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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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रमन और संध्या का इतिहास नही दिखाया गया तो कहानी अधूरी लगेगी, दोनो ने क्या क्या कुकर्म किये है उससे ही मालूम होगा अभय क्यो भागा, उसने क्या क्या देखा क्या क्या सहा, सन्ध्या जब चुद ही चुकी है तो इसे पढ़ने में क्या प्रॉब्लम हो जाएगी। छुपाने से क्या वो पवित्र हो जाएगी। सन्ध्या की फुल डिटेल्स चाहिए उसने कैसे मजे लिए और कैसे अभय ने ये सब सहन किया
सहमत

जब चरित्र खराब ही है तो सही से दिखाओ, वरना फायदा ही क्या।

बस वही बात होगी, "खाया ना पिया, ग्लास तोड़ा 12 आना।"
 
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Update 19
अभय जैसे ही अपनी बात खत्म करता है, उसके बगल कार आ कर रुकती है। अभय ने अजय को और दोस्तो से विदा लिया और एक नजर पायल की तरफ देखा जो पायल उसे ही देख रही थी। ना जाने अभय को क्या हुआ की उसका हाथ उपर उठा और मुस्कुराते हुए पायल को बॉय का इशारा कर दिया। ये देख पायल भी झट से दूसरी तरफ मुंह करके घूम गई।

अभय मुस्कुराते हुए कार में बैठ गया और कार चल पड़ती है...
Te chhoti moti nok jhok to hoti rahegi jahan Payal ek taraf Abhay ke intejaar mein kisi ko dekh nahi sakti aur wahin Abhay Payal ke saath baat karne ko tadpe ja raha hai, ye teeno update bada khoobsurat tha

रुक जा ना मां, मेरे पास ही सो जा। मगर तू नही रुकती थी। रुकती भी कैसे? तुझे किसी और के साथ जो सोना था। अगर तू चाहती है तो बता आगे भी बोलूं की...

"नहीं...चुप हो जा। तेरे पैर पड़ती हूं।"

कहते हुए संध्या ने अभय का हाथ छोड़ दिया, और दूसरी तरफ मुंह घुमा लेती है। ना जाने क्या हुआ उसे, ना रो रही थी ना कुछ बोल रही थी, बस बेबस सी पड़ी थी....

उसकी हालत देख कर अभय एक बार फिर बोला...
Seedhe seedhe likha bhi ja sakta tha ki Sharm se uska sir jhuk gaya ya aisa hi kuch par is tarah se likhne wale bahoot gahre writer hote hai, lagta hai bahut purana rishta hai lekhar sahab ka kahani likhne se lagta hi nahi hai koi naya Writer Xforum par akar dhamal machaye huye hai, jabardast update tha
 

Sexybabu

New Member
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Bhai tumne jaise likhna ka socha Tha apne trike se likho bcoz sgar bich me kuchh add on karoge to story ka Mazza kharab ho Jaye GA
 

Hemantstar111

New Member
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अपडेट 20
वो तो है अलबेला


अभय के जाते ही संध्या अपनी कार स्टार्ट करती है और हवेली की तरफ बढ़ चलती है.....


अभय जैसे ही हॉस्टल में पहुंचा, उसका दिमाग पूरी तरह से खराब हो गया था...

शर्ट उतार कर बेड पर फेंकते हुए, खुद से बोला...

"अभय संभाल खुद को, उसकी बह रही आंसुओ में मत उलझ। तू कैसे भूल सकता है की तेरी मां एक मतलबी औरत है। अपने जज्बात के आगे तेरा बचपन खा गई। कुछ नहीं दिखा उसे, तू किस हाल में था। हर पल उसके प्यार के लिए तड़पता रहा मगर वो प्यार मिला किसको ? अमन को। याद रख, तू यह क्यूं आया है? ऐसा कौन सा राज है, जो तेरा बाप तुझे बताना चाहता था, मगर उसकी जुबान ना कह सकी जिसके वजह से उन्होंने अपना राज कही तो दफ्न किया है। ढूंढ उस राज को, कुछ तो है जरूर?"

खुद से ही ये सब बाते बोलते हुए, अभय का दिल जोर जोर से चलने लगा। पसीने आने लगे थे उसे। पास रखे पानी का बोतल उठा कर पानी पी कर वो अपने बेड पर शांति से बैठ जाता है।

उसके जहां में वो काली अंधेरी रात घूमने लगती है....जिस दिन वो घर से भाग रहा था।

उस दिन अभय जब स्कूल से घर वापस आया, तब वो अपनी मां को हवेली के बहार ही पाया। अपनी मां के हाथ में डंडा देख कर वो सहम सा जाता है। वो बहुत ज्यादा दर जाता है। स्कूल बैग टांगे उसके चल रहे कदम अचानक से रुक जाते है।

तभी अभय की नजर अमन पर जाति है, जैसा स्कूल यूनिफॉर्म हल्का हल्का फटा था। ऐसा लग रहा था मानो अमन मिट्टी में उलट पलट कर आया हो। अभय को समझते देर नहीं लगी की ये अमन जानबूझ कर किया है उसे उसकी मां से पिटवाने के लिए। अभय ये भी जानता था की, अभय ने कुछ नही बोला और अमन और अपनी मां को नजर अंदाज करते हुए हवेली के अंदर जाने लगा की तभी संध्या की आवाज गूंजी...

संध्या --"किधर जा रहा है? इधर आ?"

अपनी मां की कड़क भाषा सुन कर, अभय इतना तो समझ गया था की अब उसे मार पड़ने वाली है, वैसे तो वो हर बार अपनी मां से दर जाता था, और संध्या के कुछ बोलने से पहले ही वो छटपटाने लगता था। मगर आज वो बिना डर के अपनी मां की एक आवाज पर उसके नजदीक जा कर खड़ा हो गया था। आज उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। बस वहा खड़े होकर कुछ सोच रहा था...

संध्या --"तुझे इतनी बार समझाया है, तू समझता क्यूं नही है? अमन से झगड़ा क्यूं किया तूने? उसका स्कूल ड्रेस भी फाड़ दिया तूने? क्यूं किया तूने ऐसा?"

अभय एक दम शांत वही खड़ा रहा, उसे आज स्कूल में हुई घटना याद आने लगी, जब वो स्कूल के लंच टाइम में खाना खा रहा था, तब वहा अमन आ जाता है। और उसका लंच बॉक्स उठा कर फेक देता है। ये देख कर पास में बैठी पायल उठते हुए अमन के गाल पर एक थप्पड़ रसीद कर देती है।

पायल --"बदमीज कही का, तू क्यूं हमेशा अभय को परेशान करता रहता है? अकल नही है क्या तुझे? खाना भी फेकता है क्या कोई?चलो अभय तुम मेरे टिफिन सेबखाना खा लो।"

ये कहते हुए जब पायल ने अपना टिफिन आगे बढ़ाया, वैसे ही अमन गुस्से में अपना हाथ पायल के टिफिन की तरफ बढ़ा दिया लेकिन तब तक अभय ने अमन का पकड़ते हुए मरोड़ दिया।

अमन दर्द से कराह पड़ा...पर जल्द ही अभय ने कुछ सोचते हुए अमन का हाथ छोड़ दिया।

अमन अपना हाथ झटकते हुए बोला...

अमन --"बड़ा बहादुर बनता है ना तू, आज आ घर पे फिर पता चलेगा तुझे।"

तब तक वहा पर ना जाने कहा से मुंशी पहुंच जाता है, और अमन को दर्द में करता देख...

मुनीम --"क्या हुआ छोटे मालिक? क्या हुआ आपको?"

अमन --"देखो ना मुनीम काका, इसने मेरा हाथ मरोड़ दिया।"

उस समय तो मुनीम ने कुछ नही बोला और अमन को लेकर ना जाने कहा चला गया।

यही सब बातें अभय अपनी मां के सामने खड़ा सोच रहा था पर उसने अपनी मां की बातों का जवाब नही दिया। तभी वहा खड़ा मुनीम बोला...

मुनीम --"मालकिन अब क्या बोलूं, अभय बाबा ने अमन बाबा का लंच बॉक्स उठा कर फेक दिया, और जब अमन बाबा ने पूछा तो, अभय बाबा ने उनका हाथ मरोड़ कर उनसे लड़ने लगे और अमन बाबा को पीटने लगे।"

मुनीम की बात सुनकर संध्या का गुस्सा आसमान पे, पर अभय पर कोई असर नहीं, वो नही डरा और ना ही आज उसने कुछ सफाई पेश की, शायद उसे पता था की उसकी सफाई देने का कुछ भी असर उसकी मां पर नही होगा। और इधर संध्या गुस्से में थी। वो और गुस्से में तब पागल हो जाति है, जब उसे अभय के चहरे पर कुछ भी भाव नही दिखे , वो साधारण ही खड़ा रहा...

तभी एक जोरदार डंडा अभय के हाथ के बाजू पर पड़ा, मगर आज अभय के मुंह से दर्द की जरा सी भी छींक नही निकली...

संध्या --"देखो तो इसको, अब तो डर भी खतम हो गया है। पूरा बिगड़ गया है ये, मुनीम..."

मुनीम --"जी मालकिन..."

संध्या --"मुझे पता है, हर बार मैं जब तुम्हे इसे दंडित करने के लिए बोलती हूं, तो तुम इसको बच्चा समझ कर छोड़ देते हो। अब देखो कितना बिगड़ गया है, खाना भी उठा कर फेंकने लगा है। पर इस बार नही, आज इसने खाना फेंका है ना। इसे खाने की कीमत पता चलने चाहिए, इसे आज खाना मत देना, और कल सिर्फ एक वक्त का खाना देना, फिर पता चलेगा की खाना क्या होता है?"

मुनीम --"जी मालकिन..."

संध्या --"जी मालकिन नही, ऐसा ही करना समझे।"

ये कह कर संध्या जाते जाते 3 से 4 डंडे जोरदार अभय को जड़ देती है।

संध्या --"खाना फेकेगा, अभि से ही इतनी चर्बी।"

कहते हुए संध्या वहा से चली जाति है...

अभय ने अपनी नजर अमन की तरफ मोड़ते हुए देखा तो पाया, अमन संध्या का हाथ पकड़े हवेली के अंदर जा रहा था। अमन ने पीछे मुड़ते हुए मुस्कुरा कर ऐसा भाव अपने चेहरे पर लाया जैसे वो अभय को बेचारा साबित करना चाहता हो। मगर इस बार अभय को जलन नही हुई, बल्कि अमन की मुस्कुराहट का जवाब उसने मुस्कुरा कर ही दिया। जिसे देख कर अमन की मुस्कान उड़ चली।

अभय अपना स्कूल बैग टांगे हवेली के अंदर जाने लगा। तभी वहा रमन आ जाता है...

रमन --"बेचारा, क्यूं सहता तू इतना सब कुछ अभय? तेरी मां तुझे प्यार नही करती है। मुझे पता है, की खाना तूने नही अमन ने फेका था। पर देख अपनी मां को, वो किसे मार रही है, तुझे।"

रमन की बात सुनकर अभय ने मुस्कुराते हुए बोला...

अभय --"वो मुझे मरती है, क्यूंकि उसे लगता है की मैं ही गलत हूं। नही तो वो मुझे कभी नहीं मारती।"

ये सुनकर रमन बोला....

रमन --"अच्छा, तो तुझे लगता है की तेरी मां तुझे बहुत चाहती है?"

अभय --"इसमें लगने जैसा क्या है? हर मां अपने बच्चे को चाहती है।"

रमन --"अरे तेरी मां जब तेरे पापा से प्यार नही कर पाई, तो तुझे क्या करेगी?"

ये सुनकर अभय का दिमाग थम गया...

अभय --"मतलब...?"

रमन --"मतलब ये की, तेरी मां मुझसे प्यार करती है, उसे तेरा बाप पसंद ही नहीं था। इसीलिए तू तेरे बाप की औलाद है तो उस वजह से वो तुझे भी प्यार नही करती।"

अभय तो था 9 साल का बच्चा मगर शब्दो का बहाव उसे किसी दुविधा में डाल चुकी थी, उसने बोला...

अभय --"मेरी मां तुमसे प्यार क्यूं करेगी ? वो तो मेरे पापा से प्यार करती थी।"

ये सुनकर रमन मुस्कुराते हुए बोला...

रमन --"देख बेटा, मैं तेरी भलाई के लिए ही बोल रहा हूं। क्यूंकि तू मेरा भतीजा है?तेरी मां ने खुद मुझसे कहा है की, तू उसकी औलाद है जिसे वो पसंद नही करती थी, इसीलिए वो तुझे भी पसंद नही करती। अब देख तू ही बता वो मुझसे प्यार करती है इसीलिए मेरे बेटे अमन को भी खूब प्यार करती है। अगर तुझे फिर भी यकीन नही है तो। 1 घंटे बाद, वो अमरूद वाले बगीचे में अपना जो पंपसेट का कमरा है ना, उसमे आ जाना। फिर तू देख पाएगा की तेरी मां मुझसे कितना प्यार करती है??
 

chandu2

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भाइयों धीरे धीरे सब कुछ सामने आने लगेंगे सभी राज भी खुलेंगे भाई को अपने हिसाब से कहानी लिखने दो अब फ्लैश बैक में जाने से पाठकों के मन में भी कई सवाल उठने लगेंगे और कहानी की रोचकता खत्म हो जाएगा
 

AB17

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Just fantastic
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अभय के जाते ही संध्या अपनी कार स्टार्ट करती है और हवेली की तरफ बढ़ चलती है.....


अभय जैसे ही हॉस्टल में पहुंचा, उसका दिमाग पूरी तरह से खराब हो गया था...

शर्ट उतार कर बेड पर फेंकते हुए, खुद से बोला...

"अभय संभाल खुद को, उसकी बह रही आंसुओ में मत उलझ। तू कैसे भूल सकता है की तेरी मां एक मतलबी औरत है। अपने जज्बात के आगे तेरा बचपन खा गई। कुछ नहीं दिखा उसे, तू किस हाल में था। हर पल उसके प्यार के लिए तड़पता रहा मगर वो प्यार मिला किसको ? अमन को। याद रख, तू यह क्यूं आया है? ऐसा कौन सा राज है, जो तेरा बाप तुझे बताना चाहता था, मगर उसकी जुबान ना कह सकी जिसके वजह से उन्होंने अपना राज कही तो दफ्न किया है। ढूंढ उस राज को, कुछ तो है जरूर?"

खुद से ही ये सब बाते बोलते हुए, अभय का दिल जोर जोर से चलने लगा। पसीने आने लगे थे उसे। पास रखे पानी का बोतल उठा कर पानी पी कर वो अपने बेड पर शांति से बैठ जाता है।

उसके जहां में वो काली अंधेरी रात घूमने लगती है....जिस दिन वो घर से भाग रहा था।

उस दिन अभय जब स्कूल से घर वापस आया, तब वो अपनी मां को हवेली के बहार ही पाया। अपनी मां के हाथ में डंडा देख कर वो सहम सा जाता है। वो बहुत ज्यादा दर जाता है। स्कूल बैग टांगे उसके चल रहे कदम अचानक से रुक जाते है।

तभी अभय की नजर अमन पर जाति है, जैसा स्कूल यूनिफॉर्म हल्का हल्का फटा था। ऐसा लग रहा था मानो अमन मिट्टी में उलट पलट कर आया हो। अभय को समझते देर नहीं लगी की ये अमन जानबूझ कर किया है उसे उसकी मां से पिटवाने के लिए। अभय ये भी जानता था की, अभय ने कुछ नही बोला और अमन और अपनी मां को नजर अंदाज करते हुए हवेली के अंदर जाने लगा की तभी संध्या की आवाज गूंजी...

संध्या --"किधर जा रहा है? इधर आ?"

अपनी मां की कड़क भाषा सुन कर, अभय इतना तो समझ गया था की अब उसे मार पड़ने वाली है, वैसे तो वो हर बार अपनी मां से दर जाता था, और संध्या के कुछ बोलने से पहले ही वो छटपटाने लगता था। मगर आज वो बिना डर के अपनी मां की एक आवाज पर उसके नजदीक जा कर खड़ा हो गया था। आज उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। बस वहा खड़े होकर कुछ सोच रहा था...

संध्या --"तुझे इतनी बार समझाया है, तू समझता क्यूं नही है? अमन से झगड़ा क्यूं किया तूने? उसका स्कूल ड्रेस भी फाड़ दिया तूने? क्यूं किया तूने ऐसा?"

अभय एक दम शांत वही खड़ा रहा, उसे आज स्कूल में हुई घटना याद आने लगी, जब वो स्कूल के लंच टाइम में खाना खा रहा था, तब वहा अमन आ जाता है। और उसका लंच बॉक्स उठा कर फेक देता है। ये देख कर पास में बैठी पायल उठते हुए अमन के गाल पर एक थप्पड़ रसीद कर देती है।

पायल --"बदमीज कही का, तू क्यूं हमेशा अभय को परेशान करता रहता है? अकल नही है क्या तुझे? खाना भी फेकता है क्या कोई?चलो अभय तुम मेरे टिफिन सेबखाना खा लो।"

ये कहते हुए जब पायल ने अपना टिफिन आगे बढ़ाया, वैसे ही अमन गुस्से में अपना हाथ पायल के टिफिन की तरफ बढ़ा दिया लेकिन तब तक अभय ने अमन का पकड़ते हुए मरोड़ दिया।

अमन दर्द से कराह पड़ा...पर जल्द ही अभय ने कुछ सोचते हुए अमन का हाथ छोड़ दिया।

अमन अपना हाथ झटकते हुए बोला...

अमन --"बड़ा बहादुर बनता है ना तू, आज आ घर पे फिर पता चलेगा तुझे।"

तब तक वहा पर ना जाने कहा से मुंशी पहुंच जाता है, और अमन को दर्द में करता देख...

मुनीम --"क्या हुआ छोटे मालिक? क्या हुआ आपको?"

अमन --"देखो ना मुनीम काका, इसने मेरा हाथ मरोड़ दिया।"

उस समय तो मुनीम ने कुछ नही बोला और अमन को लेकर ना जाने कहा चला गया।

यही सब बातें अभय अपनी मां के सामने खड़ा सोच रहा था पर उसने अपनी मां की बातों का जवाब नही दिया। तभी वहा खड़ा मुनीम बोला...

मुनीम --"मालकिन अब क्या बोलूं, अभय बाबा ने अमन बाबा का लंच बॉक्स उठा कर फेक दिया, और जब अमन बाबा ने पूछा तो, अभय बाबा ने उनका हाथ मरोड़ कर उनसे लड़ने लगे और अमन बाबा को पीटने लगे।"

मुनीम की बात सुनकर संध्या का गुस्सा आसमान पे, पर अभय पर कोई असर नहीं, वो नही डरा और ना ही आज उसने कुछ सफाई पेश की, शायद उसे पता था की उसकी सफाई देने का कुछ भी असर उसकी मां पर नही होगा। और इधर संध्या गुस्से में थी। वो और गुस्से में तब पागल हो जाति है, जब उसे अभय के चहरे पर कुछ भी भाव नही दिखे , वो साधारण ही खड़ा रहा...

तभी एक जोरदार डंडा अभय के हाथ के बाजू पर पड़ा, मगर आज अभय के मुंह से दर्द की जरा सी भी छींक नही निकली...

संध्या --"देखो तो इसको, अब तो डर भी खतम हो गया है। पूरा बिगड़ गया है ये, मुनीम..."

मुनीम --"जी मालकिन..."

संध्या --"मुझे पता है, हर बार मैं जब तुम्हे इसे दंडित करने के लिए बोलती हूं, तो तुम इसको बच्चा समझ कर छोड़ देते हो। अब देखो कितना बिगड़ गया है, खाना भी उठा कर फेंकने लगा है। पर इस बार नही, आज इसने खाना फेंका है ना। इसे खाने की कीमत पता चलने चाहिए, इसे आज खाना मत देना, और कल सिर्फ एक वक्त का खाना देना, फिर पता चलेगा की खाना क्या होता है?"

मुनीम --"जी मालकिन..."

संध्या --"जी मालकिन नही, ऐसा ही करना समझे।"

ये कह कर संध्या जाते जाते 3 से 4 डंडे जोरदार अभय को जड़ देती है।

संध्या --"खाना फेकेगा, अभि से ही इतनी चर्बी।"

कहते हुए संध्या वहा से चली जाति है...

अभय ने अपनी नजर अमन की तरफ मोड़ते हुए देखा तो पाया, अमन संध्या का हाथ पकड़े हवेली के अंदर जा रहा था। अमन ने पीछे मुड़ते हुए मुस्कुरा कर ऐसा भाव अपने चेहरे पर लाया जैसे वो अभय को बेचारा साबित करना चाहता हो। मगर इस बार अभय को जलन नही हुई, बल्कि अमन की मुस्कुराहट का जवाब उसने मुस्कुरा कर ही दिया। जिसे देख कर अमन की मुस्कान उड़ चली।

अभय अपना स्कूल बैग टांगे हवेली के अंदर जाने लगा। तभी वहा रमन आ जाता है...

रमन --"बेचारा, क्यूं सहता तू इतना सब कुछ अभय? तेरी मां तुझे प्यार नही करती है। मुझे पता है, की खाना तूने नही अमन ने फेका था। पर देख अपनी मां को, वो किसे मार रही है, तुझे।"

रमन की बात सुनकर अभय ने मुस्कुराते हुए बोला...

अभय --"वो मुझे मरती है, क्यूंकि उसे लगता है की मैं ही गलत हूं। नही तो वो मुझे कभी नहीं मारती।"

ये सुनकर रमन बोला....

रमन --"अच्छा, तो तुझे लगता है की तेरी मां तुझे बहुत चाहती है?"

अभय --"इसमें लगने जैसा क्या है? हर मां अपने बच्चे को चाहती है।"

रमन --"अरे तेरी मां जब तेरे पापा से प्यार नही कर पाई, तो तुझे क्या करेगी?"

ये सुनकर अभय का दिमाग थम गया...

अभय --"मतलब...?"

रमन --"मतलब ये की, तेरी मां मुझसे प्यार करती है, उसे तेरा बाप पसंद ही नहीं था। इसीलिए तू तेरे बाप की औलाद है तो उस वजह से वो तुझे भी प्यार नही करती।"

अभय तो था 9 साल का बच्चा मगर शब्दो का बहाव उसे किसी दुविधा में डाल चुकी थी, उसने बोला...

अभय --"मेरी मां तुमसे प्यार क्यूं करेगी ? वो तो मेरे पापा से प्यार करती थी।"

ये सुनकर रमन मुस्कुराते हुए बोला...

रमन --"देख बेटा, मैं तेरी भलाई के लिए ही बोल रहा हूं। क्यूंकि तू मेरा भतीजा है?तेरी मां ने खुद मुझसे कहा है की, तू उसकी औलाद है जिसे वो पसंद नही करती थी, इसीलिए वो तुझे भी पसंद नही करती। अब देख तू ही बता वो मुझसे प्यार करती है इसीलिए मेरे बेटे अमन को भी खूब प्यार करती है। अगर तुझे फिर भी यकीन नही है तो। 1 घंटे बाद, वो अमरूद वाले बगीचे में अपना जो पंपसेट का कमरा है ना, उसमे आ जाना। फिर तू देख पाएगा की तेरी मां मुझसे कितना प्यार करती है??
जब संध्या ये सब पहले से ही करती आ रही है तो फिर अनजाने में कैसे संबंध बन गए??

अनजाने में एक बार होता है, और जिसे बार बार करने की आदत लग गई हो, वो पति और बच्चे की परवाह नही करेगी अपनी हवस के आगे।
 

@09vk

Member
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अपडेट 18



अभि ने देखा की पायल उससे बात करने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहीं है। इस पात पर अभी पायल को देखते हुए बोला...

अभि --"लगता है तुम्हें अंधेरे में भी दिखता है? इसीलिए विंडो से बाहर झांकते हुए अंधेरे का लुफ्त उठा रही हो?"

अभय की बात पर संध्या के चेहरे पर मुस्कान बिखर गई, और वही दूसरी तरफ पायल को गुस्सा आ गया।


पायल --"तुम शांति से बैठ नहीं सकते हो क्या? तुम्हे क्या पड़ी है मैं अंधेरे में देखी चाहे उजाले में?"

पायल का गुस्सा देखकर, अभय मन ही मन बहुत खुश हो रहा था। पायल की मासूमियत गुस्से में अभि को और भी ज्यादा प्यारी लग रही थी। विंडो से अंदर आ रही हवाएं पायल के घने बालों को इस कदर बार बार बिखरा देती थी, जिसे देख कर अभि का दिल ही थम जाता। अभि का मन पायल को अपनी बाहों में भरने का कर रहा था। वो खुद को रोक नहीं पा रहा था। पर खुद को समझता की अभि वोबसामय नही आया है। अभि को पता था की एक बार के लिए उसके दोस्त इस बात को गुप्त रख सकते है की वो ही अभय है। मगर अगर वो पायल को बता दिया तो, पायल अपने आप को रोक नहीं पाएगी, और शायद अभय भी नही। और इस चक्कर में बात को सामने आने में समय नहीं लगेगा की अभय कौन है?


इधर संध्या गाड़ी चलाते हुए बार बार अभय को देखती, जो अभी चुप चाप शांति से बैठा पायल को दीवाने की तरह देख रहा था। संध्या के चेहरे पर ऐसी मुस्कान शायद ही कभी आई हो। आज वो अपने बेटे को उस नजर से देख रही थी, जो नजर न जाने कब से प्यासी थी। आज अभय भी संध्या को कुछ नही बोल रहा था। शायद उसका पूरा ध्यान पायल पर था। और ये बात संध्या जानती भी थी, मगर फिर भी उसे इस बात की खुशी थी की उसका बेटा आज उसके बगल में बैठा था। संध्या को ऐसा लग रहा था मानो उसकी जिंदगी में कुछ बहार सी आ गई हो। एक नया सा अहसास था उसके दिल में, जो उसे खुशियों में डूबा रही थी।

संध्या को ऐसा लग रहा था की काश ये सफर खत्म ही न हो, वो इसी तरह गाड़ी चलाती रहे और अभय उसके पास बैठा रहे। मगर सफर हो तो था, मंजिल पर आकर रुकना ही था। जो आ चुका था। गाड़ी गांव में दाखिल हुई, चारो तरफ शोर शराबा और जश्न का माहौल था। लोग नाच गा रहे थे। बच्चे खेल कूद रहे थे। पर अभय इस सब चका चौंध से अंजान अभि भी उसके नजरे पायल पर अटकी थी। वो तब होश में आया जब पायल कार से नीचे उतरी। अभि भी बिना देरी के कार से नीचे उतरा और उसकी नजर एक बार फिर से पायल पर अटक गई, लेकिन तब तक वह पर गांव के लोग आ गए थे।

गांव के लोग ने अभय और ठाकुराइन दोनों का अच्छे से सम्मान किया और उनके बैठने के लिए कुर्सी ले कर आए।

संध्या के सामने अभय बैठा था। संध्या की नजरे अभय को ताड़ रही थी तो वही अभय की नजरे पायल को। वो दोनो बात तो गांव वालो से कर रहे थे पर नजरे कही और ही थी।

संध्या अभय को देखते हुए खुद के मन से बोली...

"बेटा एक नजर अपनी मानकी तरफ भी देख लो, मैं भी इसी आस में बैठी हूं। पूरा प्यार प्रेमिका पर ही, मां के लिए थोड़ा भी नही, हाय रे मेरी किस्मत!!"

संध्या अपनी सोच में डूबी अपनी किस्मत को कोस रही थी, तब तक वह अजय और बाकी तीनों दोस्त भी पहुंच जाते है। अजय, अभय के पास आकर खड़ा हो जाता है, अजय भी आज बहुत खुश लग रहा था। जब अजय ने अभय को देखा की उसके नजरे बार बार पायल पे ही जा रही है तो, वो मुस्कुराते हुए पायल की तरफ बढ़ा। और पायल के नजदीक पहुंच कर बोला...


अजय --"क्या बात है पायल? तूने तो उस छोकरे को दीवाना बना दीया है, नुक्कड़ पर से ही उसकी नजर तुझपे ही अटकी है।"

अजय की बात सुनकर, पायल बोली...

पायल --"कोई पागल लगता है, कार में भी मुझे ही घूर रहा था। और अभि भी देखो, सब बैठे है फिर भी बेशर्म की तरह मुझे ही घूर रहा है। बदतमीज है।"

ये सुनकर अजय मन ही मन खुश होते हुए बोला...

अजय --"वैसे, कल मज़ा आएगा।"

पायल --"क्यूं ऐसा क्या होगा कल?"

अजय--"कल कॉलेज में जब ये तुझे इसी तरह घुरेगा, तो तेरा वो शरफिरा आशिक अमन इसकी जमकर धुलाई करेगा, तो देखने में मजा आयेगा।"

ये सुनकर पायल बोली...

पायल --"मुझे तो नही लगता।"

पायल की बात सुनकर अजय थोड़ा जानबूझ कर आश्चर्य से बोला...

अजय --"क्या नही लगता?"

पायल --"यही, की अमन इस पागल का कुछ बिगड़ पाएगा?"

पायल की बात अजय को सुकून पहुंचने जैसी थी, फिर भी वो हाव भाव बदलते हुए बोला...

अजय --"क्यूं? तू ऐसा कैसे बोल सकती है? तुझे पता नही क्या अमन के हरामीपन के बारे में।"

पायल --"पता है, पर उससे बड़ा हरामि तो मुझे ये पागल लग रहा है। देखा नही क्या तुमने इस पागल को? सांड है पूरा, हाथ है हथौड़ा, गलती से भी उस पर एक भी पड़ गया तो बेचारे का सारा बॉडी ब्लॉक हो जायेगा। उस अमन की तरह मुफ्त की रोटियां खाने वालो में से तो नही लगता ये पागल। और वैसे भी वो मुझे देख रहा है तो उस अमन का क्या जाता है?"

पायल की बाते अजय को कुछ समझ नहीं आ रही थी...

अजय --"अरे तू कहेंना क्या चाहती है?तू उसकी तारीफ भी कर रही है और एक तरफ उसे पागल भी बोल रही है। क्या मतलब है...?"

ये सुनकर पायल मुस्कुरा पड़ी.......

पायल को मुस्कुराता देख सब दंग रह गए, सालो बाद पायल आज मुस्कुराई थी...पास खड़ी उसकी सहेलियां तो मानो उनके होश ही उड़ गए हो। अजय का भी कुछ यही हाल था। पायल मुस्कुराते हुए अभि भी अभय को ही देख रही थी।

और इधर पायल को मुस्कुराता देख अभय भी मंगलू और गांव वालो से बात करते हुए मुस्कुरा पड़ता है।

सब के मुंह खुले के खुले पड़े थे। पायल की एक सहेली भागते हुए कुछ औरतों के पास गई, जहा पायल की मां शांति भी थी...

"काकी...काकी...काकी"

उस लड़की की उत्तेजित आवाज सुनकर सब औरते उसको देखते हुए बोली...

"अरे का हुआ, नीलम कहे इतना चिल्ला रही है?"

नीलम ने कुछ बोलने के बजाय अपना हाथ उठते हुए पायल की तरफ इशारा किया...

सब औरते की नजर पायल के मुस्कुराते हुए चेहरे पर पड़ी, जिसे देख कर सब के मुंह खुले के खुले रह गए। सब से ज्यादा अचंभा तो शांति को था, ना जाने कितने सालों के बाद आज उसने अपनी बेटी का खिला और मुस्कुराता हुआ चेहरा देखी थी वो।

शांति --"है भगवान, मैं कही सपना तो नहीं देख रही हूं।"

कहते हुए वो भागते हुए पायल के पास पहुंची...

पायल जब अपनी मां को देखती है तो उसकी मां रो रही थी। ये देख कर पायल झट से बोल पड़ी...


पायल --"मां, तू रो क्यूं रही है?"

शांति --"तू , मुस्कुरा रही थी मेरी लाडो। एक बार फिर से मुस्कुरा ना।"

ये सुन कर पायल इस बार सिर्फ मुस्कुराई ही नहीं बल्कि खिलखिला कर हंस पड़ी। सभी औरते और लड़किया भी पायल का खूबसूरत चेहरा देख कर खुशी से झूम उठी। पायल की जवानी का ये पहेली मुस्कान थी, जो आज सबने देखा था। वाकई मुस्कान जानलेवा था। पर शायद ये मुस्कान किसी और के लिए था...

पायल --"हो गया, मुस्कुरा दी मैंने मेरी मां। अब तो तू रोना बंद कर।"

ये सुनकर शांति भी मुस्कुरा पड़ी, शांति को नही पता था की उसकी बेटी किस वजह से आज खुश है?किस कारण वो मुस्कुरा रही थी? और शायद जानना भी नही चाहती थी, उसके लिए तो सबसे बड़ी बात यही थी की, बरसो बाद उसकी फूल जैसी बेटी का मुरझाया चेहरा गुलाब की तरह खिला था।

अजय को कही न कही पायल की मुस्कान की वजह पता चल तरह था। पर वो ये बात जनता था की, अगर अभय ने उससे अपनी पहेचान गुप्त रखने के लिए बोला है तो, वो कार में अपनी मां और नीलम के सामने अपनी पहेचान पायल को नही बताएगा।

अजय मन में....

"क्या माजरा है? क्या पायल ने अभय को पहेचान लिया है? पर मैं तो नही पहेचान पाया, जबकि अभय मेरा लंगोटिया यार था। क्या पता? वैसे भी पायल और अभय सबसे ज्यादा एक दूसरे के साथ रहते थे, शायद पायल ने पहेचान लिया है। नही तो दुनिया की ऐसी कोई खुशी नही जो पायल के चेहरे की मुस्कान बन सके सिवाय अभय के।"

सोचते हुए अजय की नजर अभय पर पड़ी जो इस वक्त पायल को ही देख रहा था, और नजर घुमा कर पायल की ओर देखा तो पायल अभय को देख रही थी...
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@09vk

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अभय के सामने बैठी संध्या की नजर अभय पर ही टिकी थी, मगर अभय कही और ही व्यस्त था। अभय का मन कर रहा था की वो जा कर पायल से बात से बात करे। मगर सब वहा मौजूद थे इसलिए वो पायल के पास ना जा सका। जल्द ही खाने पीने की व्यवस्था भी हो गई, अभय के साथ संध्या भी खाना खा रही थी, पायल भी अपनी सहेलियों के साथ वही खड़ी थी, पर अब उसकी नजर अभय पर नही थी। लेकिन अभय की नजर लगातार पायल के उपर ही अटकी रहती थी।

जल्द ही खाना खा कर अभय, अजय के पास आ गया...

अजय --"भाई ये पायल को क्या हुआ? कुछ समझ में नहीं आवरा है। तुमने बता दिया क्या पायल को की तुम ही अभय हो?"

अभय --"अबे मैं क्यूं बताऊंगा, उल्टा मैं तुम लोगो को माना किया है की, किसी को पता न चले की मैं ही अभय हूं। पर क्यूं? क्या हुआ पायल को? क्या किया उसने?"

अजय --"अरे भाई पूछो मत, जब से तुम गए हो, तब से बेचारी के चेहरे से मानो मुस्कान ही चली गई थी। पर न जाने क्यूं आज उसने मुस्कुराया और उधर देखो कितनी खुश है वो।"

अभय ने अजय के इशारे की तरफ देखा तो पायल अपनी सहेलियों से बात करते हुए बहुत खुश नजर आ रही थी। अभय भी नही समझ पाया की आखिर पायल अचानक से क्यूं खुश हो गई?

अजय --"भाई मुझे ना तुमसे बात करना है?"

अभय --"मुझे पता है की, तुम लोगो को मुझसे किस बारे में बात करनी है? पर अभी मैं तुम्हारे किसी भी सवालों का जवाब नही दे सकता। हां मगर सही समय पे जरूर बताऊंगा।"

अजय --"ठीक है भाई, अगर तुम कहते हो तो नही पूछेंगे हम सब। मगर एक बात जो मुझे बहुत अंदर ही अंदर तड़पते जा रही है की, अगर तुम जिंदा हो, तो वो लाश किसकी थी जंगल में? जिसको तुम्हारे चाचा ने तुम्हारी लाश साबित कर दिया था?"

अजय की बात सुनकर, अभय कुछ देर तक सोचा और फिर बोला...

अभय --"सब पता चलेगा अजय, तू चिंता मत कर। ये खेल तो बहुत पहले से शुरू हो गया था। तुझे पता है, मैं यह एक खास काम से आया हूं, और उसमे मुझे लगेगी तुम लोगो की मदद।"

अभय की बात सुनकर, अजय और बाकी दोस्त चौंक से गए...

अजय --"खास काम...? कैसा काम?"

अभय --"अभि नही, कुछ दिन और फिर सब बता हूं।"

कहते अभय ने अपनी नजर घुमाई तो पाया की, उसकी मां उसकी तरफ ही बढ़ी चली आ रही थी।

संध्या जैसे ही अभय के नजदीक पहुंची...

संध्या --"मैं सोचब्रही थी की, घर जा रही थी तो, तुम्हे हॉस्टल छोड़ दूं।"

संध्या की बात सुनकर, अभय मुस्कुराते हुए बोला...

अभय --"आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है मैडम। मैं चला जाऊंगा । और वैसे भी हॉस्टल कौन सा दूर है यहां से।"

संध्या --"दूर तो नही है, पर फिर भी।"

कहते हुए संध्या का चेहरा उदासी में लटक गया। ये देख कर अभय ने कुछ सोचा और फिर बोला...

अभय --"ठीक है, अच्छी बात है। वैसे भी खाना खाने के बाद मुझे चलना पसंद नही है।"

ये सुनकर संध्या का चेहरा फूल की तरह खिल गया। वो झट से अपनी कार की तरफ बढ़ चली।

ये देखकर अजय बोला...

अजय --"भाई, तुम्हारी मां को पता...

अभय --"हां, उसको बताया तो नही है मैने, मगर उसको पता चल गया है की मैं ही अभय हूं। और अभि कुछ देर में उसे पूरी तरह से यकीन भी हो जायेगा की मैं ही अभय हूं। इसके लिए तो उसके साथ जा रहा हूं।"

अभय जैसे ही अपनी बात खत्म करता है, उसके बगल कार आ कर रुकती है। अभय ने अजय को और दोस्तो से विदा लिया और एक नजर पायल की तरफ देखा जो पायल उसे ही देख रही थी। ना जाने अभय को क्या हुआ की उसका हाथ उपर उठा और मुस्कुराते हुए पायल को बॉय का इशारा कर दिया। ये देख पायल भी झट से दूसरी तरफ मुंह करके घूम गई।

अभय मुस्कुराते हुए कार में बैठ गया और कार चल पड़ती है...

____________________________

संध्या कार चलाते हुए अपने मन में यही सोंचब्रही थी की क्या बोले वो?कुछ देर सोचने के बाद वो बोली...

संध्या --"वो लड़की, लगता है तुम्हे बहुत पसंद है? पूरा समय तुम्हारा ध्यान उस लड़की पर ही था।"

संध्या की बात सुनकर,,,

अभय --"और मुझे ऐसा लगता है की मैं आप को बहुत पसंद हु, आपका भी पूरा समय ध्यान मुझ पर था।"

ये सुनकर संध्या मुस्कुरा उठी, और झट से बोली...

संध्या --"वो...वो तो मैं। बस ऐसे ही देख रही थी।"

अभय --"पता है मुझे, मुझे तो ये पता है की आप ने मेरा उस बाग में भी पीछा किया था।"

अभय की बात सुनकर संध्या चौंक गई...

संध्या --"हां किया था। बस इसलिए की, मैं सोच रही थी की तुम इस गांव में नए आए हो तो देर शाम को उस बाग में क्या....?

अभय --"वो जानने नही गई थी तू!!"

संध्या की बात बीच में ही काटते हुए अभय बोला,

अभय --"तू वो जानने नही गई थी। सुर कुछ और है। तुझे लगता था की मैं तेरा बेटा हूं। और उस बाग में पीछा करते हुए जब तूने पायल को देखा तो तुझे पूरी तरह से यकीन हो गया की मैं ही अभय हूं। तो अब तू मेरे मुंह से भी से ले, हां मैं ही अभय हूं।"

ये सुनते ही संध्या ने एक जोरदार ब्रेक लगाते हुए कार को रोक देती है...

संध्या का शक यकीन में बदल गया था। और आज अभय के मुंह से सुनकर तो उसकी खुशी का ठिकाना ही न था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या बोले? वो तुरंत ही जोर जोर से रोने लगती है, और उसके मुंह से सिर्फ गिड़गिड़ाहट की आवाज ही निकल रही थी...

हाथ बढ़ाते हुए उसने अपना हाथ अभय के हाथ पर रखा तो अभय ने दूर झटक दिया। ये देख संध्या का दिल तड़प कर रह गया...

संध्या --"मुझे पता है, तुम मुझसे नाराज़ हो। मैने गलती ही ऐसी की है की, उसकी माफी नहीं है। तुम्हे मुझे जो सजा देनी है से दो, मारो, पीटो, काटो, जो मन में आए...मुझसे यूं नाराज न हो। बड़े दिनों बाद दिल को सुकून मिला है। लेकिन मेरी किस्मत तो देखो मैं मेरा बेटा मेरी आंखो के सामने है और मैं उसे गले भी नही लगा पा रही हूं। कैसे बताऊं तुम्हे की मैं कितना तड़प रही हूं?"

रोते हुऐ संध्या अपने दिल की हालत बयां कर रही थी। और अभय शांत बैठा उसकी बातो सुन रहा था।

संध्या ने जब देखा अभय कुछ नही बोल रहा है तो, उसका दिल और ज्यादा घबराने लगा। मन ही मन भगवान से यही गुहार लगी रही थी की, उसे उसका बेटा माफ कर दे...

संध्या --"मु...मुझे तो कुछ समझ ही नही आ रहा है की, मैं ऐसा क्या बोलूं या क्या करूं जिससे तुम मान जाओ। तुम है बताओ ना की मैं क्या करूं?"

ये सुनकर अभि हंसने लगा...अभि को इस तरह से हंसता देख संध्या का दिल एक बार फिर से रो पड़ा। वो समझ गई की, उसकी गिड़गिड़ाहट अभय के लिए मात्र एक मजाक है और कुछ नही. और तभी अभय बोला...

अभय --"कुछ नही कर सकती तू। हमारे रास्ते अलग है। और मेरे रास्ते पे तेरे कदमों के निशान भी न पड़ने दू मैं। और तू सब कुछ ठीक करने की बात करती है। मुझे तुझे कोई हमदर्दी नही है। तेरे ये आंसू मेरे लिए समुद्र का वो कतरा है है जो किसी काम का नही। क्या हुआ? कहा गई तेरी वो ठाकुरानो वाली आवाज? मुनीम इससे आज खाना मत देना। मुनीम आज इससे पेड़ से बांध कर रखना। अमन तू तो मेरा राजा बेटा है। आज से उस लड़की के साथ तुझे देखा तो तेरी खाल उधेड़ लूंगी।"

अभय --"मैं वो लड़की के साथ तब भी था, आज भी ही8, और कल भी रहूंगा। बहुत उधेड़ी है तूने मेरी खाल। अच्छा लग रहा है, बड़ा सुकून मिल रहा है, तेरी हालत देख कर। (अभय जोर से हंसते हुए) ...तुम ही बातो की मैं क्या करू? की तुम मान जाओ। हा... हा... हा। नौटंकी बाज़ तो तू है ही। क्या हुआ...वो तेरा राजा बेटा कहा गया? उससे प्यार नही मिल रहा है क्या अब तुझे? नही मिलता होगा, वो क्या है ना अपना अपना ही होता है, शायद तुझे मेरे जाने के पता चला होगा। अरे तुझे शर्म है क्या ? तू किस मुंह से मेरे सामने आती है, कभी खुद से पूछती है क्या? बेशर्म है तू, तुझे कुछ फर्क नही पड़ता...

संध्या बस चुप चाप बैठी मग्न हो कर रो रही थी मगर अब चिल्लाई...

"हा... हा बेशर्म हूं मैं, घटिया औरत हूं मैं। मगर तेरी मां हूं मैं। तू मुझे इसबतार नही छोड़ सकता। जन्म दिया है तुझे मैने। तेरी ये जिंदगी मुझसे जुड़ी है, इस तरह से अलग हो जाए ऐसा मैं होने नही दूंगी।"

संध्या की चिल्लाहट सुन कर, अभय एक बार मुस्कुराया और बोला...

अभय --"तो ठीक है, लगी रह तू अपनी जिंदगी को मेरी जिंदगी से जोड़ने में।"

ये कहते हुए अभय कार से जैसे ही नीचे उतरने को हुआ, संध्या ने अभय का हाथ पकड़ लिया। और किसी भिखारी की तरह दया याचना करते हुए अभय से बोली...

संध्या --"ना जा छोड़ के, कोई नही है तेरे सिवा मेरा। कुछ अच्छा नहीं लगता जब तू मेरे पास नहीं रहता। रह जा ना मेरे साथ, तू किसी कोने में भी रखेगा मुझे वहा पड़ा रहूंगी, सुखी रोटी भी ला कर देगा वो भी खा लूंगी, बस मुझे छोड़ कर ना जा। रुक जा ना, तेरे साथ रहने मन कर रहा है।"

संध्या की करुण वाणी अगर इस समय कोई भी सुन लेता तो शत प्रतिशत पिघल जाता, उसने अपने दिल के हर वो दर्द को शब्दो में बयान कर दी थी। इस बार अभि भी थोड़ा भाऊक हो कर बड़े ही प्यार से बोला...

अभय --"याद है तुझे, मैं भी कभी यही बोला करता था था तुझसे। जब रात को तू मुझे सुलाने आती थी। मैं भी तेरा हाथ पकड़ कर बोलता था, रह जा ना मां, तेरे साथ अच्छा लगता है। तू पास रहती है तो मुझे बहुत अच्छी नींद आती है, रुक जा ना मां, मेरे पास ही सो जा। मगर तू नही रुकती थी। रुकती भी कैसे? तुझे किसी और के साथ जो सोना था। अगर तू चाहती है तो बता आगे भी बोलूं की...

"नहीं...चुप हो जा। तेरे पैर पड़ती हूं।"

कहते हुए संध्या ने अभय का हाथ छोड़ दिया, और दूसरी तरफ मुंह घुमा लेती है। ना जाने क्या हुआ उसे, ना रो रही थी ना कुछ बोल रही थी, बस बेबस सी पड़ी थी....

उसकी हालत देख कर अभय एक बार फिर बोला...

अभय --"जाते जाते तुझे एक बात बता दूं। तू गुलाब का वो फूल है, जिसके चारो तरफ सिर्फ कांटे है। एक मैं ही था, जो तुझे उन कारों से बचा सकता था। मगर तूने मुझे पतझड़ में सूखे हुए उस पत्ते की तरह खुद से अलग कर दिया की मैं भी तेरे चारों तरफ बिछे काटों को देखकर सुकून महसूस करता हूं...



ये कहकर अभि वहा से चला जाता है, संध्या बेचारी अपनी नजर उठा कर अंधेरे में अपने बेटे को देखना चाही, मगर कार के बाहर उसे सिर्फ अंधेरा ही दिखा, शायद उसकी जिंदगी में भी यही था......
Nice update 👍
 
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