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"प्रेम" क्या कभी पूर्णता दे सकता है। जो शब्द ही अपूर्ण है वह पूर्णता कैसे दे सकता है क्योंकि प्रेम में 'प्' तो पूरा है ही नहीं वह आधा है, अधूरा है। प्रेम में कुछ ना कुछ छूट जाना स्वाभाविक है। जहाँ आप का अंत होता है, वहीं से प्रेम का प्रारंभ होता है। प्रेम शब्द में ही एक अजीब सी मिठास है, सौंदर्य है, एक सुगंध है जो हमें अपनी और आकर्षित करता है और हम सब भुला कर उसमें खोए बिना नहीं रह सकते। जब हम प्रेम में होते हैं तो हमारा सोचने का तरीका, महसूस करने का तरीका, पसंद नापसंद, दर्शन, विचारधारा सब कुछ पिघल जाता है।
डायरी पढ़ते-पढ़ते अपूर्वा उसके शब्दों में खोती जा रही थी। "जिसने भी लिखा है बहुत खूबसूरत लिखा है" पता नहीं किस की डायरी है। कोई नाम पता भी तो नहीं लिखा है। अब कैसे वापस करूंगी? पता नहीं कौन ऑफिस के टेबल पर छोड़ गया था। किसी को भी इस डायरी के बारे में कुछ भी पता नहीं था। अरे! यह क्या है २६०८९०.ये कैसा नं.है? खैर जो भी हो, मुझे किसी की डायरी ऐसे नहीं पढ़नी चाहिए। उसने डायरी बंद करके बैग में रखा। घड़ी पर नजर डाली तो ३:०० बज चुके थे बहुत देर हो गई है मुझे अब निकलना चाहिए।
अपूर्वा को अमेरिका में आज पूरे एक सप्ताह हो गए थे। अभी वर्तमान में वह अमेरिका के Las Vegas Valley में थी और उसे जल्द से जल्द MaCarran International Airport पहुँचना था।
वह अमेरिका एक बिजनेस डील के लिए आई थी। उस की मीटिंग Awasthi & Company के साथ थी। जो कि अमेरिका की टॉप 10 कंपनियों में से एक थी। उसकी डील फाइनल हो चुकी थी और वह बहुत खुश थी। उसने अपने बॉस मिस्टर धीरज मल्होत्रा को फोन करके यह खुशखबरी दे दी पर उसे एक बात का अफसोस रह गया कि वह कंपनी के मालिक से नहीं मिल पाई क्योंकि वह एक अन्य बिजनेस मीटिंग के लिए ऑस्ट्रेलिया निकल गए थे।
अपूर्वा ने फोन करके टैक्सी बुलाई और एयरपोर्ट के लिए निकल गई।