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आगे हमने देखा की, रात्रि का समय है, बाहर बिन मौसम वर्षा हो रही है। महाराज राजगुरु के कक्ष में जाकर मृत्युंजय के विषय में पूछते है। वृषाली लावण्या को बताती है की उसकी मां की सखी कनकपुर के महाराज की बहन थी। अब आगे.....
छे दिन बीत गए किंतु अभी मृत्युंजय वापस महल नही आया। किस पड़ोसी राज्य में वो गया होगा? ईश्वर करें वो कुशल हो और जल्दी वापस आ जाए। वृषाली कक्ष में अकेली है, वो सोच में डूबी हुई हे तभी लावण्या और सारिका कक्ष में आती हे।
देखो वृषाली में तुम्हारे लिए कुछ लेकर आई हुं। लावण्या ने अपनी बंध मुठ्ठी वृषाली के सामने रखखी। क्या लाई हो लावण्या? लावण्या ने मुठ्ठी खोली और वृषाली खुश होगई। अरे चौसर की कुकी? कहांसे लेकर आई? मेरे पास हे चौसर क्या तुम्हे खेलना पसंद है वृषाली? हा बहुत, में और चारूलता बहुत खेला करती थी पर वो यहां नहीं हे तो मन नहीं करता। वृषाली के चहरे पर उदासी छा गई।
लावण्या ने सारिका की ओर देखा और इशारा किया, सखी छंद मुकरी खेलते है बहुत दिन हो गए। हां सारिका सत्य कहा, वो तो खेलोगी ना वृषाली। ठीक हे मुझे काव्य और छंद बहुत पसंद है। तो चलो फिर प्रारंभ करते है,। सारिका तुमसे प्रारंभ करते हैं।
*छंद कह मुकरी*
==================
सारिका ....शीत ऋतु में जब वो आये
दिखे न कुछ भी धुंध बनाये
बना फिरे जैसे बोहरा
वृषाली.... क्या सखी साजन
सारिका... नहि सखि कोहरा
लावण्या ...सौम्य रूप में हवन कराये
उग्र होत सब जगत जलाये
बनती साक्षी जुड़ते भाग
सारिका..... क्या सखि साजन
लावण्या..... नहि सखि आग
वृषाली.....शिवशंकर का वार पुराना
मस्तक ऊपर शशी सुहाना
मिली न उसको कोई भौम
लावण्या... क्या सखि साजन
वृषाली.... नहि सखि सोम
सारिका.....रवि किरणों से छन छन आती
शीत काल में अधिक लुभाती
प्रखर पुंज है इसका रूप
लावण्या, वृषाली... क्या सखि धूप
सारिका...... नही सखि साजन
वृषाली....गोकुल की गलियों में रमता
रास रचाता कभी न थमता
ज्यूं देखूं ज्यूं बढती तृष्णा
क्या सखि साजन
नहि सखि कृष्णा
लावण्या....बागों में वो गुन गुन गाता
कली कली पर जब मँडराता
एक जगह पर कहीं न ठहरा
क्या सखि साजन
नहि सखि भँवरा
सारिका...इक पखवाड़े बढता जाता
दूजे को फिर घटता जाता
इक दिन दिखता बहुत मंदा
क्या सखि साजन
नहि सखि चंदा
वृषाली....उमड़ घूमड़ कर बरसा पानी
धरती औढी चूनर धानी
खग मृग पशु सबका मन हर्षा
क्या सखि साजन
नहि सखि वर्षा
लावण्या....नील गगन में रहते सारे
टिम टिम करते रहते प्यारे
मां रजनी के राज दुलारे
क्या सखि साजन
नहि सखि तारे
सारिका......रंगो से खेले रंगोली
प्रेम प्यार की बोले बोली
करते सब जन हँसी ठिठोली
क्या सखि साजन
नहि सखि होली।
लावण्या और वृषाली चौंक गई ये किसने उत्तर दिया, उन्होंने पीछे मुडके देखा तो पीछे मृत्युंजय खड़ा था। लावण्या और वृषाली के हर्ष की कोई सीमा ना रही। मृत्युंजय तुम आ गए लावण्या दौड़कर मृत्युंजय के समीप गई। वृषाली को अपनी दशा पर क्रोध आया वो उदास हो गई।
कहां थे इतने दिन? पता हे हमने तुम्हे बहुत स्मरण किया है ना वृषाली,? लावण्या वहीं मृत्युंजय से वार्तालाप करने लगी। मुझे अंदर प्रवेश तो कर लेने दो लावण्या। मृत्युंजय वृषाली के समीप गया पीछे लावण्या भी गई। कैसी हो वृषाली? कुशल हुं, किंतु तुम कहां चले गए थे सूचना दिए बिना हम तुमसे रूष्ट हैं।
अरे कोई हमे जलपान केलिए भी पूछे। सब प्रश्नों का एक ही उत्तर हे जो बताकर गया था, लो ये औषधि वृषाली को पिलानी हे। सारिका ने मृत्युंजय को जल दिया।
वैसे तुम तीनो छंद और काव्य में पारंगत हो। अच्छा तो तुमने छुपकर हम सहेलियों की बाते सुनी? लावण्या ने रूष्ट होनेका अभिनय करते कहा। नही मेने कहां बाते सुनी मेने तो आपकी चतुर बुद्धि के दर्शन किए बालिका।मृत्युंजय ने हास्य के साथ कहा। अच्छा अब में अपने कक्ष में जाता हुं, बहुत लंबा प्रवास करके आया हुं।
ठीक हे तुम जाओ और विश्राम करो बाते तो होती ही रहेंगी वृषाली ने कहा। अरे ऐसे केसे कितने दिन पश्चात आए हो कुछ समय तो बैठो साथ फिर विश्राम कर लेना लावण्या ने मुंह बनाकर कहा।
लावण्या दो दिन से निरंतर अश्व लेकर प्रवास कर रहा हुं, स्नान भी नही किया ये न हो की मेरे प्रस्वेद की सुवास से तुम मूर्छित हो जाओ। ठीक हे ठीक हे जाओ और निवृत होकर मिलने आना।
मृत्युंजय मुड़ा और कक्ष के द्वार तक पहुंचा तभी वृषाली ने पीछे से आवाज दी, मृत्युंजय.. मृत्युंजय तुरंत पीछे मुड़ा। सुनो तुम स्नान करके निवृत हो जाओ फिर भोजन अवश्य कर लेना। वृषाली की आंखे स्नेह से छलक रही थी। अवश्य सखी,मृत्युंजय ने उत्तर दिया और कक्ष से चला गया।
रात्रि का प्रथम प्रहर प्रारंभ हो गया। मित्र में राजगुरु से भेंट करके आता हुं। भुजंगा से कहकर मृत्युंजय कक्ष से बाहर गया।
क्या में अंदर आजाउ राजगुरु, अरे मृत्युंजय तुम कब आए? आ जाओ भीतर। मध्याह्न में आ गया। राजगुरु और मृत्युंजय समीप बैठे।
तो क्या तुम्हारा कार्य सफल रहा। राजगुरु बहुत उत्सुक थे सब जान ने केलिए। जी राजगुरु किंतु अभी पूर्ण नही हुआ है। मृत्युंजय विस्तार से बताओ। कुछ समय और प्रतीक्षा कीजिए राजगुरु समय आने पर सब बताऊंगा। किंतु.... आपको मुझ पर विश्वास है ना? हां मृत्युंजय, तो बस थोड़ा समय दीजिए।
छे दिन बीत गए किंतु अभी मृत्युंजय वापस महल नही आया। किस पड़ोसी राज्य में वो गया होगा? ईश्वर करें वो कुशल हो और जल्दी वापस आ जाए। वृषाली कक्ष में अकेली है, वो सोच में डूबी हुई हे तभी लावण्या और सारिका कक्ष में आती हे।
देखो वृषाली में तुम्हारे लिए कुछ लेकर आई हुं। लावण्या ने अपनी बंध मुठ्ठी वृषाली के सामने रखखी। क्या लाई हो लावण्या? लावण्या ने मुठ्ठी खोली और वृषाली खुश होगई। अरे चौसर की कुकी? कहांसे लेकर आई? मेरे पास हे चौसर क्या तुम्हे खेलना पसंद है वृषाली? हा बहुत, में और चारूलता बहुत खेला करती थी पर वो यहां नहीं हे तो मन नहीं करता। वृषाली के चहरे पर उदासी छा गई।
लावण्या ने सारिका की ओर देखा और इशारा किया, सखी छंद मुकरी खेलते है बहुत दिन हो गए। हां सारिका सत्य कहा, वो तो खेलोगी ना वृषाली। ठीक हे मुझे काव्य और छंद बहुत पसंद है। तो चलो फिर प्रारंभ करते है,। सारिका तुमसे प्रारंभ करते हैं।
*छंद कह मुकरी*
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सारिका ....शीत ऋतु में जब वो आये
दिखे न कुछ भी धुंध बनाये
बना फिरे जैसे बोहरा
वृषाली.... क्या सखी साजन
सारिका... नहि सखि कोहरा
लावण्या ...सौम्य रूप में हवन कराये
उग्र होत सब जगत जलाये
बनती साक्षी जुड़ते भाग
सारिका..... क्या सखि साजन
लावण्या..... नहि सखि आग
वृषाली.....शिवशंकर का वार पुराना
मस्तक ऊपर शशी सुहाना
मिली न उसको कोई भौम
लावण्या... क्या सखि साजन
वृषाली.... नहि सखि सोम
सारिका.....रवि किरणों से छन छन आती
शीत काल में अधिक लुभाती
प्रखर पुंज है इसका रूप
लावण्या, वृषाली... क्या सखि धूप
सारिका...... नही सखि साजन
वृषाली....गोकुल की गलियों में रमता
रास रचाता कभी न थमता
ज्यूं देखूं ज्यूं बढती तृष्णा
क्या सखि साजन
नहि सखि कृष्णा
लावण्या....बागों में वो गुन गुन गाता
कली कली पर जब मँडराता
एक जगह पर कहीं न ठहरा
क्या सखि साजन
नहि सखि भँवरा
सारिका...इक पखवाड़े बढता जाता
दूजे को फिर घटता जाता
इक दिन दिखता बहुत मंदा
क्या सखि साजन
नहि सखि चंदा
वृषाली....उमड़ घूमड़ कर बरसा पानी
धरती औढी चूनर धानी
खग मृग पशु सबका मन हर्षा
क्या सखि साजन
नहि सखि वर्षा
लावण्या....नील गगन में रहते सारे
टिम टिम करते रहते प्यारे
मां रजनी के राज दुलारे
क्या सखि साजन
नहि सखि तारे
सारिका......रंगो से खेले रंगोली
प्रेम प्यार की बोले बोली
करते सब जन हँसी ठिठोली
क्या सखि साजन
नहि सखि होली।
लावण्या और वृषाली चौंक गई ये किसने उत्तर दिया, उन्होंने पीछे मुडके देखा तो पीछे मृत्युंजय खड़ा था। लावण्या और वृषाली के हर्ष की कोई सीमा ना रही। मृत्युंजय तुम आ गए लावण्या दौड़कर मृत्युंजय के समीप गई। वृषाली को अपनी दशा पर क्रोध आया वो उदास हो गई।
कहां थे इतने दिन? पता हे हमने तुम्हे बहुत स्मरण किया है ना वृषाली,? लावण्या वहीं मृत्युंजय से वार्तालाप करने लगी। मुझे अंदर प्रवेश तो कर लेने दो लावण्या। मृत्युंजय वृषाली के समीप गया पीछे लावण्या भी गई। कैसी हो वृषाली? कुशल हुं, किंतु तुम कहां चले गए थे सूचना दिए बिना हम तुमसे रूष्ट हैं।
अरे कोई हमे जलपान केलिए भी पूछे। सब प्रश्नों का एक ही उत्तर हे जो बताकर गया था, लो ये औषधि वृषाली को पिलानी हे। सारिका ने मृत्युंजय को जल दिया।
वैसे तुम तीनो छंद और काव्य में पारंगत हो। अच्छा तो तुमने छुपकर हम सहेलियों की बाते सुनी? लावण्या ने रूष्ट होनेका अभिनय करते कहा। नही मेने कहां बाते सुनी मेने तो आपकी चतुर बुद्धि के दर्शन किए बालिका।मृत्युंजय ने हास्य के साथ कहा। अच्छा अब में अपने कक्ष में जाता हुं, बहुत लंबा प्रवास करके आया हुं।
ठीक हे तुम जाओ और विश्राम करो बाते तो होती ही रहेंगी वृषाली ने कहा। अरे ऐसे केसे कितने दिन पश्चात आए हो कुछ समय तो बैठो साथ फिर विश्राम कर लेना लावण्या ने मुंह बनाकर कहा।
लावण्या दो दिन से निरंतर अश्व लेकर प्रवास कर रहा हुं, स्नान भी नही किया ये न हो की मेरे प्रस्वेद की सुवास से तुम मूर्छित हो जाओ। ठीक हे ठीक हे जाओ और निवृत होकर मिलने आना।
मृत्युंजय मुड़ा और कक्ष के द्वार तक पहुंचा तभी वृषाली ने पीछे से आवाज दी, मृत्युंजय.. मृत्युंजय तुरंत पीछे मुड़ा। सुनो तुम स्नान करके निवृत हो जाओ फिर भोजन अवश्य कर लेना। वृषाली की आंखे स्नेह से छलक रही थी। अवश्य सखी,मृत्युंजय ने उत्तर दिया और कक्ष से चला गया।
रात्रि का प्रथम प्रहर प्रारंभ हो गया। मित्र में राजगुरु से भेंट करके आता हुं। भुजंगा से कहकर मृत्युंजय कक्ष से बाहर गया।
क्या में अंदर आजाउ राजगुरु, अरे मृत्युंजय तुम कब आए? आ जाओ भीतर। मध्याह्न में आ गया। राजगुरु और मृत्युंजय समीप बैठे।
तो क्या तुम्हारा कार्य सफल रहा। राजगुरु बहुत उत्सुक थे सब जान ने केलिए। जी राजगुरु किंतु अभी पूर्ण नही हुआ है। मृत्युंजय विस्तार से बताओ। कुछ समय और प्रतीक्षा कीजिए राजगुरु समय आने पर सब बताऊंगा। किंतु.... आपको मुझ पर विश्वास है ना? हां मृत्युंजय, तो बस थोड़ा समय दीजिए।