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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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chandu2

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Sandhya aur Raman ke bich ke sambandh ko Lalita bhi jaanti hai Magar kabhi bhi woh Sandhya ka jahir nahi kari ki woh uske pati aur Jethani ke kaale Karaname ko jaanti hai aur yeah bhi hai ki Abhay ka ghar se bhaag jaana Raman aur Sandhya ko baad mein pata chala magar Aman ye baat jaanta tha aur shayad lalita bhi aur fir uske agle hi din jungle se abhaya ka hum umar bacche ki laash wo bhi chehra kharab hui ho jisko koi bhi na pahachan na pana aur yeah bhi hai ki ajay apne dost ko apna gut feeling bata raha tha ki abhay kabhi janwar ke humle mein nahi mar sakta kyunki abhay ke pita ne... Itna bol kar woh bhi suspence mein humko chood diya hai. So jo dikhta hai kahani itna sidha nahi aur hum log bas sandhya ke charitra ke baare mein baat kar rahe hei jiske ittar itne saare suspence humare aage khula hua hai.
Bhai lalit ko sirf jayjad chahiye apne bete ke liye aur Raman ko Sandhya ye sara plan Raman ka nhi lalit ka hi hai

kyoki lalit janti thi ki Jab abhay hi nhi rahega to lalit aur Raman ko jo chahiye tha mil jayega
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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भ्रम में मत रहो.....
गलती का मतलब चुदाई नहीं...
क्योंकि वो जब घर से निकला तब वो जानता भी नहीं था कि चुदाई किस चिड़िया का नाम है....
गलत संध्या ने एक-दो बार नहीं बार-बार ही नहीं, हर बार किया... हमेशा किया
कभी रमन के कहने पर, कभी अमन के कहने पर और कभी मुनीम को मौका देकर
लेकिन एक बार भी... ध्यान दें, एक बार भी अपने बेटे से ना तो प्यार किया, ना भरोसा किया और ना ही कोई मौका दिया अपनी बात कहने तक का
अब इतने पश्चाताप और सुधार के बाद भी वो कुछ सही करने की बजाय गलत करने वालों रमन, मुनीम और अमन को कोई कठोर कदम या सजा के बदले मौके और मोहलत बांट रही है... जो कि उसने कभी अभय को नहीं दी

ये भ्रमित या बेवकूफ नहीं, कमीनी और मक्कार औरत है जो माँ के नाम पर कलंक है
इन्सेस्ट के नाम पर चुदाई के चुतियापे पर बहस करने की बजाय... कहानी की गम्भीरता और संध्या की मानसिकता पर गहराई तक जाने पर कहानी को समझा जा सकता है....
ये कहानी एडल्टरी, इन्सेस्ट नहीं एक सस्पैंस, थ्रिलर फैमिली ड्रामा है...
वरना तो यहाँ हजारों इन्सेस्ट, एडल्टरी थ्रेड बिना कहानी के सिर्फ करैक्टर्स के बीच चुदाई पर चल रही हैं और उन पर व्यूज कहानियों से ज्यादा हैं
अरे भईया

दूसरे का गुस्सा हम पर काहे उतार रहे हो, हम कभी इस बहस में पड़े ही नही की ये इंसेस्ट है या एडल्ट्री।

मेरा मतलब बस इससे था कि संध्या हैबिचुअल सेक्स करती है या नहीं इसका गड़बड़झाला हो रहा था।

गलती तो उसने पूरी जिंदगी की है, अब कपड़े पहन के की या उतार के, की तो है ही, हम उसको कोई क्लीन चिट नही दे रहे हैं, मेरा आशय बस ये था कि अगर जो वो इस दलदल में नही है, तो वो अभय के बहुत काम आयेगी आगे। वरना अगर जो खुद ही वो दलदल में गिरी हुई है तो फिर अभय के दुश्मनों में एक ही रहेगी।
 

Tiger 786

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अपडेट 22



संध्या अपने कमरे में बेड पर बैठी थी, उसके हाथो में अभी भी मोबाइल फोन था। वो पूरी तरह से टूट चुकी थी। निशब्द थी, उसके पास ऐसा कोई भी शब्द नही था जिसे बोल कर वो अपने बेटे को माना पाए। अपने घुटनों में अपना सिर छुपाए शायद वो अभी भिनरो रही थी। थोड़ी देर वो यूं ही रोती रही, उसके बाद संध्या अपने बेड पर से उठते हुए अपने कमरे से बाहर आ जाति है, उसके कदम उस कमरे की तरफ बढ़े, जो कभी वो अभय का कमरा हुआ करता था।


जल्द ही संध्या अभय के कमरे में दाखिल हो चुकी थी। संध्या उस कमरे में आकर अभय के बेड पर बैठ जाती है। जब से अभय घर छोड़ कर भाग था, उसके बाद से शायद आज संध्या पहेली बार अभय के कमरे में आई थी। वो धीरे से अभय के बेड पर लेट जाती है.... और अपनी आंखे बंद कर लेती है।

आज अभय उसके पास नही था, मगर संध्या को ऐसा लग रहा था मानो उसका बेटा उसके पास लेता है। संध्या को वो रात की बात याद आती......

एक रात जब वो अभय के कमरे में आई थी। उस वक्त अभय अपने कमरे में बेड पर बैठा एक आर्ट बुक में कुछ चित्र बना रहा था...

संध्या --"कितनी देर तक जागता रहेगा, चल अब सो जा। नही तो तू कल स्कूल ना जाने का बहाना बनाने लगेगा।"

अभय --"मां देखो ना, मैने तेरी तस्वीर बनाई है।"

संध्या --"बोला ना, सो जा। बाद में देख लूंगी। मुझे भी नींद आ रही है, अभि मैं जा रही हूं।"

ये बोल कर संध्या जैसे ही जाने को हुई...अभय ने संध्या का हाथ पकड़ लिया।

अभय --"मां...आज मेरे पास ही सो जा ना।"

अभय की बात सुनकर, संध्या अभय को बेड पर लिटाते हुए उसके ऊपर चादर डालते हुए बोली...

संध्या --"अब उतना भी बच्चा नहीं है तू, जो तुझे मेरे बिना नींद नहीं आएगी। सो जा चुप चाप।"

अचानक ही संध्या की आंखे खुल जाती है, और वो उठ कर बेड पर बैठ जाती है। बेड पर अपने हाथ पीटते हुए रो कर खुद से बोली...

"कैसी मां हूं मैं, मेरा बेटा मेरे पास रहें चाहता था। और मैं उसे खुद से दूर करती चली गई। क्यूं किया ऐसा मैने, क्यूं मैं उसे बेवजह पिटती रही, मेरे इतना पीटने के बाद भी वो क्यूं पायल से झूठ बोलता रहा की मैं उसको करने के बाद उसके जख्मों पे प्यार से मलहम लगाने आती थी। मैं इतना कैसे शख्त हो गई अपने ही बेटे के लिए?? क्यूं मुझे उसकी हर एक छोटी सी छोटी गलती पर गुस्सा आ जाता था। आज उसके ना होने पर मुझे समझ आ रहा है की मैने कितनी बड़ी गलती की है, गलती नही मैने तो गुनाह किया है। मैं कितना भी चाहूं, मैं उसे मना नहीं पा रही हूं, मुझसे तो वो नफरत भी नही करता, उसकी नजर मेरी कुछ भी अहमियत ही नही है, वो मुझे अपने नफरत के काबिल भी नही समझता। वो मुझे जो चाहे वो समझे...जिंदगी भर बात भी न करे तो भी मैं उसकी यादों में और उसे छुप छुप कर देख कर भी जी लूंगी....। पर मेरे बारे में वो ना समझे जो मुझे लग रहा है। ही भगवान.....क्या बीती होगी मेरे बच्चे पर जब उसने मुझे रमन के साथ देखा होगा? छी:......धिक्कार है मुझ पर। अब तक तो मै समझाती थी की, वो मुझसे इसलिए नाराज था या घर छोड़ कर भाग था की, मैं उसे पिटती थी। मगर आज उसके आखिरी शब्द ने वो असलियत बयान कर दी की, वो मुझसे दूर क्यूं भागा ? मेरी जिस्म की आग ने मेरा सब कुछ डूबो दिया। काश मैं उसे समझा पाती की कुछ समय के लिए मैं बहक गई थी। खुद में नही थी। कैसे समझाऊंगी उसे, घिनौना काम तो घिनौना ही होता है चाहे लंबे अरसे का हो या कुछ समय का। हे भगवान.....अब तो मैं उसे अपना मुंह भी दिखाने के लायक नही रही । क्या करूं.... कहां जाऊं।"

सोचते हुए संध्या अभय के बेड पर ही...रोते रोते सो जाती है....

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सुबह जब संध्या की नींद खुलती है, तो झट से अभय के बेड पर उठ कर बैठ जाती है। उसका सिर काफी भरी लग रहा था, और हल्का हल्का दुख भी रहा था। वो अपना सिर पकड़े बैठी ही थी की तभी दरवाजे पे खटखटाहट....

संध्या --"कौन है.....?

"मैं ही भाभी...."

संध्या बेड पर से उठते हुए.....दरवाजा खोलते हुए वापस बेड पर आकर बैठ जाती है। रमन भी संध्या के पीछे पीछे कमरे में दाखिल होता है।


रमन --"क्या हुआ भाभी...? आज अभय के कमरे में ही सो गई थी क्या?"

रमन की बात सुनकर......

संध्या --"अभय कोरे और तेरे रिश्ते के बारे में कैसा पता चला?"

संध्या थोड़ा गुस्से भरी लहजे में बोली, जिसे सुनकर रमन एक पल के लिए हैरान हो गया।

रमन --"क्या बोल रही हो भाभी तुम? मुझे क्या मालूम अभय को.....अच्छा, तो वो छोकरा फिर से तुम्हे मिला था। जिसे तुम अपना बेटा समझती हो, जरूर उसी ने फिर से कोई खेल खेला है।"

संध्या --"मैने पूछा, अभय को हमारे संबंध के बारे में कैसे पता चला....।"

धीरे धीरे संध्या की आवाज तेज होने लगी थी, उसके चेहरे पे गुस्से के बदल उमड़ पड़े थे। संध्या की गुस्से से भरी बात सुनकर, इस बार रमन भी अकड़ कर बोला.....

रमन --"अरे कैसा संबंध, तुम तो ऐसी बात कर रही हो जैसे हमारा बरसो पुराना प्यार चल रहा हो,। कुत्ते की तरह तुम्हारे पीछे लगा रहता था। कर तुम्हे नही पता की हमारा कितने दिन का संबंध था? बगीचे का वो दिन याद है, क्या बोली थी तुम? निरोध नही है तो नही करेंगे, इसको तुम संबंध कहती हो। फिर उसके बाद उस रात किसी तरह मैंने तुम्हे एक बार फिर मनाया, सोचा रात भर प्यार करूंगा इसके लिए निरोध का पूरा डब्बा ले आया। पर फिर तुमने क्या बोला? हो गया तेरा...अब जा यह से, और थोड़ा बच बचा कर जाना कही अभय ना देख ले। एक पल के अहसास को तुम संबंध कहती हो, साला वो निरोध का डिब्बा आज भी वैसे ही पड़ा है। और तुम संबंध की बात करती हो।"

संध्या --"मैं यहां तुम्हारा बकवास सुनने नही बैठी हूं, और एक बात। उस रात तो अभय घर आया ही नहीं, मतलब उसने हम्बदोनो को बगीचे में ही देखा था।"

इस बार रमन की हवा खराब हुई थी, शायद गांड़ भी फटी हो, मगर उसकी आवाज नही आती इसके लिए पता नही चला...

संध्या --"अगर अभय वहा इत्तेफाक से पहुंचा होगा, तो बात की बात। पर अगर किसी ने उसे....??"

रमन --"भा...भाभी तुम मुझ पर शक कर रही हो?"

संध्या जेड2"मेरी जिंदगी जहन्नुम बन चुकी है, कुछ भी नही रहा, मैं कुछ भी कर सकती हूं।"

इतना बोल कर संध्या वहा से चली जाति है....

संध्या के जाते ही, रमन अपने जेब से मोबाइल फोन निकलते हुए एक नंबर मिलता है। उसके चेहरे के भाव से पता चला रहा था की वो काफी घबरा गया है,

रमन --"हेलो... मु...मुनीम। कुछ पता चला उस छोकरे के बारे में?"

दूसरी तरफ से मुनीम ने कुछ बोला.....

रमन --"कुछ नही पता चला तो पता करो, नही तो उसे रास्ते से हटा दो।"

बोलते हुए रमन ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया, और जैसे ही कमरे से बाहर जाने के लिए कदम बढ़ाया, उसे दरवाजे पर ललिता खड़ी दिखी...

मटकाती हुई ललिता कमरे में दाखिल हुई, और रमन के गले में हाथ डालते हुई बोली...

ललिता --"जिसको रास्ते से हटाना चाहिए, उसे क्यों नही हटा रहे हो मेरी जान?"

रमन --"क्या मतलब...?"

ललीता --"अपनी प्यारी भाभी...."

ललिता बोल ही रही थी की, एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर रसीद हो गए...

रमन --"साली, ज्यादा जुबान चलाने लगी है, तुझे पता है ना, की वो मेरी जान है...उसमे जान अटकी है मेरी। उसका बदन... आह, क्या कयामत है? और तू....!!"

ये सुनकर ललिता एक जहरीली मुस्कान की चादर अपने चेहरे पर ओढ़ते हुए बोली...

ललीता --"एक बार किस्मत मेहरबान हुई थी तुम पर, पर क्या हुआ ?? तुम्हारे लंड पर चढ़े उस निरोध ने तुम्हारी भाभी की गर्म और रसभरी चूत का मजा चख लिया, और अब तो तुम्हे उस चूत का मूत भी नसीब होने रहा।"

ललिता की बात सुनकर, रमन गुस्से में बौखलाया बोला...

रमन --"वो सिर्फ मेरी है, एक दिन मैं उसे अपना जरूर बनाऊंगा, और उसके लिए मैं क्या क्या कर सकता हूं, ये बात तू अच्छी तरह से जानती है। रास्ते का कांटा वो छोरा है...उसे निकाल कर फेंकना पड़ेगा नही तो वो यूं ही भाभी की जुबान बन कर चुभता रहेगा.....!!"

कहते हुए रमन कमरे से बाहर चला जाता है......
Superb update
 

Mink

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Bhai lalit ko sirf jayjad chahiye apne bete ke liye aur Raman ko Sandhya ye sara plan Raman ka nhi lalit ka hi hai

kyoki lalit janti thi ki Jab abhay hi nhi rahega to lalit aur Raman ko jo chahiye tha mil jayega
Wahi toh bol raha hun ki sajish hai woh bhi gahri aur kisi ek ya do ka nahi hai kuch abhi bhi chipe hue hain aur do ab saamne aaye aur ye na bhulna ki kahin abhaya ke dada ka koi bhai ya koi najayj baccha na ho joh is parivaar ko bikharna chahti ho. Aise hi har vyakti ka apna apna maksad hota hai aur unka intent hi usko positive ya negative character banata hai.
 

chandu2

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Bhai chahe Sandhya jism ki aag me bahak kar chudi ho ya apni marzi se

sala Raman ki chudai ka chepter band to hua

Ab Sandhya Raman ya kisi ki baat pr yakin na kare aur Sandhya ke samne ab Raman Aman Lalita, munim ki bhi kuchh sachchai samne aaye par Sandhya unko pata na lagne de

aur abhay aur Sandhya dono apne apne tarike se sab ki gaand mare aur unko pata bhi na chale

Aur sabse pahle abhay Lalit ki rasbhari chut ka bhosda banaye jisse lalit jayjad, Aman Raman ko bhool kar abhay ki randi ban jaye aur Raman ki har chal abhay ko batay
 
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Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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Nice story
Waiting for next update
 

chudkad baba

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Sala mere to dimag kharab ho Raha hai ki readers yaha chudai ki stories padne aaye hai ki stories me galti nikalne aur agar kisi ko stories pasand nhi aa raha to na pade

Ye writer par hai ki apni stories ko jaise likhe Hume to sirf dhulai aur incest chudai se matlab hona chahiye

Writer apne hisab se har raz khole

bas ab Sandhya kisi pr yakin na kare aur sachchai pata lagane ki kosish kare ki abhay ko aakhir dono ke rishte ke baare me pata kaise chala tab Raman ki sachchai uske samne aayegi

Aur jab college me abhay Aman ki dhulai kare to ab use Aman ki koi parwah na ho

Bas writer mahoday abhay aur Sandhya ko ek kharoch tak na lagne de
 
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kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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अरे भईया

दूसरे का गुस्सा हम पर काहे उतार रहे हो, हम कभी इस बहस में पड़े ही नही की ये इंसेस्ट है या एडल्ट्री।

मेरा मतलब बस इससे था कि संध्या हैबिचुअल सेक्स करती है या नहीं इसका गड़बड़झाला हो रहा था।

गलती तो उसने पूरी जिंदगी की है, अब कपड़े पहन के की या उतार के, की तो है ही, हम उसको कोई क्लीन चिट नही दे रहे हैं, मेरा आशय बस ये था कि अगर जो वो इस दलदल में नही है, तो वो अभय के बहुत काम आयेगी आगे। वरना अगर जो खुद ही वो दलदल में गिरी हुई है तो फिर अभय के दुश्मनों में एक ही रहेगी।
भाई गुस्सा नहीं... सिर्फ पाइंट क्लीयर कर रहा था...
 
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