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Romance वो इश्क़ अधूरा (Completed)

Sona

Smiling can make u and others happy
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भाग 1




"प्रेम" क्या कभी पूर्णता दे सकता है। जो शब्द ही अपूर्ण है वह पूर्णता कैसे दे सकता है क्योंकि प्रेम में 'प्' तो पूरा है ही नहीं वह आधा है, अधूरा है। प्रेम में कुछ ना कुछ छूट जाना स्वाभाविक है। जहाँ आप का अंत होता है, वहीं से प्रेम का प्रारंभ होता है। प्रेम शब्द में ही एक अजीब सी मिठास है, सौंदर्य है, एक सुगंध है जो हमें अपनी और आकर्षित करता है और हम सब भुला कर उसमें खोए बिना नहीं रह सकते। जब हम प्रेम में होते हैं तो हमारा सोचने का तरीका, महसूस करने का तरीका, पसंद नापसंद, दर्शन, विचारधारा सब कुछ पिघल जाता है।

डायरी पढ़ते-पढ़ते अपूर्वा उसके शब्दों में खोती जा रही थी। "जिसने भी लिखा है बहुत खूबसूरत लिखा है" पता नहीं किस की डायरी है। कोई नाम पता भी तो नहीं लिखा है। अब कैसे वापस करूंगी? पता नहीं कौन ऑफिस के टेबल पर छोड़ गया था। किसी को भी इस डायरी के बारे में कुछ भी पता नहीं था। अरे! यह क्या है २६०८९०.ये कैसा नं.है? खैर जो भी हो, मुझे किसी की डायरी ऐसे नहीं पढ़नी चाहिए। उसने डायरी बंद करके बैग में रखा। घड़ी पर नजर डाली तो ३:०० बज चुके थे बहुत देर हो गई है मुझे अब निकलना चाहिए।

अपूर्वा को अमेरिका में आज पूरे एक सप्ताह हो गए थे। अभी वर्तमान में वह अमेरिका के Las Vegas Valley में थी और उसे जल्द से जल्द MaCarran International Airport पहुँचना था।

वह अमेरिका एक बिजनेस डील के लिए आई थी। उस की मीटिंग Awasthi & Company के साथ थी। जो कि अमेरिका की टॉप 10 कंपनियों में से एक थी। उसकी डील फाइनल हो चुकी थी और वह बहुत खुश थी। उसने अपने बॉस मिस्टर धीरज मल्होत्रा को फोन करके यह खुशखबरी दे दी पर उसे एक बात का अफसोस रह गया कि वह कंपनी के मालिक से नहीं मिल पाई क्योंकि वह एक अन्य बिजनेस मीटिंग के लिए ऑस्ट्रेलिया निकल गए थे।
अपूर्वा ने फोन करके टैक्सी बुलाई और एयरपोर्ट के लिए निकल गई।
:congrats: for new story
Nice update
 
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भाग 1




"प्रेम" क्या कभी पूर्णता दे सकता है। जो शब्द ही अपूर्ण है वह पूर्णता कैसे दे सकता है क्योंकि प्रेम में 'प्' तो पूरा है ही नहीं वह आधा है, अधूरा है। प्रेम में कुछ ना कुछ छूट जाना स्वाभाविक है। जहाँ आप का अंत होता है, वहीं से प्रेम का प्रारंभ होता है। प्रेम शब्द में ही एक अजीब सी मिठास है, सौंदर्य है, एक सुगंध है जो हमें अपनी और आकर्षित करता है और हम सब भुला कर उसमें खोए बिना नहीं रह सकते। जब हम प्रेम में होते हैं तो हमारा सोचने का तरीका, महसूस करने का तरीका, पसंद नापसंद, दर्शन, विचारधारा सब कुछ पिघल जाता है।

डायरी पढ़ते-पढ़ते अपूर्वा उसके शब्दों में खोती जा रही थी। "जिसने भी लिखा है बहुत खूबसूरत लिखा है" पता नहीं किस की डायरी है। कोई नाम पता भी तो नहीं लिखा है। अब कैसे वापस करूंगी? पता नहीं कौन ऑफिस के टेबल पर छोड़ गया था। किसी को भी इस डायरी के बारे में कुछ भी पता नहीं था। अरे! यह क्या है २६०८९०.ये कैसा नं.है? खैर जो भी हो, मुझे किसी की डायरी ऐसे नहीं पढ़नी चाहिए। उसने डायरी बंद करके बैग में रखा। घड़ी पर नजर डाली तो ३:०० बज चुके थे बहुत देर हो गई है मुझे अब निकलना चाहिए।

अपूर्वा को अमेरिका में आज पूरे एक सप्ताह हो गए थे। अभी वर्तमान में वह अमेरिका के Las Vegas Valley में थी और उसे जल्द से जल्द MaCarran International Airport पहुँचना था।

वह अमेरिका एक बिजनेस डील के लिए आई थी। उस की मीटिंग Awasthi & Company के साथ थी। जो कि अमेरिका की टॉप 10 कंपनियों में से एक थी। उसकी डील फाइनल हो चुकी थी और वह बहुत खुश थी। उसने अपने बॉस मिस्टर धीरज मल्होत्रा को फोन करके यह खुशखबरी दे दी पर उसे एक बात का अफसोस रह गया कि वह कंपनी के मालिक से नहीं मिल पाई क्योंकि वह एक अन्य बिजनेस मीटिंग के लिए ऑस्ट्रेलिया निकल गए थे।
अपूर्वा ने फोन करके टैक्सी बुलाई और एयरपोर्ट के लिए निकल गई।
Congrats sir for new story
Eski shuruwat kafi achi hai bs aap se ek req hai story ko short mein na likiyega thodi lambi rakhiyega
 
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Ashish Jain

कलम के सिपाही
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Congrats sir for new story
Eski shuruwat kafi achi hai bs aap se ek req hai story ko short mein na likiyega thodi lambi rakhiyega
:frown: मैं इसे 5 या 6 भााग में ख़तम करने की सोच रहा था....
 

Ashish Jain

कलम के सिपाही
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भाग 2




अपूर्वा
"अपूर्वा शर्मा" एक बहुत ही खूबसूरत, मॉडर्न, और उच्च महत्वाकांक्षाओं वाली मेरठ की लड़की है जो वर्तमान में दिल्ली के एक बड़े मल्टीनेशनल कंपनी में सीईओ के पद पर कार्यरत है वह अपनी माँ आवंतिका शर्मा, बेटी विनी, पति शुभांकर दीक्षित और बेला के साथ ग्रेटर कैलाश में स्थित अपने बंगले में रहती है। बेला अपूर्वा के घर की मेड है जो घर का सारा काम देखती है।
अपूर्वा का विवाह दिल्ली के ही एक बड़े बिजनेसमैन शुभांकर दीक्षित के साथ हुआ है। अपूर्वा और शुभांकर एक दूसरे को पहले से ही जानते थे। दोनों का प्रेम प्रसंग था। अतः दोनों ने विवाह कर लिया। अर्पूवा की माँ आवंतिका को और शुभांकर के घर वालों को भी ये रिश्ता पसंद था इसलिए किसी ने कोई विरोध भी नहीं किया।

अपूर्वा को गरीबी से बहुत नफरत थी क्योंकि उसका बचपन बहुत कष्टमय बीता था। उसने बचपन से ही गरीबी देखी थी। अपनी माँ को हर छोटी छोटी चीजों से समझौता करते देखा था। उसके पिताजी श्रीधर शर्मा एक छोटे से कपड़े के मिल में काम करते थे और मां अवंतिका कढ़ाई बुनाई का काम अपने घर से ही करती थी। अपूर्वा अपने माँ पापा से बहुत प्यार करती थी क्योंकि उसके मांँ पापा ने उसे अपनी पढ़ाई के साथ समझौता नहीं करने दिया था। पढ़ाई की हर चीज उसे समय से मिल जाती थी और स्कूल का फीस भी वक्त से जमा हो जाता था। जब अपूर्वा आठवीं कक्षा में थी उस वक्त उसके पिताजी बीमार चल रहे थे। एक दिन वह काम करते-करते बेहोश हो गए तो कुछ लोग उन्हें घर छोड़ गए। अवंतिका श्रीधर की हालत देख कर डर गई। अपूर्वा अभी तक स्कूल से नहीं लौटी थी। जब होश में आए तो अवंतिका ने श्रीधर से बोला मैंने कहा था कि कोई और आराम का काम ढ़ूढ़ लीजिए पर नहीं मेरी बात तो सुननी ही नहीं है।

श्रीधर - यहाँ तनख्वाह ज्यादा है अवंतिका और अपूर्वा को पढ़ाई में दिक्कत हो जाएगी।

आवंतिका- अपूर्वा सरकारी स्कूल में पढ़ लेगी। लेकिन आप को कुछ हो गया तो हम क्या करेंगे। ऊपर से आपकी तबीयत भी बिगड़ती जा रही है। आप कोई दूसरी आराम की नौकरी कर लीजिए।

श्रीधर - नहीं आवंतिका मैं अपनी बेटी को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाऊँगा। मुझे अपनी बेटी का जीवन संवारना है वह बहुत ठाट बाट से जिएगी। मैं अपनी बेटी की अपने जैसे जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता और हांँ अपूर्वा आ रही होगी तो यह सब बातें बंद करो। उसे यह सब पता नहीं लगना चाहिए।
पर दरवाजे के बाहर से अपूर्वा अपने माँ पापा की सारी बातें सुन रही थी। उसकी आंखों में अपने माँ पापा के लिए सम्मान के आँसू थे। उसे अपने माँ पापा से बहुत लगाव तो था ही पर उस दिन से वह अपने माँ पापा के प्रति श्रद्धा और गरीबी के प्रति घृणा के भाव से भर उठी थी।
उसने निश्चय किया कि वह भी कुछ करेगी। अगले दिन जब वह स्कूल गई तो जूनियर क्लास के बच्चों को ट्यूशन के लिए बोला। लगभग २० बच्चे तैयार हुए पर वह अपने माँ पापा से बात करने को बोल रहे थे। अपूर्वा छुट्टी के बाद ही सबके अभिभावकों से मिली। चूंकि अपूर्वा पढ़ने में अव्वल दर्जे की थी और हर परीक्षा में वह पूरे स्कूल में टॉप करती थी। इसलिए उन सारे बच्चों के अभिभावक यही सुनकर खुश हो गए की अपूर्वा उनके बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना चाहती है। सब खुशी खुशी राजी हो गए। आवंतिका को तो सब मालूम था लेकिन अपूर्वा ने अपने पापा को यह बात बताने से मना कर दिया। अगले दिन से ही अपूर्वा उन सब को ट्यूशन देने लगी।

एक महीने बाद जब उसे पैसे मिले तो वह खुशी से झूम उठी। जब उसके पिताजी घर आए तो उसने उनके हाथ में वो पैसे रख दिए।

श्रीधर- यह कैसे पैसे हैं अर्पूवा?

अर्पूवा- यह मेरी कमाई के पैसे हैं पापा। मैंने जूनियर क्लास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया है।

श्रीधर- तू पढ़ने में मन लगा बेटी मैं और तुम्हारी मांँ है ना यह पैसे कमाने के लिए। उन्होंने आवंतिका की तरफ गुस्से से देखते हुए पूछा,- वैसे तुम्हें किसने कहा है यह सब करने को?

अर्पूवा- किसी ने कुछ भी नहीं कहा है पापा। वह मेरे सर कहते हैं कि विद्या बाँटने से बढ़ता है। इसलिए मैंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया और सच में उनको पढ़ाने से मैंने कितना कुछ जाना, कितनी चीजें तो मैं भूल ही गई थी। इससे तो मेरी पढ़ाई और आसान हो गई है और पैसे भी आ रहे हैं। अभी आप की तबीयत बहुत खराब है तो आपको काम करने की जरूरत नहीं है आप कुछ दिन आराम कर लीजिए।

एक दिन में इतना परिवर्तन देखकर श्रीधर जी सब समझ गए कि जरूर उस दिन अपूर्वा ने उन दोनों की बातें सुन ली हैं। लेकिन वह अपनी बेटी की समझदारी और हाजिर जवाबी के आगे नतमस्तक हो गए। उनकी आंखें नम हो गई। यह देखकर आवंतिका भी अपने आँसू रोक नहीं पाई और तीनों की आँखों से प्रेम, अश्रु बनकर बहने लगे।

जैसे तैसे अपूर्वा के दिन कटने लगे। वह सुबह स्कूल जाती, फिर घर आकर बच्चों को पढ़ाती और रात में खुद की पढ़ाई करती। इस तरह अपूर्वा ने पहले बोर्ड की परीक्षा और फिर १२ वीं परीक्षा को पूरे जिले में टॉप कीया।

उसके बाद उसने मेरठ में ही मेरठ यूनिवर्सिटी के कॉमर्स सेक्शन बीबीए में एडमिशन ले लिया। लेकिन अपूर्वा के पिता के हालात बिगड़ते जा रहे थे। उनकी तबीयत दिन पर दिन खराब होती जा रही थी और अब वह बिस्तर से भी उठ नहीं पाते थे। अपूर्वा के लिए जिम्मेदारियाँ बढ़ गई थी फिर भी उसने हार नहीं मानी थी।

कॉलेज का पहला दिन
अपूर्वा का कॉलेज में आज पहला दिन था। सुबह उठकर वो कॉलेज जाने के लिए तैयार हो गई थी। अपूर्वा खूबसूरत तो थी ही पर आज गुलाबी सूट में उसकी खूबसूरती और भी निखर गई थी। ऊपर से उसके काले घुंघराले बाल उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रहे थे। उसने घर के बाहर से ऑटो लिया और कॉलेज के लिए निकल गई। कॉलेज पहुंँच कर उसे समझ नहीं आ रहा था कि किधर जाए और उसका क्लास किधर है। वहीं कुछ सीनियर्स खड़े थे तो उसने उनसे ही पूछ लिया," बीबीए फर्स्ट ईयर की क्लास किस तरफ है"? उन लोगों ने एकदूसरे को देखकर मुस्कुराते हुए जवाब दिया," फर्स्ट फ्लोर का सबसे पहला क्लास " वह फर्स्ट फ्लोर पर गई तो उसे पता चला कि उसकी रैगिंग हुई है, यह तो आर्ट सेकंड ईयर की क्लास है। वह वापस जाने के लिए मुड़ी ही थी की एक लड़के से टकरा गई। उसने उसे घूरते हुए देखा और सॉरी बोल कर जाने लगी तो उस लड़के ने पूछा," क्या आप कॉलेज में नई है?"

अर्पूवा- हाँ! आज मेरा पहला दिन है और मेरी क्लास रूम कहाँ है मुझे पता ही नहीं। कुछ सीनियर्स से पूछा तो उन्होंने मेरी रैगिंग कि मुझे गलत क्लास में भेज दिया। क्या आप बता सकते हैं कि मेरी क्लास किधर है?
लड़का- मेरा नाम चैतन्य है और मैं आर्ट सेकंड ईयर में हूँ। अगर आपको बुरा ना लगे तो मैं आपको आपके क्लास तक छोड़ सकता हूँ। उसके बाद चैतन्य अपूर्वा को उसकी क्लास तक छोड़ देता है। क्लास में पहुंँचकर अपूर्वा चैतन्य को धन्यवाद देती है। तभी चैतन्य बोलता है,"क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ?"

जी! मेरा नाम अर्पूवा है।

उसके बाद चैतन्य वहांँ से जाने लगता है। जाते-जाते वह अपूर्वा को देख कर मुस्कुराता है और अपूर्वा भी।

धीरे धीरे अपूर्वा और चैतन्य में गहरी दोस्ती हो जाती है। दोनों साथ साथ ही कॉलेज आते- जाते हैं। चैतन्य का घर अपूर्वा के घर की गली से एक गली छोड़कर है। अपूर्वा के घर तक दोनों साथ ही आते हैं।
चैतन्य अर्पूवा का बहुत ख्याल रखता है। उसकी पसंद नापसंद सब कुछ। अपूर्वा को कोई भी काम हो चैतन्य उसकी हर काम में मदद जरूर करता है। अपूर्वा भी चैतन्य को बहुत पसंद करती थी और वो अपना हर सुख दुख उससे बांटती थी।

अपूर्वा चैतन्य को बहुत प्रभावित करती थी। ये कहना गलत नहीं होगा कि चैतन्य को अपूर्वा से प्रेम हो गया था। अपूर्वा भी चैतन्य को पसंद करती थी पर एक मित्र की तरह। उसने उसे एक मित्र से ज्यादा कुछ नहीं माना।

चैतन्य
चैतन्य भी साधारण परिवार का एक मेहनती, स्मार्ट, और आकर्षक व्यक्तित्व का नौजवान है। पर वो बहुत ही संवेदनशील है किसी के बुरे व्यवहार को वह बर्दाश्त नहीं कर पाता है और बहुत जल्दी आहत हो जाता है। इसलिए वह खुद भी किसी के साथ गलत व्यवहार नहीं करता। उसके माता पिता बचपन में ही एक रोड एक्सीडेंट में गुजर गए थे। वह अपने दादा दादी के साथ रहता था। उसके दादा दादी ने ही उसे पाल पोस कर बड़ा किया था। उसके दादाजी आर्मी से रिटायर्ड कर्नल थे। वर्तमान में उनके ही पेंशन से घर चलता था। पेंशन का कुछ हिस्सा दादा दादी की दवाइयों में जाता था। चैतन्य की पढ़ाई का खर्च भी उसके दादाजी ही देते थे।

चैतन्य एक बड़ा पेंटर बनना चाहता था। उसे पेंटिंग करने का बहुत शौक था। उसने अपूर्वा की बहुत सारी पोट्रेट बनाई थी। उसने अपूर्वा की खूबसूरती को बहुत ही खूबसूरत तरीके से कैनवास पर उकेरा था। लेकिन अपूर्वा इन सब से अनभिज्ञ अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर थी।

उसका तो बस एक ही लक्ष्य था की एमबीए के बाद एक बड़ी सी कंपनी में बड़े से पोस्ट पर कार्य करना और एक मोटी रकम की तनख्वाह कमाना। ताकि वह अपने सारे सपनों को खरीद सके। अपने पिता जी का अच्छे हॉस्पिटल में इलाज करा सके।
 
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भाग 2




अपूर्वा
"अपूर्वा शर्मा" एक बहुत ही खूबसूरत, मॉडर्न, और उच्च महत्वाकांक्षाओं वाली मेरठ की लड़की है जो वर्तमान में दिल्ली के एक बड़े मल्टीनेशनल कंपनी में सीईओ के पद पर कार्यरत है वह अपनी माँ आवंतिका शर्मा, बेटी विनी, पति शुभांकर दीक्षित और बेला के साथ ग्रेटर कैलाश में स्थित अपने बंगले में रहती है। बेला अपूर्वा के घर की मेड है जो घर का सारा काम देखती है।
अपूर्वा का विवाह दिल्ली के ही एक बड़े बिजनेसमैन शुभांकर दीक्षित के साथ हुआ है। अपूर्वा और शुभांकर एक दूसरे को पहले से ही जानते थे। दोनों का प्रेम प्रसंग था। अतः दोनों ने विवाह कर लिया। अर्पूवा की माँ आवंतिका को और शुभांकर के घर वालों को भी ये रिश्ता पसंद था इसलिए किसी ने कोई विरोध भी नहीं किया।

अपूर्वा को गरीबी से बहुत नफरत थी क्योंकि उसका बचपन बहुत कष्टमय बीता था। उसने बचपन से ही गरीबी देखी थी। अपनी माँ को हर छोटी छोटी चीजों से समझौता करते देखा था। उसके पिताजी श्रीधर शर्मा एक छोटे से कपड़े के मिल में काम करते थे और मां अवंतिका कढ़ाई बुनाई का काम अपने घर से ही करती थी। अपूर्वा अपने माँ पापा से बहुत प्यार करती थी क्योंकि उसके मांँ पापा ने उसे अपनी पढ़ाई के साथ समझौता नहीं करने दिया था। पढ़ाई की हर चीज उसे समय से मिल जाती थी और स्कूल का फीस भी वक्त से जमा हो जाता था। जब अपूर्वा आठवीं कक्षा में थी उस वक्त उसके पिताजी बीमार चल रहे थे। एक दिन वह काम करते-करते बेहोश हो गए तो कुछ लोग उन्हें घर छोड़ गए। अवंतिका श्रीधर की हालत देख कर डर गई। अपूर्वा अभी तक स्कूल से नहीं लौटी थी। जब होश में आए तो अवंतिका ने श्रीधर से बोला मैंने कहा था कि कोई और आराम का काम ढ़ूढ़ लीजिए पर नहीं मेरी बात तो सुननी ही नहीं है।

श्रीधर - यहाँ तनख्वाह ज्यादा है अवंतिका और अपूर्वा को पढ़ाई में दिक्कत हो जाएगी।

आवंतिका- अपूर्वा सरकारी स्कूल में पढ़ लेगी। लेकिन आप को कुछ हो गया तो हम क्या करेंगे। ऊपर से आपकी तबीयत भी बिगड़ती जा रही है। आप कोई दूसरी आराम की नौकरी कर लीजिए।

श्रीधर - नहीं आवंतिका मैं अपनी बेटी को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाऊँगा। मुझे अपनी बेटी का जीवन संवारना है वह बहुत ठाट बाट से जिएगी। मैं अपनी बेटी की अपने जैसे जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता और हांँ अपूर्वा आ रही होगी तो यह सब बातें बंद करो। उसे यह सब पता नहीं लगना चाहिए।
पर दरवाजे के बाहर से अपूर्वा अपने माँ पापा की सारी बातें सुन रही थी। उसकी आंखों में अपने माँ पापा के लिए सम्मान के आँसू थे। उसे अपने माँ पापा से बहुत लगाव तो था ही पर उस दिन से वह अपने माँ पापा के प्रति श्रद्धा और गरीबी के प्रति घृणा के भाव से भर उठी थी।
उसने निश्चय किया कि वह भी कुछ करेगी। अगले दिन जब वह स्कूल गई तो जूनियर क्लास के बच्चों को ट्यूशन के लिए बोला। लगभग २० बच्चे तैयार हुए पर वह अपने माँ पापा से बात करने को बोल रहे थे। अपूर्वा छुट्टी के बाद ही सबके अभिभावकों से मिली। चूंकि अपूर्वा पढ़ने में अव्वल दर्जे की थी और हर परीक्षा में वह पूरे स्कूल में टॉप करती थी। इसलिए उन सारे बच्चों के अभिभावक यही सुनकर खुश हो गए की अपूर्वा उनके बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना चाहती है। सब खुशी खुशी राजी हो गए। आवंतिका को तो सब मालूम था लेकिन अपूर्वा ने अपने पापा को यह बात बताने से मना कर दिया। अगले दिन से ही अपूर्वा उन सब को ट्यूशन देने लगी।

एक महीने बाद जब उसे पैसे मिले तो वह खुशी से झूम उठी। जब उसके पिताजी घर आए तो उसने उनके हाथ में वो पैसे रख दिए।

श्रीधर- यह कैसे पैसे हैं अर्पूवा?

अर्पूवा- यह मेरी कमाई के पैसे हैं पापा। मैंने जूनियर क्लास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया है।

श्रीधर- तू पढ़ने में मन लगा बेटी मैं और तुम्हारी मांँ है ना यह पैसे कमाने के लिए। उन्होंने आवंतिका की तरफ गुस्से से देखते हुए पूछा,- वैसे तुम्हें किसने कहा है यह सब करने को?

अर्पूवा- किसी ने कुछ भी नहीं कहा है पापा। वह मेरे सर कहते हैं कि विद्या बाँटने से बढ़ता है। इसलिए मैंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया और सच में उनको पढ़ाने से मैंने कितना कुछ जाना, कितनी चीजें तो मैं भूल ही गई थी। इससे तो मेरी पढ़ाई और आसान हो गई है और पैसे भी आ रहे हैं। अभी आप की तबीयत बहुत खराब है तो आपको काम करने की जरूरत नहीं है आप कुछ दिन आराम कर लीजिए।

एक दिन में इतना परिवर्तन देखकर श्रीधर जी सब समझ गए कि जरूर उस दिन अपूर्वा ने उन दोनों की बातें सुन ली हैं। लेकिन वह अपनी बेटी की समझदारी और हाजिर जवाबी के आगे नतमस्तक हो गए। उनकी आंखें नम हो गई। यह देखकर आवंतिका भी अपने आँसू रोक नहीं पाई और तीनों की आँखों से प्रेम, अश्रु बनकर बहने लगे।

जैसे तैसे अपूर्वा के दिन कटने लगे। वह सुबह स्कूल जाती, फिर घर आकर बच्चों को पढ़ाती और रात में खुद की पढ़ाई करती। इस तरह अपूर्वा ने पहले बोर्ड की परीक्षा और फिर १२ वीं परीक्षा को पूरे जिले में टॉप कीया।

उसके बाद उसने मेरठ में ही मेरठ यूनिवर्सिटी के कॉमर्स सेक्शन बीबीए में एडमिशन ले लिया। लेकिन अपूर्वा के पिता के हालात बिगड़ते जा रहे थे। उनकी तबीयत दिन पर दिन खराब होती जा रही थी और अब वह बिस्तर से भी उठ नहीं पाते थे। अपूर्वा के लिए जिम्मेदारियाँ बढ़ गई थी फिर भी उसने हार नहीं मानी थी।

कॉलेज का पहला दिन
अपूर्वा का कॉलेज में आज पहला दिन था। सुबह उठकर वो कॉलेज जाने के लिए तैयार हो गई थी। अपूर्वा खूबसूरत तो थी ही पर आज गुलाबी सूट में उसकी खूबसूरती और भी निखर गई थी। ऊपर से उसके काले घुंघराले बाल उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रहे थे। उसने घर के बाहर से ऑटो लिया और कॉलेज के लिए निकल गई। कॉलेज पहुंँच कर उसे समझ नहीं आ रहा था कि किधर जाए और उसका क्लास किधर है। वहीं कुछ सीनियर्स खड़े थे तो उसने उनसे ही पूछ लिया," बीबीए फर्स्ट ईयर की क्लास किस तरफ है"? उन लोगों ने एकदूसरे को देखकर मुस्कुराते हुए जवाब दिया," फर्स्ट फ्लोर का सबसे पहला क्लास " वह फर्स्ट फ्लोर पर गई तो उसे पता चला कि उसकी रैगिंग हुई है, यह तो आर्ट सेकंड ईयर की क्लास है। वह वापस जाने के लिए मुड़ी ही थी की एक लड़के से टकरा गई। उसने उसे घूरते हुए देखा और सॉरी बोल कर जाने लगी तो उस लड़के ने पूछा," क्या आप कॉलेज में नई है?"

अर्पूवा- हाँ! आज मेरा पहला दिन है और मेरी क्लास रूम कहाँ है मुझे पता ही नहीं। कुछ सीनियर्स से पूछा तो उन्होंने मेरी रैगिंग कि मुझे गलत क्लास में भेज दिया। क्या आप बता सकते हैं कि मेरी क्लास किधर है?
लड़का- मेरा नाम चैतन्य है और मैं आर्ट सेकंड ईयर में हूँ। अगर आपको बुरा ना लगे तो मैं आपको आपके क्लास तक छोड़ सकता हूँ। उसके बाद चैतन्य अपूर्वा को उसकी क्लास तक छोड़ देता है। क्लास में पहुंँचकर अपूर्वा चैतन्य को धन्यवाद देती है। तभी चैतन्य बोलता है,"क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ?"

जी! मेरा नाम अर्पूवा है।

उसके बाद चैतन्य वहांँ से जाने लगता है। जाते-जाते वह अपूर्वा को देख कर मुस्कुराता है और अपूर्वा भी।

धीरे धीरे अपूर्वा और चैतन्य में गहरी दोस्ती हो जाती है। दोनों साथ साथ ही कॉलेज आते- जाते हैं। चैतन्य का घर अपूर्वा के घर की गली से एक गली छोड़कर है। अपूर्वा के घर तक दोनों साथ ही आते हैं।
चैतन्य अर्पूवा का बहुत ख्याल रखता है। उसकी पसंद नापसंद सब कुछ। अपूर्वा को कोई भी काम हो चैतन्य उसकी हर काम में मदद जरूर करता है। अपूर्वा भी चैतन्य को बहुत पसंद करती थी और वो अपना हर सुख दुख उससे बांटती थी।

अपूर्वा चैतन्य को बहुत प्रभावित करती थी। ये कहना गलत नहीं होगा कि चैतन्य को अपूर्वा से प्रेम हो गया था। अपूर्वा भी चैतन्य को पसंद करती थी पर एक मित्र की तरह। उसने उसे एक मित्र से ज्यादा कुछ नहीं माना।

चैतन्य
चैतन्य भी साधारण परिवार का एक मेहनती, स्मार्ट, और आकर्षक व्यक्तित्व का नौजवान है। पर वो बहुत ही संवेदनशील है किसी के बुरे व्यवहार को वह बर्दाश्त नहीं कर पाता है और बहुत जल्दी आहत हो जाता है। इसलिए वह खुद भी किसी के साथ गलत व्यवहार नहीं करता। उसके माता पिता बचपन में ही एक रोड एक्सीडेंट में गुजर गए थे। वह अपने दादा दादी के साथ रहता था। उसके दादा दादी ने ही उसे पाल पोस कर बड़ा किया था। उसके दादाजी आर्मी से रिटायर्ड कर्नल थे। वर्तमान में उनके ही पेंशन से घर चलता था। पेंशन का कुछ हिस्सा दादा दादी की दवाइयों में जाता था। चैतन्य की पढ़ाई का खर्च भी उसके दादाजी ही देते थे।

चैतन्य एक बड़ा पेंटर बनना चाहता था। उसे पेंटिंग करने का बहुत शौक था। उसने अपूर्वा की बहुत सारी पोट्रेट बनाई थी। उसने अपूर्वा की खूबसूरती को बहुत ही खूबसूरत तरीके से कैनवास पर उकेरा था। लेकिन अपूर्वा इन सब से अनभिज्ञ अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर थी।

उसका तो बस एक ही लक्ष्य था की एमबीए के बाद एक बड़ी सी कंपनी में बड़े से पोस्ट पर कार्य करना और एक मोटी रकम की तनख्वाह कमाना। ताकि वह अपने सारे सपनों को खरीद सके। अपने पिता जी का अच्छे हॉस्पिटल में इलाज करा सके।
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अपूर्वा
"अपूर्वा शर्मा" एक बहुत ही खूबसूरत, मॉडर्न, और उच्च महत्वाकांक्षाओं वाली मेरठ की लड़की है जो वर्तमान में दिल्ली के एक बड़े मल्टीनेशनल कंपनी में सीईओ के पद पर कार्यरत है वह अपनी माँ आवंतिका शर्मा, बेटी विनी, पति शुभांकर दीक्षित और बेला के साथ ग्रेटर कैलाश में स्थित अपने बंगले में रहती है। बेला अपूर्वा के घर की मेड है जो घर का सारा काम देखती है।
अपूर्वा का विवाह दिल्ली के ही एक बड़े बिजनेसमैन शुभांकर दीक्षित के साथ हुआ है। अपूर्वा और शुभांकर एक दूसरे को पहले से ही जानते थे। दोनों का प्रेम प्रसंग था। अतः दोनों ने विवाह कर लिया। अर्पूवा की माँ आवंतिका को और शुभांकर के घर वालों को भी ये रिश्ता पसंद था इसलिए किसी ने कोई विरोध भी नहीं किया।

अपूर्वा को गरीबी से बहुत नफरत थी क्योंकि उसका बचपन बहुत कष्टमय बीता था। उसने बचपन से ही गरीबी देखी थी। अपनी माँ को हर छोटी छोटी चीजों से समझौता करते देखा था। उसके पिताजी श्रीधर शर्मा एक छोटे से कपड़े के मिल में काम करते थे और मां अवंतिका कढ़ाई बुनाई का काम अपने घर से ही करती थी। अपूर्वा अपने माँ पापा से बहुत प्यार करती थी क्योंकि उसके मांँ पापा ने उसे अपनी पढ़ाई के साथ समझौता नहीं करने दिया था। पढ़ाई की हर चीज उसे समय से मिल जाती थी और स्कूल का फीस भी वक्त से जमा हो जाता था। जब अपूर्वा आठवीं कक्षा में थी उस वक्त उसके पिताजी बीमार चल रहे थे। एक दिन वह काम करते-करते बेहोश हो गए तो कुछ लोग उन्हें घर छोड़ गए। अवंतिका श्रीधर की हालत देख कर डर गई। अपूर्वा अभी तक स्कूल से नहीं लौटी थी। जब होश में आए तो अवंतिका ने श्रीधर से बोला मैंने कहा था कि कोई और आराम का काम ढ़ूढ़ लीजिए पर नहीं मेरी बात तो सुननी ही नहीं है।

श्रीधर - यहाँ तनख्वाह ज्यादा है अवंतिका और अपूर्वा को पढ़ाई में दिक्कत हो जाएगी।

आवंतिका- अपूर्वा सरकारी स्कूल में पढ़ लेगी। लेकिन आप को कुछ हो गया तो हम क्या करेंगे। ऊपर से आपकी तबीयत भी बिगड़ती जा रही है। आप कोई दूसरी आराम की नौकरी कर लीजिए।

श्रीधर - नहीं आवंतिका मैं अपनी बेटी को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाऊँगा। मुझे अपनी बेटी का जीवन संवारना है वह बहुत ठाट बाट से जिएगी। मैं अपनी बेटी की अपने जैसे जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता और हांँ अपूर्वा आ रही होगी तो यह सब बातें बंद करो। उसे यह सब पता नहीं लगना चाहिए।
पर दरवाजे के बाहर से अपूर्वा अपने माँ पापा की सारी बातें सुन रही थी। उसकी आंखों में अपने माँ पापा के लिए सम्मान के आँसू थे। उसे अपने माँ पापा से बहुत लगाव तो था ही पर उस दिन से वह अपने माँ पापा के प्रति श्रद्धा और गरीबी के प्रति घृणा के भाव से भर उठी थी।
उसने निश्चय किया कि वह भी कुछ करेगी। अगले दिन जब वह स्कूल गई तो जूनियर क्लास के बच्चों को ट्यूशन के लिए बोला। लगभग २० बच्चे तैयार हुए पर वह अपने माँ पापा से बात करने को बोल रहे थे। अपूर्वा छुट्टी के बाद ही सबके अभिभावकों से मिली। चूंकि अपूर्वा पढ़ने में अव्वल दर्जे की थी और हर परीक्षा में वह पूरे स्कूल में टॉप करती थी। इसलिए उन सारे बच्चों के अभिभावक यही सुनकर खुश हो गए की अपूर्वा उनके बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना चाहती है। सब खुशी खुशी राजी हो गए। आवंतिका को तो सब मालूम था लेकिन अपूर्वा ने अपने पापा को यह बात बताने से मना कर दिया। अगले दिन से ही अपूर्वा उन सब को ट्यूशन देने लगी।

एक महीने बाद जब उसे पैसे मिले तो वह खुशी से झूम उठी। जब उसके पिताजी घर आए तो उसने उनके हाथ में वो पैसे रख दिए।

श्रीधर- यह कैसे पैसे हैं अर्पूवा?

अर्पूवा- यह मेरी कमाई के पैसे हैं पापा। मैंने जूनियर क्लास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया है।

श्रीधर- तू पढ़ने में मन लगा बेटी मैं और तुम्हारी मांँ है ना यह पैसे कमाने के लिए। उन्होंने आवंतिका की तरफ गुस्से से देखते हुए पूछा,- वैसे तुम्हें किसने कहा है यह सब करने को?

अर्पूवा- किसी ने कुछ भी नहीं कहा है पापा। वह मेरे सर कहते हैं कि विद्या बाँटने से बढ़ता है। इसलिए मैंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया और सच में उनको पढ़ाने से मैंने कितना कुछ जाना, कितनी चीजें तो मैं भूल ही गई थी। इससे तो मेरी पढ़ाई और आसान हो गई है और पैसे भी आ रहे हैं। अभी आप की तबीयत बहुत खराब है तो आपको काम करने की जरूरत नहीं है आप कुछ दिन आराम कर लीजिए।

एक दिन में इतना परिवर्तन देखकर श्रीधर जी सब समझ गए कि जरूर उस दिन अपूर्वा ने उन दोनों की बातें सुन ली हैं। लेकिन वह अपनी बेटी की समझदारी और हाजिर जवाबी के आगे नतमस्तक हो गए। उनकी आंखें नम हो गई। यह देखकर आवंतिका भी अपने आँसू रोक नहीं पाई और तीनों की आँखों से प्रेम, अश्रु बनकर बहने लगे।

जैसे तैसे अपूर्वा के दिन कटने लगे। वह सुबह स्कूल जाती, फिर घर आकर बच्चों को पढ़ाती और रात में खुद की पढ़ाई करती। इस तरह अपूर्वा ने पहले बोर्ड की परीक्षा और फिर १२ वीं परीक्षा को पूरे जिले में टॉप कीया।

उसके बाद उसने मेरठ में ही मेरठ यूनिवर्सिटी के कॉमर्स सेक्शन बीबीए में एडमिशन ले लिया। लेकिन अपूर्वा के पिता के हालात बिगड़ते जा रहे थे। उनकी तबीयत दिन पर दिन खराब होती जा रही थी और अब वह बिस्तर से भी उठ नहीं पाते थे। अपूर्वा के लिए जिम्मेदारियाँ बढ़ गई थी फिर भी उसने हार नहीं मानी थी।

कॉलेज का पहला दिन
अपूर्वा का कॉलेज में आज पहला दिन था। सुबह उठकर वो कॉलेज जाने के लिए तैयार हो गई थी। अपूर्वा खूबसूरत तो थी ही पर आज गुलाबी सूट में उसकी खूबसूरती और भी निखर गई थी। ऊपर से उसके काले घुंघराले बाल उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रहे थे। उसने घर के बाहर से ऑटो लिया और कॉलेज के लिए निकल गई। कॉलेज पहुंँच कर उसे समझ नहीं आ रहा था कि किधर जाए और उसका क्लास किधर है। वहीं कुछ सीनियर्स खड़े थे तो उसने उनसे ही पूछ लिया," बीबीए फर्स्ट ईयर की क्लास किस तरफ है"? उन लोगों ने एकदूसरे को देखकर मुस्कुराते हुए जवाब दिया," फर्स्ट फ्लोर का सबसे पहला क्लास " वह फर्स्ट फ्लोर पर गई तो उसे पता चला कि उसकी रैगिंग हुई है, यह तो आर्ट सेकंड ईयर की क्लास है। वह वापस जाने के लिए मुड़ी ही थी की एक लड़के से टकरा गई। उसने उसे घूरते हुए देखा और सॉरी बोल कर जाने लगी तो उस लड़के ने पूछा," क्या आप कॉलेज में नई है?"

अर्पूवा- हाँ! आज मेरा पहला दिन है और मेरी क्लास रूम कहाँ है मुझे पता ही नहीं। कुछ सीनियर्स से पूछा तो उन्होंने मेरी रैगिंग कि मुझे गलत क्लास में भेज दिया। क्या आप बता सकते हैं कि मेरी क्लास किधर है?
लड़का- मेरा नाम चैतन्य है और मैं आर्ट सेकंड ईयर में हूँ। अगर आपको बुरा ना लगे तो मैं आपको आपके क्लास तक छोड़ सकता हूँ। उसके बाद चैतन्य अपूर्वा को उसकी क्लास तक छोड़ देता है। क्लास में पहुंँचकर अपूर्वा चैतन्य को धन्यवाद देती है। तभी चैतन्य बोलता है,"क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ?"

जी! मेरा नाम अर्पूवा है।

उसके बाद चैतन्य वहांँ से जाने लगता है। जाते-जाते वह अपूर्वा को देख कर मुस्कुराता है और अपूर्वा भी।

धीरे धीरे अपूर्वा और चैतन्य में गहरी दोस्ती हो जाती है। दोनों साथ साथ ही कॉलेज आते- जाते हैं। चैतन्य का घर अपूर्वा के घर की गली से एक गली छोड़कर है। अपूर्वा के घर तक दोनों साथ ही आते हैं।
चैतन्य अर्पूवा का बहुत ख्याल रखता है। उसकी पसंद नापसंद सब कुछ। अपूर्वा को कोई भी काम हो चैतन्य उसकी हर काम में मदद जरूर करता है। अपूर्वा भी चैतन्य को बहुत पसंद करती थी और वो अपना हर सुख दुख उससे बांटती थी।

अपूर्वा चैतन्य को बहुत प्रभावित करती थी। ये कहना गलत नहीं होगा कि चैतन्य को अपूर्वा से प्रेम हो गया था। अपूर्वा भी चैतन्य को पसंद करती थी पर एक मित्र की तरह। उसने उसे एक मित्र से ज्यादा कुछ नहीं माना।

चैतन्य
चैतन्य भी साधारण परिवार का एक मेहनती, स्मार्ट, और आकर्षक व्यक्तित्व का नौजवान है। पर वो बहुत ही संवेदनशील है किसी के बुरे व्यवहार को वह बर्दाश्त नहीं कर पाता है और बहुत जल्दी आहत हो जाता है। इसलिए वह खुद भी किसी के साथ गलत व्यवहार नहीं करता। उसके माता पिता बचपन में ही एक रोड एक्सीडेंट में गुजर गए थे। वह अपने दादा दादी के साथ रहता था। उसके दादा दादी ने ही उसे पाल पोस कर बड़ा किया था। उसके दादाजी आर्मी से रिटायर्ड कर्नल थे। वर्तमान में उनके ही पेंशन से घर चलता था। पेंशन का कुछ हिस्सा दादा दादी की दवाइयों में जाता था। चैतन्य की पढ़ाई का खर्च भी उसके दादाजी ही देते थे।

चैतन्य एक बड़ा पेंटर बनना चाहता था। उसे पेंटिंग करने का बहुत शौक था। उसने अपूर्वा की बहुत सारी पोट्रेट बनाई थी। उसने अपूर्वा की खूबसूरती को बहुत ही खूबसूरत तरीके से कैनवास पर उकेरा था। लेकिन अपूर्वा इन सब से अनभिज्ञ अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर थी।

उसका तो बस एक ही लक्ष्य था की एमबीए के बाद एक बड़ी सी कंपनी में बड़े से पोस्ट पर कार्य करना और एक मोटी रकम की तनख्वाह कमाना। ताकि वह अपने सारे सपनों को खरीद सके। अपने पिता जी का अच्छे हॉस्पिटल में इलाज करा सके।
Nice update sir ji
Hamare story ki jo herione h uski shaadi ho chuki hai or ek beti ki maa bhi hai or i think story ke hero chaitanya hai jiska ishq yha adhura rah gya
 
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