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महाराज अगर आप ऐसे खाना पीना छोड़कर विशादमे ही डूबे रहेंगे तो कैसे चलेगा। में आपकी हालत समज रहा हूं पर आपका सर्व प्रथम दाइत्व आपके राज्य के प्रति और आपकी प्रजाके प्रति है, इस लिए शास्त्रों में कहा गया है कि एक राजाका विलाप या शोक में डूब जाना अनुचित हे। क्यों की प्रजा केलिए राजा उनके पिता, पालनहार, और भगवान के समान होता है। अतः आपका इस तरह विशाद मे डूब कर अपने रज्यके प्रति कर्तव्यों से विमुख हो जाना आप जैसे प्रजा वत्सल रजाको शोभा नहीं देता। राजगुरु ने शांति से अपनी बात को समझाने का प्रयास किया।
में भी उनको यही समझाने का प्रयास कर रहा हूं राजगुरु। पर छोटा मुंह बड़ी बात शोभा नहीं देती इस लिए मैने आपको यहां आने का कष्ट दिया। में उसके लिए क्षमा चाहता हूं।अपने आसन से उठकर महामंत्री राजगुरु के समीप आए और हाथ जोड़कर बोले।
महाराज अपने हाथकी सहायता से शिश झुकाए बैठे है। गहरा शोक उनको घेरे हुए है। राजगुरु की बात सुनकर ऊपर देखते हुए बोले, में आपकी बात समझ रहा हूं पर क्या करू गुरुजी राजा होने के साथ में एक बाप भी हूं वो भी एक बेटिका। भगवान ने सालो तक हमें संतान सुखसे वंचित रखा, कितनी मन्नते, कितने पूजा पाठ, दान पुण्य, हवन, यज्ञ, क्या क्या नहीं किया तब जाके कहीं हमारे घर राजकुमारी वृषाली की नन्नी किलकारियां गूंजी और हमारा राजमहल खुशियों से भर गया। और आज......वो आगे बोल नहीं पाए, उनका गला भर आया और आंखें आंसुओ से भर गई।
ईश्वर सब ठीक कर देगा। हर इनसान की जिंदगी में कठिन समय आता है, और तब ही उसके विवेक और धैर्य की परीक्षा होती है। आपकी भी हो रही है और मुझे भरोसा है आप इसमें जरूर उतिर्न होंगे। आप महान विरो के वंशज है। गुरुजी के शब्दों में दृढ़ता थी। आपने राजा होने के नाते इस से भी कठिन युद्ध का सामना निडरता से किया है। ये कठिन वक्त भी गुजर जाएगा राजगुरु बोले। गुरुजी कोई तो उपाय होगा, आप तो इतने बड़े विद्वान है आप कुछ कीजिए, कोई पूजा पाठ, यज्ञ कुछ तो.... बस राजकुमारी वृषाली को ठीक कर दीजिए। महाराज राजगुरु के पैर में पड़कर आजिज़ी करने लगते है। राजगुरु उनकी बाहे थामकर उनको अपने पास बैठाते हे।
देखिए महाराज हमारे राजवैध पर भरोसा रखिए। संसार के अच्छे वैद में से एक है हमारे राजवैध, वो प्रयास कर रहे है और मुझे उनपर पूरा भरोसा है वो जरूर हमारी राजकुमारी को जल्द से जल्द ठीक कर देंगे। आप भी इश्वरसे प्राथना कीजिए के वो अपने काम में जल्द से जल्द सफल हो जाए।
महाराज और गुरुजीका वार्तालाप चल रहा है तभी बाहर से एक दरवान कक्ष में आने की अनुमति लेता है और अंदर आके कहेता है, क्षमा कीजिए महाराज लेकिन बाहर कोई आया है जो कह रहा है कि में राजकुमारी को ठीक कर सकता हूं और इसी उद्देश्य से यहां आया हूं जाके अपने महाराज को ये बात बताओ।
दरबान की बात सुनते ही महाराज की आंखे में चमक आ गई। कोन है वो, कहा से आया है? उसे तुरंत यहां उपस्थित होने को कहा जाए। जैसी आपकी आज्ञा महाराज कहेकर दरबान चला गया पर महाराज की आंखे कक्षके दरवाजे पर ही ठहेर गई। राजगुरु महाराज की ये उत्सुकता देख रहे थे। महाराज अपने आसन से उठकर कक्षमे इधर उधर चलने लगे। उनके लिए एक एक क्षण मानो जैसे एक एक सालके जैसा है। महाराज को इस दशामे देखकर गुरूजिसे अब रहा नहीं गया। उन्होंने कहा महाराज आप अपने आसनपे विराजे दरबान उसे लेकर आ ही रहा होगा।
जी गुरुजी पर पता नहीं क्यों लेकिन दिलमे एक आस जगी है कि शायद ये आनेवाला अजनबी राजकुमारी को ठीक कर देगा। महाराज की आंखों में आशा की ज्योत दिखाई दे रही है। भगवान करे एसा ही हो महाराज पर आप इतने व्याकुल होकर धीरज मत खोइए। आने वाला इनसान कोंन है, कैसा है ये जानना भी अती आवश्यक है। यहां बात राजकुमारी के स्वास्थ और सुरक्षा दोनों कि है। एसे किसी भी इंसान पे भरोसा नहीं कर सकते। पहले उससे मिल कर उसके तात्पर्य की पुष्टि करनी होगी।
जी गुरुजी आप सही कह रहे है। राजगुरु और महाराज का वार्तालाप चल रहा है तभी वो अजनबी कक्ष में दाखिल होता है और महाराज और राजगुरु उसको देखकर अपने वार्तालाप को अधूरा छोड़कर उस अजनबी को देखते है।
अजनबी युवान पुरुष है। गठीला शरीर, तलवार की धार के जैसी तेज आंखे, चौड़ा सीना, प्रचंड भुजाए, पहाड़ जैसा व्यक्तित्व, और चहेरे पे तपते हुए सूरज की लालिमा जैसा तेज, विशाल भालपे किया हुआ त्रिपुंड चहेरे को और भी तेजवंत बना रहा है, गलेमे और पूरे शरीर पर पहने हुए रुद्राक्ष मानो साक्षात कोई रुद्रावतार हो। और कंधेसे नीचे तक जाते हुए गहरे काले बाल जैसे अनगिनत सर्प हो।
महाराज और राजगुरु इस अजनबी युवान को देखते ही रहे गए। कक्षकी धुंधली रोशनी में वो सूर्य सा तेज लेके आया था। महाराज से रहा नहीं गया उन्होंने पूछ लिया आप कोंन है कृपया अपना परिचय दीजिए। आपके मुखके तेज को देखकर लगता है कि आप महा ज्ञानी ब्राह्मण है, पर आपकी विशाल भुजाओं को देखकर लगता है आप वीर क्षत्रिय है अतः अपना परिचय दीजिए।
में भी उनको यही समझाने का प्रयास कर रहा हूं राजगुरु। पर छोटा मुंह बड़ी बात शोभा नहीं देती इस लिए मैने आपको यहां आने का कष्ट दिया। में उसके लिए क्षमा चाहता हूं।अपने आसन से उठकर महामंत्री राजगुरु के समीप आए और हाथ जोड़कर बोले।
महाराज अपने हाथकी सहायता से शिश झुकाए बैठे है। गहरा शोक उनको घेरे हुए है। राजगुरु की बात सुनकर ऊपर देखते हुए बोले, में आपकी बात समझ रहा हूं पर क्या करू गुरुजी राजा होने के साथ में एक बाप भी हूं वो भी एक बेटिका। भगवान ने सालो तक हमें संतान सुखसे वंचित रखा, कितनी मन्नते, कितने पूजा पाठ, दान पुण्य, हवन, यज्ञ, क्या क्या नहीं किया तब जाके कहीं हमारे घर राजकुमारी वृषाली की नन्नी किलकारियां गूंजी और हमारा राजमहल खुशियों से भर गया। और आज......वो आगे बोल नहीं पाए, उनका गला भर आया और आंखें आंसुओ से भर गई।
ईश्वर सब ठीक कर देगा। हर इनसान की जिंदगी में कठिन समय आता है, और तब ही उसके विवेक और धैर्य की परीक्षा होती है। आपकी भी हो रही है और मुझे भरोसा है आप इसमें जरूर उतिर्न होंगे। आप महान विरो के वंशज है। गुरुजी के शब्दों में दृढ़ता थी। आपने राजा होने के नाते इस से भी कठिन युद्ध का सामना निडरता से किया है। ये कठिन वक्त भी गुजर जाएगा राजगुरु बोले। गुरुजी कोई तो उपाय होगा, आप तो इतने बड़े विद्वान है आप कुछ कीजिए, कोई पूजा पाठ, यज्ञ कुछ तो.... बस राजकुमारी वृषाली को ठीक कर दीजिए। महाराज राजगुरु के पैर में पड़कर आजिज़ी करने लगते है। राजगुरु उनकी बाहे थामकर उनको अपने पास बैठाते हे।
देखिए महाराज हमारे राजवैध पर भरोसा रखिए। संसार के अच्छे वैद में से एक है हमारे राजवैध, वो प्रयास कर रहे है और मुझे उनपर पूरा भरोसा है वो जरूर हमारी राजकुमारी को जल्द से जल्द ठीक कर देंगे। आप भी इश्वरसे प्राथना कीजिए के वो अपने काम में जल्द से जल्द सफल हो जाए।
महाराज और गुरुजीका वार्तालाप चल रहा है तभी बाहर से एक दरवान कक्ष में आने की अनुमति लेता है और अंदर आके कहेता है, क्षमा कीजिए महाराज लेकिन बाहर कोई आया है जो कह रहा है कि में राजकुमारी को ठीक कर सकता हूं और इसी उद्देश्य से यहां आया हूं जाके अपने महाराज को ये बात बताओ।
दरबान की बात सुनते ही महाराज की आंखे में चमक आ गई। कोन है वो, कहा से आया है? उसे तुरंत यहां उपस्थित होने को कहा जाए। जैसी आपकी आज्ञा महाराज कहेकर दरबान चला गया पर महाराज की आंखे कक्षके दरवाजे पर ही ठहेर गई। राजगुरु महाराज की ये उत्सुकता देख रहे थे। महाराज अपने आसन से उठकर कक्षमे इधर उधर चलने लगे। उनके लिए एक एक क्षण मानो जैसे एक एक सालके जैसा है। महाराज को इस दशामे देखकर गुरूजिसे अब रहा नहीं गया। उन्होंने कहा महाराज आप अपने आसनपे विराजे दरबान उसे लेकर आ ही रहा होगा।
जी गुरुजी पर पता नहीं क्यों लेकिन दिलमे एक आस जगी है कि शायद ये आनेवाला अजनबी राजकुमारी को ठीक कर देगा। महाराज की आंखों में आशा की ज्योत दिखाई दे रही है। भगवान करे एसा ही हो महाराज पर आप इतने व्याकुल होकर धीरज मत खोइए। आने वाला इनसान कोंन है, कैसा है ये जानना भी अती आवश्यक है। यहां बात राजकुमारी के स्वास्थ और सुरक्षा दोनों कि है। एसे किसी भी इंसान पे भरोसा नहीं कर सकते। पहले उससे मिल कर उसके तात्पर्य की पुष्टि करनी होगी।
जी गुरुजी आप सही कह रहे है। राजगुरु और महाराज का वार्तालाप चल रहा है तभी वो अजनबी कक्ष में दाखिल होता है और महाराज और राजगुरु उसको देखकर अपने वार्तालाप को अधूरा छोड़कर उस अजनबी को देखते है।
अजनबी युवान पुरुष है। गठीला शरीर, तलवार की धार के जैसी तेज आंखे, चौड़ा सीना, प्रचंड भुजाए, पहाड़ जैसा व्यक्तित्व, और चहेरे पे तपते हुए सूरज की लालिमा जैसा तेज, विशाल भालपे किया हुआ त्रिपुंड चहेरे को और भी तेजवंत बना रहा है, गलेमे और पूरे शरीर पर पहने हुए रुद्राक्ष मानो साक्षात कोई रुद्रावतार हो। और कंधेसे नीचे तक जाते हुए गहरे काले बाल जैसे अनगिनत सर्प हो।
महाराज और राजगुरु इस अजनबी युवान को देखते ही रहे गए। कक्षकी धुंधली रोशनी में वो सूर्य सा तेज लेके आया था। महाराज से रहा नहीं गया उन्होंने पूछ लिया आप कोंन है कृपया अपना परिचय दीजिए। आपके मुखके तेज को देखकर लगता है कि आप महा ज्ञानी ब्राह्मण है, पर आपकी विशाल भुजाओं को देखकर लगता है आप वीर क्षत्रिय है अतः अपना परिचय दीजिए।