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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

Mr. X
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*Index *
 
Last edited:

Kala Nag

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Bhai jaise aapne bataya tha ki Yeh story ek extended version h सम्भावी ka toh mujhe lgta h आपके us नाट्य मे वैदही ही मुख्य पात्र रहीं होगी क्यूंकि मुझे नहीं लगता रूप मुख्य पात्र हो सकती h उस नाट्य का कहानी के इस मोड़ तक पहुचने के पश्चात भी, वैदेही is hands down one of the most amazing female character I've ever seen/read जिसका लेखन किसी भी male character के जितना ही स्ट्रॉन्ग है वैदेही का past explanation इतना painfull bhai कोई compromise नहीं किया है आपने उसके character के डेवलपमेंट मे. बहुत कम ऐसा देखना मिलता h की female character का ऐसी व्याख्या most authers बस ऑफ स्क्रीन describe कर देते h की इसने यह सहा है वो सहा है ताकि हम उस character से sympathize कर पाए पर आपने बताया नहीं दिखाया है कहानी मे कि लोग क्यूँ कहते है कि आदमी जरूर physically स्ट्रॉन्ग है पर औरत की सहनशक्ति का वो 10 प्रतिशत भी नहीं झेल सकता well written मेल character तो बहुत पढ़े हैं भाई पर बहुत कम लोग ही आपके जैसा female character वर्णन कर पाते है विश्वा भले ही main character हो वैदेही के characterisation के आगे वो भी feeka ही है अब तक, आगे चल कर बहुत मेहनत करनी होगी आपको विश्वा का character ko वैदेही के equal krne की मंशा है अगर आप की तो.
हाँ यह बात आपने सही कही
एक छोटा सा नाटक में मुख्य भूमिका में किसी पुरुष को स्थापित करना और उसके अनुरूप चरित्रों को तैयार करना और उसके चरित्र को उभारने के लिए घटनाओं का उल्लेख करना बहुत ही मुश्किल भरा काम है l
जो कष्ट और पीड़ा वैदेही की है उसकी तुलना करना किसी भी चरित्र या पात्र के द्वारा संभव नहीं है
अभी वक़्त है
विश्व का अतीत को सामने आने में तब तक वर्तमान को उलझने देते हैं
 

Kala Nag

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👉बहत्तरवां अपडेट
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सात कारों का काफिला बड़ी तेजी से रंग महल की ओर जा रही है l बीच में सफेद रंग की वोल्वो एसयूवी को गार्ड करते हुए आगे और पीछे तीन तीन काले रंग के फोर्ड एंडेवर जा रहे हैं l राह चलते लोग और यदा कदा जमे हुए लोग भी बड़ी उत्सुकता वश उस गुज़रती काफिले को देख रहे हैं l उन्हें हैरानी होती है, इतनी सुबह रंग महल की ओर जाने वाला जरूर कोई विशिष्ट व्यक्ति होगा l वह काफिला रंगमहल को पार करते हुए आखेट मैदान के पास रुकती है l वह मैदान भैरव सिंह का गल्फ कोर्ट है l मैदान की चारों और तारों की बाड़ लगे हुए हैं और बाड़ के भीतर बाडों से सट कर बड़े बड़े देवदार के पेड़ लगे हुए हैं l इसलिए मैदान के अंदर क्या हो रहा है, कोई बाहर वाला अंदाजा तक नहीं लगा सकता है l सफेद वोल्वो की आगे की सीट से काले रंग के शूट पहने आदमी उतरता है l उसके उतरते ही सभी काले रंग की गाड़ी से शूट बूट पहने गन से लेस पच्चीस तीस कमांडोज उतर कर गाड़ी के पास खड़े होते हैं l वह जो वोल्वो गाड़ी से उतरा था, आखेट मैदान के गेट के पास जाता है l गेट के बाहर भैरव सिंह के हथियार बंद पहरेदार दो डाबरमैन कुत्तों के साथ खड़े हुए थे l

आदमी - राजा साहब को खबर दो... राज्य के गृहमंत्री आए हैं...
पहरेदार - तो...
आदमी - गृहमंत्री आए हैं...
पहरेदार - तो...
आदमी - वह.. राजा साहब जी से मिलना चाहते हैं...
पहरेदार - तुम्हारे गृहमंत्री के पास... राजा साहब से मिलने का अपॉइंटमेंट है...
आदमी - (ऊंची आवाज़ में) व्हाट... ही इज़ द होम मिनिस्टर...
दुसरा पहरेदार - ऑए... अंग्रेजी कुत्ते के दुम.. आवाज नीचे...
आदमी - व्हाट नॉनसेंस ... देखो हम प्यार से समझा रहे हैं... नहीं तो...

कुत्ते जो पहरेदारों के पास बैठे हुए थे अचानक खड़े हो कर गुर्राने लगते हैं l

पहरेदार - देख बे फ़ालतू आदमी... तेरी हिमाकत... राजा साहब के पालतू कुत्तों से बर्दास्त नहीं हुई... और हम तो उनके पालतू आदमी हैं... चल निकल यहाँ से...

वह आदमी अपने हाथ को कमर पर रखने के बहाने कंधे के नीचे हॉलस्टर में रखे गन दिखाता है l

पहरेदार - सुन बे गू मंत्री के चमचे... यह फिल्मी पैंतरा किसी और जगह के लिए बचा के रख... तु और तेरे साथ आए हुए पुरा का पुरा काफिला... राजा साहब के निशांची के निशाने में हैं... तेरे सीने में चमक रहे दो लाल रंग के बिंदुओं को देख...

आदमी अपने सीने पर दो लेज़र लाइट के निशान देखता है, तो अपने कमर से हाथ निकाल कर सीधा खड़ा हो जाता है l पर तब तक उसे एहसास हो जाता है वहाँ पर बैठे डाबरमैन कुत्ते खड़े हो कर खतरनाक तरीके से उस आदमी को घूर रहे हैं l


आदमी - (हकलाते हुए) द.. दे.. देखिए... व... वह गृहमंत्री हैं... आ.. आप... राजा साहब जी को संदेशा दीजिए प्लीज... गृहमंत्री उनसे मिलने आए हैं... सीधे यशपुर से आए हैं...
पहरेदार - अब तुम्हारा लहजा कुछ ठीक लगा... राजा साहब गोल्फ खेल रहे हैं... खबर भिजवाता हूँ...

वह पहरेदार दुसरे पहरेदार को इशारा करता है l दुसरा पहरेदार एक वायर लेस फोन पर कहीं बात करता है और फिर फोन रख देता है l

पहरेदार - सुन बे चवनी छाप के पैदाइश... तुने यशपुर या राजगड़ आते वक़्त... यशपुर और राजगड़ के बारे में... यहाँ के सामाजिक तत्वों ने... रास्तों पर दूरी बताने वाले माइल स्टोन पर क्या लिखा है... अगर पढ़ लिया होता.. तो यह नौटंकी की जरूरत नहीं पड़ती तुझे... ऐसा तो हो नहीं सकता कि तुझे राजा साहब जी के बारे में पता ही ना हो... पर तु जिसके इशारे पर यह नाटक किया है ना... आज उसकी औकात भी देखेगा... (वह आदमी हैरान हो कर पहरेदार को देखता है) यूँ आँखे फाड़ के देख मत... यहाँ के शांति प्रिय सामाजिक तत्वों ने... माइल स्टोन पर यशपुर के... श की डण्डी के साथ छेड़छाड़ करते हुए... यमपुर लिखा है और राज के साथ छेड़छाड़ कर राक्षस लिख दिया है... भले ही राज्य की भूगोल में... इस प्रांत को यशपुर और राजगड़ कहा जाता हो... असल में यह वही है... जो यहाँ के शांति प्रिय लोगों ने... माइल स्टोन पर लिख छोड़ा है... यमपुर और राक्षसगड़...

पहरेदार की यह बात सुन कर वह आदमी अपनी हलक से थूक निगलता है l तभी वहाँ पर फोन बजने लगती है l दुसरा पहरेदार फोन पर बात करने के बाद पहले वाले को इशारा करता है l

पहरेदार - जाओ गृहमंत्री को खबर करो... राजा साहब ने मिलने बुलाया है...

आदमी - तो भाई गेट खोलो... हम उन्हें गार्ड करते हुए ले जाएंगे...
पहरेदार - नहीं... कोई गाड़ी नहीं जाएगी... और गू मंत्री अकेला जाएगा... साथ में तुझे जाने की इजाजत है...
आदमी - देखो यह बहुत हुआ... वह राज्य के गृहमंत्री हैं... प्रोटोकॉल को फॉलो करना पड़ेगा... वरना हम उन्हें वापस ले जाएंगे...
पहरेदार - कोशिश कर के देख लो... यहाँ मर्जी राजा साहब की चलती है...


आदमी अपने वायर लेस पर इन्फॉर्म करता है l इतने में वोल्वो कार से गृहमंत्री उतरता है l चलते हुए गेट के पास पहुँचता है l

गृहमंत्री - हम अकेले राजा साहब जी से मिलने जाएंगे...
पहरेदार - राजा साहब बड़ा दिल रखते हैं... यह... (आदमी को दिखा कर) छछूंदर आपके साथ अंदर जा सकता है... आख़िर प्रोटोकॉल भी कोई चीज़ है...
गृहमंत्री - ठीक है...

दोनों गेट के तरफ बढ़ते हैं l तो पहरेदार फिर से उन्हें रोक देता है l

आदमी - अब क्या हुआ...
पहरेदार - कभी मंदिर नहीं गए क्या... राजगड़ और यशपुर के भगवान से मिलने जा रहे हो... जुते यहीँ उतारो और जाओ...
आदमी - व्हाट...

गृहमंत्री हाथ दिखा कर चुप रहने को इशारा करता है l आदमी चुप हो जाता है l गृहमंत्री अपने जुते उतरता है उसे देख वह आदमी भी अपनी जुते उतारता है l पहरेदार गेट खोल देता है और आवाज़ देता है

पहरेदार - कालू..
कालू - (अंदर से) जी..
पहरेदार - राजा साहब का हुकुम है... इन्हें बाइजाजत राजा साहब के खिदमत में पेश किया जाये...
कालू - जी.. जी अच्छा...


कालू आता है और दोनों को अंदर ले जाता है l बाहर खड़े पहरेदार गेट को बंद कर देता है l गाड़ी के पास जो शूट बूट पहने हुए कमांडोज थे वह सब एक दूसरे के मुहँ ताकते रह जाते हैं l


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राम मंदिर

पुजारी जी को वैदेही कुछ वस्त्र और एक चेक देती है l

पुजारी - यह क्या है बेटी... इसकी क्या जरूरत थी...
वैदेही - मैं अपनी तृप्ति के लिए दे रही हूँ बाबा... आप मना मत लीजिए...
पुजारी - बेटी कहा है... मना तो कर नहीं सकता... पर भगवान के मंदिर में...
वैदेही - मेरा कुछ भी तो नहीं है... सब तो इन्हीं का है... अब शायद ही कभी मेरा आना हो... इसलिए जब जब शरण और सुरक्षा चाहा... राम जी ने दिया... और बाबा मैं आज अगर आपको कुछ भी ना दे कर जाऊँगी... तो मेरी आत्मा मुझे क्षमा ना कर पाएगी मुझे...
पुजारी - ठीक है बेटी... तेरी आत्म तृप्ति के लिए... मैं यह स्वीकार करता हूँ...(पुजारी वैदेही के हाथों से सामान स्वीकार करते हुए) तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो... और तुम्हारी जीत हो...

वैदेही पुजारी का आशीर्वाद लेकर बाहर आती है l बाहर उसे प्रतिभा दिखती है

वैदेही - मासी... आप... आप कब आई...
प्रतिभा - रहने दे... कल से आई हुई है... और तु मुझसे मिलने नहीं आई है.. मैं तुझे ढूंढते हुए आई हूँ... देखो तो...
वैदेही - ऐसी बात नहीं है मासी...
प्रतिभा - कैसी बात नहीं है... कल तु प्रताप से मिली कि नहीं...
वैदेही - हाँ..
प्रतिभा - पर तुझे... मेरे पास आने का टाइम नहीं मिला...
वैदेही - क्या मासी तुम भी... अगर तुमसे कल मुलाकात हुई होती... (हँसते हुए) तो मैं किसी को भी अलविदा ना कह पाती...
प्रतिभा - क्यूँ सबसे मिल कर... अलविदा कहना जरूरी था क्या...
वैदेही - हाँ...
प्रतिभा - ठीक है... चल घर चल...
वैदेही - पर... आज आपकी कोर्ट में... कोई केस तो होगी ना...
प्रतिभा - अरे कहाँ... कुछ भी नहीं है मेरे पास... महीना हो गया है... बोर हो रही थी... इसलिए बार काउंसिल की मीटिंग में... एनुअल प्रोग्राम पर चर्चा में हिस्सा ले रही थी... अब चल घर चलते हैं...
वैदेही - पर मासी आज मुझे जाना भी है...
प्रतिभा - हाँ हाँ... तुझे रोक तो नहीं सकती मैं... पर शाम तक तु मेरे साथ रुक तो सकती है ना... मैं तुझे राजगड़ की आखिरी बस में बिठा दूंगी...(कह कर प्रतिभा बाहर की तरफ चलने लगती है)

वैदेही चुप रहती है l क्यूँकी वह जानती है इससे आगे कुछ कहा तो प्रतिभा उसकी क्लास ले लेगी l इसलिए वह भी प्रतिभा के पीछे चल देती है l कुछ देर बाद दोनों गाड़ी में बैठ कर जैल कॉलोनी की ओर जाते हैं l रास्ते में

प्रतिभा - और... क्या हाल है तुम्हारे राजगड़ के...
वैदेही - राजगड़.... ठीक ही है... कोई किसीके लिए नहीं सोचता... कोई किसीके लिए कुछ नहीं करता... हर किसीके घर की... दरवाजे और खिड़की बंद है... जब अपने घर में सब ठीक हैं... पड़ोस की किसे पड़ी है.... इससे बेहतर राजगड़ में और क्या हो सकती है... मासी.... राजगड़ बहुत बढ़िया है... सब भुल चुके हैं... कोई विश्व प्रताप नाम का लड़का था... जिसने उनकी जिंदगी बदलने के कोशिश में अपनी जिंदगी तबाह कर दी.... किसी को याद नहीं है... सभी ने उसे भुला दिया है... इसलिए राजगड़ बहुत अच्छा है...
प्रतिभा - गलती कर दी... तुझसे पुछ कर... यह राजगड़ पुराण को बंद कर अब... चल अपने बारे में बता अब....
वैदेही - (खोई खोई हुई) क्या बताऊँ मासी... विशु के छूटने की वक़्त जितना नजदीक आ रहा है... मेरे भीतर अंतर्द्वंद उतना ही बढ़ता जा रहा है...
प्रतिभा - अंतर्द्वंद... कैसा अंतर्द्वंद...
वैदेही - (सांसे कांपने लगती है, आवाज़ बैठने लगती है) मासी... एक बदलाव.. एक विप्लव.... जिसका सपना... मैंने देखा.. उस सपने को... मैंने उस सपने को अपने छोटे भाई... विशु के आँखों में उतार दिया... कभी कभी इसी बात के लिए खुदको माफ नहीं कर पा रही हूँ...
प्रतिभा - वैदेही... यह तु क्या कह रही है...
वैदेही - हाँ मासी...
प्रतिभा - कल तक... कितनी चाव से... प्रताप की छूटने की राह देख रही थी... आज अचानक क्या हो गया है...
वैदेही - मासी... वजह है राजगड़... भैरव सिंह को... गलत फहमी था कि उसके सरपंच के प्रार्थी.... विश्व प्रताप को उसके डर के वजह से वोट मिले... पर असलियत तो यह थी.. के लोगों ने अपनी उम्मीदों के लिए.... जिसे उमाकांत सर जी ने जगाया था... वही उम्मीद लोगों की विशु को वोट दिलाए थे... भैरव सिंह की गलत फहमी तो दूर नहीं हुई... पर लोगों की उम्मीद जरूर टूट गई... ऐसी टूटी के सब भूल गए हैं... कोई था... जो उनके उम्मीदों के बेदी पर बलि चढ़ गया....
प्रतिभा - ओह.. तो बात घूम फिर कर वहीँ आ रही है...
वैदेही - हाँ... मासी... यही मेरे भीतर की पीड़ा है...
प्रतिभा - देखो वैदेही... जो हुआ... ठीक नहीं हुआ था... पर हुआ... क्यूंकि एक बड़े बदलाव के लिए... यह तो होना ही था... सात साल पहले का प्रताप... और आज के प्रताप में आकाश और पाताल का फर्क़ है... उस वक़्त वह बीच मैदान ए जंग में... एक भटका हुआ राही था... आज... वह अपना रास्ता खुद बना सकता है... उस वक़्त वह घायल और कमजोर था... आज वह दिल और दिमाग से इतना ताकतवर हो गया है कि... दिखना... जब वह अपने पुराने दुश्मनों के सामने खड़ा हो जाएगा... प्रताप की व्यक्तित्व की तेज से उनकी आँखे चुंधिआ जाएंगी....
वैदेही - जानती हूँ... मासी... फिर भी... उसके जीवन के सात साल तो बर्बाद हो गए....
प्रतिभा - यह तुमने कैसे सोच लिया... के उसके सात साल बर्बाद हो गए...
वैदेही - जब परसों राजगड़ से निकल रही थी... तब मुझे विशु के बचपन के कुछ दोस्त दिखे... जो अपने बच्चों को साथ लेकर हाट में खरीदारी कर रहे थे... यह देख कर... मैं मन मसोस कर रह गई...
प्रतिभा - पता नहीं क्यूँ ऐसी उल जलूल बातेँ सोच रही है... प्रताप हमेशा कहता है... उसकी पहली गुरु तु है... पर तु खुद नहीं जानती... तुने प्रताप क्या बनाया है... अभी वह सलाखों के पीछे है... पर उसे एक बड़ी कंपनी ने... नौकरी पर रख लिया है...
वैदेही - क्या.. (हैरान हो कर)
प्रतिभा - हाँ... देख तु बहन भी है और माँ भी... तेरा हक़ मुझसे भी कई गुना है उस पर... और वह इसे मानता भी है... मैं उसकी इस भावना का बहुत सम्मान करती हूँ... आज तेरे मन में जो ग्लानि है... वह एक माँ की है... पर विश्वास रख... उसके जीवन में भी खुशियाँ आयेंगी...
वैदेही - (मुस्करा देती है)
प्रतिभा - क्यूँ... मन को नहीं भायी मेरी बात...
वैदेही - मन को भायी... इसलिए तो मुस्कराई...
प्रतिभा - देख लेना... कोई तो होगी... जो उसकी नाक... कान.. टांग खींचेगी...


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पार्किंग में गाड़ी लगते ही रुप गाड़ी से उतर जाती है l उसे पार्किंग में दीप्ति खड़ी मिलती है l

नंदिनी - हैलो... किसका इंतजार कर रही है...
दीप्ति - तेरा...
नंदनी - देख मैं लेस्बियन नहीं हूँ... हाँ... तेरा अगर रवि से मामला बिगड़ गया है... तो चल उससे बात करते हैं...
दीप्ति - हे... होल्ड ऑन... होल्ड ऑन.. यह क्या बकवास कर रही है तु...
नंदिनी - यही तो मैं पूछना चाहती थी... तुझे इंतजार रवि की करनी चाहिए...
दीप्ति - प्लीज... आई एम सीरियस...
नंदिनी - ओके... लेट्स टॉक...
दीप्ति - (अपनी आँखे बंद कर एक गहरी सांस लेती है) तुमने मुझे माफ कर दिया है... पर फिर भी... मुझे तुमसे कुछ पूछना है और जानना भी है...
नंदिनी - (दीप्ति को जिज्ञासा भरे मुस्कराहट के साथ) अच्छा पुछ... क्या पुछना चाहती है...
दीप्ति - तुझे कब पता चला कि... मैं... रवि की... मेरा मतलब है कि रवि और मैं... आई मिन..
नंदिनी - श्श्श्श्श्श्... अब पूरी बात सुनो... मुझे जब दोस्तों की सख्त जरूरत थी... तब उन लोगों के साथ तुम भी आगे आकर हाथ बढ़ाया था... इसलिए मैंने तुम्हें माफ कर दिया... जैसा कि पहले भी बता चुकी हूँ... तुमने सच्चे प्यार के लिए... अपने प्यार की बात मान कर किसी और के प्यार की बीज को मेरे मन में भरसक कोशिश की... और तुम्हारा इरादा कहीं से भी गलत नहीं था... मैंने तुम्हें ऑब्जर्व किया तो पाया... तुम हमेशा मेरे सामने अकेले में रॉकी की बात छेड़ती थी... जब कि इतने दिनों में तुम्हें भी अच्छी तरह से मालुम था... रॉकी के लिए बनानी के दिल में फिलींग्स पनप रही है... तब मुझे तुम पर शक हुआ... और जब पुरे कंन्फीडेंट के साथ तुमने मुझे यह कहा कि रॉकी को घड़ी गिफ्ट करते तुमने मुझे देखा है... तब मैं समझ गई... रॉकी के ग्रुप के साथ तुम टच में हो...
दीप्ति - ओ... सॉरी यार... अब तक जो भी हुआ...
नंदिनी - कहा ना... मैंने तुझे माफ कर दिया...
दीप्ति - पर तुमने रॉकी को क्यूँ माफ कर दिया...
नंदिनी - (दीप्ति के आँखों में देखते हुए) रॉकी ने मेरे साथ कुछ भी बुरा नहीं किया था... बल्कि उसका एक उपकार मुझ पर यह रहा कि... उसकी एफएम रेडियो 97 के वजह से... मैंने अपने अंदर नई नंदिनी को खोज पाई और उससे मिल पाई... और सबसे अहम बात... वह आज भी बनानी का हीरो है... मैं उसे सच बता कर अपने दोस्त की दिल दुखाना नहीं चाहती...
दीप्ति - पर उसने जो लाइब्रेरी में चैलेंज किया...
नंदिनी - देख कल तक मुझे उसके आँखों में... हरकतों में कपट नजर आती थी... कल पहली बार... मुझे उसके आँखों में.. बातों में... जज्बातों में... विश्वास के साथ सच्चाई दिखी... आज वह ना सिर्फ मेरे या अपने दोस्तों के... बल्कि खुद के नजरों में भी गिरा हुआ है... इसलिए अब मैं भी देखना चाहती हूँ... खुद को वह कैसे ऊपर उठाएगा...
दीप्ति - वाव नंदिनी... वाकई.. तुम ऑसम हो... पर कल अगर वह कुछ गड़बड़ कर दिया तो...
नंदिनी - चल यार... हम बेकार में... यहीँ पर वक़्त बर्बाद करने लगे हैं...(नंदिनी आगे बढ़ने लगती है)
दीप्ति - तुमने बताया नहीं... प्लीज...
नंदिनी - अच्छा तु ही बता... क्या करेगा वह... अभी तक मैं इस कोशिश में थी कि वह मेरे भाइयों के नजर में ना आए... अब यह कोशिश उसे करना है... मुझे नहीं... (कह कर कैन्टीन की ओर जाने लगती है)
दीप्ति - रुक तो...
नंदिनी - यह तु... बार बार यहीं पर टाइम पास क्यूँ कर रही है...
दीप्ति - एक लास्ट सवाल...
नंदिनी - पुछ.. ले...
दीप्ति - अभी अभी तुने बताया कि... इस बार रॉकी के आँखों में तुझे सच्चाई दिखी...
नंदिनी - हाँ... दिखी.. तो..
दीप्ति - अगर उसने कुछ ऐसा कर दिया... जिससे उसका कद... अपने दोस्तों में हासिल कर लिया तो...
नंदिनी - बातेँ जजबातेँ इरादे
मंजिल ए इश्क़ में मुकाम कर जाते हैं
कभी दिल में उतर जाते हैं
कभी दिल से उतर जाते हैं

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रंग महल के करीब बने गोल्फ कोर्स में भैरव सिंह अपने गल्फ से शॉट ले रहा है l तभी एक नौकर आकर हाथ बांधे अपना सिर झुका कर खड़ा हो जाता है l भैरव सिंह समझ जाता है कि वह नौकर गृहमंत्री के यहाँ तक चल कर आने की खबर देने आया है l

भैरव सिंह - क्या बात है... बासु...
बासु - हुकुम... गृहमंत्री आ रहा है... आपसे मिलने... नंगे पाँव...
भैरव सिंह - (शॉट खेलते हुए) आने दो उसे... बाप से... भगवान से... पहचान ऐसे ही होता है...
बासु - जी हुकुम....

कह कर बासु वहाँ एक कोने में जा कर खड़ा हो जाता है l भैरव सिंह पास खड़े भीमा से


भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - जानते हो यह गृहमंत्री यशपुर में क्यूँ आया था...
भीमा - जी नहीं हुकुम...
भैरव सिंह - (बड़े से छतरी के नीचे फोल्डिंग आर्म चेयर पर बैठ जाता है) होम मिनिस्टर... राज्य सरकार का सेनापति... हमारे ही घर में हमें नीचा दिखाने आया था... राज्य की राजनीति में यह संदेश देने आया था... राजा भैरव सिंह के इलाके में जाकर उसके दरबार में हाजिरी नहीं दी...हुकुम की ना फर्मानी की...
भीमा - जी हुकुम...

इतने में हो.मि अपने उस सिक्युरिटी आदमी और कालू के साथ वहाँ पर आता है l

भैरव सिंह - आओ... आओ गृहमंत्री... आओ... कहो.. कैसे आना हुआ...

हो.मि इधर उधर अपना नजर दौड़ाता है पर उसे बैठने के लिए दुसरा चेयर नजर नहीं आता है l वह अपने गले से खरासने की आवाज़ निकालता है, इस उम्मीद से भैरव सिंह को देखता है की शायद भैरव सिंह अपने नौकरों से और एक चेयर लाने के लिए कहे पर वह देखता है भैरव सिंह अपने दोनों पैरों को उठा कर सामने पड़े टीपोय पर रख देता है l

हो.मि - राजासाहब... हमने सुना था कि राज घराने में... मेहमानों का जमकर स्वागत होता है...
भैरव सिंह - बिल्कुल सही सुना है.... पर स्वागत मेहमानों का किया जाता है... मुलाजिम या नौकरों का नहीं...
हो.मि - राजा साहब... दोस्तों में और मुलाजिमों में फर्क़ होता है...
भैरव सिंह - हाँ... यह बात तो तुमने सही कही... दोस्तों के साथ शेयरींग की जाती है... और मुलाजिमों को खैरात दी जाती है... इसलिए चूंकि दोस्त पार्टनर होते हैं... और मुलाजिम तनख्वाह लेते हैं...
हो.मि - हम आपके बिजनैस में हिस्सेदार हैं... साझेदार हैं...
भैरव सिंह - ना... मुलाजिम हो तुम... और तुम्हारा सारा सिस्टम भी... हमारी मुलाजिम है...
हो.मि - (आवाज़ कड़क कर चबाते हुए) राजा साहब...

तभी भीमा के पास बैठे एक डाबरमैन अपनी जगह से उठता है और गुर्राने लगता है l

भीमा - है...इ.. आवाज़ नीचे...

हो.मि समझ नहीं पाता भीमा किससे कह रहा है l हो.मि अपने कपड़े ठीक करता है भैरव सिंह को देखता है l

भैरव सिंह - यह क्षेत्र... क्षेत्रपालों का है... यहाँ इंसान तो इंसान... जानवर भी अपनी औकात नहीं भूलते... वह जानते हैं किसके सामने हैं...
हो.मि - आ.. आप.. मेरा अपमान कर रहे हैं...
भैरव सिंह - अपमान... कैसा अपमान गृहमंत्री... वैसे.. राजधानी से बहुत दुर... राजगड़ में कैसे और क्यों कर आना हुआ...
हो.मि - वह... हम कुछ सरकारी काम से... यशपुर आए थे... अचानक असेंबली शुरु होने की फरमान आयी... इसलिए हम सुबह तड़के यशपुर से जाना चाहते थे...
भैरव सिंह - तो...
हो.मि - हमें यशपुर से एक्जिट का... हर रास्ता... बंद मिला...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म तो...
हो.मि - तब.... हमे समझ में आया... कि... हमे आपसे मिलकर जाना चाहिए...
भैरव सिंह - तो मिल लिए... ठीक है जाओ...
हो.मि - (कुछ नहीं कहता है आपने दोनों हाथ पीछे बांध कर खड़ा हो जाता है)
भैरव - गृहमंत्री.... क्या हुआ... चाहो तो... हेलिकाप्टर मंगवा सकते हो...
हो.मि - (गुस्से और मजबूरी से जबड़े भिंच लेता है)
भैरव सिंह - तुम यहाँ मेरी सल्तनत में... मेरी हुकूमत को ठेंगा दिखाने आए थे... अपनी गृहमंत्री की पदवी का रौब ज़माने आए थे... मेरे खिलाफ बनने वाली मोर्चाबंदी के दूत बन कर आए थे ... क्यूँ...
हो.मि - (चुप रहता है और अपनी इधर उधर देखने लगता है )
भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - (पास रखे बड़े टेबल पर कपड़े से ढके एक थाली की ओर इशारा करते हुए) इस थाली में जो है... उसे गृहमंत्री को दिखाओ...

भीमा भाग कर आता है और टेबल पर रखे थाली से कपड़ा हटाता है l उस थाली को लेकर हो.मि के सामने आता है l हो.मि देखता है चांदी की थाली में एक लैपटॉप और एक पेन ड्राइव रखा हुआ है l

भैरव सिंह - उस पेन ड्राइव में भी कुछ मोर्चाबंदी हुआ है... देख लो...

हो.मि गुस्से से भैरव सिंह को देखता है और लैपटॉप को ऑन कर पेन ड्राइव लगाता है l लैपटॉप में एक वीडियो चलने लगता है l जिस में हो.मि दो नंगी ल़डकियों के साथ नंगा रंग रलियां मना रहा है l वह वीडियो देख कर हो.मि का चेहरा सफ़ेद पड़ जाता है l वह अपना हाथ जोड़ कर भैरव सिंह के सामने घुटने पर बैठ जाता है l उसके घुटने पर बैठते ही भैरव सिंह अपना दायाँ हाथ की कलाई गल्फ को खड़ा कर उस पर रख देता है और अपना दायाँ पैर मोड़ कर बाएँ पैर के घुटने पर मोड़ कर रख देता है l बिल्कुल एक राजा की तरह l उसके बाद अपनी बाएँ हाथ से अपनी मूँछ पर ताव देता है l

भैरव सिंह - ऐसी होती है... तुम जैसों की स्वागत.... फोर के एचडी क्वालिटी है... सिर्फ़ तुम्हारा ही नहीं है... बल्कि उन सबकी है... जिन्होंने मेरे खिलाफ जाने की सोची है...मोर्चा बनाने की सोची है... गृहमंत्री... कैसी रही राजघराने की स्वागत...
हो.मि - म.. म.. मुझसे गलती हो गई...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... गलती तो हुई है... अब कहाँ हुई... विस्तार से बताओ...
हो.मि - वह... वह मैंने आपकी सिफारिशी फोन को.. दर किनार कर दिया...
भैरव सिंह - क्यूँ...
हो.मि - गलती हो गई...
भैरव सिंह - हमे मना कर दो... नजर अंदाज कर दो... इतनी औकात... इतनी हिमाकत... कब से पाल लिया तुमने... हम अपनी कुकर्मों में हिस्सा देते हैं... मतलब यह नहीं... की तुम अपनी औकात और हैसियत भुल जाओ... एक जाम क्या तुम्हारे जाम से टकराया... तुमने हमारे कंधे पर हाथ रखने सोच ली...
हो.मि - ग... ग.. गलती हो गई... यह (कह कर भैरव सिंह के पैर से जुता निकालता है, और अपने चेहरे पर मारने लगता है) यह देखिए... आपके ही जुते से खुद को मार रहा हूँ... अगली बार गलती नहीं होगी... दिमाग फिर गया था मेरा....
भैरव सिंह - इंसान के जिस्म में दिमाग पुरे उपर बैठा है... इसलिए अपनी सोच को हमेशा निगाहों से बुलंद रखना चाहिए... अगर सोच गिरने की हो तो कंधे के नीचे दिल तक सरक जाए तो ठीक है... पर तुम मादरचोदों की टोली... अपनी सोच को कभी कमर से उपर उठाया ही नहीं... इसलिए अब देखो पुरा सिस्टम मेरे सामने घुटने पर बैठा है... (हो.मि बड़ी मुश्किल से अपना थूक निगलता है ) बात अगर भैरव सिंह की हो... तब दिमाग की सोच को हमेशा अपनी आँखों के ऊपर रखना चाहिए... क्यूंकि जब सोच कमर के नीचे आ जाती है... ऐसे आईना दिखाने की नौबत आ जाती है...
हो.मि - हुकुम... माई बाप... हुकुम... मुझे माफ कर दीजिए...
भैरव सिंह - गृहमंत्री... देखा तेरी औकात को आईना दिखाया... तो तु कैसे हम से मैं में आ गया... जरा सोच... यह वीडियो मीडिया में फैल जाएगा... तब सारे मीडिया वाले... तेरे वजाए... तेरी बीवी, बेटी से इंटरव्यू लेंगे...
हो.मि - (गिड़गिड़ाते हुए) प्लीज राजा साहब... प्लीज...

भैरव सिंह दो बार ताली बजाता है l वहाँ पर इंस्पेक्टर रोणा आ पहुँचता है I

रोणा - इंस्पेक्टर रोणा... रिपोर्टिंग सर...
भैरव सिंह - यह हमारे दरबार का एक रत्न है... इसीके लिए तुझे फोन किया था... पर तुने नजर अंदाज कर दिया था... अब इसकी पोस्टिंग राजगड़ थाने में... आज शाम तक हो जानी चाहिए...
हो.मि - जी... जी जरूर कर देता... पर... कोर्ट के आदेश के अनुसार... इनकी तीसरी पोस्टिंग हुई नहीं है... इसलिए...
भैरव सिंह - (एक शांत और ठंडी नजर से देखता है)
हो.मि - (अपनी जेब से रुमाल निकाल कर अपना चेहरा पोछते हुए) ए.. एक.. म.. महीने का वक़्त...
भैरव सिंह - (जवाब नहीं देता, सिर्फ ठंडी नजर से हो.मि को देखता है)
हो.मि - एक हफ्ता... प्लीज... सिर्फ़ एक हफ्ता... प्लीज...
भैरव सिंह - (अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) ठीक है... अब... बिजनस में हिस्से की बात करते हैं...
हो.मि - क.. क.. कैसा हिस्सा... आप जो भी प्रसाद समझ कर दे देंगे... वही काफी है...
भैरव सिंह - तो... अब तुम क्या हो गृहमंत्री...
हो.मि - मुलाजिम माई बाप... मुलाजिम
भैरव सिंह - जिनके दम पर... हम तक... बगावत की खबर पहुँचाने आए थे... उनको खबरदार कर देना... ओड़िशा में जहां... हमारे खिलाफ हवा तक अपनी रुख बदलने से कतराता है... वहीँ हमारे खिलाफ बातेँ करना या सोचना तो दूर... हमारे मर्जी के खिलाफ सांस भी ले नहीं पाओगे...

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XXXX बार एंड रेस्टोरेंट

महांती पेग भर कर पी रहा है l उसके चेहरे पर मायूसी झलक रही है l उसके पास एक चिकन सिक्स्टी -फाइव का प्लेट लेकर कोई रख देता है और वहीँ खड़ा रहता है l महांती उसे ठीक से देखता नहीं अपनी जेब से पर्स निकाल कर उसमें से सौ रुपये के दो नोट निकाल कर बढ़ाता है l पर वह आदमी नहीं लेता तो महांती अपना सिर उठा कर उसे देखता है

महांती - यू.. युवराज जी... आप..
विक्रम - (उसके बगल में बैठ कर) यह क्या है महांती... किस बात का ग़म है... दिन दोपहर में...
महांती - (एक फीकी हँसी हँसते हुए) युवराज जी... आज कल मुझे लगने लगा है.... या तो मैं नाकारा हो गया हूँ... या फिर बुढ़ा...
विक्रम - ऐसा क्यूँ लगा तुमको...
महांती - हमने मिलकर... ESS को बनाया... आपकी डेविल आर्मी... हमने हर डिपार्टमेंट पर बड़ी मेहनत से इसे एस्टाब्लीस किया... पर कुछ महीनों से लग रहा है... मैं... फैल हो रहा हूँ...
विक्रम - नहीं... नहीं महांती... ऐसा कुछ भी नहीं है... तुमने उन स्नाइपर्स को ट्रेस किया था... बाकी सारे केस तुमने ही तो सॉल्व किया...
महांती - हाँ.. पर केस को अंजाम नहीं दे पाया...
विक्रम - देखो महांती... तुम्हारा और मेरा रिस्ता... सिर्फ़ बिजनैस का नहीं है... हम दोस्त भी हैं... बेशक उम्र में फासला है... पर हैं तो दोस्त ही... विनय के बारे में अगर मुझे जरा सा भी भान होता... तो मैं तुमसे जरूर कहता... जरा सोचो लगभग सात साल पहले की बात है... फिर भी हमने क्रैक कर दिया ना...
महांती - (बेबसी से विक्रम को देखता है) पर हमारे घर में सेंध लगा है... हमारे नाक के नीचे कोई हमसे गद्दारी कर रहा है... पर हमारे नजरों से बचा हुआ है...
विक्रम - यह कोई बड़ी बात नहीं है... बड़ी बड़ी रियासतें ढह गई हैं... क्यूँ.. घर के भेदी को ढूंढ नहीं पाए... हमारे पास तो अभी टाइम है...
महांती - जानते हैं युवराज... मैंने हर एक कैडेट को... जितना हो सके... उससे बढ़ कर पर्सनली ट्रेन किया है... सबको स्कैन किया है... फिर रिक्रूट किया है... पर...
विक्रम - सबको नहीं महांती... सबको नहीं...
महांती - क्या मतलब है.. युवराज...
विक्रम - उन लोगों को तुमने स्कैन किया ही नहीं... जो राजकुमार के सिफारिश पर रिक्रूट हुए हैं...
महांती - (आँखे हैरानी से चौड़ी हो जाती है, उसका नशा उतर जाता है) आ.. आप.. ने... सही कहा.... अरे... यह... यह मेरे दिमाग से... कैसे निकल गया...
विक्रम - देखा... खुद से मायूस हो गए... इसलिए यह पॉइंट स्कीप हो गया... आई नो महांती... यु आर द बेस्ट...
महांती - (कुछ सोचने लगता है)
विक्रम - आपने राजकुमार जी से बात की...
विक्रम - नहीं... महांती... राजकुमार दिमाग से भले ही तेज हों... पर मैच्योर्ड नहीं हैं... इसलिए उनके नजर में आए वगैर... इन तीन चार सालों में जितने भी... सिंपथीकली रिक्रूटमेंट हुए हैं... सब पर अपने भरोसे के लोगों के जरिए नजर रखो... आई एम डैम श्योर... उन्हीं में से कोई है...
महांती - (एक इत्मीनान भरी गहरी सांस लेता है) थैंक्यू युवराज जी... थैंक्यू.. आपने तो मुझे मायूसी से बाहर निकाल दिया...
विक्रम - थैंक्स की कोई जरूरत नहीं है महांती... आई नो.. यु आर ऐबुल ईनॉफ... पर फिर भी... क्षेत्रपाल के बारे में जानने के बाद भी... अगर वह गद्दारी कर रहा है... तो वह किसी भी सिचुएशन के लिए तैयार होगा...
महांती - हाँ... अभी मेरे दिमाग में एक प्लान आया है...
विक्रम - कहो... अब जब भी ऑपरेशनल प्लान एक्जीक्यूट करना हो... तो हम पहले से प्लान डिस्क्लोज नहीं करेंगे... प्लान पुरी तरह से... बाईलेट्राल होगा...
विक्रम - ठीक है... हम राजकुमार से भी डिस्कश नहीं करेंगे...
महांती - अब उन्हें जो प्लान करना है करने दीजिए... अब कि बार सरप्राइज़ हम देंगे....

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शाम ढलने के बाद तापस घर आता है l घर में कोई भी लाइट नहीं जली है, बहुत अंधेरा है तो वह ड्रॉइंग रुम में स्विच ऑन करता है l प्रतिभा सोफ़े पर सिर को पीछे लुढ़का कर बैठी हुए है l

तापस - क्या बात है जान... मेरे महबूब के चेहरे पर.... यह कैसी उदासी है...
क्यूँ इस घर में हर तरफ मायूसी ही मायूसी है...
प्रतिभा - (अपनी सिर को उठा कर एक फीकी हँसी के साथ तापस को देखती है)
तापस - लगता है... आज तुम्हारा मुड़ खराब है... मेरी शायरी पर कोई कमेंट नहीं की तुमने...
प्रतिभा - मेरे चेहरे पर कोई उदासी नहीं है... सच कहूँ तो... एक खुशी भी है... और एक अफसोस भी...
तापस - (उसके पास बैठ कर) क्या हुआ जान... आज वैदेही ने कुछ कह दिया क्या...
प्रतिभा - नहीं सेनापति जी... आज मैंने जिद करके... प्रताप की अतीत के बारे में जाना...
तापस - हूँ... तो यही वजह है कि तुम्हारा मन उदास है...
प्रतिभा - हाँ भी और नहीं भी...
तापस - अरे जान... एक रिटायर्ड पुलिस वाला हूँ... तुम एक नामी वकील हो.. बात को साफ साफ कहो ना... यूँ सस्पेंस बना कर क्यू ब्लड प्रेशर बढ़ा रही हो...
प्रतिभा - सेनापति जी.. चाहे आप और मैं हों... या यहाँ के दुसरे घर परिवार... क्या हमने कभी अपने घर की छोड़... कभी आस पड़ोस की... अपने कॉलोनी, सहर या कस्बे के बारे में... कभी सोचा है...
तापस - (उसे हैरानी से देखता है) आज तुम... ऐसा क्यूँ सोच रही हो...
प्रतिभा - यहाँ ही क्यूँ... हमारे सहर में या राज्य में... कितने लोग होंगे... जो अपने घर परिवार के बाहर किसी और के बारे में सोचें...
तापस - (प्रतिभा के दोनों बाहों को पकड़ कर हिलाता है) जान... यह.. यह क्या कह रही हो...
प्रतिभा - (तापस के हाथों को हटाते हुए) मुझे कुछ नहीं हुआ है... मैं होश में हूँ... मैं बस उन दो बहन भाई के बारे में सोच रही हूँ... जो अपने पर हुए जुल्म की प्रतिकार की नहीं... बल्कि समाज में कोई वैदेही या विश्व... फिरसे किसी क्षेत्रपाल के जुल्म के शिकार ना हों... इसलिए उनकी जद्दोजहद जारी है... (तापस प्रतिभा को देखता ही रहता है, क्या कहे उसे कुछ सूझता ही नहीं) आज... मुझे प्रताप के बारे में सबकुछ मालुम हुआ... उन बहन भाई के लिए मेरे दिल में और भी इज़्ज़त बढ़ गई है.... मुझे गर्व है... प्रताप मुझे माँ कहता है... जानते हैं सेनापति जी... वैदेही भले ही उसकी बड़ी बहन लगती है... पर प्रताप उसके लिए बेटा है... और वह अपनी माँ की इच्छा को... बिना कोई सवाल किए पुरा करने के लिए... जी जान की बाजी लगा देता है... सिर्फ़ राजगड़ के लिए और वहाँ पर रहने वालों के लिए उनके भीतर जो तपन है... उसके लिए उनका कद इतना बड़ा हो गया है कि अपनी वज़ूद छोटा लगने लगा है...
तापस - हाँ... तभी तो... उसने टक्कर किस्से ली... राज्य में आज की सबसे ताकतवर शख्सियत से...
प्रतिभा - अब जब कि प्रताप... मेरे साथ सिर्फ एक महीना ही रहने वाला है... मैं उस पर पुरे इस जनम भर की ममता न्यौछावर कर दूंगी...
तापस - ठीक है... कर लेना... पहले उसको घर लाने की तैयारी तो करो... XXXX तारीख को छूट रहा है...
 
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Ajju Landwalia

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But galti ho gayi he aapse
ग... ग.. गलती हो गई... यह (कह कर अपना जुता निकालता है, और अपने चेहरे पर मरने लगता है) यह देखिए... अपनी ही जुते से खुद को मार रहा हूँ... अगली बार गलती नहीं होगी... दिमाग फिर गया था मेरा....

Shoes to home minister aur uske security person ne bahar nikal diye the...........
 

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ग... ग.. गलती हो गई... यह (कह कर अपना जुता निकालता है, और अपने चेहरे पर मरने लगता है) यह देखिए... अपनी ही जुते से खुद को मार रहा हूँ... अगली बार गलती नहीं होगी... दिमाग फिर गया था मेरा....

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बिलकुल सही कहा जल्दबाजी में क्या क्या गलती हो जाता है
 
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