सहायता से... मैटर को पब्लिक कर रहे हो... इसलिए... मैं यह गवाही नहीं ले सकता...
सुभाष - सर... यह जो मीडिया वाले... अपनी अपनी कैमरा से झाँक रहे हैं... यह पूरे स्टेट को... नहीं... पूरे देश को बता रहे हैं... दिखा रहे हैं... हमारा जुडिशल सिस्टम बायस्ड नहीं है... इंडिपेंडेंट है... जस्टिस के लिए... यहाँ कुछ भी किया जा सकता है...
जज - बहुत अच्छा बोल रहे हो... तुम्हें यह पुलिस का जॉब छोड़ कर... राजनीति करनी चाहिए... तुम यह सब बता कर... दिखा कर... मुझ पर प्रेसर कर रहे हो... और कह रहे हो... जस्टिस इंडिपेंडेंट है...
पत्री - (अपनी जगह से उठता है) आई एम सॉरी सर... यह केस जब से शुरु हुई है... तब से.. इसकी डेवलपमेंट देख कर हमें लगता है... आप किसी और के प्रेसर में हैं...
जज - माइंड योर टॉंग मिस्टर पत्री... यु आर एक्युजिंग मी...
पत्री - नहीं सर... आपसे पहले... मैं भी राजगड़ के लोगों की गवाही ले चुका हूँ... हम यहाँ आप से अनुरोध कर रहे हैं... यह जो मीडिया देख रहे हैं... यह इन गवाहों के सुरक्षा के लिए है... केस की तहकीकात में... जब नए सबूत और कंक्रीट गवाह जुड़ते हैं... चाहे वह सस्पेक्ट हो या एक्युज्ड... उसे मिटाने की कोशिश करते हैं... आपको मीडिया से प्रॉब्लम है... पर यह सब जो भी हुआ... यह मेरा ही आइडिया था... मैं नहीं चाहता था... न्याय की बेदी में कोई बलि चढ़ जाए... (सबसे) चलो... (बाहर जाने के लिए तैयार होता है)
जज - अब आप पत्री बाबु... फिर से एक्युज कर रहे हैं... और अपने साथ इन्हें बाहर कहाँ ले जा रहे हैं...
पत्री - मैं इन्हें लेकर... कल... भुवनेश्वर से लेकर अब तक... और जो इस कमरे में हुआ... वह सब मीडिया में कह दूँगा... क्यूँकी व्यवस्था में रह कर... अगर व्यवस्था से ही पीड़ित हों... तो न्याय की उम्मीद व्यवस्था के बजाय... हम... आम लोगों से ही कर सकते हैं... पता नहीं... हम कल जिंदा रहे... या ना रहे...
जज - (खड़ा हो जाता है) ह्वाट... ह्वाट डु यु मीन...
पत्री - आई मीन... ह्वाट यु मीन्ड... (कह कर बाहर जाने लगता है)
जज - होल्ड... (पत्री रुक जाता है) तुम.....तुम... (कुछ कह नहीं पाता, एक पॉज लेकर) ओके... आई एम रेडी... मैं... आई मीन... हम सब... इनकी गवाही लेने के लिए तैयार हैं... बट इट विल बेटर... तुम इन मीडिया वालों को कहो... यह लोग... यह जगह खाली करेंगे...
पत्री - नहीं सर... हम सब यहाँ लाइव हैं... आज पूरा स्टेट हमें जज कर रहा है... इनकी गवाही के बाद आपका क्या एक्शन होगा... यह भी लोग देखेंगे... अगर आप तैयार हैं तो...
जज - (हथियार डालते हुए) ओके... डीसीपी... गवाही की प्रोसीजर शुरु करो... और हाँ... गवाही के दौरान... सबका मोबाइल ऐरोप्लेंन मोड पर होना चाहिए...
सुभाष - जी सर... (दास को इशारा करता है l दास एक फाइल लेकर एक जगह बैठ जाता है, फिर सुभाष सुबुद्धी का परिचय कराता है,) सर... रुप फाउंडेशन के मिसींग वीटनेस.. मिस्टर अनिल कुमार सुबुद्धी... (इस दौरान सभी अपने अपने मोबाइल को ऐरोप्लेंन मोड पर रख देते हैं)

फिर सुबुद्धी अपना गवाही देने लगता है l उसकी गवाही ख़तम होने के बाद दास उससे फाइल पर दस्तखत लेता है और उसके नीचे तीनों जज दस्तखत करते हैं l उसके बाद श्रीधर परीड़ा अपना गवाही देता है और फाइल पर दस्तखत करता है l अंत में बल्लभ अपनी गवाही देता है जिसे रजिस्टर करने के बाद दास बल्लभ से दस्तखत लेने के लिए फाइल आगे कर देता है l

बल्लभ - (जज से) सर.. यह मैंने अब तक जो भी कहा... सब सच हैं... आगे चल कर हर एक बात पर... मैं डॉक्यूमेंट्री सबूत भी पेश करूँगा... पर अभी आपको... राजा भैरव सिंह की गिरफ्तारी के लिए... एक आदेश पारित करना होगा...
जज - वह किसलिए...
बल्लभ - सर.. वह शख्स... अगर बंद रहेगा... तब इस केस का कोई भविष्य है... वर्ना अंधकार ही अंधकार है... सर जब से विश्व राजगड़ आया है... तब से... राजा के सिपाही... हर कदम पर विश्वा से मात खाए हुए हैं... सर इसीलिये... राजा ने... ESS के सभी... हालिया रिक्रूट्स को.. राजगड़ बुलाया था... और हमें ख़तम करने के लिए... उन्हीं ESS वालों में से... कुछ लोगों को भेजा था... पर अब बात अलग है...
जज - अलग है... मतलब..
बल्लभ - राजा ने एक प्राइवेट आर्मी हायर किया है... यह एक फ्री लैंस मर्सिनरिज ग्रुप है... और जहां तक मेरा अंदाजा है... अब तक वह आर्मी... राजगड़ में अपना चार्ज ले चुके होंगे...
जज - तो...
बल्लभ - सर... कल... बड़े राजा जी की मौत का चौथ है... कल से राजगड़ पर सितम का पहाड़ टूटने वाला है... इसलिए किसी भी तरह... कुछ भी कर के... उन्हें रोक लीजिए...
जज - (सुभाष से) यह एक आर्मी की बात कह रहा है... क्या ऐसा पॉसिबल है... इतने बड़े ग्रुप का मूवमेंट हो... इंफ्रिटेंशन हो... और हमारी इंटेलिजेंस को कोई खबर ना हो.... (सुभाष चुप रहता है)
बल्लभ - मुमकिन है सर... वे लोग प्रोफेशनल हैं... वह ग्रुप टुकड़ियों में बंट कर आया था... आधे से ज्यादा... ESS के रिक्रूट बन कर आए हैं... और कोई फेरी वाला बन कर... कोई मदारी बन कर... ऐसे आम आदमियों की तरह आए होंगे... तभी तो उन्हें जमा होने में इतना वक़्त लगा... वर्ना... कब के आ चुके होते...
जज - दास... तुम्हारे थाने में इंफॉर्म करो... भैरव सिंह और उसके आदमियों पर कड़ी नजर रखी जाए...
दास - सर... अब भैरव सिंह और उसके लोग... हमारे बस की बात नहीं हैं...
जज - क्या मतलब...

दास - (महल में उसके साथ और कांस्टेबलों के साथ जो कुछ हुआ सब बताता है) और सर हम अपने साथियों को कंधे पर लाद कर... हस्पताल लेकर गए... गाँव में भैरव सिंह के जितने आदमी हैं... प्लस ESS के लोग... प्लस अगर प्राइवेट आर्मी आ गई है तो... आई एम सॉरी सर... भैरव सिंह को पकड़ने के लिए... एक नहीं पाँच से छह बटालियन की जरूरत पड़ेगी...
जज - ह्वाट...
दास - हाँ सर... उन्हें सिर्फ होम अरेस्ट करने के लिए... तीन प्लेटुन की जरूरत पड़ी थी... पर अब की बार...
जज - पर प्राइवेट आर्मी... हमें हवा हवाई बात लग रही है... फिर भी दास... अभी मैं एक वारंट इशू किए देता हूँ... राजगड़ थाने में इंफॉर्म करो... और जितने भी बंदे हो सकते हैं... उन सबको कहो... राजा भैरव सिंह को चौबीस घंटे तक होम अरेस्ट पर रखें... और इस बात की राजगड़ से पुष्टि करो... तब हम सीएमओ से बात कर... उन्हें रिपोर्ट कर कोई ऑर्डर निकाल सकें..
दास - आई एम सॉरी... पर ठीक है... मेरे थाने के लोग... जितना सम्भव हो उतना अवश्य करेंगे....

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"आज एसआईटी के प्रमुख श्री सुभाष सतपती जी के द्वारा स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट के तीनों जजों के समक्ष तीन अहम गवाहों को प्रस्तुत किया जिनकी गवाही पुलिस के द्वारा जजों के उपस्थिति में लिया गया l उसके तुरंत बाद जज xxxx जी ने राजा भैरव सिंह जी को तुरंत हिरासत में लेने के लिए यशपुर एसपी को आदेश दे दिया है और इस बात की जानकारी उन्होंने सीएमओ को दे दिया है l अब तक की प्राप्त सूचना के अनुसार यशपुर से रिजर्व बटालियन निकल चुकी है l हो सकता है राजा भैरव सिंह जी की गिरफ्तारी की खबर आज देर रात तक प्राप्त हो जाए l इसीके साथ मैं सुप्रिया रथ आपसे इजाजत चाहती हूँ l"

टीवी पर चल रही न्यूज को भैरव सिंह रिमोट से बंद कर देता है l बगल में खड़ा भीमा भैरव सिंह से सवाल करता है l

भीमा - अब क्या हुकुम है...
भैरव सिंह - (एक गहरी साँस लेकर) भीमा... सरकारी मेहमान आ रहे हैं... स्वागत में कोई कमी नहीं होनी चाहिए...
भीमा - जी हुकुम... (भीमा उल्टे पाँव जाने लगता है)
भैरव सिंह - और हाँ ध्यान रहे... जब तक हम इजाजत ना दें... कोई हरकत या होशियारी मत करना...
भीमा - जी हुकुम...

भीमा चला जाता है, उसके जाने के तुरंत बाद हाथ में गन लिए आर्मी के लिबास में एक व्यक्ति अंदर आता है और भैरव सिंह को सैल्यूट ठोकता है l

-डेविड.... रिपोर्टिंग टू प्राईवेट जनरल.. सर..
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... प्राईवेट जनरल... सुन कर अच्छा लगा... (अपनी कुर्सी से उठ कर) क्या ख़बर है डेविड...
डेविड - सर... मेरे साथ... वॉर रूम में चलिए सर...

किसी आर्मी पर्सनल की तरह डेविड पीछे मुड़ता है और बाहर जाने लगता है l भैरव सिंह उसके पीछे चल देता है l बाहर और चार लोग खड़े थे जो भैरव सिंह को सैल्यूट करते हैं और एक सुरक्षा घेरा बना कर भैरव सिंह के साथ चलने लगते हैं l डेविड और भैरव सिंह एक कमरे में पहुँचते हैं l बड़ी सी हॉल दीवान ए खास को वॉर रुम बनाया गया है l एक तरफ के दीवार पर पच्चीस से तीस के करीब टीवी स्क्रीन लगे थे l टीवी के सामने कुछ ऑपरेटर बैठे हुए थे l

डेविड - (एक रिमोट भैरव सिंह के हाथ में दे कर) इसे ऑन कीजिए सर...

भैरव सिंह रिमोट को ऑन करता है l सारे टीवी एक साथ ऑन हो जाते हैं l हर एक स्क्रीन पर लोगों के कुछ ना कुछ हरकतें दिख रही थी l

डेविड - सर... हमने... कुछ दिनों से अपने अपने काम में लगे हुए थे... आज पूरा हो गया... गाँव के एंट्रेंस से लेकर एक्जिट तक.. हर गली... हर चौराहे पर... हमने सर्विलांस कैमरा इंस्टाल कर दिया है... कोई पत्ता भी कहीं हिलेगा... तो भी हमें मालूम हो जाएगा...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... बढ़िया... बहुत बढ़िया... तो... अब तैयार हो जाओ... मेहमान आ रहे हैं... उनका स्वागत कुछ इस तरह से करेंगे... के पूरी दुनिया में त्राहि त्राहि मच जाएगा.... राजा... भैरव सिंह... क्षेत्रपाल...

कमरे में मौजूद सभी एक सुर में - यस सर...

उधर बाहर एक पुलिस की वैन आ रही थी जिसके आगे दो पुलिस की जीप और पीछे दो पुलिस की जीप आ रही थी l पाँचों गाड़ी एक के बाद एक बगल में महल के सामने रुक जाते हैं l क्यूँकी महल के गेट के सामने चार सफेद गाड़ियाँ रास्ते को बंद कर खड़ी थीं l सभी पुलिस वाले उतरते हैं और एक दूसरे की ओर देखते हैं l एक पुलिस ऑफिसर जगन को बुलाता है l

ऑफिसर - इधर आओ... (जगन उसके पास जाता है) यह... यह सब क्या है...
जगन - साहब... मैंने तो बताया ही था.. जब दिन दहाड़े हमारे पुलिस के दो सिपाहियों को अधमरा कर... हमें चल कर वापस जाने के लिए मजबूर कर सकता है... आप उस राजा भैरव सिंह को गिरफ्तार करने रात में आए हैं...
ऑफिसर - आ... ह्ह्ह्... (अपने ट्रूप्स को) आगे बढ़ने के लिए तैयार हो जाओ...

ऑफिसर का इतना कहना ही था कि एक के बाद एक चार जोरदार धमाके होते हैं l हर एक धमाके के साथ एक एक गाड़ी बीस फिट ऊँचाई तक उड़ जाती है और फिर परखच्चे उड़ने के साथ जलती हुई नीचे गिरतीं हैं l जो पुलिस वाले महल की ओर जाने की सोच रहे थे वह चुप चाप अपनी जगह पर चिपके खड़े हो जाते हैं l सबकी नजर उन जलती हुई गाडियों पर टिक जाती है l उन गाडियों के बीच से भीमा बाहर आता है और इनके सामने आकर खड़ा हो जाता है l

ऑफिसर - क... क.. कौन हो तुम... (भीमा जगन की तरफ़ देखता है)
जगन - यह... यह भीमा जी हैं... राजा साहब के... सबसे खास...
भीमा - समझा ऑफिसर...
ऑफिसर - ओके... देखो... हम... हम यहाँ... सरकारी आदेश पर आए हैं...
भीमा - शुक्र करो... राजा साहब तुम्हें जिंदा वापस जाने दे रहे हैं...
ऑफिसर - क्या... क्या मतलब है तुम्हारा...
भीमा - ऐसा हो नहीं सकता... के तुम्हें इतिहास मालूम ना हो... ऑफिसर... आज जो सरकारी काग़ज़ लेकर यहाँ आए हो... वह सरकार... राजा साहब के हुकुम के तलवे चाटती है... राजा साहब... जितना सह सकते थे... सह लिए... अब कोई भी सरकारी खाकी वर्दी वाला कुत्ता... महल की सरहद लाँघ कर महल के अंदर जा नहीं सकता... अगर वर्दी में गर्मी है... तो कोशिश कर देख लो... (ऑफिसर बहुत असहाय हो जाता है वह कभी अपने साथियों को तो कभी भीमा को देखने लगता है)
जगन - (ऑफिसर से) साहब... भलाई इसी में है कि... आप... अपने ऊपर तक खबर पहुँचाये... वर्ना इनकी तैयारी इतनी है कि हम लोग वापस ही ना जा पाएँ...
ऑफिसर - (जगन की बात मानते हुए) ओके... हम... उपर तक खबर पहुँचाएंगे... (अपने सिपाहियों से) मूव... बैक...

सभी सिपाही गाड़ी के अंदर जाने लगते हैं ऑफिसर भी जब जाने लगता है तभी भीमा उसे आवाज देता है

भीमा - रुको ऑफिसर... आए हो... तो खाली हाथ मत जाओ... (ऑफिसर मुड़ कर हैरत भरी नजर से देखता है, भीमा के साथी कुछ लोगों को सहारा देते हुए बाहर लाते हैं और ऑफिसर के सामने फेंक देते हैं) इन्हें ले जाओ...
ऑफिसर - (घबराई हुई आवाज़ में) यह... यह लोग कौन है...
भीमा - इन्हीं से पूछ लेना.. जब इन्हें होश आए... फ़िलहाल इनकी हालत बहुत नाजुक है... हस्पताल ले जाओ... जाओ...

कहकर भीमा मुड़ कर अंदर चला जाता है l ऑफिसर अपनी जेब से रुमाल निकाल कर पहले अपना मुहँ साफ करता है और बेहद लाचारी भरी नजर से जगन की ओर देखता है l जगन कुछ पुलिस वालों को लेकर आता है और नीचे पड़े अधमरे लोगों को उठाने लगता है l

उधर यह सब भैरव सिंह सीसीटीवी पर देख रहा था l उसके चेहरे पर एक मुस्कान बिखर जाती है l तभी कमरे में भीमा का प्रवेश होता है l

भीमा - हुकुम...
भैरव सिंह - शाबाश भीमा शाबाश... तुम वाकई हमारे सच्चे वफादार और नमकख्वार हो... हम बहुत खुश हुए...
भीमा - शुक्रिया हुकुम...
भैरव सिंह - भीमा... क्या तुम्हें याद है... हमने इंस्पेक्टर दास से एक वादा किया था... बड़े राजा जी की चौथ की मातम पूरा राजगड़ मनाएगा...
भीमा - जी हुकुम... कल चौथ है...
भैरव सिंह - तो आज की रात कहर टूटना चाहिए...
भीमा - हुकुम...
भैरव सिंह - तो जाओ... अपने सभी पहलवान कारिंदों को साथ लेकर जाओ... आज कोई भीमा, भूरा या शुकुरा नहीं... बल्कि रंगमहल के दुशासन बन कर जाओ... अर्सा हो गया है... रंगमहल में कोई रौनक नहीं है... रंगमहल की रंगीनी के लिए... जितने भी कमसिन द्रौपदी हैं सबको... उठा कर लाओ... जो भी बीच में आए... मौत के घाट उतार दो...
भीम - जी.. हुकुम... पर अगर... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - आज तुम लोग तांडव मचाने जा रहे हो... पुलिस भी नहीं आनी चाहिए... अब पुलिस सिर्फ डरी हुई है... आज रात की तांडव में... उन्हें उनकी लाचारी भी जताओ... दिखाओ... समझे...
भीमा - जी हुकुम... सब समझ गया...

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डॉक्टर बाहर आता है l बाहर विश्व, उसके दोस्त, सुभाष, और दास बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे l डॉक्टर को देखते ही सभी भाग कर उसके पास जाते हैं l

डॉक्टर - उदय जी... ऑउट ऑफ डेंजर हैं...
विश्व - यह बहुत अच्छी बात है... और विक्रम...
डॉक्टर - विक्रम जी को होश आ रहा है... पर.... कमजोरी बहुत है... खून बहुत बह गया था... ज़ख़्म भी गहरा था... उनका कंधे का कलर बोन फैक्चर है... इसलिये टेंपोररी पैरालाइज है... मेरी इल्तिजा है... आप बस थोड़ी देर के लिए ही... बात चित करें... उन्हें नींद आ जाएगी... उनको आराम की सख्त जरूरत है...
विश्व - ठीक है डॉक्टर... आपका बहुत बहुत शुक्रिया...

इतना कह कर सभी विक्रम के बेड के पास आते हैं l विश्व देखता है l जिस्म लगभग सभी जगहों पर पट्टी बंधी हुई है l सैलाइन और खून दिया जा रहा है l विक्रम आँखे मूँदे लेटा हुआ था l विश्व धीरे से आवाज देता है

विश्व - विक्रम...
विक्रम - हम्म... (अपनी आँखे खोलता है) आह... (थोड़ा कराहता है) प्रताप... गवाही हो गई...
विश्व - हाँ... सॉरी यार... मैंने तुमसे... बहुत जोखिम भरा काम लिया...
विक्रम - (हल्का सा मुस्कान चेहरे पर लाते हुए) कोई ना... शायद आज के बाद... सत्तू मुझे.. गाँव वालों में से एक समझे... और राजकुमार ना बुलाए...
विश्व - (आकर विक्रम का हाथ पकड़ लेता है) एक शिकायत भी है यार... तुमने... उनका पीछा क्यूँ किया... हम तब तक... सोनपुर में दाखिल हो चुके थे... सतपती जी ने... अपना पुलिस बटालियन को तैयार का रखा था.. हमने तो बस उन्हें डायवर्जन देने के लिए... तुम्हें कहा था...
विक्रम - (विक्रम भी विश्व के हाथ को कस कर पकड़ लेता है) अगर वे लोग... तुम्हारे पीछे पीछे... सोनपुर पहुँच जाते... तो वीर की आत्मा मुझे कभी माफ नहीं करती... मैंने जो भी किया... वीर के खातिर...
विश्व - अगर तुम्हें कुछ हो जाता... तो मैं... ना तो राजकुमारी जी को अपना चेहरा दिखा पाता... ना ही... शुभ्रा जी का सामना कर पाता...
विक्रम - हाँ... तुम्हारी बात की गहराई को समझ रहा हूँ... वह कहते हैं ना... सारी जहाँ की खुदाई एक तरफ... और जोरु का भाई एक तरफ... (यह सुन कर कमरे में सभी मुस्कुराने लगते हैं) तुम्हें अपनी बीवी से जुते पड़ते... है ना...
विश्व - (मुस्कुरा देता है) मत भूलो... शुभ्रा जी ने भी मुझे भाई कहा था... अगर कुछ.... (फफक पड़ता है) तो मैं... उनके अनजाने में ही... तुम्हें अपने मिशन में शामिल कर लिया...
विक्रम - श्श्श्श्.... तुम भी तो मेरे जोरु के भाई निकले... तो यह खतरा उठाना बनता था...
विश्व - आज वाकई तुमने मुझे हरा दिया... तुमने आज ऐसा कर्ज मुझ पर लाद दिया... के मैं जिंदगी भर तुम्हारे सामने... अपना सिर नहीं उठा पाऊँगा...
विक्रम - अरे यार... मरा नहीं हूँ... जिंदा हूँ... हाँ... राजा साहब की गिरफ्तारी नहीं देख पाऊँगा तो क्या हुआ... जब राजा साहब अपने अंजाम भुगतेंगे... उस जश्न में गाँव वालों के साथ तो होऊंगा ना...

डॉक्टर - (कमरे में आता है) आई थिंक... आपकी सारी बातचीत हो गई होगी... अब प्लीज... पेशेंट को आराम करने दीजिए...
विश्व - इट्स ओके डॉक्टर...
सुभाष - आपका बहुत बहुत शुक्रिया डॉक्टर...

सभी विक्रम को अलविदा कह कर कमरे के बाहर आते हैं l विश्व अपने सभी दोस्तों को गले लगा लेता है l सबकी आँखों में पानी बह रहा था l तभी सुभाष की मोबाइल बजने लगती है l सुभाष फोन निकाल कर देखता है जगन का कॉल था l वह इन सबसे थोड़ी दूर जाकर जगन से बातेँ करने लगता है l तभी विश्व की भी मोबाइल बजती है l विश्व सबसे अलग हो कर मोबाइल निकालता है l डिस्प्ले पर डैनी नाम देख कर कॉल उठाता है

विश्व - हैलो..
डैनी - विश्वा... मैंने वही आर्मर्ड वीइकल जो तुमने बिन्का बाईपास पर छोड़ा था... हास्पिटल तक पहुँचा दिया है... जितनी जल्दी हो सके... उस गाड़ी में राजगड़ पहूँचो...
विश्व - क्या... क्या हुआ है डैनी भाई...
डैनी - मुझे खबर मिली है... आज रात गाँव में कुछ गड़बड़ होने वाली है... पुलिस को अलर्ट न्यूज भेज दिया गया है... पर... खबर मिली है कि... भीमा और उसके लोग... इस बार गाँव में.. धार धार हथियार लेकर निकले हैं... इसलिए तुम भी पहुँचने की कोशिश करो... और हाँ... इसबार तुम अकेले नहीं होगे... मैं भी आ रहा हूँ...

फोन कट जाता है l विश्व परेशान हो कर अपने दोस्तों को देखने लगता है कि तभी सुभाष दास को साथ लेकर विश्व के पास पहुँचता है l

सुभाष - विश्व... एक इमर्जेंसी आ गई है...
विश्व - हाँ मुझे अभी अभी पता चला...
दास - क्या पता चला...
विश्व - भीमा और उसके गुर्गे... गाँव में हथियारों के साथ निकले हैं...
सुभाष - हाँ... जानते हो... अभी जब हम... विक्रम के ऑपरेशन के लिए यहाँ परेशान थे... तब राजगड़ में... (पुलिस वालों के साथ जो भी कुछ हुआ सब बताने लगता है) मेरे स्क्वाड के जितने भी बंदे थे... सबको... हमारे पहुँचने तक थाना टेक ओवर करने के लिए कहा था... उनको कॉर्डिनेट जगन कर रहा था... आज जिन लोगों को... अधमरा कर पुलिस के हवाले किया गया है... वे सब... होम मिनिस्टर के... सेक्यूरिटी के आदमी थे...
विश्व - ह्वाट...
दास - हाँ... इसका मतलब हुआ... अब होम मिनिस्टर... भैरव सिंह के कब्जे में है...
टीलु - (विश्व से) भाई... भाई... जरा दीदी को फोन करो...

विश्व वैदेही को फोन करता है l पर फोन लग नहीं रहा था l विश्व फिर सत्तू को फोन लगाता है पर उसका भी फोन नहीं लगता है l थक हार गए कर विश्व सुभाष की ओर देखता है l सुभाष जगन को फोन करता है पर इस बार सुभाष का कॉल भी नहीं जाती l

सुभाष - यह क्या... अभी अभी तो मैंने बात किया था...
टीलु - हो सकता है... उन्होंने मोबाइल टावर उड़ाया हो...
दास - हाँ... य़ह हो सकता है...
विश्व - तो फिर चलिए... जितनी जल्दी हो सके निकलते हैं...
दास - हम चाहे जितनी भी तेजी से जाएं... सुबह से पहले नहीं पहुँच सकते...
टीलु - यहाँ बातों से वक़्त जाया करने से अच्छा है कि... हम राजगड़ के लिए निकल जाएं...
सुभाष - यस.. ही इज राईट... लेट्स गो...

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भीमा और उसके साथी वैदेही की नाश्ते की दुकान वाली चौराहे पर लक्ष्मी और उसके पति हरिया, बिल्लू आदि कुछ गाँव वालों को लेकर आते हैं l

भीमा - (चिल्ला कर) ओ रंग महल की रंडी... बाहर निकल हराम जादी... सभी लड़कियों को अपने यहाँ छुपा कर रखी है... कुत्तीआ साली... बाहर निकल... (कोई हरकत नहीं होती) साली दरवाजा खोल कर बाहर निकल.... और उन ल़डकियों को हमारे हवाले कर... बर्षों बाद.. रंग महल में रौनक लौटेगी... बाहर निकल... (फिर भी कुछ जवाब नहीं मिलता है) भूरा... शनिया
भूरा और शनिया - जी... सरदार...
भीमा - जाओ... दरवाजा तोड़ डालो...

भूरा और शनिया कुछ लोगों को साथ लेकर भागते हुए दुकान की दरवाजे तक पहुँचते हैं कि तभी दरवाजा खुल जाता है l अंदर से गौरी निकलती है l सामने भूरा और शनिया को आकर थमते देखती है l अपनी नजरें घुमा कर देखती है, भीमा और उसके लोग बिल्लू, लक्ष्मी हरिया जैसे आठ दस लोगों को बालों से गर्दन से पकड़ रखे हुए हैं l

गौरी - क्या हुआ भीमा...
भीमा - अरे यह तो रंग महल की थूकी हुई बुढ़िया है... (सभी हा हा हा हा करके ठहाका लगाते हैं)
गौरी - यहाँ क्यूँ और किस बात के लिए हल्ला कर रहे हो...
भूरा - ओ हो... नखरे देखो तो बुढ़िया के... रौब ऐसे झाड़ रही है... जैसे दुकान की मालकिन हो...
गौरी - हाँ हूँ... इस दुकान की मालकिन मैं ही हूँ... गल्ले पर मालकिन ही बैठती है... इतना भी अक्ल नहीं है क्या तुझे...
शनिया - ओ तेरी... दो गज दूर श्मशान से... जुबान आठ गज की... ऐ चल बता... वह वैदेही कहाँ है...
गौरी - वह नहीं है यहाँ पर...
भूरा - (आगे बढ़ कर गौरी को बालों से पकड़ कर) क्या बोली बुढ़िया... (गौरी दर्द के मारे कराहती है) चिल्ला... और जोर से चिल्ला... बुला... उस कुत्तीया को...
गौरी - मैं सच कह रही हूँ... वैदेही घर में नहीं है... शाम को यह कह कर गई थी... आज नहीं लौटेगी...
भीमा - ऐ... (अपने कुछ लोगों से) जाओ... अंदर जाकर छान मारो...

कुछ लोग वैदेही के घर और दुकान में घुस जाते हैं l अंदर सामान तितर-बितर तोड़फोड़ कर देते हैं और बाहर आकर कहते हैं l

आदमी - बुढ़िया सच कह रही है... अंदर वह रंडी नहीं है...

भीमा हरिया को उल्टे हाथ का एक थप्पड़ मार देता है, जिससे हरिया कुछ दूर घूम कर गिरता है l लक्ष्मी रोते हुए हरिया के पास जाने लगती है तो भीमा उसे पकड़ लेता है l

भीमा - ऐ हरिया... राजा का हुकुम है... जितने भी ल़डकियों की माँ को अपने नीचे लाए थे... उन सभी ल़डकियों को रंग महल की रौनक बनायेंगे... चल बता तेरी बेटी कहाँ है...
बिल्लू - भीमा भाई... शाम को वैदेही दीदी आई थी... ल़डकियों को अपने साथ ले गई... कहाँ ले गई हम नहीं जानते... विश्वास करो... हम नहीं जानते...
भीमा - पुछा मैंने हरिया से था... तेरी चूल क्यूँ मची बे बिल्लू...
लक्ष्मी - सच ही तो कह रहे हैं बिल्लू भैया.. शाम को वैदेही दीदी आई थीं... हमारी बच्चियों को अपने साथ ले गईं... हम नहीं जानते... अब दीदी और बच्चे कहाँ हैं...
भीमा - (अपने आदमियों से) ऐ... जानते हो... आज राजा साहब ने हम सबको क्या कहा...
सभी - दुशासन...
भीमा - हाउउउ... तो... (लक्ष्मी को खिंच कर) यह रही द्रौपदी... लो इसकी चिर हरण शुरु करो...

भीमा की बात सुन कर सब ऐसे हँसते हैं जैसे पिशाचों की टोली हँसती है l लक्ष्मी भागने लगती है तो उसे भूरा और शनिया दबोच लेते हैं l लक्ष्मी को सब ऊपर उठा लेते हैं और सब उसे अपनी अपनी तरफ़ खिंचने लगते हैं l यह सब देख कर हरिया भीमा के पैर पकड़ कर लक्ष्मी को छोड़ने के लिए गिड़गिड़ाने लगता है l तब तक लक्ष्मी की साड़ी फट कर अलग हो चुकी थी l बिल्लू भी भीमा के पैर पर गिर कर लक्ष्मी को छोड़ने के लिए कहता है l पर उन सब शैतानों की हँसी कह कहा मंजर को और भी वीभत्स कर रहा था l उनकी शैतानी हँसी के आगे लक्ष्मी की चीखें सुनाई नहीं दे रही थी l तब तक लक्ष्मी की ब्लाउज फट कर अलग हो चुकी थी l गौरी से और बर्दास्त नहीं होती वह अपनी पूरी ताकत से चीखती है l

गौरी - रुक जाओ... मैं कहती हूँ रुक जाओ... (कॉफ.. ऑफ.. कॉफ) (गला फाड़ कर चिल्लाने के वज़ह से वह खांसने लगती है)
भीमा - ऐ... रुक जाओ...

सब लक्ष्मी को छोड़ देते हैं l लक्ष्मी की पेटीकोट फट चुकी थी बस कमर में लटक रही थी l दुबक कर नीचे खुद को छुपाकर बैठ जाती है l हरिया रेंगते हुए रोते हुए आता है और लक्ष्मी को गले लगा कर रोता है l

भीमा - हाँ तो बुढ़िया... बोल अभी... वैदेही कहाँ है...
गौरी - क्यूँ अपनी मौत को ढूंढ रहा है भीमा...
शनिया - उम्र देख... कमिनी... वर्ना साली की गाली देता तुझे... रंग महल की... थूकी हुए गुठली... चल बोल... वैदेही लड़कियों को लेकर कहाँ छुपी है...
भूरा - वर्ना... चिर हरण फिर से शुरू करें...
गौरी - तुम लोगों को विश्वा का डर नहीं है... अरे उससे तो तुम्हारा राजा भी डरता है...
भीमा - ऐ तुम लोग फिर से शुरू हो जाओ... यह डायन बकचोदी करने लगी है...
गौरी - नहीं रुक जाओ... मैं बताती हूँ...
भीमा - हाँ बोल...
गौरी - वह... वैदेही... बच्चों को लेकर... ग्राम देवी माँ की मंदिर में छुपी हुई है...
शनिया - ले... बुढ़िया ने मुह खोली... तो झूठ ही पेली... अबे बुढ़िया... ग्राम देवी की मंदिर सदियों से बंद है...
भीमा - बुढ़िया सच कह रही है... हम सब जगह ढूंढते... ढूंढते ही रह जाते... पर मंदिर कभी नहीं जाते.... क्यूँकी मंदिर... पाइकराय परिवार के खात्मे के साथ ही बंद हुई थी... हा हा हा हा हा हा... समय भी कहाँ घूम कर पहुँची... जिस परिवार को खत्म कर दसियों पहले मंदिर बंद किया गया था... उसी खानदान की अंतिम चिराग... मंदिर खोल कर छुपी हुई है... अपनी मौत से... हा हा हा हा हा हा... (भीमा के साथ सभी हँसने लगते हैं)

भीमा सभी गाँव वालों को वहीँ छोड़ कर अपने लोगों के साथ आगे बढ़ जाता है l उनके जाते ही बिल्लू गौरी से सवाल करता है

बिल्लू - यह... यह आपने क्या कर दिया काकी... हमारे बच्चों की खबर दे कर उनकी जान खतरे में डाल दी...
हरिया - हाँ... काकी... आपने ऐसा क्यूँ किया...
गौरी - चुप रह... कितने लोग आए थे... बीस आदमी... और तुम लोग... पूरा का पूरा मुहल्ला... अपनी दुम दबा कर छुपे हुए हैं... तुम लोगों को खिंच कर बाहर निकल कर... तुम्हीं लोगों से... तुम्हारे ही बच्चों का पता पूछ रहे हैं... और तुम्हारे ही घर की लक्ष्मी को बेइज्जत कर रहे हैं... फिर भी... तुम लोग पलटवार करने से कतरा रहे हो... अरे जितनी हिम्मत अपनी जमीन जायदाद की पूछने की की थी... अपनी बच्चियों के बारे में पूछने पर भूरा और शनिया को पीटने में दिखाई थी... और जिस नफरत को ढाल बना कर बड़े राजा के मातम पर नहीं गए थे... वह हिम्मत... वह नफरत कहाँ सो गई... क्या तुममे मर्दानगी तभी करवट लेती है... जब जब वैदेही और विश्व होते हैं... डूब मरो... लानत है तुम सब पर... अरे वह दो बहन भाई... अपनी जिंदगी तबाह और बर्बाद कर दिए... सिर्फ तुम लोगों के लिए... पर तुम लोग... वही गटर की जिंदगी छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं हो... तुम्हारे आने वाले कल के लिए... तुम्हारे बच्चों के लिए... अपनी जिंदगी दाव पर लगा दिया है... पर तुम लोग... थू है तुम पर... उनके पैरों पर गिड़गिड़ा रहे हो...
हरिया - हम... हम और कर ही क्या सकते हैं काकी... देखा नहीं... उन्होंने पुलिस को भी कितना लाचार कर दिया है...
गौरी - अरे बच्चों पर आ जाए तो हिरण भी सिंग लड़ा कर बाघ को फाड़ देती है... तुम लोग तो इंसान हो... किसका इंतजार कर रहे हो... याद रखो भगवान भी उसी के लिए धरती पर आते हैं... जो अपनी मान मर्यादा और पुरूषार्थ के लिए लड़ मर सकते हैं... वर्ना... तुम जैसों को बचाने के लिए भगवान का धरती पर उतरना भी... भगवान के लिए अपमान की बात होगी...

इतना सुनने के बाद भी बिल्लू, हरिया और वहाँ पर मौजूद लोगों में कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखती l पर लक्ष्मी अपनी जगह से उठती है और नीचे पड़ी एक लाठी को उठाती है l

हरिया - ऐ... तु क्या कर रही है... कहाँ जा रही है...
लक्ष्मी - अपनी बेटी को बचाने...
हरिया - पागल हो गई है तु... अभी अभी तेरे साथ क्या हो सकता था...
लक्ष्मी - हो सकता था... बर्षों पहले राजा ने कर दिया था... तब भी तु रोया था... गिड़गिड़ाया था... पर किया कुछ नहीं था... मेरी बेटी के लिए... वैदेही दीदी... लड़ेगी... तु और मैं... किसी कोने में छुप कर... रोयेंगे... नहीं अब ऐसा हरगिज नहीं होगा... मेरी बच्ची को... मेरे जीते जी... कुछ भी होने नहीं दूँगी...
हरिया - ऐ... ऐ... हम लड़ मर लेंगे उसके बाद क्या... हमारा बबलू... उसका क्या होगा...
लक्ष्मी - अभी भी... होने को क्या बचा है... कम से कम उसे इतना याद रहेगा... उसकी माँ... उसकी दीदी को बचाने के लिए... मर्दानी लड़ी थी...

कह कर लक्ष्मी आगे बढ़ जाती है l उसकी देखा देखी जितनी भी औरतें थीं वहाँ पर सभी अपने अपने घर भाग कर हाथों में कुछ ना कुछ ले लेते हैं और लक्ष्मी की गई दिशा में चल देते हैं l यह सब देख कर बिल्लू भी जाने लगता है l

हरिया - बिल्लू... कहाँ जा रहा है...
बिल्लू - लक्ष्मी भाभी जी के साथ... आज तक वैदेही दीदी अकेली लड़ती आई हैं... पर अब नहीं... आज से उनकी हर लड़ाई में मैं रहूँगा... हाँ तेरी बात और है... तेरा झुका हुआ सिर.. लक्ष्मी भाभी देख लेगी शायद... पर अगर मर मरा गया... तो गर्व के साथ... तेरी भाभी को ऊपर अपना शकल दिखाऊँगा... जो उसकी मौत पर भी ना कर सका... वह उसकी और मेरी बेटी के साथ नहीं होगा...

बिल्लू भी निकल जाता है l जिसे देख कर वहाँ पर मौजूद सभी मर्द एक के बाद एक बिल्लू के पीछे जाने लगते हैं l हरिया अपनी नजर घुमा कर देखता है गौरी उसे देख रही थी l हरिया अपनी नजर झुका लेता है l

गौरी - क्या तुझमें अब भी गैरत नहीं जाग रही... तेरी ना मर्दानगी में तेरी बीवी... तेरे दोस्त सब छोड़ गए हैं.. इससे पहले कि तेरा साया तुझे छोड़ दे... जा कुछ कर जा... मत भूल कल को तेरे बच्चे... तुझसे सवाल करेंगे... तब तु क्या जवाब देगा...

हरिया अपना गमछा कमर पर कस कर बाँध देता है और उसी ओर भागता है जिस और सभी गए थे l

उधर भीमा और उसके आदमी लठ और हथियारों के साथ मंदिर के पास पहुँचते हैं l सभी देखते हैं मंदिर के गेट पर ताला टूटा हुआ है और मंदिर के अंदर घना अंधेरा भी है l टूटा हुआ ताला देख कर भीमा मुस्कराता है l

भीमा - वाह... कमीनी ने क्या दिमाग चलाई है... हम सभी जगह ढूंढते रह जाते... पर मंदिर कभी नहीं आते... (चिल्ला कर) ऐ वैदेही... उन ल़डकियों को लेकर बाहर आ... हमें मालूम है... तु उन ल़डकियों को लेकर मंदिर के अंदर छुपी हुई है... ( कोई जवाब नहीं आता)
शनिया - कहीं बुढ़िया ने हमें झूठ तो नहीं बोला... हम सब जोश जोश में यहाँ तक आ गए...
भूरा - हाँ मुझे भी यही लग रहा है...
भीमा - चुप रहो सब... (फिर से चिल्लाता है) ऐ... हरामजादी वैदेही... कमीनी साली कुत्तीआ... बाहर आ रही है... या हम सब अंदर आयें...
शनिया - (चिल्लाते हुए) हाँ वैदेही... मैं याद हूँ ना तुझे... वादा किया था... तेरी एक दिन लूँगा... ले मैं आ गया...


मंदिर के गर्भ गृह में देवी के मूर्ति के पास वैदेही और सत्तू बच्चियों के साथ दरवाज़ा बंद कर सभी नींद में सोए हुए थे l भीमा और शनिया की आवाज़ सुन कर वैदेही और सत्तू की नींद टूटती है l

सत्तू - है भगवान... यह लोग यहाँ तक कैसे आ गए... हम यहाँ हैं... यह तो बस काकी को पता था...
वैदेही - काकी कभी अपनी परवाह नहीं करेगी... ज़रूर कुछ ऐसा हुआ होगा... जिसने काकी को मुहँ खोलने पर मजबूर कर दिया होगा...
सत्तू - अब हम क्या करें...
वैदेही - तुम बच्चियों के साथ गर्भ गृह में रहोगे... जब तक खोलने के लिए मैं या विश्व ना कहें...
सत्तू - मैं यहाँ रहूँ... और आप...
वैदेही - मैं बाहर जाकर इन्हें रोकुंगी...
सत्तू - नहीं दीदी... आप नहीं... मैं जाऊँगा...
वैदेही - (गुर्राती हुई) हूँह्हम्म्म... बच्चियों को मैं लेकर आई हूँ... इन्हें मैं कुछ भी होने नहीं दूँगी... (वैदेही उठती है)
सत्तू - दीदी...
बच्चे - मासी...
वैदेही - घबराओ मत... सत्तू... यह बच्चियाँ अब तेरी अमानत हैं... अंदर से कील लगाके रखना... सुबह होने को ज्यादा वक़्त भी नहीं है... सुबह तक मेरा विशु आ जाएगा... मैं उन्हें तब तक उलझाए रखूँगी... ठीक है.... (मल्लि आकर वैदेही को पकड़ लेती है) घबरा मत... कल इन सबका काल आ रहा है... मैं इन सबको तब तक रोक लूँगी... सत्तू... बच्चियां अब तुम्हारे हवाले...

वैदेही मल्लि को छुड़ाती है और गर्भ गृह से निकल कर बाहर आती है l अंदर से सत्तू दरवाजा बंद कर कुंडी लगा कर कील लगा देता है l वैदेही जैसे ही प्रांगण में आती है आसमान में बिजली कौंधती है l धीरे धीरे आगे बढ़ कर सीडियां उतर कर भीमा और उसके लोगों के सामने खड़ी होती है l

भीमा - लड़कियाँ... लड़कियाँ कहाँ हैं...
वैदेही - यह देवी माँ का मंदिर है... और लड़कियाँ उनकी शरण में हैं...
भीमा - हा हा हा हा हा हा... यह वही मंदिर है... जहाँ से तेरे परिवार को उठा लिया गया था... और मर्दों को काट दिया गया था... हा हा हा हा.. तब.. तब कहाँ गई थी देवी माँ... (भीमा के साथ सभी हँसने लगते हैं)
वैदेही - हँस ले कुत्ते हँस ले... जितना हो सके उतना हँस ले... क्यूँकी यह हँसी... आज के बाद कभी नहीं गूंजेगी...
शनिया - (भीमा से) भीमा भाई... तुम लोग आज इसे मेरे लिए छोड़ दो... तुम अंदर जाओ.. ल़डकियों को उठा लो...
भूरा - ल़डकियों के लिए... सबको जाने की क्या जरूरत है... मैं अकेला जाता हूँ... शनिया... आज तु बस ऐश कर...

सभी भद्दी हँसी हँसने लगते हैं l भूरा हँसते हुए आगे बढ़ता है और और वैदेही के सामने कमर पर हाथ रख कर खड़ा हो जाता है l वैदेही के सामने वैदेही को घूरते हुए पेट पकड़ कर हँसने लगता है l फिर वैदेही को किनारे छोडकर आगे बढ़ने को होता कि अचानक उसकी हँसी रुक जाती है l वह डरते और कांपते हुए अपनी कमर को देखता है वैदेही ने उसके कमर पर दरांती पूरी की पूरी घुसेड दी थी l इस बात का एहसास होते ही चिल्लाता है पर इससे पहले कि वह पूरा चिल्ला पाता वैदेही की दूसरी हाथ में कुल्हाड़ी निकल आती है और घुम कर चला देती है जो भूरा के सीने में धँस जाती है l तभी बिजली फिर से कौंधती है l सीडियों के नीचे भीमा और उसके साथ आए सभी गुर्गों की हँसी रुक जाती है l सभी की आँखे हैरत के मारे फैल चुकी थी l भूरा का शरीर धीरे धीरे प्राण छोड़ते घुटनों पर आ रहा था l अब आसमान में बिजलियाँ लगातार कौंधने लगती हैं l ठंडी ठंडी हवा बहने लगती है जो भीमा और उसके लोगों के हड्डियों में सर्द पैदा कर रही थी l वैदेही का चेहर सख्त दिख रहा था l जबड़े भिंचे हुए थे, हवाओं में लहराता हुआ उसके जुल्फें ऐसा लग रहा था जैसे खुद देवी उसके शरीर में आ गई हों l
अब तक कहकहे लगाने वाले के भीमा और शनिया का मुहँ खुला हुआ था l वैदेही भूरा की लाश को अपने पैर से धक्का देकर दरांती और कुल्हाड़ी निकाल लेती है l लाश सीडियों से लुढ़कती हुई भीमा के पैर के पास रुकती है l

वैदेही - शनिया... आजा... तेरी ख्वाहिश आज पूरा कर ले...

सब ऐसे खड़े थे जैसे सबको सांप सूँघ गया था l कोई अपने जगह से हिल भी नहीं पा रहा था क्यूँकी आज तक कोई राजा के आदमी को उन्हीं के आँखों के सामने मार दे ऐसा हुआ नहीं था l धीरे धीरे भीमा का चेहरा कठोर हो जाता है l

भीमा - (चिल्ला कर) आ आ आ... मारो इस कमीनी को... आज इसकी लाश को घसीटते हुए रंग महल ले जाएंगे... और मगरमच्छ को खिलाएँगे... टूट पड़ो इस पर...

भीमा अपनी जगह पर खड़ा रहता है और उसके सभी साथी, कोई ख़ंजर, कोई कटना, कोई खुख़री जैसे धार धार हथियार हाथों में लेकर वैदेही की भागते हुए जाते हैं l वैदेही भी तैयार थी दाएँ हाथ में कुल्हाड़ी और बाएं हाथ में दरांती लेकर इन सब पर टूट पड़ती है l वैदेही के आँखों में लेश मात्र डर नहीं था पर एक औरत से मात खा जाएं उस अपमान से कहीं ज्यादा मरजाना बेहतर समझ कर वैदेही के पास पहुँचे थे l पर उनकी तेजी से कहीं ज्यादा आज वैदेही तेज थी l किसी का पेट फट चुका था, किसी का हाथ कट चुका था और किसी का पैर कट गया था l एक के बाद एक सभी वैदेही के हाथों से बुरी तरह से ज़ख्मी हो रहे थे l वैदेही सबसे लड़ी जा रही थी, जब तीन तीन लोगों की वार रोक रखी थी तभी शनिया अपनी गुप्ति निकाल कर पीछे से वैदेही के पीठ में आरपार घुसेड़ देता है l इस वार ने पता नहीं कैसे वैदेही के अंदर अचानक ताकत भर देती है वह एक झटका देती है जिससे वह तीन जो वैदेही पर वार कर उलझाए रखे थे l गुलाटी खाते हुए नीचे गिरते हैं l वैदेही लड़खड़ाते हुए पीछे मुड़ कर देखती है l शनिया भद्दी हँसी हँस रहा था

भीमा - शाबाश... शनिया... शाबाश...
शनिया - साली कमीनी... तुझे अपने नीचे लाने की सोचा था... पर तु तो सबको ऊपर पहुँचाने में तूल गई है... अब उन ल़डकियों को हम पूरे गाँव में घसीटते हुए ले जायेंगे... तु उन्हें जाते हुए देखना फिर मर जाना... हा हा हा... (सभी शनिया के साथ हँसने लगते हैं)


वैदेही खुद को संभालती है और वह भी हँसने लगती - हा हा हा हा हा हा हा हा... I फिर
याआ आ आ... चिल्लाते हुए शनिया की ओर भाग कर उसके गले लग जाती है l जो गुप्ति शनिया ने वैदेही के पीठ पर आरपार घुसेड़ा था वही गुप्ति शनिया के पेट में घुस जाती है l वैदेही के इस हमले ने ना सिर्फ शनिया को बल्कि सभी को शॉक में डाल देती है l सबकी हँसी फिर से रुक जाती है l वैदेही शनिया के सिर को पकड़ कर अपनी दरांती को चला देती है l शनिया का सिर धड़ से अलग हो जाती है l वैदेही शनिया के सिर को हाथ में लेकर चिल्लाती है

या आ आ आ आ....

जो लोग वैदेही को घेरे खड़े थे वह सब डर के मारे नीचे भीमा के पास भाग जाते हैं l वहीँ से वैदेही की ओर देखने लगते हैं वैदेही, एक हाथ में दरांती और एक हाथ में शनिया कटा हुआ सिर था l चेहरा पूरा खून से सना हुआ था और हवा में उसके बाल लहरा रहे थे l बिजली की रौशनी में वैदेही देवी काली की प्रतिरूप दिख रही थी l वैदेही के इर्द गिर्द कुछ लोग मरे और ज़ख्मी हो कर गिरे पड़े थे और कुछ लोग भीमा के पास खड़े हो कर डर से कांप रहे थे l

वैदेही सीडियों पर बैठ जाती है अपनी कुल्हाड़ी को उठा कर उसे सीधा खड़ा करती है और उसे टेक लगा कर ऊपर अपना हाथ रखती है l दूसरी हाथ में दरांती लेकर भीमा की ओर देखती है l

वैदेही - (दहाड़ते हुए) है कोई माई का लाल... तो मुझे हटा कर ले जाओ उन बच्चियों को... आ...

भीमा और उसके साथी थर थर कांप रहे थे l वैदेही की इतना वीभत्स रूप को देख कर l एक आदमी भीमा से कहता है

आदमी - भीमा भाई... चलो चलते हैं...
भीमा - अबे चुप... खाली हाथ गए... तो मौत मिलेगी...
और एक आदमी - और आगे गए तो... साक्षात मौत बैठी है...
भीमा - घबराओ मत... कितनी देर जियेगी... थोड़ा ठहरते हैं... जब यह लुढ़क जाएगी... तब हम... ल़डकियों को ले जायेंगे...

वैदेही वैसे ही बैठी रहती है l उसकी आँखे एक टक भीमा की ओर देख रही थी l भीम की साँसे उपर नीचे हुए जा रही थी l तभी उसके कान में चीखने चिल्लाने की आवाज़ पीछे से सुनाई देती है l जब वह अपनी साथियों के साथ पीछे मुड़ कर देखता है तो उसके होश उड़ जाती है l गाँव के लोग हाथों में लाठी से लेकर हथियार तक लेकर भागते हुए मंदिर की ओर आ रहे थे l

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राजा जी... हुकुम...

यह भीमा की आवाज़ थी, भैरव सिंह के कानों में पड़ती है l रंग महल में भैरव सिंह उस तांत्रिक को लेकर अनुष्ठान प्रकोष्ठ में भीमा और उसके साथियों का इंतजार कर रहा था l उसे यकीन था आज सुबह होने से पहले जिन ल़डकियों की लिस्ट बनाई गई थी उन ल़डकियों को उठा कर ला रहे होंगे l भीमा की आवाज़ कानों में पड़ते ही भैरव सिंह के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है l क्यूँकी जैसा उसने तय किया था पिनाक के मौत के चौथे दिन पूरे राजगड़ में मातम मनेगी l

तांत्रिक - देखा यजमान... अनुष्ठान के लिए, हमने जो मुहूर्त मुकर्रर की थी... वह कितना शुभ है... हमने कहा था... कोई बाधा नहीं आएगी... कोई विघ्न नहीं आएगी... आपका प्रमुख शत्रु राजगड़ में नहीं है... आपने अपने द्वार से पुलिस वालों को धमका कर... चमका कर विदा करवा दिया... इसलिये संदेह नहीं... रखा गया मुहूर्त पर आपका रस्म... जरूर प्रारम्भ होने जा रही है... आप निश्चिंत हो कर रस्म अदायगी कीजिए... मैं आपको अस्वास्थ्य कर रहा हूँ... जब जब आपके परिवार ने इस अनुष्ठान का आयोजन किया है... आपका परिवार अविजित हो गया है... कोई भी सांसारिक शक्ति आपको परास्त कर नहीं सकता... इसलिये आप जाइए... आपके सारे कार्य अनुकूल होते जा रहे हैं... मैं अपनी तंत्र विद्या से अनुष्ठान को उत्कर्ष प्रदान करूँगा... आप अपनी राक्षसी विवाह पर ध्यान केंद्रित करें... चलिए कन्याओं का अवलोकन करते हैं...

तांत्रिक के साथ कमरे से बाहर निकल कर भैरव सिंह भीमा से मिलने बाहर जाता है l बाहर पहुँच कर देखता है भीमा लहुलुहान हो कर अकेला खड़ा है l भैरव सिंह को देखते ही जमीन पर गिर पड़ता है l पास खड़े एक गार्ड उसे उठाता है l भीमा हांफ रहा था l

भैरव सिंह - यह... क्या हुआ भीमा... तुम इस तरह...
भीमा - हम सब ना कामयाब रहे...
भैरव सिंह - (गुर्राते हुए) क्या... क्या कहा...
भीमा - हमने पुलिस वालों को डरा कर लोगों के मन में डर बिठा दिया था... लड़कियों को उठा लाने में कामयाब भी हो गये होते.... पर... वह.. वह वैदेही बीच में आ गई... उसने अकेले ही... हमारे आधे आदमियों को... भूरा और शनिया के साथ काट डाला...
भैरव सिंह - क्या...
भीमा - हाँ... हाँ हुकुम... वह एक हाथ में दरांती... और दूसरे हाथ में कुल्हाड़ी लेकर... हमारे सारे लोगों के साथ अकेली भीड़ गई... हमारे लोगों को ऐसे काट रही थी... जैसे रण चंडी... राक्षसों को काटती है.... फिर भी... हम उसे घायल करने में कामयाब हो गए थे.... पर उसी वक़्त हम पर... गाँव वाले... अपनी अपनी हथियारों के साथ टूट पड़े... सारे मारे गए... मैं... मैं किसी तरह खुद को बचा पाया... और आप तक खबर पहुँचाने आ गया...
भैरव सिंह - (चेहरा सख्त हो जाता है) तो तुम... उन कीड़े मकोड़ों से हार कर... डर कर... पीठ दिखा कर... भाग आए... (भीमा हांफ रहा था) (गार्ड से) ले जाओ इसे... आखेट गृह में... मगरमच्छ के हवाले कर दो...
भीमा - नहीं.. नहीं राजा सहाब... मेरे साथ ऐसा मत कीजिए... मैं आपका वफादार हूँ... सबसे भरोसेमंद हूँ... मेरी सेवा को याद कीजिए... राजा सहाब...
भैरव सिंह - तुम एक औरत से हारे... उसे पीठ दिखा कर आए... अपनी जान बचा कर आए... ऐसी जिंदगी से क्या फायदा... (गार्ड से) ले जाओ उसे...

भीमा चिल्लाता रहता है, पर कोई फायदा नहीं होता l गार्ड अपने साथियों के साथ साथ मिलकर भीमा को घसीटते हुए वहाँ से ले जाता है l यह सब देख कर तांत्रिक बड़ा ही शॉक में था l भैरव सिंह उसके तरफ मुड़ कर देखता है l तांत्रिक के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगती है l

भैरव सिंह - तांत्रिक.. तुने तो कहा था... बहुत ज़बर्दस्त मुहूर्त है... कोई बाधा कोई विघ्न नहीं आने वाली...
तांत्रिक - जी... कहा तो था...
भैरव सिंह - एक बात बताओ तांत्रिक... तुम्हें अपनी गणना पर विश्वास था... या हम पर...
तांत्रिक - जी... राजा साहब... आपकी शौर्य... अपकी पराक्रम पर... मेरी विद्या... मेरी गणना टिकी हुई थी...
भैरव सिंह - और तु हमें चूरन बेचता रहा... की तेरी गणना ऐसी है... की रस्म के साथ साथ भविष्य गढ़ने मे... कोई बाधा.. कोई विघ्न नहीं आएगी...

तभी सबकी कानों में भीमा की चीखें सुनाई देने लगती है l धीरे धीरे भीमा की चीखें सुनाई देना बंद हो जाती हैं l भैरव सिंह तांत्रिक से फिर से कहता है l

भैरव सिंह - हाँ तो तांत्रिक... हमने तेरी विद्या पर भरोसा किया... जबकि तु और तेरी विद्या... हमारे शौर्य और पराक्रम के दम पर टिकी थी... (तांत्रिक कोई जवाब नहीं देता) (जब वह गार्ड वापस आता है तो उसे कहता है) अब इस तांत्रिक को ले जाओ... लकड़बग्घे के सामने डाल दो...
तांत्रिक - यह क्या अनर्थ कर रहे हैं राजा साहब...
भैरव सिंह - कमीने... अब तक यजमान था... मौत दिखी तो... राजा साहब...
तांत्रिक - हम कुछ और हल निकाल सकते हैं...
भैरव सिंह - अब हल हो या हलाहल... जो भी निकालना होगा... राजा भैरव सिंह निकलेंगे... (गार्ड से) ले जाओ इसे... हमारी कानों में... इसकी चीखें सुनाई देनी चाहिए...

दो गार्ड्स तांत्रिक को पकड़ कर घसीटते हुए ले जाते हैं l तांत्रिक चिल्ला चिल्ला कर भैरव सिंह से माफी मांग रहा था l पर भैरव सिंह के कान में जु तक नहीं रेंग रहा था l भैरव सिंह रंग महल से बाहर आता है और अपनी गाड़ी में बैठ कर क्षेत्रपाल महल और जाता है l क्षेत्रपाल महल में पहुँच कर सीधे दीवान ए खास कमरे में जाता है l वहीँ पर लगे टीवी स्क्रीन को ऑन करने के लिए जॉन से कहता है l जॉन कोई सवाल किए वगैर सीसीटीवी के सारे स्क्रीन ऑन कर देता है l

उधर अंधेरा छट रहा था सूरज निकलने में अभी भी थोड़ा वक़्त था l विश्व उसके सारे दोस्त इंस्पेक्टर दास और सुभाष सतपती उसी बख्तर बंद गाड़ी में जो बिन्का बाईपास ओवर ब्रिज के नीचे रख छोड़े थे, डैनी के सतर्क करने और गाड़ी को हस्पताल के पास पहुँचाने के बाद उसी गाड़ी में सवार हो कर राजगड़ लौट रहे थे l गाड़ी सबसे पहले थाने के पास रुकती है, थाने की हालत देख कर सभी हैरान होते हैं l एक जला हुआ खंडर जैसा दिख रहा था जिसके कुछ जगहों से धुआं उठ रहा था l सभी गाड़ी से उतर कर तुरंत अंदर जाते हैं l सभी पुलिस वाले एक सेल में बंद बेहोश पड़े थे l सेल के बाहर ताला लगा हुआ था l धुएँ के प्रभाव में आकर सभी बेहोश थे l सारे संचार के साधन तितर बितर हुए पड़े थे l

दास - यह राजा पागल हो गया है क्या...
सुभाष - तुम अपना दिमाग ठंडा रखो... जिसने भी किया है... किसी को मारने के लिए नहीं किया है...
विश्व - पर बेबस और लाचार बना कर खौफ पैदा करने के लिए यह सब किया है... बेहतर होगा... पहले इन्हें यहाँ से रेस्क्यू किया जाए... (सभी सेल की ताला तोड़कर भीतर बेहोश पड़े पुलिस वालों को निकालने के लिए लग जाते हैं)
दास - राजा ने कहा था... आज का दिन पूरे राजगड़ में मातम होगा... अपनी बात को साबित करने के लिए... उसके लोगों ने... हर कम्युनिकेशन को डेश्ट्रॉय कर डाला होगा... फिर यह सब तांडव किया होगा...
टीलु - कहीं उसके लोगों ने यह सब... पुलिस को रोके रखने के लिए तो नहीं किया... (सभी उसके तरफ देखते हैं) कहीं इसी बीच गाँव में कोई आतंक तो नहीं मचाया...

विश्व इतना सुन कर बाहर की ओर भागता है, उसके पीछे पीछे उसके दोस्त सभी भाग जाते हैं l विश्व बाहर आकर गाड़ी में बैठता है सीलु ड्राइव कर गाड़ी को गाँव के भीतर ले जाता है l एक मोड़ पर टीलु सबको इशारा कर दिखाता है l सीलु उसी तरफ गाड़ी मोड़ देता है क्यूँकी उन्हें मंदिर के पास सभी गाँव वालों का जमावड़ा दिखता है l गाड़ी गाँव वालों के पास रुकती है l सभी गाड़ी से उतरते हैं l गाँव वाले मुड़ कर इन्हीं के तरफ़ देखते हैं, विश्व देखता है सबके आँखों में आँसू बह रहा था l टीलु विश्व के बाजू को जोर से पकड़ लेता है l सभी आगे बढ़ते हैं और गाँव वाले उन्हें रास्ता देते हैं l मंदिर के सीडियों के पास आकर रुक जाते हैं l गौरी विश्व को देखती है और रोते बिलखते आकर विश्व के गले लग जाती है l

गौरी - अनर्थ हो गया विशु... तेरी दीदी को... (कह नहीं पाती रोने लगती है, सत्तू और बच्चे भी विश्व के पास आते हैं )
सत्तू - विशु भैया... दीदी ने हम सबको मंदिर के अंदर बंद कर दिया और अकेली इन जानवरों से भीड़ गई...

विश्व गौरी को अपने से अलग करता है l आगे बढ़ता है लाश के पास लक्ष्मी और कुछ औरतें बैठ कर रो रहीं थीं l विश्व एक बुत की तरह वैदेही की लाश को घूर रहा था l विश्व के सभी दोस्त रो रहे थे पर विश्व नहीं रो रहा था या फिर रो नहीं पा रहा था l उसके आँखों से आँसू बह नहीं रहे थे l उसकी यह हालत देख कर हरिया पास आता है

हरिया - विशु... ऐ विशु भाई... दीदी... हमारे घर की लाज लक्ष्मी को बचाने के लिए.. हमारी ना मर्दानगी की बेदी पर... खुद की बली चढ़ा दी... (विश्व फिर भी एक मूक की तरह देखे जा रहा था)
टीलु - भाई यह सब मेरी गलती है... दीदी को मालूम था... यह सब होगा... पर उसने मुझे कसम दी थी... तुम्हें ना कहने के लिए... मुझे भी अपने पास नहीं रहने दिया... (विश्व टीलु के कंधे पर हाथ रखता है फिर भी नहीं रोता)
गौरी - (पास आ कर) विशु... तु रोता क्यूँ नहीं है... तेरी दीदी तुझे छोड़ कर चली गई है...

विश्व अपने दीदी के लाश के पास आता है और घुटने पर बैठ जाता है l अपनी बाहें बढ़ा कर वैदेही के शव को उठा लेता है और वैदेही के दुकान की ओर ले जाने लगता है l सारे गाँव वाले विश्व के पीछे पीछे चलने लगते हैं l विश्व दुकान के सामने पहुँच कर

विश्व - टीलु... जाओ एक कुर्सी लेकर आओ...

टीलु कोई सवाल जवाब किए वगैर अंदर जाता है उसी कुर्सी को उठा कर लाता है जिस पर वैदेही अक्सर बैठा करती थी l विश्व वैदेही की लाश को उस कुर्सी पर बिठा देता है l फिर गाँव के औरतों को हाथ जोड़ कर कहता है

विश्व - आप लोग दीदी को नहलाके... हल्दी लगा के.. अर्थी की तैयारी कीजिए... मैं अभी आया...

इतना कह कर विश्व दुकान के अंदर घुस जाता है l सभी गाँव वाले पहले एक दूसरे को देखते हैं फिर औरतें सभी वैदेही की अंतिम विदाई की तैयारी करने की तैयारी करते हैं l सारे मर्द विश्व की हरकत से हैरत में थे l थोड़ी देर बाद विश्व एक बैग लेकर आता है

विश्व - सत्तू... (बैग उसके हाथ में दे कर) इस बैग में... गाँव वालों की जमीनों की कागजात हैं... जिसे दीदी ने... भैरव सिंह के महल से हासिल किया था... बांट दो इन्हें...

सत्तू विश्व के हाथ से वह बैग ले लेता है l सत्तू के बैग ले जाने के बाद विश्व गाँव वालों के बीच से होते हुए मंदिर की ओर जाता है l विश्व को अकेले ऐसे जाते देख सीलु जिलु और मीलु भी विश्व के साथ जाने लगते हैं l गाँव के कुछ और मर्द भी पीछे पीछे जाने लगते हैं l मंदिर के पास विश्व आर्मर्ड गाड़ी के अंदर चला जाता है l बाहर लोग खड़े होकर विश्व की हरकत देखने लगते हैं l थोड़ी देर बाद विश्व गाड़ी से उतर कर इन सबको देख सीलु से कहता है

विश्व - सीलु... तुम लोग जाओ... दीदी की अर्थी तैयार करो... मैं कुछ देर में आता हूँ...
हरिया - अर्थी... हम सब मिलकर तैयार करेंगे... विशु... इससे पहले गाँव में किसी आम लोगों को कभी भी कंधा नहीं मिला है... पर आज हम गाँव वाले... दीदी को कंधा देंगे...
विश्व - नहीं... गाँव में कभी ऐसा हुआ नहीं... लोग... आज तक ना तो किसीकी खुशी में शामिल हुए थे... ना ही किसीकी मातम में..
बिल्लू - तो क्या हुआ... गाँव का यह मिथक टूटा भी तो है... कोई राजा को तो क्या... महल तक को पीठ कर लौटा नहीं था.. दीदी के साथ हमने किया था... राजा के घर खुशियों में शामिल हो ना हो... मातम में शामिल जरूर होते थे... दीदी साक्षी थी... हममे से किसी ने भी... बड़े राजा के मातम में शामिल नहीं हुए हैं... सिवाय राजा के खानदान के... किसी और परिवार की अर्थी गाँव में नहीं घूमी है... पर आज दीदी की अर्थी गाँव के हर गली से... हर चौराहे से... हर दरवाजे के सामने गुजरेगी... हम... हम अपने कंधो पर लेकर जायेंगे..
सभी - गाँव वाले चिल्लाते हैं... हाँ हाँ... हमने बड़े राजा का अर्थी गाँव में घूमने नहीं दिया... पर आज दीदी की अर्थी गाँव के हर गली से... हर घर के आँगन के आगे से गुजरेगी...

कुछ देर के लिए विश्व स्तब्ध हो जाता है l वह एक गहरी साँस लेता है फिर गाँव वालों से कहता है

विश्व - ठीक है... आप सब... दीदी की अर्थी की तैयारी कीजिए... मैं महल जा रहा हूँ... थोड़ी देर के बाद आकर शामिल हो जाऊँगा...
जिलु - महल... महल किसलिए जाओगे... क्यूँ...
मीलु - भाई... पहले दीदी की अंतिम संस्कार कर देते हैं ना... उसके बाद... हम महल की ईंट से ईंट बजा देंगे...
विश्व - मैं महल दीदी की आखरी ख्वाहिश पूरा करने जा रहा हूँ...
सीलु - आखरी ख्वाहिश...
विश्व - दीदी ने कहा था... उसे उसकी बहु के हाथ से विदा होना है... इसलिए... मैं महल... उसकी बहु को लाने जा रहा हूँ...
मीलु - भाई तुम अकेले... नहीं... भाभी को लाने हम सब जाएंगे...

गाँव वाले जो सुन रहे थे सब हैरत में थे, महल में विश्व की पत्नी कौन है l वे यह सब सुन कर एक दूसरे के मुहँ ताकने लगते हैं l

विश्व - नहीं... मुझे कुछ नहीं होगा... वैसे भी राजकुमारी जी से मैंने वादा किया था... उन्हें.. भैरव सिंह के आँखों के सामने लेकर जाऊँगा... अभी वह वक़्त आ गया है...

इतना कह कर विश्व महल की ओर जाने लगता है l गाँव के कुछ लोग विश्व के दोस्तों के साथ विश्व के पीछे पीछे चलने लगते हैं और कुछ लोग अर्थी का सामान जुटा कर अर्थी बनाने लगते हैं l विश्व महल के कुछ दूरी पर पहुँच कर सबको रुकने के लिए कहता है l विश्व की बात मान कर सभी रुक जाते हैं l विश्व अकेले महल की ओर बढ़ता है l उसे आता देख एक सिक्यूरिटी गार्ड वायर लेस से भैरव सिंह को इंफॉर्म करता है l

गार्ड - जनरल... सम वन इज कमिंग...
भैरव सिंह - आई नो... डोंट स्टॉप हिम... लेट हिम कम...
गार्ड - ओके जनरल...

भैरव सिंह अपनी सर्विलांस रूम में बैठ कर विश्व को महल की परिसर में दाखिल होते हुए देख रहा था l वायरलेस को रख कमरे से भैरव सिंह निकल कर बाहर बरामदे तक आता है l विश्व सीढ़ीयों तक पहुँच चुका था l भैरव सिंह को देख कर विश्व रुक जाता है l दोनों की नजरें मिलती है l विश्व भैरव सिंह के आँखों में देखते हुए सीढ़ी चढ़ कर भैरव सिंह के सामने खड़ा होता है l भैरव सिंह विश्व के आँखों में उठ रहे तूफान को साफ महसुस कर पा रहा था l

भैरव सिंह - आ विश्वा आ... तु वह पहला इंसान है... जिससे मिलने और बात करने बाहर तक आए हैं... (भैरव सिंह आगे बढ़ने लगता है, विश्व भी उसके साथ चलने लगता है) जो हुआ... हम वैसा नहीं चाहते थे... पर हो गया... अगर हुआ... तो ऐसा क्यूँ हुआ... जब कि उसे होना नहीं चाहिए था... (विश्व खामोश रहता है) यह एक बहुत बड़ा सच है... जो कोई नहीं सोचता... प्रकृति का अपना नियम है... पहाड़ से.. कोई कंकर टकराता नहीं है... पर तुने... और तेरी बहन ने वह सब किया... जो प्रकृति के विरुद्ध है... परिणाम ऐसे ही सामने आता है... हम जानते हैं... तेरे अंदर बहुत गुस्सा... बहुत आग है... तेरे अंदर की ज़ज्बात... जोश मार रहा होगा... तेरे अंदर की आग में.. यह महल... इस सल्तनत को जला देने के लिए... पर तु पढा़ लिखा है... इस सच को तु अच्छी तरह से समझता होगा... हर क्रिया का प्रतिक्रिया होता है... यह बात तुझे ही नहीं... बल्कि इस स्टेट में सबको पता होना चाहिए... की यहाँ क्रिया करना हमारा हक है... हर हमारे खिलाफ क्रिया का प्रतिक्रिया देना भी हमारा ही हक है... (विश्व फिर भी शांत था) अपनी दीदी की चिता को आग देने के बजाय तुम यहाँ आए हो... हम समझ सकते हैं... बदला चीज़ ही ऐसी है... पर हर किसी को... प्रकृति का नियम याद रखना चाहिए... कंकर की औकात ठोकर पर होती है... पहाड़ से टकराने की नहीं... (अब तक दोनों सर्विलांस कमरे में आ चुके थे) विश्वा.. यह देख... सारा गाँव हमारी नजरों में है... क्यूँकी हम हज़ारों आँखों से सब देख रहे हैं... हमने यह भी देखा... कैसे तेरे बंदे ने... हमारे जमीनों की कागजात... गाँव के लोगों में बांट दिया... (इतना कह कर भैरव सिंह एक कुर्सी पर बैठ जाता है) तुने जितना करना था... कर लिया... जमीनों की कागजात हम हासिल कर ही लेंगे.... (गम्भीर हो कर) तेरे वज़ह से हमसे हमारा परिवार बिखर गया... पर बदले में तेरा बहुत कम ही नुकसान हुआ है... अब बोल... आगे क्या करना चाहता है... अपनी दीदी की लाश की चिता में आग देना चाहता है... या तेरी भी लाश को लावारिस करना चाहता है...
विश्व - सुना है... तेरे खानदान को... ताकत और हुकूमत.. एक टूटी हुई नंगी तलवार से मिला था...
भैरव सिंह - हाँ... सही सुना है...
विश्व - और क्या यह भी सच है... की तलवार जिस दिन सलामती पर आ जाएगा... उस दिन तेरी हुकूमत... तेरी सल्तनत... सब खत्म हो जाएगा...
भैरव सिंह - (भौहें सिकुड़ जाते हैं) तुझे उस तलवार में इतनी दिलचस्पी क्यूँ है... कोई हरकत करने की सोचना भी मत... वर्ना... यहाँ से जिंदा वापस नहीं जा पाएगा...
विश्व - मैं तब भी जिंदा वापस गया था... जब कुछ नहीं था... आज भी जाऊँगा... मेरी अमानत है तेरे महल में... उसे लेकर जाऊँगा... और इस बार... तु... बाहर तक मुझे मेरे अमानत के साथ... छोड़ने जाएगा... (यह कह कर विश्व सीसीटीवी की ओर देख कर मुस्कराता है)


भैरव सिंह हैरान हो कर पीछे मुड़ कर सीसीटीवी की ओर देखता है, उसे सीसीटीवी पर कोई हलचल नजर नहीं आता, वह सतर्क हो जाता है और पीछे मुड़ कर देखता है, विश्व वहाँ पर नहीं था l अपनी चेयर से उठ खड़ा होता है, मुट्ठियाँ भिंच कर कमरे से बाहर निकल कर अंतर्महल की ओर जाता है l रुप की कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था l गुस्से में भैरव सिंह का चेहरा थर्राने लगता है l एक लात मारता है, दरवाजा धड़ाम से खुल जाता है l अंदर का दृश्य देख कर वह स्तब्ध हो जाता है l
Bohat hi khatarnak update aur shayad ab antim adhyay shuru ho gaya hai. Yah kahani un logo ke liye jawab hai jo zulm ke naam per jati ya dharam ke naam per maryada ki khokli rasmo ke naam per insaan ko shoshan kar ke unke bhagwan ya khuda ban jatey specially hamare desh me aur uske padosi mulk me yah ek aam baat hai magar inhi sab se paida hota hai ek bhaghi ek andolankarta jaisay duniya janti hai VISHWARUPAN ke naam se.

Lekin jab bhi kabhi koi andolan ya badlav aata hai to bohat se apne ki qurbani Deni padti hai veer aur vaidhavi ne apni jaan ki aahuti dekar tai kar diya hai ki ab Raja ki hukumat ke ant ka arambh ho chuka hai.
 
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