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Romance वो इश्क़ अधूरा (Completed)

Kirti.s

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भाग 6 (अन्तिम भाग)




अर्पूवा- क्या ? पर वो तो दिव्यांश था न। कोई अपना नाम गलत क्यों बताएगा? और इतने बड़े बिजनेसमैन को काम करने की क्या जरुरत थी?

धीरज- अब उसने ऐसा क्यों किया यह तो मैं नहीं जानता। क्योंकि मैंने जब भी उससे पूछा तो हमेशा टाल जाता। कहता कि वक्त आने पर सब पता चल जाएगा। उसने मुझे एक महीने पहले ही फोन किया था कि वह दिल्ली आ रहा है और उसे मेरे ऑफिस में काम चाहिए मैंने उससे पूछा, "इतने बड़े बिजनेसमैन को मेरे ऑफिस में काम क्यों चाहिए?" लेकिन वह फिर टाल गया और बोला बस कुछ ही दिनों में सब पता चल जाएगा। इसलिए मैंने अपने ऑफिस के मैनेजर का ट्रांसफर कर दिया था।


अपूर्वा बड़बड़ाने लगी..." इसका मतलब वह एयरपोर्ट पर मुझसे जानबूझकर टकराया फिर मुझ से माफी मांगने के बहाने बात की और बातों बातों में अपने जॉब की बात छेड़ी ताकि मैं उसे यह जॉब ऑफर कर सकूँ।
लेकिन क्यों और किसलिए????


धीरज- जब वह यहांँ आया तब उसने मुझसे तुम्हारे बारे में काफी कुछ पूछा, तो मैंने उसे तुम्हारे बारे में सारी बातें बता दि की तुम्हारा डीवॉर्स हो चुका है और तुम अपनी माँ और बेटी के साथ ग्रेटर कैलाश में रहती हो।
मैंने उससे पूछा भी था की अर्पूवा के बारे में क्यों पूछ रहा है। तो उसने कहा,- धीरज मैं किसी से कोई रिश्ता तो नहीं जोड़ सकता अब क्योंकि मेरे पास वक्त बहुत कम है। अपू्र्वा को मैंने जबसे देखा है मुझे उससे प्रेम है, बस इस परिवार के साथ खासकर अपूर्वा और विनी के साथ कुछ पल बिताना चाहता हूंँ। अब इस अंतिम वक्त में मेरे पास अपना है ही कौन?
चूंकि यह उसकी अंतिम इच्छा थी इसलिए मैं मान गया, हो सके तो तुम मुझे माफ कर देना।


अर्पूवा धड़कते दिल के साथ पूछी," अंतिम इच्छा??" मतलब क्या है आपका? क्या हुआ है उन्हें?


धीरज- हांँ! अंतिम इच्छा, वो अभी अमेरिका के H2U Health Center में आखरी सांसे ले रहा है वो कैंसर के अंतिम चरण पर हैं। उसके पूरे शरीर में इंफेक्शन फैल चुका है।


अर्पूवा- कैंसर? पर कैसे?


धीरज- इसके पीछे भी एक अतीत है। आज से लगभग 7 साल पहले जब चैतन्य कॉलेज में था तो उसके किसी दोस्त के घर में आग लग गई थी और उसके माता-पिता उस आग में फंस गए थे। चैतन्य ने ही उन्हें बचाया और हॉस्पिटल ले गया। परंतु वो भी बहुत जल गया था और मेरठ के सिटी हॉस्पिटल के वार्ड में 4 महीने तक एडमिट था। जब वह थोड़ा अच्छा हुआ तो उसने मुझे फोन करके सारी बात बताई।


अर्पूवा को ऐसा लग रहा था कि सारे जहाँ का दर्द उसके हिस्सें में आ गया है। आँसुओं से उसका पूरा चेहरा धुल गया था।
नम आंँखों से वो इतना ही बोल पायी कि,"वो दोस्त मैं ही थी जिसके घर में आग लगी थी। वो पागलों की तरह बड़बड़ा रही थी "मेरे माँ पापा को बचाने वाला लड़का कोई अनंत नहीं मेरा चैतन्य था और मैंने उसे क्या कुछ नहीं कहा। कितना सुनाया। वो उधर दर्द में था और मैं उसके बारे में क्या क्या सोच रही थी। उसने दोस्ती के सारे धर्म निभाए और मैंने एक भी धर्म नहीं निभाया। सबसे बड़ी स्वार्थी तो मैं हूँ।


धीरज ने बोलना जारी रखा,..."चैतन्य मेरे बचपन का दोस्त और पड़ोसी दोनों ही था। हमारे घर बिल्कुल अगल बगल में थे। मेरे और उसके पिताजी भी बचपन के बहुत अच्छे मित्र थे। चैतन्य जब 5 साल का था तब उसके माता पिता की एक रोड एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई थी। उसे उसके दादा दादी ने पाल पोस कर बड़ा किया। मेरे पिताजी का अपना बिजनेस था दिल्ली में। मेरे पिताजी बिच बिच में घर आते रहते थे वो उससे बहुत प्यार करते थे और वह भी उन्हें अपने पिताजी के जैसा सम्मान देता था। लेकिन जब मेरे पिताजी बिमार रहने लगे तो मैं दिल्ली आ गया था बिजनेस सम्भालने के लिये। फिर जब पिताजी चल बसे। उस वक्त हम लोग १८-१९ साल के होंगे तभी आखिरी मुलाकात हुई थी। चैतन्य और मैं बिल्कुल भाई जैसे थे। इसलिए पिताजी ने चैतन्य के नाम पर बैंक में कुछ पैसे फिक्स कर दिये थे ताकि भविष्य में अगर वो कुछ करना चाहे तो वो पैसे उसके काम आ सके।


उस दिन जब चैतन्य ने मुझे फोन करके सब बताया। फिर मैं चैतन्य के ठीक होने पर उसे दिल्ली ले आया। उसे अपनी कंपनी में जॉब दिया। लेकिन साल भर जॉब करने के बाद उसने मुझसे कहा कि वह अपना बिजनेस शुरू करना चाहता है। मैं बहुत खुश हुआ कि वह आगे बढ़ने की सोच रहा है। मैंने उसे पापा के फिक्स किए हुए पैसे दे दिए।
उसने अपना फैब्रिक का बिजनेस शुरू किया और तरक्की की सीढ़ियांँ चढ़ता गया। उसने जो तरक्की करनी शुरू की तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिर अचानक एक दिन उसने कहा कि वह अमेरिका में अपना बिजनेस शुरू कर रहा है। मैंने उसे बहुत बधाई दी। उसने दिल्ली का सारा बिजनेस मेरे नाम पर कर दिया। मैंने उसे मना किया पर वह नहीं माना और कहा," अंकल के और तेरे बहुत एहसान है मुझ पर यह तो कुछ भी नहीं, तेरे लिए तो अपनी जान भी दे सकता हूंँ। और वैसे भी मैं अमेरिका शिफ्ट हो रहा हूंँ तो यह बिजनेस तो तू ही देखेगा।


अर्पूवा- लेकिन दिव्यांश चैतन्य कैसे हो सकता है? वह चैतन्य से बिल्कुल अलग दिखता है। उसके और चैतन्य के चेहरे में बहुत अंतर है।


धीरज- जलने के बाद उसका चेहरा देखने में बहुत भद्दा हो गया था और पूरे शरीर में जलने के निशान हो गए थे तो मैंने है उसे प्लास्टिक सर्जरी की सलाह दी थी तो उसने अमेरिका जाकर अपनी सर्जरी करवा ली उस वक़्त मै उसके पास ही था। अमेरिका में भी अपना बिजनेस शुरू करके उसने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की की। लेकिन धीरे-धीरे उसकी तबीयत खराब रहने लगी। जब उसने चेकअप कराया तो पता चला कि उसे कैंसर हो गया है क्योंकि उसके सारे घाव तो ठीक हो गए थे पर कुछ हिस्से इतने गहरे जले थे कि उनमें इन्फेक्शन होना शुरू हो गया था जो कि बढ़ता ही जा रहा था और अब उस इन्फेक्शन ने कैंसर का रूप धारण लिया है जिसकी वजह से आज वो जिंदगी के अंतिम दिन गिन रहा है।


अर्पूवा- उसके दादा दादी अभी कहाँ है?


धीरज- उसकी दादी का ५ साल पहले ही देहांत हो गया और दादी के जाने के १ साल बाद दादा जी भी चल बसे।


अर्पूवा एक दम निःशब्द हो गई थी। उसकी हालत ठीक ना देखकर धीरज उसे घर छोड़ आया।


घर आकर अर्पूवा अमेरिका जाने के लिए पैकिंग करने लगी।उसने अपनी माँ को भी चलने को कहा। उसे अगले दिन ही निकलना था। नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। वो चैतन्य के बारे में सोच रही थी। अपने आप को कोस रही थी की क्यों उसने चैतन्य की भावनाओं को ठेस पहुँचाया। उसनें फिर एक बार उन पेपर्स को देखने के लिए उठाया तो लिफाफे से एक और पेपर गिरा। खोल कर देखा तो चैतन्य का पत्र था। वो पढ़ने लगी।


मेरी प्रिय अर्पूवा,
जब तक तुम्हें यह पत्र मिलेगा। जब तक तुम सब जानोगी तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। मुझे माफ कर देना मैंने तुमसे बहुत झूठ बोले हैं। लेकिन सिर्फ तुम्हारे और विनी के साथ कुछ वक्त बिताने के लिए। तुम्हें याद होगा जब तुमने मेरा प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया था। मैं उसी वक्त कॉलेज से निकल कर घर जा रहा था पर जब मैं तुम्हारे घर के पास से गुजरा तो भीड़ देखकर घबरा गया। जाकर देखा तो पता चला तुम्हारे घर में आग लग गई थी और तुम्हारे माता-पिता अंदर फंसे हुए थे। मैंने उन्हें किसी तरह निकाल तो लिया हॉस्पिटल भी पहुंँचा दिया पर तुम्हारे पिताजी को बचा नहीं पाया। हो सके तो मुझे माफ कर देना। मैं भी जल गया था तो उन लोगों ने मुझे भी एडमिट कर लिया। जिस वार्ड में तुम्हारे माता-पिता थे उसी वार्ड में मैं भी कमरा नंबर १० में एडमिट था। मैंने नर्स को तुम्हें अपने बारे में बताने से मना कर दिया था क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि तुम्हें मेरे बारे में पता चले और तुम अपने लक्ष्य से भटक जाओ और मेरा एहसान मानकर मेरा प्रस्ताव स्वीकार कर लो।
और हांँ अब तुम पूरे अवस्थी एंड कंपनी की नई मालकिन हो तो एक बार हो सके तो अमेरिका वाले घर में जरूर जाना। यह मेरी अंतिम इच्छा है।
सोचा था कभी, कि जब तुम्हें सुकून और आराम की जिंदगी दे पाऊंँगा तो फिर तुम्हें अपनी जिंदगी में ले आऊंँगा। लेकिन ईश्वर को यह भी स्वीकार नहीं था। तुम्हें अपनी जिंदगी में ले तो आया पर मैं ही तुम्हें अकेला छोड़कर जा रहा हूंँ। एक और जिम्मेदारी देकर जा रहा हूंँ। जिस दिन तुम्हारी मीटिंग थी उस दिन मुझे ऑस्ट्रेलिया निकलना पड़ा था और हड़बड़ी में मैंने अपनी डायरी कहांँ रख दी मुझे याद ही नहीं उस डायरी को मैं बहुत संभाल कर रखता हूंँ। पता नहीं कैसे खो गई। उस डायरी की पहचान यह नंबर है
२६०८९०. तुम जानती हो ये नंबर क्या है यह नंबर तुम्हारा बर्थ डेट है अपूर्वा! २६-०८-९०. घर जाना तो उस डायरी को ढूंढ कर अपने पास रख लेना हो सके तो पढ़ना कभी उसमें मैंने अपने दिल की बातें लिखी है। मांँ को मेरा प्रणाम कहना और विनी को मेरा प्यार देना।


तुम्हारा चैतन्य।


अर्पूवा ने सोचा," इसका मतलब उस दिन जो डायरी मुझे ऑफिस के टेबल पर मिली थी, वो डायरी भी चैतन्य की ही थी। ओह चैतन्य! मतलब वो डायरी भी तुम्हारी ही है, आँखें नम हो चली। अपू्र्वा को आज चैतन्य के प्रेम की गहराई पता चल गया था।


अपूर्वा रात भर रोती रही। अगले दिन वो अपनी मांँ और विनी के साथ इंदिरा गांधी एयरपोर्ट से अमेरिका के लिए फ्लाइट पकड़ी। उसने रास्ते में अपनी माँ को सारी बातें बता दी। कुछ ही घंटों में वह उसी हॉस्पिटल में थी जहांँ चैतन्य एडमिट था। उसने डॉक्टर से मिलने की अनुमति मांगी तो डॉक्टर ने मना कर दिया। बहुत मिन्नतें करने पर वह ५ मिनट मिलने देने को तैयार हो गए। अर्पूवा जब अंदर गई तो चैतन्य को देख कर फूट-फूट कर रोने लगी और उससे माफी मांगने लगी," चैतन्य मुझे माफ कर देना मैंने तुम्हारे सच्चे प्यार को ठुकरा दिया और अंधी होकर मृगतृष्णा के पीछे भागती रही। सुनो ना चैतन्य! आज अधूरा काम पूरा करना चाहती हूं आज फिर वही दिन है चैतन्य! १४ फरवरी वैलेंटाइन डे और देखो! मैं लाल गुलाब के फूल भी लाई हूंँ। आज मैं तुमसे प्रेम निवेदन करती हूंँ। मेरी जिंदगी में लौट आओ चैतन्य! स्वीकार कर लो मुझे और मेरी बेटी को। कुछ नहीं चाहिए मुझे चैतन्य, ये पैसा प्रॉपर्टी कुछ भी नहीं बस तुम वापस आ जाओ, मै तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगी चैतन्य।


पर चैतन्य को जो चाहिए था वो तो उसे मिल गया था। जिससे उसके चेहरे पर अपार सुकून के भाव थे।


चैतन्य प्रेम का दिव्य अंश बनकर अनंत में विलीन हो गया था।


अपूर्वा वहाँ लगे हार्ट बीट्स दिखाने वाली मशीन को देखकर समझ गई कि चैतन्य की सांसे थम चुकी हैं वो फिर फूट फूट कर रोने लगती है उसका करुण रुदन सुन कर नर्स, डॉक्टर और उसकी मां अवंतिका सभी उसके पास आ जाते हैं। डॉक्टर भी चेकअप करके उसके डेथ सर्टिफिकेट पर मोहर लगा देते हैं की अब चैतन्य इस दुनिया में नहीं रहा।
और फिर एक बार वही हुआ जो सालों पहले हुआ
था। अपूर्वा के साथ आए हुए लाल गुलाब के फूलों को एक बार फिर वही जगह मिली जहां सात साल पहले उसके पिता के पास मिली थी उसे अपने भाग्य पर रोना आ गया कि जब जब उसे प्रेम का आभास हुआ। वह प्रेम उससे इतनी दूर चला गया कि उसे वापस लौटाना नामुमकिन था। उसे बहुत अफसोस था कि वह लाल गुलाब के फूलों के साथ कभी वैलेंटाइन डे पर अपने प्रेम का इजहार नहीं कर पाई।


चैतन्य के दाह संस्कार के बाद अपूर्वा चैतन्य के कहे अनुसार उसके घर जाती है। और जैसे ही वो अंदर प्रवेश करती है तो अचंभित रह जाती है। वहांँ हॉल में चारों तरफ अपूर्वा की बहुत सारी पोट्रेट लगी हुई है। उसकी हर एक अदा को चैतन्य ने अलग-अलग कैनवास पर उतारा था। कुछ कॉलेज के टाइम की और कुछ अभी की।
अर्पूवा एक कमरे में जाती है और वहांँ का नजारा देखकर उसकी आंँखें खुशी से छलक जाती हैं। क्योंकि कमरे में एक तरफ उस दिन की पेंटिंग लगी थी जिस दिन अपूर्वा "(दिव्यांश)" चैतन्य के साथ डिनर पर गई थी। चैतन्य ने उस पल को अपनी पेन्टिंग में कैद कर लिया था। ठीक उसके दूसरी तरफ एक और पेंटिंग लगी थी जिसमें चैतन्य, अपूर्वा और विनी के साथ था और विनी उसके गोद में थी। बेड ठीक बीचोबीच विनी की एकदम क्यूट सी पेंटिंग लगी थी।


ये सब देख कर अपूर्वा एक बार फिर पश्चाताप से भर उठती है और बोलती है, "चैतन्य तुमने मेरे हिस्से का पूर्ण प्रेम दिया पर अपने हिस्से में मेरी नफरत और घृणा ले गए।" कोई रिश्ता ना होते हुए भी तुमने सारे रिश्ते निभाए और मैं दोस्ती का रिश्ता भी ढ़ंग से नहीं निभा पायी। मैं तुम्हें कभी समझ ही नहीं पाई। मुझे माफ कर देना मैं तो तुम्हारे प्रेम के काबिल ही नहीं थी फिर भी तुमने मेरे लिए इतना सब कुछ किया।


३ साल बाद


दिल्ली में अपूर्वा का दो आश्रम खुल चुका है और वहांँ बुजुर्गों और बच्चों के रहने की हर सुविधा उपलब्ध है। और आश्रम के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक स्कूल भी।


अपूर्वा एक बिजनेस वूमेन बन चुकी है। चैतन्य का सारा बिजनेस अपूर्वा अच्छे से चला रही हैं और उसनें दिल्ली में एक कैंसर का सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल भी खोला है जहाँ कैंसर पिड़ितों का मुफ्त इलाज होता है और आश्रम भी।


आज विनी का अमेरिका के Las Vegas High School Academy में ऐडमिशन है।


अपूर्वा और विनी प्रिंसिपल के रूम में बैठे हैं। जब अपूर्वा से प्रिंसिपल उसके पिता का नाम पूछती है,"What is her father's name?


तो अर्पूवा बोलती है,"Mr. Chaitanya Kumar Awasthi..चैतन्य का नाम लेते हुए अर्पूवा के चेहरे पर गर्व साफ झलक रहा था।


✴ समाप्त ✴
Last update lajawab h sir ji
Lekin aap ne hm readers ke sath ye acha nhi kiya.itni achi story ko itni jldi nipta diya story ka plot kafi acha tha agar aap chahte toh ise long story mein likh skte the har chiz ko details mein dikh ke or iski ending kafi sad rahi.aap ne toh chaitanya ko swarg hi pucha diya bechare ke sath bht bura hua
 
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DARK WOLFKING

Supreme
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behatareen kahani hai 😍..apne maa baap ko mehnat karte dekh apurva ka paise aur amiri ke ravaiya tha wo galat nahi tha ...

apurva ne koi dhoka bhi nahi diya chaitanya ko ,,wo pyar me naa padkar apni aage ki padhai puri karke achcha job haasil karna chahti thi ..
aur chaitanya ek painter banna chahta tha us waqt ,to usse shadi karke middle class life jeeni padegi ,bachcho ko har sukh suvidha nahi milegi ye sochna bhi sahi tha ..

chaitanya ka pyar sachcha tha 😍. usne apurva ke ghar me aag lagi thi to apne jaan ki parwah kiye bagair maa baap ko bachaya ,,par badkismati ki apurva ke peeta bach nahi paaye ..
 

DARK WOLFKING

Supreme
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chaitanya ne apni pehchan nahi batayi ki kisne apurva ke maa baap ko bachaya ,,aur apurva galat samajh baithi usko .

apurva ne jo chaha wo haasil kiya par jisse shadi ki wo ghatiya nikal gaya ,,apurva ne jab jyada hi ho gaya to divorce le liya ye bhi sahi faisla tha uska ..

chaitanya ne saara business apurva ke naam kar diya kyunki wo cancer se pidit tha ..

shayad pyar paana tha hi nahi apurva ke jeevan me 😔..

ek best kahani thi ye ,,.maja aa gaya padhke 😍😍..
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).

Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hind section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 7000 words (Story ke words count karne ke liye is tool ka use kare — Characters Tool) . Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. Aap XForum ke sarvashreshth lekhakon mein se ek hain. aur aapki kahani bhi bahut acchi chal rahi hai. Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain. hum jaante hain ki aapke paas samay ki kami hai lekin iske bawajood hum ye bhi jaante hain ki aapke liye kuch bhi asambhav nahi hai.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writer's ko well deserved Awards milenge, uske alawa aapko apna thread apne section mein sticky karne ka mouka bhi milega taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab ke liye ye ek behtareen mouka hai XForum ke sabhi readers ke upar apni chhaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.. Ye aap sabhi ke liye ek bahut hi sunehra avsar hai apni kalpanao ko shabdon ka raasta dikha ke yahan pesh karne ka. Isliye aage badhe aur apni kalpanao ko shabdon mein likhkar duniya ko dikha de.

Entry thread 7th February ko open hoga matlab aap 7 February se story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 25th February tak open rahega is dauraan aap apni story post kar sakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.



Story se related koi doubt hai to iske liye is thread ka use kare — Chit Chat Thread

Kisi bhi story par apna review post karne ke liye is thread ka use kare — Review Thread

Rules check karne ke liye is thread ko dekho — Rules & Queries Thread

Apni story post karne ke liye is thread ka use kare — Entry Thread

Prizes
Position Benifits
Winner 1500 Rupees + Award + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 500 Rupees + Award + 2500 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 5000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories) + 2 Months Prime Membership
Best Supporting Reader Award + 1000 Likes+ 2 Months Prime Membership
Members reporting CnP Stories with Valid Proof 200 Likes for each report



Regards :- XForum Staff
 
भाग 6 (अन्तिम भाग)




अर्पूवा- क्या ? पर वो तो दिव्यांश था न। कोई अपना नाम गलत क्यों बताएगा? और इतने बड़े बिजनेसमैन को काम करने की क्या जरुरत थी?

धीरज- अब उसने ऐसा क्यों किया यह तो मैं नहीं जानता। क्योंकि मैंने जब भी उससे पूछा तो हमेशा टाल जाता। कहता कि वक्त आने पर सब पता चल जाएगा। उसने मुझे एक महीने पहले ही फोन किया था कि वह दिल्ली आ रहा है और उसे मेरे ऑफिस में काम चाहिए मैंने उससे पूछा, "इतने बड़े बिजनेसमैन को मेरे ऑफिस में काम क्यों चाहिए?" लेकिन वह फिर टाल गया और बोला बस कुछ ही दिनों में सब पता चल जाएगा। इसलिए मैंने अपने ऑफिस के मैनेजर का ट्रांसफर कर दिया था।



अपूर्वा बड़बड़ाने लगी..." इसका मतलब वह एयरपोर्ट पर मुझसे जानबूझकर टकराया फिर मुझ से माफी मांगने के बहाने बात की और बातों बातों में अपने जॉब की बात छेड़ी ताकि मैं उसे यह जॉब ऑफर कर सकूँ।

लेकिन क्यों और किसलिए????



धीरज- जब वह यहांँ आया तब उसने मुझसे तुम्हारे बारे में काफी कुछ पूछा, तो मैंने उसे तुम्हारे बारे में सारी बातें बता दि की तुम्हारा डीवॉर्स हो चुका है और तुम अपनी माँ और बेटी के साथ ग्रेटर कैलाश में रहती हो।

मैंने उससे पूछा भी था की अर्पूवा के बारे में क्यों पूछ रहा है। तो उसने कहा,- धीरज मैं किसी से कोई रिश्ता तो नहीं जोड़ सकता अब क्योंकि मेरे पास वक्त बहुत कम है। अपू्र्वा को मैंने जबसे देखा है मुझे उससे प्रेम है, बस इस परिवार के साथ खासकर अपूर्वा और विनी के साथ कुछ पल बिताना चाहता हूंँ। अब इस अंतिम वक्त में मेरे पास अपना है ही कौन?

चूंकि यह उसकी अंतिम इच्छा थी इसलिए मैं मान गया, हो सके तो तुम मुझे माफ कर देना।



अर्पूवा धड़कते दिल के साथ पूछी," अंतिम इच्छा??" मतलब क्या है आपका? क्या हुआ है उन्हें?



धीरज- हांँ! अंतिम इच्छा, वो अभी अमेरिका के H2U Health Center में आखरी सांसे ले रहा है वो कैंसर के अंतिम चरण पर हैं। उसके पूरे शरीर में इंफेक्शन फैल चुका है।



अर्पूवा- कैंसर? पर कैसे?



धीरज- इसके पीछे भी एक अतीत है। आज से लगभग 7 साल पहले जब चैतन्य कॉलेज में था तो उसके किसी दोस्त के घर में आग लग गई थी और उसके माता-पिता उस आग में फंस गए थे। चैतन्य ने ही उन्हें बचाया और हॉस्पिटल ले गया। परंतु वो भी बहुत जल गया था और मेरठ के सिटी हॉस्पिटल के वार्ड में 4 महीने तक एडमिट था। जब वह थोड़ा अच्छा हुआ तो उसने मुझे फोन करके सारी बात बताई।



अर्पूवा को ऐसा लग रहा था कि सारे जहाँ का दर्द उसके हिस्सें में आ गया है। आँसुओं से उसका पूरा चेहरा धुल गया था।

नम आंँखों से वो इतना ही बोल पायी कि,"वो दोस्त मैं ही थी जिसके घर में आग लगी थी। वो पागलों की तरह बड़बड़ा रही थी "मेरे माँ पापा को बचाने वाला लड़का कोई अनंत नहीं मेरा चैतन्य था और मैंने उसे क्या कुछ नहीं कहा। कितना सुनाया। वो उधर दर्द में था और मैं उसके बारे में क्या क्या सोच रही थी। उसने दोस्ती के सारे धर्म निभाए और मैंने एक भी धर्म नहीं निभाया। सबसे बड़ी स्वार्थी तो मैं हूँ।



धीरज ने बोलना जारी रखा,..."चैतन्य मेरे बचपन का दोस्त और पड़ोसी दोनों ही था। हमारे घर बिल्कुल अगल बगल में थे। मेरे और उसके पिताजी भी बचपन के बहुत अच्छे मित्र थे। चैतन्य जब 5 साल का था तब उसके माता पिता की एक रोड एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई थी। उसे उसके दादा दादी ने पाल पोस कर बड़ा किया। मेरे पिताजी का अपना बिजनेस था दिल्ली में। मेरे पिताजी बिच बिच में घर आते रहते थे वो उससे बहुत प्यार करते थे और वह भी उन्हें अपने पिताजी के जैसा सम्मान देता था। लेकिन जब मेरे पिताजी बिमार रहने लगे तो मैं दिल्ली आ गया था बिजनेस सम्भालने के लिये। फिर जब पिताजी चल बसे। उस वक्त हम लोग १८-१९ साल के होंगे तभी आखिरी मुलाकात हुई थी। चैतन्य और मैं बिल्कुल भाई जैसे थे। इसलिए पिताजी ने चैतन्य के नाम पर बैंक में कुछ पैसे फिक्स कर दिये थे ताकि भविष्य में अगर वो कुछ करना चाहे तो वो पैसे उसके काम आ सके।



उस दिन जब चैतन्य ने मुझे फोन करके सब बताया। फिर मैं चैतन्य के ठीक होने पर उसे दिल्ली ले आया। उसे अपनी कंपनी में जॉब दिया। लेकिन साल भर जॉब करने के बाद उसने मुझसे कहा कि वह अपना बिजनेस शुरू करना चाहता है। मैं बहुत खुश हुआ कि वह आगे बढ़ने की सोच रहा है। मैंने उसे पापा के फिक्स किए हुए पैसे दे दिए।

उसने अपना फैब्रिक का बिजनेस शुरू किया और तरक्की की सीढ़ियांँ चढ़ता गया। उसने जो तरक्की करनी शुरू की तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिर अचानक एक दिन उसने कहा कि वह अमेरिका में अपना बिजनेस शुरू कर रहा है। मैंने उसे बहुत बधाई दी। उसने दिल्ली का सारा बिजनेस मेरे नाम पर कर दिया। मैंने उसे मना किया पर वह नहीं माना और कहा," अंकल के और तेरे बहुत एहसान है मुझ पर यह तो कुछ भी नहीं, तेरे लिए तो अपनी जान भी दे सकता हूंँ। और वैसे भी मैं अमेरिका शिफ्ट हो रहा हूंँ तो यह बिजनेस तो तू ही देखेगा।



अर्पूवा- लेकिन दिव्यांश चैतन्य कैसे हो सकता है? वह चैतन्य से बिल्कुल अलग दिखता है। उसके और चैतन्य के चेहरे में बहुत अंतर है।



धीरज- जलने के बाद उसका चेहरा देखने में बहुत भद्दा हो गया था और पूरे शरीर में जलने के निशान हो गए थे तो मैंने है उसे प्लास्टिक सर्जरी की सलाह दी थी तो उसने अमेरिका जाकर अपनी सर्जरी करवा ली उस वक़्त मै उसके पास ही था। अमेरिका में भी अपना बिजनेस शुरू करके उसने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की की। लेकिन धीरे-धीरे उसकी तबीयत खराब रहने लगी। जब उसने चेकअप कराया तो पता चला कि उसे कैंसर हो गया है क्योंकि उसके सारे घाव तो ठीक हो गए थे पर कुछ हिस्से इतने गहरे जले थे कि उनमें इन्फेक्शन होना शुरू हो गया था जो कि बढ़ता ही जा रहा था और अब उस इन्फेक्शन ने कैंसर का रूप धारण लिया है जिसकी वजह से आज वो जिंदगी के अंतिम दिन गिन रहा है।



अर्पूवा- उसके दादा दादी अभी कहाँ है?



धीरज- उसकी दादी का ५ साल पहले ही देहांत हो गया और दादी के जाने के १ साल बाद दादा जी भी चल बसे।



अर्पूवा एक दम निःशब्द हो गई थी। उसकी हालत ठीक ना देखकर धीरज उसे घर छोड़ आया।



घर आकर अर्पूवा अमेरिका जाने के लिए पैकिंग करने लगी।उसने अपनी माँ को भी चलने को कहा। उसे अगले दिन ही निकलना था। नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। वो चैतन्य के बारे में सोच रही थी। अपने आप को कोस रही थी की क्यों उसने चैतन्य की भावनाओं को ठेस पहुँचाया। उसनें फिर एक बार उन पेपर्स को देखने के लिए उठाया तो लिफाफे से एक और पेपर गिरा। खोल कर देखा तो चैतन्य का पत्र था। वो पढ़ने लगी।



मेरी प्रिय अर्पूवा,

जब तक तुम्हें यह पत्र मिलेगा। जब तक तुम सब जानोगी तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। मुझे माफ कर देना मैंने तुमसे बहुत झूठ बोले हैं। लेकिन सिर्फ तुम्हारे और विनी के साथ कुछ वक्त बिताने के लिए। तुम्हें याद होगा जब तुमने मेरा प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया था। मैं उसी वक्त कॉलेज से निकल कर घर जा रहा था पर जब मैं तुम्हारे घर के पास से गुजरा तो भीड़ देखकर घबरा गया। जाकर देखा तो पता चला तुम्हारे घर में आग लग गई थी और तुम्हारे माता-पिता अंदर फंसे हुए थे। मैंने उन्हें किसी तरह निकाल तो लिया हॉस्पिटल भी पहुंँचा दिया पर तुम्हारे पिताजी को बचा नहीं पाया। हो सके तो मुझे माफ कर देना। मैं भी जल गया था तो उन लोगों ने मुझे भी एडमिट कर लिया। जिस वार्ड में तुम्हारे माता-पिता थे उसी वार्ड में मैं भी कमरा नंबर १० में एडमिट था। मैंने नर्स को तुम्हें अपने बारे में बताने से मना कर दिया था क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि तुम्हें मेरे बारे में पता चले और तुम अपने लक्ष्य से भटक जाओ और मेरा एहसान मानकर मेरा प्रस्ताव स्वीकार कर लो।

और हांँ अब तुम पूरे अवस्थी एंड कंपनी की नई मालकिन हो तो एक बार हो सके तो अमेरिका वाले घर में जरूर जाना। यह मेरी अंतिम इच्छा है।

सोचा था कभी, कि जब तुम्हें सुकून और आराम की जिंदगी दे पाऊंँगा तो फिर तुम्हें अपनी जिंदगी में ले आऊंँगा। लेकिन ईश्वर को यह भी स्वीकार नहीं था। तुम्हें अपनी जिंदगी में ले तो आया पर मैं ही तुम्हें अकेला छोड़कर जा रहा हूंँ। एक और जिम्मेदारी देकर जा रहा हूंँ। जिस दिन तुम्हारी मीटिंग थी उस दिन मुझे ऑस्ट्रेलिया निकलना पड़ा था और हड़बड़ी में मैंने अपनी डायरी कहांँ रख दी मुझे याद ही नहीं उस डायरी को मैं बहुत संभाल कर रखता हूंँ। पता नहीं कैसे खो गई। उस डायरी की पहचान यह नंबर है
२६०८९०. तुम जानती हो ये नंबर क्या है यह नंबर तुम्हारा बर्थ डेट है अपूर्वा! २६-०८-९०. घर जाना तो उस डायरी को ढूंढ कर अपने पास रख लेना हो सके तो पढ़ना कभी उसमें मैंने अपने दिल की बातें लिखी है। मांँ को मेरा प्रणाम कहना और विनी को मेरा प्यार देना।



तुम्हारा चैतन्य।



अर्पूवा ने सोचा," इसका मतलब उस दिन जो डायरी मुझे ऑफिस के टेबल पर मिली थी, वो डायरी भी चैतन्य की ही थी। ओह चैतन्य! मतलब वो डायरी भी तुम्हारी ही है, आँखें नम हो चली। अपू्र्वा को आज चैतन्य के प्रेम की गहराई पता चल गया था।



अपूर्वा रात भर रोती रही। अगले दिन वो अपनी मांँ और विनी के साथ इंदिरा गांधी एयरपोर्ट से अमेरिका के लिए फ्लाइट पकड़ी। उसने रास्ते में अपनी माँ को सारी बातें बता दी। कुछ ही घंटों में वह उसी हॉस्पिटल में थी जहांँ चैतन्य एडमिट था। उसने डॉक्टर से मिलने की अनुमति मांगी तो डॉक्टर ने मना कर दिया। बहुत मिन्नतें करने पर वह ५ मिनट मिलने देने को तैयार हो गए। अर्पूवा जब अंदर गई तो चैतन्य को देख कर फूट-फूट कर रोने लगी और उससे माफी मांगने लगी," चैतन्य मुझे माफ कर देना मैंने तुम्हारे सच्चे प्यार को ठुकरा दिया और अंधी होकर मृगतृष्णा के पीछे भागती रही। सुनो ना चैतन्य! आज अधूरा काम पूरा करना चाहती हूं आज फिर वही दिन है चैतन्य! १४ फरवरी वैलेंटाइन डे और देखो! मैं लाल गुलाब के फूल भी लाई हूंँ। आज मैं तुमसे प्रेम निवेदन करती हूंँ। मेरी जिंदगी में लौट आओ चैतन्य! स्वीकार कर लो मुझे और मेरी बेटी को। कुछ नहीं चाहिए मुझे चैतन्य, ये पैसा प्रॉपर्टी कुछ भी नहीं बस तुम वापस आ जाओ, मै तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगी चैतन्य।



पर चैतन्य को जो चाहिए था वो तो उसे मिल गया था। जिससे उसके चेहरे पर अपार सुकून के भाव थे।



चैतन्य प्रेम का दिव्य अंश बनकर अनंत में विलीन हो गया था।



अपूर्वा वहाँ लगे हार्ट बीट्स दिखाने वाली मशीन को देखकर समझ गई कि चैतन्य की सांसे थम चुकी हैं वो फिर फूट फूट कर रोने लगती है उसका करुण रुदन सुन कर नर्स, डॉक्टर और उसकी मां अवंतिका सभी उसके पास आ जाते हैं। डॉक्टर भी चेकअप करके उसके डेथ सर्टिफिकेट पर मोहर लगा देते हैं की अब चैतन्य इस दुनिया में नहीं रहा।

और फिर एक बार वही हुआ जो सालों पहले हुआ
था। अपूर्वा के साथ आए हुए लाल गुलाब के फूलों को एक बार फिर वही जगह मिली जहां सात साल पहले उसके पिता के पास मिली थी उसे अपने भाग्य पर रोना आ गया कि जब जब उसे प्रेम का आभास हुआ। वह प्रेम उससे इतनी दूर चला गया कि उसे वापस लौटाना नामुमकिन था। उसे बहुत अफसोस था कि वह लाल गुलाब के फूलों के साथ कभी वैलेंटाइन डे पर अपने प्रेम का इजहार नहीं कर पाई।



चैतन्य के दाह संस्कार के बाद अपूर्वा चैतन्य के कहे अनुसार उसके घर जाती है। और जैसे ही वो अंदर प्रवेश करती है तो अचंभित रह जाती है। वहांँ हॉल में चारों तरफ अपूर्वा की बहुत सारी पोट्रेट लगी हुई है। उसकी हर एक अदा को चैतन्य ने अलग-अलग कैनवास पर उतारा था। कुछ कॉलेज के टाइम की और कुछ अभी की।

अर्पूवा एक कमरे में जाती है और वहांँ का नजारा देखकर उसकी आंँखें खुशी से छलक जाती हैं। क्योंकि कमरे में एक तरफ उस दिन की पेंटिंग लगी थी जिस दिन अपूर्वा "(दिव्यांश)" चैतन्य के साथ डिनर पर गई थी। चैतन्य ने उस पल को अपनी पेन्टिंग में कैद कर लिया था। ठीक उसके दूसरी तरफ एक और पेंटिंग लगी थी जिसमें चैतन्य, अपूर्वा और विनी के साथ था और विनी उसके गोद में थी। बेड ठीक बीचोबीच विनी की एकदम क्यूट सी पेंटिंग लगी थी।



ये सब देख कर अपूर्वा एक बार फिर पश्चाताप से भर उठती है और बोलती है, "चैतन्य तुमने मेरे हिस्से का पूर्ण प्रेम दिया पर अपने हिस्से में मेरी नफरत और घृणा ले गए।" कोई रिश्ता ना होते हुए भी तुमने सारे रिश्ते निभाए और मैं दोस्ती का रिश्ता भी ढ़ंग से नहीं निभा पायी। मैं तुम्हें कभी समझ ही नहीं पाई। मुझे माफ कर देना मैं तो तुम्हारे प्रेम के काबिल ही नहीं थी फिर भी तुमने मेरे लिए इतना सब कुछ किया।



३ साल बाद



दिल्ली में अपूर्वा का दो आश्रम खुल चुका है और वहांँ बुजुर्गों और बच्चों के रहने की हर सुविधा उपलब्ध है। और आश्रम के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक स्कूल भी।



अपूर्वा एक बिजनेस वूमेन बन चुकी है। चैतन्य का सारा बिजनेस अपूर्वा अच्छे से चला रही हैं और उसनें दिल्ली में एक कैंसर का सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल भी खोला है जहाँ कैंसर पिड़ितों का मुफ्त इलाज होता है और आश्रम भी।



आज विनी का अमेरिका के Las Vegas High School Academy में ऐडमिशन है।



अपूर्वा और विनी प्रिंसिपल के रूम में बैठे हैं। जब अपूर्वा से प्रिंसिपल उसके पिता का नाम पूछती है,"What is her father's name?



तो अर्पूवा बोलती है,"Mr. Chaitanya Kumar Awasthi..चैतन्य का नाम लेते हुए अर्पूवा के चेहरे पर गर्व साफ झलक रहा था।



✴ समाप्त ✴
दोस्त आपकी कहानी बहुत बेहतर हे और ज्यादा लिखें धन्यवाद
 
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Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).


"Chance to win cash prize up to Rs 8000"
Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hindi section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 7000 words ke bich honi chahiye (Story ke words count karne ke liye is tool ka use kare — Characters Tool) . Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. Aap XForum ke sarvashreshth lekhakon mein se ek hain. aur aapki kahani bhi bahut acchi chal rahi hai. Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain. hum jaante hain ki aapke paas samay ki kami hai lekin iske bawajood hum ye bhi jaante hain ki aapke liye kuch bhi asambhav nahi hai.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writer's ko well deserved Cash Awards milenge, uske alawa aapko apna thread apne section mein sticky karne ka mouka bhi milega taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab ke liye ye ek behtareen mouka hai XForum ke sabhi readers ke upar apni chhaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.. Ye aap sabhi ke liye ek bahut hi sunehra avsar hai apni kalpanao ko shabdon ka raasta dikha ke yahan pesh karne ka. Isliye aage badhe aur apni kalpanao ko shabdon mein likhkar duniya ko dikha de.

Entry thread 15th February ko open ho chuka matlab aap apni story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 5th March 2024 tak open rahega is dauraan aap apni story post kar sakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.



Story se related koi doubt hai to iske liye is thread ka use kare — Chit Chat Thread

Kisi bhi story par apna review post karne ke liye is thread ka use kare — Review Thread

Rules check karne ke liye is thread ko dekho — Rules & Queries Thread

Apni story post karne ke liye is thread ka use kare — Entry Thread

Prizes
Position Benifits
Winner 4000 Rupees + Award + 5000 Likes + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 1500 Rupees + Award + 3500 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 1000 Rupees + 2000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories)
3rd Runner-UP 750 Rupees + 1000 Likes
Best Supporting Reader 750 Rupees + Award + 1000 Likes
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