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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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kamdev99008

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भाई जी दुविधा दूर करने के लिए धन्यवाद।

इसका मतलब है कि आगे चल कर संध्या को अपने बेटे के से मिलने की संभावना है, एक गलती के लिए जिंदगी भर की नफरत नही मिलनी चाहिए।

इस अपडेट से एक बात और क्लियर हुई की अभय के पिता की मौत में भी रमन का ही हाथ है, संध्या इसमें शामिल नही है।
भ्रम में मत रहो.....
गलती का मतलब चुदाई नहीं...
क्योंकि वो जब घर से निकला तब वो जानता भी नहीं था कि चुदाई किस चिड़िया का नाम है....
गलत संध्या ने एक-दो बार नहीं बार-बार ही नहीं, हर बार किया... हमेशा किया
कभी रमन के कहने पर, कभी अमन के कहने पर और कभी मुनीम को मौका देकर
लेकिन एक बार भी... ध्यान दें, एक बार भी अपने बेटे से ना तो प्यार किया, ना भरोसा किया और ना ही कोई मौका दिया अपनी बात कहने तक का
अब इतने पश्चाताप और सुधार के बाद भी वो कुछ सही करने की बजाय गलत करने वालों रमन, मुनीम और अमन को कोई कठोर कदम या सजा के बदले मौके और मोहलत बांट रही है... जो कि उसने कभी अभय को नहीं दी

ये भ्रमित या बेवकूफ नहीं, कमीनी और मक्कार औरत है जो माँ के नाम पर कलंक है
इन्सेस्ट के नाम पर चुदाई के चुतियापे पर बहस करने की बजाय... कहानी की गम्भीरता और संध्या की मानसिकता पर गहराई तक जाने पर कहानी को समझा जा सकता है....
ये कहानी एडल्टरी, इन्सेस्ट नहीं एक सस्पैंस, थ्रिलर फैमिली ड्रामा है...
वरना तो यहाँ हजारों इन्सेस्ट, एडल्टरी थ्रेड बिना कहानी के सिर्फ करैक्टर्स के बीच चुदाई पर चल रही हैं और उन पर व्यूज कहानियों से ज्यादा हैं
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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अपडेट 22



संध्या अपने कमरे में बेड पर बैठी थी, उसके हाथो में अभी भी मोबाइल फोन था। वो पूरी तरह से टूट चुकी थी। निशब्द थी, उसके पास ऐसा कोई भी शब्द नही था जिसे बोल कर वो अपने बेटे को माना पाए। अपने घुटनों में अपना सिर छुपाए शायद वो अभी भिनरो रही थी। थोड़ी देर वो यूं ही रोती रही, उसके बाद संध्या अपने बेड पर से उठते हुए अपने कमरे से बाहर आ जाति है, उसके कदम उस कमरे की तरफ बढ़े, जो कभी वो अभय का कमरा हुआ करता था।


जल्द ही संध्या अभय के कमरे में दाखिल हो चुकी थी। संध्या उस कमरे में आकर अभय के बेड पर बैठ जाती है। जब से अभय घर छोड़ कर भाग था, उसके बाद से शायद आज संध्या पहेली बार अभय के कमरे में आई थी। वो धीरे से अभय के बेड पर लेट जाती है.... और अपनी आंखे बंद कर लेती है।

आज अभय उसके पास नही था, मगर संध्या को ऐसा लग रहा था मानो उसका बेटा उसके पास लेता है। संध्या को वो रात की बात याद आती......

एक रात जब वो अभय के कमरे में आई थी। उस वक्त अभय अपने कमरे में बेड पर बैठा एक आर्ट बुक में कुछ चित्र बना रहा था...

संध्या --"कितनी देर तक जागता रहेगा, चल अब सो जा। नही तो तू कल स्कूल ना जाने का बहाना बनाने लगेगा।"

अभय --"मां देखो ना, मैने तेरी तस्वीर बनाई है।"

संध्या --"बोला ना, सो जा। बाद में देख लूंगी। मुझे भी नींद आ रही है, अभि मैं जा रही हूं।"

ये बोल कर संध्या जैसे ही जाने को हुई...अभय ने संध्या का हाथ पकड़ लिया।

अभय --"मां...आज मेरे पास ही सो जा ना।"

अभय की बात सुनकर, संध्या अभय को बेड पर लिटाते हुए उसके ऊपर चादर डालते हुए बोली...

संध्या --"अब उतना भी बच्चा नहीं है तू, जो तुझे मेरे बिना नींद नहीं आएगी। सो जा चुप चाप।"

अचानक ही संध्या की आंखे खुल जाती है, और वो उठ कर बेड पर बैठ जाती है। बेड पर अपने हाथ पीटते हुए रो कर खुद से बोली...

"कैसी मां हूं मैं, मेरा बेटा मेरे पास रहें चाहता था। और मैं उसे खुद से दूर करती चली गई। क्यूं किया ऐसा मैने, क्यूं मैं उसे बेवजह पिटती रही, मेरे इतना पीटने के बाद भी वो क्यूं पायल से झूठ बोलता रहा की मैं उसको करने के बाद उसके जख्मों पे प्यार से मलहम लगाने आती थी। मैं इतना कैसे शख्त हो गई अपने ही बेटे के लिए?? क्यूं मुझे उसकी हर एक छोटी सी छोटी गलती पर गुस्सा आ जाता था। आज उसके ना होने पर मुझे समझ आ रहा है की मैने कितनी बड़ी गलती की है, गलती नही मैने तो गुनाह किया है। मैं कितना भी चाहूं, मैं उसे मना नहीं पा रही हूं, मुझसे तो वो नफरत भी नही करता, उसकी नजर मेरी कुछ भी अहमियत ही नही है, वो मुझे अपने नफरत के काबिल भी नही समझता। वो मुझे जो चाहे वो समझे...जिंदगी भर बात भी न करे तो भी मैं उसकी यादों में और उसे छुप छुप कर देख कर भी जी लूंगी....। पर मेरे बारे में वो ना समझे जो मुझे लग रहा है। ही भगवान.....क्या बीती होगी मेरे बच्चे पर जब उसने मुझे रमन के साथ देखा होगा? छी:......धिक्कार है मुझ पर। अब तक तो मै समझाती थी की, वो मुझसे इसलिए नाराज था या घर छोड़ कर भाग था की, मैं उसे पिटती थी। मगर आज उसके आखिरी शब्द ने वो असलियत बयान कर दी की, वो मुझसे दूर क्यूं भागा ? मेरी जिस्म की आग ने मेरा सब कुछ डूबो दिया। काश मैं उसे समझा पाती की कुछ समय के लिए मैं बहक गई थी। खुद में नही थी। कैसे समझाऊंगी उसे, घिनौना काम तो घिनौना ही होता है चाहे लंबे अरसे का हो या कुछ समय का। हे भगवान.....अब तो मैं उसे अपना मुंह भी दिखाने के लायक नही रही । क्या करूं.... कहां जाऊं।"

सोचते हुए संध्या अभय के बेड पर ही...रोते रोते सो जाती है....

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सुबह जब संध्या की नींद खुलती है, तो झट से अभय के बेड पर उठ कर बैठ जाती है। उसका सिर काफी भरी लग रहा था, और हल्का हल्का दुख भी रहा था। वो अपना सिर पकड़े बैठी ही थी की तभी दरवाजे पे खटखटाहट....

संध्या --"कौन है.....?

"मैं ही भाभी...."

संध्या बेड पर से उठते हुए.....दरवाजा खोलते हुए वापस बेड पर आकर बैठ जाती है। रमन भी संध्या के पीछे पीछे कमरे में दाखिल होता है।


रमन --"क्या हुआ भाभी...? आज अभय के कमरे में ही सो गई थी क्या?"

रमन की बात सुनकर......

संध्या --"अभय कोरे और तेरे रिश्ते के बारे में कैसा पता चला?"

संध्या थोड़ा गुस्से भरी लहजे में बोली, जिसे सुनकर रमन एक पल के लिए हैरान हो गया।

रमन --"क्या बोल रही हो भाभी तुम? मुझे क्या मालूम अभय को.....अच्छा, तो वो छोकरा फिर से तुम्हे मिला था। जिसे तुम अपना बेटा समझती हो, जरूर उसी ने फिर से कोई खेल खेला है।"

संध्या --"मैने पूछा, अभय को हमारे संबंध के बारे में कैसे पता चला....।"

धीरे धीरे संध्या की आवाज तेज होने लगी थी, उसके चेहरे पे गुस्से के बदल उमड़ पड़े थे। संध्या की गुस्से से भरी बात सुनकर, इस बार रमन भी अकड़ कर बोला.....

रमन --"अरे कैसा संबंध, तुम तो ऐसी बात कर रही हो जैसे हमारा बरसो पुराना प्यार चल रहा हो,। कुत्ते की तरह तुम्हारे पीछे लगा रहता था। कर तुम्हे नही पता की हमारा कितने दिन का संबंध था? बगीचे का वो दिन याद है, क्या बोली थी तुम? निरोध नही है तो नही करेंगे, इसको तुम संबंध कहती हो। फिर उसके बाद उस रात किसी तरह मैंने तुम्हे एक बार फिर मनाया, सोचा रात भर प्यार करूंगा इसके लिए निरोध का पूरा डब्बा ले आया। पर फिर तुमने क्या बोला? हो गया तेरा...अब जा यह से, और थोड़ा बच बचा कर जाना कही अभय ना देख ले। एक पल के अहसास को तुम संबंध कहती हो, साला वो निरोध का डिब्बा आज भी वैसे ही पड़ा है। और तुम संबंध की बात करती हो।"

संध्या --"मैं यहां तुम्हारा बकवास सुनने नही बैठी हूं, और एक बात। उस रात तो अभय घर आया ही नहीं, मतलब उसने हम्बदोनो को बगीचे में ही देखा था।"

इस बार रमन की हवा खराब हुई थी, शायद गांड़ भी फटी हो, मगर उसकी आवाज नही आती इसके लिए पता नही चला...

संध्या --"अगर अभय वहा इत्तेफाक से पहुंचा होगा, तो बात की बात। पर अगर किसी ने उसे....??"

रमन --"भा...भाभी तुम मुझ पर शक कर रही हो?"

संध्या जेड2"मेरी जिंदगी जहन्नुम बन चुकी है, कुछ भी नही रहा, मैं कुछ भी कर सकती हूं।"

इतना बोल कर संध्या वहा से चली जाति है....

संध्या के जाते ही, रमन अपने जेब से मोबाइल फोन निकलते हुए एक नंबर मिलता है। उसके चेहरे के भाव से पता चला रहा था की वो काफी घबरा गया है,

रमन --"हेलो... मु...मुनीम। कुछ पता चला उस छोकरे के बारे में?"

दूसरी तरफ से मुनीम ने कुछ बोला.....

रमन --"कुछ नही पता चला तो पता करो, नही तो उसे रास्ते से हटा दो।"

बोलते हुए रमन ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया, और जैसे ही कमरे से बाहर जाने के लिए कदम बढ़ाया, उसे दरवाजे पर ललिता खड़ी दिखी...

मटकाती हुई ललिता कमरे में दाखिल हुई, और रमन के गले में हाथ डालते हुई बोली...

ललिता --"जिसको रास्ते से हटाना चाहिए, उसे क्यों नही हटा रहे हो मेरी जान?"

रमन --"क्या मतलब...?"

ललीता --"अपनी प्यारी भाभी...."

ललिता बोल ही रही थी की, एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर रसीद हो गए...

रमन --"साली, ज्यादा जुबान चलाने लगी है, तुझे पता है ना, की वो मेरी जान है...उसमे जान अटकी है मेरी। उसका बदन... आह, क्या कयामत है? और तू....!!"

ये सुनकर ललिता एक जहरीली मुस्कान की चादर अपने चेहरे पर ओढ़ते हुए बोली...

ललीता --"एक बार किस्मत मेहरबान हुई थी तुम पर, पर क्या हुआ ?? तुम्हारे लंड पर चढ़े उस निरोध ने तुम्हारी भाभी की गर्म और रसभरी चूत का मजा चख लिया, और अब तो तुम्हे उस चूत का मूत भी नसीब होने रहा।"

ललिता की बात सुनकर, रमन गुस्से में बौखलाया बोला...

रमन --"वो सिर्फ मेरी है, एक दिन मैं उसे अपना जरूर बनाऊंगा, और उसके लिए मैं क्या क्या कर सकता हूं, ये बात तू अच्छी तरह से जानती है। रास्ते का कांटा वो छोरा है...उसे निकाल कर फेंकना पड़ेगा नही तो वो यूं ही भाभी की जुबान बन कर चुभता रहेगा.....!!"

कहते हुए रमन कमरे से बाहर चला जाता है......
Bohot khoob, Great Writing skills and amazing update .
Bas kami hai To update Ki regularity Ka.
👌👌👌👌💥💥💥💥
 

chudkad baba

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सन्ध्या ये सोचने की कोशिस ही नही कर रही अगर वो गलत है तो अब कैसे वो खुद को सही साबित करे । अपने बेटे की नजर में।
Jab abhay ne dono ko chudai karte dekh liya hai to apni galti ko kaise sahi sabit kar sakti hai

Apne ko Sahi tab sabit karti jab Sandhya Galt nhi hoti aur abhay ko kisi ne ykin dilaya hota ki Sandhya Galt hai aur abhay un baato ko Bina dekhe sach manta
 

Studxyz

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कहानी में षड्यन्त्र किसी उंच्चे दर्जे का है इस से निपटना चुतियानी संध्या के बस का नही आगे के अपडेट बताएँगे की अभय कैसे इन काँटों को निकल कर षड्यंत्र का भांडा फोड़ता है

और मालती तो गायब ही कर दी वो अलबेले को चुदायी के ट्रेनिंग देने में अहम भूमिका निभा सकती है
 
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Mink

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भ्रम में मत रहो.....
गलती का मतलब चुदाई नहीं...
क्योंकि वो जब घर से निकला तब वो जानता भी नहीं था कि चुदाई किस चिड़िया का नाम है....
गलत संध्या ने एक-दो बार नहीं बार-बार ही नहीं, हर बार किया... हमेशा किया
कभी रमन के कहने पर, कभी अमन के कहने पर और कभी मुनीम को मौका देकर
लेकिन एक बार भी... ध्यान दें, एक बार भी अपने बेटे से ना तो प्यार किया, ना भरोसा किया और ना ही कोई मौका दिया अपनी बात कहने तक का
अब इतने पश्चाताप और सुधार के बाद भी वो कुछ सही करने की बजाय गलत करने वालों रमन, मुनीम और अमन को कोई कठोर कदम या सजा के बदले मौके और मोहलत बांट रही है... जो कि उसने कभी अभय को नहीं दी

ये भ्रमित या बेवकूफ नहीं, कमीनी और मक्कार औरत है जो माँ के नाम पर कलंक है
इन्सेस्ट के नाम पर चुदाई के चुतियापे पर बहस करने की बजाय... कहानी की गम्भीरता और संध्या की मानसिकता पर गहराई तक जाने पर कहानी को समझा जा सकता है....
ये कहानी एडल्टरी, इन्सेस्ट नहीं एक सस्पैंस, थ्रिलर फैमिली ड्रामा है...
वरना तो यहाँ हजारों इन्सेस्ट, एडल्टरी थ्रेड बिना कहानी के सिर्फ करैक्टर्स के बीच चुदाई पर चल रही हैं और उन पर व्यूज कहानियों से ज्यादा हैं
Bhai mein aapke baat se sahmat hu ki yeah normal incest story na hoke suspence thirller ki aur ja rahi hai aur iska yeah sabut hai ki abhay ka baap apne marne se pahle aakhri raat apne bete ke paas gaya tha sone aur usko shayad pata tha ki ab woh kal ka suraj na dekh payega aur isi ke chalte woh apne bete ko iss chiz ko hint de gaya hai ki uske jeevan ke kuch panne abhi bhi dafan hai aur kahin na kahin yeah raaj sandhya, sandhya ka pati (sorry uska naam bhul gaya), Raman aur lalita ke ird gird ghum raha hai aur kahin na kahin aman bhi us raaj ka fal ho sakta hai.... Aur kahin na kahin Abhay ke baaton ke upar sandhya ka vishvas na karna Raman aur Aman ke prati uska praghad prem ho sakta hai ya phir woh bholi ( haan chutiya bhi kah sakte hein) hai
 

Mink

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Ek baat kisi ke nazar mein aaya ki nahi pata nahi malti ka pati ka ek baar bhi jikr nahi hua aur kabhi bhi kahin bhi woh nazar nahi aaya gaon wale scene mein chahe usko apahiz ya mand buddhi ki tarah depict kiya ho lekin koi aeda ho kar peda khaane wala ho toh kya kehne. Kyun ki akhir hai toh wo bhi Raman ka chota bhai.
 

Mink

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Sandhya aur Raman ke bich ke sambandh ko Lalita bhi jaanti hai Magar kabhi bhi woh Sandhya ka jahir nahi kari ki woh uske pati aur Jethani ke kaale Karaname ko jaanti hai aur yeah bhi hai ki Abhay ka ghar se bhaag jaana Raman aur Sandhya ko baad mein pata chala magar Aman ye baat jaanta tha aur shayad lalita bhi aur fir uske agle hi din jungle se abhaya ka hum umar bacche ki laash wo bhi chehra kharab hui ho jisko koi bhi na pahachan na pana aur yeah bhi hai ki ajay apne dost ko apna gut feeling bata raha tha ki abhay kabhi janwar ke humle mein nahi mar sakta kyunki abhay ke pita ne... Itna bol kar woh bhi suspence mein humko chood diya hai. So jo dikhta hai kahani itna sidha nahi aur hum log bas sandhya ke charitra ke baare mein baat kar rahe hei jiske ittar itne saare suspence humare aage khula hua hai.
 

Mink

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Mein ek aur baat add karna chahunga ki abhay ke dada apne teeno beton ko chhod kar apni badi bahu ko apne baad thakur parivar ki jimmedari di kyun ? Aur agar unko Raman charitra pata tha aur chotte bete ke biklaang hone se dukkh tha toh unka bada beta toh unke jaisa hi thaa na toh thakur ke baad saari jamin aur jayedad ka sambhalne ka jimma Sandhya ke paas aayi jabki woh shaadi bhi iss shart pe ki thi usko shaadi ke baad aur padhna hai...
 

chandu2

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Are yaar ab jo writer mahoday ne kah diya ki galti se ek baar hi chudi thi to bhai man lo aur stories ko aage badne do aur

Ab jab munim abhay ko marne Jaye to abhay munim dwara kiye julm ko yaad kar itna usko itna mare ki Raman ki bhi ruh kamp jaaye

Waise bhi hum incest lover ko dusro ki chudai me koi interest nhi

Ab to hume sirf, Sandhya, lalit, malti, nidhi, payal, Rekha ko abhay se chudte dekhna hai bas

Bas writer mahoday abhay aur Sandhya ko ek kharoch tak lagane na de

kahi yesa na ho ki writer mahoday abhay ko munim dwara pitwa kar hospital bhej de aur

Sandhya rote huye din raat bhookhi pyasi abhay ki hospital me sewa kare taki dono ke bich nafart kam ho

Abhay ko Raman ki puri sajish ka pata uske pita ke swal se pata chal tab abhay ko Lage ki uski ma chahe Raman se 100 baar bhi chudi ho Raman ki sajish man kar use dhire dhire sudharne ka mauka de
 
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