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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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@09vk

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अपडेट 20



अभय के जाते ही संध्या अपनी कार स्टार्ट करती है और हवेली की तरफ बढ़ चलती है.....


अभय जैसे ही हॉस्टल में पहुंचा, उसका दिमाग पूरी तरह से खराब हो गया था...

शर्ट उतार कर बेड पर फेंकते हुए, खुद से बोला...

"अभय संभाल खुद को, उसकी बह रही आंसुओ में मत उलझ। तू कैसे भूल सकता है की तेरी मां एक मतलबी औरत है। अपने जज्बात के आगे तेरा बचपन खा गई। कुछ नहीं दिखा उसे, तू किस हाल में था। हर पल उसके प्यार के लिए तड़पता रहा मगर वो प्यार मिला किसको ? अमन को। याद रख, तू यह क्यूं आया है? ऐसा कौन सा राज है, जो तेरा बाप तुझे बताना चाहता था, मगर उसकी जुबान ना कह सकी जिसके वजह से उन्होंने अपना राज कही तो दफ्न किया है। ढूंढ उस राज को, कुछ तो है जरूर?"

खुद से ही ये सब बाते बोलते हुए, अभय का दिल जोर जोर से चलने लगा। पसीने आने लगे थे उसे। पास रखे पानी का बोतल उठा कर पानी पी कर वो अपने बेड पर शांति से बैठ जाता है।

उसके जहां में वो काली अंधेरी रात घूमने लगती है....जिस दिन वो घर से भाग रहा था।

उस दिन अभय जब स्कूल से घर वापस आया, तब वो अपनी मां को हवेली के बहार ही पाया। अपनी मां के हाथ में डंडा देख कर वो सहम सा जाता है। वो बहुत ज्यादा दर जाता है। स्कूल बैग टांगे उसके चल रहे कदम अचानक से रुक जाते है।

तभी अभय की नजर अमन पर जाति है, जैसा स्कूल यूनिफॉर्म हल्का हल्का फटा था। ऐसा लग रहा था मानो अमन मिट्टी में उलट पलट कर आया हो। अभय को समझते देर नहीं लगी की ये अमन जानबूझ कर किया है उसे उसकी मां से पिटवाने के लिए। अभय ये भी जानता था की, अभय ने कुछ नही बोला और अमन और अपनी मां को नजर अंदाज करते हुए हवेली के अंदर जाने लगा की तभी संध्या की आवाज गूंजी...

संध्या --"किधर जा रहा है? इधर आ?"

अपनी मां की कड़क भाषा सुन कर, अभय इतना तो समझ गया था की अब उसे मार पड़ने वाली है, वैसे तो वो हर बार अपनी मां से दर जाता था, और संध्या के कुछ बोलने से पहले ही वो छटपटाने लगता था। मगर आज वो बिना डर के अपनी मां की एक आवाज पर उसके नजदीक जा कर खड़ा हो गया था। आज उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। बस वहा खड़े होकर कुछ सोच रहा था...

संध्या --"तुझे इतनी बार समझाया है, तू समझता क्यूं नही है? अमन से झगड़ा क्यूं किया तूने? उसका स्कूल ड्रेस भी फाड़ दिया तूने? क्यूं किया तूने ऐसा?"

अभय एक दम शांत वही खड़ा रहा, उसे आज स्कूल में हुई घटना याद आने लगी, जब वो स्कूल के लंच टाइम में खाना खा रहा था, तब वहा अमन आ जाता है। और उसका लंच बॉक्स उठा कर फेक देता है। ये देख कर पास में बैठी पायल उठते हुए अमन के गाल पर एक थप्पड़ रसीद कर देती है।

पायल --"बदमीज कही का, तू क्यूं हमेशा अभय को परेशान करता रहता है? अकल नही है क्या तुझे? खाना भी फेकता है क्या कोई?चलो अभय तुम मेरे टिफिन सेबखाना खा लो।"

ये कहते हुए जब पायल ने अपना टिफिन आगे बढ़ाया, वैसे ही अमन गुस्से में अपना हाथ पायल के टिफिन की तरफ बढ़ा दिया लेकिन तब तक अभय ने अमन का पकड़ते हुए मरोड़ दिया।

अमन दर्द से कराह पड़ा...पर जल्द ही अभय ने कुछ सोचते हुए अमन का हाथ छोड़ दिया।

अमन अपना हाथ झटकते हुए बोला...

अमन --"बड़ा बहादुर बनता है ना तू, आज आ घर पे फिर पता चलेगा तुझे।"

तब तक वहा पर ना जाने कहा से मुंशी पहुंच जाता है, और अमन को दर्द में करता देख...

मुनीम --"क्या हुआ छोटे मालिक? क्या हुआ आपको?"

अमन --"देखो ना मुनीम काका, इसने मेरा हाथ मरोड़ दिया।"

उस समय तो मुनीम ने कुछ नही बोला और अमन को लेकर ना जाने कहा चला गया।

यही सब बातें अभय अपनी मां के सामने खड़ा सोच रहा था पर उसने अपनी मां की बातों का जवाब नही दिया। तभी वहा खड़ा मुनीम बोला...

मुनीम --"मालकिन अब क्या बोलूं, अभय बाबा ने अमन बाबा का लंच बॉक्स उठा कर फेक दिया, और जब अमन बाबा ने पूछा तो, अभय बाबा ने उनका हाथ मरोड़ कर उनसे लड़ने लगे और अमन बाबा को पीटने लगे।"

मुनीम की बात सुनकर संध्या का गुस्सा आसमान पे, पर अभय पर कोई असर नहीं, वो नही डरा और ना ही आज उसने कुछ सफाई पेश की, शायद उसे पता था की उसकी सफाई देने का कुछ भी असर उसकी मां पर नही होगा। और इधर संध्या गुस्से में थी। वो और गुस्से में तब पागल हो जाति है, जब उसे अभय के चहरे पर कुछ भी भाव नही दिखे , वो साधारण ही खड़ा रहा...

तभी एक जोरदार डंडा अभय के हाथ के बाजू पर पड़ा, मगर आज अभय के मुंह से दर्द की जरा सी भी छींक नही निकली...

संध्या --"देखो तो इसको, अब तो डर भी खतम हो गया है। पूरा बिगड़ गया है ये, मुनीम..."

मुनीम --"जी मालकिन..."

संध्या --"मुझे पता है, हर बार मैं जब तुम्हे इसे दंडित करने के लिए बोलती हूं, तो तुम इसको बच्चा समझ कर छोड़ देते हो। अब देखो कितना बिगड़ गया है, खाना भी उठा कर फेंकने लगा है। पर इस बार नही, आज इसने खाना फेंका है ना। इसे खाने की कीमत पता चलने चाहिए, इसे आज खाना मत देना, और कल सिर्फ एक वक्त का खाना देना, फिर पता चलेगा की खाना क्या होता है?"

मुनीम --"जी मालकिन..."

संध्या --"जी मालकिन नही, ऐसा ही करना समझे।"

ये कह कर संध्या जाते जाते 3 से 4 डंडे जोरदार अभय को जड़ देती है।

संध्या --"खाना फेकेगा, अभि से ही इतनी चर्बी।"

कहते हुए संध्या वहा से चली जाति है...

अभय ने अपनी नजर अमन की तरफ मोड़ते हुए देखा तो पाया, अमन संध्या का हाथ पकड़े हवेली के अंदर जा रहा था। अमन ने पीछे मुड़ते हुए मुस्कुरा कर ऐसा भाव अपने चेहरे पर लाया जैसे वो अभय को बेचारा साबित करना चाहता हो। मगर इस बार अभय को जलन नही हुई, बल्कि अमन की मुस्कुराहट का जवाब उसने मुस्कुरा कर ही दिया। जिसे देख कर अमन की मुस्कान उड़ चली।

अभय अपना स्कूल बैग टांगे हवेली के अंदर जाने लगा। तभी वहा रमन आ जाता है...

रमन --"बेचारा, क्यूं सहता तू इतना सब कुछ अभय? तेरी मां तुझे प्यार नही करती है। मुझे पता है, की खाना तूने नही अमन ने फेका था। पर देख अपनी मां को, वो किसे मार रही है, तुझे।"

रमन की बात सुनकर अभय ने मुस्कुराते हुए बोला...

अभय --"वो मुझे मरती है, क्यूंकि उसे लगता है की मैं ही गलत हूं। नही तो वो मुझे कभी नहीं मारती।"

ये सुनकर रमन बोला....

रमन --"अच्छा, तो तुझे लगता है की तेरी मां तुझे बहुत चाहती है?"

अभय --"इसमें लगने जैसा क्या है? हर मां अपने बच्चे को चाहती है।"

रमन --"अरे तेरी मां जब तेरे पापा से प्यार नही कर पाई, तो तुझे क्या करेगी?"

ये सुनकर अभय का दिमाग थम गया...

अभय --"मतलब...?"

रमन --"मतलब ये की, तेरी मां मुझसे प्यार करती है, उसे तेरा बाप पसंद ही नहीं था। इसीलिए तू तेरे बाप की औलाद है तो उस वजह से वो तुझे भी प्यार नही करती।"

अभय तो था 9 साल का बच्चा मगर शब्दो का बहाव उसे किसी दुविधा में डाल चुकी थी, उसने बोला...

अभय --"मेरी मां तुमसे प्यार क्यूं करेगी ? वो तो मेरे पापा से प्यार करती थी।"

ये सुनकर रमन मुस्कुराते हुए बोला...

रमन --"देख बेटा, मैं तेरी भलाई के लिए ही बोल रहा हूं। क्यूंकि तू मेरा भतीजा है?तेरी मां ने खुद मुझसे कहा है की, तू उसकी औलाद है जिसे वो पसंद नही करती थी, इसीलिए वो तुझे भी पसंद नही करती। अब देख तू ही बता वो मुझसे प्यार करती है इसीलिए मेरे बेटे अमन को भी खूब प्यार करती है। अगर तुझे फिर भी यकीन नही है तो। 1 घंटे बाद, वो अमरूद वाले बगीचे में अपना जो पंपसेट का कमरा है ना, उसमे आ जाना। फिर तू देख पाएगा की तेरी मां मुझसे कितना प्यार करती है??
Nice update 👍
 

Studxyz

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संध्या सर्टिफाइड चुतिया तो है ही बदचलन किस श्रेणी की है तभी पता लगेगा जब अभय के पिता का राज़ खुलेगा की वाक़ई संध्या अपने पति के होते हुए भी रमन से चुद रही थी

अमन छोटी उम्र से ही अपने बाप व् मुनीम के साथ मिल कर संध्या के मन में उसके बेटे के खिलाफ ज़हर घोल रहा था और इसमें कामयाब भी हुआ इस लफड़े में क्या एक बेक़सूर बच्चा भी मार दिया गया ? क्लियर नही

अलबेले के पास बहुत से तरीके उपलब्ध है अगर वो अपने ठंडे अलबेले दिमाग से काम ले तभी ये मुमकिन है इसके दोस्त, पायल और अप्रत्यक्ष रूप से ही सही संध्या भी इसके काम आएगी क्यों की अब हवेली में फूट पड़ना निश्चित ही है जिसकी शुरुआत हो चुकी है ये फुट अब बढ़ेगी क्योंकि आज संध्या को पता चल गया कि अभय ही उसका अपना बेटा है
 

Raj 007

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Ab samjh aane laga hai ki Raman apne plan ke mutabik Sandhya ko पंपसेट के रूम में bulata hai aur kuchh yesi chij dikhata hoga jise dekh kar Sandhya dar se Raman se lipat jati hogi aur abhay ko dikhane ke liye Raman apne plan ke anusar uski chudai kar deta hoga matlab Sandhya Raman se pahli aur aakhari baar hi chudi thi
 

Lib am

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अभय के जाते ही संध्या अपनी कार स्टार्ट करती है और हवेली की तरफ बढ़ चलती है.....


अभय जैसे ही हॉस्टल में पहुंचा, उसका दिमाग पूरी तरह से खराब हो गया था...

शर्ट उतार कर बेड पर फेंकते हुए, खुद से बोला...

"अभय संभाल खुद को, उसकी बह रही आंसुओ में मत उलझ। तू कैसे भूल सकता है की तेरी मां एक मतलबी औरत है। अपने जज्बात के आगे तेरा बचपन खा गई। कुछ नहीं दिखा उसे, तू किस हाल में था। हर पल उसके प्यार के लिए तड़पता रहा मगर वो प्यार मिला किसको ? अमन को। याद रख, तू यह क्यूं आया है? ऐसा कौन सा राज है, जो तेरा बाप तुझे बताना चाहता था, मगर उसकी जुबान ना कह सकी जिसके वजह से उन्होंने अपना राज कही तो दफ्न किया है। ढूंढ उस राज को, कुछ तो है जरूर?"

खुद से ही ये सब बाते बोलते हुए, अभय का दिल जोर जोर से चलने लगा। पसीने आने लगे थे उसे। पास रखे पानी का बोतल उठा कर पानी पी कर वो अपने बेड पर शांति से बैठ जाता है।

उसके जहां में वो काली अंधेरी रात घूमने लगती है....जिस दिन वो घर से भाग रहा था।

उस दिन अभय जब स्कूल से घर वापस आया, तब वो अपनी मां को हवेली के बहार ही पाया। अपनी मां के हाथ में डंडा देख कर वो सहम सा जाता है। वो बहुत ज्यादा दर जाता है। स्कूल बैग टांगे उसके चल रहे कदम अचानक से रुक जाते है।

तभी अभय की नजर अमन पर जाति है, जैसा स्कूल यूनिफॉर्म हल्का हल्का फटा था। ऐसा लग रहा था मानो अमन मिट्टी में उलट पलट कर आया हो। अभय को समझते देर नहीं लगी की ये अमन जानबूझ कर किया है उसे उसकी मां से पिटवाने के लिए। अभय ये भी जानता था की, अभय ने कुछ नही बोला और अमन और अपनी मां को नजर अंदाज करते हुए हवेली के अंदर जाने लगा की तभी संध्या की आवाज गूंजी...

संध्या --"किधर जा रहा है? इधर आ?"

अपनी मां की कड़क भाषा सुन कर, अभय इतना तो समझ गया था की अब उसे मार पड़ने वाली है, वैसे तो वो हर बार अपनी मां से दर जाता था, और संध्या के कुछ बोलने से पहले ही वो छटपटाने लगता था। मगर आज वो बिना डर के अपनी मां की एक आवाज पर उसके नजदीक जा कर खड़ा हो गया था। आज उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। बस वहा खड़े होकर कुछ सोच रहा था...

संध्या --"तुझे इतनी बार समझाया है, तू समझता क्यूं नही है? अमन से झगड़ा क्यूं किया तूने? उसका स्कूल ड्रेस भी फाड़ दिया तूने? क्यूं किया तूने ऐसा?"

अभय एक दम शांत वही खड़ा रहा, उसे आज स्कूल में हुई घटना याद आने लगी, जब वो स्कूल के लंच टाइम में खाना खा रहा था, तब वहा अमन आ जाता है। और उसका लंच बॉक्स उठा कर फेक देता है। ये देख कर पास में बैठी पायल उठते हुए अमन के गाल पर एक थप्पड़ रसीद कर देती है।

पायल --"बदमीज कही का, तू क्यूं हमेशा अभय को परेशान करता रहता है? अकल नही है क्या तुझे? खाना भी फेकता है क्या कोई?चलो अभय तुम मेरे टिफिन सेबखाना खा लो।"

ये कहते हुए जब पायल ने अपना टिफिन आगे बढ़ाया, वैसे ही अमन गुस्से में अपना हाथ पायल के टिफिन की तरफ बढ़ा दिया लेकिन तब तक अभय ने अमन का पकड़ते हुए मरोड़ दिया।

अमन दर्द से कराह पड़ा...पर जल्द ही अभय ने कुछ सोचते हुए अमन का हाथ छोड़ दिया।

अमन अपना हाथ झटकते हुए बोला...

अमन --"बड़ा बहादुर बनता है ना तू, आज आ घर पे फिर पता चलेगा तुझे।"

तब तक वहा पर ना जाने कहा से मुंशी पहुंच जाता है, और अमन को दर्द में करता देख...

मुनीम --"क्या हुआ छोटे मालिक? क्या हुआ आपको?"

अमन --"देखो ना मुनीम काका, इसने मेरा हाथ मरोड़ दिया।"

उस समय तो मुनीम ने कुछ नही बोला और अमन को लेकर ना जाने कहा चला गया।

यही सब बातें अभय अपनी मां के सामने खड़ा सोच रहा था पर उसने अपनी मां की बातों का जवाब नही दिया। तभी वहा खड़ा मुनीम बोला...

मुनीम --"मालकिन अब क्या बोलूं, अभय बाबा ने अमन बाबा का लंच बॉक्स उठा कर फेक दिया, और जब अमन बाबा ने पूछा तो, अभय बाबा ने उनका हाथ मरोड़ कर उनसे लड़ने लगे और अमन बाबा को पीटने लगे।"

मुनीम की बात सुनकर संध्या का गुस्सा आसमान पे, पर अभय पर कोई असर नहीं, वो नही डरा और ना ही आज उसने कुछ सफाई पेश की, शायद उसे पता था की उसकी सफाई देने का कुछ भी असर उसकी मां पर नही होगा। और इधर संध्या गुस्से में थी। वो और गुस्से में तब पागल हो जाति है, जब उसे अभय के चहरे पर कुछ भी भाव नही दिखे , वो साधारण ही खड़ा रहा...

तभी एक जोरदार डंडा अभय के हाथ के बाजू पर पड़ा, मगर आज अभय के मुंह से दर्द की जरा सी भी छींक नही निकली...

संध्या --"देखो तो इसको, अब तो डर भी खतम हो गया है। पूरा बिगड़ गया है ये, मुनीम..."

मुनीम --"जी मालकिन..."

संध्या --"मुझे पता है, हर बार मैं जब तुम्हे इसे दंडित करने के लिए बोलती हूं, तो तुम इसको बच्चा समझ कर छोड़ देते हो। अब देखो कितना बिगड़ गया है, खाना भी उठा कर फेंकने लगा है। पर इस बार नही, आज इसने खाना फेंका है ना। इसे खाने की कीमत पता चलने चाहिए, इसे आज खाना मत देना, और कल सिर्फ एक वक्त का खाना देना, फिर पता चलेगा की खाना क्या होता है?"

मुनीम --"जी मालकिन..."

संध्या --"जी मालकिन नही, ऐसा ही करना समझे।"

ये कह कर संध्या जाते जाते 3 से 4 डंडे जोरदार अभय को जड़ देती है।

संध्या --"खाना फेकेगा, अभि से ही इतनी चर्बी।"

कहते हुए संध्या वहा से चली जाति है...

अभय ने अपनी नजर अमन की तरफ मोड़ते हुए देखा तो पाया, अमन संध्या का हाथ पकड़े हवेली के अंदर जा रहा था। अमन ने पीछे मुड़ते हुए मुस्कुरा कर ऐसा भाव अपने चेहरे पर लाया जैसे वो अभय को बेचारा साबित करना चाहता हो। मगर इस बार अभय को जलन नही हुई, बल्कि अमन की मुस्कुराहट का जवाब उसने मुस्कुरा कर ही दिया। जिसे देख कर अमन की मुस्कान उड़ चली।

अभय अपना स्कूल बैग टांगे हवेली के अंदर जाने लगा। तभी वहा रमन आ जाता है...

रमन --"बेचारा, क्यूं सहता तू इतना सब कुछ अभय? तेरी मां तुझे प्यार नही करती है। मुझे पता है, की खाना तूने नही अमन ने फेका था। पर देख अपनी मां को, वो किसे मार रही है, तुझे।"

रमन की बात सुनकर अभय ने मुस्कुराते हुए बोला...

अभय --"वो मुझे मरती है, क्यूंकि उसे लगता है की मैं ही गलत हूं। नही तो वो मुझे कभी नहीं मारती।"

ये सुनकर रमन बोला....

रमन --"अच्छा, तो तुझे लगता है की तेरी मां तुझे बहुत चाहती है?"

अभय --"इसमें लगने जैसा क्या है? हर मां अपने बच्चे को चाहती है।"

रमन --"अरे तेरी मां जब तेरे पापा से प्यार नही कर पाई, तो तुझे क्या करेगी?"

ये सुनकर अभय का दिमाग थम गया...

अभय --"मतलब...?"

रमन --"मतलब ये की, तेरी मां मुझसे प्यार करती है, उसे तेरा बाप पसंद ही नहीं था। इसीलिए तू तेरे बाप की औलाद है तो उस वजह से वो तुझे भी प्यार नही करती।"

अभय तो था 9 साल का बच्चा मगर शब्दो का बहाव उसे किसी दुविधा में डाल चुकी थी, उसने बोला...

अभय --"मेरी मां तुमसे प्यार क्यूं करेगी ? वो तो मेरे पापा से प्यार करती थी।"

ये सुनकर रमन मुस्कुराते हुए बोला...

रमन --"देख बेटा, मैं तेरी भलाई के लिए ही बोल रहा हूं। क्यूंकि तू मेरा भतीजा है?तेरी मां ने खुद मुझसे कहा है की, तू उसकी औलाद है जिसे वो पसंद नही करती थी, इसीलिए वो तुझे भी पसंद नही करती। अब देख तू ही बता वो मुझसे प्यार करती है इसीलिए मेरे बेटे अमन को भी खूब प्यार करती है। अगर तुझे फिर भी यकीन नही है तो। 1 घंटे बाद, वो अमरूद वाले बगीचे में अपना जो पंपसेट का कमरा है ना, उसमे आ जाना। फिर तू देख पाएगा की तेरी मां मुझसे कितना प्यार करती है??
पहले ही पता था कि ये बाप बेटा दोनो मिल कर साजिश रच रहे थे और वो हवस में अंधी औरत इनके जाल में फस कर अपने बेटे को सजा देती रहीं । अब जो किया है वो तो भुगतना ही पड़ेगा। अब खुलेंगे पुराने राज। रोचक अपडेट
 

Aditya01kh

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Studxyz

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Bhai tumne jaise likhna ka socha Tha apne trike se likho bcoz sgar bich me kuchh add on karoge to story ka Mazza kharab ho Jaye GA

100 आने सही सुझाव है कहानी पर हर तरह के कमेंट/ सुझाव आएंगे लेकिन लेखल को अपनी सोच व प्लाट के हिसाब से ही आगे बढ़ना चाहिए
 

MAD. MAX

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संध्या की आंखो के सामने एक लैंप जलता हुआ दिखा। और उसे उस लैंप की रौशनी में खड़ी दो लड़की दिखी। संध्या उन लड़कियों को देख कर हैरान थी। वो सोचने लगी की ये लड़कियां कौन है? और इस समय यह क्या कर रही है? अपने आप से ही सवाल करती हुई संध्या अपने कदम उन लड़कियों की तरफ बढ़ा दी।


संध्या जब नजदीक पहुंची तो देखी की वो लड़की पायल थी, जो आज लाल रंग के लहंगा पहने सिर पे चुन्नी ओढ़े हाथो में एक थाली लिए खड़ी थी।

संध्या -"अरे पायल, तू यह क्या कर रही है?"

कहते हुए संध्या की नजरे पायल के हाथ में पड़ी थाली पर पड़ी, जिसमे कपूर का दिया जल रहा था।

पायल --"ठाकुराइन जी आप? मैं वो...वो ।"

तभी संध्या ने पायल की आवाज को बीच में काटते हुए बोली...

संध्या --"कुछ बोलने की जरूरत नहीं है पायल, ये वही जगह है ना, जहां तुम और अभय बचपन से भूमि पूजन करते थे।"

संध्या की बात सुनकर पायल थोड़ा मुस्कुरा कर बोली...

पायल --"हां, लेकिन कभी सोचा नहीं था की कभी मुझे अकेले ही करना पड़ेगा।"

कहते हुए पायल की आंखो में आसूं आ गए, ये देख कर संध्या को रोक नहीं पाई और आगे बढ़कर पायल को अपने सीने से लगा लेती है, और वो भाऊक हो कर बोली...

संध्या --"बहुत प्यार करती है ना तू उसे आज भी?"

पायल एक पल के लिए तो ठाकुराइन का इतना प्यार देखकर हैरान रह गई। फिर ठाकुराइन की बातो पर गौर करते हुए बोली...

पायल --"प्यार की होता है, वो तो पता नही । लेकिन उसकी याद हर पल आती रहती है।"

पायल की बात सुनकर संध्या की आंखो में भी आसूं छलक गए और वो एक बार कस के पायल को अपने सीने से चिपका लेती है। ये सब माजरा एक पेड़ के पीछे छिप कर अभय देख रह था।

पायल को पहेली बार उसने देखा था। मासूम से खूबसूरत चेहरे को देखकर अभय की दिल किंधडकन तेज हो गया। उसे वो हर पल सताने लगा जो पल उसने पायल के साथ बिताया था। पायल की हालत उससे देखी नही जा रही थी। वो सोच भी नही सकता था की बचपन का वो एक साथ खेलकूद, एक साथ बिताए पल पायल के दिल में इस कदर बस जायेगा की वो उसे भूल नहीं पाएगी।

पायल की हालत को सोचते हुए, आज पहेली बार अभय के आंखो से भी आसू की धारा बह गई। वो तो बस आज के दिन के अहसास के लिए इस जगह आया था। की वो इस जगह को महसूस कर सके जिस जगह वो बचपन से अपने इस दोस्त के साथ छुप कर अकेले में भूमि पूजन करता था। पर उसे क्या पता था की इस जगह। का अहसास करने वो अकेला नहीं आया था, उसका बचपन को साथी भी था जिसके साथ वो भूमि पूजन करता था।

उसका दिल देह रह कर धड़क रहा था, उसके थामे कदम हर बार आगे बढ़ने को कांपते की जाकर बता दे , की मैं आ गया हु पायल, तेरा वो बचपन का दोस्त, जिसे तू आज भी बुला नही पाई है, जिसका तू आज भी इंतजार करती है, जाता दी की तेरा इंतजार की घड़ी खत्म हो गई है....

हजारों सवालों को अपने दिल से करते हुए अभय के कदम वापस पीछे की तरफ मुड़ चले, वो चाह कर भी न जा पाया बस भीगी पलकों से कुछ दूर चल कर रुकते हुए एक बार बार मुड़ कर पायल की तरफ देखता और जल्द ही वो बाग से बाहर सड़क पर आ गया था।

इधर संध्या पायल को अपने सीने से चिपकाई वो सुर्ख आवाज में बोली...

संध्य --"तू भी मुझसे बहुत नाराज़ होगी ना पायल?"

संध्या की बात सुनकर, पायल संध्या से अलग होते हुए बोली...

पायल --"आपसे नाराज़ नहीं हु मै, हां लेकिन आप जब भी बेवजह अभय को मरती थी ना। तब मुझे आप पर बहुत गुस्सा आता था। कई अभय से पूछती थी की, तुम्हारी मां तुम्हे इतना क्यूं मरती है? तो मुस्कुराते हुए बोलता था की, मारती है तो क्या हुआ बाद उसी जख्मों पर रोते हुए प्यार से मलहम भी तो लगाती है मेरी मां। थोड़ा गुस्से वाली है मेरी मां पर प्यार बहुत करती है। उसके मुंह से ये सुनकर आपके ऊपर से सारा गुस्सा चला जाता था।"

पायल की बातो ने संध्या की आंखो को दरिया बना दी। वो 3के शब्द नही बोल पाई, शायद अंदर ही अंदर तड़प रही थी और रो ना पाने की वजह से गला भी दुखने लगा था। फिर भी वो अपनी आवाज पर काबू पाते हुए बोली...

संध्या --"आज मैं भी तेरे साथ पूजा करना चाहती हूं, क्या तू इजाजत देगी मुझे?"

संध्या की बात सुनकर पायल ने मुस्कुराते हुए अपना सिर हा में हिला दिया,,


______________________________

इधर अभय पूरी तरह से सोच में डूबा था। वो कुछ फैसला नहीं कर पा रहा था की, वो अपनी सच्चाई पायल को बताए की नही, उसका दिल बेचैन था पायल से वो दूर नहीं रह सकता था। पर फिर भी वो खुद के सवालों में उलझ था। अंधेरी रात में वो सड़क पर चलते हुए हॉस्टल की तरफ जा रहा था की तभी वो सड़क के एक नुक्कड़ पर पहुंचा....


उस नुक्कड़ पर एक बूकन थी। जहा पे कुछ गांव के लड़के खड़े थे। अभय के कानो में एक लड़के की आवाज पड़ी...

"यार अजय, कितना सिगरेट पिएगा तू, तेरे बापू को पता चला ना टांगे तोड़ देंगे तेरी।"

अभय के कानो में अजय नाम सुनाई देते ही, वो अजय को देखने लगा, अजय को देखते ही उसी चेहरे पर एक मुस्कान सी फैल गई और खुद से बोला....

"अच्छा, तो मै कुछ दिनों के लिए गांव की छोड़ा, ये इतना बिगाड़ गया। खबर तो लेनी पड़ेगी इसकी......यार जो है अपना।"

खुद से कहते हु अभय उन लडको की तरफ बढ़ा, अभय जैसे ही उनके नजदीक पहुंचा, अजय की नजर अचानक ही अभय के ऊपर पड़ी...

सिगरेट को नीचे ज़मीन पर फेंकते हुए वो झट से बोला...

अजय --"अरे भाई तुम, गांव की तरफ चल रहे हो, वैसे भी आज खास तुम्हारे लिए ही तो प्रोग्राम किया है।"

अजय की बात सुनकर अभय मुस्कुराते हुए बोला......

अभय --"हां प्रोग्राम तो खास है, लेकिन इस बार भी तू ही सरपंच की धोती में चूहा छोड़ेगा...।

"नही देख यार, हर बार मैं ही करता हु इस बार तू...."

कहते हुए अजय चुप हो गया, अजय के चेहरे के भाव इतनी जल्दी बदले की गिरगिट भी न बदल पाए। उसके तो होश ही उड़ गए, सिर चकरा गया और झट से बोला...

अजय --"तू....तुम्हे कै...कैसे पता की मैं सरपंच के धोती में चूहा छोड़ता था।"

अजय की बात सुनकर, अभय ने आगे बढ़ते हुए अजय को अपने गले से लगा लिया और प्यार से बोला...

अभय --"इतना भी नही बदला हूं, की तू अपने यार को ही नही पहचाना।"

गले लगते ही अजय का शरीर पूरा कांप सा गया, उसके चेहरे पर अजीब सी शांति और दिल में ठंडक वाला तूफान उठा लगा। कस कर अभय को गले लगाते हुए अजय रोने लगा....

अजय इस तरह रो रह था मानो कोई बच तो रह था। अभय और अजय आज अपनी यारी में एक दूर के गले लगे रो रह थे।

अजय --"कहा चला गया था यार, बहुत याद आती थी यार तेरी।"

अजय की बात सुनकर, अभय भी अपनी भीग चुकी आंखो को खोलते हुए सुर्ख लहज़े में बोला...

अभय --"जिंदगी क्या है, वो ही सीखने गया था। पर अब तो आ गया ना।"

कहते हुए अभय अजय से अलग हो जाता है, अभय अजय का चेहरा देखते हुए बोला...

अभय --"अरे तू तो मेरा शेर है, तू कब से रोने लगा। अब ये रोना धोना बंद कर, और हा एक बात...."

इससे पहले की अभय कुछ और बोलता वहा खड़े 3 और लड़के अभय के गले लग जाते है...

"मुझे पहेचान....मैं पप्पू, जिसे तुमने आम के पेड़ से नीचे धकेल दिया था और हाथ में मंच आ गई थी।"

पप्पू की बात सुनकर अभय बोला...

अभय --"हा तो वो आम भी तो तुझे ही चाहिए था ना।"

कहते हुए सब हंस पड़ते है....

"मैं अमित, और मै राजू....।"

अभय --"अरे मेरे यारो, सब को पहेचान गया । लेकिन एक बात ध्यान से सुनो,, ये बात की मैं ही अभय हूं, किसीको पता नही चलाना चाहिए।"

अभय अभि बोल ही रहा थे की, अजय एक बार भीर से अभय के गले लग जाता है....

अभय --"कुछ ज्यादा नही हो रह है अजय, लोग देखेंगे तो कुछ और न समझ ले...।

अभय की बात पर सब हंसन लगे....की तभी उस नुक्कड़ पर एक कार आ कर रुकी।

उस कार को देखते ही अभय समझ गया की ये कार संध्या की है। संध्या जैसे ही कार से उतरी उसकी नजर अभय पर पड़ी।

कार से पायल और और उसके साथ उसकी सहेली भी नीचे उतरती है। नुक्कड़ पर लगी बिजली के खंबे में जल रही लाइट की रौशनी में , एक बार फ़िर से पायल का चांद सा चेहरा अभय के सामने था।

पायल को देख कर अभय ठंडी सांस लेने लगता है। उसका पूरा ध्यान पायल पर ही था। अभय को इस तरह अपनी तरफ देख कर पायल भी हैरान हो जाति है।

तभी पायल के पास खड़ी उसकी सहेली बोली...

"देख पायल, यही वो लड़का है जिसकी वजह से हमे हमारे खेत मिल गए।"

अपनी सहेली की बात सुनकर पायल ने कुछ बोलाब्तो नही, पर अपनी करी कजरारी आंखो से एक नजर अभय की तरफ देखती है। पायल की नजर अभय की नजरों से जा मिलती है, दोनो कुछ पल के लिए एक दूसरे को देखते रहते है। संध्या भी जब देखती है की दोनो की नजरे आपस में टकरा गई है तो वो भी चुप चाप कुछ समय के लिए खड़ी रहती है।

संध्या अपनी नज़रे नीचे झुका लेती है और खुद से बोलती है...

"जिसकाबती इंतजार कर रही थी पायल, ये वही है। मैं तो अपने बेटे को चाह कर भी गले नही लगा पा रही हूं, पर तू , तू तो अपने बचपन के प्यार से उसके सीने से लिपट सकती है।"

संध्या यहीबसब सोच हीं रही थी की, तभी पायल सीधा जाकर कार में बैठ जाती है। पायल को अपनी आंखो से ओझल पाते ही। अभय भी भी जमीन पर आबजाता है.....

संध्या ने जब पायल को कार में बैठते देखा तो, उसने अभय की तरफ देखते हुए बोली...

संध्या --"गांव की तरफ जा रहे हो? आओ छोड़ देती हूं मैं।"

संध्या की बात सुनते हुए, अभि एक पल के लिए मुस्कुराया और फिर बोला।

अभि --"शुक्रिया आप का।"

कहते हुए अभि, अजय की तरफ मुड़ते हुए कुछ इशारा करता है। अजय अभि का इशारा समझ जाता है की वो पायल के साथ जा रहा है...

अजय भी मुस्कुराते हुए हां का इशारा करता है...और फिर अभि भी कार में जाकर बैठ जाता है।

अभि कार की आगे वाली सीट पर बैठा था, और पायल कार की पीछे वाली सीट पे। संध्या कार की ड्राइविंग सीट पर बैठी कार को स्टार्ट करते हुए गांव की तरफ बढ़ चलती है।

अभि का दिल बार बार पायल को देखने का कर रहा था। मगर पायल पीछे वाली सीट पर बैठी थी। उसके पास कोई बहाना भी नही था की वो पायल से कैसे बात करे? वो बेचैन था, और उस बेचैनी में वो बार बार कभी इधर देखता तो कभी उधर, मगर पीछे नहीं देख पा रहा था। उसकी बेचैनी संध्या समझ चुकी थी,

संध्या --"अरे पायल, इनसे मिली क्या तुम? ये तुम्हारे कॉलेज में ही पढ़ने आया है। और तुम्हारे ही क्लास में है।"

संध्या का इतना बोलना था की, अभय ने झट से पीछे मुड़ते हुए पायल को देखते हुए बोला...

अभि --"हाय...! तो तुम भी मेरे क्लास में पढ़ती हो?"

अभि का सवाल थोड़ा फनी था, पर उसने जान बूझ कर ये बोला था।

अभि की बात सुनकर पायल अपना मुंह दूसरे तरफ घुमाते हुए विंडो से बाहर देखते हुए बोली...

पायल --"मैं नही, तुम मेरे क्लास में पढ़ते हो।"

पायल की बात सुनकर, अभि मुस्कुराते हुए बोला...

अभि --"अच्छा ऐसा है क्या? वैसे तुम्हारा नाम क्या है?"

पायल अभी भी अभय की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रही थी, वो बस विंडो से बाहर ही देखते हुए बोली...

पायल --"लगता है तुम्हे कम सुनाई पड़ता है, अभि ठाकुराइन जी ने मेरा नाम लिया तुमने सुना नही क्या?"

पायल की बात सुनकर, संध्या कुछ बोलना तो चाहती थी। मगर अभय को अपने इतने करीब बैठा और खुश देख कर वो कुछ नही बोली। वो नही चाहती थी की उसकी बातो से अभि का दिमाग खराब हो।

अभि पायल को देखते हुए बोला...

अभि --"हां, वो तो सुना। पर अगर तुम अपने मुंहासे बताती तो मुझे खुशी होती।"

अभि की बात सुनकर पायल कुछ नही बोलती बस विंडो से बाहर ही देखती रहती है....
Bhoot khoob bhot khoob superb update hai bro
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To Sandhya janti hai PAYAL or ABHAY ke bare me (bhai ye to ajeeb bat hai Sandhya Ko kaise pta hai is bare me)
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To PAYAL janti hai ki ABHAYA ki Maa SANDHYA apne bete ki ache se khatirdari krti hai (LEKIN EK BAT SMJ NI AAY MUJHE AGAR SANDHYA APNE BETE ABHAY KO MARNE KE BAD DVA BI LGATI THI TO FIR BI YE NAFRAT KHA SE AAGY Hemantstar111 BRO JRA GOOR FARMAAY IS BAT PE)
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Dosti trf AJAY or ABHAY ka milan bi hogya or baki ke do dost or bi mil gy sath me ABHAY ne unko asliyat kisi ko bi na batane ke lye mna kr dia hai
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Idhar SANDYA apni car me PAYAL ko leke Jaa rhe hai or raste me ABHAY mil jata hai jise gaoo chlne ko bolti hai SANDHYA or ABHAY apni premika ko dekh ke chlne ke lye ha bol deta hai lekin PAYAL or ABHAY ki nazre mil jati hai bs is bat se SANDHYA ko shramsaar mahsoos hota hai Q ki Maa hoke usne apne he bete ke sath bhot ni bologa blki bhot hadd se jada glt kia hua hai jiske chalte aaj bi SANDHYA ki nazre apne bete ke samne jhuk jati hai or whe sb abi bi hua kuc na bol paay SANDHYA
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Ab ABHAY ne bi car ke ander PAYAL se hlki cherchard suru kr di
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Ab dekhte hai aage ky hota hai
 
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