अपडेट 19
अभय के सामने बैठी संध्या की नजर अभय पर ही टिकी थी, मगर अभय कही और ही व्यस्त था। अभय का मन कर रहा था की वो जा कर पायल से बात से बात करे। मगर सब वहा मौजूद थे इसलिए वो पायल के पास ना जा सका। जल्द ही खाने पीने की व्यवस्था भी हो गई, अभय के साथ संध्या भी खाना खा रही थी, पायल भी अपनी सहेलियों के साथ वही खड़ी थी, पर अब उसकी नजर अभय पर नही थी। लेकिन अभय की नजर लगातार पायल के उपर ही अटकी रहती थी।
जल्द ही खाना खा कर अभय, अजय के पास आ गया...
अजय --"भाई ये पायल को क्या हुआ? कुछ समझ में नहीं आवरा है। तुमने बता दिया क्या पायल को की तुम ही अभय हो?"
अभय --"अबे मैं क्यूं बताऊंगा, उल्टा मैं तुम लोगो को माना किया है की, किसी को पता न चले की मैं ही अभय हूं। पर क्यूं? क्या हुआ पायल को? क्या किया उसने?"
अजय --"अरे भाई पूछो मत, जब से तुम गए हो, तब से बेचारी के चेहरे से मानो मुस्कान ही चली गई थी। पर न जाने क्यूं आज उसने मुस्कुराया और उधर देखो कितनी खुश है वो।"
अभय ने अजय के इशारे की तरफ देखा तो पायल अपनी सहेलियों से बात करते हुए बहुत खुश नजर आ रही थी। अभय भी नही समझ पाया की आखिर पायल अचानक से क्यूं खुश हो गई?
अजय --"भाई मुझे ना तुमसे बात करना है?"
अभय --"मुझे पता है की, तुम लोगो को मुझसे किस बारे में बात करनी है? पर अभी मैं तुम्हारे किसी भी सवालों का जवाब नही दे सकता। हां मगर सही समय पे जरूर बताऊंगा।"
अजय --"ठीक है भाई, अगर तुम कहते हो तो नही पूछेंगे हम सब। मगर एक बात जो मुझे बहुत अंदर ही अंदर तड़पते जा रही है की, अगर तुम जिंदा हो, तो वो लाश किसकी थी जंगल में? जिसको तुम्हारे चाचा ने तुम्हारी लाश साबित कर दिया था?"
अजय की बात सुनकर, अभय कुछ देर तक सोचा और फिर बोला...
अभय --"सब पता चलेगा अजय, तू चिंता मत कर। ये खेल तो बहुत पहले से शुरू हो गया था। तुझे पता है, मैं यह एक खास काम से आया हूं, और उसमे मुझे लगेगी तुम लोगो की मदद।"
अभय की बात सुनकर, अजय और बाकी दोस्त चौंक से गए...
अजय --"खास काम...? कैसा काम?"
अभय --"अभि नही, कुछ दिन और फिर सब बता हूं।"
कहते अभय ने अपनी नजर घुमाई तो पाया की, उसकी मां उसकी तरफ ही बढ़ी चली आ रही थी।
संध्या जैसे ही अभय के नजदीक पहुंची...
संध्या --"मैं सोचब्रही थी की, घर जा रही थी तो, तुम्हे हॉस्टल छोड़ दूं।"
संध्या की बात सुनकर, अभय मुस्कुराते हुए बोला...
अभय --"आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है मैडम। मैं चला जाऊंगा । और वैसे भी हॉस्टल कौन सा दूर है यहां से।"
संध्या --"दूर तो नही है, पर फिर भी।"
कहते हुए संध्या का चेहरा उदासी में लटक गया। ये देख कर अभय ने कुछ सोचा और फिर बोला...
अभय --"ठीक है, अच्छी बात है। वैसे भी खाना खाने के बाद मुझे चलना पसंद नही है।"
ये सुनकर संध्या का चेहरा फूल की तरह खिल गया। वो झट से अपनी कार की तरफ बढ़ चली।
ये देखकर अजय बोला...
अजय --"भाई, तुम्हारी मां को पता...
अभय --"हां, उसको बताया तो नही है मैने, मगर उसको पता चल गया है की मैं ही अभय हूं। और अभि कुछ देर में उसे पूरी तरह से यकीन भी हो जायेगा की मैं ही अभय हूं। इसके लिए तो उसके साथ जा रहा हूं।"
अभय जैसे ही अपनी बात खत्म करता है, उसके बगल कार आ कर रुकती है। अभय ने अजय को और दोस्तो से विदा लिया और एक नजर पायल की तरफ देखा जो पायल उसे ही देख रही थी। ना जाने अभय को क्या हुआ की उसका हाथ उपर उठा और मुस्कुराते हुए पायल को बॉय का इशारा कर दिया। ये देख पायल भी झट से दूसरी तरफ मुंह करके घूम गई।
अभय मुस्कुराते हुए कार में बैठ गया और कार चल पड़ती है...
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संध्या कार चलाते हुए अपने मन में यही सोंचब्रही थी की क्या बोले वो?कुछ देर सोचने के बाद वो बोली...
संध्या --"वो लड़की, लगता है तुम्हे बहुत पसंद है? पूरा समय तुम्हारा ध्यान उस लड़की पर ही था।"
संध्या की बात सुनकर,,,
अभय --"और मुझे ऐसा लगता है की मैं आप को बहुत पसंद हु, आपका भी पूरा समय ध्यान मुझ पर था।"
ये सुनकर संध्या मुस्कुरा उठी, और झट से बोली...
संध्या --"वो...वो तो मैं। बस ऐसे ही देख रही थी।"
अभय --"पता है मुझे, मुझे तो ये पता है की आप ने मेरा उस बाग में भी पीछा किया था।"
अभय की बात सुनकर संध्या चौंक गई...
संध्या --"हां किया था। बस इसलिए की, मैं सोच रही थी की तुम इस गांव में नए आए हो तो देर शाम को उस बाग में क्या....?
अभय --"वो जानने नही गई थी तू!!"
संध्या की बात बीच में ही काटते हुए अभय बोला,
अभय --"तू वो जानने नही गई थी। सुर कुछ और है। तुझे लगता था की मैं तेरा बेटा हूं। और उस बाग में पीछा करते हुए जब तूने पायल को देखा तो तुझे पूरी तरह से यकीन हो गया की मैं ही अभय हूं। तो अब तू मेरे मुंह से भी से ले, हां मैं ही अभय हूं।"
ये सुनते ही संध्या ने एक जोरदार ब्रेक लगाते हुए कार को रोक देती है...
संध्या का शक यकीन में बदल गया था। और आज अभय के मुंह से सुनकर तो उसकी खुशी का ठिकाना ही न था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या बोले? वो तुरंत ही जोर जोर से रोने लगती है, और उसके मुंह से सिर्फ गिड़गिड़ाहट की आवाज ही निकल रही थी...
हाथ बढ़ाते हुए उसने अपना हाथ अभय के हाथ पर रखा तो अभय ने दूर झटक दिया। ये देख संध्या का दिल तड़प कर रह गया...
संध्या --"मुझे पता है, तुम मुझसे नाराज़ हो। मैने गलती ही ऐसी की है की, उसकी माफी नहीं है। तुम्हे मुझे जो सजा देनी है से दो, मारो, पीटो, काटो, जो मन में आए...मुझसे यूं नाराज न हो। बड़े दिनों बाद दिल को सुकून मिला है। लेकिन मेरी किस्मत तो देखो मैं मेरा बेटा मेरी आंखो के सामने है और मैं उसे गले भी नही लगा पा रही हूं। कैसे बताऊं तुम्हे की मैं कितना तड़प रही हूं?"
रोते हुऐ संध्या अपने दिल की हालत बयां कर रही थी। और अभय शांत बैठा उसकी बातो सुन रहा था।
संध्या ने जब देखा अभय कुछ नही बोल रहा है तो, उसका दिल और ज्यादा घबराने लगा। मन ही मन भगवान से यही गुहार लगी रही थी की, उसे उसका बेटा माफ कर दे...
संध्या --"मु...मुझे तो कुछ समझ ही नही आ रहा है की, मैं ऐसा क्या बोलूं या क्या करूं जिससे तुम मान जाओ। तुम है बताओ ना की मैं क्या करूं?"
ये सुनकर अभि हंसने लगा...अभि को इस तरह से हंसता देख संध्या का दिल एक बार फिर से रो पड़ा। वो समझ गई की, उसकी गिड़गिड़ाहट अभय के लिए मात्र एक मजाक है और कुछ नही. और तभी अभय बोला...
अभय --"कुछ नही कर सकती तू। हमारे रास्ते अलग है। और मेरे रास्ते पे तेरे कदमों के निशान भी न पड़ने दू मैं। और तू सब कुछ ठीक करने की बात करती है। मुझे तुझे कोई हमदर्दी नही है। तेरे ये आंसू मेरे लिए समुद्र का वो कतरा है है जो किसी काम का नही। क्या हुआ? कहा गई तेरी वो ठाकुरानो वाली आवाज? मुनीम इससे आज खाना मत देना। मुनीम आज इससे पेड़ से बांध कर रखना। अमन तू तो मेरा राजा बेटा है। आज से उस लड़की के साथ तुझे देखा तो तेरी खाल उधेड़ लूंगी।"
अभय --"मैं वो लड़की के साथ तब भी था, आज भी ही8, और कल भी रहूंगा। बहुत उधेड़ी है तूने मेरी खाल। अच्छा लग रहा है, बड़ा सुकून मिल रहा है, तेरी हालत देख कर। (अभय जोर से हंसते हुए) ...तुम ही बातो की मैं क्या करू? की तुम मान जाओ। हा... हा... हा। नौटंकी बाज़ तो तू है ही। क्या हुआ...वो तेरा राजा बेटा कहा गया? उससे प्यार नही मिल रहा है क्या अब तुझे? नही मिलता होगा, वो क्या है ना अपना अपना ही होता है, शायद तुझे मेरे जाने के पता चला होगा। अरे तुझे शर्म है क्या ? तू किस मुंह से मेरे सामने आती है, कभी खुद से पूछती है क्या? बेशर्म है तू, तुझे कुछ फर्क नही पड़ता...
संध्या बस चुप चाप बैठी मग्न हो कर रो रही थी मगर अब चिल्लाई...
"हा... हा बेशर्म हूं मैं, घटिया औरत हूं मैं। मगर तेरी मां हूं मैं। तू मुझे इसबतार नही छोड़ सकता। जन्म दिया है तुझे मैने। तेरी ये जिंदगी मुझसे जुड़ी है, इस तरह से अलग हो जाए ऐसा मैं होने नही दूंगी।"
संध्या की चिल्लाहट सुन कर, अभय एक बार मुस्कुराया और बोला...
अभय --"तो ठीक है, लगी रह तू अपनी जिंदगी को मेरी जिंदगी से जोड़ने में।"
ये कहते हुए अभय कार से जैसे ही नीचे उतरने को हुआ, संध्या ने अभय का हाथ पकड़ लिया। और किसी भिखारी की तरह दया याचना करते हुए अभय से बोली...
संध्या --"ना जा छोड़ के, कोई नही है तेरे सिवा मेरा। कुछ अच्छा नहीं लगता जब तू मेरे पास नहीं रहता। रह जा ना मेरे साथ, तू किसी कोने में भी रखेगा मुझे वहा पड़ा रहूंगी, सुखी रोटी भी ला कर देगा वो भी खा लूंगी, बस मुझे छोड़ कर ना जा। रुक जा ना, तेरे साथ रहने मन कर रहा है।"
संध्या की करुण वाणी अगर इस समय कोई भी सुन लेता तो शत प्रतिशत पिघल जाता, उसने अपने दिल के हर वो दर्द को शब्दो में बयान कर दी थी। इस बार अभि भी थोड़ा भाऊक हो कर बड़े ही प्यार से बोला...
अभय --"याद है तुझे, मैं भी कभी यही बोला करता था था तुझसे। जब रात को तू मुझे सुलाने आती थी। मैं भी तेरा हाथ पकड़ कर बोलता था, रह जा ना मां, तेरे साथ अच्छा लगता है। तू पास रहती है तो मुझे बहुत अच्छी नींद आती है, रुक जा ना मां, मेरे पास ही सो जा। मगर तू नही रुकती थी। रुकती भी कैसे? तुझे किसी और के साथ जो सोना था। अगर तू चाहती है तो बता आगे भी बोलूं की...
"नहीं...चुप हो जा। तेरे पैर पड़ती हूं।"
कहते हुए संध्या ने अभय का हाथ छोड़ दिया, और दूसरी तरफ मुंह घुमा लेती है। ना जाने क्या हुआ उसे, ना रो रही थी ना कुछ बोल रही थी, बस बेबस सी पड़ी थी....
उसकी हालत देख कर अभय एक बार फिर बोला...
अभय --"जाते जाते तुझे एक बात बता दूं। तू गुलाब का वो फूल है, जिसके चारो तरफ सिर्फ कांटे है। एक मैं ही था, जो तुझे उन कारों से बचा सकता था। मगर तूने मुझे पतझड़ में सूखे हुए उस पत्ते की तरह खुद से अलग कर दिया की मैं भी तेरे चारों तरफ बिछे काटों को देखकर सुकून महसूस करता हूं...
ये कहकर अभि वहा से चला जाता है, संध्या बेचारी अपनी नजर उठा कर अंधेरे में अपने बेटे को देखना चाही, मगर कार के बाहर उसे सिर्फ अंधेरा ही दिखा, शायद उसकी जिंदगी में भी यही था......